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दशरथकृत शनन स्तोत्र हहन्दी ऩद्य रूऩान्तरण हे श्यामवणणवाऱे, हे नीऱ कण्ठ वाऱे। काऱाग्नन रूऩ वाऱे, हल्क शरीर

वाऱे॥ े स्वीकारो नमन मेरे, शननदे व हम तुम्हारे । सच्चे सकमण वाऱे हैं, मन से हो तम हमारे ॥ ु ु स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे दाढी-मछों वाऱे, ऱम्बी जटायें ऩाऱे। ू हे दीघण नेत्र वाऱे, शुष्कोदरा ननराऱे॥ भय आकृनत तम्हारी, सब ऩापऩयों को मारे । ु स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे ऩष्ट दे हधारी, स्थऱ-रोम वाऱे। ु ू कोटर सुनेत्र वाऱे, हे बज्र दे ह वाऱे॥ तुम ही सुयश हदऱाते, सौभानय क ससतारे । े स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हे घोर रौद्र रूऩा, भीषण कऩासऱ भऩा। ू हे नमन सवणभऺी बसऱमख शनी अनऩा ॥ ु ू हे भक्तों क सहारे , शनन! सब हवाऱे तेरे। े हैं ऩज्य चरण तेरे। ू

स्वीकारो नमन मेरे॥ हे सूय-सुत तऩस्वी, भास्कर क भय मनस्वी। ण े हे अधो दृग्ष्ट वाऱे, हे पवश्वमय यशस्वी॥ पवश्वास श्रध्दा अपऩणत सब कछ तू ही ननभाऱे। ु स्वीकारो नमन मेरे। हे ऩज्य दे व मेरे॥ ू अनततेज खड्गधारी, हे मन्दगनत सुप्यारी। तऩ-दनध-दे हधरी, ननत योगरत अऩारी॥ संकट पवकट हटा दे , हे महातेज वाऱे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥ ननतपियसधा में रत हो, अतग्प्त में ननरत हो। ु ृ हो ऩूज्यतम जगत में , अत्यंत करुणा नत हो॥ हे ऻान नेत्र वाऱे, ऩावन िकाश वाऱे। स्वीकारो भजन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे॥ ग्जस ऩर िसन्न दृग्ष्ट, वैभव सयश की वग्ष्ट। ु ृ वह जग का राज्य ऩाये, सम्राट तक कहाये॥ उत्ताम स्वभाव वाऱे, तुमसे नतसमर उजाऱे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ हो व दृग्ष्ट ग्जसऩै, तत्ऺण पवनष्ट होता। समट जाती राज्यसत्ता, हो क सभखारी रोता॥ े डूबे न भक्त-नैय्या ऩतवार दे बचा ऱे। स्वीकारो नमन मेरे।

शनन ऩज्य चरण तेरे॥ ू हो मूऱनाश उनका, दबुग्ध्द होती ग्जन ऩर। ु ण हो दे व असर मानव, हो ससध्द या पवद्याधर॥ ु दे कर िसन्नता िभु अऩने चरण ऱगा ऱे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे॥ होकर िसन्न हे िभ! वरदान यही दीजै। ु बजरं ग भक्त गण को दननया में अभय कीजै॥ ु सारे ग्रहों क स्वामी अऩना पवरद बचाऱे। े स्वीकारो नमन मेरे। हैं ऩज्य चरण तेरे॥ ू

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