Professional Documents
Culture Documents
Raviratlami Ke Gazlal and Vyanjal
Raviratlami Ke Gazlal and Vyanjal
Raviratlami Ke Gazlal and Vyanjal
र वरतलामी
http://raviratlami.blogspot.com/
भूिमका
माना, मेरे अशआर म अथ नह ं
पर जीवन म भी तो अथ नह ं!
------------
मेर ग़ज़ल को लेकर पाठक क यदा कदा ित याएँ ा होती रहती ह. जो वशु
पाठक होते ह, वे इ ह पसंद करते ह चूं क ये ल नह ं होतीं, कसी फ़ॉमूले से आब
नह ं होतीं तथा कसी उ ताद क उ ताद क कची से कंट छं ट नह ं होतीं. वे सीधी,
सपाट पर कुछ हद तक त ख़ होती ह.
परं तु कुछ रचनाकार पाठक और वशु तावाद ग़ज़लकार को मेर कुछ ग़ज़ल नाग़वार
ग़ुज़रती ह और वे इनम से कुछे क को तो ग़ज़ल मानने से ह इनकार करते ह.
म यहाँ िमजा ग़ािलब के दो उदाहरण दे ना चाहँू गा, जो उ ह ने अपने तथा अपने ग़ज़ल के
अ दाज़ के बारे म कभी कहे थे. मुला हज़ा फरमाएँ-
तथा यह भी-
साथ ह यह भी, क जब ग़ािलब, द वाने ग़ािलब के िलए अपनी ग़ज़ल क छं टाई कर रहे
थे, तो उ ह ने अपने िलखे हए
ु कर बन २००० से अिधक अशआर न कर दये चूं क
उनम शायद वज़न क कुछ कमी रह गई थी.
बहरहाल मने तो अभी िलखना शु ह कया है . मेरे अशआर दो हजार से ऊपर हो जाएंगे,
तो म भी अपने कुछ कम वज़नी अशआर को न कर ह दं ग
ू ा, ऐसा सोचता हँू ),
---------------------------------------.
राह , कोई नई राह बना क तेरे पीछे आने वाले राह तुझे याद कर...
*-*-*
जावेद अ तर, ज ह कसी साल के फ़ मफ़ेयर के पाँच नॉिमनेशन उनके गीत के िलए
िमले थे, ग़जल के बारे म बेबाक से कहते ह क – इतनी खूबसूरत े डशन का धीरे -धीरे
लोग को इ म कम होता जा रहा है . ग़ज़ल को लोक य बनाने म इसक दो पं य म
– इशार म, कॉ पे ट तर के से कह जाने वाली बात का खासा योगदान रहा है , जो
ग़ज़लकार को मेहनत से िलखने के िलए मज़बूर करती ह. इसके साथ ह इसके रद फ,
क़ा फए और मकता-मतला जैसी पारं प रक और िनयमब चीज़ भी ग़ज़ल िलखने के
दौरान क ठनाइयाँ पैदा करती ह.
मगर, फर भी लोग ग़ज़ल िलख रहे ह और या खूब िलख रहे ह. भले ह पाठक, ोता
और शंसक नदारद ह – ग़ज़ल आ रह ह... ह द म भी और उद ू म भी. और, मेरा तो
यह मानना है क पारं प रक और िनयमब रचना के पीछे पड़ने क ज रत ह नह ं है .
रचना ऐसी रिचए जसम पठनीयता हो, सरलता हो, वाह हो और जसे रच-पढ़ कर मज़ा
आए. बस. क टरपंथी आलोचक तो हर दौर म अपनी बात कहते ह रहगे और उनसे हम
घबराना नह ं चा हए, जैसा क जावेद अपनी बात को समा करते हए
ु कहते ह- तुलसी
दास ने जब राम च रत मानस िलखी तो उसक बरादर ने िनकाल बाहर कया क कस
घ टया जुबान (दोहा-छं द तो बाद क बात है !) म रामायण जैसी प व कताब िलखी. वैसा
ह सुलूक शाह अ दल
ु क़ा दर के साथ हआ
ु था जब उ ह ने कुरान का उद ू म तजुमा कया
था.
*-*-*
ग़ज़ल 1
*-*-*
बड़ उ मीद से आए थे इस शहर म
लगता है अब कह ं और चलना होगा
इ क म तुझे या पता नह ं था र व
फूल िमल या कांटे सब सहना होगा
*-*-*
-----.
****
ग़ज़ल 2
****
बन गए ह ग़र ब
****
राजनीित के तंभ बन गए ह ग़र ब
अब तो मु े थाई बन गए ह ग़र ब
चा द का च मच ले पैदा हए
ु ह जो
वो और भी य़ादा बन गए ह ग़र ब
-----.
***
ग़ज़ल 3
****
ज़रा दे खए
इस भारत का या हाल हो रहा ज़रा दे खए
नेता अफ़सर माला माल हो रहा ज़रा दे खए
----
****
ग़ज़ल 4
****
स ता होना चा हए
पुकारते हए
ु साँस उखड़ जाएगी र व तेर एक दन
मु े उठने के िलए भी अब उ ह स ता होना चा हए
----.
****
ग़ज़ल 5
****
भोजनशाला बन गया
****
ग़ज़ल 6
****
बस, अख़बार बचे ह
अब तो बस अख़बार बचे ह
कुछ टहनी कुछ ख़ार बचे ह
भीड़ भरे मेरे भारत म लो
मानव बस दो चार बचे ह
कहने को या है जब सब
बेरोज़गार और बेकार बचे ह
मन उजड़ चुका है बस
नेता के ग़ले के हार बचे ह
चूस चुके इस दे श को र व
मुँह म फ़र भी लार बचे ह
***
ट पः ख़ार = कांटे
*+*+*+*
-----.
****
ग़ज़ल 7
****
आवरण तोड़ना तो था पर य
लोग चल दए म पीछे रह गया
करना था बहत
ु कुछ नया नया
भीड़ म म भी सोचता रह गया
ख़ुदा ने तो द थी बु बख़ूब
य और क ट पता रह गया
इस तक़नीक ज़माने म र व
पुराणपंथी बना दे खो रह गया
*+*+*+
------.
****
ग़ज़ल 8
तू भी कर ह ले अपनी िचंता र व
या रखा है इन पचड़ म पड़ने म
*+*+*+*
---.
***
ग़ज़ल 9
***
रं ग रं ग़ीली दिनया
ु म कोई ये बताए हम
रं ग िसयाह म य पुती है अपनी ग़ज़ल
*+*+*+
----.
****
ग़ज़ल 10
***
या यह याय है ?
---
मत डू बो र व अपनी जीत के ज म
सब कहते फ़र रहे या यह याय है
*-*-*-*
ग़ज़ल 11
******
गुजरे ऐसे क हा दसे आदत बन गए
मदरसे हर योग के शहादत बन गए
+*+*+*
---.
ग़ज़ल 12
*****
वा हश
*****
-----.
ग़ज़ल 13
मं ज़ल पाने क संभावना नग य हो गई
यव था म जनता और अकम य हो गई
ह र-रांझ के इस दे श को या हआ
ु क
द वान क सं या एकदम नग य हो गई
जो िनकला है यव था सुधारने
उस पागल से खासी उ मीद ह
तू भी य उनके साथ है र व
बैठे बैठे लगाए ऊंची उ मीद ह
*-*-*
----.
---
ग़ज़ल 15
***
भीगे भ व य बखरे बचपन यहाँ सब चलता है
लूट -पाट फ़रौती-डकैती यार सब चलता है
कस कस का दद दे खोगे ज म सहलाओगे
क़ौम क रं जश और ह फ़ायदे सब चलता है
*+*+*
----.
---
ग़ज़ल 16
***
*+*+*
----.
ग़ज़ल 17
***
तू भी य नह ं िनकलता भीड़ के र ते र व
बेकार बेआधार बनाकाम चैन खोता यूँ है
*+*+*
----.
***********
ग़ज़ल 18
---
ज़लालत है ज़दगी या छोड़ दे ना चा हए
अब अंधी गली म कोई मोड़ दे ना चा हए
ु ु
या िमला उस बुत पे घं टयाँ टनटनाने से
िम या सं कार को अब तोड़ दे ना चा हए
बहत
ु शाितराना चाल ह तेर बेईमान र व
कहता है कह ं तो कोई होड़ दे ना चा हए
*+*+*
----.
----
ग़ज़ल 19
***
*++*++*
-----.
***
ग़ज़ल 20
---
इस यव था म जीने के िलए दम चा हए
सबको अब राजनीित के पचो-ख़म चा हए
*+*+*
-----.
---
ग़ज़ल 21
***
कोई बात कहता मंडल है
कसी के पास कमंडल है
ये दे श तो दो त दे खए
बन गया र का बंडल है
*+*+*
ग़ज़ल 22
---
राजनीित अब िशखंड हो गई
िसयासती सोच घमंड हो गई
भरोसा और नाज हो कस पे
यवहार सब खंड हो गई
अब पु षाथ का या हो र व
राजशाह सार िशखंड हो गई
*+*+*
----.
ग़ज़ल 23
---
एक मतबा ह गया र व ग़र ब म
सोचता है उसक न म हानी होगी
*---*---*
----.
-----
ग़ज़ल 24
***
ये वो रा ता तो नह ं था
उठा था गया तो नह ं था
हँ सी दे ख गुमा होता है
कोई वाब तो नह ं था
ित दन पर ा फर कोई
अंितम जवाब तो नह ं था
खोने का गम य हो
कुछ पाया तो नह ं था
सुधरे कैसे र व जब कोई
कुछ करता तो नह ं था
*-*-*-*
---.
----------
ग़ज़ल 25
***
द नो-ईमान बक रहा कौ ड़य म
नंगे खेल रहे ह पए करोड़ म
कस कस के चेहरे पहचानोगे
अब सब तो बकता है दकान
ु म
लक र पीटने से तो बेहतर है र व
जा तू भी शािमल हो जा द वान म
----.
*-*-*-*
ग़ज़ल 26
---
ह रयाली तो आएगी र व पर शत ये है
ु
ह से का एक टकड़ा घाम दे ना होगा
--
घाम = धूप (छ ीसगढ़ )
------.
-----
ग़ज़ल 27
***
दे खे तो थे सपने बहत
ु हसीन मगर
या कर अब तो हालात बदल गए
*-*-*-*
-----.
---
ग़ज़ल 28
***
अपने अपने ह से काट ली जए
अपन को पहले जरा छाँट ली जए
सार ये बचा है र व क दे श को
काट सको जतना काट ली जए
*-*-*
----.
---
ग़ज़ल 29
***
जमाने ने छ न ली है र क रं गीिनयाँ
बस अपने पेट भरो अपनी जेब गम करो
***
ग़ज़ल 30
----
अपनी कु पताओं का भी गुमाँ क जए
दसरो
ू से पहले खुद पे हँ सा क जए
या तो उठाइये आप भी कोई प थर
या अपनी क़ मत पे रोया क जए
सफलता के पैमाने बदल चुके ह अब
ाचार भाई-भतीजावाद बोया क जए
*-*-*-*
----.
ग़ज़ल 31
***
धम क कोई दकान
ु खोल ली जए
िसयासत के सामान मोल ली जए
*-*-*-*
---.
हमार द ू षत होती आ थाओं का एक और दय- वदारक यः
मने अपने पछले कसी लॉग म िलखा था क हम अपने धािमक पाखंड के चलते
वातावरण म कतना अिधक दषण
ू फैलाते ह. सामा जक सौहाद बगाड़ने क बात तो
अलग ह है . बना कसी सामा जक, वै ािनक और यवहा रक कोण के, हम अपने
धािमक पाखंड म िन य नए आयाम भरते जा रहे ह. पछले दन अहमदाबाद के एक
झील म लाख क तादाद म मछिलयाँ मर ग (ऊपर िच दे ख कर अपने कए पर फर
से आँसू बहाइये). ला टर ऑफ़ पे रस से बने तथा हािनकारक रं ग से पुते सैकड़ क
सं या म गणेश ितमाओं के झील म वसजन के फल व प हए
ु दषण
ू को इसका
मु य कारण माना जा रहा है . वयं भगवान ी गणेश इन लाख मछिलय क अकारण,
अवांिछत, असमय, अकाल मौत पर आँसू बहा रहे ह गे.
-----
ग़ज़ल 32
****
घ ड़याली आँसुओं के ये दन ह
घ टया पाख ड के ये दन ह
अथह न से हो गए श दकोश
अपनी प रभाषाओं के ये दन ह
कोई तेर पुकार सुने य रव
चीख़ने िच लाने के ये दन ह
*-*-*-*
-----.
***
ग़ज़ल 33
----
लहर िगनने म सुनी संभावनाएँ ह
ख़ून के र त ढंू ढ संभावनाएँ ह
माँ तेरे दध
ू म भी अब तेरे ब चे
तलाश लेते ढे र सी संभावनाएँ ह
अब कोई और ठकाना दे ख र व
चुक गई यहाँ सार संभावनाएँ ह
*-*-*-*
-----
ग़ज़ल 34
***
दद क तफ़सील तो वो ह बताएगा
जो चला है कसी यार क गली
याद दलाने का शु या दो त पर
आज कौन चलता है करार क गली
*-*-* ***
----.
ग़ज़ल 35
----
लहर िगनने म सुनी संभावनाएँ ह
ख़ून के र त ढंू ढ संभावनाएँ ह
माँ तेरे दध
ू म भी अब तेरे ब चे
तलाश लेते ढे र सी संभावनाएँ ह
अब कोई और ठकाना दे ख र व
चुक गई यहाँ सार संभावनाएँ ह
*-*-*-*
---.
अँधेरा ह अँधेरा
*******
भारत के ायः सभी रा य बजली क घोर कमी से जूझ रहे ह तथा पापुलर वोट बक के
चलते कसान को मु त बजली दे ने के च कर म कई बजली बोड द वािलया हो चुकने
के कगार पर ह. बजली म
इ ह धता बताते हए
ु एक गांव म ऐसे ह एक ांसफामर को बैलगाड़ के ऊपर रख कर
चालू कर िलया गया है ( बजली कमचा रय के पास समय और उपकरण का अभाव है )
और बैलगाड़ पर रखा यह
***
ग़ज़ल 36
***
अब तो बन गई है आदत अपनी
कटते नह ं दन बना अँिधयारा है
और का तो मालूम नह ं ले कन
र व का दो त बस एक अँिधयारा है
*+*+*
----.
***
ग़ज़ल 37
***
यहाँ तो हर बात उ टे पु टे ह
जीने के हालात उ टे पु टे ह
चैन और नींद से मह म र व
उसके तो दनरात उ टे पु टे ह
****
---
ग़ज़ल 38
****
खुद क नह ं पहचानी असिलयत
तलाश म ह और क असिलयत
यह ं तो है उस लोक क हक कत
जनता कब पहचानेगी असिलयत
मत मारो उस द वाने को प थर
पहले दे ख लो अपनी असिलयत
ई र तो मौज़ूद है तेरे कम म
रे मूरख पहचान तेर असिलयत
बहत
ु बेरहम हो गई ये दिनया
ु
र ते चलते हो इबादत क जए
ग ढे जाम ै फ़क पुिलिसया
बच िनकले हो इबादत क जए
पल भर जीना जहाँ मु कल
गुज़ारे दन हो इबादत क जए
*+*+*+
**--**
ग़ज़ल 40
**+**
मू य म गंभीर रण हो गया
मु क का भी अपहरण हो गया
हँ सा है शायद द वाना या फर
भूल से तो नह ं करण हो गया
र व बताए य क ढ िगय का
वो एक अ छा आवरण हो गया
*-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 41
*/*/*
या िमलना है भगदड़ म
जीना मरना है भगदड़ म
िम ने ह कुचले हमको
अ छा बहाना है भगदड़ म
तंग हो के र व भी सोचे
शािमल होना है भगदड़ म
++//--
*-*-*
ग़ज़ल 42
**//**
आदमी है आदमी के पीछे बराबर
सोचता नह ं होना है हसाब बराबर
चाँद का च मच ले के आया पर
चार दन क जंदगी सबक बराबर
र ज टत ताबूत है तो या हआ
ु
भीतर क ड़े और दगध
ु सभी बराबर
//**//
*+*+*
ग़ज़ल 43
*+*+*
धन बल पर िनकलती ह या याएँ
शायद इसीिलए अंधे सभी क़ानून ह
जमाने म आ के रो नह ं सका र व
सच बात न कहने के जो क़ानून ह
**//**
--- -- --
ग़ज़ल 44
-- -- --
नेता और वोटर क पोज़ीशन दे खए
जाित और धम के परमुटेशन दे खए
*+*+
ग़ज़ल 45
*+*+
ईमान का रा ता और था
म चला वो रा ता और था
चला तो था दम भर मगर
मं जल का रा ता और था
----.
****
ग़ज़ल 46
****
गुम गया मु क भाषण म
जनता जूझ रह राशन म
नेताओं क है कोई ज रत
दिनया
ु को सह मायन म
जंदा रहा है अब तक र व
और रहे गा बना साधन म
*-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 47
*-*-*
लो िमठाई खाओ क चुनाव है
तेरे ारे लाया हँू क चुनाव है
*-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 48
*-*-*
दे श दे श शहर धम और जाित
पया नह ं है इतनी जानका रयाँ
*-/-*
*-*-*
ग़ज़ल 49
*+*
न लगाओ कोई इ जाम इन लहर को
िगन रखे ह खूब तुमने भी लहर को
//**//
*-*-*
ग़ज़ल 50
--..--
सच कब क खो चुक है ाथनाएँ
जनता दे खे है आपक आराधनाएँ
अब ब द भी कर दो आँसू बहाना
बहत
ु दे ख चुके नक़ली स वेदनाएँ
िमलना है सबको इस िम ट म
आओ बैठ खली धूप म गुनगुनाएँ
ये भूलता य है र व जंदगी के
दन ह चार या वह भी िगनाएँ
----.
*-*-*
ग़ज़ल 51
-0-0-
कह ं गुम हो गई सरकार
जेल म लग रहे दरबार
मुज रम हो गए ह नरे श
और ह फ रयाद बदकार
मु क के मह पित ह गे
सरगनाओं के भी सरदार
*-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 52
//**//
कहाँ कहाँ नह ं द यािचका
ज़ र य कर है यािचका
िनकाल दो भले ह दे श से
नह ं दे नी है मुझे यािचका
एतबार था तो फर य
पछता रहे हो दे यािचका
जुम है मु क म ज मना
इसीिलए ज र है यािचका
आसाँ जंदगी के िलए र व
िलए फरता है वो यािचका
*-*-*
ग़ज़ल 53
**--**
िसतम क इं ितहा म भी खुश ह
दद तो है दल म मगर खुश ह
कर आए ह बोफ़ोस सी नई ड ल
इसीिलए आज वो बहत
ु खुश ह
भूखी ब ती म उ सव कर र व
िच लाए है वो क हम खुश ह
--**--
..**..
ग़ज़ल 54
..**..
माफ़ के का बल नह ं ह ये गलितयाँ
तब भी हो रह ं गलितय पे गलितयाँ
*-*-*
ग़ज़ल 55
//**//
सम मु क फरार है
ज म है जाँ फरार है
क़ैद है जेल म ले कन
वहाँ िसपाह फरार है
दे खो दिनया
ु द वानी
जए वह जो फरार है
सोचे है र व बहत
ु पर
उसका कम फरार है
--**--
*-*-*
ग़ज़ल 56
--**--
मनुज आज म गंदा न था
साथ म लाया फंदा न था
िसयासत म मज़हब का
ये धंधा खासा मंदा न था
मह फ़ल से लोग चल दए
कसी ने मांगा चंदा न था
जाना था मं जल-ए-राह म मु त से
खुद बैठे सबको साथ बठाया दो त
***---***
*-*-*
यंज़ल (हा य ग़ज़ल, हज़ल क तज पर) 58
*-*-*
कस बना पर रहना होगा
मूख क तरह रहना होगा
बन जा खुद या दसर
ू को
मूख बना कर रहना होगा
//**//
*-*-*
अब तक पड़ा नह ं सा बका
कैसे जानगे जो आएंगी बहार
इस क़ नावा क़फ़ रहा र व
आकर गुजर चुक कई बहार
*+*+*
*-*-*
भारत म 110 अरब पय क सालाना र त पुिलस, यातायात पुिलस और अ य सरकार
कमचा रय को द जाती है . यह धनरािश क तथा रा य सरकार को कर और अ य
शु क के प म सालाना ा होने वाली रािश से 30 अरब पए यादा है . ाय: हर माग
पर क / वाहन से वसूली करती दखाई दे ती पुिलस इन आंकड़ क पु करती है .
हाल ह म पुिलस का मु य काम यह हो गया था क वह मु बई जैसे महानगर से लेकर
मेवासा गांव तक वह यह सुिन त करे क दो प हया वाहन चालक हे लमेट पहन कर ह
वाहन चलाएँ. हे लमेट िनमाताओं ने भी र त का सहारा अपने उ पाद को बेचने के िलए
ले िलया लगता है . पुिलस के अनुसार हे लमेट पहन कर आप संपूण सुर त हो जाएँगे-
भीड़ भर , अिनयं त ै फक स हत, ग ढ से प रपूण सड़क म. ध य है !
*-*-*
यंज़ल (हा य ग़ज़ल, हज़ल के तज पर) 60
/*/*/
जीवन के शत म शािमल है र त
मय सर है कफन जो होगी र त
क़ स म भी नह ं यार क बात
भाई-भाई के र त म घुसी र त
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 61
-+-+-
उनने कमज़ोर कर ली ह अपनी नज़र
कहते ह न रखगे दसर
ू क कोई खबर
मं जल तो तय कर लीं बहत
ु दरू क
रा ते कस ओर को जाएंगे जरा ठहर
लोग इतने नादान नह ं हो सकते र व
नतीज़े से पहले रख ले जरा सी सबर
-+-+-
ग़ज़ल 62
पानी क क मत कसी पसीने से पूछना
बयार य बहती नह ं उ ट मत पूछना
ग़ज़ल 63
जरा से झ के को तूफान कहते हो
ू
टटता छ पर है आसमान कहते हो
ग़ज़ल 64
जीने क खबर है
रने क खबर है
अपने दो त के
जलने क खबर है
उनके नासूर के
भरने क खबर है
डरावने लोग के
डरने क खबर है
दो ेिमय के
लड़ने क खबर है
कसी कंगाल के
खाने क खबर है
दद को र व के
सहने क खबर है
ग़ज़ल 65
खुदा को ह दआएं
ु दे रहा हंू म
जले चराग़ बुझाए दे रहा हंू म
चाहत म म जल-ए-इ क क
खुद ह को िमटाए दे रहा हंू म
राह-ए-मोह बत म मरकर
वफा सबको िसखाए दे रहा हंू म
ल हे भर को उ ह भूले नह ं
खुद को ऐसे भुलाए दे रहा हंू म
ग़ज़ल 66
यूं तो दिनया
ु म कुछ कम गम नह ं
हम तो गम है क कोई गम नह ं
ग़ज़ल 67
िनकलो गर सफर पे लोग िमलते जाएंगे
प छ लो ये चंद आँसू वरना ढरक जाएंगे
मं जल इ ह ं राह पर ह िमलेगी र व
बाक है जोश बहत
ु फर कैसे घर जाएंगे
ग़ज़ल 68
अनाज के ढे र म बैठा भूखा हँू म
भरा है पेट मगर बैठा भूखा हँू म
ये है तेरे मु क क हालत र व
सबकुछ खा के बैठा भूखा हँू म
ग़ज़ल 69
मेरे शहर के सड़क के ग ढ क कहािनयाँ ह
बेजान बजली के ख भे भी कहते कहािनयाँ ह ।
ू , तो यहाँ कोई
वहाँ कोई पूल टटा े न टकराई
नए क स म य भूलते पछली कहािनयाँ ह ।
ग़ज़ल 70
जमाने, तेर खाितर हम बरबाद हो गए
य लोग कहते ह क िमसाल हो गए ।
अब दो त ने शु कया क ले आम
सभी बन गए बुत, हवा द वार हो गए ।
हआ
ु है मेरे शहर म एक अजीब हादसा
कुछ खा के, बाक़ भूख से बीमार हो गए ।
ग़ज़ल 71
म छर ने हमको काटकर चूसा है इस तरह
आदमकद आइना भी अब जरा छोटा चा हए ।
ग़ज़ल 72
तेर मुह बत म कोई लहर नह ं है
चलो कोई बात मगर नह ं है ।
ये रा ता तो थराता था आहट से
कए तो थे वादे इफ़रात या कर
इनम से कोई याद अगर नह ं है ।
ग़ज़ल 73
हमसे आप इस तरह यूँ शरमाने लगे
नज़र िमला के फर यूँ शरमाने लगे ।
ज़ रत नह ं शै को कसी सबब क
वो आप ह आप ऐसे शरमाने लगे ।
या खुदा या होगा मेरे तस वुर का
वो वाब म भी आके शरमाने लगे ।
आज यूँ ये दिनया
ु बदली सी है
जाने या हआ
ु क वो शरमाने लगे ।
कोई तो समझाए र व को क य
कल क बात पे आज शरमाने लगे ।
ग़ज़ल 74
र ते अब बेमाने हो रहे
ज म भी यारे हो रहे ।
तुझसे िमले ल हा न हआ
ु
और हम तु हारे हो रहे ।
या हआ
ु ू अपना
दल टटा
वो भी तो अब बंजारे हो रहे ।
मुह बत तो डू बना है र व
फर वो कैसे कनारे हो रहे ।
ग़ज़ल 75
जरा सी बात थी जो पूर दा ताँ बन गई
नज़र या िमली मुह बत का सामाँ बन गई ।
वो या आए मेरे दर पे एक पल के िलए
मेरा ग़र ब खाना खुिशय का जहाँ बन गई ।
पता नह ं क ऐसा हआ
ु आ खर कसिलए
सारा जहाँ यकायक मेर मेहरबाँ बन गई ।
न कोई ग़मी हई
ु न कोई हा दसा ह हआ
ु
जाने य खामोशी अपनी जुबाँ बन गई ।
ग़ज़ल 76
ज बेवफ़ाई का जब कया जाएगा
उसके साथ तेरा नाम िलया जाएगा ।
बात क थोड़ सी और वो वा हो गए
बनेगी बात कैसे जो न कया जाएगा ।
मं ज़ल क ये दौड़ तो ख म होने से रह
चलो अब कह ं आराम कया जाएगा ।
ग़ज़ल 77
इस जमाने क बहार को या क हए
गुल ह काँट से लग तो या क हए ।
गुमाँ था बहत
ु तेर यार पे अबतक
अब द ु मनी सी लगे तो या क हए ।
दपहर
ु क धूप म िनकला है द वाना
उजाला न िमले उसे तो या क हए ।
मांगी है दआ
ु तेरे ह िलए ईश और अ लाह से
दे रहे सभी ब आ
ु यहाँ दे कोई दआएँ
ु तो हमको ।
सब कहते ह बहत
ु क ठन है राह उस मं जल क
राहबर बनकर राह अरे , कोई दखाए तो हमको ।
ग़ज़ल 78
मह फल म सुनाई दा ताँ सबने अपनी
हम पे गुजर ऐसी क सुनाई न गई ।
ग़ज़ल 79
जाने कस बात पे हम रोना आया
बेदद जमाने य हम रोना आया ।
बस करो छे ड़ो न चचा फर
जन बात पे हम रोना आया ।
ग़ज़ल 80
इस कदर कर कोिशश ख़जा-ए-गुल खलाने
बने मु कान गुिल ताँ क के तेरा मुरझाना ।
न कर इं तजार आ खर साँस का र व
हर साँस आ खर है और दल है बेगाना ।
ग़ज़ल 81
कुछ नह ं तो वायद क बौछार लाऊँगा
इस चुनाव म जीता तो यौहार लाऊँगा ।
ग़ज़ल 82
भूले हए
ु है खुशी को खुशी क तलाश म
हो गए ख़ुद बेवफा वफा क तलाश म ।
बे- दल दिनयाँ
ु म एक इ साँ न िमला
हम भटका कए थे खुदा क तलाश म ।
समंदर क लहर से भी न िमट यास
गोता लगाया यथ शबनम क तलाश म ।
अब तक थे िशकार गलतफ़हमी के र व
िमली थी मौत जंदगी क तलाश म ।
ग़ज़ल 83
इक दद सा है यूँ दल म कोई बताए तो हमको
सभी मेहरबाँ हो रहे यूँ, कोई सताए तो हमको ।
मांगी है दआ
ु तेरे ह िलए ईश और अ लाह से
दे रहे सभी ब आ
ु यहाँ दे कोई दआएँ
ु तो हमको ।
सब कहते ह बहत
ु क ठन है राह उस मं जल क
राहबर बनकर राह अरे , कोई दखाए तो हमको ।
-----------.
यंजल (हा य ग़ज़ल=हज़ल के तज पर) 84
/*/*/
ये, है ये ेम, नह ं है झगड़ा
आओ यूँ सुलझाएँ अपना रगड़ा
*-/-*
यंज़ल 85
*-/-*
राजा नए हए
ु ह गूजर हो या ददआ
ु
मानव या तो मरा पड़ा या है बंधुवा
उस एक पागल क स ची बात को
पीना तो होगा लगे भले ह कड़ु आ
एक अकेला र व भी या कर लेगा
इसीिलए वो भी खाता बैठा है लड़ु वा
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 86
*-*-*
नकारे गा भी कोई ये वचार घ टया
ू ख टया
बरस से बछ पड़ है टट
जमाने म बहत
ु ह मख़मली मसनद
हम माकूल वह अपनी फट च टया
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 87
*-*-*
लोग को डराती और तंग करती है सरकार
लूली लंगड़ क़ौम कस तरह से दे ललकार
यंज़ल 88
-/*/*/-
कुछ क ँ या न क ँ क सरकार मेर है
म दे ता नह ं जवाब क सरकार मेर है
यंज़ल 89
*-*-*
य हो गया मेरा दे श लं बत है
सोच कर ये मन होता कं पत है
मेहनतकश का मुकाम नह ं और
अकम य होता म हमा मं डत है
मनी षय के दन लद गए कबसे
यहाँ पूजा जाता प गा पं डत है
इसके साथ ह नेताओं म वधाियका – यायपािलका म कौन बड़ा – कसका अिधकार कहां
तक का सवाल एक बार फर खड़ा हो गया है . जहाँ बीजेपी वागत कर रह है (चूँ क यहाँ
उसके फायदे क बात हो रह है ) वह ं तमाम अ य दल ितलिमलाए हए
ु ह क यायालय
ओवरए ट व म दखा रह है . परं तु यायालय को याय क प रभाषा फर से बताने और
यह बताने के िलए क सं वधान के साथ धोखाधड़ रा यपाल जैसे सं वधान मुख ारा
कया जा रहा है , कस ने मजबूर कया है? आज क तरह न राजनीित ने, जहाँ स ा और
कुस क खाितर सं वधान तो या, लोग अपने आप से भी धोखाधड़ कर रहे ह.
*-*-*
यंज़ल 90
*-*-*
ये मेर मासूिमयत है धोखाधड़ नह ं
खुद क सेवा है कोई धोखाधड़ नह ं
*-*-*
यंज़ल 91
*-*-*
या कुछ नह ं ज़हर ली हो गई
अब ये गंगा भी ज़हर ली हो गई
ेमशा पढ़ जवाँ हआ
ु था र व
मेर चाल कैसे ज़हर ली हो गई
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 92
*-*-*
बदल गई प रभाषाएँ बदल गए पहचान
मूरख मनुज तू य बना रहा अनजान
ले आओ मु ा या कह ं से जान पहचान
होगा काम तभी तो बगैर कसी अहसान
*-*-*
यंज़ल 93
/*/*/
खुद पर नह ं अपना मािलकाना हक है
जताने चले जग म मािलकाना हक है
दल म द ू रयाँ तब से और बढ़ ग
जब से कट कया मािलकाना हक है
*-*-*
स दय पहले भारत, सोने क िच ड़या कहलाता था. जब वा को ड गामा, भारत के िलए
समु रा ता ढंू ढ कर वापस पुतगाल पहँु चा था तो पुतगाल म मह न तक रा ीय ज
मनाया गया था- िसफ इसिलए क अमीर-सोने क िच ड़या – भारत - से यापार-
यवसाय का एक नया, आसान रा ता खुला जससे पुतगािलय का जीवन तर ऊँचा उठ
जाएगा.
*-*-*
*-*-*
ग़ज़ल 95
//*//
सड़ाएगा सड़ता झाग जो है
डसेगा गले का नाग जो है
कह ं ऊंच तो है कह ं नीच
जीवन का गुणा भाग जो है
मह फ़ल म द ु कारा गया
गाया बेमौसम फ़ाग जो है
*-*-*
यंज़ल 96
गु सा दे खा नह ं कभी उसका
दःख
ु कया नह ं कभी उसका
वैसे तो था बहत
ु याराना पर
खयाल आया नह ं कभी उसका
यथ म न जोड़ो र ता मने
नाम िलया नह ं कभी उसका
प थर म ये बात तो है र व
िमटे िनशां नह ं कभी उसका
**-**
-*-
ग़ज़ल 97
--.--
पूछता है ई र से र व क या
गलती से वो बन गया है आदमी
--.—
ग़ज़ल 98
**-**
दलील का दौर ब द न हआ
ु
इ क म ऐसे फैसला न हआ
ु
पतंगे के रा ते म थी शमा
कैसे उसका कुसूर न हआ
ु
ये य नह ं सोचता आदमी
जो आज था कल को न हआ
ु
जले को कटे का दद नह ं
कसी सूरत ये तक न हआ
ु
दसर
ू का हो तो कैसे र व
वो तो कभी खुद का न हआ
ु
**-**
यंज़ल 99
**-**
यूँ पालते हो फोकट क आशाएँ
हमने तो भुला द ं तमाम मा ाएँ
**-**
यंज़ल 100
**-**
सबने बहत
ु नकारा मुझ बे दल को
द वान क भीड़ म एक म खुश हँू
**********.
ग़ज़ल 101
/-/-/
कन खय म उनक शरारत दे खूँ
चढ़ती उतराती मुसकराहट दे खूँ
म जा हल गंवार उनके गु से म
द य णय क सरसराहट दे खूँ
*-*-*
-*-*-
यंज़ल 102
**--**
एक कौर रोट नह ं मय सर
तुम भोज क बात करते हो
गली के हड़दं
ु िगये संभले नह ं
व शांित क बात करते हो
न घर न व न है िनवाला
हद म रहने क बात करते हो
इन हालात म जंदा है र व
तुम कस क बात करते हो
*-*-*
यंज़ल 103
*-*-*
ये दिनया
ु इक ॉड है
हर वासी यहाँ ॉड है
ये काम सब करते ह
तुम कहते हो ॉड है
इ ज़त से बताता र व
उसका ईमान ॉड है
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 104
*-*-*
जीवन तो है पल भर का इनका
दे खो इनक हर चीज़ म राजनीित।
र व सोचता है या हो जाता जो
न होती अपने जीवन म राजनीित।
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 105
*-*-*
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 106
*-*-*
कसी ने ये य नह ं सोचा सोचता रहा
तमाम उ बैठे बैठे बस म सोचता रहा
तेरा खयाल मुझ से जुदा नह ं होता पर
य तेरे खयाल म म नह ं सोचता रहा
*-*-*
ग़ज़ल 107
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 108
*-*-*
ये दिनया
ु इक ॉड है
हर वासी यहाँ ॉड है
ये काम सब करते ह
तुम कहते हो ॉड है
इ ज़त से बताता र व
उसका ईमान ॉड है
*-*-*
यंज़ल 109
**/**
जाने कस जहाँ म खोया रहा
सब चलते रहे म सोया रहा
जसने ाण हरे दो त के
वो ज़हर म ह तो बोया रहा
जाना है एक दन ये सोच
अपना ताबूत खुद ढोया रहा
दो हाथ थे मेरे भी फर य
बैठ के तकद र पे रोया रहा
जहाद तो कर आया र व
ता उ वो लहू म धोया रहा
-----
*-*-*
यंज़ल 110
**-**
जला दए आ थाओं के म जद मं दर
म करता भी या धमा ध क भीड़ म
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 111
//*//
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 112
*-*-*
ईमान क बात करते हो
बड़ अजूबी बात करते हो
कसी काम का है ईमान
सहे जने क बात करते हो
कर दो ईमान को ितर कृ त
स गुण क बात करते हो
आज क राजनीित म ईमान
बेकार क बात करते हो
ईमान ओढ़ के र व तुम
सफलता क बात करते हो
*-*-*
/*/
यंज़ल 113
--==--
बुिनयाद ज रत हो गई है र त
स ब ध का सेतु बन गई है र त
/*//*//*/
तकद र हो तो ऐसी...
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 114
*-*-*
कम कुकम ढे र उस धनवीर के
या िमला है भरोसे तकद र के
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 115
*-*-*
सरकार को सरकार ह रहने दो तो अ छा
भ को िनराकार ह रहने दो तो अ छा
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 116
//**//
या नह ं कुछ बोगस है
दल मन सब बोगस है
चल कह ं कोई और ठौर
बचा यहाँ सब बोगस है
इस दौर म ेम क बात
लगे कह ं कुछ बोगस है
सोचता बैठा र व कब से
बन गया खुद बोगस है
*-*-*
**--**
यंज़ल 117
*-/-/-*
जाित और धम के िसयासी ड़ा थल म
बन गए सब तमाशबीन ये माजरा या है
*-*-*
*-*-*-*
यंज़ल 118
*-*-*
वो तो नासमझ ह जो ग ढ को चल दए
आप य उनक उँ गली पकड़ के चल दए
**--**
*-*-*
यंज़ल 119
*-*-*
लूली लंगड़ क दरकार कसे है
चा हए ऐसी सरकार कसे है
काम नह ं ह मुआफ़ के क़ा बल
फर िमलेगी ये हरबार कसे है
जंगल को जलाए ह ज ह ने
उनम चा हए घरबार कसे है
बन गया है ज़ह न र व भी
िनशाना कह ं परहार कसे है
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 120
*-*-*
फर कस िलए ये क़ानून ह
शायद मेरे िलए ह क़ानून ह
खुदा के ब द ने छ नी वाणी
बोलने न बोलने के क़ानून ह
मं ज़ल क आस फ़ज़ूल है यहाँ
हर कदम क़ानून ह क़ानून ह
*-*-*
यंज़ल 121
*-*-*
नह ं कयास कहाँ कहाँ ह िमलावट
मु कराहट म िमलती ह िमलावट
उनक हक कत का हो या गुमाँ
चाल म उनने भर ली ह िमलावट
कोई और श स था वो मेरा दो त
ढंू ढे से भी नह ं िमलती ह िमलावट
अपना ू तो कस तरह
म अब टटे
असल क पहचान बनी ह िमलावट
*-*-*
*-*-*
यंज़ल 122
*-*-*
बढ़ती जा रह ह मु कल पे मु कल
इस दौर म बेदाग बने रहना मु कल
*-*-*
यंज़ल 123
**-**
अंतत: बन ह गया वो बेशरम
नाम कमाने लगा है वो बेशरम
पाँच वष म ढे र त द िलय के
स ज बाग़ दखाता वो बेशरम
ू नह ं अमन चैन
अरसे से टटा
कस खयाल म है वो बेशरम
*-*-*
**--**
ग़ज़ल 124
*-*-*
आशा म जीवन है
आशा ह जीवन है
गद गुबार म भी
आशा से जीवन है
धमा ध का कैसा
आशा का जीवन है
हालात चाहे न ह
आशा ह जीवन है
जी रहा र व अभी
आशा का जीवन है
*-*-*
यंज़ल 125
*-*-*
अपने नासूर से यादा और के घाव चुभ रहे ह
रोम-रोम म पसरे कस दद क बात कर रहे ह
*-*-*
**--**
यंज़ल 126
**-**
इस तरह हँ सा न क जए हम दे खकर
वो दो त थे ज ह ने क छा उतरवाया है
**--**
यंज़ल 127
--*--
बहतु कए हो स मान क बात
कभी अपनाए स मान क बात
वो तो है क व -व म यार
बदल जाती ह स मान क बात
र उदर म कसी को भी र व
लुभाती नह ं ह स मान क बात
**-**
**-**
यंज़ल 128
--.--
इस हिलए
ु को भले ह कबूलो नह ं
य कह क समाज ने सताया है
दसर
ू क खोट िनकाल रहा है र व
खुद झूठ म गीता कुरान उठाया है
***-***
यंज़ल 129
----
दिनया
ु को तिनक चलकर दखाओगे
कतन को तस ली दे के सुलाओगे
बात बहत
ु करते हो मगर मौक़े पे
बहत
ु दन से रोया नह ं है र व
ु
हँ सी का एक टकड़ा उसे दलाओगे
***-***
**-**
यंज़ल 130
या नह ं ह ये परम आनंद के पल
या ये बात पता भी है क व तुतः
दसर
ू क खुशी म ह ह आनंद के पल
दसर
ू के दःख
ु म अपने आनंद के पल
**-**
यंज़ल 131
**-**
गर पूछा था धम या है
उस ब ती म धािमक को
पता नह ं है शम या है
कह ं िलखा है कम या है
जो बहता है तेर रग म
लहू नह ं तो गम या है
द वानी हरकत का र व
या बताए मम या है
*-**-*
ग़ज़ल 132
वो एक व त था, ये एक व त है
अबक तो दिनया
ु है लाभ क खाितर
**-**
यंज़ल 133
-----.
दे खते ह दसर
ू के चेहरे पर रं ग
दे खा है कभी अपने चेहरे पर रं ग
**-**
**-**
यंज़ल 134
**-**
िमलता नह ं कुछ मु त म
फर ये लंच कैसा मु त म
वोट दे दे कर स दय से
मारा गया गर ब मु त म
गािलयाँ िमलती नह ं मु त म
पर हम यूँ लड़ मु त म
बांटे है राय, र व मु त म
**-**
**-**
यंज़ल 135
**-**
बहती नमदा है हाथ धोइए
मु क क बात करते हो
ज़ह न कोई िमलेगा र व को
**-**
**--**
यंज़ल 136
--*--
कोई आसान है होना फेल
हर घड़ यहाँ पर ाएँ ह
ज ोजहद कम नह ं होगी
पास होकर भी हए
ु फेल
जो हो गया था वो फेल
**-**
**--**
यंज़ल 137
**-**
राजा ने रं क को धमकाया
यूं तो सहती है जा पर कई
ये भ गान नह ं हो सकता
या या याद रख आ खर
राजनीित के नाले म र व
एक दजे
ू का क छा उतराया
***---***
यंज़ल 138
-----.
खटता रहा तमाम उ ल य क खाितर
वो ल य पहचाना नह ं ल य क खाितर
आग तो लगी हई
ु है मन म इधर भी
**-**
यंज़ल 139
गु -गो वंद क कथा तो कथा थी गु
या अब कोई मानता है गु को गु
पढ़ाना अब और यादा क ठन है गु
एक कामयाब िश क रहा है र व भी
**--**
यंज़ल 140
दे ख के बस मुसकराए तो थे
यूं वो दे ने लग गए हसाब
मेरे मु क पर तो बकाया ह
जाने कसके कतने हसाब
हम कोई द ु मन ह या र व
मांगते ह जो हम से हसाब
**-**
**-**
यंज़ल 141
उ ह ये म है क है यार म राजनीित
**-**
**-**
यंज़ल 142
**-**
नह ं हो रह य जनता बेकरार
वह कहानी वह क से हरबार
मु त बाद झपक आई थी क
सोता ह रहा था र व अब तक
**--**
यंज़ल 143
--/--
य याद रख हम अपना धम
सब के सब तो हो गए वधम
अ य के अवगुण म उलझ र व
**-**
**-**
यंज़ल 144
**-**
वो तो एक राजनीित है इसिलए
**-
यंज़ल 145
भूल गया
बन गया र व भी राजनीित
**-**
यंज़ल 146
//*//
**-**
**-**
यंज़ल 147
**-**
नह ं त द ली अपनी लक र
बैठे रहे यूँ बन कर फ़क़ र
अपनी बढ़ाई नह ं र व ने
दे खा कए और क लक र
**-**
रावण क चोर
*-**-*
यंज़ल 148
*-*
इस दौर म यार सब हसाब बदले गए
खबर ये है क लोग रावण चुरा ले गए
इन चोर क अ ल का अब या कह
व छोड़ गए, घ ड़याँ चुरा कर ले गए
**-**
यंज़ल 149
---
**-**
यंज़ल 150
*****
अब सब िमलता है नंबर से
कम या यादा का है फक?
पराजय तो हआ
ु है अंतर से
र व मानता है क यव था
*****
यंज़ल 151
------
**-**
हं सी क णक रे खा के िलए
या या नह ं म खोया होऊंगा
**-**
**-**
यंज़ल 152
**-**
जीवन के हर ह से पर लग गए अिधभार
दसर
ू क करतूत पर अब न हँ सा करगे र व
इस संसार पर हम भी तो ह एक अितभार
**-**
**-**
यंज़ल 153
आय कम खच यादा है
फर भी पीने का इरादा है
बचा एक यह इरादा है
मुसकराहट म अब र व
व पता
ू जरा यादा है
**-** *-*
यंज़ल 154
**-**
और नह ं तो ज र स ठया गया है
व क ज़ंजीर को सुलझाते हए
ु
जुबान ब द कर ली है मने र व
**-**
****
यंज़ल 155
****
है कसी को इसका सं ान
आप मानते रह मेरा अ ान
कोई नह ं पूछता क य
धम के गिलयारे म अंततः
िगरा था म, ये सोच के र व
-----.
****
यंज़ल 156
****
अब या बताएँ क या नक़ली है
जमाना बहत
ु बदल गया है अब र व
----.
यंज़ल 157
----------.
मुह बत म वो दन भी दे खे ह र व
-------.
---
यंज़ल 158
जंदगी का है यह रोना
ेम म ये कहां से आया
कब तक हँ सगे दसर
ू पे
जब खुद पे है वह रोना
------.
---
यंज़ल 159
वो मेरा कथन नह ं था ज ट क डं ग
दिनया
ु बड़ आसान है ज ट क डं ग
----
-----.
यंज़ल 160
-----.
------.
----
यंज़ल 161
----
दो त सारे एजट हो गए
दो त सारे जब एजट हो गए
दो ती म हम भी एजट हो गए
र त म त द िलयाँ ऐसी हु
एक दजे
ू के लोग एजट हो गए
दल के बदले मांगा दल था
कहते ह वो तुम एजट हो गए
दन अब हमारे भी फरगे र व
आ खर हम भी एजट हो गए
----
------.
यंज़ल 162
------
व व म फ़क़ तो है यक नन
हमारे मुकाबले उनके ह डजाइनर
दिनया
ु उसी क जमाना उसी का
पलटकर जो बन गए ह डजाइनर
कह ले जमाना हम इ क म अंधा
उनक तो हर अदाएं ह डजाइनर
दे खो ये लौट के आ गया बु ू र व
कहे थे बनने जा रहे ह डजाइनर
-----.
----.
यंज़ल 163
----.
सब कुछ ले ली जए
सपने तो मत छ िनए
चिलए कुछ तो क जए
बदले तो ह, भले ह
व को य
े द जए
शै पेन नह ं िमले तो
क टं ग चाय ह पी जए
बेच दए सपने र व
अब आप या क जए
-----------.
----.
यंज़ल 164
----.
और को दःखी
ु दे ख म खुश हो गया
वहां और भी थे बहत
ु से सबब मगर
ये फ़क़त व व क बात है र व
-----.