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Collection of DALLIT ARTICLE by Virendar Sing Yadav
Collection of DALLIT ARTICLE by Virendar Sing Yadav
वीरे
संह यादव के दलत
वषय संबंधी आलेख का
संह
ई-बक
ु : रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com ) क तत
ु .
ृ न 9कया है । इसके साथ ह< आपने दलत वमश0 के े= म7 ‘दलत वकासवाद ' क> अवधारणा को
सज
-थापत कर उनके सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का
Aकाशन राBCर<य एवं अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है । आपम7 AHा एवम ् A#तभा का
अJभत
ु सामंज-य है । दलत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ् पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क>
रचना कर चक
ु े डाँ वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है ।
राBEभाषा महासंघ मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब
डाँ0 भीमराव अ5बेडकर फेलोशप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008
स(हत अनेक स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन
सं-थान राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ$थ0क नी#त एवं दलत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11)
वषय पर तीन वष0 के लए एसोसयेट हY।
सा(ह)य क> #नम0ती अनेक सामािजक -तर पर होती है तथाप सा(ह)य क>
Zया[या करना क(ठन ह< नह<ं चन
ु ौतीपण
ू 0 है । इसलए सा(ह)य का अथ0 वह भाषा
है, िजसके Qवारा सामािजक, राजनी#तक, सां-कृ#तक, धाम0क आ(द सामािजक
Zयवहार से जो सा(ह)य #नमा0ण होता है उसम7 मानवीय Aविृ )त ह< आधारभूत होती
है। अथा0त ् सामािजक सम-याओं का A#तFब5ब उस सा(ह)य से होता है । दे शकाल,
वातावरण, भाषा, सं-कृ#त, समाजजीवन से स5बि धत Aथा पर5पराओं का वण0न उस
सा(ह)य म7 -वाभावक ]प से आता है । इसीलए समाज और सं-कृ#त एक-दस
ू रे के
पूरक हY। कुछ अपवाद को छोड़ के दे ख7 तो (ह द< आलोचना म7 सा(ह)य को जातीय
जीवन से जोड़कर दे खने क> JिBट का अभाव रहा है। राज Aशि-तयां◌े,
अ#तशयोिaतपण
ू 0 �◌ा◌ृ◌ंगार वण0न और कला)मक ]प के A#त bझान, हमार<
सतह< जीवन JिBट को Aकट करता है । कूप मंडूक क> तरह अपनी छोट< द#ु नया म7
म-त रहना, ‘अहो ]प अहो Wव#न' पर मुdध रहना इसी का पSरणाम है। हमारा अहं
इतना बड़ा है 9क छोट<-छोट< बात पर आहत हो उठता है । ये छोट<-छोट< बात7
हमारे लए जीवन-मरण का AKन बन जाती हY। हम इसके लए मरने-मारने पर
उता] हो जाते हY। आज भी ये ि-थ#तयाँ कमोवेश राजनी#तक-सामािजक पटल पर
Lय क> )य (दखती हY। वराट जीवन JिBट का अभाव ु
आडंबर म7 डूबने
उतराने के लए हम7 बार-बार ववश करता है । पछले हजार वषe का इ#तहास
इसका साी है । जातीय जीवन से जड़
ु ी Zयापक JिBट के बदले एकांगी जीवन-
JिBटय से जीवन और सा(ह)य पSरचालत होता रहा है। यह< कारण है 9क सा(ह)य
क> म[
ु य धारा पर5परावा(दय क> JिBट से ओझल रह< है पर5परावा(दय ने अपनी
सु वधा के लए छोट<-छोट< JिBटयाँ #नम0त कर ल<ं, उसी म7 ऊभ-चूभ होते रहे तथा
समाज का एक बड़ा शोषत, दलत (ह-सा हमेशा इनक> आंख से सदै व ओझल रहा
है। उसको के
म7 रखकर कभी पर5परावाद</ सनातनी, $च तन ग#तशील नह<ं रहा।
इसी का पSरणाम है 9क गौतम बg
ु क> महाकbणा या महावीर जैन का अभय और
अ(हंसा इनके लये अपना अथ0 खो दे ते हY। ईसवी सन ् से लगभग 500 वष0 पव
ू 0
महावीर जैन और गौतम बुg ने आम आदमी के दःुख-दद0 से अपने को जोड़ा और
उसके पधर के ]प म7 खड़े हुए। तब से आम आदमी बनाम अभजात वग0 का
यह Qव Qव चलता आ रहा है । सनातनी जीवन और सा(ह)य दोन े= म7 आम
आदमी के पधर नह<ं हY उ ह7 तो सg-नाथ क> कवताओं तक म7 सा(ह)य और
जीवन-JिBट का अभाव (दखता है।
डॉ0 राम-व]प चतुवद
i < भारतीय सं-कृ#त के अ तव0रोध पर अपनी (टjपणी
करते हुए लखते हY 9क (ह द ू मानस के अनेक अ तव0रोध म7 सबसे (दलच-प है ,
सk
ू म अQवैत दश0न और जड़ीभत ू जा#त-Zयव-था का सह-अि-त)व। त)व-$चंतन क>
सूkमतम भाव-भू म अQवैत क> पSरकlपना म7 है । यह अQवैत भावना (ह द ू दश0न
क> वशBट उपलिmध है और इस ]प म7 अ य= नह<ं मलेगी। वह<ं जा#त-Aथा का
-थल
ू ]प-ज म पर आधाSरत, जा#त के मल
ू अथ0 म7 ह< ऐसा कह<ं नह<ं मलेगा।
जा#तय का जाल और वग3करण, इतना पण
ू 0 और Zयवि-थत है 9क छ द-शा-= का
A-तार याद आ सकता है । आचाय0 हजार< Aसाद िQववेद< क> यह (टjपणी अनायास
ग णत क> अनंत राश क> ओर संकेत करती है 9क (ह द ू समाज म7 नीचे से नीचे
समझी जानी वाल< जा#त भी अपने से नीची एक और जा#त ढंू ढ़ लेती है और यह
Zयंdय नह<ं है, ZयावहाSरक सच है तो एक)व का परम ]प अQवैत म7 और वैवWय
क> बहार जा#त-Aथा म7 , ये दोन छोर (ह द ू Zयव-था म7 बड़े इ)मीनान के साथ
समाए हुए हY। इस तरह दै व-वधान और कम0 का मह)व यहाँ के दश0न म7 एक साथ
आते हY।
भारतीय इ#तहास ु
जीवन-JिBट और संक>ण0ताओं का इ#तहास रहा है। यह
राजनी#त म7 अभजात वग0 का इ#तहास है जो अपनी ु
ताओं को अQवैतवाद के
महान दश0न? और सं-कृत या अपpंश सा(ह)य के चमकदार आलंकाSरक वण0न से
ढ़ं कने के लए Aय)नशील रहा है। इसके समाना तर लोक का वपुल वशाल Aवाह
है जो इसके वपर<त और वbg अपने ढ़ं ग से ग#तशील रहा है । अंतव0रोध के बीच
अपने को ग#तशील रखने क> यह मता अब तक चल< आयी है । तभी तो संभव
हुआ 9क इस दे श का एक संवधान -वतं= आया0वत0 म7 मनु महाराज ने रचा था
और दसू रा दे श के 9फर -वाधीन होने पर डॉ0 अ5बेडकर ने रचा। मनु के वधान म7
अ5बेडकर के लए -थान नह<ं था या नह<ं जैसा था, अ5बेडकर के वधान म7 मनु
के लए परू ा -थान है। इ#तहास-चq क> यह वलणग#त सारे समाज-दाश0#नक को
परे शान करने वाल< है। और तब समझ म7 आता है 9क हमारे यहाँ धम0 क>
Zयव-था धारण करने के अथ0 म7 aय क> गई है । धम0 व-तुतः वह है जो इन
अंतव0रोध को धारण करने क> सामrय0 रखता है। वश ्◌ोष बात यह है 9क उससे
जीवन के अ तव0रोध को धारण करने क> उपेा क> जाए। सा(ह)य के इ#तहास
क> म[
ु यधारा के वbg आज का दलत सा(ह)य इनक> छुआछूतवाद<, अहंकारवाद<,
अभजात और गैर बराबर< वाल< वचारधारा के खलाफ यह समतावाद<, Aेममूलक
आपसी भाई-चारे क> सहज जीवन क> वचारधारा को लेकर A-तुत होता है ।
भारतीय इ#तहास म7 सव0Aथम महा)मा गौतम बg
ु ने जा#त Aथा को चन
ु ौती द< थी।
इसी युग म7 संत चोखा ने भी दलत चेतना को सा(हि)यक अभZयिaत द< थी।
सg-सा(ह)य म7 भी दलत वग3य चेतना मलती है। चौरासी सg म7 से अ$धकांश
सg दलत वग0 के थे। सरइया, लुइया, डाि5भया, करइया आ(द ने मोहमाया
सांसाSरक तथा आड5बर का वरोध कर सहज जीवन को महासख
ु का माग0 बताया
था। भारत के पव
ू 3 अंचल म7 सg का Aभाव था। पिKचमी े= म7 जैन रतावओं का
Aचार था। जैन सा(ह)य म7 दलत वग3य चेतना क> अभZयिaत हुई है। सg कव
सरहपा इसके परु ोधा हY। यहाँ हम इस बात को शsत के साथ� कहना चाह7 गे 9क
सg और नाथ का आम जनता म7 इतना जबद0-त असर aय रहा है इस पर
कभी ग5भीरता से वचार ह< नह<ं हुआ है । इसका Aमख
ु कारण यह रहा है 9क
इ#तहास तो अभजात वग0 का अभजात के Qवारा लखा जाता रहा है जो सरु tत
अभजा)य सा(ह)य रहा है, उसके माWयम से दे खने पर इस वशाल दलत, शोषत
जन-समद
ु ाय क> झाँक> कैसे मल सकती है ? सg-नाथ के वपुल Aभाव का संकेत
लोक म7 रमी हुई उनक> -म#ृ तयाँ दे ती हY िजसक> अनुगँूज अभजात सा(ह)य म7
सोलहवीं-स=हवीं शताmद< तक सन
ु ाई पड़ती हY। इस दस ू र< पर5परा के इ#तहास को
पुन#न0म0त करना पड़ेगा, इसक> टूट< कuड़य को जोड़ना पड़ेगा। आज समय क>
आवKयकता या मजबरू < कुछ भी कह7 इनके सा(ह)य और दश0न को उदारता से
समझना पड़ेगा। अब तक इनके A#त पर5परावा(दय एवं सामंतवा(दय क> JिBट
आqामक रह< है । इसम7 कोई शक नह<ं है 9क आqामक JिBट से 9कया गया इनका
ववेचन-वKलेषण अधरू ा और एकांगी है। वे हमारे पव
ू ज
0 हY, उनके वचार हमार<
वरासत हY। एक तरफ राजनी#तक-सामािजक ु
ताओं पर JिBटपात कर7 और उसके
पSरAेkय म7 उनके Qवारा A-तावत जीवन-दश0न को दे ख7 तो उनका वैशBvय
उभरे गा। सg-नाथ का महा)5य इस बात म7 है 9क उ हने मानव जीवन क>
मूलभूत सम-याओं पर उँ गल< रखी। वे दश0न क> हवाई बात7 नह<ं करते। सामा य
एवम ् आम मनBु य का जीवन इतना दख
ु ी aय है , उसक> सम-याओं क> जड़ aया
है? जीवन जो नीरसता और दख ु से भरा हुआ है उससे छुटकारा कैसे पाया जा
सकता है । सामा य मनुBय के भीतर जो कोलाहल, आपाधापी और अशाि त Zयाjत
है, उससे मa
ु त होकर कैसे जीवन को आन दमय बनाया जाय। इसी सम-या से
टकराने और उसका उ)तर ढंू ढ़ने क> सफल कोशश उनक> कवताओं म7 है । कभी
गौतम बुg ने इस सम-या को उठाकर भारत के जनजीवन म7 अभूतपव
ू 0 qां#त पैदा
कर द< थी। सम-त भारत उनक> तरफ आकृBट हो चला था। सg कव सरहपा-
राहुल के अनुसार (ह द< पर5परा के पहले कव-भोग म7 #नमा0ण और काया म7 तीथ0
दे खते हY। नाथ-पर5परा राजाओं को योगी बनाती-चलती है , aय9क ताँबा तब
ू ा, ये
दोई सच
ू ा/राजा ह< तY जोगी ऊँचा/तांबा डूबै तंब
ू ा #तरै /जीवै जोगी राजा भरै । (चटपथ
नाथ जी क> सबद<)। ऐसे म7 अपेाकृत सीधा-सरल JिBटकोण जैन कवय का है
जो अपनी धम0-साधना म7 9कसी अ य त)व को नह<ं मलाते। शायद कारण है
िजससे आचाय0 शa
ु ल ने अपने इ#तहास म7 इस लेखन को ववेचन क> सीमा के
बाहर रखा था, aय9क उसक> JिBट मूलतः उपदे शपरक है , इसलए नह<ं 9क वह
धम0-Aधान है जैसी 9क Zयंजना हजार< Aसाद िQववेद< अपने ‘आ(दकाल' के पहले
Zया[यान म7 दे ते जान पड़ते हY।50 साधारण मनुBय के शोषण के दायरे मे -=ी भी
आती है , aय9क -=ी के A#त सामंती भोगवाद< JिBट के वbg wxमचय0 क> धारणा
थी िजसम7 जीवन क> सहजता का #नष ्◌ोध और -=ी के A#त #तर-कार क> भावना
थी। गोपबाला सज
ु ाता के स5पक0 से फूटे मWयम माग0 क> यह अवमानना थी।
सव0साधारण के लए उपयुaत न समझकर इस वशBट घटना पर पदा0 डाला गया
था। बौg के धाम0क सा(ह)य म7 इस घटना का संtjत Aतीका)मक वण0न है ।
महावीर जैन के भी Hानचु चंदना के सं-पश0 और स5पक0 म7 खुलते हY। मूलतः
इ ह<ं घटनाओं म7 भैरवी साधना का बीज है । पर5परावाद< सोच क> मानसकता
रखने वाले सनात#नय क> -=ी पर एका$धकार क> Aविृ )त जीवन म7 पशत
ु ा क>
Aतीक है । जानवर म7 इस एका$धकार को लेकर संघष0 चलता रहता है। -=ी के
A#त साम ती JिBट पशत
ु ा और पाशवक भाव से जड़
ु ी है। सामंती भोगवाद<,
एका$धकारवाद< JिBट और इंि
य संयम पर आधाSरत wxमचय0-दोन -=ी के
#तर-कार पर आधाSरत हY। नार< जीवन का आधा अंग है । इसको #तर-कृत कर
चलने वाल< JिBट अधरू < और एकांगी है । नार< को छोड़ने वाले और भोगने वाले
दोन नार< से आqा त हY। जंगल म7 भागकर गुफा के एका त म7 रहने वाला और
अपने अंतः पुर म7 अनेक ि-=याँ रखने वाला एक ह< रे खा के दो वपर<त yुव हY।
दोन क> चेतना नार< से पीuड़त और आqा त हY। ‘‘सg ने इस पार5पSरक पशत
ु ा
से दरू हटकर नार< को मानवीय JिBट से दे खा। उसे भोग क> व-तु के ]प म7 नह<ं
दे खा। उसक> अि-मता और उसके अ$धकार को -वीकारा ! यह भोगवाद< JिBट नह<ं,
भोगवाद< पशत
ु ा का नकार है, नार< क> भावनाओं और उसके अ$धकार का स5मान
है। इसको भोगवाद<, भौ#तकवाद< JिBट कहना मूढ़ता और अHानता का पSरचायक
है। तं= क> यह< JिBट है । यह< वाम माग0 है । यह< सहज जीवन का -वीकार है ।
पशत
ु ा से मनुBय म7 ]पा तरण क> A9qया है । सांसाSरक पाश से मिु aत और जीव
का शव हो जाना है । भैरवी साधना के मं= ‘शवोऽहम ्' का यह< रह-य है । तं= क>
वाममाग3 साधना का यह वैHा#नक, -व-थ, मानवीय JिBटकोण है ।'' सg ने तं=
क> वाममागीर् साधना के इस वैHा#नक JिBटकोण को मा यता द< है। परं पSरत ]ढ़
सामािजक मा यताओं के वbg होने के कारण वे आलोचना के शकार हुए हY। उन
पर िजस तरह के आेप और आरोप लगाये गये हY और िजस उपेा और
#तर-कार से उनका ववेचन हुआ है, वह पर5परावाद< इ#तहास क> पोल खोलता है,
aय9क इस पर5परावाद< Zयव-था ने सामा य #न5नजन एवं नार< का शोषण 9कया
है। वा-तव म7 दे खा जाए तो वह आलोचना क> भाषा नह<ं है। पर5परावाद< Zयव-था
एवं लेखन को दोषी ठहराते हुए नार< क> दशा पर अपनी A#त9qया Zयaत करते
हुए डॉ0 वमल थोराट का मानना है 9क जा#त के आधार पर, म(हला होने के आधार
पर और गर<ब होने के आधार पर तीन तरह का शोषण दलत म(हला झेलती है।
इस मs
ु े को उतनी शsत के साथ नह<ं उठाया गया िजतना उठाना चा(हए था।
इसका यह मतलब नह<ं 9क रचनाकार उससे वा9कफ नह<ं है । उसम7 लेखक का
अपना पSरवेश Aभावकार< है, aय9क पSरवेश लेखक को बहुत Aभावत करता है,
दलत का जो पSरवेश है वह तो लगभग सारे भारत म7 एक जैसा ह< है ।
नार< शिaत क> Aतीक है इस संसार म7 वह कम0 क> साात ् जीव त वह
है। उसक> उपेा करके जीवन म7 संतोष नह<ं पाया जा सकता। जो अपने घर क>
भवानी को Aस न नह<ं रख सकता, वह भला जगत क> भवानी को कैसे Aस न रख
सकता है? तं= के इसी वचार को क{हपा कहते हY-
‘‘एaक ण 9कLजइ मं= ण तंत। णअ धरणी लइ केलकरं त।/ णअ घर
घSरणी जाब ण मLजइ। ताब 9क पंच वण0 वहSरLजई/िजम लोणिजलLजइ
पा णएहु, #तम धSरणी लइ $च)त।/समरस जइ तaखणे जइ पुणु ते सम
#न)त।''
ये तं= मं= एक भी न करो, केवल अपनी ग(ृ हणी को लेकर केल करो। जब
तक तम
ु अपनी घरनी म7 डूब नह<ं जाते तब तक पंच aलेश से छूट नह<ं सकते।
िजस तरह पानी नमक म7 वल<न हो जाता है उसी Aकार ग(ृ हणी म7 $च)त लगाकर
सामर-य Aाjत 9कया जा सकता है । ये $चंतक #नग0ुण wxम के उपासक हY,
आराधना क> साम(ू हक श ्◌ौल< पर बल दे ते हY, (ह द ू समाज के दो पछड़े समूह
नार< और शू
को श ्◌ोष उVचवग3य पुbष के साथ समानता का दरजा दे ते हY।
उप#नष| और गीता इनके $चंतन के के
म7 हY, संगठन का ढांचा ये इसाई चच0 का
-वीकार करते हY। भारतीय (ह द ू वचार धारा और पाKचा)य ईसाई संगठन का
सामंज-य यह इनके आ दोलन का मल
ू मं= है । अWया)म को पन
ु जा0गरण पहले
लोक सेवा से जोड़ता है और 9फर लोकसेवा को qमशः राBE<य भावना से।
इसम7 कोई दोराय नह<ं है 9क अ#तKयोिaतपण
ू 0 वण0न (ह द< क> जातीय
पर5परा क> वशBटता है िजसम7 इ#तहास, वेद, -म#ृ तय परु ाण का सहारा लेकर
कवय ने अ|भत
ु कlपना का संसार बसाया है। अ#तशयोिaतपण
ू 0 वण0न इस Aकार
क> फY टे सी का एक वशBट अंश है । काZय म7 ऐ#तहासकता ढूँढ़ना बाल क> खाल
#नकालना है । कव का लkय इ#तहास बताना नह<ं, मानव जीवन क> वदरपताओं
ू् ,
वसंग#तय क> वश ्◌ोषताओं को अं9कत करना और जीवन के दdध अनुभव क>
फुहार म7 पाठक को भगोना है। ऐ#तहासक सVचाई को ढूँढ़ने के qम म7 कlपना
का रं ग Sरत होता है और सा(ह)य क> अखंडता टूटती है। आ(दकाल और
र<#तकाल क> रचनाओं के अWययन का यह< पSरAेkय होना चा(हए।
सg के काZय क> सहज ि-थ#त भिaत एवम ् र<#तकाल है जहाँ मानवीय
जीवन के सहज]प को उ)सव और उlलास क> भाषा म7 पूण0 तlल<नता से अं9कत
9कया गया है । पर5परावाद< आलोचक क> संक>ण0 JिBट से दे खने पर नाथ एवं
सg का काZयसौ दय0 ववेचन क> पSर$ध के बाहर हो जाता है। aय9क जीवन क>
ख{ड JिBट के कारण इन तथाक$थत वQवान ने एकपीय और एकांगी ववेचन
9कया है । सg को र<#तकाल क> पर5परा के पव
ू ]
0 प म7 दे खा जाना चा(हए, aय9क
उ हने दलत एवं वं$चत वग0 के जीवन को उसक> सहजता और स5पण
ू त
0 ा म7
-वीकार 9कया है। हालां9क यह JिBट र<#तकाल<न कवय क> नह<ं है । ‘‘र<#तकाल<न
कवय क> रचना संसार के मूल म7 साम ती JिBट है जो नार< के स5पण
ू 0
Zयिaत)व को मा= दे हJिBट तक सीमत रखती है । उसम7 व$च= नार< क> वभ न
छवय, ि-थ#तय म7 वा)-यायन के ‘कामसू=' का व-तार है । यह एक तरह का
बौgक वािdवलास है।'' सg के काZय के ववेचन क> बात कर7 तो इनके काZय का
उ)स जीवन का अखंड Aवाह है । जहाँ सामा य मानव जीवन को उसके राग-वराग
के साथ स5पण
ू त
0 ा म7 Fबना (हचक -वीकार 9कया गया है । इस -वीकार क> सहजता
म7 -=ी के लए न वकलता-Zयता है , न #नष ्◌ोध है । इस भू म पर इि
यदमन,
wxमचय0, नार< के A#त #तर-कार या वकलता और आसिaत-सारे AKन झर जाते
हY। केवल और केवल मानवीय Aेम श ्◌ोष रह जाता है और तभी हजार गोपय के
साथ रास रचने वाले कृBण योगेKवर कृBण बनते हY। जीवन का अकंुठ भाव से
उसक> समता म7 -वीकार-जहाँ Aेम दै (हक सीमाओं का अ#तqमण कर आ)मा के
धरातल पर A#तिBठत हो जाता है , दे ह क> अथ0व)ता समाjत हो जाती है । कृBण के
जीवन क> यह सहजता र<#तकाल म7 #छछोरे पन म7 बदल जाती है । Aो. $गSरजाराय
के शmद म7 कह7 तो वQयाप#त और सूरदास का काZय जीवन के के
म7 वैराdय
नह<ं-रागा)मकता को A#तिBठत करता है । उसक> अलौ9कक-अतीि
य Zया[या करना
उस अनुभव-स5पदा को #नरथ0क करता है। इनम7 दे ह के A#त न तो #नष ्◌ोध है न
आसिaत अपतु उसका सहज भाव म7 -वीकार है । इसक> ल<लापरक Zया[या करना
पाखंड क> सिृ Bट करना है । जीवन के िजस पाखंड के खलाफ ये कवताएँ लखी
गई हY, ल<लापरक Zया[या उसी का #नष ्◌ोध कर दे ती है । व-तत
ु ः पाख{ड का ज म
ह< जीवन म7 Aेम के #नष ्◌ोध से होता है और हम कृF=मता और बनावट<पन के
शकार हो जाते हY जो जीवन के सारे उlलास और रस को सोख लेता है।''
दलत आलोचना म5 दस
ू र परपरा के नये तमानः-◌ः-
- डॉ. वीरे & संह यादव
‘‘दस
ू र< पर5परा से स)य तrय को -वीकार कर उसके ऐ#तहासक
मह)व का मl
ू यांकन आवKयक है । इसके लए दलत सा(ह)य को आलोचना का
नया शा-= गढ़ना होगा और लोकAयता के मानदं ड को -वीकार करना पड़ेगा।
पव=तावाद<, अभजात आलोचना पर5परा से नाता तोड़कर उसे सव0ाह< बनाना
पड़ेगा। जनता से जड़
ु े सा(ह)य को उप सा(ह)य कहकर उपेtत करने से सा(ह)य
क> म[
ु यधारा धंध
ु लाती है और उसका एकरस Aवाह बा$धत होता है । डॉ0 नामवर
संह के शmद म7 कह7 तो यह भी एक वरोधाभाष ह< है 9क शा-= संवलत होकर
सा(ह)य िजस मा=ा म7 सामािजक JिBट से लोक-वमa
ु त तथा लोक-वरोधी वचार
क> ओर वचलत हो गया, काZय-भाषा तथा काZय-कला क> JिBट से उसी मा=ा म7
समg
ृ तर होता गया। कबीर से चलकर qमशः जायसी; सूर और तुलसी तक के
वकास का मl
ू यांकन इस JिBट से रोचक हो सकता है ।''
श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धाम0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने दलत वमश0 के े= म7 ‘दलत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
दलत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलोशप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं दलत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसोसयेट हY।
भारतीय सा(ह)य क> एक समृ g शा-=ीय पर5परा है। सा(ह)य क> पहचान और
परख अब तक रस, छं द, अलंकार, Fबंब, Aतीक, मथक आ(द सौ दय0शा-=ीय कसौट<
पर होती रह< है । सा(ह)य को महान और सव0RेBठ कला माना जाता रहा है। दलत
$चंतन सा(ह)य के इस महानतावाद< कला दश0न को नकार दे ता है । इसक> सोच म7
सा(ह)य स5Aेषण का सशaत Zयवहार है । इसके लए उsेKय Aधान है, कला नह<ं!
अतः यह भाषा, श ्◌ौल< और शlप क> उतनी परवाह नह<ं करता, िजतनी उिaत क>
-पBटता क>। इसका उsेKय है सामािजक याय मानव और मुिaत क> अवधारणा।
अतः इसक> सौ दय0शा-=ीय अवधारणाएं अलग हY।
स)यं, शवं, स
ु दरम ् से भ न इसक> अवधारणाओं म7 संुदर और असंुदर दोन
शामल हY। सा(ह)य म7 महाव)ृ तांत, महानायक और उदा)त भावनाओं के वbg
दलत सा(ह)य क> अवधारणाएं, ‘बहुजन (हताय बहुजन सख
ु ाय' हY। यह सव0साधारण
क> भावनाओं के सम)व पर आधाSरत हY। जीवन संघष0 और Rम ह< इसके सा(ह)य
का सौ दय0 है । मानवीय सरोकार से अलग होकर द<न-द#ु नया से बेखबर
आ)ममुdधता, रह-यवाद< दश0न, कलावा(दता आ(द से इसका कुछ लेना-दे ना नह<ं है ।
अतः कुछ लोग ‘दलत सा(ह)य' को वैकिlपक सा(ह)य भी मानते हY और अलग से
इसके सौ दय0शा-=ीय आवKयकताओं क> वकालत करते हY। पर तु (ह द< सा(ह)य
म7 र<#तकाल से लेकर आध#ु नक काल म7 छायावाद युग तक शोषत आमजन एवम ्
दलत वग0 पर कोई ग5भीर $च तन नह<ं हुआ, य=-त= $च=ण भले हुए ह। पर तु
वह अभZयिaत म7 उतना सफन नह<ं रहा, िजतना होना चा(हए।
सा(ह)य का म[
ु य सरोकार चं9ू क समाज से है अतः सामािजक सां-कृ#तक
सम-याएं, संघष0 और QवंQव इसम7 अभZयिaत पाते हY। सा(ह)य का समाजशा-=
और दश0न सदा से ह< इन सम-याओं से ]-ब-] होते आए हY। Aाचीनकाल के Qवैत-
अQवैत, सगुण-#नग0ुण आ(द से लेकर आध#ु नक काल के छायावाद, Aग#तवाद,
माaस0वाद आ(द वाद-ववाद ने सा(ह)य क> ग#त को आगे बढ़ाया है ।
आ$थ0क आधार और भौ#तक-QवंQव पर Zयिaत और समाज क> Zया[या
करके माaस0वाद ने वग0 चेतना Qवारा सव0हारा क> मिु aत और सामािजक-आ$थ0क
समानता क> चेतना फैलाई। ZयावहाSरक -तर पर भले ह< इसे सफलता न मल<
हो; 9कंतु चेतना के -तर पर इसने जो वKवZयापी समाजवाद< दश0न (दया; वह
मानव सयता के -तर पर इसने जो वKवZयापी समाजवाद< दश0न (दया; वह मानव
सयता को बहुत बड़ी दे न है । यह चेतना दश0न कमोवेश आज भी समाज और
सा(ह)य क> म[
ु यधारा म7 शामल हY।
दलत चेतना माaस0वाद से भी आगे बढ़कर वण0, न-ल और लंग भेद को
अपना वषय बनाती है और समाज म7 स(दय से Zयाjत जा#त और वण0 Zयव-था
क> वसंग#तय को चुनौती दे ती है । ‘‘यह सामािजक संरचना क> तह म7 #छपे
षड़य = और Aपंच का पदा0फाश करती है और बताती है 9क वण0 और लंगगत
वषमता मानव सयता के वकास म7 सबसे बड़ी बाधा है। दलत)व के कलंक के
मिु aत Qवारा मानव समाज म7 समानता, बंध)ु व, मया0दा और स5मान के भाव पैदा
करना इसका उsेKय है। अपनी गलत-दलत ि-थ#त के A#त पीड़ा, वषमता के A#त
आqोश और Zयव-था के वbg व
ोह इसके Aाथमक -वर हY। समाज का सबसे
अ$धक Rम करने वाला यह वग0 समाज, सं-कृ#त, इ#तहास और पंरपरा म7 अपनी
खोई अि-मता एवं पहचान क> पड़ताल करते हुए अपने आप को #नराश पाता है ।
वहां इसके लए कुछ भी सकारा)मक (दखाई नह<ं पड़ता। अतः यह अपनी पीड़ा
और आqोश के साथ समाज और सं-कृ#त से समता, याय, ब धु)व, स5मान और
-वावलंबन क> मांग करता हुआ संघष0रत (दखाई पड़ता है ।
व
ोह, वHान और वKवा)मा दलत सा(ह)य के तीन आयाम हY। दलत
सा(ह)य ने वण0वाद< समाज-Zयव-था, मनBु य का सां-कृ#तक अधःपतन, दSर
ता तथा
दयनीयता का गौरवगान करने वाल< धम0-पर5परा के वbg A#तरोध/वरोध करना
शु] कर (दया है । दलत सा(ह)य (ह द ू मानसकता को नकारता है। साथ ह< मानव
क> -वत =ता का उ|घोष करता है। दलत सा(ह)य शmद क> Aामा णकता को
नकारता है और बु g क> Aामा णकता को शरोधाय0 करता है। aय9क मानसक
पSरवत0न एक ता9क0क/वैHा#नक त)व है। इस त)व को -वीकार कर वह संसार के
पीuड़त, ब(हBकृत और समाज-शोषत को अपना (हतैषी/शुभ /$चंतक/म= मानता है ।
ऐसा माना जाता है 9क दलत शmद 19वीं सद< म7 फुले Qवारा अछूत,
अ )यज आ(द (आज क> अनुस$ू चत जा#तय एवं अनुस$ू चत जनजा#तय) के लये
Aयुaत 9कया गया; इस नाम से कोई सा(ह)य आ(दकाल म7 उपलmध नह<ं होता।
9क तु वयानी सg और नाथ Qवारा कुछ ऐसा सा(ह)य रचा गया िजसम7 अछूत
के याय, समानता के -वर सन
ु ायी पड़ते हY। परु ात)व #नब धावल< म7 राहुल जी ने
तेगe मठ से Aकाशत #तmबत के ‘‘सरaय Fबहार'' के पाँच Aधान गुbओं क>
थावल< के आधार पर चौरासी सg क> एक सच
ू ी द< है िजसम7 इन सgाचायe
के -थान के साथ ह< उनक> जा#तय का भी उlलेख 9कया गया। इस सच
ू ी म7
अ$धकांश को ज मना श
ू का भी तो वेद पढ़ना
हो ह< गया और य(द आग म7 घी दे ने से मिु aत होती हो तो सबको aय नह<ं दे ने
दे ते ता9क सब मa
ु त हो जाय7? होम करने से मिु aत होती हो या नह<ं, धुआँ लगने
से आँख को कBट ज]र होता है। wाxमण ‘‘wxम-Hान wxमHान'' $चlलाया करते
हY। अmबल तो उनके अथव0वेद क> स)ता ह< नह<ं है, 9फर और तीन वेद के पाठ भी
सg नह<ं इसलए वेद का तो कोई Aमा{य ह< नह<ं है। वेद तो परमाथ0 नह<ं है, वह
तो श
ू य क> शा नह<ं दे ता, वह तो एक Zयथ0 क> बकवास है ।'' बाद म7 सg क>
कुछ वकृ#तय के खलाफ नाथपंथ का Aादभ
ु ा0व हुआ (मछ दर नाथ, गोरखनाथ
आ(द) और नाथपंथ से भिaत काल के संत मत का वकास हुआ िजसके पहले कव
कबीर हY। ‘‘डॉ0 रामकुमार वमा0 ने नाथपंथ के चरमो)कष0 का समय बारहवीं शताmद<
से चौदहवीं शताmद< तक माना है उनका मत है 9क नाथप थ से ह< भिaतकाल के
स त-मत का वकास हुआ था, िजसके Aथम कव कबीर थे। म तZय का समथ0न
कrय और शlप दोन JिBटय से हो जाता है -नाथपंथी रचनाओं क> अनेक
वश ्◌ोषताएं स त काZय म7 यथावत ् वQयमान हY।''
ु ,
तफ
ू ान दलत कवता म7 शmद-भर नह<ं है बिlक ये आवेगपण
ू 0 अनुभव क>
अभZयिaत हY।''
दलत कवता म7 राजनी#तक Fब5ब भी गहरे सरोकार से जुड़े हY। राजनी#तक
Aपंच भय उ)प न करते हY। मोहनदास नैमशराय क> कवता म7 सशaत
अभZयिaत दलत कवता को एक नया आयाम दे ती है -
उनका शोर सन
ु कर/माताओं के -तन मँह
ु म7 डाले/बVचे चक उठते हY/पता
खड़क> पकड़ते हY/साँकल, सटकनी, चैक करते/ कमजोर दरवाज को
छूकर/उनक> ताकत का अहसास करते हY/कु)त ्◌ो सतक0 हो उठते हY/और
आदमी/ अपने-अपने भुतहा-कटघर म7/अपनी धड़कन को ह</सुनने का Aयास
करते हY।
अपने व
ोह< और आdनेय शmद म7 लपटे हुए Fब5ब उस आजाद< के लए
हY िजसम7 करोड़ दलत आज भी गुलाम हY। सी0बी0 भारती क> कवता म7 यह
Fब5ब अपनी आqोशपण
ू 0 अभZयिaत से Aभावत करता है-
तुमने जी है गुलामी/क>ड़े-मकोड़ से बदतर िज दगी/छजती इLजत/Fबखरते
स5मान/
लुटती बहन बे(टय क> आब]/तुमने भोगी है /भोगी है!!
Fब5ब के Aयोग को लेकर सा(ह)य म7 आम सहमत नह<ं है और (ह द<
कवता म7 Fब5ब को लेकर हमेशा एक वpम रहा है । कवता म7 Fब5ब सिृ Bट का
मह))वपण
ू 0 एवं वशBट -थान मानने वाल क> कमी नह<ं है । केदारनाथ संह का
मानना है ◌ः ‘Aाचीन काZय म7 जो -थान चSर= का था, आज क> कवता म7 वह<
-थान Fब5ब अथवा इमेज का है ।'
धम0, दश0न और पौरा णक मथक क> पन
ु Zया0[या दलत कवताओं क> म[
ु य
वश ्◌ोषता है-‘शायद आप जानते ह'-इस कवता म7 (ह द ू दश0न क> उन मा यताओं
पर Aहार 9कया गया है , जो सम-त मानव क> ह< नह<ं जीव मा= क> आ)मा को
मानती है और ‘चूड़े' तथा ‘चमार' से अ-पKृ यता का Zयवहार करती है । इस पर
(टjपणी करते हुए कव लखता है-
‘‘तु5हारे रचे शmद/डस7गे सांप बनकर/गंगा 9कनारे कोई वटव
ृ ढंू ◌़ढ़ लो/कर
लो भागवत का पाठ/आ)मतिु Bट के लए/कह<ं अकाल म)ृ यु के बाद/भयभीत
आ)मा/भटकते-भटकते, 9कसी कु)त ्◌ो या सुअर क> मत
ृ दे ह म7 /Aवेश न कर जाए/या
9फर पुनज0 म क> लालसा म7/9कसी डोम या चूड़े के घर, पैदा न हो जाए, चूड़े या
डोम क> आ)मा/wxम का अंश aय नह<ं है/मY नह<ं जानता/शायद आप जानते ह।''
छलत कव परु ातन और पौरा णक मथक के Qवारा व
ोह और
वरोधा)मक -वर को अभZयaत दे ता हुआ लखता है -
अँधेरे क> गहन गुफा को/घाव सहने दो/
जाओ
ोण जाओ/दद0 को हSरयाने दो/
एकलZय मY पहले था/आज भी हूँ
अब जान गया हूँ/अँगूठा दान aय माँगते हो?
डॉ0 दयान द बटोह< क> इस कवता ‘
ोणाचाय0 सुन7 ◌ः उनक> पर5पराएँ सन
ु े'
म7 एकलZय क> पीड़ा को अतीत से लेकर वत0मान म7 जोड़ा है, जहाँ आज भी शा
सं-थान म7
ोणाचाय0 क> पर5परा के वाहक अनेक एकलZय क> A#तभाओं को
त-वत कर रहे हY। दलत सा(ह)यकार पौरा णक मथक को तोड़कर शा-=ी
Aतीक को नकारते हुए उ ह7 बेनकाब करके उनके सच को उजागर करता है । दलत
सा(ह)य क> कवता....म7 परु ाने मथक एवं Aतीक को तोड़कर नया अथ0 दे ने क>
A9qया एक मुखर Aविृ )त है । डॉ0 रम णका गुjता का मानना है 9क ये शा-=ीय
मथक के झूठ को सवणe के जातीय अहम ् को गौरवाि वत करने के लए गढ़े गए
Aतीक और मथक के #तल-म को तोड़कर, झूठ-को झूठ कहकर उनके चम)कार
को ख)म नह<ं करता, बिlक साथ ह< साथ वह उ ह7 नया अथ0, नई पSरभाषा दे ते भी
चलता है । ये Aविृ )त ऐसे नये समाज के #नमा0ण करने म7 सहायक हो रह< है जो
भारतीय मानसकता क> जड़ता और कु{ठा को तोड़े और जहाँ कोई यु$धिBठर जुए
म7 प)नी को हारकर धम0 राज न कहलाए। जहाँ कोई गुb एकलZय का अँगूठा
कटाकर भी गुb बना रह सके, जहाँ प)नी-)वaता, शंबूक-हं ता, बाल<-छलता राम,
मया0दा पb
ु षो)म नह<ं कहलाएं।
दलत रचनाओं म7 मथक कथाएं, जातक कथाएँ, दलत जीवन क> पीड़ाओं
का $च=ण करती हY। उनके व
ोह, वोभ क> भावनाओं, अि-मता क> तलाश,
अि-त)व के लए जूझते सरोकार को रे खां9कत करती हY।
दलत कवय ने ऐ#तहासक, पौरा णक मथक के Qवारा दलत जीवन क>
वसंग#तय और सामािजक स दभe क> वा-तवकता को रे खां9कत 9कया है, कण0,
एकलZय, श5बूक, सीता दलत क> िजजीवषा और व
ोह के Aतीक बन गए हY।
रामायण, महाभारत म7 अनेक मथक के Qवारा दलत जीवन क> दाहक ि-थ#तय
को उभारा गया है ।
श5बूक, तु5हारा रaत जमीन के अ दर/समा गया है,/जो 9कसी भी
(दन/फूटकर बाहर आएगा/Lवालामख
ु ी बनकर। (‘स(दय का संताप' से)।
इसी तरह कव ोभ Zयaत करता हुआ कहता है -
धरती और आकाश के बीच/टूटकर $गरता है कोई न=/अँधेर< रात म7/9कसी
कण0 क> सस9कयाँ/]ँध-]ँध जाती हY/श5बूक क> अभशjत ह)या/ और एकलZय
के साथ/9कए गए छल को साथ लये/मेर< पीढ़</जंगल, पहाड़, न(दय और नाल
म7/खोज रह< है/गत और वगत के बीच क> मौन शलाएँ।
उपरोaत उदाहरण के Qवारा -पBट होता है 9क ‘‘पार5पSरक मा यताओं और
आदशe से भ न दलत सा(ह)य ने अपना रा-ता चुना है । पौरा णक आदश0 पा=
उसे नायक नह<ं लगते। अपने चSर= के दोहरे मापदं ड को बार<क> से वKलेषत कर
दलत रचनाकार उनके दस
ू रे ]प को उजागर करता है । नायक को खलनायक म7
पSरव#त0त करके दलत लेखक 9कसी बदले क> भावना का A#तकार नह<ं करता है ,
बिlक जीवन-मl
ू य म7 #छपी वसंग#तय पर Aहार करता है । उसक> भाषा ज(टल
संरचना के साथ उन ि-थ#तय को उभारती है जो मनBु य का शोषण कर उसे
दासता क> ओर ले जाती हY। ‘रामायण' और ‘महाभारत' के अनेक पा= ने दलत
रचना◌ाकार का Wयान खींचा है । दलत सा(ह)य म7 कण0, एकलZय, श5बूक
नायक)व Aाjत कर चक
ु े हY। उनक> सोच एवं JिBट ने ऐसे अनेक अWयाय को
खँगाला है, जो भारतीय जनमानस को हजार साल से Aभावत करते रहे हY। इन
मा यताओं के आधार पर पा= का पन
ु ग0ठन भी एक अलग A9qया है जो Aचलत
सौ दय0शा-= क> मा यताओं को वखंuडत करती है ।''
दलत कवता के 9कतने ह< रं ग-]प हY। इसम7 ओज है । वचार क> -पBटता,
अनुभव क> Aामा णकता, संवेदना क> पारदश0ता, अभZयिaत क> सहजता और नये
मजाज के कारण दलत कवता को नयी पहचान दे रह< है। इस क> कवता म7
वचार, संवेदना और शlप-वधान से उजागर होता है 9क वे अपने मंतZय सामा य
जन तक स5Aेषत करना चाहती है। उनक> कवता म7 वश ्◌ोष तेवर और तlखी
है। उनक> सा(ह)य क> अ$धकांश कवताएँ सोsेKय लखी गयी हY। वे जीवन के
वभ न कगार को छूती हुई Aवा(हत होती हY। इसलए आज क> कवता का
पSरJKय व-तत
ृ है ।
(ह द< दलत सा(ह)य अपने पहले चरण म7 है, इसलए अभी उससे पSरपaव
शlप क> अपेा नह<ं क> जा सकती है। िजन वQवान को यह कमजोर< (दखाई
दे ती है, वह दलत सा(ह)य का कम उनका अपना JिBटकोण अ$धक है। ‘‘दलत
सा(ह)य का शmद सौ दय0 Aहार म7 है , स5मोहन म7 नह<ं। वह समाज और सा(ह)य
म7 शतािmदय से चल< आ रह< सड़ी-गल< पर5पराओं पर बेदद से चोट करता है।
वह शोषण और अ)याचार के बीच हतास जीवन जीने वाले दलत को लड़ना
सखाता है ।''
(ह द< दलत कवता क> काZयभाषा और शlप-वHान पर चचा0 करने का
अभी समय नह<ं आया है । अभी तो धारा पहाड़ से उतर रह< है -परू े आवेग से। बाढ़
क> ि-थ#त है -पानी मटमैला है । यह उsान Aवहनशीलता क> पहचान है । वह सबकुछ
बहाकर ले जाएगी अपने साथ। तब वह सड़ेगी, गलेगी, 9फर $थरायगी, मvट< नीचे
बैठेगी, नयी उव0राशिaत आएगी; नया जीवन ]प लेगा। तब कवता क> ]प-रचना
क> $चंता करने का समय आएगा। अभी तो हाहाकार कवता क> भू मका म7 है ।
दलत कव भी कवता क> यांF=क> को त)काल जाने-अनजाने नकारता है ।
स5भवतः इसलए 9क इनका पहला जोर अपनी बात को खुले शmद म7 परू < शिaत
के साथ कहने म7 है , उसे साज-संवार म7 नह<ं। ये ]प-रचना के A#त थोड़े लापरवाह
हY। बावजूद इसके इनक> कवता का ]प-प इतना कमजोर या उपेणीय नह<ं है।
संवेदना अभZयिaत के qम म7 अपने साथ भाषा और ]प-रचना के सारे औजार
लेकर आती है। इन कवय क> कवताओं म7 भी ]प-वधान के सारे त)व आ गये
हY।
दलत (ह द< कवताएँ आqोश और आवेश क> कवताएँ हY। aया यह< कारण
नह<ं है 9क ये 9कसी सीमा या ब ध ्◌ान के A#त बेपरवाह हY। कगार के बीच बहने
वाल<, उ ह7 -वीकार करने वाल< से कवताएँ नह<ं है। ये तो कगार का तोड़ने वाल<
उ|pांत कवताएँ हY। ये खरु दरु < कवताएँ है। मा#नए तो खरु दरु ापन ह< इनका शlप
है। ये Fबना धोयी-पछोड़ी कवताएँ हY। -वाभावक है 9क कवता के तथाक$थत
स5pांत पाठक क> b$च-बोध म7 9कर9कर< पैदा कर7 गी। उनके सौ दय0बोध क> उपेा
कर7 गी। शg
ु कवता क> JिBट से ये कवताएँ भले ह< कमजोर मानी जाएं 9क तु
अपने उsेKय म7 परू < तरह सफल हY। ये अपने लkयबेध म7 त#नक भी चूक नह<ं
करती। यह इनका आप|धम0 है । ये कवताएँ रोग नह<ं, उसे लण का संकेत करती
हY। ये अपने समय क> ‘रडार' हY, िजनम7 आस न व-फोट A#तFबि5बत हो रहा है ।
दलत कवय क> भाषा 9कसी क> मह
ु ताज नह<ं है। इन कवय का वKवास
है 9क ये कवताएँ िज दा रह7 गी तो अपने वैचाSरक सरोकार के कारण। यह सह<
हY। वे जानते हY 9क भाषा अभZयिaत का माWयम है । वे िजस भाषा का Aयोग
करते हY उसके माWयम से अपनी बात7, अपने वचार, अपना संदेश, ोभ, qोध, राग-
वराग, पीड़ा सब कुछ स5Aेषत करने म7 समथ0 हY। वे आqोश क> भाषा का Aयोग
करते हY, तो भाषा का आqोश भी दे खने म7 आता है । वे ऐसी भावना का Aयोग भी
करते हY, िजसम7 कुछ लोग को ऐतराज भी हो सकता है तथा उनके मन म7 जुगुjसा
भी पैदा हो सकती है , 9क तु ऐसी भाषा अकारण नह<ं आती। इसका कोई-न-कोई
ता9क0क स दभ0 होता है । इस AKन पर म
सा(ह)य क> म[
ु यधारा म7 अब तक दलत सा(ह)य क> भू मका को
सा(ह)यकार -वीकार नह<ं कर पाये, यानी दलत सा(ह)य क> भू मका को मा यता
नह<ं द< गयी। जब9क दलत सा(ह)य ने म[
ु यधारा के (ह द< सा(ह)य म7 पया0jत
वृ g क> है ।
(ह द< के वQवान मनीषय एवं $चंतक का मानना है 9क दलत सा(ह)य
क> व$धवत शुbआत मराठ दलत सा(ह)य से हुई है । पछड़ेपन क> मानसकता
और उVच जा#त क> मानसकता वाले सा(ह)यकार दलत सा(ह)य को पचा नह<ं पा
रहे हY। वो तो उसे सा(ह)य मानते ह<ं नह<ं, ले9कन दलत शिaतय के उभार और
उनके दबदबे के कारण वे अब दलत सा(ह)य क> भू मका को -वीकार करने लगे
हY। दलत सा(ह)य से ता)पय0 पSरवत0न, संघष0 का सा(ह)य है। दलत सा(ह)यकार
अतीत के A#त व
ोह एवं आqोश के साथ रचना)मक पSरवत0न चाहता है वह
ब धु)व का हामी है वह संयुaत है, वह बंधन एवं शोषण मa
ु त -व-थ समाज
चाहता है।
आजाद< के इन इaसठ वषe म7 दे श के 9कसी भी राLय म7 दलत का वच0-व
कायम नह<ं हो सका। ले9कन आज भी दे श म7 उVच जा#त क> मानसकता,
साम तशाह< और पर5परावाद< लोग का दबदबा जार< है। सवाल उठता है 9क
दलत, गर<ब और आम जनता का वच0-व aय नह<ं कायम हो सकता? इसके पीछे
#छपे कारण -पBट हY 9क भारत म7 Aजातं= है, लोकतं= नह<ं है। स)ता म7 बैठे लोग
या राजनी#तक दल ऐसा नह<ं चाहते हY और अपना वच0-व कायम रखना चाहते हY।
य(द दलत और आम जनता का स)ता एवं सा(ह)य म7 वच0-व कायम हो जाता है
तो उ ह7 कौन पछ
ू े गा?
दलत सा(ह)य aया है ? इस पर दलत सा(ह)यकार, वचारक, लेखक सभी
एक मत नह<ं हY, (ह द< का दलत सा(ह)य सबसे अ$धक ववादा-पद और च$च0त
रहा है । ऐसा aय? डॉ0 रम णका गुjत के अनुसार जो ववादा-पद होगा, वह च$च0त
तो होगा ह<, पहल< बात तो दलत म7 आ दोलन के फल-व]प उसके भीतर
अभZयिaत क> धार फूट<, वो जो बोलना ह< नह<ं जानता था, उसने बोलना शु]
9कया, आ(दवासी आज भी उस ि-थ#त म7 नह<ं हY, इसका कारण दलत के पास नह<ं
था, वे भौगोलक पSरि-थ#तय के कारण अलग-अलग मs
ु और े= म7 लड़ते रहे ।
कुछ सा(ह)यकार ऐसे हY जो दलत जा#तगत समद
ु ाय के उ)थान और पतन के
इ#तहास को दलत सा(ह)य मानते हY। सव0मा य दलत सा(ह)य संघषe, पSरवत0न
के उस सा(ह)य का◌े सा(ह)य मानते हY। िजसका दलन हुआ हो- उ)पीड़न हुआ हो,
उनके सा(ह)य को दलत सा(ह)य माना जाता है । इसी के साथ सामािजक A#तBठा
िजस जा#त, समद
ु ाय एवं समाज क> न हो, उसे दलत सा(ह)य म7 रखा जाता है।
दलत सा(ह)य का वत0मान पSरवेश म7 बड़ा Zयापक े= बनता जा रहा है।
दलत सा(ह)य पछले दो दशक म7 Aमुख सा(हि)यक आ दोलन के ]प म7
वकसत हुआ है जो डरवन स5मेलन के पKचात सा(ह)य म7 नये-नये वभेदक
दशाओं, शोषण सवग0, वभेदक को सू$चत करने म7 सम हुआ है । इसके सरोकार
सामािजक हY। दलत $चंतन अपना नया आधार आध#ु नक समानतावाद< वचारधारा
म7 पाता है । दलत वमश0 इन सभी Aयास का एकजुट करने का नाम है । दलत
$चंतक ने राLय, Zयव-था, सरकार के वभेदकार< तर<क को भी आलोचना के घेरे
म7 लया है । कोई माने या न माने, मेरे वचार म7 आज का दलत सा(ह)य कला
और वHान दोन है ।
दलत सा(ह)य वHान के ]प म7 Zयवि-थत qमबg Hान को Zयaत
करता है । आज दलत सा(ह)य म7 िजHासा-खोजबीन के बढ़ते Aभाव े= को
झुठलाया नह<ं जा सकता और यह सा(ह)य जनआंदोलन, पSरवत0न और संघष0 के
सौ दय0शा-= को कला के ]प म7 -वीकार 9कया जाने लगा है, जैसे कांटे नुक>ले होते
हY, चुभन दद0नाक होती है , 9फर भी दलत $च तक इसम7 सौ दय0 कला को ढ़ंू ढ़
#नकालते हY ऐसे म7 सा(ह)य क> पSरभाषा म7 यह कला और वHान दोन ह< है ।
वत0मान म7 दलत सा(ह)य िजस ती ग#त से अपना Aभाव े= बढ़ाता जा रहा है
उसको दे खते हुए (ह द< सा(ह)य म7 दलत सा(ह)य अब अलग नह<ं है और (ह द<
क> म[
ु यधारा का अभ न अंग हो गया है, जो आने वाले समय म7 ह< जन
आंदोलन, पSरवत0न, संघषe क> एक नई दशा-(दशा तय करे गा।