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डॉ.

वीरे
संह यादव के द लत
वषय संबंधी आलेख का
संह
ई-बक
ु : रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com ) क तत
ु .

शै णक ग#तव$धय से जुड़े यव


ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क,
राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना

ृ न 9कया है । इसके साथ ह< आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को
सज
-थापत कर उनके सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का
Aकाशन राBCर<य एवं अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है । आपम7 AHा एवम ् A#तभा का
अJभत
ु सामंज-य है । द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ् पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क>
रचना कर चक
ु े डाँ वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है ।
राBEभाषा महासंघ मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब
डाँ0 भीमराव अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008
स(हत अनेक स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन
सं-थान राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11)
वषय पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

हद दलत आलोचना क परपरा का नया कैनन

डॉ. वीरे & संह यादव

सा(ह)य क> #न म0ती अनेक सामािजक -तर पर होती है तथाप सा(ह)य क>
Zया[या करना क(ठन ह< नह<ं चन
ु ौतीपण
ू 0 है । इस लए सा(ह)य का अथ0 वह भाषा
है, िजसके Qवारा सामािजक, राजनी#तक, सां-कृ#तक, धा म0क आ(द सामािजक
Zयवहार से जो सा(ह)य #नमा0ण होता है उसम7 मानवीय Aविृ )त ह< आधारभूत होती
है। अथा0त ् सामािजक सम-याओं का A#तFब5ब उस सा(ह)य से होता है । दे शकाल,
वातावरण, भाषा, सं-कृ#त, समाजजीवन से स5बि धत Aथा पर5पराओं का वण0न उस
सा(ह)य म7 -वाभावक ]प से आता है । इसी लए समाज और सं-कृ#त एक-दस
ू रे के
पूरक हY। कुछ अपवाद को छोड़ के दे ख7 तो (ह द< आलोचना म7 सा(ह)य को जातीय
जीवन से जोड़कर दे खने क> JिBट का अभाव रहा है। राज Aशि-तयां◌े,
अ#तशयोिaतपण
ू 0 �◌ा◌ृ◌ंगार वण0न और कला)मक ]प के A#त bझान, हमार<
सतह< जीवन JिBट को Aकट करता है । कूप मंडूक क> तरह अपनी छोट< द#ु नया म7
म-त रहना, ‘अहो ]प अहो Wव#न' पर मुdध रहना इसी का पSरणाम है। हमारा अहं
इतना बड़ा है 9क छोट<-छोट< बात पर आहत हो उठता है । ये छोट<-छोट< बात7
हमारे लए जीवन-मरण का AKन बन जाती हY। हम इसके लए मरने-मारने पर
उता] हो जाते हY। आज भी ये ि-थ#तयाँ कमोवेश राजनी#तक-सामािजक पटल पर
Lय क> )य (दखती हY। वराट जीवन JिBट का अभाव ु
आडंबर म7 डूबने
उतराने के लए हम7 बार-बार ववश करता है । पछले हजार वषe का इ#तहास
इसका साी है । जातीय जीवन से जड़
ु ी Zयापक JिBट के बदले एकांगी जीवन-
JिBटय से जीवन और सा(ह)य पSरचा लत होता रहा है। यह< कारण है 9क सा(ह)य
क> म[
ु य धारा पर5परावा(दय क> JिBट से ओझल रह< है पर5परावा(दय ने अपनी
सु वधा के लए छोट<-छोट< JिBटयाँ #न म0त कर ल<ं, उसी म7 ऊभ-चूभ होते रहे तथा
समाज का एक बड़ा शोषत, द लत (ह-सा हमेशा इनक> आंख से सदै व ओझल रहा
है। उसको के
म7 रखकर कभी पर5परावाद</ सनातनी, $च तन ग#तशील नह<ं रहा।
इसी का पSरणाम है 9क गौतम बg
ु क> महाकbणा या महावीर जैन का अभय और
अ(हंसा इनके लये अपना अथ0 खो दे ते हY। ईसवी सन ् से लगभग 500 वष0 पव
ू 0
महावीर जैन और गौतम बुg ने आम आदमी के दःुख-दद0 से अपने को जोड़ा और
उसके पधर के ]प म7 खड़े हुए। तब से आम आदमी बनाम अ भजात वग0 का
यह Qव Qव चलता आ रहा है । सनातनी जीवन और सा(ह)य दोन े= म7 आम
आदमी के पधर नह<ं हY उ ह7 तो सg-नाथ क> कवताओं तक म7 सा(ह)य और
जीवन-JिBट का अभाव (दखता है।
डॉ0 राम-व]प चतुवद
i < भारतीय सं-कृ#त के अ तव0रोध पर अपनी (टjपणी
करते हुए लखते हY 9क (ह द ू मानस के अनेक अ तव0रोध म7 सबसे (दलच-प है ,
सk
ू म अQवैत दश0न और जड़ीभत ू जा#त-Zयव-था का सह-अि-त)व। त)व-$चंतन क>
सूkमतम भाव-भ ू म अQवैत क> पSरकlपना म7 है । यह अQवैत भावना (ह द ू दश0न
क> व शBट उपलिmध है और इस ]प म7 अ य= नह<ं मलेगी। वह<ं जा#त-Aथा का
-थल
ू ]प-ज म पर आधाSरत, जा#त के मल
ू अथ0 म7 ह< ऐसा कह<ं नह<ं मलेगा।
जा#तय का जाल और वग3करण, इतना पण
ू 0 और Zयवि-थत है 9क छ द-शा-= का
A-तार याद आ सकता है । आचाय0 हजार< Aसाद िQववेद< क> यह (टjपणी अनायास
ग णत क> अनंत रा श क> ओर संकेत करती है 9क (ह द ू समाज म7 नीचे से नीचे
समझी जानी वाल< जा#त भी अपने से नीची एक और जा#त ढंू ढ़ लेती है और यह
Zयंdय नह<ं है, ZयावहाSरक सच है तो एक)व का परम ]प अQवैत म7 और वैवWय
क> बहार जा#त-Aथा म7 , ये दोन छोर (ह द ू Zयव-था म7 बड़े इ)मीनान के साथ
समाए हुए हY। इस तरह दै व-वधान और कम0 का मह)व यहाँ के दश0न म7 एक साथ
आते हY।
भारतीय इ#तहास ु
जीवन-JिBट और संक>ण0ताओं का इ#तहास रहा है। यह
राजनी#त म7 अ भजात वग0 का इ#तहास है जो अपनी ु
ताओं को अQवैतवाद के
महान दश0न? और सं-कृत या अपpंश सा(ह)य के चमकदार आलंकाSरक वण0न से
ढ़ं कने के लए Aय)नशील रहा है। इसके समाना तर लोक का वपुल वशाल Aवाह
है जो इसके वपर<त और वbg अपने ढ़ं ग से ग#तशील रहा है । अंतव0रोध के बीच
अपने को ग#तशील रखने क> यह मता अब तक चल< आयी है । तभी तो संभव
हुआ 9क इस दे श का एक संवधान -वतं= आया0वत0 म7 मनु महाराज ने रचा था
और दसू रा दे श के 9फर -वाधीन होने पर डॉ0 अ5बेडकर ने रचा। मनु के वधान म7
अ5बेडकर के लए -थान नह<ं था या नह<ं जैसा था, अ5बेडकर के वधान म7 मनु
के लए परू ा -थान है। इ#तहास-चq क> यह वलणग#त सारे समाज-दाश0#नक को
परे शान करने वाल< है। और तब समझ म7 आता है 9क हमारे यहाँ धम0 क>
Zयव-था धारण करने के अथ0 म7 aय क> गई है । धम0 व-तुतः वह है जो इन
अंतव0रोध को धारण करने क> सामrय0 रखता है। वश ्◌ोष बात यह है 9क उससे
जीवन के अ तव0रोध को धारण करने क> उपेा क> जाए। सा(ह)य के इ#तहास
क> म[
ु यधारा के वbg आज का द लत सा(ह)य इनक> छुआछूतवाद<, अहंकारवाद<,
अ भजात और गैर बराबर< वाल< वचारधारा के खलाफ यह समतावाद<, Aेममूलक
आपसी भाई-चारे क> सहज जीवन क> वचारधारा को लेकर A-तुत होता है ।
भारतीय इ#तहास म7 सव0Aथम महा)मा गौतम बg
ु ने जा#त Aथा को चन
ु ौती द< थी।
इसी युग म7 संत चोखा ने भी द लत चेतना को सा(हि)यक अ भZयिaत द< थी।
सg-सा(ह)य म7 भी द लत वग3य चेतना मलती है। चौरासी सg म7 से अ$धकांश
सg द लत वग0 के थे। सरइया, लुइया, डाि5भया, करइया आ(द ने मोहमाया
सांसाSरक तथा आड5बर का वरोध कर सहज जीवन को महासख
ु का माग0 बताया
था। भारत के पव
ू 3 अंचल म7 सg का Aभाव था। पिKचमी े= म7 जैन रतावओं का
Aचार था। जैन सा(ह)य म7 द लत वग3य चेतना क> अ भZयिaत हुई है। सg कव
सरहपा इसके परु ोधा हY। यहाँ हम इस बात को शsत के साथ� कहना चाह7 गे 9क
सg और नाथ का आम जनता म7 इतना जबद0-त असर aय रहा है इस पर
कभी ग5भीरता से वचार ह< नह<ं हुआ है । इसका Aमख
ु कारण यह रहा है 9क
इ#तहास तो अ भजात वग0 का अ भजात के Qवारा लखा जाता रहा है जो सरु tत
अ भजा)य सा(ह)य रहा है, उसके माWयम से दे खने पर इस वशाल द लत, शोषत
जन-समद
ु ाय क> झाँक> कैसे मल सकती है ? सg-नाथ के वपुल Aभाव का संकेत
लोक म7 रमी हुई उनक> -म#ृ तयाँ दे ती हY िजसक> अनुगँूज अ भजात सा(ह)य म7
सोलहवीं-स=हवीं शताmद< तक सन
ु ाई पड़ती हY। इस दस ू र< पर5परा के इ#तहास को
पुन#न0 म0त करना पड़ेगा, इसक> टूट< कuड़य को जोड़ना पड़ेगा। आज समय क>
आवKयकता या मजबरू < कुछ भी कह7 इनके सा(ह)य और दश0न को उदारता से
समझना पड़ेगा। अब तक इनके A#त पर5परावा(दय एवं सामंतवा(दय क> JिBट
आqामक रह< है । इसम7 कोई शक नह<ं है 9क आqामक JिBट से 9कया गया इनका
ववेचन-वKलेषण अधरू ा और एकांगी है। वे हमारे पव
ू ज
0 हY, उनके वचार हमार<
वरासत हY। एक तरफ राजनी#तक-सामािजक ु
ताओं पर JिBटपात कर7 और उसके
पSरAेkय म7 उनके Qवारा A-तावत जीवन-दश0न को दे ख7 तो उनका वै शBvय
उभरे गा। सg-नाथ का महा)5य इस बात म7 है 9क उ हने मानव जीवन क>
मूलभूत सम-याओं पर उँ गल< रखी। वे दश0न क> हवाई बात7 नह<ं करते। सामा य
एवम ् आम मनBु य का जीवन इतना दख
ु ी aय है , उसक> सम-याओं क> जड़ aया
है? जीवन जो नीरसता और दख ु से भरा हुआ है उससे छुटकारा कैसे पाया जा
सकता है । सामा य मनुBय के भीतर जो कोलाहल, आपाधापी और अशाि त Zयाjत
है, उससे मa
ु त होकर कैसे जीवन को आन दमय बनाया जाय। इसी सम-या से
टकराने और उसका उ)तर ढंू ढ़ने क> सफल को शश उनक> कवताओं म7 है । कभी
गौतम बुg ने इस सम-या को उठाकर भारत के जनजीवन म7 अभूतपव
ू 0 qां#त पैदा
कर द< थी। सम-त भारत उनक> तरफ आकृBट हो चला था। सg कव सरहपा-
राहुल के अनुसार (ह द< पर5परा के पहले कव-भोग म7 #नमा0ण और काया म7 तीथ0
दे खते हY। नाथ-पर5परा राजाओं को योगी बनाती-चलती है , aय9क ताँबा तब
ू ा, ये
दोई सच
ू ा/राजा ह< तY जोगी ऊँचा/तांबा डूबै तंब
ू ा #तरै /जीवै जोगी राजा भरै । (चटपथ
नाथ जी क> सबद<)। ऐसे म7 अपेाकृत सीधा-सरल JिBटकोण जैन कवय का है
जो अपनी धम0-साधना म7 9कसी अ य त)व को नह<ं मलाते। शायद कारण है
िजससे आचाय0 शa
ु ल ने अपने इ#तहास म7 इस लेखन को ववेचन क> सीमा के
बाहर रखा था, aय9क उसक> JिBट मूलतः उपदे शपरक है , इस लए नह<ं 9क वह
धम0-Aधान है जैसी 9क Zयंजना हजार< Aसाद िQववेद< अपने ‘आ(दकाल' के पहले
Zया[यान म7 दे ते जान पड़ते हY।50 साधारण मनुBय के शोषण के दायरे मे -=ी भी
आती है , aय9क -=ी के A#त सामंती भोगवाद< JिBट के वbg wxमचय0 क> धारणा
थी िजसम7 जीवन क> सहजता का #नष ्◌ोध और -=ी के A#त #तर-कार क> भावना
थी। गोपबाला सज
ु ाता के स5पक0 से फूटे मWयम माग0 क> यह अवमानना थी।
सव0साधारण के लए उपयुaत न समझकर इस व शBट घटना पर पदा0 डाला गया
था। बौg के धा म0क सा(ह)य म7 इस घटना का संtjत Aतीका)मक वण0न है ।
महावीर जैन के भी Hानचु चंदना के सं-पश0 और स5पक0 म7 खुलते हY। मूलतः
इ ह<ं घटनाओं म7 भैरवी साधना का बीज है । पर5परावाद< सोच क> मान सकता
रखने वाले सनात#नय क> -=ी पर एका$धकार क> Aविृ )त जीवन म7 पशत
ु ा क>
Aतीक है । जानवर म7 इस एका$धकार को लेकर संघष0 चलता रहता है। -=ी के
A#त साम ती JिBट पशत
ु ा और पाशवक भाव से जड़
ु ी है। सामंती भोगवाद<,
एका$धकारवाद< JिBट और इंि
य संयम पर आधाSरत wxमचय0-दोन -=ी के
#तर-कार पर आधाSरत हY। नार< जीवन का आधा अंग है । इसको #तर-कृत कर
चलने वाल< JिBट अधरू < और एकांगी है । नार< को छोड़ने वाले और भोगने वाले
दोन नार< से आqा त हY। जंगल म7 भागकर गुफा के एका त म7 रहने वाला और
अपने अंतः पुर म7 अनेक ि-=याँ रखने वाला एक ह< रे खा के दो वपर<त yुव हY।
दोन क> चेतना नार< से पीuड़त और आqा त हY। ‘‘ सg ने इस पार5पSरक पशत
ु ा
से दरू हटकर नार< को मानवीय JिBट से दे खा। उसे भोग क> व-तु के ]प म7 नह<ं
दे खा। उसक> अि-मता और उसके अ$धकार को -वीकारा ! यह भोगवाद< JिBट नह<ं,
भोगवाद< पशत
ु ा का नकार है, नार< क> भावनाओं और उसके अ$धकार का स5मान
है। इसको भोगवाद<, भौ#तकवाद< JिBट कहना मूढ़ता और अHानता का पSरचायक
है। तं= क> यह< JिBट है । यह< वाम माग0 है । यह< सहज जीवन का -वीकार है ।
पशत
ु ा से मनुBय म7 ]पा तरण क> A9qया है । सांसाSरक पाश से मिु aत और जीव
का शव हो जाना है । भैरवी साधना के मं= ‘ शवोऽहम ्' का यह< रह-य है । तं= क>
वाममाग3 साधना का यह वैHा#नक, -व-थ, मानवीय JिBटकोण है ।'' सg ने तं=
क> वाममागीर् साधना के इस वैHा#नक JिBटकोण को मा यता द< है। परं पSरत ]ढ़
सामािजक मा यताओं के वbg होने के कारण वे आलोचना के शकार हुए हY। उन
पर िजस तरह के आेप और आरोप लगाये गये हY और िजस उपेा और
#तर-कार से उनका ववेचन हुआ है, वह पर5परावाद< इ#तहास क> पोल खोलता है,
aय9क इस पर5परावाद< Zयव-था ने सामा य #न5नजन एवं नार< का शोषण 9कया
है। वा-तव म7 दे खा जाए तो वह आलोचना क> भाषा नह<ं है। पर5परावाद< Zयव-था
एवं लेखन को दोषी ठहराते हुए नार< क> दशा पर अपनी A#त9qया Zयaत करते
हुए डॉ0 वमल थोराट का मानना है 9क जा#त के आधार पर, म(हला होने के आधार
पर और गर<ब होने के आधार पर तीन तरह का शोषण द लत म(हला झेलती है।
इस मs
ु े को उतनी शsत के साथ नह<ं उठाया गया िजतना उठाना चा(हए था।
इसका यह मतलब नह<ं 9क रचनाकार उससे वा9कफ नह<ं है । उसम7 लेखक का
अपना पSरवेश Aभावकार< है, aय9क पSरवेश लेखक को बहुत Aभावत करता है,
द लत का जो पSरवेश है वह तो लगभग सारे भारत म7 एक जैसा ह< है ।
नार< शिaत क> Aतीक है इस संसार म7 वह कम0 क> साात ् जीव त वह
है। उसक> उपेा करके जीवन म7 संतोष नह<ं पाया जा सकता। जो अपने घर क>
भवानी को Aस न नह<ं रख सकता, वह भला जगत क> भवानी को कैसे Aस न रख
सकता है? तं= के इसी वचार को क{हपा कहते हY-
‘‘एaक ण 9कLजइ मं= ण तंत। णअ धरणी लइ के लकरं त।/ णअ घर
घSरणी जाब ण मLजइ। ताब 9क पंच वण0 वहSरLजई/िज म लोणिजलLजइ
पा णएहु, #त म धSरणी लइ $च)त।/समरस जइ तaखणे जइ पुणु ते सम
#न)त।''
ये तं= मं= एक भी न करो, केवल अपनी ग(ृ हणी को लेकर के ल करो। जब
तक तम
ु अपनी घरनी म7 डूब नह<ं जाते तब तक पंच aलेश से छूट नह<ं सकते।
िजस तरह पानी नमक म7 वल<न हो जाता है उसी Aकार ग(ृ हणी म7 $च)त लगाकर
सामर-य Aाjत 9कया जा सकता है । ये $चंतक #नग0ुण wxम के उपासक हY,
आराधना क> साम(ू हक श ्◌ौल< पर बल दे ते हY, (ह द ू समाज के दो पछड़े समूह
नार< और शू
को श ्◌ोष उVचवग3य पुbष के साथ समानता का दरजा दे ते हY।
उप#नष| और गीता इनके $चंतन के के
म7 हY, संगठन का ढांचा ये इसाई चच0 का
-वीकार करते हY। भारतीय (ह द ू वचार धारा और पाKचा)य ईसाई संगठन का
सामंज-य यह इनके आ दोलन का मल
ू मं= है । अWया)म को पन
ु जा0गरण पहले
लोक सेवा से जोड़ता है और 9फर लोकसेवा को qमशः राBE<य भावना से।
इसम7 कोई दोराय नह<ं है 9क अ#तKयोिaतपण
ू 0 वण0न (ह द< क> जातीय
पर5परा क> व शBटता है िजसम7 इ#तहास, वेद, -म#ृ तय परु ाण का सहारा लेकर
कवय ने अ|भत
ु कlपना का संसार बसाया है। अ#तशयोिaतपण
ू 0 वण0न इस Aकार
क> फY टे सी का एक व शBट अंश है । काZय म7 ऐ#तहा सकता ढूँढ़ना बाल क> खाल
#नकालना है । कव का लkय इ#तहास बताना नह<ं, मानव जीवन क> वदरपताओं
ू् ,
वसंग#तय क> वश ्◌ोषताओं को अं9कत करना और जीवन के दdध अनुभव क>
फुहार म7 पाठक को भगोना है। ऐ#तहा सक सVचाई को ढूँढ़ने के qम म7 कlपना
का रं ग Sरत होता है और सा(ह)य क> अखंडता टूटती है। आ(दकाल और
र<#तकाल क> रचनाओं के अWययन का यह< पSरAेkय होना चा(हए।
सg के काZय क> सहज ि-थ#त भिaत एवम ् र<#तकाल है जहाँ मानवीय
जीवन के सहज]प को उ)सव और उlलास क> भाषा म7 पूण0 तlल<नता से अं9कत
9कया गया है । पर5परावाद< आलोचक क> संक>ण0 JिBट से दे खने पर नाथ एवं
सg का काZयसौ दय0 ववेचन क> पSर$ध के बाहर हो जाता है। aय9क जीवन क>
ख{ड JिBट के कारण इन तथाक$थत वQवान ने एकपीय और एकांगी ववेचन
9कया है । सg को र<#तकाल क> पर5परा के पव
ू ]
0 प म7 दे खा जाना चा(हए, aय9क
उ हने द लत एवं वं$चत वग0 के जीवन को उसक> सहजता और स5पण
ू त
0 ा म7
-वीकार 9कया है। हालां9क यह JिBट र<#तकाल<न कवय क> नह<ं है । ‘‘र<#तकाल<न
कवय क> रचना संसार के मूल म7 साम ती JिBट है जो नार< के स5पण
ू 0
Zयिaत)व को मा= दे हJिBट तक सी मत रखती है । उसम7 व$च= नार< क> व भ न
छवय, ि-थ#तय म7 वा)-यायन के ‘कामसू=' का व-तार है । यह एक तरह का
बौgक वािdवलास है।'' सg के काZय के ववेचन क> बात कर7 तो इनके काZय का
उ)स जीवन का अखंड Aवाह है । जहाँ सामा य मानव जीवन को उसके राग-वराग
के साथ स5पण
ू त
0 ा म7 Fबना (हचक -वीकार 9कया गया है । इस -वीकार क> सहजता
म7 -=ी के लए न वकलता-Zयता है , न #नष ्◌ोध है । इस भ ू म पर इि
यदमन,
wxमचय0, नार< के A#त #तर-कार या वकलता और आसिaत-सारे AKन झर जाते
हY। केवल और केवल मानवीय Aेम श ्◌ोष रह जाता है और तभी हजार गोपय के
साथ रास रचने वाले कृBण योगेKवर कृBण बनते हY। जीवन का अकंुठ भाव से
उसक> समता म7 -वीकार-जहाँ Aेम दै (हक सीमाओं का अ#तqमण कर आ)मा के
धरातल पर A#तिBठत हो जाता है , दे ह क> अथ0व)ता समाjत हो जाती है । कृBण के
जीवन क> यह सहजता र<#तकाल म7 #छछोरे पन म7 बदल जाती है । Aो. $गSरजाराय
के शmद म7 कह7 तो वQयाप#त और सूरदास का काZय जीवन के के
म7 वैराdय
नह<ं-रागा)मकता को A#तिBठत करता है । उसक> अलौ9कक-अतीि
य Zया[या करना
उस अनुभव-स5पदा को #नरथ0क करता है। इनम7 दे ह के A#त न तो #नष ्◌ोध है न
आसिaत अपतु उसका सहज भाव म7 -वीकार है । इसक> ल<लापरक Zया[या करना
पाखंड क> सिृ Bट करना है । जीवन के िजस पाखंड के खलाफ ये कवताएँ लखी
गई हY, ल<लापरक Zया[या उसी का #नष ्◌ोध कर दे ती है । व-तत
ु ः पाख{ड का ज म
ह< जीवन म7 Aेम के #नष ्◌ोध से होता है और हम कृF=मता और बनावट<पन के
शकार हो जाते हY जो जीवन के सारे उlलास और रस को सोख लेता है।''

रह-य, कम0का{ड और मं= क> आ(दकाल<न अ भZयिaत मनोदशा जब


कुछ $थराती है तो कव के लए पहल< सम-या यह< है 9क वह यथाथ0 के ववध
Qव Qव म7 उलझ कर उ ह7 अ दर से समझने क> को शश करे ! धम0 और ऐ(हकता,
वीर और �◌ा◌ृ◌ंगार, भिaत और �◌ा◌ृ◌ंगार के Qव Qव म7 से सg-नाथ क>
बा#नयाँ, ववध रासो-काZय और वQयाप#त के पद जनमते हY। आ(दकाल<न सा(ह)य
का यह पSरJKय िजतना सVचा है, उतना ह< ऐ#तहा सक भी। कव का काम य(द
‘द#ु नया म7 ईKवर के कमe को यायो$चत ठहराना है तो सा(ह)य के इ#तहासकार का
काम है , कव के कमe को सा(ह)ये#तहास क> वकास-A9qया म7 यायो$चत (दखा
सकना। आचाय0 शa
ु ल ने इसे कहा था 9क इ ह<ं $च)तविृ )तय क> पर5परा को
परखते हुए सा(ह)य-पर5परा के साथ उनका सामंज-य (दखाना। यानी कव य(द
अपने इद0 -$गद0 के संसार और जीवन को दे ख-परख कर उसे अथ0 दे ता है तो
आलोचक और इ#तहासकार कव क> इस रचना म7 अथ0 का संधान करता है और
उसे संव$ध0त करता है! रचना, आलोचना और सा(ह)ये#तहास य मानवीय िजजीवषा
के, जीवन म7 अथ0-संधान के कृF=म चरण हY।''

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

दलत आलोचना म5 दस
ू र परपरा के नये तमानः-◌ः-
- डॉ. वीरे & संह यादव

शु] से दो पर5पराएं समाना तर ]प से Aवा(हत रह< हY ◌ः- (1) वै(दक


पर5परा (2) तांF=क पर5परा। वै(दक पर5परा सव0मा य नह<ं है , इस लए उसका
इ#तहास उपलmध है । तांF=क पर5परा, िजसे वाममाग0 भी कहा जाता है, इसे लगातार
वरोध और A#तरोध का सामना करना पड़ा है और कई बार एक दस
ू रे के घात-
A#तघात और संघात से अपने ]प म7 पSरवत0न करना पड़ा है। बाxय ]प बदलने
पर भी उसक> मल
ू अ तव0-तु अु{ण रह< है । गौतम बg
ु और महावीर जैन क>
Rमण पर5परा, यQयप इि
य संयम और wxमचय0 को Aधानता दे ती है वह मूलतः
इसी पर5परा क> है । वै(दक पर5परा के वरोध म7 Aवा(हत इस पर5परा के शखर
पुbष म7 कृBण, पतंज ल, गौतम बुg, महावीर जैन, सरहपा आ(द चौरासी सg,
गोरखनाथ, कबीर, नानक, दादद
ू याल आ(द हुए हY िज ह7 वेद वरोधी, wाxमण #न दक
कहकर उपेtत 9कया गया है । या बड़ी चतुराई से उ ह7 अपनी धारा म7
पर5परावा(दय ने मलाने का Aयास 9कया है । इस दस
ू र< पर5परा के लोक-व]प
को और वेदवरोधी चSर= को स}ता म7 उ|घा(टत 9कये Fबना इ#तहास क> कई
गुि)थयाँ नह<ं सुलझती, राम और कृBण के पर-पर वरोधी चSर= का रह-य नह<ं
खुल पाता। इस बात म7 कहने के अपने कुछ खतरे हो सकते हY, पर तु मY इस खतरे
को उठाने को तैयार हूँ वह यह 9क कृBण के -व]प को वै(दक पर5परा ने बड़ी
कुशलता और चतुराई से ढं ककर अपने भीतर समेटने क> को शश क> है । जब9क
हक>कत यह है 9क कृBण ने अपने समय म7 वै(दक पर5परा को सफलतापव
ू क
0
चन
ु ौती द< थी, उसके $च ह अभी भी कृBण से जड़
ु े आ[यान म7 अव शBट हY। कृBण
ने वै(दक दे वताओं इ
आ(द का मान मद0 न कर लोक से जुड़े $गSर गोवg0न,
यमन
ु ा और गौ क> पज
ू ा क> शुbआत कराई, यमुना को का लयनाग ]पी Aदष
ू ण से
मa
ु त कराया, मथरु ा बनाम गोकुल यानी शहर बनाम गाँव के Qव Qव म7 गाँव और
उसके ामीण शोषत पSरवेश को A#तBठा द<। यह जहाँ उनके लोकपरक चSर= को
उभारता है , वह<ं आज भी उतना ह< Aासं$गक है िजतना उस समय था। Aेम के
िजस उ मa
ु त -व]प क> यमुना तट और व ृ दावन के कर<ल कंुज क> रासल<लाओं
म7 A#तBठता होती है वह मूलतः तं= पर5परा का है। िजसक> मा यता है 9क (दZय
स)ता को Aेम के माWयम से Aाjत 9कया जा सकता है । चीरहरण, पनघट ल<ला
और रास ल<ला के Qवारा सरू दास Aेम के िजस ल लत मनोहर ]प को A#तिBठत
करना चाहते हY उसे शg
ु ाQवैत क> दाश0#नक शmदावल< म7 ववे$चत करना, सरू के
अनुभव को वकृत करना है। मनुBय क> अवधारणा के ]प (ह द< सा(ह)य के
इ#तहास म7 कई बार बदले हY और इसी के साथ परम त)व को लेकर उसके SरKते
भी। आ(दकाल के Aसंग म7 मनुBय का ईKवर क> म(हमा से युaत ]प म7 वण0न
हुआ है , जब9क भिaत काल म7 यह $च=ण ईKवर और मनुBय दोन का मनुBय ]प
म7 $च=ण होता है । आध#ु नक काल म7 आकर मनुBय सारे $च तन का के
बनता
है और ईKवर क> धारणा Zयिaतगत आ-था के ]प म7 -वीकृत होती है , सा(ह)य या
9क कलाओं म7 उसका $च=ण Aासं$गक नह<ं रह जाता है।''
सरहपा ने कहा है , यह शर<र Aभु का मं(दर है । शर<र म7 ि-थत परमा)मा को
पहचानो। 9qया कांड (वै(दक कम0कांड) म7 उलझने से मिु aत बा$धत होती है। यह
अHान और pम के कारण है। शा-= Qवारा A#तपा(दत धम0माग0 ](ढ़य,
अंधवKवास और ढ़कसल से भरा है। वाममाग0 सीधा और सहज माग0 है । यह
पाखंड एवं कम0का{ड म7 नह<ं उलझाता, शर<र म7 ि-थत Aभु का साा)कार कराता
है। िजस परमा)मा को पाने के लए इतना वतंडा करते हो, तीथe के लए भागते
हो, गंगाजल म7 डुबक> लगाते हो, दान-प{
ु य करते हो, नाना Aकार के कम0कांड करते
हो-9फर भी वह परमा)मा त5
ु ह7 नह<ं मल पाता। वाममाग0 आँख पर पड़े हुए अHान
और pम के पदi को चीरकर सहजता से उस परम Aभु का साा)कार करा दे ता है।
इसके लए कह<ं तीथe म7 या मि दर म7 नह<ं जाना पड़ता। मनBु य के सारे दख
ु  क>
जड़ मन है । इसी म7 अहं कार और वासनाएँ पैदा होकर मनुBय क> चेतना को पीuड़त
करती हY। अHान और pम के हटते ह< मन शांत हो जाता है 9फर $च)त वो भत
नह<ं होता। यह जो Aश मत $च)त क> ि-थ#त है वहाँ सय
ू ,0 च
और पवन क> ग#त
नह<ं है aय9क यह ि-थ#त कालातीत है । इस लए सरहपा सीधे-सहज वाममाग0 को
हण करने का उपदे श दे ते हY।
आचाय0 रामच
शaु ल लोक का समथ0न करते हुए लखते हY 9क ‘‘मY इसी
रा-ते सोचने का A-ताव करता हूँ! मत, आचायe, स5Aदाय और दाश0#नक $च ताओं
के मानद{ड से लोक$चंता को नह<ं मापना चाहता, बिlक लोक $चंता क> अपेा म7
उ ह7 दे खने क> सफाSरश कर रहा हूँ।'' आचाय0 शa
ु ल क> A#तHा म7 के
<य Aयोग
‘जनता क> $च)तविृ )त' है तथा आचाय0 िQववेद< क> A-तावना म7 ऐसा Aयोग ‘लोक-
$चंता' का है । ऊपर से एक-से (दखने पर भी दोन Aयोग म7 गुणा)मक अंतर है ।
ऐसा नह<ं 9क शa
ु ल जी ‘लोक' शmद क> छायाओं से पSर$चत नह<ं थे। सा(ह)य के
उsेKय के स5ब ध म7 वे बराबर लोकमंगल क> बात कहते हY। पर यहाँ उ हने
जनता शmद चन
ु ा है जो समाज के सभी वगe और समच
ू े जनजीवन को समेटता है ।
हजार< Aसाद िQववेद< का Aय शmद ‘लोक' है जो जनता के अपेाकृत पछड़े वग0

को संके#तत करता है । य िQववेद< क> $चं◌ंता समाज के पछडे वग0 क> ओर
अ$धक है । तब यह भी -वाभावक है 9क आचाय0 शa
ु ल के मानक कव लोक म7
Aय कव तल
ु सी हY, जब9क िQववेद< के मानक कव लोक म7 Aय कव कबीर हY।''
‘दे सल बअना सब जन मट◌ा' लखने वाले वQयाप#त के काZय क>
Zयािjत (ह द< े= म7 ह< नह<ं, बंगाल और उड़ीसा तक है । उनक> काZय भाषा म7
सं-कृत के त)सम-त|भव शmद के साथ मै$थल<, भोजपरु <, बँगला, उuड़या के मुहावरे
और लोकोिaतयाँ पाई जाती हY। लोकAयता और Aभाव क> JिBट से वQयाप#त का
काZय बेजोड़ है । एक वशाल भख
ू ंड-काशी से लेकर काम]प और म$थला से लेकर
परु <-भुवनेKवर तक, घर-घर उनके गीत स(दय से गंूज रहे हY। लोक मानव क>
आशाओं-आकांाओं और उनके भावाकुल €दय को -वर दे ना-वह Aमुख कारण है
जो उ ह7 पव
ू )तर े= का एकमा= लोकAय कव बना दे ता है । और आज स(दय
बाद भी यह लोकAयता अपनी पSरZयािjत के साथ कायम है। सा(ह)य क>
रसा)मकता, ला ल)य और स5Aेषणीयता-सब कुछ
BटZय है । यह वह काZय है जो
जन-जन को उ)AेSरत-आxला(दत ह< नह<ं करता, चैत य महाAभु को भी भावव‚वल
कर दे ता है । असम, बंगाल और उड़ीसा म7 िजसके अनुकरण पर ढ़े र रचनाएँ लखी
जाती है । 9फर भी उसका -वाद, उसक> अिQवतीयता, रसा)मकता अब भी कायम है ।
RेBठ सा(ह)य क> यह< पहचान है। $यस0न Qवारा क> गई मa
ु त कंठ से सराहना
का यह< स दभ0 है। सांसाSरक पSरताप से आqा त मन का कbण q दन
€दय-पश3 है ः-
माWयम हम पSरनाम #नरासा/तुहु जगतारन द<नदयामय/अतए तोर वशोयासा।
म$थला और व ृ दावन क> अमराइय से फूटे इन -वर म7 सरहपा आ(द
सg क> पर5परा अपनी परू < #नBपि)त पाती है । Aेम, सहज Aेम का उlल सत ]प
जो जीवन और संसार के चार और Fबखरा है , िजसको वे समच
ू ा समेट लेना चाहते
हY। सरहपा, क{हपा और #तलोपा क> सहज साधना अपनी मल
ू धारा म7 तं= क>
सहज साधना क> है । मानवीय Aेम साधना क> है -इसके अनुसार Aेम Qवारा उस
परमा)मा को पाया जा सकता है । Aेम सव0-व है , Aेम सार है , Aेम Fबना सब
#न-सार है । इसको �◌ा◌ृ◌ंगाSरक $च=ण के ]प म7 वKलेषत करना-इन कवय के
अनुभव और ‘वजन' को झुठलाना है । इस धारा का इतना गहरा दबाव और Aभाव है
9क हSरवंश आ(द परु ाण इन Aेम q>ड़ाओं का परू < �◌ा◌ृ◌ंगाSरकता के साथ अंकन
करने के लए मजबरू हY और वQवान को समझ म7 नह<ं आता 9क वै(दक पर5परा
के  थ म7 यह तांF=क पैटन0 क> ल<लाएँ कहाँ से आ रह< हY। इि
य दमन और
वैराdयवाद< वचारधारा के वरोध म7 िजतनी तीƒता से यह राग साधना उमड़ती है,
वQवत ् जगत वा-तवक तrय से अपSरचय के कारण उतना ह< आKचय0च9कत
होता है । यह वह धारा है िजसे जीवन और संसार का समथ0न है , लोक का समथ0न
है जो सहज है िजसे संसार वाममाग0 के नाम से पक
ु ारता है। यह सहज लोक
जीवन और संसार को उसक> पण
ू त
0 ा म7 दे खने क> पपाती हY। जहाँ #नष ्◌ोध नह<ं,
जीवन और संसार का उसक> स5पण
ू त
0 ा म7 सहज भाव से -वीकार है । Aाचीन काल
म7 िजस पर5परा के परु ोधा कृBण रहे । कृBण का नाम यूँ ह< नह<ं आता है। कृBण
इस सहज माग0 के आ(द पुbष हY, वाममाग0 के अ$धBठाता हY। इसे इस ]प म7 न
दे खने से पर5परवाद< लेखक p मत होकर तरह-तरह के कुतकe का मायाजाल खड़ा
करते हY। शंकराचाय0 के अQवैतवाद, वैराdयवाद के समा तर यह दस
ू र< पर5परा
Aवा(हत है । इसम7 जबद0 -त पSरवत0न शंकराचाय0 के बढ़ते Aभाव को रोकने के लए
तब आता है जब गोरखनाथ इि
यदमन और wxमचय0 का समथ0न करते हुए
अपनी चqसाधना Aव#त0त करते हY। इस तरह यहाँ तांF=क धारा दो भाग म7
वभािजत हो जाती है। एक सरहपा आ(द सg से होते हुए वQयाप#त और सरू दास
के माWयम से अपने को Aकट करती है और दस ू र< धारा गोरखनाथ के नेत)ृ व म7
Aवा(हत होती है और जो आज तक Aवाहमान है।''
यह< नह<ं च दवरदायी के ‘पr
ृ वीराज रासो' क> जो Eै िजक =ासद< जीवन JिBट
है, उसम7 से उभरती हुई सशaत द लत राBE<य चेतना है जो पर5पSरत अ भजात
JिBट क> पकड़ से बाहर रह जाती है । वह इसम7 केवल Aशि-तकाZय या �◌ा◌ृ◌ंगार
या वीरता के अ#तशयोिaतपण
ू 0 पSरवत0न को दे खती है । राजदरबार से जुड़े रहने पर
भी इस रचना के संद
ु र �◌ा◌ृ◌ंगार या वीरता के वण0न के बीच से जो Zयापक
जीवन-JिBट फूटती है , वह अपने मूल ]प म7 ठे ठ भारतीय है और वह
पर5परावा(दय क> जातीय जीवन JिBट है। वीरगाथा के ]प म7 जब हम उसे
ववे$चत करते हY तो वह आँख से ओझल हो जाती है।
‘9कम ् बL
ु झे र#तवंती राजन' पr
ृ वीराज रासो म7 राBE<यता का बोधक है । इसम7
र#तवंती शmद अपनी अथ0भं$गमा से सामंती जीवन क> वला सता को उसक>
स5पण
ू त
0 ा म7 उघाड़कर रख दे ता है । इसके पीछे चंद क> जातीय अि-मता और
राBE<यता क> $चंता उजागर होती है । कहाँ जबद0 -त हमलावर गोर< और कहाँ
र#तवती राजा! इन दो धु ्रव के बीच चंदबरदाई राBE<य वड5बना को उभारता है ।
मह
ु 5मद गौर< ने आqमण कर (दया है और पr
ृ वीराज को पता तक नह<ं है ।
नागSरक का आपस म7 परामश0 उनक> ववशता को रे खां9कत करता है। ‘बरLजंत
चंद चlयौ हूँ क नौज। तथा सरू सामंत क(ट छ(vट फौजं'-च दबरदाई क नौज के
राजा जयचंद से दKु मनी बढ़ाने, संयो$गता-हरण से मना करता है पर पr
ृ वीराज
उससे युg करता है , िजसम7 अनेक वीर का संहार हो जाता है । क ह से दKु मनी,
कैमास बध पर5परावाद<-सामंती जीवन के थोथे अहं कार के बीच ववKवता का रं ग
गाढ़ा करता है । ‘गोर< र)तउ तुव gरा तंु गोर< अनुर)त-मुह5मद गोर< तु5हारे राLय'
पर आँख गड़ाये है और तुम संयो$गता म7 अनुरaत हो। कामदे व के वश म7 होकर
पr
ृ वीराज महल म7 पड़ा रहता है । उसक> र#त बढ़ गयी थी िजससे उसका सारा बल
घट गया था। उसे राज-पाट और Aजा के सुख-दःुख क> $च ता नह<ं थी। वह भोग-
वलास म7 डूबा था और उधर (दlल< शहर के (दन वपर<त हो रहे थेः-
भर अनंग अिrथय म(हल बा„ढ़ घ(ट सार।
वपर<त (दन (ढ़िlलय सहर नप
ृ #त अलु झकय मार॥
पr
ृ वीराज रासो राBE<य चेतना का काZय है । महाकाZय क> रसमयता के
भीतर से राBE<य चेतना तीƒता से Eै जेडी क> भीतर से फूटती है । कव को अपने
दे श क> सामा य जन क> $च ता है जो राजा के �◌ा◌ृ◌ंगार सरोवर म7 डूबे होने से
और Lयादा बढ़ती है । इसम7 कोई शक नह<ं 9क आ(दकाल का यह सव)कृBट
महाकाZय है जो बदलती पर5पराओं, टूटती वज0नाओं को अपनी गSरमा, रसमयता
और राBE<य चेतना क> JिBट से पाठक को अ भभूत कर लेता है। इ ह<ं
वश ्◌ोषताओं और वड5बनाओं से कव =ासद< का टै र् िजक -वर उभारता है ।
बVचन संह ने ठ†क लखा है-‘‘सम महाकाZय के भीतर से पr
ृ वीराज क> =ासद<
के साथ एक सामािजक-राजनी#तक =ासद< भी उभरती है जो िजतनी पr
ृ वीराज क>
है, जो पर5परा के बदलते A#तमान म7 उससे वह<ं अ$धक राBE क> है । यह<ं से दे श
क> द<घ0काल<न =ासद< क> शुbआत होती है।'' गोर< के बंद< गह
ृ म7 बैठकर पKचाताप
करके पr
ृ वीराज क> ववKवता परू े राBE क> ववशता हो जाती है। इसी तरह क>
अह5म यता दारा शकोह क> राजनी#तक =ासद< का कारण बनती है। शाहजहाँ के
लाख मना करने के बावजद
ू दारा शकोह आगरा के 9कले से बाहर #नकलकर
औरं गजेब से युg करने के लए पहुँच जाता है। अपने अहंकार और उs{डता के
कारण वह औरं गजेब क> कूटनी#तH चतरु ाइय का शकार होकर परािजत हो जाता
है। अपना, शाहजहाँ और परू े मुगल वंश के भवBय के वनाश का कारण बनता है ।
अपनी साम ती अह5म यता म7 पr
ृ वीराज ने जो कृ)य 9कया है , वह उसके अं#तम
समय म7 भवBय को अंधकारमय बना दे ते हY।
दस
ू र< पर5परा क> खोज म7 डॉ0 नामवर संह का कहना है 9क ‘‘मWय यग
ु के
भारतीय इ#तहास का म[
ु य वरोध शा-= और लोक के बीच का Qव Qव है न 9क
इ-लाम और (ह द ू धम0 का संघष0।''
सg-नाथ क> कवता िजन मl
ू य और आदशe को A#तिBठत करती है, वहाँ
सामंतवाद और सामंती मl
ू य का वरोध है । इनसे AेSरत संत काZय पर5परा या
कृBण काZय पर5परा इसी ](ढ़ वरोध पर खड़ी होकर Aेम और आपसी भाईचारे का
संदेश दे ती है। परू े (ह द< े= क> जनता इस संघष0 म7 (ह द< रचनाकार के साथ है ।
यह इन (ह द< कवय क> अभूतपव
ू 0 लोकAयता से भी पता चलता है। सामंती
मl
ू य के खलाफ यह संघष0 इतना तेज है 9क राणा सांगा या महाराणा Aताप को
एक मामल
ू <-सा कव भी Aशि-त करने वाला नह<ं मलता। इनक> सामंती ठसक
और भेदभाव पर आधाSरत वचारधारा का पधर कोई साधारण कव भी नह<ं।
(ह द< रचनाकार परू < ऊज0व-ता के साथ Aेम और समता क> द#ु नया रच रहा है ।
wाxमणवाद< वै(दक वचारधारा के एकमा= A#त#न$ध और समथ0 कव तुलसीदास
को भी महाराणा का Zयिaत)व 9कसी Aकार नह<ं उकसाता। वह भी #न-पहृ भाव से
मुगल वैभव के समाना तर रामराज का यूटोपया खड़ा करते हY। वत0मान राजनी#त
म7 उ ह7 चमक>ले Fब द ु नह<ं (दखाई पड़ते, केवल क लयुग का =ासद ]प और
हाहाकार (दखाई पड़ता है । पाँच सौ साल बाद Kयामनारायण पा{डेय ‘dलैमराइज'
करते हY तो इसके कई कारण हY। िजनम7 से एक यह है 9क ल5बा अंतराल
Zयिaत)व क> खा मय को ढ़ं क लेता है और एक काlप#नक झूठ† चमक पैदा करने
का अ#तSरaत अवकाश दे दे ता है। गौर से दे ख7 तो (ह द< द लत लेखन नवीन
आह भले हो ले9कन उसक> जड़7 (ह द< सा(ह)य के आ(दकाल से ह< (दखाई पड़ती
हY। पव
ू 0 से ह< वचार क> दो धाराय7 एक साथ (दखाई पड़ती हY। म[
ु य-धारा और
वाम-धारा। म[
ु य धारा मूलतः सु वधाभोगी, शोषक क> धारा है तो वाम-धारा म[
ु य-
धारा के समाना तर चलने वाल< धारा मुफ लस, मजलूम, शोषत, आम आवाज क>
धारा है।61
मWयकाल म7 (ह द ू राजाओं को पराजय पर पराजय मलती है । पर वे
इ#तहास से कोई सबक नह<ं सीखते। उनक> सामंती मान सकता अपSरव#त0त रहती
है और वे उसी जड़◌़ता के समु
म7 डूबे हुए (दखाई पड़ते हY। झूठे अहं कार म7 चूर
रहना, एक दस
ू र क> -=ी या बेट< का अपहरण करना, बात-बात पर मरने-मारने को
तैयार रहना-ये सब उनके जीवन के आवKयक अंग बन जाते हY। उनका वशाल
द लत शोषत जन समूह से कोई भावना)मक लगाव-जुड़ाव नह<ं (दखता। उसके
दःुख-दद0 उनको नह<ं छूते। सामा य जनता भी इन राजाओं से एकदम कट<,
#न ल0jत और तट-थ (दखती है । सनातनी तुलसीदास क> बहुच$च0त चौपाई जनता
क> इस वरaत, उदास मनः ि-थ#त का अंकन बड़ी सदु ं रता से करती है ः-
‘कोउ नप
ृ होउ हमहं का हानी। चे*र छोड़ होउब =क रानी।'

इन राजाओं क> अकम0{यता तथा जनता क> उदासीनता से बि[तयार


खलजी मा= दो सौ घुड़सवार का दल लेकर #नकलता है और लाहौर से ढ़ाका तक
के इलाके को र‡दता हुआ, भयंकर मारकाट मचाता है पर कह<ं पर कोई स9qय
A#तरोध का -वर नह<ं फूटता। व-तत
ु ः तक
ु र् या मग
ु ल के वजय अ भयान म7 उस
काल क> जनता क> अ यमन-कता का बहुत बड़ा हाथ था। राणा साँगा या राणा
Aताप अपनी बहादरु < म7 अA#तम है , ले9कन उनके पास ‘वजन' का अभाव है । वे
केवल राजपत
ू ी शौय0 क> पताका फहराने को उ)सुक हY। उनके पास कोई JिBट या
वचारधारा नह<ं। (दlल< क> गsी पर बैठना चाहते हY पर मेवाड़ नरे श के ]प म7।
उनके पास दे श या दे श क> साधारण जनता के लये कोई -वjन नह<ं। इस लए
मेवाड़ के महाराणाओं का गीत सामा य जनता नह<ं गाती और न उनसे AेSरत होती
है। aय9क वे सामंती खोल से बाहर आने को तैयार नह<ं। राणाओं क> पराजय के
मल
ू म7 उनक> अह5म यता और झूठ† शान है। इ#तहास इसका साी है 9क महमद

गजनबी भारत के मWय ‘सोमनाथ मि दर' को लूटकर भारत म7 मह<न चलता रहा
पर तु मुvठ† पर F=य तलवार भाँजते रह गये, दKु मन को परा-त न कर सके।
काश! बहुसं[यक श

ू समाज को अHानी-अववेक> न बनाया होता तो भारत कभी


वदे शय का गुलाम न होता।

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
म5
ु बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

लोक क.व रहम ◌ः जातीय लोक जीवन के सजग हर

- डॉ. वीरे & संह यादव

रह<म क> कवता म7 जातीय जीवन और लोक क> समानता पर बल मलता


है। आपने कवता क> पव=ता बनाये रखी, उस पर दरबार क> का लख नह<ं लगने
द<। उनके काZय म7 राजसी जीवन के अनुभव नह<ं, आम आद मय क> मनः
ि-थ#तय का सघन $च=ण हुआ है। वदे हराज जनक क> तरह राजवैभव के बीच
रहते हुए भी कमलवत ् #न ल0jत, साी भाव से जीवन के उतार चढ़ाव को दे खते रहे।
जीवन-सरु ं ग पर सवार होकर वे आग के दSरया को सजह, अंकुठ भाव से पार करते
हY। सुख या दःुख कह<ं भी उQवेलन का भाव नह<ं है । साी भाव से वे जीवन के
सारे अनुभव को जीते हY िजसका #नचोड़ उनक> कवता म7 Aकट है । यह< उनक>
कवता को मह)वपण
ू 0 बनाता है । शa
ु ल जी िजस ‘सेaयूलर' कवता क> बात उठाते
हY, वह अपने सह< ]प म7 रह<म म7 मलती है । पर पता नह<ं aय शa
ु ल जी चक

गए। हजार< Aसाद िQववेद< को भी ‘सेaयूलर' सा(ह)य र<#तकाल म7 (दखाई दे ता है,
रह<म उनक> नजर से ओझल रहते हY। वजयदे व नारायण साह< ने रह<म के
बहुमख
ु ी, A#तभाशाल< Zयिaत)व क> तरफ संकेत तो 9कया है पर केवल चचा0 के
-तर पर। रह<म काZय का वशद ववेचन उपेtत है । दरअसल सा(ह)य को (ह द-ू
मुसलमान, -=ी-पुbष, संत-भaत, सफ़
ू > आ(द खान म7 बांटकर दे खने से JिBट एकांगी
बनती है। सा(ह)य म7 Aवा(हत सां-कृ#तक नैर तय0 क> धारा म7 योगदान क> JिBट
से अmदरु 0 ह<म खानखाना का काZय अ)यंत मह)वपण
ू 0 है । वह सा(ह)य क> म[
ु यधारा
का काZय है उसे हा शए पर धकेलना या एक कोने म7 फुटकल खाते म7 डाल दे ना-
व-तत
ु ः उनके काZय के जातीय सां-कृ#तक स दभe क> उपेा है ।
इस काल म7 रह<म क> सबसे अ$धक मह)ता वैचाSरक JिBट से है जो
मWयकाल के धा म0क कुहासे को चीरकर वे Aकट कर रहे थे। सा(ह)य को जीवन
और समाज से जोड़ने का जो उपqम सg और नाथ के सा(ह)य म7 है, वह< Aयास
रह<म ने अपने काZय म7 9कया है और उसको केवल नी#तपरक कहकर ववे$चत
करना-उस परू < इहलौ9कक चेतना क> उपेा है जो बड़े वेग से उनके काZय म7
व भ न ]प म7 Aकट होती है। जीवन का सम ]प उनक> कवताओं म7 अपनी
ववधता म7 अं9कत है । इहलौ9कक और पारलौ9कक का भेद भी कृF=म है , परू ा लोक
जीवन उनक> कवताओं म7 झाँक रहा है। जीवन रसमयता को जनसाधारण के
जीवन म7 अं9कत 9कया है । रह<म के काZय म7 लोकचेतना का रं ग अ)यंत गाढ़ा है ।
जीवन के ववध प के अनेक $च= उनक> कवता म7 मलते हY। बYगन क> तरह
काल<-कंुजuड़न सोआ-साग बेचती है और #नQव Qव होकर फाग खेलती है । व भ न
Zयवसाय क> नाना ि-=य का मनोहर अंकन 9कया हैः-
भटा बदन सक
ु ाजर<, बेचै सोवा साग।
#नलज भई खेलत सदा, गार< दै दै फाग॥
रह<म ने जीवन को एक बड़ी Zयापक JिBट से दे खा है और िजंदगी के यथाथ0
को कई कोण से $चF=त 9कया है । जीवन के #नथरे अनुभव को संुदर JBटांत से
बोधग5य बनाया है। रह<म का काZय समाजशा-=ीय JिBट से अपने युग के
सामा य जन जीवन पर भरपूर Aकाश डालता है । साथ ह< यह भी (दखाता है 9क
कैसे कवता सामा य मानवीय सरोकार से जड़
ु कर सामंती युग म7 उपेा का
शकार होती है । ये कवताएँ अगर यथाथ0 के धरातल पर न खड़ी होकर आदश0 और
कlपना क> ]मानी द#ु नया म7 भटकती होती तो शायद Lयादा Aशंसा और वाहवाह<
उस युग म7 और आज भी पातीं।
कहा कर‡ बैकंुठ लै, कlपव
ृ क> छाँह।
र(हमन ढ़ाक सुहावनो, जो गल Aीतम बाँह॥
व-तत
ु ः र<#तकाल क> पर5परा वQयाप#त और सरू दास से नह<ं, रह<म से श]

होती है। र<#तकाल का मूल उ)स रह<म म7 मलता है। लोक जीवन मa
ु तक काZय
पर5परा के वे Aव)त0क हY। �◌ा◌ृ◌ंगार क> धारा रह<म से फूटती है जो र<#तकाल म7
अ)यंत वेग हण कर लेती है । आलोचक ने रह<म को उतना मह)व नह<ं (दया है
िजतने 9क वे अ$धकार< हY। लोकमानस क> अ|भुत पकड़ और जातीय जीवन क>
सशaत अ भZयिaत उनको मह)वपण
ू 0 बनाती है ।
दस
ू र< पर5परा को ठ†क से न पहचानने के कारण सरहपा आ(द सg और
नाथ क> रचनाओं को सा(ह)य क> म[
ु यधारा से बाहर हा शए पर फ7क (दया गया।
यQयप राहुल सांकृ)यायन ने सg-नाथ के सा(ह)य क> qाँ#तकाSरता को रे खां9कत
9कया पर आचाय0 शa ु ल के वराट Zयिaत)व से आqा त होने के कारण वे उनके
सहज माग0 क> सह< Zया[या नह<ं कर पाये। उसका पSरणाम यह हुआ 9क आज
तक उसे हा शए का सा(ह)य मानकर ववेचन हो रहा है । उसके मl ू यांकन,
Aासं$गकता और मह)व क> चचा0 नह<ं हुई। कभी वचारधारा के आधार पर, कभी
वेद और wाxमण क> #नंदा के आधार पर सg-नाथ सा(ह)य उपेtत होता रहा है।
व-तत
ु ः यह सा(ह)य क> मल
ू धारा है , िजसे हा शए पर फ7क (दया गया है । इसको
-वीकार 9कये Fबना आ(दकाल से भिaतकाल तक के वकास म7 हमेशा गाँठ सी
(दखाई पड़ेगी, Aवाह समरस नह<ं होगा।'' आचाय0 हजार< Aसाद िQववेद< क> परू <
आलोचना-ऊजा0 संतकाZय, वश ्◌ोषतः कबीर को -थापत करने म7 लगी रह<। उसी
के संदभ0 म7 उ हने नाथ सा(ह)य का ववेचन 9कया है। सg-नाथ के सा(ह)य म7
उनका मन रमा नह<ं। इनके बारे म7 उनके वचार, थोड़े संशोधन के साथ शa
ु ल जी
वैसे ह< रहे। यह वह सा(ह)य है िजसम7 उस काल के परू े (ह द< े= क> धड़कन है,
िजसे वQवान ने -वीकार 9कया है पर उपेtत करने के लए तक0 (दया 9क वे
साधु थे, चार तरफ घूमते थे, इस लए उनक> रचनाओं का Aचार था। यह राLयाRय
म7 लखा जाने वाला चारण और भाट के अ#तशयोिaतपण
ू 0 वण0न वाला सा(ह)य
नह<ं है-आम जनता का सा(ह)य है, उसक> भावनाओं और वचार का सा(ह)य है,
पर5परा को पोषत करने वाला नह<ं-](ढ़य और कठमl
ु लापन के खलाफ व
ोह
का सा(ह)य है। इसक> पर5परा कृBण और बुg क> पर5परा के वैचाSरक संघात से
ऊजा0 हण करती है और मWयकाल म7 कबीर, नानक, दादद
ू याल तथा चंडीदास के
]प म7 दो व भ न धाराओं और ]प म7 Aकट होती है ।
हजार< Aसाद िQववेद< वकास-A9qया म7 लोक को के
म7 रखते हY, इस लए
वदे शी Aभाव क> स)ता और स9qयता उनक> JिBट से ओझल हो जाती है । समच
ू ी
जनता क> JिBट सामने रखते हुए रामच
शa ु ल इ-लामी Aभाव क> 9qया-
A#त9qया का मह)व समझते हY, जब9क हजार< Aसाद िQववेद< लोक-$चंता क> अपेा
म7 सबकुछ को मापते हुए लोक और उसक> जातीय पर5परा के वकास को ह< के

म7 रखते हY। जनता और लोक के ये Aयोग इन इ#तहासकार क> JिBट का अंतर


भल<-भां#त पSरभाषत करते हY।

‘‘दस
ू र< पर5परा से स)य तrय को -वीकार कर उसके ऐ#तहा सक
मह)व का मl
ू यांकन आवKयक है । इसके लए द लत सा(ह)य को आलोचना का
नया शा-= गढ़ना होगा और लोकAयता के मानदं ड को -वीकार करना पड़ेगा।
पव=तावाद<, अ भजात आलोचना पर5परा से नाता तोड़कर उसे सव0ाह< बनाना
पड़ेगा। जनता से जड़
ु े सा(ह)य को उप सा(ह)य कहकर उपेtत करने से सा(ह)य
क> म[
ु यधारा धंध
ु लाती है और उसका एकरस Aवाह बा$धत होता है । डॉ0 नामवर
संह के शmद म7 कह7 तो यह भी एक वरोधाभाष ह< है 9क शा-= संव लत होकर
सा(ह)य िजस मा=ा म7 सामािजक JिBट से लोक-वमa
ु त तथा लोक-वरोधी वचार
क> ओर वच लत हो गया, काZय-भाषा तथा काZय-कला क> JिBट से उसी मा=ा म7
समg
ृ तर होता गया। कबीर से चलकर qमशः जायसी; सूर और तुलसी तक के
वकास का मl
ू यांकन इस JिBट से रोचक हो सकता है ।''

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .

श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

मीरा ◌ः सामंती अभजा?य क .व&ोह व-ता


- डॉ. वीरे & संह यादव

बदलते पर5परा के A#तमान म7 मWयकाल क> कव#य=ी मीरा अपनी


लोकAयता म7 बे मसाल हY। इनका मह)व उस व
ोह< चेतना क> अ भZयिaत म7 है
जो उस समय साम तवाद के वbg पनप रहा था। मीरा अपनी जीवनचया0 और
कवता दोन से पर5परावाद<, सनातनी Zयव-था क> जड़ता, थोथी कुल मया0दा और
जा#त-पाँ#त क> जकड़ब द< को तोड़ती हY। साम ती आ भजा)य को ठोकर मारकर
वQवतजन का स)संग करती है और जनसाधारण के बीच बेधड़क वचरण करती
हY। मीरा क> असाधारण लोकAयता का रह-य जनसाधारण से तादा)5य म7 है ।
जनसामा य मीरा के गीत म7 अपनी भावनाओं क> सीधी-सVची अ भZयिaत पाता
है। मीरा क> लोकAयता का आलम यह है 9क उनके नाम पर हजार पद भaत ने
रच डाले हY। #नग0ुण पंथ के अनुया#यय ने ेपक डालकर अपने स5Aदाय के
अनुकूल अथा)पन करने क> को शश क> है , जब9क मीरा सा5Aदा#यक आह से
एकदम मa
ु त हY। उनक> व
ोह< चेतना को अपने सा5Aदा#यक घेरे म7 बाँधने क>
को शश #नग0ुणमाग3 रै दास और नाथपंथी योगी ह< नह<ं करते, चैत य महाAभु के
भaत उनको ‘गौरांग कृBण क> दासी' बनाने क> को शश करते हY तो बlलभ
स5Aदाय के अनुयायी पिु Bटमाग0 पर लाने और महाAभु क> सेवका बनाने का
Aय)न करते हY और असफल होकर ‘वा)ता0 सा(ह)य' म7 ऊलजलूल बात7 उनके
खलाफ लखते हY। मीरा सफलतापव
ू क
0 इन सा5Aदा#यक सीमाओं का अ#तqमण
करती हY। उनक> व
ोह< चेतना 9कसी ढ़ांचे म7 नह<ं बँधती। भिaत के माग0 म7 मीरा
कुल मया0दा और अ भमान को काई क> तरह चीरकर Aेम क> #नम0ल गंगा बहाती है
िजसम7 परू < जातीय अि-मता सराबोर हो जाती है । स त-स5Aदाय वKव-स5Aदाय है
और उसका धम0 वKव धम0 है। इस वKव धम0 का मल
ू ाधार है , €दय क> पव=ता।
पव=ता-स5मत -वाभावक और साि))वक आचरण ने ह< यहाँ धम0 का बह
ृ त ]प
गह
ृ ण 9कया। सम-त वासनाओं, इVछाओं एवं Qवेष से र(हत €दय क> #नःसीमाओं
म7 वशाल धम0 का Aवेश और समावेश स5भव है ।''
सामािजक पSरAेkय म7 मीरा क> भ ू मका का जब हम मूlयांकन करते हY तो
मीरा क> पहल< टकराहट सामािजक ](ढ़य से होती है। वे सती Aथा का वैयिaतक
-तर पर वरोध करती हY। इससे परू ा पSरवार उनके खलाफ हो जाता है।
पाSरवाSरक Aताड़नाओं से तंग आकर मीरा व ृ दावन चल< जाती हY। वहाँ वपि)तयाँ
और बढ़ जाती हY। वहाँ राणा के आदमी पीछे पड़े रहे और उनको सह< रा-ते पर
लाने क> को शश करते रहे । चैत य महाAभु और बlलभाचाय0 के शBय अपने-अपने
स5Aदाय म7 खींचने क> जबद0 -त को शश करते हY। मWयकाल म7 -=ी क> दयनीय
-थ#त और #नर<हता मीरा म7 साकार है । राणा सामंती दं भ और अहंकार का Aतीक
है, महाAभओ
ु ं के सेवक सा5Aदा#यक पाखंड और संक>ण0ता के Aतीक हY। मीरा के
पद म7 व‚वल भाव से $गरधर नागर क> पक
ु ार सांसाSरक वपि)तय से उ मोचन
के लए है । मीरा क> जीवनगाथा भारतीय -=ी पर होने वाले अ)याचार क> जीव त
कbण कथा है । जीव गो-वामी का -=ीमा= को न दे खने का Aण छुड़वाना, कई अथe
का संकेत करता है । ‘नार< महावकार' वाल< JिBट अधरू <, एकांगी और नार< जा#त का
अपमान करने वाल< है । 9कसी कृBण भaत का ऐसा कहना तो और Lयादा अनु$चत
है। मीरा के जीवन का यह Aकरण जीवन को उसक> स5पण
ू त
0 ा म7 दे खने का आह
करता है तथा साध-ु स या सय और वरaत के मान सक -तर का भी बोध कराता
है।
मीरा को वापस राजमहल लौटा लाने क> को शश म7 9कसी Aकार लगाव-
जुड़ाव नह<ं, झूठ† मान मया0दा क> सामंती ](ढ़वाद< जकड़न है । अं#तम समय म7
रणछोड़ जी म7 समा जाने का संकेत आ)मह)या का है िजस पर आWयाि)मकता का
रं ग चढ़ाया गया है। मीरा के व
ोह क> कbण पSरण#त भारतीय जीवन म7 -=ी क>
दख
ु द, ह<न और दयनीय ि-थ#त को भरपरू Aमा णत एवं Aका शत करता है।
#नण0ुण भिaत के संत का सबसे मह)वपण
ू 0 आयाम एक)व क> भावना थी
िजसम7 ‘‘मानव को एक ऐसे वKवZयापी धम0 के स=
ू  म7 #नबg करना जहाँ जा#त,
वग0 और वण0 स5ब धी भेद न हो। साधना का यह Qवार सब के लए उ मa
ु त था,
इस े= म7 (ह द-ू मुसलमान का भेद भी वलjु त हो गया और भिaत के े= म7
सब समान Aभावत हुए। #नग0ुण भिaत का पंच त)व है-सहज साधना। स त क>
भिaत-Aणाल< आन द और शाि त म7 संयुaत शुg अ तः करण क> वह -वाभावक
शिaत है जहाँ कृF=मता -वतः वल<न हो जाती है सहज साधना का यह माग0
सव0था अ भनव और qाि तकार< था-इसने धा म0क-जीवन क> दb
ु हताओं को सदै व के
लए हटा (दया।
मीरा ने भिaत को एक नया अथ0 (दया। समच
ू े भिaतकाल म7 उनका
Zयिaत)व सबसे वलण है । केवल चैत य महाAभु से उनक> तल
ु ना हो सकती है ।
भाव वभोर होकर क>)त0न करना, नाचते हुए होशो-हवास खो दे ना। भिaतकाल मीरा
से एक नया अथ0 पाता है। उनके काZय म7 जहाँ कृBण का रसमय Aेम है पर5परा
से हटकर दे ख7 तो मीरा के काZय म7 वह< सांसाSरक वपि)तय और वड5बनाओं से
मिु aत के लए Zयाकुल, भयातरु पक
ु ार भी है । जैसे मीरा क> भिaत वैयिaतक है ,
पीड़ाएँ और कBट भी वैयिaतक हY। उनक> अपार लोकAयता का एक कारण यह भी
है 9क जनसाधारण उनक> वैयिaतक पीड़ाओं और कBट से आसानी से जुड़ जाता है
और उसे अपने कBट से मुिaत का रा-ता भी उनके पद म7 (दखता है।
मीरा ने अपने काZय और आचरण के Qवारा पार5पSरक सामािजक ढ़ाँचे और
साम ती मl
ू य को जबद0 -त चुनौती द<। पर5परावाद< पुbषतं=ा)मक समाज और
खोखला सामंती अहंकार 9कतना qूर और अमानवीय हो सकता है, यह मीरा क>
दाbण शार<Sरक-मान सक पीड़ा के ची)कार म7 समा(हत है । आWयाि)मक तड़प के
समाना तरण सांसाSरक ताप उनको दdध करता रहा और मीरा $गरधर नागर क>
पक
ु ार लगाती रह<ं। पाSरवाSरक और सामािजक -तर पर मीरा Qवारा ](ढ़य को द<
गयी चुनौती सामािजक एवं ऐ◌े#तहा सक मह))व रखती है। मेवाड़ के राणाओं के
Aशि-तगीत गाने के A#त (ह द< कवय क> उपेा और उदासीनता का एक यह भी
कारण हो सकता है । सा5Aदा#यक कvटरता और सामंती qूरता का सफल A#तरोध
करते हुए मीरा ने जीवन क> अथ0वे)ता मानवीय Aेम और कृBण भिaत म7 तलाशा।
द#ु नयावी चकाच‡ध क> #न-सारता का संकेत उनक> कवताएँ करती हY। उसम7
आWयाि)मक संकेत के साथ सामािजक संदभ0 भी गँुथे हY। यह द#ु नया झूठ† मान-
मया0दा और आदशe को लेकर चल रह< है िजससे अपना तथा दस
ू र का जीवन
नरक हो गया है। सांसाSरक चकाच‡ध म7 खोये हुए Zयिaत क> समझ म7 केवल
संसार क> बात आती है । मनुBय धरती पर वचरण करता है िजसे मल
ू ाधार चq
कहा गया है । सह-=दल कमल वाला चq सातवाँ है जो गगन मंडल है । ये साधना
क> गूढ़ और रह-या)मक बात7 है । चेतना के चतुथ0 आयाम म7 AवBट होने पर
इनक> Aतीत होती है। वैसे मीरा क> साधना सगुण पर5परा ह< है पर संत मन क>
पाSरभाषक शmदावल< का उ हने बे(हचक Aयोग 9कया है। इस संसार के सारे नाते-
SरKते झूठे हY, मट जाने वाले हY। केवल कृBण जीवन-मरण का साथ #नभाने वाला
सVचा साथी है ।
संसार द#ु नयादार< और द#ु नयावी SरKत म7 नह<ं, इस आशा म7 है 9क कल
सुख मलेगा। यह संसार का वHान है । मनुBय #नरं तर इसी के कारण Qव Qव क>
ि-थ#त म7 है । यह दु वधा ह< माया है । यह< भीतर तनाव और शोर पैदा करती है,
िजसम7 परमा)मा खे◌ा जाता है । साधना #नQव0 Qव होने का नाम है तभी भीतर
परमा)मा Aकट होता है , मीरा के गीत म7 भिaत का परू ा शा-= #छपा है । €दय के
माWयम से Aवेश करने पर इन पद के अथ0 खुलते हY। एक अ य पद म7 मीरा
कहती हY-मु◌ुझे नींद नह<ं आती। यह सामा य नींद नह<ं है । न तो यह कामवासना
क> वकलता है । यह जागरण है । ‘तलफै Fबन बालम मोर िजया' जब कबीर कहते हY
तो वह इसी तरफ संकेत करते हY। जो जाग गया है उसक> समझ म7 संसार का
वHान आ गया। यह संसार आकांाओं से भरा है । मनुBय सपन और आकांाओं
क> मग
ृ मर<$चका के पीछे #नरं तर दौड़ रहा है। यह< वा-तवक नींद है । इस नींद से
जाग जाना असाधारण है। गीता म7 RीकृBण का कथन ‘या #नशा सव0 भत
ू ायां त-य
जाग#त0 संयमी' का संकेत इसी तरफ है । मीरा कहती हY-‘मYने इस संसार के मम0 को
उसक> वा-तवकता म7 पहचान लया है। अब सोना मेरे लए संभव नह<ं है ।
Aयतम का रा-ता दे खते-दे खते रात का अंधेरा छं ट गया-सवेरा हो गया। जैसे
मछल< जल के Fबना तड़पती है वैसे ह< उस कृBण के लए मY तड़प रह< हूँ।
वैसे दे खा जाए तो सभी संत म#ू त0पूजा एवं अवतारवाद के वरोधी थे, पर तु
जाने-अनजाने ]प से इनम7 कुछ क> रचनाओं म7 सगुण त)व का समावेश हो गया
है। कबीर जैसे अQवैतवाद< और #नग0ुण-दश0न के सबल A#तपादक कव के काZय म7
भी कह<ं-कह<ं सगुण-त)व के दश0न होते हY। रै दास, मलूकदास जैसे स त क>
रचनाओं म7 यह त)व बहुलता से पाये जाते हY। सगुणोपासक क> Aविृ )त इनक>
इतर-उतर कई ]प म7 -पBट (दखती है, जैसे लगभग हर स5Aदाय म7 स|गुb को
अवतार क> Rेणी म7 रखा गया है, िजसम7 पज
ू ा-पाठ एवं उपासना माला, #तलक आ(द
उपकरण का Aार5भ म7 सभी #नग0ुण स त #न दा करते हY, पर तु गैर पर5परा आगे
चलकर कह<ं न कह<ं इन त)च क> -तु#त करते Aतीत होते हY। पर5परा क> इस
Aासं$गकता म7 #नग0ुण वाद< एवं काला तर म7 सगुण-त)व क> ओर उ मुख नजर
आते हY। डॉ0 वीरे
संह यादव क> (टjपणी है 9क भिaत आ दोलन ने भी
द लतवग3य चेतना को जागत
ृ 9कया था। भिaत समद
ु ाय म7 वण0 Zयव-था तथा
जा#त-पां#त को कोई -थान नह<ं (दया था। दtण के आलवार Qवारा Aव#त0त
भिaतधारा रामानुजाचाय0 तथा रामानंद के ताि)वक ववेचन से पSरपBु ट होकर वण0
जा#त, ऊँच-नीच के बंधन को तोड़ती हुई Aखरता के साथ मWयकाल<न भिaत काZय
म7 Aवा(हत हुई। द लत चेतना के वकास म7 मWयकाल<न सा(ह)य का सबसे अ$धक
योगदान है। कबीर, नानक, दादद
ू याल, मलूकदास, हरदास, #नरं जन, धम0दास, रLजब,
बाबर< सा(हब, सदना, पीपा, सेन, ध ना, श ्◌ोखफर<द आ(द संत कवय म7 अ$धकांश
द लत वग0 के थे। इन संतकवय ने धा म0क ](ढ़वाद बा‚य आड5बर, सामािजक
संक>ण0ता का तीƒ वरोध 9कया।
सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

हद साह?य-इतहास और दलत-.वमश)

डॉ. वीरे & संह यादव

भारतीय सा(ह)य क> एक समृ g शा-=ीय पर5परा है। सा(ह)य क> पहचान और
परख अब तक रस, छं द, अलंकार, Fबंब, Aतीक, मथक आ(द सौ दय0शा-=ीय कसौट<
पर होती रह< है । सा(ह)य को महान और सव0RेBठ कला माना जाता रहा है। द लत
$चंतन सा(ह)य के इस महानतावाद< कला दश0न को नकार दे ता है । इसक> सोच म7
सा(ह)य स5Aेषण का सशaत Zयवहार है । इसके लए उsेKय Aधान है, कला नह<ं!
अतः यह भाषा, श ्◌ौल< और शlप क> उतनी परवाह नह<ं करता, िजतनी उिaत क>
-पBटता क>। इसका उsेKय है सामािजक याय मानव और मुिaत क> अवधारणा।
अतः इसक> सौ दय0शा-=ीय अवधारणाएं अलग हY।
स)यं, शवं, स
ु दरम ् से भ न इसक> अवधारणाओं म7 संुदर और असंुदर दोन
शा मल हY। सा(ह)य म7 महाव)ृ तांत, महानायक और उदा)त भावनाओं के वbg
द लत सा(ह)य क> अवधारणाएं, ‘बहुजन (हताय बहुजन सख
ु ाय' हY। यह सव0साधारण
क> भावनाओं के सम)व पर आधाSरत हY। जीवन संघष0 और Rम ह< इसके सा(ह)य
का सौ दय0 है । मानवीय सरोकार से अलग होकर द<न-द#ु नया से बेखबर
आ)ममुdधता, रह-यवाद< दश0न, कलावा(दता आ(द से इसका कुछ लेना-दे ना नह<ं है ।
अतः कुछ लोग ‘द लत सा(ह)य' को वैकिlपक सा(ह)य भी मानते हY और अलग से
इसके सौ दय0शा-=ीय आवKयकताओं क> वकालत करते हY। पर तु (ह द< सा(ह)य
म7 र<#तकाल से लेकर आध#ु नक काल म7 छायावाद युग तक शोषत आमजन एवम ्
द लत वग0 पर कोई ग5भीर $च तन नह<ं हुआ, य=-त= $च=ण भले हुए ह। पर तु
वह अ भZयिaत म7 उतना सफन नह<ं रहा, िजतना होना चा(हए।
सा(ह)य का म[
ु य सरोकार चं9ू क समाज से है अतः सामािजक सां-कृ#तक
सम-याएं, संघष0 और QवंQव इसम7 अ भZयिaत पाते हY। सा(ह)य का समाजशा-=
और दश0न सदा से ह< इन सम-याओं से ]-ब-] होते आए हY। Aाचीनकाल के Qवैत-
अQवैत, सगुण-#नग0ुण आ(द से लेकर आध#ु नक काल के छायावाद, Aग#तवाद,
माaस0वाद आ(द वाद-ववाद ने सा(ह)य क> ग#त को आगे बढ़ाया है ।
आ$थ0क आधार और भौ#तक-QवंQव पर Zयिaत और समाज क> Zया[या
करके माaस0वाद ने वग0 चेतना Qवारा सव0हारा क> मिु aत और सामािजक-आ$थ0क
समानता क> चेतना फैलाई। ZयावहाSरक -तर पर भले ह< इसे सफलता न मल<
हो; 9कंतु चेतना के -तर पर इसने जो वKवZयापी समाजवाद< दश0न (दया; वह
मानव स‰यता के -तर पर इसने जो वKवZयापी समाजवाद< दश0न (दया; वह मानव
स‰यता को बहुत बड़ी दे न है । यह चेतना दश0न कमोवेश आज भी समाज और
सा(ह)य क> म[
ु यधारा म7 शा मल हY।
द लत चेतना माaस0वाद से भी आगे बढ़कर वण0, न-ल और लंग भेद को
अपना वषय बनाती है और समाज म7 स(दय से Zयाjत जा#त और वण0 Zयव-था
क> वसंग#तय को चुनौती दे ती है । ‘‘यह सामािजक संरचना क> तह म7 #छपे
षड़य = और Aपंच का पदा0फाश करती है और बताती है 9क वण0 और लंगगत
वषमता मानव स‰यता के वकास म7 सबसे बड़ी बाधा है। द लत)व के कलंक के
मिु aत Qवारा मानव समाज म7 समानता, बंध)ु व, मया0दा और स5मान के भाव पैदा
करना इसका उsेKय है। अपनी ग लत-द लत ि-थ#त के A#त पीड़ा, वषमता के A#त
आqोश और Zयव-था के वbg व
ोह इसके Aाथ मक -वर हY। समाज का सबसे
अ$धक Rम करने वाला यह वग0 समाज, सं-कृ#त, इ#तहास और पंरपरा म7 अपनी
खोई अि-मता एवं पहचान क> पड़ताल करते हुए अपने आप को #नराश पाता है ।
वहां इसके लए कुछ भी सकारा)मक (दखाई नह<ं पड़ता। अतः यह अपनी पीड़ा
और आqोश के साथ समाज और सं-कृ#त से समता, याय, ब धु)व, स5मान और
-वावलंबन क> मांग करता हुआ संघष0रत (दखाई पड़ता है ।
व
ोह, वHान और वKवा)मा द लत सा(ह)य के तीन आयाम हY। द लत
सा(ह)य ने वण0वाद< समाज-Zयव-था, मनBु य का सां-कृ#तक अधःपतन, दSर
ता तथा
दयनीयता का गौरवगान करने वाल< धम0-पर5परा के वbg A#तरोध/वरोध करना
शु] कर (दया है । द लत सा(ह)य (ह द ू मान सकता को नकारता है। साथ ह< मानव
क> -वत =ता का उ|घोष करता है। द लत सा(ह)य शmद क> Aामा णकता को
नकारता है और बु g क> Aामा णकता को शरोधाय0 करता है। aय9क मान सक
पSरवत0न एक ता9क0क/वैHा#नक त)व है। इस त)व को -वीकार कर वह संसार के
पीuड़त, ब(हBकृत और समाज-शोषत को अपना (हतैषी/शुभ /$चंतक/ म= मानता है ।
ऐसा माना जाता है 9क द लत शmद 19वीं सद< म7 फुले Qवारा अछूत,
अ )यज आ(द (आज क> अनुस$ू चत जा#तय एवं अनुस$ू चत जनजा#तय) के लये
Aयुaत 9कया गया; इस नाम से कोई सा(ह)य आ(दकाल म7 उपलmध नह<ं होता।
9क तु वŠयानी सg और नाथ Qवारा कुछ ऐसा सा(ह)य रचा गया िजसम7 अछूत
के याय, समानता के -वर सन
ु ायी पड़ते हY। परु ात)व #नब धावल< म7 राहुल जी ने
तेगe मठ से Aका शत #तmबत के ‘‘सरaय Fबहार'' के पाँच Aधान गुbओं क>
 थावल< के आधार पर चौरासी सg क> एक सच
ू ी द< है िजसम7 इन सgाचायe
के -थान के साथ ह< उनक> जा#तय का भी उlलेख 9कया गया। इस सच
ू ी म7
अ$धकांश को ज मना श

ू या F=य बताया गया है। कुछ सg ने #न5न जा#त


क> ि-=य से ववाह करके -वयं उनके #न5न पेश ्◌ो-Zयाध, तैलकार, शर बनाने
वाल को- अपना लया। सg सरहपा का मूल नाम राहुल भ
था िज हने 9कसी
शर बनाने वाल< #न5न जातीय -=ी को अपनी सहचर< बनाया और अपना नाम व
काम दोन उसी के अपना लये और वे शरह या सरहपा होकर (ह द< सा(ह)य के
इ#तहास म7 पहले डी-का-ट होने वाले Zयिaत बन गये। wाxमणवरोध, जा#तवरोध,
वेद वरोध, कम0का{डवरोध उनक> रचनाओं म7 मलता है जो सहज साधना क> बात
पर जोर दे ते हY। सरहपा सहज साधना पर बल दे ते हुए कहते हY-
जह मन पनव न संरचइ, रव श श नाह पवेश/त(ह वह $च)त वसाम क],
सरहे उवेश॥/
पि{डय सअलस स त वaखाणइ। दे ह(ह bg बस त न जाणइ॥/अमणा गमण
ण तेन वखि{डअ, तोव णलLज भणइ हउं पि{डअ॥
(ह द< सा(ह)य के आर5भ क> पहचान वहाँ क> जा सकती है जहाँ वह
धा म0क कम0का{ड और रह-य भावना से qमशः उ मa
ु त हो रहा है । इस JिBट से
(ह द< म7 सg-नाथ (9-12 शतीं ई0) से लेकर कबीर दास तक यह A9qया दे खी जा
सकती है। वै(दक सं(हताओं से आर5भ करके Aाकृत सा(ह)य तक लगता है 9क चq
परू ा हो चक
ु ा था। वहाँ धा म0क कम0का{ड और रह-य भावना पहले मख
ु र
आि-तकता म7 संq मत होती है, जो 9फर आगे चलकर वैसे ह< मुखर �◌ा◌ृ◌ंगार म7
बदल जाती है......दस
ू रा चq; जैसा कहा गया, सg-नाथ क> गुxय बा#नय से
आर5भ होता है।
हजार< Aसाद िQववेद< लखते हY ‘‘सहजयान और नाथ प थ के अ$धकांश
साधक तथाक$थत नीच जा#तय म7 उ)प न हुए थे, अतः उ हने इस अकारण नीच
बनाने वाल< Aथा को दाश0#नक क> तट-थता के साथ नह<ं दे खा। कबीर आ(द के
वषय म7 भी यह< बात ठ†क है। 9फर भी उVच वग0 के लोग म7 सदा तट-थता का
ह< अवल5बन नह<ं 9कया, कभी-कभी उ हने भी उतम आqमण 9कया है ।
अKवघोष क> लखी गयी ‘‘वŠसच
ू ी'' एक ऐसी ह< प-
ु तक है ।

सरोह]हपाद (सरहपा) जा#त Zयव-था जो 9क द लत सा(ह)य के


आqमण का मूल वषय है, का भयंकर वरोध करते हुए कहते हY-‘‘wाxमण wxमा के
मख
ु से उ)प न हुए थे-जब हुए थे तब हुए थे। इस समय तो वे भी दस
ू रे लोग जैसे
पैदा होते हY वैसे ह< पैदा होते हY। तो 9फर wाxमण)व रहा कहाँ? य(द कहो 9क
सं-कार से wाxमण होता है तो चा{डाल को भी सं-कार दो, वह भी wाxमण हो
जाए, य(द कहो 9क वेद पढ़ने से कोई wाxमण होता है तो aय नह<ं चा{डाल को
भी वेद पढ़ाकर wाxमण हो जाने दे त?
े सच पंछ
ू ो तो शू
भी तो Zयाकरणा(द पढ़ते
हY और इन Zयाकरणा(द म7 भी तो वेद के शmद हY, 9फर श

ू  का भी तो वेद पढ़ना
हो ह< गया और य(द आग म7 घी दे ने से मिु aत होती हो तो सबको aय नह<ं दे ने
दे ते ता9क सब मa
ु त हो जाय7? होम करने से मिु aत होती हो या नह<ं, धुआँ लगने
से आँख को कBट ज]र होता है। wाxमण ‘‘wxम-Hान wxमHान'' $चlलाया करते
हY। अmबल तो उनके अथव0वेद क> स)ता ह< नह<ं है, 9फर और तीन वेद के पाठ भी
सg नह<ं इस लए वेद का तो कोई Aमा{य ह< नह<ं है। वेद तो परमाथ0 नह<ं है, वह
तो श
ू य क> शा नह<ं दे ता, वह तो एक Zयथ0 क> बकवास है ।'' बाद म7 सg क>
कुछ वकृ#तय के खलाफ नाथपंथ का Aादभ
ु ा0व हुआ (मछ दर नाथ, गोरखनाथ
आ(द) और नाथपंथ से भिaत काल के संत मत का वकास हुआ िजसके पहले कव
कबीर हY। ‘‘डॉ0 रामकुमार वमा0 ने नाथपंथ के चरमो)कष0 का समय बारहवीं शताmद<
से चौदहवीं शताmद< तक माना है उनका मत है 9क नाथप थ से ह< भिaतकाल के
स त-मत का वकास हुआ था, िजसके Aथम कव कबीर थे। म तZय का समथ0न
कrय और शlप दोन JिBटय से हो जाता है -नाथपंथी रचनाओं क> अनेक
वश ्◌ोषताएं स त काZय म7 यथावत ् वQयमान हY।''

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
म5
ु बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

मDयकालन हद साह?य और दलत Eचतन क परपरा

- डॉ. वीरे & संह यादव

मWयकाल<न (ह द< सा(ह)य दो ]प म7 मलता है - एक भिaतकाल<न सा(ह)य


और दस
ू रा र<#तकाल<न सा(ह)य। #नग0ुण भिaत क> लगभग सभी पर5पराएं #न5न
जातीय शिlपय से स5बg थीं। कबीर जल
ु ाहे थे। स त सेना नाई जा#त म7 पैदा
हुए थे। रै दास चमार थे। दाद ू दयाल ब#नया जा#त म7 ज मे थे। स त बखना
मीरासी थे। द<न दरवेश लोहार थे। Fबहार वाले दSरयादास मसु लमान थे। स त
F=लोचन वैKय थे। कKमीर क> म(हला स त लlला मेहतर जा#त क> थीं, जब9क
महाराBE के नाम दे व छ†पी नामक जा#त म7 पैदा हुए थे। #नग0ुण स त क> परू <
जमात इस Aकार #न5न वणe और #न5न वग3य थे िजनका Zयापक Aभाव शlपी
जा#तयाँ और R मक वग0 पर पड़ा था।'' -पBट है 9क भिaत काल<न स तकाZय
आज क> द लत कह< जाने वाल< श

ू , अछूत, अ )यज आ(द जा#तय के कवय


Qवारा Zयापक -तर पर रचा गया। कबीर इस धारा के सव0RेBठ द लत कव कहे जा
सकते हY। कबीर, रै दास, नानक, सेना, पीपा, ध ना आ(द संत ने अपनी वा णय से
जाँ#त-पाँ#त छुआछूत का वरोध 9कया और मनुBयमा=, Aा णमा= के A#त Aेम और
समता क> बात क>। तक
ु 0 आqमण के समय वण0Zयव-था अपनी चरम सीमा पर
पहुँच गयी थी। अलब]नी लखता है 9क अब केवल wाxमण को ह< मो Aाjत
करने का अ$धकार था। जा#त Zयव-था ने भाई चारे और एकता क> भावना को
समाjत कर (दया। आWयाि)मक े= म7 भी अ धकार का समय था। बौgक ]प म7
अQवैतवाद म7 वKवास करने वाले ZयावहाSरक े= म7 ऊँच-नीच, छुआ-छूत को
सहसा ह< -वीकार लेते थे। संत ने त|यग
ु ीन कvटरता का वरोध 9कया। नामदे व
wाxमण और शू
के भेद को गलत सg करते हुए कहते हY-
नाना वण0 गवा उनका एक वण0 दध
ू ।
तुम कहां के wाxमण हम कहां के सू

मWयकाल<न संत ने भेदभाव बढ़ाने वाले ठे केदार को फटकारा और सभी क>
एकता पर जोर (दया-
एक बँद
ू एकै मलमत
ू र, एक चाम एक गूदा।
एक जाती थे सब उ)प ना कौन wाxमण कौन सद
ू ा॥
इस युग के स त अ य= #नभ3क, -पBटवाद<, साहसी, समानता क> बात करने
वाले तथा स)यवाद< थे, 9कसी भी धम0 क> मrया धारा वाल का ख{डन करते
समय इनके मन म7 भय का संचार नह<ं होता था। कबीर ने तो -पBट शmद म7
कहा था 9क मY चौराहे पर कफन बाँधकर खड़ा हूँ, स)य को Aकट करते समय मझु े
9कसी का भय नह<ं है, आगे उ हने कहा िजसम7 स)य को Aकट करने का साहस हो
वह मेरे साथ आये। ऐसे qाि तकार< वचार का उ|घोष करना उस युग म7 बहुत
बड़ी बात थी-
वांभन और गैर वांभन और तक
ु 0 और गैर तक
ु 0 सभी क> उ)पि)त एक जैसी
होती है । तभी तो कबीर पूछते हY-
‘‘जो तू वांभन बांभनी जाया तौ आन बांट होइ काहै न आया।
जो तू तरु क तरु कनी जाया, तौ भीतSर खतनां aयंू न कराया॥
कबीर जा#त के अ भमान म7 द5भी लोग से कहते हY 9क जा#त से कोई ह<न
या महान नह<ं होता, उसका #नधा0रण Hान से करो-
जा#त न पछ
ू ो साधु क>, पंूछ ल<िजए Hान।
मोल करो तलवार का पड़ा रहन तो 5यान॥
इसी से कबीर जा#त पाख{ड म7 ऐंठे पांड,े पि{डत को कसाई और महा झूठा

तक कहते हY ‘‘साधो, पांडे #नपुण कसाई,'' ‘‘पि{डतवाद-वद ते झूठा।''
कबीर सी #नडरता तो नह<ं, 9क तु अवचल आ)मवKवास रै दास म7 मलता है
आपक> JिBट म7 कोई Zयिaत जा#त से, ज म से ऊँचा-नीचा नह<ं होता, गुण से
कमe से होता है अतः गुणह<न wाxमण क> बजाय गुणयुaत चंडाल के चरण क>
पज
ू ा करने का उपदे श दे ते हY रै दास-
रै दास वामन मत पूिजए, जऊ होवे गुनह<न।
पूज(हं चरन चांडाल के, जऊ होवे गुन Aवीन॥
भिaत आ दोलन म[
ु यता जा#त Aथा पर अधाSरत भेदभाव और छुआछूत के
खलाफ संघष0 था। इस Aसंग म7 मWयकाल<न #नग0ुण स त रै दास लखते हY-
पराधीनता पाप है , जानु लेहु रे मीत।
रवदास दास Aाधीन सौ कौन करै है पीत।�।
ऐसा चाह राज मY, जहाँ मले सबन को अ न।
छोटा बड़ो सम-सम बसY, रवदास रहै Aस न॥
यहाँ रवदास सामािजक वषमता और भेदभाव क> आधीनता को पराधीनता
कहते हY-''दस
ू र का Aेम पाने के लए -वाधीनता अ#नवाय0 है। -वाधीनता के लए
ऐसी राजस)ता चा(हए, जो सबके लए अ न यानी जीने के साधन का इ तजाम
करे । सबको समान भाव से जीने के साधन मल7, तभी समाज म7 सभी समान भाव
से रह सकते हY और ऐसा होने पर ह< रै दास स त Aस न होते हY।''
कबीर के बाद मWययुगीन समाज म7 नानक (यQयप अछूत नह<ं थे वे) का
अ)य त Aभाव है। सामािजक बरु ाइयां और अ धवKवास दरू करने का उनका
तर<का कबीर से भ न शां#तपण
ू 0 था aय9क वे छुआछूत के शकार नह<ं थे िजतना
कबीर। नानक ने jयार से समझाया 9क कोई भी ज म से wाxमण नह<ं, बिlक कम0
से wाxमण होता है-
‘‘जा#त गरबु कSर अहु भाई।/wxमु Fब दे सो wाxमण होई॥''
स त कवय ने सभी जा#तय एवं वणe के लए समानता क> -थापना क>
तथा ‘‘धम0 के े= म7 संक>ण0ता के ये घोर वरोधी थे, दश0न के े= म7 अQवैत-JिBट
से एकेKवरवाद के समथ0क थे, भिaत के े= म7 ये कम0का{ड-र(हत #नBठा और
समथ0न म7 वKवास रखते थे और चSर=-वकास के लए आचार व स)य को जीवन-
#नमा0ण क> कसौट< मानते थे।81
नानक ने साफ कहा 9क ‘‘मेरा स5ब ध 9कसी जा#त से नह<ं है । या=ा के
समय वे श

ू  के साथ रहने म7 स तोष तथा आन द का अनुभव करते थे। जा#त


Aथा को समाjत करने के लए उ हने अपने सभी शBय को एक साथ भोजनालय
क> Zयव-था क> थी िजसे गुb का लंगर कहते थे। उ हने अपने सभी शBय को
एक साथ भोजन करने पर जोर (दया। नानक ने छुआछूत के भेदभाव को मटाकर
pात)ृ व का -वर बल
ु द 9कया। के0 दामोदरन लखते हY-‘नानक क> शा और
सaख के pात)ृ व से उ)पीuड़त-द लत जनता को एकजट
ु 9कया। उ हने कहा 9क
अVछे सामािजक काय0 करना ह< ईKवर क> सेवा है । नानक ने धम0 स5ब धी अपने
एक बयान म7 कहा था 9क-
‘‘धम0 केवल शmद का मायाजाल है , और
जो Zयिaत सब मनुBय को समान मानता है वह< धा म0क है ''
नीच म7 भी नीचतम मनुBय हY;/नानक इनके पास ह< जायगा॥/जा#त-पां#त
#नरथ0क है , ओहदे और उपा$धयाँ #नरथ0क हY।/जा#त-पां#त म7 आ खर ताकत ह<
कहां है।/कोई भी मनुBय ऐसा नह<ं है िजसम7 कुछ योdयता न हो।''(ज5न
सखी)
डॉ0 नगे
के शmद म7 कह7 तो #नग0ुण स त-काZय-पर5परा के भaत कवय
क> वाणी के मूल उsेKय पर वचार 9कया जाये, तो वह मानव-समाज के साम(ू हक
कlयाण क> वाणी है। दस
ू रे शmद म7 उसे धम0-#नरपे स)यो मख
ु ी वाणी कह सकते
हY। स त ने तथाक$थत जा#त या वण0-Zयव-था को -वीकार न कर मानव मा= को
एक धरातल पर खड़ा कर (दया था। उनक> JिBट म7 मानववाद ह< एक ऐसा -तर
था, िजस पर समाजकार< Zयव-था स5भव थी। िजस लkय को ये संत कव Aार5भ
करना चाहते थे, वह साव0ज#नक (हत म7 समि वत सव0जन सल
ु भ Wयेय था। अतः
अपने युग म7 इ हने एक Zयापक वैचाSरक qांि त को ज म दे कर भारतीय जनता
के सम एकेKवरवाद, सदाचार, स)य, समता और शाKवत धम0 का आदश0 A-तत

9कया था। अवतारवाद, पज
ू ा-सेवा, रोजा-नमाज, मि दर-मि-जद, तीथ0-व)ृ त आ(द को
इ हने -वीकार नह<ं 9कया।''82
द लत-सा(ह)य लेखक भिaतकाल<न संत क> शाओं का मl
ू यांकन करते
हुए उनक> क मय पर भी Aकाश डालते हY, ‘‘(ह द< सा(ह)य के भिaतकाल म7 रै दास
और कबीर जहाँ एक ओर वण0Zयव-था के वbg खड़े (दखायी पड़ते हY और
सामािजक बदलाव के लए संघष0 करते हY, वह<ं दस
ू र< ओर ये संत आWयाि)मक
दलदल म7 फंसकर उसी साम ती Zयव-था म7 वल<न हो जाते हY, िजसने
वण0Zयव-था को प[
ु ता 9कया था। उनक> qाि तकाSरता सामािजक -तर पर गहन
अ भAेरणा उ)प न करती है, इसके साथ ह< (ह द< सा(ह)य म7 वरोध के -वर को
ऊँचा करती है और आज भी Aासं$गक बनकर द लत $चंतन क> पर5परा के लए
Aेरणा बनती है । ले9कन रह-यवाद, भिaतवाद, #नग0ुणवाद आ(द उसी पर5परा से
जोड़ दे ते हY िजसके वbg द लत सा(ह)य खड़ा है। इन द लत $चंतक का मानना है
9क भिaत आ दोलन ने आम जनता म7 जा#त तो पैदा क>, 9क तु वह सामािजक
और आ$थ0क Zयव-था म7 , मौजूद असंग#तय के वा-तवक कारण को समझने और
मानव दःुख और पीड़ाओं के नूतन समाधान A-तुत करने म7 सफल नह<ं हुआ। जो
बात ये द लत $चंतक कबीर, रै दास आ(द के स5ब ध म7 कहते हY वह< बात काफ>
पहले अ5बेडकर ने महाराBE के अछूत कवय संत तक
ु ाराम, चोखामेला, रो(हताश के
स5ब ध म7 कह<ं थी। ‘‘चोखा मेला, रै दास जैसे साधओ
ु ं को सख
ु  क> परवाह नह<ं थी
और उनका स5पण
ू 0 Wयान परमेKवर क> ओर लगा था। उनका उदाहरण साधारण
लोग के 9कस काम का? महाराBE म7 चोखामेला के नाम को भी आजकल
उVचवग3य लोग मान दे ते हY। ले9कन जब वे जीवत थे तब पेट भरने के लए मत

ढ़ोर खींचते थे तब उVचवग0 के लोग कहाँ चले गये थे। यह शsत के साथ सोचा
जा सकता है ।
मWयकाल के िQवतीय भाग (उ)तर मWयकाल) म7 अथा0त ् र<#तकाल म7 संत
सा(ह)य मलता है जो #न5न जा#तय, श

ू  Qवारा भी रचा गया। पलटू साहब को


िQवतीय कबीर कहा जाता है जो कबीर सी #नडरता और फaकड़ता के कारण
अयोWयावासी वैरागी-पि{डत के ईBया0 के पा= हो गये थे। जा#तवाद पर तीखी
(टjप णय के कारण ह< उ ह7 प{डे-पज
ु ाSरय ने िज दा जला (दया। पलटू साहब-
सबं जा#तन म7 उ)तम तम
ु ह<ं करतब करौ कसाई/करबो भेड़ा मछर< खायो,
कहो गया बराई/]$धर मास सब एकै पांड,े भू तोर< ब5हनाई/प(ढ़-प(ढ़ तुम aया
क> ह पंuडत अपना ]प न ची हा/Fबना भजन भगवान के wाxमण ढे ढ
समान/हSर को भजै सो बड़ा है जा#त न पछ
ू ो कोय॥
(पलटू साहब क> वानी)
-पBट है 9क 9कसी भी अवधारणा, पर5परा और इ#तहास को पूणत
0 ः
नकारा नह<ं जा सकता। हां, उसम7 समय के अनुसार संशोधन-पSरवत0न आवKयक
होता है। यह बात अलग है 9क आज के Zयापक पSरJKय म7 सा(ह)य के अ$धकांश
कलावाद< आदश0 #नरथ0क हो गए हY। अतः म[
ु यधारा को भी थोड़ा ठहरकर सा(ह)य
के पार5पSरक मानदं ड पर वचार करना होगा। द लत चेतना को भी म[
ु यधारा क>
वसंग#तय को दरू कर उसक> RेBठ और मl
ू यवान धारणाओं को अपनाना होगा।
तभी सा(ह)य का कlयाण हो सकता ळ7

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
ु बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
म5
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

लFयहन नहं है दलत साह?य

(दलत साह?य बनाम समानातर साह?य के .वश ्◌ोष


सदभ) म5 )

डॉ. वीरे & संह यादव

नaसलवाद< सा(ह)य क> तरह ह< द लत सा(ह)य को प=-पF=काओं का कोई


प-
ु तक वqेता अपनी दक
ु ान पर नह<ं रखना चाहता। कारण 9क इससे उसको भी
द लत समथ0क या द लत मान लये जाने का खतरा जो मौजद
ू रहता है। द लत
उ)थान स5ब धी सा(ह)य के A#त भी प-
ु तक वqेताओं म7 b$च नह<ं (दखती और
यह सा(ह)य उनक> दक
ु ान म7 दे खने तक को नह<ं मलता। शायद यह< अनेक
कारण हY 9क लोग बेहतर द लत सा(ह)य को पढ़ने से वं$चत रह जाते हY।
एक बात जो मेरे अ वेषण एवं साा)कार के दौरान बार-बार दे खने को
मल< वह यह है 9क द लत सा(ह)य का Aकाशन आज भी बहुत कम हुआ है । कुछ
समथ0 द लत सा(ह)यकार ने ज]र 9कसी भी तरह Aकाशन के नाम पर अपनी
प-
ु तक7 Aका शत कर ल< हY। 9क तु बहुत कम ह< Zयवसा#यक व A#तिBठत Aकाशन
सं-थान ने द लत सा(ह)यकार के सा(ह)य को Aका शत 9कया है । द लत सा(ह)य
व सा(ह)यकार आज भी Aकाशन सं-थान के लये अछूत ह< बने हुये हY और यह
द लत सा(ह)यकार का नह<ं वरन ् दे श का दभ
ु ा0dय है ।
रचनाकार अपने समय व पSरि-थ#तय से Aभावत अवKय होता है, पर इसके
बावजूद भी उसे अपने Zयिaत)व व नै#तक मl
ू य को बचाकर रखना पड़ता है । पर
कभी-कभी लेखक को द#ु नया क> सार< सVचाई उधेड़कर समाज के सामने परू <
#नडरता से रख दे नी चा(हए। तभी उसके लेखक होने क> अि-मता बोध को सg
करे गा aय9क फा सLम हमेशा वचार क> शaल म7 आता है ।
भारत म7 माaस0वाद के वषय म7 दो बात7 मह))वपण
ू 0 हY- 1. पहल< यह 9क
भारत म7 माaस0वाद इस लए असफल साFबत हो रहा है aय9क उसका भारतीयकरण
नह<ं 9कया गया है । दस
ू र< बात-भारत के माaस0वाद< संगठन और नेताओं ने हमेशा
ह< द लत को जुलूस-Aदश0न के उपयोग क> चीज समझा है । वSरBठतम ् माaस0वाद<
नेताओं ने भी अपने पाटŒ-संगठन क> अ#तSरaत बैठक म7 कई-बार -वीकार 9कया
है 9क Fबना जा#त व वग0 Zयव-था पर चोट 9कये भारत म7 जनवाद या माaस0वाद<
सफल नह<ं हो सका है । पर तु वे -वयं अपने वचार को अपने Zयवहार म7 कभी
नह<ं ला पाये। 9फर द लत सा(ह)य का माaस0वाद< सा(ह)य से कभी कोई गहरा
SरKता होना स5भव भी नह<ं है । कारण 9क माaस0वाद सा(ह)य सफ0 शोषण के
वbg लखा गया सा(ह)य है । जब9क द लत सा(ह)य-सामािजक छुआछूत, घण
ृ ा और
दलन के खलाफ रचा गया सा(ह)य है । कुछ समीक का मानना है 9क (ह द< म7
माaस0वाद< एवं जनवाद< पर5परा होते हुए भी द लत सा(ह)य आ दोलन क>
आवKयकता aय पड़ गयी? शायद माaस0वा(दय एवं जनवा(दय के वैचाSरक और
सामािजक सोच के अ तव0रोध के कारण। माaस0वाद< आलोचना क> वैHा#नक
पg#त का तो द लत लेखन समथ0न करता है 9क तु वह उनक> इस बात को नह<ं
मानता है 9क ‘डी का-ट' होने के लए ‘डी aलास' ज]र< है । द लत लेखन का आह
है 9क ‘डी aलास' होने के पव
ू 0 ‘डी का-ट' होना ज]र< है। इसके Fबना स5यक् बदलाव
स5भव ह< नह<ं, aय9क सामािजक दलन ने ह< द लत सा(ह)य को ज म (दया है
जब9क Aग#तशील या जनवाद< या माaस0वाद< सा(ह)य को आ$थ0क शोषण ने ज म
(दया है। अतः माaस0वाद< सा(ह)य और द लत सा(ह)य के बीच स5ब ध बने ह<
रह7 गे। दोन सा(ह)य कभी एक नह<ं हो सकते हY। दोन सा(ह)य का स5ब ध रे ल
क> दो पात (लाइन) क> तरह -थाई ]प से अलग-अलग सदै व के लये बना रहे गा।
कुछ तrय एवं अपवाद को छोड़कर दे ख7 तो हम हर उस सा(ह)यकार को
द लत सा(ह)यकार मानने व -वीकारने को तैयार है िजसने भी द लत के
सामािजक दलन के वरोध म7 अपना सा(ह)य रचा है । द लत सा(ह)य जगत म7 हम
पर5परावा(दय म7 कोई, 9कसी भी Aकार क> छुआछूत नह<ं रखते हY। अथा0त ् द लत
लेखन वह आईना है, िजसम7 जा#तवाद< समाज अपना अaस दे ख सकता है और
वदरपताओं
ू् से छुटकारा पाने क> को शश शु] कर सकता है। जा#तबोध उस A9qया
का नाम है जो मनुBय को उसक> मनBु यता से अलग कर संवेदनह<न बना दे ता है।
दो जा#तय के बीच अपSरचय क> ऊँची भीत खड़ी हो जाती है । वे एक-दस
ू रे से
मनुBय होने के नाते नह<ं मलते, जा#त वश ्◌ोष के A#त#न$ध के ]प म7 मलते हY।
सवण0 जा#त द लत समद
ु ाय पर बेइंतहा जl
ु म ढ़ा सकती है और उसे यह सारा qम
-वाभावक लगता है । जा#त-वरोधी-लेखन सोई हुई, मर< हुई मनुBयता को जगाने
का, पुनज3वत करने का उपqम है । कहने क> ज]रत नह<ं है 9क ऐसे लेखन क>
ज]रत उस समद
ु ाय को है जो (हंसा करता है । मानव इ#तहास इस बात का साी
है 9क (हंसा का बदला (हंसा करके चक
ु ाया जाता है । द लत लेखन इस इ#तहास
Aसूत सच को उलटने का उQयम है। वह बुg और अ5बेडकर Qवारा पोषत-
A-तावत जीवन-मl
ू य पर आधाSरत है , िजसम7 (हंसा क> कोई जगह नह<ं ‘A#तशोध
का कोई -थान नह<ं है और घण
ृ ा के लए कोई जगह नह<ं।''
यहाँ एक बात मY बहुत साफ तौर पर -पBट करना चाहूँगा 9क- द लत
सा(ह)य को अaसर ह< सपाट सा(ह)य कहकर खाSरज 9कया जाता रहा है ।
पर5परावाद< सा(ह)यकार द लत समाज क> बहू बे(टय के साथ हुये बला)कार क>
घटनाओं म7 भी अपना शा-=ीय सौ दय0 खोजना चाहते हY। वे चाहते हY 9क द लत
सा(ह)यकार य(द अपने सामािजक दलन पर रोय7 भी तो पर5परावा(दय Qवारा
#निKचत धुन पर ह< रोय7। नह<ं अब यह नह<ं होगा। आज द लत सा(ह)य ने अपने
उsेKय और लkय भी #निKचत कर लये हY। अथा0त ् अब द लत सा(ह)य लkयह<न
नह<ं रहा है ।
श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।
दलत साह?य का सौदय)शाIः

डॉ. वीरे & संह यादव

द लत सा(ह)य के लए अलग सौ दय0शा-= क> आवKयकता aय पड़ी, यह


एक अहम सवाल है । द लत लेखक क> यह धारणा है 9क ‘जीवन-दश0न, अनुभ#ू त
और अनुभव क> वा-तवकता भारतीय सा(ह)य म7 कभी आई ह< नह<ं इस लए
समीक Qवारा -थापत समीा मl
ू य और उनके सौ दय0-मीमांसा के ढ़ं ग अलग
हY, जो द लत सा(ह)य क> समीा के लए सह< नह<ं है ।84 शरण कुमार ल5बाले का
कहना है 9क ‘िजस सा(ह)य का नायक आज तक राजा-महाराजा था, नीचे आकर
अब माWयम वग0 हो गया है । िजस सा(ह)य म7 आ)मा, परमा)मा, अWया)म, नी#त
�◌ा◌ृ◌ंगार और Aणय ह< वषय रहा हो, उस सा(ह)य का सौ दय0शा-= हमारा नह<ं
हो सकता। इस सा(ह)य का नायक अछूत, एकदम नीच आदमी है, इस नायक को
याय दे ने के लए सं-कृ#त या अंेजी सा(ह)यशा-= पया0jत नह<ं होगा। समाज
बदल रहा है , सा(ह)य बदल रहा है, वैसे ह< सौ दय0शा-= भी बदलना चा(हए।
जब9क डॉ0 नामवर संह, परमान द Rीवा-तव इस मत के वरोधी हY, उनका
मत है 9क ‘वैकिlपक सौ दय0शा-= केवल सु वधा Aदान घालमेल से स5भव न होगा
जब तक द लत आ दोलन क> qांि तकार< धारा एक स5पण
ू 0 ताकत बनकर नह<ं
उभरती और अ5बेडकर या बहुजन का भी एक अपना 9qट<क नह<ं तैयार करती, यह
उ5मीद नह<ं क> जा सकती 9क वह बजु ुआ
0 सौ दय0शा-= का Aखर ‘9qट<क' बना
सकेगी या वैकिlपक सौ दय0शा-= के नये मानक रच सकेगी। डॉ0 मैनेजर पा{डेय
यह मानते हY 9क ‘(ह द< मे कोई वक सत सौ दय0शा-= नह<ं है, ले9कन जो है उसके
पीछे एक ओर सं-कृत के काZयशा-= क> ल5बी पर5परा है तो दस
ू र< ओर पिKचम
के सौ दय0शा-= का Aभाव।....सौ दय0शा-= कला क> अलौ9कक अनुभ#ू त नह<ं है।
वह कला)मक सौ दय0 के बोध और मl
ू य का शा-= और बोध क> A9qया तथा
मl
ू य के #नमा0ण म7 जा#त, वग0 और लंग से जुड़ी वचारधाराओं क> मह)वपण
ू 0
भ ू मका होती है । इसी लए द लत सौ दय0शा-= का वकास द लत समाज, उसक>
चेतना, सं-कृ#त, वचारधारा और द लत सौ दय0शा-= के वकास पर #नभ0र है , जो
एक ल5बी A9qया म7 होगा।

ु ारास भी सं-कृत के सा(ह)य सgा त को परू < तरह से नकारते हुए
AKन करते हY 9क ‘रामच
शa
ु ल से लेकर नामवर संह तक aया कभी ये बताय7गे
9क रसHता का aया मतलब होता है? aया उ हने रसH या काZय र सक का नया
भाBय दे ने क> को शश क>। सं-कृत म7 रसH या र सक जो कुछ भी होता है उसे
आज हम लV
ु चा कह7 गे। लV
ु चा के अलावा दस
ू रा शmद इ-तेमाल हो ह< नह<ं सकता।
अVछे लेखन क> शत0 aया लV
ु च को खुश करना है? लेखन का रसबोध नह<ं
समाजशा-= नह<ं होना चा(हए अगर समाजशा-= नह<ं है तो घ(टया लेखन है । खुद
सवणe का सा(ह)य इसी लए मह)व का माना गया है aय9क इसम7 सवण0
समाजशा-= है , चाहे रामचSरतमानस aय न हो। द लत लेखन का मl
ू यांकन उसका
समाजशा-= करता है, सवणe क> अ भ]$चय नह<ं।'
ओमAकाश बाlमी9क को सवणe क> आलोचना पर ोभ होता है , उनक>
मा यता है 9क ‘अलग सौ दय0शा-= क> पSरकlपना से (ह द< सा(ह)य का वघटन
नह<ं व-तार होगा।
मोहनदास नै मशराय द लत सा(ह)य क> आवKयकता पर चचा0 करते हुए
कहते हY ‘शोषक वग0 के खलाफ अपने अ$धकार के लए संघष0 करते हुए समाज म7
समता, ब धुता तथा मै=ी क> -थापना करना ह< द लत सा(ह)य का उsेKय है।'90
ओमAकाश बाlमी9क का कहना है ‘द लत सा(ह)यकार अपनी सामािजक
A#तबgता के साथ रचना कम0 से जड़
ु कर सा(ह)य क> सज
ृ ना)मकता म7 मानवीय
सरोकार, संवदे नाओं और -वत =ता, भाईचारे क> भावनाओं को -थापत करता है।
उसक> JिBट म7 A)येक Zयिaत और उसक> पीड़ा, उसके सख
ु -दःुख मह)वपण
ू 0 हY।
उसम7 द लत हो या -=ी, उसके A#त रागा)मक तादा)5य -थापत करना द लत
सा(ह)य का Aमख
ु Aयोजन है। डॉ0 रम णका गुjता के अनुसार द लत चेतना म7
नकार है हर अंधवKवास और पगापन के खलाफ और -वीकार है, तक0 और
वHान के प म7, बौg धम0 को भी उ हने वशुg बg
ु क> वचारधारा के अनु]प
हण 9कया जहाँ वे यह तक कहते हY 9क मेर< बात इस लए मत मानो 9क वह मYने
कह< है या 9कसी अमुक 9कताब म7 लखी है , उसे जांचो, परखो और तब अपनाओ,
ऐसा 9कसी अ य महापb
ु ष ने नह<ं कहा, इस लए इ#तहास ने द लत को चेतना द<
aय9क आजाद< के बाद भी Aजातं= म7 बड़ी खा मयाँ थीं। नेत)ृ व दस
ू र के हाथ म7
था और लोग AजातांF=क मl
ू य को लागू नह<ं करना चाहते थे, बाबा साहे ब के
संवधान ने बड़ा काम 9कया, इससे बड़ी qांि त हुई, इससे द लत को पढ़ने- लखने
का मौका मला इस लये जनतं= और इ#तहास दोन द लत चेतना से जड़ ु े रहे हY।''
लगभग सभी द लत वQवान यह -वीकार करते हY 9क उनका सा(ह)य डॉ0
अ5बेडकर के वचार और बौg धम0 से Aभावत है । इस लए उनके सा(ह)य के कुछ
Aमख
ु ‘जीवन मl
ू य' हY, ये जीवन मl
ू य हY-
(क) समता, -वत =ता, ब धुता, याय के जीवन-अनुभव, अनुभवज य आशय
तथा उस आशय क> अथ0पण
ू 0 अ भZयिaत।
(ख) सं-कृ#त और धम0 के नाम पर वा-तवकता को #छपाकर रखे गये ढ़ग
को नकारना।
(ग) कlपनाज य A#तमान का #नष ्◌ोध। जैसे ‘अमत
ृ ' मधुर पेय क> कlपना
ले9कन उसका आ-वाद 9कसी ने नह<ं जाना।
(घ) #न)य पSरवत0नीयता के आधार पर जीवन-मl
ू य का मl
ू यांकन।
(ड़) ब धन-मa
ु त अ भZयिaत और अनुभव का सVचापन, जैसा दे खा, भोगा
उसका वैसा $च=ण। शmद केवल माWयम हY। शािmदक आड5बर #नमा0ण म7 असमथ0।
सा(ह)य #न म0ती भले ह< एक कला हो, ले9कन जब सा(ह)य सामािजक
सम-याओं को उजागर करता है तब वह केवल कला नह<ं रहती, बिlक सा(ह)य
सम-याओं पर Aहार कर, द लत-पीuड़त, R मक, दे वदा सय आ(द का A#त#न$ध)व
करता है । इस लए सा(ह)य #न म0ती जैसे होगी उसका समाज पर वैसा ह< Aभाव
पड़ेगा। भारतीय समाज और सा(ह)य स)य, शव और सु दर का पधार< है, जब9क
द लत सा(ह)यकार यह मानते हY 9क स)यं, शवं, स
ु दरं क> धारणा ह< एक वण0
वश ्◌ोष को Wयान म7 रखकर क> गयी है । अतः वे इसे -वीकार नह<ं करते वरन ् वे
शmद Aमाण,  थ Aमाण, आ)मा, ईKवर और उनके आधार पर #न म0त सम-त
नै#तकता का वरोध करते हY-
सुनो, व सBठ,
ोणाचाय0 तुम भी सुनो/हम तुमसे घण
ृ ा करते हY/तु5हारे
अतीत/तु5हार< आ-थाओ पर थूकते हY। (ओमAकाश बाlमी9क)
धम0 थ एवं परु ाण म7 A#त आqोश Zयaत करते हुए शरण कुमार ल5बाले
कहते हैः◌ं-
मेरे बाप दादाओं ने कैसे यक>न कर लया
इन ढ़कोसला परु ाण पो$थय पर?
aय नह<ं कभी व
ोह 9कया
इस हरामी पर5परा के खलाफ?
(शरण कुमार ल5बाले)
द लत सा(ह)य क> भाषा, लय, Fब5ब, Aतीक आ(द सभी म7 यह बदलाव
(दखायी दे ता है। इनक> JिBट म7 अलंकृ#तपण
ू 0 रचना सु वधास5प न वग0 के
वािdवलास का वषय है । उनके सा(ह)य म7 रोजमरा0 के जीवानुभव हY, जो आqोश या
वरोध के ]प म7 A-फु(टत हुए हY-
तमु ने जी है गुलामी/क>ड़े-मकौड़े से बदतर िज दगी/छ†जती इLजत/Fबखरते
स5मान/लुटती बहन-बे(टय क> आब]/तुमने भोगी है/भोगी है । (सी0बी0
भारती)
आइये, महसूस कSरये िज दगी के ताप को,
मY चमार क> गल< तक ले चलँ ूगा आपको।
गाँव िजसम7 आज पांचाल< उघार< जा रह<,
या अ(हंसा क> जहाँ पर नथ उतार< जा रह<।
हY तरसते 9कतने ह< मंगल लंगोट< के लए
ब7चती है िज-म कृBणा आज रोट< के लए।
(अदम गोडवी)
द लत सा(ह)य म7 ऐसे शmद, Fब5ब, मथक और Aतीक का Aयोग मलता
है जो या जो अ भजात वगe क> सवंदेनशीनता को अb$चकर लगते हY या उ ह7
भीतर तक (हला दे ते हY। यथा-यु$धिBठर उनक> JिBट म7 स)यवाद< यु$धिBठर न
होकर एक ऐसे जुआर< हY, जो अपनी प)नी को भी दांव म7 लगा दे ता है और कायर
बन कर उसे सभा म7 नंगी होती दे खता है । ऐसे ह< एकलZय का अंगूठा कटवा लेने
क> कथा उ ह7 सवणe का छल लगता है, जो मेधावी द लत वग0 क> A#तभा को
#छ न- भ न कर दे ते हY-
अँधेरे क> गहन गुफा को/घाव सहने दो/
जाओ
ोण जाओ/दद0 को हSरयाने दो/
एकलZय मY पहले था/आज भी हूँ/
अब जान गया हूँ/अँगूठा दान aय माँगते हो? (दयान द बटोह<)
इसी तरह ‘सती का जहर' उनके लए ‘शौय0' का नह<ं ‘पलायन' का Aतीक है ,
‘फूलनदे वी नार< जा#त क> शौय0 गाथा है ।' इसी तरह कण0, श5बक
ू , सीता िजजीवषा
और व
ोह के Aतीक हY।
कहा जा सकता है 9क द लत सा(ह)य द लत Qवारा अपने जीवनानुभव का
कटु यथाथ0 ]प है , िजसम7 पर5परागत ‘शmदाथe क> रमणीयता' का वरोध है । वा-तव
म7 दे खा जाए तो वत0मान समय म7 (ह द< म7 द लत लेखन क> चचा0 Lयादा है
लेखन कम है । आज द लत -वर को सा(ह)य का मल
ू राग बनाने क> ज]रत है ।
वHान, ववेक और कbणा के साथ एक यथाथ0 परक जनतांF=क -व]प रखकर ह<
द लत सा(ह)य क> रचना क> जा सकती है । इसके साथ ह< द लत सा(ह)य क> एक
दाश0#नक पBृ ठभ ू म और अपना सौ दय0 बोध तेजी से वक सत एवं पlलवत करने
क> आवKयकता है, जो पर5परा म7 चल< आ रह< शाKवत ](ढ़य, अ धवKवास तथा
ढ़कोसल को एक ह< झटके म7 तोड़ दे । इसम7 कोई दोराय नह<ं 9क द लत चेतना का
सा(ह)य पर काफ> Aभाव पड़ा है । नायक क> पSरकlपना बदल< है । द लत सा(ह)य
ने नया सौ दय0 शा-= गढ़ा है, िजसम7 मनुBय एवं मानवता क> तलाश Aमुख हY।
(ह द< क> सjु त आ)मकथा पर5परा को स5बल मला है । सं-कृ#त क> Aयोजनी पर
सवाल उठाये गये हY। पज
ू ा-पाठ क> #नंदा क> गयी है । द लत अब जान गया है -

‘‘राम रावण का युg होगा/राम क> जय होगी/ पुल बनाने वाले ब दर


कहलाय7गे।'

'सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
मु5बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त पुर-कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

हद दलत साह?य म5 सौदय)शाI क अवधारणा

डॉ. वीरे & संह यादव

द लत (ह द< कवता के सौ दय0शा-= को लेकर चचा0 तेज है । AKन उठता है


9क सा(ह)य लेखन के पव
ू 0 सौ दय0शा-= बन जाना चा(हए? aया यह उ$चत होगा?
य(द हाँ तो कहां तक? इन Fब दओ
ु ं पर वचार होना चा(हए। 9फर इस पर 9क
इसका सौ दय0शा-= कैसा होगा? इसके आधार aया हगे? यह सह< है 9क द लत
कवता का नया काZयशा-= और सौ दय0शा-= होगा। अ भजात वग3य काZयशा-=
और सौ दय0शा-= से यह भ न होगा। द लत सा(ह)य के वकास के साथ ह< इसके
का)यशा-=ीय और सौ दय0शा-=ीय त)व वक सत हगे। Aेमच
ने अपने A सg
#नब ध-‘सा(ह)य का उsेKय'-म7 नये सौ दय0शा-= का Aा]प A-तावत 9कया था।
द लत सा(ह)य का सौ दय0शा-= इससे वक सत हो सकता है। इस तरह इसका
काZयशा-= भी ]प हण करे गा। त)काल ये मl
ू यांकन का मुहताज भी नह<ं है ।
द लत कवता अपना काम कर रह< है िजसके लए यह A#तRत
ु है।
रम णका गjु ता द लत सा(ह)य के सौ दय0शा-= म7 वQयमान मल
ू भत
ू त)व
क> ओर Wयान आकष0त करते हुए कहती हY ◌ः ‘द लत सा(ह)य ने नए Fब5ब गढ़े ,
पौरा णक मथक क> पSरभाषा बदल डाल<। नये मथक बनाये गौरवाि वत झंूट
और आ-था पर चोट क> और चम)कार को तोड़ा। अनुभव क> Aामा णकता से
द लत सा(ह)य म7 नया एक तेवर उभरा जो सीधे मन को छूता है । वKवसनीय है।
यह वत0मान सा(ह)य के लज लजेपन और बासीपन तथा एक]पी, रसवाद< Aणाल<
से भ न है और चम)कार< कlपनाओं से Fबlकुल अलग होता है । इसके दायरे म7
अ धवKवास, भाdय, पव
ू ज
0 म के कम0, धम0 या भगवान नह<ं आते हY। यह A)य
यथाथ0 से मa ु त है , जीव त है । जl
ु म से जूझते हुए, मरते हुए और जीते हुए से
बीच के, इद0 $गद0 के -=ी-पुbष का◌े सामने लाता है।
द लत सा(ह)य सर पर प)थर ढ़ोने वाल< मजदरू म(हला को उसके अ$धकार
के वषय म7 बतलाता है । उसे धम0 क> भूलभल
ु ैया से #नकालकर शोषण से मुिaत
का माग0 (दखाता है। इसके लए िजस शािmदक Aहार मता क> आवKयकता होती
है वह उसम7 है और यह< द लत सा(ह)य का शlप सौ दय0 है। ले9कन रे त म7 सर
गढ़ाकर हम बहुत दे र तक रात को (दन नह<ं कह पाएंगे। हम7 द लत सा(ह)य के
सौ दय0-शा-= का वकास तो करना ह< होगा। इसके लए द लत सा(ह)यकार को
कठोर साधना करनी होगी। और रचना को जब तक वह उVच मानद{ड तक न
पहंु चे, छपने से परहे ज करना होगा। भले ह< थोड़ी दे र लगे, Rम और शिaत का
थोड़ा अ$धक Aयोग करना पड़े। ले9कन जlदबाजी से 9कसी भी रचना को छपने के
लए न भेज7।

दलत काLय म5 Mबब, तीक एवं मथक के धरातलः-


सा(ह)य म7 Aतीक क> मह)ता सव0व(दत है। Aतीक Qवारा, भावना, वचार,
बोध आ(द क> अ भZयिaत जहाँ रचना को Aभावशाल< बनाती है, वह<ं अथ0पण
ू 0 भी।
Aतीक Qवारा 9कसी भी बात को संेप म7 कहा जा सकता है । द लत सा(ह)य म7
समाज क> पीड़ा, बेबसी, उ)पीड़न और शोषण से उपजे आqोश को, सामािजक यथाथ0
को $चF=त करने के लए Aतीक का Aयोग हुआ है । पर कभी-कभी (ह द< कवता
म7 कवय ने Fब5ब पर इतना जोर (दया 9क काला तर म7 इसक> रचना)मक
सामrय0 और उपयो$गता पर स दे ह 9कया जाने लगा। नामवर संह का भी यह<
मानना है ◌ः ‘‘छठे दशक के आर5भ म7 उ)प न वषम सामािजक ि-थ#तय क>
चन
ु ौती के सामने Fब5ब वधा कवता म7 अAासं$गक सg होने लगी।
द लत कव लालच
राह< द लत क> त-वत ि-थ#तय को ‘व
ृ ' नाम
Aतीक के माWयम से सशaत ढ़ं ग से अ भZयिaत दे ते हY-
अब व
ृ क> कट<-छँ ट< टह#नयाँ/पन
ु ः A-फु(टत होने लगी हY/दरत
ु् ग#त
से/बीसवीं सद< के उ)तराg0 म7।
कम0शील भारती ने ‘सैलाब' शीष0क कवता म7 एक ऐसा Aतीक रचा जो समच
ू े
साम ती और शोषक समाज क> ऐ#तहा सक, सामािजक, सां-कृ#तक Aकृ#त क>
पर5परा को सहज ]प म7 -थापत कर दे ता है-
समच
ू ा शकार/#नगलने के बाद/खख
ूँ ार व मaकार घuड़याल/9कनारे पर बैठा/
आहार का रसा-वादन/बड़े मजे/बड़े आराम से लेता है !
द लत कव का -वर कटु है, aय9क उसने समाज के Aपंच को हजार साल
से अपनी )वचा पर सहा है । उसक> तlखी Aतीक म7 महसूस क> जा सकती है ।
मिु aत-संघष0 क> छटपटाहट द लत कवता को Wव#नत करती है। द लत कव का ‘मY'
‘हम' क> अ भZयंजना बन जाता है । पार5पSरक Aतीक के -थान पर द लत कवय
ने मौ लक और नए Aतीक ईजाद 9कए हY।'' द लत कवता म7 ‘पेड़', ‘लोकत =',
‘भेuड़ए', ‘जंगल< सूअर', ‘कु)त ्◌ो', शोषण और दमन, गुलामी के Aतीक हY। जो
सामािजक जीवन क> घोर अमानुषकता को रे खां9कत करते हY। द लत कवता ने
सामा य जीवन के Aतीक म7 शोषत जन को रे खां9कत 9कया है-
रामेसर< के हाथ म7 थमी बाँस क> मोट< झाड़ू/
सड़क के ऊबड़-खाबड़ सीने पर/Kच-Kच क> Wव#न तैरती है/उड़ती है धूल का
गुबार/
धूल ◌ः जो सैकड़ वषe से/जम रह< है पत0-दर-पत0/फेफड़ म7 रामेसर< के/
रँग रह< है Kवास नल< को/$चमनी-सां
कारखाने से उठते धुएँ-सा।
इन पंिaतय म7 झाड़ू, धूल, धुआँ द लत जीवन का यथाथ0 है, जो द लत-
स दभe से जुड़े हY। रम णका गुjता तो गीता का अथ0 ह< बदल डालती हY, जब वे
कहती हY-
‘‘एक शmद गीता/सw का जहर/स तोष क> अफ>म/भाdय का चqZयूह/
#नBकाम Aेम का नशा/ पSरRम के/फल से वं$चत रखने क> सािजश/परजीवी जमात
का/सज0क/#नठlले लोग का -वग0।'' (अब मरू ख नह<ं बन7गे हम)।
द लत कवता म7 Aयुaत Fब5ब आqोश और व
ोह क> सशaत अ भZयिaत
बनते हY-
त5
ु ह7 aय शम0 नह<ं आई?/गल चक
ु > मोमबि)तयाँ/आज वह जंगल क> आग
है /
बझ
ु ाए न बझ
ु ग
े ी/आग का दSरया बन जाएगी/
उसके तेवर पहचानो/सँभालो परु ाने जेवर/
थान के थान पSरधान/नंगेपन पर उतरकर/
पुbष के सव0-व को नकार कर/नीचा (दखाएगी।
डॉ0 सुशीला टाकभौरे क> इन पंिaतय म7 नार< व
ोह का -वर सन
ु ाई पड़ता
है। यह तेवर (ह द< द लत कवता क> पहचान है । द लत कवता ने अ धकार से
लड़ते हुए जुगनू के समान अपने भीतर असं[य सय ू e को ज म (दया है जो उसक>
अ भZयिaत को शिaत दे ता है। ‘‘सय
ू ,0 रोशनी, Aकाश, रात-(दन, Lवालामख
ु ी, सम

ु ,
तफ
ू ान द लत कवता म7 शmद-भर नह<ं है बिlक ये आवेगपण
ू 0 अनुभव क>
अ भZयिaत हY।''
द लत कवता म7 राजनी#तक Fब5ब भी गहरे सरोकार से जुड़े हY। राजनी#तक
Aपंच भय उ)प न करते हY। मोहनदास नै मशराय क> कवता म7 सशaत
अ भZयिaत द लत कवता को एक नया आयाम दे ती है -
उनका शोर सन
ु कर/माताओं के -तन मँह
ु म7 डाले/बVचे च‡क उठते हY/पता
खड़क> पकड़ते हY/साँकल, सटकनी, चैक करते/ कमजोर दरवाज को
छूकर/उनक> ताकत का अहसास करते हY/कु)त ्◌ो सतक0 हो उठते हY/और
आदमी/ अपने-अपने भुतहा-कटघर म7/अपनी धड़कन को ह</सुनने का Aयास
करते हY।
अपने व
ोह< और आdनेय शmद म7 लपटे हुए Fब5ब उस आजाद< के लए
हY िजसम7 करोड़ द लत आज भी गुलाम हY। सी0बी0 भारती क> कवता म7 यह
Fब5ब अपनी आqोशपण
ू 0 अ भZयिaत से Aभावत करता है-
तुमने जी है गुलामी/क>ड़े-मकोड़ से बदतर िज दगी/छ†जती इLजत/Fबखरते
स5मान/
लुटती बहन बे(टय क> आब]/तुमने भोगी है /भोगी है!!
Fब5ब के Aयोग को लेकर सा(ह)य म7 आम सहमत नह<ं है और (ह द<
कवता म7 Fब5ब को लेकर हमेशा एक वpम रहा है । कवता म7 Fब5ब सिृ Bट का
मह))वपण
ू 0 एवं व शBट -थान मानने वाल क> कमी नह<ं है । केदारनाथ संह का
मानना है ◌ः ‘Aाचीन काZय म7 जो -थान चSर= का था, आज क> कवता म7 वह<
-थान Fब5ब अथवा इमेज का है ।'
धम0, दश0न और पौरा णक मथक क> पन
ु Zया0[या द लत कवताओं क> म[
ु य
वश ्◌ोषता है-‘शायद आप जानते ह'-इस कवता म7 (ह द ू दश0न क> उन मा यताओं
पर Aहार 9कया गया है , जो सम-त मानव क> ह< नह<ं जीव मा= क> आ)मा को
मानती है और ‘चूड़े' तथा ‘चमार' से अ-पKृ यता का Zयवहार करती है । इस पर
(टjपणी करते हुए कव लखता है-
‘‘तु5हारे रचे शmद/डस7गे सांप बनकर/गंगा 9कनारे कोई वटव
ृ ढंू ◌़ढ़ लो/कर
लो भागवत का पाठ/आ)मतिु Bट के लए/कह<ं अकाल म)ृ यु के बाद/भयभीत
आ)मा/भटकते-भटकते, 9कसी कु)त ्◌ो या सुअर क> मत
ृ दे ह म7 /Aवेश न कर जाए/या
9फर पुनज0 म क> लालसा म7/9कसी डोम या चूड़े के घर, पैदा न हो जाए, चूड़े या
डोम क> आ)मा/wxम का अंश aय नह<ं है/मY नह<ं जानता/शायद आप जानते ह।''
छ लत कव परु ातन और पौरा णक मथक के Qवारा व
ोह और
वरोधा)मक -वर को अ भZयaत दे ता हुआ लखता है -
अँधेरे क> गहन गुफा को/घाव सहने दो/
जाओ
ोण जाओ/दद0 को हSरयाने दो/
एकलZय मY पहले था/आज भी हूँ
अब जान गया हूँ/अँगूठा दान aय माँगते हो?
डॉ0 दयान द बटोह< क> इस कवता ‘
ोणाचाय0 सुन7 ◌ः उनक> पर5पराएँ सन
ु े'
म7 एकलZय क> पीड़ा को अतीत से लेकर वत0मान म7 जोड़ा है, जहाँ आज भी शा
सं-थान म7
ोणाचाय0 क> पर5परा के वाहक अनेक एकलZय क> A#तभाओं को
त-वत कर रहे हY। द लत सा(ह)यकार पौरा णक मथक को तोड़कर शा-=ी
Aतीक को नकारते हुए उ ह7 बेनकाब करके उनके सच को उजागर करता है । द लत
सा(ह)य क> कवता....म7 परु ाने मथक एवं Aतीक को तोड़कर नया अथ0 दे ने क>
A9qया एक मुखर Aविृ )त है । डॉ0 रम णका गुjता का मानना है 9क ये शा-=ीय
मथक के झूठ को सवणe के जातीय अहम ् को गौरवाि वत करने के लए गढ़े गए
Aतीक और मथक के #त ल-म को तोड़कर, झूठ-को झूठ कहकर उनके चम)कार
को ख)म नह<ं करता, बिlक साथ ह< साथ वह उ ह7 नया अथ0, नई पSरभाषा दे ते भी
चलता है । ये Aविृ )त ऐसे नये समाज के #नमा0ण करने म7 सहायक हो रह< है जो
भारतीय मान सकता क> जड़ता और कु{ठा को तोड़े और जहाँ कोई यु$धिBठर जुए
म7 प)नी को हारकर धम0 राज न कहलाए। जहाँ कोई गुb एकलZय का अँगूठा
कटाकर भी गुb बना रह सके, जहाँ प)नी-)वaता, शंबूक-हं ता, बाल<-छलता राम,
मया0दा पb
ु षो)म नह<ं कहलाएं।
द लत रचनाओं म7 मथक कथाएं, जातक कथाएँ, द लत जीवन क> पीड़ाओं
का $च=ण करती हY। उनके व
ोह, वोभ क> भावनाओं, अि-मता क> तलाश,
अि-त)व के लए जूझते सरोकार को रे खां9कत करती हY।
द लत कवय ने ऐ#तहा सक, पौरा णक मथक के Qवारा द लत जीवन क>
वसंग#तय और सामािजक स दभe क> वा-तवकता को रे खां9कत 9कया है, कण0,
एकलZय, श5बूक, सीता द लत क> िजजीवषा और व
ोह के Aतीक बन गए हY।
रामायण, महाभारत म7 अनेक मथक के Qवारा द लत जीवन क> दाहक ि-थ#तय
को उभारा गया है ।
श5बूक, तु5हारा रaत जमीन के अ दर/समा गया है,/जो 9कसी भी
(दन/फूटकर बाहर आएगा/Lवालामख
ु ी बनकर। (‘स(दय का संताप' से)।
इसी तरह कव ोभ Zयaत करता हुआ कहता है -
धरती और आकाश के बीच/टूटकर $गरता है कोई न=/अँधेर< रात म7/9कसी
कण0 क> सस9कयाँ/]ँध-]ँध जाती हY/श5बूक क> अ भशjत ह)या/ और एकलZय
के साथ/9कए गए छल को साथ लये/मेर< पीढ़</जंगल, पहाड़, न(दय और नाल
म7/खोज रह< है/गत और वगत के बीच क> मौन शलाएँ।
उपरोaत उदाहरण के Qवारा -पBट होता है 9क ‘‘पार5पSरक मा यताओं और
आदशe से भ न द लत सा(ह)य ने अपना रा-ता चुना है । पौरा णक आदश0 पा=
उसे नायक नह<ं लगते। अपने चSर= के दोहरे मापदं ड को बार<क> से वKलेषत कर
द लत रचनाकार उनके दस
ू रे ]प को उजागर करता है । नायक को खलनायक म7
पSरव#त0त करके द लत लेखक 9कसी बदले क> भावना का A#तकार नह<ं करता है ,
बिlक जीवन-मl
ू य म7 #छपी वसंग#तय पर Aहार करता है । उसक> भाषा ज(टल
संरचना के साथ उन ि-थ#तय को उभारती है जो मनBु य का शोषण कर उसे
दासता क> ओर ले जाती हY। ‘रामायण' और ‘महाभारत' के अनेक पा= ने द लत
रचना◌ाकार का Wयान खींचा है । द लत सा(ह)य म7 कण0, एकलZय, श5बूक
नायक)व Aाjत कर चक
ु े हY। उनक> सोच एवं JिBट ने ऐसे अनेक अWयाय को
खँगाला है, जो भारतीय जनमानस को हजार साल से Aभावत करते रहे हY। इन
मा यताओं के आधार पर पा= का पन
ु ग0ठन भी एक अलग A9qया है जो Aच लत
सौ दय0शा-= क> मा यताओं को वखंuडत करती है ।''
द लत कवता के 9कतने ह< रं ग-]प हY। इसम7 ओज है । वचार क> -पBटता,
अनुभव क> Aामा णकता, संवेदना क> पारद श0ता, अ भZयिaत क> सहजता और नये
मजाज के कारण द लत कवता को नयी पहचान दे रह< है। इस क> कवता म7
वचार, संवेदना और शlप-वधान से उजागर होता है 9क वे अपने मंतZय सामा य
जन तक स5Aेषत करना चाहती है। उनक> कवता म7 वश ्◌ोष तेवर और तlखी
है। उनक> सा(ह)य क> अ$धकांश कवताएँ सोsेKय लखी गयी हY। वे जीवन के
व भ न कगार को छूती हुई Aवा(हत होती हY। इस लए आज क> कवता का
पSरJKय व-तत
ृ है ।
(ह द< द लत सा(ह)य अपने पहले चरण म7 है, इस लए अभी उससे पSरपaव
शlप क> अपेा नह<ं क> जा सकती है। िजन वQवान को यह कमजोर< (दखाई
दे ती है, वह द लत सा(ह)य का कम उनका अपना JिBटकोण अ$धक है। ‘‘द लत
सा(ह)य का शmद सौ दय0 Aहार म7 है , स5मोहन म7 नह<ं। वह समाज और सा(ह)य
म7 शतािmदय से चल< आ रह< सड़ी-गल< पर5पराओं पर बेददŒ से चोट करता है।
वह शोषण और अ)याचार के बीच हतास जीवन जीने वाले द लत को लड़ना
सखाता है ।''
(ह द< द लत कवता क> काZयभाषा और शlप-वHान पर चचा0 करने का
अभी समय नह<ं आया है । अभी तो धारा पहाड़ से उतर रह< है -परू े आवेग से। बाढ़
क> ि-थ#त है -पानी मटमैला है । यह उsान Aवहनशीलता क> पहचान है । वह सबकुछ
बहाकर ले जाएगी अपने साथ। तब वह सड़ेगी, गलेगी, 9फर $थरायगी, मvट< नीचे
बैठेगी, नयी उव0राशिaत आएगी; नया जीवन ]प लेगा। तब कवता क> ]प-रचना
क> $चंता करने का समय आएगा। अभी तो हाहाकार कवता क> भ ू मका म7 है ।
द लत कव भी कवता क> यांF=क> को त)काल जाने-अनजाने नकारता है ।
स5भवतः इस लए 9क इनका पहला जोर अपनी बात को खुले शmद म7 परू < शिaत
के साथ कहने म7 है , उसे साज-संवार म7 नह<ं। ये ]प-रचना के A#त थोड़े लापरवाह
हY। बावजूद इसके इनक> कवता का ]प-प इतना कमजोर या उपेणीय नह<ं है।
संवेदना अ भZयिaत के qम म7 अपने साथ भाषा और ]प-रचना के सारे औजार
लेकर आती है। इन कवय क> कवताओं म7 भी ]प-वधान के सारे त)व आ गये
हY।
द लत (ह द< कवताएँ आqोश और आवेश क> कवताएँ हY। aया यह< कारण
नह<ं है 9क ये 9कसी सीमा या ब ध ्◌ान के A#त बेपरवाह हY। कगार के बीच बहने
वाल<, उ ह7 -वीकार करने वाल< से कवताएँ नह<ं है। ये तो कगार का तोड़ने वाल<
उ|pांत कवताएँ हY। ये खरु दरु < कवताएँ है। मा#नए तो खरु दरु ापन ह< इनका शlप
है। ये Fबना धोयी-पछोड़ी कवताएँ हY। -वाभावक है 9क कवता के तथाक$थत
स5pांत पाठक क> b$च-बोध म7 9कर9कर< पैदा कर7 गी। उनके सौ दय0बोध क> उपेा
कर7 गी। शg
ु कवता क> JिBट से ये कवताएँ भले ह< कमजोर मानी जाएं 9क तु
अपने उsेKय म7 परू < तरह सफल हY। ये अपने लkयबेध म7 त#नक भी चूक नह<ं
करती। यह इनका आप|धम0 है । ये कवताएँ रोग नह<ं, उसे लण का संकेत करती
हY। ये अपने समय क> ‘रडार' हY, िजनम7 आस न व-फोट A#तFबि5बत हो रहा है ।
द लत कवय क> भाषा 9कसी क> मह
ु ताज नह<ं है। इन कवय का वKवास
है 9क ये कवताएँ िज दा रह7 गी तो अपने वैचाSरक सरोकार के कारण। यह सह<
हY। वे जानते हY 9क भाषा अ भZयिaत का माWयम है । वे िजस भाषा का Aयोग
करते हY उसके माWयम से अपनी बात7, अपने वचार, अपना संदेश, ोभ, qोध, राग-
वराग, पीड़ा सब कुछ स5Aेषत करने म7 समथ0 हY। वे आqोश क> भाषा का Aयोग
करते हY, तो भाषा का आqोश भी दे खने म7 आता है । वे ऐसी भावना का Aयोग भी
करते हY, िजसम7 कुछ लोग को ऐतराज भी हो सकता है तथा उनके मन म7 जुगुjसा
भी पैदा हो सकती है , 9क तु ऐसी भाषा अकारण नह<ं आती। इसका कोई-न-कोई
ता9क0क स दभ0 होता है । इस AKन पर म

ु ारास लखते हY ◌ः ‘अaसर यह AKन


भी उठता है 9क द लत रचनाएँ गुणव)ता क> JिBट से कमजोर हY। आ खर यह
गुणव)ता है aया? और हमेशा उस गुणव)ता का धा म0क #नBठा के साथ पालन
9कया गया है । छ द इस गुणव)ता का अ#नवाय0 त)व था पर आध#ु नक कवता ने
इसे छोड़ (दया। िजस अलंकार #नभ0रता ने र<#त सा(ह)य क> गण
ु ा)मकता के मानक
-थापत 9कए थे, अलंकारध म0ता के वत0मान सा(ह)य म7 कहाँ दे खा जाएगा? इस
सद< के शु] म7 खड़ी बोल< का कवता के लए घोर अनुपयुaत माना जाता था पर
आज कवता खड़ी बोल< म7 ह< लखी जाती है।' आगे वे कहते हैः◌ं ‘दरअसल कोई
भी नया कrय अपने पव
ू 0 क> वचार पर5परा से व
ोह करता है । उतनी सीमा तक
पर5परा के सौ दय0बोध स5ब धी मl
ू य को भी तोड़ता है । वह अपनी भाषा,
अलंकारशा-= और अपना छ द-त = बनाता है । कबीर ने यह< 9कया था। उ हने
सं-कृत का Aयोग भी नह<ं 9कया था और त)काल<न सवण0 कrय क> अवधी और
ƒज को भी -वीकार नह<ं 9कया था। उ हने िजस भाषा का आवBकार 9कया था,
वह दे श के बहुसं[यक गैर सा(हि)यक समाज के बोध क> भाषा थी। इसी लए
माF=क छ द का -व]प भी उनका अपना था।'
द लत सा(ह)य ने अपने लए सहज, सरल और आम बोलचाल क> भाषा को
अपनाया है । द लत सा(ह)यकार को आलोचक क> उदासीनता से परे शान नह<ं होना
चा(हए। (ह द< म7 आलोचना क> ि-थ#त वैसे भी बहुत अVछ† नह<ं है aय9क वह
खेम म7 बंट< हुई है । जो अपने खेमे का रचनाकार है , वह RेBठ तथा जो अपने खेमे
का रचनाकार नह<ं है, वह या तो रचनाकार है ह< नह<ं, य(द है तो #नकृBट को(ट का।
ऐसी ि-थ#त म7 कोई आलोचक द लत लेखक क> कृ#तय पर लखेगा, इसक> कतई
उ5मीद नह<ं है ।
(ह द< के द लत कव कबीर क> तरह ‘‘म स कागद छुयो न(हं, कलम ग‚यो
न(हं हाथ'' वाल< ि-थ#त म7 नह<ं है । इनम7 अ$धकांश उVच शा Aाjत AाWयापक एवं
अ$धकार< हY। उ हने अपनी कवताओं म7 Fब5ब, Aतीक, संकेत, वश ्◌ोषण, वपय0य
और मथक का िजतना और जैसा Aयोग 9कया है वे उनके अधीन होने का साkय
दे ते हY। द लत कवता Aतीक के माWयम से अ$धक अथ0 संवहन करती है । इसम7
शोषण क> ऐ#तहा सकता और पर5परा भी -पBट होती है। द लत कव Aतीको और
मथक का कारगर और Aयोजन के अनु]प Aयोग करते हY। आमतौर पर ये Aतीक
कवय Qवारा बार-बार Aयुaत हुए है ः◌ं श5बूक, राम, सीता, एकलZय, Aभrयु, -पाav0
स, Qयुपतर,
ोणाचाय0, कृBण, अज0न
ु , अ भम यु, तक, नाग, पBु य म=, पंताQयाQय,
वह

थ, शशांक, जयच
, रै दास, कबीर, काल<दास, बो$धव
ृ आ(द। ‘‘द लत कवता म7
Fब5ब द लत जीवन क> =ासद< और उनके यथाथ0 को Zयaत करते हY। द लत
कवता म7 अँधेरा, आसपास के पSरवेश म7 ग दगी क> सड़ाँध, सीलन भरे तंग मकान
म7 ससकती िज दगी द लत जीवन के यथाथ0हY जो उनके जीवन का अवभाLय
घटक बन गए हY। उन व-तुओं को JKय Fब5ब के -थान पर रखकर द लत कव
ु ं म7 अपने जीवन के A#तFब5ब ढू◌ँ़ ढ़ता है ।
उ ह<ं व-तओ

द लत कवय क> कवता म7 उनक> Zयिaतगत पीड़ा के साथ-साथ


जीवन के अनेक घात-A#तघात मौजूद हY, जो शmद के माWयम ये Lवालामख
ु ी के
लावा क> तरह एक तीƒ आवेग एवं गमा0हट के साथ जनमानस म7 अपना असर
तेजी से कर रहा है । कवता के इस Aवाह को बनाये रखने के लए आज इन
लेखक के अपने A#तमान एवं बनाये गये मानवतावाद< सgा त को शsत के
साथ अमल म7 लाना होगा तभी मुsत से हो रहे शोषण से मुठभेड़ करने क> ि-थ#त
म7 हगे। बजरं ग Fबहार< #तवार< के शmद म7 कह7 तो- ‘‘द लत कव का दःुख वत0मन
का होते हुए भी वत0मान का नह<ं है। अतीत से सं$चत अपने समद
ु ाय क> वेदना का
बोझ उसके िज5मे है , दख
ु भरा अतीत उसका पीछा नह<ं छोड़ता। ऐसे अतीत से
मa
ु त होने के लए उससे मुठभेड़ करना होता है, नजर अ दाज करना नह<ं, द लत
कवताओं म7 अतीत बार-बार आता है । कभी Zयिaत के ]प म7 कभी मानव या
वचार-समV
ु चय के ]प म7। अतीत का अवलोकन, पन
ु रावलोकन, पन
ु Zया0[या लगातार
चलती रहती है। यह सब अतीत से छुटकारा पाने क> तरक>ब7 हY, (दaकत तब होती
है, जब द लत कव अपनी संघष0 चेतना का इ-तेमाल पौरा णक मथक, धा म0क
आ[यान को उलट दे ने का काम, इ#तहास को बदल दे ने का pम रचता है । इस
pम म7 उलझ जाने पर कव उ ह<ं, शतe, #नयम, मया0दाओं का आ)मसातीकरण कर
लेता है, िजनके वbg लड़ने का संकlप लेकर वह चला था।''

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .


श ्◌ौ णक ग#तव$धय से जड़
ु े यव
ु ा सा(ह)यकार डाँ वीरे
संह यादव ने
सा(हि)यक, सां-कृ#तक, धा म0क0, राजनी#तक, सामािजक तथा पया0वरण3य सम-याओं से
स5बि धत ग#तव$धय को के
म7 रखकर अपना सज
ृ न 9कया है । इसके साथ ह<
आपने द लत वमश0 के े= म7 ‘द लत वकासवाद ' क> अवधारणा को -थापत कर उनके
सामािजक,आ$थ0क वकास का माग0 भी Aश-त 9कया है । आपके सैकड़ लेख का Aकाशन राBCर<य एवं
अंतरा0BE<य -तर क> -तर<य पF=काओं म7 हो चक
ु ा है। आपम7 AHा एवम ृ A#तभा का अJभत
ु सामंज-य है ।
द लत वमश0, -=ी वमश0, राBEभाषा (ह द< एवम ृ पया0वरण म7 अनेक प-
ु तक क> रचना कर चक
ु े डाँ
वीरे
ने वKव क> Lवलंत सम-या पया0वरण को शोधपरक ढं ग से A-तत
ु 9कया है। राBEभाषा महासंघ
म5
ु बई, राजमहल चौक कवधा0 Qवारा -व0 Rी हSर ठाकुर -म#ृ त परु -कार, बाबा साहब डाँ0 भीमराव
अ5बेडकर फेलो शप स5मान 2006, सा(ह)य वाSर$ध मानदोपा$ध एवं #नराला स5मान 2008 स(हत अनेक
स5मानो से उ ह7 अलंकृत 9कया जा चक
ु ा है । वत0मान म7 आप भारतीय उVच शा अWययन सं-थान
राBEप#त #नवास, शमला ((ह0A0) म7 नई आ◌ा$थ0क नी#त एवं द लत के सम चन
ु ौ#तयाँ (2008-11) वषय
पर तीन वष0 के लए एसो सयेट हY।

वत)मान सदभO म5 दलत साह?य क दशा-दशा एवं अय


सामािजक सरोकार

डॉ. वीरे & संह यादव

सा(ह)य क> म[
ु यधारा म7 अब तक द लत सा(ह)य क> भ ू मका को
सा(ह)यकार -वीकार नह<ं कर पाये, यानी द लत सा(ह)य क> भ ू मका को मा यता
नह<ं द< गयी। जब9क द लत सा(ह)य ने म[
ु यधारा के (ह द< सा(ह)य म7 पया0jत
वृ g क> है ।
(ह द< के वQवान मनीषय एवं $चंतक का मानना है 9क द लत सा(ह)य
क> व$धवत शुbआत मराठ† द लत सा(ह)य से हुई है । पछड़ेपन क> मान सकता
और उVच जा#त क> मान सकता वाले सा(ह)यकार द लत सा(ह)य को पचा नह<ं पा
रहे हY। वो तो उसे सा(ह)य मानते ह<ं नह<ं, ले9कन द लत शिaतय के उभार और
उनके दबदबे के कारण वे अब द लत सा(ह)य क> भ ू मका को -वीकार करने लगे
हY। द लत सा(ह)य से ता)पय0 पSरवत0न, संघष0 का सा(ह)य है। द लत सा(ह)यकार
अतीत के A#त व
ोह एवं आqोश के साथ रचना)मक पSरवत0न चाहता है वह
ब धु)व का हामी है वह संयुaत है, वह बंधन एवं शोषण मa
ु त -व-थ समाज
चाहता है।
आजाद< के इन इaसठ वषe म7 दे श के 9कसी भी राLय म7 द लत का वच0-व
कायम नह<ं हो सका। ले9कन आज भी दे श म7 उVच जा#त क> मान सकता,
साम तशाह< और पर5परावाद< लोग का दबदबा जार< है। सवाल उठता है 9क
द लत, गर<ब और आम जनता का वच0-व aय नह<ं कायम हो सकता? इसके पीछे
#छपे कारण -पBट हY 9क भारत म7 Aजातं= है, लोकतं= नह<ं है। स)ता म7 बैठे लोग
या राजनी#तक दल ऐसा नह<ं चाहते हY और अपना वच0-व कायम रखना चाहते हY।
य(द द लत और आम जनता का स)ता एवं सा(ह)य म7 वच0-व कायम हो जाता है
तो उ ह7 कौन पछ
ू े गा?
द लत सा(ह)य aया है ? इस पर द लत सा(ह)यकार, वचारक, लेखक सभी
एक मत नह<ं हY, (ह द< का द लत सा(ह)य सबसे अ$धक ववादा-पद और च$च0त
रहा है । ऐसा aय? डॉ0 रम णका गुjत के अनुसार जो ववादा-पद होगा, वह च$च0त
तो होगा ह<, पहल< बात तो द लत म7 आ दोलन के फल-व]प उसके भीतर
अ भZयिaत क> धार फूट<, वो जो बोलना ह< नह<ं जानता था, उसने बोलना शु]
9कया, आ(दवासी आज भी उस ि-थ#त म7 नह<ं हY, इसका कारण द लत के पास नह<ं
था, वे भौगो लक पSरि-थ#तय के कारण अलग-अलग मs
ु  और े= म7 लड़ते रहे ।
कुछ सा(ह)यकार ऐसे हY जो द लत जा#तगत समद
ु ाय के उ)थान और पतन के
इ#तहास को द लत सा(ह)य मानते हY। सव0मा य द लत सा(ह)य संघषe, पSरवत0न
के उस सा(ह)य का◌े सा(ह)य मानते हY। िजसका दलन हुआ हो- उ)पीड़न हुआ हो,
उनके सा(ह)य को द लत सा(ह)य माना जाता है । इसी के साथ सामािजक A#तBठा
िजस जा#त, समद
ु ाय एवं समाज क> न हो, उसे द लत सा(ह)य म7 रखा जाता है।
द लत सा(ह)य का वत0मान पSरवेश म7 बड़ा Zयापक े= बनता जा रहा है।
द लत सा(ह)य पछले दो दशक म7 Aमुख सा(हि)यक आ दोलन के ]प म7
वक सत हुआ है जो डरवन स5मेलन के पKचात सा(ह)य म7 नये-नये वभेदक
दशाओं, शोषण सवग0, वभेदक को सू$चत करने म7 सम हुआ है । इसके सरोकार
सामािजक हY। द लत $चंतन अपना नया आधार आध#ु नक समानतावाद< वचारधारा
म7 पाता है । द लत वमश0 इन सभी Aयास का एकजुट करने का नाम है । द लत
$चंतक ने राLय, Zयव-था, सरकार के वभेदकार< तर<क को भी आलोचना के घेरे
म7 लया है । कोई माने या न माने, मेरे वचार म7 आज का द लत सा(ह)य कला
और वHान दोन है ।
द लत सा(ह)य वHान के ]प म7 Zयवि-थत qमबg Hान को Zयaत
करता है । आज द लत सा(ह)य म7 िजHासा-खोजबीन के बढ़ते Aभाव े= को
झुठलाया नह<ं जा सकता और यह सा(ह)य जनआंदोलन, पSरवत0न और संघष0 के
सौ दय0शा-= को कला के ]प म7 -वीकार 9कया जाने लगा है, जैसे कांटे नुक>ले होते
हY, चुभन दद0नाक होती है , 9फर भी द लत $च तक इसम7 सौ दय0 कला को ढ़ंू ढ़
#नकालते हY ऐसे म7 सा(ह)य क> पSरभाषा म7 यह कला और वHान दोन ह< है ।
वत0मान म7 द लत सा(ह)य िजस तीƒ ग#त से अपना Aभाव े= बढ़ाता जा रहा है
उसको दे खते हुए (ह द< सा(ह)य म7 द लत सा(ह)य अब अलग नह<ं है और (ह द<
क> म[
ु यधारा का अ भ न अंग हो गया है, जो आने वाले समय म7 ह< जन
आंदोलन, पSरवत0न, संघषe क> एक नई दशा-(दशा तय करे गा।

सपक) -व*र+ठ व-ता, हद .वभाग

डी. वी. कालेज, उरई (जालौन) 285001 उ. .

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