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मै मधय पदेश आमडर पुिलस, ग्वािलयर में नौकरी करता हूँ। रात क ेसमय मै अपनी बन्दूक लेक र जा रहा
था, तभी गोरा घाट थाने के नजदीक हजरत रावत िसंह, मेघिसंह रावत, वीरेनद रावत (तीन डकैत) अचानक टकरा गये।
इन डक ैतों को ढू ँढन े वाले 50 हजार रपये का इनाम भारत सरकार ने घोिषत िकया था। उनहोने मेरे ऊपर अपनी
क े िलए
बनदूक तानते हुए कहाः "बनदूक हमे दे दे अनयथा गोली मार देगे।" वे लोग मेरी बनदूक लेकर चले गये। मैने थाने मे िरपोटर
दजर करायी। उसके बाद पूजय गुरदेव संत शी आसाराम जी बापू गवािलयर आशम मे पधारे। तब मैने उनहे सारी बात बतायी
व पाथरना की। पूजय बापू जी ने कहाः "िमल जायेगी" और उसके बाद शीघ ही हजरत रावत िसंह पुिलस मुठभेड मे मारा
गया। उसके मरते ही उसका एक साथी िजस पर 15 हजार का इनाम था (समर जातव), मेरी बनदूक लेकर
थानेमेहं ािजरहोगया। मैंनग ेवािल
् यरसेन्टर्लजेलमेउ ं ससेपूछाः"मेरी बनदूक लेकर तुम हािजर कयो हुए ?" उसने कहाः
"पहले आप यह बताइये िक आपके घर मे सफेद दाढी, सफेद कपडे वाले बाबा कौन है ?" तभी उसने मेरे गले मे बापू जी के
िचतर्वाला लॉक ेट देखक र "कहा िक जी मेरे सपने मे आकर बार-बार कह रहे थे िक 'मेरे बचचे की बनदूक वापस
यही बाबा
कर दे, अनयथा मारा जायेगा।' और मेरी िपटाई भी करते थे।"
पूजय शी की कृपा से ही ऐसे डकैतो के हाथ गयी हुई मेरी बनदूक वापस आ गयी है। मै पूजय बापू जी को कोिट-
कोिट पणाम करता हूँ।
अशोक पिरहार, डी-2, टकसाल सकूल के सामने ,
लशकर, ग्वािलयर (मधय पदेश) दूरभाष 09424507724
ऋिष पर्साद, अंक 164, अगसत 2006, पृष संखया 32
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