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Battakh
Battakh
कहानी
अपनी-
अपनी-अपनी उड़ान
- कमल
सदी के ूारं भ म यािन िक पंिह नवंबर दो हज़ार पाँच के वष$ भगवान िबरसा मुंड ा का
ज *मिदन मनाते हए
ु हमारे गणतंऽ म एक नये रा.य का उदय हआ।
ु उसके कुछ बरस
बाद की बात है । अब तारीख तो ठीक-ठीक याद नहीं लेिकन िज स िदन उस रा.य की
राज धानी (िबकेिटया भाषा म छोटे -से शहर) के =ौनी ने चौके और छ@के लगाते हए
ु ,
अपने अकेले दम पर पािकःतान को एक िदनी िबकेट मैच म हराया था। अरे भई,
पािकःतान को हराया था, िज Dबाबवे को नहीं! ठीक उसके अगले िदन मुFयमंऽी के चुनाव
Gेऽ म सुगना की बतख-सेये अंड H को अपनी न*हीं-न*हीं, पीले रं ग की चHच से फोड़ कर
वह बJचा भी अपने भाई-बहनH के साथ बाहर आया था। बाकी सब बJचH के शरीर पर
कहीं न कहीं भूरे-कLथे रं ग के =Mबे थे, लेिकन उसका पूरा शरीर दध
ू की तरह उज ला था।
वह खािसयत उसे सबसे अलग करती थी।
ज ब सुगना का हम-उॆ माधो मुंड ा उसके बड़े भाई की शादी म शािमल होने खरसांवा से
िसंगपुकुिरया उनके घर आया तो वह भी उस बतख पर मोिहत हए
ु िबना न रहा। वह
बतख भी ज ब उन दोनH को एक साथ दे खती तो अपना झुंड छोड़ उनके पास आ ज ाती।
उनके हाथH-पैरH पर अपनी पीली चHच बड़ी मुलायिमयत से रगड़ती, प...प करती रहती।
‘‘@या यह बतख मेरी है ?'' ूस*नता से उसका चेहरा िखल कर गुलाब हो रहा था। Yयारी
बतख पा कर उसके चेहरे पर एक आकष$क और सज ीव खुशी फैल गई। घर पर भी सब
लोग इस सौगात को बहत
ु पसंद कर गे, उसने सोचा।
ूस*निच[ माधो मुंड ा पीली चHच वाली नम$-नाज ुक सफेद बतख को अपनी बांहH म समेटे
चल िदया। उसे ःटे शन तक छोड़ने के िलए सुगना भी उसके साथ हो िलया। ःटे शन पर
भीड़ और उमस वाली गम\ दोनH बहत
ु .यादा थे। तभी धड़धड़ाती हई
ु ‘गुवा-टाटा पैसज र'
िसंगपुकुिरया के उस छोटे से Yलेटफॉम$ पर आ लगी। कुछ समय पहले तक Yलेटफॉम$ पर
इधर-उधर फैले लोगH की भगदड़ टे ◌्रन `कते ही िडMबH के दरवाज H पर िसमट गई। भीड़
के कारण हर कोई ज Wदी से ज Wदी भीतर घुस कर अपने बैठने का ज ुगाड़ कर लेना
चाहता था। कभी ऐसा होता िक उतरने वाले और चढ़ने वाले याऽी दरवाज े म फंस ज ाते
और तब, ‘...पीछे हटो, उतरने दोगे तब ही न चढ़ पाओगे।' ‘...हटो उतरने दो, पहले' ज ैसे
वा@य
हवा म उलझने लगते। थोड़ी धकम-पेल होती और उतरने वाला याऽी नीचे आ ज ाता। कुछ
लोग िखड़िकयH की राह अपना Pमाल, बैग व अखबार आिद अंदर फक कर अपनी सीट
आरिGत करने म लगे हए
ु थे। उसी हलचल म िकसी तरह माधो मुंड ा भी अपने िलए
ज गह बना कर डMबे म घुस आया। इस बम म एक-दो बार बतख ने भी प...प कर के
अपनी उपिःथित दज $ करा दी।
उस सीट पर पहले ही पाँच लोग बैठे थे। एक और वह भी उस मोटे ज ैसे के िलए वहां
कोई ज गह िनकलना असंभव-सा था। माधो ने उसे ऊपर से नीचे तक दे खा, इतने मोटे
आदमी को ज़रा-सी ज गह से @या होगा, उसने सोचा। मगर बोला कुछ नहीं और ज़रा-सा
सरक गया। लोग-बाग धीरे -=ीरे dयविःथत होने लगे थे। एक तरफ आमने-सामने बैठे चार
यािऽयH ने अपनी ज ांघH म लपेट कर गमछा तान िलया था, ज ो अब उनके बीच एक टे बल
ज ैसा लग रहा था और उस पर ताश की बाज ी ‘fवटी नाईन' ज म चुकी थी। िज स पर
िगरते गुलाम, नहले, दहले और इ@के के प[े खेलने वालH के साथ-साथ दे खने वालH की
भी उ[ेज ना बढ़ा रहे थे। मूंगफली वाला ‘टाइम-पास, टाइम-पास' बोल कर अपनी मूंगफली
बेच रहा था।
‘‘एं...एं कैसे बैठ रहे हg । ज़रा दे ख कर नहीं बैठ सकते?'' वह बोल पड़ा।
माधो ने ूितवाद िकया, ‘‘थैला तो मgने अपनी गोद म रखा है , इसे नीचे रख दे ने से ज गह
कैसे बन ज ाएगी? इसम बतख है , इसे नीचे नहीं रख सकता।''
माधो मुंड ा को वह आदमी अJछा नहीं लगा था, लेिकन िफर उसके मन म आया िक उसे
अपनी सुंदर बतख िदखा कर पछाड़ दे । उसने अपने थैले का मुंह खोल कर बतख
िदखायी। वह बतख पहली ही नज़र म dयापारी का मन मोह गयी। उसने अनुमान लगाया,
वह आकष$क और ःवःथ बतख कम से कम सौ `पयH की थी। उसकी dयापारी बुिh ज ग
गयी।
‘‘अपनी बतख मुझे बेच दो।'' उसने अपनी इJछा ज ािहर की।
‘‘मेरी बतख है , मg बेचूं या नहीं तुDह @या? मgने नहीं बेचनी! अगर बेचनी होगी तो बाज़ार
ूं ा, वहां इसके पचास से कम नहीं िमलगे।'' इसने मुझे @या बुhू समझ रखा है , उसने
म बेचग
मन ही मन सोचा।
लेिकन मोटा dयापारी भी पीछे हटने को तैयार न था, ‘‘अJछा पचास ही ले लो। लाओ
बतख मेरी हई।
ु ''
उसकी बात सुन कर माधो चकराया, ‘‘मgने कहा न बतख िबबी के िलए नहीं है ।''
‘‘अरे , अभी तो तुमने कहा िक इसकी कीमत पचास `पये है ।'' dयापारी ने अपना दांव
चला।
‘‘अरे ...रे कहां चल िदये? अपनी बतख तो बेचते ज ाओ।'' पीछे से आ रही आवाज पर उसने
कोई
jयान नहीं िदया। िसपाही ने भी उसे पीछे से आवाज लगायी। मगर माधो तेज -तेज कदमH
से चलता रहा, उसे डर था कहीं िसपाही और dयापारी पीछे से आ कर उसकी बतख छीन
न ल।
‘‘मगर सेठ ज ी ऊ आपको बतख निहए न िदया। अगर आप बोिलये तो...'' खैनी फांकते
हए
ु िसपाही ने खुशामदी अंदाज म कहा।
‘‘छोिड़ए बतख को। बतख न सही, अपनी ज गह तो दे गया, बैिठये आराम से। आप और
हम िमल कर कुछ भी कर सकते हg । बतख @या चीज़ है ।'' मोटे आदमी ने भkदे ढं ग से
मुःकराते हए
ु कहा।
‘‘प...
् प ् परसH भी तुम बीस की ज गह दस िदया था। ऊ वाला दस और आज वाला ब...
्
ब ् बीस िमला कर पूरा त...
् त ् तीस दो।'' टी.टी. ने हकलाते हए
ु उसे िपछला बकाया याद
कराया।
‘‘यह गाड़ी तो बेिटकट यािऽयH के िलए बदनाम है । इसिलए ज ो भी नया आदमी पकड़ाता
है उससे वे अपना फाइन का कोटा पूरा कर लेते हg । इस ूकार दोनH काम हो ज ाते हg , डे ली
पैसज र से अपनी ऊपरी आमदनी और नये पैसज रH को फाईन कर अपनी lयूटी भी।''
माधो मुंड ा ने ज Wदी से िनकाल कर अपना िटकट िदखाया। बािक लोगH के िटकट भी दे ख
कर टी.टी. अभी आगे बढ़ा ही था िक माधो के थैले से बतख की आवाज आयी, प....प ।
टी.टी. उसके पास तक आ चुका था, ‘‘ऐ लड़के @या है , तुDहारे झ...
् झ ् झोले म? िदखाओ
कोई बम-वम तो नहीं ले कर ज ा रहे ?''
‘‘अरे कहीं उमवादी-फुमवादी तो नहीं हो? @या है उसम, िद...िद िदखाओ इधर?'' टी.टी.
िबWकुल उसके सर पर आ चुका था।
लेिकन इस बार माधो के ज वाब दे ने से पहले ही िफर से बतख बोल उठी, प...प।
‘‘अJछा तो ब...
् ब ् बम नहीं, ब...
् ब ् बतख है !'' टी.टी. ने हं सते हए
ु कहा साथ ही उसकी
आंखH म एक चमक भी आ गई थी।
‘‘हां, दे ख लीिज ए बतख ही है ।'' कहते हए
ु माधो ने थैले से िनकाल कर बतख िदखला दी।
उसने सोचा टी.टी. बतख दे ख कर चला ज ाएगा, लेिकन वहां तो कुछ और ही होने वाला
था।
‘‘इस बतख की f... f िटकट कहां है ?'' टी.टी. उसके सामने खड़ा हो गया।
बतख की िटकट? बतख की भी कहीं िटकट लगती है ? माधो मुंड ा सोच म पड़ गया।
‘‘ब...ब
् ् बतख िकसकी है ?'' टी.टी. की िनगाह टे ढ़ी हो गp।
‘‘तब f... f िटकट भी तुDहारे पास ही होनी चािहए न!'' टी.टी. ने अपना ज ाल कसना
शुP कर िदया।
‘‘बतख शे न म ले कर ज ाओगे तो f... f िटकट लगेगी ही। ऐसा करो िबना िटकट ले
ज ाना चाहते हो तो इसे बाहर उड़ा दो। तुम िटकट से शे न म ज ाओ और यह तुDहारे साथ
उ◌्... उ◌् उड़ते-उड़ते पहंु च ज ाएगी।'' टी.टी. ने dयंग िकया।
‘‘ब...ब
् ् बतख डMWयू टी ले कर ज ा रहे हो और कहते हो समझे नहीं?'' टी.टी. ने उसकी
िखWली उड़ायी।
‘‘मेरी िटकट तो है न! यह तो मेरे साथ ज ा रही है ।'' माधो ने भोलेपन से ज वाब िदया।
‘‘दे िखए मेरे पास तो उतने `पये नहीं हg । मg तो अपने घर लौट रहा हंू । वैसे भी मुझे पता
नहीं था िक बतख की िटकट लेनी पड़ती है और ना ही ःटे शन पर िकसी ने बताया।''
ज ेल का नाम सुन कर उसके हाथ-पैर फूलने लगे। माधो मुंड ा ने अपनी पॉकेट से बीस
`पये िनकाल कर अपनी कुल ज मा पूंज ी टी.टी. को दे नी चाही, ‘‘दे िखए मेरे पास बस इतने
ही `पये हg । वैसे भी पंिह `पये तो पूरी िटकट के बनते हg । बतख के तो साढ़े सात `पये
ही होने चािहए।''
‘‘अरे वाह, तुDहारा r...r िहसाब तो काफी अJछा है ।'' टी.टी. ने dयंग िकया, ‘‘लेिकन रे ल
तुDहारे िहसाब से नहीं अपने िनयम से चलती है ।''
‘‘तब तो मgने िटकट ली है िनयम से मुझे सीट भी िमलनी चािहए। दीिज ए मुझे बैठने की
सीट। तब मg दं ग
ू ा बतख के िलए दो सौ पgसठ `पये।''
‘‘त...त
् ् तो अब तुम मुझे न...
् न ् िनयम िसखाओगे?'' टी.टी. को गुःसा आ गया, ‘‘अगर
शे न म सीट नहीं थी, तब चढ़े @यH? पैदल चले ज ाते। रे ल िवभाग @या तुमको बुलाने घर
गया था?''
.4.
‘‘अब आये न राःते पर। अभी तक तो बड़ा िनयम कानून झाड़ रहे थे।'' टी.टी. ने शांत
होते हए
ु कहा, ‘‘चलो, एक उपाय बता दे ता हंू । अपनी बतख मुझे बेच दो। मg तुDह इसके
ू ा। इससे तुDह िटकट नहीं लेनी पड़े गी और बीस `पये भी कमा लोगे।''
बीस `पये दं ग
समाधान सुझाते टी.टी. की आंख चमक रही थीं।
@या!! पचास `पये की बतख के बीस `पये? माधो ने एक नज र अपने हाथ म पकड़ी Pई-
सी सफेद-सफेद, नमs-नाज ुक और Yयारी बतख पर डाली। उसे टी.टी. का समाधान िबWकुल
बकवास लगा।
‘‘बीस `पये तो मेरे पास भी हg , आप ही ले लीिज ए।'' उसकी आवाज म िनवेदन था।
‘‘ले लीिज ए टी.टी. साहब। ज ाने भी दीिज ए। अगर इसके पास पैसे होते तो आपको दे
दे ता।'' पास खड़े एक याऽी ने माधो का पG लेते हए
ु कहा। लेिकन माधो के इं कार के बाद
टी.टी. िकसी भी तरह िपघलता न िदखा, उWटे वह उस याऽी पर खीझ गया।
‘‘यिद आपको इतनी ही k... k दया आ रही है तो आप ही बनवा दीिज ए न इसको f...
f िटकट।'' टी.टी. का उ[र सुन कर बोलने वाला याऽी चुप हो कर पीछे िखसक गया।
‘‘िकतने लोगH से तो पैसा ले कर आपने छोड़ िदया हg । उन सबका फाइन वाला िटकट
काहे नहीं बनाये?'' माधो को भी अब टी.टी. पर गुःसा आने लगा था।
‘‘तुम हमको हमारा काम िसखाएगा। दो सौ पgसठ `पया िनकालो या िफर ज ...
् ज ् ज ेल
ज ाओ।'' टी.टी. उस पर िचWलाया।
माधो मुंड ा ने मदद के िलए चारH तरफ दे खा, लेिकन उसे िनराश ही होना पड़ा। उसकी
नज र बाहर गुज र रहे ःटे शन के नाम पर पड़ी ‘पा*सासाली'। बस और दो ःटे शनH के बाद
ही तो उसे उतरना है । िफर उसने मन ही मन कुछ सोचते हए
ु अनुमान लगाया और एक
इिLमनान-सा उसके चेहरे पर आ गया। उसने अपनी कमीज की भीतरी ज ेब टटोलते हए
ु
कहा, ‘‘ठीक है टी.टी. साहब आप बतख की िटकट बना ही दीिज ए।''
उसे यूं हिथयार डालता दे ख टी.टी. ूस*न हो गया। उसका फाईन का एक कोटा पूरा हो
रहा था। उसने अपने हाथ म थमी िटकट बुक का काब$न ठीक िकया और मोटे लसवाले
चँम से झांकते हए
ु बतख की िटकट बनाने लगा। उसने सब को सुनाते हए
ु कहा, ‘‘अब
पैसा कहां से आ गया? हमको पता है , पैसा रख कर भी तुम लोग ह.
ु ज त करते हो।''
आस-पास खड़े यािऽयH के िलए तमाशा खLम हो चुका था। टी.टी. ने िटकट बना कर
माधो मुंड ा की ओर बढ़ाई। बाहर से िडMबे म आती तेज हवा से टी.टी. के हाथH म फाइन
वाली िटकट फड़फड़ा रही थी। लेिकन माधो मुंड ा ने िटकट लेने की ज गह अपने हाथ म
थमी बतख को पुचकार कर एक बार Yयार िकया और दरवाज े से बाहर उछाल िदया।
उसका अनुमान िबWकुल सही था, वहां बाहर ‘सोना नाला' अपनी पूरी मःती म बहा ज ा रहा
था। पंख फड़फड़ाती बतख उसम ज ा उतरी।
‘‘अरे ये क् ... क् @या िकया ...?'' टी.टी. के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। अंगुिलयH म
फड़फड़ाती दो सौ पgसठ `पये के फाइन वाली िटकट उसका मुंह िचढ़ा रही थी।
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संपक$:
(कमल)