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बतख

कहानी

अपनी-
अपनी-अपनी उड़ान

- कमल

सदी के ूारं भ म यािन िक पंिह नवंबर दो हज़ार पाँच के वष$ भगवान िबरसा मुंड ा का
ज *मिदन मनाते हए
ु हमारे गणतंऽ म एक नये रा.य का उदय हआ।
ु उसके कुछ बरस
बाद की बात है । अब तारीख तो ठीक-ठीक याद नहीं लेिकन िज स िदन उस रा.य की
राज धानी (िबकेिटया भाषा म छोटे -से शहर) के =ौनी ने चौके और छ@के लगाते हए
ु ,
अपने अकेले दम पर पािकःतान को एक िदनी िबकेट मैच म हराया था। अरे भई,
पािकःतान को हराया था, िज Dबाबवे को नहीं! ठीक उसके अगले िदन मुFयमंऽी के चुनाव
Gेऽ म सुगना की बतख-सेये अंड H को अपनी न*हीं-न*हीं, पीले रं ग की चHच से फोड़ कर
वह बJचा भी अपने भाई-बहनH के साथ बाहर आया था। बाकी सब बJचH के शरीर पर
कहीं न कहीं भूरे-कLथे रं ग के =Mबे थे, लेिकन उसका पूरा शरीर दध
ू की तरह उज ला था।
वह खािसयत उसे सबसे अलग करती थी।

अपनी कGा नौ की पढ़ाई-िलखाई, यार-दोःत के साथ खेल-कूद की मःती और खाने-सोने


आिद के समय के बीच हं स-मुख सुगना उसके िलए भी काफी समय िनकाल लेता। पांच-
छः माह म ही वह बतख भी अपने भाई-बहनH के साथ पूरे Pप-यौवन म आ गई थी।
कीट-पतंगे खाती, प...प करती, वह पूरे घर म कभी इ=र तो कभी उधर डोलती रहती।

ज ब सुगना का हम-उॆ माधो मुंड ा उसके बड़े भाई की शादी म शािमल होने खरसांवा से
िसंगपुकुिरया उनके घर आया तो वह भी उस बतख पर मोिहत हए
ु िबना न रहा। वह
बतख भी ज ब उन दोनH को एक साथ दे खती तो अपना झुंड छोड़ उनके पास आ ज ाती।
उनके हाथH-पैरH पर अपनी पीली चHच बड़ी मुलायिमयत से रगड़ती, प...प करती रहती।

पूरे घर पर शादी का उWलास छाया हआ


ु था। माधो के चाचा और सुगना के िपता उस
ज ूसूकू (ूेम िववाह) से हई
ु , शादी से काफी खुश थे। उ*ह अपने बड़े बेटे की शादी के िलए
लड़की के बाप को गोनHग (दहे ज ) म गाय, खःसी, मुगा$, बोरा भर आलू-धान और 40-50
िदयांग (शराब भरी हांिडयां) आिद नहीं दे ना पड़ा था।
िज स तरह झारखंड की राज धानी राँची के धौनी को उस िदन चौके-छ@के लगा कर
पािकःतान को िबकेट-मैच हराते यह नहीं पता था िक सरकार उसे राँची म मकान बनाने
के िलए कीमती ज मीन मुXत म दे दे गी। उसी तरह चचेरे भाई की शादी म आये माधो
मुंड ा को नहीं पता था, उसे वह Yयारी बतख शादी के बाद घर ले ज ाने को उपहार म िमल
ज ाएगी। शादी का उLसवपूण$ माहौल खLम होने के बाद ज ब वह लौटने लगा तो उसकी
खुशी का िठकाना न रहा,चाची ने वह बतख उसके हाथH म पकड़ा दी।

‘‘@या यह बतख मेरी है ?'' ूस*नता से उसका चेहरा िखल कर गुलाब हो रहा था। Yयारी
बतख पा कर उसके चेहरे पर एक आकष$क और सज ीव खुशी फैल गई। घर पर भी सब
लोग इस सौगात को बहत
ु पसंद कर गे, उसने सोचा।

‘‘हां, अब यह तुDहारी है । अपने साथ इसे भी ले ज ाओ।'' चाची ने मुःकुराते हए


ु ज वाब
िदया था।

ूस*निच[ माधो मुंड ा पीली चHच वाली नम$-नाज ुक सफेद बतख को अपनी बांहH म समेटे
चल िदया। उसे ःटे शन तक छोड़ने के िलए सुगना भी उसके साथ हो िलया। ःटे शन पर
भीड़ और उमस वाली गम\ दोनH बहत
ु .यादा थे। तभी धड़धड़ाती हई
ु ‘गुवा-टाटा पैसज र'
िसंगपुकुिरया के उस छोटे से Yलेटफॉम$ पर आ लगी। कुछ समय पहले तक Yलेटफॉम$ पर
इधर-उधर फैले लोगH की भगदड़ टे ◌्रन `कते ही िडMबH के दरवाज H पर िसमट गई। भीड़
के कारण हर कोई ज Wदी से ज Wदी भीतर घुस कर अपने बैठने का ज ुगाड़ कर लेना
चाहता था। कभी ऐसा होता िक उतरने वाले और चढ़ने वाले याऽी दरवाज े म फंस ज ाते
और तब, ‘...पीछे हटो, उतरने दोगे तब ही न चढ़ पाओगे।' ‘...हटो उतरने दो, पहले' ज ैसे
वा@य

हवा म उलझने लगते। थोड़ी धकम-पेल होती और उतरने वाला याऽी नीचे आ ज ाता। कुछ
लोग िखड़िकयH की राह अपना Pमाल, बैग व अखबार आिद अंदर फक कर अपनी सीट
आरिGत करने म लगे हए
ु थे। उसी हलचल म िकसी तरह माधो मुंड ा भी अपने िलए
ज गह बना कर डMबे म घुस आया। इस बम म एक-दो बार बतख ने भी प...प कर के
अपनी उपिःथित दज $ करा दी।

भीतर घुसने पर माधो को एक ज गह सीट िमल गई। वह िनिँचंतता से बैठ गया। इं ज न


ने सीटी बज ायी। बाहर से िखड़की के पास आकर सुगना ने उसे दे खते हए
ु अपने हाथ
िहला कर िवदा ली। अभी शे न ने सरकना शु` ही िकया था िक एक dयापारीनुमा मोटे
dयि@त ने आकर उसे टहोका लगाया, ‘‘ऐ, ज़रा सीधा हो कर बैठो, मुझे भी ज गह िमल
ज ाएगी।''

उस सीट पर पहले ही पाँच लोग बैठे थे। एक और वह भी उस मोटे ज ैसे के िलए वहां
कोई ज गह िनकलना असंभव-सा था। माधो ने उसे ऊपर से नीचे तक दे खा, इतने मोटे
आदमी को ज़रा-सी ज गह से @या होगा, उसने सोचा। मगर बोला कुछ नहीं और ज़रा-सा
सरक गया। लोग-बाग धीरे -=ीरे dयविःथत होने लगे थे। एक तरफ आमने-सामने बैठे चार
यािऽयH ने अपनी ज ांघH म लपेट कर गमछा तान िलया था, ज ो अब उनके बीच एक टे बल
ज ैसा लग रहा था और उस पर ताश की बाज ी ‘fवटी नाईन' ज म चुकी थी। िज स पर
िगरते गुलाम, नहले, दहले और इ@के के प[े खेलने वालH के साथ-साथ दे खने वालH की
भी उ[ेज ना बढ़ा रहे थे। मूंगफली वाला ‘टाइम-पास, टाइम-पास' बोल कर अपनी मूंगफली
बेच रहा था।

मोटे के बैठने लायक ज गह तो नहीं बनी थी, लेिकन उसने बैठते हए


ु माधो को कुछ ऐसा
ठे ला िक वह सीट और उसके मोटे शरीर के बीच दब-सा गया।

‘‘एं...एं कैसे बैठ रहे हg । ज़रा दे ख कर नहीं बैठ सकते?'' वह बोल पड़ा।

लेिकन तब तक बैठ कर उसकी बात को नज़रअंदाज करते हए


ु उस आदमी ने कहा, ‘‘मg
तो ठीक से ही बैठा हंू , तुम ठीक से @यH नहीं बैठते? अपना थैला सीट के नीचे रख दो
ज गह हो ज ाएगी।''

माधो ने ूितवाद िकया, ‘‘थैला तो मgने अपनी गोद म रखा है , इसे नीचे रख दे ने से ज गह
कैसे बन ज ाएगी? इसम बतख है , इसे नीचे नहीं रख सकता।''

बतख की बात सुन कर उस आदमी का dयापारी मन सज ग हो गया। उसने बात-चीत का


`ख सीट से बतख की ओर मोड़ते हए
ु कहा, ‘‘ज़रा िदखाओ तो कैसी है , तुDहारी बतख?''

माधो मुंड ा को वह आदमी अJछा नहीं लगा था, लेिकन िफर उसके मन म आया िक उसे
अपनी सुंदर बतख िदखा कर पछाड़ दे । उसने अपने थैले का मुंह खोल कर बतख
िदखायी। वह बतख पहली ही नज़र म dयापारी का मन मोह गयी। उसने अनुमान लगाया,
वह आकष$क और ःवःथ बतख कम से कम सौ `पयH की थी। उसकी dयापारी बुिh ज ग
गयी।
‘‘अपनी बतख मुझे बेच दो।'' उसने अपनी इJछा ज ािहर की।

‘‘नहीं यह मेरी है मg इसे नहीं बेचग


ूं ा।'' माधो ने उसे ठ गा िदखाया। मन ही मन वह ूस*न
हो रहा था िक उसने कैसे उस मोटे को ललचा िदया है । लेिकन तब तक dयापारी भी ठान
चुका था, वह बतख नहीं छोड़े गा। उसने कहा, ‘‘यह तुDहारे िकसी काम नहीं आयेगी। इसे
ले ज ा कर तुम @या करोगे? ज बिक मg इसके अJछे दाम दं ग
ू ा। दस, बीस, तीस िकतने दं ू
बोलो?''

‘‘नहीं, मgने नहीं बेचनी।'' माधो ने टका-सा ज वाब िदया।

‘‘@यH नहीं बेचोगे?'' वह dयापारी उसके पीछे पड़ गया।

‘‘मेरी बतख है , मg बेचूं या नहीं तुDह @या? मgने नहीं बेचनी! अगर बेचनी होगी तो बाज़ार
ूं ा, वहां इसके पचास से कम नहीं िमलगे।'' इसने मुझे @या बुhू समझ रखा है , उसने
म बेचग
मन ही मन सोचा।

लेिकन मोटा dयापारी भी पीछे हटने को तैयार न था, ‘‘अJछा पचास ही ले लो। लाओ
बतख मेरी हई।
ु ''

उसकी बात सुन कर माधो चकराया, ‘‘मgने कहा न बतख िबबी के िलए नहीं है ।''

‘‘अरे , अभी तो तुमने कहा िक इसकी कीमत पचास `पये है ।'' dयापारी ने अपना दांव
चला।

‘‘आप झूठ बोल रहे हg । मgने कब कहा िक इसे बेचग


ूं ा? मg तो बस कह रहा था िक बाज़ार
म इसकी कीमत पचास से कम नहीं होगी।'' माधो ने उसका ूितवाद िकया।

तभी उधर से एक िसपाही गुज रा, िज से दे ख कर dयापारी की आँखH म अनायास ही चमक


आ गयी। उसे रोकते हए
ु वह बोला, ‘‘दे िखए इनःपे@टर साहब ये हमको बोलने के बाद भी
अपना बतख नहीं बेच रहा है ।''

अपने िलए इं ःपे@टर का संबोधन सुन कर उस िसपाही का सीना ज बरदःत ढं ग से फूल


गया। वह उस dयापारी के पास आ खड़ा हआ
ु , ‘‘काहे रे , काहे नहीं बेच रहा? लफड़ा काहे
कर रहा है , तुमको बतख का पइसा तो िमिलये रहा है न।'' उसने माधो को िझड़क िदया।
माधो को लगा, मोटे dयापारी और िसपाही के बीच वह बुरी तरह फंस गया है । dयापारी तो
बड़ा बदमाश है , पहले ज़बरदःती यहां बैठ गया और अब मेरी बतख के पीछे पड़ा है ।
िकतनी चालाकी से इसने िसपाही को भी अपने साथ िमला िलया है । वह घबरा गया।
अपनी बतख बचाने के िलए उसे वहां से हटना पड़े गा, उसने सोचा। और कोई राःता न
था,वह एक झटके से उठा और डMबे म दसरी
ू ओर लपक िलया।

‘‘अरे ...रे कहां चल िदये? अपनी बतख तो बेचते ज ाओ।'' पीछे से आ रही आवाज पर उसने
कोई

jयान नहीं िदया। िसपाही ने भी उसे पीछे से आवाज लगायी। मगर माधो तेज -तेज कदमH
से चलता रहा, उसे डर था कहीं िसपाही और dयापारी पीछे से आ कर उसकी बतख छीन
न ल।

‘‘ज ाने दीिज ए!'' dयापारी ने खैनी ठHकते हए


ु कहा, ‘‘लीिज ए खैनी खाइये।'' उसके चेहरे पर
िवज य के भाव थे।

‘‘मगर सेठ ज ी ऊ आपको बतख निहए न िदया। अगर आप बोिलये तो...'' खैनी फांकते
हए
ु िसपाही ने खुशामदी अंदाज म कहा।

‘‘छोिड़ए बतख को। बतख न सही, अपनी ज गह तो दे गया, बैिठये आराम से। आप और
हम िमल कर कुछ भी कर सकते हg । बतख @या चीज़ है ।'' मोटे आदमी ने भkदे ढं ग से
मुःकराते हए
ु कहा।

माधो मुंड ा को िडMबे म दसरी


ू तरफ बैठने की ज गह नहीं िमली, वह दरवाज े के पास ही
अपने िलए थोड़ी ज गह बना कर खड़ा हो गया। लगभग आधे घंटे के ूा`िपक भारतीय
रे ल-सफर के बाद शे न ‘महालीमोPप' ःटे शन पहंु च गयी। अब खरसावाँ तक का उसका
सफर घंटे भर का ही बचा था। उतनी दे र वह िबना िकसी किठनाई के खड़ा रह सकता है ।
वहां तो मोटा सेठ उसकी बतख ही हड़प लेने वाला था। कुछ दे र `क कर इं ज न ने सीटी
दी और शे न चल पड़ी।

पहले ज ब पैसज र शे नH म ःटीम इं ज न लगते थे, तब उ*ह गित पकड़ने म समय लग


ज ाता था। लेिकन अब पैसज र शे न म भी डीज ल इं ज न लगने से वह तुरंत गित म आ
ज ाती है । तेज ी से आती हवा ज ब दरवाज े और िखड़िकयH के राःते िडMबे म घुसी, यािऽयH
को तेज गम\ से कुछ आराम िमला।
वहां के यािऽयH को उतारने-चढ़ाने के बाद ज ब शे न चली थी, तब काला कोट पहने िखचड़ी
बालH और आंखH पर मोटे लस वाला चँमा पहने एक टी.टी. उस डMबे म घुस आया। उस
पर नज र पड़ते ही मा=ो ने अपनी ज ेब म रखे िटकट को ऊपर से टटोला, िटकट सुरिGत
था। िटकट चेक करता टी.टी. उन यािऽयH के पास से तो चुपचाप गुज र ज ाता, िज नके पास
सही िटकट थे। लेिकन डे ली-पैसे*ज र, ज ो आमतौर पर dयापारी थे और अपने साथ िबना
उिचत िटकट के काफी सामान भी ले कर चल रहे थे, उनसे िटकट की ज गह चुपचाप Pपये
ले लेता। अगर उनके बीच िकसी तरह का वाता$लाप भी होता तो केवल PपयH के कम या
.यादा होने के बारे म।

‘‘टी.टी. साहब आज कम है , दःसे ले लीिज ए। दस कल दे द गे।'' एक ने कहा।

‘‘प...
् प ् परसH भी तुम बीस की ज गह दस िदया था। ऊ वाला दस और आज वाला ब...

ब ् बीस िमला कर पूरा त...
् त ् तीस दो।'' टी.टी. ने हकलाते हए
ु उसे िपछला बकाया याद
कराया।

टी.टी. का वैसा बोलने का ढं ग दे ख माधो मुंड ा के साथ-साथ और लोग भी मुःकराये िबना


न रहे । उस ूकार के वाता$लाप म कभी टी.टी. मान ज ाता तो कभी उस dयापारी को
मानना पड़ता और िफर टी.टी. आगे बढ़ ज ाता। वे दोनH पG अJछी तरह ज ानते थे, एक
दसरे
ू के िबना उनका काम नहीं चलने वाला। वैसे भी वह उनका रोज का धंधा था।

पर*तु उसने दे खा एक याऽी के पास ज ब िटकट न िमला, तो टी.टी. ने उससे बीस-तीस


`पये नहीं िलये बिWक उसको फाइन के साथ िटकट बना कर ही छोड़ा। माधो मुंड ा को वह
गोरखधंधा समझा न आता, अगर उसने अपने पास खड़े यािऽयH की बात न सुनी होती।

‘‘यह गाड़ी तो बेिटकट यािऽयH के िलए बदनाम है । इसिलए ज ो भी नया आदमी पकड़ाता
है उससे वे अपना फाइन का कोटा पूरा कर लेते हg । इस ूकार दोनH काम हो ज ाते हg , डे ली
पैसज र से अपनी ऊपरी आमदनी और नये पैसज रH को फाईन कर अपनी lयूटी भी।''

‘‘अरे एक बार तो इन लोगH ने हद ही कर दी थी।'' दसरे


ू ने अपना अनुभव बांटा, ‘‘तब
इन लोगH को अपना कोटा पूरा करना था। िज न लोगH के पास सही िटकट थे उनके िटकट
भी ले कर फाड़ िदये और सबको डMलू. टी. के आरोप म पकड़ िलया। िकसी को भी इस
बात का पता ना चलता। लेिकन इन लोगH की वैसी गुंड ागदm दे ख एक पैसज र ने अपनी
िटकट िछपा ली। ज ब उसे मिज ःशे ट के सामने ले ज ाया गया तब उसने वहां िनकाल कर
िदखा दी। मिज ःशे ट ने तब सब पैसज रH को छोड़ िदया और उन रे Wवे अिधकािरयH के
िखलाफ कार$ वाई करने का िनदn श िदया।''

‘‘...लेिकन दे ख लीिज ए, इतना सब होने के बाद भी यह गोरखधंधा नहीं `क रहा है ? सब


कुछ तो वैसा ही चल रहा है ।''

‘‘लगता है यह रोग अब सच म लाईलाज हो गया है ।'' एक और याऽी ने अपनी बात


कही।

तब तक टी.टी. उनके पास आ गया था, ‘‘f... f िटकट ...िटकट?''

माधो मुंड ा ने ज Wदी से िनकाल कर अपना िटकट िदखाया। बािक लोगH के िटकट भी दे ख
कर टी.टी. अभी आगे बढ़ा ही था िक माधो के थैले से बतख की आवाज आयी, प....प ।

टी.टी. ने चौक*नेपन से मुड़ते हए


ु पूछा, ‘‘यह अ◌्... अ◌् आवाज कहां से आयी?''

अब तक टी.टी. का वह Pप दे ख और अपने आस-पास खड़े लोगH की बात सुनने के कारण


माधो न ज ाने @यH बतख के बोलने से घबरा चुका था। उसने अपने थैले को आिहःते से
अपनी पीठ की ओर कर िलया।

‘‘बोलते @यH नहीं? यह आवाज कहां से आयी?''

टी.टी. उसके पास तक आ चुका था, ‘‘ऐ लड़के @या है , तुDहारे झ...
् झ ् झोले म? िदखाओ
कोई बम-वम तो नहीं ले कर ज ा रहे ?''

‘‘नहीं..नहीं, मेरे थैले म बम नहीं है ।'' माधो ने लड़खड़ाते हए


ु ज वाब िदया।

‘‘अरे कहीं उमवादी-फुमवादी तो नहीं हो? @या है उसम, िद...िद िदखाओ इधर?'' टी.टी.
िबWकुल उसके सर पर आ चुका था।

लेिकन इस बार माधो के ज वाब दे ने से पहले ही िफर से बतख बोल उठी, प...प।

‘‘अJछा तो ब...
् ब ् बम नहीं, ब...
् ब ् बतख है !'' टी.टी. ने हं सते हए
ु कहा साथ ही उसकी
आंखH म एक चमक भी आ गई थी।
‘‘हां, दे ख लीिज ए बतख ही है ।'' कहते हए
ु माधो ने थैले से िनकाल कर बतख िदखला दी।
उसने सोचा टी.टी. बतख दे ख कर चला ज ाएगा, लेिकन वहां तो कुछ और ही होने वाला
था।

‘‘इस बतख की f... f िटकट कहां है ?'' टी.टी. उसके सामने खड़ा हो गया।

बतख की िटकट? बतख की भी कहीं िटकट लगती है ? माधो मुंड ा सोच म पड़ गया।

‘‘बतख की िटकट तो मेरे पास नहीं है ।'' उसने हकलाते हए


ु ज वाब िदया।

‘‘ब...ब
् ् बतख िकसकी है ?'' टी.टी. की िनगाह टे ढ़ी हो गp।

‘‘ज ी ...मेरी।'' माधो गड़बड़ाया।

‘‘तब f... f िटकट भी तुDहारे पास ही होनी चािहए न!'' टी.टी. ने अपना ज ाल कसना
शुP कर िदया।

‘‘बतख की िटकट तो नहीं ली।'' माधो का गला सूखने लगा।

‘‘बतख शे न म ले कर ज ाओगे तो f... f िटकट लगेगी ही। ऐसा करो िबना िटकट ले
ज ाना चाहते हो तो इसे बाहर उड़ा दो। तुम िटकट से शे न म ज ाओ और यह तुDहारे साथ
उ◌्... उ◌् उड़ते-उड़ते पहंु च ज ाएगी।'' टी.टी. ने dयंग िकया।

‘‘ज ी... मg कुछ समझा नहीं।'' माधो के चेहरे पर हवाइयां थीं।

‘‘ब...ब
् ् बतख डMWयू टी ले कर ज ा रहे हो और कहते हो समझे नहीं?'' टी.टी. ने उसकी
िखWली उड़ायी।

‘‘मेरी िटकट तो है न! यह तो मेरे साथ ज ा रही है ।'' माधो ने भोलेपन से ज वाब िदया।

‘‘तो @या एक िटकट पर अपने साथ पूरा च...


् च ् िचिड़याघर ले ज ाओगे?''

‘‘नहीं..नहीं... िचिड़याघर कैसे ले ज ा सकता हंू ?''


‘‘चलो अब बहस मत करो। बतख की िटकट नहीं है तो इसकी f... f िटकट बनवाओ।
पंिह Pपये िटकट के और ढाई सौ फाईन कुल िमला कर हए
ु दो सौ पgसठ। ज Wदी
िनकालो।'' टी.टी. ने उसे िहसाब समझाया।

दो सौ पgसठ सुन कर माधो को अपना िदमाग हवा म तैरता महसूस हआ।


ु पचास `पये
की बतख के िलए दो सौ पgसठ `पये? उसकी ज ेब म कुल बीस `पये थे। अब @या होगा?

‘‘दे िखए मेरे पास तो उतने `पये नहीं हg । मg तो अपने घर लौट रहा हंू । वैसे भी मुझे पता
नहीं था िक बतख की िटकट लेनी पड़ती है और ना ही ःटे शन पर िकसी ने बताया।''

‘‘तो... तो @या बतख को बेिटकट ले ज ाते हg , यह पता था हg ? दे खो िमःटर पता था या


नहीं, यह प...
् प ् ूौMलम आपका है । शे न म िज *दा या मुदा$ ज ो भी सफर करता है , उसकी
िटकट लगती है । पैसे िनकाल कर िटकट बनवाओ या िफर मg च...च
् ् चलान काटता हंू ,
ज ेल ज ाने के िलए तैयार हो ज ाओ।'' टी.टी. ने मानो उसे उठा कर ज़ोर से चqटान पर दे
मारा हो।

ज ेल का नाम सुन कर उसके हाथ-पैर फूलने लगे। माधो मुंड ा ने अपनी पॉकेट से बीस
`पये िनकाल कर अपनी कुल ज मा पूंज ी टी.टी. को दे नी चाही, ‘‘दे िखए मेरे पास बस इतने
ही `पये हg । वैसे भी पंिह `पये तो पूरी िटकट के बनते हg । बतख के तो साढ़े सात `पये
ही होने चािहए।''

‘‘अरे वाह, तुDहारा r...r िहसाब तो काफी अJछा है ।'' टी.टी. ने dयंग िकया, ‘‘लेिकन रे ल
तुDहारे िहसाब से नहीं अपने िनयम से चलती है ।''

‘‘तब तो मgने िटकट ली है िनयम से मुझे सीट भी िमलनी चािहए। दीिज ए मुझे बैठने की
सीट। तब मg दं ग
ू ा बतख के िलए दो सौ पgसठ `पये।''

‘‘त...त
् ् तो अब तुम मुझे न...
् न ् िनयम िसखाओगे?'' टी.टी. को गुःसा आ गया, ‘‘अगर
शे न म सीट नहीं थी, तब चढ़े @यH? पैदल चले ज ाते। रे ल िवभाग @या तुमको बुलाने घर
गया था?''

.4.

अज ीब खMती आदमी है , टी.टी.। उसके कुतक$ सुन कर माधो मुंड ा का मन कैसा-कैसा हो


रहा था।
िफर भी उसने अंितम ूयास करते हए
ु कहा, ‘‘दे िखए सर आप गुःसा मत होइये। अब तो
आप ही मदद कर , मुझे कुछ नहीं सूझ रहा।''

‘‘अब आये न राःते पर। अभी तक तो बड़ा िनयम कानून झाड़ रहे थे।'' टी.टी. ने शांत
होते हए
ु कहा, ‘‘चलो, एक उपाय बता दे ता हंू । अपनी बतख मुझे बेच दो। मg तुDह इसके
ू ा। इससे तुDह िटकट नहीं लेनी पड़े गी और बीस `पये भी कमा लोगे।''
बीस `पये दं ग
समाधान सुझाते टी.टी. की आंख चमक रही थीं।

@या!! पचास `पये की बतख के बीस `पये? माधो ने एक नज र अपने हाथ म पकड़ी Pई-
सी सफेद-सफेद, नमs-नाज ुक और Yयारी बतख पर डाली। उसे टी.टी. का समाधान िबWकुल
बकवास लगा।

‘‘बीस `पये तो मेरे पास भी हg , आप ही ले लीिज ए।'' उसकी आवाज म िनवेदन था।

‘‘ले लीिज ए टी.टी. साहब। ज ाने भी दीिज ए। अगर इसके पास पैसे होते तो आपको दे
दे ता।'' पास खड़े एक याऽी ने माधो का पG लेते हए
ु कहा। लेिकन माधो के इं कार के बाद
टी.टी. िकसी भी तरह िपघलता न िदखा, उWटे वह उस याऽी पर खीझ गया।

‘‘यिद आपको इतनी ही k... k दया आ रही है तो आप ही बनवा दीिज ए न इसको f...
f िटकट।'' टी.टी. का उ[र सुन कर बोलने वाला याऽी चुप हो कर पीछे िखसक गया।

‘‘िकतने लोगH से तो पैसा ले कर आपने छोड़ िदया हg । उन सबका फाइन वाला िटकट
काहे नहीं बनाये?'' माधो को भी अब टी.टी. पर गुःसा आने लगा था।

‘‘तुम हमको हमारा काम िसखाएगा। दो सौ पgसठ `पया िनकालो या िफर ज ...
् ज ् ज ेल
ज ाओ।'' टी.टी. उस पर िचWलाया।

माधो मुंड ा ने मदद के िलए चारH तरफ दे खा, लेिकन उसे िनराश ही होना पड़ा। उसकी
नज र बाहर गुज र रहे ःटे शन के नाम पर पड़ी ‘पा*सासाली'। बस और दो ःटे शनH के बाद
ही तो उसे उतरना है । िफर उसने मन ही मन कुछ सोचते हए
ु अनुमान लगाया और एक
इिLमनान-सा उसके चेहरे पर आ गया। उसने अपनी कमीज की भीतरी ज ेब टटोलते हए

कहा, ‘‘ठीक है टी.टी. साहब आप बतख की िटकट बना ही दीिज ए।''
उसे यूं हिथयार डालता दे ख टी.टी. ूस*न हो गया। उसका फाईन का एक कोटा पूरा हो
रहा था। उसने अपने हाथ म थमी िटकट बुक का काब$न ठीक िकया और मोटे लसवाले
चँम से झांकते हए
ु बतख की िटकट बनाने लगा। उसने सब को सुनाते हए
ु कहा, ‘‘अब
पैसा कहां से आ गया? हमको पता है , पैसा रख कर भी तुम लोग ह.
ु ज त करते हो।''

आस-पास खड़े यािऽयH के िलए तमाशा खLम हो चुका था। टी.टी. ने िटकट बना कर
माधो मुंड ा की ओर बढ़ाई। बाहर से िडMबे म आती तेज हवा से टी.टी. के हाथH म फाइन
वाली िटकट फड़फड़ा रही थी। लेिकन माधो मुंड ा ने िटकट लेने की ज गह अपने हाथ म
थमी बतख को पुचकार कर एक बार Yयार िकया और दरवाज े से बाहर उछाल िदया।
उसका अनुमान िबWकुल सही था, वहां बाहर ‘सोना नाला' अपनी पूरी मःती म बहा ज ा रहा
था। पंख फड़फड़ाती बतख उसम ज ा उतरी।

‘‘अरे ये क् ... क् @या िकया ...?'' टी.टी. के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। अंगुिलयH म
फड़फड़ाती दो सौ पgसठ `पये के फाइन वाली िटकट उसका मुंह िचढ़ा रही थी।

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संपक$:

(कमल)

संपक$ः- डी-1/1, मेघदत


ू अपाट$ मfस, मरीन साइव रोड, पो.- कदमा, ज मशेदपुर-
831005(झारखंड ). दरभाष
ू -09431172954.

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