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कहानी

कलो
- ऋिष शमा

कलो शीषक पढ़कर पाठक शायद एक बार को चक। मगर यह िनित है िक कहानी का
के$िीय पाऽ कलो ही है । तीन( लोक से$यारी का$हा की नगरी मथुरा, जहॉ कृ ंण को
भी कनुआ, कलुआ आिद श4द( सेपुकारा जाता है तथा जहांके गांव( मेधूप(, बूची, द9मो,
गदा, स:( जैसेनाम ूाय: सुननेको िमलतेहै । कलो का नामकरण भी उसकी दादी ने
ही िकया था , >य(िक पिरवार म शायद सबसेअिधक ँयामवण उसका ही था । अब
पंिडत तो नामकरण बाद म करता, मगर दादी नेतो उसेपहली नजर म देखतेही कलो
नाम सेनवाजा।

नववष अपनी दःतक दे चुका था । आज शमा जी के घर म कुछ िवशेष ही चहल -पहल


थी, कल( भी हमेशा की तरह आज भी सूय- नमःकार करनेछत पर पहँु ची, तभी मेरी
नजर उस पर पड़ी। उसकी छोटी बहन नेपीछे सेआकर उसेअपनेआगोश म लेिलया
और बोली -' दीदी, सूयद
 ेव नेतु9हारा शायद सुन ली है और आज यह मीठी खबर मM िबना

मुँह मीठा िकए नहींबतानेवाली।' छटकी को अचानक अपनेपीछे देख कलो िजसका
वाःतिवक नाम रजनी है कुछ सकपका गई और इसी हड़बड़ाहट म वह नीचेकी ओर
भागी। तभी मुझेकुछ िगरनेकी आवाज सुनाई दी और पंिडताइन का ःवर भी सुनाई
पड़ा, कहॉ भागी जा रही है , बड़ी मुिँकल सेतो एक बाटी भर पाई थी वह भी लुढ़का दी
। न जानेकब अ>ल आएगी इस कलो को ।


बाटी की आवाज सुन छटकी भी नीचेआ गई थी, बाटी सेिबखरा पानी देख वह भी
सकपका गई थी और िफर उसके मन म एक आशंका जाग उठी िक कहींइस वष भी तो
मेरी दीदी के सपनेइस पानी की तरह कही िबखर तो न जाएं
गे।

अपनेमाता-िपता की SयेT पुऽी होनेके कारण रजनी को कुछ अिधक ही ःनेह ूाU हआ

था, खासकर अपनेपापा की दलारी
ु थी । जब कभी अपनी दादी केकलो संबोधन सेवह
खीज जाती थी तो उसके पापा ही उसेयह कहकर सांVवना देतेथेिक दादी की बात का
बुरा नहींमानतेअगर वह तुझेकलो कहती है तो मुझेभी तो कलुआ कहती है । रजनी
बचपन सेही ूितभाशाली थी, पहली कWा सेलेकर एम.काम. तक सभी परीWाएंउसने
ूथम ौे
णी म उ:ीण की । यZिप रजनी ँयामवण की थी, मगर उसका मन दध
ू की तरह
िनमल था ।

एक िदन तो हद ही हो गई थी । कॉलेज के मनचलेछाऽ( नेउसके रंग को लेकर रजनी


का भरपूर मजाक उड़ाया । वह कर भी >या कर सकती थी, िखिसयाकर कॉलेज सेघर
लौट आई। उसके िपता नेजब रजनी की ऐसी हालत देखी तो उ$ह(नेउसकी उदासी का
ू ही गया । '' पापा मुझेअब
कारण जानना चाहा। आिखर रजनी के धैय का बांध टट
अ]छी तरह मालूम हो गया है िक दिनया
ु म केवल गोरे रंग का ही मूय है , ँयामवण तो
लगता है अब मेरे िलए अिभशाप बन गया है । मM ठीक कह रही हं
ू न -पापा। ''बेटा लगता
है िनराशा नेतेरे अं
दर घर बना िलया है ।''

'' अब तू मेरी बात ^यान सेसुन और इ$ह गांठ म अ]छी तरह बांध ले। >या तू नहीं
जानती कृ ंण भी तो ँयामवण के थेऔर उनका तो नाम भी ँयामसुंदर है , >या तू नहीं
जानती िक उनके _प पर िकतनी गोिपयांमोिहत थी और यह भी तो सच है िक शंकर
भी िवष पीकर ही नीलकंठ बने। मेरा कहनेका अथ महज इतना ही है िक कृ ंण अपने
गुण( सेँयामसुंदर बनेऔर नीलकंठ मंगलकारी । इसी ूकार मनुंय को अपने`प से
T बनना चािहए, >या तू नहींजानती मनुंय अपनी सूरत सेनहींसीरत
नहींगुण( सेौे
सेपहचाना जाता है ।

अपनेिपता के श4द( को सुन रजनी उनके गलेसेिलपट गई और बोली:-'' पापा आपने


मेरी आंख खोल दी है , aदय के सदय को सवौT
े मानेवालेअपनेपापा पर मुझेगव है ।

बी0काम0 के पात ् रजनी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, मगर उसकी मांकी इ]छा
थी िक अब उसके हाथ पीलेकर िदए जाए , मगर हमेशा की तरह इस बार भी उसके
पापा नेउसका साथ िदया और िफर देखतेही देखतेरजनी नेएम.काम. भी ूथम ौे
णी
म उ:ीण कर िलया। अपनेपापा सेिजद करके वह शोध काय म जुट गई ।

बेटी को सयानी होती देख शमा जी को भी बेटी के िववाह की िचं


ता सतानेलगी,योcय वर
के िलए उ$ह(नेइसकी चचा िरँतेदारी एवंिमऽ( सेभी की, मगर हर जगह सेिनराशा ही
हाथ लगी ।

आिखर उ$ह(नेरजनी के िववाह के िलए अखबार म िवdापन दे ही िदया।


िवdापन के पिरणामःव_प कुछ ूःताव भी ूाU हए
ु , मगर कहींलड़के की िषWा कम
होती तो कहींदहेज की फरमाइश । `िढ़वादी तथा मामीण पिरवेष म पले-बढ़े शमा जी
अपनी बेटी का िववाह जाित म ही तथा सुसः
ं कृ त पिरवार म करना चाहतेथे। उनकी
ःपf धारणा थी िक बेमेल के िववाह कभी सफल नहींहो सकतेतथा बेटी की इ]छा के
िवपरीत िववाह करनेपर वह जीवन भर उ$ह माफ नहींकरेगी।

आिखर दौड़-धूप रंग लाई, कानपुर सेएक िववाह का ूःताव शमा जी को ूाU हआ
ु , शमा
जी नेभी उिचत जांच-परख केबाद ूःताव ःवीकार कर िलया और आिखर वह िदन भी
आ ही गया जब रजनी को देखनेके िलए वर एवंउसके माता-िपता आ रहे थे। रजनी की
मांको तो आज खुशी के मारे पैर भी जमीन पर नहींपड़ रहे थे। अितिथय( के ःवागत
के िलए उ$ह(नेन जानेिकतनेतरह के पकवान तैयार िकए।

बार-बार उनकी िनगाह gार पर चली जाती और िफर रजनी पर िनगाह पड़तेही वह चकी
- '' तू अभी तक तैयार नहींहई
ु , अब मुझे>या देख रही है - जा तैयार हो और हां- आज
तू वही बनारसी साड़ी पहनना गोटे-वाली और पलंग पर जो जेवर रखेहै , उ$ह भी पहन
लेना ।

'' मांतू िचं ु


ता मत कर - छटकी नेकहा ।

'' आज - दीदी को मै ऐसा सजाऊंगी िक चांद भी शरमा जाए ''

ू ही गया मांकब तक इस तरह तुम मेरी नुमाइष


आिखर रजनी के सॄ का बांध टट
लगाओगी, ''मै जैसी हं
ू वैसी ही उनके सामनेजाऊंगी । वेसजी-सजाई गुिड़या खरीदनेआ
रहे है या लड़की देखने? मॉ-बेटी का g$g सुन शमा जी आिखर बोल ही पड़े -

- '' लगता है मां-बेटी का महाभारत िफर शु_ हो गया है । ''

- '' अब तु9हींसंभालो अपनी लाड़ली को, बहत


ु िसर चढ़ा रखा है ?''

gार पर कार की आवाज सुन घर के सभी मेहमान( के ःवागत के िलए दौड़ पड़े । घर के
मुिखया शमा जी नेसभी अितिथय( का ःवागत गमजोशी के साथ िकया। कुशलWेम तथा
पिरचय ूािU के पात बेटी रजनी को भी बुलाया गया। रजनी मेहमान( के िलए नाँता
लेकर अपनी छोटी बिहन के साथ पहं
ु ची। रजनी पर नजर पड़तेही िवजन नेअपनेिपता
के कान म कुछ कहा और उसके िपता नेशमा जी सेकहा िक वेपऽ gारा अपनेिनणय
सेअवगत करा देग ।

समय बीता तथा लगभग एक माह के पात ् एक पऽ आया िजसम िलखा था िक लड़की
के ँयामवण के कारण वेिरँता करनेम असमथ है , अगर छोटी लड़की के साथ िववाह
का ूःताव हो तो िवचार िकया जा सकता है ।

पऽ >या आया, शमा जी की आंख( के सामनेअंधेरा छा गया । बेटी के ःवjन( के महल


धराशायी होतेदेख उ$ह(नेिबःतर पकड़ िलया । अपनेिपता की हालत देख रजनी बोली ''
पापा आप िनराश न ह(, यह तो होना ही था, मM तो पहलेही जानती थी िक एक सांवले
लड़के का िववाह तो गोरी लड़की सेहो सकता है , मगर एक सांवली लड़की का िववाह गोरे
लड़के के साथ शायद संभव नहीं'' आप िह9मत न हारे पापा, आपके ःवjन साकार ह(गे,
यह मेरा आपसेवायदा है ।

शमा जी नेतो ऐसा िबःतर पकड़ा िक िफर कभी न उठ सके ।

िपता के आशीवाद तथा उसकी ूितभा नेरजनी को उसके मुकाम पर पहं


ु चा ही िदया।
अब इसेिविध की िवड9बना कहे या कुछ और िक रजनी को नौकरी भी उसी िवभाग म
िमली जहांिवजय कायरत था ।

समय का चब तेजी सेचल रहा था, एक िदन सं^या पहर िलlट म रजनी नेिवजय को
देखा । आVमcलािन सेभरा िवजय रजनी सेबात करनेका साहस नहींजुटा पा रहा था,
मगर रजनी नेिफर भी उसका हालचाल पूछ अपनेकायालय की ओर बढ़ गई । आिखर
अपनी उपेWा सेिवजय ितलिमला उठा, िकसी तरह िह9मत जुटाकर वह रजनी के केिबन
म जा पहं
ु चा ।

रजनी नेशालीनता का पिरचय देतेहए


ु उसेबैठनेको कहा । '' रजनी मM आपका गुनहगार
हू, ईmर नेमुझेअपनेिकए िक सजा दे दी है , मM जान चुका हं
ू िक आंतिरक सदय के

आगेवाn सदय कुछ भी नहीं, िजसेमMनेहीरा समझा था वह तो कांच का एक टकड़ा

िनकला जो एक छोटी सी ठोकर सेटटकर िबखर गया । घमंडी बाप की लाड़ली िजसे
अपने`प पर घमंड था, आिखर मुझेछोड़ अपनेबाप के पास चली गई और िभजवा िदए
तलाक के काग़ज़ात।
मुझेिजंदगी भर इसका मलाल रहेगा िक मM असली हीरे को न पहचान सका, अगर
इजाजत हो तो मM अब भी तुमसे........................................................

िवजय की qयथा सुन रजनी की आंख( म आंसू आ गए उसेलगा िक उसके पापा उसके
सामनेआ पूछ रहे है - '' बेटा रजनी कौन सा रंग मूयवान है ? ''

तभी िवजय के स9बोधन सेरजनी की त$िा भंग हई


ु । आपने>या िनणय िलया मैडम?

'' िवजय तु9हारे साथ जो कुछ हआ


ु वह िनय ही खेदजनक है मगर तुम अब मेरी बात
^यान सेसुनो- '' धनुष सेिनकला हआ
ु तीर, मुख सेिनकलेवचन तथा बीता हआ
ु समय
कभी वािपस नहींआते। मेरी शादी तय हो चुकी है और हांउसका िनमंऽण भी तु9ह
िमल जाएगा ।

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संदभवश, कलो श4द का मीक म अथ - ‘सुंदरी' होता है . - सं.

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