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Kallo
Kallo
कलो
- ऋिष शमा
कलो शीषक पढ़कर पाठक शायद एक बार को चक। मगर यह िनित है िक कहानी का
के$िीय पाऽ कलो ही है । तीन( लोक से$यारी का$हा की नगरी मथुरा, जहॉ कृ ंण को
भी कनुआ, कलुआ आिद श4द( सेपुकारा जाता है तथा जहांके गांव( मेधूप(, बूची, द9मो,
गदा, स:( जैसेनाम ूाय: सुननेको िमलतेहै । कलो का नामकरण भी उसकी दादी ने
ही िकया था , >य(िक पिरवार म शायद सबसेअिधक ँयामवण उसका ही था । अब
पंिडत तो नामकरण बाद म करता, मगर दादी नेतो उसेपहली नजर म देखतेही कलो
नाम सेनवाजा।
ु
बाटी की आवाज सुन छटकी भी नीचेआ गई थी, बाटी सेिबखरा पानी देख वह भी
सकपका गई थी और िफर उसके मन म एक आशंका जाग उठी िक कहींइस वष भी तो
मेरी दीदी के सपनेइस पानी की तरह कही िबखर तो न जाएं
गे।
अपनेमाता-िपता की SयेT पुऽी होनेके कारण रजनी को कुछ अिधक ही ःनेह ूाU हआ
ु
था, खासकर अपनेपापा की दलारी
ु थी । जब कभी अपनी दादी केकलो संबोधन सेवह
खीज जाती थी तो उसके पापा ही उसेयह कहकर सांVवना देतेथेिक दादी की बात का
बुरा नहींमानतेअगर वह तुझेकलो कहती है तो मुझेभी तो कलुआ कहती है । रजनी
बचपन सेही ूितभाशाली थी, पहली कWा सेलेकर एम.काम. तक सभी परीWाएंउसने
ूथम ौे
णी म उ:ीण की । यZिप रजनी ँयामवण की थी, मगर उसका मन दध
ू की तरह
िनमल था ।
'' अब तू मेरी बात ^यान सेसुन और इ$ह गांठ म अ]छी तरह बांध ले। >या तू नहीं
जानती कृ ंण भी तो ँयामवण के थेऔर उनका तो नाम भी ँयामसुंदर है , >या तू नहीं
जानती िक उनके _प पर िकतनी गोिपयांमोिहत थी और यह भी तो सच है िक शंकर
भी िवष पीकर ही नीलकंठ बने। मेरा कहनेका अथ महज इतना ही है िक कृ ंण अपने
गुण( सेँयामसुंदर बनेऔर नीलकंठ मंगलकारी । इसी ूकार मनुंय को अपने`प से
T बनना चािहए, >या तू नहींजानती मनुंय अपनी सूरत सेनहींसीरत
नहींगुण( सेौे
सेपहचाना जाता है ।
बी0काम0 के पात ् रजनी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, मगर उसकी मांकी इ]छा
थी िक अब उसके हाथ पीलेकर िदए जाए , मगर हमेशा की तरह इस बार भी उसके
पापा नेउसका साथ िदया और िफर देखतेही देखतेरजनी नेएम.काम. भी ूथम ौे
णी
म उ:ीण कर िलया। अपनेपापा सेिजद करके वह शोध काय म जुट गई ।
आिखर दौड़-धूप रंग लाई, कानपुर सेएक िववाह का ूःताव शमा जी को ूाU हआ
ु , शमा
जी नेभी उिचत जांच-परख केबाद ूःताव ःवीकार कर िलया और आिखर वह िदन भी
आ ही गया जब रजनी को देखनेके िलए वर एवंउसके माता-िपता आ रहे थे। रजनी की
मांको तो आज खुशी के मारे पैर भी जमीन पर नहींपड़ रहे थे। अितिथय( के ःवागत
के िलए उ$ह(नेन जानेिकतनेतरह के पकवान तैयार िकए।
बार-बार उनकी िनगाह gार पर चली जाती और िफर रजनी पर िनगाह पड़तेही वह चकी
- '' तू अभी तक तैयार नहींहई
ु , अब मुझे>या देख रही है - जा तैयार हो और हां- आज
तू वही बनारसी साड़ी पहनना गोटे-वाली और पलंग पर जो जेवर रखेहै , उ$ह भी पहन
लेना ।
gार पर कार की आवाज सुन घर के सभी मेहमान( के ःवागत के िलए दौड़ पड़े । घर के
मुिखया शमा जी नेसभी अितिथय( का ःवागत गमजोशी के साथ िकया। कुशलWेम तथा
पिरचय ूािU के पात बेटी रजनी को भी बुलाया गया। रजनी मेहमान( के िलए नाँता
लेकर अपनी छोटी बिहन के साथ पहं
ु ची। रजनी पर नजर पड़तेही िवजन नेअपनेिपता
के कान म कुछ कहा और उसके िपता नेशमा जी सेकहा िक वेपऽ gारा अपनेिनणय
सेअवगत करा देग ।
समय बीता तथा लगभग एक माह के पात ् एक पऽ आया िजसम िलखा था िक लड़की
के ँयामवण के कारण वेिरँता करनेम असमथ है , अगर छोटी लड़की के साथ िववाह
का ूःताव हो तो िवचार िकया जा सकता है ।
समय का चब तेजी सेचल रहा था, एक िदन सं^या पहर िलlट म रजनी नेिवजय को
देखा । आVमcलािन सेभरा िवजय रजनी सेबात करनेका साहस नहींजुटा पा रहा था,
मगर रजनी नेिफर भी उसका हालचाल पूछ अपनेकायालय की ओर बढ़ गई । आिखर
अपनी उपेWा सेिवजय ितलिमला उठा, िकसी तरह िह9मत जुटाकर वह रजनी के केिबन
म जा पहं
ु चा ।
िवजय की qयथा सुन रजनी की आंख( म आंसू आ गए उसेलगा िक उसके पापा उसके
सामनेआ पूछ रहे है - '' बेटा रजनी कौन सा रंग मूयवान है ? ''
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