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पल
- मुकेश पोपली
'आप मेरे साथ आइए ।' चंदनदास के कंधे पर हाथ रखते हए
ु िकसी ने कहा था । वे जवाब
दे ना चाहते थे, च क से गए और जवाब नहीं दे पाए । उनके सामने एक भि पु'ष थे ।
'अरे , आपने मुझे पहचाना नहीं ? म+ कृ पाशंकर, आपके समधी जी का िमऽ,' वह उनकी
िज1ासा शांत करते हए
ु बोले, 'और यह सभी मेरे पिरवार के सदःय ह+ , मेरी प5ी शीला,
अभय मेरा पुऽ और बहू अंजना, बाकी सब अंदर ह+ हॉल म8 ।' उ9ह:ने पास म8 खड़े सभी
लोग: से पिरचय कराते हए
ु कहा ।
'आप मुझे भूल गए ह+ , लेिकन म+ आपको कभी भी नहीं भूला । अभी आपको बाहर आते
दे खा तो म+ आपके पीछे -पीछे चला आया ।' कृ पाशंकर उनका हाथ अपने हाथ म8 लेते हए
ु
बोले, 'िजस होटल के बाहर हम खड़े ह+ , यह अपना ही समझो, मगर आइए म+ आपको अपने
गरीबखाने की ओर ले चलता हंू जो बस इस होटल के पीछे की तरफ है, अगर आप वहां
अपने पिवऽ कदम रख8गे तो आप का एहसान होगा और ' चंदनदास ने कृ पाशंकर के मुंह
पर हाथ रख िदया था । अब उनके ःमृित-पटल पर पुराने िचऽ उभरने लगे और उ9ह8
धीरे -धीरे सब कुछ याद आने लगा ।
पल अथा>त ् थाली की जगह उपयोग म8 लाने के िलए बनाया गया पेड़ के प: का पाऽ ।
दे खते ही दे खते पल पड़ चुकी थी । परसने वाले भी अपने-अपने पाऽ संभाल रहे थे ।
एक के हाथ म8 दाल के सीरा (हलवा) था तो दसरे
ू के हाथ म8 गुलाब से भी गहरे रं ग के
गरम-गरम गुलाब जामुन से भरा पाऽ था । परसने वाले एक और लड़के ने बड़ी मुःतैदी
से अपने हाथ म8 काजू की बफG से भरा भगोना (बड़ा खुला बत>न) संभाला हआ
ु था । चार:
तरफ गHटे , सांगरी और Iवारबाटे की सिJजय: के साथ-साथ आम और कैर के अचार की
खुशबू पूरे पंड ाल म8 फैली हई
ु थी । अितिथगण बैठ चुके थे । कुछ ही Oण: म8 िमठाई से
भरे पाऽ: म8 से वह लड़के सब की पल म8 सामने बैठे अितिथय: की उॆ और उनकी
तंद'ःती
ु दे ख कर िमठाईयां रखते जा रहे थे ।
अभी भोजन आरं भ नहीं िकया गया था । चंदनदास ने समधी जी के सामने जा कर हाथ
जोड़े और उनके साथ आए िमऽ: म8 से एक िमऽ के सामने एक पहे ली बांधी । दरअसल
पहे ली की एक परTपरा थी और इस परTपरा का उXे ँय माऽ मनोरं जन था । एक कहावत
भी है पल बांधना िजसका अथ> होता है कोई पहे ली पूछकर उसे हल करने के पहले
भोजन न करने की कसम दे ना । िजस िमऽ से पहे ली पूछी गई वह उनके समधी जी के
लंगोिटया यार भी थे और उनका अपने शहर म8 एक अलग 'तबा था, उनकी एक अलग
पहचान थी । ऐसी परTपरा का सामना उ9ह8 पहले कभी नहीं करना पड़ा था Zय:िक शहर:
म8 तो पल8 बहत
ु पहले ही उठ चुकी है। और उनका ःथान तरह-तरह की बॉकरी ने ले
िलया है । खै
र, शहर: म8 तो खाना खाने के ढं ग भी बदल गए ह+ और िफर शहरी लोग: के
पास व] भी कहां होता है िक पहे िलय: या चुटकुल: म8 अपना समय बबा>द कर8 । वहीं
बॉकरी बार-बार धोकर रख दी जाती है, ज^दी-ज^दी म8 खाना िनगला जाता है और िफर
नमःते और गुड -नाईट । लेिकन गांव: म8 अभी भी बहत
ु कुछ परTपराएं बाकी थी, कुछ
रीित-िरवाज अभी भी िनभाए जाते थे । आिखर यही तो मौके होते ह+ आपस म8 छे ड़-छाड़
और हं सी-िठठोली के । पहे ली के िलए वह िमऽ अथा>त ् कृ पाशंकर तैयार थे ।
चंदनदास के समधी जी यbिप ःवयं इस जवाब से संतुc नहीं थे, लेिकन अपने परम िमऽ
का िनरादर भी करना नहीं चाहते थे । अगर उनसे यह पहे ली पूछी गई होती तो वह
िनिdत 'प से अनाज की जगह इसका जवाब दे ते 'पैसा', पैसा अथा>त ् धन । वह सबसे
बड़ा 'पया के िसeांत के पOधर थे । समधी जी के िलए पैसा ही सब-कुछ था तभी तो
उ9ह:ने चंदनदास के पुऽ दामोदर, आई.ए.एस. को अपना दामाद चुना था । हालांिक उनकी
लड़की के िलए अSछे वर का िमलना कोई बड़ी बात नहीं थी Zय:िक उनकी बेटी िवbा थी
भी बहत
ु सुंदर । लेिकन कहीं भी िववाह करने का मतलब था एक मोटी रकम का खच>
होना । चंदनदास ने न तो कुछ दहे ज मांगा था और नहीं समधी जी ने कुछ िवशेष दे ने
की योजना बनाई, िफर दामोदर ने भी कोई मांग नहीं की थी, जैसा बाप वैसा बेटा ।
ु
पोते का नामकरण हो जाने के तीन-चार रोज बाद ही दामोदर की छिHटयां समाg हो रही
थी । यह तय हआ
ु िक बहू के साथ गांव की ही िकसी अनुभवी औरत को भी भेज िदया
जाए तािक बSचे का भी पूरा hयान रखा जा सके । लेिकन कुछ ही िदन: बाद वह औरत
वापस गांव आ गई और उसने बताया िक बहू जी की मां और बहन ने दामोदर बेटे की
कोठी म8 ही डे रा जमा िलया है और सारे नौकर: पर वह हZम
ु भी चलाने लगी है, उसके
साथ भी कुछ अSछा aयवहार नहीं िकया गया, इसिलए उसने तो वहां से िनकलने म8 ही
भलाई समझी । पहले तो उसकी बात िकसी ने मानी नहीं, मगर दो-तीन महीने बाद भी
जब दामोदर का कोई खत नहीं आया तब उ9ह8 लगा िक कहीं न कहीं गड़बड़ है । इस
बीच उ9ह:ने दो-तीन खत िलखे थे, मगर जवाब एक का ही आया िक सब ठीक है ।
बहत
ु बरस: बाद आज जब डािकये ने उनका नाम पुकारा तो अपनी डाक लेकर बैठक म8
आ गए । शारदा दे वी उनके िलए लःसी का िगलास लेकर बैठी हई
ु थी, 'यह तो िकसी का
िनमंऽण पऽ लगता है, कहां से आया है ?' चंदनदास कुछ दे र तक िनमंऽण पऽ को हाथ म8
लेकर दे खते रहे और िफर उनकी आंख8 आdय> से फैलती चली गई, 'दामोदर की अTमा, यह
म+ Zया दे ख रहा हंू ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ।'
'ऐसा भी Zया है? िनमंऽण पऽ ही तो है, शादी-Jयाह, नामकरण िकतने ही तो समारोह होते
ह+ , िकसका है यह तो बताओ ?' शारदा दे वी ःवयं भी आdय>चिकत हो रही थी िक आज
इतने बरस: बाद उसे दामोदर की अTमा वाला संबोधन सुनने को िमला था, एक वाkस^य
उसके मन म8 जाग गया था ।
बहत
ु चहल-पहल थी दामोदर के बंगले म8 । वह ःवयं तो ःटे शन पर नहीं आ सका था,
मगर बहू गाड़ी ले कर आ गई थी साइवर के साथ । दोन: को एक अलग कमरा दे िदया
गया था । िदन भर नौकर: का आना-जाना लगा रहा । कभी यह तो कभी वह, दो बजे के
लगभग बहू उ9ह8 खाने के िलए कहने आई तो शारदा दे वी से रहा नहीं गया, 'बहू, गुिड़या
कहां है, उससे िमलने को बहत
ु मन कर रहा है । यह दे खो, म+ उसके िलए सोने का कड़ा
बनवा कर लाई हंू गांव से और यह कुछ कपड़े भी गरीब: म8 बांटने के िलए ।
'ओ माई गॉड.......दाद,ू यू आर लूिकंग वैरा ओ^ड, एंड दादी यू, यू टू , हाउ मे हे यर ऑफ यू
बोथ, मे आई सजैःट यू टू यूज हे यर डाई, यू िवल बी लूक एज अिमताभ अंकल एंड दादी
यूअर फेस िरयली वैरी गुड बट दे अर इज नो मेकअप, माई नानी....' गुjडू फरा>टे से बोले जा
रहा था ।
'रोिहत, aहाट इज िदस ? गो इनसाइड एंड च8ज यूिनफाम>, दे आर नॉट गोइं ग एनीaहे यर, सी
दैम इन इविनंग ।' बहू ने उसे डपट िदया था ।
'म+ िदखावा िब^कुल पसंद नहीं करता चंदनदास जी', कृ पाशंकर पूरे कमरे म8 नजर डालते के
पdात ् हैरान होते हए
ु चंदनदास से कह रहे थे, 'और यह सब म+ने आपसे ही महण िकया है
।' एक बार िफर चंदनदास की आंख: म8 आdय> अपना ःथान बना रहा था ।
'जी हां, आपके गांव से आने के पdात ् म+ने अपने आपको बहत
ु बदला और बSच: को भी
सादा जीवन िसखाने की कोिशश की', कृ पाशंकर ने उनकी िज1ासा शांत करते हए
ु कहा,
'होटल मेरा aयवसाय है, वहां सब-कुछ वह मुझे रखना पड़ता है जो मेरे माहक: को चािहए,
लेिकन घर और aयवसाय म8 फक> तो होता है न । आप के आशीवा>द से म+ अपने पिरवार
के साथ बहत
ु खुश हंू और आप की पल बांधने की पहे ली मुझे आज तक याद है । अब
आप कुछ दे र आराम किरए और भोजन अभी तैयार हआ
ु जाता है । म+ आपकी पल नहीं
ूं ा । आप मेरे अितिथ नहीं, मेरे बड़े भाई ह+ । यह आपका ही घर है और मुझे िवiास
बांधग
है िक आप यहां रहने के िलए मना नहीं कर8 गे । आप जब कह8 गे म+ ःवयं पिरवार के साथ
आपके गांव चलूंगा ।' जवाब म8 चंदनदास ने कृ पाशंकर को गले लगा िलया था ।
चंदनदास और शारदा दोन: महसूस कर रहे थे अपने और पराये का फक> । उ9ह8 लग रहा
था िक दामोदर और बहू के िलए वह पुरानी और छे द: वाली पल बन चुके थे और
कृ पाशंकर ने उसी पल को दोबारा तैयार करने की कसम उठा ली थी ।
सहायक ूबंधक(
क(राजभाषा)
राजभाषा)
नई िद^ली
ई-संपक> : mukesh11popli@yahoo.com