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कहानी

पल

- मुकेश पोपली
'आप मेरे साथ आइए ।' चंदनदास के कंधे पर हाथ रखते हए
ु िकसी ने कहा था । वे जवाब
दे ना चाहते थे, च क से गए और जवाब नहीं दे पाए । उनके सामने एक भि पु'ष थे ।

'अरे , आपने मुझे पहचाना नहीं ? म+ कृ पाशंकर, आपके समधी जी का िमऽ,' वह उनकी
िज1ासा शांत करते हए
ु बोले, 'और यह सभी मेरे पिरवार के सदःय ह+ , मेरी प5ी शीला,
अभय मेरा पुऽ और बहू अंजना, बाकी सब अंदर ह+ हॉल म8 ।' उ9ह:ने पास म8 खड़े सभी
लोग: से पिरचय कराते हए
ु कहा ।

सभी लोग हाथ जोड़कर खड़े हए


ु थे, कृ पाशंकर के बेटे और बहू ने उनके और उनकी प5ी
शारदा जो उनकी बगल म8 ही खड़ी थी, के पांव भी छू िलए थे । दोन: ने सहज ही
आशीवा>द उ9ह8 िदया था ।

'आप मुझे भूल गए ह+ , लेिकन म+ आपको कभी भी नहीं भूला । अभी आपको बाहर आते
दे खा तो म+ आपके पीछे -पीछे चला आया ।' कृ पाशंकर उनका हाथ अपने हाथ म8 लेते हए

बोले, 'िजस होटल के बाहर हम खड़े ह+ , यह अपना ही समझो, मगर आइए म+ आपको अपने
गरीबखाने की ओर ले चलता हंू जो बस इस होटल के पीछे की तरफ है, अगर आप वहां
अपने पिवऽ कदम रख8गे तो आप का एहसान होगा और ' चंदनदास ने कृ पाशंकर के मुंह
पर हाथ रख िदया था । अब उनके ःमृित-पटल पर पुराने िचऽ उभरने लगे और उ9ह8
धीरे -धीरे सब कुछ याद आने लगा ।

पल अथा>त ् थाली की जगह उपयोग म8 लाने के िलए बनाया गया पेड़ के प: का पाऽ ।
दे खते ही दे खते पल पड़ चुकी थी । परसने वाले भी अपने-अपने पाऽ संभाल रहे थे ।
एक के हाथ म8 दाल के सीरा (हलवा) था तो दसरे
ू के हाथ म8 गुलाब से भी गहरे रं ग के
गरम-गरम गुलाब जामुन से भरा पाऽ था । परसने वाले एक और लड़के ने बड़ी मुःतैदी
से अपने हाथ म8 काजू की बफG से भरा भगोना (बड़ा खुला बत>न) संभाला हआ
ु था । चार:
तरफ गHटे , सांगरी और Iवारबाटे की सिJजय: के साथ-साथ आम और कैर के अचार की
खुशबू पूरे पंड ाल म8 फैली हई
ु थी । अितिथगण बैठ चुके थे । कुछ ही Oण: म8 िमठाई से
भरे पाऽ: म8 से वह लड़के सब की पल म8 सामने बैठे अितिथय: की उॆ और उनकी
तंद'ःती
ु दे ख कर िमठाईयां रखते जा रहे थे ।

इस भोज का आयोजन चंदनदास ने अपने पौऽ के नामकरण के अवसर पर िकया था और


अपने समधी जी के िरँतेदार: के साथ-साथ उनके िमऽ-पिरवार: को भी आमंिऽत िकया
था । अपने पुऽ के िववाह पर तो वह कोई िवशेष आयोजन कर नहीं पाए थे, अब जब
उनका पोता हआ
ु तो इ9ह:ने गांव म8 ही इस आयोजन को िकए जाने की बात पुऽ को
कही । पुऽ चाहता था िक वह जहां नौकरी करता है, वहां इस आयोजन को बहत
ु ही अSछे
तरीके से िकया जा सकता है । वह मानते थे िक बहत
ु से कारण ह+ पर9तु उनके भीतर
यह भी इSछा थी िक हम अपनी जमीन से जुड़े रह8 और पिरवार की परTपराओं को पालन
भी हो जाए । आिखर गांव म8 भी तो कई पिरवार ऐसे ह+ िजनके यहां चंदनदास जाते रहे
ह+ , इससे बिढ़या मौका उ9ह8 और नहीं िमल सकता था गांव वाल: को अपने घर पर
आमंिऽत करते का । बSच: म8 अSछे संःकार हमेशा बने रह8 , वे इसके भी पOधर थे ।

अभी भोजन आरं भ नहीं िकया गया था । चंदनदास ने समधी जी के सामने जा कर हाथ
जोड़े और उनके साथ आए िमऽ: म8 से एक िमऽ के सामने एक पहे ली बांधी । दरअसल
पहे ली की एक परTपरा थी और इस परTपरा का उXे ँय माऽ मनोरं जन था । एक कहावत
भी है पल बांधना िजसका अथ> होता है कोई पहे ली पूछकर उसे हल करने के पहले
भोजन न करने की कसम दे ना । िजस िमऽ से पहे ली पूछी गई वह उनके समधी जी के
लंगोिटया यार भी थे और उनका अपने शहर म8 एक अलग 'तबा था, उनकी एक अलग
पहचान थी । ऐसी परTपरा का सामना उ9ह8 पहले कभी नहीं करना पड़ा था Zय:िक शहर:
म8 तो पल8 बहत
ु पहले ही उठ चुकी है। और उनका ःथान तरह-तरह की बॉकरी ने ले
िलया है । खै
र, शहर: म8 तो खाना खाने के ढं ग भी बदल गए ह+ और िफर शहरी लोग: के
पास व] भी कहां होता है िक पहे िलय: या चुटकुल: म8 अपना समय बबा>द कर8 । वहीं
बॉकरी बार-बार धोकर रख दी जाती है, ज^दी-ज^दी म8 खाना िनगला जाता है और िफर
नमःते और गुड -नाईट । लेिकन गांव: म8 अभी भी बहत
ु कुछ परTपराएं बाकी थी, कुछ
रीित-िरवाज अभी भी िनभाए जाते थे । आिखर यही तो मौके होते ह+ आपस म8 छे ड़-छाड़
और हं सी-िठठोली के । पहे ली के िलए वह िमऽ अथा>त ् कृ पाशंकर तैयार थे ।

पल बांधने म8 एक ू` चंदनदास ने पूछा था िक संसार म8 सबसे अिधक आदर िकस का


िकया जाता है ? सभी अितिथय: की आंख8 कृ पाशंकर पर आ िटकी थी । वैसे खुसर-पुसर
होने लगी थी, लेिकन सभी जानते थे िक जवाब केवल उन िमऽ को ही दे ना है । कुछ ही
दे र म8 िमऽवर ने सबको शांत करते हए
ु अपना जवाब िदया और सभी ने एक ःवर म8
हंु कारा भरा । चंदनदास ने भी बड़े आदर के साथ कृ पाशंकर के सामने हाथ जोड़े और

अपने हाथ: से िमठाई का एक टकड़ा उनके मुंह म8 डालते हए
ु सबसे भोजन ूारं भ करने
की ूाथ>ना की । िमऽवर ने जवाब िदया था 'अनाज' । सच ही है, जो aयि] अनाज का
आदर नहीं करते, उ9ह8 अनाज भी िनराश करता है ।

चंदनदास के समधी जी यbिप ःवयं इस जवाब से संतुc नहीं थे, लेिकन अपने परम िमऽ
का िनरादर भी करना नहीं चाहते थे । अगर उनसे यह पहे ली पूछी गई होती तो वह
िनिdत 'प से अनाज की जगह इसका जवाब दे ते 'पैसा', पैसा अथा>त ् धन । वह सबसे
बड़ा 'पया के िसeांत के पOधर थे । समधी जी के िलए पैसा ही सब-कुछ था तभी तो
उ9ह:ने चंदनदास के पुऽ दामोदर, आई.ए.एस. को अपना दामाद चुना था । हालांिक उनकी
लड़की के िलए अSछे वर का िमलना कोई बड़ी बात नहीं थी Zय:िक उनकी बेटी िवbा थी
भी बहत
ु सुंदर । लेिकन कहीं भी िववाह करने का मतलब था एक मोटी रकम का खच>
होना । चंदनदास ने न तो कुछ दहे ज मांगा था और नहीं समधी जी ने कुछ िवशेष दे ने
की योजना बनाई, िफर दामोदर ने भी कोई मांग नहीं की थी, जैसा बाप वैसा बेटा ।


पोते का नामकरण हो जाने के तीन-चार रोज बाद ही दामोदर की छिHटयां समाg हो रही
थी । यह तय हआ
ु िक बहू के साथ गांव की ही िकसी अनुभवी औरत को भी भेज िदया
जाए तािक बSचे का भी पूरा hयान रखा जा सके । लेिकन कुछ ही िदन: बाद वह औरत
वापस गांव आ गई और उसने बताया िक बहू जी की मां और बहन ने दामोदर बेटे की
कोठी म8 ही डे रा जमा िलया है और सारे नौकर: पर वह हZम
ु भी चलाने लगी है, उसके
साथ भी कुछ अSछा aयवहार नहीं िकया गया, इसिलए उसने तो वहां से िनकलने म8 ही
भलाई समझी । पहले तो उसकी बात िकसी ने मानी नहीं, मगर दो-तीन महीने बाद भी
जब दामोदर का कोई खत नहीं आया तब उ9ह8 लगा िक कहीं न कहीं गड़बड़ है । इस
बीच उ9ह:ने दो-तीन खत िलखे थे, मगर जवाब एक का ही आया िक सब ठीक है ।

चंदनदास सब कुछ भूलकर अपनी दिनया


ु म8 मःत हो गए थे । प5ी शारदा को भी
उ9ह:ने समझा िदया था िक वह समझ ले िक बेटा िवलायत चला गया है या कहीं खो
गया है, ईiर ने चाहा तो एक िदन वापस लौटकर आ जाएगा ।

दे खते ही दे खते समय गुजरता गया । दोन: के िदल: म8 कभी-कभी हक


ू उठती थी, पता
नहीं वह कहां होगा, कैसा होगा ? पोता गुjडू भी बड़ा हो गया होगा, बस वह दोन: उसे
घुटन: के बल चलता हआ
ु नहीं दे ख सके, उसकी तुतलाती जबान से दादा-दादी का संबोधन

नहीं सुन सके, उसका बालहठ नहीं दे ख सके और उसके िखलौन: को टटता हआ
ु नहीं दे ख
सके । िकतनी सुंदर बहू है उनकी, कहीं िकसी की नजर न लग जाए । ऐसा भी Zया िक
बहू ने कभी एक खत भी नहीं िलखा जबिक यहां से गई थी तब तो जार-जार आंसू बहाए
थे उसने ।

बहत
ु बरस: बाद आज जब डािकये ने उनका नाम पुकारा तो अपनी डाक लेकर बैठक म8
आ गए । शारदा दे वी उनके िलए लःसी का िगलास लेकर बैठी हई
ु थी, 'यह तो िकसी का
िनमंऽण पऽ लगता है, कहां से आया है ?' चंदनदास कुछ दे र तक िनमंऽण पऽ को हाथ म8
लेकर दे खते रहे और िफर उनकी आंख8 आdय> से फैलती चली गई, 'दामोदर की अTमा, यह
म+ Zया दे ख रहा हंू ? मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा ।'

'ऐसा भी Zया है? िनमंऽण पऽ ही तो है, शादी-Jयाह, नामकरण िकतने ही तो समारोह होते
ह+ , िकसका है यह तो बताओ ?' शारदा दे वी ःवयं भी आdय>चिकत हो रही थी िक आज
इतने बरस: बाद उसे दामोदर की अTमा वाला संबोधन सुनने को िमला था, एक वाkस^य
उसके मन म8 जाग गया था ।

'आदरणीय बाबा, आप के ःवाःlय की मंगल कामना करते हए


ु आपको शुभ समाचार दे ना
चाहता हंू िक आगामी बाईस अूैल को आपका पोता रोिहत अथा>त गुjडू दस साल का
होने जा रहा है । अभी वह पाँचवी कOा म8 एक अंमेजी ःकूल म8 यहां पढ़ रहा है । गमo

की छिHटय: के बाद उसका िशमला के एक ःकूल म8 दािखला करवाने का िवचार है ।
इसिलए वह चाहता है िक उसका ज9मिदन बहत
ु ही धूमधाम के साथ मनाया जाए । जब
उसे हमने यह बताया िक बाबा और अTमा को भी बुलाएंगे, तब से ही आपसे िमलने की
रट लगाए बैठा है । अपनी aयःतताओं के चलते हम कोिशश करते हए
ु भी आपसे िमलने
नहीं आ पाए । चंड ीगढ़ तक आने के िलए गांव से सीधी गाड़ी आती है । आप अपने आने
की तारीख मुझे वापसी म8 िलख द8 । आपकी बहू िवbा भी आप दोन: को बहत
ु याद करती
रहती है और आप को यह जानकर भी खुशी होगी िक दो साल पहले उसने एक लआमी को
ज9म िदया था जो अब तो बहत
ु सी बात8 करती है । आशा हैगांव म8 सब ठीक-ठाक
होगा । आपके खत का इं तजार रहे गा । म+ तो अभी भी बहत
ु aयःत रहता हंू , इसिलए
यहां सारा काम आप को ही संभालना है । आपका पुऽ, दामोदर ।' खत पढ़ते-पढ़ते
चंदनदास की आंख8 गीली हो आई थी और शारदा दे वी भी िकतनी दे र तक मुंह पर कपड़ा
रखे रही थी ।
दोन: खुशी से फूले नहीं समा रहे थे, आिखर अपना खून उ9ह8 बुला रहा था । दोन:
दामोदर, बहू और बSच: की बात8 करने लगे और चंड ीगढ़ जाने के िलए तैयारी करने लगे ।
कब जाएंगे, Zया-Zया ले जाना होगा, पीछे घर की दे खभाल, पशुओं के िलए चारा-पानी, बहत

से काम थे और िकतने बरस: बाद घर से अचानक िनकलने की तैयारी करना इतना
आसान भी नहीं होता । चंदनदास ने खत के जवाब म8 िलख िदया था िक वह िकसी
ूकार की िचंता न करे , वह और शारदा दोन: दो िदन पहले पहंु च जाएंगे ।

बहत
ु चहल-पहल थी दामोदर के बंगले म8 । वह ःवयं तो ःटे शन पर नहीं आ सका था,
मगर बहू गाड़ी ले कर आ गई थी साइवर के साथ । दोन: को एक अलग कमरा दे िदया
गया था । िदन भर नौकर: का आना-जाना लगा रहा । कभी यह तो कभी वह, दो बजे के
लगभग बहू उ9ह8 खाने के िलए कहने आई तो शारदा दे वी से रहा नहीं गया, 'बहू, गुिड़या
कहां है, उससे िमलने को बहत
ु मन कर रहा है । यह दे खो, म+ उसके िलए सोने का कड़ा
बनवा कर लाई हंू गांव से और यह कुछ कपड़े भी गरीब: म8 बांटने के िलए ।

सोने का कड़ा हाथ म8 लेते हए


ु वह बोली, 'मांजी, दरअसल बात यह है िक कल ही उसकी
मासी आई हई
ु थी, यहां से कोई एक सौ िकलोमीटर की दरी
ू पर उनका फाम> हाउस है,
बSची है न तो म+ने मना भी नहीं िकया, बार-बार कह रही थी िक मुझे इनके साथ जाना
है । गुjडू के ज9मिदन पर आ जाएगी । दो िदन की ही तो बात है । िफर आप जी भर
कर उसके साथ खेलना । गुjडू अभी ःकूल से आने ही वाला है, उसके पापा भी पांच बजे
आ जाएंगे । अभी थोड़ी दे र पहले ही पूछ रहे थे और कह रहे थे िक उ9ह8 कोई तकलीफ
न हो । आप अभी चिलए, खाना ठं डा हो रहा है ।'

शारदा दे वी का सारा उkसाह ठं डा पड़ गया था । उन दोन: ने बुझे मन से खाना खाया ।


थोड़ी दे र म8 ही गुjडू आ गया । िब^कुल दामोदर पर गया था वह । वैसा ही कद, वैसी ही
काठी, वैसे ही बाल । एक पल तो दोन: को लगा िक छोटा दामोदर ही खड़ा है । चंदनदास
ने उसे अपनी बांह: म8 भर िलया था और शारदा दे वी भी आशीष दे ने लगी थी ।

'ओ माई गॉड.......दाद,ू यू आर लूिकंग वैरा ओ^ड, एंड दादी यू, यू टू , हाउ मे हे यर ऑफ यू
बोथ, मे आई सजैःट यू टू यूज हे यर डाई, यू िवल बी लूक एज अिमताभ अंकल एंड दादी
यूअर फेस िरयली वैरी गुड बट दे अर इज नो मेकअप, माई नानी....' गुjडू फरा>टे से बोले जा
रहा था ।
'रोिहत, aहाट इज िदस ? गो इनसाइड एंड च8ज यूिनफाम>, दे आर नॉट गोइं ग एनीaहे यर, सी
दैम इन इविनंग ।' बहू ने उसे डपट िदया था ।

वह उछलता-कूदता चला गया था अंदर की ओर । दोन: के चेहरे पर एक फीकी सी


मुःकान थी और िदल कह रहा था िक कहीं कुछ खो गया है । यह बSच: की कैसी
तालीम है जो बड़: का आदर, उनका मान-सTमान सब कुछ खkम कर रही है । वह सफर
की थकान िमटाने का कह कर अपने कमरे म8 आ गए । नींद तो उनकी आंख: से कोस:
दरू थी, पहले भी और अब यहां आकर भी ।

शाम को दामोदर आ तो गया था लेिकन दो-चार साधारण से सवाल-जवाब हए


ु और वह
वापस चला गया । कहीं से अजsट कॉल थी । दो िदन बहत
ु ही मुिँकल से उ9ह:ने गुजारे
। इस बीच उनका गुjडू से भी िमलना दो-तीन बार ही हआ
ु और वह भी पांच-दस िमनट
के िलए ःकूल आते-जाते । चंदनदास को आdय> हो रहा था िक खत म8 तो िलखा था िक
सारा काम आपको ही संभालना है, मगर उनसे िकसी काम के िलए पूछा ही नहीं जा रहा
था और न ही यह लग रहा था िक यहां पर कोई ज9मिदन का समारोह होना है ।

इस बीच उ9ह8 यह खबर िमल गई थी िक ज9मिदन का आयोजन िकसी होटल म8 रखा


गया है । आज की पीढ़ी शायद यही सब कुछ करना चाहती है, धूम-धड़ाका, शोर-शराबा,
िदखावटीपन, बेहू दा हरकत8 और न जाने Zया-Zया ? उ9ह8 याद आ रहा था िक िकस तरह
से वह दामोदर का ज9म-िदन मनाते थे, सुबह उठते ही उसके हाथ: चौक म8 लगे तुलसी
के पौधे पर िदया जलवाते थे, शारदा मांजी के साथ िमलकर ढे र सारे मीठे और दसरे

पकवान बनवाया करती थी, मंिदर म8 जा कर ूसाद चढ़ाया जाता था, पशु-पिOय: को
भोजन िखलाया जाता था, िनध>न: म8 अनाज बांटा जाता था । गांव के बड़े -बुजुगt का

आशीवा>द िलया जाता था उनके पैर छकर । अब सब कुछ केवल रःम थी और हर कोई
अपने-अपने तरीके से इस रःम को िनभा रहा था । सब के पास व] की कमी है और
सबको केवल अपना-अपना ःवाथ> िदखाई दे रहा है, न मन से दआएं
ु रही ह+ और न ही
आदर और uयार ।

शाम के समय होटल म8 चहल-पहल दे खकर वह हैरान थे । बहत


ु बड़ी संvया म8 गािड़यां
बाहर सड़क पर खड़ी थी, पूरे होटल की िबि^डं ग पर रोशनी की गई थी । अंदर हाल म8 भी
न जाने िकतने गुJबारे इधर-उधर लगे हए
ु थे । तेज संगीत बज रहा था, डी.जे. की धुन:
पर बSचे, िकशोर और िकशोिरयां िथरक रहे थे और उनके मां-बाप एक दसरे
ू के पहनावे
को िनहार रहे थे । कोई िकसी के गहन: की तारीफ कर रहा था तो कोई अपने ऑिफस
के बारे म8 बात कर रहा था । िबना मांगे शेयर माकwट और सरकारी नीितय: के बारे म8
एक दसरे
ू को सलाह दी जा रही थी । कुल िमला कर यह लग रहा था िक लोग: को
आपस म8 िमलने का बहाना चािहए था । आयोजन म8 अपनी उपिःथित दज> करवाने की
होड़ मची हई
ु थी । सभी लोग सूट-बूट म8 थे, केवल चंदनदास ही थे िज9ह:ने धोती-कुरता
डाल रखा था । उ9ह8 दे खकर सभी लोग कानाफूसी करते थे ।

कुछ समय बाद केक काटने की घोषणा हई


ु तो सभी बSचे और कुछ दसरे
ू लोग मंचनुमा
एक ऊंची जगह पर इकHठे होने लगे । एक बड़ी सी मेज पर रं गिबरं गी मोमबिय: की
रोशनी से सजा हआ
ु केक जैसे ही रोिहत ने काटा, कैमरे जगमगाने लगे, 'हैuपी बथ>डे टू यू
. . . .' गाया जाने लगा । सभी उसे 'हैuपी बथ>डे ', 'मैनी-मैनी हैuपी िरटन> ऑफ द डे ',
'ज9मिदन मुबारक हो', कहते हए
ु उपहार दे ते जा रहे थे और रोिहत सब को 'थ+Zस' बोलता
जा रहा था ।

उसके पास ही उसकी नानी और नाना भी खड़े थे । चंदनदास और शारदा दे वी भी अपने


पोते को इस अवसर पर गोद म8 उठा लेना चाहते थे, मगर भीड़ थी िक छं टने का नाम ही
नहीं ले रही थी । शारदा दे वी की इSछा थी िक वह उसे अपने हाथ: से उसे सूजी का
हलवा िखला दे जो िक उसने शाम को ही बनाया था । आिखर कुछ दे र बाद जब वह
रोिहत तक पहंु चे तो शारदा ने उसके मुंह म8 थोड़ा सा हलवा डालते हए
ु उसे ढे र सारे
आशीवा>द दे डाले लेिकन दसरे
ू ही पल उनके समधी जी बोल उठे - 'हलवा नहीं, उसे कोई
िगyट दीिजए' तो चंदनदास ने अपने गले से सोने की चै
न उतारकर रोिहत के गले म8 डाल
दी और बोले, 'यह संभाल कर रखना बेटा, यह अपने पिरवार की िनशानी हैऔर इस
पिरवार की रौनक तुम से ही है । अपने कुल का नाम रोशन करना ।' कहते-कहते उनकी
ु वह दोन: नीचे उतर आए ।
आंख8 भर आई और उसके मुंह को चूमते हए

अब सब लोग: ने डाइिनंग हॉल की तरफ जाना शु' कर िदया था । uलेट: और चTमच


की खनखनाहट सुनाई दे ने लगी थी । बSच: ने आइसबीम कॉन>र पर धावा बोल िदया था
। चंदनदास और शारदा दोन: कुछ दे र तक तो यह सब दे खते रहे और िफर वहां के
माहौल से अपिरिचत से होते हए
ु बाहर की तरफ आ गए थे ।

चंदनदास जब कृ पाशंकर के साथ उनके घर पहंु चे तो उ9ह8 अपनी आंख: पर ही िवiास


नहीं हआ
ु । िजतने शांत कृ पाशंकर थे उतनी ही सादगी से उनका घर लग रहा था । कोई
ताम-झाम नहीं, साधारण सा सोफा और एक सामा9य सी िदखने वाली मेज के अलावा
कमरे म8 दो-चार कुिस>यां थी । कमरे म8 एक कोने म8 मामोफोन था तो दीवार: पर एक-दो
तःवीर8 दे वताओं की और बीच म8 एक ूाकृ ितक zँय वाली प8िटं ग थी िजस पर उनकी बहू
का नाम कोने म8 िदख रहा था ।

'म+ िदखावा िब^कुल पसंद नहीं करता चंदनदास जी', कृ पाशंकर पूरे कमरे म8 नजर डालते के
पdात ् हैरान होते हए
ु चंदनदास से कह रहे थे, 'और यह सब म+ने आपसे ही महण िकया है
।' एक बार िफर चंदनदास की आंख: म8 आdय> अपना ःथान बना रहा था ।

'जी हां, आपके गांव से आने के पdात ् म+ने अपने आपको बहत
ु बदला और बSच: को भी
सादा जीवन िसखाने की कोिशश की', कृ पाशंकर ने उनकी िज1ासा शांत करते हए
ु कहा,
'होटल मेरा aयवसाय है, वहां सब-कुछ वह मुझे रखना पड़ता है जो मेरे माहक: को चािहए,
लेिकन घर और aयवसाय म8 फक> तो होता है न । आप के आशीवा>द से म+ अपने पिरवार
के साथ बहत
ु खुश हंू और आप की पल बांधने की पहे ली मुझे आज तक याद है । अब
आप कुछ दे र आराम किरए और भोजन अभी तैयार हआ
ु जाता है । म+ आपकी पल नहीं
ूं ा । आप मेरे अितिथ नहीं, मेरे बड़े भाई ह+ । यह आपका ही घर है और मुझे िवiास
बांधग
है िक आप यहां रहने के िलए मना नहीं कर8 गे । आप जब कह8 गे म+ ःवयं पिरवार के साथ
आपके गांव चलूंगा ।' जवाब म8 चंदनदास ने कृ पाशंकर को गले लगा िलया था ।

चंदनदास और शारदा दोन: महसूस कर रहे थे अपने और पराये का फक> । उ9ह8 लग रहा
था िक दामोदर और बहू के िलए वह पुरानी और छे द: वाली पल बन चुके थे और
कृ पाशंकर ने उसी पल को दोबारा तैयार करने की कसम उठा ली थी ।

रचनाकार संपक> - मुकेश पोपली

सहायक ूबंधक(
क(राजभाषा)
राजभाषा)

भारतीय ःटे ट ब+क

ःथानीय ूधान काया>लय

नई िद^ली

ई-संपक> : mukesh11popli@yahoo.com

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