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माहेश्वरखण्ड श्रीब्रह्माजी कहते हैं
माहेश्वरखण्ड श्रीब्रह्माजी कहते हैं
बह का एक िदन और एक रात पाथिमक रचना का समय है िदन मे सृिष करता है और रात मे पलय। िदन मे
िवशेदेवा, समसत पजापित, ऋिषगण, िसथर रहने और राित मे सभी पलय मे समा जाते है। पातः पुनः उतपन होते
है। बह का एक िदन कलप है और उसी पकार राित भी। हजार वार चतुरयुग बीतने पर चौदह मनु होते है।
उतरायण सूयर के रहने पर देवताओं का िदन और दिकणायन सूयर रहने तक उसकी रात होती है।
तीस वषर का एक िदवय वषर कहा गया है। देवो के तीन माह मनुषयो के सौ माह के बराबर होते है। इस पकार तीन
सौ साठ मानव वषों का देवताओं का एक वषर होता है तीन हजार सौ मानव वषों का सपतिषरयो का एक वषर होता है।
सतयुग चालीस हजार िदवय वषों का, तेता अससी हजार िदवय वषों का, दापर बीस हजार िदवय वषों का और
किलयुग साठ हजार िदवय वषों का कहा गया है। इस पकार हजार चतुयुरगो का एककलप कहा जाता है।
कलपानत मे पलय के समय महरलोक के जन लोक मे चले जाते है। बहा के आठ हजार वषर का बह युग होता
है। सहसत िदन का युग होता है िजसमे देवताओं की उतपित होती है। अनत मे समसत िवकार कारण मे लीन हो
जैाते है। िफर िशव की आजा से समसत िवकारो का संहार होता है। गुणो की समानता मे पलय तथा िवषमता
मे सृिष होती है। िशव एक ही रहता है। बहा और िवषणु अनेक उतै्पन हो जाते है। बहा के िदतीय परादर मे
िदन मे सृिष रहती है और राित मे पलय होती है। भूः भुवः तथा महः ऊपर के लोक है। जड चेतन के लय होने
पर बहा नार (जल) मे शयन करने के कारण नारायण कहते है। पातः उठने पर जल ही जल देखकर उस शूनय
मे सृिष की इचछा करते है। वाराह रप से पृथवी का उदार करके नदी नद सागर पूवरवत िसथर करते हैैं।
पृथवी को सम बनाकर पवरतो को अविसथत करते है। पुनः भूः आिद लोको की सृिष की इचछा उनमे जागत होती
है।
नारद पुराण सवयं महिषर नारद के मुख से कहा गया पुराण है।[क] महिषर वयास दारा िलिपबद िकए गए १८ पुराणो
मे से एक है। पारंभ मे यह २५,००० शलोको का संगह था लेिकन वतरमान मे उपलबध संसकरण मे केवल
२२,००० शलोक ही उपलबध है।[१] संपूणर नारद पुराण दो पमुख भागो मे िवभािजत है। पहले भाग मे चार
अधयाय है िजसमे सुत और शौनक का संवाद है, बै्रहाड की उतपित, िवलय, शुकदेव का जनम, मंतोचचार की
िशका, पूजा के कमरकाड, िविभन मासो मे पडने वाले िविभन वरतो के अनुषानो की िविध और फल िदए गए है।
दूसरे भाग मे भगवान िवषणु के अनेक अवतारो की कथाएँ है।[२]
महिषर वेदवयास दारा रिचत संसकृत भाषा मे रचे गए अठारण पुराणो मे से एक पुराण गंथ है। सभी अठारह पुराणो
की गणना मे ‘पदम पुराण’ को िदतीय सथान पापत है। शलोक संखया की दृिष से भी इसे िदतीय सथान रखा जा
सकता है। पहला सथान सकंद पुराण को पापत है। पदम का अथर है-‘कमल का पुषप’। चूंिक सृिष रचियता
बहाजी ने भगवान नारायण के नािभ कमल से उतपन होकर सृिष-रचना संबध ं ी जान का िवसतार िकया था,
इसिलए इस पुराण को पदम पुराण की संजा दी गई है।
[संपािदत करे] िवषय वसतैु
यह पुराण सगर, पितसगर, वंश, मनवतंर और वंशानुचिरत –इन पाच महतवपैूणर लकणो से युकत है। भगवान िवषणु
के सवरप और पूजा उपासना का पितपादन करने के कारण इस पुराण को वैषणव पुराण भी कहा गया है। इस
पुराण मे िविभन पौरािणक आखयानो और उपाखयानो का वणरन िकया गया है, िजसके माधयम से भगवान िवषणु से
संबिं धत भिकतपूणर कथानको को अनय पुराणो की अपेका अिधक िवसतृत ढंग से पसतुत िकया है। पदम-पुराण
सृिष की उतपित अथात् बहा दारा सृिष की रचना और अनेक पकार के अनय जानो से पिरपूणर है तथा अनेक
िवषयो के गमभीर रहसयो का इसमे उदाटन िकया गया है। इसमे सैृिष खंड, भूिम खंड और उसके बाद सवगर
खणड महतवपूणर अधयाय है। िफर बह खणड और उतर खणड के साथ िकया योग सार भी िदया गया है। इसमे
अनेक बाते ऐसी है जो अनय पुराणो मे भी िकसी-न-िकसी रप मे िमल जाती है। िकनतु पदम पुराण मे िवषणु के
महतव के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी िलया गया है। शंकर का िववाह और उसके उपरानत अनय
ऋिष-मुिनयो के कथानक ततव िववेचन के िलए महतवपूणर है।[१]
िवदानो के अनुसार इसमे पाच और सात खणड है। िकसी िवदान ने पाच खणड माने है और कुछ ने सात। पाच
खणड इस पकार है-
1.सृिष खणड: इस खणड मे भीषम ने सृिष की उतपित के िवषय मे पुलसतय से पूछा। पुलसतय और भीषम के
संवाद मे बहा के दारा रिचत सृिष के िवषय मे बताते हुए शंकर के िववाह आिद की भी चचा की।
2.भूिम खणड: इस खणड मे भीषम और पुलसतय के संवाद मे कशयप और अिदित की संतान, परमपरा सृिष, सृिष
के पकार तथा अनय कुछ कथाएं संकिलत है।
3.सवगर खणड: सवगर खणड मे सवगर की चचा है। मनुषय के जान और भारत के तीथों का उललेख करते हुए
ततवजान की िशका दी गई है।
4. बह खणड: इस खणड मे पुरषो के कलयाण का सुलभ उपाय धमर आिद की िववेचन तथा िनिषद ततवो कैा
उललेख िकया गया है। पाताल खणै्ड मे राम के पसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है िक
भिकत के पवाह मे िवषणु और राम मे कोई भेद नही है। उतर खणड मे भिकत के सवरप को समझाते हएु योग और
भिकत की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को िवसतार से िलया गया
है।
5.िकयायोग सार खणड: िकयायोग सार खणड मे कृषण के जीवन से समबिनधत तथा कुछ अनय संिकपत बातो को
िलया गया है। इस पकार यह खणड सामानयत: ततव का िववेचन करता है।
बह पुराण की संिकपत जानकारैी
यह पुराण सब पुराणो मे पथम और धमर अथर काम और मोक को पदान करने वाला है,इसके अनदर नाना पकार के
आखयान है,इस पुराण की शलोक संखया दस हजार है,देवता दानव और पजापितयो की उतपित इसी पुराण मे
बतायी गयी है। लोकेशर भगवान सूयर के पुणयमय वंश का वणरन िकया गया है,जो महापातकैों के नाश को
करने वाला है। इसमे ही भगवान रामचनद के अवतार की कथा है,सूयर वंश के साथ चनदवंश का वणरन िकया गया
है,शीकृषण भगवान की कथा का िवसतार इसी मे है,पाताल और सवगर लोक का वणरन नरको का िववरण सूयरदेव की
सतुित कथा और पावरती जी के जनम की कथा का उललेख िलखैा गया है।दक पजािपत की कथा और एकामक
केत का वणरन है। पुरषोतम केत का िवसतार के साथ िकया गया है,इसी मे शीकृषण चिरत का िवसतारपूवरक
िलखा गया है,यमलोक का िववरण िपतरो का शाद और उसका िववरण भी इसी पुराण मे बताया गया है,वणों और
आशमो का िववेचन भी कहा गया है,योगो का िनरपण साखय िसदानतो का पितपादन बहवाद का िदगदशरन और
पुराण की पशंसा की गयी है। इस पुराण के दो भाग है,और पढने सुनने से यह दीघरता की ओर बढाने वाला है।
[संपािदत करे] बहाणड पुराण की संिकपत जानकारैी
यह पुराण भिवषय कलपो से युकत और बारह हजार शलोको से युकत है,इसके चार पद है,पहला पिकयापाद दूसरा
अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादो को पूवर भाग कहा जाता है,तृतीय पाद
ही मधयम भाग है,और चतुथर पाद को उतम भाग कहा गया है। पूवर भाग के पिकया पाद मे पहले कतरवय का
उपदेश नैिमषा आखयान िहरणयगभर की उतपित और लोकरचना इतयािद िवषय विणरत है,िदतीयभाग मे कलप तथा
मनवनतर का वणरन है,ततपशात लोकजान मानुषी-सृिष-कथन रदसृिष-वणरन महादेव िवभूित ऋिष सगर
अिगनिवजय कालसदभाव-वणरन िपयवत वंश का वणरन पृथवी का दैघयर और िवसतार भारतवषर का वणरन िफर अनय
वषों का वणरन जमबू आिद सात दीपो का पिरचय नीचे के लोको पातालो का वणरन भूभुरव: आिद ऊपर के लोको का
वणरन गहो की गित का िवशलेषण आिदतय
वयूह का कथन देवगहानुकीतरन भगवान िशव के नीलकणठ नाम पडने का कथन महादेवजी का वैभव अमावसया का
वणरन युगतविनरपण यजपवतरन अिनतम दो युगो का कायर युग के अनुसार पजा का लकण ऋिषपवर वणरन
वेदवयसन वणरन सवायमभुव मनवनतर का िनरपण शेषमनवनतर का कथन पृथै्वीदोहन चाकुषु और वतरमान
मनवनतर के सगर का वणरन है। मधयभाग के सपतऋिषयो का वणरन पजापित वंश का िनरपण उससे देवता आिद
की उतपित इसके बाद िवजय अिभलाषा और मरदगणो की उतपित का कथन है। कशयप की संतानो का वणरन
ऋिषवंश िनरपण िपतृकलप का कथन शादकलप का कथन वैवसत मनु की उतपित उनकी सृिष मनुपुतो का वंश
गानधवर िनरपण इकवाकु वंश का वणरन रिजका अदुत चिरत ययाितचिरत यदुवश ं िनरपण कातरवीयाजुरन चिरत
परशुरामचिरत वृिषणवंश का वणरन सगर की उतपित भागरव का चिरत कातरवीयारै्जुन समबनधी कथा,भागरव औवर
की कथा शुकाचायरकृत इनद का पिवत सतोत देवासुर संगाम की कथा िवषणुमाहातमय बिलवंश िनरपण किलयुग मे
होने वाले राजाओं का चिरत आिद िलखे गये है,इसके बाद उतरभाग के चौथे उपसंहारपाद मे वैवसत मनवनतर की
कथा जयो की तै्यो िलखैी गयी है,जो कथा पहले संकेप मे कही गयी है उसका यहा िवसतार से िनरपण िकया
गया है। भिवषय मे होने वाले मनुओं की कथा भी कही गयी है,िवपरीत कमों से पापत होने वाले नरको का िववरण
भी िलखा गया है। इसके बाद िशवधाम का वणरन है,और सतव आिद गुणो के समबनध से जीवो की ितिविध गित का
िनरपण िकया गया है। इसके बाद अनवय तथा वयाितरेकिदिष से अिनदेशय एवं अतकयर परबह परमातमा के
सवरप का पितपादन िकया गया है,यह बहाणड पुराण चारलाख शलोको मे कहा गया है,और उन शलोको को चार
भागो मे बताया गया हैै।
बहवैवतर पुराण वेदमागर का दसवा पुराण है। वयासजी ने बहवैवतर पुराण के चार भाग िकये है बह खणड,पकृित
खणड,गणेश खणड, और शीकृषण खणड। इन चारो खणडो से युकत यह पुराण अठारह हजार शलोको का बताया
गया है। उसमे सूत और महऋिषयो के संवाद मे पुराण उपकम है। उसमे पहला पकरण सृिषवणरन का है। िफर
नारद और बहाजी के िववाद का वणरन है। िजससे दोनो का पराभव हुआ बताया गया है। नारदजी का िशवलोक
गमन और और िशवजी से नारद को जान की पािपत का वणरन है,उसके बाद िशवजी के कहने से जान लाभ के
िलये साविणर के िसदसेिवत आशम मे जो पुणयमय तथा ितलोकी को आशयर मे डालने वाला था का वणरन है।
इसके बाद नारद और साविणर का संवाद का वणरन है,िजसके अनदर शीकृषण का आखयान और कथाये है। पकृित
की अंशभूत कलाओं के माहतमय और पूजन आिदक का िवसतारपूवरक यथावत वणरन िकया गया है। पकृित खणड
का शवण करने पर सुखो की पािपत का आखयान िमलता है। गणेश खणड के वणरन के िवषय मे पावरतीजी के दारा
काितरकेय और गणेश की उतपित के िवषय आखयान िमलता है। इसके अनदर ही कातरवीयाजुरन और
जमदिगनननदन और परशुरामजी मे जो महान िववाद हुआ था उसका उललेख िकया गया है। इसके बाद शीकृषण
जनम के िवषय मे कथा का उललेख िमलता है।
बहाजी कहते है-- मुने ! अब मै तुमहे मारकणडेय पुराण का पिरचय देता हूँ। यह पुराण पढने और सुनने वालो के
िलये हमेशा पुणयदायी है। इसके अनदर पिकयो को पवचन का अिधकारी बनाकर उनके दारा सब धमों का
िनरपण िकया गया है। यह मारकणडेय पुराण नौ हजार शलोको का संगह है। इसमे कहा जाता है िक पहले
माकरणडेयजी के समीप जैिमिन का पवचन है। िफर धमर संजम पिकयो की कथा कही गयी है। िफर उनके पूवर
जनम की कथैा और देवराज इनद के कारण उनहे शापरप िवकार की पािपत का कथन है,तदननतर बलभदजी
की तीथर याता,दौपदी के पाचो पुतो की कथा,राजा हिरशनद की पुणयमयी कथा,आडी और बक पिकयो का
युद,िपता और पुत का आखयान,दतातेयजी की कथा,महान आखयान सिहत हैहय चिरत,अलकर चिरत, मदालसा
की कथा,नौ पकार की सृिष का पुणयमयी वणरन,कलपानतकाल का िनदेश,यक-सृिष िनरपण,रद आिद की
सृिष,दीपचया का वणरन,मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीतरन और उनही मे दुगाजी की अतयनत
पुणयदाियनी कथा है। जो आठवैें मनवनतर के पसंग मे मे कही गयी है। ततपशात तीन वेदो के तेज से पणव
की उतपित सूयर देव की जनम की कथा,उनका माहातमय वैवसत मनु के वंश का वणरन,वतसपी का चिरत, तदननतर
महातमा खिनत की पुणयमयी कथा,राजा अिविकत का चिरत िकिमिकचछक वरत कैा वणरन,निरषयनत
चिरत,इकवाकु चिरत,नल चिरत,शी रामचनद के उतम कथा,कुश के वंश का वणरन,सोमवंश का वणरन,पुररवा की
पुणयमयी कथा,राजा नहुष का अदुत वृतात,ययाित का पिवत चिरत,यदुवश ं का वणरन,शीकृषण की
बाललीला,उनकी मथुरा दारका की लीलायेै ,सब अवतारो की कथा,साखयमत का वणरन,पपंच के िमथयावाद
का वणरन,माकरणडेयजी का चिरत,तथा पुराणा शवण आिद का फल यह सब िवषय माकरणडेय पुराण मे बताये गये
है।
भिवषय पुराण मे भिवषय मे होने वाली घटनाओं का वणरन है। इससे पता चलता है ईसा और मुहममद साहब[१] के
जनम से बहुत पहले ही भिवषय पुराण मे महिषर वेद वयास ने पुराण गंथ िलखते समय मुिसलम धमर के उदव और
िवकास तथा ईसा मसीह तथा उनके दारा पारंभ िकए गए ईसाई धमर के िवषय मे िलख िदया था।[२]
a बहाजी कहते है--- वतस! सुनो,अब मै ितिवकम चिरत से युकत वामनपुराण का वणरन करता हूँ,इसकी शलोक
संखया दस हजार है,इसमे कूमर कलप के वृतानत का वणरन है,और ितवणर की कथा है। यह पुराण दो भागो से युकत
है,और वकता शोता दोनो के िलये शुभकारक है,इसमे पहले पुराण के िवषय मे पश है,िफर बहाजी के िशरचछेद की
कथा कपाल मोचर का आखयान और दक यज िवधवंश का वणरन है। इसके बाद भगवान हर की कालरप संजा
मदनदहन पहलाद नारायण युद देवासुर संगाम सुकेशी और सूयर की कथा,कामयवरत का वणरन,शीदुगा चिरत तपती
चिरत कुरकेत वणरन अनुपम सतया माहातमय पावरती जनम की कथा,तपती का िववाह गौरी उपाखयान कुमार चिरत
अनधकवध की कथा साधयोपाखयान जाबालचिरत अरजा की अदुतकथा अनधकासुर और शंकर का युद अनधक
को गणतव की पािपत मरदगणो के जनम की कथा राजा बिल का चिरत लकमी चिरत ितिबकम चिरत पहलाद की
तीथर याता और उसमे अनेक मंगलमयी कथाये धुनधु का चिरत पेतोपाखयान नकत पुरष की कथा शीदामा का
चिरत ितिबकम चिरत के बाद बहाजी दारा कहा हुआ उतम सतोत तथा पहलाद और बिल के संवाद के सुतल
लोक मे शीहिर की पशंसा का उललेख है।