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माहेशरखणड शीबहाजी कहते है- वतस !

सुनो, अब मै सकनद पुराण का वणरन करता हँू,िजसके पद पद मे साकात


महादेवजी िसथत है। मैैने शतकोिट पुराण मे जो िशव की मिहमा का वणरन िकया है,उसके सारभूत अथर का
वयासजी ने सकनदपुराण मे वणरन िकया है। उसमे सात खणड िकये गये है,सब पापो का नाश करने वाला सकनद
पुराण इकयासी हजार शलोको से युकत है,जो इसका शवण अथवा पाठ करत है वह साकात शिैव ही है,इसमे
सकनद के दारा उन शैव धमों का पितपादन िकया गया है,जो ततपुरष कलप मे पचिलत थे,वे सब पकार की
िसदिै पदान करने वाले इसके पहले खणड का नाम माहेशर खणड है,िज सब पापो का नाश करने वाला इसमे
बारह हजार से कुछ कम शलोक है,यह परम पिवत तथा िवशाल कथाओं से पिरपूणर है,इसमे सैकडो उतम चिरत
है,तथा यह खणड सकनद सवामी के माहातमय का सूचक है। माहेशर खणड के भीतर केदार माहातमय मे पुराण
आरमभ हुआ है,उसमे पहले दक यज की कथा है,इसके बाद िशविलंग पूजन का फल बताया गया है,इसके बाद
समुद मनथन की कथा और देवराज इनद के चिरत का वणरन है,िफर पावरती का उपाखयान और उनके िववाह का
पसंग है,ततपशात कुमार सकनद की उतपित और तारकासुर के साथ उनके युद का वणरन है,िफर पाशुपत का
उपाखयान और चणड की कथा है,िफर दूत की िनयुिकत का कथन और नारदजी के साथ समागम का वृतानत
है,इसके बाद कुमार माहातमय के पसंग मे पंचतीथर की कथा है,धमरवमा राजा की कथा तथा निदयो और समुदो का
वणर है,तदननतर इनददुम और नाडीजंग की कथा है,िफर महीनदी के पादुभाव और दमन की कथा है,ततपशात मही
सैाकर संगम और कुमारेश का वृतानत है,इसके बाद नाना पकार के उपाखयानो सिहत तारक युद और
तारकासुर के वध का वणरन है,िफर पंचलिैंग सथापन की कथा आयी है,तदननतर दीपो का पुणयमयी वणरन
ऊपर के लोको की िसथित बहाणड की िसथित और उसका मान तथा वकररेशकी कथा है,िफर वासुदेव का मातमय
और कोिटतीथर का वणरन है। तदननतर गुपतकेत मे नाना तीथों का आखयान कहा गया है,पाणडवो की पुणयमयी
कथा और बबररीक की सहायता से महािवदा के साधन का पसंग है,ततपशात तीथरयाता की समािपत है,तदननतर
अरणाचल का माहातमय है,तथा सनक और बहाजी का संवाद है,गौरी की तपसया का वणरन तथा वहा के िभन
िभन तीथों का वणरन है,मिहषासुर की कथा और उसके वध का परम अदुत पसंग कहा गया है,इस पकार सकनद
पुराण मे यह अदुत माहेशर खणड मे कहा गया है। वैषणव-खणड दूसरा वैषणवखणड है, अब उसके आखयानो का
मुझसे शवण करो,पहले भूिम वाराह का संवाद का वणरन है,िजसमे वेकटाचल का पापनाशक माहातमय बताया गया
है,िफर कमला की पिवत कथा और शीिनवास की िसथित का वणरन है,तदननतर कुमहार की कथा तथा
सुवणरमुखरी नदी के माहातमय का वणरन है,िफर अनेक उपाखयानो से युकत भरदाज की अदुत कथा है,इसके बाद
मतंग और अंजन के पापनाशक संवाद का वणरन है,िफर उतकल पदेश के पुरषोतम केत का माहातमय कहा गया
है,ततपशार माकरणडेयजी की कथा,राजा अमबरीष का वृतानत,इनददुम का आखयान और िवदैापित की शुभ कथा
का उललेख है। बहन ! इसके बाद जैिमिन और नारद का आखयान है,िफर नीलकणठ और नृिसंह का वणरन
है,तदननतर अशमेघ यज की कथा और राजा आ बहलोक मे गमन कहा गया है,ततपशात रथयाता िविध और जप
तथा सनान की िविध कही गयी है। िफर दिकणामूतरिै का उपाखयान और गुिणडचा की कथा है,रथ रका की िविध
और भगवान के शयनोतसव का वणरन है,इसके बाद राजा शेत का उपाखयान कहा गय अहै िवर पृथु उतसव का
िनरपण है,भगवान के दोलोतसव तथा सावतसिरक वरत का वणरन है,तदननतर उदालक के िनयोग से भगवान िवषणु
की िनषकैाम पूजा का पितपादन िकया गया है,िफर मोक साधन बताकर नाना पकार के योगो का िनरपण िकया
गया है,ततपशात दशावतार की कथा अर सनान आिद का वणरन है,इसके बाद बदिरकाशम तीथर का पाप नाशक
माहातमय बताया गया है,उस पसंग मे अिगन आिद तीथों और गरण िशला की मिहमा है,वहा भगवान के िनवास का
कारण बताया गया है। िफर कपालमोचन तीथर पंचधारा तीथर और मेरसंसथान की कथा है,तदननतर काितरक
मास का माहातमय पारमभ होता है,उसमे मदनालस के माहातमय का वणरन है,धूमकेशका उपाखयान और काितरक
मास मे पतयेक िदन के कृतय का वणरन है,अनत मे भीषम पंचक वरत का पितपादन िकया गया है,जो भोग और मोक
देने वाला है। ततपशात मागरशीषर के माहातमै्य मे सनान की िविध बतायी गयी है,िफर पुणडािद कीतरन और माला
धारण का पुणय कहा गया है,भगवान को पंचामृत से सनान करवाने तथा घणटा बजाने आिद का पुणयफल बताया
गया है। नाना पकार के फूलो से भगवतपूजन का फल और तुलसीदल का माहातमय बताया गया है,भगवान को
नैवैद लगाने की मिहमा,एकादसी के िदन कीतरन अखणड एकादसी वरत रहने का पुणय और एकादशी की रात मे
जागरण करने का फल बताया गया है। इसके बाद मतसयोतसव का िवधान और नाममाहातमय का कीतरन है,भगवान
के धयान आिद का पुणय तथा मथुरा का माहातमय बताया गया है,मथुरा तीथर का उतम माहातमय अलग कहा गया
है,और वहा के बारह वनो की मिहमा वणरन िकया गया है,ततपशात इस पुराण मे शीमदभागवत के उतम माहातमय
का पितपादन िकया गया है इस पसंग मे बजनाभ और शािणडलय के संवाद का उललेख िकया गया है,जो बज की
आनतिरक लीलाओं का पशासक है,तदननतर माघ मास मे सनान दान और जप करने का माहातमय बताया गया
है,जो नाना पकार के आखयानो से युकत है,माघ माहैातमय का दस अधयायो मे पितपादन िकया गया है,ततपशात
बैशाख माहातमय मे शययादान आिद का फल कहा गया है,िफर जलदान की विैिध कामोपाखयान शुकदेव चतर
वयाध की अदुत कथा और अकयतृतीया आिद के पुणय मा िवशेष रप से वणरन है,इसके बाद अयोधया माहातमय
पारमभ करके उसमे चकतीथर बहतीथर ऋणमोचन तीथर पापमोचन तीथर सहसतधारातीथर सवगरदारतीथर
चनदहिरतीथर धमरहिरतीथर सवणरवृिषतीथर की कथा और ितलोदा-सरयू-संगम का वणरन है,तदननतर सीताकुणड
गुपतहिरतीथर सरयू-घाघरा-संगम गोपचारतीथर कीरोदकतीरै्थ और बृहसपितकुणड आिद पाच तीथों की मिहमा का
पितपादन िकया गया है,ततपशात घोषाकर आिद तेरह तीथों का वणरन है। िफर गयाकूप के सवरपापनाशक माहातमय
का कथन है,तदननतर माणडवयाशम आिद,अिजत आिद तथा मानस आिद तीथों का वणरन िकया गया है,इस पका
यह दूसरा वैषणव खणड कहा गया है। बहखणड इसमे पहले सेतुमाहातमय पारमभ करके वहा के सनान और दशरन
का फल बताया गया है,िफर गालव की तपसया तथा राकस की कथा है,ततपशात देवीपतन मे चकतीथर आिद की
मिहमा,वेतालतीथर का माहातमय और पापनाश आिद का वणरन हैै,मंगल आिद तीथर का माहातमय बहकुणड आिद
का वणरन हनुमतकुणड की मिहमा तथा अगसतयातीथर के फल का कथन है,रामतीथर आिद का वणरन लकमीतीथर का
िनरपण शंखतीथर की मिहमा साधयातीथर के पभावो का वणरन है,िफर रामेशर की मिहमा ततवजान का उपदेश तथा
सेतु याता िविध का वणरन है,इसके बाद धनुषकोिट आिद का माहातमय कीरकुणड आिद की मिहमा गायती आिद
तीथों का माहातमय है। इसके बाद धमारणय का उतम माहातमय बताया गया है िजसमे भगवान िशव ने सकनद को
ततव का उपदेश िदया है,िफर धमाणय का पादुभाव उसके पुणय का वणरन कमरिसिद का उपाखयान तथा ऋिषवंश
का िनरपण िकया गया है,इसके बाद वणाशम धमर के ततव का िनरपण है,तदननै्तर देवसथान-िवभाग और
बकुलािदतय की शुभ कथा का वणरन है। वहा छाताननदा शानता शीमाता मातंिगनी और पुणयदा ये पाच देिवया सदा
िसथत बतायी गयी है। इसके बाद यहा इनदेशर आिद की मिहमा तथा दारका आिद का िनरपण है,लोहासुर की
कथा गंगाकूप का वणरन शीरामचनद का चिरत तथा सतयमिनदर का वणरन है,िफर जीणोदार की मिहमा का कथन
आसनदान जाितभेद वणरन तथा समृित-धमर का िनरपण है।इसके बाद अनेक उपाखयानो से युकत वैषणव धमर का
िनरपण है। इसके बाद मुणयमय चातुरमासय का माहातमय पारमभ करके उसमे पालन करनैे योगय सब धमों
का िनरपण िकया गया है,िफर दान की पसंसा वरत की मिहमा तपसया और पूजा का माहातमय तथा सचछू द का
कथन है,इसके बाद पकृितयो के भेद का वणरन शालगाम के ततव का िनरपण तारकासुर के वध का
उपाय,गरडपूजन की मिहमा,िवषणु का शाप,वृकभाव की पै्रािपत, पावरती का अनुभव,भगवान िशव का ताणडव
नृतय,रामनाम की मिहमा का िनरपण िशविलंगपतन की कथा,पैजवन शूद की कथा, पावरती के जनम और
चिरत,तारकासुर का अदुत वध,पणव के ऐशयर का कथन,तारकासुर के चिरत का पुनवरणन, दक-यज की
समािपत,दादसाकरमंत का िनरपण जानयोग का वणरन,दादश सूयों की मिहमा तथा चातुमासय-माहातमय के शवण
आिद के पुणय का वणरन, िकया गया है,जो मनुषयो के िलये कलयाणकारक है। इसके बाद बाहोतर भाग मे भगवान
िशव की अदुत मिहमा पंचाकरमंत के माहातमय तथा गोकणर की मिहमा है,इसके बाद िशवराित की मिहमा पदोषवरत
का वणरन है,तथा सोमवारवरत की मिहमा एवं सीमिनतनी की कथा है। िफर भदायु की उतपतिै का वणरन
सदाचार-िनरपण िशवकवच का उपदेश भदायु के िववाह का वणरन भदायु की मिहमा भसम-माहातमय-वणरन,शबर
का उपाखयान उमामहेशर वरत की मिहमा रदाक का माहातमय रदाधयाय के पुणय तथा बहखणड के शवण आिद की
मिहमा का वणरन है। काशीखणड काशीखणड मे िवंधयपवरत और नारदजी का संवाद का वणरन है,सतयलोक का
पभाव,अगसतय के आशम मे देवताओं का आगमन,पितवरताचिरत,तथा तैीथर याता की पसंशा है,इसके बाद
सपतपुरी का वणरन सयंिमनी का िनरपण िशवशमा को सूयर इनद और अिगन लोक की पािपत का उललेख हैै।
अिगन का पादुभाव िनऋित तथा वरण की उतपित,गनधवती अलकापुरी अर ईशानपुरी के उदव का वणरन,चनद
सूयर बुध मंगल तथा बृहसपित के लोक बहलोक िवषणुलोक धुवलोक और तपोलोक का वणरन है। इसके बाद
धुवलोक की पुणयमयी कथा,सतयलोक का िनरीकण,सकनद अगसै्तय संवाद,मिणकिणरका की उतपित,गंगाजी का
पाकटय,गंगासहसतनाम,काशीपुरी की पशंसा,भैरव का आिवभाव,दणडपािण तथा जानवैापी का उदव,कलावती
की कथा,सदाचार िनरपण बहचारी का आखयान सती के लकण,कतरवयाकतरवय का िनदेश,अिवमुकतेशर का
वणरन,गृहसै्थ योगी के धमर,कालजान,िदवोदास की पुणयमयी कथा,काशी का वणरन,भूतल पर माया गणपित का
पादुभाव,िवषणुमाया का पपंच,िदवोदास का मोक,पंचनद तीथर की उतपित,िवनदुमाधव का पाकटय,काशी का वैषणव
तीथर का दजा,शूलधारी िशवजी का काशी मे आगमन,जोगीषवय के सैाथ संवाद,महेशर का जयेषेशर नाम
होना,केताखयान कनदुकेशर और वयाघेशर का पादुभाव,शैलेशर रतेशर तथ कृतै्ितवाशेशर का पाकटय,देवताओं
का अिधषान,दुगासुर का पराकम,दुगाजी की िवजय,ऊँकारेशर का वणरन,पुन: ऊँकारेशर का
माहातमय,तै्िरलोचन का पादुभाव केदारेशर का आखयान,धमेशर की कथा,िवषणुभुजा का पाकटय,वीरेशर का
आखयान,गंगामाहातमयकीतरन,विैशकमेशर की मिहमा,दकयजोदव,सतीश और अमृतेश आिद का माहातमय
पराशरननदन वयासजी की भुजाओं का सतमभन,केत के तीथों का समुदाय,मुिकतमणडप की कथा िवशनाथजी का
वैभव,तदननतर काशी की याता और पिरकमा का वणरन काशीखणड के अनदर है। अवनतीखणड इसमैे
महाकालवन का आखयान,बहाजी के मसतक का छेदन,पायिशत िविध अिगन की उतपित देवताओं का आगमन
देवदीका नाना पकार के पातको का नाश करने वाला िशवसतोत कपालमोचन की कथा,महाकालवन की
िसथित,ककलेशर का महापापनाशक तीथर अपसराकुणड,पुणयदायक रदसरोवर,कैुटुमबेश िवधयाधरेशर तथा
मकरटेशर तीथर का वणरन है,ततपशात सवगरदार चतु:िसनधुतीथर,शंकरवािपका,शंकरािदतय,पापनाशक
गनधवतीरै्थ,दशाशमेघािद तीथर,अनंशतीथर हिरिसिदपदतीथर िपशाचािदयाता,हनुमदीशर कवचेशर
महाकलेशरयाता,वलमीकेशर तीथर,शुकै्रेशर और नकतेशर तीथर का उपाखयान,कुशसथली की पिरकमा अकूर
तीथर एकपादतीथर
चनदाकरवैभवतीथर,करभेषतीथर,लडुकेशतीथर,माकरणडेशरतीथर,यजवापीतीथर,सोमेशवरतीथर,नरकानतकतीथर,केदारेश
र रामेशर सौभागेशर,तथा नरािदतय तीथर,केशवािदतय तीथर,शिकतभेदतीथर सवणरसारमुख
तीथर,ऊँकारेशरतीथर,अनधकासुर के दारा सतुित कीतरन कालवन मे िशव िलंगो की संखया तथा सवणरशंगेशै्वर
तीथर का वणरन है। कुशसथली अवनती एवं उजजयनीपुरी के पदावती कुमुदती अमरावती िवशाला तथा पितकलपा
इन नामो का उललैेख है,इनका उचचारण जवर की शािनत करने वाला है,ततपशत िशपा मे सनान आिद का फल
नागो दारा की हुई भगवान िशवकी सतुित िहरणयाक वध की कथा सुनदरकुणडतीथर नीलगंगा पुषकरतीथर
िवनधयवासनतीथर पुरषोतमतीथर अघनाशनतीथर गोमतीतीथर वामनकुणडतीथर िवषणुसहसतनाम कीतरन वीरेशरतीथर
कालभैरवतीथर नागपंचमी की मिहआ नृिसंहजयनती कुटुमबेशरयाता
देवसाधककीतरन,ककरराजतीथर,िवघेशादिैतीथर,सुरोहनतीथर, का वणरन िकया गया है। रदकुणड आिद मे अनेक
तीथों का िनरपण िकया गया है,तदननतर आठ तीथों की पुणयमयी तीथरयाता का िववरण है। इसके बाद नमरदा
नदी का माहातमय बताया गया है,िजसमे युिधषर के वैरागय तथा माकरणडेयजी के साथ उनके समागम का वणरन
है। इसके बाद पहले पलयकालीन समय का अनुभव का वणरन अमृतकीतरन कलप कलप मे नमरदा के अलग अलग
नामो का वणरन नमरदाजी का आषरसतोत कालराित की कथा,महादेवजी की सतुित अलग अलग कलप की अदुत
कथा,िवशलया की कथा,जालेशर की कथा,गौरीवरत का िववरण,ितपुरदाह की कथा,देहपातिविध,कावेरी
संगम,दारतीथर,बहवतर ईशरकथा,अिगनतीथर सूयरतीथर मेघनादािद तीथर दारकतीथर देवतीथर नमरदेशतीथर
किपलातीथर करंजकतीथर कुणडलेशतीथर िपपपलािदतीथर िवमलेशरतीथर,शूलभेदनतीथर,अलग अलग दानधमर
दीघरतपा की कथा,ऋषयशंग का उपाखयान,िचतसेन की पुणयमयी कथा,कािशराज का मोक,देविशला की
कथा,शबरीतीथर,पिवत वयाधोपाखयान,पुषकणीतीथर अरै्कतीथर
आिदतयेशरतीथर,शकतीथर,करोिटतीथर,कुमारेशरतीथर अगसतेशरतीथर आननदेशरतीथर मातृतीथर लोकेशर,धनेशर
मंगलेशर तथा कामजतीथर नागेशरतीथर वरणेशरतीथर दिधसकनदािदतीथर हनुमदीशरतीथर रामेशरतीथर सोमेशरतीथर
िपंगलेशरतीथर ऋणमोकै्षेशर किपलेशर पूितकेशर,जलेशय,चणडाकर यमतीथर कालोडीशर निनदकेशर
नारायणेशर कोटीशर वयासतीथर पभासतीथर संकषरणतीथर पशेशरतीथर एरणडीतीथर
सुवणरिशलातीथर,करंजतीथर,कामरतीथर,भाणडीरतीथर, रोिहणीभवतीथर चकतीथर धौतपापतीथर आंिगरसतैीथर
कोिटतीथर अनयोनयतीथर अंगारतीथर ितलोचनतीथर इनदेशतीथर
कमबुकेशतीथर,सोमतेशतीथर,कोहलेशतीथर,नमरदातीथर,अकरतीथर,आगनैेयतीथर,उतमभागरवेशरतीथर,बाहतीथर,दैव
तीथर,मागेशतीथर,आिदवाराहेशर,रामेशरतीथर,िसदेशरतीथर,अहलयातीथर,कंकटेशरतीथर,शकतीथर,सोमतीथर,नादेशतीर्
थ,कोयेशतीथर,रिकमणी आिद तीथों का िववेचन है।इसके साथ ही नागर खणड मे भी तीथों का वणरन है
पभासखणड मे िविभन नामॊं से िशवजी के सथानो का िववेचन है।
बहाजी कहते है -- बहन सुनो! अब मै वायु पुराण का लकै्षण बतलाता हूँ। िजसके शवण करने पर परमातमा
िशव का परमधाम पापत होता है। यह पुराण चौबीस हजार शलोको का बताया गया है। िजसमे वायुदेव ने शेतकलप
के पसंगो मे धमों का उपदेश िकया है। उसे वायु पुरण कहते है। यह पूवर और उतर दो भागो से युकत है। बहन!
िजसमे सगर आिद का लकण िवसतारपूवरक बतलाया गया है,जहा िभन िभन मनवनतरो मे राजाओं के वंश का वणरन है
और जहा गयासुर के वध की कथा िवसतार के साथ कही गयी है,िजसमे सब मासो का माहातमय बताकर माघ
मास का अिधक फल कहा गया है जहा दान दमर तथा राजधमर अिधक िवसतार से कहे गये है,िजसमे पृथवी पाताल
िदशा और आकाश मे िवचरने वाले जीवो के और वरत आिद के समबनध मे िनणरय िकया गया है,वह वायुपुराण का
पूवरभाग कहा गया है। मुनीशर ! उसके उतरभाग मे नमरदा के तीथों का वणरन है,और िवसतार के साथ िशवसंिहता
कही गयी है जो भगवान समपूणर देवताओं के िलये दुजेय और सनातन है,वे िजसके तटपर सदा सवरतोभावेन िनवास
करते है,वही यह नमरदा का जल बहा है,यही िवषणु है,और यही सवोतकृष साकात िशव है। यह नमरदा जल ही
िनराकार बह तथा कैवलय मोक है,िनशय ही भगवान िशवने समसत लोको का िहत करने के िलये अपने शरीर से
इस नमरदा नदी के रप मे िकसी िदवय शिकत को ही धरती पर उतारा है। जो नमरदा के उतर तट पर िनवास करते
है,वे भगवान रद के अनुचर होते है,और िजनका दिकण तट पर िनवास है,वे भगवान िवषणु के लोको मे जाते
है,ऊँकारेशर से लेकर पिशम समुद तट तक नमरदा नदी मैें दूसरी निदयो के पैतीस पापनाशक संगम है,उनमे
से गयारह तो उतर तटपर है,और तेईस दिकण तट पर। पैतीसवा तो सवयं नमरदा और समुद का संगम कहा गया
है,नमरदा के दोनो िकनारो पर इन संगमो के साथ चार सौ पिसद तीथर है। मुनीशर ! इनके िसवाय अनय साधारण
तीथर तो नमरदा के पग पग पर िवदमान है,िजनकी संखया साठ करोड साठ हजार है। यह परमातमा िशव की
संिहता परम पुणयमयी है,िजसमे वायुदेवता ने नमरदा के चिरत का वणरन िकया है,जो इस पुराण को सुनता है या
पढता है,वह िशवलोक का भागी होता है।अिगनपुराण पुराण सािहतय मे अपनी वयापक दृिष तथा िवशाल जान
भंडार के कारण िविशष सथान रखता है। साधारण रीित से पुराण को पंचलकण कहते है, कयोिक इसमे सगर
(सृिष), पितसगर (संहार), वंश, मनवंतर तथा वंशानुचिरत का वणरन अवशयमेव रहता है, चाहे पिरमाण मे थोडा
नयून ही कयो न हो। परंतु अिगनपुराम इसका अपवाद है।
[संपािदत करे] वणयर िवषय
पाचीन भारत की परा और अपरा िवदाओं का तथा नाना भौितकशासतो का इतना वयविसथत वणरन यहा िकया गया
है िक इसे वतरमान दृिष से हम एक िवशाल िवशकोश कह सकते है। आनंदाशम से पकािशत अिगनपुराण मे 383
अधयाय तथा 11,475 शलोक है परंतु नारदपुराण के अनुसार इसमे 15 हजार शलोको तथा मतसयपुराण के
अनुसार, 16 हजार शलोको का संगह बतलाया गया है। बललाल सेन दारा दानसागर मे इस पुराण के िदए गए
उदरण पकािशत पित मे उपलबध नही है। इस कारण इसके कुछ अंशो के लुपत और अपापत होने की बात
अनुमानतः िसद मानी जा सकती है।
अिगनपुराण मे वणयर िवषयो पर सामानय दृिष डालने पर भी उनकी िवशालता और िविवधता पर आशयर हुए िबना
नही रहता। आरंभ मे दशावतार (अ. 1-16) तथा सृिष की उतपित (अ. 17-20) के अनंतर मंतशासतर तथा
वासतु शासत का सूकम िववेचन है (अ. 21-106) िजसमे मंिदर के िनमाण से लेकर देवता की पितषा तथा
उपासना का पुखानुपुंख िववेचन है। भूगोल (अ. 107-120), जयोितः शासत तथा वैदक (अ. 121-149) के
िववरण के बाद राजनीित का िवसतृत वणरन िकया गया है िजसमे अिभषेक, साहायय, संपित, सेवक, दुगर, राजधमर
आिद आवशयक िवषय िनणीत है (अ. 219-245)। धनुवेद का िववरण बडा ही जानवधरक है िजसमे पाचीन असत-
शसतो तथा सैिनक िशका पदित का िववेचन िवशेष उपादेय तथा पामािणक है (अ. 249-258)। अंितम भाग मे
आयुवेद का िविशष वणरन अनेक अधयायो मे िमलता है (अ. 279-305)। छंदःशासत, अलंकार शासत, वयाकरण
तथा कोश िवषयक िववरणो के िलए अधयाय िलखे गए है।
[संपािदत करे] अिगन पुराण की संिकपत जानकारैी
बहाजी बोले-- अब मै अिगन पैुराण का कथन करता हूँ। इसमे अिगनदेव ने ईशान कलप का बखान महिषर
विशष से िकया है। इसमे पनदह हजार शलोक है,इसके अनदर पहले पुराण िवषय के पश है िफर अवतारो की
कथा कही गयी है,िफर सृिष का िववरण और िवषणुपूजा का वृतात है। इसके बाद अिगनकायर,मनत,मुदािद
लकण,सवरदीका विैधान,और अिभषेक िनरपण है। इसके बाद मंडल का लकण,कुशामापाजरन,पिवतारोपण
िविध,देवालय िविध,शालगाम की पूजा,और मूितरयो का अलग अलग िववरण है। िफर नयास आिद का िवधान
पितषा पूतरकमर,िवनायक आिद का पूजन,नाना पकार की दीकाओैं की िविध,सवरदेव पितषा,बै्रहमाणड का
वणरन,गंगािद तीथों का माहातमय,दीप और वषर का वणरन,ऊपर और नीचे के लोको की रचना,जयोितशक का
िनरपण,जयोितष शासत,युदजयाणरव,षटकमर मंत,यनत,औषिध समूह,कुिबजका आिद की पूजा,छ: पकार की नयास
िविध,कोिट होम िविध,मनवनतर िनरपण बहाचयािद आशमो के धमर,शादकलप िविध,गह यज,शौतसमातर
कमर,पायिशत वणरन,ितिथ वरत आिद का वणरन,वार वरत का कथन,नकत वरत िविध का पितपादन,मािसक वरत का
िनदेश,उतम दीपदान िविध,नववयूहपूजन,नरक िनरपण,वरतो और दानो की िविध,नाडी चक का संिकपत
िववरण,संधया की उतम िविध,गायती के अथर का िनदेश,िलंगसतोत,राजयािभषेक के मंत,राजाओं के धािमरक
कृतय,सवप समबनधी िवचार का अधयाय,शकुन आिद का िनरपण,मंडल आिद का िनदेश,रत दीका िविध,रामोकत
नीित का वणरन,रतो के लकण,धनुरै्िवदा,वयवहार दशरन,देवासुर संगाम की कथा,आयुवेद िनरपण,गज आिद की
िचिकतसा,उनके रोगो की शािनत,गो िचिकतसा,मनुषयािद की िचिकतसा,नाना पकार की पूजा पदित,िविवध पकार
की शािनत,छनद शासत,सािहतय,एकाकर, आिद कोष,पलय का लकण,शारीिरक वेदानत का िनरपण,नरक
वणरन,योगशासत,बहजान तथा पुराण शवण का फल ही अिगनपुराण के अंग बताये गये है।
अटारह पुराणो मे भगवान महेशर की महान मिहमा का बखान करनेवाला िलंग पुराण िविशष पुराण कहा गया है।
भगवान िशव के जयोितर िलंगैों की कथा, ईशान कलप के वृतानत सवरिवसगर आिद दशा लकणो सिहत विणरत है
भगवान िशव की मिहमा का बखान िलंग पुराण मे 11000 शलोको मे िकया गया है। यह समसत पुराणो मे शेष है।
वेदवयास कृत इस पुराण मे पहले योग िफर कलप के िवषय मे बताया गया है।
िलंग शबद के पित आधुिनक समाज मे ब़डी भािनत पाई जाती है। िलंग शबद िचनह का पतीक है। भगवान् महेशर
आिद पुरष है। यह िशविलंग उनही भगवान शंकर की जयोितरपा िचनमय शिकत का िचनह है। इसके उदव के
िवषय मे सृिष के कलयाण के िलए जयोितर िलंग दारा पकट होकर बहा तथा िवषणु जैसो अनािद शिकतयो को भी
आशयर मे डाल देने वाला घटना का वणरन, इस पुराण के वणयर िवषय का एक पधान अंग है। िफर मुिकत पदान
करने वाले वरत-योग िशवाचरन यज हवनािद का िवसतृत िववेचन पापत है। यह िशव पुराण का पूरक गनै्थ है।
आज के आपाधापी भरे युग मे वृहद कलेवर के गनथ पढने का भी समय लोगो मे पास नही है। लोगो की रिच
(Site at s glance) की ओर हो चुकी है। अतः ‘‘भुवन वाणी टष’’ के मुखय नयासी सभापित शी िवनय कुमार
अवसथी के आगह पर ‘शी िलंग पुराण’ की संिकपत गाथा िलखी गई। अलप समय मे ही पाठक पुराण के समयक
जान को आतमसात् करने से लाभािनवत हो सके तो मै अपने शम को साथरक समझूँगैा। इसी मंगल कामना के
साथ यह संिकपत ‘शी िलंग पुराण’ जनता जनाधरन के कर कमलो मे समिपरत करते हुए हषर का अनुभव कर रहा
हँू। गुरदेव की परम कृपा से यह कायर मेरे दारा हो पाया एतदथर उनके पावन चरणो मे शतशत नमन्।
[संपािदत करे] नैिमष मे सूत जी की वातरैा
एक समय िशव के िविवध केतो का भमण करते हुए देविषर नारद नैिमषारणय मे जा पहुँचे वहा पर ऋिषयो ने उनका
सवागत अिभननदन करने के उपरानत िलंगपुराण के िवषय मे जाननेिहत िजजासा वयकत की। नारद जी ने उनहे
अनेक अदुत कथाये सुनायी। उसी समय वहा पर सूत जी आ गये। उनहोने नारद सिहत समसत ऋिषयो को
पणाम िकया। ऋिषयो ने भी उनकी पूजा करके उनसे िलंग पुराण के िवषय मे चचा करने की िजजासा की।
उनके िवशेष आगह पर सूत जी बोले िक शबद ही बह का शरीर है और उसका पकाशन भी वही है। एकाध रप मे
ओम् ही बह का सथूल, सूकम व परातपर सवरप है। ऋग साम तथा यजुरवेद तथा अथरववेद उनमे कमशः मुख
जीभ गीवा तथा हृदय है। वही सत रज तम के आशय मे आकर िवषणु, बह तथैा महेश के रप मे वयकत है,
महेशर उसका िनगुरण रप है। बहा जी ने ईशान कलप मे िलंग पुराण की रचना की। मूलतः सौ करोड शलोको के
गनथ को वयास जी ने संिकपत कर के चार लाख शलोको मे कहा। आगे चलकर उसे अटारह पुराणो मे बाटा गया
िजसमे िलंग पुराण का गयारहवा सथान है। अब मै आप लोगो के समक वही वणरन कर रहा हूँ िजसे आप लोग
धयानपूवरक शवण करे।
[संपािदत करे] सृिष की पाधािनक एवं वैकृितक रचनैा
अदृशय िशव दृषय पपंच (िलंग) का मूल कारण है िजस अवयकत पुराण को िशव तथा अवयकत पकृित को िलंग कहा
जाता है वहा इस गनधवणर तथा शबद सपशर रप आिद से रिहत रहते हुए भी िनगुरण धुव तथा अकय कहा गया है।
उसी अिलंग िशव से पंच जानेिदया, पंचकमेिनदया, पंच महाभूत, मन, सथूल सूकम जगत उतपन होता है और उसी
की माया से वयापत रहता है। वह िशव ही ितदेव के रप मे सृिष का उदव पालन तथा संहार करता है वही अिलंग
िशव योनी तथा वीज मे आतमा रप मे अविसथत रहता है। उस िशव की शैवी पकृित रचना पारमभ मे सतोगुण से
संयुकत रहती है। अवयकत से लेकर वयकत तक मे उसी का सवरप कहा गया है। िवश को धारण करने वाली
पकृित हैी िशव की माया है जो सत- रज- तम तीनो गुणो के योग से सृिष का कायर करती है।
वही परमातमा सजरन की इचछा से अवयकत मे पिवष होकर महत् ततव की रचना करता है। उससे ितगुण अहं
रजोगुण पधान उतपन होता है। अहंकार से शबद, सपशर, रप, रस, गनध यह पाच तनमातये उतपन हुई। सवर पथम
शबद से आकाश, आकाश से सपशर, सपशर से वायु, वायु से रप, रप से अिगन, अिगन से रस, रस से गनध, गनध से
पृथवी उतपन हुई। आकाश मे एक गुण, वायु मे दो गुण, अिगन मे तीन गुण, जल मे चार गुण, और पृथवी मे शबद
सपशािद पाचो गुण िमलते है। अतः तनमाता पंच भूतो की जननी हुई। सतोगुणी अहं से जानेिनदया, कमेिनदया
तथा उभयातमक मन इन गयारह की उतपित हुई। महत से पृथवी तक सारे ततवो का अणड बना जो दस गुने जल
से िघरा है। इस पकार जल को दस गुणा वायु ने , वायु को दस गुणा आकाश ने घेर रकखा है। इसकी आतमा बहा
है। कोिट-कोिट बहाणडो मे कोिट तिैदेव पृथक-पृथक होते है। वही िशव िवषणु रप है।
[संपािदत करे] सृिष का पारमभ
इनहे भी देखे: िहनदू काल गणना

बह का एक िदन और एक रात पाथिमक रचना का समय है िदन मे सृिष करता है और रात मे पलय। िदन मे
िवशेदेवा, समसत पजापित, ऋिषगण, िसथर रहने और राित मे सभी पलय मे समा जाते है। पातः पुनः उतपन होते
है। बह का एक िदन कलप है और उसी पकार राित भी। हजार वार चतुरयुग बीतने पर चौदह मनु होते है।
उतरायण सूयर के रहने पर देवताओं का िदन और दिकणायन सूयर रहने तक उसकी रात होती है।
तीस वषर का एक िदवय वषर कहा गया है। देवो के तीन माह मनुषयो के सौ माह के बराबर होते है। इस पकार तीन
सौ साठ मानव वषों का देवताओं का एक वषर होता है तीन हजार सौ मानव वषों का सपतिषरयो का एक वषर होता है।
सतयुग चालीस हजार िदवय वषों का, तेता अससी हजार िदवय वषों का, दापर बीस हजार िदवय वषों का और
किलयुग साठ हजार िदवय वषों का कहा गया है। इस पकार हजार चतुयुरगो का एककलप कहा जाता है।
कलपानत मे पलय के समय महरलोक के जन लोक मे चले जाते है। बहा के आठ हजार वषर का बह युग होता
है। सहसत िदन का युग होता है िजसमे देवताओं की उतपित होती है। अनत मे समसत िवकार कारण मे लीन हो
जैाते है। िफर िशव की आजा से समसत िवकारो का संहार होता है। गुणो की समानता मे पलय तथा िवषमता
मे सृिष होती है। िशव एक ही रहता है। बहा और िवषणु अनेक उतै्पन हो जाते है। बहा के िदतीय परादर मे
िदन मे सृिष रहती है और राित मे पलय होती है। भूः भुवः तथा महः ऊपर के लोक है। जड चेतन के लय होने
पर बहा नार (जल) मे शयन करने के कारण नारायण कहते है। पातः उठने पर जल ही जल देखकर उस शूनय
मे सृिष की इचछा करते है। वाराह रप से पृथवी का उदार करके नदी नद सागर पूवरवत िसथर करते हैैं।
पृथवी को सम बनाकर पवरतो को अविसथत करते है। पुनः भूः आिद लोको की सृिष की इचछा उनमे जागत होती
है।
नारद पुराण सवयं महिषर नारद के मुख से कहा गया पुराण है।[क] महिषर वयास दारा िलिपबद िकए गए १८ पुराणो
मे से एक है। पारंभ मे यह २५,००० शलोको का संगह था लेिकन वतरमान मे उपलबध संसकरण मे केवल
२२,००० शलोक ही उपलबध है।[१] संपूणर नारद पुराण दो पमुख भागो मे िवभािजत है। पहले भाग मे चार
अधयाय है िजसमे सुत और शौनक का संवाद है, बै्रहाड की उतपित, िवलय, शुकदेव का जनम, मंतोचचार की
िशका, पूजा के कमरकाड, िविभन मासो मे पडने वाले िविभन वरतो के अनुषानो की िविध और फल िदए गए है।
दूसरे भाग मे भगवान िवषणु के अनेक अवतारो की कथाएँ है।[२]
महिषर वेदवयास दारा रिचत संसकृत भाषा मे रचे गए अठारण पुराणो मे से एक पुराण गंथ है। सभी अठारह पुराणो
की गणना मे ‘पदम पुराण’ को िदतीय सथान पापत है। शलोक संखया की दृिष से भी इसे िदतीय सथान रखा जा
सकता है। पहला सथान सकंद पुराण को पापत है। पदम का अथर है-‘कमल का पुषप’। चूंिक सृिष रचियता
बहाजी ने भगवान नारायण के नािभ कमल से उतपन होकर सृिष-रचना संबध ं ी जान का िवसतार िकया था,
इसिलए इस पुराण को पदम पुराण की संजा दी गई है।
[संपािदत करे] िवषय वसतैु
यह पुराण सगर, पितसगर, वंश, मनवतंर और वंशानुचिरत –इन पाच महतवपैूणर लकणो से युकत है। भगवान िवषणु
के सवरप और पूजा उपासना का पितपादन करने के कारण इस पुराण को वैषणव पुराण भी कहा गया है। इस
पुराण मे िविभन पौरािणक आखयानो और उपाखयानो का वणरन िकया गया है, िजसके माधयम से भगवान िवषणु से
संबिं धत भिकतपूणर कथानको को अनय पुराणो की अपेका अिधक िवसतृत ढंग से पसतुत िकया है। पदम-पुराण
सृिष की उतपित अथात् बहा दारा सृिष की रचना और अनेक पकार के अनय जानो से पिरपूणर है तथा अनेक
िवषयो के गमभीर रहसयो का इसमे उदाटन िकया गया है। इसमे सैृिष खंड, भूिम खंड और उसके बाद सवगर
खणड महतवपूणर अधयाय है। िफर बह खणड और उतर खणड के साथ िकया योग सार भी िदया गया है। इसमे
अनेक बाते ऐसी है जो अनय पुराणो मे भी िकसी-न-िकसी रप मे िमल जाती है। िकनतु पदम पुराण मे िवषणु के
महतव के साथ शंकर की अनेक कथाओं को भी िलया गया है। शंकर का िववाह और उसके उपरानत अनय
ऋिष-मुिनयो के कथानक ततव िववेचन के िलए महतवपूणर है।[१]
िवदानो के अनुसार इसमे पाच और सात खणड है। िकसी िवदान ने पाच खणड माने है और कुछ ने सात। पाच
खणड इस पकार है-
1.सृिष खणड: इस खणड मे भीषम ने सृिष की उतपित के िवषय मे पुलसतय से पूछा। पुलसतय और भीषम के
संवाद मे बहा के दारा रिचत सृिष के िवषय मे बताते हुए शंकर के िववाह आिद की भी चचा की।
2.भूिम खणड: इस खणड मे भीषम और पुलसतय के संवाद मे कशयप और अिदित की संतान, परमपरा सृिष, सृिष
के पकार तथा अनय कुछ कथाएं संकिलत है।
3.सवगर खणड: सवगर खणड मे सवगर की चचा है। मनुषय के जान और भारत के तीथों का उललेख करते हुए
ततवजान की िशका दी गई है।
4. बह खणड: इस खणड मे पुरषो के कलयाण का सुलभ उपाय धमर आिद की िववेचन तथा िनिषद ततवो कैा
उललेख िकया गया है। पाताल खणै्ड मे राम के पसंग का कथानक आया है। इससे यह पता चलता है िक
भिकत के पवाह मे िवषणु और राम मे कोई भेद नही है। उतर खणड मे भिकत के सवरप को समझाते हएु योग और
भिकत की बात की गई है। साकार की उपासना पर बल देते हुए जलंधर के कथानक को िवसतार से िलया गया
है।
5.िकयायोग सार खणड: िकयायोग सार खणड मे कृषण के जीवन से समबिनधत तथा कुछ अनय संिकपत बातो को
िलया गया है। इस पकार यह खणड सामानयत: ततव का िववेचन करता है।
बह पुराण की संिकपत जानकारैी
यह पुराण सब पुराणो मे पथम और धमर अथर काम और मोक को पदान करने वाला है,इसके अनदर नाना पकार के
आखयान है,इस पुराण की शलोक संखया दस हजार है,देवता दानव और पजापितयो की उतपित इसी पुराण मे
बतायी गयी है। लोकेशर भगवान सूयर के पुणयमय वंश का वणरन िकया गया है,जो महापातकैों के नाश को
करने वाला है। इसमे ही भगवान रामचनद के अवतार की कथा है,सूयर वंश के साथ चनदवंश का वणरन िकया गया
है,शीकृषण भगवान की कथा का िवसतार इसी मे है,पाताल और सवगर लोक का वणरन नरको का िववरण सूयरदेव की
सतुित कथा और पावरती जी के जनम की कथा का उललेख िलखैा गया है।दक पजािपत की कथा और एकामक
केत का वणरन है। पुरषोतम केत का िवसतार के साथ िकया गया है,इसी मे शीकृषण चिरत का िवसतारपूवरक
िलखा गया है,यमलोक का िववरण िपतरो का शाद और उसका िववरण भी इसी पुराण मे बताया गया है,वणों और
आशमो का िववेचन भी कहा गया है,योगो का िनरपण साखय िसदानतो का पितपादन बहवाद का िदगदशरन और
पुराण की पशंसा की गयी है। इस पुराण के दो भाग है,और पढने सुनने से यह दीघरता की ओर बढाने वाला है।
[संपािदत करे] बहाणड पुराण की संिकपत जानकारैी
यह पुराण भिवषय कलपो से युकत और बारह हजार शलोको से युकत है,इसके चार पद है,पहला पिकयापाद दूसरा
अनुषपाद तीसरा उपोदघात और चौथा उपसंहारपाद है। पहले के दो पादो को पूवर भाग कहा जाता है,तृतीय पाद
ही मधयम भाग है,और चतुथर पाद को उतम भाग कहा गया है। पूवर भाग के पिकया पाद मे पहले कतरवय का
उपदेश नैिमषा आखयान िहरणयगभर की उतपित और लोकरचना इतयािद िवषय विणरत है,िदतीयभाग मे कलप तथा
मनवनतर का वणरन है,ततपशात लोकजान मानुषी-सृिष-कथन रदसृिष-वणरन महादेव िवभूित ऋिष सगर
अिगनिवजय कालसदभाव-वणरन िपयवत वंश का वणरन पृथवी का दैघयर और िवसतार भारतवषर का वणरन िफर अनय
वषों का वणरन जमबू आिद सात दीपो का पिरचय नीचे के लोको पातालो का वणरन भूभुरव: आिद ऊपर के लोको का
वणरन गहो की गित का िवशलेषण आिदतय
वयूह का कथन देवगहानुकीतरन भगवान िशव के नीलकणठ नाम पडने का कथन महादेवजी का वैभव अमावसया का
वणरन युगतविनरपण यजपवतरन अिनतम दो युगो का कायर युग के अनुसार पजा का लकण ऋिषपवर वणरन
वेदवयसन वणरन सवायमभुव मनवनतर का िनरपण शेषमनवनतर का कथन पृथै्वीदोहन चाकुषु और वतरमान
मनवनतर के सगर का वणरन है। मधयभाग के सपतऋिषयो का वणरन पजापित वंश का िनरपण उससे देवता आिद
की उतपित इसके बाद िवजय अिभलाषा और मरदगणो की उतपित का कथन है। कशयप की संतानो का वणरन
ऋिषवंश िनरपण िपतृकलप का कथन शादकलप का कथन वैवसत मनु की उतपित उनकी सृिष मनुपुतो का वंश
गानधवर िनरपण इकवाकु वंश का वणरन रिजका अदुत चिरत ययाितचिरत यदुवश ं िनरपण कातरवीयाजुरन चिरत
परशुरामचिरत वृिषणवंश का वणरन सगर की उतपित भागरव का चिरत कातरवीयारै्जुन समबनधी कथा,भागरव औवर
की कथा शुकाचायरकृत इनद का पिवत सतोत देवासुर संगाम की कथा िवषणुमाहातमय बिलवंश िनरपण किलयुग मे
होने वाले राजाओं का चिरत आिद िलखे गये है,इसके बाद उतरभाग के चौथे उपसंहारपाद मे वैवसत मनवनतर की
कथा जयो की तै्यो िलखैी गयी है,जो कथा पहले संकेप मे कही गयी है उसका यहा िवसतार से िनरपण िकया
गया है। भिवषय मे होने वाले मनुओं की कथा भी कही गयी है,िवपरीत कमों से पापत होने वाले नरको का िववरण
भी िलखा गया है। इसके बाद िशवधाम का वणरन है,और सतव आिद गुणो के समबनध से जीवो की ितिविध गित का
िनरपण िकया गया है। इसके बाद अनवय तथा वयाितरेकिदिष से अिनदेशय एवं अतकयर परबह परमातमा के
सवरप का पितपादन िकया गया है,यह बहाणड पुराण चारलाख शलोको मे कहा गया है,और उन शलोको को चार
भागो मे बताया गया हैै।
बहवैवतर पुराण वेदमागर का दसवा पुराण है। वयासजी ने बहवैवतर पुराण के चार भाग िकये है बह खणड,पकृित
खणड,गणेश खणड, और शीकृषण खणड। इन चारो खणडो से युकत यह पुराण अठारह हजार शलोको का बताया
गया है। उसमे सूत और महऋिषयो के संवाद मे पुराण उपकम है। उसमे पहला पकरण सृिषवणरन का है। िफर
नारद और बहाजी के िववाद का वणरन है। िजससे दोनो का पराभव हुआ बताया गया है। नारदजी का िशवलोक
गमन और और िशवजी से नारद को जान की पािपत का वणरन है,उसके बाद िशवजी के कहने से जान लाभ के
िलये साविणर के िसदसेिवत आशम मे जो पुणयमय तथा ितलोकी को आशयर मे डालने वाला था का वणरन है।
इसके बाद नारद और साविणर का संवाद का वणरन है,िजसके अनदर शीकृषण का आखयान और कथाये है। पकृित
की अंशभूत कलाओं के माहतमय और पूजन आिदक का िवसतारपूवरक यथावत वणरन िकया गया है। पकृित खणड
का शवण करने पर सुखो की पािपत का आखयान िमलता है। गणेश खणड के वणरन के िवषय मे पावरतीजी के दारा
काितरकेय और गणेश की उतपित के िवषय आखयान िमलता है। इसके अनदर ही कातरवीयाजुरन और
जमदिगनननदन और परशुरामजी मे जो महान िववाद हुआ था उसका उललेख िकया गया है। इसके बाद शीकृषण
जनम के िवषय मे कथा का उललेख िमलता है।
बहाजी कहते है-- मुने ! अब मै तुमहे मारकणडेय पुराण का पिरचय देता हूँ। यह पुराण पढने और सुनने वालो के
िलये हमेशा पुणयदायी है। इसके अनदर पिकयो को पवचन का अिधकारी बनाकर उनके दारा सब धमों का
िनरपण िकया गया है। यह मारकणडेय पुराण नौ हजार शलोको का संगह है। इसमे कहा जाता है िक पहले
माकरणडेयजी के समीप जैिमिन का पवचन है। िफर धमर संजम पिकयो की कथा कही गयी है। िफर उनके पूवर
जनम की कथैा और देवराज इनद के कारण उनहे शापरप िवकार की पािपत का कथन है,तदननतर बलभदजी
की तीथर याता,दौपदी के पाचो पुतो की कथा,राजा हिरशनद की पुणयमयी कथा,आडी और बक पिकयो का
युद,िपता और पुत का आखयान,दतातेयजी की कथा,महान आखयान सिहत हैहय चिरत,अलकर चिरत, मदालसा
की कथा,नौ पकार की सृिष का पुणयमयी वणरन,कलपानतकाल का िनदेश,यक-सृिष िनरपण,रद आिद की
सृिष,दीपचया का वणरन,मनुओं की अनेक पापनाशक कथाओं का कीतरन और उनही मे दुगाजी की अतयनत
पुणयदाियनी कथा है। जो आठवैें मनवनतर के पसंग मे मे कही गयी है। ततपशात तीन वेदो के तेज से पणव
की उतपित सूयर देव की जनम की कथा,उनका माहातमय वैवसत मनु के वंश का वणरन,वतसपी का चिरत, तदननतर
महातमा खिनत की पुणयमयी कथा,राजा अिविकत का चिरत िकिमिकचछक वरत कैा वणरन,निरषयनत
चिरत,इकवाकु चिरत,नल चिरत,शी रामचनद के उतम कथा,कुश के वंश का वणरन,सोमवंश का वणरन,पुररवा की
पुणयमयी कथा,राजा नहुष का अदुत वृतात,ययाित का पिवत चिरत,यदुवश ं का वणरन,शीकृषण की
बाललीला,उनकी मथुरा दारका की लीलायेै ,सब अवतारो की कथा,साखयमत का वणरन,पपंच के िमथयावाद
का वणरन,माकरणडेयजी का चिरत,तथा पुराणा शवण आिद का फल यह सब िवषय माकरणडेय पुराण मे बताये गये
है।
भिवषय पुराण मे भिवषय मे होने वाली घटनाओं का वणरन है। इससे पता चलता है ईसा और मुहममद साहब[१] के
जनम से बहुत पहले ही भिवषय पुराण मे महिषर वेद वयास ने पुराण गंथ िलखते समय मुिसलम धमर के उदव और
िवकास तथा ईसा मसीह तथा उनके दारा पारंभ िकए गए ईसाई धमर के िवषय मे िलख िदया था।[२]
a बहाजी कहते है--- वतस! सुनो,अब मै ितिवकम चिरत से युकत वामनपुराण का वणरन करता हूँ,इसकी शलोक
संखया दस हजार है,इसमे कूमर कलप के वृतानत का वणरन है,और ितवणर की कथा है। यह पुराण दो भागो से युकत
है,और वकता शोता दोनो के िलये शुभकारक है,इसमे पहले पुराण के िवषय मे पश है,िफर बहाजी के िशरचछेद की
कथा कपाल मोचर का आखयान और दक यज िवधवंश का वणरन है। इसके बाद भगवान हर की कालरप संजा
मदनदहन पहलाद नारायण युद देवासुर संगाम सुकेशी और सूयर की कथा,कामयवरत का वणरन,शीदुगा चिरत तपती
चिरत कुरकेत वणरन अनुपम सतया माहातमय पावरती जनम की कथा,तपती का िववाह गौरी उपाखयान कुमार चिरत
अनधकवध की कथा साधयोपाखयान जाबालचिरत अरजा की अदुतकथा अनधकासुर और शंकर का युद अनधक
को गणतव की पािपत मरदगणो के जनम की कथा राजा बिल का चिरत लकमी चिरत ितिबकम चिरत पहलाद की
तीथर याता और उसमे अनेक मंगलमयी कथाये धुनधु का चिरत पेतोपाखयान नकत पुरष की कथा शीदामा का
चिरत ितिबकम चिरत के बाद बहाजी दारा कहा हुआ उतम सतोत तथा पहलाद और बिल के संवाद के सुतल
लोक मे शीहिर की पशंसा का उललेख है।

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