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Yog Yatra 4
Yog Yatra 4
तावना
"पू य बापूजी के भ रस म डू बे हए
ु ोता भाई-बहनो ! म यहाँ पर पू य बापूजी
का अिभनंदन करने आया हँू ... उनका आश वचन सुनने आया हँू ... भाषण दे ने या
बकबक करने नह ं आया हँू | बकबक तो हम करते रहते ह | बापूजी का जैसा वचन है ,
कथा-अमृत है , उस तक, पहँु चने के िलये बड़ा प र म करना पड़ता है | मने पहले उनके
दशन पानीपत म कये थे | वह ं पर रात को पानीपत म पु य- वचन समा होते ह
बापूजी कुट र म जा रहे थे, तब उ ह ने मुझे बुलाया | म भी उनके दशन और आशीवाद
के िलये लालाियत था | संत-महा माओं के दशन तभी होते ह, उनका सा न य तभी
िमलता है जब कोई पु य जागृत होता है | इस ज म म कोई पु य कया हो इसका मेरे
पास कोई हसाब तो नह ं है क तु ज र यह पूवज म के पु य का ह फल है जो बापूजी
के दशन हए
ु | उस दन बापूजी ने जो कहा, वह अभी तक मेरे दय-पटल पर अं कत है |
दे शभर क प र मा करते हए
ु जन-जन के मन म अ छे सं कार जगाना, यह एक ऐसा
परम, रा ीय कत य है , जसने हमारे दे श को आज तक जी वत रखा है और इसके बल पर
हम उ जवल भ व य का सपना दे ख रहे ह... उस सपने को साकार करने क श -भ
एक कर रहे ह | पू य बापूजी सारे दे श म मण करके जागरण का शंख नाद कर रहे
ह, सवधम-समभाव क िश ा दे रहे ह, सं कार दे रहे ह तथा अ छे और बुरे म भेद
करना िसखा रहे ह | हमार जो ाचीन धरोहर थी और हम जसे लगभग भुलाने का पाप
कर बैठे थे, बापूजी हमार आँखो मे ान का अंजन लगाकर उसको फर से हमारे सामने
रख रहे ह | बापूजी ने कहा क ई र क कृ पा से कण-कण म या एक महान श के
भाव से जो कुछ घ टत होता है , उसक छानबीन और उस पर अनुसध
ं ान करना चा हए |
शु अ तःकरण से िनकली हई
ु ाथना को भु अ वीकार नह ं करते, यह हमारा व ास
होना चा हए | य द अ वीकार हो तो भु को दोष दे ने के बजाय यह सोचना चा हए क
या हमारे अंतःकरण म उतनी शु है जतनी होनी चा हए ? शु का काम राजनीित
नह ं कर सकती, अशु का काम भले कर सकती है | पू य बापूजी ने कहा क जीवन के
यापार म से थोड़ा समय िनकालकर स संग म आना चा हए | पू य बापूजी उ जैन म थे
तब मेर जाने क बहत
ु इ छा थी ले कन कहते है न, क दाने-दाने पर खाने वाले क
मोहर होती है , वैसे ह संत-दशन के िलए भी कोई मुहूत होता है | आज यह मुहूत आ
गया है | यह मेरा कु े है | पू य बापूजी ने चुनाव जीतने का तर का भी बता दया है |
आज दे श क दशा ठ क नह ं है | बापूजी का वचन सुनकर बड़ा बल िमला है | हाल म
हए
ु लोकसभा अिधवेशन के कारण थोड़ -बहत
ु िनराशा पैदा हई
ु थी क तु रात को लखनऊ
म पु य- वचन सुनते ह वह िनराशा भी आज दरू हो गयी | बापूजी ने मानव-जीवन के
चरम ल य मु -श क ाि के िलये पु षाथ चतु य, भ के िलये स पूण क
भावना तथा ान, भ और कम तीन का उ लेख कया है | भ म अहं कार का कोई
थान नह ं है | ान अिभमान पैदा करता है | भ म पूण समपण होता है | १३ दन के
शासनकाल के बाद मने कहा :'मेरा जो कुछ है, तेरा है |' यह तो बापूजी क कृ पा है क
ोता को व ा बना दया और व ा को नीचे से ऊपर चढ़ा दया | जहाँ तक उपर चढ़ाया
है वहाँ तक उपर बना रहँू इसक िच ता भी बापूजी को करनी पडेगी | राजनीित क राह
बड रपट ली है | जब नेता िगरता है तो यह नह ं कहता क म िगर गया ब क कहता
है :'हर हर गंगे |' बापूजी के वचन सुनकर बड़ा आन द आया | म लोकसभा का सद य
होने के नाते अपनी ओर से एवं लखनऊ क जनता क ओर से बापूजी के चरण मे
वन होकर नमन करना चाहता हँू | उनका आशीवाद हम िमलता रहे , उनके आशीवाद
से रे णा पाकर बल ा करके हम कत य के पथ पर िनर तर चलते हए
ु परम वैभव को
ा कर, यह भु से ाथना है |
- ी अटल बहार वाजपेयी,
धानमं ी, भारत सरकार
पू. बापू: रा सुख के संवधक "पू य बापू ारा दया जानेवाला नैितकता का संदेश
दे श के कोने-कोने मे जतना अिधक सा रत होगा, जतना अिधक बढ़े गा, उतनी ह मा ा
म रा सुख का संवधन होगा, रा क गित होगी | जीवन के हर े म इस कार के
संदेश क ज रत है |"
- ी लालकृ ण आडवाणी,
उप धानमं ी एवं के य हम ी, भारत सरकार
रा उनका ॠणी है
" कसी ने मुझ से कहा था: ' यान क कैसेट लगाकर सोयगे तो व न म गु दे व
के दशन ह ग... मने उसी रात यान क कैसेट लगायी और सुनते-सुनते सो गया | उस
व रा के बारह-साढ़े बारह बज ह ग | व का पता नह ं चला | ऐसा लगा मानो, कसी
ने मुझे उठा दया | म गहर नींद से उठा एवं गु जी क लप वाले फ़ोटो क तरफ़
टकटक लगाकर एक-दो िमनट तक दे खता रहा | इतने म आ य ! टे प अपने-आप चल
पड़ और केवल यह तीन वा य सुनने को िमले: 'आ मा चैत य है | शर र जड़ है | शर र
पर अिभमान मत करो |' टे प वतः बंद हो गयी और पूरे कमरे म यह आवाज गूंज उठ |
दसरे
ू कमरे म मेर प ी क भी आंखे खुल गयी और उसने तो यहां तक महसूस कया,
जैसे कोई चल रहा है ! वे गु जी के िसवाय और कोई हो ह नह ं सकते | मने कमरे क
लाइट जलायी और दौड़ता हआ
ु प ी के पास गया | मने पूछा:'सुना ?' वह बोली: 'हां |' उस
समय सुबह के ठ क चार बजे थे | नान करके म यान म बैठा तो डेढ़ घ टे तक बैठा
रहा | इतना लंबा यान तो मेरा कभी नह ं लगा | इस घटना के बाद तो ऐसा लगता है
क गु जी सा ात व प ह | उनको जो जस प म दे खता है वैसे ह दखते ह |
गु कृ पा से अंधापन दरू हआ
ु
"१४ जुलाई '९९ को कर ब साढ़े तीन बजे मेरे मकान म छः डकैत घुस आये और
उस समय दभा
ु य से बाहर का दरवाजा खुला हआ
ु था | दो डकैत बाहर मा ित चालू
रखकर खड़े थे | एक डकैत ने ध का दे कर मेर माँ का मुह
ँ बंद कर दया और अलमार
क चाबी माँगने लगा | इस घटना के दौरान म दका
ु न पर था | मेर प ी को भी डकै त
धमकाने लगे और आवाज न करने को कहा | मेर प ी ने पू य बापूजी के िच के
सामने हाथ जोड़कर ाथना क 'अब आप ह र ा करो ...' इतना ह कहा तो आ य !
आ य ! परम आ य !! वे सब डकैत घबराकर भागने लगे | उनक हड़बड़ाहट दे खकर
ऐसा लग रहा था मान उ ह कुछ दखायी नह ं दे रहा था | वे भाग गये | मेरा प रवार
गु दे व का ॠणी है | बापूजी के आशीवाद से सब सकुशल ह | हमने १५ नव बर '९८ को
वाराणसी म मं द ा ली थी |"
-मनोहरलाल तलरे जा,
४, झुलेलाल नगर, िशवाजी नगर,
वाराणसी
बड़दादा क िम ट व जल से जीवनदान
और गु दे व क कृ पा बरसी
"जबसे सूरत आ म क थापना हई
ु तबसे म गु दे व के दशन करते आ रहा हँू ,
उनक अमृतवाणी सुनता आ रहा हँू | मुझे पू य ी से मं द ा भी िमली है | ार धवश
एक दन मेरे साथ एक भयंकर दघटना
ु घट | डॉ टर कहते थे: आपका एक हाथ अब
काम नह ं करेगा |' म अपना मानिसक जप मनोबल से करता रहा | अब हाथ ब कुल ठ क
है | उससे म ७० क. ा. वजन उठा सकता हँू | मेर सम या थी क शाद होने के बाद
मुझे कोई संतान नह ं थी | डॉ टर कहते थे क संतान नह ं हो सकती | हम लोग ने
गु कृ पा एवं गु मं का सहारा िलया, यानयोग िश वर म आये और गु दे व क कृ पा
बरसी | अब हमार तीन संताने है : दो पु याँ और एक पु | गु दे व ने ह बड़ बेट का
नाम गोपी और बेटे का नाम ह र कशन रखा है | जय हो सदगु दे व क ..."
-हँ समुख कांितलाल मोद ,
५७, 'अपना घर' सोसायट , संदेर रोड़, सूरत
व न म दये हए
ु वरदान से पु ाि
"हमारे संयु प रवार म साठ तोला सोना चोर हो गया था | स संगी होने के
कारण हम दःख
ु तो नह ं हआ
ु फर भी थोड -बहत
ु िच ता अव य हई
ु | आ म के एक
साधक ने हमसे कहा | 'आप लोग ' ी आसारामायण ' के १०८ पाठ करो और संक प करो
क हमारा सोना हम ज र िमलेगा |' यमुनापार, द ली म गु दे व का आगमन हआ
ु | हम
शाम को गु दे व के दशन करने गये | हमने कुछ कहा नह ं य क गु दे व अंतयामी ह |
उ ह ने हमको साद दया | उसी रात घर पर फोन आया क 'आपका सोना िमल गया है
| चोर लखनऊ म पकड़ा गया है |' हम आ य हआ
ु ! ' ी आसारामायण' के १०८ पाठ पूरे
भी नह ं हए
ु थे और सोना िमल गया |'
-लीना बुटानी,
रानीबाग, द ली
सेवफल के दो टु कड़ से दो संतान
"मेर बाँयी टाँग घुटने से उपर पतली हो गयी थी | 'ऑल इ णडया मे डकल
इ ट यूट, द ली' म म छः दन तक रहा | वहाँ जाँच के बाद बतलाया गया क 'तु हार
र ढ़ क ह ड के पास कुछ नस मर गयी ह जससे यह टाँग पतली हो गयी है | यह ठ क
तो हो ह नह ं सकती | हम तु ह वटािमन 'ई' के कै सूल दे रहे ह | तुम इ ह खाते रहना |
इससे टांग और यादा पतली नह ं होगी |' मने एक साल तक कै सूल खाये | उसके बाद
२२ जून, १९९७ को मुज फ़रनगर म मने गु जी से मं द ा ली और दवाई खाना बंद कर
द | जब एक साधक भाई राहल
ु गु ा ने कहा क सहारनपुर से साइ कल ारा उ रायण
िश वर, अमदावाद जाने का काय म बन रहा है , तब मने टाँग के बारे म सोचे बना
साइ कल या ा म भाग लेने के िलए अपनी सहमित दे द | जब मेरे घर पर पता चला क
मने साइ कल से गु धाम, अमदावाद जाने का वचार बनाया है , अतः तुम ११५० क.मी.
तक साइ कल नह ं चला पाओगे |' ... ले कन मने कहा : 'म साइ कल से ह गु धाम
जाऊँगा, चाहे कतनी भी दरू य न हो ?' ... और हम आठ साधक भाई सहारनपूर से २६
दस बर '९७ को साइ कल से रवाना हए
ु | माग म चढ़ाई पर मुझे जब भी कोइ द कत
होती तो ऐसा लगता जैसे मेर साइ कल को कोई पीछे से धकेल रहा है | म मुड़कर पीछे
दे खता तो कोई दखायी नह ं पड़ता | ९ जनवर को जब हम अमदावाद गु आ म म पहँू चे
और मने सुबह अपनी टाँग दे खी तो म दं ग रह गये ! जो टाँग पतली हो गयी थी और
डॉ टर ने उसे ठ क होने से मना कर दया था वह टाँग ब कुल ठ क हो गयी थी | इस
कृ पा को दे खकर म च कत रह गया ! मेरे साथी भी दं ग रह गये ! यह सब गु कृ पा के
साद का चम कार था | मेरे आठ साथी, मेर प ी तथा ऑल इ णडया मे डकल
इ ट यूट, द ली ारा जाँच के माणप इस बात के सा ी ह |"
-िनरं कार अ वाल,
व णुपरु ,
असा य रोग से मु
कैसेट का चम कार
" यापार उधार म चले जाने से म हताश हो गया था एवं अपनी जंदगी से तंग
आकर आ मह या करने क बात सोचने लगा था | मुझे साधु-महा माओं व समाज के
लोग से घृणा-सी हो गयी थी : धम व समाज से मेरा व ास उठ चुका था | एक दन
मेर साली बापूजी के स संग क दो कैसेट ' विध का वधान' एवं 'आ खर कब तक ?' ले
आयी और उसने मुझे सुनने के िलए कहा | उसके कई यास के बाद भी मने वे कैसेट
नह ं सुनीं एवं मन-ह -मन उ ह 'ढ़ ग' कहकर कैसेट के ड बे म दाल दया | मन इतना
परे शान था क रात को नींद आना बंद हो गया था | एक रात फ़ मी गाना सुनने का मन
हआ
ु | अँधरे ा होने क वजह से कैसेटे पहचान न सका और गलती से बापूजी के स संग
क कैसेट हाथ म आ गयी | मने उसीको सुनना शु कया | फर या था ? मेर आशा
बँधने लगी | मन शाँत होने लगा | धीरे -धीरे सार पीड़ाएँ दरू होती चली गयीं | मेरे जीवन
म रोशनी-ह -रोशनी हो गयी | फर तो मने पू य बापूजी के स संग क कई कैसेट सुनीं
और सबको सुनायीं | तदनंतर मने गा जयाबाद म बापूजी से द ा भी हण क | यापार
क उधार भी चुकता हो गयी | बापूजी क कृ पा से अब मुझे कोई दःख
ु नह ं है | हे गु दे व
! बस, एक आप ह मेरे होकर रह और म आपका ह होकर रहँू |"
-ओम काश बजाज,
द ली रोड़, सहारनपुर, उ र दे श
गु दे व क कृ पा से संतान ाि
गु कृ पा से जीवनदान
" दनांक १५-१-९६ क घटना है | मने धातु के तार पर सूखने के िलए कपड़े फैला
रखे थे | बा रश होने के कारण उस तार म करंट आ गया था | मेरा छोटा पु वशाल, जो
क ११ वीं क ा म पढ़ता है , आकर उस तार से छू गया और बजली का करंट लगते ह
वह बेहोश हो गया, शव के समान हो गया | हमने उसे तुरंत बड़े अ पताल म दा खल
करवाया | डॉ टर ने ब चे क हालत गंभीर बतायी | ऐसी प र थित दे खकर मेर आँख से
अ ध
ु ाराएँ बह िनकली | म िनजानंद क म ती म म त रहने वाले पू य सदगु दे व को
मन-ह -मन याद कया और ाथना क :'हे गु दे व ! अब तो इस ब चे का जीवन आपके
ह हाथ म है | हे मेरे भु ! आप जो चाहे सो कर सकते है |' और आ खर मेर ाथना
सफल हई
ु | ब चे म एक नवीन चेतना का संचार हआ
ु एवं धीरे -धीरे ब चे के वा य म
सुधार होने लगा | कुछ ह दन म वह पूणतः व थ हो गया | डॉ टर ने तो उपचार
कया ले कन जो जीवनदान उस यारे भु क कृ पा से, सदगु दे व क कृ पा से िमला,
उसका वणन करने के िलए मेरे पास श द नह ं है | बस, ई र से म यह ाथना करता हँू
क ऐसे िन संत-महापु ष के ित हमार ा म वृ होती रहे |" –
डॉ. वाय. पी. कालरा,
शामलदास कॉलेज, भावनगर, गुजरात
आपका यह भावरा य और म
े रा य दे खकर म च कत भी हँू और आनंद का
अनुभव भी कर रहा हँू | आपके ू िन ा बढ़े इस हे तु मेरा नमन
ित मेरा व ास और अटट
वीकार कर | मुझे ऐसा लगता है क बापूजी सूय ह और नारायण वामी एक ऐसे द प ह
जो न बुझ सकते ह, न जलाये जाते ह |"
- वामी अवधेशानंदजी,
ह र ार
सार व य मं से हए
ु अदभुत लाभ
मु लम म हला को ाणदान
ने बंद ु का चम कार
पू य ी क त वीर से िमली रे णा
मं से लाभ
मेर माँ क हालत अचानक पागल जैसी हो गयी थी मान , कोई भूत- त
े -डा कनी
या आसुर त व उनम घुस गया | म बहत
ु िचंितत हो गया एवं एक सािधका बहन को
फोन कया | उ ह ने भूत- त
े भगाने का मं बताया, जसका वणन आ म से कािशत
'आरो यिनिध' पु तक म भी है | वह मं इस कार है :
दसरे
ू दन म पैसे जर े न म कानपुर से आगे जा रहा था | सुबह के कर ब नौ बजे
थे | तीसर ण
े ी क बोगी म जाकर मने या य के टकट जाँचने का काय शु कया |
सबसे पहले बथ पर सोये हए
ु एक या ी के पास जाकर मने एक या ी के पास जाकर मने
टकट दखाने को कहा तो वह गु सा होकर मुझे कहने लगा : "अंधा है ? दे खता नह ं क
म सो गया हँू ? मुझे नींद से जगाने का तुझे या अिधकार है ? यह कोई र त है टकट
के बारे म पूछने क ? ऐसी ह अ ल है तेर ?" ऐसा कुछ-का-कुछ वह बोलता ह गया...
बोलता ह गया | म भी ोधा व होने लगा कंतु पू य महाराजजी के सम ली हई
ु
ित ा मुझे याद थी, अतः ोध को ऐसे पी गया मान , वष क पु ड़या ! मने उसे कहा :
"महाशय ! आप ठ क ह कहते ह क मुझे बोलने क अ ल नह ं है , भान नह ं है | दे खो,
मेरे ये बाल धूप म सफेद हो गये ह | आपम बोलने क अ ल अिधक है , न ता है तो कृ पा
करके िसखाओं क टकट के िलए मुझे कस कार आपसे पूछना चा हए | म लाचार हँू
क 'डयूट ' के कारण मुझे टकट चेक करना पड़ रहा है इसिलए म आपको क दे रहा हँू |"
... और फ़र मने खूब ेम से हाथ जोड़कर वनती क : "भैया ! कृ पा करके क के िलए
मुझे मा करो | मुझे अपना टकट दखायगे ?" मेर न ता दे खकर वह ल जत हो गया
एवं तुरंत उठ बैठा | ज द -ज द नीचे उतरकर मुझसे मा माँगते हए
ु कहने लगा :"मुझे
माफ करना | म नींद म था | मने आपको पहचाना नह ं था | अब आप अपने मुँह से मुझे
कह क आपने मुझे माफ़ कया ?" यह दे खकर मुझे आनंद और संतोष हआ
ु | म सोचने
लगा क संत क आ ा मानने म कतनी श और हत िन हत है ! संत क क णा
कैसा चम का रक प रणाम लाती है ! वह य के ाकृ ितक वभाव को भी जड़-मूल से
बदल सकती है | अ यथा, मुझम ोध को िनयं ण म रखने क कोई श नह ं थी | म
पूणतया असहाय था फर भी मुझे महाराजजी क कृ पा ने ह समथ बनाया | ऐसे संत के
ीचरण म को ट-को ट नम कार !
- ी र जुमल,
रटायड ट .ट . आई., कानपुर
अ य अनुभव
जला हआ
ु कागज
आ शंकराचाय क माता विश ा दे वी अपने कुलदे वता केशव क पूजा करने जाती
थीं | वे पहले नद म नान करतीं और फ़र मं दर म जाकर पूजन करतीं | एक दन वे
ातःकाल ह पूजन-साम ी लेकर मं दर क ओर गयीं, कंतु सायंकाल तक घर नह ं लौट ं |
शंकराचाय क आयु अभी सात-आठ वष के म य म ह थी | वे ई र के परम भ और
िन ावान थे | सायंकाल तक माता के वापस न लौटने पर आचाय को बड़ िच ता हई
ु और
वे उ ह खोजने के िलए िनकल पड़े | मं दर के िनकट पहँु चकर उ ह ने माता को माग म
ह मू छत पड़े दे खा | उ ह ने बहत
ु दे र तक माता का उपचार कया तब वे होश म आ
सक ं | नद अिधक दरू थी | वहाँ तक पहँु चने म माता को बड़ा क होता था | आचाय ने
भगवान से मन-ह -मन ाथना क क " भो ! कसी कार नद क धारा को मोड़ दो,
जससे क माता िनकट ह नान कर सक |" वे इस कार क ाथना िन य करने लगे |
एक दन उ ह ने दे खा क नद क धारा कनारे क धरती को काटती-काटती मुड़ने लगी
है तथा कुछ दन म ह वह आचाय शंकर के घर के पास बहने लगी | इस घटना ने
आचाय का अलौ कक श स प न होना िस कर दया |
मंगली बाधा-िनवारण मं
"अं रां अं "
सुखपूवक सवकारक मं
पहला उपाय
इस मं ारा अिभमं त दध
ू गिभणी ी को पलाय तो सुखपूवक सव होगा |
दसरा
ू उपाय
तीसरा उपाय
प पढ़ते हए
ु लेड मा टन क आँख से अ वरत अ ध
ु ारा बहती जा रह थी, उसका
दय अहोभाव से भर गया और वह भगवान िशव क ितमा के स मुख िसर रखकर
ाथना करते-करते रो पड़ | कुछ स ाह बाद उसका पित कनल मा टन आगर छावनी
लौटा | प ी ने उसे सार बात सुनाते हए
ु कहा : "आपके संदेश के अभाव म म िच तत
हो उठ थी ले कन ा ण क सलाह से िशवपूजा म लग गयी और आपक र ा के िलए
भगवान िशव से ाथना करने लगी | उन दःखभं
ु जक महादे व ने मेर ाथना सुनी और
आपको सकुशल लौटा दया |" अब तो पित-प ी दोन ह िनयिमत प से बैजनाथ महादे व
के मं दर म पूजा-अचना करने लगे | अपनी प ी क इ छा पर कनल मा टन मे सन
१८८३ म पं ह हजार पये दे कर बैजनाथ महादेव मं दर का जीण ार करवाया, जसका
िशलालेख आज भी आगर मालवा के इस मं दर म लगा है | पूरे भारतभर म अं ज
े ार
िनिमत यह एकमा ह द ू मं दर है |
भगवान िशव म... भगवान कृ ण म... माँ अ बा म... आ मवे ा सदगु म.. स ा
तो एक ह है | आव यकता है अटल व ास क | एकल य ने गु मूित म व ास कर वह
ा कर िलया जो अजुन को क ठन लगा | आ ण, उपम यु, ुव, हलाद आ द अ य
सैकड़ उदारहण हमारे सामने य ह | आज भी इस कार का सहयोग हजार भ को,
साधक को भगवान व आ मवे ा सदगु ओं के ारा िनर तर ा होता रहता है |
आव यकता है तो बस, केवल व ास क |
महामृ युज
ं य मं
ॐ ह जूँ सः |
ॐ भूभुवः वः |
ॐ य बकं यजामहे सुगंिधं पु वधनम |
उवा किमव ब धना मृ योमु ीय मामृतात |
वः वः भुः ॐ |
सः जूँ ह ॐ |