Professional Documents
Culture Documents
RAAG-SAMVEDAN: DR Mahendra Bhatnagar
RAAG-SAMVEDAN: DR Mahendra Bhatnagar
RAAG-SAMVEDAN: DR Mahendra Bhatnagar
[मह भटनागर]
क वताएँ
1 राग-संवेदन / 1
2 मम व
3 यथाथ
4 लमहा
5 िनर तरता
6 नह ं
7 अपे ा
13 सार-त व
14 िन कष
15 तुलना
16 अनुभूित
17 आ ाद
18 आस
19 मं -मु ध
20 हवा
21 जजी वषु
22 राग-संवेदन / 2
23 वरदान
24 मृित
25 बहाना
26 दरवत
ू से
27 बोध
(1) राग-संवेदन / 1
आदमी के आदमी से
ीित के स ब ध
जीती-भोगती सह-राह के
अनुब ध!
केवल याद आते ह!
सदा।
जब-तब
न दल
ु भ ह
न ह अनमोल
िमलते ह नह ं
इहलोक म, परलोक म
आँसू .... अनूठे यार के,
आ मा के
अपार-अगाध अित- व तार के!
दय के घन-गहनतम तीथ से
इनक उमड़ती है घटा,
और फर ....
दरू तक फैला
अँधेरा
नह ं होगा ज़रा भी कम!
टम टमाते द प-से
अहिन श
जलते रहगे हम!
साँस िमली ह
मा ा िगनती क
समझते-बूझते सब
मृ यु को छलते रहगे हम!
हर चरण पर
मं ज़ल होती कहाँ ह?
ज़ दगी म
कंकड़ के ढे र ह
मोती कहाँ ह?
(4) लमहा
एक लमहा
िसफ़ एक लमहा
एकाएक छ न लेता है
ज़ दगी!
हाँ, फ़क़त एक लमहा।
हर लमहा
अपना गूढ़ अथ रखता है,
इसिलए ज़ र है —
हर लमहे को भरपूर जयो,
जब-तक
कर दे न तु हार स ा को
चूर - चूर वह।
हर लमहा
ख़ामोश फसलता है
एक-सी नपी र ऱतार से
अनिगनत हादस को
अं कत करता हआ
ु ,
अपने मह व को घो षत करता हआ
ु !
(5) िनर तरता
हो वरत ...
एका त म,
जब शा त मन से
झाँकता हँू
आ मगत
अपने वलु अतीत म —
िच ावली धुँधली
उभरती है वशृंखल ... भंग- म
संगत-असंगत
तारत य- वह न!
औचक फर
वतः मुड़
लौट आता हँू
उप थत काल म!
जीवन जगत जंजाल म!
(6) नह ं
उमड़ती भीड़ म
अकेलेपन का दं श
भला,
कोई कैसे सहे !
असं य आवाज़ के
शोर म
कसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे !
(7) अपे ा
कोई तो हम चाहे
गाहे -ब-गाहे !
िनपट सूनी
अकेली ज़ दगी म,
गहरे कूप म बरबस
कोई तो हम चाहे ,
सराहे !
कसी क तो िमले
शुभकामना
स ावना!
ती व ु मय
दिमत वातावरण म
बेतहाशा गूँजती जब
मम वेधी
ऐसे तबाह के ण म
चाह जगती है क
कोई तो हम चाहे
भले,
गाहे -ब-गाहे !
(8) िचर-वंिचत
जीवन - भर
रहा अकेला,
अनदे खा —
सतत उपे त
घोर ितर कृ त!
जीवन - भर
अपने बलबूते
झंझावात का रे ला
जीवन - भर
अस दख
ु - दद सहा,
नह ं कसी से
भूल
श द एक कहा!
अिभशाप ताप
दहा - दहा!
रसते घाव को
सहलाने वाला
कोई नह ं िमला —
पल - भर
नह ं थमी
सर -सर
वृ - िशला!
शैया पर
आग बछाए बैठा हँू!
धायँ-धायँ!
दहकाए बैठा हँू!
(10) अितचार
अथ ह न हो जाता है
सहसा
िचर-संबंध का व ास —
नह ं, ज म-ज मा तर का व ास!
अरे , ण-भर म
िमट जाता है
वष -वष का होता घनीभूत
अपनेपन का अहसास!
जब भूक प वासना का
‘ती ानुराग’ का
आमूल थरथरा दे ता है शर र को,
हल जाती ह मन क
बहत
ु पीछे
छोड़ आये ह
ेम-संबंध
श ुताओं के
अधजले शव!
खामोश है
बरस , बरस से
तड़पता / चीखता
दम तोड़ता रव!
इस समय तक —
सूख कर अवशेष
खो चुके ह गे
हवा म!
जब से छोड़ आया
लौटा नह ं;
फर, आज यह य
ेत छाया
सामने मेरे?
शायद,
ह अब होना
यह है —
मेरे समूचे
अ त व का!
हर वालामुखी को
एक दन
सु होना है !
सदा को
लु होना है !
लोग ह —
ऐसी हताशा म
य हो
कर बैठते ह
आ म-ह या!
या
खो बैठते ह संतुलन
तन का / मन का!
व हो व
रोते ह — अकारण!
हँ सते ह — अकारण!
क तु तुम हो
थर / व-सीिमत / मौन / जी वत / संतुिलत
अभी तक!
व तुतः
जसने जी िलया सं यास
मरना और जीना
सकते म य हो,
अरे !
नह ं आ सकते
जब काम
कसी के तुम —
कोई य आये
पास तु हारे ?
चुप रहो,
सब सहो!
पड़े रहो
मन मारे ,
यहाँ-वहाँ!
कोई सुने
तु हारे अनुभव,
अ छा हो
सूने कमरे क द वार पर
श दां कत कर दो,
नाना रं ग से
िच ां कत कर दो
अपना मन!
शायद, कोई कभी
पढ़े / गुने!
या
कसी रकॉ डग-डे क म
भर दो
अपनी क ण कहानी
बख़ुद ज़बानी!
ले कन
िन त रहो —
कह ं न फैले दग
ु ध
इसिलए तुर त
लोग तु ह
ग ढ़े म गाड़ / दफ़न
या
कर स प न दहन
विधवत ्
कर दगे ख़ाक / भ म
ज़ र!
विधवत ्
पूर कर दगे
आ ख़र र म
ज़ र!
(14) िन कष
ऊहापोह
त व-िनण य के िलए
अिनवाय
मीमांसा-समी ा / तक / वशद ववेचना
येक वांिछत कोण से।
य क जीवन म
हआ
ु जो भी घ टत —
वह थर सदा को,
एक भी अवसर नह ं उपल ध
भूल-सुधार को।
स भव नह ं
कंिचत बदलना
कृ त- या को।
स य —
िस है —
जीवन : पर ा है क ठन
पल-पल पर ा है क ठन।
वी ा करो
हर साँस िगन-िगन,
जो सम
उसे करो वीकार
अंगीकार!
(15) तुलना
जीवन
कोई पु तक तो नह ं
क जसे
उसक वषयव तु को —
िमक अ याय म
सावधानी से बाँटा जाए,
मम पश संग को छाँटा जाए!
जीवन क कथा
वतः बनती- बगड़ती है
पूवापर संबंध नह ं गढ़ती है!
कब या घ टत हो जाए
कब या बन-सँवर जाए,
या अचानक
अ य हआ
ु वत मान
पुनः उसी तरतीब से
उतर आता है
जीवन-भर
अजीबोगर ब मूख ताएँ
करने के िसवा,
समाज का
थोपा हआ
ु कज़
भरने के िसवा,
या कया?
ग़लितयाँ क ं
ख़ूब ग़लितयाँ क ं,
चूके
बार-बार चूके!
य कह —
जये;
ले कन जीने का ढं ग
कहाँ आया?
व ास कया
लोग पर,
अंध- व ास कया
अपन पर!
और धूत
साफ़ कर गये सब
घर-बार,
बरबाद कर गये
जीवन का
प-रं ग िसँगार!
ज़माने को
न थी, न है
र ी-भर
शम-हया!
(17) आ ाद
बदली छायी
बदली छायी!
दशा- दशा म
बजली क धी,
िम ट महक
स धी-स धी!
युग-युग
वरह- वरस म
डू बी,
वषा आयी
वषा आयी!
उमड़
शुभ
घनघोर घटा,
छायी
यामल द छटा!
दल
ु हन झूमी
घर-घर घूमी
बदली छायी
वषा आयी!
(18) आस
भोर होते —
ार वातायन झरोख से
उचकतीं-झाँकतीं उड़तीं
मधुर चहकार करतीं
सीधी सरल िच ड़याँ
जगाती ह,
उठाती ह मुझे!
रात होते
िनकट के पोखर से
आ - आ
कभी झींगुर; कभी ददरु
गा - गा
सुलाते ह,
दन भर —
रँ ग- बरं गे य-िच से
मोह रखता है
अनंग-अनंत नीलाकाश!
रात भर —
नभ-पय क पर
पहले- व ण म िसतार क छपी
चादर बछाए
सोती यो ना
कतना लुभाती है !
अंक म सोने बुलाती है!
ऐसे यार से
मुँह मोड़ लूँ कैसे?
धरा — इतनी मनोहर
छोड़ दँ ू कैसे?
(19) मं -मु ध
अपने
फूल म / अंग म
इतनी मोहक सुग ध
अरे ,
कहाँ से भर लायीं!
ओ ेता!
ओ शु ा!
कोमल सुकुमार सहे ली!
इतना आकष क मनहर सौ दय
कहाँ से हर लायीं!
धर लायीं!
सुवास यह
बाहर क , अ तर क
तन क , आ मा क
जब-जब
कुछ ण को इस दिनया
ु म
खो जाता हँू ,
तुमको एकिन
अ प त हो जाता हँू!
ओ सुवािसका!
ओ अलबेली!
ओ र , लता — चमेली!
(20) हवा
ओ य
सुख-गंध भर
मदम हवा!
मेर ओर बहो —
हलके-हलके!
ओ यार
लहर-लहर लहराती
उ म हवा!
िनःसंकोच करो
बढ़ कर उ ण पश
मेरे तन का!
ओ, सर-सर वर भरती
मधुरभा षणी
मुखर हवा!
चुपके-चुपके
मेरे कान म
अब तक अनबोला
कोई राज़ कहो
मन का!
आओ!
अचानक
आज जब दे खा तु ह —
कुछ और जीना चाहता हँू !
गुज़र कर
बहत
ु ल बी क ठन सुनसान
जीवन-राह से,
ितपल झुलस कर
ज़ दगी के स य से
उसके दहकते दाह से,
अचानक
आज जब दे खा तु ह —
कड़वाहट भर इस ज़ दगी म
अभी तक
ेय!
कहाँ थीं तुम?
नील-कुसुम!
(22) राग-संवेदन / 2
तुम —
बजाओ साज़
दल का,
ज़ दगी का गीत
म —
गाऊँ !
उ य
ढलती रहे ,
उर म
धड़कती साँस यह
चलती रहे !
तुम —
सुनाओ
इक कहानी यार क
मोहक,
सुन जसे
म —
चैन से
कुछ ण
क सो जाऊँ !
दद सारा भूल कर
मधु- व न म
बे फ़ खो जाऊँ !
याद आता है
तु हारा यार!
तुमने ह दया था
एक दन
मुझको
पहले प का संसार!
सज गये थे
ार- ार सुदश
ब दनवार!
याद आते ह
तु हारे सां वना के बोल!
आया
टू ट कर
दभा
ु य के घातक हार से
तु हारे अंक म
पाने शरण!
समवेदना अनुभूित से भर
ओ, मधु बाल!
भाव- वभोर हो
त ण
तु ह ं ने यार से
मुझको
सहष कया वरण!
याद आता है
तु हारा ठना!
मनुहार-सुख
अनुभूत करने के िलए,
एकरसता-भार से
ऊबे ण म
रं ग जीवन का
ज म-ज मा तर पुरानी
ीित को
फर- फर िनखरने के िलए,
इस बहाने
मन-िमलन शुभ द प
आँगन- ार
धरने के िलए!
याद आता है
तु हारा ठना!
अपार-अपार भाता है
तु हारा रागमय
बीते दन का ठना!
(26) दरवत
ू से
शेष जीवन
जी सकूँ सुख से
भूल जाओ —
िमले थे हम
भूल जाओ —
रं ग को
बहार को,
दे ह से : मन से
गुज़रती
कामना-अनुभूत धार को!
भूल जाओ —
हर यतीत-अतीत को,
गाये-सुनाये
गीत को: संगीत को!
(28) ेयस ्
सृ म वरे य
एक-मा
नेह- यार भावना!
सम त जीव-ज तु म य
अशेष हो
मनु य क दयालुता!
यह
महान े तम उपासना!
व म
हरे क य
रात- दन / सतत
यह करे
पव कष साधना!
य - य म जगे
यह
सरल-तरल अबोध िन कपट
एकिन चाहना!
प वभा जत है
जन-समुदाय —
समथ / असहाय।
ह एक ओर —
राजनीितक दल
उनके अनुयायी खल,
सुख-सु वधा-साधन-स प न
स न।
धन- वण से लबालब
आरामतलब / साहब और मुसाहब!
बँगले ह / चकले ह,
तलघर ह / बंकर ह,
भोग रहे ह
दसर
ू तरफ़ —
जन ह
भूखे- यासे दब
ु ल, अभाव त ... त,
अनपढ़,
दिलत असंग ठत,
खेत - गाँव / बाजा़र - नगर म
मरत,
शो षत / वंिचत / शं कत!
(31) वप - त
बा रश
थमने का नाम नह ं लेती,
जल म डू बे
गाँव -क़ ब को
थोड़ा भी
आराम नह ं दे ती!
सचमुच,
इस बरस तो क़हर ह
ढह गया घर धा
छ पर-ट पर,
बस, असबाब पड़ा है
औ ं धा!
इं धन गीला
नह ं जलेगा चू हा,
तैर रहा है चौका
रहा-सहा!
घन-घन करते
नभ म वायुयान
मँडराते
िग जैस!े
शायद,
अफ़सोस
क बा रश नह ं थमी!
(32) वजयो सव
एरो ोम पर
वशेष वायुयान म
पाट का
लड़ै ता नेता आया है ,
‘शता द ’ से
टे शन पर
कां ेस का
चहे ता नेता आया है ,
भरने जयकारा,
पुरज़ोर बजाने
िसंगा, डं का, डं डम,
पहँु चा
हरा
ु -हरा
ु करता
सैकड़ का हजू
ु म!
पालतू-फालतू बक रय का,
शॉल लपेटे सीधी मूखा भेड़ का,
म-म करता
गुरा-गुरा हंु कृित करता
करता हआँ
ु -हआँ
ु !
कतना ख़ुदग़रज़
हो गया इं सान!
बड़ा ख़ुश है
पाकर तिनक-सा लाभ —
बेच कर ईमान!
चंद िस क के िलए
कर आया
शैतान को मतदान,
नह ं मालूम
‘ख़ुददार’ का मतलब
गट-गट पी रहा अपमान!
व का इितहास
सा ी है —
अभाव क
धधकती आग म
जीवन
हवन जनने कया,
अ याय से लड़ते
यव था को बदलते
पी ढ़य
यौवन
दहन जनने कया,
अ वरत
दले जाते रहे
येक युग म!
वषमता
और ...
बढ़ती गयी,
बढ़ता गया
व तार अ तर का!
हआ
ु धनवान
और साधनभूत,
िनध न -
और िनध न,
अथ गौरव ह न,
हत भ द न!
पर पर
सा यवाह भावना इं सान क
िन य नह ं होगी,
न मानेगी पराभव!
ल य तक पहँु चे बना
होगी नह ं वचिलत,
न भटकेगा / हटे गा
एक ण
अव हो लाचार
समता-राह से मानव!
(35) अपहता
धूत —
सरल दब
ु ल को
ठगने
धूत —
लगाये घात,
िछपे
इद-िगद
करने गहरे वार!
धूत —
फ़रे बी कपट
चैक ने
करने छ ना-झपट ,
लूट-मार
हाथ-सफ़ाई
चतुराई
या
सीधे मु - हार!
धूत —
हड़पने धन-दौलत
धृ ,
दःसाहसी
ु ,
िनडर!
बना रहे
छ लेख- लेख!
चम कार!
विच चम कार!
(36)
जीवन के क ठन संघष म
हारो हओ
ु !
हर क़दम
दभा
ु य के मारो हओ
ु !
असहाय बन
रोओ नह ं,
गहरा अँधेरा है,
चेतना खोओ नह ं!
व ास का यह बाँध
फूटे नह ं!
नये युग का सपन यह
टू टे नह ं!
भावना क डोर यह
छू टे नह ं!
(37) प रवत न
मौसम
कतना बदल गया!
सब ओर क दखता
नया-नया!
सपना —
जो दे खा था
समता का
बोया था जो बीज-मं
पनपा, छतनार हआ
ु !
सामा जक-आिथ क
नयी यव था का आधार बना!
अब तो
धरती अपनी,
सूय उगा
लो
फैला सव
काश है !
वाधीन रहगे
सदा-सदा
पूरा व ास है!
मानव- वकास का च
न पीछे मुड़ता
सा ी इितहास है !
यह
योग-िस
त व- ान
हमारे पास है !
(39) ाथ ना
बुझे
मेरे दय म
ज़ दगी क आग
भर दो!
थके िन य
तन को
फूित दे
गितमान कर दो!
सुनहर धूप से,
आलोक से —
प र या
हम / तम तोम
हर लो!
सूरज,
ओ लहकते लाल सूरज!
(40) बोध
स य है —
गये य यथ सब
नह ं हआ
ु सफल,
क तु हँू नह ं
तिनक वकल!
बार-बार
हार के हार
श - ोत ह ,
कम म वृ मन
ओज से भरे
सदै व ओत- ोत ह !
ह दय उमंगमय,
व-ल य क
के नह ं तलाश!
भूल कर
के नह ं कभी
अभी व तु क तलाश!
सहधम / सहकम
खोज िनकाले ह
दरू - दरू से
आस - पास से
और जुड़ गया है
अंग - अंग
सहज
क तु / रह यपूण ढं ग से
अटू ट तार से,
चार छोर से
प के डोर से!
सड़ती लाश क
दग
ु ध िलए
छू ने
गाँव -नगर के
ओर-छोर
जो हवा चली —
उसका ख़ बदलो!
ज़हर ली गैस से
अलकोहल से
हर कोई
केवल
हत अपना
सोचे,
और का ह सा
हड़पे,
कोई चाहे कतना
तड़पे!
घर भरने अपना
और क
बोट -बोट काटे
इस
सं ामक सामा जक
बीमार क
या कोई नह ं दवा?
कैसी चली हवा!
(44) पहल
घबराए
डरे -सताए
मोह ल म / नगर म / दे श म
यद —
स और सुकून क
बहती
सौ य-धारा चा हए,
आदमी-आदमी के बीच पनपता
यद —
ेम-बंध गहरा भाईचारा चा हए,
तो —
तमाम
खोखले अ ासंिगक
मज़हबी उसूल को,
आड बर को
याग कर
वै ािनक वचार-भूिम पर
नयी उ नत मानव-सं कृ ित को
गढ़ना होगा।
अिभनव आलोक म
पूण िन ा से
नयी दशा म
बढ़ना होगा!
क पत द य श के थान पर
‘मनुजता अमर स य’
कहना होगा!
स पूण व को
प रवार एक
जान कर , मान कर
पर पर मेल-िमलाप से
रहना होगा!
वत मान क चुनौितय से
जूझते हए
ु
आदमी —
अपने से पृ थक धम वाले
आदमी को
ेम-भाव से — लगाव से
य नह ं दे खता?
उसे ग़ैर मानता है ,
अ सर उससे वैर ठानता है!
अवसर िमलते ह
अरे , ज़रा भी नह ं झझकता
दे ने क ,
चाहता है दे खना उसे
जड-मूल-न !
दे ख कर उसे
ऐसा य होता है ?
य होता है ऐसा?
कैसा है यह आदमी?
गज़ब का
आदमी अरे , कैसा है यह?
ख़ूब अजीबोगर ब मज़हब का
कैसा है यह?
सचमुच,
डरावना बीभ स काल जैसा!
जो — अपने से पृ थक धम वाले को
मानता-समझता
केवल ऐसा-वैसा!
(46) व न
ख़बर फैलते ह
लोग ने घेर िलया मुझको —
‘भटनागर है ,
मारो ... मारो ... साले को!
ह यारा है ... ह यारा है !’
मने उ ह बहत
ु समझाया
चीख-चीख कर समझाया —
भाई, म वैसा ‘भटनागर’ नह ं!
अरे , यह तो फ़कत नाम है मेरा,
उपनाम (सरनेम) नह ं!
म
‘मह भटनागर हँू ,
ले कन भीड़ सोचती कब है ?
तक सचाई सुनती कब है ?
सब टू ट पड़े मुझ पर
और राख कर दया मेरा घर!!
इितहास गवाह दे —
कन- कन ने / कब-कब / कहाँ-कहाँ
झेली यह वभी षका,
यह ज़ु म सहा?
कब-कब / कहाँ-कहाँ
द र दगी क ऐसी रौ म
मानव समाज
हो पथ- बहा?
वंश हमारा
धम हमारा
अतः कहना सह नह ं —
‘ या धरा है नाम म!’
अथवा
‘जात न पूछो साधु क !’
हे कबीर!
या कोई मानेगा बात तु हार ?
आ ख़र,
कब मानेगा बात तु हार ?
जीवन जीना
दभर
ू - दव
ु ह
भार है !
मान
दो नाव क
वकट सवार है !
पैर के नीचे
वष - द ध दधार
ु आर है ,
कंठ - सट
अित ती ण कटार है !
गल - फाँसी है ,
भगदड़ मारामार है ,
ग़ायब
पूरनमासी,
पसर िसफ़
घनी अँिधयार है!
जीवन जीना
लाचार है !
बेहद भार है !
(48) खलाड़
कूद - कूद कर
लगा रहा हँू छलाँग
ऊँ ची - ल बी
तमाम छलाँग-पर-छलाँग!
दन - रात
रात - दन
यह
आदमी है —
हर मुसीबत
झेल लेता है !
वरोधी आँिधय के
ढ़ हार से,
यह
आदमी है / संयमी है
आफ़त सब झेल लेता है !
(50) बोध- ाि
प रप व
कड़वे अनुभव ने ह
बनाया है मुझे!
ज़माने ने सताया जब
बेइं ितहा,
का य म पीड़ा
तभी तो गा सका,
ममाहत हआ
ु
अपने-पराय से
तभी तो मम
जीवन का / जगत ् का
पा सका!
रचना-काल : सन ् 2002-2004
अ ययन:
(1) डा. मह भटनागर- वरिचत ‘राग-संवेदन’: वमश
[ ितभागी]
डा. व नाथ साद ितवार (गोरखपुर),
डा. कृ णकुमार गो वामी ( द ली) ,
डा. िशवकुमार िम (वललभ- व ानगर, गुजरात),
ो. काश द त वािलयर)
(2) ‘राग-संवेदन’: डा. मह भटनागर- वरिचत अ तन क वताएँ / वीर मोहन
(सागर)
(3) ‘राग-संवेदन’: रागा मकता और िन संगता-बोध क क वताएँ / डा. ऋ षकुमार
चतुवद (रामपुर-उ र दे श)
(4) अनुभ व और अनुभूित क आँच म तपा — ‘राग-संवेदन’ / डा. रामसनेह लाल
शमा ‘यायावर’ (फ़ रोजा़बाद)
(5) ‘राग-संवेदन’: जीवन-दश न का वशद व तार / डा. संतोषकुमार ितवार (सागर)
(6) ‘राग-संवेदन’ का जीवन-राग / डा. ीिनवास शमा (कोलकता)
(7) नव- व छं दतावाद और डा. मह भटनागर का ‘राग-संवेदन’ / डा. आ द य
च डया ( अलीगढ़)
(8) ‘राग-संवेदन’: िनराशा और बु वाद के समानांतर एक रागमय संस ार क रचना
/ डा. जग नाथ पं डत (वललभ- व ानगर, गुजरात)