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Udgaar Nandlal Bharti D 1
Udgaar Nandlal Bharti D 1
ु पीडीएफ़ ई-बक
ु रचनाकार – http://rachanakar.blogspot.com क
तु त. म
ु त पठन-पाठन व
वतरण के लए जार. पाठ को वचालत परवतत !कया गया है अतः वतनी क
अशु%याँ संभावत
ह+)
उगार
कवता संह
नदलाल भारती
उगार
( कवतासंह )
नदलाल भारती
वष-2010
तकनीक सहयोगी
आजादकुमार भारती
चकार
श
श भारती
सवाधकार-लेखकाधीन
सपक
Email- nlbharatiauthor@gmail.com
http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in
hindisahityasarovar.blogspot.com
1.उ का मधम
ु ास
झांक कर आगे -पीछे ,
लगने लगा है
गुहार बनता गन
ु ाह होता सपन! का क6ल
आज गरवी कल से भी ना पक आस
डूबत खाते का हो गया शो7षत का मधम
ु ास ।
लहलहाता आग का ता9डव
ना जा"त-धम&-?े2वाद क धधकती आग
मत
ृ शैयया
् पर ना तड़पता मधुमास
ना तड़प-तड़प कर कहता
2.मधम
ु ास.
भ7व4य के ,बखर प6त! के "नशान पर
वाद क शल
ू पर टं गे गये अरमान
अगले मधम
ु ास 7वहस उठे सपने
भेद क लपटो से सल
ु ग जाता बदन ।
हो नया साल मब
ु ारक,
3.नद
नद क पहचान है उसका Pवाह ,
जीवन म$ भी है Pवाह ।
जब तक Pवाहत नहं है
कारण आदमी ह तो है
लोग! को जलने का डर था ।
फटकार थी ।
षणय 2 क ,बसात थी
छUंटाकसी क बौझार थी ।
अब तो कांटा भी
6.आज का आदमी
मत भल
ू ो
0क आदमी
आदमी को आंसू दे कर
0000
7.जान गये होगे सुलगती तकदर का रह
य,
आदमी क कराह ।
ना सुलझने वाला रह य
कल मान-स;मान भी ।
सल
ु झाने का Pयास "नरथ&क हो जाता है,
शG
ु हो जाता है फजीहत! का दौर ।
9.उ
बहाव चट कर जाता है
हर एक जनवर को जीवन का एक और वस त ।
बची खुची वस त क सब
ु ह
खोजता हूं
करवट! म$ गज
ु र जाती है राते
हो जाती है सुबह
क4ट! म$ भी दब
ु क रहती है स;भावनाय$ ।
उ के वस त पर
आ6ममंथन क र साक सी म$
थम जाता है समय
न दलाल भारती
10-राह
याद ,बखरे 7व
मत
ृ ,शार सार माथे मढ जाना
उर म$ अपने पावस ,
11-सचा धन
गम मझ
ु े भी डंसता है
संघष&रत ् रहा है ।
मझ
ु े तो यकन है आज भी पर उ हे नहं
पर आज का कद ना होता
जो पद और दौलत के ढे र से उपर उठाता है ।
है गला -शकवा भी ,
धन को सब कुछ कह रहे है ,
12-जागो ।
संवb
ृ च तन चLर2वान 7वMवगG
ु क पहचान,
संवb
ृ बने रा4d फलेफूले समतावाद,नै"तकता को मजबूत
बनाये
भेद का दLरया सख
ू े दLर द! का ना गूंजे हाहाकार
इंसान! क ब
ती म$ बस गंज
ू े,इंसा"नयत क जयकार ।
सुखद हो नवPभात,
नफरत 0कया जो तम
ु ने या पा जाओगे
पर वे हो जायेगे
जग जान गया है
मS कभी ना था बेवफा
आदमयत का भाव भर दो
15-सुगध
मौत भी जट
ु रहती है अपने मकसद म$
आदमी को रखती है भय म$ ।
भल
ू जाता आदमी तन 0कराये का घर,
जीवन का अ त होता है
16-पीड़ा
अभमान खल
ु ेआम डंसने लगा है।
17-आजाद के दाता ।
जन-जन मु कायी
गरबी,भख
ू मर,बेरोजगार,भूमहनता छलता यहां अपना
"नत नव-नव मख
ु ौटे है धरते
19-भूल
बड़ी भल
ू हुई मझ
ु से,सजा भग
ु त रहा हूं ,
का,बल होता प^
ू य मS आंसू पी रहा हूं ,
कम&पूजा पर यहां "नत घाव पा रहा हूं ।
उसी क सजा भग
ु त रहा हूं । न दलाल भारती 26.02.10
20- काबलयत
कौन सा गन
ु ाह मधुमास म$ पतझड़ का सहारा
लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......
नसीब पर लटके ताले नर 7पशाच करता गान
म6ृ युशैयया
् पर अभलाषा नसीब का दोष सारा
लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......
लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......न दलाल
भारती 26.02.2010
तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा
तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा..........
पेट म$ भख
ू फूट िजनक थी थाल सदा
तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा................
भेद क द"ु नया म$ 7वकास के मौके जाते "छन
तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा................
तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा.........न दलाल
भारती 20.03.2010
सकून ह नहं यकन भी तो है
=4टाचार,आतंकवाद,?े2वाद,धमवाद जा"तवाद
और दस
ू र सािजश$ कब मौत के कारण बन जाये
दो
त ना तम
ु जानते हो ना हम
हां सकून और यकन तो है दो त
अभाव- भेद से जझ
ू े कैसे कह दं ू
पसर हो भय-भख
ू जब आम आदमी के _वार
वह भख
ू -भय भू महनता के अभशाप से Cयथत
सच कह रहा हूं
24-अमत
ृ -बीज
कसम खा लया है,अमत
ृ बीज बोने का
ललकारता अमत
ृ बीज से बोये, नहं मर सकते सपने ।
आंसओ
ू क महावर से सजाकर
च द अपन! क शभ
ु कामनाओं क छांव म$,
25-इ(तहास
आज भी आधु"नक समाज ।
कथनी गंज
ू ती है करनी मंह
ु नोचती है
तपती रे त का जीवन आज ।
वह जी रहा है तपती रे त पर
स;भावनाओं का आसीजन पीकर
तरक चौखट पर द तक दे गी
दे दे गी द तक तरक
भय है भख
ू है नंगी
च\
ू हा गरमाता है आंसू पीकर
कैसे कैसे गन
ु ाह इस जहां के
गोदाम! म$ अ न सड़ रहा
कब गंज
ू ेगा धरती पर मानवतावाद
छल-Pपंच,द9ड-भेद का गंज
ू ता है◌े बाजा
जी7वत है आज भी
दमन-मोह क आग
ज म है तो मौत है "निMचत
28-ग+
ु ताख हो गया हूं ।
हां मS गु
ताख हो गया हूं
ज\
ु म,अ6याचार भख
ू -Oयास
शोषण-उ6पीड़न के 7वGb
अगर ग
ु ताखी है तो मS बार-बार कGंगा ।
,बख9डन,अंध-7वMवास,Gढवाद
गरबी,भूमहनता,दLरaता के 7वGb
नफरत के तफ
ू ान को थमने का संकेत
गु
ताखी है तो मै कGंगा ।
उजड़ी नसीब के कारणो क तहककात
ऐसी ग
ु ताखी करने म$ डर नहं ।
गु ताखी है तो मS कGंगा
य!0क मS सचमच
ु गु
ताख हो गया हूं । न दलाल भारती
19.04.2010
29-उन(त-अवन(त ।
माथा धन
ु ता है
वह खौफ म$ भी सोचता है
और दहकने लगती है
बेदखल आदमी को ।
बेबसी के 7वरान पर
सच यह तो है
चांद सा आकार ।
धप
ू -तफ
ू ान शोषण और अ6याचार
मटाती है भूख
पेट म$ भख
ू छाती म$ फौलाद
खुद भख
ू ी रहती है
सच रोट स;भावना है ,
31-कपड़ा्र
ज म का उपहार है कपड़ा
पात था या आज का सूत
कहने का तो बस कपडा है
दे श क शान है कपड़ा
भख
ू - Oयास है रोजगार है कपड़ा
मकान म$ परमा6मा के दत
ू बसते है
बस त कुबा&न कर दे ते है
33-बु. /दय
ढूढना शG
ु कर दया इंसान
जार है तलाश आज तक ।
यकन लहूलुहान हो जाता है
सच यह कारण है 0क
34--मजदरू हताश है ।
खे"तहर-मजदरू क दद
ु & शा से खेत गमगीन
खेत कमासत
ू क बदहाल पर उदास है
लोकत 2 के यग
ु म$ मजदरू हताश है ।
दआ
ु ओं क आसीजन पर टक जड़े
दस
ू र! के हाथ! जो हो सकता था
िजस मधव
ु न म$ बारहो माह पतझड़ हो
शो7षतजन के लये
वह दस
ू र ओर जहां झराझर बस त हो
शखर लट
ू ने और दमन नी"त रचने
बयानबाजी है जो 7वकास क आज
चुगल
ु करती है कई कई राज
तरक क ललक म$ जी रहा गरब वंचत
शो7षत क चौखट पर भख
ू -भय छायी
दस
ू र ओर हर घड़ी बज रह शहनाई
3मक- गरब-लाचार ।
चढता सर एक दस
ू रा भगवान
ह से बस अभशा7पत पहचान ।
एक फूल है जगत ् का mग
ृ ार
दस
ू रा 3मक गरब-वंचत तप
वी
ना लट
ू ो नसीब कमजोर क
39- समय का प2
ु
समय का प2
ु मS अमीर भी हूं,
कद का धन तो भGपर है
खैर धन क बहार का भी सख
ु है
दख
ु भी तो है
परायेपन क परत
,बसार दे ते है जो कल खास थे
संघष&रत ् Gखी-सख
ू ी खाया
सकून का पानी पीया तंगी क छांव म$
सकून है आज कल पर यकन
दद& म$ रचा-बसा
पतझड म$ बस त,धल
ू म$ फूल ढूढ लेता हूं
जमाने को दे ने के लये
पहचान चक
ु ा हूं ब_"नयत आदमी को
मS जानता हूं
भेद-ब
ृ श क जड़े उखाडना कठन है
सल
ु गता मधम
ु ास बेकार नहं जायेगा
जीने का हौशला
यह है उलझन क सल
ु झन
एक के बाद दस
ू रा मजबूत होता जाता है
च[Cयूह के साा^य म$ भी
42- ाथना
आदमी क चौखट पर द तक दे ते
फसल!,छोटे -बडे ब
ृ शो के म
तक पर ।
चल हो या अचल,नर हो या पशु
आदमी के Gप Pभु के दत
ू हो
तु;हारा आहवाहन है
आओ आदमी क दहलज तक
गम
ु ान क दहलज लांघकर
छा जाओ बस त क तरह ।
हे आदमी Pभु के दत
ू हो तम
ु
रे ग
तान क तपती रे त नहं
अभमान को भल
ू कर । न दलाल भारती 25.05.2010
43-उमीद
जीवन का दख
ु -सख
ु ओढना-7वछौना
उ;मीद जीवन या दज
ू ा नाम धरे भगवान
का,बलयत का कतल
् हक पर सल
ु गे सवाल
लट
ू नसीब सरे आम खड़ा तान उं चा भाल ।
44-सलसला
ये लोग कौन है आदमी को ,
आदमी तो आदमी है
कम&,kान कद क योIयता को और
ना जाने य! ?
धम&-जा"त-वंश के नाम
सख
ु "छन लया जाता है आदमी होने का
कब खल
ु ेगे तरक के _वार
45-वरोध
तोहफा हो सकता है पर तु
आJखर आदमी दे श और
कब जवान हुआ बढ
ू ा हुआ पता चला
हक क दरकार है ।
भर सकता हS सख
ू ती नदय! म$ जल
बहा सकता है दध
ू -घी क गंगा
कायनात का अमत
ृ बीज है आJखर आदमी
46-समता के सागर
र मो -Lरवाजो से नहं
द\
ू हे को घोड़ी पर चढने से रोका◌ा जाता है
तम
ु आजाओगे ना तरक के ,बहड़ म$
आबाद हो जायेगी
47-मन क) 5चता
कहता है नासमझ ना बन
बस त म$ पतझड़ का अ"त[मण
सच तो ये हS 0क
48- सल
ु गते सवाल
यो ना हो कई गन
ु ा अधक योIय
और उं चा कद भी ।
दभ
ु ा&Iय करने लगी है गन
ु ाह बरसाने लगी है आग
शोषण,उ6पीड़न और उपभोग का
कुCयव था के च[ म$ अभशाप
सफलता और सख
ु क आस म$
दभ
ु ा&Iयबस पद-दलत -दलत हो गया
हक से बेदखल पददलत क उ का
बस त हो रहा है अभशा7पत ।
कब तक तड़पेगी योIयता
वह भी शीतलता दे ती है पहचानकर
कलयग
ु म$ नसीब तड़पने लगा है ।
छांव से सल
ु गता हुआ सपन! क बारात लये
लखंूगा बेगन
ु ाह क दा
तान
मै◌◌
ै ं स;भावना म$ कर लंग
ू ा बसर
हाशय$ के आदमी क ।
राजनी"त के उथल-पुथल के दौर म$
भल
ू जाती है समानता का वादा
51- 6ि8टविृ 8ट ।
हादशा याद रहे गा खून के लये तो नहं था
कम भी ना था चहुंतरफा आ[मण,
पहचान पर कम&शीलता,Cयित6व
52 -आराधना
च\
ू हा गरम करने के लये संघष&रत मातश
ृ ित
काम क तलाश म$ भटकता जनसमुदाय़
नाह आराधना ह ।
सब
ु ह का स6कार पंिशय! कर$ क चहचहाट
घर-आंगन चौखट पर खश
ु हाल के गीत
परचय
नदलाल भारती
कव,कहानीकार,उप-यासकार
पोट ेजए
ु ट डलोमा इन यम
ू न रसस डेवलपमेट (PGDHRD)
+'त'न,ध लघुकथा संह- काल) मांट) एवं क1वता कहानी लघुकथा संह ।
ई प
ु तक$............ उप यास-दमन,चांद) क( हंसुल) एवं अभशाप
कलम कलाधर मानद उपा,ध ,उदयपरु ।राज.। सा?ह@यकला र@न ।मानद उपा,ध।
कुशीनगर ।उ.+.।
म$ एवं www.swargvibha.tk,www.swatantraawaz.com
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