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(तत

ु पीडीएफ़ ई-बक
ु रचनाकार – http://rachanakar.blogspot.com क तु त. म
ु त पठन-पाठन व
वतरण के लए जार. पाठ को वचालत परवतत !कया गया है अतः वतनी क अशु%याँ संभावत
ह+)

उगार
कवता संह

नदलाल भारती
उगार
( कवतासंह )

नदलाल भारती

वष -2010

तकनीक सहयोगी

आजादकुमार भारती

अनुराग कुमार भारती

चकार

श श भारती
सवा धकार-लेखकाधीन

सपक

माफत ीमती मनोरमा भारती

आजाद द प, 15-एम-वीणा नगर ,इंदौर ।म. .!

दरू भाष-0731-4057553 चलतवाता 09753081066

Email- nlbharatiauthor@gmail.com

http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in

hindisahityasarovar.blogspot.com

1.उ का मधम
ु ास
झांक कर आगे -पीछे ,

दे खकर बेदखल बेबसी क दा तान

ढो कर चोट का भार, पाकर तरक से दरू

लगने लगा है

गरवी रख दया उ का मधुमास ।


ना मल सोहरत ना मल दौलत

गरब के गहने क तरह ,

च द सक! के बदले साहूकार क "तजोर म$

कैद हो गया उ का मधम


ु ास ।

पतझर झराझर उ के मधुमास

बोये सपने तालम क उव&रा संग

सींचे पसीने से ,अ)छे कल क आस

बंटवारे क ,बजल गर पड़ी भरे मधुमास ।

सपने "छ न-भनन,राहे


् ब द

आहे भभक रह

ये कैसी बंदशे सांसे तड़प तड़प कह रह

0कस गुनाह क सजा "नरापद को

हक लूट गये भरे मधुमास ।

तालम क शवया2ा 3े4ठता का मान

दबंगता क बौझार 3म का अपमान

गुहार बनता गन
ु ाह होता सपन! का क6ल

आज गरवी कल से भी ना पक आस
डूबत खाते का हो गया शो7षत का मधम
ु ास ।

लहलहाता आग का ता9डव

शो7षत गरब क नसीब होती "नत कैद

उड़ान पर पहरे , स;भावना पर बस आस

मन तड़प-तड़प कहता, ना मान ना पहचान

कहां गरवी रख दया उ का मधम


ु ास ।

दन-शो7षत! क पूर हो जाती आस

नसीब के =म से परदा हट जाता,

मलता जल-जमीन पर हक बराबर

तरक का अवसर समान

ना जा"त-धम&-?े2वाद क धधकती आग

मत
ृ शैयया
् पर ना तड़पता मधुमास

ना तड़प-तड़प कर कहता

कहां गरवी रख दया उ का मधम


ु ास । न दलाल भारती
11.12.09

2.मधम
ु ास.
भ7व4य के ,बखर प6त! के "नशान पर

आने लगा है उ का नया मधुमास

रात दन एक हुए थे,

पसीने बहे ,खल


ु  आंख! म$ सपने बसे

वाद क शल
ू  पर टं गे गये अरमान

Cयथ& गया पसीना मारे गये सपने

मरते सपन! क कि;पत है सांस ।

स;भावना क धड़क रह है नFज$

अगले मधम
ु ास 7वहस उठे सपने

नसीब के नाम ठगा गया कम&

मGभूम से उठती शोल क आंधी

राख कर जाती सपन! क जवानी

कांप उठता गदराया मन

भेद क लपटो से सल
ु ग जाता बदन ।

तालम का "नकल चुका जनाजा

योIयता का उपहास सपन! का बजता "नत बाजा

जीवन म$ Jखलेगा मधम


ु ास बाक है आस
पसीने से सींचे कम&बीज से उठे गी सव
ु ास ।

उजड़े सपन! के कंकाल से

छनकर गरती परछायK म$

स;भावनाओ का खोजता मधम


ु ास

सुलगते LरMते भ7व4य के क6लेआम

उमंगो पर लगा जाद ू टोना

मरते सपने बने ओढना और ,बछौना ।

स;भावनाओं के संग जी7वत उमंग

कम& का होता पुनज


& ी7वत भरोसा

साल के पहले दन

कम& क राह गव& से बढ जाता

स;भावना क उग जाती कलयां

जीवन के मधुमास से छं ट जाये आधयां ।

पूर हो जाये मुराद वत के इस मधुमास


लट
ू े भाIय को मले उपहार बास ती

कम& रहे 7वजयी तालम ना पाये पटकनी

िजनका उजड़ा भ7व4य उ हे मले जीवन का हर मधुमास

हो नया साल मब
ु ारक,

गरब-अमीर सब संग-संग गाये गान

जीवन क बाक Oयास

भ7व4य के ,बखरे प6त! के "नशान पर

छा जाये मधुमास.... न दलाल भारती 9.12.09

3.नद
नद क पहचान है उसका Pवाह ,

नद का अि त6व भी है Pवाह

जीवन क ग"तशीलता का संदेश है नद

सं कृ"त का जीव त उपदे श है नद ।

नद का "नर तर Pवाह

जीवन म$ भी है Pवाह ।

थमना जीवन नहं है

थम गया तो जीवन नहं है ।


नद नद नहं है ,

जब तक Pवाहत नहं है

अफसोस नद थकने लगी है ।

नद म$ जल का कल-कल Pवाह

सं कृ"त और जीवन का भी है Pवाह ।

नद का Pवाह थमने लगा है,

जीवन कठन लगने लगा है

कारण आदमी ह तो है

आओ कसम ले ,ना बनेगे नद क राह म$ बाधा

नद का अि त6व ख6म हो गया ना

हमारा भी नहं बचेगा ।

न दलाल भारती 03.12.09


4.मस
ु ीबत! के बोझ बहुत ढोये हS

खून के आंसू रोये हS ।

जमाने से घाव पाये हS

कामयाबी से खुद को दरू पाये हS।

उ गुजर रह है,

प6थरो पर लक र खींचते खीचते

गुजर रहा है दन, स;भावनाओं क पौध सींचते-सीचते ।

गम नहं ,ना मल कामयाबी,

ना प6थर पसीजा पाये खुशी है त"नक,

का,बलयत के "तनके Gप हS पाये ।न दलाल भारती...


15.01.10

5.कल जैसे दहकती हुई आंग था

लोग! को जलने का डर था ।

द6ु कार थी,

फटकार थी ।

षणय 2 क ,बसात थी
छUंटाकसी क बौझार थी ।

आंसू कुसुमत होने लगा है

अब तो कांटा भी

अपना कहने लगा है । न दलाल भारती 15.01.2010

6.आज का आदमी

इतना मतलबी हो गया है

आदमी के आंसू से खुद का कल सींचने लगा है ।

अरे आदमी को आंसू दे ने वालो

मत भल
ू ो

आदमी कुछ भी नहं ले गया है ।

ऐसी कैसी खूनी Vवाहश

0क आदमी

आदमी को आंसू दे कर

खुश रहने लगा है । न दलाल भारती 27.10.09

0000
7.जान गये होगे सुलगती तकदर का रह य,

पहचान गये होगे तरक से दरू फ$के

आदमी क कराह ।

ना सुलझने वाला रह य

"नगल रहा है हाशये के आदमी का आज,

कल मान-स;मान भी ।

सल
ु झाने का Pयास "नरथ&क हो जाता है,

पुराना Pमाण-प2 छाती-तान लेता है,

शG
ु हो जाता है फजीहत! का दौर ।

फजीहत! का दौर शदय! से जार है ,

आदमी बेगाना लगने लगा है

ये दौर शायद तब तक जार रहे

जब तक वण&Cयव था कायम रहे ।

या आदमी का फज& नहं ?


आदमी के साथ याय करे ,

हक और मानवीय समानता का अधकार दे । न दलाल भारती


20.10.09

9.उ

वत के बहाव म$ ख6म हो रह है उ

बहाव चट कर जाता है

हर एक जनवर को जीवन का एक और वस त ।

बची खुची वस त क सब
ु ह

झरती रहती है तGण कामनाय$ ।

कामनाओं के झराझर के आगे

पसर जाता है मौन

खोजता हूं

,बते संघष& के शण! म$ त"नक सुख ।

समय है 0क थमता ह नहं

गुजर जाता है दन ।

करवट! म$ गज
ु र जाती है राते

नाकामयाबी क गोद म$ खेलते-खेलते

हो जाती है सुबह
क4ट! म$ भी दब
ु क रहती है स;भावनाय$ ।

उ के वस त पर

आ6ममंथन क र साक सी म$

थम जाता है समय

टूट जाती है उ क बाधाये

बेमानी लगने लगता है

समय का Pवाह और डंसने लगते है जमाने के दये घाव

स;भावनाओं क गोद म$ अठखेलयां करता

मन अकुलाता है ,रोज-रोज कम होती उ म$

तोड़ने को बुराईय! का च[Cयूह

छूने को तरक के आकाश ।

न दलाल भारती

10-राह

ये दप आंधय! के Pहार से, थकने लगा है,


खुल आंखो के सपने लगने लगे है धध
ु ले

हारने लगी है अब उ;मीद$

भ7व4य के Gप लगने लगे है कारे -कारे ।

\गने लगा है ह!ठ गये हो सील

पलको पर आंसू लगे लगे है पलने ।

वेदना के जल,उ;मीद के बादल लेकर लगे है चलने ।

थाम$ कGणा कर जीवन पथ पर "नकल पड़ा

पहचान लया जग को यह दप थका ।

उ के उड़ते पल,पसीने क धार झराझर

फल दरू "नत दरू होता रहा

◌ुध से सुवासत दद& से कराहता रहा ।

कम& के अवल;बन को ^वाला का चु;बन डंस गया

घायल मन के सूने कोने म$, आहत सांस भरता गया ।

भेद क ^वाला ने 0कया तबाह

O6थर पर सर पटकते दल गुजर रहा

घेरा "तमर, बार-बार संक\प दोहराता रहा ।

जीवन का प दन चर Cयथा को जाना।


दहकती ^वाला क छाती पर च ह है बनाना

याद ,बखरे 7व मत
ृ ,शार सार माथे मढ जाना

छाती का दद& भेद के भूक;प का आ जाना।

कब लौटे गे दन कब सच होगा,

पसीने का झरते जाना

उर म$ अपने पावस ,

जीवन का उ_दे Mय आदमयत क राह है जाना ।

11-सचा धन

अशम हूं गम नहं ,चमकते सक! से,

भरपूर पास नहं है जो।

गम मझ
ु े भी डंसता है

ये नहं 0क उं चा पद और दौलत का ढे र पास नहं ।

इसलये 0क आज यह तय करने लगा है

आदमी का कद और बहुत कुछ ।


आज कोई नई बात नहं सदय! से

सदकम& और परोपकार क राह पर चलने वाला

संघष&रत ् रहा है ।

आथ&क कमी को झेलते हुए

काल के गाल पर नाम लखा है ।

मझ
ु े तो यक न है आज भी पर उ हे नहं

य!0क मेहनत ईमान क रोट,तरक नहं है

अभमान के शखर पर बैठे लोग! के लये ।

मS खुश हूं,यक न से कह सकता हूं

मेहनत,ईमान क रोट खाने वालो

नेक क राह पर चलने वाल! के पास

अनमोल र6न होता है

द"ु नया के 0कसी मुaा के बस क बात नहं

जो इनहे खरद सके,यह बड़ी तप या का P"तफल है ।

यह P"तफल ना होता तो मुझ जैसे ,

अशम के पास भी दौलत का ढे र होता

पर आज का कद ना होता
जो पद और दौलत के ढे र से उपर उठाता है ।

कोई गला-शकवा नहं 0क ,

पद और दौलत से गरब आथ&क कमजोर हूं ।

है गला -शकवा भी ,

उनसे जो आदमी को बांट रहे है

धन को सब कुछ कह रहे है ,

पर मS और मेरे जैसे नहं ।

मS तो खुश हूं य!0क स;मान धन के ढे र मे◌े नहं

स_भावना,मानवीय समानता और स)ची ईमानदार म$ है ,

जो समय के पु2ो को नसीब होता है ।

12-जागो ।

जागो अब बीत गयी काल रात$,


नव एहसास,नव उमंग _वार आया नवPभात

बांध! गांठ-गांठ नव उ;मीद संग नव चेतन को

तेज वी नवPभात कूद पड़ो नव पLरवत&न को

जागो अब बीत गयी काल रात$...........

संवb
ृ च तन चLर2वान 7वMवगG
ु क पहचान,

पLर3मी,वफादार िज;मेदार युवा शित महान

अलौ0क अनुराग आजाद के लये कटे ढे रो शीश

कलप$ ना अमर शहद! क आ6माये बना रहे आशीश

जागो अब बीत गयी काल रात$..............

अपनी सरकार अपना सं7वधान अपने लोग

पर या नै"तक पतन =4टाचार का लग गया रोग

7पछड़ापन असुरशा,उ6पीड़न का माहौल 7व4◌ौला

अ7षशा भय-भूख जा"तभेद का Gप 7व4◌ौला

जागो अब बीत गयी काल रात$..............

सख सवcतम कानून Cयव था पर डंस जाती ढल-पोल

ना चLर2 टकाउं यहां ना कमजोर के आंसू का मोल

नवोदय हुआ तरक का ना कर$ वत बबा&द


पल-पल का जीवन जनहत रा4dधम& होवै आबाद

जागो अब बीत गयी काल रात$...............

करे दा"य6व! का पालन बढाये जगत म$ दे श का मान

ना जा"तधम& के झगड़े,दे श-धम& पहले अपनाये इंसान

संवb
ृ बने रा4d फलेफूले समतावाद,नै"तकता को मजबूत
बनाये

आजाद अनुराग अलौ0कक हम भारत के वासी

आओ रा4d "नमा&ण म$ हाथ बढाये

जागो अब बीत गयी काल रात$ .................

13- आते हुए लह

हे आते हुए ल;ह! बहार क ऐसी बयार लाना

नवचेतना,नव प7वत&न नव उजा&वान बना जाना।

अशाि त 7वषमता,मंहगाई क Pेत छाया ना मड़राये

ना उ6पाद ना भेदभाव,ना रतपात ना ममता ,बलखाये ।

मेहनतकश धरती का सरू ज चांद नार का बढे स;मान,


ना तरसे आंखे मेहनत पाये भेद रहत स;मान ।

जल उठे मन का दया,तरक के आसार बढ जाय$

मां बाप क ना टूटे लाठU,

कण-कण म$ ममता समता बस जाये ।

भेद का दLरया सख
ू े दLर द! का ना गूंजे हाहाकार

इंसान! क ब ती म$ बस गंज
ू े,इंसा"नयत क जयकार ।

दे श और मानव रशा के लये हर हाथ थाम$ तलवार

तोड़ दवारे भेद क सार,दे श-धम& के लये रहे तैयार ।

जा"त धम& के ना पड़े ओले,

अब तो मौसम बास ती हो जाये

शो7षत मेहनतकश क चौखट तक तरक पहुंच जाये ।



एहसास Lरसते जVम का दद& , दल मे◌◌
े ं फफोले खडे है

मकसद नजदक उनसे जो तरक समता से दरू पड़े है ।

,बते ल;ह! से नहं शकायत पूर हो जाये अब कामना,

हे ◌े आते हुए ल;हो आस साथ तु;हारे ,

सुखद हो नवPभात,

सच हो जाये खुल आंख! का सपना ।


14-उपकार

नफरत 0कया जो तम
ु ने या पा जाओगे

मेरे हालात एक दन जGर बह जाओगे ।

गये अभमानी 0कतने आयेगे और

गरब कमजोर को सतायेगे ।

मै नहं चाहूंगा 0क वे बबा&द हो

पर वे हो जायेगे

जग जान गया है

गरब क आह बेकार नहं जाती

एक दन खुद जान जाओगे ।

मS कभी ना था बेवफा

दि;भय! ने दोयम दजg का मान लया

शो7षत के दमन क िजद कर लया ।

समता का पुजार अजनवी हो गया


कम&पथ पर अकेला चलता गया ।

वे छोड़ते रहे 7वषबाण,घाव Lरससता रहा

आंसूंओ को याह मान,कोरे प ने सजा◌ाता रहा ।

शो7षत क का,बलयत का अ दाजा ना लगा

भेद का जाम मह0फल! म$ शो7षत अभागा लगा ।

Cत का इंतजार है ,कब करवट बदलेगा

छुभा&Iय पर कब हाथ फेरे गा ।

;◌े◌ार आराधना कबूल करो Pभु

नफरत करने वालो के दल! म$,

आदमयत का भाव भर दो

एहसानमंद रहूंगा तु;हारा उपकार कर दो ।

15-सुगध

जमीन पर आते ह बंधी मुhठयां खींच जाती है

रोते ह ढोलक क थाप पर सोहर गूंज जाता है ।

जमीन पर आते ह तांडव नजर आता है

समझ आते ह मौत का डर बैठ जाता है ।

मौत भी जट
ु  रहती है अपने मकसद म$
आदमी को रखती है भय म$ ।

सपने म$ भी डराती रहती है

िज दगी के हर मोढ पर मुंह बाये खड़ी रहती है ।

परछाईय! से भी चलती है आगे-आगे

आदमी भी कहां कम चाहता "नकल जाये आगे ।

भल
ू जाता आदमी तन 0कराये का घर,

Gतबे क आग म$ कमजोर को भुजता जाता

मानव क\याण जुटा नर से नारायण हो जाता ।

मौत ज म से साथ लगी पीछे पड़ी रहती है

सांस को शा त करके ह रहती है ।

सबने जान लया पहचान लया

जीवन का अ त होता है

ना पड़ो जा"तधम& के च[Cयूह


बो दो सदकम& और सदभावना क सग
ु ध

आदमी अमर इसी से होता है । न दलाल भारती

16-पीड़ा

कमजोर भय के दौर से गुजर रहा है

दन को दन करने का षणय 2 चल रहा है ।

स6य भी आज तड़पने लगा है

अभमान खल
ु ेआम डंसने लगा है।

कमजोर भरे जहां म$ आंसू "नचोड रहा है

स6ता क र साकसी का दौर चल रहा है ।

गरब शोषण-महं गाई से दबा जा रहा है ।

कमजोर का हक छUना जा रहा है

0कया कोशश तो बदनाम 0कया जा रहा है ।

कमजोर क आन भाती नहं

बनती तकदर ,बगाड़ द जाती यहं ।

आज शो7षत-कमजोर दहMत म$ जी रहा

गरबी के भार भेद का जहर पी रहा ।

कोई है जो पीड़ा समझ सके


तरक क राह दो कदम साथ चल सके । न दलाल भारती

17-आजाद के दाता ।

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई

लालसा अधूर सपने पूरे छFबीस जनवर आयी

छाती पर भार थे घाव गहरे ,सपने ने ल अंगड़ाई

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

तेर आंख! म$ थे आंसू मेर म$ ऐसी ^यो"त जलायी

फैले रह गये हाथ तु;हारे ,"तंरंगा उं ची उड़ान है पायी

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

बदल गये अब के पूत,पमाथ& क सु ध ना आयी

,बलखाता जन,आंसू अपन! के लगे बात परायी

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

गोरे हारे तेरे आगे काल! ने ल है अंगड़ाई


दे व थान! के झगड$ जा"त-धम& म$ रहे शित गंवायी

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

भूल रहे जन-दे श सेवा अपने महल रहे बनायी

मन म$ गहराती दरारे ,दi


ु मन रहे आंख दखाई

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

शहादत क कसम मातभ


ृ ू म ना आंसू बहाई

दे श-धम& ब धु6व भाव क बहे गी गंगा◌ा

जन-जन मु कायी

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर आई........

26 जनवर खुशी का दन आजाद अनुराग "तरं गा रहे फहरायी

आस आजाद का हक मले बरोबर,तेर याद मे आंखे भर


आयी

जय जय हे आजाद के दाता,तेर याद 0फर


आई........न दलाल भारती

18-आजाद मल वदाई ।

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई

आज खि9डत अरमान "नज वाथ& ने धूम मचायी

आजाद क थी धुन,लाश! के ढे र नूतन मला सवेरा


दभ
ु ा&Iय आज न होती शो7षत गरब क सन
ु वायी

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई.........

दन म$ आंसू रै ना का दद& 7वjवल

3म झराझर अ6याचार P"तपल

गुलामी के दा तान सुन नयन! म$ आंसू

चह करे कराह 7वषमता यौवन पायी

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई......

महान बोस,याद खून दो आजाद दं ग


ू ा का नारा

गांधी क आंधी अ;बेडकर क शिशत बनो

संघष& करो क गूंजतह चहुंओर धारा

भगतसंह रं ग दे माई बास ती चोला

आज दे श-जन सेवा म$ खोज रहे मोट कमाई

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई...........


,बसरे मायने आजाद के बूढ होती चाह

घोटाला,भेदभाव,अ6याचार कहां करे पुकार

धरती अपनी सं7वधान अपना

लोग है अपने ना जमती आशा क परत$

ना गंजती समता क शहनाई

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई........

तरक क आंधी गांधी का था सपना

गरबी,भख
ू मर,बेरोजगार,भूमहनता छलता यहां अपना

,बसरे जन सेवा के भाव

"नत नव-नव मख
ु ौटे है धरते

अपना दे श अपनी आजाद,मांट म$ रहे स!धापन समायी

आह बहाकर लहू आजाद मल 7वदाई.......

19-भूल

बड़ी भल
ू हुई मझ
ु से,सजा भग
ु त रहा हूं ,

"नकला था खोजने फूल,शूल ढो रहा हूं ।

का,बल होता प^
ू य मS आंसू पी रहा हूं ,
कम&पूजा पर यहां "नत घाव पा रहा हूं ।

कम&फल का हक पर लूटता दे ख रहा हूं,

तकदर के नाम पर धोखा पा रहा हूं ।

आदमी आदमी है पर भेद भोग रहा हूं

अपन! के बीच बेगाना हो गया हूं ।

नकाबपोशो क मह0फल बेपरदा हो रहा हूं

अपनी राह आसूं से रोशन कर रहा हूं ।

बड़ी भूल हुई 7वMवास 0कया

उसी क सजा भग
ु त रहा हूं । न दलाल भारती 26.02.10

20- काबलयत

लूट रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा

कैसा त 2 जहां योIयता को ना मलता मान

हक क "छना छपट 3म को मलता अपमान

कौन सा गन
ु ाह मधुमास म$ पतझड़ का सहारा

लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......
नसीब पर लटके ताले नर 7पशाच करता गान

डूबता सूरज बना भाIय कल पर अंधयारा

म6ृ युशैयया
् पर अभलाषा नसीब का दोष सारा

च[Cयूह दन अदमी के दमन का खेल सारा

लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......

लूट गयी उ;मीदे ना जमती आशा क परते

भेद भरा जंहा पल-पल दे ता घाव नया

ना दे ना Pभु ज म ऐसे जहां म$

जहां योIयता को ना मले मान

दन का "छन जाये अधकार

हां Pभु मुखौटाधाLरय! के बीच हो गया बेसहारा

सुन लो 7वनती Pभु अब तो तूहं एक सहारा

लट
ू रह का,बलयत डूब रहा उ;मीद! का तारा......न दलाल
भारती 26.02.2010

21- अभशापत आदमी


अभशा7पत शो7षत आदमी

तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा

जीवन हुआ जंग भूम,राह म$ ,बछते कांटे

कम& भले रहा महान, योIयता का मान

भेद क जमीं पर डंसा हरदम अपमान

सच उजड़े सपने ,बखरा जीवन का प ना-प ना

तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा..........

शो7षत क रोट पसीने क कमाई

वह भी होती "छनने क सािजश

कहते अमानुष झा◌ा◌ंक ले पीछे का मेला

पेट म$ भख
ू फूट िजनक थी थाल सदा

चेतावत मत दे ख सपने कहत अभमानी

कैसे माने बात,पल भूख खुल आंख! का सपना

मन क रोशनी से जोड़ा kान

कैसे होने दं ू भेद क जमीं पर चथरा-चथरा प ना

तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा................
भेद क द"ु नया म$ 7वकास के मौके जाते "छन

हाशये का आदमी होता जैसे ,बन पानी क मीन

कम& पाता आंसू योIयता संग छल पल-पल है होता

सािजश शो7षत को दLरaता के दलदल म$ ढकेलते दे खा

जीवन दद& का दLरया माथे च ता क रे खा

अभशा7पत का भ7व4य पतझड़ के पात

भेद क जमीं पर जीवन का डंस गया प ना-प ना

तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा................

ना आयी पास तरक कौन है दोषी

जग जान गया दोष वण&वाद के सर मढा गया

योIय kानी हाशये का आदमी भले रहा

"छन गया मौका दोषी तकदर को कहा गया

ये हS गुनाह भयावह मान रहा सारा जहां


ना करो पतझड़ का पात,

शो7षत क तकदर का प ना-प ना

तरक दरू दख
ु झराझर,जीवन त हा-त हा.........न दलाल
भारती 20.03.2010

22- एक मनट का मौन

सकून ह नहं यक न भी तो है

तुम पर ! हो भी यो ना ? यह तो कमाई है 7वMवास क ।

पहले या बाद म$ मS रख लंग


ू ा या तम

दो मनट का नहं एक मनट काफ है ।

हादश! के शहर म$ आज ह तो बाक है

कल या होगा Oयारे ? ना तो हम जानते ना तम


ु ।

आदमी के बदमजाज से जान ह गये हो

=4टाचार,आतंकवाद,?े2वाद,धमवाद जा"तवाद

खा_यान! क मलावट,द7ू षत वातावरण

और दस
ू र सािजश$ कब मौत के कारण बन जाये

दो त ना तम
ु जानते हो ना हम

एक बात जान गये हS ये सािजशो क ^वालामुखी


कभी भी जानलेवा सा,बत हो सकती है ।

काश ये ^वालामुखी शा त हो जाती सदा के लये

पर तु 7वMवास क परते जम तो नहं रह है ।

हां सकून और यक न तो है दो त

तुम मेर और मS तु;हार

मौत पर दो क जगह एक मनट का

मौन तो रख ह लेगे कोई तफ


ू ान यो ना उठे

और 0फर भले ह हम खो जाये lहमा9ड म$

द"ु नया क अमन शाि त के लये । न दलाल भारती


31.03.2010

23- हं सना याद नहं ।

हंसना याद नहं मुझे कब हंसा था पहल बार

आंख खुल तो अhठहास करते पाया

नफरत-तंगी और मानवीय-अभशाप क ललकार ।


हंसना तब भी अपराध था आज भी है

शो7षत आम आदमी के दद& पर

ताककर खुद के आंगन क ओर

अभाव- भेद से जझ
ू े कैसे कह दं ू

मन से हंसा था कभी एक बार ।

पसर हो भय-भख
ू जब आम आदमी के _वार

नहं बदले हS कुछ हालात कहने भर को बस है

तरक दरू है आज भी आम आदमी से

वह भख
ू -भय भू महनता के अभशाप से Cयथत

माथे पर हाथ रखे जोह रहा बार-बार ।

सच कह रहा हूं

हंस पड़ेगा शो7षत आम-आदमी जब एक बार

सच तब मS स)चे मन से हं सूंगा पहल बार...न दलाल भारती


31.03.2010

24-अमत
ृ -बीज
कसम खा लया है,अमत
ृ बीज बोने का

जीवन के पतझड़ म$ बस त के एहसास का

चल पड़ा लेकर खुल आंख! के सपने ।


दद& बहुत है यार! राह म$,

हरदम आघात का डर बना रहता है

पुराने घाव मे नया दद& उभरता है

मिु Mकल! के दौर म$ भी जी7वत रहते है सपने ।

अंगुलया उठती है 7वफलता पर,

रा ता छोड दे ने क मश7वरा मलती है

मानता नहं िजद पर चलता रहता हूं

7वफलता के आगे सफलता दे खता हूं

कहने वाले तो यहां तक कह जाते है

मर जायेगे सपने, मेर िजद को उजा& मल जाती है

ललकारता अमत
ृ बीज से बोये, नहं मर सकते सपने ।

कहने वाले नहं मानते कहते,

मट जायेगी ह ती इस राह म$


कहता खा लया है कसम बोने के इरादे अपने

ह ती भले ना पाये "नखार ,ना मटे गे सपने ।

सपन! को पसीना 7पलाकर

आंसओ
ू क महावर से सजाकर

उजड़ी नसीब से उपजे चांद सतार! को मान दे कर

च द अपन! क शभ
ु कामनाओं क छांव म$,

कलम थाम,7वरासत का आचमन कर,

थाती भी तो यह है कलमकार के अपने ।

कैसे नहं उगेगे अमत


ृ बीज

रा4d हत-मानवहत मे दे खे गये

खुल आंख! के सपने । न दलाल भारती 05.04.2010

25-इ(तहास

तपती रे त का जीवन अघो7षत सजा है

वह भोग रहे है अधकतर लोग

िज हे हाशये का आदमी कहता है

आज भी आधु"नक समाज ।

0फ[ कहां होती तो


तपती रे त के जीवन पर पण
ू & 7वराम होता

गरबी-भेद के दलदल म$ फंसा आदमी

तरक क दौड़ म$ शामल होता आज।

कथनी गंज
ू ती है करनी मंह
ु नोचती है

तपती रे त के दलदल म$ कराहता

हाशये का आदमी तकदर को कोसता है

जान गया है ना कम& ना तकदर का दोष है

तरक से दरू रखने क सािजश है

तभी तो हाशये का आदमी

पसीने और अmु से सींच रहा है

तपती रे त का जीवन आज ।

तरक से बेदखल,आदमी क उ;मीद$ टूट चक


ु है

वह जी रहा है तपती रे त पर
स;भावनाओं का आसीजन पीकर

तरक चौखट पर द तक दे गी

जाग जायेगा 7वष-बीज बोने वालो के दल! म$

बुiद का वैराIय और हर चौखट पर

दे दे गी द तक तरक

यद ऐसा नहं हुआ तो आJखर म$

एक दन टूट जायेगा सl रच दे गा इ"तहास

आज का हाशये का तरक से बेदखल समाज ।न दलाल


भारती 06.04.2010

26- चैन क सांस

भय है भख
ू है नंगी

गरबी का तमाशा Jख स! म$ छे द कई-कई

च\
ू हा गरमाता है आंसू पीकर

आंटा गीला होता है पसीना सोखकर ।

कुठल म$ दाने थमते नहं

Jख से म$ सके जमते नहं

कूल से दरू ब)चे भूख-भूख खेलते


रोट नहं गम खाकर पलते

जवानी म$ बूढे होकर मरते

कज& क 7वरासत का बोझ आ7mत को दे कर ।

कैसे कैसे गन
ु ाह इस जहां के

हाशये का आदमी अभाव म$ बसर कर रहा

ध"नखाओं क कैद म$ धन तड़प रहा

गोदाम! म$ अ न सड़ रहा

गरब अभागे बदल रहे करवटे भख


ू लेकर ।

कब बदलेगी त वीर कब छं टे गा अधयारा

कब उतरे गा जा"त-भेद का 3ाप

कब मलेगा हाशये के आदमी को याय

कब गंज
ू ेगा धरती पर मानवतावाद

कब जागेगा दे श सnय समाज के P"त वाभमान


ये हS सवाल दे पायेगे जबाव धम&-स6ता के ठे केदार

काश मल जाता,

मS और मेरे जैसे लोग जी लेते

चैन क सांस पीकर । न दलाल भारती 09.04.2010

27- बाक) है अभलाषा

सराय म$ मकसद का "नकल रहा जनाजा

छल-Pपंच,द9ड-भेद का गंज
ू ता है◌े बाजा

नयन डूबे मन ढूंढे भार है आज हताशा

आदमी बने रहने क बाक है अभलाषा ।

द"ु नया हमसे हम द"ु नया से नाहं

0फर भी बनी है बेगानी ,

आदमी क भीड़ म$ "छना छपट है

कोई मानता मतलबी कोई कपट है

भले बार-बार मौत पायी हो आशा

जी7वत है आज भी

आदमी बने रहने क अभलाषा ।

मुसा0फर मकसद मंिजल थी परमशि


् त
मतलब क तफ
ू ान चल है जग म$ ऐसी

लोभ-मोह,कमजोर के दमन म$ बह रह शित

मंिजल दरू कोसो जवां है तो बस अंधभित

द"ु नया एक सराय नाहं पका ठकाना

दमन-मोह क आग

नहं दहन कर पायी अ त&मन क आशा

अमर कारण यह,पो7षत कर रखा है

आदमी बने रहने क अभलाषा ।

सच द"ु नया एक सराय है

मानव क\याण क जवां रहे आशा

ज म है तो मौत है "निMचत

कोई नहं अमर चाहे िजतना जोडे धन-बल

स)चा आदमी बोये समानता-मानवता-स_भावना

जी7वत रखेगा कम& यह मुसा0फरखाने क आशा


अमर रहे आदमयत 7वहसती रहे

आदमी बने रहने क अभलाषा । न दलाल भारती


16.04.2010

28-ग+
ु ताख हो गया हूं ।
हां मS गु ताख हो गया हूं

ज\
ु म,अ6याचार भख
ू -Oयास

शोषण-उ6पीड़न के 7वGb

वंचत के साथ उठ खड़ा होना

अगर ग
ु ताखी है तो मS बार-बार कGंगा ।

,बख9डन,अंध-7वMवास,Gढवाद

ठगबाजी-दगाबाजी इंसा"नयत के क6ल

गरबी,भूमहनता,दLरaता के 7वGb

आवाज गु ताखी है तो मS कGंगा ।

पैदाइशी जंग क Jखलाफत

दन के आंसू प!छना,दद& का एहसास

नफरत के तफ
ू ान को थमने का संकेत

मानवीय एकता क बात करना

गु ताखी है तो मै कGंगा ।
उजड़ी नसीब के कारणो क तहक कात

"नब&ल को अंधबल से सुलगने से रोकना

गरबी के कारणो को बेनकाब करना

Lरसते घाव पर मलहम लगाना,

फरे ब को फरे ब कहना गु ताखी है तो,

ऐसी ग
ु ताखी करने म$ डर नहं ।

रा4d के लये खतरा सा,बत हो चुके

जा"तवाद-शे ्रतवाद क Jखलाफत

वधमK समानता,बहु-धमK स_भावना

दे श-समाज के सुख-स;व7ृ b क च ता तपना

गु ताखी है तो मS कGंगा

कलम के सपाह यह करते रहे है

खुद "तल-"तल जलकर जहां रोशन करते रहे है

भले कोई कह$ ग


ु ताख मै कGंगा

य!0क मS सचमच
ु गु ताख हो गया हूं । न दलाल भारती
19.04.2010
29-उन(त-अवन(त ।

उ न"त -अव न"त क पLरभाषा

जान गया है हाशये का आदमी

वह भ7व4य तलाशने लगा है

माथा धन
ु ता है

कहता कब मलेगी,असल आजाद।

कब तक शोषण का बोझ ढोयेगे

सामािजक 7वषमता दं श कब तक भोगेगे

0कतनी राते और काट$ गी करवट! म$ ।

रात के अंधेरे क या बात करे

दन का उजाला भी डराता है

वह खौफ म$ भी सोचता है

कल शायद उ न"त के _वार खुल जाये◌े

सूरज क पहल 0करण के साथ

0फर वह परु ानी आहट$

और दहकने लगती है

जी7वत शरर मे चता क लपट$ ।


सोचता है कैसे दरू होगी

सामािजक -आथ&क दLरaता

कैसे कटे गा जीवन आजाद हवा पीकर

कैसे मलेगा असल आजाद का हक

बेदखल आदमी को ।

उठ जाती है स;भावना क लहर

बेबसी के 7वरान पर

मरणास न अरमान जी7वत हो उठते है

शिशत बनो असल आजाद के लये संघष& करो

उbार खुद के हाथ क ताकत

दखाने लगती है स;भावना

सच यह तो है

उ न"त-अव न"त के असल औजार ।

न दलाल भारती 21.04.2010


30-रोट।कवता।

रोट वह गोल मटोल रोट

आटा -पानी के मलन और

सधे पLर3मी हाथो से पाती है

चांद सा आकार ।

रोट के लये सहना पड़ता है

धप
ू -तफ
ू ान शोषण और अ6याचार

बहाना पड़ता है पसीना भी

ल;बी P0[या से हाथ आयी रोट

जगाती है संघष& का ज^बा और आशा

मटाती है भूख

जोड़ती है सामoय& हाड़फोड़कर जीने का ।

रोट का मह6व तो वह जानता है

जो रोट के लये रात-दन एक करता है

पेट म$ भख
ू छाती म$ फौलाद

और खुल आंखो म$ सपना रखता है


खुद भख
ू ा या आधी भख
ू म$ चैन लेता है

औलाद का पेट ठूंस कर भरता है ।

वो मां-बहने जानती है रोट का संघष&

जो कंधे से कंधा मलाकर चतल है

खुद भख
ू ी रहती है

पLरजन! को पूछ-पूछ कर परोसती है

य!0क वे इ ह म$ सुखी कल दे खती है ।

रोट या है 7प^जा बग&र ,

नोट खाने वाले ,रोट से खेलने वाले

जहर उगलने वाले अथवा

कैपसूल खाकर सोने वाले

या जाने रोट का मतलब ।

गरब मेहनकश भूमहन,खे"तहर मजदरू

जानता है िजसके लये

वह हांफता धरती पसीने से सींचता है ।


चांद सी गोल रोट जंग है

ताकता का सामान है और दल क धड़कन भी

सच रोट स;भावना है ,

स)चे 3म और पसीने से क गयी

स)ची आराधना है रोट। न दलाल भारती 23.04.2010

31-कपड़ा्र

जीवन का आवरण है कपडा

ज म का उपहार है कपड़ा

आन है मान है स;मान है कपड़ा

पात था या आज का सूत

तन क लाज रखता है कपड़ा ।

कहने का तो बस कपडा है

Gप अनेक रखता है कपडा

दे श क शान है कपड़ा

धम& का बखान है कपड़ा ।


रं ग बदलते बदल दे ता 7वधान है कपड़ा

P"तkा कभी जीत कभी हार है कपड़ा

अशर-च2 है वत क पहचान है कपड़ा

ओढना-,बछै ाना है पLरधान है कपड़ा

मानव 7वकास क पहचान है कपड़ा ।

धम&-कम& का "नशान है कपड़ा

ब)चे-बूढे का अ दाज है कपड़ा

नर-नार क पहचान है कपड़ा

भख
ू - Oयास है रोजगार है कपड़ा

nयता -सं कृ"त पर;परा है कपड़ा ।

आचार-7वचार का पु4प है कपड़ा

7वरासत और कम& क सुग ध है कपड़ा

जीवन भर साथ "नभाता कपड़ा

मरने पर भी साथ जाता कपडा

जीवन का अनमोल उपहार है कपड़ा । न दलाल भारती


23.04.2010
32-मकान

मकान मंदर है, जहां ईMवर के अंश 7वचरते है ,

आ6मीय, अपन6व और LरMत! के रं ग बरसते है

जहां से संगठत,शीतल-शा त नेह रसधारा उठती है

ऐसी सकून क छांव को मकान कहते है ।

पLरवार है बड़े-बूढ! क बरगद सी छांव है मकान

जहां से फूटते है Pेम के अंकुर और संवरता है जीवन

बरसता है सहज आन द, सहानुभ"ू त और 6याग

स_ Pय6न "नर तर जहां 7वहसते है

ऐसे जीवन के ठकान को मकान कहते हS ।

जहां सफलता पर बरसते है बस त के अl

असफलता पर चढते है सोधेपन के लेप

बहता है आ6मीयता और अपनेपन का सख



जहां दख
ु -सख
ु सबके होते है

अ_भूत सुख मकान क छांव म$ मलते है

िजसे पाने क परमा6मा भी इ)छा रखते है

इसीलये ऐसे धाम को मकान कहते है ।

मकान शित-संगठन का Pतीक है

लMय है मकान ,जहां फलती-फूलती है

सnयता सं कृ"त और नेक पर;पराय$

पाठशाला और LरMत! का आधार है मकान

सं कार है ,आचार-7वचार है परु खो क 7वरासत

मानवतावाद क धरोहर है मकान

मकान म$ परमा6मा के दत
ू बसते है

सच इसीलये मकान कहते है ।

"तल म है जीवन का मकान

जीवन है ,सपना हS मकान

िजसके लये आदमी जीवन के

बस त कुबा&न कर दे ते है

3म क pट-माट,पLर3म के गारे से खड़े


ठकान को मकान कहते है।

मकान जहां जीवन संगीत बजता है

मंदर क घ9ट मंि जद क अजान

बुiदम ् शरणम ् ग)छाम और

गुGqथ साहब के बखान क तरह

मानवतावाद के वर जहां से उठते है ।

इसीलये मकान को मंदर कहते है । न दलाल भारती


28.04.2010

33-बु. /दय

आंख V◌ु◌ाल rदय 7व तार पाया

ढूढना शG
ु कर दया इंसान

जार है तलाश आज तक ।

बूढा होने लगा हूं वह का वह पड़ा हूं


इरादा नहं बदला है

नहं ख6म हुई है तलाश आज तक ।

भूले भटके लोग मल भी जाते है

मान दे ने लगता हूं

उ;मीद टके चेहरा बदल जाता है

यह कारण तलाश अधूर है आज तक ।

उपदे श दे ने वाले मल जाते है

खुद को धमा&6मा दन दLरa! का मसीहा

इंसा"नयत का पुजार तक कहते है

यक न होने लगता है त"नक -त"नक

बयार उठती है चोला उड़ जाता है

यक न लहूलुहान हो जाता है

पता लगता है इंसान के वेष म$ शैतान

सच यह कारण है 0क

स)चा इंसान नहं मला आज तक ।

मन ठौLरक कर आगे बढता हूं

इंसान सरखे लोग मलते है टुकड़ो म$


कोई धम& का कोई उं ची जा"त का, कोई धन का

कोई बल का कोई पद का Pद& शन करता है

स)चे इंसान का दश&न नहं होता

यह कारण है 0क मS हारा हुआ हूं आज तक ।

हार नहं मानता ,राह पर चल रहा हूं तलाश क

िजस दन वंचत!,दन दLरa! के उbार के लये

मानवीय एकता के लये 6याग करने वाला

बुbrदय मल गया इंसान

समझ लूंगा मेरा जीवन सफल हो गया

मल गये भगवान

मेर तलाश पूर हो जायेगी

नहं हुई तो हार नहं मानंग


ू ा

चलता रहूंगा रचता रहूंगा जीवन पय& त


बुbrदय मलता नहं जीवन म$ जब तक । न दलाल भारती
13.05.2010

34--मजदरू हताश है ।

चकाचsध,फलत ,संचत खेत हरे -भरे

खे"तहर-मजदरू ! के पसीने क बूंद -बूंद पीकर

अनाज मालको के गोदाम! भरता ठसाठस,

नोट "तजोर म$ मजदरू क तकदर चौखट पर कैद

खे"तहर-मजदरू क दद
ु & शा से खेत गमगीन

बेचारा-लाचार मजदरू हताश है ।

कोठU म$ बैठा मालक चि तत,मन


ु ाफे को लेकर

मजदरू आतं0कत जGरत! को दे खकर

तन को "नचोड़ पसीना बनाता

दLरaता के अभशाप को धो नहं पाता

खेत कमासत
ू क बदहाल पर उदास है

ना मुित क राह दे ख मजदरू हताश है ।

खेत नी"त साम तवाद क जी7वत जागीर

भूमहन-खे"तहर मजदरू ! क कैद तकदर

मजदरू ! के ठले-कुठले खाल-खाल


बेरोकटोक घर म$ धप
ू क आवा-जाह

तन का कपड़ा जज&र फटा पुराना

सपूत! क बदहाल पर खेत गमगीन

लोकत 2 के यग
ु म$ मजदरू हताश है ।

कौन आयेगा आगे ता0क,

मजदरू ! के भाIय जागे

कौन उठायेगा लोकनायक जयPकाश,7वनोवा भावे का हथयार

यह करे गा भूमहन खे"तहर मजदरू ! का उbार

हो गया शंखनाद,सच JखलJखला उठे गा खेत

छं ट जायेगे 7वपदा के बादल

तप-ना होगा खे"तहर-भू महन-मजदरू हताश । न दलाल


भारती 14.05.2010
35- सब कुछ यहां नहं ख1म होता ।

जड़ खोदने क कोशश$ तो बहुत हुई,

हो रह है "नर तर गुमान क कमान पर

सूखी नहं जमीन से जुड़ी

दआ
ु ओं क आसीजन पर टक जड़े

हां कुछ ख6म तो हुआ सपने टूटे

दस
ू र! के हाथ! जो हो सकता था

हुआ पर सब कुछ ख6म नहं हुआ ।

हुनर दखाने का मौका "छन गया

नहं "छना जा सका हुनर,

य!0क "छनने क चीज नहं

बचा रहता है म"ृ त के सागर म$

रचवा दे ता है वत अmु क लहरो◌े◌ं से

बन जाती है "नम&ल पहचान

सच है सब कुछ नहं ख6म होता ।

आदमी स$ शैतान बना लाख ख6म करना चाहे

Vवाब रौदे जाते मह0फल म$ जलाये जाते


कैद नसीब आजाद नहं क जाती आज भी

फरे ब नये-नये अिVतयार 0कये जाते

फूट 0क मत वाला ना "नकले पाये आगे,

"नकलने वाला "नकल जाता है हौशले क उड़ान भरकर

करने को बहुत कुछ होता है

अदमी से शैतान बना लाख बोये कांटे

उ;मीद के सोते नहं सूखने चाहये

य!0क सब कुछ ख6म करना

टादमी से शैतान बने के बस क बात नहं ।

मौत भी नहं ख6म कर सकती जीवन क उ;मीदे

आदमी के बस क बात कहां

सब कुछ ख6म करना

ठ9डे चू\हे म$ भी आग सुलगती है

तवा गरम होता है भख


ू मटती है
तप-संघष& करना पड़ता है कुछ पाने के लये

कम& के साथ उ;मीद क जुगलब द दे ती है

अि त6व को "नखार, गढती है जीने का सहारा

धैय& और हौशले क आग दल म$ सल


ु गाये रखना चाहये

सच है सब कुछ यहां नहं ख6म होता

और नहं 0कया जा सकता है । न दलाल भारती


14.05.2010

37- जनत2 पर राजत2 भार ।

िजस मधव
ु न म$ बारहो माह पतझड़ हो

शो7षतजन के लये

उतान तपता रे ग तान Vवाब तोड़ने के लये

ऐसी जमीं पर पांव कैसे टकेगे ?

वह दस
ू र ओर जहां झराझर बस त हो

शखर लट
ू ने और दमन नी"त रचने

तरक हथयाने वालो के लये

ऐसे मे कैसे भला होगा वंचतजन का ?

बयानबाजी है जो 7वकास क आज

चुगल
ु  करती है कई कई राज
तरक क ललक म$ जी रहा गरब वंचत

गर-गर कर चलता रफतार के जमाने म$

दफन आंख! म$ Vवाब सीने म$ दद& के तराने है

कैसे चढ पायेगा 7वकास क सीढ गरब वंचत ?

7वकास क लहर हाशये के आदमी से दरू है

का,बलयत पर qहण का पहरा है

जनत 2 पर राजत 2 भार Gपहला

शो7षत क चौखट पर भख
ू -भय छायी

दस
ू र ओर हर घड़ी बज रह शहनाई

करो 7वचार कैसे होगा उiदार ?

जनत 2 के नाम राजत 2 करे गा राज

7वष-बीज बोने वाले कब तक हड़पेगे अधकार

भेदभाव से सहमा शो7षत कब तक पोछे गे आंसू


7वकास से बेदखल कब तक करे गे इ तजार ?

अरे कर लेते "नMपश 7वचार । न दलाल भारती 14.05.2010

38- व3त कहे गा शैतान

कैसी र"त फूल बना जो mंग


ृ ार

रौदा जाता पांव तले जैसे

3मक- गरब-लाचार ।

फूल 3मक दोनो क एक दा तान,

चढता सर एक दस
ू रा भगवान

हाय ये कैसी र"त पाते अपमान।

3मक पसीने से जीवन सींचता

फटे हाल ,अ6याचार सहता

फूल धारण कर आदमी इतराता,

यौवन ढलते कुचल जाता ।

कैसी लूट नसीब यौवन कुबा&न

ह से बस अभशा7पत पहचान ।

सीख गया रस "नचोड़ना आदमी

फूल ,3मक या वंचत आदमी ।


छल-बल क नी"त नहं है यार

कुचला नसीब जो वह अ6याचार ।

एक फूल है जगत ् का mग
ृ ार

दस
ू रा 3मक गरब-वंचत तप वी

जीवन क धडकन जान

ना लट
ू ो नसीब कमजोर क

फूल और 3मक द"ु नया कुबा&न

सच ना माने तो वत कहे गा शैतान............. न दलाल भारती


20.05.2010

39- समय का प2

समय का प2
ु मS अमीर भी हूं,

दौलत के टले पर बैठा तो नहं

तंगी क छांव म$ अमीर हूं

य!0क समय का पु2 हूं ।

मानता हूं पद-दौलत दरू हS

तंगी क छ$ दती छांव म$

कद का धन तो भGपर है

य!0क मS समय का पु2 हूं ।

खैर धन क बहार का भी सख
ु है

दख
ु भी तो है

बहार छं टते ह चढ़ जाती है

परायेपन क परत

,बसार दे ते है जो कल खास थे

याद रहता हूं मS

फक र म$ अमीर रचने वाला

य!0क मS समय का पु2 हूं ।

संघष&रत ् Gखी-सख
ू ी खाया
सकून का पानी पीया तंगी क छांव म$

सकून है आज कल पर यक न

य!0क मS समय का पु2 हूं ।

गैरो क पीड़ा को अपनी कहा

दद& म$ रचा-बसा

पतझड म$ बस त,धल
ू म$ फूल ढूढ लेता हूं

खुद का खुश रखने के लये

जमाने को दे ने के लये

कलम से उपजी अनमोल पैदावार

मS यह दे सकता हूं

य!0क मS समय का पु2 हूं । न दलाल भारती 21.05.2010


40-उ का कतरा-कतरा

पहचान चक
ु ा हूं ब_"नयत आदमी को

दे ख रहा हूं छल-बल का ता9डव

योIयता पर Pहार तड़पते पLर3म को

0फर भी ताल ठ!क रहा हूं ।

मS जानता हूं नसीब कैद,हाथ तंग है

योIयता नहं mे4ठता का दबदबा है

पुराने घाव का जानलेवा दद& है

रात के अंधेरे क पंशी क तरह

उजाले म$ रा ता तलाश रहा हूं ।

मS जानता हूं

भेद-ब
ृ श क जड़े उखाडना कठन है

समुद के पानी को मीठा करने क तरह

0फर भी स;भावना क आसीजन पर

उ का कतरा-कतरा कुबा&न कर रहा हूं ।

मानता हूं अदना हूं 7वशाल मीनार! के सामने

आदमी होने का सुख नहं पा सकंू गा अकेले


शोले तो सुलगा सकता हूं,उं च-नीच क जमीन पर

कैद नसीब के आंसू से अि त6व सींच सकता हूं ।

मानता हूं बूंद-बूद से सागर भरता है

"तनके-"तनके से बनती है शित,

आती है [ाि त,झुक जाता है आसमान

आदमयत के 0फ[म द यह कर रहे है

मS भी उ का कतरा-कतरा कुबा&न कर रहा हूं ।

मानता हूं उ का मधम


ु ास सल
ु ग रहा है

सल
ु गता मधम
ु ास बेकार नहं जायेगा

करे नसीब कैद,चाहे िजतना कोई बोये भेद,

मु कराये शोषण के खूनी टले पर बेखौफ

आदमी होने का सुख मलेगा,आदमयत मु करायेगी

ऐसे सुख के लये आजीवन,

उ का कतरा-कतरा कुबा&न करता रहूंगा । न दलाल भारती


24.05.2010
41- समता का अमत
ृ ,
च[Cयूह टूट नहं रहा है आध"ु नक युग म$

फैलती जा रह है िज दगी क उलझने

उलझन! के बोझ तले दबा-दबा

जीवन कठन हो गया है ।

उलझनो का "तलसम बढा रहा है

जीने का हौशला

दे रहा है हार पर जीत का संदेश

यह है उलझन क सल
ु झन

ले0कन आदमी _वारा रो7पत च[Cयूह को

जीत पाना कठन हो गया है आधु"नक युग म$ ।

उलझने जीवन क स)चाई है

च[Cयूह आदमी क सािजश

एक के बाद दस
ू रा मजबूत होता जाता है

ता0क कायनता का एक कुनबा बना रहे

दोयम दजg का आदमी


सच उलझने सुलझ जाती है

आदमी का खड़ा च[Cयूह टूटता नहं

करता रहता है अhहास जा"त-धम& के भेद क तरह ।

च[Cयूह म$ ख6म नहं होता इि;तहान

बढती जाती है मानवीय समानता क Oयास

च[Cयूह के साा^य म$ भी

मानवता के झुरमुठ म$ झांकता रहता है समता का अमत


ृ ,

यह तोडेगा च[Cयूह का "तलसम एक दन । न दलाल


भारती 25.05.2010

42- ाथना

मानव काश Pाथ&ना वीकार लेते

आदमी क चौखट पर द तक दे ते

वैसे जैसे ऋतय


ु े दे ती है

7वकार 6यागकर,क\याण भाव से

फसल!,छोटे -बडे ब
ृ शो के म तक पर ।

चल हो या अचल,नर हो या पशु

सभी करते है वागत ऋतुओं का


ऋतय
ु $ नहवाती है नहछुआ

करती है Pकृ"त का नव mंग


ृ ार

पोसती है जीवन अमत


ृ बूंदे पीलाकर ।

आदमी दरू आदमयत के अमत


ृ त6व से

आदमी के Gप Pभु के दत
ू हो

तु;हारा आहवाहन है

आओ आदमी क दहलज तक

गम
ु ान क दहलज लांघकर

छा जाओ बस त क तरह ।

हे ◌े आदमी आदमी के दल पर बो दो

आदमयत के LरMते का सेांधापन

अभशाप का बोझ ढो रहे

आदमी से लपट जाओ वषा& क बंद


ू बनकर

कुसुमत हो जायेगा आदमयत का स!धापन ।

हे आदमी Pभु के दत
ू हो तम

रे ग तान क तपती रे त नहं

फैला दो बाह$ कस लो दबे-वंचत आदमी को

जैसे राम ने भरत को कसा था बस त बनकर ।

गवाह रहे गा वत त;


ु हारे ईMवर6व का

काश तुम मेर Pाथ&ना वीकार लेते

अभमान को भल
ू कर । न दलाल भारती 25.05.2010

43-उमीद

उ;मीद पर उ;मीद जीवन रस धार

गैर-उ;मीद टूट ह;मत डूबे मझधार ।

जीवन का दख
ु -सख
ु ओढना-7वछौना

उ;मीद पर उं गल LरMता हुआ बौना ।

उ;मीद बोती "नराशा म$ अमत


ृ -आशा

जन-जन समझे उ;मीद क पLरभाषा ।

उ;मीद के सम दर म$ जी7वत है सपने

टूट उ;मीद ,बखर चाहत बैर हुए अपने ।

उ;मीद है बाक पतझड म$ बरसे बस त

उ;मीद का ना कोई ओर-छोर ना है अ त ।


उ;मीद 7वMवास बन जाते जग के ,बगड़े◌े काम

मंदर,मि जद,गLरजाघर बुb का कहे पैगाम ।

उ;मीद जीवन या दज
ू ा नाम धरे भगवान

उ;मीद है जीवन क डोर, टूट हुआ 7वरान ।

मैने भी थाम लया है उ;मीद का दामन

चल तलवार बार-बार नसीब बनी रे ग तान ।

का,बलयत का कतल
् हक पर सल
ु गे सवाल

लट
ू  नसीब सरे आम खड़ा तान उं चा भाल ।

अभमान दहके फूटा शोला 7वष समान

उ;मीद के दामन लपटा गढ गयी पहचान।

उ;मीद व दनीय गाड,खुदा Pभु का P"तGप

मान लया मैने लाख बोये कोई 7वष-बीज

जमी रहे परते उ;मीद क छं ट जाएगी धप


ू । न दलाल भारती
01.06.2010

44-सलसला
ये लोग कौन है आदमी को ,

धम&-जा"त-वंश क तुला पर आंकने वाले

आदमी तो आदमी है

बस नर-नार क दो जा"तय! म$ 7वभािजत है

0फर 7ववाद कैसा ?

आंकना है तो आंको ना,

कम&,kान कद क योIयता को और

मानवजा"त के हताथ& दे ये अवदान को

काल के ताज पर यह 7वराजते है ।

खि9डत लोग बो रहे है 7वष

धम&-जा"त-वंश के mे4ठता के गुमान

कर रहे है बेखौफ गुनाह

कह घर-पLरवार सुलगा दये जाते है

दल म$ डाल द जाती है दरार$

ये सलसला ख6म नहं हो रहा है

ना जाने य! ?

द"ु नया समट गयी 7वkान के युग म$


एक ओर आदमी तराश रहा है तलवार

धम&-जा"त-वंश के नाम

=म म$ कई बेगुनाहो क बल द जाती है

कईय! क तकदर उजाड़ द जाती है

कईय! क कैद कर ल जाती है नसीब

कई अभाग! को बना लया जाता है गल


ु ाम

सख
ु "छन लया जाता है आदमी होने का

आदमी के हाथ! ये गुनाह य!?

कब तक बंटता रहे गा आदमी

कब तक अप7व2 रहे गा कुये का पानी

कब तक अछूत रहे गा आदमी

कब खल
ु ेगे तरक के _वार

कब होगी आदमयत क जयकार


कब पायेगा अधकार आमआदमी

काश ये सलसला चल पड़ता ... न दलाल भारती


02.06.2010

45-वरोध

त\ख बयानबाजी हुनर का 7वरोध

आJखर आदमी के अरमान! का क6ल

Cयित या वग& खास के लये

तोहफा हो सकता है पर तु

आJखर आदमी दे श और

सnय समाज के लये 7वषधर ।

आJखर आदमी कायनात का पु4प है

कलया सुख जाती है पु4प बनने से पहले

सुग ध पर लगे है पहरे

कब जवान हुआ बढ
ू ा हुआ पता चला

आJखर आदमी को सहानुभू"त नहं ,

हक क दरकार है ।

आJखर आदमी क योIयता कम आंक जाती है

7वशेषता नजर नहं आती है


अंधेरे म$ कैद रखने क सािजश चलती रहती है

घमासान 21वीं सद के उजाले म$ ।

हक क बयार वाथ& बस चल पड़ती है

आस उजास म$ पंख फड़फड़ाने लगती है

भूचाल आ जाता है ,जंग "छड़ जाता है

0फर एकदम सब कुछ जम जाता है पाषाण क तरह

7वरोध सदय! से चल रहा है

तभी तो 21वी सद म$ आदमी अछूत है ।

तरक क बाट जोह रहे को हक चाहये

काशी से संसद तक, जंगल से जमीन तक

वह उपजा सकता है धरती से सोना

भर सकता हS सख
ू ती नदय! म$ जल

बहा सकता है दध
ू -घी क गंगा
कायनात का अमत
ृ बीज है आJखर आदमी

कुसुमत होना है उसे ,

हक क दरकार है 7वरोध क नहं । न दलाल भारती


03.06.10

46-समता के सागर

समता के सागर तथागत

त"नक मेर चौखट पर द तक दे जाओ ना

मां तो आंखे ब द कर ल हमेशा के

तरक क बांट जोहते-जोहते

7पता vढ है मेरे P"त सपन! को लेकर

योIयताय$ बौनी हो गयी है

जीवन के बस त म$ पतझड़ पसर गया है ।

समता के सागर तथागत

गांव आना वहां भी वागत है

मंदर से मोह भंग तो हो गया है

र मो -Lरवाजो से नहं

द\
ू हे को घोड़ी पर चढने से रोका◌ा जाता है

महलाओं पर अ6याचार होता है


दबे कुचले तबके शोषण होता है बेखौफ

खुलेआम चीर हरण तक हो रहा है

कमजोर के कु6ते के भौके दे ने पर

क6ल कर दया जाता है शो7षत आदमी का

कानून कायदे तो है Pजात 2 म$ पालन कौन कर$ ?

समता के सागर तथागत

आओ ना कभी महावीर को साथ लेकर ।

तथागत त"नक फुस&त "नकालो

सामािजक-आथ&क दशा "नहारो शो7षत! क

21वी सद म$ अछूत है,भूमहन है

पशु से ब_तर जीवन जीने को मजबूर है

मे◌ेहनतकश के 3म से उपजे सोने पर

जाम झलक रहा है महल! म$,


दस
ू र ओर च\
ू हा गरम करने क च ता है

या तुमने इसी लये महल छोड़ा था

समता के सागर तथागत एक बार आ जाओ ना ।

तम
ु आजाओगे ना तरक के ,बहड़ म$

बबा&द क जा रह बडी आबाद क उ;मीदे

आबाद हो जायेगी

अि त6व के लये तड़पते लोग

च[Cयूह म$ तबाह हो रह िज दगयां

संवर जायेगी, पथरायी आंखे चमक उठे गी

धरती का भाIय जग जायेगा

शो7षत वंचत का उbार हो जायेगा

तथागत महावीर को साथ लेकर,

आ जाओ ना दया कGणा,6याग ,समता के सागर ।न दलाल


भारती 03.06.10

47-मन क) 5चता

चंचल मन को समझता हूं बार-बार

नहं सुनता मेर एक बार


कहता हूं कभी-कभी तो 7वहस लया कर

कहता है कैसे 7वहसूं तू बता दे मेरे आंका

सपन! के टूटने क चरचराहट कान म$ जैसे ,

7पघला शीश घोल रह हो,

म नत$ ना पूर हो रह हो

दन-दJु खय! के कुनबे म$ पसरा हो फांका

7वपदा को माथे पर थाम$ कैसे न6ृ य कGं ।

स तोष क आसीजन परोसता हूं

वह फूट पड़ता है ,समझाने लगता है ,

कहता है नासमझ ना बन

ठगा-थका तड़प रहा है हक से दरू

बस त म$ पतझड़ का अ"त[मण

तू कहता है मS 7वहस पड़ू कैसे ?

कोशश करता हूं मन को समझाने क


,बगड़ी नसबी क कहानी है

कब तक आंसू म$ डूबा रहूंगा

साथ चले शखर चढ गये उनक नसीब है

मन कहता है तकदर को यो दोष दे ता है बावले ?

कौन सी कमी है तुझम$,

शिशत है संघ4र्◌ाशील है पLर3मी है

तु;हार उ न"त के रा ते ब द य! ?

सच तो ये हS 0क

कमजोर को कमजोर बनाये रखने क सािजश है । न दलाल


भारती 04.6.2010

48- सल
ु गते सवाल

पद दलत अपराध तो नहं

हो गया है उपर उठे mे4ठ क "नगाह! म$

पददलत को आंका जाता है गल


ु ाम

यो ना हो कई गन
ु ा अधक योIय

योIयता बौनी है mे4ठता के आगे आज भी।

mे4ठ के गुमान म$ हो रहा है अपराध


हो रहा है अभशा7पत छोटे पद पर

काम करने वाला उ)च शिशत आदमी

ध0कया द जाती है बड़ी-बड़ी wडqयां

और उं चा कद भी ।

mे4ठता होती है छांव जमाने के लये

दभ
ु ा&Iय करने लगी है गन
ु ाह बरसाने लगी है आग

पद-दलत का भ7व4य तबाह करने के लये

मान लेता है ज मसb अधकार

शोषण,उ6पीड़न और उपभोग का

mे4ठता के खंजर से जीतता ओहदे दार।

भूल जाता है पददलत सजा नहं Cयव था है

कुCयव था के च[ म$ अभशाप

सफलता और सख
ु क आस म$

मेहनत, लगन,ईमानदार के बदले

पददलत पाता है Pताड़ना भोगता है अभशाप ।

दभ
ु ा&Iयबस पद-दलत -दलत हो गया

आ गया Gढवाद Cयव था से आ)छादत


सं था क चाकर म$ तो समझो

जीवन का बस त हो गया पतझड़

ह से क तरक बदल गयी रा ता ।

यह तो चल रहा है गोरखधंधा

येाIयता घायल है Gढवाद Cयव था म$

और तरक के शखर है पैदाइसी mे4ठता

हक से बेदखल पददलत क उ का

बस त हो रहा है अभशा7पत ।

"नरापद कब तक काटे गा सजा,,बन गन


ु ाह क

कब तक तड़पेगी योIयता

कब तक अवGb रहे गी तरक

कब तक टूटे गे खुल आंख! के सपने

कब तक भंग होगी जीवन क तप या

कब तक पददलत रहे गा अभशा7पत

या कभी होगे हल ये सुलगते सवाल

या पद-दलत! को मलेगा खुला आसमान? न दलाल भारती


04.06.2010

49- वत के कैनवास पर ।


छांव को छांव मान लेना भूल हो गयी

परछाईयां भी Gप बदलने लगी है

दाव पाते कलेजा चोथ लेती है

कहां खोजे छावं अब तो,

छांव भी आग उगलने लगी है ।

छांव क "नय"त म$ बदलाव आ गया है

वह भी शीतलता दे ती है पहचानकर

छांव म$ अरमान! का जनाजा सजने लगा है

क6ल का पैगाम मलने लगा है ।

मुिMकल से कट रहे बस त के दन

शामयाने से मातम फुफकारने लगा है

उ क भोर म$ शाम पसरने लगी है

तम ना थी 7वहान होगा सजेगे सतारे

कलयग
ु म$ नसीब तड़पने लगा है ।

मधुमास को मलमास डंसने लगा है

नहं तरक ब कोई चांद पाने के लये

उ गुजर रह स_कम& क राह पर


बहुG7पये छांव ने दगा है 0कये,

बेMया◌ा के Oयार क तरह,

आदमी छांव क आड़ धूप बोने लगा है ।

खौफ खाने लगा है ना 7वदा हो जाउूं जहां से

छांव से सल
ु गता हुआ सपन! क बारात लये

ऐसा कैसे होगा? भले जमाना ना सुने फLरयाद

फLरयाद कGंगा कलम से वत के कैनवास पर

लखंूगा बेगन
ु ाह क दा तान

भले क6ल कर दये जाये सपने

मै◌◌
ै ं स;भावना म$ कर लंग
ू ा बसर

कलम थामे कल के लये । न दलाल भारती 06.06.2010

50- समान क तलाश ।

अंqेज भाग गये सर पर पांव रखे दशको पहले

पर तु स;मान क तलाश पूर नहं हुई

हाशय$ के आदमी क ।
राजनी"त के उथल-पुथल के दौर म$

नगाड़ेां का शोर सुनाई पड़ जाता है

समानता के बादल त"नक दर के लये आते है

0फर एकदम से छं ट जाते है

सामािजक ठे कदारो क फुफकार के आगे ।

शोर थम जाता है पांच साल के लये

समानता का ऐलान मौन हो जाता है

स6ता के गलयारे म$ चल पड़ता है घमासन ।

भल
ू जाती है समानता का वादा

एजे9डे से गायब हो जाती है समानता

पसर जाता है घनघोर अंधयारा ।

जा"तभेद का जहर कर रहा शम& दा

7वधान सवंधान म$ सव&समानता का जोर

भारतीय समाज म$ जा"तवाद का शोर

दबे-कुचल! क सरकार मदद का 7वरोध पुरजोर

सामािजक-आथ&क समानता से द6ु कार

शो7षत समानता के लये हर कुबा&नी को तैयार ।


भेदभाव उस स6तावान क याद है

िजसने बोया है बीज नफरत का स6ता के लये

हाशये के आदमी को उबरने नहं दे ता आज भी

बसर कर रहा दोयम दजg का आदमी होकर

अपने गांव,अपनी माट और अपने दे श म$ ।

भगवान बुb,महावीर,गुGनानक क [ाि त अधूर है

जोह रह है बांट युग! बाद पूर होने के लये

सामािजक और राजनै"तk नेता वाक् युb छे ड़ते है

0फर दोयम दजg के आदमी क Cयथा भूल जाते है

पांच साल के लये ।

आते चुनाव खुरचते है घाव स6ता के लये

या इस तरह कभी मटे गी नफरत क खाई ?

पूर होगी चौथे दजg के आदमी के स;मान क तलाश।


न दलाल भारती 07.6.2010

51- 6ि8टविृ 8ट ।
हादशा याद रहे गा खून के लये तो नहं था

कम भी ना था चहुंतरफा आ[मण,

पहचान पर कम&शीलता,Cयित6व

वफादर का खून था वह हादशा ।

गूंज रहा था आज के कंस का अhहास

कलेजे को छे द कर बोया गया आग

य!0क 3मक ढूंढ रहा था अि त6व

दे रहा था अिIन परशा बार-बार

सह उ6तर के बाद भी कर दया जा रहा था फेल

तरक भागी जा रह थी कोसेां पीछे

सा,बत कर दया जा रहा था बेकार

मजबूर 0कया जा रहा था करने को बेगार

यह हो रहा है सदय! से कमजोर के साथ

नहं आ रह तरक हाथ

पांच जून का हादशा गवाह है

अधकार हनन दमन और संघष& का

कैसे बयान कGं हादM◌े◌ा का समझ लिजये


अधपक फसल पर ओलाविृ 4ट

कर रह है तबाह vि4टविृ 4ट दबे-कुचलो का जीवन। न दलाल


भारती 08.6.2010

52 -आराधना

करवटे बदल-बदल का रात ,बताना

अतंwड़य! के घमासान को पानी से शा त करना

रात ,बतते सूरज का पूरब से चढते

कलेवा के लये बत&न टटोलते ब)चे,

च\
ू हा गरम करने के लये संघष&रत मातश
ृ ित
काम क तलाश म$ भटकता जनसमुदाय़

ऐसे सुबह क मेर मनोकामना नहं

नाह आराधना ह ।

मै चाहता हूं ऐसी सब


ु ह

रात ,बतने का शंखनाद करे मुगg क बाग

सब
ु ह का स6कार पंिशय! कर$ क चहचहाट

खुशहाल कूल जाते ब)च! के पादचाप

संगीत काम पर जाते कदमताल

घर-आंगन चौखट पर खश
ु हाल के गीत

आदमी म$ अपनेपन क ललक

रा4dधम& के P"त अपार आ था

कल के सुबह क रोशनी के साथ

मन-मन म$ आ गया मन भर 7वMवास

तो मान लंूगा पूर हो गयी मनोकामना

सफल हो गयी जीवन क आराधना

सुबह के इ तजार क । न दलाल भारती 08.6.2010

P तुत पीडीएफ़ ई-बुक रचनाकार


(http://rachanakar.blogspot.com क P तु"त. मुyत म$
पठन-पाठन व 7वतरण के लए जार. पाठ को वचा
लत प रवतत कया

गया है , अतः वतनी क ुटयाँ संभा वत ह" )

परचय

नदलाल भारती

कव,कहानीकार,उप-यासकार

शशा - एम.ए. । समाजशा । एल.एल.बी. । आनस ।

पोट ेजए
ु ट डलोमा इन यम
ू न रसस डेवलपमेट (PGDHRD)

ज म थान- ाम-चौक ।खैरा।पो.नरसंहपुर िजला-आजमगढ


।उ. ।
◌ा◌्रकाशत प
ु तक$ उप यास-अमानत,'नमाड क( माट) मालवा क( छाव।+'त'न,ध का.य संह।

+'त'न,ध लघुकथा संह- काल) मांट) एवं क1वता कहानी लघुकथा संह ।

ई प
ु तक$............ उप यास-दमन,चांद) क( हंसुल) एवं अभशाप

कहानी संह -मु6ठ8 भर आग,हं सते ज9म,

लघुकथा संह-उखड़े पांव / कतरा-कतरा आंसू

का.यसंह -क1वतावल / का.यबोध, मीनाशी, उ;गार

आलेख संह- 1वमश एवं अ य


स<मान वग वभा तारा रा य समान-2009
1व=व भारती +>ा स<मान,भोपल,म.+., 1व=व ?ह द) सा?ह@य
अलंकरण,इलाहाबाद।उ.+.।

लेखक म ।मानद उपा,ध।दे हरादन


ू ।उ@तराखड।

भारती पCु प। मानद उपा,ध।इलाहाबाद, भाषा र@न, पानीपत ।

डां.अ<बेडकर फेलोशप स<मान,?दEल), का.य साधना,भस


ु ावल, महाराCF,

Gयो'तबा फुले शशा1व;,इंदौर ।म.+.।

डां.बाबा साहे ब अ<बेडकर 1वशेष समाज सेवा,इंदौर ,


1व;यावाचप'त,परयावां।उ.+.।

कलम कलाधर मानद उपा,ध ,उदयपरु ।राज.। सा?ह@यकला र@न ।मानद उपा,ध।
कुशीनगर ।उ.+.।

सा?ह@य +'तभा,इंदौर।म.+.। सूफ( स त महाक1व जायसी,रायबरे ल) ।उ.+.।एवं अ य


आकाशवाणी से का.यपाठ का +सारण ।कहानी, लघु कहानी,क1वता

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जनवाह।सा ता हक।वालयर वारा उपयास-चांद क हं सुल का


धारावा हक काशन

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