Professional Documents
Culture Documents
Udgaar Nandlal Bharti D 1
Udgaar Nandlal Bharti D 1
Udgaar Nandlal Bharti D 1
उद ्गार
किवता संगह
ननदलाल भारती
( ककककककककककक )
ननदलाल भारती
कककक-2010
कककककक कककककक
ककककककककक ककककक
कककककक ककककक ककककक
कककककककक
ककक ककककक
कककककककककक-कककककककक
मममममम ममममममम मममममम ममममम
मममम ममम, 15-मम-मममम ममम ,ममममम मम.ममम.!
मममममम-0731-4057553 मममममममममम 09753081066
Email- nlbharatiauthor@gmail.com
http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com http://www.nandlalbharati.bolg.co.in
hindisahityasarovar.blogspot.com
1.उम का मधुमास
झाक कर आगे -पीछे,
देखकर बेदखली बेबसी की दासतान
ढो कर चोट का भार, पाकर तरककी से दूर
लगने लगा है
िगरवी रख िदया उम का मधुमास ।
ना िमली सोहरत ना िमली दौलत
गरीब के गहने की तरह ,
चनद िसकको के बदले साहूकार की ितजोरी मे
कैद हो गया उम का मधुमास ।
पतझर झराझर उम के मधुमास
बोये सपने तािलम की उवररा संग
सीचे पसीने से ,अचछे कल की आस
बंटवारे की िबजली िगर पडी भरे मधुमास ।
सपने िछनन-िभनन,राहे बनद
आहे भभक रही
ये कैसी बंिदशे सासे तडप तडप कह रही
िकस गुनाह की सजा िनरापद को
हक लूट गये भरे मधुमास ।
तािलम की शवयाता शेषता का मान
दबंगता की बौझार शम का अपमान
गुहार बनता गुनाह होता सपनो का कतल
आज िगरवी कल से भी ना पककी आस
डूबत खाते का हो गया शोिषत का मधुमास ।
लहलहाता आग का ताणडव
शोिषत गरीब की नसीब होती िनत कैद
उडान पर पहरे, समभावना पर बस आस
मन तडप-तडप कहता, ना मान ना पहचान
कहा िगरवी रख िदया उम का मधुमास ।
दीन-शोिषतो की पूरी हो जाती आस
नसीब के भम से परदा हट जाता,
िमलता जल-जमीन पर हक बराबर
तरककी का अवसर समान
ना जाित-धमर-केतवाद की धधकती आग
मृतशैय्या पर ना तडपता मधुमास
ना तडप-तडप कर कहता
कहा िगरवी रख िदया उम का मधुमास । ननदलाल भारती 11.12.09
2.मधुमास.
भिवषय के िबखर पततो के िनशान पर
आने लगा है उम का नया मधुमास
रात िदन एक हुए थे,
पसीने बहे,खुली आंखो मे सपने बसे
वाद की शूली पर टंगे गये अरमान
वयथर गया पसीना मारे गये सपने
मरते सपनो की किमपत है सास ।
समभावना की धडक रही है नबजे
अगले मधुमास िवहस उठे सपने
नसीब के नाम ठगा गया कमर
मरभूिम से उठती शोल की आंधी
राख कर जाती सपनो की जवानी
काप उठता गदराया मन
भेद की लपटो से सुलग जाता बदन ।
तािलम का िनकल चुका जनाजा
योगयता का उपहास सपनो का बजता िनत बाजा
जीवन मे िखलेगा मधुमास बाकी है आस
पसीने से सीचे कमरबीज से उठेगी सुवास ।
उजडे सपनो के कंकाल से
छनकर िगरती परछायी मे
समभावनाओ का खोजता मधुमास
सुलगते िरशते भिवषय के कतलेआम
उमंगो पर लगा जादू टोना
मरते सपने बने ओढना और िबछौना ।
समभावनाओं के संग जीिवत उमंग
कमर का होता पुनरजीिवत भरोसा
साल के पहले िदन
कमर की राह गवर से बढ जाता
समभावना की उग जाती किलया
जीवन के मधुमास से छंट जाये आिधया ।
3.नदी
नदी की पहचान है उसका पवाह ,
नदी का अिसततव भी है पवाह
जीवन की गितशीलता का संदेश है नदी
संसकृित का जीवनत उपदेश है नदी ।
नदी का िनरनतर पवाह
जीवन मे भी है पवाह ।
थमना जीवन नही है
थम गया तो जीवन नही है।
नदी नदी नही है ,
जब तक पवािहत नही है
अफसोस नदी थकने लगी है ।
नदी मे जल का कल-कल पवाह
संसकृित और जीवन का भी है पवाह ।
नदी का पवाह थमने लगा है,
जीवन किठन लगने लगा है
कारण आदमी ही तो है
आओ कसम ले ,ना बनेगे नदी की राह मे बाधा
नदी का अिसततव खतम हो गया ना
हमारा भी नही बचेगा ।
ननदलाल भारती 03.12.09
4.मुसीबतो के बोझ बहुत ढोये है
खून के आंसू रोये है ।
जमाने से घाव पाये है
कामयाबी से खुद को दूर पाये है।
उम गुजर रही है,
पतथरो पर लकीर खीचते खीचते
गुजर रहा है िदन, समभावनाओं की पौध सीचते-सीचते ।
गम नही ,ना िमली कामयाबी,
ना पतथर पसीजा पाये खुशी है तिनक,
कािबिलयत के ितनके रप है पाये ।ननदलाल भारती... 15.01.10
5.कल जैसे दहकती हुई आंग था
लोगो को जलने का डर था ।
दुतकार थी,
फटकार थी ।
षणयनत की िबसात थी
छीटाकसी की बौझार थी ।
आंसू कुसुिमत होने लगा है
अब तो काटा भी
अपना कहने लगा है । ननदलाल भारती 15.01.2010
6.आज का आदमी
इतना मतलबी हो गया है
आदमी के आंसू से खुद का कल सीचने लगा है ।
अरे आदमी को आंसू देने वालो
मत भूलो
आदमी कुछ भी नही ले गया है ।
ऐसी कैसी खूनी खवािहश
िक आदमी
आदमी को आंसू देकर
खुश रहने लगा है । ननदलाल भारती 27.10.09
0000
7.जान गये होगे सुलगती तकदीर का रहसय,
पहचान गये होगे तरककी से दूर फेके
आदमी की कराह ।
ना सुलझने वाला रहसय
िनगल रहा है हािशये के आदमी का आज,
कल मान-सममान भी ।
सुलझाने का पयास िनरथरक हो जाता है,
पुराना पमाण-पत छाती-तान लेता है,
शुर हो जाता है फजीहतो का दौर ।
फजीहतो का दौर शिदयो से जारी है,
आदमी बेगाना लगने लगा है
ये दौर शायद तब तक जारी रहे
जब तक वणरवयवसथा कायम रहे ।
कया आदमी का फजर नही ?
आदमी के साथ नयाय करे,
हक और मानवीय समानता का अिधकार दे । ननदलाल भारती
20.10.09
9.कककक
वकत के बहाव मे खतम हो रही है उम
बहाव चट कर जाता है
हर एक जनवरी को जीवन का एक और वसनत ।
बची खुची वसनत की सुबह
झरती रहती है तरण कामनाये ।
कामनाओं के झराझर के आगे
पसर जाता है मौन
खोजता हंू
िबते संघषर के कशणो मे तिनक सुख ।
समय है िक थमता ही नही
गुजर जाता है िदन ।
करवटो मे गुजर जाती है राते
नाकामयाबी की गोद मे खेलते-खेलते
हो जाती है सुबह
कषटो मे भी दुबकी रहती है समभावनाये ।
उम के वसनत पर
आतममंथन की रससाकससी मे
थम जाता है समय
टूट जाती है उम की बाधाये
बेमानी लगने लगता है
समय का पवाह और डंसने लगते है जमाने के िदये घाव
समभावनाओं की गोद मे अठखेिलया करता
मन अकुलाता है,रोज-रोज कम होती उम मे
तोडने को बुराईयो का चकवयूह
छूने को तरककी के आकाश ।
ननदलाल भारती
10-राह
ये दीप आंिधयो के पहार से, थकने लगा है,
खुली आंखो के सपने लगने लगे है धुधले
हारने लगी है अब उममीदे
भिवषय के रप लगने लगे है कारे-कारे ।
लगने लगा है होठ गये हो सील
पलको पर आंसू लगे लगे है पलने ।
वेदना के जल,उममीद के बादल लेकर लगे है चलने ।
थामे करणा कर जीवन पथ पर िनकल पडा
पहचान िलया जग को यह दीप थका ।
उम के उडते पल,पसीने की धार झराझर
फल दूर िनत दूर होता रहा
सुुु
िुु
ध से सुवािसत ददर से कराहता रहा ।
कमर के अवलमबन को जवाला का चुमबन डंस गया
घायल मन के सूने कोने मे, आहत सास भरता गया ।
भेद की जवाला ने िकया तबाह
पतथर पर िसर पटकते िदल गुजर रहा
घेरा ितिमर, बार-बार संकलप दोहराता रहा ।
जीवन का सपनदन िचर वयथा को जाना।
दहकती जवाला की छाती पर िचनह है बनाना
याद िबखरे िवसमृत,कशार सार माथे मढ जाना
छाती का ददर भेद के भूकमप का आ जाना।
11-सचचा धन
अकशम हूं गम नही ,चमकते िसकको से,
भरपूर पास नही है जो।
गम मुझे भी डंसता है
ये नही िक उंचा पद और दौलत का ढेर पास नही ।
इसिलये िक आज यही तय करने लगा है
आदमी का कद और बहुत कुछ ।
आज कोई नई बात नही सिदयो से
सदकमर और परोपकार की राह पर चलने वाला
संघषररत् रहा है ।
आिथरक कमी को झेलते हुए
काल के गाल पर नाम िलखा है ।
मुझे तो यकीन है आज भी पर उनहे नही
कयोिक मेहनत ईमान की रोटी,तरककी नही है
अिभमान के िशखर पर बैठे लोगो के िलये ।
मै खुश हूं,यकीन से कह सकता हूं
मेहनत,ईमान की रोटी खाने वालो
नेकी की राह पर चलने वालो के पास
अनमोल रतन होता है
दुिनया के िकसी मुदा के बस की बात नही
जो इनहे खरीद सके,यह बडी तपसया का पितफल है ।
यह पितफल ना होता तो मुझ जैसे ,
अकशम के पास भी दौलत का ढेर होता
पर आज का कद ना होता
जो पद और दौलत के ढेर से उपर उठाता है ।
कोई िगला-िशकवा नही िक ,
पद और दौलत से गरीब आिथरक कमजोर हूं ।
है िगला -िशकवा भी ,
उनसे जो आदमी को बाट रहे है
धन को सब कुछ कह रहे है,
पर मै और मेरे जैसे नही ।
मै तो खुश हूं कयोिक सममान धन के ढेे र मेे नही
सद्भावना,मानवीय समानता और सचची ईमानदारी मे है,
जो समय के पुतो को नसीब होता है ।
12-जागो ।
जागो अब बीत गयी काली राते,
नव एहसास,नव उमंग दार आया नवपभात
बाधो गाठ-गाठ नव उममीद संग नव चेतन को
तेजसवी नवपभात कूद पडो नव पिरवतरन को
जागो अब बीत गयी काली राते...........
संवृद िचनतन चिरतवान िवशवगुर की पहचान,
पिरशमी,वफादार िजममेदार युवा शिकत महान
अलौिक अनुराग आजादी के िलये कटे ढेरो शीश
कलपे ना अमर शहीदो की आतमाये बना रहे आशीश
जागो अब बीत गयी काली राते..............
अपनी सरकार अपना संिवधान अपने लोग
पर कया नैितक पतन भषटाचार का लग गया रोग
िपछडापन असुरकशा,उतपीडन का माहौल िवषौुु
ुु
ला
अिषकशा भय-भूख जाितभेद का रप िवषौुु
ुु
ला
जागो अब बीत गयी काली राते..............
सख सवोतम कानून वयवसथा पर डंस जाती ढील-पोल
ना चिरत िटकाउं यहा ना कमजोर के आंसू का मोल
नवोदय हुआ तरककी का ना करे वकत बबाद
पल-पल का जीवन जनिहत राषटधमर होवै आबाद
जागो अब बीत गयी काली राते...............
करे दाियतवो का पालन बढाये जगत मे देश का मान
ना जाितधमर के झगडे,देश-धमर पहले अपनाये इंसान
संवृद बने राषट फलेफूले समतावाद,नैितकता को मजबूत बनाये
आजाद अनुराग अलौिकक हम भारत के वासी
आओ राषट िनमाण मे हाथ बढाये
जागो अब बीत गयी काली राते.................
14-उपकार
नफरत िकया जो तुमने कया पा जाओगे
मेरे हालात एक िदन जरर बह जाओगे ।
गये अिभमानी िकतने आयेगे और
गरीब कमजोर को सतायेगे ।
मै नही चाहंूगा िक वे बबाद हो
पर वे हो जायेगे
जग जान गया है
गरीब की आह बेकार नही जाती
एक िदन खुद जान जाओगे ।
मै कभी ना था बेवफा
दिमभयो ने दोयम दजे का मान िलया
शोिषत के दमन की िजद कर िलया ।
समता का पुजारी अजनवी हो गया
कमरपथ पर अकेला चलता गया ।
वे छोडते रहे िवषबाण,घाव िरससता रहा
आंसूंओ को सयाह मान,कोरे पनने सजााता
ा ार हा ।
शोिषत की कािबिलयत का अनदाजा ना लगा
भेद का जाम महिफलो मे शोिषत अभागा लगा ।
वकत का इंतजार है,कब करवट बदलेगा
छुभागय पर कब हाथ फेरेगा ।
मेाुु
री
ेा े ा आराधना कबूल करो पभु
नफरत करने वालो के िदलो मे,
आदिमयत का भाव भर दो
एहसानमंद रहूंगा तुमहारा उपकार कर दो ।
15-सुगनध
जमीन पर आते ही बंधी मुिट्ुु
ुुु
ठयाु खीच जाती है
रोते ही ढोलक की थाप पर सोहर गूज
ं जाता है ।
जमीन पर आते ही ताडव नजर आता है
समझ आते ही मौत का डर बैठ जाता है।
मौत भी जुटी रहती है अपने मकसद मे
आदमी को रखती है भय मे ।
सपने मे भी डराती रहती है
िजनदगी के हर मोढ पर मुंह बाये खडी रहती है ।
परछाईयो से भी चलती है आगे-आगे
आदमी भी कहा कम चाहता िनकल जाये आगे ।
भूल जाता आदमी तन िकराये का घर,
रतबे की आग मे कमजोर को भुजता जाता
मानव कलयाण जुटा नर से नारायण हो जाता ।
मौत जनम से साथ लगी पीछे पडी रहती है
सास को शानत करके ही रहती है ।
सबने जान िलया पहचान िलया
जीवन का अनत होता है
ना पडो जाितधमर के चकवयूह
बो दो सदकमर और सदभावना की सुगनध
आदमी अमर इसी से होता है । ननदलाल भारती
16-पीडा
कमजोर भय के दौर से गुजर रहा है
दीन को दीन करने का षणयनत चल रहा है ।
सतय भी आज तडपने लगा है
अिभमान खुलेआम डंसने लगा है।
कमजोर भरे जहा मे आंसू िनचोड रहा है
सतता की रससाकसी का दौर चल रहा है ।
गरीब शोषण-महंगाई से दबा जा रहा है ।
कमजोर का हक छीना जा रहा है
िकया कोिशश तो बदनाम िकया जा रहा है ।
कमजोर की आन भाती नही
बनती तकदीर िबगाड दी जाती यही ।
आज शोिषत-कमजोर दहशत मे जी रहा
गरीबी के भार भेद का जहर पी रहा ।
कोई है जो पीडा समझ सके
तरककी की राह दो कदम साथ चल सके । ननदलाल भारती
17-आजादी के दाता ।
जय जय हे आजादी के दाता,तेरी याद िफर आई
लालसा अधूरी सपने पूरे छबबीस जनवरी आयी
छाती पर भार थे घाव गहरे,सपने ने ली अंगडाई
जय जय हे आजादी के दाता,तेरी याद िफर आई........
तेरी आंखो मे थे आंसू मेरी मे ऐसी जयोित जलायी
फैले रह गये हाथ तुमहारे,ितंरगं ा उंची उडान है पायी
जय जय हे आजादी के दाता,तेरी याद िफर आई........
बदल गये अब के पूत,पमाथर की सुिध ना आयी
िबलखाता जन,आंसू अपनो के लगे बात परायी
जय जय हे आजादी के दाता,तेरी याद िफर आई........
20- कािबिलयत
लूट रही कािबिलयत डूब रहा उममीदो का तारा
कैसा तनत जहा योगयता को ना िमलता मान
हक की िछना छपटी शम को िमलता अपमान
कौन सा गुनाह मधुमास मे पतझड का सहारा
लूट रही कािबिलयत डूब रहा उममीदो का तारा......
नसीब पर लटके ताले नर िपशाच करता गान
डूबता सूरज बना भागय कल पर अंिधयारा
मृतयुशैय्या पर अिभलाषा नसीब का दोष सारा
चकवयूह दीन अदमी के दमन का खेल सारा
लूट रही कािबिलयत डूब रहा उममीदो का तारा......
लूट गयी उममीदे ना जमती आशा की परते
भेद भरा जंहा पल-पल देता घाव नया
ना देना पभु जनम ऐसे जहा मे
जहा योगयता को ना िमले मान
दीन का िछन जाये अिधकार
हा पभु मुखौटाधािरयो के बीच हो गया बेसहारा
सुन लो िवनती पभु अब तो तूिहं एक सहारा
लूट रही कािबिलयत डूब रहा उममीदो का तारा......ननदलाल भारती
26.02.2010
24-अमृत-बीज
कसम खा िलया है,अमृत बीज बोने का
जीवन के पतझड मे बसनत के एहसास का
चल पडा लेकर खुली आंखो के सपने ।
ददर बहुत है यारो राह मे,
हरदम आघात का डर बना रहता है
पुराने घाव मे नया ददर उभरता है
मुिशकलो के दौर मे भी जीिवत रहते है सपने ।
25-इितहास
तपती रेत का जीवन अघोिषत सजा है
वही भोग रहे है अिधकतर लोग
िजनहे हािशये का आदमी कहता है
आज भी आधुिनक समाज ।
िफक कहा होती तो
तपती रेत के जीवन पर पूणर िवराम होता
गरीबी-भेद के दलदल मे फंसा आदमी
तरककी की दौड मे शािमल होता आज।
कथनी गूज
ं ती है करनी मुंह नोचती है
तपती रेत के दलदल मे कराहता
हािशये का आदमी तकदीर को कोसता है
जान गया है ना कमर ना तकदीर का दोष है
तरककी से दूर रखने की सािजश है
तभी तो हािशये का आदमी
पसीने और अषरु से सीच रहा है
तपती रेत का जीवन आज ।
तरककी से बेदखल,आदमी की उममीदे टूट चुकी है
वह जी रहा है तपती रेत पर
समभावनाओं का आकसीजन पीकर
तरककी चौखट पर दसतक देगी
जाग जायेगा िवष-बीज बोने वालो के िदलो मे
बुधद का वैरागय और हर चौखट पर
दे देगी दसतक तरककी
यिद ऐसा नही हुआ तो आिखर मे
एक िदन टूट जायेगा सब रच देगा इितहास
आज का हािशये का तरककी से बेदखल समाज ।ननदलाल भारती
06.04.2010
29-उननित-अवननित ।
उननित -अवननित की पिरभाषा
जान गया है हािशये का आदमी
वह भिवषय तलाशने लगा है
माथा धुनता है
कहता कब िमलेगी,असली आजादी।
कब तक शोषण का बोझ ढोयेगे
सामािजक िवषमता दंश कब तक भोगेगे
िकतनी राते और काटेगी करवटो मे ।
रात के अंधेरे की कया बात करे
िदन का उजाला भी डराता है
वह खौफ मे भी सोचता है
कल शायद उननित के दार खुल जाये
े े
सूरज की पहली िकरण के साथ
िफर वही पुरानी आहटे
और दहकने लगती है
जीिवत शरीर मे िचता की लपटे।
सोचता है कैसे दूर होगी
सामािजक -आिथरक दिरदता
कैसे कटेगा जीवन आजाद हवा पीकर
कैसे िमलेगा असली आजादी का हक
बेदखल आदमी को ।
उठ जाती है समभावना की लहर
बेबसी के िवरान पर
मरणासनन अरमान जीिवत हो उठते है
िशिकशत बनो असली आजादी के िलये संघषर करो
उदार खुद के हाथ की ताकत
िदखाने लगती है समभावना
सच यही तो है
उननित-अवननित के असली औजार ।
ननदलाल भारती 21.04.2010
30-रोटी।किवता।
रोटी वही गोल मटोल रोटी
आटा -पानी के िमलन और
सधे पिरशमी हाथो से पाती है
चाद सा आकार ।
रोटी के िलये सहना पडता है
धूप-तूफान शोषण और अतयाचार
बहाना पडता है पसीना भी
लमबी पिकया से हाथ आयी रोटी
जगाती है संघषर का जजबा और आशा
िमटाती है भूख
जोडती है सामथयर हाडफोडकर जीने का ।
रोटी का महतव तो वही जानता है
जो रोटी के िलये रात-िदन एक करता है
पेट मे भूख छाती मे फौलाद
और खुली आंखो मे सपना रखता है
खुद भूखा या आधी भूख मे चैन लेता है
औलाद का पेट ठूस
ं कर भरता है ।
वो मा-बहने जानती है रोटी का संघषर
जो कंधे से कंधा िमलाकर चतली है
खुद भूखी रहती है
पिरजनो को पूछ-पूछ कर परोसती है
कयोिक वे इनही मे सुखी कल देखती है।
रोटी कया है िपजजा बगरर ,
नोट खाने वाले ,रोटी से खेलने वाले
जहर उगलने वाले अथवा
कैपसूल खाकर सोने वाले
कया जाने रोटी का मतलब ।
गरीब मेहनकश भूिमहीन,खेितहर मजदूर
जानता है िजसके िलये
वह हाफता धरती पसीने से सीचता है ।
31-कपडा्ुु
रु
जीवन का आवरण है कपडा
जनम का उपहार है कपडा
आन है मान है सममान है कपडा
पात था या आज का सूत
तन की लाज रखता है कपडा ।
कहने का तो बस कपडा है
रप अनेक रखता है कपडा
देश की शान है कपडा
धमर का बखान है कपडा ।
रंग बदलते बदल देता िवधान है कपडा
पितजा कभी जीत कभी हार है कपडा
अकशर-िचत है वकत की पहचान है कपडा
ओढना-िबछैाुु
ुु
ना है पिरधान है कपडा
मानव िवकास की पहचान है कपडा ।
धमर-कमर का िनशान है कपडा
बचचे-बूढे का अनदाज है कपडा
नर-नारी की पहचान है कपडा
भूख - पयास है रोजगार है कपडा
सभयता -संसकृित परमपरा है कपडा ।
आचार-िवचार का पुषप है कपडा
िवरासत और कमर की सुगनध है कपडा
जीवन भर साथ िनभाता कपडा
मरने पर भी साथ जाता कपडा
जीवन का अनमोल उपहार है कपडा । ननदलाल भारती 23.04.2010
32-मकान
मकान मंिदर है, जहा ईशवर के अंश िवचरते है,
आतमीय, अपनतव और िरशतो के रंग बरसते है
जहा से संगिठत,शीतल-शानत नेह रसधारा उठती है
ऐसी सकून की छाव को मकान कहते है ।
पिरवार है बडे-बूढो की बरगद सी छाव है मकान
जहा से फूटते है पेम के अंकुर और संवरता है जीवन
बरसता है सहज आननद, सहानुभूित और तयाग
सद् पयतन िनरनतर जहा िवहसते है
ऐसे जीवन के िठकान को मकान कहते है ।
जहा सफलता पर बरसते है बसनत के अब
असफलता पर चढते है सोधेपन के लेप
बहता है आतमीयता और अपनेपन का सुख
जहा दुख-सुख सबके होते है
अद्भूत सुख मकान की छाव मे िमलते है
िजसे पाने की परमातमा भी इचछा रखते है
इसीिलये ऐसे धाम को मकान कहते है।
मकान शिकत-संगठन का पतीक है
लकशय है मकान ,जहा फलती-फूलती है
सभयता संसकृित और नेक परमपराये
पाठशाला और िरशतो का आधार है मकान
संसकार है,आचार-िवचार है पुरखो की िवरासत
मानवतावाद की धरोहर है मकान
मकान मे परमातमा के दूत बसते है
सच इसीिलये मकान कहते है ।
ितिलसम है जीवन का मकान
जीवन है,सपना है मकान
िजसके िलये आदमी जीवन के
बसनत कुबान कर देते है
शम की ईट-माटी,पिरशम के गारे से खडे
िठकान को मकान कहते है।
33-बुद हृदय
आंख खुुु
ह ृदय
ाली िवसतार पाया
ढूढना शुर कर िदया इंसान
जारी है तलाश आज तक ।
बूढा होने लगा हूं वही का वही पडा हूं
इरादा नही बदला है
नही खतम हुई है तलाश आज तक ।
भूले भटके लोग िमल भी जाते है
मान देने लगता हूं
उममीद िटके चेहरा बदल जाता है
यही कारण तलाश अधूरी है आज तक ।
उपदेश देने वाले िमल जाते है
खुद को धमातमा दीन दिरदो का मसीहा
इंसािनयत का पुजारी तक कहते है
यकीन होने लगता है तिनक -तिनक
बयार उठती है चोला उड जाता है
यकीन लहूलुहान हो जाता है
पता लगता है इंसान के वेष मे शैतान
सच यही कारण है िक
सचचा इंसान नही िमला आज तक ।
मन ठौिरक कर आगे बढता हंू
इंसान सरीखे लोग िमलते है टुकडो मे
कोई धमर का कोई उंची जाित का, कोई धन का
कोई बल का कोई पद का पदरशन करता है
सचचे इंसान का दशरन नही होता
यही कारण है िक मै हारा हुआ हूं आज तक ।
34--मजदूर हताश है ।
चकाचौध,फिलत ,िसंिचत खेत हरे-भरे
खेितहर-मजदूरो के पसीने की बूंद -बूंद पीकर
अनाज मािलको के गोदामो भरता ठसाठस,
नोट ितजोरी मे मजदूर की तकदीर चौखट पर कैद
खेितहर-मजदूर की दुदरशा से खेत गमगीन
बेचारा-लाचार मजदूर हताश है ।
कोठी मे बैठा मािलक िचिनतत,मुनाफे को लेकर
मजदूर आतंिकत जररतो को देखकर
तन को िनचोड पसीना बनाता
दिरदता के अिभशाप को धो नही पाता
खेत कमासूत की बदहाली पर उदास है
ना मुिकत की राह देख मजदूर हताश है ।
खेत नीित सामनतवाद की जीिवत जागीर
भूिमहीन-खेितहर मजदूरो की कैद तकदीर
मजदूरो के िठले-कुिठले खाली-खाली
बेरोकटोक घर मे धूप की आवा-जाही
तन का कपडा जजरर फटा पुराना
सपूतो की बदहाली पर खेत गमगीन
लोकतनत के युग मे मजदूर हताश है ।
कौन आयेगा आगे तािक,
मजदूरो के भागय जागे
कौन उठायेगा लोकनायक जयपकाश,िवनोवा भावे का हिथयार
यही करेगा भूिमहीन खेितहर मजदूरो का उदार
हो गया शंखनाद,सच िखलिखला उठेगा खेत
छंट जायेगे िवपदा के बादल
तप-ना होगा खेितहर-भूिमहीन-मजदूर हताश । ननदलाल भारती
14.05.2010
43-उममीद
उममीद पर उममीद जीवन रस धार
गैर-उममीद टूटी िहममत डूबे मझधार ।
जीवन का दुख-सुख ओढना-िवछौना
उममीद पर उंगली िरशता हुआ बौना ।
उममीद बोती िनराशा मे अमृत-आशा
जन-जन समझे उममीद की पिरभाषा ।
उममीद के समनदर मे जीिवत है सपने
टूटी उममीद िबखरी चाहत बैर हुए अपने ।
उममीद है बाकी पतझड मे बरसे बसनत
उममीद का ना कोई ओर-छोर ना है अनत ।
उममीद िवशवास बन जाते जग के िबगडेेुु
कुामुु
मंिदर,मिसजद,िगिरजाघर बुद का कहे पैगाम ।
उममीद जीवन या दज
ू ा नाम धरे भगवान
उममीद है जीवन की डोर, टूटी हुआ िवरान ।
44-िसलिसला
ये लोग कौन है आदमी को ,
धमर-जाित-वंश की तुला पर आंकने वाले
आदमी तो आदमी है
बस नर-नारी की दो जाितयो मे िवभािजत है
िफर िववाद कैसा ?
आंकना है तो आंको ना,
कमर,जान कद की योगयता को और
मानवजाित के िहताथर िदेुु
ये वदान को
अ
काल के ताज पर यही िवराजते है ।
खिणडत लोग बो रहे है िवष
धमर-जाित-वंश के षरेषठता के गुमान
कर रहे है बेखौफ गुनाह
कही घर-पिरवार सुलगा िदये जाते है
िदल मे डाल दी जाती है दरारे
ये िसलिसला खतम नही हो रहा है
ना जाने कयो ?
दुिनया िसमट गयी िवजान के युग मे
एक ओर आदमी तराश रहा है तलवार
धमर-जाित-वंश के नाम
भम मे कई बेगुनाहो की बिल दी जाती है
कईयो की तकदीर उजाड दी जाती है
कईयो की कैद कर ली जाती है नसीब
कई अभागो को बना िलया जाता है गुलाम
सुख िछन िलया जाता है आदमी होने का
आदमी के हाथो ये गुनाह कयो?
कब तक बंटता रहेगा आदमी
कब तक अपिवत रहेगा कुये का पानी
कब तक अछूत रहेगा आदमी
कब खुलेगे तरककी के दार
कब होगी आदिमयत की जयकार
कब पायेगा अिधकार आमआदमी
काश ये िसलिसला चल पडता ... ननदलाल भारती 02.06.2010
45-िवरोध
तलख बयानबाजी हुनर का िवरोध
आिखरी आदमी के अरमानो का कतल
वयिकत या वगर खास के िलये
तोहफा हो सकता है परनतु
आिखरी आदमी देश और
सभय समाज के िलये िवषधर ।
आिखरी आदमी कायनात का पुषप है
किलया सुख जाती है पुषप बनने से पहले
सुगनध पर लगे है पहरे
कब जवान हुआ बूढा हुआ पता चला
आिखरी आदमी को सहानुभूित नही ,
हक की दरकार है ।
आिखरी आदमी की योगयता कम आंकी जाती है
िवशेषता नजर नही आती है
अंधेरे मे कैद रखने की सािजश चलती रहती है
घमासान 21 वी सदी के उजाले मे ।
हक की बयार सवाथर बस चल पडती है
आस उजास मे पंख फडफडाने लगती है
भूचाल आ जाता है,जंग िछड जाता है
िफर एकदम सब कुछ जम जाता है पाषाण की तरह
िवरोध सिदयो से चल रहा है
तभी तो 21 वी सदी मे आदमी अछूत है ।
46-समता के सागर
समता के सागर तथागत
तिनक मेरी चौखट पर दसतक दे जाओ ना
मा तो आंखे बनद कर ली हमेशा के
तरककी की बाट जोहते-जोहते
िपता दृढ है मेरे पित सपनो को लेकर
योगयताये बौनी हो गयी है
जीवन के बसनत मे पतझड पसर गया है ।
समता के सागर तथागत
गाव आना वहा भी सवागत है
मंिदर से मोह भंग तो हो गया है
रसमो -िरवाजो से नही
दूलहे को घोडी पर चढने
ा से रोकााा जाता है
मिहलाओं पर अतयाचार होता है
दबे कुचले तबके शोषण होता है बेखौफ
खुलेआम चीर हरण तक हो रहा है
े के भौके देने पर
कमजोर के कुतत
कतल कर िदया जाता है शोिषत आदमी का
कानून कायदे तो है पजातनत मे पालन कौन करे ?
समता के सागर तथागत
आओ ना कभी महावीर को साथ लेकर ।
तथागत तिनक फुसरत िनकालो
सामािजक-आिथरक दशा िनहारो शोिषतो की
21 वी सदी मे अछूत है,भूिमहीन है
47-मन की िचनता
चंचल मन को समझता हूं बार-बार
नही सुनता मेरी एक बार
कहता हंू कभी-कभी तो िवहस िलया कर
कहता है कैसे िवहसूं तू बता दे मेरे आंका
सपनो के टूटने की चरचराहट कान मे जैसे ,
िपघला शीश घोल रही हो,
मननते ना पूरी हो रही हो
दीन-दुिखयो के कुनबे मे पसरा हो फाका
िवपदा को माथे पर थामे कैसे नृतय करं ।
सनतोष की आकसीजन परोसता हूं
वह फूट पडता है,समझाने लगता है,
कहता है नासमझ ना बन
ठगा-थका तडप रहा है हक से दूर
बसनत मे पतझड का अितकमण
तू कहता है मै िवहस पडू कैसे ?
कोिशश करता हूं मन को समझाने की
िबगडी नसबी की कहानी है
कब तक आंसू मे डूबा रहंूगा
साथ चले िशखर चढ गये उनकी नसीब है
मन कहता है तकदीर को कयो दोष देता है बावले ?
कौन सी कमी है तुझमे,
ाुुु
िशिकशत है संघषर्ाशील है पिरशमी है
तुमहारी उननित के रासते बनद कयो ?
सच तो ये है िक
कमजोर को कमजोर बनाये रखने की सािजश है । ननदलाल भारती
04.6.2010
51- दृिषटवृिषट ।
हादशा याद रहेगा खून के िलये तो नही था
कम भी ना था चहंुतरफा आकमण,
पहचान पर कमरशीलता,वयिकततव
वफादरी का खून था वह हादशा ।
ं रहा था आज के कंस का अट्ह ास
गूज
कलेजे को छेद कर बोया गया आग
कयोिक शिमक ढू ंढ रहा था अिसततव
दे रहा था अिगन परीकशा बार-बार
सही उततर के बाद भी कर िदया जा रहा था फेल
तरककी भागी जा रही थी कोसेाु
ा पीछे
सािबत कर िदया जा रहा था बेकार
मजबूर िकया जा रहा था करने को बेगार
यही हो रहा है सिदयो से कमजोर के साथ
नही आ रही तरककी हाथ
पाच जून का हादशा गवाह है
अिधकार हनन दमन और संघषर का
कैसे बयान करं हादश
े ा ेा ेकाा समझ लीिजये
अधपकी फसल पर ओलावृिषट
कर रही है तबाह दृिषटवृिषट दबे-कुचलो का जीवन। ननदलाल भारती
08.6.2010
52 -आराधना
करवटे बदल-बदल का रात िबताना
अतंिडयो के घमासान को पानी से शानत करना
रात िबतते सूरज का पूरब से चढते
कलेवा के िलये बतरन टटोलते बचचे,
चूलहा गरम करने के िलये संघषररत मातृशिकत
काम की तलाश मे भटकता जनसमुदाय
ऐसे सुबह की मेरी मनोकामना नही
नािह आराधना ही ।
मै चाहता हूं ऐसी सुबह
रात िबतने का शंखनाद करे मुगे की बाग
सुबह का सतकार पंिकशयो करे की चहचहाट
खुशहाली सकूल जाते बचचो के पादचाप
संगीत काम पर जाते कदमताल
घर-आंगन चौखट पर खुशहाली के गीत
आदमी मे अपनेपन की ललक
राषटधमर के पित अपार आसथा
कल के सुबह की रोशनी के साथ
मन-मन मे आ गया मन भर िवशवास
तो मान लूंगा पूरी हो गयी मनोकामना
सफल हो गयी जीवन की आराधना
सुबह के इनतजार की । ननदलाल भारती 08.6.2010
पसतुत पीडीएफ ई-बुक रचनाकार
(http://rachanakar.blogspot.com की पसतुित. मुफत मे पठन-पाठन
व िवतरण के िलए जारी. पाठ को सवचािलत पिरवितरत िकया गया है, अतः वतरनी की तुिटया संभािवत है )
ककककक
ननननननन ननननन
किव,कहानीकार,उपनयासकार
मममममममम मम
मम मममम
ममममममम
मम ममममममममम
म (PGDHRD)
मममम
ममममममम -मममममममम / मममम
मममम, मममममममम,
ममममम मममम
मम मममम मममममममममममममम, मममम , मममममम म
ममम
apnaguide.com/hindi/index,bbchindi.com, hotbot.com, ourcity.yahoo.co.in/dehradun/hindi, inourcity.yaho.com/Bhopal/hindi,laghukatha.com
Email- nlbharatiauthor@gmail.com
http://www.nandlalbharati.mywebdunia.com
http;//www.nandlalbharati.blog.co.in
http:// www.hindisahityasarovar.blogspot.com
www.facebook.com/nandlal.bharati
ननननननननननननननननननननननननननन नननननन ननननननन-
ननननन नन नननननन नन ननननननननन ननननननन