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गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का

िसत बर-2010

NON PROFIT PUBLICATION


हम अब बेनामी उऩयोगकर्ााओं के लऱए
गुरुत्व ज्योलर्ष ई-ऩत्रिका को मुफ्र्
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GURUTVA KARYALAY
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f गु व योितष 2 िसत बर 2010

FREE य आ मय
E CIRCULAR बंधु/ ब हन
गु व योितष प का
जय गु दे व
संपादक हर मनु य क कामना होती ह उसे जीवन म सभी कार के भौितक सुख

िचंतन जोशी साधन ा हो। य क कामनाएं तो अंनत होती ह इसी कामनाओं म कई


कामनाएं जीवन क मूल आव यकताओं से संबंिधत होती ह, उस कामना क पूित
संपक
हे तु य दन-रात अथक प र म एवं जीतोड मेहनत करने से पीछे नह ं हटता
गु व योितष वभाग
क तु कभी-कभी य क दन-रात क मेहनत का ई र य श के कारण
गु व कायालय अथवा अ य कारणो से उसे पूण फल ा नह ं हो पाती ह। एसी थती म य
92/3. BANK COLONY, करे तो करे या? य को ई र य कृ पा एवं चम कार क और कदम बढाने हे तु
BRAHMESHWAR PATNA,
बा य होना पडता ह।
BHUBNESWAR-751018,
(ORISSA) INDIA ज मे य सफलता एवं िन फलता य क वयं क भावना पर
फोन िनभर होती ह। यो क भावनाए ह भवसागर ह जसम य क सफलता एवं

91+9338213418, िन फलता िन हत होती ह। य द य ई र म भावना शु होगे तो य को

91+9238328785, िन त ह पूण सफलता ा होती ह। इसी िलये इस क युग म शा ो वचन से


ती फल दान करने वाले भगवान गणेश और माता काली ह।
ईमेल
gurutva.karyalay@gmail.com,
कला च ड वनायकौ
gurutva_karyalay@yahoo.in, अथात ्: कलयुग म च ड और वनायक क आराधना िस दायक
और फलदायी होता है ।
वेब
http://gk.yolasite.com/ व तुंड महाकाय सूयको ट सम भ:
http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
िन व नं कु मे दे व: सवकायषु सवदा
प का तुित
हे लंबे शर र और हाथी समान मुंख वाले गणेश जी, आप करोड़ सूय के
िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी
समान चमक ले ह। कृ पा कर मेरे सारे काम म आने वाली बाधाओं व नो को
फोटो ाफ स आप सदा दरू करते रह।
िचंतन जोशी, व तक आट आप अपने जीवन म दन ित दन अपने उ े य क पूित हे तु अ णय हो
एवं आपके सभी शुभ काय भगवान ी गणेश के आिशवाद से िन व न पूण
हमारे मु य सहयोगी
करने हे तु आपको सहायक हो हमार य ह मंगल कामना ह......
व तक.ऎन.जोशी
( व तक सो टे क इ डया िल)
िचंतन जोशी
NON PROFIT PUBLICATION
f गु व योितष 3 िसत बर 2010

वशेष लेख
सव थम पूजनीय कथा 13 गणेश के क याणकार मं 19
सव थम पूजा वै दक एवं शा के मत 17 गणेश चतुथ योितष क नजर म 32

अनु म
कृ ण के मुख म ांड दशन 4 राधाकृ त गणेश तो म् 36
कृ ण मरण का मह व 5 गणेश कवचम ् 37
ी कृ ण का नामकरण सं कार 6 व णुकृतं गणेश तो म ् 38
ीकृ ण चालीसा 7 गणपित तो म ् 39
व प ीकृ त ीकृ ण तो 8 ी गणेश आरित 39
ाणे र ीकृ ण मं 9 गणेशभुजंगम ् 40
ा रिचत कृ ण तो 9 ी व ने रा ो र शतनाम तो म ् 41

ीकृ णा कम ् 10 वनायक तो 42

कृ ण के विभ न मं 11 ी िस वनायक तो म ् 43
कृ ण मं 12 िशवश कृ तं गणाधीश तो म 44
गणपित पूजन म तुलसी िन ष य 18 मनोवांिछतफलो क ाि हे तु िस द गणपित तो 45
गणेश पूजन म कोन से फूल चढाए 22 गणेश पूजन से वा तु दोष िनवारण 46
गणेश ने चूर कय कुबेर का अहं कार 23 गणेश वाहन मूषक केसे बना 47
व ननाशक गणेश म 23 संक हर चतुथ त का ारं भ कब हवा
ु 48
एकदं त कथा गणेश 24 अमंगल ह नह मंगलकार भी है -मंगल 49
व तु ड कथा 26 गणेशजी माता ल मी के द क पु है ? 50
संकटनाशन गणेश तो म ् 27 संतान गणपित तो 50
संक हरणं गणेशा कम ् 28 गणेश पुराण क म हमा 51
गणेश पं चर म ् 29 िसतंबर-२०१० मािसक पंचांग 56
गणपित अथवशीष 30 िसतंबर -२०१० मािसक त-पव- यौहार 57

गणेश तवन 31 िसत बर २०१० वशेष योग 59


गणेश चतुथ पर चं दशन िनषेध य ... 33 ह चलन िसत बर -2010 60

गणेश ादशनाम तो म ् 34 मािसक रािश फल 61


एकद त शरणागित तो म ् 35 गणेश ादशनाम तो म ् 62

लघु कथाएं
ी 47 मू य 54
िलखो नाम रे त और प थर पर 22
f गु व योितष 4 िसत बर 2010

कृ ण के मुख म ांड दशन


ज मा मी
02-िसत बर-2010

एक बार बलराम स हत वाल बाल खेल रह थे खेलते- पृ वी,वायु, व ुत, तारा स हत वगलोक, जल, अ न, वायु,
खेलते यशोदा के पास पहँु चे और यशोदाजी से कहा माँ! आकाश इ या द विच संपूण व एक ह काल म
कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के हाथ दख पड़ा। इतना ह नह ,ं यशोदा ने उनके मुख म ज के
को पकड़ िलया और धमकाने लगी क तुमने िम ट य साथ वयं अपने आपको भी दे खा।
खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट खाने से इन बात से यशोदा को तरह-तरह के तक- वतक
कृ ण कोई रोग न लग जाए। माँ क डांट से कृ ण तो होने लगे। या म व न दे ख रह हँू! या दे वताओं क
इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर आँख भी कोई माया ह या मेर बु ह यामोह ह या इस मेरे
नह ं उठा पा रहे थे। कृ ण का ह कोई वाभा वक भावपूण चम कार ह।
तब यशोदा ने कहा तूने एका त म िम ट य अ त म उ ह ने यह ढ़ िन य कया क अव य ह
खाई! िम ट खाते हए
ु तुजे बलराम स हत और भी वाल इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके प म
ने दे खा ह। कृ ण ने कहा- िम ट मने नह ं खाई ह। ये अवत रत हएं
ु ह। तब उ ह ने कृ ण क तुित क उस
सभी लोग झुठ बोल रहे ह। य द आपको लगता ह मने श व प पर को म नम कार करती हँू । कृ ण ने
िम ट खाई ह, तो वयं मेरा मुख दे ख ले। माँ ने कहा जब दे खा क माता यशोदा ने मेरा त व पूण तः समझ
य द ऐसा है तो तू अपना मुख खोल। लीला करने के िलए िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु नेहमयी अपनी श प
बाल कृ ण ने अपना मुख माँ के सम खोल दया। माया बखेर द जससे यशोदा ण म ह सबकुछ भूल
यशोदा ने जब मुख के अंदर दे खते ह उसम संपूण व गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया।
दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाएँ, प, पवत, समु ,
f गु व योितष 5 िसत बर 2010

कृ ण मरण का मह व
 िचंतन जोशी
ी शुकदे वजी राजा पर त ् से कहते ह- श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त णरािग
ु यै रह। न वदःु स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ

चीणिन कृ ताः॥ ीकृ ण म इतने त मय रहते थे क सोते, बैठते, घूमते,

भावाथ: जो मनु य केवल एक बार ीकृ ण के गुण म फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन

ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण के चरण कमल आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।

म लगा दे ते ह, वे पाप से छूट जाते ह, फर उ ह पाश


वैरेण यं नृ पतयः िशशुपालपौ -
हाथ म िलए हए
ु यमदत
ू के दशन व न म भी नह ं हो
शा वादयो गित वलास वलोकना ैः।
सकते।
याय त आकृ तिधयः शयनासनादौ
त सा यमापुरनुर िधयां पुनः कम॥्
अ व मृ ितः कृ णपदार व दयोः
भावाथ: जब िशशुपाल, शा व और पौ क आ द राजा
णो यभ ण शमं तनोित च।
वैरभाव से ह खाते, पीते, सोते, उठते, बैठते हर व ी
स व य शु ं परमा मभ ं
ह र क चाल, उनक िचतवन आ द का िच तन करने के
ानं च व ान वरागयु म॥्
कारण मु हो गए, तो फर जनका िच ी कृ ण म
भावाथ: ीकृ ण के चरण कमल का मरण सदा बना
अन य भाव से लग रहा है , उन वर भ के मु
रहे तो उसी से पाप का नाश, क याण क ाि , अ तः
होने म तो संदेह ह या ह?
करण क शु , परमा मा क भ और वैरा ययु
ान- व ान क ाि अपने आप ह हो जाती ह। एनः पूव कृ तं य ाजानः कृ णवै रणः।
जहु व ते तदा मानः क टः पेश कृ तो यथा॥
पुंसां किलकृ ता दोषा यदे शा मसंभवान।्
भावाथ: ीकृ ण से े ष करने वाले सम त नरपितगण
सवा ह रत िच थो भगवा पु षो मः॥
अ त म ी भगवान के मरण के भाव से पूव संिचत
भावाथ:भगवान पु षो म ीकृ ण जब िच म वराजते
पाप को न कर वैसे ह भगव प
ू हो जाते ह, जैसे
ह, तब उनके भाव से किलयुग के सारे पाप और य,
पेश कृ त के यान से क ड़ा त प
ू हो जाता है , अतएव
दे श तथा आ मा के दोष न हो जाते ह।
ीकृ ण का मरण सदा करते रहना चा हए।

योितष संबंिधत वशेष परामश


योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 28 वष से अिधक वष के
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f गु व योितष 6 िसत बर 2010

ी कृ ण का नामकरण सं कार
 िचंतन जोशी
वसुदेवजी क ाथना पर यदओं
ु के पुरो हत गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह
महातप वी गगाचायजी ज नगर पहँु चे। उ ह दे खकर पु गुण से अपने लोग के मन को स न करे गा।
नंदबाबा अ यिधक स न हए।
ु उ ह ने हाथ जोड़कर अतः इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा
णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए
विधवत पूजा क । इसके प ात नंदजी ने उनसे कहा इसे लोग बल भी कहगे। यदवं
ु िशय क आपसी फूट
आप कृ या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार िमटाकर उनम एकता को यह था पत करे गा, अतः
कर द जए। लोग इसे संकषण भी कहगे। अतः इसका नाम बलराम
इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म होगा।
कुछ अड़चन ह। म यदवं
ु िशय का पुरो हत हँू , य द म अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करके
तु हारे इन पु का नामकरण सं कार कर दँ ू तो लोग कहा- यह तु हारा पु येक युग म अवतार हण
इ ह दे वक का ह पु मानने लगगे, य क कंस तो करता रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी
पहले से ह पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक पीला होता है । पूव के येक युग म शर र धारण
बात ह सोचता है । दसर
ू ओर तु हार व वसुदेव क करते हए
ु इसके तीन वण हो चुके ह। इस बार
मै ी है । कृ णवण का हआ
ु है , अतः इसका नाम कृ ण होगा।
अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं तु हारा यह पु पहले वसुदेव के यहाँ ज मा ह, अतः
संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कंस ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।
से यह कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा तु हारे पु के नाम और प तो िगनती के परे
है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे ह, उनम से गुण और कम अनु प कुछ को म जानता
मारने वाला अव य उ प न हो चुका ह। य द म हँू । दसरे
ू लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप
नामकरण सं कार करवा दँ ग
ू ा तो मुझे पूण आशा ह क गौ एवं गोकुल को आनं दत करता हआ
ु तु हारा
वह मेरे ब च को मार डालेगा और हम लोग का क याण करे गा। इसके ारा तुम भार वप य से भी
अ यिधक अिन करे गा। मु रहोगे।
नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ
तो कसी एका त थान म चलकर विध पूव क इनके करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस
जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने तरह व णु के भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर
आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सकते। यह तु हारा पु स दय, क ित, भाव आ द म
सुनकर गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का व णु के स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण
नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी सावधानी से करना। इस कार कृ ण के वषय म
ह था, इसीिलए वे आए थे। आदे श दे कर गगाचाय अपने आ म को चले गए।
f गु व योितष 7 िसत बर 2010

॥ ीकृ ण चालीसा ॥
दोहा केितक महा असुर संहारयो।
् कंस ह केस पक ड़ दै मारयो॥

बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। मात- पता क ब द छुड़ाई। उ सेन कहँ राज दलाई॥
अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥
पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकुमार ॥
जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥
जय यदनं
ु दन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥ असुर बकासुर आ दक मारयो।
् भ न के तब क िनवारयो॥

जय यशुदा सुत न द दलारे
ु । जय भु भ न के ग तारे ॥
द न सुदामा के दःख
ु टारयो।
् तंदल
ु तीन मूंठ मुख डारयो॥

जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥
ेम के साग वदरु घर माँगे। दय
ु धन के मेवा यागे॥
पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥
लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥
वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण वनय यह मेरौ॥
भारत के पारथ रथ हाँके। िलये च कर न हं बल थाके॥
आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥
िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥
गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ दु मु कान मो हनी डारे ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥
रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकुट वैज तीमाला॥
राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बने बनवार ॥
कुंडल वण, पीत पट आछे । क ट कं कणी काछनी काछे ॥
िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥
नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥
तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥
म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥
जब हं ौपद टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥
क र पय पान, पूतन ह तारयो।
् अका बका कागासुर मारयो॥

तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥
मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ अस अनाथ के नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥
सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क जै बनवार ॥
लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ नाथ सकल मम कुमित िनवारो। महु बेिग अपराध हमारो॥
ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥
द ु कंस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फूल मंगायो॥ दोहा
नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र।
क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥ अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥

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dkj.k ;a= ifo= jgrk gSa ,oa Luku djrs le; bl ;a= ij Li’kZ dj tks ty fcanq ‘kjhj dks yxrs gSa] og xaxk ty
ds leku ifo= gksrk gSaA bl fy;s bls lcls rstLoh ,oa Qynkf; dgtkrk gSaA tSls ve`r ls mÙke dksbZ vkS”kf/k
ugha] mlh izdkj y{eh izkfIr ds fy;s Jh ;a= ls mÙke dksbZ ;a= lalkj esa ugha gSa ,lk ‘kkL=ksDr opu gSaA bl izdkj
ds uojRu tfM+r Jh ;a= xq:Ro dk;kZy; }kjk ‘kqHk eqgwrZ esa izk.k izfrf”Br djds cukok, tkrs gSaA
f गु व योितष 8 िसत बर 2010

व प ीकृ त ीकृ ण तो
व प य ऊचुः
वं परमं धाम िनर हो िनरहं कृितः।
िनगु ण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥
सा प िनिल ः परमा मा िनराकृ ितः।
कृ ितः पु ष वं च कारणं च तयोः परम ् ॥२॥
सृ थ यंत वषये ये च दे वा यः मृ ताः।
ते वदं शाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥
य य लो नां च ववरे चाऽ खलं व मी रः।
महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥
तेज वं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः।
वेदेऽिनवचनीय वं क वां तोतुिमहे रः ॥५॥
महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च।
बीजं वं सवश नां सवश व पकः ॥६॥
सवश रः सवः सवश या यः सदा।
वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥
अहो आकारह न वं सव व हवान प।
सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥
सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे।
जड भूतो महे श शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥
पावती कमला राधा सा व ी दे वसूर प। ॥११॥
इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे।
अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥
व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त।् स गितं व प ीनां
लभते नाऽ संशयः ॥१३॥
॥ इित ी वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥्

इस ीकृ ण तो का िनयिमत पाठ करने से


भगवान ् ीकृ ण अपने भ पर िनःस दे ह
स न होते है । यह तो य अभय को
दान करने वाला ह।
f गु व योितष 9 िसत बर 2010

ाणे र ीकृ ण मं
ा रिचत कृ ण तो
मं :-
ोवाच :
"ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः
र र हरे मां च िनम नं कामसागरे ।
सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।" द ु क ितजलपूण च द ु पारे बहसं
ु कटे ॥१॥
विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं य भगवान ् भ व मृ ितबीजे च वप सोपानद ु तरे ।
ीवेद यास ऋ षः,
अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥
गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श ः, ऐं
क लकं, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुवग- ा ये,
ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकुले।

सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगः। रित ोतःसमायु े ग भीरे घोर एव च ॥३॥


ऋ या द यासः- ीवेद यास ऋषये नमः िशरिस, गाय ी छं दसे थमासृ त पे च प रणाम वषालये।
नमः मुख,े ीकृ ण परमा मा दे वतायै नमः द, लीं बीजाय यमालय वेशाय मु ाराित व तृ तौ ॥४॥
नमः गु ,े ीं श ये नमः नाभौ, ऐं क लकाय नमः पादयो, ॐ
बु या तर या व ानै रा मानतः वयम।्
यापकाय नमः सवा गे, मम सम त लेश प रहाथ, चतुव ग
ा ये, सौभा य वृ यथ च जपे विनयोगाय नमः अंजलौ। वयं च व कणधारः सीद मधुसूदन ॥५॥

कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण।
तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥
अनािमका यां हंु ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा
न कम े मेवेद लोकोऽयमी सतः।
करतलकरपृ ा यां फ ।
तथाऽ प न पृ हा कामे व यवधायके ॥७॥
अंग- यासः- ॐ ऐं ीं लीं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरसे
हे नाथ क णािस धो द नब धो कृ पां कु ।
वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हंु ,
ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ । वं महे श महा ाता दःु व नं मां न दशय ॥८॥

यानः- "कृ णं जग मपहन- प-वण, वलो य ल जाऽऽकुिलतां इ यु वा जगतां धाता वरराम सनातनः।
मरा याम।् यायं यायं म पदा जं श तस
् मार मािमित ॥९॥
मधूक-माला-युत-कृ ण-दे हं, वलो य चािलं य ह रं
णा च कृ तं तो ं भ यु यः पठे त।्
मर तीम।।
् "
भावाथ: संसार को मु ध करने वाले भगवान ् कृ ण के प-रं ग को स चैवाकम वषये न िनम नो भवे ुवम ् ॥१०॥
दे खकर ेम पूण होकर गो पयाँ ल जापूव क याकुल होती ह और
मम मायां विन ज य स ानं लभते ुवम।्
मन-ह -मन ह र को मरण करती हई
ु भगवान ् कृ ण क मधूक-
पु प क माला से वभु षत दे ह का आिलंगन करती ह। इह लोके भ यु ो म वरो भवेत ् ॥११॥
इस मं का विध- वधान से १,००,००० जाप करने का ॥ इित ी दे वकृ तं कृ ण तो ं स पूणम॥्
वधान ह।
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f गु व योितष 11 िसत बर 2010

कृ ण के विभ न मं
मूल मं : तेईस अ र मं :
कृ ं कृ णाय नमः ॐ ीं ं लीं ीकृ णाय गो वंदाय
यह भगवान कृ ण का मूलमं ह। इस मूल मं के गोपीजन व लभाय ीं ीं ी
िनयिमत जाप करने से य को जीवन म सभी यह तेईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
बाधाओं एवं क से मु िमलती ह एवं सुख क ाि सभी बाधाएँ वतः समा हो जाती ह।
होती ह। अ ठाईस अ र मं :
स दशा र मं : ॐ नमो भगवते न दपु ाय
ॐ ीं नमः ीकृ णाय प रपूण तमाय वाहा आन दवपुषे गोपीजनव लभाय वाहा
यह भगवान कृ ण का स रा अ र का ह। इस मूल मं यह अ ठाईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य
के िनयिमत जाप करने से य को मं िस हो जाने को सम त अिभ व तुओं क ाि होती ह।
के प यात उसे जीवन म सबकुछ ा होता ह। उ तीस अ र मं :
स ा र मं : लीलादं ड गोपीजनसंस दोद ड
गोव लभाय वाहा बाल प मेघ याम भगवन व णो वाहा।
इस सात अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से यह उ तीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से थर
जीवन म सभी िस यां ा होती ह। ल मी क ाि होती है ।
अ ा र मं : ब ीस अ र मं :
गोकुल नाथाय नमः न दपु ाय यामलांगाय बालवपुषे
इस आठ अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से कृ णाय गो व दाय गोपीजनव लभाय वाहा।
य क सभी इ छाएँ एवं अिभलाषाए पूण होती ह। यह ब ीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
दशा र मं : सम त मनोकामनाएँ पूण होती ह।
लीं ल लीं यामलांगाय नमः ततीस अ र मं :
इस दशा र मं के िनयिमत जाप करने से संपूण ॐ कृ ण कृ ण महाकृ ण सव वं सीद मे।
िस य क ाि होती ह। रमारमण व ेश व ामाशु य छ मे॥
ादशा र मं : यह ततीस अ र के िनयिमत जाप करने से सम त
ॐ नमो भगवते ीगो व दाय कार क व ाएं िनःसंदेह ा होती ह।
इस कृ ण ादशा र मं के िनयिमत जाप करने से इ यह ीकृ ण के ती भावशाली मं ह। इन मं के
िस क ाि होती ह। िनयिमत जाप से य के जीवन म सुख, समृ एवं
सौभा य क ाि होती ह।

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gRFkk tksM+h& `. 370 fcYyh dh uky&`. 370 nf{k.kkorhZ ‘ka[k &`. 550 fl;kj flaxh&`. 370
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f गु व योितष 12 िसत बर 2010

कृ ण मं
भगवान ी कृ ण से संबंधी मं तो शा म भरे पडे ह। ले कन जन
साधारण म कुछ खास मं का ह चलन और अ यािधक
मह व ह।
ॐ कृ णाय वासुदेवाय हरये परमा मने।
णतः लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः॥
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर
व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य के
जीवन म कसी भी कार के संकट नह ं आते।

ॐ नमः भगवते वासुदेवाय कृ णाय


लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से आक मक संकट
से मु िमलित ह।

हरे कृ ण हरे कृ ण, कृ ण-कृ ण हरे हरे ।


हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे ।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य को जीवन
मे सम त भौितक सुखो एवं मो ाि होती ह।

पित-प ी म कलह िनवारण हे तु


य द प रवार म सुख-सु वधा के सम त साधान होते हए
ु भी छोट -छोट बातो म पित-प ी के बच मे
कलह होता रहता ह, तो घर के जतने सद य हो उन सबके नाम से गु व कायालत ारा शा ो
विध- वधान से मं िस ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एवं गृ ह कलह नाशक
ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म बना कसी पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ ा कर
सकते ह। य द आप मं िस पित वशीकरण या प ी वशीकरण एवं गृ ह कलह नाशक ड बी
बनवाना चाहते ह, तो संपक आप कर सकते ह।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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f गु व योितष 13 िसत बर 2010

सव थम पूजनीय कथा
 िचंतन जोशी
भारतीय सं कृ ित म येक शुभकाय करने के पूव सव थम कौन पूजनीय हो?
भगवान ी गणेश जी क पूजा क जाती ह इसी िलये ये कथा इस कार ह : तीनो लोक म
कसी भी काय का शुभारं भ करने से सव थम कौन पूजनीय हो?, इस बात को
पूव काय का " ी गणेश करना" कहा लेकर सम त दे वताओं म ववाद खडा हो
जाता ह। एवं यक शुभ काय या गया। जब इस ववादने बडा प धारण
अनु ान करने के पूव ‘‘ ी गणेशाय कर िलये तब सभी दे वता अपने-अपने
नमः” का उ चारण कया जाता ह। बल बु अ के बल पर दावे तुत
गणेश को सम त िस य को दे ने वाला करने लगे। कोई पर णाम नह ं आता
माना गया है । सार िस याँ गणेश म वास दे ख सब दे वताओं ने िनणय िलया क
करती ह। चलकर भगवान ी व णु को
इसके पीछे मु य कारण ह क मं िस प ना गणेश िनणायक बना कर उनसे फैसला
भगवान ी गणेश सम त व न को करवाया जाय।
भगवान ी गणेश बु और िश ा के
टालने वाले ह, दया एवं कृ पा के अित सभी दे व गण व णु लोक मे
कारक ह बुध के अिधपित दे वता
सुंदर महासागर ह, एवं तीनो लोक के ह। प ना गणेश बुध के सकारा मक उप थत हो गये, भगवान व णु ने
क याण हे तु भगवान गणपित सब भाव को बठाता ह एवं नकारा मक इस मु े को गंभीर होते दे ख ी व णु
कार से यो य ह। सम त व न बाधाओं भाव को कम करता ह।. प न ने सभी दे वताओं को अपने साथ लेकर
को दरू करने वाले गणेश वनायक ह। गणेश के भाव से यापार और धन
िशवलोक म पहच गये। िशवजी ने

गणेशजी व ा-बु के अथाह सागर एवं म वृ म वृ होती ह। ब चो क
कहा इसका सह िनदान सृ कता
वधाता ह। पढाई हे तु भी वशेष फल द ह
ाजी ह बताएंगे। िशवजी ी व णु
प ना गणेश इस के भाव से ब चे
भगवान गणेश को सव थम एवं अ य दे वताओं के साथ िमलकर
क बु कूशा होकर उसके
पूजे जाने के वषय म कुछ वशेष लोक पहच
ु और ाजी को सार
आ म व ास म भी वशेष वृ होती
लोक कथा चिलत ह। इन वशेष एवं ह। मानिसक अशांित को कम करने म बाते व तार से बताकर उनसे फैसला
लोक य कथाओं का वणन यहा कर मदद करता ह, य ारा अवशो षत करने का अनुरोध कया। ाजी ने
रह ह। हर व करण शांती दान करती ह, कहा थम पूजनीय वह ं होगा जो जो

इस के संदभ म एक कथा है क य के शार र के तं को िनयं त पूरे ा ड के तीन च कर लगाकर


करती ह। जगर, फेफड़े , जीभ, सव थम लौटे गा।
मह ष वेद यास ने महाभारत को से
म त क और तं का तं इ या द रोग
बोलकर िलखवाया था, जसे वयं सम त दे वता ा ड का च कर
म सहायक होते ह। क मती प थर
गणेशजी ने िलखा था। अ य कोई भी इस लगाने के िलए अपने अपने वाहन पर
मरगज के बने होते ह।
ंथ को ती ता से िलखने म समथ नह ं सवार होकर िनकल पड़े । ले कन,
था। `.550 से `.8200 तक गणेशजी का वाहन मूषक था। भला मूषक
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f गु व योितष 15 िसत बर 2010

पावतीजी के दःख
ु को दे खकर िशवजी ने उप थत गणेश क उपे ा न करे इस िलये भगवान व णु अ य
गणको आदे श दे ते हवे
ु कहा सबसे पहला जीव िमले, उसका दे वताओं के साथ म तय कय क गणेश सभी मांगलीक
िसर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक काय म अ णीय पूजे जायगे एवं उनके पूजन के बना
जी वत हो उठे गा। सेवको को सबसे पहले हाथी का एक ब चा कोई भी दे वता पूजा हण नह ं करगे।
िमला। उ ह ने उसका िसर लाकर बालक के धड़ पर लगा दया, इस पर भगवान ् व णु ने े तम उपहार से
बालक जी वत हो उठा। भगवान गजानन क पूजा क और वरदान दया क
उस अवसर पर तीनो दे वताओं ने उ ह सभी लोक
सवा े तव पूजा च मया द ा सुरो म।
म अ पू यता का वर दान कया और उ ह सव अ य
पद पर वराजमान कया। कंद पुराण सवपू य योगी ो भव व से युवाच तम ्।।

(गणपितखं. 13। 2)
वैवतपुराण के अनुसार (गणपितख ड) – भावाथ: ‘सुर े ! मने सबसे पहले तु हार पूजा क है,
िशव-पावती के ववाह होने के बाद उनक कोई अतः व स! तुम सवपू य तथा योगी हो जाओ।’
संतान नह ं हई
ु , तो िशवजी ने पावतीजी से भगवान
व णु के शुभफल द ‘पु यक’ त करने को कहा पावती
के ‘पु यक’ त से भगवान व णु ने स न हो कर वैवत पुराण म ह एक अ य संगा तगत

पावतीजी को पु ाि का वरदान पु व सला पावती ने गणेश म हमा का


बखान करते हए
ु परशुराम से कहा –
दया। ‘पु यक’ त के भाव से मं िस
पावतीजी को एक पु उ प न हवा।
ु व धं ल को टं च ह तुं श ो

पु ज म क बात सुन कर यापार वृ कवच गणे रः। जते याणां वरो न ह

सभी दे व, ऋ ष, गंधव आ द सब गण ह त च म काम।।



यापार वृ कवच यापार के शी
बालक के दशन हे तु पधारे । इन दे व उ नित के िलए उ म ह। तेजसा कृ णतु योऽयं कृ णां
गणो म शिन महाराज भी उप थत गणे रः। दे वा ा ये कृ णकलाः पूजा य
चाह कोई भी यापार हो अगर उसम
हवे
ु । क तु शिनदे व ने प ी ारा दये पुरत ततः।।
लाभ के थान पर बार-बार हािन
गये शाप के कारण बालक का दशन ( वैवतपु., गणपितख., 44। 26-27)
हो रह ह। कसी कार से यापार
नह ं कया। पर तु माता पावती के
म बार-बार बांधा उ प न हो रह
बार-बार कहने पर शिनदे व न जेसे ह भावाथ: जते य पु ष म े
हो! तो संपूण ाण ित त मं
अपनी िशशु बालके उपर पड , गणेश तुमम जैसे लाख -करोड़
िस पूण चैत य यु यापात
उसी ण बालक गणेश का गदन धड़ ज तुओं को मार डालने क श है ;
वृ यं को यपार थान या घर
से अलग हो गया। माता पावती के पर तु तुमने म खी पर भी हाथ नह ं
म था पत करने से शी ह यापार
वलप करने पर भगवान ् व णु उठाया। ीकृ ण के अंश से उ प न
वृ एवं िनत तर लाभ ा होता
पु पभ ा नद के अर य से एक हआ
ु वह गणेश तेज म ीकृ ण के ह
ह।
गजिशशु का म तक काटकर लाये और समान है । अ य दे वता ीकृ ण क
गणेशजी के म तक पर लगा दया। `.550 से `.8200 तक कलाएँ ह। इसीसे इसक अ पूजा होती
गजमुख लगे होने के कारण कोई है ।
f गु व योितष 16 िसत बर 2010

शा ीय मतसे

शा ोम पंचदे व क उपासना करने का वधान ह। भगवान ् ीिशव पृ वी त व के अिधपित होने के

आ द यं गणनाथं च दे वीं ं च केशवम।् कारण उनक िशविलंग के प म पािथव-पूजा का वधान

पंचदै वतिम यु ं सवकमसु पूजयेत।।


् ह। भगवान ् व णु के आकाश त व के अिधपित होने के
कारण उनक श द ारा तुित करने का वधान ह।
(श दक प म
ु )
भगवती दे वी के अ न त व का अिधपित होने के कारण
भावाथ: - पंचदे व क उपासना का ांड के पंचभूत के उनका अ नकु ड म हवना द के ारा पूजा करने का
साथ संबंध है । पंचभूत पृ वी, जल, तेज, वायु और आकाश वधान ह। ीगणेश के जलत व के अिधपित होने के
से बनते ह। और पंचभूत के आिधप य के कारण से कारण उनक सव थम पूजा करने का वधान ह, य क
आ द य, गणनाथ(गणेश), दे वी, और केशव ये पंचदे व ांद म सव थम उ प न होने वाले जीव त व ‘जल’ का
भी पूजनीय ह। हर एक त व का हर एक दे वता वामी अिधपित होने के कारण गणेशजी ह थम पू य के
ह- अिधकार होते ह।
आकाश यािधपो व णुर ने ैव महे र । आचाय मनु का कथन है-
वायोः सूय ः तेर शो जीवन य गणािधपः।।
“अप एच ससजादौ तासु बीजमवासृ जत।्”
भावाथ:- म इस कार ह महाभूत अिधपित
(मनु मृ ित 1)
1. ित (पृ वी) िशव
2. अप ् (जल) गणेश भावाथ:

3. तेज (अ न) श (महे र ) इस माण से सृ के आ द म एकमा वतमान जल का


4. म त ् (वायु) सूय (अ न) अिधपित गणेश ह।
5. योम (आकाश) व णु

मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर(ता प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न कार
क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते है . जसे साधारण (जो
पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है .
जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक
आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज
शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय
मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
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f गु व योितष 17 िसत बर 2010

सव थम पूजा वै दक एवं शा के मत

 िचंतन जोशी
गणपित श द का अथ ह। करके कया क गु दे व! आप मुझे दे वताओं के पूजन

गण(समूह)+पित ( वामी) = समूह के वामी को का सुिन त म बतलाइये। ित दन क पूजा म सबसे

सेनापित अथात गणपित कहते ह। मानव शर र म पाँच पहले कसका पूजन करना चा हये ?

ाने याँ, पाँच कम याँ और चार अ तःकरण होते ह। तब यासजी ने कहा: व न को दरू करने के
एवं इस श ओं को जो श यां संचािलत करती ह उ ह ं िलये सव थम गणेशजी क पूजा करनी चा हये। पूव काल
को चौदह दे वता कहते ह। इन सभी दे वताओं के मूल म पावती दे वी को दे वताओं ने अमृ त से तैयार कया हआ

ेरक ह भगवान ीगणेश। एक द य मोदक दया। मोदक दे खकर दोन बालक

भगवान गणपित श द अथात ् ओंकार के तीक ह, ( क द तथा गणेश) माता से माँगने लगे। तब माता ने

इनक मह व का यह ह ं मु य कारण ह। मोदक के भाव का वणन करते हए


ु कहा क तुम दोनो
म से जो धमाचरण के ारा े ता ा करके आयेगा,
ीगणप यथवशीष म व णत ह ओंकार का ह
उसी को म यह मोदक दँ ग
ू ी। माता क ऐसी बात सुनकर
य व प गणपित दे वता ह। इसी कारण सभी कार
क द मयूर पर आ ढ़ हो कर अ प मुहू तभर म सब
के शुभ मांगिलक काय और दे वता- ित ापनाओं म
तीथ क नान कर िलया। इधर ल बोदरधार गणेशजी
भगवान गणपित क थम पूजा क जाती ह। जस
माता- पता क प र मा करके पताजी के स मुख खड़े
कार से येक मं क श को बढाने के िलये मं के
हो गये। तब पावतीजी ने कहा- सम त तीथ म कया
आग ॐ (ओम ्) आव यक लगा होता ह। उसी कार
हआ
ु नान, स पूण दे वताओं को कया हआ
ु नम कार,
येक शुभ मांगिलक काय के िलये पर भगवान ्
सब य का अनु ान तथा सब कार के त, म , योग
गणपित क पूजा एवं मरण अिनवाय मानी गई ह। इस
और संयम का पालन- ये सभी साधन माता- पता के
सभी शा एवं वै दक धम, स दाय ने इस ाचीन
पूजन के सोलहव अंश के बराबर भी नह ं हो सकते।
पर परा को एक मत से वीकार कया ह इसका सद य
से भगवान गणेश जी क थम पूजन करने क परं परा इसिलये यह गणेश सैकड़ पु और सैकड़ गण से भी

का अनुसरण करते चले आरहे ह। बढ़कर े है । अतः दे वताओं का बनाया हआ


ु यह मोदक
म गणेश को ह अपण करती हँू । माता- पता क भ के
गणेश जी क ह पूजा सबसे पहले य होती है ,
कारण ह गणेश जी क येक शुभ मंगल म सबसे
इसक पौरा णक कथा इस कार है -
पहले पूजा होगी। त प ात ् महादे वजी बोले- इस गणेश
प पुराण के अनुसार (सृ ख ड 61। 1 से 63। 11) – के ह अ पूजन से स पूण दे वता स न ह जाते ह। इस
एक दन यासजी के िश य ने अपने गु दे व को णाम िलये तुमह सव थम गणेशजी क पूजा करनी चा हये।

फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को नकारा मक उजा से बचाता ह एवं एक

उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और अिधक भावी और प व माना जाता ह। `.550 से `.8200 तक
f गु व योितष 18 िसत बर 2010

गणपित पूजन म तुलसी िन ष य

 िचंतन जोशी
तुलसी सम त पौध म े मानी जाती ह। हं द ू धम तप या म संल न हंू । मेर यह तप या पित ाि के िलए ह।
म सम त पूजन कम म तुलसी को मुखता द जाती ह। अत: आप मुझसे ववाह कर ली जए। तुलसी क यह बात
ायः सभी हं द ू मं दर म चरणामृ त म भी तुलसी का योग सुनकर बु े गणेश जी ने उ र दया हे माता! ववाह करना
होता ह। इसके पीछे ऎसी कामना होती है क तुलसी हण बडा भयंकर होता ह, म हचार हंू । ववाह तप या के िलए
करने से तुलसी अकाल मृ यु को हरने वाली तथा सव नाशक, मो ार के रा ता बंद करने वाला, भव बंधन से बंध,े
यािधय का नाश करने वाली ह। संशय का उ म थान ह। अत: आप मेर ओर से अपना यान

पर तु यह पू य तुलसी को भगवान ी गणेश क हटा ल और कसी अ य को पित के प म तलाश कर। तब

पूजा म िन ष मानी गई ह। कु पत होकर तुलसी ने भगवान गणेश को शाप दे ते हए


ु कहा
क आपका ववाह अव य होगा। यह सुनकर िशव पु गणेश
इनसे स ब क प म एक कथा िमलती ह
ने भी तुलसी को शाप दया दे वी, तुम भी िन त प से असुर
एक समय नवयौवन स प न तुलसी दे वी नारायण परायण
ारा त होकर वृ बन जाओगी।
होकर तप या के िनिम से तीथ म मण करती हई
ु गंगा तट
इस शाप को सुनकर तुलसी ने यिथत होकर भगवान
पर पहँु चीं। वहाँ पर उ ह ने गणेश को दे खा, जो क त ण युवा
ी गणेश क वंदना क । तब स न होकर गणेश जी ने तुलसी
लग रहे थे। गणेशजी अ य त सु दर, शु और पीता बर
से कहा हे मनोरमे! तुम पौध क सारभूता बनोगी और
धारण कए हए
ु आभूषण से वभू षत थे, गणेश कामनार हत,
समयांतर से भगवान नारायण क या बनोगी। सभी दे वता
जते य म सव े , योिगय के योगी थे गणेशजी वहां
आपसे नेह रखगे पर तु ीकृ ण के िलए आप वशेष य
ीकृ ण क आराधना म यानरत थे। गणेशजी को दे खते ह
रहगी। आपक पूजा मनु य के िलए मु दाियनी होगी तथा
तुलसी का मन उनक ओर आक षत हो गया। तब तुलसी
मेरे पूजन म आप सदै व या य रहगी। ऎसा कहकर गणेश जी
उनका उपहास उडाने लगीं। यानभंग होने पर गणेश जी ने
पुन: तप करने चले गए। इधर तुलसी दे वी द:ु खत दय से
उनसे उनका प रचय पूछा और उनके वहां आगमन का कारण
पु कर म जा पहंु ची और िनराहार रहकर तप या म संल न हो
जानना चाहा। गणेश जी ने कहा माता! तप वय का यान
गई। त प ात गणेश के शाप से वह िचरकाल तक शंखचूड क
भंग करना सदा पापजनक और अमंगलकार होता ह।
य प ी बनी रह ं। जब शंखचूड शंकर जी के शूल से मृ यु
शुभ!े भगवान ीकृ ण आपका क याण कर, मेरे यान भंग से
को ा हआ
ु तो नारायण या तुलसी का वृ प म ादभाव

उ प न दोष आपके िलए अमंगलकारक न हो।
हआ।

इस पर तुलसी ने कहा— भो! म धमा मज क क या हंू और

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mŸke ;a= dksbZ ughaA Jh ;a= esa Lor% dbZ flf);ksa dk okl gksrk gSA Jh ;a= ds n’kZu ls vusd
O;fDr esa ldkjkRed fopkj /kkjk vkrh gSA
मू य:- `.910 से `.8200 तक उ ल
f गु व योितष 19 िसत बर 2010

गणेश के क याणकार मं
 िचंतन जोशी
गणेश मं क ित दन एक माला मं जाप अव य करे ।
दये गये मं ो मे से कोई भी एक मं का जाप करे।

(०१) गं ।
(०२) लं ।
(०३) ल ।
(०४) ी गणेशाय नमः ।
(०५) ॐ वरदाय नमः ।
(०६) ॐ सुमंगलाय नमः ।
(०७) ॐ िचंतामणये नमः ।
(०८) ॐ व तुंडाय हम
ु ्।
(०९) ॐ नमो भगवते गजाननाय ।
(१०) ॐ गं गणपतये नमः ।
(११) ॐ ॐ ी गणेशाय नमः ।
यह मं के जप से य को जीवन म कसी भी कार का क नह ं रे हता है ।

 आिथक थित मे सुधार होता है ।


 एवं सव कारक र -िस ा होती है ।

भगवान गणपित के अ य मं
ॐ गं गणपतये नमः ।
एसा शा ो वचन ह क गणेश जी का यह मं चम का रक और त काल फल दे ने वाला मं ह। इस मं का पूण
भ पूव क जाप करने से सम त बाधाएं दरू होती ह। षडा र का जप आिथक गित व समृ ददायक है ।

ॐ व तुंडाय हम
ु ्।
कसी के ारा क गई तां क या को न करने के िलए, व वध कामनाओं क शी पूित के िलए उ छ गणपित
क साधना कजाती ह। उ छ गणपित के मं का जाप अ य भंडार दान करने वाला ह।

ॐ ह त पशािच िलखे वाहा ।


आल य, िनराशा, कलह, व न दरू करने के िलए व नराज प क आराधना का यह मं जपे ।
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f गु व योितष 21 िसत बर 2010

ॐ ल गं गणपतये नमः।
गृ ह कलेश िनवारण एवं घर म सुखशा त क ाि हे तु।

ॐ गं ल यौ आग छ आग छ फ ।
इस मं के जाप से द र ता का नाश होकर, धन ाि के बल योग बनने लगते ह।

ॐ गणेश महाल यै नमः।


यापार से स ब धत बाधाएं एवं परे शािनयां िनवारण एवं यापर म िनरं तर उ नित हे तु।

ॐ गं रोग मु ये फ ।
भयानक असा य रोग से परे शानी होने पर, उिचत ईलाज कराने पर भी लाभ ा नह ं होरहा हो, तो पूण व ास स
मं का जाप करने से या जानकार य से जाप करवाने से धीरे -धीरे रोगी को रोग से छुटकारा िमलता ह।

ॐ अ त र ाय वाहा।
इस मं के जाप से मनोकामना पूित के अवसर ा होने लगते ह।

गं गणप ये पु वरदाय नमः।


इस मं के जाप से उ म संतान क ाि होती ह।

ॐ वर वरदाय वजय गणपतये नमः।


इस मं के जाप से मुकदमे म सफलता ा होती ह।

ॐ ी गणेश ऋण िछ ध वरे य हंु नमः फट ।


यह ऋण हता मं ह। इस मं का िनयिमत जाप करना चा हए। इससे गणेश जी स न होते है और साधक का ऋण चुकता
होता है । कहा जाता है क जसके घर म एक बार भी इस मं का उ चारण हो जाता है है उसके घर म कभी भी ऋण या द र ता
नह ं आ सकती।

जप विध
ात: नाना द शु होकर कुश या ऊन के आसन पर पूव क और मुख होकर बैठ। सामने गणॆशजी का िच , यं या
मूित थाि कर फर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर थम दन संक प कर। इसके बाद
भगवान णेशका एका िच से यान कर। नैवे म य द संभव होतो बूं द या बेसन के ल डू का भोग लगाये नह ं तो
गुड का भोग लगाये । साधक को गणेशजी के िच या मूित के स मुख शु घी का द पक जलाए। रोज १०८ माला
का जाप कर ने से शी फल क ाि होती ह। य द एक दन म १०८ माला संभव न हो तो ५४, २७,१८ या ९ मालाओं
का भी जाप कया जा सकता ह। मं जाप करने म य द आप असमथ हो, तो कसी ा ण को उिचत
द णा दे कर उनसे जाप करवाया जा सकता ह।
f गु व योितष 22 िसत बर 2010

गणेश पूजन म कोन से फूल चढाए।


गणेश जी को दवा
ू सवािधक य है । इस िलये सफेद या हर दवा
ू चढ़ानी
चा हए। दवा
ू क तीन या पाँच प ी होनी चा हए।

गणेश जी को तुलसी छोड़कर सभी प और पु प य ह। गणेशजी


पर तुलसी चढाना िनषेध ह।

न तुल या गणािधपम ् (प पुराण)

भावाथ :तुलसी से गणेशजी क पूजा कभी नह ं करनी चा हये।

'गणेश तुलसी प दगा


ु नैव तु दवाया
ू ' (काितक माहा य)

भावाथ :गणेशजी क तुलसी प से एवं दगाजी


ु क दवा
ू पूजा नह ं
करनी चा हये।
गणेशजी क पूजा म म दार के लाल फूल चढ़ाने से वशेष लाभ ा
होता ह। लाल पु प के अित र पूजा म ेत,पीले फूल भी चढ़ाए
जाते ह।

िलखो नाम रे त और प थर पर
राम और याम दोनो गहरे दो त थ। एक बार दोनो रे िग तान म से होकर कह ं जा रहे थे । रा ते म उन
दोनोम कसी बात पर बहस हो गई और राम ने याम को थ पड़ मार दया । राम का यह बरताव दे ख कर
याम बहत
ु दखी
ु हआ
ु पर उसने बना कुछ बोले रे त पर िलखा, “आज मेरे सबसे अ छे दो त राम ने मुझे थ पड़
मारा” । थोड़ा और आगे चलने पर रा ते म उ ह एक झील दखाई द और उन दोन ने पानी म नहाने का
वचार बनाया । नहाते-नहाते याम दलदल म फँस गया और डू बने लगा । तब राम ने उसक जान बचाई ।
डू बने से बचने पर याम ने एक प थर पर िलखा, “आज मेरे सबसे अ छे दो त राम ने मेर जान बचाई” । इस
पर राम ने पूछा क जब मैन तु ह थ पड़ मारा तब तुमने रे त पर िलखा पर जब मने तु हार जान बचाई तब
तुमने प थर पर िलखा, तुमने ऐसा य कया? इस पर याम ने उ र दया, “जब कोई तु ह दख
ु पहँु चाए तो
उसे रे त पर िलखना चा हए जससे मा समय क हवा उसे िमटा सके। पर जब कोई तु हारे साथ भलाई करे
तो उसे प थर पर िलखना चा हए जससे समय क हवा भी उसे िमटा न सके।”

मनु यको अपने साथ कए गए बुरे बताव को रे त पर और भलाई को प थर पर िलखना चा हये।


f गु व योितष 23 िसत बर 2010

गणेश ने चूर कय कुबेर का अहं कार

 व तक.ऎन.जोशी

एक पौरा णक कथा के अनुशार ह। कुबेर तीन लोक म सबसे धनी थे। एक दन उ ह ने सोचा क हमारे पास
इतनी संप ह, ले कन कम ह लोग को इसक जानकार ह। इसिलए उ ह ने अपनी संप का दशन करने के िलए
एक भ य भोज का आयोजन करने क बात सोची। उस म तीन लोक के सभी दे वताओं को आमं त कया गया।
भगवान िशव कुबेरके इ दे वता थे, इसिलए उनका आशीवाद लेने वह कैलाश पहंु चे और कहा, भो! आज म
तीन लोक म सबसे धनवान हंू, यह सब आप क कृ पा का फल ह। अपने िनवास पर एक भोज का आयोजन करने जा
रहा हँू , कृ पया आप प रवार स हत भोज म पधारने क कृ पा करे ।
भगवान िशव कुबेर के मन का अहं कार ताड़ गए, बोले, व स! म बूढ़ा हो चला हँू , इस िलये कह ं बाहर नह ं जाता।
इस िलये तु हार भोज म नह ं आसकता। िशवजी क बात पर कुबेर िगड़-िगड़ाने लगे, भगवन! आपके बगैर तो मेरा
सारा आयोजन बेकार चला जाएगा। तब िशव जी ने कहा, एक उपाय ह। म अपने छोटे बेटे गणपित को तु हारे भोज म
जाने को कह दं ग
ू ा। कुबेर संतु होकर लौट आए। िनयत समय पर कुबेर ने भ य भोज का आयोजन कया।
तीन लोक के दे वता पहंु च चुके थे। अंत म गणपित आए और आते ह कहा, मुझको बहत
ु तेज भूख लगी ह।
भोजन कहां है । कुबेर उ ह ले गए भोजन से सजे कमरे म। गणपित को सोने क थाली म भोजन परोसा गया। ण भर
म ह परोसा गया सारा भोजन ख म हो गया। दोबारा खाना परोसा गया, उसे भी खा गए। बार-बार खाना परोसा जाता
और ण भर म गणेश जी उसे चट कर जाते। थोड़ ह दे र म हजार लोग के िलए बना भोजन ख म हो गया, ले कन
गणपित का पेट नह ं भरा। गणपित रसोईघर म पहंु चे और वहां रखा सारा क चा सामान भी खा गए, तब भी भूख नह ं
िमट । जब सब कुछ ख म हो गया तो गणपित ने कुबेर से कहा, जब तु हारे पास मुझे खलाने के िलए कुछ था ह
नह ं तो तुमने मुझे योता य दया था? गणपित जी क यह बात सुनकर कुबेर का अहं कार चूर-चूर हो गया।

व ननाशक गणेश म
"जो सुिमरत िसिध होइ, गननायक क रबर बदन।

करउ अनु ह सोई बु रासी सुभ गुन सदन।।"

पूजा- विध: ित दन नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर गणेशजी क


ितमा(मूित) को िस दरू(केसर िस दरू) का चोला चढ़ा कर धूप-द प-नैवै य से पूजा करे और लाल
च दन क माला अथवा लाल मूंगे क माला से ातःकाल १०८० (१० माला) इस म का जाप २७
दन तक लगातार इसी म म पूजा करते रह।
उ पूजा करने से मनु य के जीवन से सम त कार के व नो का नश होता ह और उसे सभी
कार से सुख ा होता ह।
f गु व योितष 24 िसत बर 2010

एकदं त कथा गणेश


 व तक.ऎन.जोशी

एकदं त कैसे कहलाए गणेशजी दौरान मह ष को सोचने का अवसर िमल जाता था।

महाभारत व का सबसे बड़ा महाका य एवं ंथ ह। महाभारत िलखने गणेशजी ने अपना एक दाँत तोडकर
जसक रचना म एक लाख से यादा ोको का योग हवा
ु उस क लेखनी बानई। इस िलये उ ह एकदं त कहा जाता
ह। एसी लोकमा यता ह क ाजी ने व न म ऋष ह। माना जाता है क बना के िलखने क शी ता म यह दाँत
पराशर एवं स यवती के पु मह ष यास को महाभारत ू था।
टटा
िलखने क ेरणा द थी। ू ने क और एक कहानी ह
एक दांत टट
महाभारत के रचनाकार अलौ कक श से स प न ावैवत पुराण के अनुशार परशुराम शीवजी को िम ने कैलश
मह ष यास काल ष ्टा थे। इस िलये मह ष यास ने गये। कैलश के वेश ार पर ह गणेश ने परशुराम को रोक
महाभारत िलखने का यह काम वीकार कर िलया, ले कन िलयी क तु परशुराम के नह ं और बलपूव क वेश करने का
मह ष यास के म त क म जस ती तासे महाभारत के यास कया। तब गणेशजी न परशुराम से यु कर उनको
मं आ रहे थे इस कारण उन मं ो को उसी ती ता से को त भत कर अपनी सूँड म लपेटकर सम त लोक म मण
कोई िलखने वाला यो य य न कराते हए
ु गौलोक म भगवान ीकृ ण का
िमला। वे ऐसे कसी य क खोज म eaxy ;a= दशन कराते हए
ु भूतल पर पटक दया।
लग गए जो महाभारत िलख सके। ¼f=dks.k½ eaxy ;a= dks परशुराम ने ोध म फरसे(परशु ) से
महाभारत के थम अ याय म उ लेख tehu&tk;nkn ds गणेशजी के एक दांत को काट डाला। तिभसे
ह क वेद यास ने गणेशजी को fooknks dks gy djus ds गणेश को एकदं त कहा जाता ह।
महाभारत िलखने का ताव दया तो dke esa ykHk nsrk gSaA एकद त कथा
गणेशजी ने महाभारत िलख का
,oa O;fDr dks _.k एकद तावतारौ वै दे हनां धारकः।
ताव वीकार कर िलया।
eqfDr gsrq eaxy lk/kuk मदासुर य ह ता स आखुवाहनगः
गणेशजी ने महाभारत िलखने
ls vfr ‘kh/kz ykHk izkIr मृ तः।।
के पहले शत रखी क मह ष कथा
gksrk gSaA भावाथ: भगवान ् गणेश का ‘एक
िलखवाते समय एक पल के िलए भी
नह ं कगे।
fookg vkfn esa eaxyh द तावतार’ दे ह- धारक है , वह
tkrdksa ds dY;k.k ds मदासुरका वध करनेवाला है ; उसका वाहन
इस शत को मानते हए
ु मह ष ने
fy, eaxy ;a= dh iwtk मूषक बताया गया है ।
भी एक शत रख द क गणेशजी भी
djus ls fo’ks”k ykHk वह मह ष यवन का पु मदासुर
एक-एक वा य को बना समझे नह ं
izkIr gksrk gSaA एक बलवान ् परा मी दै य था। एक बार
िलखगे। महाभारत िलखते समय इस
वह अपने पता से आ ा ा कर
शत के कारणा गणेशजी के समझने के मू य मा : `.550
दै यगु शु ाचाय के पास गया।
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f गु व योितष 26 िसत बर 2010

व तु ड कथा

 व तक.ऎन.जोशी

भगवान ् िशव से उसका घोर यु हआ।


ु पर तु,
व तु डावतार दे हानां धारकः। पुरा र भगवान ् िशव भी जीत नह ं सके। उसने उ ह भी
म सरासुरह ता स िसंहवाहनगः मृ तः।। कठोर पाश म बाँध िलया और कैलाश का वामी बनकर
भगवान ् ीगणेश का ‘व तु डावतार’ प से वह ं रहने लगा। चार तरफ दै य का अ याचार होने लगा।
स पूण शर र को धारण करनेवाला, म सरासुर का वध दःखी
ु दे वताओं के सामने म सरासुर के वनाश का
करनेवाला तथा िसंहवाहन पर चलनेवाला ह। कोई माग नह ं बचा। वे अ य त िच तत और दबल
ु हो रहे
मु ल पुराण के अनुसार भगवान ् गणेश के अनेक थे। उसी समय वहाँ भगवान द ा ेय आ पहँु चे। उ ह न
अवतार ह, जनम आठ अवतार मुख ह। पहला अवतार दे वताओं को व तु ड के गं(एका र म ) का उपदे श
भगवान ् व तु ड का है । ऐसी कथा है क दे वराज इ के कया। सम त दे वता भगवान ् व तु ड के यान के साथ
माद से म सरासुर का ज म हआ।
ु् उसने दै यगु एका र म का जप करने लगे। उनक आराधना से
शु ाचाय से भगवान ् िशवके ॐ नमः िशवाय (प चा र स तु होकर त काल फलदाता व तु ड कट हए।
ु उ ह ने
म ) क द ा ा कर भगवान ् शंकर क कठोर तप या दे वताओंसे कहा आप लोग िन त हो जायँ। म म सरासुर
क भगवान ् शंकर ने स न होकर उसे अभय होने का के गव को चूर-चूर कर दँ ग
ू ा।
वरदान दया। वरदान ा कर जब म सरासुर घर लौटा तब भगवान ् व तु ड ने अपने असं य गण के साथ
शु ाचाय ने उसे दै य का राजा बना दया। दै यम य ने म सरासुर के नगर को चार तरफ से घेर िलया। भयंकर
श शाली म सर को व पर वजय ा करने क सलाह यु िछड़ गया। पाँच दन तक लगातार यु चलता रहा।
द। श और पद के मद से चूर म सरासुर ने अपनी म सरासुर के सु दर य एवं वषय य नामक दो पु थे
वशाल सेना के साथ पृ वी के राजाओं पर आ मण कर व तु ड के गण ने उ ह मार डाला। पु वध से याकुल
दया। कोई भी राजा असुर के सामने टक नह ं सका। कुछ म सरासुर रणभूिम म उप थत हआ।
ु वहाँ से उसने भगवान ्
परा जत हो गये और कुठ ाण बचाकर क दराओं म िछप व तु ड को अपश द कहे । भगवान ् व तु ड ने भावशाली
गये। इस कार स पूण पृ वी पर म सरासुर का शासन हो वर म कहा य द तुझे ाण य ह तो श रखकर तु मेर
गया। शरण म आ जा नह ं तो िन त मारा जायगा।
पृ वी सा ा य ा कर उस दै य ने मशः पाताल व तु ड के भयानक प को दे खकर म सरासुर
और वग पर भी चढ़ाई कर द । शेष ने वनयपूवक उसके अ य त याकुल हो गया। उसक सार श ीण हो गयी।
अधीन रहकर उसे कर पाताल लोक दे ना वीकार कर िलया। भयके मारे वह काँपने लगा तथा वनयपूवक व तु ड क
इ इ या द दे वता उससे परा जत होकर भाग गये। तुित करने लगा। उसक ाथना से स तु होकर दयामय
म सरासुर वग का भी स ाट हो गया। व तु ड ने उसे अभय दान करते हए
ु अपनी भ का
असुर से दःखी
ु होकर दे वतागण ा और व णु को वरदान कया तथा सुख शांित से जीवन बताने के िलये
साथ लेकर िशवजी के कैलास पहँु चे। उ ह ने भगवान ् शंकर पाताल लोक जाने का आदे श दया। म सरासुर से िन त
को दै य के अ याचार वृ तांत सुनाया। भगवान ् शंकरने होकर दे वगण व तु ड क तुित करने लगे। दे वताओं को
म सरासुर के इस द ु कम क घोर िन दा क । यह समाचार वत कर भु व तु ड ने उ ह भी अपनी भ दान
सुनकर म सरासुर ने कैलास पर भी आ मण कर दया। क।
f गु व योितष 27 िसत बर 2010

संकटनाशन गणेश तो म ्
संकटनाशन गणेश तो म ् का ित दन पाठ करने से सम त कार के
संकटोका नाश होता है , ी गणेशजी क कृ पा एवं सुख समृ क ा
होती है ।
व तुंड महाकाय सूय को ट सम भ ।
िन व नम ् कु म दे व सव कायषु सवदा ॥
व ने राय वरदाय सूर याय ल बोदराय सकलाय जग ताय ।
नागाननाय ु ितय वभू षताय गौर सुताय गणनाथ
नमोनम ते ॥
तो
ण य िशरसा दे वं गौर पुं वनायकम ्
भ ावासं मरे िन यं आयुकामाथिस ये ॥ १ ॥

थमं व तुंडं च एकदं तं ितयकम ्


तृ तीयं कृ ण पंगा ं गजवक ं चतुथ कम ् ॥ २ ॥

लंबोदरं पंचमं च ष मं वकटमेव च


स मं व नराजं च धू वण तथाअ कम ् ॥ ३ ॥

नवं भालचं ं च दशमं तु वनायकम ्


एकादशं गणपितं ादशं तु गजाननम ् ॥ ४ ॥

ादशैतािन नामािन सं यं य: पठे नर:


न च व नभयं त य सव िस करं भो ॥ ५ ॥

व ािथ लभते व ां धनािथ लभते धनम्


पु ािथ लभते पु ांमो ािथ लभते गितम ् ॥ ६ ॥

जपे गणपित तो ं षडिभमासै: फलं लभेत


संवतसरे णिस ं च लभते ना संशयः ॥ ७ ॥

अ यो ा णो य य िल ख वा य: समपयेत ्
त य व ा भवे सवा गणेश य सादतः ॥ ८ ॥

॥ इित ी नारदपुराणे ‘संकटनाशन गणेश तो म ्’ संपूण म ् ॥


f गु व योितष 28 िसत बर 2010

॥ संक हरणं गणेशा कम ् ॥

ॐअ य ी संक हरण तो म य ीमहागणपितदवता, संक हरणाथ जपे विनयोगः।

ॐ ॐ ॐ कार पम ् यहिमित च परम ् य व पम ् तुर यम ् ैगु यातीतनीलं कलयित मनस तेज-िस दरू-मूितम।्
योगी ै र ैः सकल-गुणमयं ीहरे े णसंगं गं गं गं गं गणेशं गजमुखमिभतो यापकं िच तय त ॥१॥
वं वं वं व नराजं भजित िनजभुजे द णे य तशु डं ं ं ं ोधमु ा-दिलत- रपुबलं क पवृ य मूले।
दं दं दं द तमेकं दधित मुिनमुखं कामधे वा िनषे यम ् धं धं धं धारय तं धनदमितिघयं िस -बु - तीयम ् ॥२॥
तुं तुं तुं तुंग पं गगनपिथ गतं या नुव तं दग तान ् लीं लीं लींकारनाथं गिलतमदिमल लोल-म ािलमालम।्
ं ं ंकार पंगं सकलमुिनवर- येयमु डं च शु डं ीं ीं ीं ीं य तं िन खल-िनिधकुलं नौिम हे र ब ब बम ् ॥३॥
ल ल ल कारमा ं णविमव पदं म मु ावलीनाम ् शु ं व नेशबीजं शिशकरस शं योिगनां यानग यम।्
डं डं डं डाम पं दिलतभवभयं सूय को ट काशम् यं यं यं य नाथं जपित मुिनवरो बा म य तरं च ॥४॥
हंु हंु हंु हे मवण ु ित-ग णतगुणं शूप कणं कृ पालुं येयं सूय य ब बं ुरिस च वलसत ् सपय ोपवीतम।्
वाहाहंु फ नमो तै -ठठठ-स हतैः प लवैः से यमानम ् म ाणां स को ट- गु णत-म हमाधारमोशं प े ॥५॥
पूव पीठं कोणं तदप
ु र िचरं ष कप ं प व म् य यो व शु रे खा वसुदलकमलं वो वतेज तु म।्
म ये हंु कारबीजं तदनु भगवतः वांगष कं षड े अ ौ श िस बहलगणपित
ु व र ा कं च ॥६॥
धमा ौ िस ा दश दिश व दता वा वजा यः कपालं त य े ा दनाथं मुिनकुलम खलं म मु ामहे शम।्
एवं यो भ यु ो जपित गणपितं पु प-धूपा- ता ैनवे ैम दकानां तुितयुत- वलस -गीतवा द -नादै ः ॥७॥
राजान त य भृ या इव युवितकुलं दासवतसवदा
् ते ल मीः सवागयु ा यित च सदनं कंकराः सवलोकाः।
पु ाः पु यः प व ा रणभू व वजयी ूतवादे प वीरो य येशो व नराजो िनवसित दये भ भा य य ः ॥८॥
. ॥ इित ी संक हरणं गणेशा कं स पूण म ् ॥

या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता
ा कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व
कायालत ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु
विभ न कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA, Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,
E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
f गु व योितष 29 िसत बर 2010

॥गणेश पं चर म॥्
मं िस मूंगा गणेश
मुदा करा मोदकम ् सदा वमु साधकम ् मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना
कलाधरावत सकम ् वलािसलोकर कम।् जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन के िलए अ यंत
अनायकैक नायकम ् वनािशतेभदै यकम ् लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि
नताशुभाशुनाशकम ् नमािम तम ् वनायकम ् ॥१॥ हे तु वशेष लाभदायी ह।

नतेतराितभीकरम ् नवो दताकभा वरम ् मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने
नम सुरा रिनजरम ् नतािधकापदु रम।् से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह। यो क लाल
सुरे रम ् िनधी रम ् गजे रम ् गणे रम ् रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह।
महे रम ् तमा ये परा परम ् िनर तरम ् ॥२॥ लाल मूंगा शार रक और मानिसक श य का वकास करने
हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को
सम तलोकश करम ् िनर तदै यकु जरम ्
िनयं त करने हे तु भी मूंगा गणेश क पूजा लाभ द ह।
दरे तरोदरम ् वरम ् वरे भव म रम।्
एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत करने
कृ पाकरम ् माकरम ् मुदाकरम ् यश करम ्
से भगवान गणेश क कृ पा श चोर , लूट, आग,
मन करम ् नम कृ तां नम करोिम भा वरम ् ॥३॥
अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह, ज से घर म या

अ क चनाितमाजनं िचर तनो भाजनम् दकान


ु म उ नती एवं सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत

पुरा रपूव न दनम ् सुरा रगवचवणम।् कया जासकता ह।

प चनाशभीषणम ् धन जया द भूषणम ् ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से भा योदय, शर र


कपोलदानवारणम ् भजे पुराणवारणम ् ॥४॥ म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन,
सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं
िनता तका त द तका त म तका तका मजम ् के द ु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं
, हमला, चोर,

अिच य प म तह न म तराय कृ तनम।् तूफान, आग, बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म
द तरे िनर तरम ् वस तमेव योिगनाम ् मंगल ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव
तमेकद तमेव तम ् विच तयािम स ततम ् ॥५॥ से मु िमलती ह।

महागणेश पं चर मादरे ण यो वहम ् जो य उपरो लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये


ज पित भातके द मर गणे रम।् मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह।
अरोगतामदोषतां सुसा हतीं सुपु तां मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने से यह
समा हतायुर भूितम युपैित सोिचरात ् ॥६॥ अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से
सुख सौभा य क ाि होकर जीवन के सारे संकटो का
॥इित ी गणेश पं चर म ् स पुण ॥
वतः िनवारण होजाता ह।

`.550 से `.8200 तक
f गु व योितष 30 िसत बर 2010

।।गणपित अथवशीष।।
ॐ नम ते गणपतये। वमेव य ं त वमिस । वरदं ह तै व ाणं मूषक वजम।् र ं लंबोदरं शूप कणकं
वमेव केवलं कता िस। वमेव केवलं धतािस। वमेव र वाससम।् र गंधानु िल ांगं र पु पै: सुपु जतम।्
केवलं हतािस । वमेव सव ख वदं ािस। व भ ानुकं पनं दे वं जग कारण म युतम।् आ वभू तं च
सा ादा मािस िन यम।् ऋतं व म। स यं व म। अव सृ यादौ कृ ते पु षा परम।् एवं यायित यो िन यं स
व मांम।् अव व ारम।् अव ोतारम।् अव दातारम।् अव योगी योिगनां वरः।
धातारम।् अवा नूचानमव िश यम।अव
् प ातात।अव
् नमो ातपतये। नमो गणपतये। नम: मथपतये।
पुर तात।् अवो रा ात।् अव द णा ात।् नम ते अ तु लंबोदरायै एकदं ताय। व ननािशने
अव चो वा ात।् अवाधरा ात।् सवतो माँ पा ह- िशवसुताय। ीवरदमूत ये नमो नमः। एतदथव शीष
पा ह समंतात।् वं वा मय वं िच मयः। योधीते। स भूयाय क पते। स सव व नैन बा यते। स
वमानंदमसय वं मयः। वं स चदानंदात ् सवत: सुखमेधते। स प चमहापापा मु यते।
तीयोिस। वं य ं ािस। वं ानमयो सायमधीयानो दवसकृ तं पापं नाशयित। ातरधीयानो
व ानमयोिस। सव जग ददं व ो जायते। सव जग ददं रा कृ तं पापं नाशयित। सायं ात: युंजानो अपापो
व त ित। सव जग ददं विय वयमे यित। सव भवित। सव ाधीयानो ड प व नो भवित। धमाथकाममो ं
जग ददं विय येित। वं भूिमरापोनलो िनलो नभः। वं च वंदित। इदमथवशीषमिश याय न दे यम।् यो य द
च वा र वाकूपदािन। वं गुण यातीत: वमव था यातीतः। मोहात ् दा यित स पापीयान ् भवित। सह ावतनात ् यं यं
वं दे ह यातीतः। वं काल यातीतः। वं मूलाधार काममधीते तंतमनेन साधयेत।् अनेन गणपित मिभ षंचित
थतोिस िन यं। वं श या मकः। वां योिगनो स वा मी भवित । चतु यामन नन जपित स व ावान
यायंित िन यं। वं ा वं व णु वं वं इं वं भवित। इ यथवण वा यम।् ा ावरणं व ात ् न बभेित
अ न वं वायु वं सूय वं चं मा वं भूभु व: वरोम।् कदाचनेित। यो दवाक
ू ु रयजित स वै वणोपमो भवित। यो
गणा द पूव मु चाय वणा दं तदनंतरम।् लाजैय जित स यशोवान भवित स मेधावान भवित। यो
अनु वार: परतरः। अध दलिसतम।
ु ् तारे ण ऋ ं । एत व मोदक सह ेण यजित स वांिछत फल मवा ोित। य:
मनु व पम।् गकार: पूव पम।् अकारो म यम पम।् सा यसिम यजित स सव लभते स सव लभते। अ ौ
अनु वार ा य पम।् ब द ु र पम।् नाद: संधानम।् सँ ा णान ् स य ाहिय वा सूय वच वी भवित। सूय हे
हतासंिध: सैषा गणेश व ा। गणकऋ ष: महान ां ितमा संिनधौ वा ज वा िस मं भवित।
िनचृ ाय ी छं दः। गणपितदवता। ॐ गं गणपतये महा व नात ् मु यते। महादोषात ् मु यते। महापापात ्
नमः।एकदं ताय व महे । व तु डाय धीम ह। त नो दं ती मु यते। स सव व भवित से सव व भवित । य एवं
चोदयात।् एकदं तं चतुह तं पाशमंकुश धा रणम।् रदं च वेद इ युपिनष ।
॥इित ी गणपित अथवशीष स पुण ॥

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मू य:- `.910 से `.8200 तक उ ल
f गु व योितष 31 िसत बर 2010

गणेश तवन
ea= fl) :nzk{k
ी आ द क व वा मी क उवाच
चतु:ष कोटया य व ा दं वां सुराचाय व ा दानापदानम।्
,d eq[kh :nzk{k&`.1250]1550
कठाभी व ापकं द तयु मं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
nks eq[kh :nzk{k&`.100]151
वनाथं धानं महा वघ नाथं िनजे छा वसृ ा डवृ दे शनाथम।्
भुं द णा य य व ा दं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ rhu eq[kh :nzk{k&`.100]151
वभो यासिश या द व ा विश यानेक व ा दातारमा म।् pkj eq[kh :nzk{k&`.55]100
महाशा द ागु ं े दं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
iap eq[kh :nzk{k&`.28]55
वधा े यीमु यवेदां योगं महा व णवे चागमाज शंकराय।
Ng eq[kh :nzk{k&`.55]100
दश तं च सूयाय व ारह यं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
Lkkr eq[kh :nzk{k&`.120]190
महाबु पु ाय चैकं पुराणं दश तं गजा य य माहा ययु म।्
िनज ानश या समेतं पुराणं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ vkB eq[kh :nzk{k&`.820]1250
यीशीषसारं चानेकमारं रमाबु दारं परं पारम।् ukS eq[kh :nzk{k&`.820]1250
सुर तोमकायं गणौघािधनाथं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
nleq[kh :nzk{k&`.--------
िचदान द पं मुिन येय पं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम।्
धरान दलोका दवास यं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
X;kjgeq[kh :nzk{k&`.2800
अनेक तारं सुर ा जहारं परं िनगु णं व स पम।्
ckjg eq[kh :nzk{k&`.3600
महावा यसंदोहता पयमूित क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ rsjg eq[kh :nzk{k&`.6400
इदं ये तु क य कं भ यु ा सं यं पठ ते गजा यं मर त:। pkSng eq[kh :nzk{k&`.19000
क व वं सुवा याथम य ुतं ते लभ ते सादा गणेश य
मु म॥् xkSjh’kadj :nzk{k&`-----
॥इित ी वा मी क कृ त ीगणेश तो संपूण म॥् गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
फल: जो य ा भाव से तीनोकाल सुबह सं या एवं रा ी के Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,
समय वा मी क कृ त ीगणेश का तवन करते उ हे सभी
E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com,
भौितक सुखो क ाि होकर उसे मो को ा कर लेता ह, gurutva_karyalay@yahoo.in,
एसा शा ो वचन ह ।
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f गु व योितष 33 िसत बर 2010

गणेश चतुथ पर चं दशन िनषेध य ...


गणेश चतुथ पर चं दशन िनषेध होने क पौरा णक
मा यता ह। शा वचन के अनुशार जो य इस दन
चं मा को जाने-अ जाने दे ख लेता ह उसे िम या कलंक
लगता ह। उस पर झूठा आरोप लगता ह।
कथा
एक बार जरास ध के भय से भगवान कृ ण
समु के बीच नगर बनाकर वहां रहने लगे। भगवान
कृ ण ने जस नगर म िनवास कया था वह थान
आज ा रका के नाम से जाना जाता ह।
उस समय ा रका पुर के िनवासी से स न
होकर सूय भगवान ने स जीत यादव नामक य अपनी
यम तक म ण वाली माला अपने गले से उतारकर दे द ।
यह म ण ित दन आठ सेर सोना दान करती थी। म ण पातेह
स जीत यादव समृ हो गया। भगवान ी कृ ण को जब यह बात पता
चली तो उ ह ने स जीत
से यम तक म ण पाने क इ छा य क । ले कन स जीत ने म ण ी कृ ण को न दे कर अपने भाई
सेनजीत को दे द । एक दन सेनजीत िशकार पर गया जहां एक शेर ने सेनजीत को मारकर म ण ले ली। यह
र छ के राजा और रामायण काल के जामवंत ने शेर को मारकर म ण पर क जा कर िलया था।
कई दन तक सेनजीत िशकार से घर न लौटा तो स जीत को िचंता हई
ु और उसने सोचा क ीकृ ण ने ह
म ण पाने के िलए सेनजीत क ह या कर द । इस कार स जीत ने पु ता सबूत जुटाए बना ह िम या चार कर
दया क ी कृ ण ने सेनजीत क ह या करवा द ह। इस लोकिनंदा से आहत होकर और इसके िनवारण के िलए
ीकृ ण कई दन तक एक वन से दसरे
ू वन भटक कर सेनजीत को खोजते रहे और वहां उ ह शेर ारा सेनजीत
को मार डालने और र छ ारा म ण ले जाने के िच िमल गए। इ ह ं िच के आधार पर ी कृ ण जामवंत क गुफा
म जा पहंु चे जहां जामवंत क पु ी म ण से खेल रह थी। उधर जामवंत ी कृ ण से म ण नह ं दे ने हे तु यु के िलए
तैयार हो गया। सात दन तक जब ी कृ ण गुफा से बाहर नह ं आए तो उनके संगी साथी उ ह मरा हआ
ु जानकार
वलाप करते हए
ु ा रका लौट गए। २१ दन तक गुफा म यु चलता रहा और कोई भी झुकने को तैयार नह ं था। तब
जामवंत को भान हआ
ु क कह ं ये वह अवतार तो नह ं जनके दशन के िलए मुझे ी रामचं जी से वरदान िमला था।
तब जामवंत ने अपनी पु ी का ववाह ी कृ ण के साथ कर दया और म ण दहे ज म ी कृ ण को दे द । उधर कृ ण
जब म ण लेकर लौटे तो उ ह ने स जीत को म ण वापस कर द । स जीत अपने कए पर ल जत हआ
ु और अपनी
पु ी स यभामा का ववाह ी कृ ण के साथ कर दया।
कुछ ह समय बाद अ ू र के कहने पर ऋतु वमा ने स जीत को मारकर म ण छ न ली। ी कृ ण अपने बड़े
भाई बलराम के साथ उनसे यु करने पहंु चे। यु म जीत हािसल होने वाली थी क ऋतु वमा ने म ण अ ू र को दे द
f गु व योितष 34 िसत बर 2010

और भाग िनकला। ी कृ ण ने यु तो जीत िलया ले कन म ण हािसल नह ं कर सके। जब बलराम ने उनसे म ण के


बारे म पूछा तो उ ह ने कहा क म ण उनके पास नह ं। ऐसे म बलराम ख न होकर ा रका जाने क बजाय इं थ
लौट गए। उधर ा रका म फर चचा फैल गई क ी कृ ण ने म ण के मोह म भाई का भी ितर कार कर दया। म ण
के चलते झूठे लांछन से दखी
ु होकर ी कृ ण सोचने लगे क ऐसा य हो रहा है । तब नारद जी आए और उ ह ने
कहा क हे कृ ण तुमने भा पद म शु ल चतुथ क रात को चं मा के दशन कयेथे और इसी कारण आपको िम या
कलंक झेलना पड़ रहा ह।
ीकृ ण चं मा के दशन क बात व तार पूछने पर नारदजी ने ीकृ ण को कलंक वाली यह कथा बताई थी।
एक बार भगवान ीगणेश लोक से होते हए
ु लौट रहे थे क चं मा को गणेशजी का थूल शर र और गजमुख
दे खकर हं सी आ गई। गणेश जी को यह अपमान सहन नह ं हआ।
ु उ ह ने चं मा को शाप दे ते हए
ु कहा, 'पापी तूने मेरा
मजाक उड़ाया ह। आज म तुझे शाप दे ता हंू क जो भी तेरा मुख दे खेगा, वह कलं कत हो जायेगा।
गणेशजी शाप सुनकर चं मा बहत
ु दखी
ु हए।
ु गणेशजी शाप के शाप वाली बाज चं मा ने सम त दे वताओं को सोनाई
तो सभी दे वताओं को िचंता हई।
ु और वचार वमश करने लगे क चं मा ह रा ी काल म पृ वी का आभूषण ह और
इसे दे खे बना पृ वी पर रा ी का कोई काम पूरा नह ं हो सकता। चं मा को साथ लेकर सभी दे वता ाजी के पास
पहच।
ु दे वताओं ने ाजी को सार घटना व तार से सुनाई उनक बात सुनकर ाजी बोले, चं मा तुमने सभी गण
के अरा य दे व िशव-पावती के पु गणेश का अपमान कया ह। य द तुम गणेश के शाप से मु होना चाहते हो तो
ीगणेशजी का त रखो। वे दयालु ह, तु ह माफ कर दगे। चं मा गणेशजी को श न करने के िलये कठोर त-
तप या करने लगे। भगवान गणेश चं मा क कठोर तप या से स न हए
ु और कहा वषभर म केवल एक दन भा पद
म शु ल चतुथ क रात को जो तु ह दे खेगा, उसे ह कोई िम या कलंक लगेगा। बाक दन कुछ नह ं होगा। ’ केवल
एक ह दन कलंक लगने क बात सुनकर चं मा समेत सभी दे वताओं ने राहत क सांस ली। तब से भा पद म शु ल
चतुथ क रात को चं मा के दशन का िनषेध ह।

॥गणेश ादशनाम तो म।।



शु लां बरधरम ् दे वम ् शिशवण चतुभु जम ् । धू केतुग णा य ो भालचं ो गजाननः।
स नवदनम ् याये सव व नोपशांतये ।।१।। ादशैतािन नामािन गणेश य य: पठे त ् ।। ५ ।।

अभी सताथिस यथ पूजेतो य: सुरासुरैः। व ाथ लभते व ाम ् धनाथ वपुलम ् धनम ् ।


सव व नहर त मै गणािधपतये नमः।।२।। इ कामम ् तु कामाथ धमाथ मो म यम ् ।। ६ ।।

गणानामिधप डो गजव लोचनः। व ार मे ववाहे च वेशे िनगमे तथा


स न भव मे िन यम ् वरदात वनायक ।।३।। सं ामे संकटे ैव व न त य न जायते ।। ७ ।।

सुमुख ैकद त क पलो गजकणक: ॥इित ी गणेश ादशनाम तो म ् स पुण ॥


ल बोदर वकटो व ननाशो वनायकः।।४।।
f गु व योितष 35 िसत बर 2010

एकद त शरणागित तो म ्

एकद तम ् शरणम ् जाम:


तदे व जा जसा वभातं वलो कतं व कृ पया मृ तेन।
दे वषय ऊचु: बभूव िभ न च सदै क पं तमेकद तं शरणं जाम:॥

सदा म पं सकला दभूतममाियनं सोऽहमिच यबोधम।् सदे व सृ कृ ित वभावा द तरे वं च वभािस िन यम।्
अना दम या त वह नमेकं तमेकद तं शरणं जाम:॥ िधय: दाता गणनाथ एक तमेकद तं शरणं जाम:॥

अन तिच पमयं
ू गणेशमभेदभेदा द वह नमा म।् वदा या भा त हा सव काश पा ण वभा त खे
द काश य धरं वधी थं तमेकद तं शरणं जाम:॥ वै।
म त िन यं व वहारकाया तमेकद तं शरणं जाम:॥
समािधसं थं द योिगनां यं काश पेण वभातमेतम।्
सदा िनराल बसमािधग यं तमेकद तं शरणं जाम:॥ वदा या सृ करो वधाता वदा या पालक
एक व णु:।
व ब बभावेन वलासयु ां य मायां व वध व पाम।्
वदा या संहरको हरोऽ प तमेकद तं शरणं जाम:॥
ववीयकं त ददाित यो वै तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या भूिमजलेऽ सं थे यदा याप: वह त न :।
वद यवीयण समथभूत वमायया संरिचतं च व म।्
वतीथसं थ कृ त: समु तमेकद तं शरणं जाम:॥
तुर यकं ा म तीितसं ं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या दे वगणा द व था दद त वै कमफलािन
वद यस ाधरमेकद तं गुणे रं यं गुणबोिधतारम।्
िन यम।्
भज तम य तमजं सं थं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या शैलगणा: थरा वै तमेकद तं शरणं जाम:।

तत वया े रतनादकेन सुषुि सं ं रिचतं जग वै।


यदा या दे वगणा द व था दद त वै कमफलािन
समान पं ुभय सं थं तमेकद तं शरणं जाम:॥
िन यम।्
यदा या शैलगणा: थरा वै तमेकद तं शरणं जाम:॥
तदे व व ं कृ पया भूतं भावमादौ तमसा वभा तम।्
अनेक पं च तथैकभूतं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या शेषधराधरो वै यदा या मोह द काम:।
यदा या कालधरोऽयमा च तमेकद तं शरणं जाम:॥
तत वया े रतकेन सृ ं बभूव सू मं जगदे कसं थम।्
सुसा वक
् ं वप मन तमा ं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या वाित वभाित वायुय दा यािग जठरा दसं थ:।
यदा येदं सचराचरं च तमेकद तं शरणं जाम:॥
तदे व वपन ् तपसा गणेश सुिस पं व वधं बभूव।
सदै क पं कृ पया च तेऽ तमेकद तं शरणं जाम:॥
यद तरे सं थतमेकद त तदा या सविमदं वभाित।
अन त पं द बोधकं य तमेकद तं शरणं जाम:॥
वदा या तेन वया द थं तथा सुस ृ ं जगदं श पम।्
विभ नजा मयम मेयं तमेकद तं शरणं जाम:॥
f गु व योितष 36 िसत बर 2010

सुयोिगनो योगबलेन सा यं कुवते क: तवनेन तौित।  ित दन इस इ क स ोक का इ क स दन


अत: णामेन सुिस दोऽ तु तमेकद तं शरणं जाम:॥ तक ित दन इ क स बार पाठ करता ह उसे
सव वजय ा होती ह।
गृ समद उवाच
 इस तो के पाठ से य को सव इ छ त
व तु क ाि होती ह। पु -पौ आ द, कल ,
एवं तु वा गणेशानं दे वा: समुनय: भुम।्
धन-धा य, उ म वाहन एवं सम त भौितक सुख
तृ णीं भावं प ैव ननृ तुहषसंयुता:॥
साधनो एवं शांित क ाि होती ह।
स तानुवाच ीता मा दे वष णां तवेन वै।  अ य ारा कये जाने वाले मारण, उ चाटन और
एकद तो महाभागो दे वष न ् भ व सल:॥ मोहन आ द योग से य क र ा होती ह।

एकद त उवाच
तो ेणाहं स नोऽ म सुरा: स षगणा: कल।
वरदोऽहं वृ णुत वो दा यािम मनसी सतम॥

भव कृ तं मद यं यत ् तो ं ीित दं च तत।्
भ व यित न संदेह: सविस दायकम॥्

यं यिम छित तं तं वै दा यािम तो पाठत:।


पु पौ ा दकं सव कल ं धनधा यकम॥्

गजा ा दकम य तं रा यभोगा दकं ुवम।्


भु ं मु ं च योगं वै लभते शा तदायकम॥्

मारणो चाटनाद िन राजब धा दकं च यत।्


पठतां ृ वतां नृ णां भवे च ब धह नता॥
राधाकृ त गणेश तो म ्
ीरािधकोवाच:
एक परम
वंशितवारं
् धाम य:
परम ् ोकानेव
परेैकशवंमश् तीन।
परमी् रम।्
पठे च
वघ दनघमांकरम
मृ ् शा
वा तम
दनािन
् पु मवे् का
क वंतमन
शितम॥

तकम॥

न तसुरयासुदलभं क ै चतै :् तुषुतलोक


रे ु ै : िस म ् े षु वै भवे
तौिम परात।् परम।्
असासुरयंप सादनेयेशम म ् य: सवशम ् वजयी
च गणे म गलायनम॥भवेत॥््

िन यं
इदमय:् पठित तो ं यमभू् तवघ
तो म ् महापु : स शोकहरम
वै नर:। ् परम।् य:
त यपठेदशनत:
त ् ात सव
थायदे वसव
ा: पूवघनत
ता भव् मुत यते
च॥॥

इस तो का ित दन पाठ करने से मनु य के सारे व नो एवं शोको का नाश होता ह।


f गु व योितष 37 िसत बर 2010

गणेश कवचम ्
संसारमोहन या य कवच य जापितः। प मे पावतीपु ो वाय यां शंकरा मजः॥
ऋष छ द बृ हती दे वो ल बोदर: वयम॥् कृ ण यांश ो रे च प रपूण तम य च॥

धमाथकाममो ेषु विनयोग: क िततः। ऐशा यामेकद त हे र ब: पातु चो वतः।


सवषां कवचानां च सारभूतिमदं मुने॥ अधो गणािधप: पातु सवपू य सवतः॥

ॐ गं हंु ीगणेशाय वाहा मे पातु म तकम।् व ने जागरणे चैव पातु मां योिगनां गु ः।
ा ंशद रो म ो ललाटं मे सदावतु॥
इित ते किथतं व स सवम ौघ व हम।्
ॐ ं लीं ीं गिमित च संततं पातु लोचनम।् संसारमोहनं नाम कवचं परमा तम॥
ु ्
तालुकं पातु वघनेश: संततं धरणीतले॥
ीकृ णेन पुरा द ं गोलोके रासम डले।
ॐ ं ीं लीिमित च संततं पातु नािसकाम।् वृ दावने वनीताय म ं दनकरा मजः॥
ॐ ग गं शूप कणाय वाहा पा वधरं मम॥
मया द ं च तु यं च य मै क मै न दा यिस।
द तािन तालुकां ज ां पातु मे षोडशा रः॥ परं वरं सवपू यं सवस कटतारणम॥

ॐ लं ीं ल बोदरायेित वाहा ग डं सदावतु।
गु म य य विधवत ् कवचं धारये ु यः।
ॐ लीं ं वघ नाशाय वाहा कण सदावतु॥ क ठे वा द णे बाहौ सोऽ प व णुन संशयः॥

ॐ ीं गं गजाननायेित वाहा क धं सदावतु। अ मेधसह ा ण वाजपेयशतािन च।


ॐ ं वनायकायेित वाहा पृ ं सदावतु॥ हे कवच या य कलां नाह त षोडशीम॥्

ॐ लीं िमित क कालं पातु व : थलं च गम।् इदं कवचम ा वा यो भजे छं करा मजम।्
करौ पादौ सदा पातु सवा गं वघ नघ कृ त॥् शतल ज ोऽ प न म : िस दायकः॥

ा यां ल बोदर: पातु आगने यां वघ नायकः। ॥ इित ी गणेश कवच संपूण म॥्
द णे पातु वघनेशो नैरऋ
् यां तु गजाननः॥

गणेशजी क सूंड कस ओर हो?


मं दर और घर म था पत कजाने वाली भगवान गणेश ितमा म सूंड कसी ितमा म दा तो कसी ितमा
म बा ओर दे खने को िमलती ह। घर म बा ओर सूंडवाले गणेशह था पत करना शुभ फल द मानागया ह।
यो कं जहां बा सूंड वाले गणॆश सौ य व प के ितक ह, वह ं दा ओर तरफ सूंड वाले गणॆशजी अ न (उ )
व प के माने जाते ह।
f गु व योितष 38 िसत बर 2010

व णुकृतं गणेश तो म ्

ी नारायण उवाच
अथ व णु: सभाम ये स पू य तं गणे रम।्
न म: प चव न म तुराननः।
तृ ाव परया भ या सव वघ वनाशकम॥्
सर वती न श ा च न श ोऽहं तव तुतौ॥
ी व णु उवाच
ईश वां तोतुिम छािम योित: सनातनम।् न श ा चतुवदा: के वा ते वेदवा दनः॥
िन पतुमश ोऽहमनु पमनीहकम॥्
इ येवं तवनं कृ वा सुरेशं सुरसंस द।
वरं सवदे वानां िस ानां योिगनां गु म।् सुरेश सुरै: सा ध वरराम रमापितः॥
सव व पं सवशं ानरािश व पणम॥

इदं व णुकृतं तो ं गणेश य च य: पठे त।्
अ य म रं िन यं स यमा म व पणम।् सायं ात म या े भ यु : समा हतः॥
वायुतु याितिनिल ं चा तं सवसा णम॥्
त घ नघन ् कु ते वघने ःसततं मुने।
संसाराणवपारे च मायापोते सुदलभे
ु । वधते सवक याणं क याणजनक: सदा॥
कणधार व पं च भ ानु हकारकम॥्
या ाकाले प ठ वा तु यो याित भ पूव कम।्
वरं वरे यं वरदं वरदानामपी रम।् त य सवाभी िस भव येव न संशयः॥
िस ं िस व पं च िस दं िस साधनम॥्
तेन ं च द:ु वपन ् सु वप मुपजायते।
यानाित र ं येयं च यानासा यं च धािमकम।् कदा प न भवे य हपीडा च दा णा॥
धम व पं धम ं धमाधमफल दम॥

भवे वनाश: श ूणां ब धूनां च ववधनम।्
बीजं संसारवृ ाणाम कुरं च तदा यम।् श घ वनाश श त ् स प वधनम॥्
ीपु नपुंसकानां च पमेतदती यम॥्
थरा भवे गृ हे ल मी: पु पौ वविधनी।
सवा म पू यं च सवपू यं गुणाणवम।् सव यिमह ा य ते व णुपदं लभेत॥्
वे छया सगुणं िनगु णं चा प वे छया॥
यं कृ ित पं च ाकृ तं कृ ते: परम।् फलं चा प च तीथानां य ानां य भवे ुवम।्

वां तोतुम मोऽन त: सह वदनेन च॥ महतां सवदानानां ी गणेश सादतः॥

गणेशजी को य ह िसंदरू : गणेश पूजन म िसंदरू का उपयोग अ यंत शुभ एवं लाभकार होता ह। यो कं
भगवान गणेशजीको िसंदरू अ यािधक य ह। गणेश जी को शु घी म िसंदरू िमलाकर लेप चढाने से सुख और
सौभा य क ाि होती ह। िसंदरू रं ग के उपयोग से य के बु , आरो य, याग म वृ होती ह। इसी िलये
ायः यादातर साधु-संत के व का रं ग िसंदरू ह होता ह।
f गु व योितष 39 िसत बर 2010

गणपित तो म ्

सुवणवणसु दरं िसतैकद तब धुरं गृ ह तपाशका कुशं वर दाभय दम।्


चतुभु जं लोचनं भुज गमोपवीितनं फु लवा रजासनं भजािम िस धुराननम॥्
कर टहारकु डलं द बाहभू
ु षणं च डर नक कणं शोिभता घय कम।्
भातसूय सु दरा बर य धा रणं सर नहे मनूपुर शोिभता प कजम॥्

सुवणद डम डत च डचा चामरं गृ ह दे दसु


ु दरं युग ण मो दतम।्
कवी िच र जकं महा वप भ जकं षड र व पणं भजे गजे पणम॥्
व र च व णुव दतं व पलोचन तुतं िगर शदशने छया सम पतं परा बया।
िनर तरं सुरासुरै: सपु वामलोचनै: महामखे कमसु मृ तं भजािम तु दलम॥्

मदौघलु धच चलािलम जुगु जतारवं बु िच र जकं मोदकणचालकम।्


अन यभ मानवं च डमु दायं नमािम िन यमादरे ण व तु डनायकम॥्
दा र य व ावणमाशु कामदं तो ं पठे देतदज मादरात।्
पु ी कल वजनेषु मै ी पुमान ् भवेदेकवर सादात॥

इस तो ा का ित दन पाठ करने से गणेशजी क कृ पा से उसे संतान लाभ, ी ित, िम एवं वजनो से एवं प रवार
म ेम भाव बढता ह।

॥ ी गणेश आरित॥

जय गणेश जय गणेश जय गणेश दे वा


जय गणेश जय गणेश जय गणेश दे वा.
माता जाक पारवती पता महादे वा॥ जय गणेश.....

एकद त दयाव त चारभुजाधार


माथे पर ितलक सोहे मूसे क सवार ॥ जय गणेश.....

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा


ल डु अन का भोग लगे स त कर सेवा॥ जय गणेश.....

अंधे को आँख दे त को ढ़न को काया


बाँझन को पु दे त िनधन को माया॥ जय गणेश.....

' सूर' याम शरण आए सफल क जे सेवा


जय गणेश जय गणेश जय गणेश दे वा॥ जय गणेश.....
f गु व योितष 40 िसत बर 2010

॥गणेशभुजंगम॥्

रण ु घ टािननादािभरामं चल ा डवो डव प तालम ् ।


लस ु दला गोप र यालहारं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ १ ॥

विन वंसवीणालयो लािसव ं फुर छु डद डो लस जपूरम ् ।


गल पसौग यलोलािलमालं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ २ ॥

काश जपार र त सून- वाल भाता ण योितरे कम ् ।


ल बोदरं व तु डै कद तं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ३ ॥

विच फुर माला कर टं कर टो लस च रे खा वभूषम ् ।


वभूषैकभूशं भव वंसहे तुं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ४ ॥

उद च जाव
ु लर यमूलो- चल ूलता व म ाजद म ् ।
म सु दर चामरै ः से यमानं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ५ ॥

फुर न ु रालोल प गा तारं कृ पाकोमलोदारलीलावतारम ् ।


कला ब दगं
ु गीयते योिगवय- गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ६ ॥

यमेका रं िनमलं िन वक पं गुणातीतमान दमाकारशू यम ् ।


परं परम कारमा मायगभ । वद त ग भं पुराणं तमीडे ॥ ७ ॥

िचदान दसा ाय शा ताय तु यं नमो व क च ह च तु यम ् ।


नमोऽन तलीलाय कैव यभासे नमो व बीज सीदे शसूनो ॥ ८ ॥

इमं सु तवं ात थाय भ या पठे तु म य लभे सवकामान ् ।


गणेश सादे न िस य त वाचो गणेशे वभौ दलभं
ु कं स ने ॥ ९ ॥

तं र ा
कवच को धारण करने से य के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ
ह धारण कता य पर कसी भी कार क नकार मन श यो का कु भाव नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।

मू य मा : `.730
f गु व योितष 41 िसत बर 2010

॥ ी व ने रा ो र शतनाम तो म ् ॥
वनायको व नराजो गौर पु ो गणे रः। कंदा जो ययः पूतो द ोऽ य ो ज यः ॥ १ ॥
अ नगव छद इ ी दः । वाणी दोअः अ ययः सविस द शवतनो शवर यः ॥ २ ॥
सवा मकः सृ कता दे वोनेकािचत शवः । शु बु य शांतो चार गजाननः ॥ ३ ॥
ै मा ेयो मुिन तु यो भ व न वनाशनः । एकद त छतुबाहु छतुर श संयुतः ॥ ४ ॥
ल बोदर शूपकण हर वदु मः । कालो हपितः कामी सोमसूया नलोचनः ॥ ५ ॥
पाशा कुशधर डो गुणातीतो िनर जनः । अक मष वयंिस स ािचतः पदा बुजः ॥ ६ ॥
बीजपूरफलास ो वरद शा तः कृ ितः । ज यो वीतभयो गद च ुचापधृ त ् ॥ ७ ॥
ीदोज उ पलकरः ीपितः तुितह षतः । कुला भे ा ज टलः किलक मषनाशनः ॥ ८ ॥
च चूडाम णः का तः पापहार समा हतः । अि त ीकर सौ यो भ वांिछतदायकः ॥ ९ ॥
शा तः कैव यसुखद स चदान द व हः । ानी दयायुतो दांतो े ष वव जतः ॥ १० ॥
म दै यभयदः ीकंथो वबुधे रः । रामािचतो विधनागराजय ोपवीतकः ॥ ११ ॥
थूलकंठः वयंकता सामघोष यः परः । थूलतु डोऽ णी धीरो वागीश स दायकः ॥ १२ ॥
दवा
ू ब व योऽ य मूितर ु तमूितमान ् । शैले तनुजो स गखेलनो सुकमानसः ॥ १३ ॥
वलाव यसुधासारो जतम मथ व हः । सम तजगदाधारो मायी मूषकवाहनः ॥ १४ ॥
तु ः स ना मा सविस दायकः । अ ो रशतेनैवं ना नां व ने रं वभुं ॥ १५ ॥
तु ाव शंकरः पु ं पुरं हं तुमु यतः । यः पूजयेदनेनैव भ या िस वनायकम ् ॥ १६ ॥
दवादलै
ू ब वप ैः पु पैवा चंदना तैः । सवा कामानवा नोित सव व नैः मु यते ॥
.

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f गु व योितष 42 िसत बर 2010

॥ वनायक तो ॥
मू षकवाहन मोदकह त चामरकण वल बतसू । वामन प महे रपु व न वनायक पाद नम ते ॥
p दे वदे वसुतं दे वं जग न वनायकम ् । ह त पं महाकायं सूयको टसम भम ् ॥ १ ॥
वामनं ज टलं का तं व ीवं महोदरम ् । धू िस दरयु
ू डं वकटं कटो कटम ् ॥ २ ॥
एकद तं ल बो ं नागय ोपवीितनम ् । य ं गजमुखं कृ णं सुकृतं र वाससम ् ॥ ३ ॥
द तपा णं च वरदं यं चा रणम ् । पु यं गणपितं द यं व नराजं नमा यहम ् ॥ ४ ॥
दे वं गणपितं नाथं व या े तु गािमनम ् । दे वानामिधकं े ं नायकं सु वनायकम ् ॥ ५ ॥
नमािम भगवं दे वं अ तं
ु गणनायकम ् । व तु ड च डाय उ तु डाय ते नमः ॥ ६ ॥
च डाय गु च डाय च डच डाय ते नमः । म ो म म ाय िन यम ाय ते नमः ॥ ७ ॥
उमासुतं नम यािम ग गापु ाय ते नमः । ओ काराय वष कार वाहाकाराय ते नमः ॥ ८ ॥
म मूत महायोिगन ् जातवेदे नमो नमः । परशुपाशकह ताय गजह ताय ते नमः ॥ ९ ॥
मेघाय मेघवणाय मेघे र नमो नमः । घोराय घोर पाय घोरघोराय ते नमः ॥ १० ॥
पुराणपूव पू याय पु षाय नमो नमः । मदो कट नम तेऽ तु नम ते च डव म ॥ ११ ॥
वनायक नम तेऽ तु नम ते भ व सल । भ याय शा ताय महातेज वने नमः ॥ १२ ॥
य ाय य हो े च य ेशाय नमो नमः । नम ते शु लभ मा ग शु लमालाधराय च ॥ १३ ॥
मद ल नकपोलाय गणािधपतये नमः । र पु प याय च र च दन भू षत ॥ १४ ॥
अ नहो ाय शा ताय अपराज य ते नमः । आखुवाहन दे वेश एकद ताय ते नमः ॥ १५ ॥
शूप कणाय शूराय द घद ताय ते नमः । व नं हरतु दे वेश िशवपु ो वनायकः ॥ १६ ॥
फल ुित
जपाद यैव होमा च स योपासनस तथा । व ो भवित वेदा यः यो वजयी भवेत ् ॥
वै यो धनसमृ ः यात ् शू ः पापैः मु यते । गिभणी जनये पु ं क या भतारमा नुयात ् ॥
वासी लभते थानं ब ो ब धात ् मु यते । इ िस मवा नोित पुना यास मं कुलं ॥
सवम गलमा ग यं सवपाप णाशनम् । सवकाम दं पुंसां पठतां ुणुताम प ॥
.
॥ इित ी ा डपुराणे क द ो वनायक तो ं स पूणम ् ॥

श ु वजय कवच
श ु वजय कवच धारण करने से य को श ु से संबंिधत सम त परे शािनओ से वतः ह छुटकारा िमल जाता ह।

कवच के भाव से श ु धारण कता य का चाहकर कुछ नह बगड सकते। मू य मा : `.640


f गु व योितष 43 िसत बर 2010

॥ ी िस वनायक तो म ् ॥
जयोऽ तु ते गणपते दे ह मे वपुलां मितम।्
नमनं शंभुतनयं नमनं क णालयं।
तवनम ् ते सदा कतु फूित य छममािनशम ् ॥ १॥
नम तेऽ तु गणेशाय वािमने च नमोऽ तु ते ॥ १२॥
भुं मंगलमूित वां च े ाव प यायतः।
नमोऽ तु दे वराजाय व दे गौर सुतं पुनः।
यजत वां व णुिशवौ यायत ा ययं सदा ॥ २॥
नमािम चरणौ भ या भालच गणेशयोः ॥ १३॥
वनायकं च ाहु वां गजा यं शुभदायकं।
नैवा याशा च म च े व े तवन यच।
व ना ना वलयं या त दोषाः किलमला तक ॥ ३॥
भवे येव तु म च े ाशा च तव दशने ॥ १४॥
व पदा जां कत ाहं नमािम चरणौ तव।
अ ान ैव मूढोऽहं यायािम चरणौ तव।
दे वेश वं चैकद तो म ि ं शृ णु भो ॥ ४॥
दशनं दे ह मे शी ं जगद श कृ पां कु ॥ १५॥
कु वं मिय वा स यं र मां सकलािनव।
बालक ाहम प ः सवषामिस चे रः।
व ने यो र मां िन यं कु मे चा खलाः याः ॥ ५॥
पालकः सवभ ानां भविस वं गजानन ॥ १६॥
गौ रसुत वं गणेशः शॄणु व ापनं मम।
द र ोऽहं भा यह नः म च ं तेऽ तु पादयोः।
व पादयोरन याथ याचे सवाथ र णम ् ॥ ६॥
शर यं मामन यं ते कृ पालो दे ह दशनम ् ॥ १७॥
वमेव माता च पता दे व वं च ममा ययः।
इदं गणपते तो ं यः पठे सुसमा हतः।
अनाथनाथ वं दे ह वभो मे वांिछतं फलम ् ॥ ७॥
गणेशकृ पया ानिस धं स लभते धनं ॥ १८॥
लंबोदर वम ् गजा यो वभुः िस वनायकः।
पठे ः िस दं तो ं दे वं संपू य भ मान।्
हे रंबः िशवपु वं व नेशोऽनाथबांधवः ॥ ८॥
कदा प बा यते भूत ेताद नां न पीडया ॥ १९॥
नागाननो भ पालो वरद वं दयां कु ।
प ठ वा तौित यः तो िमदं िस वनायकं।
िसंदरवणः
ू परशुह त वं व ननाशकः ॥ ९॥
ष मासैः िस मा नोित न भवेदनृ तं वचः
व ा यं मंगलाधीशं व नेशं परशूधरं । गणेशचरणौ न वा ूते भ ो दवाकरः ॥ २०॥
द ु रता रं द नब धूं सवशं वां जना जगुः ॥ १०॥
॥ इित ी िस वनायक तो म ् स पूण म ् ॥
नमािम व नहतारं व दे ी मथािधपं।
***
नमािम एकद तं च द नब धू नमा यहम ् ॥ ११॥

सवजन वशीकरण कवच


मू य मा : `.1050
f गु व योितष 44 िसत बर 2010

िशवश कृ तं गणाधीश तो म
ीश िशवावूचतु:
नम ते गणनाथाय गणानां पतये नम:।
भ याय दे वेश भ े य: सुखदायक॥
वान दवािसने तु यं िस बु वराय च।
नािभशेषाय दे वाय ढु ढराजाय ते नम:॥
वरदाभयह ताय नम: परशुधा रणे।
नम ते सृ णह ताय नािभशेषाय ते नम:॥
अनामयाय सवाय सवपू याय ते नम:।
सगुणाय नम तु यं णे िनगु णाय च॥
यो दा े च गजानन नमो तु ते।
आ दपू याय ये ाय ये राजाय ते नम:॥
मा े प े च सवषां हे र बाय नमो नम:।
अनादये च व नेश वघ क रे नमो नम:॥
वघ ह रे वभ ानां ल बोदर नमो तु ते।
वद यभ योगेन योगीशा: शा तमागता:॥
कं तुवो योग पं तं णमाव वघ पम।्
तेन तु ो भव वािम न यु वा तं णेमतु:॥
तावु था य गणाधीश उवाच तौ महे रौ॥
ीगणेश उवाच
भव कृ तिमदं तो ं मम भ ववधनम।्
भ व यित च सौ य य पठते ृ वते दम।्
भु मु दं चैव पु पौ ा दकंतथा॥
धनधा या दकं सव लभते तेन िन तम॥्
जो य इस तो का िनयिमत प से
विधवत ा भ से पठन और वण करता ह।
उसे सभी कार के सुख ा होते ह। इसके
अित र तो का पाठ करने से य को भोग-
मो तथा पु और पौ आ द का लाभ होता ह। तो के
ारा य को धन-धा य इ या द सभी व तुएँ िन त प से
ा होती ह।
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f गु व योितष 46 िसत बर 2010

गणेश पूजन से वा तु दोष िनवारण


हं द ू सं कृ ित म भगवान गणेश सव व न
वनाशक माना ह। इसी कारण गणपित जी का
पूजन कसी भी त अनु ान म सव थम कया
जाता ह। भवन म वा तु पूजन करते समय भी
गणपित जी को थमपूजा जाता ह। जस घर म
िनयिमत गणपित जी का विध वधान से पूजन
होता ह, वहां सुख-समृ एवं र -िस का िनवास
होता ह।

गणेश ितमा (मूित) क थापना भवन के


मु य ार के ऊपर अंदर-बहार दोनो और लगाने से
अिधक लाभ ा होता ह।

गणेश ितमा (मूित) क पूजा घरम


थापना करने पर उ ह िसंदरू चढाने से शुभ फल
क ाि होती ह।

भवन म ारवेध हो, अथात भवन के मु य


ार के सामने वृ , मं दर, तंभ आ द ार म वेश

करने वाली उजा हे तु बाधक होने पर वा तु म उसे ारवेध माना जाता ह। ारवेध होने पर वहां रहने वाल म
उ चाटन होता ह। ऐसे म भवन के मु य ार पर गणोशजी क बैठ हई
ु ितमा (मूित) लगाने से ारवेध का िनवारण
होता ह। लगानी चा हए कंतु उसका आकार 11 अंगुल से अिधक नह ं होना चा हए।

पूजा थानम पूजन के िलए गणेश जी क एक से अिधक ितमा (मूित) रखना व जत ह।

गणेश गाय ी मं
एकद ताय ् व हे व तु डाय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥् (गणप युपिनष )

त पु षाय व हे व तु डाय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥्(नारायणोपिनष )

त कराटाय व हे ह तमुखाय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥्(मै ायणीसं हता)

ल बोदराय व हे महोदराय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥्(अ नपुराण)

महो कटाय व हे व तु डाय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥्(अ नपुराण)


f गु व योितष 47 िसत बर 2010

गणेश वाहन मूषक केसे बना


समे पवत पर सौम र ऋ ष का आ म था। उनक
अ यंत पवान तथा पित ता प ी का नाम मनोमयी
था। एक दन ऋ षवर लकड़ लेने के िलए वन म चले
गए। उनके जाने के प यात मनोमयी गृ हकाय म
य त हो ग । उसी समय एक द ु क च नामक
गंधव वहां आया। जब क च ने लाव यमयी मनोमयी
को दे खा, तो उसके भीतर काम जागृ त होगया एवं
वह याकुल हो गया। क च ने मनोमयी का हाथ
पकड़ िलया। रोती व कांपती हई
ु मनोमयी उससे
दया क भीख मांगने लगी। उसी समय वहा सौभ र
ऋ ष आ गए।

उ ह गंधव को ाप देते हए
ु कहा, तुमने चोर क
भांित मेर सहधिमनी का हाथ पकड़ा ह, इस कारण तुम अबसे मूषक
होकर धरती के नीचे और चोर करके अपना पेट भरोगे।’
ऋ ष का ाप सुनकर गंधव ने ऋ ष से ाथना क - हे ऋ षवर, अ ववेक के कारण
मने आपक प ी के हाथ का पश कया। मुझे मा कर द।

ऋ ष बोले: क च! मेरा ाप यथ नह ं होगा। तथा प ापर म मह ष पराशर के यहां गणपित दे व गज प म कट ह गे।


तब तुम उनका वाहन बन जाओगे। इसके प यात तु हारा क याण होगा तथा दे वगण भी तु हारा स मान करगे।’


रामायण िलखते रामदास िलखते जाते और अपने िश य को सुनाते जाते थे। हनुमान जी भी िश य के
बच म रामायण को गु प से सुनने के िलये आकर बैठते थे। समथरामदास ने िलखा, हनुमान अशोक वन म
गये, वहाँ उ ह न सफेद फूल दे खे।
इस वा य को सुनते ह हनुमान जी झट से कट हो गये और बोले , मने सफेद फूल नह ं दे खे थे। आपने
गलत िलखा ह, उसे सुधार दो। समथ ने कहा, मने ठ क ह िलखा ह। तुमने सफेद फूल ह दे खे थे
हनुमान ने कहा, आप कैसी बात करते हो! म वयं वहाँ गया और म ह झूठा!
अंत म यह बात ी रामचं जी के पास पहँु च गई। उ ह ने कहा क , फूल तो सफेद ह थे, पर तु हनुमान
क आँख ोध से लाल हो रह थीं, इसिलए वे उ ह लाल दखाई दये थे।
इस कथा का त पय यह है क संसार क तरफ दे खने क जैसी हमार ी होती ह,
संसार हम वैसा ह दखाई दे ता ह।
f गु व योितष 48 िसत बर 2010

संक हर चतुथ त का ारं भ कब हवा



संक हर चतुदश कथाः भार ाज मुिन और पृ वी के पु मंगल क क ठन तप या से स न होकर माघ मास के कृ ण
प म चतुथ ितिथ को गणपित ने उनको दशन दये थे।
गजानन के वरदान के फल व प मंगल कुमार को इस दन मंगल ह के प म सौर म डल म थान ा हवाथा।
ु मंगल
कुमार को गजानन से यह भी वरदान िमला क माघ कृ ण प क चतुदश जसे संक हर चतुथ के नाम से जाना जाता ह उस
दन जो भी य गणपितजी का त रखेगा उसके सभी कार के क एवं व न समा हो जाएंगे।
एक अ य कथा के अनुसार भगवान शंकर ने गणपितजी से स न होकर उ ह वरदान दया था क माघ कृ ण प क
चतुथ ितिथ को च मा मेरे िसर से उतरकर गणेश के िसर पर शोभायमान होगा। इस दन गणेश जी क उपासना और त -
ताप (तीनो कार के ताप) का हरण करने वाला होगा। इस ितिथ को जो य ाभ से यु होकर विध- वधान से
गणेश जी क पूजा करे गा उसे मनोवांिछत फल क ाि होगी।

ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह
अ य त शुभ फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं
संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु " ी यं "
जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके दशन मा से
अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ यश मनु य क
सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से हताशा और िनराशा दरू
होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त
भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं
नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर
या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है
व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु व कायालय मे " ी यं " १२ ाम से ७५ ाम
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f गु व योितष 49 िसत बर 2010

अमंगल ह नह मंगलकार भी है -मंगल

 िचंतन जोशी
भारतीय सं कृ ित म आ या मक आ था क से भगवान गणपितजी का हमारे जीवन म वशेष मह व ह।
ठक उसी कार से योितष शा क से भी गणेशजी वशेष मह व रखते ह। योितष के अनुशार बारह रािश
च म सबसे थम जो रािश आित ह वह ह मेष रािश ह। मेष रािशका वामी ह मंगल ह। जस कार गणेशजी का
सव थम मरण-पूजन-अचन होता ह। इसी कार मंगल ह के आिधप य वाली मेष रािश भी रािश च म अ य
हो क रािश से सव थम आती ह। जस कार गणेशजी गणो के पित अथात गणपित ह, इसी कार मंगल ह को
भी योितष म सेनापित क स ा दगई ह।

जेसे मंगल का रं ग लाल या िसंदरू के रं गके समान ह, इस िलये भगवान गणेश को भी िसंदरू ह चढाया जाता
ह। इस िलये गणेशजी को मंगलनाथ या मंगलमूित भी कहाजाता ह। मंगल कुमार को गणेशजी न मंगलवार के दन
दशन दे कर उनहे मंगल ह होने का वरदान दया था इसी के कारण ह भगवान गणेश को मंगल मूित कहा जाता ह
और मंगलवार के दन मंगलमूित गणेश का पूजन कया जाता ह। व ानो ने दे वी महाकाली जी का पूजन भी मंगलवार
को े फल दे ने वाला माना ह।

मंगल ह क उ प िशव से मानी गई ह। इसी कारण मंगल म िशव के समान तेज ह। मंगल के भाव वाले
जाताक आकषक, तेज वी, िचड़िचड़े वाभाव, सम याओं से लडऩे क श वशेष प से भावमान होता ह। वकट से
वकट सम याओं म िघरे होने के बावजूद जातक अपना धैय नह ं छोड़ते ह। योितष थो म मंगल को भले ह ूर ह
बताया गया ह, मंगल केवल अमंगलकार ह नह ं ह यह मंगलकार भी होता ह।

नौमी भौम वार मधुमासा। अवघपूर यह च रत काशा।।(राचमा )

भगवान राम का ज म मंगलवार को ह हआ


ु था। ी रामभ हनुमानजी का ज म भी मंगलवार को ह हआ

था। इसिलए हनुमानजी का पूजन मंगलवार को वशेष प से होता ह।

मंगल के दन कज लेने का काय व जत माना जाता ह। मंगलवार को बाल-दाढ , नाखून इ या द अप व काय


को िनषेध मना जाता ह।
जातक म मंगल+चं युित हो या मंगल और चं पर पर पर एक दसरे
ू क हो तो जातक रं क से राजा बन
जाता ह। अत: मंगल केवल एक ूर ह ह नह ं मंगलकार ह भी है ।

अ ल मी
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां
ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)-
वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का वतः अशीवाद ा होता ह।

मू य मा : `.1050
f गु व योितष 50 िसत बर 2010

गणेशजी माता ल मी के द क पु है ?
व णु धाम म भगवान व णु एवं माता ल मी वराजमान ल मीजी क पीडा दे ख कर पावतीजी ने गणेश जी
होकर आपस म वातालाप कर रहे थे, बात-बात म अहं के को ल मीजी को द क पु के प म दे ने का वीकार कर
कारण ल मी जी बोल उठे क म िलया। पावतीजी से गणेश जी को पु के प पाकर

सभी लोक म सब से अिधक पूजनीय एवं सबसे े हंु । ल मीजी न ह षत होते हवे
ु कहां म अपनी सभी िस यां ,सुख
अपने पु गणेश जी को दान करती हँू । इस
ल मी जी को इस कार अपनी अहं से वयं
के साथ साथ म मेर पु ी के
क शंसा करते दे ख भगवान
समान य र ध और
व णु जी को अ छा नह ं
िस ध जो के ा जी
लगा। उनका अहं दरू
क पु याँ ह , उनसे
करने के िलए उ ह ने
गणेशजी का
कहा तुम सव संपन
ववाह करने का
होते हए
ु भी आज तक
वचन दे ती हँू ।
माँ का सुख ा नह ं
यद
कर पाई।
स पूण लोक
इस बात को सुन कर म जो य , ी
ल मीजी को बहत
ु दःखी
ु गणेश जी क पूजा नह ं
होगई और वो अपनी पीड़ा सुनांने के करे गा वरन उनक िनंदा करे गा म
िलये माता पावती के पास गयीं और उनसे उनसे कोस दरू रहँू गी | जब भी मेर पूजा होगी
वनती क वो अपने पु काितकेय और गणेशजी म से कसे उसके साथ हं गणेश क भी पूजा अव य होगी।
एक पु को उनह द क पु के प म दान कर द।

संतान गणपित तो
संतान द गणपित तो :

नमोऽ तु गणनाथ िस बु युताय च। सव दाय दे वाय पु -वृ दाय च॥ १ ॥ गु दराय गु वे गो े गु ािसताय ते।
गो याय गो पताशेष भुवनाय िचदा मने॥ २ ॥ व मूलाय भ याय व सृ कराय ते। नमो नम ते स याय स य पूणाय
शु डने॥ ३ ॥ एकदं ताय शु ाय सुमुखाय नमो नमः। य जनपालाय णताित वनािशने॥ ४ ॥ शरणं भव दे वेश संतित
सु ढ़ां कु । भ व य त च ये पु ा म कुले गणनायक॥ ५ ॥ ते सव तव पूजाथ िनरताः युव रो मतः। पु दिमदं तो ं
सविस दायकम ्॥ ६ ॥

इस मं का उन दं पित के िलये उ म ह, जो सभी उपायो के उपरा त भी संतान सुख ा नह ं


हो रहा ह। इस तो का िनयिमत पाठ करने से अव य लाभ ा हो सकता ह।
f गु व योितष 51 िसत बर 2010

गणेश पुराण क म हमा


 िचंतन जोशी
गणेश पुराण
शौनक जी ने पूछा हे भो! गणेश पुराण का आर भ कस कार हआ
ु ? यह आप मुझे बताने क कृ पा कर।
इस पर सूत जी बोले हे शौनक! य प गणेश पुराण अित ाचीन ह, य क भगवान गणेश तो आ द ह, न जाने कब
से गणेश जी अपने उपासक पर कृ पा करते चले आ रहे ह। गणेशजी के तो अन त च र ह, जनका सं ह एक
महापुराण का प ले सकता ह।
गणेश पुराण को एक बार भगवान व णु ने नारद जी को और भगवान शंकर ने माता पावती जी को सुनाया
था। बाद म वह पुराण सं ेप प म ाजी ने पु मह ष वेद यास को सुनाया और फर यास जी से मह ष भृ गु ने
सुना। भृ गु ने कृ पा करके सौरा के राजा सोमका त को सुनाया था। तब से वह पुराण अनेक कथाओं म व तृ त होता
और अनेक कथाओं से र हत होता हआ
ु अनेक प म चिलत ह। शौनक जी ने पूछा भगवान ्! आप यह बताने का क
कर क राजा सोमका त कौन था? उसने मह ष से गणेश पुराण का वण कस जगह कया था? एवं उस पुराण के
वण से उसे या- या उपल धयाँ हई
ु ? हे नाथ! मुझे ी गणे र क कथा के ित उ क ठा बढ़ती ह जा रह ह।
सूतजी बोले-'हे शौनक! सौरा के दे वनगर नाम क एक िस राजधानी थी। वहाँ का राजा सोमका त था। राजा अपनी
जा का पालन पु के समान करता था। वह वेद ान स प न, श - व ा म पारं गत एवं बल तापी राजा सम त
राजाओं म मा य तथा अ य त वैभवशाली था। उसका ऐ य कुबेर के भी ऐ य को ल जत करता था। उसने अपने
परा म से अनेक दे श जीत िलये थे। उसक प ी अ य त पवती, गुणवती, धम ा एवं पित ता धम का पालन करने
वाली थी। वह सदै व अपने ाणनाथ क सेवा म लगी रहती थी। उसका नाम सुधमा था। जैसे वह पित ता थी, वैसे ह
राजा भी एक प ी त का पालन करने वाला था। उसका हे मका त नामक एक सु दर पु था। पु भी सोमका त क
तरह सभी व ाओं का ाता और अ -श ा द के अ यास म िनपुण हो गया था। इन सभी े स प न, स णी
ु ल ण
से राजा अपनी जाजन के हत का अ य त पोषक था।
इस कार राजा सोमका त ी, पु , पशु, वाहन, रा य एवं ित ा इ या द से सब कारसुखी था। उसे कसी
कार का द:ु ख तो था ह नह ं। सभी जाजन उसका स मान करते थे, जस कारण उसक े क ित भी संसार यापी
थी। पर तु युवाव था के अ त म सोमका त को घृ णत कु रोग हो गया। उसके अनेक उपाचार कये गये, क तु कोई
लाभ नह ं हआ।
ु रोग शी ता से बढऩे लगा और उसके क ड़े पड़ गये। जब रोग क अिधक वृ होने लगी और उसका
कोई उपाय न हो सका तो राजा ने अमा य को बुलाकर कहा-सु तो! जाने कस कारण यह रोग मुझे पी ़डत कर रहा
ह। अव य ह यह मेर कसी पूव ज म के पाप का फल होगा। इसिलए म अब अपना सम त राज-पाट छोड़कर वन म
रहँू गा। अतः आप मेरे पु हे मका त को मेरे समान मानकर रा य शासन का धमपूव क संचालन कराते रह। यह कहकर
राजा ने शुभ दन दखवाकर अपने पु हे मका त को रा यपद पर अिभ ष कया और अपनी प ी सुधमा के साथ
िनजन वन क ओर चल दया। जापालक राजा के वयोग म सम त जाजन अ ु बहाते हए
ु उनके साथ चले। रा य
क सीमा पर पहँु चकर राजा ने अपने पु , अमा यगण और जाजन को समझाया-आप सब लोग धम के जानने वाले,
े आचरण म त पर एवं स दय ह। यह संसार तो वैसे भी प रवतनशील है । जो आज है, वह कल नह ं था और आने
वाले कल भी नह ं रहे गा। इसिलए मेरे जाने से द:ु ख का कोई कारण नह ं ह। मेरे थान पर मेरा पु सभी काय को
f गु व योितष 52 िसत बर 2010

करे गा, इसिलए आप सब उसके अनुशासन म रहते हए


ु उसे सदै व स मित दे ते रह। फर पु से कहा-'पु ! यह थित
सभी के सम आती रह ह। हमारे पूव पु ष भी पर परागत प से वृ ाव था आने पर वन म जाते रहे ह। म कुछ
समय प हले ह वन म जा रहा हँू तो कुछ प हले या पीछे जाने म कोई अ तर नह ं पड़ता। य द कुछ वष बाद जाऊँ
तब भी मोह का याग करना ह होगा। इसिलए, हे व स! तुम द:ु खत मत होओ और मेर आ ा मानकर रा य-शासन
को ठ क कार चलाओ। यान रखना य धम का कभी याग न करना और जा को सदा सुखी रखना। इस कार
राजा सोमका त ने सभी को समझा बुझाकर वहाँ से वापस लौटाया और वयं अपनी पित ता प के साथ वन म
वेश कया। पु हे मका त के आ ह से उसने सुबल और ानग य नामक दो अमा य को भी साथ ले िलया। उन
सबने एक समतल एवं सु दर थान दे खकर वहाँ व ाम कया। तभी उ ह एक मुिनकुमार दखाई दया। राजा ने उससे
पूछा-'तुम कौनहो? कहाँ रहते हो? य द उिचत समझो तो मुझे बताओ। मुिन बालक ने कोमल वाणी म कहा-'म मह ष
भृ गु का पु हँू, मेरा नाम यवन है । हमारा आ म िनकट म ह है । अब आप भी अपना प रचय द जए। राजा ने कहा-
'मुिनकुमार! आपका प रचय पाकर मुझे बड़ स नता हई।
ु म सौरा के दे वनगर रा य का अिधपित रहा हँू । अब अपने
पु को रा य दे कर मने अर य क शरण ली ह। मुझे कु रोग अ य त पी ़डत कये हए
ु ह, इसक िनवृ का कोई
उपाय करने वाला हो तो कृ पया कर मुझे बताइये। मुिनकुमार ने कहा-'म अपने पताजी से आपका वृ ता त कहता हँू,
फर वे जैसा कहगे, आपको बताऊँगा। यह कहकर मुिन बालक चला गया और कुछ दे र म ह आकर बोला-'राजन ्! मने
आपका वृ ा त अपने पताजी को बताया। उनक आ ा हई
ु ह क आप सब मेरे साथ आ म म चलकर उनसे भट कर
तभी आपके रोग के वषय म भी वचार कया जायेगा। पूव ज म का वृ ा त जानने के िलये राजा अपनी प और
अमा य के स हत यवन के साथ-साथ भृ गु आ म म जा पहँु चा और उ ह णाम कर बोला हे भगवान ् हे मह ष! म
आपक शरण हँू , आप मुझ कु ी पर कृ पा क जए। मह ष बोले राजन ्! यह तु हारे कसी पूव ज म के पाप कम का ह
उदय हो गया ह। इसका उपाय म वचार कर बताऊँगा। आज तो आप सब नाना द से िनवृ होकर रा - व ाम करो।
मह ष क आ ानुसार सबने नान, भोजन आ द उपरा त रा यतीत क और ात: नाना द िन यकम से िनवृ
होकर मह ष क सेवा म उप थत हए।

मह ष ने कहा-'राजन ्! मने तु हारे पूव ज म का वृ ा त जान िलया ह और यह भी ात कर िलया ह क कस
पाप के फल से तु ह इस घृ णत रोग क ाि हई
ु ह। य द तुम चाहो तो उसे सुना दँ ।ू राजा ने हाथ जोड़कर िनवेदन
कया बड़ कृ पा होगी मुिननाथ! म उसे सुनने के िलए उ क ठत हँू । मह ष ने कहा तुम पूव ज म म एक धनवान वै य
के लाड़ले पु थे। वह वै य वं याचल के िनकट कौ हार नामक ाम म िनवास करता था। उसक प ी का नाम
सुलोचना था। तुम उसी वै य-द प के प हए।
ु तु हारा नाम 'कामद था। तु हारा लालन-पालन बड़े लाड़-चाव से हआ।

उ ह ने तु हारा ववाह एक अ य त सु दर वै य क या से कर दया था, जसका नाम कुटु बनी था। य प तु हार
भाया सुशीला थी और तु ह सदै व धम म िनरत दे खना चाहती थी, क तु तु हारा वभाव वासना ध होने के कारण दन
ित दन वकृ त होता जा रहा था। क तु माता- पता भी धािमक थे, इसिलए उनके सामने तु हार वकृ ित दबी रह ।
पर तु माता- पता क मृ यु के बाद तुम िनरं कुश हो गये और अपनी प ी क बात भी नह ं मानते थे।
तु हारे अनाचार म वृ दे खकर उसे द:ु ख होता था, तो भी उसका कुछ वश न चलता था। तु हार उ मु ाता चरम
सीमा पर थी। अपन से भी े ष और ू रता का यवहार कया करते थे। ह या आ द करा दे ना तु हारे िलये सामा य
बात हो गई। पी ़डत य य ने तु हारे व राजा से पुकार क । अिभयोग चला और तु ह रा य क सीमा से भी
बाहर चले जाने का आदे श हआ।
ु तब तुम घर छोड़कर कसी िनजन वन म रहने लगे। उस समय तु हारा काय लोग
f गु व योितष 53 िसत बर 2010

को लूटना और ह या करना ह रह गया। एक दन म या काल था। गुणवधक नामक एक व ान ् ा ण उधर से


िनकला। बेचारा अपनी प ी को िलवाने के िलए ससुराल जा रहा था। तुमने उस ा ण युवक को पकड़ कर लूट िलया।
ितरोध करने पर उसे मारने लगे तो वह ची कार करने लगा-मुझे मत मार, मत मार। दे ख, मेरा दसरा
ू ववाह हआ
ु है ,
म प ी को लेने के िलये जा रहा हँू । क तु तुम तो ोधावेश म ऐसे लीन हो रहे थे क तुमने उसक बात सुनकर भी
नह ं सुनी। जब उसे मारने लगे तो उसने शाप दे दया-'अरे ह यारे ! मेर ह या के पाप से तू सह क प तक घोर नरक
भोगेगा। तुमने उसक कोई िच ता न क और िसर काट िलया। राजन ्! तुमने ऐसी-ऐसी एक नह ं ब क अनेक िनर ह
ह याएँ क थीं, जनक गणना करना भी पाप है । इस कार इस ज म म तुमने घोर पाप कम कये थे, क तु बुढ़ापा
आने पर जब अश हो गये तब तु हारे साथ ू रकमा थे वे भी कनारा कर गये। उ ह ने सोच िलया क अब तो इसे
खलाना भी पड़े गा, इसिलए मरने दो यह ं। गणपित-उपासना का अमांघ भाव राजन ्! अब तुम िनराल ब थे, चल- फर
तो सकते ह नह ं थे, भूख से पी ़डत रहने के कारण रोग ने भी घेर िलया। उधर से जो कोई िनकलता, तु ह घृ णा क
से दे खता हआ
ु चला जाता। तब तुम आहार क खोज म बड़ क ठनाई से चलते हए
ु एक जीणशीण दे वालय म जा
पहँु चे। उसम भगवान ् गणे र क ितमा व मान थी। तब न जाने कस पु य के उदय होने से तु हारे मन म
गणेशजी के ित भ -भाव जा त हआ।
ु तुम िनराहार रहकर उनक उपासना करने लगे। उससे तु ह सब कुछ िमला
और रोग भी कम हआ।

राजन ्! तुमने अपने सािथय क बचाकर बहत
ु -सा धन एक थान पर गाढ़ दया था। अब तुमने उस धन
को उसे दे वालय के जीण ार म लगाने का िन य कया। िश पी बुलाकर उस म दर को सु दर और भ य बनवा
दया। इस कारण कु याित सु याित म बदलने लगी। फर यथा समय तु हार मृ यु हई।
ु यमदत
ू ने पकड़कर तु ह
यमराज के सम उप थत कया। यमराज तुमसे बोले-'जीव! तुमने पाप और पु य दोन ह कये ह और दोन का ह
भोग तु ह भोगना है । क तु पहले पाप का फल भोगना चाहते हो या पु य का? इसके उ र म तुमने थम पु यकम
के भोग क इ छा कट क और इसीिलए उ ह ने तु ह राजकुल म ज म लेने के िलए भेज दया। पूव ज म म तुमने
भगवान ् गणा य का सु दर एवं भ य म दर बनवाया था, इसिलए तु ह सु दर दे ह क ाि हई
ु है । यह कहकर मह ष
भृ गु कुछ के, य क उ ह ने दे खा क राजा को इस वृ ा त पर शं का हो रह है । तभी मह ष के शर र से असं य
वकराल प ी उ प न होकर राजा क ओर झपटे । उनक च च बड़ ती ण थी, जनसे वे राजा के शर र को नोच-नोच
कर खाने लगे। उसके कारण उ प न अस पीड़ा से याकुल हए
ु राजा ने मह ष के सम हाथ जोड़कर िनवेदन कया-
' भो! आपका आ म तो सम त दोष, े ष आ द से परे है और यहाँ म आपक शरण म बैठा हँू तब यह प ी मुझे
अकारण ह य पी ़डत कर रहे ह? हे मुिननाथ! इनसे मेर र ा क जए।
मह ष ने राजा के आ तवचन सुनकर सा वना दे ते हए
ु कहा-'राजन ्! तुमने मेरे वचन म शंका क थी और जो
मुझ स यवाद के कथन म शंका करता है, उसे खाने के िलए मेरे शर र से इसी कार प ी कट हो जाते ह, जो क
मरे हंु कार करने पर भ म हो जाया करते ह। यह कहकर मह ष ने हंु कार क ओर तभी वे सम त प ी भ म हो गये।
राजा ावनत होकर उनके सम अ ु पात करता हआ
ु बोला-' भो! अब उस पाप से मु होने के उपाय क जए। मह ष
ने कुछ वचार कर कहा-'राजन ्! तुम पर भगवान ् गणे र क कृ पा सहज प से है और वे ह भु तु हारे पाप को भी
दरू करने म समथ ह। इसिलए तुम उनके पाप-नाशक च र को वण करो। गणेश पुराण म उनके मुख च र का
भले कार वणन हआ
ु है, अतएव तुम ा-भ पूव क उसी को सुनने म िच लगाओ। राजा ने ाथना क -'महामुन!े
मने गणेश पुराण का नाम भी आज तक नह ं सुना तो उनके सुनने का सौभा य कैसे ा कर सकूँगा। हे नाथ! आपसे
f गु व योितष 54 िसत बर 2010

अिधक ानी और का ड व ान ् और कौन हो सकता है ? आप ह मुझ पर कृ पा क जए। मह ष ने राजा क द नता


दे खकर उसके शर र पर अपने कम डल का म पूत जल िछड़का। तभी राजा को एक छ ंक आई और नािसका से एक
अ य त छोटा काले वण का पु ष बाहर िनकल आया। दे खते-दे खते वह बढ़ गया। उसके भयंकर प को दे खकर राजा
कुछ भयभीत हआ
ु , क तु सम त आ मवासी वहाँ से भाग गये। वह पु ष मह ष के सम हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
भृ गु ने उसक ओर दे खा और कुछ उ च वर म बोले-'तू कौन है ? या चाहता है ? वह बोला-'म सा ात ् पाप हँू , सम त
पा पय के शर र म मेरा िनवास है । आपके म पूत जल के पश से मुझे ववश होकर राजा के शर र से बाहर
िनकलना पड़ा है । अब मुझे बड़ भूख लगी है , बताइये या खाऊँ और कहाँ रहँू ? मह ष बोले-'तु उस आम के अवकाश
थान म िनवास कर और उसी वृ के प े खाकर जीवन-िनवाह कर। यह सुनते ह वह पु ष आम के वृ के पास
पहँु चा, क तु उसके पश मा से वह वृ जलकर भ म हो गया। फर जब पाप पु ष को रहने के िलए कोई थान
दखाई न दया तो वह भी अ त हत हो गया।
ह ष बोले-'राजन ्? काला तर म यह वृ पुन: अपना पूव प धारण करे गा। जब तक यह पुन: उ प न न हो तब
तक म तु ह गणेश पुराण का वण कराता रहँू गा। तुम पुराण वण के संक पपूव क आ द दे व गणेशजी का पूजन करो,
तब म गणेश पुराण क कथा का आर भ क ँ गा। मुिनराज के आदे शानुसार राजा ने पुराण- वण का संक प कया। उसी
समय राजा ने अनुभव कया क उसक सम त पीड़ा दरू हो गई है । डाली तो कु रोग का अब कह ं िच ह भी शेष
नह ं रह गया था। अपने को पूण प से रोग र हत एवं पूव वत् सु दर हआ
ु दे खकर राजा के आ य क सीमा न रह
और उसने मह ष के चरण पकड़ िलए और िनवेदन कया क भो! मुझे गणेश पुराण का व तारपूव क वण कराइये।
मह ष ने कहा-'राजन ्! यह गणेश पुराण सम त पाप और संकट को दरू करने वाला है , तुम इसे यानपूव क सुनो।
इसका वण केवल गणपित-भ को ह करना-कराना चा हए अ य कसी को नह ं। किलयुग म पाप क अिधक वृ
होगी, और लागे क -सहन म असमथ एवं अ पायु ह गे। उनके पाप दरू करने का कोई साधन होना चा हए। इस वचार
से मह ष वेद यास ने मुझे सुनाया था। उ ह ं क कृ पा से म भगवान गणा य के महान च र को सुनने का सौभा य
ा कर सका था। महाराज! भगवान गजानन अपने सरल वभाव वाले भ को सब कुछ दान करने म समथ ह।
िनरिभमान ा णय पर वे सदै व अनु ह करते ह क तु िम यािभमानी कसी को भी नह ं रहने दे ते।

मू य
एक राजा थे। वह बड़े ह उदार थे। दानी तो इतने क खाने-पीने क जो भी चीज होती, अ सर भूख को बांट दे ते और
वयं पानी पीकर रह जाते। एक बार ऐसा संयोग हआ
ु क उ ह कई दन तक भोजन नह ं िमला। उसके बाद िमला तो
थाल भरकर िमला। उसम से भूख को बांटकर जो बचा, उसे खाने बैठे क एक ा ण आ गया। ा ण बोला, महाराज!
मुझे कुछ खाने को द जये। राजा ने थाल म से थोड़ -थोड़ खाने क चीज उठाकर उसे दे द ं। फर जैसे ह खाने को हए

क एक शू आ गया। राजा ने खुशी-खुशी उसे भी खाने को कुछ दे दया। उसके जाते ह एक चा डाल आ गया। राजा
ने बचा-बचाया सब खाना उसे दे दया। मन-ह -मन सोचा, कतना अ छा हआ
ु , जो इतने लोगो का काम चल गया! मेरा
या ह, पानी पीकर मजे म अपनी गुजर कर लूंगा। इतना कहकर वह जैसे ह पानी पीने लगे क वहां हांफता हआ
ु एक
कु ा आ गया। यास के मारे गम से वह बेहाल हो रहा था। राजा ने झट पानी का बतन उठाकर उसके सामने रख
दया। कु ा सारा पानी पी गया। राजा को न खाना िमला, न पानी िमला, पर उस क आ मा को जो तृ ि िमली उसका
मू य कौन आंक सकता ह!
f गु व योितष 55 िसत बर 2010

सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।

कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म अ ल मी कवच के िमले होने क वजह से य पर मां महा


सदा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द
ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय
ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का अशीवाद ा होता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म श ु वजय कवच के िमले होने क वजह से श ु से संबंिधत


सम त परे शािनओ से ु
वतः ह छटकारा िमल जाता ह। कवच के भाव से श ु धारण कता
य का चाहकर कुछ नह बगड सकते।

अ य कवच के बारे मे अिधक जानकार के िलये कायालय म संपक करे :

कसी य वशेष को सव काय िस कवच दे ने नह दे ना का अंितम िनणय हमारे पास सुर त ह।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


f गु व योितष 56 िसत बर 2010

िसतंबर-२०१० मािसक पंचांग


चं
द माह प ितिथ समाि न समाि योग समाि करण समाि समाि
रािश

1 भा पद कृ ण अ मी 10:50:32 कृ ितका 13:19:36 याघात 10:49:36 बव 10:50:32 वृष

2 भा पद कृ ण नवमी 10:42:36 रो ह ण 13:48:13 हषण 09:41:40 कौलव 10:42:36 वृष 25:45:00

3 भा पद कृ ण दशमी 09:51:32 मृगिशरा 13:32:47 व 07:58:06 गर 09:51:32 िमथुन

4 भा पद कृ ण एकादशी 08:14:32 आ ा 12:33:17 यितपात 26:47:21 व ी 08:14:32 िमथुन 29:22:00

5 भा पद कृ ण ादशी 27:00:58 पुनवसु 10:53:28 व रयान 23:22:32 कौलव 16:33:47 कक

6 भा पद कृ ण योदशी 23:38:01 पु य 08:38:01 प र ह 19:31:27 गर 13:23:01 कक 29:55:00

7 भा पद कृ ण चतुदशी 19:53:31 मघा 26:56:20 िशव 15:23:31 व ी 09:46:57 िसंह

8 भा पद कृ ण अमाव या 15:59:38 पूवाफा गुनी 23:51:12 िस 11:05:15 नाग 15:59:38 िसंह 29:05:00

9 भा पद शु ल एकम 12:08:34 उ राफा गुनी 20:51:41 सा य 06:46:04 बव 12:08:34 क या

10 भा पद शु ल तीया 08:29:41 ह त 18:10:56 शु ल 22:40:56 कौलव 08:29:41 क या 29:00:00

11 भा पद शु ल तृ तीया 26:33:55 िच ा 15:58:18 19:13:18 व णज 15:48:55 तुला

चतुथ 24:37:13 वाती 14:25:58 इ 16:18:28 बव 13:29:43 तुला


12 भा पद शु ल
पंचमी

13 भा पद शु ल ष ी 23:27:24 वशाखा 13:38:39 वैध ृ ित 14:02:05 कौलव 11:55:31 तुला 07:46:00

14 भा पद शु ल स मी 23:10:04 अनुराधा 13:41:57 वषकुंभ 12:26:01 गर 11:12:53 वृ क

15 भा पद शु ल अ मी 23:42:26 जे ा 14:34:00 ीित 11:29:19 व ी 11:19:56 वृ क 14:34:00

16 भा पद शु ल नवमी 24:58:52 मूल 16:12:56 आयु मान 11:11:03 बालव 12:14:48 धनु

17 भा पद शु ल दशमी 26:49:02 पूवाषाढ़ 18:27:29


सौभा य 11:21:51 तैितल 13:49:59 धनु 25:06:00

18 भा पद शु ल एकादशी 29:04:32 उ राषाढ़ 21:09:13


सोभन 11:57:58 व णज 15:55:09 मकर

19 भा पद शु ल ादशी 31:33:09 वण 24:05:01


अितगंड 12:47:13 बव 18:18:09 मकर

20 भा पद शु ल ादशी 07:32:42 धिन ा 27:07:23


सुकमा 13:44:53 बालव 07:32:42 मकर 13:37:00

21 भा पद शु ल योदशी 10:04:08 शतिभषा 30:06:57


धृ ित 14:43:30 तैितल 10:04:08 कुंभ

22 भा पद शु ल चतुदशी 12:30:53 पूवाभा पद 32:58:04


शूल 15:36:30 व णज 12:30:53 कुंभ 26:16:00
f गु व योितष 57 िसत बर 2010

23 भा पद शु ल पू णमा 14:47:19 पूवाभा पद 08:58:34


गंड 16:22:56 बव 14:47:19 मीन

24 आ न कृ ण एकम 16:50:37 उ राभा पद 11:36:34


वृ 16:59:04 कौलव 16:50:37 मीन

25 आ न कृ ण तीया 18:38:56 रे वित 14:01:26


ुव 17:21:07 गर 18:38:56 मीन 14:01:00

26 आ न कृ ण तृ तीया 20:07:34 अ नी 16:07:34


याघात 17:31:00 व णज 07:25:23 मेष

27 आ न कृ ण चतुथ 21:15:34 भरणी 17:54:01


हषण 17:23:04 बव 08:45:34 मेष 24:17:00

28 आ न कृ ण पंचमी 21:57:20 कृ ितका 19:16:05


व 16:56:24 कौलव 09:39:31 वृष

29 आ न कृ ण ष ी 22:09:06 रो ह ण 20:09:06
िस 16:08:10 गर 10:07:13 वृष

30 आ न कृ ण स मी 21:48:03 मृगिशरा 20:30:15


यितपात 14:52:45 व ी 10:03:03 वृष

िसतंबर -२०१० मािसक त-पव- यौहार


द माह प ितिथ समाि मुख योहार

1 भा पद कृ ण अ मी 10:50:32 ीकृ ण ज मा मी, काला मी त, मोहरा ,

ीकृ ण-ज मा मी त (वै णव का), ीकृ ण-ज मो सव


2 भा पद कृ ण नवमी 10:42:36
( ज), गोकुला मी, गो वंदा-मटक फोड (महारा ),

3 भा पद कृ ण दशमी 09:51:32 न दो सव-दिध कांद ( ज), गोगा नवमी

4 भा पद कृ ण एकादशी 08:14:32 जया (अजा) एकादशी त,

5 भा पद कृ ण ादशी 27:00:58 जैन पयु षण पव ारं भ (पंचमी प ),

6 भा पद कृ ण योदशी 23:38:01 सोम दोष त, मािसक िशवरा त,

7 भा पद कृ ण चतुदशी 19:53:31 िशव चतुदशी, अघोर चतुदशी,

कुशो पा टनी (कुश हणी) अमाव या, पठौर अमावस,


8 भा पद कृ ण अमाव या 15:59:38
नान-दान- ा क अमाव या

9 भा पद शु ल एकम 12:08:34 चं दशन, मौन त ारं भ, त,

10 भा पद शु ल तीया 08:29:41 ईदल


ु फतर

ह रतािलका तीज, रोटतीज, ीगणेशो सव ारं भ, आज


11 भा पद शु ल तृ तीया 26:33:55 च -दशन िन ष है , प थर चौथ, संक ी गणेश चतुथ
(चं अ.रा. 8.25)
f गु व योितष 58 िसत बर 2010

12 भा पद शु ल चतुथ पंचमी 24:37:13 ऋ ष पंचमी, पयु षण पव पूण-जैन संव सर ,

चंपा ष ी, सूय ष ठ, ष ी त, ीबलराम जयंती


13 भा पद शु ल ष ी 23:27:24
महो सव,

14 भा पद शु ल स मी 23:10:04 संतान स मी, मु ाभरण स मी त,

महाल मी त ारं भ, ी दवा


ू मी त, ीअ नपूणा मी
15 भा पद शु ल अ मी (8) 23:42:26

16 भा पद शु ल नवमी 24:58:52 न दा नवमी, अदख


ु नवमी

व कमा-पूजन, क या-सं ा त का पु यकाल म या


17 भा पद शु ल दशमी 26:49:02 11.53 बजे, शर ऋतु ारं भ, दशावतार दशमी त, तेजा
दशमी, सुगंध दशमी

प ा एकादशी, जलझूलनी एकादशी, धमा-कमा एकादशी,


18 भा पद शु ल एकादशी 29:04:32
डोल यारस,

19 भा पद शु ल ादशी 31:33:09 प ा एकादशी, वण ादशी त,

20 भा पद शु ल ादशी 07:32:42 दोष त, यामबाबा ादशी,

21 भा पद शु ल योदशी 10:04:08 वत ता योदशी, अनंत चतुदशी,

22 भा पद शु ल चतुदशी 12:30:53 अनंत चतुदशी

नान-दान क पू णमा, उमा-महे र त, ा महालय


23 भा पद शु ल पू णमा 14:47:19
ारं भ,

24 आ न कृ ण एकम 16:50:37 पतृप ारं भ, ित दा ा

25 आ न कृ ण तीया 18:38:56 अशू य शयन त, तीया ा

26 आ न कृ ण तृ तीया 20:07:34 ीगणेश चतुथ त, तृतीया ा

27 आ न कृ ण चतुथ 21:15:34 चतुथ ा

28 आ न कृ ण पंचमी 21:57:20 पंचमी ा

29 आ न कृ ण ष ी 22:09:06 ष ी ा

30 आ न कृ ण स मी 21:48:03 स मी ा , महाल मी त
f गु व योितष 59 िसत बर 2010

िसत बर २०१० वशेष योग


काय िस योग
दनांक योग अविध अमृ त योग
5 ात:काल 10:52 से 6 िसत बर दनांक योग अविध
को ात:काल 8:37 तक
11 दोपहर 3:58 से रातभर 24 दोपहर 11.36 से रातभर
13 दोपहर 1:38 से रातभर पु कर योग
18 रा 9.08 से रातभर 19/20 म यरा 12:05 से सूय दय तक
24 दोपहर 11.36 से रातभर पु कर योग
26 सूय दय से सं या 4.07 तक दनांक योग अविध
28 सूय दय से सं या 7.15 तक 21 दोपहर 12:28 से 01:38 तक
29 सूय दय से रातभर 31 दोपहत 12:10 से रातभ

सवदोषनाशक र व योग
दनांक योग अविध
10 सं या 6:09 से 11 िसत बर को दोपहर 3:58 तक
12 दोपहर 2:24 से 13 िसत बर को दोपहर 1:38 तक
13 सं या 7.23 से 14 िसत बर को दोपहर 1:41 तक
16 सं या 4:11 से 18 िसत बर को रा 9:08 तक
20/21 म.रा 3:07 से 22 िसत बर को ात: 6:06 तक
29 रा 8:08 से 30 िसत बर को रा 8:28 तक

योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
अमृ त योग म कये गये काय म शुभ फल क ाि होती ह। एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ दोगुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
f गु व योितष 60 िसत बर 2010

ह चलन िसत बर -2010


Date Sun Mon Mar Mer Jup Ven Sat Rah Ket Ura Nep Plu
01 04:14:27 01:05:49 05:26:47 RC 04:19:17 R 11:06:58 05:29:46 05:10:06 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:24 R 10:02:58 R 08:08:49

02 04:15:25 01:18:46 05:27:26 RC 04:18:21 R 11:06:51 06:00:37 05:10:13 R 08:15:59 R 02:15:59 R 11:05:21 R 10:02:56 R 08:08:49

03 04:16:23 02:02:06 05:28:06 RC 04:17:24 R 11:06:44 06:01:27 05:10:20 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:19 R 10:02:55 R 08:08:48

04 04:17:21 02:15:52 05:28:45 RC 04:16:27 R 11:06:37 06:02:17 05:10:27 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:17 R 10:02:53 R 08:08:48

05 04:18:19 03:00:05 05:29:24 RC 04:15:31 R 11:06:30 06:03:06 05:10:34 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:15 R 10:02:52 R 08:08:48

06 04:19:18 03:14:43 06:00:03 RC 04:14:38 R 11:06:23 06:03:54 05:10:41 R 08:15:57 R 02:15:57 R 11:05:12 R 10:02:50 R 08:08:47

07 04:20:16 03:29:44 06:00:43 RC 04:13:50 R 11:06:15 06:04:42 05:10:48 R 08:15:51 R 02:15:51 R 11:05:10 R 10:02:48 R 08:08:47

08 04:21:14 C 04:14:58 06:01:22 RC 04:13:07 R 11:06:08 06:05:29 05:10:55 R 08:15:44 R 02:15:44 R 11:05:08 R 10:02:47 R 08:08:47

09 04:22:12 C 05:00:16 06:02:02 RC 04:12:30 R 11:06:00 06:06:15 05:11:02 R 08:15:34 R 02:15:34 R 11:05:06 R 10:02:45 R 08:08:47

10 04:23:11 05:15:26 06:02:42 RC 04:12:00 R 11:05:53 06:07:00 05:11:09 R 08:15:24 R 02:15:24 R 11:05:03 R 10:02:44 R 08:08:46

11 04:24:09 06:00:18 06:03:21 RC 04:11:38 R 11:05:45 06:07:44 05:11:17 R 08:15:15 R 02:15:15 R 11:05:01 R 10:02:42 R 08:08:46

12 04:25:07 06:14:45 06:04:01 RC 04:11:25 R 11:05:37 06:08:27 05:11:24 R 08:15:08 R 02:15:08 R 11:04:58 R 10:02:41 R 08:08:46

13 04:26:06 06:28:42 06:04:41 04:11:21 R 11:05:30 06:09:10 05:11:31 R 08:15:02 R 02:15:02 R 11:04:56 R 10:02:39 R 08:08:46

14 04:27:04 07:12:10 06:05:21 04:11:26 R 11:05:22 06:09:51 C 05:11:38 R 08:15:00 R 02:15:00 R 11:04:54 R 10:02:38 R 08:08:46

15 04:28:03 07:25:11 06:06:01 04:11:40 R 11:05:14 06:10:31 C 05:11:46 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:51 R 10:02:36 08:08:46

16 04:29:01 08:07:48 06:06:41 04:12:03 R 11:05:06 06:11:10 C 05:11:53 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:49 R 10:02:35 08:08:46

17 05:00:00 08:20:07 06:07:21 04:12:36 R 11:04:58 06:11:48 C 05:12:00 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:47 R 10:02:34 08:08:46

18 05:00:58 09:02:12 06:08:02 04:13:17 R 11:04:50 06:12:25 C 05:12:07 R 08:14:58 R 02:14:58 R 11:04:44 R 10:02:32 08:08:46

19 05:01:57 09:14:08 06:08:42 04:14:07 R 11:04:42 06:13:01 C 05:12:15 R 08:14:54 R 02:14:54 R 11:04:42 R 10:02:31 08:08:47

20 05:02:55 09:26:00 06:09:22 04:15:04 R 11:04:34 06:13:35 C 05:12:22 R 08:14:48 R 02:14:48 R 11:04:39 R 10:02:29 08:08:47

21 05:03:54 10:07:50 06:10:03 04:16:09 R 11:04:26 06:14:08 C 05:12:29 R 08:14:39 R 02:14:39 R 11:04:37 R 10:02:2 08:08:47

22 05:04:52 10:19:41 06:10:43 04:17:20 R 11:04:18 06:14:40 C 05:12:37 R 08:14:28 R 02:14:28 R 11:04:35 R 10:02:27 08:08:47

23 05:05:51 11:01:36 06:11:24 04:18:38 R 11:04:10 06:15:10 C 05:12:44 R 08:14:15 R 02:14:15 R 11:04:32 R 10:02:26 08:08:47

24 05:06:50 11:13:36 06:12:04 04:20:00 R 11:04:02 06:15:39 C 05:12:51 R 08:14:01 R 02:14:01 R 11:04:30 R 10:02:24 08:08:48

25 05:07:49 11:25:41 06:12:45 04:21:28 R 11:03:54 06:16:06 C 05:12:59 R 08:13:47 R 02:13:47 R 11:04:27 R 10:02:23 08:08:48

26 05:08:47 00:07:53 06:13:26 04:23:00 R 11:03:46 06:16:32 C 05:13:06 R 08:13:35 R 02:13:35 R 11:04:25 R 10:02:22 08:08:48

27 05:09:46 00:20:13 06:14:07 04:24:35 R 11:03:38 06:16:56 C 05:13:14 R 08:13:25 R 02:13:25 R 11:04:23 R 10:02:20 08:08:49

28 05:10:45 01:02:44 06:14:48 04:26:13 R 11:03:30 06:17:18 C 05:13:21 R 08:13:18 R 02:13:18 R 11:04:20 R 10:02:19 08:08:49

30 05:12:43 01:28:25 06:16:10 C 04:29:36 R 11:03:14 06:17:57 C 05:13:36 R 08:13:12 R 02:13:12 R 11:04:15 R 10:02:17 08:08:50
f गु व योितष 61 िसत बर 2010

मािसक रािश फल
 िचंतन जोशी
मेष : सभी मामल म िचंता बढ़ सकती ह। हर काय म िसंह : यापार-नौकर म वृ एवं पदोऊ नित हो सकती
व न बाधा उ प न होती हई
ु ितत होगी जस कारण ह। दसर
ू के अनु प काय करने क उपे ा अपने वयं के
आपके उ साह म कमी हो सकती ह। सावधानी बत िगरवी िनणयो पर काये करने से अिधक लाभ क ाि होगी
रखकर कज लेना पड सकता ह। कसी और के िलये और आपके मान-स मान- ित ा म वृ होगी। आिथक
ज मेदार , जमानत, इ या द काम म अित र सावधा रह मामलो म सुधार होगा। अिधक यास प र म से नये काय
य द संभव हो सके तो काय को टाल दना आपके िलये से लाभ ा कर सकते ह। संबंध का लाभ िमलेगा। कोट-
उपयु होगा। पूंजी िनवेश और बड़ खर द- ब इ या द कचहर के ववाद सुलझगे। संतोष रहे गा।
से बच।

क या : नई-नई सम याएँ सामने आयेगी। मानिसक तनाव


वृ ष : आपके ारा कये गय काय म सफलता ा होगी,
रहगा। श ु प से परे शानी होसकती ह, सावधान सह।
समझौतावाद कोण रख। वरोधी और श ुप पर आप
मशीनर के काय एवं वाहान इ या द चलाते समय
वजय ा कर सकते ह। कानूनी ववाद म सफलता ा
सावधानी बत दघटना
ू या चोट लग सकती है ।
कर सकते ह।। आिथक थती पूव वत बनी रहगी। भूिम-
कायकार य तता एवं भागदौड़ बनी रहगी एतः वा य
भवन-वाहना खर द के योग बन रह है । घर-प रवार म
का वशेष यान रख। वरोिध लोग आपका पद- ित ा
स नता रहे गी। वा य उ म रहगा।
बगाड ने का यास करगे। यापार-नौकर म भी
िमथुन : कामकाज म य तता रहे गी। जसके कारण सावधान रह नुकशान हो सकता ह।
मानिसक अशांित होगी। पा रवा रक म आिथक ववाद हो
सकता ह अतः सावधानी बत। यापार-नौकर के काय म तुला : काय म सफलता ा होगी। आपके सोचे हवे
ु ायः
अ थरता रहे सकती ह। कसी भी काय म भागीदार करने सभी काय म सफलता ा ह गी। आिथक थती म
से नुकसान संभव ह। मह व पूण काय म वलंब होगा। सुधार होगा। पा रवा रक सुख म वृ होगी। छोटे -छोटे
वा य का वशेष यान रख। पुरानी दद, बीमार से ववाद-मतभेद को मौका िमलते ह सुधार ले अ यथा
परे शानी संभव ह। तनाव से बचे। परे शानी बढसकती ह। आपके मान-स मान- ित ा म
वृ होगी। वा य उ म रहे गा।
कक : काय म सफलता ा होगी। आिथक मामलो म
सुधार होगा। पुराना भुगतान ा हो सकता ह। प रवार
वृ क : सोच वचार कर कये गये सभी काय आपके
और िम का सहयोग ा होगा। यापा रक योजनाएं
अनुकूल ह गे। फरभी परे शािनयाँ, िचंता होने क संभावना
सफल होगी। भूिम-भवन के मामलो म शुभ समाचार ा
ह। यापार-नौकर म गित होगी, आपके उ साह म
होगा। आ मत य ओं से मागदशन ा होगा। आपके
वृ होगी। उधार दया हवा
ु पैसे ा हो सकते ह। पुराने
मान ित ा म वृ होगी। उपयोगी लेन-दे न ने मामले
वाद- ववाद से बच। सरकार या उ चािधकार से लाभ
सुलझ सकते ह।
f गु व योितष 62 िसत बर 2010

ा होगा। कानूिन ववादो से बच रह। वा य म कुंभ : आक मक लाभ ाि हो सकते ह। शुभ अवसर


सुधार होगा। शुभ समाचार ा ह गे। का फायदा उठाये। आिथक सम याएं दरू होगी। सम त
धनु : आपके प र म ारा कये गये काय म िन त परे शानीय से राहत िमल सकती है । श ु एवं वरोिध प
सफलता ा हो सकती ह। आक मक धन ाि के पर आपका दब-दबा रहगा। अपने पद और ित ा से
अवसर िमलगे। आिथक थती म सुधार होगा। घर वशेष लाभ ा कर पायगे। पा रवार म उ साह का
प रवार म सुख साधनो म वृ होगी। मौके का फायदा माहोल रहगी। नये यापार-नौकर के अवसर ा ह गे।
उठाये। त काल िनणय लेने वाले रवैया अपनाये। वा य अनुकूल रहे गा।
यापार-नौकर म वृ होगी। वा थय समा य रहगा।
मीन : काय आपके अनु प नह ं ह गे, थोडे से मानिसक
मकर : मह व पूण काय म सफलता ा होगी। प रवार और शार रक प र म से थती म सुधार हो सकता ह।
और िम से लाभ ा होगा। आिथक और पा रवार क पूव क सम याओं से छुटकारा ा होगा। यथ के
थितय म सुधार होगा। मान- ित ा म वृ होगी। मानिसक तनाव व परे शानी से दरू रह। यापार-नौकर म
आिथक म सुधार होगा। भूिम-भवन-वाहना इ या द से त काल िनणय लेने से सम याओं से मु िमलेगी।
लाभ ा होगा। यापात-नौकर म सफलता ा होगी। पा रवा रक सहयोग से लाभ ा होगा। वतमान के समय,
वा य उ म रहगा। आपके िनणय को मा यता ा थित को अनदे खा न कर। वा थय उ म रहगा।
होगी। आक मक धन लाभ हो सकता ह।

॥गणेश ादशनाम तो म।।


शु लां बरधरम ् दे वम ् शिशवण चतुभु जम ् ।


धू केतुग णा य ो भालचं ो गजाननः।
स नवदनम ् याये सव व नोपशांतये ।।१।।
ादशैतािन नामािन गणेश य य: पठे त ् ।। ५ ।।
अभी सताथिस यथ पूजेतो य: सुरासुरैः।
व ाथ लभते व ाम ् धनाथ वपुलम ् धनम ् ।
सव व नहर त मै गणािधपतये नमः।।२।।
इ कामम ् तु कामाथ धमाथ मो म यम ् ।। ६ ।।
गणानामिधप डो गजव लोचनः।
व ार मे ववाहे च वेशे िनगमे तथा
स न भव मे िन यम ् वरदात वनायक ।।३।।
सं ामे संकटे ैव व न त य न जायते ।। ७ ।।
सुमुख ैकद त क पलो गजकणक:
॥इित ी गणेश ादशनाम तो म ् स पुण ॥
ल बोदर वकटो व ननाशो वनायकः।।४।।

व न िनवारण कवच
मू य मा : `.550
f गु व योितष 63 िसत बर 2010

सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।

उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।

भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।

योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर


सकते ह। योितष शा के मा यम से रोग के मूलको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा
अ म होजाता ह वहा योितष शा ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं
उपायोगी िस होता ह।
हर य म लाल रं गक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास म ब तर के से होता रहता ह।
जब इन कोिशकाओ के म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य के शर र म वा य संबंधी वकारो
उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव हो के साथ होता ह। ज से रोगो के होने के कारणा य के
ज मांग से दशा-महादशा एवं हो क गोचर म थती से ा होता ह।

सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं के मा यम से य के ज मांग म थत कमजोर एवं पी डत


हो के अशुभ भाव को कम करने का काय सरलता पूव क कया जासकता ह। जेसे हर य को ांड क उजा एवं
पृ वी का गु वाकषण बल भावीत कता ह ठक उसी कार कवच एवं यं के मा यम से ांड क उजा के
सकारा मक भाव से य को सकारा मक उजा ा होती ह ज से रोग के भाव को कम कर रोग मु करने हे तु
सहायता िमलती ह।
रोग िनवारण हे तु महामृ युंजय मं एवं यं का बडा मह व ह। ज से ह द ू सं कृ ित का ायः हर य
महामृ युंजय मं से प रिचत ह।
f गु व योितष 64 िसत बर 2010

कवच के लाभ :
 एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
 पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
 ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
 कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच
एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हे तु
सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी होता ह।
 आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
 येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं फल द होता ह।
 जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
 जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।

नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।

 या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह?

 या आपके ब चे आपका कहना नह ं मान रहे ह?

 या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह?


घर प रवार म शांित एवं ब चे को कुसंगती से छुडाने हे तु ब चे के नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध- वधान से मं िस
ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर म था पत कर अ प पू जा, विध- वधान
से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह।

य द आप तो आप मं िस वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
f गु व योितष 65 िसत बर 2010

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f गु व योितष 66 िसत बर 2010

YANTRA LIST EFFECTS


Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -

Shastrokt Yantra

11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga


12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
26 YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
f गु व योितष 67 िसत बर 2010

YANTRA LIST EFFECTS

43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets


44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA)
Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose

Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

GURUTVA KARYALAY
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Call Us - 09338213418, 09238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
f गु व योितष 68 िसत बर 2010

मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महतू म शुभ दन को तैयार कये जाते है अलग अलग कवच तैयार करने केिलए अलग अलग तरह के
. - -

मं ो का योग कया जाता है . .

 य चुने मं िस कवच?
 उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
 कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
 कोई बुरा भाव नह ं
 कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु

कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700-/ ऋण मु कवच – 730/- वरोध नाशक कवचा- 550-/
सवजन वशीकरण कवच - 1050-/* नव ह शांित कवच – 730/- वशीकरण कवच – 460/-* )2-3 य के िलए(
अ ल मी कवच – 1050/- तं र ा कवच – 730/- प ी वशीकरण कवच – 460/-*
आक मक धन ाि कवच – श ु वजय कवच – 640/-* नज़र र ा कवच – 460/-
910/-
भूिम लाभ कवच – 910/- पद उ नित कवच – 640/- यापर वृ कवच- 370-/
संतान ाि कवच – 910/- धन ाि कवच – 640/- पित वशीकरण कवच – 370/-*
काय िस कवच – 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच – 640/- दभा
ु य नाशक कवच – 370/-
काम दे व कवच – 820/- म त क पृ वधक कवच – 640/- सर वती कवक – 370/- क ा+ 10 के िलए
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच – 550/- सर वती कवक -280 / - क ा 10 तक के िलए

पे - यापर वृ कवच – 730/- व न बाधा िनवारण कवच – 550/- वशीकरण कवच – 280/-* 1 य के िलए

*कवच मा शुभ काय या उ े य के िलये


GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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f गु व योितष 69 िसत बर 2010

GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL

Emerald (iUuk) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above


Yellow Sapphire (iq[kjkt) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (uhye) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (lQsn iq[kjkt) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(cSadkd uhye) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (ekf.kd) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (cekZ ekf.kd) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (uje ekf.kd ykyMh) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (eksrh) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (yky ewaxk) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (yky ewaxk) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (lQsn ewaxk) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (yglqfu;k) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (mfM+lk yglqfu;k) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (xksesn) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (flyksuh xksesn ) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (tjdu) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (cs:t) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (uhyh) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise (fQjkstk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (lqugyk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (mfM+lk iq[kjkt@Vksikt) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (uhyk Vksikt) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (lQsn Vksikt) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (dVsyk) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (miy) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (xkjusV) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (rqeZyhu) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (lw;ZdkUr e.kh) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (dkyk LVkj) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (vksusDl) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (vksusDl) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (yktoZr) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (panzdkUr e.kh) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal (LQfVd) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (nkuk fQjaxh) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (Vkbxj LVksu) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (ejxp) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (luflrkjk) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (ghjk) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )

Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
f गु व योितष 70 िसत बर 2010

सूचना
 प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।

 लेख कािशत होना का मतलब यह कतई नह ं क कायालय या संपादक भी इन वचारो से सहमत ह ।

 ना तक/ अ व ासु य मा पठन साम ी समझ सकते ह।

 प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं है .

 कािशत लेख योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत होने के कारण


य द कसी के लेख, कसी भी नाम, थान या घटना का कसी के वा त वक जीवन से मेल होता ह तो यह मा
एक संयोग ह।

 कािशत सभी लेख भारितय आ या मक शा से े रत होकर िलये जाते ह। इस कारण इन वषयो क


स यता अथवा ामा णकता पर कसी भी कार क ज मेदार कायालय या संपादक क नह ं ह।

 अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखका के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य नह ं ह।

 योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत लेखो म पाठक का अपना


व ास होना आव यक ह। कसी भी य वशेष को कसी भी कार से इन वषयो म व ास करने ना करने
का अंितम िनणय वयं का होगा।

 पाठक ारा कसी भी कार क आप ी वीकाय नह ं होगी।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।

 यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।

 पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।

 अिधक जानकार हे तु आप कायालय म संपक कर सकते ह।

(सभी ववादो केिलये केवल भुवने र यायालय ह मा य होगा।)


f गु व योितष 71 िसत बर 2010

FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का िसत बर -2010
संपादक

िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग

गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
INDIA

फोन

91+9338213418, 91+9238328785
ईमेल
gurutva.karyalay@gmail.com,
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वेब
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f गु व योितष 72 िसत बर 2010

हमारा उ े य
य आ मय

बंध/ु ब हन

जय गु दे व

जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क
भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप
अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , हर एवं उपर और दलभ
ु मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।

सूय क करणे उस घर म वेश करापाती है ।


जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।

GURUTVA KARYALAY
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f गु व योितष 73 िसत बर 2010

Sep
2010

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