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Gurutva Jyotish Sep-2010 (गुरुत्व ज्योतिष सितम्बर-२०१०)
Gurutva Jyotish Sep-2010 (गुरुत्व ज्योतिष सितम्बर-२०१०)
िसत बर-2010
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GURUTVA KARYALAY
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f गु व योितष 2 िसत बर 2010
FREE य आ मय
E CIRCULAR बंधु/ ब हन
गु व योितष प का
जय गु दे व
संपादक हर मनु य क कामना होती ह उसे जीवन म सभी कार के भौितक सुख
वशेष लेख
सव थम पूजनीय कथा 13 गणेश के क याणकार मं 19
सव थम पूजा वै दक एवं शा के मत 17 गणेश चतुथ योितष क नजर म 32
अनु म
कृ ण के मुख म ांड दशन 4 राधाकृ त गणेश तो म् 36
कृ ण मरण का मह व 5 गणेश कवचम ् 37
ी कृ ण का नामकरण सं कार 6 व णुकृतं गणेश तो म ् 38
ीकृ ण चालीसा 7 गणपित तो म ् 39
व प ीकृ त ीकृ ण तो 8 ी गणेश आरित 39
ाणे र ीकृ ण मं 9 गणेशभुजंगम ् 40
ा रिचत कृ ण तो 9 ी व ने रा ो र शतनाम तो म ् 41
ीकृ णा कम ् 10 वनायक तो 42
कृ ण के विभ न मं 11 ी िस वनायक तो म ् 43
कृ ण मं 12 िशवश कृ तं गणाधीश तो म 44
गणपित पूजन म तुलसी िन ष य 18 मनोवांिछतफलो क ाि हे तु िस द गणपित तो 45
गणेश पूजन म कोन से फूल चढाए 22 गणेश पूजन से वा तु दोष िनवारण 46
गणेश ने चूर कय कुबेर का अहं कार 23 गणेश वाहन मूषक केसे बना 47
व ननाशक गणेश म 23 संक हर चतुथ त का ारं भ कब हवा
ु 48
एकदं त कथा गणेश 24 अमंगल ह नह मंगलकार भी है -मंगल 49
व तु ड कथा 26 गणेशजी माता ल मी के द क पु है ? 50
संकटनाशन गणेश तो म ् 27 संतान गणपित तो 50
संक हरणं गणेशा कम ् 28 गणेश पुराण क म हमा 51
गणेश पं चर म ् 29 िसतंबर-२०१० मािसक पंचांग 56
गणपित अथवशीष 30 िसतंबर -२०१० मािसक त-पव- यौहार 57
लघु कथाएं
ी 47 मू य 54
िलखो नाम रे त और प थर पर 22
f गु व योितष 4 िसत बर 2010
एक बार बलराम स हत वाल बाल खेल रह थे खेलते- पृ वी,वायु, व ुत, तारा स हत वगलोक, जल, अ न, वायु,
खेलते यशोदा के पास पहँु चे और यशोदाजी से कहा माँ! आकाश इ या द विच संपूण व एक ह काल म
कृ ण ने आज िम ट खाई ह। यशोदा ने कृ ण के हाथ दख पड़ा। इतना ह नह ,ं यशोदा ने उनके मुख म ज के
को पकड़ िलया और धमकाने लगी क तुमने िम ट य साथ वयं अपने आपको भी दे खा।
खाई! यशोदा को यह भय था क कह ं िम ट खाने से इन बात से यशोदा को तरह-तरह के तक- वतक
कृ ण कोई रोग न लग जाए। माँ क डांट से कृ ण तो होने लगे। या म व न दे ख रह हँू! या दे वताओं क
इतने भयभीत हो गए थे क वे माँ क ओर आँख भी कोई माया ह या मेर बु ह यामोह ह या इस मेरे
नह ं उठा पा रहे थे। कृ ण का ह कोई वाभा वक भावपूण चम कार ह।
तब यशोदा ने कहा तूने एका त म िम ट य अ त म उ ह ने यह ढ़ िन य कया क अव य ह
खाई! िम ट खाते हए
ु तुजे बलराम स हत और भी वाल इसी का चम कार है और िन य ह ई र इसके प म
ने दे खा ह। कृ ण ने कहा- िम ट मने नह ं खाई ह। ये अवत रत हएं
ु ह। तब उ ह ने कृ ण क तुित क उस
सभी लोग झुठ बोल रहे ह। य द आपको लगता ह मने श व प पर को म नम कार करती हँू । कृ ण ने
िम ट खाई ह, तो वयं मेरा मुख दे ख ले। माँ ने कहा जब दे खा क माता यशोदा ने मेरा त व पूण तः समझ
य द ऐसा है तो तू अपना मुख खोल। लीला करने के िलए िलया ह तब उ ह ने तुरंत पु नेहमयी अपनी श प
बाल कृ ण ने अपना मुख माँ के सम खोल दया। माया बखेर द जससे यशोदा ण म ह सबकुछ भूल
यशोदा ने जब मुख के अंदर दे खते ह उसम संपूण व गई। उ ह ने कृ ण को उठाकर अपनी गोद म उठा िलया।
दखाई पड़ने लगा। अंत र , दशाएँ, प, पवत, समु ,
f गु व योितष 5 िसत बर 2010
कृ ण मरण का मह व
िचंतन जोशी
ी शुकदे वजी राजा पर त ् से कहते ह- श यासनाटनाला ीडा नाना दकमसु।
सकृ मनः कृ णापदार व दयोिनवेिशतं त णरािग
ु यै रह। न वदःु स तमा मानं वृ णयः कृ णचेतसः॥
न ते यमं पाशभृ त त टान ् व नेऽ प प य त ह भावाथ: ीकृ ण को अपना सव व समझने वाले भ
भावाथ: जो मनु य केवल एक बार ीकृ ण के गुण म फरते, बातचीत करते, खेलते, नान करते और भोजन
ेम करने वाले अपने िच को ीकृ ण के चरण कमल आ द करते समय उ ह अपनी सुिध ह नह ं रहती थी।
ी कृ ण का नामकरण सं कार
िचंतन जोशी
वसुदेवजी क ाथना पर यदओं
ु के पुरो हत गगाचायजी ने वसुदेव से कहा रो हणी का यह
महातप वी गगाचायजी ज नगर पहँु चे। उ ह दे खकर पु गुण से अपने लोग के मन को स न करे गा।
नंदबाबा अ यिधक स न हए।
ु उ ह ने हाथ जोड़कर अतः इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा
णाम कया और उ ह व णु तु य मानकर उनक जाएगा। इसम बल क अिधकता अिधक होगी। इसिलए
विधवत पूजा क । इसके प ात नंदजी ने उनसे कहा इसे लोग बल भी कहगे। यदवं
ु िशय क आपसी फूट
आप कृ या मेरे इन दोन ब च का नामकरण सं कार िमटाकर उनम एकता को यह था पत करे गा, अतः
कर द जए। लोग इसे संकषण भी कहगे। अतः इसका नाम बलराम
इस पर गगाचायजी ने कहा क ऐसा करने म होगा।
कुछ अड़चन ह। म यदवं
ु िशय का पुरो हत हँू , य द म अब उ ह ने यशोदा और नंद को ल य करके
तु हारे इन पु का नामकरण सं कार कर दँ ू तो लोग कहा- यह तु हारा पु येक युग म अवतार हण
इ ह दे वक का ह पु मानने लगगे, य क कंस तो करता रहता ह। कभी इसका वण ेत, कभी लाल, कभी
पहले से ह पापमय बु वाला ह। वह सवदा िनरथक पीला होता है । पूव के येक युग म शर र धारण
बात ह सोचता है । दसर
ू ओर तु हार व वसुदेव क करते हए
ु इसके तीन वण हो चुके ह। इस बार
मै ी है । कृ णवण का हआ
ु है , अतः इसका नाम कृ ण होगा।
अब मु य बात यह ह क दे वक क आठवीं तु हारा यह पु पहले वसुदेव के यहाँ ज मा ह, अतः
संतान लड़क नह ं हो सकती य क योगमाया ने कंस ीमान वासुदेव नाम से व ान लोग पुकारगे।
से यह कहा था अरे पापी मुझे मारने से या फायदा तु हारे पु के नाम और प तो िगनती के परे
है ? वह सदै व यह सोचता है क कह ं न कह ं मुझे ह, उनम से गुण और कम अनु प कुछ को म जानता
मारने वाला अव य उ प न हो चुका ह। य द म हँू । दसरे
ू लोग यह नह ं जान सकते। यह तु हारे गोप
नामकरण सं कार करवा दँ ग
ू ा तो मुझे पूण आशा ह क गौ एवं गोकुल को आनं दत करता हआ
ु तु हारा
वह मेरे ब च को मार डालेगा और हम लोग का क याण करे गा। इसके ारा तुम भार वप य से भी
अ यिधक अिन करे गा। मु रहोगे।
नंदजी ने गगाचायजी से कहा य द ऐसी बात है इस पृ वी पर जो भगवान मानकर इसक भ
तो कसी एका त थान म चलकर विध पूव क इनके करगे उ ह श ु भी परा जत नह ं कर सकगे। जस
जाित सं कार करवा द जए। इस वषय म मेरे अपने तरह व णु के भजने वाल को असुर नह ं परा जत कर
आदमी भी न जान सकगे। नंद क इन बात को सकते। यह तु हारा पु स दय, क ित, भाव आ द म
सुनकर गगाचाय ने एका त म िछपकर ब चे का व णु के स श होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूण
नामकरण करवा दया। नामकरण करना तो उ ह अभी सावधानी से करना। इस कार कृ ण के वषय म
ह था, इसीिलए वे आए थे। आदे श दे कर गगाचाय अपने आ म को चले गए।
f गु व योितष 7 िसत बर 2010
॥ ीकृ ण चालीसा ॥
दोहा केितक महा असुर संहारयो।
् कंस ह केस पक ड़ दै मारयो॥
्
बंशी शोिभत कर मधुर, नील जलद तन याम। मात- पता क ब द छुड़ाई। उ सेन कहँ राज दलाई॥
अ णअधरजनु ब बफल, नयनकमलअिभराम॥ म ह से मृ तक छह सुत लायो। मातु दे वक शोक िमटायो॥
पूण इ , अर व द मुख, पीता बर शुभ साज। भौमासुर मुर दै य संहार । लाये षट दश सहसकुमार ॥
जय मनमोहन मदन छ व, कृ णच महाराज॥ दै भीम हं तृ ण चीर सहारा। जरािसंधु रा स कहँ मारा॥
जय यदनं
ु दन जय जगवंदन। जय वसुदेव दे वक न दन॥ असुर बकासुर आ दक मारयो।
् भ न के तब क िनवारयो॥
्
जय यशुदा सुत न द दलारे
ु । जय भु भ न के ग तारे ॥
द न सुदामा के दःख
ु टारयो।
् तंदल
ु तीन मूंठ मुख डारयो॥
्
जय नट-नागर, नाग नथइया॥ कृ ण क हइया धेनु चरइया॥
ेम के साग वदरु घर माँगे। दय
ु धन के मेवा यागे॥
पुिन नख पर भु िग रवर धारो। आओ द नन क िनवारो॥
लखी ेम क म हमा भार । ऐसे याम द न हतकार ॥
वंशी मधुर अधर ध र टे रौ। होवे पूण वनय यह मेरौ॥
भारत के पारथ रथ हाँके। िलये च कर न हं बल थाके॥
आओ ह र पुिन माखन चाखो। आज लाज भारत क राखो॥
िनज गीता के ान सुनाए। भ न दय सुधा वषाए॥
गोल कपोल, िचबुक अ णारे । मृ दु मु कान मो हनी डारे ॥
मीरा थी ऐसी मतवाली। वष पी गई बजाकर ताली॥
रा जत रा जव नयन वशाला। मोर मुकुट वैज तीमाला॥
राना भेजा साँप पटार । शाली ाम बने बनवार ॥
कुंडल वण, पीत पट आछे । क ट कं कणी काछनी काछे ॥
िनजमाया तुम विध हं दखायो। उर ते संशय सकल िमटायो॥
नील जलज सु दरतनु सोहे । छ बल ख, सुरनर मुिनमन मोहे ॥
तब शत िन दा क र त काला। जीवन मु भयो िशशुपाला॥
म तक ितलक, अलक घुँघराले। आओ कृ ण बांसुर वाले॥
जब हं ौपद टे र लगाई। द नानाथ लाज अब जाई॥
क र पय पान, पूतन ह तारयो।
् अका बका कागासुर मारयो॥
्
तुरत ह वसन बने नंदलाला। बढ़े चीर भै अ र मुँह काला॥
मधुवन जलतअिगन जब वाला। भैशीतललखत हं नंदलाला॥ अस अनाथ के नाथ क हइया। डू बत भंवर बचावइ नइया॥
सुरपित जब ज च यो रसाई। मूसर धार वा र वषाई॥ 'सु दरदास' आस उर धार । दया क जै बनवार ॥
लगत लगत ज चहन बहायो। गोवधन नख धा र बचायो॥ नाथ सकल मम कुमित िनवारो। महु बेिग अपराध हमारो॥
ल ख यसुदा मन म अिधकाई। मुखमंह चौदह भुवन दखाई॥ खोलो पट अब दशनद जै। बोलो कृ ण क हइया क जै॥
द ु कंस अित उधम मचायो। को ट कमल जब फूल मंगायो॥ दोहा
नािथ कािलय हं तब तुम ली ह। चरण िच दै िनभय क ह॥ यह चालीसा कृ ण का, पाठ करै उर धा र।
क र गो पन संग रास वलासा। सबक पूरण कर अिभलाषा॥ अ िस नविनिध फल, लहै पदारथ चा र॥
व प ीकृ त ीकृ ण तो
व प य ऊचुः
वं परमं धाम िनर हो िनरहं कृितः।
िनगु ण िनराकारः साकारः सगुणः वयम ् ॥१॥
सा प िनिल ः परमा मा िनराकृ ितः।
कृ ितः पु ष वं च कारणं च तयोः परम ् ॥२॥
सृ थ यंत वषये ये च दे वा यः मृ ताः।
ते वदं शाः सवबीजा - व णु-महे राः ॥३॥
य य लो नां च ववरे चाऽ खलं व मी रः।
महा वरा महा व णु तं त य जनको वभो ॥४॥
तेज वं चाऽ प तेज वी ानं ानी च त परः।
वेदेऽिनवचनीय वं क वां तोतुिमहे रः ॥५॥
महदा दसृ सू ं पंचत मा मेव च।
बीजं वं सवश नां सवश व पकः ॥६॥
सवश रः सवः सवश या यः सदा।
वमनीहः वयं योितः सवान दः सनातनः ॥७॥
अहो आकारह न वं सव व हवान प।
सव याणां वषय जानािस ने यी भवान ् ।८॥
सर वती जड भूता यत ् तो े य न पणे।
जड भूतो महे श शेषो धम विधः वयम ् ॥९॥
पावती कमला राधा सा व ी दे वसूर प। ॥११॥
इित पेतु ता व प य त चरणा बुजे।
अभयं ददौ ता यः स नवदने णः ॥१२॥
व प ीकृ तं तो ं पूजाकाले च यः पठे त।् स गितं व प ीनां
लभते नाऽ संशयः ॥१३॥
॥ इित ी वैवत व प ीकृ तं कृ ण तो ं समा म॥्
ाणे र ीकृ ण मं
ा रिचत कृ ण तो
मं :-
ोवाच :
"ॐ ऐं ीं लीं ाण व लभाय सौः
र र हरे मां च िनम नं कामसागरे ।
सौभा यदाय ीकृ णाय वाहा।" द ु क ितजलपूण च द ु पारे बहसं
ु कटे ॥१॥
विनयोगः- ॐ अ य ी ाणे र ीकृ ण मं य भगवान ् भ व मृ ितबीजे च वप सोपानद ु तरे ।
ीवेद यास ऋ षः,
अतीव िनमल ानच ुः- छ नकारणे ॥२॥
गाय ी छं दः-, ीकृ ण-परमा मा दे वता, लीं बीजं, ीं श ः, ऐं
क लकं, ॐ यापकः, मम सम त- लेश-प रहाथ, चतुवग- ा ये,
ज मोिम-संगस हते यो ष न ाघसंकुले।
कर- यासः- ॐ ऐं ीं लीं अंगु ा यां नमः ाणव लभाय म धाः कितिच नाथ िनयो या भवकम ण।
तजनी यां वाहा, सौः म यमा यां वष , सौभा यदाय स त व ेश वधयो हे व े र माधव ॥६॥
अनािमका यां हंु ीकृ णाय किन का यां वौष , वाहा
न कम े मेवेद लोकोऽयमी सतः।
करतलकरपृ ा यां फ ।
तथाऽ प न पृ हा कामे व यवधायके ॥७॥
अंग- यासः- ॐ ऐं ीं लीं दयाय नमः, ाण व लभाय िशरसे
हे नाथ क णािस धो द नब धो कृ पां कु ।
वाहा, सौः िशखायै वष , सौभा यदाय िशखायै कवचाय हंु ,
ीकृ णाय ने - याय वौष , वाहा अ ाय फ । वं महे श महा ाता दःु व नं मां न दशय ॥८॥
यानः- "कृ णं जग मपहन- प-वण, वलो य ल जाऽऽकुिलतां इ यु वा जगतां धाता वरराम सनातनः।
मरा याम।् यायं यायं म पदा जं श तस
् मार मािमित ॥९॥
मधूक-माला-युत-कृ ण-दे हं, वलो य चािलं य ह रं
णा च कृ तं तो ं भ यु यः पठे त।्
मर तीम।।
् "
भावाथ: संसार को मु ध करने वाले भगवान ् कृ ण के प-रं ग को स चैवाकम वषये न िनम नो भवे ुवम ् ॥१०॥
दे खकर ेम पूण होकर गो पयाँ ल जापूव क याकुल होती ह और
मम मायां विन ज य स ानं लभते ुवम।्
मन-ह -मन ह र को मरण करती हई
ु भगवान ् कृ ण क मधूक-
पु प क माला से वभु षत दे ह का आिलंगन करती ह। इह लोके भ यु ो म वरो भवेत ् ॥११॥
इस मं का विध- वधान से १,००,००० जाप करने का ॥ इित ी दे वकृ तं कृ ण तो ं स पूणम॥्
वधान ह।
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कृ ण के विभ न मं
मूल मं : तेईस अ र मं :
कृ ं कृ णाय नमः ॐ ीं ं लीं ीकृ णाय गो वंदाय
यह भगवान कृ ण का मूलमं ह। इस मूल मं के गोपीजन व लभाय ीं ीं ी
िनयिमत जाप करने से य को जीवन म सभी यह तेईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
बाधाओं एवं क से मु िमलती ह एवं सुख क ाि सभी बाधाएँ वतः समा हो जाती ह।
होती ह। अ ठाईस अ र मं :
स दशा र मं : ॐ नमो भगवते न दपु ाय
ॐ ीं नमः ीकृ णाय प रपूण तमाय वाहा आन दवपुषे गोपीजनव लभाय वाहा
यह भगवान कृ ण का स रा अ र का ह। इस मूल मं यह अ ठाईस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य
के िनयिमत जाप करने से य को मं िस हो जाने को सम त अिभ व तुओं क ाि होती ह।
के प यात उसे जीवन म सबकुछ ा होता ह। उ तीस अ र मं :
स ा र मं : लीलादं ड गोपीजनसंस दोद ड
गोव लभाय वाहा बाल प मेघ याम भगवन व णो वाहा।
इस सात अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से यह उ तीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से थर
जीवन म सभी िस यां ा होती ह। ल मी क ाि होती है ।
अ ा र मं : ब ीस अ र मं :
गोकुल नाथाय नमः न दपु ाय यामलांगाय बालवपुषे
इस आठ अ र वाले मं के िनयिमत जाप करने से कृ णाय गो व दाय गोपीजनव लभाय वाहा।
य क सभी इ छाएँ एवं अिभलाषाए पूण होती ह। यह ब ीस अ र मं के िनयिमत जाप करने से य क
दशा र मं : सम त मनोकामनाएँ पूण होती ह।
लीं ल लीं यामलांगाय नमः ततीस अ र मं :
इस दशा र मं के िनयिमत जाप करने से संपूण ॐ कृ ण कृ ण महाकृ ण सव वं सीद मे।
िस य क ाि होती ह। रमारमण व ेश व ामाशु य छ मे॥
ादशा र मं : यह ततीस अ र के िनयिमत जाप करने से सम त
ॐ नमो भगवते ीगो व दाय कार क व ाएं िनःसंदेह ा होती ह।
इस कृ ण ादशा र मं के िनयिमत जाप करने से इ यह ीकृ ण के ती भावशाली मं ह। इन मं के
िस क ाि होती ह। िनयिमत जाप से य के जीवन म सुख, समृ एवं
सौभा य क ाि होती ह।
कृ ण मं
भगवान ी कृ ण से संबंधी मं तो शा म भरे पडे ह। ले कन जन
साधारण म कुछ खास मं का ह चलन और अ यािधक
मह व ह।
ॐ कृ णाय वासुदेवाय हरये परमा मने।
णतः लेशनाशाय गो वंदाय नमो नमः॥
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर
व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य के
जीवन म कसी भी कार के संकट नह ं आते।
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f गु व योितष 13 िसत बर 2010
सव थम पूजनीय कथा
िचंतन जोशी
भारतीय सं कृ ित म येक शुभकाय करने के पूव सव थम कौन पूजनीय हो?
भगवान ी गणेश जी क पूजा क जाती ह इसी िलये ये कथा इस कार ह : तीनो लोक म
कसी भी काय का शुभारं भ करने से सव थम कौन पूजनीय हो?, इस बात को
पूव काय का " ी गणेश करना" कहा लेकर सम त दे वताओं म ववाद खडा हो
जाता ह। एवं यक शुभ काय या गया। जब इस ववादने बडा प धारण
अनु ान करने के पूव ‘‘ ी गणेशाय कर िलये तब सभी दे वता अपने-अपने
नमः” का उ चारण कया जाता ह। बल बु अ के बल पर दावे तुत
गणेश को सम त िस य को दे ने वाला करने लगे। कोई पर णाम नह ं आता
माना गया है । सार िस याँ गणेश म वास दे ख सब दे वताओं ने िनणय िलया क
करती ह। चलकर भगवान ी व णु को
इसके पीछे मु य कारण ह क मं िस प ना गणेश िनणायक बना कर उनसे फैसला
भगवान ी गणेश सम त व न को करवाया जाय।
भगवान ी गणेश बु और िश ा के
टालने वाले ह, दया एवं कृ पा के अित सभी दे व गण व णु लोक मे
कारक ह बुध के अिधपित दे वता
सुंदर महासागर ह, एवं तीनो लोक के ह। प ना गणेश बुध के सकारा मक उप थत हो गये, भगवान व णु ने
क याण हे तु भगवान गणपित सब भाव को बठाता ह एवं नकारा मक इस मु े को गंभीर होते दे ख ी व णु
कार से यो य ह। सम त व न बाधाओं भाव को कम करता ह।. प न ने सभी दे वताओं को अपने साथ लेकर
को दरू करने वाले गणेश वनायक ह। गणेश के भाव से यापार और धन
िशवलोक म पहच गये। िशवजी ने
ु
गणेशजी व ा-बु के अथाह सागर एवं म वृ म वृ होती ह। ब चो क
कहा इसका सह िनदान सृ कता
वधाता ह। पढाई हे तु भी वशेष फल द ह
ाजी ह बताएंगे। िशवजी ी व णु
प ना गणेश इस के भाव से ब चे
भगवान गणेश को सव थम एवं अ य दे वताओं के साथ िमलकर
क बु कूशा होकर उसके
पूजे जाने के वषय म कुछ वशेष लोक पहच
ु और ाजी को सार
आ म व ास म भी वशेष वृ होती
लोक कथा चिलत ह। इन वशेष एवं ह। मानिसक अशांित को कम करने म बाते व तार से बताकर उनसे फैसला
लोक य कथाओं का वणन यहा कर मदद करता ह, य ारा अवशो षत करने का अनुरोध कया। ाजी ने
रह ह। हर व करण शांती दान करती ह, कहा थम पूजनीय वह ं होगा जो जो
पावतीजी के दःख
ु को दे खकर िशवजी ने उप थत गणेश क उपे ा न करे इस िलये भगवान व णु अ य
गणको आदे श दे ते हवे
ु कहा सबसे पहला जीव िमले, उसका दे वताओं के साथ म तय कय क गणेश सभी मांगलीक
िसर काटकर इस बालक के धड़ पर लगा दो, तो यह बालक काय म अ णीय पूजे जायगे एवं उनके पूजन के बना
जी वत हो उठे गा। सेवको को सबसे पहले हाथी का एक ब चा कोई भी दे वता पूजा हण नह ं करगे।
िमला। उ ह ने उसका िसर लाकर बालक के धड़ पर लगा दया, इस पर भगवान ् व णु ने े तम उपहार से
बालक जी वत हो उठा। भगवान गजानन क पूजा क और वरदान दया क
उस अवसर पर तीनो दे वताओं ने उ ह सभी लोक
सवा े तव पूजा च मया द ा सुरो म।
म अ पू यता का वर दान कया और उ ह सव अ य
पद पर वराजमान कया। कंद पुराण सवपू य योगी ो भव व से युवाच तम ्।।
(गणपितखं. 13। 2)
वैवतपुराण के अनुसार (गणपितख ड) – भावाथ: ‘सुर े ! मने सबसे पहले तु हार पूजा क है,
िशव-पावती के ववाह होने के बाद उनक कोई अतः व स! तुम सवपू य तथा योगी हो जाओ।’
संतान नह ं हई
ु , तो िशवजी ने पावतीजी से भगवान
व णु के शुभफल द ‘पु यक’ त करने को कहा पावती
के ‘पु यक’ त से भगवान व णु ने स न हो कर वैवत पुराण म ह एक अ य संगा तगत
शा ीय मतसे
मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर(ता प ), िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे विभ न कार
क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते है . जसे साधारण (जो
पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते है .
जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक
आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु व कायालय ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज
शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर (चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय
मे अिधक जानकार के िलये हे तु स पक करे
गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
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f गु व योितष 17 िसत बर 2010
सव थम पूजा वै दक एवं शा के मत
िचंतन जोशी
गणपित श द का अथ ह। करके कया क गु दे व! आप मुझे दे वताओं के पूजन
सेनापित अथात गणपित कहते ह। मानव शर र म पाँच पहले कसका पूजन करना चा हये ?
ाने याँ, पाँच कम याँ और चार अ तःकरण होते ह। तब यासजी ने कहा: व न को दरू करने के
एवं इस श ओं को जो श यां संचािलत करती ह उ ह ं िलये सव थम गणेशजी क पूजा करनी चा हये। पूव काल
को चौदह दे वता कहते ह। इन सभी दे वताओं के मूल म पावती दे वी को दे वताओं ने अमृ त से तैयार कया हआ
ु
ेरक ह भगवान ीगणेश। एक द य मोदक दया। मोदक दे खकर दोन बालक
भगवान गणपित श द अथात ् ओंकार के तीक ह, ( क द तथा गणेश) माता से माँगने लगे। तब माता ने
फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को नकारा मक उजा से बचाता ह एवं एक
उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और अिधक भावी और प व माना जाता ह। `.550 से `.8200 तक
f गु व योितष 18 िसत बर 2010
िचंतन जोशी
तुलसी सम त पौध म े मानी जाती ह। हं द ू धम तप या म संल न हंू । मेर यह तप या पित ाि के िलए ह।
म सम त पूजन कम म तुलसी को मुखता द जाती ह। अत: आप मुझसे ववाह कर ली जए। तुलसी क यह बात
ायः सभी हं द ू मं दर म चरणामृ त म भी तुलसी का योग सुनकर बु े गणेश जी ने उ र दया हे माता! ववाह करना
होता ह। इसके पीछे ऎसी कामना होती है क तुलसी हण बडा भयंकर होता ह, म हचार हंू । ववाह तप या के िलए
करने से तुलसी अकाल मृ यु को हरने वाली तथा सव नाशक, मो ार के रा ता बंद करने वाला, भव बंधन से बंध,े
यािधय का नाश करने वाली ह। संशय का उ म थान ह। अत: आप मेर ओर से अपना यान
गणेश के क याणकार मं
िचंतन जोशी
गणेश मं क ित दन एक माला मं जाप अव य करे ।
दये गये मं ो मे से कोई भी एक मं का जाप करे।
(०१) गं ।
(०२) लं ।
(०३) ल ।
(०४) ी गणेशाय नमः ।
(०५) ॐ वरदाय नमः ।
(०६) ॐ सुमंगलाय नमः ।
(०७) ॐ िचंतामणये नमः ।
(०८) ॐ व तुंडाय हम
ु ्।
(०९) ॐ नमो भगवते गजाननाय ।
(१०) ॐ गं गणपतये नमः ।
(११) ॐ ॐ ी गणेशाय नमः ।
यह मं के जप से य को जीवन म कसी भी कार का क नह ं रे हता है ।
भगवान गणपित के अ य मं
ॐ गं गणपतये नमः ।
एसा शा ो वचन ह क गणेश जी का यह मं चम का रक और त काल फल दे ने वाला मं ह। इस मं का पूण
भ पूव क जाप करने से सम त बाधाएं दरू होती ह। षडा र का जप आिथक गित व समृ ददायक है ।
ॐ व तुंडाय हम
ु ्।
कसी के ारा क गई तां क या को न करने के िलए, व वध कामनाओं क शी पूित के िलए उ छ गणपित
क साधना कजाती ह। उ छ गणपित के मं का जाप अ य भंडार दान करने वाला ह।
ॐ ल गं गणपतये नमः।
गृ ह कलेश िनवारण एवं घर म सुखशा त क ाि हे तु।
ॐ गं ल यौ आग छ आग छ फ ।
इस मं के जाप से द र ता का नाश होकर, धन ाि के बल योग बनने लगते ह।
ॐ गं रोग मु ये फ ।
भयानक असा य रोग से परे शानी होने पर, उिचत ईलाज कराने पर भी लाभ ा नह ं होरहा हो, तो पूण व ास स
मं का जाप करने से या जानकार य से जाप करवाने से धीरे -धीरे रोगी को रोग से छुटकारा िमलता ह।
ॐ अ त र ाय वाहा।
इस मं के जाप से मनोकामना पूित के अवसर ा होने लगते ह।
जप विध
ात: नाना द शु होकर कुश या ऊन के आसन पर पूव क और मुख होकर बैठ। सामने गणॆशजी का िच , यं या
मूित थाि कर फर षोडशोपचार या पंचोपचार से भगवान गजानन का पूजन कर थम दन संक प कर। इसके बाद
भगवान णेशका एका िच से यान कर। नैवे म य द संभव होतो बूं द या बेसन के ल डू का भोग लगाये नह ं तो
गुड का भोग लगाये । साधक को गणेशजी के िच या मूित के स मुख शु घी का द पक जलाए। रोज १०८ माला
का जाप कर ने से शी फल क ाि होती ह। य द एक दन म १०८ माला संभव न हो तो ५४, २७,१८ या ९ मालाओं
का भी जाप कया जा सकता ह। मं जाप करने म य द आप असमथ हो, तो कसी ा ण को उिचत
द णा दे कर उनसे जाप करवाया जा सकता ह।
f गु व योितष 22 िसत बर 2010
िलखो नाम रे त और प थर पर
राम और याम दोनो गहरे दो त थ। एक बार दोनो रे िग तान म से होकर कह ं जा रहे थे । रा ते म उन
दोनोम कसी बात पर बहस हो गई और राम ने याम को थ पड़ मार दया । राम का यह बरताव दे ख कर
याम बहत
ु दखी
ु हआ
ु पर उसने बना कुछ बोले रे त पर िलखा, “आज मेरे सबसे अ छे दो त राम ने मुझे थ पड़
मारा” । थोड़ा और आगे चलने पर रा ते म उ ह एक झील दखाई द और उन दोन ने पानी म नहाने का
वचार बनाया । नहाते-नहाते याम दलदल म फँस गया और डू बने लगा । तब राम ने उसक जान बचाई ।
डू बने से बचने पर याम ने एक प थर पर िलखा, “आज मेरे सबसे अ छे दो त राम ने मेर जान बचाई” । इस
पर राम ने पूछा क जब मैन तु ह थ पड़ मारा तब तुमने रे त पर िलखा पर जब मने तु हार जान बचाई तब
तुमने प थर पर िलखा, तुमने ऐसा य कया? इस पर याम ने उ र दया, “जब कोई तु ह दख
ु पहँु चाए तो
उसे रे त पर िलखना चा हए जससे मा समय क हवा उसे िमटा सके। पर जब कोई तु हारे साथ भलाई करे
तो उसे प थर पर िलखना चा हए जससे समय क हवा भी उसे िमटा न सके।”
व तक.ऎन.जोशी
एक पौरा णक कथा के अनुशार ह। कुबेर तीन लोक म सबसे धनी थे। एक दन उ ह ने सोचा क हमारे पास
इतनी संप ह, ले कन कम ह लोग को इसक जानकार ह। इसिलए उ ह ने अपनी संप का दशन करने के िलए
एक भ य भोज का आयोजन करने क बात सोची। उस म तीन लोक के सभी दे वताओं को आमं त कया गया।
भगवान िशव कुबेरके इ दे वता थे, इसिलए उनका आशीवाद लेने वह कैलाश पहंु चे और कहा, भो! आज म
तीन लोक म सबसे धनवान हंू, यह सब आप क कृ पा का फल ह। अपने िनवास पर एक भोज का आयोजन करने जा
रहा हँू , कृ पया आप प रवार स हत भोज म पधारने क कृ पा करे ।
भगवान िशव कुबेर के मन का अहं कार ताड़ गए, बोले, व स! म बूढ़ा हो चला हँू , इस िलये कह ं बाहर नह ं जाता।
इस िलये तु हार भोज म नह ं आसकता। िशवजी क बात पर कुबेर िगड़-िगड़ाने लगे, भगवन! आपके बगैर तो मेरा
सारा आयोजन बेकार चला जाएगा। तब िशव जी ने कहा, एक उपाय ह। म अपने छोटे बेटे गणपित को तु हारे भोज म
जाने को कह दं ग
ू ा। कुबेर संतु होकर लौट आए। िनयत समय पर कुबेर ने भ य भोज का आयोजन कया।
तीन लोक के दे वता पहंु च चुके थे। अंत म गणपित आए और आते ह कहा, मुझको बहत
ु तेज भूख लगी ह।
भोजन कहां है । कुबेर उ ह ले गए भोजन से सजे कमरे म। गणपित को सोने क थाली म भोजन परोसा गया। ण भर
म ह परोसा गया सारा भोजन ख म हो गया। दोबारा खाना परोसा गया, उसे भी खा गए। बार-बार खाना परोसा जाता
और ण भर म गणेश जी उसे चट कर जाते। थोड़ ह दे र म हजार लोग के िलए बना भोजन ख म हो गया, ले कन
गणपित का पेट नह ं भरा। गणपित रसोईघर म पहंु चे और वहां रखा सारा क चा सामान भी खा गए, तब भी भूख नह ं
िमट । जब सब कुछ ख म हो गया तो गणपित ने कुबेर से कहा, जब तु हारे पास मुझे खलाने के िलए कुछ था ह
नह ं तो तुमने मुझे योता य दया था? गणपित जी क यह बात सुनकर कुबेर का अहं कार चूर-चूर हो गया।
व ननाशक गणेश म
"जो सुिमरत िसिध होइ, गननायक क रबर बदन।
एकदं त कैसे कहलाए गणेशजी दौरान मह ष को सोचने का अवसर िमल जाता था।
महाभारत व का सबसे बड़ा महाका य एवं ंथ ह। महाभारत िलखने गणेशजी ने अपना एक दाँत तोडकर
जसक रचना म एक लाख से यादा ोको का योग हवा
ु उस क लेखनी बानई। इस िलये उ ह एकदं त कहा जाता
ह। एसी लोकमा यता ह क ाजी ने व न म ऋष ह। माना जाता है क बना के िलखने क शी ता म यह दाँत
पराशर एवं स यवती के पु मह ष यास को महाभारत ू था।
टटा
िलखने क ेरणा द थी। ू ने क और एक कहानी ह
एक दांत टट
महाभारत के रचनाकार अलौ कक श से स प न ावैवत पुराण के अनुशार परशुराम शीवजी को िम ने कैलश
मह ष यास काल ष ्टा थे। इस िलये मह ष यास ने गये। कैलश के वेश ार पर ह गणेश ने परशुराम को रोक
महाभारत िलखने का यह काम वीकार कर िलया, ले कन िलयी क तु परशुराम के नह ं और बलपूव क वेश करने का
मह ष यास के म त क म जस ती तासे महाभारत के यास कया। तब गणेशजी न परशुराम से यु कर उनको
मं आ रहे थे इस कारण उन मं ो को उसी ती ता से को त भत कर अपनी सूँड म लपेटकर सम त लोक म मण
कोई िलखने वाला यो य य न कराते हए
ु गौलोक म भगवान ीकृ ण का
िमला। वे ऐसे कसी य क खोज म eaxy ;a= दशन कराते हए
ु भूतल पर पटक दया।
लग गए जो महाभारत िलख सके। ¼f=dks.k½ eaxy ;a= dks परशुराम ने ोध म फरसे(परशु ) से
महाभारत के थम अ याय म उ लेख tehu&tk;nkn ds गणेशजी के एक दांत को काट डाला। तिभसे
ह क वेद यास ने गणेशजी को fooknks dks gy djus ds गणेश को एकदं त कहा जाता ह।
महाभारत िलखने का ताव दया तो dke esa ykHk nsrk gSaA एकद त कथा
गणेशजी ने महाभारत िलख का
,oa O;fDr dks _.k एकद तावतारौ वै दे हनां धारकः।
ताव वीकार कर िलया।
eqfDr gsrq eaxy lk/kuk मदासुर य ह ता स आखुवाहनगः
गणेशजी ने महाभारत िलखने
ls vfr ‘kh/kz ykHk izkIr मृ तः।।
के पहले शत रखी क मह ष कथा
gksrk gSaA भावाथ: भगवान ् गणेश का ‘एक
िलखवाते समय एक पल के िलए भी
नह ं कगे।
fookg vkfn esa eaxyh द तावतार’ दे ह- धारक है , वह
tkrdksa ds dY;k.k ds मदासुरका वध करनेवाला है ; उसका वाहन
इस शत को मानते हए
ु मह ष ने
fy, eaxy ;a= dh iwtk मूषक बताया गया है ।
भी एक शत रख द क गणेशजी भी
djus ls fo’ks”k ykHk वह मह ष यवन का पु मदासुर
एक-एक वा य को बना समझे नह ं
izkIr gksrk gSaA एक बलवान ् परा मी दै य था। एक बार
िलखगे। महाभारत िलखते समय इस
वह अपने पता से आ ा ा कर
शत के कारणा गणेशजी के समझने के मू य मा : `.550
दै यगु शु ाचाय के पास गया।
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व तु ड कथा
व तक.ऎन.जोशी
संकटनाशन गणेश तो म ्
संकटनाशन गणेश तो म ् का ित दन पाठ करने से सम त कार के
संकटोका नाश होता है , ी गणेशजी क कृ पा एवं सुख समृ क ा
होती है ।
व तुंड महाकाय सूय को ट सम भ ।
िन व नम ् कु म दे व सव कायषु सवदा ॥
व ने राय वरदाय सूर याय ल बोदराय सकलाय जग ताय ।
नागाननाय ु ितय वभू षताय गौर सुताय गणनाथ
नमोनम ते ॥
तो
ण य िशरसा दे वं गौर पुं वनायकम ्
भ ावासं मरे िन यं आयुकामाथिस ये ॥ १ ॥
अ यो ा णो य य िल ख वा य: समपयेत ्
त य व ा भवे सवा गणेश य सादतः ॥ ८ ॥
ॐ ॐ ॐ कार पम ् यहिमित च परम ् य व पम ् तुर यम ् ैगु यातीतनीलं कलयित मनस तेज-िस दरू-मूितम।्
योगी ै र ैः सकल-गुणमयं ीहरे े णसंगं गं गं गं गं गणेशं गजमुखमिभतो यापकं िच तय त ॥१॥
वं वं वं व नराजं भजित िनजभुजे द णे य तशु डं ं ं ं ोधमु ा-दिलत- रपुबलं क पवृ य मूले।
दं दं दं द तमेकं दधित मुिनमुखं कामधे वा िनषे यम ् धं धं धं धारय तं धनदमितिघयं िस -बु - तीयम ् ॥२॥
तुं तुं तुं तुंग पं गगनपिथ गतं या नुव तं दग तान ् लीं लीं लींकारनाथं गिलतमदिमल लोल-म ािलमालम।्
ं ं ंकार पंगं सकलमुिनवर- येयमु डं च शु डं ीं ीं ीं ीं य तं िन खल-िनिधकुलं नौिम हे र ब ब बम ् ॥३॥
ल ल ल कारमा ं णविमव पदं म मु ावलीनाम ् शु ं व नेशबीजं शिशकरस शं योिगनां यानग यम।्
डं डं डं डाम पं दिलतभवभयं सूय को ट काशम् यं यं यं य नाथं जपित मुिनवरो बा म य तरं च ॥४॥
हंु हंु हंु हे मवण ु ित-ग णतगुणं शूप कणं कृ पालुं येयं सूय य ब बं ुरिस च वलसत ् सपय ोपवीतम।्
वाहाहंु फ नमो तै -ठठठ-स हतैः प लवैः से यमानम ् म ाणां स को ट- गु णत-म हमाधारमोशं प े ॥५॥
पूव पीठं कोणं तदप
ु र िचरं ष कप ं प व म् य यो व शु रे खा वसुदलकमलं वो वतेज तु म।्
म ये हंु कारबीजं तदनु भगवतः वांगष कं षड े अ ौ श िस बहलगणपित
ु व र ा कं च ॥६॥
धमा ौ िस ा दश दिश व दता वा वजा यः कपालं त य े ा दनाथं मुिनकुलम खलं म मु ामहे शम।्
एवं यो भ यु ो जपित गणपितं पु प-धूपा- ता ैनवे ैम दकानां तुितयुत- वलस -गीतवा द -नादै ः ॥७॥
राजान त य भृ या इव युवितकुलं दासवतसवदा
् ते ल मीः सवागयु ा यित च सदनं कंकराः सवलोकाः।
पु ाः पु यः प व ा रणभू व वजयी ूतवादे प वीरो य येशो व नराजो िनवसित दये भ भा य य ः ॥८॥
. ॥ इित ी संक हरणं गणेशा कं स पूण म ् ॥
या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं
ह? अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता
ा कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व
कायालत ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु
विभ न कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
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f गु व योितष 29 िसत बर 2010
॥गणेश पं चर म॥्
मं िस मूंगा गणेश
मुदा करा मोदकम ् सदा वमु साधकम ् मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना
कलाधरावत सकम ् वलािसलोकर कम।् जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन के िलए अ यंत
अनायकैक नायकम ् वनािशतेभदै यकम ् लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि
नताशुभाशुनाशकम ् नमािम तम ् वनायकम ् ॥१॥ हे तु वशेष लाभदायी ह।
नतेतराितभीकरम ् नवो दताकभा वरम ् मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने
नम सुरा रिनजरम ् नतािधकापदु रम।् से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह। यो क लाल
सुरे रम ् िनधी रम ् गजे रम ् गणे रम ् रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह।
महे रम ् तमा ये परा परम ् िनर तरम ् ॥२॥ लाल मूंगा शार रक और मानिसक श य का वकास करने
हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को
सम तलोकश करम ् िनर तदै यकु जरम ्
िनयं त करने हे तु भी मूंगा गणेश क पूजा लाभ द ह।
दरे तरोदरम ् वरम ् वरे भव म रम।्
एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत करने
कृ पाकरम ् माकरम ् मुदाकरम ् यश करम ्
से भगवान गणेश क कृ पा श चोर , लूट, आग,
मन करम ् नम कृ तां नम करोिम भा वरम ् ॥३॥
अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह, ज से घर म या
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f गु व योितष 30 िसत बर 2010
।।गणपित अथवशीष।।
ॐ नम ते गणपतये। वमेव य ं त वमिस । वरदं ह तै व ाणं मूषक वजम।् र ं लंबोदरं शूप कणकं
वमेव केवलं कता िस। वमेव केवलं धतािस। वमेव र वाससम।् र गंधानु िल ांगं र पु पै: सुपु जतम।्
केवलं हतािस । वमेव सव ख वदं ािस। व भ ानुकं पनं दे वं जग कारण म युतम।् आ वभू तं च
सा ादा मािस िन यम।् ऋतं व म। स यं व म। अव सृ यादौ कृ ते पु षा परम।् एवं यायित यो िन यं स
व मांम।् अव व ारम।् अव ोतारम।् अव दातारम।् अव योगी योिगनां वरः।
धातारम।् अवा नूचानमव िश यम।अव
् प ातात।अव
् नमो ातपतये। नमो गणपतये। नम: मथपतये।
पुर तात।् अवो रा ात।् अव द णा ात।् नम ते अ तु लंबोदरायै एकदं ताय। व ननािशने
अव चो वा ात।् अवाधरा ात।् सवतो माँ पा ह- िशवसुताय। ीवरदमूत ये नमो नमः। एतदथव शीष
पा ह समंतात।् वं वा मय वं िच मयः। योधीते। स भूयाय क पते। स सव व नैन बा यते। स
वमानंदमसय वं मयः। वं स चदानंदात ् सवत: सुखमेधते। स प चमहापापा मु यते।
तीयोिस। वं य ं ािस। वं ानमयो सायमधीयानो दवसकृ तं पापं नाशयित। ातरधीयानो
व ानमयोिस। सव जग ददं व ो जायते। सव जग ददं रा कृ तं पापं नाशयित। सायं ात: युंजानो अपापो
व त ित। सव जग ददं विय वयमे यित। सव भवित। सव ाधीयानो ड प व नो भवित। धमाथकाममो ं
जग ददं विय येित। वं भूिमरापोनलो िनलो नभः। वं च वंदित। इदमथवशीषमिश याय न दे यम।् यो य द
च वा र वाकूपदािन। वं गुण यातीत: वमव था यातीतः। मोहात ् दा यित स पापीयान ् भवित। सह ावतनात ् यं यं
वं दे ह यातीतः। वं काल यातीतः। वं मूलाधार काममधीते तंतमनेन साधयेत।् अनेन गणपित मिभ षंचित
थतोिस िन यं। वं श या मकः। वां योिगनो स वा मी भवित । चतु यामन नन जपित स व ावान
यायंित िन यं। वं ा वं व णु वं वं इं वं भवित। इ यथवण वा यम।् ा ावरणं व ात ् न बभेित
अ न वं वायु वं सूय वं चं मा वं भूभु व: वरोम।् कदाचनेित। यो दवाक
ू ु रयजित स वै वणोपमो भवित। यो
गणा द पूव मु चाय वणा दं तदनंतरम।् लाजैय जित स यशोवान भवित स मेधावान भवित। यो
अनु वार: परतरः। अध दलिसतम।
ु ् तारे ण ऋ ं । एत व मोदक सह ेण यजित स वांिछत फल मवा ोित। य:
मनु व पम।् गकार: पूव पम।् अकारो म यम पम।् सा यसिम यजित स सव लभते स सव लभते। अ ौ
अनु वार ा य पम।् ब द ु र पम।् नाद: संधानम।् सँ ा णान ् स य ाहिय वा सूय वच वी भवित। सूय हे
हतासंिध: सैषा गणेश व ा। गणकऋ ष: महान ां ितमा संिनधौ वा ज वा िस मं भवित।
िनचृ ाय ी छं दः। गणपितदवता। ॐ गं गणपतये महा व नात ् मु यते। महादोषात ् मु यते। महापापात ्
नमः।एकदं ताय व महे । व तु डाय धीम ह। त नो दं ती मु यते। स सव व भवित से सव व भवित । य एवं
चोदयात।् एकदं तं चतुह तं पाशमंकुश धा रणम।् रदं च वेद इ युपिनष ।
॥इित ी गणपित अथवशीष स पुण ॥
गणेश तवन
ea= fl) :nzk{k
ी आ द क व वा मी क उवाच
चतु:ष कोटया य व ा दं वां सुराचाय व ा दानापदानम।्
,d eq[kh :nzk{k&`.1250]1550
कठाभी व ापकं द तयु मं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
nks eq[kh :nzk{k&`.100]151
वनाथं धानं महा वघ नाथं िनजे छा वसृ ा डवृ दे शनाथम।्
भुं द णा य य व ा दं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ rhu eq[kh :nzk{k&`.100]151
वभो यासिश या द व ा विश यानेक व ा दातारमा म।् pkj eq[kh :nzk{k&`.55]100
महाशा द ागु ं े दं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
iap eq[kh :nzk{k&`.28]55
वधा े यीमु यवेदां योगं महा व णवे चागमाज शंकराय।
Ng eq[kh :nzk{k&`.55]100
दश तं च सूयाय व ारह यं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
Lkkr eq[kh :nzk{k&`.120]190
महाबु पु ाय चैकं पुराणं दश तं गजा य य माहा ययु म।्
िनज ानश या समेतं पुराणं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ vkB eq[kh :nzk{k&`.820]1250
यीशीषसारं चानेकमारं रमाबु दारं परं पारम।् ukS eq[kh :nzk{k&`.820]1250
सुर तोमकायं गणौघािधनाथं क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
nleq[kh :nzk{k&`.--------
िचदान द पं मुिन येय पं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम।्
धरान दलोका दवास यं वां क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥
X;kjgeq[kh :nzk{k&`.2800
अनेक तारं सुर ा जहारं परं िनगु णं व स पम।्
ckjg eq[kh :nzk{k&`.3600
महावा यसंदोहता पयमूित क वं बु नाथं कवीनां नमािम॥ rsjg eq[kh :nzk{k&`.6400
इदं ये तु क य कं भ यु ा सं यं पठ ते गजा यं मर त:। pkSng eq[kh :nzk{k&`.19000
क व वं सुवा याथम य ुतं ते लभ ते सादा गणेश य
मु म॥् xkSjh’kadj :nzk{k&`-----
॥इित ी वा मी क कृ त ीगणेश तो संपूण म॥् गु व कायालय:
Bhubaneswar- 751 018, (ORISSA) INDIA
फल: जो य ा भाव से तीनोकाल सुबह सं या एवं रा ी के Call Us : 91+ 9338213418, 91+ 9238328785,
समय वा मी क कृ त ीगणेश का तवन करते उ हे सभी
E-mail Us:- gurutva.karyalay@gmail.com,
भौितक सुखो क ाि होकर उसे मो को ा कर लेता ह, gurutva_karyalay@yahoo.in,
एसा शा ो वचन ह ।
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एकद त शरणागित तो म ्
सदा म पं सकला दभूतममाियनं सोऽहमिच यबोधम।् सदे व सृ कृ ित वभावा द तरे वं च वभािस िन यम।्
अना दम या त वह नमेकं तमेकद तं शरणं जाम:॥ िधय: दाता गणनाथ एक तमेकद तं शरणं जाम:॥
अन तिच पमयं
ू गणेशमभेदभेदा द वह नमा म।् वदा या भा त हा सव काश पा ण वभा त खे
द काश य धरं वधी थं तमेकद तं शरणं जाम:॥ वै।
म त िन यं व वहारकाया तमेकद तं शरणं जाम:॥
समािधसं थं द योिगनां यं काश पेण वभातमेतम।्
सदा िनराल बसमािधग यं तमेकद तं शरणं जाम:॥ वदा या सृ करो वधाता वदा या पालक
एक व णु:।
व ब बभावेन वलासयु ां य मायां व वध व पाम।्
वदा या संहरको हरोऽ प तमेकद तं शरणं जाम:॥
ववीयकं त ददाित यो वै तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या भूिमजलेऽ सं थे यदा याप: वह त न :।
वद यवीयण समथभूत वमायया संरिचतं च व म।्
वतीथसं थ कृ त: समु तमेकद तं शरणं जाम:॥
तुर यकं ा म तीितसं ं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या दे वगणा द व था दद त वै कमफलािन
वद यस ाधरमेकद तं गुणे रं यं गुणबोिधतारम।्
िन यम।्
भज तम य तमजं सं थं तमेकद तं शरणं जाम:॥
यदा या शैलगणा: थरा वै तमेकद तं शरणं जाम:।
एकद त उवाच
तो ेणाहं स नोऽ म सुरा: स षगणा: कल।
वरदोऽहं वृ णुत वो दा यािम मनसी सतम॥
्
भव कृ तं मद यं यत ् तो ं ीित दं च तत।्
भ व यित न संदेह: सविस दायकम॥्
िन यं
इदमय:् पठित तो ं यमभू् तवघ
तो म ् महापु : स शोकहरम
वै नर:। ् परम।् य:
त यपठेदशनत:
त ् ात सव
थायदे वसव
ा: पूवघनत
ता भव् मुत यते
च॥॥
गणेश कवचम ्
संसारमोहन या य कवच य जापितः। प मे पावतीपु ो वाय यां शंकरा मजः॥
ऋष छ द बृ हती दे वो ल बोदर: वयम॥् कृ ण यांश ो रे च प रपूण तम य च॥
ॐ गं हंु ीगणेशाय वाहा मे पातु म तकम।् व ने जागरणे चैव पातु मां योिगनां गु ः।
ा ंशद रो म ो ललाटं मे सदावतु॥
इित ते किथतं व स सवम ौघ व हम।्
ॐ ं लीं ीं गिमित च संततं पातु लोचनम।् संसारमोहनं नाम कवचं परमा तम॥
ु ्
तालुकं पातु वघनेश: संततं धरणीतले॥
ीकृ णेन पुरा द ं गोलोके रासम डले।
ॐ ं ीं लीिमित च संततं पातु नािसकाम।् वृ दावने वनीताय म ं दनकरा मजः॥
ॐ ग गं शूप कणाय वाहा पा वधरं मम॥
मया द ं च तु यं च य मै क मै न दा यिस।
द तािन तालुकां ज ां पातु मे षोडशा रः॥ परं वरं सवपू यं सवस कटतारणम॥
्
ॐ लं ीं ल बोदरायेित वाहा ग डं सदावतु।
गु म य य विधवत ् कवचं धारये ु यः।
ॐ लीं ं वघ नाशाय वाहा कण सदावतु॥ क ठे वा द णे बाहौ सोऽ प व णुन संशयः॥
ॐ लीं िमित क कालं पातु व : थलं च गम।् इदं कवचम ा वा यो भजे छं करा मजम।्
करौ पादौ सदा पातु सवा गं वघ नघ कृ त॥् शतल ज ोऽ प न म : िस दायकः॥
ा यां ल बोदर: पातु आगने यां वघ नायकः। ॥ इित ी गणेश कवच संपूण म॥्
द णे पातु वघनेशो नैरऋ
् यां तु गजाननः॥
व णुकृतं गणेश तो म ्
ी नारायण उवाच
अथ व णु: सभाम ये स पू य तं गणे रम।्
न म: प चव न म तुराननः।
तृ ाव परया भ या सव वघ वनाशकम॥्
सर वती न श ा च न श ोऽहं तव तुतौ॥
ी व णु उवाच
ईश वां तोतुिम छािम योित: सनातनम।् न श ा चतुवदा: के वा ते वेदवा दनः॥
िन पतुमश ोऽहमनु पमनीहकम॥्
इ येवं तवनं कृ वा सुरेशं सुरसंस द।
वरं सवदे वानां िस ानां योिगनां गु म।् सुरेश सुरै: सा ध वरराम रमापितः॥
सव व पं सवशं ानरािश व पणम॥
्
इदं व णुकृतं तो ं गणेश य च य: पठे त।्
अ य म रं िन यं स यमा म व पणम।् सायं ात म या े भ यु : समा हतः॥
वायुतु याितिनिल ं चा तं सवसा णम॥्
त घ नघन ् कु ते वघने ःसततं मुने।
संसाराणवपारे च मायापोते सुदलभे
ु । वधते सवक याणं क याणजनक: सदा॥
कणधार व पं च भ ानु हकारकम॥्
या ाकाले प ठ वा तु यो याित भ पूव कम।्
वरं वरे यं वरदं वरदानामपी रम।् त य सवाभी िस भव येव न संशयः॥
िस ं िस व पं च िस दं िस साधनम॥्
तेन ं च द:ु वपन ् सु वप मुपजायते।
यानाित र ं येयं च यानासा यं च धािमकम।् कदा प न भवे य हपीडा च दा णा॥
धम व पं धम ं धमाधमफल दम॥
्
भवे वनाश: श ूणां ब धूनां च ववधनम।्
बीजं संसारवृ ाणाम कुरं च तदा यम।् श घ वनाश श त ् स प वधनम॥्
ीपु नपुंसकानां च पमेतदती यम॥्
थरा भवे गृ हे ल मी: पु पौ वविधनी।
सवा म पू यं च सवपू यं गुणाणवम।् सव यिमह ा य ते व णुपदं लभेत॥्
वे छया सगुणं िनगु णं चा प वे छया॥
यं कृ ित पं च ाकृ तं कृ ते: परम।् फलं चा प च तीथानां य ानां य भवे ुवम।्
गणेशजी को य ह िसंदरू : गणेश पूजन म िसंदरू का उपयोग अ यंत शुभ एवं लाभकार होता ह। यो कं
भगवान गणेशजीको िसंदरू अ यािधक य ह। गणेश जी को शु घी म िसंदरू िमलाकर लेप चढाने से सुख और
सौभा य क ाि होती ह। िसंदरू रं ग के उपयोग से य के बु , आरो य, याग म वृ होती ह। इसी िलये
ायः यादातर साधु-संत के व का रं ग िसंदरू ह होता ह।
f गु व योितष 39 िसत बर 2010
गणपित तो म ्
इस तो ा का ित दन पाठ करने से गणेशजी क कृ पा से उसे संतान लाभ, ी ित, िम एवं वजनो से एवं प रवार
म ेम भाव बढता ह।
॥ ी गणेश आरित॥
॥गणेशभुजंगम॥्
उद च जाव
ु लर यमूलो- चल ूलता व म ाजद म ् ।
म सु दर चामरै ः से यमानं गणाधीशमीशानसूनुं तमीडे ॥ ५ ॥
तं र ा
कवच को धारण करने से य के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ
ह धारण कता य पर कसी भी कार क नकार मन श यो का कु भाव नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।
मू य मा : `.730
f गु व योितष 41 िसत बर 2010
॥ ी व ने रा ो र शतनाम तो म ् ॥
वनायको व नराजो गौर पु ो गणे रः। कंदा जो ययः पूतो द ोऽ य ो ज यः ॥ १ ॥
अ नगव छद इ ी दः । वाणी दोअः अ ययः सविस द शवतनो शवर यः ॥ २ ॥
सवा मकः सृ कता दे वोनेकािचत शवः । शु बु य शांतो चार गजाननः ॥ ३ ॥
ै मा ेयो मुिन तु यो भ व न वनाशनः । एकद त छतुबाहु छतुर श संयुतः ॥ ४ ॥
ल बोदर शूपकण हर वदु मः । कालो हपितः कामी सोमसूया नलोचनः ॥ ५ ॥
पाशा कुशधर डो गुणातीतो िनर जनः । अक मष वयंिस स ािचतः पदा बुजः ॥ ६ ॥
बीजपूरफलास ो वरद शा तः कृ ितः । ज यो वीतभयो गद च ुचापधृ त ् ॥ ७ ॥
ीदोज उ पलकरः ीपितः तुितह षतः । कुला भे ा ज टलः किलक मषनाशनः ॥ ८ ॥
च चूडाम णः का तः पापहार समा हतः । अि त ीकर सौ यो भ वांिछतदायकः ॥ ९ ॥
शा तः कैव यसुखद स चदान द व हः । ानी दयायुतो दांतो े ष वव जतः ॥ १० ॥
म दै यभयदः ीकंथो वबुधे रः । रामािचतो विधनागराजय ोपवीतकः ॥ ११ ॥
थूलकंठः वयंकता सामघोष यः परः । थूलतु डोऽ णी धीरो वागीश स दायकः ॥ १२ ॥
दवा
ू ब व योऽ य मूितर ु तमूितमान ् । शैले तनुजो स गखेलनो सुकमानसः ॥ १३ ॥
वलाव यसुधासारो जतम मथ व हः । सम तजगदाधारो मायी मूषकवाहनः ॥ १४ ॥
तु ः स ना मा सविस दायकः । अ ो रशतेनैवं ना नां व ने रं वभुं ॥ १५ ॥
तु ाव शंकरः पु ं पुरं हं तुमु यतः । यः पूजयेदनेनैव भ या िस वनायकम ् ॥ १६ ॥
दवादलै
ू ब वप ैः पु पैवा चंदना तैः । सवा कामानवा नोित सव व नैः मु यते ॥
.
॥ वनायक तो ॥
मू षकवाहन मोदकह त चामरकण वल बतसू । वामन प महे रपु व न वनायक पाद नम ते ॥
p दे वदे वसुतं दे वं जग न वनायकम ् । ह त पं महाकायं सूयको टसम भम ् ॥ १ ॥
वामनं ज टलं का तं व ीवं महोदरम ् । धू िस दरयु
ू डं वकटं कटो कटम ् ॥ २ ॥
एकद तं ल बो ं नागय ोपवीितनम ् । य ं गजमुखं कृ णं सुकृतं र वाससम ् ॥ ३ ॥
द तपा णं च वरदं यं चा रणम ् । पु यं गणपितं द यं व नराजं नमा यहम ् ॥ ४ ॥
दे वं गणपितं नाथं व या े तु गािमनम ् । दे वानामिधकं े ं नायकं सु वनायकम ् ॥ ५ ॥
नमािम भगवं दे वं अ तं
ु गणनायकम ् । व तु ड च डाय उ तु डाय ते नमः ॥ ६ ॥
च डाय गु च डाय च डच डाय ते नमः । म ो म म ाय िन यम ाय ते नमः ॥ ७ ॥
उमासुतं नम यािम ग गापु ाय ते नमः । ओ काराय वष कार वाहाकाराय ते नमः ॥ ८ ॥
म मूत महायोिगन ् जातवेदे नमो नमः । परशुपाशकह ताय गजह ताय ते नमः ॥ ९ ॥
मेघाय मेघवणाय मेघे र नमो नमः । घोराय घोर पाय घोरघोराय ते नमः ॥ १० ॥
पुराणपूव पू याय पु षाय नमो नमः । मदो कट नम तेऽ तु नम ते च डव म ॥ ११ ॥
वनायक नम तेऽ तु नम ते भ व सल । भ याय शा ताय महातेज वने नमः ॥ १२ ॥
य ाय य हो े च य ेशाय नमो नमः । नम ते शु लभ मा ग शु लमालाधराय च ॥ १३ ॥
मद ल नकपोलाय गणािधपतये नमः । र पु प याय च र च दन भू षत ॥ १४ ॥
अ नहो ाय शा ताय अपराज य ते नमः । आखुवाहन दे वेश एकद ताय ते नमः ॥ १५ ॥
शूप कणाय शूराय द घद ताय ते नमः । व नं हरतु दे वेश िशवपु ो वनायकः ॥ १६ ॥
फल ुित
जपाद यैव होमा च स योपासनस तथा । व ो भवित वेदा यः यो वजयी भवेत ् ॥
वै यो धनसमृ ः यात ् शू ः पापैः मु यते । गिभणी जनये पु ं क या भतारमा नुयात ् ॥
वासी लभते थानं ब ो ब धात ् मु यते । इ िस मवा नोित पुना यास मं कुलं ॥
सवम गलमा ग यं सवपाप णाशनम् । सवकाम दं पुंसां पठतां ुणुताम प ॥
.
॥ इित ी ा डपुराणे क द ो वनायक तो ं स पूणम ् ॥
श ु वजय कवच
श ु वजय कवच धारण करने से य को श ु से संबंिधत सम त परे शािनओ से वतः ह छुटकारा िमल जाता ह।
॥ ी िस वनायक तो म ् ॥
जयोऽ तु ते गणपते दे ह मे वपुलां मितम।्
नमनं शंभुतनयं नमनं क णालयं।
तवनम ् ते सदा कतु फूित य छममािनशम ् ॥ १॥
नम तेऽ तु गणेशाय वािमने च नमोऽ तु ते ॥ १२॥
भुं मंगलमूित वां च े ाव प यायतः।
नमोऽ तु दे वराजाय व दे गौर सुतं पुनः।
यजत वां व णुिशवौ यायत ा ययं सदा ॥ २॥
नमािम चरणौ भ या भालच गणेशयोः ॥ १३॥
वनायकं च ाहु वां गजा यं शुभदायकं।
नैवा याशा च म च े व े तवन यच।
व ना ना वलयं या त दोषाः किलमला तक ॥ ३॥
भवे येव तु म च े ाशा च तव दशने ॥ १४॥
व पदा जां कत ाहं नमािम चरणौ तव।
अ ान ैव मूढोऽहं यायािम चरणौ तव।
दे वेश वं चैकद तो म ि ं शृ णु भो ॥ ४॥
दशनं दे ह मे शी ं जगद श कृ पां कु ॥ १५॥
कु वं मिय वा स यं र मां सकलािनव।
बालक ाहम प ः सवषामिस चे रः।
व ने यो र मां िन यं कु मे चा खलाः याः ॥ ५॥
पालकः सवभ ानां भविस वं गजानन ॥ १६॥
गौ रसुत वं गणेशः शॄणु व ापनं मम।
द र ोऽहं भा यह नः म च ं तेऽ तु पादयोः।
व पादयोरन याथ याचे सवाथ र णम ् ॥ ६॥
शर यं मामन यं ते कृ पालो दे ह दशनम ् ॥ १७॥
वमेव माता च पता दे व वं च ममा ययः।
इदं गणपते तो ं यः पठे सुसमा हतः।
अनाथनाथ वं दे ह वभो मे वांिछतं फलम ् ॥ ७॥
गणेशकृ पया ानिस धं स लभते धनं ॥ १८॥
लंबोदर वम ् गजा यो वभुः िस वनायकः।
पठे ः िस दं तो ं दे वं संपू य भ मान।्
हे रंबः िशवपु वं व नेशोऽनाथबांधवः ॥ ८॥
कदा प बा यते भूत ेताद नां न पीडया ॥ १९॥
नागाननो भ पालो वरद वं दयां कु ।
प ठ वा तौित यः तो िमदं िस वनायकं।
िसंदरवणः
ू परशुह त वं व ननाशकः ॥ ९॥
ष मासैः िस मा नोित न भवेदनृ तं वचः
व ा यं मंगलाधीशं व नेशं परशूधरं । गणेशचरणौ न वा ूते भ ो दवाकरः ॥ २०॥
द ु रता रं द नब धूं सवशं वां जना जगुः ॥ १०॥
॥ इित ी िस वनायक तो म ् स पूण म ् ॥
नमािम व नहतारं व दे ी मथािधपं।
***
नमािम एकद तं च द नब धू नमा यहम ् ॥ ११॥
िशवश कृ तं गणाधीश तो म
ीश िशवावूचतु:
नम ते गणनाथाय गणानां पतये नम:।
भ याय दे वेश भ े य: सुखदायक॥
वान दवािसने तु यं िस बु वराय च।
नािभशेषाय दे वाय ढु ढराजाय ते नम:॥
वरदाभयह ताय नम: परशुधा रणे।
नम ते सृ णह ताय नािभशेषाय ते नम:॥
अनामयाय सवाय सवपू याय ते नम:।
सगुणाय नम तु यं णे िनगु णाय च॥
यो दा े च गजानन नमो तु ते।
आ दपू याय ये ाय ये राजाय ते नम:॥
मा े प े च सवषां हे र बाय नमो नम:।
अनादये च व नेश वघ क रे नमो नम:॥
वघ ह रे वभ ानां ल बोदर नमो तु ते।
वद यभ योगेन योगीशा: शा तमागता:॥
कं तुवो योग पं तं णमाव वघ पम।्
तेन तु ो भव वािम न यु वा तं णेमतु:॥
तावु था य गणाधीश उवाच तौ महे रौ॥
ीगणेश उवाच
भव कृ तिमदं तो ं मम भ ववधनम।्
भ व यित च सौ य य पठते ृ वते दम।्
भु मु दं चैव पु पौ ा दकंतथा॥
धनधा या दकं सव लभते तेन िन तम॥्
जो य इस तो का िनयिमत प से
विधवत ा भ से पठन और वण करता ह।
उसे सभी कार के सुख ा होते ह। इसके
अित र तो का पाठ करने से य को भोग-
मो तथा पु और पौ आ द का लाभ होता ह। तो के
ारा य को धन-धा य इ या द सभी व तुएँ िन त प से
ा होती ह।
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करने वाली उजा हे तु बाधक होने पर वा तु म उसे ारवेध माना जाता ह। ारवेध होने पर वहां रहने वाल म
उ चाटन होता ह। ऐसे म भवन के मु य ार पर गणोशजी क बैठ हई
ु ितमा (मूित) लगाने से ारवेध का िनवारण
होता ह। लगानी चा हए कंतु उसका आकार 11 अंगुल से अिधक नह ं होना चा हए।
गणेश गाय ी मं
एकद ताय ् व हे व तु डाय धीम ह। त नो द ती चोदयात॥् (गणप युपिनष )
उ ह गंधव को ाप देते हए
ु कहा, तुमने चोर क
भांित मेर सहधिमनी का हाथ पकड़ा ह, इस कारण तुम अबसे मूषक
होकर धरती के नीचे और चोर करके अपना पेट भरोगे।’
ऋ ष का ाप सुनकर गंधव ने ऋ ष से ाथना क - हे ऋ षवर, अ ववेक के कारण
मने आपक प ी के हाथ का पश कया। मुझे मा कर द।
ी
रामायण िलखते रामदास िलखते जाते और अपने िश य को सुनाते जाते थे। हनुमान जी भी िश य के
बच म रामायण को गु प से सुनने के िलये आकर बैठते थे। समथरामदास ने िलखा, हनुमान अशोक वन म
गये, वहाँ उ ह न सफेद फूल दे खे।
इस वा य को सुनते ह हनुमान जी झट से कट हो गये और बोले , मने सफेद फूल नह ं दे खे थे। आपने
गलत िलखा ह, उसे सुधार दो। समथ ने कहा, मने ठ क ह िलखा ह। तुमने सफेद फूल ह दे खे थे
हनुमान ने कहा, आप कैसी बात करते हो! म वयं वहाँ गया और म ह झूठा!
अंत म यह बात ी रामचं जी के पास पहँु च गई। उ ह ने कहा क , फूल तो सफेद ह थे, पर तु हनुमान
क आँख ोध से लाल हो रह थीं, इसिलए वे उ ह लाल दखाई दये थे।
इस कथा का त पय यह है क संसार क तरफ दे खने क जैसी हमार ी होती ह,
संसार हम वैसा ह दखाई दे ता ह।
f गु व योितष 48 िसत बर 2010
ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह
अ य त शुभ फ़लदयी यं है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं
संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु " ी यं "
जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी िस होता है उसके दशन मा से
अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ यश मनु य क
सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से हताशा और िनराशा दरू
होकर वह मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त
भौितक सुखो क ाि होित है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं
नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर
या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से स ब धत परे शािन मे युनता आित है
व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु व कायालय मे " ी यं " १२ ाम से ७५ ाम
तक क साइज मे उ ल ध है मू य:- ित ाम `. 8.20 से `.28.00
, GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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f गु व योितष 49 िसत बर 2010
िचंतन जोशी
भारतीय सं कृ ित म आ या मक आ था क से भगवान गणपितजी का हमारे जीवन म वशेष मह व ह।
ठक उसी कार से योितष शा क से भी गणेशजी वशेष मह व रखते ह। योितष के अनुशार बारह रािश
च म सबसे थम जो रािश आित ह वह ह मेष रािश ह। मेष रािशका वामी ह मंगल ह। जस कार गणेशजी का
सव थम मरण-पूजन-अचन होता ह। इसी कार मंगल ह के आिधप य वाली मेष रािश भी रािश च म अ य
हो क रािश से सव थम आती ह। जस कार गणेशजी गणो के पित अथात गणपित ह, इसी कार मंगल ह को
भी योितष म सेनापित क स ा दगई ह।
जेसे मंगल का रं ग लाल या िसंदरू के रं गके समान ह, इस िलये भगवान गणेश को भी िसंदरू ह चढाया जाता
ह। इस िलये गणेशजी को मंगलनाथ या मंगलमूित भी कहाजाता ह। मंगल कुमार को गणेशजी न मंगलवार के दन
दशन दे कर उनहे मंगल ह होने का वरदान दया था इसी के कारण ह भगवान गणेश को मंगल मूित कहा जाता ह
और मंगलवार के दन मंगलमूित गणेश का पूजन कया जाता ह। व ानो ने दे वी महाकाली जी का पूजन भी मंगलवार
को े फल दे ने वाला माना ह।
मंगल ह क उ प िशव से मानी गई ह। इसी कारण मंगल म िशव के समान तेज ह। मंगल के भाव वाले
जाताक आकषक, तेज वी, िचड़िचड़े वाभाव, सम याओं से लडऩे क श वशेष प से भावमान होता ह। वकट से
वकट सम याओं म िघरे होने के बावजूद जातक अपना धैय नह ं छोड़ते ह। योितष थो म मंगल को भले ह ूर ह
बताया गया ह, मंगल केवल अमंगलकार ह नह ं ह यह मंगलकार भी होता ह।
अ ल मी
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां
ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)-
वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का वतः अशीवाद ा होता ह।
मू य मा : `.1050
f गु व योितष 50 िसत बर 2010
गणेशजी माता ल मी के द क पु है ?
व णु धाम म भगवान व णु एवं माता ल मी वराजमान ल मीजी क पीडा दे ख कर पावतीजी ने गणेश जी
होकर आपस म वातालाप कर रहे थे, बात-बात म अहं के को ल मीजी को द क पु के प म दे ने का वीकार कर
कारण ल मी जी बोल उठे क म िलया। पावतीजी से गणेश जी को पु के प पाकर
सभी लोक म सब से अिधक पूजनीय एवं सबसे े हंु । ल मीजी न ह षत होते हवे
ु कहां म अपनी सभी िस यां ,सुख
अपने पु गणेश जी को दान करती हँू । इस
ल मी जी को इस कार अपनी अहं से वयं
के साथ साथ म मेर पु ी के
क शंसा करते दे ख भगवान
समान य र ध और
व णु जी को अ छा नह ं
िस ध जो के ा जी
लगा। उनका अहं दरू
क पु याँ ह , उनसे
करने के िलए उ ह ने
गणेशजी का
कहा तुम सव संपन
ववाह करने का
होते हए
ु भी आज तक
वचन दे ती हँू ।
माँ का सुख ा नह ं
यद
कर पाई।
स पूण लोक
इस बात को सुन कर म जो य , ी
ल मीजी को बहत
ु दःखी
ु गणेश जी क पूजा नह ं
होगई और वो अपनी पीड़ा सुनांने के करे गा वरन उनक िनंदा करे गा म
िलये माता पावती के पास गयीं और उनसे उनसे कोस दरू रहँू गी | जब भी मेर पूजा होगी
वनती क वो अपने पु काितकेय और गणेशजी म से कसे उसके साथ हं गणेश क भी पूजा अव य होगी।
एक पु को उनह द क पु के प म दान कर द।
संतान गणपित तो
संतान द गणपित तो :
नमोऽ तु गणनाथ िस बु युताय च। सव दाय दे वाय पु -वृ दाय च॥ १ ॥ गु दराय गु वे गो े गु ािसताय ते।
गो याय गो पताशेष भुवनाय िचदा मने॥ २ ॥ व मूलाय भ याय व सृ कराय ते। नमो नम ते स याय स य पूणाय
शु डने॥ ३ ॥ एकदं ताय शु ाय सुमुखाय नमो नमः। य जनपालाय णताित वनािशने॥ ४ ॥ शरणं भव दे वेश संतित
सु ढ़ां कु । भ व य त च ये पु ा म कुले गणनायक॥ ५ ॥ ते सव तव पूजाथ िनरताः युव रो मतः। पु दिमदं तो ं
सविस दायकम ्॥ ६ ॥
मू य
एक राजा थे। वह बड़े ह उदार थे। दानी तो इतने क खाने-पीने क जो भी चीज होती, अ सर भूख को बांट दे ते और
वयं पानी पीकर रह जाते। एक बार ऐसा संयोग हआ
ु क उ ह कई दन तक भोजन नह ं िमला। उसके बाद िमला तो
थाल भरकर िमला। उसम से भूख को बांटकर जो बचा, उसे खाने बैठे क एक ा ण आ गया। ा ण बोला, महाराज!
मुझे कुछ खाने को द जये। राजा ने थाल म से थोड़ -थोड़ खाने क चीज उठाकर उसे दे द ं। फर जैसे ह खाने को हए
ु
क एक शू आ गया। राजा ने खुशी-खुशी उसे भी खाने को कुछ दे दया। उसके जाते ह एक चा डाल आ गया। राजा
ने बचा-बचाया सब खाना उसे दे दया। मन-ह -मन सोचा, कतना अ छा हआ
ु , जो इतने लोगो का काम चल गया! मेरा
या ह, पानी पीकर मजे म अपनी गुजर कर लूंगा। इतना कहकर वह जैसे ह पानी पीने लगे क वहां हांफता हआ
ु एक
कु ा आ गया। यास के मारे गम से वह बेहाल हो रहा था। राजा ने झट पानी का बतन उठाकर उसके सामने रख
दया। कु ा सारा पानी पी गया। राजा को न खाना िमला, न पानी िमला, पर उस क आ मा को जो तृ ि िमली उसका
मू य कौन आंक सकता ह!
f गु व योितष 55 िसत बर 2010
सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।
कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।
सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।
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8 भा पद कृ ण अमाव या 15:59:38 पूवाफा गुनी 23:51:12 िस 11:05:15 नाग 15:59:38 िसंह 29:05:00
16 भा पद शु ल नवमी 24:58:52 मूल 16:12:56 आयु मान 11:11:03 बालव 12:14:48 धनु
29 आ न कृ ण ष ी 22:09:06 रो ह ण 20:09:06
िस 16:08:10 गर 10:07:13 वृष
29 आ न कृ ण ष ी 22:09:06 ष ी ा
30 आ न कृ ण स मी 21:48:03 स मी ा , महाल मी त
f गु व योितष 59 िसत बर 2010
सवदोषनाशक र व योग
दनांक योग अविध
10 सं या 6:09 से 11 िसत बर को दोपहर 3:58 तक
12 दोपहर 2:24 से 13 िसत बर को दोपहर 1:38 तक
13 सं या 7.23 से 14 िसत बर को दोपहर 1:41 तक
16 सं या 4:11 से 18 िसत बर को रा 9:08 तक
20/21 म.रा 3:07 से 22 िसत बर को ात: 6:06 तक
29 रा 8:08 से 30 िसत बर को रा 8:28 तक
योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
अमृ त योग म कये गये काय म शुभ फल क ाि होती ह। एसा शा ो
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ दोगुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह।
f गु व योितष 60 िसत बर 2010
02 04:15:25 01:18:46 05:27:26 RC 04:18:21 R 11:06:51 06:00:37 05:10:13 R 08:15:59 R 02:15:59 R 11:05:21 R 10:02:56 R 08:08:49
03 04:16:23 02:02:06 05:28:06 RC 04:17:24 R 11:06:44 06:01:27 05:10:20 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:19 R 10:02:55 R 08:08:48
04 04:17:21 02:15:52 05:28:45 RC 04:16:27 R 11:06:37 06:02:17 05:10:27 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:17 R 10:02:53 R 08:08:48
05 04:18:19 03:00:05 05:29:24 RC 04:15:31 R 11:06:30 06:03:06 05:10:34 R 08:16:00 R 02:16:00 R 11:05:15 R 10:02:52 R 08:08:48
06 04:19:18 03:14:43 06:00:03 RC 04:14:38 R 11:06:23 06:03:54 05:10:41 R 08:15:57 R 02:15:57 R 11:05:12 R 10:02:50 R 08:08:47
07 04:20:16 03:29:44 06:00:43 RC 04:13:50 R 11:06:15 06:04:42 05:10:48 R 08:15:51 R 02:15:51 R 11:05:10 R 10:02:48 R 08:08:47
08 04:21:14 C 04:14:58 06:01:22 RC 04:13:07 R 11:06:08 06:05:29 05:10:55 R 08:15:44 R 02:15:44 R 11:05:08 R 10:02:47 R 08:08:47
09 04:22:12 C 05:00:16 06:02:02 RC 04:12:30 R 11:06:00 06:06:15 05:11:02 R 08:15:34 R 02:15:34 R 11:05:06 R 10:02:45 R 08:08:47
10 04:23:11 05:15:26 06:02:42 RC 04:12:00 R 11:05:53 06:07:00 05:11:09 R 08:15:24 R 02:15:24 R 11:05:03 R 10:02:44 R 08:08:46
11 04:24:09 06:00:18 06:03:21 RC 04:11:38 R 11:05:45 06:07:44 05:11:17 R 08:15:15 R 02:15:15 R 11:05:01 R 10:02:42 R 08:08:46
12 04:25:07 06:14:45 06:04:01 RC 04:11:25 R 11:05:37 06:08:27 05:11:24 R 08:15:08 R 02:15:08 R 11:04:58 R 10:02:41 R 08:08:46
13 04:26:06 06:28:42 06:04:41 04:11:21 R 11:05:30 06:09:10 05:11:31 R 08:15:02 R 02:15:02 R 11:04:56 R 10:02:39 R 08:08:46
14 04:27:04 07:12:10 06:05:21 04:11:26 R 11:05:22 06:09:51 C 05:11:38 R 08:15:00 R 02:15:00 R 11:04:54 R 10:02:38 R 08:08:46
15 04:28:03 07:25:11 06:06:01 04:11:40 R 11:05:14 06:10:31 C 05:11:46 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:51 R 10:02:36 08:08:46
16 04:29:01 08:07:48 06:06:41 04:12:03 R 11:05:06 06:11:10 C 05:11:53 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:49 R 10:02:35 08:08:46
17 05:00:00 08:20:07 06:07:21 04:12:36 R 11:04:58 06:11:48 C 05:12:00 R 08:14:59 R 02:14:59 R 11:04:47 R 10:02:34 08:08:46
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19 05:01:57 09:14:08 06:08:42 04:14:07 R 11:04:42 06:13:01 C 05:12:15 R 08:14:54 R 02:14:54 R 11:04:42 R 10:02:31 08:08:47
20 05:02:55 09:26:00 06:09:22 04:15:04 R 11:04:34 06:13:35 C 05:12:22 R 08:14:48 R 02:14:48 R 11:04:39 R 10:02:29 08:08:47
21 05:03:54 10:07:50 06:10:03 04:16:09 R 11:04:26 06:14:08 C 05:12:29 R 08:14:39 R 02:14:39 R 11:04:37 R 10:02:2 08:08:47
22 05:04:52 10:19:41 06:10:43 04:17:20 R 11:04:18 06:14:40 C 05:12:37 R 08:14:28 R 02:14:28 R 11:04:35 R 10:02:27 08:08:47
23 05:05:51 11:01:36 06:11:24 04:18:38 R 11:04:10 06:15:10 C 05:12:44 R 08:14:15 R 02:14:15 R 11:04:32 R 10:02:26 08:08:47
24 05:06:50 11:13:36 06:12:04 04:20:00 R 11:04:02 06:15:39 C 05:12:51 R 08:14:01 R 02:14:01 R 11:04:30 R 10:02:24 08:08:48
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27 05:09:46 00:20:13 06:14:07 04:24:35 R 11:03:38 06:16:56 C 05:13:14 R 08:13:25 R 02:13:25 R 11:04:23 R 10:02:20 08:08:49
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f गु व योितष 61 िसत बर 2010
मािसक रािश फल
िचंतन जोशी
मेष : सभी मामल म िचंता बढ़ सकती ह। हर काय म िसंह : यापार-नौकर म वृ एवं पदोऊ नित हो सकती
व न बाधा उ प न होती हई
ु ितत होगी जस कारण ह। दसर
ू के अनु प काय करने क उपे ा अपने वयं के
आपके उ साह म कमी हो सकती ह। सावधानी बत िगरवी िनणयो पर काये करने से अिधक लाभ क ाि होगी
रखकर कज लेना पड सकता ह। कसी और के िलये और आपके मान-स मान- ित ा म वृ होगी। आिथक
ज मेदार , जमानत, इ या द काम म अित र सावधा रह मामलो म सुधार होगा। अिधक यास प र म से नये काय
य द संभव हो सके तो काय को टाल दना आपके िलये से लाभ ा कर सकते ह। संबंध का लाभ िमलेगा। कोट-
उपयु होगा। पूंजी िनवेश और बड़ खर द- ब इ या द कचहर के ववाद सुलझगे। संतोष रहे गा।
से बच।
व न िनवारण कवच
मू य मा : `.550
f गु व योितष 63 िसत बर 2010
सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।
उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।
कवच के लाभ :
एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच
एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हे तु
सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं फल द होता ह।
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।
नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
f गु व योितष 65 िसत बर 2010
Specific Consultation
Type Time Limit Charges
► Genral Reply With in 25-30 Day Rs. 640
► Special Reply With in 12-15 Day Rs. 1050
► Express Reply With in 1- 3 Day Rs. 1450
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We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit,
If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange.
We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information about
our any other clients' transactions with us.
Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings of the
natural and spiritual world.
Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.
Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our Article
dose not produce any bad energy.
Our Goal
Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants prestigious
full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All types of Yantra,
Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door step.
f गु व योितष 66 िसत बर 2010
Shastrokt Yantra
Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..
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Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
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(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
f गु व योितष 68 िसत बर 2010
मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महतू म शुभ दन को तैयार कये जाते है अलग अलग कवच तैयार करने केिलए अलग अलग तरह के
. - -
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
कोई बुरा भाव नह ं
कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु
कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700-/ ऋण मु कवच – 730/- वरोध नाशक कवचा- 550-/
सवजन वशीकरण कवच - 1050-/* नव ह शांित कवच – 730/- वशीकरण कवच – 460/-* )2-3 य के िलए(
अ ल मी कवच – 1050/- तं र ा कवच – 730/- प ी वशीकरण कवच – 460/-*
आक मक धन ाि कवच – श ु वजय कवच – 640/-* नज़र र ा कवच – 460/-
910/-
भूिम लाभ कवच – 910/- पद उ नित कवच – 640/- यापर वृ कवच- 370-/
संतान ाि कवच – 910/- धन ाि कवच – 640/- पित वशीकरण कवच – 370/-*
काय िस कवच – 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच – 640/- दभा
ु य नाशक कवच – 370/-
काम दे व कवच – 820/- म त क पृ वधक कवच – 640/- सर वती कवक – 370/- क ा+ 10 के िलए
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच – 550/- सर वती कवक -280 / - क ा 10 तक के िलए
पे - यापर वृ कवच – 730/- व न बाधा िनवारण कवच – 550/- वशीकरण कवच – 280/-* 1 य के िलए
GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
f गु व योितष 70 िसत बर 2010
सूचना
प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।
प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं है .
अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखका के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य नह ं ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।
यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।
पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।
FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का िसत बर -2010
संपादक
िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग
गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
INDIA
फोन
91+9338213418, 91+9238328785
ईमेल
gurutva.karyalay@gmail.com,
gurutva_karyalay@yahoo.in,
वेब
http://gk.yolasite.com/
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f गु व योितष 72 िसत बर 2010
हमारा उ े य
य आ मय
बंध/ु ब हन
जय गु दे व
जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क
भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप
अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , हर एवं उपर और दलभ
ु मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
GURUTVA KARYALAY
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Sep
2010