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Bal Sanskar Pathyakram
Bal Sanskar Pathyakram
Bal Sanskar Pathyakram
बबबबबबबबब
बबबबबबबबबब
िजस पकार की नीव होती है उसी के अनुरप उस पर खडे भवन की मजबूती भी होती है। यिद नीव ही कमजोर हो तो उस पर
भवय भवन का िनमाण कैसे हो सकता है ? बचचे भावी समाज की नीव होते है। लेिकन आज के दूिषत वातावरण मे बचचो पर ऐसे-ऐसे
गलत संसकार पड रहे है िक उनका जीवन पतन की ओर जा रहा है। बालकरपी नीव ही कचची हो तो सुदृढ नागिरको से युकत समाज
कहा से बनेगा ?
िकसी भी पिरवार, समाज अथवा राषट का भिवषय उसके बालको पर िनभरर होता है। उजजवल भिवषय के िलए हमे बालको को
सुसंसकािरत करना होगा। बालको को भारतीय संसकृित के अनुरप िशका देकर हम एक आदशर राषट के िनमाण मे सहभागी हो सकते
है।
बहिनष संत शी आसारामजी बापू के मागरदशरन मे हो रही बाल िवकास की िविभन सेवा-पवृितयो दारा बचचो को ओजसवी,
तेजसवी, यशसवी बनाने हेतु भारतीय संसकृित की अनमोल कु ंिजया पदान की जा रही है। इनही सतपवृितयो मे मुखय भूिमका िनभा रहे है
देश मे वयापक सतर पर चल रहे 'बबब बबबबबबब बबबबबबब'।
इन केनदो मे िविभन महापुरषो के जीवन चिरत पर आधािरत पसंगो के माधयम से िवदािथरयो मे ससंसकारो का िसंचन िकया
जाता है। उनमे हमारी िदवय संसकृित, जीवन जीने की उतम कला िसखाने वाले महापुरषो तथा माता-िपता एवं गुरजनो के पित शदाभाव
जगे, ऐसे कथा-पसंग बताये जाते है।
बाल संसकार केनद संचालन िनदेिशका मे दी हुई 2 घँटे की कायरपणाली मे से पवर मिहमा, ऋतुचया, कथा-पसंग एवं अनय
महततवपूणर िवषयो पर पित सपताह िवसतृत पाठयकम के रप मे यह पुिसतका पसतुत की जा रही है। देशभर मे चल रहे सभी केनदो मे
एकरपता व सामंजसयता सथािपत हो यह इस पुिसतका के पकाशन का मुखय उदेशय है।
बाल संसकार केनद संचालक इस बात धयान रखे िक िजस माह से वे इस पुसतक के अनुसार पढाना शुर करे, उस माह के
तयौहार, जयंितया, ऋतुचया कैलेणडर मे देखे। िफर इस पुसतक की अनुकमिणका मे उससे समबिनधत लेख देखकर उससे समबिनधत
सत से पढाना शुर करे। पुसतक मे िदया हुआ पहला सत जनवरी के पथम सपताह मे पढाने के िलए है।
यह पाठयकम वषर भर मे आने वाले वरत, तयौहार तथा महापुरषो की जयंितयो आिद के आधार पर बनाया गया है। केनद
संचालको से िनवेदन है िक अनय वषों मे वरत तयौहार, महापुरषो की जयंित-ितिथयो, तारीखो के अनुसार िवषयो को बदल कर पढा सकते
है।
सत 1 से 52 तक का अिभपायः वषर के 52 सपताहो से है। पतयेक वषर सत 1 जनवरी के पथम सपताह से शुर होगा।
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बबबबबबबबबबब
बबब-बबबबबबबबब
जनवरी माह की 12 से 14 तारीख के बीच मकर सकािनत का पवर आता है। इस समय सूयर मकर रािश मे
पवेश करता है, इसीिलए इसे मकर सकािनत कहते है। खगोलशािसतयो ने 14 जनवरी को मकर सकािनत का िदवस
तय कर िलया है। बाकी तो सूयर का मकर रािश मे पवेश कभी 12 से होता है, कभी 13 से तो कभी 14 तारीख से।
ऐसा भी कहते है िक इस िदन से सूयर का रथ उतर िदशा की ओर चलता है, अतः इसे उतरायण कहते है।
हमारे छः महीने बीतते है तब देवताओं की एक रात होती है और छः महीने का एक िदन। मकर सकािनत के
िदन देवता लोग भी जागते है। हम पर उन देवताओं की कृपा बरसे, इस भाव से भी यह पवर मनाया जाता है। कहते है
िक इस िदन यज मे िदये गये दवय को गहण करने के िलए वसुंधरा पर देवता अवतिरत होते है। इसी मागर से पुणयातमा
पुरष शरीर छोडकर सवगािदक लोको मे पवेश करते है, इसिलए यह आलोक का अवसर माना गया है। धमरशासतो के
अनुसार इस िदन पुणय, दान, जप तथा धािमरक अनुषानो का अतयंत महततव है। इस अवसर पर िदया हुआ दान
पुनजरनम होने पर सौ गुना होकर पापत होता है।
यह पाकृितक उतसव है, पकृित से तालमेल कराने वाला उतसव है। दिकण भारत मे तिमल वषर की शुरआत
इसी िदन से होती है। वहा यह पवर 'थई पोगल' के नाम से जाना जाता है। िसंधी लोग इस पवर को 'ितरमौरी' कहते है।
उतर भारत मे यह पवर 'मकर सकािनत के नाम से और गुजरात मे 'उतरायण' नाम से जाना जाता है।
आज का िदवस िवशेष पुणय अिजरत करने का िदवस है। आज के िदन िशवजी ने अपने साधको पर, ऋिषयो
पर िवशेष कृपा की थी। ऐसा भी माना जाता है आज के िदन भगवान िशव ने िवषणु जी को आतमजान का दान िदया
था। तैतीरीय उपिनषद् मे आता हैः बबब बब बबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबब
। देवो का संवतसर िगनने
का यह एक ही िदन है। िवकम संवतसर के पूवर इसी िदन से संवतसर की शुरआत मानी जाती थी, ऐसा भी वणरन आता
है।
मकर सकािनत के िदन िकये गये सतकमर िवशेष फल देते है। आज के िदन भगवान िशव को ितल-चावल
अपरण करने का िवशेष महततव माना गया है। ितल का उबटन, ितलिमिशत जल से सनान, ितलिमिशत जल का पान,
ितल-हवन, ितल-भोजन तथा ितल-दान सभी पापनाशक पयोग है। इसिलए इस िदन ितल और गुड या ितल और चीनी
से बने लडडू खाने तथा दान देने का अपार महततव है। ितल के लडडू खाने से मधुरता और िसनगधता पापत होती है
तथा शरीर पुष होता है। शीतकाल मे इनका सेवन लाभपद है। महाराषट मे आज के िदन एक-दूसरे को ितल-गुड
देकर मधुरता का, सामथयर का, परसपर आंतिरक पेमवृिद का और आरोगयता का संकलप िकया जाता है। वहा के लोग
परसपर ितल-गुड पदान करके कहते है- बबब बबबब बबबब बबब । बबब बबबबब अथात् ितल-गुड लो और मीठा-
मीठा बोलो।
यह तो हुआ लौिकक रप से संकाित मनाना िकंतु मकर सकाित का आधयाितमक तातपयर है जीवन मे समयक्
कािनत। अपने िचत को िवषय िवकारो से हटाकर िनिवरकारी नारायण मे लगाने का और समयक् काित का संकलप
करने का यह िदन है। अपने जीवन को परमातम-धयान, परमातम-जान और परमातम पािपत की ओर ले जाने संकलप का
बिढया से बिढया जो िदन है, वही संकाित का िदन है।
मानव सदा ही सुख का पयासा रहा है। उसे समयक् सुख नही िमलता है तो अपने को असमयक् सुख मे खपा-
खपा कर कई जनमो तक जनमता-मरता रहता है। अतः अपने जीवन मे समयक् सुख पाने के िलए पुरषाथर करना
चािहए। वासतिवक सुख कया है ? बबबबबबबब-बबबबबबबब। अतः उस परमातम-पािपत का सुख पाने के िलए
किटबद होने का िदवस ही है सकाित। संकाित का पवर हमे िसखाता है िक हमारे जीवन मे भी समयक् कािनत आ
जाये। हमारा जीवन िनभरयता और पेम से पिरपूणर हो जाय। ितल-गुड का आदान-पदान परसपर पेमवृिद का ही तो
दोतक है !
संकाित के िदन दान का िवशेष महततव है। अतः िजतना संभव हो सके, उतना िकसी गरीब को अनदान
करे। ितल के लडडू भी दान िकये जाते है। आज के िदन सतसािहतय के दान का भी सुअवसर पापत िकया जा सकता
है। तुम यह सब न कर सको तो भी कोई हजर नही िकनतु हिरनाम का रस तो जरर िपलाना। अचछे मे अचछा तो
परमातमा है। उसका नाम लेते लेते यिद अपने अहं को सदगुर के चरणो मे, संतो के चरणो मे अिपरत कर दो तो
फायदा ही फायदा है।...... और अहंदान से बढकर तो कोई दान नही है। अगर अपना आपा संतो के चरणो मे, सदगुर
के चरणो मे दान कर िदया जाय तो िफर चौरासी का चकर सदा के िलए िमट जाय।
संकािनत के िदन सूयर का रथ उतर की ओर पयाण करता है। उसी तरह तुम भी इस मकर संकाित के पवर
पर संकलप कर लो िक अब हम अपने जीवन को उतर की ओर अथात् उतथान की ओर ले जायेगे। अपने िवचारो को
उतथान की तरफ मोडंगे। यिद ऐसा कर सको तो आज का िदन तुमहारे िलए परम मागिलक िदन हो जायेगा। पहले के
जमाने मे आज के िदन लोग अपने तुचछ जीवन को बदलकर महान बनाने का संकलप करते थे।
हे साधक ! तू भी आज संकलप कर िक अपने जीवन मे समयक् कािनत-संकाित लाऊँगा। अपनी तुचछ, गंदी
आदतो को कुचल दूँगा और िदवय जीवन िबताऊँगा। पितिदन पाथरना करँगा, जप धयान करँगा, सवाधयाय करँगा और
अपने जीवन को महान बनाकर ही रहँूगा। पािणमात के जो परम िहतैषी है, उन परमातमा की लीला मे पसन रहँूगा।
चाहे मान हो चाहे अपमान, चाहे सुख िमले चाहे दुःख, िकंतु सबके पीछे देने वाले के करणामय हाथो को ही देखूँगा।
पतयेक पिरिसथित मे सम रहकर अपने जीवन को तेजसवी-ओजसवी और िदवय बनाने का पयास अवशय करँगा।
बबब ब....ब......ब......ब......
अनुकम
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सत 3
बबबब-बबबबबबबब बबबबबबबब
शासतो मे आता है िक िजसने माता-िपता तथा गुर का आदर कर िलया उसके दारा संपूणर लोको का आदर हो
गया और िजसने इनका अनादर कर िदया उसके संपूणर शुभ कमर िनषफल हो गये। वे बडे ही भागयशाली है, िजनहोने
माता-िपता और गुर की सेवा के महततव को समझा तथा उनकी सेवा मे अपना जीवन सफल िकया। ऐसा ही एक
भागयशाली सपूत था - पुणडिलक।
पुणडिलक अपनी युवावसथा मे तीथरयाता करने के िलए िनकला। याता करते-करते काशी पहुँचा। काशी मे
भगवान िवशनाथ के दशरन करने के बाद उसने लोगो से पूछाः कया यहा कोई पहुँचे हुए महातमा है, िजनके दशरन करने
से हृदय को शाित िमले और जान पापत हो?
लोगो ने कहाः हा है। गंगापर कुकुर मुिन का आशम है। वे पहुँचे हुए आतमजान संत है। वे सदा परोपकार मे
लगे रहते है। वे इतनी उँची कमाई के धनी है िक साकात मा गंगा, मा यमुना और मा सरसवती उनके आशम मे
रसोईघर की सेवा के िलए पसतुत हो जाती है। पुणडिलक के मन मे कुकुर मुिन से िमलने की िजजासा तीवर हो उठी।
पता पूछते-पूछते वह पहुँच गया कुकुर मुिन के आशम मे। मुिन के देखकर पुणडिलक ने मन ही मन पणाम िकया और
सतसंग वचन सुने। इसके पशात पुणडिलक मौका पाकर एकात मे मुिन से िमलने गया। मुिन ने पूछाः वतस! तुम कहा
से आ रहे हो?
पुणडिलकः मै पंढरपुर (महाराषट) से आया हूँ।
तुमहारे माता-िपता जीिवत है?
हा है।
तुमहारे गुर है?
हा, हमारे गुर बहजानी है।
कुकुर मुिन रष होकर बोलेः पुणडिलक! तू बडा मूखर है। माता-िपता िवदमान है, बहजानी गुर है िफर भी
तीथर करने के िलए भटक रहा है? अरे पुणडिलक! मैने जो कथा सुनी थी उससे तो मेरा जीवन बदल गया। मै तुझे
वही कथा सुनाता हँू। तू धयान से सुन।
एक बार भगवान शंकर के यहा उनके दोनो पुतो मे होड लगी िक, कौन बडा?
िनणरय लेने के िलए दोनो गय़े िशव-पावरती के पास। िशव-पावरती ने कहाः जो संपूणर पृथवी की पिरकमा करके
पहले पहुँचेगा, उसी का बडपपन माना जाएगा।
काितरकेय तुरनत अपने वाहन मयूर पर िनकल गये पृथवी की पिरकमा करने। गणपित जी चुपके-से एकात मे
चले गये। थोडी देर शात होकर उपाय खोजा तो झट से उनहे उपाय िमल गया। जो धयान करते है, शात बैठते है उनहे
अंतयामी परमातमा सतपेरणा देते है। अतः िकसी किठनाई के समय घबराना नही चािहए बिलक भगवान का धयान करके
थोडी देर शात बैठो तो आपको जलद ही उस समसया का समाधान िमल जायेगा।
िफर गणपित जी आये िशव-पावरती के पास। माता-िपता का हाथ पकड कर दोनो को ऊँचे आसन पर िबठाया,
पत-पुषप से उनके शीचरणो की पूजा की और पदिकणा करने लगे। एक चकर पूरा हुआ तो पणाम िकया.... दूसरा
चकर लगाकर पणाम िकया.... इस पकार माता-िपता की सात पदिकणा कर ली।
िशव-पावरती ने पूछाः वतस! ये पदिकणाएँ कयो की?
गणपितजीः बबबबबबबबबबबब बबबब... बबबबबबबबबब बबबब... सारी पृथवी की पदिकणा करने
से जो पुणय होता है, वही पुणय माता की पदिकणा करने से हो जाता है, यह शासतवचन है। िपता का पूजन करने से
सब देवताओं का पूजन हो जाता है। िपता देवसवरप है। अतः आपकी पिरकमा करके मैने संपूणर पृथवी की सात
पिरकमाएँ कर ली है। तब से गणपित जी पथम पूजय हो गये।
िशव-पुराण मे आता हैः
बबबबबबबबब बबबबब बबबबबब बबबबबबबबबबबब ब बबबबब बब। बबबब बब
बबबबबबबबबबबबब बबबब बबबबबबबबब ।
बबबबब बबबब बब बब बबबबब। बबबबबबबबबबबबबबब बबबब बबबब बबब बबबबबबबब
बबबब ब बबबबबबबब।।
बबबबबबबब ब बबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबबबब
। बबबबबबबबबब बब बबबब बब
बबबबब बबबबबबबबबबबब बबबब।।
बबब बबबबबबबब बबबबबब बबबबब बबबबबबबबबब। बबबबबबबब ब बबबबबबबबबबबबब
बबबबबब बबबब बबबबबबबब।।
जो पुत माता-िपता की पूजा करके उनकी पदिकणा करता है, उसे पृथवी-पिरकमाजिनत फल सुलभ हो जाता
है। जो माता-िपता को घर पर छोड कर तीथरयाता के िलए जाता है, वह माता-िपता की हतया से िमलने वाले पाप का
भागी होता है कयोिक पुत के िलए माता-िपता के चरण-सरोज ही महान तीथर है। अनय तीथर तो दूर जाने पर पापत होते
है परंतु धमर का साधनभूत यह तीथर तो पास मे ही सुलभ है। पुत के िलए (माता-िपता) और सती के िलए (पित) सुंदर
तीथर घर मे ही िवदमान है।
(बबब बबबबब, बबबबब बब.. बब बब.. - 20)
पुणडिलक मैने यह कथा सुनी और अपने माता-िपता की आजा का पालन िकया। यिद मेरे माता-िपता मे कभी
कोई कमी िदखती थी तो मै उस कमी को अपने जीवन मे नही लाता था और अपनी शदा को भी कम नही होने देता
था। मेरे माता-िपता पसन हुए। उनका आशीवाद मुझ पर बरसा। िफर मुझ पर मेरे गुरदेव की कृपा बरसी इसीिलए
मेरी बहजा मे िसथित हुई और मुझे योग मे भी सफलता िमली। माता-िपता की सेवा के कारण मेरा हृदय भिकतभाव से
भरा है। मुझे िकसी अनय इषदेव की भिकत करने की कोई मेहनत नही करनी पडी।
बबबबबबबब । बबब बबबबबबबब
। । बबब बबबबबबबबब बबब
मंिदर मे तो पतथर की मूितर मे भगवान की कामना की जाती है जबिक माता-िपता तथा गुरदेव मे तो सचमुच
परमातमदेव है, ऐसा मानकर मैने उनकी पसनता पापत की। िफर तो मुझे न वषों तक तप करना पडा, न ही अनय
िविध-िवधानो की कोई मेहनत करनी पडी। तुझे भी पता है िक यहा के रसोईघर मे सवयं गंगा-यमुना-सरसवती आती
है। तीथर भी बहजानी के दार पर पावन होने के िलए आते है। ऐसा बहजान माता-िपता की सेवा और बहजानी गुर
की कृपा से मुझे िमला है।
पुणडिलक तेरे माता-िपता जीिवत है और तू तीथों मे भटक रहा है?
पुणडिलक को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने कुकुर मुिन को पणाम िकया और पंढरपुर आकर माता-
िपता की सेवा मे लग गया।
माता-िपता की सेवा ही उसने पभु की सेवा मान ली। माता-िपता के पित उसकी सेवािनषा देखकर भगवान
नारायण बडे पसन हुए और सवयं उसके समक पकट हुए। पुणडिलक उस समय माता-िपता की सेवा मे वयसत था।
उसने भगवान को बैठने के िलए एक ईट दी।
अभी भी पंढरपुर मे पुणडिलक की दी हुई ईट पर भगवान िवषणु खडे है और पुणडिलक की मातृ-िपतृभिकत की
खबर दे रहा है पंढरपुर तीथर।
यह भी देखा गया है िक िजनहोने अपने माता-िपता तथा बहजानी गुर को िरझा िलया है, वे भगवान के तुलय
पूजे जाते है। उनको िरझाने के िलए पूरी दुिनया लालाियत रहती है। वे मातृ-िपतृभिकत से और गुरभिकत से इतने
महान हो जाते है।
जो माता-िपता, सवजन, पित आिद सतसंग या भगवान के रासते, ईशर के रासते जाने से रोकते है तो उनकी
बात नही माननी चािहए। जैस,े मीरा ने पित की बात ठुकरा दी और पहाद ने िपता की।
गोसवामी जी के वचन है िकः
बबबब बबबबब ब बबब बबबबबब, बबबब बबबब बबबब बबबब बब, बबबबबब बबब
बबबबब।
भागवत मे भी कहा हैः
बबबबबबब ब बबबबबबबबबबबब ब ब बबबबबब बबबब ब ब बबबबबबबबबब ब बब
बबबबबब।
बबबब ब बबबबबबबबबब बबबबबब ब बबबबबबब।। बबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबबबब
'जो अपने िपय समबनधी को भगवद् भिकत का उपदेश देकर मृतयु की फासी से नही छुडाता, वह गुर नही है,
सवजन सवजन नही है, िपता िपता नही है, माता माता नही है, इषदेव इषदेव नही है और पित पित नही है।'
(शीमद् भागवतः 5.5.18)
अनुकम
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बबबबबबब बब बबबबब
मतंग ऋिष अपनी एकागता से, तप से, योग से, िवदा से, शासतजान से ऋिष-मुिनयो के जगत मे सुपिसद थे।
शबरी ने उनहे गुर मानकर उनके आशम मे तप िकया था। उनके आशम मे दूर-दूर से भकत आकर एकातवास का
लाभ लेते थे। मतंग ऋिष के आशम बािरश के आने से पहले ही इंधन एकितत कर िदया जाता था, परंतु एक वषर ऐसा
आया िक इंधन एकितत करने वाले साधक नही आये और िकसी को याद नही रहा। मतंग ऋिष को याद आया िक वह
टुकडी तो नही आयी जो इंधन एकितत करती थी। मतंग ऋिष ने उठाया कुलाडा। कौन जाने कब बािरश आ जाये?
वे लकिडया इकटी करने के िलए जंगल की ओर चल पडे। उनका कुलाडा उठाना था िक सब साधक अपना-अपना
साधन छोडकर गुर के पीछे हो िलये। वे सब दोपहर तक लकिडया काटते रहे। अपने -अपने बल के अनुसार
लकिडयो का एक गटर उठाया। साधको ने भी अपने -अपने बल के अनुसार लकिडयो के गटर उठा िलये। नीचे धरती
तवे जैसी तपी हुई थी और ऊपर भगवान भासकर ! गिमरयो के आिखरी िदन थे, बािरश आने सा समय था, साधको का
शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था। पसीने की बूँदे टपक टपककर जमीन पर िगर रही थी। कैसे भी करके सब
आशम मे पहुँचे और सनानािद करके अपना-अपना िनतय िनयम िकया।
चार-छः िदन बीते। मतंग ऋिष सरोवर पर सनान करने गये तो देखा िक बडी सुगंध आ रही है! मगर सुगंध
कहा से आ रही है?
"देखो जरा, हवा मे ऐसी जोरदार सुगंध कहा से आ रही है?"
िशषयो ने पता लगाकर बताया िक "चार-छः िदन पहले हम लकिडया लेकर िजस रासते से आ रहे थे, उस
रासते पर जहा-जहा हमारे पसीने की बूँदे िगरी, वहा-वहा फूलो के पौधे उग गये है और उन फूलो की महक पूरे
वातावरण को महका रही है।
जब साधक के पसीने की बूँदे कही िगरती है तो वह पुषपवािटका बन जाती है तो ऐसा साधक अपनी योगयता
तुचछ बातो मे और राग-देष के वातावरण मे न खपाकर मेहनती हो जाय, एकाग हो जाय तो उसकी योगयता और अिधक
िनखरती है। एकागता के कई योगयताएँ िवकिसत होती है। तुमहारे उस सिचचदानंदघन परबह परमातमा मे तो अनुपम
रस से भरा है। तुमहारे अंदर सबको रस देने वाला रससवरप परमातमा है, िचत की िवषमता के कारण उस रस
देनेवाला रससवरप परमातमा है, िचत की िवषमता के कारण उस रस का अनुभव नही होता।
अतः िवषमता िमटाने और समता के िसंहासन पर पहुँचाने वाले सतसंग साधन समरण मे ततपरता से लग
जाये।
अनुकम
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बबबब बबबबबबबब
मीन एवं मेष राशी के सूयर का समय वसंत ऋतु कहा जा सकता है।
वसंत ऋतु की मिहमा के िवषय मे किवयो ने खूब िलखा है। गुजराती किव दलपतराम ने कहा हैः
बबबबब बबब ब बबबबबब बबबबब। बबबबब बबबब बबबबब बबबबबबब।।
अथात् बबबब, बबबबब बब बबबबबब । बबबब बबबब बबबब बब बब
बबबबब।।
वसंत का असली आनंद जब वन मे से गुजरते है तब उठाया जा सकता है। रंग िबरंगे पुषपो से आचछािदत
वृक.... मंद-मंद एवं शीतल बहती वायु..... पकृित मानो, पूरे बहार मे होती है। ऐसे मे सहज ही मे पभु का समरण हो
जाता है, सहज ही मे धयानावसथा मे पहुँचा जा सकता है।
ऐसी सुंदर ऋतु मे आयुवेद ने खान पान मे संयम की बात कहकर वयिकत एवं समाज की नीरोगता का धयान
रखा है। शीतऋतु मे मेथीपाक, सूखे मेवे खाने से सवाभािवक ही मधुर रसवाले तथा बल-पुिषवधरक पदाथर खाने के
कारण शरीर मे सवाभािवक ही कफ का संचय हो जाता है। यह संिचत कफ वसंत ऋतु मे सूयर िकरणो के सीधे ही
पडने के कारण िपघलने लगता है। इसके फलसवरप कफजनय रोग जैसे िक सदी, खासी, बुखार, खसरा, चेचक,
दसत, उलटी, गले मे खराश, टािनसलस का बढना, िसर भारी-भारी लगना, सुसती, आलसय वगैरह होने लगता है।
िजस पकार पानी अिगन को बुझा देता है वैसे ही िपघला हुआ कफ जठरािगन को मंद कर देता है। इसीिलए
इस ऋतु मे लाई, भूने हएु चने , ताजी हलदी, ताजी मूली, अदरक, पुरानी जौ, पुराने गेहँू की चीजे खाने के िलए कहा गया
है। इसके अलावा मूँग बनाकर खाना भी उतम है।
देखो, आयुवेद िवजान की दृिष िकतनी सूकम है ! मन को पसन करे एवं हृदय के िलए िहतकारी हो ऐसे
आसव, अिरष जैसे िक मधवािरष, दाकािरष, गने का रस, िसरका वगैरह पीना इस ऋतु मे लाभदायक है।
नागरमोथ अथवा सौठ का उबाला हुआ पानी पीने से कफ का नाश होता है।
वसंत ऋतु मे आने वाला होली का तयोहार इस ओर संकेत करता है िक शरीर को थोडा सूखा सेक देना
चािहए िजससे कफ िपघलकर बाहर िनकल जाय। सुबह जलदी उठकर थोडा वयायाम करना, दौडना अथवा गुलािटया
खाने का अभयास लाभदायक होता है।
मािलश करके सूखे दवय, आँवले, ितफला अथवा चने के आटे आिद का उबटन लगाकर गमर पानी से सनान
करना िहतकर है। आसन, पाणायाम एवं टंकिवदा की मुदा िवशेष रप से करनी चािहए।
िदन मे सोना नही चािहए। िदन मे सोने से कफ कुिपत होता है। िजनहे राित मे जागना आवशयक है वे थोडा
सोये तो ठीक है। इस ऋतु मे राित जागरण भी नही करना चािहए।
वसंत ऋतु मे सुबह खाली पेट हरडे के चूणर को शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है। वसंत ऋतु मे
कडवे नीम मे नयी कोपले फूटती है। नीम की 15-20 कोपलो को 2-3 काली िमचर के साथ खूब चबाकर खाना
चािहए। 15-20 िदन यह पयोग करने से आरोगयता की रका होती है। इसके अलावा कडवे नीम के फूलो का रस 7 से
15 िदन तक पीने से तवचा के रोग एवं मलेिरया जैसे जवर से भी बचाव होता है।
मधुर रसवाले पौिषक पदाथर एंव खटे-मीठे रसवाले फल वगैरह पदाथर जो िक शीत ऋतु मे खाये जाते है उनहे
खाना बंद कर देना चािहए। वसंत ऋतु के कारण सवाभािवक ही पाचन शिकत कम हो जाती है अतः पचने मे भारी
पदाथों का सेवन नही करना चािहए। ठंडे पेय, आइसकीम, बफर के गोले, चाकलेट, मैदे की चीजे, खमीरवाली चीजे, दही
वगैरह पदाथर िबलकुल तयाग देना चािहए।
धािमरक गनथो के वणरनानुसार 'अलौने वरत (िबना नमक के वरत) चैत मास के दौरान करने से रोग-पितकारक
शिकत बढती है एवं तवचा के रोग, हृदय के रोग, हाई.बी.पी., िकडनी आिद के रोग नही होते है।
यिद कफ जयादा हो तो रोग होने से पूवर 'वमन कमर' दारा कफ को िनकाल देना चािहए िकनतु वमन कमर िकसी
योगय वैद की िनगरानी मे करना ही िहतावह है। सामानय उलटी करनी हो तो आशम से पकािशत योगासन पुसतक मे
बतायी गयी िविध के अनुसार गजकरणी की जा सकती है। इससे अनेक रोगो से बचाव हो सकता है।
अनुकम
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सत 8
बब बब बबबबबब बब बब
कुछ मनचले छातो ने आपस मे तय िकया िक आज मासटर को सकूल से वापस करना है। जब वे कक मे
आये, तब एक ने कहाः "सर ! आज आपकी आँखे थोडी अंदर धँस गयी है।"
दूसरे छात ने 'सर' की नाडी पकडी, िफर बोलाः "सर ! आपको रात को बुखार आया था कया ? अभी भी शरीर
थोडा गमर है।"
सरः "नही तो !"
तीसरा छातः "सर ! आपको अपनी सेहत का कुछ पता नही है। आप काम मे वयसत रहते है और अपने शरीर
का िबलकुल खयाल नही रखते है। सचमुच ! आपको बुखार है।"
चौथा छातः "वाकई सर ! आपको बुखार है।"
पाचवा छातः "सर ! यिद आप बुखार मे काम करते रहेगे तो हो सकता है जयादा बीमार पड जाये। अगर
आपको नयूमोिनया हो जायेगा तो ? कृपया, आराम किरये। आप थके हुए है और बुखार का असर भी है।"
छठवा छातः "अभी दो महीने बाद परीकाएँ भी होने वाली है। अगर आप जबरदसती पढायेगे तो हो सकता है
परीकाओं के िदनो मे आपको नयूमोिनया हो जाये। कमा करे सर ! आप आराम करे।"
देखते ही देखते मासटक का िसर ददर से फटने लगा और पैर कापने लगे। उनको बुखार आ गया। वे जलदी-
जलदी घर पहुँचे एवं रजाई ओढकर सो गये।
.....तो मानना पडेगा िक मन का असर तन पर पडे िबना नही रहता। आपके दो शरीर होते है – एक अनमय
और दूसरा मनोमय। मनोमय शरीर जैसा सोचता और िनणरय करता है, अनमय शरीर मे वैसे ही पिरवतरन होने लगते
है।
मन िजतना सूकम होता है, शरीर पर उसका पभाव उतना ही गहरा पडता है। केवल अपने शरीर पर पभाव
पडता है ऐसी बात नही है बिलक दस ू रो के शरीर पर भी आपके सूकम मन का पभाव पड सकता है। संकलप मे इतनी
शिकत होती है !
एक घिटत घटना हैः
एक लडका भगवान शंकर का बडा भकत था। नमरदा िकनारे रहता था एवं ब बबब बबबबब मंत का जप
करता था। उसे सारा िदन िशवभिकत करते देख उसके घरवाले परेशान रहते थे।
िशवराित के िदन उसके बडे भाई ने उसकी िपटाई की और उसे एक कमरे मे बंद कर िदया। घर के लोग
िनिशनत होकर सो गये िकः अब कैसे जा पायेगा मंिदर मे ?
......लेिकन भकत को तो राित जागरण करना था। उसने िशवभिकत न छोडी। वह बनद कमरे मे ही िशवजी
की मानसपूजा करते-करते इतना मगन हो गया िक उसका शरीर मंिदर मे पहुँच गया !
सुबह लोगो ने िखडकी से देखा तो लडका कमरा मे नही है और बाहर से ताला लगा है ! उनहे बडा आशयर
हुआ ! िजस मंिदर मे वह लडका जाता था उसी मंिदर मे जाकर उन लोगो ने देखा तो वह िशवजी का आिलंगन करके
बैठा हुआ िमला। पूछाः "तू यहा कैसे आया ?"
लडके ने कहाः "मुझे कुछ पता नही। िशवजी लाये होगे तो आ गया।"
िशवजी उठाकर मंिदर मे नही लाये होगे। यह तो उसके तीवर िचनतन का पभाव था उसका तन भी िशवालय मे
पहुँच गया।
ऐसे ही दूसरी एक घटना हैः बडौदा के आगे ताजपुरा है। ताजपुरा मे मेरे िमत संत नारायण सवामी रहते है।
उनके आशम का नाम है नारायण धाम। जब नारायण धाम नही बना था और वे साधना करते थे तब वहा एक छोटा सा
मंिदर था। उस मंिदर का पुजारी रजनी कला सनातक था। उसने मुझसे कहाः
"बापू ! बापू (नारायण सवामी) का तो कुछ कहा नही जा सकता।"
मैने पूछाः "कया हुआ ? जरा बताओ।"
पुजारीः "मै एक िदन पूजा वगैरह करके शटर को दो ताले लगाकर घर चला गया कयोिक जंगल का मामला
था और तब आशम इतना िवकिसत नही था। सुबह जब शटर खोला तो देखा िक मंिदर के अंदर बापू (नारायण सवामी)
िशविलंग को आिलंगन करके बैठे हुए थे ! मै तो यह देखकर चिकत रह गया िक बापू मंिदर के अंदर कैसे ? मैने अंदर
एक िबलवपत और फूल तक नही रखा था। िफर बापू को अंदर बंद करके कैसे चला गया, मुझे कुछ पता नही है।"
मैने कहाः "ऐसा नही होगा, कुछ राज होगा।"
पुजारीः "कुछ राज ही है। मै तो मंिदर की सफाई करने के बाद ताला लगाकर घर चला गया था।"
वे तो मेरे िमत संत है। मैने उनसे पूछाः "यह सब कैसे हुआ था ? आप संकलप करके िशवालय मे पहुँचे थे
िक आपने योग का उपयोग िकया था ? आप ऋिद-िसिद के बल वहा पहुँचे थे या भगवान शंकर सवयं आपको पकडकर
अंदर डाल गये थे ? सच बताओ।"
नारायण सवामी ने कहाः "यह तो मुझे पता नही लेिकन पभु का ऐसा तीवर िचनतन हुआ िक मै नही रहा। जब
सुबह हुई और पुजारी ने मंिदर खोला तब मुझे भान हुआ िकः "मै इधर कैसे ?" िफर तो मै पभु.....! पभु....... !! करके
एक मील तक दौडता चला गया।"
.....तो मानना पडेगा िक आपका मन िजसका तीवरता से िचनतन करता है वही आपका तन भी पहुँच जाता है।
जब आपका मन िकसी चीज का इतना तीवर िचनतन करता है िक काम, कोध, लोभ, मोह, दपर, अहंकार सब छू ट जाते है
तब आपका तन भी वहा पकट हो जाता है और अपने सथान से गायब हो जाता है। यही बात 'शीयोगवािशष
महारामायण' विशष जी महाराज भी कहते है िकः "हे राम जी ! जीव का जो शरीर िदखता है वह वासतिवक नही है।
वासतिवक शरीर तो मनोमय शरीर है। मनोमय शरीर का िकया हुआ सब होता है।"
जैस,े कार िदखती है तो उसमे दो चीजे है- कार का बाह ढाचा और अंदर का इंजन, िगयर बाकस आिद। कार
भागती हईु िदखती है लेिकन उसका मूल कारण अंदर के पुजे है। कार आगे पीछे भी चलाई जाती है, धीरे भी चलती
है, तेजी से भी चलती हुई िदखती है और चलाने वाला भी िदखता है। कार को डाइवर चलाता है और डाइवर को
उसके अंदर का संकलप चलाता है। कार और डाइवर दोनो का संचालन करने वाली सूकम सताएँ है।
आपको गाडी िदखेगी, अंदर का िगयर बाकस नही िदखेगा। ऐसे ही डाइवर के हाथ िदखेगे, उसके अंदर का
संकलप नही िदखेगा। जो िदखेगा उसकी सवतंत सता नही होती। चलाने वाली सता कोई और होती है। उसी सता
के बल पर सब कायर होते है। उस सता के मूल को जान लो तो बेडा पार हो जाये। सनेह सिहत उस सता के मूल
का समरण और उस सता के मूल मे शाित व आनंद पाने मे लग जाओ। सारी सताओं का मूल है आतमा-परमातमा।
अनुकम
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सत 9
बबबबबबबबबबबब बब बबबब
फालगुन कृषण चतुदरशी अथात् महािशवराित। पृथवी पर िशविलंग के सथापन का जो िदवस है, भगवान िशव के
िववाह का जो िदवस है और पाकृितक िनयम के अनुसार जीव-िशव के एकतव मे मदद करने वाले गह-नकतो के योग
का जो िदवस है – वही है महािशवराित का पावन िदवस। यह राित-जागरण करने की राित, सजाग रहने की राित,
ईशर की आराधना-उपासना करने की राित है।
िशवजी की आराधना िनषकाम भाव से कही भी की जा सकती है िकंतु सकाम भाव से आराधना िविध-
िवधानपूवरक की जाती है। िजनहे संसार से सुख-वैभव पापत करनी होती है, वे भी िशवजी की आराधना करते है।
िशवजी की पूजा का िवधान यह है िक पहले जहा िशवजी की सथापना की जाती है वहा से िफर उनका
सथानातर नही होता, उनकी जगह नही बदली जाती। िशवजी की पूजा के िनमालय (पत-पुषप, पंचामृतािद) का उललंघन
नही िकया जाता। इसीिलए िशवजी के मंिदर की पूरी पदिकणा नही होती कयोिक पूरी पदिकणा करने से िनमालय
उललंिघत हो जाता है।
िशविलंग िविवध दवयो से बनाये जाते है। अलग-अलग दवयो से बने िशविलंगो के पूजन के फल भी अलग-
अलग पकार के होते है। जैस,े ताबे के िशविलंग के पूजन से आरोगय-पािपत होती है। पीतल के िशविलंग के पूजन से
यश, आरोगय-पािपत एवं शतुनाश होता है। चादी के िशवजी बनाकर उनकी पूजा करने से िपतरो का कलयाण होता है।
सुवणर के िशवजी बनाकर उनकी पूजा करने से तीन पीिढयो तक घर मे धन-धानय बना रहता है। मिण-माणेक का
िशविलंग बनाकर उसकी पूजा करने से बुिद, आयुषय, धन, ओज-तेज बढता है लेिकन बहिचंतन करने से, िशवतततव
का िचंतन करने से ये चीजे सवाभािवक ही पगट होने लगती है। परमातमतततव मे, िशवतततव मे डुबकी मारने से बुिद का
पकाश बढने लगता है, िपतरो का उदार होने लगता है, िचत की चंचलता िमटने लगती है, िदल की दिरदता दूर होने
लगती है एवं मन मे शाित आने लगती है। िशवपूजन का महा फल यही है िक मनुषय िशवतततव को पापत हो जाये।
िशवराित को भिकतभाव से राित-जागरण िकया जाता है। जल, पंचामृत, फल-फूल एवं िबलवपत से िशवजी का
पूजन करते है। िबलवपत मे तीन पते होते है जो सततव, रज एवं तमोगुण के पतीक है। हम अपने ये तीनो गुण िशवापरण
करके गुणो से पार हो जाये, यही इसका हेतु है। पंचामृत-पूजा कया है ? पृथवी, जल, तेज, वायु और आकाश इन
पाचमहाभूतो का ही सारा भौितक िवलास है। इन पंचमहाभूतो का भौितक िवलास िजस चैतनय की सता से हो रहा है
उस चैतनयसवरप िशव मे अपने अहं को अिपरत कर देना, यही पंचामृत-पूजा है। धूप और दीप दारा पूजा माने कया ?
धूप का तातपयर है अपने 'िशवोऽहम्' की सुवास 'आननदोऽहम्' की सुवास और दीप का तातपयर है आतमजान का पकाश।
चाहे जंगल या मरभूिम मे कयो न हो, रेती या िमटी के िशवजी बना िलये, पानी के छीटे मार िदये, जंगली फूल
तोडकर धर िदये और मुँह से ही नाद बजा िदया तो िशवजी पसन हो जाते है एवं भावना शुद होने लगती है।
आशुतोष जो ठहरे ! जंगली फूल भी शुद भाव से तोडकर िशविलंग पर चढाओ तो िशवजी पसन हो जाते है
और यही फूल कामदेव ने िशवजी को मारे तो िशवजी नाराज हो गये। कयो ? कयोिक फूल फेकने के पीछे कामदेव का
भाव शुद नही था इसीिलए िशवजी ने तीसरा नेत खोलकर उसे भसम कर िदया। िशवपूजा मे वसतु का मूलय नही, भाव
का मूलय है।
बबबब बब बबबबबबब बबबब......
आराधना का एक तरीका यह है िक पत, पुषप, पंचामृत, िबलवपतािद से चार पहर पूजा की जाये। दूसरा तरीका
यह है िक मानिसक पूजा की जाये।
कभी-कभी योगी लोग इस राित का सदुपयोग करने का आदेश देते हुए कहा है िकः "आज की राित तुम ऐसी
जगह पसंद कर लो िक जहा तुम अकेले बैठ सको, अकेले टहल सको, अकेले घूम सको, अकेले जी सको। िफर तुम
िशवजी की मानिसक पूजा करो और उसके बाद अपनी वृितयो को िनहारो, अपने िचत की दशा को िनहारो। िचत मे
जो-जो आ रहा है और जो जो जा रहा है उस आने और जाने को िनहारते-िनहारते आने जाने की मधयावसथा को जान
लो।
दूसरा तरीका यह है िक िचत का एक संकलप उठा और दूसरा उठने को है, उस िशवसवरप व आतमसवरप
मधयावसथा को तुम मै रप मे सवीकार कर लो, उसमे िटक जाओ।
तीसरा तरीका यह भी है िक िकसी नदी या जलाशय के िकनारे बैठकर जल की लहरो को एकटक देखते
जाओ अथवा तारो को िनहारते-िनहारते अपनी दृिष को उन पर केिनदत कर दो। दृिष बाहर की लहरो पर केिनदत है
और वह दृिष केिनदत है िक नही, उसकी िनगरानी मन करता है और मन िनगरानी करता है िक नही करता है, उसको
िनहारने वाला मै कौन हूँ ? गहराई से इसका िचनतन करते-करते आप परम शाित मे भी िवशाित कर सकते हो।
चौथा तरीका यह है िक जीभ न ऊपर हो न नीचे हो बिलक तालू के मधय मे हो और िजहा पर ही आपकी
िचतवृित िसथर हो। इससे भी मन शात हो जायेगा और शात मन मे शात िशवतततव का साकातकार करने की कमता
पगट होने लगेगी।
साधक चाहे तो कोई भी एक तरीका अपनाकर िशवतततव मे जगने का यत कर सकता है। महािशवराित का
यही उतम पूजन है।
अनुकम
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सत 10
बब बबबब बबबबबबब ?
वतरमान समय मे टी.वी. चैनलो, िफलमो तथा पत-पितकाओं मे मनोरंजन के नाम देकर समाज के ऊपर िजसे
थोपा जा रहा है, वह मनोरंजन के नाम पर िवनाशक ही है।
पत-पितकाओं के मुख-पृषो तथा अनदर के पृषो पर अशलील िचतो की भरमार रहती है। इस िदशा मे अपनी
पितकाओं मे नई-नई कलपनाओं को लाने के िलए पाशातय पितकाओं का अनुकरण िकया जाता है।
िफलमी जगत तथा टी.वी. चैनल तो मानो इस सपधा के िलए ही आरिकत है। हर बार नये-नये उतेजक तथा
टी.वी. चैनल तो मानो इस सपधा के िलए ही आरिकत है। हर बार नये-नये उतेजक दृशयो, अपराध की िवधाओं, िहंसा
के तरीको का पदशरन करना तो मानो इनका िसदानत ही बन गया है।
वासतव मे मनोरंजन से तो मन हलका होना चािहए, िचंताओं का दबाव कम होना चािहए परनतु यहा तो सब कुछ
उलटा ही होता है। ऐसी पाशवी वृितयो को पोतसाहन िमलता है िजनकी िनतय जीवन की गितिविधयो मे कोई गुज ं ाइश ही
नही होती। मिसतषक की िशराओं पर दबाव, िचतपट देखने के बाद मन मे कोलाहल तथा पचंड उदेग। एक कालपिनक
कथा पर बनी िफलम बब बबबब बब बबब को देखकर सैकडो युवक युवितयो दारा आतमहतया जैसा पाप करना तथा
बबबबबबबब धारावािहक मे उडते हुए कालपिनक वयिकत को देखकर कई मासूम बचचो का छतो व िखडिकयो से
कूदकर जान से हाथ धो बैठना, कया यह िवनाश की पिरभाषा नही है ?
बबबबबबबब (बबब.) से 26 जनवरी 2000 को पकािशत एक समाचार पत का एक लेख छपा था। इस
लेख का शीषरक थाः बब.बब. बबबबबब बब बबबब बब बबबबबबबबब बबब बबबबब बब बबबब। इस लेख
मे वतरमान समय मे पतनोनमुख समाज को आधयाितमक िदशा की ओर अगसर करने वाले संत समाज के ऊपर बडी
आलोचनातमक िटपपणी की गई थी।
इसी अदरसापतािहक की पृष संखया दो पर एक लेख छपा था। इसका शीषरक था, बबबबब बब बबबब
बबब बबब बबबबब बब बबब बब बब बबबब बब बबबबब बबबब ?
यह लेख िकसी सॉकेटीज के िलए एक पत है िजसमे सूरत (गुजरात) की सुरपा नामक युवती (बी.काम. मे
अधययनरत) ने अपने जीवन के बारे मे पश पूछा है।
इितहास तो बताता है िक साकेटीज (सुकरात) आज से लगभग 2350 वषर पूवर अपने शरीर को तयाग चुके है।
अब यहा कौन से सुकरात पैदा हुए, यह तो भगवान ही जाने।
अपनी जीवनगाथा िलखते हुए वह युवती कहती है िक उसे अपने ही मुहलले का अभय नाम का युवक पसनद
आ गया और उसने उसके साथ शारीिरक संबध ं बना िलया। उसके बाद उसे कॉलेज मे पढ रहे िनषकाम और शेखर के
पित भी आकषरण हो गया। अब वह सुरपा घर मे अभय, कालेज मे िनषकाम तथा रिववार को शेखर के िलए आरिकत
है। अपैल मे उसकी परीका पूरी होगी तथा उसके माता-िपता उसकी शादी कर देगे।
अब वह युवती साकेटीज महोदय से पश करती है िक ऐसी िसथित मे मै कया करँ ? कयोिक मुझे तीनो लडके
पसंद है।
कया उपरोकत कहानी एक भारतीय कनया के नाम पर बदनुमा दाग नही है ? हमारे शासतो मे आदशर आयरकनया
के रप मे सती सािवती का नाम आता है िजसने सतयवान को अपने पित के रप मे वरण िकया था। जब सबको पता
लगा िक सतयवान अलपायु है तो सभी ने सािवती पर दबाव डाला िक वह िकसी दूसरे युवक का वरण कर ले परनतु
भारत की वह कनया अपने धमर पर अिडग रहती है और उसकी इसी िनषा ने उसे यमराज के पास से उसके पित के
पाण वापस लाने मे समथर बना िदया।
अब आप सवयं िवचार कीिजए िक भारत की कनयाओं के जीवन को महान बनाने के िलए 'संदेश' के पकाशन
िवभाग की सती सािवती की कथा छापनी चािहए या सुरपा की ?
सुरपा के बाद आइये सॉकेटीज महोदय के पास चलते है। देिखये िक वे सुरपा के पश का कैसा जवाब देते
है।
सॉकेटीज महोदय कहते है- "आपका कुछ नही होगा। आप चौथे को पसंद करोगी और शेष जीवन मे संसार
के तमाम सुख भोगोगी, यह बात मै छाती ठोककर कहता हूँ। आपने तीन युवको के साथ िनकटता रखी और उनका
भरपूर उपयोग िकया, इस बात पर मुझे कोई आशयर नही होता। यह उमर ही ऐसी है। आपके इस अहोभागय से अनय
युवितया ईषया भी कर सकती है।
इस पकार का एक लमबा चौडा जवाब साकेटीज महोदय ने िदया है। आप जरा सोिचये िक संसार तथा शरीर
को नशर समझने वाले आतमिनषा के धनी साकेटीज के पास यिद यह बात जाती तो कया वह ऐसा जवाब देते ? यह तो
समाज के साथ बहुत बडा धोखा हो रहा है। यह तो अखबार के नाम पर भारतीय सनातन संसकृित को तोडक
भोगवादी संसकृित का सामाजय फैलाने का एक िघनौना षडयंत है।
पाशातय जगत का अंधानुकरण करके भारतीय समाज पहले ही पतन के बडे गतर मे िगरा हुआ है।
फैशनपरसती, भौितकता तथा भोगवासना ने समाजोतथान के मानदणडो को धवसत कर िदया है। युवा वगर वयसनो तथा
भोगवासना की दुषपवृितयो का िशकार बन रहा है। ऐसी िसथित मे संतसमाज दारा धयान योग िशिवरो, िवदाथी उतथान
िशिवरो, रामायण तथा भागवत, गीता और उपिनषदो की कथा-सतसंगो के माधयम से िगरते हुए मानव को अशाित, कलह
तथा दुःखी जीवन से सुख, शाित एवं िदवय जीवन की ओर अगसर करने के महत् कायर िकये जा रहे है। इन कायरकमो
से लाखो-लाखो भटके हुए लोगो को सही राह िमल रही है। इसके कई उदाहरण है। बबबब बबबबबबब तथा
बबबब बबबब जैसी पेरणादायी पुसतको से तेजसवी जीवन जीने की पेरणा व कला िमल रही है। यिद िववेक-बुिद से
िवचार िकया जाय तो भारत का अन खानेवाले इन लोगो को अपनी ससकृित के उतथान के िलए सहयोग करना चािहए
परनतु ये तो समाज की उनित मे बाधा बनकर देशदोही की भूिमका िनभा रहे है। ऐसे लेख छापकर वयिभचार और
पाशातय संसकृित को बढावा देने का कुकृतय कर रहे है।
पाशातय देशो के अिधकाश लोग अपनी संसकृित छोडकर, उचछंखलता से बाज आकर सनातनी संसकृित की
ओर बढ रहे है परनतु सनातनी संसकृित के कुछ लोग पिशम की भोगवादी संसकृित को अपना रहे है और उसका बडे
जोर-शोर से पचार कर रहे है। यह कैसी मूखरता है ?
िजनसे समाज की शाित, सतपेरणा, उिचत मागरदशरन तथा िदवय जीवन जीने की कला िमल रही है, उनका तो
िवरोध होता है और िजनसे समाज मे कुकमर, वयिभचार तथा चिरतहनन जैसी कुचेषाओं को बढावा िमले – ऐसे लेख
पकािशत हो रहे है। अब आप सवयं िवचार कीिजए िक ऐसे लोग मानवता व संसकृित के िमत है या घोर शतु ?
मोहनदास करमचंद गाधी ने बचपन मे केवल एक बार बबबबबबबब बबबबबबबबबबब नाटक देखा था।
उस नाटक का उन पर इतना गहरा पभाव पडा िक उनहोने आजीवन सतयवरत लेने का संकलप ले िलया तथा इसी वरत
के पभाव से वे इतने महान हो गये।
एक चलिचत का एक बालक के जीवन पर िकतना गहरा पभाव पडता है, यह गाधी जी के जीवन से सपष हो
जाता है। अब जरा िवचार कीिजए िक जो बचचे टी.वी. के सामने बैठकर एक ही िदन मे िकतने ही िहंसा, बलातकार
और अशलीलता के दृशय देख रहे है वे आगे चलकर कया बनेगे ? सडक चलते हुए हमारी बहन, बेिटयो को छेडने वाले
लोग कहा से पैदा हो रहे है ? उनमे बुराई कहा से पैदा होती है ? कौन है ये लोग जो 5 और 10 साल की बिचचयो को
भी अपनी हवस का िशकार बना लेते है ? इनको यह सब कौन िसखाता है ? कया ये िकसी सकूल से पिशकण लेते है ?
िकसी भी सकूल मे ऐसा पाप करने का पिशकण नही िमलता। कोई भी माता-िपता अपने बचचो से ऐसा पाप
नही करवाते। इसके बावजूद भी ऐसे लोग समाज मे है तो उसके कारण है टी.वी., िसनेमा तथा गनदे पत-पितकाये
िजनके पृषो पर अशलील िचत तथा सामिगया छापी जाती है।
कुछ समय पूवर 'पाञचजनय' मे छपी एक खबर के अनुसार हैदराबाद के समीप चार युवको ने रात के अँधेरे मे
राह चलती एक युवती को रोका तथा िनकट के खेतो मे ले जा कर उसके साथ बलातकार िकया। जब वे युवक पकडे
गये तो उनहोने बताया िक वे उस समय िसनेमाघर से ठीक वैसा ही दृशय ही देखकर आ रहे थे िजसका दुषपभाव उनके
मन पर बहुत गहरा उतर गया था।
िजस देश के ऋिषयो ने कहाः बबबब बबबबबबबबब बबबबबबबब बबबबबब बबबब बबबबब उसी
देश की नािरयो के िलए घर से बाहर िनकलना भी असुरिकत हो गया है। यह कैसा मनोरंजन है ? यह मनोरंजन नही है
अिपतु घर-घर मे सुलगती वह आग है जो जब भडकेगी तो िकसी से देखा भी नही जायेगा। िजस देश की संसकृित मे
पित-पती के िलए भी माता-िपता तथा बडो के सामने आपसी बाते करने की मयादा रखी गयी है, उसी देश के िनवासी
एक साथ बैठकर अशलील दृशय देखते है, अशलील गाने सुनते है। यह मनोरंजन के नाम पर िवनाश नही तो और कया
हो रहा है ?
यिद आप अपनी बहन-बेिटयो की सुरका चाहते है, यिद आप चाहते है िक आपका बचचा िकसी गली का
मािफया न बने , डॉन न बने अथवा तो बलातकार जैसे दुषकमों के कारण जेलो मे न सडे, यिद आप चाहते है िक आपके
नौिनहाल संयमी, चिरतवान तथा महान बने तो आज से ही इन केबल कनेकशनो, िसनेमाघरो तथा अशलीलता का पचार
करने वाले पत-पितकाओं का बिहषकार कीिजए। हमे नैितक तथा मानिसक रप से उनत करने वाली िफलमो की
आवशयकता है। हमे ऐसे पसारण चािहए, ऐसे दृशय चािहए िजनसे सनेह, सदाचार, सहनशीलता, करणाभाव, आतमीयता,
सेवा-साधना, सचचाई, सचचिरतता तथा माता-िपता, गुरजनो एवं अपनी संसकृित के पित आदर का भाव पगट हो
िजससे हमारा देश िदवयगुण समपन हो, आधयाितमक केत का िसरताज बने। इसके िलये जागृत होकर हम सबको
िमलकर पयास करना चािहए।
अनुकम
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बब.बब. बबबबबब बबबबब बबबबबबबब बब बबबबब बबबबबब बबबबबब
बबब बब बबबब
एक दिरद वयिकत िकसी राजा के दरबार मे गया। उसने राजा से अपनी दिरदता की करण कथा कहकर धन
की याचना की। राजा को उसकी दिरदावसथा देखकर दया आ गयी। फलसवरप राजा ने दिरद से कह िदयाः "आज
सूयासत होने तक खजाने मे से िजतना भी धन ले जा सको, ले जाओ।"
दिरद वयिकत राजा की बात सुनकर बहत ु पसन हुआ और सोचने लगाः "वाह ! अब कया िचनता है, सूयासत
होने मे तो अभी बहुत देर है, तब तक तो मै बहुत धन राजकोष से ले जा सकूँगा।'
राजदरबार से िनकल कर वह अपने घर गया। उसने अपनी धमरपती से राजा की उदारता की बात कही।
पती भी अतयनत आनिनदत हुई और बोलीः "यह तो बडे सौभागय की बात है। आप अभी शीघ चले जाइये और वहा से
अिधक से अिधक िजतना धन ला सके, ले आइये।"
दिरद बोलाः "मूखर सती ! दो िदन से मैने भोजन नही िकया, भूखा रहकर धन कैसे ढोकर ला सकूँगा ? पहले तू
कही से उधार लाकर अचछा भोजन तो बना। मै तो खाकर ही जाऊँगा। सारा िदन तो पडा ही है धन लाने के िलए,
अभी ऐसी जलदी भी कया है ?"
बेचारी सती तुरनत गयी और बिनये से सामान उधार लेकर आयी। शीघता से उसने खाना बना िदया। पित के
भोजन करने के पशात उसने पित से राजमहल जाने को पुनः कहा। दिरद ने आज खूब डटकर खाया था। खाते ही
उसे आलसय आने लगा, अतः उसने सोचा िक अभी थोडी ही देर मे जाकर धन ले आऊँगा, वह िवशाम करने के िलए
लेट गया। लेटते ही उसे नीद आ गयी। कुछ देर बाद उसकी पती ने उसे बडी किठनाई से जगाया और राजमहल के
िलए रवाना िकया।
दिरद उठकर चल तो िदया, पर थोडी ही दूर गया होगा िक मागर मे उसने एक नट को बडा ही सुनदर अिभनय
करते हुए देखा। उसने सोचा, "कुछ समय तक यह नाटय देख लूँ, िफर राजमहल तो जाना ही है। वहा से यिद एक
बार भी ढेर सारे हीरे-जवाहरात बाधकर ले आऊँगा तो भी िजनदगीभर के िलए आराम हो जायेगा।"
दिरद वयिकत नाटय देखने बैठ गया और देखते-देखते वह राजमहल तथा धन लाने की बात एकदम भूल गया।
जब नाटय समापत हुआ तो उसे धन लाने की बात याद आयी, िकनतु अफसोस िक उस समय तक सूयासत हो चुका
था। अब राजमहल मे पहुँचने पर भी सूयर असत हो जाने के कारण उसे एक कौडी तक न िमली। वह जोर जोर से
रोता और िसर पीटता हुआ िनराश हो खाली हाथ घर लौट आया। उसने समय की कीमत को नही पहचाना, इसिलए
पछताना पडा। पर बब बबबबबबब बबब बबबब ?
परमातमा के अनुगहसवरप मनुषय-जीवन का दुलरभ संयोग िमलने पर भी जो इसी जीवन मे अपने सतय और
शिकत का सदुपयोग परमातम-पािपत हेतु नही करते, उनहे भी अनततः इसी पकार पछताना पडता है।
अनुकम
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सत 16
बबबबबबब बबब बबब बबबब-बबबबब
सवसथ व िनरोगी रहने हेतु पतयेक ऋतु मे उस ऋतु के अनुकूल आहार-िवहार करना जररी होता है लेिकन
गीषम ऋतु मे आहार िवहार पर िवशेष धयान देना पडता है कयोिक इसमे पाकृितक रप से शरीर के पोषण की अपेका
शोषण अिधक होता है। अतः उिचत आहार-िवहार मे की गयी लापरवाही हमारे िलए कषदायक हो सकती है।
िशिशर, वसनत और गीषम ऋतु का समय 'आदानकाल' होता है। गीषम ऋतु इस आदान काल की चरम सीमा
होती है। यह समय रखापन, सूखापन और उषणता वाला होता है। शरीर का जलीयाश भी कम हो जाता है। िपत के
िवदगध होने से जठरािगन मंद हो जाती है, भूख कम लगती है, आहार का पाचन शीघता से नही होता। इस ऋतु मे
दसत, उलटी, कमजोरी, बेचैनी आिद परेशािनया पैदा हो जाती है। ऐसे समय मे आहार कम लेना व शीतल जल पीना
आवशयक है।
सवासथय-रकक, िहतकारी और शरीर को सवसथ व बलवान बनाये रखने वाले आहार-िवहार को पथय कहते है।
पतयेक ऋतु मे पथय आहार-िवहार का ही पालन करना चािहए।
बबबबबब बबबब बबबबब बबबबबबबबबबबबबबब । बबब बबबबबब
(बबब बबबबबब)
अथात् गीषमकाल मे मधुर रसयुकत, शीतल, िसनगध और तरल पदाथों का सेवन करना िहतकारी होता है। ऐसे
पदाथों के सेवन करने से शरीर मे तरावट, शीतलता व िसनगधता (िचकनाई) बनी रहती है। इस ऋतु मे हलके मीठे
भोजन का पयोग करे। दवय आहार मे दूध, घी, छाछ, खीर आिद ले। छाछ व खीर िवपरीत आहार है, अतः इनको एक
साथ न ले। शाक-सबजी मे पतीदार शाकभाजी, परवल, लौकी, पके लाल टमाटर, हरी मटर, करेला, हरी ककडी,
पुदीना, हरी धिनया, नीबू आिद और दालो मे िसफर िछलकासिहत मूँग और मसूर की दाल का सेवन करे। चने या अरहर
की दाल खाये तो चावल के साथ खाये या शुद घी का तडका लगाकर खाये तािक दालो की खुशकी दूर हो जाय।
फलो मे मौसमी फलो का सेवन करे जैसे खरबूजा, तरबूज, मौसमबी, सनतरा, पका मीठा आम, मीठे अंगूर, अनार आिद।
बबबबबब इस ऋतु मे पातः वायुसेवन, योगासन, वयायाम, तेल की मािलश िहतकारी है। दोनो समय सुबह-
शाम शौच-सनान आवशयक है।
बबबबबब गीषम काल मे कडवे, खटे, चटपटे, नमकीन, रखे, तेज िमचर मसालेदार, तले हुए, बेसन के बने हुए,
लाल िमचर और गरम मसालेयुकत व भारी पदाथों का सेवन न करे। बासी, जूठा, दुगरनधयुकत और अभकय पदाथों का
सेवन पतयेक ऋतु मे हािनकारक है। खटा दही न खाये, रात मे दही न खाये। उडद की दाल, खटाई, इमली व
आमचूर, शहद, िसरका, लहसुन, सरसो का तेल आिद पदाथों का सेवन न करे। पूडी, पराठे का सेवन न करे। िजतनी
भूख हो उससे कम भोजन करे। जयादा न खाये और जलदी-जलदी न खाकर, धीरे-धीरे खूब चबा-चबाकर खाये तािक
पाचन ठीक से हो। देर रात तक जागना, सुबह देर तक सोना, िदन मे सोना, अिधक देर तक धूप मे घूमना, कठोर
पिरशम, अिधक वयायाम, सती पुरष का सहवास, भूख-पयास सहन करना, मल-मूत के वेग को रोकना हािनपद है।
सावधान !
बबबबबब गीषण ऋतु मे िपत दोष की पधानता से िपत के रोग अिधक होते है। जैसे दाह, उषणता, आलसय,
मूचछा, अपच, दसत, नेतिवकार आिद। अतः गिमरयो मे घर से बाहर िनकलते समय लू से बचने हेतु िसर पर कपडा रखे
व पानी पीकर िनकले। बाहर से घर मे आते ही चाहे कैसी भी तेज पयास लगी हो पानी नही पीना चािहए। 10-15
िमनट ठहरकर ही पानी पीये। िफज का ठंडा पानी पीने से गले, दात, आमाशय व आँतो पर पितकूल पभाव पडता है,
पाचनशिकत मंद हो जाती है। अतः िफज का पानी न पीकर मटके या सुराही का ही पानी िपये।
गमी के िदनो मे चनदन और गुलाब का शरबत या तो घर मे बनाये या गािजयाबाद सिमित जो िक गुलाब व
चनदन डालकर शरबत बनाती है, से पापत कर सकते है। बाजार शरबतो मे तो एसेनस और सेकीन का ही पयोग िकया
जाता है, केवल लेबल ही बिढया लगाते है। अगर घर मे शरबत बनाने के इचछुक हो तो पीपल की लकडी का बुरादा
(चूणर) और चनदन के पैकेट आशम से पापत कर शरबत बना ले जो गमी के दोषो मे रामबाण का काम करेगे। पीपल की
लकडी से बने हुए िगलास मे पानी पीने से िपतदोष दूर होता है। हरे पीपल का पेड कटवाना हािनकारक है। पीपल के
जो पेड पुराने होकर सूख जाते है उसी की लकडी के बने िगलास मे रखा हुआ पानी पीने से िपतदोष का शमन होता है
और वह वयिकत को मेधावी बनाता है।
अनुकम
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बबबबबबबबबब बब बबबबबबबबबब बब बबबब बबबब बब बबबब
मगध समाट शेिणक के युवा पुत राजकुमार मेघ को भगवान महावीर के धमोपदेश आतमपकाश की ओर ले
जाने वाले पतीत हुए। मेघ ने अनुभव िकया िक तृषणा, वासना और अहंकार के जाल मे जकडा जीवन नष होता चला
जा रहा है, परनतु इचछाएँ है िक शानत होने का नाम ही नही लेती बिलक और बढती ही जाती है। उनकी पूितर हेतु और
अिधक अनैितक कृतय करने पडते है िजससे पापो की गठरी बढ रही है। काल दौडा चला आ रहा है। इसके मुख मे
पहुँचते ही सारे भोगो का अनत हो जायेगा। कणभंगुर जीवन मे शरीर का नाश करने वाला कण कब उपिसथत हो जाय
कोई पता नही। इसके बाद पशाताप के अितिरकत और कुछ हाथ आने वाला नही है। िवषय-वासनाओं के कीचड मे
फँसे जीवन को िववेक-दृिष से देखने पर मेघ को अपना जीवन बहत ु घृणासपद लगा।
'कामािदक िवकार, देष, घृणा, ितरसकार, अनैितकता, अवाछनीयताएँ यिद यही संसार है तो इसमे और नरक मे
अनतर ही कया है ? कलुिषत कलपनाओं मे झुलसते मायावी जीवन मे भी भला िकसी को शाित िमल सकती है ? तीथरक ं र
महावीर और सभी महापुरष यही तो कहते है िक मनुषय को आतमानुसंधान करके परमातमा मे िसथत हो जाना चािहए।
उसके िबना न आतमकलयाण समभव है और न ही लोक कलयाण बन पडेगा। अतः मुझे तपसवी जीवन जीना चािहए।' –
ऐसा दृढ िनशय करके राजकुमार मेघ ने भगवान महावीर से अधयातम मागर की दीका ली और उनके सािनधय मे रहकर
साधना मे लग गये।
िवरकत मन को उपासना से असीम शािनत िमलती है। नीरस जीवन मे आतमजयोित पकट होने लगती है। मन,
बुिद अलौिकक सफूितर से भर जाते है। मेघ की िनषा को और अिधक सुदृढ करने हेतु तीथरक ं र ने अब उसे िविवध
कसौिटयो मे कसना पारमभ कर िदया। मेघ ने कभी रखा भोजन नही िकया था। अब उसे रखा भोजन िदया जाने
लगा, कोमल शयया के सथान पर भूिमशयन, आकषरक वेशभूषा की जगह मोटे वलकल और सुखद सामािजक समपकर के
सथान पर बनद कुटीर व आशम के आस-पास की सवचछता, सेवा-वयवसथा करना आिद। मेघ को एक-एक कर इन
सबमे िजतना अिधक लगाया जाता, उसका मन उतना ही उतेिजत होता, महततवाकाकाएँ िसर पीटती और अहंकार बार-
बार खडा होकर कहताः 'अरे मूखर मेघ ! जीवन के सुख-भोग छोडकर कहा आ फँसा ? मेघ को उसका मन लगातार
िनरतसािहत करता। मन मे उठते िवचारो के जवार-भाटे उससे पूछते, कया यही साधना है िजसके िलये तुमने समसत
राजवैभव का तयाग िकया ? आशम मे सफाई करना, झाडू लगाना, यहा की सेवा-वयवसथा मे सामानय सेवक की तरह
जुटे रहना, कया इसी से आतमोपलिबध हो जायेगी ? इस पकार मन मे िछडे अनतदरनद से मेघ िदगभिमत हो गया।
राजकुमार होने का गौरव, राजमहलो की सुख-सुिवधा, यश, ऐशयर से भरपूर जीवन भी छू ट गया और
अधयातमपथ की ओर भी गित नही। कहा तो उसने कलपना संजोयी थी िक महावीर के सािनधय मे रहकर वह भी
लोकपूजय बनेगा। उसने महावीर के शीचरणो मे समाटो तथा धनकुबेरो को दणडवत और िवनीत भाव मे देखा था।
भगवान महावीर की दीघर दृिष ने, अमोघ वाणी ने उसे इस ओर आकिषरत िकया था। उसने सोचा था िक वह भी तप
करके यही सब पायेगा और उसके पभाव से एक िदन समाज-संसार चकाचौध हो जायगा। इन सब सोच-िवचारो के
चलते एक िदन उसने तीथरक ं र के चरणो मे झुककर पणाम करके कहाः "भगवन् ! आपने मुझे कहा इन छोटे-छोटे
कामो मे फँसा रखा है ? मुझसे तो साधना कराइये, तप कराइये, िजससे मेरा अनतःकरण पिवत बने।"
भगवान महावीर मुसकराये और बोलेः "वतस ! यही तो तप है। िवपरीत पिरिसथितयो मे मानिसक िसथरता और
एकागता, तनमयता तथा समता का भाव िजसमे आ गया, वही सचचा तपसवी है। तप का उदेशय 'अहं' का मूलोचछेद है।
िजन साधको ने सितशषयो की तरह अपने अनदर सामानय सेवक की शतर सवीकार कर ली है, जो हर छोटे-बडे काम को
सदगुर की सेवा और ईशर की उपासना मानकर करने लगा, िफर उसका अहं कहा रह जायेगा ? यह गुण िजसमे आ
गया उसका अनतःकरण सवतः पिवत और िनमरल बनता जायगा।
मेघ की आँखे खुल गयी और वह एक सचचे योदा की भाित मन को जीतने के िलए ततपर हो गया। उलझे हुए
को सुलझा दे, हारे हुए को िहममत से भर दे। मनमुख को मधुर मुसकान से ईशरोनमुख बना दे, हताश मे आशा-उतसाह
का संचार कर दे तथा जनम-मरण के चकर मे फँसे मानव को मुिकत का अनुभव करा दे – ऐसे केवल सदगुर ही होते
है। वे उंगली पकडकर, अंधकारमय गिलयो से बाहर िनकालकर खेल-खेल मे, हासय िवनोद मे िशषय को परमातम-
पािपतरपी याता पूणर करा देते है।
अनुकम
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सत 17
बब बब बबबब
गुर नानक घूमते घामते एमनाबाद पहुँचे। वहा एक अमीर सेठ रहता था मिलक भागो। नानकजी पिसद संत
थे, अतः उसने नानक जी को संदेशा भेजाः "हे फकीर ! इस दार पर बडे-बडे संत, पीर, औिलया आये है। परसो का
िदन शुभ है। आप मेरा आमंतण सवीकार करे एवं उस िदन आप मेरे यहा भोजन करने के िलए पधारे।"
नयौता भेजकर सेठ तैयािरया करने लगा। नयौते का िदन आया िकनतु नानक जी उसके यहा न गये। एक
आदमी बुलाने आयाः
"फकीर ! चिलये।"
नानक जीः " हा, आते है।"
थोडी देर मे दूसरा आदमी बुलाने आया, तीसरा आदमी आया िकनतु नानक जी न गये। सेठ को हुआ िकः "ये
फकीर कैसे है ! मेरे पास आते तो इनका नाम होता िक इतने बडे सेठ के यहा भोजन करने का अवसर िमला.... साथ
मे दिकणा भी देता और फकीर का काम बन जाता।"
.....लेिकन उस मूखर को पता नही िक फकीर उसका भोजन सवीकार करते तो उसका भागय बन जाता। वह
फकीर का कया काम बनाता ? फकीर ने तो अपना असली काम बना रखा था।
बब बबबबब बब बब बब बबबब बबबबबबब बब बबबब.....
देर होती देखकर सेठ खुद ही आया एवं बोलाः "फकीर ! बहुत देर हो गयी। आप चिलए िभका लेने।"
नानक जीः "अभी समय नही िभका-िवका का। इधर ही टुकडा पा लेगे।"
सेठ को हुआ िकः "अब तो मेरी इजजत का सवाल है। कैसे भी करके, इधर लाकर भी इनको िभका करवानी
पडेगी। यही पकवान आिद का थाल मँगवाना पडेगा। नगर मे नाम होगा िक फकीर मेरे घर का भोजन करके गये। मेरे
घर से कोई साधु खाली हाथ नही गया।" यह सोचकर उसने वही पर पकवान से भरा थाल मंगवा िलया। इतने मे एक
गरीब भकत लालो भी अपने घर से िभका ले आया-सूखी रोटी और तादुल की भाजी।
यह देखकर सेठ को हुआ िक मै पकवानो से भरा थाल ले ही आया हूँ तो यह कयो लाया ? नानक जी ने एक
हाथ मे उठायी लालो की सूखी रोटी और तादुल की भाजी एवं दूसरे हाथ मे उठाये सेठ के पकवान। जयो ही नानक जी
ने लालो की रोटी दबायी तो उसमे से दूध की धार िनकल पडी और सेठ के पकवान को दबाया तो रकत की धार बह
चली। लोग आशयरचिकत हो उठे ! सेठ भागो भी दंग रह गया िक मेरे वयंजनो से रकत की धार और लालो की सूखी
रोटी से दूध की धार ! यह कैसे हुआ ?
नानकजीः "लालो ने पसीना बहाकर हक की कमाई की है इसिलए इसका अन दूध के समान है, जबिक तुमने
गरीबो से बयाज लेकर, उनका खून चूसकर संपित इकटी की है इसिलए तुमहारे अन से रकत की धार बह चली है।"
सेठ मिलक भागो का िसर शमर से झुक गया।
हराम के धन के ऐश-आराम से हक की रखी-सूखी रोटी भी िहतकारी है।
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबब बब बबबबबबबबब
गुजरात के सौराषट पानत मे नरिसहं मेहता नाम के एक उचच कोिट के महापुरष हो गये है। वे जब भजन गाते
थे तब शोतागण भिकतभाव से सराबोर हो उठते थे।
दो लडिकया नरिसंह मेहता की बडी भिकतन थी। लोगो ने अफवाह फैला दी िक उन दो कुँवारी युवितयो के
साथ नरिसंह मेहता का कुछ गलत समबनध है। किलयुग मे बुरी आदत फैलाना बडा आसान है। िजसके अंदर बुराइया
है वह आदमी दूसरो की बुरी बात जलदी से मान लेता है। अफवाह बडी तेजी से फैल गयी। उन लडिकयो के िपता
और भाई ऐसे ही थे। उन दोनो के भाई एवं िपता ने उनकी खूब िपटाई की और कहाः
"तुम लोगो ने तो हमारी इजजत खराब कर दी। हम बाजार से गुजरते है तो लोग बोलते है िक इनही की वे
लडिकया है, िजनके साथ नरिसंह मेहता का...."
खूब मार-पीटकर उन दोनो को कमरे मे बनद कर िदया और अलीगढ के बडे बडे ताले लगा िदये एवं चाबी
अपने जेब मे डालक चल िदये िक 'देखे, आज कथा मे कया होता है।'
उन दोनो मे से एक रतनबाई रोज सतसंग-कीतरन के दौरान अपने हाथो से पानी का िगलास भरकर भाव भरे
भजन गाने वाले नरिसंह मेहता के होठो तक ले जाती थी। लोगो ने रतनबाई का भाव एवं नरिसंह मेहता की भिकत नही
देखी, बिलक पानी िपलाने की बाह िकया को देखकर उलटा अथर लगा िलया।
सरपंच ने घोिषत कर िदयाः "आज से नरिसंह मेहता गाव के चौराहे पर ही सतसंग -कीतरन करेगे, घर पर
नही।"
नरिसंह मेहता ने चौराहे पर सतसंग-कीतरन िकया। िववािदत बात िछडने के कारण भीड बढ गयी थी। कीतरन
करते-करते राती के 12 बज गये। नरिसंह मेहता रोज इसी समय पानी पीते थे, अतः उनहे पयास लगी।
इधर रतनबाई को भी याद आया िक 'गुरजी को पयास लगी होगी। कौन पानी िपलायेगा?' रतनबाई ने बंद
कमरे मे ही मटके मे से पयाला भरकर, भावपूणर हृदय से आँखे बंद करके मन-ही-मन पयाला गुरजी के होठो पर
लगाया।
जहा नरिसंह मेहता कीतरन-सतसंग कर रहे थे, वहा लोगो को रतनबाई पानी िपलाती हईु नजर आयी। लडकी
का बाप एवं भाई दोनो आशयरचिकत हो उठे िक 'रतनबाई इधर कैसे?'
वासतव मे तो रतनबाई अपने कमरे मे ही थी। पानी का पयाला भरकर भावना से िपला रही थी, लेिकन उसकी
भाव की एकाकारता इतनी सघन हो गयी िक वह चौराहे के बीच लोगो को िदखी।
अतः मानना पडता है िक जहा आदमी का मन अतयंत एकाकार हो जाता है, उसका शरीर दस ू री जगह होते
हुए भी वहा िदख जाता है।
रतनबाई के बाप ने पुत से पूछाः "रतन इधर कैस?े "
रतनबाई के भाई ने कहाः "िपताजी ! चाबी तो मेरी जेब मे है !"
दोनो भागे घर की ओर। ताला खोलकर देखा तो रतनबाई कमरे के अंदर ही है और उसके हाथ मे पयाला है।
रतनबाई पानी िपलाने की मुदा मे है। दोनो आशयरचिकत हो उठे िक यह कैसे !
संत एवं समाज के बीच सदा से ही ऐसा ही चलता आया है। कुछ असामािजक तततव संत एवं संत के पयारो
को बदनाम करने की कोई भी कसर बाकी नही रखते। िकंतु संतो-महापुरषो के सचचे भकत उन सब बदनािमयो की
परवाह नही करते, वरन् वे तो लगे ही रहते है संतो के दैवी कायों मे। ठीक ही कहा हैः
बबबबबब बबबबबबबबबब बब बबबबबब बबबबब बबब बबब।
बबबब बबबबब बबबबब बब बब बबब ।। बब बबबबब बबबब बबबबब
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सत 18
राजसी आहार करने वाले वयिकत यह भूल जाते है िक उतेजक भोजन करने से साधन-भजन, सवाधयाय का
संयम िबखर जाता है। हमारे दारा पयुकत भोजन का तथा हमारे िवचारो का घिनष समबनध है। भोजन हमारे सवभाव,
रिच तथा िवचारो का िनमाता है। यिद भोजन सािततवक है तो मन मे उतपन होने वाले िवचार पिवत होगे। इसके
िवपरीत राजसी, तामसी भोजन करने वालो के िवचार अशुद, िवलासी तथा िवकारमय होगे। िजन लोगो के भोजन मे
मास, अणडे, लहसुन, पयाज, मिदरा इतयािद पयोग िकये जाते है, जो पदोषकाल मे भोजन और मैथुन करते है, वे लोग
पायः कलुिषत िवचारो से िघरे रहते है, उनका जीवन पतन की ओर अगसर हो जाता है। मैथुन के िलए पवर भी
पदोषकाल माना गया है। भोजन का पभाव पतयेक जीव पर पडता है। पशुओं को लीिजए – बैल, गाय, भैस, घोडे, गधे,
बकरी, हाथी इतयािद शारीिरक शम करने वाले पशुओं का मुखय भोजन घास-चारा आिद ही है। फलतः वे सहनशील,
शात व मृदु होते है। इसके िवपरीत िसंह, चीते, भेिडये, िबलली इतयािद मासभकी जीव चंचल, उग, कोधी और उतेजक
सवभाव के बन जाते है। इसी पकार राजसी, तामसी भोजन करने वाले वयिकत कामी, कोधी, झगडालू व अिशष होते
है। वे सदा आलसय, कलह, िनंदा मे डू बे रहते है, िदन रात मे आठ-दस घणटे तो वे सोकर ही नष कर देते है। राजसी
–तामसी भोजन से मन िवकुबध होता है, िवषय वासना मे लगता है। शासतो मे पयाज तथा लहसुन विजरत है। ये दोनो
सवासथयपद होते हुए भी सािततवक वयिकतयो के िलए विजरत है। इसका पमुख कारण यह है िक ये उतेजना उतपन
करते है। मिदरा, अणडे, मास-मछली, मछिलयो के तेल, तमबाकू, गुटखा, पान-मसाला इतयािद तामसी वृित तो उतपन
करते ही है, साथ ही अनेकानेक रोगो के कारण भी बनते है। फासटफूड जैसे नूडलस, िपजजा, बगरर, बन, चायनीज
िडशेज, बेड आिद का सेवन न करे। जैम, जैल मामरलेड, चीनी, आइसकीम, पुिडंग, पेसटी केक, चॉकलेट तथा बाजार
िमठाइयो से दूर रहे। तली भुनी चीजे जैसे – पूरी, पराठा, पकौडा, भिजया, समोसा आिद न खाये। खटाई, िमचर-मसालो
का पयोग कम से कम करे। बासी भोजन, अिधक छौक लगाये हुए भोजन, पनीर व मशरम आिद न खाये। चाय,
काफी और मादक न नशीले पदाथों का सेवन कतई न करे। साफट िडंकस न पीये न िपलाये। इनकी जगह आप ताजे
फलो का रस, नीबू िमला पानी, नािरयल पानी, लससी, छाछ या शरबत ले।
भोजन मे सुधार करना शारीिरक कायाकलप करने का पथम मागर है। जो वयिकत िजतनी शीघता से दोषयुकत
आहार से बचकर सािततवक आहार करने वाले हो जायेगे, उनके शरीर दीघरकाल तक सुदृढ, पुष और सफूितरमान बने
रहेगे। किणक िजहासुख को न देखकर भोजन से शरीर, मन और बुिद का जो संयोग है उसे सामने रखना चािहए।
जब तक अन शुद नही होगा, अनय धािमरक, नैितक या सामािजक कृतय सफल नही होगे। अनशुिद हेतु आवशयक है
िक अन शुद कमाई के पैसे का हो। झूठ, कपट, छल, बेईमानी आिद न हो – इस पकार की आजीिवका से उपािजरत
धन से जो अन पापत होता है वही शुद अन है। यह बात भी धयान रखने योगय है िक िजस पात मे उस भोजय वसतु को
तैयार िकया जाये, वह पात शुद हो और जो वयिकत भोजन बनाये वह भी सवचछ, पिवत और पसन मनवाला होना
चािहए।
अनुकम
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बबबबबबब बब बबबबबबबबबबब
ईषया-देष और अित धन-संगह से मनुषय अशात होता है। ईषया-देष की जगह पर कमा और सतपवृित का
िहससा बढा िदया जाये तो िकतना अचछा !
दुयोधन ईषयालु था, देषी था। उसने तीन महीने तक दुवासा ऋिष की भली पकार से सेवा की, उनके िशषयो
की भी सेवा की। दुयोधन की सेवा से दुवासा ऋिष पसन हो गये और बोलेः
"माग ले वतस ! जो मागना चाहे माग ले।"
जो ईषया-देष के िशकंजे मे आ जाता है, उसका िववेक उसे साथ नही देता है लेिकन जो ईषया-देष से रिहत
होता है उसका िववेक सजग रहता है। वह शात होकर िवचार या िनणरय करता है। ऐसा वयिकत सफल होता है और
सफलता के अहं मे गरकाव नही होता। कभी असफल भी हो गया तो िवफलता के िवषाद मे नही डू बता। दुष दुयोधन
ने ईषया एवं देष के वशीभूत होकर कहाः
"मेरे भाई पाणडव वन मे दर-दर भटक रहे है। उनकी इचछा है िक आप अपने हजार िशषयो के साथ उनके
अितिथ हो जाये। अगर आप मुझ पर पसन है तो मेरे भाइयो की इचछा पूरी करे लेिकन आप उसी वकत उनके पास
पहुँिचयेगा जब दौपदी भोजन कर चुकी हो।"
दुयोधन जानता था िकः 'भगवान सूयर ने उनहे अकयपात िदया है। उसमे से तब तक भोजन-सामगी िमलती
रहती है जब तक दौपदी भोजन न कर ले। दौपदी भोजन करके पात को धोकर रख दे िफर उस िदन उसमे से भोजन
नही िनकलेगा। अतः दोपहर के बाद दुवासाजी उनके पास पहुँचेगे तब भोजन न िमलने से कुिपत हो जायेगे और
पाणडवो को शाप दे देगे। इससे पाणडव वंश का सवरनाश हो जायेगा।'
इस ईषया और देष से पेिरत होकर दुयोधन ने दुवासाजी की पसनता का लाभ उठाना चाहा।
दुवासा ऋिष मधयाह के समय जा पहुँचे पाणडवो के पास। युिधिषर आिद पाणडव एवं दौपदी दुवासाजी को
िशषयो समेत अितिथ के रप मे आये हुए देखकर िचिनतत हो गये। िफर भी बोलः "िवरािजये महिषर ! आपके भोजन की
वयवसथा करते है।"
अनतयामी परमातमा सबका सहायक है, सचचे का मददगार है। दुवासाजी बोलेः "ठहरो ठहरो.... भोजन बाद मे
करेगे। अभी तो याता की थकान िमटाने के िलए सनान करने जा रहा हूँ।"
इधर दौपदी िचिनतत हो उठी िक अब अकयपात से कुछ न िमल सकेगा और इन साधुओं को भूखा कैसे भेजे ?
उनमे भी दुवासा ऋिष को ! वह पुकार उठीः "हे केशव ! हे माधव ! हे भकतवतसल ! अब मै तुमहारी शरण मे हूँ....."
शात हृदय एवं पिवत िचत से दौपदी ने भगवान शीकृषण का िचंतन िकया। भगवान शीकृषण आये और बोलेः
"दौपदी कुछ खाने को तो दो !"
दौपदीः "केशव ! मैने तो पात धोकर रख िदया है।"
शीकृषणः "नही,नही... लाओ तो सही ! उसमे जरर कुछ होगा।"
दौपदी ने लाकर िदया पात तो दैवयोग से उसमे तादुल की भाजी का एक पता बच गया था। िवशातमा शीकृषण
ने संकलप करके उस तादुल की भाजी का पता खाया और तृिपत का अनुभव िकया तो उन महातमाओं को भी तृिपत का
अनुभव हुआ। वे कहने लगे िकः "अब तो हम तृपत हो चुके है, वहा जाकर कया खायेगे ? युिधिषर को कया मुँह
िदखायेगे ?"
शातिचत से की हुई पाथरना अवशय फलती है। ईषयालु एवं देषी िचत से तो िकया-कराया भी चौपट हो जाता
है जबिक नम और शात िचत से तो चौपट हुई बाजी भी जीत मे बदल जाती है और हृदय धनयता से भर जाता है।
अनुकम
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बबबबब बब बबब
एक बार भोज के दरबार मे सुंदर वसताभूषण पहने हुए एक वयिकत का आगमन हुआ। अपनी वेशभूषा से वह
बडा पंिडत लग रहा था। उसको आते देखकर राजा भोज सवयं िसंहासन से उठ खडे हो गये और उसका सवागत
करते हुए उसे बैठने के िलए एक उचच आसन िदया।
कुछ ही देर बाद एक कृशकाय वयिकत फटे-पुराने कपडे पहने दरबार मे पिवष हुआ। राजा भोज ने वाणी से
भी उनका सतकार नही िकया। वह वयिकत अपने आप ही एक साधारण सी जगह पर बैठ गया।
सभा पूरी होने पर राजा भोज ने िजसके आगमन पर सममान िकया था, उसे जाते वकत पूछा तक नही, िकनतु
िजसका वाणी दारा सतकार तक नही िकया था, उसे जाते वकत आदर देते हुए कहाः
"आप कृपा करके राजसभा मे दुबारा पधािरयेगा।" िफर िवनमता और सममान से उसे दार तक जाकर िवदाई
दी। यह वयवहार देखकर लोग दंग रह गये और वजीर ने तो पूछ ही िलयाः
"राजन् ! आने पर िजसे आपने आदर सिहक िबठाया, िवदा के समय उसके दारा 'मै जाता हँ'ू ऐसा कहने पर भी
आपने धयान तक नही िदया। लेिकन उस फटे-पुराने कपडे पहने हुए कृशकाय वयिकत को धनयवाद देकर छोडने के
िलए आप दार तक गये ! यह रहसय हमारी समझ मे नही आ रहा है, कृपा करके समझाइये।"
राजा भोज ने कहाः
"वयिकत जब आता है तब उसके वसताभूषण का आदर होता है और जब जाता है तब उसके जान का आदर
होता है। वह कृशकाय वयिकत बाहर से भले गरीब िदख रहा था, िकनतु भीतर से जान-धन से पिरपूणर था। जान एक
अनोखी पितभा होती है, इसीिलए उसका इतना आदर िकया गया।"
िजसके जीवन मे जान का िजतना आदर होता है, उतना ही वह कदम-कदम पर आनंद और पेम को पगटाने
वाला होता है। बाह साज-सजजा तो कुछ ही देर मे नष हो जाती है िकनतु जान अनंत काल तक शाशत बना रहता
है। अतः पतयेक मनुषय को चािहए िक अपने जीवन मे जान का आदर करे।
अनुकम
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सत 22
सभी धमानुषानो का अंितम लकय चंचल मन को वश मे करना है। मन के संयत होने से सभी इिनदया वश मे
हो जाती है। शासतो ने मन को गयारहवी इिनदय माना है। सनातन धमर के अनुसार बह (आतमा) िनिषकय है तथा शरीर
जड है अथात् उसमे कायर करने का सामथयर नही है। यह मन ही है जो आतमा की शिकत (सता) लेकर शरीर से
िविभन पकार की चेषाएँ करवाता है। दूसरे शबदो मे, आतमा को कोई बंधन नही और शरीर नशर है तो िफर जनम-मरण
के चक मे कौन ले जाता है ? यह मन ही है जो सूकम वासनाओं को साथ लेकर एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण
करता है। इसीिलए कहा गया हैः बब बब बबबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबबबब। मन ही मनुषय के बंधन
और मोक का कारण है।
िविभन धमानुषानो के दारा मन को पिवत करके इससे मुिकत का आनंद भी िमल सकता है और यिद इसे
सवतंत या उचछंखल बनने िदया जाये तो यही मन िमल सकता है और यिद इसे सवतनत या उचछंखल बनने िदया जाय
तो यही मन जीव को जनम मरण की परमपरा मे भटकाकर अनेक कषो मे डालता रहता है।
हमारे ऋिषयो का िवजान बडा ही सूकमतम िवजान है। उनहोने मात भौितक जड वसतुओं को ही नही अिपतु जो
परम चैतनय है और िजससे जड चेतन सता पापत करके िसथत हुए है उसको भी अनुभव िकया।
अपनी संतानो को भी उस परम चैतनय का अनुभव कराने के िलए उन महापुरषो ने वेदो, उपिनषदो तथा
पुराणो मे अनेक पकार के िविध-िवधानो तथा धमानुषानो का वणरन िकया। ऐसे ही धमानुषानो मे आता है
'एकादशीवरत'।
पतयेक माह मे दो एकादिशया आती है एक शुकल पक मे तथा दूसरी कृषण पक मे। एकादशी के िदन मनःशिकत
का केनद चनदमा िकितज की एकादशवी (गयारहवी) कका पर अविसथत होता है। यिद इस अनुकूल समय मे मनोिनगह
की साधना की जाय तो वह अतय़िधक फलवती होती है।
एकादशी को उपवास िकया जाता है। भारतीय योग दशरन के अनुसार मन का सवामी पाण है। जब पाण सूकम
होते है तो मन भी वश हो जाता है। आधुिनक िवजान के अनुसार जब हम भोजन करते है तो उसे पचाने के िलए
आकसीजन की आवशयकता होती है। इसी आकसीजन को भारतीय योिगयो ने 'पाणवायु' कहा है। जब हम भोजन नही
करते तो इतनी पाणवायु खचर नही होती िजतनी भोजन करने पर होती है। योग िवजान के अनुसार शरीर मे सात चक
होते है – मूलाधार, सवािधषान, मिणपुर, अनाहत, िवशुदाखया, आजाचक एवं सहसहार। हृदय मे िसथत अनाहत चक के
नीचे के तीन चको मे मन तथा पाणो की िसथित साधारण अथवा िनमकोिट की मानी जाती है जबिक अनाहत चक से
ऊपर वाले चको मे मन तथा पाणो की िसथित साधारण अथवा िनमकोिट की मानी जाती है जबिक अनाहत चक से
ऊपर वाले चको मे मन तथा पाण िसथत होने से वयिकत की गित ऊँची साधनाओं मे होने लगती है।
भोजनको पचाने के िलए पाणवायु को नीचे के केनदो (पेट मे िसथत आँतो) मे आना पडता है। मन तथा पाणो
का आपस मे घिनष समबनध है अतः पाणो के िनचले केनदो मे आने से मन भी इन केनदो मे आता है। योग शासत मे
इनही केनदो को काम, कोध, लोभ आिद िवकारो का सथान बताया गया है।
उपवास रखने से मन तथा पाण सूकम होकर ऊपर के केनदो मे रहते है िजससे आधयाितमक साधनाओं मे गित
िमलती है तथा एकादशी को मनः शिकत का केनद चनदमा की गयारहवी कका पर अविसथत होने से इस समय मनोिनगह
की साधना अिधक फिलत होती है। अथात् उपयुकत समय भी हो तथा मन और पाणो की िसथित ऊँचे केनदो पर हो तो
यह बबबब बबब बबबबबब वाली बात हो गयी। ऐसे समय जब साधना की जाय तो उससे िकतना लाभ िमलेगा इस
बात का अनुमान सभी लगा सकते है।
इसी वैजािनक आशय से हमारे ऋिषयो दारा एकादशेिनदयभूत मन को एकादशी के िदन वरत-उपवास दारा
िनगृहीत करने का िवधान िकया गया है।
अनुकम
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बबबबबबब बबबबबब
बबबबबबबबब बब बबब : जनादरन ! जयेष मास के शुकलपक मे जो एकादशी पडती हो, कृपया उसका
वणरन कीिजये ।
बबबबब बबबबबबबबब बबबब : राजन् ! इसका वणरन परम धमातमा सतयवतीननदन वयासजी करेगे,
कयोिक ये समपूणर शासतो के तततवज और वेद वेदागो के पारंगत िवदान है ।
बब बबबबबबबबबब बबबब बबब : दोनो ही पको की एकादिशयो के िदन भोजन न करे । दादशी के िदन
सनान आिद से पिवत हो फूलो से भगवान केशव की पूजा करे । िफर िनतय कमर समापत होने के पशात् पहले बाहणो
को भोजन देकर अनत मे सवयं भोजन करे । राजन् ! जननाशौच और मरणाशौच मे भी एकादशी को भोजन नही करना
चािहए ।
बब बबबबब बबबबबब बबबब : परम बुिदमान िपतामह ! मेरी उतम बात सुिनये । राजा युिधिषर, माता
कुनती, दौपदी, अजुरन, नकुल और सहदेव ये एकादशी को कभी भोजन नही करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते है
िक : ‘भीमसेन ! तुम भी एकादशी को न खाया करो…’ िकनतु मै उन लोगो से यही कहता हूँ िक मुझसे भूख नही सही
जायेगी ।
बबबबबब बब बबब बबबबब बबबबबबब बब बबब : यिद तुमहे सवगरलोक की पािपत अभीष है और
नरक को दूिषत समझते हो तो दोनो पको की एकादशीयो के िदन भोजन न करना ।
बबबबबब बबबब : महाबुिदमान िपतामह ! मै आपके सामने सचची बात कहता हूँ । एक बार भोजन करके
भी मुझसे वरत नही िकया जा सकता, िफर उपवास करके तो मै रह ही कैसे सकता हँ? ू मेरे उदर मे वृक नामक अिगन
सदा पजविलत रहती है, अत: जब मै बहुत अिधक खाता हूँ, तभी यह शात होती है । इसिलए महामुने ! मै वषरभर मे
केवल एक ही उपवास कर सकता हँू । िजससे सवगर की पािपत सुलभ हो तथा िजसके करने से मै कलयाण का भागी
हो सकूँ, ऐसा कोई एक वरत िनशय करके बताइये । मै उसका यथोिचत रप से पालन करँगा ।
बबबबबबब बब बबब : भीम ! जयेष मास मे सूयर वृष रािश पर हो या िमथुन रािश पर, शुकलपक मे जो
एकादशी हो, उसका यतपूवरक िनजरल वरत करो । केवल कुलला या आचमन करने के िलए मुख मे जल डाल सकते
हो, उसको छोडकर िकसी पकार का जल िवदान पुरष मुख मे न डाले, अनयथा वरत भंग हो जाता है । एकादशी को
सूयौदय से लेकर दूसरे िदन के सूयौदय तक मनुषय जल का तयाग करे तो यह वरत पूणर होता है । तदननतर दादशी को
पभातकाल मे सनान करके बाहणो को िविधपूवरक जल और सुवणर का दान करे । इस पकार सब कायर पूरा करके
िजतेिनदय पुरष बाहणो के साथ भोजन करे । वषरभर मे िजतनी एकादशीया होती है, उन सबका फल िनजरला एकादशी
के सेवन से मनुषय पापत कर लेता है, इसमे तिनक भी सनदेह नही है । शंख, चक और गदा धारण करनेवाले भगवान
केशव ने मुझसे कहा था िक: ‘यिद मानव सबको छोडकर एकमात मेरी शरण मे आ जाय और एकादशी को िनराहार रहे
तो वह सब पापो से छू ट जाता है ।’
एकादशी वरत करनेवाले पुरष के पास िवशालकाय, िवकराल आकृित और काले रंगवाले दणड पाशधारी भयंकर
यमदूत नही जाते । अंतकाल मे पीतामबरधारी, सौमय सवभाववाले, हाथ मे सुदशरन धारण करनेवाले और मन के समान
वेगशाली िवषणुदत
ू आिखर इस वैषणव पुरष को भगवान िवषणु के धाम मे ले जाते है । अत: िनजरला एकादशी को पूणर
यत करके उपवास और शीहिर का पूजन करो । सती हो या पुरष, यिद उसने मेर पवरत के बराबर भी महान पाप
िकया हो तो वह सब इस एकादशी वरत के पभाव से भसम हो जाता है । जो मनुषय उस िदन जल के िनयम का पालन
करता है, वह पुणय का भागी होता है । उसे एक एक पहर मे कोिट कोिट सवणरमुदा दान करने का फल पापत होता
सुना गया है । मनुषय िनजरला एकादशी के िदन सनान, दान, जप, होम आिद जो कुछ भी करता है, वह सब अकय होता
है, यह भगवान शीकृषण का कथन है । िनजरला एकादशी को िविधपूवरक उतम रीित से उपवास करके मानव वैषणवपद
को पापत कर लेता है । जो मनुषय एकादशी के िदन अन खाता है, वह पाप का भोजन करता है । इस लोक मे वह
चाणडाल के समान है और मरने पर दुगरित को पापत होता है ।
जो जयेष के शुकलपक मे एकादशी को उपवास करके दान करेगे, वे परम पद को पापत होगे । िजनहोने
एकादशी को उपवास िकया है, वे बहहतयारे, शराबी, चोर तथा गुरदोही होने पर भी सब पातको से मुकत हो जाते है ।
कुनतीननदन ! ‘िनजरला एकादशी’ के िदन शदालु सती पुरषो के िलए जो िवशेष दान और कतरवय िविहत है,
उनहे सुनो: उस िदन जल मे शयन करनेवाले भगवान िवषणु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चािहए अथवा
पतयक धेनु या घृतमयी धेनु का दान उिचत है । पयापत दिकणा और भाित भाित के िमषानो दारा यतपूवरक बाहणो को
सनतुष करना चािहए । ऐसा करने से बाहण अवशय संतुष होते है और उनके संतुष होने पर शीहिर मोक पदान
करते है । िजनहोने शम, दम, और दान मे पवृत हो शीहिर की पूजा और राित मे जागरण करते हएु इस ‘िनजरला
एकादशी’ का वरत िकया है, उनहोने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीिढयो को और आनेवाली सौ पीिढयो को भगवान
वासुदेव के परम धाम मे पहुँचा िदया है । िनजरला एकादशी के िदन अन, वसत, गौ, जल, शैयया, सुनदर आसन,
कमणडलु तथा छाता दान करने चािहए । जो शेष तथा सुपात बाहण को जूता दान करता है, वह सोने के िवमान पर
बैठकर सवगरलोक मे पितिषत होता है । जो इस एकादशी की मिहमा को भिकतपूवरक सुनता अथवा उसका वणरन
करता है, वह सवगरलोक मे जाता है । चतुदरशीयुकत अमावसया को सूयरगहण के समय शाद करके मनुषय िजस फल
को पापत करता है, वही फल इसके शवण से भी पापत होता है । पहले दनतधावन करके यह िनयम लेना चािहए िक :
‘मै भगवान केशव की पसननता के िलए एकादशी को िनराहार रहकर आचमन के िसवा दूसरे जल का भी तयाग करँगा
।’ दादशी को देवेशर भगवान िवषणु का पूजन करना चािहए । गनध, धूप, पुषप और सुनदर वसत से िविधपूवरक पूजन
करके जल के घडे के दान का संकलप करते हुए िनमािकत मंत का उचचारण करे :
बबबबबब बबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबब
। ब
बबबबबबबबबबबबबबब बब बबब बबबबब बबबबब॥
‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव हषीकेश ! इस जल के घडे का दान करने से आप मुझे परम गित की
पािपत कराइये ।’
भीमसेन ! जयेष मास मे शुकलपक की जो शुभ एकादशी होती है, उसका िनजरल वरत करना चािहए । उस
िदन शेष बाहणो को शकर के साथ जल के घडे दान करने चािहए । ऐसा करने से मनुषय भगवान िवषणु के समीप
पहुँचकर आननद का अनुभव करता है । ततपशात् दादशी को बाहण भोजन कराने के बाद सवयं भोजन करे । जो इस
पकार पूणर रप से पापनािशनी एकादशी का वरत करता है, वह सब पापो से मुकत हो आनंदमय पद को पापत होता है ।
यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का वरत आरमभ कर िदया । तबसे यह लोक मे ‘पाणडव दादशी’
के नाम से िवखयात हुई ।
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
सत 24
बबबबबबबब बब बबबबबबबबबबबब
'सतकथा गनथ की यह कथा है।
काशीनरेश बडे धमातमा, सतय एवं नयायिपय राजा थे। उनके पास कई िवदान पंिडत आते जाते रहते थे।
एक बार उनकी पटरानी को काितरक मास मे गंगासनान के िलए जाने की इचछा हुई। पटरानी थी, अतः उसके
िलए काफी बनदोबसत िकया गया तािक िकसी की नजर उस पर न पडे। गंगा तट पर से बसती को हटा िदया गया एवं
आस-पास जो झोपडे थे उनमे रहने वाले गरीबो को भी रानी की आजा से भगा िदया गया।
जब रानी सनान करके बाहर आयी तो उसे ठंड लगने लगी। उसने एक दासी को हुकम िकयाः "सामने जो
झोपिडया है उनमे से एक झोपडी जला दे तािक मै जरा हाथ सेक लूँ।"
िजसे हुकम िदया गया था वह थी तो दासी, िकनतु उसे धमर का जान था। वह बोलीः "महारानी जी ! आपको
िजतना अपना महल एवं राज-पिरवार िपय है उतना ही इन गरीबो को अपना झोपडा एवं कुटुमब पयारा है। दूसरो की
पीडा का खयाल करके आप जरा सह लीिजए। आपको िदन मे भी ठंड लग रही है तो वे बेचारे राित मे इतनी ठंडी मे
कहा सोयेगे ? इसका तो जरा खयाल कीिजए !"
महारानी का नाम तो करणा था, पर हृदय कठोरता से भऱा था। उसने उस दासी को जोरदार तमाचा मारते
हुए कहाः "आयी बडी धमोपदेश देने वाली। चल हट, नालायक कही की...."
उस बेचारी दासी को हटा िदया गया एवं जो चापलूसी करने वाली दािसया थी, उनहे बुलाकर झोपडे को
जलाने की आजा कर दी।
दािसयो ने जला िदया झोपडा। सब झोपडे पास-पास ही थे। अतः एक झोपडे को जलाते ही हवा के कारण
एक-एक करके सभी झोपडे जल उठे। महारानी झोपडो की होली जलती देखकर बडी खुशी हईु एवं राजमहल मे
वापस लौटी। इतने मे पजा के कुछ समझदार लोग एवं िजनकी झोपिडया जला दी गयी थी, वे गरीब लोग आये राजा
के पास िशकायत करने।
लोगो की िशकायत सुनकर राजा गये महल मे एवं अपनी पटरानी से पूछाः "लोग जो बात कह रहे है, कया वह
सच है ?"
महारानीः "हा, मुझे ठणड लग रही थी। एक झोपडी जलवायी तो सब जल गयी। महा होली का नजारा देखने
का आनंद आया।"
तब राजा ने सोचाः "जो वयिकत सदैव सुखो मे ही पला है, उसे दूसरो के दुःख का पता नही चलता। जो
महलो मे रहता है उसे झोपडे वालो के आँसुओं का खयाल नही रहता। जो रजाइयो मे िछपा है उसे फटे कपडे वालो के
दुःख का एहसास नही होता। मै भी कया ऐसी रानी का बातो मे आ जाऊँ ? नही।
उनहोने अपनी दािसयो को आदेश िदयाः
"इस अभािगनी के राजसी वसत अलंकार तुरत ं उतारकर झोपडी मे रहने वाली सती के फटे िचथडे वसत
पहना दो और राजदरबार मे पेश करो।"
राजाजा का उललंघन भला कौन सी दासी करती ? तुरत ं राजाजा का पालन िकया गया। राजदरबार मे रानी
के आने पर राजा ने फरमान जारी िकयाः
"इस रानी ने िजनके झोपडे जलाये है, उनहे पुनः यह रानी जब तक अपनी मेहनत मजदूरी से अथवा भीख
मागकर बनवा न देगी, तब तक यह महल मे आने के कािबल न रहेगी।"
महारानी को राजाजा का पालन करना ही पडा। आजापालन के पशात ही उसे महल मे पवेश िमला।
ऐसा नयायिपय राजा ही वासतव मे राजय भोगने का अिधकारी होता है। दूसरो के दुःखो को समझकर उनहे दूर
करने की कोिशश करने वाला ही वासतव मे मानव कहलाने का अिधकारी होता है। वह मानव ही कया िजसमे मानवीय
संवेदना का नाम नही ? वह मानवता कैसी िजसे दूसरो के दुःख ददर का एहसास नही ?
अनुकम
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सूयोपासना
भगवान की आराधना और पाथरना जीवन मे सफलता पापत करने की कुञी है। सचचे भकतो की पाथरना से
समाज एवं देश का ही नही, वरन् समग िवश का कलयाण हो सकता है।
ऋगवेद मे आता है िक सूयर न केवल समपूणर िवश के पकाशक, पवतरक एवं पेरक है वरन् उनकी िकरणो मे
आरोगय वधरन, दोष-िनवारण की अभूतपूवर कमता िवदमान है। सूयर की उपासना करने एवं सूयर की िकरणो का सेवन
करने से अनेक शारीिरक, बौिदक एवं आधयाितमक लाभ होते है।
िजतने भी सामािजक एवं नैितक अपराध है, वे िवशेषरप से सूयासत के पशात अथात् राित मे ही होते है।
सूयर की उपिसथित मात ही इन दुषपवृितयो को िनयँितत कर देती है। सूयर के उदय होने से समसत िवश मे मानव, पशु-
पकी आिद िकयाशील होते है। यिद सूयर को िवश-समुदाय का पतयक देव अथवा िवश-पिरवार का मुिखया कहे तो भी
कोई अितशयोिकत नही होगी।
वैसे तो सूयर की रोशनी सभी के िलए समान होती है परनतु उपासना करके उनकी िवशेष कृपा पापत कर
वयिकत सामानय लोगो की अपेका अिधक उनत हो सकता है तथा समाज मे अपना िविशष सथान बना सकता है।
सूयर एक शिकत है। भारत मे तो सिदयो से सूयर की पूजा होती आ रही है। सूयर तेज और सवासथय के दाता
माने जाते है। यही कारण है िक िविभन जाित, धमर एवं समपदाय के लोग दैवी शिकत के रप मे सूयर की उपासना करते
है।
सूयर की िकरणो मे समसत रोगो को नष करने की कमता िवदमान है। बबबबब बब बबबबबब –
बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बब बबबबबबबब बबब बबबब बबब बबबबब बबब। सवासथय,
बिलषता, रोगमुिकत एवं आधयाितमक उनित के िलए सूयोपासना करनी ही चािहए।
सूयर िनयिमतता, तेज एवं पकाश के पतीक है। उनकी िकरणे समसत िवश मे जीवन का संचार करती है।
भगवान सूयर नारायण सतत् पकािशत रहते है। वे अपने कतरवय पालन मे एक कण के िलए भी पमाद नही करते, कभी
अपने कतरवय से िवमुख नही होते। पतयेक मनुषय मे भी इन सदगुणो का िवकास होना चािहए। िनयमतता, लगन,
पिरशम एवं दृढ िनशय दारा ही मनुषय जीवन मे सफल हो सकता है तथा किठन पिरिसथितयो के बीच भी अपने लकय
तक पहुँच सकता है।
बबबबब बबबबबब बब बबबबबबबबब । बबब बबबब बबबबबबबबबबबबब बब बबबबबबबब
बबबबबबबब बब बबबबबबब बबबब बब बबबब बब । बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बबबबबब
बबबबबब बबबब बबब बब बबबबबबबब बब बबबबबबब बबबब बबबबबब
ब बबबबब बबबबब बबबबब बब बबबबबबब बबब।
बब बबबबबब बबबबबबबबबबबब बब बबब बब बबबब बब बबब बबब बबबबबबब बब बब
बबबबबबबब बबबब बब।
सूयोदय के बाद जब सूयर की लािलमा िनवृत हो जाय तब सूयािभमुख होकर कंबल अथवा िकसी िवदुत
कुचालक आसन् पर पदासन अथवा सुखासन मे इस पकार बैठे तािक सूयर की िकरणे नािभ पर पडे। अब नािभ पर
अथात् मिणपुर चक मे सूयर नारायण का धयान करे।
यह बात अकाटय सतय है िक हम िजसका धयान, िचनतन व मनन करते है, हमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता
है। उनके गुण हमारे जीवन मे पगट होने लगते है।
नािभ पर सूयरदेव का धयान करते हएु यह दृढ भावना करे िक उनकी िकरणो दारा उनके दैवी गुण आप मे
पिवष हो रहे है। अब बाये नथुने से गहरा शास लेते हुए यह भावना करे िक सूयर िकरणो एवं शुद वायु दारा दैवीगुण मेरे
भीतर पिवष हो रहे है। यथासामथयर शास को भीतर ही रोककर रखे। ततपशात् दाये नथुन े से शास बाहर छोडते हएु
यह भावना करे िक मेरी शास के साथ मेरे भीतर के रोग, िवकार एवं दोष बाहर िनकल रहे है। यहा भी यथासामथयर
शास को बाहर ही रोककर रखे तथा इस बार दाये नथुने से शास लेकर बाये नथुने से छोडे। इस पकार इस पयोग को
पितिदन दस बार करने से आप सवयं मे चमतकािरक पिरवतरन महसूस करेगे। कुछ ही िदनो के सतत् पयोग से आपको
इसका लाभ िदखने लगेगा। अनेक लोगो को इस पयोग से चमतकािरक लाभ हुआ है।
भगवान सूयर तेजसवी एवं पकाशवान है। उनके दशरन व उपासना करके तेजसवी व पकाशमान बनने का पयत
करे।
ऐसे िनराशावादी और उतसाहहीन लोग िजनकी आशाएँ , भावनाएँ व आसथाएँ मर गयी है, िजनहे भिवषय मे पकाश
नही, केवल अंधकार एवं िनराशा ही िदखती है ऐसे लोग भी सूयोपासना दारा अपनी जीवन मे नवचेतन का संचार कर
सकते है।
अनुकम
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बबबबबबब बबबबबबब
महाराषट के महान भकतो, संतो मे मुिसलम राम-भकत लतीफशाह का नाम उललेखनीय है।
मुसलमान होकर भी लतीफशाह बडे ऊँचे सतर के रामभकत थे। वे राम, शीकृषण और िवटल को अिभन
समझते थे। संत एकनाथ की कृपा और सनेह इनहे पापत था।
ये 16 वी शताबदी मे हुए और मराठी के साथ ही िहनदी मे भी पद-रचना की। इनका एक पद है-
बबब बबब बबबब। बबबबब
बबबबब बबबब बबबब बबबबब, बबबबब बबबब बबबब । बबबबबब
बबबबब बबबब बबबबबब बब, बबबबबबबब बब बबबबबब बबबब बबबबब।
बबब 'बबबब' बबब बबबब बबब, बबबबब बबब बब।।बबबबबबबबब
रामनाम पर लतीफ का इतना िवशास और भरोस है िक उससे पाणी संसार-सागर से पार उतर सकता है-
बबब-बबब बबबबब, बबबबब बबब-बबब बबबबबब ।
बब बब बबबबबब बबब बब बबबबब, बब बबब बबबब बबब बब।।
बबब 'बबबब' बबब बबबबब बबबब, बबबबबब बबबबबबब बब।।
कठमुलले काजी और मौलवी लतीफ को मुसलमान मानने के बजाय 'कािफर' कहते थे और पायः वहा के
मुसलमान बादशाह से लतीफ की िशकायत करते रहते थेः "यह आदमी हमेशा कुफ फैलाता रहता है, दीने इसलाम का
बडा नुकसान करता है, इसलाम की तौहीन होती है। इसे शरीयत के मुतािबक सजा दी जानी चािहए।
वे कान भरते रहे, तो बादशाह ने हुकम िदयाः "लतीफशाह को दरबार मे हािजर (उपिसथत) िकया जाय।"
शाही फरमान लेकर बादशाह के िसपाही लतीफ के पास पहुँचे तो वहा कया देखा िक लतीफशाह बहुत सारे लोगो से
िघरे कोई मोटी-सी पुसतक पढ रहे है और उसका अथर भी बडी भावुकता के साथ समझाते है। वहा िवदमान हर
वयिकत बडी ही पिवत भाव-धारा मे डू बा है। िसपाही एकाएक उस वातावरण मे लतीफशाह को शाही फरमान सुना नही
सके, बिलक सोचा, कुछ देर ठहर कयो न जाये। बैठ गये वे िसपाही भी उसी सतसंग मे... और संगित का पभाव तो
पडता ही है। बैठे-बैठे उन िसपािहयो को भी उस कथा का रस आ ही गया। वह कथा थी, भागवत की। उसमे
शीकृषण का लीलामय चिरत विणरत है। लतीफशाह भागवत कथा के बडे पेमी थे।
उधर बादशाह उन िसपािहयो की पतीका ही करता रह गया। जब देर तक वे न लौटे तो बादशाह कुद हुआ
और ताव-तैश खाकर सवयं घोडा दौडाकर, तलवार तौलाता लतीफशाह के पास पहुँचा। िकनतु जो दृशय वहा उसने
देखा, उससे वह चिकत रह गया। उसने देखा, लतीफशाह के मुख पर जैसे खुदाई नूर (िदवय तेज) बरस रहा है और
वे एक िकताब (गनथ) से कुछ पढकर लोगो को सुना समझा रहे है, कभी भगवद् िवरह मे आँसू बहाते है तो कभी
भगवत् सनेह मे आनिनदत, पुलिकत होते है। उनके साथ ही सुनने वालो का भी तार ऐसा जुडा हुआ है िक उन बातो
को सुनते हुए वे भी भाव-िवभोर हो जाते है, लतीफ के साथ। 'ऐसा जादू है इस शखस की जुबान मे, तौबा है ! अचछा,
जरा हम भी जायजा ले, लतीफ की िकससागोई (कथा-वचन) का।"
बादशाह भी घोडे से उतरकर वही बैठ गया। तलवार मयान मे रख ली। लतीफशाह की यह दशा थी िक उनहे
कोई भी अंतर नही पडा, चाहे वहा हिथयारबंद िसपाही आये या सवयं बादशाह। उनका िदवय कथा-रस अजस सािवत
होता रहा। लतीफ और शोता समाज सब सुध-बुध िबसारे उस िदवय कथा-रस मे डू बे रहे। कहा न 'बबब बब बब'
वह (बह) रस ही है। अब एक दृिष जो बादशाह ने लतीफ की लमबी चौडी बैठक मे डाली तो देखता है िक वहा हर
दीवार पर िहनदू देवी-देवताओं के िचत लगे हुए है। उनमे एक िचत बादशाह को बडा सुनदर लगा। वह दृशय यह था िक
शीकृषण को राधारानी अपने हाथ से पान का बीडा दे रही है। अब यह िचत देखा तो बादशाह को लतीफशाह का
मखौल उडाने की सूझी। कहने लगाः
"िमया लतीफ, तुम कैसे बनदे हो इसलाम के, िक ये कुफ से लबरेज तसवीरे लगा रखी है यहा ! ये बेमानी और
बेअसर होने के साथ ही जहालत की िनशानी है।" लतीफ ने पहचाना बादशाह को और वहा शानत बैठे िसपािहयो को
भी। िफर बडे पेम से कहाः "जनाब ! इनहे फकत तसवीरे न समझे। इनमे यह ताकतोताब (तेजोबल) मौजूद है जो
इनसानी चोले मे नही।"
बादशाह बोलाः "कैसे यकीन कर लूँ ? अब (संकेत करके) उस तसवीर को ही देखो। तसवीर तो वाकई बडी
खूबसूरत है, लेिकन उसका मतलब कया ? जो लडकी िकशन जी को पान नजर कर रही है, वे उसे खा कहा रहे है ?
नही खा सकते। आिखर कागजी तसवीर ही तो है, वरना वे यह पान कभी का खा चुके होते। पान कया अब तक हाथ
मे ही थमा रहता ?"
लतीफशाह को बात लग गयी। वे कृषण-राधा का अपमान सहन न कर सके। हाथ जोडकर उस िचत के
सामने आ खडे हुए। िनवेदन िकयाः
"संसारी जीव आपकी मिहमा कया समझे ! वह तो नासमझी-नादानी करता है। हे हिर ! हे मुरलीधर ! अपने
िवरद रखो। राधारानी से आपका पेम सनातन है। वे आपको पेम से पान दे रही है। अब आप उनका बीडा सवीकार
करके खा ही ले। यह नाचीज लतीफ देखने को तरस रहा है।" इतना कहना था िक िवसमय से बादशाह ने , सब शोता
समाज ने देखा िक कृषण जी ने मुँह बढाकर राधाजी का पान ले िलया और िफर उनहे पान चबाते देखा गया। बादशाह
को लगा िक कया वह कोई सवप तो नही देख रहा !
या खुदा ! या परवरिदगार ! यह कया माजरा है ? िफर देखा लतीफ की ओर, तो वे भकत पवर झर-झर आँसू
रोये जा रहे थे। लतीफशाह के आँसू थम नही रहे थे। और तब बादशाह को जैसे अनदर से कोई पुकार आयी। वह
लतीफशाह के चरणो मे झुका।
धनय है िहनदू धमर के भिकतयोग की मिहमा एवं धनय है इसके रस का आसवादन करके जीवन को परम
परमातम-रस से तृपत करने वाले !
अनुकम
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सत 28
बबबबबबबब बबबबबब
महान संत शी गोरखनाथ जी ने अपने िशषयो को यह कथा सुनायी थीः
गोदावरी नदी के तट पर महातमा वेदधमर िनवास करते थे। उनके पास आकर अनेक िशषय वेद शासतो का
अधययन करते थे। उनके सभी िशषयो मे संदीपक नामक िशषय बडा मेधावी एवं गुरभिकतपरायण था।
एक िदन वेदधमर ने अपने सभी िशषयो को बुलाकर कहाः
"मेरे पूवरजनम के दुष पारबध के कारण अब मुझे कोढ होगा, मै अंधा हो जाऊँगा एवं पूरे शरीर से बदबू
िनकलेगी। अतः मै आशम छोडकर चला जाऊँगा। ऐसा किठन काल मै काशी जाकर िबताना चाहता हँू। जब तक मेरे
दुष पारबध का कय न हो जाय, तब तक मेरी सेवा के तुममे से कौन-कौन मेरे साथ काशी आने के िलए तैयार है ?"
गुरजी की बात सुनकर िशषयो मे सनाटा छा गया। इतने मे संदीपक उठा और िवनमतापूवरक बोलाः
"गुरजी ! मै पतयेक िसथित, पतयेक सथान मे आपके साथ रहकर आपकी सेवा करने के िलए तैयार हूँ।"
गुरजीः "बेटा ! शरीर मे कोढ िनकलेगा, बदबू होगी, अंधा हो जाऊँगा। मेरे कारण तुझे भी बडी तकलीफ
उठानी पडेगी। तू ठीक से िवचार कर ले।"
संदीपकः "गुरदेव ! कृपा कीिजये। मुझे भी अपने साथ ले चिलये।"
दूसरे ही िदन वेदधमर ने संदीपक के साथ काशी की ओर पयाण िकया। काशी पहुँचकर वे मिणकिणरका घाट
के उतर की ओर िसथत कंवलेशर नामक सथान पर रहने लगे।
दो चार िदन के बाद ही वेदधमर के योगबल के संकलप से उनके शरीर मे कोढ िनकल आया। थोडे िदनो के
पशात उनकी आँखो की रोशनी भी चली गयी। अंधतव एवं कोढ के कारण उनका सवभाव भी उग, िचडिचडा, िविचत
सा हो गया।
संदीपक िदन-रात गुरजी की सेवा मे लगा रहता। वह गुर को नहलाता, गुर के घावो से िनकलता हुआ
मवाद साफ करता, औषिध लगाता। उनके वसत साफ करता। समय पर गुरजी को भोजन कराता।
सेवा करते-करते संदीपक की सब वासनाएँ जल गयी। उसकी बुिद मे पकाश छा गया। सेवा मे उसे बडा
आननद आता था।
बब बबब बबबब बबबबब बबबबब। बबबबब बबबबब ब बबबब।।
यिद मनमुख होकर साधना करोगे तो कुछ भी हाथ न आयेगा, भटक जाओगे। लेिकन गुर के बताये हुए मागर
के अनुसार चलोगे तो भटकोगे नही। इसीिलए वेदवयासजी महाराज ने कहा हैः बबबबबबबबब
बबबबबबबबबबबबब।
गुरजी की सेवा करते-करते वषों बीत गये। संदीपक की गुरसेवा से पसन होकर एक िदन भगवान शंकर
उसके आगे पगट हुए एवं बोलेः
"संदीपक ! लोग तो काशी िवशनाथ के दशरन करने आते है लेिकन मै तेरे पास िबना बुलाये आया हँू कयोिक
िजनके हृदय मे 'मै' सोऽहं सवरप से पगट हुआ है ऐसे सदगुर की तू सेवा करता है। िजनके हृदय मे बह-परमातमा
पगट हुए है उनके तन की िसथित बाहर से भले गंदगी िदखती, िफर भी उनमे िचनमय तततव जानकर उनकी सेवा करता
है। मै तुझ पर अतयंत पसन हूँ। बेटा ! कुछ माग ले।"
संदीपकः "पभु ! बस, आपकी पसनता पयापत है।"
िशवजीः "पसन तो हूँ लेिकन कुछ माग।"
संदीपकः "बस, गुर की कृपा पयापत है।"
िशवजीः "नही, संदीपक ! कुछ माग ले। तेरी गुरभिकत देखकर मै िबना बुलाये तेरे पास आया हूँ। मै तुझ पर
अतयंत पसन हँू। कुछ माग ले।"
संदीपकः "हे महादेव ! आप मुझ पर पसन हुए है, यह मेरा परम सौभागय है लेिकन वरदान मागने मे मै िववश
हँू। मेरे गुरदेव की आजा के िबना मै आपसे कुछ नही माग सकता।"
िशवजीः "...........तो तेरे गुर के पास जाकर आजा ले आ।"
संदीपक गया गुर के पास एवं बोलाः
"आपकी कृपा से िशवजी मुझ पर पसन हुए है एवं वरदान मागने के िलए कह रहे है। अगर आपकी आजा हो
तो आपका कोढ एवं अंधतव ठीक होने का वरदान माग लूँ।"
यह सुनकर वेदधमर बडे कुिपत हो गये एवं बोलेः
"नालायक ! सेवा से बचना चाहता है ? दुष ! मेरी सेवा करते-करते थक गया है इसिलए भीख मागता है ?
िशवजी दे-देकर कया देगे ? दे भी देगे तो शरीर के िलए देगे। पारबध शरीर भोगता है तो भोगने दे। कयो भीख मागता है
िशवजी से ? जा, तू भी चला जा। मै तो पहले ही तुझ मना कर रहा था िफर भी साथ आया।"
संदीपक गया िशवजी के पास और बोलाः "पभु ! मुझे कमा करो। मै कोई वरदान नही चाहता।"
िशवजी संदीपक की गुरिनषा देखकर भीतर से बडे पसन हुए लेिकन बाहर से बोलेः "ऐसे कैसे गुर है िक
िशषय इतनी सेवा करता है और ऊपर से डाटते है ?"
संदीपकः "पभु ! आप चाहे जो कहे लेिकन मैने भी सोच िलया हैः बबबबबबबब बब बबबबबब.....
बबबब बबबबब बब बबबब बब । बबबब बबबबबबब बबब"
िशवजी गये भगवान िवषणु के पास एवं बातचीत के दौरान बोलेः !हे नारायण ! बडे-बडे मुनीशर मेरे दशरन के
िलए वषों तक जप-तप करते है िफर भी उनहे दशरन नही होते। अभी काशी नगरी मे संदीपक नामक िशषय की
गुरिनषा देखकर मै सवयं उसके सामने पगट हुआ एवं इिचछत वरदान मागने के िलए कहा िकनतु गुर की आजा न
िमलने पर उसने वरदान लेने से सपष इनकार कर िदया। मैने उसकी परीका ली िकः 'ऐसे गुर का कया चेला बनता है
?' .....लेिकन वह मेरी कसौटी पर भी खरा उतरा। मेरे िहलाने पर भी वह न िहला। गुरदार की झाडू-बुहारी, िभका
मागना, गुर को नहलाना-िखलाना, गुर के सेवा करना यही उसकी पूजा-उपासना है।"
िशवजी की बात सुनकर भगवान िवषणु को भी आशयर हुआ एवं उनहे भी संदीपक की परीका लेने का मन हुआ।
संदीपक के पास पगट होकर भगवान िवषणु बोलेः
"वतस ! तेरी अनुपम गुरभिकत से मै तुझ पर अतयंत पसन हूँ। ....लेिकन एक बात का मुझे दुःख है।
िशवजी को भी दुःख हुआ। तूने िशवजी से वरदान नही िलया... गुर के िलए भी नही िलया। अब अपने िलए ले ले।
तेरी जो इचछा हो, वह माग ले।"
संदीपकः "ना, ना, पभु ! ऐसा न कहे।"
िवषणुः "देवता आते है तो िबना वरदान िदये नही जाते। कुछ तो माग लो !
संदीपकः "हे ितभुवनपित ! गुरकृपा से तो मुझे आपके दशरन हुए है। मै आपसे केवल इतना ही वरदान मागता
हँू िक गुरचरणो मे मेरी अिवचल भिकत बनी रहे एवं उनकी सेवा मे मै िनरंतर लीन रहँू।"
संदीपक की बात सुनकर िवषणु भगवान अतयंत पसन हुए एवं बोलेः "वतस ! तू सचमुच धनय है ! तेरे गुर भी
धनय है ! तुझे वरदान देता हँू िक गुरचरणो मे तेरी भिकत िनरंतर दृढ होती रहेगी।"
ऐसा कहकर िवषणु भगवान अनतधयान हो गये।
संदीपक गया गुर के पास एवं िवषणु भगवान के िदये गये आशीवाद की बात िवसतारपूवरक सुना दी। संदीपक
की बात सुनकर वेदधमर के आनंद का कोई पार न रहा। अपने िपय िशषय को छाती से लगाकर बोलेः
"बेटा ! तू सवरशेष िशषय है। तू समसत िसिदयो को पापत करेगा। तेरे िचत मे िरिद-िसिद का वास रहेगा।"
संदीपकः "गुरवर ! मेरी िरिद-िसिदया आपके शीचरणो मे समायी हुई है। मुझे आप नशर के मोह मे न डाले।
मुझे तो शाशत् आनंद की आवशयकता है और वह तो आपके शीचरणो की भिकत से िमलता ही है।"
तभी संदीपक ने साशयर देखा िक गुरदेव का कोढ संपूणरतः गायब है.... उनका शरीर पूवरवत् सवसथ एवं
काितमान हो गया है !
िशषय को पेमपूवरक गले लगाते हुए वेदधमर ने कहाः "बेटा ! िशषयो की परीका लेने के िलए ही मैने यह सब खेल
रचा था। मै तुझ पर अतयनत पसन हँू। बहिवदा का िवशाल खजाना मै तुझे आज देता हँू।"
सितशषय संदीपक की जनम-जनमातरो की सेवा-साधना सफल हुई। गुरदेव की कृपा से संदीपक परमातमा के
साथ एकाकार हो गया। धनय है संदीपक की गुरभिकत !
(कही-कही यह पावन कथा पाठानतर भेद से भी आती है िफर भी संदीपक की दृढ गुरभिकत की पशंसा
गोरखनाथजी ने अपने िशषयो के समक मुकत कणठ से की है।)
अनुकम
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
बबबबबबब बब बबबबबबब
बुिद कही बाजार मे िबकने या िमलने वाली चीज नही है, बिलक अभयास से पापत करने की और बढाई जाने
वाली चीज है। इसिलए आपको भरपूर अभयास करके बुिद और जान बढाने मे जुटे रहना होगा।
िवदा, बुिद और जान को िजतना खचर िकया जाय उतना ही ये बढते जाते है जबिक धन या अनय पदाथर खचर
करने पर घटते जाते है। इसका मतलब यही है िक हम िवदा की पािपत और बुिद के िवकास के िलए िजतना पयत
करेगे, अभयास करेगे, उतना ही हमारा जान और बौिदक बल बढता जायगा।
सतत अभयास और पिरशम करने के िलए यह भी जररी है िक आपका िदमाग और शरीर सवसथ और
ताकतवर भी रहे। यिद अलप शम मे ही थक जाएँगे तो पढाई-िलखाई मे जयादा समय तक मन नही लगेगा।
अनुकम
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बबबबब बबब बब
भारतीय जनता की संसकृित और सवासथय को हािन पहुँचाने का यह एक िवराट षडयंत है। अंडे के भामक
पचार से आज से दो-तीन दशक पहले िजन पिरवारो को रासते पर पडे अणडे के खोल के पित भी गलािन का भाव था,
इसके िवपरीत उन पिरवारो मे आज अंडे का इसतेमाल सामानय बात हो गयी है।
अंडे अपने अवगुणो से हमारे शरीर के िजतने जयादा हािनकारक और िवषैले है उनहे पचार माधयमो दारा उतना
ही अिधक फायदेमंद बताकर इस जहर को आपका भोजन बनानो की सािजश की जा रही है।
अणडा शाकाहारी नही होता लेिकन कूर वयावसाियकता के कारण उसे शाकाहारी िसद िकया जा रहा है।
िमिशगन यूिनविसरटी के वैजािनको ने पके तौर पर सािबत कर िदया है िक दुिनया मे कोई भी अणडा चाहे वह सेया गया
हो या िबना सेया हुआ हो, िनजीव नही होता। अफिलत अणडे की सतह पर पापत इलैिकटक एिकटिवटी को पोलीगाफ पर
अंिकत कर वैजािनको ने यह सािबत कर िदया है िक अफिलत अणडा भी सजीव होता है। अणडा शाकाहार नही, बिलक
मुगी का दैिनक (रज) साव है।
यह सरासर गलत व झूठ है िक अणडे मे पोटीन, खिनज, िवटािमन और शरीर के िलए जररी सभी एिमनो
एिसडस भरपूर है और बीमारो के िलए पचने मे आसान है।
शरीर की रचना और सनायुओं के िनमाण के िलए पोटीन की जररत होती है। उसकी रोजाना आवशयकता
पित िक.गा. वजन पर 1 गाम होती है यािन 60 िकलोगाम वजन वाले वयिकत को पितिदन 60 गाम पोटीन की जररत
होती है जो 100 गाम अणडे से मात 13.3 गाम ही िमलता है। इसकी तुलना मे पित 100 गाम सोयाबीन से 43.2 गाम,
मूँगफली से 31.5 गाम, मूँग और उडद से 24, 24 गाम तथा मसूर से 25.1 गाम पोटीन पापत होता है। शाकाहार मे
अणडा व मासाहार से कही अिधक पोटीन होते है। इस बात को अनेक पाशातय वैजािनको ने पमािणत िकया है।
केिलफोिनरया के िडयरपाकर मे सेट हेलेना हॉिसपटल के लाईफ सटाइल एणड नयूिटशन पोगाम के िनदेशक डॉ.
जोन ए. मेकडू गल का दावा है िक शाकाहार मे जररत से भी जयादा पोटीन होते है।
1972 मे हावरडर यूिनविसरटी के ही डॉ. एफ. सटेर ने पोटीन के बारे मे अधययन करते हुए पितपािदत िकया िक
शाकाहारी मनुषयो मे से अिधकाश को हर रोज की जररत से दुगना पोटीन अपने आहार से िमलता है। 200 अणडे
खाने से िजतना िवटािमन सी िमलता है उतना िवटािमन सी एक नारंगी (संतरा) खाने से िमल जाता है। िजतना पोटीन
तथा कैिलशयम अणडे मे है उसकी अपेका चने , मूँग, मटर मे जयादा है।
िबिटश हेलथ िमिनसटर िमसेज एडवीना कयूरी ने चेतावनी दी िक अणडो से मौत संभािवत है कयोिक अणडो मे
सालमोनेला िवष होता है जो िक सवासथय की हािन करता है। अणडो से हाटर अटैक की बीमारी होने की चेतावनी नोबेल
पुरसकार िवजेता अमेिरकन डॉ. बाउन व डॉ. गोलडसटीन ने दी है कयोिक अणडो मे कोलेसटाल भी बहुत पाया जाता है.
डॉ. पी.सी. सेन, सवासथय मंतालय, भारत सरकार ने चेतावनी दी है िक अणडो से कैसर होता है कयोिक अणडो
मे भोजन तंतु नही पाये जाते है तथा इनमे डी.डी.टी. िवष पाया जाता है।
जानलेवा रोगो की जड हैः अणडा। अणडे व दूसरे मासाहारी खुराक मे अतयंत जररी रेशातततव (फाईबसर)
जरा भी नही होते है। जबिक हरी साग, सबजी, गेहूँ, बाजरा, मकई, जौ, मूँग, चना, मटर, ितल, सोयाबीन, मूँगफली वगैरह
मे ये काफी माता मे होते है।
अमेिरका के डॉ. राबटर गास की मानयता के अनुसार अणडे से टी.बी. और पेिचश की बीमारी भी हो जाती है।
इसी तरह डॉ. जे. एम. िवनकीनस कहते है िक अणडे से अलसर होता है।
मुगी के अणडो का उतपादन बढे इसके िलये उसे जो हामोनस िदये जाते है उनमे सटील बेसटेरोल नामक दवा
महततवपूणर है। इस दवावाली मुगी के अणडे खाने से िसतयो को सतन का कैसर, हाई बलडपैशर, पीिलया जैसे रोग होने
की समभावना रहती है। यह दवा पुरष के पौरषतव को एक िनिशत अंश मे नष करती है। वैजािनक गास के िनषकषर
के अनुसार अणडे से खुजली जैसे तवचा के लाइलाज रोग और लकवा भी होने की संभावना होती है।
अणडे के गुण-अवगुण का इतना सारा िववरण पढने के बाद बुिदमानो को उिचत है िक अनजानो को इस िवष
के सेवन से बचाने का पयत करे। उनहे भामक पचार से बचाये। संतुिलत शाकाहारी भोजन लेने वाले को अणडा या
अनय मासाहारी आहार लेने की कोई जररत नही है। शाकाहारी भोजन ससता, पचने मे आसान और आरोगय की दृिष
से दोषरिहत होता है। कुछ दशक पहले जब भोजन मे अणडे का कोई सथान नही था तब भी हमारे बुजुगर तंदरसत
रहकर लमबी उम तक जीते थे। अतः अणडे के उतपादको और भामक पचार की चपेट मे न आकर हमे उकत तथयो को
धयान मे रखकर ही अपनी इस शाकाहारी आहार संसकृित की रका करनी होगी।
बबबब बबबबबब बबबब । बबबबबबबब
1981 मे जामा पितका मे एक खबर छपी थी। उसमे कहा गया था िक शाकाहारी भोजन 60 से 67 पितशत
हृदयरोग को रोक सकता है। उसका कारण यह है िक अणडे और दूसरे मासाहारी भोजन मे चबी ( कोलेसटाल) की
माता बहुत जयादा होती है।
केिलफोिनरया की डॉ. केथरीन िनममो ने अपनी पुसतक हाऊ हेलदीयर आर एगज मे भी अणडे के दुषपभाव का
वणरन िकया गया है।
वैजािनको की इन िरपोटों से िसद होता है िक अणडे के दारा हम जहर का ही सेवन कर रहे है। अतः हमको
अपने -आपको सवसथ रखने व फैल रही जानलेवा बीमारीयो से बचने के िलए ऐसे आहार से दूर रहने का संकलप करना
चािहए व दूसरो को भी इससे बचाना चािहए।
अनुकम
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सत 38
बबबबबबबबब बबबबबबब
ं र हो चुके है। उनमे एक राजकनया भी तीथरक
जैन धमर मे कुल 24 तीथरक ं र हो गयी िजसका नाम था
मिललकानाथ।
राजकुमारी मिललका इतनी खूबसूरत थी की कई राजकुमार व राजे उसके साथ बयाह रचाना चाहते थे लिकन
वह िकसी को पसंद नही करती थी। आिखरकार उन राजकुमारो व राजाओं ने आपस मे एकजुट होकर मिललका के
िपता को िकसी युद मे हराकर मिललका का अपहरण करने की योजना बनायी।
मिललका को इस बात का पता चल गया। उसने राजकुमारो व राजाओं को कहलवाया िकः "आप लोग मुझ
पर कुबान है तो मै भी आप सब पर कुबान हूँ। ितिथ िनिशत किरये। आप लोग आकर बातचीत करे। मै आप सबको
अपना सौनदयर दे दूँगी।"
इधर मिललका ने अपने जैसी ही एक सुनदर मूितर बनवायी थी एवं िनिशत की गयी ितिथ से दो चार िदन पहले
से वह अपना भोजन उसमे डाल िदया करती थी। िजस हाल मे राजकुमारो व राजाओं को मुलाकात देनी थी, उसी हाल
एक ओर वह मूितर रखवा दी गयी।
िनिशत ितथी पर सारे राजा व राजकुमार आ गये। मूितर इतनी हू-ब-हू थी िक उसकी ओर देखकर राजकुमार
िवचार कर ही रहे थे िकः "अब बोलेगी.... अब बोलेगी.....' इतने मे मिललका सवयं आयी तो सारे राजा व राजकुमार उसे
देखकर दंग रह गये िकः "वासतिवक मिललका हमारे सामने बैठी है तो यह कौन है !"
मिललका बोलीः "यह पितमा है। मुझे यही िवशास था िक आप सब इसको ही सचची मानेगे और सचमुच मे मैने
इसमे सचचाई छुपाकर रखी है। आपको जो सौनदयर चािहए वह मैने इसमे छुपाकर रखा है।"
यह कहकर जयो ही मूितर का ढकन खोला गया, तयो-ही सारा कक दुगरनध से भर गया। िपछले चार-पाच िदन
से जो भोजन उसमे डाला गया था उसके सड जाने से ऐसी भयंकर बदबू िनकल रही थी िक सब छीः छीः कर उठे।
तब मिललका ने वहा आये हुए सभी को संबोिधत करते हएु कहाः
शरीर सुनदर िदखता है, मैने वे ही खाद-सामिगया चार-पाच िदनो से इसमे डाल रखी थी। अब ये सडकर
दुगरनध पैदा कर रही है। दुगरनध पैदा करने वाले इन खादानो से बनी हईु चमडी पर आप इतने िफदा हो रहे हो तो इस
अन को रकत बनाकर सौनदयर देनेवाली यह आतमा िकतनी सुंदर होगी ! भाइयो ! अगर आप इसका खयाल रखते तो
आप भी इस चमडी के सौनदयर का आकषरण छोडकर उस परमातमा के सौनदयर की तरफ चल पडते।"
मिललका की ऐसी सारगिभरत बाते सुनकर कुछ राजकुमार िभकुक हो गये और कुछ राजकुमारो ने काम िवकार
से अपना िपणड छुडाने का संकलप िकया। उधर मिललका संतशरण मे पहुँच गयी, तयाग और तप से अपनी आतमा को
पाकर मिललयनात तीथरक ं र बन गयी। अपना तन-मन सौपकर वह भी परमातमामय हो गयी।
आज भी मिलयनाथ जैन धमर के पिसद उनीसवे तीथरक ं र के नाम से सममािनत होकर पूजी जा रही है।
अनुकम
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सत 41
बबबबबबब बब बबबबब
बात उस समय की है जब िदलली के िसंहासन पर औरंगजेब बैठ चुका था।
िवंधयावािसनी देवी के मंिदर मे उनके दशरन हेतु मेला लगा हुआ था, जहा लोगो की खूब भीड जमा थी।
पनानरेश छतसाल वकत 13-14 साल के िकशोर थे। छतसाल ने सोचा िक 'जंगल से फूल तोडकर िफर माता के
दशरन के िलए जाऊँ।' उनके साथ हमउम के दूसरे राजपूत बालक भी थे। जब वे लोग जंगल मे फूल तोड रहे थे,
उसी समय छः मुसलमान सैिनक घोडे पर सवार होकर वहा आये एवं उनहोने पूछाः "ऐ लडके ! िवनधयवािसनी का मंिदर
कहा है ?"
छतसालः "भागयशाली हो, माता का दशरन करने के िलए जा रहे हो। सीधे सामने जो टीला िदख रहा है वही
मंिदर है।"
सैिनकः "हम माता के दशरन करने नही जा रहे, हम तो मंिदर को तोडने के िलए जा रहे है।"
छतसालः ने फूलो की डिलया एक दूसरे बालक को पकडायी और गरज उठाः
"मेरे जीिवत रहते हुए तुम लोग मेरी माता का मंिदर तोडोगे ?"
सैिनकः "लडके ! तू कया कर लेगा ? तेरी छोटी सी उम, छोटी सी तलवार.... तू कया कर सकता है ?"
छतसाल ने एक गहरा शास िलया और जैसे हािथयो के झुंड पर िसंह टू ट पडता है, वैसे ही उन घुडसवारो पर
वह टू ट पडा। छतसाल ने ऐसी वीरता िदखाई िक एक को मार िगराया, दूसरा बेहोश हो गया.....लोगो को पता चले
उसके पहले ही आधा दजरन फौिजयो को मार भगाया। धमर की रका के िलए अपनी जान तक की परवाह नही की वीर
छतसाल ने। वही वीर बालक आगे चलकर पनानरेश हुआ।
भारत के वीर सपूतो के िलए िकसी ने कहा हैः
बबब बबबबब बब बबबबब बबब, बबबब बबब बबबबब । बबब
बबब बबबबब बब बबबबबब बबब, बबबब बबबबब बबबबबब ।। बबबब
बबब बबबबब बबबबबब-बबब, बबबबब बबब बबबबब । बबब
बबब बबबबबबब बब बबबबबब बब, बबब बबबबबबबब बब।।बबबबबबबबबबब
बबबब बबबबब बब बबब बब, बबब बबबबबब बब बबबबबबबब बबब।
बबब बबब बबब बबबबबब बब, बबब बबबबबब बब बबब बब।।
बबबबबब बबबबब बब बबबबबबब बब, बबब बबबबबबब बब बबबबबब बब।
िदनाकः 18 मई, 1999 को इस वीर पुरष की जयंती है। ऐसे वीर धमररकको की िदवय गाथा यही याद िदलाती
है िक दुष बनो नही और दुषो से भी डरो नही। जो आततायी वयिकत बह-ू बेिटयो की इजजत से खेलता है या देश के
िलए खतरा पैदा करता है, ऐसे बदमाशो का सामना साहस के साथ करना चािहए। अपनी शिकत जगानी चािहए। यिद
तुम धमर एवं देश की रका के िलए कायर करते हो तो ईशर भी तुमहारी सहायता करता है।
'हिर ॐ...... हिर ॐ..... िहममत....साहस...... ॐ....ॐ..... बल... शिकत.... हिर ॐ.....ॐ......ॐ...' ऐसा करके
भी तुम अपनी सोयी हुई शिकत को जगा सकते हो। अभी से लग जाओ अपनी सुषुपत शिकत को जगाने के कायर मे और
पभु को पाने मे।
अनुकम
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बबबबबबब बब बबबबबबबब
धनतेरस, नरक चतुदरशी (काली चौदस), लकमी-पूजन (दीपावली), गोवधरन पूजन (अनकूट) या नूतन वषर और
भाई-दूज, इन पाच पवों के पुंज का नाम ही है दीपावली का पावन तयौहार। दीपावली का पावन पवर अंधकार मे पकाश
करने का पवर है। वह हमे यह संदेश देता है िक हम भी अपने हृदय से अजानरपी अंधकार को िमटाकर जानरपी
पकाश भर सके।
बाह दीप जलाने से बाहर पकाश होता है, भीतर नही और जब तक भीतर का दीप, जान का दीप पजजविलत
नही होता, तब तक वासतिवक दीपावली भी नही मनती, केवल लौिकक दीपावली ही मनायी जाती है।
भगवान शीराम लंका िवजय करके िजस िदन अयोधया लौटे थे, उस िदन अयोधयावािसयो ने घर-आँगन की
साफ-सफाई करके अनेको दीप जलाये थे। उसी िदन से दीपावली का पवर मनाया जाने लगा, ऐसी भी एक मानयता है।
हमारे अनतःकरण मे भी काम, कोध, लोभ, मोह, राग, देष, ममता, अहंतारपी कूडा-कचरा भरा है, अिवदारपी अंधकार
भरा है। िजस िदन हम अपने अंतःकरण से इन कूडे कचरो को, इन दोषो को हटा देगे, बहजानरपी दीपक को
जलाकर अजान अंधकार को िमटा देगे, उसी िदन हमारे हृदयरपी अवध मे आनंददेव का, शीराम का आगमन हो
जायगा। यही है पारमािथरक दीपावली।
मै दीपावली के इस पावन पवर पर तुमहारे भीतर जान का ऐसा दीप पजजविलत करना चाहता हँू, िजससे
अजानतापूवरक सवीकार की गयी तुमहारी दीनता-हीनता, भय और शोकरपी अंधकार नष हो जाय। िफर तुमहे हर वषर
की तरह िभकापात लेकर तुचछ सुखो की भीख के िलए अपने उन िमत और कुटुिमबयो के समक खडे नही रहना पडेगा,
जो िक सवयं भी मागते रहते है। मै तुमहारे ही भीतर छुपे हुए उस खजाने के दार खोलना चाहता हूँ, िजससे तुम अपने
सवरप मे जग जाओ और अपने सुख के मािलक आप बन जाओ।
परम ओजसवी-तेजसवी जीवन िबताओ, यही इस दीपावली पर शुभकामना है।
अनुकम
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बबबबबब बबबबब
तप कई पकार के होते है। जैसे शारीिरक, मानिसक, वािचक आिद। ऋिषगण कहते है िक मन की एकागता
सब तपो मे शेष तप है।
िजसके पास एकागता के तप का खजाना है, वह योगी िरदी-िसदी एवं आतमिसिद दोनो को पापत कर सकता
है। जो भी अपने महान कमों के दारा समाज मे पिसद हुए है, उनके जीवन मे भी जाने -अनजाने एकागता की साधना
हुई है। िवजान के बडे-बडे आिवषकार भी इस एकागता के तप के ही फल है।
एकागता की साधना को पिरपकव बनाने के िलए ताटक एक महततवाकाकी सथान रखता है। ताटक का अथर
है िकसी िनिशत आसन पर बैठकर िकसी िनिशत वसतु को एकटक देखना।
ताटक कई पकार के होते है। उनमे िबनदु ताटक, मूितर ताटक एवं दीपजयोित ताटक पमुख है। इनके अलावा
पितिबमब ताटक, सूयर ताटक, तारा ताटक, चनद ताटक आिद ताटको का वणरन भी शासतो मे आता है। यहा पर पमुख
तीन ताटको का ही िववरण िदया जा रहा है।
बबबबब िकसी भी पकार के ताटक के िलए शात सथान होना आवशयक है, तािक ताटक करनेवाले साधक
की साधना मे िकसी पकार का िवकेप न हो।
भूिम पर सवचछ, िवदुत-कुचालक आसन अथवा कमबल िबछाकर उस पर सुखासन, पदासन अथवा िसदासन
मे कमर सीधी करके बैठ जाये। अब भूिम से अपने िसर तक की ऊँचाई माप ले। िजस वसतु पर आप ताटक कर रहे
हो, उसे भी भूिम से उतनी ही ऊँचाई तथा सवयं से भी उस वसतु की उतनी ही दूरी रखे।
अनुकम
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बबबबबब बबबबबब
8 से 10 इंच की लमबाई व चौडाई वाले िकसी सवचछ कागज पर लाल रंग से सवािसतक का िचत बना ले।
िजस िबनदु पर सविसतक की चारो भुजाएँ िमलती है, वहा पर सलाई से काले रंग का एक िबनदु बना ले।
अब उस कागज को अपने साधना-कक मे उपरोकत दूरी के अनुसार सथािपत कर दे। पितिदन एक िनिशत
समय व सथान पर उस काले िबनदु पर ताटक करे। ताटक करते समय आँखो की पुतिलया न िहले तथा न ही पलके
िगरे, इस बात का धयान रखे।
पारमभ मे आँखो की पलके िगरेगी िकनतु िफर भी दृढ होकर अभयास करते रहे। जब तक आँखो से पानी न
टपके, तब तक िबनदु को एकटक िनहारते रहे।
इस पकार पतयेक तीसरे चौथे िदन ताटक का समय बढाते रहे। िजतना-िजतना समय अिधक बढेगा, उतना
ही अिधक लाभ होगा।
अनुकम
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बबबबबब बबबबबब
िजन िकसी देवी-देवता अथवा संत-सदगुर मे आपकी शदा हो, िजनहे आप सनेह करते हो, आदर करते हो
उनकी मूितर अथवा फोटो को अपने साधना-कक मे ऊपर िदये गये िववरण के अनुसार सथािपत कर दे।
अब उनकी मूितर अथवा िचत को चरणो से लेकर मसतक तक शदापूवरक िनहारते रहे। िफर धीरे-धीरे अपनी
दृिष को िकसी एक अंग पर िसथत कर दे। जब िनहारते-िनहारते मन तथा दृिष एकाग हो जाय, तब आँखो को बंद
करके दृिष को आजाचक मे एकाग करे।
इस पकार का िनतय अभयास करने से वह िचत आँखे बनद करने पर भी भीतर िदखने लगेगा। मन की वृितयो
को एकाग करने मे यह ताटक अतयनत उपयोगी होता है तथा अपने इष अथवा सदगुर के शीिवगह के िनतय समरण से
साधक की भिकत भी पुष होती है।
अनुकम
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बबबबबबबबब बबबबबब
अपने साधना कक मे घी का दीया जलाकर उसे ऊपर िलखी दूरी पर रखकर उस पर ताटक करे। घी का
दीया न हो तो मोमबती भी चल सकती है परनतु घी का दीया हो तो अचछा है।
इस पकार दीये की लौ को तब तक एकटक देखते रहे, जब तक िक आँखो से पानी न िगरने लगे। ततपशात्
आँखे बनद करके भृकुटी (आजाचक) मे लौ का धयान करे।
ताटक साधना से अनेक लाभ होते है। इससे मन एकाग होता है और एकाग मनयुकत वयिकत चाहे िकसी भी
केत मे कायररत हो, उसका जीवन चमक उठता है। शेष मनुषय इसका उपयोग आधयाितमक उनित के िलए ही करते
है।
एकाग मन पसन रहता है, बुिद का िवकास होता है तथा मनुषय भीतर से िनभीक हो जाता है। वयिकत का मन
िजतना एकाग होता है, समाज पर उसकी वाणी का, उसके सवभाव का एवं उसके िकया-कलापो का उतना ही गहरा
पभाव पडता है।
साधक का मन एकाग होने से उसे िनतय नवीन ईशरीय आनंद व सुख की अनुभूित होती है। साधक का मन
िजतना एकाग होता है, उसके मन मे उठने वाले संकलपो (िवचारो) का उतना ही अभाव हो जाता है। संकलप का अभाव
हो जाने से साधक की आधयाितमक याता तीवर गित से होने लगती है तथा उसमे सतय संकलप का बल आ जाता है।
उसके मुख पर तेज एवं वाणी मे भगवदरस छलकने लगता है।
इस पकार ताटक लौिकक एवं आधयाितमक दोनो केतो के वयिकतयो के िलए लाभकारी है।
अनुकम
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सत 43
बबबबबबबब बबब ?
आशम मे पूजय सवामी जी थोडे से भकतो के सामने सतसंग कर रहे थे, तब एक गृहसथी साधक ने पश पूछाः
"गृहसथाशम मे रहकर पभुभिकत कैसे की जा सकती है ?"
पूजय सवामी जी ने पश का जवाब देते हएु एक सारगिभरत बात कहीः
"जानचंद नामक एक िजजासु भकत था। वह सदैव पभुभिकत मे लीन रहता था। रोज सुबह उठकर पूजा पाठ,
धयान-भजन करने का उसका िनयम था। उसके बाद वह दुकान मे काम करने जाता। दोपहर के भोजन के समय वह
दुकान बनद कर देता और िफर दुकान नही खोलता था। बाकी के समय मे वह साधु-संतो को भोजन करवाता, गरीबो
की सेवा करता, साधु-संग एवं दान पुणय करतात। वयापार मे जो िमलता उसी मे संतोष रखकर पभुपीित के िलए जीवन
िबताता था। उसके ऐसे वयवहार से लोगो को आशयर होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः
'यह तो महामूखर है। कमाये हुए सभी पैसो को दान मे लुटा देता है। िफर दुकान भी थोडी देर के िलए ही
खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा-पाठ मे गँवा देता है। यह तो पागल ही है।'
एक बार गाव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। नगरसेठ ने वह टोपी
जानचंद को देते हुए कहाः
'यह टोपी मूखों के िलए है। तेरे जैसा महान मूखर मैने अभी तक नही देखा, इसिलय यह टोपी तुझे पहनने के
िलए देता हूँ। इसके बाद यिद कोई तेरे से भी जयादा बडा मूखर िदखे तो तू उसे पहनने के िलए दे देना।'
जानचंद शाित से वह टोपी लेकर घर वापस आ गया। एक िदन वह नगरसेठ खूब बीमार पडा। जानचंद
उससे िमलने गया और उसकी तिबयत के हालचाल पूछे। नगरसेठ ने कहाः
"भाई ! अब तो जाने की तैयारी कर रहा हूँ।''
जानचंद ने पूछाः "कहा जाने की तैयारी कर रहे हो ? वहा आपसे पहले िकसी वयिकत को सब तैयारी करने के
िलए भेजा िक नही ? आपके साथ आपकी सती, पुत, धन, गाडी, बंगला वगैरह आयेगा िक नही ?'
'भाई ! वहा कौन साथ आयेगा ? कोई भी साथ नही आने वाला है। अकेले ही जाना है। कुटुंब-पिरवार, धन-
दौलत, महल-गािडया सब छोडकर यहा से जाना है। आतमा-परमातमा के िसवाय िकसी का साथ नही रहने वाला है।'
सेठ के इन शबदो को सुनकर जानचंद ने खुद को दी गयी वह लाल टोपी नगरसेठ को वापस देते हुए कहाः
"आप ही इसे पहनो।"
नगरसेठः "कयो ?"
जानचंदः"मुझसे जयादा मूखर तो आप है। जब आपको पता था िक पूरी संपित, मकान, पिरवार वगैरह सब यही
रह जायेगा, आपका कोई भी साथी आपके साथ नही आयेगा, भगवान के िसवाय कोई भी सचचा सहारा नही है, िफर भी
आपने पूरी िजंदगी इनही सबके पीछे कयो बरबाद कर दी ?
बबब बबब बब बबबब बबब बबबब बबब बबबबब बबबब।
बबबब बबबब बबब बबब बबबबब बबब ब बबब बबबब।।
जब कोई धनवान एवं शिकतवान होता है तब सभी 'सेठ..... सेठ.... साहब..... साहब.....' करते रहते है और
अपने सवाथर के िलए आपके आसपास घूमते रहते है। परंतु जब कोई मुसीबत आती है तब कोई भी मदद के िलए पास
नही आता। ऐसा जानने के बाद भी अपने कणभंगुर वसतुओं एवं संबध ं ो के साथ पीित की, भगवान से दूर रहे एवं अपने
भिवषय का सामान इकटा न िकया तो ऐसी अवसथा मे आपसे महान मूखर दूसरा कौन हो सकता है ? गुर तेगबहादुर
जी ने कहा हैः
बबबब बबबब बब ब बबब बबबब बबब बब बबब।
बबबब बबबब बबब बबब ।। बब बबब बबबब बबबबब
सेठ जी ! अब तो आप कुछ भी नही कर सकते। आप भी देख रहे हो िक कोई भी आपकी सहायता करने
वाला नही है।
कया वे लोग महामूखर नही है जो जानते हुए भी मोह माया मे फँसकर ईशर से िवमुख रहते है ? संसार की
चीजो मे, संबध
ं ो मे आसिकत रखते हएु पभु-समरण, भजन, धयान एवं सतपुरषो का संग एवं दान-पुणय करते हुए िजंदगी
वयतीत करते तो इस पकार दुःखी होने एवं पछताने का समय न आता।
अनुकम
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बबबब बब बबबबब
िवकमािदतय की िनजी सेवा करने वाले कुछ िकशोर थे। उनमे एक लडका था िजसका नाम भी िकशोर था।
महाराज िवकमािदतय जब सोते तब िकशोर पहरा देता, चौकी करता। एक बार मधय राित के समय कोई दीन-दुःखी
मिहला आकनद कर रही हो ऐसी आवाज आयी। बुिदमान् िवकमािदतय चौककर जाग उठे।
"अरे ! कोई रदन कर रहा है ! जा िकशोर ! तलाश कर। पास वाले मंिदर की ओर से यह आवाज आ रही
है। कया बात है जाच करके आ।"
वह िहममतवान िकशोर गया। देखा तो मंिदर मे एक सती रो रही है। िकशोर ने पूछाः "तू कौन है ?"
वह कुलीन सती बोलीः "मै नगरलकमी हूँ, नगरशी हूँ। इस नगर का राजा िवकमािदतय बहुत दयालु इनसान है।
दीन-दुःखी लोगो के दुःख हरने वाला है। िकशोर बचचो को सनेह करने वाला है। पािणमात की सेवा मे ततपर रहने
वाला है। ऐसे दयालु, पराकमी, उदार और पजा का सनेह से लालन-पालन करने वाले राजा के पाण कल सुबह सूयोदय
के समय चले जायेगे। मै राजयलकमी िकसी पापी के हाथ लगूँगी। मेरी कया दशा होगी ! अतः मै रो रही हूँ।"
िवकमािदतय का िनजी सेवक, अंगरकक िकशोर कहता हैः
"हे राजयलकमी ! मेरे राजा साहब कल सवगरवासी होगे ?"
"हा।"
"नही..... मेरे राजा साहब को मै जाने नही दूँगा।"
"संभव नही है बेटा ! यह तो काल है। कुछ भी िनिमत से वह सबको ले जाता है।"
"इसका कोई उपाय ?"
"बेटे ! उपाय तो है। राजा िवकमािदतय के बदले मे कोई िकशोर वय का बालक अपना िसर दे तो उसकी
आयु राजा को िमले और राजा दीघायु बन जाये।"
मयान से छोटी सी तलवार िनकालकर अपना बिलदान देने के िलए ततपर बना हुआ िकशोर कहने लगाः
"हजारो के आँसू पोछने वाले, हजारो िदलो मे शाित देने वाले और लाखो नगरजनो के जीवन को पोसने वाले
राजा की आयु दीघर बने और उसके िलए मेरे िसर का बिलदान देना पडे तो हे राजयलकमी ! ले यह बिलदान।"
तलवार के एक ही पहार से िकशोर ने अपना िसर अपरण कर िदया।
राजा िवकमािदतय का सवभाव था िक िकसी आदमी को िकसी काम के िलए भेजकर 'वह कया करता है' यह
जाचने के िलए सवयं भी छुपकर उसके पीछे जाते थे। आज भी िकशोर के पीछे-पीछे छुपकर चल पडे थे और िकशोर
कया कर रहा था यह छुपकर देख रहे थे। उनहोने िकशोर का बिलदान देखाः "अरे ! िकशोर ने मेरे िलए अपने पाण भी
दे िदये !" वे पकट होकर राजयलकमी से बोलेः
"हे राजयलकमी ! हे देवी ! मेरे िलए पाण देने वाले इस बालक को आप जीिवत करो। मुझे इस मासूम बचचे के
पाण लेकर लमबी आयु नही भोगनी है। मेरी आयु भले शात हो जाय लेिकन इस बालक के पाण नही जाने चािहए। हे
देवी ! आप मेरा िसर ले लो और इस बचचे को िजनदा कर दो।" राजा ने अपने मयान से तलवार िनकाली तो राजयलकमी
आदा देवी ने कहाः "हा हा राजा िवकम ! ठहरो। आप आराम करो। सब ठीक हो जायगा।"
िवकमािदतय देवी को पणाम करके अपने महल मे गये। देवी ने पसन होकर अपने संकलप बल से िकशोर को
िजनदा करके वापस भेज िदया। िकशोर पहुँचा तो राजा अनजान होकर िबछौने पर बैठ गये। उनहोने पूछाः
"कयो िकशोर ! कया बात थी ? इतनी देर, कयो लगी ?"
"तब वह िकशोर कहता हैः "राजा साहब ! उस मिहला को जरा समझाना पडा।"
"कौन थी वह मिहला ?"
"कोई मिहला थी, महाराज ! उसकी सास ने उसे डाटकर घर से िनकाल िदया था। मै उसको सास के घर
ले गया और समझाया िक इस पकार अपनी बहू को परेशान करोगी तो मै महाराज साहब से िशकायत कर दूँगा। सास-
बहू दोनो के बीच समझौता कराके आया, इसमे थोडी देर हो गयी और कुछ नही था। आप आराम महाराज !"
राजा िवकमािदतय छलाग मारकर खडे हो गये और िकशोर को गले लगा िलया। बोलेः
"अरे बेटा ! तू धनय है ! इतना शौयर..... इतना साहस.....! मेरे िलये पाण कुबान कर िदये और वापस नवजीवन
पापत िकया ! इस बात का भी गवर न करके मुझसे िछपा रहा है ! िकशोर..... िकशोर.... तू धनय है ! तूने मेरी उतकृष
सेवा की, िफर भी सेवा करने का अिभमान नही है। बेटा ! तू धनय है।"
सेवा करना लेिकन िदखावे के िलए नही अिपतु भगवान को िरझाने के िलए करना। धयान करना लेिकन
भगवान को पसन करने के िलए, कीतरन करना लेिकन पभु को राजी करने के िलए। भोजन करे तो भी 'अंतयामी
परमातमा मेरे हृदय मे िवराजमान है उनको मै भोजन करा रहा हूँ..... उनको भोग लगा रहा हूँ....' इस भाव से भोजन
करे। ऐसा भोजन भी पभु की पूजा बन जाता है।
बचचो मे शिकत होती है। इन बचचो मे से ही कोई िववेकाननद बन सकता है, कोई गाधी बन सकता है, कोई
सरदार वललभभाई बन सकता है कोई रामतीथर बन सकता है और कोई आसाराम बन सकता है। कोई अनय महान
योगी, संत भी बन सकता है।
आप मे ईशर की असीम शिकत है। बीज के रप मे वह शिकत सबके भीतर िनिहत है। कोई बचची गागी बन
सकती है, कोई मदालसा बन सकती है।
मनुषय का मन और मनुषय की आतमा इतनी महान है िक यह शरीर उसके आगे अित छोटा है। शरीर की मृतयु
तो होगी ही, कुछ भी करो। शरीर की मृतयु तो होगी ही, कुछ भी करो। शरीर की मृतयु हो जाय उसके पहले अमर
आतमा के अनुभव के िलए पािणमात की यथायोगय सेवा कर लेना यह ईशर को पसन करने का मागर है।
आँख को गलत जगह न जाने देना यह आँख की सेवा है। िजहा से गलत शबद न िनकलना यह िजहा की सेवा
है। कानो से गनदी बाते न सुनना यह कान की सेवा है। मन से गलत िवचार न करना यह मन की सेवा है। बुिद से
हलके िनणरय न लेना यह बुिद की सेवा है। शरीर से हलके कृतय न करना यह शरीर की सेवा है। जैसे अपने शरीर
की सेवा करते है ऐसे दूसरो को भी गलत मागर से बचाना, उनहे सनमागर की ओर मोडना उनकी सेवा है।
ऐसा कोई िनयम ले लो िक सपताह मे एक िदन नही तो दो घणटे सही, लेिकन सेवा अवशय करेगे। अडोस-
पडोस के इदर-िगदर कही कचरा होगा तो इकटा करके जला देगे, कीचड होगा तो िमटी डालकर सुखा देगे। अपने इदर-
िगदर का वातावरण सवचछ बनायेगे।
ऐसा भी िनयम ले लो िक सपताह मे चार लोगो को 'हिर ॐ...... ॐ...... गायेजा.....' ऐसा िसखायेगे। सपताह मे
एक दो साधको को, भकतो को भगवान के लाडले बनायेगे, बनायेगे और बनायेगे ही।
यह िनयम या ऐसा अनय कोई भी पिवत िनयम ले लो। कयो, लोगे न ?
शाबाश वीर ! शाबाश ! िहममत रखो, साहस रखो। बार-बार पयत करो। अवशय सफल होगे..... धनय बनोगे।
अनुकम
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बबबबब बबबबब बबब बबबबब-बबबबबबबब
भारतीय समाज मे सती पुरषो मे आभूषण पहनने की परमपरा पाचीनकाल से चली आ रही है। आभूषण धारण
करने का अपना एक महततव है, जो शरीर और मन से जुडा हुआ है। सवणर के आभूषणो की पकृित गमर है तथा चादी के
गहनो की पकृित शीतल है।
आभूषणो मे िकसी िवपरीत धातु के टाके से भी गडबडी हो जाती है, अतः सदैव टाकारिहत आभूषण पहनना
चािहए अथवा यिद टाका हो तो उसी धातु का होना चािहए िजससे गहना बना हो।
िवदुत सदैव िसरो तथा िकनारो की ओर से पवेश िकया करती है। अतः मिसतषक के दोनो भागो को िवदुत के
पभावो से पभावशाली बनाना हो तो नाक और कान मे िछद करके सोना पहनना चािहए। कानो मे सोने की बािलया
अथवा झुमके आिद पहनने से िसतयो मे मािसक धमर संबध ं ी अिनयिमतता कम होती है, िहसटीिरया मे लाभ होता है तथा
आँत उतरने अथात हिनरया का रोग नही होता है। नाक मे नथुनी धारण करने से नािसका संबध ं ी रोग नही होते तथा
सदी-खासी मे राहत िमलती है। पैरो की उंगिलयो मे चादी की िबिछया पहनने से िसतयो मे पसवपीडा कम होती है,
साइिटका रोग एवं िदमागी िवकार दूर होकर समरणशिकत मे वृिद होती है। पायल पहनने से पीठ, एडी एवं घुटनो के ददर
मे राहत िमलती है, िहसटीिरया के दौरे नही पडते तथा शास रोग की संभावना दूर हो जाती है। इसके साथ ही
रकतशुिद होती है तथा मूतरोग की िशकायत नही रहती।
मानवीय जीवन को सवसथ व आननदमय बनाने के िलए वैिदक रसमो मे सोलह शृंगार अिनवायर करार िदये गये
है, िजसमे कणरछेदन तो अित महततवपूणर है। पाचीनकाल मे पतयेक बचचे को, चाहे वह लडका हो या लडकी, के तीन से
पाच वषर की आयु मे दोनो कानो का छेदन करके जसता या सोने की बािलया पहना दी जाती थी। इस िविध का उदेशय
अनेक रोगो की जडे बालयकाल ही मे उखाड देना था। अनेक अनुभवी महापुरषो का कहना है िक इस िकया से आँत
उतरना, अंडकोष बढना तथा पसिलयो के रोग नही होते है। छोटे बचचो की पसली बार-बार उतर जाती है उसे रोकने
के िलए नवजात िशशु जब छः िदन का होता है तब पिरजन उसे हँसली और कडा पहनाते है। कडा पहनने से िशशु के
िसकुडे हुए हाथ-पैर भी गुरतवाकषरण के कारण सीधे हो जाते है। बचचो को खडे रहने की िकया मे भी बडा
बलपदायक होता है।
यह मानयता भी है िक मसतक पर िबंिदया अथवा ितलक लगाने से िचत की एकागता िवकिसत होती है तथा
मिसतषक मे पैदा होने वाले िवचार असमंजस की िसथित से मुकत होते है। आजकल िबंिदया मे सिममिलत लाल तततव
पारे का लाल आकसाइड होता है जो िक शरीर के िलए लाभपदायक िसद होता है। िबंिदया एवं शुद चंदन के पयोग से
मुखमंडल झुरीरिहत बनता है। माग मे टीका पहनने से मिसतषक संबध ं ी िकयाएँ िनयंितत, संतुिलत तथा िनयिमत रहती
है एवं मिसतषकीय िवकार नष होते है लेिकन वतरमान मे जो केिमकल की िबंिदया चल पडी है वह लाभ के बजाय हािन
करती है।
बबब बब बबबब बबबब बबबबब बबब बबबबबब बबबबब बब बबबब बब बबबब ब बबबबबब
बब बबबबब बबबब बब बबब बबबब, बब, बबब बबब बब बबबबबबबब। बब बबबब बबबब बबब सवणर के
आभूषण पिवत, सौभागयवधरक तथा संतोषपदायक है। रतजिडत आभूषण धारण करने से गहो की पीडा, दुषो की नजर
एवं बुरे सवपो का नाश होता है। शुकाचायर के अनुसार पुत की कामनावाली िसतयो को हीरा नही पहनना चािहए।
अनुकम
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बबबबबबबबबब बबब
बबबबबबबब गुलबनपशा 25 गाम, छाया मे सुखाये हुए तुलसी के पते 25 गाम, तज 25 गाम, बडी इलायची
12 गाम, सौफ 12 गाम, बाही के सूखे पते 12 गाम, िछली हुई जेठी मध के 12 गाम।
बबबबब उपरोकत पतयेक वसतु को अलग-अलग कूटकर चूणर करके िमशण कर ले। जब चाय-कॉफी पीने
की आवशयकता महसूस हो तब िमशण मे से 5-6 गाम चूणर 400 गाम पानी मे उबाले। जब आधा पानी बाकी रहे तब
नीचे उतारकर छान ले। उसमे दूध शकर िमलाकर धीरे-धीरे िपये।
बबबब इस पेय को लेने से मिसतषक मे शिकत आती है, शरीर मे सफूितर आती है, भूख बढती है एवं पाचन
िकया वेगवती बनती है। इसके अितिरकत सदी, बलगम, खासी, दमा, शास, कफजनय जवर और नयूमोिनया जैसे रोग
होने से रकते है।
अनुकम
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सत 47
सत 48
बबब बबबबबबब
80 से 90 % बालक िवशेषकर दातो के रोगो से, उसमे भी दंतकृिम से पीिडत होते है। वतरमान मे बालको के
अितिरकत बडे लोगो मे भी दात के रोग िवशेष रप से देखने को िमलते है।
खूब ठंडा पानी अथवा ठंडा पदाथर खाकर गमर पानी अथवा गमर पदाथर खाया जाय तो दात जलदी िगरते है।
अकेला ठंडा पानी और ठंडे पदाथर तथा अकेले गमर पदाथर तथा गमर पानी से सेवन से भी दात के रोग होते है।
इसीिलए ऐसे सेवन से बचना चािहए।
भोजन करने के बाद दात साफ करके कुलले करने चािहए। अन के कण कही दात मे फँस तो नही गये,
इसका िवशेष धयान रखना चािहए।
महीने मे एकाध बार राित को सोने से पूवर नमक और सरसो का तेल िमलाकर, उससे दात िघसकर, कुलले
करके सो जाना चािहए। ऐसा करने से वृदावसथा मे भी दात मजबूत रहेगे।
सपताह मे एक बार ितल का के तेल के कुलले करने से भी दात वृदावसथा तक मजबूत रहेगे।
आइसकीम, िबिसकट, चॉकलेट, ठंडा पानी, िफज के ठंडे और बासी पदाथर, चाय, कॉफी आिद के सेवन से
बचने से भी दातो की सुरका होती है। सुपारी जैसे अतयनत कठोर पदाथों के सेवन से भी िवशेष रप से बचना चािहए।
अनुकम
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बबबबबबबब बबबब बबबबब बब बबब बबबबबब बबबबबबबबबब
बब बबबबब बबबब
नई िदलली मे 28 जनवरी 2000 से पारमभ हुए 'कॉमनवेलथ डेनटल एसोिसएशन' (सी.डी.ए.) के एक सममेलन मे
दंतरोग िवशेषजो ने कहा िकः 'टू थपेसटो के बढते हुए पयोग के बाद भी िवकासशील देशो मे दंतरोगो की समसयाएँ बढती
ही जा रही है। बहुराषटीय कंपिनयो दारा बनाये जाने वाले अिधकाश टू थपेसट दातो के रोगो को रोकने मे सकम नही
है।
टू थपेसटो की गुणवता मे सुधार लाने के िलए िनमाणकतों पर कडे िनयम लागू करने की आवशकता है।'
टू थपेसट से दातो की सफाई करने वालो को िवशेष सलाह देते हुए िवशेषज ने कहा िक 'लोगो को मँहगे एवं
गुणवतारिहत टू थपेसटो के बजाय नीम आिद के दातुनो का अिधकािधक पयोग करना चािहए।'
नीम का दातुन िसफर दातो को ही नही अिपतु पाचनतंत की भी सुरका करता है। जब वयिकत नीम का दातुन
चबाता है तो उसके मुँह मे अिधक लार बनती है और िजतनी अिधक लार बनेगी उतना ही पाचनतंत अिधक सुदृढ
होगा। इसीिलए िचिकतसक सलाह देते है िक खाना चबा-चबाकर खाना चािहए कयोिक इससे अिधक लार बनेगी जो िक
भोजन को पचाने के िलए अित महततवपूणर होती है।
अिधकाश रोग तो पाचनतंत की खराबी के कारण ही होते है। यिद पाचनतंत अचछा होगा तो शरीर की रोग-
पितकारक शिकत बढेगी। अब सवयं फैसला कीिजए िक आप महँगे तथा गुणवताहीन टू थपेसटो का पयोग करेगे अथवा
बहुउपयोगी, ससते तथा सुलभ नीम के दातुन का ? दातुन का चबाया हुआ भाग काटकर बाकी का टुकडा तीन-चार
िदन तक काम मे लाया जा सकता है। िकतना ससता व सवासथयपद !
पूजय लीलाशाह बापू रोज सुबह खाली पेट नीम के पतो और तुलसी के पतो का रस या पते लेते थे, िजससे
उनहे कभी बुखार नही आता था एवं उनका सवासथय हमेशा अचछा ही रहता था।
पूजय बापू सतसंग मे कई बार यह बात कहते है िक िजस वसतु की हमे अतयंत आवशयकता होती है वह हमे
बडी आसानी से िमल जाती है जैसे िक हवा, पानी की हमे आवशयकता होती है तो वह आसानी से िमल जाता है। उसी
पकार नीम हमारे िलए अतयंत उपयोगी है अतः वह भी सरलता से िमल जाता है। आसानी से िमलने वाले नीम, तुलसी,
करंज, िशरीष आिद वनसपितयो का उपयोग सवयं िकया जा सकता है।
जो वयिकत मीठे, खटे, खारे, तीखे, कडवे और तूरे, इन छः रसो का मातानुसार योगय रीित से सेवन करता है
उसका सवासथय उतम रहता है। हम अपने आहार मे गुड, शकर, घी, दूध, दही जैसे मधुर, कफवधरक पदाथर एवं खटे,
खारे और मीठे पदाथर तो लेते है िकनतु कडवे और तूरे पदाथर िबलकुल नही लेते िजसकी हमे सखत जररत है। इसी
कारण से आजकल अलग-अलग पकार के बुखार, मलेिरया, टायफायड, आँत के रोग, डायिबटीज, सदी, खासी,
मेदवृिद, कालेसटोल का बढना, बलडपेशर जैसी अनेक बीमािरया बढ गई है।
भगवान अित ने 'चरकसंिहता' मे िदये गये उपदेश मे कडवे रस का खूब बखान िकया है जैसे िकः बबबबबब
बबब बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबब बबबबबब बबबबबबब बबबबबबबब बबबबब बबबबब
बबबबबबबबबबब बबबबब बबबबबबबबबबबबबब । बबबबबबबबबबबब
(चरक संिहताः सूत सथान, अधयाय 26)
अथात् कडवा रस सवयं ही अरिचकर है, िफर भी आहार के पित अरिच दूर करता है। कडवा रस शरीर के
िविभन जहर, कृिम और बुखार को दूर करता है। भोजन के पाचन मे सहाय करता है तथा सतनय को शुद करता है।
सतनपान करने वाली माता यिद उिचत रीित से नीम आिद कडवी चीजो का उपयोग करे तो बालक सवसथ रहता है।
आयुवेद (िवजान) को इस बात को सवीकार करना ही पडा है िक नीम का रस यकृत की िकयाओं को खूब
अचछे से सुधारता है तथा रकत को शुद करता है। तवचा के रोगो मे, कृिम तथा बालो की रसी मे नीम अतयंत उपयोगी
है।
संकेप मे, हमे हमारे जीवन मे यही उतारने का पयास करना चािहए िक जैसे परम पूजय लीलाशाह बापू िनयिमत
रप से नीम का सेवन करते थे वैसे ही हम भी नीम, तुलसी, हरड जैसी वसतुओं का सेवन करे िजससे हमारा सवासथय
सदैव अचछा रहे।
केवल भामक पचार से करोडो रपये लूटने वाली कंपिनया लाखो रपये िवजापन मे लगायेगी, आपकी जेबे
खाली करेगी। ये कंपिनया और उनके टू थपेसट व बश आपके दातो व मसूडो को कमजोर करेगे। अगर ये कंपिनया
कई करोड रपये नही लूट पाती तो कई लाख रपये िवजापनो मे कैसे लगाती ?
ऐसे ही िमलावटी तैयार मसालो के चकर मे आकर अपने व अपने कुटुंिबयो का आरोगय दाव पर न लगाये।
िमलावट रिहत शुद मसाले कूट पीसकर अपने काम मे लाये। आकषरक पैिकंग व िवजापनो से पभािवत नही होना
चािहए।
आज कल आटा थैिलयो मे आने लगा है। आटा िजस िदन िपसा, उसके आठ िदन के अंदर ही काम मे आ
जाना चािहए। उसके बाद पोषक तततव कम होने लगते है। कुछ पोषक तततव तो जयादा पावरवाली मशीनो मे पीसने के
कारण ही नष हो जाते है और कुछ आठ िदन से अिधक रखने के कारण नष हो जाते है। अतः अपना पीसा हुआ
ताजा आटा ही काम मे लाना बुिदमानी है। आठ िदन के बादवाला बासी आटा सवासथय के िलए पोषक व उिचत नही है।
अनुकम
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सत 49
बबबब बब बबबबबब
हमारे जीवन के िवकास मे भोजन का अतयिधक महततव है। वह केवल हमारे तन को ही पुष नही करता वरन्
हमारे मन को, हमारी बुिद को, हमारे िवचारो को भी पभािवत करता है। कहते भी है-
बबबब बबब बबबब बबबब । बबबब बबब
महाभारत के युद मे पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे िदन केवल कौरव कुल के लोग ही मरते रहे। पाडवो के
एक भी भाई को जरा सी भी चोट नही लगी।
पाचवा िदन हुआ। आिखर दुयोधन को हुआ िक हमारी सेना मे भीषम िपतामह जैसे योदा है िफर भी पाडवो का
कुछ नही िबगडता, कया कारण है ? वे चाहे तो युद मे कया से कया कर सकते है। िवचार करते-करते वह आिखर इस
िनषकषर पर आया िक भीषम िपतामह पूरा मन लगाकर पाडवो का मूलोचछेद करने को तैयार नही हुए है। इसका कया
कारण है ? यह जानने के िलए सतयवादी युिधिषर के पास जाना चािहए। उनसे पूछना चािहए िक हमारे सेनापित होकर
भी वे मन लगाकर युद कयो नही करते ?
पाडव तो धमर के पक मे थे। अतः दुयोधन िनःसंकोच पाडवो के िशिवर मे पहुँच गया। वहा पर पाडवो ने
उसकी यथायोगय आवभगत की। िफर दुयोधन बोलाः "भीम ! अजुरन ! तुम लोग जरा बाहर जाओ। मुझे केवल
युिधिषर से बात करनी है।"
चारो भाई युिधिषर के िशिवर से बाहर चले गये। िफर दुयोधन ने युिधिषर से पूछाः "युिधिषर महाराज !
पाच-पाच िदन हो गये है। हमारे कौरव पक के लोग ही मर रहे है िकनतु आप लोगो का बाल तक बाका नही होता। कया
बात है ? चाहे तो देववरत भीषम तूफान मचा सकते है।"
युिधिषरः "हा, मचा सकते है।"
दुयोधनः "वे चाहे तो भीषण युद कर सकते है, पर नही कर रहे है। कया आपको लगता है िक वे मन लगाकर
युद नही कर रहे है ?"
सतयवादी युिधिषर बोलेः "हा, गंगापुत भीषम मन लगाकर युद नही कर रहे है।"
युिधिषरः "वे सतय के पक मे है। वे पिवत आतमा है अतः समझते है िक कौन सचचा है और कौन झूठा, कौन
धमर मे है तथा कौन अधमर मे। वे धमर के पक मे है, सतय के पक मे है इसिलए उनका जी चाहता है िक पाडव पक की
जयादा खून खराबी न हो।"
दुयोधनः "वे मन लगाकर युद करे इसका उपाय कया है ?"
युिधिषरः "यिद वे सतय और धमर का पक छोड देगे, उनका मन गलत हो जायेगा तो िफर वे मन लगाकर युद
करेगे ?"
दुयोधनः "इसके िलए कया उपाय है ?"
युिधिषरः "यिद वे पापी के घर का अन खायेगे तो सतय एवं धमर का पक छोड देगे और उनका मन युद मे लग
जायेगा।"
दुयोधनः "आप ही बताइये िक ऐसा कौन सा पापी होगा िजसके घर का अन खाने से उनका मन सतय के पक
से हट जाये और वे पूरे मन से युद करने को तैयार हो जाये ?"
युिधिषरः "सभा मे भीषम िपतामह, गुर दोणाचायर जैसे महान लोग बैठे थे, हम बैठे थे िफर भी दौपदी को नगन
करने की आजा और अपनी जाघ ठोककर उस पर दौपदी को बैठने का इशारा करने की दुषता तुमने की थी। ऐसा
धमरिवरद और पापी आदमी दूसरा कहा से लाया जाये ? तुमहारे घर का अन खाने से उनकी मित सतय और धमर के पक
से हट जायेगी, िफर वे मन लगाकर युद करेगे।"
दुयोधन ने युिकत पा ली। कैसे भी करके, कपट करके, अपने यहा का अन भीषम िपतामह को िखला िदया।
भीषम िपतामह का मन बदल गया और छठवे िदन से उनहोने घमासान युद करना आरंभ कर िदया।
कहने का तातपयर यह है िक जैसा अन होता है वैसा ही मन होता है। भोजन करे तो शुद भोजन करे। मिलन
और अपिवत भोजन न करे। भोजन के पहले हाथ-पैर जरर धोये। भोजन साितवक हो, पिवत हो, पसनता देने वाला
हो, तनदुरसती बढाने वाला हो।
बबबबबबबबबब बबबबबबबबबबबबबब
।
ठूँस-ठूँसकर भोजन न करे। चबा-चबाकर ही भोजन करे। भोजन के समय शात एवं पसनिचत रहे। पभु का
समरण करके भोजन करे। जो आहार खाने से शरीर तनदुरसत रहता हो वही आहार करे और िजस आहार से हािन
होती हो ऐसे आहार से बचे। खान-पान मे संयम बरतने से बहुत लाभ होता है।
भोजन अपनी मेहनत का हो, सािततवक हो। वह लहसुन, पयाज, मास आिद और जयादा तेल-िमचर-मसाले वाला
न हो। उसका िनिमत अचछा हो और अचछे ढंग से, पसन होकर, भगवान को भोग लगाकर िफर भोजन करे तो उससे
आपका भाव पिवत होगा। रकत के कण पिवत होगे, मन पिवत होगा। िफर संधया पाणायाम करेगे तो मन मे सािततवकता
बढेगी। मन मे पसनता, तन मे आरोगयता का िवकास होगा। आपका जीवन उनत होता जायगा।
संसार मे अित पिरशम करके खप मरने , िवलासी जीवन िबताकर या कायर रहकर जीने के िलए िजंदगी नही
िमली है। िजंदगी तो चैतनय की मसती को जगाकर परमातमा का आनंद लेकर इस लोक और परलोक मे सफल होने के
िलए है। मुिकत का अनुभव करने के िलए िजंदगी है।
अनुकम
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बबबबबबबबबबब बब बबबबबबबबब
'कोलगेट पॉमोिलव' नामक बहुराषटीय कंपनी के टू थपेसट 'कोलगेट' का िवजापन टी.वी. पर िदखाया जाता है।
िवजापन मे एक ऐसे वयिकत को िदखाया जाता है िजसकी सासो से बदबू आती है। इसी कारण उसकी पती उससे दूर
रहती है। इसके इलाज के िलए जब वह दातो के िवशेषज के पास जाता है तो वह उसे 'कोलगेट' नामक टू थपेसट से
दात साफ करने की सलाह देता है। जैसे ही वह वयिकत घर जाकर 'कोलगेट' से दात रगडता है वैसे ही उसकी सासो
की बदबू िमट जाती है और उसकी पती उसके िनकट आ जाती है और बोला जाता हैः 'दूिरया नजदीिकया बनी।' िफर
उसके चारो ओर एक चक सा बन जाता है िजसे 'कोलगेट का सुरकाचक' कहा जाता है।
हमारे शासत और बुजुगर कहते है िक पित-पती का िरशता पारसपिरक पेम, िवशास, शदा एवं संयम दारा मजबूत
बनता है परनतु 'कोलगेट पॉमोिलव' कंपनी कहती है िक हमारा टू थपेसट नही िघसा तो आप एक दूसरे से दूर हो
जाओगे।
'कोलगेट का सुरकाचक' वासतव मे 'बीमारी का सुरकाचक' है, यह शायद आप नही जानते होगे।
अमेिरका मे िबकने वाले कोलगेट के सभी बाणडो की पैिकंग पर इस पकार की सूचना िलखी होती हैः "2 से 6
वषर तक के बचचो के िलए मटर के दाने की बराबर माता मे पेसट का इसतेमाल करे और मंजन तथा कुलला करते समय
बचचे पर नजर रखे तािक वह अिधक माता मे पेसट को िनगल न ले। 2 वषर से कम उम के बचचो की पहुँच से दूर
रखे। पेसट अचानक िनगलने से दुघरटना होने पर तुरनत िचिकतसक या 'जहर िनयंतण केनद' (पवॉइजन कनटोल सेनटर)
से समपकर करे।"
अमेिरका की तरह भारत मे भी कोलगेट के बाणडो की पैिकंग पर ऐसा कुछ िलखा होना चािहए तािक लोगो को
पता लगे िक यह 'सुरकाचक' नही अिपतु जहर है। कया हमारे देश के बचचो का सवासथय अमेिरका के बचचो के
सवासथय से कम महततवपूणर है ? इसके अलावा अमेिरका मे िबकने वाले कोलगेट की तरह यहा िबकने वाले कोलगेट
पर इसतेमाल करने की अंितम ितिथ (Expiry Date) भी नजर नही आती।
सवासथय संगठनो दारा िकये गये सवेकण बताते है िक कोलगेट जैसे टू थपेसट रगडने वालो की अपेका िनयिमत
रप से नीम तथा बबूल आिद की दातून करने वालो के दात अिधक सुरिकत रहते है। इसके अलावा िचिकतसको का
कहना है िक सास की बदबू के िलए दातो की सफाई की अपेका िवटािमन 'सी' की कमी, पेट की गडबडी तथा पानी की
कमी अिधक िजममेदार है। अब आप सवयं िवचािरये िक कोलगेट से िवटािमन सी िमलता है या पेट की गडबडी अथवा
पानी की कमी दूर होती है। और तो और, िवजापनो मे कोलगेट को िजस 'डेिनटसट एसोिसयेशन' दारा पमािणत बताया
जाता है, उस नाम से इस देश मे कोई भी डेिनटसट एसोिसएशन पंजीकृत ही नही। गैर-पंजीकृत एसोिसएशन है भी तो
वह कोलगेट कंपनी के अपने ही डाकटरो की है।
अब आप सवयं समझ सकते है िक िवजापन के दारा िकस पकार झूठ को सच बनाकर हमारे सामने पसतुत
िकया जाता है। यह तो एक उदाहरण है, ऐसे सैकडो झूठ अलग-अलग कंपिनया हमारे सामने िवजापनो के दारा सच
बनाकर पसतुत करती है।
अनुकम
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सत 52