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Tejendra Sharma
Tejendra Sharma
क दस कहािनयाँ
तज
े े शमा
की2 दस कहािनयाँ
ाथन
हष
इसिलए 7क इस वष
तेजेि जी के सा7ह8य सृजन के तीस साल भी पूरे हो रहे ह; । ूवासी लेखक( म= ऐसा लंबा सृजन-काल बहत
ु कम लेखक( का है । जाने माने
पर भी उतनी ह. लगन से नई कहािनय( क रचना क। यह काम के ूित उनक तमयता और कहानी के ूित उनक िनLा का ूतीक है ।
हमने इस साल से डाउनलोड करने योMय कुछ सुंदर पीड.एफ़ फाइल= िनयिमत Pप ूकािशत करने का िनQय 7कया है , ता7क इह= इं टरनेट कनेSशन बंद कर के भी पढ़ा
करने क योजना है । कुछ और लेखक भी जJद. ह. अपनी दस कहािनयाँ पूर. करने वाले ह; , उनके भी वेब तथा पीड.एफ़ संःकरण जJद. पाठक( के पास पहँु च= ऐसी
पूIण
मा वम
न
teamabhi@abhivyakti-hindi.org
abhi_vyakti@hotmail.com
तज
े े शमा
-एक पि3रचय
जम:
जम: 21 अूबर 1952 (जगसंव - पंजाब) भारत।
िशZा : एम. ए. अंमेज़ी (7दJली व_व`ालय)
काय
Zेऽः समकालीन कथा सा7ह8य म= तेज=ि शमा
एक चिच
त नाम है । उनक कहािनयाँ उनके सजग सा7ह8यकार होने का ूमाण है । वे पBरवेश
म= से पाऽ चुन लेते ह; जो पन( पर उनक लड़ाई लड़ते ह; । वषय वैवcय और वषय( क सामाियकता तेज=ि शमा
क कहािनय( क अय
वशेषताएँ है । कथा सा7ह8य म= िशJप एवं शैली के ःतर पर जो पBरवत
न हए
ु ह; , उनक झलक तेज=ि शमा
क कहािनय( म= दे खने को िमलती है ।
उह(ने दरदश
ू न के िलए 'शांित' धारावा7हक का लेखन 7कया है , अनु कपूर िनदd िशत 7फ़Jम 'अमय' म= नाना पाटे कर के साथ अिभनय 7कया है
तथा वे 7हं द. सा7ह8य के एकमाऽ अंतरा
eीय सfमान 'अंतरा
eीय इं द ु शमा
कथा सfमान' ूदान करनेवाली संःथा 'कथा यू. के.' के सिचव ह; ।
पुरःकार / सfमान:
सfमान
1.7ढबर. टाइट के िलये महाराe राjय सा7ह8य अकादमी पुरःकार - 1995 (ूधानमंऽी ौी अटल बहार. वाजपेयी के हाथ(।)
2.सहयोग फ़ाउं डे शन का युवा सा7ह8यकार पुरःकार - 1998
3.सुपथगा सfमान -1987
4.कृ ित यू.के. Cारा वष
2002 के िलये "बेघर आँख=" को सव
ौL
े कहानी का पुरःकार
5.ूथम संकJप सा7ह8य सfमान – 7दJली (2007)
6.िततली बाल पऽका का सा7ह8य सfमान – बरे ली (2007)
7.भारतीय उmचायोग लंदन Cारा डॉ.हBरवंशराय बmचन सfमान (2008)
अनम
ु
अपराधबोध का ूेत 5
एक बार 7फर होली 11
काला सागर 20
गंदगी का बSसा 27
7ढबर. टाइट 33
चरमराहट 40
जीना यहाँ 7कसके िलए 47
दे ह क कमत 56
पासपोट
के रं ग 65
मलबे क माल7कन 72
अपराधबोध का ते
उसने यह बात सोची ह. कैसे? Sया ऐसे कुI8सत वचार का 7दमाग म= आना ह. उसे अपराधी नह.ं बना दे ता? र बोतल म= से बूँद-बूँद टपककर
अब भी नली म= से होता हआ
ु सुरिभ क िशराओं म= जएब हए
ु जा रहा था। उसके चेहरे पर लगा हआ
ु ऑSसीजन नकाब िनरं तर ऑSसीजन उसके
शर.र म= पहँु चा रहा था. . .यह. ऑSसीजन सुरिभ क साँस( को 7कसी भी तरह थामे हई
ु थी, परं तु नरे न! नरे न को लग रहा था जैसे कोई अwात
श उसका गला दबाए जा रह. है . . .उसक आवाज़ उसके तालू के साथ िचपककर रह गई है । उसक जीभ आवाज़ क़ो बाहर िनकलने ह. नह.ं दे ना
चाहती। आIख़र ऐसा िगरा हआ
ु वीभ8स वचार उसके मन म= आया कैसे! उसके पास तो जीवत रहने का कोई भी कारण नह.ं बचा है ।
''नरे न, आज तुfहारे िलए मूली के परांठे बनाकर लाई हँू ।'' सुरिभ ने अपनी आवाज़ क खुशबू बखेर.।
ू खाने पडते ह; ।''
''तुम 7ट7फ़न म= थोडा एयादा खाना लाया करो ना। म; तो तुfहारा सारा 7ट7फ़न खा जाता हँू । और तुfह= बाज़ार. छोले-भटरे
''जानते हो, तुम खाते हो तो मुझे 7कतना सुख िमलता है । अगर एयादा लाऊँगी तो माँ पूछेगी नह.ं 7क 7कसके िलए ले जाती हँू । मुझसे झूठ नह.ं
बोला जाता।''
''इतना {यार करती हो मुझे?''
''म;ने कहा ना, मुझसे झूठ नह.ं बोला जाता।'' सुरिभ क IखलIखलाहट भर. हँ सी पूर. 7फ़जाँ म= फैल गई थी।
सुरिभ ने आँख= खोलीं। नरे न को अभी भी पहचान पा रह. थी। उसे पेशाब करने क ज़Pरत महसूस हई
ु थी। अपराधबोध से मःत नरे न ने जJद. से
कमोड लगाया, पेशाब करवाया और Pई से सफ़ाई कर द.।
सुरिभ क बीमार आँख( म= से आँसू क एक बूँद िनकली और उसके त7कये म= समा गई। वैसे तो उसके शर.र म= क;सर ने पाँच साल पहले ह. जड=
जमा ली थीं, पर पछले दो वष
ने उसका संबंध बःतर से और भी ूगाढ क़र 7दया था। करवट बदलते हए
ु भी हI|डय( के भुरभुराकर टटने
ू का डर
रहता था। सीधे लेटे रहने से पीठ म= वैसे भी दद
होता रहता था। बोन मैटाःटे िसस! सुनने म= 7कतना रोम;7टक-सा नाम लगता है . . .7कतनी भयानक
बीमार.!
''तुfह= माँ ने बुलाया है ।''
''तुम तो कह रह. थीं 7क ममी हःपताल म= ह; ।''
''हाँ, पेट म= बहत
ु बड़ा टयूमर हो गया था। काफ़ बड़ा आपरे शन हआ
ु है । म;ने एक 7दन हःपताल म= ह. तुfहारे बारे म= बात कर द.। पहले तो बहत
ु नाराज़ ह}
ु , 7फर बोलीं 7क उसे ले आना, म; भी
दे खूँ 7क वो चीज़ Sया है , जो मेर. बेट. को इतना पसंद आ गया है ।''
ू खाने से मु िमल जाएगी।''
''एक बात तो है सुरिभ, अगर माँ जी ने मुझे पसंद कर िलया, तो तुfह= छोले-भटरे
इतनी लंबी बीमार. भी सुरिभ के दाँत( को बीमार नह.ं कर पाई। अभी दो मह.ने पहले तक तो सुरिभ घर म= बैठकर फ़ोन पर बात भी कर लेती थी। फ़ोन पर उसक आवाज़ सुनकर कोई मानने को
तैयार ह. नह.ं होता था, 7क सुरिभ सचमुच बीमार है । पछले तीन साह से तो बस. . .हःपताल का बःतर, र क बोतल और ऑSसीजन का िसलंडर!
''बेटा जी, काम कहाँ करते हो?''
''बस जी, यह जो पंखा ऊपर चल रहा है ना, उसी कंपनी म= सेJज़ आफ़सर हँू ।''
''तनवाह 7कतनी िमल जाती होगी?''
''साढे आठ सौ पये। माँ जी ऊपर क कोई आमदनी नह.ं है । हाथ म= बस आठ सौ पचास पये ह. आते ह; । वैसे सP का कहना है 7क इतने पैस( म= घर चला लेगी।''
माँ जी के माथे पर बल 7दखाई 7दए, ''िसगरे ट, शराब क कोई आदत है Sया?''
''माँ जी, आज तक तो दोन( चीज़= नह.ं पीं, भवंय क तो रामजी ह. जान=।''
''सुरिभ बता रह. थी 7क माँ-बाप के अकेले बेटे हो!''
''जी हाँ, एक बहन है , बड़.। शाद. हो चुक है उनक। दो बेटे भी ह; ।''
माँ जी के चेहरे से नरे न कुछ भी समझ नह.ं पा रहा था 7क वह साZा8कार म= सफल रहा या उसे BरजेSट कर 7दया गया। पर कुछ 7दन( बाद सुरिभ के 7ट7फ़न म= उसका खाना भी आने लगा था।
सुरिभ ने फुसफुसाहट भर. आवाज़ म= कुछ कहा। नरे न का अपराधबोध और गहरा हो गया। Iजस गले से दाग़ और ग़ािलब क ग़ज़ल= माधुय
पाती थीं, उसी गले से आज फुसफुसाहट भी मुIँकल
से िनकल पा रह. थी। 7फ़Jमी गीत( को लेकर भी नरे न और सुरिभ म= नोकझ(क चलती रहती थी। नरे न क पसंद.दा जोड. थी शैल=ि और शंकर जय7कशन जब7क सुरिभ को शकल क शायर.
अmछ लगती थी, ''शृंगार रस का उपयोग Iजस तरह शकल करते ह; , 7कसी और 7फ़Jमी शायर के बस क बात नह.ं उस पर नौशाद का संगीत मेड फ़ॉर ईच अदर जोड.।''
''जयपुर भी कोई हनीमून पर जाने क जगह है ?''
''वहाँ से माऊंट आबू भी तो जाएँगे।''
''पर जयपुर Sय(?''
''सP, ना जाने Sय(, आमेर के 7कले म= जाकर ऐसा लगता है , जैसे म; वहाँ पहले भी आ चुका हँू , तुम भी मेरे साथ वहाँ चलकर वह 7कला दे खना। लोग तो इं Mल;ड और अमर.का से आते ह; वह
महल दे खने।''
''उनका हनीमून नह.ं होता। हनीमून के िलए तो हर कोई 7हल ःटे शन पर ह. जाता है ।''
''तो पहले माऊंट आबू चले चलते ह; । वापसी म= जयपुर चले जाएँगे।''
''नह.ं, पहले जयपुर ह. चल=गे।''
''उह(ने मेर. उfमीद क 7कँती को तैरने से पहले ह. डु बा 7दया। कहती ह; , दे ख भई गुडड., तेरे बmचे अलग तरह से पले ह; । उनको हम अपने पास नह.ं रख सकते। अपनी मरती हई
ु बेट. का
झूठा 7दल रखने को भी उह(ने यह नह.ं कहा 7क मेर. मौत के बाद मेरे बmच( को सँभाल ल=गी।''
''हम 7कतने 7कःमत वाले ह; सुरिभ, 7क हमारे Bरँतेदार हमसे झूठ नह.ं बोलते।''
पर सुरिभ क बीमार. भी तो झूठ नह.ं. . .उससे अिधक कठोर स8य तो दसरा
ू कोई हो ह. नह.ं सकता। डॉ. कुरकुरे ने तो घोषणा कर ह. द. थी।'' िम. नरे न, मेरा ख़याल है आप टाटा हःपताल
जाकर मौरफ़न ले आएँ। युअर वाईफ़ नीडज दै ट!''
''डाSटर सा7हब इसका Sया मतलब है ? 7कतने 7दन क मोहलत दे ते ह; आप?''
''बस एक मह.ना भर समझ लीIजए, आप।''
नरे न ने अचानक अपनी सैकंड-ह; ड माित के ॄेक पूरे ज़ोर से दबा 7दए थे। अगर पीछे आने वाला BरSशा चालक चौकना न होता तो दघ
हाँ नरे न उसक सार. फ़ाइल= चुपके से पढ़ गया था, उसे बना बताए। कई रचनाएँ पढ़कर उसक आँख( म= भी आँसू आ गए थे। इतना दद
, कहाँ से कोई इतना दद
ला सकता है अपने लेखन म=।
और ऐसा लेखन छपवाना नह.ं चाहती, पागल है . . .पागल ह. तो है , वरना नरे न जैसे साधारण इं सान से ववाह Sय( करती। उसक बेहू दिगयाँ बरदाँत करते सुरिभ को वष बीत गए ह; ।
डॉ दलजीत िसंह तो सदा नरे न को ह. दोषी ठहराते ह; । साफ़-साफ़ अपनी कडवाहट नरे न पर उँ ड़े ल दे ते ह; । सुरिभ को Bरसच
करवा रहे थे, गाइड़ थे उसके। सुरिभ को अपने कालेज म= लेSचररिशप
भी दे रहे थे। पर अंतरा बस अढ़ाई वष
क थी उस समय। नरे न क सास या सुरिभ क सास दोन( म= से कोई भी अंतरा क दे खभाल को तैयार नह.ं हआ।
ु नरे न और सुरिभ दोन( ह. अंतरा को 'बेश
म= रखने को राजी नह.ं थे। अंततः सुरिभ नौकर. नह.ं कर पाई। डॉ दलजीत िसंह के अनुसार यह. एक घटना सुरिभ के क;सर का कारण भी बनी। वह तो नरे न को सुरिभ का काितल कहने म= भी
नह.ं चूकते।
अंतरा और अपूव
को लेकर अण आ गया है । डबडबाई आँख= सफ़र क तैयार. बmच( को {यार। अंतरा का रोना. . .अपूव
चुप, माँ को दे खता जा रहा है । नरे न, सुरिभ, र क बोतल, ऑSसीजन
का िसलंडर, नकाब. . .कह.ं सब सुरिभ के आभूषण लग रहे , सुरिभ इस समय भी 7कतनी सुंदर लग रह. है । कमोिथरे पी, टे मोSसी7फ़न, सब फ़ेल। आँख= माँ को ढँू ढ़ रह. ह; , भाई क ूतीZा म= ह; ।
''मेर. एक बात मानोगे?''
''तुfहार. बात कब नह.ं मानता!''
''मेरे मरने के बाद दसर.
ू शाद. मत करना। मेरे बmच( का जीवन नरक बन जाएगा। तुम मजबूर हो जाओगे, दसर.
ू माँ बस दसर.
ू हो जाती है . . .माँ नह.ं रह पाती।''
''कल तो तुम कह रह. थीं 7क तुfहारे मरने के बाद दसर.
ू शाद. ज़Pर कर लू,ँ ता7क तुfहारा मह8व जान सकूँ।''
''यह. तो मेर. समःया है , जीवन म= पहली बार 7कसी मुे पर एक राय नह.ं हो पा रह.।''
''तुम ठक हो जाओगी। तुfह= कुछ नह.ं होगा। तुम 7फर पहले क तरह चलने लगोगी।''
चलना तो दरू, अब तो बैठ भी नह.ं पाती, बःतर. . .बःतर. . .बस बःतर। पछले दो वष
से बाहर क दिनया
ु से अब उसका संपक
बस टे िलवजन और टे लीफ़ोन के माcयम से है ।
''तुम सारा-सारा 7दन फ़ोन से ह. िचपके रहते हो। कभी हम= भी व 7दया करो।''
''. . .''
''चुप रहने से काम नह.ं चलेगा, कभी सोचा है इन बmच( को भी तुfहारा व चा7हए। म; 7कतनी अकेली हो जाती हँू , मेरे साथ करने के िलए तुfहारे पास कोई बात नह.ं, बाहर वाल( के साथ घंट(
बितया सकते हो।''
अंतरा क पर.Zा है । उसे जJद. घर लौटना है । अण बmच( को छोडक़र 7फर वापस आने को कह रहा है । तीन( के वापस जाते ह. कमरे म= सुरिभ और नरे न अकेल रह जाएँगे। नरे न के
अपराधबोध का ूेत 7फर स7बय हो आएगा। नरे न बेचैन, सुरिभ क आँख= बंद ह; , शायद सो रह. ह; । अगर सुरिभ को कुछ हो गया तो यह ूेत उसे कभी नह.ं छोड़े गा। उसे जकड़े रहे गा।
ूेत का अIःत8व नरे न को बेचैन 7कए जा रहा है । उसे इस अपराध के िलए सुरिभ से माफ़ माँगनी ह. है । उसे सुरिभ को व_ास 7दलाना होगा 7क ऐसा कुI8सत वचार उसके मन म= 7फर कभी
नह.ं आएगा। ''मुझे माफ़ कर दो सुरिभ म; सोच रहा था तुम मर जाओगी तो तुfहार. सार. कहािनयाँ और कवताएँ अपने नाम से छपवाऊँगा। मुझे माफ़ कर दो।''
सुरिभ का िसर लुढक़कर Iःथर हो गया है । अब उसे र या ऑSसीजन क कोई आवँयकता नह.ं थी।
कराची के एक बं गले म= गुमसुम सी बैठ नजमा आज तक अपने जीवन क भूल-भुलइयाँ समझ नह.ं पाई है । इस शहर म=, इस दे श म=,
वह 7कतनी बार आहत हई
ु है । 7कतनी बार उसने उस मौत को गले लगाया है Iजसमे इं सान का शर.र तो नह.ं मरता ले7कन आ8मा
कई-कई मौत= मर जाती है । आज भी वह छलनी हई
ु आ8मा को अपने इस शर.र म= ढो रह. है Iजसम= अपने ह. ऊपर चढ़ाए गए कपड़(
को उठाने क ताकत नह.ं।
यह सच है 7क उसने इमरान को कभी अपना शौहर नह.ं माना। वैसे िनकाह के समय काज़ी साहब के पूछने पर उसने भी "हाँ" ह. कहा
था। ले7कन अगर अfमा अपनी मौत का वाःता दे कर कसम= 7दलवाए, या 7फर अबा िमयाँ इःलाम के ख़तरे म= पड़ने का डर 7दखाएँ
तो वह बेचार. हाँ के अितBर कह भी Sया सकती थी। बुलंदशहर म= जमी नजमा पा7कःतानी सेना के कै{टन इमरान के साथ ववाह
कर कराची म= आ बसी थी।
इमरान ख़ासा Iज़. इं सान था, "दे खो नजमा, अब तुम मेर. बेगम हो। यू है व नो चॉयस।"
रात भर रोती रह. नजमा। त7कया भीगता रहा और इमरान करवट बदल कर गहर. नींद सोता रहा। सुबह होने को रोका जा सकता तो नजमा ज़Pर उसे रोक लेती। ले7कन
सुबह हई
ु और सुबह के साथ ह. शुP हो गया इमरान का पासपोट
राग। नजमा क रोती हई
ु आँख( का इमरान के िनण
य पर कोई असर नह.ं हआ।
ु इमरान क अfमी और
दोन( बहन= इस तरह चुपचाप काम कर रह. थीं जैसे उह= इस मसले से कुछ भी लेना दे ना नह.ं है । जुबेदा ने तो आ कर पूछ ह. िलया, इमरान भाई, नाँता तो करके ह. जाएँगे
न आप दोन(? वैसे आलू के परांठे बना 7दए ह; ।
नजमा ने कह 7दया 7क उसक तबीयत ठक नह.ं है । वह नह.ं खाएगी नाँता। इमरान पर इसका भी कोई असर नह.ं हआ।
ु नजमा है रान थी 7क इमरान का ख़ानदान कुरे िशय(
का तो नह.ं ह. है 7फ़र इतनी बेरहमी Sय(?
इमरान िमयाँ ने कायदे से बैठ कर आलू के दो परांठे दह. के साथ खाए, उस पर मसाले वाली चाय पी - एकदम फ़ौजी अंदाज़ म=, चाय को {लेट म= डाल कर।
नजमा से रहा नह.ं गया, सुिनए, आप ख़ुद ह. फ़ाम
वगैरह भर द.Iजए, हम साइन कर द= गे। हमसे नह.ं भरा जाएगा। और नजमा लगभग भागते हए
ु बाथPम म= जाकर, अंदर से
दरवाज़ा बंद करके खुल कर रोने लगी। उसे याद आ रह. थी अपनी सहे ली िचऽा क बात=, दे खो नजमा, यह जो संकटमोचन का मं7दर है न, इसक बहत
ु मायता है । यहाँ जो
भी आ कर मनत मानता है , वो ज़Pर पूर. होती है । मंगलवार को संकटमोचन का ोत रखना होता है । हनुमान जी बहत
ु भोले ह; , जJद. ह. सबक इmछा पूर. कर दे ते ह; ।
उसने 7कतने मंगल को जाकर संकटमोचन के मं7दर से ूसाद के Pप म= िमठाई खाई है । आज तो मंगल नह.ं है ; भला जुमेरात को हनुमान जी कैसे हमार. बात सुन=गे? नजमा
मन ह. मन दआ
ु माँग रह. थी, हे संकटमोचन मुझे इस हालत से बचा लीIजए, आज दतर बंद हो जाए। मुझे पासपोट
दे ने के िलए अफ़सर मना कर दे । म; जब भी वापस
अपने मुJक आऊँगी, आपके मं7दर म= चढ़ावा चढ़ाने ज़Pर आऊँगी। 7कंतु जुमेरात को मIःजद क अज़ान के सामने संकटमोचन क दआ
ु नह.ं सुनी गई।
और थोड़. ह. दे र म= आवाज़ भी आ गई, सुनती ह; बेगम, हमने फ़ाम
पूरा भर 7दया है , इस पर साइन कर द.Iजए। और नजमा ने अपने डे थ वारं ट पर ख़ुद ह. अपने हःताZर
कर 7दए।
व ने नजमा के ज़उम( के दद
को कम कर 7दया। ले7कन उन ज़म( के िनशान नजमा क आ8मा पर ःथाई Pप से िच7त हो कर रह गए। वह जीवन भर अपने पित के
इस कृ 8य को माफ़ नह.ं कर पाई। और इमरान को भी कुछ फ़क
नह.ं पड़ा, वो भी हमेशा जानबूझ कर नजमा के सामने 7हं दःतान
ु क बुराई करता। नजमा ने कवता िलखनी
शुP कर द.। उसक कवताओं म= हमेशा दोहरा अथ
िछपा रहता। वह कभी भी इकहरे अथ
वाली कवता नह.ं िलखती थी। वह अपनी कवताओं म= अपने दे श, अपनी सहे िलय(,
अपने पBरवार, अपने वजूद को याद करती रहती। एक बार नजमा ने अपनी कवता कुछ य( शुP क, मन करे माथे लगाऊँ म; वतन क ख़ाक को/ कर के सजदे िसर झुकाऊँ
उस ज़मीने पाक को।
जुबेदा ने झट से कहा था, भाभी जान ये उस ज़मीने पाक नह.ं, इस ज़मीने पाक होना चा7हए। इमरान क झुंझलाहट साफ़ सुनाई पड़ रह. थी, जुबेदा म; तो Iज़ंदगी भर इं तज़ार
करता रहँू , तब भी तुfहार. भाभी जान इस ज़मीन को पाक नह.ं कहने वाली। ये तो मुहाIजर( से भी गई गुज़र. है ।
मुहाIजर( से गई गुज़र. - यह कहने वाला मेरा अपना शौहर है ! नजमा कुछ भी कहने क Iःथित म= नह.ं थी। पराया दे श, पराये लोग। अपना पित भी पराया-सा Sय( लगने
लगता है । िग़( का एक समूह, बेचार.-सी नजमा! 7कंतु जीवन तो जीना ह. होता है । नजमा ने भी अपने आसपास के माहौल म= िच लेनी शुP क।
नजमा क समःया यह. थी 7क उसका शर.र, आ8मा और 7दमाग पूर. तरह से भारतीयता म= रं गे थे। उसे पा7कःतान क िमट. पर बाBरश क हलक फुहार= पड़ने के बाद
िमट. से वैसी भीनी-भीनी सुगंध आती नह.ं महसूस होती थी जैसी 7क अपने गाँव म=। उसे लखनऊ व_व`ालय म= बताया एक-एक पल परे शान करता है । वह.ं तो उसक
मुलाकात हई
ु थी एक नौजवान से - चंि ूकाश। सब उसे चंदर कह कर बुलाते थे। कुछ ह. 7दन( म= नजमा चंदर के य8व म= इस कदर रं ग गई 7क अय व`ािथ
य( ने
उह= चाँद-तारा कह कर बुलाना शुP कर 7दया। दरू-दरू से एक दसरे
ू को दे ख कर ख़ुश हो जाने वाले चंदर और नजमा ने धीरे -धीरे भवंय के सपने बुनने भी शुP कर 7दए थे।
चंदर वैसे तो डाSटर बनना चाहता था ले7कन उसके मन म= एक कव पहले से व`मान था। कृ ंण और राधा क होली के नगम= वह इतनी तमयता से गाता था 7क नजमा
भाव वभोर हो जाती। उसे होली के 8यौहार क ूतीZा रहती। अपनी सहे िलय( के साथ िमल कर होली खेलती और अपनी माँ से डाँट खाती। उसका होली के रं ग( म= रं ग जाना
उसक आवारगी का ूतीक था। 7कंतु माँ को उन रं ग( का wान ह. कहाँ था जो नजमा के य8व पर चढ़ रहे थे। नजमा अब चंदर क सुधा बनने को यम थी।
होली खेलने क आदत, सIखय( के साथ मौज-मःती, मावे से भर. गुIजया का आनंद, नजमा का बस चलता तो सारा साल होली ह. खेलती। बांMला दे श के जम के बाद क
होली, नजमा के जीवन क आख़र. होली, पहली बार चंदर ने अपने हाथ( से नजमा के कंवारे गाल( पर गुलाल मला था। गुलाल के बना ह. नजमा के गाल( क शम
ने उसे जो
लाली द. थी, गुलाल उसके सामने पीला पड़ रहा था। और उन गाल( को लाल होते दे ख िलया था दगा
अfमा िचJलाए जा रह. थी और अबा गु़ःसे से आग उगल रहे थे। इससे पहले 7क नजमा कुछ भी समझ पाती, उसे वमान म= बैठा कर कराची भेज 7दया गया था - इमरान
िमयाँ के घर। एम.ए. 7हं द. बीच म= ह. रह गई। शर.र पर इमरान क मोहर लग गई थी, ले7कन 7दल और आ8मा पर चंदर का कज़ा था। होली के रं ग म= रं गे चंदर क सूरत
ह. चंदर क अंितम तःवीर थी जो 7क नजमा के 7दल म= बसी उसके साथ कराची चली आई थी।
जुबेदा तुfह= मालूम है 7क मोहन जोदड़ो और हड़{पा कहाँ ह; पा7कःतान म=?
वो Sया होता है भाभी जान?
अरे , तुमने यह नाम कभी नह.ं सुन?े हमारे 7हं दःतान
ु म= तो ःकूल के बmचे भी जानते ह; उनके बारे म=।
नह.ं तो। वैसे भाभी जान आप बार-बार 7हं दःतान
ु के गुण गाने कम कर द.Iजए। भाई जान को ये कतई पसंद नह.ं है ।
है रान, चुप नजमा अपनी ननद को बताती तो Sया बताती। ले7कन जुबेदा ने उसक मुIँकल( को बढ़ा ह. 7दया, भाई जान ये मोहन जोदड़ो और हड़{पा कहाँ ह; पा7कःतान म=?
तुfह= Sया करना है वहाँ जा कर?
नजमा क समःया ये थी 7क वह अपनी मज़ के व इमरान से ववाह करके पा7कःतान रवाना कर द. गई थी। ऐसे म= अगर उसे थोड़ा अितBर {यार िमल जाता या 7फर
उस क मन:Iःथित को समझने का ूयास 7कया जाता तो वह अवँय ह. अपने ससुराल से 7हलिमल जाती। ले7कन कसूर ससुराल का भी कहाँ था। पूरे पBरवेश म= खलनायक
कोई नह.ं था। बस Iःथितयाँ ह. ऐसी थीं 7क नजमा के िलए उनम= पसना उसक ववशता थी।
अपनी भोली गितयाँ करने से भी बाज़ नह.ं आती थी नज़मा। एक 7दन जुबेदा से पूछ ह. तो िलया, जुबेदा, यहाँ कराची म= होली कहाँ खेलते ह; ?
होली! ये Sया होती है ?
यह एक 8यौहार होता है Iजसम= सब एक दसरे
ू पर रं ग डालते ह; ।
अfमी ने सुन िलया, नजमा बेट., तू का7फ़र( जैसी बात= Sय( करती है । रं ग खेलना इःलाम म= हराम है मेर. बmची। म; तो समझ भी लूँगी Sय(7क म; भी 7हं दःतान
ु क पैदायश
हँू , अगर कह.ं इमरान के कान( म= ये बात पड़ गई तो ग़ज़ब हो जाएगा। अब तू शाद. करके यहाँ आ गई है बेट., यहाँ के रःमो-Bरवाज़ म= ढाल मेर. बmची। तू भूल जा 7क तू
7हं दःतान
ु से यहाँ आई है । अब तू इस घर क इएज़त है । इस इएज़त को बनाए रख बेट.। तेर. Iज़ंदगी अब इमरान है , होली नह.ं।
नजमा ूय भी करती 7क इमरान के ूित उसके मन म= कोई कोमल तंतु जम ले ले। 7कंतु इमरान का फ़ौजी अSखड़पन उस तंतु को जम लेने से पहले ह. कुचल दे ता।
उसे री भर फ़क
नह.ं पड़ता था 7क नजमा Sया महसूस कर रह. है । उसे तो अपनी भूख शांत करनी होती थी जो हो ह. जाती थी। ूकृ ित ने बनाए ह; नर और मादा शर.र
और ूकृ ित ने ह. बनाई है वासना। सृ ने उ8प के िलए ह. वासना को जम 7दया है । सभी जानवर उ8प के िलए संभोग भी करते ह; । इं सान ने अपने आप को जानवर(
से अलग करने के िलए ूेम जैसी कोमल भावना का आवंकार 7कया है । य7द ूेम एवं वासना दोन( का समवय हो जाए तो जीवन के अथ
ह. बदल जाते ह; ।
फ़ौजी ःकूल( म= पढ़ते रे हान के साथ भी नजमा के कोमल तंतु नह.ं जुड़ पा रहे थे। वह उसे अपने पुऽ से कह.ं अिधक अपने पित का पुऽ ह. लगता। उसके नाक नSश भी
इमरान पर ह. गए थे। वैसे वह दे ख कर है रान अवँय होती 7क कैसे ूकृ ित एक छोटे से बालक म= अपने पता क शSल हू-ब-हू डाल दे ती है ।
समय बीतता रहा। बांMला दे श यु को लोग भूलने लगे थे। ले7कन इं 7दरा गांधी का नाम आज भी वहाँ एक बला क तरह िलया जाता था। बांMला दे श इमरान के मन म= एक
नासूर बना बैठा था। वह हमेशा 7कसी ऐसे मौके क तलाश म= रहता 7क वह बांMला दे श का बदला कँमीर म= ले सके। समय ने रे हान को भी बड़ा कर 7दया। समय ने ह.
ऐसा भी 7कया 7क रे हान के 7कसी भी और भाई या बहन ने जम नह.ं िलया। इमरान और नजमा ने रे हान को अपनी-अपनी ओर से बेहतर.न परवBरश दे ने का ूयास भी
7कया। ले7कन इससे हािसल ये हआ
ु 7क रे हान चकरा-सा गया। दो लोग Iजनक सोच एक दसरे
ू से बJकुल वपर.त थी, एक बmचे को अपनी-अपनी तरह से परवBरश दे ने का
ूयास कर रहे थे।
रे हान लंदन म= पढ़ाई कर रहा था। शाद. के छबीस साल बाद भी नजमा और इमरान के बीच य7द 7कसी चीज़ क कमी थी तो वो थी व_ास क। इमरान का नजमा पर
अव_ास का सीधा-सीधा कारण था नजमा का 7हं दःतािनयत
ु से बाहर न आ पाना, 7हं द. भाषा का ूयोग करना, होली म= अितBर िच होना, उसक ःकूल कॉलेज क सहे िलय(
क सूची म= सभी नाम 7हं द ु लड़7कय( के नाम होना और बार-बार अपना त7कया क़लाम दोहराना 7क हमारे 7हं दःतान
ु म= तो ऐसा होता है । वह.ं नजमा के 7दल म= ये बात
गहराई तक उतर. हई
ु है 7क इमरान उसे कभी भी कह.ं भी छोड़ सकता है । नजमा के 7दल से इस घटना को हटा पाना लगभग असंभव है ।
'बेगम सा7हबा, अब तो आप भी कार चलाना सीख लीIजए। आप मोबाइल भी हो जाएँगी और कार चलाना तो एक अmछ कला भी है ।'
'आप Sय( तकलीफ़ करते ह; ? हम 7कसी मोटर साइवंग ःकूल से सीख ल=गे।'
'अरे बेगम, जब हम ह; तो ःकूल क Sया ज़Pरत! पूरे पा7कःतान म= हम से अmछा उःताद आपको कहाँ िमलेगा?'
'दे Iखए म; ग़लती कPँगी, तो आपको गुःसा ज़Pर आएगा। 7फर आपका मूड ख़राब होगा। चिलए हम कह.ं घूम आते ह; । हम कार चलाना ःकूल से ह. सीख ल=गे।'
नजमा ने एक बार 7फर कहा 7क बाक शे िनंग 7फर कभी हो जाएगी। ले7कन इमरान कहाँ मानने वाला था। जब नजमा ने गत मोड़ क ओर मोड़ द. गाड़., तो इमरान फट
पड़ा, 'बेगम हम अगर भ;स को भी कार चलाना िसखा रहे होते, तो वो भी अब तक बेिसक बात= सीख गई होती। आप तो कमाल करती ह; । आपके 7हं दःतान
ु म= लोग ऐसे ह.
कार चलाते ह; Sया?'
बस, अब बहत
ु हो चुका था, 'हम अब कार नह.ं चलाएँगे।' कह कर नजमा ने कार का दरवाज़ा खोला और कार से नीचे उतर गई। इमरान के अहम को ठे स लगी, 'अरे भाई
अगर छोट. सी बात कह भी द. तो Sया फ़क
पड़ गया?'
'हम ने कह 7दया न, हम= कार चलानी नह.ं सीखनी।'
'दे खो नजमा, हम आIख़र. बार कह रहे ह; 7क कार म= बैठ जाओ और कार चलाओ, वना
हम से बुरा कोई न होगा।'
'हमारा फ़ैसला आIख़र. है । आप साइवंग सीट पर आ जाइए।'
'अगर म; साइवंग सीट पर आ गया, तो आपके िलए अmछा न होगा।'
'...'
आजकल नजमा अपनी कवताओं क प=7टं ग बना रह. थी। अपनी कवता को कैनवस पर उतारने का उसका शौक उसे एक ह. थीम को दो कलाओं के माcयम से पेश करने
का मौका दे ता था। पा7कःतान म= राजनीितक माहौल गरमा रहा था। कारिगल क तैयाBरय( म= कन
ल इमरान हाशमी क भूिमका बहत
ु अहम थी। इमरान ने कभी नजमा को
कारिगल के बारे म= कोई सूचना नह.ं द.।
कारिगल यु शुP हो गया। एक अजीब-सा यु था। दोन( दे श लड़ भी रहे थे और पा7कःतान कहे भी जा रहा था 7क उनका दे श यु म= 7कसी तरह से नह.ं जुड़ा हआ
ु है ।
दोन( ओर से लोग मारे जा रहे थे। बहत
ु से पा7कःतानी सैिनक भी शह.द हए।
ु 7कंतु राजनीितक कारण( से पा7कःतानी सरकार ने उन शव( को पहचानने या ःवीकार करने से
इं कार कर 7दया। उन शव( म= से एक शव कन
ल इमरान हाशमी का भी था। इमरान को कहाँ पता था 7क उसका अंितम सरकार 7हं दःतान
ु क थल सेना करे गी और वो भी
भारत क धरती पर। उसका पBरवार उसके शर.र के अंितम दश
न भी नह.ं कर पाएगा।
इमरान क मौत के बाद नजमा पा7कःतान म= िनतांत अकेली पड़ गई। अfमी तो जनत के िलए कब क रवाना हो चुक थीं। दोन( ननद= भी अपने-अपने घर( वाली थीं।
नजमा को कराची कभी अपना घर लगा ह. नह.ं था और पा7कःतान सरकार ने इमरान क मौत को कोई मह8व ह. नह.ं 7दया था। मरणोपरांत कोई पदक तक नह.ं। कोई
ज़मीन या वजीफ़ा नह.ं। राजनीित क िशकार नजमा ने भारत जाने का फ़ैसला 7कया। अपने 7हं दःतान
ु जा कर दे खना चाहती थी 7क वहाँ Sया कुछ बदला है ।
ले7कन अब उसे भारत जाने के िलए वीज़ा लेना पड़े गा। Iजस दे श क ख़ाितर वह कभी पा7कःतानी नह.ं हो पाई, आज वह.ं जाने के िलए वीज़ा लेना होगा। इमरान क अmछ
जान पहचान थी, उसक बेवा होने का एक लाभ तो था 7क काम हो जाते थे। यह भी हो गया। 7कंतु अभी तो दोन( दे श( म= उड़ान( पर ह. ूितबंध लगा हआ
ु था। नजमा पहले
अपने पुऽ रे हान को िमलने लंदन गई, और वहाँ से ॄ7टश एअरवेज़ से 7दJली। बड़. भाभी और उनके बmचे नजमा को लेने आए थे।
बड़े भाई के घर जाने से पहले तो वह 7दJली को पहचानने का ूयास कर रह. थी। एअरपोट
इतना बड़ा और माडन
हो गया था। राःते म= चौड़. सड़क=, झलाइ ओवर, और सभी
माडन
कार= । जब भारत छोड़ कर गई थी तो बस एfबेसेडर और ूीिमयर कार= ह. तो होती थीं। Sया चंदर के पास भी अपनी कार होगी। गर डाSटर बन गया होगा तो ज़Pर
होगी। िचऽा उसे दे ख कर Sया करे गी। बmचे अपने फूफ को दे ख कर ख़ुश थे मगर पहली बार िमलने वाली Iझझक ज़Pर थी। भाभी जान इमरान के बारे म= बात= कर रह.
थीं। रे हान क पढ़ाई, नौकर. और शाद.। भला भाभी से चंदर के बारे म= कैसे पूछे। भाभी ने बताया 7क िचऽा ने तो वह.ं एक वकल से शाद. कर ली थी। उसके तीन बmचे ह; -
एक बेट. और दो बेटे। इं दु शाद. कर के लखनऊ चली गई थी। कमला से कोई संपक
रहा नह.ं था। िचऽा से िमलने को बेताब थी नजमा। Sया उसे पहचान लेगी? अगर
पहचान गई तो कैसे यवहार करे गी?
दो 7दन के बाद िचऽा का पता लग पाया। और िचऽा तो नजमा को दे ख कर जैसे पगला सी गई। भूल गई 7क तीन बmच( क माँ है । समय जैसे थम-सा गया था। दोन(
सहे िलय( म= जम के बात= ह}।
ु दोन( ने िमल कर भोजन बनाया। नजमा ने िचऽा को आQय
च7कत कर 7दया, 'Sया कहा, तुम शाकाहार. हो गई हो! यह चम8कार कैसे हो गया?'
'वहाँ कराची म= सब गाय का मीट खाते थे। हमने तो Iज़ंदगी म= कभी नह.ं खाया था। जब मना 7कया तो हम पर 7हं दू होने का इJज़ाम लगा 7दया। हमने फ़ैसला कर िलया
7क हम मीट खाना ह. बंद कर द= गे। हम ने घास फूस खाना शुP कर 7दया। अब तो यह. खाना अmछा लगता है । पहले-पहले अfमी के हाथ के गोँत क याद आती थी मगर
अब तो सब पुरानी बात= हो ग}। वहाँ कराची म= तो लोग हम= 7हं द ू ह. कहने लगे थे।'
'7कतने साल बीत गए न? यहाँ क याद तो खूब आती होगी? हम सहे िलयाँ भी बछड़ ग}। कोई लखनऊ म= है तो कोई 7दJली म=। कांता तो मुंबई चली गई है । और सुरेखा को
ू
अमर.का वाला आ कर ले गया। पहले-पहले तुfहारे बारे म= खूब बात= करते थे 7फ़र आ7हःता-आ7हःता सब के काम बढ़ते गए और नजमा रानी पीछे छटती ग}। हे नजमा
क़ुछ पूछना चाहती है न तू? पूछ न, डरती Sय( है ?'
'Sया पूछू ँ िचऽा, अब तो पूछते हए
ु भी डर लगता है । तू बना पूछे ह. बता दे न।'
'याद है , वो होली, तुझे कैसे भूलेगी? तेर. तो Iज़ंदगी ह. बदल गई थी। उसका नाम, चेहरा क़ुछ भी याद है तुझे?'
'Sया कहँू ? Sया सुनना चाहती हो तुम? तुfह= कैसे बताऊँ 7क छबीस साल क कैद 7कस चेहरे क याद म= बीती है । होली का 8यौहार तो मेरे िलए जीवन का पया
य ह. बन
गया है । सच-सच बता Sया चंदर इसी शहर म= है ? उसक पी, बmचे, पBरवार, सब कुछ बता दे । मेर. बेशरमी से परे शान तो नह.ं हो?'
िचऽा अपलक नजमा को दे खती जा रह. थी, 'एक बात सच-सच बता। तू होली के आसपास उसी के िलए आई है ? Sया होली खेलने उसके पास जाएगी?'
'अब Sया होली, अब तो वधवा मुसलमान नजमा के होली खेलने वाल( के पास जाने भर से ह. होली अपवऽ हो जाएगी?'
भाईजान के घर जJद. ह. नजमा बmच( के साथ घुल िमल गई। बmचे रे हान के बारे म= बात= करते। उसके लंदन म= रह कर पढ़ने से वे खासे ूभावत लग रहे थे। नजमा के
शाकाहार. हो जाने से भाभी जान को भोजन का मीनू बनाने म= ख़ासी परे शानी हो रह. थी। बmच( के िलए गोँत बनाने के साथ-साथ अब सज़ी और दाल भी बनानी होती।
दो तीन 7दन बस ऐसी ह. बात= होती रह.ं, Iजनके न होने से नजमा को कोई फ़क
नह.ं पड़ता। कई बार तो नजमा बना ठक से सुने ह. जवाब दे दे ती। उॆ के इस पड़ाव पर
भी 7कसी ऐसे य से िमलने क चाह 7कतनी ूबल हो जाती है Iजसके हवाले कभी अपना जीवन कर दे ना चाहा था। बस ूतीZा क घ7ड़याँ 7दल क 7टक7टक से जुड़ती
जा रह. थीं। Sया ऐसे लोग दिनया
ु म= सचमुच होते ह; जो अपने ूेम क याद म= ह. सारा जीवन होम कर दे ते ह; ? सोच कर ह. नजमा के शर.र म= िसहरन हो उठ। एक
झुरझुर.-सी आ गई।
होली भी आ पहँु ची। िचऽा अपने कहे अनुसार अपनी कार और साइवर िलए आ पहँु ची। नजमा ने पहली बार cयान से दे खा 7क िचऽा पहले से ख़ासी भर गई थी। नजमा आज
भी इकहरा बदन ह. िलए थी। उस पर रे हान के जम ने अपने अिधक िनशान नह.ं छोड़े थे। 7फर नजमा एSसरसाइज़ भी करती थी। योग के कुछ आसन उसे अब भी आते
ह; । ूाणायाम तो करती ह. है । इसिलए भी ससुराल म= बदनाम थी।
िचऽा और नजमा ऊपर वाले कमरे म= चली ग}। नजमा के चेहरे का एक-एक अंग कुछ कहता-सा ूतीत हो रहा था। बेचैनी जैसे उसके आस पास एक छोटा-सा तालाब बनाए
जा रह. थी। नजमा कुछ पूछना चाहती थी और िचऽा सब कुछ बताना चाहती थी। अंतत: िचऽा ने ह. शुआत क, 'नजमा, म; जानती हँू तू 7कतनी बेचैन है चंदर के बारे म=
सब कुछ जानने के िलए। तेरा चंदर अब सचमुच का डॉSटर बन गया है । अmछ ूेISटस है उसक।'
'मेरा चंदर!' सोच कर ह. नजमा को रोमांच हो उठा था। '7कतने बmचे ह; उनके?' पी के बारे म= पूछना शायद 7फ़ज़ूल सा सवाल होता। और 7फर नजमा तो उन बmच( के बारे
म= ह. सोच रह. थी, जो कभी उसके अपने हो सकते थे।
'बmच( का तो पता नह.ं। ले7कन पी का पता है ।'
'तो 7फर बता न, जो कुछ भी पता है ।'
'तू शायद सह नह.ं पाएगी। ले7कन 7फर भी बता दे ती हँू । तेरे जाने के बाद, मेर. बात cयान दे कर सुन, तुझे एक राज़ क बात बताने जा रह. हँू । तेरे चंदर ने तेरे जाने के बाद
आज तक शाद. नह.ं क। डाSटर साहब का बड़ा-सा घर है । घर म= अकेला अपनी बूढ़. माँ के साथ रहता है , एक नौकर है घर म=, बस। न 7कसी शाद. याह म= जाता है और न
ह. 7कसी पाट म=। उसने ृ=च कट दाढ़. भी रख ली है । अब तो बाल( म= सफ़ेद. क लट भी 7दखाई दे ने लगी है । वैसे हमारा फ़ैिमली डाSटर भी वह. है । ग़र.ब( का मसीहा बना
हआ
ु है ।'
'शाद. नह.ं क? सच कह रह. है ?'
'अब तुम से Sया झूठ बोलूँगी। होली पर घर से बाहर नह.ं िनकलता। साधु-सा हो गया है । तेर. तरह, शाकाहार. भी हो गया है । म; भी है रान थी 7क तुम दोन( इकठे ।'
अब नजमा को कुछ और सुनाई नह.ं दे रहा था। उसके चंदर ने शाद. नह.ं क। वो आज भी नजमा का है । चाहे नजमा उसक हो या नह.ं, वह बस नजमा का है , केवल नजमा
का! नजमा का चेहरा आज 7फर ठक वैसे ह. लाल हो गया, जैसे छबीस साल पहले हआ
ु था। बस आज उसे दे खने के िलए दगा
काला सागर
वमल महाजन ने आज दझतर से अवकाश ले रखा था। उह= कई 7दन( से लग रहा था जैसे उनका शर.र आवँयकता से अिधक
थकता जा रहा है । उह(ने फैसला 7कया 7क आज केवल आराम ह. 7कया जाए, दे र तक सोए। उठकर आराम से सुबह के काम( से
िनवृ हए
ु , और समाचार-पऽ लेकर बैठ गए।
आजकल समाचार-पऽ पढ़ने म= उह= कोई वशेष िच नह.ं रह. थी। पंजाब म= हो रह. घटनाओं को पढ़कर उह= एक अजीब-सी बेचैनी
होने लगती। उह= हमेशा याद आता था अपना वह छोटा-सा गाँव ज़गरांव ज़हाँ उनका जम हआ
ु था, लुिधयाना के कर.ब ह.। जब कभी
बहत
ु ूसन मुिा म= होते, तो कहते, 'इस जगरांव म= 7हं दःतान
ु क दो महान वभूितय( ने जम िलया है - एक थे लाला लाजपत राय,
और दसरा
ू !' और वह हँ स पड़ते। 7कंतु आजकल जैसे ःवयं से ह. सवाल पूछते रहते थे, 'Sया हो गया है अपने पंजाब को?' एक 7दन
बहत
ु भावुक होकर बोले, 'रं जना, हम तो एकदम 'ःटे ट-लेस' होकर रह गए ह; । यहाँ बंबई वाले तो नारा लगाते ह; 'सुंदर मुंबई मराठ
मुंबई', यानी हम तो यहाँ के कभी नह.ं हो सकते। और पंजाब जाने का अथ
है , मौत को दावत दे ना। इतना बुरा हाल तो स;तालीस म=
भी नह.ं हआ
ु था।' और 7फर वे एक गहर. सोच म= डू ब गए थे। 7कतना भयावह वचार है ! आपक मातृभूिम आपसे िछन जाए, बना
7कसी अपराध के।
वमल महाजन ने समाचार-पऽ को दो-तीन बार उलट-पुलटकर दे ख िलया था और आरामकुस पर अलसा रहे थे तभी फ़ोन क घंट. बजी। उह= काफ़ कोझत हई।
ु आज का
7दन वे आराम से ह. बताना चाहते थे। टे िलफ़ोन या और कोई भी व न उह= नह.ं चा7हए था। अयमनःक भाव से उह(ने फ़ोन उठाया, फ़ोन एअरपोट
से ह. था। वे झुंझलाए
से ःवर म= बोले, "भई, आज तो आराम करने दो।"
महाजन साहब, ग़ज़ब हो गया। 'ज़ीरो नाइन वन बैश हो गई। लंदन के पास।"
"Sया? म; अभी पहँु चता हँू ।"
वमल महाजन के जबड़े थोड़े िभंच गए थे। वे जैसे याद करने का ूय कर रहे थे 7क 'ज़ीरो नाइन वन', पर कौन-कौन बू-म=बर होगा। लगभग बदहवासी क सी Iःथित म=
उह(ने कपड़े पहने और ऑ7फ़स चलने को तैयार हो िलए।
रं जना, उनक पी, समझ गई 7क कोई गड़बड़ अवँय है । जब कभी वमल महाजन परे शान होते तो उनके जबड़े िभंच जाते थे।
"Sया बात है ? आप तो आज आराम करने वाले थे। 7फर एकाएक कहाँ क तैयार. होने लगी है ?"
"रं ज,ू यूयाक
झलाइट बैश हो गई है । दतर..."
"Sया? अण भी तो यूयाक
ह. गया है ।"
"अण! हे भगवान! सब ठक हो। दे ख(, म; अभी ऑ7फ़स जाकर तुfह= फ़ोन कPँगा।" वमल महाजन का ःवर भरा
उठा था और वे अपनी बात पूर. नह.ं कर पाए थे।
राःते-भर अण के वषय म= ह. सोचते रहे । उह= समझ नह.ं आ रहा था 7क अण क पी को वे कैसे समाचार दे पाएँगे। अण उह= अपने बेटे के समान ूय था। उसके
ववाह म= वे अपने सारे िसांत( को ताक पर रखकर, िसर पर पगड़. बाँधकर, घोड़. के सामने नाचे थे। अनुराधा, अण क पी भी उनका बहत
ु आदर करती थी। उनके हाथ
ठं डे हए
ु जा रहे थे। नाIःतक होते हए
ु भी, भगवान से ूाथ
ना कर रहे थे 7क अण सुरIZत हो।
दतर के बाहर कुछ लोग जमा थे यानी ख़बर फैल चुक थी। सबके चेहर( पर सहमी हई
ु उ8सुकता थी। सब दघ
वमल महाजन ने अपने आपको यवIःथत 7कया, और लंदन फ़ोन िमलाने लगे ता7क पूरा समाचार िमल सके और वे आगे क काय
वाह. आरं भ कर सक=। परं तु फ़ोन िमल
नह.ं पा रहा था।
बू िलःट दे खी। अण का नाम उसम= नह.ं था। उह= काफ़ राहत महसूस हई।
ु पर...पर जो लोग लाइट पर थे, वे सभी उनके अपने पBरिचत( म= से थे।
ख़बर फैलने के साथ-साथ लोग( क उ8सुकता बढ़ती जा रह. थी। फ़ोन-पर-फ़ोन आ रहे थे। पर वमल महाजन का मन हो रहा था 7क वे कान( पर हाथ रखकर बैठ जाएँ
चुपचाप। 7कसी के ू¢( का कोई उर न द= । पर िचंितत संबंिधय( क Iजwासा शांत करना उनका कत
य था।
य7द वमल महाजन ःवयं इस दघ
ु टना से इतने वचिलत हो गए ह; तो Iजनके भाई-बहन, माँ-बाप, पित और न जाने 7कतने Bरँतेदार उस वमान म= आ रहे थे, उनक िचंता
ःवाभावक थी। और वे बना अपना धैय
खोए फ़ोन 'अट; ड' करने लगे।
टे लेSस क खटखट शुP हई।
ु लंदन से पहला संदेश आया: 'अनुमान है 7क वमान आतंकवाद का िशकार हआ
ु है । वमान म= 'बू' व याऽय( स7हत तीन सौ उनतीस लोग थे।
अभी 7कसी के बचने क कोई सूचना नह.ं' य़7द कोई बचा भी तो Sया ठं डे एटलां7टक के बफ़¤ले पानी म= जीवत रह पाएगा? वमल महाजन के मIःतंक के घोड़े जा रहे थे
कहाँ तो याऽी और बू-म=बर लंदन पहँु चने के बारे म= सोच रहे ह(गे, और कहाँ गहरे सागर का काला अंधेरा!
ू
टे िलफ़ोन क घंट. बजी। वमल महाजन क तंिा टट.। फ़ोन घर से था। रं जना भी अण के िलए परे शान थी।
शाम के सात बज गए थे। याऽय( के नाते-Bरँतेदार( के टे िलफ़ोन( का तांता लग गया था। अब तो लोग एअरपोट
पर इकठे हो चुके थे। सबके मुँह पर एक ह. सवाल था,
'कोई ख़बर आई?' सब मन-ह.-मन अपने संबंिधय( क ख़ैर क ूाथ
ना कर रहे थे। उन सबक भावनाओं के तूफ़ान को सँभाल पाना एअरलाइन के कम
चाBरय( के िलए क7ठन
पड़ रहा था। वमल महाजन ःवयं सबको तसIJलयाँ दे रहे थे। लंदन से वःतृत समाचार क ूतीZा हो रह. थी।
पी का फ़ोन 7फ़र आया। "आप एक बार घर आकर खाना खा जाते।" उह(ने अपनी झुंझलाइट रं जना पर ह. उतार द.।
ऐसे म= भला कोई खाने के वषय म= कैसे सोच सकता है ? 7कंतु नह.ं, उनके मातहत एक-एक करके अपने पेट को खूब शांत कर आए थे। केवल वमल महाजन ःवयं लोग( को
7दलासा दे ने म= यःत थे। टे लेSस से समाचार आ रहे थे। लंदन से सर मील दरू आकाश म= एक धमाका हआ
ु था और वमान सागर म= खो गया था। यह भी 7क नौकाएँ
और पनडु Iबयाँ खोज के िलए भेजी जा रह. ह; । वमल महाजन यंऽवत अपना काम 7कए जा रहे थे। िनQय हो गया था 7क कोई नह.ं बचा इस दघ
ु टना म=।
जहाज़ के ान वबम िसंह वमल महाजन के िमऽ थे। बंबई म= जब कभी इकठे होते तो दोन( खार Iजमखाना म= शाम= बताया करते थे। ॄज दोन( का ूय खेल था। पर
वमल महाजन कभी पैसे लगाकर ताश नह.ं खेलते थे। कान वबम िसंह सदा ह. उह= 'प(गा पं7डत' कहकर िचढ़ाते थे। छ: मह.ने म= ह. Bरटायर होने वाले थे। पर अब जैसे
कुछ भी शेष नह.ं रहा था! न ॄज, न प(गा पं7डत कहने वाला उनका दोःत।
लाइट परसर अिन सेन क तो केवल छ: मह.ने क बेट. है जब उनक पी को यह समाचार िमलेगा तो वह कैसे सहन कर पाएगी इस वळपात को? कई बू-म=बर
एअरपोट
पर इकठे हो गए थे। वमल महाजन ने कुछ लोग( को घर( म= जाकर सूचना दे ने का काम सपा। बहत
ु क7ठन काम था, वे जानते थे। समाचार सुनकर घर के
सदःय( क ूित7बया सोचकर उनका 7दल बैठा जा रहा था। कैसे कह= गे एक पी को 7क उसका पित अब कभी नह.ं लौटे गा? कैसे कह= गे एक बmची को 7क तुfहारे पापा अब
कभी भी तुfहारे िलए 'िमक माउस' और 'डोनाJड डक' के Iखलौने नह.ं लाएँग?े
दो 7दन( से फाका करते, सड़क के 7कनारे पर बैठे ननकू को भी कह.ं से ख़बर लग गई थी। पोिलयो मःत हाथ से सींगदाना चबाते हए
ु उसने अपने साथी पीटर को ख़बर
सुनाई थी, "यार, यह वमान अगर िगरना ह. था, तो साला समुि म= Sय( िगरा? सोच, 7कतनी ब7ढ़या-ब7ढ़या चीज़=-वी.सी.आर., ट..वी., सोना, सा7ड़याँ सब-के-सब बेकार! यह.ं कह.ं
अपने शहर के आसपास िगरता तो कुछ तो अपने हाथ भी लगता।"
"ए मैन, अभी धंधे का टाइम है । खाली पीली टाइम वेःट करने का नह.ं Sया... हाँ भाई, गॉड का वाःते इस ग़र.ब को भी कुछ दे दो। जीज़स बाइःट भला करे गा।"
एअरलाइन के हे ड Sवाट
र म= कई मी7टं ग= हई।
ु तय हआ
ु 7क वदे शी नागBरक( का वहाँ के कानून के अनुसार मुआवज़ा 7दया जाएगा और भारतीय( को भारतीय कानून के
अंतग
त। रं गभेद का यह भी एक Pप था, चमड़.-चमड़. म= फ़क
जो है ।
वमल महाजन ने ूःताव रखा 7क एक वमान 'चाट
र' 7कया जाए और मरने वाल( के िनकटतम संबंिधय( का लंदन भेजा जाए, Iजससे वे अपने ूयजन( क लाश= तो पहचान
सक=। उmच अिधकBरय( ने ःवीकृ ित दे द.।
'बू यूिनयन' ने ू8येक मृतक बू-म=बर के पBरवार के िलए एक-एक लाख पया दे ने का फ़ैसला 7कया था। वमल महाजन को झटका-सा लगा जब रमेश कुमार के पता उनसे
िमलने दतर पहँु चे।
"िमःटर महाजन, म; रमेश का पता हँू । आजकल म; और मेर. पी तलाक लेकर अलग-अलग रह रहे ह; । आपको याद होगा 7क पछले बैश म= मेर. बेट. नीना क मौत हो गई
थी। उस समय भी एअरलाइन और बू-यूिनयन ने मुआवज़ा मुझे ह. 7दया था। म; चाहता हँू 7क अब भी मेरे बेटे और बहू क मृ8यु का मुआवज़ा मुझे ह. िमले। इससे पहले
7क मेर. पी इसके िलए अज़ दे , म; आपके पास अपने Sलेम क यह अज़ छोड़े जा रहा हँू ता7क आप इसाफ़ कर सक=। म; तो अब बूढ़ा हो चला हँू । कमाई का अब और
कोई ज़Bरया है नह.ं।"
"ठक है , आप अज़ छोड़ जाइए। समय आने पर उस पर वचार 7कया जाएगा।"
"बड़. कृ पा होगी आपक। नह.ं तो इस उॆ म= कोट
कचहर. जाने क तो शर.र म= ताक़त नह.ं रह गई। चलता हँू ।"
वमल महाजन 7कंकत
यवमूढ़ से कुस पर बैठे थे।
िशनाउत के िलए संबंिधय( को लंदन ले जाने क पूर. Iज़fमेदार. वमल महाजन को ह. सपी गई। लंदन जाने के िलए संबंिधय( का तांता लग गया था। वमल महाजन तय
नह.ं कर पा रहे थे 7क 7कसे भेज,= 7कसे रोक=। हर Bरँतेदार अपना Bरँता अिधक नज़द.क बताता था ।
लंदन जाने के िलए वमान तैयार था। रोते-कलपते Bरँतेदार( के बीच वमल महाजन को ःवयं को संयत रख पाना काफ़ मुIँकल लग रहा था।
िमसेज़ वाडे कर क 7हच7कयाँ अभी भी जार. थीं। उनका बेटा वदे श से बंबई केवल ववाह करने के िलए आ रहा था। उह= Sया पता था लंदन जाना पड़े गा, डोली के ःथान पर
अथ लेन।े "म; तो अपने बेटे को दJहा
ू बनाकर ह. वदा कPँगी।" िमसेज वाडे कर वIZ अवःथा म= बड़बड़ाए जा रह. थीं।
ु
मगनभाई क बीस वषया पोती वदे श से अकेली आ रह. थी। उसके पता को छट. नह.ं िमल पाई थी उसके साथ आने के िलए। Iखड़क के पास बैठे हए
ु वे जैसे शूय म=
दे ख रहे थे।
दो-दो मौत( का बोझ िलए द.पंदर वमान म= बैठा था। पछले साह ह. उसके पता का दे हाँत हो गया था और उह.ं के अंितम संःकार के िलए उसका भाई सुSखी अमेBरका
से आ रहा था। द:ु ख म= सब एक थे। 7कसी का भी कोई धम
, मज़हब नह.ं था। सुख म= था भी तो आतंकवा7दय( को उससे कोई लेना-दे ना नह.ं था। वह हर धम
वाले को
अपनी पशुता का िशकार बना लेते ह; ।
व_-भर से अलग-अलग एज=िसय( ने एटलां7टक म= खोजबीन शुP कर द. थी। पहले वमान के कुछ Zितमःत 7हःसे िमले। 7फर वIZ लाश= िमलनी शुP हई।
ु लाश( को जैसे
7कसी ने उधेड़ 7दया हो, िचंद.-िचंद. हए
ु शर.र। लाश= पहचानना भी बहत
ु क7ठन काम था।
लंदन म= सभी Bरँतेदार( के रहने, खाने-पीने क यवःथा एयनलाइन क ओर से मुत क गई थी। वमल महाजन सभी काय
बड़. त8परता से िनभा रहे थे। ःवयं उह= अपने
खाने-पीने और सोने का भी cयान नह.ं था। वंिचत लोग( क सेवा करके संभवत: वे ःवयं को संतु करना चाहते थे। उनका यह. ूय था 7क 7कसी भी याऽी को कोई
िशकायत या असुवधा न हो।
एक याऽी वमल महाजन तक पहँु चा, "िमःटर महाजन, खाना-पीना तो ठक है , पर हम= आप कुछ अलाउं स वगैरह भी 7दलवाने का ूबंध करवा द= तो अmछा होगा। हम सब
इतनी जJद. म= आए ह; 7क एफ़.ट..एस. का ूबंध नह.ं हो पाया। कम-से-कम इतना रोज़ाना भा तो हम= िमलना चा7हए, Iजससे हम= कह.ं बाहर आने-जाने म= मुIँकल न हो।"
वमल महाजन है रान!
शीला दे शमुख के पता 7कसी सरकार. महकमे म= उmच अिधकार. थे, "महाजन साहब, हमार. बेट. ने तो एअरलाइन के िलए जान दे द.। उसके बदले म= आप हम= Sया द= गे? चंद
पए। इस बुढ़ापे म= हम उन §पय( का Sया कर= गे? हमार. दसर.
ू बेट. अमेBरका म= रहती है । हम चाहते ह; 7क जब तक हम Iजएँ, मुझे व मेर. पी को हर वष
अमेBरका आने-
जाने का मुझत 7टकट िमले, म; िमिनःटर सा7हब से भी इस वषय म= बात कPँगा।"
लंदन के वSटोBरया अःपताल का एक 7हःसा। वहाँ लाश= इकठ क गई थीं। लाश=! लाश=!! गहरे नमकन पानी म= से िनकाले गए वकृ त शर.र। कौन कैसे पहचान कर
पाएगा! भगवान ने 7कतनी दद
नाक मौत िलखी थी कुछ इसान( के िलए! नवजात िशशु से लेकर सर वष
तक क बूढ़. लाश=। कह.ं हाथ ग़ायब है तो कह.ं टाँग नदारद। कह.ं
केवल धड़ ह. है -ऊपर और नीचे के दोन( ह. 7हःसे गायब। 7कसी क अंगूठ पहचानने क कोिशश क जा रह. थी, तो 7कसी का लॉकेट।
चेहर( पर िनराशा साफ़ 7दखाई दे ने लगी थी। 7कसी भी और लाश को पहचानना लगभग असंभव-सा लग रहा था। फ़ैसला 7कया गया 7क सभी लाश( का सामू7हक 7बया-कम
वमल महाजन धfम से कुस पर बैठ गए। Bरँतेदार( क 7दSकत= दरू करते, ॄ7टश सरकार व एअरलाइन अिधकाBरय( से संपक
व बातचीत करते उनका शर.र व 7दमाग दोन(
क थक गए थे। उस पर इतनी सार. लाश( का सामू7हक 7बया-कम
, उह(ने आँख= मूँद लीं।
"िमःटर महाजन!"
"जी।" उह(ने आँख= मूँदे ह. पूछा।
"आपसे एक सलाह चा7हए।"
"क7हए।" नेऽ खुले।
"Iजस काम के िलए आए थे, वो तो हो गया। ज़रा बताएँगे, य7द शापंग वगै़रह करनी हो तो कहाँ सःती रहे गी? नए ह; न..."
उसके आगे बात सुनने क ताक़त वमल महाजन म= नह.ं थी।
हाउं सलो हाइ ःश.ट पर पचास-सौ क िगनती बढ़ने से कोई वशेष अंतर नह.ं पड़ता। हर काम यथावत जार. है । 7डSसंज़, बूस, माSस
, वुलवथ
हर जगह कुछ अनजाने चेहरे
7दखाई दे रहे थे। कल सुबह तो वापस बंबई चले जाना है । सभी यथासंभव सामान बटोरने म= लगे थे।
लंदन म= गिम
य( म= भी सूय-
दे वता आँख िमचौली खेलते रहते ह; । आज उह(ने पूण
वौाम करने का िनण
य ले िलया है । बादल आसमान म= चहलकदमी कर रहे थे। एअरपोट
पर एअरलाइन के काउं टर पर भी जो नज़ारे थे, वे कुछ कम Zोभ पैदा करने वाले नह.ं थे। सभी याऽी अिधक-से-अिधक सामान के साथ 'चेक-इन' करने क कोिशश कर रहे
थे। काऊंटर Sलक
शौकत अली जी को समझा रहा था।
"िमःटर, पmचीस 7कलो का तो आपका ट..वी. ह. है । कुल िमलाकर साठ 7कलो वज़न है आपके सामान का। और ह; डबैग अलग। आप केवल बीस 7कलो सामान ले जा सकते
ह; ।"
"मगर म; तो यहाँ अपने भाई क लाश पहचानने आया हँू । हमारा केस फ़क
है ।"
"यह भाई क मौत का वज़न से Sया संबंध है ?" एक बार 7फर वमल महाजन को ह. जा कर अनुरोध करना पड़ा। Zुध वमल महाजन जैसे-तैसे सबको समझाकर याऽय( को
'चेक-इन' करवा पाए।
गदगी
ं का ब'सा
लदन म= 7हमपात हए
ु तो एक असा
बीत चुका है । लदनवासी अब बफ़
दे खने के िलए ःकॉटल;ड या अय उर. शहर( क ओर जाते
ह; । सफेद 7बसमस तो अब 7कताब(, काड, या लोग( क याद( म= ह. 7दखाई दे ता है । 7कतु जया और 7दलीप के Bरँतो म= जो ठoडापन
पैठ गया है , वह जमीं हई
ु बफ़
से कह.ं अिधक सद
और भयावह है !
आज लगभग दो वष
होने जा रहे ह; । 7दलीप ने काम धाम छोड़ रखा है । घर म= भी शराब और शाम को 'पब' मे भी शराब। नाँते और
भोजन मे केवल शराब ह. शराब। ऐसा Sया दख
ु है 7दलीप को? वह Sय( नह.ं समझ पा रहा है 7क उसके इस यवहार से जया को
7कतना दख
ु पहँु च रहा है ? वह बेचार. 7दन भर नौकर. करती है , घर आ कर अपनी बेट. पलक क पढ़ाई म= सहायता करती है , और रात
को भोजन बना कर 7दलीप क ूतीZा करती है । अब तो ूतीZा करना भी बद कर 7दया है ।
"मोह माया को 8याग दो! जीवन का एक cयेय बना लो, 7क जानते बूझते 7कसी भी ूाणी का 7दल नह.ं दखाओगे
ु । बस स8कम
करते
रहो। फल क िचता मे समय यथ
ना करो। काम और वासना के पीछे भागना छोड़ दो। यह शर.र गदगी का बSसा है । ूकृित ने
वासना के िलए उपयु अंग( को मलमूऽ बाहर िनकलने का राःता भी बना 7दया है । गदगी से बचो। अmछे कम
कभी यथ
नह.ं
जाते।" गु जी क बात=, जया के 7दमाग को मथती रहती है ।
ु
आजकल जया ःवाcयाय के स8संग म= चली जाती है । कुछ समय के िलए ह. सह., शर.र और उस से जुड़. समःयाओं से छटकारा -सा
िमलता द.खता है । "जो सुख म= सुिमरन करे तो दु:ख काहे को होये?" इस बात का जया के पास कोई उर नह.ं। जीवन क गित शुP-
शुP म= इतनी तीो थी 7क उसके पास ःथूल बात( के अितBर 7कसी भी वचार के िलए समय नह.ं था। सूआम को जानने या समझने
के िलए समय ह. कहाँ था?
राज ह. एक ऐसा य है Iजसके साथ हर वषय पर बातचीत कर लेती है । वषय चाहे सूआम हो या ःथूल, राज के पास जैसे हर ू¢
का उर मौजूद रहता है । वह कई बार सोचती भी है 7क य7द 7दलीप और इसके बीच एक खाई-सी न बन गई होती तो Sया राज उसक सोच के दायरे म= कदम भी रख
सकता था? राज शराब नह.ं पीता, माँस नह.ं खाता, िसगरे ट से भी परहे ज, 7फर तfबाखू का तो सवाल ह. कहाँ उठता है ! Sया यह.ं कारण है 7क जया राजन के साथ समय
बता कर थोड़ा हJका महसूस कर लेती है । केवल इतना कारण ह. तो नह.ं हो सकता। जया सदा ह. 7दलीप म= एक िमऽ तलाशती रह., 7कतु वह िमऽ उसे राज म= ह. िमला।
पित पी एक दसरे
ू के िमऽ Sय( नह.ं बने रह पाते? ले7कन jयोित और दZा के भी तो ूेम ववाह ह. हए
ु थे। जब भी उनसे बात करती है , तो उनके मन म= भी यह. परे शानी
पाती है 7क ववाह के बाद उनके पित केवल पित ह. बन कर रह गए ह; । िमऽ न जाने कहाँ खो गए ह; । परतु उन दोन( के पित अपने यापार म= जुते होने के कारण अपनी-
अपनी पIय( के िमऽ नह.ं बन पाते। 7दलीप क तरह समय को शराब म= नह.ं बहाते रहते।
जया ने राज से ह. तो ू¢ 7कया था, "राज, Sया वाःतव म= जीवत रहते, मोह माया से मु िमल सकती है ? तुमने कैसे इतनी आसानी से अपने जीवन क आवँयकताओं को
इतना सीिमत कर रखा है ? म; Sय( ऐसा नह.ं कर पाती?"
"जया, म;ने एक घटना राजा जनक के बारे म= पढ़. है । वे राजा होते हए
ु भी एक सयासी थे। राजशाह. के बावजूद उनके दरबार म= काफ हद तक लोकतऽ मौजूद था। उनके
दरबार मे 7कसी ने ू¢ 7कया 7क ऐ राजन, तुम संसार के सभी सुख भोग रहे हो, राजा हो, चांद. के बत
न( म= भोजन करते हो, सोने के पलंग पर सोते हो और 7फर भी चाहते
हो 7क हम मान ले 7क तुम मूलत: सयासी का जीवन जी रहे हो? यह कैसी राजनीित है ?"
राजा जनक कुछ दे र वचार करते रहे । एकाएक उह(ने आदे श 7दया 7क ऐसा ू¢ करने वाले को दो 7दन पQात फाँसी पर लटका 7दया जाए। भला राजा क आwा का
उJलंघन कैसे हो सकता था। उस य को कारागार म= पहँु चा 7दया गया। 7कतु कारागार म= उसे मखमली बःतर 7दए गए, भोजन के िलए नाना ूकार के यंजन 7दए गए,
पBरचाBरकाय= उसे उबटन लगा कर ःनान करवाने के िलए आई। जीवन का हर सुख जो वह य सोच तो सकता था 7कतु महसूस नह.ं कर सकता था, उसे 7दया गया।
और दो 7दन पQात उसे राजा जनक के दरबार म= लाया गया। राजा जनक ने उस य से पूछा 7क ऐ महानुभाव तुfह= फांसी तो अभी लग ह. जाएगी, 7कतु तुम से एक
ू¢ करना चाहता हँू । पछले दो 7दन( म= तुमने जीवन का हर सुख भोगा। Sया तुfह= याद है 7क तुम ने भोजन म= Sया Sया यंजन खाएँ? Sया तुfह= याद है 7क उस मखमली
चादर का रं ग Sया था Iजस पर तुम सोये थे। उस पBरचाBरका का चेहरा या नाम याद है Iजस ने उबटन लगा कर तुfह= ःनान करवाया था। वह य आँख= नीची 7कए बोला,
"राजन, मुझ पर तो मृ8यु क तलवार लटक रह. थी। भला म; उन सुख( का आनंद कैसे ले सकता था।"
राजा जनक ने शांत ःवर म= उर 7दया, "मेरे िमऽ, ठक उसी तरह म; भी इन सुख( को भोग नह.ं पाता। म; भी मृ8यु से आतं7कत हँू , म; जनता के दख(
ु से पी7ड़त हँू । मेरे िलए
इन सुख( का कोई अथ
नह.ं ह; ।" यह कह कर राजा ने उस य क फांसी क सज़ा माफ़ कर द.।
जया एकटक राज क बात= सुनती जा रह. थी। 7कतने सुदर ढं ग से उसक हर बात का उर दे ता है यह इसान। 7कतना सरल 7कतु 7कतना क7ठन था उसका ू¢। और
राज ने उस ू¢ का उर दे ने के िलए अपनी संःकृ ित म= से ह. कथा खोज ली। वह राज से पूछ बैठती है , "राज, तुम अपना एक आौम Sय( नह.ं खोल लेत।े Iजतनी अmछ
बात= तुम कर लेते हो, Iजतना अपने आप हर तुfहारा िनयंऽण है , उस 7हसाब से तो तुfह= ःवामी जी होना चा7हए। तुfह= संसार को अपना सारा wान बाँटना चा7हए।" राज बस
मुःकरा भर दे ता।
मुःकुराहट ह. तो जया के जीवन से गायब हो गई है । 7दलीप से ववाह अपने आप म= उसके जीवन के िलए एक मह®वपूण
घटना थी। उसका चार फुट दस इच का दबला
ु
पतला शर.र, सपाट सीना, दे खने म= भी कह.ं Mलैमर का नामोिनशान नह.ं। उस पर पढ़ाई िलखाई के शौक ने बचपन से ह. आँख( पर चँमा चढ़वा 7दया था। माँ बाप को बस
एक ह. िचता 7क बेट. का ववाह होगा तो कैसे! जया को बार बार यह याद 7दलवाया जाता था 7क उसक साधारण शSल और सूरत के कारण ह. दे खने वाले नापसद कर
जाते ह; । घर क एलबम म= से जया के सभी िचऽ एक एक कर लड़के वालो के यहाँ पहँु च चुके थे। अब तो उसे फोटोमाफर क दकान
ु पर जाना भी अखरने लगा था। 7दलीप
ने तो उसे बना दे खे, बना िमले ह. ववाह कर िलया था। जया ने तो मन ह. मन तय कर िलया था 7क सारा जीवन ऐसे पित क सेवा करे गी Iजसने उसे अपने ह. पBरवार
क चुभती हई
ु िनगाह( के ू¢( से बचा िलया। वह अपने 7दलीप के साथ ह. िचऽ Iखंचवाया करे गी।
िचऽ भी समय के साथ-साथ धुंधले पड़ जाते ह; । हर समय एक ह. अपनी सmचाई होती है । जया को भी शनै: शनै: मालूम होता गया 7क 7दलीप ने उससे बना िमले ववाह
Sय( कर िलया था। उस सmचाई ने उसके शुआती सपन( को आहत कर 7दया था। 7दलीप को वनो7दनी के माता पता ने ःवीकार नह.ं 7कया था। वनो7दनी ने घर से
भागकर ववाह करने से इकार कर 7दया था। य7द वनो7दनी नह.ं तो कोई भी चलेगी। माँ को ूसन ह. तो करना है । इसी कारण 7दलीप और जया के सfबध( म= कोई
कोमल ततु जुड़ नह.ं पाया। उनका िमलन केवल शार.Bरक ह. था। उनक आ8माय= कभी एक नह.ं हो पाई। शर.र िमलने के पBरणाम ःवPप पलक का जम भी हो गया।
7कतु 7दलीप को न तो कभी जया म= कोई वशेष िच थी और न ह. पलक म=।
पलक अभी एक वष
क ह. रह. होगी 7क 7दलीप के भाई ने उह= लदन आ कर बसने क दावत द.। 7दलीप को इसम= भी कोई िच न थी। 7कतु जया को लगा शायद
लदन जा कर 7दलीप का यवहार बदल जाए। ठक सोचती थी जया। 7दलीप का यवहार बदल ह. तो गया है । न जाने परमा8मा को Sया मंजूर है !
"परम पता परमा8मा मे व_ास क तीन Iःथितयाँ ह; । हर य परमा8मा म= व_ास करता है अपने संःकार( के 7हसाब से। एक ईसाई जब कभी ूभू के बारे म= सोचेगा तो
ःवयंमेव ह. यीशू का चेहरा उसक आँख( के सfमुख आ जाएगा। एक मुसलमान अJलाह के अितBर परमा8मा के वषय म= सोच ह. नह.ं सकता। 7हदु भी शंकर, वंणु, राम
और कृ ंण म= अपना भगवान खोजता है । य7द आय
समाजी है तो $ म= अपना ूभू ढँू ढ़ेगा। 7कतु इनम= से कोई वरला ह. ऐसा होगा जो अपने पBरवेश से आगे बढ़ कर
परमा8मा के वषय म= सोच पाए। तक़
क ¯ से सोचा जाए तो धम
मनुंय क सोच को सीिमत कर दे ता है ; उसे अcया8म क राह पर जाने के अय माग से वमुख
करता है ।"
"7कतु राज इसम= ग़लत ह. Sया है । जो य Iजस राह से वा7कफ़ है वह. राह तो चुनेगा।"
"ू¢ राह चुनने का नह.ं ह; जया। वडfबना यह है 7क मनुंय उस राह का ह. पुजार. हो जाता है जो 7क उसे परमा8मा तक ले जाती है । परमा8मा को भूल जाता है । धम
"दे खो जया तुfह= एक उदाहरण दे ता हँू । एक य एक रे ःटॉरे oट म= भोजन करने जाता है । वह एक पBरवेश म= जा कर बैठता है । सबसे पहले बेयरा उसके पास आ कर मेनू
काड
रख जाता है । वह उस मेनू काड
को पढ़ता है और यंजन( के नाम पढ़ कर ह. उसे महसूस होता है 7क उसे ःवा7द भोजन िमलने वाला है । उसके मुँह म= पानी आने
लगता है । उसक Iःथित ठक उस य जैसी है Iजसे केवल बताया गया है 7क भगवान म= व_ास करो। य7द उसम= व_ास करोगे तो ःवग
िमलेगा अयथा नरक म= वास
करना होगा। वह य या तो डर के कारण भगवान म= व_ास करता है या 7फर लालच के कारण। उसने ःवयं भगवान के अIःत8व को महसूस नह.ं 7कया है । दसर.
ू Iःथित
है उस य क जो 7क रे ःटॉरे oट म= बैठे दसरे
ू माहक( को भोजन करते दे खता है और उनके चेहरे के हावभाव दे ख कर अदाज़ लगाता है 7क भोजन 7कतना ःवा7द होगा।
यािन के वह अपने आसपास के लोग( को परमा8मा क पूजा कर उह= आI8मक आनंद लेते दे खता है । अभी भी उसे ःवयं यह wात नह.ं है 7क भोजन का असली ःवाद Sया
"राज, तुम अपने wान को लोग( म= बाँटते Sय( नह.ं? संसार को हक है 7क सब तुfहार. बु, तुfहारे wान का लाभ उठा सके।"
"अभी तो म; ःवयं ह. अwान के अधेरे म= भटक रहा हँू । म; ःवयं परमा8मा के साथ अपना तारतfय नह.ं बना पाया हँू । भला, म; कैसे 7कसी को जीवन क राह 7दखा सकता
हँू ?"
राह से तो भटक रह. थी जया क पलक। 7दलीप के असंतुिलत यवहार के चलते, एक पलक ह. तो थी Iजसके होते जया को जीने का कारण िमल जाता था। आज वह. जया
को दख
ु दे ने पर उताP थी। कम से कम जया तो यह. सोचती थी। पलक एक मुसलमान लड़के से ूेम कर बैठ थी। जया का तो समःत संसार डगमगा सा गया था। जया
के 7दमाग म= मुसलमान( को लेकर बहत
ु -सी गाँठ= थीं। लदन के सुाइज रे 7डयो पर भी जब कभी अपराध के समाचार आते तो अिधकतर उनम= मुसलमान लड़क( के ह. नाम
सुनाई दे ते थे। जया क अपनी ममेर. बहन मुंबई म= एक मुसलमान लड़के से ववाह कर घर से भाग गई थी। सारा पBरवार सकते म= आ गया था। उनके Zेऽ म= दं गा होते
होते बचा था। िशवसेना और मुIःलम संःथाओं के बीच ठन गई थी। राजनीितw( के बीच बचाव से ह. दं गा क पाया था। मामा जी तो यह सदमा सह नह.ं पाए थे। मामी ने
"अपने पित क ह8याBरन" से आज तक बात नह.ं क थी। माफ़ करने जैसी Iःथित तो आई ह. नह.ं।
7दलीप से बात करे या न कर= । कह.ं शराब के नशे म= कोई बेवकूफ न कर बैठे। जवान लड़क का मामला है । 7कस से सलाह करे ? पलक को समझाया भी, परतु जवानी कब
समझदार. का पBरचय दे ती है ? जब र म= गम होती है तो तक
ठoडे पड़ जाते ह; । पलक को तो यह भी समज नह.ं आ रहा था 7क इमरान म= कमी 7कस बात क है । उसके
पता डॉSटर है , उसक माँ ब;क म= काम करती है , और इमरान अपने कालेज का ौेL छाऽ है । 7फर समःया Sया है ?
वह नह.ं समझती 7क इमरान मुसलमान तो है ह. उस पर पा7कःतानी भी है । "पर मfमी, इमरान पा7कःतानी कैसे हो सकता है ? वह तो यह.ं लदन म= पैदा हआ
ु था। जैसे म;
कैसे इIoडयन हो सकती हँू । म; भी ॄ7टश हँू और इमरान भी ॄ7टश है । तो जब दो ॄ7टश शाद. करना चाहते ह; तो ूॉलेम Sया हे ? आई डोoट केयर 7क इमरान 7कस धम
को मानता है । ह. इज नॉट आIःकंग मी टु चेज माई Bरिलजन। और 7फर म= इमरान कौन सा उसके मfमी पापा के साथ रहने वाले ह; । हम लोग तो अपने घर म= रह= ग।े "
हर समःया न जाने राज पर जा कर ह. कैसे दम लेती है । एक बार 7फर जया राज के सामने ह; । य7द 7दलीप उसके अपने पास होता तो Sया वह राज के पास कभी भी
जाती? शायद उसके बारे म= सोचती भी नह.ं। ले7कन वषा
क बेट. ने भी तो ईरानी मुसलमान से ववाह 7कया है । तो 7फर उसक अपनी पलक भला ऐसा Sय( नह.ं कर
सकती? 7कतु ईरान और पा7कःतान के मुसलमान म= भी तो अतर होता है न! जहाँ भारत और पा7कःतान के सfबध( म= तनाव उ8पन होता है वह. पित पी के सfबध(
म= भी कड़वाहट शुP हो जाती है ।
ले7कन वषा
क बेट. भी आजकल हर पाट म= अकेली ह. 7दखाई दे ती है । उसका ईरानी पित न जाने अचानक कहाँ गायब हो गया है । "यह पा7कःतानी भी न जाने कब तक
ु
हमार. Iज़दगी म= कड़वाहट घोलते रह= गे। भगवान म= व_ास रखने वाले पBरवार क बेट. को नमाज़ पढ़ना िसखा द= गे! भारत के टकड़े करवा कर भी यह कहाँ चुप बैठने वाले
ह; । हमार. बे7टय( पर नज़रे गड़ाए बैठे ह; ।" जया के 7दमाग म= मंथन जार. है । उसे डर है 7क भारतीय स±यता नह.ं बचने वाली। यहाँ पैदा हए
ु बmचे भला कहाँ भारतीय
संःकृ ित का बोझ ढो पाएँगे।
"मुझे समझ नह.ं आता 7क तुfहार. संःकृ ित इतनी जJद. खतरे म= कैसे आ जाती है । तुfहार. परे शानी यह है 7क तुम जीवन को यापक Pप म= नह.ं दे ख पाती हो। य7द
दिनया
ु के सभी लोग मुसलमान हो जाएँ या 7फर ईसाई हो जाएँ उससे अंतर Sया होगा। यह अIःमता, यह पहचान, यह संःकृ ित कोई जड़ वःतु नह.ं ह; । यह पBरवत
नशील है ।
इस पृ²वी पर कुछ भी ःथाई नह.ं ह; । अब तुम सोचो Sया सभी मुसलमान एक है ? कोई िशया है तो कोई सुनी, कोई अहम7दया है तो कोई बोर., 7फर आगाखानी भी है और न
जाने 7कतने अय। तुfह= केवल इसी बात से ूसन होना चा7हए 7क दो इसान आपस म= {यार करते ह; और बाक का जीवन इकठे बताना चाहते है । अरे जब यह जीवन
ह. िचरःथाई नह.ं है तो मनुंय Cारा बनाई गई ववाह जैसी संःथा कैसे ःथाई हो सकती है ?" राज पलक क वकालत करता 7दखाई दे रहा था और जया क परे शानी का कोई
हल िमलता नह.ं 7दखाई दे रहा था।
ू
जया टटने लगी है । 7दलीप म= कोई बदलाव आता नह.ं 7दखाई दे रहा। शराब, शराब और बस और शराब। अब तो जया को मारने भी लगा है । ब;क अकाउoट म= से पैसे गायब
हो जाते ह; । मकान क मॉरगेज क 7कँत भी जानी बंद हो गई है । बIJडं ग सोसाइट. क िचठ भी आ गई है 7क 7कँत न 7दए जाने पर कुक¤ करवा द= गे। जया का रचाप
बढ़ गया है । 7दलीप के भाई ने भी पJला झाड़ िलया है । वह बेचारा भी Sया करे ।
जया ने 7हfमत जुटा कर 7दलीप से बात शुP क है , मॉगdज के पैसे कहाँ गए?
- इस बार ज़रा हाथ तंग हो गया था।
- बार म= दे ने के िलए पैसे ह; और मॉगdज के िलए हाथ तंग था। अगर घर हाथ से िनकल गया तो जवान बेट. के साथ सड़क पर रहना पड़े गा।
- बोला न हाथ तंग हो गया था।
- शराब पीने के िलए पैसे होते ह; और मॉगdज के िलए हाथ तंग हो जाता है !
- शट अप यू बच! और शराब के नशे म= धुत 7दलीप के हाथ का िगलास चार फुट क जया के कंधे से टकराया।
न जाने अचानक जया म= कैसे इतनी श आ गई 7क उसने पास रखा कॉड
लेस टे िलफोन उठा कर 7दलीप पर दे मारा। और 7दलीप ने जया को बाल( से खींच कर सोफे पर
पटक 7दया। उसके बाद तो जया पर घूंसे और लात( क बरसात-सी शुP हो गई। शोर सुन कर पलक कमरे म= चली आई। माँ को पटते दे ख घबरा गई। सीधे पुिलस को
फोन 7कया। और पुिलस आ कर 7दलीप को अपने साथ ले गई। माँ छोटे बmचे क तरह िससक रह. थी और पलक एकाएक माँ बन गई थी। जया के बाल( म= हाथ 7फरा रह.
थी। सुबह को होना था, हो गई। नशा उतरने के बाद पुिलस ने 7दलीप को छोड़ 7दया।
- इतना सब हो गया, और तुमने मुझे फोन तक नह.ं 7कया? राज जया के वषय म= िचIतत था।
पचासव= जम7दन पर जया खुशी क जगह सुबक रह. थी। मुंबई का जीवन बस एक 7फJम क तरह उसक आँख( के सामने घूम रहा था। माँ बाप के {यार से लेकर 7दलीप
क मार तक के जीवन के बारे म= सोच रह. थी। राज ने जया का चेहरा अपने हाथ( म= लेकर उसक आँख( म= दे खा। जया उसके कध( पर िसर रख राज से िलपट गई।
- यह शर.र गंदगी का बSसा है । वासना को 8याग दो। गु जी के सभी शद जैसे 7कसी कुँए क गहराई म= से आते ूतीत हो रहे थे। गहराई! हाँ वह पूर. तरह गहराई तक
राज के साथ उतर जाना चाहती है । जीवन ने उसे िसवाय दद
के कुछ और नह.ं 7दया है । आज राज उसके हर दख
ु को सोख कर अपने भीतर उतार लेगा। आज दोन( 7दमाग
से बात नह.ं कर रहे । आज राज और जया के 7दल एक हो रहे ह; ।
शर.र का सुख Sया होता है , यह जया को जीवन म= पहली बार अपने पचासव= जम7दन पर महसूस हआ
ु !
(24 माच
2003 को अिभय म= ूकािशत)
िढबरी टाइट
गुरमीत एकाएक ठहाका लगाकर हँ सा। घर के सभी सदःय चक पड़े । गुरमीत तो लगभग दो वष
से द:ु ख के उस गहरे समुि म= डू ब
चुका था, जहाँ से उसे खींचकर िनकाल पाना शायद क7ठन ह. नह.ं असंभव-सा भी लग रहा था। 7फर वह. गुरमीत, एकाएक बmच( क-
सी ूसनता के साथ हँ सने और नाचने लगा था।
'कर द. साल( क 7ढबर. टाइट, खा गया साल( को, उनक तो माँ...!'
सभी अवाक गुरमीत को दे खे जा रहे थे। 'कह.ं इतने 7दन( क चु{पी से पागल तो नह.ं हो गया?' पर अभी-अभी तो ठक-ठाक था। हाँ,
शायद आजकल गुरमीत का चुप रहना ह. ठक लगता है । वो पुराना Iज़ंदा7दल गुरमीत तो न जाने कहाँ खो गया है । आज जैसे उस
पुराने गुरमीत क राख म= से ह. तो, गुरमीत क हँ सी िनकल कर आई है । यह गुरमीत है या कोई 7फ़िनSस?
घर के सभी लोग टे लीवजन के सामने बैठे थे। वह. पBरिचत-सी राeीय काय
बम क धुन बजी थी और 7फर समाचार क। तब तक तो
गुरमीत के चेहरे पर चु{पी मनहिसयत
ू क तरह िचपक हई
ु थी। 7फर समाचार वाचक ने समाचार पढ़ा, 'आज ईराक फ़ौज ने अचानक
कुवैत पर हमला कर के उसे अपने कज़े म= ले िलया है ' और उससे आगे का समाचार न तो गुरमीत को सुनना था और ना ह. घर का
कोई अय सदःय सुन पाया।
जैसे उमाद का एक दौरा ह. पड़ गया था गुरमीत पर। इराक Cारा कुवैत पर कज़ा जैसे गुरमीत के जीवन क सबसे सुखद घटना
बन गई थी। कह.ं उसके दु:खी और अशांत मन को लगने लगा था जैसे उसने ःवयं ह. कुवैत पर कज़ा कर िलया हो। वह कमरे से
बाहर आया। बी जलाई और सहन म= पड़े दो-तीन खाली 7डब( को ठोकर= मारने लगा। 'यह साला अमीर गया, यह गया बाउन ूंस
ःसाला कहता था - सोने क चादर क कार बनवाऊँगा। भाग गया उJलू का पठा। सब ःसाले भाग िलए, ओये दारजी खुिशयाँ मनाओ
ओये, आज तो जी भर के शराब पयो। ओये ओहां द. तां माँ मर गई ओए, लै गया सौरयाँ नू, करती सालयाँ द. 7ढबर. टाइट!'
हँ सी का जो बाँध उसने अपनी आँसओं के सामने खड़ा 7कया था उसम= दरार= उभरने लगीं और थोड़. ह. दे र म= वह बाँध पूण
Pप से cवःत हो गया, गुरमीत Iजतनी ज़ोर से
हँ सा था उतने ह. ज़ोर से रोने लगा।
दारजी ने बेटे को सँभाला। माँ तो एक साल पहले ह. पुर को छोड़कर ःवग म= 7ठकाना कर चुक थी। गुरमीत अभी भी उमाद म= बड़बड़ाए जा रहा था, 'हण
ु नह.ं छोड़े गा जी,
हण
ु कुछ नह.ं बचेगा। सारे दा सारा गJफ़ तबाह हो जाएगा। दारजी हण
ु ओथे कुछ नह.ं बचना जे।'
दारजी को तो यह समझ नह.ं आ रहा था 7क वे द:ु खी ह( या ूसन! एक ओर तो उनका पुऽ रो रहा था और दसर.
ू ओर ूसनता इस बात क 7क बेटा दो साल के बाद
बोला तो! दो वष
से चु{पी का एक ऐसा आवरण गुरमीत के चेहरे पर चढ़ा हआ
ु था 7क उसके नीचे का दद
7कसी को 7दखाई ह. नह.ं दे पाता था। गुरमात कुछ बोले, तभी तो
दद
7दखाई दे ।
दद
भी तो उसने ःवयं ह. मोल िलया था। अmछा ख़ासा घर था, खेती-बाड़. थी, यह सब छोड़कर गया ह. Sय( वह? अिधक पाने क चाह म= जो कुछ था वह भी लुट गया।
मनुंय संतु Sय( नह.ं रह पाता? Sय( अिधक से अिधक पा लेना चाहता है !
गुरमीत के भी कई िमऽ वदे श हो आए थे। हर एक के पास वदे श क अलग-अलग रसीली कहािनयाँ थी। वहाँ क कार( क दाःतां, 7डपाट
म=ट ःटोर, सोने क दकान=
ु , न जाने
Sया-Sया, सब के सब गुरमीत को अपनी ओर आकष
त कर रहे थे। नह.ं तो गुरमीत को Sया कमी थी। कुछ असा
पहले ह. उसने कुलवंत कौर से ववाह 7कया था। खेत( क
मुंडेर( पर पला {यार ववाह के बंधन म= बँध गया था और 7फर गभ
वती पी और सभी पBरवारजन( को छोड़कर गुरमीत कुवैत चला गया।
उसे तो केवल तरसेमलाल को 7दखाना था 7क वह भी वदे श जाने क कुवत रखता है । तरसेमलाल तो केवल आठवीं पास है , 7फर भी दे खो कैसे दबई
ु म= नौकर. का जुगाड़
बना िलया और आज उसका घर दे शी-वदे शी चीज़( से भरा हआ
ु है । कौन कहे गा 7क तरसेमलाल का पता मूंगफली और गजक बेचकर गुज़ारा करता था। 7फर गुरमीत के यहाँ
तो वैसे ह. खुशहाली है और वह तो Mयारहवीं पास भी है ! शै Sटर चलाता हआ
ु Sया बांका जवान लगता था।
बस कर िलया िनण
य - म; भी वदे श जाऊँगा। दारजी या बड़े भाई के समझाने का कोई असर नह.ं। बस एक ह. जी । हठला तो बचपन से ह. था। पहँु च गया एक शै वल
एज=ट के पास।
शै वल एज=ट भी तो सपन( के सौदागर होते ह; । वदे श के ऐसे रं गीन सपने बेचते ह; 7क सपने ख़र.दने के िलए इं सान घर-बार भी बेचने को तैयार हो जाए। इह.ं सपन( ने
गुरमीत के 7दल म= भी वदे श जाने क इmछा को द.वानेपन क हद तक भर द. थी।
गाँव म= गुरमीत का घर हमारे घर से कोई अिधक दरू नह.ं है । अब तो उसे एक गाँव कहना भी ठक नह.ं होगा। अनाज क बड़.-सी मंड. है और एक छोटे से शहर क
लगभग सभी सुवधाएँ वहाँ मौजूद ह; । हम दोन( के पता अmछे िमऽ ह; । मेरे पताजी क एक 7डःप=सर. है वहाँ। अmछ खासी ूेISटस है । गुरमीत के पता सरदार वरयाम
िसंह का नाम बड़े 7कसान( म= िलया जाता है ।
गुरमीत जब कुवैत गया था तो पहले मेरे ह. पास बंबई आया था, "वीर जी, कमाल है ! इतना बड़ा जहाज़ और कहते ह; एयर बस! ओए भला ऐ Sया बात होई जी? भाई जहाज़
जहाज़ है और बस बस! हम= वेवकूफ़ Sय( बनाते ह; , भराजी, मेरे तो पेट म= खलबली मची रह. जब तक जहाज़ बंबई म= आकर उतर नह.ं गया। पर वीरजी पंड वाले (गाँव वाले)
आपक भी बहत
ु तर.फ़= करते ह; जी। हर आदमी इको ह. गल (बात) करता है 7क डॉSटर जेतली दा पुर बJकुल नह.ं बदलया। दे खो हवाई जहाज़ चलाता है पर अकड़
बJकुल नह.ं।"
गुरमीत धारा ूवाह बोले जा रहा था। मेर. पी तो शहर क है - ख़ास बंबई शहर क। म; कभी गुरमीत क ओर दे खता और 7फर अपराधी नज़र( से पी क ओर भी दे ख
लेता। परं तु पी भी गुरमीत क बात( म= आनंद ले रह. थी। गुरमीत क िनQल बात= उसे अmछ लग रह. थीं।
म; ःवयं ह. गुरमीत को कुवैत छोड़ने गया था। एअरलाईन क नौकर. के कुछ तो लाभ भी होते ह; ना।
वहाँ अपने दोःत 7दनेश बतरा से िमलवा भी आया। 7दनेश तो लगभग दस वष से कुवैत म= चाट
ड आकाउं ट= ट है । गाँव के गुरमीत को परदे स म= भी एक जानकार तो िमल ह.
गया था। गुरमीत ने अपने सरल ःवभाव और यवहार से शीय ह. अपने आपको वहाँ सुयवIःथत भी कर िलया था। उसे रहने के िलए 7हJटन होटल के पीछे ह. एक जगह
िमल गई थी। उसने ःवयं ह. यह ःथान पसंद 7कया था। कुछ गाँव के घर( जैसा घर था। आँगन के मुय Cार से घर तक पहँु चने तक ह. तीन िमनट तो चलना ह. पड़ता
था। चार( ओर ऊँची द.वार और बीच मcय म= उसका तीन कमरे का वातानुकूिलत घर! जी जान से मेहनत कर रहा था गुरमीत और वहाँ जगरांव म= कुलवंत ने एक फूल-सी
बेट. को जम 7दया।
ु
लाख चाहने पर भी गुरमीत अपनी पुऽी के जम पर जगरांव नह.ं जा पाया। वदे श म= छट. अपनी मज़ से तो िमलती नह.ं है । इस बीच म; भी गाँव हो आया था। कुलवंत
और गु|ड. को दे ख आया था अब म; ह. तो एक सूऽ था - गुरमीत और उसके पBरवार के बीच।
मेरा एक चSकर कुवैत का 7फर लगा। अब गुरमीत म= कई बदलाव आ चुके थे। अपनी कार म= मुझे लेने आया और दोपहर का खाना सीज़स
रे ःटॉर= ट म= Iखलाने ले गया।
उसके भीतर का बालक अभी भी Iज़ंदा था, 'भराजी, इस परदे स म= तो घर से कोई िचठ आ जाए उसी का तो एक सहारा होता है । यह अजब दे श है जी जहाँ डा7कया ह. नह.ं
होता। बस पोःट बॉSस से आपे ह. िचIठयाँ िनकाल लाओ।' गुरमीत क आँख( म= एक दद
क ट.स-सी उभर.। कुलवंत क याद और बन-दे खी गु|ड. क {यार.-सी शSल
ज़हन म= उभर.। 'आपने तो गु|ड. को दे खा है ना जी? 7कस पर गई है ? फ़ोटो से तो कुछ पता ह. नह.ं चलता।'
मुझे लगा जैसे गुरमीत मेर. आँख( म= कुलवंत और गु|ड. क छव दे खने क चेा कर रहा है ।
'भराजी, म; 7दनेश जी को कम ह. िमलता हँू । बहत
ु पढ़े -िलखे लोग ह; , कई बार तो अपने पर ह. शम
आ जाती है । उनक मfमी तो बहत
ु ह. ब7ढ़या औरत ह; जी। खाना
Iखलाए बना आने ह. नह.ं दे ती और भाभी जी ने तो कुवैत म= तहलका मचा 7दया जी। 7कतना चंगा गातीं ह; जी। 'कुवैत टाइfस' और 'अरब टाइfस' दोन( म= उनक फ़ोटो छपी
थी जी।'
म; बेसाता उस इं सान को दे खे जा रहा था। 7कतना सरल, 7कतना {यारा।
मेरा जब भी कुवैत जाना होता, गुरमीत के पास हर बार कोई-न-कोई नयी कहानी, नया 7कःसा रहता - मुझे सुनाने के िलए। उनम= से आधी से अिधक घटनाओं म= तो केवल
उसके अंदर का बmचा ह. बोलता रहता था। वदे शी चमकली वःतुओं के ूित एक बालक का आकष
ण ःवाभावक ह. था।
वदे श म= अकेले पड़ जाने का ख़ौफ गुरमीत क आँख( म= ःप Pप से 7दखाई दे रहा था। सात समुि पार करके वदे श जाने वाली ललक थी गुरमीत म=। पर एक ह. समुि के
उस पार पहँु च कर उसका 7दल दहल गया था। 7फर कुछ ऐसा भी हआ
ु 7क कुछ मह.न( के िलए कं{यूटर ने कुवैत और मेरे नाम के बीच भी एक समुि भर 7दया। और मेरा
नाम कुवैत क लाइट( पर 7दखाई नह.ं 7दया। इस बीच पऽ( से ह. सूचना िमली 7क गुरमीत गाँव का चSकर लगा आया है और कुलवंत और गु|ड. भी कुवैत पहँु च गए ह; ।
कुलवंत और गुरमीत, साथ ह. कुछ मह.न( क गु|ड.- एक {यारा-सा पBरवार। म; भी यह सोच कर ूसन था 7क चलो दोन( का अकेलापन समा हआ।
ु आIख़र कुलवंत भी
तो इतने पBरवारजन( के बीच अकेली ह. थी। गुरमीत के बना उसे 7कसी और से 7कतना सरोकार होगा। और अब वह. गुरमीत उसके पास था, उसके पास-उसका अपना
गुरमीत। अब कोई गोर. मेम उसके गुरमीत को उड़ा कर नह.ं ले जाएगी। अरब क हूर= भी तो जाद ू जानती ह; - बेचार. कुलवंत!
इकबाल भाई को ईद-मुबारक कहने के िलए टे लीफ़ोन 7कया और चाय क चुःक भरने लगा।
7दनेश का फ़ोन 7फर आया। वह. संयत आवाज़, 'सुरेन तुम कल ह. कुवैत आ जाओ। बहत
ु ज़Pर. काम है । म; एयरपोट
पर तुfहारे िलए वीज़ा लेकर आ जाऊँगा। कम से कम
ु
एक हझते क छट. लेकर आ जाओ। काम बहत
ु ज़Pर. है । गुरमीत को तुfहार. सउत ज़Pरत है ।'
म; हलो-हलो कहता रहा। पर 7दनेश को तो बस सूचना दे नी थी और यह काम वह पहले ह. कर चुका था।
पी क नाराज़गी के बावजूद म; कुवैत क ओर चल 7दया। ना जाने Sया अनबूझ-सा Bरँता बन गया था मेरे और गुरमीत के बीच।
घर से िनकलने क सोच ह. रहा था 7क बाहर फ़ायर इं जन के िचंघाड़ने क आवाज़ आई। पता नह.ं कहाँ आग लगी थी। टै Sसी म= बैठा तो पास से सर
करती हए
ु एँबुल;स
िनकली। राःते म= अंधरे . के ँमशान घाट के सामने से टै Sसी गुज़र. तो शर.र म= झुरझुर.-सी उभर.।
कुवैत पहँु चकर 7दनेश मुझे सीधा अपने घर ह. ले गया। गुरमीत वह.ं पर था। चुप! एकदम चुप! उस हर समय चहकने वाले गुरमीत के ःथान पर जैसे 7कसी ने उसक प8थर
क मूरत बनवा कर रखी द. हो। मुझे दे खकर भी उस पर कोई वशेष ूितबया नह.ं हई।
ु उसक आँख( म= कोई पहचान या ख़ुशी नह.ं उभर.। उस Iज़ंदा7दल गुरमीत को एक
Iज़ंदा लाश बना दे ने के िलए 7कसे कसूरवार ठहराया जाए - िनयित को या...। और म; कुछ भी नह.ं सोच पा रहा था, केवल गुरमीत क एक ह. बात, हथौड़े क तरह, बार-बार
मेरे 7दमाग म= बजे जा रह. थी, 'भराजी, यहाँ क पुिलस बड़. ख़राब होती है जी।'
अगले ह. 7दन म; और 7दनेश गुरमीत को साथ िलए एक बार 7फर उस राःते पर चल 7दए जहाँ सब कुछ घटा था। गुरमीत क आँख( म= फैले आतंक, ख़ालीपन और सूनापन
मुझे उस 7दन क तमाम घटना सुनाते 7दख रहे थे। कुलवंत माँ बनने वाली थी। बेट. के बाद बेटा होने क दोन( को ूबल आकांZा थी। कुलवंत पूरे 7दन( से थी। उसने
गुरमीत को कहा भी, 'सुणो जी, आज कम ते ना जाओ। लगदा है आज हःपताल जाणा पयेगा।'
ु
'ओ भागवाने डरने क Sया गल है ? ये फोन रया है न, बस कर दे णा। म; गोली वांग भजया आऊँ। डर.दा नह.ं ह(दा। कल त( तां ईद 7दयाँ छ7´टया न=।'
ु वह. Iजसका कुलवंत को डर था। ूसव वेदना शुP हो गई। थोड़. दे र तक तो वह सहती रह.। 7फर जब नह.ं सहा गया तो उसने गुरमीत को फ़ोन 7कया। गुरमीत भी
हआ
काफ़ उेIजत था। ूसनता और िचंता क िमिौत भावनाएँ िलए वह अपनी कार क ओर भागा। गु|ड. के जम के समय तो वह कुलवंत से बहत
ु दरू था 7कंतु इस बार वह
कुलवंत के साथ होगा, उसे ःवयं सहारा दे गा। साथी ने बधाई भी द., 'गुरमीत िसंह अब तो ईद पर बेटा होने वाला है । बहत
ु 7कःमत वाला होगा।'
आँख( म= कुलवंत, गु|ड. और होने वाले पुऽ क तःवीर= िलए गुरमीत ने अपनी कार ःटाट
क। घर पहँु चने क जJद. म= गुरमीत ने एSसीलेटर पर अपने पैर का दबाव बढ़ा
7दया। अभी वह 'सी-फेस' पर पहँु चा ह. था 7क पुिलस का सायरन सुनाई 7दया। 7कंतु वह तो अपनी ह. धुन म= गाड़. चलाए जा रहा था। कुवैत टॉवर के पास पहँु चते-पहँु चते
पुिलस क गाड़. ने उसे कने का इशारा 7कया। गुरमीत घबरा गया। न जाने Sया अपराध हआ
ु ु
है उससे। ठJला अरबी भाषा म= िचJलाए जा रहा था और 'ःपीडो मीटर' क
ओर इशारा 7कए जा रहा था। काफ़ क7ठनाई से गुरमीत को समझ आया 7क उसे तेज़ गाड़. चलाने के जुम
म= पकड़ा जा रहा है । उसने अपने सारे कागज़ पुिलस के हवाले
कर 7दए। एकाएक वचार कधा 7क कुलवंत क Sया हालत होगी। अपनी टट.
ू -फूट. अंमेज़ी म= अरबी के शद िमलाकर वह पुिलस वाल( को यह समझाने लगा 7क उसक पी
क '7डलीवर.' होने वाली है और बmचा 7कसी भी Zण पैदा हो सकता है । 7कंतु उसक बात न तो कोई सुन रहा था और ना ह. 7कसी को समझ आ रह. थी।
गुरमीत को ले जाकर कोतवाली म= बंद कर 7दया गया। वह िगड़िगड़ाया, उसने िमनत= क, वाःते 7दए। उसने हर एक पुिलस वाले से बात करने क चेा क 7क शायद 7कसी
को उसक बात समझ म= आ जाए और उस पर दया करके उसे छोड़ दे ।
हम तीन( 7दनेश क कार म= सवार कुवैत टॉवर तक पहँु च गए और गुरमीत क आँख( का दद
जैसे कई गुणा बढ़ गया था। कुछ न कर पाने का अहसास उसे अंदर ह. अंदर
खाए जा रहा था।
ु
गुरमीत को जेल म= डालकर इं ःपेSटर तो ईद क छ7´ट याँ मनाने चला गया। और गुरमीत चार 7दन तक उस जेल क द.वार( से िसर टकराता रहा, िचJलाता रहा, अपनी
कुलवंत को याद करता रहा।
7फर ख़याल आया, कुलवंत के पास 7दनेश जी का घर का फ़ोन नंबर तो ह; । शायद भाभी जी को फ़ोन कर िलया हो। शायद जब वह जेल से बाहर िनकले तो कुलवंत और बेटा
दोन( हःपताल म= सुरIZत ह(। कुलवंत बेचार. गुरमीत क ूतीZा करते-करते दद
से िनढाल होने लगी थी। गाँव क लड़क परदे स म= अकेली। 7हfमत करके 7दनेश बतरा के
घर फ़ोन 7कया। पर वहाँ कोई फ़ोन ह. नह.ं उठा रहा था। जब दद
असµ हो गया तो सलवार उतार कर ज़मीन पर चटाई बछा कर लेट गई। 7फर वचार आया 7क अगर
बmचा ज़मीन पर िगर गया तो वापस जाकर पलंग पर लेट गई। सोचा मोमजामा बछा लूँ। ग़ु|ड. के जम के समय तो उसे कुछ सोचना ह. नह.ं पड़ा था। सब कुछ माँ के
घर ह. हआ
ु था। दद
था 7क बढ़ता ह. जा रहा था। डे ढ़ साल क गु|ड. माँ क हालत दे खकर रोने लगी थी। पर माँ क कराहट= उसके बाल सुलभ मन को पी7ड़त 7कए जा रह.
थीं।
कुलवंत दद
से चीखे जा रह. थी। गुरमीत को भी याद 7कए जा रह. थी और अपनी माँ को भी। जब तक ईद का चांद पैदा हआ
ु कुलवंत बेहोश हो चुक थी। उसे पता ह. नह.ं
चला 7क उसका बेटा हआ
ु या बेट.। बmचा रोया या नह.ं?
गु|ड. भी रोये जा रह. थी। उसक माँ का शर.र खून से लथपथ था और उसके साथ बँधा हआ
ु था एक छोटा-सा नहा मुना। मुना तो रोए जा रहा था। वह भी तो र म=
सना पड़ा था। गु|ड. ने उसे हाथ लगाया तो उसे अपने हाथ म= िचपिचपाहट महसूसू हई।
ु अब वह पूण
Pप से घबरा गई। अपने नह= -नह= कदम( के सहारे दरवाज़े क ओर
भागी। 7कंतु दरवाज़े क िचटकनी तो उस नह.ं सी गु7ड़या क पहँु च से काफ़ ऊपर थी। काफ़ दे र तक दरवाज़ा पीटती रह.। मगर कोई सुन पाता तभी तो खोलता।
अब न तो माँ क कराहट= सुनाई दे रह.ं थीं और ना ह. मुने का रोना। पूरे घर म= एक भयानक-सा सनाटा छाया हआ
ु था। रोते-रोते ह. गु|ड. क भूख तेज़ होने लगी। वह
बेचार. 7ृज खोलने क कोिशश करने लगी। 7कंतु 7ृज था 7क खुल ह. नह.ं रहा था। गुरमीत के सामने जेल म= खाना पड़ा था। वह बेसुध कभी उस खाने क ओर दे खता तो
कभी द.वार( क ओर शूय म= ताकने लगता। और उधर गु|ड. पूरे घर म= कुछ-न-कुछ खाने को खोज रह. थी। आIख़र थक कर चूर हो गई और रोते-रोते सो गई।
ू
गुरमीत हवालदार के पैर छकर िगड़िगड़ा रहा था, एक टे लीफ़ोन करने क अनुमित माँग रहा था। पर 'वहाँ क पुिलस वाले तो बहत
ु ख़राब होते ह; ना जी।' सोते-सोते गु|ड. के
पेट म= मरोड़ ज़Pर उठा होगा। जाकर माँ को जगाने क कोिशश करने लगी। पर कुलवंत तो गहर. नींद म= सो चुक थी। गु|ड. के िलए एक बार 7फर खाना ढँू ढ़ने और रोने
का काम शुP।
अपनी गृहःथी खुद अपने हाथ( से जलाकर गुरमीत वापस आ गया था, दारजी के पास। पर सब कुछ सह जाने और कुछ न कर पाने क अपनी असमथ
ता के कारण गुरमीत
भीतर ह. भीतर घुटता रहा - एक भयानक चु{पी ओढ़े हए।
ु
ू थी जब वह हष¦Jलास से िचJला उठा था- 'कर द. साल( क 7ढबर. टाइट!'
और यह चु{पी आज ह. टट.
चरमराहट
इस समय भी उसे अपना नाम याद नह.ं आ रहा था। उसक आँख( म= आँसू आ गए थे, लाल आँसू! वह कभी उस दरू तक फैले मलबे
ू हए
को दख रहा था, तो कभी सामने बने कmचे-पSके मIदर को। उस टटे ु मलबे म= से रह-रहकर अज़ान क आवाज़= िनकलकर जैसे
हवा म= लहरा रह. थीं। पूरे वातावरण का तनाव रह-रहकर उसक नस(-ना7ड़य( म= घुसा जा रहा था। मIदर म= से आ रह. आरती क
आवाज़ भी उसके तनाव को ढ.ला नह.ं कर पा रह. थी। आस-पास के लोग( के चेहर( पर अव_ास और असुरZा क भावना जैसे गम
आज से लगभग तीस वष
पहले भी ऐसे ह. बदहवास चेहरे उसने दे खे थे। पल भर म= घर के कर.बी िमऽ बेगाने हो गए थे। तब वह
ःकूल म= पढ़ता था। उस समय उसका एक नाम भी था - इिमोहन। ःकूल के िलए इिमोहन ितवार.। अपने नाम से उस बेहद
लगाव था। अंमेज़ी म= अपना नाम बहत
ु मज़े से बताता था- "आय. एम. ितवार."-यािन 7क म; ितवार. हँू और IखलIखलाकर हँ स पड़ता
था।
उस शाम भी वह IखलIखलाकर हँ स रहा था 7क उसके पता ने घायल अवःथा म= घर म= ूवेश 7कया था। उसक माँ तो पागल( क
तरह छाितयाँ पीटने लगी थी। बड़े भैया ने तो लाठ उठा ली थी, "आज दो-चार को तो ढे र कर ह. दँ ग
ू ा।'' पता के शर.र के घाव, भाई
का जुनून, सोडा वाटर क बोतल=, अJलाह-हो-अकबर, सड़क पर बखरा काँच, हर-हर महादे व, छरे
ु बाज़ी से घायल लोग, पुिलस क वद,
पुिलस का डं डा, पानी के फवारे , पुिलस क गोिलयाँ, सायरन, बूट( क ठक-ठक, कझयू
सब याद है उसे ! ःकूल का बद होना, सज़ी का
गा़यब हो जाना, चेहर( पर िचपका हआ
ु डर, 7दमाग़( म= भर. दहशत, अपन( का बेगा़नापन, बेगा़न( का अपनापन, कुछ भी नह.ं भूला है
उसे। 7फर उसका नाम!
बाबू जी क डांट-फटकार ने उसके फ़ैसले को और भी मज़बूत बना 7दया था। बड़ा होते ह., उसने अपना नाम बदलने का जो ूण िलया था उसे पूरा करने का समय आ गया
था। उसे लगा था 7क नाम उसका अपना है , वह जब चाहे , जैसे चाहे अपना नाम बदल लेगा। नाम बदलना ऐसा कौन-सा मुIँकल काम है ।
नाम बदलना नाम कमाने से कम मुIँकल काम नह.ं है । कचहर. के चSकर, गज़ट म= नाम िनकलवाना और समाचार पऽ म= इँतहार दे ना-यह सब करना पड़ा तब कह.ं जाकर
वह आई.एम.ितवार. से आई.एम.7हदःतानी
ु बन पाया। हाँ, यह. उसका नया नाम था। अब वह 7कसी को अपने नाम आई.एम.का अथ
नह.ं बताता था। वह चाहता था 7क सब
लोग उसे केवल 7हदःतानी
ु कहकर पुकार= । 7हदःतानी
ु या 7फर िमःटर 7हदःतानी।
ु उसने ूण कर िलया था 7क 7कसी को भी अपना धम
नह.ं बताएगा।
ु
पहली ह. टSकर म= उसके ूण के टकड़( का मलबा बखरकर रह गया था। नौकर. के िलए फ़ाम
भरते समय उसे एक कॉलम भरना था - धम
! उसने धम
के सामने िलख
7दया था-'नाIःतक'! बहत
ु बार सोचा करता था 7क हमारे तो अिधकतर लेखक वामपंथी ह; तो इन लोग( ने नौकBरयाँ पाने के िलए धम
के कॉलम म= Sया िलखा होगा। Sया
इनका वामपंथ धम
िलखने क अनुमित दे ता है ? या 7फर यह सब ढकोसलावाद. वामपंथी ह; ? सबने मकान ख़र.द रखे ह; । वामपंथ तो सfप अIज
त करने के Iख़लाफ़ है । 7फर
यह सब Sया गोलमाल है ?
नाIःतक होने का दं ड उसे भुगतना पड़ा। साZा8कार म= उससे एक भी सवाल उसक पढ़ाई या काबिलयत के बारे म= नह.ं पूछा गया। पैनल के हर सदःय को केवल एक बात
म= िच थी 7क वह नाIःतक Sय( है । और Sया नाIःतक-वाद भी कोई धम
हो सकता है ?
अपने मन म= घुमड़ती हई
ु उेजना को उसने जुबान दे ह. द., "सर, धम
हम= हज़ार( साल पीछे ले जाता है । जब हम कोई कैमरा, 7ृज़ या कार ख़र.दते ह; तो हमार. कोिशश
यह. रहती है 7क नए से नया मॉडल ख़र.द= । 7कतु जहाँ कह.ं भी धम
क बात आती है , तो हर धम
वाले अपने पुरातन से पुरातन मंथ क ड.ंग हाँकने लगते ह; । आ7दम लोग(
Cारा िलखी गई पछड़. हई
ु बात( के िलए हम लोग कट मरते ह; । Sया यह सह. है ? Sया नाIःतक होना इस Iःथित से कह.ं अिधक बेहतर नह.ं है ? और 7फर एक धम
िनरपेZ
दे श म= ऐसे सवाल का Sया औिच8य है ?"
पैनल के सदःय उसक बात= सुनते रहे और अतत: वह नौकर. उसे नह.ं िमली। उसे समझ आ गया 7क धम
क बाँह थामे बना उसक नैया पार नह.ं लगनेवाली! 7कतु उसे
तो 7कसी भी धम
म= व_ास नह.ं। तो 7कस धम
क बाँह थामे? जब सभी धमवाले अपने-अपने धम
को ौेL और दसरे
ू धम को नीचा बताने म= लगे ह( तो वह 7कस ओर
दे ख?े
ईराक-कुवैत लड़ाई के 7दन( म= तो यह डर का वातावरण और गहरा गया था। य7द उसे इतनी अmछ पगार न िमल रह. होती तो 7हदःतानी
ु कब का वापस अपने मुJक आ
गया होता। पैसा तो 7कसी को भी कह.ं भी रोक लेता है । पैसे का चम8कार तो 7हदःतानी
ु जेाह और ताएफ़ म= दे ख चुका था। रे त म= पेड़ खड़े कर 7दए गए थे।
7हदःतानी
ु उस समय भी धम
क ज7टलताओं को समझ नह.ं पा रहा था। एक ह. धम
के दो दे श आपस म= लड़ते ह; । दसरे
ू धम
के कई दे श िमलकर एक दे श को cवःत
करने म= जुट जाते ह; । यािन 7क धम
एकता क गारं ट. नह.ं है ! पुऽ Cारा पता क ह8या को धम
नह.ं रोक सकता। तो 7फर धम
के नाम पर ह8याएँ Sय(? Sया यह सब
केवल आडfबर है ?
7हदःतानी
ु का 7दमाग बेलगाम घोड़े क तरह भागता जा रहा था। तक
, वतक
, कुतक
सब उसके 7दमाग म= jवार-भाटा खड़ा 7कए जा रहे थे। "एक समय ऐसा भी तो होगा
जब मनुंय को मालूम ह. नह.ं होगा 7क भगवान भी 7कसी चीज़ का नाम है । यािन 7क इं सान ने भगवान का आवंकार नह.ं 7कया होगा। 7फर 7कसी ने पहली बार भगवान
के होने का अहसास 7कया होगा। उसने पहले धम
का ऐलान 7कया होगा। 7फर 7कसी दसरे
ू ने 7कसी और भगवान के होने का एहसास 7कया होगा। तो दसरा
ू धम
उ8पन हो
ूकृ ित ने तो सभी इं सान( के जम और मरण का तर.का एक ह. रखा है । इं सान ह. Sय( उस बmचेके पालन-पोषण से लेकर 7बयाकम
तक िभन-िभन तर.के अपनाता है ।
आज Iजस दे श म= 7हदःतानी
ु रह रहा था, वहाँ तो 7कसी दसरे
ू धम
के लोग( को अपने इ दे व( क मूित
याँ रखने या पूजा करने का अिधकार तक नह.ं 7दया गया था। 7फर
ु -छपकर
भी लोग छप ु पूजा करते ह; । Sया धम
के साथ जुड़ाव इतना बल दे ता है 7क इं सान सरकार. आदे श के वP भी काम करने से नह.ं डरता।
7हदःतानी
ु 7फर है रान! 7हदःतानी
ु नार. म= 7कतनी सहनश है । 7फर यहाँ तो अमर.कन और अंमेज़ औरत= भी आबाया पहनती ह; । Sया अमर.का और इं Mल;ड म= भी यह
नाBरयाँ बुका
पहन लेतीं? अगर वहाँ क सरकार= भी आदे श लागू कर द= 7क I¸य( को बुका
पहनना ज़Pर. है , तो Sया यह. I¸याँ विोह नह.ं कर बैठ=गी? तो Sया इह= भी पैसे
का ह. लालच है ?
7हदःतानी
ु तो अपने दे श म= भी िसगरे ट या शराब नह.ं पीता था। इसिलए जेाह म= भी उसे कोई वशेष क7ठनाई नह.ं होती थी। पूजा वह घर पर भी नह.ं करता था। इसक
कमी महसूस करने का तो अथ
ह. नह.ं था। अब उसने कार भी ख़र.द ली थी। इसिलए उसे आने-जाने म= भी 7दSकत नह.ं होती थी। पेशोल तो लगभग मुझत ह. था। दस-
बारह Bरयाल म= तो ट; क पूरा भरवा लो। एक रात 7हदःतानी
ु संजय के घर ह. खाना खा रहा था। रात को खाना खा चुकने के बाद संजय बोला, "चलो हSका
ु पीने चलते ह; ।"
"यह हSका
ु पीने चलते ह; का Sया मतलब भाई? अगर हSका
ु पीना ह. है तो भरो हSका
ु और पी डालो।"
"नह.ं मेरे गोबर गणेश, आज तुfह= 7दखाते ह; 7क रात को बारह बजे भी जेाह म= आदमी-औरत= इकठे बैठकर हSक
ु े का मज़ा कैसे लेते ह; ।"
7हदःतानी
ु है रान! उसके दे श म= कभी हSक
ु े क कि रह. होगी जब राज-रजवाड़े हआ
ु करते थे। आज तो हSका
ु पछड़े पन का ूतीक बनकर रह गया है ।
चल पड़ा 7हदःतानी।
ु जीवन म= पहली बार साव
जिनक 'हSका
ु पान ःथान' दे खने के िलए। खुली छत के नीचे, ढे र( पौध( के बीच, मुगाई शानो-शौकत के हSक
ु े । 7कसी म=
कलके का तfबाकू था तो 7कसी म= बहर.न का। कोई पा7कःतान से ताJलुक रखता है तो कोई चीन से। जीवन म= पहली बार शीशे का बना हSका
ु दे खा। सारा माहौल दे खकर
लग रहा था जैसे हSका
ु उ8सव चल रहा हो। धीमी-धीमी आँच म= हSक
ु े का तfबाकू सुलग रहा था।
अफ़वाह( का बाज़ार गम
था। आज 7हदःतानी
ु को भी 7डश एँटेना शैतान का अवतार लग रहा था। Sय(7क वो बना के अयोcया के समाचार 7दए जा रहा था। कई 7हदओं
ु
के इकामा र कर 7दए गए थे। उनके पासपोट
पर लाल रं ग क 'एIMज़ट वीज़ा' क मोहर लगाकर उह= वापस भेजा जाने लगा। संजय ने 7हदःतानी
ु को आदे श दे 7दया, "तुम
अकेले घर से बाहर कभी नह.ं जाओगे। कुछ 7दन( के िलए हमारे घर रह जाओ। घर से दझतर म; तुfह= ःवयं छोड़कर आऊँगा। बनेमिलक के इलाके म= भूलकर भी मत जाना।"
औरत( के माथ( से बIदयाँ गायब होने लगीं। बद. ह. तो उह= अय औरत( से अलग कर दे ती थी। और इसी तरह उनक बेइjज़ती का कारण भी बन जाती थी।
एक शाम तो 7हदःतानी
ु का यह पSका व_ास हो गया 7क अयोcया के हादसे का उरदायी वह ःवयं है , संजय है , अपणा
है और उनक पाँच वष
क बेट. चयिनका है ।
चयिनका के ःकूल म= उसका बायकॉट कर 7दया गया। उसे बताया गया 7क अयोcया क मIःजद उसने तोड़. है , इसिलए Sलास के और बmचे उससे बात नह.ं कर= ग।े रोती हई
ु
सूजी आँख= लेकर शाम को चयिनका ने संजय से पूछ ह. तो िलया, "पापा, आपने मIःजद Sय( तोड़.? Sलास म= मेरे से कोई बात भी नह.ं करता।" 7हदःतानी
ु को लगा जैसे
उसके शर.र का एक-एक 7हःसा चरमराकर मलबे का ढे र बनता जा रहा है ।
गम अभी भी बरकरार थी। पर माहौल म= थोड़ा-सा ठहराव आने लगा था। 7हदःतानी
ु का भी दम घुटने लगा था। उसे भी ताज़ी हवा क आवँयकता थी। एक 7दन शाम को
दझतर से िनकलकर सीधा कॉरबश क ओर िनकल गया। पा7क¹ग लॉट म= गाड़. खड़. क। उसने अभी थोड़. ख़र.ददार. ह. क थी 7क मगBरब क आज़ान हो गई। 7हदःतानी
ु
ने सोचा, चलो यह सामान जाकर गाड़. म= रख लेता हँू , बाक ख़र.ददार. नमाज़ के बाद कर लूँगा। उसने सामान जाकर गाड़. क 7डक म= रख 7दया। वापस वह सूख़ क ओर
चला 7दया। लाऊडःपीकर पर अरबी म= कुरान शर.फ़ क आयत= सुनाई दे रह. थीं।
7हदःता ु
ु नी अभी कुछ कदम ह. चला था 7क धािम
क पुिलस का एक ठJला उसके पास आया और कड़ककर उसका इकामा माँगा। 7हदःतानी
ु बुर. तरह से घबरा गया। उसने
जेब से इकामा िनकाला और मुवे के हवाले कर 7दया। इकामा का रं ग दे खते ह. मुवे के चेहरे का रं ग बदला और साथ ह. साथ 7हदःतानी
ु का चेहरा सफ़ेद हो गया।
मुवे ने उसे पुिलस क गाड़. म= बै ठने को कहा। 7हदःतानी
ु उसे समझाता रहा 7क उसक कार पा7क¹ग लॉट म= खड़. है और उसम= उसका सामान रखा है । अपना साइवंग
लाइस=स और कार क चाबी 7दखा-7दखाकर समझा रहा था 7क उसे कार तक जाने 7दया जाए। 7कतु उसके इकामा का रं ग हरा नह.ं था। या 7फर सारा जेाह ह. बने मिलक
बन गया था। 7कसी को कह.ं से भी धािम
क पुिलस िगरझतार कर सकती थी।
7हदःतानी
ु क कार 'पा7क¹ग लॉट' म= खड़. रह.। सामान उसक कार म= पड़ा था। सामन उसके घर म= भी पड़ा था-सामान, जो उसने पैसे जोड-जोड़ कर ख़र.दा था। आज वह
उसी '7डपोट कैfप' म= खड़ा था, Iजसे बाहर से दे खकर उसके शर.र म= झुरझुर. आ गई थी। संजय और अपणा
परे शान थे। वे दोन( 7हदःतानी
ु को खोज रहे थे। आIखर कहाँ
गया? 7हदःतानी
ु के दझतर फ़ोन 7कया गया, सभी दोःत( से पूछा गया, हःपताल( से पूछताछ क गई। उर म= केवल एक द.वार ह. 7दखाई दे रह. थी।
7हदःतानी
ु अयोcया क ओर चल 7दया। गाड़. म= ह. उसे कुछ एक राजनीितक काय
कता
िमल गए। 7कसी ने उसका नाम पूछा। उसने अपने पुराने अदाज़ म= जवाब 7दया,
ु नी।" काय
कता
क बाँछ= Iखल ग}। "सा7हब हम यह. तो कहते ह; । हम पहले 7हदू ह; - 7हदःतानी
"आय.एम.7हदःता ु , बाद म= कुछ और। भारतीय तो हम= कई िमले पर
7हदःतानी
ु आप पहले िमले ह; । हमार. स±यता, हमारा कJचर, हमारा इितहास..." 7हदःतानी
ु का िसर चकराने लगा। आज एक बार 7फर उसे अपने नाम से साfूदाियकता
क बू आने लगी थी।
7हदःतानी
ु आँख( म= सार. चरमराहट भरे वापस चल पड़ा। एकाएक शोर मच गया-"बfबई म= बfब फटे ह; , स;कड़( मारे गए।"
7हदःता
ु नी ने आकाश क ओर दे खा और उसके मुँह से िनकला, "यह Sया हो रहा है भगवान?" उसके शर.र ने झुरझुर. ली। यह उसके मुँह से Sया िनकल गया?
पछले कुछ समय से बाऊ जी ने एक चु{पी सी ओढ़ रखी है । एक शद भी तो नह.ं बोलते। य7द उनसे कुछ पूछते ह; तो भी अःफुट
से ःवर( म= हाँ या नह.ं जैसा उर ह. िमलता है । 7हfमत नह.ं जुटा पा रहा 7क बाऊ जी क आँख( म= आँख= डाल कर दे ख पाऊँ। न
जाने उन आँख( म= Sया भाव हो। जब बाऊ जी ने यह बात कह. होगी, उस समय उनक अपनी मन:Iःथित Sया रह. होगी? वे Sया
सोच रहे ह(गे? 7फर इस काम के िलए उह(ने मुझे ह. Sय( चुना? म; तो पेशे से भी िसवल इं जीनीयर हँू कृ ंणकांत भैया चाहे दाँत( के
ह. सह., कम से कम डाSटर तो ह; । आजकल तो जया द.द. भी आई हई
ु है और 7फर माँ तो सारा समय ह. उनके पास ह. रहती ह; ।
Sया बाऊ जी यह बात बाक सबसे पहले कर चुके ह; ? म; बात को सुन कर भी अनसुना कर जाता हँू । "जी बाऊ जी, आपके िलए
चाय ले कर आता हँू ।"
सीधा रसोईघर क ओर बढ़ जाता हँू , बाऊ जी के िलए मसाले वाली चाय बनाता हँू । जबसे बाऊ जी क िमऽता पटे ल अंकल से हई
ु
है , तभी से चाय म= मसाले का ूयोग करने लगे ह; । दझतर म= चाहे कैसी भी चाय पी लेने वाले बाऊ जी, घर म= हमेशा मसाले वाली
चाय ह. पीते ह; । ईिलंग रोड से जब भारतीय दाल=, चावल और आटा आ7द मंगाये जाते ह; तो चाय मसाले का पैकेट लाना कभी नह.ं
भूलती माँ। कल रात से लदन और उसके आसपास के Zेऽ( म= भार. 7हमपात हो रहा है । बाऊ जी के बारे म= सोचते-सोचते कड़ाके
क बफ़¤ली ठoड म= भी मेरे माथे पर पसीने के बूँदे 7दखाई दे रह. ह; ।
7कचन टॉवल से ह. माथा प(छ लेता हँू । बाऊ जी को हमेशा से ह. बाऊoट. के 7कचन टॉवल पसद आते ह; । थोड़े महं गे अवँय होते ह; 7कतु उनका काग़ज़ मजबूत और
मुलायम होता है , उस पर नीले फूल( क बेल बनी रहती है । घर म= वष से यह. 7कचन टॉवल ख़र.दे जाते ह; ।
चाय लेकर बाऊ जी के िनकट पहँु च जाता हँू । बाऊ जी क ओर दे खता हँू । उनक आँख( मे याचना ःप 7दखाई दे रह. है । जैसे मुझ से ूाथ
ना कर रहे हो, Sय( नह.ं मु
7दला दे ते मुझे इस नरक से म; अचानक एक गहर. सोच म= डू ब जाता हँू । बाऊ जी ने तो कभी जान बू झ कर 7कसी का 7दल तक नह.ं दखाया
ु , सदा ह. सबसे हँ स कर बातचीत
करते, जीवत य8व के ःवामी, 7कसी को कभी द:ु ख दे ने के बारे म= कभी सोचा ह. नह.ं होगा। तो 7फर बाऊ जी इस नरक म= जीने को Sय( अिमश है ?
बाऊ जी क आँख( म= बसे ू¢( का मेरे पास कोई उर नह.ं ह; । पाँच फूट दस इं च कद के बाऊ जी आज बस एक ह.ल चेयर पर वराजमान कृ षकाया ह. बन कर रह गए
ह; । पेशे से चाट
ड
अकाऊoटे oट, बाऊ जी को लदन के आिथ
क जगत म= एक वशेष दजा
हािसल था। इस Zेऽ म= वे अकेले भारतीय, या कहा जाये 7क एिशयन रहे ह(गे तो
अितशयो नह.ं होगी। इं Mलैoड म= भारतीय मूल के लोग( को हाथ के काम वाले Zेऽ म= तो आसानी से काम िमल जाया करता है ,परतु जहाँ कह.ं ूबंधक या इस से ऊपर
क बात होती है तो गोर. चमड़. एक अिनवाय
योMयता बन जाती है । आपसे कह.ं कम पढ़े िलखे गोरे लोग वाया भ7टoडा आपसे आगे कूदते फाँदते िनकल जाते ह; । उस 7दन
ू
वजय भाई भी अपने रे 7डयो ःटे शन का रोना रो रहे थे जहाँ उनका गोरा ःट7डयो मैनेजर सैम उनका ह. बॉस बना बैठा है ।
िथयेटर म= उह= वशेष िच रह. है । साऊथ ब;क का इलाका उनका ूय इलाका है । स8य=ि जी ओर बाऊ जी घoट( नाटक( पर बात= कर सकते ह; । कई बार दोन( शाम को
टे fस के 7कनारे सा7ह8य, राजनीित और नाटक( के वषय म= बितयाते रहते ह; । स8य=ि अंकल 7हद. सा7ह8य के ूेमी ह; तो बाऊ जी अंमेजी और उद
ू के। 7कतु दोन( ह.
अंमेज़ी नाटक साथ-साथ दे खा करते थे। जब से बाऊ जी ने ह.ल चेयर का साथ अपना िलया है स8य=ि अंकल अकेले पड़ गए ह; । अब उह= नाटक अmछे नह.ं लगते। पूरा
जीवन ह. एक नाटक लगने लगा है ।
स8य=ि अंकल माँ को भी छे ड़ते रहते थे। 'भाभी जी इसे जरा काबू म= रखा कर= । गोर. मेम= भी इस पर मरती ह; । यह जब काले रं ग का ओवरकोट, िसर पर फेJट है ट और मुँह
म= पाईप लगा कर चलता है तो के एन िसंह तक को कfपलेSस दे दे ता है ।' बाऊ जी का तो य8व ह. ऐसा है 7क 7कसी को भी िमले तो अपने य8व क एक अिमट सी
छाप छोड़ सकते ह; । ह; ? या थे? बाऊ जी के जीवत रहते उनके बारे म= थे कह पाना 7कतना क7ठन काय
है ?
बाऊ जी कई बार पुराने 7कःसे सुनाया करते थे। 'बेटा जी, बंगे से चले थे तो पाँच पाउoड ले कर आए थे। तुfहार. माँ क गोद म= तो जया भी थी। यह जो सब घर म= दे खते
हो न; यह सब तुfहार. माँ का ूताप है । इस भागवती ने जो Iजदगी क लड़ाई म= साथ 7दया है उसक तो िमसाल भी नह.ं िमल सकती। यह जो आज क पीढ़. है न, जो
बना शाद. याह के िलव-इन अरे जमेoट क बात करती है , वो इस 8याग, इस मेहनत को समझ नह.ं सकती। यह अनपूणा
मेरे साथ न होती तो म; कब का थक कर हार
चुका होता।' माँ बस शरमा कर मुँह फेर लेती। उसे बmच( के सामने अपनी तार.फ़ सुनना अजीब-सा लगता।
7कतना अजीब-सा लग रहा है बाऊ जी को ह.ल चेयर पर बैठा दे ख कर। कैसे एक भरा पूरा ःवःथ शर.र ूकृ ित के एक ह. झटके से धम से िगरता है और कुस से िचपक
कर रह जाता है । कभी-कभी अmछे मूड म= होते तो मुकेश के दद
भरे गीत गुनगुनाया करते। राज कपूर क पूर. ट.म ह. उह= ूय थी - शैल=ि, शंकर जय7कशन, मुकेश और
राजकपूर - सजनवा बैर. हो गए हमार! अब तो जीवन ह. बैर. हो गया है !
चाय दे ख कर भी बाऊ जी ने कोई ूित7बया नह.ं य क है । बस एक ओर ह. दे खे जा रहे ह; । चाय दे ख कर राज कपूर क 7फJम तीसर. कसम का डायलॉग सुनाया करते
थे, 'चाह क तासीर गम
होती है जी!' आज एकदम चुप ह; । ऐसा Sय( हो जाता है ? कैसे हो जाता है ?
बाऊ जी सेवािनवृ होने वाले थे। वे चाहते तो उनक कfपनी उह= एSःट= शन दे सकती थी। परतु बाऊ जी माँ के साथ भारत दश
न के िलए जाने का िनण
य िलए बैठे थे।
पा7कःतान जाने का भी तो काय
बम था। झंग के उस Zेऽ म= भी जाना चाहते थे जहाँ उनक पुँतैनी ितकोनी हवेली थी। बाऊ जी के दादा जी के दो भाई और थे। यानी 7क
कुल तीन भाई, इसीिलए ितकोनी हवेली। गीली आँख( से बाऊ जी याद 7कया करते ह; 7क कहाँ उनके दादा जी घोड़ा बाँधा करते थे, कैसे कधे पर बदक
ू लगी रहती थी, कुJले
वाली पगड़. और बड़.-बड़. मूँछ=, ःवयं बाऊ जी के चौड़े कधे और ऊँचा कद, दादा जी क ह. तो दे न थी। बाऊ जी सेवािनवृ के बाद माँ के साथ दIZण भारत क सैर भी
करना चाहते थे। कया कुमार. म= ववेकानंद ःमारक पर खड़े हो कर भारत क वशालता को नाप लेना चाहते थे।
सेवािनवृ के बारे म= सोच कर ह. बाऊ जी क आँख( म= एक वशेष सी चमक आ गई थी। एक भरा पूरा जीवन सfमानपूव
क जी लेने का सुकून, बस दो म7हने बाद बाऊ जी
और माँ भारत ॅमण पर िनकलने वाले थे। बाऊ जी पहले पा7कःतान जाना चाहते थे, तो माँ भारत। माँ का कहना था 7क सारे Bरँतेदार तो भारत म= ह. ह; , इसिलए पहले
वहाँ चलते ह; । जब7क बाऊ जी का वचार था 7क पहले झंग का चSकर लगाया जाए ता7क सारे Bरँतेदार( को अपनी मातृभूिम का आँख( दे खा समाचार सुनाया जा सके। माँ
का बचपन तो बंगे म= ह. बीता था। भला उसे झंग म= Sया 7दलचःपी हो सकती थी। परतु माँ तो माँ ह. है न। बाऊ जी क ू8येक इmछा माँ के िलए हSम
ु के समान हो
जाती है । इसीिलए माँ भी पहले झंग चलने को तैयार हो गई थी। वे भी दे खना चाहती थीं 7क ह.र ःयाल के इलाके म= ऐसा Sया है जो बाऊ जी को वहाँ जाने के िलए इतना
आतुर बना रहा ह; । कह.ं भी अपनी इmछानुसार जा पाना इतना आसान होता है Sया? बाऊ जी तैयाBरय( म= लग गए थे। अिधकतर Bरँतेदार( को एक लfबे असd के पQात
िमलने वाले थे। झंग के अपने पड़ोिसय( के तो चेहरे भी खासे धुंधले पड़ चुके थे। इकबाल नाई, उनके कालेज के साथी मंजूर, परवेज और मुना 'Sया वे सब वहाँ झंग म= ह(गे?
दिनया
ु 7कतनी बदल चुक है । य7द वे ःवयं पाँच न7दय( का जल छोड़कर टे fस के 7कनारे आ बसे ह; , तो Sया उनके िमऽ अभी भी वह.ं के वह.ं खड़े ह(गे? पा7कःतान से भी तो
7कतने नौजवान खाड़. के दे श( म= 7कःमत आजमाने िनकल चुके ह; ।
ब7ढ़या भोजन बाऊ जी क कमज़ोर. है । अmछे खाने के िलए बाऊ जी वेfबले से इलफड
तक कार चला कर जाने से भी नह.ं 7हच7कचाते थे। भारतीय, कॉIटन=टल, चायनीज
और इटे िलयन खाने उह= एक समान ूय थे। 7कतु जब जब आवँयकता होती तो वे ऑमलेट और डबल रोट. खा कर भी गुज़ारा कर लेते थे। तीन मह.ने बाद ह. बाऊ जी
प;सठ के होने वाले थे। और म; सोच-सोच कर है रान होता 7क यह कभी न बूढ़ा होने वाला इसान, सेवा िनवृ जीवन 7कस ूकार बताएगा।
7कतु बाऊ जी के पास पुःतक( का एक वशाल भoडार-सा था। बाऊ जी का सपना था 7क उनके पास एक िनजी पुःतकालय हो। उनक इस लायॄेर. म= न जाने 7कतने
ूकार क पुःतक= थीं। अनिगनत पुःतक=, बेशुमार वषय। इनम= कानून क पुःतक= थी तो उपयास भी थे, मह®वपूण
यय( क जीविनयाँ थीं तो शेSसपीयर के नाटक भी थे।
उद
,ू पंजाबी, और 7हद. क पुःतक= भी 7दखाई दे जाती थीं।
म; भाग कर गुसलखाने तक पहँु चा तो वहाँ माँ पहले से ह. बाऊ जी को उठाने का ूयास कर रह. थी। माँ रोये जा रह. थी, उसका पूरा शर.र काँप रहा था। मुझे दे खते ह.
उसक लाई जोर( से फूट पड़., 'जीतू पुर, वेख एह क हो गया। हाय रबा ऐहना द. आई मैनूं आ जाए।'
म;ने माँ को बाऊ जी से अलग 7कया। बाऊ जी के असहाय शर.र को कधे पर उठाया और बःतर पर वापस ले आया। वे खड़े नह.ं हो पा रहे थे। माँ Iःथित को और बगाड़
रह. थी Sय(7क ःवयं भी बेहोश हए
ु जा रह. थी। म;ने एfबुल;स के िलए फ़ोन 7कया। माँ को संभाला और उह= अपने साथ िमला कर बाऊ जी के पैर( के तलव( क मािलश
करने लगे। सद
तलव( म= गरमाहट पैदा करने क एक बेकार-सी कोिशश।
बाऊ जी ने मुझे सदा से ह. अपना िमऽ समझा है । बाऊ जी जब कंबल म= िसर लपेटे पड़े थे, तो म; उह= हौसला दे ने के िलए मज़ाक म= कह रहा था 7क वे बंगे वाली पागल
नस
जैसे 7दखाई दे रहे ह; । बाऊ जी जब कभी भी बंगे के बारे म= बात करते ह; तो उस पागल नस
का Iज़ब अवँय हो जाता है जो के कमेट. के दझतर के बाहर गुदड़. म=
ु
िलपट. रहती। उसे एक मर.ज़ से ूेम हो गया था, Iजसक हःपताल म= ह. मृ8यु हो गई। तब से वह नस
पागल( का सा यवहार करने लगी। सड़क पर िगरे िसगरे ट के टकड़(
का आनंद उठाती और जून क िचलिचलाती धूप म= भी कंबल ओढ़े रहती। पागल नस
का Iज़ब भी बाऊ जी होठ( पर मुःकुराहट नह.ं ला पाया। उनक हालत दे ख कर मेरे पेट
म= मरोड़ सा उठने लगा। यह वचार भी 7दमाग को मथे जा रहा था 7क कह.ं बाऊ जी का अIतम समय तो नह.ं आ पहँु चा।
बाऊ जी के मुँह से अजीब अजीब आवाज़= िनकल रह. थीं। कुछ गुरा
हट, फुसफुसाहट और फुंकार का सा िमौण। कुछ बेमेल बेमतलब से शद। उनक आँख( म= बेचारगी,
मजबूर. और दयनीयता के भाव साफ़ 7दखाई दे रहे थे। न जाने Sय( म;ने एक बार 7फर उह= कंबल ठक ओढ़ाया।
बाऊ जी उस रात मरे नह.ं, 7कतु उह(ने जीना बंद कर 7दया था। अब वे केवल सांस लेता हआ
ु , ह.ल चेयर से िचपका आधा अधूरा-सा शर.र माऽ रह गए थे। उनके भीतर
कुछ मर गया था। जैसे उनके भीतर क अIMन बुझ चुक थी। यह उनका सबसे तीो संघष
था, 7कतु उनके संघष
करने क श जैसे चुक-सी गई थी।
हःपताल के डॉSटर भी बाऊ जी क तबीयत म= सुधार लाने म= असफल रहे थे। बाऊ जी को अधरं ग हो चुका था। अब वे ःवयं अपना कोई भी काम करने म= सZम नह.ं थे।
उह= उठने, बैठने, नहाने, खाने सभी काम( म= 7कसी न 7कसी क सहायता क आवँयकता पड़ती थी। ऽासद. तो यह थी 7क पZाघात के इस हमले से उनक नज़र पर भी
असर हआ
ु था और वे नजर= 7टका कर कुछ भी पढ़ पाने म= असमथ
हो चुके थे। और सबसे गहरा असर उनके य8व पर हआ
ु था। उनके 7दमाग से बीमार. से लड़ने क
श िछन चुक थी। म; और भैया बाऊ जी क हर ज़Pरत का cयान रखने का ूयास करते। 7कतु माँ, माँ को तो और कुछ सूझता ह. नह.ं था। कौन व_ास करे गा 7क इस
औरत ने एक पूरा जीवन इं Mलैoड म= बता डाला है । पIQमी स±यता क हवा उसके संःकार( को ज़रा भी तो नह.ं भेद पाई। बाऊ जी क हर फुसफुसाहट भर. बात माँ को
समझ म= आ जाती। उनक नज़र( के भाव( को माँ आसानी से पढ़ लेती।
बाऊ जी क बुझी हई
ु िनगह= मुझ पर 7टकने का ूयास कर रह.ं ह; । ल;गलैoड कfपनी का फ़ाइन=स िनदd शक अपने ह. पुऽ से कुछ माँगने क कोिशश कर रहा है । वह.ं
फुसफुसाहट मेरे पूरे Iजःम पर एक बार 7फर र; ग गई, 'मुझे मालूम है बेटा, अब म; बचने वाला नह.ं। {लीज 7कल मी माई सन। मुझ पर दया...।' कुछ शद उनके गले म=
अटक कर रह गए ह; ।
'अरे बाऊ जी, आप भी कैसीं बात= करने लगे? आप बJकुल ठक हो जाएँगे। मेरे हाथ क चाय पीIजए। अभी तो अपने ममी को चार( धाम( के दश
न करवाने ह; ।' मेर. आवाज़
मेरे िलए ह. अजनबी हई
ु जा रह. है । आवाज़ का खोखलापन मुझे ह. समझ नह.ं आ रहा। बाऊ जी क आँख= दरू कह.ं शूय क ओर ताके जा रह. ह; । मेर. बनाई हई
ु चाय
मेज़ पर पड़. ठoड. होती जा रह. ह; ।
सहा था। परदे स के अनजान वातावरण म= जीवन को ःथापत करने क चाह ! बाऊ जी म= ग़ज़ब का आ8मव_ास। बाऊ जी यह भी समझते थे 7क भारत क पढ़ाई को यहाँ
कोई कुछ नह.ं समझता। इसिलए सुबह नौकर. और रात को पढ़ाई। इस दे श क 7डमी हािसल करनी है ।
जीवन म= कुछ बनने का जुनून। और मुकाबला उस समाज से, जहाँ बड़े बड़े अZर( म= िलखा होता 'कुे, काले और आयBरश के िलए ूवेश वIज
त! यह ूवेश वज
न 7कराये पर
मकान लेने, रे ःटॉरoट म= भोजन करने, कॉलेज म= पढ़ाई और नौकर. के िलए आवेदन जैसे सभी Zेऽ( पर लागू होता।
पहले-पहले तो बाऊ जी को इं Mलैoड के लोग( क अंमेज़ी समझ ह. नह.ं आती थी। Sय(7क यहाँ अंमेज़ी तो कोई बोलता ह. नह.ं। कोई ःकॉ7टश है तो कोई याक
शरमैन, कोई
कॉकनी बोलता है तो कोई अंमेज़ी के नाम पर कुछ भी बोल लेता है । 7कतु बी.बी.सी. पर बोली जाने वाली अंमज़ी तो िगने चुने अंमेज़ ह. बोल सकते है । इस के बावजूद
सभी बाऊ जी के अंमज़
े ी बोलने के अदाज़ का मज़ाक उड़ाते। ऐसे वपर.त वातावरण म= बाऊ जी ने अपने जीवन क शुआत क थी।
संघष
और काम म= यःत बाऊ जी 7फJम( के िलए समय िनकाल ह. लेते थे। 7हद. 7फJम( म= वे मोतीलाल और राजकपूर के ूशंसक थे तो अंमेज़ी 7फJम( म= वे पॉल
यूमेन, माल
न ॄाoडो के अितBर चाल
दन हे ःटन क ऐितहािसक 7फJम= पसद करते थे। वैसे दे खने के िलए तो जॉन वेन और जेfस बॉoड क 7फJम= भी दे ख ह. लेते थे।
म; Sलेयर को समझा नह.ं पा रहा था 7क मेरा बाऊ जी को हःपताल दे खने जाना मेरे य8व का एक अंग ह. है । बाऊ जी हमारे िलए Sया ह; , यह म; उसे कैसे समझाता।
बाऊ जी के बना जीवन के वषय म= सोच कर ह. र.ढ़ क ह|ड. म= सनसनी दौड़ जाती है । कई बार तो म; हःपताल जा कर भी बाऊ जी क ओर दे खने का साहस नह.ं जुटा
पाता। जैसे मुझ म= सmचाई का सामना कर पाने क 7हfमत चुकती जा रह. हो। 7फर अचानक एक अपराध बोध मेरे मन म= घर बना लेता ह; । म; कई बार बाऊ जी से बात
करने का ूयास भी कर चुका हँू , 7कतु सामने कोई ूित7बया ह. नह.ं होती। बाऊ जी का शर.र इतना दबला
ु हो गया है 7क अब तो लगने लगा है जैसे हम उनसे न िमल
कर 7कसी अजान य से िमल रहे हो।
दो म7हने तक बाऊ जी हःपताल म= रहे । इन दो मह.न( म= माँ ने न जाने 7कतने उपवास रखे होगे। िशव चािलसा, हनुमान चािलसा तो पढ़ती ह. थीं, महामृ8युज
ं य मंऽ का
जाप ूित7दन १०८ बार करतीं। न जाने 7कतने यंऽ और तावीज अंबाले से मंगवाए। जब तक हःपताल वाले बाहर िनकलने को न कहते बाऊ जी के पास ह. रहतीं। बाऊ जी
वापस घर आए तो नीचे के एक कमरे को ह. उनका बेडPम बनाना पड़ा। लंदन म= बेडPम और बाथPम तो पहली मंIज़ल पर होते ह; न। बाऊ जी क ह.ल चेयर अदर बाहर
आसानी से लाई जा सके, इसिलए मुय Cार पर रै fप भी लगवाने पड़े । बाऊ जी क आवाज़ कुछ हद तक वापस आ गई और शार.Bरक हरकत भी 7कतु उनके मIःतंक को
जो Zित पहँु च चुक थी, उसका अदाज हम पहले से नह.ं लगा पाए थे।
अब बाऊ जी समझ चुके थे 7क Iःथितय( पर उनका िनयंऽण नह.ं रहा। इस बात क झJलाहट भी उनम= 7दखाई दे ती थी - नहाना, कपड़े बदलना, बाल बनाना, नाखून काटना,
खाना खाना यािन 7क हर बात के िलए वे 7कसी न 7कसी पर िनभ
र थे - वशेषकर माँ पर। और यह. उहे कचोटता था।
मेरे 7दमाग म= हर समय बाऊ जी के कहे शद बजते रहते ह; । 'मुझे मार डाल बेटा। अब और नह.ं सहा जाता। वे माँ के सामने ऐसे शद नह.ं बोलते। म; रात( को नींद से
हड़बड़ा कर उठ बैठता हँू द:ु ःव{न मुझे परे शान 7कए रहते ह; । कभी मुझे महसूस होता है 7क म;ने बाऊ जी के चेहरे पर त7कया रख कर उनका दम घ(ट 7दया है तो कभी उह=
मु 7दलवाने के िलए बे7हसाब नींद क गोिलयाँ Iखला दे ता हँू । मुझे समझ ह. नह.ं आता 7क म; कPँ Sया। जो संःकार मुझे माँ और बाऊ जी से िमले ह; उनके रहते तो म;
7कसी को क तक पहँु चाने के बारे म= नह.ं सोच सकता, 7कसी को मारना तो दर 7कनार रहा। 7फर भला म; अपने ह. पता क जान कैसे ले सकता हँू ? म; यह तो कर सकता
हँू 7क कोई मौत क कगार पर खड़ा हो तो उसे बचाने के िलए जी जान से जुट जाऊँ, 7कतु 7कसी को मौत दे ना।
धीरे -धीरे बाऊ जी यह बात समझते जा रहे थे 7क म; उनक बात मानने वाला नह.ं हँू । 7कतु उह= यह बात समझ नह.ं आ रह. थी 7क उनका बार बार मुझे यह बात कहना
7कतना वचिलत कर रहा है भीतर ह. भीतर म; 7कतनी बार मर रहा हँू । उह= मारने का अथ
मेरे िलए आ8मह8या ह. तो है । उनके भीतर जो म; Iजदा हँू , उसक ह8या भला
म; 7कस ूकार कर सकता हँू ?
बाऊ जी ने िनण
य ले िलया था। उह= सदा ह. Iःथितयाँ अपने िनयंऽण मे लेना सह. लगता था। अब भी उह(ने ठक वैसा ह. 7कया। उह(ने बना 7कसी से कुछ कहे खाना
पीना छोड़ 7दया। उनका शर.र बस एक कंकाल बनता जा रहा था। वे बना 7हले डु ले बःतर पर पड़े रहते, घंट( शूय म= ताकते रहते। उनक ओर दे खने भर से ह. मन म= दद
बाऊ जी के इस स8यामह ने घर म= सब क पीड़ा और तकलीफ= इतनी अिधक बढ़ा द. थीं 7क पBरवार का ू8येक य अपने आप को दोषी महसूस करने लगा था। मेरे मन
म= कभी कभी यह चाहत भी िसर उठती 7क 7कसी भी तरह घर का माहौल 7फर से नॉम
ल हो जाए। कई बार बाऊ जी पर बोध भी आता 7क वे ऐसा Sय( कर रहे ह; । दिनयाँ
ु
म= 7कतने लोग( को पZाघात होता है । वे सब जीवन के साथ 7कस आसानी से समझौता कर लेते ह; । 7कतु बाऊ जी ने तो। अचानक म; ःवयं ह. अपराधबोध से मःत हो
ु
जाता, शम
से अपना िसर छपा लेता, द:ु खी हो जाता। य7द मेरा यह हाल था तो माँ 7कन हालात से गुज़र रह.ं ह(गी।
अब तो म; भी मन ह. मन भगवान से ूाथ
ना करने लगा था 7क 7कसी भी तरह बाऊ जी के जीवन का अंत हो जाये। म; उह= इस ूकार िघसटते, तड़पते नह.ं दे ख सकता
था। मुझे अहसास हो चुका था 7क बाऊ जी क तबीयत म= अब कोई सुधार नह.ं आने वाला है । म; सुबह जब नींद से जागता तो मन के 7कसी कोने म= यह उfमीद-सी लगी
होती 7क समाचार िमलेगा 7क बाऊ जी चल बसे।
चार वष
बीत गए इसी समाचार क ूतीZा म=। इस बीच Sलेयर मेर. पी बन चुक थी। बाऊ जी मृ8यु क ूतीZा म= पड़े थे और मेरे िलए िनण
य लेने क घड़. आ पहँु ची
थी। मुझे जीवन और मृ8यु म= से एक का चुनाव करना था। 7कतु यह िनण
य बाऊ जी के वषय म= नह.ं था। मेर. पी Sलेयर माँ बनने वाली थी। बाऊ जी के मन म= भी
एक बार 7फर से जीने क तरं ग जाग उठ थी। वे मेरे बmचे को गोद म= लेना चाहते थे। पुरानी कहावत है 7क असल से सूद अिधक {यारा होता है । वे भी अपने सूद को दे ख
लेना चाहते थे, महसूस कर लेना चाहते। उस रात उह(ने मुझे बुला कर कहा था, 'जीतू म; कुछ 7दन और जीना चाहता हँू यार। तेरा बेटा दे ख कर मPँ तो चैन से मPँगा।' मुझे
पल भर के िलए महसूस हआ
ु 7क बाऊ जी म= Iजजीवषा एक बार 7फर जाग गई है । म; चहका था, 'बाऊ जी जुड़वाँ होने वाले ह; । जुड़वाँ। एक दाद. का एक दादा का।'
एक हJक फक-सी मुःकान ! Sलेयर को अभी छठवाँ म7हना ह. चल रहा था। उसे जचगी के दद
होने लगे। डाSटर( का कहना था 7क 7डिलवर. त8काल करना आवँयक था
Sय(7क गभा
शय म= ह. बmच( क मृ8यु हो जाने का भय था। िसजीBरयन ऑपरे शन ह. एकमाऽ वकJप था। अJशासाऊoड के माcयम से यह पता चलते ह. 7क जुड़वाँ पुऽ
होनेवाले ह; हमने तो उनके नाम भी रख िलए थे - भारतीय नाम हर.श और आनंद, 7कतु Sलेयर के िलए है र. और एoड.। अपने िमऽ( म= तो वे इह.ं नाम( से जाने जाते।
7कतु डाSटर( के एक ू¢ ने हमारे सामने एक बकट Iःथित पैदा कर द., 'दे Iखये, िमःटर मेहरा, फैसला आप को करना है । इन बmच( के जीवत रहने के कोई वशेष आसार
नह.ं ह; । 7फर भी हम कोिशश करके दे ख सकते ह; । बात यह है 7क यह दोन( Iजतना समय भी जीवत रह= ग,े सुइय( और दवाइय( के बल पर ह.। य7द हम कुछ भी न करने
का िनण
य ले ल=, तो हम इन दोन( को मु दे सकते ह; ।' सूजन रो द.। वह 7कसी भी तरह अपने बmच( को बचा लेना चाहती थी।
Sलेयर क ओर एक बार 7फर दे खा, नज़र( ह. नज़र( म= कुछ समझाया। 7कतु Sलेयर आज Iजस Iःथित म= थी उसे म; भली-भाँित समझ रहा था। Sलेयर के हाँ करने का तो
ू¢ ह. नह.ं था। म;ने ःवयं ह. डाSटर को अपना िनण
य सुना 7दया। है र. और एoड. अब इं जेSशन( का द:ु ख नह.ं सह= गे उह= मु अवँय िमलेगी।
तलाश जाकर पूर. हुई सेSटर अठारह म=। बीजी के मन म= थोड़ा झटका लगा। पुर क पसंद 7टक भी तो जाकर सेSटर अठारह म=।
भला पंिह सेSटर वाले अठारह वाल( के घर Bरँता लेकर जाएँ तो कैसे! बात बड़. सीधी-सी है - सेSटर पंिह है को7ठय( और बंगल(
वाला सेSटर... हर बंगले म= कम से कम एक कार तो है ह. और सेSटर अठारह म= ह; हाउिसंग बोड
के दो कमर( वाले मकान। बीजी
सोच म= पड़ ग}।
बीजी सोचते-सोचते ह. सेSटर अठारह म= पहँु च ग}। भला-सा घर! सीधे सादे लोग! छोटा-सा पBरवार! सरदार वरयाम िसंह, पी सुरजीत कौर, परमजीत और छोटा भाई
सुखवंदर! बस इतना ह. पBरवार। द.वार पर गु नानक दे व और गु गोबंद िसंह के िचऽ और लाल कपड़े म= िलपटा गु मंथ सा7हब पBरवार के आIःतक होने का ऐलान कर
रहे थे। बाहर गुCारे के लाउडःपीकर पर आवाज़ आ रह. थी, '¾ोक महJला पंजवां... अपने सेवक क आपे राखे... आपे नाम जपावे... जहाँ-जहाँ काज 7करत सेवक क।' बीजी
को लगा ऐसे समय म= यह ¾ोक उनक सफलता का ऐलान है । परमजीत उस 7दन कालेज नह.ं गई थी। उसे हJका-सा बुखार था।
बुखार म= जो लड़क इतनी सुंदर लग सकती है , वो सजने-सँवरने के बाद Sया लगेगी! वरयाम िसंह और सुरजीत कौर ूसन 7क उनक बेट. ववाह के बाद नज़द.क भी रहे गी
और रहे गी भी सेSटर पंिह म=। होने वाला जमाई जापान म= काम करता है । माता-पता के िलए इतना ह. काफ़ था। उह= हाँ करने म= दे र ह. 7कतनी लगनी थी। वे दोन( भी
कयादान कर ःवग
म= अपना ःथान पSका करने क योजना बनाने लगे।
परमजीत को तो कयादान शद से ह. वतृंणा हो उठती थी। दान वाली वःतु बनना उसे गवारा नह.ं था। इसीिलए ववाह कचहर. म= करना चाहती थी। परं तु शाद. ववाह के
मामले म= बे7टय( को नह.ं बोलना चा7हए। संभवत: इसीिलए परमजीत बोलना चाह कर भी कुछ नह.ं बोल पाई। और 'लाल सूट वाली कुड़.' लांवा फेरे लेकर, wािनय( के ¾ोक(
पर सवार होकर सेSटर अठारह से पंिह के बीच क सड़क लाँघ गई। राःते म= भीम बाग और जैन मं7दर उसके ववाह के मूक साZी बने खड़े थे।
साZी बनने के िलए बजली तैयार नह.ं थी। इसीिलए तो जब घर पहँु चे तो बी नदारद थी। फर.दाबाद म= बजली तो हर रोज़ गुल हो जाती है , 7दन म= लगभग चार से छह
घंटे तो बी के बना बताने ह. पड़ते ह; । 'सा¿ढे घर बजली द. क ज़Pरत है जी, सा¿ढ. तां बहू ह. ऐनी चमकली है 7क सारा घर उजला होया पाया है ।' बीजी अपनी खुशी
िछपा नह.ं पा रह. थीं।
ख़र.दने को तो दार जी नौकर. भी ख़र.द दे ते। परं तु हरद.प को तो न नौकर. करनी थी और न ह. दार जी के यापार म= हाथ बँटाना था, उसे तो 7कसी भी तरह वदे श जाना
था...बस... वहाँ जाना था... पैसा कमाना था और ऐश क Iज़ंदगी जीनी थी। उह.ं 7दन( एअरलाइन म= उड़ान पBरचारक( क नौकर. िनकली थी। वदे श क सैर का खुला
यौता! हरद.प को कह.ं से भनक लग गई 7क पगड़.-धारक िसख( को यह नौकर. नह.ं िमल सकती... बस! कर आया केश( का अंितम संःकार! कर 7दया दार जी क
भावनाओं का खून! हो गई नौकर. क तैयार.!
पर Sया नौकर. ऐसे िमलती है ? िलIखत पर.Zा दे नी होती है , पास करनी पड़ती है ... साZा8कार! या 7फर तगड़. िसफ़ाBरश। हरद.प के पास तो कोई भी अ¸-श¸ नह.ं था
इसिलए कोई भी बाधा लाँघ नह.ं पाया। पहली ह. सीढ़. से 7फसल कर िगर पड़ा।
आज पfमी न जाने 7कतनी सी7ढ़य( से नीचे िगर पड़. है । उसम= उठकर बैठने क ना तो ताक़त ह. है और ना ह. 7हfमत! ऐसा कैसे हो जाता है ? एक ह. घटना आप के समूचे
जीवन को कैसे तहस-नहस कर दे ती है । Iजजीवषा बहत
ु िनद
यी वःतु होती है । इं सान को जीवत रहने के िलए मजबूर करती रहती है । वरना Sया आज पfमी के पास जीने
का कोई बहाना है । उसके जीवन पर छाया अंधरे ा तो और भी वकराल होता जा रहा है ।
अंधेरे म= जीने का अ±यास है पfमी को! तभी तो बीजी क कटु बात= और दे वर( का िनद
यी यवहार भी उस अंधेरे को चीर कर उसे Zत-वZत नह.ं कर पा रहे ह; । 'म; तां पहले
ह. कहद. सी, कुड़. मंगली है । ऐथे याह नह.ं करणा! मेर. तां कद. कोई सुणदा ह. नह.ं!' बीजी का वलाप जार. था।
ु
'ना, उसके माँ पयो ने कुछ छपाया था Sया? साफ़-साफ़ बोल 7दता था 7क हमार. कुड़. तां मंगली है । ओस व तो तेरे काके ने ह. कह 7दया था 7क वोह इन बात( को माणता
ह. नह.ं। 7फर आज 7कस बात क िशकैत है ?'
'मेरा तां पुर चला गया! तुसी म;नूं ह. लेSचर दे रहे हो?'
'ओये जे तेरा पुर गया है तो, ओस अभागन का भी तो खसम चला गया! ओय सोच भागवाने, वधवा का जीवन 7कसी को चंगा लगदा है ?'
'हाय ओये, कुड़. न िनकली, डायण िनकली, लोको! माँ पयो ने अपनी डायण हमारे हवाले कर 7दती...हण
ु म; क करां जी?'
'करणा Sया है , बस अपणी बहु नू सँभालो! ....हरद.प क िनशाणी है उसदे पास... िनSके बmचे नूं उसने संभालणा है ।...म; तो कहता हँू ...!' और दार जी चु{प हो गए।
'क कहं दे हो...। कुछ बोलो तां सह.!'
'म; तो कहता हँू ... असी आप ह. थोड़े वकत के बाद कुड़. दा दसरा
ू याह कर द= । कुड़. दा जीवन संवर जाएगा...ते साड़. इएज़त रह जाएगी।'
'हाय ओये रबा! कैसा बाप है एह बंदा! ...अभी पुर नूं मेरे हता नह.ं होया, ते बहू दे दजे
ू याह द. गल करदा पया है ! ...हाय ओये!'
'अपणे बैण बस कर! पfमी क तरफ़ cयान दे ।' दार जी का धैय
चुकता जा रहा था।
पfमी अब भी उस कलश को ताके जा रह. है जो मरा है , उसक राख इसी कलश म= पड़. है । मरने वाला मरा भी तो जापान जाकर। 'काका, जा पान लै आ !' बीजी क बात
ू गई थी। भला उनका काका पूरा जापान कैसे ला सकता है ! 7कंतु आज तो उसी जापान ने उनके काके को और पfमी के हरद.प को पूरे का पूरा
सुनकर पfमी क हँ सी छट
िनगल िलया था।
जापान जाने क हठ भी तो हरद.प क ह. थी। कोई पSक नौकर. तो वहाँ थी नह.ं। 7फर भला Sया आवँयकता थी वहाँ जाने क। ववाह से पहले पfमी को यह कहाँ बताया
गया था 7क काका अवैध तर.के से जापान जाता है और दो-तीन वष
वहाँ बताकर, जेब= भरकर, वापस आ जाता है ।
'Sय( जी, आप ऐसा 'इल-लीगल' काम Sय( करते ह; । अगर कभी पकड़े गए तो?'
'ओय झिलJये, जब तक Bरःक नह.ं ल=ग,े तो यह ऐशो आराम के सामान कैसे जुटाएँ ग।े यह सार. इfपोट
ड चीज= कहाँ से आएँगी?'
'मुझे इन चीज़( म= कोई 7दलचःपी नह.ं जी! आप बस यह.ं र7हए जी! हम बस अपनी दाल-रोट. म= ह. खुश ह; ।'
'तो, आदरणीय पfमी जी, तुसी दाल-रोट. वच खुश रहो। ते बस आह ह. खांदे रहो! सरदार हरद.प िसंह दाल-रोट. म= खुश रहने के िलए नह.ं पैदा हआ
ु !'
'नह.ं जी, म; अब आपको वहाँ नह.ं जाने दँ ग
ू ी। आप एक बार तो वहाँ हो ह. आए ह; । शौक तो पूरा हो ह. चुका है , 7फर दोबारा जाने क Sया ज़Pरत है ? यहाँ दार जी का अmछा-
पfमी को तो कुछ समझ ह. नह.ं आ रहा था। उसके पJले तो यह बात ह. नह.ं पड़ रह. थी 7क इतने पचड़( म= पड़कर जापान जाने क ऐसी मजबूर. Sया है ? Sया इसी को
Iज़ंदगी बनाना कहते ह; ? पर... काका तो बहत
ु अकलमंद है न... पछली बार ह. पाँच लाख बचाकर लाया था, इfपोटd ड चीज़= अलग। भला सफल आदमी भी कभी ग़लत हआ
ु है !
7कसक मजाल जो सफलता को उसक किमयाँ बता सके? 7फर पfमी ह. भला कैसे अपने हरद.प को समझा सकती थी!
उJटा हरद.प ने ह. उसे समझा 7दया था। हरद.प के समझाने का नतीजा भी मह.ने भर म= सामने आ गया था। शम
से लजाकर पfमी ने बताया था 7क उसका जी खटा
खाने को करने लगा है । दार जी तो बmच( क तरह भंगड़ा पाने लगे थे। बीजी ने बलैयाँ ली थीं, बहू को काला ट.का लगाया... उसक नज़र उतार.... गुCारे ले जाकर माथा
7टकवाया... घर म= अखंड पाठ रखवाया। अबक बार बीजी ने भी पुर को समझाने क कोिशश क थी, 'पुरा, कुड़. दा पै र भार. है । मेर. गल मन, ऐस वार नां जा...पहला
बmचा है , तूं साथ होएंगा, तां कुड़. चंगा महसूस करे गी।'
'बीजी, कोई िनSक बmची थोड़े ह. है पfमी! 7फर आप हो, दार जी ह; ने, दो छोटे वीर ने, कोई इकJली थोड़. है ।'
'पुरा असी सारे बेगाने! उसका अपणा तो बस, तू ह. है ।'
7कतना सच कहा था बीजी ने! आज हरद.प क मौत के बाद सब बेगान( का-सा यवहार ह. तो कर रहे ह; । हरद.प तो बेटे का मुँह दे खे बना ह. चलाना कर गया।
'पfमी, इं सान अपने भवंय के िलए Sया कुछ नह.ं करता! 7दल छोटा नह.ं करदे पगली!'
'पता नह.ं Sय( जी, मेरा तो 7दल ह. नह.ं मानता 7क आप जापान जाओ। मेर. तो बस यह. तमना है 7क जब अपना बmचा पैदा हो, तो सबसे पहले आप ह. उसका चेहरा
दे ख=।'
चेहरे कैसे दरू चले जाते ह; । गायब हो जाते ह; । पfमी क माँ जचगी के िलए अपनी बेट. को अपने घर ले गई थी। आजकल घर म= कहाँ बmचे पैदा 7कए जाते ह; ? दाइयाँ तो
केवल कहािनय( म= रह गई ह; ... या 7फर पछड़े हए
ु गाँव( म=। शहर( म= तो बmचे निस¹ग होम म= ह. पैदा होते ह; । मायके वाले तो बस पैसे खरचते ह; , परे शानी उठाते ह; ता7क
होने वाला बmचा उनके जमाई के नाम को आगे बढ़ा सके। पfमी का पुऽ अपने पता क अनुपIःथित म= ह. इस दिनया
ु म= आ गया था।
काम करता है ! ...दार जी सब समझते ह; , 7क काका Sया काम करता है । घर म= एक वह.ं तो ह; जो पfमी क बात से सहमत ह; 7क हरद.प को जापान नह.ं जाना चा7हए। पर
काके को बीजी क पूर. शह है । बीजी का मन तो इfपोटd ड सामान के साथ बँधा रहता है । 7फर न जाने उह= इfपोटd ड बहू के ख़याल से Sय( डर लगता था।
डर तो पfमी को भी था 7क कह.ं कोई जापानी गु7ड़या उसके हरद.प को अपने जाल म= न फँसा ले। हरद.प को सत 7हदायत थी 7क हर साह वह पfमी को फ़ोन करे गा।
हरद.प भी अपना वादा हर साह िनभाता था।
7फर एक साह हरद.प का फ़ोन नह.ं आया। पfमी का माथा ठनका। बीजी ने Iझड़क 7दया, 'ना! जे एक हता फ़ोन नह.ं आया तां हो क गया...मुंडा कह.ं बजी हो गया
होगा। आजकल क लड़7कयाँ तो अपने खसम को गुलाम बनाकर ह. रखना चाहती ह; ।'
पfमी ने भी एक गुलाम क तरह चु{पी साध ली थी। अपनी भावनाओं को 7दल म= ह. दबा 7दया था।
परं तु वदे श म= बैठे हरद.प का बुख़ार उसके शर.र म= दबकर रहने को तैयार नह.ं था। भेद खुल जाने के डर से डॉSटर से दवा लेने म= भी नह.ं जा सकते थे। दोःत लोग
िमलकर ह. दवा करवा रहे थे। शर.र कमज़ोर पड़ गया था। दो कदम चलते ह. चSकर आने लगते थे। अवैध कम
चार. को तो रोज़ के पैसे रोज़ काम करने पर ह. िमलते ह; ।
काम नह.ं तो दाम नह.ं। मन ह. मन हरद.प को यह िचंता भी खाए जा रह. थी। बस इसीिलए कमज़ोर. क हालत म= भी काम पर िनकल पड़ा था।
पfमी को हर 7दन काटने को दौड़ रहा था। वह अपनी माँ से िमलने तक नह.ं जा पा रह. थी। अगर पीछे से हरद.प का फ़ोन आ गया तो? माँ का फ़ोन तो कई बार आ चुका
था और पता जी भी दो बार लेने आ चुके ह; । आIखरकर, पfमी ने सेSटर पंिह से अटठारह के बीच क सड़क लाँघने का मन बना ह. िलया।
हरद.प के सािथय( म= शोर मच गया। हड़कंप क-सी Iःथित थी। अवैध लाश! लावाBरस! उसे लेने कौन जाए? हरद.प के दस( दोःत भी तो अवैध थे - लावाBरस Iज़ंदा लाश=। जो
भी लाश लेने जाएगा, वह. धर िलया जाएगा। पर सतनाम के पास तो वैध वीज़ा था। वो तो हरद.प क दोःती के कारण सबके साथ रहता था। 7फर गुज़ारा भी सःते म= हो
जाता था। सतनाम ने जाकर लाश को पहचाना। पर अब लाश का कर= Sया?
Iज़ंदा इं सान का हवाई जहाज़ का 7कराया कम लगता है , परं तु लाश को जापान से भारत भेजना बहत
ु महँ गा सौदा बन जाता है । 7कसी ूोफेशनल से लाश पर लेप चढ़वाना,
ताबूत का इं तज़ाम, सरकार. लाल फताशाह., और हवाई जहाज़ का 7कराया! सतनाम ने सभी दोःत( से बातचीत क, सभी बड़े 7दल वाले थे। पंजाबी ख़ून ने ज़ोर मारा और दो
7दन म= ह. तीन लाख भारतीय पये के बराबर पैसा इकठा हो गया। सभी दोःत( ने अपने यार को ौांजिल के Pप म= यह पैसा एकऽत 7कया था।
सतनाम भारतीय दतावास
ू जाने क सोच रहा था। एक नया अफ़सर है , नवजोत िसंह। सुना है ख़ासा मददगार इं स ान है । दोःत( ने टोका, 'यार, यह एfबेसी के चSकर म= न
पड़ो। 7हं दःतानी
ु एfबेसी वाले तो बनता काम बगाड़ने के िलए मशहर
ू ह; ।'
'याद नह.ं पछली बार अवतार िसंह के साथ Sया 7कया था।' सतनाम परे शान हो उठा, 'भाई, एक बार चलकर तो दे ख ल=।'
सभी सतनाम क बात मान गए। आIखर इन सभी 'इल-लीगल(' म= एक वह. तो 'लीगल' था। गैर कानूनी ढं ग से दसरे
ू दे श म= जाकर िसंह भी कैसे चूहे हो जाते ह; ।
नवजोत िसंह भारतीय दतावा
ू स म= पछले साल भर से है । पछली बार पंजाब के एक लड़के ने आ8मह8या क थी, तब भी उसी के िसर सारा काम आन पड़ा था। उस लड़के
का मृत शर.र, अभी तक नवजोत को झुरझुर. 7दला जाता है ।
सतनाम िसंह क बात नवजोत पूरे cयान से सुनता रहा। उसने सतनाम क पीठ ठ(क, 'तुम सबने तो अपनी दोःती िनभा ली यारो। दो 7दन म= तीन लाख पये इकठे कर
िलए! अब मुझे कुछ सोचना है ।'
सतनाम मुँह नीचा 7कए खड़ा रहा। नवजोत के माथे पर पड़ते बल इस बात क घोषणा कर रहे थे 7क वह गहर. सोच म= डू बा हआ
ु है ।
'एक बात बताओ सतनाम िसंह तुम कह रहे थे 7क हरद.प िसंह क बीवी और एक बmचा भी है ।' नवजोत ने ठं ड. साँस लेकर पूछा।
'है जी!'
'तुमसे एक बात कहँू , तो बुरा तो नह.ं मानोगे?'
'कहो न साबजी! इस परदे स म= आप ह. तो हमारे माई-बाप ह; ।'
'सतनाम, अगर यह सारा पैसा इस लाश को 7हं दःतान
ु भेजने म= खच
हो गया, तो हरद.प क बीवी को Sया िमलेगा...बस एक लाश! उस पर वो अभागन 7बया-कम
का खचा
सतनाम 7कंकत
यवमूढ़ होकर रह गया था। उसे समझ ह. नह.ं आ रहा था, 7क उसक ूितबया Sया हो। उसे नवजोत िसंह बहत
ु ह. घ7टया आदमी लगा, Sय(7क भावनाओं क
कि उस इं सान म= बJकुल भी नह.ं थी। उसे नवजोत िसंह बहत
ु अmछा इं सान लगा। Sय(7क वह जीवत य के बारे म= सोच रहा है िसफ़
लाश के बारे म= नह.ं। 'बाऊ जी,
आप जो ठक समझ=, वह.ं करो जी।'
सतनाम ने वापस आकर सारे िमऽ( को नवजोत िसंह के मन क बात बताई। सभी क आँख( म= नवजोत का चBरऽ प=डुलम क तरह नायक और खलनायक के बीच झूल रहा
था। बुत बने बैठे थे सब। 7कसी भी िनण
य पर पहँु च पाना आसान था Sया? एक राय पर सभी िमऽ एकमत थे 7क फर.दाबाद म= हरद.प क बेवा से बात क जाए। जो वह
ठक समझे वह. 7कया जाए।
फ़ोन क घंट. बजी। दोपहर का समय था। दार जी ने फ़ोन उठाया। जापान से फ़ोन था। दार जी क आवाज़ ःवयमेव ह. ऊंची हो गई, 'हां जी! म; उसका फ़ादर बोल रहा हँू
जी। उसक वाईफ़ घर म= नह.ं है । जी! हाट!'
'हलो, िमःटर िसंह! आप हमार. आवाज़ सुन रहे ह; ?'
दार जी क गीली भरा
ई हई
ु आवाज़ िनकली, 'Sय( जी? काके का फ़ोन था, Sया बोला?'
'अब वोह कभी नह.ं बोलेगा, भागवाने!'
'शुभ-शुभ बोलो जी! वाहे गु मेहर करे !'
'हरद.प द. बीबी, काका सानूं छड के चला गया। जापान वाले काके दा 7बया-कम
वह.ं करके उसके पैसे पfमी के नाम भेज रहे ह; ।'
'पुर जी, अगर तुम लाश लेने जाओगे तो Sया ख़ास बात हो जाएगी?' दार जी का गुःसा बाहर आने को बेताब हो रहा था।
'दार जी, हम वहाँ वीर जी क जगह टो7कयो म= रहने का चSकर चला सकते ह; ।' कुलद.प 7ढठाई से बोला।
'ओये, हरद.प क मौत से भी तुमने कोई सबक नह.ं िलया?'
'चलो जी हम एक िमनट के िलए मान भी जाएँ 7क काके दा 7बया-कम
जापान म= हो जाए, तो सारे पैसे कल द. आई कुड़. को Sय( िमल=। पुर तो हमारा गया है !' बीजी ने
कुलद.प के सुर म= आवाज़ िमलाई।
दार जी िसर पकड़कर बैठ गए। उह= व_ास ह. नह.ं हो रहा था 7क इस औरत के साथ उह(ने इतना लंबा जीवन बता डाला, 'ओ, Iजसका खसम गया है , पहले उसे तो बताओ
7क वोह बेवा हो चुक है ।'
'पर दार जी, पfमी भाभी के आने से पहले हम घरवाल( को कोई फैसला तो कर लेना चा7हए। दोबारा जापान से फ़ोन आ गया तो Sया जवाब द= गे?' यह गुरूीत था, सबसे
छोटा।
दार जी अपने पBरवार को दे खकर है रान थे, Zुध थे... अपने ह. पुऽ या भाई के कफ़न के पैस( क चाह इस पBरवार को कहाँ तक िगराएगी, उह= समझ नह.ं आ रहा था। मन
7कया सब कुछ छोड़-छाड़कर संयास ले ल=। पर अगर वे नह.ं ह(गे तो पfमी का Sया होगा? यह िग तो सामू7हक भोज करने म= ज़रा भी नह.ं, 7हच7कचाएँग।े 'पुर जी आप
अपणे भाई और माँ के साथ फ़ैसले करो, म; ज़रा जाकर अपनी बहू को उसक बरबाद. क खबर दे आऊँ।'
पंिह सेSटर पर िगर. बजली को दार जी अठारह सेSटर अपने साथ ले गए। सरदार वरयाम िसंह और सुरजीत कौर के तो पैर( के नीचे से मान( ज़मीन ह. िनकल कई।
पfमी तो चीख मारकर बेहोश ह. हो गई। बस चार-पाँच मह.ने ह. तो बताए थे अपने पित के साथ।
'वरयाम िसंह जी, आप जी द. Sया राय है ? जापान वाल( को Sया जवाब 7दया जाए?'
'सरदार साहब, आप बड़े ह; , अSलमंद ह; , दिनया
ु दे खी है आपने। आप जो फैसला कर= गे, वोह तो ठक ह. होगा।' सरदार वरयाम िसंह के हाथ जुड़े हए
ु थे।
'दे ख भाई वरयाम िसंह, यह फैसला म; अकेला नह.ं कर सकता। मेर. हालत से तो तू अmछ तरह वा7कफ़ है । अभी तक न जाने कैसे सब कुछ सहे जा रहा हंू फ'
'सरदार सा7हब, आप जो भी फैसला कर= , ज़रा पfमी के भवंय का ज़Pर ख़याल कर= ।'
'भवंय क बात तो बाद म= सोच=गे। अभी तो पfमी को मेरे साथ रवाना कर= । घर मे सौ अफ़सोस करने वाले आएँगे।' दारजी उठ खड़े हए।
ु
वरयाम िसंह और सुरजीत कौर पfमी और उसके पुऽ को िलये पंिह सेSटर क ओर चल 7दए। भीम बाग और जैन मं7दर पfमी क सूजी आँख= दे खकर भी चुप थे। िनरपेZ
खड़े थे।
बीजी ने सबको दे खा तो उनका ःयापा और ऊँचा हो गया। दार जी ने पfमी को अलग से बुलाया और उससे एक बार 7फर वह. सवाल 7कया। पfमी के पास िसवाय रोने के
और कोई जवाब नह.ं था। दार जी के 7दमाग़ म= वरयाम िसंह क आवाज़ गूँज रह. थी, 'ज़रा पfमी के भवंय का ख़याल ज़Pर कर= ।'
जापान से फ़ोन आया। दार जी ने फ़ोन उठाया। पfमी क ओर दे खा। पfमी क रोती हई
ु आँख( म= लाचार. साफ़ 7दखाई दे रह. थी। बीजी, कुलद.प और गुरूीत क आँख= और
दार जी ने पfमी के िसर पर हाथ फेरकर उसे कमरे म= जाने को कहा। पfमी एक लुटे-पटे मुसा7फ़र क तरह 7कसी तरह अपने कमरे तक पहँु च गई।
रात को बीजी ने एक और चाल चली, 'सुणो जी, म; एक बात कहँू , बुरा तो नह.ं मानोगे।'
'बोलो', दार जी क दद
भर. आवाज़ उभर.।
'अगर कुलद.प पfमी पर चादर डाल दे , तो कैसा रहे ? घर क इएज़त भी घर म= रह जाएगी और...'
अIःथयाँ और ब;क साझट आ पहँु चे ह; । बाहर बीजी का ूलाप जार. है , दार जी दखी
ु ह; । और अंदर कमरे म= पfमी अपनी सूजी आँख( से कलश को दे ख रह. है । उसने तीन
लाख पये का साझट उठाया। उसे समझ नह.ं आ रहा था 7क यह उसके पित क दे ह क कमत है या उसके साथ बताए पाँच मह.न( क कमत।
उसका पुऽ अभी भी जुकाम से बंद नाक से साँस िलए जा रहा है ।
पासपोट
के रगं
"म; भगवान को हाIज़र नाIज़र जान कर कसम खाता हँू 7क ॄटे न क महारानी के ूित िनLा रखूँगा।" अंमेज़ी म= बोले गए ये शद
एवं इनके बाद के सभी वाSय पं7डत गोपाल दास ऽखा को जैसे 7कसी गहरे कुएँ म= से आते ूतीत हो रहे थे। वे है रो के िसवक स=टर
म= बीस पmचीस गोरे , काले, भूरे रं ग के अलग-अलग दे श के और पीले रं ग के चीनी लोग( के साथ ॄटे न क महारानी के ूित वफ़ादार.
क कसम= खा कर ॄटे न क नागBरकता महण कर रहे थे। अपने आपको िधSकार भी रहे थे।
"पापा, आप भी कमाल करते ह; । अब भला इस व आप पाटशन क बात ले कर बैठ जाएँगे तो लाइफ़ आगे कैसे बढ़े गी? 7कया होगा
अंमेज़( ने जुJम कभी हमारे दे शवािसय( पर। ले7कन इसका मतलब यह तो नह.ं 7क हम जीवन को रोक कर बस, उसी पल को बार-बार
Iजए जाएँ।"
"बेटा तू नह.ं समझ सकता। मेरे िलए ॄटे न क नागBरकता लेने से मर जाना कह.ं बेहतर है । म;ने अपनी सार. जवानी इन गोरे साहब(
से लड़ने म= बता द.। जेल( म= रहा। मुझे तो फाँसी क सज़ा तक हो गई थी। ले7कन. . ."
"अब आप दोबारा अपनी रामायण लेकर शुP मत हो जाइएगा।"
"बेटा तू मुझे वापस भारत भेज दे । म; 7कसी तरह अपनी IजंÁगी बता लूँगा वहाँ। तुझसे कभी 7कसी चीज़ क िशकायत नह.ं कPँगा।
मुझे ऐसी मौत मत मार। म; 7हं दःतानी
ु पैदा हआ
ु था और 7हं दःतानी
ु ह. मरना चाहता हँू । म; ऊपर जा कर तेरे दादाजी और दे श पर
मर िमटने वाले अपने सािथय( को Sया मुँह 7दखाऊँगा बेटा?" तेर. माँ को ये सब पता चलेगा तो उसे 7कतना ख़राब लगेगा?"
लाहौर से 7दJली आना उनक मजबूर. थी। अपनी जमभूिम को उस समय छोड़ना उह= बहत
ु परे शान कर रहा था। 7कंतु कोई चारा नह.ं था। वहाँ 7कसी पर व_ास नह.ं बचा
था। दोःत दोःत को मार रहे थे। हर आदमी या तो 7हं दू बन गया था या 7फर मुसलमान। Bरँते जैसे ख़8म ह. हो गए थे। सभी इं सान धािम
क हो गए थे और जानवर क
तरह बरताव कर रहे थे।
मजबूर. तो इं Mल;ड आना भी थी। ले7कन यह मजबूर. बछड़ने क नह.ं, िमलने क थी, साथ रहने क थी। पी क मृ8यु के बाद का अकेलापन, 7कसी अपने के साथ रहने क
चाह और इकलौता पुऽ। यह. सब गोपालदास जी को लंदन ले आया था। बेट. ववाह के बाद अमर.का म= है और बेटा इं Mल;ड - बेचारे गोपालदास जी अकेले फर.दाबाद म=
अपनी बड़.-सी कोठ म= कमरे िगनते रहते। अिधकतर Bरँतेदार 7दJली म=। अब तो फर.दाबाद से 7दJली जाने म= भी शर.र नाराज़गी ज़ा7हर करने लगता था। ऐसे म= ज़ा7हर-सी
बात है 7क इं िेश ने अपने पता क एक नह.ं सुनी और उह= लंदन ले आया था।
आज यह. लंदन गोपालदास जी को जैसे और अिधक पराया लगने लगा था। आजकल वो विध और अगः8य से भी कम बात करते थे। अगः8य छोटा है , बार-बार अपने दादा
जी से िचपटता रहता है । विध महसूस करती थी 7क दादा जी परे शान ह; । अपनी मीठ-सी अंमेज़ी म= पूछ लेती थी, "दादा जी, आप हर व Sया सोचते रहते ह; ?" दादा जी
Sया जवाब द= । अपनी छोट.-सी नह.ं पर. को Sया और कैसे बताएँ अपने 7दल का दद
। बस ःटार यूज़ और ज़ी ट.वी उनके साथी बन गए थे। बार-बार वह. ख़बर= सुनते
रहते। भारत के बारे म= भारतवािसय( से अिधक गोपाल दास जी को ख़बर रहती थी।
सरोज बाउजी के साथ िलवंग Pम तक चली गई। बाउजी के शर.र का र ूवाह तेज़ होता जा रहा था, "तू खुद ह. सुन लै पुर। अभी मेन यूज़ दोबारा आएगी।" जब तक
मुय समाचार म= सरोज ने सुन नह.ं िलया 7क बाउजी ने ठक सुना है , तब तक वह बाउजी के चेहरे पर बदलते भाव पढ़ती रह.। उसे इं िेश पर गुःसा भी आ रहा था 7क
उसने बाउजी को 7फ़ज़ूल क मुसीबत म= डाल 7दया है । अगर बाउजी को वीज़ा लेने जाना होता था तो अपने आप ह. जा कर ले आते थे। इसी बहाने अपने आप को बज़ी भी
रखते थे।
इं िेश टे िलफ़ोन पर बात कर रहा था और भाव( का सूचकांक बाउजी के चेहरे पर 7दखाई दे रहा था।
"बाउजी, ऽलोक कह रहा है 7क अभी तो िसफ़
ूधानमंऽी ने घोषणा क है , बस। अभी यह बल बना कर पािल
याम=ट म= पेश होगा, पास होगा, 7फर उस पर राeपित के दःतख़त
ह(गे, 7फर एSट बनेगा तब जा के लागू होगा 7फर उसके फ़ाम
वगैरह बन=गे तब कह.ं जा कर आम आदमी तक पहँु चेगी दोहर. नागBरकता। 7फलहाल तो यह बस ूवािसय( को
खुश करने भर का सामा लगता है ।"
"यार ये कोई कांमेसी ूधानमंऽी नह.ं है । यह करे Sटर वाला बंदा है । आर.एस.एस. का आदमी है । झूठ नह.ं बोल सकदा। ऽलोके को कह 7कसी तरह 7दJली से पता लगवाए।"
"बाउजी, पॉलीट.शन सभी एक से होते ह; । आज़ाद. के बाद सभी का एक ह. उे ँय बचा है । बस लूट लो Iजतना लूट सको। 7कसी को भी जनता क परवाह नह.ं।"
गोपालदास जी को इस समय राजनीितw( के चBरऽ पर बहस करने म= कोई िच नह.ं थी। रात भर परे शान रहे । बस बःतर पर करवट= बदलते रहे । सुबह उठे , 7दनचया
से
िनवृ हए
ु , नाँता 7कया, तैयार हए
ु और िनकल पड़े । बेकरलू लाइन ले कर सीधे ऑSसफड
सक
स, वह.ं से स=शल लाइन ले कर होबन
अंडरमाउं ड ःटे शन पहँु च।े होबन
को वे
हमेशा होलबोन
ह. कहते ह; । उसके ःपैिलंग ह. ऐसे ह; । अंमेज़ी के साइल=ट लेटर हमेशा ह. उनको परे शान करते ह; । होबन
से बाहर िनकल कर बाएँ को मुड़े और आ7हःता-
आ7हःता चल 7दए भारतीय उmचायोग भवन क ओर। उनके िलए घर बैठे रह पाना संभव नह.ं था। वे ःवयं पता करना चाहते थे 7क ूधानमंऽी ने Sया कहा है ।
सामने बी.बी.सी. का बुश हाउस 7दखाई 7दया। आJडवच इलाके म= बस यह. दो भवन ह; Iजनसे गोपालदास जी को 7दली लगाव है । एक तो बी.बी.सी. का बुश हाउस और
दसरा
ू भारत भवन। बी.बी.सी. दे ख कर गोपालदास जी को वो सभी महान समाचार वाचक याद आ जाते थे Iजनक आवाज़ सुनने के िलए वे अपने रे 7डयो पर शाट
वेव पर
बी.बी.सी. सेट करते परे शान होते रहते थे। कभी भी बहत
ु साफ़ नह.ं आता था ले7कन बात साफ़ करता था। ठक उसी ह. तरह गोपालदास जी भी बात साफ़ और खर. करते
ह; चाहे सामने वाले को पसंद आए या न आए।
वह लड़क गड़बड़ा गई, 'एSसSयूज़ मी' कह कर अपने अफ़सर को बुलाने चली गई। उसका अफ़सर भारतीय था। सरदार 7दलीप िसंह, "दे Iखए ऽखा साहब, पािल7टकल ःटे टम=ट
और सरकार. काय
वाह. म= बहत
ु फ़क
होता है । 7दJली म= ूधानमंऽी ने एक पॉिलसी ःटे टम=ट द. है , बस। अब उस पर काम शुP होते-होते कोई छ: सात मह.ने तो लग ह.
जाएँगे। हमारे ःटाफ़ तक तो अभी यह ख़बर भी नह.ं पहँु ची 7क ूधानमंऽी ने ऐसी कोई ःटे टम=ट भी द. है ।" 7दलीप िसंह ने भी वह. बात दोहरा द. जो ऽलोक शमा
ने कह.
थी।
गोपालदास जी वापस है रो एँड वीJडःटोन ःटे शन से सीधे घर न जा कर लायॄेर. क तरफ़ चल 7दए। वहाँ मधोक साहब और बधवार जी िमल गए। "भाई लोग(, आपने
डयूएल नेशनेिलट. वाली ख़बर पढ़. है Sया?"
ख़बर दोन( ने पढ़ ली थी। मधोक साहब का अपना ह. अंदाज़ था, "ऽखा जी, म;ने तो अभी तीन मह.ने पहले ह. पाँच साल के वीज़े पर सौ पाउं ड खरचे ह; । मुझे तो कोई जJद.
पड़. नह.ं है दोहर. नागBरकता क। जब लागू होगी तब दे खा जाएगा। अभी से Sय( 7दमाग़ ख़राब कPँ। 7फर अपना अभी वहाँ कोई ूापट वगैरह ख़र.दने का भी कोई ूोमाम
है नह.ं।"
बधवार साहब ऽखा जी क मानिसकता से पBरिचत थे, "म; समझता हँू ऽखा जी 7क आपके िलए दोहर. नागBरकता के अथ
कुछ और ह. ह; । ले7कन आप तो जानते ह. ह; 7क
अपनी भारतीय सरकार हर काम म= 7कतना टाइम लेती है । पचास साल म= 7हं द. को भारत क राजभाषा नह.ं बना पा}। कह.ं यह दोहर. नागBरकता वाला मामला भी पचास
साला योजना न हो।"
"मेरे 7हसाब से तो यह बस ूवािसय( को खुश करने क एक भ(ड. कोिशश से एयादा कुछ भी नह.ं है ।" यह दवे साहब थे। जो पास ह. बैठे तीन( क बात= सुन रहे थे।
दखी
ु मन िलए गोपालदास जी घर वापस आ गए। सोच थी 7क पीछा नह.ं छोड़ रह. थी। एक, दो, तीन, चार, आठ मह.ने बीत चुके थे ले7कन दोहर. नागBरकता अभी तक दे हर.
लाँघ कर ऽखा जी के घर नह.ं पहँु च पाई थी। बीतते-बीतते क़र.ब एक वष
ह. बीत गया। दसरा
ू ूवासी 7दवस भी आ पहँु चा। पुऽ से बात करके भारत जाने का काय
बम
जनवर. मह.ने का ह. बनवा िलया। सोचते थे 7क जब ूवासी 7दवस मनाया जा रहा होगा उसी समय शायद कुछ नई बात िनकल आए और उनक बात बन जाए।
गोपालदास जी पहली बार भारत के िलए वीज़ा लेने जा रहे थे। बहत
ु शम
आ रह. थी। सुबह नाँते के समय इं िेश क ओर दे खा, "पुर जी, Sया तुम ऽलोक को कह कर मेरे
िलए वीज़ा नह.ं लगवा सकते। भारत के िलए वज़ा अ{लाई करने म= बहत
ु अजीब-सा लग रहा है ।"
इं िेश ने सरोज को कह 7दया 7क इं टरनेट से आज फाम
डाउनलोड करके बाउजी से भरवा ले।
" पुर वीज़ा िसफ़
िसंगल ऐंश. ह. अ{लाई करना है । दसरे
ू 7शप तक तो दोहर. नागBरकता लागू हो ह. जाएगी।"
इं िेश मुःकरा भर 7दया, "बाउजी आप भी बस।"
भारत म= बाउजी ने सोचा 7क ूवासी 7दवस म= शािमल हो आएँ। ले7कन उनका मन नह.ं मान रहा था 7क दो सौ डॉलर क फ़स दे कर अपने दे श म= ूवासी 7दवस म= शािमल
ह(। 7फर वे Bरपोट
पढ़ते रहे 7क सारा का सारा ूवासी 7दवस अंमेज़ी म= मनाया जा रहा है । 7हं द. बेचार. वह.ं खड़. है जहाँ बधवार जी बता रहे थे।
ूधानमंऽी ने दरदश
ू न पर एलान 7कया 7क दोहर. नागBरकता अब सोलह दे श( के भारतीय( को द. जा सकेगी। बाउजी सोच रहे थे 7क जब सोलह दे श( क बात क जा रह. है
तो Iजनके िलए पहले वष
म= घोषणा क जा चुक है , उनको तो अवँय ह. इस वष
िमल जाएगी। उह(ने ूधानमंऽी से िमलने के बहत
ु ूयास 7कए। ले7कन जनता के
ूितिनिधय( को P-ब-P िमल पाना Sया इतना आसान होता है ।
गोपालदास जी वदे श मंऽालय के दझतर के भी चSकर लगाते रहे । ौीवाःतव जी और ःवPप िसंह से मुलाक़ात क। मुःकुराहट= तो िमलीं, दोहर. नागBरकता बस दरू खड़. थी
दरू ह. रह.। और गोपालदास जी वापस अपने दे श आ गए। अपने दे श यानी लंदन। अब वो इसी दे श के नागBरक थे।
वे वापस आए और भारत म= सरकार बदल गई। वह. कांमस
े वापस Iजससे गोपालदास जी को िशकायत रहती थी। एक तो यह मी7डया भी गोपालदास जी को आराम से नह.ं
जीने दे ता। कभी भी कुछ भी छापता रहता है । इं टरनेट से सरोज ह. एक ख़बर िनकाल कर लाई थी 7क कांमेस सरकार ने एक ूवासी मंऽालय बना 7दया है । गोपालदास जी
को व_ास हो चला था 7क जब सरकार ने मंऽालय तक बना डाला है तो दोहर. नागBरकता एयादा दरू नह.ं हो सकती। उनका उ8साह दोगुना बढ़ गया था। ले7कन उनके िमऽ
अब उनसे दरू ह. भागते थे।
"लो वो बोर 7फर आ गया। अब सारा टाइम दोहर. नागBरकता क भ=ट चढ़ जाएगा।"
"यार इस आदमी को और कोई काम है या नह.ं, बस सारा व यह. सोचता रहता है । पागल हो जाएगा कुछ 7दन( म=।"
"ये हो जाएगा Sया होता है जी। हो चुका है । इस तरह क बात= पागल ह. कर सकते ह; ।"
बस एक बधवार जी थे जो गोपालदास जी क मनोदशा को समझ पा रहे थे। वह. उनसे बात भी करते थे और अपनी राय भी दे ते रहते थे, "गोपालदास जी, आज अख़बार म=
ख़बर आई है 7क ूवासी मंऽी ने आःशे िलया म= दोहर. नागBरकता दे ने के फ़ाम
अपने हाथ( से बाँट कर दोहर. नागBरकता क शुआत कर द. है । यह दे Iखए, अख़बार आपके
सामने ह; ।"
गोपालदास जी ने अख़बार दे खा, समाचार दे खा और अख़बार वह.ं रख 7दया। और घर क ओर चल पड़े । उनके साथी है रान 7क इतनी बड़. ख़बर और गोपालदास जी बना कोई
7ट{पणी 7कए चल 7दए।
अंदर का ¯ँय ठक वैसा ह. था जैसा 7क पछली बार। अबक बार उह(ने फ़ाम
माँगने क जगह अपना अख़बार काउं टर Sलक
के सामने रख 7दया। काउं टर पर बैठ म7हला
परे शान-सी हो उठ। पछली मुलाक़ात उसे याद आ गई। ले7कन आज गोपालदास जी का गुःसा बहत
ु उम होता जा रहा था, "आप समझती Sया ह; अपने आपको। यहाँ आपका
ह. मंऽी आःशे िलया म= जा कर फ़ाम
बाँट रहा है , उसक फ़ोटो तक छपी है और आप कहती ह; 7क आपके पास अबतक फ़ाम
नह.ं आए ह; । बुलाइए अपने अफ़सर को, कराइए
मेर. बात। यह भला कोई तर.क़ा हआ
ु 7क दो साल तक ूधानमंऽी कहते रहे 7क दोहर. नागBरकता द. जाएगी। अब ूवासी मंऽी फ़ाम
बाँटता साफ़ 7दखाई दे रहा है और आप
कहती ह; 7क आपने 7दJली से SलैBर7फ़केशन माँगा है । आप लोग काम करना ह. नह.ं चाहते। ज़Pर आप लोग कोई नया अलाउं स माँग रहे ह(गे। यह यूरोबेसी क वजह से
कभी कोई काम हो ह. नह.ं सकता। हमार. दोहर. नागBरकता के राःते के सबसे बड़े रोड़े आप लोग ह. ह; ।"
वाटरलू ःटे शन से ह. बेकरलू यूब ले ली। घर पहँु च।े सरोज को दे ख कर सकपका गए। कह.ं ऽलोक ने फ़ोन न कर 7दया हो। सरोज ने बना कुछ पूछे चाय बना कर आगे
रख द.। बIःकट के साथ चाय पी। अपने कमरे म= चले गए। इं िेश शाम को घर लौटा, "सरोज, बाउजी क तबीयत शायद एयादा बगड़ती जा रह. है । आज हाइ कमीशन म=
जा कर नाटक कर आए ह; । ऽलोक का फ़ोन आया था मुझे।"
"Sय(, ऐसा Sया कर आए?" सरोज परे शान हो उठ, "दे Iखए आज कुछ क7हएगा मत। हाइ कमीशन से बहत
ु परे शान लौटे ह; । मुझे तो पता नह.ं था 7क वहाँ गए थे। ले7कन
चेहरा दे ख कर मुझे लगा 7क बहत
ु िनराश 7दखाई दे रहे ह; । आप कल समझा द.Iजएगा। 7डनर टे बल पर कुछ मत क7हएगा।"
विध बाउजी को बुलाने गई तो कमरे म= अँधेरा था। टे िलवजन पर ःटार यूज़ चल रह. थी। उसने आवाज़ द. ले7कन उसक पतली-सी आवाज़ ट..वी. क आवाज़ म= दब गई।
उसने बी जलाई। दे खा 7क बाउजी एकटक छत को दे खे जा रहे थे।
वह घबरा कर बाहर आ गई और ममी पापा को बताया। इं िेश और सरोज दोन( एक साथ कमरे म= आए। बाउजी को आवाज़ द.। गोपालदास जी एकटक छत को दे खे जा रहे
थे। उनके दाएँ हाथ म= लाल रं ग क ॄ7टश पासपोट
था और बाएँ हाथ म= नीले रं ग का भारतीय पासपोट
। उह(ने ऐसे दे श क नागBरकता ले ली थी जहाँ के िलए इन
पासपोट क ज़Pरत नह.ं थी।
ःटार यूज पर नए ूधानमंऽी घोषणा कर रहे थे 7क अब वदे श म= बसे सभी भारतीय( को दोहर. नागBरकता ूदान क जाएगी।
एक भाई क चार िचंताएँ और उनम= म; माता-पता क चौथी िचंता थी। मुझसे पहले क तीन िचंताओं से मु होते-होते पता क
कमर टे ढ़. हो चुक थी। म; थी 7क पढ़ना चाहती थी। िचंता दर िचंता! लड़क य7द अिधक पढ़-िलख गई, तो लड़का कहाँ से िमलेगा!
अपनी बरादर. म= तो एयादा पढ़े -िलखे लड़के ढँू ढे से नह.ं िमलते।
कहते ह; ढँू ढने से तो भगवान भी िमल जाते ह; । परतु भगवान के बनाए हए
ु इं सान! इं सान न भी िमले तो Sया फ़क
पड़ता है ?
जो भी िमले उसी के पJले बाँध दो। माँ-बाप को तो गंगा नहानी है , लाख समझाती रह., िमनत= करती रह. पर नह.ं! पढ़-िलख कर
ख़राब होने से कह.ं अmछा है अपना घर बसाओ, पित का cयान रखो और बmच( को पालो। कुछ य( सा महसूस होने लगा था, जैसे म;
कोई इं सान नह.ं हँू , केवल एक मादा शर.र हँू , Iजसे 7कसी भी नर शर.र के खूँटे पर बाँध दे ना है ।
बँधना नह.ं चाहती थी, ऐसा भी नह.ं था, रजत को दे खकर मेरे मन म= कुछ-कुछ होता था। मन चाहता था उसे Iखड़क से दे खती रहँू ।
हम दोन( के घर लगभग आमने-सामने थे। उसक Iखड़7कय( का रं ग बाहर से नीला था। उसी Iखड़क म= नीली कमीज़ पहने खड़ा
रजत, मुझे आकष
त करने के िलए ज़ोर से िचटकनी बद करता था। म; अपनी Iखड़क म= खड़े होकर कभी बाल बनाने लगाती तो कभी कुछ गुनगुनाने लगती। हम Iखड़7कय(
के ६ेम म= जडे फ़ोटो ह. बने रह गए। Iखड़7कय( से कभी बाहर ह. नह.ं िनकल पाए।
शाद. कर ल=ग।े रजत, मुझे {यार तो करता था, 7कतु मेर. पढ़ाई से उसे भी कोई सरोकार नह.ं था। उसने भी कभी अपने मुँह से यह नह.ं कहा था 7क मेर. पढ़ाई ववाह के
बाद भी पूर. हो सकती है । उस समय तो मुझे रजत क यह अदा भी बुर. नह.ं लगती थी। उसके िलए तो म; अपना सव
ःव, अपना जीवन, होम करने को तैयार थी।
जीवन तो अंततः होम हो ह. गया था। माता-पता के हठ के सामने मेर. एक भी नह.ं चल पाई थी। अपने दरू के 7कसी Bरँतेदार के पुऽ के साथ बाँध 7दया था मुझे पताजी
ने। अभी तो सऽह क ह. थी 7क अिमता से ौीमती यादव हो गई थी। अभी ौीमती बनने का शहर भी तो नह.ं सीखा था। रजत क चाँदनी बनना और बात थी। परतु
रामIखलावन यादव के पBरवार के तो िनयम( तक से वा7कफ़ नह.ं थी म;।
वा7क़फ़ होने म= Sया समय लगना था। पहली ह. रात को पित के वहिशयाना बता
व ने सब कुछ समझा 7दया था 7क अिमता यादव बने रहने के िलए, जीवन भर Sया-Sया
ू पड़ा था अपने िशकार पर। िनर.ह मेमने क तरह बेबस-सी पड़. थी म;। पीड़ा क एक तेज़ लहर टाँग( को चीरती हई
सहना पड़े गा। जैसे एक भे7ड़या टट ु िनकल गई थी। शराब
और तंबाकू क महक, उबकाई को दावत दे रह. थी। दद
ने चीख़ को बाहर िनकलने को मजबूर कर ह. 7दया। चीख़ क परवाह 7कसे थी। चादर लहू से लथपथ हो रह. थी।
चेहरे पर वजयी मुःकान िलए वोह! जो मेरा रखवाला था, ःवयं ह. मुझे ज़उमी और आहत छोड़कर आराम क नींद सो रहा था।
ू चुका था। रामIखलावन यादव के पBरवार ने एक दBरि पBरवार क पुऽी को अपने घर क बहु बनाया था। बहु के िलए
आराम! इस शद से अब मेरा संबंध सदा के िलए टट
आवँयक था 7क वह घर म= ग़र.ब बैल क तरह जुट. रहती। ग़र.ब पता के घर भी गर.ब थी, और अमीर ससुराल म= भी गर.ब। नौकर( के घर म= होते हए
ु भी ऐसा Sय( होता
था 7क म; ःवयं अपने आपको उह.ं नौकर( म= से एक पाती थी। म; Sय( अपने आपको उस घर का सदःय नह.ं बना पा रह. थी। कुछ य( सा भी तो लगने लगा था जैसे म;
7कसी दसरे
ू मह से भटककर इस मह म= पहँु च गई हँू । इस भटकाव का खािमयाजा भुगत रह. थी।
भटकाव! मेरे पित के जीवन म= ऐसा भटकाव Sय( था? इस सवाल का जवाब ढँू ढ पाना आसान काम नह.ं था। म; Pप सुदर. चाहे ना रह. होऊँ, परतु मुझे एक बार दे खकर
लड़के दोबारा मुड़कर अवँय दे खते थे। बहत
ु से लड़के मुझसे दोःती करने को उ8सुक रहते थे। वो सब केवल उॆ का तकाज़ा था या म; उह= सचमुच अmछ लगती थी। दप
ण
तो आज भी मेरे Pप क गवाह. दे ने से नह.ं चूकता। 7फर मेरे पित को मुझम= Sया कमी 7दखाई दे ती थी? Sय( वह मुझे छोड़कर 7कसी भी ऐर.-गैर. के पीछ भागता रहता था।
सास को भी इसम= कोई बुराई नह.ं 7दखाई दे ती थी। उसे लगता था 7क उसका लाडला है ह. इतना सुदर 7क उसे दे खकर 7कसी भी लड़क का उस पर मर िमटना ःवाभावक
ह. है ।
ःवाभावक तो था मेरा उस घर से ऊब जाना। माता-पता से िनराशा, ससुराल से िनराशा, पित से िनराशा। इतनी सार. िनराशा के बावजूद म; Iज़ंदा थी। सोती थी, जागती थी,
मुसकुरा भी लेती थी, रोती थी। रोती तो थी ह. रोने के अितBर और कर भी Sया सकती थी। और अब तो रोने के साथ सुबह क उIJटयाँ भी शािमल हो गई थीं।
घर क हर चीज़ उलट. थी। उसके साथ उIJटयाँ तो होनी ह. थीं। म; माँ बनने वाली थी। माँ! माँ तो मेर. भी बहत
ु अmछ है । पर मुझे अपनी माँ जैसी माँ नह.ं बनना था। ढे र
से बmचे पैदा करो और जीवन भर उनक परवBरश म= खटते रहो। कैसा जीवन है यह? कभी सोचा करती थी, बस! मुझे एक ह. बmचा चा7हए। बेटा हो या बेट.? इसके बारे म=
कभी सोचा ह. नह.ं था। भला म; अपने बmचे के िलंग के बारे म= Sय( सोचती? Sय( िचंता करती? Iजनको करनी है , कर= ।
िचंता करने वाल( क कमी थी Sया? भला मेरे सोचने या ना सोचने से Sया फ़क
पड़ने वाला था। बाक सभी को िचंता खाए जा रह. थी 7क बेटा होगा या बेट.। लड़का होगा
तो Sया नाम रख=ग।े उसके निनहाल से Sया आएगा। कैसा समारोह मनाया जाएगा। ढोल-ताश( का ूबंध कैसा रहे गा। मुहJले भर म= िमठाइयाँ बँट=गी। जाने Sया-Sया 7कया
जाएगा।
अब मेर. सहनश भी जवाब दे ने लगी थी। 7कसी ह8यारे को भी संभवतः ऐसा दं ड कभी ना 7दया गया होगा जो दं ड मुझे नीिलमा को इस संसार म= लाने के जुम
म= 7दया जा
रहा था। शर.र क नस-नस म= ज़हर भरा जा रहा था।
''हरामज़ाद.! लड. पैदा करके बहत
ु तीर मार. हो का? का समझती हो अपने आप को! हमरा सामने मुँह चलाती है ! ससुर. के सभेई दाँत तोडे डाले ह; ना! तभे ह. मार. बात
समझेगी - पतुBरया!''
इतनी बेइjज़ती! ऐसा िनरादर! सांस लेने के िलए भी मार खानी पड़े गी? समय आ गया था िनण
य लेने का। परतु म; कौन होती थी िनण
य लेने वाली। म; तो यादव खानदान
क माऽ बहू थी। िनण
य लेना मेरे अिधकार Zेऽ के बाहर क चीज़ थी। िनणा
यक( ने िनण
य ले ह. िलया था। म;।। म; अब रामIखलावन यादव के पBरवार के िलए आवँयक
वःतु नह.ं रह गई थी। कह 7दया गया, बहत
ु आसानी से कह 7दया गया, ''इस पBरवार को तुfहार. कोई ज़Pरत नह.ं। अपनी मनहस
ू सूरत और उससे भी अिधक मनहस
ू बेट.
को उठाओ और यहाँ से दफ़ा हो जाओ।''
दफ़ा तो हो जाती। पर जाती कहाँ? माता-पता तो सुनते ह. बेहोश हो जाते। बसा बसाया घर 8यागकर उनक बेट. वापस आ गई। भाई और बहन( क भी हमदद तो थी
परतु सभी क मजबूBरयाँ थीं। भाई क धम
पी थी तो बहन= 7कसी ना 7कसी क धम
-पIयाँ थीं। हम लोग 7कतने धािम
क हो जाते ह; । धम
के Bरँते, खून के Bरँत( के
मुकाबले कह.ं अिधक वज़नदार हो जाते ह; ।
ऐसे म= अपने एक पुराने अcयापक क याद आई थी। अपना बनने के िलए, अपना ना होना 7कतना आवँयक होता है । जो अपने होते ह; , वो 7कतनी आसानी से अपने नह.ं
रहते। और जो अपने नह.ं होते, बना 7कसी ःवाथ
के 7कसी को अपना लेते ह; । ऐसे ह. ह; अपने पुर. सर! बना 7कसी मतलब के अपना संरZण भरा हाथ मेरे िसर पर रख
7दया था। उनके संरZण का सीधा-सा अथ
था मेर. पढ़ाई का पुनजवत होना। आज भी उनका माग
दश
न मेरे जीवन के िलए उतना ह. आवँयक है Iजतना 7क घर से िनकाले
जाने के बाद, पहले 7दन था।
तब से जीवन का हर 7दन ह. पहला 7दन लगने लगा है । Sया कुछ नह.ं बीत गया इतने वष म=। समुि क गहराई क थाह पा सकना य7द क7ठन है , तो जीवन क गहराई क
थाह पा सकना तो लगभग असfभव है । उसी जीवन क गहराई खोजने म= ह. सार. Iज़दगी ख़च
होती जा रह. है । अब मुझे आदमी क जात से नफ़रत होने लगी थी। हर
आदमी म= मुझे केवल नर शर.र ह. 7दखाई दे ता था, जो 7क 7कसी भी मादा पर झपटने को तैयार हो। य7द कोई नर शर.र मुझे बस या गाड़. म= छू भी जाता तो एक जुगु{सा
क सी भावना होती थी। पूरे जीवन का बस एक ह. क=िबंद ु बनकर रह गया था-नीिलमा। नीिलमा को Sया अmछा लगता है , नीिलमा कैसे नहाती है , कैसे खाती है , कैसे
तुतलाती है । नीिलमा का वजूद मेरे Iज़ंदा रहने का एकमाऽ कारण था। डरती थी कह.ं सूय
क गरम 7करण भी उसके शर.र को छू ना जाए।
ू गए। नीिलमा क उॆ दे खकर याद आया 7क मुझे भी अखबार के दतर म= काम करते पंिह वष
से ऊपर हो
गरमी, सद, वषा
, वसंत, पतझड़-सभी तो नीिलमा के शर.र को छते
गए। अपने नाम के साथ यादव िलखना तो मुझे कभी भी अmछा नह.ं लगा था। अब तो जैसे अपना नाम ह. भूल गई हँू । एक बार ूयदिश
नी के नाम से िलखना शुP 7कया
तो बस कॉलम दर कॉलम यह. नाम मेरे साथ जुड़ता चला गया। नीिलमा का नाम भी ःकूल म= नीिलमा ूयदिश
नी ह. हो गया था।
ूयदिश
नी के साथ भी कई लोग( ने जुड़ने का ूयास 7कया था। शायद 7कसी ना 7कसी का {यार सmचा भी रहा हो। 7कतु मेरे पास फुरसत ह. कहाँ थी, 7कसी क भावनाओं
को समझने क। हर आदमी को दे खकर यादव ह. याद आता था। और ऐसा होते ह. लगता था 7क मेरे साथ-साथ मेरे माहौल क हवा का भी दम घुटने लगा हो।
नीिलमा साँस लेती थी तो मेरे 7दल क धड़कन सुनाई दे ती थी। बं7दय( वाला लाल ृॉक पहने, बाल( क पोनी टे ल बनाए, सफ़ेद जूते पहने जब नीिलमा दौड़ती हई
ु मेर. बाह(
म= आकर िलपट जाती थी, तो जैसे म; सार. कायनात को अपनी बाँह( म= समेट लेती थी। जब पहली बार उसने मुझे 'मfमा' कहा था तो इस शद के अथ
ह. मेरे िलए बदल
गए थे। आकाश म= उड़ते बादल जैसे वषा
क फुहार( के Pप म= इसी शद को बार-बार धरती क ओर ूेषत कर रहे थे।
वषा
का भाई सौरभ भी तो मुझे अपने मन क भाषा ूेषत करने क असफल कोिशश करता रहा। वैसे तो उसक भावनाएँ मुझे समझ आ गई थीं। संभवतः मेर. भावनाएँ
अपनी िनिा से जाग भी जातीं। पर वषा
ने उन भावनाओं को अपने गुःसे क बाढ़ म= बहा 7दया। वह कहने को तो 'मेर. सहे ली' थी 7कंतु यह बरदाँत नह.ं कर पा रह. थी 7क
उसका अपना भाई 7कसी पBर8या से संबंध जोड़े । हमार. िमऽता Bरँत( के बोझ तले दब गई थी।
बोझ तले तो जीने क सार. आकांZाएँ, अरमान, दबे हए
ु थे। नीिलमा, इस बीच, उस बोझ से बेखबर, बड़. हई
ु जा रह. थी। मेर. िचंता म= बढ़ोर. होती जा रह. थी। नीिलमा है भी
तो सP क तरह लंबी। सुदर भी 7कतनी है , मर.! एक बार जो उसे दे खता है , तो नज़र= ह. नह.ं हटती। पाँच बmच( का महण लगने से पहले मेर. माँ भी ऐसी ह. सुंदर 7दखती
थी।
माँ! यह शद मेरे मुँह से िनकले तो एक अरसा ह. बीत गया है । पर नीिलमा के मुँह से यह शद सुनकर जैसे मःथल से मेरे 7दल म= ठं ड. हवा का एक झ(का-सा महसूस
होता है । अब तो कालेज जाने लगी है । आ8मव_ास तो कूट-कूट कर भरा है उसम=। उसक उॆ म= जब म; थी तो उसे गोद म= िलए घर से िनकाली भी जा चुक थी। है रानी
क बात यह है 7क म; भी नीिलमा को घर से िनकालने के बारे म= सोचने लगी थी। सोचती थी 7क उसे वदा कर दँ ू, उसके हाथ पीले कर दँ ।ू 7फर एकाएक मन म= डर-सा बैठने
लगा था। नीिलमा को पढ़ाई करनी होगी। मेर. तरह उसक 7कःमत 7कसी यादव के घर से नह.ं बँधेगी। उसे 7कसी अंकल पुर. क सरपरःती का मोहताज नह.ं होना पड़े गा।
नीिलमा क पढ़ाई म= कम से कम म; ःवयं तो रोड़े नह.ं ह. अटकाऊँगी। नीिलमा को अपने पैर( पर खड़ा होना होगा। जब इतना जीवन बीत ह. गया है , तो आज अचानक
नीिलमा के ववाह के बारे म= सोचना Sया उिचत होगा?
उिचत-अनुिचत क परवाह 7कए बना ह. 7कःमत हमार. ह. बIJडं ग म= समीर को ले आई थी। समीर ने हाल ह. म= डॉSटर. क थी। अमरावती से पढ़ाई पूर. करके आया था।
पास ह. के हःपताल म= 'हाऊस-जॉब' कर रहा था। उससे मुलाकात भी अनायास ह. हो गई थी। िलझट क गई थी। काफ़ शोर-सा सुनाई 7दया था। बाहर आकर दे खा तो
िलझट अटक पड़. थी। मेरा तो जीवन ह. 7कसी अटक हई
ु िलझट के समान था। ऊजा
का अभाव, 7दशा वह.न, ःपंदनह.न।
7फर भी िलझट म= से म;ने ह. उसे बाहर िनकाला था। य`प िलझट म= फँसने का मेरा अपना तो कोई अनुभव नह.ं है , परतु एक छोट.-सी जगह म= घुटन का आभास म; अmछ
तरह महसूस कर सकती हँू । इसीिलए म;ने वाचमैन से अmछ तरह सीख िलया था, 7क िलझट के फँस जाने पर िनकलने का राःता कैसे बनाते ह; ।
समीर के चेहरे क मासूिमयत ने मुझे पहली नज़र म= ह. आकष
त कर िलया था। उसके बात करने का ढं ग, तहज़ीब 7कसी को भी ूभावत करने म= सZम थे। संभवतः िलझट
म= फँसा होने क शम
से उबर नह.ं पाया था, अभी। घबराहट और बौखलाहट से बना पसीना उसक कमीज़ को गीला 7कए हए
ु था। माथे पर उभर. पसीने क बूँद= अपनी कहानी
ःवयं ह. सुना रह. थीं।
ू
कहानी तो हर य के जीवन का एक अिभन 7हःसा होती ह; । कहािनयाँ बनती ह; टटती ू , कहािनय( क टटन
ह; । Iज़दगी क टटन ू से कह.ं अिधक दद
पैदा कर जाती है ।
समीर के जीवन क भी एक कहानी थी। उसके सुखी बचपन क कहानी। पता के पाट
नर के धोखे क कहानी? हवालात म= बद पता क कहानी! माता-पता क आ8मह8या
क कहानी! उसके अकेलेपन क कहानी! इस वकराल दःख
ु क कहानी के बावजूद डॉSटर बनने के अपने सपने को साकार करने क कहानी।
सपने तो मेरे मन म= भी जगा गया था समीर! एक बार 7फर नीिलमा और समीर को लेकर सपन( के जाल बुनने लगी थी। समीर अब रात का खाना अSसर हमारे साथ खाने
लगा था। पBरवार म= अचानक एक मद
के आ जाने से वातावरण अलग-सा होने लगा था। नीिलमा समीर से छोट.-छोट. बात( पर झगड़ने लगती थी। समीर का धीर गंभीर
चेहरा, नीिलमा क हर बेहू दगी बरदाँत कर जाता। अगर म; नीिलमा को डाँटती तो नीिलमा क ह. तरफ़दार. करता, ''आप Sय( डाँटती ह; उसे। बmची है अभी।'' मेरा सपना और
इं िधनुषी हो जाता।
इं िधनुष के सात( रं ग( म= से अलग-अलग कोई भी मेरा ूय नह.ं है । पर सात( रं ग िमलकर जब सफ़ेद रं ग बनता है तो मुझे अपना-सा लगने लगता है । 'सैJफ ूंट' क सफ़ेद
साड़. िलए समीर, मेरे जम-7दन पर सुबह-सुबह आ पहँु चा था। बहत
ु मना करने पर भी मुझे यह उपहार लेना ह. पड़ा। और उसी साड़. को पहनकर हम शाम को चौपाट. क
रे त पर खेलते रहे ।
उस शाम म;ने नीिलमा क आँख( म= एक वशेष चमक दे खी थी। हालाँ7क नीिलमा अपने चेहरे के भाव आसानी से य नह.ं होने दे ती। पर म; तो उसक माँ हँू । जब वो Pई के
फाहे क तरह मुलायम-सी गु7ड़या थी, तब से उसे दे ख रह. हँू । उसक आँख( का ZIणक बदलाव भी भला मेर. नज़र से कैसे बच सकता है । उसका समीर क ओर दे खना और
पकड़े जाने पर शरमा कर नज़र= झुका लेना।
दसर.
ू ओर समीर का धीर-गंभीर चेहरा। सब ठक है । मुझे ऐसा ह. दामाद चा7हए, जो नीिलमा को पित के {यार के साथ-साथ, पता होने का अहसास भी करा दे । उन दोन( का
समुि क लहर( से खेलना दे खकर, म; मन ह. मन अंदाज़ लगा रह. थी 7क जीवन क लहर( से यह दोन( कैसे िनबट= गे।
पहले तो नीिलमा को पढ़ाई और नाटक के अितBर और कुछ नह.ं भाता था। समीर आकर बैठा रहता था, मुझसे बात= करता रहता था और नीिलमा अपने आप म= मःत रहती
थी। 7फर धीरे -धीरे उसम= एक बदलाव आया। वो समीर म= मगन 7दखाई दे ने लगी थी। रं गमंच के नाटक से कह.ं अिधक अनोखा मोड़ उसके अपने जीवन म= आ रहा था। घर
म= पालक-पनीर अSसर बनने लगा था। चाय क पी क जगह 'ट.-बैग' इःतेमाल होने लगे थे, रात को कॉफ़ बनने लगी थी, नए 7फ़Jमी गीत( को जगजीत िसंह ने परे धकेल
7दया था और नीिलमा ःकट
और िमड. क जगह सलवार कमीज़ पहनने लगी थी। उसे यह सब करने को म;ने तो नह.ं कहा था।
नीिलमा क इह.ं बात( ने मुझे इतनी 7हfमत द. 7क म; समीर से नीिलमा के बारे म= बात कर सकूँ। केवल सह. समय और सह. मौके क तलाश थी। सचमुच के घर बनाने
और रे त के घरदे बनाने म= तो बहत
ु फ़क
होता है । रे त के घर( को तेज़ हवाएँ उड़ा ले जाती ह; । समुि क तेज़ लहर= उसे बहा ले जाती ह; । म; भी डर रह. थी कह.ं मेरे ख़याली
पुलाव भी समुि. फेन क तरह न साबत ह(।
उयाल तो मुझे सीधे रजत के पास ले जाते थे। कह.ं मन म= यह भी वचार उठ रहे थे 7क जो काम म; और रजत पूरा नह.ं कर पाए, वह काम नीिलमा और समीर शायद
सरअंजाम दे पाएँ। डॉSटर दामाद के बारे म= सोचकर सुख से भीगी जा रह. थी।
सुख के ऐसे ह. एक Zण म= समीर से बात शुP कर बैठ। बाहर हJक-हJक बयार चल रह. थी जो Iखड़क के पJले से टकराकर घर के अदर तक फैलती जा रह. थी।
सूरज क लािलमा शाम का साथ छोड़ती जा रह. थी और रात को दावत दे रह. थी। नीिलमा कहकर गई थी 7क शाम को घर आने म= दे र हो जाएगी। ऐसे म= समीर घर म=
दाIख़ल हआ।
ु बड़े अिधकार से एक कप चाय क माँग क। म; अपना कॉलम िलख रह. थी। कॉलम छोड़कर 7कचन म= जाना अmछा लग रहा था।
चाय बनाकर समीर के सामने रख द.। उसने एक बःकुट ःवयं ह. उठा िलया था। आराम से चाय म= डु बा-डु बाकर खा रहा था अपना बःकुट। अपनी पुरानी आदत अपने
सामने सजीव दे ख रह. थी। 7हfमत जुटा ह. ली, ''समीर, ववाह के बारे म= कुछ सोचा है ?''
''आपके अलावा मेरा है ह. कौन जो मेरे ववाह के बारे म= सोचे।'' समीर ने दसरा
ू बःकुट उठा िलया था।
मेरे 7दल क धड़कन तेज़ हो गई थी। आIखर नीिलमा के भवंय का फ़ैसला होने वाला था। ''नह.ं समीर, मेरा मतलब था, Sया तुम खुद शाद. के बारे म= मन पSका कर रहे
हो?''
''जी! सोच तो रहा हँू ।''
''अपनी होने वाली पी के बारे म= कुछ सोचा है तुमने? तुfह= कैसी पी क तलाश है ?''
समीर कुछ Zण( के िलए सोच म= पड़ गया। और 7फर बोला, ''ूयदिश
नी जी, बस कोई अपने जैसी ढँू ढ द.Iजए। फट से कर लूँगा शाद.।''
म; हवा म; तैरने लगी थी। नीिलमा से बढ़कर मेरे जैसी कौन हो सकती थी? जैसे समीर ने मुझे हर. झंड. 7दखा द. थी। मेरे सपन( को साकार करने का इशारा दे 7दया था।
''समीर, नीिलमा के बारे म= तुfहार. Sया राय है ? उससे बढकर तो मेरे जैसा कोई नह.ं होगा। Sया वह तुfहार. पी क तःवीर म= रं ग भर सकती है ?''
''जी आपने एकदम सह. फ़रमाया 7क म; आजकल सीBरयसली शाद. के बारे म= सोच रहा हँू । पर नीिलमा! नीिलमा तो अभी बmची है । उससे शाद. के बारे म= कैसे सोचा जा
सकता है ? म;... म; उसे पसंद करता हँू , {यार करता हँू , पर शाद. के िलए नह.ं। म; उसका बड़ा भाई हो सकता हँू , पता हो सकता हँू । आपको लगता है , इस दिनया
ु म= नीिलमा
सबसे एयादा आप जैसी हो सकती है । म; ऐसा नह.ं मानता। आप जैसी सबसे अिधक आप ख़ुद हो सकती ह; । म; इस घर म= रोज़-रोज़ आता हँू तो आपके िलए। नीिलमा के
िलए नह.ं। मुझे आपसे अmछ पी कह.ं नह.ं िमल सकती। म;... म; आपसे {यार करता हँू ूयदिश
नी!'' समीर एक तूफ़ान क तरह मेरे कान( से टकराया। उसने अपना हाथ
मेरे हाथ पर रख 7दया था।
तूफ़ान ने सारे घर को 7हलाकर रख 7दया था। मुझे लगा घर क द.वार= cवःत होकर नीचे िगर पड़. ह; । समीर के शद द.वार( के पार खड़. नीिलमा को आहत कर गए ह; । म;ने
अपना हाथ हटा िलया। म;! नीिलमा क माँ, ूयदिश
नी... ःवयं उस क सौत! समीर यह तुमने Sया कह 7दया? मेर. वष क तपःया क चूल= 7हला द.ं। म;ने नज़र= उठा} तो
ू हई
समीर जा चुका था। म; टट. ु द.वार( का मलबा समेटने लगी।