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Shrika R
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भारतीय सवतंतता
संगाम की वीरागना थी। इनका जनम वाराणसी िजले के भदैनी नामक नगर मे हुआ था। इनके बचपन का नाम मिणकिणरका था पर पयार से मनु कहा जाता
था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा िपता का नाम मोरोपंत ताबे था। मोरोपंत एक मराठी बाहण थे और मराठा पेशवा बाजीराव की सेवा मे थे।
माता भागीरथीबाई एक सुसंसकृत, बुिदमान एवं धािमरक मिहला थी। मनु जब चार वषर की थी तब उनकी मा की मतयु हो गयी। चूँिक घर मे मनु की देखभाल
के िलए कोई नही था इसिलए िपता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार मे ले गए जहा चंचल एवं सुनदर मनु ने सबका मन मोह िलया। लोग उसे पयार से
"छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन मे शासतो की िशका के साथ शसतो की िशका भी ली। [१]
सन १८४२ मे इनका िववाह झासी के राजा गंगाधर राव िनवालकर के साथ हुआ, और ये झासी की रानी बनी। िववाह के बाद इनका नाम लकमीबाई रखा
गया। सन १८५१ मे रानी लकमीबाई ने एक पुत को जनम िदया पर चार महीने की आयु मे ही उसकी मृतयु हो गयी। सन १८५३ मे राजा गंगाधर राव का
बहुत अिधक सवासथय िबगडने पर उनहे दतक पुत लेने की सलाह दी गयी। पुत गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृतयु २१ नवंबर१८५३ मे हो गयी।
डलहौजी की राजय हडपने की नीित के अनतगरत िबतानी राजय ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झासी राजय का उतरािधकारी मानने से
इनकार कर िदया, तथा झासी राजय को िबतानी राजय मे िमलाने का िनशय कर िलया। तब रानी लकमीबाई ने िबतानी वकील जान लैग की सलाह ली
और लंदन की अदालत मे मुकदमा दायर िकया। यदिप मुकदमे मे बहुत बहस हुई परनतु इसे खािरज कर िदया गया। िबतानी अिधकािरयो ने राजय का
खजाना जबत कर िलया और उनके पित के कजर को रानी के सालाना खचर मे से काट िलया गया। इसके साथ ही रानी को झासी के िकले को छोड कर
झासी के रानीमहल मे जाना पडा। पर रानी लकमीबाई ने हर कीमत पर झासी राजय की रका करने का िनशय कर िलया था।
झासी का युद
१८५७ के भारतीय सवतंतता संगाम के शहीदो को समिपरत भारत का डाकिटकट, िजसमे लकमीबाई का िचत है।
झासी १८५७ के संगाम का एक पमुख केनद बन गया जहा िहंसा भडक उठी। रानी लकमीबाई ने झासी की सुरका को सुदृढ करना शुर कर िदया और एक
सवयंसेवक सेना का गठन पारमभ िकया। इस सेना मे मिहलाओं की भती भी की गयी और उनहे युद पिशकण भी िदया गया। साधारण जनता ने भी इस
१८५७ के िसतंबर तथा अकतूबर माह मे पडोसी राजय ओरछा तथा दितया के राजाओं ने झासी पर आकमण कर िदया। रानी ने सफलता पूवरक इसे िवफल
कर िदया। १८५८ के जनवरी माह मे िबतानी सेना ने झासी की ओर बढना शुर कर िदया और माचर के महीने मे शहर को घेर िलया। दो हफतो की लडाई
के बाद िबतानी सेना ने शहर पर कबजा कर िलया। परनतु रानी, दामोदर राव के साथ अंगेजो से बच कर भागने मे सफल हो गयी। रानी झासी से भाग
मंगल पाडे
नगवा बिलया मे 19 जुलाई 1827 को जनमे मंगल पाडे बैरकपुर की सैिनक छावनी मे 34 वी बंगाल नेिटव इनफैटी मे तैनात थे िजनहोने ईसट इंिडया कंपनी के
शासन को खुली चुनौती देकर आजादी की लडाई का शंखनाद िकया । इितहासकार मालती मिलक के अनुसार भारतीय सैिनको मे िबतािनया हुकूमत के िखलाफ
वयापत असंतोष उस समय िवदोह की िचंगारी मे बदल उठा जब सेना मे इनफीलड पी..53 राइपल शािमल की गई । इस राइपल मे इसतेमाल िकए जाने वाले कारतूस
के बारे मे कहा जाता था िक इसमे गाय और सुअर की चबी लगी है िजससे िहनदू और मुसलमानो का धमर भष हो रहा है । इस कारण िहंदू और मुसलमान िसपािहयो
ने इन कारतूसो का इसतेमाल करने से इंकार कर िदया।
मंगल पाडे, कोलकाता के पास बैरकपुर की सैिनक छावनी मे 34 वी बंगाल नेिटव इनफैटी के एक िसपाही थे। 29 माचर सन 1857 को उनहोने अंगेज अफसरो पर
आकमण कर िदया। उनहोने अपने अनय सािथयो से उनका साथ देने का आहान िकया। िकनतु उनहोने उनका साथ नही िदया और उनहे पकड िलया गया। उन पर
मुकदमा (कोटर माशरल) चलाकर 6 अपैल को फैसला सुना िदया िक 18 अपैल को फासी दे दी जाये। िकनतु इस िनणरय की पितिकया िवकराल रप न ले सके, इस
रणनीित के तहत उनहोने मंगल पाडे को दस िदन पूवर ही 8 अपैल सन 1857 को फासी दे दी।
मंगल पाडे दारा लगायी गयी िचनगारी बुझी नही। एक महीने बाद ही 10 मई सन 1857 को मेरठ की छावनी मे िवपलव (बगावत) हो गया । यह िवपलव देखते ही
देखते पूरे उतरी भारत मे छा गया और अंगेजो को सपष संदेश िमल गया िक अब भारत पर राजय करना आसान नही है। जंग ए आजादी के पहले सेनानी मंगल पाडे
ने 1857 मे ऐसी िचनगारी भडकाई, िजससे िदलली से लेकर लंदन तक की िबतािनया हुकूमत िहल गई । इस अकेले शखस ने अपने पयास से अंगेजी हुकमरानो को
एक बात समझा दी िक अगर कोई एक िहंदुसतानी भी पूरे मन से पण ठान ले, तो िबतािनया हुकूमत की चूले िहला सकता है
पकृित की सुनदरतम ऋतु -- वषा-ऋतु -- आिद किव वालमीिक से लेकर आधुिनक नवगीतकारो तक को कावय सृजन की पेरणा देती रही है। संसकृत सािहतय मे
किलदास का वषा-ऋतु िचतण अपितम है। िहनदी सािहतय के मधययुग मे तुलसी, सूर, जायसी आिद किवयो ने पावस ऋतु का सुंदर-सरस िचतण िकया है। आधुिनक
िहनदी सािहतय मे छायावादी किवयो मे पसाद, िनराला, पंत तथा महादेवी ने वषा संबधं ी कई किवताएँ िलखी है। महादेवी का आतम-पिरचय ही नीर भरी दुख की बदली
के रप मे है\नवगीत के पेरक पुरष माने जाने वाले िनराला की किवताओं मे वषा की अनेक छिवया है। नई किवता और पगितशील किवता की धरा मे भी वषा से
संबिं धत किवताएँ है। नागाजुरन की मेघ बजे, घन कुरगं , बादल को िघरते देखा है आिद कई वषा-केदत पिसद किवताएँ हैनवगीत सवातंतयोतर िहनदी किवता की एक
मुखय धारा है। युगबोध के िचतण के साथ-साथ पकृित और पिरवेश की लयपूणर छंदोबद वसतुपरक पसतुित नवगीत की पमुख िवशेषता है। नवगीतकारो ने वषा ऋतु
के शेत और शयाम दोनो पको पर लेखनी चलाई है। आसमान से बरसता जल जहा एक ओर धरती मे नवजीवन का संचार करता है, वही अनावृिष और अितवृिष से
जुडी समसयाएँ असंखय पािणयो की मृतयु का कारण बन जाती है। नवगीतो मे ऋतुओं की रानी की इस कृपा और कोप -- दोनो को िवषय बनाया गया है। किव का मन
काली घटाओं और धरती की हरी चूनर को देखकर मयूर की तरह नतरन करता है, लेिकन कभी-कभी और वही-कही बूँद-बूँद जल के िलए तरसती धरती के फटे
दामन को देखकर अथवा जलपलािवत धरती मे डू बती छटपटाती मानवता की कराह सुनकर वह िवचिलत हो उठता है। इसी संदभर मे पिसद नवगीतकार एवं समीकक
डॉ. राजेनद गौतम ने अपनी पुसतक 'नवगीत : उदव और िवकास' मे िलखा है - ''नवगीत मे हुए ऋतु-वणरन मे गीषम के पशात् सवािधक सथान वषा को िमला है।
वषापरक गीतो के दो सवर है। एक मे वषा के सौदयर, उललास, आवेग की अिभवयिकत है दूसरा सवर आतंक का, धवंस का है।आचायर जानकीवललभ शासती, वीरेनद
िमश, देवेनद शमा इनद, नईम, शीकृषण शमा, कुमार रवीनद, राजेनद गौतम, बुिदनाथ िमश, पूिणरमा वमरन, इसाक अशक, भारतेदु िमश आिद नवगीतकारो की रचनाओं मे
वषापरक गीतो की बहुलता है। आषाढ आ जाए और बािरश न हो तो किव-मन बेचैन हो उठता है। वह बादलो का आहान करता है िक आओ पयासी धरती की पयास
बुझाओ। वीरेनद िमश 'रसवंत बादल' मे बादल से धरती पर उतरने का आगह करते है-आओ तुम कजरी को सवर देने। वाणी को पानी का वर देने