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गु व कायालय ारा तुत मािसक ई-प का अ ैल- 2011

चै नवरा
त के लाभ राम एवं
हनुमान मं
नवरा तकथा
राम नाम क
म हमा
गु स शती

ोधी संव स 2068 ी राम


शलाका ावली

NON PROFIT PUBLICATION


FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का अ ैल 2011
संपादक िचंतन जोशी
गु व योितष वभाग

संपक गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
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प का तुित िचंतन जोशी, व तक.ऎन.जोशी


फोटो ाफ स िचंतन जोशी, व तक आट
हमारे मु य सहयोगी व तक.ऎन.जोशी ( व तक सो टे क इ डया िल)

ॐ ी गणेशाय नमः

गु व कायालय प रवार क

और से आपको व म संवत

2068 नव वष क

शुभकामना...

िचंतन जोशी
3 अ ैल 2011

वशेष लेख
नव संव सर का प रचय 5 राम र ा यं 25

नवरा म नवदगा
ु आराधना का मह व 7 जब कबीरजी को िमली राम-राम मं द ा? 27

चै नवरा त के लाभ 8 जब भ के िलये वयं भगवान मरने को तैयार होते ह? 28

नवरा त 10 अंगद ने रावण के घमंडको चूर कया 34

राम नाम क म हमा सीता जी को ाप के फल से वनवास हवा


20 ु ? 41

मं जप या ह? 23 ी राम के िस मं 43

या ाप के कारण िमला राम अवतार? 24 राम एवं हनुमान मं 57

अनु म
संपादक य 4 राम तुित 55
गु स शती 11 जटायुकृत राम तो म ् 56
दे वी आराधना से सुख ाि 14 महादे व कृ त राम तुित 56
स त लोक दगा
ु 15 मािसक रािश फल 62
दगा
ु आरती 15 रािश र 66
नवरा तकथा 16 अ ैल 2011 मािसक पंचांग 67
ध य तो यह ल मण है ? 26 धम पर ढ़ व ास 68
ी राम शलाका ावली 29 अ ैल -2011 मािसक त-पव- यौहार 69
जब ीराम ने कय वजया एकादशी त? 31 अ ैल 2011 - वशेष योग 73
वयं भा ने क रामदतो
ू क सहायता? 33 दै िनक शुभ एवं अशुभ समय ान तािलका 73
रामर ा तो 46 दन-रात के चौघ डये 74
ी राम दयम ् 47 दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक 75
अथ ी राम तो 47 सव रोगनाशक यं /कवच 76
रामा ो र शतनाम तो म ् 48 मं िस कवच 78
राम सह नाम तो म ् 49 YANTRA LIST 79
सीताराम तो म ् 53 GEM STONE 81
रामा कम ् 53 BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION 82
राम भुज ग तो 54 सूचना 83
रामच तुित 55 हमारा उ े य 85
4 अ ैल 2011

संपादक य
य आ मय

बंधु/ ब हन

जय गु दे व
ह द ु संसकृ ित के अनुशार नव वष हर साल चै शु ल ितपदा से ारं भ होता ह। इस वष ह दू नव वष 4-
अ ैल-2011 से ारं भ होगा जो ह द ू पंचांग के अनुशार नव वष व म संवत 2068 होगा जसे ोिध संव सर के नाम से
जाना जायेगा। इस दन से वसंतकालीन नवरा क शु आत होती ह। व ानो के मतानुशार चै मास के कृ ण प क
समाि के साथ भूलोक के प रवेश म एक वशेष प रवतन गोचर होने लगता ह जसके अनेक तर और व प
होते ह।
इस दौरान ऋतुओं के प रवतन के साथ नवरा का तौहार मनु य के जीवन म बा और आंत रक प रवतन म
एक वशेष संतुलन था पत करने म सहायक होता ह। जस तरह बा जगत म प रवतन होता है उसी कार मनु य
के शर र म भी प रवतन होता है ।
इस िलये नवरा उ सव को आयो जत करने का उ े य होता ह क मनु य के भीतर म उपयु प रवतन कर
उसे बा प रवतन के अनुकूल बनाकर उसे वयं के और कृ ित के बीच म संतुलन बनाये रखना ह।
नवरा के दौरान कए जाने वाली पूजा-अचना, त इ या द से पयावरण क शु होती ह। उसीके साथ-साथ
मनु य के शर र और भावना क भी शु हो जाती ह। यो क त-उपवास शर र को शु करने का पारं प रक तर का ह
जो ाकृ ितक-िच क सा का भी एक मह वपूण त व है । अतः इस दौरान त-उपवास करना अ यािधक लाभ द माना
गया ह।
दे वी भागवत के आठव कंध म दे वी उपासना का व तार से वणन है । दे वी का पूजन-अचन-उपासना-साधना इ या द
के प यात दान दे ने पर लोक और परलोक दोन सुख दे ने वाले होते ह। अतः नवरा ी के दौरान वशेष विध- वधान से दै वी
क पूजा-अचना आ द लाभ द होते ह। ज से मनु य दे वी क कृ पा िनरं टर ाि होती रह।
ह द ू पंचांग के अनुशार चै शु ल नवमी को रामनवमी के प म मनाया जाता ह। इसी दन मयादा पु षो म
ी रामजी का ज म हवा
ु था। रामनाम क म हमा अनोखी व अ ितय ह।
शा कहते ह-
च रतम ् रघुनाथ य शतको टम ् व तरम।्
एकैकम ् अ रम ् पू या महापातक नाशनम।।

अथातः सौ करोड़ श द म भगवान राम के गुण गाये गये ह। उसका एक-एक अ र ह या आ द महापाप का नाश करने म
समथ ह।

आप सभी बंध/
ु ब हनो को गु व कायालय क ओर से नव वष व म संवत 2068 क अनेको शुभकामनाएं।

िचंतन जोशी
5 अ ैल 2011

नव संव सर का प रचय

 िचंतन जोशी
नव वष चै शु ल ितपदा 4-अ ैल-2011 से शु
होने वाले व म संवत 2068 के राजा चं व मं ी दे व गु
बृ ह पित ह गे। योितषीय गणना के आधार पर नव संव सर
के िलए ह के बीच वभाग का बंटवारा हो चुका ह। 2068 के
नव संव सर का नाम ोधी ह। इस संवत का वामी शिन है
जो ाचार, दराचार
ू , ाकृ ितक आपदा का ोतक है । स ा
प के कारण आम लोग मंद के दौर से गुजर सकते ह।
चं मा राजा है जो धन, धा य और वषा का तीक ह।
गु मं ी है जो जनता और राजा म उ लास पैदा करे गा।
बुध सेनापित ह जो राजकोष को खाली करासकता ह व
त कर और चोर क अिधकता हो सकती ह। स ा प म
अंतकलह रहता है तथा जा मंद के दौर से गुजरती है ।
नव हो म चं व गु दोनो शुभ ह ह। इसिलए
इनके मह वपूण थान पर रहने से सालभर लोग म धम व आ या म के ित आ था बढ़े गी। हो क थती के कारण 2068 वष
बा रश अ छ होगी व फसल भी अ छ हो सकती ह। इस वष राजनीित व समाज सेवा के े म काय करने वाल को तनाव का
सामना करना पड़ सकता ह। िश ा व धम े म काय करने वाले लोग का स मान बढ़े गा।
कृ ष काय से जुडे लोगो को अ यािधक लाभ ा हो सकता ह परं तु कुछ े ो म कटको के कोप और अ य ाकृ ितक
आपदा क मार होने पर भार नु शान संभव ह। अपराध म बढ़ोतर होगी। उ र भारत व प मी े म ाकृ ितक कोप हो सकते
ह। इस वष म हलाओं का भाव बढ़े गा। कृ ष काय, गौ व दध
ू उ पादन म वृ हो सकती ह। धन-धा य क वृ होगी। ोधी
संव सर लोगो म ोध, लोभ, ाचार, ाकृ ितक आपदा का प रचायक है ।
संव सर का िनवास काली के घर मना गया ह जो पैदावार बढ़ाएगा। संव सर का वाहन मृ ग है । ोधी नामक संव सर ोध
और लोभ क भावना जगाएगा। ाचार क थित अिधक बनेगी। महं गाई बढ़े गी।

संव सर का मं मंडल
वामी : शिन मंगल रसेष,

चं मा राजा, बुध दगश


ु , मेघेष व फलेश,
गु मं ी, शु धा येश व

सूय श येश, शिन धनेश ह गे।


6 अ ैल 2011

संव सर ारं भ म ह थितयां


4 अ ेल 2011 चै ितपदा से नव वष नव संव सर व मा द 2068 ारं भ हो रहा ह।
सूय – मीन म 14 अ ेल तक , 14 अ ेल के बाद मेष रािश म,
मंगल – 25 अ ेल 2011 से मीन म मंगल उदय ,
बुध 17 अ ेल 2011 से मीन रािश म बुधोदय,
गु 24 अ ेल 2011 से मीन रािश म गु उदय,
शु वतमान म कुंभ रािश म 16 अ ेल 2011 से मीन रािश म,
शिन क या रािश म वतमान व गित शील – 13 जून से माग एवं 26 िसत बर को अ त व 30 अ टू बर को उदय तथा 15
नव बर 2011 को रािश प रवतन कर तुला रािश म इसके बाद वष पय त तुला रािश म गोचर राहू – केतु – मश: धनु एवं
िमथुन रािश म वतमान 6 जून 2011 से राहू – वृ चक रािश म एवं केतु वृ ष रािश म गोचर करग ।

रािशय पर भाव हो का भाव।


मेष- धन लाभ क थती बन रह ह। तुला- ी सुख ा होगा वा य उ म रहे गा।
वृ षभ-शार रक क संभव ह। वृ क- अिधक संघष के बाद सफलता ा होगी।
िमथुन- वा य कमजोर हो सकता ह सावधानी बत। धनु- आक मक धनलाभ ा हो सकता ह।
कक- माता, भूिम, भवन, वाहन के सुख म वृ होगी। मकर- इस दौरान आपको सामा य लाभ ा ह गे।
िसंह- पूव क परे शािनयां दरू ह गी। कुंभ- कामकाज क अिधकता रह सकती ह।
क या- मानिसक तनाव, मानहािन संभव ह। मीन- दरू थ या ा हो सकती ह, धनलाभ होगा।
सभी कार के सुख-शांित एवं समृ के िलए अपने पूजन थान म शु घी का द पक जलाएं, इ से आने वाले वष भर सुख-
समृ क ाि होती रहे गी। कसी धम थल पर पूजन कर पंचांग आद धािमक पु तव व ंथो का दान तथा उसक फल ु ित
सुनने से गंगा नान के समान फल ा होता ह।

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7 अ ैल 2011

नवरा म नवदगा
ु आराधना का मह व
 िचंतन जोशी
नमो दे यै महादे यै िशवायै सततं नम:। इस मं के जप से माँ क शरणागती ा होती ह।
नम: कृ यै भ ायै िनयता: णता: मताम॥् ज से मनु य के ज म-ज म के पाप का नाश होता है ।
अथात: दे वी को नम कार ह, महादे वी को नम कार ह। मां जननी सृ क आ द, अंत और म य ह।
महादे वी िशवा को सवदा नम कार ह। कृ ित एवं भ ा को मेरा
दे वी से ाथना कर –
णाम ह। हम लोग िनयमपूव क दे वी जगद बा को नम कार
शरणागत-द नात-प र ाण-परायणे
करते ह।
सव याितहरे दे व नाराय ण नमोऽ तुत॥

उपरो मं से दे वी दगा
ु का मरण कर ाथना करने मा से
अथात: शरण म आए हए
ु द न एवं पी ़डत क र ा म संल न
दे वी स न होकर अपने भ क इ छा पूण करती ह। सम त
रहने वाली तथा सब क पीड़ा दरू करने वाली नारायणी दे वी
दे व गण जनक तुित ाथना करते ह। माँ दगा
ु अपने भ ो
आपको नम कार है ।
क र ा कर उन पर कृ पा ी वषाती ह और उसको उ नती
के िशखर पर जाने का माग स त करती ह। इस िलये रोगानशेषानपहं िस तु ा
ई र म ा व ार रखने वाले सभी मनु य को दे वी क ा तु कामान सकलानभी ान।्
शरण म जाकर दे वी से िनमल दय से ाथना करनी चा हये। वामाि तानां न वप नराणां
वामाि ता हा यतां या त।
दे वी प नाितहरे सीद सीद मातजगतोs खल य।
अथातः दे वी आप स न होने पर सब रोग को न कर दे ती
पसीद व ेत र पा ह व ं वमी र दे वी चराचर य।
हो और कु पत होने पर मनोवांिछत सभी कामनाओं का नाश
अथात: शरणागत क पीड़ा दरू करने वाली दे वी आप हम पर
कर दे ती हो। जो लोग तु हार शरण म जा चुके है । उनको
स न ह । संपूण जगत माता स न ह । व े र दे वी व
वप आती ह नह ं। तु हार शरण म गए हए
ु मनु य दसर

क र ा करो। दे वी आप ह एक मा चराचर जगत क
को शरण दे ने वाले हो जाते ह।
अिध र हो।
सवबाधा शमनं ेलो य या खले र ।
सवमंगल-मांग ये िशवेसवाथसािधके ।
एवमेव वया कायम य दै र वनाशनम।्
शर ये य बके गौ र नाराय ण नमोऽ तुते॥
अथातः हे सव र आप तीन लोक क सम त बाधाओं को
सृ थित वनाशानां श भूते सनातिन।
शांत करो और हमारे सभी श ुओं का नाश करती रहो।
गुणा ये गुणमये नाराय ण नमोऽ तुते॥
अथात: हे दे वी नारायणी आप सब कार का मंगल दान शांितकम ण सव तथा द:ु व दशने।
करने वाली मंगलमयी हो। क याण दाियनी िशवा हो। सब हपीडासु चो ासु महा मयं शणुया मम।
पु षाथ को िस करने वाली शरणा गतव सला तीन ने अथातः सव शांित कम म, बुरे व न दखाई दे ने पर तथा
वाली गौर हो, आपको नम कार ह। आप सृ का पालन और ह जिनत पीड़ा उप थत होने पर माहा य वण करना
संहार करने वाली श भूता सनातनी दे वी, आप गुण का चा हए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दरू हो जाती ह।
आधार तथा सवगुणमयी हो। नारायणी दे वी तु ह नम कार
है । ***
8 अ ैल 2011

चै नवरा त के लाभ

 िचंतन जोशी
ह द ु संसकृ ित के अनुशार नववष का शुभारं भ चै मास के शु ल प क थम ितिथ से होता है ।
इस दन से वसंतकालीन नवरा क शु आत होती ह।
व ानो के मतानुशार चै मास के कृ ण प क समाि के साथ भूलोक के प रवेश म एक वशेष प रवतन गोचर
होने लगता ह जसके अनेक तर और व प होते ह।
इस दौरान ऋतुओं के प रवतन के साथ नवरा का तौहार मनु य के जीवन म बा और आंत रक प रवतन म
एक वशेष संतुलन था पत करने म सहायक होता ह। जस तरह बा जगत म प रवतन होता है उसी कार मनु य
के शर र म भी प रवतन होता है । इस िलये नवरा उ सव को आयो जत करने का उ े य होता ह क मनु य के भीतर
म उपयु प रवतन कर उसे बा प रवतन के अनुकूल बनाकर उसे वयं के और कृ ित के बीच म संतुलन बनाये
रखना ह।
नवरा के दौरान कए जाने वाली पूजा-अचना, त इ या द से पयावरण क शु होती ह। उसीके साथ-साथ
मनु य के शर र और भावना क भी शु हो जाती ह। यो क त-उपवास शर र को शु करने का पारं प रक तर का ह
जो ाकृ ितक-िच क सा का भी एक मह वपूण त व है । यह कारण ह क व के ायः सभी मुख धम म त का
मह व ह। इसी िलए ह द ू सं कृ ित म युगो-युगो से नवरा के दौरान त करने का वधान ह। योक त के मा यम
से थम मनु य का शर र शु होता ह, शर र शु होतो मन एवं भावनाएं शु होती ह। शर र क शु के बना मन व
भाव क शु संभव नह ं ह। चै नवरा के दौरान सभी कार के त-उपवास शर र और मन क शु म सहायक
होते ह।
नवरा म कये गये त-उपवास का सीधा असर हमारे अ छे वा य और रोगमु के िलये भी सहायक होता
ह। बड़ धूम-धाम से कया गया नवरा का आयोजन हम सुखानुभूित एवं आनंदानुभूित दान करता ह।
मनु य के िलए आनंद क अव था सबसे अ छ अव था ह। जब य आनंद क अव था म होता ह तो उसके
शर र म तनाव उ प न करने वाले सू म कोष समा हो जाते ह और जो सू म कोष उ स जत होते ह वे हमारे शर र
के िलए अ यंत लाभदायक होते ह। जो हम नई यािधय से बचाने के साथ ह रोग होने क दशा म शी रोगमु
दान करने म भी सहायक होते ह।

नवरा म दगास
ु शती को पढने या सुनने से दे वी अ य त स न होती ह एसा शा ो वचन ह। स शती का पाठ
उसक मूल भाषा सं कृ त म करने पर ह पूण भावी होता ह।

य को ीदगास
ु शती को भगवती दगा
ु का ह व प समझना चा हए। पाठ करने से पूव ीदगास
ु शती क पु तक
का इस मं से पंचोपचारपूजन कर-

नमोदे यैमहादे यैिशवायैसततंनम:। नम: कृ यैभ ायैिनयता: णता: मताम॥्

जो य दगास
ु शतीके मूल सं कृ त म पाठ करने म असमथ ह तो उस य को स ोक दगा
ु को पढने से लाभ ा
होता ह। यो क सात ोक वाले इस तो म ीदगास
ु शती का सार समाया हवा
ु ह।
9 अ ैल 2011

जो य स ोक दगा
ु का भी न कर सके वह केवल नवाण मं का अिधकािधक जप कर।

दे वी के पूजन के समय इस मं का जप करे ।

जय ती म गलाकाली भ काली कपािलनी।

दगा
ु मा िशवा धा ी वाहा वधानमोऽ तुते॥

दे वी से ाथना कर-

वधे हदे व क याणं वधे हपरमांि यम।् पंदे हजयंदे हयशोदे ह षोज ह॥

अथातः हे दे व! आप मेरा क याण करो। मुझे े स प दान करो। मुझे प दो, जय दो, यश दो और मेरे काम- ोध इ या द
श ुओं का नाश करो।

व ानो के अनुशार स पूण नवरा त के पालन म जो लोग असमथ हो वह नवरा के सात रा ी,पांच रा ी, द रा ी और
एक रा ी का त भी करके लाभ ा कर सकते ह। नवरा म नवदगा
ु क उपासना करने से नव ह का कोप शांत होता ह।

मं िस मंगल गणेश
मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन के
िलए अ यंत लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि हे तु वशेष लाभदायी ह।
मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह।
यो क लाल रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह। लाल मूंगा शार रक और मानिसक श य का
वकास करने हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को िनयं त करने हे तु भी मूंगा गणेश क
पूजा लाभ द ह। एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत करने से भगवान गणेश क कृ पा
श चोर , लूट, आग, अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह, ज से घर म या दकान
ु म उ नती एवं
सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत कया जासकता ह। ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से
भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन
श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं
ु , हमला, चोर, तूफान, आग,
बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म मंगल ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव से मु िमलती ह।जो य
उपरो लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह। मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने
से यह अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से सुख सौभा य क ाि होकर जीवन के सारे संकटो का वतः िनवारण
होता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक

GURUTVA KARYALAY
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10 अ ैल 2011

नवरा त
 व तक.ऎन.जोशी

नव दन तक चलने वाले इस पव पर हम त रखकर मां के नौ अलग-अलग प क पूजा कजाती ह। इस दौरान घर म


कया जाने वाला विधवत हवन भी वा य के िलए अ यंत लाभ द ह। हवन से आ मक शांित और वातावरण क शु के
अलावा घर नकारा मक श य का नाश हो कर सकारा मक श यो का वेश होता ह।

नवरा त

नवरा म नव रा से लेकर सात रा ी,पांच रा ी, द रा ी और एक रा ी त करने का भी वधान ह।


नवरा त के धािमक मह व के अलावा वै ािनक मह व ह, जो वा यक से काफ लाभदायक होता ह। त करने से
शर र म चु ती-फुत बनी रहती ह। रोजाना काय करने वाले पाचन तं को भी त के दन आराम िमलता ह। ब चे, बुजुग,
बीमार, गभवती म हला को नवरा त का नह ं रखना चा हए।

नवरा त से संबंिधत उपयोगी सुझाव

 त के दौरान अिधक समय मौन धारण कर।

 त के शु आत म भूख काफ लगती ह। ऐसे म नींबू पानी पया जा सकता है । इससे भूख को िनयं त रखने म मदद
िमलेगी।

 जहा तक संभव हो िनजला उपवास न रख। इससे शर र म पानी क कमी हो जाती ह और अपिश पदाथ शर र के बाहर
नह ं आ पाते। इससे पेट म जलन, क ज, सं मण, पेशाब म जलन जैसी कई सम याएं पैदा हो सकती ह।

 एक साथ खूब सारा पानी पीने के बजाए दन म कई बार नींबू पानी पएं।

 यादातर लोगो को उपवास म अ सर क ज क िशकायत हो जाती ह। इसिलए त शु करने के पहले फला, आंवला,
पालक का सूप या करे ले के रस इ या द पदाथ का सेवन कर। इससे पेट साफ रहता है ।

 त के दौरान चाय, काफ का सेवन काफ बढ़ जाता है । इस पर िनयं ण रख।

त के दौरान कौनसे खा पदाथ हण कर?

 त म अ न का सेवन व जत ह। जस कारण शर र म ऊजा क कमी हो जाती ह।

 अनाज क जगह फल व स जय का सेवन कया जा सकता ह। इससे शर र को ज र ऊजा िमलती ह।

 सुबह के समय आलू को ाई करके खाया जा सकता ह। आलू म काब हाइ े ट चुर मा ा म होता है । इस िलए आलू
खाने से शर र को ताकत िमलती है ।

 सुबह एक िगलास दध
ू पल। दोपहर के समय फल या जूस ल। शाम को चाय पी सकते ह।

 कई लोग त म एक बार ह भोजन करते ह। ऐसे म एक िन त अंतराल पर फल खा सकते ह। रात के खाने म िसंघाड़े
के आटे से बने पकवान खा सकते ह।
11 अ ैल 2011

गु स शती
 व तक.ऎन.जोशी, आलोक शमा

संपूण ी दगा
ु स शती के मं ो का पाठ करने से नम ते शु भहं ेित, िनशु भासुर-घाितिन।
साधक को जो फल ा होता है , वैसा ह क याणकार जा तं ह महा-दे व जप-िस ं कु व मे॥
फल दान करने वाला गु स शती के मं ो का पाठ ह। ऐं-कार सृ पायै ंकार ित-पािलका॥
गु स शती म अिधकतर मं बीज के होने से लीं-कार काम प यै बीज पा नमोऽ तु ते।
यह साधक के िलए अमोघ फल दान करने म समथ चामु डा च ड-घाती च य-कार वर-दाियनी॥
ह। व चे नोऽभयदा िन यं नम ते मं प ण॥
गु स शती के पाठ का म इस कार ह। धां धीं धूं धूज टे प ी वां वीं वागे र तथा।
ार भ म कु जका तो उसके बाद गु ां ं ीं मे शुभं कु , ऐं ॐ ऐं र सवदा।।
स शती उसके प यात तवन का पाठ करे । ॐ ॐ ॐ-कार- पायै, ां- ां भाल-ना दनी।
ां ं ूं कािलका दे व, शां शीं शूं मे शुभं कु ॥
कु जका- तो
ूं ूं ूं -कार प यै ं ं भाल-ना दनी।
पूव-पी ठका-ई र उवाच:
ां ीं ूं भैरवी भ े भवािन ते नमो नमः॥7॥
ृ णु दे व, व यािम कु जका-म मु मम।्
म :
येन म भावेन च ड जापं शुभम ् भवेत॥् १॥
अं कं चं टं तं पं यं शं ब दरा
ु वभव, आ वभव, हं सं लं ं
न वम नागला- तो ं क लकं न रह यकम।्
मिय जा य-जा य, ोटय- ोटय द ं कु कु वाहा॥
न सू म ् ना प यानम ् च न यासम ् च न चाचनम॥्२॥
पां पीं पूं पावती पूणा, खां खीं खूं खेचर तथा॥
कु जका-पाठ-मा ेण दगा
ु -पाठ-फलं लभेत।्
लां लीं लूं द यती पूणा, कु जकायै नमो नमः॥
अित गु तमम ् दे व दे वानाम प दलभम॥
ु ् ३॥
सां सीं स शती-िस ं , कु व जप-मा तः॥
गोपनीयम ् य ेन व-योिन-व च पावित।
इदं तु कु जका- तो ं मं -जाल- हां ये।
मारणम ् मोहनम ् व यम ् त भनो चाटना दकम।्
अभ े च न दात यं, गोपयेत ् सवदा ृ णु॥
पाठ-मा ेण संिस ः कु जकाम मु मम॥्४॥
कुं जका- व हतं दे व य तु स शतीं पठे त।्
अथ म
न त य जायते िस ं , अर ये दनं यथा॥
ॐ दँ ु लीं ल जुं सः वलयो वल वल वल-
॥इित ी यामले गौर तं े िशवपावतीसंवादे कुं जका तो ं
वल बल- बल हं सं लं ं फ वाहा
संपूण म॥्
इित म
इस कु जका म का दस बार जप करना चा हए। इसी गु -स शती
कार तव-पाठ के अ त म पुनः इस म का दस बार ॐ ु ै हा गणेश य माता।
ीं- ीं- ीं वेणु-ह ते, तुत-सुर-बटक
जप कर कु जका तो का पाठ करना चा हए।
वान दे न द- पे, अनहत-िनरते, मु दे मु -माग॥
कु जका तो मूल-पाठ
हं सः सोहं वशाले, वलय-गित-हसे, िस -दे वी सम ता।
नम ते - पायै, नम ते मधु-म दिन।
ह -ं ह -ं ह ं िस -लोके, कच- िच- वपुल,े वीर-भ े नम ते॥१॥
नम ते कैटभार च, नम ते म हषासिन॥
12 अ ैल 2011

ॐ ह ंकारो चारय ती, मम हरित भयं, च ड-मु डौ च डे । ाणी वै णवी वं, वमिस बहचरा
ु , वं वराह- व पा।
खां-खां-खां ख ग-पाणे, क- क कते, उ - पे व पे॥ वं ऐ वं कुबेर , वमिस च जननी, वं कुमार महे ॥
हँु -हँु हँु कांर-नादे , गगन-भु व-तले, या पनी योम- पे। ऐं ं लींकार-भूत,े वतल-तल-तले, भू-तले वग-माग।
हं -हं हं कार-नादे , सुर-गण-निमते, च ड- पे नम ते॥२॥ पाताले शैल- ृ ं गे, ह र-हर-भुवने, िस -च ड नम ते॥९॥

ऐं लोके क तय ती, मम हरतु भयं, रा सान ् ह यमाने। हं लं ं शौ ड- पे, शिमत भव-भये, सव- व ना त- व ने।
ां- ां- ां घोर- पे, घघ-घघ-घ टते, घघरे घोर-रावे॥ गां गीं गूं ग षडं ग,े गगन-गित-गते, िस दे िस -सा ये॥
िनमासे काक-जंघ,े घिसत-नख-नखा, धू -ने े -ने े। वं ं मु ा हमांशो हसित-वदने, य रे स िननादे ।
ह ता जे शूल-मु डे , कुल-कुल ककुले, िस -ह ते नम ते॥३॥ हां हंू गां गीं गणेशी, गज-मुख-जननी, वां महे शीं नमािम॥१०॥

ॐ -ं ं- ं ऐं कुमार , कुह-कुह-म खले, को कलेनानुरागे। तवन


मु ा-सं - -रे खा, कु -कु सततं, ी महा-मा र गु े॥ या दे वी ख ग-ह ता, सकल-जन-पदा, या पनी वशऽव-दगा।

तेजांगे िस -नाथे, मन-पवन-चले, नैव आ ा-िनधाने। यामांगी शु ल-पाशा द जगण-ग णता, -दे हाध-वासा॥
ऐंकारे रा -म ये, व पत-पशु-जने, त का ते नम ते॥४॥ ानानां साधय ती, ितिमर- वर हता, ान- द य- बोधा।
सा दे वी, द य-मूित दहतु द ु रतं, मु ड-च डे च डे ॥१॥
ॐ ां- ीं- ूं क व वे, दहन-पुर-गते म- पेण च े ।
ः-श या, यु -वणा दक, कर-निमते, दा दवं पूव-वण॥ ॐ हां ह ं हंू वम-यु े , शव-गमन-गितभ षणे भीम-व े।

-ं थाने काम-राजे, वल- वल विलते, कोिशिन कोश-प े। ां ं ूं ोध-मूित वकृ त- तन-मुख,े रौ -दं ा-कराले॥
कं कं कंकाल-धार मि , जग ददं भ य ती स ती-
व छ दे क -नाशे, सुर-वर-वपुषे, गु -मु डे नम ते॥५॥
हंु कारो चारय ती दहतु द ु रतं, मु ड-च डे च डे ॥२॥
ॐ ां- ीं- ूं घोर-तु डे , घघ-घघ घघघे घघरा या -घोषे।
ॐ ां ं हंू - पे, भुवन-निमते, पाश-ह ते -ने े।
ं ं ंू ो च-च े , रर-रर-रिमते, सव- ाने धाने॥
रां र ं ं रं गे कले किलत रवा, शूल-ह ते च डे ॥
ं तीथषु च ये े, जुग-जुग जजुगे लीं पदे काल-मु डे ।
लां लीं लूं ल ब- ज े हसित, कह-कहा शु -घोरा ट-हासैः।
सवागे र -धारा-मथन-कर-वरे , व -द डे नम ते॥६॥
कंकाली काल-रा ः दहतु द ु रतं, मु ड-च डे च डे ॥३॥

ॐ ां ं ूं वाम-निमते, गगन गड-गडे गु -योिन- व पे।


ॐ ां ीं ूं घोर- पे घघ-घघ-घ टते घघराराव घोरे ।
व ांग,े व -ह ते, सुर-पित-वरदे , म -मातंग- ढे ॥ िनमाँसे शु क-जंघे पबित नर-वसा धू -धू ायमाने॥
व तेज,े शु -दे हे, लल-लल-लिलते, छे दते पाश-जाले। ॐ ां ं ंू ावय ती, सकल-भु व-तले, य -ग धव-नागान।्
क ड याकार- पे, वृ ष वृ षभ- वजे, ऐ मातनम ते॥७॥ ां ीं ूं ोभय ती दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥४॥

ॐ हँु हँु हंु कार-नादे , वषमवश-करे , य -वैताल-नाथे। ॐ ां ीं ूं भ -काली, ह र-हर-निमते, -मूत वकण।

सु-िस यथ सु-िस ै ः, ठठ-ठठ-ठठठः, सव-भ े च डे ॥ च ा द यौ च कण , शिश-मुकुट-िशरो वे तां केतु-मालाम॥्


क् -सव-चोरगे ा शिश-करण-िनभा तारकाः हार-क ठे ।
जूं सः स शा त-कमऽमृ त-मृ त-हरे , िनःसमेसं समु े ।
सा दे वी द य-मूितः, दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥५॥
दे व, वं साधकानां, भव-भव वरदे , भ -काली नम ते॥८॥
13 अ ैल 2011

ॐ खं-खं-खं ख ग-ह ते, वर-कनक-िनभे सूय-का त- वतेजा। ॐ वं ा वं च रौ स च िश ख-गमना वं च दे वी कुमार ।


व ु वालावलीनां, भव-िनिशत महा-क का द णेन॥ वं च च -हासा घुर-घु रत रवा, वं वराह- व पा॥
वामे ह ते कपालं, वर- वमल-सुरा-पू रतं धारय ती। रौ े वं चम-मु डा सकल-भु व-तले सं थते वग-माग।
सा दे वी द य-मूितः दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥६॥ पाताले शैल- ृ ं गे ह र-हर-निमते दे व च ड नम ते॥१०॥

ॐ हँु हँु फ काल-रा ीं पुर-सुर-मथनीं धू -मार कुमार । र वं मु ड-धार िग र-गुह- ववरे िनझरे पवते वा।
ां ं ूं ह त द ु ान ् किलत कल- कला श द अ टा टहासे॥ सं ामे श -ु म ये वश वषम- वषे संकटे कु सते वा॥
हा-हा भूत- भूत,े कल- किलत-मुखा, क लय ती स ती। या े चौरे च सपऽ युदिध-भु व-तले व -म ये च दग।

हंु कारो चारय ती दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥७॥ र त
े ् सा द य-मूितः दहतु द ु रतं मु ड-च डे च डे ॥११॥

ॐ ं ीं ं कपालीं प रजन-स हता च ड चामु डा-िन ये। इ येवं बीज-म ैः तवनमित-िशवं पातक- यािध-नाशनम।्
रं -रं रं कार-श दे शिश-कर-धवले काल-कूटे दरु ते॥ य ं द य- पं ह-गण-मथनं मदनं शा कनीनाम॥्
हँु हँु हंु कार-का र सुर-गण-निमते, काल-कार वकार । इ येवं वेद-वे ं सकल-भय-हरं म -श िन यम।्
यैलो यं व य-कार , दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥८॥ मं ाणां तो कं यः पठित स लभते ािथतां म -िस म॥्१२॥

व दे द ड- च डा डम - डिम- डमा, घ ट टं कार-नादे । चं-चं-चं च -हासा चचम चम-चमा चातुर िच -केशी।


नृ य ती ता डवैषा थथ-थइ वभवैिनमला म -माला॥ यं-यं-यं योग-माया जनिन जग- हता योिगनी योग- पा॥
ौ कु ौ वह ती, खर-ख रता रवा चािचिन ेत-माला। डं -डं -डं डा कनीनां डम क-स हता दोल ह डोल ड भा।
उ चै तै ा टहासै, हह हिसत रवा, चम-मु डा च डे ॥९॥ रं -रं -रं र -व ा सरिसज-नयना पातु मां दे व दगा॥
ु १३॥

मं िस फ टक ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह अ य त शुभ फ़लदयी यं
है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता
है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु " ी यं " जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी
िस होता है उसके दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ यश
मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से हताशा और िनराशा दरू होकर वह
मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित
है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का
िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से
स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु व कायालय मे " ी यं " 12
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14 अ ैल 2011

दे वी आराधना से सुख ाि
 व तक.ऎन.जोशी

दे वी भागवत के आठव कंध म दे वी उपासना का व तार से वणन है । दे वी का पूजन-अचन-उपासना-साधना इ या द के


प यात दान दे ने पर लोक और परलोक दोन सुख दे ने वाले होते ह।

 ितपदा ितिथ के दन दे वी का षोडशेपचार से पूजन करके नैवे


के प म दे वी को गाय का घृ त (घी) अपण करना चा हए। मां को
चरण चढ़ाये गये घृ त को ा हण म बांटने से रोग से मु
िमलती है ।
 तीया ितिथ के दन दे वी को चीनी का भोग लगाकर दान
करना चा हए। चीनी का भोग लागाने से य द घजीवी होता
ह।
 तृ तीया ितिथ के दन दे वी को दध
ू का भोग लगाकर दान करना
चा हए। दध
ू का भोग लागाने से य को दख
ु से मु
िमलती ह।
 चतुथ ितिथ के दन दे वी को मालपुआ भोग लगाकर दान करना
चा हए। मालपुए का भोग लागाने से य क वप का नाश
होता ह।
 पंचमी ितिथ के दन दे वी को केले का भोग लगाकर दान करना चा हए। केले का भोग लागाने से य क बु ,
ववेक का वकास होता ह। य के प रवार कसुख समृ म वृ होती ह।
 ष ी ितिथ के दन दे वी को मधु (शहद, महु, मध) का भोग लगाकर दान करना चा हए। मधु का भोग लागाने से
य को सुंदर व प क ाि होती ह।
 स मी ितिथ के दन दे वी को गुड़ का भोग लगाकर दान करना चा हए। गुड़ का भोग लागाने से य के सम त
शोक दरू होते ह।
 अ मी ितिथ के दन दे वी को ीफल (ना रयल) का भोग लगाकर दान करना चा हए। गुड़ का भोग लागाने से
य के संताप दरू होते ह।
 नवमी ितिथ के दन दे वी को धान के लावे का भोग लगाकर दान करना चा हए। धान के लावे का भोग लागाने से
य के लोक और परलोक का सुख ा होता ह।

शाद संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क आपक शाद म अनाव यक प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी थती होने पर अपने लडके-लडक क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार
ा कर।
15 अ ैल 2011

स त लोक दगा
ु दगा
ु आरती
दे व वं भ सुलभे सवकाय वधाियनी।
कलौ ह कायिस यथमुपायं ू ह य तः॥ जय अ बे गौर मैया जय यामा गौर ।
तुमको िनस दन यावत ह र हा िशवर ॥१॥
दे व उवाच:
ृ णु दे व व यािम कलौ सव साधनम्। मांग िसंदरू वराजत ट को मृ गमदको।

मया तवैव नेहेना य बा तुितः का यते॥ उ जवल से दोऊ नैना च वदन नीको॥२॥

विनयोगः कनक समान कलेवर र ा बर राजे।

ॐ अ य ी दगास
ु ोक तो म य र पु प गल माला क ठन पर साजे॥३॥

नारायण ऋ षः अनु पछ
् दः,
केह र वाहन राजत ख ग ख पर धार ।
ीम काली महाल मी महासर व यो दे वताः, सुर नर मुिन जन सेवत ितनके दःख
ु हार ॥४॥
ीदगा
ु ी यथ स ोक दगापाठे
ु विनयोगः।
कानन कुंडल शोिभत नासा े मोती।
ॐ ािननाम प चेतांिस दे वी भगवती हसा। को टक चं दवाकर राजत सम योित॥५॥
बलादाकृ य मोहाय महामाया य छित॥ शुंभ िनशंभु वदारे म हषासुरधाती।

दग
ु मृता हरिस भीितमशेषज तोः धू वलोचन नैना िनश दन मदमाती॥६॥

व थैः मृ ता मितमतीव शुभां ददािस।


च ड मु ड संहारे शो णत बीज हरे ।
दा र यदःखभयहा
ु र ण वद या मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयह न करे ॥७॥
सव पकारकरणाय सदा िच ा॥
हाणी ाणी तुम कमलारानी।
सवमंगलमंग ये िशवे सवाथसािधके। आगम िनगम बखानी तुम िशव पटरानी॥८॥
शर ये य बके गौ र नाराय ण नमोऽ तुते॥ चौसंठ योिगनी गावत नृ य करत भै ँ ।

शरणागतद नातप र ाणपरायणे। बाजत ताल मृ दंगा अ डम ँ ॥९॥

सव याितहरे दे व नाराय ण नमोऽ तुते॥


तुम ह जग क माता तुम ह हो भरता।
सव व पे सवशे सवश सम वते। भ न क दःखहता सुख स प कता॥१०॥

भये य ा ह नो दे व दग
ु दे व नमोऽ तुते॥
भुजा चार अित शोिभत वर मु ा धार ।
रोगानशोषानपहं िस तु ा ा तु कामान ् सकलानभी ान।् मनवां छत फल पावे सेवत नर नार ॥११॥
वामाि तानां न वप नराणां वामाि ता ा यतां या त॥ कंचन थाल वराजत अगर कपुर बा ी।
ी माल केतु म राजत को ट रतन योती॥१२॥
सवाबाधा शमनं ैलो य या खले व र।
एवमेव वया कायम य ै र वनाशनम॥्
माँ अ बे जी क आरती जो कोई नर गाये।

॥ इित ीस ोक दगा
ु संपूण म ् ॥ कहत िशवानंद वामी सुख संप पाये॥१३॥
16 अ ैल 2011

नवरा तकथा

 व तक.ऎन.जोशी

ाचीन काल म चै वंशी सुरथ नामक एक राजा हे न।् वह कैसे उ प न हई।


ु और उसका या
राज करते थे। एक बार उनके श ुओं ने आ मण कर काय है? उसके च र कौन कौन से ह?
दया और उ ह यु म हरा दया। राजा को बलह न भो ! उसका भाव, व प आ द के बारे म हमे व तार
दे खकर उसके द ु मं य ने राजा क सेना और खजाना म बताइए।
अपने अिघकार म ले िलया। जसके प रणाम व प राजा मह ष मेधा बोले - राजन ्! वह दे वी तो
सुरथ दखी
ु और िनराश होकर वन क ओर चले गए और िन या व प है, उनके ारा यह संसार रचा गया है । तब
वहां मह ष मेधा के आ म म िनवास करने लगे। भी उसक उ प अनेक कार से होती है , जसे म बताता
एक दन आ म म राजा क भट समािघ नामक हंू । संसार को जलमय करके जब भगवान व णु यागिन ा
एक वै य से हई
ु , जो अपनी ी और पु के द ु यवहार से का आ य लेकर, शेषश या पर सो रहे थे, तब मधु-कैटभ
अपमािनत होकर वहां िनवास कर रहा था। नाम के असुर उनके कान के मैल से कट हए
ु और वह
समािघ ने राजा को बताया क वह अपने द ु ी ी ाजी को मारने के िलए तैयार हो गए। उनके इस
और पु आ दक से अपमािनत होने के बाद भी उनका भयानक प को दे खकर ाजी ने अनुमान लगा िलया
मोह नह ं छोड़ पा रहा है । उसके िच को शा त नह ं क भगवान व णु के िसवाय मेरा कोई र क नह ं है ।
िमल पा रह है । इधर राजा का मन भी उसके अधीन नह ं क तु वड बना यह थी क भगवान व णु सो रहे थे।
था। रा य, धना द क िचंता अभी भी उसे बनी हई
ु थी, तब उ ह ने ी भगवान को जगाने के िलए उनके ने म
जससे वह बहत
ु दखी
ु थे। तदा तर दोन मह ष मेधा के िनवास करने वाली योगिन ा क तुित क ।
पास गए। तब सभीगुण अिघ ा ी दे वी योगिन ा भगवान
मह ष मेधा यथायो य स भा ण करके दोन से व णु के ने , निसका, मुख, बाहु और दय से िनकलकर
वाता आरं भ क । उ होने बताया "य प हम दोन अपने ा जी के सामने खड़ हो गई। योगिन ा के िनकलते ह
वजन से अ यंत अपमािनत और ितर कृ त होकर यहाँ ीह र तुरंत जाग उठे । उ ह दे खकर रा स ोिघत हो
आए ह, फर भी उनके ित हमारा मोह नह ं छूटता । उठे और यु के िलए उनक तरफ दौड़े । भगवान व णु
इसका या कारण है ? और उन रा स म पाँच हजार वष तक यु हआ।
ु अंत
मह ष मेधा ने कहा मन श के अधीन होता है । म दोन रा स ने भगवान क वीरता दे ख कर उ ह वर
आ दश भगवती के दो प ह- व ा और अ व ा। व ा माँगने को कहा।
मन का व प है तथा अ व ा अ ान का व प है । भगवान ने कहा य द तुम मुझ पर स न हो तो
अ व ा मोह क जननी है कंतु लोग मां भगवती को अब मेरे हाथ मर जाओ। बस, इतना ह वर म तुम से
संसार का आ द कारण मानकर भ करते ह, मां भगवती माँगता हँू ।
उ ह जीवन मु कर दे ती है ।" राजा सुरध ने पूछा- मह ष मेधा बोले - इस तरह से जब वह धोखे म
भगवन वह दे वी कौन सी है , जसको आप महामाया कहते आ गए और अपने चार ओर जल ह जल दे खा तो
ह? भगवान से कहने लगे क जहां जल न हो, उसी जगह
हमारा वध क जए।
17 अ ैल 2011

तथा तु कहकर भगवान ी ह र ने उन दोनो को जाकर कहा क "हे महाराज ! दिनया


ु के सारे र आपके
अपनी जांघ पर िलटा कर िसर काट डाले। अिघकार म ह। वे सब आपके यहाँ शोभा पाते ह। ऎसे ह
मह ष मेधा बोले इस तरह से यह दे वी ी ाजी क एक ी र को हमने हमालय क पहा डय म दे खा है ।
तुित करने पर कट हई
ु थी, अब तुम से उनके भाव आप हमालय को कािशत करने वाली द य ांित यु
का वणन करता हंू , जसको यान से सुनो - ाचीन काल इस दे वी का वरण क जए। यह सुनकर दै यराज शु भ ने
म दे वताओं के वामी इं और असुर के वामी म हषासुर सु ीव को अपना दत
ू बनाकर दे वी के पास अपना ववाह
के बीच पूरे सौ वष तक यु हआ
ु था। इस यु म ताव भेजा। दे वी ने ताव को ना मानकर कहा जो
दे वताओं क सेना परा त हो गई और इस कार दे वताओं मुझसे यु म जीतेगा। म उससे ववाह क ँ गी। यह
को जीत म हषासुर इ बन बैठा हारे हए
ु दे वता ी सुनकर असुरे के ोध का पारावार न रहा और उसने
ाजी को साथ लेकर भगवान शंकर व व णु जी के अपने सेनापित धू लोचन को दे वी के केश से पकड़कर
पास गए और अपनी हार का सारा वृ तांत उ ह कह लाने का आदे श दया। इस पर धू लोचन साठ हजार
सुनाया। उ होने म हषासुर के वध क थना के उपाय क रा स क सेना साथ लेकर दे वी से यु के िलए वहाँ
थना क । साथ ह रा य वापस पाने के िलए उनक पहँु चा और दे वी को ललकारने लगा। दे वी ने िसफ अपनी
कृ पा क तुित क । हंु कार से ह उसे भ म कर दया और दे वी के वाहन िसंह
दे वताओं क बात सुनकर भगवान व णु और ने बाक असुर सेना का संहार कर दया।
शंकर जी को दे वताओं पर बड़ा गु सा आया। गु से से भरे इसके बाद च ड मु ड नामक दै य को एक बड़
हए
ु भगवान व णु के मुख से बड़ा भार तेज िनकला सेना के साथ यु के िलए भेजा गया। जब असुर दे वी को
और उसी कार का तेज भगवान शंकर, ा आद तलवार लेकर उनक ओर बढ़े तब दे वी ने काली का
दे वताओं के मुख से कट हआ
ु , जससे दस दशाएं जलने वकराल ू पड़ । कुछ ह दे र म
प धारण कर उन पर टट
लगी। अंत म यह तेज एक दे वी के प म प रवितत हो स पूण सेना को न कर दया। फर दे वी ने "हँू" श द
गया। कहकर च ड का िसर काट दया और मु ड को यमलोक
दे वी ने सभी दे वताओं से आयुध, श तथा पहँु चा दया। तब से दे वी काली क संसार म चामुंडा के
आभूषण ा कर उ च वर म गगनभेद गजना क । नाम से याित होने लगी।
जससे सम त व म हलचल मच गई पृ वी, पवत मह ष मेधा ने आगे बताया - च ड मु ड और
आ द डोल गए। ोिघत म हषासुर दै य सेना लेकर इस सार सेना के मारे जाने क खबर सुनकर असुर के राजा
िसंहनाद क ओर दौड़ा। उसने दे खा क दे वी क भा से शु भ ने अपनी स पूण सेना को यु के िलए तैयार होने
तीन लोक कािशत हो रहे ह। म हषासुर ने अपना क आ ा द । शु भ क सेना को अपनी ओर आता
सम त बल और छल लगा दया परं तु दे वी के सामने दे खकर दे वी ने अपने धनुष क टं कार से पृ वी और
उसक एक न चली। अंत म वह दे वी के हाथ मारा आकाश के बीच का भाग गुंजा दया। ऎसे भयंकर श द
गया। आगे चलकर यह दे वी शु भ-िनशु भ नामक असुर सुनकर रा सी सेना ने दे वी और िसंह को चार ओर से
का वध करने के िलए गौर दे वी के शर र से उ प न हई।
ु घेर िलया। उस समय दै य के नाश के िलए और
उस समय दे वी हमालय पर वचर रह ं थी। जब दे वताओं के हत के िलए सम त दे वताओं क श याँ
शु भ-िनशु भ के सेवक ने उस परम मनोहर प वाली उनके शर र से िनकलकर उ ह ं के प म आयुध से
जगदं बा दे वी को दे खा और तुर त अपने वामी के पास सजकर दै य से यु करने के िलए तुत हो गई। इन
18 अ ैल 2011

दे व श य से िघरे हए
ु भगवान शंकर ने दे वी से कहा हए
ु महाअसुर को तुम अपने इस मुख से भ ण करती
मेर स नता के िलए तुम शी ह इन असुर को मारो। हई
ु रणभूिम म वचरो। इस कार उस दै य का र ीण
इसके प यात ् दे वी के शर र से अ यंत उ प हो जाएगा और वह वयं न हो जाएगा। इस कार
वाली और सकड़ गीद डय के समान आवाज करने वाली अ य दै य उ प न नह ं ह गे।
च डका श कट हई।
ु उस अपरा जता दे वी ने भगवान काली के इस कार कहकर च डका दे वी ने
शंकर को अपना दत
ू बनाकर शु भ, िनशु भ के पास इस र बीज पर अपने शुल से हार कया और काली दे वी
संदेश के साथ भेजा जो तु हे अपने जी वत रहने क ने अपने मुख म उसका र ले िलया। च डका ने उस
इ छा हो तो लोक का रा य इ को दे दो, दे वताओं दै य को ब , बाण, ख म इ या द से मार डाला। महादै य
को उनका य भाग िमलना आरं भ हो जाए और तुम र बीज के मरते ह दे वता अ यंत स न हए
ु और
पाताल को लौट जाओ, क तु य द बल के गव से तु हार माताएं उन असुर का र पीने के प यात उ त होकर
लड़ने क इ छा हो तो फर आ जाओ, तु हारे माँस से नृ य करने लगीं। र बीज के मारे जाने पर शु भ व
मेर योिनयाँ तृ ह गी।" िनशु भ को बड़ा ोध आया और अपनी बहत
ु बड़ सेना
चूं क उस दे वी ने भगवान शंकर को दत
ू के काय लेकर महाश से यु करने चल दए। महापरा मी
म िनयु कया था, इसिलए वह संसार म िशवदती
ू के शु भ भी अपनी सेना स हत मातृ गण से यु करने के
नाम से व यात हई।
ु मगर दै य भला कहां मानने वाले िलए आ पहँु चा। क तु शी ह सभी दै य मारे गए और
थे। वे तो अपनी श के मद म चूर थे। उ होने दे वी क दे वी ने शु भ िनशु भ का संहार कर दया। सारे संसार म
बात अनसुनी कर द और यु को त पर हो उठे । दे खते शांित छा गई और दे वता गण ह षत होकर दे वी क
ह दे खते पुन: यु िछड़ गया। कंतु दे वी के सम असुर वंदना करने लगे।
कब तक ठहर सकते थे। कुछ ह दे र म दे वी ने उनके इन सब उपा यान को सुनकर मेधा ऋ ष ने
अ ,श को काट डाला। जब बहत
ु से दै य काल के राजा सुरध तथा व णक समािघ से दे वी तुवन क
मुख म समा गए तो महादै य र बीज यु के िलए आगे विघवत या या क , जसके भाव से दोन नद तट पर
बढ़ा। उसके शर र से र क बूंदे पृ वी पर जैसे ह िगरती जाकर तप या म लीन हो गए। तीन वष बाद दगा
ु माता
थीं। तुरंत वैसे ह शर र वाला दै य पृ वी पर उ प न हो ने कट होकर दोन को आशीवाद दया। इस कार
जाता था। यह दे खकर दे वताओं को भय हआ
ु , दे वताओं को व णक तो संसा रक मोह से मु होकर आ मिचंतन म
भयभीत दे खकर चं डका ने काली से कहा "हे चामु डे " लग गया तथा राजा ने श ुओं को परा जत कर अपना
तुम अपने मुख को फैलाओ और मेरे श ाघात से खोया हआ
ु राज वैभव पुन: ा कर िलया।
उ प न हए
ु र ब दओं
ु तथा र ब दओं
ु से उ प न

वा तु दोष िनवारक यं
भवन छोटा होया बडा य द भवन म कसी कारण से िनमाण म वा तु दोष लगरहा हो, तो शा म उसके िनवारण हे तु
वा तु दे वता को स न एवं स तु करने के िलए अनेक उपाय का उ लेख िमलता ह। उ ह ं उपायो म से एक ह वा तु यं
क थापना जसे घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म था पत करने से संबंिधत सम त परे शानीओं का शमन होकर
वा तु दोष का िनवारण होजाता ह एवं भवन म सुख समृ का आगमन होता ह।
मू य मा Rs : 550
19 अ ैल 2011

सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।

कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म अ ल मी कवच के िमले होने क वजह से य पर मां महा


सदा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द
ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय
ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का अशीवाद ा होता ह।

 सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।

 सव काय िस कवच के साथ म श ु वजय कवच के िमले होने क वजह से श ु से संबंिधत


सम त परे शािनओ से ु
वतः ह छटकारा िमल जाता ह। कवच के भाव से श ु धारण कता
य का चाहकर कुछ नह बगड सकते।

अ य कवच के बारे मे अिधक जानकार के िलये कायालय म संपक करे :

कसी य वशेष को सव काय िस कवच दे ने नह दे ना का अंितम िनणय हमारे पास सुर त ह।

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


20 अ ैल 2011

राम नाम क म हमा


 िचंतन जोशी
एक कथा के अनुशार: महा माजीः ेतराज ! मुझे मनु य म िगनने क गलती मत
एक संत महा मा यामदासजी रा के समय म करना। हम जंदा दखते हए
ु भी जीने क इ छा से र हत,
' ीराम' नाम का अजपाजाप करते हए
ु अपनी म ती म चले जा मृ ततु य ह। य द जंदा मान तो भी आप हम मार नह ं सकते।
रहे थे। जाप करते हए
ु वे एक गहन जंगल से गुजर रहे थे। जीवन-मरण कमाधीन ह। म एक पूछ सकता हँू ?
वर होने के कारण वे महा मा बार-बार दे शाटन महा मा क िनभयता दे खकर ेत के राजा को आ य
करते रहते थे। वे कसी एक थान म अिधक समय नह ं हआ
ु क ेत का नाम सुनते ह मर जाने वाले मनु य म एक
रहते थे। वे इ र नाम ेमी थे। इस िलये दन-रात उनके इतनी िनभयता से बात कर रहा ह। सचमुच, ऐसे मनु य से
मुख से राम नाम जप चलता रहता था। वयं राम नाम का बात करने म कोई हरकत नह ं। ेतराज बोलाः पूछो, या
अजपाजाप करते तथा और को भी उसी माग पर चलाते। है ?
यामदासजी गहन जंगल म माग भूल गये थे पर महा माजीः ेतराज ! आज यहाँ आनंदो सव य
अपनी म ती म चले जा रहे थे क जहाँ राम ले चले वहाँ....। मनाया जा रहा है ?
दरू अँधेरे के बच म बहत
ु सी द पमालाएँ कािशत थीं। ेतराजः मेर इकलौती क या, यो य पित न िमलने के
महा मा जी उसी दशा क ओर चलने लगे। कारण अब तक कुआँर ह। ले कन अब यो य जमाई िमलने क
िनकट पहँु चते ह दे खा क वटवृ के पास अनेक कार संभावना ह। कल उसक शाद ह इसिलए यह उ सव मनाया
के वा यं बज रहे ह, नाच -गान और शराब क मह फल जमी जा रहा ह।
है । कई ी पु ष साथ म नाचते-कूदते-हँ सते तथा और को हँ सा महा मा ने हँ सते हए
ु कहाः तु हारा जमाई कहाँ ह? म
रहे ह। उ ह महसूस हआ
ु क वे मनु य नह ं ेता मा ह। उसे दे खना चाहता हँू ।"
यामदासजी को दे खकर एक ेत ने उनका हाथ पकड़कर कहाः ेतराजः जीने क इ छा के मोह के याग करने वाले
ओ मनु य ! हमारे राजा तुझे बुलाते ह, चल। वे म तभाव से महा मा ! अभी तो वह हमारे पद ( ेतयोनी) को ा नह ं हआ

राजा के पास गये जो िसंहासन पर बैठा था। वहाँ राजा के इद- ह।
िगद कुछ ेत खड़े थे। ेतराज ने कहाः तुम इस ओर य वह इस जंगल के कनारे एक गाँव के ीमंत (धनवान)
आये? हमार मंडली आज मदम त हई
ु है , इस बात का तुमने का पु ह। महादराचार
ु होने के कारण वह इसव भयानक
वचार नह ं कया? तु ह मौत का डर नह ं है ? रोग से पी ड़त ह।
अ टहास करते हए
ु महा मा यामदासजी बोलेः मौत कल सं या के पहले उसक मौत होगी। फर उसक
का डर? और मुझ?े राजन ् ! जसे जीने का मोह हो उसे मौत का शाद मेर क या से होगी। इस िलये रात भर गीत-नृ य और
डर होता ह। हम साधु लोग तो मौत को आनंद का वषय मानते म पान करके हम आनंदो सव मनायगे।
ह। यह तो दे हप रवतन ह जो ार धकम के बना कसी से हो यामदासजी वहाँ से वदा होकर ीराम नाम का
नह ं सकता। अजपाजाप करते हए
ु जंगल के कनारे के गाँव म पहँु चे। उस
ेतराजः तुम जानते हो हम कौन ह? समय सुबह हो चुक थी।
महा माजीः म अनुमान करता हँू क आप ेता मा हो। एक ामीण से महा मा न पूछाः इस गाँव म कोई
ेतराजः तुम जानते हो, लोग समाज हमारे नाम से काँपता ह। ीमान ् का बेटा बीमार ह?
21 अ ैल 2011

ामीणः हाँ, महाराज ! नवलशा सेठ का बेटा रोना शु कर दया। मशान या ा क तैया रयाँ होने लगीं।
सांकलचंद एक वष से रोग त ह। बहत
ु उपचार कये पर मौका पाकर महा माजी वहाँ से चल दये।
उसका रोग ठ क नह ं होता। नद तट पर आकर नान करके नाम मरण करते हए

महा माः या वे जैन धम पालते ह? वहाँ से रवाना हए।
ु शाम ढल चुक थी। फर वे म यरा के
ामीणः उनके पूव ज जैन थे कंतु भा टया के साथ यापार समय जंगल म उसी वटवृ के पास पहँु चे। ेत समाज
करते हए
ु अब वे वै णव हए
ु ह। उप थत था। ेतराज िसंहासन पर हताश होकर बैठे थे। आज
महा मा नवलशा सेठ के घर पहंु चे सांकलचंद क गीत, नृ य, हा य कुछ न था। चार ओर क ण आ ं द हो रहा
हालत गंभीर थी। अ तम घ ड़याँ थीं फर भी महा मा को था, सब ेत रो रहे थे। हा य कुछ न था। चार ओर क ण
दे खकर माता- पता को आशा क करण दखी। उ ह ने आ ं द हो रहा था, सब ेत रो रहे थे।
महा मा का वागत कया। सेठपु के पलंग के िनकट आकर महा मा ने पूछाः ेतराज ! कल तो यहाँ आनंदो सव
महा मा रामनाम क माला जपने लगे। दोपहर होते-होते लोग था, आज शोक-समु लहरा रहा ह। या कुछ अ हत हआ
ु ह?
का आना-जाना बढ़ने लगा। महा मा ने पूछाः य , सांकलचंद ेतराजः हाँ भाई ! इसीिलए रो रहे ह। हमारा स यानाश
! अब तो ठ क हो? हो गया। मेर बेट क आज शाद होने वाली थी। अब वह
सांकलचंद ने आँख खोलते ह अपने सामने एक कुँआर रह जायेगी
तापी संत को दे खा तो रो पड़ा। बोलाः बापजी ! आप मेरा अंत महा मा ने पूछाः ेतराज ! तु हारा जमाई तो आज मर
सुधारने के िलए पधारे हो। मने बहुत पाप कये ह। भगवान के गया ह। फर तु हार बेट कुँआर य रह ?
दरबार म या मुँह दखाऊँगा? फर भी आप जैसे संत के दशन ेतराज ने िचढ़कर कहाः तेरे पाप से। म ह मूख हँू क
हए
ु ह, यह मेरे िलए शुभ संकेत ह। इतना बोलते ह उसक मने कल तुझे सब बता दया। तूने हमारा स यानाश कर दया।
साँस फूलने लगी, वह खाँसने लगा। महा मा ने न भाव से कहाः मने आपका अ हत कया
बेटा ! िनराश न हो भगवान राम पितत पावन है । तेर यह मुझे समझ म नह ं आता। मा करना, मुझे मेर भूल
यह अ तम घड़ ह। अब काल से डरने का कोई कारण नह ं। बताओगे तो म दबारा
ु नह ं क ँ गा।
खूब शांित से िच वृ के तमाम वेग को रोककर ीराम नाम ेतराज ने जलते दय से कहाः यहाँ से जाकर तूने
के जप म मन को लगा दे । अजपाजाप म लग जा। मरने वाले को नाम मरण का माग बताया और अंत समय भी
राम नाम कहलवाया। इससे उसका उ ार हो गया और मेर
शा कहते ह-
बेट कुँआर रह गयी।
च रतम ् रघुनाथ य शतको टम ् व तरम।्
महा माजीः या? िसफ एक बार नाम जप लेने से वह
एकैकम ् अ रम ् पू या महापातक नाशनम।।

ेतयोिन से छूट गया? आप सच कहते हो?
अथातः सौ करोड़ श द म भगवान राम के गुण गाये गये ह।
ेतराजः हाँ भाई ! जो मनु य राम नामजप करता ह
उसका एक-एक अ र ह या आ द महापाप का नाश करने
वह राम नामजप के ताप से कभी हमार योिन को ा नह ं
म समथ ह।
होता। भगव नाम जप म नरको ा रणी श ह। ेत के ारा
दन ढलते ह सांकलचंद क बीमार बढ़ने लगी। वै -
रामनाम का यह ताप सुनकर महा माजी ेमा ु बहाते हए

हक म बुलाये गये। ह रा भ म आ द क मती औषिधयाँ द
भाव समािध म लीन हो गये। उनक आँखे खुलीं तब वहाँ ेत-
गयीं। कंतु अंितम समय आ गया यह जानकर महा माजी ने
समाज नह ं था, बाल सूय क सुनहर करण वटवृ को
थोड़ा नीचे झुककर उसके कान म रामनाम लेने क याद
शोभायमान कर रह थीं।
दलायी। राम बोलते ह उसके ाण पखे उड़ गये। लोग ने
22 अ ैल 2011

कबीर पु कमाल क एक कथा ह। ऐसा कहकर वभीषण ने एक प े पर एक नाम िलखा


तथा उसक धोती के प लू से बाँधते हए
ु कहाः इसम मेन
एक बार राम नाम के भाव से कमाल ारा एक कोढ़
तारक मं बाँधा ह। तू इ र पर ा रखकर तिनक भी
का कोढ़ दरू हो गया। कमाल समझते ह क रामनाम क
घबराये बना पानी पर चलते आना। अव य पार लग जायेगा।
म हमा म जान गया हँू । कमाल के इस काय से कंतु कबीर
वभीषण के वचन पर व ास रखकर वह य समु
जी स न नह ं हए।
ु कबीरजी ने कमाल को तुलसीदास जी के
क ओर आगे बढ़ने लगा। वहं य सागर के सीने पर
पास भेजा।
नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा। वह य जब समु
तुलसीदासजी ने तुलसी के प पर रामनाम िलखकर
के बीचम आया तब उसके मन म संदेह हआ
ु क वभीषण ने
वह तुलसी प जल म डाला और उस जल से 500 को ढ़य को
ऐसा कौन सा तारक मं िलखकर मेरे प लू से बाँधा ह क म
ठ क कर दया।
समु पर सरलता से चल सकता हँू । इस मुझे जरा दे खना
कमान समझ ने लगा क तुलसीप पर एक बार चा हए।
रामनाम िलखकर उसके जल से 500 को ढ़य को ठ क कया
उस य ने अपने प लू म बँधा हआ
ु प ा खोला और
जा सकता है , रामनाम क इतनी म हमा ह। कंतु कबीर जी
पढ़ा तो उस पर दो अ र म केवल राम नाम िलखा हआ
ु था।
इससे भी संतु नह ं हए
ु और उ ह ने कमाल को भेजा संत
राम नाम पढ़ते ह उसक ा तुरंत ह अ ा म बदल
सूरदास जी के पास।
गयीः अरे ! यह कोई तारक मं ह ! यह तो सबसे सीधा सादा
संत सूरदास जी ने गंगा म बहते हए
ु एक शव के कान राम नाम ह ! मन म इस कार क अ ा उपजते ह वह
म राम श द का केवल र कार कहा और शव जी वत हो गया। य डू ब कर मरगया।
तब कमाल ने सोचा क राम श द के र कार से मुदा जी वत हो
कथा सार: इस िलये व ानो ने कहां ह ा और
सकता ह। यह राम श द क म हमा ह।
व ास के माग म संदेह नह ं करना चा हए यो क
तब कबीर जी ने कहाः यह भी नह ं। इतनी सी म हमा
अ व ास एवं अ ा ऐसी वकट प र थितयाँ िनिमत हो
नह ं है राम श द क ।
जाती ह क मं जप से काफ ऊँचाई तक पहँु चा हआ
ु साधक
भृ कु ट वलास सृ लय होई। भी ववेक के अभाव म संदेह पी ष यं का िशकार होकर
जसके भृ कु ट वलास मा से लय हो सकता है , उसके नाम अपना अित सरलता से पतन कर बैठता ह। इस िलये
क म हमा का वणन तुम या कर सकोगे? साधारण मनु य को तो संदेह क आँच ह िगराने के िलए पया
ह। हजार -लाख -करोड मं ो क साधना ज म -ज म क
राम नाम म हमा म एक अ य कथा: साधना अपने सदगु पर संदेह करने मा से न हो जाती है ।
समु तट पर एक य िचंतातुर बैठा था, इतने म
तुलसीदास जी कहते ह-
उधर से वभीषण िनकले। उ ह ने उस िचंतातुर य से पूछाः
य भाई ! तुम कस बात क िचंता म पड़े हो? राम परमारथ पा।

मुझे समु के उस पार जाना ह परं तु मेर पास समु अथात ्: ने ह परमाथ के िलए राम प धारण कया था।
पार करने का कोई साधन नह ं ह। अब या क ँ मुझे इस रामनाम क औषिध खर िनयत से खाय।
बात क िचंता ह। अरे भाई, इसम इतने अिधक उदास य
अंगरोग यापे नह ं महारोग िमट जाय।।
होते हो?
23 अ ैल 2011

मं जप या ह?

 िचंतन जोशी
राम च रत मानस के अनुशार:
किलयुग केवल नाम आधारा, जपत नर उतरे िसंधु पारा।

इस कलयुग म भगवान का नाम ह एक मा आधार ह। जो लोग भगवान के नाम का जप करते ह, वे इस संसार सागर से तर
जाते ह।

जप अथात या ह?

ज+प= जप

ज = ज म का नाश,

प = पाप का नाश।

ज म ज म के पापो का जो नाश करता ह उसे जप कहते ह।

उसे जप कहते ह, जो पाप का नाश करके ज म-मरण करके च कर से छुड़ा दे ।

जप परमा मा के साथ सीधा संबंध जोड़ने क एक कला का नाम ह ।

इसीिलए कहा जाता है ः

अिधकम ् जपं अिधकं फलम।्

तुलसीदास जी ने मं जप क म हमा म कहा ह।

मं जाप मम ढ़ ब वासा। पंचम भजन सो वेद कासा।।

( ीरामच रत. अर. कां. 35-1)

मं का अथ ह है ः

मननात ् ायते इित मं ः।

अथात: जसका मनन करने से जो ाण करे , र ा करे उसे मं कहते ह।

ादश महा यं
ादशमहा यं को अित ािचन एवं दलभ
ु यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह। जो सभी
कार से भा य वृ -उ नित एवं सुख समृ क ाि हे तु सव े यं ह। ादशमहा यं को शा ो विध- वधान
से मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते ह। जसे थापीत कर य बना कसी पूजा अचना-

विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते ह। मू य: Rs- 1900 से 8200 तक


24 अ ैल 2011

या ाप के कारण िमला राम अवतार?


 राकेश पंडा
एक बार िशव जी कैलास पवत पर एक वशाल बरगद दे दया। शापवश उ ह मृ युलोक म तीन बार रा स के प म
के वृ के नीचे बाघ चम बछाकर आन द पूव क बैठे थे। ज म लेना पड़ा। पहली बार उनका ज म हर यक यपु और
उिचत अवसर जानकर माता पावती भी वहाँ आकर उनके पास हर या के प म हआ।
ु उन दोन के अ याचार बहत
ु अिधक
बैठ ग । पावती जी ने िशव जी से कहा, हे नाथ! पूव ज म म बढ़ जाने के कारण ी ह र ने वराह का शर र धारण करके
मुझे एसा मोह हो गया था और मने ी राम क पर ा ली थी। हर या का वध कया और नरिसंह प धारण कर के
मेरा वह मोह अब समा हो चुका है क तु म अभी भी िमत हर यक यपु को मारा।
हँू क य द ी राम राजपु ह तो कैसे हो सकते ह? आप उ ह ं दोन ने रावण और कु भकण के प म फर से
कृ पा करके मुझे ी राम क कथा सुनाएँ और मेरे म को दरू ज म िलया और अ य त परा मी रा स बने। तब क यप
कर। मुिन और अ दित, जो के दशरथ और कौश या के प म
पावती जी के से स न होकर िशव जी बोले, हे अवत रत हए
ु थे, का पु बनकर ी ह र ने उनका वध कया।
पावती! ी रामच जी क कथा कामधेनु के समान सभी एक क प म जल धर नामक दै य ने सम त
सुख को दान करने वाली ह। अतः म उस कथा को, जसे दे वतागण को परा त कर दया तब िशव जी ने जल धर से यु
काकभुशु ड जी ने ग ड़ को सुनाया था, उस कथा को म कया। उस दै य क ी परम पित ता थी अतः िशव जी भी
तु ह सुनाता हँू । उस दै य से नह ं जीत सके।
हे सुमु ख! जब-जब धम का ास होता है और तब ी व णु ने छलपूव क उस ी का त भंग कर
दे वताओं, ा ण पर अ याचार करने वाले द ु व नीच दे वताओं का काय कया। तब उस ी ने ी व णु को मनु य
अिभमानी रा स क वृ हो जाती है तब-तब कृ पा के सागर दे ह धारण करने का शाप दया था।
भगवान ी व णु भाँित-भाँित के अवतार धारण कर स जन ी व णु के ी राम के प म अवत रत होने का एक
क पीड़ा को हरते ह। वे असुर को मार कर दे वताओं क स ा कारण यह भी था। वह जल धर दै य अगले ज म म रावण
को था पत करते ह। के प म अवत रत हआ
ु जसे ी राम ने यु म मार कर
भगवान ी व णु का ी रामच जी के प म परमपद दान कया।
अवतार लेने का भी यह कारण ह। उनक कथा अ य त अ य एक कथा के अनुसार एक बार नारद ने
विच है । म उनके ज म क कहानी तु ह सुनाता हँू । ीहर ी व णु को मनु यदे ह धारण करने का शाप दया था
के जय और वजय नामक दो य ारपाल ह। एक बार
जसके कारण ी राम का अवतार हआ।
ु ”
सनका द ऋ षय ने उ ह मृ युलोक म चले जाने के िलये शाप

मं िस दलभ
ु साम ी
ह था जोड - Rs- 370 घोडे क नाल- Rs.351 माया जाल- Rs- 251
िसयार िसंगी- Rs- 370 द णावत शंख- Rs- 550 इ जाल- Rs- 251
ब ली नाल- Rs- 370 मोित शंख- Rs- 550 धन वृ हक क सेट Rs-251
25 अ ैल 2011

राम र ा यं
राम र ा यं सभी भय, बाधाओं से मु व काय म सफलता ाि हे तु उ म यं ह। जसके योग

से धन लाभ होता ह व य का सवागी वकार होकर उसे सुख-समृ , मानस मान क ाि होती

ह। राम र ा यं सभी कार के अशुभ भाव को दरू कर य को जीवन क सभी कार क

क ठनाइय से र ा करता ह। व ानो के मत से जो य भगवान राम के भ ह या ी

हनुमानजी के भ ह उ ह अपने िनवास थान, यवसायीक थान पर राम र ा यं को अव य

थापीत करना चा हये जससे आने वाले संकटो से र ा हो उनका जीवन सुखमय यतीत हो सके

एवं उनक सम त आ द भौितक व आ या मक मनोकामनाएं पूण हो सके।

ता प पर सुवण पोलीस ता प पर रजत पोलीस ता प पर


(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)

साईज मू य साईज मू य साईज मू य


2” X 2” 640 2” X 2” 460 2” X 2” 370
3” X 3” 1250 3” X 3” 820 3” X 3” 550
4” X 4” 1850 4” X 4” 1250 4” X 4” 820
6” X 6” 2700 6” X 6” 2100 6” X 6” 1450
9” X 9” 4600 9” X 9” 3700 9” X 9” 2450
12” X12” 8200 12” X12” 6400 12” X12” 4600

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26 अ ैल 2011

ध य तो यह ल मण है ?
 राकेश पंडा
रामजी, सीताजी और ल मणजी जंगल म एक वृ के नीचे बैठे थे। उस वृ और डाली पर एक लता छाई हई
ु थी। लता के नयी
कोमल-कोमल क पल िनकल रह थी और कह ं-कह ं पर ता वण के प े िनकल रहे थे। पु प और प से लता छाई हुई थी
ज से वृ क सु दर शोभा बढा रहे थे। वृ बहत
ु ह सुहावना लग रहा था। उस वृ क शोभा को दे खकर भगवान ीरामजी ने
ल मण जी से कहा, दे खो ल मण ! यह लता अपने सु दर-सु दर फल, सुग धत फूल और हर -हर प य से इस वृ क कैसी
शोभा बढा रह है ! जंगल के अ य सब वृ से यह वृ कतना सु दर दख रहा है ! इतना ह नह ,ं इस वृ के कारण ह सारे जंगल
क शोभा हो रह है । इस लता के कारण ह पशु-प ी इस वृ का आ य लेते ह। ध य है यह लता !

भगवान ीराम के मुख से लता क शंसा सुनकर सीताजी ल मण से बोलीः

दे खो ल मण भैया ! तुमने याल कया क नह ं ? दे खो, इस लता का ऊपर चढ़ जाना, फूल प से छा जाना, त तुओं का फैल
जाना, ये सब वृ के आि त ह, वृ के कारण ह ह। इस लता क शोभा भी वृ के ह कारण है । अतः मूल म म हमा तो वृ क ह
है । आधार तो वृ ह है । वृ के सहारे बना लता वयं या कर सकती है ? कैसे छा सकती है ? अब बोलो ल मण भैया ! तु ह ं
बताओ, म हमा वृ क ह हई
ु न ? वृ का सहारा पाकर ह लता ध य हई
ु न?

राम जी ने कहाः य ल मण ! यह म हमा तो लता क ह हई


ु न ? लता को पाकर वृ ह ध य हआ
ु न?

ल मण जी बोलेः हम तो एक तीसर ह बात सूझती है ।

सीता जी ने पूछाः वह या है दे वर जी ?

ल मणजी बोलेः न वृ ध य है न लता ध य है । ध य तो यह ल मण है जो आप दोन क छाया म रहता है ।

 या आपके ब चे कुसंगती के िशकार ह?

 या आपके ब चे आपका कहना नह ं मान रहे ह?

 या आपके ब चे घर म अशांित पैदा कर रहे ह?


घर प रवार म शांित एवं ब चे को कुसंगती से छुडाने हे तु ब चे के नाम से गु व कायालत ारा शा ो विध-
वधान से मं िस ाण- ित त पूण चैत य यु वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाले एवं उसे अपने घर
म था पत कर अ प पूजा, विध- वधान से आप वशेष लाभ ा कर सकते ह।
य द आप तो आप मं िस वशीकरण कवच एवं एस.एन. ड बी बनवाना चाहते ह, तो संपक इस कर सकते ह।

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27 अ ैल 2011

जब कबीरजी को िमली राम-राम मं द ा?

 िचंतन जोशी
संत कबीर कसी पहचे
ु हएु गु से मं द ा ा वामी रामानंद के नाम का क तन करता ह। उस यवन को
करना चाहते थे। उस समय काशी म रामानंद वामी बड़े राम नाम क द ा कसने द ? य द ? उसने मं को कर
उ च को ट के महापु ष माने जाते थे। कबीर जी ने उनके दया !
आ म के मु य ार पर आकर ारपाल से वनती क ः मुझे पं डत ने कबीर जी से पूछाः तुमको रामनाम क द ा
गु जी के दशन करा दो। उस समय जात-पाँत का बड़ा कसने द ? कबीरजी बोले, वामी रामानंदजी महाराज के
बोलबाला था। और फर काशी जैसी पावन नगर म पं डत ीमुख से िमली। पं डत ने फर पूछाः कहाँ द द ा?,
और पंडे लोग का अिधक भाव था। कबीरजी कसके घर पैदा कबीरजी बोले, गंगा के घाट पर।
हए
ु थे – हं द ू के या मुसिलम के? कुछ पता नह ं था। कबीर जी
पं डत पहँु चे रामानंदजी के पासः आपने यवन को
एक जुलाहे को तालाब के कनारे िमले थे। उसने कबीर जी का
राममं क द ा दे कर मं को कर दया, स दाय को
पालन-पोषण करके उ ह बड़ा कया था। जुलाहे के घर बड़े हए

कर दया। गु महाराज ! यह आपने या कया? गु महाराज
तो जुलाहे का धंधा करने लगे। लोग मानते थे क कबीर जी
ने कहाः मने तो कसी को द ा नह ं द ।
मुसलमान क संतान ह।
वह यवन जुलाहा तो रामानंद..... रामानंद..... मेरे
ारपाल ने कबीरजी को आ म म नह ं जाने दया।
गु दे व रामानंद...क रट लगाकर नाचता ह, आपका नाम
कबीर जी ने सोचा क अगर पहँु चे हए
ु महा मा से गु मं नह ं
बदनाम करता ह। रामानंदजी बोले भाई ! मने तो उसको कुछ
िमला तो मनमानी साधना से ह र के दास बन सकते ह पर
नह ं कहा। उसको बुला कर पूछा जाय। पता चल जायगा।
ह रमय नह ं बन सकते। कैसे भी करके मुझे रामानंद जी
महाराज से ह मं द ा लेनी है । काशी के पं डत इक ठे हो गये। जुलाहा स चा क
रामानंदजी स चे यह दे खने के िलए भीड़ इ कठ हो गयी।
कबीरजी ने दे खा क वामी रामानंदजी हररोज सुबह
कबीर जी को बुलाया गया। गु महाराज मंच पर वराजमान
3-4 बजे खड़ाऊँ पहन कर टप...टप आवाज करते हए ु गंगा म
ह। सामने व ान पं डत क सभा ह।
नान करने जाते ह। कबीर जी ने गंगा के घाट पर उनके जाने
के रा ते म सब जगह बाड़ कर द और आने-जाने का एक ह रामानंदजी ने कबीर से पूछाः मने तु ह कब द ा द ?
माग रखा। उस माग म सुबह के अँधेरे म कबीर जी सो गये। म कब तेरा गु बना? कबीरजी बोलेः महाराज ! उस दन भात
गु महाराज आये तो अँधेरे के कारण वामी रामानंदजी का को आपने मुझे पादका ु - पश कराया और राममं भी दया,
कबीरजी पर पैर पड़ गया। उनके मुख से वतः उदगार िनकल वहाँ गंगा के घाट पर।
पड़े ः राम..... राम...! रामानंद वामी ने कबीरजी के िसर पर धीरे से खड़ाऊँ
कबीरजी का तो काम बन गया। गु जी के दशन भी हो मारते हए
ु कहाः राम... राम.. राम.... मुझे झूठा बनाता है ? गंगा
गये, उनक पादकाओं
ु का पश तथा गु मुख से राम मं भी के घाट पर मने तुझे कब द ा द थी ?
िमल गया। गु द ा के बाद अब द ा म बाक ह या रहा? कबीरजी बोल उठे ः गु महाराज ! तब क द ा झूठ
कबीर जी नाचते, गुनगुनाते घर वापस आये। राम नाम क और तो अब क तो स ची....! मुख से राम नाम का मं भी िमल
गु दे व के नाम क रट लगा द । अ यंत नेहपूण दय से गया और िसर पर आपक पावन पादकाु का पश भी हो गया।
गु मं का जप करते, गु नाम का क तन करते हए
ु साधना वामी रामानंदजी उ च को ट के संत महा मा थे। उ ह ने
करने लगे। दन दन कबीर जी म ती बढ़ने लगी। काशी के पं डत से कहाः चलो, यवन हो या कुछ भी हो, मेरा पहले नंबर
पं डत ने दे खा क यवन का पु कबीर राम नाम जपता ह, का िश य यह है ।
28 अ ैल 2011

जब भ के िलये वयं भगवान मरने को तैयार होते ह?

 िचंतन जोशी
एक संग के अनुशार
जब वभीषण भगवान ीराम के चरण क शरण म हो जाता है , तब भगवान ीराम वभीषण के दोष को अपने ह दोष
मानते ह। एक समय वभीषण समु लांघ कर समु के दसरे
ू छोर पर आये। वहाँ व घोष नामक गाँव म उनसे अ ात ह
एक ह या हो गई। जब बाक के गाँव वालो को इस बात का पता लगा तो वहाँ के सभी ा ण ने इक ठे होकर
वभीषण को खूब मारा-पीटा, पर वभीषण मरे नह ं। फर ा ण ने वभीषण को जंजीर से बाँधकर जमीन के भीतर एक गुफा म
ले जाकर बंध कर दया।

जब भगवान ीराम को पता लगा क तो ीराम जी पु पक वमान के ारा त काल, गाँव म पहँु चे। ा ण ने राम जी
का बहत
ु आदर-स कार कया और कहा क, महाराज ! इसने ह या कर द है । इसको हमने बहत
ु मारा, पर यह मरा नह ं।

भगवान राम ने कहाः हे ा ण ! वभीषण को मने क प तक क आयु और रा य दे रखा ह, वह कैसे मारा जा सकता है ! और
उसको मारने क ज रत ह या ह? वह तो मेरा भ ह।

मेर भ के िलए म वयं मरने को तैयार हँू । हमारे यहाँ वधान है क दास के अपराध क ज मेवार उसके वामी पर होती
ह। वामी ह उसके द ड का पा होता ह। इसिलए वभीषण के बदले आप लोग मेर को ह द ड द। भगवान क यह शरणागत
व सलता दे खकर सब ा ण आ य करने लगे और उन सब ने उसी ण भगवान ीराम क शरण ले ली।

मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर ता प , िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे
विभ न कार क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते
है . जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध
वधान वशेष लाभ ा कर सकते है . जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए
गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु व कायालय
ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर
(चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु
स पक करे
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29 अ ैल 2011

ी राम शलाका ावली

सु उ ब हो मु ग ब सु नु ब घ िध इ द

र फ िस िस र बस है मं ल न ल य न अं

सुज सो ग सु कु म स ग त न ई ल धा बे नो

य र न कु जो म र र र अ क हो सं रा य

पु सु थ सी जै इ ग म सं क रे हो स स िन

त र त र स हँु ह ब ब प िच स य स तु

म का ◌ा र र मा िम मी हा ◌ा जा हू हं ◌ा जू

ता रा रे र का फ खा ज ई र रा पू द ल

िन को िम गो न म ज य ने मिन क ज प स ल

ह रा िम सम र ग द न ख म ख ज िन त जं

िसं मु न न कौ िम ज र ग धु ख सु का स र

गु क म अ ध िन म ल ◌ा न ब ती न र भ

ना पु व अ ढ़ा र ल का ए तू र न नु व थ

िस ह सु ह र र स हं र त न ख ◌ा ◌ा ◌ा

र सा ◌ा ला धी ◌ा र जा हू हं षा जू ई रा रे

विध-
ीरामच जी का यान कर अपने को मन म दोहराय। फर ऊपर द गई सारणी म से कसी
एक अ र अंगुली रख। अब उससे अगले अ र से मशः नौवां अ र िलखते जाय जब तक पुनः उसी जगह
नह ं पहँु च जाय। इस कार एक चौपाई बनेगी, जो अभी का उ र होगी।
यहां हमने आपक अनुकूलता हे तु नौवे अ र के को क को एक समान रं ग म रं गने का
यास कया ह जससे आपको हर नौवे अ रको िगनती करने क आव य ा न रह आप सीधे एक
समान रं गो के को क म लीखे अ रोको िमलाले/िलख ले और जो चौपाई बने उस चौपाई को भी
दे खने म आपको आसानी हो इस उ े य से उसी रं ग म रं गने का यास कया ह।
30 अ ैल 2011

1 सुनु िसय स य असीस हमार । पू ज ह मन कामना तु हार ।


फलः - क ा का उ म है , काय िस होगा।
यह चौपाई बालका ड म ीसीताजी के गौर पूजन के संग म है । गौर जी ने ीसीताजी को आशीवाद दया है ।

2 बिस नगर क जै सब काजा। दय रा ख कोसलपुर राजा।

फलः-भगवान ् का मरण करके कायार भ करो, सफलता िमलेगी।


यह चौपाई सु दरका ड म हनुमानजी के लंका म वेश करने के समय क है ।

3 उघर अंत न होइ िनबाहू। कालनेिम जिम रावन राहू।।

फलः-इस काय म भलाई नह ं है । काय क सफलता म स दे ह है ।


यह चौपाई बालका ड के आर भ म स संग-वणन के संग म है ।

4 बिध बस सुजन कुसंगत परह ं। फिन मिन सम िनज गुन अनुसरह ं।।
फलः-खोटे मनु य का संग छोड़ दो। काय क सफलता म स दे ह है ।
यह चौपाई बालका ड के आर भ म स संग-वणन के संग म है ।

5 होइ है सोई जो राम रिच राखा। को क र तरक बढ़ाव हं साषा।।


फलः-काय होने म स दे ह है , अतः उसे भगवान ् पर छोड़ दे ना े य कर है ।
यह चौपाई बालका डा तगत िशव और पावती के संवाद म है ।

6 मुद मंगलमय संत समाजू। जिम जग जंगम तीरथ राजू।।


फलः- उ म है । काय िस होगा।
यह चौपाई बालका ड म संत-समाज पी तीथ के वणन म है ।

7 गरल सुधा रपु करय िमताई। गोपद िसंधु अनल िसतलाई।।


फलः- बहत
ु े है । काय सफल होगा।
यह चौपाई ीहनुमान ् जी के लंका वेश करने के समय क है ।

8 ब न कुबेर सुरेस समीरा। रन सनमुख ध र काह न धीरा।।


फलः-काय पूण होने म स दे ह है ।
यह चौपाई लंकाका ड म रावन क मृ यु के प ात ् म दोदर के वलाप के संग म है ।

9 सुफल मनोरथ होहँु तु हारे । राम लखनु सुिन भए सुखारे ।।


फलः- बहत
ु उ म है । काय िस होगा।
यह चौपाई बालका ड पु पवा टका से पु प लाने पर व ािम जी का आशीवाद है ।
31 अ ैल 2011

जब ीराम ने कय वजया एकादशी त?

 व तक.ऎन.जोशी

एक बार युिध र ने ी कृ ण से पूछा हे भु फा गुन (गुजरात-महारा


म माघ) के कृ णप को कस नाम क एकादशी होती ह और उसका त करने
क विध या ह? कृ पा करके बताइये ।

फा गुन के कृ णप क एकादशी को ‘ वजया एकादशी’ के नाम


से जाना जाता ह।

भगवान ीकृ ण पुनः बोले: युिध र ! एक बार नारदजी


ने ाजी से फा गुन के कृ णप क ‘ वजया एकादशी’ के त
से होनेवाले पु य के बारे म पूछा था तथा ाजी ने इस त के
बारे म नारदजी को जो कथा और विध बतायी थी, उसे सुनो :

ाजी ने कहा : नारद ! यह त बहत


ु ह ाचीन, प व
और पाप नाशक ह । यह एकादशी राजाओं को वजय दान करती
ह, इसम तिनक भी संदेह नह ं ह ।

ेतायुग म मयादा पु षो म ीरामच जी जब लंका पर


चढ़ाई करने के िलए समु के कनारे पहँु चे, तब उ ह समु को पार करने
का कोई उपाय नह ं सूझ रहा था ।

उ ह ने ल मणजी से पूछा : ‘सुिम ान दन ! कस उपाय से इस समु


को पार कया जा सकता है ? यह अ य त अगाध और भयंकर जल ज तुओं से भरा हआ
ु है
। मुझे ऐसा कोई उपाय नह ं दखायी दे ता, जससे इसको सुगमता से पार कया जा सके ।

ल मणजी बोले : हे भु ! आप ह आ ददे व और पुराण पु ष पु षो म ह । आपसे या िछपा ह? यहाँ से आधे योजन क दरू
पर कुमार प म बकदा य नामक मुिन रहते ह । आप उन व ान मुनी र के पास जाकर उ ह ंसे इसका उपाय पूिछये ।

ीरामच जी महामुिन बकदा य के आ म पहँु चे और उ ह ने मुिन को णाम कया ।

मह ष ने स न होकर ीरामजी के आगमन का कारण पूछा ।

ीरामच जी बोले : न ् ! म लंका पर चढ़ाई करने के उ े य से अपनी सेनास हत यहाँ आया हँू ।

मुने ! अब जस कार समु पार कया जा सके, कृ पा करके वह उपाय बताइये ।

बकदा भय मुिन ने कहा : हे ीरामजी ! फा गुन के कृ णप म जो ‘ वजया’ नाम क एकादशी होती है , उसका त करने
से आपक वजय होगी। िन य ह आप अपनी वानर सेना के साथ समु को पार कर लगे । राजन ् ! अब इस त क फलदायक
विध सुिनये :
32 अ ैल 2011

एकादशी के एक दन पूव दशमी के दन सोने, चाँद , ताँबे अथवा िम ट का एक कलश था पत कर उस कलश को जल


से भरकर उसम प लव डाल द । उस कलश के ऊपर भगवान नारायण के सुवणमय व ह क थापना कर । फर एकादशी के
दन ात: काल नान कर । कलश को पुन: था पत कर । माला, च दन, सुपार तथा ना रयल आ द के ारा वशेष प से उसका
पूजन कर ।

कलश के ऊपर स धा य और जौ रख । ग ध, धूप, द प और भाँित-भाँित के नैवेघ से भगवान नारायण का पूजन कर ।


कलश के सामने बैठकर उ म कथा वाता आ द के ारा सारा दन यतीत कर और रात म भी वहाँ जागरण कर । अख ड त क
िस के िलए घी का द पक जलाय ।

फर ादशी के दन सूय दय होने पर उस कलश को कसी जलाशय के समीप था पत कर और उसक विधवत ् पूजा करके
दे व ितमास हत उस कलश को वेदवे ा ा ण के िलए दान कर द । कलश के साथ ह और भी बड़े बड़े दान दे ने चा हए । ीराम !
आप अपने सेनापितय के साथ इसी विध से य पूव क ‘ वजया एकादशी’ का त क जये । इससे आपक वजय होगी ।

ाजी कहते ह : नारद ! यह सुनकर ीरामच जी ने मुिन के कथनानुसार उस समय ‘ वजया एकादशी’ का त कया ।
उस त के करने से ीरामच जी वजयी हए
ु । उ ह ने सं ाम म रावण को मारा, लंका पर वजय पायी और सीता को ा कया ।
बेटा ! जो मनु य इस विध से त करते ह, उ ह इस लोक म वजय ा होती है और उनका परलोक भी अ य बना रहता ह।

भगवान ीकृ ण कहते ह : युिध र ! इस कारण ‘ वजया’ का त करना चा हए । इस संग को पढ़ने और सुनने से
वाजपेय य के समान फल िमलता ह।

ादश महा यं
यं को अित ािचन एवं दलभ
ु यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह।
 परम दलभ
ु वशीकरण यं ,  सह ा ी ल मी आब यं
 भा योदय यं  आक मक धन ाि यं
 मनोवांिछत काय िस यं  पूण पौ ष ाि कामदे व यं
 रा य बाधा िनवृ यं  रोग िनवृ यं
 गृ ह थ सुख यं  साधना िस यं
 शी ववाह संप न गौर अनंग यं  श ु दमन यं
.

उपरो सभी यं ो को ादश महा यं के प म शा ो विध- वधान से मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु


कये जाते ह। जसे थापीत कर बना कसी पूजा अचना- विध वधान वशेष लाभ ा कर सकते ह।

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33 अ ैल 2011

वयं भा ने क रामदतो
ू क सहायता?
 व तक.ऎन.जोशी

माँ सीता क खोज करते-करते हनुमान, जा बंत, अंगद आ द वयं भा के आ म म पहँु चे। उ ह जोर क भूख
और यास लगी थी। उ ह दे खकर वयं भा ने पूछा कः या तुम हनुमान हो? ीरामजी के दत
ू हो? सीता जी क
खोज म िनकले हो?"
हनुमानजी ने कहाः "हाँ, माँ! हम सीता माता क खोज म इधर तक आये ह।"
फर वयं भा ने अंगद क ओर दे खकर कहाः तुम सीता जी को खोज तो रहे हो, क तु आँख बंद करके खोज
रहे हो या आँख खोलकर?"
अंगद बोलाः हम या आँख ब द करके खोजते ह गे? हम तो आँख खोलकर ह माता सीता क खोज कर रहे
ह।
वयं भा बोलीः सीताजी को खोजना है तो आँख खोलकर नह ं बंद करके खोजना होगा। सीता जी अथात ्
भगवान क अधािगनी, सीताजी यानी व ा, आ म व ा। व ा को खोजना है तो आँख खोलकर नह ं आँख बंद
करके ह खोजना पड़े गा। आँख खोलकर खोजोगे तो सीताजी नह ं िमलगीं। तुम आँख ब द करके ह सीताजी ( व ा)
को पा सकते हो। ठहरो म तु हे बताती हँू क सीता जी अभी कहाँ ह।
यान करके वयं भा ने बतायाः सीताजी यहाँ कह ं भी नह ं, वरन ् सागर पार लंका म ह। अशोकवा टका म बैठ
ह और रा िसय से िघर ह। उनम जटा नामक रा सी ह तो रावण क से वका, क तु सीताजी क भ बन गयी है ।
सीताजी वह ं रहती ह।"
रामदत
ू वानर सोचने लगे क भगवान राम ने तो एक मह ने के अंदर सीता माता का पता लगाने के िलए कहा
था। अभी तीन स ाह से यादा समय तो यह ं हो गया ह। वापस या मुँह लेकर जाएँ? सागर तट तक पहँु चते-पहँु चते
कई दन लग जाएँगे। अब या कर?
उनके मन क बात जानकर वयं भा ने कहाः िच ता मत करो। अपनी आँख बंद करो। म योगबल से एक ण
म तु ह वहाँ पहँु चा दे ती हँू ।
हनुमान, अंगद और अ य वानर अपनी आँख ब द करते ह और वयं भा अपनी योगश से उ ह सागर-तट
पर कुछ ह पल म पहँु चा दे ती ह।
इस िलये ीरामच रतमानस म उ लेख ह।
ठाड़े सकल िसंधु के तीरा।

फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को
नकारा मक उजा से बचाता ह एवं एक उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और
अिधक भावी और प व माना जाता ह। RS-550 से RS-8200 तक
34 अ ैल 2011

अंगद ने रावण के घमंडको चूर कया


 व तक.ऎन.जोशी

लंका पहँू च कर अगले दन सुबेल पवत पर एक-दसरे


ू से असली बात नह ं बतलाते, रावण के
व ाम कर ातःकाल ी रघुनाथजी उढे और सब मं य पु क मृ यु समझकर सब चुप रह जाते ह। रावण पु
को बुलाकर सलाह म पूछा क शी बताइए अब या क मृ यु जानकर और रा स को भय के मारे भागते
उपाय करना चा हए? जा बवानने
् ी रामजी के चरण म दे खकर नगरभर म कोलाहल मच गया क जसने लंका
िसर नवाकर कहा हे सब कुछ जानने वाले। हे सबके दय जलाई थी, वह वानर फर आ गया है । सब अ यंत
म िनवास करने वाले अंतयामी! हे बु , बल, तेज, धम भयभीत होकर वचार करने लगे क वधाता अब न जाने
और गुण के अिधपित सुिनए! म अपनी बु के अनुसार या करे गा। वे बना पूछे ह अंगद को रावण के दरबार
सलाह दे ता हँू क बािलकुमार अंगद को दत
ू बनाकर रावण म जाने का रा ता बता दे ते ह। जसे ह वे दे खते ह, वह
क लंका म भेजा जाए। डर के मारे सूख जाते।
यह अ छ सलाह सबके मन म जँच गई। कृ पा के ी रामजी के चरणकमल का मरण करके अंगद
िनधान ी रामजी ने अंगद से कहा हे बल, बु और रावण क सभा के ार पर गए और वे धीर, वीर और बल
गुण के धाम बािलपु ! हे तात! तुम मेरे काम के िलए क रािश अंगद िसंह क तरह इधर-उधर दे खने लगे।
लंका जाओ। तुमको अिधक समझाकर या कहँू ! म तुरंत ह अंगदने एक रा स को भेजा और रावण को
जानता हँू , तुम परम चतुर हो। श ु से वह बातचीत अपने आने का समाचार सूिचत कया। सुनते ह रावण
करना, जससे हमारा काम हो और उसका क याण हो हँ सकर बोला- बुला लाओ, दे ख कहाँ का बंदर है ।
जाए। आ ा पाकर बहत
ु से दत
ू दौड़े और वानर के बीच
भु ी रामक आ ा म िसर चढ़कर और उनके म हाथी के समान अंगद को बुला लाए। अंगद क
चरण क वंदना करके अंगदजी उठे और बोले हे भुजाएँ वृ के और िसर पवत के िशखर के
भगवान ् ी रामजी आप जस पर कृ पा कर, वह गुण का समान ह। रोमावली मानो बहत
ु सी लताएँ ह। मुँह, नाक,
समु हो जाता है । वामी सब काय अपने-आप िस ह, ने और कान पवत क क दराओं और खोह के बराबर
यह तो भु ने मुझ को काय दया है । ऐसे वचार करते ह। अ यंत बलवानबाँ
् के वीर बािलपु अंगद सभा म गए,
हँू ए युवराज अंगद का दय ह षत और शर र पुल कत हो वे मन म जरा भी नह ं झझके। अंगद को दे खते ह सब
गया। चरण क वंदना करके रमाजी क भुता दय म सभास उठ खड़े हए।
ु यह दे खकर रावण के दय म बड़ा
धारणकर अंगद सबको णाम कर चले। ोध हआ।

लंका म वेश करते ह रावण के पु से अंगद क जैसे मतवाले हािथय के झुंड म िसंह िनःशंक
भट हो गई, जो वहाँ खेल रहा था। बात ह बात म दोन होकर चला जाता ह, उसी कार ी रामजी के ताप का
म झगड़ा बढ़ गया, रावण के पु ने अंगद पर लात दय म मरण करके अंगद िनभय होकर सभा म बैठ
उठाई। अंगद ने तब पैर पकड़कर उसे घुमाकर जमीन पर गए। रावण ने कहा अरे बंदर! तू कौन है ?, अंगद ने कहा
दे पटक कर मार िगराया। यह दे ख कर रा सो के हे दश ीव! म ी रघुवीर का दत
ू हँू । मेरे पता से तु हार
समूह अंगद को दे खकर जहाँ-तहाँ भाग गएं, वे डर के मारे िम ता थी, इसिलए हे भाई! म तु हार भलाई के िलए ह
उनके मुख से श द नह ं िनकल रहे थे। आया हँू ।
35 अ ैल 2011

तु हारा उ म कुल है , पुल य ऋ ष के तुम पौ नह ं कहते, तु हारे तो बीस ने और बीस कान ह। िशव,
हो। िशवजी क और ाजी क तुमने बहत
ु कार से ा आ द दे वता और मुिनय के समुदाय जनके चरण
पूजा क है । उनसे वर पाए ह और सब काम िस कए क सेवा करना चाहते ह, उनका दत
ू होकर मने कुल को
ह। लोकपाल और सब राजाओं को तुमने जीत िलया है । डु बा दया? अरे ऐसी बु होने पर भी तु हारा दय फट
राजमद से या मोहवश तुम जग जननी सीताजी को हर नह ं जाता?
लाए हो। अब तुम मेरे शुभ वचन अथात मेर सलाह अंगद क कठोर वाणी सुनकर रावण आँख ितरछ
सुनो! उसके अनुसार चलने से भु ी रामजी तु हारे सब करके बोला- अरे द ु ! म तेरे सब कठोर वचन इसीिलए
अपराध माफ कर दगे। दाँत म ितनका दबाओ, गले म सह रहा हँू क म नीित और धम को जानता हँू और
कु हाड़ डालो और कुटु बय स हत अपनी य को उ हं क र ा कर रहा हँू । अंगद ने कहा- तु हार
साथ लेकर, आदरपूव क जानक जी को आगे करके, इस धमशीलता मने भी सुनी है । जैसे क तुमने पराई ी क
कार सब भय छोड़कर चलो-और 'हे शरणागत के पालन चोर क है ! और दत
ू क र ा क बात तो अपनी आँख
करने वाले रघुवंश िशरोम ण ी रामजी! मेर र ा से दे ख ली। ऐसे धम के त को धारण (पालन) करने
क जए, र ा क जए। इस तरह ाथना करो। अंतर पुकार वाले तुम डू बकर मर य नह ं जाते। नाक-कान से र हत
सुनते ह भु तुमको िनभय कर दगे। रावण ने कहा अरे ब हन को दे खकर तुमने धम वचारकर ह तो मा कर
बंदर के ब चे! सँभालकर बोल! मूख! मुझ दे वताओं के दया था! तु हार धमशीलता जगजा हर है । म भी बड़ा
श ु को तूने जाना नह ?ं अरे भाई! अपना और अपने बाप भा यवानहँ् ू , जो मने तु हारा दशन पाया?। रावण ने कहा-
का नाम तो बता। कस नाते से िम ता मानता है ? अरे जड़ ज तु वानर! यथ बक-बक न कर, अरे मूख!
अंगद ने कहा- मेरा नाम अंगद है , म बािल का पु मेर भुजाएँ तो दे ख। ये सब लोकपाल के वशाल बल
हँू । उनसे कभी तु हार भट हई
ु थी? अंगद का वचन पी चं मा को सने के िलए राहु के समान ह। फर
सुनते ह रावण कुछ सकुचा गया और बोला-हाँ, म जान तूने सुना ह होगा क आकाश पी तालाब म मेर
गया मुझे याद आ गया, बािल नाम का एक बंदर था। अरे भुजाओं पी कमल पर बसकर िशवजी स हत कैलास
अंगद! तू ह बािल का लड़का है ? अरे कुलनाशक! तू तो हं स के समान शोभा को ा हआ
ु था। अरे अंगद! सुन,
अपने कुल पी बाँस के िलए अ न प ह पैदा हआ
ु ! गभ तेर सेना म बता, ऐसा कौन यो ा है, जो मुझसे िभड़
म ह य न न हो गया तू? यथ ह पैदा हआ
ु जो सकेगा। तेरा मािलक तो ी के वयोग म बलह न हो रहा
अपने ह मुँह से तप वय का दत
ू कहलाया। अब बािल है और उसका छोटा भाई उसी के दःख
ु से दःखी
ु और
क कुशल तो बता, वह आजकल कहाँ है ? तब अंगद ने उदास है ।
हँ सकर कहा बस कुछ दन बीतने पर वयं ह बािल के तुम और सु ीव, दोन नद तट के वृ हो रहा
पास जाकर, अपने िम को दय से लगाकर, उसी से मेरा छोटा भाई वभीषण, सो वह भी बड़ा डरपोक है । मं ी
कुशल पूछ लेना। ी रामजी से वरोध करने पर जैसी जा बवानबहत
् ु बूढ़ा है । वह अब लड़ाई म या कर सकता
कुशल होती है , वह सब तुमको वे सुनावगे। हे मूख! सुन, है ?। नल-नील तो िश प-कम जानते ह वे लड़ना या
भेद उसी के मन म पड़ सकता है , भेद नीित उसी पर जान?, हाँ, एक वानर ज र महानबलवान
् ् है , जो पहले
अपना भाव डाल सकती है जसके दय म ी रघुवीर न आया था और जसने लंका जलाई थी। यह वचन सुनते
ह । सच है , म तो कुल का नाश करने वाला हँू और हे ह बािल पु अंगद ने कहा-हे रा सराज! स ची बात कहो!
रावण! तुम कुल के र क हो। अंध-े बहरे भी ऐसी बात या उस वानर ने सचमुच तु हारा नगर जला दया?
36 अ ैल 2011

रावण जैसे जग वजयी यो ा का नगर एक छोटे से वानर वह सुंदर वभाव वचार कर, हे दश ीव! मने कुछ धृ ता
ने जला दया। ऐसे वचन सुनकर उ ह स य कौन कहे गा क है । हनुमानने
् जो कुछ कहा था, उसे आकर मने
हे रावण! जसको तुमने बहत
ु बड़ा यो ा कहकर सराहा है , य दे ख िलया क तु ह न ल जा है, न ोध है और
वह तो सु ीव का एक छोटा सा दौड़कर चलने वाला न िचढ़ है । (रावण बोला-अरे वानर! जब तेर ऐसी बु है,
हरकारा है । वह बहत
ु चलता है , वीर नह ं है । उसको तो तभी तो तू बाप को खा गया। ऐसा वचन कहकर रावण
हमने केवल खबर लेने के िलए भेजा था। या सचमुच ह हँ सा। अंगद ने कहा- पता को खाकर फर तुमको भी खा
उस वानर ने भु क आ ा पाए बना ह तु हारा नगर डालता, पर तु अभी तुरंत कुछ और ह बात मेर समझ म
जला डाला? मालूम होता है, इसी डर से वह लौटकर सु ीव आ गई।
के पास नह ं गया और कह ं िछपा रहा! अरे नीच अिभमानी! बािल के िनमल यश का
हे रावण! तुम सब स य ह कहते हो, मुझे सुनकर कारण जानकर तु ह म नह ं मारता। रावण! यह तो बता
कुछ भी ोध नह ं है । सचमुच हमार सेना म कोई भी क जगतम
् कतने रावण ह? मने जतने रावण अपने
ऐसा नह ं है , जो तुमसे लड़ने म शोभा पाए। ीित और वैर कान से सुन रखे ह, उ ह सुन एक रावण तो बिल को
बराबर वाले से ह करना चा हए, नीित ऐसी ह है । िसंह जीतने पाताल म गया था, तब ब च ने उसे घुड़साल म
य द मढक को मारे, तो या उसे कोई भला कहे गा बाँध रखा। बालक खेलते थे और जा-जाकर उसे मारते थे।
य प तु ह मारने म ी रामजी क लघुता है और बिल को दया लगी, तब उ ह ने उसे छुड़ा दया
बड़ा दोष भी है तथा प हे रावण! सुनो, य जाित का फर एक रावण को सह बाहु ने दे खा, और उसने दौड़कर
ोध बड़ा क ठन होता ह। व ो पी धनुष से वचन उसको एक वशेष कार के विच ज तु क तरह
पी बाण मारकर अंगद ने श ु का दय जला दया। समझकर पकड़ िलया। तमाशे के िलए वह उसे घर ले
वीर रावण उन बाण को मानो यु र पी सँड़िसय से आया। तब पुल य मुिन ने जाकर उसे छुड़ाया। एक
िनकाल रहा है । तब रावण हँ सकर बोला- बंदर म यह एक रावण क बात कहने म तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है-
बड़ा गुण है क जो उसे पालता है , उसका वह अनेक वह बहत
ु दन तक बािल क काँख म रहा था। इनम से
उपाय से भला करने क चे ा करता है । बंदर को ध य तुम कौन से रावण हो? खीझना छोड़कर सच-सच बताओ।
है , जो अपने मािलक के िलए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ रावण ने कहा-अरे मूख! सुन, म वह बलवानरावण

नाचता है । नाच-कूदकर, लोग को रझाकर, मािलक का हँू , जसक भुजाओं क करामात कैलास पवत जानता है ।
हत करता है । यह उसके धम क िनपुणता है । हे अंगद! जसक शूरता उमापित महादे वजी जानते ह, ज ह अपने
तेर जाित वािमभ है फर भला तू अपने मािलक के िसर पी पु प चढ़ा-चढ़ाकर मने पूजा था। िसर पी
गुण इस कार कैसे न बखानेगा? म गुण ाहक गुण का कमल को अपने हाथ से उतार-उतारकर मने अग णत
आदर करने वाला और परम समझदार हँू , इसी से तेर बार पुरा र िशवजी क पूजा क है ।
जली-कट बक-बक पर यान नह ं दे ता। अरे मूख! मेर भुजाओं का परा म द पाल जानते
अंगद ने कहा- तु हार स ची गुण ाहकता तो ह, जनके दय म वह आज भी चुभ रहा है । द गज
मुझे हनुमानने् सुनाई थी। उसने अशोक वन म व वंस मेर छाती क कठोरता को जानते ह। जनके भयानक
करके, तु हारे पु को मारकर नगर को जला दया था। दाँत, जब-जब जाकर म उनसे जबरद ती िभड़ा, मेर छाती
तो भी तुमने अपनी गुण ाहकता के कारण यह समझा म कभी नह ं फूटे , ब क मेर छाती से लगते ह वे मूली
क उसने तु हारा कुछ भी अपकार नह ं कया। तु हारा ू गए। जसके चलते समय पृ वी इस
क तरह टट कार
37 अ ैल 2011

हलती है जैसे मतवाले हाथी के चढ़ते समय छोट नाव! गाल चलेगा? ऐसा वचार कर कृ पालु ी रामजी को भज।
म वह जगत िस तापी रावण हँू । अरे झूठ बकवास अंगद के ये वचन सुनकर रावण बहत
ु अिधक जल उठा।
करने वाले! या तूने मुझको कान से कभी सुना। महान मानो जलती हई
ु च ड अ न म घी पड़ गया हो वह
तापी और जगत िस मुझे तू छोटा कहता है और बोला- अरे मूख! कुंभकण- ऐसा मेरा भाई है, इ का श ु
मनु य क बड़ाई करता है ? अरे द ु , अस य, तु छ बंदर! सु िस मेघनाद मेरा पु है ! और मेरा परा म तो तूने
अब मने तेरा ान जान िलया। सुना ह नह ं क मने संपूण जड़-चेतन जगतको
् जीत
रावण के ये वचन सुनकर अंगद ोध स हत वचन िलया है !
बोले- अरे नीच अिभमानी! सँभलकर बोल। जनका फरसा रे द ु ! वानर क सहायता जोड़कर राम ने समु
सह बाहु क भुजाओं पी अपार वन को जलाने के िलए बाँध िलया, बस, यह उसक भुता है । समु को तो
अ न के समान था। जनके फरसा पी समु क ती अनेक प ी भी लाँघ जाते ह। पर इसी से वे सभी
धारा म अनिगनत राजा अनेक बार डू ब गए, उन शूरवीर नह ं हो जाते। अरे मूख बंदर! सुन- मेरा एक-एक
परशुरामजी का गव ज ह दे खते ह भाग गया, अरे अभागे भुजा पी समु बल पी जल से पूण है, जसम बहत
ु से
दशशीश! वे मनु य य कर ह?, शूरवीर दे वता और मनु य डू ब चूके ह। बता कौन ऐसा
य रे मूख उ ड! ी रामचं जी मनु य ह? शूरवीर है, जो मेरे इन अथाह और अपार बीस समु का
कामदे व भी या धनुधार है? और गंगाजी या नद ह? पार पा जाएगा?
कामधेनु या पशु है? और क पवृ या पेड़ है? अ न भी अरे द ु ! मने द पाल तक से जल भरवाया और
या दान है ? और अमृ त या रस है ? ग ड़जी या प ी तू एक राजा का मुझे सुयश सुनाता है ! य द तेरा मािलक,
ह? शेषजी या सप ह? अरे रावण! िचंताम ण भी या जसक गुणगाथा तू बार-बार कह रहा है , सं ाम म लड़ने
प थर है ? अरे ओ मूख! सुन, वैकु ठ भी या लोक है ? वाला यो ा है - तो फर वह दत
ू कसिलए भेजता है ? श ु
और ी रघुनाथजी क अख ड भ या लाभ है ? सेना से ीित करते उसे लाज नह ं आती?
समेत तेरा मान मथकर, अशोक वन को उजाड़कर, नगर पहले कैलास का मथन करने वाली मेर भुजाओं
को जलाकर और तेरे पु को मारकर जो लौट गए और को दे ख। फर अरे मूख वानर! अपने मािलक क सराहना
तू उनका कुछ भी न बगाड़ सका य रे द ु ! वे करना। रावण के समान शूरवीर कौन है ?
हनुमानजी
् या वानर ह? जसने अपने हाथ से िसर काट-काटकर अ यंत
अरे रावण! चतुराई छोड़कर सुन। कृ पा के समु हष के साथ बहत
ु बार उ ह अ न म होम दया! वयं
ी रघुनाथजी का तू भजन य नह ं करता? अरे द ु ! गौर पित िशवजी इस बात के सा ी ह।
य द तू ी रामजी का वैर हआ
ु तो तुझे ा और म तक के जलते समय जब मने अपने ललाट
भी नह ं बचा सकगे। पर िलखे हए
ु वधाता के अ र दे खे, तब मनु य के हाथ
हे मूढ़! यथ क ड ंग न हाँक। ी रामजी से वैर से अपनी मृ यु होना बाँचकर, वधाता के लेख कोअस य
करने पर तेरा ऐसा हाल होगा क तेरे िसर समूह ी जानकर म हँ सा। उस बात को मरण करके भी मेरे मन
रामजी के बाण लगते ह वानर के आगे पृ वी पर पड़गे म डर नह ं है । य क म समझता हँू क बूढ़े ा ने
और र छ-वानर तेरे उन गद के समान अनेक िसर से बु म से ऐसा िलख दया है । अरे मूख! तू ल जा
चौगान खेलगे। जब ी रघुनाथजी यु म कोप करगे और और मयादा छोड़कर मेरे आगे बार-बार दसरे
ू वीर का बल
उनके अ यंत ती ण बहत
ु से बाण छूटगे, तब या तेरा कहता है !
38 अ ैल 2011

अंगद ने कहा- अरे रावण! तेरे समान बहत


ु बूढ़ा, िन य का रोगी, िनरं तर ोधयु रहने वाला,
ल जावानजगत
् म् कोई नह ं है । ल जाशीलता तो तेरा भगवान ् व णु से वमुख, वेद और संत का वरोधी, अपना
सहज वभाव ह है । तू अपने मुँह से अपने गुण कभी ह शर र पोषण करने वाला, पराई िनंदा करने वाला और
नह ं कहता। पाप क खान- ये चौदह ाणी जीते ह मुरदे के समान ह।
िसर काटने और कैलास उठाने क कथा िच म अरे द ु ! ऐसा वचार कर म तुझे नह ं मारता। अब
चढ़ हई
ु थी, इससे तूने उसे बीस बार कहा। भुजाओं के तू मुझम ोध न पैदा कर। अंगद के वचन सुनकर रा स
उस बल को तूने दय म ह िछपा रखा है , जससे तूने राज रावण दाँत से होठ काटकर, ोिधत होकर हाथ
सह बाहु, बिल और बािल को जीता था।अरे मंद बु ! मलता हआ
ु बोला- अरे नीच बंदर! अब तू मरना ह चाहता
सुन, अब बस कर। िसर काटने से भी या कोई शूरवीर है ! इसी से छोटे मुँह बड़ बात कहता है ।
हो जाता है ? इं जाल रचने वाले को वीर नह ं कहा जाता, अरे मूख बंदर! तू जसके बल पर कड़ु ए वचन बक
य प वह अपने ह हाथ अपना सारा शर र काट डालता रहा है , उसम बल, ताप, बु अथवा तेज कुछ भी नह ं
है !। है ।
अरे मंद बु ! समझकर दे ख। पतंगे मोहवश आग उसे गुणह न और मानह न समझकर ह तो पता
म जल मरते ह, गदह के झुंड बोझ लादकर चलते ह, पर ने वनवास दे दया। उसे एक तो उसका दःख
ु , उस पर
इस कारण वे शूरवीर नह ं कहलाते। युवती ी का वरह और फर रात- दन मेरा डर बना
अरे द ु ! अब बतबढ़ाव मत कर, मेरा वचन सुन रहता है । जनके बल का तुझे गव है , ऐसे अनेक मनु य
और अिभमान याग दे ! हे दशमुख! म दत
ू क तरह को तो रा स रात- दन खाया करते ह।
स ध करने नह ं आया हँू । ी रघुवीर ने ऐसा वचार कर अरे मूढ़! ज छोड़कर वचार कर। जब उसने ी
मुझे भेजा है - कृ पालु ी रामजी बार-बार ऐसा कहते ह रामजी क िनंदा क , तब तो क प े अंगद अ यंत
क यार के मारने से िसंह को यश नह ं िमलता। अरे ोिधत हए
ु , य क शा ऐसा कहते ह क जो अपने
मूख! भु के वचन को मन म समझकर याद करके ह कान से भगवान ् व णु और िशव क िनंदा सुनता है , उसे
मने तेरे कठोर वचन सहे ह। गो वध के समान पाप लगता है ।
नह ं तो तेरे मुँह तोड़कर म सीताजी को वानर े अंगद बहत
ु जोर से कटकटाए और
जबरद ती ले जाता। अरे अधम! दे वताओं के श ु! तेरा उ ह ने तमककर जोर से अपने दोन भुजद ड को पृ वी
बल तो मने तभी जान िलया, जब तू सूने म पराई ी को पर दे मारा। तब पृ वी हलने लगी, जससे बैठे हए

हर लाया। तू रा स का राजा और बड़ा अिभमानी है , सभास िगर पड़े और भय पी भूत से त होकर भाग
पर तु म तो ी रघुनाथजी के सेवक सु ीव के सेवक का चले।
भी सेवक हँू । य द म ी रामजी के अपमान से न ड ँ रावण िगरते-िगरते सँभलकर उठा। उसके अ यंत
तो तेरे दे खते-दे खते ऐसा तमाशा क ँ क- तुझे जमीन पर सुंदर मुकुट पृ वी पर िगर पड़े । कुछ तो उसने उठाकर
पटककर, तेर सेना का संहार कर और तेरे गाँव को न - अपने िसर पर ठक कर रख िलए और कुछ अंगद ने
करके, अरे मूख! तेर युवती य स हत जानक जी उठाकर भु ी रामचं जी के पास फक दए। मुकुट को
को ले जाऊँ। य द ऐसा क ँ , तो भी इसम कोई बड़ाई नह ं आते दे खकर वानर भागे। सोचने लगे वधाता! या दन
है । मरे हए
ु को मारने म कुछ भी पु ष व नह ं है । ू
म ह उ कापात होने लगा तारे टटकर िगरने लगे? अथवा
वाममाग , कामी, कंजूस, अ यंत मूढ़, अित द र , बदनाम, या रावण ने ोध करके चार व चलाए ह, जो बड़े धाए
39 अ ैल 2011

के साथ वेग से आ रहे ह?। भु ने उनसे हँ सकर कहा- तोड़ने म समथ हँू । पर या क ँ ? ी रघुनाथजी ने मुझे
मन म डरो नह ं। ये न उ का ह, न व ह और न केतु आ ा नह ं द । ऐसा ोध आता है क तेरे दस मुँह तोड़
या राहु ह ह। अरे भाई! ये तो रावण के मुकुट ह, जो डालूँ और तेर लंका को पकड़कर समु म डु बो दँ ।ू तेर
बािलपु अंगद के ार फके हए
ु आ रहे ह। लंका गूलर के फल के समान है । तुम सब क ड़े उसके
पवन पु ी हनुमानजी
् ने उछलकर उनको हाथ भीतर िनडर होकर बस रहे हो। म बंदर हँू, मुझे इस फल
से पकड़ िलया और लाकर भु के पास रख दया। र छ को खाते या दे र थी? पर कृ पालु ी रामचं जी ने वैसी
और वानर तमाशा दे खने लगे। उनका काश सूय के आ ा नह ं द ।
समान था। अंगद क यु सुनकर रावण मु कुराया और
सभा म ोधयु रावण सबसे ोिधत होकर बोला-अरे मूख! बहत
ु झूठ बोलना तूने कहाँ से सीखा?
कहने लगा क- बंदर को पकड़ लो और पकड़कर मार बािल ने तो कभी ऐसा गाल नह ं मारा। जान पड़ता है तू
डालो। अंगद यह सुनकर मु कुराने लगे। तप वय से िमलकर लबार हो गया है ।
रावण फर बोला-इसे मारकर सब यो ा तुरंत दौड़ो अंगद ने कहा-अरे बीस भुजा वाले! य द तेर दस
और जहाँ कह ं र छ-वानर को पाओ, वह ं खा डालो। पृ वी जीभ मने नह ं उखाड़ लीं तो सचमुच म लबार ह हँू । ी
को बंदर से र हत कर दो और जाकर दोन तप वी रामचं जी के ताप को मरण करके अंगद ोिधत हो
भाइय राम-ल मण को जीते जी पकड़ लो। रावण के ये उठे और उ ह ने रावण क सभा म ण करके ढ़ता के
कोपभरे वचन सुनकर युवराज अंगद ोिधत होकर बोले- साथ पैर जमा दया। और कहा-अरे मूख! य द तू मेरा
तुझे अपने गाल बजाते लाज नह ं आती! अरे िनल ज! चरण हटा सके तो ी रामजी लौट जाएँगे, म सीताजी को
अरे कुलनाशक! गला काटकर आ मह या करके मर जा! हार गया। रावण ने कहा- हे सब वीरो! सुनो, पैर पकड़कर
मेरा बल दे खकर भी या तेर छाती नह ं फटती!। बंदर को पृ वी पर पछाड़ दो।
अरे ी के चोर! अरे कुमाग पर चलने वाले! अरे इं जीत, मेघनाद आ द अनेक बलवानयो
् ा जहाँ-
द ु , पाप क रािश, म द बु और कामी! तू स नपात म तहाँ से ह षत होकर उठे । वे पूरे बल से बहत
ु से उपाय
या दवचन
ु बक रहा है? अरे द ु रा स! तू काल के वश करके झपटते ह। पर पैर टलता नह ं, तब िसर नीचा
हो गया है ! करके फर अपने-अपने थान पर जा बैठ जाते ह।
इसका फल तू आगे वानर और भालुओं के चपेटे काकभुशु डजी कहते ह- वे दे वताओं के श ु रा स फर
लगने पर पावेगा। राम मनु य ह, ऐसा वचन बोलते ह , उठकर झपटते ह, पर तु हे सप के श ु ग ड़जी! अंगद
अरे अिभमानी! तेर जीभ नह ं िगर पड़तीं?॥4॥ का चरण उनसे वैसे ह नह ं टलता जैसे कुयोगी पु ष
इसम संदेह नह ं है क तेर जीभ अकेले नह ं पर तेरे मोह पी वृ को नह ं उखाड़ सकते।
िसर के साथ रणभूिम म िगरगी। करोड़ वीर यो ा जो बल म मेघनाद के समान थे,
रे दशक ध! जसने एक ह बाण से बािल को मार डाला, ह षत होकर उठे , वे बार-बार झपटते ह, पर वानर का
वह मनु य कैसे है ? अरे कुजाित, अरे जड़! बीस आँख होने चरण नह ं उठता, तब ल जा के मारे िसर नवाकर बैठ
पर भी तू अंधा है । तेरे ज म को िध कार है । ी जाते ह।
रामचं जी के बाण समूह तेरे र क यास से यासे ह। जैसे करोड़ व न आने पर भी संत का मन नीित
वे यासे ह रह जाएँगे इस डर से, अरे कड़वी बकवाद को नह ं छोड़ता, वैसे ह अंगद का चरण पृ वी को नह ं
करने वाले नीच रा स! म तुझे छोड़ता हँू । म तेरे दाँत छोड़ता। यह दे खकर रावण का मद दरू हो गया!।
40 अ ैल 2011

अंगद का बल दे खकर सब दय म हार गए। तब अ यंत िनबल कर दे ते ह, उनके दत


ू का ण कहो, कैसे
अंगद के ललकारने पर रावण वयं उठा। जब वह अंगद टल सकता है ?।
का चरण पकड़ने लगा, तब बािल कुमार अंगद ने कहा- फर अंगद ने अनेक कार से नीित कह । पर
मेरा चरण पकड़ने से तेरा बचाव नह ं होगा। अरे मूख- तू रावण नह ं माना, य क उसका काल िनकट आ गया
जाकर ी रामजी के चरण य नह ं पकड़ता? यह सुनकर था। श ु के गव को चूर करके अंगद ने उसको भु ी
रावण मन म बहत
ु ह सकुचाकर लौट गया। उसक सार रामचं जी का सुयश सुनाया और फर वह राजा बािल का
ी जाती रह । वह ऐसा तेजह न हो गया जैसे म या म पु यह कहकर चल दया- रणभूिम म तुझे खेला-खेलाकर
चं मा दखाई दे ता है । न मा ँ तब तक अभी पहले से या बड़ाई क ँ ।
वह िसर नीचा करके िसंहासन पर जा बैठा। मानो अंगद ने पहले ह सभा म आने से पूव ह उसके
सार स प गँवाकर बैठा हो। ी रामचं जी जगतभर
् के पु को मार डाला था। वह संवाद सुनकर रावण दःखी
ु हो
आ मा और ाण के वामी ह। उनसे वमुख रहने वाला गया। अंगद का ण दे खकर सब रा स भय से अ य त
शांित कैसे पा सकता है ? ह याकुल हो गए।
िशवजी कहते ह-हे उमा! जन ी रामचं जी के श ु के बल का मदन कर, बल क रािश बािल पु
भ ह के इशारे से व उ प न होता है और फर नाश को अंगदजी ने ह षत होकर आकर ी रामचं जी के
ा होता है , जो तृ ण को व और व को तृ ण बना दे ते चरणकमल पकड़ िलए। उनका शर र पुल कत है और ने
ह अ यंत िनबल को महान ् बल और महान ् बल को म आनंदा ु ओं का जल भरा है ।

विभ न दे वी क स नता के िलये गाय ी मं


दगा
ु गाय ी : ॐ िग रजाये वधमहे , िशव याय धीम ह त नो दगा
ु : चोदयात।

ल मी गाय ी : ॐ महाला मये वधमहे , व णु याय धीम ह त नो ल मी: चोदयात।

राधा गाय ी : ॐ वृ ष भानु: जायै वधमहे , याय धीम ह त नो राधा : चोदयात।

तुलसी गाय ी : ॐ ी तु ये वधमहे , व ु याय धीम ह त नो वृ ंदा: चोदयात।

सीता गाय ी : ॐ जनक नं द ये वधमहे भुिमजाय धीम ह त नो सीता : चोदयात।

हं सा गाय ी : ॐ पर साय वधमहे , महा हं साय धीम ह त नो हं स: चोदयात।

सर वती गाय ी : ॐ वाग दे यै वधमहे काम रा या धीम ह त नो सर वती : चोदयात।

पृ वी गाय ी : ॐ पृ वी दे यै वधमहे सह मूरतयै धीम ह त नो पृ वी : चोदयात।


41 अ ैल 2011

सीता जी को ाप के फल से वनवास हवा


ु ?
 व तक.ऎन.जोशी

प पुराण म व णत कथा इस कार ह। जानक जी के ेमपूव क पूछने पर उन प य ने बताया,


एक समय क बात ह राजा जनक क पु ी सीता अपनी "दे व ! हम दोनो पित-प ी ह। हम मह ष
कशोर अव था म जानक अपनी स खय के साथ वा मी क के आ म म रहते ह। वे काल ानी ह। मह ष ने
िमिथलानगर के अपने उ ान म खेल रह थी। स खय रामायण नामक एक महा थ
ं बनाया है । उ ह ने अपने
के साथ खेलते-खेलते उनक एक पेड पर बैठे हए
ु िश यो को जो अ ययन कराया, उसक कथा मन को बड़
एक शुक प ी के जोडे पर पड जो मनु य क तरह बाते य लगती है । इस िलये उसे हम दोन ने भी सुनकर
कर रहे थे। जानक को दोनो प ी क बाते सुन कर याद कर िलया।
है रानी हई।
ु जानक को उनक बाते सुनने क उ सुकता
जानक जी ने पुनः पुछा तब हम आगे और बताओ क ये
हई
ु और वहं उनक बाते सुनने के िलये पेड़ के नीचे पहंु च
राम कोन ह? उनका ववाह सीता से कैसे होगा? आ द-
गई।
आ द। जानक ने उ साहपूवक पुछा।
दोनो प ी भगवान ी राम और सीता (जानक ) के वषय
शुक ने आगे बाताया, भगवान व णु अपने तेज से चार अंश
म वातालाप कर रहे थे। दोनो बाते कर रहे थे क एक
म कट ह गे। राम, ल मण, भरत और श ु न के प म वे
समय आयेगा जब पृ वी पर ी राम नाम से िस राजा
अवधपुर म अवत र ह गे। राजा दशरथ के ये पु
ह गे। वह राजा अ यंत तेज वी और सुंदर ह गे। ी राम
ीराम अपने अनुज एवं गु व ािम के साथ िमिथला
का ववाह परम सुंदर राजा जनक क सुपु ी जानक से
म धनुष य म आयगे। जब कोई धनुष उठा नह ं
होगा और जानक उनक महारानी बन कर सीता के नाम
सकेगा तब अपने गु व ािम क आ ा पाकर ीराम
से जगत म व यात होगी। भगवान ी रामचं जी बड़े
धनुष को ण भर म उठाकर उसे तोड दगे। उसी समय
बु मान, कत य िन एवं महाबलवान ह गे जो सम त
जनक क अ यंत मनोहर पवती पु ी सीता का ववाह
राजाओं को वश म रखते हए
ु अपनी प ी सीता के साथ
ीरामजी से होगा। इतना कहते शुक ने कहा, अब छोड
यारह हजार वष तक रा य करगे।
दो हम जाना ह।
दोनो प ीओं के मुख से वयंके व ीरामजी के बारे म
इतनी बाते सुनते ह जानक से और रहा नह ं गया,
जानक होली नह ं-नह ं अभी नह ं। जानक जी ने पुनः पूछाः
उ ह ने सोचा क यह दोनो प ी मेरे बारे म और भी
ीरामजी दे खने म कैसे ह गे? उनके गुण का वणन करो।
बहत
ु कुछ जानते ह गे। यह वचार कर कर जानक ने
तु हार बात मुझे बड़ य लग रह ह।
अपनी स खय से कहाः कुछ भी करके इन प य को पकड़
शुक बोली ी राम वशाल बांहो बाले, कमल जैसे मुख
लाओ। जानक ने अपनी स खय क सहायता से शुक
जैसे ने वाले, नािसका ऊचीं, पलती महोहा रणी होगी।
प ी जे जोडे को पकड़ िलया।
उनका गला शंख के समान सुशोिभत छोटा होगा। ीराम
उ ह ने दोनो प य से कहाः तुम दोन डरो नह ।ं बताओ,
अपनी शांत, सौ य से जस पर भी डालगे, उसका िच
तुम कौन हो ? ी राम कौन ह और सीता कौन ह? तुम
स न और उनक तरफ आक षत हो जाये एसा य व
यह बात कैसे जानते ह ? तुम कहां से आये हो?
होगा। ीरामजी सब कार के ऐ यमय गुण से यु ह गे।
42 अ ैल 2011

ीराम के सौदय का वणन सौ मुखो से करना असंभव इस पर जानक बोली, मै तेरे ोध से डरने वाली नह ं।
ह। हम तो असमथ ह, प ी जो ह। शुक ने कया दोन बहत
ु रोये-िगड़िगड़ाये कंतु जानक उ ह छोड़ने के िलए
दे वी आप कौन ह जो इतनी उ सुकता से ीराम के बारे तैयार नह ं हु ।
म करती जा रह ह और मुझे छोड नह ं रह ह। शुक बोली म मह ष के आ म म रहती हंू इसिलए तु ह
शुक के का उ र दे ते हए
ु जानक ने कहां तुम जस ाप दे सकती हंू । शुक ने कडे श द म चेतावनी द ।
जानक सीता क बात कर रह हो, वह जनककुमार मै जानक न ह ते हए
ु उपे ा भाव से कहा मुझे डराती-
ह हंु । तुम ी राम क बात बता रह हो, अब वे जब धमकाती ह। जा, मै, तुझे अब कतई नह ं छोडने वाली।
यहां आकर मुझे वीकार करगे तभी म तुम दोन को मु शुक बोली अरे बावली! तू जस कार मुझ गिभणी को
क ं गी, अ यथा नह ं। तब तक तुम दोनो इ छानुसार ड़ा अपने पित से वलग कर रह ह। वैसे ह तुझे भी
करते हए
ु मेरे महल म सुख से रहो और मीठे -मीठे पदाथ का गभाव था म अपने पित ीराम से अलग रहना पड़े गा।
सेवन करो। यह कहते हएं
ु पित वयोग के शोक से शुक ने ाण याग
शुक बोली, नह -ं नह ं दे वी ऎसा मत करना। हम वन के दए।
प ी ह। पेड़ पर रहते ह और सव वचरण करते रहते ह। शुक भी प ी वयोग से शोकाकुल हो उठा उसका दय
हम आपके महल म सुख नह ं िमलेगा। म गिभनी हँू । मुझे पीडा व शोक के कारण फटने लगा। शुक ने कातर वर
जाना ह, अभी वा मी क जी के आ म म अपने थान पर म सीता को ल य करते हए
ु बोलाः म मनु य से भर ी
जाकर ब च को ज म दे कर पुनः आपक सेवा म उप थत रामजी क नगर अयो या म ज म लूँगा तथा ितशोध लूंगा
हो जाऊंगी। और म ऐसी अफवाह पैदा क ँ गा क जा गुमराह हो जायेगी
शुक के पित शुक न भी जानक से वनित क क उ ह और जापालक ीरामजी जा का मान रखने के िलए तु हारा
जाने दया जाए। ले कन जानक ने उन प ीओं क बात याग कर दगे और तु ह अपने पित से वयोग सहना
पर यादा यान नह ं दया। जानक ने शुक से कहां पड़े गा और भार दख
ु उढाना पडे गा।
कुछ भी हो, शुक तुम जा सकते हो। कंतु म शुक को नह ं ोध और जानक से ितशो लेने केिलये शुक का धोबी के
छोड़ू ँ गी। घर ज म हआ।
ु उस धोबी के कथन से ह सीता जी िनं दत हु
शुक बोला म इसके बना नह ं रह सकूंगा। अतः इसे छोड और गिभणी अव था म उ ह पित से अलग होकर वन म
दो। शुक न पुनः तडपते हए
ु वनती क आप मेर ाथना जाना पड़ा।
मानलो। कम का फल तो दे व-असुर मानव हर कसी को भी भोगना
शुक ने पुनः जानक से कहा, जानक , तुम मुझे नह ं पड़ता है । इसी से व दत होता है क कम फल ह केवलम।्
छोडोगी तो मुझे ोध आ जयेगा।

संपूण ज म कुंडली परामश


ज म कुंडली म उप थत अ छे -बुरे योग तथा दोष के बारे म संपूण जानकार ा कर इन योग अथवा दोष से होने वाले
लाभ-हािन के बारे म जानकार ा कर उन दोष के िनवारण के उपाय से संबंिधत व तृ त जानकार ा करने हे तु
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43 अ ैल 2011

ी राम के िस मं
 िचंतन जोशी
अपनी आव य ा के अनुशार उपरो मं का नजर झाड़ने हे तु
िनयिमत जाप करने से लाभ ा होता ह। ी रामच रत मं :-
मानस मे गहर आ था रखने वाले य को वशेष एवं याम गौर सुंदर दोउ जोर ।
शी लाभ ा होता ह। िनरख हं छ ब जननीं तृ न तोर ॥

वप नाश हे तु
वष भाव नाश हे तु
मं :-
मं :-
रा जव नयन धर धनु सायक।
नाम भाउ जान िसव नीको।
भगत बपित भंजन सुखदायक॥
कालकूट फलु द ह अमी को॥

संकट नाश हे तु
िच ता िनवारण हे तु
मं :-
मं :-
ज भु द न दयालु कहावा।
जय रघुवंश बनज बन भानू।
आरित हरन बेद जसु गावा॥
गहन दनुज कुल दहन कृ शानू॥
जप हं नामु जन आरत भार ।
िमट हं कुसंकट हो हं सुखार ॥ म त क पीड़ा िनवारण हे तु
द न दयाल ब रद ु संभार । मं :-
हरहु नाथ मम संकट भार ॥ हनूमान अंगद रन गाजे।
हाँक सुनत रजनीचर भाजे॥
लेश िनवारण हे तु
मं :- रोग िनवारण एवं उप व शांित हे तु
हरन क ठन किल कलुष कलेसू। मं :-
महामोह िनिस दलन दनेसू॥ दै हक दै वक भौितक तापा।
राम राज काहू हं न ह यापा॥
व न नाश हे तु
अकाल मृ यु भय िनवारण हे तु
मं :-
मं :-
सकल व न याप हं न हं तेह ।
नाम पाह दवस िनिस यान तु हार कपाट।
राम सुकृपाँ बलोक हं जेह ॥
लोचन िनज पद जं त जा हं ान के ह बाट॥
आप के वनाश हे तु द र ता िनवारण हे तु
मं :- मं :-
नवउँ पवन कुमार,खल बन पावक यान घन। अितिथ पू य यतम पुरा र के।
जासु दयँ आगार, बस हं राम सर चाप धर॥ कामद धन दा रद दवा र के॥
44 अ ैल 2011

व ा ाि हे तु स प क ाि हे तु
मं :- मं :-
गु गृ हँ गए पढ़न रघुराई। जे सकाम नर सुन ह जे गाव ह।
अलप काल व ा सब आई॥ सुख संप नाना विध पाव ह॥

ान- ाि हे तु ऋ -िस ा करने हे तु


मं :- मं :-
िछित जल पावक गगन समीरा। साधक नाम जप हं लय लाएँ।
पंच रिचत अित अधम सर रा॥ हो हं िस अिनमा दक पाएँ॥

िश ा म सफ़लता हे तु सव कार के सुख ाि हे तु


मं :- मं :-
जे ह पर कृ पा कर हं जनु जानी। सुन हं बमु बरत अ बषई।
क ब उर अ जर नचाव हं बानी॥ लह हं भगित गित संपित नई॥
मो र सुधा र ह सो सब भाँती।
मनोरथ िस हे तु
जासु कृ पा न हं कृ पाँ अघाती॥
मं :-
आजी वका ाि हे तु भव भेषज रघुनाथ जसु सुन हं जे नर अ ना र।
मं :- ित ह कर सकल मनोरथ िस कर हं िसरा र॥
ब व भरण पोषन कर जोई।
कुशलता हे तु
ताकर नाम भरत जस होई॥
मं :-
शी ववाह हे तु भुवन चा रदस भरा उछाह।ू जनकसुता रघुबीर बआह॥

मं :-
मनोरथ िस हे तु
तब जनक पाइ विश आयसु याह सा ज सँवा र कै।
मं :-
मांडवी ु तक रित उरिमला, कुँअ र लई हँ का र कै॥
भव भेषज रघुनाथ जसु सुन हं जे नर अ ना र।
या ा म सफ़लता हे तु ित ह कर सकल मनोरथ िस कर हं िसरा र॥
मं :-
कुशलता हे तु
बिस नगर क जै सब काजा।
मं :-
दयँ रा ख कोसलपुर राजा॥
भुवन चा रदस भरा उछाह।ू जनकसुता रघुबीर बआह॥

पु ाि हे तु
खोयी हई
ु व तु पुनः ा करने हे तु
मं :-
मं :-
ेम मगन कौस या िनिस दन जात न जान।
गई बहोर गर ब नेवाजू। सरल सबल सा हब रघुराजू॥
सुत सनेह बस माता बालच रत कर गान॥
45 अ ैल 2011

मुकदम म वजय ाि हे तु आकषण हे तु


मं :- मं :-
पवन तनय बल पवन समाना। जे ह क जे ह पर स य सनेहू ।
बुिध बबेक ब यान िनधाना॥ सो ते ह िमलइ न कछु संदेहू ॥
पर पर ेम बढाने हे तु
श ु को िम बनाने हे तु
मं :-
मं :-
सब नर कर हं पर पर ीती।
गरल सुधा रपु कर हं िमताई।
चल हं वधम िनरत ु ित नीती॥
गोपद िसंधु अनल िसतलाई॥
वचारो क शु हे तु
श ुता नाश हे तु
मं :-
मं :-
ताके जुग पद कमल मनाउँ ।
बय न कर काहू सन कोई। राम ताप वषमता खोई॥
जासु कृ पाँ िनरमल मित पावउँ ॥

खोयी हई
ु व तु पुनः ा करने हे तु
मं :- भ भाव उजागर हे तु
गई बहोर गर ब नेवाजू। सरल सबल सा हब रघुराजू॥ मं :-
भगत क पत नत हत कृ पािसंधु सुखधाम।
मो - ाि हे तु
सोइ िनज भगित मो ह भु दे हु दया क र राम॥
मं :-
स यसंध छाँड़े सर ल छा। काल सप जनु चले सप छा॥
***

दगा
ु बीसा यं
शा ो मत के अनुशार दगा
ु बीसा यं दभा
ु य को दरू कर य के सोये हवे
ु भा य को जगाने वाला माना
गया ह। दगा
ु बीसा यं ारा य को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ ा होता ह। जो य
आिथक सम यासे परे शान ह , वह य य द नवरा म ाण ित त कया गया दगा
ु बीसा यं को थाि कर
लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा के दनो
म ाण ित त दगा
ु बीसा यं को अपने घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह, य शी ह अपने यापार म वृ एवं अपनी आिथक थती म सुधार होता दे खगे। संपूण ाण ित त एवं
पूण चैत य दगा
ु बीसा यं को शुभ मुहू त म अपने घर-दकान
ु -ओ फस म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह। मू य: Rs.550 से Rs.8200 तक

GURUTVA KARYALAY
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46 अ ैल 2011

रामर ा तो
अ य ीरामर ा तो म य बुधकौिशक ऋ षः। अ याहता ः सव लभते जयमंगलम ् ॥१४॥
ी सीतारामचं ो दे वता । अनु ु पछं
् दः। सीता श ः। आ द वा यथा व ने रामर ािममां हरः ।
ीमान हनुमानक
् लकम।् ी सीतारामचं ी यथ तथा िल खतवा ातः बु ो बुधकौिशकः ॥१५॥
रामर ा तो जपे विनयोगः । आरामः क पवृ ाणां वरामः सकलापदाम।्
अथ यानम:् अिभरामि लोकानां रामः ीमा स नः भुः ॥१६॥
यायेदाजानुबाहंु धृ तशरधनुषं ब प ासन थं त णौ प स प नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पीतं वासो वसानं नवकमलदल पिधने ं स नम।् पु डर क वशाला ौ चीरकृ णा जना बरौ ॥१७॥
वामांका ढसीतामुखकमलिमल लोचनं फलमूलािशनौ दा तौ तापसौ चा रणौ ।
नीरदाभं नानालंकार द ं दधतमु जटामंडलं रामचं म । पु ौ दशरथ यैतौ ातरौ रामल मणौ ॥१८॥
च रतं रघुनाथ य शतको ट व तरम ् । शर यौ सवस वानां े ौ सवधनु मताम।्
एकैकम रं पुंसां महापातकनाशनम॥१॥
् र ःकुलिनह तारौ ायेतां नो रघू मौ ॥१९॥
या वा नीलो पल यामं रामं राजीवलोचनम।् आ स जधनुषा वषु पृ शाव याशुगिनषंगसंिगनौ ।
जानक ल मणोपेतं जटामुकुटमं डतम ् ॥२॥ र णाय मम रामल मणाव तःपिथ सदै व ग छताम॥२०॥

सािसतूणधनुबाणपा णं न ं चरांतकम।् स न ः कवची ख गी चापबाणधरो युवा ।
वलीलया जग ातुमा वभूतमजं वभुम ् ॥३॥ ग छ मनोरथा न रामः पातु सल मणः ॥२१॥
रामर ां पठे ा ः पाप नीं सवकामदाम।् रामो दाशरिथः शूरो ल मणानुचरो बली ।
िशरो मे राघवः पातु भालं दशरथा मजः ॥४॥ काकु थः पु षः पूण ः कौस येयो रघू मः ॥२२॥
कौस येयो शौ पातु व ािम यः ु ती । वेदा तवे ो य ेशः पुराणपु षो मः ।
ाणं पातु मख ाता मुखं सौिम व सलः ॥५॥ जानक व लभः ीमान मेयपरा मः ॥२३॥
ज ां व ािनिधः पातु क ठं भरतवं दतः । इ येतािन जप न यं म ः याऽ वतः ।
कंधौ द यायुधः पातु भुजौ भ नेशकामु कः ॥६॥ अ मेधािधकं पु यं स ा नोित न संशयः ॥२४॥
करौ सीतापितः पातु दयं जामद य जत।् रामं दवादल
ू यामं प ा ं पीतवाससम।्
म यं पातु खर वंसी नािभं जा बवदा यः ॥७॥ तुव त नामिभ द यैन ते संसा रणो नराः ॥२५॥
सु ीवेशः कट पातु स थनी हनुम भुः । रामं ल मणपूवजं रघुवरं सीतापितं सु दरं
उ रघू मः पातु र ःकुल वनाशकृ त ् ॥८॥ काकु थं क णाणवं गुणिनिधं व यं धािमकम।्
जानुनी सेतुकृ पातु जंघे दशमुखा तकः । राजे ं स यसंधं दशरथतनयं यामलं शा तमूित
पादौ वभीषण ीदः पातु रामोऽ खलं वपुः ॥९॥ व दे लोकािभरामं रघुकुलितलकं राघवं रावणा रम॥२६॥

एतां रामबलोपेतां र ां यः सुकृती पठे त ् । रामाय रामभ ाय रामच ाय वेधसे ।
स िचरायुः सुखी पु ी वजयी वनयी भवेत॥१०॥
् रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥
पातालभूतल योमचा रण छ चा रणः । ीराम राम रघुन दनराम राम ीराम राम भरता ज राम राम।
न ु मित श ा ते र तं रामनामिभः ॥११॥ ीराम राम रणककश राम राम ीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
रामेित रामभ े ित रामच े ित वा मरन।् ीरामच चरणौ मनसा मरािम ीरामच चरणौ वचंसा गृ णािम ।
नरो न िल यते पापैभु ं मु ं च व दित ॥१२॥ ीरामच चरणौ िशरसा नमािम ीरामच चरणौ शरणं प े ॥२९॥
जग जै ैकम ेण रामना नाऽिभर तम।् माता रामो म पता रामच ः वामी रामो म सखा रामच ः ।
यः क ठे धारये य कर थाः सविस यः ॥१३॥ सव वं मे रामच ो दयलुना यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
व पंजरनामेदं यो रामकवचं मरे त।्
47 अ ैल 2011

द णे ल मणो य य वामे तु जनका मजा । भजनं भवबीजानामजनं सुखस पदाम्।


पुरतो मा ितय य तं वंदे रघुन दनम् ॥३१॥ तजनं यमदतानां
ू राम रामेित गजनम ् ॥३६॥
लोकािभरामं रणरं गधीरं राजीवने ं रघुवंशनाथम । रामो राजम णः सदा वजयते रामं रामेशं भजे
का य पं क णाकरं तं ीरामचं ं शरणं प े ॥३२॥ रामेणािभहता िनशाचरचमू रामाय त मै नमः ।
मनोजवं मा ततु यवेगं जते यं बु मतां व र म।् रामा ना त परायणं परतरं राम य दासोऽ यहं
वाता मजं वानरयूथमु यं ीरामदतं
ू शरणं प े ॥३३॥ रामे िच लयः सदा भवतु मे भो राम मामु र ॥३७॥
कूज तं राम रामेित मधुरं मधुरा रम।् राम रामेित रामेित रमे रामे मनोरमे ।
आ क वताशाखां व दे वा मी कको कलम ् ॥३४॥ सह नाम त ु यं रामनाम वरानने ॥३८॥
आपदामपहतारं दातारं सवस पदाम।् ॥ ी बुधकौिशक वरिचतम ् ीरामर ा तो ं स पूण ॥
लोकािभरामं ीरामं भूयो भूयो नमा यहम ् ॥३५॥

ी राम दयम ्
ी गणेशाय नमः । ी महादे व उवाच ।
त वम या दवा यै च साभास याहम तथा ।
ततो रामः वयं ाह हनूमंतमुप थतम ् । ऐ य ानं यदो प नं महावा येन चा मनोः ॥ ७ ॥
ृ णु त वं व यािम ा माना मपरा मनाम् ॥ १ ॥
तदाऽ व ा वकाय न य येव न संशयः ।
आकाश य यथा भेद वधो यते महान ् । एत ाय म ावायोपप ते ॥ ८ ॥
जलाशये महाकाश तदव छ न एव ह ॥ २ ॥
म त वमुखानां ह शा गतषु मु ताम ् ।
ित बंबा यमपरं यते वधं नभः । न ानं न च मो ः या ेषां ज मशतैर प ॥ ९ ॥
बु यविच नचैत यमेकं पूण मथापरम ् ॥ ३ ॥
इदं रह यं दयं ममा मनो मयैव सा ा किथतं तवानघ
आभास वपरं बंबभूतमेवं धा िचितः । ।
साभासबु े ः कतु वम व छ ने वका र ण ॥ ४ ॥ म ह नाय शठाय च वया दात यमै ाद प
रा यतोऽिधकम ् ॥ १० ॥
सा यारो यते ां या जीव वं च तथाऽबुधैः ।
आभास तु मृ षाबु र व ाकायमु यते ॥ ५ ॥ ॥ इित ीमद या मरामायण-बालकांडो ं ीराम दयं
संपूण म ् ॥
अ व छ नं तु त छे द तु वक पतः ।
व छ न य पूणन एक वं ितपा ते ॥ ६ ॥

अथ ी राम तो
क याणानां िनधानं किलमलमथनं पावनं पावनानां
पाथेयं य मुमु ोः सप द परमपद ा ये थत य ।
व ाम थानमेकं क ववरवचसां जीवनं स जनानां
बीजं धम ुम य भवतु भवतां भूतये रामनाम ॥
48 अ ैल 2011

रामा ो र शतनाम तो म ्
अह याशापशमनः पतृ भ ो वर दः ।
ीराघवं दशरथा मजम मेयं सीतापितं
जते यो जत ोधो जतािम ो जग ु ः ॥८॥
रघुकुला वयर द पम ् ।
आजानुबाहमर
ु व ददलायता ं रामं िनशाचर वनाशकरं ऋ वानरसंघाती िच कूटसमा यः ।
नमािम ॥ जय त ाणवरदः सुिम ापु से वतः ॥९॥

वैदेह स हतं सुर मतले


ु है मे महाम डपे म ये पु पकमासने
सवदे वा ददे व मृ तवानरजीवनः ।
म णमये वीरासने सु थतम ् ।
मायामार चह ता च महादे वो महाभुजः ॥१०॥
अ े वाचयित भ जनसुते त वं मुिन यः परं या या तं
भरता दिभः प रवृ तं रामं भजे यामलम ् ॥ सवदे व तुतः सौ यो यो मुिनसं तुतः ।
महायोगी महोदारः सु ीवे सतरा यदः ॥११॥
ीरामो रामभ रामच शा तः ।
राजीवलोचनः ीमान ् राजे ो रघुपु गवः ॥१॥ सवपु यािधकफलः मृ तसवाघनाशनः ।
आ ददे वो महादे वो महापू ष एव च ॥१२॥
जानक व लभो जै ो जतािम ो जनादनः ।
व ािम यो दा तः श ु ज छ ुतापनः ॥२॥ पु योदयो दयासारः पुराणपु षो मः ।
मतव ो िमताभाषी पूव भाषी च राघवः ॥१३॥
वािल मथनो वा मी स यवाक् स य व मः ।
स य तो तधरः सदा हनुमदाि तः ॥३॥ अन तगुणग भीरो धीरोदा गुणो मः ।
मायामानुषचा र ो महादे वा दपू जतः ॥१४॥
कौसलेयः खर वंसी वराधवधप डतः ।
वभीषणप र ाता हरकोद डख डनः ॥४॥ सेतुकृ जतवार शः सवतीथमयो ह रः ।
यामा गः सु दरः शूरः पीतवासा धनुध रः ॥१५॥
स ताल भे ा च दश ीविशरोहरः ।
जामद यमहादपदलन ताटका तकः ॥५॥ सवय ािधपो य वा जरामरणव जतः ।
िशविल ग ित ाता सवावगुणव जतः ॥१६॥
वेदा तसारो वेदा मा भवरोग य भेषजम ् ।
दषण
ू िशरो ह ता मूित गुणा मकः ॥६॥ परमा मा परं स चदान द व हः ।
परं योितः परं धाम पराकाशः परा परः ॥१७॥
व म लोका मा पु यचा र क तनः ।
लोकर को ध वी द डकार यपावनः ॥७॥ परे शः पारगः पारः सवदे वा मकः परः ॥
49 अ ैल 2011

राम सह नाम तो म ्

राजीवलोचनः ीमान ् ीरामो रघुपु गवः । माणभूतो द ु यः पूण ः परपुरंजयः ।


रामभ ः सदाचारो राजे ो जानक पितः ॥१॥ अन त रान दो धनुवदो धनुध रः ॥१६॥
अ ग यो वरे य वरदः परमे रः । गुणाकरो गुण े ः स चदान द व हः ।
जनादनो जतािम ः पराथक योजनः ॥२॥ अिभव ो महाकायो व कमा वशारदः ॥१७॥
व ािम यो दा त श ु ज छ ुतापनः । वनीता मा वीतरागः तप वीशो जने रः ।
सव ः सवदे वा दः शर यो वािलमदनः ॥३॥ क याण कृ ितः क पः सवशः सवकामदः ॥१८॥
ानभा योऽप र छे ोवा मीस य तः शुिचः । अ यः पु षः सा ी केशवः पु षो मः ।
ानग यो ढ ः खर वंसी तापवान ् ॥४॥ लोका य ो महामायो वभीषणवर दः ॥१९॥
ुितमाना मवान ् वीरो जत ोधोऽ रमदनः । आन द व हो योितहनुम भुर ययः ।
व पो वशाला ः भुः प रवृ ढो ढः ॥५॥ ा ज णुः सहनो भो ा स यवाद बहु ु तः ॥२०॥

ईशः ख गधरः ीमान ् कौसलेयोऽनसूयकः । सुखदः कारणं कता भवब ध वमोचनः ।


वपुलांसो महोर कः परमे ी परायणः ॥६॥ दे वचूडाम णनता यो वधनः ॥२१॥
स य तः स यसंधो गु ः परमधािमकः । संसारो ारको रामः सवदःख
ु वमो कृ त ् ।
लोक ो लोकव लोका मालोककृ परः ॥७॥ व मो व कता व हता च व कृ त ् ॥२२॥
अना दभगवान ् से यो जतमायो रघू हः । िन योिनयतक याणः सीताशोक वनाशकृ त ् ।
रामो दयाकरो द ः सव ः सवपावनः ॥८॥ काकु थः पु डर का ो व ािम भयापहः ॥२३॥
यो नीितमान ् गो ा सवदे वमयो ह रः । मार चमथनो रामो वराधवधप डतः ।
सु दरः पीतवासा सू कारः पुरातनः ॥९॥ दु व ननाशनो र यः कर ट दशािधपः ॥२४॥
सौ यो मह षः कोद ड सव ः सवको वदः । महाधनुम हाकायो भीमो भीमपरा मः ।
क वः सु ीववरदः सवपु यािधक दः ॥१०॥ त व व पी त व ः त ववाद सु व मः ॥२५॥

भ यो जता रष वग महोदरोऽघनाशनः । भूता मा भूतकृ वामी काल ानी महापटःु ।


सुक ितरा दपु षः का तः पु यकृ तागमः ॥११॥ अिन व णो गुण ाह िन कल कः कल कहा ॥२६॥
अक मष तुबाहःु सवावासो दरासदः
ु । वभावभ श ु नः केशवः थाणुर रः ।
मतभाषी िनवृ ा मा मृ ितमान ् वीयवान् भुः ॥१२॥ भूता दः श भुरा द यः थव शा तो ुवः ॥२७॥
धीरो दा तो घन यामः सवायुध वशारदः । कवची कु डली च ख गी भ जन यः ।
अ या मयोगिनलयः सुमना ल मणा जः ॥१३॥ अमृ युज मर हतः सव ज सवगोचरः ॥२८॥
सवतीथमय शूरः सवय फल दः । अनु मोऽ मेया मा सवा दगु णसागरः ।
य व पी य ेशो जरामरणव जतः ॥१४॥ समः समा मा समगो जटामुकुटम डतः ॥२९॥
वणा मकरो वण श ु जत ् पु षो मः । अजेयः सवभूता मा व व सेनो महातपाः ।
वभीषण ित ाता परमा मा परा परः ॥१५॥ लोका य ो महाबाहरमृ
ु तो वेद व मः ॥३०॥
50 अ ैल 2011

स ह णुः स ितः शा ता व योिनमहा ुितः । लोकगभ शेषशायी ीरा धिनलयोऽमलः ।


अती ऊ जतः ांशु पे ो वामनो बली ॥३१॥ आ मयोिनरद ना मा सह ा ः सह पात ् ॥४६॥
धनुवदो वधाता च ा व णु शंकरः । अमृ तांशुम हागभ िनवृ वषय पृ हः ।
हं सो मर िचग व दो र गभ महामितः ॥३२॥ काल ो मुिन सा ी वहायसगितः कृ ती ॥४७॥
यासो वाच पितः सवद पतासुरमदनः । पज यः कुमुदो भूतावासः कमललोचनः ।
जानक व लभः पू यः कटः ीितवधनः ॥३३॥ ीव सव ाः ीवासो वीरहा ल मणा जः ॥४८॥
स भवोऽती योवे ोऽिनदशोजा बव भुः । लोकािभरामो लोका रमदनः सेवक यः ।
मदनो मथनो यापी व पो िनर जनः ॥३४॥ सनातनतमो मेघ यामलो रा सा तकृ त ् ॥४९॥
नारायणोऽ णीः साधुज टायु ीितवधनः । द यायुधधरः ीमान मेयो जते यः ।
नैक पो जग नाथः सुरकाय हतः वभूः ॥३५॥ भूदेवव ो जनक यकृ पतामहः ॥५०॥

जत ोधो जताराितः लवगािधपरा यदः । उ मः सा वकः स यः स यसंध व मः ।


वसुदः सुभुजो नैकमायो भ य मोदनः ॥३६॥ सु तः सुलभः सू मः सुघोषः सुखदः सुधीः ॥५१॥
च डांशुः िस दः क पः शरणागतव सलः । दामोदरोऽ युत शा ग वामनो मधुरािधपः ।
अगदो रोगहता च म ो म भावनः ॥३७॥ दे वक न दनः शौ रः शूरः कैटभमदनः ॥५२॥
सौिम व सलो धुय य ा य व पधृ क् । स ताल भे ा च िम वंश वधनः ।
विस ो ामणीः ीमाननुकूलः यंवदः ॥३८॥ काल व पी काला माकालः क याणदःक वः
अतुलः सा वको धीरः शरासन वशारदः । संव सर ऋतुः प ो यनं दवसो युगः ॥५३॥
ये ः सवगुणोपेतः श मां ताटका तकः ॥३९॥ त यो व व ो िनलपः सव यापी िनराकुलः ।
वैकु ठः ा णनां ाणः कमठः कमलापितः । अना दिनधनः सवलोकपू यो िनरामयः ॥५४॥
गोवधनधरो म य पः का यसागरः ॥४०॥ रसो रस ः सार ो लोकसारो रसा मकः ।
सवदःखाितगो
ु व ारािशः परमगोचरः ॥५५॥
कु भकण भे ा च गो पगोपालसंव ृ तः ।
मायावी यापको यापी रै णुकेयबलापहः ॥४१॥ शेषो वशेषो वगतक मषो रघुनायकः ।
पनाकमथनो व ः समथ ग ड वजः । वण े ो वणवा ो व य व यगुणो वलः ॥५६॥
लोक या यो लोकच रतो भरता जः ॥४२॥ कमसा यमर े ो दे वदे वः सुख दः ।
ीधरः स ितल कसा ी नारायणो बुधः । दे वािधदे वो दे व षदवासुरनम कृ तः ॥५७॥
मनोवेगी मनो पी पूण ः पु षपु गवः ॥४३॥ सवदे वमय शा गपाणी रघू मः ।
यद ु े ो यदपितभू
ु तावासः सु व मः । मनो बु रहं कारः कृ ितः पु षोऽ ययः ॥५८॥
तेजोधरो धराधार तुमू ितमहािनिधः ॥४४॥ अह यापावनः वामी पतृ भ ो वर दः ।
चाणूरमदनो द य शा तो भरतव दतः । यायो यायी नयी ीमा नयो नगधरो ुवः ॥५९॥
श दाितगो गभीरा मा कोमला गः जागरः ॥४५॥ ल मी व भराभता दे वे ो बिलमदनः ।
वाणा रमदनो य वानु मो मुिनसे वतः ॥६०॥
51 अ ैल 2011

दे वा णीः िशव यानत परः परमः परः । वसु वाः क यवाहः त ो व भोजनः ।
सामगेयः योऽ ू रः पु यक ित सुलोचनः ॥६१॥ रामोनीलो पल यामो ान क धोमहा ुितः ॥७६॥
पु यः पु यािधकः पूव ः पूण ः पूरियता र वः । प व पादः पापा रम णपूरो नभोगितः ।
ज टलः क मष वा त भ जन वभावसुः ॥६२॥ उ ारणो द ु कृ ितहा दधष
ु दु सहोऽभयः ॥७७॥
अ य ल णोऽ य ो दशा य पकेसर । अमृ तेशोऽमृ तवपुध म धमः कृ पाकरः ।
कलािनिधः कलानाथो कमलान दवधनः ॥६३॥ भग वव वाना द यो योगाचाय दव पितः ॥७८॥
जयी जता रः सवा दः शमनो भवभ जनः । उदारक ित ोगी वा यः सदस मयः ।
अलंक र णुरचलो रोिच णु व मो मः ॥६४॥ न माली नाकेशः वािध ानः षडा यः ॥७९॥
आशुः श दपितः श दागोचरो र जनो रघुः । चतुव गफलो वण श यफलं िनिधः ।
िन श दः णवो माली थूलः सू मो वल णः ॥६५॥ िनधानगभ िन याजो िगर शो यालमदनः ॥८०॥

आ मयोिनरयोिन स ज ः सह पात ् । ीव लभः िशवार भः शा तभ ः सम जसः ।


सनातनतम वी पेशलो ज वनां वरः ॥६६॥ भूशयो भूितकृ ितभू
ू षणो भूतवाहनः ॥८१॥
श मा श खभॄ नाथः गदाप रथा गभृ त ् । अकायो भ काय थः काल ानी महावटःु ।
िनरोहो िन वक प िच पो
ू वीतसा वसः ॥६७॥ पराथवृ रचलो व व ः ु ितसागरः ॥८२॥
शताननः सह ा ः शतमूितधन भः । वभावभ ो म य थः संसारभयनाशनः ।
पु डर कशयनः क ठनो व एव च ॥६८॥ वे ो वै ो वय ो ा सवामरमुनी रः ॥८३॥
उ ो हपितः ीमान ् समथ ऽनथनाशनः । सुरे ः करणं कम कमकृ क यधो जः ।
अधमश ू र ो नः पु हतः
ू पु ु तः ॥६९॥ येयो धुय धराधीशः संक पः शवर पितः ॥८४॥
गभ बृ ह भ धमधेनुध नागमः । परमाथगु वृ ः शुिचराि तव सलः ।
हर यगभ योित मान ् सुललाटः सु व मः ॥७०॥ व णु ज णु वभुव ो य ेशो य पालकः ॥८५॥

िशवपूजारतः ीमान ् भवानी यकृ शी । भ व णु िस णु लोका मा लोकभावनः ।


नरो नारायणः यामः कपद नीललो हतः ॥७१॥ केशवः केिशहा का यः क वः कारणकारणम ् ॥८६॥
ः पशुपितः थाणु व ािम ो जे रः । कालकता कालशेषो वासुदेवः पु ु तः ।
मातामहोमात र ा व र चो व र वाः ॥७२॥ आ दकता वराह माधवो मधुसूदनः ॥८७॥
अ ो यः सवभूतानां च डः स यपरा मः । नारायणो नरो हं सो व व सेनो जनादनः ।
वाल ख यो महाक पः क पवृ ः कलाधरः ॥७३॥ व कता महाय ो योित मान ् पु षो मः ॥८८॥
िनदाघ तपनोऽमोघः णः परबलाप त ् । वैकु ठः पु डर का ः कृ णः सूय ः सुरािचतः ।
कब धमथनो द यः क बु ीविशव यः ॥७४॥ नारिसंहो महाभीमो व दं ो नखायुधः ॥८९॥
श खोऽिनलः सुिन प नः सुलभः िशिशरा मकः । आ ददे वो जग कता योगीशो ग ड वजः ।
असंस ृ ोऽितिथः शूरः माथी पापनाशकृ त ् ॥७५॥ गो व दोगोपितग ा भूपितभु वने रः ॥९०॥
52 अ ैल 2011

प नाभो षीकेशो धाता दामोदरः भुः । काला मा भगवान ् कालः कालच वतकः ।
व म लोकेशो ेशः ीितवधनः ॥९१॥ नारायणः परं योितः परमा मा सनातनः ॥१०६॥
वामनो द ु दमनो गो व दो गोपव लभः । व सृ व गो ा च व भो ा च शा तः ।
भ योऽ युतः स यः स यक ितधृ ितः मृ ितः ॥९२॥ व े रो व मूित व ा मा व भावनः ॥१०७॥
का यं क णो यासः पापहा शा तवधनः । सवभूतसु छा तः सवभूतानुक पनः ।
सं यासी शा त व ो म दरा िनकेतनः ॥९३॥ सव रे रः सवः ीमानाि तव सलः ॥१०८॥
बदर िनलयः शा त तप वी वै ुत भः । सवगः सवभूतेशः सवभूताशय थतः ।
भूतावासो गुहावासः ीिनवासः ि यः पितः ॥९४॥ अ य तर थ तमस छे ा नारायणः परः ॥१०९॥
तपोवासो मुदावासः स यवासः सनातनः । अना दिनधनः ा जापितपितह रः ।
पु षः पु करः पु यः पु करा ो महे रः ॥९५॥ नरिसंहो षीकेशः सवा मा सव वशी ॥११०॥

पूण मूितः पुराण ः पु यदः ीितवधनः । जगत त थुष ैव भुनता सनातनः ।


श खी च गद शा ग ला गली मुसली हली ॥९६॥ कता धाता वधाता च सवषां भुर रः ॥१११॥
कर ट कु डली हार मेखली कवची वजी । सह मूित व ा मा व णु व ग ययः ।
यो ा जेता महावीयः श ु ज छ ुतापनः ॥९७॥ पुराणपु षः ा सह ा ः सह पात ् ॥११२॥
शा ता शा करः शा ं शंकर: शंकर तुतः । त वं नारायणो व णुवासुदेवः सनातनः ।
सारिथः सा वकः वामी सामवेद यः समः ॥९८॥ परमा मा परं स चदान द व हः ॥११३॥
पवनः संहतः श ः स पूणा गः समृ मान् । परं योितः परं धामः पराकाशः परा परः ।
वगदः कामदः ीदः क ितदोऽक ितनाशनः ॥९९॥ अ युतः पु षः कृ णः शा तः िशव ई रः ॥११४॥
मो दः पु डर का ः ीरा धकृ तकेतनः । िन यः सवगतः थाणु ः सा ी जापितः ।
सवा मासवलोकेशः ेरकः पापनाशनः ॥१००॥ हर यगभः स वता लोककृ लोकभृ भुः ॥११५॥

सव यापी जग नाथः सवलोकमहे रः । रामः ीमान ् महा व णु ज णुदव हतावहः ।


सग थ य तकृ े वः सवलोकसुखावहः ॥१०१॥ त वा मा तारकं शा तः सविस दः ॥११६॥
अ यः शा तोऽन तः यवृ वव जतः । अकारवा योभगवान ् ीभू लीलापितः पुमान ् ।
िनलपो िनगु णः सू मो िन वकारो िनर जनः ॥१०२॥ सवलोके रः ीमान ् सव ः सवतोमुखः ॥११७॥
सव पािध विनमु ः स ामा यव थतः । वामी सुशीलः सुलभः सव ः सवश मान ् ।
अिधकार वभुिन यः परमा मा सनातनः ॥१०३॥ िन यः स पूण काम नैसिगकसु सुखी ॥११८॥
अचलो िनमलो यापी िन यतृ ो िनरा यः । कृ पापीयूषजलिध शर यः सवदे हनाम ् ।
यामो युवा लो हता ो द ा यो िमतभाषणः ॥१०४॥ ीमा नारायणः वामी जगतां पितर रः ॥११९॥
आजानुबाहःु सुमुखः िसंह क धो महाभुजः । ीशः शर यो भूतानां संि ताभी दायकः ।
स यवान ् गुणस प नः वयंतेजाः सुद ि मान ् ॥१०५॥ अन तः ीपती रामो गुणभृ नगु णो महान ् ॥१२०॥

॥ इित ीरामसह नाम तो म ् स पूण म ् ॥


53 अ ैल 2011

सीताराम तो म ् रामा कम ्
कमल लोचनौ राम कांचना बरौ कवचभूषणौ राम कामुका वतौ ।
कलुषसंहारौ राम कािमत दौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१॥ भजे वशेषसु दरं सम तपापख डनम ् ।

मकरकु डलौ राम मौिलसे वतौ म ण कर टनौ राम म जुभा षणौ । वभ िच र जनं सदै व रामम यम ् ॥ १ ॥
मनुकुलो वौ राम मानुषो मौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥२॥
स यस प नौ राम समरभीकरौ सवर णौ राम सवभूषणौ । जटाकलापशोिभतं सम तपापनाशकम ् ।
स यमानसौ राम सवपो षतौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥३॥
वभ भीितभंजनं भजे ह रामम यम ् ॥ २ ॥
धृ तिशख डनौ राम द नर कौ धृ त हमाचलौ राम द य व हौ ।
व वधपू जतौ राम द घदोयुगौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥४॥
िनज व पबोधकं कृ पाकरं भवापहम ् ।
भुवनजानुकौ राम पादचा रणौ पृ थुिशलीमुकौ राम पापना कौ ।
परमसा वकौ राम भ व सलौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥५॥ समं िशवं िनरं जनं भजे ह रामम यम ् ॥ ३ ॥

वन वहा रणौ राम व कलांबरौ वनफलािशनौ राम वासवािचतौ ।


वरगुणाकरौ राम वािलमदनौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥६॥ सदा चक पतं नाम पवा तवम ् ।
दशरथा मजौ राम पशुपित यौ शिशिनवािसनौ राम वशदमानसौ । िनराकृ ितं िनरामयं भजे ह रामम यम ् ॥ ४ ॥
दशमुखा तकौ राम िनिशतसायकौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥७॥
कमल लोचनौ राम समरप डतौ भीम व हौ राम कामसु दरौ । िन प चिन वक पिनमलं िनरामयम ् ॥
दामभूषणौ राम हे मनूपुरौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥८॥
िचदे क पसंततं भजे ह रामम यम ् ॥ ५ ॥
भरतसे वतौ राम द ु रतमोचकौ करधृ ताशुगौ राम सूकर तुतौ ।
शरिध धारणौ राम धीरकविचनौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥९॥
भवा धपोत पकं शेषदे हक पतम ् ।
धमचा रणौ राम कमसा णौ धमकामुखौ राम शमदायकौ ।
धमशोिभतौ राम कममो दनौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१०॥ गुणाकरं कृ पाकरं भजे ह रामम यम ् ॥ ६ ॥
नीलदे हनौ राम लोलकु दलौ कालभीकरौ राम वािलमदनौ ।
कलुषहा रणौ राम लिलतभूषणौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥११॥ महावा यबोधकै वराजमनवा पदै ः ।
मातृ न दनौ राम भा बालकौ ातॄ स मतौ राम श ुसूदकौ । पर यापकं भजे ह रामम यम ् ॥ ७ ॥
ातृ शेखरौ राम सेतुनायकौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१२॥
शरिधब धनौ राम दिलतदानवौ कुल ववधनौ राम बल वरा जतौ । िशव दं सुख दं भव छदं मापहम ् ।
सोलजा जतौ राम बल वरा जतौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१३॥
वराजमानदै िशकं भजे ह रामम यम ् ॥ ८ ॥
राजल णौ राम वजय का णौ गजवरा हौ राम पू जतामरौ ।
व जतम सरौ राम भ जतवारणौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१४॥
रामा कं पठित यः सुकरं सुपु यं यासेन
सवमािनतौ राम सवका रणौ गवभ जनौ राम िन वकारणौ ।
द ु वभािसतौ राम सवभासकौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१५॥ भा षतिमदं ृ णुते मनु यः ।
र वकुलो वौ राम भव वनाशकौ कानकाि तौ राम पादकोशकौ । व ां ि यं वपुलसौ यमन तक ित स ा य
र वसुत यौ राम क विभर डतौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१६॥
दे ह वलये लभते च मो म ् ॥ ९ ॥
राम राघव सीता राम राघव राम राघव सीता राम राघव ।
॥ इित ी यास वरिचतं रामा कं संपूण म ् ॥
कृ णकेशव राधा कृ णकेशव कृ णकेशव राधा कृ णकेशव ॥१७॥
54 अ ैल 2011

राम भुज ग तो नमो व भो े नमो व मा े । नमो व ने े नमो व जे े


नमो व प े नमो व मा े ॥ १४ ॥ िशला प
वशु ं परं स चदान द पम ् गुणाधारमाधारह नं वरे यम ् ।
वद मास गरे ण-ु सादा चैत यमाध राम ।
महा तं वभा तं गुहा तं गुणा तं सुखा तं वयं धाम रामं
नर व पद सेवा वधाना- सुचैत यमेतेित कं िच म ॥
प े ॥ १ ॥ िशवं िन यमेकं वभुं तारका यं
१५ ॥ प व ं च र ं विच ं वद यं नरा ये मर य वहं
सुखाकारमाकारशू यं सुमा यं । महे शं कलेशं सुरेशं परे शं नरे शं
रामच । भव तं भवा तं भर तं भज तो लभ ते कृ ता तं न
िनर शं मह शं प े ॥ २ ॥ िशवाय व णु पाय िशव पाय
प य यतोऽ ते ॥ १६ ॥ ' अन या तय तो मां ये जनाः
व णवे । िशव य दयम ् व णु व णो दयम ् िशवः ॥
पयु पासते । तेषां िन यािभयु ानां योग ेमं वहा यहम ् ॥ स
यदावणय कणमूलेऽ तकाले िशवो राम रामेित रामेित का याम ्
पु यः स ग यः शर यो ममायं नरो वेद यो दे वचूडाम णं वाम ्
। तदे कं परं तारक पं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहम ् ॥ ३
। सदाकारमेकं िचदान द पं मनोवागग यं पर धाम राम ॥ १७
॥ ीरामरामरामेित रमे रामे मनोरमे । सह नाम त ु यं राम
॥ च ड ताप भावािभभूत- भूता रवीर भो रामच । बलं
नाम वरानने ॥ महार पीठे शुभे क पमूले
ते कथं व यतेऽतीव बा ये यतोऽख ड च ड शकोद डद डः ॥
सुखासीनमा द यको ट काशम ् । सदा जानक ल मणोपेतमेकं
१८ ॥ दश ीवमु ं सपु ं सिम ं स र गम
ु य थर ोगणेशम ् ।
सदा रामच म् भजेऽहं भजेऽहम ् ॥ ४ ॥
भव तं वना राम वीरो नरो वा- ऽसुरो वाऽमरो वा
वण म जीरपादार व दम ् लस मेखलाचा पीता बरा यम ् ।
जये क लो याम ् ॥ १९ ॥ सदा राम रामेित रामामृतं ते
महार हारो लस कौ तुभा गं नद चंचर मंजर लोलमालम ् ॥ ५
सदाराममान दिन य दक दम ् । पब तं नम तं सुद तं हस तं
॥ लस च का मेरशोणाधराभम ् समु पत गे दको
ु ट काशम ्
हनूम तम तभजे तं िनता तम ् ॥ २० ॥ य य रघुनाथक तनं
। नम ा दकोट रर - फुर का तनीराजनारािधता म् ॥
त त कृ त-म तका जिलम ् । बा पवा रप रपूण-लोचनं
६ ॥ ' कोट रो वल-र -द पकिलका-नीराजनम ् कुवते' । पुरः
मा ितम ् नमत रा सा तकम ् ॥ सदा राम रामेित रामामृतम ् ते
ा जलीना जनेया दभ ान ् विच मु या भ या बोधय तम ् ।
सदाराममान दिन य दक दम ् । पब न वहं न वहं नैव मृ यो-
भजेऽहं भजेऽहं सदा रामच ं वद यं न म ये न म ये न
बभेिम सादादसादा वैव ॥ २१ ॥ असीतासमेतैरकोद डभूशै-
म ये ॥ ७ ॥ मोउन- या यान- क टत-पर त वं युवानं ।
रसौिम व ैरच ड तापैः । अल केशकालैरसु ीविम -ै
व ष -अ तेवस -ऋ ष-गणैरावृ तं -िन ैः ॥ आचाय ं
ररामािभधेयैरलम ् दे वतैन ः ॥ २२ ॥
करकिलत-िच मु -मान द पम ् वा मारामं मु दतवदनं
अवीरासन थैरिच मु का यै- रभ ा जनेया दत व काशैः ।
द णामूितमीडे ॥ यदा म समीपं कृ ता तः समे य
अम दारमूलैरम दारमालै- ररामािभधेयैरलम ् दे वतैन ः ॥ २३ ॥
च ड तापैभटैभ षये माम ् । तदा व करो ष वद यं व पं
अिस धु कोपैरव तापै- रब धु याणैरम द मता यैः ।
तदाप णाशं सकोद डबाणम ् ॥ ८ ॥ िनजे मानसे म दरे
अद ड वासैरख ड बोधै- ररामिभदे यैरलम ् दे वतैन ः ॥ २४ ॥ हरे
संिनधे ह सीद सीद भो रामच । ससौिम णा
राम सीतापते रावणारे खरारे मुरारे ऽसुरारे परे ित । लप तं
कैकेयीन दनेन वश यानुभ या च संसे यमान ॥ ९ ॥
नय तं सदाकालमेव समालोकयालोकयाशेषब धो ॥ २५ ॥
वभ ा ग यैः कपीशैमह शै- रनीकैरनेकै राम सीद ।
नम ते सुिम ासुपु ािभव नम ते सदा कैकयीन दने य ।
नम ते नमोऽ वीश राम सीद शािध शािध काशं भो
नम ते सदा वानराधीशव नम ते नम ते सदा रामच ॥
माम ् वमेवािस दैवं परं मे यदे कं सुचैत यमेत वद यं न म ये
२६ ॥ सीद सीद च ड ताप सीद सीद च डा रकाल ।
। यतोऽभूदमेयं वय ायुतेजो- जलो या दकाय चरं चाचरं च ॥
सीद सीद प नानुक पन ् सीद सीद भो रामच ॥
११ ॥ नमः स चदान द पाय त मै नमो दे वदेवाय रामाय
२७ ॥ भुज ग यातं परं वेदसारं मुदा रामच य भ या च
तु यम ् । नमो जानक जी वतेशाय तु यं नमः पु डर कायता ाय
िन यम ् । पठन ् स ततं िच तयन ् वा तर गे स एव वयम ्
तु यम ् ॥ १२ ॥ नमो भ यु ानुर ाय तु यं नमः
रामच ः स ध यः ॥ २८ ॥
पु यपु जैकल याय तु यम ् । नमो वेदवे ाय चा ाय पुंसे नमः
॥इित ीश कराचाय वरिचतम ् ी रामभुज ग यात तो म ्
सु दराये दराव लभाय ॥ १३ ॥ नमो व क नमो व ह
स पूण म ् ॥
55 अ ैल 2011

रामच तुित राम तुित

नमािम भ व सलं कृ पालु शील कोमलं ीरामच कृ पालु भजु मन हरण भवभय दा णम ् ।
भजािम ते पदांबुजं अकािमनां वधामदं ।
नवक ज लोचन क ज मुखकर क जपद क ज णम ् ॥१॥
िनकाम याम सुंदरं भवांबुनाथ म दरं
फु ल कंज लोचनं मदा द दोष मोचनं॥१॥ कंदप अग णत अिमत छ ब नव नील नीरज सु दरम ् ।

लंब बाहु व मं भोड मेय वैभवं पटपीत पानहँु त ड़त िच सुिच नौिम जनक सुतावरम ् ॥२॥

िनषंग चाप सायकं धरं लोक नायकं।


दनेश वंश मंडनं महे श चाप खंडनं
भजु द न ब धु दनेश दानव दै यवंशिनक दनम ् ।
मुनीं संत रं जनं सुरा र वृ ंद भंजनं॥२॥
रघुन द आनंदकंद कोशल च द दशरथ न दनम ् ॥३॥
मनोज वै र वं दतं अजा द दे व से वतं
िसर ट कु डल ितलक चा उदार अ ग वभूषणम ् ।
वशु बोध व हं सम त दषणापहं
ू ।
नमािम इं दरा पितं सुखाकरं सतां गितं आजानुभुज सर चापधर स ाम जत खरदषणम
ू ् ॥४॥
भजे सश सानुजं शची पित यानुजं॥३॥

वदं ि मूल ये नरा: भज त ह न म सरा: इित वदित तुलसीदास श कर शेष मुिन मनर जनम ् ।
पतंित नो भवाणवे वतक वीिच संकुले।
मम दयक ज िनवास कु कामा दखलदलम जनम ् ॥५॥
वव वािसन: सदा भजंित मु ये मुदा
िनर य इं या दकं यांित ते गितं वकं॥४॥ मन जा ह राचो िमल ह सोवर सहजसु दर सांवरो ।

तमेकम तं
ु भुं िनर हमी रं वभुं क णािनधान सुजान शील सनेह जानत रावरो ॥६॥

जग ं च शा तं तुर यमेव मेवलं।


भजािम भाव व लभं कुयोिगनां सुदलभ
ु ए ह भाँित गौ र अशीस सुिन िसय स हत हय ह षत अली ।
वभ क प पादपं समं सुसे यम वहं ॥५॥
तुलसी भवािन हं पू ज पुिन पुिन मु दत मन म दर चली ॥७॥
अनूप प भूपितं नतोडहमु वजा पितं
जािन गौ र अनुकूल िसय हय हषनः जात क ह ।
सीद मे नमािम ते पदा ज भ दे ह मे।
पठं ित ये वतं इदं नरादरे ण ते पदं म जुल म गल मूल वाम अ ग परकन लगे ॥८॥
जंित ना संशयं वद य भ संयुता:॥६॥

िसयावर रामच पद ग ह रहँु । उमावर श भुनाथ पद ग ह रहँु ।


इस तो का िन य आदरपूव क पाठ करने से
य को पद क िनसंदेः ाि होती ह। महा वर बजरँ गी पद ग ह रहँु । शरणा गतो ह र ॥
56 अ ैल 2011

जटायुकृत राम तो म ् महादे व कृ त राम तुित


ी महादे व उवाच ।
ीगणेशाय नमः । जटायु वाच । नमोऽ तु रामाय सश काय नीलो पल यामकोमलाय ।
कर टहारा गदभूषणाय िसंहासन थाय महा भाय ॥ १ ॥
अग णतगुणम मेयमा ं सकलजग थितसंयमा दहे तुम ् ।
वमा दम यांत वह न एकः ृज यव य स च लोकजातम ् ।
उपरमपरमं परा मभृतं सततमहं णतोऽ म रामच म ्॥ १ ॥
वमायया तेन न िल यसे वं य वे सुखेऽज रतोऽनव ः ॥ २॥
िनरविधसुखिमं दराकटा ं पतसुरे चतुमुख ददःखम
ु ्।
नरवरमिनशं नतोऽ म रामं वरदमहं वरचापबाणह तम ् ॥ २ ॥ लीलां वध से गुणसंव ृत वं स नभ ानु वधानहे तोः ।
नानाऽवतारै ः सुरमानुषा ैः तीयसे ािनिभरे व िन यम ् ॥ ३ ॥
भुवनकमनीय पमी यं र वशतभासुरमी हत दानम ् ।
वांशेन लोकं सकलं वधाय तं बभ ष च वं तदधः फणी वरः ।
शरणदमिनशं सुरागमूले कृ तिनलयं रघुन दनं प े ॥ ३ ॥
उपयधो भा विनलो डपौषधी कष पोविस नैकधा जगत ् ॥४॥
भव व पनदवा नमधेयं भवमुखदै वतदै वतं दयालुम ् ।
दनुजपितसह को टनाशं र वतनयास शं ह रं प े ॥ ४ ॥ विमह दे हभृतां िश ख पः पचिस भ मशेषमज म ् ।
पवनपंचक पसहायो जगदखंडमनेन बभ ष ॥ ५ ॥
अ वरतभवभावनाितदरंू भव वमुखैमुिनिभः सदै व यम ् ।
चं सूय िश खम यगतं य ेज ईश िचदशेषतनूनाम ् ।
भवजलिधसुतारणांि पोतं शरणमहं रघुन दनं प े ॥ ५ ॥
ाभव नुभ ृ तािमह धैय शौयमायुर खलं तव स वम् ॥ ६ ॥
िग रशिग रसुतमनोिनवासं िग रवरधा रणमी हतािभरामम ् ।
सुरवरदनुजे से वतांि ं सुरवरदं रघुनायकं प े ॥ ६ ॥ वं व र चिशव व णु वभेदा कालकमशिशसूय वभागात ् ।

परधनपरदारव जतानां परगुणभूितषु तु मानसानाम ् । वा दनां पृथिगवेश वभािस िन चतमन य दहै कम ् ॥ ७ ॥


म या द पेण यथा वमेकः ुतौ पुराणेषु च लोकिस ः ।
पर हतिनरता मनां सुसे यं रघुवरमंबुजलोचनं प े ॥ ७ ॥
तथैव सव सदस भाग वमेव ना य वतो वभाित ॥ ८ ॥
मत िचर वकािसता जमितसुलभं सुरराजनीलनीलम ् ।
िसतजल हचा ने शोभं रघुपितमीशगुरोगु ं प े ॥ ८ ॥ य समु प नमन तसृ ावु प यते य च भव च य च ।
ह रकमलजशंभु पभेदा वम ह वभािस गुण यानुव ृ ः । न यते थावरजंगमादौ वया वनाऽतः परतः पर वम ् ॥ ९ ॥
त वं न जानंित परा मन ते जनाः सम ता तव माययातः ।
र व रव ज पू रतोदपा े वमरपित तुितपा मीशमीडे ॥ ९ ॥
व सेवामलमानसानां वभाित त वं परमेकमैशम ् ॥ १० ॥
रितपितशतको टसु दरा ग शतपथगोचरभावना वदरम।
ू ्
यितपित दये सदा वभांतं रघुपितमाितहरं भुं प े ॥ १० ॥ ादय ते न वदःु व पं िचदा मत वं ब हरथभावाः ।
इ येवं तुवत त य स नोऽभू घू मः । ततो बुध वािमदमेव पं भ या भज मु मुपै यदःखः
ु ॥ ११ ॥

उवाच ग छ भ ं ते मम व णोः परं पदम ् ॥ ११ ॥ अहं भव नामगुणैः कृ ताथ वसािम का यामिनशं भवा या ।
मुमूषमाण य वमु येऽहं दशािम मं ं तव राम नाम ॥ १२ ॥
ृ तोित य इदं तो ं िलखे ा िनयतः पठे त् ।
स याित मम सा यं मरणे म मृितं लभेत ् ॥ १२ ॥ इमं तवं िन यमन यभ या ृ व त गायंित िलखंित ये वै ।
इित राघवभा षतं तदा ुतवान ् हषसमाकुलो जः । ते स स यं परमं च ल वा भव पदं या त भव सादात ्॥ १३ ॥
रघुन दनसा यमा थतः ययौ सुपू जतं पदम ् ॥ १३ ॥
॥ इित ीमहादे वकृ त तो संपूण म ् ॥
॥ इित ीमद या मरामायणे आर यकांडे जटायुकृतराम तो ं
संपूण म ् ॥
57 अ ैल 2011

राम एवं हनुमान मं


 िचंतन जोशी
राम गाय ी मं :
ॐ दाशरथये व हे जानक व लभाय धी म ह॥
त नो रामः चोदयात॥्
ी राम मूल मं :
ॐ ां ं रां रामाय नमः॥
ी राम तारक मं :
ॐ जानक कांत तारक रां रामाय नमः॥
राम मं
रां रामय नमः।
फल: छः लाख मं जप करने से यह मं िस होता ह और इ से साधक क राम म भ ढ़ होती ह।

भगवान राम का मं :

ॐ रामाय नमः।

दशा र राम मं :
हंु जानक व लभाय वाहा।
फल: यह मं दस लाख जपने से िस होत ह और यह मं सभी कार से साधक को सफलता एव◌ं् मो दान
करने म सहायक ह।
हरे कृ ण हरे कृ ण, कृ ण-कृ ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे ।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य को जीवन
मे सम त भौितक सुखो एवं मो ाि होती ह।

हनुमत ् गाय ी मं :
ॐ अंजनीजाय व हे वायुपु ाय धी म ह॥
त नो हनुमान चोदयात॥्
ी हनुमान मूल मं :
ॐ ां ं ं ः॥
ादशा र हनुमान मं :
हं हनुमते ा मकाय हंु फ ।
फल: से इस मं के बारे शा ो म व णत ह क यह मं वतंत िशवजी ने ीकृ ण को बताया और ीकृ ण न यह
मं अजु न को िस करवाया था ज से अजु न ने चर-अचर जगत ् को जीत िलया था।
58 अ ैल 2011

व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं
आज के आधुिनक युग म िश ा ाि जीवन क मह वपूण आव यकताओं म से एक है । ह द ू धम म व ाक
अिध ा ी दे वी सर वती को माना जाता ह। इस िलए दे वी सर वती क पूजा-अचना से कृ पा ा करने से बु कुशा एवं
ती होती है ।
आज के सु वकिसत समाज म चार ओर बदलते प रवेश एवं आधुिनकता क दौड म नये-नये खोज एवं
संशोधन के आधारो पर ब चो के बौिधक तर पर अ छे वकास हे तु विभ न पर ा, ितयोिगता एवं ित पधाएं
होती रहती ह, जस म ब चे का बु मान होना अित आव यक हो जाता ह। अ यथा ब चा पर ा, ितयोिगता एवं
ित पधा म पीछड जाता ह, जससे आजके पढे िलखे आधुिनक बु से सुसंप न लोग ब चे को मूख अथवा बु ह न
या अ पबु समझते ह। एसे ब चो को ह न भावना से दे खने लोगो को हमने दे खा ह, आपने भी कई सैकडो बार
अव य दे खा होगा?
ऐसे ब चो क बु को कुशा एवं ती हो, ब चो क बौ क मता और मरण श का वकास हो इस िलए
सर वती कवच अ यंत लाभदायक हो सकता ह।
सर वती कवच को दे वी सर वती के परं म दलभ
ू तेज वी मं ो ारा पूण मं िस और पूण चैत ययु कया जाता
ह। ज से जो ब चे मं जप अथवा पूजा-अचना नह ं कर सकते वह वशेष लाभ ा कर सके और जो ब चे पूजा-
अचना करते ह, उ ह दे वी सर वती क कृ पा शी ा हो इस िलये सर वती कवच अ यंत लाभदायक होता ह।

सर वती कवच : मू य: 280 और 370 सर वती यं :मू य : 280 से 1450 तक

मं िस प ना गणेश
भगवान ी गणेश बु और िश ा के कारक ह बुध के अिधपित दे वता ह। प ना गणेश बुध के
सकारा मक भाव को बठाता ह एवं नकारा मक भाव को कम करता ह।. प न गणेश के
भाव से यापार और धन म वृ म वृ होती ह। ब चो क पढाई हे तु भी वशेष फल द ह
प ना गणेश इस के भाव से ब चे क बु कूशा होकर उसके आ म व ास म भी वशेष
वृ होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य ारा अवशो षत हर
व करण शांती दान करती ह, य के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े ,
जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने
होते ह।

Rs.550 से Rs.8200 तक
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
59 अ ैल 2011

फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को नकारा मक उजा से बचाता ह
एवं एक उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और अिधक भावी और प व माना जाता ह।

मू य Rs.550 से Rs.8200 तक

तं र ा
कवच को धारण करने से य के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ ह
धारण कता य पर कसी भी कार क नकार मन श यो का कु भाव नह ं होता। इस कवच के
भाव से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।

मू य मा : Rs.730

श ु वजय कवच
श ु वजय कवच धारण करने से य को श ु से संबंिधत सम त परे शािनओ से वतः ह छुटकारा िमल जाता ह।

कवच के भाव से श ु धारण कता य का चाहकर कुछ नह बगड सकते। मू य मा :Rs: 640
मं िस मूंगा गणेश
मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन
के िलए अ यंत लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि हे तु वशेष लाभदायी ह।
मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह।
यो क लाल रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह। लाल मूंगा शार रक और
मानिसक श य का वकास करने हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को िनयं त
करने हे तु भी मूंगा गणेश क पूजा लाभ द ह। एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत
करने से भगवान गणेश क कृ पा श चोर , लूट, आग, अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह,
ज से घर म या दकान
ु म उ नती एवं सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत कया जासकता ह।
ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार,
चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं
ु , हमला,
चोर, तूफान, आग, बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म मंगल ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव से
मु िमलती ह।
जो य उपरो लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह।
मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने से यह अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से सुख सौभा य क ाि
होकर जीवन के सारे संकटो का वतः िनवारण होजाता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक
60 अ ैल 2011

नवर ज ड़त ी यं
शा वचन के अनुसार शु सुवण या रजत म िनिमत ी यं के चार और य द नवर जड़वा ने पर यह नवर
ज ड़त ी यं कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन त थान पर जड़ कर लॉकेट के प म धारण करने से य को
अनंत ए य एवं ल मी क ाि होती ह। य को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह। नव ह को
ी यं के साथ लगाने से ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले य पर भाव नह ं होता ह। गले म होने के
कारण यं पव रहता ह एवं नान करते समय इस यं पर पश कर जो जल बंद ु शर र को लगते ह, वह गंगा
जल के समान प व होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे अमृ त से उ म कोई
औषिध नह ,ं उसी कार ल मी ाि के िलये ी यं से उ म कोई यं संसार म नह ं ह एसा शा ो वचन ह। इस
कार के नवर ज ड़त ी यं गु व कायालय ारा शुभ मुहू त म ाण ित त करके बनावाए जाते ह।

अ ल मी कवच
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता
ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज
ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का
वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050

मं िस यापार वृ कवच
यापार वृ कवच यापार के शी उ नित के िलए उ म ह। चाह कोई भी यापार हो अगर उसम लाभ के थान पर बार-
बार हािन हो रह ह। कसी कार से यापार म बार-बार बांधा उ प न हो रह हो! तो संपूण ाण ित त मं िस पूण
चैत य यु यापात वृ यं को यपार थान या घर म था पत करने से शी ह यापार वृ एवं िनत तर लाभ ा
होता ह। मू य मा : Rs.370 & 730

मंगल यं
( कोण) मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को
ऋण मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए
मंगल यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। मू य मा Rs- 550

GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
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61 अ ैल 2011

गणेश ल मी यं
ाण- ित त गणेश ल मी यं को अपने घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म पूजन थान, ग ला या अलमार म था पत
करने यापार म वशेष लाभ ा होता ह। यं के भाव से भा य म उ नित, मान- ित ा एवं यापर म वृ होती ह
एवं आिथक थम सुधार होता ह। गणेश ल मी यं को था पत करने से भगवान गणेश और दे वी ल मी का संयु
आशीवाद ा होता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक

मंगल यं से ऋण मु
मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को ऋण
मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल
यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। ाण ित त मंगल यं के पूजन से भा योदय, शर र म खून क कमी,
गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय,
वाहन दघटनाओं
ु , हमला, चोर इ याद से बचाव होता ह। मू य मा Rs- 550

कुबेर यं
कुबेर यं के पूजन से वण लाभ, र लाभ, पैत ृ क स प ी एवं गड़े हए
ु धन से लाभ ाि क कामना करने वाले य के
िलये कुबेर यं अ य त सफलता दायक होता ह। एसा शा ो वचन ह। कुबेर यं के पूजन से एकािधक ो से धन का
ा होकर धन संचय होता ह।

ता प पर सुवण पोलीस ता प पर रजत पोलीस ता प पर


(Gold Plated) (Silver Plated) (Copper)
साईज मू य साईज मू य साईज मू य
2” X 2” 640 2” X 2” 460 2” X 2” 370
3” X 3” 1250 3” X 3” 820 3” X 3” 550
4” X 4” 1850 4” X 4” 1250 4” X 4” 820
6” X 6” 2700 6” X 6” 2100 6” X 6” 1450
9” X 9” 4600 9” X 9” 3700 9” X 9” 2450
12” X12” 8200 12” X12” 6400 12” X12” 4600
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62 अ ैल 2011

मािसक रािश फल

 िचंतन जोशी
मेष: 1 से 15 अ ैल 2011 : श ु प से आिथक हािन हो सकती है । काय म आनेवाली
कावटो म भी कमी होगी और दरु थ थान से धन लाभ ा हो सकता है । कृ ित म
बदलाव से आपका वा य नरम रह सकता है । इ िम ो के साथा संब ध के िलये
ितकूल समय ह। दा प य जीवन क सम याओं को दरू करने का यास करे अ यथा
सम या वकट हो सकती ह।

16 से 30 अ ैल 2011 : इस अविध म आपके उपर काय के दबाव के चलते सु ती का


असर दे खने को िमल सकता ह। वप रत प र थती म अपने ोध एवं गु से पर
िनयं ण रखने का यास कर अ यथा आपका यवहार ती एवं आ ामकता से यु हो
सकता ह। उिचत िनणयो म दे र करने से धन हानी संभव ह। माता का वा य िचंता का कारण हो सकता ह, सावधान
रह।

वृ षभ: 1 से 15 अ ैल 2011: आपका आ म व ास और उ साह चरम पर रह सकता


ह। आपको अपने अनाव यक खच पर िनयं ण रखना होगा अ यथा ल बे समय के
िलये आप ऋण त हो सकते ह। आपके के हए
ु काय आपक बौ क मता से पूण
ह गे। आपके प रवार एवं इ िम ो का सहयोग ा होगा। आपका थाना तरण हो
सकता ह या िनवा थान बदल सकता ह।

16 से 30 अ ैल 2011: आपक आिथक थती म आक मक वृ होने के योग बन


रहे ह। आपके सं हत धन को कह ं पूं ज िनवेश करना, धन संबंिधत लेन-दे न करना
इस समय अिधक लाभदायक नह ं होगा। आपके वा य म उतार चढाव हो सकते ह। प रवार के मह वपूण काय म
आप य त रहे ग। जीवन साथी का सहयोग ा होगा और मन स न रहे गा।

िमथुन: 1 से 15 अ ैल 2011: आिथक थती म सुधार होगे। आपको पा रवा रक या


िम के साथ साझेदार ार धन लाभ होने के योग बन रहे ह। वा य क ी से
समय बेहतर सा बत हो सकता ह। जीवन साथी से मतभेद होने से परे शािनयां हो सकती
ह, इस दौरान छोट -छोट बातो को बड बनने से रोकना उिचत रहे गा। भूिम- भवन-
वाहन के य- व य से लाभ ा होने के योग बन रहे ह।

16 से 30 अ ैल 2011: अ यािधक प र म और मेहनत के उपरांत वलंब से सफलता


ा हो सकती ह। नौकर - यवसाय म काय अचानक से बाधा- व नो का समाना करना
पड सकता ह। ोध पर िनयं ण रखे अ यथा आपका वा य को ितकूल हो सकता ह।
मानिसक िच ताओं म वृ हो सकती है । आपके ारा कये गये यास दांप य संबंध को सुधारने म समथ हो सकते ह।
63 अ ैल 2011

कक:
1 से 15 अ ैल 2011: नौकर - यवसाय म अ यािधक प र म एवं मेहनत के उपरांत कुछ कावटो के बाद म यवसाय
म धन लाभ ा होगा। आव यकता से अिधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह। वप रत प र थती म
अपने ोध एवं गु से पर िनयं ण रखने का यास कर। मह व के काय के िलये
आपको कज लेना पड सकता ह जो लाभ द िस हो सकता ह।

16 से 30 अ ैल 2011: काय म आनेवाली कावटो म भी कमी होगी और दरु थ थान से


धन लाभ ा हो सकता है । के हवे
ु काय से आक मक धन लाभ ा होगा। सरकार
से संबंिधत काय म लाभ ा हो सकता ह। आल य के कारण आपके मह व पूण काय
ाभा वत होस अकते ह सावधानी वत। मह वपूण एवं घरे लू मामलो म चुनौतीओं का
सामना करना पड सकता ह।

िसंह:
1 से 15 अ ैल 2011: आपका मन श न रहे गा। आिथक े म लाभ ाि के योग
बन रहे ह। मह वपूण िनणय लेने के िलए एवं मह वपूण योजनाओं को अमल म लाने
हे तु उ म समय रहे गा। मह व के काय के िलये आपको कज लेना पड सकता ह जो
लाभ द िस हो सकता ह। अपने मनोबल और अपनी श एवं कमजोर का
अ ययन कर उसके अनुशार काय करना लाभ द िस होगा।

16 से 31 अ ैल 2011: नया यापार, नौकर शु करने के िलए, मह वपूण य व ेय


या नया िनवेष करने के िलए उ म समय है । अपनी मानिसक मताओं का ायोग
कर अपने काय के सफलता पूव क पूण करने का यास कर। मानिसक परे शानी म
िलये गये िनणय ग़लत हो सकता है । जीवन साथी और ब चो के साथ खुशी-खुशी समय बताने का यास करे ।

क या:

1 से 15 अ ैल 2011: इस दौरान कसी काय म लापरवाह करना नु शान दे सकता ह।

पूव से चल रहे काय म सामा य लाभ ा कर सकते ह। आिथक प कमजोर हो

सकता ह। आपके श ु पर आपका भाव रहे गा। या ा करते समय सावधान और सतक

रहे । मू यवान व तु के ित सावधान रह कसी सामान के गुम होने या चोर हो

सकता ह। वा य उ म रहे गा।

16 से 31 अ ैल 2011: मह वपूण िनणय लेने के िलए एवं मह वपूण योजनाओं को

अमल म लाने क हो सकता ह। कसी से कलह एवं तकरार म न उलझ। य द आप कसी रोग से पी ड़त ह तो

िच क सक से िमल अ यथा सम या वकटा हो सकती ह। आिथक परे शानी से कम हो सकती ह। पूराने ऋण का

भुगतान कर द। आव यकता से अिधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह।


64 अ ैल 2011

तुला:
1 से 15 अ ैल 2011: इस अविध म आपको नये यवसाय या नौकर के काय म
सफलता क ा ी हो सकती ह। ान का पर ण कर सकते ह। आपक अनुिचत काय
शैली का याग कर। आपने काय े का व तार करने हे तु अपने ान का उपयोग
कर सकते ह। आपके कम का फल आपको शी ा होगा। आपको काय सावधानी
एवं चतुराई से करना चा हये।

16 से 30 अ ल
ै 2011: इस दौरान सावधानी से नयी प रयोजना और ऋण संबंधी सौदे
क शु आत करना लाभ द हो सकता ह। नौकर - यवसाय म संबंधो का सू म
अवलोकन करना लाभ द रहे गा। आपके श ु पर आपका भाव रहे गा। आपके
सामा जक य व का वकास होगा। ऋण संब धत लेन-दे न हे तु थती अनुकूल है । या ा करते समय सावधान और
सतक रहे ।

वृ क:

1 से 15 अ ैल 2011: नौकर यवसाय म बदला करने से बचे। नई योजनाओं औरा


काय को शु करना थोडे समय के िलये थिगत कर। कये गये पूं ज िनवेश ारा
आक मक धन ाि के योग बन रहे है । कसी से वाद- ववाद करने से बचे अ यथा
कोट-कचहर के काय म फसल सकते ह। बेकार लोगो क संगित म यथके काय म
अपना समय न करने से बचे।

16 से 30 अ ैल 2011: आपको मह वपूण काय को पूरा करने हे तु कज लेना पड


सकता ह। काय क य तता, अ यािधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह
इस िलये थोड़ा आराम करना आव यक होगा। इस अविध के दौरान अपने वभाव म िचड़िचड़ा पन आसकता ह। वाहन
सावधानी से चलाये या वाहन से सावधान रहे आक मक दघटना
ु हो सकती ह। अित र सावधानी बत अ यथा कसी
नशे के आिध हो सकते ह।

धनु:
1 से 15 अ ैल 2011: अपने प रवार एवं इ िम ो के साथ म स नता अनुभव कर
सकते ह। इस दौरान आपको शुभ समाचारो क ाि हो सकती ह। आपको नई नोकर
ा हो सकती ह या कसी नये यवसाय यवसाय का शुभारं भ कर सकते ह। श ु एवं
वरोिध प से आिथक नु शान हो सकता ह। यापा रक साझेदार के काय म
सावधानी बत।

16 से 30 अ ैल 2011: विभ न काय म आपक िच रहे गी। आपक मानिसक िचंताएं


दरू होगी आपका मन शांत एवं स न रहे गा। य- व य और कज सं ब धी लेन दे न
भी कर सकते ह। पा रवा रक मामल म खुशी क अनुभूित करगे। लोग आपका स मान करगे और आपके काम म
सहायता करग। भूिम-भवन इ याद म कया गया पूं ज िनवेश लाभ द हो सकता ह।
65 अ ैल 2011

मकर:

1 से 15 अ ैल 2011: इस दौरान आपको अनुकूल अथवा ितकूल या दोन का िमि त


फल ा हो सकता ह। मह वपूण योजनाओं म धन लाभ क संभावना बन रह है ।
पूण प र म एवं उिचत कम से अपनी आिथक थती म शी प रवतन ला सकते ह।
इस अविध म संतुिलत और व थ भोजन हण कर। प रवार के लोगो से ेम और
नेह क ाि होगी।

16 से 31 अ ैल 2011: इस दौरान नयी प रयोजना और ऋण संबंधी सौदे क शु आत


करना लाभ द हो सकता ह। आपके भौितक सुख साधनो म वृ होगी। आपको बकाया
भुगतान एवं आक मक धन क ाि हो सकती ह। आपक मानिसक िचंताएं दरू होगी आपका मन शांत एवं स न
रहे गा। जीवन साथी और ब चो के साथ खुशी-खुशी समय बताने का यास करे ।

कुंभ:

1 से 15 अ ैल 2011: यवसाियक कावटो म कमी आयेगी। इस अविध के शु म


यवसाियक े का व तार होगा। आपके उ चािधकारे एवं अिधन थ कमचार के
सहयोग से मन स न रहे गा। आपके सं हत धन को कह ं पूं ज िनवेश करना, धन
संबंिधत लेन-दे न करना इस समय अिधक लाभदायक रहे गा। प रवार एवं िम वग का
पूण सहयोग ा होगा और समय आनंद पूव क बता सकते ह।

16 से 31 अ ैल 2011: नयी प रयोजना ारं भ करने के िलए समय शुभदायक हो सकता


है । मह व पूण योजनाएं गोपनीय रखे अ यथा वरोिध एवं श ु प लाभ उठा सकते ह। िम एवं इ वग के िलये
आपको कज लेना पड सकता ह। हताशा और िनराशा वाले वचारो को कनारा कर समय का लाभ उठाते हवे
ु आगे बढने
का यास कर। दां प य जीवन के सुख म कमी रह सकती ह।

मीन:
1 से 15 अ ैल 2011: अनुकूल आवसरो का लाभ उठाए और अपने भा य को सुधारने
का यास कर। नये उ ोग, मह वपूण य- व य, यवसायीक या ा लाभ द हो सकती
ह। आपक सफलता आपके यास एवं प र म पर िनभर करती ह। आपक िछपी श य
को पहचान कर काय करना लाभ द रहे गा। इस दौरान आप अपने श ु एवं िम ो को
आसानी से पहचान कर सकते ह।

16 से 31 अ ैल 2011: यह समय आपक समृ को दशाता ह। अपनी वतमान थित का


आकलन कर अपने यासो को सुधार सकते ह। भूिम- भवन-वाहन के य- व य से
म यम लाभ ा हो सकता ह। इस दौरान आप व थ एवं ताजगी महसूस करगे।
आपक सामा जक ित ा और य व के कारण लोग आपक शंसा कर सकते ह। िम एवं प रवार के लोगो के
सहयोग से मन स न रहे गा। श ुओं से सावधान रह।
66 अ ैल 2011

रािश र
मूंगा ह रा प ना मोती माणेक प ना

Naturel Pearl Ruby


Red Coral Diamond Green Emerald Green Emerald
(Special) (Special) (Old Berma)
(Special) (Special) (Special) (Special)
5.25" Rs. 1050 10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 9100 5.25" Rs. 910 2.25" Rs. 12500 5.25" Rs. 9100
6.25" Rs. 1250 20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 12500 6.25" Rs. 1250 3.25" Rs. 15500 6.25" Rs. 12500
7.25" Rs. 1450 30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 14500 7.25" Rs. 1450 4.25" Rs. 28000 7.25" Rs. 14500
8.25" Rs. 1800 40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 19000 8.25" Rs. 1900 5.25" Rs. 46000 8.25" Rs. 19000
9.25" Rs. 2100 50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 23000 9.25" Rs. 2300 6.25" Rs. 82000 9.25" Rs. 23000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000 10.25" Rs. 2800 10.25" Rs. 28000
All Diamond are Full
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour.

तुला रािश: वृ क रािश: धनु रािश: मकर रािश: कुंभ रािश: मीन रािश:

ह रा मूंगा पुखराज नीलम नीलम पुखराज

Diamond Red Coral Y.Sapphire B.Sapphire B.Sapphire Y.Sapphire


(Special)
(Special) (Special) (Special) (Special) (Special)
10 cent Rs. 4100 5.25" Rs. 1050 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000 5.25" Rs. 30000
20 cent Rs. 8200 6.25" Rs. 1250 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000 6.25" Rs. 37000
30 cent Rs. 12500 7.25" Rs. 1450 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000 7.25" Rs. 55000
40 cent Rs. 18500 8.25" Rs. 1800 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000 8.25" Rs. 73000
50 cent Rs. 23500 9.25" Rs. 2100 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000 9.25" Rs. 91000
10.25" Rs. 2800 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000 10.25" Rs.108000
All Diamond are Full
** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati ** All Weight In Rati
White Colour.

* उपयो वजन और मू य से अिधक और कम वजन और मू य के र एवं उपर भी हमारे यहा यापार मू य पर


उ ल ध ह।

GURUTVA KARYALAY
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67 अ ैल 2011

अ ैल 2011मािसक पंचांग
चं
द वार माह प ितिथ समाि न समाि योग समाि करण समाि समाि
रािश

1 शु चै कृ ण योदशी 15:06:18 शतिभषा 08:26:00 शुभ 07:46:37 व णज 15:06:18 कुंभ 28:40:00

2 शिन चै कृ ण चतुदशी 17:35:10 पूवाभा पद 11:23:55 शु ल 08:39:51 शकुिन 17:35:10 मीन

3 रव चै कृ ण अमाव या 20:03:05 उ राभा पद 14:21:50 09:34:01 चतु पद 06:49:57 मीन

4 सोम चै शु ल ितपदा 22:23:30 रे वित 17:15:04 इ 10:25:23 क तु न 09:14:08 मीन 17:15:00

5 मंगल चै शु ल तीया 24:34:33 अ नी 19:59:52 वैध ृ ित 11:10:11 बालव 11:30:48 मेष

6 बुध चै शु ल तृ तीया 26:31:33 भरणी 22:30:37 वषकुंभ 11:45:37 तैितल 13:35:18 मेष 29:06:00

7 गु चै शु ल चतुथ 28:08:52 कृ ितका 24:43:33 ीित 12:08:52 व णज 15:22:55 वृ ष

8 शु चै शु ल पंचमी 29:18:03 रो ह ण 26:32:07 आयु मान 12:14:18 बव 16:47:07 वृ ष

9 शिन चै शु ल ष ी 29:55:23 मृ गिशरा 27:49:45 सौभा य 11:59:08 कौलव 17:41:19 वृ ष 15:15:00

10 र व आ ा
चै शु ल स मी 29:53:20 28:28:58 शोभन 11:15:50 गर 17:58:58 िमथुन

11 सोम चै शु ल अ मी 29:08:11 पुनवसु 28:26:56 अितगंड 10:03:29 व 17:36:18 िमथुन 22:31:00

12 मंगल चै पु य
शु ल नवमी 27:38:58 27:41:46 सुकमा 08:14:35 बालव 16:28:39 कक

13 बुध अ ेषा
चै शु ल दशमी 25:28:30 26:16:19 शूल 26:56:38 तैितल 14:38:49 कक 26:16:00

14 गु मघा
चै शु ल एकादशी 22:41:29 24:12:26 गंड 23:31:11 व णज 12:08:41 िसंह

15 शु पूवाफा गुनी
चै शु ल ादशी 19:24:29 21:41:22 वृ 19:41:22 बव 09:05:44 िसंह 27:00:00

16 शिन उ राफा गुनी


चै शु ल योदशी 15:47:48 18:50:37 ुव 15:34:41 तैितल 15:47:48 क या

17 र व ह त
चै शु ल चतुदशी 12:00:49 15:50:31 याघात 11:19:34 व णज 12:00:49 क या 26:22:00

18 सोम िच ा
चै शु ल पू णमा 08:14:47 12:55:06 हषण 07:05:25 बव 08:14:47 तुला
68 अ ैल 2011

19 मंगल ितपदा- वाती


वैशाख कृ ण 25:28:46 10:12:49 िस 23:14:42 तैितल 15:00:38 तुला 26:28:00
तीया

20 बुध वशाखा
वैशाख कृ ण तृ तीया 22:50:15 07:56:48 यितपात 19:54:00 व णज 12:04:18 वृ क

21 गु अनुराधा
वैशाख कृ ण चतुथ 20:53:00 06:16:26 व रयान 17:07:03 बव 09:45:30 वृ क 29:19:00

22 शु मूल
वैशाख कृ ण पंचमी 19:41:41 29:09:49 पर ह 14:56:41 कौलव 08:10:45 धनु

23 शिन पूवाषाढ़
वैशाख कृ ण ष ी 19:20:05 29:48:13 िशव 13:25:43 गर 07:24:46 धनु

24 र व पूवाषाढ़
वैशाख कृ ण स मी 19:46:19 05:49:07 िस 12:34:07 व 07:27:34 धनु 12:06:00

25 सोम उ राषाढ़
वैशाख कृ ण अ मी 20:57:33 07:13:29 सा य 12:18:10 बालव 08:18:10 मकर

26 मंगल वैशाख कृ ण नवमी वण


22:43:29 09:17:14 शुभ 12:32:14 तैितल 09:47:14 मकर 22:31:00

27 बुध धिन ा
वैशाख कृ ण दशमी 24:54:45 11:51:00 शु ल 13:07:52 व णज 11:47:15 कुंभ

28 गु शतिभषा
वैशाख कृ ण एकादशी 27:20:05 14:41:39 13:57:35 बव 14:06:58 कुंभ

29 शु पूवाभा पद
वैशाख कृ ण ादशी 29:49:12 17:41:42 इ 14:53:53 कौलव 16:35:08 कुंभ 10:57:00

30 शिन उ राभा पद
वैशाख कृ ण ादशी 05:49:16 20:39:53 वैध ृ ित 15:51:08 तैितल 05:49:16 मीन

धम पर ढ़ व ास
पौरा णक कथा के अनुशार: एक बार भगवान बु के पास आकर एक िभ ुक ने ाथना क ः "भ ते! आप मुझे आ ा द,
म सभाएँ भ ँ गा। आपके वचार का चार क ँ गा।" "मेरे वचार का चार?" "हाँ, भगवन ्! म बौ धम फैलाऊँगा।"
"लोग तेर िन दा करगे, गािलयाँ दगे।" "कोई हज नह ं। एसा होगा तो, म भगवन को ध यवाद दँ ग
ू ा क ये लोग कतने
अ छे ह! ये केवल श द हार करते ह, मुझे मारते-पीटते तो नह ं।" "लोग तुझे पीटगे भी, तो या करोगे?" " भो! म शु
गुजा ँ गा क ये लोग खाली हाथ से पीटते ह, प थर तो नह ं मारते।" "लोग प थर भी मारगे और िसर भी फोड़ दगे तो
या करे गा?" " फर भी म आ त रहँू गा भ ते! और भगवान का द य काय करता रहँू गा य क वे लोग मेरा िसर फोड़गे
ले कन ाण तो नह ं लगे।" "लोग जनून म आकर तुझे मार दगे तो या करे गा?" "भ ते! आपके द य वचार का चार
करते-करते म मर भी गया तो समझूँगा क मेरा जीवन सफल हो गया।"

उस कृ तिन यी िभ ुक क ढ़ िन ा दे खकर भगवान बु स न हो उठे । उस पर भगवान बु क क णा बरस पड़ ।


69 अ ैल 2011

अ ैल -2011 मािसक त-पव- यौहार


द वार माह प ितिथ समाि मुख त- योहार

िशव चतुदशी, मािसक िशवरा त, महावा णी


पव, रं गतेरस, मधुकृ ण योदशी, हं गलाज पूजा,
1 शु चै कृ ण योदशी 15:06:18
आ दकेशव दशन-पूजन (काशी), वा णी पव- नान
ात :8.25 तक,

2 शिन चै कृ ण चतुदशी 17:35:10 केदारचतुदशी काशी

अमाव या, व म.सं. 2067 पूण, नान-दान- ा


3 रव चै कृ ण अमाव या 20:03:05 हे तु उ म चै ी अमाव या, थाल भ ण एवं ी भ ट
दवस,

चै नवरा ारं भ, बसंत नवरा , घट थापना,


‘ ोधी’ नामक व म.सं.2068 ारं भ, बैठक ,
नवसंव सरो सव, नवपंचांग फल- वण,
वजारोहण, वासंितक नवरा शु , कलश( घट)
4 सोम चै शु ल ितपदा 22:23:30 थापना, ितलक त, व ा त, आरो य त, गुड
पड़वा( महारा ), डा.हे डगेवार जयंती, गौतम ऋ ष
जयंती, आयसमाज थापना दवस, पंचक समा
( दन 4.15),

चैती चांद-झूलेलाल जयंती(िस धी), िसंधारा दौज,


5 मंगल चै शु ल तीया 24:34:33
चं दशन, झूलेलाल ज म.

गौर तृ तीया, गणगौर तीज त, सौभा य सुंदर


6 बुध चै शु ल तृ तीया 26:31:33 त, मनोरथ तृ तीया त, अ ं धती त, जिम द
उलावल, म यावतार जयंती,

वरद वनायक चतुथ त, दमनक चतुथ , वनायक


7 गु चै शु ल चतुथ 28:08:52
चतुथ (चं.अ.रा.9.50), व वा य दवस

ीपंचमी, ीराम रा यािभषेक दवस, हय त,


8 शु चै शु ल पंचमी 29:18:03 अनंतनाग पंचमी, पशुपती र-दशन (काशी),
हरगो वंद जयंती, चैती छठ का खरना) आय
70 अ ैल 2011

समाज थापना. द.

क द (कुमार) ष ी त, सूय ष ी त (चैती छठ),


9 शिन चै शु ल ष ी 29:55:23 यमुना जयंती महो सव, वासंती दगापू
ु जा-
ब वािभमं ण ष ी, अशोकाष ी

वासंती दगा
ु -पूजा ारं भ, महास मी त, कालरा
10 रव चै शु ल स मी 29:53:20
स मी, कमला स मी,

दगा
ु मी-महा मी त, अशोका मी, अशोका मी
(बंगाल), ीअ नपूणा मी त एवं प र मा (काशी),
11 सोम चै शु ल अ मी 29:08:11
महािनशा पूजा, सांईबाबा उ सव 3 दन (िशरड ),
पु य न (रा 11.19 से),

राम नवमी, ीराम ज मो सव, ीरामनवमी त,


ीरामज मभूिम - दशन (अयो या), तारा महा व ा
12 मंगल चै शु ल नवमी 27:38:58 जयंती, ीदगा
ु -महानवमी, वामी नारायण जयंती
(अ रधाम), जवारे वसजन, पु य न (10.34
तक),

चै ी वजयादशमी, दशहरा (मालवा), धमराज


13 बुध चै शु ल दशमी 25:28:30 दशमी, नवरा ो थापन, यितपात महापात दे र रात
1.09 से ात: 5.36 तक

कामदा एकादशी त, ील मीनारायण दोलो सव,


फूलडोल यारस, ीबांके बहार जी महाराज का
फूलबंगला बनना शु (वृ ंदावन), चड़क पूजा
(बंगाल), वैशाखी, खरमास समा , मेष-सं ा त
14 गु चै शु ल एकादशी 22:41:29
दन 1.01 बजे, सं ा त का वशेष पु यकाल ात:
9.01 से सायं 5.01 तक, क पवास शु (ह र ार),
मीन (खर) मास समा , सतुआइन सं ा त,
आयभ ट जयंती, डा. अ बेडकर जयंती,

सौर मास वैशाख ारं भ, मदन ादशी, व णु


ादशी, बंगाली नववष 1418 शु , यामबाबा
15 शु चै शु ल ादशी 19:24:29 ादशी, अनंग योदशी ( दोषकालीन), दोष त,
ीह र-दमनको सव, भीमचंड -दशन, मणी
जयंती
71 अ ैल 2011

िशव दमनक चतुदशी, अनंग योदशी, भगवान


महावीर जयंती (जैन), मीना ी क याणम ्
16 शिन चै शु ल योदशी 15:47:48
(द.भारत), मदनभं जका चतुदशी (िमिथलां.),
र य त 3 दन ( दग.जैन)

17 रव चै शु ल चतुदशी 12:00:49 पू णमा त, ीस यनारायण त-कथा, पाम संडे,

ीहनुमान जयंती, नान-दान हे तु उ म चै ी


18 सोम चै शु ल पू णमा 08:14:47 पू णमा, छ पित िशवाजी क पु यितिथ, वैशाख
नान-िनयम ारं भ,

ितपदा- क छपावतार जयंती, वैशाख के येक मंगलवार


19 मंगल वैशाख कृ ण 25:28:46
तीया को ीमंगलनाथ-दशन (उ जियनी), आशा तीया,

सूय सायन वृ ष म दन 3.49 बजे, सौर ी म ऋतु


20 बुध वैशाख कृ ण तृ तीया 22:50:15
ारं भ

संक ी गणेश चतुथ त, (चं.उ.रा.10.3),


21 गु वैशाख कृ ण चतुथ 20:53:00
अनुसूइया जयंती, िस योग,

22 शु वैशाख कृ ण पंचमी 19:41:41 गुड ायडे

वेताल ष ी (ज मू-क मीर), को कला ष ी


23 शिन वैशाख कृ ण ष ी 19:20:05 (िमिथलांचल), बाबू कुँवर िसंह जयंती ( बहार,
झारख ड),

24 रव वैशाख कृ ण स मी 19:46:19 भानु स मी, शकरा स मी, ई टर संडे

शीतला मी-बसौड़ा, काला मी त, वैध ृ ित महापात


25 सोम वैशाख कृ ण अ मी 20:57:33
रा 9.44 से दे र रात 3.20 तक

26 मंगल वैशाख कृ ण नवमी 22:43:29 च डका नवमी त, पंचक ारं भ (12.46 रा ),

27 बुध वैशाख कृ ण दशमी 24:54:45

व िथनी एकादशी त, पापमोचनी एकादशी,


28 गु वैशाख कृ ण एकादशी 27:20:05 ीव लभाचाय महा भु जयंती, ीव लभ संवत ्
534 ारं भ, पंचकोशी-पंचेशािन या ा शु

29 शु वैशाख कृ ण ादशी 29:49:12 एकादशी त (िन बाक वै णव), वंजुली महा ादशी,

30 शिन वैशाख कृ ण ादशी 05:49:16 दोष त, शिन- दोष त


72 अ ैल 2011

ववाह संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क आपक शाद म अनाव यक प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी थती होने पर अपने लडके-लडक क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार ा
कर।

िश ा से संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक प से बाधा- व न या कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण प र म
एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कुंडली का व तृ त अ ययन अव य करवाले और
उनके व ा अ ययन म आनेवाली कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से
जनकार ा कर।

या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं ह?
अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता ा
कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व कायालत
ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु विभ न कार के
य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।

योितष संबंिधत वशेष परामश


योित व ान, अंक योितष, वा तु एवं आ या मक ान स संबंिधत वषय म हमारे 30 वष से अिधक वष के
अनुभव के साथ योितस से जुडे नये-नये संशोधन के आधार पर आप अपनी हर सम या के सरल समाधान ा कर
सकते ह।
GURUTVA KARYALAY
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ओने स
जो य प ना धारण करने मे असमथ हो उ ह बुध ह के उपर ओने स को धारण करना चा हए।
उ च िश ा ाि हे तु और मरण श के वकास हे तु ओने स र क अंगूठ को दाय हाथ क सबसे छोट
उं गली या लॉकेट बनवा कर गले म धारण कर। ओने स र धारण करने से व ा-बु क ाि हो होकर मरण
श का वकास होता ह।
73 अ ैल 2011

अ ैल 2011 - वशेष योग


काय िस योग
दनांक योग अविध दनांक योग अविध
3 सूय दय से दोपहर 2:21 तक 17 सूय दय से दोपहर 3:50 तक
5 सूय दय से सं या 7:58 तक 20 ात :7:57 से 21 अ ैल को ात :6:15 तक
6 रा 10:31 से रातभर 24 स पूण दन-रात
12 को ात :4:27 से सूय दय तक 25 ात :7:12 से रातभर
13 रा 3:42 से सूय दय तक

अमृ त योग
5 सूय दय से सं या 7:58 तक 20 ात :7:57 से रातभर
17 सूय दय से दोपहर 3:50 तक
पु कर योग (तीनगुना फल)
11 ात :4:28 से ात :5:52 तक 24 सूय दय से सं या 7:46 तक
19 ात :10:12 से रा 1:28 तक

योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह

दै िनक शुभ एवं अशुभ समय ान तािलका


गुिलक काल यम काल राहु काल
(शुभ) (अशुभ) (अशुभ)
वार समय अविध समय अविध समय अविध
र ववार 03:00 से 04:30 12:00 से 01:30 04:30 से 06:00
सोमवार 01:30 से 03:00 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00
मंगलवार 12:00 से 01:30 09:00 से 10:30 03:00 से 04:30
बुधवार 10:30 से 12:00 07:30 से 09:00 12:00 से 01:30
गु वार 09:00 से 10:30 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00
शु वार 07:30 से 09:00 03:00 से 04:30 10:30 से 12:00
शिनवार 06:00 से 07:30 01:30 से 03:00 09:00 से 10:30
74 अ ैल 2011

दन के चौघ डये
समय र ववार सोमवार मंगलवार बुधवार गु वार शु वार शिनवार

06:00 से 07:30 उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ चल काल


07:30 से 09:00 चल काल उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ
09:00 से 10:30 लाभ शुभ चल काल उ ेग अमृ त रोग
10:30 से 12:00 अमृ त रोग लाभ शुभ चल काल उ ेग
12:00 से 01:30 काल उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ चल
01:30 से 03:00 शुभ चल काल उ ेग अमृ त रोग लाभ
03:00 से 04:30 रोग लाभ शुभ चल काल उ ेग अमृ त
04:30 से 06:00 उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ चल काल

रात के चौघ डये


समय र ववार सोमवार मंगलवार बुधवार गु वार शु वार शिनवार

06:00 से 07:30 शुभ चल काल उ ेग अमृ त रोग लाभ


07:30 से 09:00 अमृ त रोग लाभ शुभ चल काल उ ेग
09:00 से 10:30 चल काल उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ
10:30 से 12:00 रोग लाभ शुभ चल काल उ ेग अमृ त
12:00 से 01:30 काल उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ चल
01:30 से 03:00 लाभ शुभ चल काल उ ेग अमृ त रोग
03:00 से 04:30 उ ेग अमृ त रोग लाभ शुभ चल काल
04:30 से 06:00 शुभ चल काल उ ेग अमृ त रोग लाभ
शा ो मत के अनुशार य द कसी भी काय का ारं भ शुभ मुहू त या शुभ समय पर कया जाये तो काय म सफलता
ा होने क संभावना यादा बल हो जाती ह। इस िलये दै िनक शुभ समय चौघ ड़या दे खकर ा कया जा सकता ह।
नोट: ायः दन और रा के चौघ ड़ये क िगनती मशः सूय दय और सूया त से क जाती ह। येक चौघ ड़ये क अविध 1
घंटा 30 िमिनट अथात डे ढ़ घंटा होती ह। समय के अनुसार चौघ ड़ये को शुभाशुभ तीन भाग म बांटा जाता ह, जो मशः शुभ,
म यम और अशुभ ह।

चौघ डये के वामी ह * हर काय के िलये शुभ/अमृ त/लाभ का


शुभ चौघ डया म यम चौघ डया अशुभ चौघ ड़या चौघ ड़या उ म माना जाता ह।
चौघ डया वामी ह चौघ डया वामी ह चौघ डया वामी ह
शुभ गु चर शु उ ेग सूय * हर काय के िलये चल/काल/रोग/उ े ग
अमृ त चं मा काल शिन का चौघ ड़या उिचत नह ं माना जाता।
लाभ बुध रोग मंगल
75 अ ैल 2011

दन क होरा - सूय दय से सूया त तक


वार 1.घं 2.घं 3.घं 4.घं 5.घं 6.घं 7.घं 8.घं 9.घं 10.घं 11.घं 12.घं

र ववार सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन


सोमवार चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय
मंगलवार मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं
बुधवार बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल
गु वार गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध
शु वार शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु
शिनवार शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु

रात क होरा – सूया त से सूय दय तक


र ववार गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध
सोमवार शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु
मंगलवार शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु
बुधवार सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन
गु वार चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय
शु वार मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं
शिनवार बुध चं शिन गु मंगल सूय शु बुध चं शिन गु मंगल
होरा मुहू त को काय िस के िलए पूण फलदायक एवं अचूक माना जाता ह, दन-रात के २४ घंट म शुभ-अशुभ समय
को समय से पूव ात कर अपने काय िस के िलए योग करना चा हये।

व ानो के मत से इ छत काय िस के िलए ह से संबंिधत होरा का चुनाव करने से वशेष लाभ


ा होता ह।
 सूय क होरा सरकार काय के िलये उ म होती ह।
 चं मा क होरा सभी काय के िलये उ म होती ह।
 मंगल क होरा कोट-कचेर के काय के िलये उ म होती ह।
 बुध क होरा व ा-बु अथात पढाई के िलये उ म होती ह।
 गु क होरा धािमक काय एवं ववाह के िलये उ म होती ह।
 शु क होरा या ा के िलये उ म होती ह।
 शिन क होरा धन- य संबंिधत काय के िलये उ म होती ह।
76 अ ैल 2011

सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।

उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।

भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।

योितष व ा के कुशल जानकर भी काल पु षक गणना कर अनेक रोगो के अनेको रह य को उजागर कर


सकते ह। योितष शा के मा यम से रोग के मूलको पकडने मे सहयोग िमलता ह, जहा आधुिनक िच क सा शा
अ म होजाता ह वहा योितष शा ारा रोग के मूल(जड़) को पकड कर उसका िनदान करना लाभदायक एवं
उपायोगी िस होता ह।
हर य म लाल रं गक कोिशकाए पाइ जाती ह, जसका िनयमीत वकास म ब तर के से होता रहता ह।
जब इन कोिशकाओ के म म प रवतन होता है या वखं डन होता ह तब य के शर र म वा य संबंधी वकारो
उ प न होते ह। एवं इन कोिशकाओ का संबंध नव हो के साथ होता ह। ज से रोगो के होने के कारणा य के
ज मांग से दशा-महादशा एवं हो क गोचर म थती से ा होता ह।

सव रोग िनवारण कवच एवं महामृ युंजय यं के मा यम से य के ज मांग म थत कमजोर एवं पी डत


हो के अशुभ भाव को कम करने का काय सरलता पूव क कया जासकता ह। जेसे हर य को ांड क उजा एवं
पृ वी का गु वाकषण बल भावीत कता ह ठक उसी कार कवच एवं यं के मा यम से ांड क उजा के
सकारा मक भाव से य को सकारा मक उजा ा होती ह ज से रोग के भाव को कम कर रोग मु करने हे तु
सहायता िमलती ह।
रोग िनवारण हे तु महामृ युंजय मं एवं यं का बडा मह व ह। ज से ह द ू सं कृ ित का ायः हर य
महामृ युंजय मं से प रिचत ह।
77 अ ैल 2011

कवच के लाभ :
 एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
 पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
 ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
 कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच
एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हे तु
सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी होता ह।
 आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
 येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं फल द होता ह।
 जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
 जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।

नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।

Declaration Notice
 We do not accept liability for any out of date or incorrect information.
 We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit,
 If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange.
 We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information
about our any other clients' transactions with us.
 Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings
of the natural and spiritual world.
 Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.
 Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our
Article dose not produce any bad energy.

Our Goal
 Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants
prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All
types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door
step.
78 अ ैल 2011

मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महत
ू म शुभ दन को तैयार कये जाते है . अलग-अलग कवच तैयार करने केिलए अलग-अलग तरह के
मं ो का योग कया जाता है .

 य चुने मं िस कवच?
 उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
 कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
 कोई बुरा भाव नह ं
 कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु

कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700/- ऋण मु कवच - 730/- वरोध नाशक कवचा- 550/-
सवजन वशीकरण कवच - 1050/-* नव ह शांित कवच- 730/- वशीकरण कवच- 550/-* (2-3 य के िलए)
अ ल मी कवच - 1050/- तं र ा कवच- 730/- प ी वशीकरण कवच - 460/-*
आक मक धन ाि कवच-910/- श ु वजय कवच - 640/- * नज़र र ा कवच - 460/-
भूिम लाभ कवच - 910/- पद उ नित कवच- 640/- यापर वृ कवच - 370/-
संतान ाि कवच - 910/- धन ाि कवच- 640/- पित वशीकरण कवच - 370/-*
काय िस कवच - 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच- 640/- दभा
ु य नाशक कवच - 370/-
काम दे व कवच - 820/- म त क पृ वधक कवच- 640/- सर वती कवक - 370/- क ा+ 10 के िलए
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच- 550/- सर वती कवक- 280/- क ा 10 तक के िलए
पे - यापार वृ कवच - 730/- व न बाधा िनवारण कवच- 550/- वशीकरण कवच - 280/-* 1 य के िलए

*कवच मा शुभ काय या उ े य के िलये


GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)

(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)


79 अ ैल 2011

YANTRA LIST EFFECTS


Our Splecial Yantra
1 12 – YANTRA SET For all Family Troubles
2 VYAPAR VRUDDHI YANTRA For Business Development
3 BHOOMI LABHA YANTRA For Farming Benefits
4 TANTRA RAKSHA YANTRA For Protection Evil Sprite
5 AAKASMIK DHAN PRAPTI YANTRA For Unexpected Wealth Benefits
6 PADOUNNATI YANTRA For Getting Promotion
7 RATNE SHWARI YANTRA For Benefits of Gems & Jewellery
8 BHUMI PRAPTI YANTRA For Land Obtained
9 GRUH PRAPTI YANTRA For Ready Made House
10 KAILASH DHAN RAKSHA YANTRA -

Shastrokt Yantra

11 AADHYA SHAKTI AMBAJEE(DURGA) YANTRA Blessing of Durga


12 BAGALA MUKHI YANTRA (PITTAL) Win over Enemies
13 BAGALA MUKHI POOJAN YANTRA (PITTAL) Blessing of Bagala Mukhi
14 BHAGYA VARDHAK YANTRA For Good Luck
15 BHAY NASHAK YANTRA For Fear Ending
16 CHAMUNDA BISHA YANTRA (Navgraha Yukta) Blessing of Chamunda & Navgraha
17 CHHINNAMASTA POOJAN YANTRA Blessing of Chhinnamasta
18 DARIDRA VINASHAK YANTRA For Poverty Ending
19 DHANDA POOJAN YANTRA For Good Wealth
20 DHANDA YAKSHANI YANTRA For Good Wealth
21 GANESH YANTRA (Sampurna Beej Mantra) Blessing of Lord Ganesh
22 GARBHA STAMBHAN YANTRA For Pregnancy Protection
23 GAYATRI BISHA YANTRA Blessing of Gayatri
24 HANUMAN YANTRA Blessing of Lord Hanuman
25 JWAR NIVARAN YANTRA For Fewer Ending
JYOTISH TANTRA GYAN VIGYAN PRAD SHIDDHA BISHA
26 YANTRA
For Astrology & Spritual Knowlage
27 KALI YANTRA Blessing of Kali
28 KALPVRUKSHA YANTRA For Fullfill your all Ambition
29 KALSARP YANTRA (NAGPASH YANTRA) Destroyed negative effect of Kalsarp Yoga
30 KANAK DHARA YANTRA Blessing of Maha Lakshami
31 KARTVIRYAJUN POOJAN YANTRA -
32 KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in work
33  SARVA KARYA SHIDDHI YANTRA For Successes in all work
34 KRISHNA BISHA YANTRA Blessing of Lord Krishna
35 KUBER YANTRA Blessing of Kuber (Good wealth)
36 LAGNA BADHA NIVARAN YANTRA For Obstaele Of marriage
37 LAKSHAMI GANESH YANTRA Blessing of Lakshami & Ganesh
38 MAHA MRUTYUNJAY YANTRA For Good Health
39 MAHA MRUTYUNJAY POOJAN YANTRA Blessing of Shiva
40 MANGAL YANTRA ( TRIKON 21 BEEJ MANTRA) For Fullfill your all Ambition
41 MANO VANCHHIT KANYA PRAPTI YANTRA For Marriage with choice able Girl
42 NAVDURGA YANTRA Blessing of Durga
80 अ ैल 2011

YANTRA LIST EFFECTS

43 NAVGRAHA SHANTI YANTRA For good effect of 9 Planets


44 NAVGRAHA YUKTA BISHA YANTRA For good effect of 9 Planets
45  SURYA YANTRA Good effect of Sun
46  CHANDRA YANTRA Good effect of Moon
47  MANGAL YANTRA Good effect of Mars
48  BUDHA YANTRA Good effect of Mercury
49  GURU YANTRA (BRUHASPATI YANTRA) Good effect of Jyupiter
50  SUKRA YANTRA Good effect of Venus
51  SHANI YANTRA (COPER & STEEL) Good effect of Saturn
52  RAHU YANTRA Good effect of Rahu
53  KETU YANTRA Good effect of Ketu
54 PITRU DOSH NIVARAN YANTRA For Ancestor Fault Ending
55 PRASAW KASHT NIVARAN YANTRA For Pregnancy Pain Ending
56 RAJ RAJESHWARI VANCHA KALPLATA YANTRA For Benefits of State & Central Gov
57 RAM YANTRA Blessing of Ram
58 RIDDHI SHIDDHI DATA YANTRA Blessing of Riddhi-Siddhi
59 ROG-KASHT DARIDRATA NASHAK YANTRA For Disease- Pain- Poverty Ending
60 SANKAT MOCHAN YANTRA For Trouble Ending
61 SANTAN GOPAL YANTRA Blessing Lorg Krishana For child acquisition
62 SANTAN PRAPTI YANTRA For child acquisition
63 SARASWATI YANTRA Blessing of Sawaswati (For Study & Education)
64 SHIV YANTRA Blessing of Shiv
Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth &
65 SHREE YANTRA (SAMPURNA BEEJ MANTRA) Peace
66 SHREE YANTRA SHREE SUKTA YANTRA Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth
67 SWAPNA BHAY NIVARAN YANTRA For Bad Dreams Ending
68 VAHAN DURGHATNA NASHAK YANTRA For Vehicle Accident Ending
VAIBHAV LAKSHMI YANTRA (MAHA SHIDDHI DAYAK SHREE Blessing of Maa Lakshami for Good Wealth & All
69 MAHALAKSHAMI YANTRA) Successes
70 VASTU YANTRA For Bulding Defect Ending
71 VIDHYA YASH VIBHUTI RAJ SAMMAN PRAD BISHA YANTRA For Education- Fame- state Award Winning
72 VISHNU BISHA YANTRA Blessing of Lord Vishnu (Narayan)
73 VASI KARAN YANTRA Attraction For office Purpose
74  MOHINI VASI KARAN YANTRA Attraction For Female
75  PATI VASI KARAN YANTRA Attraction For Husband
76  PATNI VASI KARAN YANTRA Attraction For Wife
77  VIVAH VASHI KARAN YANTRA Attraction For Marriage Purpose
Yantra Available @:- Rs- 190, 280, 370, 460, 550, 640, 730, 820, 910, 1250, 1850, 2300, 2800 and Above…..

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81 अ ैल 2011

GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (प ना) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीलम) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(बकोक नीलम) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (मा णक) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (बमा मा णक) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नरम मा णक/लालड ) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (मोित) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (लाल मूंगा) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (लाल मूंगा) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (सफ़ेद मूंगा) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (लहसुिनया) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उ डसा लहसुिनया) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (गोमेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (िसलोनी गोमेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जरकन) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (बे ज) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीली) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise ( फ़रोजा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (सुनहला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (उ डसा पुखराज/टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (नीला टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोपज) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे ला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (उपल) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गारनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुमलीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुय का त म ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (काला टार) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (ओने स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओने स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (लाजवत) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (च का त म ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal ( फ़ टक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फ़रं गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगर टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (मरगच) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन िसतारा) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (ह रा) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
82 अ ैल 2011

BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION


We are mostly engaged in spreading the ancient knowledge of Astrology, Numerology, Vastu and Spiritual
Science in the modern context, across the world.
Our research and experiments on the basic principals of various ancient sciences for the use of common man.
exhaustive guide lines exhibited in the original Sanskrit texts

BOOK APPOINTMENT PHONE/ CHAT CONSULTATION


Please book an appointment with Our expert Astrologers for an internet chart . We would require your birth
details and basic area of questions so that our expert can be ready and give you rapid replied. You can indicate the
area of question in the special comments box. In case you want more than one person reading, then please mention
in the special comment box . We shall confirm before we set the appointment. Please choose from :

PHONE/ CHAT CONSULTATION


Consultation 30 Min.: RS. 1250/-*
Consultation 45 Min.: RS. 1900/-*
Consultation 60 Min.: RS. 2500/-*
*While booking the appointment in Addvance

How Does it work Phone/Chat Consultation


This is a unique service of GURUATVA KARYALAY where we offer you the option of having a personalized
discussion with our expert astrologers. There is no limit on the number of question although time is of
consideration.
Once you request for the consultation, with a suggestion as to your convenient time we get back with a
confirmation whether the time is available for consultation or not.
 We send you a Phone Number at the designated time of the appointment
 We send you a Chat URL / ID to visit at the designated time of the appointment
 You would need to refer your Booking number before the chat is initiated
 Please remember it takes about 1-2 minutes before the chat process is initiated.
 Once the chat is initiated you can commence asking your questions and clarifications
 We recommend 25 minutes when you need to consult for one persona Only and usually the time is
sufficient for 3-5 questions depending on the timing questions that are put.
 For more than these questions or one birth charts we would recommend 60/45 minutes Phone/chat
is recommended
 Our expert is assisted by our technician and so chatting & typing is not a bottle neck

In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
BOOKING FOR PHONE/ CHAT CONSULTATION PLEASE CONTECT

GURUTVA KARYALAY
Call Us:- 91+9338213418, 91+9238328785.
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com, chintan_n_joshi@yahoo.co.in,
83 अ ैल 2011

सूचना
 प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।

 लेख कािशत होना का मतलब यह कतई नह ं क कायालय या संपादक भी इन वचारो से सहमत ह ।

 ना तक/ अ व ासु य मा पठन साम ी समझ सकते ह।

 प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं ह।

 कािशत लेख योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत होने के कारण


य द कसी के लेख, कसी भी नाम, थान या घटना का कसी के वा त वक जीवन से मेल होता ह तो यह मा
एक संयोग ह।

 कािशत सभी लेख भारितय आ या मक शा से े रत होकर िलये जाते ह। इस कारण इन वषयो क


स यता अथवा ामा णकता पर कसी भी कार क ज मेदार कायालय या संपादक क नह ं ह।

 अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखक के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य ह।

 योितष, अंक योितष, वा तु, मं , यं , तं , आ या मक ान पर आधा रत लेखो म पाठक का अपना


व ास होना आव यक ह। कसी भी य वशेष को कसी भी कार से इन वषयो म व ास करने ना करने
का अंितम िनणय वयं का होगा।

 पाठक ारा कसी भी कार क आप ी वीकाय नह ं होगी।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।

 यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।

 हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।

 पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।

 अिधक जानकार हे तु आप कायालय म संपक कर सकते ह।

(सभी ववादो केिलये केवल भुवने र यायालय ह मा य होगा।)


84 अ ैल 2011

FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का अ ैल -2011
संपादक

िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग

गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
INDIA

फोन

91+9338213418, 91+9238328785
ईमेल
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85 अ ैल 2011

हमारा उ े य
य आ मय

बंध/ु ब हन

जय गु दे व

जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क
भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप
अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , हर एवं उपर और दलभ
ु मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।

सूय क करणे उस घर म वेश करापाती है ।


जीस घर के खड़क दरवाजे खुले ह ।

GURUTVA KARYALAY
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86 अ ैल 2011

APR
2011

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