Professional Documents
Culture Documents
GURUTVA JYOTISH APR-2011 (गुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रीका)
GURUTVA JYOTISH APR-2011 (गुरुत्व ज्योतिष मासिक ई-पत्रीका)
com
चै नवरा
त के लाभ राम एवं
हनुमान मं
नवरा तकथा
राम नाम क
म हमा
गु स शती
संपक गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA,
BHUBNESWAR-751018, (ORISSA) INDIA
फोन 91+9338213418, 91+9238328785,
gurutva.karyalay@gmail.com,
ईमेल gurutva_karyalay@yahoo.in,
http://gk.yolasite.com/
वेब http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
ॐ ी गणेशाय नमः
गु व कायालय प रवार क
और से आपको व म संवत
2068 नव वष क
शुभकामना...
िचंतन जोशी
3 अ ैल 2011
वशेष लेख
नव संव सर का प रचय 5 राम र ा यं 25
नवरा म नवदगा
ु आराधना का मह व 7 जब कबीरजी को िमली राम-राम मं द ा? 27
मं जप या ह? 23 ी राम के िस मं 43
अनु म
संपादक य 4 राम तुित 55
गु स शती 11 जटायुकृत राम तो म ् 56
दे वी आराधना से सुख ाि 14 महादे व कृ त राम तुित 56
स त लोक दगा
ु 15 मािसक रािश फल 62
दगा
ु आरती 15 रािश र 66
नवरा तकथा 16 अ ैल 2011 मािसक पंचांग 67
ध य तो यह ल मण है ? 26 धम पर ढ़ व ास 68
ी राम शलाका ावली 29 अ ैल -2011 मािसक त-पव- यौहार 69
जब ीराम ने कय वजया एकादशी त? 31 अ ैल 2011 - वशेष योग 73
वयं भा ने क रामदतो
ू क सहायता? 33 दै िनक शुभ एवं अशुभ समय ान तािलका 73
रामर ा तो 46 दन-रात के चौघ डये 74
ी राम दयम ् 47 दन-रात क होरा सूय दय से सूया त तक 75
अथ ी राम तो 47 सव रोगनाशक यं /कवच 76
रामा ो र शतनाम तो म ् 48 मं िस कवच 78
राम सह नाम तो म ् 49 YANTRA LIST 79
सीताराम तो म ् 53 GEM STONE 81
रामा कम ् 53 BOOK PHONE/ CHAT CONSULTATION 82
राम भुज ग तो 54 सूचना 83
रामच तुित 55 हमारा उ े य 85
4 अ ैल 2011
संपादक य
य आ मय
बंधु/ ब हन
जय गु दे व
ह द ु संसकृ ित के अनुशार नव वष हर साल चै शु ल ितपदा से ारं भ होता ह। इस वष ह दू नव वष 4-
अ ैल-2011 से ारं भ होगा जो ह द ू पंचांग के अनुशार नव वष व म संवत 2068 होगा जसे ोिध संव सर के नाम से
जाना जायेगा। इस दन से वसंतकालीन नवरा क शु आत होती ह। व ानो के मतानुशार चै मास के कृ ण प क
समाि के साथ भूलोक के प रवेश म एक वशेष प रवतन गोचर होने लगता ह जसके अनेक तर और व प
होते ह।
इस दौरान ऋतुओं के प रवतन के साथ नवरा का तौहार मनु य के जीवन म बा और आंत रक प रवतन म
एक वशेष संतुलन था पत करने म सहायक होता ह। जस तरह बा जगत म प रवतन होता है उसी कार मनु य
के शर र म भी प रवतन होता है ।
इस िलये नवरा उ सव को आयो जत करने का उ े य होता ह क मनु य के भीतर म उपयु प रवतन कर
उसे बा प रवतन के अनुकूल बनाकर उसे वयं के और कृ ित के बीच म संतुलन बनाये रखना ह।
नवरा के दौरान कए जाने वाली पूजा-अचना, त इ या द से पयावरण क शु होती ह। उसीके साथ-साथ
मनु य के शर र और भावना क भी शु हो जाती ह। यो क त-उपवास शर र को शु करने का पारं प रक तर का ह
जो ाकृ ितक-िच क सा का भी एक मह वपूण त व है । अतः इस दौरान त-उपवास करना अ यािधक लाभ द माना
गया ह।
दे वी भागवत के आठव कंध म दे वी उपासना का व तार से वणन है । दे वी का पूजन-अचन-उपासना-साधना इ या द
के प यात दान दे ने पर लोक और परलोक दोन सुख दे ने वाले होते ह। अतः नवरा ी के दौरान वशेष विध- वधान से दै वी
क पूजा-अचना आ द लाभ द होते ह। ज से मनु य दे वी क कृ पा िनरं टर ाि होती रह।
ह द ू पंचांग के अनुशार चै शु ल नवमी को रामनवमी के प म मनाया जाता ह। इसी दन मयादा पु षो म
ी रामजी का ज म हवा
ु था। रामनाम क म हमा अनोखी व अ ितय ह।
शा कहते ह-
च रतम ् रघुनाथ य शतको टम ् व तरम।्
एकैकम ् अ रम ् पू या महापातक नाशनम।।
्
अथातः सौ करोड़ श द म भगवान राम के गुण गाये गये ह। उसका एक-एक अ र ह या आ द महापाप का नाश करने म
समथ ह।
आप सभी बंध/
ु ब हनो को गु व कायालय क ओर से नव वष व म संवत 2068 क अनेको शुभकामनाएं।
िचंतन जोशी
5 अ ैल 2011
नव संव सर का प रचय
िचंतन जोशी
नव वष चै शु ल ितपदा 4-अ ैल-2011 से शु
होने वाले व म संवत 2068 के राजा चं व मं ी दे व गु
बृ ह पित ह गे। योितषीय गणना के आधार पर नव संव सर
के िलए ह के बीच वभाग का बंटवारा हो चुका ह। 2068 के
नव संव सर का नाम ोधी ह। इस संवत का वामी शिन है
जो ाचार, दराचार
ू , ाकृ ितक आपदा का ोतक है । स ा
प के कारण आम लोग मंद के दौर से गुजर सकते ह।
चं मा राजा है जो धन, धा य और वषा का तीक ह।
गु मं ी है जो जनता और राजा म उ लास पैदा करे गा।
बुध सेनापित ह जो राजकोष को खाली करासकता ह व
त कर और चोर क अिधकता हो सकती ह। स ा प म
अंतकलह रहता है तथा जा मंद के दौर से गुजरती है ।
नव हो म चं व गु दोनो शुभ ह ह। इसिलए
इनके मह वपूण थान पर रहने से सालभर लोग म धम व आ या म के ित आ था बढ़े गी। हो क थती के कारण 2068 वष
बा रश अ छ होगी व फसल भी अ छ हो सकती ह। इस वष राजनीित व समाज सेवा के े म काय करने वाल को तनाव का
सामना करना पड़ सकता ह। िश ा व धम े म काय करने वाले लोग का स मान बढ़े गा।
कृ ष काय से जुडे लोगो को अ यािधक लाभ ा हो सकता ह परं तु कुछ े ो म कटको के कोप और अ य ाकृ ितक
आपदा क मार होने पर भार नु शान संभव ह। अपराध म बढ़ोतर होगी। उ र भारत व प मी े म ाकृ ितक कोप हो सकते
ह। इस वष म हलाओं का भाव बढ़े गा। कृ ष काय, गौ व दध
ू उ पादन म वृ हो सकती ह। धन-धा य क वृ होगी। ोधी
संव सर लोगो म ोध, लोभ, ाचार, ाकृ ितक आपदा का प रचायक है ।
संव सर का िनवास काली के घर मना गया ह जो पैदावार बढ़ाएगा। संव सर का वाहन मृ ग है । ोधी नामक संव सर ोध
और लोभ क भावना जगाएगा। ाचार क थित अिधक बनेगी। महं गाई बढ़े गी।
संव सर का मं मंडल
वामी : शिन मंगल रसेष,
ई- ज म प का E HOROSCOPE
अ याधुिनक योितष प ित ारा Create By Advanced Astrology
उ कृ भ व यवाणी के साथ Excellent Prediction
१००+ पेज म तुत 100+ Pages
हं द / English म मू य मा 750/-
GURUTVA KARYALAY
Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
7 अ ैल 2011
नवरा म नवदगा
ु आराधना का मह व
िचंतन जोशी
नमो दे यै महादे यै िशवायै सततं नम:। इस मं के जप से माँ क शरणागती ा होती ह।
नम: कृ यै भ ायै िनयता: णता: मताम॥् ज से मनु य के ज म-ज म के पाप का नाश होता है ।
अथात: दे वी को नम कार ह, महादे वी को नम कार ह। मां जननी सृ क आ द, अंत और म य ह।
महादे वी िशवा को सवदा नम कार ह। कृ ित एवं भ ा को मेरा
दे वी से ाथना कर –
णाम ह। हम लोग िनयमपूव क दे वी जगद बा को नम कार
शरणागत-द नात-प र ाण-परायणे
करते ह।
सव याितहरे दे व नाराय ण नमोऽ तुत॥
े
उपरो मं से दे वी दगा
ु का मरण कर ाथना करने मा से
अथात: शरण म आए हए
ु द न एवं पी ़डत क र ा म संल न
दे वी स न होकर अपने भ क इ छा पूण करती ह। सम त
रहने वाली तथा सब क पीड़ा दरू करने वाली नारायणी दे वी
दे व गण जनक तुित ाथना करते ह। माँ दगा
ु अपने भ ो
आपको नम कार है ।
क र ा कर उन पर कृ पा ी वषाती ह और उसको उ नती
के िशखर पर जाने का माग स त करती ह। इस िलये रोगानशेषानपहं िस तु ा
ई र म ा व ार रखने वाले सभी मनु य को दे वी क ा तु कामान सकलानभी ान।्
शरण म जाकर दे वी से िनमल दय से ाथना करनी चा हये। वामाि तानां न वप नराणां
वामाि ता हा यतां या त।
दे वी प नाितहरे सीद सीद मातजगतोs खल य।
अथातः दे वी आप स न होने पर सब रोग को न कर दे ती
पसीद व ेत र पा ह व ं वमी र दे वी चराचर य।
हो और कु पत होने पर मनोवांिछत सभी कामनाओं का नाश
अथात: शरणागत क पीड़ा दरू करने वाली दे वी आप हम पर
कर दे ती हो। जो लोग तु हार शरण म जा चुके है । उनको
स न ह । संपूण जगत माता स न ह । व े र दे वी व
वप आती ह नह ं। तु हार शरण म गए हए
ु मनु य दसर
ू
क र ा करो। दे वी आप ह एक मा चराचर जगत क
को शरण दे ने वाले हो जाते ह।
अिध र हो।
सवबाधा शमनं ेलो य या खले र ।
सवमंगल-मांग ये िशवेसवाथसािधके ।
एवमेव वया कायम य दै र वनाशनम।्
शर ये य बके गौ र नाराय ण नमोऽ तुते॥
अथातः हे सव र आप तीन लोक क सम त बाधाओं को
सृ थित वनाशानां श भूते सनातिन।
शांत करो और हमारे सभी श ुओं का नाश करती रहो।
गुणा ये गुणमये नाराय ण नमोऽ तुते॥
अथात: हे दे वी नारायणी आप सब कार का मंगल दान शांितकम ण सव तथा द:ु व दशने।
करने वाली मंगलमयी हो। क याण दाियनी िशवा हो। सब हपीडासु चो ासु महा मयं शणुया मम।
पु षाथ को िस करने वाली शरणा गतव सला तीन ने अथातः सव शांित कम म, बुरे व न दखाई दे ने पर तथा
वाली गौर हो, आपको नम कार ह। आप सृ का पालन और ह जिनत पीड़ा उप थत होने पर माहा य वण करना
संहार करने वाली श भूता सनातनी दे वी, आप गुण का चा हए। इससे सब पीड़ाएँ शांत और दरू हो जाती ह।
आधार तथा सवगुणमयी हो। नारायणी दे वी तु ह नम कार
है । ***
8 अ ैल 2011
चै नवरा त के लाभ
िचंतन जोशी
ह द ु संसकृ ित के अनुशार नववष का शुभारं भ चै मास के शु ल प क थम ितिथ से होता है ।
इस दन से वसंतकालीन नवरा क शु आत होती ह।
व ानो के मतानुशार चै मास के कृ ण प क समाि के साथ भूलोक के प रवेश म एक वशेष प रवतन गोचर
होने लगता ह जसके अनेक तर और व प होते ह।
इस दौरान ऋतुओं के प रवतन के साथ नवरा का तौहार मनु य के जीवन म बा और आंत रक प रवतन म
एक वशेष संतुलन था पत करने म सहायक होता ह। जस तरह बा जगत म प रवतन होता है उसी कार मनु य
के शर र म भी प रवतन होता है । इस िलये नवरा उ सव को आयो जत करने का उ े य होता ह क मनु य के भीतर
म उपयु प रवतन कर उसे बा प रवतन के अनुकूल बनाकर उसे वयं के और कृ ित के बीच म संतुलन बनाये
रखना ह।
नवरा के दौरान कए जाने वाली पूजा-अचना, त इ या द से पयावरण क शु होती ह। उसीके साथ-साथ
मनु य के शर र और भावना क भी शु हो जाती ह। यो क त-उपवास शर र को शु करने का पारं प रक तर का ह
जो ाकृ ितक-िच क सा का भी एक मह वपूण त व है । यह कारण ह क व के ायः सभी मुख धम म त का
मह व ह। इसी िलए ह द ू सं कृ ित म युगो-युगो से नवरा के दौरान त करने का वधान ह। योक त के मा यम
से थम मनु य का शर र शु होता ह, शर र शु होतो मन एवं भावनाएं शु होती ह। शर र क शु के बना मन व
भाव क शु संभव नह ं ह। चै नवरा के दौरान सभी कार के त-उपवास शर र और मन क शु म सहायक
होते ह।
नवरा म कये गये त-उपवास का सीधा असर हमारे अ छे वा य और रोगमु के िलये भी सहायक होता
ह। बड़ धूम-धाम से कया गया नवरा का आयोजन हम सुखानुभूित एवं आनंदानुभूित दान करता ह।
मनु य के िलए आनंद क अव था सबसे अ छ अव था ह। जब य आनंद क अव था म होता ह तो उसके
शर र म तनाव उ प न करने वाले सू म कोष समा हो जाते ह और जो सू म कोष उ स जत होते ह वे हमारे शर र
के िलए अ यंत लाभदायक होते ह। जो हम नई यािधय से बचाने के साथ ह रोग होने क दशा म शी रोगमु
दान करने म भी सहायक होते ह।
नवरा म दगास
ु शती को पढने या सुनने से दे वी अ य त स न होती ह एसा शा ो वचन ह। स शती का पाठ
उसक मूल भाषा सं कृ त म करने पर ह पूण भावी होता ह।
य को ीदगास
ु शती को भगवती दगा
ु का ह व प समझना चा हए। पाठ करने से पूव ीदगास
ु शती क पु तक
का इस मं से पंचोपचारपूजन कर-
जो य दगास
ु शतीके मूल सं कृ त म पाठ करने म असमथ ह तो उस य को स ोक दगा
ु को पढने से लाभ ा
होता ह। यो क सात ोक वाले इस तो म ीदगास
ु शती का सार समाया हवा
ु ह।
9 अ ैल 2011
जो य स ोक दगा
ु का भी न कर सके वह केवल नवाण मं का अिधकािधक जप कर।
दगा
ु मा िशवा धा ी वाहा वधानमोऽ तुते॥
दे वी से ाथना कर-
वधे हदे व क याणं वधे हपरमांि यम।् पंदे हजयंदे हयशोदे ह षोज ह॥
अथातः हे दे व! आप मेरा क याण करो। मुझे े स प दान करो। मुझे प दो, जय दो, यश दो और मेरे काम- ोध इ या द
श ुओं का नाश करो।
व ानो के अनुशार स पूण नवरा त के पालन म जो लोग असमथ हो वह नवरा के सात रा ी,पांच रा ी, द रा ी और
एक रा ी का त भी करके लाभ ा कर सकते ह। नवरा म नवदगा
ु क उपासना करने से नव ह का कोप शांत होता ह।
मं िस मंगल गणेश
मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन के
िलए अ यंत लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि हे तु वशेष लाभदायी ह।
मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह।
यो क लाल रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह। लाल मूंगा शार रक और मानिसक श य का
वकास करने हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को िनयं त करने हे तु भी मूंगा गणेश क
पूजा लाभ द ह। एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत करने से भगवान गणेश क कृ पा
श चोर , लूट, आग, अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह, ज से घर म या दकान
ु म उ नती एवं
सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत कया जासकता ह। ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से
भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन
श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं
ु , हमला, चोर, तूफान, आग,
बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म मंगल ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव से मु िमलती ह।जो य
उपरो लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह। मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने
से यह अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से सुख सौभा य क ाि होकर जीवन के सारे संकटो का वतः िनवारण
होता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
Visit Us:- http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/ , http://www.gurutvajyotish.blogspot.com/
10 अ ैल 2011
नवरा त
व तक.ऎन.जोशी
नवरा त
त के शु आत म भूख काफ लगती ह। ऐसे म नींबू पानी पया जा सकता है । इससे भूख को िनयं त रखने म मदद
िमलेगी।
जहा तक संभव हो िनजला उपवास न रख। इससे शर र म पानी क कमी हो जाती ह और अपिश पदाथ शर र के बाहर
नह ं आ पाते। इससे पेट म जलन, क ज, सं मण, पेशाब म जलन जैसी कई सम याएं पैदा हो सकती ह।
एक साथ खूब सारा पानी पीने के बजाए दन म कई बार नींबू पानी पएं।
यादातर लोगो को उपवास म अ सर क ज क िशकायत हो जाती ह। इसिलए त शु करने के पहले फला, आंवला,
पालक का सूप या करे ले के रस इ या द पदाथ का सेवन कर। इससे पेट साफ रहता है ।
सुबह के समय आलू को ाई करके खाया जा सकता ह। आलू म काब हाइ े ट चुर मा ा म होता है । इस िलए आलू
खाने से शर र को ताकत िमलती है ।
सुबह एक िगलास दध
ू पल। दोपहर के समय फल या जूस ल। शाम को चाय पी सकते ह।
कई लोग त म एक बार ह भोजन करते ह। ऐसे म एक िन त अंतराल पर फल खा सकते ह। रात के खाने म िसंघाड़े
के आटे से बने पकवान खा सकते ह।
11 अ ैल 2011
गु स शती
व तक.ऎन.जोशी, आलोक शमा
संपूण ी दगा
ु स शती के मं ो का पाठ करने से नम ते शु भहं ेित, िनशु भासुर-घाितिन।
साधक को जो फल ा होता है , वैसा ह क याणकार जा तं ह महा-दे व जप-िस ं कु व मे॥
फल दान करने वाला गु स शती के मं ो का पाठ ह। ऐं-कार सृ पायै ंकार ित-पािलका॥
गु स शती म अिधकतर मं बीज के होने से लीं-कार काम प यै बीज पा नमोऽ तु ते।
यह साधक के िलए अमोघ फल दान करने म समथ चामु डा च ड-घाती च य-कार वर-दाियनी॥
ह। व चे नोऽभयदा िन यं नम ते मं प ण॥
गु स शती के पाठ का म इस कार ह। धां धीं धूं धूज टे प ी वां वीं वागे र तथा।
ार भ म कु जका तो उसके बाद गु ां ं ीं मे शुभं कु , ऐं ॐ ऐं र सवदा।।
स शती उसके प यात तवन का पाठ करे । ॐ ॐ ॐ-कार- पायै, ां- ां भाल-ना दनी।
ां ं ूं कािलका दे व, शां शीं शूं मे शुभं कु ॥
कु जका- तो
ूं ूं ूं -कार प यै ं ं भाल-ना दनी।
पूव-पी ठका-ई र उवाच:
ां ीं ूं भैरवी भ े भवािन ते नमो नमः॥7॥
ृ णु दे व, व यािम कु जका-म मु मम।्
म :
येन म भावेन च ड जापं शुभम ् भवेत॥् १॥
अं कं चं टं तं पं यं शं ब दरा
ु वभव, आ वभव, हं सं लं ं
न वम नागला- तो ं क लकं न रह यकम।्
मिय जा य-जा य, ोटय- ोटय द ं कु कु वाहा॥
न सू म ् ना प यानम ् च न यासम ् च न चाचनम॥्२॥
पां पीं पूं पावती पूणा, खां खीं खूं खेचर तथा॥
कु जका-पाठ-मा ेण दगा
ु -पाठ-फलं लभेत।्
लां लीं लूं द यती पूणा, कु जकायै नमो नमः॥
अित गु तमम ् दे व दे वानाम प दलभम॥
ु ् ३॥
सां सीं स शती-िस ं , कु व जप-मा तः॥
गोपनीयम ् य ेन व-योिन-व च पावित।
इदं तु कु जका- तो ं मं -जाल- हां ये।
मारणम ् मोहनम ् व यम ् त भनो चाटना दकम।्
अभ े च न दात यं, गोपयेत ् सवदा ृ णु॥
पाठ-मा ेण संिस ः कु जकाम मु मम॥्४॥
कुं जका- व हतं दे व य तु स शतीं पठे त।्
अथ म
न त य जायते िस ं , अर ये दनं यथा॥
ॐ दँ ु लीं ल जुं सः वलयो वल वल वल-
॥इित ी यामले गौर तं े िशवपावतीसंवादे कुं जका तो ं
वल बल- बल हं सं लं ं फ वाहा
संपूण म॥्
इित म
इस कु जका म का दस बार जप करना चा हए। इसी गु -स शती
कार तव-पाठ के अ त म पुनः इस म का दस बार ॐ ु ै हा गणेश य माता।
ीं- ीं- ीं वेणु-ह ते, तुत-सुर-बटक
जप कर कु जका तो का पाठ करना चा हए।
वान दे न द- पे, अनहत-िनरते, मु दे मु -माग॥
कु जका तो मूल-पाठ
हं सः सोहं वशाले, वलय-गित-हसे, िस -दे वी सम ता।
नम ते - पायै, नम ते मधु-म दिन।
ह -ं ह -ं ह ं िस -लोके, कच- िच- वपुल,े वीर-भ े नम ते॥१॥
नम ते कैटभार च, नम ते म हषासिन॥
12 अ ैल 2011
ॐ ह ंकारो चारय ती, मम हरित भयं, च ड-मु डौ च डे । ाणी वै णवी वं, वमिस बहचरा
ु , वं वराह- व पा।
खां-खां-खां ख ग-पाणे, क- क कते, उ - पे व पे॥ वं ऐ वं कुबेर , वमिस च जननी, वं कुमार महे ॥
हँु -हँु हँु कांर-नादे , गगन-भु व-तले, या पनी योम- पे। ऐं ं लींकार-भूत,े वतल-तल-तले, भू-तले वग-माग।
हं -हं हं कार-नादे , सुर-गण-निमते, च ड- पे नम ते॥२॥ पाताले शैल- ृ ं गे, ह र-हर-भुवने, िस -च ड नम ते॥९॥
ऐं लोके क तय ती, मम हरतु भयं, रा सान ् ह यमाने। हं लं ं शौ ड- पे, शिमत भव-भये, सव- व ना त- व ने।
ां- ां- ां घोर- पे, घघ-घघ-घ टते, घघरे घोर-रावे॥ गां गीं गूं ग षडं ग,े गगन-गित-गते, िस दे िस -सा ये॥
िनमासे काक-जंघ,े घिसत-नख-नखा, धू -ने े -ने े। वं ं मु ा हमांशो हसित-वदने, य रे स िननादे ।
ह ता जे शूल-मु डे , कुल-कुल ककुले, िस -ह ते नम ते॥३॥ हां हंू गां गीं गणेशी, गज-मुख-जननी, वां महे शीं नमािम॥१०॥
-ं थाने काम-राजे, वल- वल विलते, कोिशिन कोश-प े। ां ं ूं ोध-मूित वकृ त- तन-मुख,े रौ -दं ा-कराले॥
कं कं कंकाल-धार मि , जग ददं भ य ती स ती-
व छ दे क -नाशे, सुर-वर-वपुषे, गु -मु डे नम ते॥५॥
हंु कारो चारय ती दहतु द ु रतं, मु ड-च डे च डे ॥२॥
ॐ ां- ीं- ूं घोर-तु डे , घघ-घघ घघघे घघरा या -घोषे।
ॐ ां ं हंू - पे, भुवन-निमते, पाश-ह ते -ने े।
ं ं ंू ो च-च े , रर-रर-रिमते, सव- ाने धाने॥
रां र ं ं रं गे कले किलत रवा, शूल-ह ते च डे ॥
ं तीथषु च ये े, जुग-जुग जजुगे लीं पदे काल-मु डे ।
लां लीं लूं ल ब- ज े हसित, कह-कहा शु -घोरा ट-हासैः।
सवागे र -धारा-मथन-कर-वरे , व -द डे नम ते॥६॥
कंकाली काल-रा ः दहतु द ु रतं, मु ड-च डे च डे ॥३॥
ॐ हँु हँु हंु कार-नादे , वषमवश-करे , य -वैताल-नाथे। ॐ ां ीं ूं भ -काली, ह र-हर-निमते, -मूत वकण।
ॐ हँु हँु फ काल-रा ीं पुर-सुर-मथनीं धू -मार कुमार । र वं मु ड-धार िग र-गुह- ववरे िनझरे पवते वा।
ां ं ूं ह त द ु ान ् किलत कल- कला श द अ टा टहासे॥ सं ामे श -ु म ये वश वषम- वषे संकटे कु सते वा॥
हा-हा भूत- भूत,े कल- किलत-मुखा, क लय ती स ती। या े चौरे च सपऽ युदिध-भु व-तले व -म ये च दग।
ु
हंु कारो चारय ती दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥७॥ र त
े ् सा द य-मूितः दहतु द ु रतं मु ड-च डे च डे ॥११॥
ॐ ं ीं ं कपालीं प रजन-स हता च ड चामु डा-िन ये। इ येवं बीज-म ैः तवनमित-िशवं पातक- यािध-नाशनम।्
रं -रं रं कार-श दे शिश-कर-धवले काल-कूटे दरु ते॥ य ं द य- पं ह-गण-मथनं मदनं शा कनीनाम॥्
हँु हँु हंु कार-का र सुर-गण-निमते, काल-कार वकार । इ येवं वेद-वे ं सकल-भय-हरं म -श िन यम।्
यैलो यं व य-कार , दहतु द ु रतं च ड-मु डे च डे ॥८॥ मं ाणां तो कं यः पठित स लभते ािथतां म -िस म॥्१२॥
मं िस फ टक ी यं
" ी यं " सबसे मह वपूण एवं श शाली यं है । " ी यं " को यं राज कहा जाता है यो क यह अ य त शुभ फ़लदयी यं
है । जो न केवल दसरे
ू य ो से अिधक से अिधक लाभ दे ने मे समथ है एवं संसार के हर य के िलए फायदे मंद सा बत होता
है । पूण ाण- ित त एवं पूण चैत य यु " ी यं " जस य के घर मे होता है उसके िलये " ी यं " अ य त फ़लदायी
िस होता है उसके दशन मा से अन-िगनत लाभ एवं सुख क ाि होित है । " ी यं " मे समाई अ ितय एवं अ यश
मनु य क सम त शुभ इ छाओं को पूरा करने मे समथ होित है । ज से उसका जीवन से हताशा और िनराशा दरू होकर वह
मनु य असफ़लता से सफ़लता क और िनर तर गित करने लगता है एवं उसे जीवन मे सम त भौितक सुखो क ाि होित
है । " ी यं " मनु य जीवन म उ प न होने वाली सम या-बाधा एवं नकारा मक उजा को दरू कर सकार मक उजा का
िनमाण करने मे समथ है । " ी यं " क थापन से घर या यापार के थान पर था पत करने से वा तु दोष य वा तु से
स ब धत परे शािन मे युनता आित है व सुख-समृ , शांित एवं ऐ य क ि होती है । गु व कायालय मे " ी यं " 12
ाम से 75 ाम तक क साइज मे उ ल ध है मू य:- ित ाम Rs. 8.20 से Rs.28.00
GURUTVA KARYALAY
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
14 अ ैल 2011
दे वी आराधना से सुख ाि
व तक.ऎन.जोशी
शाद संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क आपक शाद म अनाव यक प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी थती होने पर अपने लडके-लडक क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार
ा कर।
15 अ ैल 2011
स त लोक दगा
ु दगा
ु आरती
दे व वं भ सुलभे सवकाय वधाियनी।
कलौ ह कायिस यथमुपायं ू ह य तः॥ जय अ बे गौर मैया जय यामा गौर ।
तुमको िनस दन यावत ह र हा िशवर ॥१॥
दे व उवाच:
ृ णु दे व व यािम कलौ सव साधनम्। मांग िसंदरू वराजत ट को मृ गमदको।
मया तवैव नेहेना य बा तुितः का यते॥ उ जवल से दोऊ नैना च वदन नीको॥२॥
ॐ अ य ी दगास
ु ोक तो म य र पु प गल माला क ठन पर साजे॥३॥
नारायण ऋ षः अनु पछ
् दः,
केह र वाहन राजत ख ग ख पर धार ।
ीम काली महाल मी महासर व यो दे वताः, सुर नर मुिन जन सेवत ितनके दःख
ु हार ॥४॥
ीदगा
ु ी यथ स ोक दगापाठे
ु विनयोगः।
कानन कुंडल शोिभत नासा े मोती।
ॐ ािननाम प चेतांिस दे वी भगवती हसा। को टक चं दवाकर राजत सम योित॥५॥
बलादाकृ य मोहाय महामाया य छित॥ शुंभ िनशंभु वदारे म हषासुरधाती।
दग
ु मृता हरिस भीितमशेषज तोः धू वलोचन नैना िनश दन मदमाती॥६॥
॥ इित ीस ोक दगा
ु संपूण म ् ॥ कहत िशवानंद वामी सुख संप पाये॥१३॥
16 अ ैल 2011
नवरा तकथा
व तक.ऎन.जोशी
दे व श य से िघरे हए
ु भगवान शंकर ने दे वी से कहा हए
ु महाअसुर को तुम अपने इस मुख से भ ण करती
मेर स नता के िलए तुम शी ह इन असुर को मारो। हई
ु रणभूिम म वचरो। इस कार उस दै य का र ीण
इसके प यात ् दे वी के शर र से अ यंत उ प हो जाएगा और वह वयं न हो जाएगा। इस कार
वाली और सकड़ गीद डय के समान आवाज करने वाली अ य दै य उ प न नह ं ह गे।
च डका श कट हई।
ु उस अपरा जता दे वी ने भगवान काली के इस कार कहकर च डका दे वी ने
शंकर को अपना दत
ू बनाकर शु भ, िनशु भ के पास इस र बीज पर अपने शुल से हार कया और काली दे वी
संदेश के साथ भेजा जो तु हे अपने जी वत रहने क ने अपने मुख म उसका र ले िलया। च डका ने उस
इ छा हो तो लोक का रा य इ को दे दो, दे वताओं दै य को ब , बाण, ख म इ या द से मार डाला। महादै य
को उनका य भाग िमलना आरं भ हो जाए और तुम र बीज के मरते ह दे वता अ यंत स न हए
ु और
पाताल को लौट जाओ, क तु य द बल के गव से तु हार माताएं उन असुर का र पीने के प यात उ त होकर
लड़ने क इ छा हो तो फर आ जाओ, तु हारे माँस से नृ य करने लगीं। र बीज के मारे जाने पर शु भ व
मेर योिनयाँ तृ ह गी।" िनशु भ को बड़ा ोध आया और अपनी बहत
ु बड़ सेना
चूं क उस दे वी ने भगवान शंकर को दत
ू के काय लेकर महाश से यु करने चल दए। महापरा मी
म िनयु कया था, इसिलए वह संसार म िशवदती
ू के शु भ भी अपनी सेना स हत मातृ गण से यु करने के
नाम से व यात हई।
ु मगर दै य भला कहां मानने वाले िलए आ पहँु चा। क तु शी ह सभी दै य मारे गए और
थे। वे तो अपनी श के मद म चूर थे। उ होने दे वी क दे वी ने शु भ िनशु भ का संहार कर दया। सारे संसार म
बात अनसुनी कर द और यु को त पर हो उठे । दे खते शांित छा गई और दे वता गण ह षत होकर दे वी क
ह दे खते पुन: यु िछड़ गया। कंतु दे वी के सम असुर वंदना करने लगे।
कब तक ठहर सकते थे। कुछ ह दे र म दे वी ने उनके इन सब उपा यान को सुनकर मेधा ऋ ष ने
अ ,श को काट डाला। जब बहत
ु से दै य काल के राजा सुरध तथा व णक समािघ से दे वी तुवन क
मुख म समा गए तो महादै य र बीज यु के िलए आगे विघवत या या क , जसके भाव से दोन नद तट पर
बढ़ा। उसके शर र से र क बूंदे पृ वी पर जैसे ह िगरती जाकर तप या म लीन हो गए। तीन वष बाद दगा
ु माता
थीं। तुरंत वैसे ह शर र वाला दै य पृ वी पर उ प न हो ने कट होकर दोन को आशीवाद दया। इस कार
जाता था। यह दे खकर दे वताओं को भय हआ
ु , दे वताओं को व णक तो संसा रक मोह से मु होकर आ मिचंतन म
भयभीत दे खकर चं डका ने काली से कहा "हे चामु डे " लग गया तथा राजा ने श ुओं को परा जत कर अपना
तुम अपने मुख को फैलाओ और मेरे श ाघात से खोया हआ
ु राज वैभव पुन: ा कर िलया।
उ प न हए
ु र ब दओं
ु तथा र ब दओं
ु से उ प न
वा तु दोष िनवारक यं
भवन छोटा होया बडा य द भवन म कसी कारण से िनमाण म वा तु दोष लगरहा हो, तो शा म उसके िनवारण हे तु
वा तु दे वता को स न एवं स तु करने के िलए अनेक उपाय का उ लेख िमलता ह। उ ह ं उपायो म से एक ह वा तु यं
क थापना जसे घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म था पत करने से संबंिधत सम त परे शानीओं का शमन होकर
वा तु दोष का िनवारण होजाता ह एवं भवन म सुख समृ का आगमन होता ह।
मू य मा Rs : 550
19 अ ैल 2011
सव काय िस कवच
जस य को लाख य और प र म करने के बादभी उसे मनोवांिछत सफलताये एवं कये गये काय
म िस (लाभ) ा नह ं होती, उस य को सव काय िस कवच अव य धारण करना चा हये।
कवच के मुख लाभ: सव काय िस कवच के ारा सुख समृ और नव ह के नकारा मक भाव को
शांत कर धारण करता य के जीवन से सव कार के द:ु ख-दा र का नाश हो कर सुख-सौभा य एवं
उ नित ाि होकर जीवन मे सिभ कार के शुभ काय िस होते ह। जसे धारण करने से य यद
यवसाय करता होतो कारोबार मे वृ होित ह और य द नौकर करता होतो उसमे उ नित होती ह।
सव काय िस कवच के साथ म सवजन वशीकरण कवच के िमले होने क वजह से धारण करता
क बात का दसरे
ू य ओ पर भाव बना रहता ह।
सव काय िस कवच के साथ म तं र ा कवच के िमले होने क वजह से तां क बाधाए दरू
होती ह, साथ ह नकार मन श यो का कोइ कु भाव धारण कता य पर नह ं होता। इस
कवच के भाव से इषा- े ष रखने वाले य ओ ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
ामीणः हाँ, महाराज ! नवलशा सेठ का बेटा रोना शु कर दया। मशान या ा क तैया रयाँ होने लगीं।
सांकलचंद एक वष से रोग त ह। बहत
ु उपचार कये पर मौका पाकर महा माजी वहाँ से चल दये।
उसका रोग ठ क नह ं होता। नद तट पर आकर नान करके नाम मरण करते हए
ु
महा माः या वे जैन धम पालते ह? वहाँ से रवाना हए।
ु शाम ढल चुक थी। फर वे म यरा के
ामीणः उनके पूव ज जैन थे कंतु भा टया के साथ यापार समय जंगल म उसी वटवृ के पास पहँु चे। ेत समाज
करते हए
ु अब वे वै णव हए
ु ह। उप थत था। ेतराज िसंहासन पर हताश होकर बैठे थे। आज
महा मा नवलशा सेठ के घर पहंु चे सांकलचंद क गीत, नृ य, हा य कुछ न था। चार ओर क ण आ ं द हो रहा
हालत गंभीर थी। अ तम घ ड़याँ थीं फर भी महा मा को था, सब ेत रो रहे थे। हा य कुछ न था। चार ओर क ण
दे खकर माता- पता को आशा क करण दखी। उ ह ने आ ं द हो रहा था, सब ेत रो रहे थे।
महा मा का वागत कया। सेठपु के पलंग के िनकट आकर महा मा ने पूछाः ेतराज ! कल तो यहाँ आनंदो सव
महा मा रामनाम क माला जपने लगे। दोपहर होते-होते लोग था, आज शोक-समु लहरा रहा ह। या कुछ अ हत हआ
ु ह?
का आना-जाना बढ़ने लगा। महा मा ने पूछाः य , सांकलचंद ेतराजः हाँ भाई ! इसीिलए रो रहे ह। हमारा स यानाश
! अब तो ठ क हो? हो गया। मेर बेट क आज शाद होने वाली थी। अब वह
सांकलचंद ने आँख खोलते ह अपने सामने एक कुँआर रह जायेगी
तापी संत को दे खा तो रो पड़ा। बोलाः बापजी ! आप मेरा अंत महा मा ने पूछाः ेतराज ! तु हारा जमाई तो आज मर
सुधारने के िलए पधारे हो। मने बहुत पाप कये ह। भगवान के गया ह। फर तु हार बेट कुँआर य रह ?
दरबार म या मुँह दखाऊँगा? फर भी आप जैसे संत के दशन ेतराज ने िचढ़कर कहाः तेरे पाप से। म ह मूख हँू क
हए
ु ह, यह मेरे िलए शुभ संकेत ह। इतना बोलते ह उसक मने कल तुझे सब बता दया। तूने हमारा स यानाश कर दया।
साँस फूलने लगी, वह खाँसने लगा। महा मा ने न भाव से कहाः मने आपका अ हत कया
बेटा ! िनराश न हो भगवान राम पितत पावन है । तेर यह मुझे समझ म नह ं आता। मा करना, मुझे मेर भूल
यह अ तम घड़ ह। अब काल से डरने का कोई कारण नह ं। बताओगे तो म दबारा
ु नह ं क ँ गा।
खूब शांित से िच वृ के तमाम वेग को रोककर ीराम नाम ेतराज ने जलते दय से कहाः यहाँ से जाकर तूने
के जप म मन को लगा दे । अजपाजाप म लग जा। मरने वाले को नाम मरण का माग बताया और अंत समय भी
राम नाम कहलवाया। इससे उसका उ ार हो गया और मेर
शा कहते ह-
बेट कुँआर रह गयी।
च रतम ् रघुनाथ य शतको टम ् व तरम।्
महा माजीः या? िसफ एक बार नाम जप लेने से वह
एकैकम ् अ रम ् पू या महापातक नाशनम।।
्
ेतयोिन से छूट गया? आप सच कहते हो?
अथातः सौ करोड़ श द म भगवान राम के गुण गाये गये ह।
ेतराजः हाँ भाई ! जो मनु य राम नामजप करता ह
उसका एक-एक अ र ह या आ द महापाप का नाश करने
वह राम नामजप के ताप से कभी हमार योिन को ा नह ं
म समथ ह।
होता। भगव नाम जप म नरको ा रणी श ह। ेत के ारा
दन ढलते ह सांकलचंद क बीमार बढ़ने लगी। वै -
रामनाम का यह ताप सुनकर महा माजी ेमा ु बहाते हए
ु
हक म बुलाये गये। ह रा भ म आ द क मती औषिधयाँ द
भाव समािध म लीन हो गये। उनक आँखे खुलीं तब वहाँ ेत-
गयीं। कंतु अंितम समय आ गया यह जानकर महा माजी ने
समाज नह ं था, बाल सूय क सुनहर करण वटवृ को
थोड़ा नीचे झुककर उसके कान म रामनाम लेने क याद
शोभायमान कर रह थीं।
दलायी। राम बोलते ह उसके ाण पखे उड़ गये। लोग ने
22 अ ैल 2011
मुझे समु के उस पार जाना ह परं तु मेर पास समु अथात ्: ने ह परमाथ के िलए राम प धारण कया था।
पार करने का कोई साधन नह ं ह। अब या क ँ मुझे इस रामनाम क औषिध खर िनयत से खाय।
बात क िचंता ह। अरे भाई, इसम इतने अिधक उदास य
अंगरोग यापे नह ं महारोग िमट जाय।।
होते हो?
23 अ ैल 2011
मं जप या ह?
िचंतन जोशी
राम च रत मानस के अनुशार:
किलयुग केवल नाम आधारा, जपत नर उतरे िसंधु पारा।
इस कलयुग म भगवान का नाम ह एक मा आधार ह। जो लोग भगवान के नाम का जप करते ह, वे इस संसार सागर से तर
जाते ह।
जप अथात या ह?
ज+प= जप
ज = ज म का नाश,
प = पाप का नाश।
मं का अथ ह है ः
ादश महा यं
ादशमहा यं को अित ािचन एवं दलभ
ु यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह। जो सभी
कार से भा य वृ -उ नित एवं सुख समृ क ाि हे तु सव े यं ह। ादशमहा यं को शा ो विध- वधान
से मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते ह। जसे थापीत कर य बना कसी पूजा अचना-
मं िस दलभ
ु साम ी
ह था जोड - Rs- 370 घोडे क नाल- Rs.351 माया जाल- Rs- 251
िसयार िसंगी- Rs- 370 द णावत शंख- Rs- 550 इ जाल- Rs- 251
ब ली नाल- Rs- 370 मोित शंख- Rs- 550 धन वृ हक क सेट Rs-251
25 अ ैल 2011
राम र ा यं
राम र ा यं सभी भय, बाधाओं से मु व काय म सफलता ाि हे तु उ म यं ह। जसके योग
से धन लाभ होता ह व य का सवागी वकार होकर उसे सुख-समृ , मानस मान क ाि होती
थापीत करना चा हये जससे आने वाले संकटो से र ा हो उनका जीवन सुखमय यतीत हो सके
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
26 अ ैल 2011
ध य तो यह ल मण है ?
राकेश पंडा
रामजी, सीताजी और ल मणजी जंगल म एक वृ के नीचे बैठे थे। उस वृ और डाली पर एक लता छाई हई
ु थी। लता के नयी
कोमल-कोमल क पल िनकल रह थी और कह ं-कह ं पर ता वण के प े िनकल रहे थे। पु प और प से लता छाई हुई थी
ज से वृ क सु दर शोभा बढा रहे थे। वृ बहत
ु ह सुहावना लग रहा था। उस वृ क शोभा को दे खकर भगवान ीरामजी ने
ल मण जी से कहा, दे खो ल मण ! यह लता अपने सु दर-सु दर फल, सुग धत फूल और हर -हर प य से इस वृ क कैसी
शोभा बढा रह है ! जंगल के अ य सब वृ से यह वृ कतना सु दर दख रहा है ! इतना ह नह ,ं इस वृ के कारण ह सारे जंगल
क शोभा हो रह है । इस लता के कारण ह पशु-प ी इस वृ का आ य लेते ह। ध य है यह लता !
दे खो ल मण भैया ! तुमने याल कया क नह ं ? दे खो, इस लता का ऊपर चढ़ जाना, फूल प से छा जाना, त तुओं का फैल
जाना, ये सब वृ के आि त ह, वृ के कारण ह ह। इस लता क शोभा भी वृ के ह कारण है । अतः मूल म म हमा तो वृ क ह
है । आधार तो वृ ह है । वृ के सहारे बना लता वयं या कर सकती है ? कैसे छा सकती है ? अब बोलो ल मण भैया ! तु ह ं
बताओ, म हमा वृ क ह हई
ु न ? वृ का सहारा पाकर ह लता ध य हई
ु न?
सीता जी ने पूछाः वह या है दे वर जी ?
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
27 अ ैल 2011
िचंतन जोशी
संत कबीर कसी पहचे
ु हएु गु से मं द ा ा वामी रामानंद के नाम का क तन करता ह। उस यवन को
करना चाहते थे। उस समय काशी म रामानंद वामी बड़े राम नाम क द ा कसने द ? य द ? उसने मं को कर
उ च को ट के महापु ष माने जाते थे। कबीर जी ने उनके दया !
आ म के मु य ार पर आकर ारपाल से वनती क ः मुझे पं डत ने कबीर जी से पूछाः तुमको रामनाम क द ा
गु जी के दशन करा दो। उस समय जात-पाँत का बड़ा कसने द ? कबीरजी बोले, वामी रामानंदजी महाराज के
बोलबाला था। और फर काशी जैसी पावन नगर म पं डत ीमुख से िमली। पं डत ने फर पूछाः कहाँ द द ा?,
और पंडे लोग का अिधक भाव था। कबीरजी कसके घर पैदा कबीरजी बोले, गंगा के घाट पर।
हए
ु थे – हं द ू के या मुसिलम के? कुछ पता नह ं था। कबीर जी
पं डत पहँु चे रामानंदजी के पासः आपने यवन को
एक जुलाहे को तालाब के कनारे िमले थे। उसने कबीर जी का
राममं क द ा दे कर मं को कर दया, स दाय को
पालन-पोषण करके उ ह बड़ा कया था। जुलाहे के घर बड़े हए
ु
कर दया। गु महाराज ! यह आपने या कया? गु महाराज
तो जुलाहे का धंधा करने लगे। लोग मानते थे क कबीर जी
ने कहाः मने तो कसी को द ा नह ं द ।
मुसलमान क संतान ह।
वह यवन जुलाहा तो रामानंद..... रामानंद..... मेरे
ारपाल ने कबीरजी को आ म म नह ं जाने दया।
गु दे व रामानंद...क रट लगाकर नाचता ह, आपका नाम
कबीर जी ने सोचा क अगर पहँु चे हए
ु महा मा से गु मं नह ं
बदनाम करता ह। रामानंदजी बोले भाई ! मने तो उसको कुछ
िमला तो मनमानी साधना से ह र के दास बन सकते ह पर
नह ं कहा। उसको बुला कर पूछा जाय। पता चल जायगा।
ह रमय नह ं बन सकते। कैसे भी करके मुझे रामानंद जी
महाराज से ह मं द ा लेनी है । काशी के पं डत इक ठे हो गये। जुलाहा स चा क
रामानंदजी स चे यह दे खने के िलए भीड़ इ कठ हो गयी।
कबीरजी ने दे खा क वामी रामानंदजी हररोज सुबह
कबीर जी को बुलाया गया। गु महाराज मंच पर वराजमान
3-4 बजे खड़ाऊँ पहन कर टप...टप आवाज करते हए ु गंगा म
ह। सामने व ान पं डत क सभा ह।
नान करने जाते ह। कबीर जी ने गंगा के घाट पर उनके जाने
के रा ते म सब जगह बाड़ कर द और आने-जाने का एक ह रामानंदजी ने कबीर से पूछाः मने तु ह कब द ा द ?
माग रखा। उस माग म सुबह के अँधेरे म कबीर जी सो गये। म कब तेरा गु बना? कबीरजी बोलेः महाराज ! उस दन भात
गु महाराज आये तो अँधेरे के कारण वामी रामानंदजी का को आपने मुझे पादका ु - पश कराया और राममं भी दया,
कबीरजी पर पैर पड़ गया। उनके मुख से वतः उदगार िनकल वहाँ गंगा के घाट पर।
पड़े ः राम..... राम...! रामानंद वामी ने कबीरजी के िसर पर धीरे से खड़ाऊँ
कबीरजी का तो काम बन गया। गु जी के दशन भी हो मारते हए
ु कहाः राम... राम.. राम.... मुझे झूठा बनाता है ? गंगा
गये, उनक पादकाओं
ु का पश तथा गु मुख से राम मं भी के घाट पर मने तुझे कब द ा द थी ?
िमल गया। गु द ा के बाद अब द ा म बाक ह या रहा? कबीरजी बोल उठे ः गु महाराज ! तब क द ा झूठ
कबीर जी नाचते, गुनगुनाते घर वापस आये। राम नाम क और तो अब क तो स ची....! मुख से राम नाम का मं भी िमल
गु दे व के नाम क रट लगा द । अ यंत नेहपूण दय से गया और िसर पर आपक पावन पादकाु का पश भी हो गया।
गु मं का जप करते, गु नाम का क तन करते हए
ु साधना वामी रामानंदजी उ च को ट के संत महा मा थे। उ ह ने
करने लगे। दन दन कबीर जी म ती बढ़ने लगी। काशी के पं डत से कहाः चलो, यवन हो या कुछ भी हो, मेरा पहले नंबर
पं डत ने दे खा क यवन का पु कबीर राम नाम जपता ह, का िश य यह है ।
28 अ ैल 2011
िचंतन जोशी
एक संग के अनुशार
जब वभीषण भगवान ीराम के चरण क शरण म हो जाता है , तब भगवान ीराम वभीषण के दोष को अपने ह दोष
मानते ह। एक समय वभीषण समु लांघ कर समु के दसरे
ू छोर पर आये। वहाँ व घोष नामक गाँव म उनसे अ ात ह
एक ह या हो गई। जब बाक के गाँव वालो को इस बात का पता लगा तो वहाँ के सभी ा ण ने इक ठे होकर
वभीषण को खूब मारा-पीटा, पर वभीषण मरे नह ं। फर ा ण ने वभीषण को जंजीर से बाँधकर जमीन के भीतर एक गुफा म
ले जाकर बंध कर दया।
जब भगवान ीराम को पता लगा क तो ीराम जी पु पक वमान के ारा त काल, गाँव म पहँु चे। ा ण ने राम जी
का बहत
ु आदर-स कार कया और कहा क, महाराज ! इसने ह या कर द है । इसको हमने बहत
ु मारा, पर यह मरा नह ं।
भगवान राम ने कहाः हे ा ण ! वभीषण को मने क प तक क आयु और रा य दे रखा ह, वह कैसे मारा जा सकता है ! और
उसको मारने क ज रत ह या ह? वह तो मेरा भ ह।
मेर भ के िलए म वयं मरने को तैयार हँू । हमारे यहाँ वधान है क दास के अपराध क ज मेवार उसके वामी पर होती
ह। वामी ह उसके द ड का पा होता ह। इसिलए वभीषण के बदले आप लोग मेर को ह द ड द। भगवान क यह शरणागत
व सलता दे खकर सब ा ण आ य करने लगे और उन सब ने उसी ण भगवान ीराम क शरण ले ली।
मं िस यं
गु व कायालय ारा विभ न कार के यं कोपर ता प , िसलवर (चांद ) ओर गो ड (सोने) मे
विभ न कार क सम या के अनुसार बनवा के मं िस पूण ाण ित त एवं चैत य यु कये जाते
है . जसे साधारण (जो पूजा-पाठ नह जानते या नह कसकते) य बना कसी पूजा अचना- विध
वधान वशेष लाभ ा कर सकते है . जस मे िचन यं ो स हत हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाए
गये यं भी समा हत है . इसके अलवा आपक आव यकता अनुशार यं बनवाए जाते है . गु व कायालय
ारा उपल ध कराये गये सभी यं अखं डत एवं २२ गेज शु कोपर(ता प )- 99.99 टच शु िसलवर
(चांद ) एवं 22 केरे ट गो ड (सोने) मे बनवाए जाते है . यं के वषय मे अिधक जानकार के िलये हे तु
स पक करे
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
29 अ ैल 2011
सु उ ब हो मु ग ब सु नु ब घ िध इ द
र फ िस िस र बस है मं ल न ल य न अं
सुज सो ग सु कु म स ग त न ई ल धा बे नो
य र न कु जो म र र र अ क हो सं रा य
पु सु थ सी जै इ ग म सं क रे हो स स िन
त र त र स हँु ह ब ब प िच स य स तु
म का ◌ा र र मा िम मी हा ◌ा जा हू हं ◌ा जू
ता रा रे र का फ खा ज ई र रा पू द ल
िन को िम गो न म ज य ने मिन क ज प स ल
ह रा िम सम र ग द न ख म ख ज िन त जं
िसं मु न न कौ िम ज र ग धु ख सु का स र
गु क म अ ध िन म ल ◌ा न ब ती न र भ
ना पु व अ ढ़ा र ल का ए तू र न नु व थ
िस ह सु ह र र स हं र त न ख ◌ा ◌ा ◌ा
र सा ◌ा ला धी ◌ा र जा हू हं षा जू ई रा रे
विध-
ीरामच जी का यान कर अपने को मन म दोहराय। फर ऊपर द गई सारणी म से कसी
एक अ र अंगुली रख। अब उससे अगले अ र से मशः नौवां अ र िलखते जाय जब तक पुनः उसी जगह
नह ं पहँु च जाय। इस कार एक चौपाई बनेगी, जो अभी का उ र होगी।
यहां हमने आपक अनुकूलता हे तु नौवे अ र के को क को एक समान रं ग म रं गने का
यास कया ह जससे आपको हर नौवे अ रको िगनती करने क आव य ा न रह आप सीधे एक
समान रं गो के को क म लीखे अ रोको िमलाले/िलख ले और जो चौपाई बने उस चौपाई को भी
दे खने म आपको आसानी हो इस उ े य से उसी रं ग म रं गने का यास कया ह।
30 अ ैल 2011
4 बिध बस सुजन कुसंगत परह ं। फिन मिन सम िनज गुन अनुसरह ं।।
फलः-खोटे मनु य का संग छोड़ दो। काय क सफलता म स दे ह है ।
यह चौपाई बालका ड के आर भ म स संग-वणन के संग म है ।
व तक.ऎन.जोशी
ल मणजी बोले : हे भु ! आप ह आ ददे व और पुराण पु ष पु षो म ह । आपसे या िछपा ह? यहाँ से आधे योजन क दरू
पर कुमार प म बकदा य नामक मुिन रहते ह । आप उन व ान मुनी र के पास जाकर उ ह ंसे इसका उपाय पूिछये ।
ीरामच जी बोले : न ् ! म लंका पर चढ़ाई करने के उ े य से अपनी सेनास हत यहाँ आया हँू ।
बकदा भय मुिन ने कहा : हे ीरामजी ! फा गुन के कृ णप म जो ‘ वजया’ नाम क एकादशी होती है , उसका त करने
से आपक वजय होगी। िन य ह आप अपनी वानर सेना के साथ समु को पार कर लगे । राजन ् ! अब इस त क फलदायक
विध सुिनये :
32 अ ैल 2011
फर ादशी के दन सूय दय होने पर उस कलश को कसी जलाशय के समीप था पत कर और उसक विधवत ् पूजा करके
दे व ितमास हत उस कलश को वेदवे ा ा ण के िलए दान कर द । कलश के साथ ह और भी बड़े बड़े दान दे ने चा हए । ीराम !
आप अपने सेनापितय के साथ इसी विध से य पूव क ‘ वजया एकादशी’ का त क जये । इससे आपक वजय होगी ।
ाजी कहते ह : नारद ! यह सुनकर ीरामच जी ने मुिन के कथनानुसार उस समय ‘ वजया एकादशी’ का त कया ।
उस त के करने से ीरामच जी वजयी हए
ु । उ ह ने सं ाम म रावण को मारा, लंका पर वजय पायी और सीता को ा कया ।
बेटा ! जो मनु य इस विध से त करते ह, उ ह इस लोक म वजय ा होती है और उनका परलोक भी अ य बना रहता ह।
भगवान ीकृ ण कहते ह : युिध र ! इस कारण ‘ वजया’ का त करना चा हए । इस संग को पढ़ने और सुनने से
वाजपेय य के समान फल िमलता ह।
ादश महा यं
यं को अित ािचन एवं दलभ
ु यं ो के संकलन से हमारे वष के अनुसंधान ारा बनाया गया ह।
परम दलभ
ु वशीकरण यं , सह ा ी ल मी आब यं
भा योदय यं आक मक धन ाि यं
मनोवांिछत काय िस यं पूण पौ ष ाि कामदे व यं
रा य बाधा िनवृ यं रोग िनवृ यं
गृ ह थ सुख यं साधना िस यं
शी ववाह संप न गौर अनंग यं श ु दमन यं
.
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
33 अ ैल 2011
वयं भा ने क रामदतो
ू क सहायता?
व तक.ऎन.जोशी
माँ सीता क खोज करते-करते हनुमान, जा बंत, अंगद आ द वयं भा के आ म म पहँु चे। उ ह जोर क भूख
और यास लगी थी। उ ह दे खकर वयं भा ने पूछा कः या तुम हनुमान हो? ीरामजी के दत
ू हो? सीता जी क
खोज म िनकले हो?"
हनुमानजी ने कहाः "हाँ, माँ! हम सीता माता क खोज म इधर तक आये ह।"
फर वयं भा ने अंगद क ओर दे खकर कहाः तुम सीता जी को खोज तो रहे हो, क तु आँख बंद करके खोज
रहे हो या आँख खोलकर?"
अंगद बोलाः हम या आँख ब द करके खोजते ह गे? हम तो आँख खोलकर ह माता सीता क खोज कर रहे
ह।
वयं भा बोलीः सीताजी को खोजना है तो आँख खोलकर नह ं बंद करके खोजना होगा। सीता जी अथात ्
भगवान क अधािगनी, सीताजी यानी व ा, आ म व ा। व ा को खोजना है तो आँख खोलकर नह ं आँख बंद
करके ह खोजना पड़े गा। आँख खोलकर खोजोगे तो सीताजी नह ं िमलगीं। तुम आँख ब द करके ह सीताजी ( व ा)
को पा सकते हो। ठहरो म तु हे बताती हँू क सीता जी अभी कहाँ ह।
यान करके वयं भा ने बतायाः सीताजी यहाँ कह ं भी नह ं, वरन ् सागर पार लंका म ह। अशोकवा टका म बैठ
ह और रा िसय से िघर ह। उनम जटा नामक रा सी ह तो रावण क से वका, क तु सीताजी क भ बन गयी है ।
सीताजी वह ं रहती ह।"
रामदत
ू वानर सोचने लगे क भगवान राम ने तो एक मह ने के अंदर सीता माता का पता लगाने के िलए कहा
था। अभी तीन स ाह से यादा समय तो यह ं हो गया ह। वापस या मुँह लेकर जाएँ? सागर तट तक पहँु चते-पहँु चते
कई दन लग जाएँगे। अब या कर?
उनके मन क बात जानकर वयं भा ने कहाः िच ता मत करो। अपनी आँख बंद करो। म योगबल से एक ण
म तु ह वहाँ पहँु चा दे ती हँू ।
हनुमान, अंगद और अ य वानर अपनी आँख ब द करते ह और वयं भा अपनी योगश से उ ह सागर-तट
पर कुछ ह पल म पहँु चा दे ती ह।
इस िलये ीरामच रतमानस म उ लेख ह।
ठाड़े सकल िसंधु के तीरा।
फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को
नकारा मक उजा से बचाता ह एवं एक उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और
अिधक भावी और प व माना जाता ह। RS-550 से RS-8200 तक
34 अ ैल 2011
तु हारा उ म कुल है , पुल य ऋ ष के तुम पौ नह ं कहते, तु हारे तो बीस ने और बीस कान ह। िशव,
हो। िशवजी क और ाजी क तुमने बहत
ु कार से ा आ द दे वता और मुिनय के समुदाय जनके चरण
पूजा क है । उनसे वर पाए ह और सब काम िस कए क सेवा करना चाहते ह, उनका दत
ू होकर मने कुल को
ह। लोकपाल और सब राजाओं को तुमने जीत िलया है । डु बा दया? अरे ऐसी बु होने पर भी तु हारा दय फट
राजमद से या मोहवश तुम जग जननी सीताजी को हर नह ं जाता?
लाए हो। अब तुम मेरे शुभ वचन अथात मेर सलाह अंगद क कठोर वाणी सुनकर रावण आँख ितरछ
सुनो! उसके अनुसार चलने से भु ी रामजी तु हारे सब करके बोला- अरे द ु ! म तेरे सब कठोर वचन इसीिलए
अपराध माफ कर दगे। दाँत म ितनका दबाओ, गले म सह रहा हँू क म नीित और धम को जानता हँू और
कु हाड़ डालो और कुटु बय स हत अपनी य को उ हं क र ा कर रहा हँू । अंगद ने कहा- तु हार
साथ लेकर, आदरपूव क जानक जी को आगे करके, इस धमशीलता मने भी सुनी है । जैसे क तुमने पराई ी क
कार सब भय छोड़कर चलो-और 'हे शरणागत के पालन चोर क है ! और दत
ू क र ा क बात तो अपनी आँख
करने वाले रघुवंश िशरोम ण ी रामजी! मेर र ा से दे ख ली। ऐसे धम के त को धारण (पालन) करने
क जए, र ा क जए। इस तरह ाथना करो। अंतर पुकार वाले तुम डू बकर मर य नह ं जाते। नाक-कान से र हत
सुनते ह भु तुमको िनभय कर दगे। रावण ने कहा अरे ब हन को दे खकर तुमने धम वचारकर ह तो मा कर
बंदर के ब चे! सँभालकर बोल! मूख! मुझ दे वताओं के दया था! तु हार धमशीलता जगजा हर है । म भी बड़ा
श ु को तूने जाना नह ?ं अरे भाई! अपना और अपने बाप भा यवानहँ् ू , जो मने तु हारा दशन पाया?। रावण ने कहा-
का नाम तो बता। कस नाते से िम ता मानता है ? अरे जड़ ज तु वानर! यथ बक-बक न कर, अरे मूख!
अंगद ने कहा- मेरा नाम अंगद है , म बािल का पु मेर भुजाएँ तो दे ख। ये सब लोकपाल के वशाल बल
हँू । उनसे कभी तु हार भट हई
ु थी? अंगद का वचन पी चं मा को सने के िलए राहु के समान ह। फर
सुनते ह रावण कुछ सकुचा गया और बोला-हाँ, म जान तूने सुना ह होगा क आकाश पी तालाब म मेर
गया मुझे याद आ गया, बािल नाम का एक बंदर था। अरे भुजाओं पी कमल पर बसकर िशवजी स हत कैलास
अंगद! तू ह बािल का लड़का है ? अरे कुलनाशक! तू तो हं स के समान शोभा को ा हआ
ु था। अरे अंगद! सुन,
अपने कुल पी बाँस के िलए अ न प ह पैदा हआ
ु ! गभ तेर सेना म बता, ऐसा कौन यो ा है, जो मुझसे िभड़
म ह य न न हो गया तू? यथ ह पैदा हआ
ु जो सकेगा। तेरा मािलक तो ी के वयोग म बलह न हो रहा
अपने ह मुँह से तप वय का दत
ू कहलाया। अब बािल है और उसका छोटा भाई उसी के दःख
ु से दःखी
ु और
क कुशल तो बता, वह आजकल कहाँ है ? तब अंगद ने उदास है ।
हँ सकर कहा बस कुछ दन बीतने पर वयं ह बािल के तुम और सु ीव, दोन नद तट के वृ हो रहा
पास जाकर, अपने िम को दय से लगाकर, उसी से मेरा छोटा भाई वभीषण, सो वह भी बड़ा डरपोक है । मं ी
कुशल पूछ लेना। ी रामजी से वरोध करने पर जैसी जा बवानबहत
् ु बूढ़ा है । वह अब लड़ाई म या कर सकता
कुशल होती है , वह सब तुमको वे सुनावगे। हे मूख! सुन, है ?। नल-नील तो िश प-कम जानते ह वे लड़ना या
भेद उसी के मन म पड़ सकता है , भेद नीित उसी पर जान?, हाँ, एक वानर ज र महानबलवान
् ् है , जो पहले
अपना भाव डाल सकती है जसके दय म ी रघुवीर न आया था और जसने लंका जलाई थी। यह वचन सुनते
ह । सच है , म तो कुल का नाश करने वाला हँू और हे ह बािल पु अंगद ने कहा-हे रा सराज! स ची बात कहो!
रावण! तुम कुल के र क हो। अंध-े बहरे भी ऐसी बात या उस वानर ने सचमुच तु हारा नगर जला दया?
36 अ ैल 2011
रावण जैसे जग वजयी यो ा का नगर एक छोटे से वानर वह सुंदर वभाव वचार कर, हे दश ीव! मने कुछ धृ ता
ने जला दया। ऐसे वचन सुनकर उ ह स य कौन कहे गा क है । हनुमानने
् जो कुछ कहा था, उसे आकर मने
हे रावण! जसको तुमने बहत
ु बड़ा यो ा कहकर सराहा है , य दे ख िलया क तु ह न ल जा है, न ोध है और
वह तो सु ीव का एक छोटा सा दौड़कर चलने वाला न िचढ़ है । (रावण बोला-अरे वानर! जब तेर ऐसी बु है,
हरकारा है । वह बहत
ु चलता है , वीर नह ं है । उसको तो तभी तो तू बाप को खा गया। ऐसा वचन कहकर रावण
हमने केवल खबर लेने के िलए भेजा था। या सचमुच ह हँ सा। अंगद ने कहा- पता को खाकर फर तुमको भी खा
उस वानर ने भु क आ ा पाए बना ह तु हारा नगर डालता, पर तु अभी तुरंत कुछ और ह बात मेर समझ म
जला डाला? मालूम होता है, इसी डर से वह लौटकर सु ीव आ गई।
के पास नह ं गया और कह ं िछपा रहा! अरे नीच अिभमानी! बािल के िनमल यश का
हे रावण! तुम सब स य ह कहते हो, मुझे सुनकर कारण जानकर तु ह म नह ं मारता। रावण! यह तो बता
कुछ भी ोध नह ं है । सचमुच हमार सेना म कोई भी क जगतम
् कतने रावण ह? मने जतने रावण अपने
ऐसा नह ं है , जो तुमसे लड़ने म शोभा पाए। ीित और वैर कान से सुन रखे ह, उ ह सुन एक रावण तो बिल को
बराबर वाले से ह करना चा हए, नीित ऐसी ह है । िसंह जीतने पाताल म गया था, तब ब च ने उसे घुड़साल म
य द मढक को मारे, तो या उसे कोई भला कहे गा बाँध रखा। बालक खेलते थे और जा-जाकर उसे मारते थे।
य प तु ह मारने म ी रामजी क लघुता है और बिल को दया लगी, तब उ ह ने उसे छुड़ा दया
बड़ा दोष भी है तथा प हे रावण! सुनो, य जाित का फर एक रावण को सह बाहु ने दे खा, और उसने दौड़कर
ोध बड़ा क ठन होता ह। व ो पी धनुष से वचन उसको एक वशेष कार के विच ज तु क तरह
पी बाण मारकर अंगद ने श ु का दय जला दया। समझकर पकड़ िलया। तमाशे के िलए वह उसे घर ले
वीर रावण उन बाण को मानो यु र पी सँड़िसय से आया। तब पुल य मुिन ने जाकर उसे छुड़ाया। एक
िनकाल रहा है । तब रावण हँ सकर बोला- बंदर म यह एक रावण क बात कहने म तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है-
बड़ा गुण है क जो उसे पालता है , उसका वह अनेक वह बहत
ु दन तक बािल क काँख म रहा था। इनम से
उपाय से भला करने क चे ा करता है । बंदर को ध य तुम कौन से रावण हो? खीझना छोड़कर सच-सच बताओ।
है , जो अपने मािलक के िलए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ रावण ने कहा-अरे मूख! सुन, म वह बलवानरावण
्
नाचता है । नाच-कूदकर, लोग को रझाकर, मािलक का हँू , जसक भुजाओं क करामात कैलास पवत जानता है ।
हत करता है । यह उसके धम क िनपुणता है । हे अंगद! जसक शूरता उमापित महादे वजी जानते ह, ज ह अपने
तेर जाित वािमभ है फर भला तू अपने मािलक के िसर पी पु प चढ़ा-चढ़ाकर मने पूजा था। िसर पी
गुण इस कार कैसे न बखानेगा? म गुण ाहक गुण का कमल को अपने हाथ से उतार-उतारकर मने अग णत
आदर करने वाला और परम समझदार हँू , इसी से तेर बार पुरा र िशवजी क पूजा क है ।
जली-कट बक-बक पर यान नह ं दे ता। अरे मूख! मेर भुजाओं का परा म द पाल जानते
अंगद ने कहा- तु हार स ची गुण ाहकता तो ह, जनके दय म वह आज भी चुभ रहा है । द गज
मुझे हनुमानने् सुनाई थी। उसने अशोक वन म व वंस मेर छाती क कठोरता को जानते ह। जनके भयानक
करके, तु हारे पु को मारकर नगर को जला दया था। दाँत, जब-जब जाकर म उनसे जबरद ती िभड़ा, मेर छाती
तो भी तुमने अपनी गुण ाहकता के कारण यह समझा म कभी नह ं फूटे , ब क मेर छाती से लगते ह वे मूली
क उसने तु हारा कुछ भी अपकार नह ं कया। तु हारा ू गए। जसके चलते समय पृ वी इस
क तरह टट कार
37 अ ैल 2011
हलती है जैसे मतवाले हाथी के चढ़ते समय छोट नाव! गाल चलेगा? ऐसा वचार कर कृ पालु ी रामजी को भज।
म वह जगत िस तापी रावण हँू । अरे झूठ बकवास अंगद के ये वचन सुनकर रावण बहत
ु अिधक जल उठा।
करने वाले! या तूने मुझको कान से कभी सुना। महान मानो जलती हई
ु च ड अ न म घी पड़ गया हो वह
तापी और जगत िस मुझे तू छोटा कहता है और बोला- अरे मूख! कुंभकण- ऐसा मेरा भाई है, इ का श ु
मनु य क बड़ाई करता है ? अरे द ु , अस य, तु छ बंदर! सु िस मेघनाद मेरा पु है ! और मेरा परा म तो तूने
अब मने तेरा ान जान िलया। सुना ह नह ं क मने संपूण जड़-चेतन जगतको
् जीत
रावण के ये वचन सुनकर अंगद ोध स हत वचन िलया है !
बोले- अरे नीच अिभमानी! सँभलकर बोल। जनका फरसा रे द ु ! वानर क सहायता जोड़कर राम ने समु
सह बाहु क भुजाओं पी अपार वन को जलाने के िलए बाँध िलया, बस, यह उसक भुता है । समु को तो
अ न के समान था। जनके फरसा पी समु क ती अनेक प ी भी लाँघ जाते ह। पर इसी से वे सभी
धारा म अनिगनत राजा अनेक बार डू ब गए, उन शूरवीर नह ं हो जाते। अरे मूख बंदर! सुन- मेरा एक-एक
परशुरामजी का गव ज ह दे खते ह भाग गया, अरे अभागे भुजा पी समु बल पी जल से पूण है, जसम बहत
ु से
दशशीश! वे मनु य य कर ह?, शूरवीर दे वता और मनु य डू ब चूके ह। बता कौन ऐसा
य रे मूख उ ड! ी रामचं जी मनु य ह? शूरवीर है, जो मेरे इन अथाह और अपार बीस समु का
कामदे व भी या धनुधार है? और गंगाजी या नद ह? पार पा जाएगा?
कामधेनु या पशु है? और क पवृ या पेड़ है? अ न भी अरे द ु ! मने द पाल तक से जल भरवाया और
या दान है ? और अमृ त या रस है ? ग ड़जी या प ी तू एक राजा का मुझे सुयश सुनाता है ! य द तेरा मािलक,
ह? शेषजी या सप ह? अरे रावण! िचंताम ण भी या जसक गुणगाथा तू बार-बार कह रहा है , सं ाम म लड़ने
प थर है ? अरे ओ मूख! सुन, वैकु ठ भी या लोक है ? वाला यो ा है - तो फर वह दत
ू कसिलए भेजता है ? श ु
और ी रघुनाथजी क अख ड भ या लाभ है ? सेना से ीित करते उसे लाज नह ं आती?
समेत तेरा मान मथकर, अशोक वन को उजाड़कर, नगर पहले कैलास का मथन करने वाली मेर भुजाओं
को जलाकर और तेरे पु को मारकर जो लौट गए और को दे ख। फर अरे मूख वानर! अपने मािलक क सराहना
तू उनका कुछ भी न बगाड़ सका य रे द ु ! वे करना। रावण के समान शूरवीर कौन है ?
हनुमानजी
् या वानर ह? जसने अपने हाथ से िसर काट-काटकर अ यंत
अरे रावण! चतुराई छोड़कर सुन। कृ पा के समु हष के साथ बहत
ु बार उ ह अ न म होम दया! वयं
ी रघुनाथजी का तू भजन य नह ं करता? अरे द ु ! गौर पित िशवजी इस बात के सा ी ह।
य द तू ी रामजी का वैर हआ
ु तो तुझे ा और म तक के जलते समय जब मने अपने ललाट
भी नह ं बचा सकगे। पर िलखे हए
ु वधाता के अ र दे खे, तब मनु य के हाथ
हे मूढ़! यथ क ड ंग न हाँक। ी रामजी से वैर से अपनी मृ यु होना बाँचकर, वधाता के लेख कोअस य
करने पर तेरा ऐसा हाल होगा क तेरे िसर समूह ी जानकर म हँ सा। उस बात को मरण करके भी मेरे मन
रामजी के बाण लगते ह वानर के आगे पृ वी पर पड़गे म डर नह ं है । य क म समझता हँू क बूढ़े ा ने
और र छ-वानर तेरे उन गद के समान अनेक िसर से बु म से ऐसा िलख दया है । अरे मूख! तू ल जा
चौगान खेलगे। जब ी रघुनाथजी यु म कोप करगे और और मयादा छोड़कर मेरे आगे बार-बार दसरे
ू वीर का बल
उनके अ यंत ती ण बहत
ु से बाण छूटगे, तब या तेरा कहता है !
38 अ ैल 2011
के साथ वेग से आ रहे ह?। भु ने उनसे हँ सकर कहा- तोड़ने म समथ हँू । पर या क ँ ? ी रघुनाथजी ने मुझे
मन म डरो नह ं। ये न उ का ह, न व ह और न केतु आ ा नह ं द । ऐसा ोध आता है क तेरे दस मुँह तोड़
या राहु ह ह। अरे भाई! ये तो रावण के मुकुट ह, जो डालूँ और तेर लंका को पकड़कर समु म डु बो दँ ।ू तेर
बािलपु अंगद के ार फके हए
ु आ रहे ह। लंका गूलर के फल के समान है । तुम सब क ड़े उसके
पवन पु ी हनुमानजी
् ने उछलकर उनको हाथ भीतर िनडर होकर बस रहे हो। म बंदर हँू, मुझे इस फल
से पकड़ िलया और लाकर भु के पास रख दया। र छ को खाते या दे र थी? पर कृ पालु ी रामचं जी ने वैसी
और वानर तमाशा दे खने लगे। उनका काश सूय के आ ा नह ं द ।
समान था। अंगद क यु सुनकर रावण मु कुराया और
सभा म ोधयु रावण सबसे ोिधत होकर बोला-अरे मूख! बहत
ु झूठ बोलना तूने कहाँ से सीखा?
कहने लगा क- बंदर को पकड़ लो और पकड़कर मार बािल ने तो कभी ऐसा गाल नह ं मारा। जान पड़ता है तू
डालो। अंगद यह सुनकर मु कुराने लगे। तप वय से िमलकर लबार हो गया है ।
रावण फर बोला-इसे मारकर सब यो ा तुरंत दौड़ो अंगद ने कहा-अरे बीस भुजा वाले! य द तेर दस
और जहाँ कह ं र छ-वानर को पाओ, वह ं खा डालो। पृ वी जीभ मने नह ं उखाड़ लीं तो सचमुच म लबार ह हँू । ी
को बंदर से र हत कर दो और जाकर दोन तप वी रामचं जी के ताप को मरण करके अंगद ोिधत हो
भाइय राम-ल मण को जीते जी पकड़ लो। रावण के ये उठे और उ ह ने रावण क सभा म ण करके ढ़ता के
कोपभरे वचन सुनकर युवराज अंगद ोिधत होकर बोले- साथ पैर जमा दया। और कहा-अरे मूख! य द तू मेरा
तुझे अपने गाल बजाते लाज नह ं आती! अरे िनल ज! चरण हटा सके तो ी रामजी लौट जाएँगे, म सीताजी को
अरे कुलनाशक! गला काटकर आ मह या करके मर जा! हार गया। रावण ने कहा- हे सब वीरो! सुनो, पैर पकड़कर
मेरा बल दे खकर भी या तेर छाती नह ं फटती!। बंदर को पृ वी पर पछाड़ दो।
अरे ी के चोर! अरे कुमाग पर चलने वाले! अरे इं जीत, मेघनाद आ द अनेक बलवानयो
् ा जहाँ-
द ु , पाप क रािश, म द बु और कामी! तू स नपात म तहाँ से ह षत होकर उठे । वे पूरे बल से बहत
ु से उपाय
या दवचन
ु बक रहा है? अरे द ु रा स! तू काल के वश करके झपटते ह। पर पैर टलता नह ं, तब िसर नीचा
हो गया है ! करके फर अपने-अपने थान पर जा बैठ जाते ह।
इसका फल तू आगे वानर और भालुओं के चपेटे काकभुशु डजी कहते ह- वे दे वताओं के श ु रा स फर
लगने पर पावेगा। राम मनु य ह, ऐसा वचन बोलते ह , उठकर झपटते ह, पर तु हे सप के श ु ग ड़जी! अंगद
अरे अिभमानी! तेर जीभ नह ं िगर पड़तीं?॥4॥ का चरण उनसे वैसे ह नह ं टलता जैसे कुयोगी पु ष
इसम संदेह नह ं है क तेर जीभ अकेले नह ं पर तेरे मोह पी वृ को नह ं उखाड़ सकते।
िसर के साथ रणभूिम म िगरगी। करोड़ वीर यो ा जो बल म मेघनाद के समान थे,
रे दशक ध! जसने एक ह बाण से बािल को मार डाला, ह षत होकर उठे , वे बार-बार झपटते ह, पर वानर का
वह मनु य कैसे है ? अरे कुजाित, अरे जड़! बीस आँख होने चरण नह ं उठता, तब ल जा के मारे िसर नवाकर बैठ
पर भी तू अंधा है । तेरे ज म को िध कार है । ी जाते ह।
रामचं जी के बाण समूह तेरे र क यास से यासे ह। जैसे करोड़ व न आने पर भी संत का मन नीित
वे यासे ह रह जाएँगे इस डर से, अरे कड़वी बकवाद को नह ं छोड़ता, वैसे ह अंगद का चरण पृ वी को नह ं
करने वाले नीच रा स! म तुझे छोड़ता हँू । म तेरे दाँत छोड़ता। यह दे खकर रावण का मद दरू हो गया!।
40 अ ैल 2011
ीराम के सौदय का वणन सौ मुखो से करना असंभव इस पर जानक बोली, मै तेरे ोध से डरने वाली नह ं।
ह। हम तो असमथ ह, प ी जो ह। शुक ने कया दोन बहत
ु रोये-िगड़िगड़ाये कंतु जानक उ ह छोड़ने के िलए
दे वी आप कौन ह जो इतनी उ सुकता से ीराम के बारे तैयार नह ं हु ।
म करती जा रह ह और मुझे छोड नह ं रह ह। शुक बोली म मह ष के आ म म रहती हंू इसिलए तु ह
शुक के का उ र दे ते हए
ु जानक ने कहां तुम जस ाप दे सकती हंू । शुक ने कडे श द म चेतावनी द ।
जानक सीता क बात कर रह हो, वह जनककुमार मै जानक न ह ते हए
ु उपे ा भाव से कहा मुझे डराती-
ह हंु । तुम ी राम क बात बता रह हो, अब वे जब धमकाती ह। जा, मै, तुझे अब कतई नह ं छोडने वाली।
यहां आकर मुझे वीकार करगे तभी म तुम दोन को मु शुक बोली अरे बावली! तू जस कार मुझ गिभणी को
क ं गी, अ यथा नह ं। तब तक तुम दोनो इ छानुसार ड़ा अपने पित से वलग कर रह ह। वैसे ह तुझे भी
करते हए
ु मेरे महल म सुख से रहो और मीठे -मीठे पदाथ का गभाव था म अपने पित ीराम से अलग रहना पड़े गा।
सेवन करो। यह कहते हएं
ु पित वयोग के शोक से शुक ने ाण याग
शुक बोली, नह -ं नह ं दे वी ऎसा मत करना। हम वन के दए।
प ी ह। पेड़ पर रहते ह और सव वचरण करते रहते ह। शुक भी प ी वयोग से शोकाकुल हो उठा उसका दय
हम आपके महल म सुख नह ं िमलेगा। म गिभनी हँू । मुझे पीडा व शोक के कारण फटने लगा। शुक ने कातर वर
जाना ह, अभी वा मी क जी के आ म म अपने थान पर म सीता को ल य करते हए
ु बोलाः म मनु य से भर ी
जाकर ब च को ज म दे कर पुनः आपक सेवा म उप थत रामजी क नगर अयो या म ज म लूँगा तथा ितशोध लूंगा
हो जाऊंगी। और म ऐसी अफवाह पैदा क ँ गा क जा गुमराह हो जायेगी
शुक के पित शुक न भी जानक से वनित क क उ ह और जापालक ीरामजी जा का मान रखने के िलए तु हारा
जाने दया जाए। ले कन जानक ने उन प ीओं क बात याग कर दगे और तु ह अपने पित से वयोग सहना
पर यादा यान नह ं दया। जानक ने शुक से कहां पड़े गा और भार दख
ु उढाना पडे गा।
कुछ भी हो, शुक तुम जा सकते हो। कंतु म शुक को नह ं ोध और जानक से ितशो लेने केिलये शुक का धोबी के
छोड़ू ँ गी। घर ज म हआ।
ु उस धोबी के कथन से ह सीता जी िनं दत हु
शुक बोला म इसके बना नह ं रह सकूंगा। अतः इसे छोड और गिभणी अव था म उ ह पित से अलग होकर वन म
दो। शुक न पुनः तडपते हए
ु वनती क आप मेर ाथना जाना पड़ा।
मानलो। कम का फल तो दे व-असुर मानव हर कसी को भी भोगना
शुक ने पुनः जानक से कहा, जानक , तुम मुझे नह ं पड़ता है । इसी से व दत होता है क कम फल ह केवलम।्
छोडोगी तो मुझे ोध आ जयेगा।
ी राम के िस मं
िचंतन जोशी
अपनी आव य ा के अनुशार उपरो मं का नजर झाड़ने हे तु
िनयिमत जाप करने से लाभ ा होता ह। ी रामच रत मं :-
मानस मे गहर आ था रखने वाले य को वशेष एवं याम गौर सुंदर दोउ जोर ।
शी लाभ ा होता ह। िनरख हं छ ब जननीं तृ न तोर ॥
वप नाश हे तु
वष भाव नाश हे तु
मं :-
मं :-
रा जव नयन धर धनु सायक।
नाम भाउ जान िसव नीको।
भगत बपित भंजन सुखदायक॥
कालकूट फलु द ह अमी को॥
संकट नाश हे तु
िच ता िनवारण हे तु
मं :-
मं :-
ज भु द न दयालु कहावा।
जय रघुवंश बनज बन भानू।
आरित हरन बेद जसु गावा॥
गहन दनुज कुल दहन कृ शानू॥
जप हं नामु जन आरत भार ।
िमट हं कुसंकट हो हं सुखार ॥ म त क पीड़ा िनवारण हे तु
द न दयाल ब रद ु संभार । मं :-
हरहु नाथ मम संकट भार ॥ हनूमान अंगद रन गाजे।
हाँक सुनत रजनीचर भाजे॥
लेश िनवारण हे तु
मं :- रोग िनवारण एवं उप व शांित हे तु
हरन क ठन किल कलुष कलेसू। मं :-
महामोह िनिस दलन दनेसू॥ दै हक दै वक भौितक तापा।
राम राज काहू हं न ह यापा॥
व न नाश हे तु
अकाल मृ यु भय िनवारण हे तु
मं :-
मं :-
सकल व न याप हं न हं तेह ।
नाम पाह दवस िनिस यान तु हार कपाट।
राम सुकृपाँ बलोक हं जेह ॥
लोचन िनज पद जं त जा हं ान के ह बाट॥
आप के वनाश हे तु द र ता िनवारण हे तु
मं :- मं :-
नवउँ पवन कुमार,खल बन पावक यान घन। अितिथ पू य यतम पुरा र के।
जासु दयँ आगार, बस हं राम सर चाप धर॥ कामद धन दा रद दवा र के॥
44 अ ैल 2011
व ा ाि हे तु स प क ाि हे तु
मं :- मं :-
गु गृ हँ गए पढ़न रघुराई। जे सकाम नर सुन ह जे गाव ह।
अलप काल व ा सब आई॥ सुख संप नाना विध पाव ह॥
खोयी हई
ु व तु पुनः ा करने हे तु
मं :- भ भाव उजागर हे तु
गई बहोर गर ब नेवाजू। सरल सबल सा हब रघुराजू॥ मं :-
भगत क पत नत हत कृ पािसंधु सुखधाम।
मो - ाि हे तु
सोइ िनज भगित मो ह भु दे हु दया क र राम॥
मं :-
स यसंध छाँड़े सर ल छा। काल सप जनु चले सप छा॥
***
दगा
ु बीसा यं
शा ो मत के अनुशार दगा
ु बीसा यं दभा
ु य को दरू कर य के सोये हवे
ु भा य को जगाने वाला माना
गया ह। दगा
ु बीसा यं ारा य को जीवन म धन से संबंिधत सं याओं म लाभ ा होता ह। जो य
आिथक सम यासे परे शान ह , वह य य द नवरा म ाण ित त कया गया दगा
ु बीसा यं को थाि कर
लेता ह, तो उसक धन, रोजगार एवं यवसाय से संबंधी सभी सम य का शी ह अंत होने लगता ह। नवरा के दनो
म ाण ित त दगा
ु बीसा यं को अपने घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह, य शी ह अपने यापार म वृ एवं अपनी आिथक थती म सुधार होता दे खगे। संपूण ाण ित त एवं
पूण चैत य दगा
ु बीसा यं को शुभ मुहू त म अपने घर-दकान
ु -ओ फस म था पत करने से वशेष लाभ ा होता
ह। मू य: Rs.550 से Rs.8200 तक
GURUTVA KARYALAY
Call Us – 91 + 9338213418, 91 + 9238328785
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
46 अ ैल 2011
रामर ा तो
अ य ीरामर ा तो म य बुधकौिशक ऋ षः। अ याहता ः सव लभते जयमंगलम ् ॥१४॥
ी सीतारामचं ो दे वता । अनु ु पछं
् दः। सीता श ः। आ द वा यथा व ने रामर ािममां हरः ।
ीमान हनुमानक
् लकम।् ी सीतारामचं ी यथ तथा िल खतवा ातः बु ो बुधकौिशकः ॥१५॥
रामर ा तो जपे विनयोगः । आरामः क पवृ ाणां वरामः सकलापदाम।्
अथ यानम:् अिभरामि लोकानां रामः ीमा स नः भुः ॥१६॥
यायेदाजानुबाहंु धृ तशरधनुषं ब प ासन थं त णौ प स प नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पीतं वासो वसानं नवकमलदल पिधने ं स नम।् पु डर क वशाला ौ चीरकृ णा जना बरौ ॥१७॥
वामांका ढसीतामुखकमलिमल लोचनं फलमूलािशनौ दा तौ तापसौ चा रणौ ।
नीरदाभं नानालंकार द ं दधतमु जटामंडलं रामचं म । पु ौ दशरथ यैतौ ातरौ रामल मणौ ॥१८॥
च रतं रघुनाथ य शतको ट व तरम ् । शर यौ सवस वानां े ौ सवधनु मताम।्
एकैकम रं पुंसां महापातकनाशनम॥१॥
् र ःकुलिनह तारौ ायेतां नो रघू मौ ॥१९॥
या वा नीलो पल यामं रामं राजीवलोचनम।् आ स जधनुषा वषु पृ शाव याशुगिनषंगसंिगनौ ।
जानक ल मणोपेतं जटामुकुटमं डतम ् ॥२॥ र णाय मम रामल मणाव तःपिथ सदै व ग छताम॥२०॥
्
सािसतूणधनुबाणपा णं न ं चरांतकम।् स न ः कवची ख गी चापबाणधरो युवा ।
वलीलया जग ातुमा वभूतमजं वभुम ् ॥३॥ ग छ मनोरथा न रामः पातु सल मणः ॥२१॥
रामर ां पठे ा ः पाप नीं सवकामदाम।् रामो दाशरिथः शूरो ल मणानुचरो बली ।
िशरो मे राघवः पातु भालं दशरथा मजः ॥४॥ काकु थः पु षः पूण ः कौस येयो रघू मः ॥२२॥
कौस येयो शौ पातु व ािम यः ु ती । वेदा तवे ो य ेशः पुराणपु षो मः ।
ाणं पातु मख ाता मुखं सौिम व सलः ॥५॥ जानक व लभः ीमान मेयपरा मः ॥२३॥
ज ां व ािनिधः पातु क ठं भरतवं दतः । इ येतािन जप न यं म ः याऽ वतः ।
कंधौ द यायुधः पातु भुजौ भ नेशकामु कः ॥६॥ अ मेधािधकं पु यं स ा नोित न संशयः ॥२४॥
करौ सीतापितः पातु दयं जामद य जत।् रामं दवादल
ू यामं प ा ं पीतवाससम।्
म यं पातु खर वंसी नािभं जा बवदा यः ॥७॥ तुव त नामिभ द यैन ते संसा रणो नराः ॥२५॥
सु ीवेशः कट पातु स थनी हनुम भुः । रामं ल मणपूवजं रघुवरं सीतापितं सु दरं
उ रघू मः पातु र ःकुल वनाशकृ त ् ॥८॥ काकु थं क णाणवं गुणिनिधं व यं धािमकम।्
जानुनी सेतुकृ पातु जंघे दशमुखा तकः । राजे ं स यसंधं दशरथतनयं यामलं शा तमूित
पादौ वभीषण ीदः पातु रामोऽ खलं वपुः ॥९॥ व दे लोकािभरामं रघुकुलितलकं राघवं रावणा रम॥२६॥
्
एतां रामबलोपेतां र ां यः सुकृती पठे त ् । रामाय रामभ ाय रामच ाय वेधसे ।
स िचरायुः सुखी पु ी वजयी वनयी भवेत॥१०॥
् रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२७॥
पातालभूतल योमचा रण छ चा रणः । ीराम राम रघुन दनराम राम ीराम राम भरता ज राम राम।
न ु मित श ा ते र तं रामनामिभः ॥११॥ ीराम राम रणककश राम राम ीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
रामेित रामभ े ित रामच े ित वा मरन।् ीरामच चरणौ मनसा मरािम ीरामच चरणौ वचंसा गृ णािम ।
नरो न िल यते पापैभु ं मु ं च व दित ॥१२॥ ीरामच चरणौ िशरसा नमािम ीरामच चरणौ शरणं प े ॥२९॥
जग जै ैकम ेण रामना नाऽिभर तम।् माता रामो म पता रामच ः वामी रामो म सखा रामच ः ।
यः क ठे धारये य कर थाः सविस यः ॥१३॥ सव वं मे रामच ो दयलुना यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
व पंजरनामेदं यो रामकवचं मरे त।्
47 अ ैल 2011
ी राम दयम ्
ी गणेशाय नमः । ी महादे व उवाच ।
त वम या दवा यै च साभास याहम तथा ।
ततो रामः वयं ाह हनूमंतमुप थतम ् । ऐ य ानं यदो प नं महावा येन चा मनोः ॥ ७ ॥
ृ णु त वं व यािम ा माना मपरा मनाम् ॥ १ ॥
तदाऽ व ा वकाय न य येव न संशयः ।
आकाश य यथा भेद वधो यते महान ् । एत ाय म ावायोपप ते ॥ ८ ॥
जलाशये महाकाश तदव छ न एव ह ॥ २ ॥
म त वमुखानां ह शा गतषु मु ताम ् ।
ित बंबा यमपरं यते वधं नभः । न ानं न च मो ः या ेषां ज मशतैर प ॥ ९ ॥
बु यविच नचैत यमेकं पूण मथापरम ् ॥ ३ ॥
इदं रह यं दयं ममा मनो मयैव सा ा किथतं तवानघ
आभास वपरं बंबभूतमेवं धा िचितः । ।
साभासबु े ः कतु वम व छ ने वका र ण ॥ ४ ॥ म ह नाय शठाय च वया दात यमै ाद प
रा यतोऽिधकम ् ॥ १० ॥
सा यारो यते ां या जीव वं च तथाऽबुधैः ।
आभास तु मृ षाबु र व ाकायमु यते ॥ ५ ॥ ॥ इित ीमद या मरामायण-बालकांडो ं ीराम दयं
संपूण म ् ॥
अ व छ नं तु त छे द तु वक पतः ।
व छ न य पूणन एक वं ितपा ते ॥ ६ ॥
अथ ी राम तो
क याणानां िनधानं किलमलमथनं पावनं पावनानां
पाथेयं य मुमु ोः सप द परमपद ा ये थत य ।
व ाम थानमेकं क ववरवचसां जीवनं स जनानां
बीजं धम ुम य भवतु भवतां भूतये रामनाम ॥
48 अ ैल 2011
रामा ो र शतनाम तो म ्
अह याशापशमनः पतृ भ ो वर दः ।
ीराघवं दशरथा मजम मेयं सीतापितं
जते यो जत ोधो जतािम ो जग ु ः ॥८॥
रघुकुला वयर द पम ् ।
आजानुबाहमर
ु व ददलायता ं रामं िनशाचर वनाशकरं ऋ वानरसंघाती िच कूटसमा यः ।
नमािम ॥ जय त ाणवरदः सुिम ापु से वतः ॥९॥
राम सह नाम तो म ्
दे वा णीः िशव यानत परः परमः परः । वसु वाः क यवाहः त ो व भोजनः ।
सामगेयः योऽ ू रः पु यक ित सुलोचनः ॥६१॥ रामोनीलो पल यामो ान क धोमहा ुितः ॥७६॥
पु यः पु यािधकः पूव ः पूण ः पूरियता र वः । प व पादः पापा रम णपूरो नभोगितः ।
ज टलः क मष वा त भ जन वभावसुः ॥६२॥ उ ारणो द ु कृ ितहा दधष
ु दु सहोऽभयः ॥७७॥
अ य ल णोऽ य ो दशा य पकेसर । अमृ तेशोऽमृ तवपुध म धमः कृ पाकरः ।
कलािनिधः कलानाथो कमलान दवधनः ॥६३॥ भग वव वाना द यो योगाचाय दव पितः ॥७८॥
जयी जता रः सवा दः शमनो भवभ जनः । उदारक ित ोगी वा यः सदस मयः ।
अलंक र णुरचलो रोिच णु व मो मः ॥६४॥ न माली नाकेशः वािध ानः षडा यः ॥७९॥
आशुः श दपितः श दागोचरो र जनो रघुः । चतुव गफलो वण श यफलं िनिधः ।
िन श दः णवो माली थूलः सू मो वल णः ॥६५॥ िनधानगभ िन याजो िगर शो यालमदनः ॥८०॥
प नाभो षीकेशो धाता दामोदरः भुः । काला मा भगवान ् कालः कालच वतकः ।
व म लोकेशो ेशः ीितवधनः ॥९१॥ नारायणः परं योितः परमा मा सनातनः ॥१०६॥
वामनो द ु दमनो गो व दो गोपव लभः । व सृ व गो ा च व भो ा च शा तः ।
भ योऽ युतः स यः स यक ितधृ ितः मृ ितः ॥९२॥ व े रो व मूित व ा मा व भावनः ॥१०७॥
का यं क णो यासः पापहा शा तवधनः । सवभूतसु छा तः सवभूतानुक पनः ।
सं यासी शा त व ो म दरा िनकेतनः ॥९३॥ सव रे रः सवः ीमानाि तव सलः ॥१०८॥
बदर िनलयः शा त तप वी वै ुत भः । सवगः सवभूतेशः सवभूताशय थतः ।
भूतावासो गुहावासः ीिनवासः ि यः पितः ॥९४॥ अ य तर थ तमस छे ा नारायणः परः ॥१०९॥
तपोवासो मुदावासः स यवासः सनातनः । अना दिनधनः ा जापितपितह रः ।
पु षः पु करः पु यः पु करा ो महे रः ॥९५॥ नरिसंहो षीकेशः सवा मा सव वशी ॥११०॥
सीताराम तो म ् रामा कम ्
कमल लोचनौ राम कांचना बरौ कवचभूषणौ राम कामुका वतौ ।
कलुषसंहारौ राम कािमत दौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥१॥ भजे वशेषसु दरं सम तपापख डनम ् ।
मकरकु डलौ राम मौिलसे वतौ म ण कर टनौ राम म जुभा षणौ । वभ िच र जनं सदै व रामम यम ् ॥ १ ॥
मनुकुलो वौ राम मानुषो मौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥२॥
स यस प नौ राम समरभीकरौ सवर णौ राम सवभूषणौ । जटाकलापशोिभतं सम तपापनाशकम ् ।
स यमानसौ राम सवपो षतौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥३॥
वभ भीितभंजनं भजे ह रामम यम ् ॥ २ ॥
धृ तिशख डनौ राम द नर कौ धृ त हमाचलौ राम द य व हौ ।
व वधपू जतौ राम द घदोयुगौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥४॥
िनज व पबोधकं कृ पाकरं भवापहम ् ।
भुवनजानुकौ राम पादचा रणौ पृ थुिशलीमुकौ राम पापना कौ ।
परमसा वकौ राम भ व सलौ रहिस नौिम तौ सीतारामल मणौ ॥५॥ समं िशवं िनरं जनं भजे ह रामम यम ् ॥ ३ ॥
नमािम भ व सलं कृ पालु शील कोमलं ीरामच कृ पालु भजु मन हरण भवभय दा णम ् ।
भजािम ते पदांबुजं अकािमनां वधामदं ।
नवक ज लोचन क ज मुखकर क जपद क ज णम ् ॥१॥
िनकाम याम सुंदरं भवांबुनाथ म दरं
फु ल कंज लोचनं मदा द दोष मोचनं॥१॥ कंदप अग णत अिमत छ ब नव नील नीरज सु दरम ् ।
लंब बाहु व मं भोड मेय वैभवं पटपीत पानहँु त ड़त िच सुिच नौिम जनक सुतावरम ् ॥२॥
वदं ि मूल ये नरा: भज त ह न म सरा: इित वदित तुलसीदास श कर शेष मुिन मनर जनम ् ।
पतंित नो भवाणवे वतक वीिच संकुले।
मम दयक ज िनवास कु कामा दखलदलम जनम ् ॥५॥
वव वािसन: सदा भजंित मु ये मुदा
िनर य इं या दकं यांित ते गितं वकं॥४॥ मन जा ह राचो िमल ह सोवर सहजसु दर सांवरो ।
तमेकम तं
ु भुं िनर हमी रं वभुं क णािनधान सुजान शील सनेह जानत रावरो ॥६॥
उवाच ग छ भ ं ते मम व णोः परं पदम ् ॥ ११ ॥ अहं भव नामगुणैः कृ ताथ वसािम का यामिनशं भवा या ।
मुमूषमाण य वमु येऽहं दशािम मं ं तव राम नाम ॥ १२ ॥
ृ तोित य इदं तो ं िलखे ा िनयतः पठे त् ।
स याित मम सा यं मरणे म मृितं लभेत ् ॥ १२ ॥ इमं तवं िन यमन यभ या ृ व त गायंित िलखंित ये वै ।
इित राघवभा षतं तदा ुतवान ् हषसमाकुलो जः । ते स स यं परमं च ल वा भव पदं या त भव सादात ्॥ १३ ॥
रघुन दनसा यमा थतः ययौ सुपू जतं पदम ् ॥ १३ ॥
॥ इित ीमहादे वकृ त तो संपूण म ् ॥
॥ इित ीमद या मरामायणे आर यकांडे जटायुकृतराम तो ं
संपूण म ् ॥
57 अ ैल 2011
भगवान राम का मं :
ॐ रामाय नमः।
दशा र राम मं :
हंु जानक व लभाय वाहा।
फल: यह मं दस लाख जपने से िस होत ह और यह मं सभी कार से साधक को सफलता एव◌ं् मो दान
करने म सहायक ह।
हरे कृ ण हरे कृ ण, कृ ण-कृ ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे हरे ।
इस मं को िनयिमत नान इ या द से िनवृ त होकर व छ कपडे पहन कर 108 बार जाप करने से य को जीवन
मे सम त भौितक सुखो एवं मो ाि होती ह।
हनुमत ् गाय ी मं :
ॐ अंजनीजाय व हे वायुपु ाय धी म ह॥
त नो हनुमान चोदयात॥्
ी हनुमान मूल मं :
ॐ ां ं ं ः॥
ादशा र हनुमान मं :
हं हनुमते ा मकाय हंु फ ।
फल: से इस मं के बारे शा ो म व णत ह क यह मं वतंत िशवजी ने ीकृ ण को बताया और ीकृ ण न यह
मं अजु न को िस करवाया था ज से अजु न ने चर-अचर जगत ् को जीत िलया था।
58 अ ैल 2011
व ा ाि हे तु सर वती कवच और यं
आज के आधुिनक युग म िश ा ाि जीवन क मह वपूण आव यकताओं म से एक है । ह द ू धम म व ाक
अिध ा ी दे वी सर वती को माना जाता ह। इस िलए दे वी सर वती क पूजा-अचना से कृ पा ा करने से बु कुशा एवं
ती होती है ।
आज के सु वकिसत समाज म चार ओर बदलते प रवेश एवं आधुिनकता क दौड म नये-नये खोज एवं
संशोधन के आधारो पर ब चो के बौिधक तर पर अ छे वकास हे तु विभ न पर ा, ितयोिगता एवं ित पधाएं
होती रहती ह, जस म ब चे का बु मान होना अित आव यक हो जाता ह। अ यथा ब चा पर ा, ितयोिगता एवं
ित पधा म पीछड जाता ह, जससे आजके पढे िलखे आधुिनक बु से सुसंप न लोग ब चे को मूख अथवा बु ह न
या अ पबु समझते ह। एसे ब चो को ह न भावना से दे खने लोगो को हमने दे खा ह, आपने भी कई सैकडो बार
अव य दे खा होगा?
ऐसे ब चो क बु को कुशा एवं ती हो, ब चो क बौ क मता और मरण श का वकास हो इस िलए
सर वती कवच अ यंत लाभदायक हो सकता ह।
सर वती कवच को दे वी सर वती के परं म दलभ
ू तेज वी मं ो ारा पूण मं िस और पूण चैत ययु कया जाता
ह। ज से जो ब चे मं जप अथवा पूजा-अचना नह ं कर सकते वह वशेष लाभ ा कर सके और जो ब चे पूजा-
अचना करते ह, उ ह दे वी सर वती क कृ पा शी ा हो इस िलये सर वती कवच अ यंत लाभदायक होता ह।
मं िस प ना गणेश
भगवान ी गणेश बु और िश ा के कारक ह बुध के अिधपित दे वता ह। प ना गणेश बुध के
सकारा मक भाव को बठाता ह एवं नकारा मक भाव को कम करता ह।. प न गणेश के
भाव से यापार और धन म वृ म वृ होती ह। ब चो क पढाई हे तु भी वशेष फल द ह
प ना गणेश इस के भाव से ब चे क बु कूशा होकर उसके आ म व ास म भी वशेष
वृ होती ह। मानिसक अशांित को कम करने म मदद करता ह, य ारा अवशो षत हर
व करण शांती दान करती ह, य के शार र के तं को िनयं त करती ह। जगर, फेफड़े ,
जीभ, म त क और तं का तं इ या द रोग म सहायक होते ह। क मती प थर मरगज के बने
होते ह।
Rs.550 से Rs.8200 तक
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
59 अ ैल 2011
फ टक गणेश
फ टक ऊजा को क त करने म सहायता मानागया ह। इस के भाव से यह य को नकारा मक उजा से बचाता ह
एवं एक उ म गुणव ा वाले फ टक से बनी गणेश ितमा को और अिधक भावी और प व माना जाता ह।
मू य Rs.550 से Rs.8200 तक
तं र ा
कवच को धारण करने से य के उपर कगई सम त तां क बाधाएं दरू होती ह, उसी के साथ ह
धारण कता य पर कसी भी कार क नकार मन श यो का कु भाव नह ं होता। इस कवच के
भाव से इषा- े ष रखने वाले सभी लोगो ारा होने वाले द ु भावो से र ाहोती ह।
मू य मा : Rs.730
श ु वजय कवच
श ु वजय कवच धारण करने से य को श ु से संबंिधत सम त परे शािनओ से वतः ह छुटकारा िमल जाता ह।
कवच के भाव से श ु धारण कता य का चाहकर कुछ नह बगड सकते। मू य मा :Rs: 640
मं िस मूंगा गणेश
मूंगा गणेश को व ने र और िस वनायक के प म जाना जाता ह। इस िलये मूंगा गणेश पूजन
के िलए अ यंत लाभकार ह। गणेश जो व न नाश एवं शी फल क ाि हे तु वशेष लाभदायी ह।
मूंगा गणेश घर एवं यवसाय म पूजन हे तु था पत करने से गणेशजी का आशीवाद शी ा होता ह।
यो क लाल रं ग और लाल मूंगे को प व माना गया ह। लाल मूंगा शार रक और
मानिसक श य का वकास करने हे तु वशेष सहायक ह। हं सक वृ और गु से को िनयं त
करने हे तु भी मूंगा गणेश क पूजा लाभ द ह। एसी लोकमा यता ह क मंगल गणेश को था पत
करने से भगवान गणेश क कृ पा श चोर , लूट, आग, अक मात से वशेष सुर ा ा होती ह,
ज से घर म या दकान
ु म उ नती एवं सुर ा हे तु मूंगा गणेश था पत कया जासकता ह।
ाण ित त मूंगा गणेश क थापना से भा योदय, शर र म खून क कमी, गभपात से बचाव, बुखार,
चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय, वाहन दघटनाओं
ु , हमला,
चोर, तूफान, आग, बजली से बचाव होता ह। एवं ज म कुंडली म मंगल ह के पी ड़त होने पर िमलने वाले हािनकर भाव से
मु िमलती ह।
जो य उपरो लाभ ा करना चाहते ह उनके िलये मं िस मूंगा गणेश अ यिधक फायदे मंद ह।
मूंगा गणेश क िनयिमत प से पूजा करने से यह अ यिधक भावशाली होता ह एवं इसके शुभ भाव से सुख सौभा य क ाि
होकर जीवन के सारे संकटो का वतः िनवारण होजाता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक
60 अ ैल 2011
नवर ज ड़त ी यं
शा वचन के अनुसार शु सुवण या रजत म िनिमत ी यं के चार और य द नवर जड़वा ने पर यह नवर
ज ड़त ी यं कहलाता ह। सभी र ो को उसके िन त थान पर जड़ कर लॉकेट के प म धारण करने से य को
अनंत ए य एवं ल मी क ाि होती ह। य को एसा आभास होता ह जैसे मां ल मी उसके साथ ह। नव ह को
ी यं के साथ लगाने से ह क अशुभ दशा का धारण करने वाले य पर भाव नह ं होता ह। गले म होने के
कारण यं पव रहता ह एवं नान करते समय इस यं पर पश कर जो जल बंद ु शर र को लगते ह, वह गंगा
जल के समान प व होता ह। इस िलये इसे सबसे तेज वी एवं फलदािय कहजाता ह। जैसे अमृ त से उ म कोई
औषिध नह ,ं उसी कार ल मी ाि के िलये ी यं से उ म कोई यं संसार म नह ं ह एसा शा ो वचन ह। इस
कार के नवर ज ड़त ी यं गु व कायालय ारा शुभ मुहू त म ाण ित त करके बनावाए जाते ह।
अ ल मी कवच
अ ल मी कवच को धारण करने से य पर सदा मां महा ल मी क कृ पा एवं आशीवाद बना रहता
ह। ज से मां ल मी के अ प (१)-आ द ल मी, (२)-धा य ल मी, (३)-धैर य ल मी, (४)-गज
ल मी, (५)-संतान ल मी, (६)- वजय ल मी, (७)- व ा ल मी और (८)-धन ल मी इन सभी पो का
वतः अशीवाद ा होता ह। मू य मा : Rs-1050
मं िस यापार वृ कवच
यापार वृ कवच यापार के शी उ नित के िलए उ म ह। चाह कोई भी यापार हो अगर उसम लाभ के थान पर बार-
बार हािन हो रह ह। कसी कार से यापार म बार-बार बांधा उ प न हो रह हो! तो संपूण ाण ित त मं िस पूण
चैत य यु यापात वृ यं को यपार थान या घर म था पत करने से शी ह यापार वृ एवं िनत तर लाभ ा
होता ह। मू य मा : Rs.370 & 730
मंगल यं
( कोण) मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को
ऋण मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए
मंगल यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। मू य मा Rs- 550
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
61 अ ैल 2011
गणेश ल मी यं
ाण- ित त गणेश ल मी यं को अपने घर-दकान
ु -ओ फस-फै टर म पूजन थान, ग ला या अलमार म था पत
करने यापार म वशेष लाभ ा होता ह। यं के भाव से भा य म उ नित, मान- ित ा एवं यापर म वृ होती ह
एवं आिथक थम सुधार होता ह। गणेश ल मी यं को था पत करने से भगवान गणेश और दे वी ल मी का संयु
आशीवाद ा होता ह। Rs.550 से Rs.8200 तक
मंगल यं से ऋण मु
मंगल यं को जमीन-जायदाद के ववादो को हल करने के काम म लाभ दे ता ह, इस के अित र य को ऋण
मु हे तु मंगल साधना से अित शी लाभ ा होता ह। ववाह आ द म मंगली जातक के क याण के िलए मंगल
यं क पूजा करने से वशेष लाभ ा होता ह। ाण ित त मंगल यं के पूजन से भा योदय, शर र म खून क कमी,
गभपात से बचाव, बुखार, चेचक, पागलपन, सूजन और घाव, यौन श म वृ , श ु वजय, तं मं के द ु भा, भूत- ेत भय,
वाहन दघटनाओं
ु , हमला, चोर इ याद से बचाव होता ह। मू य मा Rs- 550
कुबेर यं
कुबेर यं के पूजन से वण लाभ, र लाभ, पैत ृ क स प ी एवं गड़े हए
ु धन से लाभ ाि क कामना करने वाले य के
िलये कुबेर यं अ य त सफलता दायक होता ह। एसा शा ो वचन ह। कुबेर यं के पूजन से एकािधक ो से धन का
ा होकर धन संचय होता ह।
मािसक रािश फल
िचंतन जोशी
मेष: 1 से 15 अ ैल 2011 : श ु प से आिथक हािन हो सकती है । काय म आनेवाली
कावटो म भी कमी होगी और दरु थ थान से धन लाभ ा हो सकता है । कृ ित म
बदलाव से आपका वा य नरम रह सकता है । इ िम ो के साथा संब ध के िलये
ितकूल समय ह। दा प य जीवन क सम याओं को दरू करने का यास करे अ यथा
सम या वकट हो सकती ह।
कक:
1 से 15 अ ैल 2011: नौकर - यवसाय म अ यािधक प र म एवं मेहनत के उपरांत कुछ कावटो के बाद म यवसाय
म धन लाभ ा होगा। आव यकता से अिधक भाग-दौड के कारण आपको थकावट हो सकती ह। वप रत प र थती म
अपने ोध एवं गु से पर िनयं ण रखने का यास कर। मह व के काय के िलये
आपको कज लेना पड सकता ह जो लाभ द िस हो सकता ह।
िसंह:
1 से 15 अ ैल 2011: आपका मन श न रहे गा। आिथक े म लाभ ाि के योग
बन रहे ह। मह वपूण िनणय लेने के िलए एवं मह वपूण योजनाओं को अमल म लाने
हे तु उ म समय रहे गा। मह व के काय के िलये आपको कज लेना पड सकता ह जो
लाभ द िस हो सकता ह। अपने मनोबल और अपनी श एवं कमजोर का
अ ययन कर उसके अनुशार काय करना लाभ द िस होगा।
क या:
सकता ह। आपके श ु पर आपका भाव रहे गा। या ा करते समय सावधान और सतक
अमल म लाने क हो सकता ह। कसी से कलह एवं तकरार म न उलझ। य द आप कसी रोग से पी ड़त ह तो
तुला:
1 से 15 अ ैल 2011: इस अविध म आपको नये यवसाय या नौकर के काय म
सफलता क ा ी हो सकती ह। ान का पर ण कर सकते ह। आपक अनुिचत काय
शैली का याग कर। आपने काय े का व तार करने हे तु अपने ान का उपयोग
कर सकते ह। आपके कम का फल आपको शी ा होगा। आपको काय सावधानी
एवं चतुराई से करना चा हये।
16 से 30 अ ल
ै 2011: इस दौरान सावधानी से नयी प रयोजना और ऋण संबंधी सौदे
क शु आत करना लाभ द हो सकता ह। नौकर - यवसाय म संबंधो का सू म
अवलोकन करना लाभ द रहे गा। आपके श ु पर आपका भाव रहे गा। आपके
सामा जक य व का वकास होगा। ऋण संब धत लेन-दे न हे तु थती अनुकूल है । या ा करते समय सावधान और
सतक रहे ।
वृ क:
धनु:
1 से 15 अ ैल 2011: अपने प रवार एवं इ िम ो के साथ म स नता अनुभव कर
सकते ह। इस दौरान आपको शुभ समाचारो क ाि हो सकती ह। आपको नई नोकर
ा हो सकती ह या कसी नये यवसाय यवसाय का शुभारं भ कर सकते ह। श ु एवं
वरोिध प से आिथक नु शान हो सकता ह। यापा रक साझेदार के काय म
सावधानी बत।
मकर:
कुंभ:
मीन:
1 से 15 अ ैल 2011: अनुकूल आवसरो का लाभ उठाए और अपने भा य को सुधारने
का यास कर। नये उ ोग, मह वपूण य- व य, यवसायीक या ा लाभ द हो सकती
ह। आपक सफलता आपके यास एवं प र म पर िनभर करती ह। आपक िछपी श य
को पहचान कर काय करना लाभ द रहे गा। इस दौरान आप अपने श ु एवं िम ो को
आसानी से पहचान कर सकते ह।
रािश र
मूंगा ह रा प ना मोती माणेक प ना
तुला रािश: वृ क रािश: धनु रािश: मकर रािश: कुंभ रािश: मीन रािश:
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call us: 91 + 9338213418, 91+ 9238328785
Mail Us: gurutva.karyalay@gmail.com, gurutva_karyalay@yahoo.in,
67 अ ैल 2011
अ ैल 2011मािसक पंचांग
चं
द वार माह प ितिथ समाि न समाि योग समाि करण समाि समाि
रािश
6 बुध चै शु ल तृ तीया 26:31:33 भरणी 22:30:37 वषकुंभ 11:45:37 तैितल 13:35:18 मेष 29:06:00
10 र व आ ा
चै शु ल स मी 29:53:20 28:28:58 शोभन 11:15:50 गर 17:58:58 िमथुन
12 मंगल चै पु य
शु ल नवमी 27:38:58 27:41:46 सुकमा 08:14:35 बालव 16:28:39 कक
13 बुध अ ेषा
चै शु ल दशमी 25:28:30 26:16:19 शूल 26:56:38 तैितल 14:38:49 कक 26:16:00
14 गु मघा
चै शु ल एकादशी 22:41:29 24:12:26 गंड 23:31:11 व णज 12:08:41 िसंह
15 शु पूवाफा गुनी
चै शु ल ादशी 19:24:29 21:41:22 वृ 19:41:22 बव 09:05:44 िसंह 27:00:00
17 र व ह त
चै शु ल चतुदशी 12:00:49 15:50:31 याघात 11:19:34 व णज 12:00:49 क या 26:22:00
18 सोम िच ा
चै शु ल पू णमा 08:14:47 12:55:06 हषण 07:05:25 बव 08:14:47 तुला
68 अ ैल 2011
20 बुध वशाखा
वैशाख कृ ण तृ तीया 22:50:15 07:56:48 यितपात 19:54:00 व णज 12:04:18 वृ क
21 गु अनुराधा
वैशाख कृ ण चतुथ 20:53:00 06:16:26 व रयान 17:07:03 बव 09:45:30 वृ क 29:19:00
22 शु मूल
वैशाख कृ ण पंचमी 19:41:41 29:09:49 पर ह 14:56:41 कौलव 08:10:45 धनु
23 शिन पूवाषाढ़
वैशाख कृ ण ष ी 19:20:05 29:48:13 िशव 13:25:43 गर 07:24:46 धनु
24 र व पूवाषाढ़
वैशाख कृ ण स मी 19:46:19 05:49:07 िस 12:34:07 व 07:27:34 धनु 12:06:00
25 सोम उ राषाढ़
वैशाख कृ ण अ मी 20:57:33 07:13:29 सा य 12:18:10 बालव 08:18:10 मकर
27 बुध धिन ा
वैशाख कृ ण दशमी 24:54:45 11:51:00 शु ल 13:07:52 व णज 11:47:15 कुंभ
28 गु शतिभषा
वैशाख कृ ण एकादशी 27:20:05 14:41:39 13:57:35 बव 14:06:58 कुंभ
29 शु पूवाभा पद
वैशाख कृ ण ादशी 29:49:12 17:41:42 इ 14:53:53 कौलव 16:35:08 कुंभ 10:57:00
30 शिन उ राभा पद
वैशाख कृ ण ादशी 05:49:16 20:39:53 वैध ृ ित 15:51:08 तैितल 05:49:16 मीन
धम पर ढ़ व ास
पौरा णक कथा के अनुशार: एक बार भगवान बु के पास आकर एक िभ ुक ने ाथना क ः "भ ते! आप मुझे आ ा द,
म सभाएँ भ ँ गा। आपके वचार का चार क ँ गा।" "मेरे वचार का चार?" "हाँ, भगवन ्! म बौ धम फैलाऊँगा।"
"लोग तेर िन दा करगे, गािलयाँ दगे।" "कोई हज नह ं। एसा होगा तो, म भगवन को ध यवाद दँ ग
ू ा क ये लोग कतने
अ छे ह! ये केवल श द हार करते ह, मुझे मारते-पीटते तो नह ं।" "लोग तुझे पीटगे भी, तो या करोगे?" " भो! म शु
गुजा ँ गा क ये लोग खाली हाथ से पीटते ह, प थर तो नह ं मारते।" "लोग प थर भी मारगे और िसर भी फोड़ दगे तो
या करे गा?" " फर भी म आ त रहँू गा भ ते! और भगवान का द य काय करता रहँू गा य क वे लोग मेरा िसर फोड़गे
ले कन ाण तो नह ं लगे।" "लोग जनून म आकर तुझे मार दगे तो या करे गा?" "भ ते! आपके द य वचार का चार
करते-करते म मर भी गया तो समझूँगा क मेरा जीवन सफल हो गया।"
समाज थापना. द.
वासंती दगा
ु -पूजा ारं भ, महास मी त, कालरा
10 रव चै शु ल स मी 29:53:20
स मी, कमला स मी,
दगा
ु मी-महा मी त, अशोका मी, अशोका मी
(बंगाल), ीअ नपूणा मी त एवं प र मा (काशी),
11 सोम चै शु ल अ मी 29:08:11
महािनशा पूजा, सांईबाबा उ सव 3 दन (िशरड ),
पु य न (रा 11.19 से),
29 शु वैशाख कृ ण ादशी 29:49:12 एकादशी त (िन बाक वै णव), वंजुली महा ादशी,
ववाह संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क आपक शाद म अनाव यक प से वल ब हो रहा ह या उनके वैवा हक जीवन म खुिशयां कम
होती जारह ह और सम या अिधक बढती जारह ह। एसी थती होने पर अपने लडके-लडक क कुंडली का अ ययन
अव य करवाले और उनके वैवा हक सुख को कम करने वाले दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से जनकार ा
कर।
िश ा से संबंिधत सम या
या आपके लडके-लडक क पढाई म अनाव यक प से बाधा- व न या कावटे हो रह ह? ब चो को अपने पूण प र म
एवं मेहनत का उिचत फल नह ं िमल रहा? अपने लडके-लडक क कुंडली का व तृ त अ ययन अव य करवाले और
उनके व ा अ ययन म आनेवाली कावट एवं दोषो के कारण एवं उन दोष के िनवारण के उपायो के बार म व तार से
जनकार ा कर।
या आप कसी सम या से त ह?
आपके पास अपनी सम याओं से छुटकारा पाने हे तु पूजा-अचना, साधना, मं जाप इ या द करने का समय नह ं ह?
अब आप अपनी सम याओं से बीना कसी वशेष पूजा-अचना, विध- वधान के आपको अपने काय म सफलता ा
कर सके एवं आपको अपने जीवन के सम त सुखो को ा करने का माग ा हो सके इस िलये गु व कायालत
ारा हमारा उ े य शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस ाण- ित त पूण चैत य यु विभ न कार के
य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
ओने स
जो य प ना धारण करने मे असमथ हो उ ह बुध ह के उपर ओने स को धारण करना चा हए।
उ च िश ा ाि हे तु और मरण श के वकास हे तु ओने स र क अंगूठ को दाय हाथ क सबसे छोट
उं गली या लॉकेट बनवा कर गले म धारण कर। ओने स र धारण करने से व ा-बु क ाि हो होकर मरण
श का वकास होता ह।
73 अ ैल 2011
अमृ त योग
5 सूय दय से सं या 7:58 तक 20 ात :7:57 से रातभर
17 सूय दय से दोपहर 3:50 तक
पु कर योग (तीनगुना फल)
11 ात :4:28 से ात :5:52 तक 24 सूय दय से सं या 7:46 तक
19 ात :10:12 से रा 1:28 तक
योग फल :
काय िस योग मे कये गये शुभ काय मे िन त सफलता ा होती ह, एसा शा ो वचन ह।
पु कर योग म कये गये शुभ काय का लाभ तीन गुना होता ह। एसा शा ो वचन ह
दन के चौघ डये
समय र ववार सोमवार मंगलवार बुधवार गु वार शु वार शिनवार
सव रोगनाशक यं /कवच
मनु य अपने जीवन के विभ न समय पर कसी ना कसी सा य या असा य रोग से त होता ह।
उिचत उपचार से यादातर सा य रोगो से तो मु िमल जाती ह, ले कन कभी-कभी सा य रोग होकर भी असा या
होजाते ह, या कोइ असा य रोग से िसत होजाते ह। हजारो लाखो पये खच करने पर भी अिधक लाभ ा नह ं हो
पाता। डॉ टर ारा दजाने वाली दवाईया अ प समय के िलये कारगर सा बत होती ह, एिस थती म लाभा ाि के
िलये य एक डॉ टर से दसरे
ू डॉ टर के च कर लगाने को बा य हो जाता ह।
भारतीय ऋषीयोने अपने योग साधना के ताप से रोग शांित हे तु विभ न आयुवर औषधो के अित र यं ,
मं एवं तं उ लेख अपने ंथो म कर मानव जीवन को लाभ दान करने का साथक यास हजारो वष पूव कया था।
बु जीवो के मत से जो य जीवनभर अपनी दनचया पर िनयम, संयम रख कर आहार हण करता ह, एसे य
को विभ न रोग से िसत होने क संभावना कम होती ह। ले कन आज के बदलते युग म एसे य भी भयंकर रोग
से त होते दख जाते ह। यो क सम संसार काल के अधीन ह। एवं मृ यु िन त ह जसे वधाता के अलावा
और कोई टाल नह ं सकता, ले कन रोग होने क थती म य रोग दरू करने का यास तो अव य कर सकता ह।
इस िलये यं मं एवं तं के कुशल जानकार से यो य मागदशन लेकर य रोगो से मु पाने का या उसके भावो
को कम करने का यास भी अव य कर सकता ह।
कवच के लाभ :
एसा शा ो वचन ह जस घर म महामृ युंजय यं था पत होता ह वहा िनवास कता हो नाना कार क
आिध- यािध-उपािध से र ा होती ह।
पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच कसी भी उ एवं जाित धम के लोग चाहे
ी हो या पु ष धारण कर सकते ह।
ज मांगम अनेक कारके खराब योगो और खराब हो क ितकूलता से रोग उतप न होते ह।
कुछ रोग सं मण से होते ह एवं कुछ रोग खान-पान क अिनयिमतता और अशु तासे उ प न होते ह। कवच
एवं यं ारा एसे अनेक कार के खराब योगो को न कर, वा य लाभ और शार रक र ण ा करने हे तु
सव रोगनाशक कवच एवं यं सव उपयोगी होता ह।
आज के भौितकता वाद आधुिनक युगमे अनेक एसे रोग होते ह, जसका उपचार ओपरे शन और दवासे भी
क ठन हो जाता ह। कुछ रोग एसे होते ह जसे बताने म लोग हच कचाते ह शरम अनुभव करते ह एसे रोगो
को रोकने हे तु एवं उसके उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं लाभादािय िस होता ह।
येक य क जेसे-जेसे आयु बढती ह वैसे-वसै उसके शर र क ऊजा होती जाती ह। जसके साथ अनेक
कार के वकार पैदा होने लगते ह एसी थती म उपचार हे तु सवरोगनाशक कवच एवं यं फल द होता ह।
जस घर म पता-पु , माता-पु , माता-पु ी, या दो भाई एक ह न मे ज म लेते ह, तब उसक माता के िलये
अिधक क दायक थती होती ह। उपचार हे तु महामृ युंजय यं फल द होता ह।
जस य का ज म प रिध योगमे होता ह उ हे होने वाले मृ यु तु य क एवं होने वाले रोग, िचंता म
उपचार हे तु सव रोगनाशक कवच एवं यं शुभ फल द होता ह।
नोट:- पूण ाण ित त एवं पूण चैत य यु सव रोग िनवारण कवच एवं यं के बारे म अिधक जानकार हे तु हम
से संपक कर।
Declaration Notice
We do not accept liability for any out of date or incorrect information.
We will not be liable for your any indirect consequential loss, loss of profit,
If you will cancel your order for any article we can not any amount will be refunded or Exchange.
We are keepers of secrets. We honour our clients' rights to privacy and will release no information
about our any other clients' transactions with us.
Our ability lies in having learned to read the subtle spiritual energy, Yantra, mantra and promptings
of the natural and spiritual world.
Our skill lies in communicating clearly and honestly with each client.
Our all kawach, yantra and any other article are prepared on the Principle of Positiv energy, our
Article dose not produce any bad energy.
Our Goal
Here Our goal has The classical Method-Legislation with Proved by specific with fiery chants
prestigious full consciousness (Puarn Praan Pratisthit) Give miraculous powers & Good effect All
types of Yantra, Kavach, Rudraksh, preciouse and semi preciouse Gems stone deliver on your door
step.
78 अ ैल 2011
मं िस कवच
मं िस कवच को वशेष योजन म उपयोग के िलए और शी भाव शाली बनाने के िलए तेज वी मं ो ारा
शुभ महत
ू म शुभ दन को तैयार कये जाते है . अलग-अलग कवच तैयार करने केिलए अलग-अलग तरह के
मं ो का योग कया जाता है .
य चुने मं िस कवच?
उपयोग म आसान कोई ितब ध नह ं
कोई वशेष िनित-िनयम नह ं
कोई बुरा भाव नह ं
कवच के बारे म अिधक जानकार हे तु
कवच सूिच
सव काय िस कवच - 3700/- ऋण मु कवच - 730/- वरोध नाशक कवचा- 550/-
सवजन वशीकरण कवच - 1050/-* नव ह शांित कवच- 730/- वशीकरण कवच- 550/-* (2-3 य के िलए)
अ ल मी कवच - 1050/- तं र ा कवच- 730/- प ी वशीकरण कवच - 460/-*
आक मक धन ाि कवच-910/- श ु वजय कवच - 640/- * नज़र र ा कवच - 460/-
भूिम लाभ कवच - 910/- पद उ नित कवच- 640/- यापर वृ कवच - 370/-
संतान ाि कवच - 910/- धन ाि कवच- 640/- पित वशीकरण कवच - 370/-*
काय िस कवच - 910/- ववाह बाधा िनवारण कवच- 640/- दभा
ु य नाशक कवच - 370/-
काम दे व कवच - 820/- म त क पृ वधक कवच- 640/- सर वती कवक - 370/- क ा+ 10 के िलए
जगत मोहन कवच -730/-* कामना पूित कवच- 550/- सर वती कवक- 280/- क ा 10 तक के िलए
पे - यापार वृ कवच - 730/- व न बाधा िनवारण कवच- 550/- वशीकरण कवच - 280/-* 1 य के िलए
Shastrokt Yantra
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 09338213418, 09238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- chintan_n_joshi@yahoo.co.in, gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
(ALL DISPUTES SUBJECT TO BHUBANESWAR JURISDICTION)
81 अ ैल 2011
GURUTVA KARYALAY
NAME OF GEM STONE GENERAL MEDIUM FINE FINE SUPER FINE SPECIAL
Emerald (प ना) 100.00 500.00 1200.00 1900.00 2800.00 & above
Yellow Sapphire (पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
Blue Sapphire (नीलम) 370.00 900.00 1500.00 2800.00 4600.00 & above
White Sapphire (सफ़ेद पुखराज) 370.00 900.00 1500.00 2400.00 4600.00 & above
Bangkok Black Blue(बकोक नीलम) 80.00 150.00 200.00 500.00 1000.00 & above
Ruby (मा णक) 55.00 190.00 370.00 730.00 1900.00 & above
Ruby Berma (बमा मा णक) 2800.00 3700.00 4500.00 10000.00 21000.00 & above
Speenal (नरम मा णक/लालड ) 300.00 600.00 1200.00 2100.00 3200.00 & above
Pearl (मोित) 30.00 60.00 90.00 120.00 280.00 & above
Red Coral (4 jrh rd) (लाल मूंगा) 55.00 75.00 90.00 120.00 180.00 & above
Red Coral (4 jrh ls mij) (लाल मूंगा) 90.00 120.00 140.00 180.00 280.00 & above
White Coral (सफ़ेद मूंगा) 15.00 24.00 33.00 42.00 51.00 & above
Cat’s Eye (लहसुिनया) 18.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Cat’s Eye Orissa (उ डसा लहसुिनया) 210.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Gomed (गोमेद) 15.00 27.00 60.00 90.00 120.00 & above
Gomed CLN (िसलोनी गोमेद) 300.00 410.00 640.00 1800.00 2800.00 & above
Zarakan (जरकन) 150.00 230.00 330.00 410.00 550.00 & above
Aquamarine (बे ज) 190.00 280.00 370.00 550.00 730.00 & above
Lolite (नीली) 50.00 120.00 230.00 390.00 500.00 & above
Turquoise ( फ़रोजा) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Golden Topaz (सुनहला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Real Topaz (उ डसा पुखराज/टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
Blue Topaz (नीला टोपज) 60.00 90.00 120.00 280.00 460.00 & above
White Topaz (सफ़ेद टोपज) 50.00 90.00 120.00 240.00 410.00& above
Amethyst (कटे ला) 15.00 20.00 30.00 45.00 55.00 & above
Opal (उपल) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Garnet (गारनेट) 30.00 45.00 90.00 120.00 190.00 & above
Tourmaline (तुमलीन) 120.00 140.00 190.00 300.00 730.00 & above
Star Ruby (सुय का त म ण) 45.00 75.00 90.00 120.00 190.00 & above
Black Star (काला टार) 10.00 20.00 30.00 40.00 50.00 & above
Green Onyx (ओने स) 09.00 12.00 15.00 19.00 25.00 & above
Real Onyx (ओने स) 60.00 90.00 120.00 190.00 280.00 & above
Lapis (लाजवत) 15.00 25.00 30.00 45.00 55.00 & above
Moon Stone (च का त म ण) 12.00 21.00 30.00 45.00 100.00 & above
Rock Crystal ( फ़ टक) 09.00 12.00 15.00 30.00 45.00 & above
Kidney Stone (दाना फ़रं गी) 09.00 11.00 15.00 19.00 21.00 & above
Tiger Eye (टाइगर टोन) 03.00 05.00 10.00 15.00 21.00 & above
Jade (मरगच) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Sun Stone (सन िसतारा) 12.00 19.00 23.00 27.00 45.00 & above
Diamond (ह रा) 50.00 100.00 200.00 370.00 460.00 & above
(.05 to .20 Cent ) (Per Cent ) (Per Cent ) (PerCent ) (Per Cent) (Per Cent )
Note : Bangkok (Black) Blue for Shani, not good in looking but mor effective, Blue Topaz not Sapphire This Color of Sky Blue, For Venus
*** Super fine & Special Quality Not Available Easily. We can try only after getting order
fortunately one or two pieces may be available if possible you can tack corres pondence about
82 अ ैल 2011
In special cases we don't have the time available about your Specific Questions We will taken some time for
properly Analysis your birth chart and we get back with an alternate or ask you for an alternate.
All the time mentioned is Indian Standard Time which is + 5.30 hr ahead of G.M.T.
Many clients prefer the chat so that many questions that come up during a personal discussion can be
answered right away.
BOOKING FOR PHONE/ CHAT CONSULTATION PLEASE CONTECT
GURUTVA KARYALAY
Call Us:- 91+9338213418, 91+9238328785.
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com, chintan_n_joshi@yahoo.co.in,
83 अ ैल 2011
सूचना
प का म कािशत सभी लेख प का के अिधकार के साथ ह आर त ह।
प का म कािशत कसी भी नाम, थान या घटना का उ लेख यहां कसी भी य वशेष या कसी भी थान या
घटना से कोई संबंध नह ं ह।
अ य लेखको ारा दान कये गये लेख/ योग क ामा णकता एवं भाव क ज मेदार कायालय या संपादक
क नह ं ह। और नाह ं लेखक के पते ठकाने के बारे म जानकार दे ने हे तु कायालय या संपादक कसी भी
कार से बा य ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी लेख हमारे वष के अनुभव एवं अनुशंधान के आधार पर िलखे होते ह। हम कसी भी य
वशेष ारा योग कये जाने वाले मं - यं या अ य योग या उपायोक ज मेदार न हं लेते ह।
यह ज मेदार मं -यं या अ य योग या उपायोको करने वाले य क वयं क होगी। यो क इन वषयो म नैितक
मानदं ड , सामा जक , कानूनी िनयम के खलाफ कोई य य द नीजी वाथ पूित हे तु योग कता ह अथवा
योग के करने मे ु ट होने पर ितकूल प रणाम संभव ह।
हमारे ारा पो ट कये गये सभी मं -यं या उपाय हमने सैकडोबार वयं पर एवं अ य हमारे बंधुगण पर योग कये ह
ज से हमे हर योग या मं -यं या उपायो ारा िन त सफलता ा हई
ु ह।
पाठक क मांग पर एक ह लेखका पूनः काशन करने का अिधकार रखता ह। पाठक को एक लेख के पूनः
काशन से लाभ ा हो सकता ह।
FREE
E CIRCULAR
गु व योितष प का अ ैल -2011
संपादक
िचंतन जोशी
संपक
गु व योितष वभाग
गु व कायालय
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
INDIA
फोन
91+9338213418, 91+9238328785
ईमेल
gurutva.karyalay@gmail.com,
gurutva_karyalay@yahoo.in,
वेब
http://gk.yolasite.com/
http://www.gurutvakaryalay.blogspot.com/
85 अ ैल 2011
हमारा उ े य
य आ मय
बंध/ु ब हन
जय गु दे व
जहाँ आधुिनक व ान समा हो जाता है । वहां आ या मक ान ारं भ हो जाता है , भौितकता का आवरण ओढे य
जीवन म हताशा और िनराशा म बंध जाता है , और उसे अपने जीवन म गितशील होने के िलए माग ा नह ं हो पाता यो क
भावनाए ह भवसागर है , जसमे मनु य क सफलता और असफलता िन हत है । उसे पाने और समजने का साथक यास ह े कर
सफलता है । सफलता को ा करना आप का भा य ह नह ं अिधकार है । ईसी िलये हमार शुभ कामना सदै व आप के साथ है । आप
अपने काय-उ े य एवं अनुकूलता हे तु यं , हर एवं उपर और दलभ
ु मं श से पूण ाण- ित त िचज व तु का हमशा
योग करे जो १००% फलदायक हो। ईसी िलये हमारा उ े य यह ं हे क शा ो विध- वधान से विश तेज वी मं ो ारा िस
ाण- ित त पूण चैत य यु सभी कार के य - कवच एवं शुभ फलदायी ह र एवं उपर आपके घर तक पहोचाने का है ।
GURUTVA KARYALAY
92/3. BANK COLONY, BRAHMESHWAR PATNA, BHUBNESWAR-751018, (ORISSA)
Call Us - 9338213418, 9238328785
Our Website:- http://gk.yolasite.com/ and http://gurutvakaryalay.blogspot.com/
Email Us:- gurutva_karyalay@yahoo.in, gurutva.karyalay@gmail.com
APR
2011