ढेला, कचरा, घुरवा और न जाने क्या-क्या !

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ढे रा, कचया, घुयवा औय न जाने क्मा-क्मा !

सुनीर शभाा

उनकी आंखों भं अजीफ सा ददा झरकता है . ऐसा अक्सय तफ होता है , जफ उन्हहं कोई उनका नाभ
रेकय ऩुकायता है . एक ओय जहां अधधकांश रोग अऩने फच्चचं का नाभकयण दे वी-दे वताओं,
भहाऩुरुषं तथा अन्हम ख्माधतरब्ध हस्ततमं के नाभ ऩय कयते हं , वहीं अंधववश्वास की जड़े गांवं भं
इस हद तक जभी हुई है कक रोग अऩनी संतानं की यऺा के धरए उनका फुया से फुया नाभ यखोने
से बी नहीं कतयाते. हारांकक इनभं उनका दोष नहीं है .

प्रदे श सकहत स्जरे भं आज बी ऐसी ऩयं ऩयामे भौजूद है स्जनके कायण रोग अऩने फच्चचं का नाभ
घुयवा, कचया, ढे रा आकद यखोते हं . फच्चचे जफ फड़े हो जाते हं तो उन्हहं अऩने ही नाभ के कायण
शधभंदा होना ऩड़ता है . इन्हहीं नाभं की वजह से वे न चाहते हुए बी हीनबावना का धशकाय हो
जाते हं .

जफ तक वे अऩने नाभ का अथा जानने रामक होते हं , उनका नाभ चरन भं आ गमा होता है .
औय वे न अऩना नाभ फदर ऩाते हं औय न ही फदरवा ऩाते हं . ऐसे भाभरे ज्मादातय रड़ककमं
से जुड़े होते हं , क्मंकक आज बी ग्राभीण सभाज रड़ककमं को हीन बावना से दे खोता है . घुयवा,
कचया, ढे रा, वफटावन, भेरन, पेकन सकहत कई ऐसे नाभ रड़ककमं के ही होते हं .

नाभ के कायण उन्हहं जीवनबय प्रतास्ि़त होना ऩड़ता है . फचऩन से ही जहां उनका भजाक उड़ामा
जाता है , वहीं जफ वे फड़ी होती है तो इसी नाभ के साथ उनकी ऩहचान जुड़ चुकी होती है . तकूर
के यस्जतटय से रेकय याशन का़ा औय भतदाता ऩरयचम ऩत्र भं बी महीं नाभ चरता है .

छत्तीसगढ़ के ग्राभीण मा शहयी सभाज भं ककसी बी जाधत द्वाया आज बी शादी के फाद रड़ककमं
का नाभ नहीं फदरा जाता. मकद छत्तीसगढ़ भं ऐसा होता कक ऱ़ी का नाभ शादी के फाद उसके
ससुयार भं फदर कदमा जाता जैसे कक भहायाष्ट्रीमन ऩरयवायं भं आभतौय ऩय दे खोने को धभरता है ,
तो शामद ऐसे नाभं वारी रड़ककमं को कुछ याहत जरूय धभरती.

ऐसे ही नाभ वारी भकहराओं से जफ चचाा की गई तो उनका कहना था कक कई फाय जफ रोग


उनका नाभ ऩुकायते हं तो रगता है कक वे उन्हहं गारी दे यहे हं . अफ ऐसा क्मं उन्हहं रगता है , वे
खोुद नहीं जानती, रेककन उन्हहं दखो
ु ऩहुंचता है . अऩनो के द्वाया कदमे ददा को वे फाय-फाय फमान बी
तो नहीं कय सकती. कई फाय नाभ को रेकय उनका झगड़ा बी अऩनी सहे धरमं मा ऩड़ोधसमं से
हो जाता है .

बरे ही दे श औय प्रदे श को ववकास की याह भं अग्रसय फतामा जा यहा हो रेककन मह दखो


ु द ही है
कक आज बी ऐसे नाभ यखोने का धसरधसरा गांवं भं फदततूय जायी है . इसकाय प्रभाण प्राइभयी
तकूरं के हास्जयी यस्जतटयं भं धभर जामेगा. ग्राभीण ऺेत्र भंहय तकूर भं ऐसे धतयतकृ त नाभ
दजानं की संख्मा भं है . भकहरा एवं फार ववकास ववबाग भकहराओं औय फच्चचं के ववकास की फात
कयता है रेककन ऐसे नाभं के चरते भकहराओं को होने वारी ऩीड़ा का उन्हहं अंदाजा बी नहीं है .

ग्राभीण ऺेत्रं भं घुयवा औय कचया जैसे नाभं का यखोा जाना मह फताता है कक आज बी गांवं से
धशऺा ककतनी दयू है . ग्राभीण आज बी अधशऺा औय अंधववश्वास की भजफूत जड़ भं जकड़े हुमे है .
उन्हहं इनसे धनकार ऩाना ककिन है .

स्जन्हहं जया बी गांवं के फाये भं जानकायी है , वे ऐसे नाभ वारे एक-दो को तो जानते ही हंगे.
आज बी ऐसे नाभ यखोे जाते हं . ऩािकं की तसल्री के धरए ऩेश है कुछ उदाहयण.

रोयभी ब्राक के प्राइभयी तकूर दे वयहट भं धततया सूमव


ा ंशी वऩता ऩुन्हनूरार, प्राइभयी तकूर
फोईयऩाया भं कऺा ऩांचवीं भं ऩढऩे वारी भहे तयीन वऩता रतेर कंवट, िधगमा वऩता याधे कश्मऩ,
प्राइभयी तकूर धसरऩहयी भं नकछे द, भेरन साहू ऩहरी, प्राइभयी तकूर नहयीबािा भं दखो
ु ु याभ,
ढे रगू सूमव
ा ंशी सकहत रगबग हय गांव के हय तकूर भं ऐसे दजानं नाभ धभर जामंगे.
धचढ़ाते हं भेया नाभ रेकय
वफरासऩुय यतनऩुय भागा ऩय कछाय नाभक गांव भं यहने वारी 8 वषीम ऱ़ी ढे रा कहती है कक
उसकी सहे धरमां उसके नाभ को रेकय उसे धचढ़ाती है . गतौयी के ववद्याभंकदय भं ऩढऩे वारी कचया
फाई सूमव
ा ंशी कहती है कक उसे अऩने नाभ को रेकय फहुत दखो
ु रगता है .

होना ऩड़ता है शधभंदा

केवर फच्चचं को खोयाफ रगता है , जो फड़े हो चुके हं , उन्हहं बी अऩने इस तयह का नाभ होने के
कायण खोयाफ रगता है औय शधभंदा होना ऩड़ता है . अफ कछाय की कचयाफाई साहू औय संदयी की
कचया फाई सूमव
ा ंशी को ही रे. दोनं आंगनफाड़ी कामाकताा है . ववबागीम फैिक भं जफ उन्हहं
अधधकायी कचया कहकय ऩुकायता है तो अन्हम कामाकताा उनकी ओय दे खोने रगते हं औय वे हं सने
रगती है .

नहीं फदर ऩाई नाभ

कोनी धनवासी घुयवा ने सात सार की उम्र भं नाभ फदरने का प्रमास ककमा. उसने घयवारं औय
रोगं से कहा कक उसे सयोजनी कहकय ऩुकाये रेककन रोगं ने उसकी एक न सुनी औय आज बी
रोग उसे घुयवा कहकय ऩुकायते हं . आज बरे ही उसकी शादी हो चुकी है औय वह अऩने ऩरयवाय
के साथ खोुश है रेककन उसे इस फात का अपसोस है कक वह अऩना नाभ नहीं फदर सकी. कुछ
ऐसी ही कहानी टे कय व कछाय की कचया फाई औय घुयवा फाई का बी है .

फदर सकते हं नाभ

दग
ु ा स्जरे के धशऺाधधकायी फीएर कुये कहते हं कक साभास्जक यीधत-रयवाजं भं जकड़े होने के कायण
मह अफ बी चरन भं है . फच्चचे फड़े होकय फो़ा ऩयीऺा होने के ऩहरे अऩना नाभ फदर सकते हं .
हभाये ऩास शासन की ओय से मह आदे श नहीं है कक हभ तकूरं भं धशऺकं को मह कहे कक वे
ए़धभशन के सभम फच्चचं का अच्चछा नाभ दजा कयं . जो भां-फाऩ कहते हं वहीं नाभ फच्चचं का
धरखोा जाता है .

वफल्कुर न धभरे फढ़ावा

छत्तीसगढ़ अंध श्रद्धा धनभूर


ा न सधभधत के अध्मऺ ़ा.कदनेश धभश्र कहते है कक ऐसा अंधववश्वास के
कायण होता है . नवजात धशशु को भौत से फचाने औय रोगं को फुयी नजय से दयू यखोने के धरए
ऐसे उऩेस्ऺत नाभ यखोे जाते हं , स्जन्हहं कोई ऩसंद नहीं कयता. हारांकक ऩहरे की अऩेऺा अफ रोगं
भं इसे रेकय जागरूकता आमी है . ऩहरे गांवं भं साप-सपाई न होने के कायण फीभारयमां होती
थी औय नवजात धशशु की भौत हो जाती थी. ऐसा एक-दो फाय होने के फाद रोग इस तयह का
नाभ यखोकय एक तयह से धशशु की भौत की यऺा कयने का प्रमास कयते थे. हारांकक मह तकाहीन
औय अंधववश्वासऩूणा कामा है स्जसे फढ़ावा नहीं कदमा जाना चाकहमे

अबी बी है अंधववश्वास

भनोवैऻाधनक ़ा. ऩीके धतवायी का भानना है कक मे एक तयह का टोटका है , नींफू-धभचा से फड़ा


अंधववश्वास है . अधशऺा व दयू दशी सोच नहीं होने के कायण अक्सय ग्राभीण ऐसा नाभ यखोते हं .
सुंदय फच्चचे को ककसी की फुयी नजय से फचाने औय धशशुओं की रगाताय भृत्मु के फाद ऐसे नाभ
यखोने का चरन गांवं भं आज बी दे खोने को धभरता है . हारांकक इस तयह के कामा कोई िोस
आधाय नहीं है . एक ऩरयवाय जफ ऐसा कयता है तो दस
ू ये ऩरयवाय ऩय इसका भनोवैऻाधनक असय
ऩड़ता है .

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