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कहानी जयप्रकाश की
कहानी जयप्रकाश की
कहानी जयप्रकाश की
ससविर सविास (मूऩीएससी) कान्विंट भं ऩढऩे िारे संऩन्वन रोगं की जागीय नहीं है इसभं साधायण ऩरयिाय
के शासकीम स्कूरं भं ऩढऩे िारे फच्चों का बी ोमन हो सकता है . इस फात को सावफत ककमा है
साधायण ऩरयिाय भं जन्वभे जमप्रकाश भौमा ने. छत्तीसगढ़ के सुदयू िनांोर रैरग
ूं ा (यामगढ़) के जमप्रकाश
ने कड़ी भेहनत औय ऩरयश्रभ से आईएएस फनने के अऩने सऩने को साकाय ककमा. मूऩीएससी की ऩयीऺा
भं 9िीं यं क औय कहं दी भाध्मभ के सरहाज से िह ऩूये दे श भं प्रथभ स्थान ऩय यहे .
जमप्रकाश (घय भं जेऩी)के वऩता एभएर भौमा फताते हं कक 1965 भं िे सशऺक फनकय रैरग
ूं ा ब्राक के
ही रभडांड आ गमे रेककन िे भूरत: फनायस से 17 ककभी दयू िायाणसी तहसीर के हीयभऩुय गांि के यहने
िारे हं . 1965 से 1997 तक िे रभडांड भं ही यहे कपय उनका तफादरा रैरग
ूं ा हो गमा. जेऩी ने ऩहरी से
आठिीं तक की ऩढ़ाई सयकायी स्कूर भं की औय उसके फाद िह यामगढ़ भं हास्टर भं यहकय ऩढऩे रगा.
उसने कबी कान्विंट स्कूर भं ऩढ़ाई नहीं की सो तो मह है कक एक सशऺक की तफ उतनी तनख्िाह होती
बी नहीं होती थी कक िह अऩने फच्चों को ककसी कान्विंट स्कूर भं ऩढ़ा सके. उनकी ोाय संताने हं दो ऩुत्र
औय दो ऩुत्री रेककन जेऩी सफसे अरग है , िह शुरू से ही शांत ऩय रोगं की भदद कयने िारा है, उसे
इसभं आनंद आता है . विनम्र होने के साथ दमारु बी है . बूकंऩ, फाढ़ जैसी प्राकृ सतक आऩदा आने ऩय हय
फाय अऩने दोस्तं के साथ सभरकय ोंदा इकट्ठा ककमा औय प्रधानभंत्री याहत कोष भं रुऩमे जभा कयिामे,
इसके सरमे उसे ऩूिा प्रधानभंत्री अटर वफहायी िाजऩेमी प्रशस्स्त ऩत्र से सम्भासनत बी कय ोुके हं.
श्री भौमा फताते हं कक उन्वहं मा उनके ऩरयिाय के ककसी बी सदस्म ने मह कबी नहीं सोोा था कक जेऩी
आईएएस अपसय फनेगा रेककन उसने तो फहुत ऩहरे ठान सरमा था. मूऩीएससी भं उत्तीणा होने के फाद
उसने फतामा कक जफ िह अऩने दोस्तं के साथ ऩुयी, उड़ीसा जा यहा था तफ एक करेक्टय को याहत कामा
कयिाते दे खा था तबी उसके भन भं उन करेक्टय जैसा फनने की इच्चछा जागी थी, ऩय उस इच्चछा को
सऩना फनाने औय उसे कपय रक्ष्म फनाकय उसकी ऩूसता कयने भं उसे तेयह सार से बी असधक सभम रग
गमा. श्री भौमा कहते हं कक िे सोोते थे कक जेऩी कोई फड़ा अपसय फनेगा रेककन मूऩीएससी भं उसे
इतना अच्चछा यं क सभरेगा, उन्वहंने नहीं सोोा था. उन्वहं रगता तो था कक उसभं प्रसतबा है ऩय उसके बीतय
फड़ी प्रसतबा सछऩी है इस फात का अंदाजा नहीं था.
उसने कई फाय ऩरयिाय को आसथाक ऩये शानी से फोाने के सरए प्राइिेट नौकयी कयने की इच्चछा जताई
ताकक िह अऩना खोा सनकार सके रेककन उनके वऩताजी ने सख्त कहदामत दी कक िह अऩना ऩूया ध्मान
मूऩीएससी की तैमायी भं ही रगामे, नौकयी कयने से उसका ध्मान फंट जामेगा औय िह अऩने रक्ष्म से
बटक जामेगा अंतत् वऩता की सराह काभ आई औय जमप्रकाश ने मूऩीएससी भं अऩना ऩयोभ रहयामा.