100%(10)100% found this document useful (10 votes)
2K views156 pages
पवित्र भारत भूमि में प्राचीन काल से ही दैवीय चेतनाओं का अवतरण होता रहा है ; जो अज्ञान ग्रस्त मानवीय चेतनाओं को आत्म संयम के मार्ग पर बढ़ा कर परम सत्य की अनुभूति कराती रही हैं । ऐसी ही एक महान चेतना का अवतरण रमण महर्षि के रूप में हुआ । रमण महर्षि प्रारंभ से ही ब्रह्मनिष्ठ थे । "उपदेश सार" ग्रन्थ उनकी एक ऐसी अद्भुत कृति है जिससे साधकों को आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करने में दिशा प्राप्त होती है ।
पवित्र भारत भूमि में प्राचीन काल से ही दैवीय चेतनाओं का अवतरण होता रहा है ; जो अज्ञान ग्रस्त मानवीय चेतनाओं को आत्म संयम के मार्ग पर बढ़ा कर परम सत्य की अनुभूति कराती रही हैं । ऐसी ही एक महान चेतना का अवतरण रमण महर्षि के रूप में हुआ । रमण महर्षि प्रारंभ से ही ब्रह्मनिष्ठ थे । "उपदेश सार" ग्रन्थ उनकी एक ऐसी अद्भुत कृति है जिससे साधकों को आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करने में दिशा प्राप्त होती है ।
पवित्र भारत भूमि में प्राचीन काल से ही दैवीय चेतनाओं का अवतरण होता रहा है ; जो अज्ञान ग्रस्त मानवीय चेतनाओं को आत्म संयम के मार्ग पर बढ़ा कर परम सत्य की अनुभूति कराती रही हैं । ऐसी ही एक महान चेतना का अवतरण रमण महर्षि के रूप में हुआ । रमण महर्षि प्रारंभ से ही ब्रह्मनिष्ठ थे । "उपदेश सार" ग्रन्थ उनकी एक ऐसी अद्भुत कृति है जिससे साधकों को आध्यात्मिक उत्कर्ष प्राप्त करने में दिशा प्राप्त होती है ।