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श्री विद्या चालीसा
श्री विद्या चालीसा
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दग
ु ाा, त्ररऩरु ा, गायरी तू.
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भजते तझ
ु को मन्त्रों द्वारा,
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विश्व चेतना तझ
ु से आई,
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जाग्रत, सप्त
ु , स्िप्न में तू है ,
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[१९]
सांसारी चि को चऱाती.
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सय
ू ,ा चन्त्ि, तारे जो आते,
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[२३]
तू ही जड़ है भौछतकता की,
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सन्त्
ु दर तेरा यन्त्र बनाया,
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ऱगा इन्द्न्त्ि-सख
ु में जीिन को,
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केिऱ कुि ऩऱ सख
ु ऩाते हैं.
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जग से हाहाकार ममटा दे .
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[३९]
तन
ू े उसकी शक्तक्त बढ़ाई.
[४०]
दख
ु सारे उसके ममटें , ऩाये शक्तक्त महान.