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श्री विद्या चाऱीसा

श्री विद्या चाऱीसा


श्री विद्या के यन्त्र में छिऩे हुये सब ऻान,

श्री विद्या के भक्त को, ममऱें सभी िरदान.

[१]

श्री विद्या! आत्मा, ऱमऱता तू,

गौरी, शान्त्ता, श्री माता तू.

[२]

महाऱऺमी, सरस्िती तू.

दग
ु ाा, त्ररऩरु ा, गायरी तू.

[३]

ऩूर्ा सवृ ि की है तू काया,

ऱेककन तुझको कहते माया.

[४]

सत्य, चचत्त, आनन्त्दमयी तू,

ऩूर्,ा अनन्त्त, प्रकाशमयी तू.


[५]

भजते तझ
ु को मन्त्रों द्वारा,

तुझे खोजते यन्त्रों द्वारा.

[६]

तन्त्रों से भी तुझको जाना,

शक्तक्त रूऩ में है ऩहचाना.

[७]

आदद, अनश्वर, ऩरा शक्तक्त तू,

तीन गुर्ों की मूऱ शक्तक्त तू.

[८]

निीन होता रूऩ जहाां ऩर,

तेरी इच्िा शक्तक्त िहाां ऩर.

[९]

ब्रह्माण्ड में सांतुऱन सारा,

तेरी ऻान शक्तक्त के द्वारा.


[१०]

गछतमय भौछतक रूऩ जगत के,

प्रमार् तेरी किया शक्तक्त के.

[११]

िाक-शक्तक्त प्रार्ी ने ऩाई,

तेरे नाद-त्रबन्त्द ु से आई.

[१२]

ऩरा िाक त,ू ऩश्यन्त्ती तू,

तू मध्यमा, िैखरी भी तू.

[१३]

विश्व चेतना तझ
ु से आई,

सारे ब्रह्माण्ड में समाई.

[१४]

तेरा अांश प्रार् को ऩाकर,

बनता जीि जगत में आकर.


[१५]

जाग्रत, सप्त
ु , स्िप्न में तू है ,

तुररया में , समाचध में तू है .

[१६]

तेरा ध्यान मुनी करते हैं ,

तेरा गान किी करते हैं.

[१७]

बसती सबके शरीर में तू,

इन्द्न्त्ि, बुवि, चचत, आत्मन में तू.

[१८]

जो भी कमा जगत में होते,

तुझसे ही सांचामऱत होते.

[१९]

तू अनेक रूऩों में आती,

सांसारी चि को चऱाती.
[२०]

सय
ू ,ा चन्त्ि, तारे जो आते,

तेरी ही िवि को ददखऱाते.

[२१]

बनकर िायु, अन्द्नन, जऱ, धरती,

भौछतक रूऩ प्रदमशात करती.

[२२]

दे िी! तेरा रहस्य क्या है ,

विऻान इसे खोज रहा है .

[२३]

तू ही जड़ है भौछतकता की,

तू जननी आध्यान्द्त्मकता की.

[२४]

भौछतकता का ऻान अधूरा,

आत्म ऻान से होता ऩरू ा.


[२५]

सन्त्
ु दर तेरा यन्त्र बनाया,

उसमें गहरा ऻान समाया.

[२६]

शक्तक्त, चेतना दोनों उसमें ,

विद्याओां का छनिास उसमें .

[२७]

भाषा, मऱवऩ का विकास सारा,

होता है तेरे ही द्वारा.

[२८]

ऱगा इन्द्न्त्ि-सख
ु में जीिन को,

ऱोग भूऱ जाते हैं तुझको.

[२९]

विषय भोग में जो जाते हैं,

केिऱ कुि ऩऱ सख
ु ऩाते हैं.
[३०]

काम, िोध, भय, मोह, ऱोभ सब,

होते दरू तुझे ऩाते जब.

[३१]

न्द्जसने तुझको है ऩहचाना,

जीिन का रहस्य भी जाना.

[३२]

जो तुझको न समझ ऩाते हैं,

अन्त्त समय िे ऩिताते हैं .

[३३]

सबको अऩना ऻान करा दे ,

सबका जीिन सुखी बना दे ,

[३४]

अन्त्धकर को दरू भगा दे ,

ऩरम ऻान की ज्योछत जगा दे .


[३५]

प्रेम, अदहांसा, शान्द्न्त्त बढ़ा दे ,

मानिता का ऩाठ ऩढ़ा दे .

[३६]

जग से हाहाकार ममटा दे .

अऩना चमत्कार ददखऱा दे .

[३७]

न्द्जसका तूने साथ ददया है ,

उसने सब कुि प्राप्त ककया है .

[३८]

न्द्जसे शरर् में तू ऱेती है ,

उसको सारे सुख दे ती है .

[३९]

न्द्जसने तुझमें ऱगन ऱगाई,

तन
ू े उसकी शक्तक्त बढ़ाई.
[४०]

हम तेरी मदहमा को गाते,

गाकर सभी सुखी हो जाते.

यह चाऱीसा जो ऩढ़े , हो जाये गुर्िान,

दख
ु सारे उसके ममटें , ऩाये शक्तक्त महान.

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