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Hadees Ek Pehchan
Hadees Ek Pehchan
हदीस क तारीफ
लुगती ऐतबार से लOज़ हदीस का मायना है ‘िकसी चीज का नया और जदीद होना’ इस क जमा
िखलाफे कयास ‘अहादीस’ आती है, जबिक सतही तौर पर हदीस क तारीफ ये है :-
‘हर वह कौल, फे ल और तकरीर या िसफत जो नबी करीम स ला लाह7 अलैिह वस लम क
तरफ मंसूब हो इसे हदीस कहते है ।‘
(तकरीर से मुराद है िक रसुल अ लाह स ला लाह अलैिह वस लम क मौजूदगी मे कोई काम
हआ हो और आप स ला लाह अलैिह वस लम ने इस पर खामोशी इ?तेयार क हो इस िक9म क
हदीस को तकरीरी हदीस कहते है)
हदीस क िकमे
कु बुल करने और रQ करने के लेहाज़ से उलमाओ ने हदीस क दो िक9मे क है :-
हदीसे मकबूल
सहीह हदीस को मकबूल कहते है ज<ह7र के नज़दीक हदीसे मकबूल पर अमल वािजब है
हदीसे मदू द
जईफ हदीस को मदू3द कहा जाता है
अकरम स ला लाह7 अलैिह वस लम तक पहंच जाये िजस हदीस मे ये नीचे िलखी बाते पाई जाये वो
हदीसे सहीह होगी ।
(1) पहली बात ये है िक सहीह हदीस मुसनद होती है जो अपने पहले रावी से लेकर आिखरी रावी
तक पहंचती है । इसक कोई कड़ी टू टी हई ना हो, मुसनद को मौसूल और मुतसल भी कहते है
बाज़ अवकात मुहQसीन िकराम मुसनद व मुतसल मे फक3 भी करते है वो फक3 ये है िक मुसनद
लाज़मन हदीस मफू3 ह होती है जो ज़ात नबवी तक पहंच कर खKम होती है, बर िखलाफ मुतसल वो
हदीस है िजस क तमाम कि़डया िमली हई हो यािन हर रावी ने अपने ऊपर वाले रावी से सुना हो
?वाह वो हदीस मफ3ु ह हो या मौकू फ (िसफ3 सहाबी तक पहंची हो) ।
(2) दुसरी बात ये हो तो उसके सभी रावी आिदल, तकवा पर9त, बा मुरTवत, हो और फािसक,
िबदअती, िशक3 करने वाला न हो ।
(3) तीसरी बात ये है िक उसका हािफज़ा बहत अUछा हो िजसके दुसरे लोग भी गवाह हो इसमे दो
िक9मे है एक तो जब चाहे िबना तकलीफ बयान कर दे (िबना एक अ फाज के हेर-फे र के ) या िफर
िलख लेता हो ।
(4) चौथी बात ये है िक हदीस शाज़ नह/ होना चािहये शाज़ से मुराद वो Mरवायत िजसमे िसका रावी
अपने से 4यादा िसका रावी क मुखालेफत करे ।
(5) पांचवी बात ये है िक वह हदीस मलूल नह/ होना चािहये मतलब रावी ने वहम क वजह से कोइ3
तHदीली क हो और िजसका पता कु रआन से और तमाम सनदो (रािवयो) को जमा करने से पता
चल गया हो ।
(6) छठव/ बात ये िक उस हदीस पर मोहQसीनो ने कोई फ-नी (इ मी) कलाम नह/ िकया हो यािन
उस पर िकसी मोहQदीस ने कोई कमी देखी हो और उस तरफ इशारा िकया हो ।
िजस हदीस मे ये बाते मौजूद हो वो हदीसे सहीह कहलाती है इसक दो िकस्मे होती है सहीह
िलजातीह, सहीह िलगैरीह, सहीह िलजातीह मे ऊपर मौजूद 6 बाते होती है और िलगैरीह मे कोई कमी
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होती है उसे िकसी और िबला पर सहीह करार िदया जाता है । सहीह िलगैरीह का दजा3 हसन िलजातीह
से ऊपर होता है । जब हदीसे सहीह िमल जाये तो उस पर अमल वािजब होता है, इससे िकसी इमाम,
िकसी मुहQीस, िकसी फुकहा, िकसी आिलम, ने इंकार नह/ िकया है ।
वो हदीस िजसमे सहीह हदीस के खुिबया तो मौजुद हो मगर हािफजे के ऐतबार से इसके रावी
सहीह हदीस के रावी से कमतर हो एैसी हदीस हसन हदीस होती है इसमे मे दो दजW है हसन िलजातीह
और हसन िलगैरीह । ये मकबूल हदीस क िक9म है ।
हदीसे मदू द
हदीसे मदू3द को हदीसे जईफ भी कहा जाता है इस क बेहतरीन तारीफ ये है ‘जईफ हदीस वो
है िजसमे हदीस सहीह व हसन क िसफात न पाई जाती हो’ ।
जईफ का मतलब उदू3 ज़बान मे कमज़ोर और बूढ़े श?स के िलये इ9तेमाल होता है मगर उसूले
हदीस मे अरबी ज़बान मे हदीस के जईफ होने का मतलब उलमा के नज़दीक उसका अ लाह के रसुल
स ला लाह7 अलैिह वस लम का कलाम होना यकनी न होना बि क मशकू क (िजस पर शक हो) हो ।
और अगर यह यकन हो जाये क ये कलाम आप स ला लाह अलैिह वस लम का है ही नह/ तो िफर
वह हदीस मौजू (झूठी, गढ़ी हई) होती है ।
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अगर रावी आिदल न हो तो जईफ हदीस को तीन िक9मो मे तकसीम िकया जाता है ।
(3) मु-कर
कर :- वो हदीस िजस के िकसी रावी मे फहश, गि तयां, इ-तेहाई, गफलत या फािसक
का ज़ािहर होना मालूम हो । यािन जईफ हदीस क वो िक9म िजस का कोई रावी फािसक,
िबदअती, बहत 4यादा गि तयां करने वाला या बहत 4यादा गफलत बरतने वाला हो ।
अगर रावी का हािफज़ा सहीह न हो जईफ हदीस को चार िक9मो मे तकसीम िकया जाता है ।
अगर कोई िसका रावी अपने से 4यादा िसका रावी क मुखालेफत करे तो जईफ हदीस क एक ही
िक9म बनाई जाती है
(1) शाज़ :- वो जईफ हदीस िजसे कोई मकबूल रावी अपने से 4यादा अफज़ल रावी क
मुखालेफत मे बयान करे ।
‘’िजस
‘’िजस ने जान बूझ कर मुझ पर झूठ बांधा वो अपना िठकाना दोजख बना ले ‘’
(सहीह बुखारी 107, अहमद 8784, इHने अबी शैबा 762/8, इHने हHबान 28)
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अगर इसे हदीस के जईफ होने का इ म था और इस ने िफर भी इसे इस का जईफ वाजेह िकये
बगैर आगे बयान कर िदया तो लाज़मन इस पर रसुलु लाह स ला लाह7 अलैिह वस लम क बयान
करदा ये वाईद सािदक आयेगी:-
‘’िजस
‘’िजस ने मुझ से कोई हदीस बयान क और वो जानता भी है िक ये झूठ है तो वो
खुद झूठो मे से एक है’’’’ (मुकदमा मुि9लम, ितिम3जी2662, इHने माज़ा, 41, अहमद 20242, इHने
हHबान 29 तबिलसी 38/1 इHने अबी शैबा 595/8)
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‘’आदमी
‘’आदमी के झूठा होने के िलये यही काफ है िक वो जो सुने उसे आगे बयान कर दे’’’’
(मुि9लम मुकदमा 5, अबू दाऊद 4992, इHने अबी शैबा 595/8,इHने हHबान 30, हािकम
381/1)
इस हदीस पर इमाम मुि9लम रह0 ने ये बाब बांधा है :-
‘’हर
‘’हर वो बात िजसे इंसान सुने (िबला तहकक)
तहकक) उसे आगे बयान करना मना है’’’’
चुनांचे अ लाह फरमाता है :-
‘’ऐ मुसलमानो अगर तु<हे कोई फािसक खबर दे तो तुम उस क अUछी तरह तहकक कर
िलया करो एैसा न हो िक नादानी मे िकसी कौम को अज़ा पहंचा दो िफर अपने िकये पर शिम3-दगी
उठाओ’’ (सुरह तलाक-2)
खुलासा कलाम ये है िक हदीस बयान करते व>त इ-तेहाई एहितयात से काम लेना चािहये जब
तक तहकक के जMरये िकसी हदीस क सेहत के बारे मे कािमल यकन न हो जाये इसे आगे बयान
नह/ करना चािहये हां अगर कही जईफ या मौजू Mरवायत को बयान करने क जरत पेश आ जाये तो
वो साथ ही इस क हालत भी वाजेह कर देनी चािहये क ये जईफ है या मौजू । और बयान करते व>त
ये न कहा जाये िक आप स ला लाह अलैिह वस लम ने इरशाद फरमाया बि क गैर पु?ता अ फाज़ मे
यूं कहा जाये िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम से इस तरह Mरवायत िकया जाता है, या इस
तरह नकल िकया जाता है या हमे आप स ला लाह अलैिह वस लम से इस तरह पहंचा है ।
जईफ हदीस पर अमल का ह म
जईफ हदीस पर अमल के िसलिसले मे अहले इ म के दरि<यान इ?तेलाफ है, ज<ह7र अहले
इ म क राय ये है िक फज़ाइल आमाल मे उन पर अमल मु9तहब है मगर इस के िलये तीन शतW है
जैसा िक हािफज़ इHने हजर रह0 ने िलखा है :-
1) इसका जईफ शदीद न हो
3) अमल करते व>त इसका सु-नत होने का इतेकाद न रखा जाये बि क एहितयात क
नीयत से अमल िकया जाये ।
‘’जुमाअ के रोज मुझ पर कसरत के साथ दद पढ़ा करो, िबला शुHहा ये एैसा िदन है िजसमे
फMरfते हाि़जर होते है, जो आदमी भी मुझ पर दद पढ़ता है इस क अवाज़ मुझे पहंच जाती है वो
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जहां कही भी हो (सहाबा कहते है) हम ने अज3 िकया आप स ला लाह अलैिह वस लम क वफात के
बाद भी ? तो आप स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया मेरी वफात क बाद भी । बेशक अ लाह
तआला ने ज़मीन पर अंिबया के िज9मो को खाना हराम कर िदया है’’ (जईफ, इसक सनद सहीह न
होने क वजह ये है िक इस मे सईद िबन मरयम और खािलद िबन यजीद के दरिमयान इKतेफाक नह/,
तहजीब 178/2)
(4) ये अकदा रखना क उ<मत के अमाल नबी स ला लाह अलैिह वस लम पर पेश िकये जाते है
इस अकदे क बुिनयाद मु?तिलफ जईफ Mरवायत है िजनमे से एक ये है :-
’’हर जुमाअ को मुझ पर मेरी उ<मत के अमाल पेश िकये जाते है’’ (जईफ, ये Mरवायत इसिलये
जईफ है >योिक इस क सनद मे दो रावी मज़ह है एक अहमद िबन ईसा और दुसरा उबाद
िबन कसीर बसरी) ।
‘’गद3न का मसह (रोजे कयामत) तौक से िनजात का ज़Mरया है’’ (मौजू, िसलिसला जईफ
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(8) जुमाअ
ाअ के रोज वािलदैन क कhो क ि़जयारत का खास एहतेमाम करना ।
इस अमल क बुिनयाद मनगंठत Mरवायत है :-
’’िजस श?स ने हर जुमाअ के रोज़ अपने वालदैन क कhो क ि़जयारत क उस के गुनाह
ब?श् िदये जायेगे और उसे नेकोकार िलख िदया जायेगा’’ (मौजू, िसलिसला जईफ 49)
(3) हज़रत आयशा रिज0 बयान करती है िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने
फरमाया :-
’’िजसने कोई एैसा अमल िकया िजस पर हमारा ह>म नही वो मदू3द है’’(सहीह, तगeब 49)
तािलक
जईफ व मौजू अहदीस के मु)ता िलक रसुलल
ु लाह
् स+ला+
ला+लाह
लाह अलैिह वस+लम
लम
क तंबीह
हज़रत अबूहररै ा रिज0 से मरवी है िक रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम ने फरमाया
‘’आिखरी ज़माना मे द4जाल और क4जाब होगे, वो तु<हारे सामने एैसी एैसी हदीस पेश करेगे जो न
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कभी तुमने सुनी होगी और न ही तु<हारे अबा अजदाद ने, लेहाज़ा अपने आप को उन से बचाए रखना,
वो तु<हे गुमराह करे और िफतने मे डाल दे’’(मुि9लम 7 तहावी 2954)
हमे ये ज़हन नशी कर लेना चािहये िक जब हम दुिनयावी चीजे हािसल करने के िलये तहकक
करते है िक फला चीज कै सी है, कहां से िमलेगी, मुनािसब कमत पर कहां से िमलेगी, कौन सी 4यादा
फायदेमंद है वगैरह वगैरह इस के िलये लोगd से पूछताछ करते है, मु?तिलफ बाज़ारो क खान छांनते
है, व>त िनकालते है, तो हम ये कै से सोच लेते है िक सही दीनी मामलात बगैर हमारी मेहनत कोिशश
और बगैर तहकक व तफशीश् के हमारे घरो मे पहंच जायेगा । हांलािक दीनी मामले दुिनयावी मामलो
से 4यादा तव4जो के हकदार है । >योिक इसका ता लुक आिखरत से है और हम दुिनया मे पैदा ही
िसफ3 इसिलये िकये गये है िक हम अपनी आिखरत को संवार ले ।
और न ही िकसी हाल मे गलत कहता ह7ं, लेिकन कु छ मुसलमानो ने िजतनी भी अहदीस मुझे बयान क
वो सब क सब जईफ और मौजू थी, मै अपनी ताकत के एतबार से सभी पर अमल करता ह7ं आप से
गुजाMरश है िक इस िसलिसले मे मालूमात दे? शेख ने जवाब िदया :-
(3) बहत सारे उलमा ने जईफ और मौजू अहदीस को एक जगह पर भी जमा कर िदया है
तािक इंसान को इस क पहचान मे आसानी रहे और वो जईफ और मौजू अहदीस से खूद भी
बचे और दुसरो को भी बचने क नसीहत करे ।
अल्हम्दुिYाह बाितल ताकते िसफ3 अपने बाितल अमल को सािबत करने के िलए झूठी और जईफ
हदीसो का सहारा लेकर चीखते रहjगे और अपनी बात को सािबत करने के िलए कोई सहीह अहदीस
पेश नह/ कर सके गे, हKता क अ लाह का ह>म आ पहंचेगा (यानी कयामत) । और दीन क िहफाज़त
का अ लाह का वादा सच होकर रहेगा । >योिक फMरfते आसमान के पहरेदार है और अहले हदीस इस
ज़मीन के पहरेदार ।
हदीसे एक नज़र मे
हदीस एैसा कौल, फेल और तकरीर िजस क िन9बत रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ क
गई हो, सु-नत क भी यही तारीफ है याद रहे िक तकरीर से मुराद आप स ला लाह अलैिह वस लम क
तरफ से िकसी काम क इजाज़त है ।
खबर खबर के मुKतािलक 3 अकवाल है 1 खबर हदीस का ही दूसरा नाम है 2 हदीस वो है जो नबी
स ला लाह अलैिह वस लम से मनकू ल हो और खबर वो है जो िकसी और से मनकू ल हो 3 खबर
हदीस से आम है यािन उस Mरवायत को भी कहते है जो नबी स ला लाह अलैिह वस लम से मनकू ल हो
और उस को भी कहते है जो िकसी और से मनकू ल हो ।
आसार एैसे अकवाल और अफआल जो सहाबा िकराम और ताबई क तरफ मनकू ल हो ।
मुतवाितर वो हदीस िजसे बयान करने वाले रािवयो क तादाद इस कदर 4यादा हो िक उन सब का झूठ पर जमा हो
जाना अ>ल मुहाल हो ।
अहद इससे मुराद एैसी हदीस है िजस के रािवयो क तादाद मुतवाितर हदीस के रािवयो से कम हो ।
मरफू िजस हदीस को नबी स ला लाह अलैिह वस लम क तरफ मंसूब िकया गया हो, ?वाह उस क सनद
मुतसल हो या न हो ।
मौकू फ िजस हदीस को सहाबी क तरफ मंसूब िकया गया हो ?वाह उस क सनद मुतसल हो या न हो ।
मकतूअ िजस हदीस को ताबई या इससे कम दजW के िकसी श?स क तरफ मंसूब िकया गया हो ?वाह इस क
सनद मुतसल हो या न हो ।
सहीह िजस हदीस क सनद मुतसल हो और इस के तमाम रावी िसका दयानतदार और कु Tवते हािफज़ा के
मािलक हो, और इस हदीस मे कोई खुिफया खराबी भी न हो ।
हसन िजस हदीस के रावी हािफज़े के एतबार से सहीह हदीस के रािवयो से कम दजW के हो ।
जईफ एैसी हदीस िजसमे न सहीह हदीस क िसफात पाए जाये और न हसन हदीस क ।
मौजू जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे िकसी मनगंठत खबर को रसुलु लाह स ला लाह अलैिह वस लम
क तरफ मंसूब िकया गया हो ।
शाज जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे एक िसका रावी ने अपने से 4यादा िसका रावी क मुखािलफत क
हो ।
मुस3ल जईफ हदीस क वह िक9म िजस मे कोई ताबई सहाबी के वा9ते के बगैर रसुलु लाह स ला लाह अलैिह
वस लम से Mरवायत करे ।
मुतरक जईफ हदीस क वह िक9म िजसके िकसी रावी पर झूठ क तोहमत हो ।
मु-कर जईफ हदीस क वह िक9म िजस का कोई रावी फािसक, िबदअती, बहत 4यादा गलितयां करने वाला या
बहत 4यादा गफलत बरतने वाला हो ।