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Jivan Upyogi Kunjiyaa
Jivan Upyogi Kunjiyaa
Jivan Upyogi Kunjiyaa
यिद तुम कुछ बातों को अपनाओ तो साधना में बहुत जल्दी ूगित कर सकते हो ।
*
आत्मिचंतन
ूात: ःमरािम ॑िदसंःफुरदात्मतत्वं सिच्चत्सुखं परमहं सगितं तुरीयम ् ।
यत्ःवप्नजामतसुषु मवैित िनत्यं तद्ॄ िनंकलमहं न च भूतसंघ: ॥
शु आचरणवाले उ म कोिट के साधक अगर िदन में हर एक या आधे घंटे में इस भाव को
दोहराते जायें और अपने आनंद-ःवभाव को जगाते जायें तो घर में से कलह, झगड़े , बीमारी आिद
आसानी से िमटते जायेंगे । िफर भी कलह, झगड़ें हों तो अंतयार्मी गुरु से तादात्म्य करके मंऽजप
करो, िफर भीतर आत्मःवरुप में थोड़ा गोता लगाओ तो कलह झगड़े का कारण समझ में आ
जायेगा और उपाय भी अपने आप सूझेगा ।
सत्संग
मन को एकाम करने के िलए संत वचन सुनने जैसा और कोई सुगम, ौे एवं पिवऽ साधन
नहीं है । अपने आप मन को एकाम करने में बहुत मेहनत पड़ती है परं तु जब संत आत्मा-परमात्मा
को छूकर बोलते ह, तब उनकी वाणी सुनते सुनते मन अनायास ही साित्वक, शु , एकाम होने
लगता है , ानसंपन्न एवं ूसन्न होने लगता है और परमात्मा में लगने लगता है । इसीिलए
सत्संग की बड़ी भारी मिहमा गायी गयी है ।
*
यान
सब काम करने से नहीं होते। कुछ काम ऐसे भी ह जो न करने से होते ह, यान ऐसा ही एक
कायर् है । यान का मतलब या ? यान है डू बना । यान है आत्मिनरीक्षण करना… ‘हम कैसे ह,
यह दे खना । सत्संग भी उसीको फलता है जो यान करता है ।
*
क्षोभरिहतता
िच में क्षोभ हो जाना, िच का उ ेिजत हो जाना सबसे बड़ी हािन है । इससे बचने का
सबसे सरल उपाय है िक उ ेजना पैदा करनेवाले श दों को िचिड़यों की चहचहाट के समान समझो
।
ूसन्नता और समता
ूसन्नता बनाये रखने और उसे बढ़ाने का एक सरल उपाय यह है िक सुबह अपने कमरे में
बैठकर जोर-से हँ सो । आज तक जो सुख-द:ु ख आया वह बीत गया और जो आयेगा वह बीत
जायेगा । जो होगा, दे खा जायेगा । आज तो मौज में रहो । भले झूठमूठ में ही हँ सो । ऐसा करते
करते सच्ची हँ सी भी आ जायेगी । उससे शरीर में र -संचरण ठ क से होगा । शरीर तंदरु
ु ःत रहे गा
। बीमािरयाँ नहीं सतायेंगी और िदन भर खुश रहोगे तो समःयाएँ भी भाग जायेंगी या तो आसानी
से हल हो जायेंगी ।
पिरिःथितयों का सदप
ु योग
जीवन की हर पिरिःथित का सदप
ु योग करो । जो भी पिरिःथित आये - मान आये, सुख
आये तो िचन्तन करो िक ‘‘ूभु मुझे उत्सािहत करने के िलए मान दे रहे ह, सफलता और सुिवधा
दे रहे ह । हे ूभु ! तेरी असीम कृ पा को धन्यवाद है !’’
जीवन में जब अपमान हो, द:ु ख आये, असफलता आये, िवरोध हो, िवपि आये तब
िचन्तन करो : “हे दयालु ूभु ! तू मुझे िवपरीत पिरिःथितयाँ दे कर मेरी आसि व ममता छुड़ा रहा
है । मेरी परीक्षा लेकर मेरा साहस व सामथ्यर् बढ़ा रहा है । हे ूभु ! तेरी कृ पा की सदा जय हो !’’
ऐसी समझ यिद हमने िवकिसत कर ली तो िफर कोई भी पिरिःथित हमें िहला नहीं सकेगी और
हम िनमर्ल मन से आत्मदे व में िःथत होने का सामथ्यर् पायेंगे ।
*
की हुई गलती िफर से न करे , तो आदमी ःवाभािवक ही िनद ष हो जाता है । की हुई गलती
िफर से न करना यह बड़ा ूायि त है । गलती करता रहे और ूायि त भी करता रहे तो इससे कोई
यादा फायदा नहीं होता । इससे तो िफर अंदर में मंिथ बन जाती है िक “म तो ऐसा ही हँू |”
कोई भी गलती दब
ु ारा न होने दो । सुबह नहा धोकर पूवार्िभमुख बैठकर या िबःतर में ही
शरीर खींचकर ढीला छोड़ने के बाद यह िनणर्य करो िक “मेरी अमुक-अमुक गलितयाँ ह, जैसे िक,
यादा बोलने की । यादा बोलने से मेरी शि क्षीण होती है |” वाणी के अित व्यय से कईयों का
मन पीिड़त रहता है । इससे हािन होती है ।
अपना नाम लेकर सुबह संकल्प करो। यिद आपका नाम गोिवंद है तो कहो: “दे ख गोिवंद !
आज कम से कम बोलना है । वाणी की रक्षा करनी है । जो यादा और अनावँयक बोलता है
उसकी वाणी का ूभाव क्षीण हो जाता है । जो यादा बोला करता होगा वह झूठ जरुर बोलता होगा,
प की बात है । कम बोलने से, नहीं बोलने से, असत्य भाषण और िनन्दा करने से हम बच जायेंगे
। राग- े ष, ईंयार्, बोध व अशांित से भी बचेंगे । न बोलने में छोटे -मोटे नौ गुण ह । इस ूकार मन
को समझा दो । ऐसे ही यिद यादा खाने का या कामिवकार का या और कोई भी दोष हो तो उसे
िनकाल सकते ह ।
साधक को कैसा जीवन जीना, या िनयम लेना, िकन कारणों से पतन होता है , िकन
कारणों से वह भगवान और गुरुओं से दरू हो जाता है और िकन कारणों से भगव त्व के नजदीक
आ जाता है - इस ूकार का अ ययन, िचंतन, बीती बात का िसंहावलोकन व उन्नित के िलए नये
संकल्प करने चािहए ।
*
जीवनशि की रक्षा
आप कहीं जा रहे ह और राःते में आपने मरा हुआ पशु दे खा, िकसीका वमन दे खा अथवा
मल मूऽािद दे खा तो उस समय आपके िच में ग्लािन होती है । इससे आपकी जीवनशि कुछ
अंश में क्षीण होती है ।
स वगुण बढ़ता है साि वक आहार-िवहार से, साि वक वातावरण में रहने से एवं सत्संग
सुनने से । मनुंय जब रजो-तमोगुणी जीवन जीता है , तो मित नीचे के केन्िों में, हलके केन्िो में
पहँु च जाती है । मित जब नीचे चली जाती है , तब लगता है िक झूठ बोलने में, कपट करने में सार
है , कोटर् कचहरी जाना चािहए… आिद-आिद ।
पिवऽ संग करें , सत्संग में जायें एवं पिवऽ मंथों का अ ययन करें ।
*
यिद आपके मन में िकसीके ूित ईंयार् होती है , तो उसके पास जाकर कह दें िक “मुझे माफ
करें , आपको दे खकर मुझे ईंयार् होती है । आप भी ूाथर्ना करें और म भी ूाथर्ना करुँ तािक आपके
ूित मेरी ईंयार् िमट जाय |”
कोई आपका िकतना भी बुरा करना चाहे पर आप अगर सावधान होकर उसके िलए अच्छा
ही सोचो और उसकी भलाई का ही िचन्तन करो तो कोई आपका कुछ नहीं िबगाड़ सकेगा । बुरा
सोचनेवाले के िवचार भी बदल जायेंगे। उसका दंु ूयोजन सफल नहीं हो पायेगा ।
*
4. समता: ौीकृ ंण तो मानो, समता की मूितर् थे । महाभारत का इतना बड़ा यु हुआ, िफर
भी कहते ह िक “कौरव-पांडवों के यु के समय यिद मेरे मन में पांडवों के ूित राग न रहा
हो और कौरवों के ूित े ष न रहा हो तो मेरी समता के परीक्षाथर् यह बालक जीिवत हो जाय
| और बालक (परीिक्षत) जीिवत हो उठा…
2. बिहमुख
र् लोगों की बातों में आने से और उनकी िलखी हुई पुःतकें पढ़ने से परमात्म-ूेम
िबखर जाता है ।
3. बिहमुख
र् लोगों के संग से, उनके साथ खाने पीने अथवा हाथ िमलाने से और उनके
ासोच्छवास में आने से हलके ःपंदन (vibraton) आते ह, िजससे परमात्म ूेम में कमी
आती है ।
4. िकसी भी व्यि में आसि करोगे तो आपका परमात्म ूेम खंड़ में फँस जायेगा, िगर
जायेगा । िजसने परमात्मा को नहीं पाया है उससे अिधक ूेम करोगे तो वह आपको अपने
ःवभाव में िगरायेगा । परमात्म ूा महापुरुषों का ही संग करना चािहए ।
3. अकेले बैठो तब भजन गुनगुनाओ । अन्यथा, मन खाली रहे गा तो उसमे काम, बोध, लोभ,
मोह, मद, मात्सयर् आयेंगे । कहा भी गया है िक “खाली मन - शैतान का घर |”
4. जब परःपर िमलो तब परमे र की, परमे र-ूा महापुरुषों की चचार् करो । िदये तले
अँधेरा होता है लेिकन दो िदयों को आमने सामने रखो तो अँधेरा भाग जाता है । िफर
ूकाश ही ूकाश रहता है । अकेले में भले कुछ अच्छे िवचार आयें िकंतु वे यादा
अिभव्य नहीं होते । जब ई र की चचार् होती है तब नये-नये िवचार आते ह, एक दस
ू रे का
अ ान और ूमाद हटता है तथा एक दस
ू रे की अौ ा िमटती है ।
भगवान और भगवत्ूा महापुरुषों में हमारी ौ ा बढ़े ऐसी ही चचार् करनी सुननी
चािहए । सारा िदन यान नहीं लगेगा, सारा िदन समािध नहीं होगी । अत: ई र की चचार्
करो, ई र सम्बन्धी बातों का ौवण करो । इससे समझ बढ़ती जायेगी, ूकाश बढ़ता
जायेगा, शांित बढ़ती जायेगी ।
छः बातों से बचो
दे विषर् नारद ने गालव ॠिष से कहा है : “चाहे साधु हो या सवर्सामान्य व्यि , सभी को इन छ: बातों
से बचना चािहए:
1. रात को घूमना ।
4. चुगली करना ।
5. गवर् करना ।
6. अित पिरौम करना अथवा पिरौम से िबल्कुल दरू रहना । योंिक अिधक पिरौम से
साधन भजन की क्षमता िबखर जायेगी और अिधक आराम से आलःय आयेगा |
*
छः बातों को अपनाओ
1. पहली बात है : अपना उ े ँय ऊँचा रखें ।
2. दस
ू री बात है : व्यथर् की बातों में समय न गँवायें । व्यथर् की बातें करें गे, सुनेंगे तो जगत की
सत्यता दृढ़ होगी, िजससे राग े ष की वृि होगी और राग े ष से िच मिलन होगा । अत:
राग े ष से ूेिरत होकर कमर् न करें ।
3. तीसरी बात है : जो कायर् करें उसे उत्साह से, कुशलता से पूणर् करें । ऐसा नहीं िक कोई िवघ्न
आया और काम छोड़ िदया । यह कायरता नहीं होनी चािहए ।
योग: कमर्सु कौशलम ् ।
योग वही है जो कमर् में कुशलता लाये ।
कोई काम छोटा नहीं है और कोई काम बड़ा नहीं है । पिरणाम की िचन्ता िकये
िबना उत्साह, धैयर् और कुशलतापूवक
र् कमर् करनेवाला सफलता को ूा कर लेता है ।
अगर वह िनंफल भी हो जाय तो हताश िनराश नहीं होता, वरन ् पुन: लग जाता है और
कायर् पूरा होने तक उसीमें लगा रहता है ।
4. चौथी बात है : कमर् तो करें लेिकन कतार्पन का गवर् न आये और लापरवाही से कमर् िबगड़े
नहीं, इसकी सावधानी रखें । सबके भीतर ई रीय संपदा भरपूर है । उस संपदा को पाने के
िलए सावधान व सतकर् रहना चािहए ।
5. पाँचवीं बात है : जीवन में केवल ई र को मह व दें । सबमें कुछ न कुछ गुण दोष होते ही ह
। यों- यों साधक संसार को मह व दे गा त्यों-त्यों उसके दोष बढ़ते जायेंगे और यों- यों
ई र को मह व दे गा त्यों-त्यों सदगुण बढ़ते जायेंगे ।
6. ठ बात है : साधक का व्यवहार पिवऽ होना चािहए, दय पिवऽ होना चािहए । लोगों के
िलए उसका जीवन ही आदशर् बन जाय, ऐसा पिवऽ उसका आचरण होना चािहए ।
इन छ: बातों को अपने जीवन में अपनाकर साधक अपने लआय को पाने में अवँय कामयाब हो
सकता है ।
*
साधना के छः िवघ्न
1. िनिा,
2. तंिा,
3. आलःय,
4. मनोराज,
5. लय और
6. रसाःवाद
ये छ: साधना के बड़े िव न ह । अगर ये िव न न आयें तो हर मनुंय भगवान के दशर्न कर ले ।
“जब हम माला लेकर जप करने बैठते ह, तब मन कहीं से कहीं भागता है । िफर ‘मन
नहीं लग रहा…’ ऐसा कहकर माला रख दे ते ह । घर में भजन करने बैठते ह तो मंिदर याद
आता है और मंिदर में जाते ह तो घर याद आता है । काम करते ह तो माला याद आती है
और माला करने बैठते ह तब कोई न कोई काम याद आता है |” ऐसा यों होता है ? यह एक
व्यि का नहीं, सबका ू है और यही मनोराज है ।
कभी-कभी साधक को रसाःवाद परे शान करता है । साधना करते-करते थोड़ा बहुत
आनंद आने लगता है तो मन उसी आनंद का आःवाद लेने लग जाता है और अपना मु य
लआय भूल जाता है ।
कभी साधना करने बैठते ह तो नींद आने लगती है और जब सोने की कोिशश करते है
तो नींद नहीं आती । यह भी साधना का एक िवघ्न है ।
तंिा भी एक िवघ्न है । नींद तो नहीं आती िकंतु नींद जैसा लगता है । यह सूआम िनिा
अथार्त तंिा है ।
साधना करने में आलःय आता है । “अभी नहीं, बाद में करें गे…” ऐसा सोचते ह तो यह
भी एक िवघ्न है ।
ःथूल िनिा को जीतने के िलए अल्पाहार और आसन करने चािहए । सूआम िनिा यानी तंिा को
जीतने के िलए ूाणायाम करने चािहए ।
आलःय को जीतना हो तो िनंकाम कमर् करने चािहए । सेवा से आलःय दरू होगा एवं धीरे -धीरे
साधना में भी मन लगने लगेगा ।
ौी रामानुजाचायर् ने कुछ उपाय बताये ह, िजनका आौय लेने से साधक िस बन सकता है । वे
उपाय ह :
• िववेक: आत्मा अिवनाशी है , जगत िवनाशी है । दे ह हाड़ मांस का िपंजर है , आत्मा अमर है
। शरीर के साथ आत्मा का कतई सम्बन्ध नहीं है और वह आत्मा ही परमात्मा है । इस
ूकार का तीो िववेक रखें ।
• िवमुखता: िजन वःतुओं, व्यसनों को ई र ूाि के िलए त्याग िदया, िफर उनकी ओर न
दे खें, उनसे िवमुख हो जायें । घर का त्याग कर िदया तो िफर उस ओर मुड़-मुड़कर न दे खें ।
व्यसन छोड़ िदये तो िफर दब
ु ारा न करें । जैसे कोई वमन करता है तो िफर उसे चाटने नहीं
जाता, ऐसे ही ई र ूाि में िवघ्न डालनेवाले जो कमर् ह उन्हें एक बार छोड़ िदया तो िफर
दब
ु ारा न करें |
• अभ्यास: भगवान के नाम जप का, भगवान के यान का, सत्संग में जो ान सुना है
उसका िनत्य, िनरं तर अभ्यास करें ।
• कल्याण: जो अपना कल्याण चाहता है वह औरों का कल्याण करे , िनंकाम भाव से औरों
की सेवा करे ।
• अनवसाद: कोई भी द:ु खद घटना घट जाय तो उसे बार-बार याद करके द:ु खी न हों ।
• अनुहषार्त ्: िकसी भी सुखद घटना में हषर् से फुलें नहीं । जो साधक इन सात उपायों को
अपनाता है वह िसि ूा कर लेता है ।
*
2. दस
ू रा उपाय: सत्पुरुषों के सािन्न य में रहें ।
जैसा संग वैसा रं ग
संग का रं ग अवँय लगता है । यिद स जन व्यि भी दज
ु न
र् का अिधक संग करे तो उसे
कुसंग का रं ग अवँय लग जायेगा । इसी ूकार यिद दज
ु न
र् से दज
ु न
र् व्यि भी महापुरुषों का
सािन्न य ूा करे तो दे र सवेर वह भी महापुरुष हो जायेगा ।
लेिकन आपको या पता िक भगवान आपका िकतना िहत चाहते ह ? इसिलए कभी
भी अपने को द:ु खद िचंतन या िनराशा की खाई में नहीं िगराना चािहए और न ही अहं कार
की दलदल में फँसना चािहए वरन ् यह िवचार करें िक संसार सपना है । इसमें ऐसा तो होता
रहता है ।
5. पाँचवाँ उपाय: सबको भगवान का अंश मानकर सबके िहत की भावना करें । मनुंय जैसा
सोचता है वैसा ही हो जाता है इसिलए कभी शऽु का भी बुरा नहीं सोचना चािहए, बिल्क
ूाथर्ना करनी चािहए िक परमात्मा उसे सदबुि दें , सन्मागर् िदखायें । ऐसी भावना करने
से शऽु की शऽुता भी िमऽता में बदल सकती है ।
6. ठा उपाय: ई र को जानने की उत्कंठा जागृत करें । जहाँ चाह वहाँ राह । िजसके दय में
ई र के िलए चाह होगी, उस रसःवरुप को जानने की िज ासा होगी, उस आनंदःवरुप के
आनंद के आःवादन की तड़प होगी, प्यास होगी वह अवँय ही परमात्म ूेरणा से संतों के
ार तक पहँ च जायेगा और दे र सवेर परमात्म साक्षात्कार कर जन्म मरण से मु हो
जायेगा ।
7. सातवाँ उपाय: साधनकाल में एकांतवास आपके िलए अत्यंत आवँयक है । भगवान बु
ने छ: साल तक अर य में एकांतवास िकया था । ौीम आघ शंकराचायर्जी ने नमर्दा तट
पर सदगुरु के सािन्न य में एकान्तवास में रहकर यानयोग, ानयोग इत्यािद के उ ग
ुं
िशखर सर िकये थे । उनके दादागुरु गौड़पादाचायर्जी ने एवं सदगुरु गोिवन्दपादाचायर्जी ने
भी एकांत सेवन िकया था, अपनी वृि यों को इिन्ियों से हटाकर अंतमुख
र् िकया था । अत:
एकांत में ूाथर्ना और ॄ ाभ्यास करें ।
यिद इन सात बातों को जीवन में उतार लें तो अवँय ही परमात्मा का अनुभव होगा।
*
पंचसकारी साधना
इस साधना के पाँच अंग है तथा पाँचों अंगों के नाम ‘स’ कार से आरं भ होते ह, इसिलए इसे
‘पंचसकारी’ की सं ा दी गयी है ।
1. सिहंणुता: अपने जीवन में सिहंणुता (सहनशीलता) लायें। जरा-जरा सी बात में डरें नहीं,
जरा-जरा सी बात में उि ग्न न हों, जरा-जरा सी बात में बहक न जायें, जरा- जरा सी बात
में िसकुड़ न जायें । थोड़ी सहनशि रखें । तटःथ रहें । िवचार करें िक यह भी बीत जायेगा
।
यह िव जो है दीखता, आभास अपना जान रे ।
आभास कुछ दे ता नहीं, सब िव िमथ्या मान रे ॥
होता वहाँ ही द:ु ख है , कुछ मानना होता जहाँ ।
कुछ मानकर हो न द:ु खी, कुछ भी नहीं तेरा यहाँ ॥
चाहे िकतना भी किठन व हो, चाहे िकतना भी बिढ़या व हो- दोनों बीतनेवाले ह और
आपका चैतन्य रहनेवाला है । ये पिरिःथितयाँ आपके साथ नहीं रहें गी िकंतु आपका
परमे र तो मौत के बाद भी आपके साथ रहे गा । इस ूकार की समझ बनाये रखें ।
प ी लाली िलपिःटक लगाये कोई जरुरी नहीं है , िडःको करे कोई जरुरी नहीं है । जो
लोग अपनी प ी को कठपुतली बनाकर, िडःको करवाकर दस
ू रे के हवाले करते ह और
पि याँ बदलते ह, वे नारी जाित का घोर अपमान करते ह । वे नारी को भोग्या बना दे ते ह ।
भारत की नारी भोग्या या कठपुतली नहीं है , वह तो भगवान की सुपुऽी है । नारी तो
नारायणी है ।
3. सम्मान दान: तीसरा सदगुण है सम्मान दान । छोटे से छोटा ूाणी और बड़े से बड़ा व्यि
भी सम्मान चाहता है । सम्मान दे ने में रुपया पैसा नहीं लगता और दे ते समय आपका
दय भी पिवऽ होता है । अगर आप िकसीसे िनद ष प्यार करते ह तो खुशामद से हजार
गुना यादा ूभाव उस पर पड़ता है । अत: ःवयं मान पाने की इच्छा न रखे वरन ् औरों को
सम्मान दें ।
4. ःवाथर् त्याग: चौथा सदगुण है ःवाथर् त्याग । िन:ःवाथर् होकर कमर् करें , ःवाथर् भाव से
नहीं । ःवाथर् त्याग की भावना अन्य गुणों को भी िवकिसत करती है ।
आरोग्यता की कुंिजयाँ
हःत-िचिकत्सा
हःत-िचिकत्सा शरीर के िकसी भी अंग की पीड़ा का चमत्कािरक ढं ग से िनवारण
करनेवाली, ःवाःथ्य एवं सौन्दयर्वधर्क िचिकत्सा प ित है ।
मानिसक पिवऽता और एकामता के साथ मन में िनम्निलिखत वेदमंऽ का पाठ करते हुए
दोनों हथेिलयों को परःपर रगड़कर गरम करें , तत्प ात ् उनसे पाँच िमनट तक पीिड़त अंग का बार
बार सेंक करें और उसके बाद नेऽ बन्द करके कुछ िमनट तक सो जाइये । इससे गिठया, िसरददर्
तथा अन्य सब ूकार के ददर् दरू होते ह । मंऽ इस ूकार है :
द:ु खाकार वृि से द:ु ख बनता है । वृि बदलने की कला का उपयोग करके द:ु खाकार वृि
को काट दे ना चािहए ।
सदगुण सदाचार
छ: घटे से अिधक सोना, िदन में सोना, काम में सावधानी न रखना, आवँयक कायर् में
िवलम्ब करना आिद सब ‘आलःय’ ही है । इन सबसे हािन ही होती है । अत: सावधान ! मन, वाणी
और शरीर के ारा न करने योग्य व्यथर् चे ा करना तथा करने योग्य कायर् की अवहे लना करना
ूमाद है । ऐश- आराम, ःवादलोलुपता, फैशन, िसनेमा आिद दे खना, लबों में जाना आिद सब
भोग है । काम, बोध, लोभ, मोह, दं भ, दपर्, अिभमान, अहं कार, मद, ईंयार्, आिद दग ुर् ह । संयम,
ु ण
क्षमा, दया, शांित, समता, सरलता, संतोष, ान, वैराग्य, िनंकामता आिद सदगुण ह । य , दान,
तप, तीथर्, ोत, और सेवा-पूजा करना तथा अिहं सा, सत्य, ॄ चयर् का पालन करना आिद सदाचार
ह।
शुरुआत में सच्चे आदमी को भले ही थोड़ी किठनाई िदखे और बेईमान आदमी को भले
थोड़ी सुिवधा िदखे, लेिकन अंततोगत्वा तो सच्चाई एवं समझदारीवाला ही इस लोक और परलोक
में सुखी रह पाता है ।
िजनके जीवन में धमर् का ूभाव है उनके जीवन में सारे सदगुण आ जाते ह, उनका जीवन
ऊँचा उठ जाता है , दस
ू रों के िलए उदाहरणःवरुप बन जाता है ।
आप भी धमर् के अनुकूल आचरण करके अपना जीवन ऊँचा उठा सकते हो । िफर आपका
जीवन भी दस
ू रों के िलए आदशर् बन जायेगा, िजससे ूेरणा लेकर दस
ू रे भी अपना जीवन ःतर ऊँचा
उठाने को उत्सुक हो जायेंगे ।
अ यात्म का राःता अटपटा जरुर है । थोड़ी बहुत खटपट भी होती है और समझ में भी
झटपट नहीं आता लेिकन अगर थोड़ा सा भी समझ में आ जाय, धीरज न छूटे , साहस न टू टे और
परमात्मा को पाने का लआय न छूटे तो ूाि हो ही जाती है ।