Jivan Upyogi Kunjiyaa

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जीवनोपयोगी कुंिजयाँ

परम पू य संत ौी आसारामजी बापू के सत्संग - ूवचनों


से संकिलत
जीवनोपयोगी कुंिजयाँ
जीवनोपयोगी कुंिजयाँ ........................................................................................................... 2
आत्मिचंतन.......................................................................................................................... 2
सत्संग .................................................................................................................................. 2
यान.................................................................................................................................... 3
क्षोभरिहतता.......................................................................................................................... 3
ूसन्नता और समता ........................................................................................................... 3
साक्षीभाव .............................................................................................................................. 4
पिरिःथितयों का सदप
ु योग................................................................................................... 4
दोषों को भगाने की युि याँ ................................................................................................. 4
ौ ा की रक्षा एवं संवधर्न .................................................................................................... 6
सबका मंगल, सबका भला हो…........................................................................................... 6
व्यथर् के संकल्पों से बचने की कुंजी .................................................................................... 7
महानता के चार िस ांत ...................................................................................................... 7
परमात्म ूेम में पाँच बाधक बातें ............................................................................................ 8
छः बातों से बचो................................................................................................................ 10
परमात्म ूाि के सात सचोट उपाय................................................................................. 13
आरोग्यता की कुंिजयाँ ........................................................................................................ 16
हःत-िचिकत्सा ............................................................................................................... 16
वात ददर् िमटाने का उपाय ............................................................................................. 17
थकान व िसरददर् िमटाने का उपाय ............................................................................... 18
बुि शि िवकासक ूयोग .............................................................................................. 18
तनावों से बचने के उपाय .............................................................................................. 18
िनराशा के क्षणों में ........................................................................................................ 19
सदगुण सदाचार ............................................................................................................. 19
जीवनोपयोगी कुंिजयाँ
आओ मेरे प्यारे साधकों ! अपनी ऐिहक और पारमािथर्क उन्नित के इच्छुकों ! आ जाओ ।
तुम यशःवी बनो, संयमी बनो, तेजःवी बनो । अपना और अपने पूवज
र् ों का नाम रोशन करो ।
अपने और अपने कुल में आनेवाले वंशजों के मागर्दशर्क बनो- तुम ऐसे महान आत्मा बनो ।

यिद तुम कुछ बातों को अपनाओ तो साधना में बहुत जल्दी ूगित कर सकते हो ।
*

आत्मिचंतन
ूात: ःमरािम ॑िदसंःफुरदात्मतत्वं सिच्चत्सुखं परमहं सगितं तुरीयम ् ।
यत्ःवप्नजामतसुषु मवैित िनत्यं तद्ॄ िनंकलमहं न च भूतसंघ: ॥

‘म ूात: दय में संःफुिरत उस आत्मत व का ःमरण करता हँू , जो सिच्चदानंदरुप है ,


परमहं सों की गित है , तुरीय है , जो ःवप्न, जामत, सुषुि को जाननेवाला है , िनत्य है । वही
िनंकल ॄ म हँू , पंचमहाभूतों का संघ म नहीं हँू ।

शु आचरणवाले उ म कोिट के साधक अगर िदन में हर एक या आधे घंटे में इस भाव को
दोहराते जायें और अपने आनंद-ःवभाव को जगाते जायें तो घर में से कलह, झगड़े , बीमारी आिद
आसानी से िमटते जायेंगे । िफर भी कलह, झगड़ें हों तो अंतयार्मी गुरु से तादात्म्य करके मंऽजप
करो, िफर भीतर आत्मःवरुप में थोड़ा गोता लगाओ तो कलह झगड़े का कारण समझ में आ
जायेगा और उपाय भी अपने आप सूझेगा ।

सत्संग
मन को एकाम करने के िलए संत वचन सुनने जैसा और कोई सुगम, ौे एवं पिवऽ साधन
नहीं है । अपने आप मन को एकाम करने में बहुत मेहनत पड़ती है परं तु जब संत आत्मा-परमात्मा
को छूकर बोलते ह, तब उनकी वाणी सुनते सुनते मन अनायास ही साित्वक, शु , एकाम होने
लगता है , ानसंपन्न एवं ूसन्न होने लगता है और परमात्मा में लगने लगता है । इसीिलए
सत्संग की बड़ी भारी मिहमा गायी गयी है ।
*
यान
सब काम करने से नहीं होते। कुछ काम ऐसे भी ह जो न करने से होते ह, यान ऐसा ही एक
कायर् है । यान का मतलब या ? यान है डू बना । यान है आत्मिनरीक्षण करना… ‘हम कैसे ह,
यह दे खना । सत्संग भी उसीको फलता है जो यान करता है ।
*

क्षोभरिहतता
िच में क्षोभ हो जाना, िच का उ ेिजत हो जाना सबसे बड़ी हािन है । इससे बचने का
सबसे सरल उपाय है िक उ ेजना पैदा करनेवाले श दों को िचिड़यों की चहचहाट के समान समझो

“िचिड़याँ बोल रही ह |” - ऐसा सोचने लगो । त व पर िि रखो । एक ःवप्न पुरुष दस


ू रे
ःवप्न पुरुष से कुछ कह रहा है तो कहने दो । अपमान की भूिम इस मल मूऽ के थैले ( शरीर) से
अपने को हटा लो । यिद इस थैले को ही सवर्ःव समझे हुए हो तो वाःतव में अपमान और िनन्दा के
पाऽ हो । अन्यथा िकसीका सामथ्यर् है जो तुम्हारी िनन्दा कर सके?
*

ूसन्नता और समता
ूसन्नता बनाये रखने और उसे बढ़ाने का एक सरल उपाय यह है िक सुबह अपने कमरे में
बैठकर जोर-से हँ सो । आज तक जो सुख-द:ु ख आया वह बीत गया और जो आयेगा वह बीत
जायेगा । जो होगा, दे खा जायेगा । आज तो मौज में रहो । भले झूठमूठ में ही हँ सो । ऐसा करते
करते सच्ची हँ सी भी आ जायेगी । उससे शरीर में र -संचरण ठ क से होगा । शरीर तंदरु
ु ःत रहे गा
। बीमािरयाँ नहीं सतायेंगी और िदन भर खुश रहोगे तो समःयाएँ भी भाग जायेंगी या तो आसानी
से हल हो जायेंगी ।

व्यवहार में चाहे कैसे भी सुख-द:ु ख, हािन-लाभ, मान-अपमान के ूसंग आयें पर आप


उनसे िवचिलत हुए िबना िच की समता बनाये रखोगे तो आपको अपने आनंदूद ःवभाव को
जगाने में दे र नहीं लगेगी योंिक िच की िवौांित ूसाद की जननी है ।
*
साक्षीभाव
अगर आप चाहते ह िक आपके िच पर द:ु ख का ूभाव न पड़े तो सावधानीपूवक
र् द:ु ख के
साक्षी बनकर उसे दे खो या तो इन िवचारों से उसे काट दो िक “सुख भी आया और चला गया । द:ु ख
आया है वह भी चला जायेगा । इन आने जानेवाली चीजों को दे खनेवाला म अचल, सुखःवरुप,
साक्षी, चैतन्य आत्मा हँू |”
*

पिरिःथितयों का सदप
ु योग
जीवन की हर पिरिःथित का सदप
ु योग करो । जो भी पिरिःथित आये - मान आये, सुख
आये तो िचन्तन करो िक ‘‘ूभु मुझे उत्सािहत करने के िलए मान दे रहे ह, सफलता और सुिवधा
दे रहे ह । हे ूभु ! तेरी असीम कृ पा को धन्यवाद है !’’

जीवन में जब अपमान हो, द:ु ख आये, असफलता आये, िवरोध हो, िवपि आये तब
िचन्तन करो : “हे दयालु ूभु ! तू मुझे िवपरीत पिरिःथितयाँ दे कर मेरी आसि व ममता छुड़ा रहा
है । मेरी परीक्षा लेकर मेरा साहस व सामथ्यर् बढ़ा रहा है । हे ूभु ! तेरी कृ पा की सदा जय हो !’’
ऐसी समझ यिद हमने िवकिसत कर ली तो िफर कोई भी पिरिःथित हमें िहला नहीं सकेगी और
हम िनमर्ल मन से आत्मदे व में िःथत होने का सामथ्यर् पायेंगे ।
*

दोषों को भगाने की युि याँ


िजन कारणों से आपकी साधना में रुकावटें आती ह, िजन िवकारों के कारण तुम िगरते हो,
िजस िचन्तन तथा कमर् से आपका पतन होता है , उनको दरू करने के िलए ूात:काल सूयार्दय से
पूवर् उठकर ःनानािद से िनवृ हो, पूवार्िभमुख होकर आसन पर बैठ जायें । अपने इ या गुरुदे व का
ःमरण करके उनसे ःनेहपूवक
र् मन ही मन बातें करें । बाद में 10-15 गहरे ास लें और ‘हिर ॐ’
का गुज
ं न करते हुए अपनी दब
ु ल
र् ताओं को मानिसक रुप से सामने लायें और ॐकार की पिवऽ गदा
से उन्हें कुचलते जायें ।

अगर बार बार बीमार पड़ते हो तो उन बीमािरयों का िचन्तन करके उनकी जड़ को ही ॐ


की गदा से तोड़ डालें । बाद में बाहर से थोड़ा बहुत उपचार करके उनकी डािलयों और प ों को भी
न कर डालें । अगर काम-बोधािद मन की बीमािरयाँ ह तो उन पर भी ॐकार की गदा का ूहार
करें ।

की हुई गलती िफर से न करे , तो आदमी ःवाभािवक ही िनद ष हो जाता है । की हुई गलती
िफर से न करना यह बड़ा ूायि त है । गलती करता रहे और ूायि त भी करता रहे तो इससे कोई
यादा फायदा नहीं होता । इससे तो िफर अंदर में मंिथ बन जाती है िक “म तो ऐसा ही हँू |”

कोई भी गलती दब
ु ारा न होने दो । सुबह नहा धोकर पूवार्िभमुख बैठकर या िबःतर में ही
शरीर खींचकर ढीला छोड़ने के बाद यह िनणर्य करो िक “मेरी अमुक-अमुक गलितयाँ ह, जैसे िक,
यादा बोलने की । यादा बोलने से मेरी शि क्षीण होती है |” वाणी के अित व्यय से कईयों का
मन पीिड़त रहता है । इससे हािन होती है ।

अपना नाम लेकर सुबह संकल्प करो। यिद आपका नाम गोिवंद है तो कहो: “दे ख गोिवंद !
आज कम से कम बोलना है । वाणी की रक्षा करनी है । जो यादा और अनावँयक बोलता है
उसकी वाणी का ूभाव क्षीण हो जाता है । जो यादा बोला करता होगा वह झूठ जरुर बोलता होगा,
प की बात है । कम बोलने से, नहीं बोलने से, असत्य भाषण और िनन्दा करने से हम बच जायेंगे
। राग- े ष, ईंयार्, बोध व अशांित से भी बचेंगे । न बोलने में छोटे -मोटे नौ गुण ह । इस ूकार मन
को समझा दो । ऐसे ही यिद यादा खाने का या कामिवकार का या और कोई भी दोष हो तो उसे
िनकाल सकते ह ।

साधक को कैसा जीवन जीना, या िनयम लेना, िकन कारणों से पतन होता है , िकन
कारणों से वह भगवान और गुरुओं से दरू हो जाता है और िकन कारणों से भगव त्व के नजदीक
आ जाता है - इस ूकार का अ ययन, िचंतन, बीती बात का िसंहावलोकन व उन्नित के िलए नये
संकल्प करने चािहए ।
*

जीवनशि की रक्षा
आप कहीं जा रहे ह और राःते में आपने मरा हुआ पशु दे खा, िकसीका वमन दे खा अथवा
मल मूऽािद दे खा तो उस समय आपके िच में ग्लािन होती है । इससे आपकी जीवनशि कुछ
अंश में क्षीण होती है ।

उस समय या करें ? महापुरुषों ने बताया है िक ऐसे समय में सूयन


र् ारायण का ःमरण कर
लो, उनकी ओर िनहार लो, अिग्न, दे व या मंिदर के िशखर के दशर्न कर लो, भगवन्नाम जप कर लो
। ऐसा करने से क्षीण होनेवाली जीवनशि बच जायेगी ।
सूयार्िभमुख होकर पेशाब नहीं करना चािहए । इससे आगे चलकर िसरददर् आिद हो सकता
है ।

इन छोटी-छोटी बातों को अगर हम नहीं जानते ह तो िकतना ही जप करते रहें , िकतनी ही


खुराक खाते रहें , िफर भी मन और इिन्ियों को रोकने की या जीवनशि का ठ क उपयोग करने की
क्षमता हमारे पास नहीं रहती ।

ौ ा की रक्षा एवं संवधर्न


ौ ा मन का िवषय है और मन चंचल है । मनुंय जब स वगुण में होता है , तब ौ ा पु
होती है ।

स वगुण बढ़ता है साि वक आहार-िवहार से, साि वक वातावरण में रहने से एवं सत्संग
सुनने से । मनुंय जब रजो-तमोगुणी जीवन जीता है , तो मित नीचे के केन्िों में, हलके केन्िो में
पहँु च जाती है । मित जब नीचे चली जाती है , तब लगता है िक झूठ बोलने में, कपट करने में सार
है , कोटर् कचहरी जाना चािहए… आिद-आिद ।

ौ ा बनी रहे उसके िलए या करना चािहए ? अपनी ौ ा, ःवाःथ्य और सूझबूझ को


बुलद
ं बनाये रखने एवं िवकिसत करने के िलए अपना आहार शु रखें । यिद असाि वक आहार के
कारण मन में जरा भी मिलनता आती है तो ौ ा घटने लगती है । अत: ौ ा को बनाये रखने के
िलए आहार शुि का यान रखें ।

पिवऽ संग करें , सत्संग में जायें एवं पिवऽ मंथों का अ ययन करें ।
*

सबका मंगल, सबका भला हो…


अगर आपके मन में िकसी के िलए बुरे िवचार आते ह, तो सामनेवाले का अिहत हो या न हो
परं तु आपका अंत:करण जरुर मिलन हो जायेगा । फलःव प मन में अशांित उत्पन्न होगी जो सब
द:ु खों का कारण है ।

यिद आपके मन में िकसीके ूित ईंयार् होती है , तो उसके पास जाकर कह दें िक “मुझे माफ
करें , आपको दे खकर मुझे ईंयार् होती है । आप भी ूाथर्ना करें और म भी ूाथर्ना करुँ तािक आपके
ूित मेरी ईंयार् िमट जाय |”

कोई आपका िकतना भी बुरा करना चाहे पर आप अगर सावधान होकर उसके िलए अच्छा
ही सोचो और उसकी भलाई का ही िचन्तन करो तो कोई आपका कुछ नहीं िबगाड़ सकेगा । बुरा
सोचनेवाले के िवचार भी बदल जायेंगे। उसका दंु ूयोजन सफल नहीं हो पायेगा ।
*

व्यथर् के संकल्पों से बचने की कुंजी


व्यथर् के संकल्प न करें । व्यथर् के संकल्पों से बचने के िलए ‘हिर ॐ …’ के गुज
ं न का भी
ूयोग िकया जा सकता है । ‘हिर ॐ…’ के गुज
ं न में एक िवलक्षण िवशेषता है िक उससे फालतू
संकल्पों-िवकल्पों की भीड़ कम हो जाती है । यान के समय भी ‘हिर ॐ…’ का गुज
ं न करें िफर
शांत हो जायें । मन इधर उधर भागे िफर गुज
ं न करें । यह व्यथर् संकल्पों को हटायेगा एवं महा
संकल्प की पूितर् में मददरुप होगा ।
*

महानता के चार िस ांत


1. दय की ूसन्नता: िजसका दय िजतना ूसन्न, वह उतना यादा महान होता है ।
जैसे- ौीकृ ंण ूसन्नता की पराका ा पर ह । ॠिष का शाप िमला है , यदव
ु ंशी आपस में ही
लड़कर मार काट मचा रहे ह, न हो रहे ह, िफर भी ौीकृ ंण की बंसी बज रही ह…

2. उदारता: ौीकृ ंण ूितिदन सहॐों गायों का दान करते थे । कुछ न कुछ दे ते थे । धन और


योग्यता तो कईयों के पास होती है , लेिकन दे ने का सामथ्यर् सबके पास नहीं होता । िजसके
पास िजतनी उदारता होती है , वह उतना ही महान होता है ।

3. नॆता: ौीकृ ंण नॆता के धनी थे । सुदामा के पैर धो रहे ह ौीकृ ंण ! जब उन्होंने दे खा


िक पैदल चलने से सुदामा के पैरों में काँटें चुभ गये ह, उन्हें िनकालने के िलए उन्होंने
रुि मणीजी से सुई मँगवायी । सुई लाने में दे र हो रही थी तो अपने दाँतों से ही काँटें
खींचकर िनकाले और सुदामा के पैर धोये… िकतनी नॆता !

युिधि र आते तो ौीकृ ंण उठकर खड़े हो जाते थे । पांडवो के संिधदत


ू बनकर गये
और वहाँ से लौटे तब भी उन्होंने युिधि र को ूणाम करते हुए कहा: “महाराज ! हमने तो
कौरवों से संिध करने का ूय िकया, िकंतु हम िवफल रहे |”

ऐसे तो चालबाज लोग और सेठ लोग भी नॆ िदखते ह | परं तु केवल िदखावटी


नॆता नहीं, दय की नॆता होनी चािहए । दय की नॆता आपको महान बना दे गी ।

4. समता: ौीकृ ंण तो मानो, समता की मूितर् थे । महाभारत का इतना बड़ा यु हुआ, िफर
भी कहते ह िक “कौरव-पांडवों के यु के समय यिद मेरे मन में पांडवों के ूित राग न रहा
हो और कौरवों के ूित े ष न रहा हो तो मेरी समता के परीक्षाथर् यह बालक जीिवत हो जाय
| और बालक (परीिक्षत) जीिवत हो उठा…

िजसके जीवन में ये चार सदगुण ह, वह अवँय महान हो जाता है ।

परमात्म ूेम में पाँच बाधक बातें


िनम्निलिखत पाँच कारणों से परमात्म ूेम में कमी आती है :
1. अिधक ूकार के मंथ पढ़ने से परमात्म ूेम िबखर जाता है ।

2. बिहमुख
र् लोगों की बातों में आने से और उनकी िलखी हुई पुःतकें पढ़ने से परमात्म-ूेम
िबखर जाता है ।

3. बिहमुख
र् लोगों के संग से, उनके साथ खाने पीने अथवा हाथ िमलाने से और उनके
ासोच्छवास में आने से हलके ःपंदन (vibraton) आते ह, िजससे परमात्म ूेम में कमी
आती है ।

4. िकसी भी व्यि में आसि करोगे तो आपका परमात्म ूेम खंड़ में फँस जायेगा, िगर
जायेगा । िजसने परमात्मा को नहीं पाया है उससे अिधक ूेम करोगे तो वह आपको अपने
ःवभाव में िगरायेगा । परमात्म ूा महापुरुषों का ही संग करना चािहए ।

‘ौीम ागवत’ में भगवान किपल दे वहूित से कहते ह: “आसि बड़ी दज


ु य
र् है ।
वह जल्दी नहीं िमटती । वही आसि जब सत्पुरुषों में होती है , तब वह संसार सागर से
पार लगानेवाली हो जाती है |”
ूेम करो तो ॄ वे ाओं से, उनकी वाणी से, उनके मंथों से करो । संग करो तो
ॄ वे ाओं का ही । इससे ूेमरस बढ़ता है , भि का माधुयर् िनखरता है , ान का ूकाश
होने लगता है ।

5. अिधकारी न होते हुए भी उपदे शक या व ा बनने से भी ूेमरस सूख जाता है ।


*

परमात्म ूेम में सहायक पाँच बातें


परमात्म ूेम बढ़ाने के िलए जीवन में िनम्निलिखत पाँच बातें आ जायें ऐसा य करना चािहए:

1. भगवच्चिरऽ का ौवण करो । महापुरुषों के जीवन की गाथाएँ सुनो या पढ़ो । इससे भि


बढ़े गी एवं ान वैराग्य में मदद िमलेगी ।

2. भगवान की ःतुित भजन गाओ या सुनो ।

3. अकेले बैठो तब भजन गुनगुनाओ । अन्यथा, मन खाली रहे गा तो उसमे काम, बोध, लोभ,
मोह, मद, मात्सयर् आयेंगे । कहा भी गया है िक “खाली मन - शैतान का घर |”

4. जब परःपर िमलो तब परमे र की, परमे र-ूा महापुरुषों की चचार् करो । िदये तले
अँधेरा होता है लेिकन दो िदयों को आमने सामने रखो तो अँधेरा भाग जाता है । िफर
ूकाश ही ूकाश रहता है । अकेले में भले कुछ अच्छे िवचार आयें िकंतु वे यादा
अिभव्य नहीं होते । जब ई र की चचार् होती है तब नये-नये िवचार आते ह, एक दस
ू रे का
अ ान और ूमाद हटता है तथा एक दस
ू रे की अौ ा िमटती है ।

भगवान और भगवत्ूा महापुरुषों में हमारी ौ ा बढ़े ऐसी ही चचार् करनी सुननी
चािहए । सारा िदन यान नहीं लगेगा, सारा िदन समािध नहीं होगी । अत: ई र की चचार्
करो, ई र सम्बन्धी बातों का ौवण करो । इससे समझ बढ़ती जायेगी, ूकाश बढ़ता
जायेगा, शांित बढ़ती जायेगी ।

5. सदै व ूभु की ःमृित करते-करते िच को आनंिदत होने की आदत डाल दो ।

ये पाँच बातें परमात्म ूेम बढ़ाने में अत्यंत सहायक ह ।


*

छः बातों से बचो
दे विषर् नारद ने गालव ॠिष से कहा है : “चाहे साधु हो या सवर्सामान्य व्यि , सभी को इन छ: बातों
से बचना चािहए:
1. रात को घूमना ।

2. िदन में नींद लेना ।

3. आलःय का आौय लेना ।

4. चुगली करना ।

5. गवर् करना ।

6. अित पिरौम करना अथवा पिरौम से िबल्कुल दरू रहना । योंिक अिधक पिरौम से
साधन भजन की क्षमता िबखर जायेगी और अिधक आराम से आलःय आयेगा |
*

छः बातों को अपनाओ
1. पहली बात है : अपना उ े ँय ऊँचा रखें ।

2. दस
ू री बात है : व्यथर् की बातों में समय न गँवायें । व्यथर् की बातें करें गे, सुनेंगे तो जगत की
सत्यता दृढ़ होगी, िजससे राग े ष की वृि होगी और राग े ष से िच मिलन होगा । अत:
राग े ष से ूेिरत होकर कमर् न करें ।

सेवाकायर् तो करें लेिकन राग- े ष से ूेिरत होकर नहीं, अिपतु दस


ू रे को मान दे कर,
दस
ू रे को िव ास में लेकर सेवाकायर् करने से सेवा भी अच्छ तरह से होती है और साधक
की योग्यता भी िनखरती है ।

3. तीसरी बात है : जो कायर् करें उसे उत्साह से, कुशलता से पूणर् करें । ऐसा नहीं िक कोई िवघ्न
आया और काम छोड़ िदया । यह कायरता नहीं होनी चािहए ।
योग: कमर्सु कौशलम ् ।
योग वही है जो कमर् में कुशलता लाये ।

कोई काम छोटा नहीं है और कोई काम बड़ा नहीं है । पिरणाम की िचन्ता िकये
िबना उत्साह, धैयर् और कुशलतापूवक
र् कमर् करनेवाला सफलता को ूा कर लेता है ।
अगर वह िनंफल भी हो जाय तो हताश िनराश नहीं होता, वरन ् पुन: लग जाता है और
कायर् पूरा होने तक उसीमें लगा रहता है ।

4. चौथी बात है : कमर् तो करें लेिकन कतार्पन का गवर् न आये और लापरवाही से कमर् िबगड़े
नहीं, इसकी सावधानी रखें । सबके भीतर ई रीय संपदा भरपूर है । उस संपदा को पाने के
िलए सावधान व सतकर् रहना चािहए ।

5. पाँचवीं बात है : जीवन में केवल ई र को मह व दें । सबमें कुछ न कुछ गुण दोष होते ही ह
। यों- यों साधक संसार को मह व दे गा त्यों-त्यों उसके दोष बढ़ते जायेंगे और यों- यों
ई र को मह व दे गा त्यों-त्यों सदगुण बढ़ते जायेंगे ।

6. ठ बात है : साधक का व्यवहार पिवऽ होना चािहए, दय पिवऽ होना चािहए । लोगों के
िलए उसका जीवन ही आदशर् बन जाय, ऐसा पिवऽ उसका आचरण होना चािहए ।

इन छ: बातों को अपने जीवन में अपनाकर साधक अपने लआय को पाने में अवँय कामयाब हो
सकता है ।
*

साधना के छः िवघ्न
1. िनिा,

2. तंिा,

3. आलःय,

4. मनोराज,

5. लय और

6. रसाःवाद
ये छ: साधना के बड़े िव न ह । अगर ये िव न न आयें तो हर मनुंय भगवान के दशर्न कर ले ।

“जब हम माला लेकर जप करने बैठते ह, तब मन कहीं से कहीं भागता है । िफर ‘मन
नहीं लग रहा…’ ऐसा कहकर माला रख दे ते ह । घर में भजन करने बैठते ह तो मंिदर याद
आता है और मंिदर में जाते ह तो घर याद आता है । काम करते ह तो माला याद आती है
और माला करने बैठते ह तब कोई न कोई काम याद आता है |” ऐसा यों होता है ? यह एक
व्यि का नहीं, सबका ू है और यही मनोराज है ।

कभी-कभी ूकृ ित में मन का लय हो जाता है । आत्मा के दशर्न नहीं होते िकंतु मन का


लय हो जाता है और लगता है िक यान िकया । यान में से उठते है तो जम्हाई आने
लगती है । यह यान नहीं, लय हुआ । वाःतिवक यान में से उठते ह तो ताजगी,
ूसन्नता और िदव्य िवचार आते ह िकंतु लय में ऐसा नहीं होता ।

कभी-कभी साधक को रसाःवाद परे शान करता है । साधना करते-करते थोड़ा बहुत
आनंद आने लगता है तो मन उसी आनंद का आःवाद लेने लग जाता है और अपना मु य
लआय भूल जाता है ।

कभी साधना करने बैठते ह तो नींद आने लगती है और जब सोने की कोिशश करते है
तो नींद नहीं आती । यह भी साधना का एक िवघ्न है ।

तंिा भी एक िवघ्न है । नींद तो नहीं आती िकंतु नींद जैसा लगता है । यह सूआम िनिा
अथार्त तंिा है ।

साधना करने में आलःय आता है । “अभी नहीं, बाद में करें गे…” ऐसा सोचते ह तो यह
भी एक िवघ्न है ।

इन िवघ्नों को जीतने के उपाय भी ह ।


मनोराज एवं लय को जीतना हो तो दीघर् ःवर से ॐ का जप करना चािहए ।

ःथूल िनिा को जीतने के िलए अल्पाहार और आसन करने चािहए । सूआम िनिा यानी तंिा को
जीतने के िलए ूाणायाम करने चािहए ।

आलःय को जीतना हो तो िनंकाम कमर् करने चािहए । सेवा से आलःय दरू होगा एवं धीरे -धीरे
साधना में भी मन लगने लगेगा ।
ौी रामानुजाचायर् ने कुछ उपाय बताये ह, िजनका आौय लेने से साधक िस बन सकता है । वे
उपाय ह :

• िववेक: आत्मा अिवनाशी है , जगत िवनाशी है । दे ह हाड़ मांस का िपंजर है , आत्मा अमर है
। शरीर के साथ आत्मा का कतई सम्बन्ध नहीं है और वह आत्मा ही परमात्मा है । इस
ूकार का तीो िववेक रखें ।

• िवमुखता: िजन वःतुओं, व्यसनों को ई र ूाि के िलए त्याग िदया, िफर उनकी ओर न
दे खें, उनसे िवमुख हो जायें । घर का त्याग कर िदया तो िफर उस ओर मुड़-मुड़कर न दे खें ।
व्यसन छोड़ िदये तो िफर दब
ु ारा न करें । जैसे कोई वमन करता है तो िफर उसे चाटने नहीं
जाता, ऐसे ही ई र ूाि में िवघ्न डालनेवाले जो कमर् ह उन्हें एक बार छोड़ िदया तो िफर
दब
ु ारा न करें |

• अभ्यास: भगवान के नाम जप का, भगवान के यान का, सत्संग में जो ान सुना है
उसका िनत्य, िनरं तर अभ्यास करें ।

• कल्याण: जो अपना कल्याण चाहता है वह औरों का कल्याण करे , िनंकाम भाव से औरों
की सेवा करे ।

• भगवत्ूाि जन्य िबया: जो कायर् तन से करें उनमें भी भगवत्ूाि का भाव हो, जो


िवचार मन से करें उनमें भी भगवत्ूाि का भाव हो और जो िन य बुि से करें उन्हें भी
भगवत्ूाि के िलए करें ।

• अनवसाद: कोई भी द:ु खद घटना घट जाय तो उसे बार-बार याद करके द:ु खी न हों ।

• अनुहषार्त ्: िकसी भी सुखद घटना में हषर् से फुलें नहीं । जो साधक इन सात उपायों को
अपनाता है वह िसि ूा कर लेता है ।
*

परमात्म ूाि के सात सचोट उपाय


1. पहला उपाय: परमात्म त व की कथा का ौवण करें ।

2. दस
ू रा उपाय: सत्पुरुषों के सािन्न य में रहें ।
जैसा संग वैसा रं ग
संग का रं ग अवँय लगता है । यिद स जन व्यि भी दज
ु न
र् का अिधक संग करे तो उसे
कुसंग का रं ग अवँय लग जायेगा । इसी ूकार यिद दज
ु न
र् से दज
ु न
र् व्यि भी महापुरुषों का
सािन्न य ूा करे तो दे र सवेर वह भी महापुरुष हो जायेगा ।

3. तीसरा उपाय: ूेमपूवक


र् नामजप संकीतर्न करें । तुलसीदासजी कहते ह:

मंऽ जाप मम दृढ़ िबःवासा ।


पंचम भजन सो बेद ूकासा ॥

यिद मंऽ िकसी ॄ वे ा स रु


ु ारा ूा हो और िनयमपूवक
र् उसका जप िकया
जाय तो िकतना भी द ु अथवा भोगी व्यि हो, उसका जीवन बदल जायेगा । द ु की
द ु ता स जनता में बदल जायेगी । भोगी का भोग योग में बदल जायेगा ।

4. चौथा उपाय: सुख द:ु ख को ूसन्निच से भगवान का िवधान समझें । पिरिःथितयों को


आने जानेवाली समझकर बीतने दें । घबरायें नहीं या आकिषर्त न हों ।

ऐसा नहीं िक कुछ अच्छा हो गया तो खुश हो जायें िक “भगवान की बड़ी कृ पा है ” और


कुछ बुरा हो गया तो कहें : “भगवान ने ऐसा नहीं िकया, वैसा नहीं िकया |”

लेिकन आपको या पता िक भगवान आपका िकतना िहत चाहते ह ? इसिलए कभी
भी अपने को द:ु खद िचंतन या िनराशा की खाई में नहीं िगराना चािहए और न ही अहं कार
की दलदल में फँसना चािहए वरन ् यह िवचार करें िक संसार सपना है । इसमें ऐसा तो होता
रहता है ।

5. पाँचवाँ उपाय: सबको भगवान का अंश मानकर सबके िहत की भावना करें । मनुंय जैसा
सोचता है वैसा ही हो जाता है इसिलए कभी शऽु का भी बुरा नहीं सोचना चािहए, बिल्क
ूाथर्ना करनी चािहए िक परमात्मा उसे सदबुि दें , सन्मागर् िदखायें । ऐसी भावना करने
से शऽु की शऽुता भी िमऽता में बदल सकती है ।

6. ठा उपाय: ई र को जानने की उत्कंठा जागृत करें । जहाँ चाह वहाँ राह । िजसके दय में
ई र के िलए चाह होगी, उस रसःवरुप को जानने की िज ासा होगी, उस आनंदःवरुप के
आनंद के आःवादन की तड़प होगी, प्यास होगी वह अवँय ही परमात्म ूेरणा से संतों के
ार तक पहँ च जायेगा और दे र सवेर परमात्म साक्षात्कार कर जन्म मरण से मु हो
जायेगा ।

7. सातवाँ उपाय: साधनकाल में एकांतवास आपके िलए अत्यंत आवँयक है । भगवान बु
ने छ: साल तक अर य में एकांतवास िकया था । ौीम आघ शंकराचायर्जी ने नमर्दा तट
पर सदगुरु के सािन्न य में एकान्तवास में रहकर यानयोग, ानयोग इत्यािद के उ ग
ुं
िशखर सर िकये थे । उनके दादागुरु गौड़पादाचायर्जी ने एवं सदगुरु गोिवन्दपादाचायर्जी ने
भी एकांत सेवन िकया था, अपनी वृि यों को इिन्ियों से हटाकर अंतमुख
र् िकया था । अत:
एकांत में ूाथर्ना और ॄ ाभ्यास करें ।

यिद इन सात बातों को जीवन में उतार लें तो अवँय ही परमात्मा का अनुभव होगा।
*

पंचसकारी साधना
इस साधना के पाँच अंग है तथा पाँचों अंगों के नाम ‘स’ कार से आरं भ होते ह, इसिलए इसे
‘पंचसकारी’ की सं ा दी गयी है ।

1. सिहंणुता: अपने जीवन में सिहंणुता (सहनशीलता) लायें। जरा-जरा सी बात में डरें नहीं,
जरा-जरा सी बात में उि ग्न न हों, जरा-जरा सी बात में बहक न जायें, जरा- जरा सी बात
में िसकुड़ न जायें । थोड़ी सहनशि रखें । तटःथ रहें । िवचार करें िक यह भी बीत जायेगा

यह िव जो है दीखता, आभास अपना जान रे ।
आभास कुछ दे ता नहीं, सब िव िमथ्या मान रे ॥
होता वहाँ ही द:ु ख है , कुछ मानना होता जहाँ ।
कुछ मानकर हो न द:ु खी, कुछ भी नहीं तेरा यहाँ ॥

चाहे िकतना भी किठन व हो, चाहे िकतना भी बिढ़या व हो- दोनों बीतनेवाले ह और
आपका चैतन्य रहनेवाला है । ये पिरिःथितयाँ आपके साथ नहीं रहें गी िकंतु आपका
परमे र तो मौत के बाद भी आपके साथ रहे गा । इस ूकार की समझ बनाये रखें ।

2. सेवा: आपके जीवन में सेवा का सदगुण हो । ई र की सृि को सँवारने के भाव से आप


पुऽ-पौऽ, पित-प ी आिद की सेवा कर लें । “प ी मुझे सुख दे ” । इस भाव से की तो यह
ःवाथर् हो जायेगा और ःवाथर् लम्बे समय तक शांित नहीं दे सकता । पित की गित पित
जानें, म तो सेवा करके अपना फजर् िनभा लू…
ँ प ी की गित प ी जाने म तो अपना
उ रदाियत्व िनभा लूँ । ऐसे िवचारों से सेवा कर लें।

प ी लाली िलपिःटक लगाये कोई जरुरी नहीं है , िडःको करे कोई जरुरी नहीं है । जो
लोग अपनी प ी को कठपुतली बनाकर, िडःको करवाकर दस
ू रे के हवाले करते ह और
पि याँ बदलते ह, वे नारी जाित का घोर अपमान करते ह । वे नारी को भोग्या बना दे ते ह ।
भारत की नारी भोग्या या कठपुतली नहीं है , वह तो भगवान की सुपुऽी है । नारी तो
नारायणी है ।

3. सम्मान दान: तीसरा सदगुण है सम्मान दान । छोटे से छोटा ूाणी और बड़े से बड़ा व्यि
भी सम्मान चाहता है । सम्मान दे ने में रुपया पैसा नहीं लगता और दे ते समय आपका
दय भी पिवऽ होता है । अगर आप िकसीसे िनद ष प्यार करते ह तो खुशामद से हजार
गुना यादा ूभाव उस पर पड़ता है । अत: ःवयं मान पाने की इच्छा न रखे वरन ् औरों को
सम्मान दें ।

4. ःवाथर् त्याग: चौथा सदगुण है ःवाथर् त्याग । िन:ःवाथर् होकर कमर् करें , ःवाथर् भाव से
नहीं । ःवाथर् त्याग की भावना अन्य गुणों को भी िवकिसत करती है ।

5. समता: पाँचवीं बात है िक आपमें समता का सदगुण आ जाय । िच सम रहे गा तो आपकी


आित्मक शि बढ़े गी, आपका योग िस होगा और आप आत्म ान पाने में सफल हो
जायेंगे ।

यह ‘पंचसकारी साधना’ ानयोग की साधना है । इसका आौय लेने से आप भी ानयोग में


िःथित पा सकते ह ।
*

आरोग्यता की कुंिजयाँ
हःत-िचिकत्सा
हःत-िचिकत्सा शरीर के िकसी भी अंग की पीड़ा का चमत्कािरक ढं ग से िनवारण
करनेवाली, ःवाःथ्य एवं सौन्दयर्वधर्क िचिकत्सा प ित है ।

मानिसक पिवऽता और एकामता के साथ मन में िनम्निलिखत वेदमंऽ का पाठ करते हुए
दोनों हथेिलयों को परःपर रगड़कर गरम करें , तत्प ात ् उनसे पाँच िमनट तक पीिड़त अंग का बार
बार सेंक करें और उसके बाद नेऽ बन्द करके कुछ िमनट तक सो जाइये । इससे गिठया, िसरददर्
तथा अन्य सब ूकार के ददर् दरू होते ह । मंऽ इस ूकार है :

अयं मे हःतो भगवानयं मे भगव र:।


अयं मे िव भेषजोsयं िशवािभमशर्नम ्॥

“मेरी ूत्येक हथेली भगवान (ऐ यर्शाली) है , अच्छा असर करनेवाली है , अिधकािधक


ऐ यर्शाली और अत्यंत बरकतवाली है । मेरे हाथ में िव के सभी रोगों की समःत औषिधयाँ ह
और मेरे हाथ का ःपशर् कल्याणकारी, सवर् रोगिनवारक तथा सवर् सौन्दयर्सप
ं ादक है |”
आपकी मानिसक पिवऽता तथा एकामता िजतनी अिधक होगी, उसी अनुपात में आप इस
मंऽ ारा हःत-िचिकत्सा में सफल होते चले जायेंगे । अपनी हथेिलयों के इस ूकार के पिवऽ
ूयोग से आप न केवल अपने, अिपतु अन्य लोगों के रोग भी दरू कर सकते ह ।
( िवःतृत जानकारी के िलए आौम से ूकािशत पुःतक ‘आरोग्यिनिध-1’ के पृ - 177 पर दे खें । )
*

वात ददर् िमटाने का उपाय


वातरोग के कई ूकार ह । िकसी भी ूकार के वातरोग के िलए यह उपाय आजमाया जा
सकता है :

तजर्नी(पहली उँ गली) को हाथ के अँगठ


ू े के आिखरी िसरे पर रखो और तीन उँ गिलयाँ सीधी
रखो । िफर बायाँ नथुना बंद करके दायें नथुने से खूब ास भरो । जहाँ पर वातरोग का असर हो -
घुटने में ददर् हो, कमर में ददर् हो, चाहे कहीं भी ददर् हो, उस अंग को िहलाओ-डु लाओ । भरे हुए ास
को आधे या पौने िमनट तक रोको, यादा से यादा एक िमनट तक रोको, िफर बायें नथुने से बाहर
िनकाल दो । ऐसे दस बारह ूाणायाम करो तो ददर् में फायदा होता है । एलोपैथी की दवाइयाँ रोग
को दबाती ह जबिक आसन, ूाणायाम उपवास आिद रोग को जड़ से िनकालकर फेंक दे ते ह । इन
उपायों से जो फायदा होता है वह एलोपैथी के कैप्सूल इं जे शन आिद से नहीं होता ।
*
थकान व िसरददर् िमटाने का उपाय
जब आप बहुत थके हुए हों तो जीभ को जरा सा बाहर िनकालकर तजर्नी उँ गली को अँगूठे
से दबायें, िफर दोनों को शून्याकार (0) दे कर कुछ दे र तक आराम करें । इससे ानतंतुओं को
पोषण िमलता है और थकान िमटती है ।

िजसका िसर बहुत दख


ु ता हो वह भी जीभ को थोड़ा सा बाहर िनकालकर, िदन में 3बार 2-2
िमनट तक उ मुिा करे तो उससे कई ूकार के िसर ददर् िमट जाते ह ।
*

बुि शि िवकासक ूयोग


सुबह सूय दय से पहले ःनानािद से िनवृ होकर ःवच्छ वातावरण में ूाणायाम करने
चािहए । तुलसी के प े चबाकर रात का रखा एक िगलास पानी पीना चािहए । इससे बुि शि में
गजब की वृि होती है ।
*

तनावों से बचने के उपाय


1. शरीर को अित थकाओ मत ।

2. “म थक गया हँू |” ऐसा सोचकर मन से भी मत थको । मन को तनाव में न डालो । कभी


िचंितत न हों, कभी द:ु खी न हों । िचंता आये तो िचंितत न हों वरन ् िवचार करो िक िचंता
आयी है तो मन में आयी है । िचंता नहीं थी तब भी कोई था, िचंता है तब भी कोई है और
िचंता आयी है तो जायेगी भी योंिक जो आता है वह जाता भी है । जो होगा, दे खा जायेगा ।

3. भावनाओं एवं कल्पनाओं में मत उलझो लेिकन ‘हिर ॐ तत ् सत ् और सब गपशप’


इस मंऽ की गदा से तनाव वाली कल्पनाओं व भावनाओं को मार भगाओ ।

4. शारीिरक और मानिसक तनाव दरू करने के िलए सुद


ं र उपाय है - अजपा गायऽी । शरीर को
खूब खींचे, िफर ढीला छोड़ दें । मन ही मन िचन्तन करें िक “म ःवःथ हँू … शरीर की
थकान िमट रही है …” इस ूकार शारीिरक आराम लेकर िफर ासोच् वास की िगनती
करें । इससे शारीिरक एवं मानिसक तनाव िमटें गे ।
*
िनराशा के क्षणों में
अपने मन में िहम्मत और दृढ़ता का संचार करते हुए अपने आपसे कहो िक “मेरा जन्म
पिरिःथितयों पर िवजय ूा करने के िलए हुआ है , परािजत होने के िलए नहीं । म इ र का,
चैतन्य का सनातन अंश हँू । जीवन में सदै व सफलता व ूसन्नता की ूाि के िलए ही मेरा जन्म
हुआ है , असफलता या पराजय के िलए नहीं । म अपने मन में दीनता हीनता और पलायनवािदता
के िवचार कभी नहीं आने दँ ग
ू ा । िकसी भी कीमत पर म िनराशा के हाथों अपनी शि यों का नाश
नहीं होने दँ ग
ू ा |”

द:ु खाकार वृि से द:ु ख बनता है । वृि बदलने की कला का उपयोग करके द:ु खाकार वृि
को काट दे ना चािहए ।

आज से ही िन य कर लो िक “आत्म साक्षात्कार के मागर् पर दृढ़ता से आगे बढ़ता रहँू गा ।


नकारात्मक या फिरयादात्मक िवचार करके द:ु ख को बढ़ाऊँगा नहीं, अिपतु सुख द:ु ख से परे
आनंदःवरुप आत्मा का िचन्तन करुँ गा |”

सदगुण सदाचार
छ: घटे से अिधक सोना, िदन में सोना, काम में सावधानी न रखना, आवँयक कायर् में
िवलम्ब करना आिद सब ‘आलःय’ ही है । इन सबसे हािन ही होती है । अत: सावधान ! मन, वाणी
और शरीर के ारा न करने योग्य व्यथर् चे ा करना तथा करने योग्य कायर् की अवहे लना करना
ूमाद है । ऐश- आराम, ःवादलोलुपता, फैशन, िसनेमा आिद दे खना, लबों में जाना आिद सब
भोग है । काम, बोध, लोभ, मोह, दं भ, दपर्, अिभमान, अहं कार, मद, ईंयार्, आिद दग ुर् ह । संयम,
ु ण
क्षमा, दया, शांित, समता, सरलता, संतोष, ान, वैराग्य, िनंकामता आिद सदगुण ह । य , दान,
तप, तीथर्, ोत, और सेवा-पूजा करना तथा अिहं सा, सत्य, ॄ चयर् का पालन करना आिद सदाचार
ह।

शुरुआत में सच्चे आदमी को भले ही थोड़ी किठनाई िदखे और बेईमान आदमी को भले
थोड़ी सुिवधा िदखे, लेिकन अंततोगत्वा तो सच्चाई एवं समझदारीवाला ही इस लोक और परलोक
में सुखी रह पाता है ।

िजनके जीवन में धमर् का ूभाव है उनके जीवन में सारे सदगुण आ जाते ह, उनका जीवन
ऊँचा उठ जाता है , दस
ू रों के िलए उदाहरणःवरुप बन जाता है ।
आप भी धमर् के अनुकूल आचरण करके अपना जीवन ऊँचा उठा सकते हो । िफर आपका
जीवन भी दस
ू रों के िलए आदशर् बन जायेगा, िजससे ूेरणा लेकर दस
ू रे भी अपना जीवन ःतर ऊँचा
उठाने को उत्सुक हो जायेंगे ।

अ यात्म का राःता अटपटा जरुर है । थोड़ी बहुत खटपट भी होती है और समझ में भी
झटपट नहीं आता लेिकन अगर थोड़ा सा भी समझ में आ जाय, धीरज न छूटे , साहस न टू टे और
परमात्मा को पाने का लआय न छूटे तो ूाि हो ही जाती है ।

इन शा ीय वचनों को बार-बार पढ़ो, िवचारो और उन्नित के पथ पर अमसर बनो ।


शाबाश वीर !! शाबाश !! हिर ॐ … ॐ … ॐ …

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