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Amir Khusro
Amir Khusro
http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/amirgnth.htm
सद बैज-ए-अ बर बर आँ मूये जम अ त,
"सर इन खदद
ु ु जुई न दौरत क ितदौर ।
इसके बाद सन १२८६ ई. म खुसरो अवध के गवनर (सूबेदार) खान अमीर अली
सृजनदार उफ हाितम खाँ के यहाँ दो वष तक रहे । यहाँ खुसरो ने इ ह ं अमीर
के िलए 'अ पनामा' नामक पु तक िलखी। खुसरो िलखते ह - "वाह या सादाब
सरजमीं है ये अवध क । दिनया
ु जहान के फल-फूल मौजूद। कैसे अ छे मीठ
बोली के लोग। मीठ व रं गीन त बयत के इं सान। धरती खुशहाल जमींदार
मालामाल। अ मा का खत आया था। याद कया है । दो म हने हए
ु पाँचवा खत
आ गया। अवध से जुदा होने को जी तो नह ं चाहता मगर दे हली मेरा वतन,
मेरा शहर, दिनया
ु का अलबेला शहर और फर सबसे बढ़कर माँ का साया,
ज नत क छाँव। उ फो ओ दो साल िनकल गए अवध म। भई बहत
ु हआ।
ु
अब म चला। हाितमा खाँ दलो जान से तु हारा शु या मगर म चला। जरो
माल पाया, लुटाया, खलाया, मगर म चला। वतन बुलाता धरती पुकारती है । अब
तक अमीर खुसरो क भाषा म बृज व खड़ (दहलवी) के अित र पंजाबी, बंगला
और अवधी क भी चा ी आ गई थी। अमीर खुसरो क इस भाषा से ह द के
भावी यापक व प का आधार तैयार हआ
ु जसक सश नींव पर आज क
प रिन त ह द खड़ है । सन १२८८ ई. म खुसरो द ली आ गए और बुगरा
खाँ के नौजवान पु कैकुबाद के दरबार म बुलाए गए। कैकुबाद का पता बुगरा
खाँ बंगाल का शासक था। जब उसने सुना क कैकुबाद ग पर बैठने के बाद
वे छाचार और वलासी हो गया है तो अपने पु को सबक िसखाने के िलए
सेना ले कर द ली पहँु चा। ले कन इसी बीच अमीर खुसरो ने दोन के बीच
शांित संिध कराने म एक मह वपूण भूिमक िनभाई। इसी खुशी म कैकुबाद ने
खुसरो को राजस मान दया। खुसरो ने इसी संदभ म करानु सादै न (दो शुभ
िसतार का िमलन) नाम से एक मसनवी िलखी जो ६ मास म पूर हई।
ु (६८८
ह ी। सन १२८८ उ ३५ वष, मूल वषय है बलबन के पु कैकुबाद का ग
पर बैठना, फर पता बुगरा खाँ से झगड़ा और अंत म दोन म समझौता। उस
समय के रहन सहन, त कालीन इमारत, संगीत, नृ य आ द क िच ण। इसम
द ली क वशेष प से तार फ है । अत: इसे मसनवी दर िसफत-ए-दे हली भी
कहते ह। शेर क भरमार है । अमीर खुसरो अपनी इस मसनवी म िलखते ह क
कैकुबाद को उनके गु िनजामु न औिलया का नाम भी सुनना पसंद नह ं था।
खुसरो आगे िलखते ह - " या तार खी वाकया हआ।
ु बेटे ने अमीर क सा जश
से त त हिथया िलया, बाप से जंग को िनकला। बाप ने त त उसी को सुपुद
कर दया। बादशाह का या? आज है कल नह ं। ऐसा कुछ िलख दया है क
आज भी लु फ दे और कल भी जंदा रहे । अपने दो त , द ु मन क , शाद क ,
गमी क , मुफिलस और खुशहाल क , ऐसी-ऐसी रं गीन, त वीर मने इसम खच
द है क रहती दिनया
ु तक रहगी। कैसा इनाम? कहाँ के हाथी-घोड़े ? मुझे तो
फ है क इस मसनवी म अपनी पीरो मुरिशद हजरत वाजा िनजामु न का
ज कैसे परोऊँ? मेरे दल के बादशाह तो वह ह और वह मेर इस न म म
न ह , यह कैसे हो सकता है ? वाजा से बादशाह खफा है , नाराज ह, दल म गाँठ
है , जलता है । वाजा िनजामु न औिलया ने शायद इसी याल से उस दन
कहा होगा क दे खा खुसरो, ये न भूलो क तुम दिनयादार
ु भी हो, दरबार सरकार
से अपना िसलिसला बनाए रखो। मगर दरबार से िसलिसला या है िसयत
इसक । तमाशा है , आज कुछ कल कुछ।" खुसरो को करानु सादै न मसनवी पर
मिलकुशओरा
् क उपािध से वभू षत कया गया। सन १२९० म कैकुबाद मारा
गया और गुलाम वंश का अंत हो गया।
इसी बीच मंगोल ने अचानक दे हली पर हमला बोल दया। अलाउ न खलजी
क फ़ौज ने ख़ूब डटकर सामना कया। मंगोल को आ ख़रकार मुँह क खानी
पड़ । कुछ तो अपनी जान बचा कर भागने म सफल हए
ु तो बहत
ु से बंद बना
िलए गए। इितहासकार अमीर खुसरो आँख दे खा हाल सुनाते हए
ु कहते ह - या
ख़बर लाए हो। हजू
ु र फ़तेह क । वो तुमसे पहले पहँु च चुक है । सच-सच बताओ
कतने मंगोल ल कर मारे गए ह? हजू
ु र बीस हज़ार से ज़यादा। कतने िगर तार
कए? अभी िगना नह ं मगर हज़ार , जो सर झुकाएँ तौबा कर, उनके कान म
हलका टकाओ। शहर से दस कोस दरू एक ब ती बसाकर रहने क इजाज़त है
इन नामुराद को। ब ती होगी मंगोल पुर । पहरा चौक । जनसे सरकशी का अंदेशा
हो, उनके सर उतार कर मीनार बना दो। इनके बाप दादा को खोप ड़य के मीनार
बनाने का बहत
ु शौक़ था और अब इनके सर उतारते जाओ, मीनार बनाते जाओ।
इ ह दखाते जाओ। शहर क द वार बनाने म जो गारा लगेगा, उसम पानी नह ं,
दे हली पर चढ़ाई करने वाल का ख़ून डालो, लहू डालो। सुना मीरे तामीर, सुख
गारा (गाड़ा) खून। शहर पना क सुख द वार। अ ह ह ह हा। तैयार क जाय।
गुजरात क ओर फ़ौज रवाना हो। कसी कार क कोई दे र न हो। दरबार
बख़ा त।"
उ र - लोटा।
यहाँ पहली पं का आ खर श द ह पहे ली का उ र है जो पहे ली म कह ं भी
हो सकता है । इन पहे िलय का उ र पहे िलय म ह होता है । खुसरो क बूझ
पहे िलय के भी दो वग बनाए जा सकते ह। कुछ म तो उ र एक ह श द म
रहता है जैसा क हम ऊपर दे ख चुके ह। दसर
ू पहे ली म कभी-कभी उ र के
िलए दो श द को िमलाना पड़ता है । जैसे –
उ र - आर । यहाँ दसर
ू पं के आ खर श द 'आ' और 'र ' को िमलाने से उ र
िमलता है ।
उ र - नाखून।
उ र - दया।
उ र - मना।
उ र - मोर (नाली)
उ र – तलवार
उ र - मोर।
दे खा जादगर
ू का हाल, डाले हरा िनकाले लाल।
उ र - पान।
उ र – आसमान
उदाहरण -
उ र - बगुला (प ी)
(ख) एक नार के ह दो बालक, दोन एक ह रं ग।
उ र - च क।
उ र – भु टा
उ र - कु हार क चाक
उ र – कु हार
(छ) गोर सु दर पातली, केहर काले रं ग।
उ र - अहरह क दाल।
उ र – सुपार
उ र - भु टा (छ ली)
उ र - हु के का धुआ
ँ
उ र - आइना (शीशा)
उ र – बंदक
ू
उ र - शीशे क चूड़ ।
(१) िन बत
यह अरबी भाषा का श द है । इसका अथ है संबंध या तुलना। यह भी एक कार
क पहे ली या बुझौवल कह जा सकती है । इसम दो चीज म संबंध, तुलना या
ू
समानता ढढ़नी या खोजनी होती है । िन बत का मूल आधार है एक श द के
कई अथ। उदाहरण :-
(ञ) जानवर और ब दक
ू म या िन बत है ? उ र - घोड़ा। घोड़ा जानवर है तो
वह ं ब दक
ू का एक भाग भी।
(२) दो सखुन
उदाहरणाथ -
ू
द वार बनाने वाला राजिम ी या राजगीर नह ं था। अत: द वार टट रह गई।
रा य (राज) यव था नह ं थी अत: राह लुट गई।
(ञ) रोट जली यो? घोड़ा अड़ा य ? पान सड़ा यो? उ र - फेरा न था। रोट
को फेरा (पलटा) नह ं गया था। अत: वह जल गई। घोड़े क पैदाइशी आदत
होती है , एक जगह खड़े होकर फेरा लगाना। न लगा सकने क थित म वह
चलता नह ं और एक जगह पर ह अड़ जाता है । पानी म पड़े पान के प को
पनवाड़ बार-बार फेरता रहता है । इससे पान का प ा सड़ता नह ं। न फेरो तो
सड़ जाता है ।
ु
(२) सगर रै न मोरे संग जागा, भोर भई तब बछड़न लागा।
ु
वाके बछड़त फाटे हया, ऐ सखी साजन न सखी दया।।
(२) तीन बुलाए तेरह आवे, िनज िनज बपता रोई सुनावै।
ू ।
(३) प दे खावत सरबस लूटै, फ दे म जो पड़े न छटै
अमीर खुसरो क कुछ मुक रयाँ ऐसी भी ह जो केवल कसी और पर लागू होती
ह क तु साजन पर ब कुल नह ं और न ह साजन क कसी अंग पर। केवल
अ य के सा य पर उनम भी 'ऐ सखी साजन 'जोड़' दया गया है । जैसे यह
िन निल खत मुकर केवल मोर पर ह लागू होती है , साजन पर ब कुल नह ं -
ढकोसले या अनमेिलयाँ
उ र - मैथी।
यह इस कार है - अजा पु हआ
ु बकरा, उसका श द (आवाज) हआ
ु 'म' गज
हआ
ु हाथी। उस श द का अंितम अ र हआ
ु 'थी'।
पीढ़ दर पीढ़ मौ खक, जुबानी चले आने के कारण खुसरो के ह दवी कलाम
क भाषा का प ज र बदला होगा। लोक रवायत या लोक सा ह य म ऐसा
होता है । सूफ क व कबीर, मीरा के साथ भी यह हआ।
ु फर भी उनका कलाम
दिनया
ु यो मानती है ? य , िल खत माण न होनेपर भी उनका सा ह य अथवा
फुटकल रचनाऐं कूल व कॉलेज म पढ़ाई जाती है ? उनके सबूत कहाँ ह, वे
ववाद पद य नह ं? तो फर अमीर खुसरो के साथ ह सौतेला यवहार य?
माना क बहत
ु सी चीज अमीर खुसरो के नाम से, जमाने के साथ जुड़ गयी
ह गी, जो क कबीर व अ य क वय के साथ भी हआ
ु है । पर इसका अथ यह
नह ं क कुछ भी खुसरो का नह ं कुछ चीज तो खुसरो क ह गी। अब कौन सी है ,
व कौन सी नहं यह बताना क ठन है , जब तक क कोई ठोस सबूत न िमले।
अमीर खुसरो क ह द रचनाओं म ज, अवधी, खड़ बोली, राज थानी, पुरानी
पंजाबी, अप ंश आ द भाषाओं का असर िमलता है । उदाहरण - अमीर खुसरो क
एक पहे ली दे ख -
ू
इसके रं ग क टटते दे खी, उसको दे खा सार ।।"
अब सुनने म यह बहत
ु सरल मालूम पड़ती है । अगर पहे ली क बूझ पु ज लग है
तो श द आऐंगे ीतम, पी, साजन आ द। और अगर बूझ ीिलंग है तो ीिलंग
के श द आऐंगे सजनी, सखी, यतमा, माशूका, जानम, दल बा आ द। यािन
इशारा कया गया है । यह पहे ली है आग पर यािन चकमाक और प थर पर। उस
जमाने म दयासलाई तो होती नह ं थी। आग कैसे जलाते थे? दो प थर को
रगड़ते थे। एक चकमाक और एक प थर । उससे शरार, िचंगार या आग झड़ती
थी जो सूखे प को पकड़ लेती थी। अब पहे ली म नार सं कृ त श द है , ीिलंग
है और उसक पहचान भी ीिलंग है यािन आग या अ न जो जलाती है । आप
कभी नह ं कहगे क आग, जलता है । अरबी म नार का मतलब है अ न या
आग। श द ह ऐसा है । नार सं कृ त म भी अथ दे ती है ी के मान म और अब
म आग लगाने वाली चीज के माने म भी। न + ई = नार यािन आग लगाने वाली
चीज, चकमाक और प थर । चकमाक और प थर दोन ीिलंग ह। यह नार
श द अरबी से फ़ारसी म भी चिलत ह। तो अरबी, फ़ारसी और सं कृ त तीन के
ू
हसाब से अथ ठ क बैठ रहा है । अब अगला िम ा दे खए - 'इसके संग क टटते
दे खी, उसको दे खा सार ।' संग + सार = संगसार । संगसार करना यानी प थर से
कसी को मारना। प थर से कसी को भी सजा दे ने के िलए पुराने जमाने म
संगसार करते थे। ये ब लओिथक तर क़ा चला आता है , िसमे टक है और
इ लािमक पर परा म भी है । पहले अवैध संबंध क सजा, प थर से मौत थी।
यहाँ ल ज़ संगसार आ रहा है और नार से नार िमलने का, गोया सै स का
िछपा हआ
ु इशारा भी है । इ लामी समाज म संगसार , सजा दे ने का ख़ास तर क़ा
है । अब उससे हट के दे खए। हम नार का ज़ कर रहे ह। पहे ली शु हो रह है
नार श द से। जब उस जमाने क उद ू भाषा म साड़ िलखा जाएगा तो वह हो
जाएगा सार य क 'ड़' भी आता है , कभी नह ं आता। यूँ भी यार क भाषाओं म
आज भी पूव म साड़ को सार कहते ह। तो सार के भी दो माने हो गए। पूरा,
पूरे के अथ म भी है । एक चकमाक तो दसरा
ू ू
प थर। चकमाक तो टटता है पर
ू
प थर नह ं टटता। तो सार , साड़ भी है , नार क पहचान के िलए और सार , संग
के साथ िमल कर संगसार हआ।
ु 'संग' श द फ़ारसी म भी है और सं कृ त म भी।
सं कृ त हआ
ु संगीसाथी और साथी श द भी आ रहा है । अब दे खए कतने अथ
इन दो लाइन के िनकले और कैसा (२) क र मा इसम है , सं कृ त, फ़ारसी, अब ,
तुक और ह दवी श द को ले कर। पहे ली खड़ बोली क उ कृ रचना है । इन
पहे िलय म आप जतना गहराई से उतर कर दे खगे। आप उतना है रान ह गे। एक
ु
जमाने म पहे िलयाँ यूँ भी बनाई जाती थी क श द के टकड़े करो और कुछ जो
विनयाँ ह इधर लगाओ या उधर लगाओ, तो पहे ली क बूझ सामने आएगी। जैसे
- आधा बकरा, सारा हाथी, हाथ बँधा दे खा एक साथी, पहे ली क बूझ है गजरा।
बकरा को आधा करो, बक + रा = बजरा। अब एक तरफ बक है दसर
ू तरफ रा है ।
साथ हाथी या द गज। गज + रा = गजरा।जो लोग सं कृ त बैक ाउं ड से आए ह वो
तो जान लगे पर उद ू वाला आदमी नह ं पहचानेगा। वो चकरा जाएगा क हाथी
कैसे लगाऊँ, र के साथ जो गजरा बने। हाथी तो गज़ है । यािन क सं कृ त भी आ
गई इसम। अब है हाथ बँधा दे खा इक साथी। गजरा हाथ पर बाँधते ह या औरत
उसे बाल म लगाती ह। इसम फ़ारसी, अरबी और सं कृ त तीन भाषाएँ आ गई।
हाथी और साथी, क़ा फ़या भी दे खए, ऐनामोटापोइया। आवाज़ का विनय का
आपस म िनबाह और जो एक संगीत पैदा होता है विनय के आपस म िमलने
से, वो भी है । कोई पहे ली ऐसी नह ं है जसम ये गहराइयाँ न ह । पहे िलय का
अंद नी ढाँचा बहत
ु मज़बूत है ।
ट पणी - बाबुल (हे मेरे पता) मँडवा ( ववाह क विध स प न करने के िलए
िनमाण कया जाने वाला मंडप), दल द रयाव-उजाक दय। डोिलया फँदाय -
ववाहोपरांत डोली म बठाकर। दाव-दाँव, अनुकूल अवसर, मौका, गु ड़या ..... रह
गई। खेलने क साम ी अथात गु ड़या आ द व तुऐं नैहर म ह रखी रह गयी।
(आ य - मृ यु उपरांत अपनी सार व तुऐं जहाँ क तहाँ छोड़ कर चला जाना
पड़ता है और जीवन काल के पूव प रिचत काय के करने का फर अवसर नह ं
िमला करता।)
ु रह बाबुल घर दलहन
"बहत ु , चल तेरे पी ने बुलाई।
बहत
ु खेल खेली स खयन स , अंत कर लरकाई।
हाय धोय के ब तर प हरे , सब ह िसंगार बनाई।
वदा करन को कुटु ब सब आए, िसगरे लोग लुगाई।
चार कहारन डोली उठाई संग पुरो हत नाई
चले ह बनैगी होत कहा है , नैनन नीर बहाई।
ु हन, काहू क कछु ना बसाई।
अंत वदा है चिलहै दल
मौज खुसी सब दे खत रह गए, मात पता औ भाई।
मो र कौन संग लिगन धराई धन धन ते र है खुदाई।
बन माँगे मेर मंगनी जो, द ह ं पर घर क जो ठहराई।
अंगु र पक र मोरा पहँु चा भी पकरे , कँगना अंगूठ प हराई।
नौशा के संग मो ह कर द ह ं, लाज संकोच िमटाई।
सोना भी द हा पा भी द हा बाबुल दल द रयाई।
गहे ल गहे ली डोलित आँगन मा पकर अचानक बैठाई।
बैठत मह न कपरे पहनाये, केसर ितलक लगाई।
खुसरो चले ससुरार सजनी संग, नह ं कोई आई।
अमीर खुसरो के ह दवी कलाम क एकमा पांडुिल प
जमनी (बिलन) के सं हालय टा स ब लओिथक म रखी है । इसक िल प फारसी है ।
इसे भारत म अं ेज के समय एक जमन शोधकता डॉ. एलवस ज गर जमनी ले गया
था। िस शोधकता डॉ. गोपीचंद नारं ग ने इसक खोज कर इस पर अहम शोध काय
कया है ।
अमीर खुसरो के ह दवी कलाम क एकमा पांडुिल प
जमनी (बिलन) के सं हालय टा स ब लओिथक म रखी है । इसक िल प फारसी है ।
इसे भारत म अं ेज के समय एक जमन शोधकता डॉ. एलवस ज गर जमनी ले गया
था। िस शोधकता डॉ. गोपीचंद नारं ग ने इसक खोज कर इस पर अहम शोध काय
कया है ।
ट पणी - अंतकर - बंद कर दो, समा कर दो अथवा बंद कर दया। लरकाई -
जीवन काल के बा यसुलभ यवहार। लगन..... धराई। ..... वैवा हक संबंध
थर कर दया। बन माँगे .... ठहराई .... कसी क इ छा न रहते हए
ु भी
अप रिचत के साथ ववाह क बात िन त कर द । नौशा - द ू हा। गहे ल डोलित
- म गँवार उ मत सी बनकर अपने आँगन म इतराती चलती थी क आशय -
इस पद म भी मरणोपरांत जीवन काल के आनंद न लूट सकने के िलए
पछतावा है ।
इसी पद का एक अ य प भी िमलता है -
(२) बहत
ु क ठन है डगर पनघट क ।
कैसे म भर लाऊँ मधवा से मटक
म जो गई थी पिनया भरन को
दौड़ झपट मोर मटक पटक
िनजामु न औिलया म तोरे बिलहार
लाज रखो तुम हमरे घूँघट क ।
लाज राखो मोरे घूँघट पट क ।
(११) हजरत वाजा संग खेिलए धमाल, बाइस वाजा िमल बन बन आयो
ताम हजरत रसूल साहब जमाल। हजरत वाजा संग।
अरब यार तेरो (तोर ) बसंत मनायो, सदा र खए लाल गुलाल।
हजरत वाजा संग खेिलए धमाल।
(१२) ऐ सरवंता मवा, मोर ला, सब बना। खेलत धमाल वाजा मुइनु न
और वाजा कुतुबु न। शेख फर द शकर गंज मुलतान मशायाख नसी
औिलया ऐ सरवंता।
(१८) बहत
ु दन बीते पया को दे ख,े अरे कोई जाओ, पया को बुलाय लाओ
म हार वो जीते पया को दे खे बहत
ु दन बीते।
सब चुन रन म चुनर मोर मैली, य चुनर नह ं रं गते ?
बहत
ु दन बीते। खुसरो िनजाम के बिल बिल जइए, य दरस नह ं दे ते?
बहत
ु दन बीते।
इसी का दसरा
ू प।
चंद साल बाद एक शाम सुलतान अलाउ न खलजी ने जरा ख़फगी (नारजगी)
से बड़ बेगम मिलकाए जहाँ को बुला भेजा। बादशाह से बेगम ने कहा -
"आपको बाहर क तो सब खबर ह। िसयासी शतरं ज से फुसत नह ं िमलता। कुछ
अंदर क भी खबर है । " ख खाँ बड़ा हो रहा है ।" बादशाह बोले - हाँ हाँ। कँवल
रानी आ खर कल तक गुजरात क रानी थी। मेरे बाद ख खाँ ह त त पर
बैठेगा। य न वो लड़क , वो उस लड़क का या नाम है ? हाँ दे वल दे वी, हाँ वो
रानी बने, दोन क शाद मुनािसब रहे गी।" इस पर बेगम ने कहा - मेरे बाई
उलुग खाँ आपके िसपहसालार ह। कल अगर ख खाँ शाह त त पर बैठेगा तो
उसे तलवार क मदद भी चा हए। मेरे भाई क एक खूबसूरत बेट है । म बाप
बेट को पंजाब से बुलवाती हँू । अगर ये र ता हो जाए तो मेरा भाई कल अपने
होने वाले दामाद क हफाजत करे गा और उसक ताकत भी बनेगा। सुलतान
आप गुजरात से कनाटक तक तो खूब भली भाँित सोचते ह ले कन फर आ खर
म नाक के नीचे का नाटक मुझे ह करना पड़ता है ।" बादशाह बेगम सा हबा के
यह ट ट भरे अ फाज सुनकर हँ सते हए
ु बोले - जैसी मिलका जहाँ क मज ।
िसयासी दावपच म आपसे कोई जीत नह ं सकता।' अमीर खुसरो अपनी मानी
( ेम कथा) मसनवी ख खाँ व दे वल रानी म अपने िम ख खाँ क जुबानी
िलखते ह - "मिलक जहाँ अ मा जान ने अपने सगे भाई और उसके खानदान
के खास-खास लोग को अपने खच पर दे हली बुलवा िलया और कई म हन बहत
ु
ह धूम-धाम से मेर शाद क र म अदा क गई। मामू क बेट से मेर शाद
कर द गई। खूब उ साह से मेरा ज मनाया गया, गाने, बजाने, नाच आ द हए
ु
मगर खुिशय क इस आितशबाजी ने मरे अरमान क होली भी जला द । दे वल
द को मुझसे दरू अलग महल म रख दया गया जब क मेरा दल उसके बगैर
बेकरार रहता था। बीच म ये कैसी द वार क आइ दा िमलने न पाऐं।
अमीर खुसरो ने बादशाह के कहे अनुसार मसनवी नुह िसपहर (नौ आसमान)
(७१८ ह ी १३१८ उ ६५) को िलखा। इसके िलए एक हाथी के बराबर सोना
तौल कर खुसरो को बादशाह क तरफ से ईनाम दया गया। इस ऐितहािसक
मसनवी म मुबारक शाह क जीत , उसक बनवाई इमारत , िनजामु न औिलया,
भारतीय नगर , थाओं, धम , लोग , सं कृ ित आ द क जो खोल कर तार फ, राज
व जा के कत य और हक, सू फय क आलौ कक व द य ेम प ित,
शाहजादा मुह मद क ज म कुंडली (इससे अमीर खुसरो के योितष ान का
पता चलता है ।) आ द ह। आठव अ याय म इ के हक क को चौगान और गद
के तीक ारा प कया गया है । मसनवी के हर अ याय म नए छं द ह
जनम कुछ ऐसे ह जनका योग खुसरो के पूव कसी ने कया ह नह ं था।
जैसे मुतका रब, मुस मन, सािलम आ द। ह दवी का ज तथा उसम िलखने
पर गव।
सन १३२० का साल है । चाँद रात आई। गरमी और घुटन क रात। आधी रात
को कला सीर क छत पर खुले आसमान के नीचे, नशे म धुत बादशाह को
उसके एक खास जवान (मं ी) खुसरो खाँ गुजराती ने मार डाला। उसने बेहद
फुत से बादशाह का सर काट कर नीचे फ◌ै
् ◌ंक दया। वाजा िनजामु न उस
व नमाज़ पढ़ रहे थे। उनका सर अ लाह के सजदे म झुका हआ
ु था। इसी के
साथ खलजी वंश का रा य एक अिभशाप क भाँित समा हो गया। चंद म हने
न गुजरे थे क पंजाब म एक अनपढ़, स तगीर और दलेर फौजी िसपहसालार
स र वष य गाजी खाँ उफ गयासु न तुगलक (सन १३२१ ई.) ने आकर द ली
पर अिधकार कर िलया। चालीस अमीर क काउं िसल ने इस तुगलक अमीर को
सुलतान बना दया। जब शाह खजाना खुलवाया गया तो वह एकदम खाली
िनकला। गयासु न तुगलक ने फौरन एक आपातकालीन बैठक बुलवाई। बादशाह
ने बेहद गु से म अपने वजीर से पूछा - " य ब शी। दो सौ साल का जमा
कया हआ
ु शाह खजाना खाली य है ?" ब शी ने कहा "हजू
ु र द ली पर
आपक चढ़ाई से पहले सब का सब वाँट दया गया।" बादशाह ने पूछा " कस
कस के घर भेजा?" ब शी बोला 'हजू
ु र! अमीर, फौजदार , मं य और फक र के
घर।' बादशाह ने फौरन हु मनामा जार कया - "अमीर और फौजदार हा जर
ह । और जतना माल पहँु चा हो सब सरकार खजाने म पुन: वापस कर द।"
ब शी ने पूछा - "जहाँपनाह! और पीर और फक र के िलए या हु म है ?"
बादशाह गु से म बोला - 'पीर और फक र? ये सब झूठे, म कार, जालसाज,
धोखेबाज होते ह। इनके ईमान का कोई भरोसा नह ं। पैसे के लालच म दन
रात झूठ बोलते ह। सबसे एक एक तनगा उगलवा िलया जाए।' ब शी ने कहा -
'मगर हजू
ु र! सलामत रह। वाजा िनजामु न औिलया क खानकाह म तो रोज
रात को झाड़ू द जाती है । वहाँ आज का पहँु चा माल, कल क सुबह नह ं
दखता।' बादशाह ोध से आग-बबूला हो उठा। आँखे लाल कए वह स त
आवाज म बोला - 'कल क सुबह म उ ह दे ख लूँगा। कह दो क मे र फतेह से
पहले शाह खजाने का जतना ह सा उ ह पहँु चा हो, फौरन वापस कर द वरना
सजाए मौत द जाएगी। दो हजार तनके रोज का खाना पकवाता है । हजार
आदिमय क खलाया जाता है । ह द,ू मुसलमान, अमीर, फक र, दरवेश, बैरागी,
िभखार सब एक जगह खाते ह। यह या तमाशा है ? यह या सा जश है ? रोज
रात को गाने बजाने क मह फल होती है । खूब नाच गाना होता है । यह कैसा
अजीब षडयं है शाह दरबार के खलाफ। ज र कोई गहर सा जश है । फक र
म बादशाहत करता है । अंदर का हाल त काल मालूम कया जाए।" एक दरबार
ने आग म घी का काम करते हए
ु बादशाह के कान भरे - हजू
ु र मुनािसब याल
फरमाते ह। अमीर खुसरो से दरया त कर। वो रोजाना रात गए तक अपने पीर
क खानकाह म हा जर दया करते ह।" बादशाह ने जवाब दया - 'हम फौजी
आदमी ह। हम न पीर से गरज है न शायर से मतलब। कह दो िनजामु न से,
क अपना शाह द तरखान, ताम-झाम कह ं और ले जाए। कह दो क शाह
फौज अवध और बंगाल क तरफ कूच करती है । हम द ु मन का कड़ा व स त
सामना है । हमार दे हली को वापसी तक फक र िनजामु न औिलया शहर खाली
कर के अपने मुर द के साथ कसी और तरफ चला जाए। वाजा का मुर द
राजक व शायर अमीर खुसरो ल कर के साथ जाएगा। और आ खर माल भर
बाद जब गयासु न तुगलक फतेह के न कारे बजाता हआ
ु वजय उ सव मनाता
हआ
ु जमुना नद के कनारे द ली शहर के सामने ब क यासपुरा क
खानकाह िनजामु न के सामने आ पहँु चा?
मसन वयाँ
२. िम ताहल
ु -फुतूह ( वजय क कुंजी) ६९० ह ी। जलालु न फ़रोज खलजी
क चार वजय का वणन। मिलक छ जू क बगावत।
५. तुगलक नामा
क. ह त-ब ह त
ख. मतला उल अनवार
ग. शीर व खुसरो
घ. मजनू व लैला
ञ. आइने-िसक दर
ग रचनाऐं
(७) िनकातुशओरा
् - मीर तक मीर
(३३) अमीर खुसरो का ह दवी कलाम - बिलन श ंगर ित स हत। डॉ. गोपी
चंद नारं ग। सीमांत काशन।
(५०) भारत क महान वभूित अमीर खुसरो, डॉ. परमानंद पांचाल ह द बुक
सटर।