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Amir Khusro given at the following website:

http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/amirgnth.htm

(August 23, 2007)

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अमीर ख़ुसरो दहलवी


आज हम आपको ते रहवीं-चौदहवीं सद (संवत १२५३ ई./६५३ ह ी से सन
१३२५ ई./७२५ ह ी तक) के ह द ु तान क उस रं गारं ग हनरमं
ु द, शानदार
अजीम श सयत और अमर ह ती से िमलवाएँगे जसने बरबाद और आबाद ,
तबाह और तामीर (िनमाण करना), जंग और अमन तथा दख
ु और सुख के बीच
िनडरता एवं अपने बु कौशल से एक बेहतर न कंज़दगी के बह र साल गुज़ारे ।
यह व िस एवं लोक य श ख़सयत ह - तूती-ए- हं द यानी हज़रत अमीर
खुसरो दहलवी। इनका वा त वक अथात बचपन का नाम था - अबुल हसन
यमीनु न मुह मद। यह नाम इनके पता ने इ ह दया था जो बहत
ु ह िनडर
िसपहसालार एवं यो ा थे। अमीर खुसरो को बचपन से ह क वता करने का
शौक़ था। इनक का य ितभा क चकाच ध म, इनका बचपन का नाम अबुल
हसन ब कुल ह व मृत हो कर रह गया। अमीर खुसरो दहलवी ने धािमक
संक णता और राजनीितक छल कपट क उथल-पुथल से भरे माहौल म रहकर
ह द-ू मु लम एवं रा ीय एकता, ेम, सौहादय, मानवतावाद और सां कृ ितक
सम वय के िलए पूर ईमानदार और िन ा से काम कया। िस इितहासकार
जयाउ न बरनी ने अपने ऐितहािसक ंथ 'तार खे- फरोज शाह ' म प प से
िलखा है क बादशाह जलालु न फ़ रोज़ खलजी ने अमीर खुसरो क एक
चुलबुली फ़ारसी क वता से स न होकर उ ह 'अमीर' का ख़ताब दया था जो
उन दन बहत
ु ह इज़ज़त क बात थी। उन दन अमीर का ख़ताब पाने वाल
का एक अपना ह अलग तबा व शान होती थी।

अमीर खुसरो दहलवी का ज म उ र- दे श के एटा जले के प टयाली नामक


ाम म गंगा कनारे हआ
ु था। गाँव प टयाली उन दन मोिमनपुर या मोिमनाबाद
के नाम से जाना जाता था। इस गाँव म अमीर खुसरो के ज म क बात हमायू
ु ँ
काल के हािमद बन फ़जलु लाह जमाली ने अपने ऐितहािसक ंथ 'तज़ करा
सै ल आरफ न' म सबसे पहले कह । तेरहवीं शता द के आरं भ म द ली का
राजिसंहासन गुलाम वंश के सु तान के अधीन हो रहा था। उसी समय अमीर
खुसरो के पता अमीर सैफु न महमूद (मुह मद) तु क तान म लाचीन कबीले
के सरदार थे। कुछ लोग इसे बलख हजारा अफ़गािन तान भी मानते ह। चंगेज
खाँ के इस दौर म मुगल के अ याचार से तंग आकर ये भारत आए थे। कुछ
लोग ऐसी भी मानते ह क ये कुश नामक शहर से आए थे जो अब शर-ए-स ज
के नाम से जाना जाता है । ये व ते एिशया के तजा क तान और उ बे क तान
दे श क सीमा पर थत है । उस समय भारत म कुतुबु न ऐबक (१२०६-१२१०
ई.) का दे हांत हो चुका था और उसके थान पर उसका एक दास श शु न
अ तमश (१२११-१२३६ ई.) रा य करता था। अमीर खुसरो के पता अमीर
सैफु न अपने लाचीन वाल के साथ पहले लाहौर और फर द ली (दे हली)
पहँु चे। यहाँ सौभा य से श शु न अ तमश के दरबार म उनक पहँु च ज द हो
गयी। अपने सैिनक गुण के कारण वे दरबार म फ़ौजी पद पर सरदार बन गए।
श शु न अ तमश के प ात शर फ और अ न पंसद बादशाह नािस न
महमूद ने इ ह नौकर द । गुलाम खानदाने शाह के एक ज़बरद त और दबदबे
वाले त तनशीं बलबन ने अमीर को औहदा और प टयाली जला एटा म गंगा
कनारे जागीर द ।

अमीर खुसरो क माँ दौलत नाज़ ह द ू (राजपूत) थीं। ये द ली के एक रईस


अमीर एमाद ु मु क क पु ी थीं। ये बादशाह बलबन के यु मं ी थे। ये
राजनीितक दवाब के कारण नए-नए मुसलमान बने थे। इ लाम धम हण करने
के बावजूद इनके घर म सारे र ित- रवाज ह दओं
ु के थे। खुसरो के निनहाल म
गाने-बजाने और संगीत का माहौल था। खुसरो के नाना को पान खाने का बेहद
शौक था। इस पर बाद म खुसरो ने 'त बोला' नामक एक मसनवी भी िलखी। इस
िमले जुले घराने एवं दो पर पराओं के मेल का असर कशोर खुसरो पर पड़ा।
जब खुसरो पैदा हए
ु थे तब इनके पता इ ह एक कपड़े म लपेट कर एक सूफ़
दरवेश के पास ले गए थे। दरवेश ने न हे खुसरो के मासूम और तेजयु चेहरे
के दे खते ह त काल भ व यवाणी क थी - "आवरद कसे राके दो कदम। अज़
खाकानी पेश वा हद बूद।" अथात तुम मे रे पास एक ऐसे होनहार ब चे को
लाए हो खाकानी नामक व िस व ान से भी दो कदम आगे िनकलेगा।
चार वष क अ प आयु म ह खुसरो अपने पता के साथ द ली आए और
आठ वष क अव था तक अपने पता और भाइय से िश ा पाते रहे । अमीर
खुसरो के पहले भाई ए जु न (अजीउ न) (इजजु न) अली शाह (अरबी-
फारसी व ान) थे। दसरे
ू भाई हसामु न कुतलग अहमद (सैिनक) थे। तीन
भाइय म अमीर खुसरो सबसे अिधक ती बु वाले थे। अपने ंथ गुरतल
कमाल क भूिमका म अमीर खुसरो ने अपने पता को उ मी अथात ् अनपढ़
कहा है । ले कन अमीर सैफु न ने अपने सुपु अमीर खुसरो क िश ा-द ा का
बहत
ु ह अ छा (नायाब) बंध कया था। अमीर खुसरो क ाथिमक िश ा एक
मकतब (मदरसा) म हई।
ु वे छ: बरस क उ से ह मदरसा जाने लगे थे। वयं
खुसरो के कथनानुसार जब उ ह ने होश स भाला तो उनके वािलद ने उ ह एक
मकतब म बठाया और खुशनवीसी क महका के िलए काजी असुद ु न मुह मद
(या साद ु न) के सुपुद कया। उन दन सु दर लेखन पर काफ बल दया जाता
था। अमीर खुसरो का लेखन बेहद ह सु दर था। खुसरो ने अपने फ़ारसी द वान
तुहफतुिस (छोट उ का तोहफ़ा - ६७१ ह ी, सन १२७१, १६-१९ वष क
आयु) म वंय इस बात का ज़ कया है क उनक गहन सा ह यक
अिभ िच और का य ितभा दे खकर उनके गु साद ु न या असद ु न मुह मद
उ ह अपने साथ नायब कोतवाल के पास ले गए। वहाँ एक अ य महान व ान
ख़वाजा इ जु न (अज़ीज़) बैठे थे। गु ने इनक का य संगीत ितभा तथा
मधुर संगतीमयी वाणी क अ यंत तार फ क और खुसरो का इ तहान लेने को
कहा। वाजा साहब ने तब अमीर खुसरो से कहा क 'मू' (बाल), 'बैज' (अंडा), 'तीर'
और 'खरपुजा' (खरबूजा) - इन चार बेजोड़, बेमेल और बेतरतीब चीज़ को एक
अशआर म इ तमाल करो। खुसरो ने फौरन इन श द को साथकता के साथ
जोड़कर फारसी म एक स :: रिचत क वता सुनाई -

'हर मूये क दर दो जु फ़ आँ सनम अ त,

सद बैज-ए-अ बर बर आँ मूये जम अ त,

चूँ तीर मदाँ रा त दलशरा जीरा,

चूँ खरपुजा ददांश िमयाने िशकम ् अ त।'

अथातः उस यतम के बाल म जो तार ह उनम से हर एक तार म अ बर


मछली जैसी सुग ध वाले सौ-सौ अंडे परोए हए
ु ह। उस सु दर के दय को तीर
जैसा सीधा-सादा मत समझो व जानो य क उसके भीतर खरबूजे जैसे
चुभनेवाले दाँत भी मौजूद ह।

वाजा साहब खुसरो क इस शानदार बाई को सुनकर च क पड़े और जी भर के


खूब तार फ़ क , फ़ौरन गले से लगाया और कहा क तु हारा सा ह यक नाम तो
'सु तानी' होना चा हए। यह नाम तु हारे िलए बड़ा ह शुभ सा बत होगा। यह
वजह है क खुसरो के पहले का य सं ह 'तोहफतुिस ' क लगभग सी फ़ारसी
गज़ल म यह सा ह यक नाम ह। बचपन से ह अमीर खुसरो का मन पढ़ाई-
िलखाई क अपे ा शेरो-शायर व का य रचना म अिधक लगता था। वे दय से
बड़े ह वनोद य, हसोड़, रिसक, और अ यंत मह वकां ी थे। वे जीवन म कुछ
अलग हट कर करना चाहते थे और वाक़ई ऐसा हआ
ु भी। खुसरो के याम वण
रईस नाना इमाद ु मु क और पता अमीर सैफु न दोन ह िच तया सूफ़
स दाय के महान सूफ़ साधक एवं संत हज़रत िनजामु न औिलया उफ़
सु तानुल मशायख के भ अथवा मुर द थे। उनके सम त प रवार ने औिलया
साहब से धमद ा ली थी। उस समय खुसरो केवल सात वष के थे। अमीर
सैफु न महमूद (खुसरो के पता) अपने दोन पु को लेकर हज़रत िनजामु न
औिलया क सेवा म उप थत हए।
ु उनका आशय द ा दलाने का था। संत
िनजामु न क ख़ानक़ाह के ार पर वे पहँु चे। वहाँ अ पायु अमीर खुसरो को
पता के इस महान उ े य का ान हआ।
ु खुसरो ने कुछ सोचकर न चाहते हए

भी अपने पता से अनुरोध कया क मुर द 'इरादा करने' वाले को कहते ह और
मेरा इरादा अभी मुर द होने का नह ं है । अत: अभी केवल आप ह अकेले भीतर
जाइए। म यह बाहर ार पर बैठू ँ गा। अगर िनजामु न िच ती वाक़ई कोई स चे
सूफ़ ह तो खुद बखुद म उनक मुर द बन जाऊँगा। आप जाइए। जब खुसरो के
पता भीतर गए तो खुसरो ने बैठे-बैठे दो पद बनाए और अपने मन म वचार
कया क य द संत आ या मक बोध स प न ह गे तो वे मेरे मन क बात
जान लगे और अपने ारा िनिमत पद के ारा मेरे पास उ र भेजगे। तभी म
भीतर जाकर उनसे द ा ा क गा अ यथा नह ं। खुसरो के ये पद िन न
िल खत ह -

'तु आँ शाहे क बर ऐवाने कसरत, कबूतर गर नशीनद बाज गरदद।


गुर बे मु तमंदे बर-दर आमद, बयायद अंद या बाज़ गरदद।।'

अथात: तू ऐसा शासक है क य द तेरे साद क चोट पर कबूतर भी बैठे तो


तेर असीम अनुकंपा एवं कृ पा से बाज़ बन ज़ाए।

खुसरो मन म यह सोच रहे थे क भीतर से संत का एक सेवक आया और


खुसरो के सामने यह पद पढ़ा -

'बयायद अंद मरदे हक कत, क बामा यकनफस हमराज गरदद।


अगर अबलह बुअद आँ मरदे - नादाँ। अजाँ राहे क आमद बाज गरदद।।'
अथात - "हे स य के अ वेषक, तुम भीतर आओ, ता क कुछ समय तक हमारे
रह य-भागी बन सको। य द आगु तक अ ानी है तो जस रा ते से आया है
उसी रा ते से लौट जाए।' खुसरो ने य ह यह पद सुना, वे आ म वभोर और
आनं दत हो उठे और फौरन भीतर जा कर संत के चरण म नतम तक हो गए।
इसके प ात गु ने िश य को द ा द । यह घटना जाने माने लेखक व
इितहासकार हसन सानी िनज़ामी ने अपनी पु तक तज क-दह-ए-खुसरवी म पृ
९ पर स व तार द है ।

इस घटना के प ात अमीर खुसरो जब अपने घर पहँु चे तो वे म त गज़ क


भाँती झूम रहे थे। वे गहरे भावावेग म डू बे थे। अपनी य माताजी के सम
कुछ गुनगुना रहे थे। आज क़ वाली और शा ीय व उप-शा ीय संगीत म अमीर
खुसरो ारा रिचत जो 'रं ग' गाया जाता है वह इसी अवसर का मरण व प है ।
ह दवी म िलखी यह िस रचना इस कार है -

"आज रं ग है ऐ माँ रं ग है र , मेरे महबूब के घर रं ग है र ।


अरे अ लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रं ग है र ।
मोहे पीर पायो िनजामु न औिलया, िनजामु न औिलया-अलाउ न औिलया।
अलाउ न औिलया, फर द ु न औिलया, फर द ु न औिलया, कुताबु न औिलया।
कुताबु न औिलया मोइनु न औिलया, मुइनु न औिलया मुहै यो न औिलया।
आ मुहै योद न औिलया, मुहै योद न औिलया। वो तो जहाँ दे खो मोरे संग है र ।
अरे ऐ र सखी र , वो तो जहाँ दे खो मोरो (बर) संग है र ।
मोहे पीर पायो िनजामु न औिलया, आहे , आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है र , वो तो मुँह माँगे बर संग है र ।
िनजामु न औिलया जग उ जयारो, जग उ जयारो जगत उ जयारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है र । म पीर पायो िनजामु न औिलया।
गंज शकर मोरे संग है र । म तो ऐसो रं ग और नह ं दे खयो सखी र ।

म तो ऐसी रं ग। दे स-बदे स म ढढ़ फर हँू , दे स-बदे स म।
आहे , आहे आहे वा, ऐ गोरा रं ग मन भायो िनजामु न।
मुँह माँगे बर संग है र । सजन िमलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन िमलावरा। इस आँगन म उस आँगन म।
अरे इस आँगन म वो तो, उस आँगन म।
अरे वो तो जहाँ दे खो मोरे संग है र । आज रं ग है ए माँ रं ग है र ।
ऐ तोरा रं ग मन भायो िनजामु न। म तो तोरा रं ग मन भायो िनजामु न।
मुँह माँगे बर संग है र । म तो ऐसो रं ग और नह ं दे खी सखी र ।
ऐ महबूबे इलाह म तो ऐसो रं ग और नह ं दे खी। दे स वदे श म ढँू ढ़ फर हँू ।
आज रं ग है ऐ माँ रं ग है ह । मे रे महबूब के घर रं ग है र ।

सन १२६४ ई. म जब खुसरो केवल सात वष के थे तब इनके बहादरु पता ८५


वष क आयु म एक लड़ाई म शह द हो गए। तब इनक िश ा का भार इनके
रईस नाना अमीर नवाब एमादलमु
ु क रावत अज़ ने अपने ऊपर ले िलया।
इनक माँ न इ ह नाज़ो िनयामत से पाला। वे वंय प टयाली म रहती थीं या
फर द ली म अमीर रईस पता क शानदार बड़ हवेली म। नाना ने थोड़े ह
दन म अमीर खुसरो को ऐसी िश ा-द ा द क ये कई वधाओं म वभू षत,
िनपुण, द एवं पारांगत हो गए। यु कला क बार कयाँ भी खुसरो ने पहले
अपने पता और फर नाना से सीखीं। इनके नाना भी यु के मैदान म अपना
जलवा अनेक बार दिशत कर चुके थे। वे वंय बहत
ु ह साहसी, बहादरु और
िनडर थे और खुसरो को भी वैसी ह िश ा उ ह ने द । एमादलमु
ु क खुसरो से
अ सर कहा करते थे क डरपोक और कमज़ोर िसपाह कसी दे श ोह से कम
नह ं। यह वह ज़माना अथवा दौर था जब खुसरो अपने समय के बहत
ु से
बु जी वय और शासक से स पक म आए। खुसरो ने बना कसी हचक व
संकोच के अनेक सव म गुण को आ मसात कया। खुसरो म लड़कपन से ह
का य रचना क वृ थी। कशोराव था म ह उ ह ने फ़ारसी के महान और
जानेमाने क वय का गहन अ ययन शु कर दया था और उनम से कुछ के
अनुकरण म का य रचने का यास भी कया था। अभी वह २० वष के भी नह ं
हए
ु थे क उ ह ने अपना पहला द वान (का य सं ह) तुहफतुिस (छोट उ
का तोहफ़ा, ६७१ ह ी सन १२७१, १६-१९ वष) (जवानी के आरं भ काल म रिचत
यह द वान फ़ारसी के िस क व अनवर , खाकानी, सनाई आ द उ ताद से
भा वत है । इसक भूिमका म बचपन क बात, जवानी के हालात का ज़ है
तथा येक कसीदे के आर भ म शे र है जो कसीदे के वषय को प करता
है । इन तमाम शेर को जमा करने से एक कसीदा हो जाता है जो खुसरो क
ईजाद है । ये ज़यादातर सु तान गयासु न बलबन और उसके बड़े बेटे सु तान
नसी न क शंसा म िलखे गए ह। एक तरक़ ब बंद म अपने नाना इमादल

मु क का मिसया िलखा है जो सु तान गयासु न के कर बी सलाहकार और
हमराज म से एक थे। उनके पास कई नाज़ुक व गु िसयासी जानका रयाँ व
सूचनाएँ रहती थीं। इस ंथ म खुसरो ने अपना तख लुस या उपनाम सु तानी
रखा है ।) पूण कर िलया। बावजूद इसके क अमीर खुसरो ने कुछ फ़ारसी
क वय क शैली का अनु म करने का य कया था उनक इन क वताओं म
भी एक वशेष कार क नवीनता और नूतनता थी। इस पर उनक अिभनव
ितभा क प छाप है । उस समय खुसरो केवल एक होनहार क व के प म
नह ं उभरे थे ब क उ ह ने संगीत स हत उन तमाम वधाओं का ान भी भली
भाँित ा कर िलया था जो उस समय और दौर के कसी भी सुस य य के
िलए अिनवाय था। वह एक खर, संवेदनशील, हा ज़र जवाब और जीव त य
थे। इसी कारण बहत
ु ज द ह , राजधानी म हर एक य के वे ेम पा बन
गए। हर य को उनक रोचक और आनंदमय संगित य थी। अमीर खुसरो
ने अपनी पु तक तुहफतु स क भूिमका म वंय िलखा है क - "ई र क
असीम कृ पा और अनुकंपा से म बारह वष क छोट अव था म ह बाई कहने
लगा जसे सुनकर बड़े -बड़े व ान तक आ य करते थे और उनके आ य से
मेरा उ साह बढ़ता था। मुझे और अिधक या मक क वता िलखने क ेरणा
िमलती थी। उस समय तक मुझे कोई का य गु नह ं िमला था जो मुझे
क वता क उ च िश ा दे कर मेर लेखनी को बेचाल चलने से रोकता। म ाचीन
और नवीन क वय के का य का गहराई व अित ग भीरता से मनन करके
उ ह ं से िश ा हण करता रहा।" इससे यह साफ़ प होता है क क वता
करने क ितभा खुसरो म ज मजात थी तथा इसे उ ह ने वंय सीखा, कसी
गु से नह ं। आशु क वता करना उनके िलए बाँए हाथ का खेल था।

यह भी सवमा य है क खुसरो स ह वष क छोट आयु म ह एक उ कृ कव


के प म द ली के सा ह यक े म छा गए थे। उनक इस अ ुत का य
ितभा पर उनके गु हज़रत िनजामु न औिलया को भी फ था। इनका मधुर
कंथ इनक सरस एवं ांजल क वता का ॠंगार था। जस का य गो ी अथवा
क व स मेलन म अमीर अपनी क वता सुनाते थे उसम एक ग भीर स नाटा
छा जाता था। िनसंदेह अमीर खुसरो दहलवी ज मजात क व थे। इ ह ने क वता
िलखने व पढ़ने का ढं ग कसी से नह ं सीखा, क तु इनके का य गु ख़वाजा
शमशु न माने जाते ह। इसका कारण यह बताया जाता है क वा रजी ने
खुसरो के व िस ंथ 'पंचगंज' अथवा ख़ साऐ खुसरो को शु कया था।

ख साऐ खुसरो - या पंचगंज या खुसरो क पंचपद ।

अमीर खुसरो क वशाल और सावभौिमक ितभा ने 'खुदाए सुखन' अथात का य


कला के ई र माने जाने वाले क व िनजामी गंजवी के ख स के जवाब म इसे
िलखा है । यह उ ह ने ६९८ ह ी से ७०१ ह ी के बीच िलखा यानी (१२९८ ई. -
१३०१ ई. तक) इसम कुल पाँच मसन वयाँ ह –

(१) मतला उल अनवार - िनजामी के 'मखजनुल असरार' का जवाब है । ६९८ ह.


१२९८ ई. (अथात रोशनी िनकालने क जगह) क व जामी ने इसी के अनुकरण
पर अपना तोहफतुल अबरार (अ छे लोग का तोहफा) िलखा था। इसम
अिधकांश धािमक, नैितक तथा आ या मक बात ह। इसम खुसर ने अपनी
इकलौती लड़क को सीख द है । उ ४५ वष।

(२) शीर व खुसरो - िनजामी के खुसरो व शीर ं का जवाब है । ६९८ ह ी। सन


१२९८ ई. उ ४५। खुसरो ने ेम क पीर को ती तर बना दया है । इसम खुसरो
ने अपने बड़े बेटे को सीख द है ।
(३) मजनूँ व लैला - िनजामी के लैला मजनूँ का जवाब। ६९९ ह ी (१२९९ ई.)
उ ४६ ेम तथा ॠंगार क भावनाओं का िच ण।

(४) आइने िसकंदर - िनज़ामी के िसकंदरनामा का जवाब। ६९९ ह ी। (सन १२९९


ई.) वीर रस। इसम िसकंदरे आजम और खाकाने चीन क लड़ाई का व तृत
वणन है । इसम खुसरो अपने सबसे छोटे लड़के को सीख दे ते ह। इसम रोजी
कमाने, हनर
ु (कला) सीखने, मज़हब क पाबंद करने और सच बोलने क वह
तरक़ ब है जो उ ह ने अपने बड़े बेटे को अपनी मसनवी शीर खुसरो म द है ।

(५) ह त-ब ह त - िनजामी के ह त पैकर का जवाब। (१७०१ ह ी। १३०१ ई.)


फ़ारसी क सव े कृ ित। इसम इरान के बहराम चोर और एक चीनी हसीना
(सु दर ) क का पिनक ेम गाथा है । कहानी वदे शी है । अत: भारत से
संबंिधत बात बहत
ु कम ह। इसका वह भाग बेहद ह मह वपूण है जसम खुसरो
ने अपनी बेट को संबोिधत कर उपदे शजनक बात िलखी ह।

अमीर खुसरो ने वंय अपने गु ओं के नाम का उ लेख कया है जनका


उ ह ने अनुसरण कया है अथवा उनका य अथवा अ य प से इन पर
भाव पड़ा है । गज़ल के े म साद , मसनवी के े म िनज़ामी, सूफ़ और
नीित संबंधी का य े म खाकानी और सनाई एवं कसीदे के े म कमाल
इ माइल ह। खुसरो क गज़ल तो भाव और कला क से इतनी उ म ह क
बड़े -बड़े संगीत उ ह गा गा कर लोग को आनंद वभोर करते थे। उनम अनेक
थल पर उदा ेम के दशन होते ह। इन सभी का य म का य का मनो प
हम गोचर होता है । खुसरो ने वयं अपनी क वता क अनेक थल पर
शंसा क है । वे अपने द वान गुरतुल कमाल (शु ल प क पहली कलाम क
रात) (६९३ ह ी। सन १२९३ ई. तीसरा द वान ३४-४३ वष, सबसे बड़ा द वान,
इसक भूिमका काफ़ बड़ एवं व तृत है । इसम खुसरो ने अपने जीवन संबंधी
बहत
ु सी रोचक बात द ह, क वता के गुण, अरबी से फ़ारसी क वता क े ता,
भारत क फ़ारसी अ य दे श के मुक़ाबले शु व े ह, का य और छं द के भेद
आ द अनेक बात पर काश डाला गया है । इस द वान म व मसन वयाँ, बहत

सी बाइयाँ, कते , गज़ल, मरिसये, नता और कसीदे ह। मसन वय म िमफताहल

फ़तूह बहत
ु िस है । मरिसय म खुसरो के बेटे तथा फ़ रोज़ खलजी के बड़े
लड़के या साहबज़ादे महमूद ख़ानखाना के मरिसए उ लेखनीय ह। एक बड़ नात
( तुित का य : मुह मद साहब क तुित) है जो खाकानी से भा वत ज़ र है
पर अपना अनोखा व नया अंदाज िलए है । कसीद म खुसरो का सबसे अिधक
िस क़सीदा 'द रयाए अबरार' (अ छे लोग क नद ) इसी म है । इसम हज़रत
िनजामु न औिलया क तार फ़ है । अ य कसीदे जलालु न और अलाउ न
खलजी से संबंिधत है । इसम अरबी - और तुक श द का योग है ।)

अमीर खुसरो गुरतुल कमाल क भूिमका म गव से, शान से िलखते ह -

"जब म केवल आठ बरस का था मेर क वता क ती उड़ाने आकाश को छू रह ं


थीं तथा जब मेरे दध
ू के दाँत िगर रहे थे, उस समय मेरे मुँह से द ि मान मोती
बखरते थे।" यह कारण है क वे शी ह तूत-ए- ह द के नाम से मशहर
ू हो
गए थे। यह नाम खुसरो को ईरान दे श के लोग ने दया है । य तो खुसरो म
ितभा नैसिगक थी तथा प क वता म सवत: स दय और माधुय ख़वाजा
िनजामु न औिलया के वरदान का भी प रणाम माना जाता है । उ ह ं के भाव
से खुसरो के का य म सूफ़ शैली एवं भ क गहराई तथा ेम क उदा
यंजन उपल ध होती है । वा तव म औिलया साहब के आश वाद ने उ ह
ई र य दत
ू ह बना दया था। इतना असीिमत व गहरा ेम। अ त।

अमीर खुसरो बहमु


ु खी ितभा संप न य थे। वे एक महान सूफ़ संत, क व
(फारसी व ह दवी), लेखक, सा ह यकार, िन ावान राजनीित , बहभाषी
ु , भाषा व ,
इितहासकार, संगीत शा ी, गीतकार, संगीतकार, गायक, नृतक, वादक, कोषकार,
पु तकालया य , दाशिनक, वदषक
ू , वैध, खगोल शा ी, योतषी, तथा िस ह त
शूर वीर यो ा थे। सन १२७३ ई. म खुसरो जब बीस वष के थे तब ११३ वष क
आयु म उनके नाना एमादलमु
ु क रावत अज़ का वगवास हो गया। ऐसे समय
म जब क खुसरो को इतनी अिधक लोक यता िमल रह थी, उनके नाना के
दे हावसान से उ ह जीवन का एक अित चंड आघात पहँु चा य क उनके वािलद
तो पहले ह परलोक िसधार चुके थे। अब खुसरो को अपनी रोज़ी रोट क िच ता
हई।
ु अत: अब उ ह अपने िलए एक थाई रोज़गार खोजने पर ववश होना पड़ा।
शी ह खुसरो को एक नेह और उदारचेता संर क ा हो गया। ये था
द ली का सुलतान गयासु न बलबन का भतीजा अलाउ न मुह मद कलशी
खाँ उफ़ मिलक छ जू। (सन १२७३ ई. कड़ा इलाहबाद का हा कम) ये अपनी
वीरता और उदारता के िलए व यात था। इसक वीरता के चच सुनकर और वच
के दवाब के कारणवश िस और श संप न मंगोल हलाकू ने उसे आधे
इराक क गवनर ताव दया था और उसक वीकृ ित चाह थी। अमीर खुसरो
ने उसे एक आदश य तथा शासक पाया और दो वष वे उसके राजदरबार म
शान बने रहे । मिलक छ जू भी खुसरो से बड़ कृ पा और ेम का यवहार
करता था। एक बार अमीर खुसरो उसके दरबार म बहत
ु ह दे र से पहँु चे। बादशाह
बहत
ु गु से म था य क कुछ चुगलखोर व खुसरो से जलने वाले दरबा रय ने
खुसरो के ख़लाफ़ बादशाह के कान भर दए थे। इन दरबा रय ने बादशाह को
भड़का दया क आजकल खुसरो अपने गु िनजामु न औिलया क सेवा म
अिधक समय यतीत करते ह और राजदरबार से उ ह कोई मतलब नह ं।
बादशाह ने जरा स ती से खुसरो से दरबार म दे र से आने का कारण पुछा।
खुसरो ने अपने वनोद य, चुलबुले वभाव व हा ज़र जवाबी का सबूत दे ते हए

तुर त बादशाह क तार फ़ और के जवाब म एक फ़ारसी का चुलबुला व
हा यजनक क़सीदा सुनाया। ये है -

"सुभा राव गु तम क खुश द अद खुजा त,

आ मां हे मिलक छ जो नमोद।"

अथात - आज जब म घर से दरबार के िलए बाहर िनकला तो मेर सुबह से


मुलाक़ात हो गई। मने सुबह से पूछा क बता तेरा सूरज कहाँ है ? तो आसमान
ने मुझे मिलक छ जू क सूरत दखा द ।" यह वाक़या कसीदे के प म सुनकर
बादशाह के चेहरे पर अचानक ह मु कुराहट आ गई और उसका सारा गु सा
काफ़े◌ूर हो गया। दरबा रय के मुँह से भी वाह िनकली। अमीर खुसरो से जलने
वाले सम त दरबार बहत
ु ह मायूस हए
ु तथा हत भ रह गए। बादशाह ने
स न होकर अमीर खुसरो को दरबार म दे र से आने के िलए माफ़ ह नह ं
कया ब क इस हा यजनक क़ से को सुनाकर हँ साने के िलए इनाम भी दया।
मिलक छ जू के राजदरबार म खुसरो केवल दो वष ह टक पाए। हआ
ु यूँ क
एक रात शहनशाह ह द ु तान गयासु न बलबन का बड़ साहबज़ादा, 'बुगरा खाँ'
िमलने आया मिलक छ जू से । उसने त काल फ़रमाइश क , "मेरे अज़ीज़ भाई
छ जू तु हारा बड़ा नाम है । अरे एक से एक नामवर तु हारे सामने गदन झुका
कर बैठता है । सूरमाँ , गवैये और शायर भी। हम भी तो ज़रा इसक झलक दे ख।"
यह सुनकर मिलक छ जू ने हु म दया - "यमीनु न खुसरो अपना कलाम पेश
कर, हमारे मेहमाने अजीज के सामने"। तब अमीर खुसरो ने अपनी एक ताजा
फ़ारसी क गज़ल सुनाई –

"सर इन खदद
ु ु जुई न दौरत क ितदौर ।

इन नरिगसी जौबई न दौलत क ितदौर ।

इ नुशते अमा जुल खबमा यास खरामा

इन ह केई गेसूई न दौरत क ितदौर ।"

अथात - तेर इन नरिगसी आँख और काली हसीन जु फ के आगे दौलत या


चीज है । यह मधुर व कण य गज़ल सुनकर बुगरा खाँ बोला - "वाह ! अरे ऐसे
ह रे िलए बैठे हो जाने ादर। अरे ऐसे आबदार ह रे मोती तो हमारे खजाने म भी
नह ं। हम बहत
ु ख़ुश हए।
ु अश कफ़य का ये थाल हमार ओर से शायर खुसरो
को सस मान दया जाए। खुसरो अभी तो हम सफ़र म ह, खुद ह मेहमान ह।
कभी हमार तरफ़ समाना आओ तो तु ह और भी इनाम दगे। य मेरे भाई
छ जो तु ह नागवारा तो नह ं गुज़रा क तु हारे दरबार शायर को हमार
सरकार क ओर से इनाम दया जाए। और वो भी तु हार मौजूदगी म तथा
तुमसे बना पूछे।" ऊपर से तो मिलक छ जू ने कह दया क उसे बुरा नह ं लगा
पर अंदर से उसे अमीर खुसरो पर बेहद गु सा आया क उसके दरबार म बना
उसक इजाज़त के अमीर खुसरो ने दसर
ू सरकार से ईनाम िलया। कड़ा के होने
वाले सूबेदार मिलक छ जू क कड़ नज़र अमीर खुसरो ने पहचान ली थीं। इससे
पहले क मिलक छ जू के गु से का तीर, खुसरो को िनशाना बनाता, वे तीर क
तरह उसक कमान से िनकल गए। और सीधे बलबन के छोटे लड़के बुगरा खाँ
(सन १२७६ ई.) के यहाँ गए जो मुलतान (पंजाब) के िनकट सामाना म बलबन
क छावनी का शासक व संर क था जो अब मौजूदा दौर म प टयाला (पंजाब)
म है । बुगरा खाँ ने अमीर खुसरो को अपना 'नमीदे खास' (िम ) बना कर रखा।
बुगरा खाँ ने खुसरो को बुलबले-हजार-दा तान क उपािध द । मौज़-म ती, शरो-
शायर , कताबखानी और श ले जवानी के रात- दन चल रहे थे क अचानक ह
बंगाल से बगावत क खबर आई। बुगरा खाँ ने कहा - "सामाने शफर को ख
करो। त ते दे हली से यह हु म पहँु चा है क पंजाब क फौज ले कर बंगाल
पहँु चो। हम खुद ल कर ले कर जाएँगे। शायर खुसरो साथ जाऐगा। फर सामाना
से लखनऊ क ओर कूच करगे।" मैदाने जंग म भयंकर यु हआ।
ु जतनी
जबरद त बगावत थी उतनी ह बेरहमी से कुचली गयी। दे हली और पंजाब क
फौज ने खड़े खेत जला दए। बािगय को गधे क खाल म भरवाकर सरे बाज़ार
जलाया गया। फाँिसयाँ, क लगाह हई।
ु खुद शहज़ादा बुगरा खाँ ने अपने पता
बलबन से इस बेदद, चीड़-फाड़ और अंधाधुध
ं लूटमार क िशकायत क । अमीर
खुसरो ने अपनी जंदगी म पहली बार इतने कर ब से जंग को दे खा तथा उसके
दद को गहराई से महसूस कया। उ ह ने बड़े पैमाने पर तबाह को महसूस
कया। एक कलाकार, शायर, लेखक के नाते उनके नाजुक व भावुक दल को बहत

दख
ु हआ।
ु पर तु खुसरो के ह ठ िसले रहे । इस ददनाक मं पर खुसरो ने कुछ
नह ं िलखा। उनक लेखनी मौन रह । खुसरो जैसे ेमी जीव को शायर का कहाँ
होश था? इस खूनी मं म। लखनौती म वजय ा करने के प ात बलबन ने
बुगरा खाँ को लखनौती व बंगाल का माशल लौ (एडिमिन े टर) मुकरर कर के
वह ं छोड़ दया। शाहजादे को सलाह और राय दे ने के िलए िस कव
शमशु न दबीर को िनयु कया गया था। उसने व बुगरा खाँ ने दरबार शायर
खुसरो को बहत
ु रोका मगर वो हज़ार बहाने कर के शाह ल कर के साथ द ली
चले आए। अपनी माँ दौलत नाज और गु िनजामु न औिलया के कदम म।
खुसरो ने बुगरा खाँ और कलशी खाँ क श ुता के कारण वहाँ रहना उिचत न
समझा और त काल सरकार सेना के साथ द ली चले आए। द ली म इस
वजय क खुशी म घर-घर द प जलाए गए थे। वंय अमीर खुसरो अपने एक
द वान म, इस वषय म व तार से िलखते ह क - "माँ क ममता, गु का
आ या मक लगाव, और दे हली क मोह बत, गंगा-जमुना के कनारे मुझे हर
जगह से, हर एक कदरदान से खच लाती थी। मेर शायर तो उड़ फरती थी
और म खुद उड़ फर कर दे हली या प टयाल चला आता था। मगर आ खर घर
बढ़ा, खच बढ़े , और दरबार आना-बान व ठाट-बाट के तो कहने ह या?"

इस दौरान अमीर खुसरो क िम ा हसन िस जी दे हलवी से हई।


ु हसन भी
फारसी म कवता करता था। उसक नानबाई क दकान
ु थी। वह खुसरो क तरह
रईस नह ं था पर फर भी खुसरो ने उसके नैसिगक गुण दे ख कर उससे िम ता
क । ये जग िस कृ ण और सुदामा क िम ता से कसी भी कार कम न
थी। समय-समय पर खुसरो ने अपने िम के िलए कपट सहे । इसका ज़
आगे करगे। पहले यह दे ख क यह िम ता व मुलाकात कैसे हई
ु ? हसन अपनी
दक
ु ान पर रो टयाँ बेच रहा था। तँदरू से गरम-गरम गदबाद रो टयाँ थाल म आ
रह ं थीं। ाहक हाथ हाथ खर द रहे थे। अमीर खुसरो दकान
ु के सामने से गुजरे
तो उनक हसन िस जी पर पड़ । अमीर खुसरो बचपन से ह हँ सी-मज़ाक़
व शरारत म आनंद लेने वाले बेहद ह वनोद य य थे। उ ह ने हँ सते हए

हसन से पूछा - 'नानबाई रो टयाँ या भाव द ह?' हसन ने भी बहत
ु सोच
समझ कर त काल उ र दया - 'म एक पलड़े म रोट रखता हँू और ाहक से
कहता हँू दसरे
ू पलड़े म सोना रख। सोने का पलड़ा झुकता है तो रोट ख़र ददार
को दे ता हँू ।' खुसरो ने कया क ाहक गर ब हो तब? हसन ने बेहद ह
सहजता से जवाब दया - 'तब आश वाद के बदले रोट बेचता हँू ।' इस ो र
के प रणाम व प हसन और खुसरो म ऐसी घिन ू िम ता हई
व अटट ु क वे
ज म भर साथ-साथ रहे । शर र दो थे पर आ मा एक। इस िम ता के िलए
खुसरो को अनेक लांछन सहने पड़े पर िम ता म कसी कार क कोई कमी न
आई। दोन िम को गयासु न बलबन के दरबार म उ च थान िमला।

ारं िभक दन म खुसरो ने बलबन क शंसा म अनेक कसीदे िलखे। द ली


लौटने पर गयासु न बलबन ने अपनी जीत के उपल य म उ सव मनाया।
उसका बड़ा लड़का सु तान मोह मद अहमद (मु तान, द पालपुर क सरहद
छावनी) भी उ सव म स मिलत हआ।
ु खुसरो को अब दसरे
ू आ यदाता क
ज़ रत थी। उ ह ने सु तान मुह मद को अपनी क वता सुनाई। उसने खुसरो क
क वताएँ बहत
ु पसंद क और उ ह अपने साथ मुलतान ले गया। यह सन १२८१
का वाक़या है । वहाँ िसंध के रा ते सू फ़य , दरवेश , साधुओं और क वय का
अ छा आना जाना था। मु तान म पंजाबी-िस धी बोिलयाँ िमली-जुली चलती
थीं। खुसरो ने यहाँ लगभग पाँच साल शायर और संगीत के नए-नए तजुब
कए। शहज़ादे क परख गज़ब क थी। हर कमाल क जी खोल कर तार फ़
करता, दल बढ़ाता था। सु तान मोह मद ने ईरान के िस फ़ारसी क व शेख़
साद को अपने दरबार म आने के िलए आमं त कया। शेख़ साद ने अपनी
वृ ाव था के कारण आने म असमथता य क और कहा क ह द ु तान म
अमीर खुसरो जैसा कमाल का शायर मौजूद है । उनक जगह अत: खुसरो को
बुलाया जाए। खुसरो के िलए साद क यह िसफ़ा रश उनक महानता का ह
प रचायक है । इससे पता चलता है क उस समय खुसरो क याित व िस
दरू-दरू तक फैली थी। बीच म खुसरो ित वष द ली आते जाते रहे । अंितम
वष मंगोल के एक ल कर ने अचानक ह हमला कर दया। बादशाह के साथ
अमीर खुसरो भी अपने िम हसन िस जी के साथ लड़ाई म स मिलत हए।

कतनी रोचक बात है क एक शायर यु के मैदान म जंग लड़ रहा है । कहते
ह क अमीर खुसरो जंग के मैदान म एक हाथ म तलवार तो दस
ू रे हाथ म
कताबदान िलए बड़ शान से िनकला करते थे। खैर, इस यु म द ु मन क
ताक़त का पता बहत
ु दे र से चला। ह द ु तानी फ़ौज बेख़बर का िशकार हो गई।
हवा पलट गई। शाहज़ादा जंग के मैदान म मारा गया। खुसरो और हसन भी
मैदाने जंग म िगर तार हए।
ु एक मंगोल सरदार खुसरो को घोड़े के पीछे दौड़ाता
हआ
ु और फर घसीटता हआ
ु हरात और बलख ले गया। वहाँ खुसरो को क़ले
म बंद बना िलया गया। कारागार म रहते समय खुसरो ने अनेक शोक गीत
(मिसये) िलखे जनम मंगोल के साथ यु करते समय राजकुमार सुलतान
मोह मद क वीरतापूण मृ यु का उ लेख था। खुसरो ने अपनी कारावास कथा
बड़ ह मािमक शैली म िलखी है - "शह द के र ने जल क तरह धरती को
लीप दया। क़ै दय के चेहर को र सय से इस तरह बाँध दया जैसे हार म
फूल गूँदे जाते ह। ज़ीन के त म क गाँठ से उनके िसर टकराते थे और लगाम
के फ दे म उनक गदन घुटती थी। मुझे जल वाह के समान तेज़ी से भागना
पड़ा और ल बी या ा के कारण मेरे पैर म बुदबद क तरह फफोले उठ आए
तथा पैर छलनी हो गए। इन मुसीबत के कारण जीवन तलवार क मूठ क
तरह कठोर जान पड़ने लगा। और शर र कु हाड़ के ह थे के समान सूख गया।"
दो वष प ात कसी कार अपने कौशल और साहस के बल पर अमीर खुसरो
श ुओं के चुग ू कर वापस द ली लौटे । लौटने पर वे गयासु न बलबन
ं ल से छट
के दरबार म गए और सुलतान मोह मद क मृ यु पर बड़ा क ण मिसया पढ़ा।
इसे सुनकर बादशाह इतना रोये क उ ह बुखार आ गया और तीसरे दन उसका
दे हांत हो गया। (सन १२८७)।

इसके प ात खुसरो द ली म नह ं रहे । अपनी माँ के पास प टयाली ाम चले


गए। वहाँ कुछ समय िचंतन म बताया। वंय खुसरो िलखते ह-"म इ ह ं
अमीर क सोहबत से कट कर माँ के साए म रहा। दिनयादार
ु से आँख मूँद कर
गरमा गरम गजल िलखी, दोहे िलखे। अपने भाई के कहने से पहला द वान
तोहफतु स तो तैयार हो चुका था। दसरा
ू द वान व तुल हयात ( जंदगी के
बीच का भाग - ६८४ ह ी सन १२८४) पूरा करने म लगा था। एक तरफ
कनारे पड़ा हआ
ु दल को गरमाने वाली गजल िलखता रहता था। राग-रगािनयाँ
बुझाता था।" वसतुल हयात म १८-२४ वष और ब ीस से ततीस साल क उ
तक का कलाम है । कसीदे यादातर सुलतान मोह मद, ह. िनजामु न औिलया,
कशलू खाँ, बलबन, कैकुबाद, बुगरा खाँ, शमशु न दबीर तथा जलालु न खलजी
क तार फ म ह। सु तान मोह मद पर मिसया भी है । कसीद म खाकानी और
कमाल अ फहानी क का य शैली को अपनाने क कोिशश क गई है ।

इसके बाद सन १२८६ ई. म खुसरो अवध के गवनर (सूबेदार) खान अमीर अली
सृजनदार उफ हाितम खाँ के यहाँ दो वष तक रहे । यहाँ खुसरो ने इ ह ं अमीर
के िलए 'अ पनामा' नामक पु तक िलखी। खुसरो िलखते ह - "वाह या सादाब
सरजमीं है ये अवध क । दिनया
ु जहान के फल-फूल मौजूद। कैसे अ छे मीठ
बोली के लोग। मीठ व रं गीन त बयत के इं सान। धरती खुशहाल जमींदार
मालामाल। अ मा का खत आया था। याद कया है । दो म हने हए
ु पाँचवा खत
आ गया। अवध से जुदा होने को जी तो नह ं चाहता मगर दे हली मेरा वतन,
मेरा शहर, दिनया
ु का अलबेला शहर और फर सबसे बढ़कर माँ का साया,
ज नत क छाँव। उ फो ओ दो साल िनकल गए अवध म। भई बहत
ु हआ।

अब म चला। हाितमा खाँ दलो जान से तु हारा शु या मगर म चला। जरो
माल पाया, लुटाया, खलाया, मगर म चला। वतन बुलाता धरती पुकारती है । अब
तक अमीर खुसरो क भाषा म बृज व खड़ (दहलवी) के अित र पंजाबी, बंगला
और अवधी क भी चा ी आ गई थी। अमीर खुसरो क इस भाषा से ह द के
भावी यापक व प का आधार तैयार हआ
ु जसक सश नींव पर आज क
प रिन त ह द खड़ है । सन १२८८ ई. म खुसरो द ली आ गए और बुगरा
खाँ के नौजवान पु कैकुबाद के दरबार म बुलाए गए। कैकुबाद का पता बुगरा
खाँ बंगाल का शासक था। जब उसने सुना क कैकुबाद ग पर बैठने के बाद
वे छाचार और वलासी हो गया है तो अपने पु को सबक िसखाने के िलए
सेना ले कर द ली पहँु चा। ले कन इसी बीच अमीर खुसरो ने दोन के बीच
शांित संिध कराने म एक मह वपूण भूिमक िनभाई। इसी खुशी म कैकुबाद ने
खुसरो को राजस मान दया। खुसरो ने इसी संदभ म करानु सादै न (दो शुभ
िसतार का िमलन) नाम से एक मसनवी िलखी जो ६ मास म पूर हई।
ु (६८८
ह ी। सन १२८८ उ ३५ वष, मूल वषय है बलबन के पु कैकुबाद का ग
पर बैठना, फर पता बुगरा खाँ से झगड़ा और अंत म दोन म समझौता। उस
समय के रहन सहन, त कालीन इमारत, संगीत, नृ य आ द क िच ण। इसम
द ली क वशेष प से तार फ है । अत: इसे मसनवी दर िसफत-ए-दे हली भी
कहते ह। शेर क भरमार है । अमीर खुसरो अपनी इस मसनवी म िलखते ह क
कैकुबाद को उनके गु िनजामु न औिलया का नाम भी सुनना पसंद नह ं था।
खुसरो आगे िलखते ह - " या तार खी वाकया हआ।
ु बेटे ने अमीर क सा जश
से त त हिथया िलया, बाप से जंग को िनकला। बाप ने त त उसी को सुपुद
कर दया। बादशाह का या? आज है कल नह ं। ऐसा कुछ िलख दया है क
आज भी लु फ दे और कल भी जंदा रहे । अपने दो त , द ु मन क , शाद क ,
गमी क , मुफिलस और खुशहाल क , ऐसी-ऐसी रं गीन, त वीर मने इसम खच
द है क रहती दिनया
ु तक रहगी। कैसा इनाम? कहाँ के हाथी-घोड़े ? मुझे तो
फ है क इस मसनवी म अपनी पीरो मुरिशद हजरत वाजा िनजामु न का
ज कैसे परोऊँ? मेरे दल के बादशाह तो वह ह और वह मेर इस न म म
न ह , यह कैसे हो सकता है ? वाजा से बादशाह खफा है , नाराज ह, दल म गाँठ
है , जलता है । वाजा िनजामु न औिलया ने शायद इसी याल से उस दन
कहा होगा क दे खा खुसरो, ये न भूलो क तुम दिनयादार
ु भी हो, दरबार सरकार
से अपना िसलिसला बनाए रखो। मगर दरबार से िसलिसला या है िसयत
इसक । तमाशा है , आज कुछ कल कुछ।" खुसरो को करानु सादै न मसनवी पर
मिलकुशओरा
् क उपािध से वभू षत कया गया। सन १२९० म कैकुबाद मारा
गया और गुलाम वंश का अंत हो गया।

बीच म कुछ समय के िलए शमशु न कैमुरस बादशाह बना पर अंतत: स र


वष य जलालु न खलजी सन १२९० म द ली के तख़त पर आसीन हआ।

खुसरो से इसका संबंध पहले से ह था। इ ह ने भी अपने दरबार म खुसरो को
स मान दया। ये ेम से खुसरो को हदहद
ु ु (एक सुर ला प ी) कह कर पुकारते
थे। इ ह ने अमीर क पदवी खुसरो को द । अब अबुल हसन यमीनु न 'अमीर
खुसरो' बन गए। इनका वज़ीफ़ा १२,००० तनका सालाना तय हआ
ु और बादशाह
के ये ख़ास मुहािसब हो गए। जलालु न स य, िन ा, साधु कृ ित, वधा एवं कला
ेमी तथा पारखी था। फ़ारसी क व ख़वाजा हसन, संगीत मुह मद शाह,
इितहासकार जयाउ न बरनी, संगीत ाएँ फुतूहा, नुसरत नतक , श शा खातून
और तुमती आ द का उनके दरबार से संबंध था। जालालु न क तार फ़ म
अमीर खुसरो ने कसीदे िलखे जो गुरतुल कमाल म ह। खुसरो ने अपनी िस
मसनवी म ताहल
ु फ़तूह ( वजय क कंजी) (६९० ह ी/ सन १२९० ई., उ
३७ म जलालु न क चार वजय का वणन, मिलक छ जू क बगावत और
उसको सजा, अवध क जीत, मुगल को हराना, छाइन क वजय आ द का वणन
है । इसम शेर क भरमार है । जलालु न खलजी ने खुसरो को मुसहफदार
( मुख लाइ े रयन) और क़ुरान क शाह ित का र क बना दया। जलालु न
ने अपनी इस अिधक आयु म भी अपनी िचय को नह ं बदला था। खुसरो हर
शाम उसक मह फ़ल म एक गज़ल तुत करते और जब साक़ जाम भर दे ता,
सु दर कशोर ललनाएँ नृ य करने लगती तो अमीर खुसरो क गज़ल मधुर
वर लह रय पर उ चा रत हो उठतीं। ले कन इसके बावजूद भी खुसरो अपनी
सूफ़ वाले प से पूणत: याय करते । खुसरो अपे ाकृ त एक धािमक य थे।
उ ह ं के एक कसीदे से यह व दत होता है क वे मु य-मु य धािमक िनयम
का पालन करते थे, नमाज पढ़ते थे तथा उपवास रखते थे। वे शराब नह ं पीते
थे और न ह उसके आ द थे। बादशाह क अ याशी से उ ह ने अपने दामन को
सदा बचाए रखा। वे द ली म िनयिमत औिलया साहब क ख़ानक़ाह म जाते थे
फर भी वे नीरस संत नह ं थे। वे गाते थे, हँ सते थे, नत कय के नृ य एवं
गायन को भी दे खते थे और सुनते थे, तथा शाह और शहजाद क शराब-
मह फ़ल म भाग ज़ र ले ते थे मगर तट थ भाव से । यह कथन खुसरो के
समकालीन इितहासकार जयाउ न बरनी का है । खुसरो अब तक अपने जीवन
के अड़तीस बसंत दे ख चुके थे।

इस बीच मालवा म िच ौड़ म रणथ भोर म बगावत क ख़बर बादशाह


जलालु न को एक िसपाह ने ला कर द । बगावत को कुचलने के िलए बादशाह
वंय मैदाने जंग म गया। बादशाह ने जाने से पूव भरे दरबार म ऐलान कया-
'हम यु को जाएँगे। तलवार और साज़ क झंकार साथ जाएगी। कहाँ है वो
हमारा हदहद।
ु ु वो शायर। वो भी हमारे साथ रहे गा साये क तरह। य खुसरो?'
खुसरो अपने थान से उठ खड़े हए
ु और बोले-"जी हजू
ु र। आपका हदहद
ु ु साये
क तरह साथ जाएगा। जब हु म होगा चहचहाएगा सरकार। जब तलवार और
पायल दोन क झंकार थम जाती है , जम जाती है तब शायर का नगमा गूँजाता
है , कलम क सरसराहट सुनाई दे ती है । अब जो म आँख दे खी िलखूँगा वो कल
सैकड़ साल तक आने वाली आँख दे खगी हजू
ु र।" बादशाह ख़ुश हए
ु और बोले-
शाबाश खुसरो। तु हार बहादरु और िनडरता के या कहने। मैदाने जंग और
मह फ़ल रं ग म हरदम मौजूद रहना। तुम को हम अमीर का ओहदा दे ते ह। तुम
हमारे मनसबदार हो। बारह सौ तनगा सालाना आज से तु हार त वा होगी।

सन १२९६ ई. म अलाउ न खलजी ने रा य के लोभ और लालच म अपने


चाचा जलालु न खलजी क ह या कर द और द ली का राज िसंहासन हड़प
िलया। वंय अमीर खुसरो ने एक इितहासकार के नाते अपने ंथ म इसका
वणन इस कार कया है -"अरे कुछ सुना अलाउ न खलजी सुलतान बन बैठा।
सुलतान बनने से पहले इसने या- या नए करतब दखाए। हाँ वह ं कड़ा से
दे हली तक सड़क के दोन तरफ़ तोप से द नार और अश कफ़याँ बाँटता आया।
लोग कहते ह अलाउ न ख़ून बरसाता हआ
ु उठा और ख़ून क होली खेलता हआ

तख़ते शाह तक पहँु च गया। हाँ भई, ख के खुदा को राजा जा को दे खो। लोग
अश कफ़य के िलए दामन फैलाए लपके और ख़ून के ध बे भूल गए। हे ल मी
सब तेर माया है ।" अलाउ न र ते म जलालु न का भतीजा और दामाद था।
अलाउ न ने खुसरो के ित बड़ा उदार कोण अपनाया। खुसरो ने उस काल
क ऐितहािसक घटनाओं का आँख दे खा उ लेख अपनी ग रचना खजाइनुल
फतूह (तार खे -अलाई, ६९५ ह ी/७११ ह ी, कन १२९५-सन-१३११ ई. तक क
घटनाएँ। अथात फ़तह का ख़ज़ाना। (इस ंथ म दे विगर , दे हली, गुजरात, मालवा,
िचतौड़ आ द के आ मण एवं वजय का वणन है । साथ ह अलाउ न का
शासन बंध, भवन िनमाण, जनता क सुख शांित हे तु उसके ारा कए गए य
आ द का उ लेख है ।

अमीर खुसरो क वशाल और सावभौिमक ितमा ने 'खुदाए सुखन' अथात 'का य


कला के ई र माने जाने वाले क व िनजामी गंजवी के ख स का जवाब िलखा
है । जो ख साए खुसरो के नाम से मशहर
ू है । ख स का अथ है पाँच। खुसरो ने
यह उ ह ं छं द म, उ ह ं वषय पर िलखा है । खुसरो अपने इस ख से को
िनजामी के ख से से अ छा मानते ह। कुछ ने इसे एक शे र को िनजामी के पूरे
ख से से अ छा माना है । इसे पंचगंज भी कहते ह। इसम कुल िमलाकर १८,०००
पद ह। कुछ लोग यह भी मानते ह क इसे खुसरो ने सुलतान अलाउ न
खलजी के कहने पर िलखा है । इसम बादशाह क शंसा भी है ।

इतना ह नह ं इसम खुसरो ने अपने क व उिचत कत य का पालन करते हए



अलुउ न जैसे धमाद, सनक , जािलम व हठ बादशाह को जनता क भलाई और
उदारता का यवहार करने का सुझाव दया है । एक थान पर खुसरो ने िलखा है
क जब खुदा ने तुझे यह शाह त त दान कया तो तुझे भी जनता के
क याण का याल रखान चा हए। ता क तू भी स न रहे और खुदा भी तुझसे
स न रहे । य द तू अपने खास लोग पर कृ पा करता है तो कर क तु उन
लोग क भी उपे ा मत कर जो लोग बेचारे भूखे- यासे सोते ह। खुसरो क
जलालु न खलजी जैसे बादशाह को ऐसी हदायद करना िन त ह खुसरो के
नैितक बल का तीक है तथा उनक दलेर का परचायक है । अमीर खुसरो ने
अपना पंचगंज ६९८ ह ी से ७०१ ह ी के बीच िलखा यािन सन १२९८ ई. से
१३०१ ई. तक। इसम पाँच मसन वयाँ ह। इ ह खुसरो क पंचपद भी कहते ह। ये
इस कार है –

(१) मतला-उल-अनवार : िनजामी के मखजनुल असरार का जवाब है । (६९८


ह./सन १२९८ ई.) अथात रोशनी िनकलने क जगह। उ ४५ क व जामी ने
इसी के अनुकरण पर अपना 'तोहफतुल अबरार' (अ छे लोग का तोहफा) िलखा
था। इसम खुसरो ने अपनी इकलौती लड़क को सीख द है जो बहत
ु सु दर थी।
ववाह के फ चात जब बेट वदा होने लगी तो खुसरो ने उसे उपदे श दया था -
खबरदार चखा कभी न छोड़ना। झरोखे के पास बैठकर इधर-उधर न झाँकना।

ाचीन काल म यह रवाज़ था क जब कोई बादशाह अथवा शाहज़ादा अपने


हमराह के साथ सैर-सपाटा करने को िनकलते थे तो जो भी युवती अथवा क या
पसंद आ जाती थी तो वह अपने िसपहसालार के मा यम से उनके अिभभावक
अथवा पित अथवा क या के पता के पास भेज कर कहलवाते थे क उनक
पु ी, क या अथवा प ी को राजदरबार म भेज द। य द कोई तैयार नह ं होता था
तो अपने िसपहसालार के ज़ रये उसको उठवाकर अपने हरम म डाल दे ते थे
तथा वह पहले बाँ दय के प म और बाद म रखैल बन कर रखी जाती थी।
अत: वह बादशाह व शाहजाद क बुर नज़र से उसे बचा कर रखना चाहते थे।
अमीर खुसरो ने अपनी बेट को फ़ारसी के िन न पद म सीख द है -

"दो को तोजन गुज़ा तन न पल अ त, हालते-परदा पो कंशशे बदन अ त।


पाक दामाने आ फयत तद कुन, ब ब द वारो पु त बर दर कुन।
गर तमाशाए-रोज़नत हवस अ त, रोज़नत च मे-तोजने तो बस अ त।।

भावाथ यह है क - बेट ! चरखा कातना तथा सीना- परोना न छोड़ना। इसे


छोड़ना अ छ बात नह ं है य क यह परदापोशी का, ज ढकने का अ छा
तर क़ा है । औरत को यह ठ क है क वे घर पर दरवाज़े क ओर पीठ कर के
घर म सुकून से बैठ। इधर-उधर ताक-झाँक न कर। झरोखे म से झाँकने क
साध को 'सुई' क नकुए से दे खकर पूर करो। हमेशा परदे म रहा करो ता क
तु ह कोई दे ख न सके। उपयु थम पं म यह संदेश था क जब कभी आने
जाने वाले को दे खने का मन करे तो ऊपर मं ज़ल म परदा डालकर सुई के
धागा डालने वाले छे द को आँख पर लगाकर बाज़ार का नज़ारा दे खा करो। चरखा
कातना इस बात को इं िगत करता है क घर म जो सूत काता जाए उससे कढ़े
या गाढ़ा (मोटा कपड़ा) बुनवाकर घर के सभी मद तथा औरत पहना कर।
महा मा गाँधी जी ने तो बहत
ु साल के बाद सूत कातकर खाद तैयार करके
खाद के कपड़े पहनने पर ज़ोर दया था। ले कन हमारे नायक अमीर खुसरो ने
बहत
ु पहले तेरहवीं-चौदहवीं शता द म ह खाद घर म तैयार करके खाद कपड़े
पहनने के िलए कह दया था। मतला-उल-अनवार मसनवी पं ह दन क अवधी
म िलखी बताई जाती है । इसम ३३२४ पद ह। इसका वषय नैितकता और सूफ़
मत है । खुदाब श पु तकालय पटना म इसक एक पांडुिल प सुर त रखी है ।
(२) शीर व खुसरो - यह क व िनजामी क खुसरो व शीर का जवाब है । यह
६९८ ह ी/ सन १२९८ ई., उ ४५ वष म िलखी गई। खुसरो ने इसम ेम क
पीर को ती तर बना दया है । इसम बड़े बेटे को सीख द है । इस रोमां टक
अिभ य म भावा मक त मयता क धानता है । मु ला अ दल
ु का दर
बादयूनी, फैजी िलखते ह क ऐसी मसनवी इन तीन सौ वष म अ य कसी ने
नह ं िलखी। डॉ. असद अली के अनुसार यह रचना अब उपल ध नह ं तथा इसक
खोज क जानी चा हए।

(३) मजनूँ व लैला - िनजामी के लैला मजनूँ का जवाब ६९९ ह ी, सन १२९९ ई.


उ ४६ वष। ेम तथा ॠंगार क भावनाओं का िच ण। इसम २६६० पद ह।
इसका येक शेर गागर म सागर के समान है । यह पु तक कािशत हो चुक
है । कुछ व ान इसका काल ६९८ ह ी भी मानते ह। कला मक से जो
वशेषताएँ 'मजनूँ व लैला' म पाई जाती ह, व और कसी मसनवी म नह ं ह।
णय के रह य, य व या क रह यमयी बात, भाव और मनोभाव जस
सु दरता, सरलता, सहजता, रं गीनी और तड़प तथा लगन के साथ खुसरो ने
इसको का य का प दया है , उसका उदाहरण खुसरो के पूव के क वय के
का य म अ ा य है ।

हम यहाँ अमीर खुसरो क इस मानी मसनवी - 'मजनूँ व लैला' का सं


वणन करते ह –

मजनूँ के का पिनक होने के संबंध म कई कथन व णत ह। इन सबका ता पय


यह है क बनी उ मया के खानदान का कोई शहज़ादा कसी पर प सु दर पर
आिशक़ था। अपने ेम के रह य को िछपाने के िलए वह जो अशआर
् द वानगी
म कहता, वह 'मजनूँ' के नाम से कहता। यह स य है क लैला और मजनूँ वा तव
म इस दिनया
ु म थे। न द इनका वतन था। यह अरब का एक भाग है जो शाम
से िमला हआ
ु है । यह थल बहत
ु ह हरा-भार तथा खूबसूरत वा दय वाला है ।
इसके हरे -भरे पहाड़ तरह-तरह क खुशबू म महकते ह। लैला और मजनूँ दोन
भी बनी अमीर नामक कबीले से संबंिधत थे। बचपन म दोन अपने-अपने घर म
मवेशी (पशु) चराया करते थे। इस थित म ेम भावना ने सर उठाया। जब
दोनो ज़रा बड़े हुए और उसके हु न व खूबसूरती क चार तरफ़ ज़ोर-शोर से
चचा होने लगी तो लैला पदानशीन हो गई। मजनूँ को ये नागवारा गुज़रा।
आ खर वह अब कैसे अपनी यतमा को िनहारे । उसके वरह ने मजनूँ के
पागलपन को और तेज कर दया जसके कारण दोन क ेम कहानी भी आग
हो गई। यानी क मशहर
ू हो गई। मजनूँ के माता- पता ने ममता के भाव से
लैला के घर शाद का पैगाम भेजा ले कन लैला के माता- पता ने बदनामी के
डर से शाद से इं कार कर दया। बदनामी का डर यह था क मजनूँ कुछ रोजी
रोट कमाता न था और एक आवारा के प म पूरे शहर म मशहर
ू था। इस
इं कार से मजनूँ के संयम का खिलहान जलकर खाक हो गया। मान उसके
अरमान का गला घ ट दया गया हो। अंतत: और कोई सकारा मक प र थित
क कोई गुंजाइश जब नह ं न आई तब मजनूँ अपने सारे कपड़े फाड़कर द वाना
सा जंगल को िनकल गया। वह जंगल म मारा-मारा फरने लगा। जंगल म मर
करते हए
ु ेम के चम कार कट हए।
ु ेम अ न ने इस दशा म उससे जो दद
भरे अशआर कहलवाए ह वे ेम क व वध भावनाओं का दपंण है । इस मण म
सहरा के हरन मजनूँ के खास राजदार थे। पु क इस तबाह और बरबाद से
माता- पता का दल कुढ़ता था। एक दफा वह उसको हरमे-मोहतरम म ले गए
और कहा क काबे का िगलाफ थामकर लैला के ेम से मु पाने क ाथना
करो। मजनूँ ने िगलाफ पकड़ कर कहा - "ऐ मेरे रब। लैला क मुह बत मे रे
दल से कभी न िनकालना। खुदा क रहमत हो उस बंदे पर जो मेर इस दआ

पर आमीन कहे ।" (अरबी शेर का पांतर) िसतम बलाए िसतम यह हआ
ु क लैला
के कठोर माता- पता ने उसक शाद कसी और जगह कर द । उस समय मजनूँ
ू िगरा होगा उसका वणन ज र नह ं। लैला क
पर जो संकट का पहाड़ टट
बेचन
ै ी और वकलता ने उसके पित का जीवन दभर
ू कर दया। उसने तंगा आ
कर उससे संबंध तोड़ दया। मजनूँ कभी कभार द वानगी के जोश म अपनी
या क गली म िनकल आता और अपने दद भरे अशआर से लैला तथा उसके
कबीले वाल को तड़पा जाता। प रणाम व प लैला ने इसी वरह दशा म अपने
ाण दे दए। लैला क मृ यु क दद भर खबर सुनकर मजनूँ कब जी वत रह
सकता था। अमीर खुसरो ने अपनी मसनवी म कला क से आव यक बात,
ह द, नात, और मुनाजात आ द के अित र कई दलच प शीषक कायम कए
हए
ु ह। इनके क से क सं परे खा िन निल खत है -

"लैला व मजनूँ का पाठशाला म एक त बैठना, ेम पाठ क पुनरावृ भेद


कट होना, माँ का लैला को उपदे श, पदा-नशीनी, मजनूँ का पागलपन, पता का
मजनूँ को समझाकर जंगल से लाना, लैला के यहाँ शाद का पैगाम भेजना, उसके
माता- पता का इं कार करना, कबीले के सरदार नौ फल का लैला के प रवार से
लड़ना, इस लड़ाई म मजनूँ क ओर से क ब क दावत, मजनूँ के पागलपन का
और बढ़ना, नौ फल क पु ी से मजनूँ का िनकाह, लैला के िनकाह क खबर
सुनकर मजनूँ को खत िलखना, मजनूँ का उ र दे ना, दो त ारा मजनूँ को बाग
म ले जाना, पर तु उसका द वानगी म भाग खड़ा होना, मजनूँ का बुलबुल से बात
करना, लैला के कु े से मजनूँ क मुलाकात, लैला का सपने म ऊँटनी म सवार हो
कर मजनू के पास पहँु चना, लैला का स खय के साथ बाग म जाना, मजनूँ के
एक िम का लैला को पहचान कर दद भरे वर म मजनूँ क गजल गाना, लैला
का वकल हो कर घर लौटना और मृ यु शै या पर फँस जाना, लैला क बीमार
का समाचार सुनकर मजनूँ का उसके पुस को आना और उसक अथ दे खना,
मजनूँ का म त होकर गीत गाना, लैला के अंितम सं कार के समय मजनूँ का
दम तोड़ दे ना और साथ ह दफन होना।"

मजनूँ व लैला के क़ से क ऊपर द हई


ु परे खा म बड़ ह सरलता और
सहजता है , ेम अ न तथा वरह का यह अफ़साना मन को अित भा वत
करता है और यह वन मण क एक आकषक दा तान है । इसके िलए भगवान
क ओर से खुसरो को एक दद भरा दल ा हआ
ु था। हज़रत िनजामु न
औिलया ाथना करते समय उनके दय क तड़प का वा ता दे ते थे और उनका
िच ती वंश से संबंिधत होना उनके इस उ साह का कारण था। मजनूँ क इस
दा तान म गज़ल क तमाम वशेषताएँ पाई जाती ह। अत: वा तववा दता
अमीर खुसरो का वैिश य था। मसनवी के हर क़ से पर हमको स य का
आभास होता है । खुसरो के का य म ाकृ ितक िच कार है । उनक लेखनी ने जो
श द िच खीच ह, वे 'माना' तथा बहजाद का िच कोष ह तो है ।

(४) आइने-िसकंदर -या िसकंदर नामा - िनजामी के िसकंदरनामा का जवाब


(६९९ ह ी/सन १२९९ ई.) इसम िसक दरे आजम और खाकाने चीन क लड़ाई
का वणन है । इसम अमीर खुसरो ने अपने छोटे लड़के को सीख द है । इसम
रोज़ीरोट कमाने, व कुवते बाज़ू क रोट को ाथिमकता, हनर
ु (कला) सीखने,
मज़हब क पाबंद करने और सच बोलने क वह तरक़ ब है जो उ ह ने अपने बड़े
बेटे को अपनी मसनवी शीर खुसरो म द है । इस रचना के ारा खुसरो यह
दखाना चाहते थे क वे भी िनजामी क तरह वीर रस धान मसनवी िलख
सकते ह।

(५) हशव-ब ह त- िनजामी के ह त पैकर का जवाब (७०१ ह ी/सन १३०१


ई.) फ़ारसी क सव े कृ ित। इसम इरान के बहराम गोर और एक चीनी हसीना
(सु दर ) क का पिनक ेम गाथा का बेहद ह मािमक िच ण है जो दल को
छू जाने वाली है । इसम खुसरो ने मानो अपना य गत दद परो दया है ।
कहानी मूलत: वदे शी है अत: भारत से संबिं धत बात कम ह। इसका वह भाग
बेहद ह मह वपूण है जसम खुसरो ने अपनी बेट को संबोिधत कर
उपदे शजनक बात िलखी ह। मौलाना िशबली (आजमगढ़) के अनुसार इसम
खुसरो क लेखन कला व शैली चरमो कष को पहँु च गई है । घटनाओं के िच ण
क से फ़ारसी क कोई भी मसनवी, चाहे वह कसी भी काल क हो, इसका
मुक़ाबला नह ं कर सकती।

आज के संदभ म खुसरो क क वता का अनुशीलन भावा मक एकता के


पुर कताओं के िलए भी लाभकार होगा। खुसरो वतन पर त अथात दे श ेिमय
के सरताज कहलाए जाने यो य ह। उनका स पूण जीवन दे श भ के िलए एक
संदेश है । दे श वािसय के दल को जीतने के िलए जाित, धम, आ द क एकता
क कोई आव यकता नह ं। अ पतु धािमक स ह णुता, वचार क उदारता, मानव
मा के साथ ेम का यवहार, सबक भलाई (क याण) क कामना तथा रा ीय
एकता क आव यकता होती है । इस लेख म उ त
ृ खुसरो क विभ न
मसन वय के उ रण से यह बात भली-भाँित भा वत होती है तथा उनके भारत
वषयक आ यंितक ेम का प रचय िमलता है ।

इसी बीच मंगोल ने अचानक दे हली पर हमला बोल दया। अलाउ न खलजी
क फ़ौज ने ख़ूब डटकर सामना कया। मंगोल को आ ख़रकार मुँह क खानी
पड़ । कुछ तो अपनी जान बचा कर भागने म सफल हए
ु तो बहत
ु से बंद बना
िलए गए। इितहासकार अमीर खुसरो आँख दे खा हाल सुनाते हए
ु कहते ह - या
ख़बर लाए हो। हजू
ु र फ़तेह क । वो तुमसे पहले पहँु च चुक है । सच-सच बताओ
कतने मंगोल ल कर मारे गए ह? हजू
ु र बीस हज़ार से ज़यादा। कतने िगर तार
कए? अभी िगना नह ं मगर हज़ार , जो सर झुकाएँ तौबा कर, उनके कान म
हलका टकाओ। शहर से दस कोस दरू एक ब ती बसाकर रहने क इजाज़त है
इन नामुराद को। ब ती होगी मंगोल पुर । पहरा चौक । जनसे सरकशी का अंदेशा
हो, उनके सर उतार कर मीनार बना दो। इनके बाप दादा को खोप ड़य के मीनार
बनाने का बहत
ु शौक़ था और अब इनके सर उतारते जाओ, मीनार बनाते जाओ।
इ ह दखाते जाओ। शहर क द वार बनाने म जो गारा लगेगा, उसम पानी नह ं,
दे हली पर चढ़ाई करने वाल का ख़ून डालो, लहू डालो। सुना मीरे तामीर, सुख
गारा (गाड़ा) खून। शहर पना क सुख द वार। अ ह ह ह हा। तैयार क जाय।
गुजरात क ओर फ़ौज रवाना हो। कसी कार क कोई दे र न हो। दरबार
बख़ा त।"

खुसरो आगे कहते ह क शाह तलवार पर मंगोल का जो गंदा खून जम गया


था सुलतान अलाउ न खलजी िसकंदर सानी उसे गुजरात पहँु चकर समु दर के
पानी से धोना चाहता था। अपने दल का हाल बयां करते ह खुसरो कुछ इस
तरह - "फ़ौज चली। म य जाऊँ? मेरा दल तो दसर
ू तरफ़ जाता है , मेरे पीर
मेरे गु क ओर, मेरे महबूब के तलव म म बल बल जाऊँ।" रात गए जमुना
कनारे गयासपुर गाँव के बाहर, जहाँ अब हमायू
ु ँ का मक़बरा है , िच ती सूफ़
ख़ानक़ाह म एक फ़क़ र बादशाह, नागार , मोहताज , मुसा फ़र , फ़क़ र दरवेश ,
साधुओं, उलेमाओं, संत , सू फ़य , ज़ रत मंद , गवैय , और बैरािगय को खला पला
कर अब अपने त हा हु े म जौ क बासी रोट और पानी का कटोरा िलए बैठा
है । ये ह वाजा िनजामु न िच ती। वाजा िनजामु न उफ़ महबूबे इलाह उफ़
सु तान उल मशायख, ज ह ने कंज़दगी भर रोज़ा रखा और बानवे साल तक
अमीर और बादशाह से बेिनयाज़ अपनी फ़क़ र म बादशाह करते रहे "। अमीर
खुसरो जब भी द ली म होते इ ह ं के क़दम म रहते। राजो यास क बात
करते और हानी शांित क दौलत समेटा करते । अपने पीर से क ठन और
नाजुक प र थितय म सलाह मशवरा कया करते और समय समय पर अपनी
गलितय क माफ़ अपने गु व खुदा से माँगा करते थे। खुसरो और िनजामु न
अपने दल क बात व राज क बात एक-दसरे
ू से अ सर कया करते थे। कई
बादशाह ने इस फ़क़ र, दरवेश या सूफ़ िनजामु न औिलया क ज़बरद त
मक़बूिलयत को चैलज कया मगर वो अपनी जगह से न हले। कई बादशाह ने
िनजामु न क ख़ानक़ाह म आने क इजाज़त उनसे चाह मगर उ ह ने कबूल न
क।

एक रात िनजामु न िच ती क ख़ानक़ाह म हज़रत अमीर खुसरो हा ज़र हए।



आते ह बोले - " वाजा जी मेरे सरकार, शहनशाह अलाउ न खलजी ने आज
एक राज क बात मुझसे त हाई म क । कह दँ ू या? वाजा जी ने कहा कहो
"खुसरो तु हार जुबान को कौन रोक सकता है ।' खुसरो ने गंभीर हो कर कहा क
"अलाउ न खलजी आपक इस प व ख़ानक़ाह म चुपके से भेष बदल कर
आना चाहता है । जहाँ अमीर-गर ब, ह द-ु मु लमान, ऊँच-नीच, आ द का कोई भेद
भाव नह ं। वह अपनी आँख यहाँ का हाल दे खना चाहता है । उसम खोट है , चोर
है , दला साफ़, नह ं उसका। उसे भी द ु मन ने बहका दया है , बरगला दया है क
हज़ार आदमी दोन व यहाँ लँगर से खाना खाते ह तो कैसे ? इतनी दौलत कहाँ
से आती है ? और साथ ह शाहज़ादा ख़ खाँ य बार-बार हा ज़र दया करते
ह।' ख़वाजा बोले-'तुम या चाहते हो खुसरो? खुसरो कुछ उदास होते हए
ु बेमन से
बोले - हजू
ु र, बादशाहे व के िलए हा ज़र क इजाज़त।' ख़वाजा साहब ने
फ़रमाया - 'खुसरो तुम से ज़यादा मेरे दल का राजदार कोई नह ं। सुन लो।
फ़क़ र के इस त कये के दो दरवाज़े ह। अगर एक से बादशाह दा ख़ल हआ
ु तो
दसरे
ू से हम बाहर िनकल जाएँगे। हम शाहे व से, शाह हक
ु ू मत से, शाह तख़त
से या लेना दे ना।" खुसरो ने पूछा क या वे यह जवाब बादशाह तक पहँु चा
द? तब ख़वाजा ने फ़रमाया - "और अगर अलाउ न खलजी ने नाराज़गी से
तुमसे पूछा क खुसरो ऐसे राज तु हार ज़बान से? खुसरो इसम तु हार जान
को खतरा है ? तुमने मुझे यह राज आ बताया ह य ? खुसरो भार आवाज़ म
बोले - 'मेरे ख़वाजा जी बता दे ने म िसफ़ जान का ख़तरा था और न बताता तो
ईमान का ख़तरा था।' ख़वाजा ने पूछा 'अ छा खुसरो तुम तो अमीर के अमीर
हो। शाह दरबार और बादशाह से अपना िसलिसला रखते हो। या हमारे खाने म
तुम आज शर क होगे?' यह सुनते ह खुसरो क आँख से आँसू टपक आए। वे
भार आवाज़ म बोले - "यह या कह रह ह पीर साहब। शाह दरबार क या
है िसयत? आज तख़त है कल नह ं? आज कोई बादशाह है तो कल कोई। आपके

थाल के एक सूखे टकड़े पर शाह द तरखान कुबान। राज दरबार झूठ और फ़रे ब
का घर है । मगर मेरे ख़वाजा ये या िसतम है क तमाम दन रोज़ा, तमाम रात
इबादत और आप सारे जहाँ के खला कर भी ये खुद एक रोट , जौ क सूखी-
बासी रोज़ी, पानी म िभगो-िभगो कर खाते ह।' ख़वाजा साहब ने फ़रमाया, 'खुसरो

ये टकड़े भी गले से नह ं उतरते । आज भी द ली शहर क लाख मावलूख म न
जाने कतने ह गे ज ह भूख से नींद न आई होगी। मेर कंज़दगी म खुदा का
कोई भी बंदा भूखा रहे , म कल खुदा को या मुँह दखाऊँगा? तुम इन दन
द ली म रहोगे न। कल हम अपनी पीर फर द ु न गंज शकर क दरगाह को
जाते ह। हो सके तो साथ चलना। खुसरो चहकते हए
ु अपनी शायराना ज़बान म
बोले - 'मेर खुशनसीबी बसत शौक़' िनजामु न ने कहा 'खुसरो हमने तु ह तुक
अ लाह ख़ताब दया है । बस चलता तो वसीयत कर जाते क तु ह हमार क़
म ह सुलाया जाए। तु ह जुदा करने को जी नह ं चाहता मगर दन भर कमर से
पटका बाँधे दरबार करते हो जाओ कमर खोलो आराम करो। तु हारे न ज का
भी तुम पर हक है । श बा ख़ैर!
य प अमीर खुसरो दरबार से संबंिधत थे और उसी तरह का जीवन भी
यतीत करते थे जो साधारणतया दरबार का होता था। इसके अित र वे सेना
के कमांडर जैसे बड़े -बड़े पद पर भी रहे क तु यह उनके वभाव के व था।
ु रता आ द से बहत
अमीर खुसरो को दरबारदार और चाटका ु िचड़ व नफ़रत थी
और वह समय समय पर इसके व वचार भी य कया करते थे। उनके
वंय के िलखे ंथ के अलावा उनके समकालीन तथा बाद के सा ह यकार के
ंथ इसका जीता जागता माण है । जैसे अलाई रा य के शाह इितहासकार
अमीर खुसरो ने ६९० ह ी (१२९१ ई.) म िमफताहल
ु फुतूह, ७११ ह ी (१३११-१२
ई.) म खजाइनुल फुतूह, ७१५ ह ी (१३१६ ई.) म दवल रानी ख खाँ क ेम
कथा ७१८ ह ी (१३१८-१९ ई.) म नुह िसपहर, ७२० ह ी (१३२० ई.) म
तुगलकनामा िलखा। इसके अलावा एमामी ने रवीउल अ वल ७५१ ह ी (मई
१३५० ई.) ४० वष क आयु म 'फुतूहु सलातीन', फरदौसी का शाहनामा, (एमामी
ने अमीर खुसरो के ऐसे ंथ भी पढ़े थे जो इस समय नह ं िमलते। उसने अमीर
खुसरो क क वताओं का अ ययन कया था। जयाउ न बरनी का तार ख़
फ़ रोज़शाह ७४ वष क अव था म ७५८ ह ी (१३७५ ई.) म समा क।
चौदहवीं शता द ई. के तानजीर का िस या ी अबू अ द ु लाह मुह मद इ ने
बतूता (७३७ ह ी / १३३३ई.) म िसंध पहँु चा। भारत वष लौटने पर उसक या ा
का वणन इ बे-तुहफनु न जार फ़ गराइ बल अमसार व अजाइबुल असफार रखा
गया। महं द हसै
ु न ने इसका नाम रे हला रखा। (REHLA (BARODA १९५३)
अनुवाद म केवल अनाइबुल असफार रखा गया है । मुह मद कािसम ह द ू शाह
अ तराबाद जो फ़ र ता के नाम से िस है सोलहवीं शती का बड़ा ह व यात
इितहासकार है । उसने अपने ंथ 'गुलशने इ ाह मी' (जो तार ख़ फ़ र ता के नाम
से िस है ) क रचना १०१५ ह ी (१६०६-०७ ई.) म समा क । आ द।

अमीर खुसरो ने अपने गु के वचन तथा उपदे श को अपने एक ंथ


'अफजलुल फवाियद' के नाम से संपा दत कया। इसे कितपय पृ आपने संत क
सेवा म अवलोकनाथ तुत कए। संत ने गंभीरतापूवक अ ययन करके कहा
'तूने ब ढया िलखा और नामकरण भी उपयु है ।" आपने इसम कुछ प रवतन
कए और अपनी मंडली के लोग को संबोिधत करके कहा, "वा तव म खुसरो के
िलए गव का वषय है क उसने इतने असं य व अनिगनत वषय को याद
रखा और िल प ब कया। य प यह स पूण प से सदा वचार के समु म
िनम न रहता है । भगवान ने , अ लाह ने अमीर खुसर के शार रक अवयव को
ान और ा से मं डत कया है । वह दन रात वचार के समु म खोया
रहता है और हज़ार क़ मती मोती िनकाल लाता है । उसके जैसी वल ण ितभा
बहत
ु कम लोग म व मान होती है ।" गु के इन उ ार को सुनकर खुसरो
नतम तक हए
ु और िनवेदन कया क 'मेर े ता का य
े आपको ह है । आपके
वरदान का ह यह द य फल है ।' गु और िश य के म य जो पार परक ेम
और नेह के संबंध थे वे इतने गहरे थे क अ य जब भी इससे लाभा वत होने
के िलए लालियत रहते थे। संत य द कसी से कभी-कभी भी हो जाते और
उ ह मनाने के तमाम यास वफल हो जाते तो वह अमीर खुसरो क सहायता
से अपने अपराध क मायाचना करवाता। इनम छोटे ह नह ं ब क बड़े -बड़े
िश य और उ रािधकार भी शािमल थे।

ऐसी ह एक बार क घटना है क संत िनजामु न िच ती कसी बात पर शेख़


बुराहानु न गर ब से हो गए, बहत
ु नाराज़ हो गए। जब शेख़ गर ब संत क
सेवा म उप थत हए
ु तो िनजामु न िच ती ने उनक ओर यान नह ं दया।
शेख़ बड़े ह िचंितत हए
ु य क उ ह ात था क य द गु ठे तो कता भी
सहायता नह ं करता। ववश हो कर शेख़ को अमीर खुसरो क शरण म जाना
पड़ा। अमीर खुसरो ने तब एक ह दवी दोहा सुनाकर, उनक मदद करने का
वायदा कया। यह दोहा इस कार है -

'खुसरो मौला के ठते , पीर के सरने जाय।

कहे खुसरो पीर के ठते , मौला न हं होत सहाय।।'


उसके प ात अमीर खुसरो अपनी द तार शेख के गले म डालकर उनको अपने
पीर संत िनजामु न औिलया क सेवा म लाए। दोन को साथ दे खकर संत सब
कुछ समझ गए और मु कुराए। फर इतिमनान से पूछा - ' या समाचार है ?
इसके प ात संत ने दोन से आिलंगन कया। इस कार िनजामु न औिलया ने
शेख़ बुराहानु न गर ब को मा कर दया। संत के गले लगने के बाद शेख
बुराहानु न क आँख से आँसू बह आए और फर वे संत के चरण म िगर गए
और पुन: माफ माँगने लगे। पीर ने उसके शीष को हाथ से उठा िलया। इस पर
अमीर खुसरो ने शेख़ बुराहानु न से कहा - 'गु जस उस थान पर थत है
उसक ाि के िलए िश य को अपना सव बिलदान करना पड़ता है । गु ाि
के प ात गु के ित िश य का ेम और बिलदान ह उसे गु के य
े से
मं डत कर सकता है । एक आ मा, दो शर र क दशा इसका अंितम उ मेष है ।
खुसरो यह मानते थे क ेम जतना ह महान होगा उसक क़ मत भी उतनी ह
अिधक होगी।' फर खुसरो ने एक दोहा इसी वषय से संबंिधत कहा -

"खुसरो रै न सुहाग क जागी पी के संग।

तन मेरा मन पीहू का दोउ भए इक रं ग।।"

इसी समथन म संत कबीर दास भी कहते ह –

"सीस दए जो गु िमले तो भी स ता जान।

ठ गए जो गु तो, ई र क भी मौन जबान।।"

सूफ़ वचार धारा ने हर धम, हर मज़हब और हर क़ौम के लोग को अपनी ओर


आकृ कया है । सूफ़ संत हज़रत िनजामु न औिलया ने फ़रमाया है क ये
इबादत ह तो है जो इस दिनया
ु के च कर को घुमाए रखती है । एक बार जमुना
नद के कनारे िनजामु न िच ती वजू (नमाज़ के पूव हाथ-पाँव का ालन
(साफ़-सफ़ाई) कह रहे थे। उनक टोपी वजू के कारण टे ढ़ हो गई थी। टोपी
सीधी करने के िलए अनायास ह उनक नज़र नद के दसरे
ू छोर पर गई। वहाँ
बहत
ु से ह द ू नर-नार नान करते हए
ु भजन गा रहे थे। यह दे ख ख़वाजा
साहब को बड़ा लु त आया। एकाएक उनके मुह
ँ से िनकला -

"हर कौम रा त राहे द ने व क ल गाहे ।

संसार हर को पूजे कुल को जगत सराहे ।।"

अथात विभ न धम , मजहब और इं सान के ई र ाि के या ई र के पास


पहँु चने के अलग-अलग तर के ह, रा ते ह।

िनजामु न औिलया के सबसे य िश य क वराज अमीर खुसरो वह ं खड़े थे।


उ ह ने फौरन इस फारसी- ह दवी पद को पूरा कया।

"मन क ला रा त करदम बर िस त ए कज कुलाहे ।

ू काशी को कोई चाहे ।।"


म के म कोई ढढ

अथात ई र ाि का मेरा रा ता उसके (गु ) ज रए है जसने यह ितरछ टोपी


ू रहा है तो कोई काशी जाकर ई र
पहनी है । कोई म के म खुदा को ढढ़ ाि के
िलए मारा-मारा फर रहा है पर ई र तो हमारे भीतर है , हमारे दय म है ।

उपरो पद के मा यम से ख़वाजा िनजामु न िच ती साहब यह संदेश दे ना


चाहते ह क दसरे
ू मज़हब के अवतार , पैग बर , ॠ षय -मुिनय , बुज़ुग , साधु-
संत आ द को हिगज़ बुरा न कहना। इस ज़मीन पर खुदा ने समय समय पर
पैग बर उतारे ह और वो सब हमारे ह। आमने-सामने क दोन क़ा बल ताक़त ,
अक द , र म , र ित- रवाज , के टकराव से और फर उनके मेल से हमार
तहज़ीब, हमार स यता परवान चढ़ है ।

अपने पू य दे य और आदरणीय गु के िलए पता नह ं खुसरो ने कतने


बिलदान कए। एक बार अमीर खुसरो कह ं से या ा करके दे हली लौट रहे थे।
माग म एक थान पर व ाम के िलए के तो खुसरो ने अनायास ह कहा -
"बूये शेख मी आयद"। अथात "मुझे अपने गु क सुगंध आती है ।" सेवक ने
कहा - "हजू
ु र, यहाँ गु कहाँ? इस सुनसान, वरान और उजाड़ रे िग तान म।" पर
खुसरो नह ं माने। वे अपने ऊँट से उतर गए और दौड़ते हए
ु बार-बार यह कहते
रहे क मुझे सुंगध आती है । इस पर सेवक ने चार तरफ़ काफ़ खोज क
ले कन अमीर खुसरो के गु का कह ं पता नह ं चला। अ त म एक अजनबी
य को अ यंत द न अव था म वहाँ सोते हए
ु पाया। अमीर खुसरो के पूछने
पर उसने बताया क वह दे हली से संत िनजामु न औिलया से िमल कर आ
रहा है । कारण है उसक पु ी का ववाह। अपनी द नता के कारण वह अपनी बेट
क शाद के िलए संत के पास सहायताथ गया था। थम रोज़ संत ने कहा -
"इस व तो अ लाह का नाम है ठहर जाओ, कल मेरे पास जो कुछ हो लेते
जाना।" दभा
ु यवश दसरे
ू दन भी कुछ नह ं िमला। अंत म संत ने अपनी खड़ाऊँ
दे कर कहा - "िसफ़ यह है तु हारे िलए। ले जाओ। इससे तु हार आव यकता
क पूित हो जाएगी।" वह उदास हो गया यह कहकर। फर बोला इतने बड़े दरबार
से यह दान? कैसे होगी मेर बेट क शाद ? कस मुँह से घर वाल के पास वापस
जाऊँ? आ य है ? बड़ा नाम सुना था ख़वाजा साहब का। मेर ह क मत खोट
है । ख़ैर फर भी संत क खड़ाऊँ ले आया हँू एक छोट सी उ मीद पर क या
पता अ छ दाम बक ह जाए। आ इतने बड़े सूफ़ संत क ज़बान है उनके मुँह
से िनकला वचन है । खुसरो बोले क अ छा मेरे पीर क खड़ाऊँ है तु हारे पास।
तभी उनक गंध मुझे बड़ दे र से सता रह थी। अब बताओ - मुझे बेचोगे
खड़ाऊँ? उसने हामी भर । यह सुनकर खुसरो ने तुर त बादशाह सुलतान मोह मद
ारा अ पत व भट क रकम - पाँच लाख पये उस फ़क़ र को दे दए और
उसके बदले अपने गु के पैर क जूितयाँ या खड़ाऊँ ले ली। फर वे खड़ाऊँ को
गव से सर पर उठाए संत िनजामु न क सेवा म उप थत हए
ु और उनके
स मुख स पूण घटना का उ लेख कया। संत ने यह सुनकर कहा "बिसयार
अरजाँ ख़र द ।" अथात बहत
ु स ते म ख़र द । उस पर खुसरो ने बहत
ु ह वनीत
भाव से कहा - "य द वह मेरे ाण और सम त धन भी माँगता तो भी म ख़ुशी
से उसे सम पत करता। ( ोत : सफ मतुल औिलया - शाहज़ादा दारािशकोह)
याग और आ मसमपंण क इस भावना ने संत क म खुसरो को े बना
दया था। खुसरो को संत का वयोग असा था। आ म प रशोधन के हे तु संत
क संगित परम आव यक है पर जब ववश हो कर खुसरो या ा या यु पर
जाते थे तो गु मरण और गु यान सतत उनके साथ रहता। खुसरो ने इस
ेम के म रखकर ह संत ने कहा था क खुसरो को मेर क़ पर आने न
दे ना। कह ं ऐसा न हो क क़ फट जाए और शर यत के रह य क अवहे लना
हो।

िनजामु न औिलया ने अमीर खुसरो के दय म भ क लौ लगा द थी।


पता के िनधन ने उ ह और भी अिभवृ कया और जब माँ का ममतामयी

प ला छटा तब तो इनका दय चूर-चूर हो गया। दभा
ु य से भाई भी चल बसा।
उस समय खुसरो सौ-सौ आँसू रोए और एक ऐसी दद भर क ण क वता िलखी
जसे सुनकर जी गले को आता है । इस घटना ने उ ह और भी संवेदनशील बना
दया। इस कार खुसरो ार भ से ह क वता- यता, संगीत-मधुरता, गु और
ई र भ , संत समागम एवं संवेदनशीलता आ द उन सभी गुण से प रपूण थे
जो एक ानवान सूफ़ म उपे त है ।

अमीर खुसरो सूफ़ िस ांत के अनुसार इ के मजाज़ी (लौ कक ेम) से इ के


हक़ क़ (आ या मक ेम) के भी अनुसता थे। अमीर खुसरो और जमु न हसन
िस जी क दो ती बहत
ु मशहर
ू थी। खुसरो ने उनक वल ण एवं अ त
ु का य
ितभा दे खकर उ ह अपना गु भाई बना िलया था। द ली से अमीर खुसरो
युवराज मुह मद के साथ मुलतान चले गए जहाँ यह प व ेम इतना गाढ़
हो गया क लोग दराचरण
ु क चचा करने लगे और बात युवराज तक पहँु ची।
उसने हसन िस जी को अपने सामने कोड़े लगवाए और अमीर खुसरो के पास
जाने से रोका पर वह न माना। तब बादशाह ने दोन को बुलाया और इस पर
सवाल कया तब खुसरो ने कहा क हम ाण म एक ह य प शर र दो ह।
अपनी बात को मा णत करने के िलए खुसरो ने अपनी बाँह खोलकर दखाई,
जस पर कोड़े के ताज़ा िनशान साफ़ नज़र आ रहे थे। यह दे खकर सब अवाक
व त ध रह गए। बादशाह ने आ य से पूछा क खुसरो तु ह कोड़े कसने मारे ।
उसे सजाए मौत द जाएगी। इस पर खुसरो ने बादशाह को समझाया क ये वह
कोड़े के िनशान ह जो बादशाह सलामत के कहने पर हसन िस जी को मारे गए
थे। आ या मक लगाव होने के कारण ये िनशान खुसरो के शर र पर भी आ
गए। बादशाह को अपनी गलती का अहसास हआ
ु तथा भार श कमदगी हई।

उ ह ने खुसरो से फ़ौरन माफ माँगी तथा उ ह व हसन को मरहम के िलए
तुर त राज वै के पास िभजवाया। िस इितहासकार फ़ र ता ने िलखा है क
उस समय अमीर खुसरो ने अपने भीतर के भाव य करने के िलए यह
पं याँ िलखीं -

"इ क आमदो शुद चु खूनम अ दर रगो पू त।

ता कद मरा तु हयो पुरकद जद ू त

जजाइए बजूदम हमगी दो त िग र त।

नामी त मरा वरमन बाक हमाऊ त।"

अथात ' ेम मेर िशराओं म र क भाँित वा हत हआ।


ु इसने मुझे अ य त व
से र कर मे रे िम से भर दया। मेरे स ा के सम त कण मेरे ेमपा से
संबंध रखते ह, मेरे शर र म तो नाम मा ह मेरा है ।' यह ेम आ या मक ेम
था। खुसरो के साथ हसन िम जी भी एक नामी िगरमी और सु िस क व हए

जो राजदरबार म रहते हए
ु भी सूफ जीवन बताते थे। अपने पीर के प िच
पर चलते हए
ु पहले दसर
ू को खला कर, फर वंय ह का-फु का भोजन करते
थे। हसन भी अमीर खुसरो क तरह िनजामु न औिलया के य िश य म थे।
खुसरो अपे ाकृ त एक धािमक एवं सूफ़ वचार वाले य थे। उ ह ं के ारा
िल खत एक कसीदे से यह व दत होता है क वे मु य-मु य धािमक िनयम
का पालन करते थे, नमाज़ पढ़ते थे तथा उपवास रखते थे। वे म दरा अथवा
शराब नह ं पीते थे और कम से कम उसके आ द न न थे। वे द ली म
िनयिमत प से औिलया साहब क ख़ानक़ाह म जाते थे, फर भी वे नीरस संत
नह ं थे। वे गाते थे, हँ सते थे, नितकय के नृ य एवं गायन को भी दे खते थे और
सुनते थे तथा शाह और शहज़ाद क शराब मह फ़ल म एक दरबार क व क
है िसयत से भाग ज़ र ले ते थे मगर तट थ भाव से।

आइए अब हम पुन: अमीर खुसरो के जीवन के घटना म से वाब त ह ।


द ली क शाह फ़ौज गुजरात गई। गुजरात फ़तेह कर के दिनया
ु भर क
दौलत, ह र, जवाहारात समेट लाई। फर वहाँ से फ़ौज का अगला पड़ाव हआ

रणथ भौर। छ: मह ने क़ले का महासरा रहा। राजा और उसके कुटु ब ने जौहर
करा के, तलवार सूत के शे र क तरह ज़ोरदार मुक़ाबला कया। मारे गए।
मालवा म मांडु का क़ला फ़तेह हआ।
ु फर िच ौड़गढ़ पर चढ़ाई हई।
ु छ: मह ने
क इस फ़ौजी मु हम का खा मा भी द ली क फ़तेह पर हआ।
ु खुसरो इस जंग
म बादशाह के साथ थे। सु तान ने कला फतेह कर के राजा के सुपुद कर दया
और शाहज़ादा ख़ खाँ को वहाँ इं तज़ाम के िलए वहाँ बठा दया। दे विगर और
मराठवाण म भी यह हआ।
ु सामना और फर उसके बाद ितलंगाना। द ली से
वारं गल तक घने जंगल और द रयाओं को पार करके मह न बाद फ़ौज,
ितलंगाना से हनुमान कुंड पहँु ची। कला-ए-वरं गल पर सख़त लड़ाई हई।
ु दोन
तरफ़ के पैदल और सवार, बड़ तदाद म क ड़े -मकोड़ क भाँती मारे गए।
आ ख़रकार आग और ख़ून का द रया पार हआ।
ु मिलक काफ़े◌ूर को तिमलनाडु
म एक बड़े ल कर के साथ यु के िलए भेज दया गया। यहाँ तक सारे इलाक़े
को वह र दता हआ
ु , शुमाली ह द का ये ल कर ार समु जा पहँु चा। अमीर
खुसरो ने एक इितहासकार के नाते ख़ूब छान बीन कर के िलखा है क दे शी
राजाओं क तरफ़ से जो फ़ौज तीरं दाज़ी म आगे िनकलती थी और तोपख़ाना
सँभालती थी, उस फ़ौज म मुक़ामी और बाहर के साँवले मुसलमान ल कर भी
होते थे। वो भी अपने-अपने बादशाह क तरफ़ से मर िमटते थे और अगर राजा
को हार मान कर हिथयार डालने पर राज़ी दे खते तो वे राजा के ख़लाफ़ हो
जाते थे। वा तव म वे राजा के व नह ं होते थे ब क उ ह सर झुका कर
हार मानने से बहतर, िनडरता के साथ लड़ते लड़ते मरना या शह द होना अिधक
पसंद था। अलाउ न क फ़ौज म और िसपहसालार म भी ह द-ू मुसलमान
साथ जाते थे और साथ-साथ ह मरते थे। उनम आपस म धम के नाम पर
कोई भेदभाव नह ं हआ
ु करता था। हमलावर और बचाव करने वाल के
दरिमयान ज़ोरदार लड़ाई होती थी। हार-जीत के फ़ैसले म भी ह द-ू मुसलमान
शर क रहते थे। ज़र और ज़मीन क जंग थी। द ली क स तनत और इराकाई
खुद मु तयार क जंग थी। अरब और अ ु ◌़◌ीक िसपाह भी राजाओं क
फ़ौज म जगह-जगह िमलते ह। अलग-अलग पेश , द तका रय , व मेहनत के
काम म, हर जगह दे शी और वदे शी मुसलमान नज़र आते ह जनक वफ़ादार
अपने इलाक़े वाल से होती थी। आम जनता से, आवाम से, इस सूफ़ शायर
अमीर खुसरो क यह मोह बत थी क आम लोग क दे शी जुबान म इसने
मज़े-मज़े क रचनाएँ, (दोहे , गीत, गज़ल, क़ वाली, फुटकल छं द व पद, पहे िलयाँ,
आ द) िलखीं। अमीर खुसरो ने अपने दौर म राजभाषा अथवा दरबार भाषा
फ़ारसी होते हए
ु भी आम आदमी क दे शी जुबान ह दवी म िलखा। अब
यह उठता है क यह ह दवी भाषा या है ? वंय अमीर खुसरो ने ह दवी को
दो अथ म िलया है । एक तरफ़ ह दवी से उनका मतलब है खड़ बोली ह द
तो दसर
ू ओर वे अपने समय म चिलत कई भाषाओं को भी ह दवी कहते ह।

अमीर खुसरो बहभाषा


ु व थे। वे फ़ारसी, तुक और अरबी भाषा के कांड पं डत
थे। खड़ बोली उ ह वरासत म िमली थी। सं कृ त पर भी उ ह पूरा अिधकार
था। बंगाल, पंजाब, अवध, मुलतान, दे विगर आ द थान पर रहकर उ ह ने भारत
क अनेक भाषाओं क जानकार ा क थी। अमीर खुसरो भारत के पहले ऐसे
कव ह ज ह ने सम त भारतीय भाषाओं का सव ण अपनी मसनवी नूह
िसपहर म कया है जसका ऐितहािसक मह व है । सर जाज ि यसन के लगभग
छ: सौ वष पूव भाषाओं क जो थित खुसरो ारा बताई गई थी वह आज भी
व मान है । खुसरो ने वंय अपने ंथ म िलखा है क उ ह ने वंय कई भाषाओं
के संबंध म जानकार ा क है और उनम से कई वे बोलते व समझते ह।
फ़ारसी भाषा म इसी वषय पर उ ह ने िलखा है क -
"दानम व दरयाफता व गु ता हम, जु त -रोशन शुदा जाँ बेशोकम।" अथात कई
भाषाओं म मैन वंय बहत
ु कुछ प रचय ा कर िलया है । उ ह म बोलता व
जानता हँू । मैन उनक खोज क है और म इनको कमोबेश जानता हँू । अमीर
खुसरो ने अपनी िस मसनवी 'नूह िसपेहर' (नौ आकाश) के एक अ याय (सग
३ अ याय ५) म भारतीय भाषाओं का सव ण तुत कया है । वह है -

ह द हमी कायदय दारद बसुखन, ह दवी बूद अ त दर अ यामे कुहन।

'िसंद व लाहौर व क मीर व कबर

धुर समु दर व ितलंगी व गु

माअबर व गौर व बंगाल व अवद

दे हली व पैराम श अ दर हमह अद।

ई हमह ह दवी त क जे अ यामे कुहन।

आ मह बकार त बहर गूनह सुखन।'

अथात भारत म भाषा संबंधी यव थत विध िनयम है । ह दवी का अ त व


ाचीनकाल से है । और आज भी है । िस धी, लाहौर (पंजाबी), क मीर , कबर
(क नड़), धूर समुंदर (तिमल), ितलंगी (तेलुगु), गु (गुजराती), माअबर
(मलयालम), गौर (गौड़ , उ ड़या, प मी बंगाल), बंगाल (बंगला), अवद (अवधी-
पूव ह द ) तथा दे हली ( द ली) तथा उसके आस-पास क भाषा। दे हली तथा
उसके आस-पास क सीमाओं के अ दर बोली जाने वाली भाषाऐं ( ह द )
' ह दवी है जो ाचीन काल से ह हर कार क आव यकता के िलए साधारण
जन के काम आती रह है ।" ह द श द का योग खुसरो ने लगभग बारह बार
अपने िस फारसी - ह दवी श द कोश खािलक बार म कया है ।
अपनी मसनवी ख़ खाँ दे वल रानी म खुसरो ह दवी को फ़ारसी से कम नह ं
मानते। वे कहते है -

'न ल जे ह दवी त अज फ़ारसी कम।'

अथात ह द भाषा के श द फ़ारसी भाषा के श द से कमतर नह ं ह।

इससे जाज ि यसन क इस ाँित का िनराकरण हो जात है क यहाँ ह द से


वा तव म खुसरो का ता पय सं कृ त से है न क उस भाषा से जसे हम आज
इस नाम से अिभ हत करते ह। इस बात का साफ़ अथ है क ह दईू भाषा
ाचीन काल से है और आज भी है । हं दईू का ता पय सं कृ त नह ं है जैसा क
ि यसन का कथन है । सं कृ त के वषय म खुसरो का कथन है -

'सं कृ त नाम ज़ अहदे कुहनश, आ मह न दारद खबर अज़ कुब मकुनश।'

अथात ् ाचीन काल से इस भाषा का नाम सं कृ त है । जन-साधारण के साथ


उसके याकरण क बार कय क वाता नह ं है । सं कृ त के संबंध म ह वे आगे
कहते ह -

""गरवे क शीर नी त दर व शकर ने , जौके इबारत कम अजानी त दर ने ''

अथात य प दर भाषा मीठ और श कर के समान है क तु सं कृ त भाषा म


उससे सा ह य सृजनशीलता कसी भी कार कम नह ं है ।

खुसरो के उपयु श द कई कारण से मह वपूण ह। एक तो इस उ रण से यह


िस होता है क खुसरो का ' लािसक ' के अित र भारतीय भाषा ान कतना
गहरा था और भाषा प रपे य कतना यापक था। दसरे
ू यह क दे हली के
आसपास क खड़ बोली के भाषागत प पर, उसक यंजना श पर उनक
आ था अनुभवज य थी। जो भाषा (उस समय बोली) हर कार क आव यकता
क पूित के िलए जब साधारण ारा यु होती रह है उसका वाभा वक
अिधकार खुसरो ने ह थम वीकार कर िलया था और उसको बड़े अिभमान के
साथ अपने का य म थान दया था - वह था खड़ बोली का लोक चिलत
सहज प और अंितम कारण, उनक कालजयी त व दिशता व दरू जो कई
शता दय क धूिमल वचार मूढ़ता को पार कर गई है । प है क मागदशन
का य
े खुसरो को ा य है ।

अमीर खुसरो के ह दवी का य क चचा करते व ह दवी से हमारा ता पय


मानक ह द या आज क प रिन त उद ू से नह ं ब क उससे आ य वह
ाचीन भाषा है जो तेरहवीं सद ईसवी म ाचीन ज भाषा अथवा खड़ बोली
का वह प थी जो कालांतर म धीरे -धीरे मानक प हण कर गई। ह द , उद,ू
या ह द ु तानी से जो वतमान भा षक अथ हमने संबंध कर दए ह उनका
तेरहवीं सद म व मान होने का नह ं उठता। इसके अित र खड़ बोली,
ज भाषा या ह रयानी बोिलय के नाम भी ऐसे ह जो कालांतर म दए गए या
चिलत हए।
ु खुसरो क ह दवी रचनाओं म जो भाषा िमलती है वह आज क
ह द से मेल खाती है । सामा यत: खुसरो का ह दवी से ता पय तेरहवीं सद
क उस ांरिभक भाषा से है जो वतमान ह द -उद ू का ाचीन प थी अथात ्
जो ल कर भाषा उस काल म बन रह थी, जो यापार करने के उ े य से
यापा रय व नाग रक ारा बॉडर पर बोली जाती थी, जो भाषा अभी क ची थी,
अनधड़ थी, अ लड़ थी धीरे -धीरे पनप रह थी, बन रह थी, आकार ले रह थी,
बोली से शनै: शनै: भाषा म प रवितत हो रह थी, और पूणत: कोई नाम या
एक भाषा का दजा उसे खुसरो के काल म नह ं िमला था। अत: वह केवल आम
लोग क बोलचाल क भाषा थी जसका उस दौरा म कोई सा ह यक मह व
नह ं थी। अपने ंथ गुरतुल कमाल के ा कथन म ह दवी का नाम बार बार
इसी द ली व आस-पास क िमली-जुली भाषा के िलए खुसरो ारा यु कया
गया है ।

जन भाषाओं और बोिलय का उ लेख खुसरो ने नुह िसपहर म कया है उनको


नैसिगक ववतन के कारण ह वह थान अब नह ं िमला जो उस काल म िमला
होगा पर तु यह इस समय हमारे अ ययन का वषय नह ं है । ल णीय तो यह
है क भारत क व वध बोिलय का ान खुसरो को कस सीमा तक था, और
इतनी बोिलय म उ ह ने खड़ बोली को ह जन स पक भाषा के प म य
चुन िलया। उपयु भाषा-भाषी े को एक सू म परोने के िलए एक रा भाषा
क क पना करने के बाद खुसरो के सम यह सम या आई क खड़ बोली
ह द ( जसको इ ह ने हं दवी भी कहा है ) का भाषािभजा य िस कर द - ऐसा
अनुमान करना उिचत न होगा। जस युग म, फ़ारसी का सा ह य े म
बोलबाला था उस युग म खड़ बोली ह द को सं कृ त या फ़ारसी जैसी
लािसक भाषाओं के समक या पं य िस करना िन संदेह क ठन काम था
पर तु वचारशील ख़ुसरो म भाषा संबंधी पूवा ह नाम भर का भी न था। यह
कारण है क उ ह ने अनेक रचनाओं म फ़ारसी के साथ-साथ ह द का योग
कया। यह फ़ारसी के मूध य क वय तथा समालोचक के िलए एक चुनौती सी
थी य क वज़न ब कुल ठ क था, ह द श द के कारण कह ं छ ददोष नह ं
आ पाया, रस क अनुभूित िनबाध थी, ह द श द ने कसी कार का रस दोष
उ प न नह ं कया। सबसे बड़ बात यह थी क पाठक को लगता था क
क वता उसके ित दन के जीवन के अित िनकट आ गई, उसक संवेदनाओं क
त य को छे ड़ गई। खुसरो का पाठक समाज भी िन वशेष हो गया था। एक
अनूठा उदाहरण यह िस गज़ल है जो अमीर खुसरो ारा रिचत है -

" जहाल-ए-िम क ं मकुन तगाफुल, दरा


ु य नैना बनाय बितयाँ।

कताबे ह ाँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छितयाँ।।

शबाने ह ाँ दराज चूँ जु फ बरोजे वसलत चूँ उ कोताह।

सखी पया को जो म न दे खूँ तो कैसे काटँू अँधेर रितयाँ।

यकायक अज़ दल द ू च मे जाद ू बसद फरे बम बवुद त क ं।

कसे पड़ है जो जा सुनावे पयारे पी को हमार बितयाँ


चूँ शमआ
् सोजाँ, चूँ जरा है राँ, हमेशा िग रयाँ ब इ के आँ माह।

न नींद नना, न अंग चैना, न आप आये न भेजे पितयाँ।।

बह के रोजे वसाले दलबर के दाद मारा फरे ब खुसरो।

सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पया क खितयाँ।।

या (दरु ाय राखो समेत साजन जो करने पाऊँ दो बोल-बितयाँ।)

अथात मुझ गर ब िम क न क हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँख िमलाते हो,


आँख चुराते हो और बात बनाते हो। जुदाई क रात तु हार कार जु फ़ क
तरह लंबी व घनी है । और िमलने के दन उ क तरह छोटे । शमा क िमसाल
म सुलग रहा हँू , जल रहा हँू और ज़र क तरह है रान हँू । उस चाँद क लगन म
आ मेर ये हालत हो गई क न आँख को नींद है न बदन को चैन, न आप
आते ह न ख़त िलखते ह।''

प है क यह एक योग है पर तु योग कालीन जड़ता से मु । ऊपर


िल खत ह दवी-फारसी िमि त गज़ल म ह द पं य या अधाश रस वचार से
फ़ारसी पं य या अधाश म यून नह ं ठहरते। खुसरो ने इस कार िस
कया क रा भाषा का आसन अलंकृत करने वाली ह द म वह िमठास भी है
जो फ़ारसी गज़ल म होती है । इसी तरह अरबी और ह द के मेल क गज़ल भी
खुसरो ने िलखीं। खुसरो ने ह द श द का भी फ़ारसी म योग कया और बड़
िनपुणता से कया। ह द म राम राम एक वल ण पदो चय है जसम ल णा
के अित र बहमु
ु खी यंजना भी है । (तु. मुह. राम राम कहना) खुसरो ने इस
पदो चय को फ़ारसी म कस खूबी से चिलत कया - 'रामह मन हिगज़ न शु
हरच द गु तम राम राम।' (तुगलक नामा)
च दन, काठघर, पटरा, बसीठ, दह , गर ब, आ द ह द श द का योग उ ह ने
डटकर अपने फ़ारसी ंथ म कया और इससे उनक फ़ारसी भाषा म कसी
कार क यूनता या ह नता नह ं आई। फ़ारसी और ह द दोन भाषाओं का
योग करते हए
ु उ ह ने दो सखुने िलखे, जैसे-कूबते हची त: यार को कब
दे खए? उ र: सदा या माशूक / रा चे मी वायद कंद: ह दओं
ु का रखवाला कौन?
उ र: राम। इसम बौ क यायाम के साथ साथ मनो वनोद तो है ह , या यह
संकेत भी नह ं है क ह द बौ क श द व यास म फ़ारसी से कसी अंश म
कम नह ं?

कुछ अंश तक तो सखुन म और पूणतया मुक रय और पहे िलय म खड़ बोली


का प और अिधक िनखरा है । जैसे 'एक नार ने अचरज कया। सांप मा र
पंजरे म दया।" म ने का योग (जो पूव बोिलय म नह ं पाया जाता ह।) इस
बात को पु करता है । कई बोिलयाँ ह जनम ने का योग उसी कार कया
हआ
ु िमलता है जस कार आज कया जाता ह। अब तक हम जतनी
जानकार ा हई
ु है उसके आधार पर हम कह सकते ह क 'ने' का योग
खुसरो से पहले नह ं िमलता। कतृ कारक के स यय होने पर या का कम के
िलंग वचनानुसार वकार होना, जो प आजकल पाया जाता है , वैसा ह प आज
से साढे सात सौ वष पहले खुसरो क भाषा म उपल ध है । लोक चिलत भाषा के
लािसक सा ह यक भाषा के समान मा यता दे ना खुसरो के कालाित ा त
साहस का ठोस माण है , उनक िन ा का उ वल तीक है । अफजलुल फवायद
क भाँित भावी रा भाषा का य प से कोई याकरण खुसरो ने भले ह न
िलखा हो, परो प म इसका ढाँ चा बनाकर आगे आने वाली पी ढय के िलए
उसे अपने सा ह य म सुर त कर दया।

अमीर खुसरो ने ह दवी म लोक जीवन तथा धािमक आड बर का वरोध


करते हए
ु सूफ वचारधारा से ओत- ोत तरह तरह के बसंत, सावन, बरखा,
पनघट, हं डोला (झूला), होली, च क , शाद - याह, वदाई, साजन, बाबुल, मंढा, ईश
अराधना आ द गीत िलखे तथा दोहे , गजल, क वाली व तरह-तरह क पहे िलयाँ
रची। खुसरो बचपन से ह चंचल, मह वकां ी, खुशिमजाज, हा जर जवाब, चतुर
और हं समुख तथा वनोद वभाव के थे। अपनी फारसी रचनाओं म अमीर खुसरो
ने ब च क तुलना बाग म खलते और महकते फूल से क है । कई जगह
उ ह ने अपनी लड़क और लड़के के मा यम से नसीहत द है ।

अमीर खुसरो ने ह द सा ह य को पहे िलयाँ द है जो उनसे पूव सं कृ त म गौढ़


प म थी। भारत म पहे िलय क पर परा बहत
ु पुरानी है । हमारे ाचीनतम ंथ
ॠगवेद म य -त बहत
ु सी पहे िलयाँ ह। ा ण , उपिनषद और कह ं-कह ं
का य तक म य या अ य प म पहे िलय के दशन हो जाते ह।
पहे िलयाँ मूलत: आम जनता क चीज है । सा ह यक पहे िलयाँ उन लौ कक
पहे िलय का ह अनुकरण ह। खुसरो ने भी कदािचत लोक के भाव से ह
पहे िलय क रचना क । इतना ह नह ं लोक चिलत और खुसरो क दोन ह
कार क पहे िलय म कुछ तो ब कुल एक ह प म िमलती ह। लोक सा ह य
म सव थम अमीर खुसरो ने इस कार क पहे िलयाँ बनाने का रवाज़ शु
कया। इससे पहले सं कृ त सा ह य म पहे िलयाँ बेहद गौढ़ प म हे िलका के
नाम से िमलती ह। अमीर खुसरो ने ब च के िलए दो कार क पहे िलयाँ िलखी
:

(१) बूझ पहे ली (अंतला पका)

यह वो पहे िलयाँ ह जनका उ र य या अ य प म पहे ली म दया


होता है यािन जो पहे िलयाँ पहले से ह बूझी गई ह। जैसे -

(क) गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।


खुसरो कहे नह ं है झूठा, जो न बूझे अ कल का खोटा।।

उ र - लोटा।
यहाँ पहली पं का आ खर श द ह पहे ली का उ र है जो पहे ली म कह ं भी
हो सकता है । इन पहे िलय का उ र पहे िलय म ह होता है । खुसरो क बूझ
पहे िलय के भी दो वग बनाए जा सकते ह। कुछ म तो उ र एक ह श द म
रहता है जैसा क हम ऊपर दे ख चुके ह। दसर
ू पहे ली म कभी-कभी उ र के
िलए दो श द को िमलाना पड़ता है । जैसे –

(ख) याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नार ।

दोन हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ र ।।

उ र - आर । यहाँ दसर
ू पं के आ खर श द 'आ' और 'र ' को िमलाने से उ र
िमलता है ।

(ग) हाड़ क दे ह उज ् रं ग, िलपटा रहे नार के संग।

चोर क ना खून कया वाका सर य काट िलया।

उ र - नाखून।

(घ) बाला था जब सबको भाया, बड़ा हआ


ु कुछ काम न आया।

खुसरो कह दया उसका नाव, अथ करो नह ं छोड़ो गाँव।।

उ र - दया।

(ञ) नार से तू नर भई और याम बरन भई सोय।

गली-गली कूकत फरे कोइलो-कोइलो लोय।।


उ र - कोयल।

(च) एक नार तरवर से उतर , सर पर वाके पांव

ऐसी नार कुनार को, म ना दे खन जाँव।।

उ र - मना।

(छ) सावन भाद बहत


ु चलत है माघ पूस म थोर ।

अमीर खुसरो यूँ कह तू बुझ पहे ली मोर ।।

उ र - मोर (नाली)

(२) बन बूझ पहे ली या ब हला पका, इसका उ र पहे ली से बाहर होता है ।


उदाहरण –

(क) एक नार कुँए म रहे , वाका नीर खेत म बहे ।

जो कोई वाके नीर को चाखे, फर जीवन क आस न राखे।।

उ र – तलवार

(ख) एक जानवर रं ग रं गीला, बना मारे वह रोवे।

उस के िसर पर तीन ितलाके, बन बताए सोवे।।

उ र - मोर।

(ग) चाम मांस वाके नह ं नेक, हाड़ मास म वाके छे द।


मो ह अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।
उ र - पंजड़ा।

(घ) याम बरन क है एक नार , माथे ऊपर लागै यार ।

जो मानुस इस अरथ को खोले, कु े क वह बोली बोले।।

उ र - भ (भ ए आँख के ऊपर होती ह।)

(ञ) एक गुनी ने यह गुन क ना, ह रयल पंजरे म दे द ना।

दे खा जादगर
ू का हाल, डाले हरा िनकाले लाल।

उ र - पान।

(च) एक थाल मोितय से भरा, सबके सर पर औंधा धरा।

चार ओर वह थाली फरे , मोती उससे एक न िगरे ।

उ र – आसमान

(३) दोहा पहे ली

कुछ पहे िलयाँ अमीर खुसरो ने ऐसी भी िलखीं जो साथ म आ या मक दोहे भी


ह।

उदाहरण -

(क) उ जवल बरन अधीन तन, एक िच दो यान।

दे खत म तो साधु है , पर िनपट पार क खान।।

उ र - बगुला (प ी)
(ख) एक नार के ह दो बालक, दोन एक ह रं ग।

एक फर एक ठाढ़ा रहे , फर भी दोन संग।

उ र - च क।

(ग) आगे -आगे ब हना आई, पीछे -पीछे भइया।

दाँत िनकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।

उ र – भु टा

(घ) चार अंगुल का पेड़, सवा मन का ता।

फल लागे अलग अलग, पक जाए इक ठा।।

उ र - कु हार क चाक

(ञ) अचरज बंगला एक बनाया, बाँस न ब ला बंधन धने ।

ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरो घर कैसे बने।।

उ र - बयाँ पंछ का घ सला

(च) माट रौदँ ू चक ध , फे बार बर।

चातुर हो तो जान ले मेर जात गँवार।।

उ र – कु हार
(छ) गोर सु दर पातली, केहर काले रं ग।

यारह दे वर छोड़ कर चली जेठ के संग।।

उ र - अहरह क दाल।

(ज) ऊपर से एक रं ग हो और भीतर िच ीदार।

सो यार बात करे फकर अनोखी नार।।

उ र – सुपार

(झ) बाल नुचे कपड़े फटे मोती िलए उतार।

यह बपदा कैसी बनी जो नंगी कर दई नार।।

उ र - भु टा (छ ली)

अमीर खुसरो के नाम पर चिलत कुछ पहे िलयाँ जो कई व ान सा ह यकार


ारा सं द ध से दे खी जाती ह -

(क) अ न कुंड म िघर गया, और जल म कया िनकास।

परदे परदे आवना, अपने पया ( यतम) के पास।।

उ र - हु के का धुआ

(ख) नयी क ढ ली पुरानी क तंग।

बूझो तो बूझो नह ं तो काना हो जाए।।


उ र – िचलम

(ग) हात म लीजै दे खा क जै।

उ र - आइना (शीशा)

(घ) एक नार वो ओखद खाए, जस पर थूके वो मर जाए।

उसका पया जब छाती लाए, अंधा नह ं तो काना हो जाए।।

(िनशाना लगाते समय एक आँख बंद कर लेते ह।)

उ र – बंदक

(ञ) चटाख-पटाख कब से, हाथ पकड़ा जब से।

आह ऊह कब से, आधा गया तब से।

वाह-वाह कब से पूरा गया जब से।

उ र - शीशे क चूड़ ।

व तुत: हु का, िचलम, शीशा, ब दक


ू आ द का चार खुसरो के बाद म हआ।

इसके अलावा सा ह यकार अमीर खुसरो ने आम लोग को मनोरं जन, श द ान


और साधारण जानकार हे तु ह द सा ह य म कुछ नई वधाऐं ईजाद क । ये
पूणत: शु पहे िलयाँ तो नह ं ह पर तु इनम भी कुछ पहे िलय क भाँित बुझौवल
क कृ ित व मान है । ये नवीन वधाएँ उनके पूव अनय कह ं नह ं िमलती। ये
इस कार है –

(१) िन बत
यह अरबी भाषा का श द है । इसका अथ है संबंध या तुलना। यह भी एक कार
क पहे ली या बुझौवल कह जा सकती है । इसम दो चीज म संबंध, तुलना या

समानता ढढ़नी या खोजनी होती है । िन बत का मूल आधार है एक श द के
कई अथ। उदाहरण :-

(क) आदमी और गेहूँ म या िन बत है ? अथात दोन म या चीज एक समान


है । उ र - बाल। आदमी के सर पर केश को बाल कहते ह और वह ं दसर
ू ओर
खेत म उगे गेहूँ क भी बाल होती है ।

(ख) मकान और पायजाम म या िन बत है ? उ र - मोर । मकान म नाली


को मोर कहते ह और पायजाम म भी मोर होती है । यािन पायजामे क मोहर
को भी मोर कहते ह।

(ग) कपड़े और नद म या िन बत है ? उ र पाट। कपड़े और नद दोन क ह


चौड़ाई को पाट कहते ह।

(घ) आम और जेवर म या िन बत है ? उ र - क र । क र उस आम को कहते


ह जस पर प े का दाग लगने से कुछ भाग काला हो जाता है । दसर
ू ओर
क र एक गहने का भी नाम है जो हाथ म पहना जाता है । पंजाब ांत म इसका
रवाज है ।

(ञ) जानवर और ब दक
ू म या िन बत है ? उ र - घोड़ा। घोड़ा जानवर है तो
वह ं ब दक
ू का एक भाग भी।

(च) बादशाह और मुग म या िन बत है ? उ र - ताज। बादशाह के मुकुट को


ताज कहते ह और मुग क लाल कलगी को भी जो उसके सर के ऊपर लगी
होती है ।

य तो पहे िलय से श द के ित खुसरो क िच का पता चलता है क तु


िन बत म वह िच और भी प है । आइए अब खुसरो ारा अ व कृ त दोसखुन
दे ख।

(२) दो सखुन

सखुन फारसी भाषा का श द है । इसका अथ कथन या उ है । अमीर खुसरो के


दोसखुन म दो कथन या उ य का एक ह उ र होता है । इसका मूल आधार
भी श द के दो-दो अथ ह।

उदाहरणाथ -

(क) द वार ू ? राह


य टट य लूटू? उ र - राज न था।


द वार बनाने वाला राजिम ी या राजगीर नह ं था। अत: द वार टट रह गई।
रा य (राज) यव था नह ं थी अत: राह लुट गई।

(ख) जोगी य भागा? ढोलक य न बजी? उ र - मढ़ न थी। रहने के िलए


झ पड़ (मढ़ ) या कुट न थी और ढोलक चमड़े से मढ़ हई
ु नह ं थी।

(ग) गो त य न खाया? डोम यो न गाया? उ र - गला न था। मांस क चा


था, गला हआ
ु नह ं था, अत: खाया नह ं गया। गाने के यो य अ छा गला नह ं
था, अत: डोम गाया न गया।

(घ) पिथक यासा य ? गधा उदास य ? उ र - लोटा न था। पिथक (या ी)


के पास पानी पीने के िलए कोई लोटा (बतन) न था। अत: वह यासा रह
गया। गधे क ज मजात आदत होती है ज़मीन (िम ट ) म लोट लगाना। गधा
िम ट म लोटा नह ं था अत: वह भी नीरस और उदास था।

(ञ) रोट जली यो? घोड़ा अड़ा य ? पान सड़ा यो? उ र - फेरा न था। रोट
को फेरा (पलटा) नह ं गया था। अत: वह जल गई। घोड़े क पैदाइशी आदत
होती है , एक जगह खड़े होकर फेरा लगाना। न लगा सकने क थित म वह
चलता नह ं और एक जगह पर ह अड़ जाता है । पानी म पड़े पान के प को
पनवाड़ बार-बार फेरता रहता है । इससे पान का प ा सड़ता नह ं। न फेरो तो
सड़ जाता है ।

(च) िसतार यो न बजा? औरत य न नहाई? उ र - परदा न था। िसतार के


डाँड पर स, रे , ग, म आ द बजाने के िलए धातु के मोटे तार या ताँत से बँधे
रहते ह। इनक सं या ाय: १३, १६, या १९ होती है । इ ह परदा कहते ह। इसके
बना िसतार नह ं बज सकता। औरत के संबंध म पदा का अथ है , शर र ढकने
के िलए कपड़े का पदा। खुसरो के समय म आजकल क तरह नान घर नह ं
होते थे। उन दन लोग नहाते समय, कपड़े का पदा लगाया करते थे।

(छ) न घर अिधंयारा य ? फक र बगड़ा य ? उ र - दया न था। घर म दया


यािन द पक होने से अंधेरा था और फक र को कुछ दान म दया नह ं था, सो
वह बगाड़ गया।

(३) कहमुक रयाँ या मुक रयाँ (पहे ली नुमा गीत)

अमीर खुसरो ह द के पहले ऐसे क व ह ज ह ने पहे लीनुमा गीत िलखे। इ ह


विभ न राग म बाँधकर आज भी गाँव म, शहर म औरत , युवितय , ब च
आ द आम लोग से ले कर विभ न संगीत घराने के लोग गाते ह। जैसे रामपुर
सहसवान, आगरा, कराना, प टयाला, वािलयर, सैिनया आ द। कहमुक रय का
अथ है क कसी उ को कह भी दया और मानने से भी मुकर गए। यह चार
पं य म होती है । तीन या उससे अिधक म पहे ली होती है और चौथी या
आ खर पं म पहले तो खुसरो 'ए सखी साजन' के प म पहे ली का उ र दे ते
ह। इनम से अिधकांश पहे लीनुमा गीत का जवाब साजन है यािन यतम और
साथ म एक दसरा
ू जवाब भी है - जो इस उ का आ खर श द है । इसम
अमीर खुसरो ने ब च , गाँव क गो रय और दै िनक जीवन से जुड़े वषय को
िलया है जैसे सावन, बसंत, बरखा, हं डोला, आम, बाल, बंदर, भंग, पानी, पान, पंखा
(हाथ), नन, तोता, टे सु के फूल, खेत म उगी पीली सरस , तेल, को हू का तेल,
जोगी, चंदा, चोर, चौखट, ढयोड़ , चूड़ा, चौसर, हु का, ढोल, राग, सुनार, गगर , कु ा,
घोड़ा, गम , लोटा, म खी, म छर, मोर, मोती, हार, हाथी, सोना, चाँद , मना, गधा,
बकर , द वार, गो त, ढोलक, तबला, िसतार, पखावज, रबाब, मढ़ , पायजामा, चुनर ,
चोली, बाल, गेहूँ क बाल, कपड़े , भ , पजड़ा, कोयल, मोर, मुकुट आ द। उदाहरण -

(१) बरसा-बरस वह दे स म आवे , मुँह से मुँह लाग रस यावे।

वा खाितर म खरचे दाम, ऐ सखी साजन न सखी आम।।


(२) सगर रै न मोरे संग जागा, भोर भई तब बछड़न लागा।


वाके बछड़त फाटे हया, ऐ सखी साजन न सखी दया।।

(३) िनत मेरे घर आवत है , रात गए फर जावत है ।

मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखी साजन न सखी चंदा।।

(४) आठ हर मेरे संग रहे , मीठ यार बात करे ।

याम बरन और राती नना, ऐ सखी साजन न सखी मना।।

(५) वो आवे तब शाद होवे, उस बन दजा


ू और न कोय।

मीठे लागे वाके बोल, ऐ सखी साजन न सखी ढोल।।


(६) सगर रै न गले म डाला, रं ग प सब दे खा भाला।

भोर भई तब दया उतार, ऐ सखी साजन न सखी हार।।

कुछ मुक रयाँ छ: पं य क भी अमीर खुसरो ने िलखीं –

(७) घर आवे मुख घेरे-फेरे , द दहाई


ु मन को हर,

कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है खे नन।

ऐसा जग म कोऊ होता, ऐ सखी साजन न सखी तोता।।

आधुिनक ह द के जनक बाबू भारते द ु हर शच तो अमीर खुसरो से इतना


भा वत थे क खुसरो क ह शैली म उ ह ने उ ह ं का अनुकरण करते हए
ु , नए
जमाने क , मुक रयाँ रच डाली। उदाहरण -

(१) सब गु जन को बुरा बतावे, अपनी खचड़ अलग पकावे।

भीतर त व न झूठ तेजी, य स ख स जन? न ह अंगरे जी।।

(२) तीन बुलाए तेरह आवे, िनज िनज बपता रोई सुनावै।

आँख फूटे भरा न पेट, य स ख स जन? न हं ेजुएट।।

ू ।
(३) प दे खावत सरबस लूटै, फ दे म जो पड़े न छटै

कपट कटार हय म हिलस।


ू य स ख स जन न स ख पुिलस।।
( ोत: भारते द ु ंथावली, दसरा
ू खंड - पृ. ८१०-८११)

अमीर खुसरो क कुछ कहमुक रयाँ ऐसी ह जो केवल कसी और पर तो लागू


होती है क तु साजन पर नह ं। हाँ वे साजन के कसी अंग पर अव य लागू
होती ह। इसी कारण इनम से कुछ म अशलीलता क झलक आ गई है । ये
अशलीलता का पुट वा तव म लोक सा ह य के कारण है । उदाहरण -

आठ अंगुल का है व असली, वाके ह ड न वाके पसली।

लटाधार गु का चेला, ऐ सखी साजन न सखी केला।।

अमीर खुसरो क कुछ मुक रयाँ ऐसी भी ह जो केवल कसी और पर लागू होती
ह क तु साजन पर ब कुल नह ं और न ह साजन क कसी अंग पर। केवल
अ य के सा य पर उनम भी 'ऐ सखी साजन 'जोड़' दया गया है । जैसे यह
िन निल खत मुकर केवल मोर पर ह लागू होती है , साजन पर ब कुल नह ं -

"नीला कंठ और प हरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।

दे खत घटा अलापै जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर।।"

इस अथ का अथवा अनुमान का कुछ व ान भाषा वद एवं सा ह यकार ने


कड़ा खंडन भी कया है । वे तक दे कर कहते है क यह मुकर साजन व मोर
दोन पर ह खर उतरती है । मुकर म मोर का जो व तृत वणन कया गया है
वह प एक ी अपने ेमी या यतम के िलए भी क पना कर सकती है ।
ह द के यात भाषा व डॉ. भोलानाथ ितवार का कहना है क अमीर खुसरो
के नाम से िमलने वाली बहत
ु सी मुक रयाँ कुछ बाद क रिचत लगती ह।
उदाहरण -
"आप जले औ मोय जलावे, पी पी कर मोहे मुँह आवे।

एक म अब मा मु का, ऐ सखी साजन न सखी हु का।।

हँ सन हँ साने और मनोरं जन के िलए चुटकुले , क से, ग प, ढ ंगे मारने आ द का


पुराना रवाज है जो स दय से ामीण अंचल के मा यम से लोक सा ह य म
चला आता है । अनूठ , मनोरं जक व समय गुजारने क इ ह ं ामीण पर पराओं
म अमीर खुसरो ने भी अपना योगदान दया है । उ ह ने आम लोग क ज रत
को यान म रखते हए
ु लोक मनोरं जन हे तु ब च व बड़ दोन के िलए ह द
सा ह य म एक नवीन वधा का पदापण कया। यह है ठकोसले।

ढकोसले या अनमेिलयाँ

ढकोसल का चिलत अथ है आड बर, पाखंड, ऊपर ठाट-बाट या एक वशेष


कार क क वता, उ , दोहे , जसका अथ न हो और जो इतनी बेतुक हो क
ू । इनका अ व कार खुसरो ने आम लोग का मन
सुन कर फौरन सी हँ सी छटे
बहलाने व हँ साने के उ े य से कया था। अमीर खुसरो एक सूफ संत भी थे।
सूफ मत या सूफ पर परा म सू फय ारा िल खत रचनाओं (पद , दोह , फुटकल
छं द , गीत आ द) के दो अथ होते ह। एक ऊपर अथ तो आसानी से हम न
आता है और एक दसरा
ू ु
उसका आ या मक अथ जो भीतर छपा हआ
ु है । अत:
जहाँ अमीर खुसरो जी के ठकोसले हँ सा कर लोटपोट करते ह और मन म
गुदगुद पैदा करते ह तो वह ं वे सूफ वचार धारा िलए हए
ु , य को कोई न
कोई संदेश या िश ा भी दे ते ह। उदाहरण -

(क) भार भुजावन हम गए, प ले बाँधी ऊन।


कु ा चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून।।

(ख) काक फूफा घर म ह क नायं, नायं तो न दे ऊ


पांवरो होय तो ला दे , ला कथूरा म डोराई डा र लाऊँ।।
(ग) खीर पकाई जतन से और चरखा दया जलाय।
आयो कु ो खा गयो, तू बैठ ढोल बजाय, ला पानी पलाय।

(घ) भस चढ़ बबूल पर और लपलप गूलर खाय।


दम
ु उठा के दे खा तो पूरनमासी के तीन दन।।

(ड़) पीपल पक पपेिलयाँ, झड़ झड़ पड़े ह बेर।


सर म लगा खटाक से , वाह रे तेर िमठास।।

(च) लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर ध मकला।


पीपर तन क न मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर ध मकला।।

ऊपर िल खत (घ) ढोकसले के कइ अ य प भी िमलते ह। जैसे -

(१) भस चढ़ बबूल पर और लप लप गूलर खाए।


उतर उतर परमे र तेरा मठा िसरान जाए।।

(२) भस चढ़ बटोर और लप लप गूलर खाए।


उतर आ मे रे साँड क , कह ं ह ज न फट जाए।।

(३) भस चढ़ा बबूल पर गप गप गूलर खाय।


दम
ु उठा के दे खा तो ईद के तीन ितन।।

इन ढकोसल के साथ रोचक एवं हा या मक क से भी जुड़ ह। तो आइए एक


ऐसा ह क सा सुने -

'एक बार आशु क व अमीर खुसरो गाँव क क ची पगडं ड से होते हए


ु पैदल
कह ं जा रहे थे। रा ते म उ ह बहत
ु जोर से यास लगी। गला यास के मारे
सूखा जा रहा था। खुसरो ने फौरन आसमान क ओर दे खा। कुछ ह दरू पर
आसमान म उ ह प य का एक झुंड मँडराता न आया। वे फौरन भॉप गए क
वह ं पानी ह य क प ी पानी के आसपास ह उड़ा करते ह। वे तुर त उसी
दशा म चल दए। पहँु च कर दे खा क एक कुँए पर चार ामीण पिनहा रने
अपनी-अपनी मटक म पानी भर रह ह। और आपस म खूब हँ सी मजाक और
ठठोली कर रह ह। वे चार बहत
ु ह हँ समुख कृ ित क दखती थीं। खुसरो ने
कुँए के पास जा कर उनम से एक से पानी पलाने को कहा। अचानक एक
अजनबी को दे ख कर सब चुप हो गयीं। इनम से एक उ ह पहचानती थी। वह
बाक औरत से बोली - अरे ठहर तो जरा। ये तो अमीर खुसरो ह, आशु क व
मीर खुसरो तुरकवा। तब सब ने िमल कर उनसे पूछा - या तुम ह दरबार
शायर अमीर खुसरो हो जो भाँित-भाँित क मुक रय , पहे िलय , ठकोसले, िन बत,
सावन, बसंत, बरावा, हं डोला (झूला), साजन, वदाई, शाद याह आ द के गीत
िलखते हो। खुसरो ने बेहद सहजता एवं िश ाचार से जवाब दया - हाँ हँू तो
वह । इतना सुनते ह एक बोली - तुम तो दरबार शायर हो, दरबार के िलए
अिधक िलखते हो। हमारे िलए भी तो कुछ िलखो। चलो खीर पर कुछ सुनाओ?
मेर दाद बहत
ु ह वा द खीर बनाती है । इस पर दसर
ू युवती ने पहली क
ु कहा, 'तुझे तो हमेशा खाने-पीने क पड़ रहती है । पेटू कह ं क ।
बात काटते हए
अरे तुरकवा तुम खीर पर नह ं। चरखे पर सुनाओ, मेरे दादा जी चरखे पर सूत
बहत
ु अ छा कातते ह। तीसर युवती भी फर चुप न रह सक । तपाक से उसने
भी अपनी फ़रमाइश क - अरे चरखा भी कोई सुनाने क चीज़ है । उसने मज़ाक
के उ े य से कहा कु े पर सुनाओ कु े पर। इस पर चौथी युवती बगड़ते हए

ज़ोर से बोली, िछ: िछ: कु ा। कु ा तो मरा होता है गंदा। यह भी कोई सुनाने क
चीज़ है । सुनाना है तो ढोल पर सुनाओ। मेर अ माँ बहत
ु ह अ छा ढोल बजाती
है और मुझे भी िसखाती है । इस पर खुसरो ने ज़रा सख़ती से कहा - ठ क है
सबक फ़रमाइश पर सुनाऊँगा। ले कन पहले पानी तो पलाओ। मारे यास के
मेरा दम िनकला जा रहा है । वे सभी युवितयाँ एक वर म एक साथ बोलीं 'जब
तक हमार बात पूर नह ं कर दोगे हम पानी नह ं पलाएँगी और न ह तु ह
पानी दगे। अजी तुम तो ऐसे ह नाम के खुसरो बनते फरते हो। कुछ सुनाओ
जरा चटपट जरा ठनकदार। तब खुसरो ने झट कहा -
"खीर पकाई जतन से और चरखा दया जलाय।
आया कु ा खा गया (अब तू), बैठ ढोल बजाय। ला पानी पलाय।

यह सुनकर सभी पिनहा रने आ य च कत रह गयीं। इतनी शी इतनी ब ढया


तुकबंद । अमीर खुसरो क वल ण ितभा व बु दे खए क उ ह ने एक ह
दोहे या ठकोसले म चार पिनहा रन क फ़रमाइश ह नह ं पूण कर द वरन
उसके मा यम से सूफ़ संदेश भी दया। इसी तरह अ य कई क़ से ठकोसल के
सात मशहर
ू ह।

जैसा क हम पहले ह व दत कर चुके ह क अमीर खुसरो बहभाषी


ु थे। उ ह ने
दे वभाषा सं कृ त म भी िलखा। अमीर खुसरो क का य िनमाण संबंधी उ याँ भी
ा होती ह। यह सं कृ त से भा वत लगती ह। जैसे -

"उ धम, वशाल य, राजनीित नवंरस।


षट भाषा पुणांच कुराणांच किथतं गया।।

नोट - इस उ म रह यवाद ढं ग से नायक क नाियका से िमलने क ती


उ कंठा तीत होती है । इस भाँित का य िनमाण संबंधी खुसरो क उ याँ भी
ा होती ह। उ का अथ कथन, वचन, अनोखा वा य, वचार, चम कार पूण
कथन आ द है ।

िश त वग म अमीर खुसरो दहलवी क िन न कार क हे िलकाऐं भी बूझी


जाती रह ह। उदाहरण -

"अजा पु कौ श द लै, गज कौ पछलौ अंक।


सो तरकार लाय दै , चातुर मेरे कंत।।"

उ र - मैथी।
यह इस कार है - अजा पु हआ
ु बकरा, उसका श द (आवाज) हआ
ु 'म' गज
हआ
ु हाथी। उस श द का अंितम अ र हआ
ु 'थी'।

यहाँ यह प कर द क अमीर खुसरो ारा िल खत ह दवी कलाम क जो


एकमा ित उपल ध है यह है दे वनागर िल प म न हो कर फारसी अथवा उद ू
िल प म है । यह बिलन (जमनी) के रा ीय पु तकालय ( टा स ब लओिथक)
म सुर त रखी है जसे उद ू के िस सा ह यकार डॉ. गोपी चंद नारं ग ने
खोज िनकाला है । यह ह तिल खत पांडुिल प इस बात को मा णत करती है क
अमीर खुसरो फारसी के अलावा ह दवी भाषा म भी िलखते थे। इस पु तकालय
म रखा हआ
ु ह तिल खत पांडुिल पय का यह खजाना ओरं टािलया और
ज गयाना के नाम से मशहर
ू है । इस पांडुिल प म खुसरो क डे ढ़ सौ पहे िलयाँ
ह। डॉ. नारं ग ने इस दावे का उद ू और ह द के कई व ान ने खंडन कया है ।
ये वा तव म अमीर खुसरो के वरोधी लोग ह। खैर इस ह दवी कलाम का
अ ययन करने पर पता चलता है क इनम से अिधकांश रचनाएँ पहली बार
काश म आई ह। डॉ. नारं ग कह यह योगदान शंसनीय है । अगर यह कहा जाए
क उ ह ने खुसरो को पुन: जी वत कया है तो यह गलत न होगा।

फारसी का सवमा य क व ह द भाषा म आकर ववाद पद बन गया मगर


आम लोग के िलए नह ं ब क शोधकताओं के िलए। लोग ने इस शायर के
ह दवी कलाम को इस कार वीकार कया है क वह आज भी कई शता दय
प ात उनके दल , मृितय , और जुबान म बसा हआ
ु है । यह झगड़ा
शोधकताओं ने पैदा कया है क यह कलाम उस शायर का है भी या नह ं , शायद
जानबूझ कर अपने िनजी वाथ के कारण। झगड़ा तो तब पैदा हआ
ु जब खुसरो
क सार फारसी शायर तो िल खत प म सुर त चली आती है पर शायर ने
अपने ह दवी कलाम का संकलन और संपादन नह ं कया। फारसी के इस
िस क व ने चलते-चलते उस भाषा म भी अपनी सृजना मक मता का
प रचय दया जो अभी बन रह थी और जसे आगे चलकर ह द ू और उद ू का
प धारण करना था। ले कन यह का य सं ह के प म संपा दत नह ं हआ।
ु सो
उसका कतना ह भाग समय के हाथ न हो गया या गुम हो गया और कुछ
भाग जानबूझ कर इ मी डाकुओं ने बरबाद कर दया। ले कन इसका कुछ भाग
सामू हक जन मृित ने सुर त कर िलया यािन जो पी ढ दर पी ढ मौ खक
पर परा म बचा चला आया है । कुछ शेर, दोहे , फुटकल पद, गीत या छं द और
पहे िलयाँ जहाँ-तहाँ तज़कर म उ त हए
ु ह। एक समय तक इसी कलाम के
अमीर खुसरो का कलाम होने म कसी को कोई भी संदेह नह ं था। मगर जब
शोधकताओं ने जोर बाँधा तो उ ह ने जबरद ती इस कलाम को ववाद पद बना
दया।

उद ू के कुछ नामी िगरामी सा ह यकार काफ अस से ह ह द -उद ू को िनकट


लाने के स त वरोधी रहे ह। इसी पर परा म वे अमीर खुसरो जैसे ह दवी के
जनक व का ह द से कसी कार का ता लुक बदाशत नह ं करते। उद ू के
िस व ान तथा आलोचक सफदर आह अपनी पु तक, 'अमीर खुसरो
बहै िसयत' ह द शायर म िलखते ह - 'उद ू के शोधकता ोफेसर महमूद शीरानी
और काजी अ दल
ु वदद
ू जैसे सा ह यक लुटेर और अदबी डाकुओं ने अमीर
खुसरो क वधमान ह दवी क वताओं को िनजी वाथ और ह द से धािमक
घृणा के कारण, खुसरो क रचना ह मानने से इं कार कर दया है । यह नह ं ो.
महमूद शीरानी ने अपनी पु तक 'पंजाब म उद'ू म जानबूझकर ोफेसर
िसराजु न आ क कसी पॉकेट बुक से कुछ क वताऐं चुराकर, उ ह अमीर खुसरो
के नाम से कािशत कर दया है । दरअसल ये लोग खुसरो के ह दवी कलाम
पर हमले क तैया रयाँ कर रहे थे। बाज उद ू मह क न ने खुसरो के सारे
ह दवी कलाम क मा णकता से जानबूझ कर इं कार कया है ता क खुसरो का
ह द से कोई संबंध न रहे । उद ू आलोचक का एक वग खुसरो को ह द
सा ह य से जोड़ने के ह व रहा है । वे उसे फारसी तक सीिमत कर दे ना
चाहते ह। इसी कार डॉ. वाह द िमजा जैसे व ान यह गलत िन कष िनकालने
क चे ा करते ह क खुसरो क नज़र म उनक अपनी ह दवी रचनाओं का
कोई मह व नह ं था इसिलए उ ह ने उसे एक त करने के बजाय िम म बाँट
दया। आज भी उद ू े म ऐसे लोग क कमी नह ं है जो अपने घ टया िनजी
वाथ और ऊँचे पद का लाभ उठाकर अमीर खुसरो का ह दवी कलाम जानबूझ
कर बबाद करने पर तुले हए
ु ह।

पीढ़ दर पीढ़ मौ खक, जुबानी चले आने के कारण खुसरो के ह दवी कलाम
क भाषा का प ज र बदला होगा। लोक रवायत या लोक सा ह य म ऐसा
होता है । सूफ क व कबीर, मीरा के साथ भी यह हआ।
ु फर भी उनका कलाम
दिनया
ु यो मानती है ? य , िल खत माण न होनेपर भी उनका सा ह य अथवा
फुटकल रचनाऐं कूल व कॉलेज म पढ़ाई जाती है ? उनके सबूत कहाँ ह, वे
ववाद पद य नह ं? तो फर अमीर खुसरो के साथ ह सौतेला यवहार य?
माना क बहत
ु सी चीज अमीर खुसरो के नाम से, जमाने के साथ जुड़ गयी
ह गी, जो क कबीर व अ य क वय के साथ भी हआ
ु है । पर इसका अथ यह
नह ं क कुछ भी खुसरो का नह ं कुछ चीज तो खुसरो क ह गी। अब कौन सी है ,
व कौन सी नहं यह बताना क ठन है , जब तक क कोई ठोस सबूत न िमले।
अमीर खुसरो क ह द रचनाओं म ज, अवधी, खड़ बोली, राज थानी, पुरानी
पंजाबी, अप ंश आ द भाषाओं का असर िमलता है । उदाहरण - अमीर खुसरो क
एक पहे ली दे ख -

"नार से नार िमले और ज म भी लेवे नार ।


इसके रं ग क टटते दे खी, उसको दे खा सार ।।"

अब सुनने म यह बहत
ु सरल मालूम पड़ती है । अगर पहे ली क बूझ पु ज लग है
तो श द आऐंगे ीतम, पी, साजन आ द। और अगर बूझ ीिलंग है तो ीिलंग
के श द आऐंगे सजनी, सखी, यतमा, माशूका, जानम, दल बा आ द। यािन
इशारा कया गया है । यह पहे ली है आग पर यािन चकमाक और प थर पर। उस
जमाने म दयासलाई तो होती नह ं थी। आग कैसे जलाते थे? दो प थर को
रगड़ते थे। एक चकमाक और एक प थर । उससे शरार, िचंगार या आग झड़ती
थी जो सूखे प को पकड़ लेती थी। अब पहे ली म नार सं कृ त श द है , ीिलंग
है और उसक पहचान भी ीिलंग है यािन आग या अ न जो जलाती है । आप
कभी नह ं कहगे क आग, जलता है । अरबी म नार का मतलब है अ न या
आग। श द ह ऐसा है । नार सं कृ त म भी अथ दे ती है ी के मान म और अब
म आग लगाने वाली चीज के माने म भी। न + ई = नार यािन आग लगाने वाली
चीज, चकमाक और प थर । चकमाक और प थर दोन ीिलंग ह। यह नार
श द अरबी से फ़ारसी म भी चिलत ह। तो अरबी, फ़ारसी और सं कृ त तीन के

हसाब से अथ ठ क बैठ रहा है । अब अगला िम ा दे खए - 'इसके संग क टटते
दे खी, उसको दे खा सार ।' संग + सार = संगसार । संगसार करना यानी प थर से
कसी को मारना। प थर से कसी को भी सजा दे ने के िलए पुराने जमाने म
संगसार करते थे। ये ब लओिथक तर क़ा चला आता है , िसमे टक है और
इ लािमक पर परा म भी है । पहले अवैध संबंध क सजा, प थर से मौत थी।
यहाँ ल ज़ संगसार आ रहा है और नार से नार िमलने का, गोया सै स का
िछपा हआ
ु इशारा भी है । इ लामी समाज म संगसार , सजा दे ने का ख़ास तर क़ा
है । अब उससे हट के दे खए। हम नार का ज़ कर रहे ह। पहे ली शु हो रह है
नार श द से। जब उस जमाने क उद ू भाषा म साड़ िलखा जाएगा तो वह हो
जाएगा सार य क 'ड़' भी आता है , कभी नह ं आता। यूँ भी यार क भाषाओं म
आज भी पूव म साड़ को सार कहते ह। तो सार के भी दो माने हो गए। पूरा,
पूरे के अथ म भी है । एक चकमाक तो दसरा
ू ू
प थर। चकमाक तो टटता है पर

प थर नह ं टटता। तो सार , साड़ भी है , नार क पहचान के िलए और सार , संग
के साथ िमल कर संगसार हआ।
ु 'संग' श द फ़ारसी म भी है और सं कृ त म भी।
सं कृ त हआ
ु संगीसाथी और साथी श द भी आ रहा है । अब दे खए कतने अथ
इन दो लाइन के िनकले और कैसा (२) क र मा इसम है , सं कृ त, फ़ारसी, अब ,
तुक और ह दवी श द को ले कर। पहे ली खड़ बोली क उ कृ रचना है । इन
पहे िलय म आप जतना गहराई से उतर कर दे खगे। आप उतना है रान ह गे। एक

जमाने म पहे िलयाँ यूँ भी बनाई जाती थी क श द के टकड़े करो और कुछ जो
विनयाँ ह इधर लगाओ या उधर लगाओ, तो पहे ली क बूझ सामने आएगी। जैसे
- आधा बकरा, सारा हाथी, हाथ बँधा दे खा एक साथी, पहे ली क बूझ है गजरा।
बकरा को आधा करो, बक + रा = बजरा। अब एक तरफ बक है दसर
ू तरफ रा है ।
साथ हाथी या द गज। गज + रा = गजरा।जो लोग सं कृ त बैक ाउं ड से आए ह वो
तो जान लगे पर उद ू वाला आदमी नह ं पहचानेगा। वो चकरा जाएगा क हाथी
कैसे लगाऊँ, र के साथ जो गजरा बने। हाथी तो गज़ है । यािन क सं कृ त भी आ
गई इसम। अब है हाथ बँधा दे खा इक साथी। गजरा हाथ पर बाँधते ह या औरत
उसे बाल म लगाती ह। इसम फ़ारसी, अरबी और सं कृ त तीन भाषाएँ आ गई।
हाथी और साथी, क़ा फ़या भी दे खए, ऐनामोटापोइया। आवाज़ का विनय का
आपस म िनबाह और जो एक संगीत पैदा होता है विनय के आपस म िमलने
से, वो भी है । कोई पहे ली ऐसी नह ं है जसम ये गहराइयाँ न ह । पहे िलय का
अंद नी ढाँचा बहत
ु मज़बूत है ।

अमीर खुसरो क ह दवी रचनाओं का कलेवर बूझ-अनबूझ पहे िलय ,


कहमुक रय , दो सुखन , िनसबत , अनमेिलयाँ या ठकोसल से िनिमत है । जैसा क
हम ऊपर बता चुके ह। इसके अित र कितपय ॠतु संबंधी पद, गीत, दो-एक
फ़ारसी क गज़ल ( जनक हर दसर
ू पं फ़ारसी भाषा म है ) खुसरो ारा रिचत
ह। जैसी क खुसरो ने वंय भी कहा है क उनका फुट का य िम के वनोद
के िलए रखा गया है । सूफ़ परं परा म हज़रत िनजामु न िच ती का िश य होने
के कारण उनक रचनाओं म भाव या वषय क से उसम जीवन क गहन
सम या अथवा सूफ़ साधना आ द से स ब भाव क अनेक पता अव य है
पर तु दभा
ु य से उनका अिधकतर ह दवी का य समय के हाथ खो गया।
केवल बहत
ु ह कम उपल ध है । खुसरो ारा रिचत पद एवं दोहे िन य ह गंभीर
एवं भावपूण ह। इन रचनाओं म ाय: वह भाव ल त होते ह जो आजकल
चिलत िनगुिनया गीत म दख पड़ते ह। य द उ ह सूफ़ गीत कह तो इस
कार के गीत के उदाहरण हज़रत अमीर खुसरो के अन तर लगभग तीन सौ
वष तक बहत
ु कम िमलते ह। व तुत: जन जीवन म चिलत लोक सा ह य को
सा ह य का थान दलाने का थम य
े ह दईु के क व खुसरो को ह है ।
खुसरो ने फ़ारसी भाषा के समान ह दवी म गंभीर सा ह य क रचना अव य क
होगी पर जब तक उनक लु रचनाएँ 'द वाने- ह दवी' और 'हालाते-क है या' आ द
नह ं िमल जाती यह पूण प से कहना बहत
ु ह मु कल है । कुछ व ान कहते ह
क खुसरो ने ह दवी म गंभीर सा ह य क रचना नह ं क य क स भवत:
फ़ारसी के समान ह दवी म पट नह ं थे या फर उस समय तक ह दईु उ च
गंभीर सा ह य के िलए मँज भी नह ं पाई थी। वह केवल सामा य जन क
बोलचाल क भाषा ह थी। ह दईु म मनोरं जक सा ह य क सृ का मूल कारण
स भवत: लोक जीवन म उनक वाभा वक िच एवंम उ र भारत के शा ीय
और लोक संगीत से उनका िनकट का प रचय था। डॉ. रामधार िसंह दनकर
सं कृ ित के चार अ याय ंथ म एक थान पर वशेष प से िलखते ह- ""'यहाँ
क जनभाषा ( ह दईु) खुसरो के यान पर कैसे चड़ गई इसका कारण यह हो
सकता है क खुसरो परदे सी होने के कारण यहाँ के सा ह य से इतने प रिचत
नह ं रहे ह गे क उसक पर परा उन पर आंतक जमाती। अपने मु य भाव तो वे
फ़ारसी म िलखते थे। हाँ जनता के मनोरं जन के िलए कुछ चीज़ उ ह ने यहाँ क
भाषा म भी कह द । वयं अमीर खुसरो ने िलखा है क वे ह दवी के क व ह
तथा उ ह ह दवी म िलखना बेहद य है । यह कारण है क अमीर खुसरो
आ दकाल के क वय म अपनी हा य वनोदमयी एवं सूफ़ वचार धार से ओत-
ोत रचनाओं के कारण एक विश थान रखते ह। उनक अिधकांश ह दवी
रचनाओं के णयन का उ े य था जनसाधारण का श द के खलवाड़ ारा
भरपूर व व थ मनोरं जन तथा िच ती सूफ़ वचार धारा व स दाय के अपने
गु हज़रत िनजामु न औिलया के सूफ़ संदेश का अपने गीत व पद के
मा यम से लोग के दय म पहँु चाना ता क उनम आपसी भाईचारे , रा ीय एकता
एवं धािमक स ावना के वचार ज म ले सक।

उनक ह दवी रचनाओं म इतना तो वीकाय ह है क भाव क अपे ा बौ क


चम कार कह ं अिधक ह और वह क व क अ ितम सूझ का सा ी है । एक
अ य से भी अमीर खुसरो क ये रचनाऐं बहत
ु ह मह वपूण ह। वह यह
क इसके पूव क ह द रचनाऐं या तो क वय के आ यदाताओं क
व दाविलयाँ थी या धम संबंधी। य प अमीर खुसरो के पीछे गोरखनाथ क
पर परानुगािमनी नाथपंिथय क पद क िभ न धारा चली आ रह थी क तु
खुसरो का उस पर कोई भाव नह ं पड़ा। उनक रचनाओं के ारा सा ह य जन
जीवन के समीप ह नह ं आ गया अ पतु उसम रच बस गया, या जन जीवन क
पसंद बन गया, उसक आदत बन गया। इससे जनता को सा ह य सुलभ आनंद
क ाि भी हई।
ु खुसरो के फुटकल छं द, पद व गीत म भावो मेष के साथ-
साथ शांत एवं ग
ं ृ ार रस का समावेश वशेष प से हआ
ु है पर तु उसम पया
का यत व एवं प र कार नह ं य क ह दवी (आज क ह द व उद)ू उस
समय क ची थी, अनधड़ थी, बन रह थी, हाँ इतना अव य है क उनम अपने
पूववत नाथ एवं िस क पर परा से पया नवीनता िमलती है । िस ने
जहाँ केवल दाशिनक िस ांतो को पद म ढाला, वहाँ पर खुसरो ने अंत रक भाव
का दशन अपने गीत म कया है । अमीर खुसरो िच ती स दाय के िस
पीर हजरत िनजामु न औिलया (जीवन काल सन ् - १२३८ - १३२५ ई.) के ऐसे
मुर द थे जो बेशक अपने गु के ग नशीन न हए
ु पर गु के बहत
ु य व
कर ब थे। उनके यत कंिचत ा दोह एवं पद म हम सूफ सा ह य एवं
साधना के मु प का बीज िन हत पाते ह। वह ढय के अ धानुयायी नह ं
थे। उनम मौिलक ितभा थी। फारसी क ेम प ित के व भारतीय ेम
पर परा अपनाते हए
ु खुसरो ने िलखा है -

""इ क अ वल दर दले माशूक पैद मीशबद, ता न सोज़द शमा के परवाना शैदा


मोशवद।'' अथात - इसी को ह दवी म खुसरो इस कार िलखते ह -

'पहले ितय के ह य म, डमगत ेम उमंग।


आगे बाती बरित है , पीछे जरत पतंग।।

खुसरो सूफ क व थे और कहते ह फारसी म उ ह ने तस वु◌ुफ क बहत


ु ऊँची
क वताऐं िलखी ह। यह तो रहा उनका एक प। खुसरो का दसरा
ू प ह दवी
म खुला। वहाँ वे रह यवाद क व भी हो कर सामा य जन जीवन के सरस क व
का प भी है और यह क व मनु य को परलोक का संदेश तो दे ता ह है पर
उसका अिधकतर जोर यह ं के ेम, म ती और चुलबुलेपन का आनंद दे ता है ।
खुसरो पारं गत सूफ क व तो ह ह साथ म वह ग
ं ृ ार के म त आनंद क व का
ह प है । सूफ वाद मधुरा भ का ह अरबी सं करण है । यह दसर
ू बात है
क वह यौिगक याओं से भी कुछ दरू तक भा वत है पर तु उसके मूल म
भ ह है इससे इं कार नह ं कया जा सकता है । ह द के म यकालीन सूफ
क वय से ह नह ं ब क भ काल के पूव ह अमीर खुसरो ने कुछ ऐसे
ह दवी पद िलखे थे जनम दा प य भाव क अिभ य थी और दोन के
पार प रक िमलन का वणन भी उसी के अनुकूल श द ारा कया था। एक
दोहरा म वे कहते ह -

'खुसरो रै न सोहाग क , जागी पी के संग।


तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये एक रं ग।।

खुसरो ने अपने गु िनजामु न औिलया के नाम कहते है िन निल खत पद क


रचना क थी जसम ववाह का पक बाँधकर उ ह ने आ मा और परमा मा के
संबंध को पित और प ी के ेमभाव ारा दिशत कया था -

"परबत बास मँगवा मोरे बाबुल, नीके मँडवा छाव रे ।


डोिलया फँदाय पया लै चिल ह अब संग न हं कोई आव रे ।
गु ड़या खेलन माँ के घर गई, न ह खेलन को दाँव रे ।
गु ड़या खलौना ताक ह म रह गए, नह ं खेलन को दाँव रे ।
िनजामु न औिलया ब दयाँ पक र चले, ध रह वाके पाव रे ।
सोना द हा पा द हा बाबुल दल द रयाव रे ।
हाथी द हा घोड़ा द हा बहत
ु बहत
ु मन चाव रे ।

ट पणी - बाबुल (हे मेरे पता) मँडवा ( ववाह क विध स प न करने के िलए
िनमाण कया जाने वाला मंडप), दल द रयाव-उजाक दय। डोिलया फँदाय -
ववाहोपरांत डोली म बठाकर। दाव-दाँव, अनुकूल अवसर, मौका, गु ड़या ..... रह
गई। खेलने क साम ी अथात गु ड़या आ द व तुऐं नैहर म ह रखी रह गयी।
(आ य - मृ यु उपरांत अपनी सार व तुऐं जहाँ क तहाँ छोड़ कर चला जाना
पड़ता है और जीवन काल के पूव प रिचत काय के करने का फर अवसर नह ं
िमला करता।)

अमीर खुसरो का एक अ य पद म भी इ ह ं भाव का थान िमला है -

ु रह बाबुल घर दलहन
"बहत ु , चल तेरे पी ने बुलाई।
बहत
ु खेल खेली स खयन स , अंत कर लरकाई।
हाय धोय के ब तर प हरे , सब ह िसंगार बनाई।
वदा करन को कुटु ब सब आए, िसगरे लोग लुगाई।
चार कहारन डोली उठाई संग पुरो हत नाई
चले ह बनैगी होत कहा है , नैनन नीर बहाई।
ु हन, काहू क कछु ना बसाई।
अंत वदा है चिलहै दल
मौज खुसी सब दे खत रह गए, मात पता औ भाई।
मो र कौन संग लिगन धराई धन धन ते र है खुदाई।
बन माँगे मेर मंगनी जो, द ह ं पर घर क जो ठहराई।
अंगु र पक र मोरा पहँु चा भी पकरे , कँगना अंगूठ प हराई।
नौशा के संग मो ह कर द ह ं, लाज संकोच िमटाई।
सोना भी द हा पा भी द हा बाबुल दल द रयाई।
गहे ल गहे ली डोलित आँगन मा पकर अचानक बैठाई।
बैठत मह न कपरे पहनाये, केसर ितलक लगाई।
खुसरो चले ससुरार सजनी संग, नह ं कोई आई।
अमीर खुसरो के ह दवी कलाम क एकमा पांडुिल प
जमनी (बिलन) के सं हालय टा स ब लओिथक म रखी है । इसक िल प फारसी है ।
इसे भारत म अं ेज के समय एक जमन शोधकता डॉ. एलवस ज गर जमनी ले गया
था। िस शोधकता डॉ. गोपीचंद नारं ग ने इसक खोज कर इस पर अहम शोध काय
कया है ।
अमीर खुसरो के ह दवी कलाम क एकमा पांडुिल प
जमनी (बिलन) के सं हालय टा स ब लओिथक म रखी है । इसक िल प फारसी है ।
इसे भारत म अं ेज के समय एक जमन शोधकता डॉ. एलवस ज गर जमनी ले गया
था। िस शोधकता डॉ. गोपीचंद नारं ग ने इसक खोज कर इस पर अहम शोध काय
कया है ।
ट पणी - अंतकर - बंद कर दो, समा कर दो अथवा बंद कर दया। लरकाई -
जीवन काल के बा यसुलभ यवहार। लगन..... धराई। ..... वैवा हक संबंध
थर कर दया। बन माँगे .... ठहराई .... कसी क इ छा न रहते हए
ु भी
अप रिचत के साथ ववाह क बात िन त कर द । नौशा - द ू हा। गहे ल डोलित
- म गँवार उ मत सी बनकर अपने आँगन म इतराती चलती थी क आशय -
इस पद म भी मरणोपरांत जीवन काल के आनंद न लूट सकने के िलए
पछतावा है ।

इसी पद का एक अ य प भी िमलता है -

बहोत रह बाबुल घर दलहन


ु , चल तोरे पी ने बुलाई।
बहोत खेल खेली स खयन से, अंत कर लरकाई।
वदा करन को कुटु ब सब आऐ, सगरे लोग लुगाई।
चार कहार िमल डोिलया उठाई, संग परो हत और भाई।
चले ह बनेगी होत कहा है नैनन नीर बहाई।
अंत बदा हो चली है दलहन
ु काहू क कछु न बने आई।
मोज खुसी सब दे खत रह गए मात पता और भाई।
मोर कोन संग लगन धराई धन धन ते र है खुदाई।
बन माँगे मेर मँगनी जो क नी, नेह क िमसर खलाई।
एक के नाम क कर द नी सजनी, पर घर क जो ठहराई।
गुन नह ं एक औगुन बहोतेरे कैसे न शा रझाई।
खुसरो चले ससुरार सजनी संग नह ं कोई आई।

जस कार कबीरदास, तुलसीदास, रह मदास, आ द के दोहे बहत


ु मशहू र ह ऐसे ह
अमीर खुसरो ने भी बहत
ु से सूफ दोहे िलखे। कह ं-कह ं तो कबीर और खुसरो
अपने अलग-अलग दोह के मा यम से एक ह बात कहते न आते ह। आइए
अमीर खुसरो के कुछ सूफ दोहे पढ़ -
(१) खुसरो द रया ेम का, सो उ ट वाक धार।
जो उबरा सो डू ब गया जो डू बा हआ
ु पार।।

(२) रै नी चढ़ रसूल क सो रं ग मौला के हाथ।


जसके कपरे रं ग दए सो धन धन वाके भाग।।

(३) खुसरो बाजी ेम क म खेलूँ पी के संग।


जीत गयी तो पया मोरे हार पी के संग।।

(४) चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।


ये मारे करतार के रै न बछोया होय।।

(५) खुसरो ऐसी पीत कर जैसे ह द ू जोय।


पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

फारसी - खुसरवा दर इ क बाजी कम ज ह द ू जन माबाश।


कज़ बराए मुदा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।

(६) उ जवल बरन अधीन तन एक िच दो यान।


दे खत म तो साधु है पर िनपट पाप क खान।।

(७) याम सेत गोर िलए जनमत भई अनीत।


एक पल म फर जात है जोगी काके मीत।।

(८) पंखा होकर म डु ली, साती तेरा चाव।


मुझ जलती का जनम गयो तेरे लेखन भाव।।

(९) नद कनारे म खड़ सो पानी झलिमल होय।


पी गोर म साँवर अब कस वध िमलना होय।।
(१०) साजन ये मत जािनयो तोहे बछड़त मोहे को चैन।
दया जलत है रात म और जया जलत बन रै न।।

(११) रै न बना जग दखी


ु और दखी
ु च बन रै न।
तुम बन साजन म दखी
ु और दखी
ु दरस बन नन।।

(१२) अंगना तो परबत भयो, दे हर भई वदे स।


जा बाबुल घर आपने, म चली पया के दे स।।

(१३) आ साजन मोरे नयनन म, सो पलक ढाप तोहे दँ ।ू


न म दे खूँ और न को, न तोहे दे खन दँ ।ू

(१४) अपनी छ व बनाई के म तो पी के पास गई।


जब छ व दे खी पीहू क सो अपनी भूल गई।।

(१५) खुसरो पाती ेम क बरला बाँचे कोय।


वेद, कुरान, पोथी पढ़े , ेम बना का होय।।

(१६) संत क िनंदा करे , रखे पर नार से हे त।


वे नर ऐसे जाऐंगे, जैसे रणरे ह का खेत।।

(१७) खुसरो मौला के ठते, पीर के सरने जाय।


कहे खुसरो पीर के ठते , मौला न ह होत सहाय।।

(१८) खुसरो सर र सराय है य सोवे सुख चैन।


कूच नगारा सांस का, बाजत है दन रै न।।
आइए अमीर खुसरो क कुछ म हर
ू रचनाऐं पढ -

(१) अपनी छ व बनाई के जो म पी के पास गई,


जब छ व दे खी पीहू क तो अपनी भूल गई।
छाप ितलक सब छ ह ं रे मोसे नना िमलाई के
बात अघम कह द ह ं रे मोसे नना िमला के।
बल बल जाऊँ म तोरे रं ग रजना
अपनी सी रं ग द ह ं रे मोसे नना िमला के।
ेम वट का मदवा पलाय के मतवार कर द ह ं रे
मोसे नना िमलाई के।
गोर गोर बईयाँ हर हर चू रयाँ
बइयाँ पकर हर ली ह ं रे मोसे नना िमलाई के।
खुसरो िनजाम के बल-बल जइए
मोहे सुहागन क ह ं रे मोसे नना िमलाई के।
ऐ र सखी म तोसे कहँू , म तोसे कहँू , छाप ितलक....।

(२) बहत
ु क ठन है डगर पनघट क ।
कैसे म भर लाऊँ मधवा से मटक
म जो गई थी पिनया भरन को
दौड़ झपट मोर मटक पटक
िनजामु न औिलया म तोरे बिलहार
लाज रखो तुम हमरे घूँघट क ।
लाज राखो मोरे घूँघट पट क ।

(३) िनजाम तोर सूरत पे बिलहार


सब स खयन म चुद
ं र मोर मैली
दे ख हँ से नर नार ।
अब के बहार चूद
ँ र मोर रं ग दे , िनजाम पया
रख ले लाज हमार ।
सदका बाबा गंज शकर का, रख ले लाज हमार िनजाम पया
िनजाम तोर सूरत के बिलहार , मेरे घर िनजाम पया।
कुतुब-फर द िमल आए बराती खुसरो राजदलार

वाजा िनजाम तोर सूरत के बिलहार
िनजाम पया रख ले लाज हमार ।

(४) सकल वन फूल रह सरस


अमुवा मोरे टे सू फूले कोयल बोले डार-डार
और गोर करत िसंगार मलिनयाँ गढ़वा ले आई घर स ।
तरह तरह के फूल लगाए, ले गढ़वा हाथन म आए
वाजा िनजामु न के दरव जे पर, आवन कह गए आिशक रं ग
और बीत गए बरस ।

(५) ऐ र सखी मोरे पया घर आए


भाग लगे इस आँगन को
बल-बल जाऊँ म अपने पया के, चरन लगायो िनधन को।
म तो खड़ थी आस लगाए, महद कजरा माँग सजाए।
दे ख सूरितया अपने पया क , हार गई म तन मन को।
जसका पया संग बीते सावन, उस द ु हन क रै न सुहागन।
जस सावन म पया घर ना ह, आग लगे उस सावन को।
अपने पया को म कस वध पाऊँ, लाज क मार म तो डू बी डू बी जाऊँ
तुम ह जतन करो ऐ र सखी र , मै मन भाऊँ साजन को।

(६) जो म जानती बसरत ह तृया


जो म जानती बसरत ह तृ या, घुँघटा म आग लगा दे ती,
म लाज के बंधन तोड़ सखी पया यार को अपने मान लेती।
इन चू रय क लाज पया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न।
मोरा भाग सुहाग तुमई से है म तो तुम ह पर जुबना लुटा बैठ ।
मोरे हार िसंगार क रात गई, पयू संग उमंग क बात गई
पयू संत उमंग मेर आस नई।
अब आए न मोरे साँव रया, म तो तन मन उन पर लुटा दे ती।
घर आए न तोरे साँव रया, म तो तन मन उन पर लुटा दे ती।
मोहे ीत क र त न भाई सखी, म तो बन के द ु हन पछताई सखी।
होती न अगर दिनया
ु क शरम म तो भेज के पितयाँ बुला लेती।
उ ह भेज के स खयाँ बुला लेती।
जो म जानती बसरत ह सै या।

(७) अ मा मेरे बाबा को भेजो जी क सावन आया,


बेट तेरा बाबा तो बूढ़ा र क सावन आया।
अ मा मेरे भाई को भेजो जी क सावन आया
बेट तेरा बाई तो बाला र क सावन आया
अ मा मेरे मामू को भेजो जी क सावन आया
बेट तेरा मामू तो बाँका र क सावन आया।

(८) दै या र मोहे िभजोया र शाह िनजम के रं ग म।


कपरे रं गने से कुछ न होवत है
या रं ग म मने तन को डु बोया र
पया रं ग मने तन को डु बोया
जा ह के रं ग से शोख रं ग सनगी
खूब ह मल मल के धोया र ।
पीर िनजाम के रं ग म िभजोया र ।

(९) मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल।


कैसे घर द ह ं बकस मोर माल।
िनजामु न औिलया को कोई समझाए, य - य मनाऊँ
वो तो सो ह जाए।
चू डयाँ फूड़ पलंग पे डा ँ इस चोली को म दँ ग
ू ी आग लगाए।
सूनी सेज डरावन लागै। बरहा अिगन मोहे डस डस जाए।
मोरा जोबना।

(१०) जो पया आवन कह गए अजहँु न आए, अजहँु न आए वामी हो


ऐ जो पया आवन कह गए अजुहँ न आए। अजहँु न आए वामी हो।
वामी हो, वामी हो। आवन कह गए, आए न बाहर मास।
जो पया आवन कह गए अजहँु न आए। अजहँु न आए।
आवन कह गए। आवन कह गए।

(११) हजरत वाजा संग खेिलए धमाल, बाइस वाजा िमल बन बन आयो
ताम हजरत रसूल साहब जमाल। हजरत वाजा संग।
अरब यार तेरो (तोर ) बसंत मनायो, सदा र खए लाल गुलाल।
हजरत वाजा संग खेिलए धमाल।

(१२) ऐ सरवंता मवा, मोर ला, सब बना। खेलत धमाल वाजा मुइनु न
और वाजा कुतुबु न। शेख फर द शकर गंज मुलतान मशायाख नसी
औिलया ऐ सरवंता।

(१३) औिलया तेरे दामन लागी, पौ ढयो मेरे ललना।


खाजा हसन को म गुजर िमली, पौ ढयो मेरे ललना।
खाजा कुतुतबु न को म मुजरे िमली, पौ ढयो मेरे ललना।

(१४) परदे सी बालम धन अकेली मेरा बदे सी घर आवना।


बर का दख
ु बहत
ु क ठन है ीतम अब आजावना।
इस पार जमुना उस पार गंगा बीच चंदन का पेड़ ना।
इस पेड़ ऊपर कागा बोले कागा का बचन सुहावना।

(१५) आ िघर आई दई मार घटा कार । बन बोलन लागे मोर दै या र


बन बोलन लगे मोर। रम- झम रम- झम बरसन लागी छाय र चहँु ओर।
आज बन बोलन लगे मोर। कोयल बोल डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
ऐसे समय साजन परदे स गए बरहन छोर।

(१६) हजरत िनजामु न िच ती जरजर ब स (ब श) पीर।


जोई-जोई यावै तेई तेई फल पावै।
मेरे मन क मुराद भर द जै अमीर।

(१७) बन के पंछ भए बावरे , ऐसी बीन बजाई सांवरे ।


तार तार क तान िनराली, झूम रह सब वन क डाली। (डार )
पनघट क पिनहार ठाढ़ , भूल गई खुसरो पिनया भरन को।

(१८) बहत
ु दन बीते पया को दे ख,े अरे कोई जाओ, पया को बुलाय लाओ
म हार वो जीते पया को दे खे बहत
ु दन बीते।
सब चुन रन म चुनर मोर मैली, य चुनर नह ं रं गते ?
बहत
ु दन बीते। खुसरो िनजाम के बिल बिल जइए, य दरस नह ं दे ते?
बहत
ु दन बीते।

(१९) जब यार दे खा नैन भर दल क गई िचंता उतर।


ऐसा नह ं कोई अजब, राखे उसे समझाय कर।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जया।
ह का इलाह या कया आँसू चले भर लाय कर।
तू तो हमारा यार है , तुझ पर हमारा यार है ,
तुझ दो ती विसयार है , ए शब िमलो तुम आय कर।
जाना तलब मेर क द गर तलब कसक क ँ ।
तेर जो िचंता दल ध । एक दन िमलो तुम आय कर।
मेरो जो मन तुमने िलया। तुम उठा गम को दया। तुमने मुझे ऐसा कया।
जैसा पतंगा आग पर। खुसरो कहे बात गजब दल म न लावे कुछ अजब।
कुदरत खुदा क है अजब। जब जव दया गुल लाय कर।
(२०)

(क) काहे को याह बदे स रे ल ख बाबुल मोरे ।


हम तो बाबुल तोरे बाग क कोयल, कुहकत घर घर जाऊँ
ल ख बाबुल मोरे । हम तो बाबुल तोरे खेत क िच ड़या चु गा चुगत उ ड़ जाऊँ
जो माँगे चली जाऊँ ल ख बाबुल मोरे , हम तो बाबुल तोरे खूंटे क गइया।
जत हॉको हक जाऊँ ल ख बाबूल मोरे लाख क बाबुल गु ड़या जो छाड़ ।
छो ड़ सहे िलन का साथ, ल ख बाबुल मोरे । महल तले से डोिलया जो िनकली
भाई ने खाई पछाड़, ल ख बाबुल मोरे , आम तले से डोिलया जो िनकली।
कोयल ने क है पुकार ल ख बाबुल मोरे । तू य रोवे है , हमर कोइिलया।
हम तो चले परदे स ल ख बाबुल मोरे । तू य रोवे है , हमर कोइिलया।
हम तो चले परदे स ल ख बाबुल मोरे । नंगे पाँव बाबुल भागत आवै।
साजन डोला िलए जाय ल ख बाबुल मोरे ।

इसी का दसरा
ू प।

(ख) काहे को याह वदे स रे ल ख बाबुल मोरे ।


भइया को द है बाबुल महला-दमहला
ु , हम को द है परदे स,
ल ख बाबुल मोरे । म तो बाबुल तोरे पंजड़े क िच ड़या
रात बसे उ ड़ जाऊँ, ल ख बाबुल मोरे । ताक भर मैने गु ड़या जो छोड़ ,
छोड़ दादा िमयां का दे स, ल ख बाबुल मोरे । यार भर मने अ मा जो छोड़ ,
बरना ने काई पछाड़, ल ख बाबुल मोरे , परदा उठा कर जो दे खा
आऐ बेगाने दे स ल ख बाबुल मोरे ।

तो आइए फर लौटते ह हम अमीर खुसरो क जंदगी क ओर। यह अलाउ न


खलजी का दौर चल रहा है । एक रोज राजकुमार ख खाँ चुपचाप रात के
स नाटे म अमीर खुसरो के घर आए। खुसरो ने दे खते ह कहा 'अरे ख खाँ
मेरे नौजवान दो त। इतनी रात आ गए और त हा।' ख खाँ ने कहा, "मेरे बाप
क जंदगी का हाल तो तुमने िलखा और खूब नाम कमाया।" मेर तु हार
इतनी गहर दो ती। वाजा िनजाम के हम दोन चेले। तुम मेरे राजदार। अरे
कुछ मेरा दद दल भी तो सुनो खुसरो? मेर अपनी कलम से मेर खी-सूखी
मोह बत को भी अमर कर दो। लो ये रे शमी माल। इसम ये िच ट ठयाँ ह, ये
पुज, मेरे और दे वलद के, लड़कपन से अब तक के मोह बत नामे। इनम सब कुछ
है । अब म चलता हँू मने अपनी राम कहानी तु ह स पी बचपन से अब तक
क ।"

अमीर खुसरो ने अपने िम और सु तान अलाउ न के बेटे ख खाँ और


गुजरात के राजा कण क बेट दे वल दे वी के ेम कथा ख खाँ वा दे वल रानी
के नाम से ६२ वष क उ म ७१५ ह ी यािन सन ् १३१५ म िलखी। यह
मसनवी 'इ कया' या ' ख नाम' या मु शर शाह के नाम से भी मशहर
ू है । इसम
भारत के ाकृ ितक सौ दय का वणन भी है तथा संगीत के भारतीय पा रभा षक
श द भी ह। खुसरो िलखते ह - "इस बीच गुजरात क फतेह के बाद रानी कँवल
दे वी ने अपनी बेट दे वल दे वी को भी शाह महल म बुलवा िलया। ख खाँ और
दे वल दे वी दोन बचपन से एक साथ पले बढ़े थे।'

चंद साल बाद एक शाम सुलतान अलाउ न खलजी ने जरा ख़फगी (नारजगी)
से बड़ बेगम मिलकाए जहाँ को बुला भेजा। बादशाह से बेगम ने कहा -
"आपको बाहर क तो सब खबर ह। िसयासी शतरं ज से फुसत नह ं िमलता। कुछ
अंदर क भी खबर है । " ख खाँ बड़ा हो रहा है ।" बादशाह बोले - हाँ हाँ। कँवल
रानी आ खर कल तक गुजरात क रानी थी। मेरे बाद ख खाँ ह त त पर
बैठेगा। य न वो लड़क , वो उस लड़क का या नाम है ? हाँ दे वल दे वी, हाँ वो
रानी बने, दोन क शाद मुनािसब रहे गी।" इस पर बेगम ने कहा - मेरे बाई
उलुग खाँ आपके िसपहसालार ह। कल अगर ख खाँ शाह त त पर बैठेगा तो
उसे तलवार क मदद भी चा हए। मेरे भाई क एक खूबसूरत बेट है । म बाप
बेट को पंजाब से बुलवाती हँू । अगर ये र ता हो जाए तो मेरा भाई कल अपने
होने वाले दामाद क हफाजत करे गा और उसक ताकत भी बनेगा। सुलतान
आप गुजरात से कनाटक तक तो खूब भली भाँित सोचते ह ले कन फर आ खर
म नाक के नीचे का नाटक मुझे ह करना पड़ता है ।" बादशाह बेगम सा हबा के
यह ट ट भरे अ फाज सुनकर हँ सते हए
ु बोले - जैसी मिलका जहाँ क मज ।
िसयासी दावपच म आपसे कोई जीत नह ं सकता।' अमीर खुसरो अपनी मानी
( ेम कथा) मसनवी ख खाँ व दे वल रानी म अपने िम ख खाँ क जुबानी
िलखते ह - "मिलक जहाँ अ मा जान ने अपने सगे भाई और उसके खानदान
के खास-खास लोग को अपने खच पर दे हली बुलवा िलया और कई म हन बहत

ह धूम-धाम से मेर शाद क र म अदा क गई। मामू क बेट से मेर शाद
कर द गई। खूब उ साह से मेरा ज मनाया गया, गाने, बजाने, नाच आ द हए

मगर खुिशय क इस आितशबाजी ने मरे अरमान क होली भी जला द । दे वल
द को मुझसे दरू अलग महल म रख दया गया जब क मेरा दल उसके बगैर
बेकरार रहता था। बीच म ये कैसी द वार क आइ दा िमलने न पाऐं।

ख खाँ अपनी मामू क लड़क से शाद होने पर खुश नह ं था। उसका दल


दे वल दे वी म बसा था, गुजरात के राजा कण क बेट । अत: उसके वयोग म वह
बहत
ु बमार पड़ गया। शर र कमजोर पड़ गया व ह डयाँ िनकल आ । शाह
हक म और वै ने उसका बहत
ु इलाज कया मगर सब यथ। कोई लाभ नह ं।
इधर अपने य एवं लाडले पु ख खाँ राजकुमार को स त बमार व दखी

दे ख कर बादशाह अलाउ न खलजी भी बमार पड़ गए। अब उनका सारा समय
शाह आरामगाह म बेतरतीब गुजरने लगा। एक रोज उ ह ने अपनी बेगम को
बुलवाकर उनसे कहा क त काल ख खाँ दे वल दे वी का िनकाह करवा दया
जाए। मिलका जहाँ बेगम ने बादशाह से इसका वायदा कया। ले कन समय को
कुछ और ह मंजूर था। शनशाहे ह द सु तान अलाउ न खलजी क बेपनाह
हक
ु ू मत ख म हई।
ु ख खाँ को कला-ए- वािलयर म कैद कर िलया गया।
अमीर खुसरो ने इस घटना का आँख दे खा ववरण करते हए
ु आगे िलखा है -
'मिलक काफूर' सु तान खलजी को ऐसा िसपहसालार जसक कभी मने इतनी
तार फ क थी। आज दे खो तो अपने बदन क कािलक पर शहजादे के खून क
सुख मल रहा है । लो आधी रात गई। ये रे शमी माल अब खाली सामने रखा
है । ख खाँ मेरा नौजवान दो त, मेरे बचपन का साथी, खबर आई है क मिलक
काफूर ने कैद म उसक आँख िनकाल लीं। ओफ ओ इतना जु म।"

इस बीच अलाउ न खलजी के दसरे


ू पु कुतुबु न ने (१३१६ द ली) मुबारक
शाह खलजी का नकाब इ तयार कर के त ते स तनत पर जलवा कया।
मुशीरे सलतनत मिलक काफूर का ज लाद ने बेरहमी से सर उड़ा दया।

नौजवान बादशाह सलामत ने दरबार शायर अमीर खुसरो को तलब कया और


उनका ओहदा बहाल कया। बादशाह ने खुसरो से कहा "सलामी म कोई ताजा,
मनमोहक और दलकश कसीदा लाओ और हमारे दौर क , हमारे जमाने क
तार ख न म करके सुनाओ तो शाह खजाने से इतना सोना, ह रे , जवाहरात
िमलेगा क कभी अपनी आँख न दे खा होगा और अपने कान न कभी सुना
होगा। शु खरा सोना।"

अमीर खुसरो ने बादशाह के कहे अनुसार मसनवी नुह िसपहर (नौ आसमान)
(७१८ ह ी १३१८ उ ६५) को िलखा। इसके िलए एक हाथी के बराबर सोना
तौल कर खुसरो को बादशाह क तरफ से ईनाम दया गया। इस ऐितहािसक
मसनवी म मुबारक शाह क जीत , उसक बनवाई इमारत , िनजामु न औिलया,
भारतीय नगर , थाओं, धम , लोग , सं कृ ित आ द क जो खोल कर तार फ, राज
व जा के कत य और हक, सू फय क आलौ कक व द य ेम प ित,
शाहजादा मुह मद क ज म कुंडली (इससे अमीर खुसरो के योितष ान का
पता चलता है ।) आ द ह। आठव अ याय म इ के हक क को चौगान और गद
के तीक ारा प कया गया है । मसनवी के हर अ याय म नए छं द ह
जनम कुछ ऐसे ह जनका योग खुसरो के पूव कसी ने कया ह नह ं था।
जैसे मुतका रब, मुस मन, सािलम आ द। ह दवी का ज तथा उसम िलखने
पर गव।

खुसरो अलाउ न के दसरे


ू पु कुतुबु न मुबारक शाह के वषय म िलखते ह -
'चलो इस मंचले को भी चलते -चालते दे ख लेते ह। इसे भी खुश रखना होगा,
बहत
ु होिशयार से। लड़का है । ऐश पसंद है । अभी से नशे से धु पड़ा रहता है ।
कह ं द ु मन के हाथ म न खेल जाए। मेरे वाजा से खार न खाए। कह ं अपने
अंधे भाई ख खाँ को न सताए। म उसके कर ब रहँू । उसे फरे ब म, आने से
होिशयार रखूँ। उसे छल-कपट करने से रोकूँ। हु म हआ
ु है द खन म जाने वाली
फौज के साथ रहो। दे हली म दे विगर तक, तीन म हने का सफर। गम , सद ,
बरसात, जंगल, पहाड़, द रया, बीमा रयाँ, बरबा दयाँ। घोड़े क पीठ पर बैठकर शेर
कहँू गा। इस बार म नौजवान बादशाह के कान म घुमा फरा के काम क बात
डालूँगा। ये फौज एक जुनून का सफर है । तरह-तरह क जबान, उनके तौर-तर के,
जुदा जुदा खाने और गाने। सच पूछो तो ये ह दसातान
ु क रं गारं ग सर ज़मीन
बड़ ह मनमोहक है । आदमी यहाँ का जह न, हनर
ु मंद, हाथ का काम करने वाले
बेिमसाल, एक से एक नाजुक शाल और बावफा नमक न, या कंधार या
समरकंद। िमठास और नमक क िमलवाट दे खनी हो तो यहाँ िमलेगी। सलोने
साँवले लोग। दिनया
ु भर के फल, आम, अंजीर, केले , पान, फूल म महक, बाग म
चहक, हाथी क दानाई और मोर क जेबाई, दमाग तेज, िम ट गुल रे ज, िसतार
का इ म, योितष व ा, फलसफे का मजा और फर िस (शू य, जीरो)। िस
हमारे ह द ु तािनय ने ईजाद कया, दिनया
ु को दया। ये गोरे लोग। ये लोग
अपनी खाल के रं ग पे या अकड़ते ह। आँख क पुतली म तो याह होती है ।
याह से रोशनी है । बाल क याह से हु न है और हाँ ह द ु तान क पुरानी
जबान सं कृ त, दिनया
ु क जबान से बढ़कर मालामाल और हमार जो है
वािलयार ह दवी, मेर माँ क भाषा बेिमसाल। दे विगर द कन के इस ल बे
सफर म ये सब म िलखता जाता हँू थम थम कर। बादशाह दे हली पहँु च कर
दरबार करे गा, फतेह का ज मानएगा। मेरा कलाम सुना जाएगा। म ये अपनी
मसनवी 'नुह िसपहर' (नवाँ आसमान) ये पेश क गा बादशाह के स मुख। दिनया

को अपना वतन ह द ु तान ऐसे दखा दँ ग
ू ा क तीन सौ साल पहले इितहासकार
अल ब नी ने या दखाया होगा?"

इधर वािलयर के कले म वजय मं दर म ख खाँ व दे वल रानी एक साथ


कैद ह, बंद ह। कुतुब न मुबारक शाह भी मिलक काफूर क तरह ख खाँ और
दे वल दे वी के इ क के स त खलाफ था। उसने कारागार म अपने भाई को डाँटते
हए
ु , एक खत भेज कर कहलवा भेजा - "तुम मेरे बाप के नालायक बड़े बेटे,
खलजी शहजादे हो कर एक कनीज एक बांद के पांव पर सर रखते हो। उसे
बेवजह सर चढ़ाते हो। खानदाने शाह का नाम डु बाते हो। गुजरात को हमने बतौर
शमशीर फतह कया था। दे वल रानी हमार कैद है , कनीज है , बांद है । तुम उसे
सर चढ़ाते हो। शमनाक ख खाँ शहजादे , बेहद शमनाक। अगर तु ह अपना
सर अजीज है तो उस ब तमीज लड़क उस बाँद उस कनीज को यहाँ भेज दो,
फौरन, हमारे आदिमय के साथ, वरना?" इस खत का ख खाँ व दे वल दे वी पर
कोई असर नह ं हआ।
ु फलत: बादशाह के हु म से दोन का क ल कर दया
गया। इस घटना के साथ ह खुसरो क मसनवी दे वल रानी ख खाँ, दो ेिमय
क कहानी ददनाक अंजाम के साथ समा हई।
ु इस इ कया व ऐितहािसक
मसनवी म पहली बार अमीर खुसरो ने भारतीय नार का बेहद ह सु दर िच ण
कया है । इस वषय पर डॉ. ान चंद जैन ने लछमी नारायन शफ क के
चमिन तान-ए-शुअरा (११७५ ह ी म संकिलत) से अमीर खुसरो का एक दोहा
उ त
ृ कया है । हाशमी दकनी के अनुवाद म ह द म ेम क क पना का
उ लेख करते हए
ु 'शफ क' ने अमीर खुसरो का एक फारसी शेर और उसी वषय
का उनका दोहा अ त
ृ कया है -

"खुसरवा दर इ क बाजी कम ज ह द ू जन मबाश कज़


बराए मुदा मी सोजंद जान-ए-खेस रा।"

अथात ऐ खुसरो य द ेम करना है तो कर पर ऐसा ेम कर जैसा ह द ू नार


करती है जो पित के मरने पर जल जाती है यािन अपना सव यौछावर कर
दे ती है । इस फारसी शेर का अमीर खुसरो ारा िल खत ह दवी दोहा -

"खुसरो ऐसी पीत कर जैसे ह द ू जोय,


पूत पराए कारने जल जल कोयल होय।"

इस दोहे म ऐसी, जैसे, पराए, जल-जल प त: खड़ बोली के त व ह।


आइए अब पुन: खुसरो के जीवन काल म ेवश कर। तो हम बात कर रहे थे
बादशाह कुतुतबु न मुबारक शाह खलजी क । वह बेहद ह घमंड , मग र, और
जािलम वभाव का था। कुछ राजदरबा रय ने जो अमीर खुसरो क शोहरत से
जलते थे ने बादशाह को खुसरो के गु हजरत िनजामु न िच ती के व
भड़का दया। एक दन दरबार म बादशाह ने जरा स ती से अमीर खुसरो से
कया - " य शायर खुसरो, ये तु हारे पीर िनजामु न औिलया कस नशे
म ह? य वे आज तक हमारे सलाम को हा जर नह ं हए।
ु " खुसरो ने मौके क
नज़ाकत को भाँपते हए
ु , फौरन स भल कर कहा - 'हजू
ु र उ हे इबादत से फुसत
कहाँ? अ लाह म दन रात मशगूल रहते ह। अ लाह के ज रत मंद बंदे उ ह हर
व खुबहो-शाम घेरे रहते ह सरकार।" यह सुनकर बादशाह ने जोर से कड़क
आवाज म अमीर खुसरो क बात को अनसुना करते हए
ु कहा, "हमारा हु म है
अमीर खुसरो के पीर से, िनजामु न फक र से कह दो क चाँद रात आती है ।
अगर नए चाँद के बाद जु मा क सुबह दरबार म हमारे सामने सलामी के िलए
हा जर न हए
ु तो दसरे
ू दन उनका सर हा जर कया जाएगा।" खुसरो घबराते
हए
ु बोले मगर हजू
ु र! 'इससे पहले क खुसरो नासमझ बादशाह को कुछ समझा
पाते उसने 'हु म क तामील हो' कह कर दरबार बखा त कर दया।

सन १३२० का साल है । चाँद रात आई। गरमी और घुटन क रात। आधी रात
को कला सीर क छत पर खुले आसमान के नीचे, नशे म धुत बादशाह को
उसके एक खास जवान (मं ी) खुसरो खाँ गुजराती ने मार डाला। उसने बेहद
फुत से बादशाह का सर काट कर नीचे फ◌ै
् ◌ंक दया। वाजा िनजामु न उस
व नमाज़ पढ़ रहे थे। उनका सर अ लाह के सजदे म झुका हआ
ु था। इसी के
साथ खलजी वंश का रा य एक अिभशाप क भाँित समा हो गया। चंद म हने
न गुजरे थे क पंजाब म एक अनपढ़, स तगीर और दलेर फौजी िसपहसालार
स र वष य गाजी खाँ उफ गयासु न तुगलक (सन १३२१ ई.) ने आकर द ली
पर अिधकार कर िलया। चालीस अमीर क काउं िसल ने इस तुगलक अमीर को
सुलतान बना दया। जब शाह खजाना खुलवाया गया तो वह एकदम खाली
िनकला। गयासु न तुगलक ने फौरन एक आपातकालीन बैठक बुलवाई। बादशाह
ने बेहद गु से म अपने वजीर से पूछा - " य ब शी। दो सौ साल का जमा
कया हआ
ु शाह खजाना खाली य है ?" ब शी ने कहा "हजू
ु र द ली पर
आपक चढ़ाई से पहले सब का सब वाँट दया गया।" बादशाह ने पूछा " कस
कस के घर भेजा?" ब शी बोला 'हजू
ु र! अमीर, फौजदार , मं य और फक र के
घर।' बादशाह ने फौरन हु मनामा जार कया - "अमीर और फौजदार हा जर
ह । और जतना माल पहँु चा हो सब सरकार खजाने म पुन: वापस कर द।"
ब शी ने पूछा - "जहाँपनाह! और पीर और फक र के िलए या हु म है ?"
बादशाह गु से म बोला - 'पीर और फक र? ये सब झूठे, म कार, जालसाज,
धोखेबाज होते ह। इनके ईमान का कोई भरोसा नह ं। पैसे के लालच म दन
रात झूठ बोलते ह। सबसे एक एक तनगा उगलवा िलया जाए।' ब शी ने कहा -
'मगर हजू
ु र! सलामत रह। वाजा िनजामु न औिलया क खानकाह म तो रोज
रात को झाड़ू द जाती है । वहाँ आज का पहँु चा माल, कल क सुबह नह ं
दखता।' बादशाह ोध से आग-बबूला हो उठा। आँखे लाल कए वह स त
आवाज म बोला - 'कल क सुबह म उ ह दे ख लूँगा। कह दो क मे र फतेह से
पहले शाह खजाने का जतना ह सा उ ह पहँु चा हो, फौरन वापस कर द वरना
सजाए मौत द जाएगी। दो हजार तनके रोज का खाना पकवाता है । हजार
आदिमय क खलाया जाता है । ह द,ू मुसलमान, अमीर, फक र, दरवेश, बैरागी,
िभखार सब एक जगह खाते ह। यह या तमाशा है ? यह या सा जश है ? रोज
रात को गाने बजाने क मह फल होती है । खूब नाच गाना होता है । यह कैसा
अजीब षडयं है शाह दरबार के खलाफ। ज र कोई गहर सा जश है । फक र
म बादशाहत करता है । अंदर का हाल त काल मालूम कया जाए।" एक दरबार
ने आग म घी का काम करते हए
ु बादशाह के कान भरे - हजू
ु र मुनािसब याल
फरमाते ह। अमीर खुसरो से दरया त कर। वो रोजाना रात गए तक अपने पीर
क खानकाह म हा जर दया करते ह।" बादशाह ने जवाब दया - 'हम फौजी
आदमी ह। हम न पीर से गरज है न शायर से मतलब। कह दो िनजामु न से,
क अपना शाह द तरखान, ताम-झाम कह ं और ले जाए। कह दो क शाह
फौज अवध और बंगाल क तरफ कूच करती है । हम द ु मन का कड़ा व स त
सामना है । हमार दे हली को वापसी तक फक र िनजामु न औिलया शहर खाली
कर के अपने मुर द के साथ कसी और तरफ चला जाए। वाजा का मुर द
राजक व शायर अमीर खुसरो ल कर के साथ जाएगा। और आ खर माल भर
बाद जब गयासु न तुगलक फतेह के न कारे बजाता हआ
ु वजय उ सव मनाता
हआ
ु जमुना नद के कनारे द ली शहर के सामने ब क यासपुरा क
खानकाह िनजामु न के सामने आ पहँु चा?

िनजामु न िच ती के मुर द को जैसे ह ये समाचार िमला, वे उनसे फौरन िमल


और कहा - 'हमार जान पर रहम क जए पीर साहब। शहजादे जूना खाँ ने
जमुना पार इ तकबाल के िलए महल खड़ा कया है । कल सुबह वह उसम
उतरे गा। द ली म उसके इ तकबाल को िसफ एक रात बाक है हजू
ु र। वाजा
साहब हम अपनी जान से यादा आपक जान अज़ीज़ है । उसके द ली म
उतरने से पहले ह आप फौरन यहाँ से िनकल चिलए।" यह सब सुनकर भी
वाजा के चेहरे पर कोई िशकन न आई। बेहद इतिमनान व तस लीपूवक वह
बोले - 'हम कसी से या लेना दे ना। हम शहर के एक कनारे पड़े ह। ख के
खुदा क खदमत करते ह। सालमती क दआ
ु करते ह। हनोज द ली दरू त।
(अथात द ली अभी दरू है ।)

सुबह जैसे ह गयासु न तुगलक ने महल म वेश कया, उसक छत िगर पड़


और बादशाह छत के नीचे दब कर मर गया। सन १३२५ का वष है । वाजा
िनजामु न क बीमार क खबर पहँु च रह थीं। जस समय वाजा िनजामु न
िच ती का दे हांत हआ
ु , उस समय अमीर खुसरो बंगाल से दे हली लौट रहे थे।
द ली पहँु चकर जब उ ह ने अपने पीर क मृ यु का समाचार सुना तो वह
पागल क भाँित वहाँ से िच लाते हए
ु उनक क पर दौड़ कर िगर पड़े और
बेहद क ण भर आवाज म यह दोहा पढ़ा -

"गोर सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।


चलो खुसरो घर आपने , रै न भई चहँु दे स।।"
इनके अन तर अमीर खुसरो के पास जो कुछ भी धन-स प थी उसे लुटा
दया। गर ब और यतीम म बाँट दया और वंय उनक (गु िनजामु न
िच ती) क मजार पर काला कपड़ा पहनकर शोक म जा बैठे। रोते-रोते बस एक

ह बात कहते थे - क आफताब (सूरज) जमीन म छप गया है और उसक
करण िसर धुनती फर। गु के दे हांत से उनको इतना अिधक हा दक आघात
पहँु चा क छ: मास के अ दर उनका भी दे हांत १८ श वाल ७२५ ह ी (१३२५
ई.) को हो गया। उनक क भी द ली म उनके गु के बगल म ह है । आज
भी उनक मजार पर उस होता है और मेला लगता है । यहाँ ह द-ू मु लम तथा
अ य धम के लोग एक त हो कर ा पु प अ पत करते ह।

संगीत के े म भी अमीर खुसरो का योगदान अ व मरणीय है । िसतार, ढोलक


और तबला का अ व कार अमीर ने ह कया। ह द ु तानी संगीत म तराना का
अ व कार भी खुसरो ने कया। खुसरो ने ईरानी और ह द ु तानी राग के िम ण
से कई हजार राग बनाए। जैसे - कौल, क बाना, साजिगर , फरगाना, इशाक,
तवा फक, नौरोज कबीर, जलफ, सनम-गनम, शहाना, अडाना, आ द। उ ह ने अपने
कई सांगीितक िश य तैयार कए जैसे तुमत खातून, नुसरत नतक , आ द। पद
गायक क जगह अमीर खुसरो ने याल गायन शैली का अ व कार कया।
खुसरो ने पूव चिलत क वाली और गजल को एक नया गाने का अंदाज दया।
पु तक म ा कथन या तावना िलखने का चलन भी खुसरो ने शु कया।
अमीर खुसरो ने फारसी- ह दवी का थम श द कोष 'खािलक बार ' िलखा और
वो भी क वता के प म।

ंथ सूिच - अमीर खुसरो ारा िल खत फारसी ंथ -

1. तुहका-तुस-िस (बचपन का तोहफा) पहला द वान ६७१ ह ी सन १२७१


ई., उ १६-१९ वष तथा ३२-३४ वष।
2. वसतुल हयात : (जीवन का म य भाग) दसरा
ू द वान, ६८४ ह ी
क वताऐं। उ १९-२४ वष तथा ३२-३४ वष।
3. गुर-तुल-कमाल (शु ल प क पहली रात) ६९३ ह ी उ ३४-४३ वष
तीसरा व सबसे बड़ा एवं सव े द वान। इसम ९ मसन वयाँ ह।
4. ब कया न कया (बाक साफ) चौथा द वना उ ४४-६४ वष। ७१६ ह ी।
5. िनहातयुल कमाल (कमाल क सीमा) पाँचवाँ और अंितम द वान।

मसन वयाँ

१. करान-उस-सादै न (दो शुभ िसतार का िमलन) बादशाह बुगरा खाँ और


उसके पु कैकुबाद के झगड़े और फर समझौते पर। ६८८ ह ी। इसे मसनवी
दर िसफत-ऐ-दे हली भी कहते ह।

२. िम ताहल
ु -फुतूह ( वजय क कुंजी) ६९० ह ी। जलालु न फ़रोज खलजी
क चार वजय का वणन। मिलक छ जू क बगावत।

३. दवल रानी ख खाँ या इ कया या ख नाम: (७१५ ह ी) गुजराती के


राजा कण क बेट दे वल रानी और अलाउ न खलजी के बड़े पु शहजादे ख
खाँ के ेम क कथा। इसम भारतीय नार का बेहद सु दर िच ण खुसरो ने
तुत कया है ।

४. नुह िसपहर (नौ आसमान) ७१८ ह ी।

अलाउ न के बेटे कुतुबु न मुबारक शाह के कहने से खुसरो ने इस िलखा।


बादशाह ने इसके िलए एक हाथी के बराबर सोना तौल कर खुसरो को दया।
ह द ु तान के र ित रवाज , सं कृ ित, कृ ित। पशु-प य वा लोग क तार फ।

५. तुगलक नामा

अपनी मृ यु से कुछ दन पूव िलखी। ऐितहािसक मसनवी।


६. ख सा-ए-खुसरो (पाँच छोट मसन वयाँ)

क. ह त-ब ह त
ख. मतला उल अनवार
ग. शीर व खुसरो
घ. मजनू व लैला
ञ. आइने-िसक दर

क व िनजामी के कुसरो के जवाब म ६९८-७०१ ह ी के बीच खुसरो ने िलखी।

७. मसनवी िशकायत नामा मोिमन प प टयाली।

अपने ज म थान क ख ता हालत पर गहरा दख


ु खुसरो ने य कया। यह
बाद म िमली है ।

ग रचनाऐं

१. एज़ाजे खुसरवी (खुसरो के कारनामे), उ ७० वष, ७१९ ह ी, भाषा शा त।

२. खजाइन-उल-फुतूह या तार खे-अलाई (फ़तह का ख़जाना) ६९५ ह ी से ७११


ह ी तक। अलाउ न के शासन बंध का ववरण।

३. अफजलुल फ़वायद (सबसे अ छा फ़ायदा) गु हज़रत िनजामु न क


िश ाऐं।

४. क सा चार दरवेश (कहानी सं ह) - क स क यह पु तक खुसरो ने अपने


गु िनजामु न औिलया को सुनाने के िलए िलखी।

५. राहतुल मु ह बीन - ह िनजामु न औिलया के उपदे श का सं ह।


६. इनशाए खुसरो - यह प का संकलन है ।

७. मकाल: तार खुल खुलफा - टामस विलयम ने ओ रयंटल बाइ ै फकल


श दकोष म खुसरो के संग म इसका उ ले ख कया है । ३५४ ई.। इसम
खलीफा, सू फय , दरवेश व विलय आ द धािमक य य के वृ ा त है ।

ह द रचनाऐं (खुसरो ारा िल खत) -

१. खािलक बार ( ह दवी-फारसी श द कोष, क वता के प म)

२. द वाने ह दवी - आम आदमी के िलए। पहे िलयाँ, सावन, बरखा, शाद आ द


गीत।

३. हालात-ए-क है या- अपने गु िनजामु न ारा व न म भगवान ी कृ ण


के दशन दे ने के उपरा त इनके आदे श पर खुसरो ने ी कृ ण क तुित म इसे
ह दवी भाषा म िलखा।

आ - अमीर खुसरो से संबंिधत अ य लोग ारा िल खत पु तक (उद,ू ह द ,


अं ेजी, फारसी) -

१) फवायद उल फवायद - हसन आला िस जी (अमीर खुसरो के जगर दो त)


ह. िनजामु न औिलया क िश ाऐं।

(२) तार खे फरोज़ भाह - जयाउ न बन ।

(३) िसया-उल-औिलया - अमीर खुद करमानी।

(४) तार खे फर ता - मौला कािसम फ रशता।


(५) मदन - उल - मूिसक - मोह मद करम इमाम खान।

(६) आबे हयात - मोह मद हसै


ु न आजाद।

(७) िनकातुशओरा
् - मीर तक मीर

(८) राग दपंण - फक ला।

(९) बनी - वा जद अली शाह।

(१०) सौतुल मुबारक - वा जद अली शाह।

(११) हयात-ऐ-खुसरो - सईद अहमद मरहरवी।

(१२) हयाते खुसरो - मौलाना िशबली नोमानी।

(१३) फरहं ग-ए-आस फया - मौलवी सईद अहमद दहलवी।

(१४) जवाहर-ए-खुसरवी (उद)ू मोह मद अमीन अ बासी िचरै यकोट ।

(१५) लाइफ आ◌ॅफ अमीर खुसरो - ो. मोह मद हबीब

(१६) सू फया तुल औिलया - दारा िशकोह।

(१७) तज़ ा-ए-उ माए- ह द - रहमान अली।

(१८) शे ल आजम - मौ. िश ली नौमानी।

(१९) उद-ू ए-कद म - श भु ला कादर ।

(२०) खुसरो क ह द क वता - बृज र दास, नािगर चा रणी सभा काशी।

(२१) लाइफ ए ड वकस आफ अमीर खुसरो - मौ. वह द िमजा।


(२२) हयात-ए-अमीर खुसरो - नक मोह मद खान खुरजवी।

(२३) ह द ु तान अमीर खुसरो क नज़र म - सईद सबाहु न अ दररहमान।


(२४) खुसरो का हनी सफर - डॉ. यो अंसार ।

(२५) खुसरो शनाशी - डॉ. यो अंसार व अबुल फैज सहर।

(२६) अमीर खुसरो - शेख सलीम अहमद।

(२७) अमीर खुसरो - अश म सयानी।

(२८) अमीर खुसरो दहलवी - मुमताज हसै


ु न, पा क तान।

(२९) मूसक हजया अमीर खुसरो - डॉ. चाँद खाँ।

(३०) अमीर खुसरो बहै िसयत ह द शायर - डॉ. सफदर आह।

(३१) अमीर खुसरो ए ड इं डयन र डल ु


े ड शन - वी.पी. वटक।

(३२) अमीर खुसरो और उनक ह द शायर - शुजात अली संदेहलवी।

(३३) अमीर खुसरो का ह दवी कलाम - बिलन श ंगर ित स हत। डॉ. गोपी
चंद नारं ग। सीमांत काशन।

(३४) अमीर खुसरो संपादक राज नारायन राय।

(३५) अमीर खुसरो - सईद गुलाम शमनानी।

(३६) अमीर खुसरो मेमो रयल वा यूम - काशन वभाग।

(३७) खुसरो क ह द क वता - िम बंध।ु


(३८) अमीर खुसरो और उनक ह दवी रचनाऐं - डॉ. भोलानाथ ितवार ।

(३९) खुसरो व शीर - मसूद कुरे शी।

(४०) अमीर खुसरो और ह द ु तान डॉ. ताराचंद।

(४१) खुसरो नामा - ो. मुजीब र वी।

(४२) तज करा - ए - दौलत शाह समरकंद ।

(४३) अमीर खुसरो एस ए जीिनयस सबाहु न अ दरु रहमान, इदारा-ए-


अद बयात-ए-दे हली।

(४४) गनयत उल मुनया - शाहब सरमद ।

(४५) इं डयन यू जक - ठाकुर जयदे व िसंह। संगीत नाटक रसच एकेडमी।

(४६) मौिसक -ए-फरे बी, मरकज़-ए-मुतालयात-ए-हमाहं मी-ए- रसच एकेडमी।

(४७) लुगात-नामा-ए-दे हखुदा, अली अकबर दे हखुदा संपादक डॉ. मुइन व अ य,


तेहरान, १३३५, १३३९ ई.। वा यूम ३४ व ३९

(४८) खुसरो दे िच रसमे टक, लाइफ, ह ए ड व स आ◌ॅफ तूती-ए- ह द,


रयाज जाफर, २००३, एजुकेशनल प ल कंशग हाउस, द ली।

(४९) अमीर खुसरो, सोहनपाल सुमना ट, काशन वभाग।

(५०) भारत क महान वभूित अमीर खुसरो, डॉ. परमानंद पांचाल ह द बुक
सटर।

(५१) ह द ु तानी जुबान, अमीर खुसरो न बर एड टर डॉ. अ द ु स ार दलवी,


ह द ु तानी चार सभा महा मा गाँधी मेमो रयल रसच सटर ब बई।
(५२) रा ीय एकता के अ दत
ू अमीर खुसरो डॉ. मिलक मोह मद पीता बर
प ल कंशग कंपनी द ली।

(५३) अमीर खुसरो संपादक सुरे ितवार , नवाँ सं करण, उ र दे श सरकार,


सूचना वभाग लखनऊ।

(५४) खािलक बार सूरजमल कम न खाँ पटना, १८७० ई.।

(५५) ह द सा ह य सा रणी, ह द म सन १९६४ के अंत तक कािशत सभी


ंथ का वै ािनक या अनुसार वग कृ त एवं म ब ववरण, भाग-१
पीता बर नारायण एवं भा करन नारायण, व े रानंद सं थान, होिशयार पुर,
२०२७ व.।

(५६) तज़ कहद-ए-खुसरवी - हसन िनजामी, दरगाह िनजामु न (पो ट आ◌ॅ फस


के पास)

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