Professional Documents
Culture Documents
(गुरु श्लोक) आचार्य श्री नरेश प्रसाद नौटियाल जी द्वारा लिखित 9992426192 गु...
(गुरु श्लोक) आचार्य श्री नरेश प्रसाद नौटियाल जी द्वारा लिखित 9992426192 गु...
(गुरु श्लोक) आचार्य श्री नरेश प्रसाद नौटियाल जी द्वारा लिखित 9992426192 गु...
भावाथ :
गु ा है, गु व णु है, गु ह शंकर है; गु ह सा ात् पर है; उन स को णाम ।
धम ो धमकता च सदा धमपरायणः । त वे यः सवशा ाथादे शको गु यते ॥
भावाथ :
जो सर को माद करने से रोकते ह, वयं न पाप रा ते से चलते ह, हत और क याण क कामना
रखनेवाले को त वबोध करते ह, उ ह गु कहते ह ।
नीचं श यासनं चा य सवदा गु सं नधौ । गुरो तु च ु वषये न यथे ासनो भवेत् ॥
भावाथ :
गु के पास हमेशा उनसे छोटे आसन पे बैठना चा हए । गु आते ए दखे, तब अपनी मनमानी से नह
बैठना चा हए ।
कम ब नो े न शा को ट शतेन च । लभा च व ा तः वना गु कृपां परम् ॥
भावाथ :
ब त कहने से या ? करोड शा से भी या ? च क परम् शां त, गु के बना मलना लभ है ।
ेरकः सूचक ैव वाचको दशक तथा । श को बोधक ैव षडेते गुरवः मृताः ॥
भावाथ :
ेरणा दे नेवाले, सूचन दे नेवाले, (सच) बतानेवाले, (रा ता) दखानेवाले, श ा दे नेवाले, और बोध
करानेवाले – ये सब गु समान है ।
गुकार व धकार तु कार तेज उ यते । अ धकार नरोध वात् गु र य भधीयते ॥
भावाथ :
'गु'कार याने अंधकार, और ' 'कार याने तेज; जो अंधकार का ( ान का काश दे कर) नरोध करता है,
वही गु कहा जाता है ।
शरीरं चैव वाचं च बु य मनां स च । नय य ा लः त ेत् वी माणो गुरोमुखम् ॥
भावाथ :
शरीर, वाणी, बु , इं य और मन को संयम म रखकर, हाथ जोडकर गु के स मुख दे खना चा हए
Translate