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“शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य

१॰ इस साधना को ककसी भी जाकि, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकिी है ।


२॰ इन मन्त्ोों की साधना में गुरु की इिनी आवश्यकिा नहीों रहिी, क्ोोंकक इनके प्रविणक स्वयों
कसद्ध साधक रहे हैं । इिने पर भी कोई कनष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, िो कोई आपकि नहीों
क्ोोंकक ककसी होनेवाले कवक्षेप से वह बचा सकिा है ।
३॰ साधना करिे समय ककसी भी रों ग की धुली हुई धोिी पहनी जा सकिी है िथा ककसी भी
रों ग का आसन उपयोग में कलया जा सकिा है ।
४॰ साधना में जब िक मन्त्-जप चले घी या मीठे िेल का दीपक प्रज्वकलि रखना चाकहए।
एक ही दीपक के सामने कई मन्त्ोों की साधना की जा सकिी है ।
५॰ अगरबिी या धूप ककसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकिी है , ककन्तु शाबर-मन्त्-साधना में
गूगल िथा लोबान की अगरबिी या धूप की कवशेष महिा मानी गई है ।
६॰ जहााँ ‘कदशा’ का कनदे श न हो, वहााँ पूवण या उिर कदशा की ओर मुख करके साधना करनी
चाकहए। मारर्, उच्चाटन आकद दकक्षर्ाकभमुख होकर करें । मुसलमानी मन्त्ोों की साधना
पकिमाकभमुख होकर करें ।
७॰ जहााँ ‘माला’ का कनदे श न हो, वहााँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकिे हैं । ‘रुद्राक्ष की
माला सवोिम होिी है । वैष्णव दे विाओों के कवषय में ‘िुलसी’ की माला िथा मुसलमानी

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