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SAFED AK-SHWETARK सफ़ेद आक- ेताक


:: (साधना-उपचार)
सफ़ेद आक- ेताक :: (साधना-उपचार)
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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इसको अश, मदार, अकौआ आ द भी कहते है और इसको वान प तक पारद क सं ा द गयी है। अनेक रोग से मु
म  इस पौधे   का ब त बड़ा उपयोग है। मदार क तीन जा तयाँ पाई जाती ह :- र ाक, राजाक और ेताक। भगवान्
शव पर अपण करने वाला सबसे य पु प माना गया है। शव रा म मं दर को इन पु प के माला से सजाया जाता
है। शवप चा री ोतम् “म दारपु प ब पु प सुपू जताय” म भी इसका वणन है।  

तं े म ेताक जा त के मदार क ब त उपयो गता बताई गयी है। तीन चार वष से अ धक पुराने पौधे क कुछ जड़
कभी-कभी गणेश जी क श ल ले लेती ह। गणेश जी को ऋ -स व बु का दाता माना जाता है और ेताक को
सौभा यदायक व स दान करने वाला माना जाता है। ेताक क जड़ को तं योग एवं सुख-समृ हेतु ब त
उपयोगी मानी जाती है। गु पु य न म इस जड़ का उपयोग ब त ही शुभ होता है। 

ेताक गणप त क तमा को पूव दशा म  था पत करना चा हए।  ेताक क जड़ क माला से गणप त के गणेश मं
का जप करने से सभी मनोकामनाएँ  स होती ह।  ेताक गणेश पूजन म लाल व , लाल आसान, लाल पु प, लाल
चंदन, मूंगा अथवा ा क माला का योग होना चा हए। नेवै म ल अ पत करने चा हये तथा “ऊँ व तु डाय म्”
मं का जप करते ए ावभ भाव के साथ ेताक क पूजा क  जानी चा हये। 

त शा  अनुसार घर म इस तमा को था पत करने से ऋ -स   क ा त होती है। इस तमा का न य पूजन


करने से भ को धन-धा य क ा त होती है तथा ल मी जी का नवास होता है। इसके पूजन ारा श ु भय समा त हो
जाता है। ेताक तमा के सामने न य गणप त जी का म जाप करने से गणश जी  का आशीवाद ा त होता है तथा
उनक कृपा बनी रहती है। 

द पावली के दन ल मी पूजन के साथ ही ेताक गणेश जी का पूजन व अथवशीष का पाठ करने से बंधन र होते ह
और काय म आई कावट वत: ही र हो जाती ह। धन क ा त हेतु ेताक  क तमा को द पावली क रा म
षडोषोपचार पूजन करना चा हए।   ेताक गणेश साधना अनेक कार क ज टलतम साधना म सवा धक सरल एवं
सुर त साधना है।  
ेताक गणप त सम त कार के व न के नाश के लए सवपूजनीय ह।  ेताक गणप त क व धवत थापना और
पूजन से सम त काय साधानाएँ आ द शी न व न संप होते ह।   ेताक-गणेश के स मुख म का त दन 10 माला
‘जप’ करना चा हए तथा 

“ॐ नमो ह त-मुखाय ल बोदराय उ छ -महा मने आं ल ं घे घे उ छ ाय वाहा” 

साधना से सभी इ -काय स होते ह। 

मदार तु त इस मं :: 

चतुभुज र नुं ने ं पाशाकुशौ मोदरक पा द तो; 

करैदधयानं सरसी ह थं गणा ध नामंरा श चू यडमीडे।

गणेशोपासना म लाल व धारण करके लाल आसन, लाल पु प, लाल चंदन, लाल र न-उपर न क माला से पूजन तथा
नैवे म गुड़ तथा मूँगके ल अपण करके “ऊँ व तु डाय म” का जाप कर। 

(1.1). सफेद आक के फूल से भगवान् शव क पूजा क जाती है। इसके डोडे भी शव लग पर चढ़ाये जाते ह। 

(1.2). आक क जड़ र वपु य न म लाल कपड़े म लपेटकर घर म रखने से घर म सुख-शां त तथा समृ बनी रहेती
है ।

(1.3). ेताक के नीचे बैठकर त दन साधना क जाती है। “ऊँ गं गणपतये नमः:, ॐ नमः शवाय का जाप करने
से लाभ मलेगा।

(1.4). ेताक क जड़, गोरोचन तथा गोघृत म घसकर तलक, वशीकरण तथा स मोहन म उपयोगी है।

(1.5). हो लका म ेताक क जड़ तथा छोटे से एक शंख क राख बनाकर न य तलक करने से, भ से र ा होती
है।

(1.6). ेताक क जड़ से ाकृ तक प म उपल ध  गणप त क तमा को  न य वाघास अपण कर ापूवक
गणप त जी का यान कया करने से  येक काय म सफलता मल सकती है तथा सब कार के व न से र ा तो होगी
ही होगी।

(1.7). ेताक के प े पर श ु का नाम इसके ही ध से लखकर जमीन म दबा दे ने से वह शाँत रहेगा। इस प े को जल
वाह कर द तो श ु पीछा छोड़ दे गा। 

(1.8). ेताक के डोडे  से नकलने वाली ई क ब ी तल के तेल के द पक म जलाकर माँ भगवती ल मी क साधना
करने से माँ क कृपा ा त होती है।

(1.9). ेताक क जड़, मूंगा, फटकरी, लहसुन तथा मोर का पंख एक थैली म स कर
बनाया गया  नजरब ब चे को  सोते म च कना, डरना, रोना आ द म यह ब त
लाभदायक स होगा।

(1.10). सफेद आक क जड़   ा त गणेश जी क तमा क , गणेश चतुथ से अन त


चतुदशी तक न य “ऊँ गं गणपतये नम:” मं के जाप से पूजा करने पर, सुख, समृ
और धन क ा त होगी तथा मनोवां छत कामनाएँ पूण ह गी।
(1.11) . ेताक ृ पर न य ‘ऊँ नमो व नहराय गं गणपतये नमः’ मं जप करते ए म त जल से अ य दया कर,
ह शांत ह गे।

(1.12). स र म त चावल के आसन पर ेताक गणप त जी को वराजमान कर ह द , च दन, धूप, द प, नैवे से


दे व क पूजा कर। न य गणप त तो का पाठ कया कर, धन-धा य का अभाव नह रहेगा।

(1.13). ेताक क जड़ “ऊँ नमो अ न पाय नमः” मं जपकर पास रखने से ने से  या ा म घटना का भय नह
रहता।

(1.14).  ेताक क स मधा और प के साथ “ऊँ जूं सः या  ऊँ  ं ाय नमः” मं का जाप करते ए हवन करने
से रोग, शोक, श ु का नाश स भव है।

(1.15). पू णमा क रा म सफेद आक क जड़ तथा र गुंजा को बकरी के ध म घसकर, तलक करने और 

“ऊँ नमः ेतगा े सवलोक वंशक र ान वशं कु कु (अमुकं) म वशमानय वाहा” 

का जाप करने से स ब धत (अमुक के थान पर उस का नाम जप बोल) वश म हो जायेगा।

(2.1). य द र ववार को पु य न हो तो, पु ष दा हने हाथ म और ी बाँये हाथ म  व धवत  ेताक क जड़ घर


लाकर, पूजन करने और  गूगल क धूप व गौ घृत का द पक इ या द पूण व ध से स प कर, ध व पंचामृत नान
इ या द, षोडशोपचार व ध से पूजन कर, मूल मं से अ ो र सह (1008) जप ारा अ भमं त कर,  धारण
कर, तो सभी काय म यश व वजय ा त होती है। 

(2.2). संतान क इ छा रखने वाली ी को कमर (क टभाग) म ेताक मूल को बांधने से इ छत संतान ा त होती है।

(2.3). र व पु य न म ेताक क जड़ व धवत हण कर अजामू से पीसकर वट बनाकर उसका तलक लगाने से


जगत वशी भूत हो जाता है। 

(2.4). मंजीठ, म था, वच, ेताक क जड़ व अपने शरीर का धर, इसके बराबर कूट लेकर, उसका तलक म तक पर
करने से स मुख  वशीभूत होता है। 

(2.5).  ेताक, धतूरा, बड़, चीता, मूँगा इनका जो तलक करता है उससे श ु भयवीत हो जाता है। 

(2.6).  ेताक क जड़ गु पु य न म व धवत उखाड़ कर बाँई भुजा म बाँधने से भगा ी भी सौभा यवती हो


जाती है। 

(2.7). भुजद ड म  ेताक और मुख म खजुरी, कमर के म य म केतक धारण करने से श का नवारण होता है। 

(2.8). पु य न यु र ववार म व धवत  ेताक क जड़ लाकर घर के खंबे म बांधने से बालक का अ ततुंड रोग र
होता है। 

(2.9). र ववार को पु य न म व धवत   ेताक मूल उखाड़कर लाने व व धवत पूजन कर, अ र शां त के मं से
अ भमं त कर भुजा म धारण करने से ाधवअर का नाश होता है। 

(2.10).  ेताक का  ध, क माष (कु थी) उड़द व क जी व तल इनका चूण बनाकर आक के प े पर रखने से चूहे न
हो जाते है। 
(2.11). मघा न म  ेताक क जड़ मुलैठ के साथ शुभ े म थापन करने से चूहे और मधुम खी का मुख बंधन हो
जाता है। 

(2.12). ेताक क ई से बनी ब ी को कड़वे तेल से मलाकर कर, द पक म जलाने से, घर म खटमल न हो जाते ह।

(2.13).  ेताक, करवीर और पनस क जड़ को पीसकर पैर म लगाने से सप भय र हो जाता है। 

(2.14). दे शांतर म भूत, ेत पशाच इ या द से र ा लये  ेताक क जड़ को व धवत हण करके हाथ म धारण कर। 

(3.1). सभी मनोकामना  क पू त हेतु ेताक गणप त का पूजन बुधवार के दन ारा भ कर। पीले रंग के आसन पर
पीली धोती पहनकर पूव दशा क और मुँ कर बैठ। एक हजार मं त दन के हसाब से 21 दन म, 21 हजार मं
जप, मं स चैत य मूंगे क माला से कर। पूजन म लाल च दन, कनेर क ेर के पु प, केसर, गुड़, अगरब ी, शु घृत
के द पक का योग कर। 

(3.2). घर म ववाह काय, सुख-शा त के लए ेताक गणप त म जाप  योग बुधवार को लाल व , लाल आसन का
योग करके ार भ कर। इ यावन दन म इ यावन हजार म  का जाप कर।  मुँह पूव दशा म हो, माला मूँगे क हो,
साधना समा त पर कुँवारी क या को भोजन कराकर व ा द भेट कर।

(3.3). आकषण-स मोहन  योग हेतु रा  के समय प म दशा म, लाल व -आसन के साथ हक क माला से श नवार
के दन से ारंभ कर पांच दन म पांच हजार जप मं का कर।  पूजा म तेल का द पक, लाल फूल, गुड़ आ द का योग
कर। 

(3.4).  ी आकषण हेतु ेताक गणप त योग, पूव मुख, पीले आसन पर पीला व पहनकर कया जाता है। पूजन म
लाल च दन, क ेर के पु प, अगरब ी, शु घृत का द पक योग होता है। मूँगे क माला से, इ यावन दन म, इ यावन
हजार मं जाप बुधवार से ारंभ कया जाता है।  

(3.5).  थायी प से वदे श म वास करके ववाह करने अथवा अ ववा हत क या का वासी भारतीय से ववाह करके
वदे श म बसने हेतु अथवा वदे श जाने म आ रही कावट  को र करने हेतु ेताक गणप त का योग शु ल प के
बुधवार से ातः काल मु त म ार भ कर। पूव दशा क और लाल ऊनी क बल, पीली धोती के योग के साथ मं
स चैत य मूँगे क माला से 21 दन म सवा लाख मं जाप कर। पूजन म लाल क ेर पु प, घी का द पक, अगरब ी,
केसर, बेसन के ल , लाल व , लकड़ी क चौक का योग कर।  बाइसव  दन हवन कर पाँच कुँवारी क या को
भोजन कराकर व -द णा दे वदा कर।  मूँगे क माला गले म धारण कर। 

(3.6). कज मु हेतु ेताक गणप त का योग बुधवार को लाल व ा द-व तु  के साथ शु कर और 21  दन म
सवा लाख म का जाप कर। मूँग,े ा अथवा फ टक क मं स चैत य माला से कर। साधना के बाद माला
अपने गले म धारण कर।  पूजन म लाल व तु  का योग कर।  गाय के शु  दे शी घी का द पक जलाय। 

(4.1). नौ घंटे तक  ेताक  ध को घी म खरल करके (1:4), उस घी को पौ ष इ य पर लगाने से सात दन म


नस वकार और दौब य न हो जाता है। 

(4.2). पुराने  ेताक क जड़-मूल के अ तम सरे क गाँठ को गणप त मं से स करके तजोरी म रखने पर धन
कभी नह घटता।

(4.3).  ेताक के पके 108 प को सवा सेर गाय के घी म गणप त मं पढ़ते ए एक-एक प ा जलाने, इसके बाद
छानकर 10 ाम त दन, एक पाव बकरी के ध के साथ पीय, तो धातु से उ प नपुंसकता र हो जाती है। यह योग
केवल कुशल वै क सलाह और दे खरेख म करना चा हये। 
(4.4).  ेताक क जड़ को गोरोचन, बच और स र के साथ मलाकर 108 म से स करके तलक करने से
भुवन वशीकृत होता है। 

(4.5). कृ तका न म मारण मं से स करके ेताक तालाब म गाड़ने पर मछ लयाँ मर जाती ह। 

(4.6). कृ तका न म 16 अंगल


ु क जड़ ा त करके म दरायल म क लने पर वहाँ क म दरा का नशा नह होता।  

(4.7). र वपु य न म लायी गई  ेताक क  जड़ ार पर लगाने से टोने-टोटके का भाव नह होता। 

(4.8). र वपु य न म ा त ेताक क  जड़ को 21000 गणप त मं से स करके कसी ी क कमर म, मूलाधार
को 108 बार मं स करके बाँधा जाये, तो वह न य क पु वती होती है।  

(4.9). र वपु य न म ा त  ेताक क  जड़ को 108 बार गणप त मं से अ भम त करके, कमर पर बाँधने से
खलन शी नह होता। 

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About the expert (Edit) Pt. Santosh Bhardwaj, is a retired Senior Secondary School Principal
& a teacher by profession, with over 45 years of experience in the eld of Palmistry,
Neurology, Vastu, Faith Healing, Psycho-analyst, a Family counsellor blessed with the
knowledge of Tantr-Mantr. He is based out of NOIDA, India; a suburb of New Delhi, the
capital city of India. His deep interest in the subject re lects in every interaction that you
have with him on the subject. Mostly his interest lies in providing guidance when required
and helping you take the right decisions when the path looks dark. e list of people who
reach him for a consultation is endless and he has been providing guidance to people from
all over the world, mostly India and UK in particular.Photo: He also gives lessons to people
who are interested in learning more about the Science and Art of Palmistry. e work on
TREATISE ON PALMISTRY IS ALMOST COMPLETE. Mr. Bhardwaj can be contacted on +91

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