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मन से रूपध्यान करो ताकक हर जगह हमे शा कर सको . ध्यान दो . हर जगेह हमे शा .

जै से
संसारी मााँ बाप स्त्री पकत लोवर आकद का ध्यान आप हर जगह करते है . बेटा बीमार है सीररयस
बीमार है . आप न्हा तो रहे है , खाना तो खा रहे है , सरीर की किया तो कर रहे है , दवा
ले नेको शहर में जा रहे है ले ककन ध्यान अपने बेटे पैर है आपका . हा ! 105 होगया है .
अरे फ़ोन करो 106 न होगया हो . अरे मर न जाया ..तो रूपध्यान प्रमुख रूप से होनी चाकहए
सववत्र सववदा . ये दो शब्ों को ध्यान में रखना . ये कभी मत सोचो में में गन्दगी में हो तो
भगवान का ध्यान कैसे करू . अरे ध्यान ही नहीं उनका कीतवन , उनका गान सब कुछ आप
कर सकते है ककतनी ही गन्दी अवस्था में .. हमारे यह ये कसद्ां त है की शुद् वस्तु अशुद् वस्तु
को शु द् कर दे ती है और स्वयम भी शुद् रहती है . किर से सुनो शुद् वस्तु अशु द् वस्तु को
शु द् कर दे ती है और स्वयम अशु द् नहीं होती ..तो शु द् वस्तु शु द् ही रहे गी . एक बार जब
आपको भगवत प्राप्ति हो जाती है तो किर अशु द् नहीं हो सकते आप . आपकी बुप्तद् अशु द्
नहीं हो सकती . आपका मन अशु द् नहीं हो सकता .. जै से भगवन हमारे अंदर बैठे है हमारा
मन गन्दा , सरीर भी गंदा और अंदर बैठे है वो गंदे नहीं हो जाते

हम भगवन का रूपध्यान क्ों करते है , गुरु का रूपध्यान क्ों करते है . वो साबुन है शु द् है


. शु द् को अंदर लायेगे तो अशु द् मन को शु द् कर दें गे वो . इसकलए हरर गुरु दो ही को
लाना है . तीसरा कोन बचा. माया बद. वो मााँ हो बेटा हो बीवी हो पडोसी हो कोई भी हो .
वो गन्दा है उसको लायोगे अंदर तो मन और गन्दा हो जायेगे . तो नं बर एक . हरर गुरु का
ध्यान .

हरर गुरु भजु कनत . भजु मने सेवन सदा सववत्र . और दू सरी शतव है कनत . कनत मने हमे शा .
हर जगेह . में बार बार आपसे कहा है . ऐसा नहीं की २ घंटे हम साधना करते है . अरे २
नहीं , तुम चाहे २३ घंटे ५९ कमकनट करो और १ कमनट में सब बंटा धार कर दो . नामा अपराध
करके . हा यह भी हो सकता है . अरे भई एक कदन में एक लाख कमाया एक आदमी ने और
सड़क के चुराये पर .. तुमने गामा कदया सुको . कुसंग से . बड़े बड़े कजनको जीतेंकिया कहा
गया वो अजाकमल आकद वो एक क्षण के कुसंग से ऐसे भ्रष्ट होए की कहन्दू के किलोसोिी में
example होगये . हा इतना भयानक होता है जब तक भगवत प्राप्ति न हो जाये .. तो कनत्य .
हमारे शास्त्रों में एक गीता को ले लो छोटी से बुक है सेकड़ो जगेह भरा पड़ा है कनत्य सदा सववदा
मन भगवन में रहे अगर उस में संसार आया तो गन्दा हो जायेगा . कपड़ा को अपने धोया शु द्
जल से किर डु बो कदया गंदे जल में तो धोया न धोया बराबर हो गया . यही तो कर रहे है हम
लोक अनाकद काल से . और तीसरी शतव है कनष्काम .यह भी बड़ा important है . हमारी
आदत है संसार की कामनाओ में उनकी पूकतव में आनं द है . ये भ्रम इतना बलवान है की हज़ार
सुनने हज़ार सोचने पर भी जल्दी नहीं जाता जाता तो है अनं त संत होए कैसे . ले ककन जल्दी नहीं
जाता. आप कहे में आज ख़तम कर दू ं गा ..एक कदन में कोई पहलवान हो जायेगा ?
पहलवान बनाने के कलए कई साल लगता है . करी प्रकार की तयाररया करनी पड़ती है . M.A
करना है हा तो ठीक है आप स्कूल जाइये . ले ककन मे रे पास 12 साल का समय नहीं है . तो
किर तुम कैसे कर दो गे एक कदन में ? ये impossible है . तो उसी प्रकार अकभयास करने
से होगा ले ककन एक मोती अकल की बात गड़े की अकाल से , जब दो दु काने है एक में दु ुःख
ही दु ुःख कमलता है कबकता है और एक में आनं द ही आनं द . तो आनं द की दु कान पर तुम जा
रहे हो . हा . ककसकलए ? आनं द की दु कान पर दु ुःख क्ों मां गते हो . संसार मां गते हो भगवन
के मं कदर में .. कामना ही तो मन में होगी और प्रेम भी मन से होगा रूपध्यान मन से होगा
भगवन से अपनापन हो या संसार से हो बुप्तद् का कडकसशन भगवन के प्रकत हो या संसार के प्रकत
हो तीसरी तो कोई जगह है नहीं . इसकलए दृढ कनचय कीकजये बार बार यहा सुख नहीं है यहा
सुख नहीं है कजतना कवषय सेवन करोगे उतनी ही वासना बढे गी . अरे बड़े बड़े कवषयी . आप
लोगोने इकतहास पढ़ा होगा सुना होगा . मान्धाता की ५० कन्याओं से कबया ककया जो मथुरा में
पानी के अंदर डूब कर के साधना करते थे . एक क्षण का कुसंग उनको पानी के अंदर कमला
एक मछली का सम्भोग. और उन्होंने कहा हम तो ब्याह करें गे. ये कचंतन . कचंतन ही सववनाश
कर दे ता है और कचंतन ही भगवत प्राप्ति करा दे ता है . बार बार कचंतन ककया बार बार कचंतन
ककया ५० कन्याओ से ब्याह ककया ५० रूप बना कलए और ५००० बचे हुये तब आखाँ खु ली और
कहा {४२:१२} “दे खो मनु ष्ों मे रा सववनाश दे ख लो इसकलए तुम लो भी सावधान रहो कचंतन में ,
संसारी कचंतन होने न पाए , अगर हो तो तुरत काटो जै से ककसी स्त्री के खाना बनाते समय सारी
में लग गयी आग िॉरे न उसको हात से बुजा कदया और अगर ऐसी बैठी है तो हो जाएगी राधे
राधे . जब गलत कचंतन सुरु हो तो तुरत कधकारो अपनी बुप्तद् को , तुजे मानव दे ह कमला गुरु
कमला सब ज्ञान कमला और तो किर गंदी जगह में जा रही है , िील करो बार बार िील करो ,
रोओ . यह दु श्मन मन तब माने गा . उसके अनु सार चलोगे अच्छा लगता है , अच्छा लगता है
गन्दा कचंतन मीठा लगता है हा ठीक है चलो किर वो तुम्हे घुमायेगा ८४ लाख में . तो इसकलए
कनष्कामता पर भी सदा सावधान रहे

और चोथी चीज़ है अनन्यता . याकन एक हरर गुरु में ही मन का अटै चमें ट हो बस . अब भगवन
के अनं त रूपों में हो वो एक बात है . भगवन के अनं त रूपों में कोई भे द नहीं है . ये मु खव
लो बाते करते है राम बड़े श्याम बड़े शं कर बड़े ..ये एक ही भगवन होते है १०-२०-५० भगवन
नहीं होते . उनके अनं त नाम , अनं त रूप , अनंत गुण , अनं त लीलाए .. उनमे छोटा बड़ा
नहीं होता ये नामा अपराध है सोचना .. बहोत सावधान रहना है इस अपराध से . हरर गुरु के
प्रकत सोचना गलत बस यही नामा अपराध है बोलना नहीं , सोचना .. तो अनन्यता का मतलब है
हरर गुरु का ही बार बार मन में कनवास रहे शु द् होता रहे वो गन्दगी न आने पाए . ये संसार
के लोग दे खने में बहोत मीठे मीठे है . हा बेठा बाप बोलता है , बीवी सब ये अपने अपने
मतलब के कलए एक पाटी के एक व्यप्ति के पीछे लगे होए है . भगवन की और न जाने पावे
खबरदार . इधर से बेटा एप्तटंग करता है उधर से बीवी एप्तटंग करती है उधर से मााँ करती है
सब अपने अपने मतलब को हल करने के कलए एक आदमी के पीछे पड़े है . भागवत में कहा
गया है की एक व्यप्ति उसके तमाम औरते है ये इप्तिय और सब अपनी अपनी और खीच रही है
मे रे कमरे में चलो , दू सरी कहती है मे रे कमरे में चलो . याकन आखाँ कहती है दे खेगे तो सुखी
होंगे , कान कहता है धत , हम सुनेगे तो सुखी होंगे , रसना कहती है इनकी मत सुनो
रसगुल्ला लाओ तब सुख कमले गा सब अलग अलग बोलते है और एक आत्मा है कबचारी रो रही है
चारो और से खीच रही है प्तस्त्रया. तो इसकलए ककसी को अंदर न आने दो . वो पसवनाकलटी
acting करती है तो तुम भी acting करो . में बेटा में तुमसे बहोत प्यार करता हु. अरे
कपताजी में तो आपके कबना मर जाउगा . अरे शब् ही तो बोलना है और ककया है इसमें . आज
कल ककतने बेवकुि बन जाते है हम तुम्हारे कबना मर जायेगे . कोई मारा ? और अगर लाखो में
अगर कोई एक मरा तो ककसी के मरने के पीछे तुम मर जाओ , अरे उसको मरने दो , कोई
हो . तो अनन्य होना चाकहए . भगवन के अनं त रूप है ककसी से भी करो प्यार , अनं त दास है
, खाली ऐसा नहीं है की गुरु से ही प्यार करो गुरु के ही चरण छु ओ ले ककन संत असली हो ,
नकली को न आने दो अंदर . अब असली नकली को पहे चाने में जीवन बीत जाता है और किर
भी नहीं पहचान पता ये माकयक जीव . ये तो बड़ी भगवत कृपा से ककसी को सही सही
पसवनाकलटी को पहचान के और सही सही श्रद्ा कर के और सही सही शरणागकत कर ले . ऐसा
अगर कोई कबरला जीव होता है तो उसी का लक्ष्य हल होता कहया . तो ये चार चीजों का हमे
बहोत अकभयास करना है ध्यान दो अभ्यस . हमारा तो मन नहीं लगता . अरे मु खाव नंद लगेगा
ककसने कहा . कहा कलखा है . लगाना होगा . जब बार बार लगाओगे तो लगने लगेगे . बार
बार शराब कपने से शराब किर हम को लगाती है . हमको कपयो . नहीं तो हम तुमको पागल
कर दें गे . हा. हमको पीना पड़ता है . बीबी को बेच कर भी . शराब कमले . ये पैदा होते ही
शराब नहीं मााँ गा इसने . अकभयास से . हम ककतनी चीज़े कर चुके पैदा होने से अब तक .
करवट बदलना , बैठाना , खड़े होना, चलना , धोडना, बोलना सबका अकभयास ककया है ऐसे
ही नहीं होगया . पैदा होते ही lecturer होगये हो . सब चीजों का अकभयास करना पड़ा है
. दे खो ककतने बड़े बड़े आश्चयव जनक कायव करते है लोग सकवस वगेरा में . रासी की उपर चल
रहा है १०० िूट की उचाई पे . हे में तो दे ख के डर रहा हु . तुम भी कर सकते हो . ये
अकभयास से होता है सब . ऐसे ही अकभयास से ही ये चारो का पालन होगा . कुसंग से बच
कर ये चारो का पालन करना होगा . तक एक कदन किर अंतकरण की शु कध होगी . ये हमको
करना होगा . करोड़ गुरु जी कमले वो नहीं करके दें गे . जहा तक गुरुओ को अकधकार है ,
उतना वो करते है . तुम बतवन लाओ हम मुफ्त में दू ध दें गे. ले ककन बतवन तुमको लाना होगा.
अजी बतवन दे दो न तुम . ( हाँ सते हुये ) ऐसे कोई असंभव चीज़ नहीं हो सकती . इसके भरोसे
नहीं रहना है . भगवन तो बड़े दयालु है , गुरु जी तो बड़े दयालु है . वो सब ठीक है दयालु
वयालू है ले ककन सब एक कनयम के अंतगवत है . कब कृपा करते है कोंसी कृपा ककतनी कलकमट
की कृपा . हमारी शरणागकत एक अनु सार करते है . हम छल कपट करते है गुरु से और चाहते
है रसगुल्ला कमल जाये अंकतम . हम चोरी करते है गुरु से . हा उनको क्ा मालू म . ए गुरु जी
को न बताना . खुलम खुला हम लोग पाप करते है . और किर ये आशा करते है की भगवत
प्राप्ति हो जाये . तो हरर गुरु के यह ये सब नहीं चले गा . संसार में चल जाता है . चले गा
संसार में . तो इस प्रकार साधना करे के हमको सदा सववत्र भगवत बुप्तद् करते हुये ककसी के कदल
को दु खाना

ये पर पीड़ा सम नहीं अधमाई नहीं करना चाकहए . हमारे पास पैसा है हमारे पास कोई गुण है
हमारे पास कोई चीज़ है संसारी , उस के बल पैर हम ककसी को कष्ट दे , अरे उसमे भी
भगवन है क्ों बूल जाते है . इसकलए बहोत सावधानी से साधना करना होगा और कनरं तर सावधान
रहना होगा . जब आप लोग शहर में चलते है , साइककल चलते है , कार चलते है या पैदल
जाते है ककतने तयार हर सेकंड आगे भी सवारी आ रही है इधर से भी, इधर से भी , पीछे
वाला हॉनव कर रहा है . सब तरि दे खते चलो नहीं तो मर जाओगे . एक्सीडें ट हो जायेगे गा
और हम ऐसा करते है . ऐसे ही आत्मा के कलए भी हमको करना होगा ये सब बताई हुई शास्त्रों
वेद और गुरु की साधना तब लक्ष्य की प्राप्ति होगी और में कौन मे रा कौन ये प्रशन हल होगा
और जीव कितारत होगा . थैं क उ . धन्य वाद . लाडली लाल की जय!

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