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चले हैं...... व्यंग्य प्रबंध काव्य
चले हैं...... व्यंग्य प्रबंध काव्य
यह रचना चले हैं.... अपके सामने प्रेहषत है । यह जो कृ हत है मेरे ऄनुसार शुद्ध हहन्दी
छंद पर अधाररत है। कु छ साहहत्यकारों की हवचारधारा ऄलग हो सकती है यह ईनकी
हवचारधारा है। तकक और हवचार का स्वागत अवश्यक है और तकक के ऄनुसार ही हनणकय पर
बल ददया जाता है। तकक हीन बाते हनरथकक , ऄहस्तत्वहीन होती है।
मैं समस्त साहहत्य सुधीजनों का ध्यानाकषकण कराना चाहता हूँ हमारे प्राचीन हहन्दी
साहहत्य का आहतहास देखें हहन्दी गीत , छंद पर दृष्टव्य है । प्राचीन हहन्दी साहहत्य में छंद का
हवशेष स्थान रहा है। हजस पर कइ शोध हो चुके हैं।
चले है ... भुजंग प्रयात छंद पर अधाररत कृ हत है हजसमें समाज के ऄनेक पहलुओं को
एक मापनी और एक पदांत पर हपरोया है। आस कृ हत में ऄनेकता (ऄनेक हवषय) में एकता
(एक पदांत) है।
रचना में सामाहजक,राजनैहतक,अर्थथक पहलुओं पर सीधा तंज है। हमारासमाज
ऄहशक्षा, जाहतवाद, भ्रष्ट्राचार, कु रीहतयों, एवं ऄहत राजनैहतक हस्तक्षेप से ग्रहसत है। रचना
में कु छ पहलुओं को बडी सरलता से प्रतीकों एवं हवम्ब का माध्यम हलया गया है।
आस कृ हत की पहला ऄध्याय में “सपने” हलया गया है जो अभासी दुहनया को बताता
है पर क्या अभासी दुहनया की कल्पना कर ईस सपने को पूरा दकया जा सकता है। या झूठे
सपने ददखाकर ऄपना काम हनकलना दकसी का ईद्देश्य है। आसी तरह ऄन्य ऄध्याय में
वादे,कु सी , मुखौटा ..जैसे कइ हवषय है जो रचना पढ़ने के बाद पाठक के मुख से वाहह
..वाहह. हनकाल सकती है। जैसे - हप्रये प्राण कु सी, बसाकर चले हैं।
हजया तंत्र नस्तर,चुभाकर चले हैं।।
ऐसे बहुत से युग्म हैं जो न कहते हुए भी बहुत कु छ कहने का संदश
े देते हैं। कहीं
“वतनखोर” बनकर समाज को साूँप बनकर डसा जा रहा है तो कही युवा पीढ़ी को ददग्भ्रहमत
कर जाहतवाद का प्रलोभन देकर मानव को पंगु बनाया जा रहा है हजससे अत्महनभकरता की
कमी हो रही है समाज को छू ट, मांग ,अरक्षण, मुअवजा ने पंगु बना ददया है। व्यहि
अत्महनभकर नहीं बन पा रहे हैं । यही कारण है दक राष्ट्र हवकहसत नहीं हो पा रहा है।
हशक्षा का हगरता स्तर एवं हशक्षा के पाश्चात्यीकरण पर भी चचता व्यि करते हुए
युवाओं को अव्हान दकया गया है। युवाओं में फै शन और नशा के प्रचलन पर तीखा तंज है।
बेटी, ममता और पाररवाररक पहलुओं पर मार्थमक हचत्रण दकया गया है। प्रेम एवं प्रेम हववाह
की हवषय वासना पर चचतन करते हुए सामाहजक व्यवस्थाओं पर चचता व्यि दकया है तो
कहीं सुरक्षा ऄहभयान से लेकर स्वच्छता ऄहभयान हचतंन आस कृ हत चले हैं में है... पर
पयाकवरण प्रदूषण पर नदी के सफाइ ऄहभयान से लेकर जानवरों को प्रतीकों के माध्यम से
व्यवस्था पर कटाक्ष दकया गया है, जो सामाहजक चेतना जागृत करने का माध्यम होगा।
आस कृ हत में तीक्ष्ण कटाक्ष से समाज में चेतना जागृत करने का प्रयास दकया गया है
अशा है यह कृ हत अपको पसंद अयेगी..
आस कृ हत के युग्मों के ऄंश अपके जीवन में या अपके अस पास घरटत घटनाएूँ हो
सकती है। कृ हत पर प्रत्येक युग्म सटीक एवं सावकभौहमक है। अशा है यह कृ हत समाज को कृ त
संकहल्पत कर भ्रष्ट्राचार मुि भारत बनाने के हलए,अत्मसम्मान जागृत कराने के हलए एवं
वषों पूवक , परम अदरणीय पद्मश्री गोपाल दास नीरज जी के द्वारा, हहन्दी गज़ल
को 'गीहतका' नाम ददया गया था । गज़ल के महासागर से हनकल कर ,दुष्यंत कु मार जैसे
पल्लहवत होती हुइ गीहतका , डॉ. रामकु मार चतुवेदी जैसे सुधी साधक द्वारा सेहवत हुइ है,
हजसे देखकर मन मुग्ध है । फलतः एक सौ अठ गीहतकाओं का यह गुलदस्ता “चले हैं” ईन्होंने
माूँ शारदे के पदाम्बुजों में ऄर्थपत दकया है । ईनका यह प्रयास स्तुत्य है । समीक्ष्य संकलन की
सभी गीहतकाऐं "चले हैं" पदांत को लेकर भुजंग प्रयात छंद के हशल्प में सृहजत हैं ।एक ही
पदांत को लेकर आतनी गीहतकाओं का सृजन , दकसी कु शल काव्य हशल्पी के द्वारा ही सम्भव
है , हजसे डॉ. चतुवेदी ने ऄत्यंत कु शलता से सम्भव कर ददखाया है । ऄपनी प्रथम प्रस्तुहत के
प्रथम युग्म में ही वे ऄपना संकल्प लेते दृहष्टगोचर होते हैं...!
"सजीले सपन को, सजाकर चले हैं ।
सहेजे ऄगन मन,बसाकर चले हैं ।।"
चले हैं पदांत के हनवाकह में ,कहीं परम्पराओं का पोषण हुअ है तो कहीं सामाहजक ताने-बाने
और हवषमताओं पर तीखा तंज भी कसा गया है । कहीं क्षोभ के भाव को प्रश्रय हमला है तो
कहीं हववशता का भाव अह भरता सा प्रतीत हो रहा है...!
" बदन बेच वेश्या पले पेट खाहतर ।
वतन बेच नेता कमाकर चले हैं ।।"
(गीहतका क्र० 8 युग्म सं० 8)
डॉ० चतुवेदी मूलरूप से व्यंग्यकार हैं । ऄतः हर गीहतका में कहीं न कहीं व्यंग्य का भाव
पररलहक्षत हो रहा है । बेटी शीषकक गीहतका संख्या पच्चीस का यह युग्म दृष्टव्य है...!
" ऄजब मस्त मानव , करे कृ त्य दानव ।
सही अग मन में,लगाकर चले हैं ।।"
श्री चतुवेदी जी ने सभी गीहतकाओं को जो शीषकक ददये हैं ,वे आस बात के संकेतक हैं दक
ईन्होंने मानवीय मूल्यों के ऄनेक ऄनछु ए पहलुओं को स्पशक करने का सुद
ं र प्रयास दकया है ।
कु सी, हवाला, गबन, शराबी, मददरा, हवस, मीहडया, गाय, कु त्ता, भैंस अदद जैसे हवषयों
को कथ्य का अधार बनाया है ।
बंदर शीषकक गीहतका 94 का एक युग्म 4 देखें...!
" ऄमानुष नहीं है हुअ शोध ईस पर ।
हमें पूवक वंशज बताकर चले हैं ।।"
प्रस्तुत सभी गीहतकाएूँ एक ही हशल्प और एक ही पदांत पर अधाररत होने के कारण पाठक
के मन में नीरसता का भाव पैदा कर सकती हैं । परं तु आस हशल्प में ढली यह रचना
सामाहजक चचतन के साथ रोचकता पैदा करती है । युग्मों में कसावट और मारक क्षमता है
हजस पर बहुत पररश्रम दकया गया है ।
कु छ युग्म सीख देते हुए समय की महत्ता को प्रद्रहशत करते है जैसे
“समय के सताये, यहाूँ सब हमलेंगे।
सदा मुह
ं भरके , फु लाकर चले हैं।।
लगे सूघ
ं ने जब, हमला कु छ नहीं तो।