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समस्त पाठकों,साहहत्यकारों का ऄहभवादन

यह रचना चले हैं.... अपके सामने प्रेहषत है । यह जो कृ हत है मेरे ऄनुसार शुद्ध हहन्दी
छंद पर अधाररत है। कु छ साहहत्यकारों की हवचारधारा ऄलग हो सकती है यह ईनकी
हवचारधारा है। तकक और हवचार का स्वागत अवश्यक है और तकक के ऄनुसार ही हनणकय पर
बल ददया जाता है। तकक हीन बाते हनरथकक , ऄहस्तत्वहीन होती है।
मैं समस्त साहहत्य सुधीजनों का ध्यानाकषकण कराना चाहता हूँ हमारे प्राचीन हहन्दी
साहहत्य का आहतहास देखें हहन्दी गीत , छंद पर दृष्टव्य है । प्राचीन हहन्दी साहहत्य में छंद का
हवशेष स्थान रहा है। हजस पर कइ शोध हो चुके हैं।
चले है ... भुजंग प्रयात छंद पर अधाररत कृ हत है हजसमें समाज के ऄनेक पहलुओं को
एक मापनी और एक पदांत पर हपरोया है। आस कृ हत में ऄनेकता (ऄनेक हवषय) में एकता
(एक पदांत) है।
रचना में सामाहजक,राजनैहतक,अर्थथक पहलुओं पर सीधा तंज है। हमारासमाज

ऄहशक्षा, जाहतवाद, भ्रष्ट्राचार, कु रीहतयों, एवं ऄहत राजनैहतक हस्तक्षेप से ग्रहसत है। रचना
में कु छ पहलुओं को बडी सरलता से प्रतीकों एवं हवम्ब का माध्यम हलया गया है।
आस कृ हत की पहला ऄध्याय में “सपने” हलया गया है जो अभासी दुहनया को बताता
है पर क्या अभासी दुहनया की कल्पना कर ईस सपने को पूरा दकया जा सकता है। या झूठे
सपने ददखाकर ऄपना काम हनकलना दकसी का ईद्देश्य है। आसी तरह ऄन्य ऄध्याय में
वादे,कु सी , मुखौटा ..जैसे कइ हवषय है जो रचना पढ़ने के बाद पाठक के मुख से वाहह

..वाहह. हनकाल सकती है। जैसे - हप्रये प्राण कु सी, बसाकर चले हैं।
हजया तंत्र नस्तर,चुभाकर चले हैं।।
ऐसे बहुत से युग्म हैं जो न कहते हुए भी बहुत कु छ कहने का संदश
े देते हैं। कहीं
“वतनखोर” बनकर समाज को साूँप बनकर डसा जा रहा है तो कही युवा पीढ़ी को ददग्भ्रहमत
कर जाहतवाद का प्रलोभन देकर मानव को पंगु बनाया जा रहा है हजससे अत्महनभकरता की
कमी हो रही है समाज को छू ट, मांग ,अरक्षण, मुअवजा ने पंगु बना ददया है। व्यहि
अत्महनभकर नहीं बन पा रहे हैं । यही कारण है दक राष्ट्र हवकहसत नहीं हो पा रहा है।

हशक्षा का हगरता स्तर एवं हशक्षा के पाश्चात्यीकरण पर भी चचता व्यि करते हुए
युवाओं को अव्हान दकया गया है। युवाओं में फै शन और नशा के प्रचलन पर तीखा तंज है।
बेटी, ममता और पाररवाररक पहलुओं पर मार्थमक हचत्रण दकया गया है। प्रेम एवं प्रेम हववाह
की हवषय वासना पर चचतन करते हुए सामाहजक व्यवस्थाओं पर चचता व्यि दकया है तो
कहीं सुरक्षा ऄहभयान से लेकर स्वच्छता ऄहभयान हचतंन आस कृ हत चले हैं में है... पर
पयाकवरण प्रदूषण पर नदी के सफाइ ऄहभयान से लेकर जानवरों को प्रतीकों के माध्यम से
व्यवस्था पर कटाक्ष दकया गया है, जो सामाहजक चेतना जागृत करने का माध्यम होगा।
आस कृ हत में तीक्ष्ण कटाक्ष से समाज में चेतना जागृत करने का प्रयास दकया गया है
अशा है यह कृ हत अपको पसंद अयेगी..
आस कृ हत के युग्मों के ऄंश अपके जीवन में या अपके अस पास घरटत घटनाएूँ हो
सकती है। कृ हत पर प्रत्येक युग्म सटीक एवं सावकभौहमक है। अशा है यह कृ हत समाज को कृ त
संकहल्पत कर भ्रष्ट्राचार मुि भारत बनाने के हलए,अत्मसम्मान जागृत कराने के हलए एवं

रूदढवाद,जाहतवाद,भेदभाव समाप्त करने में साथकक होगी ।


मंगलकामनाओं के साथ....
डॉ.रामकु मार चतुवेदी
ऄहभमत

वषों पूवक , परम अदरणीय पद्मश्री गोपाल दास नीरज जी के द्वारा, हहन्दी गज़ल

को 'गीहतका' नाम ददया गया था । गज़ल के महासागर से हनकल कर ,दुष्यंत कु मार जैसे

सरस्वती-सुतों से चसहचत, ओम नीरव और हवश्वम्भर नाथ शुक्ल जैसे काव्य मनीहषयों से

पल्लहवत होती हुइ गीहतका , डॉ. रामकु मार चतुवेदी जैसे सुधी साधक द्वारा सेहवत हुइ है,
हजसे देखकर मन मुग्ध है । फलतः एक सौ अठ गीहतकाओं का यह गुलदस्ता “चले हैं” ईन्होंने
माूँ शारदे के पदाम्बुजों में ऄर्थपत दकया है । ईनका यह प्रयास स्तुत्य है । समीक्ष्य संकलन की
सभी गीहतकाऐं "चले हैं" पदांत को लेकर भुजंग प्रयात छंद के हशल्प में सृहजत हैं ।एक ही
पदांत को लेकर आतनी गीहतकाओं का सृजन , दकसी कु शल काव्य हशल्पी के द्वारा ही सम्भव
है , हजसे डॉ. चतुवेदी ने ऄत्यंत कु शलता से सम्भव कर ददखाया है । ऄपनी प्रथम प्रस्तुहत के
प्रथम युग्म में ही वे ऄपना संकल्प लेते दृहष्टगोचर होते हैं...!
"सजीले सपन को, सजाकर चले हैं ।
सहेजे ऄगन मन,बसाकर चले हैं ।।"
चले हैं पदांत के हनवाकह में ,कहीं परम्पराओं का पोषण हुअ है तो कहीं सामाहजक ताने-बाने
और हवषमताओं पर तीखा तंज भी कसा गया है । कहीं क्षोभ के भाव को प्रश्रय हमला है तो
कहीं हववशता का भाव अह भरता सा प्रतीत हो रहा है...!
" बदन बेच वेश्या पले पेट खाहतर ।
वतन बेच नेता कमाकर चले हैं ।।"
(गीहतका क्र० 8 युग्म सं० 8)
डॉ० चतुवेदी मूलरूप से व्यंग्यकार हैं । ऄतः हर गीहतका में कहीं न कहीं व्यंग्य का भाव
पररलहक्षत हो रहा है । बेटी शीषकक गीहतका संख्या पच्चीस का यह युग्म दृष्टव्य है...!
" ऄजब मस्त मानव , करे कृ त्य दानव ।
सही अग मन में,लगाकर चले हैं ।।"

श्री चतुवेदी जी ने सभी गीहतकाओं को जो शीषकक ददये हैं ,वे आस बात के संकेतक हैं दक
ईन्होंने मानवीय मूल्यों के ऄनेक ऄनछु ए पहलुओं को स्पशक करने का सुद
ं र प्रयास दकया है ।
कु सी, हवाला, गबन, शराबी, मददरा, हवस, मीहडया, गाय, कु त्ता, भैंस अदद जैसे हवषयों
को कथ्य का अधार बनाया है ।
बंदर शीषकक गीहतका 94 का एक युग्म 4 देखें...!
" ऄमानुष नहीं है हुअ शोध ईस पर ।
हमें पूवक वंशज बताकर चले हैं ।।"
प्रस्तुत सभी गीहतकाएूँ एक ही हशल्प और एक ही पदांत पर अधाररत होने के कारण पाठक
के मन में नीरसता का भाव पैदा कर सकती हैं । परं तु आस हशल्प में ढली यह रचना
सामाहजक चचतन के साथ रोचकता पैदा करती है । युग्मों में कसावट और मारक क्षमता है
हजस पर बहुत पररश्रम दकया गया है ।
कु छ युग्म सीख देते हुए समय की महत्ता को प्रद्रहशत करते है जैसे
“समय के सताये, यहाूँ सब हमलेंगे।

समय ही समस्या, बनाकर चले हैं।।”


(गीहतका क्र० 102 युग्म सं० 3)
वहीं कहव ने हहन्दी की प्रमुखता को बडे सरल ऄंदाज से हवस्तृत दकया है हहन्दी के ईत्थान को
बयान करती ये पंहियाूँ राष्ट्र भाषा पर तंज देती है-
“हबना राष्ट्र भाषा, चले राष्ट्र कै से।

यही दंश हहन्दी चुभाकर चले हैं।।”


(गीहतका क्र० 108 युग्म सं० 3)
कहव के ईद्यम और श्रम को नमन करने को मन करता है । मैं डॉ. रामकु मार चतुवेदी को
ऄपनी शुभकामनाएूँ ऄर्थपत करता हूँ और ईन्हें धन्यवाद भी देना चाहता हूँ, दक ईन्होंने
ऄपनी लेखनी से सामाहजक गंदगी और प्रदूषण को दूर करने में ऄपने ईत्तम कहव धमक का
यथोहचत पालन दकया है । ईनकी यह कृ हत नव हस्ताक्षरों को ददशा प्रदान करे गी और
साहहत्य जगत में ऄपनी हवशेष पहचान बनाये ,ऐसी मंगलकामना है । ईनकी लेखनी सतत्

सत्साहहत्य सृजनरत रहे, प्रभु से प्राथकना है ...!


दकया लक्ष्य भेदन नहीं लेश चूके ।
कलम 'राम' की तीर पैने चले हैं।।
***
महेश जैन 'ज्योहत',
6- बैंक कॉलोनी, महोली रोड,
मथुरा -281001
मो० – 9058160705
1. सऩने

सजीले सपन को, सजाकर चले हैं।


सहेजे ऄगन मन, बसाकर चले हैं।।

ईन्हें अज लगता, जमाना भला सा।

हमें लोभ देकर, मनाकर चले हैं।।

दकसे याद रहता, चुनावी तराना।

हमें गीत ऄपना, सुनाकर चले हैं।।

ईन्हें ही हजताना, ईन्हें मत हराना।


वचन कमक हमसे, हनभाकर चले हैं।।

गुणा भाग करके , सभी को हगनाये।


सभी जीत पक्की, बताकर चले हैं।।

गजब के गुनी है, गुनी को हगरायें।


ऄगुन ही गुनी को,हगनाकर चले हैं।।

गलत ढंग ऄपना, ददखाते महाशय।

गुनी को दकनारा, कराकर चले है।।

हछपे राज बाहर, हनकलने लगे तो।

गलत वोट दुखडा,सुनाकर चले हैं।।

खबर ये शहर में,पता चल गयी तो।

दवा मजक की वे, हपलाकर चले हैं।।

सदा जीत सपने, समेटे रहे थे।

हमली हार से हसर,झुकाकर चले हैं।।


2. वादे
यहां मुफ्त वादे, ददलाकर चले हैं।

पकड को बनाने,हखलाकर चले हैं।।

हखलाते हपलाते, जमाखोर बनकर।

बचत बैंक खाते, खुलाकर चले हैं।।

जमा बैंक पैसा, दकए हैं हवदेशों।

सही लाभ काला,कमाकर चले हैं।।

हमले लोन कजाक, करो माल ऄंदर।

हवजय माल लेकर,दबाकर चले हैं।।

हबना काम खाने, हमला जब नहीं तो।

हशकायत सभी की,हलखाकर चले हैं।।

कमीशन बनेगा, हवालात होगी।

मुलाकात ईनसे, कराकर चले हैं।।

सडक पर हूँगामा, करे गा यहाूँ वह।

हजसे झोपडी में, बसाकर चले हैं।।

गहन खोज धमी,वहम चोट करते।

वतन चोर कु सी, बनाकर चले है।।

बगल में छु री रख,बसे राम मुख में।

हसयाराम सेवक, ददखाकर चले हैं ।।

हवाला ददए है, सफाइ करें गे।

हनवाला सभी का,छु डाकर चले हैं।।


3. वादे

कहाूँ? पूणक वादे, हनभाकर चले हैं।


आरादे सभी को, धताकर चले हैं।।

हमेशा रुलाती, हमें प्याज ददल से।

जमाखोर सबको, रुलाकर चले हैं।।

पले साूँड ईनके , सभी दाूँव चलते।

ददखा रं ग ईनको, डराकर चले हैं।।

पहलवान पाले, करे सामना जब।

हहले पाूँव धरती, कूँ पाकर चले हैं।।

भले काम करते,सडक जाम करके ।

चकाजाम रे ली,कराकर चले हैं।।

नजर नापते है,नजर ही नजर से।


नजर खोट ईनको,ददखाकर चले हैं।।

ऄनाचार ईनमें, हमलेगा कहाूँ से।

सदाचार घर में, हछपाकर चले हैं।।

सगे संग साथी, खडे हाथ जोडे।

सभी काम ददल से,लगाकर चले हैं।।

ऄूँग्रेजी कहाूँ से, ईन्हें खूब अती।

सहायक ईन्हें सब, पढ़ाकर चले हैं।।

वही जंग जीते, चले चाल खोटी।

ददखा रं ग भेदी, लडाकर चले हैं।।


4. कुसी
हप्रये प्राण कु सी, बसाकर चले हैं।

हजया तंत्र नस्तर,चुभाकर चले हैं।।

सजी रूपसी ये, जनाधार लेकर।

यही लोकतूँत्र है, बताकर चले हैं।।

महामंत्र सत्ता, जपे सब हमारे ।

ईसे देख सपने,सजाकर चले हैं।।

सुबह शाम कहते, बुरा वि जाये।

सभी राज हमको,हगनाकर चले हैं।।

यहाूँ तंत्र साूँस,े हगनाता रहा जो।


वतन चेतना दम,ददखाकर चले हैं।।

सुनाते ऄलापें, हबना सुर हमेशा।


हमें राग दल की, सुनाकर चले हैं।।

सभी पूणक होंगे, सरोकार सपने।


हमें मत भुलाना,मनाकर चले हैं।।

ऄकारण ईलझते, ईनींदें धरोहर।

रटदकट राज दुखडा,सुनाकर चले हैं।।

करें क्या नहीं ऄब,हमला राज ईनको।

हबना बोल अूँस,ू बहाकर चले हैं।।

ईधारी बढी है , हुइ जेब तंगी।

दकधर जेब खाली,कराकर चले हैं।।

सदा चेहरे में, ईदारी झलकती।


नजाकत ईमर की,हछपाकर चले हैं।।
5. भख
ु ौटा

ईसे प्यार में कु छ, हछपाकर चले हैं।

सुता को बहहन वे, बताकर चले हैं।।

करें बाल काले,ईमर को हछपाने।

खुला राज दाढ़ी,बढाकर चले हैं।।

हवस पेट पूजा, नहीं कम दकसी की।

नजर भी हघनौनी, बनाकर चले हैं।।

सडक में पडी है, हबलखती गरीबी।

ईसे रोज ठोकर, लगाकर चले हैं।।

लरजती यहाूँ पर, नजर झूठ से भी।


नजर से नजर को, हगराकर चले हैं।।

ददखाये कला जो, कलाकार बनते।


ऄूँगों का प्रदशकन, ददखाकर चले हैं।।

कहीं तीर चलते, कहीं वार करते।

हनशाना कहीं पर, लगाकर चले हैं।।

बुरे काम करके , भलाइ हसखाये।


हनयत खोट मन में,जगाकर चले हैं।।

सही ऄक्ल लेकर,दुखी शक्ल रखते।

बुरा मुंह ऐसे, बनाकर चले हैं।।

ऄकल बांटते है, यहाूँ मूखक ऄनपढ़।

नकल चोर ऄव्वल,बढाकर चले हैं।।


6. भख
ु ौटा
मुखौटे यहां पर, लगाकर चले हैं।

बहुत भेष मन में, बनाकर चले हैं।।

बडे खास बनते, रखे पास ईनको।

ईन्हें पास ऄपना, ददलाकर चले हैं।।

दकसे पास करना, दकसे फे ल करना।

परीक्षा ऄलग से , कराकर चले हैं।।

यहाूँ काम ईनका, हुअ जब नहीं तो।

हबना बात के ही, ररसाकर चले हैं।।

लचर तंत्र धब्बे, लगे है यहां पर।


लगे दाग ऄपने, छु टाकर चले हैं।।

धुले दूध के हैं, बतायें हमेशा।


हवषय वासना में,फूँ साकर चले हैं।।

रूँ गे हाथ पकडे, रकम संग ईनको।

रकम से सनम को, छु डाकर चले हैं।।

चले है प्रनेता, ऄकडकर यहाूँ से।

लगे वस्त्र ईनमें, टूँगाकर चले हैं।।

सडक धूप ददखती,नहीं है दकनारा।

सहारे ईन्हें ही, बताकर चले हैं।।

लुडकने लगे है ,यहाूँ ढाल अूँसू।

ददखावा गजब का,ददखाकर चले हैं।।


7. हवारा

हवा में पसीना, बहाकर चले हैं।

हवा शुष्क मौसम, बताकर चले हैं।।

हवाला हुअ था, गबन का तरीका।

प्रहतष्ठा सभी की, बनाकर चले हैं।।

ईडा रं ग ईनका, हवाला दकए जो।

हवालात ईनको , कराकर चले हैं ।।

हवा खूब भरते, भरे दम यहाूँ पर।

सभी दाूँव ऄपने, लगाकर चले हैं।।

सदा खोट बसती ,ददलों में ईन्हीं के ।

हजन्हें खूब रुपया, लुटाकर चले हैं।।

पडे वोट ईनको, करम फू ट जाये।

सही पांच साली, जमाकर चले हैं।।

हवा मार खाएूँ ,हनकलने हवचारें ।

सूँभलकर कदम वे,जमाकर चले हैं।।

हवा ये चुनावी, चली है गजब की।

पडे पैर हसर को, नवाूँकर चले हैं।।

हवा बंद होती, परे शान होते।

हवा होश ईनके , ईडाकर चले हैं।।

“हवा” ला बुलाते, हवाला बनाते।


हवा में हनयम को,ईडाकर चले हैं।।
8. सदन
सदन में समस्या, सुनाकर चले हैं।

गदर दल दलों में, कराकर चले हैं।।

सदन प्रश्न करते, हवधेयक बनाने।

बहहष्कार दल से ,कराकर चले हैं।।

मतों को हगनाकर,चयन दफर कराते।

ऄहवश्वास मत को, हगराकर चले हैं।।

सदन अज बहुमत, ददखाये दलों को।

खरीदी दलों की, कराकर चले हैं।।

हबके अज सेवक, वतन के हमारे ।

हमें जात ऄपनी, ददखाकर चलें हैं।।

यहाूँ लोग उूँची, ईडाने लगाते।


हमें मुह
ं औंधे, हगराकर चले हैं।।

हबका कौन कै सा,न आज्जत गूँवाये।

नपुंसक वतन में, बनाकर चले हैं।।

बदन बेच वैश्या, पले पेट खाहतर।

वतन बेच नेता, कमाकर चले हैं।।

करो कमक नेकी,फसल तो ईगाओ।


फसल ही हमारी चुराकर चले हैं।।

ऄधीरे जगत में, हवचरते धरा पर।

हबना वि खोये, कमाकर चले हैं।।


9. वतनखोय
वतन खोर भाषण, सुनाकर चले हैं।

ऄसल जात ऄपनी, ददखाकर चले हैं।।

वतन ढू ंढता है , वतन के हसपाही।

वतन साूँप घर में, बसाकर चले है।।

वतन सेंध सेवक ,बसे घर घरों में।

सघन जाूँच ऄपनी,हछपाकर चले हैं ।।

जुटे है कमाने, सुधीजन हमारे ।

हमें देश चचता, सताकर चले हैं।।

लगे दाग आतने, छु टाये न छू टे।


धुले दूध के वे, बताकर चले हैं।।

करे कोल काला, दकये खूब घाला।


सगे मुंह काला, कराकर चले हैं।।

वतनखोर करते, दलाली वतन की।


हतरं गा वतन का, जलाकर चले हैं।।

लगे खूब नारे , वतन में हवरोधी।

गुरूकु ल ईन्हें सब,हसखाकर चले हैं।।

ऄहभव्यहि भाषण, रचे राग नेता।

भ्रहमत बात सबमें ,ईडाकर चले हैं।।

रसोपान भाषण, चखे जो हमेशा।


गुनी ज्ञान सागर,बनाकर चले हैं।।
10. खोय
खुले हाथ दोनों, लुटाकर चले हैं।

खनक नोट घर में, छपाकर चले है।।

हखले खोर खुलके , खुशी में खनकते।

खुले खान ईनके , ददखाकर चले हैं।।

खुले खूब खाते, हबना खौप खाते।

खुलेअम सबको, हखलाकर चले हैं।।

खडे के खडे जब, ईन्हें खर बनाता।

खरी खोट सबको, सुनाकर चले हैं।।

हखली धूप अूँगन,हछपी साूँझ रहते।


खुशामद घटा में, हछपाकर चले है।।

परख पारखी क्या,खबर खोज करते।


दखल खेप ऄपनी, बनाकर चले है।।

खुरापात करके , खबर क्षेम लेते।

हलखे लेख सबके , हमटाकर चले हैं।।

खराबी हगनाते, थके कब हमारे ।

दुखी भूख दकस्सा, बनाकर चले है।।

खुदा खास बनकर,हखलाफत कराते।


वतन राष्ट्र बढकर, बताकर चले हैं।।

खरा खुद बताते, खुशी से ऄघाते।

कमी खौफ सबको, डराकर चले हैं।।


11. गफन

गबन गीत गाने, सुनाकर चले हैं।

गधे गीत गम में,डु बाकर चले हैं।।

गबन है गजब का, गरल गोल गप्पे।

गुणी गीत मनको, लुभाकर चले हैं।।

गबन एक मौका, सुधरने न देता।

हपये बूंद घुट्टी, घुटाकर चले हैं।।

गलत राह ईनकी, गठन दल कराते।


गलत गांठ हमको, बूँधाकर चले हैं।।

गहन पैठ कमी ,गजब ज्ञान रखते।


गमन गतक ईनको,हभजाकर चले हैं।।

गबन जाूँच होती ,गहन जाूँच होती।


गुनी जन बरी सब, कराकर चले हैं।।

हनराशा गुनी को, लडाकू बनाती।


गुनी हक गुनी को,जताकर चले हैं।।

गदर दल दलों के , घुडकते घराने।

बने बैर मन में, बसाकर चले हैं।।

नहीं ढंग बदलता, नहीं रं ग बदलता।

ईन्हें बेसहारा, बनाकर चले हैं।।

लडे जंग बागी, हबना दल सहारे ।

दुखारे ईन्हें दफर,मनाकर चले है।।


12. याज

सभी राज ऄपने,हछपाकर चले हैं।

ईन्हें राज ईनके , बताकर चले हैं।।

सलाही हमेशा , बसे हैं घनेरे।

चतुर माल ऄंदर,कराकर चलें हैं।।

ऄसर युि चचे, लगे ढींग हाूँके।

कथाकार मद को ,सुनाकर चले हैं।।

कथा वाचते हैं , कथाकार ईनके ।

कथन को कथन में,हछपाकर चले हैं।।

ददखे राज ईनके , बनी राजदारी।

वहाूँ राज गद्दी,ददलाकर चले हैं।।

चुकाने पडे है ,ईन्हें राज कीमत।

रकम राज को ही, दबाकर चले है।।

बने राज ऐसे , हछपे राज द्रोही।

ईन्हें राजनेता, बनाकर चले है।।

हछपे राज बाहर, हनकलते जहाूँ पर।


ठगी राज मुूँह को, हछपाकर चले है।।

दकया राज बाहर, नया राज लेकर।

दुखी राजधानी ददखाकर चले है।।

ददखे मीत राजी,न राजी ददखाकर।

सुखी राज सत्ता, बनाकर चले है।।


13. बाषण
हलखा पाठ भाषण,पढाकर चले हैं।

वही पाठ रट्टा,सुनाकर चले है।।

फहलत कोष अशय,सभी दोष पाले।

गलत कोश साशय, बुलाकर चले हैं।।

ऄगर अज पप्पू,नहीं पास होगा।

नकल खास ईनको,कराकर चले हैं।।

युगों से जनों की, गरीबी हमटाते।

ईन्हें ये ऄमीरी,भुलाकर चले है।।

गरीबी भुनाते,ऄमीरी बढ़ाते।

बपौती प्रथा की,हनभाकर चले हैं।।

सडा युि राशन,हमले अज ईनको।


ईदर मुि पोषण,कराकर चले हैं।।

हमला काडक ईनको,गरीबी परे थे।


कु पोहषत हुये जो,ददखाकर चले हैं।।

कला युि भाषण,करे अज सेवक।

कलाकार सबमें,ददखाकर चले हैं।।

ऄसल साज सपने,ददखाते रहे थे।

मुूँगेरी ईन्हें ही ,बनाकर चले हैं।।

हमला राज कै से,हमले ही नहीं दल।


दलों को दलों से,लडाकर चले हैं।।
14. कसभ

कसम खोर दुहनया, घुमाकर चले हैं।

बचत कर करों को, चुराकर चले हैं।।

कसम ही शपथ को, ग्रहण है कराता।

शपथ में ग्रहण ही, लगाकर चले हैं।।

कसम पेट पूजा, कराती जनों को।

कसम भूख लाले,ददखाकर चले हैं।।

हबना ऄन्न खाना,कसम है हखलाता।

कसम साक्ष्य साक्षी,हमटाकरचले हैं।।

कसम की बदौलत,कसम टू टती जब।

कसम ही ईन्हें सब,ददलाकर चले हैं।।

दकसे काम देते, कहां काम लेते।

दकसे कौम कु श्ती, लडाकर चले हैं।।

कसम के हसपाही, कहां से डरें गे।

कसम अज ईनको, कमाकर चले हैं।।

कदम पे कदम में, कसम को रखे वो।

कसम ही ईन्हें ऄब, हजताकर चले हैं।।

कथा और दकस्से, करें खूब गढ़कर।


कलेवा कसम का,कराकर चले हैं।।

करे पाठ मंत्री, कसम के सहारे ।

शपथ में ऄपेहक्षत,पढाकर चले हैं।।


15. मव
ु ा

ऄमीरी गरीबी, ददखाकर चले हैं।

बडे बोल मानव,हबकाकर चले हैं।।

जहाूँ पर गरीबी, वहाूँ देह हबकती।

वहीं देह बोली, लगाकर चले हैं।।

सुरा साथ चलते,बहकते युवाजन।

सभी राग सुर को,लगाकर चले हैं।।

खुले वस्त्र फै शन, चलन है बताते।


हमें सोच ओछी, सुनाकर चले हैं।।

हजसे देख खाना,हखलाना रमकता।


करे डांस सबको,नचाकर चले हैं।।

लडें रोज पीकर, तमाशा करें गे।


गडे खोद मुद,े ईठाकर चले हैं।।

खुले बार ऐसे, युवा जो बहकते।

ऄसर जाम पीकर,हपलाकर चले हैं।।

छलकता यहाूँ पर,हबना पैग यौवन।

नशीली नजर को,लगाकर चले हैं।।

युवा खूब मुूँह से, धुूँअ जो ईडाते।

यही अग ईनको,जलाकर चले हैं।।

खुली छू ट लेकर, हवचरते कहीं भी।

जरा चूक सबको, दुखाकर चले हैं।।


16. मव
ु ा नशा

समझ है न कहते, पताकर चले हैं।

पहल पर पहेली, बुझाकर चले हैं।।

नही दोष देते, कहें बाल सच्चे।

यही शह ईन्हें ही,बढ़ाकर चले हैं।।

जुडे तार हमलने, लगे सब हवषय के ।

सही पाठ पोथी , पढाकर चले हैं।।

नशा पान करने ,लगा है जमाना।


नसेडी जगत में, नशाकर चले हैं।।

धरे पग धरा पर, धरा डोलती ये।


नशे में ईन्हें सब, डु लाकर चले है।।

मजा ले रहे हैं , युवा चजदगी का।


नशा चजदगी का, ईठाकर चले हैं।।

नये हनत्य फै शन,करे लोग ज्यादा।

मदकती जवानी, हमटाकर चले हैं।।

बनी मौत कारण,बुरी लत ईसी की।

हजसे चजदगी का, मजाकर चले हैं।।

लगी अग चूल्हे , सुलगने न देती।

कमाइ हपये सब, लुटाकर चले हैं।।

हबना भाूँग खाये, न करते यहां कु छ।

बुरी लत लगी जो, लगाकर चले हैं।।


17. नशा

हबयर बार ठु मके , लगाकर चले हैं।

सभी मूड ऄपना, बनाकर चले हैं।।

नशा धूम करते ,गूँजेडी सडक में।

हपता की कमाइ,ईडाकर चले हैं।।

युवा मस्त होकर,जहर रोज पीते।

नशे को धुअूँ में ,ईडाकर चले है।।

लटे है हबखरती,लचकती कमररया।


जुनूनी नशा में, झुमाकर चले हैं।।

महकती जवानी, बरसती रवानी।


बरस रूप सावन, लुभाकर चले हैं।।

बसंती हवायें ,करे मस्त ईनको।

क्षुधा रूप यौवन,लुटाकर चले हैं।।

ऄदा मस्त करती,परी हुस्न लगती।

यहाूँ वस्त्र ईनके , ईडाकर चले हैं।।

हवषय वासना में, मरे रोज प्राणी।

यही वासना सब, लुटाकर चले हैं।।

समय से बदलते, बने अज बच्चे।

समय को बदलने,बुराकर चले हैं।।

गृहस्थी लुटी जब,करम ठोक रोते।

नशा मुहि जीवन,हसखाकर चले हैं।।


18. नशा

नशा मुि नारा ,ददलाकर चले हैं।

सुरा पान बंदी, कराकर चले हैं।।

नशा खत्म करने, मुहहम तेज करते।

लगा कश धुूँअ को,ईडाकर चले हैं।।

शराबी नहीं हैं , कहें राज्य ईनके ।

लगी रोक हबक्री ,बताकर चले हैं।।

घरों घर बनाते , सुरा सार हमलकर।


बचत सेल सबकी, रुकाकर चले हैं।।

घरों में हपयेंगे, मदकची शराबी।


हबयर बार घर में, लगाकर चले हैं।।

बढ़े रोजगारी, कमाइ बढ़ेगी।


सुरा खचक सबको ,ददलाकर चले हैं।।

जहर युि हमलती,सुरा ऄब हबके गी।

सुरा नींद सबको , सुलाकर चले हैं।।

मरे कौन ईनके , ददखाये मरे जो।

वहाूँ कौन दौरा, कराकर चले हैं।।

हमले लाभ सारा ,ददखाते महाजन।

मरे रोज दुखडा ,सुनाकर चले हैं।।

दवा भी हमलेगी, दुअ भी हमलेगी।

भरी ठं ड में ये ,हपलाकर चले हैं।।


19. नशा
खुशी अज दारू,हपलाकर चले हैं।

खुले हाथ दारू, ददलाकर चले हैं।।

हबना पैग रहना,कभी हम न सीखे।

हमें पैग लेना , हसखाकर चले हैं।।

जहां चार होते , बना पैग लेते।

सभी यार हमलकर,लगाकर चले हैं।।

खुशी शौंक पीते, गमें शोक पीते।

शकी कौन साकी,बनाकर चले हैं।।

हपयक्कड हवचरते,हडगे पग धरा पर।

हपया कौन हप्रयतम,बताकर चले हैं।।

हछपे राज ददल में, दकसे सब बताएूँ।

सभी रं ज दारू , हमटाकर चले हैं।।

ऄलग धाक ददखती,लगाकर चले जो।

बहकते कदम सब, ददखाकर चले हैं।।

ईतर ही न पाइ, चले दफर चढ़ाकर।

सही नींद घर की, ईडाकर चले हैं।।

पडोसी नजर में ,रहे मूक बनकर।


शहर को चुनौती, ददलाकर चले हैं।।

भयातुर ददखेंगी, गली और सडकें ।


कहाूँ रौद्र दारू, ददखाकर चले हैं।।
20. शयाफी

हपयक्कड ईन्हें वे ,बनाकर चले हैं।

हलये पैग दफर से,चढाकर चले हैं।।

कदम जो बहकते,नहीं पैर जमते।

नहीं होश रहता, टूँगाकर चले हैं।।

सूँभल के चले हैं, हगराकर ईठे दफर।

कदम पे कदम लड-खडाकर चले हैं।।

ददखाते नजारे , हछपाते नजारे ।


हबना बात धमकी,ददलाकर चले हैं।।

सदा धौंस देते, पकड खूब कहते।


ईन्हें ही हसपाही, डराकर चले हैं।।

धमकते कहीं तो, लगे खूब बकने।


ईन्हें देखते मुह
ूँ ,हछपाकर चले हैं।।

खुली पोल हजनकी,लगे ढांकने जब।

सही पोल ऄपनी,हछपाकर चले हैं।।

चले दौर पीने, हपलाने यहां पर।

ईन्हें तंत्र ठे का, ददलाकर चले हैं।।

ईन्हें खानदानी, सहायक हमलेंगे।

सही सब तरीके , हसखाकर चले हैं।।

हमलावट जहाूँ पर,तरावट वहीं पर।

बनावट मुखौटा, लगाकर चले हैं।।


21. भददया

हजसे मूल सेवक, बताकर चले है।

वही खूब मददरा, चढ़ाकर चले है।।

नशेडी गूँजेडी , शराबी यहाूँ पर।

ऄूँधेरी नजर मद, मदाकर चले है।।

मदकची नकलची, घनेरे बसेरे।

हबयाबान जंगल, बसाकर चले है।।

नशा मुि भाषण,दकया था दलों में।


दलो संग बोतल, लगाकर चले हैं।।

हलक बूंद ईतरे , चढ़े ताव देखो।


हवा बंद सबकी,कराकर चले हैं।।

डरे खंभ ईनसे , खडे ठोक देते।


नशा जोश खंभा, हहलाकर चले है।।

हपया साथ ईनका,हपया को हभडाये।

हपया रोज दुखडा,सुनाकर चले है।।

हपया लोक गाथा, सुने थे शराबी।

हपयक्कड ईन्हें सब,बुलाकर चले हैं।।

लुटी लूट ऐसी ,हमले वोट खाहतर।

खुली पैग पीकर, हपलाकर चले हैं।।

जगत एक आच्छा, कहे हैं शराबी।

शहर को चुनावी, बनाकर चले हैं।।


22. भददया

मतों के हलए मय, हपलाकर चले हैं।

मतो स्वांग ईनमें, रचाकर चले हैं।।

बदन बेचते है , सुरा के हलए जो।

बदन को वसन से,हटाकर चले हैं।।

ऄधोवस्त्र रहकर ,करे सोम पूजा।

नशा युि सेवन,हपलाकर चले हैं।।

हवदेशी स्वदेशी, सुरा भेद रखते।


हबयर बार भाषा, लडाकर चले हैं।।

सुरापान ठराक , स्वदेशी कहाते।


ऄूँग्रेजी सभी को,पढ़ाकर चले हैं।।

सुरा दूत बसते , ददलों में ईन्हीं के ।


हजन्हें नोट कं बल,बूँटाकर चले है।।

युवा नौकरी के , भटकते रहेंगे।

चुनावी हबगुल में,बजाकर चले है।।

करो बूथ कै प्चर, यही यूथ सेवा।

युवा अज हसर को,नवाूँकर चले है।।

मदोमत्त साथी ,हमले मंच फोडू।

नया दल वहीं से, बनाकर चले है।।

हवभीषण जगत में,कइ घर फोडू।

वही दाल ऄपनी, गलाकर चले है।।


23. पैशन

नये रोज फै शन, बनाकर चले हैं।

फटा ऄंग कपडा,लगाकर चले हैं।।

हबना मूूँछ ऄपनी,शकल को सूँवारे ।

हबना बाल मुंडी, मुडाकर चले हैं ।।

बनी शटक छोटी ,बदन को ददखाये।

आधर पैंट कच्छा, ददखाकर चले हैं।।

भले मन शहर में, ददखेगें ऄनूठे।


ईन्हें रूदढवादी, बनाकर चले हैं।।

चकाचौंध फै शन, हुइ दीन दुहनया।


लगे हम वतन को, गुमाकर चले हैं।।

यहाूँ काम करता, ऄनोखा जमाना।

धरा चाूँद में घर, बसाकर चले हैं।।

यहाूँ संत सेवा, सदाचार समझें।

करे माल चंपत,ईडाकर चले हैं।।

ऄहवकहसत धरोहर, ऄजन्मे हवचारें ।

सुरहक्षत घरों को, हगराकर चले हैं।।

समझते सुधीजन,हबना बोल के ही।

आशारे आरादे, जताकर चले हैं ।।

करो कमक ऄच्छा,सभी को सुनाते।

हमें ममक ऄपना, बताकर चले हैं ।।


24. भभता

ददखावा सभी को, ददखाकर चले हैं।

सही राह मुहश्कल, बनाकर चले हैं।।

यहाूँ माूँ ममा है, बने डैड बापू।

हछछोरी हवभाषा,हसखाकर चले हैं।।

दकया हठ लला तो, मनाने लगी माूँ।

लुभावन मनों में, हबठाकर चले हैं।।

यही बाल हठ तो, लला की सुहाती।


वही लाल ठोकर, लगाकर चले हैं।।

नहाती धुलाती, सदा साफ रखती।


हजसे अज कोने, हबठाकर चले हैं।।

बदन ताप से माूँ,सुलगती रही थी।


नजर अज बेटा, हटाकर चले हैं।।

सदा अूँख में रख, हनहारा करे थी।

वही अज अूँख,ें ददखाकर चले हैं।।

पकड हाथ पत्नी, शहर में घुमाते।

रखे लाज घर में,हछपाकर चले हैं।।

श्रवण कलयुगी है, करें सास सेवा।

यहां माूँ सगी को, दुखाकर चले हैं।।

रठठु रकर मरी वो,पडी रात भर से।

कूँ धे चार देने , मनाकर चले हैं।।


25. फेटी

हजसे अज ऄपना,बनाकर चले हैं।

वही दाग घर में, लगाकर चले हैं।।

सुरहक्षत नही है, यहां पाल्य घर में।

नजर ऄब पडोसी, गडाकर चले हैं।।

ऄजब मस्त मानव,करे कृ त्य दानव।

सही अग मन में, लगाकर चले हैं।।

यहाूँ कोख बेटी, मशीनें ददखाये।


भला वंश बेटा, चलाकर चले हैं।।

पले कोख बेटी, पता जो दकये थे।


ऄजन्में हशशु को,हमटाकर चले हैं।।

ऄजन्मी धरा पर, बने ये कसाइ।


ईसे कोख में ही, सुलाकर चले हैं।।

सुता क्यों पराइ , करें भेद ज्ञानी।

ददये मौत ईसको,गडाकर चले हैं।।

हबना जग ददखाये,दकये जीव हत्या।

ऄनैहतक दकये ये, पताकर चले हैं।।

हुए चार ददन ही,हबयाही गयी थी।

दहेजी बली में, चढ़ाकर चले हैं।।

यहाूँ हर कदम पर ,पले है दररदे ।

हवस भूख ऄपनी,हमटाकर चले हैं।।


26. हवस
प्रपूँच जाल ऐसा,हबछाकर चले हैं।

लगे सेंक रोटी, हखलाकर चले हैं।।

चहुं ओर फै ले, हवस के पुजारी।

यही धमक ऄपना,बताकर चले हैं।।

घ्रहणत कायक करके ,न बाहलग बताते।

ईन्हें न्याय बच्चा, ददखाकर चले हैं।।

लुटी अबरू जब , करें पैठ नेता।

ईसे पाठ रक्षा, पढ़ाकर चले हैं।।

फले फू लते है, यहाूँ झूठ योगी।

सदा सत्य ईनको,डराकर चले हैं।।

लगे बोल विा, ऄकमकठ प्रशासन।

सभी तीर ऄपना,चलाकर चले हैं।।

नहीं पक सकी तो,यहाूँ दाल ईनकी।

सभी दल दलों को,हमलाकर चले हैं।।

हमयाूँ मुंह हमट्ठू , बने हैं तुम्हारे ।

तुम्हें ही दकनारा, लगाकर चले हैं।।

ददलाने चले थे,हजसे हक यहाूँ पर।

ईसे टू क बातें, सुनाकर चले हैं।।

दररदें पले है, शरण खूब लेकर।

कहें चूक गलती,बताकर चले हैं।।


27. प्रेभ

युवा प्रेम ददल को, लगाकर चले हैं।

ददलो जान ईसको,बताकर चले हैं।।

सभी प्रेम को ऄब,ददली मांग कहते।

हबना वि लडकी, भगाकर चले हैं।।

दुखी बाप होता, परे शान माता।

ददये धौंस बाहलग,बताकर चलें हैं।।

यहाूँ रोज ताने , पडोसी सुनायें।


वही अज सीना,फु लाकर चले हैं।।

हमला खूब मौका, पडोसी भुनाते।


कहाूँ है दकधर है,जलाकर चले हैं।।

युवा सोच बदले, कहे ये जमाना।

जमाना बदलने, भगाकर चले हैं।।

नजर प्रेम ददखता,नशा प्यार लगता।

वही लाज घर की, लुटाकर चले हैं।।

हपता माूँ तरसते, हजसे देख पाने।

हबना बात ईनसे,हछपाकर चले हैं।।

हुइ अूँख सूनी, कहाूँ अज बेटी।

वही नींद सबकी, ईडाकर चले हैं।।

हजसे देख अूँगन,चहकता रहा था।

वही अज ददल को,दुखाकर चले हैं।।


28. प्रेभ

सगे खास ढाूँढस, बूँधाकर चले हैं।

ईन्हें अज ऄपना, बनाकर चले हैं।।

टक-टकी लगाये, नजर राह तकती।

वही घाव ददल में,चुभाकर चले हैं।।

हलए दाहखला थे, बडे से शहर में।

हपता की कमाइ, लुटाकर चले हैं।।

चले आश्क करने , पढ़ाइ बहाने।


गुरु ज्ञान धोखा, ददलाकर चले हैं।।

जगी वासना को, ददए नाम प्रेमी।


जगत प्रेम ददल से,धताकर चले हैं।।

क्षहणक प्रेम ददखता,ऄकल चोट करती।


यहाूँ काम आच्छा ,जगाकर चले हैं।।

करें प्रेम पूजा , बने हैं पुजारी।


सही प्रेम इश्वर, भुलाकर चले हैं।।

सहीं प्रेम करना, न जाना बताकर।

हहया प्रेम घर को, मनाकर चले हैं।।

सही पूत वह है, करे नाम घर का।


हहया मातु ममता, बसाकर चले हैं।।

हप्रये प्राण रहती,बसी ददल तुम्हारे ।


हजन्हें बेसहारे , कराकर चले हैं।।
29. ऩावन प्रेभ

पहथक राह ऄपनी, बनाकर चले है।

पहथक थाह ऄपनी,नपाकर चले हैं।।

हमे अजमाने ,भटक जो रहे थे।

ऄथक चाह ईनमें,जगाकर चले हैं।।

मुझे चाह तेरी, गगन से धरा तक।

पहवत्र प्रेम जग को, ददखाकर चले हैं।।

पहवत्र चाह मेरी, नहीं जान पाये।


जनम सौ जनम तक,हनभाकर चले हैं।।

ईमर भर हमलेगा ,ऄमर प्रेम मेरा।


पलक से फलक तक,जताकर चले हैं।।

परम प्यार ऄपना, ऄधर नाम लेगें।


प्रबल पुण्य सबमें, लुटाकर चले हैं।।

ऄधर प्यास रखते, ऄजर प्रेम में तो।

हवषय वासना को, जुदाकर चले हैं।।

हप्रये तुम बसे हो, हजया में हमारे ।

हहया फू ल ददल में, हखलाकर चले हैं।।

रहे साथ तेरा, जगत साथ होगा।

कसम हाथ ऄपना, बढ़ाकर चले है।।

सनम साथ देना, जनम से जनम तक।

जनम को जनम से,हमलाकर चले है।।


30. प्रप्रमे प्रेभ

कसम प्यार की हम, हखलाकर चले हैं।

ईसे प्यार दुहनया, ददखाकर चले हैं।।

सदा साथ देना ,कभी दुख न देना।

वचन सात फे रे , हनभाकर चले हैं।।

पता क्या हमें था, नहीं चपड छोडे।

हमें बाप दादा, छु डाकर चले है।।

जनम कोसते है, करे ब्याह ऐसा।


ददनों में हसतारे ,ददखाकर चले है।।

बहहन हप्रय झलकता,ननद दोष ददखता।


नजर दोष हममें, हगनाकर चले हैं।।

ससुर सास सेवा, कथा है कहानी।


भजन अप बीती, सुनाकर चले है।।

ननद तंज देती, ससुर तंज देता।

घरे लू हहसा ये, बताकर चले हैं।।

धमक धौंस खाते,हपता माूँ हमारे ।

हमें दास जोरू,कहाकर चले है।।

हप्रये मायके के ,भजन है सुनाती।

हबना ताल हमको,नचाकर चले है।।

करे काम ददनभर, हमें दफर सताते।

न अराम कहकर, सुनाकर चले हैं।।


31. प्रप्रमे

दुखी बाप ईनका, बताकर चले हैं।

सुखी बाप ऄपना, हचढ़ाकर चले हैं।।

सरल भ्रात ईनका, जगत में ऄके ला।

बहहन तीर तेवर,ददखाकर चले हैं।।

खलत अज देवर,ददखे नकचढा सा।

सहज नेक दुश्मन,बनाकर चले हैं।।

पडे काज जैसे , भइया बुलाती।


नहीं नाक भौं को, फु लाकर चले हैं।।

ननद नाज नखरे , हमेशा बताये।


यही एक सीधी, हनभाकर चले हैं।।

सुता गाय जैसी, ददए है जनक जी।


हमें बांध ईससे ,नथाकर चले हैं।।

बनी की बनी है ,हशकायत हमेशा।

नहीं सैर करने ,घुमाकर चले है।।

हमली एक सीधी, कहे है जगत में।

हमें दोष सबका, थमाकर चले है।।

हनठल्ले बने है ,हपता के पुजारी।

बह चाकरी घर, चलाकर चले है।।

बने अज ररश्ते ,वहाूँ टू ट जाते।

जहाूँ जोरु घर को,तुडाकर चले है।।


32. ऩरयवाय

सखा प्रीत भ्राता, छु डाकर चले हैं।

रकम माल ईनका,दबाकर चले हैं।।

बने है पुजारी , भगत राज जोरू।

हमयाूँ लेप चंदन,लगाकर चले हैं।।

बडी नब्ज ईनकी, पकडने लगे तो।

ऄलग हो सभी से, दगाकर चले हैं।।

पडोसी नजारा,समझ भी न पाये।


कहें खूब मारे ,भगाकर चले हैं।।

हजसे नाज करता,हपता था ईसी का।


वही अज ईनको ,रुलाकर चले हैं।।

हजये वासना मय ,बने प्रेम रोगी।


नहीं बाप ऄपना, बताकर चले हैं।।

हमली खूब बीबी,नचाती नजर से।

नचैया मदारी , बनाकर चले हैं।।

जनाना गुलामी, करे है जमाना।

चरणदास सबको, बनाकर चले हैं।।

बजर बाज बजते,डगर साज सजते।

सजन साख ऄपनी, लुटाकर चले हैं।।

हमला साथ बीबी,पडत पाूँव साया।

पलट पीर चप्पल, बताकर चले हैं।।


33. भ्राता

सही मौज भ्राता, ईडाकर चले है।

ऄनुज भोज मुख का, चुराकर चले हैं।।

हनगोडे करम के , धरम साथ देते।

रकम साथ भ्राता, लगाकर चले है।।

हुअ काम ईनका, ऄलग संग बीबी।

हशफर से ईठे हैं , बताकर चले है।।

सफर शून्य प्रेमी,हवलग है ऄजब से।


ऄदब अज कौने, हबठाकर चले है।।

बने भ्रात दुश्मन, सखे साथ साले।


सलीका घरों को,हसखाकर चले हैं।।

हपताजी कहे थे,सगा भ्रात साथी।


सदा साथ देना, कहाकर चले है।।

नजर सामने ऄब, रहें मूक होकर।

ईसे मुख हनवाला, ददलाकर चले है।।

कभी कह न पाये,नहीं हक ददलाये।

ईन्हें सोच मौनी, बनाकर चले है।।

सदा मौन रहते,कही कु छ न कहते।

दबंगी ईसी से, कराकर चले है।।

बने भि ऄंधे , कसौटी कलह में।

खरे मौन चोरी , कराकर चले है।।


34. भ्राता

कहाूँ दंभ ऄपना, ददखाकर चले हैं।

सुता भी दकसी की, भगाकर चले हैं।।

भगे साथ देने , लगे चोर सेवक।

वहीं अज घर को, तुडाकर चले हैं।।

शरम भी न अइ, हपता मौत सोचे।

मजा मौज मस्ती ,मनाकर चले है।।

बुढापे ऄलग कर ,ऄलग रौब धारी।


रसे रास चाखन, चटाकर चले है।।

चटक चाूँस चम्मच, चखे चाख मेवा।


चहकते बगल को,हहलाकर चले हैं।।

सदा कान भरते , करे कान फू सी।


हलाकान चम्मच,कराकर चले है।।

ऄगल कान भरते, बगल कान भरते।

हपछाडा जूँगो में, ददखाकर चले है।।

हछपे वीर चम्मच,लडाइ समय पर।

नहीं थे बताते, बताकर चले है।।

कु शल कान प्रेमी, गुरु ज्ञान भरते।

सुलह जंग भेदी, कराकर चले है।।

हमले गुप्त दानी, दली दाल दलते।

कमी में कमीशन,बनाकर चले है।।


35. धभम
जहाूँ धमक ऄपना, बताकर चले हैं।

वहाूँ कौम झगडा, कराकर चले हैं।।

जहां धमक लुटता, वहां कमक सोता।

यही धमक सबको, हसखाकर चले हैं।।

यहाूँ धमक रोता, बूँटा देख मानव।

सभी क्षेत्र भाषा, बूँटाकर चले हैं।।

बहा खून आतना, बूँटे हैं ऄकारण।

नहीं एक ईनको, कराकर चले हैं।।

समस्या बनी है, हवरत तंत्र ऐसा।

दकसे हम सुधारें ,कहाकर चले हैं।।

जले प्राूँत सारे , प्रशासन न देखे।

हजसे नस्ल भेदी, जलाकर चले हैं।।

हबका तंत्र जबसे, लुटा देश प्यारा।

हजसे देश सेवक, लुटाकर चले हैं।।

ऄलग माूँग करते,ऄलग राज्य माूँगे।

ऄलग की ऄलख वे,जलाकर चले हैं।।

रहे शांत देशी, मरें हैं हजारों।


दकनारे ईन्हें वे, कराकर चले हैं।।

हलए धमक ठे का, करे हैं दलाली।

ईन्हें खून अूँस,ू हपलाकर चले हैं।।


36. ऑपय

दुकानें सभी ही , सजाकर चले हैं।

खुली छू ट वादे, भुनाकर चले हैं।।

हमला धमक ठे का, बपौती हलये जो।

ऄधमी ईन्हें पथ, ददखाकर चले हैं।।

सुरा सुंदरी ये, जरूरत बनी जो।

पतन अदमी का,कराकर चले हैं।।

हवषय मीत आच्छा, पली है हमारी।


हवषय त्याग हशक्षा,ददलाकर चले हैं।।

फूँ से जो नहीं है, फूँ साते जनों को।


गृहस्थी सफलता, सुनाकर चले हैं।।

ईधर मौसमी बन, जमें मौलवी तो।


आधर सूँत समागम, कराकर चले हैं।।

चले भेद समतल, आधर से ईधर तक।

ऄधर में धरातल, कराकर चले हैं ।।

यहाूँ बोल में ही, ददखावट झलकती।

सदाचार ईनको, हसखाकर चले हैं।।

रखो सत्य संयम,करो काम ददल से।

तपस्या यही सब, भुनाकर चले हैं।।

दरश दपक लेकर, चले अज मौला।

कहां अज रोजा, खुलाकर चले हैं।।


37. ईद

आधर इद खाना, हखलाकर चले हैं।

खबर खूब ईनकी, ईडाकर चले हैं।।

चले तीथक हज को,चले खूब पत्थर।

मरे दफर हजारों, गडाकर चले हैं।।

न शैतान मरता, मरा रोज मानव।

ऄमानुष हजन्हें सब,नचाकर चले हैं।।

लगे धमक शेखी, बताने यहाूँ पर।


धरा बाढ लाकर, बहाकर चले हैं।।

दकसे आष्ट माने, दकसे रुष्ट जाने।


कहाूँ पाठ पूजा, कराकर चले हैं।।

बढा पाप कहते ,हहले खूब धरती।

सभी पंथ ऄपनी, बनाकर चले हैं।।

बहे खूब हहन्दू , बहे खूब मुहस्लम।

आसे शहि दकसकी,बहाकर चले हैं।।

ददखा खूब मंजर, सूँभल भी न पाये।


सही मौत ताण्डव,ददखाकर चले हैं।।

कहे पंथ सेवक, सभी मांस खाते।


सही वोट पक्का, कराकर चले हैं।।

बता साधु ढोंगी, लगे धमक हूँसने।

वही खुद कु ल्हाडी,लगाकर चले हैं।।


38. भौरा
हमें मौलवी जी,लडाकर चले है।

वतन से बडे है,बताकर चले है।।

वूँदे मातरम् वे,कहेंगे नहीं जी।

जनाना घरों में,सताकर चले है।।

सुहाती नहीं है,ईन्हें कोटक बातें।

कु रानी हनयम को,हछपाकर चले हैं।।

हनयम में नहीं जो,ईसे वे बनाते।

ऄदालत कमी वे,हगनाकर चले हैं।।

लगे बॉग देन,े शहर को जगाते।

युवा को हजहादी, बनाकर चले हैं।।

बदलते रहेंग,े जनाना घरों की।


ईन्हें काम क्रीडा,बनाकर चले हैं।।

बनी है हखलौना,घरों की जनाना।


जनाना तलाकी,बनाकर चले हैं।।

हत्रया के चररत को,सदा पाक रखना।


कु रानी हकीकत,बयाूँकर चले है।।

हजसे मौलवी जी,बताते ऄलग ही।

ईसे कौम सत्ता,धताकर चले हैं।।

दुखी है जनाना,जहाूँ पर घरों में।


ऄमन चैन ऄपनी,लुटाकर चले हैं।।
39. भौरा
हनयम कोटक सबका,बनाकर चले हैं।

हवहध मूल हक को,बताकर चले हैं।।

हमयाूँजी न माने,ऄदालत की बातें।

समाधान कै से, कराकर चले हैं।।

कहाूँ मूल आनका, कहाूँ ये हवचरते।

कहाूँ पर कयामत,कराकर चले हैं।।

कहीं बम बनाएूँ ,कहीं बम चलाएूँ।

कहीं धमक अतूँक, बनाकर चले हैं।।

कहाूँ से सुधरते,कहीं से न हबगडे।

प्रशासन ईन्हें क्या,हसखाकर चले है।।

न पीढ़ी पढ़ी है, न मौला पढ़ाते।


पढ़ाइ सभी की, सफाकर चले हैं।।

कहें कौम शोहषत, हुअ है हमारा।


कु शासन कु पोहषत, बनाकर चले है।।

हजी छू ट हमलना, नहीं हसफक काफी।

हमले छू ट सारी, मनाकर चले हैं।।

हमी धमक सेवी, हमीं धमक मेवी।

हमें धमक ठे का, ददलाकर चले हैं।।

बने धमक ऐसा, लगे धमक जैसा।

वही धमक दुखडा, सुनाकर चले हैं।।


40. फाफा
हमें योग असन, हसखाकर चले हैं।

हरे रोग असन, ददखाकर चले हैं।।

हवषय से परे को ,कहे योग बाबा।

हमें माल देशी,हबकाकर चले हैं।।

ऄनाचार असन,रुका जब न पाये।

सदाचार भाषण,कराकर चले हैं।।

रखो माल देशी, कहें रोज बाबा।

हवदेशी दलों से, हटाकर चले हैं।।

स्वदेशी बनाने , लगे है कमाने।

कमाइ घरों से ,कमाकर चले हैं।।

दवाइ दुहाइ , दुअ दे रही हैं।

दवा ददक देशी हपलाकर चले हैं।।

दकसे योग अता,ईछल कू द करते।


कसरतें कु लाटी, हसखाकर चले हैं।।

नहीं योग अता, नहीं रोग जाता।

दकसे तत्वदशी, बनाकर चले हैं।।

बने संत ऐसे, रखे खूब पैस।े

जगत हवज्ञ पैसा, बताकर चले हैं।।

यहाूँ संत भोगी ,बने अज योगी।


हबना मंत्र पोथी ,सुनाकर चले है।।

कहानी सुनाते , कथा है बताते।

घरों घर कहानी बनाकर चले है।।


41. फाफा
ऄसल साज सपना, ददखाकर चले हैं।

मुूँगेरी ईन्हें ही, बनाकर चले हैं।।

छले है ऄधमी, बना पैठ पैसा।

सही रूप ऄपना, हछपाकर चले हैं।।

लगे हैं कमाने , हमला धमक ठे का।

गुनी धाम अश्रम ,बसाकर चले हैं।।

गुरु ज्ञान पाते , नचैया नसेडी।

नराधम समागम ,कराकर चले हैं।।

सजा साज सेवक,सुबह शाम सेवा।

सबा शेर सबको,बनाकर चले हैं।।

दबा पैर नेता , रखें पैठ सत्ता।

सहारे धरम के . गडाकर चले हैं।।

हमले शान शौकत,जनों के भरोसे।

भरोसा प्रभु का,ददखाकर चले हैं।।

ऄसम को बनाने ,करे झाड फूूँ की।

हवा में खराबी, बताकर चले हैं।।

हुअ मान मदकन,पुती स्याह काहलख।

ऄधो मान ऄपना, हगराकर चले हैं।।

यथागत यहाूँ से, वहाूँ गान करते।

यशोगान ऄपना, सुनाकर चले हैं।।


42. फाफा

बसे राम ददल में, बताकर चले हैं।

स्वयं सोच रावण, बनाकर चले हैं।।

कहाूँ राम घर में, कहाूँ अज रावण।

कहाूँ कौन सपना, जलाकर चले हैं।।

दशानन बने है, धरम के पुजारी।

हजसे ढोंग बाबा, चढ़ाकर चले हैं।।

हत्रया के चररत को ,कहे संत सेवा।


हत्रया जेल ईनको, कराकर चले हैं।।

बने जेल बाबा , समागम करें गे।


कचहरी ईन्हें डर,ददखाकर चले हैं।।

चमत्कार करते , हनराहार रहते।


सखा प्रीत मेवा, चखाकर चले हैं।।

परायण पुजारी, पृथक पाठ करते।

गुफा धाम अश्रम, बनाकर चले हैं।।

फलाहार बाबा, सदा साूँच कहते।

करो प्रेम सच्चा, हसखाकर चले हैं।।

प्रमुख बात डेरा, समझ में न अइ।

पकड जेल डेरा ,लगाकर चले हैं।।

धरम से रकम तक,रकम से हरम तक।

हरम में रहम क्या,ददखाकर चले हैं।।


43. नचैमा

नचैया जमाना , नचाकर चले हैं।

भगत भाव सेवा, लुटाकर चले हैं।।

हजसे खास कहते, वही रास करते।

वही रासलीला, मनाकर चले हैं।।

हखसकने लगी है, यहाूँ शीषक टोपी।

सही टोप सबको, लगाकर चले हैं।।

ददये दांव झूठा,गला फाूँस बनती।


सही चोर मन में, बसाकर चले हैं।।

जहर घूटं पीकर,सहा ऄब न जाता।


वही सब हमताली, कराकर चले हैं।।

न सरकार चलती,नहीं कार चलती।


नकारे ऄडंगे , लगाकर चले हैं।।

हबना रं ग बदले, हमले खूब हगरहगट।

यहाूँ रं ग ईनका, ईडाकर चले हैं ।।

हमला पास ईनको ,जगत घूमने का।


भ्रमण गीत के गुन,गुनाकर चले हैं ।।

करे खूब ऄनशन,हमला धन न काला।

खुले वस्त्र खाली, कराकर चले हैं ।।

कहाूँ गुम हुये है, हबलों के मसीहा।

सही लोक हबल को,भुलाकर चले हैं।।


44. ननगाहें

कहीं पर हनगाहें ,लडाकर चले हैं ।

कहीं पर हनशाना,लगाकर चले हैं।।

जरा बात खलती,दखल बात ईनकी।

नया संघ ऄपना , बनाकर चले हैं।।

भडकते रहे हैं ,ईसे साथ देकर।

सगा साथ होता,छु डाकर चले हैं।।

समय ने ददखाया, ईसे रं ग बदले।


हजसे अप ईनका,कहाकर चले हैं।।

न करवट बदलता, नही पैठ होती।


सही पैठ ऄपनी, लगाकर चले हैं।।

हजसे देख जलता, रहा था जमाना।


वही अग सबको, तपाकर चले हैं।।

कहीं चाय हबकती, कहीं जोश देते।

कहीं चायवाला, बनाकर चले हैं।।

सनक पे सवारी, करे है हनठल्लू।

हपछल्लू ईन्हें खुद, बनाकर चले है।।

नहीं फजक समझे,न दाहयत्व समझे।

सफल फजक सेवक,हनभाकर चले हैं।।

वजह एक कारण, हगनाते रहेंगे।

ईन्हें खूब चक्कर, लगाकर चले हैं।।


45. सपाई

सुरहक्षत रहें सब,मनाकर चले हैं।

प्रदूषण रहहत जग,बनाकर चले हैं।।

सडक साफ करना,यही काम है ऄब।

सफाइ महोत्सव,कराकर चले हैं।।

बहाने आसी के , मुनाफा हमलेगा।

सभी यार झाडू, लगाकर चले हैं।।

जमा हो न पानी , न गंदा कहीं भी।


नगर में हनगम ये, सुझाकर चले हैं।।

समस्या बनी है, हुइ जाम नाली।


यहाूँ कौन आसको, सफाकर चले हैं।।

सडक काल गड्ढे, भरे और पानी।

हबना मौत दावत,ददलाकर चले हैं।।

हुइ शाम छाया, गजब ऄंहधयारा।


लगे बल्ब हबजली, ईडाकर चले हैं।।

पडी गंदगी जो, सडक के दकनारे ।

प्रदशकन शहर का, ददखाकर चले हैं।।

क्षुधा को हमटाने, लगे खोजने पशु।

सडक पर हनगम को,लजाकर चले हैं।।

करे काूँव कौअ, सभी को हचढ़ाये।

सुऄर गंदगी को , हटाकर चले हैं।।


46. नगयऩालरका

सभी टेक्स ऄपने, पटाकर चले हैं।

हबना दाम हबजली, बढ़ाकर चले हैं।।

भले जानवर भी,हनगम काम करते।

भला टेक्स ईनको, पटाकर चले हैं।।

टपकता नलों में,कभी भी न पानी।

यहाूँ रोज पानी, लडाकर चले हैं।।

घमासान करते, नलों में यहाूँ पर।


ईन्हें अज पाषकद, बनाकर चले हैं।।

चुने है तभी से, न अये यहाूँ पर।


सभी बात नल में, ददखाकर चले हैं।।

तरसता रहा है, यहाूँ बूंद पाने।


ईमस ये नलों को, सुखाकर चले हैं।।

नगर में हनगम का,बना माल जबसे।

सभी माल ऄपना, बनाकर चले हैं।।

हबना माल पानी, हमलेगा न पीने।

हपये माल खाकर, हपलाकर चले हैं।।

भवन को बनाने, भटकते रहे वे।

करें पास नक्शा, कमाकर चले हैं।।

भवन पास करने,हलये दौड करते।

दबूँग नाम नेता, भुनाकर चले हैं।।


47. नगयऩालरका

खुली संहवदा को ,बुलाकर चले हैं।

ईसे पास ऄपने, कराकर चले हैं।।

हबना रे त पानी, सडक ऄब बनेगी।

सभी दाल ऄपनी, दलाकर चले हैं।।

कमी पूर्थत सब, हखलाकर करें गे ।

गलत को सही,सब बनाकर चले हैं।।

खुले और हनहवदा, ईन्हीं के हवाले।


हमले बाूँट खाते, हछपाकर चले हैं।।

शहर है प्रदूहषत, भले काम होते।


प्रदूषण रहहत पत्र,बनाकर चले हैं।।

चुूँगी टोल नाका, करे जेब डाका।


हबना दाम बोली, लगाकर चले हैं।।

लगे टेक्स लेने,धमकते कहीं भी।

बसूली धुरंधर, कराकर चले हैं।।

नगर अज शोभा,सुपारी बना ये।

कइ दाग धब्बे, लगाकर चले हैं।।

गली संकरी है, हनकल भी न पाये।

ऄूँधरे ी सडक भी,खुदाकर चले हैं।।

सडक बीच ऐसे , खडे जानवर ये ।

शहर की बपौती, बताकर चले हैं।।


48. पर्यावरण

दमकती धरा को, हहलाकर चले हैं।

हसयासत हबना पग,जमाकर चले हैं।।

नहीं बैर रखती, धरातल दकसी से।


ईसे रोज शोहषत, कराकर चले हैं।।

सूँभलते नहीं जो, हगरे मुंह औंधे।


ईन्हें सीख देकर, ईठाकर चले हैं।।

सने धूल पत्ते, हवा खौफ खाती।

प्रदूषण सबक सब,हसखाकर चले हैं।।

हशहवर जो लगे थे, पुराने हुए सब।


हबना बाड पौधे, लगाकर चले हैं।।

हमला ही न पानी,पनपते भला क्या।


समारोह वन में, मनाकर चले हैं।।

लगा पेड घर-घर, बना अज नारा।


लगाते कहीं जल, बहाकर चले हैं।।

ऄकारण न काटें, हरे पेड प्यारे ।

हवा पेड जीवन, लुटाकर चले हैं।।

सदाताप सहता, धरातल हमारा।

कटे पेड कारण ,बताकर चले हैं ।।

न पानी यहाूँ पर,कुूँ अ पाट खाली।

सतह गमक होता, पढ़ाकर चले हैं।।


49. प्रदष
ू ण

बडे कारखानें, लगाकर चले हैं।

प्रदूहषत धुूँअ को,ईडाकर चले हैं।।

हवा संग पानी,प्रदूहषत दकए हैं।

नदी में प्रवाहहत,कराकर चले हैं।।

नदी गंदगी की, कहानी सुनाती।

हवन सामग्री भी,हगराकर चले हैं।।

खुले शौच जाना,नदी के दकनारे ।


वही गंदगी को ,बढ़ाकर चले हैं।।

बनी राग सेवा, शहर को सुधारो।


बहाओ न पानी, बहाकर चले हैं।।

सडक पर सुरक्षा,बढ़ी लोग देख।ें


प्रनेता सफाइ, कराकर चले हैं।।

ऄडे अज पद में, बडी शान मारे ।

हमले पान जब से,चबाकर चले हैं।।

न थूके कहीं ये,न हनगले यहाूँ पर।

सदा मुह
ं भरके , फु लाकर चले हैं।।

प्रसव पीक पीडा, खुला मुंह जाने।

लला लार मुख से,बहाकर चले हैं।।

रखो स्वच्छ सपना,वतन कमक बनता।

कहें राम हसर को, नवाकर चले हैं।।


50. नदी सपाई

नदी गंदगी से, भराकर चले हैं।

ईसे नाहलयों से, हमलाकर चले हैं।।

गटर से हमले जब,नदी स्वच्छ धारा।

महलन धार ऄपनी, बहाकर चले है।।

प्रचारी हवा से,हुअ स्वच्छ भारत।

प्रभारी सफाइ, कराकर चले हैं।।

सफे दी झलकती,बना झाग पानी।


लगे बफक चादर हबछाकर चले हैं।।

बनारस गूँगा से, कवायद शुरु है।


हवा दाग धब्बे ,छु डाकर चले है।।

महानद नदी से ,जुडे तार सारे ।

महल रे त में ही, बनाकर चले हैं।।

पले मादफया है, नदी के सहारे ।

नदी रे त से ही, कमाकर चले है।।

हखवैया ऄलग है ,ऄलग है खवैया।

खुले खान खाना,हखलाकर चले है।।

बचत टैंक पानी, बनी बंद बोतल।

रुपैया ईसी से, बनाकर चले है।।

हपयो शुद्ध पानी,कहें खेल प्रेमी।

बना ब्राण्ड ऄपना,हबकाकर चले है।।


51. नदी

नदी सूखती है ,ददखाकर चले हैं।

जलाशय लबालब,बहाकर चले हैं।।

नहर योजना भी, धरी की धरी है।

नइ योजना दफर,बनाकर चले है।।

नहर थी जहाूँ पर,वहाूँ ऄब नहीं हैं।

रपट दजक ईसकी,हलखाकर चले हैं।।

हजारों डकारे ,नहर की खबर में।


नहर गुप्त बहती, ददखाकर चले हैं।।

नजर भी न अइ,बनी जो नहर थी।


सघन जाूँच ईसकी, कराकर चले हैं।।

वृहत कायक करने , बनी है कमेटी।


गरठत साक्ष्य सबको,नहाकर चले हैं।।

नहर को नहर से, लगे जोडने दफर।

नदी को नदी से, जुडाकर चले हैं।।

करोडों बहे तो,करोडों बने भी।

करोडों करोडी, कमाकर चले हैं।।

हसचाइ वृहद हो, हुइ घोषणा जब।

हररत क्रांहत ये लह,लहाकर चले है।।

फसल मार खाती ,कृ षक मार खाते।

कृ षक मौत खाने, खुलाकर चले है।।


52. बफजरी
खडे पोल हमको, हचढ़ाकर चले हैं।

पतूँग तार में फड, फडाकर चले हैं।।

खडा खंब हहलता, डराता सभी को।

धुरंधर हवभागी, पताकर चले हैं।।

हगरा अप खंभा,दबे कौन ईसमें।

ईसे जांच करके , ईठाकर चले हैं।।

मरा न कोइ, हताहत न कोइ।

कमी पूर्थत ऄपनी,बनाकर चले हैं।।

ऄूँधेरा गजब का, ईजाला खरीदे।

कनेक्शन हबना हबल,थमाकर चले हैं।।

कनेक्शन हुअ है, वहाूँ हबल न अये।

हबना हबल कनेक्शन,कटाकर चले हैं।।

तकें अूँख हबजली, गजब ढा रही ये।

कटौती यहाूँ पर, कराकर चले हैं।।

पतूँग वीर ददखते,हलये बाूँसडा सूँग।

हहले तार हबजली, ईडाकर चले हैं।।

ऄूँधेरा हुअ पर, रूँ गीला आलाका।

हवा शांत ईनको, कराकर चले हैं।।

नहीं सींच पाते ,बुअइ न होती।

लुटी अज खेती, रुलाकर चले हैं।।


53. फीज

महकती धरा को, लजाकर चले हैं।

चहकते चमन को,दुखाकर चले हैं।।

सही बीज ऄंकुर, न होगें कभी भी।

हबना खाद पानी, बगाकर चले हैं।।

गलत बीज बोकर,सही अश रखते।


सजल नैन ईनमें, बहाकर चले हैं।।

न सावन बरसता, घटा भी न छाइ।


हबना नाूँव माूँझी,बहाकर चले हैं।।

कृ षक पाूँव पडता,मदद माूँगता है।

फसल रोप कजाक, ददलाकर चले हैं।।

पडा पेड नीचे, हगरा नेक पत्ता।

हजसे साफ करके , हटाकर चले है।।

तना ऄब बना है,सुदढृ साख शाखा।


सजावट घरों की बनाकर चले हैं।।

आमारत बनाने,कटे पेड जंगल।

बना ताज कु सी,सजाकर चले हैं।।

बहा तेज पानी, धरा अज सूखी।

सजा मौत पानी,ददलाकर चले हैं।।

सडक में बहेगा, हमले मुफ्त पानी।

वहीं मुि गढ्ढे, बनाकर चले हैं।।


54. कृषक

कृ षक श्राद्ध ऄपना, मनाकर चले है।

मृतक भूख कारण, बताकर चले है।।

लगा लोन मेला, ददए कजक सारा।

फसल सूखती है, रुलाकर चले हैं।।

हसचाइ नहीं थी,ईपज कम हुइ थी।


बसूली हमेशा , सताकर चले हैं।।

चढ़ा ब्याज कजाक ,ईतर ही न पाये।

वजह बेवजह भय,ददखाकर चले है।।

हनलामी करें ग,े करे खेत कु की।

फसल खेत से ही, कटाकर चले हैं।।

कमर टूटती है , नजर ढू ूँढती है।

हबना ददक ऐसा, हछपाकर चले हैं।।

ईपज खूब होती, नहीं दाम हमलते।

सडक में फसल को,जलाकर चले हैं।।

कहीं प्याज सस्ती,कहीं प्याज महूँगी।

कहीं प्याज सबको,रुलाकर चले हैं।।

कभी प्याज कटती,बढे दाम जैस।े

नमक हमचक ईसमें,लगाकर चले हैं।।

ऄधर में हुअ है,कृ षक अज देखो।।

ईसे खेत साधन,ददलाकर चले हैं।।


55. कृषक

सही साज साधन,जुटाकर चले हैं।

ईपज दो गुनी ही,कराकर चले हैं।।

फसल खाद पानी ,कृ षक के हलए है।

सूँसाधन ईन्हें सब, ददलाकर चले हैं।।

परख बीज ईनको, कहाूँ ज्ञान होगा।

जैहवक ईपज ही,हसखाकर चले हैं।।

जुताइ कराता, बुअइ कराता।


समय पर हनदाइ, कराकर चले हैं।।

धरा को सूँवारे , कृ षक नेक श्रम से।

दगा साथ मौसम,ददलाकर चले हैं।।

फसल मार खाती ,कृ षक मार खाता।

मदद भी दकसी को, ददलाकर चले हैं।।

नकद माल धारक, फसल कौन चाहे।

महाजन ईन्हें ऊण, ददलाकर चले हैं।।

चुकाये न ऊण तो, दखल खेत रखते।

महाजन वसूली ,कराकर चले हैं।।

बढ़ा ब्याज जैस,े हबका खेत ईसका।

जमीनी हकीकत, बयाूँकर चले हैं।।

कृ षक देखता है, ईजडते चमन को।

चमन साथ ईसका, छु डाकर चले हैं।।


56. कृषक

कृ षक अत्म हत्या, कराकर चले हैं।

रकम कु छ सहायक,ददलाकर चले हैं।।

नजर मात खाती, कहाूँ कौन रहता।

दकसे काम ऄपना, हनभाकर चले हैं।।

कहीं वृहष्ट ओला, कहीं बाढ़ पीहडत।

ईन्हें मौन राहत, ददलाकर चले हैं।।

फसल सूख जाती, कहाूँ बाढ़ अती।


कहाूँ खूब दौरा , लगाकर चले हैं।।

चली तेज अंधी, हुइ बंद हबजली।


खुली पोल खूँभे , हगराकर चले हैं।।

जगे रात भर पर, न लाइट अइ।


पहल कौन करता, जगाकर चले हैं।।

हवा जब चली तो, हुइ ताजगी सी।

महक फू ल तन की, लुटाकर चले हैं।।

चले सुंदरी जब, हवायें बदलती।

कहाूँ अज हबजली, हगराकर चले हैं।।

घटा घुप्प छाया ,शहर रात लुटती।

ईचक्के मजे मन, मनाकर चले हैं।।

शहर ताकता है , गली और सडकें ।

सडक पर तबाही, मचाकर चले हैं।।


57. फीभायी

जुगत सीट कोटा, लगाकर चले हैं।

चयन खास डाक्टर, बनाकर चले हैं।।

हनवारण हमलेगा, जहाूँ रोग फै ला।

दवा में कमीशन , बनाकर चले हैं।।

कमाइ धमाइ ,नहीं कु छ यहाूँ पर।

सही चाल ऄपनी, जमाकर चले हैं।।

गरीबी घरों पर, बहुत रोग पाले।


हवदेशी हचदकत्सा,कराकर चले हैं।।

रखे रोग मन में,हशकायत परोसे।


हवदेशी आलाजें, कराकर चले हैं।।

वजन कम न होता,दुखी मन सुनाते।


बढा पेट ईनका, न खाकर चले हैं।।

मुटापा बढ़ा है, खुला पेट ददखता।


सभी राज ईसमें, दबाकर चले हैं।।

ललाते नहीं हैं, नहीं ये ऄघाते।

गधे खास चारा, पचाकर चले हैं।।

सदा भूख बढ़ती,हमटाती नही तो।

दवा हाजमोला, चबाकर चले हैं।।

हजये है हजारों, यहां ददक लेकर।

दुखी मन ईन्हें ही, सुनाकर चले हैं।।


58. दवा

कहाूँ ददक देकर, ददलाकर चले हैं ।

हुअ रोग डाक्टर,ददखाकर चले हैं।।

कइ रोग पाले, ऄंदश


े ा ऄघारे ।

हबना ददक सेहत, हगराकर चले हैं।।

दवा अज लेने, गये हाट कबसे।

सुने भाव चक्कर, हखलाकर चले हैं।।

यहाूँ लक्ष्य पूरा, करो साल में तुम।


ऄधूरा हनलंबन, कराकर चले हैं।।

हनयोजन कराने,हशहवर भी लगाना।


हुइ चूक सबको, सुलाकर चले हैं।।

सुखी अज जीवन, रहेगा तुम्हारा।


हमें दो हमारे , हसखाकर चले हैं ।।

हबना फीस डाक्टर, यहाूँ ठीक करते।


दवा खूब हलखकर, कमाकर चले हैं।।

सडक छाप डाक्टर, यहाूँ खूब फै ले।

कइ मौत जन को, ददलाकर चले हैं।।

कइ रोग फै ले, हचदकत्सा कमी से।

दवा भी नदारद, कराकर चले हैं।।

हबके खून पैसा, बना अज साधन।

खुले बैंक ब्लड को, चलाकर चले हैं।।


59. दवा

हमले चोर दकडनी, हबकाकर चले हैं।

बुरे काम पैसा, कमाकर चले हैं।।

नया काम धंधा, करे ऄंग चोरी।

हजसे भय गरीबी , सताकर चले हैं।।

दवा वो हछडकते, हटे रोग डेंग।ू

ऄसर हनत्य मच्छर,ईडाकर चले हैं।।

हचदकत्सक करे क्या,नही है दवा तो।

दशा रोग रोगी, बढाकर चले हैं।।

भयानक हुअ जब, हुये बहुत रोगी।

सुरहक्षत नहीं है , बताकर चले हैं।।

दवा हमल न पाइ , तडपता रहा वह।

जमाखोर कै से , दबाकर चले हैं।।

सूँक्रामक हुअ है, यहाूँ रोग फै ला।

छु अछू त मौका, भुनाकर चले हैं।।

गजब काम करता,ऄजब नाम देकर।

हवा वात कहकर, कमाकर चले हैं।।

हवा उपरी है , लगे मंत्र जपने।

गुरू मंत्र ईनको, हसखाकर चले हैं।।

गूँगा जल हछडकते, भभूतें लगाते।

ऄसर दुष्ट अत्मा ,बताकर चले हैं।।


60. दवा
ददए दंश नस्तर, चुभाकर चले हैं।

दवा ऄंश कडवी, हपलाकर चले हैं।।

परे शान रोगी, भटकता यहाूँ पर।

बडा रोग ईसको, बताकर चले हैं।।

हमला एक रोगी , डरा रोग भोगी।

हचदकत्सा कराने, लुटाकर चले हैं।।

बढ़ा रोग कै से , बताये न कोइ।

वही लाश ऄपनी, ईठाकर चले हैं।।

बुरा हाल होता, समाचार रोता।

हबना वार सबको, दुखाकर चले हैं।।

हनयंत्रण नही कु छ,प्रणाली गजब की।


यहाूँ से वहां तक, भगाकर चले हैं।।

हचदकत्सक ददलाएूँ, दवा की दुहाइ।


दकसे दोष दुखडा, सुनाकर चले हैं।।

हशहवर हनत्य आनके ,लगा ही करें ग।े


महादान चंदा , बनाकर चले हैं।।

दवा है नदारद, जहाूँ रोग फै ला।

दवा मुफ्त हवतरण, कराकर चले हैं।।

करो क्षेत्र दौरा, मरीजें हनकालो।

सुरक्षा सूँजीवन, हभजाकर चले हैं।।


61. दवा

कु पोषण रहहत सब ,बताकर चले हैं।

रहे स्वस्थ मानव, हसखाकर चले हैं।।

कहीं रोग फै ला, कही शोक फै ला।

जहर दारु में वे, हमलाकर चले हैं।।

पले रोग जमकर, हजसे लोभ रहता।

दवा खूब खाकर, हजयाकर चले हैं।।

दमा श्वांस रहता, बढा है शुगर भी।


हमले एक चचता, जलाकर चले हैं।।

कहीं पर नहीं है,हचदकत्सक जहाूँ पर।


हचदकत्सा हमलेगी,हलखाकर चले हैं।।

सडक छाप डाक्टर, हमलेंगे यहां पर।


हबना नब्ज पकडे, ददखाकर चले हैं।।

हबना रोग देखे , दवा ही हपलाते।


सफल राज तुक्का, चलाकर चले हैं।।

खुले कान सुनते, बहधर हैं बताते।

हबना अंख रास्ता, बताकर चले हैं।।

ऄपूँग दौड पडते, हमारी दवा से।

दवा बेच सबको, छलाकर चले हैं।।

पढ़े मूखक बनते, ऄहशहक्षत बनाते।

हलये नोट सपने, सजाकर चले हैं।।


62. सकभम

नया काम साहस, ददखाकर चले हैं।

वही जोश सबमें, जुटाकर चले हैं।।

मुसीबत पले हैं, नये काम से जब।

समाधान चक्कर, लगाकर चले हैं।।

धरे ढेर सपने, शूँकायें समेटे।

कइ रोग पाले, दवाकर चले हैं।।

यहाूँ देखते हैं, बुराइ ईसी में।


हजसे सब बुरा ही,बनाकर चले हैं।।

भला अदमी तो, सभी को सुहाता।


बुरे को बुरा क्यों, बनाकर चले हैं।।

करो खास ईसमें , बुराइ तजे वह।


सही राह ईनको, ददखाकर चले हैं।।

पडे शांत कै से, यहाूँ चजदगी से।

दुखी चेहरा सा, बनाकर चले हैं।।

ईन्हें चजदगी ऄब, नहीं रास अती।

हजसे झूठ पानी, हपलाकर चले हैं।।

हसतारे धरा से, ददखे है हजारों।

ईसे अूँच ऄपनी, ददखाकर चले हैं।।

भली राह चुनने, भटकते रहे जब।

गलत राह सेवक, बनाकर चले हैं।।


63. करभ

कलम से कलम को, डु बाकर चले हैं।

कलमकार खुद को ,बताकर चले हैं।।

हलखे गीत जबसे, कलम के हसपाही।

बने मीत ईनके , सुधाकर चले हैं।।

हलखे अज ऐसा, हवचारे सभी ये।

दकसे शमक ऄपनी, लुटाकर चले हैं।।

बने गीत बेमन, दकसे अज भाते।


हबना साज सुर को,लगाकर चले हैं।।

सधे तार सुर के , सुरों को सजाते।


जुडे तार ददल के , सुनाकर चले हैं।।

प्रबल लेखनी के , रहचयता नदारद ।


सबल लेख ईनका, चुराकर चले है।।

दकए मंच साझा, पढे गीत ईनका।

खुली वाहवाही, लुटाकर चले है।।

पुरस्कृ त नहीं है, रहचत काव्य सेवी।

नकलची पुरस्कृ त, कराकर चले हैं।।

ददखा दंभ ईनका,दुखी कौम ईनका।

पुरस्कार वापस, कराकर चले है।।

सकल श्रृव्य प्रेमी,सदन साथ भौंके ।

सुरहक्षत नहीं है, बताकर चले हैं।।


64. ऩाठशारा
ऄलख ज्ञान सागर ,जलाकर चले हैं।

ऄसल मान ऄपना, बढ़ाकर चले हैं।।

ऄमानुष जहाूँ है,ऄसाहहत्य वहाूँ है।

ईन्हें ज्ञान थोथा, पढ़ाकर चले है।।

पढे क्या हलखे क्या,परे है समझ से।

सडक छाप हरकत ददखाकर चले है।।

ऄजब मीहडया है , खबर को बनाने।

मखौली हकीकत, बयाूँकर चले हैं।।

हनजी पाठशाला, खुले हैं ऄजब से।

कलम ड्रेस ऄपनी,हबकाकर चले हैं।।

पढ़ाइ कराने , ट्डूशन लगाते।

धरम ज्ञान बेदी, चढ़ाकर चले हैं।।

ददमागी ईपज में,ददए खाद पानी।

सदाचार माला, जपाकर चले हैं।।

सकल सूरमा ऄब,सदाचार पढ़ते।

समाचार ईनका, बनाकर चले हैं।।

ऄलग पाठ भाषा,ऄलग वेशभूषा।

ऄलग ही दकताबें, पढाकर चले है।।

दकताबें बहुत है, बढ़ा बोझ बस्ता।

लगे पीठ बोझा, ईठाकर चले हैं।।


65. लशऺा

ऄहशक्षा गरीबी, पलाकर चले हैं।

हनयम सवक हशक्षा, बनाकर चले हैं।।

यहाूँ पेट भरना, समस्या बना ऄब।

ईन्हें भूख चचता, सताकर चले हैं।।

गुरू जी बने है, यहाूँ पर सहायक।

चयन खास भती, कराकर चले हैं।।

पढ़ाओ हसखाओ, लगे खूब नारा।

लगी भूख ईनकी, हमटाकर चले हैं।।

पढोगे हलखोगे, बनों खूब ऄच्छे।


यही सब कहानी, सुनाकर चले हैं।।

पडे हैं हजारों, गुरूकु ल में हमारे ।


यहाूँ माूँग हक की,ईठाकर चले हैं।।

सयाने बने है, सभी लोग ऐसे।


हमलेगा हमें क्या,सुनाकर चले हैं।।

यहाूँ रोज छोरा, हमारा कमाता।

ईन्हें स्कू ल भेजें, सुनाकर चले हैं।।

सडा भोज खाकर,हुये छात्र रोगी।

सडा भोज ईनको,सुलाकर चले हैं।।

हवपक्षी कहे हैं, प्रशासन सोता।

ईन्हें भेद दाना, चुगाकर चले हैं।।


66. लशऺा

हबना शुल्क हशक्षा,बताकर चले हैं।

दकसे ये दकताबें, बूँटाकर चले हैं।।

पढाइ कराना, बना है मुसीबत।

महंगी पढाइ, रुलाकर चले हैं।।

रसोपान करते, कु पोहषत हुये जो।

यही योजना ददल,दुखाकर चले हैं।।

धरे हाथ बैठें, दकताबी हमेशा।


रजो धूल हडग्री, जमाकर चले हैं।।

ऄहशहक्षत यहाूँ पर,नकल पास करते।


ऄभयदान ईनको,ददलाकर चले हैं।।

हसहाूँसन हमला है,हवरासत धरोहर।

चयन अज ईनका,कराकर चले हैं।।

सही कौन हशक्षा, करे है यहाूँ पर।

ईसे अज कोटा,ददलाकर चले है।।

हबना बात के ये, बतंगा बनाते।

लगे तंत्र ईनको, फूँ साकर चले हैं।।

दकसे हम सुधारें ,न हबगडा जमाना।

जमाना हमें ही, हसखाकर चले हैं।।

हमले अज हशक्षा,जगत में सभी को।

सदाचार हशक्षा, पढ़ाकर चले हैं।।


67. लशऺक

गुरू को हनलंहबत,कराकर चले हैं।

पढ़ाइ ईसे ही , लजाकर चले हैं।।

कमीशन बना है, सही जांच होगी।

कमी पूर्थत ईनमें, बूँटाकर चले हैं।।

लगे कोसने सब, ईसे दोष देते।

कमीशन बरी सब,कराकर चले हैं।।

करा ट्ांसफर वह, शहर में बसेगा।


हबना स्कू ल हशक्षक,कराकर चले हैं।।

न हशक्षक यहाूँ पर,ऄहतहथ ही पढ़ाते।


ईन्हें पाठ ईनका, हसखाकर चले हैं।।

पढ़ाने हलखाने, ईन्हें जब डराते।


वही छात्र ईनको, डराकर चले हैं।।

चले रोज गणना, कराने घरों में।

हुइ बंद हशक्षा, हगनाकर चले हैं।।

दवा पोहलयो की, लगे है हपलाने।

घरों घर सभी को,हपलाकर चले हैं।।

पढाइ हमलेगी, सभी को यहाूँ पर।

सूँवारे सुरों को, सुनाकर चले हैं।।

हनवाला ददया है, छु डा के हनवाला।

कहीं भोज करते , कराकर चले हैं।।


68. लशऺक

धरम पाठशाला , पढ़ाकर चले हैं।

सफल साख ऄपनी,बनाकर चले हैं।।

रटदफन बैग देकर , हबठाए बसों में।

हलो हाय कहकर, हवदाकर चले हैं।।

धहनक बल बलों में,हबकी अज हशक्षा।

सबल साथ हशक्षा,हबकाकर चले हैं।।

ऄकल के धनी तो, पढ़ाइ करें ग।े


नकलचोर ऄव्वल, बनाकर चले हैं।।

ररयासत हसयासत,कयामत आन्हीं की।


हशकायत ईन्हीं की,कराकर चले हैं।।

ऄसल कौन होता, सफल कौन होता।


सफल को ऄसल ये, बताकर चले है।।

टयूशन पढाते, घरों घर पढाते।

गुणी हशष्य घर में, पढाकर चले है।।

सबक पाठ हमलता,ईसे हल कराते।

करठन प्रश्न सब हल,कराकर चले हैं।।

हबकी है व्यवस्था, धहनक के सहारे ।

ऄहतहथ अज हशक्षक,बनाकर चले है।।

बने संहवदा हशक्षक,यहाूँ पेट खाहतर।

यही भूख ईनको,हबकाकर चले है।।


69. आफपस
समय पर न अदफस,खुलाकर चले हैं।

हलहपक फाआलों को,जमाकर चले हैं।।

समय पर न अते ,समय के प्रदाता।


सदा देर अदत , बनाकर चले हैं।।

हमले यार चम्मच, लगाते जुगत सब।

हपला चाय ईनको ,फूँ साकर चले हैं।।

लगा रोज चक्कर, परे शान करते।


हबना पान चूना,लगाकर चले हैं।।

दफतरतें सुधारे , सुधरती नहीं ऄब।

हमले नोट हर ददन, दुअकर चले हैं।।

सकल सख्त होती, कमी पूणक कर दो।


ऄकारण ईन्हें वे , झुमाकर चले हैं।।

हमला जब न पैसा ,गुमे पत्र ईनके ।


पुनः पत्र ईनसे, मूँगाकर चले हैं।।

दकसे कब ददये थे,कहाूँ कौन था जब।

वही बात मत्थे , चढ़ाकर चले हैं।।

ऄरे अज बाबू, नहीं है यहां पर।


पता है नहीं कु छ, बताकर चले हैं।।

नहीं कल हमलेंग,े बहुत काम ईनको।


समारोह मंथन , कराकर चले हैं।।
70. लरप्रऩक

हलहपक संघ बैठक ,बुलाकर चले हैं।


रखे माूँग पूरी ,कराकर चले हैं।।

बढे दाम सबके , न वेतन बढा है।

हलहपक काम ज्यादा, बताकर चले हैं।।

समय के धनी है,हलहपक राज सेवक।

भला नाम बाबू ,बुलाकर चले हैं।।

समय काटते है, दकसी भी बहाने।


नया काम मौका,भुनाकर चले हैं।।

नया बॉस अते, जुगत यूूँ लगाते।


सही गुर ररझाने ,पताकर चले हैं।।

चले चाय पीने,बहुत काम करते।

बहुत काम बाकी, बताकर चले हैं।।

नहीं बैठ पाते, कहाूँ है रठकाना।


रठकाना सभी से ,हछपाकर चले हैं।।

हुअ पास हबल जब ,लगे रोज चक्कर।

सदा व्यस्त बाबू,बताकर चले हैं।।

प्रमोशन हमला हैं,ईन्हें वणक कारण।

हनयम ऄब सभी वे,धताकर चले हैं।।

हमले खूब खाने ,बनाकर कमीशन।

सही को गलत वे, बनाकर चले हैं।।


71. यं गबेद

रखो लाज ऄपनी, हसखाकर चले हैं।

बुरे भाव मन में , जगाकर चले हैं।।

हमले तथ्य ऐसे, लरजते रहे दफर।

शहर छोड बदली, कराकर चले हैं।।

करवटें बदलती, हसयासत हमेशा।

हमें पीठ ऄपनी,ददखाकर चले हैं।।

ऄजब धमक भाषा, यहाूँ की जुबानी।


गढी जो कहानी , सुनाकर चले हैं।।

लगे रं गरे जी , रूँ गो को रूँ गाने।


यही भेद सबको,लडाकर चले हैं।।

हवकट है समस्या, बना जाहतयों में।


बुझी अग ईनमें, लगाकर चले हैं।।

जला राष्ट्र ईनसे, रहा भेद कारण।

दमन नीहत ईनको, दबाकर चले हैं।।

ईन्हीं को लडाते,ईन्हीं को हभडाते।

ईन्हें अज जूँग में,फूँ साकर चले हैं।।

ईन्हें मुफ्त खाना, हखलाते रहे थे।

हनवाला ईन्हीं का,चबाकर चले हैं।।

हजयो दंभ से तुम,दया का न खाओं।

सभी में तपोबल, बढ़ाकर चले हैं।।


72. आयऺण

ऄमन चैन घर की, लुटाकर चले हैं।


ऄलग वगक कौमी ,बनाकर चले हैं।।

व्यहथत मौन रहकर,सहे भूख ऄपनी।


ईन्हें कौन भूखा , बनाकर चले है।।

दहलत घात करता, न कोइ हवचारे ।


दहलत चोट ऄपनी , भुनाकर चले हैं।।

करे मंच मंथन , हुए दल आकट्ठे।


वतन शोध पोहषत,ददखाकर चले हैं।।

कु पोहषत हुअ है , दहलत एक प्राणी।


ईन्हें कोष खाना,हखलाकर चले है।।

कहें राज्य हपछडा,करे वोट पोहषत।


ऄहवकहसत खजाना,बनाकर चले हैं।।

ईदर पोष होता , आधर कोष ढोता।

वजन जेब ऄपनी, बढ़ाकर चले हैं।।

दहलत क्या फहलत हैं,हुअ कोष खाली।


हजन्हें खास कोटा , ददलाकर चले हैं।।

ईन्हें नौकरी सूँग, पदोन्नहत हमलेगी।


फहलत तंत्र पोषक,बनाकर चले हैं।।

बने मूक सहते, हजन्हें मूखक कहते।


वही दाल ऄपनी, पकाकर चले हैं।।
73. आयऺण

फहलत सोच ऄपनी, बनाकर चले हैं।


दहलत अग घर में, लगाकर चले हैं।।

यहाूँ सोच माया, दहलत एक महहला।


करोडों कमाइ, बनाकर चले है।।

बने ठोस ऐसे , कहें खुद मुलायम।


नजर धार रसना, चखाकर चले हैं।।

हपता पुत्र गद्दी , ददए वंश वाररस।


हतलक माथ ईनको ,लगाकर चले हैं।।

कहाूँ कौन कै से,पढ़ा क्या हलखा क्या।


ईसे राज ऄव्वल , बनाकर चले है।।

समस्या बडी है , सुलझ ही न पाये।

समस्या स्वयं की, बनाकर चले हैं।।

हबना पाईडर के , करें साफ बरतन।


हजसे धमक टेकर , धुलाकर चले हैं।।

कु हपत रोष ईनका,वहाूँ पर ददखेगा।

जहाूँ कोष ऄपना, हछपाकर चले हैं।।

सदा पूणक करता,जरूरत प्रशासन।

वही दोष शासन,हगनाकर चले हैं।।

ईन्हें जाहत चचता, बहुत ही सताती।

कहाूँ जाहत दंगा, कराकर चले हैं।।


74. भीडडमा

समाचार हमको,ददखाकर चले हैं।

लगे खास पैसा, कमाकर चले हैं।।

हबके मीहडया जब,बडे बोल लगते।

सही बोल ईनसे,हछपाकर चले हैं।।

हबना बात चचाक, कराते हबठाकर।

लगे जंग कोइ, हजताकर चले हैं।।

समाचार गढ़ता,कहें श्रेष्ठ खुद को।

लगे पीठ खुद थप,थपाकर चले हैं।।

खबर तेज सबसे, कहें सत्य हमेशा।


खबर बेखबर को,सुनाकर चले हैं।।

समाचार सुनकर, परे शान होते।


हबना मंच भाषण,सुनाकर चले हैं।।

कहीं वारदातें, ऄनकही कहानी।


ईन्हें ही सनसनी, ददखाकर चले हैं।।

खबर खोज करके ,करें दफर दलाली।

मलाइ सभी को,चखाकर चले हैं।।

पडा चोट घायल, तडपता ददखाते।

खबर को बनाने, ददखाकर चले हैं।।

बना ताड हतल का,खबर को बढ़ाते।

लगे मील पत्थर, गडाकर चले हैं।।


75. भीडडमा

समाचार सडक में,बनाकर चले हैं।

खबर ये खबरची,छपाकर चले हैं।।

पता जो दकए थे ,पता कर न पाये।

पता ही पता को, धताकर चले हैं।।

सही तो सही है ,गलत क्यों छपी ये।

खबर खेद खंडन ,हलखाकर चले हैं।।

खबर के मसीहा, पले है खबर से।


खबर खूब ईनकी, ददखाकर चले हैं।।

सुखाचार ईनका,कथन साूँच कहता।


कथन में बवंडर, ईडाकर चले हैं।।

हवाइ दकला ये , बनाते यहाूँ पर।


मुखौटे जहाूँ पर,हबठाकर चले हैं।।

वही जो ददखाते ,जहाूँ से कमाते।

सफाइ खबर की, ददखाकर चले हैं।।

खबर खोज ऄपनी, रहे जब ऄधूरी।

वहीं खोज खबरे , घुमाकर चले हैं।।

शहर जब जले तो,जले को ददखाये।

जले में नमक वे, लगाकर चले हैं।।

चकाचौंध दुहनया ,ऄमीरी ददखाए।

सराफत शहर की, ददखाकर चले हैं।।


76. दे श

सुरक्षा हमारी, ददखाकर चले है।

मरे को हतरं गा, ईढ़ाकर चले हैं।।

चले सत्र संसद, समझदार बैठे।

सभी को बहस में,लगाकर चले हैं।।

चले वोट लेने,हबना कु छ ददये ही।

ददये नोट भरकर, मनाकर चले हैं।।

चले हैं भ्रमण को, टहलने बहाने।

वहीं देश दौरा , बनाकर चले हैं।।

नही दुम हहलाना,पडेगा दकसी को।


सही पूछ ऄंदर, कराकर चले हैं।।

हतरं गा हलये हैं , चले राष्ट्रवादी।

हमें राष्ट्र गाथा , सुनाकर चले हैं।।

वतन में पले है, हवदेशी फररश्ते।

वतन में हतरं गा, जलाकर चले हैं।।

चले कौम नारा, जले कौम सारा।

यहाूँ कौम सबको, लडाकर चले हैं।।

ईसी को हगराते, ईसी को ईठाते।

सही काम बनता,हमटाकर चले हैं।।

सही कौन कहता, गलत कौन रहता।

वतनखोर ऄपनी, बनाकर चले हैं।।


77. ऩडोसी

यहाूँ नींद सबको , सुलाकर चले हैं।

वहाूँ नींद सबकी, ईडाकर चले हैं।।

सही फू ट जन्में , ऄलग कर ऄधमी।

ईन्हें कौम सत्ता, ददलाकर चले हैं।।

नजर ताकती है, ऄधम की हनगाहें।

दखल पाक चीनी, कराकर चले हैं।।

आधर पाक ताके , ईधर चीन धमके ।


हडप धार पैनी , बनाकर चले हैं।।

जहर घोलते हैं , बने धमक भेदी।


यहाूँ पैठ ऄपनी, बनाकर चले हैं।।

दररदे हछपे हैं , धमक वार करके ।


नहीं द्रोह ईनका, ददखाकर चले हैं।।

करें घात भीतर, दलों के पुजारी।


हलक बान ऄपनी, चलाकर चले हैं।।

सबल मूक सहता, सभी वार ईनके ।

सुरक्षा ईन्हीं की ,कराकर चले हैं।।

जहाूँ वाददयों में, चमकती घटायें।

वहाूँ खून घाटी, बहाकर चले हैं।।

घटा अज घायल, हुए बम धमाके ।

दकधर गोद सूनी,कराकर चले हैं।।


78. ऩडोसी
वतन साूँप घर में, पलाकर चले है।।

दखल कौम धमकी,ददलाकर चले है।।

कलह काम करता,कसक के सहारे ।


कलह खोल सबकी,कथाकर चले हैं।।

यहाूँ हनत्य अतूँक, पडोसी मचाता।

ईन्हें देश दुखडा, सुनाकर चले हैं।।

सुरक्षा हमारी, हमें ही लजाती।


मरे को हतरं गा,ईढ़ाकर चले हैं।।

कली पूछती है ,कहाूँ दोष ईसका।


हजसे अप माली ,सुखाकर चले है।।

जहाूँ सोख कहलयाूँ,महक थी लुटाती।

महक मौत घाटी ,लुटाकर चले है।।

बनो मदक ऐसे, भगे देख दुश्मन।

दबे पाूँव दुमको, दबाकर चले हैं।।

ईछल कू द आतनी, समझते पडोसी।

वूँशज कौन संशय, लगाकर चले हैं।।

वतन साख शेखी, लगे डींग हाूँके।


सरे अम सैहनक, सुलाकर चले हैं।।

समय है तुम्हारा, समय है हमारा।

मतलबी जमाना, बताकर चले हैं।।


79. ठग

जमा बैंक खाता, खुलाकर चले हैं।

चपत चोट ददल में, लगाकर चले हैं।।

सुरहक्षत रहेगा, बुढापा तुम्हारा।

यही सोच पैसा , बचाकर चले हैं।।

कमाकर बचाते , रहे चजदगी भर।

ईन्हें बेसहारा, बनाकर चले हैं।।

करें माल दुगना , ददए लोभ ऐसा।


सभी माल चंपत, कराकर चले हैं।।

करम ठोकते हैं , ठगे जो गये तो।


समझ लोभ ऄपनी,लुटाकर चले हैं।।

हछना चैन धन से, बढ़ा खूब बी पी।


नया रोग तब से , पलाकर चले हैं।।

जमा खास पूंजी , लुटे हाथ रोते।

ठगों ने कमाइ , बनाकर चले हैं।।

कहीं छू ट देकर ,लुभावन मचाते।

वहीं छू ट ईनको , लुटाकर चले हैं।।

प्रलोभन गजब का, बनाते ठगी जी।

हमले मुफ्त कहकर, जमाकर चले हैं।।

नइ कं पनी ये , तुम्हें लोन देगी।

नइ पाहलसी को, भुनाकर चले हैं।।


80. सऩोरे

सूँपोले यहाूँ पर, पलाकर चले हैं।

पकडने ईन्हें धन,ईडाकर चले हैं।।

यहाूँ सपक पलते, बगल में सदा से।

ईन्हें खोजने सब, दुअकर चले हैं।।

खनन काम करता,हुअ खूब शोषण।

खुली और खानें, खुलाकर चले हैं।।

धरा खोल शोहषत, यहाूँ नौकरी से।


सुरापान करके ,चढ़ाकर चले हैं।।

बदन को ईघाडे, करे काम ददन भर।


हमली है भलाइ, कमाकर चले हैं।।

खुशी अज ददल से,ईन्हीं में झलकती।


हजसे भूख चचता, हमटाकर चले हैं।।

हलये शान जीता, वही अज ज्यादा।

हमले सत्य जीवन, हबताकर चले हैं।।

सभी रोग पाले, ऄमीरी गजब की।

बदन ये सभी को, ददखाकर चले हैं।।

लगा रोग ईनमें, गरीबी हबमारी।

सभी देख मुह


ूँ को, बनाकर चले हैं।।

गरीबी तडपती, मरे लोग भूख।े

हबषेली नजर वे, गडाकर चले हैं।।


81. जरन

जलन खूब ईनको, जलाकर चले हैं।

जले में नमक वे, लगाकर चले हैं।।

सदा बैर रखकर, सदा पास होते।

गली में कु शल क्षेम, मनाकर चले हैं।।

करम के जले है, करम को जलाये।

करम दोष सबको, सुनाकर चले हैं।।

बुरे भाव मन में, बचाकर रखे थे।

वही घाव ददल,हछपाकर चले हैं।।

चुभन टीस कहती,हमला घाव ईनको।

बुरा कोसकर मन,चुभाकर चले है।।

चमक खूब रहती, सवणें खटकते।


हनराधार लाूँछन,लगाकर चले हैं।।

सदा सूंघते है, गलत चाल ईनकी।

चलन चाल ईनका,ददखाकर चले है।।

तरक्की दकसी की ,सुहाये कहाूँ पर।

पकड टाूँग खींचे, हगराकर चले हैं।।

नजर भी गजब की,हलये पैर ठोकर।


ईसे टंगडा दफर ,बुलाकर चले हैं।।

दकनारे लगे हैं, रठकाने ईन्हीं के ।

रठकाने बराबर, कराकर चले हैं।।


82. सैर

जुडे तार ईनके , खुलाकर चले हैं।

सही तार ऄपने, जुडाकर चले हैं।।

हुइ तेज मंदी, रुपया लुढ़कता।

हनवेशी दलाली, जमाकर चले हैं।।

घटे रोज शेयर, बढे रोज शेयर।

ईन्हें मौत शेयर,ददलाकर चले हैं।।

पडे खोट हसक्का, लगे हैं चलाने।


खुले नोट ईनको, थमाकर चले हैं।।

बडे सैल लगते, लुभावन दरों में।


खुली छू ट कीमत, बनाकर चले हैं।।

यहाूँ एक पर ऄब,हमले एक फ्री ही।

प्रलोभन दुकानें, सजाकर चले हैं।।

बडी डील चक्कर, लगाते गुनी जन।


खरीदो आसे हसर, खपाकर चले हैं।।

यहाूँ रोज सुूँदरी, हमें फोन करती।

कहे एक बीमा, कराकर चले हैं।।

बुढापा सहारा, बने पाहलसी का।

यही सोच बच्चे, भगाकर चले हैं।।

करो टोन डायल,हमले मुफ्त पैदकज।

हमले टापऄप वे ,बताकर चले हैं।।


83. चेट

हमें फोन गंगू , लगाकर चले हैं।

करो चेट खुलकर, बताकर चले हैं।।

लगे चेट करने, हनखारे जमाना।

बडे फे क बनते, ददखाकर चले हैं।।

ररयल सेक्स जीवन, करो चेट हमसे।

हबना पाठ पुस्तक, पढ़ाकर चले हैं।।

भरो पैक पूरा, आतने ददनों का।

हबना रोक पैदकज, भराकर चले हैं।।

न रोचमग लगती,न चेरटग रुकती।

हबना रोक महदफल,सजाकर चले हैं।।

खुले अम सब कु छ, हमलेगा यहाूँ पर।

सभी ऑन लाआन ,ददखाकर चले हैं।।

युवा को भ्रहमत कर,करे चेट लडका।


ईसे सुखक लडकी, ददखाकर चले है।।

हुअ मुग्ध ऐसा , करे बात सच्ची।

सही साथ साथी ,बनाकर चले है।।

हमलन साथ सौदा,रकम जब गूँवाये।


खुली अूँख खुद को,फूँ साकर चले है।।

चहलत नेट चोखा, कला कोश धोखा।

गरम जेब ऄपनी, लुटाकर चले है।।


84. रोन

तुम्हें कं पनी यह, सभी लोन देगी।

धरो कु छ रकम वे,जमाकर चले हैं।।

लगा लोन मेला, ललाते सभी को।

ऄसरदार दकश्तें, बनाकर चले हैं।।

हबके यंत्र पूजा, चमत्कार कहते।

तरक्की हमलेगी, हबकाकर चले हैं।।

नजर खोट होगी,नहीं ऄब दकसी की।


पहनकर गले में , बूँधाकर चले हैं।।

आसे जेब रखना, सफल काम होगा।


हुनर फें क ऄपनी, ददखाकर चले हैं।।

सदा जोश रहता, दवा शुद्ध लेगा।


ऄमनप्राश गोली,हखलाकर चले हैं।।
सफल प्रेम होगा ,पहन यंत्र देखो।

हमलेगी तुम्हें ददल, दुखाकर चले है।।

जवानी न जाये ,ईमर को हछपाये।

दवा घूटं कडवी, हपलाकर चले हैं।।

हनसंतान रोगी ,हमले गुप्त रोगी।

सभी रोग बाधा,हमटाकर चले हैं।।

हवज्ञापन गजब के , लजाते घरों को।

जरा सावधानी, ददखाकर चले हैं।।


85. गाम
सुरक्षा सभी को , ददलाकर चले हैं।

हपशाची धरा को,जलाकर चले हैं।।

यहाूँ गाय कटती, नहीं शोक करते।

ईन्हें ममक आसका, ददखाकर चले हैं।।

ऄधमी यहाूँ पर,ऄजब चाल चलता।

सताये गये हम, हवाकर चले हैं।।

बहे अूँख अूँसू , दशा देख खुद की।

पहेली ईसी में, बुझाकर चले हैं।।

कहीं मां कहें ये? कहीं मांस खाते।

सही नस्ल ऄपनी,बताकर चले हैं।।

आन्हें कौन मानव, जगत में कहेगा।

यहाूँ रोज ताूँडव,ददखाकर चले हैं।।

हमला मान ईनको, समाजी कहाये।


गरल घूंट तुमको,हपलाकर चले हैं।।

दुखी गाय बछडा,हनहारे यहाूँ पर।

हलये दूध ईसका, छु डाकर चले हैं।।

न शासन सुना है,न राशन हमला हैं।

लुटा अज चारा, रुलाकर चले हैं।।

ऄकारण ईलझते, ऄकारण समझते।

ऄकारण हवचारक, बनाकर चले हैं।।


86. गाम

ईन्हें बीफ राशन , ददलाकर चले हैं।

यही सोच मूँच को,सुनाकर चले हैं।।

करे अत्म मंथन, यहाूँ मीहडया सब।

बनी न्यूज खुद ही, बढ़ाकर चले हैं।।

करे कौम नाटक ,सुरहक्षत नहीं हम।

यहाूँ हवश्व चचाक, कराकर चले हैं।।

ऄजब मंच भक्षण, करे गा वही खुद।


यही बात सबको, घुमाकर चले हैं।।

हबके मांस गौ का,हगरी सोच आतनी।


हनयम ताक आनको, दबाकर चले हैं।।

ऄसुहवधा बहुत है,हवफल तंत्र कहते।

सफल मंत्र मुल्ला, पढ़ाकर चले हैं।।

दुखी गाय ईनसे, हजसे दूध देती।

वही खून ईसका, बहाकर चले हैं।।

हगरा अदमी क्यों,करे जीव हत्या।

हुअ ददक खुद को, ददखाकर चले हैं।।

सदा पेट भरती, जनम से तुम्हारा।

ईसे मार खाकर,हखलाकर चले हैं।।

हुइ बात ऐसी, बना धमक झगडा।

यही अग ऄपनी,जलाकर चले हैं।।


87. गाम

बूँटे प्राूँत भाषा, लडाकर चले हैं।


सनातन पुरातन, कहाकर चले हैं।।

यहाूँ कामधेनू , कहाती कभी थी।

हजसे वासना में,हमटाकर चले हैं।।

दकसे प्यार समझूूँ,दकसे वार समझू।ूँ


हमें वार ऄपने, ददलाकर चले हैं।।

करें घात हछपकर, मरा मांस खाते।


सही जानवर खुद, बनाकर चले हैं।।

बना कब्र तन को, हलये चूस हड्डी।

वही हाड हजसको,गडाकर चले हैं।।

पले रोज बच्चे , सभी दूध पीते।

वही दूध ईनसे, छु डाकर चले हैं।।

हजसे मारकर तुम, कहाूँ चैन पाओं।

हमले तथ्य ईनको, हमटाकर चले हैं।।

ऄहमय दूध पीकर, रखे जोश ताजा।

स्मरण शहि सबमें, बढाकर चले हैं।।

पयोपान करके ,सही यश कमाओ।

यशोगान ऄपना ,बनाकर चले हैं।।

सभी देवता आस, गउ में हवराजै।

हजसे हनत्य दशकन, कराकर चले हैं।।


88. कुत्ते

बडप्पन महाशय, ददखाकर चले हैं।

हलये गोद हपल्ला, घुमाकर चले हैं।।

ईसे डाग कहकर, बुलाते डमी जी।

हलये ब्रेड डागी, हखलाकर चले हैं।।

कहे पालतू को , नकारा यहाूँ पर।

समझदार ईनको,जुदाकर चले हैं।।

यहाूँ दुम दकसी की, न टेढी रहेगी।


सभी पोंगरी में, लगाकर चले हैं।।

लगे सामने दुम,हहलाने यहाूँ पर।


यही अज टेढ़ी, कराकर चले हैं।।

वफादार बनता, रहा चजदगी भर।


कहानी वफा की, सुनाकर चले हैं।।

नही बोल सकता,हुअ क्या बुरा जो।


हबना बोल के ही, वफाकर चले हैं।।

बढ़े स्वान शौकी, टहलते धरा पर।

लगे भौंक देशी, भगाकर चले हैं।।

ईसे देख कु त्ते, आकट्ठे हुये सब।

हमें एकता वे,हसखाकर चले हैं।।

हवदेशी यहां , नस्ल पलते घरों में।

स्वदेशी गली ददल,बसाकर चले हैं।।


89. कुत्ते

लगे चाटने दुम, दबाकर चले हैं।

हमले एक होकर,डराकर चले हैं।।

कहें पूूँछ टेढ़ी , रहेगी हमेशा।

ईदाहरण सबको,सुनाकर चले हैं।।

कहें भौंकते हैं, सदन में हमेशा।

हमें पैर दो ही, ददखाकर चले हैं।।

यहाूँ अज कु त्ता,कहें अदमी को।

हमें अदमी वे, बनाकर चले हैं।।

हलये शान कु त्ता,पडोसन घुमाती।

गले चैन ईसको, फूँ साकर चले हैं।।

हबना चैन रहता, बूँधे चैन में भी।


दकन्हें चैन थामे, बूँधाकर चले है।।

पकड हाथ थामे,आधर से ईधर तक।


लगे स्वान ईनको, नचाकर चले है।।

हबना मौत हपल्ला, मरे ददक होता।

दबे कार में दुख, जताकर चले हैं।।

नहीं सोच बदली, बने अदमी क्या।

सूँगत ये हमारी, हनभाकर चले हैं।।

हजसे देख पत्थर, ईठाकर डराते।

यही भूल ठोकर,लगाकर चले हैं।।


90. कुत्ते

खडे खास दुम को, हहलाकर चले हैं।

लगी अस ऄपनी, जगाकर चले हैं।।

लगे सूघ
ं ने जब, हमला कु छ नहीं तो।

वही सेंध ऄपनी, लगाकर चले हैं।।

हमला भोज जूठा, लगे पेट भरने।


क्षुधा क्षीर सागर,मथाकर चले हैं।।

लगे चाटने तो, धना धन्य तलुवे।

तला चाट श्रृद्धा,ददखाकर चले हैं।।

करें चाकरी वे , ऄूँधो के शहर में।

सजल नैन रस ये,हपलाकर चले हैं।।

हजसे देख हचढ़ते,कहे नाम कु त्ता।


नये नाम ईसका, रखाकर चले हैं।।

हवदेशी पले हैं, जले देख देशी।

लुटा हक ऄपना, जताकर चले है।।

कहे अज कु त्ता, करे राज्य रक्षण।

पराया हजन्हे वे, बनाकर चले है।।

गठन जाूँच होना ,जरूरी हुअ ऄब।

दुखी नस्ल देशी , दुखाकर चले है।।

न व्यवसाय ईनका,नहीं अय ईनकी।

हमले स्वान भत्ता , कहाकर चले हैं।।


91. बैंस

सही ऄक्ल भैंसा, ददखाकर चले हैं।

नजर लोप खुद को कराकर चले हैं।।

गुमी भैंस पाने, जुटे राज मंत्री।

लगा तंत्र ईसको, ढु ूँढाकर चले हैं।।

ऄसरदार भैंसी, ऄकलमंद रोते।

चतुराज चक्कर , लगाकर चले हैं।।

खडी भैंस कोने, लगी है हचढ़ाने।

दकसे ऄक्ल ईनकी,बताकर चले हैं।।

गइ भैंस पानी, कहाूँ से हमलेगी।

हबना घास डाले, चराकर चले हैं।।

खडी गौड सुूँदरी, बजा बीन देखो।

लगे नाथ ईसको,ररझाकर चले हैं।।

ददए दूध वह भी ,हुअ भेद ईससे।

सभी गाय माता ,कहाकर चले है।।

ऄसरदार ददखती ,सडक पर ऄके ले।

सडक राज ऄपना, बनाकर चले हैं।।

ऄहडग भैंस पथ पर, खडी है सनेही।

हवरल मागक चलना,हसखाकर चले है।।

हुअ घास गायब,हमला जब न चारा।

हजामत गधे की , बनाकर चले हैं।।


92. गधे

गधे हैं सभासद, सभाकर चले हैं।


ईपज जात सूँपदा,ईगाकर चले हैं।।

गधे राज्य पोहषत, धरोहर हमारे ।

ईन्हें छू ट ऐसी, ददलाकर चले हैं।।

गधे राज्य में कु छ, न ज्यादा हुये ऄब।


ईन्हें भाष ईनका, पढ़ाकर चले हैं।।

रहा मूक प्राणी, सदा भार सहता।

आसे वोट संपहत्त, बनाकर चले हैं।।

चतुर हैं गधे जो, नहीं बोझ रखते।

सहायक गुणी सब,हसखाकर चले हैं।।

हुए खूब दुबकल, बहुत काम करते।

हमले हक गधों को, ददखाकर चले हैं।।

न अवाज करते, न ऄनशन कराते।

गधे लुप्त होते , बताकर चले हैं।।

करे चाकरी दफर,नहीं क्यों सुधरता।

यही प्रश्न संशय, कराकर चले हैं।।

हवलोहपत हुअ है,यहाूँ पर गधा तो।


कु पोहषत जगत में, ददखाकर चले हैं।।

गधों को गधा जब, चतुर है बनाता।

चतुर राज बुद्धू , बनाकर चले हैं।।


93. गधे

गधा को दुखी सब, बताकर चले हैं।

ईसे सुख यहाूँ पर, ददलाकर चले हैं।।

गधे ही गधों को, गधे कह रहे जो।

गधे ही गधे को, लडाकर चले हैं।।

गधे राज करते , गधों पर रहकते।

ऄलग राग ऄपनी,बनाकर चले हैं।।

ऄलग माूँग करते , गधा राज्य माूँगे।


पृथक राज्य प्राणी, बसाकर चले हैं।।

हमले हक ईन्हीं को,दकसी को न जाये।


ईन्हें साफ सुहवधा, ददलाकर चले हैं।।

वहीं पर पडे है , जहाूँ थे शुरू पर।


हमले ऄब प्रमोशन, कहाकर चले हैं।।

न अहार हमलता,न व्यवहार हमलता।

सही घाूँस चेला,हखलाकर चले हैं।।

सबल के सताये , गधे ही हमलेंग।े

गधे दूत ईनका , पताकर चले हैं।।

पता पूछते हैं , गधों के ऄधारे ।

गधे मूक ईनको,हछपाकर चले हैं।।

हुइ खोज आसकी,हबना सींग रहता।

रहे सींग ईनमें , ईगाकर चले है।।


94. फंदय
बनी चाय ऄदरक,हपलाकर चले हैं।

सही स्वाद बंदर, चखाकर चले हैं।।

नकल खूब करता, कु लाटी कराता।

जमादार मुहखया, हूँसाकर चले हैं।।

ईछल कू द करके , पररश्रम बताता।

कपी सूर खुद को, बनाकर चले हैं।।

ऄमानुष नहीं है, हुअ शोध ईस पर।


हमें पूवक वंशज , बताकर चले है।।

लगे भोग लड्डू , ऄमंगल न होगा।


सही राम सेवक, बनाकर चले हैं।।

चढ़ावा चढ़े है, टनों से जहाूँ पर।

ईन्हें फें क दाना, हखलाकर चले है।।

हरे भूत बाधा, कपी शूर ऄपने।

कृ पा कर गुसाईं, कहाकर चले हैं।।

जपे जाप हनुमूँत,सही साथ देगा।

हरे क्लेश सबके हमटाकर चले हैं।।

जरा कमक करके ,सही फल कमाओं।


दया धमक सेवा, कमाकर चले हैं।।

चतुर भान सेवक ,रहम राम खाओ।

सृजनशील सेवा,हसखाकर चले हैं।।


95. ये र

बजट रे ल हमको, ददखाकर चले हैं।

हबना रे ल भाडा , बढ़ाकर चले हैं।।

रटकट वार करके ,रटदकट इ हचढाती।


रटकट द्वार घर में, खुलाकर चले हैं।।

चली रे ल पटरी, सफल कामना से।

ठसाठस यात्री ,भराकर चले हैं।।

सुरहक्षत नहीं है , जरा भी सवारी।


ईन्हें सीट कोटा , ददलाकर चले हैं।।

पुरुष कौम हसमटा , कहें मेल ऐसा।

ऄलग कोच महहला,बनाकर चले हैं।।

कहीं ट्ैक धीमी, कहीं पर हवलूँब है।


कहीं रे ल मेट्ो, चलाकर चले हैं।।

हमले शुद्ध भोजन, बना यान पेंट्ी।


रकम दो गुनी ये , बढ़ाकर चले हैं।।

सुले को जगाये, गरम चाय बेचें।


ठूँ डी को गरम है , बताकर चले हैं।।

हलक से न ईतरे ,तरल चाय ईनकी।

हबना दूध शक्कर, हपलाकर चले है।।

गया स्वाद मुूँह का,ऄधर भींचते जब।

लगे अज करे ला,हखलाकर चले हैं।।


96. ये र

टकटकी नजर से ,लगाकर चले हैं।

कहाूँ कौन स्टेशन , ददखाकर चले है।।

आधर से चढायें , ईधर से ईतारें ।

कु ली माल सबका,चढ़ाकर चले हैं।।

ऄजब दृश्य रहता , ईतरने चढ़ाने।

लगे जंग कोइ ,लडाकर चले हैं।।

हमला जोर धक्का , हगरे मुंह औंधे।


बतीसी वहीं पर, हगराकर चले है।।

हमलें पारदशी , लगे है ईठाने।

वहीं माल चंपत, कराकर चले हैं।।

नजर जो हटी तो , ईडे चोर लेकर।

सफर बेखबर सब, लुटाकर चले हैं।।

ऄपर बथक बैठे , सभी को हनहारे ।

बगल पास पेपर, पढाकर चले हैं।।

चला एक पेपर,ऄगल से बगल तक।

खबर खास सबको ,पढ़ाकर चले हैं।।

पढे हचत्र देखे , दफरे हाूँथ ऐसे।

सफर दाम पेपर, ददलाकर चले हैं।।

चली रे ल छु कछु क, सफर दौड करती।

सुरहक्षत सभी को , हभजाकर चले हैं।।


97. ऩलु रस

पुहलस नौकरी में , लगाकर चले हैं।


पुहलस देश सेवा,हनभाकर चले है।।

करें चोर चोरी, पता खूब रहता।

आलाके ईन्हें ही , बूँटाकर चले हैं।।

बूँटा है आलाका , करे चोर डाका।

ईन्हें अज अका, बचाकर चले हैं।।

जहाूँ चोर हमलकर, कमाते हखलाते।

शहर में सफाइ , कराकर चले हैं।।

हमले है हहतेषी , खबर चोर देते।

खबरदार रहना, हसखाकर चले हैं।।

जुूँअ संग सट्टा ,शहर में चलाते।


शहर जोर जबरन, लडाकर चले हैं।।

पकड जोर करते, पकड छोड करके ।


बखत मालवाडी, कराकर चले हैं।।

पुहलस चोर जाने, कहाूँ माल चोरी।

कहाूँ माल हबक्री, कराकर चले हैं।।

ऄजनबी शहर में, रखे पाल गुण्डे।


जहां सेंधमारी , लगाकर चले हैं।।

बने जब मुसीबत ,परे शान होकर।

तडीपार ईनको, कराकर चले हैं ।।


98. ऩलु रस

कहीं कमक सेवा, हनभाकर चले हैं।


कहीं कमक मेवा, हखलाकर चले हैं।।

सदा साख रखते, वतन के हसपाही।

ऄहमट छाप शाही,बनाकर चले हैं।।

ऄनुज बोल भाइ, दबंगी ददखाए।

सडक छाप सपना,ददखाकर चले हैं।।

वसूली शहर में , ऄमन रौब खाती।

सहज धौंस ऄपनी,ददखाकर चले हैं।।

नजर धार पैनी ,करे जेब खाली।


हनयम ताक कै से, तुडाकर चले हैं।।

शराबी जुूँअरी, करे खूब सेवा।

दलाली ईन्हें ही, ददलाकर चले हैं।।

हरी लाल बत्ती, लगे यंत्र सूचक।

सडक पार ईनको, कराकर चले हैं।।

हनयम तोड ट्ैदफक,जुमाकना भराते।

हबना काट पची, भराकर चले हैं।।

हनयम से न चलते,शहर में युवा जो।

गले मौत खुद से, लगाकर चले हैं।।

शहर रोष खाता, पुहलस दोष देकर।

पुहलस खोट सबमें, ददखाकर चले हैं।।


99. ऩलु रस

पुहलस कमक ऄपना, ददखाकर चले हैं।

सजग साथ प्रहरी, बताकर चले हैं।।

करे कौम दंगे , शहर खौप खाता।

पुहलस शांत ड्यूटी, लगाकर चले हैं।।

पहथक राह भटके ,सडक छाप कहते।

सडक छाप पत्थर,चलाकर चले हैं।।

सडक तोडते है, शहर लूटते हैं।


युवा को भ्रहमत कर,लडाकर चले हैं।।

सडक देखती हैं , गलत राह ईनकी।


पहथक जख्म ऄपने, ददखाकर चले हैं।।

सुलगते शहर में ,ऄमन खौफ खाती।


सराफत शहर की,लुटाकर चले हैं।।

ऄसल मार खाते ,पुहलस जन हमारे ।

ईन्हें कौन सेवा , ददखाकर चले हैं।।

पलटवार ईनको ,जरा क्या सुहाए।

पुहलस सख्त खबरें , ईडाकर चले हैं।।

झुलसते शहर में, पुहलस काम करती।

जहां जान ऄपनी, गूँवाकर चले हैं।।

पुहलस रात जागे, शहर शांत सोता।

हमें नींद सुखमय ,सुलाकर चले हैं।।


100. कचहयी

सही को गलत वे ,बताकर चले हैं।

वही तथ्य ऄपने,हछपाकर चले हैं।।

यहाूँ देखती है, कचहरी गवाही।


हबना तथ्य पेशी,बढ़ाकर चले हैं।।

वकीलें दलीले, गजब की लगाते।

बढ़ा डेट ऄगली,हलखाकर चले हैं।।

चले के स सालों ,गवाही बदलती।

खरा पक्ष ऄपना, बनाकर चले हैं।।

पडा तथ्य रोता, ऄदालत कहानी।

जवानी बुढ़ापा, ददलाकर चले हैं।।

बदल के स जाते,रकम जब बढ़ाते।

दलीले दलाली, ददलाकर चले हैं।।

बढ़े रोज पेशी, जवानी गइ सब।

यही के स चचता, बुढ़ाकर चले हैं।।

सदा पैर लटके , कचहरी हनगाहें।

ददखे अस लकडी, रटकाकर चले हैं।।

चले दौर दफर से, वही सब पुरानें।

गजब के स दद्दा, कराकर चले हैं।।

यही सीख देती, कचहरी यहाूँ पर।

सही झूठ सबको, हमलाकर चले हैं।।


101. कचहयी

बनी जो गृहस्थी, लुटाकर चले हैं।

हनवाले सभी के , छु डा कर चले हैं।।

हुइ बंद अूँखे, हुइ खत्म पेशी।

पुनवाकद बेटा, लगाकर चले हैं।।

सही न्याय के ऄब, हुए हाथ लंबे।

हमला के स पोता, सुनाकर चले हैं।।

न कानून ऄंधा, कहो तुम हमेशा।


सही न्याय ईनको, सुनाकर चले हैं।।

कहीं कोटक खुद को, ददवानी बनाता।


कहीं फौजदारी,लगाकर चले है।।

हनयम हनत्य बनते,हनयम हनत्य बदलते।


हनयम ही हनयम को, धताकर चले हैं।।

पुलंदे बने हैं ,लगे के स आतने।

दकसे अज दकस्मत,रुलाकर चले हैं।।

समय पर ईपहस्थत,हुअ जब न कोइ।

हगरफ्तार ईनको , कराकर चले हैं।।

जमानत कराने, बही को बुलाते।

मुचलका ददलाकर, छु डाकर चले हैं।।

शपथ नोटरी से, कराने लगे जो।

गलत को सही सब,बनाकर चले हैं।।


102. सभम

समय को समय से, बुलाकर चले हैं।


समय काल ऄपना ,बनाकर चले हैं।।

समय जो बदलता, न अता दुबारा।


समय ही सभी को, रुलाकर चले हैं।।

समय के सताये, यहाूँ सब हमलेंगे।


समय ही समस्या, बनाकर चले हैं।।

समय देखता क्या, ऄमीरी गरीबी।


समय दोस्त ऄपना, बनाकर चले हैं।।

समय संग चलते, सुबह शाम प्राणी।


समय ही सभी को, जगाकर चले हैं।।

समय ही हूँसाता, समय ही रुलाता।


समय काम सबको,हसखाकर चले हैं।।

समय को गूँवाएूँ ,समय से न बदले।


समय कमक ईनका, छु डाकर चले हैं।।

समय देख रूँ ग तू,बदलना न प्यारे ।


समय ही समय में ,रूँ गाकर चले है।।

समय लौटकर, न अता दुबारा।

दुखी में समय को ,गूँवाकर चले हैं।।

समय में परखते,सही दोस्त ऄपने।

समय ही परीक्षा, बनाकर चले हैं।।


103. नभो

हवजय काल गाथा, सुनाकर चले है।

सफाइ दलों की , कराकर चले है।।

बना एक शासक ,ऄके ला यहाूँ पर।

जनाधार लेकर , ददखाकर चले है।।

शहर गूंजती है , नमो हर जुबानी।

ऄकलवर ऄनेको, हगराकर चले है।।

रखे बैर हजनने, हगरे मुंह औंधे।

हगराकर ईठाकर,झुकाकर चले है।।

बडी बात वो थी , हुइ नोट बंदी।

ददए बॉग बैरी ,जगाकर चले है।।

सनक पे सनक ये, न चूके कराने।


सडक पार बलवा,कराकर चले है।।

लगे घेरने ऄब , चला टैक्स जादू।


कराधान लोचा, बताकर चले है।।

रकम को लगाने ,पूँजीयन कराना।

यहाूँ पर रकम सब,हलखाकर चले है।।

रहे एक कीमत , हजसे दोष देते।

बचा धन ददखे जो,हछपाकर चले है।।

फरे बी फूँ सेंगे , हबनाधार हैं जो।

यहाूँ चलक रुपया,हगनाकर चले है।।


104. नभो

नमोकार दुहनया,ददखाकर चले हैं।

ऄहंकार सबका, हगराकर चले है।।

नहीं माल खाता, नहीं है हखलाता।

जमाखोर घर से, भगाकर चले है।।

हमले जब न खाने,हखलाफत करें गे।

शराफत घरों की, लुटाकर चले है।।

जगत जानता है, नमो के सहाइ।


ऄडा चीन दुमको, दबाकर चले है।।

दुखी पाक दुमको, लगा है बचाने।


ऄलापें हववाददत,सुनाकर चले हैं।।

सहम से गये है ,हमयाूँ अतूँकी भी।


घरों को बमों से, ईडाकर चले है।।

हमयाूँ खौफ देते , भले लात खाते।

नवाजी शराफत, ददखाकर चले है।।

गजोधर पुराने , बडे ही बखाने।

नकारा हकीकत, बयाूँकर चले है।।

हघरा दुश्मनों से ,चना भाड फोडे।

चना लौह दुश्मन, चबाकर चले है।।

तनातन मची है , ददखे ऐब कोइ।

ऄधमी समाचार, ईडाकर चले है।।


105. नभो

नमो दोष सबका, ईठाकर चले हैं।

नमोकार जपनी ,जपाकर चले हैं।।

झुका सर नहीं तो, कहाूँ ऄब झुकेगा।

लगे दोष मढ़ने , मढ़ाकर चले हैं।।

पले साूँप बैरी, घरों में ऄनेकों।

नमो बीन बाजा, बजाकर चले है।।

हबना पैर मुूँह के , बके पाक गाथा।


ईन्हें पाक रहना, हसखाकर चले है।।

धहनक मौन रहता,श्रहमक मौन रहता।


सहनशील दकसको,बनाकर चले है।।

ऄसल साख चोखा,नकल मार रोता।


ऄकल बेऄकल को,हराकर चले है।।

कहीं बाढ अता ,फसल सूखती तो।

नमो की कहानी, गढ़ाकर चले है।।

घरटत रे ल घटना, नमो दोष दोषी।

लगे रे ल वो ही , चलाकर चले है ।।

हवजय हवश्व दृष्टा, हमला है हमें तो।

करे कल्प पूरा , मनाकर चले है।।

बने अज दफर से, जगत गुरु भारत।

हवरल हवश्व सागर, मथाकर चले है।।


106. दहन्दी

हलखे छंद हहय में ,बसाकर चले हैं।

हजसे गीहतका हम,बनाकर चले हैं।।

गजल है नहीं ये,सरल भाष्य हहन्दी।

यही छंद हहन्दी ,सजाकर चले हैं।।

हजसे जानते हैं, हवरल शब्द सागर।

वही ज्ञान मंथन, कराकर चले हैं।।

सहज है सरल है, मृदल


ु भाष हहन्दी।
सही साज संस्कृ हत, बनाकर चले हैं।।

कभी तू न कहती, न तुम बोलती ये।


यहाूँ अप अदर, हसखाकर चले हैं।।

सभी शब्द हमलते,सही भाव हमलते।


सही हशल्पकारी , रचाकर चले हैं।।

धरोहर सनातन, सुमन पुंज हहन्दी।


सररत भाष सबमें, बहाकर चले हैं।।

न साहहत्य ऐसा, सरोवर सहेजे।

हहया अज हहन्दी ,बसाकर चले हैं।।

हमले छंद भाषा, ऄलंकृत कराती।

हवधा गीत क्यारी,लगाकर चले हैं।।

ॠचा वेद गाते, यही छंद वाणी।


सुधा शब्द सागर,हपलाकर चले हैं।।
107. दहन्दी

नयन राष्ट्र गीता, जगाकर चले हैं।

शपथ न्याय गीता,ददलाकर चले हैं।।

गलत न्याय कारण,लडे युद्ध ऄजुकन।

यही छंद गीता, सुनाकर चले हैं।।

हबना युद्ध करके , दकए धमक रक्षा।

सही रूप कृ ष्णा, ददखाकर चले हैं।।

हवषय त्याग हशक्षा,कहे योग जीवन।


हनयम कमक हमको,हसखाकर चले हैं।।

ददये शब्द हमको, हसखाते यहाूँ पर।

सही व्याकरण जो, बनाकर चले हैं।।

रचे पाहणनी सूँत, कहे व्याकरण हम।


ऄसल ज्ञान हमको,ददलाकर चले हैं।।

चमकते रहेगी, सदा शुद्ध हहन्दी।

चमन अज सपने,सजाकर चले हैं।।

यहाूँ ऄवतररत है,मुददत पुष्प हहन्दी।

सरस काव्य खुशबू, बहाकर चले हैं।।

हुअ हवश्व कायल, पढे छंद सारे ।

रसोपान सबको , कराकर चले हैं।।

रखो मान आसका,तजो तुम न आसको।

बने राष्ट्र भाषा , मनाकर चले हैं।।


108. दहन्दी

ऄधर अूँग्ल भाषा,लगाकर चले हैं।

मखौली ईसी की,ईडाकर चले हैं।।

दलों के मसीहा , पृथक बात करते।

पृथक प्रांत भाषा, बनाकर चले हैं।।

हबना राष्ट्र भाषा, चले राष्ट्र कै से।

यही दंश हहन्दी चुभाकर चले हैं।।

कहाूँ राष्ट्र सेवक , ऄलख जगाते।

ऄधर पान हहन्दी,हपलाकर चले हैं।।

रखे साफ हजव्हा,प्रखर पोष हहन्दी।

ऄमर वणकमाला, बनाकर चले हैं।।

हहया से हनकलते,कइ वणक हमारे ।

ऄलख ये मुखाररत,कराकर चले हैं।।

ऄधर वणक बोले, गला वणक बोले।

यही स्वस्थ काया,ददखाकर चले हैं।।

ऄसर दंत तालू ,पटल पाठ करते।

ऄहमय पान हहन्दी, कराकर चले हैं।।

जगत है ऄचंहभत, बने वणक कै से।

रसलपान जन को, कराकर चले हैं।।

हृदय स्वस्थ भाषा,हरे सब हनराशा।

सहोदर सभी को, बनाकर चले है।।

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