Professional Documents
Culture Documents
Astabakra Gita
Astabakra Gita
अवधत
Avadhuta Gita
अवधतू गीता
अथ प्रथमोऽध्यायः
ु
ईश्वरानग्रहादे ुं ु ामद्वैतवासना ।
व पस
महद्भयपररत्राणारद्वप्राणामपु जायते ॥ १॥
2
अवधूत गीता
4
अवधूत गीता
ु रवज्ञानरवग्रहः ।
अहमेवाव्ययोऽनन्तः िद्ध
ु दःखुं न जानारम कथुं कस्यारप वतवत े ॥ ७॥
सखुं
5
अवधूत गीता
ु म ।्
मनो वै गगनाकारुं मनो वै सववतोमख
मनोऽतीतुं मनः सवं न मनः परमाथ वतः ॥ ९॥
6
अवधूत गीता
7
अवधूत गीता
ु से
त्वमेवमेकुं रह कथुं न बध्य
समुं रह सवेष ु रवमृष्टमव्ययम ।्
सदोरदतोऽरस त्वमखरडितः प्रिो
रदवा ि नक्तुं ि कथुं रह मन्यसे ॥ ११॥
8
अवधूत गीता
ै ुं रनरन्तरम ।्
आत्मानुं सततुं रवरद्ध सववत्रक
् १२॥
अहुं ध्याता परुं ध्येयमखडिुं खडयते कथम ॥
9
अवधूत गीता
ु ।
िब्दारदपञ्चकस्यास्य न ैवारस त्वुं न ते पनः
10
अवधूत गीता
11
अवधूत गीता
12
अवधूत गीता
ु मव्ययम ।्
ुव िद्ध
वदरन्त श्रतु यः सवावः रनगणुं
अिरीरुं समुं तत्त्वुं तन्माुं रवरद्ध न सुंियः ॥ २०॥
13
अवधूत गीता
14
अवधूत गीता
16
अवधूत गीता
17
अवधूत गीता
18
अवधूत गीता
19
अवधूत गीता
ु
घटे रिन्ने घटाकािुं सलीनुं िेदवरजवतम ।्
ु ो न िेदः प्ररतिारत मे ॥ ३१॥
रिवेन मनसा िद्ध
20
अवधूत गीता
21
अवधूत गीता
ु न यज्ञा
वेदा न लोका न सरा
वणावश्रमो न ैव कुलुं न जारतः ।
न धूममागो न ि दीरिमागो
् ३४॥
ब्रह्म ैकरूपुं परमाथ वतत्त्वम ॥
22
अवधूत गीता
23
अवधूत गीता
ु तम ।्
श्वेतारदवणवररहतुं िब्दारदगणवरजव
् ३७॥
कथयरन्त कथुं तत्त्वुं मनोवािामगोिरम ॥
24
अवधूत गीता
ु
यत्करोरम यदश्नारम यज्जहोरम ददारम यत ।्
ु ोऽहमजोऽव्ययः ॥ ४०॥
एतत्सवं न मे रकुं रिरद्विद्ध
25
अवधूत गीता
26
अवधूत गीता
ु ।
तत्त्वुं त्वुं न रह सन्देहः रकुं जानाम्यथवा पनः
े ुं स्वसुंवद्य
असुंवद्य ् ४२॥
े मात्मानुं मन्यसे कथम ॥
27
अवधूत गीता
28
अवधूत गीता
ु
न षडढो न पमान्न स्त्री न बोधो न ैव कल्पना ।
सानन्दो वा रनरानन्दमात्मानुं मन्यसे कथम ् ॥ ४७॥
29
अवधूत गीता
षिङ्गयोगान्न त ु न ैव िद्ध
ु ुं
ु म ।्
मनोरवनािान्न त ु न ैव िद्ध
ु पदेिान्न त ु न ैव िद्ध
गरू ु ुं
् ४८॥
स्वयुं ि तत्त्वुं स्वयमेव बद्धु म ॥
30
अवधूत गीता
31
अवधूत गीता
32
अवधूत गीता
33
अवधूत गीता
34
अवधूत गीता
35
अवधूत गीता
36
अवधूत गीता
37
अवधूत गीता
38
अवधूत गीता
Maya - ignorance.
39
अवधूत गीता
40
अवधूत गीता
ु
नारविक्तुं रविक्तुं ि न रह दःखसखारद ि।
् ६५॥
न रह सववमसवं ि रवरद्ध िात्मानमव्ययम ॥
ु
नाहुं कताव न िोक्ता ि न मे कमव पराऽध ु ।
ना
् ६६॥
न मे देहो रवदेहो वा रनमवमरे त ममेरत रकम ॥
41
अवधूत गीता
42
अवधूत गीता
43
अवधूत गीता
44
अवधूत गीता
िून्यागारे समरसपूत
ु
रिष्ठन्नेकः सखमवधू
तः ।
िररत रह नग्नस्त्यक्त्वा गवं
् ७३॥
रवन्दरत के वलमात्मरन सववम ॥
45
अवधूत गीता
47
अवधूत गीता
रद्वतीयोऽध्यायः Chapter 2
ु एव त ु रिन्तनीयो
न ैवात्र काव्यगण
48
अवधूत गीता
वु ुं तथाहुं रत्रदिारितव म ।्
सवाववयवरनमक्त
ू त्व
सुंपण ् ६॥
व ान्न गृह्णारम रविागुं रत्रदिारदकम ॥
50
अवधूत गीता
51
अवधूत गीता
52
अवधूत गीता
53
अवधूत गीता
54
अवधूत गीता
ुव
सूक्ष्मत्वात्तददृश्यत्वारन्नगणत्वाच्च योरगरिः ।
आलम्बनारद यत्प्रोक्तुं िमादालम्बनुं िवेत ् ॥ १५॥
55
अवधूत गीता
57
अवधूत गीता
Reality.
58
अवधूत गीता
59
अवधूत गीता
60
अवधूत गीता
ु ानाुं सा ि वारगरियाद्वदेत ।्
या गरतः कमवयक्त
योरगनाुं या गरतः क्वारप ह्यकथ्या िवतोरजवता ॥ २७॥
62
अवधूत गीता
63
अवधूत गीता
सहजमजमरिन्त्युं यि ु पश्येत्स्वरूपुं
घटरत यरद यथेष्ट ुं रलप्यते न ैव दोष ैः ।
सकृ दरप तदिावात्कमव रकुं रिन्नकुयावत ्
64
अवधूत गीता
65
अवधूत गीता
रनद्ववन्द्वरनमोहमलुििरक्तकुं
् ३१॥
तमीिमात्मानमपु ैरत िाश्वतम ॥
66
अवधूत गीता
न िाम्भवुं िारक्तकमानवुं न वा
रपडिुं ि रूपुं ि पदारदकुं न वा ।
आरम्भरनष्परत्तघटारदकुं ि नो
् ३३॥
तमीिमात्मानमपु ैरत िाश्वतम ॥
67
अवधूत गीता
68
अवधूत गीता
69
अवधूत गीता
नासारनरोधो न ि दृरष्टरासनुं
बोधोऽप्यबोधोऽरप न यत्र िासते ।
नािीप्रिारोऽरप न यत्र रकरञ्च-
् ३५॥
त्तमीिमात्मानमपु ैरत िाश्वतम ॥
70
अवधूत गीता
नानात्वमेकत्वमिु त्वमन्यता
ु दीघ वत्वमहत्त्विून्यता ।
अणत्व
मानत्वमेयत्वसमत्ववरजवत ुं
् ३६॥
तमीिमात्मानमपु ैरत िाश्वतम ॥
71
अवधूत गीता
72
अवधूत गीता
74
अवधूत गीता
75
अवधूत गीता
तृतीयोऽध्यायः Chapter 3
76
अवधूत गीता
77
अवधूत गीता
व मूलररहतो रह सदोरदतोऽहुं
रनमूल
रनधूमव धूमररहतो रह सदोरदतोऽहम ।्
रनदीपदीपररहतो रह सदोरदतोऽहुं
् ३॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
78
अवधूत गीता
79
अवधूत गीता
80
अवधूत गीता
81
अवधूत गीता
् ७॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
82
अवधूत गीता
रनष्पापपापदहनो रह हुतािनोऽहुं
रनधवमधव मवदहनो रह हुतािनोऽहम ।्
रनबवन्धबन्धदहनो रह हुतािनोऽहुं
् १०॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
83
अवधूत गीता
84
अवधूत गीता
रनमोहमोहपदवीरत न मे रवकल्पो
रनःिोकिोकपदवीरत न मे रवकल्पः ।
रनलोिलोिपदवीरत न मे रवकल्पो
् १२॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
सुंसारसन्तरतलता न ि मे कदारित ्
ु न ि मे कदारित ।्
सन्तोषसन्तरतसखो
85
अवधूत गीता
अज्ञानबन्धनरमदुं न ि मे कदारित ्
् १३॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
सुंसारसन्तरतरजो न ि मे रवकारः
सन्तापसन्तरततमो न ि मे रवकारः ।
सत्त्वुं स्वधमवजनकुं न ि मे रवकारो
् १४॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
रनष्कम्पकम्परनधनुं न रवकल्पकल्पुं
स्वप्नप्रबोधरनधनुं न रहतारहतुं रह ।
रनःसारसाररनधनुं न िरािरुं रह
87
अवधूत गीता
् १६॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
88
अवधूत गीता
् १९॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
90
अवधूत गीता
91
अवधूत गीता
ु ुं रविद्ध
िद्ध ु मरविारमनन्तरूपुं
रनले पलेपमरविारमनन्तरूपम ।्
रनष्खडिखडिमरविारमनन्तरूपुं
् २३॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
92
अवधूत गीता
ु
ब्रह्मादयः सरगणाः कथमत्र सरन्त
स्वगावदयो वसतयः कथमत्र सरन्त ।
यद्येकरूपममलुं परमाथ वतत्त्वुं
् २४॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
93
अवधूत गीता
How shall I, the pure One, the "not this " and
yet the not "not this", speak? How shall I, the
pure One, The endless and the end, speak?
How shall I, the pure One, attributeless and
attribute, speak? I am the nectar of knowledge,
homogenous existence, like the sky.
94
अवधूत गीता
मायाप्रपञ्चरिना न ि मे रवकारः ।
कौरटल्यदम्भरिना न ि मे रवकारः ।
सत्यानृतरे त रिना न ि मे रवकारो
् २७॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
सन्ध्यारदकालररहतुं न ि मे रवयोगो-
ह्यन्तः प्रबोधररहतुं बरधरो न मूकः ।
ु ुं
एवुं रवकल्पररहतुं न ि िाविद्ध
् २८॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
95
अवधूत गीता
रननावथनाथररहतुं रह रनराकुलुं वै
रनरश्चत्तरित्तरवगतुं रह रनराकुलुं वै ।
सुंरवरद्ध सववरवगतुं रह रनराकुअलुं वै
् २९॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
96
अवधूत गीता
97
अवधूत गीता
् ३३॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
99
अवधूत गीता
100
अवधूत गीता
ु न ि ते न मे ि
रलङ्गप्रपञ्चजनषी
रनलवज्जमानसरमदुं ि रविारत रिन्नम ।्
रनिेदिेदररहतुं न ि ते न मे ि
् ३९॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
ु ात्रमरप ते रह रवरागरूपुं
नो वाणम
ु ात्रमरप ते रह सरागरूपम ।्
नो वाणम
ु ात्रमरप ते रह सकामरूपुं
नो वाणम
् ४०॥ (3.40)
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
103
अवधूत गीता
् ४१॥
ज्ञानामृत ुं समरसुं गगनोपमोऽहम ॥
105
अवधूत गीता
न िून्यरूपुं न रविून्यरूपुं
ु रूपम ।्
ु रूपुं न रविद्ध
न िद्ध
रूपुं रवरूपुं न िवारम रकरञ्चत ्
् ४५॥
स्वरूपरूपुं परमाथ वतत्त्वम ॥
106
अवधूत गीता
ु मञ्च
मञ्च ु रह सुंसारुं त्यागुं मञ्च
ु रह सववथा ।
् ४६॥
ु ममृत ुं सहजुं ध्रवु म ॥
त्यागात्यागरवषुं िद्ध
107
अवधूत गीता
नावाहनुं न ैव रवसजवन ुं वा
ु
पष्पारण पत्रारण कथुं िवरन्त ।
ध्यानारन मन्त्रारण कथुं िवरन्त
समासमुं ि ैव रिवािनव ुं ि ॥ १॥
ु ो
न के वलुं बन्धरवबन्धमक्त
ु रविद्ध
न के वलुं िद्ध ु मक्त
ु ः।
ु ः
न के वलुं योगरवयोगमक्त
108
अवधूत गीता
् २॥
ु ो गगनोपमोऽहम ॥
स वै रवमक्त
न साञ्जनुं ि ैव रनरञ्जनुं वा
109
अवधूत गीता
अबोधबोधो मम न ैव जातो
बोधस्वरूपुं मम न ैव जातम ।्
रनबोधबोधुं ि कथुं वदारम
् ५॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
ु ो न ि पापयक्त
न धमवयक्त ु ो
ु ो न ि मोक्षयक्त
न बन्धयक्त ु ः।
ु ुं त्वयक्त
यक्त ु ुं न ि मे रविारत
् ६॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
परापरुं वा न ि मे कदारित ्
मध्यििावो रह न िारररमत्रम ।्
रहतारहतुं िारप कथुं वदारम
् ७॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
111
अवधूत गीता
112
अवधूत गीता
113
अवधूत गीता
ु ै-
उल्ले खमात्रुं न रह रिन्नमच्च
रुल्ले खमात्रुं न रतरोरहतुं वै ।
समासमुं रमत्र कथुं वदारम
् १३॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
रजतेरियोऽहुं त्वरजतेरियो वा
न सुंयमो मे रनयमो न जातः ।
जयाजयौ रमत्र कथुं वदारम
115
अवधूत गीता
् १४॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
116
अवधूत गीता
ु ुं
सुंरवरद्ध माुं सववरवसववमक्त
माया रवमाया न ि मे कदारित ।्
सन्ध्यारदकुं कमव कथुं वदारम
् १८॥
स्वरूपरनवावणमनामयोऽहम ॥
ु ुं
सुंरवरद्ध माुं सववसमारधयक्त
ु म ।्
सुंरवरद्ध माुं लक्ष्यरवलक्ष्यमक्त
118
अवधूत गीता
120
अवधूत गीता
122
अवधूत गीता
पञ्चमोध्यायः Chapter 5
123
अवधूत गीता
् २॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
अधऊर्ध्वरववरजवतसववसमुं
बरहरन्तरवरजवतसववसमम ।्
यरद ि ैकरववरजवतसववसमुं
् ३॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
124
अवधूत गीता
न रह करल्पतकल्परविार इरत
न रह कारणकायवरविार इरत ।
पदसरन्धरववरजवतसववसमुं
् ४॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
न रह बोधरवबोधसमारधरररत
न रह देिरवदेिसमारधरररत ।
न रह कालरवकालसमारधरररत
् ५॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
125
अवधूत गीता
इह सववरनरन्तरमोक्षपदुं
ु वरविाररवहीन इरत ।
लघदीघ
126
अवधूत गीता
ुव कोणरविाग इरत
न रह वतल
् ७॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह िून्यरविून्यरवहीन इरत
ु रविद्ध
इह िद्ध ु रवहीन इरत ।
इह सववरवसववरवहीन इरत
् ८॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
127
अवधूत गीता
न रह रिन्नरवरिन्नरविार इरत
बरहरन्तरसरन्धरविार इरत ।
अरररमत्ररववरजवतसववसमुं
् ९॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
न रह रिष्यरवरिष्यस्वरूप ैरत
न िरािरिेदरविार इरत ।
इह सववरनरन्तरमोक्षपदुं
् १०॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
128
अवधूत गीता
नन ु रूपरवरूपरवहीन इरत
नन ु रिन्नरवरिन्नरवहीन इरत ।
नन ु सगरव वसगरव वहीन इरत
् ११॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
ु ागण
न गण ु पािरनबन्ध इरत
129
अवधूत गीता
इह िावरविावरवहीन इरत
इह कामरवकामरवहीन इरत ।
इह बोधतमुं खलु मोक्षसमुं
् १३॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह तत्त्वरनरन्तरतत्त्वरमरत
न रह सरन्धरवसरन्धरवहीन इरत ।
यरद सववरववरजवतसववसमुं
् १४॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
131
अवधूत गीता
् १५॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
अरवकाररवकारमसत्यरमरत
अरवलक्षरवलक्षमसत्यरमरत ।
यरद के वलमात्मरन सत्यरमरत
् १६॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
132
अवधूत गीता
अरववेकरववेकमबोध इरत
अरवकल्परवकल्पमबोध इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरबोध इरत
् १८॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
133
अवधूत गीता
न रह मोक्षपदुं न रह बन्धपदुं
ु
न रह पडयपदुं न रह पापपदम ।्
न रह पूणपव दुं न रह ररक्तपदुं
् १९॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
यरद वणवरववणवरवहीनसमुं
यरद कारणकायवरवहीनसमम ।्
134
अवधूत गीता
यरदिेदरविेदरवहीनसमुं
् २०॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह सववरनरन्तरसववरिते
इह के वलरनश्चलसववरिते ।
रद्वपदारदरववरजवतसववरिते
् २१॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
अरतसववरनरन्तरसववगतुं
अरतरनमवलरनश्चलसववगतम ।्
रदनरारत्ररववरजवतसववगतुं
् २२॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
न रह बन्धरवबन्धसमागमनुं
न रह योगरवयोगसमागमनम ।्
न रह तकव रवतकव समागमनुं
136
अवधूत गीता
् २३॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह कालरवकालरनराकरणुं
ु
ु ात्रकृ िानरनराकरणम
अणम ।्
न रह के वलसत्यरनराकरणुं
् २४॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह देहरवदेहरवहीन इरत
137
अवधूत गीता
नन ु स्वप्नसषु रिरवहीनपरम
ु ।्
अरिधानरवधानरवहीनपरुं
् २५॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
ु रविालसमुं
गगनोपमिद्ध
अरतसववरववरजवतसववसमम ।्
गतसाररवसाररवकारसमुं
् २६॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
इह धमवरवधमवरवरागतर-
रमह विरु वविरवरागतरम
ु ।्
इह कामरवकामरवरागतरुं
् २७॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
ु
सखदःखरववरजव
तसववसम-
रमह िोकरविोकरवहीनपरम ।्
गरुु रिष्यरववरजवततत्त्वपरुं
139
अवधूत गीता
् २८॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
न रकलाङ्कुरसाररवसार इरत
न िलािलसाम्यरवसाम्यरमरत ।
अरविाररविाररवहीनरमरत
् २९॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
140
अवधूत गीता
ु यसाररमरत ।
इह सारसमच्च
करथतुं रनजिावरविेद इरत ।
रवषये करणत्वमसत्यरमरत
् ३०॥
रकम ु रोरदरष मानरस सववसमम ॥
141
अवधूत गीता
142
अवधूत गीता
षष्ठमोऽध्यायः Chapter 6
अरविरक्तरविरक्तरवहीनपरुं
नन ु कायवरवकायवरवहीनपरम ।्
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
143
अवधूत गीता
् २॥
यजनुं ि कथुं तपनुं ि कथम ॥
मन एव रनरन्तरसववगतुं
ह्यरविालरविालरवहीनपरम ।्
मन एव रनरन्तरसववरिवुं
् ३॥
मनसारप कथुं विसा ि कथम ॥
144
अवधूत गीता
रदनरारत्ररविेदरनराकरण-
ु
मरु दतानरदतस्य रनराकरणम ।्
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् ४॥
ररवििमसौ ज्वलनश्च कथम ॥
गतकामरवकामरविेद इरत
गतिेष्टरविेष्टरविेद इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् ५॥
बरहरन्तररिन्नमरतश्च कथम ॥
145
अवधूत गीता
146
अवधूत गीता
यरदिेदरविेदरनराकरणुं
यरद वेदकवेद्यरनराकरणम ।्
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् ७॥
तृतीयुं ि कथुं तरु ीयुं ि कथम ॥
गरदतारवरदतुं न रह सत्यरमरत
रवरदतारवरदतुं नरह सत्यरमरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
ु
रवषयेरियबरद्धमनाुं ् ८॥
रस कथम ॥
147
अवधूत गीता
Ether and air are not the truth; Earth and fire
are not the truth. If there is only one indivisible,
all-comprehensive absolute how can there be
cloud, how can there be water?
यरद करल्पतलोकरनराकरणुं
यरद करल्पतदेवरनराकरणम ।्
148
अवधूत गीता
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् १०॥
ु दोषरविारमरतश्च कथम ॥
गण
मरणामरणुं रह रनराकरणुं
करणाकरणुं रह रनराकरणम ।्
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
गमनागमनुं रह कथुं वदरत ॥ ११॥
149
अवधूत गीता
ु न रह िेद इरत
प्रकृ रतः परुषो
न रह कारणकायवरविेद इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
ु
परुषाप ु ि कथुं वदरत ॥ १२॥
रुषुं
तृतीयुं न रह दःखसमागमनुं
ु ारितीयस्य समागमनम ।्
न गण
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
150
अवधूत गीता
नन ु आश्रमवणवरवहीनपरुं
नन ु कारणकतृरव वहीनपरम ।्
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिव-
् १४॥
मरवनष्टरवनष्टमरतश्च कथम ॥
151
अवधूत गीता
ग्ररसताग्ररसतुं ि रवतथ्यरमरत
जरनताजरनतुं ि रवतथ्यरमरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिव-
् १५॥
मरवनारि रवनारि कथुं रह िवेत ॥
ु
परुषाप ु
रुषस्य रवनष्टरमरत
वरनतावरनतस्य रवनष्टरमरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिव-
् १६॥
मरवनोदरवनोदमरतश्च कथम ॥
152
अवधूत गीता
यरद मोहरवषादरवहीनपरो
यरद सुंियिोकरवहीनपरः ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिव-
ु ॥ १७॥
महमेरत ममेरत कथुं ि पनः
नन ु धमवरवधमवरवनाि इरत
नन ु बन्धरवबन्धरवनाि इरत ।
153
अवधूत गीता
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं-
् १८॥
रमहदःखरवदःखमरतश्च कथम ॥
न रह यारज्ञकयज्ञरविाग इरत
न हुतािनविरु विाग इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् १९॥
वद कमवफलारन िवरन्त कथम ॥
नन ु िोकरविोकरवमक्त
ु इरत
नन ु दप वरवदप वरवमक्त
ु इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् २०॥
नन ु रागरवरागमरतश्च कथम ॥
न रह मोहरवमोहरवकार इरत
न रह लोिरवलोिरवकार इरत ।
यरद ि ैकरनरन्तरसववरिवुं
् २१॥
ह्यरववेकरववेकमरतश्च कथम ॥
155
अवधूत गीता
156
अवधूत गीता
न रह करल्पतदेहरविाग इरत
न रह करल्पतलोकरविाग इरत ।
अहमेव रिवः परमाथ व इरत
् २४॥
अरिवादनमत्र करोरम कथम ॥
157
अवधूत गीता
न रह देहरवदेहरवकल्प इरत
अनृत ुं िररतुं न रह सत्यरमरत ।
158
अवधूत गीता
159
अवधूत गीता
सिमोऽध्यायः Chapter 7
रथ्याकप वटरवररितकन्थः
ु
पडयाप ु
डयरववरजव
तपन्थः ।
िून्यागारे रतष्ठरत नग्नो
ु रनरञ्जनसमरसमग्नः ॥ १॥
िद्ध
लक्ष्यालक्ष्यरववरजवतलक्ष्यो
ु ायक्त
यक्त ु रववरजवतदक्षः ।
के वलतत्त्वरनरञ्जनपूतो
160
अवधूत गीता
वादरववादः कथमवधूतः ॥ २॥
ु
आिापािरवबन्धनमक्ताः
ु ाः ।
िौिािाररववरजवतयक्त
एवुं सववरववरजवतिान्त-
ु रनरञ्जनवन्तः ॥ ३॥
ित्त्वुं िद्ध
161
अवधूत गीता
कथरमह देहरवदेहरविारः
कथरमह रागरवरागरविारः ।
रनमवलरनश्चलगगनाकारुं
् ४॥
स्वयरमह तत्त्वुं सहजाकारम ॥
162
अवधूत गीता
गगनाकाररनरन्तरहुंस-
ु रनरञ्जनहुंसः ।
ित्त्वरविद्ध
एवुं कथरमह रिन्नरवरिन्नुं
् ६॥
बन्धरवबन्धरवकाररवरिन्नम ॥
के वलतत्त्वरनरन्तरसवं
योगरवयोगौ कथरमह गववम ।्
163
अवधूत गीता
एवुं परमरनरन्तरसवव-
् ७॥
मेव ुं कथरमह साररवसारम ॥
के वलतत्त्वरनरञ्जनसवं
ु म ।्
गगनाकाररनरन्तरिद्ध
एवुं कथरमह सङ्गरवसङ्गुं
् ८॥
सत्युं कथरमह रङ्गरवरङ्गम ॥
164
अवधूत गीता
ु ो
बोधरवबोध ैः सततुं यक्त
ु ः।
द्वैताद्वैतःै कथरमह मक्त
सहजो रवरजः कथरमह योगी
ु रनरञ्जनसमरसिोगी ॥ १०॥
िद्ध
165
अवधूत गीता
िग्नािग्नरववरजवतिग्नो
लग्नालग्नरववरजवतलग्नः ।
एवुं कथरमह साररवसारः
समरसतत्त्वुं गगनाकारः ॥ ११॥
166
अवधूत गीता
ु ः
सततुं सववरववरजवतयक्त
ु ः।
सवं तत्त्वरववरजवतमक्त
एवुं कथरमह जीरवतमरणुं
् १२॥
ध्यानाध्यान ैः कथरमह करणम ॥
167
अवधूत गीता
168
अवधूत गीता
अष्टमोऽध्यायः Chapter 8
169
अवधूत गीता
्
अप्रमत्तो गिीरात्मा धृरतमान रजतषड्ग णः
ु ।
अमानी मानदः कल्पो मैत्रः कारुरणकः करवः ॥ ३॥
170
अवधूत गीता
वु आरदमध्यान्तरनमवलः ।
आिापािरवरनमक्त
् ६॥
आनन्दे वतवत े रनत्यमकारुं तस्य लक्षणम ॥
171
अवधूत गीता
172
अवधूत गीता
दत्तात्रेयावधूतने रनरमवतानन्दरूरपणा ।
ु वव ः ॥ १०॥
ये पठरन्त ि शृडवरन्त तेषाुं न ैव पनि
इरत अष्टमोऽध्यायः ॥ ८॥
173