Shams

You might also like

Download as docx, pdf, or txt
Download as docx, pdf, or txt
You are on page 1of 3

शम्स तबरे ज का पूरा नाम हज़रत मुहम्मद बबन मबिक-दाद

मुिक्कब ब-शे ख शम्सुद्दीन तबरे जी था | मौिाना रूम का नाम


आते ही खु द ब खु द शम्स तबरे ज का नाम भी उसमें जुड़ जाता है
| कहते हैं बक एक बदन इन्हें खुदा का इशारा हुआ की तुम रूम
जाओ , वहाां एक शख्स से तुम्हारी मुिाकात होगी | यह कोबनया
पहुुँ च गए और एक सराय में ठहरे जहाुँ इनकी मुिाकात मौिाना
की सवारी से हुई | दोनोां ही बड़े बवद्वान् थे | एक बदन मौिाना
बकताबोां से बिरे बै ठे थे , आस पास उनके बशष्य भी थे | शम्स भी
वहाां आ पहुां चे और मौिाना से पूछा बक यह क्या है ? मौिाना ने
फरमाया बक यह वह चीज़ है बजसे आप नहीां जानते | यह कहते
ही तमाम बकताबोां में आग िग गयी |

शम्स हर वक़्त पययटन करते रहते थे , एक शहर से दू सरे शहर


और सराय में बैठकर ध्यान िगाया करते थे | एक बदन वह
मुल्तान आ बनकिे | मु ल्तान गरमी , गदय , कबिस्तान और फकीरोां
का शहर कहिाता था | फकीरोां में बुहाबुल्हक बहुत मशहूर थे |
इन्हें ” खु दा दोस्त ” के नाम से जाना जाता था | जै से ही इन्होने
शम्स तबरे ज को दे खा , दू ध से भरा प्यािा मुांह तक िे जाकर
शम्स के पास भेज बदया | इसका मतिब था बक यहाुँ पहिे से ही
बहुत फकीर हैं , तु म्हारी कोई जगह नहीां है | शम्स ने उस प्यािे
में गुिाब की पांखुबड़याां डाि कर भेज दीां बक अब दे खो जैसे प्यािे
में यह समा गयी हैं वै से ही मैं भी समा जाऊुँगा | कुछ बदन तो
खुदा दोस्त ने यह बदाय श्त कर बिया परन्तु शम्स का ” सब वही है
” का मतिब उनकी समझ में नहीां आया और उन्हें काबफर ठहरा
बदया | िोगोां ने उन्हें खाना दे ना बांद कर बदया | मुल्ला भड़क उठे
थे बक यह अपने को खु दा से बढ़कर कहता है , इसकी खाि
खीांच िेनी चाबहए | शम्स ने अपने हाथ से खाि उतारकर रख दी
| सब िोग इनका रूप दे खकर डरने िगे |
एक बदन एक आदमी ने इन्हें कच्चे चने खाने को बदए | मुल्तान
शहर में बकसी ने भी इनके बिए चने नहीां भूने | तब इन्होने सूरज
की तरफ दे खकर कहा बक ” तू भी शम्स, मैं भी शम्स , आ मेरे
चने भून दे | कहते हैं मु ल्तान में इतनी तबपश बढ़ गयी बक सारे
िोग िबरा गए |
तब सबने बमिकर इनसे माफी माां गी | १२४७ ई में इन्होने शरीर
का त्याग बकया |
खुदा से बढ़कर खु द को मानने का मतिब िोगोां की समझ से
बाहर था | यह खु दा को अपने अन्दर ढू ुँ ढ़ते थे |
कहते थे बक वह कैसा मजनू था जो िैिा पर आबशक हो गया | मैं
भी कैसा अजीब हूुँ बक अपने आप पर आबशक हो गया | जब मैं ने
अपने अन्दर नज़र की तो बसवाय खुदा के मुझे कुछ न बदखा |
वह कहते थे बक —
मेरा न कहीां मकाुँ है और न ही बनशाुँ है | मैं न तन हूुँ न ही जान हूुँ
| जो जानोां का जान है वही मेरा खुदा है , मैं उसीसे हूुँ और वह
मुझमें है | ‘हू ‘ ही आबद है और ‘हू’ ही अांत है | बसवाय ‘हू’ के मैं
कुछ नहीां जानता | मैं प्रेम के नशे में मस्त हूुँ | मैं कैसा पक्षी हूुँ बक
अांडे के अन्दर ही उड़ने िगा हूुँ | अगर मैंने कोई भी साां स उसके
बगैर िी तो मैं अपनी बज़न्दगी से शबमिंदा हूुँ | अब मेरे पास कुछ
नहीां है बसवाय प्रेम और बनधयनता के | मगर ऐ शम्स तबरे ज तू
बफर भी खु श है , मस्त है , इस पानी और बमट्टी की काया में प्रेम
ही प्रेम जो भरा है और तू रोज़ यह प्यािा जो बपया करता है |
1. Nabhakrit Bhakt- maal , 1980 Edition

You might also like