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म मह म्

शरीरे ण मानिसकेन कृतं कम - मं इित क ते । मेण िवना जीवनं जीवनं निह ।


मेण िवना न िव ा भवित न ं, प रवारे समाजे, रा े च म मह ं ते ।
आिव ारकः वै ािनकः शारी रक-मानिसक- मेण नव-नव पदाथान् आिव रोित ।
मेण िवना भोजनमिप दु ा म् भवित । अतएव आशैशवम् एव मं कुयात् । अनेन
मेण रा ः समाजः प रवार उ ितपथमारोहित ।
मेण ल ं सकलं न मे ण िवना िचत् ।
सरलाङ् गु िल संघषात् न िनयाित घनं घृतम् ॥

िह ी अनु वाद :

शरीर के ारा मन से िकया गया काय म कहलाता है । म के िवना जीवन, जीवन नही ं है
। म के िवना न िव ा होती है, न प रवार और समाज म म का मह दे खा जाता है
। आिव ार करने वाले वै ािनक शारी रक और मानिसक म के ारा ही नये-नये पदाथ
का आिव ार करते ह । प र म के िवना भोजन भी दू लभ हो जाता है । अतः वचपन से ही
हम प र म करना चािहए । म के ारा ही रा , समाज और प रवार उ ित माग पर
चलता है ।
म से सब िमलता है, म िबना कुछ नही ं । सीधी उँ गली से घी िनकलता नही ं ।

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