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अनाथ लड़की
अनाथ लड़की
से ठ पु षो मदास पू ना क सर वती पाठशाला का मुआयना करने के बाद बाहर िनकले तो एक लड़क ने दौड़कर
उनका दामन पकड़ िलया। से ठ जी क गये और मुह बत से उसक तरफ दे खकर पू छा— या नाम है ?
लड़क ने उनक तरफ ब च जैसी गं भीरता से दे खकर कहा—तुम चले जाते हो, मुझे रोना आता है , मुझे भी साथ ले ते चलो।
ँ ी। म तु हार बे टी हू ँगी।
रोिहणी ने यार से उनक गदन म हाथ डाल िदये और बोली—जहॉँ तुम जाओगे वह म भी चलू ग
मदरसे के अफसर ने आगे बढ़कर कहा—इसका बाप साल भर हु आ नही रहा। मॉँ कपड़े सीती है , बड़ी मुि कल से गुजर होती है ।
से ठ जी के वभाव म क णा बहु त थी। यह सुनकर उनक आँख भर आय। उस भोली ाथना म वह दद था जो प थर-से िदल को
िपघला सकता है । बे कसी और यतीमी को इससे यादा ददनाक ढं ग से जािहर करना नामुमिकन था। उ हने सोचा—इस न ह-से िदल
म न जाने या अरमान हगे । और लड़िकयॉँ अपने िखलौने िदखाकर कहती हगी, यह मे रे बाप ने िदया है । वह अपने बाप के साथ
मदरसे आती हगी, उसके साथ मे ल म जाती हगी और उनक िदलचि पय का िज करती हगी। यह सब बात सुन-सुनकर इस
भोली लड़क को भी वािहश होती होगी िक मे रे बाप होता। मॉँ क मुह बत म गहराई और आि मकता होती है िजसे ब चे समझ नह
सकते । बाप क मुह बत म खुशी और चाव होता है िजसे ब चे खूब समझते ह।
से ठ जी ने रोिहणी को यार से गले लगा िलया और बोले —अ छा, म तु ह अपनी बे टी बनाऊँगा। ले िकन खूब जी लगाकर पढ़ना। अब
छु ी का व त आ गया है , मे रे साथ आओ, तु हारे घर पहु ँचा दँ ू ।
यह कहकर उ हने रोिहणी को अपनी मोटरकार म िबठा िलया। रोिहणी ने बड़े इ मीनान और गव से अपनी सहे िलय क तरफ दे खा।
उसक बड़ी-बड़ी आँख खुशी से चमक रही थ और चे हरा चॉँदनी रात क तरह िखला हु आ था।
से ठ ने रोिहणी को बाजार क खूब सै र करायी और कुछ उसक पस द से , कुछ अपनी पस द से बहु त-सी चीज खर द, यहॉँ तक िक
रोिहणी बात करते -करते कुछ थक-सी गयी और खामोश हो गई। उसने इतनी चीज दे ख और इतनी बात सुन िक उसका जी भर गया।
शाम होते -होते रोिहणी के घर पहु ँचे और मोटरकार से उतरकर रोिहणी को अब कुछ आराम िमला। दरवाजा ब द था। उसक मॉँ िकसी
ाहक के घर कपड़े दे ने गयी थी। रोिहणी ने अपने तोहफ को उलटना-पलटना शु िकया—खूबसूरत रबड़ के िखलौने , चीनी क
गुिड़या जरा दबाने से चू -ँ चू ँ करने लगत और रोिहणी यह यारा सं गीत सुनकर फूली न समाती थी। रे शमी कपड़े और रंग-िबरंगी
सािड़य क कई ब डल थे ले िकन मखमली बूटे क गुलका रय ने उसे खूब लुभाया था। उसे उन चीज के पाने क िजतनी खुशी थी,
उससे यादा उ ह अपनी सहे िलय को िदखाने क बे चैनी थी। सु दर के जू ते अ छे सही ले िकन उनम ऐसे फूल कहॉँ ह। ऐसी गुिड़या
उसने कभी दे खी भी न हगी। इन खयाल से उसके िदल म उमं ग भर आयी और वह अपनी मोिहनी आवाज म एक गीत गाने लगी।
से ठ जी दरवाजे पर खड़े इन पिव दृ य का हािदक आन द उठा रहे थे । इतने म रोिहणी क मॉँ ि मणी कपड़ क एक पोटली िलये हु ए
आती िदखायी द । रोिहणी ने खुशी से पागल होकर एक छलॉँग भर और उसके पै र से िलपट गयी। ि मणी का चे हरा पीला था, आँख
म हसरत और बे कसी िछपी हु ई थी, गु त िचं ता का सजीव िच मालूम होती थी, िजसके िलए िजं दगी म कोई सहारा नह।
मगर रोिहणी को जब उसने गोद म उठाकर यार से चू मा तो जरा दे र के िलए उसक ऑंख म उ मीद और िजं दगी क झलक िदखायी
द । मुरझाया हु आ फूल िखल गया। बोली—आज तू इतनी दे र तक कहॉँ रही, म तुझे ढू ँढ़ने पाठशाला गयी थी।
रोिहणी ने हु मककर कहा—म मोटरकार पर बै ठकर बाजार गयी थी। वहॉँ से बहु त अ छी-अ छी चीज लायी हू ँ। वह दे खो कौन खड़ा है ?
रोिहणी ने उनसे मुं ह क तरफ याचना-भर आँख से दे खकर कहा—अब तुम रोज यह रहा करोगे ?
से ठ जी ने उसके बाल सुलझाकर जवाब िदया—म यहॉँ रहू ँगा तो काम कौन करेगा? म कभी-कभी तु ह दे खने आया क ँ गा, ले िकन वहॉँ
ँ ा।
से तु हारे िलए अ छी-अ छी चीज भे जूग
रोिहणी कुछ उदास-सी हो गयी। इतने म उसक मॉँ ने मकान का दरवाजा खोला ओर बड़ी फुत से मै ले िबछावन और फटे हु ए कपड़े समे ट
कर कोने म डाल िदये िक कह से ठ जी क िनगाह उन पर न पड़ जाए। यह वािभमान ि य क खास अपनी चीज है ।
ि मणी अब इस सोच म पड़ी थी िक म इनक या खाितर-तवाजो क ँ । उसने से ठ जी का नाम सुना था, उसका पित हमे शा उनक
बड़ाई िकया करता था। वह उनक दया और उदारता क चच एँ अने क बार सुन चुक थी। वह उ ह अपने मन का दे वता समझा करती
थी, उसे या उमीद थी िक कभी उसका घर भी उसके कदम से रोशन होगा। ले िकन आज जब वह शुभ िदन सं योग से आया तो वह इस
कािबल भी नह िक उ ह बै ठने के िलए एक मोढ़ा दे सके। घर म पान और इलायची भी नह। वह अपने आँसओ
ु ं को िकसी तरह न रोक
सक ।
आिखर जब अं धेरा हो गया और पास के ठाकुर ारे से घ ट और नगाड़ क आवाज आने लग तो उ हने जरा ऊँची आवाज म कहा—
बाईजी, अब म जाता हू ँ। मुझे अभी यहॉँ बहु त काम करना है । मे र रोिहणी को कोई तकलीफ न हो। मुझे जब मौका िमले गा, उसे दे खने
आऊँगा। उसके पालने -पोसने का काम मे रा है और म उसे बहु त खुशी से पू रा क ँ गा। उसके िलए अब तुम कोई िफ मत करो। मने
उसका वजीफा बॉँध िदया है और यह उसक पहली िक त है । यह कहकर उ हने अपना खूबसूरत बटु आ िनकाला और ि मणी के
सामने रख िदया। गर ब औरत क आँख म आँसू जार थे । उसका जी बरबस चाहता था िक उसके पै र को पकड़कर खूब रोये । आज
बहु त िदन के बाद एक स चे हमदद क आवाज उसके मन म आयी थी।
जब से ठ जी चले तो उसने दोन हाथ से णाम िकया। उसके हृ दय क गहराइय से ाथना िनकली—आपने एक बे बस पर दया क है ,
ई र आपको इसका बदला दे ।
दूसरे िदन रोिहणी पाठशाला गई तो उसक बॉँक सज-धज आँख म खुबी जाती थी। उ तािनय ने उसे बार -बार यार िकया और
उसक सहे िलयॉँ उसक एक-एक चीज को आ य से दे खती और ललचाती थी। अ छे कपड़ से कुछ वािभमान का अनुभव होता है ।
आज रोिहणी वह गर ब लड़क न रही जो दूसर क तरफ िववश ने से दे खा करती थी। आज उसक एक-एक ि या से शै शवोिचत गव
और चं चलता टपकती थी और उसक जबान एक दम के िलए भी न कती थी। कभी मोटर क ते जी का िज था कभी बाजार क
िदलचि पय का बयान, कभी अपनी गुिड़य के कुशल-मं गल क चच थी और कभी अपने बाप क मुह बत क दा तान। िदल था िक
उमं ग से भरा हु आ था। एक महीने बाद से ठ पु षो मदास ने रोिहणी के िलए िफर तोहफे और पये रवाना िकये । बे चार िवधवा को
उनक कृपा से जीिवका क िच ता से छु ी िमली। वह भी रोिहणी के साथ पाठशाला आती और दोन मॉँ-बे टयॉँ एक ही दरजे के साथ-
साथ पढ़त, ले िकन रोिहणी का न बर हमे शा मॉँ से अ वल रहा से ठ जी जब पू ना क तरफ से िनकलते तो रोिहणी को दे खने ज र आते
और उनका आगमन उसक स ता और मनोरंजन के िलए महीन का सामान इक ा कर दे ता।
इसी तरह कई साल गुजर गये और रोिहणी ने जवानी के सुहाने हरे-भरे मै दान म पै र र खा, जबिक बचपन क भोली-भाली अदाओं म
एक खास मतलब और इराद का दखल हो जाता है ।
रोिहणी अब आ त रक और बा सौ दय म अपनी पाठशाला क नाक थी। हाव-भाव म आकषक ग भीरता, बात म गीत का-सा िखं चाव
और गीत का-सा आि मक रस था। कपड़ म रंगीन सादगी, आँख म लाज-सं कोच, िवचार म पिव ता। जवानी थी मगर घम ड और
बनावट और चं चलता से मु त। उसम एक एका ता थी ऊँचे इराद से पै दा होती है । ि योिचत उ ष क मं िजल वह धीरे-धीरे तय
करती चली जाती थी।
से ठ जी के बड़े बे टे नरो मदास कई साल तक अमे रका और जमनी क युिनविस टय क खाक छानने के बाद इं जीिनय रंग िवभाग म
कमाल हािसल करके वापस आए थे । अमे रका के सबसे िति ठत काले ज म उ हने स मान का पद ा त िकया था। अमे रका के
अखबार एक िह दो तानी नौजवान क इस शानदार कामयाबी पर चिकत थे । उ ह का वागत करने के िलए ब बई म एक बड़ा जलसा
िकया गया था। इस उ सव म शर क होने के िलए लोग दूर-दूर से आए थे । सर वती पाठशाला को भी िनमं ण िमला और रोिहणी को
से ठानी जी ने िवशे ष प से आमं ि त िकया। पाठशाला म ह त तै या रयॉँ हु ई। रोिहणी को एक दम के िलए भी चै न न था। यह पहला
मौका था िक उसने अपने िलए बहु त अ छे -अ छे कपड़े बनवाये । रंग के चुनाव म वह िमठास थी, काट-छॉँट म वह फबन िजससे उसक
सु दरता चमक उठी। से ठानी कौश या दे वी उसे ले ने के िलए रे लवे टे शन पर मौजू द थ। रोिहणी गाड़ी से उतरते ही उनके पै र क
तरफ झुक ले िकन उ हने उसे छाती से लगा िलया और इस तरह यार िकया िक जैसे वह उनक बे टी है । वह उसे बार-बार दे खती थ
और आँख से गव और ेम टपक पड़ता था।
इस जलसे के िलए ठीक समु दर के िकनारे एक हरे-भरे सुहाने मै दान म एक ल बा-चौड़ा शािमयाना लगाया गया था। एक तरफ
आदिमय का समु उमड़ा हु आ था दूसर तरफ समु क लहर उमड़ रही थ, गोया वह भी इस खुशी म शर क थ।
जब उपि थत लोग ने रोिहणी बाई के आने क खबर सुनी तो हजार आदमी उसे दे खने के िलए खड़े हो गए। यही तो वह लड़क है ।
िजसने अबक शा ी क पर ा पास क है । जरा उसके दशन करने चािहये । अब भी इस दे श क ि य म ऐसे रतन मौजू द ह। भोले -
भाले दे श ेिमय म इस तरह क बात होने लग। शहर क कई िति ठत मिहलाओं ने आकर रोिहणी को गले लगाया और आपस म उसके
सौ दय और उसके कपड़ क चच होने लगी। आिखर िम टर पु षो मदास तशर फ लाए। हालॉँिक वह बड़ा िश ट और ग भीर उ सव
था ले िकन उस व त दशन क उ ंठा पागलपन क हद तक जा पहु ँची थी। एक भगदड़-सी मच गई। कुिसय क कतारे गड़बड़ हो गईं ।
कोई कुस पर खड़ा हु आ, कोई उसके ह थ पर। कुछ मनचले लोग ने शािमयाने क रि सयॉँ पकड़ और उन पर जा लटके कई िमनट
तक यही तू फान मचा रहा। कह कुिसय टूट, कह कुिसयॉँ उलट, कोई िकसी के ऊपर िगरा, कोई नीचे । यादा ते ज लोग म धौल-
ध पा होने लगा।
तब बीन क सुहानी आवाज आने लग। रोिहणी ने अपनी म डली के साथ दे श ेम म डू बा हु आ गीत शु िकया। सारे उपि थत लोग
िबलकुल शा त थे और उस समय वह सुर ला राग, उसक कोमलता और व छता, उसक भावशाली मधुरता, उसक उ साह भर
वाणी िदल पर वह नशा-सा पै दा कर रही थी िजससे ेम क लहर उठती ह, जो िदल से बुराइय को िमटाता है और उससे िज दगी क
ँ रही
हमे शा याद रहने वाली यादगार पै दा हो जाती ह। गीत ब द होने पर तार फ क एक आवाज न आई। वह ताने कान म अब तक गू ज
थ।
गाने के बाद िविभ सं थाओं क तरफ से अिभन दन पे श हु ए और तब नरो मदास लोग को ध यवाद दे ने के िलए खड़े हु ए। ले िकन
उनके भाषाण से लोग को थोड़ी िनराशा हु ई। य दो तो क म डली म उनक व तृता के आवे ग और वाह क कोई सीमा न थी ले िकन
सावजिनक सभा के सामने खड़े होते ही श और िवचार दोन ही उनसे बे वफाई कर जाते थे । उ हने बड़ी-बड़ी मुि कल से ध यवाद के
कुछ श कहे और तब अपनी यो यता क लि जत वीकृित के साथ अपनी जगह पर आ बै ठे। िकतने ही लोग उनक यो यता पर
ािनय क तरह िसर िहलाने लगे ।
अब जलसा ख म होने का व त आया। वह रे शमी हार जो सर वती पाठशाला क ओर से भे जा गया था, मे ज पर रखा हु आ था। उसे हीरो
के गले म कौन डाले ? ेिसडे ट ने मिहलाओं क पं ि त क ओर नजर दौड़ाई। चुनने वाली आँख रोिहणी पर पड़ी और ठहर गई। उसक
ँ पते
छाती धड़कने लगी। ले िकन उ सव के सभापित के आदेश का पालन आव यक था। वह सर झुकाये हु ए मे ज के पास आयी और कॉ
हाथ से हार को उठा िलया। एक ण के िलए दोन क आँख िमल और रोिहणी ने नरो मदास के गले म हार डाल िदया।
दूसरे िदन सर वती पाठशाला के मे हमान िवदा हु ए ले िकन कौश या दे वी ने रोिहणी को न जाने िदया। बोली—अभी तु ह दे खने से जी
नह भरा, तु ह यहॉँ एक ह ता रहना होगा। आिखर म भी तो तु हार मॉँ हू ँ। एक मॉँ से इतना यार और दूसर मॉँ से इतना अलगाव!
यह सारा ह ता कौश या दे वी ने उसक िवदाई क तै या रय म खच िकया। सातव िदन उसे िवदा करने के िलए टे शन तक आय।
चलते व त उससे गले िमल और बहु त कोिशश करने पर भी आँसओ
ु ं को न रोक सक। नरो मदास भी आये थे । उनका चे हरा उदास
था। कौश या ने उनक तरफ सहानुभूितपू ण आँख से दे खकर कहा—मुझे यह तो याल ही न रहा, रोिहणी या यहॉँ से पू ना तक
अकेली जाये गी? या हज है , तु ह चले जाओ, शाम क गाड़ी से लौट आना।
नरो मदास के चे हरे पर खुशी क लहर दौड़ गयी, जो इन श म न िछप सक —अ छा, म ही चला जाऊँगा। वह इस िफ म थे िक दे ख
िबदाई क बातचीत का मौका भी िमलता है या नह। अब वह खूब जी भरकर अपना दद िदल सुनायगे और मुमिकन हु आ तो उस लाज-
सं कोच को, जो उदासीनता के परदे म िछपी हु ई है , िमटा दगे ।
ि मणी को अब रोिहणी क शाद क िफ पै दा हु ई। पड़ोस क औरत म इसक चच होने लगी थी। लड़क इतनी सयानी हो गयी है ,
अब या बुढ़ापे म याह होगा? कई जगह से बात आयी, उनम कुछ बड़े िति ठत घराने थे । ले िकन जब ि मणी उन पै मान को से ठजी
के पास भे जती तो वे यही जवाब दे ते िक म खुद िफ म हू ँ। ि मणी को उनक यह टाल-मटोल बुर मालूम होती थी।
रोिहणी को ब बई से लौटे महीना भर हो चुका था। एक िदन वह पाठशाला से लौटी तो उसे अ मा क चारपाई पर एक खत पड़ा हु आ
िमला। रोिहणी पढ़ने लगी, िलखा था—बहन, जब से मने तु हार लड़क को ब बई म दे खा है , म उस पर र झ गई हू ँ। अब उसके बगै र मुझे
चै न नह है । या मे रा ऐसा भा य होगा िक वह मे र बहू बन सके? म गर ब हू ँ ले िकन मने से ठ जी को राजी कर िलया है । तुम भी मे र यह
िवनती कबूल करो। म तु हार लड़क को चाहे फूल क से ज पर न सुला सकूँ, ले िकन इस घर का एक-एक आदमी उसे आँख क पुतली
बनाकर रखे गा। अब रहा लड़का। मॉँ के मुह
ँ से लड़के का बखान कुछ अ छा नह मालूम होता। ले िकन यह कह सकती हू ँ िक परमा मा
ने यह जोड़ी अपनी हाथ बनायी है । सूरत म, वभाव म, िव ा म, हर दिृ ट से वह रोिहणी के यो य है । तुम जैसे चाहे अपना इ मीनान
ँ नीचे थोड़े -से श म से ठजी ने उस पै गाम क िसफा रश क थी।
कर सकती हो। जवाब ज द दे ना और यादा या िलखू ।
रोिहणी गाल पर हाथ रखकर सोचने लगी। नरो मदास क त वीर उसक आँख के सामने आ खड़ी हु ई। उनक वह ेम क बात,
िजनका िसलिसला ब बई से पू ना तक नह टूटा था, कान म गूं जने लग। उसने एक ठ डी सॉँस ली और उदास होकर चारपाई पर ले ट
गई।
सर वती पाठशाला म एक बार िफर सजावट और सफाई के दृ य िदखाई दे रहे ह। आज रोिहणी क शाद का शुभ िदन। शाम का व त,
बस त का सुहाना मौसम। पाठशाला के दारो-द वार मु करा रहे ह और हरा-भरा बगीचा फूला नह समाता।
च मा अपनी बारात ले कर पू रब क तरफ से िनकला। उसी व त मं गलाचरण का सुहाना राग उस पहली चॉँदनी और ह के-ह के
हवा के झोक म लहर मारने लगा। दू हा आया, उसे दे खते ही लोग है रत म आ गए। यह नरो मदास थे । दू हा म डप के नीचे गया।
रोिहणी क मॉँ अपने को रोक न सक , उसी व त जाकर से ठ जी के पै र पर िगर पड़ी। रोिहणी क आँख से ेम और आन द के आँसू बहने
लगे ।
म डप के नीचे हवन-कु ड बना था। हवन शु हु आ, खुशबू क लपे ट हवा म उठ और सारा मै दान महक गया। लोग के िदलो-िदमाग म
ताजगी क उमं ग पै दा हु ई।
िफर सं कार क बार आई। दू हा और दु हन ने आपस म हमदद ; िज मे दार और वफादार के पिव श अपनी जबान से कहे । िववाह
क वह मुबारक जं जीर गले म पड़ी िजसम वजन है , स ती है , पाबि दयॉँ ह ले िकन वजन के साथ सुख और पाबि दय के साथ िव ास
है । दोन िदल म उस व त एक नयी, बलवान, आि मक शि त क अनुभूित हो रही थी।
ँ ने लगे । से ठ जी थककर चू र हो गए थे ।
जब शाद क र म ख म हो गय तो नाच-गाने क मजिलस का दौर आया। मोहक गीत गू ज
जरा दम ले ने के िलए बागीचे म जाकर एक बच पर बै ठ गये । ठ डी-ठ डी हवा आ रही आ रही थी। एक नशा-सा पै दा करने वाली शाि त
चार तरफ छायी हु ई थी। उसी व त रोिहणी उनके पास आयी और उनके पै र से िलपट गयी। से ठ जी ने उसे उठाकर गले से लगा
िलया और हँसकर बोले — य, अब तो तुम मे र अपनी बे टी हो गय?