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सहर्ष स्वीकारा है
सहर्ष स्वीकारा है
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सहर्ष स्वीकारा है
1. मुख पृष्ठ
२. विद्यार्थी का घोषणा पत्र
3. प्रमाणपत्र
4. विषय सूची
5. आभारोक्ति
6. संदभभ सूची
पररयोजना कायभ
शीषभक
सहर्ष स्वीकारा है
प्रस्तुत कताभ
विद्यार्थी का नाम
अनुक्रमां क
विद्यालय का नाम
हस्ताक्षर वनदे शक
वनदे शक का नाम
हस्ताक्षर वनदे शक
विद्यार्थी की घोर्णा पत्र
मैं ------------------------------------
-------------कक्षा -------
-------------------------------------
विद्यालय, एतद द्वारा यह घोषणा करता हूँ वक मेरे द्वारा,
-----------------के मार्भदशभन में ---------
------ भेजा र्या पररयोजना कायभ, मेरा मौवलक
कायभ है |
हस्ताक्षर
विद्यार्थी का नाम
अनुक्रमां क
विद्यालय का नाम
वदनां क
प्रमावणत वकया जाता है वक -----------------------------
------ नामक पररयोजना
ररपोर्भ .............................(नाम)
....................(कक्षा)......................
.....(विद्यालय)
.......................................द्वारा प्रस्तुत की
र्ई है , जो वक केंद्रीय माध्यवमक बोर्भ ,
कक्षा बारह वहन्दी केंवद्रक की िावषभक परीक्षा का अंश है | यह इनका
मौवलक कायभ है |
वदनां क
प्राचायभ
कवि पररचय
जीिन पररचय– प्रयोर्िादी काव्यधारा के प्रवतवनवध कवि
र्जानन माधि ‘मुक्तिबोध’ का जन्म मध्य प्रदे श के ग्वावलयर
वजले के श्योपुर नामक स्र्थान पर 1917 ई० में हुआ र्था। इनके
वपता पुवलस विभार् में र्थे । अत: वनरं तर होने िाले स्र्थानां तरण
के कारण इनकी पढाई वनयवमत ि व्यिक्तस्र्थत रूप से नहीं हो
पाई। 1954 ई. में इन्ोंने नार्पुर विश्वविद्यालय से एम०ए०
(वहं दी) करने के बाद राजनाद र्ाूँ ि के वर्ग्री कॉलेज में
अध्यापन कायभ आरं भ वकया। इन्ोंने अध्यापन, लेखन एिं
पत्रकाररता सभी क्षे त्रों में अपनी योग्यता, प्रवतभा एिं कायभक्षमता
का पररचय वदया। मुक्तिबोध को जीिनपयभत संघषभ करना पडा
और संघषभशीलता ने इन्ें वचंतनशील एिं जीिन को नए
दृविकोण से दे खने को प्रेररत वकया। 1964 ई० में यह महान
वचंतक, दाशभवनक, पत्रकार एिं सजर् लेखक तर्था कवि इस
संसार से चल बसा।
रचनाएँ - र्जानन माधि ‘मुक्तिबोध’ की रचनाएूँ वनम्नवलक्तखत
हैं
(i) कविता-संग्रह- चाूँ द का मुूँह र्े ढा है , भू री-भू री खाक-धूल।
(ii) कर्था-सावहत्य- काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता
आदमी।
(iii) आलोचना- कामायनी-एक पुनविभचार, नई कविता का
आत्मसंघषभ, नए सावहत्य का सौंदयभशास्त्र, समीक्षा की समस्याएूँ
एक सावहक्तत्यक की र्ायरी।
(iv) भारत-इवतहास और संस्कृवत।
काव्यगत विशेर्ताएँ - मुक्तिबोध प्रयोर्िादी काव्यधारा के
प्रमुख सूत्रधारों में र्थे । इनकी प्रवतभा का पररचय अज्ञेय द्वारा
संपावदत ‘तार सप्तक’ से वमलता है । उनकी कविता में वनवहत
मराठी संरचना से प्रभावित लंबे िाक्ों ने आम पाठक के वलए
कवठन बनाया, लेवकन उनमें भािनात्मक और विचारात्मक ऊजाभ
अर्ू र् र्थी, जैसे कोई नैसवर्भ क अंत:स्रोत हो जो कभी चुकता ही
नहीं, बक्ति लर्ातार अवधकावधक िेर् और तीव्रता के सार्थ
उमडता चला आता है । यह ऊजाभ अनेकानेक कल्पना-वचत्रों
और फैंर्े वसयों का आकार ग्रहण कर लेती है । इनकी
रचनात्मक ऊजाभ का एक बहुत बडा अंश आलोचनात्मक लेखन
और सावहत्य-सं बंधी वचंतन में सवक्रय रहे । ये पत्रकार भी र्थे ।
इन्ोंने राजनीवतक विषयों, अंतराभ िरीय पररदृश्य तर्था दे श की
आवर्थभ क समस्याओं पर लर्ातार वलखा है । कवि शमशेर बहादु र
वसंह ने इनकी कविता के बारे में वलखा है -
“…….. अद् भु त संकेतों से भरी, वजज्ञासाओं से अक्तस्र्थर, कभी दू र
से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती
चलती है , हमारी बातें हमको सुनाती है । हम अपने को एकदम
चवकत होकर दे खते हैं और पहले से अवधक पहचानने लर्ते
हैं ।”
भार्ा-शैली- इनकी भाषा उत्कृि है । भािों के अनुरूप
शब्द र्ढना और उसका पररष्कार करके उसे भाषा में प्रयुि
करना भाषा-सौंदयभ की अद् भु त विशेषता है । इन्ोंने तत्सम
शब्दों के सार्थ-सार्थ उदू भ , अरबी और फारसी के शब्दों का भी
प्रयोर् वकया है ।
1.
प्रश्न
2.
प्रश्न
(क) कवि अपने उस वप्रय सबधी के सार्थ अपने संबध कैसे बताता हैं ?
(ख) कवि अपने वदल की तुलना वकससे करता है तर्था क्ों?
(ग) कवि वप्रय को अपने जीिन में वकस प्रकार अनुभि करता है ?
(घ) कवि ने वप्रय की तुलना वकससे की है और क्ों ?
उत्तर-
3.
उत्तर-
4.
सचमुच मुझे दं र् दो वक हो जाऊूँ
पाताली अूँधेरे की र्ुहाओं में वििरों में
धुएूँ के बादलों में
वबलकुल मैं लापता
लापता वक िहाूँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसवलए वक जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लर्ता हैं , होता-सा संभि हैं
सभी िह तुम्हारे ही कारण के कायों का घेरा है , कायों का िैभि है
अब तक तो वजंदर्ी में जो कुछ र्था, जो कुछ है
सहषभ स्वीकार है
इसवलए वक जो कुछ भी मेरा है
िह तुम्हें प्यारा हैं । (पृष्ठ-32)
उत्तर-
सन्दभभ सूची
इं िरनेि – hindikiduniya.com
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