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शतपर्विका का सामाजिक चिंतन
शतपर्विका का सामाजिक चिंतन
सामार्िक र् िंतन
भूर्मका
अभिराज चन्द्र भिश्र आधु भिक संस्कृत
साभित्य िें 21व ं शताब्द के िूधधन्य
भवद्वाि,कभव,संस्कृत ग तकार और
िाटककार िैं । इिका जन्म 2 जिवर
1943 को उत्तर प्रदे श िें हुआ। इिक
लेखि िे साभित्य क िर भवधा को छु आ
चािे वो खण्डकाव्य िो,ििाकाव्य िो,
एकां क िो या भिर भिबन्ध,किाि , आभद ि
क्ों ि िो। भिश्र ज िे िर प्रकार से
संस्कृत साभित्य को सिृद्ध भकया िै ।
प्रस्तुत सिालेख का भवषय वस्तु इन् ं के
द्वारा प्रण त लघुकथा संग्रि ‘इक्षुगंधा’ क
एक कथा ‘शतपभवधका’ से गृि त िै ।
अपि इस कथा के िाध्यि से इन्ोंिे
सिाज िें व्याप्त पुत्र और पुत्र के िध्य
िोिे वाले िेदिाव पर प्रकाश डाला िै ।
इस कथा का संभक्षप्त सार यों िैं -