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Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences ISSN: 2581-6241 Volume - 1, Issue - 1, July-Aug 2018

Bi-Monthly, Peer-Reviewed, Refereed, Indexed Journal Publication Date: 31/08/2018

हिन्दी साहित्य का प्रथम मौहिक उपन्यास – ‘परीक्षा गुरु’

डॉ.िमीर पी. मकवाना


श्री जे. एम. पटे ि पी. जी. स्टडीज एं ड
ररसर्च इन ि्युहमहनटीज, आणंद

सारांश: - शुक्लिी िे लाला श्रीतिवासदास के ‘परीक्षा गुरु’(१८८२) को तहन्दी का पहला मौतलक उपन्यास मािा है ।
लालािी लक्ष्मणदास की तदल्ली की कोठी के प्रमुख प्रबींधक थे। उन्हें व्यापाररक िीवि तथा मध्यवगष के तबगड़े
युवकोीं का व्यवहाररक अिुभव था। वे ‘रणधीर प्रेममोतहिी’ िैसा चतचषत िाटक तलख चुके थे। मध्यवगीय िीवि के
यथाथष को तचतत्रत करिे के तलए वे सातहत्य के िये ढाीं चे को खोि रहे थे। इसे उन्होीं िे ‘सींसारी वाताष ’ कहा है । यह
परर-कथाओीं से पृथक िीविािुभव पर आधाररत हैं । कथा में आवश्यकतािुसार उलट-फेर चररत्र-तचत्रण साकाीं क्षा
आतद के समावेश द्वारा उसे उपन्यास का कामचलाऊ तवन्यास तमला हैं । इस उपन्यास में कुसींग के कारण तबगड़े
हुए व्यापारी िवयुवक की कथा है िो अच्छे सींग के कारण सुधर िाता है । पर बीच-बीच में सुख दु ख सज्जिता
आतद पर तकताबी तवचार-तवमशष उबाऊ होता है । अपिी अिेक त्रुतटयोीं के बाविूद यह तहन्दी के यथाथषवादी
उपन्यासोीं की िीींव का पत्थर है ।

मूिशब्द : - िविागरण, मध्यवगष, दे शीतशक्षा, भाषाउन्नतत, आधुतिकता, अिुकरण, िीतततशक्षा, मौतलकता,


भावमयता, उपदे शात्मकता ।

प्रस्तावना: -
भारतीय इततहास का आधुतिक काल १९ मीीं शताब्दी से प्रारीं भ होता है । तिस प्रकार भक्तिआीं दोलि सारे दे श में
एक साथ िहीीं फैला उसी प्रकार िविागरण भी दे श के तकसी प्रदे श में पहले आया और तकसी अींचल में बाद में। सब से
पहले सि् १७५७ में उिका आरीं भ बींगाल से हुआ। बाद में प्लासी के युद्ध में अींग्रेिोीं की तविय और बींगाल के िवाब की
परािय हुई। सि् १८१८ में महाराष्ट्र अींग्रेिोीं के आधीि हो गया। वहााँ भी आधुतिक काल का प्रारीं भ उसी काल से
मािािाता है । सि् १८५६ में अवध भी अींग्रेिी राज्य का अींग बिा सि् १८५७ में प्रथम स्वतींत्रता का सींग्राम हुआ। तहन्दी
भाषा – भाषी प्रदे श में- तवशेष रूप से उत्तरप्रदे श में इसी वषष से आधुतिक काल का आरीं भ मािा गया हैं । यािी बींगाल के
आधुतिक काल से सौ वषष बाद। इसे से ध्वतित होते है तक आधुतिक काल के आिेका श्रेय अींग्रेिी उपतिवेशवाद को है ।
सि् १८८४ में भारतेन्दु हररश्चन्द्र ‘काल चक्र’ तैयार कर रहे थे। इस में ‘सींसार में िो बड़ी घटिाएाँ हुई है उिका
समय तिणषय’ तकया गया है । इस कालावतध में, ऐततहातसक मााँ ग के फल स्वरूप तिबींध के अततररि िाटक, उपन्यास
और कहािी लेखि की भी शुरुआत हुई। सातहत्य के इि तवतवध रूपोीं में भी अिेक प्रकार के अींततवषरोध तदखाई पड़े । इस
काल में व्यापाररयोीं और पढ़े -तलखे लोगोीं का एक मध्य वगष पैदा हो गया था। उपन्यास का आतवभाष व मध्यवगीय
आकाीं क्षाओीं और समस्याओीं को लेकर हुआ। कुछ लोग इस का आरीं भ भारतेन्दु िी की ‘एक कहािी-कुछ आप बीती,
कुछ िग बीती’ से मािते है इसके कुछ ही पृष्ठ तलखे गये थे। पर इसके आधार पर भारतेन्दु िी को तहन्दी उपन्यास का
पुरुस्कताष िहीीं मािा िा सकता। तहन्दी उपन्यासोीं की परम्परा को पीछे ढकेल िे की प्रवृतत्त के कारण कुछ लोग
‘दे वरािी-िेठािी की कहािी’ १८७०, वामा तशक्षक १८७२, भाग्यवती १८७२, को पहले उपन्यासोीं में तगिते है । परन्तु ये
क्तििािोतचत तशक्षा- ग्रन्थ हैं । इस में औपन्यातसक तत्ोीं का आभाव सा हैं ।
तहन्दी कथासातहत्य िे बहुत अल्प समय में आश्चयषििक और अभूतपूवष प्रगतत की है । कथासातहत्य की उत्पतत्त
भी मिुष्य के तवकास के साथ-साथ ही हुई । इस दृतष्ट् से इस तिष्कषष को अधार मािकर चला िासकता है तक मािव
िीवि में घतटत होिे वाले अिेक उतार – चढ़ावोीं का प्रभाव सातहत्य पर पड़ता चलता है । अत: कथा-सातहत्य को इस
तियम का अपवाद कहकर उसके इस प्रभाव से मुि बिे रहिे के तसद्धाीं त का प्रततपादि करिे की चेष्ट्ा व्यथष होगी,
क्ोींतक स्थूल रूप से यह सवषमान्य कहा िा सकता है तक एक प्रकार से अन्य सातहत्याीं गोीं की अपेक्षा उपन्यास में िीवि
कोीं प्रतततबक्तित करिे की क्षमता अतधक है । कमसे कम आधुतिक यु ग के तवचारोीं िे एक स्वर से इस मन्तव्य का
प्रततपादि करते हुए उसके सवाष तधक महत् की घोषणा की है । तहन्दी उपन्यास का िन्म उन्नीसवी ीं शताब्दी के अींततम
चतुथाां श से हुआ था । आरीं तभक समय में अिेक अिुवातदत उपन्यासोीं से हुआ और तहन्दी सातहत्य का प्रथम मौतलक
उपन्यास के रूप में लाला श्रीतिवास दास की परीक्षा गुरु को मािा गया है । हााँ लातक आधुतिक शािीय तववेचि की दृतष्ट्
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से कुछ कतमयााँ हो परीं तु यह हमारे उपन्यास सातहत्य का तबि रूप है । इस तबि से ही आधुतिक तहन्दी उपन्यास का
वटवृक्ष क्तखला है ।
सामान्य रूप से कहा िाता है तक अिुराग- तवराग तथा सुख-दु ुःख का समन्वय ही सातहत्य है । सातहत्य के रस का
आिन्द अलौतकक है , क्ोींतक सातहत्य हमारी रुतच का पररष्कार करके उसका स्तर ऊाँचा उठता है । प्रभाव की दृतष्ट् से
दे खा िाय तो मिुष्य पर तकसी दे खी हुई साधारण घटिा की तुलिा में तकसी पढ़ी हुई घटिा का प्रभाव अतधक गहरा और
स्थाय पड़ता है । तहन्दी सातहत्य में आधुतिक युग को गध का युग मािा िाता है । आि गध सातहत्य और तवशे ष रूप से
उपन्यास सातहत्य की तितिी अतधक उन्नतत सींसार की भाषाओीं के सातहत्य में हो रही है , उतिी अन्य तकसी सातहत्याीं ग की
िहीीं । कुछ समय पूवष भ्रामक धारणा थी तक उपन्यास की कोई शािीय मयाष दा िहीीं है । परीं तु अब इस भ्रम का तिवारण
हो चुका है । आधुतिकयु ग के महाि उपन्यासोीं को दे खिे से इस बात का पररचय तमलता है तक िीवि का तकतिा सम्पूणष
और गहि तचत्रण उपन्यास में सींभाव्य है ।
आधुतिक तहन्दी उपन्यास का आरम्भ भारतेन्दु से मािा िाता है । वैसे तो उसके आतवभाष व से पूवष भी तहन्दी गध-
सातहत्य का प्रारीं भ हो चुका था । तहन्दी के उपन्यास सातहत्य की परम्परा के तवकास में भारतेन्दु िी का मौतलक योगदाि
उतिा महत्पूणष िहीीं रहा तफर भी अपिे युग के सातहत्यकारोीं में उिका स्थाि तवतशष्ट् है ।तहन्दी सातहत्य का प्रथम
मौतलक उपन्यास तलखिे का श्रेय लाला श्री तिवास दास तलक्तखत ‘परीक्षा गुरु’ को तदया िाता है । वैसे आचायष रामचन्द्र
शुक्ल िे ‘भाग्यवती’ को मौतलक उपन्यास मािा है । उिका माििा है तक – “पक्तित श्रद्धाराम फुल्लौरी िे अपिे अन्य
ग्रन्थ के साथ इसकी भी रचिा की थी ।”i उन्होींिे यह भी तलखा तक सि् १९३४ में भाग्यवती िामक एक सामातिक
उपन्यास उन्होींिे तलखा । तफर भी ‘ परीक्षा गुरु ’ को शुक्लिी िे अींग्रेिी ढीं ग का प्रथम मौतलक उपन्यास मािा है ।ii उतिा
ही िहीीं अन्य तवद्धािोीं िे भी परीक्षा गुरु को ही तहन्दी का सवषप्रथम मौतलक उपन्यास मािा है । उसी अथष में डॉ. श्रीकृष्ण
लाल का कथि है तक ‘रणधीर और प्रेम मोतहिी’ के पश्चात् सि् १८८२ में लाला िी का प्रथम उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’
प्रकातशत हुआ तिसे तहन्दी का भी प्रथम उपन्यास कहा िा सकता है ।
अक्तिकादत्त व्यास िे ‘गध –काव्य-मीमाीं सा’ के अींत में कुछ उपन्यासोीं के िाम और प्रकाशि तततथ दी है तिसके
अिुसार ‘परीक्षा गुरु’ ही तहन्दी का सवषप्रथम उपन्यास ठहरता है । इससे पूवे दो उपन्यास ग्रन्थोीं की रचिा का उल्लेख
तमलता है –एक पींिाब के श्रद्धाराम फुल्लौरी का ‘ भाग्यवती’ तथा दू सरा भारतेन्दु िी रतचत ‘पूणषप्रभा चन्द्रप्रकाश’ है ,
परीं तु तपछली कृतत गुिराती से अिुवाद मात्र है तिसे मक्तल्लका दे वी िे अिुवाद तकया था और भारतेन्दु िे उसे ढूाँढा था ।
‘भाग्यवती’ यतद मौतलक रचिा है तो तितश्चत रूप से उसे तहन्दी का सवषप्रथम उपन्यास मािा िा सकता है , परीं तु तहन्दी
का प्रथम सफल और मौतलक उपन्यास लाला श्रीतिवास दास का ‘परीक्षा गुरु ’ ही है , तिसका ‘भारतेंदु पतत्रका ’ िे
‘रणधीर और प्रेममोतहिी ’ का सहोदर कहकर स्वागत तकया था ।iii लाला श्रीतिवास दास का स्थाि भारतेन्दु युग के प्रमुख
िाटककारोीं तथा उपन्यासकारोीं में है । वे तहन्दी, सीं स्कृत, फारसी, तथा अींग्रेिी भाषाओाँ के िािकर थे । अिेक मौतलक
पुस्तकोीं की रचिा करिे के साथ-साथ इन्होींिे ‘सदादशष ’ िामक पत्र का सम्पादि भी तकया । इिके रतचत ग्रन्थोीं में
‘रणधीर और प्रे ममोतहिी’ िामक िाटक तथा ‘परीक्षा गुरु’ िामक उपन्यास तवशेष प्रतसद्ध है । तहन्दी में मौतलक उपन्यास
की परम्परा का प्रवतषि करिेवाले श्रीतिवास दास ही हैं । उन्की उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ उस युग की प्रथम मौतलक िवीि
कृतत है । लाला श्रीतिवास दास िे इसके तिवेदि में तलखा है तक –‘अब तक िागरी और उदू ष भाषा में अिेक तरह की
अच्छी-अच्छी पुस्तकें तैयार हो चुकी है परीं तु मेरे िाि से इस रीतत से कोई िहीीं तलखी गई इसतलए अपिी भाषा में यह िई
चाल की पुस्तक होगी । यह सच है तक िई चाल की चीि दे खिे को सब का िी ललचाता है परीं तु पुरािी रीतत के मि में
समाये रहिे और िई रीतत को मि लगाकर समझ िे में थोड़ी महित होिे से पहले पढ़िेवाले का िी कुछ, उलझिें लगता
है और मि उछट िाता है इससे इसका हाल समझमे आिे के तलए मैं अपिी तरफ से यहााँ कुछ खुलासा करिा चाहता हाँ
।’iv
– ‘पहले तो पढिेवाले इस पुस्तक मैं सौदागर की दू काि का हाल पढ़ते ही चकारावेंगे क्ोींतक अपिी भाषा में
अबतक वताष रुपी िो पुस्तकें तलखी गई है उन्में अक्सर िायक, िायका वगेरे का हाल ठे ठसे तसलतसलेवार तलखा गया है
िैसे कोई रािा, बादशाह, सेठ साहकार का लड़का था उसके मि में इस बात से यह रूतच हुई और उसका यह पररणाम
तिकला’ ऐसा तसलतसला इसमें कुछ भी िहीीं मालूम होता । लाला मदिमोहि एक अींग्रेिी सौदागर की दू काि मैं अस्बाब
दे ख रहे हैं लाला ब्रितकशोर, मुींशी चुन्नीलाल और मास्टर तशम्भूदयाल उिके साथ है । इि में मदिमोहि कौि,
ब्रितकशोर कौि और तशम्भू दयाल कौि हैं ? इिका स्वभाव कैसा है ? परस्पर सिन्ध कैसा है ? हरे क की हालत क्ा है
? यहााँ इस समय तकस तलए इकट्ठे हुए ? यह बाते पहले से कुछ भी िहीीं िताई गई । हााँ पढिेवाले धैयष से पूरा पुस्तक पढ़
लेंगे तो अपिे , अपिे मौके पर सब भेद खुल्ता चला िायगा और आतद से अन्त तक सब मेल तमल िायगा परीं तु िो साहब
इतिा धैयष ि रक्खेंगे वह इसका मतलब भी िहीीं समझ सकेंगे ।v

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‘परीक्षा गुरु’ एक तशक्षा – प्रद उपन्यास है । इसमें यह तदखया गया है तक एक धिी व्यक्ति तकस तरह से अपिे
चापलूस तमत्रोीं के सींगत में पड़कर ऋणी होकर दु खी होते है , तथा अींत में एक ईमािदार तमत्र की सहायता से उसका
कल्याण होता है । इस उपन्यास की शैली तकषपूणष है , तिसमे तशक्षा और उपदे शात्मकता की भाविाओीं की प्रधािता है ।
िैसे उदाहरण के रूप में “मुझे आपकी यह बात तबल्कुल अिोखी मालूम होती है । भला परोपकारतद शुभ कामोीं का
पररणाम कैसे बुरा हो सकता है ? पक्तित पुरषोत्तमदास िे कहा । ‘िैसे अन्न प्राणधार है , परीं तु अतत भोिि से रोग उत्पन्न
होता है , लाला ब्रि तकशोर कहिे लगे दे क्तखए परोपकार की इच्छा अत्यींत उपकारी है परीं तु हद से आगे बढ़िे पर वह भी
तफिूलखची समझी िायगी और अपिे कुटु ि पररवारतद का सुख िष्ट् हो िायगा । िो आलसी अथवा अधतमषयोीं की
सहायता की, तो उससे सींसार में आलस्य और पाप की वृक्तद्ध होगी । इसी तरह कुपात्र में भक्ति होिे से लोक- परलोक
दोिोीं िष्ट् िायेंगे । न्यायपरता यधतप सब वृतत्तयोीं को समाि रखिे वाली है , परीं तु इसकी अतधकता से भी मिुष्य के स्वभाव
में तमलिसारी िहीीं रहती, क्षमा िहीीं रहती । िब वृक्तद्ध वृतत्त के कारण तकसी वस्तु के तवचार में मि अत्यींत लग िायगा तो
और िाििे लायक पदाथों की अज्ञािता बिी रहे गी । आिुषाीं तगक प्रवृतत्त के प्रबल होिे से िैसे सींग होगा, वैसा रीं ग तुरींत
लग िायगा ।vi
‘परीक्षा गुरु’ उपन्यास में तदल्ली के एक कक्तल्पत धिाढ्य व्यक्ति की कथा है । िैसे तक इस युग के कुछ अन्य
उपन्यासोीं के तवषय में कहा गया है , इस उपन्यास में भी प्रत्येक प्रकरण के आरीं भ में तथा मध्य और अींत में भी कहीीं-कहीीं
तवतवध पद्य –उद्दरण तथा तितत-काव्य या सूक्ति रूप में कुछ गद्य – उद्दरण तदये गये है । उपन्यास के आरीं भ में लाला
मदिमोहि, लाला ब्रितकशोर, मुींशी चुन्नीलाल तथा मास्टर तशम्भूदयाल के एक अींग्रेिी सैदागर की दू काि पर िा कर
माल खरीदिे से इस उपन्यास के प्रथम प्रकरण आरीं भ होता है । बीच में बातचीत के दौराि में एक दोहा इस प्रकार कहा
गया है तक- ‘धिी दररद्री सफल िि हैं िग के आधी, चाहत धिी तवशेष कछु तासोीं ते अतत दीि ।’ लाला मदिमोहि और
अींग्रेिी व्यापारी की बातचीत से कथा का यह प्रारीं तभक सूत्र आगे बढ़ता है । तकींतु स्वयीं लेखक वाताष लाप से सींतुष्ट् ि होकर
अिावश्यक से कुछ पींक्तियााँ िोड़ दे ता है –‘इस वचि में तमस्टर ब्राईट अपिे अस्बाब की खरीदारी के तलए लाला
मदिमोहि को ललचाता है । परीं तु अपिे रुपये के वास्ते मीठा तकािा भी करिा है । चुन्नीलाल और तशम्भू दयाल के
कारण उसको मदिमोहि के लेि दे ि में बहुत कुछ फायदा हुआ परीं तु उसके पचास हिार रूपये इस समय मदिमोहि
की तरफ से बाकी है और मदिमोहि की बाबत तरह तरह की चचाष फैल रही है । बहुत लोग मदिमोहि को तफिूल
खचष , तदवातलया बतातें है और हकीकत में मदिमोहि का खचष तदिबतदि बढ़ता िाता है इससे तमस्टर ब्राईट को अपिी
रकम का खटका है इसतलए उसिे इि कााँ चोीं का सौदा इस समय अटकाया है और तीसरे पहर मास्टर तशम्भूदयाल कोीं
अपिे पास बुलाया है ।
उपन्यास के बीच-बीच में शे क्सपीयर तथा बायरि आतद कतवयोीं के तवतवध प्रसींगोीं-अींशो के अिुवाद तदये गये हैं ।
उसी प्रकार उपन्यास में मिुस्मृतत , तहतोपदे श आतद से भी कुछ अींश प्रस्तुत तकए गए हैं । परीं तु हमें एक बात तो
स्वीकारिी होगी तक इस उपन्यास का कथािक इस युग में तलखे गये अन्य बहुत से उपन्यासोीं की अपेक्षा अतधक सुगतठत
है और उसका तिवाष ह भी अपेक्षाकृत कलात्मक ढीं ग से तकया गया है यधतप स्वतीं त्र-रूप से दे खिे में इसमें सींगठिात्मकता
का अभाव प्रतीत होता है ।अवश्य तिि उद्दरणोीं की ऊपर चचाष की गयी है , वे अस्वाभातवक ढीं ग से कथा में समातवष्ट् तकये
गये प्रतीत होते हैं और साथ ही साथ कथा में िाटकीय तत्ोीं की भी कमी िहीीं है । उपन्यास में भावमयता बहुत अतधक है
और सामान्य रूप से प्राय: प्रत्येक पात्र तकसी ि तकसी प्रसींग में भावुक होकर कुछ ि कुछ कहिे लगते है । कथािक में
इस प्रकार के भावुकतापूणष प्रसींग इतिे अतधक है तक उिके कारण उसकी गींभीरता और ठोसपि समाप्त हो गया है ।
साथ ही प्रत्येक घटिा की प्रभावात्मकता पर भी इसका असर पड़ा है । लाला मदिमोहि की तफिूलखची को ही
उपन्यास में आरीं भ से अींत तक तदखाया गया है और इस प्रकार एक लघु आकर वाले कथािक को फैलाकर तीि सौ से
अतधक पृष्ठोीं का उपन्यास तलखा गया है ।
परीक्षा गुरु के तिवेदि के अींत में उपन्यासकार िे कहा है तक ‘ इस पुस्तक के रचिें में मुझको महाभारतातद
सींस्कृत, गुतलस्तााँ वगैर फारसी स्पेक्टर, लाडष बेकि, गोल्ड क्तस्मथ, तवतलयम कूपर आतद के पुरािे लेखोीं और िोत बोध
आतद के वतषमाि ररसालोीं से बड़ी सहायता तमली है इसतलए इि सबका मैं बहुत उपकार मािता हाँ और दीिदयालु
परमेश्वर की तिहै तुक कृपा का सच्चे मि से अतमत उपकार मािकर लेख समाप्त करता हाँ ।’vii पररणाम: समग्र उपन्यास
पर गोर करे तो इस में स्थाि – स्थाि पर तितत वाक्ोीं तथा उन्की पुतष्ट् में प्रासींतगक रूप से दे श तवदे श के इततहासोीं से
लिे-लिे उद्दरण तलये गये है । परीं तु यह उपन्यास का आरीं तभकयुग होिे के कारण ‘परीक्षा गुरु’ को उपन्यास के
शािीय तत्ोीं के आधार पर मूल्याीं कि करिे में सफलता प्राप्त िहीीं होगी यह स्वभातवक है । सातहत्य के इततहास में कोई
भी काल की आरीं तभक अवस्था भी अपररपक्व ही रही है । परीं तु लाला श्रीतिवास दास िे स्वयीं की ओर से मौतलकता प्रदाि
करिे का प्रयास तकया है । साथ ही दु सरे तवद्धािोीं िे उसका समथषि भी तकया है । उपन्यास सातहत्य में कथा तवकास की

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पद्दततयोीं में से लालािी िे इस उपन्यास में सामान्य वणष िात्मक पद्धतत का प्रयोग करके उपन्यास की कथावस्तु को आगे
बढाया है ।

हनष्कर्च : -
इस उपन्यास की सबसे बड़ी तवशेषता यह है तक इसमें िविागरण की प्रततध्विी सुिाई पड़ती है । अपिी भाषा
की उन्नतत के साथ इस में िये ढीं ग की खेती और कल-कारखािे की उन्नतत पर बल तदया गया है । ‘अीं ग्रेिोीं की िक़ल को
तितषद्ध ठहराया गया है । दे शी भषा में तशक्षा दे िे पर िोर तदया गया है । अख़बारोीं की कद्र ि करिे की तिन्दा की गई है
पुरािी पीढ़ी की कमषठता को अिुकरणीय बताया गया है । इसी तरह उस यु ग कोीं समग्रता में समेटिे का िो प्रयास
लालािी िे तकया है , वह प्रशींसिीय है ।’viii प्रेमचन्द के आदशोंन्मुखी यथाथष की गींगा की गौमुखी यही है ।
तहन्दी कथा-सातहत्य को एक िवीि रूप दे िेवालोीं में लाला श्रीतिवास दास का िाम सबसे पहले आता है ।
सवषप्रथम इन्होिें ही ऐसे तवषयोीं पर उपन्यास तलखिे की परम्परा का प्रवतषि तकया िो अबतक अछूते –से थे । इिकी
कथा कृतत में साधारण प्रेम व्यापार और अिुरक्ति आतद का प्राबल्य िहीीं तमलता है । यही कारण है तक एक परम्परा का
प्रारीं भ होता है , तिसका अिुसरण भारतेन्दु युग के अिेक कथाकारोीं िे तलया । इस कथा परम्परा में आिेवालोीं में ठाकुर
िगमोहि तसींह,पक्तित अक्तिकादत्त व्यास, तथा पक्तित बालकृष्ण भट्ट के िाम उल्लेखिीय है ।

सन्दर्च ग्रन्थ सूहर्:

1. i आत्मा-चिकित्सा से

2. ii आ. रामचन्द्र शुक्ल , चिन्दी साचित्य िा इचििास – पृ. ४१७

3. iii सीं. डॉ.श्रीकृष्ण लाल , श्रीचिवास ग्रन्थावली ––पृ. ११

4. iv लाला श्रीचिवास दास ग्रन्थावली पृ.१५४

5. v विी पृ. १५५

6. vi परीक्षा गुरु ले. लाला श्रीचिवास दास –पृ. १५७

7. vii श्रीचिवास ग्रन्थावली पृ.१५६

8. viii बच्चि तसींह , चिन्दीसाचित्य िा दूसरा इचििास- पृ.३२२

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