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सितार ों िे आगे

डॉ. िरस्वती अय्यर

ट्र िं ग- ट्र िं ग- ट्र िं ग, दरवाजे की घिं्ी की आवाज से मीरा की तिंद्रा भिंग हुई। ओहो चार बज गए, तनु के
आने का ्ाइम हो गया एमीरा जल्दी से उठ खड़ी हुई। मीरा की शिंका सही थी, दरवाजे पर तनु ही थी।
मीरा की 16 साल की लाड़ली बे्ी तनु। दरवाजे से अिं दर आकर अपनी बैग रखकर जूते का फीता खोलते
हुए वह चिंचल हो गई। अरे मम्मी आज स्टे ् लेवल बैडटमिं्न में मैंने ऐसी छु ट्टी की ना मेरे सामने वाले
प्रटतयोगी की कुछ पूछो मत, सीधे से् में हराया। मेरी कोच बोल रही थी अगर ऐसे ही खेलती रहे गी तो एक
टदन नेशनल लेवल खखलाड़ी बनेगी और वो टदन दू र नहीिं जब बड़े -बड़े अखबारोिं में, ्ी.वी. में तेरी फो्ो
और खबर आएगी। तनु की रटनिंग कमें्री जारी थी। बैग को खोलते हुए उसमें से बड़ी सी ्र ाफी टनकालकर
वह मीरा से टलप् गई, ”टदस ्र ाफी इज फॉर माय टडयर मॉम“ और मॉम के हाथ में ्र ाफी थमाकर मम्मी
खाना तैयार रखना बस मैं पािं च टमन् में हाथ-मुुँह धोकर कपड़े चेंज करके आती हुँ , जोरोिं से भूख लगी है
कहते हुए वह अिंदर चली गई। और मीरा! कॉटनिश पर ्र ाफी को रखते हुए उसकी आुँ खें भर आईिं चुपचाप
रसोई में जाकर गरम फुलके सेंककर प्ले् में रो्ी-सब्जी रखेकर उसने डाइटनिंग ्े बल पर रख टदया।
फ्रेश होकर आई तनु ने 10 टमन् में खाना खा टलया और मम्मा मैं एक-दो घिं ्े सो रही हुँ , शाम को
केटमस्टर ी की क्लास है , मुझे जागा दे ना कहकर वह सोने को चली गई।

रसोई समे्कर मीरा भी तनु के पास ले् गई। सोती हुई मासूम तनु के बालोिं पर हाथ फेरते मीरा
18 साल पहले की दु टनया में कब पहुुँ च गई, उसे पता ही नहीिं चला, सच ऐसी ही तो थी वह भी, इतनी ही
खुशटमजाज और खूबसूरत, टजिंदगी से भरपूर, होनहार लड़की! बाहर कॉलेज और बैडटमिं्न को्ि और घर
में माुँ -बाप और प्यारी-प्यार छो्ी बहनें , इन सब के बीच हुँ सने -खेलने में उसकी टजिंदगी गुजर रही थी। इस
बीच एक और बहुत अच्छी बात हुई, बैडटमिं्न में ढे रोिं पुरस्कार ब्ोर चुकी मीरा को रे लवे में स्पो्टि स को्ा
में नौकरी का ऑफर टमला। मीरा और उसकी घरवालोिं की खुशी का टठकाना न रहा और मीरा ने ग्रेजुएशन
के बाद रे लवे की नौकरी ज्वॉइन कर ली।

पर इसके बाद उसकी टजिं दगी तेजी से बदली, रे लवे की नौकरी टमलने के कुछ समय बाद ही,
उसकी चाची उसके टलए अपने इिं जीटनयर दे वर का ररश्ता लेकर आई, हालािं टक शुरू में मीरा ने इतनी
जल्दी टववाह करने से इिं कार टकया, पर टपता के समझाने पर टक वह लड़टकयोिं में सबसे बड़ी है , उसकी
शादी हो जाएगी तो टफर वे बाकी दो के टलए भी दे ख सकेंगे और टफर लड़केवाले पररटचत हैं , लड़का दे खा-
भाला है , अच्छा खानदान है , मना करने का कोई कारण नहीिं है आटद समझाने पर मीरा भी आखखरकार
टववाह के टलए राजी हो गई। पर सच बात तो ये थी टक उस टदन बुआ के साथ आए उस लिंबे, सािं वले,
सजीले नवयुवक अटमत को दे खकर वह मना भी नहीिं कर पाई थी। खुशी-खुशी मीरा की शादी सम्पन्न हुई
और वो अपने ससुराल आ गई।

ससुराल में शादी के बाद शुरू के छह महीने जैसे पिं ख लगाकर उड़ गए। मीरा अपने सास-श्वसुर
की लाडली बह और ननद टप्रया की टप्रय सहे ली बन चु की थी। अटमत भी उसका खूब ख्याल रखते थे, बस
कमी कुछ थी उसके पास तो समय की। जब मीरा इसकी टशकायत करती तो वे सफाई दे ते, मीरा मुिंबई की
लाइफ तो कुछ ऐसी है , सुबह आठ बजे टनकलता हुँ तो दस बजे ऑटफस पहुुँ चता हुँ , टफर टदन भर साइ्
में इिं स्पेक्शन करना, शाम को मीट्िं ग और दू सरे प्रोजे क्ट पर टडस्कस करना। आठ बजे टनकलता हुँ तो घर
पहुुँ चते -पहुुँ चते 10.30 बजे ही जाते हैं । क्या करें , अब तु म ही बताओ। बस मीरा टनराश हो जाती और
कहती भी क्या? एक उसकी ही तो नहीिं मुिंबई में ऐसे करोड़ोिं लोग ऐसी ही टजिंदगी जीते हैं । कभी-कभी
सोचती इससे तो टकसी छो्े शहर में रहना अच्छा है , कम से कम घर और आॅटफस नज़दीक तो होते। पर
कोई बात नहीिं अटमत की भी तो मजबूरी है , वरना कोई आदमी 10-12 घिं्े रोज घर से बाहर खुशी से थोड़ी
रहे गा। सोचकर वह अपने मन को समझा लती।

सुबह उठकर सास जी के साथ टमलकर खाना बनाकर काम वगैरह खत्म करके, वह अटमत के
साथ ही टनकलती। उसको स्टे शन में डरॉप करके अटमत अपने साइ् पर टनकल जाते और मीरा लोकल ्र े न
से ऑटफस आ जाती। शाम को छह बजते -बजते वह घर पहुुँ च जाती। थोड़ा आराम करके, ्ी.वी. दे खते
हुए सबके साथ टडनर करती, क्योिंटक अटमत को आने में दे र होती थी।

शादी के टसफि तीन महीने ही हुए थे टक अटमत को एक प्रोजेक्ट के टसलटसले में दु बई जाना पड़ा।
मीरा भी उनके साथ जाना चाहती थी, पर अटमत के साथ ऑटफस के दो सहयोगी और थे इसटलए मीरा मन
मसोसकर रह गई। हालािं टक प्रोजेक्ट 45 टदनोिं का ही था, पर कुछ-न-कुछ कारणोिं से प्रोजेक्ट खत्म होने में
दे र हो रही थी और प्रोजेक्ट तीन महीनोिं तक खखिंच गया। दु बई में काम करते -करते अटमत की किंपनी को
ओमान में एक और प्रोजेक्ट टमला और अटमत और दो महीनोिं के टलए ओमान चले गए।

इधर मीरा को अटमत के टबना जैसे सब कुछ सूना लग रहा था। अटमत के जाने के एक ही हफ्ते में
वह बीमार पड़ गई। सासु माुँ जबरदस्ती उसे नजदीकी डॉक्टर के पास ले गई और जब डॉक्टर ने चेकअप
के बाद बताया टक वह माुँ बनने वाली है , तो सास-ससु र की खुशी का टठकाना नहीिं रहा । उन्ोिंने मीरा के
टपता को भी फोन पर यह शुभ सूचना दी, पर मीरा खुद यह बात अटमत को फोन पर बताना चाहती थी।
रात को जब अटमत का दु बई से फोन आया तब खुशी से छलकते हुए मीरा ने उसे बताया टक वह टपता
बनने जा रहे हैं । दू सरी तरफ से अटमत का ‘इतनी जल्दी बच्चे की जरूरत नहीिं हैं , हो सके तो कल जाकर
एबाशिन करा दो। सुनकर वह सकते में आ गई, पर क्योिं अटमत, पूिंछने पर अभी मैं बच्चे की जम्मेदारी लेने
को तैयार नहीिं कहते हुए अटमत फोन रख टदया।

रात भर मीरा सो नहीिं पाई सुबह उठकर उसने सासु को यह बात बताई, पर सासु जी ने अरे कुछ
नहीिं बे्ा अभी तो वो टवदे श में है ना उसको तुम्हारी टचिंता है , इसटलए ऐसा कह रहा है । एक बार यहाुँ आ
जाए तो सब ठीक हो जाएगा। तू कुछ टफकर मत कर, हम सब हैं न तेरा ख्याल रखने वाले। एबाशिन वगैरह
के बारे में सोचना भी मत, कहकर प्यार से उसके बाल सहला टदए।

आखखरकार ओमान में प्रोजे क्ट खत्म करके अटमत करीब साढ़े पाुँ च महीने बाद मुिंबई वापस आ ही
गए। मीरा ने दो टदन दफ्तर से छु ट्टी ले ली थी। बड़े चाव से उसने अटमत के टलए उसके पसिं द की पाव-
भाजी, पूरन-पोली, मसाला भात सब कुछ बनाया था। इतने टदनोिं बाद घर का खाना अटमत को नसीब होगा,
सोचकर मीरा मन ही मन खुश हो रही थी। पर जब एयरपो्ि से अटमत का फोन आया टक वे सीधे ऑटफस
जा रहे हैं , उन्ें आज वहािं ररपो्ि करना जरूरी है , घर आएिं गे तो ऑटफस पहुुँ चाने में दे र हो जाएगी। सुनकर
मीरा अपने आुँ सुओिं को रोक न सकी, एक बार टफर माुँ जी ने ही उसे सिंभाला, बे्ा ऐसी हालत में रो कर
अपनी तटबयत खराब मत कर, हालािं टक उस वक्त तो मीरा सिंभल गई पर पूरे टदन उसकी सूजी आुँ खें और
दरवाज़े पर नज़र टकसी से टछपाए न टछपी।

रात को 11 बजे अटमत घर पहुुँ चे, मीरा उनका इिं तजार करके थक के सो चुकी थी। अटमत ने सोती
हुई मीरा को लापरवाही से दे खा और कपड़े बदलकर सो गए। अगला टदन रटववार था। सु बह मीरा की नीिंद
दे र से खुली, घड़ी की ओर उसने दे खा, अरे नौ बज गए! टकसी ने मुझे उठाया तक नहीिं। लगभग दौड़ते हुए
कमरे से बाहर आई तो दे खा बाहर गाडि न में माुँ , टपताजी और अटमत बैठकर गिंभीरतापूविक टकसी टवषय
बातचीत कर रहे थे डराइिं ग रूम में फोन की घिं्ी लगातार बज रही थी। मीरा ने फोन उठाया तो दू सरे
तरफ से आवाज आई टक अटमत हैं ? नहीिं वे बाहर गाडि न में हैं ,मैं मीरा बोल रही हुँ ,आप कौन! मीरा ने पूछा?
आप उसकी कौन हैं ? सवाल के जवाब में टफर सवाल पूिंछा गया। मैं उनकी पत्नी हुँ , मीरा ने जवाब टदया।
सुनते ही फोन क् गया, कौन हो सकती है ? और उसने फोन क्योिं का्ा? सोचते हुए मीरा बाथरूम में गई,
जल्दी से फ्रेश होकर टकचन में जाकर कॉफी बनाकर चार कप में डालकर वो गाडि न आई, उसे दे खकर
तीनोिं शािं त हो गए। गुड माटनिंग करते हुए, मीरा ने मुस्कुराते हुए सबको कॉफी टदया और बैठते हुए अटमत
को पूछा आपका प्रोजेक्ट कैसा रहा? गए थे डे ढ़ माह के टलए और लगा टदए पािं च महीने, कहते हुए
टशकायत भरी नजरोिं से उसने अटमत को दे खा। उड़ती-उड़ती नजर उस पर रखकर अटमत चाय की
चुखस्कयािं लेता खड़ा रहा। मीरा को उसका यह व्यवहार कुछ चुभ गया, पर वह स्वयिं को सिंभालते हुए बोली,
अरे अटमत जी एआपका एक फोन अभी आया था, टकसी मटहला का था,पर जब मैंने अपना नाम बताया तो
पता नहीिं क्योिं उसने फोन रख टदया। अरे टकसी बैंक वगैरह की क्रेटड् काडि बेचने वाली सेल्स गलि होगी,
कहकर अटमत ने जल्दी से बात का् दी। मीरा कहना चाहती थी, फोन करने वाली मटहला का
अनौपचाररक ढिं ग टकसी क्रेटड् काडि वाली का नहीिं हो सकता है , पर सब के सामने कह नहीिं पाई। एक
शक का कीड़ा कहीिं अन्दर कुलबुलाया जरूर था, पर उस समय बात आई-गई हो गई।

अटमत टवदे श से सबके टलए ढे र सारे तोहफे लाए थे। सब उसी में मगन थे , टप्रया भी आई थी। भाई
से टमलने। पर इन सब के बीच मीरा को कहीिं न कहीिं लगता रहा टक अटमत उससे अकेले में टमलने में, बात
करने में कतरा रहे है । खैर दोपहर में खाना खाकर और भैया के लाए तोहफे लेकर टप्रया अपने घर चली
गई। माुँ और टपता जी भी अपने कमरे में जाकर सो गए। रसोई वगैरह समे्कर मीरा जब अपने कमरे में
पहुुँ ची तो अटमत गाड़ी की चाभी हाथ में लेकर कमरे से बाहर टनकल रहा था। अरे आप कहाुँ जा रहे हैं ,
मीरा के पूुँछने पर थोड़ा दोस्तोिं से टमलकर आता हुँ कहकर चाभी घुमाते हुए अटमत टनकल गए। मीरा उसे
दे खती रह गई। और! मुझसे टमलना नहीिं आपको, मुझसे कुछ बातें नहीिं करना आपको! पर मीरा की बातें
सुनने के टलए अटमत कहािं था। मीरा अपने आुँ सुओिं पर काबू न पा सकी, जाकर कमरे में ले् गई।

ट्र न-ट्र न फोन की घिं्ी सु नकर मीरा उठी। एक बार टफर सुबह वाली आवाज थी, अटमत हैं क्या
घर पर?, नहीिं वो बाहर गए हैं , आप कौन? टप्रया ने पूछा, ओह, अच्छा टनकल गया, ओ.के. कहकर फोन रख
टदया गया। टप्रया का सिंदेह और गहरा गया। शाम को इस बारे में अटमत से बात करू
िं गी, उसने तय कर
टलया। पर ऐसा हो न सका। रात को 12 बजे अटमत घर पहुुँ चा, तब तक मीरा अपने सभी काम टनप्ाकर
सो चुकी थी। सुबह उसको ऑटफस भी जाना था। सुबह जल्दी उठकर घर के काम आटद से फुसित होकर
वह 8.30 बजे ऑटफस के टलए टनकल गई। आज अटमत को 10 बजे टकसी साइ् इिं सपेक्शन के टलए जाना
था। वह आराम से सो रहा था। मीरा ने उसे जगाना उटचत न समझा और सासु माुँ से कहकर वह ऑ्ो से
चली गई।

मीरा ऑटफस पहुुँ च तो गई, पर उसका काम में मन नहीिं लगा। एक तो घर पर काम की थकान,
ऊपर से 2 टदनोिं से अटमत के उपेक्षापूणि व्यवहार ने उसको बेतरह मानटसक कष्ट पहुुँ चा था। दोपहर होते -
होते उसको जबरदस्त टसर में ददि होने लगा, बेचैनी होने लगी, चक्कर जैसे आने लगे, तुरिंत उसने अपने बैग
से ग्लूकोज टनकाला, टगलास में पानी भरकर ग्लूकोज टमलाकर टपया। एक पेज पर आधे टदन की छु ट्टी का
आवेदन टलखकर अपने सहकमी को दे कर वह घर के टलए टनकल पड़ी।

काश! उस टदन वह घर न आई होती और उसने वह सब कुछ आुँ खोिं से न दे खा होता तथा कानोिं से
न सुना होता, तो क्या उसकी टजिंदगी आज कुछ और होती? नहीिं, ऐसा कभी न कभी तो होना ही था। मीरा
की आुँ खोिं से न चाहते हुए भी आुँ सू बह टनकले। तनु को चादर ओढ़ाकर मीरा उठ खड़ी हुई । तनु ने उसके
आिं सू दे ख टलए तो हजार सवाल पूिंछेगी और उनका जवाब दे ना उसके टलए बहुत मुखिल होगा, अपने
कमरे में आकर मीरा ले् गई। एक बार टफर पुरानी यादें उसे घेरने लगीिं और जै से यादोिं की कटड़याुँ एक
के बाद एक जुड़ती गईिं।

उस दन दोपहर के 2 बजे थे जब मीरा घर पहुिं ची। यह समय सास-ससुर के सोने का होता था,
इसटलए उसने डु ब्लीके् चाभी से घर का दरवाजा खोला और अपने कमरे की ओर जाने लगी टक अचानक
सासु जी के कमरे से आती आवाजोिं ने उसका ध्यान खीिंचा, क्योिंटक उनमें से एक आवाज अटमत की भी थी।
कमरे का दरवाजा खुला था, पर परदे टगरे हुए थे। भीतर से अटमत की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। माुँ
अब तुम मुझ पर जबरदस्ती नहीिं कर सकती। मैंने तुमसे पहले ही कहा था, मैं शबनम को नहीिं छोड़
सकता पर तुम नहीिं मानी। ये कहकर टक इससे टप्रया की शादी पर असर पड़े गा, जोर डालकर तु मने उस
मीरा को मेरे पल्ले बाुँ ध टदया। ये तो अच्छा हुआ टक दु बई प्रोजेक्ट में शबनम मेरे साथ थी, वरना मैं तो
पागल हो जाता। माुँ प्लीज अब तो टप्रया भी से्ल हो चुकी थी, अब मीरा से मेरा तलाक होना जरूरी है ।
शबनम मुझे शादी के टलए परे शान कर रही है । मैं अब और इिं तजार नहीिं कर सकता। तुम जल्दी से मीरा
के माुँ -बाप से बात करो और उनसे कहो टक मुझे आजाद कर दें । इसके पहले मीरा कुछ सम्हल पाती टक
उसे ससुर जी की गरजती हुई आवाज़ सुनाई पड़ी वो अटमत से कह रहे थे , मैंने सोचा था टक शादी के बाद
तुम सुधर जाओगे, मगर नहीिं। तुम्हारे इि का भूत अभी तक नहीिं उतरा, अरे अब तो तुम बाप बनने जा
रहे हो, भूल जाओ पुरानी बातें। मीरा को माजरा कुछ समझे टक उसे सास की मनुहार भरी आवाज़ सुनाई
पड़ी, अरे बे्ा! इतनी सुिंदर, सुघड़ बह, साथ में सरकारी नौकरी और क्या चाटहए तुझे? अरे माुँ ए नहीिं
चाटहए मुझे तुम्हारी सुिंदर बह और उसकी नौकरी। मुझे इस प्राब्लम से जल्दी छु ट्टी टदलाओ, वरना मैंने
कुवैत में जॉब के टलए बात टकया हुआ है , इस बार जाऊुँगा तो 15-20 साल नहीिं आऊुँगा, टफर रहना
आराम से अपनी बहु के साथ। ये अटमत की टवफरती हुई आवाज थी।

मीरा सकते में थी, उसक पैर लड़खड़ा गए, जबान सूख गई, दरवाजे का सहारा लेते हुए, वहीिं
ज़मीन पर बैठ गई। आवाज सुनकर सासु माुँ लगभग दौड़ती हुई सी बाहर आईिं, मीरा की खथथटत दे खकर
उनको समझते दे र न लगी टक वो सब कुछ सुन चुकी है । उन्ोिंने तुरिंत उसे उठाया, भीतर ले जाकर टबस्तर
पर टल्ाया। जल्दी से जाकर वे उसके टलए चाय बनाकर लाई। सु बकती हुई मीरा को टबठाकर प्यार से
उसका टसर सहलाया और जबरदस्ती चाय टपलाई। ससुर जी टचिंता से कमरे से अिंदर-बाहर हो रहे थे।
अटमत मौका दे खकर अपनी बाइक उठाकर जा चुका था, उसे मीरा की कोई परवाह नहीिं थी। सास
समझा रही थीए रोओ नहीिं बे्े अपनी तबीयत सिंभालो सब ठीक हो जाएगा। रोते -रोते मीरा सो गई तो
सासु जी अपने कमरे में चली गईिं।

पर मीरा सोई नहीिं थी, वो जानती थी टक अब कुछ ठीक नहीिं होने वाला है , उसे जल्दी ही कोई
टनणिय लेना ही होगा। उसने अपने टपता को फोन टकया, उन्ें सारी खथथटत समझाई और तुरिंत वहािं आकर
उसे लेकर जाने को कहा। नहीिं अब और नहीिं जो आदमी अपनी पत्नी के प्यार और समपिण को समझ नहीिं
पाया, उसके मन में अपने अनदे खे अजन्मे बच्चे के टलए मोह कहािं से जागेगा, ऐसे टनमोही के साथ जीवन
टबताने का क्या मतलब? मीरा ने एक पल की भी दे र न की। माुँ और टपताजी के आने तक वह अपना
सामान बािं ध चुकी थी।

अचानक समधी-समधन को आया दे खकर मीरा के सास-ससुर घबरा गए। तभी सामने से बड़े ही
बेटफक्र अिं दाज में कमरे में प्रवेश करते हुए अटमत को दे खकर मीरा खुद को काबू में न रख सकी। सामने
जाकर एक झन्ना्े दार झापड़ उसने अटमत को रसीद टदया। इसके बदले वो कुछ समझे , मीरा के टपता ने
कड़े शब्ोिं में अपने समधी से कहा-अगर आपका बे्ा अपनी गलती मानकर एक हफ्ते में मेरी बे्ी केा
लेने आता है तो आए वरना 10 टदनोिं में तलाक का नोट्स आपको टमल जाएगा और वे मीरा का सू्केस
लेकर टनकल गए। मीरा ने माुँ का हाथ पकड़कर घर से टनकलते समय पल्कर दे खा, सास-ससुर टसर
झुकाए खड़े थे। पर अटमत के चेहरे पर पछतावे का कोई टचिंह नहीिं था, जबटक राहत के भाव स्पष्ट नजर आ
रहे थे।

मीरा बुरी तरह ्ू ् चुकी थी, पर मन में कहीिं भीतर एक आशा छु पी हुई थी, शायद! अटमत अपनी
गलती समझ कर लौ् आए। पर यह डोर भी उस टदन भी ्ू ् गई, जब अटमत की ओर से ही तलाक के
कागजात डाक से आए। मीरा की रही-सही आस भी खत्म हो गई। ऐसा कैसे हो गया और इन सब में
उसकी क्या गलती थी? मीरा रात-टदन सोचती पर समझ नहीिं पाती थी, उसके टपता ने उसके ऑटफस में
लिंबी छु ट्टी की अजी भेज दी थी। माुँ -टपता जी दोनोिं बहनें उसको बहलाने का हर सिंभव प्रयास करते, पर
मीरा एकदम गुमसु म-सी हो चुकी थी। नौवे महीने एक सुिंदर-सी टबट्या के जन्म होने के बाद भी मीरा खुश
न हो सकी, टफर एक आस लगी, शायद! बच्ची को दे खने अटमत आए और उसका सलोना मुखड़ा दे खकर
उनका मन बदल जाए।
पर ऐसा कुछ भी नहीिं हुआ। मीरा ने ऑटफस ज्वॉइन कर टलया, घर में माुँ और बहनें उसकी बच्ची
कीटति का ख्याल रखने और वह अपने आपको ऑटफस के कामोिं में उलझाकर रखती। रात को कीटति को
हिं सता-खेलता दे खकर अपने गम को भूलने का प्रयास करती, जो प्रायः टनष्फल ही रहता था। ऑटफस में
सहकटमियोिं के जोर दे ने पर एक बार टफर उसने बैडटमिं्न खेलना शुरू कर टदया, बस अब सु बह ऑटफस,
दोपहर को ्ू नाि में् और रात को कीटति इस मुिंबई की भाग-दौड़ और भीड़भाड़ की टज़िंदगी में उसे पल भर
का अवकाश नहीिं टमलता। उसकी टजिंदगी की गाड़ी चल टनकली। कीटति अब 12 साल की हो चुकी थी।
मीरा की बहनें टववाह करके ससुराल जा चुकी थीिं। अब मीरा ही अपने वृद्ध माता-टपता का सहारा थी और
वे दोनोिं ही मीरा का। बहरहाल, कीटति जरूर सबकी लाडली थी और मीरा की तो टज़िंदगी ही जैसे कीटति पर
शुरू होती थी और उस पर ही खत्म।

उस टदन मीरा रोज की भाुँ टत शाम को 7.00 बजे दफ्तर से घर लौ् रही थी, अगस्त का महीना था।
मुिंबई की बाररश अपने पूरे शबाब पर थी, ऐसे में तो स्टे शन से घर तक का सफर भी आसान नहीिं था। दू र-
दू र तक कोई ऑ्ो नहीिं टदख रहा था। बसें खचाखच भरी हुई थीिं। वहािं अचानक टबजली कड़की और मीरा
की चीख टनकल गई, तभी उसके पास एक कार आकर रूकी, कार के शीशे को नीचे करके एक सभ्य से
टदखने वाले व्यखक्त ने उसे पुकारा, आइये मैं आपको आपके घर छोड़ दे ता हुँ , घबराइये नहीिं, मैं आपकी
टबखडिं ग में ही ग्राउिं ड फ्लोर पर रहता हुँ और आपके टपताजी मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं । मीरा ने गौर
से उस अनजान युवक को दे खा, हालािं टक मन में टझझक तो थी पर और कोई चारा नहीिं था। मन मसोसकर
मीरा कार के टपछले दरवाजे को खोलकर बैठ गई। रास्ते में उसने उस युवक से कोई बात नहीिं की।
टबखडिं ग आने पर उस धन्यवाद टकया।युवक ने मुस्कुरा के कहा इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीिं, ये तो
मेरा फजि था। वैसे मेरा नाम टवजय है , अच्छा नमस्ते ।

घर पहुिं चकर मीरा ने राहत की सािं स ली। कीटति अपने होमवकि में और नाना-नानी अपना टप्रय
सीररयल दे खने में व्यस्त थे। चाय बनाकर टपताजी को दे ते हुए मीरा ने उन्ें टवजय के बारे में बताया।
टपताजी खुश हो गए, अच्छा टवजय ! भई वो तो बहुत अच्छा लड़का है । अभी कल ही तो उसकी माुँ गाुँ व से
आई है । मैंने उसे इस रटववार को माुँ को खाने पर लेकर आने को कहा है । मीरा कुछ कहती इसके पहले
कीटति की आवाज आई माुँ मुझे प्रोजेक्ट बनाने में मद्द करो ना! और बात आई गई हो गई।

अगले टदन शटनवार की छु ट्टी थी, मीरा टपताजी की दवाईयािं लेने नीचे मेटडकल शॉप गई, दे खा वहािं
टवजय अपनी माता जी के साथ खड़े दवाइयािं ले रहे थे । मीरा ने उन्ें नमस्कार टकया और दोनोिं में बातचीत
शुरू हो गई । बातोिं ही बातोिं में उसे पता चला टक टवजय बहुत परे शान है क्योिंटक माताजी को वाइरल
फीवर है और उनको ऑटफस के ज़रूरी काम से टदल्ली जाना है । मीरा ने टवजय को टदलासा टदया, आप
टचिंता मत कररये मेरी 3 टदन छु ट्टी है , मैं माताजी का ख्याल रखूिंगी। आप टनटचिंत होकर जाइये। टवजय प्रसन्न
हो गए, थैं क्यू मीरा जी, आपका ये एहसान मैं टजिं दगी भर नहीिं भूलूिंगा। माुँ जी के चेहरे पर भी राहत के भाव
आ गए, मीरा उन्ें नमस्ते करके घर आ गई।

टवजय के दौरे पर जाने के बाद मीरा उनकी माताजी को अपने घर ले आई। समय पर दवाईयािं ,
आहार और आराम पाकर उनका बुखार उतर गया। वे एक भद्र और टमलनसार मटहला थीिं। बहुत जल्दी
ही वे घर के लोगोिं से टहल-टमल गई और टवशेषकर कीटति तो अपनी चुलबुली बातोिं से उनकी आुँ खोिं का
तारा बन गई। तीन टदन बहुत जल्दी बीत गए और जब टवजय दौरे से आए तो अपनी माुँ को स्वथथ और
हिं सते -मुस्कुराते दे खकर कृतज्ञता से उन्ोिंने हाथ जोड़ टलए और मािं जी ने कीटति को कलेजे से लगाकर
उसे ढे रोिं आशीवाि द दे कर टवदा ली।

इन तीन टदनोिं में टवजय की मािं ए मीरा की मािं से उसकी पूरी कहानी सुन चुकी थी। इधर टवजय की
टजिंदगी भी खुटशयोिं से भरी नहीिं थी। आई.आई.्ी. से इिं जीटनयररिं ग करके उन्ोिंने लिंदन की बड़ी फमि
ज्वाइन की थी । ऑटफस की ही एक अिं ग्रेज सहकमी जूटलया उन्ें बेहद भा गई और जूटलया भी उन्ें पिंसद
करने लगी थी। मािं ने बेमन से ही सही सहमटत दे दी थी। दोनोिं ने खुशी-खुशी शादी की। जूटलया एक
आजाद ख्याल लड़की थी। पररवार,बच्चे जैसी टमडल क्लास बातोिं में उसकी कोई रुटच नहीिं थी। वह खाओ-
टपओ और मौज करो टसद्धािं त की टहमायती थी। टवजय ने जूटलया को बहुत समझाया पर जूटलया टवजय के
बहुत समझाने पर भी घर के बिंधन में रहना स्वीकार नहीिं कर पाई। अिं त में उसने टवजय के साथ तलाक
लेकर अपने ही दे श के राब्ि के साथ वो तो रहने चली गई पर टवजय इस पूरी वाकये के दौरान बेहद ्ू ्
गए और लिंदन छोड़कर एक प्राइवे् फमि में प्रोडक्शन मैनेजर बनकर मुिंबई आ गए। बीते टदनोिं की कड़वी
यादोिं को भुलाने के टलए उन्ोिंने अपने आपको काम में पूरी तरह डूबा टदया और इस कोटशश में कुछ हद
तक वे सिंभल भी गए थे।

मीरा की टजिंदगी और उसकी टहम्मत और आत्म-टवश्वास को दे खकर टवजय की माुँ बेहद प्रभाटवत
हुई और टफर उसकी सादगी और अपनत्व का पररचय तो उन्ें तीन टदनोिं में टमल ही चुका था। तनु से भी वे
पूरी तरह से घुल-टमल गई थीिं। एक बार टफर उनकी आुँ खोिं में अपने बे्े की शादी का सपना सजने लगा।
अवसर टमलते ही उन्ोिंने टवजय से , मीरा के साथ शादी की बात की। टवजय ने धैयिपूविक उनकी बातें सुनीिं,
टफर एक गहरी सािं स लेकर बडी ही शािं टत से जवाब टदया, माुँ टकसी भी टनणिय पर पहुुँ चने से पहले अच्छी
तरह से सोच-टवचार कर लो। मैं पहले ही गलत टनणिय लेकर पछता चुका हुँ । अब तुम जैसा ठीक समझो।
तुम्हारी हर बात मुझे स्वीकार है पर एक बार मीरा के मन की भी थाह ले लो, अगर उसे कोई टवरोध नहीिं है
तो मेरी तरफ से भी समझो हाुँ ही है ।

बे्े की तरफ से हरी झिंडी टमलते ही लक्ष्मी दे वी मीरा के माता-टपता से टमली, लड़की दे वी का
प्रस्ताव सुनकर उनकी खुशी से आिं खें भर आईिं। उनकी सहमटत पाकर लक्ष्मी दे वी का उत्साह दु गुना हो
गया। अब वे दे र नहीिं करना चाहती थीिं। शाम को मीरा के माता-टपता को मीरा और तनु सटहत घर आने
का टनमिंत्रण दे कर, वे बाजार की ओर टनकल पड़ीिं। ्े लीफोन पर टवजय को इस सहमटत की सूचना दे ना वे
न भूली, पर माुँ मीरा से तो तुमने पूिंछा... पर फोन क् चुका था। मािं को हषि और उत्साह के मारे जैसे कुछ
सुनाई ही नहीिं दे रहा था।

पर टवजय एक बार जीवन में धोखा खा चुके थे , इस बार वे जल्दबाजी नहीिं, करना चाहते थे। मीरा
से टमलकर वे इस बारे में बात करना चाहते थे। कुछ भी टनणिय लेने से पहले मीरा से टमलना जरूरी था।
कुछ सोचकर उन्ोिंने अपने सेक्रे्री को बुलाया, उसे कुछ टनदे श दे कर वे बाहर टनकले और मीरा को
मोबाइल पर फोन टकया, पर उसका फोन ऑफ था। उन्ोिंने ऑटफस निंबर पर फोन टकया तो पता चला टक
आज मीरा का ्ू नाि में् है । कार लेकर वे स्टे टडयम जा पिंहुचे और दशिकोिं की पिंखक्त में बैठ गए। इिं ्र-स्टे ्
बैडटमिं्न का मटहला फाइनल एकल मैच चल रहा था। मीरा की सटविस चल रही थी। को्ि पर आत्मटवश्वास
से लबरे ज मीरा की चुस्ती-फुती दे खने लायक थी। उसके हर शॉ् पर ताटलयाुँ पड़ रही थीिं। अपने प्रटतद्विं द्वी
्ीम को सीधे से्ोिं में पराटजत करके, मीरा जब टवजेता का कप लेकर जब मैच से उतरी तो मीरा के
समथिकोिं ने उसे किंधे पर उठा टलया। टवजय के टलए मीरा का यह रूप नया था। प्रभाटवत तो वे उससे थे ही,
अब उसके प्रशिंसक भी बन चुके थे। जल्दी से बाहर जाकर स्टे टडयम के बाहर फूलोिं के एक स्टाल से
उन्ोिंने एक सुिंदर से फूलोिं बुके टलया और मीरा को दे ने वे जब गे् पर पिंहुचे तो दे खा एक-एक करके
खखलाड़ी टनकल रहे थे और उनमें मीरा कहीिं नहीिं थी। परे शान होकर टवजय ने आस-पास खोजा, दू र अपना
बैग लेकर थकी-हारी मीरा छो्े गे् से टनकल रही थी। टवजय को याद आया आज दो बजे उसे बे्ी के
स्कूल में पैरें्ट स ्ीचर मीट्िं ग में जाना है । कल ही शाम तनु ने उसे बताया था टक स्कूल में पी.्ी. टमट्िं ग है ।
टवजय का मन मीरा के टलए करुणा से भर आया, सच औरत के टकतने रूप होते हैं और इन अलग-अलग
रूपोिं को जीते हुए वह अपने आपको इस कदर व्यस्त रखती है टक वह स्वयिं अपने आपको भुला दे ती है ।
नहीिं वह ऐसा नहीिं होने दें गे। मीरा को वे उसके टहस्से की खुटशयािं वे जरूर टदलाएिं गे। सोचते -सोचते उसकी
कार कब मीरा के पास पिंहुची वे समझ ही न सके। कार का दरवाजा खोलकर, हाथ में गुलदस्ता लेकर वे
मीरा के सामने पिंहुच गए, क्या मैं स्टे ् लेवल चैखम्पयन मीरा जी को अपनी छो्ी-सी कार में टलफ्ट दे सकता
हिं मीरा के हाथ में बुके दे ते हुए टवजय मुस्कुराते हुए बोले। सामने टवजय को दे खकर मीरा पहले तो चैंक
गई, टफर उसके चेहरे पर एक शमीली मुस्कुराह् आ गई। टवजय से बुके लेकर मीरा कार में बैठ गई।
उसकी थकान काफूर हो चुकी थी। कार सीधे तनु के स्कूल के बाहर रूकी। मीरा सुखद आचयि से भर
उठी। आपको कैसे मालूम है टक मुझे यहािं आना है ? हम अिं तयाि मी जो ठहरे , अब जाइये जल्दी से वरना
मीट्िं ग के टलए दे र हो जाएगी। मैं यहीिं आपका इिं तजार करता हुँ । पर ज़रा जल्दी कीटजएगा क्योिंटक मैंने तय
टकया है टक आज मैं बैडटमिं्न चैखम्पयन मीरा जी के साथ ही लिंच करू
ुँ गा, वरना भूखा रहुँ गा मुस्कुराते हुए
टवजय बोले । मीरा मुसकुरा उठी बस 10 टमन् में आई, बोलकर लगभग दौड़ते हुए वह स्कूल के अन्दर
चली गई।

मीट्िं ग में 10 के बजाय 20 टमन् लग गए। मीट्िं ग के बाद और तीन पीररयड थे , तनु को छु ट्टी नहीिं
टमली। मीरा जब बाहर आई तो दे खा कार में एक बटढ़या-सा टकशोर कुमार का गाना बज रहा था और
टवजय साहब आिं खें बिंदकर गुनगुनाते हुए गाने का मज़ा ले रहे थे। मीरा कार का दरवाजा खोलकर सी् पर
बैठ गई और कार का हानि बजाया। टवजय चैंक कर उठ बैठे और पास में मुस्कुराती मीरा को दे खकर
उसकी शरारत समझ गए। मिंद-मिंद मुस्कुराकर गाड़ी स्टा्ि की और सीधे हो्ल पहुिं च कर ही गाड़ी
रूकी। इतने बड़े फाइव स्टार हो्ल में मीरा पहली बार गई थी, अपने सादे कपड़ोिं की ओर जब उसका
ध्यान गया तो वह सिं कोच से भर उठी। टवजय शायद समझ गए थे उन्ोिंने मीरा का हाथ मजबूती से थामा
और रे स्तरािं की तरफ वढ़ गए।

भूख दोनोिं को ही जोर से लगी थी खाने का आडि र दे कर, वे्र को जल्दी खाना लाने को बोलकर
टवजय मीरा को सकुचाते दे खकर मुस्कुरा उठे । टबना कुछ बोले उसे कुछ दे र दे खते रहे , उन्ें इस प्रकार
दे खते पाकर मीरा और भी असहज हो गई। खैर तब तक खाना आ गया, मीरा ने राहत की सािं स ली। दोनोिं
ने शािं टत से टबना कुछ बोले खाना खाया। आइसक्रीम का ऑडर दे कर टवजय ने मीरा से पूछा, जानती हो मैं
तुम्हें आज यहाुँ क्योिं लाया हुँ । मीरा ने इिं कार से टसर टहलाया। क्योिंटक आज शाम को मेरी माुँ हमारी शादी
की तारीख पक्की करने वाली है और उसके पहले मैं तुम्हारी हाुँ सुनना चाहता था। टवजय ने बड़ी ही सीधे-
सादे शब्ोिं में टबना टकसी भूटमका के अपनी बात कह दी। क्या ! मीरा भौिंचक्की रह गई एक पल को तो
टवजय की बात सुनकर मीरा को टवश्वास ही नहीिं हुआ। पर टवजय जी ऐसा कैसे हो सकता है ? आप जानते
हैं ना टक मैं एक बच्ची की मािं हुँ । हाुँ मैं जानता हुँ और उस प्यारी-सी बच्ची को मैं अपनाना चाहता हुँ और
अपना नाम दे ना चाहता हुँ और कुछ इसके अलावा मुझे इिं कार करने का और कोई कारण है आपके पास?
अब मीरा के पास मना करने के टलए कुछ कारण नहीिं था पर वह कुछ कह भी नहीिं पा रही थी। कुछ आगे
झुककर मुस्कुराते हुए टवजय धीरे से खुसफुसाए तो मैं यह ररश्ता पक्का समझूिं, मीरा ने शमाि ते हुए टसर
टहला टदया और टवजय ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख टदया।

इसके बाद तो जैसे च् मिंगनी और प् ब्याह, 15 टदनोिं में ही मीरा टवजय की पत्नी बनकर उसके
घर आ गई। सबसे ज्यादा आचयि तो मीरा को तनु के व्यवहार से हुआ था। तनु ने बड़ी ही समझदारी का
पररचय दे ते हुए टवजय को टपता के रूप में स्वीकार कर टलया था और टवजय तो उसकी हर इच्छा पूरी
करने के टलए जैसे हर पल तैयार रहते थे। दोनोिं को दे खकर कोई कह नहीिं सकता था टक इनका ररश्ता
कुछ ही टदनोिं पहले का है । मीरा को जैसे अपनी टकस्मत पर भरोसा ही नहीिं हो रहा था। टवजय के कहने
पर उसने छह माह की लम्बी छु ट्टी ली थी। अब वह इस सुनहरे समय को अपने हाथ से नहीिं टनकलने दे ना
चाहती थी। इसके हर पल, हर घड़ी को वह यादगार बना दे ना चाहती थी। खै र हिं सते -खेलते पािं च माह
टनकल गए। टवजय की माुँ अपने कुलदे वी की पूजा के टलए गाुँ व गई हुई थी। टवजय ऑटफस जाते -जाते तनु
को स्कूल छोड़कर चले गए थे। सु बह के कामोिं को टनप्ाकर बालकनी में बैठकर अखबार पढ़ते हुए मीरा
कॉफी की चुखस्कयािं ले रही थी। ये उसकी रोज की टदनचयाि थी। ट्र िं ग-ट्र िं ग फोन की आवाज़ सुनकर मीरा
उठी। टवजय फोन पर थे , मीरा मैं अपनी एक जरूरी फाइल घर पर भूल गया हुँ , दे खो आलमारी के पास
की ्े बल की दराज में हरे रिं ग की जो फइल है , उसे टनकालकर रखो मैं अपने एक आदमी को भेज रहा हुँ ,
उसे दे दे ना, 12 बजे एक मीट्िं ग है , शाम को टमलते हैं बाद में फोन करता हुँ कहकर व्यस्तभाव से टवजय ने
फोन रख टदया। मीरा ने फाइल टनकाल कर सामने ्े बल रखी। तभी दरवाजे की घिं्ी बज उठी। मीरा ने
उठकर दरवाजा खोला। सामने टवजय के दफ्तर से आया आदमी खड़ा था, उसे मीरा को नमस्कार टकया।
मीरा ने उसके अटभवादन का जवाब दे ते हुए फाइल दे दी। फाइल लेकर जाते -जाते वो आदमी रुका, मैडम
आपने शायद मुझे पहचाना नहीिं! मीरा ने कहा नहीिं तो आप कौन? कहते हुए उस अधेड़ से आदमी को
पहचानाने की कोटशश की, नहीिं! उस आदमी की शक्ल को वो कैसे भू ल सकती है ? मीरा जैसे कहीिं खो सी
गई। सामने अटमत खड़ा था। खचड़ी बाल, सफेद दाढ़ी, मो्ा चश्मा, साधारण-सी बुश्ि पहने पहले के
स्मा्ि , हैं डसम, आत्मटवश्वासी अटमत से टकतना अलग है ? मैं तो तुम्हें सर की शादी के ररसेप्शन में ही
पहचान गया था। पर तुमसे बात करने की टहम्मत नहीिं जु्ा पाया। मीरा मैंने तुम्हारे साथ अच्छा नहीिं टकया,
शायद इसटलए भगवान ने मुझे सजा दी। तुम्हारे जाने के बाद मेरे पररवार में और ऑटफस में मेरे और
शबनम के ररश्ते के बारे में लोग जान गए थे। मैं चाहता था जल्दी से तुमसे तलाक लेकर अपने और शबनम
के ररश्ते को नाम दे दू ुँ , पर तब तक हमारी काफी बदनामी हो चुकी थी। शबनम भी मेरे माुँ -टपता की
उसके प्रटत नफरत को समझ चुकी थी। वो जानती थी टक मेरी माुँ उसे कभी माफ नहीिं करे गी। इन सबसे
बचना ही उसने बेहतर समझा और एक टदन उसने टबना टकसी को बताए टदल्ली हे ड ऑटफस में अपना
्र ािं सफर करवा टलया और अपने टपता के साथ टदल्ली चली गई। मािं -बाबूजी ने मुझसे बात तक करना बिंद
कर टदया और अपनी पोती से टमलने की आस टलए दोनोिं एक के बाद एक इस दु टनया से चले गए। तब से
मैं अकेला ही रहता हुँ । टदमागी हालत खराब होने के कारण किंपनी में ठीक से काम नहीिं कर पाया इस
कारण मुझे काम से टनकाल टदया गया। अब मैं इस टवजय सर की किंपनी में क्लकि हुँ । मुझे माफ कर दो
मीरा, शायद यही मेरे टकए की सज़ा है । मैं अपने ही कमों का फल भुगत रहा हिं । अटमत बोलते जा रहा
था... मीरा जैसे सपने से जागी, पूरे आत्मटवश्वास से उसने कहा, सुटनए मैं मीरा नहीिं टमसेस टवजय कुमार हुँ ।
और ये आपसे मेरी आखखरी मुलाकात है । मैं नहीिं चाहती भूलकर भी आपकी जुबािं पर अब कभी मेरा नाम
भी आए, और याद रखखए इसके बाद आप कभी मेरे घर आने की ज़ुरित न करें , यही आपके टलए और
आपकी नौकरी के टलए अच्छा रहे गा, कहकर मीरा ने उसके मुिंह पर दरवाजा बिंद कर टदया। नहीिं! अब
बहुत हो गया। अब वह कमज़ोर नहीिं पड़े गी। टवजय की दी हुई इस दू सरी टजिंदगी के बीच अपने अतीत को
कभी नहीिं आने दे गी। मीरा का चेहरा दृढ़ टनचय से चमक रहा था और क्योिं न हो उसके सारे कष्ट और
तकलीफ के बादल अब छिं ् चुके थे और सुनहरी धूप उसके स्वागत में बाहें पसारे अब तै यार खड़ी थी।

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