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पहली बार दे खा कि यह िोई चरवाहा नहीीं; मैं िहाीं -िहाीं , किन-किन दरवाजोीं पर सद् गु रूओीं िो

खोजता रहा,सदगुरू मेरे घर में मौजू द था। मेरी गायोीं िो चरा रहा था। मेरे खेतोीं िो सम्‍हाल रहा था।
कगर पडे पैरो में।
ओशो—(झरत दसहीं कदस मोती, प्रवचन-01)

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