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अष्टगन्ध

गंधाष्टक या अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों के मिलाने से बना हुआ एक


संयुक्त गंध है जो पूजा िें चढाने और यंत्रादि मलखने के काि िें आता
है ।

तंत्र के अनुसार मिन्न-मिन्न िे वताओं के मलये मिन्न-मिन्न गंधाष्टक


का ववधान पाया जाता है । तंत्र िें पंचिे व (गणेश, ववष्ण,ु मशव, िग
ु ाा, सय
ू )ा
प्रधान हैं, उन्हहं के अंतगात सब िे वता िाने गए हैं; अतः गंधाष्टक िी
पााँच यहह हैं।

 शक्क्त के मलये-

चंिन, अगर, कपूर, चोर, कंु कुि, रोचन, जटािासी, कवप

 ववष्णु के मलये-

चंिन, अगर, ह्रहवेर, कुट, कंु कुि, उशीर, जटािासी और िुर;

 मशव के मलये-

चंिन, अगर, कपूर, तिाल, जल, कंु कुि, कुशीि, कुष्ट;

 गणेश के मलये-

चंिन, चोर, अगर, िग


ृ और िग
ृ ी का िि, कस्तूरह, कपरू ; अथवा
चंिन, अगर, कपूर, रोचन, कंु कुि, िि, रक्तचंिन, ह्रहवेर;
 सय
ू ा के मलये-

जल, केसर, कुष्ठ, रक्तचंिन, चंिगन, उशीर, अगर, कपरू ।

शास्त्रों िें तीन प्रकार की अष्टगन्ध का वणान है , जोकक इस प्रकार है -

 शारिाततलक के अनस
ु ार अधोमलखतत आठ पिाथों को अष्टगन्ध के
रूप िें मलया जाता है -

चन्िन, अगर, कपरूा , तिाल, जल, कंकुि, कुशीत, कुष्ठ।

यह अष्टगन्ध शैव सम्प्प्रिाय वालों को हह वप्रय होती है ।

 िस
ू रे प्रकार की अष्टगन्ध िें अधोमलखखत आठ पिाथा होते हैं-

कंु कुि, अगर, कस्तुरह, चन्द्रिाग, त्रत्रपुरा, गोरोचन, तिाल, जल आदि।

यह अष्टगन्ध शाक्त व शैव िोनों सम्प्प्रिाय वालों को वप्रय है ।

 वैष्णव अष्टगन्ध के रूप िें इन आठ पिाथा को वप्रय िानते है -

चन्िन, अगर, ह्रहवेर, कुष्ठ, कंु कुि, सेव्यका, जटािांसी, िुर।

 अन्य ित से अष्टगन्ध के रूप िें तनम्प्न आठ पिाथों को िी


िानते हैं-

अगर, तगर, केशर, गौरोचन, कस्तूरह, कंु कुि, लालचन्िन, सफेि


चन्िन।
ये पिाथा िलह-िांतत वपसे हुए, कपड़छान ककए हुए, अक्नन द्वारा िस्ि
बनाए हुए और जल के साथ मिलाकर अच्छी तरह घुटे हुए होने चादहए।

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