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न ींव क खुदाई

भूमि पूजन के बाद न ींव क खुदाई ईशान कोण से ह प्रारीं भ करें । ईशान के
बाद आग्नेय कोण क खुदाई करें । आग्नेय के बाद वायव्य कोण, वायव्य कोण के
बाद नैऋत्य कोण क खुदाई करें । कोणोीं क खुदाई के बाद मदशा क खुदाई
करें । पूवव, उत्तर, पमिि और दमिण िें क्रि से खुदाई करें ।

न ींव क भराई

न ींव क भराई, न ींव क खुदाई के मवपर त क्रि से करें । सबसे पहले नेऋत्य
कोण क भराई करें । उसके बाद क्रि से वायव्य, आग्नेय, ईशान क भराई करें ।
अब मदशाओीं िें न ींव क भराई करें । सबसे पहले दमिण मदशा िें भराई करें ।
अब पमिि ,उत्तर व पूवव िें क्रि से भराई करें ।

न ींव पू जन में कलश स्थापना

न ींव पूजन िें ताीं बे का कलश स्थामपत मकया जाना चामहए। कलश के अींदर चाीं द
के सपव का जोडा, लोहे क चार क ल, हल्द क पाीं च गाीं ठे, पान के 11 पत्तें,
तु लस क 35 पमत्तयोीं, मिट्ट के 11 द पक, छोटे आकार के पाीं च औजार, मसक्के,
आटे क पींज र , फल, नाररयल, गुड, पाीं च चैकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राि नाि
पुस्तिका, पींच रत्न, पींच धातु रखना चामहए। सिि सािग्र को कलश िें रखकर
कलश का िुख लाल कपडे से बाीं धकर न ींव िें स्थामपत करना चामहए

जाननए क मकान क न ींव खुदाई के समय नकन बात ीं का रखें ध्यान

जामनए क िकान क न ींव खुदाई के सिय मकन बातोीं का रखें ध्यान ---

भारत य सिाज िें अनेक शास्त्र पाये जाते हैं . इनिे से एक शास्त्र है ‘वािु
शास्त्र’ है , मजसका प्रयोग प्राच न सिय से ह मकया जाता है . वािु शास्त्र का
हिारे ज वन िें बहुत िहत्तव होता है . मजस प्रकार िनुष्य के शर र िें रोग के
प्रमवष्ट करने का िुख्य िागव िुख होता है उस प्रकार मकस भ प्रकार के भवन
मनिाणव िें वािु शास्त्र का बडा ह िहत्तव होता है | यमद वािु के मनयि का
पालन मकया जाये तो ज वन सुखिय हो जाता है |

वािु शास्त्र के अनुसार भवन मनिाणव करने के साथ-साथ घर क विुओीं के


रखरखाव िें भ वािुशास्त्र का बहुत अमधक िहत्व है . जब भ आप घर बनाए
तो वािु के मनयिोीं का पालन करें . मजससे घर िें सुख शाीं मत तथा सम्रस्ति बन ीं
रहे |सुख, शाीं मत सिृस्ति के मलए मनिाव ण के पूवव वािुदेव का पूजन करना चामहए
एवीं मनिाव ण के पिात् गृह-प्रवेशके शु भ अवसर पर वािु-शाीं मत, होि इत्यामद
मकस योग्य और अनुभव ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोमहत के द्वारा अवश्य करवाना
चामहए।

ऐसा िाना जाता है मक जि न के न चे पाताल लोक है और इसके स्वाि


शे षनाग हैं । श्र िद्भागवत िहापुराण के पाींचवें स्कींद िें मलखा है मक पृथ्व के
न चे पाताललोक है और इसके स्वाि शेषनाग है , इसमलए कभ भ ,मकस भ
स्थान पर न व पूजन/भूमि पूजन करते सिय चाीं द के नाग का जोडा रखा जाता
हैं |

घर क न ींव रखने से पहले इन बात ीं का रखें ध्यान----

वािु प्रास्ति के मलए अनुष्ठान, भूमि पूजन, न ींव खनन, कुआीं खनन, मशलान्यास, द्वार
स्थापना व गृह प्रवेश आमद अवसरोीं पर वािु दे व क पूजा का मवधान है । ध्यान
रखें यह पूजन मकस शु भ मदन या मफर रमव पुष्य योग को ह कराना चामहए।

आवश्यक सामग्र -- रोल , िोल , पान के पत्ते, ल ग ीं , इलाइच , साबुत, सुपार , ज ,


कपूर, चावल, आटा, काले मतल, प ल सरसोीं, धूप, हवन सािग्र , पींचिेवा( काजू ,
बादाि, मपिा, मकशमिश, अखरोट), गाय का शु ि घ , जल के मलए ताीं बे का पात्र,
नाररयल, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र, लकड के 2 पटरे , फूल, द पक, आि के पत्ते, आि
क लकड , पींचािृत( गींगाजल, दू ध, दह , घ , शहद, शक्कर) आमद।
जल के मलए ताीं बे का पात्र, चावल, हल्द , सरसोीं, चाीं द का नाग-नामगन का जोडा,
अष्टधातु कश्यप, 5 क मडयाीं , 5 सुपार , मसींदूर, नाररयल, लाल वस्त्र, घास, रे जगार , बताशे ,
पींच रत्न, पाीं च नई ईींटें आमद। इसके बाद मकस मवद्वान से पूजन करवाएीं ।

लग्न शुद्धि :-

गृहारीं भ हे तु स्तस्थर या मद्वस्वभाव रामश का बलवान लग्न ले ना चामहए। (प्रातः


उपराहन या सींध्याकाल िें गृहारीं भ करना चामहए) उपरोक्त लग्न के केंद्र, मत्रकोण
स्थानोीं िें शु भ ग्रह तथा 3, 6, 11 वें स्थान िें अशुभ (पापग्रह) होीं या छठा स्थान
खाल हो। आठवाीं और बारहवाीं स्थान भ ग्रह रमहत होना चामहए। इस प्रकार का
लग्न और ग्रह स्तस्थमत भवन मनिाव ण के शुभारीं भ हे तु श्रेष्ठ कह गई है ।

श्र शु कदे व के ितानुसार पाताल से त स हजार योजन दू र शे षज मवराजिान हैं ।


शे षनाग के मसर पर पृथ्व रख है । जब ये शे ष प्रलयकाल िें जगत् के सींहार
क इच्छा करते हैं , तो क्रोध से कुमटल भृकुमटयोीं के िध्य त न नेत्रोीं से युक्त 11
रूद्र मत्रशु ल मलए प्रकट होते हैं । ग रतलब है मक प रामणक ग्रींथो िें शेषनाग के
फन पर पृथ्व के मटके होने के सींकेत मिलते हैं।

न ींव पूजन का किवकाीं ड इस िनोवैज्ञामनक मवश्वास पर आधाररत है मक जै से


शे षनाग अपने फन पर सींपूणव पृथ्व को धारण मकए हुए हैं ठ क उस प्रकार िेरे
इस भवन क न ींव भ प्रमतमष्ठत मकए हुए चाीं द के नाग के फन पर पूणव
िजबूत के साथ स्थामपत रहे । क्ोींक शे षनाग ि रसागर िें रहते हैं इसमलए
पूजन के कलश िें दू ध, दह , घ डालकर िींत्रोीं से आह्वाहन कर शे षनाग को
बुलाया जाता है तामक वे सािात उपस्तस्थत होकर भवन क रिा वहन करें ।न ींव
खोदते सिय यमद भूमि के भ तर से पत्थर या ईींट मनकले तो आयु क वृस्ति
होत है । मजस भूमि िें गड्ढा खोदने पर राख, कोयला, भस्म, हड्ड , भूसा आमद
मनकले , उस भूमि पर िकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयु का ह्रास
होता है और दु :ख क प्रास्ति होत है । ।
प रामणक ग्रींथोीं िें शेषनाग के फण पर पृथ्व मटक होने का उल्लेख मिलता है --
-

शे षीं चाकल्पयद्दे विनन्तीं मवश्वरूमपणि्।यो धारयमत भूतामन धराीं चेिाीं सपववताि्।।

इन परिदे व ने मवश्वरूप अनींत नािक दे वस्वरूप शे षनाग को पैदा मकया, जो


पहाडोीं समहत सार पृ थ्व को धारण मकए है । उल्लेखन य है मक हजार फणोीं वाले
शे षनाग सभ नागोीं के राजा हैं । भगवान क शय्या बनकर सुख पहुीं चाने वाले ,
उनके अनन्य भक्त हैं । बहुत बार भगवान के साथ-साथ अवतार ले कर उनक
ल ला िें भ साथ होते हैं । श्र िद्भागवत के 10 वे अध्याय के 29 वें श्लोक िें
भगवान कृष्ण ने कहा है -

"अनन्तिास्तस्म नागानाीं" यान िैं नागोीं िें शे षनाग हीं ।

न ींव पूजन का पूरा किवकाीं ड इस िनोवैज्ञामनक मवश्वास पर आधाररत है मक जै से


शे षनाग अपने फण पर पूर पृथ्व को धारण मकए हुए हैं , ठ क उस तरह िेरे
इस घर क न ींव भ प्रमतमष्ठत मकए हुए चाीं द के नाग के फण पर पूर िजबूत
के साथ स्थामपत रहे । शे षनाग ि रसागर िें रहते हैं । इसमलए पूजन के कलश िें
दू ध, दह , घ डालकर िींत्रोीं से आह्वान पर शे षनाग को बुलाया जाता है , तामक वे
घर क रिा करें । मवष्णु रूप कलश िें लक्ष्म स्वरूप मसक्का डालकर फूल और
दू ध पूजा िें चढ़ाया जाता है , जो नागोीं को सबसे ज्यादा मप्रय है । भगवान मशवज
के आभूषण तो नाग हैं ह । लक्ष्मण और बलराि भ शे षावतार िाने जाते हैं।
इस मवश्वास से यह प्रथा जार है ।

गृहारीं भ क न ींव :-
वैशाख, श्रावण, कामतव क, िागवश षव और फाल्गुन इन चींद्रिासोीं िें गृहारीं भ शु भ होता
है । इनके अलावा अन्य चींद्रिास अशुभ होने के कारण मनमषि कहे गये हैं ।
वैशाख िें गृहारीं भ करने से धन धान्य, पुत्र तथा आरोग्य क प्रास्ति होत है ।
श्रावण िें धन, पशु और मित्रोीं क वृस्ति होत है । कामतव क िें सववसुख।िागवश षव िें
उत्ति भोज्य पदाथों और धन क प्रास्ति। फाल्गु न िें गृहारीं भ करने से धन तथा
सुख क प्रास्ति और वींश वृस्ति होत है । मकींतु उक्त सभ िासोीं िें िलिास का
त्याग करना चामहए।

भवन मनिाव ण कायव शु रू करने के पहले अपने आदरण य मवद्वान पींमडत से शुभ
िुहतव मनकलवा ले ना चामहए।

भवन मनिाव ण िें मशलान्यास के सिय ध्रुव तारे का स्मरण करके न ींव रखें। सींध्या
काल और िध्य रामत्र िें न ींव न रखें।नए भवन मनिाव ण िें ईींट, पत्थर, मिट्ट ओर
लकड नई ह उपयोग करना। एक िकान क मनकल सािग्र नए िकान िें
लगाना हामनकारक होता है ।

मकस भ इिारत के मनिाव ण िें कई मक्रया-व्यापार जु डेे़ रहते हैं । जै से न ींव


डालने के मलए खुदाई करना, कुींए क खुदाई, वािमवक मनिाव ण कायव आरीं भ
करना, रे त डालना, दरवाजेे़ लगाना आमद। इन सबके मलए मवशेष िुहतव होते हैं
मजनका पालन करने से शु भ पररणाि प्राि केए जा सकते हैं, साथ ह मनिाव ण
कायव भ तेज से और सुरमित ढीं ग से होता है ।

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जामनए कैसे करें न ींव क खुदाई---

भूमि पूजन के बाद न ींव क खुदाई ईशान कोण से ह प्रारीं भ करें । ईशान के
बाद आग्नेय कोण क खुदाई करें । आग्नेय के बाद वायव्य कोण, वायव्य कोण के
बाद नैऋत्य कोण क खुदाई करें । कोणोीं क खुदाई के बाद मदशा क खुदाई
करें । पूवव, उत्तर, पमिि और दमिण िें क्रि से खुदाई करें ।

जामनए कैसे करें न ींव क भराई---

न ींव क भराई, न ींव क खुदाई के मवपर त क्रि से करें । सबसे पहले नेऋत्य
कोण क भराई करें । उसके बाद क्रि से वायव्य, आग्नेय, ईशान क भराई करें ।
अब मदशाओीं िें न ींव क भराई करें । सबसे पहले दमिण मदशा िें भराई करें ।
अब पमिि ,उत्तर व पूवव िें क्रि से भराई करें ।

जामनए कैसे करें न ींव पूजन िें कलश स्थापना----

न ींव पूजन िें ताीं बे का कलश स्थामपत मकया जाना चामहए। कलश के अींदर चाीं द
के सपव का जोडा, लोहे क चार क ल, हल्द क पाीं च गाीं ठे, पान के 11 पत्तें, तुलस
क 35 पमत्तयोीं, मिट्ट के 11 द पक, छोटे आकार के पाीं च औजार, मसक्के, आटे क
पींज र , फल, नाररयल, गुड, पाीं च चैकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राि नाि पुस्तिका, पींच
रत्न, पींच धातु रखना चामहए। सिि सािग्र को कलश िें रखकर कलश का
िुख लाल कपडे से बाीं धकर न ींव िें स्थामपत करना चामहए।

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भूमि पूजन तथा गृहारम्भ----

भूखींड पर भवन मनिाव ण के मलए न ींव क खुदाई और मशलान्यास शु भ िुहतव िें


मकया जाना चामहए। मशलान्यास का अथव है मशला का न्यास अथाव त् गृह कायव
मनिाव ण प्रारम्भ करने से पुवव उमचत िुहतव िें खुदाई कायव करवाना। यमद िुहतव
सह हो तो भवन का मनिाव ण श घ्र और मबना रुकावट के पूरा होता है ।
मशलान्यास के मलए उपयुक्त स्थान पर न ींव के मलए खोद गई खात (गड्ढे ) िें
पूजन एवि् अनुष्ठान पूववक पाीं च मशलाओीं को स्थामपत मकया जाता है ।

(1) शास्त्र के अनुसार मशलान्यास के मलए खात (गड्ढा) सूयव क रामश को ध्यान
िें रखकर मकया जाता है ,

जै से-

सूयव खात मनणवय रामश 5,6,7, (मसींह, कन्या, तु ला)

आग्नेय कोण रामश 2,3,4, (वृष, मिथु न, ककव)

नैऋत्य कोण रामश 11,12,1 (कुींभ, ि न, िेष)

वायव्य कोण रामश 8,9,10 (वृमिक, धनु, िकर) ईशान कोण

आधुमनक वािुशस्तस्त्रयोीं का िानना है मक मकस भ सिय िें खुदाई केवल


उत्तर-पूवव मदशा से ह शु रू करन चामहए।

(2) जब भूमि सुिावस्था िें हो तो खुदाई शु रू नह ीं करन चामहए। सूयव सींक्राीं मत


से 5,6,7,9,11,15,20,22,23 एीं व 28 वें मदन भूमि शयन होता है । ितान्तर से सूयव के
नित्र 5,7,9,12,19 तथा 26 वे नित्र िें भूमि शयन होता है ।

(3) िागवश षव, फाल्गु न, वैशाख, िाघ, श्रावण और कामतव क िें गृह आमद का मनिाव ण
करने से गृहपमत को पुत्र तथा स्वास्थ्य लाभ होता है ।
(4) िहमषव वमशष्ठ के ित िें शु क्लपि िें गृहारम्भ करने से सववमवध सुख और
कृष्णपि िें चारोीं का भय होता है ।

(5) गृहारम्भ िें 2,3,5,6,7,10,11,12,13, एवि 15 मतमथयाीं शु भ होत हैं । प्रमतपदा को


गृह मनिाव ण करने से दररद्रता, चतुथी को धनहामन, अष्टि को उच्चाटन, नवि को
शस्त्र भय, अिावस्या को राजभय और चतुदवश को स्त्र हामन होत है । िहमषव िृगु
के ित िें चतुथी, अष्टि , अिावस्या मतमथयाीं , सूयव, चन्द्र और िींगलवारोीं को त्याग
दे ना चामहए।

(6) मचत्रा, अनुराधा, िृगमशरा, रे वत , पुष्य, उत्तराषाढा, उत्तराफाल्गु णन , उत्तराभद्रपदा,


रोमहण , धमनष्ठा और शतमभषा नित्रोीं िें गृहारम्भ शु भ होता है ।

(7) शु भ्रग्रह से युक्त और वृष्ट, स्तस्थर तथा मद्वस्वभाव लग्न िें वािुकिव शु भ होता
है । शु भग्रह बलवान होकर दशिस्थान हो अथवा शु भग्रह पींचि, पवि हो और
चींद्रिा, 1,4,7,10 स्थान िें हो तथा पापग्रह तहसरे , छठे ग्यारहवें स्थान िें हो तो ग्रह
शु भ होता है ।

(8) रमववार या िींगलवार को गृह आरम्भ करना कष्टदायक होता है । सोिवार


कल्याणकार , बुधवार धनदायक, गुरूवार बल-बुस्तिदायक, शु क्रवार सुख-
सम्पदाकारक तथा शमनवार कष्टमवनाशक होता है ।

(9) वािुप्रद प कीं अनुसार, शमनवार स्वामत नित्र, मसींह लग्न, शुक्लपि, सिि मतमथ,
शु भ योग तथा श्रावण िास, इन सात सकारोीं के योग िें मकया गया वािुकिव
पुत्र, धन-धान्य और ऐश्वयव दायक होता है ।
(10) पुष्प, उत्तरफाल्गु न , उत्तराषढ़ा, उत्तराभद्रपद, रोमहण , िृगमश्र, श्रवण, अश्लेष एवि्
पूवाव षढ़ा नित्र यमद बृहस्पमत से युक्त हो और गुरुवार हो तो उसिें बनाया गया
गृह पुत्र और रात्यदायक होता है ।

(11) मवशाखा, अमश्वन , मचत्रा, घमनष्ठा, शतमभषा और आद्राव ये नित्र शु क्र से युक्त हो
और शु क्रवार का ह मदन हो तो ऐसा गृह धन तथा धान्य दे ता है ।

(12) रोमहण , अमश्वन , उत्तराफाल्गु न , मचत्रा हि ये नित्र बुध से युक्त हो और उस


मदन बुधवार भ हो तो वह गृह सुख और पुत्रदायक होता है ।

(13) ककव लग्न िें चींद्रिा, केंद्र िें बृहस्पमत, शे ष ग्रह मित्र तथा उच्च अींश िें होीं तो
ऐसे सिय िें बनाया हुआ गृह लक्ष्म से युक्त होता है ।

(14) ि न रामश िें स्तस्थत शु क्र यमद लग्न िें हो या ककव का बृहस्पमत च थे स्थान
िें स्तस्थत हो अथ्वा तुला का शमन ग्यारहवें स्थान िें हो तो वह घर सदा धन
युक्त रहता है ।

(15) चींद्रिा, गुरू या शु क्र यमद मनबवल, न चरामश िें या अि हो तो गृहारम्भकायव


नह ीं करना चामहए।

(16) अगर घर क कोई िमहला सदस्य गभाव वस्था कें आस्तखर कुछ िाह िें हो या
घर का कोई सदस्य गींभ र रूप से ब िार हो तो खुदाई का कायव प्रारम्भ नह ीं
करना चामहए।
(17) शमनवार रे वत नित्र, िींगल क हि, पुष्प नित्र िें स्तस्थमत, गुरू शु क्र अि,
कृषणपि, मनमषि िास, ररक्तामद मतमथयाीं , तारा-अशु स्ति, भू-शयन, िींगलवार, अमग्नवान,
अमग्नपींचक, भद्रा, पूवाव भाद्रपद नित्र तथा वृमिक, कुींभ लग्नामद गृहारम्भ िें वमजव त है।

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गृहारीं भ और स रिास :---

गृहारीं भ के िुहतव िें चींद्रिासोीं क अपेिा स रिास अमधक िहत्वपूणव, मवशे षतः न ींव
खोदते सिय सूयव सींक्राीं मत मवचारण य है ।

पूवव कालािृत का कथन है - गृहारीं भ िें स्तस्थर व चर रामशयोीं िें सूयव रहे तो
गृहस्वाि के मलए धनविव क होता है । जबमक मद्वस्वभाव (3, 6, 9, 12) रामश गत
सूयव िरणप्रद होता है। अतः िेष, वृष, ककव, मसींह, तु ला, वृमिक, िकर और कुींभ
रामशयोीं के सूयव िें गृहारीं भ करना शु भ रहता है । मिथुन, कन्या, धनु और ि न
रामश के सूयव िें गृह मनिाव ण प्रारीं भ नह ीं करना चामहए।

मवमभन्न स रिासोीं िें गृहारीं भ का फल :-

दे वऋमष नारद ने इस प्रकार बताया है । िेषिास-शु भ, वृषिास-धन वृस्ति?


मिथु निास-िृत्यु ककविास-शु भ, मसींहिास-सेवक वृस्ति, कन्यािास-रोग, तु लािास-सुख,
वृमिकिास-धनवृस्ति, धनुिास- बहुत हामन, िकर-धन आगि, कुींभ-लाभ, और
ि निास िें गृहारीं भ करने से गृहस्वाि को रोग तथा भय उत्पन्न होता है ।
स रिासोीं और चींद्रिासोीं िें जहाीं फल का मवरोध मदखाई दे वहाीं स रिास का
ग्रहण और चींद्रिास का त्याग करना चामहए क्ोींमक चींद्रिास ग ण है ।

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मशलान्यास :-
गृहारीं भ हे तु न ींव खात चक्रि और वािुकालसपव मदशा चक्र िें प्रदमशवत क गई
सूयव क रामशयाीं और राहु पृष्ठ य कोण न ींव खनन के साथ-साथ मशलान्यास
करने, बुमनयाद भरने हे तु, प्रथि च कार अखण्ड पत्थर रखने हे तु, खम्भे (िींभ)
मपलर बनाने हे तु इन्ह रामशयोीं व कोणोीं का मवचार करना चामहए। जो क्रि न ींव
खोदने का मलखा गया था वह प्रदमिण क्रि न ींव भरने का है । आजकल िकान
आमद बनाने हे तु आर.स .स . के मपलर प्लॉट के मवमभन्न भागोीं िें बना मदये
जाते हैं । ध्यान रखें, यमद कोई मपलर राहु िुख क मदशा िें पड रहा हो तो
मफलहाल उसे छोड दें । सूयव के रामश पररवतव न के बाद ह उसे बनाएीं तो उत्ति
रहे गा। कमतपय वािु मवदोीं का िानना है मक सवव प्रथि मशलान्यास आग्नेय मदशा
िें करना चामहए।

वािुपुरुष के ििवस्थान---
्‍

मसर, िुख, हृदय, दोनोीं िन और मलीं ग- ये वािुपुरुष के ििवस्थान हैं । वािुपुरुष


का मसर 'मशख ' िें, िुख 'आप्' िें, हृदय 'ब्रह्मा' िें, दोनोीं िन 'पृथ्व धर' तथा 'अयविा' िें
और मलीं ग 'इन्द्र' तथा 'जय' िें है (दे खे- वािुपुरुष का चाटव )। वािुपुरुष के मजस
ििवस्थान िें क ल, खींभा आमद गाडा जाएगा, गृहस्वाि के उस अींग िें प डा या
रोग उत्पन्न हो जाएगा।

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वािु पुरुष क मदशा मवचार :-

िहाकमव कामलदास और िहमषव वमशष्ठ अनुसार त न-त न चींद्रिासोीं िें वािु पुरुष
क मदशा मनम्नवत् रहत है ।

भाद्रपद, कामतव क, आमश्वन िास िें ईशान क ओर। फाल्गु न, चैत्र, वैशाख िें नैत्य क
ओर। ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण िें आग्नेय कोण क ओर। िागवश षव, प ष, िाघ िें वायव्य
मदशा क ओर वािु पुरुष का िुख होता है । वािु पुरुष का भ्रिण ईशान से
बाय ीं ओर अथाव त् वािावत्तव होता है । वािु पुरुष के िुख पेट और पैर क
मदशाओीं को छोडकर प ठ क मदशा िें अथाव त् च थ , खाल मदशा िें न ींव क
खुदाई शु रु करना उत्ति रहता है ।

िहमषव वमशष्ठ आमद ने मजस वािु पुरुष को 'वािुनर' कहा था, कालाीं तर िें उसे
ह शे ष नाग, सपव, कालसपव और राहु क सींज्ञा दे द गई। अतः पाठक इससे
भ्रमित न होीं। िकान क न वीं खोदने के मलए सूयव मजस रामश िें हो उसके
अनुसार राहु या सपव के िुख, िध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं । सूयव क रामश
मजस मदशा िें हो उस मदशा िें, उस स रिास राहु रहता है ।

जै सा मक कहा गया है - ''यद्रामशगोऽकवः खलु तमद्दशायाीं , राहुः सदा मतष्ठमत िामस


िामस।''

यमद मसींह, कन्या, तु ला रामश िें सूयव हो तो राहु का िुख ईशान कोण िें और
पुच्छ नैत्य कोण िें होग और आग्नेय कोण खाल रहे गा। अतः उक्त रामशयोीं के
सूयव िें इस खाल मदशा (राहु पृष्ठ य कोण) से खातारीं भ या न ींव खनन प्रारीं भ
करना चामहए। वृमिक, धनु, िकर रामश के सूयव िें राहु िुख वायव्य कोण िें होने
से ईशान कोण खाल रहता है । कुींभ, ि न, िेष रामश के सूयव िें राहु िुख नैत्य
कोण िें होने से वायव्य कोण खाल रहे गा। वृष, मिथु न, ककव रामश के सूयव िें
राहु का िुख आग्नेय कोण िें होने से नैत्य मदशा खाल रहे ग । उक्त स र िासोीं
िें इस खाल मदशा (कोण) से ह न ींव खोदना शु रु करना चामहए। अब एक
प्रश्न उठता है मक हि मकस खाल कोण िें गड् ढ़ा या न ींव खनन प्रारीं भ करने
के बाद मकस मदशा िें खोदते हुए आगे बढ़ें ? वािु पुरुष या सपव का भ्रिण
वािावत्तव होता है । इसके मवपर त क्रि से- बाएीं से दाएीं /दमिणावत्तव/क्लोक वाइज
न वीं क खुदाई करन चामहए। यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारीं भ करें तो दमिण
मदशा से जाते हुए नैत्य कोण क ओर आगे बढ़ें । मवश्वकिाव प्रकाश िें बताया
गया है -
'ईशानतः सपवमत कालसपो मवहाय सृमष्टीं गणयेद् मवमदिु। शे षस्य वािोिुवखिध्य -
पुछींत्रयीं पररत्यज्यखनेच्चतुथवि्॥'

वािु रूप सपव का िुख, िध्य और पुच्छ मजस मदशा िें स्तस्थत हो उन त नोीं
मदशाओीं को छोडकर च थ िें न ींव खनन आरीं भ करना चामहए। इसे हि मनम्न
तामलका के िध्य से आसान से सिझ सकते हैं ।

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जामनए दै मनक कालराहु वास :-

अकोत्तरे वायुमदशाीं च सोिे, भ िे प्रत च्ाीं बुधनैते च। याम्ये गुर वस्तन्हमदशाीं च शु क्रे,
िींदे च पूवे प्रवदीं मत काल॥

राहुकाल का वास रमववार को उत्तर मदशा िें, सोिवार को वायव्य िें,िींगल को


पमिि िें, बुधवार को नैत्य िें, गुरुवार को दमिण िें, शु क्रवार को आग्नेय िें व
शमनवार को पूवव मदशा िें राहुकाल का वास रहता है । यात्रा के अलावा गृह
मनिाव ण (गृहारीं भ), गृहप्रवेश िें राहुकाल का पररत्याग करना चामहए। जै से-स रिास
के अनुसार मनकाले गये िुहतव के आधार पर आग्नेय मदशा िें न ींव
खनन/मशलान्यास करना मनमित हो। मकींतु शु क्रवार को आग्नेय िें, शमनवार को पूवव
मदशा िें राहुकाल का वास रहता है ।

अतः शुक्रवार को आग्नेय मदशा िें गृहारीं भ हे तु न ींव खनन/ मशलान्यास प्रारीं भ न
करें । वतव िान सिय िें उत्तर सिय िें उत्तर भारत गृह मनिावण के सिय कालराहु
या राहुकाल का मवचार नह ीं मकया जाता है । जबमक इसका मवचार करना अत्यींत
िहत्वपूणव है । भूमि खनन कायव और मशलान्यास आमद िें दै मनक राहुकाल को भ
राहुिुख क भाीं मत वमजव त मकया जाना चामहए। सोिवार, बुधवार, गुरुवार, शु क्रवार
गृहारीं भ हे तु उत्ति कहे गये हैं । मकींतु इन शु भ वारोीं िें कालराहु क मदशा का
मनषेध करना चामहए।
रमववार, िींगलवार को गृहारीं भ करने से अमग्नभय और शमनवार िें अनेक कष्ट होते
हैं । भू- शयन मवचार-सूयव के नित्र से चींद्रिा का नित्र यमद 5, 7, 9, 12, 19, 26वाीं
रहे तो पृथ्व शयनश ल िान जात हैं । भूशयन के मदन खनन कायव वमजवत है ।
अतः उपरोक्तानुसार मगनत के नित्रोीं िें न ींव क खुदाई न करें । गृहारीं भ के शु भ
नित्र : रोमहण , िृगमशरा, पुष्य, उत्तराफाल्गुन , हि, मचत्रा, स्वात , अनुराधा, उत्तराषाढ़ा
और रे वत आमद वेध रमहत नित्र गृहारीं भ हे तु श्रेष्ठ िाने गये हैं ।

दे वऋमष नारद के अनुसार गृहारीं भ के सिय गुरु यमद रोमहण , पुष्य, िृगमशरा,
आश्लेषा, त नोीं उत्तरा या पूवाव षाढ़ा नित्र िें होीं तो गृहस्वाि श्र िन्त (धनवान)
होता है तथा उसके घर िें उत्ति राजयोग वाले पुत्र/प त्रोीं का जन्म होता है । इन
फलोीं क प्रास्ति हे तु गुरुवार को गृहारीं भ करें । आद्राव , हि, धमनष्ठा, मवशाखा,
शतमभषा या मचत्रा नित्र िें शुक्र हो और शु क्रवार को ह मशलान्यास करें तो
धन-धान्य क खूब सिृस्ति होत है । गृहस्वाि कुबेर के सिान सम्पन्न हो जाता
है ।

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जामनए क कब करें गृहप्रवेश..???

भूररपुष्पमवकरीं सतोरण तायपूणवकलशे पशे मभति्।

धूपनन्धबमलपूमजतानरीं ब्राह्राणध्वमनयुतीं मवशे द गृहि।।

बृहतसींमहता के अनुसार फूलोीं से सजे हुए, बन्दनवार लगे हुए, तोरणोीं से सुसस्तित,
जलपूणव कलशोीं से सुशोमभत, दे वताओीं के मवमधपूववक पूजन से शु ि, ब्राह्राणोीं के
वेदपाठ से युक्त घर िें प्रवेश करें । यहाीं दे वतापूजन िें वािुपूजन तथा वािुशींमत
का भ सिावेश है।
(1) नव न घर िें प्रवेश उत्तरायण िें करना चामहए। िाघ, फाल्गु न, ज्येष्ठ और
वैशाख िें गृहप्रवेश शु भ होता है तथा कामतव क, िागवश षव िें गृहप्रवेश िध्यि होता
है ।

(2) मनरन्तर वृस्ति के मलए शु क्ल पि िें प्रवेश शु भ िाना गया है । शु क्लपि क
2,3,5,6,7,8,10,11 और 13 मतमथयाीं शु भ होत हैं । 49,14व ीं मतमथ और अिावस्या को
कदामप नूतन गृह प्रवेश न करें ।

(3) मचत्रा, त नोीं उत्तरा, रोमहण , िृगमशरा, अनुराधा, धमनष्ठा, रे वत और शतमभषा नित्रोीं
िें प्रवेश करने से धन, आयु, आरोग्य, पुत्र, प त्र तथा वींश िें वृस्ति होत है ।

(4) गृहस्वाि क जन्म रामश से गोचरस्थ सूयव, चींद्र, बृहस्पमत और शु क्र का प्रबल
होना आवश्यक है ।

(5) िींगलवार और रमववार के अलावा अन्य मदन शु भ हैं ।

(6) भद्रा, पींचबाण और ररक्ता मतमथयाीं त्याज्य हैं ।

(7) स्तस्थर और मद्वस्वभाव लग्न (2,5,8,11,3,6,9,12, रामशयाीं ) या गृहस्वाि के चींद्र


लग्न या जन्म लग्न से 3,6,10,11, रामशयाीं शु भ हैं । गृहप्रवेश लग्न िें
1,7,10,5,9,2,3,11 भवोीं िें शुभ ग्रह तथा 3,6,11 भावोीं िें पापग्रह होने चामहए। 4,8
भाव खाल होने चामहए। लग्न रामश, गृहस्वाि के जन्म लग्न या जल्म रामश से
आठव रामश नह ीं होन चामहए।
(8) नव न गृह प्रवेश के शु भ अवसर पर उत्तरायण सूयव, गुरू शु क्रोदय, कलश चक्र
शु स्ति, कत्ताव क नाि रामश से सूयव-चींद्र बल होना चामहए। मकींतु दग्धा, अिावस्या,
ररक्ता, शू न्य मतमथयाीं , द्वादश व शु क्रवार का योग, चर लग्न, नवाींश, धनु कुींभ तथा
ि न सींक्रामतयाीं वमजवत हैं ।

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