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नींव की खुदाई
नींव की खुदाई
भूमि पूजन के बाद न ींव क खुदाई ईशान कोण से ह प्रारीं भ करें । ईशान के
बाद आग्नेय कोण क खुदाई करें । आग्नेय के बाद वायव्य कोण, वायव्य कोण के
बाद नैऋत्य कोण क खुदाई करें । कोणोीं क खुदाई के बाद मदशा क खुदाई
करें । पूवव, उत्तर, पमिि और दमिण िें क्रि से खुदाई करें ।
न ींव क भराई
न ींव क भराई, न ींव क खुदाई के मवपर त क्रि से करें । सबसे पहले नेऋत्य
कोण क भराई करें । उसके बाद क्रि से वायव्य, आग्नेय, ईशान क भराई करें ।
अब मदशाओीं िें न ींव क भराई करें । सबसे पहले दमिण मदशा िें भराई करें ।
अब पमिि ,उत्तर व पूवव िें क्रि से भराई करें ।
न ींव पूजन िें ताीं बे का कलश स्थामपत मकया जाना चामहए। कलश के अींदर चाीं द
के सपव का जोडा, लोहे क चार क ल, हल्द क पाीं च गाीं ठे, पान के 11 पत्तें,
तु लस क 35 पमत्तयोीं, मिट्ट के 11 द पक, छोटे आकार के पाीं च औजार, मसक्के,
आटे क पींज र , फल, नाररयल, गुड, पाीं च चैकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राि नाि
पुस्तिका, पींच रत्न, पींच धातु रखना चामहए। सिि सािग्र को कलश िें रखकर
कलश का िुख लाल कपडे से बाीं धकर न ींव िें स्थामपत करना चामहए
जामनए क िकान क न ींव खुदाई के सिय मकन बातोीं का रखें ध्यान ---
भारत य सिाज िें अनेक शास्त्र पाये जाते हैं . इनिे से एक शास्त्र है ‘वािु
शास्त्र’ है , मजसका प्रयोग प्राच न सिय से ह मकया जाता है . वािु शास्त्र का
हिारे ज वन िें बहुत िहत्तव होता है . मजस प्रकार िनुष्य के शर र िें रोग के
प्रमवष्ट करने का िुख्य िागव िुख होता है उस प्रकार मकस भ प्रकार के भवन
मनिाणव िें वािु शास्त्र का बडा ह िहत्तव होता है | यमद वािु के मनयि का
पालन मकया जाये तो ज वन सुखिय हो जाता है |
वािु प्रास्ति के मलए अनुष्ठान, भूमि पूजन, न ींव खनन, कुआीं खनन, मशलान्यास, द्वार
स्थापना व गृह प्रवेश आमद अवसरोीं पर वािु दे व क पूजा का मवधान है । ध्यान
रखें यह पूजन मकस शु भ मदन या मफर रमव पुष्य योग को ह कराना चामहए।
लग्न शुद्धि :-
गृहारीं भ क न ींव :-
वैशाख, श्रावण, कामतव क, िागवश षव और फाल्गुन इन चींद्रिासोीं िें गृहारीं भ शु भ होता
है । इनके अलावा अन्य चींद्रिास अशुभ होने के कारण मनमषि कहे गये हैं ।
वैशाख िें गृहारीं भ करने से धन धान्य, पुत्र तथा आरोग्य क प्रास्ति होत है ।
श्रावण िें धन, पशु और मित्रोीं क वृस्ति होत है । कामतव क िें सववसुख।िागवश षव िें
उत्ति भोज्य पदाथों और धन क प्रास्ति। फाल्गु न िें गृहारीं भ करने से धन तथा
सुख क प्रास्ति और वींश वृस्ति होत है । मकींतु उक्त सभ िासोीं िें िलिास का
त्याग करना चामहए।
भवन मनिाव ण कायव शु रू करने के पहले अपने आदरण य मवद्वान पींमडत से शुभ
िुहतव मनकलवा ले ना चामहए।
भवन मनिाव ण िें मशलान्यास के सिय ध्रुव तारे का स्मरण करके न ींव रखें। सींध्या
काल और िध्य रामत्र िें न ींव न रखें।नए भवन मनिाव ण िें ईींट, पत्थर, मिट्ट ओर
लकड नई ह उपयोग करना। एक िकान क मनकल सािग्र नए िकान िें
लगाना हामनकारक होता है ।
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भूमि पूजन के बाद न ींव क खुदाई ईशान कोण से ह प्रारीं भ करें । ईशान के
बाद आग्नेय कोण क खुदाई करें । आग्नेय के बाद वायव्य कोण, वायव्य कोण के
बाद नैऋत्य कोण क खुदाई करें । कोणोीं क खुदाई के बाद मदशा क खुदाई
करें । पूवव, उत्तर, पमिि और दमिण िें क्रि से खुदाई करें ।
न ींव क भराई, न ींव क खुदाई के मवपर त क्रि से करें । सबसे पहले नेऋत्य
कोण क भराई करें । उसके बाद क्रि से वायव्य, आग्नेय, ईशान क भराई करें ।
अब मदशाओीं िें न ींव क भराई करें । सबसे पहले दमिण मदशा िें भराई करें ।
अब पमिि ,उत्तर व पूवव िें क्रि से भराई करें ।
न ींव पूजन िें ताीं बे का कलश स्थामपत मकया जाना चामहए। कलश के अींदर चाीं द
के सपव का जोडा, लोहे क चार क ल, हल्द क पाीं च गाीं ठे, पान के 11 पत्तें, तुलस
क 35 पमत्तयोीं, मिट्ट के 11 द पक, छोटे आकार के पाीं च औजार, मसक्के, आटे क
पींज र , फल, नाररयल, गुड, पाीं च चैकोर पत्थर, शहद, जनेऊ, राि नाि पुस्तिका, पींच
रत्न, पींच धातु रखना चामहए। सिि सािग्र को कलश िें रखकर कलश का
िुख लाल कपडे से बाीं धकर न ींव िें स्थामपत करना चामहए।
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(1) शास्त्र के अनुसार मशलान्यास के मलए खात (गड्ढा) सूयव क रामश को ध्यान
िें रखकर मकया जाता है ,
जै से-
(3) िागवश षव, फाल्गु न, वैशाख, िाघ, श्रावण और कामतव क िें गृह आमद का मनिाव ण
करने से गृहपमत को पुत्र तथा स्वास्थ्य लाभ होता है ।
(4) िहमषव वमशष्ठ के ित िें शु क्लपि िें गृहारम्भ करने से सववमवध सुख और
कृष्णपि िें चारोीं का भय होता है ।
(7) शु भ्रग्रह से युक्त और वृष्ट, स्तस्थर तथा मद्वस्वभाव लग्न िें वािुकिव शु भ होता
है । शु भग्रह बलवान होकर दशिस्थान हो अथवा शु भग्रह पींचि, पवि हो और
चींद्रिा, 1,4,7,10 स्थान िें हो तथा पापग्रह तहसरे , छठे ग्यारहवें स्थान िें हो तो ग्रह
शु भ होता है ।
(9) वािुप्रद प कीं अनुसार, शमनवार स्वामत नित्र, मसींह लग्न, शुक्लपि, सिि मतमथ,
शु भ योग तथा श्रावण िास, इन सात सकारोीं के योग िें मकया गया वािुकिव
पुत्र, धन-धान्य और ऐश्वयव दायक होता है ।
(10) पुष्प, उत्तरफाल्गु न , उत्तराषढ़ा, उत्तराभद्रपद, रोमहण , िृगमश्र, श्रवण, अश्लेष एवि्
पूवाव षढ़ा नित्र यमद बृहस्पमत से युक्त हो और गुरुवार हो तो उसिें बनाया गया
गृह पुत्र और रात्यदायक होता है ।
(11) मवशाखा, अमश्वन , मचत्रा, घमनष्ठा, शतमभषा और आद्राव ये नित्र शु क्र से युक्त हो
और शु क्रवार का ह मदन हो तो ऐसा गृह धन तथा धान्य दे ता है ।
(13) ककव लग्न िें चींद्रिा, केंद्र िें बृहस्पमत, शे ष ग्रह मित्र तथा उच्च अींश िें होीं तो
ऐसे सिय िें बनाया हुआ गृह लक्ष्म से युक्त होता है ।
(14) ि न रामश िें स्तस्थत शु क्र यमद लग्न िें हो या ककव का बृहस्पमत च थे स्थान
िें स्तस्थत हो अथ्वा तुला का शमन ग्यारहवें स्थान िें हो तो वह घर सदा धन
युक्त रहता है ।
(16) अगर घर क कोई िमहला सदस्य गभाव वस्था कें आस्तखर कुछ िाह िें हो या
घर का कोई सदस्य गींभ र रूप से ब िार हो तो खुदाई का कायव प्रारम्भ नह ीं
करना चामहए।
(17) शमनवार रे वत नित्र, िींगल क हि, पुष्प नित्र िें स्तस्थमत, गुरू शु क्र अि,
कृषणपि, मनमषि िास, ररक्तामद मतमथयाीं , तारा-अशु स्ति, भू-शयन, िींगलवार, अमग्नवान,
अमग्नपींचक, भद्रा, पूवाव भाद्रपद नित्र तथा वृमिक, कुींभ लग्नामद गृहारम्भ िें वमजव त है।
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गृहारीं भ के िुहतव िें चींद्रिासोीं क अपेिा स रिास अमधक िहत्वपूणव, मवशे षतः न ींव
खोदते सिय सूयव सींक्राीं मत मवचारण य है ।
पूवव कालािृत का कथन है - गृहारीं भ िें स्तस्थर व चर रामशयोीं िें सूयव रहे तो
गृहस्वाि के मलए धनविव क होता है । जबमक मद्वस्वभाव (3, 6, 9, 12) रामश गत
सूयव िरणप्रद होता है। अतः िेष, वृष, ककव, मसींह, तु ला, वृमिक, िकर और कुींभ
रामशयोीं के सूयव िें गृहारीं भ करना शु भ रहता है । मिथुन, कन्या, धनु और ि न
रामश के सूयव िें गृह मनिाव ण प्रारीं भ नह ीं करना चामहए।
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मशलान्यास :-
गृहारीं भ हे तु न ींव खात चक्रि और वािुकालसपव मदशा चक्र िें प्रदमशवत क गई
सूयव क रामशयाीं और राहु पृष्ठ य कोण न ींव खनन के साथ-साथ मशलान्यास
करने, बुमनयाद भरने हे तु, प्रथि च कार अखण्ड पत्थर रखने हे तु, खम्भे (िींभ)
मपलर बनाने हे तु इन्ह रामशयोीं व कोणोीं का मवचार करना चामहए। जो क्रि न ींव
खोदने का मलखा गया था वह प्रदमिण क्रि न ींव भरने का है । आजकल िकान
आमद बनाने हे तु आर.स .स . के मपलर प्लॉट के मवमभन्न भागोीं िें बना मदये
जाते हैं । ध्यान रखें, यमद कोई मपलर राहु िुख क मदशा िें पड रहा हो तो
मफलहाल उसे छोड दें । सूयव के रामश पररवतव न के बाद ह उसे बनाएीं तो उत्ति
रहे गा। कमतपय वािु मवदोीं का िानना है मक सवव प्रथि मशलान्यास आग्नेय मदशा
िें करना चामहए।
वािुपुरुष के ििवस्थान---
्
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िहाकमव कामलदास और िहमषव वमशष्ठ अनुसार त न-त न चींद्रिासोीं िें वािु पुरुष
क मदशा मनम्नवत् रहत है ।
भाद्रपद, कामतव क, आमश्वन िास िें ईशान क ओर। फाल्गु न, चैत्र, वैशाख िें नैत्य क
ओर। ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण िें आग्नेय कोण क ओर। िागवश षव, प ष, िाघ िें वायव्य
मदशा क ओर वािु पुरुष का िुख होता है । वािु पुरुष का भ्रिण ईशान से
बाय ीं ओर अथाव त् वािावत्तव होता है । वािु पुरुष के िुख पेट और पैर क
मदशाओीं को छोडकर प ठ क मदशा िें अथाव त् च थ , खाल मदशा िें न ींव क
खुदाई शु रु करना उत्ति रहता है ।
िहमषव वमशष्ठ आमद ने मजस वािु पुरुष को 'वािुनर' कहा था, कालाीं तर िें उसे
ह शे ष नाग, सपव, कालसपव और राहु क सींज्ञा दे द गई। अतः पाठक इससे
भ्रमित न होीं। िकान क न वीं खोदने के मलए सूयव मजस रामश िें हो उसके
अनुसार राहु या सपव के िुख, िध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं । सूयव क रामश
मजस मदशा िें हो उस मदशा िें, उस स रिास राहु रहता है ।
यमद मसींह, कन्या, तु ला रामश िें सूयव हो तो राहु का िुख ईशान कोण िें और
पुच्छ नैत्य कोण िें होग और आग्नेय कोण खाल रहे गा। अतः उक्त रामशयोीं के
सूयव िें इस खाल मदशा (राहु पृष्ठ य कोण) से खातारीं भ या न ींव खनन प्रारीं भ
करना चामहए। वृमिक, धनु, िकर रामश के सूयव िें राहु िुख वायव्य कोण िें होने
से ईशान कोण खाल रहता है । कुींभ, ि न, िेष रामश के सूयव िें राहु िुख नैत्य
कोण िें होने से वायव्य कोण खाल रहे गा। वृष, मिथु न, ककव रामश के सूयव िें
राहु का िुख आग्नेय कोण िें होने से नैत्य मदशा खाल रहे ग । उक्त स र िासोीं
िें इस खाल मदशा (कोण) से ह न ींव खोदना शु रु करना चामहए। अब एक
प्रश्न उठता है मक हि मकस खाल कोण िें गड् ढ़ा या न ींव खनन प्रारीं भ करने
के बाद मकस मदशा िें खोदते हुए आगे बढ़ें ? वािु पुरुष या सपव का भ्रिण
वािावत्तव होता है । इसके मवपर त क्रि से- बाएीं से दाएीं /दमिणावत्तव/क्लोक वाइज
न वीं क खुदाई करन चामहए। यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारीं भ करें तो दमिण
मदशा से जाते हुए नैत्य कोण क ओर आगे बढ़ें । मवश्वकिाव प्रकाश िें बताया
गया है -
'ईशानतः सपवमत कालसपो मवहाय सृमष्टीं गणयेद् मवमदिु। शे षस्य वािोिुवखिध्य -
पुछींत्रयीं पररत्यज्यखनेच्चतुथवि्॥'
वािु रूप सपव का िुख, िध्य और पुच्छ मजस मदशा िें स्तस्थत हो उन त नोीं
मदशाओीं को छोडकर च थ िें न ींव खनन आरीं भ करना चामहए। इसे हि मनम्न
तामलका के िध्य से आसान से सिझ सकते हैं ।
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अकोत्तरे वायुमदशाीं च सोिे, भ िे प्रत च्ाीं बुधनैते च। याम्ये गुर वस्तन्हमदशाीं च शु क्रे,
िींदे च पूवे प्रवदीं मत काल॥
अतः शुक्रवार को आग्नेय मदशा िें गृहारीं भ हे तु न ींव खनन/ मशलान्यास प्रारीं भ न
करें । वतव िान सिय िें उत्तर सिय िें उत्तर भारत गृह मनिावण के सिय कालराहु
या राहुकाल का मवचार नह ीं मकया जाता है । जबमक इसका मवचार करना अत्यींत
िहत्वपूणव है । भूमि खनन कायव और मशलान्यास आमद िें दै मनक राहुकाल को भ
राहुिुख क भाीं मत वमजव त मकया जाना चामहए। सोिवार, बुधवार, गुरुवार, शु क्रवार
गृहारीं भ हे तु उत्ति कहे गये हैं । मकींतु इन शु भ वारोीं िें कालराहु क मदशा का
मनषेध करना चामहए।
रमववार, िींगलवार को गृहारीं भ करने से अमग्नभय और शमनवार िें अनेक कष्ट होते
हैं । भू- शयन मवचार-सूयव के नित्र से चींद्रिा का नित्र यमद 5, 7, 9, 12, 19, 26वाीं
रहे तो पृथ्व शयनश ल िान जात हैं । भूशयन के मदन खनन कायव वमजवत है ।
अतः उपरोक्तानुसार मगनत के नित्रोीं िें न ींव क खुदाई न करें । गृहारीं भ के शु भ
नित्र : रोमहण , िृगमशरा, पुष्य, उत्तराफाल्गुन , हि, मचत्रा, स्वात , अनुराधा, उत्तराषाढ़ा
और रे वत आमद वेध रमहत नित्र गृहारीं भ हे तु श्रेष्ठ िाने गये हैं ।
दे वऋमष नारद के अनुसार गृहारीं भ के सिय गुरु यमद रोमहण , पुष्य, िृगमशरा,
आश्लेषा, त नोीं उत्तरा या पूवाव षाढ़ा नित्र िें होीं तो गृहस्वाि श्र िन्त (धनवान)
होता है तथा उसके घर िें उत्ति राजयोग वाले पुत्र/प त्रोीं का जन्म होता है । इन
फलोीं क प्रास्ति हे तु गुरुवार को गृहारीं भ करें । आद्राव , हि, धमनष्ठा, मवशाखा,
शतमभषा या मचत्रा नित्र िें शुक्र हो और शु क्रवार को ह मशलान्यास करें तो
धन-धान्य क खूब सिृस्ति होत है । गृहस्वाि कुबेर के सिान सम्पन्न हो जाता
है ।
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बृहतसींमहता के अनुसार फूलोीं से सजे हुए, बन्दनवार लगे हुए, तोरणोीं से सुसस्तित,
जलपूणव कलशोीं से सुशोमभत, दे वताओीं के मवमधपूववक पूजन से शु ि, ब्राह्राणोीं के
वेदपाठ से युक्त घर िें प्रवेश करें । यहाीं दे वतापूजन िें वािुपूजन तथा वािुशींमत
का भ सिावेश है।
(1) नव न घर िें प्रवेश उत्तरायण िें करना चामहए। िाघ, फाल्गु न, ज्येष्ठ और
वैशाख िें गृहप्रवेश शु भ होता है तथा कामतव क, िागवश षव िें गृहप्रवेश िध्यि होता
है ।
(2) मनरन्तर वृस्ति के मलए शु क्ल पि िें प्रवेश शु भ िाना गया है । शु क्लपि क
2,3,5,6,7,8,10,11 और 13 मतमथयाीं शु भ होत हैं । 49,14व ीं मतमथ और अिावस्या को
कदामप नूतन गृह प्रवेश न करें ।
(3) मचत्रा, त नोीं उत्तरा, रोमहण , िृगमशरा, अनुराधा, धमनष्ठा, रे वत और शतमभषा नित्रोीं
िें प्रवेश करने से धन, आयु, आरोग्य, पुत्र, प त्र तथा वींश िें वृस्ति होत है ।
(4) गृहस्वाि क जन्म रामश से गोचरस्थ सूयव, चींद्र, बृहस्पमत और शु क्र का प्रबल
होना आवश्यक है ।