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Jyotish Shastra - Astrology


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म ोआज शु वार है, आज हम आपको असुर के गु शु ाचायजी के दस रह य बतायेग। म ो तु त व तृत है, इस लये शेयर या कॉपी करके समय
मलने पर पढ। म ो ब त लभ तु त है, इस लये अव य पढ़ आपका ानव न होगा।
अमं ं अ रं ना त , ना त मूलं अनौषधं।
अयो यः पु षः ना त, योजकः त लभ:॥
- शु ाचाय (शु नी त)
अथात कोई अ र ऐसा नह है जससे (कोई) म न शु होता हो, कोई ऐसा मूल (जड़) नह है, जससे कोई औष ध न बनती हो और कोई भी आदमी
अयो य नह होता, उसको काम म लेने वाले (मैनेजर) ही लभ ह।
शु ाचाय एक रह यमयी ऋ ष ह। उनके बारे म लोग सफ इतना ही जानते ह क वे असुर के गु थे। ले कन हम आपको बताएंगे उनके बारे म कुछ
अ य तरह क रह यमी बात जो शायद ही आप जानते ह गे। शु ाचाय के संबंध म काशी खंड महाभारत, पुराण आ द ंथ म अनेक कथाएं व णत है।
दे वता के अ धप त इ , गु बृह प त और व णु परम ई ह। सरी ओर दै य के अ धप त हर या और हर यक यप के बाद वरोचन बने जनके
गु शु ाचाय और शव परम ई ह। एक ओर जहां दे वता के भवन, अ आ द के नमाणकता व वकमा थे तो सरी ओर असुर के मयदानव। इ
के ाता ी व णदे व दे वता और असुर दोन को य ह।
असुर म कई महान शव भ असुर ए ह। शु ाचाय उनम से एक थे। आओ उनके बारे म जानते ह दस रह य...
पहला रह य.... ऋ ष भुगु के पु थे शु ाचाय :मह ष भृगु के पु और भ ह लद के भानजे शु ाचाय। मह ष भृगु क पहली प नी का नाम या त
था, जो उनके भाई द क क या थी। या त से भृगु को दो पु दाता और वधाता मले और एक बेट ल मी का ज म आ। ल मी का ववाह उ ह ने
भगवान व णु से कर दया था। भृगु के और भी पु थे जैसे उशना, यवन आ द। माना जाता है क उशना ही आगे चलकर शु ाचाय कहलाए। एक अ य
मा यता अनुसार वे भृगु ऋ ष तथा हर यक शपु क पु ी द ा के पु थे।
म य पुराण के अनुसार शु ाचाय का वण ेत है। इनका वाहन रथ है, उसम अ न के समान आठ घोड़े जुते रहते ह। रथ पर वजाएं फहराती रहती ह।
इनका आयुध द ड है। शु वृष और तुला रा श के वामी ह तथा इनक महादशा 20 वष क होती है।
सरा रह य.. शु नी त के वतक :शु ाचाय महान ानी के साथ-साथ एक अ छे नी तकार भी थे। शु ाचाय क कही गई नी तयां आज भी ब त
मह व रखती ह। आचाय शु ाचाय शु नी त शा के वतक थे। इनक शु नी त अब भी लोक म मह वपूण मानी जाती है।
शु ाचाय क क या का नाम दे वयानी तथा पु का नाम शंद और अमक था। इनके पु शंद और अमक हर यक शपु के यहां नी तशा का अ यापन
ु ंशी ऋ षय ारा र चत अनेक मं का वणन मलता है जसम वेन, सोमा त, यूमर म, भागव, आ व आ द का नाम आता है।
करते थे। ऋ वेद म भृगव
तीसरा रह य... माता या त :कहा जाता है क दै य के साथ हो रहे दे वासुर सं ाम म मह ष भृगु क प नी या त, जो योगश संप तेज वी म हला
थ , दै य क सेना के मृतक सै नक को जी वत कर दे ती थ जससे नाराज होकर ीह र व णु ने शु ाचाय क माता व भृगज ु ी क प नी या त का सर
अपने सुदशन च से काट दया।
ज बू प के इलावत (र शया) े म 12 बार दे वासुर सं ाम आ। अं तम बार हर यक शपु के पु हलाद के पौ और वरोचन के पु राजा ब ल के
साथ इं का यु आ और दे वता हार गए तब संपूण ज बू प पर असुर का राज हो गया। इस ज बू प के बीच के थान म था इलावत रा य। हालां क
कुछ लोग मानते ह क अं तम बार संभवत: श बासुर के साथ यु आ था जसम राजा दशरथ ने भी भाग लया था।
चौथा रह य... शु ाचाय को याद थी मृत को जदा करने क व ा :इस व ा के अ व कार भगवान शंकर थे। ात हो क गणेशजी का सर काट कर
हाथी का सर लगा कर शव ने गणेश को पुनः जी वत कर दया था। भगवान शंकर ने ही द जाप त का शरो छे दन कर वध कर दया था और पुनः
अज (बकरे) का सर लगा कर उ ह जीवन दान दे दया।
इस व ा ारा मृत शरीर को भी जी वत कया जा सकता है। यह व ा असुर के गु शु ाचाय को याद थी। शु ाचाय इस व ा के मा यम से यु म
आहत सै नक को व थ कर दे ते थे और मृतक को तुरंत पुनज वत कर दे ते थे। शु ाचाय ने र बीज नामक रा स को महामृ युज
ं य स दान कर
यु भू म म र क बूंद से संपूण दे ह क उ प कराई थी।
कहते ह क महामृ युंजय मं के स होने से भी यह संभव होता है। मह ष व श , माकडेय और गु ोणाचाय महामृ युंजय मं के साधक और
योगकता थे। संजीवनी नामक एक जड़ी बूट भी मलती है जसके योग से मृतक फर से जी उठता है।
म य पुराण अनुसार शु ाचाय ने आरंभ म अं गरस ऋ ष का श य व हण कया कतु जब वे (अं गरस) अपने पु बृह प त के त प पात दखाने
लगे तब इ ह ने अं गरस का आ म छोड़कर गौतम ऋ ष का श य व हण कया। गौतम ऋ ष क सलाह पर ही शु ाचाय ने शंकर क आराधना कर
मृतसंजीवनी व ा ा त क जसके बल पर दे वासुर सं ाम म असुर अनेक बार जीते।
पांचवां रह य... एका ता नाम :माना जाता है क एक समय जब व णु अवतार व म वामन ने ा ण बनकर राजा बा ल से तीन पग धरती दान म
मांगी तो उस व शु ाचाय ब ल को सचेत करने के उ े य से जलपा क ट ट म बैठ गए। जल म कोई ाघात समझ कर उसे स क से खोदकर
नकालने के य न म इनक आंख फूट गई। फर आजीवन वे काने ही बने रहे। तब से इनका नाम एका ता का ोतक हो गया।
दरअसल भगवान व णु ने वामनावतार म जब राजा ब ल से तीन पग भू म मांगी तब शु ाचाय सू म प म ब ल के कमंडल म जाकर बैठ गए, जससे
क पानी बाहर न आए और ब ल भू म दान का संक प न ले सक। तब वामन भगवान ने ब ल के कमंडल म एक तनका डाला, जससे शु ाचाय क एक
आंख फूट गई। इस लए इ ह एका यानी एक आंख वाला भी कहा जाता है।
छठा रह य... शव ने नगल लया था शु ाचाय को :गौतम ऋ ष क सलाह पर ही शु ाचाय ने शंकर क आराधना कर मृतसंजीवनी व ा ा त क
जसके बल पर दे वासुर सं ाम म असुर अनेक बार जीते।
मृत संजीवनी व ा के कारण दानव क सं या बढ़ती गई और दे वता असहाय हो गए। ऐसे म उ ह ने भगवान शंकर क शरण ली। शु ाचाय ार मृत
संजीवीनी का अनु चत योग करने के कारण भगवान शंकर को ब त ोध आया। ोधावश उ ह ने शु ाचाय को पकड़कर नगल लया। इसके बाद
शु ाचाय शवजी क दे ह से शु ल कां त के प म बाहर आए और अपने पूण व प को ा त कया। तब उ ह ने यवृत क पु ी ऊज वती से ववाह
कर अपना नया जीवन शु कया। उससे उन को चार पु ए।
सातवां रह य.. शु ाचाय क पु ी क स कहानी :इ वाकु वंश के राजा न ष के छः पु थे- या त, यया त, सया त, अया त, वया त तथा कृ त। या त
परम ानी थे तथा रा य, ल मी आ द से वर रहते थे इस लए राजा न ष ने अपने तीय पु यया त का रा य भषके कर दया।
एक बार क बात है क दै यराज वृषपवा क पु ी श म ा और गु शु ाचाय क पु ी दे वयानी अपनी स खय के साथ अपने उ ान म घूम रही थी।
श म ा अ त सु दर राजपु ी थी, तो दे वयानी असुर के महा गु शु ाचाय क पु ी थी। दोन एक सरे से सुंदरता के मामले म कम नह थी। वे सब क
सब उस उ ान के एक जलाशय म, अपने व उतार कर नान करने लग ।
उसी समय भगवान शंकर पावती के साथ उधर से नकले। भगवान शंकर को आते दे ख वे सभी क याएं ल जावश से बाहर नकलकर दौड़कर अपने-
अपने व पहनने लग । शी ता म श म ा ने भूलवश दे वयानी के व पहन लए। इस पर दे वयानी अ त ो धत होकर श म ा से बोली, 'रे श म ा! एक
असुर पु ी होकर तूने ा ण क या का व धारण करने का साहस कैसे कया? तूने मेरे व धारण करके मेरा अपमान कया है।'
दे वयानी के अपश द को सुनकर श म ा अपने अपमान से तल मला गई और दे वयानी के व छ न कर उसे एक कुएं म धकेल दया। दे वयानी को कुएं
म धकेल कर श म ा के चले जाने के प ात् राजा यया त आखेट करते ए वहां पर आ प ंचे और अपनी यास बुझाने के लए वे कुएं के नकट गए तभी
उ ह ने उस कुएं म व हीन दे वयानी को दे खा।
ज द से उ ह ने दे वयानी क दे ह को ढं कने के लए अपने व दए और उसको कुएं से बाहर नकाला। इस पर दे वयानी ने ेमपूवक राजा यया त से
कहा, 'हे आय! आपने मेरा हाथ पकड़ा है अतः म आपको अपने प त प म वीकार करती ं। हे य े ! य प म ा ण पु ी ं क तु बृह प त के
पु कच के शाप के कारण मेरा ववाह ा ण कुमार के साथ नह हो सकता। इस लए आप मुझे अपने ार ध का भोग समझ कर वीकार क जए।'
यया त ने स होकर दे वयानी के इस ताव को वीकार कर लया।
दे वयानी वहां से अपने पता शु ाचाय के पास आई तथा उनसे सम त वृ ांत कहा। श म ा के कए ए कम पर शु ाचाय को अ य त ोध आया और
वे दै य से वमुख हो गए। इस पर दै यराज वृषपवा अपने गु दे व के पास आकर अनेक कार से मान-मनो वल करने लगे।
बड़ी मु कल से शु ाचाय का ोध शा त आ और वे बोले, 'हे दै यराज! म आपसे कसी कार से नह ं क तु मेरी पु ी दे वयानी अ य त है।
य द तुम उसे स कर सको तो म पुनः तु हारा साथ दे ने लगूंगा।'
वृषपवा ने दे वयानी को स करने के लए उससे कहा, 'हे पु ी! तुम जो कुछ भी मांगोगी म तु ह वह दान क ं गा।' दे वयानी बोली, 'हे दै यराज! मुझे
आपक पु ी श म ा दासी के प म चा हए।' अपने प रवार पर आए संकट को टालने के लए श म ा ने दे वयानी क दासी बनना वीकार कर लया।
शु ाचाय ने अपनी पु ी दे वयानी का ववाह राजा यया त के साथ कर दया। श म ा भी दे वयानी के साथ उसक दासी के प म यया त के भवन म आ
गई। दे वयानी के पु वती होने पर श म ा ने भी पु क कामना से राजा यया त से णय नवेदन कया जसे यया त ने वीकार कर लया। राजा यया त
के दे वयानी से दो पु य तथा तुवसु और श म ा से तीन पु , अनु तथा पु ए।
बाद म जब दे वयानी को यया त तथा श म ा के संबंध के वषय म पता चला तो वह ो धत होकर अपने पता के पास चली गई। शु ाचाय ने राजा
यया त को बुलवाकर कहा, 'रे यया त! तू ी ल पट है। इस लए म तुझे शाप दे ता ं तुझे त काल वृ ाव था ा त हो।'
उनके शाप से भयभीत हो राजा यया त गड़ गड़ाते ए बोले, 'हे दै य गु ! आपक पु ी के साथ वषय भोग करते ए अभी मेरी तृ त नह ई है। इस
शाप के कारण तो आपक पु ी का भी अ हत है।' तब कुछ वचार कर के शु चाय जी ने कहा, 'अ छा! य द कोई तुझे स तापूवक अपनी यौवनाव था
दे तो तुम उसके साथ अपनी वृ ाव था को बदल सकते हो।'
इसके प ात् राजा यया त ने अपने ये पु से कहा, 'व स य ! तुम अपने नाना के ारा द गई मेरी इस वृ ाव था को लेकर अपनी युवाव था मुझे दे
दो।' इस पर य बोला, 'हे पताजी! असमय म आई वृ ाव था को लेकर म जी वत नह रहना चाहता। इस लये म आपक वृ ाव था को नह ले सकता।'
यया त ने अपने शेष पु से भी इसी कार क मांग क , ले कन सभी ने क ी काट ली। ले कन सबसे छोटे पु पु ने पता क मांग को वीकार कर
लया।
पुनः युवा हो जाने पर राजा यया त ने य से कहा, 'तूने ये पु होकर भी अपने पता के त अपने कत को पूण नह कया। अतः म तुझे
रा या धकार से वं चत करके अपना रा य पु को दे ता ं। म तुझे शाप भी दे ता ं क तेरा वंश सदै व राजवं शय के ारा ब ह कृत रहेगा।'
आठवां रह य... संगीत और क व थे शु ाचाय :शु ाचाय को े संगीत और क व होने का भी गौरव ा त है। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋ ष
के क व नाम के पु भी ए जो काला तर म शु ाचाय नाम से स ए। महाभारत के अनुसार शु ाचाय औष धय , म तथा रस के भी ाता ह।
इनक साम य अ त है। इ ह ने अपनी सम त स प अपने श य असुर को दे द और वयं तप वी-जीवन ही वीकार कया।
नौवां रह य... शु ाचाय का शु ाचाय नाम कैसे पड़ा :क व या भागव के नाम से स शु ाचाय का शु नाम कैसे पड़ा इस संबंध म वामन पुराण म
व तार से उ लेख मलता है।
कथा अनुसार जब शु ाचाय को शंकर भगवान नगल जाते ह तब शंकरजी के उदर म जाकर क व (शु ाचाय) ने शंकर भगनान क तु त ारंभ कर द
जससे स हो कर शव ने उन को बाहर नकलने क अनुम त दे द । जब वे एक द वष तक महादे व के उदर म ही वचरते रहे ले कन कोई छोर न
मलने पर वे पुनः शव तु त करने लगे। तब भगवान शंकर ने हंस कर कहा क मेरे उदर म होने के कारण तुम मेरे पु हो गए हो अतः मेरे श से बाहर
आ जाओ। आज से सम त चराचर जगत म तुम शु के नाम से ही जाने जाओगे। शु व पाकर भागव भगवान शंकर के श से नकल आए। तब से
क व शु ाचाय के नाम से व यात ए।
दसवां रह य... या शु ाचाय अरब चले गए थे? :इस बात म कतनी सचाई है यह हम नह जानते। शु ाचाय को ाचीन अरब के धम और सं कृ त का
वतक माना जाता है हालां क इस पर ववाद है। कुछ व ान का मानना है क अरब को पहले पाताल लोक क सं ा द गई थी। गुजरात के समु के
उस पार पाताल लोक होने क कथा पुराण म मलती है।
गुजरात के समु तट पर थत बेट ारका से 4 मील क री पर मकर वज के साथ म हनुमानजी क मू त था पत है। अ हरावण ने भगवान ीराम-
ल मण को इसी थान पर छपाकर रखा था। जब हनुमानजी ीराम-ल मण को लेने के लए आए, तब उनका मकर वज के साथ घोर यु आ। अंत म
हनुमानजी ने उसे परा त कर उसी क पूंछ से उसे बांध दया। उनक मृ त म यह मू त था पत है। मकर वज हनुमानजी का पु था।
माना जाता है क जब राजा ब ल को पाताल लोक का राज बना दया गया था तब शु ाचाय भी उनके साथ चले गए थे। सरी मा यता अनुसार दै यराज
ब ल ने शु ाचाय का कहना न माना तो वे उसे याग कर अपने पौ औव के पास अरब म आ गए और दस वष तक वहां रहे।
शु ाचाय के पौ का नाम औव/अव या हब था, जसका अप श ं होते होते अरब हो गया। अरब दे श का मह ष भृगु के पु शु ाचाय तथा उनके पौ
औव से ऐ तहा सक संबंध के बारे म ' ह ऑफ प शया' म उ लेख मलता है जसके लेखक साइ स ह।

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