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िवषय-सूची

1- गौरवशाली इितहास
2- भागाँ वाला भगत
3- डी-ए-वी- म कायाक प
4- गोली खाएँ गे नहीं, मारगे
5- गरम दल की ओर
6- क् रां ित के बीज
7- गृ ह- याग
8- छद्म वे श
9- घर वापसी
10- आ माहुित का प्रण
11- काकोरी कांड
12- साइमन कमीशन
13- असबली म बम
14- इनकलाब िजं दाबाद
15- सरफरोशी की तम ना
16- मृ यु दं ड
17- मु ते -खाक
18- बिलदान
19- शहीद की िचताओं पर
20- कुछ सं मरण
21- भगतिसं ह ने कहा था

साभार
अ याय 1
गौरवशाली इितहास
पं जाब-पाँच पावन निदय के िकनारे बसा भारत का सबसे समृ प्रांत। वह प्रांत, जहाँ
की उपजाऊ भूिम िविभ न प्रकार के अ न को पै दा कर भारतवष के अिधकां श
िनवािसय का भरण-पोषण करती है । हरी-भरी लहराती फसल से यु त खे त; कल-कल
बहती निदय का मीठा पानी; रं ग-िबरं गे धोती-कुरते के साथ तु र वाली पगड़ी की
पारं पिरक वे शभूषा पहने लं बे-चौड़े बिल ठ यु वक; चु नरी की ओट से लजातीं-शरमातीं
यु वितयाँ प्रेम, सं तोष, धै य, सं यम, याग, वािभमान एवं समृ दि् ध का सं देश दे ती हुई
पं जाबी स यता और सं कृित-य िप इन बात से पं जाब का वा तिवक व प प्रकट
होता है , परं तु पं जाब की पहचान केवल इ हीं िगनी-चु नी व तु ओं तक सीिमत नहीं है ।
इसकी पहचान म उन वीर का अगाध शौय भी सि मिलत है , जो भारतीय स यता और
सं कृित की र ा के िलए हजार वषों से प्रय नशील रहे ह। इसकी िमट् टी से आने वाली
स धी-स धी खु शबू म उन दे शभ त के खून की खु शबू भी िमली हुई है , िज ह ने दे श पर
अपना सव व योछावर कर िदया।
इस प्रांत की आबोहवा ने यहाँ के िनवािसय को वीरता और बिलदान का गु ण िवरासत म
िदया है । चाहे बात मु गलकाल की हो, वतं तर् ता सं गर् ाम की हो या िफर बँ टवारे की-हर
बार अि त व की लड़ाई म इस प्रांत का मह वपूण योगदान रहा है । कहते ह िक
वतं तर् ता सं गर् ाम म सबसे अिधक क् रां ितकारी इस धरती की कोख से जनमे थे । ि थित
यह थी िक हर घर का कोई-न-कोई पु ष क् रां ित की अि न म धधकने को उ त था। यहाँ
की वीरां गनाओं ने अपने सु ख एवं खु िशय का दमन करते हुए पु त्र, पितय और भाइय
को दे श पर कुबान होने के िलए अिपत कर िदया। इन क् रां ितकािरय म न तो जीवन के
िलए उ साह था और न ही सु ख की आकां ा। उनके मन म केवल एक ही चाह थी,
जीवन का एक ही ल य था-‘भारत माता को गु लामी की बे िड़य से आजाद करवाना’।
उनके मु ख से केवल यही िनकलता था-

"िसर पर बाँ धे ह कफन, हाथ म मौत का परवाना है ।


िजं दा रहना ल य नहीं, माँ को आजाद करवाना है ।"
पािरवािरक पृ ठभूिम
यिद इितहास का गहन अ ययन िकया जाए तो यह बात प ट हो जाती है िक
वतं तर् ता-पूव पं जाब का अिधकां श भाग सु दरू िसं ध प्रांत तक फैला हुआ था। िवभाजन
के उपरांत यह े तर् पािक तान की सीमा म चला गया। इसी पं जाब के लायलपु र िजले म
‘बं गा’ नामक एक छोटा सा गाँ व था। यह गाँ व खालसा सरदार से सं बंिधत था। इनका
इितहास बड़ा ही शौय-यु त और गौरवशाली था। इनके पूवज महाराजा रणजीत िसं ह के
दरबार म ‘खालसा सरदार’ के नाम से प्रिस थे । उनकी सहायता से ही महाराजा
रणजीत िसं ह ने िसख साम्रा य का िव तार िकया। इस दौरान उ ह ने अने क रा य के
साथ-साथ शि तशाली पठान को भी धूल चटाई। इतना ही नहीं, अं गर् े ज के िव भी
उ ह ने वीरता और शौय का अद्भुत उदाहरण प्र तु त िकया था। अं गर् े ज की कुदृि ट
आरं भ से ही धन-धा य से पिरपूण पं जाब पर थी। वे उसे हड़पना चाहते थे । परं तु िस ख
के बढ़ते प्रभाव से भी वे भली-भाँ ित पिरिचत थे , अतः वे अवसर की प्रती ा कर रहे थे ।
पठान से यु के बाद िस ख को कमजोर समझकर अं ततः उ ह ने पं जाब पर आक् रमण
कर िदया। ले िकन िस ख की शि त का गलत आकलन करके उ ह ने भारी भूल की थी।
िस ख के रहते पं जाब को जीतना अं गर् े ज के िलए असं भव था। महाराजा रणजीत िसं ह
के ने तृ व म खालसा सरदार ने अं गर् े ज को नाक चने चबाने के िलए िववश कर िदया
था।
सरदार अजु निसं ह इ हीं महान् खालसा सरदार के वं शज थे । वे पिरवार सिहत बं गा गाँ व
म रहते थे । सरदार अजु निसं ह-जै सािक उनके खून म शािमल था-क् रां ितकारी िवचार से
ओत-प्रोत और वतं तर् िचं तन के प धर थे । दे शभि त और वीरता का गु ण उ ह
िवरासत म िमला था। यही कारण था िक वे िनडर होकर समाज म या त सड़ी-गली
पु रानी मा यताओं और कुरीितय का िवरोध करते थे । उनका कहना था िक "सं सार म
मनु य की पहचान उसकी धािमक, सामािजक या आिथक ि थित से नहीं, अिपतु उसके
स कमों और गु ण से होनी चािहए। मानवता ही आपसी प्रेम, ने ह और सौहादपूण
यवहार को उ प न करती है । इसिलए मनु य को केवल इसी का अनु सरण करना
चािहए।" इ हीं प्रगितवादी िवचार के कारण अ य लोग के बीच उनकी िव ा की
धाक जम गई थी।
सरदार अजु निसं ह मु यतः खे ती-बाड़ी करके पिरवार का भरण-पोषण करते थे । समय
बचने पर छोटे -मोटे रोग का उपचार करना भी उनकी िदनचया म सि मिलत था। उनका
िववाह जयकौर के साथ हुआ, जो वािभमानी, सहनशील, प्रगितशील िवचार तथा
दे शभि त से ओत-प्रोत मिहला थीं। पित की भाँ ित उनम भी रा ट् र के िलए सव व
योछावर करने की भावना कू ट-कू टकर भरी हुई थी। इस प्रकार दोन पित-प नी एक-
दस ू रे के पूरक बनकर रा ट् र-से वा म लीन थे ।
िववाह के बाद जयकौर ने तीन पु त्र-सरदार िकशनिसं ह, सरदार अजीतिसं ह और सरदार
वणिसं ह को ज म िदया। यह ई वरीय वरदान ही था िक तीन बालक म िपता के
सद्गुण का यथोिचत समावे श था। िनभीकता, प टवािदता, मानवता और दे शभि त
उ ह िवरासत म िमली थी। आिखरकार िसं ह के पु त्र िसं ह ही हो सकते थे ।

जट िसख से आयसमाजी
य िप त कालीन समाज से अने क कुरीितयाँ िवदा ले चु की थीं, ले िकन िफर भी ऐसी
अने क सामािजक मा यताएँ एवं रीित-िरवाज प्रचिलत थे , िजनसे समाज का प्र ये क
वग त्र त था। ऐसे समय म वामी दयानं द सर वती ने समाज-उ थान के उ े य से
‘आयसमाज’ की थापना की। प्राचीनकाल से प्रचिलत सामािजक बु राइय को समा त
कर समाज को उनसे उबारना ही इसका ल य था। समाज-सु धार का समथन करने वाले
सरदार अजु निसं ह आरं भ से ही ‘आयसमाज’ की नीितय एवं कायों से अ यं त प्रभािवत
थे । वे इसके िवषय म सं पण
ू जानकारी एकित्रत करने लगे । इसी बीच उनकी भट वामी
दयानं द सर वती से हुई। उनके प्रगितवादी िवचार ने अजु निसं ह पर गहरा असर डाला
और उ ह ने आयसमाजी बनने का िनणय ले िलया।
एक जट िसख ने आयसमाजी बनने का िन चय िकया था- िढ़वादी समाज के पोषक को
यह बात भला कैसे वीकार हो सकती थी। उ ह ने इसका पु रजोर िवरोध िकया।
अजु निसं ह पर उनके समु दाय ारा दबाव डाला गया। यहाँ तक िक उनके सामािजक
बिह कार की धमकी दी गई। ले िकन एक स चा िस ख जो िन चय कर ले ता है , वह प थर
की लकीर हो जाता है । िफर भला अजु निसं ह पीछे कहाँ हटने वाले थे ! समाज के िवरोध ने
उनके िनणय को कमजोर करने की अपे ा दृढ़ता ही प्रदान की। उ ह ने पिरि थितय का
सामना करने के िलए कमर कस ली। उनकी इस दृढ़ता ने वामी दयानं द सर वती को भी
अ यं त प्रभािवत िकया। यही कारण था िक उ ह ने वयं इस िवद्रोही का जने ऊ सं कार
कर दी ा प्रदान की।
इस प्रकार सरदार अजु निसं ह कट् टर आयसमाजी हो गए। उ ह ने आयसमाज का सारा
उपल ध सािह य पढ़ डाला। इतना ही नहीं, अब वे इस सं दभ म या यान भी दे ने लगे
थे । उनके भाषण इतने सारगिभत और मम पशी होते थे िक श्रोतागण सहज ही उनकी
ओर आकिषत हो जाते थे ।

भाइयों का िवरोध
उन िदन िब्रिटश सरकार के प्रित वफादारी िदखाने तथा जी-हुजूरी करके सामािजक एवं
आिथक लाभ उठाने की परं परा चल पड़ी थी। चापलूस की यह फौज शासन चलाने म न
केवल सरकार की मदद करती थी, बि क क् रां ितकारी एवं िवरोधी गितिविधय की
जानकारी भी उपल ध करवाती थी। अं गर् े ज अिधकारी भी ऐसे चापलूस की हरसं भव
सहायता करके उनका वयं के िलए प्रयोग करते थे । यिद प ट श द म कहा जाए तो
िब्रिटश सरकार की फू ट डालने वाली नीित के चलते सगे भाई भी पर पर शत् हो गए
थे । उनका एकमात्र ये य िब्रिटश सरकार के िनकटतम सहयोगी बनकर लाभ प्रा त
करना था। इसके िलए वे िकसी का भी अिहत करने या अपने सगे -सं बंिधय का िवरोध
करने से भी पीछे नहीं हटते थे । अजु निसं ह के दोन भाई-सरदार बहादुरिसं ह और िदलबाग
िसं ह-इसके सटीक उदाहरण थे । जहाँ एक ओर अजु निसं ह सरकार की नीितय के कट् टर
िवरोधी थे , वहीं दसू री ओर उनके भाई िब्रिटश सरकार के समथक थे । उनकी दृि ट म
सरकार का िवरोध करना सबसे बड़ी मूखता थी। चापलूसी और जी-हुजूरी के बल पर कुछ
ही िदन म उ ह ने अतु य धन कमा िलया। उनकी िगनती धनी लोग म होने लगी।
आयसमाजी बनने के बाद अजु निसं ह िब्रिटश सरकार की अनु िचत नीितय का खु लकर
िवरोध करने लगे । उनकी यह सरकार-िवरोधी िवचारधारा बहादुर िसं ह और िदलबाग िसं ह
को फू टी आँ ख नहीं सु हाती थी। अतः एक िदन उ ह ने अजु निसं ह को समझाते हुए कहा,
"अजु न, सरकार का िवरोध करना तु म जै से पिरवारवाल को शोभा नहीं दे ता। तु हारी
प नी है , तीन ब चे ह। उनकी िचं ता छोड़कर तु म य इधर-उधर भटक रहे हो? यिद
िकसी िदन सरकार ने स त कारवाई कर दी तो जमीन और घर से हाथ धोना पड़ जाएगा।
अ छा यही है िक अं गर् े ज अिधकािरय की -पा प्रा त करो और अपने ब च का भिव य
उ वल बनाओ।"
अजु निसं ह शां ितपूवक भाइय की बात सु न रहे थे । सहसा वे गं भीर होकर बोले , "भाई
साहब, मे री नस म स चे खालसा सरदार का खून दौड़ रहा है । यह िसर वाहे गु के आगे
झुक सकता है , परं तु िब्रिटश सरकार के सामने कभी नहीं झुक सकता। अगर इसके झुकने
की ि थित आ गई तो म िसर कटवाना यादा पसं द क ँ गा। आप लोग मे री और मे रे
पिरवार की िचं ता मत कीिजए। उनके नसीब म जो िलखा है , वही होगा। म अपने या
अपने पिरवार के लाभ के िलए अनु िचत का साथ कदािप नहीं दे सकता।"
"अजु न, एक बार िफर सोच ले । यह समय ज बात से नहीं, िदमाग से काम ले ने का है ।
तु हारी यह यथ की िजद तु ह कहीं का नहीं छोड़े गी। अभी भी मान जा और हमारे साथ
िमलकर जीवन के सारे सु ख भोग। बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता। इसिलए अभी
से अपने भिव य को सँ वार ले ।" बहादुर िसं ह ने आिखरी बार समझाने का प्रयास िकया।
"सरदार अपना िनणय बार-बार नहीं बदलते और म अपना िनणय सु ना चु का हँ ।ू गु लामी
की मीठी रोटी खाने के बजाय भारत माता की से वा करते हुए भूखे रहना मु झे मं जरू है ।
इसके िलए म बड़े -से -बड़ा बिलदान दे ने से भी पीछे नहीं हटूँ गा, िफर चाहे वह मे रा
पिरवार ही य न हो।" यह कहकर अजु न िसं ह ते ज कदम से बाहर की ओर िनकल गए।
"मने इससे बड़ा मूख और िज ी नहीं दे खा। इसे समझाना बे कार है । यह अपने पिरवार का
सवनाश करके ही माने गा।" िदलबाग ने धीरे से कहा।
"हमारी बात न मानने पर एक िदन इसे पछतावा ज र होगा। दे खते ह, कब तक इसका
यह जोश कायम रहता है ।" बहादुर िसं ह ने कटु ता से कहा।
मूख और िज ी-शायद मातृ भिू म के िलए सव व योछावर को उ त मतवाले
क् रां ितकािरय के िलए यही सवो म स मान था।
सरदार अजु न िसं ह ने जो कहा था, उस पर वे जीवन भर अिडग रहे । उ ह ने अपना सं पण ू
जीवन मातृ भिू म के चरण म समिपत कर िदया। त कालीन समाज म उनकी तु लना उस
िसं ह से की जाती थी, जो भूखा तो रह सकता था, ले िकन गु लामी की बे िड़याँ उसे वीकाय
नहीं थीं। वे अपने या यान एवं क् रां ितकारी गितिविधय ारा सरकार की अनु िचत एवं
दमनकारी नीितय का पु रजोर िवरोध करते रहे । उनके इस काय म उनकी प नी जयकौर
ने भी भरपूर साथ िदया। उ ह ने अजु न िसं ह के माग को कभी अव नहीं िकया, बि क
सबल बनकर हमे शा कंधे -से -कंधा िमलाकर चलीं। घर का पूरा वातावरण दे शभि त और
क् रां ितकारी िवचारधाराओं से ओत-प्रोत था। यही कारण था िक अजु न िसं ह के तीन
पु त्र भी उ हीं के प्रित प बने ।

सरदार िकशनिसंह
सरदार अजु न िसं ह के सबसे बड़े पु त्र िकशनिसं ह थे । िपता के समान वे भी राजनीितक
जीवन की अपे ा सावजिनक जीवन म अिधक सिक् रय थे । महा मा हं सराज के साथ
उ ह ने अने क सावजिनक कायों म बढ़-चढ़कर िह सा िलया था। रा ट् र-से वा और जन-
से वा-उनके जीवन के ये प्रमु ख उ े य थे । ने ता बनने की अपे ा उ ह से वक बनकर काय
करना अिधक िप्रय था। वष 1898 म िवदभ म भयं कर अकाल पड़ा; लोग भूख से मरने
लगे । वहाँ के लोग ने सहायता की गु हार की। ले िकन सरकार ने उनकी बात सु नी-
अनसु नी कर दी। ऐसे म सरदार िकशनिसं ह अपने सहयोिगय के साथ यथासं भव
सहायता ले कर िवदभ गए। इतना ही नहीं, लौटते समय वे अपने साथ पचास अनाथ
ब च को िफरोजपु र ले आए और उनके रहने के िलए वहाँ एक अनाथालय की थापना
की।
िकशनिसं ह म गजब की दरू दिशता और िकसी को परखने की अद्भुत शि त थी। िकसी के
भी मनोभाव को सहजता से जान-समझ ले ना उ ह भली-भाँ ित आता था। इसी सं दभ म
एक घटना अ यं त उ ले खनीय है । क् रां ितकारी शचींदर् नाथ सा याल और िकशनिसं ह म
अगाध मै तर् ी भाव था। वे यदा-कदा परामश हे तु िकशनिसं ह के पास आते रहते थे । एक
बार शचींदर् नाथ अपने साथ एक यु वक को ले कर आए। उसका नाम िवभूित था। ले िकन
बातचीत के दौरान िकशनिसं ह की पारखी दृि ट ने िवभूित के मनोभाव को जान िलया।
वे शचींदर् नाथ को एक ओर ले गए और उ ह सतक करते हुए बोले , "शचींदर् जी, मे रे
िवचार म िबना जाँच-परख के इसपर िव वास करना ठीक नहीं है । कहीं ऐसा न हो िक हम
मुँ ह की खानी पड़े ।"
शचींदर् नाथ थोड़े िवि मत होकर बोले , "यह आप या कह रहे ह, सरदारजी? यह िपछले
कुछ िदन से लगातार मे रे साथ है । ले िकन अभी तक मने इसके यवहार म कोई भी
सं िद ध बात नहीं दे खी।"
"हो सकता है , आप ठीक कह रहे ह । ले िकन मे रा मन इसपर िव वास करने को नहीं
मानता। इसम मु झे वह जोश और उ साह िदखाई नहीं दे ता, जो िकसी दे शभ त म होना
चािहए। मु झे बार-बार लग रहा है िक एक िदन यह अव य िव वासघात करे गा।" यह
कहकर िकशनिसं ह ने अपनी बात समा त कर दी।
शचींदर् नाथ ने उनकी बात को हँ सी म टाल िदया और वहाँ से चले गए।
कुछ िदन ही बीते थे िक िकशनिसं ह की बात स य हो गई। बनारस षड ंतर् म सरकार ने
क् रां ितकािरय को बं दी बनाकर उन पर मु कदमा चलाया। इसम िवभूित ने सरकारी गवाह
बनकर अपने सािथय के साथ िव वासघात िकया। शचींदर् नाथ बु री तरह से टू ट गए।
िकशनिसं ह का एक-एक वा य उ ह याद आने लगा। ले िकन तब तक बहुत दे र हो चु की
थी। कई क् रां ितकािरय को मृ यु दं ड िमला तो कई लोग को कठोर कारावास की सजा दी
गई। िवभूित के इस िव वासघात का असर गु त प से चलाए जा रहे आं दोलन पर भी
पड़ा। उसने अने क ऐसे रह य उद्घािटत िकए, िजससे सरकार ने अपने िवरोिधय का िसर
कुचल िदया।
सरदार िकशनिसं ह अं गर् े ज के िकतने प्रबल िवरोधी थे , इसका पता इसी बात से चलता
है िक उन पर 42 बार राजनीितक मु कदमे चलाए गए। इतना ही नहीं, उ ह ने अपने
जीवन के लगभग ढाई वष जे ल म यतीत िकए, जबिक दो वष की समयाविध नजरबं द
रहकर िबताई।

िववाह
वष 1898 म िकशनिसं ह का िववाह िसख पिरवार की एक अ यं त सु शील, सु सं कृत और
गु णी यु वती से हुआ। यु वती का नाम था-िव ावती। य िप द ू हा-दुलहन िसख पिरवार
से सं बंिधत थे , तथािप उनका िववाह िवशु आयसमाजी रीितय के अनु प हुआ। दो वष
के उपरांत गौने की र म पूण की गई तथा अने क सपन को सँ जोए िव ावती ससु राल
पहुँचीं।
आँ गन म प्रथम कदम रखते ही िव ावती को घर के क् रां ितकारी और दे शभि त से यु त
वातावरण का ान हो गया। िब्रिटश सरकार की अनीितय और अ याचार को वह
बचपन से ही दे खती-सु नती आई थीं। यही कारण था िक वह भी अं गर् े ज-िवरोधी
भावनाओं से ओत-प्रोत थीं। अ य यु वितय की तरह उ ह ने कभी धनवान् या सुं दर
राजकुमार की क पना नहीं की। उनके सपन का राजकुमार स चा, सीधा, ईमानदार और
दे शभ त था। िकशनिसं ह के प म उनका व न साकार हो उठा। उ ह ने इसे ई वर-कृपा
समझा और जी-जान से ससु राल की से वा म जु ट गई। कहा जाता है िक िव ावती को
चार बार साँप ने काटा था, ले िकन उनका कभी अिहत नहीं हुआ। इस तरह उनके बारे म
प्रिस हो गया िक जहर उनका कुछ नहीं िबगाड़ सकता।

बंग-भंग की त्रासदी
सन् 1857 की सश त्र क् रां ित के बाद से अं गर् े ज के िव िवरोध की एक लहर चल
पड़ी थी। यह िवरोध कुछ थान तक सीिमत न होकर सारे भारत म समान प से या त
था। अब तक भारतीय जनमानस िब्रिटश सरकार की दमनकारी नीितय एवं अ याचार
से पीिड़त होकर असहाय-सा था। ले िकन वतं तर् ता-से नािनय एवं क् रां ितकािरय के
ने तृ व म वह एकजु ट होकर अं गर् े ज के िव उठ खड़ा हुआ। इस महासमर म लगभग
सभी धमों के लोग सि मिलत थे । लोग ने जात-पाँत, छत ू -अछतू , अमीर-गरीब, सा र-
िनर र आिद के भे दभाव को एक ओर रखकर वतं तर् ता-प्राि त के िलए कमर कस ली
थी।
ि थित िदन-प्रितिदन िवकट होती जा रही थी। जन-आं दोलन का यापक होता प
िब्रिटश सरकार की नींद उड़ाने के िलए पया त था। ऐसा लगने लगा था मानो भारत म
िब्रिटश साम्रा य का अं त िनकट आ चु का है । ऐसे म अं गर् े ज अिधकािरय ने कू टनीित
और कुिटलता का आश्रय िलया। चूँिक आं दोलन म अिधकां शतः िहं द ू और मु सिलम-दो
प्रमु ख समु दाय के लोग सि मिलत थे , अतः उ ह ने िहं द-ू मु सलमान म दरार डालकर
उनकी एकता खं िडत करने की योजना बना डाली। उन िदन बं गाल भारत का ऐसा
प्रमु ख रा य था, जो िहं द ू और मु सिलम समु दाय का गढ़ था। अपनी योजना को
कायाि वत करने के िलए उ ह ने बं गाल के िवभाजन का िन चय िकया। उ ह िव वास था
िक इससे िहं द-ू मु सिलम अलग-थलग पड़ जाएँ गे और िफर उनकी कमजोरी का लाभ
उठाकर अं गर् े ज अपनी ि थित पु नः मजबूत कर लगे ।
अं ततः लॉड कजन ने बं गाल का िवभाजन कर िदया। इसे ‘बं ग-भं ग’ के नाम से भी जाना
जाता है ।
बं गाल का िवभाजन एक ऐसा भयं कर आघात था, िजसने दे श के प्र ये क नागिरक के
अं तमन को चोिटल कर िदया था। इससे जन-समु दाय म क् रोध की लहर दौड़ गई। लोग
अं गर् े ज की कुिटलता समझ गए। दे खते -ही-दे खते सं पण
ू भारत म बं ग-भं ग के िव
आं दोलन आरं भ हो गए। अने क जु लूस िनकाले गए, आम सभाएँ की ग , िब्रिटश
साम्रा य के िवरोध म नारे लगाए गए। इसी तरह का एक आं दोलन पं जाब म भी आरं भ
हुआ। इसका ने तृ व लाला लाजपतराय कर रहे थे । वे अपने सहयोिगय एवं साधारण
लोग म ‘पं जाब केसरी’ के नाम से िव यात थे । उनके साथ सरदार अजु न िसं ह के तीन
पु त्र-अजीत िसं ह, िकशनिसं ह और वण िसं ह भी कंधे -से -कंधा िमलाकर क् रां ित की
मशाल प्र विलत कर रहे थे । उनके प्रयास का ही पिरणाम था िक कुछ ही िदन म यह
आं दोलन िफरोजपु र, रावलिपं डी, िसयालकोट, लायलपु र सिहत सं पण ू पं जाब म फैल
गया। उनके ओजपूण भाषण सु नकर बूढ़े यि त भी जोश से भर उठते , नवयु वक आं दोलन
म कू द पड़ते । उ ह ने न केवल िहं दुओं बि क मु सिलम समु दाय का भी आ ान िकया।
िब्रिटश सरकार ने िजस उ े य से बं गाल का िवभाजन िकया था, िहं द-ू मु सिलम एकता ने
उसे पूरी तरह िन फल कर िदया। बं ग-भं ग भी उनकी एकता, प्रेम और भाईचारे म दरार
नहीं डाल सका। इसके िवपरीत वे अिधक िनकट आ गए और पूरी शि त से अं गर् े ज का
िवरोध करने लगे । अं ततः सरकार ने सभी नीितय को एक ओर रखकर दमन का सहारा
िलया। अने क कानून को लागू करके आं दोलन से जु ड़े कायों को प्रितबं िधत कर िदया
गया। ि थित इतनी िबगड़ गई िक शां ितपूवक िकए जाने वाले प्रदशन का भी सं घ ारा
दमन िकया गया।
इसी बीच 1818 के रे गु ले शन-3 को वष 1907 म लागू िकया गया। सरकार को मानो
‘ब्र ा त्र’ िमल गया। दे खते -ही-दे खते दे श भर के अने क प्रमु ख क् रां ितकारी ने ताओं
को बं दी बनाकर िबना मु कदमा चलाए जे ल म डाल िदया गया। इनम अजीत िसं ह भी
सि मिलत थे । वे लाला लाजपतराय के साथ बमा की मांडले जे ल म बं द थे ।

‘नाम करे गा रोशन’


अजीत िसं ह के बाद आं दोलन की कमान िकशनिसं ह और वण िसं ह ने सँ भाल ली। वे
सभाओं को सं बोिधत करते हुए दे शभि त एवं जोश से पिरपूण भाषण दे ने लगे । उ ह ने
सरकार की कानूनी कारवाई और नीितय से सं बंिधत अने क ऐसे मह वपूण प्र न उठाए,
िजनका उ र दे ना सरकार के िलए गले की फाँस बन गया। अजीत िसं ह को बं दी बनाकर
सरकार पं जाब-आं दोलन की समाि त की बात सोच रही थी; परं तु िकशनिसं ह और वण
िसं ह ने इस िवषय पर उ ह पु नः सोचने पर िववश कर िदया। अं ततः दोन भाइय को भी
बं दी बना िलया गया। जे ल म उ ह एक ही कोठरी म रखा गया था।
िजन िदन उ ह बं दी बनाया गया उन िदन िव ावती गभवती थीं। जे ल की िदनचया म
थोड़ी सी फुरसत िमलते ही दोन भाई अकसर आने वाले ब चे के बारे म बात िकया करते
थे । इसी तरह एक िदन वण िसं ह ने बड़े भाई िकशनिसं ह को छे ड़ते हुए कहा, "भाई
साहब, आपके िवचार म मे रा भतीजा होगा या भतीजी?"
" वणा, मु झे तु हारी भाभी जै सी एक यारी-सी और गु णी बे टी चािहए। एक ऐसी बे टी,
जो हमारे घर के साथ-साथ पराए घर को भी खु िशय से भर दे ; िजसकी परविरश और
क यादान कर म जीवन के सभी ऋण से मु त हो जाऊँगा। ले िकन दे श को ऐसे यु वक की
भी ज रत है , जो समय आने पर अपना िसर कटवाने से भी पीछे न हटे ; िजसके साहस,
वीरता और िनडरता से िब्रिटश सरकार की नींद उड़ जाए; जो लोग म क् रां ित की लौ
जला सके। दे श की ज रत मे री इ छा से अिधक मह वपूण है । इसिलए मु झे िव वास
है िक तु हारा भतीजा ही होगा। वह दुिनया भर म हमारा और हमारे कुल का नाम रोशन
करे गा।"
अ याय 2
भागाँवाला भगत
27 िसतं बर, 1907; िदन शिनवार; पं जाब के लायलपु र िजले का बं गा गाँ व;
प्रातः लगभग 9 बजे । बं द कमरे म दद से छटपटाती िव ावती का क् रं दन गूँज रहा था।
पास बै ठी सास जयकौर माथे को सहलाते हुए उ ह धीरज बँ धा रही थीं। दाई ते जी से
अपने काम म य त थी। कमरे के बाहर सरदार अजु न िसं ह बड़ी बे चैनी से इधर-उधर
टहलते हुए िकसी शु भ समाचार की प्रती ा कर रहे थे । बु दबु दाते ह ठ से ‘वाहे गु ’ का
जाप करते हुए कभी-कभी वे बं द दरवाजे की ओर दे ख ले ते।
तभी नवजात िशशु की िकलकािरय से आँ गन गूँज उठा। अजु न िसं ह ने शां ित की साँस
ली और हाथ उठाकर वाहे गु का शु िक् रया अदा िकया।
थोड़ी दे र बाद दरवाजा खु ला और दाई ने खु शखबरी दी, "बधाई हो, सरदार साहब! पोता
हुआ है ।"
सूय की त त िकरण से चे हरा जगमगा उठा; बूढ़ी िहं य म जै से जवानी की लहर दौड़
गई। सरदार अजु निसं ह पु नः उस समय म लौट आए, जब उनके घर िकशनिसं ह का ज म
हुआ था। वे हँ सते हुए दाई से बोले , "यह मे रा पोता नहीं बि क मे रा पु नज म है । मु झे
िव वास है िक मे रा यह जीवन पूरी तरह से दे शसे वा म समिपत होगा।"
कुछ ही दे र म बधाई दे नेवाल से पूरा आँ गन भर गया।

नामकरण
कहते ह िक िकसी पु या मा के आगमन से अशु भता भी धीरे -धीरे ीण होकर शु भता म
पिरवितत होने लगती है । ऐसा ही सरदार अजु निसं ह के साथ भी हुआ। िजस समय
नवजात िशशु के दन से उनका आँ गन गूँज रहा था, उस समय उनके पु त्र दे शभि त का
ज बा िलये कठोर कारावास की सजा भोग रहे थे । िकशनिसं ह, अजीतिसं ह, वणिसं ह-
तीन भाई िशव के ित्रशूल की भाँ ित िब्रिटश सरकार पर िनरं तर आघात कर रहे थे । वे
सरकार की आँ ख की िकरिकरी बन चु के थे । इसिलए उनसे छुटकारा पाने के िलए िबना
मु कदमा चलाए ही उ ह कारावास म डाल िदया था। य िप वकील सरकार के िव
उनके प को अदालत म रख चु के थे , तथािप जे ल से िरहा होना असं भव प्रतीत हो रहा
था।
ऐसे म िशशु का आगमन पिरवार के िलए शु भ िस हुआ। वकील की मे हनत रं ग लाई;
सरकार को झुकना पड़ा। िशशु -ज म के तीसरे िदन ही िकशनिसं ह एवं वणिसं ह जमानत
पर छोड़ िदए गए। अभी उ ह ने घर म प्रवे श िकया ही था िक पीछे -पीछे अजीतिसं ह के
िरहा होने का समाचार भी आ पहुँचा।
घर म उ सव का वातावरण बन गया। िशशु अव य एक पु या मा थी, िजसने पिरवार के
सभी दुःख को न ट कर उनम खु िशय का सं चार कर िदया था।
िशशु को गोद म उठाकर जयकौर भावावे ग म बोलीं, "मे रा पु र िकतना भागाँ वाला है ।
इसके आते ही िबछड़ा हुआ पिरवार िफर से िमल गया। मे रा मन कहता है िक िपछले
ज म म यह ज र कोई बड़ा भगत रहा होगा। इस ज म म यह हमारे कुल का उ ार
करने के िलए आया है ।"
"ठीक है बे बे, आज से हम इसे ‘भगत’ ही कहगे । भाग वाला भगत, भगत िसं ह।"
िकशनिसं ह ने माँ के दय से िनकले श द पर अपने समथन की मु हर लगा दी।
इस प्रकार अनजाने ही िशशु का नामकरण हो गया। ‘भगतिसं ह’-एक ऐसा नाम, जो
आने वाले वषों म सदा-सदा के िलए अिमट हो जाने वाला था; इितहास ने िजसे सु नहरे
अ र म सँ जोना था; िजसे दे शभि त और बिलदान का पिरचायक बनना था।

भारत माता सोसाइटी


जे ल से छट
ू ने के बाद िकशनिसं ह और अजीतिसं ह पु नः क् रां ितकारी गितिविधय म
सं ल न हो गए। कां गर् े स की नरम और तु टीकरण की नीितय का उ ह ने सदा िवरोध
िकया। उनका मानना था िक ‘ढु ल-मु ल यवहार या नीितय ारा अं गर् े ज को भारत से
िनकालना असं भव है कठोर कदम उठाकर ही उनसे िनबटा जा सकता है ।’
गरम दल के समथक होने के कारण क् रां ितकािरय के िलए उनके मन म िवशे ष स मान
था। ‘दे श के िलए सव व योछावर करने का दृढ़ िन चय’-यही उनका आदश था। गरम
दल ारा आयोिजत िकसी भी सभा म सि मिलत होना उनके िलए गौरव की बात थी।
अवसर िमलने पर वे उनकी यथासं भव सहायता करने से भी पीछे नहीं हटते थे ।
वष 1908 म एक आम सभा म सरकार और उसकी अनीितय का िवरोध करने के कारण
लोकमा य ितलक को बं दी बना िलया गया। उन पर असामािजक गितिविधय म िल तता
और लोग को सरकार के िव भड़काने का आरोप लगाया गया। ितलक को बं दी बनाकर
सरकार ने क् रां ितकािरय को भड़काने का काय कर िदया था। अब वे खु लकर उसके िव
खड़े हो गए। उनका ने तृ व करते हुए िकशनिसं ह ने ‘भारत माता सोसाइटी’ की थापना
की। इसके अं तगत ‘पे शवा’ नामक पत्र का प्रकाशन िकया गया, िजसम सरकार का
जोरदार श द म िवरोध िकया जाता था। इस काय म वणिसं ह भी भाई की सहायता कर
रहे थे । िदन-प्रितिदन इसके पाठक की सं या बढ़ती जा रही थी। कुछ ही िदन म अने क
लोग ‘भारत माता सोसाइटी’ से जु ड़ गए।
ितलक की िगर तारी ने अजीतिसं ह को भी िवचिलत कर िदया था। वे सूफी अं बा प्रसाद
के साथ िमलकर लोग म आजादी का मं तर् फूँ कने लगे । उ ह ने दे श भर के दरू थ थान
का भ्रमण कर क् रां ितकारी सािह य का प्रचार िकया, िवचारो े जक भाषण िदए, जन-
जन को आजादी की लड़ाई से जु ड़ने के िलए प्रेिरत िकया।

अजीतिसंह का पलायन
एक ओर िकशनिसं ह एवं वणिसं ह भारत माता सोसाइटी ारा लोग को जाग्रत् कर रहे
ू री ओर अजीतिसं ह उ ह एकजु ट करने के अिभयान के अग्रदत
थे , वहीं दस ू थे । तीन
िसं ह की दहाड़ से लोग के सोए हुए मन-मि त क म क् रां ित की वाला धधकने लगी,
रग-रग म दे शभि त का सं चार होने लगा। ि थित िबगड़ती दे ख िब्रिटश सरकार की नींद
उड़ गई। उ ह ने अजीतिसं ह को पकड़ने की मु िहम ते ज कर दी।
चूँिक िकशनिसं ह को पहले ही इसकी भनक लग चु की थी, अतः उ ह ने अजीतिसं ह के
साथ गु त भट की और उ ह समझाया, "अजीत, अं गर् े ज सै िनक भूखे भे िड़य की तरह
तु ह जगह-जगह ढूँढ़ रहे ह। वे कभी भी यहाँ तक पहुँच सकते ह। मु झे डर है िक कहीं
इस बार सरकार तु हारे िव कोई कठोर कदम न उठा ले । उिचत यही है िक तु म कुछ
िदन के िलए दे श से बाहर चले जाओ।"
"आप यह या कह रहे ह? यह दे श नहीं, मे रा पिरवार है ; ये लोग मे रे सगे -सं बंधी ह। इ ह
सं कट म छोड़कर म कैसे जा सकता हँ ?ू इ ह मे री ज रत है और म अपने प्राण दे कर भी
इनके िलए लड़ूँगा। मु झे सीने पर गोली खाना वीकार है , ले िकन मुँ ह िछपाकर भाग जाना
मरने से भी अिधक पीड़ादायक है । म दे श की से वा करते हुए यहीं प्राण यागना पसं द
क ँ गा।" अजीतिसं ह ने प्र यु र िदया।
"अजीत, म तु ह दे श-से वा से मुँ ह मोड़ने के िलए नहीं कह रहा। म जानता हँ ू िक पीठ
िदखाना हमारे कुल की परं परा नहीं है । इितहास गवाह है िक समय आने पर हमारे पूवज
ने पीठ िदखाने की बजाय अपने शीश कटवाना अिधक उपयु त समझा। दे श के िलए
अपने पिरवार का बिलदान कर दे ना मु गलकाल से हमारा धम रहा है । ले िकन दे श को इस
समय तु हारे बिलदान की नहीं, बि क तु हारी आव यकता है । दे श के अं दर अं गर् े ज से
लड़ने वाले बहुत से क् रां ितकारी ह, परं तु दे श से बाहर भारतीय की आवाज बु लं द
करने वाले कुछ ही लोग ह। म चाहता हँ ू िक यह काय तु म करो, िजससे दस ू रे दे श के
नागिरक हमारी लड़ाई म मानिसक प से जु ड़ सक।" िकशनिसं ह ने पु नः समझाया।
इस बार अजीतिसं ह सोचने के िलए िववश हो गए। जोश म होश होकर प्राण यागने की
अपे ा शां ित रखकर दे श के िलए काय करते रहना अिधक उिचत था।
अं ततः कुछ िदन बाद ही गु पचु प तरीके से वे िवदे श चले गए। बाद म उ ह ने यूरोप की
यात्र की और भारतीय के वतं तर् ता-सं घष और मनोदशा से दुिनया भर को अवगत
करवाया। द्िवतीय िव वयु के दौरान उ ह ने रोम रे िडयो से एक मम पशी और
ओज वी भाषण िदया, िजसे िविभ न दे श ारा सराहा गया।
अजीतिसं ह ने कुछ महीन बाद भारत लौट आने की बात सोचकर वष 1909 म दे श से
पलायन िकया था। परं तु उनका यह वनवास तब समा त हुआ, जब वष 1946 म
म याविध सरकार बनने पर पं - जवाहरलाल ने ह के प्रयास ारा वे पु नः भारत आए।
इस दौरान दे श एवं पिरवार से िबछड़े हुए उ ह लगभग 37 वष बीत चु के थे ।
अजीतिसं ह के बारे म एक बात िवशे ष उ ले खनीय है । उ ह पढ़ने -िलखने का बहुत शौक
था। बमा म जे ल-प्रवास के दौरान उनका अिधकतर समय पढ़ने -िलखने म ही यतीत
होता था। उ ह ने न केवल िविभ न पु तक का गहन अ ययन िकया, बि क अने क ले ख
भी िलखे । जे ल से छट
ू ने के बाद वतमान ि थित को प्र तु त करते उनके वे वलं त ले ख
पु तक प म प्रकािशत हुए। ‘मु िह बाने -वतन’ नामक इस पु तक को सरकार ने ज त
कर िलया गया। बाद म सूफी अं बा प्रसाद ने ईरानी भाषा म इसका अनु वाद भी िकया।

वणिसंह की मृ यु
अजीतिसं ह को पकड़ने के िलए िब्रिटश सरकार ने जाल िबछाया था। इस बार उ ह ने
कानून की आड़ म अपने इस शत् को समा त करने की पूरी योजना बना ली थी। परं तु
पं छी उड़ गया और वे हाथ मलते रह गए। इस असफलता ने उ ह क् रोिधत कर िदया।
उनका क् रोध िकशनिसं ह पर टू ट पड़ा। आनन-फानन म कारवाई की गई। असामािजक
एवं िवद्रोही गितिविधय का गढ़ बताकर भारत माता सोसाइटी को प्रितबं िधत कर
िदया गया; उसके अने क कायकताओं को जे ल म ठूँ स िदया गया। िकशनिसं ह और
वणिसं ह को बं दी बनाकर उन पर मु कदमा चलाया गया।
भारत माता सोसाइटी से सरकार िकतनी भयभीत थी, इसका अं दाजा इसी बात से लगाया
जा सकता है िक उस पर लगभग 22 मु कदमे दायर िकए गए। चूँिक अदालत िब्रिटश
जज एवं वकील ारा सं चािलत थी, इसिलए मु कदम म सरकार की जीत सु िनि चत
थी। अदालती िनणय के अं तगत िकशनिसं ह को एक साल और पाँच महीने की सजा दी
गई, जबिक वणिसं ह को भी कठोर कारावास की सजा िमली। दोन भाइय को लाहौर
की सट् रल जे ल म रखा गया। वहाँ उनसे अ यिधक काम िलया गया। बदले म दो सूखी
रोटी और थोड़ा सा पानी उ ह भोजन म िदया जाता। िकशनिसं ह का शरीर इन आघात
को जै से-तै से सह गया, ले िकन वणिसं ह के िलए ये आघात असहनीय थे । पोषण के
अभाव और अ यिधक पिरश्रम के फल व प िदन-प्रितिदन उनका शरीर दुबल होता
गया। अं ततः 23 वष की अ पायु म तपे िदक से पीिड़त होकर उनका दे हावसान हो गया।
इस प्रकार समय के थपे ड़ ने पु नः पिरवार पर वज्राघात िकया।
अ याय 3
डी-ए-वी- म कायाक प
भ गतिसं ह के अितिर त सरदार िकशनिसं ह की आठ सं तान और थीं। इनम जगत िसं ह,
कुलवीर िसं ह, कुलतार िसं ह, राजद्र िसं ह, रणवीर िसं ह नामक पाँच पु त्र और बीबी अमर
कौर, बीबी प्रकाश कौर (सु िमत्र) तथा बीबी शकुंतला नामक तीन पु ित्रयाँ थीं। इनम
केवल जगत िसं ह ही भगत िसं ह से बड़े थे ।
भगत िसं ह का पालन-पोषण बड़े लाड़- यार से हुआ। माता-िपता के साथ-साथ दादा,
दादी, चाचा एवं चाची का भी उनसे िवशे ष लगाव था। उनका ते जयु त चे हरा और गहरी
आँ ख िकसी को भी अपनी ओर आकिषत कर ले ती थीं। यही कारण था िक गाँ व का हर
बड़ा-बु जु ग, मिहलाएँ , ब चे -बालक भगत को गोद म उठाए घूमते रहते थे । उसकी
अठखे िलयाँ दे खकर उनके ह ठ पर मु सकान िथरक जाती और सहसा मु ख से बोल
िनकलते , "ई वर इस ब चे पर अपना आशीवाद बनाए रखे । दे श की से वा करके एक िदन
यह अपने कुल का नाम ज र रोशन करे गा।"

प्रारं िभक िश ा
सिदय से यह कहा जाता रहा है िक िकसी ब चे के िलए उसका घर ही उसका प्रथम
िव ालय और उसके माता-िपता प्रथम अ यापक होते ह। इसिलए जीवन की प्रारं िभक
िश ा वह घर से ही प्रा त करता है । िश टाचार, स यवािदता, ईमानदारी, नै ितकता,
परोपकार, सहनशीलता, कमठता-आयु के आरं िभक दौर म इन सं कार का रोपण ब चे म
माता-िपता ारा ही िकया जाता है । भगत िसं ह के सं बंध म यह कथन अ रशः स य
िस होता है । ज म के साथ ही उनकी प्रारं िभक िश ा आरं भ हो चु की थी। उ ह ने एक
ऐसे पिरवार म आँ ख खोली थीं, िजसका प्र ये क सद य वयं म एक महान् यि त व को
समे टे हुए था, िफर चाहे वे सरदार अजु निसं ह ह अथवा िकशनिसं ह, अजीतिसं ह ह या
वणिसं ह।
धम के वा तिवक व प को जानकर मानवता के अनु प आचरण करने तथा कम को
मह व दे ने का गु ण उ ह दादा के साि न य से प्रा त हुआ। उनके यि त व म इसका
प्रभाव सहज ही दे खा जा सकता है । उ ह ने कभी िकसी धम िवशे ष को मह व नहीं
िदया। उनके िलए मानवता और दे श के िलए सव व योछावर करने वाला ही स चा
मनु य था। सिदय से चली आ रही िनभयता, वीरता, दे शभि त, बिलदान की भावना
उ ह िपता ारा प्रा त हुई। आगे चलकर उ ह ने अपने कायों ारा इन गु ण को प्रकट
िकया।
यिद सं ि त श द म कहा जाए तो बचपन से ही भगतिसं ह पर दादा के प्रगितवादी
तथा िपता एवं चाचाओं के क् रां ितकारी िवचार का गहरा असर पड़ा। घर का वातावरण
उनके मानिसक और वै चािरक िवकास के िलए सवथा उपयु त था।

िव ालय म प्रवेश
भगतिसं ह कुछ बड़े हुए तो िपता िकशनिसं ह ने उनका दािखला गाँ व के एक प्राइमरी
िव ालय म करवा िदया। उनका पु त्र जगतिसं ह भी इसी िव ालय म िश ा ग्रहण कर
रहा था। हाथ म त ती और िकताब िलये दोन भाई कू ल जाने लगे । शीघ्र ही क ा के
सभी िव ाथी भगतिसं ह के िमत्र बन गए। उ ह भगतिसं ह के प म अपना िमत्र, भाई,
सहयोगी िमल गया था। वे अिधक-से -अिधक उनके िनकट रहने की कोिशश करते थे ।
य िप जगतिसं ह उनसे आयु म कुछ ही बड़े थे , ले िकन दोन भाइय के यवहार म बहुत
अं तर था। जगतिसं ह जहाँ एकाग्रिच होकर गहन अ ययन की ओर यान दे ते थे , वहीं
भगतिसं ह पढ़ाई-िलखाई और खे ल-कू द से दरू अपने िवचार म ही डूबे रहते । क ा का
बं धन, पढ़ाई का बोझ, खे ल-कू द की म ती-उनके वतं तर् मन-मि त क को रास नहीं आते
थे । ऐसा नहीं था िक वे पढ़ाई-िलखाई से जी चु राते थे , वरन् क ा म उनके समान लगन से
पढ़ने वाला अ य कोई छात्र नहीं था। उनकी तीव्र बु द्िध और शालीनता की
अ यापकगण भी प्रशं सा करते थे । ले िकन िफर भी उनका मन िबना िकसी बं धन के
हवाओं के समान बहना चाहता था। यही कारण था िक वे क ा समा त होते ही
चाहरदीवारी लाँघकर दरू हरे -भरे मै दान की ओर भाग जाते तथा वतं तर् उड़ते हुए
पि य को िनहारते रहते । यिद यह कहा जाए तो अिधक उपयु त होगा िक भगतिसं ह
की क पनाशीलता उनके यि त व की तरह अिधक गहरी और सारगिभत थी।
इधर क ा समाि त पर जब जगतिसं ह को भगतिसं ह की अनु पि थित का पता चलता तो
वे उ ह ढूँढ़ते हुए वहाँ पहुँच जाते और थोड़ा गु सा िदखाते हुए बोलते , "भगत, तु म यहाँ
अकेले या कर रहे हो? वहाँ सब तु हारी प्रती ा कर रहे ह।"
"मु झे इन खु ले मै दान म बै ठना बहुत अ छा लगता है । िफर म अकेला कहाँ हँ ?ू मे रे साथ
उड़ते हुए प ी ह, बहती हुई हवा है , िखले हुए फू ल ह, बहता हुआ पानी है ।" क पना म
डूबे बालक भगतिसं ह के मु ख से दाशिनक श द िनकलते ।
उनकी बात को ठीक से न समझ पाने वाले जगतिसं ह िवि मत होकर बोलते , "भगत,
तु ह यहाँ आकर िमलता या है ? वहाँ दो त के साथ खे ला करो।"
भगतिसं ह भाई की ओर दे खकर शांत वर म कहते , "यहाँ आकर मु झे असीिमत शां ित
िमलती है , मे री आ मा की तड़प शांत होती है । ऐसा लगता है मानो म भी वतं तर् होकर
खु ले आकाश म उड़ रहा हँ ।ू "
"मु झे तो तु हारी कोई बात समझ म नहीं आती। तु म अपना यान पढ़ाई म लगाया करो,
अ यथा गु जी से मार पड़े गी।" जगतिसं ह झुँझलाकर कह उठते ।
"आप िचं ता मत कीिजए, मु झे गु जी कभी नहीं मारगे । म पहले ही सारा पाठ याद कर
लूँगा।" भगतिसं ह हँ सते हुए जवाब दे ते।
य िप लोग की दृि ट म भाइय के बीच का यह वा ालाप अ यं त साधारण हो सकता
है , ले िकन इसके पीछे िछपे मम को समझा जाए तो यह पूणतः दाशिनकता-यु त है ।
इसके मा यम से भगतिसं ह ने िकतने सहज ढं ग से वतं तर् ता का मह व प ट िकया है ।

जगतिसंह की मृ यु
जगतिसं ह और भगतिसं ह म अगाध ने ह था। आयु म बड़े होने के कारण जगतिसं ह छोटे
भाई का पूरा यान रखते थे । वे जहाँ भी जाते , भगतिसं ह उनके साथ होते । दोन की
जोड़ी दे खकर लोग अकसर हँ सते हुए कहते थे , "िकशनिसं ह के दोन लड़के सा ात् राम-
ल मण लगते ह। इनके प्राण एक-दस ू रे म बसते ह। हमने कभी भी इ ह एक-दस
ू रे से
अलग नहीं दे खा।"
लोग की ये बात सु नकर िव ावती िकसी आशं का से भयभीत हो जाती और उसी समय
दोन की नजर उतार दे ती। उसे ऐसा करते दे ख िकशनिसं ह मन-ही-मन मु सकराकर रह
जाते ।
ले िकन मनु य अने क प्रय न कर ले , िवधाता के िलखे को िमटाया नहीं जा सकता।
िनयित ने दोन भाइय को अलग करने का िनणय कर िलया था।
एक िदन जगतिसं ह कू ल से लौटा तो उसे ते ज बु खार था। शाम तक वा य इतना
िबगड़ा िक उसने िब तर पकड़ िलया। शीघ्रता से वै को बु लाकर इलाज शु हुआ।
ले िकन दवा िबलकुल बे असर रही। जै से-जै से िदन बीतते गए, रोग बढ़ता गया। अं ततः
यारह वषीय जगतिसं ह ने सदा के िलए आँ ख बं द कर लीं।
िकशोर पु त्र की मृ यु पिरवार के िलए वज्राघात के समान थी। ले िकन इसका सबसे गहरा
प्रभाव न हे भगतिसं ह पर पड़ा। वे जगतिसं ह से बहुत प्रेम करते थे । वे भी भगतिसं ह
को भरपूर लाड़- यार दे ते थे । िजस भाई की उँ गली पकड़कर भगतिसं ह ने कू ल जाना
आरं भ िकया था, वह बीच माग म ही उँ गली छुड़वाकर सं सार से िवदा हो गया। दोन
भाइय की तु लना शरीर और छाया से की जाती थी। ले िकन िवधाता के क् र प्रहार ने
परछा को शरीर से सदा के िलए जु दा कर िदया।
य िप समय के साथ-साथ पिरवारजन के घाव भरते गए, िकंतु भगतिसं ह जीवन भर भाई
की मृ ित को भु ला नहीं पाए। उनके मन पर जगतिसं ह की जो अिमट छाप पड़ी थी, वह
उनकी मृ यु तक य -की- य बनी रही।

नवाकोट म िनवास
भाई की मृ यु के बाद भगतिसं ह अकेले पड़ गए और खोए-खोए से रहने लगे । न तो वे
खाने म िच ले ते थे और न ही उ ह िमत्र के साथ कहीं आना-जाना पसं द था। उनका
अिधकां श समय खे त के बीच म ि थत एक िवशाल वटवृ के नीचे यतीत होता था।
वहाँ वे घं ट बै ठकर एकटक प्रकृित को िनहारा करते थे ।
एक न हे बालक की यह मनोदशा दे खकर िव ावती को िचं ता होने लगी। इस िवषय म
उ ह ने पित िकशनिसं ह से बात की, "भगत को न जाने या हो गया है । वह सबसे बहुत
कटा-कटा रहने लगा है । अकेला बै ठकर न जाने या सोचता रहता है ? बार-बार बु लाने
पर भी सबके साथ नहीं बै ठता। मु झे तो बहुत िचं ता हो रही है ।"
"जगतिसं ह के साथ उसका बहुत यार था। उसके िबछोह का सदमा ही उसे घे रे हुए है ।
तु म िचं ता मत करो, म कोई उपाय अव य करता हँ ।ू " िकशनिसं ह ने प नी को समझाते
हुए कहा।
"जो करना है , ज दी करना। मु झे डर है , कहीं हम अपने इस बे टे को भी न खो द।"
िव ावती ने आँ स ू प छते हुए कहा।
िकशनिसं ह गहरी सोच म पड़ गए।
चूँिक घर के कोने -कोने म जगतिसं ह की याद बसी हुई थीं, िजनसे भगतिसं ह को दरू करना
आव यक था। बहुत सोच-िवचार के बाद िकशनिसं ह ने िनणय िलया िक वे गाँ व छोड़कर
पिरवार सिहत अ यत्र चले जाएँ गे। इस िनणय से उ ह ने िपता को भी अवगत
करवाया।
"तु मने जो सोचा है , अ छा है । भगत को इस माहौल से दरू ले जाना ज री है और िफर,
अब तु ह भी थोड़ा-बहुत अपने घर-पिरवार पर यान दे ना चािहए।" सरदार अजु निसं ह ने
उनके िनणय पर सहमित की मु हर लगा दी।
अतः िकशनिसं ह पिरवार सिहत नवाकोट चले गए। वहाँ उनकी कुछ जमीन-जायदाद भी
थी। इसिलए कुछ ही िदन म वे वहाँ अ छी तरह से रच-बस गए।

हाई कू ल म प्रवेश
भगतिसं ह की प्रारं िभक िश ा गाँ व म ही पूरी हुई। आगे की पढ़ाई के िलए िकशनिसं ह
उ ह हाई कू ल म दािखल करवाना चाहते थे । उन िदन नवाकोट म िसख के िलए
खालसा कू ल थािपत था। वे अपने ब च को िश ा हे तु इसी कू ल म दािखल करवाते
थे । य िप उस कू ल की प्रबं धन कमे टी भारतीय ारा सं चािलत थी, तथािप
चाटु कािरता के कारण वे िब्रिटश सरकार के िपट् ठू थे । िविभ न समोराह म कू ल ारा
अं गर् े ज अिधकािरय का स मान इसका प्र य प्रमाण था। इसके बदले म उ ह सरकार
ारा आिथक सहायता प्रदान की जाती थी। अने क िमत्र एवं सं बंिधय ने िकशनिसं ह को
परामश िदया िक वे भगतिसं ह को इस कू ल म भरती करवा द।
ले िकन जो कू ल नींव से िशखर तक अं गर् े जी रं ग म डूबा हो, िजस पर अं गर् े जी हुकू मत
का प्रभाव प ट िदखाई दे ता हो, उसम अपने पु त्र का दािखला करवाना एक स चे
दे शभ त के िलए अपमान की बात थी। भारत माता को गु लामी की बे िड़य से आजाद
करवाने के िलए िकशनिसं ह के पूवज और वे वयं िब्रिटश सरकार का िवरोध करते आए
थे । ऐसे म खालसा कू ल म भगतिसं ह का दािखला करवाकर वे अपने पूवज के बिलदान
को िनरथक नहीं बना सकते थे । अं ततः उ ह ने लाहौर के दयानं द एं लो वै िदक (डी-ए-
वी-) कू ल म भगतिसं ह को भरती करवा िदया। उनके इस काय से अने क लोग िवचिलत
हो उठे और उ ह ने िकशनिसं ह का पु रजोर िवरोध िकया। ले िकन वे अपने िनणय पर
अिडग रहे ।
डी-ए-वी- कू ल का रा ट् रीयता से ओत-प्रोत वातावरण भगतिसं ह को बहुत रास आया।
ू े साथ-साथ सं कृत का भी गहन अ ययन िकया। दे शभि त,
वहाँ उ ह ने अं गर् े जी, उद क
स यवािदता, िनभयता आिद गु ण भगतिसं ह म पहले से ही िव मान थे । परं तु उस
वातावरण म उन गु ण को पूरी तरह से पनपने का अवसर िमला। यिद सं ि त श द म
कहा जाए तो यह वही थान था जहाँ ‘शहीदे -आजम भगतिसं ह’ का वा तिवक ज म
हुआ।
अ याय 4
गोली खाएँगे नहीं, मारगे
प्र थम िव वयु अपने चरम पर था। दुिनया भर के दे श दो गु ट म बँ टकर अ त्र ताने
हुए एक-दस ू रे को न ट करने को उ त थे । इं लड भी इस यु म मह वपूण भूिमका िनभा
रहा था। ले िकन इससे सम याएँ बढ़ ग । यु म इं लड को उलझा दे खकर भारत म
वतं तर् ता से नािनय एवं क् रां ितकािरय ने उनका िवरोध तीव्र कर िदया था। एक ओर
अं तररा ट् रीय तर पर शत् दे श से यु और दस ू री ओर भारत पर िनयं तर् ण रखना-
िब्रिटश सरकार को दो मोरच पर एक साथ लड़ना पड़ रहा था। ि थित िनरं तर िबगड़ती
जा रही थी, उनका िवरोध जोर पकड़ता जा रहा था।
भारत न केवल इं लड म थािपत उ ोग ारा उ पािदत व तु ओं की खपत तथा धन
उगाहने का एक प्रमु ख स्रोत था, बि क एिशया महा ीप म थािपत उनकी शि त का
कद्र-िबं दु था। सरकार िकसी भी ि थित म इस उपयोगी उपिनवे श को हाथ नहीं जाने दे ना
चाहती थी। अं ततः िब्रिटश सं सद् म एक अिधिनयम पािरत िकया गया। चूँिक इस ए ट
पर त कालीन िब्रिटश यायाधीश िसडनी रोले ट ने ह ता र िकए थे , इसिलए इसे
‘रोले ट ए ट’ कहा गया।
इस अिधिनयम का काय िकसी भी तरह की क् रां ितकारी गितिविधय एवं आं दोलन को
रोकना था। इसके अं तगत भारत म िनयु त िब्रिटश अिधकािरय को िबना जाँच के िकसी
भी यि त को जे ल म डालने तथा दमनकारी हथकंड को अपनाने का अिधकार िदया
गया था।
माच 1919 म रोले ट ए ट को भारत म प्रभावी कर िदया गया।
ए ट के लागू होते ही मानो अं गर् े ज अिधकािरय को ‘ब्र ा त्र’ िमल गया। उ ह ने
अकारण ही कई राजने ताओं को जे ल म ठूँ स िदया; शां ितपूवक एवं अिहं सा मक
प्रदशन को भी प्रितबं िधत कर िदया गया। इससे भारतीय ने ताओं एवं जनता म रोष
बढ़ गया। गां धीजी ने सरकार से राजनीितक बं िदय को इस ए ट से मु त रखने की
अपील की। उनका कथन था िक "सामािजक अपराध एवं राजनीितक अपराध को
अलग-अलग श्रेणी म रखना चािहए और उनके िलए अलग-अलग कानूनी प्रावधान
होने चािहए।"
ले िकन सरकार ने उनकी बात अनसु नी कर दी।
गां धीजी ने मद्रास (चे नई) जाकर क तूरीरं गन और चक् रवती राजगोपालाचारी से भट
की। वहीं उ ह रोले ट ए ट के िव हड़ताल करने का िवचार आया। सबको यह िवचार
उिचत लगा। अं ततः गां धीजी ने 30 माच, 1919 को दे श यापी ‘अिहं सा मक हड़ताल’
का आ ान िकया। बाद म िकसी कारणवश यह ितिथ आगे बढ़ा दी गई और हड़ताल के
िलए 6 अप्रैल का िदन िनि चत हुआ। सभी जगह सूचना प्रेिषत कर दी गई।
ले िकन िद ली म ितिथ-पिरवतन की सूचना िवलं ब से पहुँची, िजसके फल व प वामी
श्र ानं द के ने तृ व म वहाँ 30 माच को ही हड़ताल हो गई। इस अवसर पर िहं द-ू मु सिलम
एकता का अद्भुत उदाहरण प्र तु त करते हुए लोग ने िवशाल जु लूस िनकाला। ले िकन
सरकार को यह बरदा त नहीं हुआ। भीड़ को िततर-िबतर करने के िलए सै िनक को
िनह थे लोग पर गोिलयाँ चलाने के आदे श दे िदए गए। इस नरसं हार म अने क लोग
शहीद हो गए, जबिक अने क बु री तरह से घायल हुए। लाहौर, अं बाला, अमृ तसर,
जालं धर सिहत सम त उ र भारत म इसी िदन हड़ताल हुई और पु िलस ने वहाँ भी
िद ली जै सी दमनकारी नीितय का भरपूर उपयोग िकया।
इसी बीच गां धीजी की घोषणा के अनु सार शे ष भारत म 6 अप्रैल को हड़ताल हुई।
दे खते -ही-दे खते दे श भर के सभी सरकारी एवं गै र-सरकारी कामकाज ठप कर िदए गए।
िव ाथी भी कू ल-कॉले ज छोड़कर हड़ताल म सि मिलत हो गए। इसे ‘रोले ट
स याग्रह’ के नाम से जाना जाता है । दे श के िविभ न थान म शां ितपूवक प्रदशन
िकए गए तथा िगरफ् रतािरयाँ दी ग । गां धीजी को भी बं दी बना िलया गया। इससे कुछ
थान पर तनाव उ प न हो गया और आं दोलनकािरय ारा िहं सा करने के समाचार आने
लगे । बाद म गां धीजी ने वयं को िज मे दार ठहराते हुए रोले ट ए ट के िव स याग्रह
को थिगत कर िदया।
पं जाब म डॉ- स यपाल और डॉ- सै फु ीन िकचलू के ने तृ व म रोले ट ए ट का िवरोध बड़ी
ते जी से बढ़ता जा रहा था। पिरणाम व प 10 अप्रैल को दोन ने ता बं दी बना िलये
गए। सरकार के इस कृ य से लोग म रोष की लहर दौड़ गई। इसका जवाब माँ गने के
िलए जु लूस के प म वे किम नर के बँ गले की ओर चल िदए। ले िकन अिधकािरय के
आदे श पर सै िनक ने िनह थे लोग पर गोिलयाँ चला दीं। कुछ ही दे र म सड़क लाश से
पट गई।
इस भीषण नरसं हार ने लोग को िवचिलत कर िदया और उ ह ने 13 अप्रैल को एक सभा
के आयोजन का िन चय िकया।

जिलयाँवाला ह याकांड
पं जाबी सं कृित म 13 अप्रैल का िदन अ यं त गौरवशाली और मह वपूण माना जाता
है । यह वह िदन है , िजसे न केवल पं जाब बि क सं पण
ू भारतवष तथा िवदे श म रहने वाले
भारतीय भी ‘बै साखी’ के प म मनाते ह। यह िदन याग, बिलदान, शौय, िनडरता और
साहस का प्रतीक है ।
कहते ह िक एक बार गु गोिवं द िसं ह ने एक सभा आयोिजत की। इसके पीछे उनका
उ े य अपने अनु याियय की परी ा ले ना और बिलदानी वीर की खोज करना था। सभा
के दौरान उ ह ने चमकती हुई दुधारी तलवार हाथ म ली और गरजते हुए बोले , "मु झे एक
मह वपूण काय के िलए पाँच िसर-कमल की आव यकता है । अतः हे भा यशाली
पु षो! उठो और मातृ भिू म के िलए अपने िसर-कमल अिपत कर दो।"
उद्घोषणा सु नकर उपि थत लोग अचं िभत रह गए। उ ह ने सोचा था िक यह एक
साधारण सभा होगी, परं तु यहाँ उनके म तक माँ गे जा रहे थे । मन म हलचल होने लगी;
मृ यु के भय से पसीने छट
ू ने लगे ।
गु गोिवं द िसं ह पु नः गरजे , " या कोई ऐसा वीर नहीं है , जो मातृ भिू म के िलए अपना
म तक अिपत कर सके? मु झे पाँच िसर-कमल की आव यकता है । ले िकन यहाँ तो एक
िसर िमलना भी असं भव हो गया है ।"
सहसा एक-एक कर पाँच साहसी यु वक उठे और वयं को मातृ भिू म के िलए समिपत कर
िदया। गु गोिवं द िसं ह के िलए कौन प्राण दे सकता है , इस परी ा म वे यु वक खरे उतरे
और ‘पाँच यारे ’ बन गए।
आज िफर 13 अप्रैल का िदन था; चार ओर बै साखी का रं ग िखला हुआ था। सूय की
िकरण अमृ तसर को अपने प्रकाश से चमका रही थीं। िमठाई, नए कपड़ और िखलौन के
बारे म सोचते हुए ब चे इधर-उधर दौड़ रहे थे । ले िकन इनसे दरू अमृ तसर के पिवत्र वण
मं िदर के पास ि थत जिलयाँ वाला बाग म आज िवशे ष हलचल थी। अमृ तसर के हर
वतं तर् ता-प्रेमी के कदम उस ओर बढ़ रहे थे । धीरे -धीरे पूरा बाग खचाखच भर गया।
एक अनु मान के अनु सार उस िदन लगभग 6 हजार पु ष, मिहलाएँ और ब चे
जिलयाँ वाला बाग म उपि थत थे ।
िनधािरत समय पर सभा आरं भ हुई। सवप्रथम रोले ट ए ट के िवरोध म भाषण िदए गए,
िफर तीन िदन पहले हुए नरसं हार पर सरकार की दमनकारी नीितय की आलोचना की
गई। सभा पूरे उफान पर थी; बीच-बीच म ‘वं दे मातरम्’ के उद्घोष से पूरा बाग
गु ँ जायमान हो उठता।
आं दोलनकारी जिलयाँ वाला बाग म सभा कर रहे ह-पं जाब के त कालीन गवनर माइकल
ओ’ डायर को इसकी सूचना िमल गई थी। उसने अपने उपनाम वाले जनरल रे िजनो ड
डायर को सभा रोकने का आदे श िदया। जनरल डायर ने अ त्र-श त्र से यु त 90
सै िनक को साथ ले कर सभा थल की ओर कू च िकया।
जिलयाँ वाला बाग चार ओर से बड़ी-बड़ी दीवार से िघरा हुआ था। उसम प्रवे श करने
का एक ही माग था। ले िकन वह मु य प्रवे श- ार भी इतना सँ करा था िक िसफ एक-एक
करके ही अं दर या बाहर आया जा सकता था। डायर के आदे श पर सै िनक बाग म घु सकर
मु य ार पर खड़े हो गए। उ ह ने अपनी-अपनी बं दक ू लोग की ओर तान दीं। इस
कारवाई से बे खबर लोग शां ितपूवक बै ठे हुए भाषण सु नने म मगन थे ।
सहसा जनरल डायर का वर गूँजा, "फायर! शूट द लडी डॉ स!"
ू के मुँ ह खोल िदए और गोिलय की पहली बौछार ने
आदे श िमलते ही सै िनक ने बं दक
ही अने क लोग को खून से नहला िदया।
इस अप्र यािशत हमले की िकसी ने क पना तक नहीं की थी और न ही जनरल डायर ने
सभा समा त करने के िलए कोई पूव चे तावनी दी थी। चार ओर भगदड़ मच गई। कुछ
दे र पहले तक जो थान दे शभि त के नार से गूँज रहा था, वहाँ अब चीख-पु कार मच गई
थी। लोग जान बचाकर प्रवे श- ार की ओर भागे । ले िकन िज ह ने उस ओर मुँ ह िकया,
वहाँ तै नात सै िनक ने उ ह छलनी कर िदया। कोई चारा न दे खकर लोग बाग की ऊँची-
ऊँची चाहरदीवारी लाँघने की कोिशश करने लगे । ले िकन उसम भी असफलता हाथ
लगी। बाग म एक कुआँ था। जान बचाने के िलए औरत ने ब च सिहत उसम छलाँ ग
लगा दी। परं तु वह कुआँ भी काल का मु ख िस हुआ।
कुछ दे र बाद जनरल डायर सै िनक सिहत लौट गया और पीछे छोड़ गया इितहास के
सबसे काले एवं िघनौने कृ य के िनशान।
जिलयाँ वाला बाग-लाश से पटा हुआ, र त से सनी िमट् टीवाला, िजं दगी के िलए
तड़पते लोग की कराह से िबलखता। अं गर् े ज सै िनक की गोिलय ने न तो औरत को
छोड़ा था और न ही ब च को। खून से भीगी हुई लाश, मांस के लोथड़े की तरह िबखरे
हुए ब चे -उस बीभ स दृ य को दे खकर कठोर दयवाले भी द्रिवत हो गए।
इस नृ शंस सं हार म अनिगनत लोग को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। य िप
आिधकािरक तौर पर मरने वाल की सं या 379 बताई गई, ले िकन पं - मदनमोहन
मालवीय के अनु सार यह सं या 1,400 से भी अिधक थी। इसके िवपरीत, अमृ तसर के
त कालीन िसिवल सजन डॉ- ि मथ के अनु सार मरने वाल की सं या 1,800 से अिधक
थी।
जनरल डायर के इस कलं िकत करने वाले - य की िव व भर म िनं दा की गई। महान् किव
रवींदर् नाथ ठाकुर ने इस ह याकांड के िवरोध- व प ‘सर’ की उपािध लौटा दी। बाद म
वीर क् रां ितकारी ऊधमिसं ह ने लं दन म जनरल डायर को गोिलय से भूनकर जिलयाँ वाला
बाग म मरने वाल के खून का बदला िलया था।

खून की कसम
ते ज-ते ज कदम से चलने वाला भगतिसं ह आज इतना धीमा चल रहा था, मानो उसके
पै र के साथ िकसी ने प थर बाँ ध िदए ह । उसका चे हरा उदासी म डूबा हुआ था। गहरी
साँस छोड़ते हुए वह घर म घु सा। घर म चार ओर शां ित या त थी; उसकी जान-म-जान
आई। तभी उसे छोटी बहन अमरकौर िदखाई दी; परं तु वह बात करने की ि थित म नहीं
था। इसिलए चु पचाप अपने कमरे की ओर जाने लगा।
अमरकौर ने उसे टोका, "वीरजी, आज आने म बहुत दे र कर दी? कहाँ थे आप? म कब से
आपका इं तजार कर रही थी।"
भगतिसं ह ने कुछ नहीं कहा। उसका यह यवहार अमरकौर के िलए अप्र यािशत था।
वह हड़बड़ा गई; िफर सं यत होकर बोली, "वीरजी, भं डारघर म रखे हुए आम पक गए ह।
हमने साथ-साथ खाने की बात की थी न, इसिलए म आपका इं तजार कर रही थी। चलो न
अब ज दी, मे रे मुँ ह म पानी आ रहा है ।"
"तु मको खाना है तो जाकर खा लो। अभी मे रा मन नहीं है ।" भगतिसं ह ने थोड़ा िचढ़कर
जवाब िदया।
अमरकौर बड़ी दे र से भाई के लौटने की प्रती ा कर रही थी। भगतिसं ह को आम बहुत
पसं द थे , इसिलए उसे िव वास था िक घर आते ही वह सबसे पहले भं डार म रखे आम ही
खाएगा। ले िकन आज वह हो गया, जो उसने कभी सोचा भी नहीं था। आम खाने की
बजाय भगतिसं ह अपने कमरे म चला गया था। उसने दरवाजे पर खड़े होकर कमरे म
झाँका। भगतिसं ह आँ ख बं द कर कुरसी पर बै ठा था। दुःख की रे खाएँ उसके चे हरे पर साफ
अं िकत थीं।
आगे बढ़कर अमरकौर ने ने हवश उसके म तक पर हाथ रखा और धीरे से बोली, " या
बात है वीरजी? िकसी ने डाँटा है या?"
कोमल पश पाते ही भगतिसं ह ने आँ ख खोलीं और शांत वर म बोला, "नहीं, ऐसी कोई
बात नहीं है ।"
"तो िफर आप इतने दुःखी य हो? सच-सच बताओ, बात या है ?"
"म तु ह कुछ नहीं बता सकता। ये सब बात समझने के िलए अभी तु म बहुत छोटी हो।"
"वीरजी, आज तक हम आपस म सारी बात बताते रहे ह। िफर यह कौन सी बात है जो म
ू ी? बताओ न, आप इतने दुःखी य ह?" अमरकौर ने लाड़ जताते हुए कहा।
नहीं समझँ ग
भगतिसं ह िपघल गया, "ठीक है , बताता हँ ।ू ले िकन याद रखना, यह बात िकसी को पता न
चले । बे बेजी को इस बारे म कुछ मत बताना।"
"मु झपर िव वास रखो, म िकसी को कुछ नहीं बताऊँगी।" अमरकौर ने बात दोहराई।
"जानती हो, आज म कू ल नहीं गया था।" भगतिसं ह ने रह यमयी अं दाज म कहा।
अमरकौर ने िवि मत होकर पूछा, "तो िफर तु म िदन भर कहाँ थे ? इतनी दे र से य
आए?"
"म अपने एक दो त के साथ अमृ तसर गया था।" भगतिसं ह ने रह य के ऊपर से परदा
उठाया।
"अमृ तसर! वहाँ दरबार साहब के दशन करने गए थे ?"
"नहीं, म वहाँ मौत का डरावना प दे खने गया था।"
इतनी बड़ी बात छोटी अमरकौर की समझ से बाहर थी।
ले िकन भगतिसं ह अपनी धु न म बोले जा रहा था, "चार ओर मौत नाच रही थी। कोई घर
ऐसा नहीं था िजस पर काल की परछा न पड़ी हो।"
तदनं तर उसने अपनी जे ब से एक शीशी िनकाली और उसे अमरकौर को िदखाते हुए
बोला, "जानती हो, यह या है ?"
"यह याही की दवात है ।" अमरकौर ने मासूिमयत से जवाब िदया।
"अमरो, इसम याही नहीं है । इसे खोलकर दे खो।"
अमरकौर ने दवात ली और उसे खोलकर दे खा। िफर च कते हुए बोली, "अरे , इसम याही
की जगह या भरा हुआ है ? यह या है ?"
"यह िमट् टी है , खून से लाल हुई िमट् टी।"
"िकसके खून से यह िमट् टी लाल हुई है ? कहाँ से लाए हो इसे ?" अमरकौर ने काँपती
आवाज म पूछा।
भगतिसं ह ने उसे थपथपाते हुए कहा, "अमृ तसर के जिलयाँ वाला बाग म अं गर् े ज ने
गोिलयाँ चलाकर अने क िनह थे लोग को मार डाला। उन शहीद के खून से पूरी धरती
लाल हो गई। यह वहीं की िमट् टी है ।"
"तु मने यह सब दे खा है ?" भयभीत वर म अमरकौर ने पूछा।
"नहीं, ले िकन बाद म इस नरसं हार की भीषण यातनाओं को अपनी आँ ख से दे खा है ।"
भगतिसं ह ने अपनी छोटी सी मु ट्िठयाँ भींचते हुए कहा। गु से से उसके ह ठ काँप रहे थे ।
अमरकौर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे सं यत करते हुए बोली, "आज हमारे चाचा
अजीतिसं ह जी होते तो अं गर् े ज को मार-मारकर भगा दे ते।"
"तु म ठीक कहती हो, अमरो। मे रा भी मन बार-बार उनसे िमलने को करता है । अमरो! दे ख
ू ा।" न हे भगतिसं ह ने
ले ना, म चाचाजी जै सा ही बनूँगा और अं गर् े ज की नींद उड़ा दँ ग
जोश म भरकर कहा।
इसके बाद दोन भाई-बहन म पर पर बातचीत होती रही। भगतिसं ह अपने दय म
उठने वाली भावनाओं को श द के प म प्रकट करता रहा और अमरकौर एक मगन
श्रोता की तरह उसके गूँजते श द को सु नती रही।
तभी भगतिसं ह की नजर दवात पर पड़ी और उसने िमट् टी से भरी वह दवात उठाकर
सामने आले म रखकर कहा, "अमरो, कुछ फू ल ले आओ।"
"अभी लाई, वीरजी।" यह कहकर अमरकौर ते जी से बाहर चली गई।
िखड़की के सींखच पर फैली बे ला की लता म किलयाँ िखल रही थीं। अमरकौर ज दी से
उ ह तोड़कर ले आई।
भगतिसं ह ने एक सफेद माल के ऊपर दवात की िमट् टी रखी और अमरकौर से कुछ
अधिखली किलयाँ ले कर िमट् टी पर चढ़ा दीं। भाई की दे खा-दे खी अमरकौर ने भी हाथ म
बची शे ष सारी किलयाँ िमट् टी पर रख दीं। तदनं तर दोन हाथ जोड़कर मन-ही-मन
शहीद की आ मा की शां ित के िलए प्राथना की।
काएक भगतिसं ह बोल उठा, "नहीं-नहीं, अब हम गोली नहीं खाएँ गे, बि क गोली मारगे !
गोली मारगे उन अं गर् े ज को, जो हमारे िनदोष लोग का खून बहाते ह। हमारे दे श को
गु लाम बनाने वाल का अि त व समा त कर दगे । मु झे इस िमट् टी की कसम! शहीद के
खून की कसम! म उनकी मृ यु का प्रितशोध अव य लूँगा!"
शपथ ले ते समय बारह वषीय न हे भगतिसं ह की आँ ख से अं गारे िनकल रहे थे ।
जिलयाँ वाला बाग म दे खा गया एक-एक दृ य उसके सामने घूम रहा था। उसकी रग म
बहने वाला दे शभ त का खून उबलने लगा था।
अ याय 5
गरम दल की ओर
व ष 1920 म महा मा गां धी ने असहयोग आं दोलन का आ ान िकया। आं दोलन के
अं तगत िन निलिखत िक् रयाकलाप िनधािरत िकए गए थे -
• िब्रिटश सरकार ारा दी गई उपािधयाँ और स मान लौटाना।
• क िसल व चु नाव का बिह कार।
• सरकारी समारोह का बिह कार।
• सं घ म भरती होने से इनकार करना।
• अदालत का बिह कार।
• िश ा सं थान का बिह कार।
• िवदे शी कपड़ का बिह कार।
• शराब की दुकान पर धरना दे ना।
आं दोलन को दे श के कोने -कोने तक पहुँचाने के िलए गां धीजी ने िविभ न थान की
यात्रएँ कीं और आम सभाएँ आयोिजत कर लोग को जाग क िकया। इसी तरह की एक
सभा लाहौर म भी आयोिजत की गई। भगतिसं ह भी जयदे व, झं डािसं ह आिद िमत्र के
साथ इस सभा म सि मिलत हुए।
मं च पर बै ठे गां धीजी आं दोलन के सं दभ म या यान दे रहे थे - "असहयोग आं दोलन
अथात् हम सरकार के साथ िकसी भी प्रकार के सहयोग से इनकार करते ह। यह
आं दोलन िकसी यि त िवशे ष के िलए नहीं है । इसम सं पण ू भारत और भारतवािसय का
िहत िनिहत है । इसकी पृ ठभूिम पूणतः अिहं सा मक है । हम पूरी तरह से अिहं सा के
प्रित िन ठावान् रहते हुए िनधािरत कायों का अनु पालन करना है । म आ ान करता हँ ू
िक आप लोग अदालत , सरकारी दफ् रतर , कू ल, कॉले ज आिद का बिह कार कर
आं दोलन से जु ड़।"
इन श द का भगतिसं ह पर गहरा असर हुआ। उस समय वे नौवीं क ा म पढ़ रहे थे ।
ले िकन गां धीजी के आ ान पर वे और उनके कुछ िमत्र कू ल छोड़कर आं दोलन से जु ड़
गए। य िप कुछ लोग ने उ ह मै िट् रक तक कू ल न छोड़ने के िलए समझाया था, परं तु
वे अपने िन चय पर अिडग रहे । उनका कहना था िक "यिद बिह कार वतं तर् ता के माग
को प्रश त करता है तो उ ह कू ल छोड़ने म कभी पीछे नहीं हटना चािहए। िश ा पु नः
प्रा त की जा सकती है , ले िकन खोई हुई वतं तर् ता पु नः प्रा त करना अ यं त किठन है ।
इसके िलए हरसं भव प्रयास करना उिचत है ।"
दे खते -ही-दे खते आं दोलन ने यापक प ले िलया। यु वक कू ल-कॉले ज का बिह कार
करने लगे । वकील ने कोट-कचहरी म जाना छोड़ िदया। अ य सरकारी कमचारी भी
आं दोलन म कू द पड़े । जगह-जगह पर िवदे शी कपड़ और व तु ओं की होली जलाई गई।
शराब की दुकान बं द करवाने के िलए मिहलाएँ उनके आगे धरने दे ने लगीं। सफाई
कमचािरय , धोिबय , नौकर आिद ने अं गर् े ज के घर म काय करने से इनकार कर िदया।
शीघ्र ही सरकारी तं तर् पर आं दोलन का प्रभाव पड़ने लगा; सरकारी कामकाज ठप पड़
गए। ऐसे म हाथ-पर-हाथ रखकर बै ठना सरकार को मु सीबत म डाल सकता था। अतः
पु नः दमनकारी नीितय का सहारा ले ते हुए अने क प्रमु ख ने ताओं को जे ल म डाल िदया
गया। ले िकन इस बार उनकी यह नीित असफल हो गई। लोग सहष जे ल जाने लगे ।
ि थित इतनी बदतर हो गई िक जे ल म बं िदय को रखने का थान कम पड़ने लगा। एक
अनु मान के अनु सार, आं दोलन के दौरान लगभग 20 हजार से अिधक लोग जे ल गए थे ।

आंदोलन पर पूण िवराम


असहयोग आं दोलन ने सरकार की नींद उड़ा दी। िहं द-ू मु सिलम सिहत सभी धमों के लोग
इससे जु ड़े हुए थे । उनकी एकजु टता दे खकर सरकार का हौसला प त हुआ जा रहा था।
ले िकन ऐसे म घिटत एक घटना ने आं दोलन को पूरी तरह से असफल कर िदया।
4 जनवरी, 1922 को उ र प्रदे श के गोरखपु र जनपद के चौरीचौरा नामक एक छोटे से
गाँ व म असहयोग आं दोलनकािरय का जु लूस िनकल रहा था। यह जु लूस पूरी तरह से
अिहं सक और शां ितमय था। ले िकन जै से ही वह थानीय चौकी के पास से िनकला, वहाँ
िनयु त कुछ अं गर् े ज िसपाही आं दोलनकािरय पर छींटाकशी करने लगे । प्रारं भ म
आं दोलनकारी उनकी बात की अनदे खी करते रहे । परं तु बार-बार अपमानजनक श द को
सु नकर अं ततः कुछ यु वा आं दोलनकारी िचढ़ गए और उ ह ने िसपािहय को प्रितकार-
व प कुछ कह िदया।
अं गर् े ज िसपाही भला अपमान कैसे सह सकते थे । थाने दार का आदे श पाते ही वे जु लूस
पर फायिरं ग करने लगे । फायिरं ग से एक आं दोलनकारी वहीं ढे र हो गया। सहनशीलता
की सीमा टू ट चु की थी; आं दोलनकारी भड़क उठे और पु िलस पर टू ट पड़े । िसपाही सं या
म बहुत कम थे , अतः जान बचाकर चौकी म जाकर िछप गए। ले िकन वे काल को
आमं तर् ण दे चु के थे । आं दोलनकािरय को शांत करना अब असं भव था। दे खते -ही-दे खते
उ ह ने चौकी को आग लगा दी, िजसम अने क िसपाही जीिवत ही जल गए।
इस घटना से गां धीजी बहुत आहत हुए। असहयोग आं दोलन म वे अिहं सा को आ मा के
समान मानते थे । उ ह िव वास था िक इस आ मशि त के बल पर वे अं गर् े ज को झुकने
के िलए िववश कर दगे । ले िकन जब आ मा ही न ट हो जाए तो सारा शि तपु ं ज न ट हो
जाता है । उ ह लगने लगा िक दे श अिहं सक आं दोलन के िलए अभी पिरप व नहीं हुआ
है , अतः उ ह ने असहयोग आं दोलन को समा त करने की घोषणा कर दी।
चौरीचौरा म घिटत दुःखद घटना की िज मे दारी उ ह ने अपने िसर ले ली। अं ततः 10
माच, 1922 को उ ह बं दी बना िलया गया और राजद्रोह का मु कदमा चलाकर छह वष
की सजा सु ना दी गई।

नरम से गरम दल की ओर
होली अ छी तरह से भड़क उठी थी। महीन-मु लायम एवं कीमती िवदे शी कपड़े तथा
व तु एँ उसम वाहा हो रहे थे । अि न की लपट इस प्रकार उठ रही थीं, मानो गु लामी की
बे िड़य को जला डालने के िलए बे चैन हो उठी ह ।
"भगत, िवदे शी कपड़ की यह एक और गठरी गई।" जयदे व ने पीठ पर लदी रं ग-िबरं गे
कपड़ की बड़ी-सी गठरी को आग म झ क िदया।
भगतिसं ह प्रस न हो उठे । तीन िदन पहले उ ह ने य पी इस होली का आरं भ िकया
था। तब से यह िनरं तर जल रही थी। जयदे व और अ य साथी घर-घर जाकर िवदे शी
कपड़े एवं व तु एँ एकित्रत करते और आग म समिपत कर दे ते। इस हवन-सामग्री को
पाकर अि न और भी ते जी से प्र विलत हो उठी।
जयदे व और अ य िमत्र पु नः धन लाने चले गए, जबिक भगतिसं ह होली की र ा करते
हुए वहीं बै ठे रहे । आग की लाल-पीली रोशनी म उनका सुं दर चे हरा दे शभि त से चमक
उठा। उन धधकती हुई वालाओं को दे खते हुए भगतिसं ह सोच रहे थे िक ये लपट इतनी
अिधक भड़कनी चािहए, िजसम सं पण ू िब्रिटश साम्रा य और गु लामी की बे िड़याँ
जलकर भ म हो जाएँ ।
अ यायी, अ याचारी और दमनकारी िब्रिटश सरकार को न ट करने हे तु गां धीजी ारा
चलाए गए असहयोग आं दोलन म सि मिलत होने के िलए उ ह ने नौवीं क ा म पढ़ाई
छोड़ दी थी। न केवल पढ़ाई छोड़ी, बि क वयं को पूरी तरह से आं दोलन को समिपत
कर िदया। ले िकन एक वष बीतने के बाद भी वराज की आहट तक सु नाई नहीं दे रही थी।
वदे शी का व्रत वीकारना अ छा था, ले िकन इससे या यह सरकार न ट हो सकती है -
भगतिसं ह के मन म बार-बार यह प्र न उठता था। परं तु उ ह िव वास था िक जब सभी
लोग एकजु ट हो जाएँ गे तो अं गर् े ज को यह दे श छोड़कर जाना ही पड़े गा।
तभी जयदे व और अ य िमत्र लौट आए। उ ह खाली आते दे ख भगतिसं ह ने थोड़ा
िवि मत होकर प्र न िकया, "यह या, होली के िलए धन नहीं लाए?"
िबना कोई उ र िदए वे भगतिसं ह के पास जमीन पर ही पै र पसारकर बै ठ गए। सभी के
चे हर पर िचं ता की रे खाएँ प ट िदखाई दे रही थीं। भगतिसं ह उनका हौसला बढ़ाते हुए
बोले , "िचं ता मत करो, दो तो! अगर कपड़े नहीं िमले तो कोई बात नहीं। हम कल दस ू रे
गाँ व जाकर वहाँ होली जलाएँ गे।"
"बस, अब हम कहीं और जाने की ज रत नहीं है ।" झं डािसं ह ने थोड़ा िचढ़कर कहा।
"िमत्र, इतनी ज दी िह मत हार गए? अभी तो जं ग शु हुई है । हम इस आं दोलन को
कोने -कोने म फैलाना है ; मातृ भिू म की से वा करनी है । इसके िलए हम कड़ी दौड़-धूप करनी
पड़े गी।" भगतिसं ह ने उसे समझाया।
"नहीं भगतिसं ह, मातृ भिू म की से वा करना हमारे भा य म नहीं है । जं ग शु होने से पहले
ही बं द हो गई है ।" झं डािसं ह ने कमजोर वर म कहा।
"म कुछ समझा नहीं! जो कहना है , प ट कहो।"
"गां धीजी ने आं दोलन थिगत कर िदया है ।" झं डािसं ह ने दो-टू क श द म कहा।
"आं दोलन थिगत कर िदया है ! यह तु म या कह रहे हो? उ ह ने ऐसा य िकया?"
भगतिसं ह आ चय म भरकर बोले ।
"गां धीजी अिहं सा के माग पर चलकर पर पर सामं ज य ारा वराज प्रा त करना
चाहते ह। ले िकन चौरीचौरा म आं दोलनकािरय ारा पु िलस चौकी को जलाने से वे बु री
तरह आहत हुए। उनका कहना था िक आं दोलन म िहं सा होते ही उसकी उपयोिगता
समा त हो गई। इसिलए उ ह ने आं दोलन थिगत कर िदया।" जयदे व ने िनराश वर म
कहा।
"इतने बड़े दे श म कोई भी अनहोनी हो सकती है । इतना अ याय और नृ शंस अ याचार
होने पर िकसी का भी सं यम टू ट सकता है । ले िकन उसे ले कर दे श यापी आं दोलन को रोक
दे ना उिचत नहीं है । कुछ लोग की अ यावहािरकता का दं ड सं पण ू दे श य भोगे ? अब
जब पिरणाम आने ही वाला था, ऐसी ि थित म आं दोलन का थगन िकसी भी तरह
उपयु त नहीं है ।"
तभी एक अ य िमत्र थोड़ा क् रोध करते हुए बोला, "हम कू ल, घर-पिरवार सबकुछ
छोड़कर आं दोलन म कू द पड़े । हमने यह माग दे श-से वा के िलए चु ना है , दे श को आजाद
करवाने के िलए चु ना है । ले िकन िस ांत की बात करके हमारे हाथ बाँ ध िदए गए ह।"
‘अब आगे या िकया जाए? जै से को तै से वाली नीित अपनाकर ट का जवाब प थर से
िदया जाए या अ याय को सहते हुए शत् के दय-पिरवतन की प्रती ा की जाए?’-
वहाँ उपि थत प्र ये क यु वक के मन म यही प्र न कुलबु ला रहा था।
भगतिसं ह गहरी सोच म डूबे हुए थे । एक-दो उपद्रवी घटनाओं के चलते आं दोलन को
थिगत करना उनकी दृि ट म उिचत नहीं था। ऐसा करना िहं सा और अिहं सा के ं म
फँसकर रा ट् रिहत की अवहे लना के समान था। इसके थान पर आं दोलन के उ े य पर
यान किद्रत कर उसे प्रा त करने के िलए प्रयास करना आव यक था। उनके मि त क
म उ नीस वषीय वीर यु वक सरदार करतार िसं ह सराबा का चे हरा घूम रहा था, जो
अं गर् े ज के िव सश त्र िवद्रोह करने के आरोप म पकड़ा गया था। बाद म मु कदमा
चलाकर उसे फाँसी की सजा दी गई। ले िकन इससे भी उसके चे हरे पर कोई िशकन नहीं
आई; अिपतु उसने हँ सते -मु सकराते दं ड को वीकार िकया।
तभी वे आवे श म भरकर बोले उठे , "आ यं ितक अिहं सा के माग का अनु सरण हमारे वश म
नहीं है । मने अमृ तसर का नरसं हार दे खा है , अं गर् े ज सै िनक ारा लोग पर होने वाले
पाशिवक और नृ शंस अ याचार दे खे ह। उ ह ने िनह थे लोग को बु री तरह से तड़पा-
तड़पाकर मार डाला। म उ ह अव य सबक िसखाऊँगा। शहीद के खून का बदला खून से
िलया जाएगा। यह होली बु झती है तो बु झ जाने दो। ले िकन शहीद ारा प्र विलत
िकए य कुंड को म बु झने नहीं दँ गू ा। जब तक मे रे प्राण रहगे , तब तक यह य कुंड
प्र विलत रहे गा। इसके िलए म अपने प्राण की आहुित दे ने से भी पीछे नहीं हटूँ गा!"
इस प्रकार नरम दल से अपना क् रां ितकारी जीवन आरं भ करने वाले भगतिसं ह गरम दल
की ओर अग्रसर हो गए।
अ याय 6
क् रांित के बीज
अ सहयोग आं दोलन थिगत हो चु का था। लेिकन इससे उन हजार िव ािथय के
भिव य पर प्र निच लग गया, जो पढ़ाई छोड़कर आं दोलन से जु ड़े थे । उ हीं िदन
ऐसे िव ािथय के िहताथ अने क िव विव ालय की थापना की गई। इनम गु जरात
िव ापीठ, िबहार िव ापीठ, काशी िव ापीठ, बं गाल रा ट् रीय िव विव ालय, ितलक
महारा ट् र िव ापीठ, अलीगढ़ मु सिलम िव विव ालय आिद प्रमु ख थे । इसी तरह का
एक िव ालय लाहौर म भी खोला गया। इसका नाम था-पं जाब ने शनल कॉले ज। इसकी
थापना पं जाब केसरी लाला लाजपतराय ने की थी। इसके पीछे उनका उ े य यु वाओं
को राजनीित की िश ा दे ना था।
इस कॉले ज म अिधकतर उ हीं िव ािथय ने दािखला िलया था, जो गां धीजी के आ ान
पर कू ल-कॉले ज छोड़कर आं दोलन से िकसी-न-िकसी प म जु ड़ गए थे । उनके मन
राजनीितक उ े जना और रा ट् रीय चे तना से पिरपूण थे ।
ू री िवशे षता थी। वे छात्र को सरकारी
कॉले ज म श्रे ठ िश ािवद् का होना उसकी दस
नौकरी या सरकार की चापलूसी करना नहीं िसखाते थे , वरन् उनका उ े य िव ािथय म
रा ट् रीयता और दे शभि त की भावना को उभारकर उ ह रा ट् रीय ने तृ व के िलए तै यार
करना था।
कॉले ज की तीसरी िवशे षता म उनके पाठ क् रम की िवषय-सामग्री शािमल थी। वहाँ
पढ़ाए जाने वाला पाठ क् रम अं गर् े जी प्रधानतावाले कॉले ज की तरह पु राना या
अं गर् े ज का यशोगान करने की अपे ा सरस, सजीव, ानवद्धक तथा िवकिसत था।
इसम न केवल भारतीय इितहास का िव तृ त ले खा-जोखा था, बि क िव व इितहास के
बारे म भी िव तारपूवक जानकारी दी गई थी। इतना ही नहीं, भारत के गु लाम बनने से
ले कर वतं तर् ता-प्राि त के िलए िकए जाने वाले सं घषों के िवषय म भी िव ािथय को
अवगत कराया जाता था।
इस प्रकार पं जाब ने शनल कॉले ज यु वाओं के िलए रा ट् रीयता का सबसे बड़ा स्रोत बन
गया था।

नेशनल कॉलेज म प्रवेश


असहयोग आं दोलन के कारण भगतिसं ह ने नौवीं क ा की पढ़ाई बीच म ही छोड़ दी थी।
आं दोलन थिगत होने के बाद उ ह ने अपनी अधूरी िश ा पूण करने का िन चय िकया।
य िप उनकी ान-साधना िनरं तर जारी थी। उनके घर पर सरदार अजीतिसं ह, सूफी अं बा
प्रसाद, लाला हरदयाल जै से क् रां ितकारी िचं तक का सािह य उपल ध था, िजसका
उ ह ने गहनता से अ ययन िकया था। ले िकन उनके िलए इतना ही काफी नहीं था। कू ल
जाना अब सं भव नहीं था और िबना मै िट् रक पास िकए कॉले ज म एडिमशन नहीं िमल
सकता था। इस ि थित ने भगतिसं ह को उलझा िदया था। वे मन-ही-मन दुःखी थे , बे चैन
थे ।
सं सार म एकमात्र माता-िपता ही ऐसे होते ह, जो अपनी सं तान के दुःख-सु ख को सहज
ही जान ले ते ह। पु त्र की मनोदशा को सरदार िकशनिसं ह भी भाँप गए। अं ततः इस
सम या के िनवारण के िलए वे ने शनल कॉले ज म अ यापन काय करने वाले भाई परमानं द
से िमले और उ ह सारी बात बताई।
भाई परमानं द राजनीितक िवद्रोह के दं ड व प काले पानी की सजा भोगकर आए थे ।
साधारण रहन-सहन, सुं दर आकृित, मधु र वर, सौ य वभाव, आदशवािदता-ये वे गु ण थे
िजनके कारण भाई परमानं द लोग के बीच ‘दे वता- व प भाई परमानं द’ के नाम से
प्रिस थे । वे रा ट् रीय आं दोलन के साथ पीड़ा और यातना सहन करने के एक महान्
प्रतीक बन गए थे ।
भगतिसं ह जै से प्रितभावान् और दे शभि त से पिरपूण यु वक का जीवन इस प्रकार यथ
हो रहा है , यह सु नकर भाई परमानं द ने याकुल होकर कहा, "िकशनिसं हजी, आपने यह
बात पहले य नहीं बताई? लाला लाजपतरायजी ने यह कॉले ज ऐसे ही यु वक को
रा ट् रीय िश ा दे ने के िलए खोला है । आप कल भगतिसं ह को ले आइए। म वयं उसके
अ ययन को दे खँ ग ू ा और िफर िनणय लूँगा िक उसे कब प्रवे श दे ना है ।"
भाई परमानं द के बारे म भगतिसं ह ने बहुत कुछ सु न रखा था और उनके मन म उनके िलए
असीिमत आदरभाव था। उ ह ने गदर आं दोलन म करतार िसं ह, िव णु गणे श िपं गले ,
लाला हरदयाल जै से क् रां ितकािरय के साथ कंधे -से -कंधा िमलाकर काय िकया था। इसके
िलए वे काले पानी की कठोर सजा भी भोग चु के थे । ऐसे महान् क् रां ितकारी का साि न य
िमलने की बात सोचकर भगतिसं ह आनं िदत हो रहे थे । भाई परमानं द मनु य को बहुत
गहरे उतरकर परखते ह। या वे उनकी कसौटी पर खरे उतर सकगे -यह भय भी भगतिसं ह
को मन-ही-मन खाए जा रहा था। इसी असमं जस की ि थित म अगले िदन भगतिसं ह
उनके क म प्रिव ट हुए।
"आओ भगतिसं ह, बै ठो।" भाई परमानं द ने मु सकराते हुए कहा।
दरवाजे पर िठठके भगतिसं ह के कान म मधु र वर गूँजा। इतनी मधु रता और आ मीयता
पाकर वे थोड़े सं यत हुए। मन का भय छ-ू मं तर हो गया। आगे बढ़कर उ ह ने प्रणाम
िकया और सं केितत कुरसी पर बै ठ गए।
भाई परमानं द लं बे, छरहरे और ते ज वी भगतिसं ह को एकटक दे खते रहे । उनकी आँ ख ने
पल भर म ही उनके अं तमन और यि त व को पढ़ िलया। मन-ही-मन उ ह ने िनणय
िलया, ‘यह हीरा हमारे कॉले ज म ही होना चािहए।’
भगतिसं ह बड़ी याकुलता से उनके ारा पूछे जाने वाले प्र न की प्रती ा कर रहे थे ,
जबिक वे ने हवश उ ह ही िनहार रहे थे । भगतिसं ह थोड़े हड़बड़ा गए। तभी भाई
परमानं द हँ सते हुए बोले , "तु ह दे खकर मु झे तु हारे चाचा अजीतिसं ह याद आ गए। वे
भी तु हारी तरह बहुत ते ज वी थे । अ छा, तु मने या- या पढ़ा है ?"
भगतिसं ह ने अब तक पढ़े हुए सारे ग्रंथ के बारे म बताया। वे एक-एक िवषय को
सहजतापूवक ले कर बात करते हुए भगतिसं ह के अ ययन की गहराई को नाप रहे थे ।
कुछ दे र बाद भाई परमानं द उठे और भगतिसं ह की पीठ को प्रेमपूवक थपथपाते हुए
बोले , "कल से तु म क ा म बै ठना आरं भ कर दो। म कुछ िकताब के नाम बताऊँगा, तु म
उनका अ ययन करो। दो महीने बाद म पु नः तु हारी परी ा लूँगा। ले िकन तु म अं गर् े जी
पर अिधक यान दो।"
"जी।" यह कहकर भगतिसं ह उठे और क से बाहर चले गए।
ठीक दो महीने बाद भाई परमानं द ने भगतिसं ह की परी ा ली और उनके वा याय से
सं तु ट होकर उ ह ने शनल कॉले ज म प्रवे श दे िदया।

श्रे ठ प्रोफेसरों का साि न य


भाई परमानं द के अितिर त ने शनल कॉले ज म अने क श्रे ठ प्रोफेसर थे । इनम कॉले ज
के प्रधानाचाय आचाय श्री जु गलिकशोर सबसे प्रमु ख थे । य िप वे िवलायत से िश ा
प्रा त करके आए थे , परं तु वतं तर् दे श की मानिसक उ मु तता से ओतप्रोत थे ।
दे शभि त और रा ट् रीयता उनम कू ट-कू टकर भरी थी। चूँिक कॉले ज म िविभ न धमों एवं
जाितय के यु वक िश ा ग्रहण कर रहे थे , इसिलए वहाँ के वातावरण को सहज बनाने
तथा उसे कट् टरवाद से दरू रखने म मह वपूण योगदान िदया। यह उनके अथक पिरश्रम
और बु द्िधम ा का ही पिरणाम था िक ने शनल कॉले ज अपनी पहचान बनाने म सफल
हुआ।
श्री जयचं दर् िव ालं कार कॉले ज के दसू रे मह वपूण तं भ थे । वे भारत की प्रथम
रा ट् रीय िश ा-सं था गु कुल काँ गड़ी के नातक तथा इितहास के मौिलक एवं गहरे
िव ान् थे । अ यापन के समय वे छात्र म िविभ न िवषय को ले कर िज ासा जगाते थे ।
त य , िन कषों तथा स य को आदे श के प म ग्रहण करने की अपे ा वे उ ह तक की
कसौटी पर परखने की प्रवृ ि पर जोर दे ते। यही उनके अ यापन की िवशे षता भी थी।
इससे िवषय सहज हो जाता और उसकी रोचकता भी बनी रहती। प्रोफेसर जयचं दर् का
सं बंध क् रां ितकािरय के साथ भी था। भगतिसं ह के प्रित उनके दय म िवशे ष ने ह था।
िव व भर म घिटत होने वाली घटनाओं तथा िविभ न क् रां ितय के बारे म बताकर वे
यदा-कदा उनका मागदशन िकया करते थे । यिद यह कहा जाए तो अितशयोि त नहीं
होगी िक वे भगतिसं ह के राजनीितक गु थे । उनके साि न य म भगतिसं ह ने अने क
मह वपूण पु तक का अ ययन िकया।

सुखदे व से िमत्रता
ते जयु त चे हरा, चमकती आँ ख, सौ य मु सकराहट-दुबल शरीर होने के बाद भी सु खदे व के
यि त व म गजब का आकषण था। 15 मई, 1907 को पं जाब के लु िधयाना शहर के
नौगरा मोह ले म जनमे सु खदे व का पूरा नाम ‘सु खदे व थापर’ था। उनके िपता का नाम
रामलाल था। बचपन से ही सु खदे व ने अं गर् े ज ारा भारतीय पर िकए जाने वाले नृ शंस
अ याचार को दे खा था। उनकी दमनकारी नीितय ने ही उनके मन म िवद्रोह के बीज बो
िदए थे । यु वा होने पर उ ह ने ने शनल कॉले ज म दािखला िलया और िविभ न िवषय का
अ ययन करने लगे ।
भगतिसं ह ने प्रथम बार क ा म प्रवे श िकया तो प्रोफेसर ने उ ह सु खदे व के साथ बै ठने
को कहा। भगतिसं ह चु पचाप उनके साथ जाकर बै ठ गए।
क ा म भारत की त कालीन ि थित और उसके कारण की िववे चना हो रही थी। बीच-
बीच म प्रोफेसर छात्र के दृि टकोण भी जान ले ते थे । इस सं दभ म भगतिसं ह एवं
सु खदे व ने सबसे अिधक प्र न करते हुए िविभ न प्रगितवादी िवचार को प्र तु त
िकया। मन-ही-मन वे दोन एक-दस ू रे की िव ा और बु द्िधम ा से प्रभािवत हो चु के
थे ।
क ा समा त होने के बाद भगतिसं ह और सु खदे व के बीच खु लकर बात होने लगीं।
रा ट् रीयता, दे शभि त, बिलदान, क् रां ित आिद के सं बंध म उनके िवचार पर पर एक
समान थे । यु वा होने के कारण दोन म ही दे श के िलए कुछ कर गु जरने की भावना िहलोर
ले रही थीं। भगतिसं ह की तरह सु खदे व भी मातृ भिू म हे तु सव व योछावर करने के िलए
दृढ़ सं क प थे ।
इस प्रकार दोन यु वक की प्रथम मु लाकात ही िमत्रता म पिरवितत हो गई। यह
िमत्रता इतनी प्रगाढ़ थी िक जीवन के अं ितम ण तक वे साथ-साथ रहे ।

नेशनल नाटक लब
ने शनल कॉले ज का वातावरण चमक-दमक से दरू सीधा-सादा था। भगतिसं ह यहाँ पूरी
तरह से रम गए। धीरे -धीरे उनकी पहचान सादे व त्रवाले यु वक के प म होने लगी।
उनके कपड़े अ त- य त होते । फटे -पु राने व त्र पहनने से भी उ ह परहे ज नहीं होता।
ले िकन ऐसे म भी उनके हाथ पु तक से भरे होते । वे अपने सारे काय वयं ही सं प न करते
थे ।
रा ट् रीय एवं सामािजक कायों के साथ-साथ नाट कला म भी भगतिसं ह का िवशे ष
झान था। िव ाथी जीवन के दौरान उ ह ने कॉले ज म ने शनल नाटक लब की थापना
की। इसके अं तगत उ ह ने महाराणा प्रताप, भारत-दुदशा, चं दर् गु त आिद नाटक का
सफल मं चन िकया। इसम उ ह ने मह वपूण िकरदार िनभाकर अपने अिभनय से लोग
को प्रभािवत िकया। चं दर् गु त म उ ह ने चं दर् गु त मौय का इतना सजीव अिभनय
िकया िक भाई परमानं द भावु क होकर मं च पर चढ़ गए और भगतिसं ह को गले लगाकर
उ ह ‘वतमान समय का चं दर् गु त’ कहकर सं बोिधत िकया।
नाटक ारा भगतिसं ह का मु य उ े य लोग को उनकी सं कृित एवं इितहास से
पिरिचत करवाना तथा उनम दे शभि त एवं रा ट् रीयता के बीज बोकर उ ह अं गर् े ज के
िव एकजु ट करना था। ले िकन सरकार को यह वीकार नहीं था िक सोए हुए भारतीय
नींद से जागकर िब्रिटश साम्रा य के िलए खतरा बन। अतः उसने ने शनल नाटक लब
को प्रितबं िधत कर िदया।

िवचारकों का प्रभाव
ने शनल कॉले ज के अितिर त लाला लाजपतराय ने ‘ ारकादास पु तकालय’ की थापना
की थी। यहाँ सभी प्रकार का दे शी-िवदे शी सािह य सु लभ था। भगतिसं ह को बचपन से
ही पु तक से िवशे ष लगाव था। घर म रखा हुआ सारा सािह य वे पहले ही घोटकर पी
चु के थे ; परं तु उनकी ान-िपपासा िदन-प्रितिदन बढ़ती जा रही थी, अतः वे पु तकालय
के िनयिमत सद य बन गए। इसके अ य राजाराम शा त्री थे , जो बाद म उ र प्रदे श
के मजदरू ने ता और क िसल के सद य बने ।
कुछ ही िदन म राजाराम और भगतिसं ह के बीच िमत्रवत् सं बंध बन गए। भगतिसं ह
उनके परामशानु सार िविभ न िवचारक की पु तक का अ ययन करने लगे । इनम से
अिधकतर पु तक िवदे शी दाशिनक एवं िवचारक ारा िलखी गई थीं। इनके अ ययन ने
भगतिसं ह को एक नई सोच और नई िवचारधारा दी; उनकी बौद्िधकता एवं िव ा का
अभूतपूव िवकास हुआ। एक ओर काल मा स के समाजवादी िस ांत ने उनके मन पर
गहरा प्रभाव डाला, वहीं दस ू री ओर िव यात सी अराजकतावादी बु किनन की भी वे
प्रशं सा करते थे । सी क् रां ितकारी बिलदान दे कर अपने िस ांत एवं आदशों का प्रचार
करते थे । भगतिसं ह को ऐसे क् रां ितकािरय ने सवािधक प्रभािवत िकया। यही कारण था
िक वे आतं कवाद एवं समाजवाद-दोन िवचारधाराओं के समथक थे ।
एक िदन कुछ पु तक पढ़ते समय राजाराम ने भगतिसं ह को पास बु लाकर कहा, "एक
बहुत ही अ छी पु तक आई है । मु झे िव वास है िक तु ह अ छी लगे गी।"
‘पु तक’ कहते ही भगतिसं ह शीघ्र उनके पास की पु तक पर झपट पड़े । पु तक का नाम
था-‘अनारिक म एवं अदर एसे ज’।
"नाम तो बहुत ही आकषक है ।" यह कहकर भगतिसं ह वहीं एक कोने म बै ठ गए और
िकताब पढ़ने लगे ।
उस पु तक म विणत ‘िहं सा का मनोिव ान’ नामक एक अ याय म फ् रांस
अराजकतावादी नवयु वक वे लाँ का बयान िदया गया था। वह बयान उसने अपनी
िगर तारी के बाद जज के सामने िदया था। उसम कहा गया था िक उसने िकस प्रकार
ट् रेड यूिनयन को सं गिठत िकया, सावजिनक सभाओं म या यान िदए, शां ितमय
प्रदशन िकए। परं तु श्रमजीिवय का शोषण करने वाले पूँजीपितय पर इसका कोई असर
नहीं पड़ा। तब उन तक अपनी बात पहुँचाने के िलए उसने फ् रांस की असबली म बम
फका।
वे लाँ का बयान अ यं त भावु क और जोशीला था। उसे पढ़कर भगतिसं ह अ यं त
प्रभािवत हुए।
पु तक पढ़ने के बाद वे शा त्रीजी से बोले , "बहुत ही मािमक है , दय पशी है ।"
"ले िकन या?" शा त्रीजी ने जानबूझकर पूछा।
"वे लाँ का बयान। आपने पढ़ा है न!" ‘िहं सा का मनोिव ान’ िनबं ध म िदया गया फ् रांस के
वे लाँ का बयान उ ह ने पढ़ा और सोचा िक हम भी बहर को सु नाने के िलए ऐसा ही कुछ
करना चािहए।
"अरे भगत भाई, यह पु तकालय है ।"
भगतिसं ह त काल होश म आ गए। उ ह यान ही न रहा िक इस पु तकालय पर
पु िलसवाल की कड़ी नजर है । यु वक यहाँ एकित्रत होकर क् रां ित की प्रेरणा दे नेवाली
पु तक पढ़ते ह-इस बात की भनक उ ह बहुत पहले ही लग चु की थी। अब वे सबूत हाथ
लगने की प्रती ा कर रहे थे । यहाँ आने वाले सभी यु वक यह बात जानते थे , इसिलए
िवशे ष सावधानी बरती जाती थी। ले िकन आज अनजाने ही भगतिसं ह का सं यम टू टने
लगा था।
िफर वे िकताब अपने नाम पर िलखवाकर घर ले आए और उसके अ याव यक अं श को
डायरी म नोट िकया।
उ ह ने लगभग च सठ बार इस पु तक को लाइब्रेरी से िनकलवाकर पढ़ा। उ ह ने दृढ़
िन चय कर िलया िक समय आने पर वे भी वे लाँ के माग का अनु सरण करगे ।
अ याय 7
गृह- याग
प्रो फेसर जयचं दर् के मा यम से भगतिसं ह का पिरचय बं गाल के क् रां ितकािरय के
साथ हुआ। इनम वे शचींदर् नाथ सा याल से सबसे अिधक प्रभािवत हुए। वे भी
भगतिसं ह को बहुत ने ह करते थे तथा उनका मागदशन करते थे । इस प्रकार
क् रां ितकािरय के साथ उनका सं पक बढ़ने लगा।
वष 1923 म भगतिसं ह ने एफ-ए- पास करके आगे की पढ़ाई के िलए बी-ए- म प्रवे श
िलया। परं तु पिरवार म उनके िववाह को ले कर सु गबु गाहट होने लगी थी। भगतिसं ह
अपनी दादी जयकौर के बहुत लाड़ले थे । जगतिसं ह की मृ यु के बाद उ ह ने अपना सारा
ने ह भगतिसं ह पर उड़े ल िदया था। उनकी हािदक इ छा थी िक मृ यु से पूव वे अपने
पोते का िववाह दे ख जाएँ । य िप िकशनिसं ह अपने पु त्र के इराद को जानते थे । िफर
भी वे चाहते थे िक भगतिसं ह िववाह करके खे तीबाड़ी के काय म जु ट जाएँ । इसिलए
उ ह ने उनका िववाह सरगोधा िजले के मानवाला गाँ व म रहने वाले सरदार ते जािसं ह
नामक एक अमीर िसख की बहन के साथ तय कर िदया। ते जािसं ह एक बार भगतिसं ह को
दे खना चाहते थे । िकशनिसं ह ने उनका प्र ताव सहष वीकार कर िलया; ले िकन अभी
तक उ ह ने भगतिसं ह को सगाई के िवषय म कुछ नहीं बताया था।
िनधािरत िदन ते जािसं ह अपने कुछ सं बंिधय के साथ भगतिसं ह से िमलने आ पहुँचे।
पु त्र का वभाव जानते हुए िव ावती मन-ही-मन भयभीत हो रही थीं। उ ह डर था िक
कहीं भगतिसं ह कोई ऐसी-वै सी बात करके होने वाले सं बंिधय को नाराज न कर द। ले िकन
घर म मे हमान के आने से ले कर उनकी वापसी तक भगतिसं ह बहुत अ छी तरह से पे श
आए। वे सभी के साथ हँ सते -मु सकराते बात कर रहे थे । िपता के कहने पर वे ते जािसं ह को
अपनी खे तीबाड़ी भी िदखा लाए थे । भगतिसं ह ने अपने यवहार से सबका मन मोह िलया
था। दोपहर को भोजन करके उ ह ने थोड़ा आराम िकया और िफर लौटने की तै यारी करने
लगे । भगतिसं ह ने ताँ गा िनकाला और मे हमान को छोड़ने चल िदए।
चलने से पूव ते जािसं ह ने िकशनिसं ह का हाथ पकड़कर गद्गद होते हुए कहा, "भगतिसं ह
बहुत ही गु णी, खु शिमजाज और पिरश्रमी है । मु झे िव वास है िक मे री बहन इस घर म
हमे शा सु खी रहे गी। अब ज दी ही सगाई की तारीख िनि चत कर लगे ।"
सगाई की बात सु नकर भगतिसं ह च क पड़े ; ले िकन उस समय कुछ पूछना उ ह उिचत
नहीं लगा, अतः उ ह ने चु पचाप घोड़े को सरपट दौड़ा िदया।

िववाह से इनकार
मे हमान को छोड़कर भगतिसं ह शीघ्र लौट पड़े । उनका मन उद्िव न था। वे ज दी-से -
ज दी घर पहुँचकर िपता से अपने िववाह के बारे म बात करना चाहते थे ।
घर पहुँचकर वे सीधे िपता के कमरे म गए और सीधे प्र न िकया, "िपताजी, आप
ते जािसं हजी के साथ िकसके िववाह की बात कर रहे थे ?"
"मने तु हारा िववाह उनकी बहन के साथ तय कर िदया है । वे उसी के बारे म बात कर रहे
थे ।" िकशनिसं ह ने मु सकराते हुए जवाब िदया।
"ले िकन म अभी िववाह नहीं करना चाहता।" भगतिसं ह ने सपाट श द म कहा।
"लड़की सुं दर और गु णी है । िफर तु म िववाह य नहीं करना चाहते ?"
"जब तक म अपने पै र पर खड़ा नहीं हो जाता तब तक िववाह नहीं क ँ गा।" भगतिसं ह
ने बात शीघ्र समा त करने के िलए कहा।
"इसके िलए तु ह कौन मना कर रहा है ? शादी कर लो और िफर पै र पर खड़े होने की
कोिशश करो।" िकशनिसं ह इतनी ज दी पीछा छोड़ने वाले नहीं थे ।
"ले िकन मने सु ना है िक लड़की पढ़ी-िलखी नहीं है । कम-से -कम लड़की का मै िट् रक पास
होना ज री है । म एक अनपढ़ लड़की से िववाह नहीं क ँ गा।" भगतिसं ह ने दस ू रा पतरा
अपनाया।
"पढ़ी-िलखी लड़की या सबसे अलग होती है ? या उसके ब चे ज मजात ही पढ़े -िलखे
होते ह? तु हारी दादी और माँ भी अिधक पढ़ी-िलखी नहीं ह। या उ ह ने घर-पिरवार
नहीं सँ भाला?"
"ले िकन म िववाह नहीं करना चाहता। दे श मु झे बु ला रहा है । मने तन-मन-धन से रा ट् र
की से वा करने की प्रित ा की है । हमारा पिरवार दे शभि त से पिरपूण है और म उ हीं के
पदिच का अनु सरण करना चाहता हँ ।ू " भगतिसं ह के मु ख से स य बाहर आ ही गया।
"भगत, तु हारी दादी और माँ की इ छा है िक तु म िववाह करो। इसिलए तु ह
प्रस नतापूवक िववाह के िलए तै यार हो जाना चािहए। इसी म उनका स मान है ।"
िकशनिसं ह ने थोड़ा नरम होते हुए कहा।
"िपताजी, एक दे शभ त होने के बाद भी आप पािरवािरक भावनाओं को मह व दे रहे ह;
जबिक सं पण
ू दे श दे शभ त से अपने उ ार की आशा लगाए बै ठा है । हम उनके बारे म
भी सोचना चािहए।"
"भगत, इस िवषय म म कोई बात नहीं सु नना चाहता। मने ते जािसं ह को वचन िदया है ,
अब यह िववाह होकर ही रहे गा।" िकशनिसं ह ने अपना िनणय सु ना िदया।
भगतिसं ह ने पहले ही िववाह न करने का िनणय ले िलया था। वे अपना सं पण
ू जीवन
पािरवािरक बं धन म न उलझाकर दे श के िलए समिपत करना चाहते थे और वे अपने
िन चय पर अटल थे । ले िकन इस समय उ ह बचने का कोई भी माग नहीं सूझ रहा था।
ऐसी ि थित म उ ह शचींदर् नाथ का मरण हो आया। उ ह ने उसी समय कागज-कलम
उठाया और एक पत्र िलखकर उ ह अपनी ि थित से अवगत कराया। साथ ही मागदशन
करने की भी प्राथना की।
प्र यु र म शचींदर् नाथ ने भगतिसं ह का मागदशन करते हुए कहा था, "िववाह करना
या न करना, यह तु हारी इ छा पर िनभर करता है । ले िकन इतना अव य कहँ ग ू ा िक
िववाह के उपरांत दे श के िलए बड़ा काय करना तु हारे िलए सं भव नहीं होगा। पािरवािरक
बं धन शनै ः-शनै ः तु ह इतना जकड़ ले गा िक तु म रा ट् रीयता और दे शभि त से बहुत दरू
हो जाओगे । यिद तु मने वयं को दे श के िलए समिपत कर िदया है तो िववाह के बं धन को
अ वीकार कर दो। दे श को तु हारी आव यकता है ; लाख लोग की आशाएँ तु म पर
िटकी ह। उससे िवमु ख होकर िववाह करना दे शद्रोह के समान है । भगत, यह प्र ताव
अ वीकार करने के बाद भी पिरवार ारा तु म पर िववाह का दबाव िनरं तर डाला जाता
रहे गा। उिचत यही है िक तु म घर-पिरवार छोड़ दो। दे शभ त को मातृ भिू म के िलए बड़े -
से -बड़ा याग करने से भी पीछे नहीं हटना चािहए। यिद तु ह यह बात वीकार हो तो म
तु हारा मागदशन कर सकता हँ ।ू "
शचींदर् नाथ के पत्र ने भगतिसं ह के भिव य का माग प्रश त कर िदया था। मन-ही-मन
कुछ सोचते हुए वे अपने कमरे म जाकर सो गए।

पंछी का पलायन
सूरज की िकरण ने जै से ही धरती को छुआ, प्रकृित म चार ओर हलचल आरं भ हो गई।
पे ड़-पौधे अँ गड़ाइयाँ ले ते हुए तनकर खड़े हो गए; मं द-मं द बहती हवाएँ उनके प को
छक ू र सरसराहट का शोर करने लगीं; पि य की चहचहाहट से आकाश गूँजने लगा;
निदयाँ कल-कल का मधु र तान छे ड़ने लगीं। ऐसी ही हलचल सरदार िकशनिसं ह के घर म
थी। भगतिसं ह की सगाई का िदन तय हो चु का था। िकतने वषों के बाद घर म िफर से
शहनाई गूँजेगी, यह सोच-सोचकर जयकौर प्रस न हो रही थीं। पूरा घर सगाई की
तै यािरय म जु ट गया था।
"सूरज िसर पर चढ़ आया है , ले िकन अभी तक भगत सोकर नहीं उठा।" जयकौर के कहने
पर िव ावती भगतिसं ह को उठाने उनके कमरे म ग , ले िकन िब तर खाली था।
‘भगत सु बह-सवे रे टहलने गया होगा’, यह सोचकर िव ावती भी दै िनक कायों म लग
ग । ले िकन जब बहुत दे र हो गई और भगतिसं ह नहीं लौटे तो िव ावती को िचं ता होने
लगी। उ ह ने पिरवार के अ य सद य से भगतिसं ह के बारे म पूछा, ले िकन िकसी ने भी
सु बह से उसे नहीं दे खा था।
दोपहर को िकशनिसं ह भोजन करने बै ठे तो िव ावती ने धीरे से पूछा, "आपने या भगत
को कहीं भे जा है ?"
"नहीं। य , या हुआ?" िकशनिसं ह ने च ककर पूछा।
"सु बह से उसका का कोई अता-पता नहीं है । पहले तो िबना बताए कहीं नहीं गया। मु झे
तो िचं ता हो रही है ।" जयकौर ने सारी बात बताई।
"माँ , तु म िचं ता मत करो। ऐसे ही दो त के पास गया होगा। अभी थोड़ी दे र म आ
जाएगा।" िकशनिसं ह ने हँ सते हुए कहा।
"आ तो जाएगा; ले िकन इस प्रकार िबना बताए जाना ठीक नहीं है । कल उसकी सगाई
है । लड़कीवाल को पता चले गा तो वे या सोचगे ? तु म उसे ढूँढ़कर मे रे पास ले आओ।"
जयकौर ने कहा।
"वह लाहौर म सु खदे व या भगवती के साथ ही होगा।" िव ावती ने ढूँढ़ने की जगह बता
दी।
भोजन के बाद िकशनिसं ह लाहौर जाने के िलए तै यार हो गए। कुछ पए साथ रखने के
िलए उ ह ने अलमारी खोली तो िवि मत रह गए। वहाँ पए नहीं थे । उ ह ने िव ावती
से पूछा, परं तु िनराशा हाथ लगी। िकशनिसं ह के मन म सं देह गहराने लगा। भगतिसं ह
और पय का गायब होना उ ह खटक रहा था। िफर भी तस ली करने के िलए उ ह ने
पूरी अलमारी छान डाली, मे ज पर रखी पु तक उलट-पु लट दीं। ले िकन पए नहीं िमले ।
तभी उनकी दृि ट मु ड़े हुए एक कागज पर पड़ी।
िकशनिसं ह ने कागज उठा िलया। वह एक पत्र था, जो भगतिसं ह ने अपने िपता के नाम
िलखा था। पत्र म प ट श द म िलखा था-

पू य िपताजी,
नम ते !
अपनी िजं दगी म आजादी की लड़ाई के नाम कर चु का हँ ू इसिलए मे री िजं दगी म आराम
और दुिनया के दस
ू रे आकषण का कोई मह व नहीं है ।
आपको याद होगा िक जब म छोटा था तो बापूजी ने मे रे य ोपवीत के व त ऐलान िकया
था िक मु झे िखदमते -वतन के िलए स प िदया गया है । िलहाजा म उस व त की प्रित ा
पूरी कर रहा हँ ।ू उ मीद है , आप मु झे माफ कर दगे ।
भगतिसं ह
िकशनिसं ह का चे हरा सफेद पड़ गया; वे ध म से नीचे बै ठ गए। पत्र उनके हाथ से
छटू कर पहले ही नीचे िगर चु का था। पित की ऐसी हालत दे खकर िव ावती भयभीत हो
ग । उ ह ने ज दी से पत्र उठाया और धड़कते मन से पढ़ा। पत्र समा त होते -होते
उनकी आँ ख से आँ स ू बहने लगे । इस अप्र यािशत आघात से पल भर वे कुछ भी बोल
नहीं सकीं। िफर वयं को सं यत करते हुए पित को लाहौर जाकर भगतिसं ह को ढूँढ़ने के
िलए कहा।
िकशनिसं ह टू टे वर म बोले , "उसे ढूँढ़ने का कोई लाभ नहीं है । वह नहीं िमले गा। अब
तक तो वह लाहौर से भी कहीं दरू चला गया होगा।"
िव ावती को उनकी बात ठीक लगी; पं छी आकाश म उड़ान भर चु का था और पीछे
अपने िनशान छोड़ गया था।

योितषी की भिव यवाणी


लाहौर म भगतिसं ह के होने की बात असं भव थी। ले िकन िफर भी माँ के दय को
समझाना िकशनिसं ह के वश म नहीं था। उनके मन म आस थी िक उनका बे टा िमल
जाएगा और वे माँ की इस आस को तोड़ना नहीं चाहते थे । अतः दोन पित-प नी पु त्र
की खोज म लाहौर पहुँच गए।
ने शनल कॉले ज म पूछताछ की गई; सु खदे व, भगवती व यशपाल से पूछा। िकसी को
उनकी कोई जानकारी नहीं थी। िकशनिसं ह का कथन स य था। भगतिसं ह बहुत पहले ही
लाहौर छोड़ चु के थे । ले िकन िव ावती को िव वास था िक वे लाहौर म ही ह। इसी बीच
वे वालामं डी के एक प्रिस योितषी के पास भी ग । योितषी ने भगतिसं ह का कोई
कपड़ा लाने के िलए कहा।
ू रे िदन भगतिसं ह की एक पगड़ी ले कर िव ावती पु नः योितषाचाय के पास पहुँचीं।
दस
योितषाचाय ने पगड़ी को दे खा और कुछ दे र तक सोचने के बाद गं भीर वर म बोले ,
"आपका पु त्र कुछ िदन म ही लौट आएगा; ले िकन---"
पु त्र के लौटने की बात सु नकर िव ावती के चे हरे पर प्रस नता के भाव आ गए। परं तु
पं िडतजी ारा ‘ले िकन’ श द सु नकर वे थोड़ी भयभीत होकर बोलीं, "ले िकन या,
पं िडतजी?"
"ले िकन घर लौटने पर भी वह अिधक िदन तक आपके पास नहीं रहे गा। वह िफर से चला
जाएगा।"
भगतिसं ह के पु नः जाने की बात ने उ ह स न कर िदया।
"पं िडतजी, या उसे बाँ धकर रखने का कोई उपाय नहीं है ?" िव ावती ने आशा भरे ने तर्
से दे खा।
पं िडतजी बोले , "आपके पु त्र की िजं दगी बड़ी अद्भुत है । उसका भा य बड़ी ही िविचत्र
ि थित उ प न करे गा। उसे बाँ धकर रखना िकसी के वश म नहीं है ।"
"कैसी ि थित, महाराज?" िव ावती ने उ सु क होकर पूछा।
"वह या तो त त पर बै ठेगा या िफर---" पं िडतजी एक पल के िलए चु प हो गए।
माँ का दय धड़का। उ ह ने डरते -डरते पूछा, "या िफर या, पं िडतजी?"
"या िफर त त पर झल
ू े गा।" पं िडतजी ने अपनी बात पूरी की।
िव ावती की आँ ख के आगे अँ धेरा छा गया, हाथ-पै र काँपने लगे , चे हरा पसीने से नहा
उठा। ऐसा लगा मानो सहस्र सपों ने अपने िवष को उनके शरीर म उतार िदया हो।
अ याय 8
् वेश
छदम
घ र छोड़ने के साथ भगतिसं ह पूरी तरह से क् रां ित की लड़ाई म कू द पड़े । शचींदर् नाथ
के परामश पर वे लाहौर से भागकर कानपु र आ गए और ‘बलवं त िसं ह’ के नाम से रहने
लगे । यहाँ वे योगे शचं दर् चटजी के साथ काम कर रहे थे , जो कानपु र म क् रां ितकारी
गितिविधय के सं चालक थे । यहीं उनका पिरचय सु रेशचं दर् भट् टाचाय, बटु के वर द ,
अजय घोष तथा िवजयकुमार िस हा जै से क् रां ितकािरय के साथ हुआ। बाद म बटु के वर
द ने भगतिसं ह को बाँ गला भाषा म पारं गत कर िदया। धन का अभाव था, इसिलए
भगतिसं ह अखबार बे चकर गु जर-बसर कर रहे थे । इसके अितिर त छोटे -मोटे पत्र म
‘बलवं त िसं ह’ के नाम से उनके ले ख भी प्रकािशत हो रहे थे ।
भगतिसं ह रामनारायण बाजार म रहते थे । यह बाजार बं गाली लोग का गढ़ था। इतने
बं गािलय के बीच म एक िसख का रहना िकसी के भी सं देह का कारण बन सकता था।
पु िलस के कुछ िसपाही भी उनके मकान के आस-पास टोह ले ते िदखाई िदए थे । ऐसे म
भगतिसं ह को जगह बदलने की आव यकता थी।
इसी बीच ‘प्रताप’ प्रेस के सं पादक गणे शशं कर िव ाथी ने एक पत्र म बलवं त िसं ह
ारा िलिखत ले ख पढ़े । वे उनकी ले खनी से अ यं त प्रभािवत हुए। पूछताछ करने पर
पता चला िक बलवं त िसं ह उनकी प्रेस म कायरत सु रेशचं दर् भट् टाचाय का पिरिचत है ।
उ ह ने उनसे बलवं त िसं ह के िवषय म पूछा।
प्र न सु नकर सु रेशचं दर् हड़बड़ा गए। िफर सं यत होकर बोले , "जी हाँ , बलवं त िसं ह को
म अ छी तरह से जानता हँ ।ू "
"िलखने के अितिर त बलवं त िसं ह कहीं नौकरी भी करता है ?"
"अभी नहीं, उसे नौकरी की तलाश है । ले िकन वह वहीं नौकरी करे गा जहाँ रहकर वह दे श
की से वा कर सके।"
ू ा।"
"ठीक है , कल आप उ ह यहाँ ले आइए। म उनके रहने की यव था यहीं कर दँ ग
"ले िकन पु िलस की उन पर कड़ी नजर है ।" सु रेशचं दर् ने सं देह प्रकट िकया।
ू ा।" गणे शशं कर
"आप िचं ता न कर। म पत्रकािरता के काय से उ ह िद ली भे ज दँ ग
िव ाथी ने उनके सं देह का िनवारण िकया।

‘प्रताप’ म नौकरी
उसी शाम सु रेशचं दर् ने भगतिसं ह को बताया िक कल दोपहर गणे शशं कर िव ाथी ने
उ ह ‘प्रताप’ के कायालय म बु लाया है । उन िदन ‘प्रताप’ समाचार-पत्र बहुत
लोकिप्रय था। लोग के बीच म उसकी गहरी पै ठ थी। उसके सं थापक गणे शशं कर
िव ाथी का लोग दय से स मान करते थे । ऐसे महान् यि त ने उ ह िमलने के िलए
य बु लाया है , यह सोचकर भगतिसं ह िवि मत थे ।
िनधािरत समय पर भगतिसं ह उनके सामने जा पहुँचे। िव ाथीजी के सं केत पर वे एक
कुरसी पर बै ठ गए। दोन के बीच म वा ालाप आरं भ हुआ।
प्र न िव ाथीजी ने आरं भ िकया, "बलवं त, आपने कहाँ तक िश ा ग्रहण की है ?"
"म बी-ए- प्रथम वष तक ही पढ़ा हँ ।ू "
"मने सु ना है िक आप बड़ी कुशाग्र बु द्िध के ह। िफर बीच म कॉले ज य छोड़ िदया?"
िव ाथीजी ने अगला प्र न िकया।
"कुछ पािरवािरक सम या के कारण।"
"आपकी िलखने म िच है ?"

"जी हाँ । म िहं दी, अं गर् े जी, उद म िलख ले ता हँ ।ू "
िव ाथीजी ारा पूछे गए प्र न यि तगत थे । ‘कहीं ये मे री वा तिवकता तो नहीं जान
गए? यहाँ से ज दी चले जाना ही मे रे िलए उिचत है ।’ यह सोचकर वे उठ खड़े हुए और
हाथ जोड़कर बोले , "अ छाजी, अब म चलता हँ ।ू "
"अभी आप कैसे जा सकते ह?" िव ाथीजी ने मु सकराते हुए कहा।
भगतिसं ह का िदल धड़का। अब ये उ ह पकड़कर घर भे ज दगे । चे हरे पर घबराहट िदखने
लगी। यह दे खकर िव ाथीजी उठे और हँ सते हुए उनका कंधा थपथपाकर बोले , "हमारा
दफ् रतर शाम को बं द होता है । तब तक आप यहीं काम कर। आपकी नौकरी आज से ही
शु हो गई है । ले िकन या आप यहाँ काम करना पसं द करगे ?"
"आपके साथ काम करना मे रा सौभा य होगा। म सहष तै यार हँ ।ू " भगतिसं ह ने वीकृित
दे दी। इस प्रकार भगतिसं ह ‘प्रताप’ म काम करने लगे ।
इसी बीच िद ली म दं गे हुए। गणे शशं कर िव ाथी ने भगतिसं ह को ‘प्रताप’ का
सं वाददाता बनाकर िद ली भे जा। भगतिसं ह ने इस काय को पूरी ईमानदारी और िन ठा से
पूण िकया। दं ग पर िलखा गया उनका ले ख ‘प्रताप’ के दो अं क म प्रकािशत हुआ। यह
ले ख इतना प्रभावशाली था िक पत्र के प्रकाशन के साथ ही ‘बलवं त िसं ह’ का नाम
लोग की जु बान पर चढ़ गया।

कानपुर से पलायन
चूँिक ‘प्रताप’ क् रां ितकािरय से जु ड़ा हुआ समाचार-पत्र था, इसिलए इसम िविभ न
प्रकार का क् रां ितकारी सािह य प्रकािशत होता था। यहाँ नौकरी करते हुए भगतिसं ह
का सं पक अने क क् रां ितकािरय से हुआ। वयं गणे शशं कर िव ाथी भी क् रां ितकारी
िवचारधारा के सूतर् धार थे , अतः वे अकसर भगतिसं ह को वलं त ले ख िलखने के िलए
प्रो सािहत करते थे । सहयोग पाकर भगतिसं ह ने अपनी ले खनी का मु ख खोल िदया और
जोशीले ले ख िलख-िलखकर लोग को जाग क करने लगे ।
दशहरा िनकट आ गया था। इस उपल य म प्रतापगढ़ म एक िवशाल मे ला लगता था,
िजसे दरू -दराज से लोग दे खने आते थे । अवसर उपयु त था; प्रताप प्रेस म िव ापन के
प म क् रां ितकारी सािह य छापा गया और उसे मे ले म बाँटने की िज मे दारी भगतिसं ह
को स पी गई। भगतिसं ह पाँच सािथय के साथ छद्म वे श धारण करके मे ले म पहुँचे और
घूम-घूमकर िव ापन बाँटने लगे ।
पु िलस को िव वास था िक क् रां ितकारी इस मे ले म िकसी सं िद ध काय को अं जाम दे
सकते ह। इसिलए सादे व त्र म कुछ िसपाही मे ले म घूम रहे थे । िव ापन पढ़कर वे
सतक हो गए और भगतिसं ह को सािथय सिहत घे र िलया। ले िकन दस गीदड़ िमलकर
भी एक िसं ह का मु काबला नहीं कर सकते । भगतिसं ह का सं केत पाते ही उनके साथी
िसपािहय पर टू ट पड़े । कुछ ही दे र म िसपाही जमीन पर िगरे धूल चाट रहे थे और
भगतिसं ह सािथय सिहत फरार हो चु के थे ।
इस घटना के बाद से भगतिसं ह अं गर् े ज अिधकािरय की आँ ख की िकरिकरी बन गए।
अब उनका कानपु र म रहना खतरे से खाली नहीं था। यह बात गणे शशं कर िव ाथी भी
भली-भाँ ित जान चु के थे । अतः उ ह ने उ ह अलीगढ़ िजले के शादीपु र ग्राम के ने शनल
कू ल म हे डमा टर बनाकर भे ज िदया। उनके रहने की यव था वहीं के थानीय ने ता
ठाकुर टोलिसं ह के घर कर दी गई। गणे शशं कर िव ाथी जै से परम िव ान् एवं महान्
क् रां ितकारी के साि न य, प्रताप प्रेस के कायालय और कानपु र को अलिवदा कहकर
भगतिसं ह अलीगढ़ की ओर प्र थान कर गए।

संदेश
भगतिसं ह के जाने के बाद से उनके घर म मातम छा गया था। उ ह इस बात की िबलकुल
उ मीद नहीं थी िक िववाह के िलए दबाव डाले जाने पर भगतिसं ह इतना कठोर कदम
उठा लगे । परं तु होनी को भला कौन टाल सकता है ! आकाश म उ मु त िवचरणवाले इस
पं छी के जीवन म ई वर ने पािरवािरक सु ख नहीं िलखा था। सबने िकसी-न-िकसी तरह से
अपने आप को समझा िलया था। ले िकन दादी जयकौर का मन बोझ से दबा जा रहा था।
उनकी िजद के कारण भगतिसं ह को घर छोड़कर जाना पड़ा, इस बात से उ ह गहरा सदमा
लगा था। इसके फल व प उ ह ने िब तर पकड़ िलया। िदन-प्रितिदन उनका वा य
िबगड़ता जा रहा था। पोते को दे खने की इ छा उ ह अं दर-ही-अं दर बे चैन कर रही थी।
माँ के मन की बात िकशनिसं ह अ छी तरह से जानते थे , अतः उ ह ने ‘वं दे मातरम्’
नामक समाचार-पत्र म एक िव ापन छपवाया-‘भगतिसं ह जहाँ भी ह, ज दी लौट
आएँ । उनकी दादीजी स त बीमार ह।’
यह िव ापन गणे शशं कर िव ाथी ने भी पढ़ा था। ले िकन बलवं त िसं ह के वा तिवक
पिरचय से वे अनिभ थे । उस समय तक भगतिसं ह शादीपु र की ओर रवाना हो चु के थे ,
इसिलए वे भी इससे अनिभ रहे ।

अ यापन
गाँ व की सीमा पर ‘शादीपु र’ नामपट् ट दे खकर भगतिसं ह मन-ही-मन मु सकराए। ले िकन
ू रे ही ण उनका हँ समु ख चे हरा उदासी से मु रझा गया। उनका घर, वहाँ के ममतामयी
दस
लोग उ ह तीव्रता से याद आने लगे । उनके इस प्रकार चले आने से माँ , िपताजी,
दादीजी, दादाजी, चाचीजी, अमरो-सब िकतने दुःखी हुए ह गे । उनकी आँ ख भर आ ।
ले िकन िफर सँ भलकर उ ह ने वयं को याद से अलग िकया और आगे बढ़ गए।
नया गाँ व, नया घर, नया वातावरण, नया काय। ठाकुर टोलिसं ह ने भगतिसं ह की बहुत
आवभगत की और उनके रहने के िलए एक साफ-सु थरे कमरे की यव था कर दी। धीरे -
धीरे कू ल के कामकाज म उनका मन रमने लगा। हँ समु ख वभाव, प्रस निच यवहार
और सु दृढ़ता ने शीघ्र ही उ ह छात्र के बीच लोकिप्रय बना िदया। वे उनकी एक
आवाज पर सव व योछावर करने को त पर रहते । उनके मागदशन म छात्र
राजनीितक, सामािजक और आिथक िवषय का अ ययन करने लगे ।
पढ़ाने के अितिर त भगतिसं ह ने कू ल म व तृ व सभा, िनबं ध प्रितयोिगता, खे ल आिद
पर भी सकारा मक दृि टकोण थािपत िकया। वे उपल ध साधन ारा ब च म
दे शभि त और रा ट् रीयता की भावना भरने लगे ।
य िप यहाँ भगतिसं ह को िकसी प्रकार की तकलीफ नहीं थी, िफर भी मन बे चैन था।
बार-बार घर की याद उनके मन-मि त क को झकझोर जाती। घर-पिरवार के बारे म जानने
के िलए वे याकुल हो उठते । साहस एकित्रत करके उ ह ने एक पत्र िलखा। िलखते
समय उ ह ने केवल कुशल-मं गल िलखने का िन चय िकया था। ले िकन कागज पर ले खनी
चली तो वे बहते चले गए। वे यह भी भूल गए िक यह पत्र अमरो के नाम है । घर छोड़ने
का उ े य, कानपु र म उठाई गई तकलीफ, घर के यार की कमी तथा पराए गाँ व म रहने
की बात-उ ह ने सबकुछ कागज पर उतार िदया।
पत्र िलखकर मन हलका हुआ। पु नः िचट् ठी पढ़ी। ले िकन इस बार मन की भावु कता बड़ी
िविचत्र महसूस होने लगी। तभी उ ह दादीजी की िजद का मरण हो आया। घर पत्र
िलखने का मतलब गृ ह थी के बं धन म फँसने का भय था। उ ह ने उसी समय िचट् ठी
फाड़कर फक दी।
बहुत िदन तक वयं को रोकने के बाद अं ततः उ ह ने अपने िमत्र रामचं दर् को एक पत्र
िलखा-"म यहाँ सकुशल हँ ।ू यहाँ के ने शनल कू ल म म हे डमा टर का काय कर रहा हँ ।ू
ले िकन मु झे घर की िचं ता हो रही है । इसिलए मे रे घर जाकर तथा सब हाल जानकर मु झे
पत्र िलखना। दादीजी के वा य के बारे म भी सूिचत करना। परं तु वहाँ िकसी को मत
बताना िक तु ह मे री िचट् ठी िमली है और न ही िकसी को मे रा पता बताना। तु ह मे री
कसम, हमारी दो ती की कसम।"
अगले िदन ही उ ह ने पत्र डाक म डाल िदया।
अ याय 9
घर वापसी
चौ थे िदन पत्र रामचं दर् को िमल गया। पत्र म शीघ्र उ र दे ने के िलए िलखा हुआ
था। अतः वे उसी समय तै यार होकर भगतिसं ह के घर जा पहुँचे।
"िकतने िदन के बाद आए हो, बे टा!" िव ावती ने हयु त वर म बोलीं। सहसा
भगतिसं ह की याद आते ही उनकी आँ ख डबडबा आ । बे बेजी की आँ ख का पानी दे खकर
रामचं दर् का मन भी भर आया। ले िकन वे कुछ करने म असमथ थे । भगतिसं ह जो ठान
ले ते थे , उसे बदलना िकसी के वश म नहीं था। तभी दादीजी ने आवाज मारकर उ ह अं दर
आने के िलए कहा।
"दादी माँ , तबीयत ठीक नहीं है ?" कहते हुए रामचं दर् ने उनके पै र छुए।
जयकौर को अपने पोते की याद आ गई। वह भी इसी तरह उनके पै र छुआ करता था। वे
िब तर से थोड़ा उठते हुए बोलीं, "राम, तु म अपने िमत्र को ढूँढ़ लाओ न। उससे कहना
िक हम उसके मन के िखलाफ कुछ नहीं करगे । ले िकन उसे यहीं हमारे पास आकर रहने को
कहो।" यह कहते -कहते जयकौर की आँ ख से आँ स ू बहने लगे ।
‘िव ापन पढ़कर भी भगतिसं ह घर नहीं लौटा था। या वह इतना नाराज हो गया है ?’
इस िवचार ने जयकौर को बे चैन कर िदया था। वे वयं को इसका दोषी समझने लगी थीं।
उनकी यह दशा दे खकर रामचं दर् के मन म एक बार सबकुछ बता दे ने का िवचार आया।
ले िकन अगले ही पल उ ह भगतिसं ह ारा दी गई कसम याद आ गई। ह ठ तक आए
श द को उ ह ने बड़ी किठनता से िनगला। भगतिसं ह का कुशल े म बताने की उनम
िह मत नहीं थी। अतः वे भारी कदम से बाहर आ गए।
तभी उ ह जयदे व िदखाई िदए। वे ते जी से उनके पास पहुँच गए।
उ ह दे खकर जयदे व प्रस न होकर बोले , "अरे रामचं दर् , इतने िदन बाद िमल रहे हो!
सब कुशल-मं गल है न?"
"म तो ठीक हँ ,ू ले िकन भगतिसं ह के घर म सब दुःखी ह। मु झसे उनका दुःख दे खा नहीं
जाता।"
"वे भी या कर? भगतिसं ह ऐसा गायब हुआ िक िफर लौटकर नहीं आया। न ही उसने
अपने बारे म कोई पत्र िलखा।" जयदे व अफसोस भरे वर म बोला।
"म उसके बारे म जानता हँ ।ू उसने मु झे पत्र िलखा है ।"
"भगतिसं ह ने तु ह पत्र िलखा है ! तु म जाकर उसके पिरवारवाल को य नहीं बता
दे ते?" जयदे व उ सािहत होकर बोला।
"परं तु म चाहकर भी उसके पिरवारवाल को कुछ नहीं बता सकता। अगर मने बताया तो
वे उसके बारे म पूछगे और भगतिसं ह ने मु झे उसका पता न बताने की कसम दी है ।"
रामचं दर् ने अपनी िववशता बताई।
दोन के बीच खमोशी या त हो गई।
सहसा रामचं दर् की आँ ख चमक उठीं। वे जयदे व के कंधे पर हाथ रखकर बोले , "कसम के
कारण म भगतिसं ह का पता तो नहीं बता सकता, ले िकन तु ह उस पते पर ले ज र जा
सकता हँ ।ू "
ू रे िदन ही वे दोन गणे शशं कर िव ाथी के
चूँिक पत्र म कानपु र का पता था, अतः दस
पास कानपु र जा पहुँचे।
पत्र की िलखावट से िव ाथीजी भली-भाँ ित पिरिचत थे । वे रामचं दर् को सं बोिधत करते
हुए बोले , "आजकल आपका िमत्र शादीपु र गाँ व के ने शनल कू ल म हे डमा टर का काय
कर रहा है ; ले िकन भगतिसं ह के प म नहीं, बि क बलवं त के नाम से । अगर मु झे उसका
वा तिवक पिरचय पता होता तो ‘वं दे मातरम्’ म छपे िकशनिसं ह के िव ापन को दे खकर
म वयं उ ह ले कर उनके घर पहुँच जाता।"
भगतिसं ह का पता पाकर जयदे व और रामचं दर् उसी समय शादीपु र के िलए रवाना हो
गए। गाँ व पहुँचते ही वे सीधे कू ल की ओर चल पड़े । उनका दय भगतिसं ह को गले
लगाने के िलए अधीर हो रहा था।
इधर भगतिसं ह ने उ ह आते दे ख िलया था। उनकी अधीरता दे खकर वे सारी बात समझ
गए। उ ह ने एक समझदार लड़के को बु लाया और उसे सारी बात समझाकर वहाँ से चले
गए।
लड़के ने जयदे व और रामचं दर् की उिचत आवभगत की। उनकी याकुल नजर भगतिसं ह
को इधर-उधर ढूँढ़ रही थीं। रामचं दर् से नहीं रहा गया तो उ ह ने लड़के से भगतिसं ह के
बारे म पूछा। लड़का पूरे िव वास के साथ बोला, "मा टरजी के घर म बड़ा सा ताला
लगा हुआ है । ज र वे गाँ व से बाहर गए ह गे । बीच-बीच म वे ऐसे ही दो-तीन िदन के
िलए कहीं बाहर िनकल जाते ह।"
वे दोन सोच म पड़ गए। िजस उ मीद के साथ वे यहाँ आए थे , वह समा त हो चु की थी।
अं ततः दोन उसी समय कानपु र लौट गए। िमत्र को जाते दे ख पे ड़ की ओट म खड़े
भगतिसं ह की आँ ख नम हो आ । िवधाता ने कैसा िदन िदखाया था? िजन िमत्र से िमले
िबना उ ह एक िदन भी चै न नहीं आता था, आज उ ह िबना िमले ही लौटने पर िववश
करना पड़ा।

वापसी
कानपु र लौटकर रामचं दर् व जयदे व ने गणे शशं कर िव ाथी से सहायता की प्राथना की।
िव ाथीजी ने उ ह आ व त िकया िक वे जो सं भव हो सकेगा, अव य करगे । इसके बाद
वे गाँ व लौट गए और िकशनिसं ह को सारी बात बताई।
इसके बाद सरदार िकशनिसं ह ने कानपु र के प्रिस कां गर् े सी ने ता मौलाना हसरत
मोहानी को पत्र िलखा िक वे िव ाथीजी से िमलकर भगतिसं ह को घर िभजवाने का
प्रय न कर। उ ह ने भगतिसं ह के नाम भी एक पत्र िलखा। यह पत्र ले कर िव ाथीजी
के साथ जयदे व ठे हुए भगतिसं ह को मनाने चल िदए।
उ ह अक मात् शादीपु र म आया दे खकर भगतिसं ह सबकुछ समझ गए।
िव ाथीजी उ ह समझाते हुए बोले , "भगतिसं ह, नाम बदलने से खून के िर ते नहीं बदल
जाते । िदल म अपन के िलए जो यार होता है , वह हमे शा वै सा ही बना रहता है ।
तु हारी दादी बहुत बीमार ह। इसिलए सारी बात भूलकर इसी समय घर के िलए िनकल
जाओ। तु हारे पिरवारवाले बड़ी बे सब्री से तु हारी प्रती ा कर रहे ह।"
"ले िकन---" भगतिसं ह ने अटकते हुए इतना ही कहा।
"अब ले िकन-वे िकन कुछ नहीं। तु म जै सा चाहोगे वै सा ही होगा। अपने िपताजी का यह
पत्र पढ़ो।"
भगतिसं ह ने पत्र ले िलया और पढ़ने लगा। उसम िलखा था-"बे टे भगत! ज दी घर लौट
आओ। तु हारी दादीजी बहुत बीमार ह। वे दवा नहीं ले तीं, िसफ तु हारा ही नाम जपती
रहती ह। हमम से कोई भी तु हारे िववाह की बात नहीं करे गा। तु म जो चाहो, वही करो।
तु हारे सु ख म ही हम सु खी ह।"
टप-टप करते हुए आँ सुओ ं की लड़ी आँ ख से बह चली। ले िकन उनके ह ठ पर सं तोष की
मु सकान थी।
छह महीने के वनवास के बाद भगतिसं ह घर लौट आए थे । उनका घर िफर से हँ सने लगा
था, बोलने लगा था, खु शी से झम
ू ने लगा था। भगतिसं ह ने दादी की इतनी से वा की िक वे
कुछ ही िदन म भली-चं गी हो ग ।
वे जान चु की थीं िक ई वर की इस शि त को बाँ धकर रखना अब िकसी के वश म नहीं है ।
दे श-प्रेम की धु न का प का उनका भागाँ वाला पं ख फैलाकर खु ले आकाश म उ मु त
उड़ान भरे गा।

अकाली आंदोलन
असहयोग आं दोलन की समाि त के तु रं त बाद ही अकाली आं दोलन उठ खड़ा हुआ।
इसकी बागडोर िसख के हाथ म थी, िजसका आधार राजनीितक न होकर सामािजक था।
उन िदन गु ार म भट- व प चढ़ने वाली धन-सं पि तथा गु ार से जु ड़ी जागीर से
होने वाली आय पर उनके महं त या उनके पिरवार का अिधकार होता था। इन महं त के
वािम व म ये गु ारे िवलािसता के कद्र बन चु के थे । गु ार पर महं त के पै तृक और
यि तगत अिधकार को समा त करके गु ार से जु ड़ी सं पि को िसख समाज के
सावजिनक िनयं तर् ण म लाना तथा इनकी आमदनी-खच का प्रबं ध िनवािचत पं चायत
ारा करना ही इस आं दोलन का प्रमु ख उ े य था।
य िप अकाली आं दोलन धम-सु धार से सं बंिधत था, जो गु ार से अनाचार एवं
वािम व को समा त करना चाहता था; ले िकन इसकी भावना उग्र, सु धारवादी तथा
बहुत कुछ क् रां ितकारी थी। इससे भगतिसं ह अ यं त प्रभािवत हुए और इस आं दोलन म
कू द पड़े ।
अकाली आं दोलन से जु ड़े आं दोलनकारी पहचान के प म िसर पर काली पगड़ी बाँ धते
थे । भगतिसं ह का पािरवािरक वातावरण आयसमाज और उसकी िवचारधाराओं से
प्रभािवत था, इसिलए वे न तो केश रखते थे और न ही पगड़ी बाँ धते थे , ले िकन अकाली
आं दोलन के साथ जु ड़ने के बाद वे भी पगड़ी बाँ धने लगे ।
सु धारवादी िसख ारा अकाली आं दोलन स याग्रह के प म सं चािलत िकया गया।
हजार की सं या म िनःश त्र िसख ज थे बनाकर तथा गु वाणी का पाठ करते हुए
गु ार पर सामािजक अिधकार थािपत करने के िलए जाते थे । चूँिक सरकार का िहत
महं त के साथ जु ड़ा हुआ था, प्रितवष उनसे िवशाल धनरािश तो प्रा त होती ही थी,
साथ-ही-साथ वे सरकार के िपट् ठू थे । अतः वह महं त के प म खड़ी हो गई। िसख ने
सवप्रथम ननकाना साहब गु ारे पर सामािजक अिधकार करने के िलए प्र थान िकया;
परं तु अं गर् े ज सै िनक ने उनका माग रोककर िनह थे िसख पर लािठय की बौछार की,
गोिलयाँ चला , जमीन लाश से भर दी। इसम लगभग दो सौ िसख ने अपने प्राण की
आहुित दे दी। ले िकन सु धार चाहने वाले िसख िकसी भी कीमत पर पीछे हटने को तै यार
नहीं थे ।
इस घटना के िवरोध व प दे श के कोने -कोने से िसख के ज थे ननकाना साहब की ओर
आने लगे । ये ज थे जहाँ से होकर गु जरते , उनका भरपूर वागत िकया जाता। इसी
प्रकार का एक िवशाल ज था बं गा गाँ व से होकर गु जरना था। ज थे के ने तृ वकता
सरदार करतारिसं ह और वालािसं ह ने िकशनिसं ह से ज थे का वागत करने का अनु रोध
िकया। ले िकन िकसी कारणवश िकशनिसं ह को बं बई (मुं बई) जाना पड़ गया। ले िकन जाने
से पूव ज थे के वागत का कायभार वे भगतिसं ह के कंधे पर डाल गए।
िकशनिसं ह के भाई िदलबाग िसं ह उस े तर् के ऑनरे री मिज ट् रेट थे । अं गर् े ज-समथक
होने के कारण उ ह यह वीकार नहीं था िक गाँ व म िसख के ज थे का वागत हो। अतः
उ ह ने घोषणा करवा दी िक गाँ व म ज थे की कोई सहायता नहीं की जाएगी। यिद िकसी
ने ऐसा िकया तो वह िब्रिटश सरकार का सबसे बड़ा दु मन माना जाएगा।
िदलबाग िसं ह की बात घर-घर तक पहुँच गई थी, गाँ ववाले पीछे हटने लगे । ले िकन
भगतिसं ह ने भी मोरचा सँ भाल िलया था। ज थे की सहायता करने का िन चय वे पहले
ही कर चु के थे । उ ह ने एक सभा आयोिजत की और गाँ ववाल को समझाते हुए बोले ,
"भारतीय होने के कारण हमारा कत य है िक हम इस ज थे म सि मिलत ह । ले िकन यिद
हम ऐसा नहीं कर सकते तो कम-से -कम िसर पर कफन बाँ धकर िनकले लोग का उ साह
तो बढ़ा ही सकते ह। वे जो लड़ाई लड़ रहे ह, उसम अकेले नहीं ह, िकसी-न-िकसी प म
हम भी उनके साथ ह-यह बताने का सबसे अ छा तरीका यही है िक हम िदल से ज थे का
वागत कर। यह आं दोलन िकसी यि त िवशे ष के िलए नहीं है । यह आं दोलन हम सबके
िलए है ; अ याय और अ याचार के िव है । एक स चा िसख िसर कटा सकता है ,
ले िकन उसे झुकाना नहीं जानता। हम गु गोिवं द िसं ह का मरण करते हुए अ याय के
िव एकजु ट होना चािहए।"
भगतिसं ह की वाणी ने जाद-ू सा असर िकया। लोग अपने थान से खड़े हो गए और नारे
लगाते हुए भगतिसं ह की बात का समथन करने लगे ।
िनधािरत िदन ज था गाँ व म आ पहुँचा। उनके ठहरने के िलए भगतिसं ह और उनके
सािथय ने इतनी अ छी यव था की थी िक ज थे का प्र ये क यि त उनकी प्रशं सा
िकए िबना न रह सका। उनकी दे खा-दे खी गाँ ववाले भी गु पचु प तरीके से ज थे की हरसं भव
सहायता कर रहे थे । ज थे के िलए वे प्रितिदन रात को ही भोजन और फल आिद
भगतिसं ह के घर पहुँचा जाते थे । इतने वागत की उ मीद ज थे ने भी नहीं की थी। दो
िदन के बाद वे भगतिसं ह का गु णगान करते हुए िवदा हुए। इस प्रकार भगतिसं ह के
कारण गाँ व की प्रित ठा बढ़ गई।

िद ली पलायन
एक ओर ज थे को गाँ व म प्रवे श करने से रोकने के िदलबाग िसं ह के सारे प्रयास िवफल
ू री ओर उनकी प्रित ठा को भी गहरा ध का लगा था। इसका
हो गए थे , वहीं दस
एकमात्र कारण भगतिसं ह थे । उ ह ने भगतिसं ह को िगरफ् रतार करवाकर उ ह सबक
िसखाने का िन चय कर िलया। आनन-फानन म वारं ट जारी िकए और पु िलस के िसपाही
भगतिसं ह को पकड़ने के िलए घर जा पहुँचे। ले िकन भगतिसं ह को इसकी भनक लग चु की
थी, इसिलए वारं ट िनकलने से पहले ही वे वहाँ से िनकलकर िद ली के िलए रवाना हो
चु के थे ।
‘दै िनक अजु न’ िद ली का प्रिति ठत समाचार-पत्र था। इसकी थापना पं िडत इं दर्
िव ावाच पित ने की थी। भगतिसं ह के पास जयचं दर् जी की िसफािरश थी, इसिलए
िद ली पहुँचते ही उ ह ‘अजु न’ म नौकरी िमल गई। वे वहाँ िबना वे तन के काम करने लगे
और वह भी पूरी िन ठा एवं समपण के साथ। प् फ रीिडं ग से ले कर सं पादन तक का काय
भगतिसं ह वयं ही दे खते थे , ले िकन यहाँ भी उ ह ने अपना नाम ‘बलवं त िसं ह’ बताया
था। उनकी िन ठा, त परता और कुशलता ने शीघ्र ही उ ह पं िडत इं दर् िव ावाच पित
का िव वासपात्र बना िदया।
अ याय 10
आ माहुित का प्रण
सा वन का महीना चल रहा था; बादल उमड़-घु मड़कर भयं कर गजन करते हुए
सं गीतमय थाप दे रहे थे ; बािरश की िरमिझम बूँद से भीगी हुई प्रकृित नव- शृं गार की
तै यारी म थी। चार ओर प्रेम और आनं द का वातावरण था। ले िकन इस बार कानपु र के
िलए यह सावन अिभश त बनकर आया था। गं गा की लहर अपनी सीमाएँ तोड़कर शहर
म घु स गई थीं। सरकार ने इस े तर् को बाढ़-प्रभािवत े तर् घोिषत कर िदया।
प्रथम बार घर छोड़ने के बाद कानपु र ने भगतिसं ह को अपने आँ चल म थान िदया था।
यहीं ‘बलवं त’ नाम से उनका पु नज म हुआ था। कानपु र उ ह अपने घर जै सा और वहाँ के
िनवासी भाई-बं धुओं जै से लगते थे , इसिलए िद ली म कायरत भगतिसं ह को जब कानपु र
म बाढ़ आने की सूचना िमली तो वे वहाँ जाने के िलए याकुल हो उठे । उ ह ने त ण
नौकरी से यागपत्र िदया और गाड़ी पकड़कर कानपु र जा पहुँचे। वहाँ उ ह ने बाढ़-
पीिड़त की भरपूर से वा की; िमत्र के साथ िमलकर उ ह बचाने और बसाने म मह वपूण
भूिमका िनभाई।
इस बार भी गणे शशं कर िव ाथी का घर भगतिसं ह का आश्रय- थल बना।

दो धाराओं का संगम
भगतिसं ह ने जब सु ना तो उ ह अपने कान पर यकीन नहीं हुआ। ले िकन यह भी सच था
िक िव ाथीजी पिरहास नहीं कर रहे थे । ‘तो या वे इस समय कानपु र म ह? या म
इतना सौभा यशाली हँ ू िक उनके दशन कर सकूँ ? या उनसे िमलने का मे रा व न पूरा हो
सकता है ?’ रह-रहकर यही िवचार भगतिसं ह के मि त क म उठ रहे थे । उ ह ने पु नः
िव ाथीजी से पूछा, "आप मु झे उनसे िमलवाने ले जाएँ गे? या वे मु झ जै से एक साधारण
यि त से िमलना पसं द करगे ?"
"भगतिसं ह, तु म साधारण होकर भी असाधारण हो। उ ह ने वयं तु मसे िमलने की इ छा
य त की है । तु म तै यार रहना, हम कल सु बह ही वहाँ चलगे ।" िव ाथीजी ने कहा।
भगतिसं ह बड़ी बे सब्री से सु बह होने की प्रती ा करने लगे ।
अगली सु बह-
दो यि त ते ज कदम से चलते हुए एक छोटी सी गली म घु स गए। थोड़ी दरू जाने के
बाद एक टू टे-फू टे घर के आगे वे िठठके और नजर घु माकर इधर-उधर दे खने लगे । उनका
पीछा नहीं िकया जा रहा, इसकी अ छी तरह से तस ली करने के बाद उ ह ने एक-दस ू रे
को दे खा और शीघ्रता से घर म घु स गए। अं दर घु सते ही लकिड़य की एक जजर सीढ़ी
िदखाई दी। उससे होते हुए वे ऊपर के कमरे म पहुँचे।
कमरे के बीचोबीच रखी मे ज पर एक मोमब ी जल रही थी, िजसकी लपलपाती लौ कमरे
के अँ धेरे को दरू करने की भरसक कोिशश कर रही थी। पास ही कुरसी पर बै ठा हुआ एक
यु वक कागज पर कुछ िलख रहा था। आगं तुक शीघ्रता से क म प्रिव ट हुए और
अं दर से दरवाजा बं द कर िलया।
आहट सु नकर यु वक ने दरवाजे की ओर दे खा। आगं तुक को पहचानकर वह उठा और आगे
बढ़ते हुए बोला, "आइए िव ाथीजी, आपका यहाँ वागत है ।’
ले िकन तभी वह उनके साथ लं बे, छरहरे , गौर वणवाले एक ते ज वी परं तु अनजान यु वक
को दे खकर िठठक गया। यु वक के िसर पर ढीली-सी पगड़ी बँ धी हुई थी तथा वह कोट और
लु ं गी पहने हुए था। उसका आकषक यि त व िवल ण था।
िव ाथीजी यु वक का पिरचय दे ते हुए बोले , "पं िडतजी, ये ही सरदार िकशनिसं ह के
सु पुत्र भगतिसं ह ह।"
"भगतिसं ह!" यु वक के ह ठ पर मु सकान िथरक गई।
अब भगतिसं ह को यु वक का पिरचय दे ने की बारी थी। िव ाथीजी हँ सते हुए बोले ,
"भगतिसं ह, इतने िदन से तु म िजस महान् आ मा के दशन की प्रती ा कर रहे थे , ये
वही ह। महान् क् रां ितकारी पं - चं दर् शे खर आजाद!"
"पं - चं दर् शे खर आजाद।" भगतिसं ह एकटक उ ह िनहार रहे थे ।
सहसा दोन आगे बढ़े और एक-दस ू रे को आिल्ांगनब कर िलया। ऐसा लग रहा था
मानो वषों बाद राम और भरत का िमलाप हुआ हो। अलग-अलग िदशाओं म बहती
क् रां ित की दो धाराएँ कानपु र म आकर एक-दस ू रे म समािहत हो गई ह ।
"िव ाथीजी, अगर आप नहीं बताते तो भी भगतिसं ह को म पहचान ले ता। इतना
ते ज वी केवल भगतिसं ह ही हो सकता है ।" चं दर् शे खर आजाद ने प्रस नता य त करते
हुए कहा।
भगतिसं ह भी कहाँ पीछे रहने वाले थे । वे आनं द म भरकर बोले , "आजाद भाई, म भी
िबना पिरचय के आपको पहचान गया था। इतने रोबीले , ते जोमय तथा भ य यि त व के
वामी केवल आप ही हो सकते ह।"
और िफर बहुत दे र तक दोन िविभ न िवषय पर वा ालाप करते रहे ।

नौजवान भारत सभा


कुछ िदन कानपु र म रहने के बाद भगतिसं ह लाहौर लौट आए। चं दर् शे खर आजाद से
िमलने के बाद उनके हौसले बु लं द हो चु के थे ; इराद म दृढ़ता बढ़ गई थी। उ ह ने लाहौर
के क् रां ितकारी िवचारधाराओंवाले यु वक को एकित्रत करना आरं भ िकया। शीघ्र ही
सु खदे व, ध वं तरी, एहसान इलाही, यशपाल, िपं डीदास आिद यु वक उनके साथ जु ड़ गए।
इसी बीच भगतिसं ह की भट भगवतीचरण वोहरा से हुई। उ ह ने भी ने शनल कॉले ज म
िश ा पूण की थी, इसिलए दोन एक-दस ू रे को जानते थे । भगवतीचरण का ज म लाहौर
म हुआ था, परं तु मूलतः वे गु जराती ब्रा ण थे । उनके पूवज गु जरात से िव थािपत
होकर लाहौर आए थे । भगवतीचरण के िपता िशवचरण वोहरा रे ल िवभाग म थे । उनकी
कत यिन ठता और द ता से प्रभािवत होकर िब्रिटश सरकार ने उ ह ‘राय साहब’ की
उपािध से स मािनत िकया था। ले िकन इसके िवपरीत भगवतीचरण एक प्रिस
क् रां ितकारी बने । उनका िववाह ‘दुगा’ नामक एक अिशि त और साधारण मिहला से
हुआ था। ले िकन पित के साि न य म उनका कायाक प हो गया। उ ह ने पिरश्रम कर
प्रभाकर तक की परी ा पास की और एक कू ल म अ यािपका बन ग । आने वाले वषों
म वे क् रां ितकािरणी दुगा भाभी के प म प्रिस हु ।
क् रां ितकािरय के मागदशन हे तु तथा उ ह एक सूतर् म िपरोने के िलए वष 1926 म
भगतिसं ह और भगवतीचरण ने िमलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की थापना की। इससे
क् रां ितकारी आं दोलन को एक िव तृ त मं च िमला, िजसका उ े य िविभ न मा यम से
जनता ारा सं पक साधना और उ ह क् रां ितकारी आं दोलन के उ े य एवं िवचार से
अवगत करवाना था।
भगतिसं ह ने स के महान् दाशिनक और िवचारक ले िनन का गहन अ ययन िकया था।
उनके ने तृ व म हुई क् रां ित के िवषय म जानकर वे इस िन कष पर पहुँचे िक क् रां ित का
मु य ल य श्रमजीवी समु दाय का क याण होना चािहए। इनम वे लोग भी सि मिलत
होने चािहए, जो अपने पिरवार का भरण-पोषण करने म असमथ ह। इसी अवधारणा को
ले कर नौजवान भारत सभा का गठन िकया गया था। यही कारण था िक सभा ारा जो
उ े य िनधािरत िकए गए, वे जन-साधारण म अ यं त लोकिप्रय हुए। ये उ े य
िन निलिखत थे -
• िकसान एवं श्रिमक को सं गिठत करना और उनका एक पूण गणरा य थािपत करना।
• धम या जाित की अपे ा रा ट् रीयता के आधार पर नौजवान म दे शभि त की भावना
का सं चार करना।
• सांपर् दाियकता-िवरोधी तथा िकसान-श्रिमक के आदश गणतां ित्रक रा य की
प्राि त म सहायक होने वाले आिथक, सामािजक, औ ोिगक े तर् के आं दोलन के साथ
सहानु भिू त रखते हुए उनकी सहायता करना।
सवस मित से रामिकशन को सभा का अ य मनोनीत िकया गया। भगतिसं ह इसके
महामं तर् ी तथा भगवतीचरण प्रचार मं तर् ी थे । इसके अितिर त लाहौर म सिक् रय
अने क क् रां ितकारी भी इसके सद य बन गए थे ।
प्रथम सभा
नौजवान भारत सभा की प्रथम बै ठक लाहौर के ‘ब्रेडला हॉल’ म आयोिजत की गई
थी। सु बह से ही लोग का िनरं तर आगमन हो रहा था। सभा आरं भ होने तक पूरा हॉल
खचाखच भर गया था। िज ह अं दर थान नहीं िमला था, वे उसके दरवाजे के पास भीड़
लगाकर खड़े हो गए थे ।
मं च के बीचोबीच एक भ य मूित रखी हुई थी, िजसे सफेद कपड़े से ढका गया था। नीचे
लाल-लाल अ र म िलखा था-

"िहं दवािसयो! रखणा याद सानूँ,


िकते िदलाँ तो ना भु ला जाणा।"
ू रे को अपने -अपने
प्रितमा िकसकी हो सकती है , खु सर-पु सर करते हुए लोग एक-दस
िवचार बता रहे थे ।
दीवार घड़ी ने सात बजने की सूचना दी, तब पास खड़ी मिहला से भगतिसं ह ने कहा,
"भाभीजी, अब हम कायक् रम प्रारं भ करना चािहए।"
मिहला ने िसर िहलाकर स मित दी और आगे बढ़ीं। थाली म रखी अगरबि याँ तथा धूप
प्रितमा के सामने रखकर प्र विलत की।
उस यामल वण की बड़ी-बड़ी आँ ख वाली ते जि वनी को दे खकर िकसी ने कहा, "अरे , ये
तो हमारे भगवतीचरण की प नी दुगा भाभीजी ह।"
मूित के ऊपर से कपड़ा हटाते ही क् रां ितकारी करतारिसं ह सराबा का चे हरा िदखने लगा।
उन पर सु गंिधत फू ल की माला सु शोिभत थी। दुगा भाभी ने अपने र त से िचत्र का
अिभषे क िकया। समूचा सभागार ‘इनकलाब िजं दाबाद’ के नारे से गूँज उठा। भगतिसं ह ने
आगे बढ़कर गु लाब-पु प की माला मूित के गले म पहना दी और हाथ जोड़कर प्रणाम
िकया। श्र ा और प्रेम की अिधकता से उनके ने तर् आँ सुओ ं से भर आए।
तदनं तर उ ह ने बहुत मािमक एवं का िणक भाषण िदया-

"भाइयो और बहनो!
ये ही वे वीर पु ष ह, िज ह ने हँ सते -हँ सते मौत को गले लगाया; दे श की मु ि त के िलए
अपना जीवन दाँ व पर लगा िदया; अपना बिलदान िदया। आज इनकी बरसी है । इसिलए
इस पावन घड़ी म इस शहीद को सा ी मानकर हम प्रित ा करते ह िक इनका अधूरा
काय पूरा करने के िलए इ हीं के समान हम अपने सव व की आहुित दगे , अपना जीवन
होम कर दगे ।"
भाषण के उपरांत भगतिसं ह ने करतारिसं ह सराबा के गीत की दो पं ि तय को गु नगु नाया-

"चलो चिलए दे श नु यु करण


रखो आिखरी वचन ते फरमान हो गए---"
पूरी सभा गद्गद होकर नतम तक हो गई।
अ याय 11
काकोरी कांड
स रकार के अ याय, अ याचार और दमनकारी नीितय का प्र यु र दे ने के िलए
लाहौर म क् रां ितकािरय का एक गु त दल भी सिक् रय था। इस दल म चं दर् शे खर
आजाद, रामप्रसाद िबि मल, रोशनिसं ह, राजद्र नाथ लािहड़ी, अशफाक उ ला खाँ ,
जोगे श चं दर् , बटु के वर द जै से महान् क् रां ितकारी सि मिलत थे । इनका उ े य बं दकू ,
बम आिद हिथयार का प्रयोग करके िब्रिटश सरकार को उखाड़ फकना था। इसके िलए
वे अपने समथक से सहायता भी प्रा त करते थे ।
एक बार इन क् रां ितकािरय ने बड़े पै माने पर िब्रिटश सरकार पर हमला करने की योजना
बनाई। ले िकन इस योजना को कारगर बनाने के िलए अतु य धन की आव यकता थी।
िकसी ने डकैती डालने की बात कही। बात सबको पसं द आई; ले िकन जनसाधारण को
लूटने से उनके मन म क् रां ितकािरय के िलए सहानु भिू त न ट हो जाने का डर था। तभी
रामप्रसाद िबि मल बोले , "मु झे पता चला है िक सहारनपु र से लखनऊ जाने वाली 8 नं बर
की डाउन ट् रेन म सरकारी खजाना जाने वाला है । हम उसे लूट ले ना चािहए। इससे
हमारी योजना के माग की सारी बाधाएँ दरू हो जाएँ गी।"
सु झाव सराहनीय था। दल ने 9 अग त का िदन तथा लखनऊ से आठ मील के फासले पर
ि थत ‘काकोरी’ नामक टे शन िनि चत िकया। िनधािरत िदन अशफाक उ ला खाँ ,
ू रे दज के िड बे म चढ़े ।
शचींदर् नाथ ब शी और राजद्रनाथ लािहड़ी ट् रेन के दस
चं दर् शे खर आजाद, रामप्रसाद िबि मल, केशव चक् रवती, मु रारीलाल, मु कुंदीलाल,
म मथनाथ गु त, बनवारीलाल-ये लोग तीसरे दज के िड बे म बै ठे। उ ह ने अपनी-अपनी
िप तौल कपड़ के अं दर िछपा रखी थीं।
रात का समय था। गाड़ी धीरे -धीरे अपने गं त य की ओर बढ़ रही थी। बाहर का अँ धेरा
और भी गहराता जा रहा था। सहसा ट् रेन क गई। तीसरे दज म बै ठे हुए क् रां ितकारी
समझ गए िक दस ू रे दज म बै ठे उनके सािथय ने ही जं जीर खींचकर गाड़ी रोकी है । सभी
अपने -अपने िनधािरत काय म जु ट गए।
ड्राइवर, गाड तथा ितजोरी के साथ जाने वाले सै िनक पर िप तौल तान दी ग और वे
िबना िवरोध िकए चु पचाप नीचे ले ट गए। पूछे जाने पर इशारे से ही उ ह ने ितजोरी िदखा
दी। वह बहुत बड़ी और भारी थी। पं िडतजी का सं केत पाते ही छे नी और हथौड़े से
ितजोरी को तोड़ िदया गया। इस डकैती से क् रां ितकािरय को 8,600 पए िमले । धन
उनकी उ मीद से यादा था, ले िकन इसके िलए उ ह इससे भी बड़ी कीमत चु कानी पड़ी।
अगले िदन सरकारी खजाना लूटे जाने की खबर चार ओर फैल गई। ‘काकोरी कांड’ ने
सरकार को िहलाकर रख िदया। आदे श पािरत हुए और क् रां ितकािरय की धर-पकड़ आरं भ
हो गई। इस दौरान पु िलस के हाथ एक ‘क चा क् रां ितकारी’ लग गया, िजसने सरकारी
गवाह बनकर सारी बात उगल दी। इस ग ारी ने पु िलस की नजर म क् रां ितकािरय के
चे हरे प ट कर िदए थे । दो िदन के अं दर-अं दर बताए गए थान पर छापे मारे गए और
अने क क् रां ितकािरय को पकड़ िलया गया। इनम रामप्रसाद िबि मल भी थे ।
लखनऊ की अदालत म लगभग डे ढ़ वष तक मु कदमा चलता रहा। अिभयु त मु कदमे का
पिरणाम जानते थे , िफर भी उनके चे हर पर कोई िशकन नहीं थी। वे हँ सते -मु सकराते
अदालत म आते और कोई-न-कोई दे शभि त का गीत गु नगु नाते हुए जे ल लौट जाते ।
मु कदमा पूण होने के बाद काकोरी षड ंतर् के अं तगत रामप्रसाद िबि मल, रोशनिसं ह,
राजद्रनाथ लािहड़ी और अशफाक उ ला खाँ को फाँसी की सजा दी गई। अदालत के
इस कठोर िनणय ने जनमानस को यिथत कर िदया। दे श के िलए लड़ने वाले ये यु वक
छोटी उम्र म ही मौत को गले लगाने के िलए जे ल भे ज िदए गए।
सजा िमलने म अभी कुछ िदन शे ष थे । इसिलए चं दर् शे खर आजाद ने भगतिसं ह,
बटु के वर द , सु खदे व, राजगु तथा िशव वमा के साथ िमलकर बं दी क् रां ितकािरय को
जे ल से छुड़ाने के अने क प्रयास िकए गए; ले िकन असफलता हाथ लगी। अं ततः चार
वीर हँ सते -हँ सते फाँसी पर झल
ू गए।
भगतिसं ह ने असफलताओं से घबराकर हार मानना नहीं सीखा था, बि क असफलताओं
को झे लकर उनके इरादे और भी मजबूत हो जाते थे । यही कारण था िक उ ह ने बार-बार
सं गठन को खड़ा िकया, िविभ न योजनाएँ बना और उ ह कायाि वत िकया। उनकी इस
दृढ़ता को उनके साथी भी वीकारते थे ।

दशहरा कांड
दशहरा आ गया था। बाजार रं ग-िबरं गे कपड़ एवं िमठाइय से सजे हुए थे । िहं दुओं के
इस पव को पूरा लाहौर एक साथ िमलकर मनाता था। इस िदन लाहौर म प्रितवष एक
मे ला लगता था, िजसम िविभ न धमों के लोग सि मिलत होकर पव का आनं द उठाते थे ।
वष 1927 म भी दशहरे के िदन यह मे ला आयोिजत िकया गया। लोग अपने पिरवार के
साथ मे ले म घूमने आए हुए थे । चार ओर धािमक वातावरण या त था। सहसा एक
भयं कर िव फोट हुआ; हवा म मांस के लोथड़े और खून के फ वारे उड़ गए। िकसी ने मे ले
म बम फका था। दे खते -ही-दे खते भगदड़ मच गई। लोग जान बचाकर इधर-उधर दौड़ने
लगे । इस दुघटना म अने क लोग मारे गए, जबिक कई लोग बु री तरह से घायल हुए।
सरकार ने इस ि थित का लाभ उठाते हुए अफवाह उड़ा दी िक यह काय क् रां ितकािरय
का है । काकोरी कांड के बाद मे ले म लूटपाट करने के िलए ही उ ह ने बम फका था।
ले िकन इसके पीछे एक गहरा षड ंतर् रचा गया था। इसकी शु आत उसी िदन हो गई
थी, जब भगतिसं ह ने काकोरी कांड के अिभयु त को छुड़वाने का प्रयास िकया था।
भगतिसं ह आरं भ से ही सरकार की आँ ख की िकरकरी बने हुए थे । सरकार को िव वास था
िक भगतिसं ह काकोरी कांड के बारे म बहुत कुछ जानते ह और उनके ारा कई बड़े
क् रां ितकािरय तक पहुँचा जा सकता है । ले िकन लाख चाहते हुए भी उ ह पकड़ने का
मौका नहीं िमल रहा था। इसिलए अं गर् े ज अिधकािरय ने एक चाल चली। उ ह ने ही
दशहरे के मे ले म पु िलस के एक आदमी ारा बम िफंकवाया था। ऐसा करके सरकार ने एक
पं थ दो काज वाली कहावत को चिरताथ िकया। एक ओर लोग के बीच क् रां ितकािरय के
प्रित नफरत और घृ णा फैलाकर वह उनका जनाधार कम करने लगी; वहीं दस ू री ओर
सं िद ध क् रां ितकािरय को पकड़ने का उ ह सु नहरा अवसर िमल गया।
खार खाए बै ठी सरकार ने उसी िदन भगतिसं ह के नाम का वारं ट जारी कर िदया।

िगर तारी
कानपु र म क् रां ितकािरय को छुड़ाने म असफलता िमलने के बाद भगतिसं ह अपने
सािथय के साथ लाहौर वापस जा रहे थे । गाड़ी म बै ठने पर भी उनकी आँ ख के सामने
क् रां ित का उ वल भिव य िदखाई दे रहा था। तभी उ ह याद आया िक उ ह अमृ तसर म
िकसी से िमलना है । इसिलए उ ह ने वहीं उतरने का िन चय िकया।
गाड़ी टे शन पर की। भगतिसं ह ने उतरकर वभाव के अनु सार इधर-उधर दे खा। ले िकन
दरू -दरू तक पु िलस का कोई भी िसपाही नजर नहीं आया। वे थोड़ा मु सकराते हुए धीरे से
बु दबु दाए, "आज तो पु िलसवाल ने बड़ी मे हरबानी की है । लगता है , मु झ पर नजर रखना
छोड़ िदया है ।"
टे शन से बाहर िनकलते ही उ ह पु िलस का एक आदमी अपनी ओर आता िदखाई िदया।
मन म सं शय हुआ, िफर ते ज कदम से िवपरीत िदशा की ओर चल िदए। िसपाही ने भी
अपनी चाल ते ज कर दी। भगतिसं ह का हाथ जे ब म रखे िरवॉ वर पर चला गया। ले िकन
िफर उसे चकमा दे ने के िलए वे गिलय म घु स गए। पु िलसवाला पहले से ही सतक था,
वह िनरं तर उनका पीछा करता रहा।
जब िकसी तरह काम नहीं बना तो पु िलसवाले की िनगाह बचाकर भगतिसं ह एक मकान म
घु स गए। वह मकान एडवोकेट सरदार शादलिसं ू ह का था। य िप वे सरकारी वकील थे ,
तथािप मन से वे क् रां ितकािरय और उनके कायों के प्रशं सक थे । उ ह ने भगतिसं ह को
एक कमरे म िछपा िदया और बात म उलझाकर पु िलसवाले को अ यत्र भे ज िदया।
तदनं तर उ ह ने भगतिसं ह की बहुत आवभगत की। खतरा टल जाने के बाद भगतिसं ह
उठे और आभार प्रकट करते हुए वहाँ से चले गए।
ले िकन खतरा टला नहीं था, वह िनरं तर उनके िसर पर मँ डरा रहा था। जै से ही वे ताँ गे पर
बै ठकर गं त य थान की ओर चलने लगे , िसपािहय ने उ ह घे र िलया। उ ह ने िप तौल

टटोली, ले िकन उसे वे शादलिसं ह के कमरे म ही भूल आए थे । अब पकड़े जाने के
अितिर त कोई और चारा नहीं था।

जमानत
िबना मु कदमा चलाए भगतिसं ह को 15 िदन तक लाहौर जे ल म रखा गया। इस दौरान
काकोरी कांड तथा कई मह वपूण क् रां ितकािरय के बारे म जानकारी प्रा त करने के
िलए कड़ी यं तर् णाएँ दी ग । भगतिसं ह की सुं दर दे ह डं ड की मार से नीली पड़ गई,
शरीर म जगह-जगह गहरे घाव हो गए। ले िकन उ ह ने जो चु पी साधी, उसे तोड़ने म
पु िलस का हर हथकंडा िवफल हो गया। थक-हारकर उ ह लाहौर की बो टल जे ल भे ज
िदया गया।
पु िलस ने भगतिसं ह को काकोरी कांड का अिभयु त बनाया था। ले िकन लाख प्रय न
करने के बाद भी वह उनसे कोई बात उगलवा नहीं सकी। मु कदमा कमजोर पड़ गया था,
अतः जज ने उ ह 60 हजार पए की जमानत पर छोड़ने का आदे श दे िदया।
उन िदन यह रािश बहुत बड़ी मानी जाती थी। िकशनिसं ह के िलए इतना पया इकट् ठा
करना असं भव था। सरकार-िवरोधी क् रां ितकारी के िलए भला कौन इतनी रािश दे ना
वीकार करता! इसिलए िकसी से सहायता की उ मीद करना भी यथ था। अं ततः
िकशनिसं ह के िमत्र बै िर टर दुनीचं द तथा दौलतराम ने 30-30 हजार पए जमानत के
प म जमा करवा िदए। िसं ह पु नः जे ल से बाहर आ चु का था।

डे यरी म काम
भगतिसं ह जमानत पर िरहा हुए थे , इसिलए ऐसा कोई काम नहीं कर सकते थे िजससे
उनकी जमानत दे नेवाल पर कोई आँ च आए। इसिलए उ ह ने कुछ िदन शांत बै ठने का
िनणय िलया। इसी बीच सरदार िकशनिसं ह ने खासिरयाँ म उ ह एक डे यरी खु लवा दी।
भगतिसं ह पूरी िन ठा के साथ डे यरी सँ भालने लगे । उ ह ने िपता के साथ जाकर वयं
भस खरीदीं तथा डे यरी से सं बंिधत अ य प्रबं ध म भी िदलच पी ली।
डे यरी म काम करना शु िकया तो भगतिसं ह की िदनचया म भी पिरवतन आ गया। वे
सु बह चार बजे उठकर भस का दध ू िनकालते , िफर ताँ गे म दधू के बड़े -बड़े बरतन रखकर
लाहौर ले जाते । वहाँ ग्राहक को दध ू बे चकर पए-पै से ले ते और वापसी म ज रत की
व तु एँ ले ते हुए घर लौट आते । वे इस काय को एक यो य यापारी की तरह सं प न करते
थे । धीरे -धीरे डे यरी पर क् रां ितकािरय का जमावड़ा होने लगा। अकसर रात के अं धकार म
उस सु नसान जगह पर क् रां ितकािरय की भीड़ लगी रहती। उनकी आवभगत के िलए
भगतिसं ह एक टोव और बड़ा सा बरतन भी ले आए थे । गरम-गरम दध ू की चु ि कयाँ
ले ते हुए भिव य की योजनाओं पर िवचार-िवमश होता।
य िप डे यरी का काय भगतिसं ह पूरी लगन से करते थे , ले िकन जीवन भर इससे बँ धे
रहना उ ह मं जरू नहीं था। वे िफर से खु ले आकाश म उड़ना चाहते थे ; दे श के िलए
खु लकर काम करना चाहते थे । परं तु जब तक जमानत की बे ड़ी उ ह जकड़े हुए थी, तब
तक मन के अनु सार चलना उनके िलए असं भव था। इसिलए िकसी-न-िकसी तरह उन पर
चल रहे मु कदमे को समा त होना ज री था। इस सं दभ म उ ह ने डॉ- गोपीचं द भागव से
भट की। गोपीचं द ने पं जाब असबली म प्र न उठाया िक ‘यिद भगतिसं ह के िव सबूत
ह तो सरकार उन पर मु कदमा य नहीं चलाती और अगर सबूत नहीं ह तो िबना िकसी
अपराध के उ ह जमानत पर रखने का या औिच य है ?’
उनके इस प्र न ने सरकार को उलझाकर रख िदया। अं ततः िजस पं छी को उ ह ने इतने
प्रय न के बाद पकड़ा था, उसे वयं अपने हाथ से छोड़ना पड़ा। भगतिसं ह की
जमानत वापस कर दी गई। अब वे मु त थे ; मु त थे उ मु त होकर खु ले आकाश म िफर
से उड़ान भरने के िलए।

िहंदु तान समाजवादी प्रजातांित्रक संघ


पूव म घिटत हुई घटनाओं के कारण क् रां ितकारी एक-दस ू रे से अलग-थलग पड़ गए,
िजसके फल व प ‘िहं दु तान प्रजातं तर् सं घ’ टू टने की कगार पर पहुँच गया। ले िकन
भगतिसं ह इसे िकसी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे । व तु तः यही एक कद्र िबं दु था, जो
दे श भर के क् रां ितकािरय को पर पर जोड़ने का काम कर रहा था। इसे पु नः सं गिठत
करने के उ े य से 8 िसतं बर, 1928 को िद ली के िफरोजशाह कोटला के खं डहर म इसकी
अिखल भारतीय बै ठक आयोिजत की गई। दे श भर से अने क क् रां ितकारी इस सभा म
सि मिलत होने के िलए आए थे । इनम भगतिसं ह, सु खदे व, कुंदनलाल, िशव वमा,
ब्र द िमश्र, जयदे व गु त, िवजयकुमार िस हा, सु रद्र पांडेय, फणींदर् नाथ घोष,
मनमोहन बनजी जै से क् रां ितवीर प्रमु ख थे ।
य िप बं गाल के प्रितिनिधय को भी बै ठक म आमं ित्रत िकया गया था, परं तु उ ह ने
वहाँ आने के िलए दो शत रखीं। पहली शत के अनु सार वे केवल दल को बढ़ाने तथा
हिथयार एकित्रत करने के प म थे । सरकार को सतक करने वाली िकसी भी तरह की
कारवाई को उ ह ने नकार िदया था। दस ू री शत के अनु सार वे चाहते थे िक सभी प्रांत के
क् रां ितकारी बं गाल के क् रां ितकािरय के ने तृ व म अपनी योजनाओं को सं प न करगे ।
भगतिसं ह ने इन शतों को अ वीकार कर िदया।
बै ठक आरं भ हुई। भगतिसं ह आगे बढ़े और उपि थत लोग को सं बोिधत करते हुए बोले ,
"भाइयो, मे रे दे शप्रेिमयो! यहाँ आप सबकी उपि थित म मु झे असीम खु शी हुई है । हम
सब अगर अपनी पूरी शि त, पूरे साम य से काय कर तो हमारे िलए कुछ भी असं भव
नहीं है । हमारे िदल म दे शभि त है , भु जाओं म असीम पराक् रम है और सं पण
ू जीवन को
हँ सते -हँ सते क् रां ित की धधकती वालाओं म झ क दे ने का साहस हमारे मजबूत िदल म
है । इतना सबकुछ होते हुए भी हम मनचाही सफलता नहीं िमली, य िक हम अकेले
लड़ते रहे । मे रे िवचार म, सभी प्रांतीय सं गठन को एक साथ िमलकर काय करना
चािहए। सबका एक ही सं गठन, एक ही उ े य, एक ही काय-प्रणाली और एक ही ल य
होना चािहए। ऐसे सं गठन के िनमाण हे तु ही हम यहाँ एकित्रत हुए ह। म इस सं गठन का
नाम ‘िहं दु तान समाजवादी प्रजातां ित्रक सं घ’ घोिषत करता हँ ।ू "
सभी ने तािलयाँ बजाकर भगतिसं ह के इस प्र ताव का वागत िकया।
इस प्रकार ‘िहं दु तान प्रजातं तर् सं घ’ का नाम बदलकर ‘िहं दु तान समाजवादी
प्रजातां ित्रक सं घ’ कर िदया गया। इसी पिरवतन से प ट होता है िक उन िदन
क् रां ितकारी समाजवाद से िकतने अिधक प्रभािवत थे । वे अपना सव व िकसान ,
श्रिमक एवं गरीब जनता के िलए योछावर करने के िलए सहष तै यार थे ।
बै ठक म एक मह वपूण िनणय िलया गया, िजसके अं तगत एक सं घपित चु नने की प ित
चलाई गई। य िप चोिटल होने के कारण चं दर् शे खर आजाद बै ठक म उपि थत नहीं हुए
थे , तथािप उनकी यो यता से प्रभािवत होकर उपि थत सभाजन ने सवस मित से उ ह
अपना सं घपित चु न िलया। सु खदे व को पं जाब, कुंदनलाल को राज थान, िशव वमा को
उ र प्रदे श तथा फणींदर् नाथ घोष को िबहार म सं गठन का प्रितिनिध िनयु त िकया
गया। इनका काय अपने -अपने प्रांत म क् रां ित की मशाल प्र विलत करना, जनता म
जाग कता लाना, यु वक को दल म सि मिलत होने के िलए प्रेिरत करना तथा
क् रां ितकारी गितिविधय का सं चालन करना था। भगतिसं ह और िवजय कुमार को प्रांत
के बीच सं बंध बनाए रखने का कायभार स पा गया। सं गठन के पास आिथक स्रोत का
अभाव था, इसिलए िनणय िलया गया िक क् रां ितकारी सरकारी खजान और बक को
लूटकर आव यक धन एकित्रत करगे ।
इस प्रकार भगतिसं ह के ने तृ व म अं ितम साँस ले ता हुआ सं गठन नवजीवन और उ साह
से पिरपूण होकर पु नः खड़ा हो गया।
अ याय 12
साइमन कमीशन
ब ढ़ते सरकारी िवरोध के चलते िब्रिटश सरकार ने पहले सन् 1919 म लॉड मांटे यू और
लॉड चे सफोड के ने तृ व म एक सिमित बनाई, िजसने िहं दु तानी प्रजा के िहताथ
शासन म कुछ सु धार सु झाए, ले िकन वे छलावा मात्र िस हुए। इसके बाद जब दे श म
उथल-पु थल यादा बढ़ गई; क् रां ितकािरय का प्रभाव और सं गठन बढ़ने लगा, तब
सरकार ने 8 नवं बर, 1927 को घोषणा की िक भारत की ि थित का अ ययन करने के िलए
लॉड साइमन की अ य ता म सात सद यीय एक कमीशन भारत आ रहा है । इस
कमीशन का काय दे श के िविभ न िह स म जाकर लोग की किठनाइयाँ जानना और
उसके बारे म सरकार से िसफािरश करना था। ले िकन आ चय की बात थी िक इसम िकसी
भी भारतीय को सि मिलत नहीं िकया गया था। यह भारतीय जनता का खु ला पिरहास
था। समाचार-पत्र ने भी इस कमीशन की भ सना की। इस अवसर पर नरम और गरम
दल ने एक साथ िमलकर कमीशन के बिह कार का िन चय कर िलया।

‘साइमन कमीशन वापस जाओ’


3 फरवरी, 1928 को कमीशन बं बई पहुँचा। इसकी अ य ता लॉड साइमन कर रहे थे ,
इसिलए इसे ‘साइमन कमीशन’ कहा गया। कमीशन के भारत की धरती पर पै र रखते ही
मानो सं पण
ू दे श एकजु टता की डोर से बँ ध गया। उस िदन दे श भर म हड़ताल घोिषत की
गई तथा काले झं ड एवं ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे से कमीशन का वागत
िकया गया। इस अप्र यािशत प्रदशन से गोरी सरकार बौखला गई। भारतीय जनता से
उसे इस एकजु टता की अपे ा नहीं थी।
बं बई म अपना काय समा त कर कमीशन िद ली रवाना हुआ। ले िकन यहाँ भी बं बई जै सी
ि थित थी। जै से ही कमीशन के सद य ने ट् रेन से बाहर कदम रखे , पूरा टे शन ‘साइमन
कमीशन वापस जाओ’ के नार से गूँज उठा। चार ओर काले झं डे और उग्र भीड़ के
अितिर त कुछ िदखाई नहीं दे रहा था। जै से-तै से करके कमीशन को टे शन से बाहर
िनकाला गया; परं तु बाहर ि थित और भी िवकट थी। जहाँ भी नजर जाती, काले झं डे
पकड़े िवशाल जनसमूह िदखाई दे ता। टे शन से कमीशन के गं त य थान तक का पूरा
माग काले झं ड और ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नार से पटा पड़ा था।
अब मद्रास (चे नई) की बारी थी। यहाँ भी प्रदशनकािरय ने कमीशन का भरपूर
वागत िकया। ले िकन इस बार अं गर् े ज अिधकािरय के सब्र का बाँ ध टू ट गया और
उ ह ने फायिरं ग कर तीन प्रदशनकािरय को मार िदया। सरकार अब आं दोलनकािरय
को िकसी भी तरह की ढील नहीं दे ना चाहती थी। कलक ा म मद्रास की घटना की
पु नरावृ ि की गई। ले िकन इस बार मु ठभे ड़ जबरद त थी, िजसम अने क प्रदशनकारी
घायल हो गए।
कमीशन का पाँचवाँ पड़ाव लाहौर म था, जो उस समय क् रां ितकािरय का प्रमु ख गढ़
माना जाता था। मद्रास और कलक ा म घिटत हुई घटनाओं से यहाँ के क् रां ितकारी
ु ध थे । वे सरकार को मुँ ह-तोड़ जवाब दे ना चाहते थे । इसके िलए िहं दु तानी
समाजवादी प्रजातां ित्रक सं घ के पास कई योजनाएँ थीं। िद ली म कद्रीय सिमित की
बै ठक म भगतिसं ह ने बम फककर असं तोष प्रदिशत करने का प्र ताव रखा। ले िकन दल
आिथक सं कट से गु जर रहा था, इसिलए सवस मित होते हुए भी इस प्र ताव को र
करना पड़ा। अं त म िनणय िलया गया िक िजस प्रकार कमीशन का िवरोध हो रहा है , वे
उसी तरह के प्रदशन म सि मिलत ह गे ।

लाला लाजपतराय की शहादत


लाहौर म कमीशन के बिह कार की िज मे दारी ‘नौजवान भारत सभा’ पर थी और उसने
इसके िलए कमर कस ली थी। िजस िदन कमीशन को लाहौर पहुँचना था, भगतिसं ह वयं
लाला लाजपतराय को साथ ले कर टे शन पहुँच गए। नौजवान भारत सभा ने लालाजी के
ने तृ व म प्रदशन करने का िनणय िलया था। लालाजी की सु र ा के म े नजर
क् रां ितकािरय की एक टोली ने उ ह घे र िलया था। भगतिसं ह उ हीं के साथ खड़े हुए
‘इनकलाब िजं दाबाद’ के नारे लगा रहे थे । उनके बीच म लाला लाजपतराय िसं ह की भाँ ित
खड़े थे । आज वे एक चट् टान की तरह खड़े होकर करोड़ भारतीय की भावनाओं और
रा ट् रीयता का प्रितिनिध व कर रहे थे ।
इधर टे शन पर बिह कार की पृ ठभूिम तै यार हो चु की थी, उधर शहर म हड़ताल घोिषत
कर दी गई। सड़क के िकनारे काले झं ड से भर िदए गए।
िनधािरत समय पर ट् रेन टे शन पर आकर की। कमीशन के सद य ने बाहर कदम रखे ।
उ ह दे खते ही भगतिसं ह ने नारा लगाया, "साइमन कमीशन वापस जाओ! अं गर् े जी
सरकार, वापस जाओ !" और िफर दे खते -ही-दे खते उपि थत जनसमूह उनका साथ दे ना
लगा। काले झं ड को लहरा-लहराकर िवरोध प्रदिशत होने लगा।
टे शन से बाहर िनकलने के सारे माग अव हो चु के थे । प्रदशनकािरय की भीड़
िनरं तर बढ़ती जा रही थी। ऐसे म मोरचा तोड़ने के िलए पु िलस लाठीचाज करने लगी।
लालाजी वाला मोरचा थोड़ा कमजोर था, इसिलए िसपाही उ ह पीछे खदे ड़ने का प्रयास
करने लगे । ले िकन उनका आकलन गलत था। िजस ओर पं जाब केसरी लाला लाजपतराय,
भगतिसं ह, सु खदे व जै से क् रां ितकारी खड़े ह , वह मोरचा कमजोर नहीं बि क सबसे
मजबूत था। जब मामूली लाठीचाज से काम नहीं बना तो पु िलस अिधकारी कॉट ने
मोरचे पर भीषण प्रहार करने का आदे श िदया।
आदे श िमलते ही पु िलस सु पिरं टडट एस-पी- सांडस अ य िसपािहय के साथ लाठी ले कर
भीड़ पर टू ट पड़ा और बे रहमी से प्रहार करने लगा। मोरचे के ने ता लाला लाजपतराय थे ,
इसिलए उसके प्रहार का मु य िबं दु वे ही थे । उसका पहला वार लालाजी की छतरी पर
पड़ा। प्रहार इतना तीव्र था िक छतरी टू ट गई। उसके बाद उसने कंधे पर वार िकया।
लालाजी लड़खड़ाकर नीचे िगरने लगे । परं तु िफर वयं को सँ भालकर पु नः यो ा की
भाँ ित आ डटे और तीव्र वर म नारे लगाने लगे । सांडस का क् रोध भड़क उठा। उसने
उनके माथे पर तीव्र प्रहार िकया। चोट लगते ही माथे से र त का फ वारा फू ट पड़ा,
आँ ख के आगे अँ धेरा छाने लगा। तभी उनका वर गूँजा, "पु िलस की इस जािलमाना
हरकत के िवरोध म प्रदशन थिगत कर िदया जाए।"
पु िलस की बबरता के िवरोध म प्रदशन को थिगत करना नौजवान प्रदशनकािरय को
वीकाय नहीं था। ले िकन लालाजी की बात टाली भी नहीं जा सकती थी। अतः
अिन छापूवक मोरचा तोड़ िदया गया और पु िलस अिधकारी कमीशन के सद य सिहत
वहाँ से चले गए। इस सारे घटनाक् रम के समय भगतिसं ह लालाजी के साथ ही थे । ले िकन
प्रदशन के दौरान कोई भी िहं सा मक काय या प्रितरोध नहीं िकया जाएगा, इसका
िनणय पहले ही हो चु का था, इसिलए लाख चाहते हुए भी भगतिसं ह को पु िलस की
बबरता को चु पचाप सहना पड़ा।
लाहौर म िबगड़ी ि थित की आशं का से धारा 144 लागू कर दी गई, परं तु इस धारा को
तोड़कर उसी शाम मोरी दरवाजे के पास वाले मै दान म एक िवशाल सावजिनक सभा की
गई, िजसम हजार लोग ने भाग िलया। बु री तरह से घायल होने के बाद भी लाला
लाजपतराय इस सभा म उपि थत हुए और िसं ह की तरह गजन करते हुए बोले , "म
घोषणा करता हँ ू िक मु झ पर पड़ी एक-एक लाठी िब्रिटश सरकार के कफन म अं ितम
कील का काम करे गी।"
य िप लाठी के प्रहार लाला लाजपतराय के शरीर पर पड़े थे , ले िकन इस अपमान से
उनका वािभमान और अं तमन-दोन बु री तरह से चोिटल हो गए थे । शारीिरक पीड़ा से
अिधक उ ह मानिसक पीड़ा भोगनी पड़ रही थी। अं ततः 17 नवं बर, 1928 को पं जाब
केसरी लाला लाजपतराय ने सदा के िलए आँ ख मूँ द लीं।
रावी के तट पर इस महान् आ मा को अं ितम िवदाई दी गई। इस अवसर पर एक लाख से
अिधक लोग ने उपि थत होकर लाला लाजपतराय को श्र ांजिल दी।
10 िदसं बर, 1928 को लाहौर के ‘मजं ग’ मोह ले म िहं दु तान समाजवादी प्रजातां ित्रक
सं घ की एक बै ठक हुई। इसम चं दर् शे खर आजाद, भगतिसं ह, महावीर िसं ह, सु खदे व,
राजगु , जयगोपाल, िकशोरी लाल तथा दुगा दे वी इ यािद लोग सि मिलत हुए।
प्रदशन के दौरान लाठीचाज करने का आदे श पु िलस अिधकारी कॉट ने िदया था।
इसिलए क् रां ितकारी लालाजी की मृ यु का कारण उसे ही मानते थे । अतः बै ठक म कॉट
को मारने का िनणय िलया गया। इस काय को पूण करने की िज मे दारी चं दर् शे खर आजाद
को स पी गई। उनके परामशानु सार अगले िदन से ही कॉट की िनगरानी करते हुए
उपयु त अवसर की प्रती ा की जाने लगी।

सांडस की ह या
क् रां ितकािरय का यह दल अपने िशकार की टोह म था, ले िकन कॉट िनि चत थान पर
कभी नहीं िमल सका। माल रोड की कोतवाली की तरफ से वह बाहर नहीं आया।
आिखर उसका इं तजार करते हुए तं ग आकर राजगु ने आजाद से कहा, "अब मु झसे रहा
नहीं जा रहा। कहो तो अं दर घु सकर म उसका काम तमाम कर वापस आ जाता हँ ?ू "
पु िलस के पहरे म घु सकर कॉट को मारना मात्र अिवचार था, दुःसाहस था। इससे कॉट
का कोई अिहत नहीं होता, राजगु यथ म पकड़ा जाता। आजाद अपने िन ठावान्
सािथय को इस प्रकार अकारण ही य बिलदान होने दे ते। उ ह ने उसकी िववे कशू य
योजना पर क् रोध से आँ ख तरे रकर उसकी बात अ वीकार कर दी।
इसी तरह इं तजार करते हुए चार िदन यथ हो गए। ले िकन आिखरकार पाँचव िदन उनकी
प्रती ा का अं त हुआ।
भरी दोपहर थी; िचलिचलाती धूप थी। सु दरू तक फैला हुआ रा ता धूप से जल रहा था;
झुलस रहा था। सारा वातावरण खा और बे जान था। नीरव िन त धता थी। रा ते म
स नाटा छाया हुआ था। ले िकन इसी प्रकार का समय उनके िलए शु भ था।
माल रोड पर पु िलस कोतवाली के ठीक सामने रा ते म एक यु वक खड़ा था। उसकी
साइिकल खराब हो गई थी और वह बड़ी दे र से उसकी मर मत कर रहा था। तभी
कोतवाली से एक पु िलस अिधकारी बाहर िनकला। उसने मोटर साइिकल टाट की और
उस पर सवार होकर फाटक तक आ गया। वह वहाँ से बाहर िनकलने ही वाला था िक
सं केत िकया गया।
सहसा फाटक की आड़ म खड़े यु वक की िरवॉ वर से गोली चली और िनशाने को भे दती
िनकल गई। गोली म तक पर लगी और पु िलस अिधकारी मोटर साइिकल समे त नीचे
िगर पड़ा।
िफर दसू रा यु वक आगे बढ़ा। कहीं जीिवत न हो, यह सोचकर उसने एक के बाद एक
गोिलयाँ दाग दीं। िसर से कंधे तक का शरीर बु री तरह से छलनी हो गया था। लालाजी
पर लाठी के क् रतम प्रहार करने वाला अ याचारी गोिलय का िनशाना बन गया।
घमं डी का अहं कार सदा के िलए िमट् टी म िमल गया था।
बे बस और नादान समझे जाने वाल ने अपनी स ची बहादुरी प्रकट कर भरी दोपहर म
खूँखार समझी जाने वाली िब्रिटश सरकार के एक मजबूत तं भ को कोतवाली के सामने
िगरा िदया था।
पहली गोली चलाकर पु िलस अिधकारी की ह या करने वाला राजगु था, जबिक उस पर
गोिलय की बौछार करने वाले भगतिसं ह थे । पास ही एक झाड़ी के पीछे चं दर् शे खर
आजाद हाथ म िरवॉ वर िलये हुए बै ठे थे ।
पूव योजना के अनु सार वे दोन ते जी से डी-ए-वी- कॉले ज की ओर चल िदए। ले िकन
घटना को अपनी आँ ख से दे खने वाला ट् रैिफक इं पे टर फन उनका पीछा करने लगा।
उसके साथ दो िसपाही भी उसी िदशा म दौड़े । फन राजगु के बहुत पास आ गया था।
जान बचाने के िलए राजगु ने गोली चलाई, परं तु िनशाना चूक गया। राजगु पल भर को
िठठका और िफर फन पर टू ट पड़ा। अपनी मजबूत दे ह से उसने पहलवानी का दाँ व मारकर
फन को उठाकर नीचे पटक िदया और उसके उठने से पहले भागकर बहुत दरू चला गया।
फन िकसी भी तरह से हार मानने वाला नहीं था। वह उठा और िफर पीछा करने लगा।
तभी भगतिसं ह ने पीछे मु ड़कर उस पर गोली चला दी। गोली पास से िनकल गई; ले िकन
ू री गोली दागने ही वाले थे िक आजाद की
डर के मारे फन वहीं लु ढ़क गया। भगतिसं ह दस
आवाज सु नाई दी, "ज दी भागो यहाँ से !"
तीन भागते हुए कॉले ज के अहाते म घु स गए; परं तु चं दनिसं ह नामक एक िसपाही अभी
भी उनका पीछा कर रहा था।
भगतिसं ह सबसे आगे भाग रहे थे और उसके पीछे राजगु था। उनके पीछे चं दनिसं ह
दौड़ रहा था। इस भागम-भाग म राजगु को पीछे छोड़ते हुए चं दनिसं ह आगे िनकल
चु का था। उसका पूरा यान भगतिसं ह पर किद्रत था।
चं दनिसं ह बहुत लं बा और मजबूत आदमी था। जान की बाजी लगाकर वह पीछा कर रहा
था। आिखरकार वह सफल होने जा रहा था। जै से ही वह भगतिसं ह को दबोचने वाला था,
ते जी से एक गोली आकर उसके पै र म लगी। वह लड़खड़ाया और िफर पीछा करने लगा।
दस ू री गोली चली और इस बार गोली उसके पे ट म लगी। चीख मारकर वह जमीन पर
िगर गया। भगतिसं ह समझ चु के थे िक भागते हुए दु मन पर िनशाना लगाकर उसे मारने
का कारनामा केवल चं दर् शे खर आजाद ही कर सकते ह।
भागते -भागते वे कॉले ज के छात्रवास से बाहर आ गए। वहाँ दो साइिकल खड़ी हुई थीं।
एक साइिकल पर भगतिसं ह बै ठे और दस ू री को आजाद अपने पीछे राजगु को िबठाकर
चलाने लगे । थोड़ी दे र म ही दोन साइिकल मजं ग हाउस के अहाते म प्रवे श कर ग ।
योजना कामयाब हो चु की थी। प्रस नता से सबके चे हरे दमक रहे थे ।
ले िकन इस सारे घटनाक् रम म एक बड़ी गलती हो गई थी। कॉट पर नजर रखने का काम
जयगोपाल को स पा गया था। भूलवश वह सांडस को ही कॉट समझ बै ठा और उसी पर
नजर रखे हुए था। वा तव म जनरल कॉट डर के मारे कुछ िदन के िलए लाहौर से बाहर
चला गया था। जो क् रां ितकािरय की गोिलयाँ का िनशाना बना था, वह कॉट नहीं बि क
सांडस था। सांडस ने लाला लाजपतराय पर लािठय से वार िकया था; वह भी
क् रां ितकािरय की नजर म था, इसिलए उसकी ह या से ही सं तोष कर िलया गया।
शहर भर म इस अप्र यािशत घटना ने तहलका मचा िदया। जनता खु शी के मारे उछल
रही थी। उसके मन की साध पूरी हो चु की थी। ले िकन सरकार और उसका गु तचर िवभाग
िहलकर रह गया। शम से उनका िसर झुक गया। िदन-दहाड़े उनकी नाक के नीचे एक
िब्रिटश पु िलस अिधकारी को मार िदया गया था, यह उनके िलए डूब मरने वाली बात
थी।
अगले िदन सूयोदय के साथ ही जगह-जगह दीवार पर पो टर लगे हुए थे । गु लाबी
कागज पर लाल याही से िलखे पो टर व तु तः क् रां ितकािरय का प टीकरण था। उन
पो टर म कुछ यूँ िलखा था-

नौकरशाही सावधान!
जे -पी- सांडस की मौत से लाला लाजपतराय की ह या का बदला ले िलया गया है । यह
िकतना अफसोसजनक है िक जे -पी- सांडस जै से एक मामूली पु िलस अफसर के कमीने
हाथ ने 30 करोड़ जनता के दय सम्राट् एक ने ता पर हमला करके उनकी जान ले ली।
रा ट् र का यह अपमान िहं दु तानी मदों और यु वक को एक चु नौती थी।
आज सं सार ने अपनी आँ ख से दे ख िलया है िक िहं दु तान की जनता िन प्राण नहीं हो
गई। उसका खून जम नहीं गया है । वह अपने रा ट् र के िलए प्राण की बाजी लगा
सकती है । यह प्रमाण दे श के उन यु वक ने िदया है , िजनकी इस दे श के ने ता िनं दा और
अवमानना करते ह।

अ याचारी सरकार सावधान!


इस दे श की दिलत और पीिड़त जनता की भावनाओं को चोट न पहुँचाओ। अपनी
शै तानी हरकत बं द करो। िहं दु तािनय को हिथयार न रखने िदए जाएँ , ऐसे बनाए तु हारे
सब कानून और तमाम चौकसी के बाद भी इस दे श की जनता के हाथ िप तौल और
िरवॉ वर आते रहगे । यिद ये हिथयार सश त्र क् रां ित के िलए काफी न हुए तो भी
रा ट् रीय अपमान का बदला ले ते रहने के िलए तो काफी रहगे ही। हमारे अपने लोग भले
ही हमारी िनं दा और अपमान कर। िवदे शी सरकार चाहे हमारा िकतना भी दमन कर ले ,
परं तु हम रा ट् र के स मान की र ा के िलए और िवदे शी आतताियय को सबक िसखाने
के िलए हमे शा तै यार रहगे । हम सब िवरोध और दमन के बावजूद क् रां ित की पु कार को
बु लं द रखगे और फाँसी के त त से भी यही पु कारते रहगे -

इनकलाब िजंदाबाद!
हमारे हाथ एक यि त की ह या हुई, इसका हम खे द है । परं तु यह यि त उस िनदयी,
नीच और अ यायी यव था का एक अं ग था, िजसका खा मा करना आव यक था। इस
यि त को िहं दु तान म िब्रिटश हुकू मत के एक कािरं दे के तौर पर मौत के घाट उतारा
गया है । यह सरकार दुिनया की सबसे यादा अ याचारी सरकार है ।
एक मनु य का र त बहाने का हम खे द है , परं तु क् रां ित के िलए र त बहाना ज री हो
जाता है । हमारा मकसद ऐसी क् रां ित से है , जो मनु य ारा मनु य के शोषण को समा त
कर दे गी।

इनकलाब िजंदाबाद!
सभी प्रस नता से रोमां िचत हो गए। मन आशा से लहलहा उठे । जनता मन-ही-मन
क् रां ितकािरय के सु यश की कामना कर रही थी। इसके िवपरीत, सरकार बौखला उठी थी।
नौजवान भारत सभा और टू डट् स यूिनयन के कई सद य को पकड़ा गया; उनके घर
तलाशी ली गई। ले िकन सांडस की ह या से जु ड़ा कोई भी सबूत नहीं िमला। सरकार को
िव वास था िक इस ह याकांड के पीछे भगतिसं ह और उनके सािथय का हाथ है ; परं तु वे
पहले ही भूिमगत हो चु के थे ।

लाहौर से पलायन
सांडस के ह यार को पकड़ने के िलए सरकार ने कारवाई ते ज कर दी थी। जगह-जगह पर
छापे मारकर सं िद ध क् रां ितकािरय को पकड़ने का प्रयास जारी था। य िप भगतिसं ह
ने बाल और दाढ़ी कटवाकर अपना हुिलया पूरी तरह से बदल िलया था, परं तु सरकार के
बढ़ते िशकंजे से बचने के िलए उ ह ने लाहौर से कलक ा जाने का िन चय कर िलया।
सोचना िजतना सरल था, अमल म लाना उतना ही दु कर। उ ह ने सु खदे व के साथ
िमलकर इसकी भी योजना बना डाली। ले िकन दुगा भाभी की सहायता के िबना इसका
पूरा होना मु ि कल था। उन िदन भगवतीचरण कां गर् े स अिधवे शन म सि मिलत होने
कलक ा गए हुए था। अतः दुगा भाभी से बात करने और उ ह सहमत करने की
िज मे दारी सु खदे व ने अपने कंध पर ले ली।
रात के आठ बजे थे । इस समय दुगा भाभी अपनी पड़ोसन के साथ सं कृत पढ़ा करती
थीं। इसके िलए उ ह ने एक प्रा यापक िनयु त कर रखा था। तभी दरवाजे से सु खदे व ने
उ ह आवाज लगाई। िकताब एक ओर रखकर दुगा भाभी बाहर आ ग और सु खदे व को
अं दर आने के िलए कहा।
सु खदे व धीमे वर म बोला, "भाभी, एक िवशे ष काम है । ले िकन त काल नहीं बताया जा
सकता।"
"तो िफर थोड़ा क जाइए।" यह कहकर दुगा भाभी अं दर चली ग । उ ह ने कोई कारण
बताकर पढ़ाई बं द कर दी। अ यापक और पड़ोसन के चले जाने के बाद उ ह ने सु खदे व
को अं दर बु लाया और काम पूछा।
"घर म पै से पड़े ह?" सु खदे व ने एकदम प्र न िकया।
"हाँ , पड़े ह। बताओ, िकतने चािहए?"
"िजतने भी ह , सारे चािहए।"हाथ म पै से िलये सु खदे व अभी भी िचं ितत िदखाई दे रहा
था। सहसा उसने पूछा, "भाभीजी, आप बाहर जा सकगी? इस शहर से बाहर?" "कहाँ
जाना है ?" दुगा भाभी ने प्र न िकया। "एक आदमी को लाहौर के बाहर पहुँचाना है ।
उसके साथ मे मसाहब बनकर जाना होगा। काम जोिखम का है । सोचकर बताइए। शायद
जान पर भी बन सकती है ।" सु खदे व ने उनके चे हरे की ओर दे खते हुए पूछा। दुगा भाभी ने
कमर म लटका चािबय का गु छा िनकालकर अलमारी खोली और सािड़य की तह म
सँ भालकर रखे हुए पाँच सौ पए िनकालकर सु खदे व को पकड़ा िदए।
हाथ म पै से िलये सु खदे व अभी भी िचं ितत िदखाई दे रहा था। सहसा उसने पूछा,
"भाभीजी, आप बाहर जा सकगी? इस शहर से बाहर?"
"कहाँ जाना है ?" दुगा भाभी ने प्र न िकया।
"एक आदमी को लाहौर के बाहर पहुँचाना है । उसके साथ मे मसाहब बनकर जाना होगा।
काम जोिखम का है । सोचकर बताइए। शायद जान पर भी बन सकती है ।" सु खदे व ने
उनके चे हरे की ओर दे खते हुए पूछा।
उ ह ने शांत वर म पूछा, "कौन आदमी है ?"
"कोई भी हो।" सु खदे व ने बात टाली।
"जाऊँगी।" दुगा भाभी ने दृढ़ वर म कहा।
"ठीक है । आज रात वह आदमी यहीं रहे गा।"
सहमित िमलने के बाद सु खदे व वहाँ से चला गया। ले िकन दुगा भाभी का मन बे चैन था। वे
बड़ी अधीरता से सु खदे व की प्रती ा करने लगीं।
कुछ समय बाद सु खदे व वापस आ गया। उसके साथ एक आदमी आया। उस लं बे यु वक ने
ओवरकोट पहन रखा था। िसर पर है ट था।
दुगा भाभी ने उस अजनबी पर सरसरी नजर डाली और उ ह अं दर ले आ ।
"इनका नौकर भी आया है ।"
"उसे इस तरफ के छोटे कमरे म ठहराइए।" दुगा भाभी ने कहा। उस साँ वले और नाटे -से
नौकर को सु खदे व ने उसका िब तर ले कर बताए हुए कमरे म भे ज िदया। ले िकन दुगा
भाभी िसर झुकाए बै ठी हुई थीं। पराए आदमी की ओर दे खने म उ ह सं कोच हो रहा था।
ले िकन अितिथ शरारत से मु सकराते हुए उ ह दे ख रहा था।
"भाभीजी, आपने इ ह पहचाना? दे िखए तो।" सु खदे व ने मु सकराते हुए कहा।
अब जाकर दुगा भाभी ने नजर उठा और अजनबी को दे खा। आँ ख िमलते ही उस आदमी
को हँ सी आ गई। उसे हँ सते दे खकर दुगा भाभी ने उसे पहचान िलया और वयं भी हँ सते
हुए बोलीं, "अरे , ये तो भगत है । िबलकुल भी पहचान म नहीं आ रहा।"
तीन िमलकर हँ स पड़े ।
"और वह नौकर कौन है ?"
"रघु नाथ उफ राजगु ।" सु खदे व ने कहा।
दुगा भाभी के मन का बोझ दरू हो गया। िकसी अनजान यि त के साथ जाने के िलए वे
सहमत तो गई थीं, ले िकन िफर भी उ ह यह काम किठन लग रहा था। अब भगतिसं ह
और राजगु के होते हुए उ ह िकसी बात का डर नहीं था।
तभी सु खदे व बोला, "भाभीजी, शचींदर् को भी साथ ले जाना होगा।"
सु खदे व की इस बात को सु नकर दुगा भाभी का मम व जाग उठा। अपने प्राण को सं कट
म डालने के िलए वे सहष तै यार थीं, ले िकन अपने एकमात्र पु त्र को मौत के मुँ ह म ले
जाना उ ह किठन प्रतीत हो रहा था। परं तु िफर उ ह ने अपने मम व के आवे ग को रोक
िलया और सहमित म िसर िहला िदया।
पाँच बजे थे । भोर का उजाला फैलने लगा था। इस झुटपु ट म एक रोबदार साहब अपनी
मे मसाहब और ब चे के साथ ले टफॉम पर पहुँचे। उ ह ने अपने इकलौते तथा सुं दर ब चे
को गोद म उठा िलया। उन दोन म कानाफू सी हो रही थी। गरदन झुकाकर अपने बे टे के
साथ बात करने के कारण साहब का चे हरा प ट िदखाई नहीं दे रहा था।
कलक ा मे ल टे शन पर खड़ी थी। प्रथम श्रेणी म आरि त सीट ढूँढ़कर साहब और
ू रे िड बे म चढ़ गया।
उनका पिरवार बै ठ गए, जबिक से वक दस
इस दौरान अने क बार िसपाही उनके आगे से िनकले , ले िकन कोई भी साहब बने भगतिसं ह
को पहचान नहीं सका। दुगा भाभी ने भी वयं को इस प्रकार तै यार िकया था िक वह
सचमु च िकसी अिधकारी की प नी लग रही थीं।
िनधािरत समय पर कलक ा मे ल चल दी। लगभग चालीस घं ट की लं बी यात्र; टे शन
आने पर दुगा भाभी का िदल जोर-जोर से धड़कने लगता। कोई िसपाही उनकी ओर दे ख
ले ता तो उनके प्राण गले म अटक जाते । इसके िवपरीत, भगतिसं ह िबलकुल िनिश्ंचत
थे । उ ह अपनी सफलता पर पूरा भरोसा था। अं ततः गाड़ी अपने गं त य पर जा पहुँची।
सबने चै न की साँस ली।
इस प्रकार िब्रिटश सरकार की आँ ख म धूल झ ककर भगतिसं ह सकुशल लाहौर से बच
िनकले ।
अ याय 13
असबली म बम
क लक ा म कां गर् े स का अिधवे शन जोर-शोर के साथ सं प न हुआ। बं गाली रीित-
िरवाज के अनु सार धोती और मलमल का ढीला कुरता पहनकर तथा दुशाला लपे टकर
भगतिसं ह अिधवे शन के मं डप म उपि थत थे । पं - मोतीलाल ने ह कां गर् े स के अ य
थे । वातावरण उ साहवद्ध्रक था। ले िकन अिधवे शन म पािरत प्र ताव िनराशाजनक
था, िजसम कहा गया था िक "एक रात के अं दर सरकार ने यिद ने ह कमे टी की िरपोट को
वीकार कर दे श को सीिमत वरा य नहीं िदया तो कां गर् े स िफर कभी भी सं पणू वरा य
प्रा त िकए िबना िकसी भी प्रकार के समझौते को वीकार नहीं करे गी।"
भगतिसं ह मन-ही-मन अ यं त उद्िव न थे । उ ह ने ऐसा काय करने का िन चय कर
िलया, िजससे एक ओर सरकार की नींद उड़ जाए, वहीं दस ू री ओर दे शवािसय के
िनि क् रय मन म चे तना की िचनगारी जल उठे । वे एकजु ट होकर िब्रिटश साम्रा य को
दे श से उखाड़ फकने के िलए उ त हो जाएँ ।
दे श के स माननीय ने तागण िजस समय सरकार के साथ समझौता करने म प्रय नशील
थे , उसी समय लाहौर म िव फोटक झं डे गाड़कर आया हुआ यह इ कीस वषीय यु वक
िफर िकसी अनहोनी घटना को साकार करने की सोच म म न था।
कलक ा के ‘अनु शीलन सिमित’ नामक क् रां ितकारी सं गठन के साथ सं बंध थािपत करने
तथा इस बारे म उनके साथ परामश करने के उ े य से भगतिसं ह ने सिमित के प्रमु ख
ने ता प्रतु लचं दर् गां गुली से सं पक िकया। भगतिसं ह ने जो योजना प्र तु त की, वह उ ह
बहुत पसं द आई। उ ह ने दो िरवॉ वर दे कर भगतिसं ह को आशीवाद िदया।
ले िकन चोरी-िछपे प्रा त होने वाले इन िरवॉ वर से काम नहीं बन सकता था। इसके
िलए बड़े पै माने पर बम बनाने की आव यकता थी। बम की ज रत को िपछले कई
महीन से महसूस िकया जा रहा था। ले िकन इसके िलए न तो पै सा था, न सामग्री और
न ही उिचत मागदशन।
इसी बीच सूचना िमली िक कलक ा के िव यात क् रां ितकारी यतींदर् नाथ दास को
नजरबं दी से मु त कर िदया गया है । भगतिसं ह ने गु त प से उनसे सं पक िकया। एक ही
िवचारधारा से ओत-प्रोत दो यु वक पर पर िमले और एकजु ट होकर काय करने का
िन चय िकया। यतींदर् नाथ बम बनाने की कला म िनपु ण थे । वे हर तरह का सहयोग दे ने
के िलए तै यार थे ।
इस काम का आरं भ कलक ा के ही एक क् रां ितकारी के घर गन कॉटन बनाने से िकया
गया। तदनं तर गन कॉटन और अ य रासायिनक सामग्री ले कर भगतिसं ह, िवजयकुमार
िस हा, फणींदर् घोष आिद क् रां ितकारी दो टु किड़य म आगरा पहुँचे।
आगरा म हींग मं डी और नमक मं डी म दो घर िकराए पर ले कर बम बनाने के कारखाने
बनाए गए। यहीं दल की बै ठक भी होती थीं। उधर लाहौर म सु खदे व ने और सहारनपु र म
िशव वमा ने बम बनाने के कारखाने बना िलये थे । इस तरह क् रां ितकारी पूरे जोश के साथ
बम बनाने लगे ।

सरकार की कू टनीित
दे श म िविभ न थान पर आं दोलन हो रहे थे , िजसम लाख लोग सि मिलत होते थे ।
िदन-प्रितिदन सरकार-िवरोधी िवचारधाराओं का िनरं तर प्रसार हो रहा था। इस
आं दोलन के चलते जहाँ सरकार को आम जनता के िवरोध का सामना करना पड़ रहा था,
वहीं दस ू री ओर सरकारी कायालय एवं अं गर् े ज के घर म काय करने वाले श्रिमक
दे शभि त से प्रेिरत होकर कभी भी हड़ताल कर सरकारी यव था को पं गु बना दे ते।
इसके पिरणा व प सरकार की ि थित कमजोर होती जा रही थी। अतः सरकार ने ‘जन-
सु र ा िबल’ तथा ‘औ ोिगक िववाद िबल’ पािरत करने का िनणय िलया। जन-सु र ा
िबल के अं तगत सरकार का उ े य यु वक आं दोलन को कुचलना था, जबिक औ ोिगक
िववाद िबल मजदरू को हड़ताल के अिधकार से वं िचत करने का उपाय था। इन िबल
ारा सरकार दे श की जनता को िबलकुल अलग-थलग कर दे ना चाहती थी। ले िकन
भगतिसं ह जै से जाग क यु वक सरकार की इस कू टनीित को समझ गए। िबल कद्रीय
असबली म प्र तु त िकए जाने थे । उ ह िव वास था िक असबली के कां गर् े सी ने ता इन
िबल को पास नहीं होने दगे । परं तु उ ह वायसराय की ‘वीटो पावर’ का भी ान था,
िजसके अं तगत वह अपने िवशे षािधकार का प्रयोग करते हुए िबल को पास कर सकता
था।
इस िवषय पर बात करने के िलए एक बै ठक बु लाई गई। बै ठक के दौरान भगतिसं ह ने
सु झाव िदया िक वायसराय अपने िवशे षािधकार का प्रयोग करते हुए जब िबल को पास
करने की घोषणा करे गा, उसी समय असबली म बम फककर क् रां ितकारी अपना िवरोध
प्रदिशत करगे । इससे जन-साधारण के मन म जागृ ित पै दा होगी।
" या आप सब लोग इस बात से सहमत ह?" चं दर् शे खर आजाद ने अ य सािथय से
पूछा।
सभी ने एक वर म सु झाव की सराहना की।
"बम फकने की बात िनि चत हो गई। अब यह सोचना चािहए िक बम कौन फकेगा?"
इस काय के िलए भगतिसं ह ने वयं को प्र तु त िकया।
ले िकन अचानक िवजयकुमार खड़ा होकर बोला, "म समझता हँ ू िक भगतिसं ह को इस
काम के िलए न भे जा जाए, य िक भगतिसं ह और आजादजी हमारे दल के आधार- तं भ
ह। इन दोन को िहं दु तान समाजवादी प्रजातां ित्रक सं घ के सं गठन काय और प्रचार
काय के िलए सु रि त रखना दल के िहत की दृि ट से अ याव यक है ।"
"मे री भी यही राय है ।" िशव वमा ने कहा, "भगतिसं ह के पकड़े जाने से हम बहुत नु कसान
होगा। सं घ का प्रचार अ यं त मह वपूण होते हुए भी हम भगतिसं ह का याग नहीं
करना चाहते ।"
अं त म आजाद अपना िनणय सु नाते हुए बोले , "ठीक है , यह काय बटु के वर द और
िवजय कुमार िस हा करगे । असबली म बम फककर तथा बयान पत्र िवतिरत करके वे
भगदड़ का लाभ उठाते हुए बाहर िनकल आएँ गे। वहाँ से म उ ह सु रि त िनकाल
लाऊँगा।"
"नहीं, यह योजना मु झे वीकार नहीं है । केवल बयान पत्र के िवतरण से हमारे िवचार का
स चा प्रचार नहीं हो सकता। न ही इससे हमारे उ े य और नीितय का प ट िचत्र
जनता के मन पर अं िकत होगा; बि क हमारे बारे म झठ ू ा प्रचार िकया जाएगा,
िहं दु तान समाजवादी प्रजातां ित्रक सं घ को आतं कवािदय का दल कहा जाएगा।
िजनके िलए हमने मर-िमटने का सं क प िलया है , उन दे शवािसय की नजर म हम
घृ िणत हो जाएँ गे। इसिलए मे रा कथन है िक हम िनभयता के साथ वयं को पु िलस के
हवाले कर दे ना चािहए। हमारे िलए अपने मन की बात को जनता तक प ट प से
पहुँचाने का यही एकमात्र बिलदे वी का मं च बना है । उस मं च पर खड़े होकर हम क् रां ित
का जयघोष करना चािहए। मृ यु और केवल मृ यु ही हमारे प्रचार का एकमात्र
प्रभावकारी साधन है ।" जोश म भरकर बोलते हुए भगतिसं ह की आँ ख के सामने फ् रांस
की असबली म बम फकते वे लाँ का िचत्र घूम रहा था।
इस िवचार को सराहा गया और अं त म इसी के अनु प काय करने की घोषणा की गई।
दे श के िलए मर-िमटने के िलए बटु के वर द और िवजयकुमार का चु नाव िकया गया था,
यह सोचकर ही उन दोन का सीना गव से फू ल गया। इस िनणय के बाद दल का कद्र
िद ली म ही रखा गया। असबली म जाकर वहाँ की पिरि थितय का िनरी ण करने की
िज मे दारी जयदे व कपूर को स पी गई।
असबली म प्रवे श करने के िलए प्रवे श-पत्र प्रा त करना आव यक था। जयदे व ने
इसके िलए एक तरकीब सोची। उसने असबली म पूछताछ कर पास दे नेवाले कायालय म
अपना नाम िद ली के ‘िहं द ू कॉले ज’ के अथ िव ान के एक छात्र के प म िलखवाया
था। इस तरह असबली के पु तकालय म जाने का प्रवे श-पत्र सरलता से प्रा त कर
िलया था। उस पिरश्रमी छात्र पर कायालय के लोग को िव वास हो गया। उ ह ने उस
छात्र को दशक की गै लरी म बै ठकर असबली की कारवाई दे खने की अनु मित दे दी थी।
िकसी भी समय उनसे एक-दो पास प्रा त होने लगे थे । जब पास की आव यकता होती
थी, उस समय जयदे व कपूर िकसी कां गर् े स सद य का पत्र िदखाकर पिरचय के आधार
पर दो-तीन प्रवे श-पत्र लाने लगा था। एक-दो बार आजाद और भगतिसं ह भी उसके
साथ असबली म हो आए थे ।
य िप इस काय के िलए बटु के वर द और िवजयकुमार िस हा का चयन हो गया था;
परं तु बाद म िवजयकुमार िस हा के थान पर भगतिसं ह ने वयं असबली जाने का िन चय
िकया।
धमाके
8 अप्रैल, 1930; आज असबली म ‘जन-सु र ा िबल’ और ‘औ ोिगक िववाद िबल’-दो
मह वपूण िबल पािरत होने वाले थे । इन िबल को पािरत करने का अथ गु लामी की
बे िड़य म जकड़े भारतीय समाज को एक और बे ड़ी म जकड़ना था।
असबली म लोग एकित्रत होने लगे थे । दशक के िलए आरि त गै लरी म दशक आकर
बै ठने लगे । नीचे िवशाल हॉल म असबली के सद य अपने -अपने थान पर बै ठ चु के थे ।
अं गर् े ज सरकार के प्रितिनिधय का ने तृ व करने वाले सर जॉन शू टर भी अपनी सीट पर
बै ठे हुए थे । उ हीं के सामने िवप ी दल के ने ता पं - मोतीलाल ने ह सिहत अ य
ने तागण बै ठे थे । कानून का िवरोध कैसे िकया जाए, इस बारे म सोचते हुए वे पर पर
िवचार-िवमश कर रहे थे ।
ठीक उसी समय िव फोट का भयं कर गजन सु नाकर बहरी सरकार तक जनता की आवाज
पहुँचाने के िलए िहं दु तान समाजवादी प्रजातां ित्रक सं घ के दो महानायक दशक दीघा
म प्रवे श कर रहे थे ।
जयदे व कपूर ने सं केत ारा भगतिसं ह और बटु के वर द को उनकी कुरिसयाँ िदखा दीं।
और िफर वह भी वहीं पास की कुरसी पर बै ठ गया। वहाँ से पीकर की कुरसी प ट
िदखाई दे रही थी, इसिलए वह थान बहुत मह वपूण था। भगतिसं ह ने बटु के वर द
का हाथ दबाकर अिग्रम घटनाक् रम के िलए तै यार रहने का सं केत िकया।
नीचे प्र नो र की झड़ी लगी हुई थी, ले िकन ऊपर दोन वीर उिचत समय की प्रती ा
कर रहे थे ।
सहसा सर जॉन शू टर खड़े हो गए। बटु के वर ने जयदे व की ओर दे खा। वह सं केत समझ
गया और उनके प्रवे श-पत्र को ले कर चु पचाप वहाँ से बाहर चला गया।
सर जॉन शू टर घोषणा करते हुए बोले , "आज हमारे वायसराय ने अपने िवशे षािधकार
का प्रयोग करते हुए ‘जन-सु र ा िबल’ और ‘औ ोिगक िववाद िबल’ पास िकया है । यह
िबल त काल अमल म आ जाएगा और---"
बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी िक एक प्रचं ड धमाके से पूरी असबली गूँज उठी। बम
सामने की दीवार से टकराया था।
उस अप्र यािशत िव फोट से सम त सभा-भवन पल भर के िलए स न रह गया। तभी
उस िन त ध और अवा फ़ ि थित के बीच दस ू रा बम फका गया। उसके धमाके के साथ ही
चार ओर भगदड़ मच गई। ने ताओं एवं अं गर् े ज अिधकािरय के साथ-साथ पु िलस के
िसपाही भी बाहर की ओर भागे । असबली म कामकाज का अवलोकन करने वाला
अिधकारी डर से बे होश हो गया, जबिक सर जॉन शू टर ने बच के नीचे िछपने म ही
अपनी भलाई समझी। सब जान बचाकर बाहर की ओर भाग रहे थे । इस भगदड़ म वे
सु र ाकमी भी सि मिलत थे , जो असबली म सु र ा के िलए तै नात िकए गए थे ।
उसी समय काले -नीले धु एँ से भरे हुए सभागार म लाल अ र से छपे हुए परच की वषा
हो रही थी। भागते -दौड़ते लोग को गजन सु नाई दे रही थी, "इनकलाब िजं दाबाद।"
परच पर िलखा था-
‘बहर को सु नाने को धमाका ज री है ’-प्रिस फ् रांसीसी अराजकतावादी शहीद वे लाँ के
ये अमर श द हमारे काय के औिच य के सा ी ह।
गत दस वषों म प्रशासिनक सु धार की ओट म जो कुछ िकया गया है , उस अपमानजनक
िनं दनीय कहानी को हम दोहराना नहीं चाहते । हम भारत रा ट् र के ने ताओं के साथ िकए
गए अपमान का भी उ ले ख नहीं करना चाहते , जो उस सदन म िकए गए ह, िजसे
‘भारतीय पािलयामट’ कहा जाता है ।
हम यह प ट कर दे ना चाहते ह िक इस समय भी कुछ लोग साइमन कमीशन ारा
सु धार के नाम पर जो जूठन िमलने की सं भावना है , उसकी आशा लगाए हुए ह और
िचचोड़ी हुई िहं य के बँ टवारे के िलए झगड़ा तक करने लग गए ह। इसी समय सरकार भी
भारतीय जनता पर दमनकारी कानून लादती जा रही है , जै से-‘सावजिनक सु र ा िबल’
और ‘औ ोिगक िववाद िबल’। इनके साथ ही आने वाले अिधवे शन म ‘अखबार ारा
राजद्रोह रोकने का कानून’ (प्रेस से डीशन ए ट) जनता पर कस िदए जाने की भी धमकी
दी जा रही है । मजदरू ने ता, जो खु ले प म अपना काय कर रहे थे , अं धाधुं ध
िगरफ् रतािरय से यह प ट हो जाता है िक सरकार का इरादा या है । िवदे शी सरकार
और उसके शोषक नौकरशाह जो कुछ भी उनके मन म आए, कर; ले िकन हमारा यह
कत य है िक जन-साधारण के सामने िवदे शी सरकार के काले कारनाम का सही िचत्र
प्र तु त करते रह।
के प्रितिनिधय का यह सबसे पहला कत य है िक वे अपने -अपने े तर् का दौरा कर
जनता-जनादन को आने वाली क् रां ित के िलए तै यार कर। भारतीय जनता अपने सश त
िवरोध ारा अ याय पर िटकी हुई ह यारी िब्रिटश सरकार को यह बता दे िक पि लक
से फ्रटी िबल, टे ªड िड यूट िबल और लाला लाजपतराय की नृ शंस ह या हम हमारे माग
से , वाधीनता के पिवत्र सं क प से नहीं िडगा सकते ।
हम अपने इस िव वास को पु नः दोहराना चाहते ह िक सं सार के इितहास ने अने क बार
इस वलं त स चाई की घोषणा की है िक यि तय की ह या करना तो सरल है , िकंतु
िवचार की ह या नहीं की जा सकती।
बड़े -बड़े साम्रा य न ट हो गए, परं तु िवचार आज भी जीिवत ह। फ् रांस के ब् वाँ और
स के जार-सब चले गए, जबिक क् रां ितकारी िवजय और सफलता के साथ आगे बढ़
गए।
हम यह वीकार करते हुए खे द होता है िक हम लोग-जो मनु य-जीवन को अ यं त
पिवत्र मानते ह; हम जो बड़े उ वल भिव य के व न दे खते ह, िजसम मनु य पूण
शां ित और वतं तर् ता का उपभोग करता होगा-उ ह भी मानव-र त बहाना पड़ा है ।
क् रां ित की दे वी, जो सबको वतं तर् ता प्रदान करे गी, का अिभषे क करने के िलए कुछ
यि तय का बिलदान होना आव यक है । तभी मनु य ारा मनु य का शोषण असं भव हो
सकेगा।

िगर तारी
कुछ ही दे र म सभाभवन खाली हो गया। पं - मोतीलाल ने ह , पं - मदनमोहन मालवीय,
िवट् ठलभाई पटे ल और मु ह मद अली िज ना-इतने बड़े हॉल म केवल चार ही लोग
अपनी कुरसी पर शां ितपूवक बै ठे थे ।
भगतिसं ह और बटु के वर द अपने -अपने थान पर प्रस न मु दर् ा म खड़े थे । उनके
मु खमं डल पर आ मसमपण का अनोखा आनं द झलक रहा था। उनकी आँ ख म चमक थी,
आवाज म दृढ़ता थी। वे बार-बार गरज रहे थे -
"इनकलाब िजं दाबाद! साम्रा यवाद न ट हो! दुिनया के मजदरू ो, एक हो जाओ!"
बहुत दे र के बाद िसपािहय का एक दल डरते -डरते सभाभवन म आया। खाकी रं ग की
कमीज-पट और िसर पर फे ट है ट पहने इन साहसी यु वक को दे खकर िसपािहय के दल
का प्रमु ख अिधकारी टे री अवा फ़ रह गया। उसने दरू से ही पूछा, "बम फकने का भयं कर
काय आपने ही िकया है ?"
अपनी िरवॉ वर से खे लते हुए भगतिसं ह मु सकराकर बोले , "हाँ , यह काम हमने ही िकया
है ।"
इतना कहने के बाद भी िसपाही उ ह िगरफ् रतार करने आगे नहीं बढ़ रहा था। इसिलए
उसके भय को दे खकर भगतिसं ह और बटु के वर ने अपने -अपने िरवॉ वर सामने वाली मे ज
पर रख िदए। जे ब म रखी सब गोिलयाँ भी पास म रख दीं। भगतिसं ह ने अपने हाथ आगे
बढ़ाते हुए मु सकराते हुए बं दी बनाने का सं केत िकया।
आ चयचिकत टे री साहस जु टाकर नपे कदम से आगे बढ़ा। भगतिसं ह ने अपना है ट
उतारकर हाथ म ले िलया और दोन पु िलस के पहरे म शांतिच असबली से बाहर आ
गए।
थोड़ी दे र बाद ही दोन कैिदय को ले कर पु िलस की कार पु िलस चौकी की ओर चल दी।

िपता-पु तर् का िमलन


पु िलस टे शन म पु िलस अिधकारी ने भगतिसं ह को अपना बयान दज करवाने के िलए
कहा। ले िकन उ ह ने यह कहते हुए इनकार कर िदया िक वे अपना बयान अदालत के
सामने दगे । विरत कारवाई करते हुए दोन कैिदय को जे ल भे ज िदया गया। इसी बीच
सरदार िकशनिसं ह ने पु त्र से िमलने की अजी दी। परं तु उ ह िमलने नहीं िदया गया।
भगतिसं ह को यह बात मालूम हुई तो उ ह ने 26 अप्रैल, 1929 को िद ली जे ल से अपने
िपता को एक पत्र िलखा। इस पत्र के अनु सार-

िद ली जे ल
26-04-1929
पू य िपताजी महाराज,
वं दे मातरम्!
अज है िक हम लोग 22 अप्रैल को पु िलस की हवालात से िद ली जे ल म थानांतिरत
कर िदए गए थे और इस व त िद ली जे ल म ही ह। मु कदमा 7 मई को जे ल के अं दर ही
शु होगा। गािलबन एक माह म सारा ड्रामा ख म हो जाएगा। यादा िफक् र करने की
ज रत नहीं है । मु झे मालूम हुआ है िक आप यहाँ तशरीफ लाए थे , िकसी वकील वगै रह
से भी बातचीत की थी और मु झसे िमलने की कोिशश भी की थी। मगर सब इं तजाम न हो
सका। मु झे कपड़े परस िमले । मु लाकात आप िजस िदन तशरीफ लाएँ , हो सकेगी। वकील
वगै रह की कोई खास ज रत नहीं है । दो-एक बात के बारे म थोड़ा सा मशिवरा ले ना
चाहता हँ ।ू मगर वे बात कोई खास अहिमयत नहीं रखतीं। आप खाम वाह यादा
तकलीफ न कीिजएगा। अगर आप िमलने के िलए आएँ तो अकेले ही आइएगा। वा दा
सािहबा को साथ न लाइएगा। खाम वाह वह रो दगी और मु झे भी कुछ तकलीफ ज र
होगी। घर के सब हालात आपसे िमलने पर ही मालूम हो सकगे ।
हाँ , अगर हो सके तो गीता रह य, ने पोिलयन की मोटी पु तक ‘सु आने उमरी’ (जीवन-
चिरत्र), जो आपको मे री लाइब्रेरी म िमल जाएगी और अं गर् े जी के कुछ आला नॉवे ल
(उप यास) ले ते आइएगा। ारकादास लाइब्रेरीवाल से
शायद कुछ नॉवे ल िमल सक। खै र, दे ख लीिजएगा। इस व त पु िलस हवालात और जे ल
म हमारे साथ िनहायत अ छा सलूक हो रहा है । आप िकसी िक म की िफक् र न
कीिजएगा।
मु झे आपका पता मालूम नहीं है , इसिलए इस पते (कां गर् े स दफ् रतर) पर िलख रहा हँ ।ू
-भगतिसं ह
बहुत प्रयास करके बाद अं ततः सरदार िकशनिसं ह को िमलने की अनु मित िमल गई। 3
मई, 1929 को उ ह ने जे ल म भगतिसं ह से मु लाकात की। उस समय बै िर टर आसफ
अली भी उनके साथ थे । मु लाकात के दौरान िकशनिसं ह ने अपने िवचार प्रकट करते हुए
कहा, "िचं ता मत करना भगत! हम पूरी ताकत और कानूनी दाँ व-पे च के अनु सार मु कदमा
लड़गे । सरकार के पास तु हारे िखलाफ ठोस सबूत नहीं ह। मु झे उ मीद है िक अदालत म
हमारी दलील को कोई नहीं काट सकेगा और जज तु ह छोड़ने के िलए मजबूर हो
जाएगा।"
"ले िकन िपताजी, म बचाव की दृि ट से मु कदमा लड़ने के प म नहीं हँ ।ू मे री लड़ाई
स य और याय की लड़ाई है ; िस ांत के प्रचार का एक साधन है । इसिलए म यह
मु कदमा बचाव के िलए नहीं बि क दे श के कोने -कोने तक क् रां ित की वाला भड़काने के
िलए तथा इनकलाब का नारा बु लं द करने के िलए लडूँगा।"
य िप भगतिसं ह अपना िन चय बता चु के थे , ले िकन िफर भी बै िर टर आसफ अली ने
उनसे केस सं बंधी कानूनी पूछताछ की, िफर दोन लौट गए।
अ याय 14
इनकलाब िजंदाबाद
"इ नकलाब िजं दाबाद!" अदालत म कदम रखते ही भगतिसं ह और बटु के वर द ने
क् रां ित की गजना की, िजसे सु नकर जज िम टर िमड्लटन के माथे पर बल पड़ गए; भ ह
िसकुड़ ग । सामने मे ज पर हथौड़े से चोट करते हुए वे तीव्र वर म बोले , "ऑडर!
ऑडर!"
भगतिसं ह मु सकराए।
‘इनकलाब िजं दाबाद’ के श द राजस ा के हर नौकर पर ममाघात िकया करते थे ।
मिज ट् रेट िम टर पूल भी िनचली अदालत म िकतने खीज पड़े थे । उ ह ने िच लाकर
कहा था, "इन इनकलािबय के हाथ-पै र म बे िड़याँ कस दो।"
भगतिसं ह और बटु के वर द के कठघरे म जाकर खड़े हो जाने पर सरकारी वकील ने
अपनी दलील पे श की, "मीलॉड! इन दोन पर धारा 307 के अं तगत मनु य ह या का
प्रय न करने तथा धारा 3 के अनु सार बम-िव फोट करने का आरोप लगाया गया है ।
साजट टे री की गवाही के साथ-साथ ये उन उ नीस लोग की गवािहयाँ ह, िज ह ने बड़ी
होिशयारी और चालाकी से अपरािधय को िगरफ् रतार िकया है ।"
वकील की दी हुई फाइल को जज साहब ने सरसरी तौर पर दे खा। वा तव म वे फाइल
पहले ही पढ़ चु के थे । ले िकन उन कागजात को पढ़ने का अिभनय करते हुए उ ह ने
कैिदय की ओर दे खकर पूछा, "अपने ऊपर लगे इन आरोप के बारे म तु म कुछ कहना
चाहते हो?"
"जी हाँ ! ये सारी गवािहयाँ और सबूत बनावटी ह।" भगतिसं ह ने शांत वर म कहा।
"इसका मतलब यह है िक तु मने असबली म बम नहीं फके ह?" सरकारी वकील ने क् रोध
म भरकर पूछा।
"जी नहीं! बम हमने ही फके थे । ले िकन जै सा िक गवाह कहते ह, वह सही नहीं है ।
उ ह ने हमारे हाथ से िरवॉ वर छीने नहीं थे , हमने वयं ही उ ह एक ओर रख िदया था।"
"ले िकन बम फककर लोग को मारने का तु मने जो भयं कर अपराध िकया है , उससे तु म
इनकार तो नहीं कर सकते ?"
"यह आरोप भी गलत है । हम मानवता से िजतना प्रेम है उतना तो आपको भी नहीं है ।
हमारे मन म मानव जीवन के प्रित अपार क णा है । इसीिलए तो हमने अपने
दे शवािसय , अपने िकसान-मजदरू , गरीब भाई-बहन को अ याचार की जं जीर से बचाने
के िलए असबली म बम िव फोट िकया है । सभा-भवन के उपि थत म से िकसी के भी
प्रित हमारे मन म वै रभाव नहीं था। अगर वह होता तो हम सीधे उस यि त को िनशाना
बनाकर उसी पर बम फकते । हम शू टर साहब को मार सकते थे , ले िकन हमने वह सब
नहीं िकया। हमने खाली जगह पर बम फके थे । हम िकसी को मारना ही नहीं चाहते थे ।"
"अ छा, तो तु म िसफ आितशबाजी करना चाहते थे ?" सरकारी वकील ने यं यपूवक
पूछा।
भगतिसं ह ने उसकी ओर तीखी दृि ट से दे खा और िफर हँ सकर बोले , "हाँ , अपनी िजं दगी
की आितशबाजी कर हम यहाँ इस कठघरे म आना चाहते थे । जान की बाजी लगाकर इस
मं च से हम अपने दे शवािसय से कहना चाहते थे िक यह िवधानसभा एक ढ ग है । यह
आप लोग का क याण नहीं करे गी, बि क मायाजाल म फँसाकर आपकी गरदन को
गु लामी के पाश म और अिधक जकड़ दे गी। समय पर सावधान हो जाओ, सचे त हो
जाओ।"
भगतिसं ह ारा गहराई से कहे गए उद्गार अदालत म उपि थत लोग के मन को पश
कर गए। सबकी आँ ख उस ते ज वी मु दर् ा पर ि थर हो गई थीं। उसका एक-एक श द
लोग म न होकर सु न रहे थे । उनम से िकसी ने यह सोचा तक नहीं था िक बम फकने के
पीछे इस तरह का उ े य होगा।
भगतिसं ह ने आगे कहा, "हम जब इनकलाब िजं दाबाद का नारा लगाते ह तो लोग को
लगता है िक हमारी क् रां ित मात्र बम-बं दक ू और िहं सा पर आधािरत है , यि तगत े ष
की बु िनयाद पर खड़ी है । परं तु ऐसा नहीं है । हमारी क् रां ित की धारणा इतनी तु छ नहीं
है । अ याचारी शासन को व त करके हम क् रां ित करना चाहते ह। ले िकन िसफ िवनाश
करना ही क् रां ित नहीं है । उसके थान पर क याणकारी यव था ारा िकया जाने वाला
नव-िनमाण ही स ची क् रां ित है । हम प्राणपण से उसकी घोषणा करते ह। उसी क् रां ित के
हम नारे लगाते ह।"
थोड़ा ककर भगतिसं ह ने यायालय म सबके चे हरे दे खे। माथे पर उभरी हुई पसीने की
बूँद को प छा और अपनी आवे श भरी आवाज को सौ य बनाते हुए बोले , " यायाधीश
महोदय, हम िव वास है िक आप हम कठोरतम दं ड दगे । ले िकन हम केवल इतना ही
कहना चाहते ह िक साम्रा यवादी राजस ा एक-दो यि तय को मसल सकती है , न ट
कर सकती है ; ले िकन इससे उनके िवचार , िस ांत और अवधारणाओं को न ट नहीं िकया
जा सकेगा। महोदय, बहर को सु नाने , उनको समय पर चे ताने और चे तावनी दे ने के िलए
असबली म हम लोग ने बम की िव फोटक आवाज को बु लं द िकया है , यह बात हम
वीकार करते ह। इसके िलए हम हर तरह की सजा भोगने के िलए तै यार ह, य िक
हमारी पूरी िजं दगी क् रां ित की बिलवे दी को समिपत है ।"
िदनांक 6 जून को भगतिसं ह और बटु के वर द ने व त य प्र तु त िकया और सोमवार
िदनांक 10 जून के िदन उनका मु कदमा समा त हुआ। 12 जून को अदालत म आते ही
140 पृ ठ का फैसला घोिषत िकया गया। उसम कहा गया िक "उ े य की तारीफ के
िकतने भी पु ल बनाए गए ह , ले िकन इससे अपराध गौण नहीं होता। इसिलए गै र-कानूनी
तरीक से तोड़-फोड़ करने के आरोप पर हम इन दोन अपरािधय को आजीवन कारावास
अथात् काले पानी की सजा दे रहे ह।"
फैसला सु नते ही सब लोग पल भर के िलए अवा फ़ रह गए। सजा होने का िव वास था,
परं तु आजीवन कारावास की िकसी ने क पना नहीं की थी। लोग म कानाफू सी होने लगी;
भावु क लोग की आँ ख से आँ स ू बहने लगे ।
ले िकन सजा सु नकर भी भगतिसं ह और बटु के वर द मु सकराते हुए ‘इनकलाब
िजं दाबाद’ के नारे लगा रहे थे ।

आमरण अनशन
अदालत ने अपना फैसला सु ना िदया था। ले िकन सांडस ह या म भगतिसं ह का नाम होने
के कारण उससे सं बंिधत मु कदमे म अभी कारवाई होनी शे ष थी। अतः जज ने भगतिसं ह
और बटु के वर द को लाहौर जे ल म थानांतिरत करने का आदे श पािरत कर िदया।
उसी िदन उ ह अलग-अलग कंपाटमट म िबठाकर ट् रेन ारा िद ली से लाहौर ले जाया
गया। टे शन आने से पूव भगतिसं ह के आग्रह पर एक स दय साजट कुछ दे र के िलए
उ ह बटु के वर के कंपाटमट म ले आया। इस दौरान दोन ने भिव य की योजनाओं पर
िवचार-िवमश िकया। उन िदन जे ल म कैिदय की ि थित अ यं त शोचनीय थी। उ ह न
तो भरपे ट पौि टक आहार िमलता था और न ही वा य सं बंधी मूलभूत सु िवधाएँ
उपल ध थीं। इतना ही नहीं, उनके साथ अमानवीय और पाशिवक यवहार िकया जाता
था। इसके फल व प अने क कैदी कुपोषण और अ य जानले वा बीमािरय से ग्रिसत
होकर जे ल म ही दम तोड़ दे ते थे तथा कई अ य जे ल से बाहर आकर जीवन भर भयं कर
रोग को ढोते थे ।
य िप भगतिसं ह और बटु के वर द को यूरोिपयन लास की श्रेणी म रखा गया था,
जहाँ उ ह सभी प्रकार की सु िवधाएँ उपल ध थीं। ले िकन भगतिसं ह तो जै से अपना
सव व दे श पर लु टाने को आतु र थे । उ ह ने िन चय कर िलया िक कैिदय की दुरव था
सु धारने तथा सरकारी अमानवीय कृ य को रोकने के िलए जे ल पहुँचते ही वे आमरण
अनशन आरं भ कर दगे । हर बार की तरह इस बार भी बटु के वर द इस िन चय म एक
िव वसनीय सहायक की तरह उनके साथ थे ।
लाहौर पहुँचकर बटु के वर को लाहौर सट् रल जे ल और भगतिसं ह को िमयाँ वाली जे ल म
भे ज िदया गया।
जे ल म भगतिसं ह की मु लाकात उन राजनीितक क् रां ितकािरय से हुई, जो सरकार-िवरोधी
आं दोलन एवं गितिविधय म सि मिलत होने के कारण अने क वषों से सजा भोग रहे थे ।
उनके सहयोग से 14 जून, 1929 को जे ल-सु धार सं बंधी माँ ग को ले कर भगतिसं ह ने
अिनि चत काल के िलए भूख-हड़ताल की घोषणा कर दी।
सांडस ह याकांड के अं तगत पु िलस ने जगह-जगह छापे मारकर सु खदे व, यतींदर् नाथ,
राजगु , जयदे व कुमार, गया प्रसाद, अजय घोष, िशव वमा आिद क् रां ितकािरय को
पकड़ िलया था। उन सभी को लाहौर की बो टल जे ल म रखा गया था। उ ह जब
भगतिसं ह के आमरण अनशन की बात पता चली तो 15 जून, 1929 को वे भी इस भूख-
हड़ताल म सि मिलत हो गए।
17 जून, 1929 को भगतिसं ह ने िमयाँ वाली जे ल से पं जाब रा य के इं पे टर जनरल
िम टर जे ल को एक पत्र िलखा। इस पत्र के अनु सार-

"िप्रय महोदय,
इस स चाई के बावजूद िक सांडस शूिटं ग केस म िगरफ् रतार दस ू रे नवयु वक के साथ ही
मु झ पर भी मु कदमा चले गा, मु झे िद ली से िमयाँ वाली जे ल म थानांतिरत कर िदया
गया है । उस मामले की सु नवाई 26 जून, 1929 से आरं भ होने वाली है । म यह समझने म
असमथ रहा हँ ू िक मु झे यहाँ थानांतिरत करने के पीछे कौन सी भावना काम कर रही है ?
जो भी हो, याय की माँ ग है िक हर एक अिभयु त को वे सु िवधाएँ िमलनी चािहए,
िजससे वह अपने मु कदमे की तै यारी कर सके और मु कदमा लड़ सके। िकंतु यहाँ रहते हुए
म अपना वकील कैसे रख सकता हँ ,ू य िक यहाँ रहने पर मे रे िलए अपने िपताजी तथा
अ य िर ते दार से सं पक रखना मु ि कल है । यह थान काफी अलग-थलग है , रा ता
किठन है और लाहौर से काफी दरू है ।"
पत्र म िलखी बात कानूनी दृि ट से एकदम सटीक थीं। अतः शीघ्र कारवाई करते हुए
एक स ताह के अं दर ही भगतिसं ह को लाहौर सट् रल जे ल म थानांतिरत कर िदया गया।
अपने सािथय के पास पहुँचकर भगतिसं ह प्रस नता से भर उठे । उनम दुगुने उ साह का
सं चार हो गया।
शीघ्र ही समाचार-पत्र म इस भूख-हड़ताल के ऊपर िव तृ त ले ख प्रकािशत होने लगे ;
कैिदय के प्रित सरकार के यवहार की आलोचना की जाने लगी। इसी सं दभ म 30 जून,
1929 को अमृ तसर के जिलयाँ वाला बाग म नगर कां गर् े स और नौजवान भारत सभा की
सं यु त सभा हुई, िजसम सवस मित से एक प्र ताव पािरत िकया गया-
"अमृ तसर के नागिरक की यह सभा भगतिसं ह तथा बटु के वर द ारा चौदह िदन से
राजनीितक कैिदय से दु यवहार के िवरोध म शु हुई भूख-हड़ताल की प्रशं सा करती है
तथा उनके साथ हमददी प्रकट करते हुए नौकरशाही को यह चे तावनी दे ती है िक यिद
उनके जीवन को कहीं कोई खतरा हुआ तो इसकी िज मे दारी उसी की होगी।"
10 जु लाई, 1929 को लाहौर म मिज ट् रेट श्री कृ ण की अदालत म सांडस ह याकांड
की सु नवाई आरं भ हुई। भगतिसं ह का आमरण अनशन िनरं तर जारी रहा था, िजसके
फल व प उनका तथा उनके सािथय का वा य िदन-प्रितिदन िगरता जा रहा था।
यही कारण था िक उ ह और बटु के वर द को ट् रेचर पर िलटाकर अदालत लाया गया।
उनकी यह दशा दे खकर उपि थत जनसमूह की आँ ख म आँ स ू उमड़ आए।
14 जु लाई, 1929 को भगतिसं ह ने होम मबर के नाम एक पत्र िलखा, िजसम इन माँ ग
का उ ले ख िकया गया-
• राजनीितक कैदी होने के कारण हम अ छा खाना िदया जाना चािहए। हमारे भोजन का
तर यूरोपीय कैिदय के समान होना चािहए। हम उसी खु राक की माँ ग नहीं करते , ले िकन
तर वही होना चािहए।
• पिरश्रम के नाम पर जे ल म अपमानजनक काम करने के िलए हम मजबूर नहीं िकया
जाना चािहए।
• िबना रोक-टोक के पूव वीकृत पु तक एवं िलखने का सामान ले ने की सु िवधा िमलनी
चािहए।
• प्र ये क कैदी को कम-से -कम एक दै िनक समाचार-पत्र अव य िमलना चािहए।
• प्र ये क जे ल म राजनीितक कैिदय का एक िवशे ष वाड होना चािहए, िजसम उन सभी
आव यकताओं की पूित की सु िवधा होनी चािहए, जो यूरोपीय के िलए होती है और एक
जे ल म रहने वाले सभी राजनीितक कैदी एक वाड म इकट् ठे रहने चािहए।
• नान की सु िवधा िमलनी चािहए।
• साफ एवं व छ कपड़े िमलने चािहए।
• यू-पी- जे ल-सु धार कमे टी म श्री जगत नारायण और खान बहादुर हािफज िहदायत
हुसै न की इस िसफािरश को िक राजनीितक कैिदय के साथ अ छी श्रेणी के कैिदय
जै सा यवहार होना चािहए, हम पर भी लागू होना चािहए।
भगतिसं ह ारा प्र तु त जे ल-सु धार सं बंधी त य अकाट एवं तकसं गत थे । ले िकन उ ह
लागू करना सरकार के िलए स मान का प्र न बन चु का था। उ ह ने उपयु त त य को
अ वीकार कर िदया।
भूख-हड़ताल की ि थित म भी सांडस ह याकांड की सु नवाई के दौरान अिभयु त को
हथकिड़य म जकड़कर अदालत म लाया जाता था। 17 जु लाई को अदालत म
भगतिसं ह ने हथकड़ी लगाने का िवरोध करते हुए कहा िक "एक मामूली िसपाही के साथ
हम हथकड़ी म बाँ धना हम दे शभ त के स मान के िखलाफ है । इससे हम मु कदमे से जु ड़े
आव यक कानूनी त य नोट नहीं कर पाते । यिद ऐसा ही करना है तो याय का यह
तमाशा बं द कर दीिजए और पु िलस को अपना काम करने दीिजए।" उनकी दलील से
खीझकर जज श्री कृ ण ने कैिदय के िखलाफ अनु शासना मक कारवाई करने के िलए
जे ल सु पिरं टडट के नाम आदे श जारी कर िदया।
एक ओर कैिदय का िगरता वा य सरकार के िलए मु सीबत बना हुआ था, वहीं दस ू री
ओर उनके सामने झुकने को वह िबलकुल तै यार नहीं थी। अं ततः कू टनीित का सहारा
िलया गया, िजसके अं तगत भगतिसं ह और बटु के वर द के िलए अलग भोजन की
यव था की गई। ले िकन यह आमरण अनशन यि तगत वाथ पर आधािरत न होकर
परिहत और दसू र के क याण से जु ड़ा था, इसिलए उ ह ने भोजन करने से इनकार कर
िदया। साथ ही शत रख दी िक सरकारी बजट म कैिदय को िमलने वाले भोजन की मात्र
और तर का िव तृ त यौरा प्रकािशत होना चािहए तथा उसे सभी राजनीितक कैिदय
के िलए समान प से लागू िकया जाना चािहए।
इसी बीच 21 जु लाई, 1929 को नौजवान भारत सभा के सद य ने ‘भगतिसं ह िदवस’
मनाया। इस अवसर पर लगभग दस हजार लोग ने सि मिलत होकर आमरण अनशन
पर बै ठे कैिदय के वा य के िलए ई वर से प्राथना की।

यतींद ्रनाथ की शहादत


भूख-हड़ताल पर बै ठे कैिदय का वा य िदन-प्रितिदन िगरता जा रहा था; भूख की
अिधकता से िहं याँ िदखाई दे ने लगी थीं। शरीर इतने कमजोर हो गए थे िक उनम बै ठने
तक की ताकत शे ष नहीं थी। इतना कुछ होने के बाद भी उनके इरादे दृढ़ थे ; वे चट् टान की
तरह अपने िन चय पर अिडग थे ; पीछे हटना तो उ ह ने सीखा ही नहीं था। इससे सरकार
की परे शािनयाँ बढ़ती जा रही थीं। अपनी माँ ग मनवाने के िलए कैदी िजद पर अड़े हुए
थे । उनकी िबगड़ती हालत को दे खकर दे श के िविभ न भाग म आं दोलन होने लगे ।
अने क प्रिस ने ता भी उनके समथन म उतर आए थे । सरकार पर िनरं तर दबाव बढ़ता
जा रहा था। उसके िलए कैिदय का अनशन तोड़ना ज री हो गया। ले िकन उनकी माँ ग
मानना भी उसे वीकार नहीं था। अं ततः उ ह जबरद ती भोजन करवाने की कोिशश की
गई। उनकी कोठिरय म खु शबूदार भोजन रखा गया; पानी के थान पर दध ू के घड़े
रखवाए गए। ले िकन इसम भी असफलता हाथ लगी। आजादी के इन मतवाल का
अनशन तोड़ना इतना सरल नहीं था िजतना सरकार ने क पना की थी।
बो टल जे ल म अनशनकािरय की हालत अिधक िबगड़ी तो भगतिसं ह ने उ ह अनशन
समा त करने के िलए सं देश िभजवाया। इस सं देश म उ ह ने कहा था िक "आपके समथन
से हम बहुत बल िमला है । ले िकन अब आप अनशन समा त कर द और स याग्रह की
लड़ाई आिखरी दम तक लड़ने की िज मे दारी मु झपर और बटु के वर पर छोड़ द।"
‘सरकार के िव भगतिसं ह और बटु के वर द अकेले लड़’, यह बात यतींदर् नाथ जै से
स चे दे शभ त को वीकार नहीं थी। य िप उनका वा य ते जी से खराब होता जा रहा
था, तथािप उ ह ने अपने प्रण पर दृढ़ रहते हुए अनशन समा त करने से साफ इनकार
कर िदया।
यतींदर् नाथ की हालत िबगड़ रही थी। जाँच के बाद डॉ टर ने िरपोट दी िक उनके शरीर
म र त का दौरा केवल दय के आस-पास ही रह गया है । उनके शे ष अं ग िनि क् रय हो
चु के ह। इसिलए उनके जीिवत रहने की उ मीद लगभग समा त हो गई है । इस िरपोट से
सरकार के होश उड़ गए। जे ल म अनशनकारी की मृ यु से दे श म गु से का िकतना बड़ा
सै लाब आ जाएगा, इस बात को सोचकर ही अं ततः 2 िसतं बर को सरकार ने एक जे ल उप-
सिमित का गठन िकया। इसी बीच गवनर के परामश पर भगतिसं ह को भी बो टल जे ल
थानांतिरत कर िदया गया था। सिमित के सद य ने कैिदय से मु लाकात की और घोषणा
कर दी िक यिद वे अपना अनशन तोड़ द तो यतींदर् नाथ को छोड़ िदया जाएगा।
कोमल- दयी भगतिसं ह िमत्र को इस प्रकार मरते हुए नहीं दे ख सकते । उनके परामश
पर अ य कैिदय ने अनशन समा त कर िदया। ले िकन दृढ़-िन चयी यतींदर् नाथ ने पीछे
हटने से इनकार करते हुए अनशन जारी रखा। कैिदय का अनशन समा त करवाकर
सरकार भी अपनी बात से हट गई। उसकी इस नीित से अनशनकारी ह के-ब के रह गए।
मुँ ह-तोड़ जवाब दे ने के िलए 4 िसतं बर से वे पु नः अनशन पर बै ठ गए।
13 िसतं बर का िदन भारतीय वतं तर् ता-सं गर् ाम के इितहास म काले िदन के प म
आया। इस िदन दोपहर एक बजकर पाँच िमनट पर दे शभ त यतींदर् नाथ ने सदा के िलए
आँ ख मूँ द लीं। अं गर् े ज के िव अं ितम साँस तक लड़ने वाले इस महान् शहीद ने जीवन
के बदले खु शी-खु शी मृ यु का वरण कर िलया।
यतींदर् नाथ की शहादत से पूरा दे श त ध रह गया। दे खते -ही-दे खते सरकार-िवरोधी वर
ते ज हो गए। जगह-जगह पर आं दोलन ारा सरकार का िवरोध होने लगा। समाचार-
पत्र म यह घटना सु िखय म छपी। यतींदर् नाथ की मृ यु ने सरकार को अपराधी बनाकर
जनता के कठघरे म खड़ा कर िदया था।
अब सरकार इस अनशन को शीघ्र समा त करना चाहती थी। क् रां ितकािरय की दृढ़ता
के आगे उसने झुकना वीकार कर िलया था। अतः त कालीन ने ताओं से िमलकर
भगतिसं ह को अनशन समा त करने के िलए समझाया गया और कमे टी ारा प्र तु त की
गई िसफािरश भी वीकार कर ली ग ।
अं ततः 5 अ टू बर, 1929 को भगतिसं ह ने अपने ऐितहािसक अनशन की समाि त की
घोषणा कर दी। उनका यह अनशन 114 िदन तक चला था। इस अवसर पर सभी
अनशनकािरय ने एक साथ िमलकर ‘दाल-रोटी’ का भोजन कर अनशन समा त िकया।
अ याय 15
सरफरोशी की तम ना
सां डस ह याकांड म चौबीस लोग को अिभयु त बनाया गया। इनम से ते रह
क् रां ितकारी-भगतिसं ह, बटु के वर द , सु खदे व, राजगु , कमलनाथ ितवारी,
िकशोरीलाल, िशव वमा, गयाप्रसाद, सु रद्र पांडे, अजय घोष, कुंदनलाल, दे शराज और
प्रेमद -पु िलस ारा पकड़ िलये गए थे । छह क् रां ितकारी-चं दर् शे खर आजाद, भगवान
दास, कैलाशपित, भगवतीचरण वोहरा, यशपाल और सतगु दयाल फरार घोिषत कर
िदए गए थे । शे ष पाँच लोग दं ड-भय तथा यि तगत वाथ एवं कमजोिरय के कारण
सरकारी गवाह बन गए। इनम फणींदर् नाथ घोष, जयगोपाल, मनमोहन बनजी, हं सराज
वोहरा तथा लिलतकुमार मु खजी सि मिलत थे । क् रां ित की डगर पर एक साथ चलने वाले
ही एक-दस ू रे के शत् बन जाएँ गे, इसकी िकसी ने क पना भी नहीं की थी। ले िकन
वा तिवकता के धरातल पर यही बात स य थी। अपने िमत्र ही शत् बनकर सामने के
कठघरे म खड़े थे और एक-एक कर सभी राज उगल रहे थे ।
पकड़े गए ते रह क् रां ितकािरय की टोली भगतिसं ह के प्र ये क इशारे पर मरने -िमटने को
तै यार थी। दे श पर मर िमटने वाले ये जु नूनी दे शभ त अपने र त के कतरे -कतरे को दे श
के िलए बहा दे ना चाहते थे । उनके िदल, िदमाग, शरीर की एक-एक नस म दे शभि त का
लह ू दौड़ रहा था। हथकिड़य म जकड़े जब ये िसं ह अदालत म आते थे तो ‘इनकलाब
िजं दाबाद’ और ‘वं दे मातरम्’ के नार से क गु ं जायमान हो उठता। उनके ह ठ पर एक
ही गीत होता-

"सरफरोशी की तम ना अब हमारे िदल म है ।


दे खना है जोर िकतना बाजु -ए-काितल म है ।
व त आने दे बता दगे तु झे ऐ आसमाँ ,
हम अभी से या बताएँ या हमारे िदल म है ।
ऐ शहीदे मु क िम लत, म ते रे ऊपर िनसार,
अब ते री िह मत की चचा गै र की महिफल म है ।
सरफरोशी की तम ना अब हमारे िदल म है ।"
यह गीत इतना प्रिस हो गया िक दे श के कोने -कोने म यु वक सावजिनक मं च पर इसका
गान करने लगे ।
िवशे ष िट्र यूनल
सरकार इस मु कदमे को गु पचु प तरीके से समा त करना चाहती थी; परं तु यह कोई
साधारण मु कदमा नहीं था, िजसे सरलता से दबाया जा सकता। इस मु कदमे की
लोकिप्रयता इतनी बढ़ चु की थी िक दे श की सीमाएँ लाँघकर यह िवदे श तक जा पहुँची
थी। िजस िदन अदालत म अिभयु त उपि थत होते , अं दर का क खचाखच भरा होता।
दरवाजे से ले कर सड़क तक लोग उनकी एक झलक पाने के िलए घं ट प्रती ा करते ।
सरकार को डर था िक मु कदमे के दौरान िवपरीत िनणय से लोग भड़क सकते ह। इसके
िलए ठोस उपाय करना आव यक था।
12 िसतं बर, 1929 को िब्रिटश सरकार ने कद्रीय असबली म एक िबल प्र तु त िकया।
इसके अं तगत यायाधीश को अिभयु त की अनु पि थित म भी मु कदमा जारी रखने का
अिधकार िदया गया था। इसके पीछे सरकार का उ े य अिभयु त को अदालत म लाए
िबना ही ज द-से -ज द मु कदमे को समा त करना था। वह नहीं चाहती थी िक इस
मु कदमे की लौ भयं कर अि न का प ले ले ।
असबली म िवरोधी दल के ने ता पं - मोतीलाल ने ह थे । उ ह ने इस िबल पर सरकार के
साथ बहुत गरमागरम बहस की। उनके अकाट तकों को काटना सरकार के वश म नहीं
था। प्रितप के तीखे ते वर को दे खते हुए चार िदन बाद ही सरकार ने इस िबल को
लोकमत के िलए प्रसािरत कर िदया। परं तु साथ म यह भी प्रचािरत कर िदया िक
आव यकता पड़ने पर सरकार अपने िवशे षािधकार का प्रयोग कर सकती है । सारा दे श
समझ चु का था िक सरकार िकसी भी कीमत पर इस िबल को पास करके ही दम ले गी।
जै सािक सबको िविदत था, 1 मई, 1930 को िवशे षािधकार का प्रयोग करते हुए
त कालीन गवनर लॉड इरिवन ने ‘लाहौर षड ंतर् केस ऑडीनस’ नामक एक आदे श
पािरत िकया। इसके अं तगत तीन जज वाले एक िवशे ष िट् र यूनल की िनयु ि त की गई।
इस िवशे ष िट् र यूनल का गठन पं जाब हाई कोट ने िकया था। इसके अ य जि टस जे -
को ड ट् रीम थे , जबिक जि टस आगा है दर और जी-सी- िह टन इसके सद य थे ।
िट् र यूनल को अिधकार िदया गया िक अिभयु त की अनु पि थित म, बचाव प के
वकील की अनु पि थित म, बचाव प के गवाह की अनु पि थित म या सरकारी गवाह
से बहस िकए िबना ही इस मु कदमे म एकप ीय िनणय िदया जा सकता है ।
भगतिसं ह की दृि ट म इस िट् र यूनल की थापना गै र-कानूनी थी, अतः उ ह ने उसके
बिह कार का िन चय कर िलया। ले िकन कुछ साथी उनके इस िनणय से सहमत नहीं थे ।
उनके िवचार म अदालत म जाकर अपने िवचार का जन-जन म प्रचार करना अिधक
उपयु त था। य िप दरू दशी भगतिसं ह नई पिरि थितय के अनु सार नई िवचारधारा के
अनु गामी थे , तथािप सािथय की बात मानते हुए उ ह ने अदालत म जाना वीकार कर
िलया।

अ याचार की पुनरावृ ि
5 मई, 1930 को लाहौर षड ंतर् की सु नवाई पु नः आरं भ हुई। अभी तक मु कदमा सट् रल
जे ल के साथ वाली अदालत म चल रहा था। ले िकन अब पु ं च म अदालत बनाई गई और
अिभयु त को वहीं ले जाया जाने लगा। िपछली अदालत की कारवाई पत्र म
प्रकािशत होकर कैिदय को जनसमु दाय म लोकिप्रय बनाने तथा उनके िलए समथन
जु टाने म सहायक रही-यही सोचकर सरकार ने अदालत की कारवाई के प्रकाशन पर रोक
लगा दी।
सरकार की ओर से एम-सी-एच- काडननोड मु कदमे की पै रवी कर रहे थे । उ ह ने
अिभयु त पर तीन आरोप िनधािरत िकए-
• षड ंतर् और ह या।
• डकैती तथा बम का िनमाण।
• बम के प्रयोग तथा अ य तरीक से िब्रिटश सम्राट् के िव यु ।
अिभयु त की ओर से कोई भी वकील नहीं था, अतः िट् र यूनल ने प्र ये क अिभयु त से
कहा, "यिद आप चाह तो सरकार अपने खच पर बचाव प के िलए वकील दे सकती है ।"
ऐसे म कानूनी कारवाई पर नजर रखने तथा बहस के दौरान सलाह ले ने के िलए भगतिसं ह
ने लाला दुनीचं द को अपना कानूनी सलाहकार बनाना वीकार कर िलया।
12 मई, 1930 को सभी अिभयु त दे शभि त के गीत गाते हुए तथा ‘इनकलाब िजं दाबाद’
के नारे लगाते हुए अदालत म उपि थत हुए। अं गर् े ज जज ने जब इनका अं गर् े जी
अनु वाद सु ना तो वे क् रोध से तमतमा उठे । उ ह ने अिभयु त को चु प रहने के िलए
कहा। ले िकन आजादी के इन मतवाल को िकसी की परवाह नहीं थी। वे अपनी धु न म
म त होकर प्रिस क् रां ित-किव ओमप्रकाश की िन न पं ि तयाँ गाने लगे -

"वतन की आब का पास दे ख कौन करता है ,


सु ना है आज मकतल म हमारा इ तहाँ होगा!
इलाही वह भी िदन होगा सब अपना राज दे खगे ,
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमाँ होगा!"
सहसा चीफ जि टस को ड ट् रीम िचढ़ उठे । उ ह ने पु िलस को आदे श िदया िक
अिभयु त को चु प करवाया जाए। और एक बार िफर पूव म की गई पाशिवकता की
पु नरावृ ि की गई। भरी अदालत म िसपाही लात-घूँस और डं ड से अिभयु त को मारने
लगे । इस अ याय और अ याचार को दे खकर जि टस आगा है दर यिथत होकर बाहर
जाने के िलए कुरसी से उठ गए। उनका बाहर जाना िट् र यूनल के मुँ ह पर कािलख पोत
दे ता। इसिलए को ड ट् रीम ारा की गई यि तगत प्राथना पर वे पु नः अपने थान पर
बै ठ गए। ले िकन उ ह ने अपना चे हरा यह कहते हुए अखबार के पीछे िछपा िलया िक
"कम-से -कम खु दा से म यह तो कह सकूँ गा िक हाँ , अ याय तो हुआ था, ले िकन मने
अपनी आँ ख से नहीं दे खा।"
उस िदन की कारवाई थिगत कर दी गई। को ड ट् रीम ने अपनी िट पणी म िलखा िक
"अिभयु त के दु यवहार के कारण फैसला कल तक के िलए थिगत कर िदया गया,
अदालत खाली हो गई और अिभयु त हटा िदए गए।"
ले िकन जि टस आगा है दर ने इस पर असहमित य त करते हुए अपनी िट पणी िलखी-
"म अिभयु त को अदालत से जे ल भे जने के आदे श का भागीदार नहीं था और जो कुछ
आज यहाँ हुआ, उससे भी म वयं को असं ब करता हँ ।ू "
जि टस आगा है दर की यह िन प िट पणी भारतीय इितहास म उ ह स माननीय थान
दे गई। इसका सबसे अिधक लाभ भगतिसं ह को हुआ। जो साथी अभी तक अदालत के
बिह कार के िलए सहमत नहीं थे , वे भी अब उनसे सहमत हो गए थे । इसके फल व प
13 मई, 1930 के बाद अिभयु त अदालत नहीं गए।
सरकार इस मामले को शीघ्र समा त करना चाहती थी। इसिलए उसने पु राने िट् र यूनल
को समा त करके नए िट् र यूनल का गठन िकया। इसम जि टस को ड ट् रीम और आगा
है दर के थान पर दो नए सद य जि टस जे -के- कप और जि टस अ दुल कािदर को
सि मिलत िकया गया। जि टस जी-सी- िह टन अपने पद पर पूववत् बने रहे ।
अिभयु त के बिह कार के चलते िट् र यूनल ने एकतरफा कारवाई आरं भ कर दी। 26
अग त, 1930 को तीन महीने तक चली इस कारवाई का पटा े प हो गया। िट् र यूनल का
काम समा त हो चु का था; िनणय सु रि त था। िफर भी कागजी औपचािरकताएँ पूरी करने
के िलए िट् र यूनल ने अिभयु त को अपना प प ट करने के िलए अदालत म आने को
कहा; परं तु भगतिसं ह और उनके सािथय ने अपनी सफाई दे ने से इनकार कर िदया।

भाई के नाम पत्र


अदालती कारवाई समा त होने के साथ ही भगतिसं ह समझ गए िक शीघ्र ही िट् र यूनल
अपना िनणय सु नाने वाला है । इस िनणय म उनके िलए
या दं ड िनधािरत िकया गया है , इसका भी उ ह भान हो गया था। अतः उ ह ने अपने
छोटे भाई करतार िसं ह को एक पत्र िलखा, िजसम उ ह ने भावी अं देशे को प्रकट िकया
था। इस पत्र के अनु सार-

"भाई कुलबीर िसं ह,


सतश्री अकाल!
आपको मालूम ही होगा िक ऊँचे अफसर के आदे श से मे री मु लाकात बं द कर दी गई ह।
अं दरीन हालात िफलहाल मु लाकात न हो सकेगी और मे रा खयाल है िक ज दी ही
फैसला सु ना िदया जाएगा। इसके चं द रोज बाद िकसी दस ू री जे ल को चालान हो
जाएगा। इसिलए िकसी िदन जे ल म आकर मे री िकताब व अ य सामान ले जाना। म
ू ा,
बरतन, कपड़े , िकताब, अ य कागजात जे ल के िड टी सु पिरं टडट के दफ् रतर भे ज दँ ग
आकर ले जाना। नामालूम मु झे बार-बार यह खयाल य आ रहा है िक इसी हफ् रतेे के
अं दर-अं दर यादा-से - यादा इसी माह म फैसला और चालान हो जाएगा। इन हालात
म अब तो िकसी दस ू री जे ल म मु लाकात हो तो हो, यहाँ तो उ मीद नहीं है ।
वकील को भे ज सको तो भे जना। म िप्रवी क िसल के िसलिसले म ज री बात दरयाफ् रत
करना चाहता हँ ।ू वािलदा सािहबा को तस ली दे ना, घबराएँ नहीं।

-भगतिसंह
सट्रल जेल, लाहौर
25 िसतंबर, 1930"

इसी बीच भगतिसं ह की माता िव ावती ने उनसे िमलने की इ छा य त की। कुलबीर


िसं ह वयं उ ह साथ ले कर जे ल आए। ले िकन सरकार का आदे श था िक अिभयु त से
िकसी को िमलने न िदया जाए। इसिलए जे ल अधी क ने उ ह भगतिसं ह से िमलने नहीं
िदया। भगतिसं ह को जब यह बात पता चली तो वे बहुत दुःखी हुए और भाई को एक
पत्र िलखा-
"मु झे बड़ा अफसोस हुआ। आप आए और मु लाकात न हो सकी। आिखर तु ह तो मालूम
हो ही चु का था िक जे लवाले मु लाकात की इजाजत नहीं दे ते। िफर वालदा को य साथ
लाए? म जानता हँ ू िक वो इस व त स त घबराई हुई ह, मगर इस घबराहट और परे शानी
का या फायदा? जब से मु झे मालूम हुआ िक वे बहुत रो रही ह, मु झे खु द बे चैनी हो रही
है । घबराने की कोई बात नहीं और इससे कुछ हािसल भी नहीं। सब हौसले से हालात का
मु काबला कर। आिखर दुिनया म दस ू रे लोग भी तो हजार मु सीबत म फँसे हुए ह और
िफर अगर लगातार एक साल मु लाकात कर तृ ि त नहीं हुई तो दो-चार और मु लाकात से
भी तस ली न हो सकेगी। मे रा खयाल है िक फैसला और चालान के बाद मु लाकात खु ल
जाएँ गी; ले िकन अगर फज िकया जाए िक िफर भी मु लाकात की इजाजत न िमले तो
घबराने का या फायदा?
-भगतिसं ह"
िपता को पत्र
सरदार िकशनिसं ह समझ चु के थे िक सरकार के इशार पर अदालती कारवाई करने वाली
िट् र यूनल भगतिसं ह को अव य फाँसी की सजा दे गी। वृ अव था म जवान पु त्र की
मृ यु की क पना ने उ ह िवचिलत कर िदया। य िप वे वयं स चे दे शभ त थे , ले िकन
पु त्र-प्रेम ने उनके मन को उ े िलत कर िदया। भगतिसं ह को बचाने के िलए उ ह ने
अपने तर पर प्रयास आरं भ िकया। उ ह ने वायसराय को एक पत्र िलखा। िजसम
उ ह ने दावा िकया था िक िजस िदन सांडस की ह या हुई, उस िदन भगतिसं ह लाहौर म
नहीं बि क कलक ा म थे । उ ह ने वहाँ से ख र भं डार परीमहल के मै नेजर यामलाल
को एक पत्र भी िलखा था।
इधर भगतिसं ह को जब यह बात मालूम हुई तो वे ितलिमला उठे । उ ह ने उसी समय
िपता को एक पत्र िलखा। उस पत्र के कुछ मािमक एवं मह वपूण अं श िन निलिखत
ह-

"पू य िपताजी महाराज!


वं दे मातरम्!
मु झे यह जानकर आ चय हुआ िक आपने पे शल िट् र यूनल को मे रे बचाव के िलए एक
प्राथना-पत्र भे जा है । यह समाचार इतना दुःखदायी था िक म इसे शांत होकर सहन
नहीं कर सकता।
आपका बे टा होने वे नाते म आपकी िपतृ तु य भावनाओं एवं इ छाओं का पूरा स मान
करता हँ ;ू परं तु इसके साथ ही म यह समझता हँ ू िक आपको मु झसे सलाह िकए िबना मे रे
बारे म प्राथना-पत्र दे ने का कोई हक नहीं था।
मु झे िव वास है िक आपको यह बात याद होगी िक आप शु से ही मु झे यह बात
समझाने की कोिशश करते रहे ह िक म अपना मु कदमा समझदारी से लडूँ और अपना
बचाव सही तरह से प्र तु त क ँ । मे री यह मा यता रही है िक सम त राजनीितक
कायकताओं को ऐसी ि थित म अदालत की अवहे लना करनी चािहए और उसके प्रित
उपे ा प्रदिशत करनी चािहए तथा बदले म जो कठोर सजा िमले , उसे हँ सते -हँ सते सहन
करना चािहए।
आप जानते ह िक हम इस मु कदमे म एक िवशे ष नीित पर चल रहे ह। मे रा प्र ये क कदम
उस नीित, मे रे िनयम तथा कायक् रम के अनु कूल होना चािहए था। इस मु कदमे के
दौरान मे रे सामने मात्र एक िवचार था और वह था मे रे िव अपराध की गं भीर प्रकृित
के प्रित उपे ा भाव िदखाना। मे रा हमे शा यही दृि टकोण रहा है िक राजनीितक
कायकताओं को िनिल त रहना चािहए तथा कभी भी अदालत म कानूनी लड़ाई सं बंधी
कोई िचं ता नहीं करनी चािहए। वे वयं अपना बचाव पे श कर सकते ह; परं तु सदै व शु
राजनीितक धरातल पर, न िक यि तगत दृि टकोण से । इस मु कदमे म हमारी नीित
हमे शा इस िस ांत के अनु कूल रही है । भले ही हम इसम सफल रह या न रह, यह िनणय
म नहीं दे सकता। हम अपना धम पूरी तरह िन वाथ भावना से िनभाते चले आ रहे ह।
लाहौर षड ंतर् केस अिधिनयम के सहायक व त य म वायसराय ने यह कहा था िक
अपराधी इस मु कदमे म कानून तथा याय-दोन का अपमान कर रहे ह। इस ि थित ने
हम यह अवसर प्रदान िकया है िक जनता को िदखा सक िक हम कानून का अपमान कर
रहे ह। इस पहलू पर लोग हमारे साथ असहमत हो सकते ह। आप उनम से एक हो सकते
ह। परं तु इसका कभी यह अथ नहीं हुआ िक आप मे री इ छा या मे री जानकारी के िबना
मे री ओर से इस प्रकार का कदम उठाएँ । मे रा जीवन इतना मू यवान् नहीं है िजतना
आप समझते ह। य िक म अपने जीवन का मह व नहीं समझता हँ ू िक उसे अमू य
िस ांत की बिल दे कर बचाया जाए। मे रे और भी साथी ह, िजनका मु कदमा मे रे मु कदमे
के समान ही गं भीर है । हम एक सं यु त नीित अपनाए खड़े रहगे , भले ही हम िनजी तौर
पर इसका िकतना ही मू य य न चु काना पड़े ।
िपताजी, मु झे बड़ी िचं ता अनु भव हो रही है । मु झे भय है िक आप पर दोष लगाते हुए या
इससे अिधक इस काय की िनं दा करते हुए म कहीं स यता की सीमाओं का अितक् रमण
न कर जाऊँ और मे रे श द अिधक कठोर न हो जाएँ । िफर भी, म प ट श द म इतनी
बात अव य कहँ ग ू रा यि त मे रे प्रित ऐसा यवहार करता तो म उसे
ू ा िक यिद कोई दस
दे शद्रोही से कम नहीं समझता; परं तु आपकी पिरि थित म म यह बात नहीं कह सकता।
बस, इतना ही कहँ गू ा िक यह एक कमजोरी थी, जो िन न कोिट की मानिसक दुबलता थी।
यह एक ऐसा समय था, जब हम सबकी परी ा हो रही थी। िपताजी, म यह कहना
चाहता हँ ू िक आप उस परी ा म असफल हो रहे ह। म जानता हँ ू िक आपने सम त
जीवन भारत माता की वतं तर् ता के िलए योछावर िकया है परं तु इस मह वपूण घड़ी
म आपने ऐसी दुबलता य िदखाई, म यह बात समझ नहीं पाया।
अं ततः म आपको, अपने िमत्र तथा उन सबको जो मे रे मु कदमे म िच रखते थे , सूिचत
करना चाहता हँ ू िक म आप ारा उठाए गए कदम को वीकार नहीं कर सकता। म अब
भी अपनी सफाई पे श करने के प म नहीं हँ ,ू भले ही अदालत मे रे साथी अिभयु त ारा
िदए गए िकसी भी प्राथना-पत्र को वीकार कर ले ती है , तब भी म अपना बचाव नहीं
क ँ गा।
म चाहता हँ ू िक लोग इस िवषय से पूरे िव तार से पिरिचत ह , इसिलए म इस पत्र के
प्रकाशन के िलए िनवे दन करता हँ ।ू
भगतिसं ह"
इस पत्र ारा सरदार िकशनिसं ह को अपनी गलती का अहसास हो गया। तदनं तर

भगतिसं ह की इ छानु सार उ ह ने यह पत्र िहं दी, उद व अं गर् े जी भाषा के अने क
समाचार-पत्र म प्रकािशत करने के िलए भे ज िदया।
अ याय 16
मृ यु दड

5 अ टूबर, 1930 की रात; कारागार के वातावरण म काफी चहल-पहल थी। कारागार की
मोटी-मोटी मजबूत खी दीवार और फौलादी सीखच को कभी न दे खा हुआ अ यं त
मनोहारी दृ य आज िदखाई दे रहा था। इसिलए कैिदय की वीरान आँ ख म चे तना
उ प न हो गई थी। गं भीर चे हर पर मु सकराहट िखल गई थी। ह ठ पर लगे िनदय,
बे रहम ताले मानो खु ल गए और ई वर की प्रस नता-िनिध प्रकट हुई थी। कैदी और
अिधकािरय के िमले -जु ले हास-पिरहास म वे अवचे तन जड़ व तु एँ भी चे तन बनकर उनम
सि मिलत हो गई थीं।
आज लाहौर षड ंतर् के अिभयु त सामूिहक प से अं ितम भोजन कर रहे थे । इस
अवसर पर जे ल के कुछ अिधकारी भी वहाँ उपि थत थे । आिखरकार वह जे ल का खाना
था, रसदार यं जन थोड़े ही हो सकते थे ! ले िकन थाली म पड़ी मोटी-मोटी रोिटयाँ और
खट् टी-तीखी दाल का वाद बे िमसाल बन गया था। गपशप का रं ग जमा हुआ था। पु रानी
याद दोहराई जा रही थीं। बीच-बीच म अिधकािरय के साथ भी मजाक कर िलया जाता।
ले िकन अिधकारी तो गं भीर प्रतीत हो रहे थे । उ ह यह हँ सी-मजाक बरदा त नहीं हो रहा
था। अब तक उ ह चोर-डाकुओं के साथ रहने की आदत हो गई थी। ले िकन ये कैदी कुछ
और ही तरह के थे । उन पर खून का आरोप था, लूट का आरोप था। िफर भी उनका
यवहार स य और खानदानी यु वक की तरह था। वभाव से िज ी होते हुए भी उनकी
यह िजद वाथ से पिरपूण नहीं थी। वे अपने िलए नहीं बि क सं पण ू दे श के िलए सं घष
कर रहे थे । यह सं घष उनसे मार-पीट करने वाले , उ ह यातनाएँ दे नेवाले तथा उन पर कहर
ढाने वाले जे ल अिधकािरय के िलए भी था। यही सोचकर कुछ अिधकािरय की आँ ख म
आँ स ू उमड़ आए थे । अगले िदन जे ल के चार ओर पहरा कड़ा कर िदया गया।

िट्र यूनल का फैसला


7 अ टू बर, 1930; सु बह-सवे रे ही िट् र यूनल का एक सं देशवाहक जे ल म आ गया था।
अिभयु त फैसला सु नने के िलए अदालत नहीं गए थे , इसिलए वह आदमी फैसला
सु नाने के िलए आया था। उसने गं भीरता के साथ 68 पृ ठ के फैसले को सु नाना आरं भ
िकया, "लाहौर षड ंतर् के प्रमु ख अिभयु त सरदार भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु
को फाँसी की सजा।"
एक पल के िलए उपि थत लोग त ध रह गए। परं तु भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु के
चे हर पर मु सकराहट खे ल रही थी। उ ह पहले से ही इसका आभास हो चु का था।
‘इनकलाब िजं दाबाद’ का नारा लगाते हुए वे एक-दस ू रे के गले िमलने लगे । उनकी
प्रस नता की कोई सीमा नहीं थी। उनका मृ यु -पव सफल हो गया था।
"कमलनाथ ितवारी, िवजयकुमार िस हा, जयदे व कपूर, िशव वमा, गयाप्रसाद,
िकशोरीलाल और महावीर िसं ह को आजीवन काले पानी अथात् उम्रकैद की सजा।
कुंदनलाल को सात साल और प्रेमद को तीन साल की कैद। मा टर आशाराम, अजय
घोष, सु रद्रनाथ पांडे, दे शराज और िजतद्रनाथ सा याल को अपराध सािबत न होने के
कारण मु त िकया जा रहा है ।" सं देशवाहक ने अपनी बात पूरी की।
मु ि त की खबर सु नकर वे उदास हो गए और ई या म भरकर ‘जीव मु त’ होने वाले
भा यवान को दे खने लगे । उसी िदन तीन वीर को 14 नं बर की कोठिरय म थानांतिरत
कर िदया गया। इन कोठिरय म उन कैिदय को रखा जाता था, िज ह फाँसी की सजा दी
जाती थी।
य िप सरकार ने इस िरपोट को गु त रखने का प्रयास िकया था, ले िकन कुछ ही दे र म
यह समाचार दे श भर म फैल गया। ि थित की गं भीरता दे खते हुए लाहौर म धारा 144
लगा दी गई। आम सभाओं, जु लूस आिद प्रितबं िधत कर िदए गए। जगह-जगह पर
सै य बल तै नात कर िदया गया।
इतना पु ता इं तजाम होने के बावजूद 8 अ तूबर को सं पण ू भारतवष गरज उठा। हजार
यु वक-यु वितयाँ वे छा से िगरफ् रतार हुए। सरकार और जनता म खु लेआम यु िछड़
गया। पु णे , कलक ा, बं बई, मद्रास, नागपु र, िद ली, पटना, लखनऊ-िविभ न थान ,
गाँ व , शहर म दुःखी जनता ने आम सभाएँ कर सरकार की भरपूर भ सना की।

बटु के वर को पत्र
सांडस ह याकांड म बटु के वर द की भूिमका नग य थी, अतः मु कदमा आरं भ से पूव ही
उ ह अलग कर िदया गया; परं तु असबली म बम फकने तथा क् रां ितकारी गितिविधय म
उनकी सं िल तता को दे खते हुए उ ह आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। भगतिसं ह,
सु खदे व और राजगु को फाँसी; उनके िह से म केवल आजीवन कारावास-दे शभ त
बटु के वर द को यह बहुत अपमान की बात प्रतीत हो रही थी। मन-ही-मन वे बहुत
दुःखी थे ।
उन िदन बटु के वर द मु तान जे ल म थे । उनकी मनोदशा के बारे म जानकर भगतिसं ह
ने नवं बर म उ ह एक पत्र िलखा-
"मु झे दं ड सु ना िदया गया है और फाँसी का आदे श हुआ है । इन कोठिरय म मे रे
अितिर त फाँसी की प्रती ा करने वाले बहुत से अपराधी ह। ये लोग यही प्राथना कर
रहे ह िक िकसी तरह फाँसी से बच जाएँ ; परं तु उनके बीच शायद म ही एक ऐसा आदमी हँ ,ू
जो बड़ी बे ताबी से उस िदन की प्रती ा कर रहा हँ ,ू जब मु झे अपने आदश के िलए फाँसी
के फंदे पर झल ू ने का सौभा य प्रा त होगा। म इस खु शी के साथ फाँसी के त ते पर
चढ़कर दुिनया को िदखा दँ ग ू ा िक क् रां ितकारी अपने आदशों के िलए िकतनी वीरता से
बिलदान दे सकते ह।
मु झे फाँसी का दं ड िमला है , िकंतु तु ह आजीवन कारावास का दं ड िमला है । तु म जीिवत
रहोगे और तु ह जीिवत रहकर दुिनया को िदखाना है िक क् रां ितकारी अपने आदशों के
िलए मर ही नहीं सकते बि क जीिवत रहकर हर मु सीबत का मु काबला भी कर सकते ह।
मृ यु सांसािरक किठनाइय से मु ि त प्रा त करने का साधन नहीं बननी चािहए, बि क
जो क् रां ितकारी सं योगवश फाँसी के फंदे से बच गए ह, उ ह जीिवत रहकर दुिनया को यह
िदखा दे ना चािहए िक वे न केवल अपने आदशों के िलए फाँसी पर चढ़ सकते ह, बि क
जे ल की अं धकारपूण छोटी कोठिरय म घु ल-घु लकर िनकृ टतम दज के अ याचार को
सहन भी कर सकते ह।"

िप्रवी कौ ंिसल म अपील


सरकार ारा गिठत िट् र यूनल ने अपना िनणय सु ना िदया था; ले िकन बचाव प इस
िनणय के िव िप्रवी क िसल म अपील करने का िन चय कर चु का था। य िप
भगतिसं ह इसके प म नहीं थे । ले िकन बाद म बै िर टर प्राणनाथ मे हता ने उ ह इसके
िवषय म काफी कुछ समझाया। तब भगतिसं ह की िवचारधारा म पिरवतन हुआ। िप्रवी
क िसल िब्रिटश साम्रा य की सबसे बड़ी अदालत थी। उसम अपील करके िव व भर म
भारतीय क् रां ित के उ े य को प्रचािरत करने का अ छा अवसर िमल सकता था।
कैिदय पर होने वाले अमानु िषक अ याचार, शहीद की शहादत तथा अं गर् े जी हुकू मत के
िखलाफ जनाक् रोश को दुिनया भर के िवचारक जान-समझ सकगे । ले िकन भगतिसं ह को
भय भी था िक कहीं िप्रवी क िसल बचाव प की दलील को मानते हुए उनकी फाँसी की
सजा को आजीवन कारावास म न बदल दे । अं ततः उ ह ने िप्रवी क िसल म अपील की।
साथ ही उ ह ने एक याचना पत्र भी िलखा। पत्र के अनु सार-

"महोदय,
सिवनय िनवे दन है िक भारत की िब्रिटश सरकार के सवो च अिधकारी वायसराय ने एक
िवशे ष अ यादे श जारी करके लाहौर-षड ंतर् अिभयोग की सु नवाई के िलए एक िवशे ष
यायािधकरण को थािपत िकया, िजसने 7 अ तूबर, 1930 को हम फाँसी का दं ड
सु नाया।
हमारे िव सबसे बड़ा अिभयोग यह लगाया गया है िक हमने सम्राट् जॉज पं चम के
िव यु िकया है । यायालय के इस िनणय से दो बात प ट हो जाती ह; प्रथम यह
िक अं गर् े ज जाित और भारतीय जनता के म य एक यु चल रहा है । दसू रा यह िक हमने
िनि चत प से उस यु म भाग िलया है । अतः हम राजकीय यु बं दी ह। य िप इसकी
या या म बहुत सीमा तक अितशयोि त से काम िलया गया, तथािप हम यह कहे िबना
नहीं रह सकते िक ऐसा करके हम स मािनत िकया गया है ।
हमारे िवचारानु सार प्र य प से ऐसी कोई लड़ाई नहीं िछड़ी है और हम नहीं जानते
िक यु िछड़ने से यायालय का या आशय है ! हम यह कहना चाहते ह िक यु िछड़ा
हुआ है और यह यु तब तक चलता रहे गा जब तक िक शि तशाली यि त भारतीय
जनता और श्रिमक की आय के साधन पर अपना एकािधकार बनाए रखगे , चाहे ऐसे
यि त अं गर् े ज पूँजीपित, अं गर् े ज शासक या सवथा भारतीय ही य न ह ।
उ ह ने आपस म िमलकर एक लूट मचा रखी है । यिद भारतीय पूँजीपितय ारा ही
िनधन का खून चूसा जा रहा हो, तब भी इस ि थित म कोई अं तर नहीं पड़ता। यिद
आपकी सरकार कुछ ने ताओं या भारतीय समाज के मु िखयाओं पर प्रभाव जमाने म
सफल हो जाए, कुछ सु िवधाएँ िमल जाएँ अथवा समझौता हो जाए, उससे भी ि थित
नहीं बदल सकती। जनता पर इन बात का प्रभाव बहुत कम पड़ता है ।
इन सब बात की भी हम िचं ता नहीं है िक एक बार िफर यु वक को धोखा िदया गया है
और इस बात का भी नहीं है िक हमारे ने ता, राजनीितक लोग पथभ्र ट हो गए ह और वे
समझौते की बातचीत म इन िनरपराध, बे घर और िनरािश्रत बिलदािनय को भूल गए ह,
िज ह दुभा य से ‘क् रां ितकारी पाटी’ का सद य समझा जाता है । हमारे राजने ता तो उ ह
अपना शत् समझते ह; य िक उनके िवचार म वे िहं सा म िव वास रखते ह। हमारी
वीरां गनाओं ने अपना सबकुछ बिलदान कर िदया है । उ ह ने बिलवे दी पर अपने पितय
को भट िकया। उ ह ने अपने आपको भी योछावर कर िदया; परं तु आपकी सरकार उ ह
िवद्रोही समझती है । आपके एजट भले ही झठ ू ी कहािनयाँ बनाकर उ ह बदनाम कर द
और पाटी की याित को हािन पहुँचाने का प्रयास कर, परं तु यह यु तो चलता रहे गा।
हो सकता है िक यह यु िभ न-िभ न दशाओं म िभ न-िभ न व प ग्रहण करे । कभी
यु प्रकट प ले ले , कभी गु त िदशाओं म चलता रहे ; कभी भयानक प धारण कर ले ,
कभी िकसान के तर पर जारी रहे और कभी यह यु इतना भयानक हो जाए िक जीवन-
मरण की बाजी लग जाए।
चाहे कोई भी ि थित हो, इसका प्रभाव तो आप पर भी पड़े गा। यह आपकी इ छा है िक
आप िजस भी पिरि थित को चाह, चु न ल; परं तु यह यु चलता रहे गा। इसम छोटी-
छोटी बात पर यान नहीं िदया जाएगा। बहुत सं भव है िक यह यु भयं कर व प
ग्रहण कर ले । यह तब तक समा त नहीं होगा जब तक िक समाज का वतमान ढाँचा
समा त नहीं हो जाता, प्र ये क यव था म पिरवतन या क् रां ित नहीं हो जाती और सृ ि ट
म एक नवीन यु ग का सूतर् पात नहीं हो जाता।
िनकट भिव य म यह यु अं ितम प से लड़ा जाएगा और तब यह िदखने लगे गा िक
साम्रा यवाद और पूँजीवाद कुछ समय के मे हमान ह।
यही वह यु है , िजसम हमने प्र य प से भाग िलया है । हम इसके िलए अपने आप
पर गव करते ह।
हमारी से वाएँ इितहास के उस अ याय के िलए मानी जाएँ गी, िजसे भगवतीचरण और
यतींदर् नाथ दास के बिलदान ने िवशे ष प से प्रकाशमान कर िदया है । इनके बिलदान
महान् ह।
जहाँ तक हमारे भा य का सं बंध है , हम बलपूवक आपसे यह कहना चाहते ह िक आपने
हम फाँसी पर लटकाने का िनणय कर िलया है , आप ऐसा करगे ही।
आपके हाथ म शि त है और आपको अिधकार भी प्रा त है , परं तु इस प्रकार आप
‘िजसकी लाठी उसकी भस’ वाला ही िस ांत अपना रहे ह और उस पर अटल ह। हमारे
अिभयोग की सु नवाई इस व त य को िस करने के िलए पया त है िक हमने कभी कोई
प्राथना नहीं की और अब भी हम आपसे िकसी प्रकार की दया की प्राथना की बात नहीं
करते ।
हम आपसे केवल यही प्राथना करते चाहते ह िक आपकी सरकार के एक यायालय ारा
हमारे प्रित यु बं िदय जै सा ही यवहार िकया जाए। हम फाँसी दे ने के बजाय गोिलय
से उड़ा िदया जाए।
अब यह िस करना आपका काम है िक आपको उस िनणय म िव वास है , जो आपकी
सरकार के ही एक यायालय ने िदया है । आप अपनी कारवाई ारा इस बात का प्रमाण
दीिजए। हम आपसे िवनयपूवक प्राथना करते ह िक आप अपने से ना िवभाग को आदे श
द िक हम गोली से उड़ाने के िलए एक सै िनक द ता भे जा जाए।
-भगतिसं ह, सु खदे व, राजगु "
जै सा िक उ मीद थी, इस पत्र के बाद िप्रवी क िसल ने उनकी अपील अ वीकार कर दी।

गांधी-इरिवन समझौता
4 माच, 1931 की रात को महा मा गां धी और भारत के त कालीन गवनर जनरल लॉड
इरिवन म एक समझौता हुआ। इसे गां धी-इरिवन समझौते के नाम से भी जाना जाता है ।
इसम अने क प्र ताव के साथ-साथ जे ल म बं द स याग्रिहय को छोड़ने का प्र ताव
भी सि मिलत था। इसम प ट कहा गया था िक ‘केवल वे कैदी छोड़े जाएँ गे, जो
सिवनय अव ा आं दोलन के िसलिसले म ऐसे अपराध के िलए कैद भोग रहे ह गे , िजनम
नाममात्र की िहं सा को छोड़कर और िकसी प्रकार की िहं सा या िहं सा के िलए उ े जना
का समावे श न हो।’
5 माच, 1931 को शाम के समय एक पत्रकार-स मे लन म गां धीजी ने प ट िकया िक
" यि तगत प से उन लोग को, जो िहं सा के दोषी ह, जे ल म भे जे जाने की प्रणाली
पर मे रा िव वास नहीं है । मे रा िव वास है िक वे लोग महसूस करगे िक यायपूवक उनकी
िरहाई के िलए नहीं कह सकता था। ले िकन इसका मतलब यह नहीं िक मु झे अथवा
कायकािरणी के सद य को उनका खयाल नहीं है ।"
जनसमु दाय बड़े िदन से इस समझौते की प्रती ा कर रहा था। उ ह िव वास था िक
इसके अं तगत भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु को जे ल से मु त करने की बात अव य
होगी। ले िकन दुभा यवश उनका इस प्र ताव म कोई उ ले ख नहीं था। इससे जनता म
गहरी िनराशा या त हो गई।
अ याय 17
मु ते -खाक
भ गतिसं ह, सु खदे व और राजगु की अपील अ वीकृत हो चु की थी तथा उ ह फाँसी
िमलना िनि चत था। कानूनन फाँसी से कुछ िदन पूव ही कैिदय की मु लाकात बं द कर दी
जाती थीं। अतः 3 माच, 1931 को सरदार िकशनिसं ह पिरवार सिहत अं ितम बार उनसे
िमलने आए। पूव म हुई मु लाकात की अपे ा इस बार की मु लाकात िबलकुल अलग थी।
जहाँ पहले उ मीद, िव वास और उ साह का भाव अिधक होता था, वहीं इस बार की
मु लाकात िनराशा, दुःख और िन ते जता से भरी हुई थी। आज के बाद इस जीवन म
भगतिसं ह से िफर कभी मु लाकात नहीं होगी, उनका पिरवार यह बात भली-भाँ ित समझ
चु का था। यह अं ितम िमलन की घड़ी थी, एक-दस ू रे को अलिवदा कहने की घड़ी थी।
इसिलए इस बार िकशनिसं ह के साथ सरदार अजु निसं ह, दादी जयकौर, माता िव ावती,
अमरकौर, कुलबीर, चािचयाँ -सभी आए थे । िजस भाग वाले को सीने से लगाकर पाला
था, िजसकी एक आवाज पर सब दौड़े चले आते थे , िजसकी शरारत को हँ सते हुए सहा
था, िजसकी शादी के अने क व न सँ जोए थे , वही भगतिसं ह जीवन की राह म उनका
साथ छोड़कर सदा-सदा के िलए मु ि त-माग की ओर अग्रसर होने वाला था।
सरदार अजु निसं ह आज बहुत याकुल और दुःखी थे । भगतिसं ह के ज म के साथ ही
उ ह ने सोच िलया था िक वे उसके कंध पर चढ़कर ही मशान जाएँ गे; उनका िप्रय पोता
ही उ ह मु खाि न दे गा। ले िकन िवधाता ने उनके जीवन म इतना क् रतम िदन िलखा था,
इसकी उ ह ने व न म भी क पना नहीं की थी। िजस यु वक ने अभी खु िशय के रं ग तक
नहीं दे खे थे , उसकी आँ ख सदा के िलए मुँ दने वाली थीं-यह सोचकर ही उनकी आँ ख म
आँ स ू छलकने लगे थे ।
भगतिसं ह प्रेम भरे वर म बोला, "दादाजी, आप इस तरह आँ स ू बहाकर मे रे मन को
कमजोर मत कीिजए। बचपन म आपने ही मु झे स य और याय के माग पर चलने की
िश ा दी थी। एक बार आपने कहा था िक अ याय को सहने वाला अ याय करने वाले से
बड़ा दोषी होता है । मने जीवन भर इसी बात का पालन करते हुए सदै व अ याय का
िवरोध िकया। आज मु झे गव है िक म आपका पोता हँ ,ू िज ह ने समय-समय पर मे रा
मागदशन कर मे रे जीवन को साथक बनाया। दादाजी, मु झे आशीवाद दीिजए िक म
जीवन के अं ितम ण तक इसी प्रकार स य-माग पर अिडग रहँ ।ू "
सरदार अजु निसं ह ने काँपते हाथ से भगतिसं ह के िसर पर हाथ फेरा। आँ ख म आँ स ू की
लिड़य को सँ जोए वे कुछ कहने को हुए। ले िकन गला अव हो गया और वे एक ओर
हट गए।
उनकी यह दशा दे खकर भगतिसं ह ने माँ िव ावती से कहा, "बे बेजी, दादाजी बूढ़े हो गए
ह। अब आप लोग इनके पास बं गा म जाकर ही रहना। इ ह कभी अकेला मत छोड़ना।"
"भगत, तु म जै से भाग वाले को ज म दे कर मे री कोख ध य हो गई। अपने कमों से तु मने
मु झे भी दुिनया म स मान के यो य बना िदया। म वाहे गु से प्राथना करती हँ ू िक मु झे
हर ज म म बे टे के प म भगतिसं ह ही िमले ।" िव ावती ने भराए वर म कहा।
कहीं उनके आँ स ू दे खकर अं ितम समय म भगतिसं ह का मन दुःखी न हो जाए, यह सोचकर
वह वीरां गना दृढ़ वर म बोलीं, "भगत, जीवन के अं ितम ण तक अपने िनणय पर
अिडग रहना। इस दुिनया म िजसने ज म िलया है , उसे एक िदन मरना ही है , ले िकन मृ यु
वही श्रे ठ है िजसे सारी दुिनया दे खे। िजसकी मृ यु पर सब रो उठ, उसका मरना ही
सफल है । मु झे गव है िक तु म दे श के िलए अपने प्राण योछावर कर रहे हो। मे री यही
इ छा है िक फाँसी के त ते पर खड़े होकर तु म इतनी ते ज आवाज म ‘इनकलाब
िजं दाबाद’ का नारा लगाओ, िजससे सोए हुए दे शवािसय की नींद टू ट जाए। वे एकजु ट
होकर तु हारे अधूरे छोड़े गए काय को पूण कर।"
भगतिसं ह ने माँ के हाथ को पश करते हुए कहा, "बे बेजी, आप अपने पु त्र पर िव वास
रिखए। वह इतनी वीरता से मृ यु का वरण करे गा िक सिदय से सोया हुआ दे श का
अिभमान पु नः जाग्रत् हो जाएगा। म इस दुिनया से चला जाऊँगा, ले िकन मे री मौत
दे श म एक नई क् रां ित को ज म दे गी। म िफर ज म लूँगा और तब तक बार-बार ज म
ले ता रहँ ग
ू ा, जब तक िक मे रा दे श, मे रे दे शवासी गु लामी की बे िड़य से आजाद होकर
खु ली हवा म साँस नहीं ले ते। मे रा बिलदान यथ नहीं जाएगा। मे री मौत से लाख
भगतिसं ह उठ खड़े ह गे और िफर वह िदन दरू नहीं रहे गा जब िब्रिटश सरकार को यहाँ से
जाना होगा।"
तदनं तर वे िपता से बोले , "िपताजी, मने आपको बहुत दुःख िदए ह। कई बार आपकी
बात को अनसु ना कर अपने मन के अनु सार चला हँ ,ू य िक मे रे िलए पिरवार से बढ़कर
मे रा दे श है । मे री रग म दे शभि त का वही खून दौड़ रहा है जो दादाजी, आप म और
चाचाजी की रग म है । मने वही िकया जो हमारे पिरवार की परं परा रही। िफर भी, म
आपसे अपनी उ ं डता के िलए मा माँ गता हँ ।ू "
"भगत, मु झे कोई िशकायत नहीं है । म ही पु त्र-मोह म अं धा होकर गलत राह पर चल
िनकला था। ले िकन तु मने स य का दपण िदखाकर मु झे िवनाश की ओर बढ़ने से रोक
िलया। मु झे गव है िक तु म मे रे बे टे हो।" यह कहकर सरदार िकशनिसं ह ने भगतिसं ह के
िसर पर हाथ फेरकर आशीवाद िदया।
इसके बाद भगतिसं ह ने चािचय और भाई-बहन से बात की।
इसी बीच मु लाकात का समय समा त हो गया। सभी ने एक बार िफर भरपूर िनगाह से
भगतिसं ह को दे खा और दुःख का बोझ उठाए हुए वहाँ से चले गए।

अंितम पत्र
पिरवार िमलकर जा चु का था, ले िकन भगतिसं ह अभी भी बे चैन थे । छोटे भाई कुलतार को
रोते दे खकर उनका मन िवचिलत हो गया था। उ ह ने उसी रात उसे अपने जीवन का
अं ितम पत्र िलखा-
"िप्रय कुलतार,
आज तु हारी आँ ख म आँ स ू दे खकर बहुत दुःख हुआ। आज तु हारी बात म बड़ा दद
था। तु हारे आँ स ू मु झसे सहन नहीं होते । बरखु रदार, िह मत से िश ा प्रा त करना और
से हत का खयाल रखना। हौसला रखना। और या कहँ -ू --

‘उसे यह िफक् र है हरदम, नया तज जफा या है ?


हम यह शौक दे ख िसतम की इं तेहा या है ?
दहर से य खफा रह, चख का य िगला कर।
सारा जहाँ अद ू सही, आओ मु काबला कर।
कोई दम का मे हमान हँ ू ए अहले महिफल
चरागे सहर हँ ू बु झा चाहता हँ ।ू
मे री हवाओं म रहे गी याल की िबजली
यह मु त-ए-खाक हँ ,ू रहे , रहे न रहे ।’,
अ छा, खसत। ‘खु श रहो अहले वतन हम तो सफर करते ह।’ हौसले से रहना।
-भगतिसं ह"
आजादी से इनकार
"सरदारजी!" उसने दबे वर म पु कारा।
ले िकन भगतिसं ह पढ़ने म इतनी त लीनता से खोए हुए थे िक उ ह पु कारने वाले की
आवाज सु नाई नहीं दी।
"सरदारजी!" उसने थोड़े ऊँचे वर म पु कारा।
"कौन है ?" आँ ख को नीचे रखते हुए ही भगतिसं ह ने पूछा।
"म 14 नं बर का सं देश लाया हँ ।ू "
िकताब को एक ओर रखते हुए भगतिसं ह ने आ चय से पूछा, "कैसा सं देश?"
उस आदमी ने कुछ भी न कहते हुए एक िचट् ठी आगे बढ़ा दी।
भगतिसं ह ने पल भर म िचट् ठी पढ़ डाली और प्र न भरी मु दर् ा से सं देशवाहक की ओर
दे खा।
"जवाब िलख दीिजएगा। त काल सब प्रबं ध हो जाएगा।" सं देशवाहक दबे वर म
बोला।
िचट् ठी म िलखा था-"सरदारजी, आप एक स चे इनकलाबी की है िसयत से बताएँ िक या
आप चाहते ह िक आपको बचा िलया जाए? इस आिखरी व त भी शायद कुछ िकया जा
सकता है ।"
िरहाई की क पना से पल भर के िलए भगतिसं ह का मन पु लिकत हो उठा। अभी बहुत
कुछ करना था, समाजवाद के सपन को साकार करना था। मौत ने अगर जीवन प्रदान
ू रे ही ण उनकी मु दर् ा गं भीर हो
िकया तो वे मातृ भिू म की से वा कर सकते थे । ले िकन दस
गई। मौत का मू य उ ह ने महसूस िकया और जवाब िलखने लगे -
"म इनकार नहीं करता िक एक इनसान की है िसयत से मु झे जीने के प्रित मोह है । ले िकन
इस ण मे रे जीवन के बदले मे री मौत का मू य अिधक है । मे रा नाम िहं दु तानी
इनकलाबी पाटी का िनशान बन चु का है और पाटी के आदशों तथा बिलदान ने मु झे बहुत
ऊँचा कर िदया है । इतना ऊँचा िक िजं दा रहने की सूरत म इससे ऊँचा म हरिगज नहीं हो
सकता।
मु झसे यादा भा यशाली कौन होगा? मु झे आज अपने आप पर बहुत गव है । मे री अब
कोई अिभलाषा बाकी नहीं है । अब तो बड़ी बे ताबी से आिखरी परी ा का इं तजार है ।
आरजू है िक वह और करीब हो जाए।
आपका साथी
-भगतिसं ह"
अ याय 18
बिलदान
24 माच, 1931 को प्रातःकाल भगतिसं ह और उनके सािथय को फाँसी दी जानी थी।
ले िकन सरकार एक नई योजना का ताना-बाना बु न रही थी। अब तक भगतिसं ह सं पण ू दे श
के आदश बन चु के थे । िविभ न थान पर आं दोलन एवं जु लूस ारा उनकी िरहाई की
माँ ग की जा रही थी। अने क दल ने जे ल को घे रने की घोषणा भी कर दी थी। सरकार को
भय था िक इससे िवद्रोह की ि थित उ प न हो सकती है । यिद लोग की भीड़ ने जे ल
को घे रकर िहं सा मक प्रितरोध िकया तो भगतिसं ह और उनके सािथय को फाँसी दे ना
तो दरू , उनकी जान भी आफत म आ जाएगी। इसिलए िनयम-कानून को एक ओर रखते
हुए उ ह ने एक िदन पूव ही उ ह फाँसी दे ने का िनणय ले िलया। इस बारे म जे ल के
अिधकािरय को भी आनन-फानन म सूचना दी गई।
23 माच, 1931; सोमवार। सु बह से ही भगतिसं ह ले िनन से सं बंिधत पु तक पढ़ने म म न
थे । आज उनके जीवन का अं ितम िदन था, इसिलए वे ज द-से -ज द इस पु तक को
समा त कर ले ना चाहते थे । सहसा ‘इनकलाब िजं दाबाद’ के नार से जे ल का प्रां गण गूँज
उठा।
"अरे , इस समय साथी कैसे लौट आए?" भगतिसं ह ने आ चय के साथ कहा। अभी
दोपहर पूरी तरह से ढली नहीं थी। इस समय सब बं दी कारागार के बाहर अपने -अपने
काम पर रहा करते थे ।
"साम्रा यवादी मु दाबाद।" पु नः नारा सु नाई िदया।
‘ज र कुछ-न-कुछ गड़बड़ है । शाम को बं द होने वाला कारागार अभी य बं द हो रहा
है ?’ भगतिसं ह अभी इसी सोच म डूबे थे िक उसी समय चीफ वॉडर सरदार चतरिसं ह ने
कोठरी म प्रवे श िकया।
उसके उदास चे हरे को दे खकर भगतिसं ह ने हँ सते हुए पूछा, " या बात है , भाई?"
"आिखरी समय समीप आ गया है , बे टे।" चतरिसं ह ने भरे गले से कहा।
"िफर तो बड़ी खु शी की बात है । शादी का मु हत
ू कब का है ?"
"आज शाम का है ।"
भगतिसं ह मु सकराते हुए धीरे से बोले , "तो िमलन की घड़ी नजदीक आ गई है ।"
"बे टा, मु झ बूढ़े की एक बात मानोगे ? कम-से -कम इस आिखरी व त म तो वाहे गु का
नाम मरण कीिजए। गु वाणी का पाठ कीिजए। लीिजए, म आपके िलए यह गु टका
लाया हँ ।ू " चतरिसं ह ने गु टका आगे कर िदया।
ले िकन उसे ले ने के बदले भगतिसं ह हाथ जोड़कर बोले , "आपके मन का भाव म समझ
सकता हँ ।ू वा तव म आपकी इ छानु सार पाठ करने म कोई हज नहीं है । ले िकन आपको
इसके बारे म पहले कहना चािहए था।"
"पहले कैसे कहता? मु झे तो अभी तीन बजे ही मालूम हुआ िक आज शाम को ही---"
चतरिसं ह ने वा य अधूरा छोड़ िदया।
"पहले मतलब आिखरी घड़ी से पहले । अब अगर ठीक मरते समय म भगवान् से प्राथना
करने लगूँ तो भगवान् कहे गा िक यह आदमी बु जिदल है , डरपोक है । िजं दगी भर तो इसने
कभी मे रा मरण नहीं िकया और अब सामने मौत आकर खड़ी हो गई है , तब यह मे रा
नाम सु िमरन कर रहा है । इसकी अपे ा तो म िजस तरह जीया था, उसी तरह मु झे यहाँ से
जाने दीिजए। लोग मु झे नाि तक ज र कहगे , ले िकन कोई यह नहीं कहे गा िक मरते
समय भगतिसं ह बु जिदल और बे ईमान हो गया; आिखरी व त मौत को दे खकर उसके पै र
लड़खड़ाने लगे थे ।"
चतरिसं ह िन र हो गया। उसने मन-ही-मन वाहे गु से प्राथना की और बाकी का
इं तजाम करने चला गया।

शहादत
अं ितम नान करके भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु पु िलस अिधकारी के सामने आकर
खड़े हो गए। इन यु वक को मौत के मुँ ह म जाते दे खकर पु िलस अिधकािरय की आँ ख भी
भर आई थीं। उनका प थर िदल भी पसीज गया, हाथ-पै र काँपने लगे । उ ह बाँ धने के
िलए हथकिड़याँ आगे की ग तो भगतिसं ह मु सकराते हुए बोले , " या आप हमारी
आिखरी इ छा नहीं पूछगे ?"
"म पूछने ही वाला था। बताइए, आपकी आिखरी इ छा या है ?" पु िलस अिधकारी ने
भरे वर म पूछा।
"हम न तो हथकिड़याँ पहनाई जाएँ और न ही फाँसी के समय हमारे चे हरे ढके जाएँ । यही
हमारी आिखरी इ छा है ।" तीन ने एक वर म कहा।
कुछ सोचकर अिधकारी ने हथकिड़याँ एक ओर कर दीं। तदनं तर तीन को फाँसी के त ते
की ओर ले जाया गया। भगतिसं ह बीच म थे ; बा ओर सु खदे व और दा ओर राजगु थे ।
तीन एक-दसू रे के हाथ म हाथ डाले दे शभि त म डूबा गीत गा रहे थे -

"मे रा रँ ग दे बसं ती चोला।


मे रा रँ ग दे ---
पूरी जे ल ‘इनकलाब िजं दाबाद’ के नार से गूँजने लगी। हर कोई तीन वीर को अश् पूण
िवदाई दे रहा था। ले िकन इन सबसे बे खबर तीन म ताने एक ही वर म गाने लगे -
"िदल से िनकले गी न मरकर भी वतन की उ फत,
मे री िमट् टी से भी खु शबू-ए-वतन आएगी।"
वाडन ने आगे बढ़कर फाँसीघर का दरवाजा खोला। तीन ने हँ सते -गु नगु नाते उसम
प्रवे श िकया। उनके पीछे -पीछे वाडर सिहत अ य अिधकारी भी अं दर आ गए। अं दर
लाहौर का िड टी किम नर उनकी प्रती ा कर रहा था। इन ते ज वी यु वक को दे खकर
वह च क उठा। उसे समझ म नहीं आया िक उ ह िबना हथकिड़य के खु ले म कैसे लाया
गया है ? उसने क् रोध से तमतमाकर जे लर मु ह मद अकबर की ओर दे खा।
उसके मन का भय जानकर जे लर बड़े अदब के साथ बोला, "साहब, िव वास रिखए, इनसे
िकसी को कोई खतरा नहीं।"
यह सु नकर भगतिसं ह हँ सने लगे और उ ह आ व त करते हुए बोले , "मिज ट् रेट साहब,
आज आप दे खगे िक भारतीय क् रां ितकारी अपने ल य के िलए िकस तरह हँ सते -हँ सते
मौत को गले लगाते ह। आप बहुत भा यशाली ह।"
मिज टे ªट फटी आँ ख से तीन मृ यु ं जय की ओर दे खते रह गया।
सामने तीन रि सयाँ लटक रही थीं, िजनके िसर पर तै यार फंदे उनका इं तजार कर रहे थे ।
तीन एक-दस ू रे को दे खकर मु सकराए और ते जी से त त पर चढ़ गए। उनकी फुरती दे खते
ही बनती थी। ऐसा लगता था मानो िववाह-वे दी पर खड़े वे अपनी-अपनी दुलहन की
उ सु कता से प्रती ा कर रहे ह । बीच म भगतिसं ह, दा ओर राजगु और बा ओर
सु खदे व। तीन एक वर म बोले , "इनकलाब िजं दाबाद! साम्रा यशाही मु दाबाद!"
तदनं तर उ ह ने सामने लटकते फंद को चूमा और अपने हाथ से ही उ ह अपने गले म
पहन िलया। उनके पास ही ज लाद खड़ा था। उसने अब तक अनिगनत लोग को फाँसी
पर लटकाया था। ले िकन इतने वीर और साहसी यु वक उसने पहले कभी नहीं दे खे थे ।
भगतिसं ह ने प्रेम भरे वर म उसे फंदे ठीक करने के िलए कहा। ज लाद के हाथ काँपने
लगे , पै र लड़खड़ाने लगे । छलछलाई आँ ख से उसने पहले तीन वीर को प्रणाम कर
अपने म तक पर उनकी पदधूिल का ितलक लगाया, िफर उनके गले के फंद को ठीक
िकया। तदनं तर धीरे -धीरे चलता हुआ र सी खींचने वाले चक् र के पास आकर खड़ा हो
गया।
7 बजकर 33 िमनट पर मिज टे ªट ने सं केत िकया और भरे मन से ज लाद ने चक् र घु मा
िदया। पल भर म तीन ते ज वी क् रां ितकारी दे श के िलए शहीद हो गए।
अ याय 19
शहीदों की िचताओं पर
23 माच की रात को ही सरदार िकशनिसं ह पिरवार सिहत मोरी दरवाजे के पास पहुँच
गए थे । उनके साथ सु खदे व और राजगु के पिरवार भी थे । इसके अितिर त लोग की
िवशाल भीड़ थी, जो दरवाजे के आगे जु लूस के प म खड़ी थी। वे सब सु बह होने की
प्रती ा कर रहे थे । उ ह उ मीद थी िक फाँसी दे ने से पहले उ ह अं ितम दशन हे तु तीन
से िमलने िदया जाएगा।
तभी जे ल के एक िसपाही ने आकर सरदार िकशनिसं ह को सूचना दी, "उ ह आज शाम
सात बजे ही फाँसी दे दी गई है ।"
यह सु नकर भगतिसं ह की माँ िव ावती एकाएक चीख उठीं। राजगु की माँ ने आँ चल का
छोर मुँ ह म ठूँ स िलया और सु खदे व की माँ ध म से नीचे बै ठ ग ।
ले िकन उस शहीद का िपता सावधान था। उसने गरजकर बु लं द आवाज म घोषणा की,
"भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु को फाँसी लग जाने की खबर िमली है । म खबर पाकर
शव ले ने जे ल जा रहा हँ ।ू " उनके पीछे -पीछे लोग का जु लूस जे ल की ओर चल पड़ा।
परं तु जे ल पहुँचने पर भी उ ह भगतिसं ह का शव नहीं िमला। कई बार पु कारने पर एक
जे ल अिधकारी ने सूचना दी, "उनकी लाश अं ितम सं कार के िलए ले जाई जा चु की ह।"
िकशनिसं ह िवि मत रह गए। ‘उ ह कहाँ ले गए ह गे ? उनका अं ितम सं कार कौन
करे गा?’ ऐसे अनिगनत प्र न उठे , ले िकन उनके पास एक का भी जवाब नहीं था।
सभी इसी उलझन म थे िक तभी एक आदमी धीरे से बोला, "सरदारजी, उ ह बोिरय म
ठूँ सकर जे ल के िपछवाड़े से बाहर ले जाया गया है ।"
"बोिरय म?" िकशनिसं ह ने च ककर पूछा।
"जी, उ ह ट् रक म डालकर यहाँ से ले गए।"
"कहाँ ले गए ह?"
"िफरोजपु र की ओर।"
िकशनिसं ह ने त काल िफरोजपु र के ने ताओं को तार भे जकर सूिचत िकया और वयं
पिरवार सिहत िफरोजपु र की ओर चल िदए।
लाहौर से िफरोजपु र लगभग 70 मील की दरू ी पर है । यह खबर िमलते ही िक पु िलस की
गाड़ी शहीद के शव उनके शहर म लाई है , वहाँ के लोग उनके शव को खोजने लगे ।
लगभग आधी रात के समय लोग की एक भीड़ ने सतलु ज नदी के िकनारे पर कैसर-ए-
िहं द पु ल के पास धधकती हुई आग दे खी। वे मशाल ले कर उस ओर दौड़ पड़े ।
उ ह आते दे खकर पु िलस अिधकािरय ने आग बु झा दी और गाड़ी म बै ठकर वहाँ से भाग
गए। लोग ने त परता िदखाते हुए उस थान को घे र िलया।
दस ू रे िदन सूयोदय के साथ ही लोग पु ल के पास उस जगह को ढूँढ़ने लगे , जहाँ शहीद का
सं कार िकया गया था। थोड़ी दे र म ही वह पिवत्र भूिम िमल गई। उसम से िमट् टी के
ते ल की बदबू आ रही थी। आधे -अधूरे बु झे हुए अं गार के आस-पास मांस के अधजले
टु कड़े िबखरे हुए थे । उनके प्राणिप्रय क् रां ितकािरय की इस तरह अवहे लना की गई है ,
यह दे खकर लोग शोकाकुल हो गए।
उसी िदन सरकार ने घोषणा की िक ‘23 माच को भगतिसं ह, राजगु और सु खदे व को
फाँसी दे दी गई। बाद म सतलु ज के िकनारे िसख और िहं द ू रीित-िरवाज के अनु सार उनका
अं ितम सं कार करके राख नदी म बहा दी गई।
सरकार ने शहीद का नामोिनशान िमटाने का भरसक प्रय न िकया था, ले िकन वे मरकर
भी लोग के िदल म सदा के िलए अमर हो गए। लोग का ताँता लगा हुआ था। कड़ी
धूप म भी ‘इनकलाब िजं दाबाद’ के नारे लगाते हुए वे इस तीथ के दशन कर रहे थे । िफजाँ
म रामप्रसाद िबि मल के श द गूँज रहे थे -

"कभी वो िदन भी आएगा िक जब आजाद हम ह गे ,


यह अपनी ही जमीं होगी यह अपना आसमाँ होगा।
शहीद की िचताओं पर लगगे हर बरस मे ले,
वतन पर मरने वाल का यही बाकी िनशाँ होगा।।"
प्रितिक् रयाएँ
भगतिसं ह, सु खदे व और राजगु के बिलदान के बारे म सु नकर समूचा रा ट् र शोकम न हो
गया। 24 माच, 1931 को शोक-िदवस घोिषत िकया गया। ले िकन सरकार ारा शव की
दुगित के बारे म सु नकर लोग म क् रोध की लहर दौड़ गई। दे श के कोने -कोने म तनावपूण
ि थित बन गई। जगह-जगह जु लूस िनकाले गए, सभाएँ आयोिजत की ग । चार ओर
िवद्रोह की भावना बलवती हो उठी। लाहौर म हालात िबगड़ने की आशं का दे खते हुए
सरकार ने हजार की तादाद म िसपाही सड़क पर उतार िदए। धारा 144 लगा दी गई।
तदनं तर अं गर् े ज अिधकािरय को िबना सु र ा िलये घर से बाहर जाने पर रोक लगा दी
गई।
शहीद की िचताओं के कुछ अवशे ष लाहौर लाए गए, जहाँ हजार लोग ने उनके दशन
ू े प्रिस अखबार ‘पयाम’ ने िलखा
िकए। इस शोकपूण घटना का वणन करते हुए उद क
था-
"भगतिसं ह, राजगु और सु खेदव को फाँसी दे दी गई है । िसफ तीन जान गई ह, ले िकन
उ ह 23 करोड़ िहं दु तानी यार करते थे । उनका खून करके िब्रतानवी हुकू मत ने सारे
िहं दु तान की मदानगी को ललकारा है । अगर िहं दु तान इस चु नौती को वीकार करता है
तो इं लड का भिव य अँ धेरे से भर जाएगा और अगर वह इसे मं जरू नहीं करता तो उसे
अपने भिव य से हाथ धोना पड़े गा। शहीद ने हम शहादत का अनोखा रा ता िदखाया है
और हम उनके िदखाए रा ते पर चलना चािहए। इं लड ने सारे िहं दु तान की इबादत को
ठु करा िदया है । इसका जवाब िससिकय और अ क से नहीं िदया जा सकता; य िक ये
कमजोरी के हिथयार ह। िब्रतानवी हुकू मत म दयानत, आदिमयत और उदारता नहीं है ।
यह शै तान हुकू मत है , जो िसफ जोर के आगे झुकती है । तु मम ताकत है , इसका सही
इ ते माल करो। िब्रतानवी हुकू मत, िब्रतानवी ितजारत, िब्रतानवी इ म का बिह कार
करो और िब्रतानवी बे इ जत होकर तु हारे कदम पर िगरे गा और उसे शहीद के खून की
कीमत चु कानी पड़े गी। भगतिसं ह के खून की कीमत इससे कम नहीं है िक िहं दु तान
आजाद हो, य िक उसके भाइय ने िहं दु तान की आजादी के िलए अपनी जान दी ह।
जब पूरे आजाद पिशया का खून एक आम अं गर् े ज के खून की कीमत नहीं चु का सकता,
तब गु लाम भारत के फजमं द बे ट , िजन पर पु िलस अफसर के खून का इ जाम था, के खून
को कैसे माफ िकया जा सकता है । ले िकन अगर एक आम अं गर् े ज की जान इतनी कीमती
है तो या िहं दु तान भगतिसं ह, राजगु और सु खदे व की कीमत कम समझता है , िजनका
अं ग-अं ग दे शभि त और पाक शहादत से भरा हुआ था। िब्रतािनया को इसका जवाब
काम करके दो, अ फाज से नहीं। िहं दु तान इन तीन शहीद को पूरे िब्रतािनया से ऊपर
समझता है । अगर हम हजार -लाख अं गर् े ज को भी मार िगराएँ तो भी हम पूरा बदला
नहीं चु का सकते । यह बदला तभी पूरा होगा, जब लोग िहं दु तान को आजाद करा ल,
तभी िब्रतािनया की शान िमट् टी म िमले गी। ओ भगतिसं ह, राजगु और सु खदे व!
अं गर् े ज खु श ह िक उ ह ने तु हारा खून कर िदया है , ले िकन वो गलती पर ह। उ ह ने
तु हारा खून नहीं िकया, उ ह ने अपने ही भिव य म छुरा घ पा है । तु म िजं दा हो और
हमे शा िजं दा रहोगे ।"
कुछ इसी तरह की िट पणी लाहौर से प्रकािशत होने वाले ‘िट् र यून’ ने की-

"भारत म अं गर् े जी सरकार ने जो कुछ गलितयाँ कीं, वे मह व और गं भीरता की दृि ट से


उन गलितय के समान ह जो उसने भगतिसं ह, राजगु और सु खदे व के मृ यु दं ड को न
बदलने म की है ।"
भारतीय समाचार-पत्र के साथ-साथ िवदे शी अखबार ने भी इस घटना की आलोचना
करते हुए कठोर ले ख िलखे । यूयॉक के समाचार-पत्र ‘डे ली वकर’ ने िट पणी की-

"लाहौर के तीन कैदी भगतिसं ह, राजगु और सु खदे व, जो भारत की आजादी के िलए


लड़ रहे थे , अं गर् े जी साम्रा यवाद के िहत के िलए अं गर् े ज सरकार ारा ख म कर िदए
गए। मै कडोन ड के ने तृ व म अं गर् े जी सरकार ारा की गई यह सबसे पहली खूनी
कारवाई है । तीन भारतीय क् रां ितकािरय की मृ यु पूव-िनि चत राजनीितक योजना के
अनु सार सरकार की आ ा यह प ट करती है िक अं गर् े जी साम्रा यवाद को बचाने के
िलए मै कडोन ड सरकार िकतनी दरू तक जा सकती है ।"
अ याय 20
कुछ सं मरण
िवद्रोह के अंकुर
भगतिसं ह अभी बहुत छोटे थे । उनके एक चाचा बीमारी के कारण यु वाव था म ही काल
का ग्रास बन चु के थे , जबिक दस ू रे चाचा अजीतिसं ह िवदे श म मारे -मारे िफर रहे थे ।
िपता भी अं गर् े ज के साथ आँ ख-िमचौली का खे ल खे ल रहे थे । ऐसी ि थित म चािचय
का ने ह-दुलार उ ह बचपन से ही िमला था। वे अकसर बालक भगत को गोद म िलटाकर
दे शभि त से पिरपूण कहािनयाँ सु नाया करती थीं। बीच-बीच म कब वे फफककर रो
पड़तीं, उ ह पता भी न चलता। ऐसे ही एक बार कहानी सु नाते -सु नाते अजीतिसं ह की
प नी की आँ ख से आँ स ू िनकल आए। भगतिसं ह से रहा न गया। वे चाची के आँ स ू प छते
हुए बोले , "चु प हो जाओ चाचीजी! बड़ा होकर म अं गर् े ज को इस दे श से मारकर भगा
ू ा। िफर हम सब एक साथ िमलकर रहगे ।"
दँ ग
यही वह समय था, जब बालक भगत के मन म अं गर् े जी शासन के िव िवद्रोह के
अं कुर फू टने लगे थे ।

बंद ूकों की खे ती
एक बार सरदार िकशनिसं ह अपने िमत्र मे हता नं दिकशोर के साथ खे त म गए हुए थे ।
तभी मे हताजी को एक बालक िदखाई िदया, जो िमट् टी के ढे र पर छोटे -छोटे ितनके लगा
रहा था। यह दे खकर मे हताजी िवि मत हो गए। उ ह ने आगे बढ़कर बालक से प्र न
िकया, "तु हारा नाम या है ?"
"भगतिसं ह।" बालक ने िनभय होकर जवाब िदया।
"तु म यह या कर रहे हो?" मे हताजी ने अगला प्र न िकया।
ू बो रहा हँ ।ू "
"म बं दक
ू ! ले िकन तु म इन बं दक
"बं दक ू का या करोगे ?" मे हताजी ने िवि मत होकर पूछा।
"इससे म अपने दे श को अं गर् े ज से आजाद करवाऊँगा।" भगतिसं ह ने जोश म भरकर
जवाब िदया।
तीन वषीय बालक के मु ख से ऐसी बात सु नकर मे हताजी को िव वास हो गया िक
आने वाले वषों म यह बालक दे श के न त्र-पटल पर ध् व तारा बनकर प्रकािशत
होगा।

प्रित ा
रावी नदी के चौड़े पाट म नाव ते जी से बह रही थी। भगतिसं ह और उनका िमत्र
यशपाल नौकायन का अ यास कर रहे थे । उ ह ने िजस माग को चु ना था, उसपर चलने
के िलए सबकुछ जानना आव यक था। सूयिबं ब ने अब ि ितज का पश िकया था।
पि चम िदशा लाल-केसिरया रं ग से रँ ग गई थी। रावी का जल भी उस रं ग से सरोबार हो
गया था। नौकायन करते हुए दोन िमत्र को बहुत दे र हो गई थी। ले िकन वे पर पर बात
म इतना डूबे हुए थे िक उ ह कुछ सु ध-बु ध नहीं थी। सदै व की भाँ ित उनके बीच बातचीत
का िवषय ‘दे शभि त और आजादी’ थी। दोन दे श की वतमान ि थित की समी ा कर रहे
थे ।
सहसा यशपाल ने अपना च पू रोका और िवचार म डूबे भगतिसं ह के कंधे पर हाथ रखकर
बोला, "आओ, हम प्रित ा कर िक हम अपना जीवन दे श को समिपत कर दगे ।"
भगतिसं ह मु सकराए। उ ह ने यह िनणय बारह वष की आयु म ही कर िलया था। यशपाल
का हाथ अपने हाथ म ले कर, उसकी आँ ख म आँ ख डालकर गं भीरता से बोले , "म आज
िफर से प्रित ा करता हँ ू िक यह भगतिसं ह िसफ दे श के िलए िजएगा और दे श के िलए
ही मरे गा।"
हाथ-म-हाथ िलये दोन िमत्र अिभभूत-से खड़े थे । च पू क गए थे ; नौका खड़ी थी।
रावी की लहर उछल-उछलकर मानो आशीवाद दे रही थीं। सूय की िकरण सहलाते हुए
कह रही थीं, ‘तथा तु ! ऐसा ही होगा। हे दे श के स चे सपूतो! तु हारी यह नाशवान्
काया दे श के िलए प्र विलत य म समिपत होगी।’

साधु की भभूत
बात उन िदन की है , जब भगतिसं ह जे ल म थे और उन पर मु कदमा चल रहा था। बं गा
गाँ व के बाहर एक साधु ने आकर धूनी लगा ली थी। दो-चार िदन म ही उसकी शि तय
की चचा गाँ व भर म होने लगी। िकसी ने िव ावती से कहा, "गाँ व के बाहर जो साधु ठहरे
हुए ह, वे बड़े शि तशाली ह। उनके पास जाओ; शायद उनकी कृपा से भगतिसं ह बच
जाए।"
िव ावती को ऐसी बात पर अिधक िव वास नहीं था; ले िकन माँ की ममता ने जोर मारा
और वे कुलबीर को साथ ले कर साधु महाराज की शरण म जा पहुँचीं। साधु ने कुछ मं तर्
पढ़े । तदनं तर एक पु िड़या म भभूत लपे टकर दी और उसे भगतिसं ह के िसर पर डालने के
िलए कहा।
जब मु लाकात का िदन आया तो वह भभूत साथ ले ग और भगतिसं ह के पास बै ठकर
उनके िसर पर हाथ फेरने की कोिशश करने लगीं, िजससे भभूत उनके िसर पर डाली जा
सके। अभी उनका हाथ भगतिसं ह के कंध पर ही था िक वे बोल उठे , "बे बे, जो भभूत तु म
मे रे िसर पर डालना चाहती हो, उसे कुलबीर के िसर पर डािलए, िजससे वह जीवन भर
आपके पास रहे ।"
िव ावतीजी िवि मत रह ग । आिखर भगतिसं ह उनके मन की बात कैसे जान गया, यह
वह कभी समझ नहीं सकीं।

िव वासघाती का प चा ाप
भरी अदालत म भगतिसं ह उस िदन फू ट-फू टकर रो िदए थे िजस िदन हं सराज ने सरकारी
गवाह बनकर क् रां ितकािरय के सारे रह य खोल िदए थे । क् रां ित की एक-एक िछपी
कहानी चलिचत्र की तरह अदालत म पे श कर दी थी। जािहर है िक वह बयान अने क
क् रां ितकािरय के िलए मौत का फरमान था। भगतिसं ह हं सराज को एकटक दे ख रहे थे ।
पहले उनके चे हरे की मांसपे िशय पर िखं चाव आया, क् रोध व आवे श से चे हरा तमतमा
उठा, िफर अचानक भावु कता म बहकर वह फफक-फफककर रो पड़े ।
तो या भगतिसं ह अपनी मौत से डर गए थे ? िजस यि त ने खु द अपनी मौत को चु ना
हो, एक योजनाब तरीके से फाँसी के फंदे तक पहुँचा हो, वह इतना कायर और कमजोर
कभी नहीं हो सकता था। उनकी आँ ख से बहते हुए आँ सुओ ं के प्र न का उ र सं पण

मानवता के इितहास म दे खने को नहीं िमले गा। उ र था ‘सरकारी गवाह हं सराज की
आँ ख म।’ वह भी फफककर रो पड़ा; उसकी भी िहचिकयाँ बँ ध ग ।
भगतिसं ह रो रहे थे , यह सोचकर िक मे रे साथी पर िकतना बबरतापूवक अ याचार हुआ
होगा। उसे िकतनी यातनाएँ दी गई ह गी, िजससे टू टकर आज वह सरकारी गवाह बन
गया। हं सराज रो रहा था, ले िकन वे प चा ाप के आँ स ू थे । ‘मने िव वासघात िकया।
अपने आदरणीय साथी की नजर म पितत होने के बाद भी म उसकी सहानु भिू त का पात्र
हँ !ू ’ यह सोचने के बाद उसकी आँ ख बरस पड़ी थीं।

‘बड़ा आया समझाने ’


कैिदय को होने वाली असु िवधाओं के िखलाफ भगतिसं ह और बटु के वर द ने जे ल म
भूख-हड़ताल आरं भ कर दी थी। उनकी भूख-हड़ताल से प्रेिरत होकर िकतने ही पु राने
क् रां ितकारी और से नानी भी भूख-हड़ताल पर बै ठ गए। उ हीं म से एक थे बाबा
सोहनिसं ह। वे सन् 1915-16 से जे ल म बं द थे । उ ह ने भी भोजन याग िदया। जब तक
भगतिसं ह को इस बात का पता चलता, तब तक आठ-दस िदन बीत चु के थे । भगतिसं ह
उ ह समझाने गए। दो वीर का िमलन िकतना अद्भुत था। नई पीढ़ी पु रानी पीढ़ी को
समझा रही थी िक ‘अब हमने मोरचा सँ भाल िलया है । आप थक गए ह, आप आराम
कर।’ परं तु बाबाजी टस-से -मस न हुए। भगतिसं ह ने कई तक िदए, िवनती की, समझाया
िक ‘आपकी िरहाई म कुछ ही िदन शे ष ह। भूख-हड़ताल करने से आपकी सजा बढ़ाई जा
सकती है ।’
बाबाजी ने भगतिसं ह की पीठ पर ने हपूवक धौल जमाई, "चल, बड़ा आया मु झे
समझाने ।"
भगतिसं ह की आँ ख से आँ स ू बरस पड़े और तब बाबाजी उ ह समझा रहे थे ।

भावु क भगतिसंह
15 जून, 1929 से भगतिसं ह अनशन कर रहे थे । उनके साथ यतींदर् नाथ दास भी अनशन
म सि मिलत हो गए। अनशन अने क िदन तक चलता रहा, िजसके कारण यतींदर् नाथ
का वा य िदन-प्रितिदन खराब होने लगा। कुछ ही िदन म वे िहं य का ढाँचा मात्र
रह गए। ऊपर से उ ह बलपूवक खाना िखलाया जा रहा था, ले िकन ई वर को कुछ और
ही मं जरू था। िदन-पर-िदन बीतते गए और वे मृ यु के कगार पर खड़े हो गए। जब
भगतिसं ह उनसे िमलने पहुँचे तो उनकी वाणी अव हो गई। परं तु आँ ख की भाषा भला
कैसे मौन रहती? कोमल- दयी भगतिसं ह उनसे िलपटकर रो पड़े । इससे पहले जब
बटु के वर द को उनकी जे ल से हटाकर मु तान जे ल म भे ज िदया गया था, तब उ ह ने
अपने मन के भाव प्रकट करते हुए बटु के वर द की बहन को एक पत्र िलखा था-
"प्रिमला, बटु के वर की जु दाई मे रे िलए असहनीय है । आज यह पहला िदन है , जब म
वयं को उद्िव न पा रहा हँ ।ू आज मे रे आँ स ू भी मे री उद्िव नता कम नहीं कर पा रहे ह।
सचमु च एक िमत्र से जु दा होना, जो मे रे िलए सगे भाई से भी बढ़कर था, बहुत दुःखद
है ।"
उपयु त घटनाओं से वीर भगतिसं ह की मानवीय सं वेदनाओं का पिरचय िमलता है ।

बे बे के हाथ की रोटी
जे लर मु ह मद अकबर खान ने अपने म जीवन अने क कैदी दे खे थे , ले िकन भगतिसं ह जै सा
वीर दे शभ त कभी नहीं दे खा था। यही कारण था िक अं गर् े ज-समथक होने के बाद भी वह
भगतिसं ह का प्रशं सक था। सरकार ने 24 माच, 1931 का िदन फाँसी के िलए िनधािरत
िकया था, अतः वह एक िदन पहले ही 23 माच, 1931 को सु बह-सु बह भगतिसं ह के पास
पहुँच गया और प्रेमपूवक बोला, "भगतिसं ह, आपको सरकार के आदे श का पता चल ही
गया होगा। अगर आपकी कोई इ छा हो तो िन सं कोच कह।"
भगतिसं ह सोच म पड़ गए। अचानक कोठरी के िपछले दरवाजे पर द तक सु नाई दी।
उ ह ने झट से ताली बजाई और हँ सते हुए कहा, "खान साहब, म बे बेजी की बनाई हुई
रोटी खाना चाहता हँ ।ू "
"ले िकन आपकी माताजी तो बहुत दरू ह। उनको सं देश भे जकर रोटी मँ गवाना सं भव नहीं
है ।"
भगतिसं ह ठहाका लगाकर हँ स पड़े और िफर वयं को सं यत करते हुए बोले , "कोई बात
नहीं खान साहब, मे री एक बे बे जे ल म भी है ।"
यह कहकर उ ह ने मे हतर को बु लाया।
कोठरी म जे लर को खड़ा दे खकर मे हतर डर गया। परं तु भगतिसं ह उसकी ओर सं केत करते
हुए जे लर से बोले , "जे लर साहब, म इसके हाथ की बनाई हुई रोटी खाना चाहता हँ ।ू "
यह सु नकर मे हतर दं ग रह गया। तदनं तर डरते -डरते बोला, "यह पाप मु झसे नहीं हो
सकेगा। सरदारजी, मे रे हाथ ऐसे नहीं िक उनसे बनी रोटी आप खाएँ ।"
"ऐसा मत कहो, भाई। तु हारे हाथ तो मु झे अपनी माँ की याद िदलाते ह। इसिलए तो म
तु ह बे बेजी कहता हँ ।ू " भगतिसं ह ने उसके कंध को यार से थपथपाते हुए कहा।
िफर वे जे लर से बोले , "खान साहब, जीवन म िसफ दो लोग को मे री गं दगी उठाने का
काम िमला है । एक मे री बचपन की माँ और एक यह जवानी की जमादार माँ ।"
"बे बेजी, तु म िचं ता मत करो। मे री यह आिखरी इ छा है । अ छी-खासी गरम-गरम रोटी
सककर लाना और स जी कोई भी ले आना। मु झे सब अ छा लगता है । साथ म चटनी
भी लाओ तो कोई हज नहीं। म सब खा लूँगा।" भगतिसं ह ने ने ह भरे वर म कहा।
मे हतर की आँ ख से आँ स ू बहने लगे । अब तक िकसी ने भी उसे इतना यार और स मान
नहीं िदया था; िकसी ने उसके हाथ की बनी रोटी खाने की िजद नहीं की थी। आज उसका
जीवन ध य हो गया था।
अ याय 21
भगतिसंह ने कहा था
"सं सार के सभी गरीब के-चाहे वे िकसी भी जाित, वण, धम या रा ट् र के ह -अिधकार
समान ह।"
(1927)
"चार ओर काफी समझदार लोग नजर आते ह; ले िकन हरे क को अपनी िज्ांदगी
खु शहाली से िबताने की िफक् र है । तब हम अपने हालात, दे श के हालात सु धरने की या
उ मीद कर रहे ह।"
(1927)
"वे लोग, जो महल बनाते ह और झ पिड़य म रहते ह। वे लोग, जो सुं दर-सुं दर
आरामदायक चीज बनाते ह, खु द पु रानी और गं दी चटाइय पर सोते ह। ऐसी ि थित म
या करना चािहए? ऐसी ि थितयाँ यिद भूतकाल म रही ह तो भिव य म य नहीं
बदलाव आना चािहए? अगर हम चाहते ह िक दे श के हालात आज से अ छे ह तो ये
ि थितयाँ बदलनी ह गी। हम पिरवतनकारी होना होगा।"
(अग त 1928)
"हमारा दे श बहुत आ याि मक है ; ले िकन हम मनु य को मनु य का दजा दे ते हुए भी
िहचकते ह।"
(1928)
"उठो, अछतू कहलाने वाले असली जनसे वको एवं भाइयो, उठो! तु म ही तो दे श का मु य
आधार हो, वा तिवक शि त हो। सोए हुए शे रो! उठो और बगावत खड़ी कर दो।"
(अछत ू सम या पर, 1928)
ू रे का कोई दखल नहीं, न ही इसे राजनीित म
"धम यि त का िनजी मामला है , इसम दस
घु सना चािहए।"
(1927)
"जब गितरोध की ि थित लोग को अपने िशकंजे म जकड़ ले ती है तो िकसी भी प्रकार
के पिरवतन से लोग िहचिकचाते ह। इस जड़ता और घोर िनि क् रयता को तोड़ने के िलए
एक क् रां ितकारी भावना पै दा करने की ज रत होती है , अ यथा पतन और बरबादी का
वातावरण छा जाता है ।"
(माच 1931)
"म पु रजोर कहता हँ ू िक म आशाओं और आकां ाओं से भरपूर जीवन की सम त
ू ा। सही
रं गीिनय से ओत-प्रोत हँ ।ू ले िकत व त आते पर म सबकुछ कुरबान कर दँ ग
अथों म यही बिलदान है ।"
(सु खदे व को पत्र, 13 अप्रैल, 1929)
"जहाँ तक यार के नै ितक तर का सं बंध है , म कह सकता हँ ू िक नौजवान यु वक-यु वितयाँ
आपस म यार कर सकते ह और वे अपने यार के सहारे अपने आवे ग से ऊपर उठ सकते
ह।"
(सु खदे व को पत्र, 1928)
"अं गर् े ज की जड़ िहल गई ह और पं दर् ह साल म वे यहाँ से चले जाएँ गे। बाद म काफी
अफरा-तफरी होगी, तब लोग को मे री याद आएगी।"
(12 माच, 1931)
साभार
• द ट् रायल ऑफ भगतिसं ह, ए-जी- नूरानी, ऑ सफोड इं िडया पे परबै क
• शहीद भगतिसं ह, आर-के- मूित, मै किमलन
• गां धी एं ड भगतिसं ह, पा एं ड कं-
• इनकलाब, मृ णािलनी जोशी, प्रभात प्रकाशन, िद ली
• http://www.funonthenet.in/forums/index.php?topic=99914.0
• http://www.iloveindia.com/indian-heroes/index.html
• मृ यु ं जय भगतिसं ह, राजशे खर यास, ग्रंथ अकादमी, नई िद ली
Published by
Prabhat Prakashan

4/19 Asaf Ali Road,


New Delhi-110 002 (INDIA)
e-mail: prabhatbooks@gmail.com

ISBN 978-93-5048-758-7

AMAR SHAHEED BHAGAT SINGH


by Mahesh Sharma

Edition First, 2010

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