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आधे-अधूरे - - मोहन राकेश PDF
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(काले सूटवाला आदमी) जो कक पुरुष एक, पुरुष दो, पुरुष तीन तथा पुरुष चार की भूकमकाओं में
भी है । उम्र लगभग उनचास-पचास। चेहरे की किष्टता में एक व्यंग्य। पुरुष एक के रूप में वेिान्तर :
पतलून-कमीज। कजंदगी से अपनी लडाई हार चुकने की छटपटाहट कलए। पुरुष दो के रूप में : पतलून और
बंद गले का कोट। अपने आपसे संतुष्ट, किर भी आिंककत। पुरुष तीन के रूप में : पतलून-टीिटट । हाथ में
कसगरे ट का किब्बा। लगातार कसगरे ट पीता। अपनी सुकवधा के कलए जीने का दिटन पू रे हाव-भाव में। पुरुष
चार के रूप में : पतलून के साथ पुरानी कोट का लंबा कोट। चेहरे पर बुजु़ ु गट होने का खासा एहसास।
काइयााँ पन।
स्त्री। उम्र चालीस को छूती। चेहरे पर यौवन की चमक और चाह किर भी िेष। ब्लाउज और साडी साधारण
होते हुए भी सुरुकचपूणट। दू सरी साडी कविेष अवसर की।
बडी लडकी। उम्र बीस से ऊपर नहीं। भाव में पररस्थथकतयों से संघषट का अवसाद और उतावलापन। कभी-
कभी उम्र से बढ़ कर बडप्पन। साडी : मााँ से साधारण। पूरे व्यस्ित्व में एक कबखराव।
छोटी लडकी। उम्र बारह और तेरह के बीच। भाव, स्वर, चाल-हर चीज में कवद्रोह। फ्रॉक चुस्त, पर एक
मोजे में सूराख।
लडका। उम्र इक्कीस के आसपास। पतलून के अं दर दबी भडकीली बुश्शटट धुल-धुल कर कघसी हुई। चेहरे
से, यहााँ तक कक हाँ सी से भी, झलकती खास तरह की कडवाहट।
सब रूपोों में इस्तेमाल होनेवाला वह कमरा विसमें उस घर के व्यतीत स्तर के कई एक टू टते अवशेष
- सोफा-सेट , डाइवनोंग टे बल, कबडड और डरेवसोंग टे बल आवद -वकसी-न-वकसी तरह अपने वलए िगह
बनाए हैं। िो कुछ भी है, वह अपनी अपेक्षाओों के अनुसार न हो कर कमरे की सीमाओों के अनुसार
एक और ही अनुपात से है। एक चीि का दू सरी चीि से ररश्ता तात्कावलक सुववधा की मााँ ग के
कारण लगभग टू ट चुका है। वफर भी लगता है वक वह सुववधा कई तरह की असुववधाओों से समझौता
करके की गई है - बल्कि कुछ असुववधाओों में ही सुववधा खोिने की कोवशश की गई है। सामान में
कही ों एक वतपाई , कही ों दो-एक मोढे , कही ों फटी-पुरानी वकताबोों का एक शेल्फ और कही ों पढने की
एक मेि-कुरसी भी है। गद्दे ,परदे , मेिपोश और पलोंगपोश अगर हैं , तो इस तरह वघसे , फटे या वसले
हुए की समझ में नही ों आता वक उनका न होना क्या होने से बेहतर नही ों था ?
तीन दरवािे तीन तरफ से कमरे में झााँकते हैं। एक दरवािा कमरे को वपछले अहाते से िोडता है ,
एक अोंदर के कमरे से और एक बाहर की दु वनया से। बाहर का एक रास्ता अहाते से हो कर भी है।
रसोई में भी अहाते से हो कर िाना होता है। परदा उठने पर सबसे पहले चाय पीने के बाद डाइवनोंग
टे बल पर छोडा गया अधटू टा टी-सेट आलोवकत होता है। वफर फटी वकताबोों और टू टी कुवसडयोों आवद
में से एक-एक। कुछ सेकोंड बाद प्रकाश सोफे के उस भाग पर केंवित हो िाता है िहााँ बैठा काले
सूट वाला आदमी वसगार के कश खी ोंच रहा है। उसके सामने रहते प्रकाश उसी तरह सीवमत रहता है
, पर बीच-बीच में कभी यह कोना और कभी वह कोना साथ आलोवकत हो उठता है।
का.सू .वा. : (कुछ अंतमुटख भाव से कसगार की राख झाडता) किर एक बार, किर से वही िुरुआत...।
िैसे कोवशश से अपने को एक दावयत्व के वलए तैयार करके सोफे से उठ पडता है।
मैं नहीं जानता आप क्या समझ रहे हैं मैं कौन हाँ और क्या आिा कर रहे हैं मैं क्या कहने जा रहा हाँ । आप
िायद सोचते हों कक मैं इस नाटक में कोई एक कनकित इकाई हाँ - अकभनेता, प्रस्तुतकताट , व्यवथथापक या
कुछ और; परं तु मैं अपने सं बंध में कनकित रूप से कुछ भी नहीं कह सकता - उसी तरह जैसे इस नाटक के
संबंध में नहीं कह सकता। क्योंकक यह नाटक भी अपने में मेरी ही तरह अकनकित है । अकनकित होने का
कारण यह है कक...परं तु कारण की बात करना बेकार है । कारण हर चीज का कुछ-न-कुछ होता है , हालााँ कक
यह आवश्यक नहीं कक जो कारण कदया जाए, वास्तकवक कारण वही हो। और जब मैं अपने ही संबंध में
कनकित नहीं हाँ , तो और ककसी चीज के कारण-अकारण के संबंध में कनकित कैसे हो सकता हाँ ?
मैं वास्तव में कौन हाँ ? - यह एक ऐसा सवाल है कजसका सामना करना इधर आ कर मैंने छोड कदया है जो मैं
इस मंच पर हाँ , वह यहााँ से बाहर नहीं हाँ और जो बाहर हाँ ...खैर, इसमें आपकी क्या कदलचस्पी हो सकती है
कक मैं यहााँ से बाहर क्या हाँ ? िायद अपने बारे में इतना कह दे ना ही कािी है कक सडक के िुटपाथ पर
चलते आप अचानक कजस आदमी से टकरा जाते हैं , वह आदमी मैं हाँ । आप कसिट घूर कर मुझे दे ख लेते हैं -
इसके अलावा मुझसे कोई मतलब नहीं रखते कक मैं कहााँ रहता हाँ , क्या काम करता हाँ , ककस-ककससे कमलता
हाँ और ककन-ककन पररस्थथकतयों में जीता हाँ । आप मतलब नहीं रखते क्योंकक मैं भी आपसे मतलब नहीं
रखता, और टकराने के क्षण में आप मेरे कलए वही होते हैं जो मैं आपके कलए होता हाँ । इसकलए जहााँ इस
समय मैं खडा हाँ , वहााँ मेरी जगह आप भी हो सकते थे। दो टकरानेवाले व्यस्ि होने के नाते आपमें और
मुझमें, बहुत बडी समानता है । यही समानता आपमें और उसमें, उसमें और उस दू सरे में, उस दू सरे में और
मुझमें...बहरहाल इस गकणत की पहे ली में कुछ नहीं रखा है । बात इतनी है कक कवभाकजत हो कर मैं ककसी-न-
ककसी अंि में आपमें से हर-एक व्यस्ि हाँ और यही कारण है कक नाटक के बाहर हो या अंदर, मेरी कोई भी
एक कनकित भूकमका नहीं है ।
मैंने कहा था, यह नाटक भी मेरी ही तरह अकनकित है । उसका कारण भी यही है कक मैं इसमें हाँ और मेरे होने
से ही सब कुछ इसमें कनधाट ररत या अकनधाट ररत है । एक कविेष पररवार, उसकी कविेष पररस्थथकतयााँ ! पररवार
दू सरा होने से पररस्थथकतयााँ बदल जातीं, मैं वही रहता। इसी तरह सब कुछ कनधाट ररत करता। इस पररवार की
स्त्री के थथान पर कोई दू सरी स्त्री ककसी दू सरी तरह से मुझे झे लते - या वह स्त्री मेरी भूकमका ले लेती और मैं
उसकी भूकमका ले कर उसे झेलता। नाटक अंत तक किर भी इतना ही अकनकित बना रहता और यह कनणटय
करना इतना ही ककिन होता कक इसमें मुख्य भूकमका ककसकी थी - मेरी, उस स्त्री की, पररस्थथकतयों की, या
तीनों के बीच से उिते कुछ सवालों की।
वफर दशडकोों के सामने आ कर खडा हो िाता है। वसगार मुाँह में वलए पल-भर ऊपर की तरफ दे खता
रहता है। वफर ' हाँ ह ' के स्वर के साथ वसगार मुाँह से वनकाल कर उसकी राख झाडता है।
पर हो सकता है , मैं एक अकनकित नाटक में एक अकनकित पात्र होने की सिाई-भर पेि कर रहा हाँ । हो
सकता है , यह नाटक एक कनकित रूप ले सकता हो - ककन्ीं पात्रों को कनकाल दे ने से , दो-एक पात्र और जोड
दे ने से, कुछ भूकमकाएाँ बदल दे ने से , या पररस्थथकतयों में थोडा हे र-िेर कर दे ने से। हो सकता है , आप पूरा
दे खने के बाद, या उससे पहले ही, कुछ सुझाव दे सकें इस संबंध में। इस अकनकित पात्र से आपकी भेंट इस
बीच कई बार होगी...।
हलके अवभवादन के रूप में वसर वहलाता है विसके साथ ही उसकी आकृवत धीरे -धीरे धुाँधला कर
अाँधेरे में गुम हो िाती है। उसके बाद कमरे के अलग-अलग कोने एक-एक करके आलोवकत होते हैं
और एक आलोक व्यवस्था में वमल िाते हैं। कमरा खाली है। वतपाई पर खुला हुआ हाई स्कूल का
बैग पडा है विसमें आधी कावपयााँ और वकताबें बाहर वबखरी हैं। सोफे पर दो-एक पुराने मैगिीन ,
एक कैंची और कुछ कटी-अधकटी तस्वीरें रखी हैं। एक कुरसी की पीठ पर उतरा हुआ पािामा झल ू
रहा है। स्त्री कई-कुछ साँभाले बाहर से आती हैं। कई-कुछ में कुछ घर का है , कुछ दफ्तर का , कुछ
अपना। चेहरे पर वदन-भर के काम की थकान है और इतनी चीिोों के साथ चल कर आने की
उलझन। आ कर सामान कुरसी पर रखती हुई वह पूरे कमरे पर एक निर डाल लेती है।
स्त्री: (थकान कनकालनेवाले स्वर में) ओह् होह् होह् होह् ! (कुछ हताि भाव से ) किर घर में कोई नहीं।
(अं दर के दरवाजे की तरि दे ख कर) ककन्नी !...होगी ही नहीं, जवाब कहााँ से दे ? (कतपाई पर पडे बैग को
दे ख कर) यह हाल है इसका! (बैग की एक ककताब उिा कर) किर िाड लाई एक और ककताब ! जरा िरम
नहीं कक रोज-रोज कहााँ से पै से आ सकते हैं नयी ककताबों के कलए ! (सोिे के पास आ कर) और अिोक
बाबू यह कमाई करते रहे हैं कदन-भर ! (तस्वीर उिा कर दे खती) एकलजाबेथ टे लर...आिरेबनट ...िले मैक्लेन !
पािामे को मरे िानवर की तरह उठा कर दे खती है और कोने में फेंकने को हो कर वफर एक झटके
के साथ उसे तहाने लगती है।
पािामे कबडड में रखने से पहले डाइवनोंग टे बल पर पडे चाय के सामान को दे ख कर और खीि िाती
है , पािामे को कुरसी पर पटक दे ती है और प्यावलयााँ वैगरह टर े में रखने लगती है।
इतना तक नहीं कक चाय पी है , तो बरतन रसोईघर में छोड आएाँ । मैं ही आ कर उिाऊाँ, तो उिाऊाँ...।
टर े उठा कर अहाते के दरवािे की तरफ बढती ही है वक पुरुष एक उधर से आ िाता है। स्त्री वठठक
कर सीधे उसकी आाँ खोों में दे खती है , पर वह उससे आाँ खें बचाता पास से वनकल कर थोडा आगे आ
िाता है।
स्त्री : (उसका पाजामा हाथ में ले कर) पता नहीं यह क्या तरीका है इस घर का ? रोज आने पर पचास चीजें
यहााँ -वहााँ कबखरी कमलती हैं ।
स्त्री : (दू सरे पाजामे को झाड कर किर से तहाती हुई) अब क्या दे दूाँ ! पहले खुद भी तो दे ख सकते थे।
गुस्से में कबडड खोल कर पािामे को िैसे उसमें कैद कर दे ती है। पुरुष एक फालतू-सा इधर-उधर
दे खता है , वफर एक कुरसी की पीठ पर हाथ रख लेता है।
अहाते के दरवािे से हो कर पीछे रसोईघर में चली िाती है। पुरुष एक लोंबी 'हाँ ' के साथ कुरसी को
झुलाने लगता है। स्त्री पल्ले से हाथ पोोंछती रसोईघर से वापस आती है।
स्त्री : (और चीजों को समेटने में व्यस्त) मुझे क्या पता ककतनी दे र के कलए कनकले थे।...वह आज किर
आएगा अभी थोडी दे र में। तब तो घर पर रहोगे तु म ?
स्त्री : उसे ककसी के यहााँ के खाना खाने आना है इधर। पााँ च कमनट के कलए यहााँ भी आएगा।
पुरुष एक वफर उसी तरह 'हाँ ' के साथ कुरसी को झुलाने लगता है।
: मुझे यह आदत अच्छी नहीं लगती तुम्हारी। ककतनी बार कह चुकी हाँ ।
स्त्री : तुम ज्यादा जानते हो ? काम तो मैं ही करती हाँ उसके मातहत।
स्त्री : लोगों को ईर्ष्ाट है मुझसे , कक दो बार मेरे यहााँ आ चुका है । आज तीसरी बार आएगा।
कैंची , मैगिीन और तस्वीरें समेट कर पढने की मेि की दराि में रख दे ती है। वकताबें बैग में बोंद
करके उसे एक तरफ सीधा खडा कर दे ती है।
पुरुष एक : मैंने कहा है बुरी बात है ? मैं तो बस्ि कहता हाँ , अच्छी बात है ।
स्त्री : तुम जो कहते हो, उसका सब मतलब समझ में आता है मेरी।
स्त्री : मेरे कलए रुकने की जरूरत नहीं। (यह दे खती कक कमरे में और कुछ तो करने को िेष नहीं) तु म्हें
और प्याली चाकहए चाय की ? मैं बना रही हाँ अपने कलए।
: सुनो।
पुरुष एक : पर होगी भी ?
चली िाती है। पुरुष एक वसर वहला कर इधर-उधर दे खता है वक अब वह अपने को कैसे व्यस्त रख
सकता है। वफर िैसे याद हो आने से शाम का अखबार िेब से वनकाल कर खोल लेता है। हर सुखी
पढने के साथ उसके चेहरे का भाव और तरह का हो िाता है - उत्साहपूणड , व्योंग्यपूणड, तनाव-भरा या
पस्त। साथ मुाँह से 'बहुत अच्छे ! 'मार वदया, 'लो' और 'अब'? िैसे शब्द वनकल पडते हैं। स्त्री रसोईघर
से लौट कर आती है।
पुरुष एक : (अखबार हटा कर स्त्री को दे खता) हडतालें तो आजकल सभी जगह हो रही हैं । इसमें दे खो...।
स्त्री : (उस ओर से कवरि) तुम्हें सचमुच कहीं जाना है क्या? कहााँ जाने की बात कर रहे थे तुम?
पुरुष एक : किलहाल उसे दे ने के कलए पैसा नहीं है , तो कम-से-कम मुाँह तो उसे कदखाते रहना चाकहए।
पुरुष एक : वह छह महीने बाहर रह कर आया है । हो सकता है , कोईनया कारोबार चलाने की सोच रहा हो
कजसमें मेरे कलए...
स्त्री : तुम्हारे कलए तो पता नहीं क्या-क्या करे गा वह कजंदगी में! पहले ही कुछ कम नहीं ककया है ।
: इतनी गदट भरी रहती है हर वि इस घर में ! पता नहीं कहााँ से चली आती है !
पुरुष एक : तुम नाहक कोसती रहती हो उस आदमी को। उसने तो अपनी तरि से हमेिा मेरी मदद ही
की है !
स्त्री : न करता मदद, तो उतना नुकसान तो न होता कजतना उसके मदद करने से हुआ है ।
पुरुष एक : (कुढ़ कर सोिे पर बैिता) तो नहीं जाता मै ! अपने अकेले के कलए जाना है मुझे! अब तक
तकदीर ने साथ नहीं कदया तो इसका यह मतलब तो नहीं कक...
: (बडबडाती) पहली बार प्रे स में जो हुआ सो हुआ। दू सरी बार किर क्या हो गया ? वही पैसा जुनेजा ने
लगाया, वही तुमने गाया। एक ही िैक्टरी लगी, एक ही जगह जमा-खचट हुआ। किर भी तकदीर ने उसका
साथ दे कदया, तुम्हारा नहीं कदया।
पुरुष एक : (ककसी तरह गुस्सा कनगलता) मेरी जगह तु म कहस्सेदार होती न िैक्टरी की, तो तुम्हें पता चल
जाता कक...
पुरुष एक : (बडबडाता) उन कदनों पैसा कलया था िैक्टरी से ! जो कुछ लगाया था, यह सारा तो िुरू में ही
कनकाल-कनकाल कर खा कलया और....
स्त्री : ककसने खा कलया ? मैंने ?
पुरुष एक : नहीं, मैंने ! पता है ककतना खचट था उन कदनों इस घर का, चार सौ रुपए महीने का मकान था।
टै स्ियों में आना-जाना होता था। ककस्तों पर कफ्रज खरीदा गया था। लडके-लडकी की कान्वेंट की िीसें
जाती थीं... ।
स्त्री : िराब आती थी। दावतें उडती थीं। उन सब पर पै सा तो खचट होता ही था।
स्त्री : तुम लड भी सकते हो इस वि, ताकक उसी बहाने चले जाओ घर से।....वह आदमी आएगा, तो जाने
क्या सोचेगा कक क्यों हर बार इसके आदमी को कोई-न-कोई काम हो जाता है बाहर। िायद समझे कक मैं ही
जान-बूझ कर भेज दे ती हाँ ।
पुरुष एक : वह मुझसे तय करके आता नहीं कक मैं उसके कलए मौजूद रहा करू
ाँ घर पर।
स्त्री : कह दू ाँ गी, आगे से तय करके आया करे तु मसे। तु म इतने कबजी आदमी जो हो। पता नहीं कब ककस
बोिट की मीकटं ग में जाना पड जाए।
स्त्री : अब जुनेजा आ गया है न लौट कर, तो रहा करना किर तीन-तीन कदन घर से गायब।
पुरुष एक : (पूरी िस्ि समेट कर सामना करता) तुम किर वही बात उिाना चाहती हो ? अगर रहा भी हाँ
कभी तीन कदन घर से बाहर, तो आस्खर ककस वजह से ?
स्त्री : वजह का पता तो तु म्हें पता होगा या तुम्हारे लडके को। वह भी तीन-तीन कदन कदखाई नहीं दे ता घर
पर।
स्त्री : नहीं, उसका मुकाबला तुमसे करती हाँ । कजस तरह तुमने ख्वार की अपनी कजंदगी, उसी तरह वह
भी...
पुरुष एक : और लडकी तुम्हारी? उसने अपनी कजंदगी ख्वार करने की सीख ककससे ली है ? (अपने जाने
भारी पडता) मैंने तो कभी ककसी के साथ घर से भागने की बात नहीं सोची थी।
स्त्री : (एकटक उसकी आाँ खों में दे खती) तु म कहना क्या चाहते हो?
पुरुष एक : कहना क्या है ...जा कर चाय बना लो, पानी हो गया होगा।
सोफे पर पर बैठ कर वफर अखबार खोल लेता है , पर ध्यान पढने में लगा नही पाता ।
स्त्री : मुझे भी पता है , पानी हो गया होगा । मैं जब भी ककसी को बुलाती हाँ यहााँ , मुझे पता होता है तुम यही
सब बातें करोगे।
पुरुष एक : (जैसे अखबार में कुछ पढ़ता हुआ) हाँ -हाँ -हाँ -हाँ ।
स्त्री : वैसे हजार बार कहोगे लडके की नौकरी के कलए ककसी से बात क्यों नही करती। और जब मैं मौका
कनकलती हाँ उसके कलए तो...
स्त्री : िुक्र नहीं मानते कक इतना बडा आदमी, कसिट एक बार कहने -भर से...
पुरुष-एक : मैं नहीं िुक्र मनाता ? जब-जब ककसी नए आदमी का आना- जाना िु रू होता है यहााँ , मैं हमेिा
िुक्र मानता हाँ । पहले जगमोहन आया करता था। किर मनोज आने लगा था...।
स्त्री : (स्थथर दृकष्ट से उसे दे खती) और क्या-क्या बात रह गई है कहने को बाकी ? वह भी कह िालो जल्दी
से।
पुरुष एक : क्यों...जगमोहन का नाम मेरी जबान पर आया नहीं कक तुम्हारे हवास गुम होने िुरू हुए ?
स्त्री : (गहरी कवतृष्णा के साथ) कजतने नािुक्रे आदमी तु म हो, उससे तो मन करता है कक आज ही मैं...
कहती हुई अहाते के दरवािे की तरफ मुडती ही है वक बाहर से बडी लडकी की आवाि सुनाई दे ती
है।
स्त्री रुक कर उस तरफ दे खती है। चेहरा कुछ फीका पड िाता है।
पुरुष एक वकसी अनचाही ल्कस्थवत का सामना करने की तरह बाहर के दरवािे की तरफ बढता है।
स्त्री : पचास पैसे है न तुम्हारी जेब में ? होगे तो सही दू ध के पैसों से बचे हुए।
पुरुष एक : मैंने कसिट पााँ च पैसे खचट ककए हैं अपने पर... इस अखबार के।
बाहर वनकल िाता है। स्त्री पल-भर उधर दे खती रह कर अहाते के दरवािे से रसोईघर में चली
िाती है। बडी लडकी बाहर से आती है। पुरुष एक उसके पीछे -पीछे आ कर इस तरह कमरे में निर
दौडाता है िैसे स्त्री के उस कमरे में न होने से अपने को गलत िगह पर अकेला पा रहा हो।
पुरुष एक : (अपने अटपने पन को ढाँ क पाने में असमथट , बडी लडकी से ) बैि तू।
स्त्री दोनोों हाथोों में चाय की प्यावलयााँ वलए अहाते के दरवािे से आती है।
पुरुष एक स्त्री को हाथोों के इशारे से बतलाने की कोवशश करता है वक वह अपने साथ सामान कुछ
भी नही ों लाई।
बडी लडकी : अभी नहीं, पहले हाथ-मुाँह धो लूाँ गुसलखाने में जा कर। सारा कजस्म इस तरह कचपकचपा रहा है
कक बस....
बडी लडकी : तुम्हें ऐसे ही लग रहा। मैं अभी आती हाँ हाथ-मुाँह धो कर।
अहाते के दरवािे से चली िाती है। पुरुष एक अथडपूणड दृवि से स्त्री को दे खता उसके पास िाता है।
पुरुष एक : तुम हमेिा बात को ढाँ कने की कोकिि क्यों करती हो ? एक बार इससे पूछती क्यों नहीं खुल
कर ?
: (पल भर उत्तर की प्रतीक्षा करने के बाद) मेरी उस आदमी के बारे में कभी अच्छी राय नहीं थी। तुम्हीं ने
हवा बााँ ध रखी थी कक मनोज यह है , वह है - जाने क्या है ! तुम्हारी िह से उसका घर में आना-जाना न होता,
तो क्या यह नौबत आती कक लडकी उसके साथ जा कर बाद में इस तरह...?
स्त्री : (तं ग पड कर) तो खु द ही क्यों नहीं पूछ लेते उससे जो पूछना चाहते हो ?
स्त्री : तुम्हारा कुछ भी करना ककसी-न-ककसी वजह से गलत होता है । मुझे पता नहीं है ?
स्त्री : (उिती हुई) तो पता नहीं और क्या बबाट दी हुई होती। जो दो रोटी आज कमल जाती है मेरी नौकरी से,
वह भी नहीं कमल पाती। लडकी भी घर में रह कर ही बुढ़ा जाती, पर यह न सोचा होता ककसी ने कक....
पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरि संकेत करके) वह आ रही है ।
िल्दी-िल्दी अपनी प्याली खाली करके स्त्री को दे दे ती है। बडी लडकी पहले से काफी साँभली हुई
वापस आती है।
बडी लडकी : (आती हुई) िं िे पानी के छींटे मुाँह पर मारे , तो कुछ होि आया। आजकल के कदनों में तो
बस.... (उन दोनों को स्थथर दृकष्ट से अपनी ओर दे खते पा कर) क्या बात है , ममा? आप लोग इस तरह क्यों
दे ख रहे हैं मुझे ?
अहाते के दरवािे से चली िाती है। पुरुष एक भी आाँ खें हटा कर व्यस्त होने का बहाना खोिता है।
िैसे अपने को ल्कस्थवत से बाहर रखने के वलए थोडा परे चला िाता है।
बडी लडकी : वे कहते है कक तुम बतलाओगी और तु म कहती हो उन्ीं से क्यों नहीं पूछती !
स्त्री : तेरे िै िी तुमसे यह जानना चाहते हैं कक...
पुरुष एक : (बीच में ही) अगर तुम अपनी तरि से नहीं जानना चाहतीं तो रहने दो।
स्त्री : बात कसिट इतनी है कक कजस तरह से तू आजकल आती है वहााँ से , उससे इन्ें कहीं लगता है कक...
स्त्री : (बडी लडकी से ) मैं तु मसे एक सीधा सवाल पूछ सकती हाँ ?
बडी लडकी : (तुनक कर) तो जवाब क्या तभी होता है अगर मैं कहती कक मैं खुि नहीं हाँ , बहुत दु खी हाँ ?
बडी लडकी : मेरे चेहरे से क्या झलकता है ? कक मुझे तपेकदक हो गया है ? मैं घुल-घुल कर मरी जा रही हाँ ?
पुरुष एक : (कुढ़कर लौटता) तेरी मााँ ने तुझसे पूछा है , तू उसी से बात कर। मैं इस मारे कभी पडता ही नहीं
इन चीजों में।
सोफे पर िा कर अखबार खोल लेता है। पर पल-भर बाद ध्यान हो आने से वक वह उसने उलटा
पकड रखा है , सीधा कर लेता है।
स्त्री : (बडी लडकी से ) अच्छा, छोड अब इस बात को। आगे से यह सवाल मैं नहीं पूछूाँगी तुझसे।
बडी लडकी : पूछने में रखा भी क्या है , ममा ! कजंदगी ककसी तरह कटती ही चलती है हर आदमी की।
पुरुष एक : मैं क्या कह रहा हाँ ? चुप ही बैिा हाँ यहााँ । (अखबार में पढ़ता) नाले का बााँ ध पूरा करने के कलए
बारह साल के लडके की बकल (अखबार से बाहर) आप चाहे जो कह ले, मेरे मुाँह से एक लफ्ज भी न कनकले।
(किर अखबार में से ) उदयपुर में मड्ढा गााँ व में बााँ ध के िे केदार का अमानुकषक कृत्य। (अखबार से बाहर)
हद होती है हर चीज की ।
स्त्री बडी लडकी के कोंधे पर हाथ रखे उसे पढने की मेि के पास ले िाती है।
स्त्री : तो ?
स्त्री : जैसे ?
बडी लडकी : मेरा मतलब है ...कक िादी से पहले मुझे लगता था कक मनोज को बहुत अच्छी तरह जानती हाँ ।
पर अब आ कर...अब आ कर लगाने लगा है कक वह जानना कबलकुल जानना नहीं था।
स्त्री : (बात की गहराई तक जाने की तरह) हाँ !... तो क्या उसके चररत्र में कुछ ऐसा है जो... ?
बडी लडकी : नहीं। उसके चररत्र में ऐसा कुछ नहीं है । इस कलहाज से बहुत साि आदमी है वह।
स्त्री : तो किर क्या उसके स्वभाव में कोई ऐसी बात है कजससे ...?
बडी लडकी : नहीं स्वभाव उसका हर आदमी जैसा है , बस्ि आम आदमी से ज्यादा खुिकदल कहना
चाकहए उसे।
बडी लडकी : यही तो मैं भी नहीं समझ पाती। पता नहीं कहााँ पर क्या है जो गलत है !
स्त्री : सेहत ?
पुरुष एक : (कबना उधर दे खे) सब-कुछ अच्छा-ही-अच्छा है किर तो...। किकायत ककस बात की है ?
स्त्री : (पुरुष एक से ) तु म बात समझने भी दोगे ? (बडी लडकी से) जब इनमें से ककसी बात की किकायत
नहीं है तुझे, तब या तो कोई बहुत खास वजह होनी चाकहए, या...
बडी लडकी : या ?
पुरुष एक : (कनरािा भाव से कसर कहला कर , मुाँह किर दू सरी तरि करता) य ह वजह बताई है इसने ...हवा!
स्त्री : (बडी लडकी के चेहरे को आाँ खों से टटोलती) मैं ते रा मतलब नहीं समझी ?
बडी लडकी : (उिती हुई) मैं िायद समझा भी नहीं सकती (अस्थथर भाव से कुछ कदम चलती) ककसी
दू सरे को तो क्या, अपने को भी नहीं समझा सकती। (सहसा रुक कर) ममा, ऐसा भी होता है क्या कक...
स्त्री : कक ?
बडी लडकी : कक दो आदमी कजतना ज्यादा साथ रहें , एक हवा में सााँ स लें, उतना ही ज्यादा अपने को एक-
दू सरे से अजनबी महसूस करें ?
स्त्री : (पल-भर उसे दे खती रह कर) तू बैि कर क्यों नहीं बात करती ?
स्त्री : तूने जो बात कही है , वह अगर सच है , तो उसके पीछे क्या कोई-न-कोई ऐसी अडचन नहीं है जो...
बडी लडकी : पर कौन-सी अडचन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय की प्याली, या उसके दफ्तर से लौटने
में आधा घंटे की दे री-ये छोटी-छोटी बातें अडचन नहीं होतीं, मगर अडचन बन जाती हैं । एक गुबार-सा है जो
हर वि भरा रहता है और मैं इं तजार में रहती हाँ जैसे कक कब कोई बहाना कमले कजससे उसे बाहर कनकाल
लूाँ। और आस्खर... ?
: आस्खर वह सीमा आ जाती है जहााँ पहुाँ च कर वह कनढाल हो जाता है । जहााँ पहुाँ च कर वह कनढाल हो जाता
है । ऐसे में वह एक बात कहता है ।
बडी लडकी : कक मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई हाँ जो ककसी भी स्थथकत में मुझे
स्वाभाकवक नहीं रहने दे तीं।
स्त्री : (जैसे ककसी ने उसे तमाचा मार कदया हो) क्या चीज ?
बडी लडकी : मैं पूछती हाँ क्या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है ।
स्त्री : वह क्या ?
बडी लडकी : कक इसका पता मुझे अपने अंदर से , या इस घर के अंदर से चल सकता है । वह कुछ नहीं
बता सकता।
स्त्री : नहीं होने पाएाँ गे ग्यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।
पुरुष एक : (एकटक उसे दे खता , काट के साथ) नहीं होने पाएाँ गे सचमुच...? कािी अच्छा आदमी है
जगमोहन ! और किर कदल्ली में उसका टर ां सिर भी हो गया है । कमला था उस कदन कनॉट प्लेस में। कह रहा
था, आएगा ककसी कदन कमलने।
स्त्री : खूब करो तारीि...और भी कजस-कजस की हो सके तुमसे। (बडी लडकी से ) मनोज आज जो तुमसे
कहता है यह सब, पहले जब खुद यहााँ आता रहा है , रात-कदन यहीं रहता रहा है , तब क्या उसे पता नहीं चला
कक...
स्त्री : कजससे ?
बडी लडकी : कजससे उसके मन को कडी-से -कडी चोट पहुाँ चा सकूाँ। उसे मेरे लंबे बाल अच्छे लगते हैं ।
इसकलए सोचती हाँ , इन्ें जा कर कटा आऊाँ। वह मेरे नौकरी करने के हक में नहीं है । इसकलए चाहती हाँ
कहीं भी, कोई भी छोटी-मोटी नौकरी कर लूाँ। कुछ भी ऐसी बात कजससे एक बार तो वह अंदर से वह
कतलकमला उिे । पर कर मैं कुछ भी नहीं पाती और जब नहीं कर पाती, तो खीज कर...
स्री : तो ?
बडी लडकी : कई-कई कदनों के कलए अपने को उससे काट लेती हाँ । पर धीरे -धीरे हर चीज किर उसी ढरे
पर लौट आती है । सब-कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक कक हम... जब तक कक हम नए कसरे से उसी
खोह में नहीं पहुाँ च जाते। मैं यहााँ आती हाँ ... यहााँ आती हाँ तो कसिट इसकलए कक...
बडी लडकी : मेरा अपना घर !...हााँ । और मैं आती हाँ कक एक बार किर खोजने
की कोकिि कर दे खूाँ कक क्या चीज है वह इस घर में कजसे ले कर बार-बार मुझे हीन ककया जाता है । (लगभग
टू टे स्वर में) तुम बता सकती हो ममा, कक क्या चीज है वह? और कहााँ है वह ? इस घर के स्खडककयों-
दरवाजों में ? छत में? दीवारों में ? तुममें ? िै िी में ? ककन्नी में अिोक में ? कहााँ कछपी है वह मनहस चीज जो
वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई हाँ ?
(स्त्री की दोनों बााँ हें हाथ में ले कर) बताओ ममा, क्या है ? कहााँ है वह इस घर में ?
काफी लोंबा वक्फा। कुछ दे र बडी लडकी के हाथ स्त्री की बााँहोों पर रुके रहते हैं। और दोनोों की
आाँ खें वमली रहती हैं। धीरे -धीरे पुरुष एक की गरदन उनकी तरफ मुडती है। तभी स्त्री आवहस्ता से
बडी लडकी के हाथ अपनी बााँहोों से हटा दे ती है। उसकी आाँ खें पुरुष एक से वमलती हैं और वह िैसे
उससे कुछ कहने के वलए कुछ कदम उसकी तरफ बढाती है। बडी लडकी िैसे अब भी अपने
सवाल का िवाब चाहती , अपनी िगह पर रुकी उन दोनोों को दे खती रहती है। पुरुष एक स्त्री को
अपनी ओर आते दे ख आाँ खें उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमोंिस में रहने के बाद
अनिाने में ही अखबार को गोल करके दोनोों हाथो से उसकी रस्सी बटने लगता है। स्त्री आधे रास्ते
में ही कुछ कहने का ववचार छोड कर अपने को सहेिती है। वफर बडी लडकी के पास वापस िा कर
हलके से उसके कोंधे को छूती है। बडी लडकी पल-भर आाँ खें मूाँदे रह कर अपने आवेग दबाने का
प्रयत्न करती है , वफर स्त्री का हाथ कोंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा वलए उस पर बैठ िाती
है। स्त्री यह समझ न आने से वक अब उसे क्या करना चावहए, पल-भर दु ववधा में हाथ उलझाए रहती
है। उसकी आाँ खें वफर एक बार पुरुष एक से वमल िाती हैं। और वह िैसे आाँ खोों से ही उसका
वतरस्कार कर अपने को एक मोढे की ल्कस्थवत बदलने में व्यस्त कर लेती है। पुरुष एक अपनी िगह से
उठ पडता है। अखबार की रस्सी अपने हाथोों में दे ख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ दे र
अवनवित खडा रहने के बाद वफर से बैठ कर उस रस्सी के टु कडे करने लगता है। तभी छोटी लडकी
बाहर के दरवािे से आती है और उन तीनोों को उस तरह दे ख कर अचानक वठठक िाती है।
छोटी लडकी : बताओ चलता है कुछ पता ? स्कूल से आई हाँ , तो तुम भी हो िै िी भी हैं , कबन्न-दी भी हैं - पर
सबलोग ऐसे चुप हैं जैसे...
स्त्री : (स्त्री उसकी तरि आती है ) तू अपना बता कक आते ही चली कहााँ गई थी ?
छोटी लडकी : कहीं भी चली गई थी। घर पर था कोई कजसके पास बैिती यहााँ ? दू ध गरम हुआ है मेरा ?
छोटी लडकी : अभी हुआ जाता है ! स्कूल में भूख लगे तो कोई पैसा नहीं होता पास
स्त्री : कहा है न तुमसे , अभी गरम हुआ जाता है । (पुरुष एक से ) तुम उि रहे हो या मैं जाऊाँ ?
पुरुष एक अखबार के टु कडे को दोनोों हाथोों में समेटे उठ खडा होता है।
पुरुष एक : (कोई भी कडवी चीज कनगलने की तरह) जा रहा हाँ मैं ही...।
अखबार के टु कडे पर इस तरह निर डाल लेता है िैसे वक वह कोई महत्वपूणड दस्तावेि था विसे
टु कडे -टु कडे कर वदया है।
छोटी लडकी : रोज कहती हो, बाद में करना। आज भी मुझे रीलें ला कर न दीं, तो मैं स्कूल नहीं जाऊाँगी
कल से। कमस ने सारी क्लास के सामने मुझसे कहा कक...
छोटी लडकी : तो उिा लो न मुझे स्कूल से। जैसे िोकी मारा-मारा किरता है सारा कदन, मैं भी किरती रहा
करू
ाँ गी।
बडी लडकी इस बीच काफी अल्कस्थर महसूस करती छोटी लडकी को दे खती है।
बडी लडकी : (अपने को रोक पाने में असमथट ) तुझे तमीज से बात करना नहीं आता ? बडा भाई है तेरा।
छोटी लडकी : तुम यहााँ थीं, तो क्या कुछ कहा करती थीं उसके बारे में? तुम्हारा भी तो बडा भाई है । चाहे
एक ही साल बडा है , है तो बडा ही।
पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरि चलता) कहना क्या है ? कहता ही नहीं कभी । मैं दू ध गरम कर
रहा हाँ इसका ।
छोटी लडकी : कल मुझे रीलों का किब्बा जरूर चाकहए और कमस बैनजी ने सब लडककयों से कहा है आज
कक िाऊंिसट -िे पी. टी. के कलए तीन-तीन नए ककट...
स्त्री : ककतने ?
छोटी लडकी : तीन-तीन। सब लडककयों को बनाने हैं । और तुमने कहा था स्क्लप और मोजे इस हफ्ते
जरूर आ जाएाँ गे, आ गए हैं ? ककतनी िरम आती है मुझे िटे मोजे पहन कर स्कूल जाते !
पल-भर की औघड खामोशी।
स्त्री : (जैसे अपने को उस प्रकरण से बचाने की कोकिि में ) अच्छा, दे ख... स्कूल से आ कर तू अपना बैग
यहााँ खुला छोड गई थी ! मैंने आ कर बंद ककया है । पहले इसे अंदर रख कर आ।
स्त्री : सुन ली है ।
छोटी लडकी : तो जवाब क्यों नहीं कदया कुछ? (कोने से बैग उिा कर झटके से अं दर को चलती) मै कर
रही हाँ स्क्लप और मोजों की बात और कह रही हैं बैग रख कर आ अंदर ।
बडी लडकी : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह दें इससे , तो रासें इस तरह कस दी
जाती थीं कक बस !
बडी लडकी : मैंने कहा कक...(सहसा स्त्री के भाव के प्रकत सचेत हो कर) तुम सोच रही थीं कुछ ?
स्त्री : नहीं...सोच नहीं रही थी (इधर-उधर नजर िालती) दे ख रही थी कक और कुछ समेटने को तो नहीं है ।
अभी कोई आनेवाला है बाहर से और....।
वगलास डायवनोंग टे बल पर छोड कर वबना वकसी की तरफ दे खे वापस चला िाता है। स्त्री कडी
निर से उसे िाते दे खती है। बडी लडकी स्त्री के पास िाती है।
स्त्री की आाँ खें घूम कर बडी लडकी के चेहरे पर अल्कस्थर होती हैं। कह कुछ नही ों पाती।
वहााँ से हट कर कबडड के पास चली िाती है और उसे खोल कर अोंदर से कोई चीि ढू ाँ ढने लगती है ।
स्त्री कोई उत्तर न दे कर कबडड में से एक मेिपोश वनकाल लेती और कबडड बोंद कर दे ती है।
: तुम तो आदी हो रोज-रोज ऐसी बातें सुनने की। कब तक इन्ें मन पर लाती रहोगी ?
स्त्री उसका वाक्य पूरा होने तक रुकी रहती है वफर िाकर वतपाई का मेिपोश बदलने लगती है।
स्त्री के बदलते भाव को दे ख कर बीच में ही रुक िाती है। स्त्री पुराने मेिपोश को हाथोों में वलए एक
निर उसे दे खती है , वफर उमडते आवेग को रोकने की कोवशश में चेहरा मेिपोश से ढाँ क लेती है।
स्त्री : (रुलाई कलए स्वर में) अब मुझसे नहीं होता, कबन्नी। अब मुझसे नहीं साँभलता।
पुरुष एक अहाते के दरवािे से आता है-दो िले टोस्ट एक प्लेट में वलए। स्त्री के शब्द उसके कानो में
पडते हैं , पर वह िानबूझ कर अपने चेहरे से कोई प्रवतविया व्यक्त नही ों होने दे ता। प्लेट दू ध के
वगलास के पास छोड कर वकताबोों के शेल्फ की तरफ चला िाता है और उसके वनचले वहस्से में रखी
फाइलोों में से िैसे कोई खास फाइल ढू ाँ ढने लगता है। बडी लडकी बात करने से पहले पल भर को
वक्फा ले कर उसे दे खती है।
बडी लडकी : (कविेष रूप से उसी को सुनाती , स्त्री से ) जो तुमसे नहीं साँभलता, वह और ककससे साँभल
सकता है इस घर में... जान सकती हाँ ?
पुरुष एक िैसे फाइल की धूल झाडने के वलए उसे दो-एक िोर के हाथ लगा कर पीट दे ता है।
: जब से बडी हुई हाँ तभी से दे ख रही हाँ । तुम सब-कुछ सह कर भी रात-कदन अपने को इस घर के कलए
हलाक करती रही हो और...
: (एकाएक पुरुष एक की थप-थप से उतावली पड कर) तुम्हें सारे घर में यह धूल इसी वि िैलानी है क्या
?
िैसे-तैसे फाइलोों को उसकी िगह में वापस ठूाँसने लगता है। छोटी लडकी पााँव पटकती अोंदर से
आती है।
छोटी लडकी : पडा सो रहा था अब तक। मैंने जा कर जगा कदया, तो लगा मेरे बाल खींचने।
लडका अोंदर से आता है। लगता है , दो-तीन वदन से उसने शेव नही ों की।
लडका : (अपने चेहरे को छूता) फ्रेंचकट रखने की सोच रहा हाँ । कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?
छोटी लडकी : (उतावली पकड कर) मेरी बात सुनी नहीं ककसी ने। अंदर मेरे बाल खींच रहा था और बाहर
आ कर अपनी फ्रेंचकट बता रहा है ।
लडका : पूछो ।
लडका : यही तो मै तुमसे पू छना चाहता हाँ कक बारह साल की उम्र में यह लडकी... ?
स्त्री : तेरह साल की लडकी तेरह साल बडी होती है और तेरह साल
छोटी लडकी लडके की तरफ िबान वनकालती है। पुरुष एक फाइलोों को वकसी तरह समेट कर उठ
पडता है।
पुरुष एक : (अपनी तटथथता बनाए रखने में असमथट , आगे आता) कौन- सी ककताब ?
छोटी लडकी : झूि बोल रहा है । मैंने कोई ककताब नहीं ली इसकी।
टोस्टोों वाली प्लेट हाथ में वलए मेि पर बैठ िाती है।
छोटी लडकी : (कमजोर पड कर ढीिपन के साथ) तू तककए के नीचे रख कर सोए, तो भी नहीं। मैंने जरा
कनकाल कर दे ख दे ख-भर ली, तो...।
पुरुष एक : (हाथ बढ़ा कर) मैं दे ख सकता हाँ ?
लडका : (ककताब वापस बुिटट में रखता) नहीं...आपके दे खने की नहीं है । (स्त्री से) अब किर पूछो मुझसे
कक इसकी उम्र ककतने साल है ?
पुरुष : (ऊाँचे स्वर में ) िहरो (बारी-बारी से उन सबकी ओर दे खता) पहले मैं यह जान सकता हाँ यहााँ ककसी
से कक मेरी उम्र ककतने साल की है ?
कुछ पलोों का व्यवधान , विसमें वसफड छोटी लडकी की मुाँह और टााँगें चलती रहती हैं ।
पुरुष : (एक-एक िब्द पर जोर दे ता) मैं पूछ रहा हाँ कक मेरी उम्र ककतने साल की है ? ककतने साल है मेरी
उम्र ?
स्त्री : (उि रही स्थथकत के कलए तैयार हो कर) यह तुम्हें पूछ कर जानना है क्या ?
पुरुष एक : हााँ , पूछ कर ही जानना है आज। ककतने साल हो चुके हैं मुझे कजंदगी का भार ढोते ? उनमें से
ककतने साल बीते हैं मेरे पररवार की दे ख-रे ख करते ? और उस सबके बाद मैं आज पहुाँ चा कहााँ हाँ ? यहााँ कक
कजसे दे खो वही मुझसे उलटे ढं ग से बात करता है ? कजसे दे खो, वही मुझसे बदतमीजी से पेि आता है ?
लडका : (अपनी सिाई दे ने की कोकिि में ) मैंने तो कसिट इसकलए कहा था, िै िी, कक...
पुरुष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है । इसने इसकलए कहा था। उसने उसकलए कहा था।
मैं जानना चाहता हाँ कक मेरी क्या यही है कसयत है इस घर में कक जो जब कजस वजह से जो भी कह दे मैं
चुपचाप सुन कलया करू ाँ ? हर वि की दु त्कार, हर वि की कोंच, बस यही कमाई है यहााँ मेरी इतने सालों
की...
पुरुष एक : ककसे सुना सकता हाँ ? कोई है जो सुन सकता है ? कजन्ें सुनना चाकहए, वे सब तो एक रबड-
स्टैं प के कसवा कुछ समझते ही नहीं मुझे। कसिट जरूरत पडने पर इस स्टैं प का िप्पा लगा कर...
स्त्री : मुझे कसिट इतना पूछ लेने दे इनसे कक रबड-स्टैं प के माने क्या होते हैं ? एक अकधकार, एक रुतबा, एक
इज्जत यही न ?
लडका : (किर उसी कोकिि में) सुनो तो सही, ममा... !
स्त्री : (कबना ककसी तरि ध्यान कदए) यह सब कब-कब कमला है इनसे ककसी को भी इस घर में ? ककस माने
में ये कहते है कक....?
पुरुष-एक : ककसी माने में नहीं । मैं इस घर मे ाँ एक रबड-स्टैं प भी नहीं, कसिट एक रबड का टु कडा हाँ --बार-
बार कघसा जानेवाला रबड का टु कडा। इसके बाद क्या कोई मुझे वजह बता सकता है , एक भी ऐसी वजह,
कक क्यों मुझे रहना चाकहए इस घर में?
पुरुष एक : (कसर कहलाता) हााँ ...छोटी-सी बात ही तो है यह। अकधकार, रुतबा, इज्जत - यह सब बाहर के
लोगों से कमल सकता है इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है , या आगे बन सकता है , तो कसिट
बाहर के लोगों के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ कबगडता आया है और आगे कबगड-ही-कबगड सकता है ।
(लडके की तरि इिारा करके) यह आज तक बेकार क्यों घूम रहा है ? मेरी वजह से। (बडी लडकी की
तरि इिारा करके) यह कबना बताए एक रात घर से क्यों भाग गई थी ? मेरी वजह से। (स्त्री के कबलकुल
सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने सालों से क्यों चाहती रही हो कक... ?
पुरुष एक : अपनी कजंदगी चौपट करने का कजम्मेदार मैं हाँ । इन सबकी कजंदकगयााँ चौपट करने का कजम्मेदार
मैं हाँ । किर भी मैं इस घर से कचपका हाँ क्योंकक अंदर से मैं आराम-तलब हाँ , घरघुसरा हाँ , मेरी हकियों में जं ग
लगा है ।
स्त्री : मैं नहीं जानती, तुम सचमुच ऐसा महसूस करते हो या.. ?
पुरुष : सचमुच महसूस करता हाँ । मुझे पता है , मैं एक कीडा हाँ कजसने अंदर-ही-अं दर इस घर को खा कलया
है (बाहर के दरवाजे की तरि चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेिा के कलए भर गया है (दरवाजे के
पास रुक कर) और बचा भी क्या है कजसे खाने के कलए और रहता रहाँ यहााँ ?
चला िाता है। कुछ दे र के वलए सब लोग िड-से हो रहते हैं। वफर छोटी लडकी हाथ के टोस्ट को
मुाँह की ओर ले िाती है।
छोटी लडकी : नहीं आऊाँगी। (सहसा उि कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल खींचे जाते हैं । बाहर
आओ, तो ककटकपट-ककटकपट-ककटकपट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने
हैं ।
लडका : (उसके पीछे जाने को हो कर) मैं दे खता हाँ इसे कम-से -कम लडकी को तो मुझे...
दरवािे के पास पहुाँचता ही है वक पीछे से स्त्री आवाि दे कर उसे रोक लेती है।
स्त्री : सुन।
लडका : (ककसी तरह कनकल जाने की कोकिि में) पहले मैं जा कर इसे ...
स्त्री : (कािी सख्त स्वर में) पहले तू आ कर यहााँ ... बात सुन मेरी।
लडका वकसी िरूरी काम पर िाने से रोक वलए िाने की मुिा में लौट कर स्त्री के पास आ िाता है।
लडका : बताओ।
स्त्री : कम-से -कम तुझे इस वि कहीं नहीं जाना है । वह आज किर आनेवाला है थोडी दे र में और...
लडका : ('मुझे क्या, कोई आनेवाला है तो ?' की मुद्रा में ) कौन आनेवाला है ?
लडका : दो बार।
स्त्री : (बडी लडकी से ) दोनों बार के कलए बुलाया था मैंने उसे , आज भी इसी की खाकतर?
लडका : (कुछ तीखा पड कर) मेरी खाकतर ? मुझे क्या लेना-दे ना है उससे ?
बडी लडकी : ममा उसके जररए तेरी नौकरी के कलए कोकिि कर रही होंगी न... ।
लडका : मुझे नहीं चाकहए नौकरी। कम-से -कम उस आदमी के जररए हरकगज नहीं।
लडका : पााँ च हजार तनख्वाह है , पूरा दफ्तर साँभलता है , पर इतना होि नहीं है कक अपनी पतलून के
बटन...
स्त्री : अिोक !
लडका : तुम्हारा बॉस न होता, तो उस कदन मैं कान से पकड कर घर से कनकाल कदया होता। सोिे पे टााँ ग
पसारे आप सोच कुछ रहे हैं , जााँ घ खुजलाते दे ख ककसी तरि रहे है और बात मुझसे कर रहे हैं ... (नकल
उतारता) 'अच्छा, यह बतलाइए कक आपके राजनीकतक कवचार क्या हैं?' राजनीकतक कवचार हैं मेरी खुजली
और उसकी मरहम !
स्त्री : (अपना माथा सहला कर बडी लडकी से ) ये लोग हैं कजनके कलए मैं जानमारी करती हाँ रात-कदन।
लडका : पहले पााँ च सेकंि आदमी की आाँ खों में दे खता रहे गा किर होंिों के दाकहने कोनो से जरा-सा
मुस्कुराएगा। किर एक-एक लफ्ज को चबाता हुआ पूछेगा... (उसके स्वर में) 'आप क्या सोचते हैं , आजकल
युवा लोगों में इतनी अराजकता क्यों है ?' ढूाँढ़-ढूाँढ़ कर सरकारी कहं दी के लफ्ज लाता है -युवा लोगों में !
अराजकता !
स्त्री : तो किर ?
स्त्री : अपने-आपको।
लडका : मुझे क्या हुआ ?
लडका : (किर तीखा पकड कर) हर बात में खामखाह उनका कजक्र क्यों बीच में लाती हो ?
स्त्री : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नहीं की। एयर-कफ्रज में नौकरी कदलवाई थी, तो वहााँ से छह हफ्ते बाद छोड कर
चला आया। अब मैं नए कसरे से कोकिि करना चाहती हाँ तो...
लडका : पर क्यों करना चाहती हो ? मैंने कहा है तुमसे कोकिि करने के कलए ?
लडका : यह मैं नहीं कह सकता। कसिट इतना कह सकता हाँ कक कजस चीज में मेरी अंदर से कदलचस्पी नहीं
है ...।
स्त्री : तू िहर, मुझे बात करने दे । (लडके से ) कदलचस्पी तो तेरी कसिट तीन चीजों में है - कदन-भर ऊाँघने में,
तस्वीरे काटने में और...घर की यह चीज वह चीज ले जा कर....
बडी लडकी : (उसे बोलने न दे ने के कलए) दे ख अिोक, ममा के यह सब कहने का मतलब कसिट इतना है
कक...
लडका : मैं नहीं जानता मतलब ? तू चली गई है यहााँ से , मैं तो अभी यहीं रहता हाँ ।
बडी लडकी : (कझडकने के स्वर में) कैसी बात कर रही हो, ममा !
स्त्री : कैसी बात कर रही हाँ ? यहााँ पर सब लोग समझते क्या हैं मुझे ? एक मिीन, जोकक सबके कलए आटा
पीस कर रात को कदन और कदन को रात करती रहती है ? मगर ककसी के मन में जरा- सा भी खयाल नहीं है
इस चीज के कलए कक कैसे मैं.. ।
पुरुष दो अभ्यस्त मुिा में उनके अवभवादन का उत्तर दे ता अोंदर आ िाता है।
पुरुष दो : अच्छा-अच्छा यही है वह लडकी। तुम चचाट कर रही थीं इसकी। इसका ऑपरे िन हुआ था न
कपछले साल...न-न-न न। वह तो कमसेज माथुर की लडकी का ? नहीं िायद...पर हुआ था ककसी की लडकी
का।
सोफे की तरफ बढते हुए पुरुष दो की आाँ खें लडके से वमल िाती हैं। लडका चलते ढों ग से उसे हाथ
िोड दे ता है। पुरुष दो वफर उसी अभ्यस्त ढों ग से उत्तर दे ता है।
पुरुष दो : (बैिता हुआ) इतने लोगों से कमलना-जुलना होता है कक...(अपनी घडी दे ख कर) पााँ च कमनट हैं
सात में। उनका अनुरोध था, सात तक अवश्य पहुाँ च जाऊाँ। कई लोगों को बुला रखा है उन्ोंने - कविेष रूप
से कमलने के कलए (बडी लडकी को ध्यान से दे खता, स्त्री से ) तुमने बताया था कुछ इसके कवषय में। ककस
कॉलेज में है यह?
पुरुष दो : हााँ -हााँ -हााँ ...बताया था तुमने। (बडी लडकी से ) बैिो न। (स्त्री से ) बैिो तुम भी।
स्त्री सोफे के पास कुरसी पर बैठ िाती है। बडी लडकी कुछ दु ववधा में खडी रहती है।
बडी लडकी : ये जल्दी चले जाएाँ गे, सोच रही थी चाय का पानी... ।
पुरुष दो : नहीं-नहीं, चाये -वाय नहीं इस समय। वैसे भी बहुत कम पीता हाँ । एक लेख था कहीं ररजिट
िाइजेस्ट में था?... कक अकधक चाय पीने से (जााँ घ खुजलाता) रीिसट िाइजेस्ट भी क्या चीज कनकालते हैं !
अपने यहााँ तो बस ये कहाकनयााँ वो कहाकनयााँ , कोई अच्छी पकत्रका कमलती ही नहीं दे खने को। एक अमेररकन
आया हुआ था कपछले कदनों। बता रहा था कक...
पुरुष दो : ना, कबलकुल नहीं।...अंतरराष्टरीय संपकट हैं कंपनी के, सो सभी दे िों के लोग कमलने आते रहते हैं ।
जापान से तो पूरा प्रकतकनकध-मंिल ही आया हुआ था कपछले कदनों...। कुछ भी ककहए, जापान ने सबकी नाक
में नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस कदन मैं जापान की कपछले वषट की औद्योकगक सां ख्यकी दे ख रहा
था... ।
स्त्री : तुमसे कहा है , रुक अभी थोडी दे र। (पुरुष दो से ) आप कॉिी पसंद करते हों, तो...
पुरुष दो : न चाय, न कॉिी। एक घटना सुनाऊाँ आपको, कॉिी पीने के संबंध में। आज की बात नहीं, बहुत
साल पहले की है । तब की जब मैं कवश्वकवद्यालय की साकहत्य-सभा का मंत्री था। (मन में उस बात का रस
लेता) हैं -हैं -ह-हैं -हााँ -हैं ।...साकहस्त्यक गकतकवकधयों में रुकच आरं भ से ही थी। सो... (बडी लडकी और लडके से )
बैि जाओ तुम लोग।
लडके को बैठने के वलए कोोंच कर अहाते के दरवािे से चली िाती है। लडका असोंतुि भाव से उसे
दे खता है , वफर टहेलता हुआ पढने की मेि के पास चला िाता है। बडी लडकी से आाँ ख वमलने पर
हलके से मुाँह बनाता है और कुरसी का रुख थोडा सोफे की तरफ करके बैठ िाता है।
पुरुष दो : किर भी लगता है दे खा है ।...कोई और होगी। कबलकुल तुम्हारे जैसी थी। कवकचत्र बात नहीं है यह ?
बडी लडकी : क्या ?
पुरुष दो : कक बहुत-से लोग एक-दू सरे जैसे होते हैं । हमारे अंकल हैं एक। पीि से दे खो - मोरारजी भाई
लगते हैं ।
लडका इस बीच मेि की दराि खोल कर तस्वीरें वनकाल लेता है और उन्हें मेि पर फैलाने लगता
है।
लडका : हमारी आं टी हैं एक। गरदन काट कर दे खो - जीता लोलोकिकजदा नजर आती हैं ।
पुरुष दो : हााँ !...कई लोग होते हैं ऐसे। जीवन की कवकचत्रताओं की ओर ध्यान दे ने लगें, तो कई बार तो
लगता है कक... (सहसा जेबें टटोलता) भूल तो नहीं आया घर पर ?(जेब से चश्मा कनकाल कर वापस रखता)
नहीं। तो मैं कह रहा था कक...क्या कह रहा था ?
पुरुष दो : हााँ -हााँ ... जरूर (बडी लडकी से) लो तुम भी (स्त्री से ) बैि जाओ अब।
स्त्री : वह जो मैंने बात की थी आपसे...कक कोई िीक-सी जगह हो आपकी नजर में, तो...
पुरुष दो : याद है । कुछ बात कक थी तुमने एक बार। अपनी ककसी ककजन के कलए कहा था...नहीं वह तो
कमसेज मल्होत्रा ने कहा था। तुमने ककसके कलए कहा था ?
पुरुष दो : हाँ -हाँ ... । क्या पास ककया है इसने ? बी॰ कॉम॰ ?
स्त्री : मैंने बताया था। बी॰ एससी॰ कर रहा था... तीसरे साल में बीमार हो गया इसकलए...
वफर घूम कर लडके की ओर की तरफ दे ख लेता है । लडका वफर उसी तरह मुस्कुरा दे ता है।
पुरुष दो : अच्छा-अच्छा दे ि का जलवायु ही ऐसा है , क्या ककया जाए? जलवायु की दृकष्ट से जो दे ि मुझे
सबसे पसंद है , वह है इटली। कपछले वषट कािी यात्रा पर रहना पडा। पूरा यूरोप घूमा, पर जो बात मुझे
इटली में कमली, वह और ककसी दे ि में नहीं। इटली की सबसे बडी कविेषता पता है , क्या है ?...बहुत ही
स्वाकदस्ट है । कहााँ से लाती हो ? (घडी दे ख कर) सात पााँ च यहीं हो गए। तो...
पुरुष दो : अच्छी दु कान है । मैं प्रायः कहा करता हाँ कक खाना और पहनना, इन दो दृकष्टयों से ... वह
अमरीकन भी यही बात कह रहा था कक कजतनी कवकवधता इस दे ि के खान-पान और पहनावे में है ...और
वही क्या, सभी कवदे िी लोग इस बात को स्वीकार करते हैं । क्या रूसी, क्या जमटन ! मैं कहता हाँ , संसार में
िीत युद्ध को कम करने में हमारी कुछ वास्तकवक दे न है , तो यही कक...तु म अपनी इस साडी को ही लो।
ककतनी साधारण है , किर भी...यह हडतालों-हडतालों का चक्कर न चलता अपने यहााँ , तो हमारा वस्त्र उद्योग
अब तक...अच्छा, तु मने वह नोकटस दे खा है जो यूकनयन ने मैनेजमेंट को कदया है ?
: ककतनी बेतुकी बातें हैं उसमें !हमारे यहााँ िी॰ए॰ पहले ही इतना है कक...
लडका दराि से एक पैड वनकाल कर दराि बोंद करता है। पुरुष दो वफर घूम कर उस तरफ दे ख
लेता है। लडका वफर मुस्कुरा दे ता है। पुरुष दो के मुाँह मोडने के साथ ही वह पैड पर पेंवसल से लकीरें
खी ोंचने लगता है।
पुरुष दो : बहुत अच्छी स्मरण िस्ि है लडके की। तो कहने का मतलब था कक...
स्त्री : थोडा-सा...दे स्खए, जैसे भी हो, इसके कलए आपको कुछ-न-कुछ जरूर करना है ?
पुरुष दो : हााँ -हााँ ... जरूर। वह तो है ही। (लडके की तरि मुड कर) बी॰एससी॰ में कौन-सा किवीजन था
आपका ?
: कौन-सा ?
पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हााँ ।...िीक हैं ...दे खूाँगा मैं। (घडी दे ख कर) अब चलना चाकहए। बहुत समय हो
गया है । (उिता हुआ) तुम घर पर आओ ककसी कदन। बहुत कदनों से नहीं आई।
पुरुष दो : वह पूछती रहती है , आं टी इतने कदनों से क्यों नहीं आई ? बहुत प्यार करती है अपनी आं कटयों से।
मााँ के न होने से बेचारी...।
स्त्री : बहुत ही प्यारी बच्ची है । मैं पूछ लूाँगी ककसी कदन आपसे। इससे भी कह दू ाँ , आ कर कमल ले आप से
एक बार।
पुरुष दो : हााँ -हााँ ...क्यों नहीं। पर तुम तो आओगी ही। तु म्हीं को बता दू ाँ गा।
पुरुष दो : (घडी दे खता) सोचा नहीं था, इतनी दे र रुकूाँगा।(बाहर से दरवाजे की तरि बढ़ता बडी लडकी
से) तुम नहीं करती नौकरी ?
स्त्री : िरती है ।
पुरुष दो : िरती है ?
पुरुष दो : पकत से ?
पुरुष दो : यह लडकी ?
पु रुष दो : हााँ -हााँ -हााँ -हााँ -हााँ ...तुम आओगी ही घर पर। दफ्तर की भी कुछ बातें करनीं हैं । वही जो यूकनयन-
ऊनीयन का झगडा है ।
पुरुष दो : (घडी दे ख कर) बहुत दे र हो गई। (लडके से ) अच्छा, एक बात बताएाँ गे आप कक ये जो हडतालें
हो रही हैं सब क्षेत्रों में आजकल, इनके कवषय में आप क्या सोचते हैं ?
लडका ऐसे उचक िाता है िैसे कोई कीडा पतलून के अोंदर चला आया हो।
लडका : ओह ! ओह ! ओह !
पुरुष दो : इस दे ि में नैकतक मूल्ों के उत्थान के कलए...तुमने भाषण सुना है ...वे जो आए हुए हैं आजकल,
क्या नाम है उनका?
पुरुष दो : हााँ -हााँ -हााँ ...यही नाम है न ? इतना अच्छा भाषण दे ते हैं ...जन्म-कुंिली भी बनाते हैं ... वैसे आप
भाषण? वाह-वाह-वाह !
अोंवतम शब्दोों के साथ दरवािा लााँघ िाता है। स्त्री भी साथ ही बाहर चली िाती है।
लडका : हाहा !
लडका : एस्क्टं ग दे खा ?
लडका : मेरा।
बडी लडकी : पता नहीं, असल में कौन उल्लू बना रहा था।
लडका : क्यों ?
लडका : नहीं है ?
बडी लडकी पैड उसके हाथ से ले कर दे खती है। स्त्री लौट कर आती है।
लडका : क्यों ?
स्त्री : कुछ समझ में नहीं आता, क्या होने को है इस लडके का...यह तेरे हाथ में क्या है ?
बडी लडकी : (पैि उसकी तरि बढ़ाती) ऐसे ही...पता नहीं क्या बना रहा था ! बैिे-बैिे इसे भी बस... ?
लडका : (जैसे हाथों से गदट झाडता) क्या तो अपनी सूरत है और क्या गाडी की !
स्त्री : इधर आ।
लडका : (पास आता) गाडी का इं जन तो किर भी धक्के से चल जाता है , पर जहााँ तक (माथे की तरि
इिारा करके) इस इं जन का सवाल है ...
स्त्री : क्या ?
लडका : बन-मानुस।
लडका : दे ख नहीं रही यह लपलपाती जीभ, ये ररसती गुिाओं जैसी आाँ खे,ाँ ये ...
स्त्री : मुझे तेरी ये हरकतें कबलकुल पसं द नहीं हैं । सुन रहा है तू ?
लडका उत्तर न दे कर पढने की मेि की तरफ बढ िाता है और वहााँ से तस्वीरें उठा कर दे खने
लगता है।
: नहीं कहना है ?
लडका : नहीं बरदाश्त है , तो बुलाती क्यों हो ऐसे लोगों को घर पर कक कजनके आने से ... ?
लडका : रहने दो। मैं इसीकलए चला जाना चाहता था पहले ही।
लडका : कजनके आने से हम कजतने छोटे हैं , उससे और छोटे हो जाते हैं अपनी नजर में।
लडका : मतलब वही जो मैने कहा है । आज तक कजस ककसी को बुलाया है तुमने , कजस वजह से बुलाया है ?
लडका : उसकी ककसी 'बडी' चीज की वजह से। एक को कक वह इं टेलेक्चुअल बहुत बडा है । दू सरे को कक
उसकी तनखाह पााँ च हजार है । तीसरे को कक उसकी तख्ती चीि ककमश्नर की है । जब भी बुलाया है , आदमी
को नहीं-उसकी तनख्वाह को, नाम को, रुतबे को बुलाया है ।
स्त्री : तू कहना क्या चाहता है इससे कक ऐसे लोगों के आने से इस घर के लोग छोटे हो जाते हैं ?
लडका : पता नहीं ककसकलए बुलाती हो, पर बुलाती कसिट ऐसे ही लोगों को हो। अच्छा, तुम्हीं बताओ,
ककसकलए बुलाती हो ?
स्त्री : इसकलए कक ककसी तरह इस घर का कुछ बन सके, कक मेरे अकेली के ऊपर बहुत बोझ है इस घर
का। कजसे कोई और भी मेरे साथ दे नेवाला हो सके। अगर मैं कुछ खास लोगों के साथ संबंध बना कर रखना
चाहती हाँ तो अपने कलए नहीं, तुम लोगों के कलए। पर तुम लोग इससे छोटे होते हो, तो मैं छोड दू ाँ गी कोकिि।
हैं , इतना कह कर कक मैं अकेले दम इस घर की कजम्मे दाररयााँ नहीं उिाती रह सकती और एक आदमी है
जो घर का सारा पैसा िु बो कर सालों से हाथ धरे बैिा है । दू सरा अपनी कोकिि से कुछ करना तो दू र, मेरे
कसर िोडने से भी ककसी किकाने लगाना अपना अपमान समझता है । ऐसे में मुझसे भी नहीं कनभ सकता।
जब और ककसी को यहााँ ददट नहीं ककसी चीज का, तो अकेली मैं ही क्यों अपने को चीथती रहाँ रात-कदन ? मैं
भी क्यों न सुखरुट हो कर बैि रहाँ अपनी जगह ? उससे तो तुममें से कोई छोटा नहीं होगा।
लडका चुप रह कर मेि की दराि खोलने-बोंद करने लगता है।
: चुप क्यों है अब ? बता न, अपने बडप्पन से कजंदगी काटने का क्या तरीका सोच रखा है तूने ?
लडका : बात को रहने दो, ममा ! नहीं चाहता, मेरे मुाँह से कुछ ऐसा कनकल जाए कजससे तुम...
स्त्री : कुछ नई तैना है तुझे। बैथ दा तुलछी पल औल तछवीलें तात । कततनी तछवीलें ताती ऐं अब तत लाजे
मुन्ने ने ? अगर कुछ नहीं कहना था तुझे तो पहले ही क्यों नहीं अपनी जबान....?
बडी लडकी : (पास आ कर उसकी बााँ ह थामती) रुक जाओ ममा, मैं बात करू
ाँ गी इससे (लडके से) दे ख
अिोक... ।
बडी लडकी : मैं तुझसे कसिट इतना पूछना चाहती हाँ कक...?
लडका : पर क्यों पूछना चाहती हैं ? मैं इस वि ककसी की ककसी भी बात का जवाब नहीं दे ना चाहता।
स्त्री : क्यों कर रही है बात तू इससे ? कोई जरूरी नहीं ककसी से बात करने की। आज वि आ गया है जब
खुद ही मुझे अपने कलए कोई-न-कोई िैसला....
लडका : कहना पड रहा है क्योंकक...जब नहीं कनभता इनसे यह सब, तो क्यों कनभाए जाती हैं इसे ?
लडका : मैं पूछता हाँ क्यों करती हैं ? ककसके कलए करती हैं ...?
लडका : और मैं ही िायद इस घर में सबसे ज्यादा नाकारा हाँ ।...पर क्यों हाँ ?
लडका : क्योंकक तू मनोज से प्रेम करती थी।...खुद तुझे ही यह गुट्टी कमजोर नहीं लगती ?
लडका वबना कहे मैगिीन खोल कर उसमें से एक तस्वीर काटने लगता है। लडका उसी तरह
चुपचाप तस्वीर काटता रहता है।
: पता है न ?
: मेरे पास अब बहुत साल नहीं हैं जीने को। पर कजतने हैं , उन्ें मैं इसी तरह और कनभते हुए नहीं काटू ाँ गी।
मेरे करने से जो कुछ हो सकता था इस घर का, हो चुका आज तक। मेरे तरि से यह अंत है उसका कनकित
अंत !
एक खाँडहर की आत्मा को व्यक्त करता हलका सोंगीत। लडका अपनी कटी तस्वीर पल-भर हाथ में
ले कर दे खता है , वफर चक-चक उसे बडे -बडे टु कडोों में कतरने लगता है िो नीचे फशड पर वबखरते
िाते हैं। प्रकाश आकृवतयोों पर धुाँधला कर कमरे के अलग-अलग कोनोों में वसमटता ववलीन होने
लगता है। मोंच पर पूरा अाँधेरा होने के साथ सोंगीत रुक िाता है। पर कैंची की चक-चक वफर भी कुछ
क्षण सुनाई दे ती रहती है ।
[अंतराल कवकल्प]
दो अलग-अलग प्रकाश-वृत्तोों में लडका और बडी लडकी। लडका सोफे पर औोंधा लेट कर टााँगें
वहलाता सामने 'पेशेंस' के पत्ते फैलाए। बडी लडकी पढने की मेि पर प्लेट में रखे स्लायसोों पर
मक्खन लगाती। पूरा प्रकाश होने पर कमरे में वह वबखराव निर आता है िो एक वदन ठीक से दे ख-
रे ख न होने से आ सकता है। यहााँ -वहााँ चाय की खाली प्यावलयााँ , उतरे हुए कपडे और ऐसी ही अस्त-
व्यस्त चीिें।
लडका : तूने कहा था जो-जो उधार कमल सके, ले आ बकनए से। मैं उधार में एक िोन भी कर आया।
लडका : नहीं।
बडी लडकी : तो ?
लडका : नहीं।
बडी लडकी : तो पहले क्यों नहीं बताया तूने ? मैं ऐसे ही ये सैंिकवच- ऐंिकवच...?
लडका : मैंने सोचा, चीज सैंिकवच तुझे खुद पसंद है , इसकलए कह रही है ।
बडी लडकी : मैंने कहा नहीं था कक ममा के दफ्तर से लौटने तक िै िी भी आ जाएाँ िायद ? चीज सैंिकवच
दोनों को पसंद हैं ।
लडका : जुनेजा अंकल को भी पसंद हैं । वे आएाँ गे, उन्ें स्खला दे ना।
बडी लडकी : ममा का मूि वैसे ही ऑि है , ऊपर से वे आ कर बात करें गे। तो...चेहरा दे खा था ममा का
सुबह दफ्तर जाते वि ?
बडी लडकी : रात से ही चुप थीं, सुबह तो...। इतनी चुप पहले कभी नहीं दे खा।
लडका : साडी तो बहुत बकढ़या बााँ ध कर गई हैं - जैसे ककसी ब्याह का न्यौता हो।
बडी लडकी : मैंने सोचा दफ्तर से कहीं और जाएाँ गी वह। कहा, साढ़े पााँ च तक आ जाएाँ गी - रोज की तरह।
लडका : तूने पूछा था ?
बडी लडकी : इसकलए पूछा था कक मैं भी उसी कहसाब से अपना प्रोग्राम...पर सच कुछ पता नहीं चला।
बडी लडकी : कक मन में क्या सोच रही हैं । कहा तो कक साढ़े पााँ च तक लौट आएाँ गी, पर चेहरे पर लगता था
जैसे...
लडका : जैसे ?
लडका : कुछ भी। जो चीज बरसों से एक जगह रुकी है , वह रुकी ही नहीं चाकहए।
लडका : (अपनी बाजी का अंकतम पत्ता चलता) सचमुच चाहता हाँ कक बात ककसी भी एक नतीजे तक पहुाँ च
जाए। तू नहीं चाहती ?
बडी लडकी : पता नहीं...सही भी नहीं लगतीं हालााँ कक...। (िब्बा और कटन-कटर हाथ में ले कर) यह
िब्बा.... ?
लडका : महसूस करना ही महसूस नहीं होता था। और कुछ-कुछ महसूस होना िु रू हुआ, तो पहला मौका
कमलते ही घर से चली गई ।
लडका : बुरा क्यों मानती है ? मैं खुद अपने को बेगाना महसूस करता हाँ यहााँ ...और महसूस करना िुरू
ककया है मैंने तेरे जाने के कदन से ।
लडका : महसूस िायद पहले भी करता था, पर सोचना तभी से िुरू ककया है ।
लडका : िीक है , िीक है । उस चीज को जान कर भी न जानना ही बेहतर है िायद। पर दू सरे को धोखा दे
भी ले आदमी, अपने आपको कैसे दे ?
बडी लडकी इस तरह हो िाती है वक उसका हाथ ठीक से स्लाइस पर मक्खन नही ों लगा पाता ।
बडी लडकी : तू तो बस हमेिा ही ..... दे ख, ऐसा है कक.... मैं कह रही थी तुझसे कक... भाई, यह िब्बा खुला
कर ला पहले कहीं से। या अगर नही खुलेगा, तो...
लडका : हाथ कााँ प क्यों रहा है तेरा ? (िब्बा लेता ) अभी खुल जाता है यह। तेज औजार चाकहए... एक
कमनट नहीं लगेगा।
बाहर के दरवािे से चला िाता है। बडी लडकी काम िारी रखने की कोवशश करती है , पर हाथ
नही ों चलते, तो छोड दे ती है।
बडी लडकी : (माथे पर हाथ िेरती , किकथल स्वर में) कैसे कहता है यह? ...मैं सचमुच जानती हाँ क्या ?
वसर को झटक लेती है -िैसे अोंदर एक बवोंडर उठ रहा हो। कोवशश से अपने को सहेि कर उठ
पडती है और अोंदर के दरवािे के पास िा कर आवाि दे ती है।
: ककन्नी !
: कहााँ चली जाती है ? सुबह स्कूल जाने से पहले रोना कक जब तक चीजें नहीं आएाँ गी, नहीं जाएगी। और अब
कदन-भर पता नहीं, कब घर में है , कब बाहर है ।
लडका : चल अंदर।
छोटी लडकी अपने को बचा कर बाहर िाती भाग िाना चाहती है , पर वह उसे बााँह से पकड लेता
है।
झटके से हाथ छु डाने की कोवशश करती है , पर लडका उसे सख्ती से खी ोंच कर अोंदर ले आता है।
बडी लडकी : (छोटी लडकी से ) बोलती क्यों नहीं ? जबान कसल गई है तेरी ?
लडका : कसल नहीं, थक गई है । बताने में कक औरतें और मदट ककस तरह से आपस में...
लडका : पूछ ले इससे। अभी बता दे गी तुझे सब...जो सुरेखा को बता रही थी बाहर।
छोटी लडकी : (सुबकने के बीच) वह बता रही थी मुझे कक मैं उसे बता रही थी ?
लडका : तू बता रही थी। अचानक मुझ पर नजर पडी कक मैं पीछे खडा सुन रहा हाँ तो...
लडका : तू भागी थी और मैंने पकड कलया दौड कर, तो लगी कचल्ला कर आस-पास को सुनाने कक यह ममा
से मेरी किकायतें करता है और ममा घर पर नहीं हैं । इसकलए मैं इसे पीट रहा हाँ ।
छोटी लडकी : बात सुरेखा से की थी। वह बता रही थी कक कैसे उसके मम्मी-िै िी...
बडी लडकी : (सख्त पड कर) और तुझे िौक है जानने का कक कैसे उसके मम्मी-िै िी आपस में...?
छोटी लडकी : इससे कभी कुछ नहीं कहता कोई। रोज ककसी-ककसी बात पर मुझे पीट दे ता है ।
छोटी लडकी : क्योंकक मैं सब चीजें इसे नहीं ले जाने दे ती उसे दे ने।
बडी लडकी : वह जो है इसकी...कभी मेरी बथटिे प्रजेंट की चूकडयााँ दे आता है उसे , कभी-कभी मेरे प्राइज
का िाउं टेन पेन। मैं अगर ममा से कह दे ती हाँ , अकेले में मेरा गला दबाने लगता है ।
छोटी लडकी : झूि-मूि? मेरी िाउं टेन पेन वणाट के पास नहीं है ?
छोटी लडकी : वही उद्योग सेंटरवाली, कजसके पीछे जूकतयााँ चटकाता किरता है ।
लडका : (किर से उसे पकडने को हो कर) तू िहर जा, आज मैं तेरी जान कनकाल कर रहाँ गा।
छोटी लडकी उससे बचने के वलए इधर-उधर भागती है। लडका उसका पीछा करता है।
छोटी लडकी : (जाती हुई) वणाट उद्योग सेंटरवाली लडकी... वणाट उद्योग सें टरवाली लडकी ! वणाट उद्योग
सेंटरवाली लडकी !!
लडका उसके पीछे बाहर िाने ही लगता है वक अचानक स्त्री को अोंदर आते दे ख कर वठठक िाता
है। स्त्री अोंदर आती है िैसे वहााँ की वकसी चीि से उसे मतलब ही नही ों है। वातावरण के प्रवत
उदासीनता के अवतररक्त चेहरे पर सोंकल्प और असमोंिस का वमला-िुला भाव। उन लोगोों की ओर
न दे ख कर वह हाथ का सामान परे की एक कुरसी पर रखती है। लडका अपने को एक भोोंडी ल्कस्थवत
में पाता है , इस चीि उस चीि को छू कर दे खने लगता है। बडी लडकी प्लेट, स्लाइसें और चीि का
डब्बा वलए अहाते के दरवािे की तरफ चल दे ती है।
बडी लडकी : (स्त्री के पास से गुजरती) मैं चाय ले कर आती हाँ अभी।
चली िाती है। स्त्री कमरे के वबखराव पर एक निर डालती है , पर वसवाय अपने साथ लाई चीिोों को
यथास्थान रखने के और वकसी चीि को हाथ नही ों लगती। बडी लडकी लौट कर आती है।
बडी लडकी : क्यों ? पानी रख रही हाँ , कसिट पत्ती लानी है ...।
बडी लडकी : मैं अकेले कपयूाँगी ? इतने चाव से चीज-सैंिकवच बना रही हाँ ?
बडी लडकी : अिोक ने िोन ककया था। कह रहे थे, कुछ बात करनी है ।
कबडड से दो-तीन पसड वनकाल कर दे खाती है वक उनमें से कौन-सा साथ रखना चावहए। बडी लडकी
एक निर लडके को दे ख लेती है िो लगता है वकसी तरह वहााँ से िाने के बहाना ढू ाँ ढ रहा है।
बडी लडकी : (एक पसट को छू कर) यह अच्छा है इनमें।...कब तक सोचती हो लौट आओगी ?
स्त्री : (उस पसट को रख कर दू सरा कनकालती) पता नहीं। बात करने में दे र भी हो सकती है ।
बडी लडकी : (उस पसट के कलए) यह और भी अच्छा है ।....। अगर पूछें कहााँ गई हैं , ककसके साथ गई हैं ?
(एक नजर किर कमरे में िाल कर) ककतना गंदा पडा है !
बडी लडकी : समेट रही हाँ । (व्यस्त होती) बताना िीक होगा उन्ें ?
स्त्री : क्यों ?
स्त्री : तो क्या होगा ? (कुछ चीजें खुद उिा कर उसे दे ती) अं दर रख आ अभी।
बडी लडकी : होगा यही कक....
स्त्री : एक आदमी के साथ चाय पीने जा रही हाँ मैं, कहीं चोरी करने तो नहीं।
स्त्री : मुझे उससे कुछ जरूरी बात करनी हैं । उसे कई काम थे िाम को जो उसने मेरी खाकतर कैंकसल ककए
हैं । बेकार आदमी नहीं है वह कक जब चाहा बुला कलया, जब चाहा कह कदया जाओ अब ।
लडका नही ों रुकता तो होोंठ वसकोड स्त्री की तरफ लौट आती है।
: कम से कम पत्ती ले कर तो दे जाता।
स्त्री : (जैसे कहने से पहले तैयारी करके) तु मसे एक बात करना चाहती थी।
बडी लडकी : यह सब छोड आऊाँ अंदर। वहााँ भी ककतना कुछ कबखरा है । सोचती हाँ , जगमोहन अंकल के
आने से पहले...।
बडी लडकी : तो ?
स्त्री : (हलके से आाँ खें मूाँद कर) कबलकुल सोच कलया है (आाँ खें झपकाती) जा तू अब ।
बडी लडकी पल-भर चुपचाप उसे दे खती खडी रहती है। वफर सोचते भाव से अोंदर को चल दे ती है।
स्त्री : कब तक और ?
गले की माला को उाँ गली से लपेटते हुए झटके लगाने से माला टू ट िाती है। परे शान हो कर माला को
उतार दे ती है और कबडड से दू सरी माला वनकाल लेती है।
नही ों ही बोंद होता , तो उसे पूरा खोल कर झटके से बोंद करती है।
कबडड के नीचे रखे िूते चप्पलोों को पैर से टटोल कर एक चप्पल वनकालने की कोवशश करती है ; पर
दू सरा पैर नही ों वमलता, तो सबको ठोकरें लगा कर पीछे हटा दे ती है।
: अब भी और सोचूाँ थोडा !
डरेवसोंग टे बल के सामने चली िाती है। कुछ पल असमोंिस में रहती है वक वहााँ क्योों आई है। वफर
ध्यान हो आने से आईने में दे ख कर माला पहनने लगती है। पहन कर अपने को ध्यान से दे खती है।
गरदन उठा कर और खाल को मसल कर चेहरे की झुररड यााँ वनकालने की कोवशश करती है।
: कब तक...? क्यों...?
वफर समझ में नही ों आता वक क्या करना है। डरेवसोंग टे बल की कुछ चीिोों को ऐसे ही उठाती-रखती
है। िीम की शीशी हाथ में आ िाने पर पल-भर उसे दे खती रहती है । वफर खोल लेती है।
: घर दफ्तर...घर दफ्तर !
िीम चेहरे पर लगते हुए ध्यान आता है वक वह इस वक्त नही ों लगानी थी। उसे एक और शीशी उठा
लेती है। उसमें से लोशन रूई पर ले कर सोचती है। कहााँ लगाए और कही ों का नही ों सूझता , तो
उससे कलाइयााँ साफ करने लगती है।
: सोचो...सोचो।
ध्यान वसर के बालोों में अटक िाता है। अनमनेपन में लोशनवाली रूई वसर पर लगाने लगती है , पर
बीच में ही हाथ रोक कर उसे अलग रख दे ती है। उाँ गवलयोों से टटोल कर दे खती है वक कहााँ सफेद
बाल ज्यादा निर आ रहे हैं। कोंघी ढू ाँ ढती है , पर वह वमलती नही ों। उतावली में सभी खाने-दरािें दे ख
डालती है। आल्कखर कोंघी वही ों तौवलए के नीचे से वमल िाती है।
कोंघी से सफेद बालोों को ढाँ कने लगती है। ध्यान आाँ खोों की झााँइयोों पर चला िाता है तो कोंघी रख कर
उन्हें सहलाने लगती है। तभी पुरुष तीन बाहर के दरवािे से आता है...वसगरे ट के कश खी ोंच कर
छल्ले बनाता है। स्त्री उसे नही ों दे खती , तो वह राख झाडने के वलए वतपाई पर रखी ऐश-टर े की तरफ
बढ िाती है। स्त्री पाउडर की डब्बी खोल कर आाँ खोों के नीचे पाउडर लगती है। डब्बीवाला हाथ
कााँप िाने से थोडा पाउडर वबखर िाता है।
उठा खडी होती है , एक बार अपने को अच्छी तरह आईने में दे ख लेती है। पुरुष तीन पहले वसगरे ट
से दू सरा वसगरे ट सुलगता है।
: होने दो जो होता है ।
सोफे की तरफ मुडती ही है वक पुरुष तीन पर निर पडने से वठठक िाती है , आाँ खोों में एक चमक
भर आती है।
पुरुष तीन : नाउ-आउ।...दो कमनट रुका बस, पोल स्टोर में। एक किजाइन दे ना था उनका। किर घर जा
कर नहाया और सीधे....।
पुरुष तीन : (छल्ले बनाता) तुम नहीं बदलीं कबलकुल। उसी तरह िााँ टती हो आज भी। पर बात-सी है कुकू
कियर, कक दफ्तर के कपडों में सारी िाम उलझन होती इसीकलए सोचा कक....
स्त्री : लेककन मैंने कहा नहीं था, कबलकुल सीधे आना ? कबना एक भी कमनट जाया ककए ?
पुरुष तीन : जाया कहााँ ककया एक कमनट भी ? पोल स्टोर में तो....
पुरुष तीन : (सोिे पर बैिता है ) कह लो जो जी चाहे । कबना वजह लगाम खींचे जाना मेरे कलए भी नई चीज
नहीं है ।
: कजस तरह िोन ककया तुमने अचानक, उससे मुझे कहीं लगा कक...
पुरुष तीन : (हाथ पर हलकी थपककयााँ दे ता) परे िान नहीं होते इस तरह।
स्त्री : अब आ रही होगी बाहर। दे खो, तुमसे बहुत-बहुत बातें करनी हैं मुझे आज।
पु रुष तीन : मैं सुनने के कलए ही तो आया हाँ । िोन पर तुम्हारी आवाज से ही मुझे लग गया था कक...
स्त्री : तुम ककतनी अच्छी तरह समझते हो मुझे...ककतनी अच्छी तरह ! इस वि मेरी जो हालत है अंदर
से...।
स्त्री : जोग !
स्त्री : किर भी मुाँह से कनकल जाती है । दे खो ऐसा है कक....नहीं। बाहर चल कर ही बात करू
ाँ गी।
पुरुष तीन : एक सुझाव है मेरा।
स्त्री : बताओ।
स्त्री : यहााँ हो ही नहीं सकेगी बात मुझसे। हााँ , तुम कुछ वैसा समझते हो बाहर चलने में मेरे साथ, तो...
पुरुष तीन : कैसी बात करती हो ?तुम जहााँ भी कहो, चलते हैं । मैं तो इसीकलए कह रहा था कक...
स्त्री : मैं जानती हाँ सब। तु म्हारी बात गलत नहीं समझती मैं कभी।
पुरुष तीन : मैं िीक समझूाँ ? हमेिा तुम्हीं नहीं तय ककया करती थी ?
स्त्री : कगंजा कैसा रहे गा ?....वहााँ वही कोनेवाली टे बल खाली कमल जाए िायद।
स्त्री : अच्छा, उस छोटे रे स्तरााँ में चले जहााँ के कबाब तु म्हें बहुत पसं द हैं ? मैं तब के बाद कभी वहााँ नहीं
गई।
पुरुष तीन : (कहचककचाट के साथ) वहााँ ? जाता नहीं वैसे मैं वहााँ अब। …पर तु म्हारा वहीं के कलए मन हो तो
चल भी सकते हैं ।
पल-भर की खामोशी विसमें वह कुछ सोचता हुआ इधर-उधर दे खता है वफर िैसे वकसी वकताब पर
आाँ ख अटक िाने से उठ कर शेल्फ की तरफ चला िाता है।
पुरुष तीन : (िेल्फ से ककताब कनकलता) ऐसे ही ।...यह ककताब दे खना चाहता था जरा।
स्त्री : मेरे कलए पहले भी असंभव था यहााँ यह सब सहना। तुम जानते ही हो। पर आ कर कबलकुल-कबलकुल
असंभव हो गया है ।
स्त्री : मैं तुम्हें बता नहीं सकती कक मुझे हमेिा ककतना अिसोस रहा है इस बात का कक मेरी वजह से तुम्हें
भी...तुम्हें भी इतनी तकलीि उिानी पडी है कजंदगी में।
पुरुष तीन : (अपनी गरदन सहलाता) दे खो...सच पूछो, तो मैं अब ज्यादा सोचता ही नहीं इस बारे में।
स्त्री : मुझे याद है तुम कहा करते थे , 'सोचने से कुछ होना हो, तब तो सोचे भी आदमी।'
बडी लडकी : ममा, अंदर जो कपडे इस्तरी के कलए रखे हैं ... (पुरुष तीन को दे ख कर) हलो अं कल !
पुरुष तीन : याद है , कैसे मेरे हाथ पर काटा था इसने एक बार ? बहुत ही िैतान थी ।
चली िाती है ।
पुरुष तीन : ककतनी गदराई हुई लडकी थी ! गाल इस तरह िुले-िुले थे ...
स्त्री : जुनेजा। वही आदमी कजसकी वजह से ...तुम जानते ही हो सब । (अहाते की तरि दे खती) कबन्नी!
(जवाब न कमलने से ) कबन्नी! ...कहााँ चली गई यह ?
स्त्री : नहीं, वह आदमी आ गया तो, मुस्िल हो जाएगी । मुझे बहुत जरूरी बात करनी है तुमसे। आज ही।
अभी ।
स्त्री : (इस तरह कमरे को दे खती जैसे कक कोई चीज वहााँ छूटी जा रही हो) हााँ ...आओ ।
पु रुष तीन : (चलते -चलते रुक कर ) लेककन...घर इस तरह अकेला छोड जाओगी ?
पुरुष तीन पहले वनकल िाता है। स्त्री वफर से पसड खोल कर उसमें कोई चीि ढू ाँ ढती पीछे - पीछे ।
कुछ क्षण मोंच खाली रहता है। वफर बाहर से छोटी लडकी के वससक कर रोने का स्वर सुनाई दे ता
है। वह रोती हुई अोंदर आ कर सोफे पर औोंधे हो िाती है। वफर उठ कर कमरे के खालीपन पर निर
डालती है और उसी तरह रोती-वससकती अोंदर के कमरे में चली िाती है। मोंच वफर दो-एक क्षण
खाली रहता है। उसके बाद बडी लडकी चाय की टर े के वलए अहाते के दरवािे से आती है।
रास्ते में डरेवसोंग टे बल के वबखराव को दे ख कर रुक िाती है और िल्दी से वहााँ की चीिोों को सहेि
दे ती है।
वहााँ से हट कर डायवनोंग टे बल के पास आ िाती है और अपने वलए चाय की प्याली बनाने लगती है।
छोटी लडकी उसी तरह वससकती अोंदर से आती है।
छोटी लडकी : जब नहीं हो-होना होता, तो सब लोग होते हैं कसर पर। और जब हो-होना होता है तो कोई भी
नहीं कद-कदखता कहीं।
बडी लडकी चाय बनाना बीच में छोड कर उसकी तरफ बढ आती है।
छोटी लडकी : कब आई मैं ! यहााँ पर को- कोई भी क्यों नहीं था ? तू -तुम भी कहााँ थी थोडी दे र पहले ?
बडी लडकी : मैं चाय की पत्ती लाने चली गई थी ।...ककसने , अिोक ने मारा है तुझे ?
छोटी लडकी : वह भी क-कहााँ था इस वि ? मेरे कान स्खंचने के कलए तो पता नहीं क-कहााँ से चला
आएगा। पर ज-जब सुरेखा की ममी से बात करने की बात की थी, त-त्तो ?
छोटी लडकी : ममा कहााँ हैं ? मुझे उन्ें स-साथ ले कर जाना है वहााँ ।
छोटी लडकी : सुरेखा की ममी बुला रही हैं उन्ें । कहती हैं , अभी ले-ले कर आ।
छोटी लडकी : अिोक को दे ख कलया था सबने हम लोगों को िााँ टते। सुरेखा की ममी ने सुरखा को घ-घर में
ले जा कर कपटा, तो उसने ...उसने म-मेरा नाम लगा कदया।
बडी लडकी : तो...सुरेखा कक ममी ने मुझे बुलाया इस तरह िााँ टा है जैसे...पहले बताओ, ममा कहााँ हैं ? मैं
उन्ें अभी स-साथ ले कर जाऊाँगी। क-कहती हैं , मैं उनकी लडकी को कबगाड रही हाँ । और भी बु-बुरी बातें
हमारे घर को ले कर।
बडी लडकी : तुझे सब जगह का पता है कक कहााँ -कहााँ जाया जा सकता है बाहर ?
छोटी लडकी : (और कबिरती) तु-तुम भी मुझी को िााँ ट रही हो ? ममा नहीं हैं तो तुम चलो मेरे साथ।
िल्दी से अहाते के दरवािे से चली िाती है। छोटी लडकी वविोह के भाव से कुरसी पर िम िाती
है। बडी लडकी पुरुष चार के साथ वापस आती है।
: (आती हुई) मैंने सोचा कक कौन हो सकता है पीछे का दरवाजा खटखटाए। आपका पता था, आप आनेवाले
हैं । पर आप तो हमेिा आगे के दरवाजे से ही आते हैं , इसकलए...।
पुरुष चार : मैं उसी दरवाजे से आता, लेककन...(छोटी लडकी को दे ख कर) इसे क्या हुआ है ? इस तरह क्यों
बैिी है वहााँ ?
बडी लडकी : (छोटी लडकी से ) जुनेजा अंकल आए हैं , इधर आ कर बात तो कर इनसे।
छोटी लडकी मुाँह फेर कर कुरसी की पीठ पर बैठ कर बााँह फैला लेती है।
पुरुष चार : (छोटी लडकी के पास आता) अरे ! यह तो रो रही है । (उसके कसर पर हाथ िेरता) क्यों ? क्या
हुआ मुकनया को ? ककसने नाराज कर कदया ? (पुचकारता) उिो बेटे, इस तरह अच्छा नहीं लगता। अब आप
बडे हो गए हैं , इसकलए....।
छोटी लडकी : (सहसा उि कर बाहर को चलती) हााँ ...बडे हो गए हैं । पता नहीं ककस वि छोटे हो जाते हैं ,
ककस वि बडे हो जाते हैं ! (बाहर के दरवाजे के पास से) हम नहीं लौट कर आएाँ गे अब...जब तक ममा
नहीं आ जातीं ।
: मैं थोडी दे र पहले गया था। बाहर सडक पर न्यू इं किया की गाडी दे खी, तो कुछ दे र पीछे को घूमने कनकल
गया। तेरे िै िी ने बताया था, जगमोहन आजकल यहीं है - किर से टर ां सिर हो कर आ गया है ।...वह ऐसे ही
आया था कमलने , या...?
पुरुष चार : अिोक ने कजक्र नहीं ककया मुझसे। उसे भी पता नहीं होगा िायद।
पुरुष चार : बस स्टाप पर खडा था। मैंने पूछा, तो बोला कक आप ही के यहााँ जा रहा हाँ िै िी का हालचाल
पता करने। कहने लगा, आप भी चकलए, बाद में साथ ही आएाँ गे पर मैंने सोचा कक एक बार जब इतनी दू र आ
ही गया हाँ , तो साकवत्री से कमल कर ही जाऊाँ । किर उसे भी कजस हाल में छोड आया हाँ , उसकी वजह से... ।
बडी लडकी : ककसकी बात कर रहे हैं ....िै िी की ?
पुरुष चार : हााँ , महें द्रनाथ की ही। एक तो सारी रात सोया नहीं वह। दू सरे ...।
पुरुष चार : तबीयत भी िीक नहीं और वैसे भी...मैं तो समझता हाँ , महें द्रनाथ खुद कजम्मेदार है अपनी यह
हालत करने के कलए ।
बडी लडकी : (उस प्रकरण से बचना चाहती) चाय बनाऊाँ आपके कलए ?
पुरुष चार : (चाय का समान दे ख कर) ककसके कलए बनाई बैिी थी इतनी चाय ? पी नहीं लगता ककसी ने ?
बडी लडकी : (असमंजस में ) यह मैंने बनाई थी क्योंकक...क्योंकक सोच रही थी कक...
पुरुष चार : (जैसे बात को समझ कर) वे लोग चले गए होंगे।...साकवत्री को पता था न, मैं आनेवाला हाँ ?
पुरुष चार : यह भी बताया नहीं मुझे अिोक ने ...पर उसके लहजे से ही मुझे लग गया था कक...(किर जैसे
कोई बात समझ में आ जाने से) अच्छा, अच्छा, अच्छा ! कािी समझदार लडका है ।
पुरुष चार : चीनी कबलकुल नहीं। मुझे मना है चीनी। वह िायद इसीकलए मुझे वापस ले चलना चाहता था
कक...कक उसे मालूम होगा जगमोहन का।
बडी लडकी : दू ध ?
वही एक कुरसी खी ोंच कर बैठ िाता है। बडी लडकी एक प्याली उसे दे कर दू सरी प्याली खुद ले कर
बैठ िाती है। कुछ पल खामोशी।
बडी लडकी : कहााँ -कहााँ घू म आए इस बीच? सुना था कहीं बाहर गए थे ?
पुरुष चार : सोच कर तो बहुत-सी बातें आया था। साकवत्री होती तो िायद कुछ बात करता भी पर अब लग
रहा है बेकार ही है सब।
वफर कुछ पल खामोशी। दोनोों लगभग एक साथ अपनी-अपनी प्याली खाली करके रख दे ते हैं।
बडी लडकी : एक बात पूछूाँ - िै िी को किर से वही दौरा तो नहीं पडा, ब्लि प्रेिर का ?
पुरुष चार : (उिता हुआ) कोई समझा सकता है उसे ? वह इस औरत को इतना चाहता है अंदर से कक...
बडी लडकी : (उिती हुई) कैसे सही हो सकती है ? (अंतमुटख भाव से )...आप नहीं जानते , हमने इन दोनों के
बीच क्या-क्या गुजरते दे खा है इस घर में।
पुरुष चार : तूने नई बात नहीं बताई कोई। महे न्द्रनाथ खुद मुझे बताता रहा है यह सब।
बडी लडकी : कैसे कहते हैं यह आप ? दो आदमी जो रात-कदन एक-दू सरे की जान नोंचने में लगे रहते हों
...?
पुरुष चार : कबलकुल मानता हाँ , इसीकलए कहता हाँ कक अपनी आज की हलात के कलए कजम्मेदार महे न्द्र नाथ
खुद है । अगर ऐसा न होता, तो आज सुबह से ही ररररया कर मुझसे न कह रहा होता कक जैसा भी हो मैं इससे
बात करके इसे समझाऊाँ। मै इस वि यहााँ न आया होता, तो पता है क्या होता ?
पुरुष चार : महे न्द्र खुद यहााँ चला आया होता। कबना परवाह ककए कक यहााँ आ कर इस ब्लेि प्रेिर में
उसका क्या हाल होता और ऐसा पहली बार न होता, तु झे पता ही है । मैने ककतनी मुस्िल से समझा-बुझा
कर उसे रोका है , मैं ही जानता हाँ । मेरे मन में थोडा-सा भरोसा बाकी था कक िायद अब भी कुछ हो सके...
मेरे बात करने से ही कुछ बात बन सके। पर आ कर बाहर न्यू इं किया की गाडी दे खी, तो मुझे लगा कक नही,
कुछ नहीं हो सकता। कुछ नही हो सकता। बात करके मै कसिट आपको...मेरा खयाल है चलना चाकहए अब।
जाते हुए मुझे उसके कलए दवाई भी ले जानी है ।...अच्छा।
बाहर के दरवािे की तरफ चल दे ता है। बडी लडकी अपनी िगह पर िड-सी खडी रहती है। वफर-
एक कदम उसकी तरफ बढ िाती है।
पुरुष चार : (हलके से आाँ ख मूाँद कर खोलता) मैं न भी बताऊाँ िायद पर कुछ िकट नहीं पडने का
उससे।...बैि तू।
पुरुष चार : एक कदन के कलए हो सकता है िायद। दो कदन के कलए हो सकता है । पर हमेिा के कलए... कुछ
भी नहीं।
बाहर िाने के बिाय होोंठ चबाता डाइवनोंग टे बल की तरफ बढ िाता है। स्त्री छोटी लडकी के साथ
आती है। छोटी लडकी उसे बााँह से बाहर खी ोंच रही है।
स्त्री : नहीं छोडे गी ? (गुस्से से बााँ ह छु डा कर उसे परे धकेलती) बडा जोम चढ़ने लगा है तुझे !
छोटी लडकी : हााँ , चढ़ने लगा है । जब-जब कोई बात कहता मुझसे , यहााँ ककसी को िुरसत नहीं होती चल
कर उससे पूछने की।
बडी लडकी : उन्ें सााँ स तो लेने दे । वे अभी घर में दास्खल नहीं हुई कक तूने...।
छोटी लडकी : तुम बात मत करो। कमट्टी के लोंदे की तरह कहली नहीं जब मैंने...।
छोटी लडकी : (अपने को छु डाने के कलए संघषट करती) क्या कहा है मैंने ? पूछो इनसे जब मैंने आ कर इन्ें
बताया था, तो...।
पल-भर की खामोशी विसमें सबकी निरें ल्कस्थर हो रहती हैं - छोटी लडकी की स्त्री पर और शेष
सबकी छोटी लडकी पर।
छोटी लडकी : (अपने आवे ि से बेबस) कमट्टी के लोंदे !...सब-के-सब कमट्टी के लोंदे !
पुरुष चार : (उनकी तरि आता) छोड दो लडकी को, साकवत्री ! उस पर इस वि पागलपन सवार है ,
इसकलए...।
स्त्री : आपसे कहा है , आप मत पकडए बीच में। मुझे अपने घर में ककससे ककस तरह बरतना चाकहए, यह मैं
औरों से बेहतर जानती हाँ । (छोटी लडकी के एक और चपत जडती) इस वि चुपचाप चली जा उस कमरे
में। मुाँह से एक लफ्ज भी और कहा, तो खैर नहीं तेरी।
छोटी लडकी के केवल होोंठ वहलते हैं। शब्द उसके मुाँह से कोई नही ों वनकल पाता। वह घायल निर
से स्त्री को दे खती उसी तरह खडी रहती है।
: नहीं जाएगी ?
छोटी लडकी दााँत पीस कर वबना कुछ कहे एकाएक झटके से अोंदर के कमरे में चली िाती है। स्त्री
िा कर पीछे से दरवािे की कोंु डी लगा दे ती है।
स्त्री : (उसकी तरि आती) आपको कुछ बात करनी थी मुझसे ...बताया था इसने।
पुरुष चार : हााँ ...पर इस वि तुम िीक मूि में नहीं हो...।
बडी लडकी : तुम थकी हुई हो। अच्छा होगा जो भी बात करनी हो, बैि कर आराम से कर लो।
पुरुष चार : ज्यादा बात अब नहीं करना चाहता। कसिट एक ही बात कहना चाहता हाँ तुमसे।
पुरुष चार : उलटी बात नहीं है । तुमने कजस तरह से बााँ ध रखा है उसे अपने साथ.... ।
स्त्री : उन्ें बााँ ध रखा है ? मैंने अपने साथ... ? कसवा आपके कोई नहीं कह सकता यह बात।
पुरुष चार : क्योंकक और कोई जानता भी तो नहीं उतना कजतना मैं जानता हाँ ।
पुरुष चार : महें द्रनाथ के बारे में, हााँ । और जान कर ही कहता हाँ कक तु मने इस तरह किकंजे में कस रखा है
उसे कक वह अब अपने दो पै रों पर चल सकने लायक भी नहीं रहा।
स्त्री : इसीकलए िायद जब मैंने जाना, तब तक अपने दो पैर रहे नहीं थे उसके पास।
पुरुष चार : मैं जानता हाँ साकवत्री, कक तुम मेरे बारे में क्या-क्या सोचती और कहती हो...।
स्त्री : जरूर जानते होंगे...लेककन किर भी ककतना कुछ है जो साकवत्री कभी ककसी के सामने नहीं कहती।
पुरुष चार : नहीं। पहले तु म बात कर लो (बडी लडकी से ) तू बेटे, जरा उधर चली जा थोडी दे र।
स्त्री : सुन लेने दीकजए इसे भी, अगर मुझे बात करनी है तो।
स्त्री : मैं चाहती हाँ तू यहााँ रहे , तो ककसी वजह से ही चाहती हाँ ।
बडी लडकी आवहस्ता से आाँ खें झपका कर उन दोनोों से थोडी दू र डायवनोंग टे बल वक कुरसी पर िा
बैठती है।
कटता हुआ खुद सोफे पर बैठ िाता है। स्त्री एक मोढा ले लेती है।
स्त्री : कहने से पहले एक बात पूछनी है आप से। आदमी ककस हालत में सचमुच एक आदमी होता है ?
स्त्री : यूाँ तो जो कोई भी एक आदमी की तरह चलता-किरता, बात करता हैं , वह आदमी ही होता है ...। पर
असल में आदमी होने के कलए क्या जरूरी नहीं कक उसमें अपना एक माद्दा, अपनी एक िस्ससयत हो ?
पुरुष चार : मैं दोस्त हाँ उसका। उसे भरोसा रहा है मुझ पर।
स्त्री : और उस भरोसे का नतीजा ?... कक अपने -आप पर उसे कभी ककसी चीज के कलए भरोसा नहीं रहा।
कजंदगी में हर चीज कक कसौटी - जुनेजा। जो जुनेजा सोचता है , जो जुनेजा चाहता है , जो जुनेजा करता है ,
वही उसे भी सोचना है , वही उसे भी चाहना है , वही उसे भी करना है । क्योंकक जुनेजा तो खुद एक पूरे
आदमी का आधा-चौथाई भी नहीं हैं ।
पुरुष चार : तुम इस नजर से दे ख सकती हो इस चीज को; पर असकलयत इसकी यह है कक...
स्त्री : (खडी होती) मुझे उस असकलयत की बात करने दीकजए कजसे मैं जानती हाँ ।...एक आदमी है । घर
बसाता है । क्यों बसाता है ? एक जरूरत पूरी करने के कलए। कौन-सी जरूरतें ? अपने अंदर से ककसी
उसको...एक अधूरापन कह दीकजए उसे ...उसको भर सकने की। इस तरह उसे अपने कलए...अपने में पूरा
होना होता है । ककन्ीं दू सरों के पूरा करते रहने में ही कजं दगी नहीं काटनी होती। पर आपके महें द्र के कलए
कजंदगी का मतलब रहा है ...जैसे कसिट दू सरों के खाली खाने भरने की ही चीज है वह। जो कुछ वे दू सरे उससे
चाहते हैं , उम्मीद करतें हैं ...या कजस तरह वे सोचते हैं उनकी कजंदगी में उसका इस्ते माल हो सकता है ।
स्त्री : नहीं ? इस काम के कलए और कोई नहीं जा सकता, महें द्र चला जाएगा। इस बोझ को और कोई नहीं
ढो सकता, महें द्रनाथ ढो लेगा। प्रेस खुला, तो भी। िैक्टरी िुरू हुई, तो भी। खाली खाने भरने की जगह पर
महें द्रनाथ अपना कहस्सा पहले ही ले चुका है , पहले ही खा चुका है । और उसका कहस्सा ? (कमरे के एक-एक
सामान की तरि इिारा करती) ये ये ये ये ये दू सरे -तीसरे -चौथे दरजे की घकटया चीजें कजनसे वह सोचता था,
उसका घर बन रहा है ?
पुरुष चार : महें द्रनाथ बहुत जल्दबाजी बरतता था इस मामले में, मैं जानता हाँ । मगर वजह इसकी...
स्त्री : वजह इसकी मैं थी-यही कहना चाहते हैं न ? वह मुझे खुि रखने के कलए ह यह लोहा-लकडी जल्दी-
से-जल्दी घर में भर कर हर बार अपनी बरबादी की नींव खोद लेता था। पर असल में उसकी बरबादी की
नींव क्या चीज खोद रही थी...क्या चीज और कौन आदमी...अपने कदल में तो आप भी जानते होंगे।
पुरुष चार : कहती रहो तुम। मैं बुरा नहीं मान रहा। आस्खर तुम महें द्र की पत्नी हो और...
स्त्री : (आवेि में उसकी तरि मुडती) मत ककहए मुझे महें द्र की पत्नी। महें द्र भी एक आदमी है , कजसके
अपना घर-बार है , पत्नी है , यह बात महें द्र को अपना कहनेवालों को िुरू से ही रास नहीं आई। महें द्र ने
ब्याह क्या ककया, आप लोगों की नजर में आपका ही कुछ आपसे छीन कलया। महें द्र अब पहले की तरह
हाँ सता नहीं। महें द्र अब दोस्तों में बैि कर पहले की तरह स्खलता नहीं ! महें द्र अब पहलेवाला महें द्र रह ही
नहीं गया ! और महें द्र ने जी-जान से कोकिि की, वह वही बना रहे ककसी तरह। कोई यह न कह सके
कजससे कक वह पहलेवाला महें द्र रह ही नहीं गया। और इसके कलए महें द्र घर के अंदर रात-कदन छटपटाता
है । दीवारों से कसर पटकता है । बच्चों को पीटता है । बीवी के घुटने तोडता है । दोस्तों को अपना िुरसत का
वि काटने के कलए उसकी जरूरी है । महें द्र के बगैर कोई पाटी जमती नहीं ! महें द्र के बगैर ककसी
कपककनक का मजा नहीं आता था ! दोस्तों के कलए जो िुरसत काटने का वसीला है , वही महें द्र के कलए
उसका मुख्य काम है कजंदगी में। और उसका ही नहीं, उसके घर के लोगों का भी वही मुख्य काम होना
चाकहए। तुम िलााँ जगह चलने से इन्कार कैसे कर सकती हो ? िलााँ से तुम िीक तरह से बात क्यों नहीं
करतीं ? तुम अपने को पढ़ी-कलखी कहती हो ?...तुम्हें तो लोगों के बीच उिने -बैिने की तमीज नहीं। एक
औरत को इस तरह चलना चाकहए, इस तरह बात करनी चाकहए, इस तरह मुस्कराना चाकहए। क्यों तुम लोगों
के बीच हमेिा मेरी पोजीिन खराब करती हो? और वही महे न्द्र जो दोस्तों के बीच दब्बू -सा बना हलके-
हलके मुस्कराता है , घर आ कर एक दाररं दा बन जाता है । पता नहीं, कब ककसे नोच लेगा, कब ककसे िाड
खाएगा ! आज वह ताव में अपनी कमीज को आग लगा लेता है । कल वह साकवत्री की छाती पर बैि कर
उसका कसर जमीन से रगडने लगता है । बोल, बोल, बोल, चलेगी उस तरह कक नहीं जैसे मैं चाहता हाँ ?
मानेगी वह सब कक नहीं जो मैं कहता हाँ ? पर साकवत्री किर भी नही चलती। वह सब नहीं मानती। वह
निरत करती है इस सबसे - इस आदमी के ऐसा होने से। वह एक पूरा आदमी चाहती है अपने कलए
एक...पूरा...आदमी। गला िाड कर वह यह बात कहती है । कभी इस आदमी को ही यह आदमी बना सकने
की कोकिि करती है । कभी तडप कर अपने को इससे अलग कर लेना चाहती है । पर अगर उसकी
कोकििों से थोडा िकट पडने लगता है इस आदमी में, तो दोस्तों में इनका गम मनाया जाने लगता है ।
साकवत्री महे न्द्र की नाक में नकेल िाल कर उसे अपने ढं ग से चला रही है । साकवत्री बेचारे महे न्द्र की रीढ़
तोड कर उसे ककसी लायक नहीं रहने दे रही है ! जैसे कक आदमी न हो कर कबना हाड-मां स का टु कडा हो
वह एक - बेचारा महे न्द्र!
हााँफती हुई चुप कर िाती है। बडी लडकी कुहवनयााँ मेि पर रखे और मुवियोों पर चहेरा वटकाए
पथराई आाँ खोों से चुपचाप दोनोों को दे खती है।
पुरुष चार : (उिता हुआ) कबना हड-मां स का पुतला, या जो भी कह लो तुम उसे - पर मेरी नजर में वह हर
आदमी जैसे एक आदमी है -कसिट इतनी ही कमी है उसमें।
स्त्री : यह आप मुझे बता रहे हैं ? कजसने बाईस साल साथ जी कर जाना है उस आदमी को ?
पुरुष चार : कजया जरूर है तुमने उसके साथ...जाना भी है उसे कुछ हद तक...लेककन...
पुरुष चार : जो-जो बातें तुमने कही हैं अभी, वे गलत नहीं हैं अपने में। लेककन बाईस साल जी कर जानी हुई
बातें वे नहीं हैं । आज से बाईस साल पहले भी एक बार लगभग ऐसी ही बातें मैं तम्हारे मुाँह से सुन चुका हाँ -
तुम्हें याद हैं ?
स्त्री : आप आज ही की बात नहीं कर सकते ? बाईस साल पहले पता नहीं ककस कजंदगी की बात हैं वह ?
पुरुष चार : मेरे घर हुई थी वह बात। तुम बात करने के कलए खास आई थीं वहााँ , और मेरे कंधे पर कसर रखे
दे र तक रोती रही थीं। तब तु मने कहा था कक...
स्त्री : दे स्खए, उन कदनों की बात अगर छे डना ही चाहते हैं आप, तो मैं चाहाँ गी कक यह लडकी...
पुरुष चार : क्या हजट है अगर यह यहीं रहे तो ? जब आधी बात उसके सामने हुई है , तो बाकी आधी भी
इसके सामने ही हो जानी चाकहए।
पुरुष चार : (स्त्री से ) तुम समझती हो कक इसके सामने मुझे नहीं करनी चाकहए यह बात ?
: (स्त्री से ) उस कदन पहली बार मैंने तुम्हें उस तरह ढु लते दे खा था। तब तुमने कहा था कक...।
पुरुष चार : बच्ची थीं या जो भी थीं, पर बात कबलकुल इसी तरह करती थीं जैसे आज करती हो। उस कदन
भी कबलकुल इसी तरह तु मने महे न्द्र को मेरे सामने उधेडा था। कहा था कक वह बहुत कलजकलजा और
कचपकचपा-सा आदमी है । पर उसे वैसा बनानेवालों में नाम तब दू सरों के थे। एक नाम था उसकी मााँ का और
दू सरा उसके कपता का...।
स्त्री : िीक है । उन लोगों की भी कुछ कम दे न नहीं रही उसे ऐसा बनाने में।
पुरुष चार : पर जुनेजा का नाम तब नहीं था ऐसा लोगों में। क्यों नहीं था, कह दू ाँ न यह भी ?
स्त्री : दे स्खए...।
पुरुष चार : बहुत पुरानी बात है । कह दे ने में कोई हजट नहीं है । मेरा नाम इसकलए नहीं था कक...
पुरुष चार : तुम इज्जत कह सकती हो उसे ...पर वह इज्जत ककसकलए करती थीं ? इसकलए नहीं कक एक
आदमी के तौर पर मैं महे न्द्र से कुछ बेहतर था तुम्हारी नजर में; बस्ि कसिट इसकलए कक...
स्त्री : कक आपके पास बहुत पैसा था? और आपका दबदबा था इन लोगों के बीच?
पुरुष चार : नहीं। कसिट इसकलए कक मैं जैसा भी था जो भी था-महे न्द्र नहीं था।
स्त्री : (एकाएक उिती है ) तो आप कहना चाहते हैं कक...?
पुरुष चार : उतावली क्यों होती हो ? मुझे बात कह लेने दो। मुझसे उस वि तुम क्या चाहती थीं, मैं िीक-
िीक नहीं जानता। लेककन तुम्हारी बात से इतना जरूर जाकहर था कक महे न्द्र को तु म तब भी वह आदमी नहीं
समझती थीं कजसके साथ तुम कजंदगी काट सकतीं...।
स्त्री : हालााँ कक उसके बाद भी आज तक उसके साथ कजंदगी काटती आ रही हाँ ...
पुरुष चार : पर हर दू सरे -चौथे साल अपने को उससे झटक लेने की कोकिि करती हुई। इधर-उधर नजर
दौडाती हुई कब कोई जररया कमल जाए कजससे तुम अपने को उससे अलग कर सको। पहले कुछ कदन
जुनेजा एक आदमी था तुम्हारे सामने। तुमने कहा है तब तुम उसकी इज्जत करती थीं। पर आज उसके बारे
में जो सोचती हो, वह भी अभी बता चुकी हो। जुनेजा के बाद कजससे कुछ कदन चकाचौंध रहीं तुम, वह था
किवजीत। एक बडी किग्री, बडे -बडे िब्द और पूरी दु कनया घूमने का अनुभव। पर असल चीज वही कक वह
जो भी था और ही कुछ था-महें द्र नहीं था। पर जल्द ही तुमने पहचानना िुरू ककया कक वह कनहायत दोगला
ककस्म का आदमी है । हमेिा दो तरह की बात करता है । उसके बाद सामने आया जगमोहन। ऊाँचे संबंध,
जबान की कमिास, कटपटॉप रहने की आदत और खचट की दररया-कदली। पर तीर की असली नोक किर भी
उसी जगह पर-कक उसमें जो कुछ भी था, जगमोहन का-सा नहीं था। पर किकायत तुम्हें उससे भी होने लगी
थी कक वह सब लोगों पर एक सा पैसा क्यों उडता है ? दू सरे की सख्त-से-सख्त बात को एक खामोि
मुस्कराहट के साथ क्यों पी जाता है ? अच्छा हुआ, वह टर ां सिर हो कर चला गया यहााँ से , वरना.... ।
स्त्री : यह खामखाह का तानाबाना क्यों बुन रहे हैं ? जो असल बात कहना चाहते हैं , वही क्यों नहीं कहते ?
पुरुष चार : असल बात इतनी ही कक महें द्र की जगह इनमें से कोई भी आदमी होता तुम्हारी कजंदगी में, तो
साल-दो-साल बाद तु म यही महसूस करतीं कक तु मने गलत आदमी से िादी कर ली है । उसकी कजंदगी में भी
ऐसे ही कोई महें द्र, कोई जु नेजा, कोई किवजीत या मनमोहन होता कजसकी वजह से तुम यही सब सोचती,
यही सब महसूस करती। क्यों की तुम्हारे कलए जीने का मतलब रहा है -ककतना-कुछ एक साथ हो कर,
ककतना-कुछ एक साथ पा कर और ककतना-कुछ एक साथ ओढ़ कर जीना। वह उतना-कुछ कभी तुम्हें
ककसी एक जगह न कमल पाता। इसकलए कजस-ककसी के साथ भी कजंदगी िुरू करती, तुम हमेिा इतनी ही
खाली, इतनी ही बेचैन बनी रहती। वह आदमी भी इसी तरह तुम्हें अपने आसपास कसर पटकता और कपडे
िाडता नजर आता और तुम...
स्त्री : (साडी का पल्लू दााँ तो में कलए कसर कहलाती हाँ सी और रुलाई के बीच के स्वर में ) हहहहहहहह हःह-
हहहहह-हःहहः हःह हःह।
पुरुष चार : आज महें द्र एक कुढ़नेवाला आदमी है । पर एक वि था जब वह सचमुच हाँ सता था। अंदर से
हाँ सता था पर यह तभी था जब कोई साकबत करनेवाला नहीं था कक कैसे हर कलहाज से वह हीन और छोटा है
- इससे , उससे , मुझसे , तुमसे , सभी से। जब कोई उससे यह कहनेवाला नहीं था कक जो-जो वह नहीं है , वही-
वही उसे होना चाकहए और जो वह है ... ।
स्त्री : एक उसी उस को दे खा है आपने इस बीच - या उसके आस-पास भी ककसी के साथ कुछ गुजरते दे खा
है ?
पुरुष चार : वह भी दे खा है। दे खा है कक कजस मुट्ठी में तु म ककतना-कुछ एक साथ भर लेना चाहती थीं, उसमें
जो था वह भी धीरे -धीरे बाहर किसलता गया है कक तु म्हारे मन में लगातार एक िर समाता गया कजसके मारे
कभी तुम घर का दामन थामती रही हो, कभी बाहर का और कक वह िर एक दहित में बदल गया। कजस
कदन तुम्हें एक बहुत बडा झटका खाना पडा...अपनी आस्खरी कोकिि में।
पुरुष चार : मनोज का बडा नाम था। उस नाम की िोर पकड कर ही कहीं पहुाँ च सकने की आस्खरी
कोकिि में। पर तुम एकदम बौरा गईं जब तुमने पाया कक वह उतने नामवाला आदमी तुम्हारी लडकी को
साथ ले कर रातों-रात इस घर से...।
पुरुष चार : मजबूर हो कर कहना पड रहा है , कबन्नी ! तू िायद मनोज को अब भी उतना नहीं जानती
कजतना...!
पुरुष चार : ...कजतना यह जानती है । इसीकलए आज यह उसे बरदाश्त भी नहीं कर सकती। (स्त्री से ) िीक
नहीं है यह ? कबन्नी के मनोज के साथ चले जाने के बाद तु मने एक अंधाधुंध कोकिि िुरू की - कभी महे न्द्र
को ही और झकझोरने की, कभी अिोक को ही चाबुक लगाने की, और कभी उन दोनों से धीरज खो कर
कोई और ही रास्ता, कोई और ही चारा ढूाँढ़ सकने की। ऐसे में पता चला जगमोहन यहााँ लौट आया है । आगे
के रास्ते बंद पा कर तुमने किर पीछे की तरि दे खना चाहा। आज अभी बाहर गई थीं उसके साथ। क्या बात
हुई ?
स्त्री : आप समझते हैं आपको मुझसे जो कुछ भी जानने का जो कुछ भी पूछने का हक हाकसल है ?
पुरुष चार : न सही ! पर मैं कबना पूछे ही बता सकता हाँ कक क्या बात हुई होगी। तुमने कहा, तुम बहुत-बहुत
दु खी हो आज। उसने कहा, उसे बहुत-बहुत हमददी है तुमसे। तुमने कहा, तुम जैसे भी हो अब इस घर से
छु टकारा पा लेना चाहती हो। उसने कहा, ककतना अच्छा होता अगर इस नतीजे पर तुम कुछ साल पहले
पहुाँ च सकी होतीं। तुमने कहा, जो तब नहीं हुआ, वह अब तो हो ही सकता है । उसने कहा, वह चाहता है हो
सकता, पर आज इसमें बहुत-सी उलझनें सामने हैं - बच्चों की कजदं गी को ले कर, इसको-उसको ले कर।
किर भी कक इस नौकरी में उनका मन नहीं लग रहा, पता नहीं कब छोड दे , इसीकलए अपने को ले कर भी
उसका कुछ तय नहीं है इस समय। तुम गुमिु म हो कर सुनती रहीं और रूमाल से आाँ खें पोंछती रहीं।
आस्खर उसने कहा कक तुम्हें दे र हो रही है , अब लौट चलना चाकहए। तुम चुपचाप उि कर उसके साथ गाडी
में आ बैिी ं। रास्ते में उसके मुाँह से यह भी कनकला िायद कक तुम्हें अगर रुपए-पैसे की जरूरत है इस वि
तो वह...
स्त्री : बस बस बस बस बस बस ! कजतना सुनना चाकहए था, उससे बहुत ज्यादा सुन कलया है आपसे मैंने।
बेहतर यही है कक अब आप यहााँ से चले जाएाँ क्योंकक...
पुरुष चार : मैं जगमोहन के साथ हुई तुम्हारी बातचीत का सही अंदाज लगा सकता हाँ , क्योंकक उसकी जगह
मैं होता, तो मैं भी तुमसे यही सब कहा होता। वह कल-परसों किर िोन करने को कह कर घर के बाहर
उतार गया। तु म मन में एक घुटन कलए घर में दास्खल हुई और आते ही तुमने बच्ची को पीट कदया। जाते हुए
वह सामने थी एक पूरी कजंदगी - पर लौटने तक का कुल हाकसल?... उलझे हाथों का कगजकगजा पसीना
और...।
स्त्री : मैंने आपसे कहा है न, बस ! सब-के-सब...सब-के-सब! एक-से ! कबलकुल एक-से हैं आप लोग !
अलग-अलग मुखोटे , पर चे हरा? चेहरा सबका एक ही !
पुरुष चार : किर भी तुम्हें लगता रहा है कक तुम चुनाव कर सकती हो। लेककन दााँ ए से हट कर बााँ ए, सामने
से हट कर पीछे , इस कोने से हट कर उस कोने में... क्या सचमुच कहीं कोई चुनाव नजर आया है तुम्हें ?
बोलो, आया है नजर कहीं ?
कुछ पल खामोशी विसमें बडी लडकी चेहरे से हाथ हटा कर पलकें झपकाती उन दोनोों को दे खती
है। वफर अोंदर के दरवािे पर खट् -खट् सुनाई दे ती है।
स्त्री : मैंने पहले भी कहा था, मेरा घर है । मैं बेहतर जानती हाँ ।
पुरुष चार : तुम्हारा घर है । तुम बेहतर जानती हो कम-से -कम मान कर यही चलती हो। इसीकलए बहुत-
कुछ चाहते हुए मुझे अब कुछ भी संभव नजर नहीं आता। और इसीकलए किर एक बार पूछना चाहता हाँ ,
तुमसे ...क्या सचमुच ककसी तरह उस आदमी को तुम छु टकारा नहीं दे सकतीं ?
स्त्री : आप बार-बार ककसकलए कह रहे हैं यह बात ?
पुरुष चार : इसकलए कक आज वह अपने को कबलकुल बेसहारा समझता है । उसके मन में यह कवश्वास कबिा
कदया है तुमने कक सब कुछ होने पर भी उसके कजए कजदं गी में तुम्हारे कसवा कोई चारा, कोई उपाय नहीं है ।
और ऐसा क्या इसीकलए नही ककया तुमने कक कजदं गी में और कुछ हाकसल न हो, तो कम-से-कम यह नामुराद
मोहरा तो हाथ में बना ही रहे ?
स्त्री : क्यों-क्यों-क्यों-आप और-और बात करते जाना चाहते हैं ? अभी आप जाइए और कोकिि करके उसे
हमेिा के कलए अपने पास रख रस्खए। इस घर में आना और रहना सचमुच कहत में नहीं है उसके। और मुझे
भी...मुझे भी अपने पास उस मोहरे की कबलकुल-कबलकुल जरूरत नहीं है जो न खुद चलता है , न ककसी और
को चलने दे ता है ।
पुरुष चार : (पल-भर चुपचाप उसे दे खते रह कर हताि कनणटय के स्वर में) तो िीक है वह नहीं आएगा। वह
कमजोर है , मगर इतना कमजोर नहीं है । तुमसे जुडा हुआ है , मगर इतना जुडा हुआ नहीं है । उतना बेसहारा
भी नहीं है कजतना वह अपने को समझता है । वह िीक से दे ख सके, तो एक पूरी दु कनया है उसके आसपास।
मैं कोकिि करू ाँ गा कक वह आाँ ख खोल कर दे ख सके।
स्त्री : जरूर-जरूर। इस तरह उसका तो उपकार करे गें ही आप, मेरा भी इससे बडा उपकार कजदं गी में
नहीं कर सकेंगे।
पुरुष चार : तो अब चल रहा हाँ मैं। तुमसे कजतनी बात कर सकता था, कर चुका हाँ । और बात उसी से जा
कर करू ाँ गा। मुझे पता है कक ककतना मुस्िल होगा यह...किर भी यह बात मैं उसके कदमाग में कबिा कर
रहाँ गा इस बार कक...
लडका बाहर से आता है। चेहरा काफी उतरा हुआ है -िैसे कोई बडी-सी चीि कही ों हार कर आया
हो।
लडका उससे वबना आाँ ख वमलाए बडी लडकी की तरफ बढ िाता है।
सहसा हाथ रुक िाता है। बाहर से ऐसा शब्द सुनाई दे ता है , िैसे पााँव वफसल िाने से वकसी ने
दरवािे का सहारा ले कर अपने को बचाया हो।
पुरुष चार : (बाहर से दरवाजे की तरि बढ़ता) यह कौन किसला है ड्योढ़ी में ?
लडका : (उससे आगे जाता) िै िी ही होंगे। उतर कर चले आए होंगे ऐसे ही। (दरवाजे से कनकलता) आराम
से िै िी, आराम से ।
पुरुष चार : (एक नजर स्त्री पर िाल कर दरवाजे से कनकलता) साँभल कर महे न्द्रनाथ, साँभल कर....
प्रकाश खोंवडत हो कर स्त्री और बडी लडकी तक सीवमत रह िाता है। स्त्री ल्कस्थर आाँ खोों से बाहर की
तरफ दे खती आवहस्ता से कुरसी पर बैठ िाती है। बडी लडकी उसकी तरफ एक बार दे खती है ,
वफर बाहर की तरफ। हलका मातमी सोंगीत उभरता है विसके साथ उन दोनोों पर भी प्रकाश मल्किम
पडने लगता है। तभी, लगभग अाँधेरे में लडके की बााँह थामे पुरुष एक की धुाँधली आकृवत अोंदर आती
वदखाई दे ती है।
उन दोनोों के आगे बढाने के साथ सोंगीत अवधक स्पि और अाँधेरा अवधक गहरा होता िाता है।