आधे-अधूरे - - मोहन राकेश PDF

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 78

का.सू .वा.

(काले सूटवाला आदमी) जो कक पुरुष एक, पुरुष दो, पुरुष तीन तथा पुरुष चार की भूकमकाओं में
भी है । उम्र लगभग उनचास-पचास। चेहरे की किष्टता में एक व्यंग्य। पुरुष एक के रूप में वेिान्तर :
पतलून-कमीज। कजंदगी से अपनी लडाई हार चुकने की छटपटाहट कलए। पुरुष दो के रूप में : पतलून और
बंद गले का कोट। अपने आपसे संतुष्ट, किर भी आिंककत। पुरुष तीन के रूप में : पतलून-टीिटट । हाथ में
कसगरे ट का किब्बा। लगातार कसगरे ट पीता। अपनी सुकवधा के कलए जीने का दिटन पू रे हाव-भाव में। पुरुष
चार के रूप में : पतलून के साथ पुरानी कोट का लंबा कोट। चेहरे पर बुजु़ ु गट होने का खासा एहसास।
काइयााँ पन।

स्त्री। उम्र चालीस को छूती। चेहरे पर यौवन की चमक और चाह किर भी िेष। ब्लाउज और साडी साधारण
होते हुए भी सुरुकचपूणट। दू सरी साडी कविेष अवसर की।

बडी लडकी। उम्र बीस से ऊपर नहीं। भाव में पररस्थथकतयों से संघषट का अवसाद और उतावलापन। कभी-
कभी उम्र से बढ़ कर बडप्पन। साडी : मााँ से साधारण। पूरे व्यस्ित्व में एक कबखराव।

छोटी लडकी। उम्र बारह और तेरह के बीच। भाव, स्वर, चाल-हर चीज में कवद्रोह। फ्रॉक चुस्त, पर एक
मोजे में सूराख।

लडका। उम्र इक्कीस के आसपास। पतलून के अं दर दबी भडकीली बुश्शटट धुल-धुल कर कघसी हुई। चेहरे
से, यहााँ तक कक हाँ सी से भी, झलकती खास तरह की कडवाहट।

स्‍थान : मध्य-ववत्तीय स्तर से ढह कर वनम्न-मध्य-ववत्तीय स्तर पर आया एक घर।

सब रूपोों में इस्तेमाल होनेवाला वह कमरा विसमें उस घर के व्यतीत स्तर के कई एक टू टते अवशेष
- सोफा-सेट , डाइवनोंग टे बल, कबडड और डरेवसोंग टे बल आवद -वकसी-न-वकसी तरह अपने वलए िगह
बनाए हैं। िो कुछ भी है, वह अपनी अपेक्षाओों के अनुसार न हो कर कमरे की सीमाओों के अनुसार
एक और ही अनुपात से है। एक चीि का दू सरी चीि से ररश्ता तात्कावलक सुववधा की मााँ ग के
कारण लगभग टू ट चुका है। वफर भी लगता है वक वह सुववधा कई तरह की असुववधाओों से समझौता
करके की गई है - बल्कि कुछ असुववधाओों में ही सुववधा खोिने की कोवशश की गई है। सामान में
कही ों एक वतपाई , कही ों दो-एक मोढे , कही ों फटी-पुरानी वकताबोों का एक शेल्फ और कही ों पढने की
एक मेि-कुरसी भी है। गद्दे ,परदे , मेिपोश और पलोंगपोश अगर हैं , तो इस तरह वघसे , फटे या वसले
हुए की समझ में नही ों आता वक उनका न होना क्या होने से बेहतर नही ों था ?

तीन दरवािे तीन तरफ से कमरे में झााँकते हैं। एक दरवािा कमरे को वपछले अहाते से िोडता है ,
एक अोंदर के कमरे से और एक बाहर की दु वनया से। बाहर का एक रास्ता अहाते से हो कर भी है।
रसोई में भी अहाते से हो कर िाना होता है। परदा उठने पर सबसे पहले चाय पीने के बाद डाइवनोंग
टे बल पर छोडा गया अधटू टा टी-सेट आलोवकत होता है। वफर फटी वकताबोों और टू टी कुवसडयोों आवद
में से एक-एक। कुछ सेकोंड बाद प्रकाश सोफे के उस भाग पर केंवित हो िाता है िहााँ बैठा काले
सूट वाला आदमी वसगार के कश खी ोंच रहा है। उसके सामने रहते प्रकाश उसी तरह सीवमत रहता है
, पर बीच-बीच में कभी यह कोना और कभी वह कोना साथ आलोवकत हो उठता है।
का.सू .वा. : (कुछ अंतमुटख भाव से कसगार की राख झाडता) किर एक बार, किर से वही िुरुआत...।

िैसे कोवशश से अपने को एक दावयत्व के वलए तैयार करके सोफे से उठ पडता है।

मैं नहीं जानता आप क्या समझ रहे हैं मैं कौन हाँ और क्या आिा कर रहे हैं मैं क्या कहने जा रहा हाँ । आप
िायद सोचते हों कक मैं इस नाटक में कोई एक कनकित इकाई हाँ - अकभनेता, प्रस्तुतकताट , व्यवथथापक या
कुछ और; परं तु मैं अपने सं बंध में कनकित रूप से कुछ भी नहीं कह सकता - उसी तरह जैसे इस नाटक के
संबंध में नहीं कह सकता। क्योंकक यह नाटक भी अपने में मेरी ही तरह अकनकित है । अकनकित होने का
कारण यह है कक...परं तु कारण की बात करना बेकार है । कारण हर चीज का कुछ-न-कुछ होता है , हालााँ कक
यह आवश्यक नहीं कक जो कारण कदया जाए, वास्तकवक कारण वही हो। और जब मैं अपने ही संबंध में
कनकित नहीं हाँ , तो और ककसी चीज के कारण-अकारण के संबंध में कनकित कैसे हो सकता हाँ ?

वसगार के कश खी ोंचता पल-भर सोचता-सा खडा रहता है।

मैं वास्तव में कौन हाँ ? - यह एक ऐसा सवाल है कजसका सामना करना इधर आ कर मैंने छोड कदया है जो मैं
इस मंच पर हाँ , वह यहााँ से बाहर नहीं हाँ और जो बाहर हाँ ...खैर, इसमें आपकी क्या कदलचस्पी हो सकती है
कक मैं यहााँ से बाहर क्या हाँ ? िायद अपने बारे में इतना कह दे ना ही कािी है कक सडक के िुटपाथ पर
चलते आप अचानक कजस आदमी से टकरा जाते हैं , वह आदमी मैं हाँ । आप कसिट घूर कर मुझे दे ख लेते हैं -
इसके अलावा मुझसे कोई मतलब नहीं रखते कक मैं कहााँ रहता हाँ , क्या काम करता हाँ , ककस-ककससे कमलता
हाँ और ककन-ककन पररस्थथकतयों में जीता हाँ । आप मतलब नहीं रखते क्योंकक मैं भी आपसे मतलब नहीं
रखता, और टकराने के क्षण में आप मेरे कलए वही होते हैं जो मैं आपके कलए होता हाँ । इसकलए जहााँ इस
समय मैं खडा हाँ , वहााँ मेरी जगह आप भी हो सकते थे। दो टकरानेवाले व्यस्ि होने के नाते आपमें और
मुझमें, बहुत बडी समानता है । यही समानता आपमें और उसमें, उसमें और उस दू सरे में, उस दू सरे में और
मुझमें...बहरहाल इस गकणत की पहे ली में कुछ नहीं रखा है । बात इतनी है कक कवभाकजत हो कर मैं ककसी-न-
ककसी अंि में आपमें से हर-एक व्यस्ि हाँ और यही कारण है कक नाटक के बाहर हो या अंदर, मेरी कोई भी
एक कनकित भूकमका नहीं है ।

कमरे के एक वहस्से से दू सरे वहस्से में टहलने लगता है।

मैंने कहा था, यह नाटक भी मेरी ही तरह अकनकित है । उसका कारण भी यही है कक मैं इसमें हाँ और मेरे होने
से ही सब कुछ इसमें कनधाट ररत या अकनधाट ररत है । एक कविेष पररवार, उसकी कविेष पररस्थथकतयााँ ! पररवार
दू सरा होने से पररस्थथकतयााँ बदल जातीं, मैं वही रहता। इसी तरह सब कुछ कनधाट ररत करता। इस पररवार की
स्त्री के थथान पर कोई दू सरी स्त्री ककसी दू सरी तरह से मुझे झे लते - या वह स्त्री मेरी भूकमका ले लेती और मैं
उसकी भूकमका ले कर उसे झेलता। नाटक अंत तक किर भी इतना ही अकनकित बना रहता और यह कनणटय
करना इतना ही ककिन होता कक इसमें मुख्य भूकमका ककसकी थी - मेरी, उस स्त्री की, पररस्थथकतयों की, या
तीनों के बीच से उिते कुछ सवालों की।

वफर दशडकोों के सामने आ कर खडा हो िाता है। वसगार मुाँह में वलए पल-भर ऊपर की तरफ दे खता
रहता है। वफर ' हाँ ह ' के स्वर के साथ वसगार मुाँह से वनकाल कर उसकी राख झाडता है।
पर हो सकता है , मैं एक अकनकित नाटक में एक अकनकित पात्र होने की सिाई-भर पेि कर रहा हाँ । हो
सकता है , यह नाटक एक कनकित रूप ले सकता हो - ककन्ीं पात्रों को कनकाल दे ने से , दो-एक पात्र और जोड
दे ने से, कुछ भूकमकाएाँ बदल दे ने से , या पररस्थथकतयों में थोडा हे र-िेर कर दे ने से। हो सकता है , आप पूरा
दे खने के बाद, या उससे पहले ही, कुछ सुझाव दे सकें इस संबंध में। इस अकनकित पात्र से आपकी भेंट इस
बीच कई बार होगी...।

हलके अवभवादन के रूप में वसर वहलाता है विसके साथ ही उसकी आकृवत धीरे -धीरे धुाँधला कर
अाँधेरे में गुम हो िाती है। उसके बाद कमरे के अलग-अलग कोने एक-एक करके आलोवकत होते हैं
और एक आलोक व्यवस्था में वमल िाते हैं। कमरा खाली है। वतपाई पर खुला हुआ हाई स्कूल का
बैग पडा है विसमें आधी कावपयााँ और वकताबें बाहर वबखरी हैं। सोफे पर दो-एक पुराने मैगिीन ,
एक कैंची और कुछ कटी-अधकटी तस्वीरें रखी हैं। एक कुरसी की पीठ पर उतरा हुआ पािामा झल ू
रहा है। स्त्री कई-कुछ साँभाले बाहर से आती हैं। कई-कुछ में कुछ घर का है , कुछ दफ्तर का , कुछ
अपना। चेहरे पर वदन-भर के काम की थकान है और इतनी चीिोों के साथ चल कर आने की
उलझन। आ कर सामान कुरसी पर रखती हुई वह पूरे कमरे पर एक निर डाल लेती है।

स्त्री: (थकान कनकालनेवाले स्वर में) ओह् होह् होह् होह् ! (कुछ हताि भाव से ) किर घर में कोई नहीं।
(अं दर के दरवाजे की तरि दे ख कर) ककन्नी !...होगी ही नहीं, जवाब कहााँ से दे ? (कतपाई पर पडे बैग को
दे ख कर) यह हाल है इसका! (बैग की एक ककताब उिा कर) किर िाड लाई एक और ककताब ! जरा िरम
नहीं कक रोज-रोज कहााँ से पै से आ सकते हैं नयी ककताबों के कलए ! (सोिे के पास आ कर) और अिोक
बाबू यह कमाई करते रहे हैं कदन-भर ! (तस्वीर उिा कर दे खती) एकलजाबेथ टे लर...आिरेबनट ...िले मैक्लेन !

तस्वीरें वापस रख कर बैठने लगती है वक निर झल


ू ते पािामे पर िा पडती है।

(उस तरि जाती) बडे साहब वहााँ अपनी कारगुजारी कर गए हैं ।

पािामे को मरे िानवर की तरह उठा कर दे खती है और कोने में फेंकने को हो कर वफर एक झटके
के साथ उसे तहाने लगती है।

कदन-भर घर पर रह कर आदमी और कुछ नहीं, तो अपने कपडे तो किकाने पर रख ही सकता है ।

पािामे कबडड में रखने से पहले डाइवनोंग टे बल पर पडे चाय के सामान को दे ख कर और खीि िाती
है , पािामे को कुरसी पर पटक दे ती है और प्यावलयााँ वैगरह टर े में रखने लगती है।

इतना तक नहीं कक चाय पी है , तो बरतन रसोईघर में छोड आएाँ । मैं ही आ कर उिाऊाँ, तो उिाऊाँ...।

टर े उठा कर अहाते के दरवािे की तरफ बढती ही है वक पुरुष एक उधर से आ िाता है। स्त्री वठठक
कर सीधे उसकी आाँ खोों में दे खती है , पर वह उससे आाँ खें बचाता पास से वनकल कर थोडा आगे आ
िाता है।

पुरुष एक : आ गईं दफ्तर से ? लगता है , आज बस जल्दी कमल गई।


स्त्री : (टर े वापस मेज पर रखती) यह अच्छा है कक दफ्तर से आओ, तो कोई घर पर कदखे ही नहीं। कहााँ चले
गए थे तुम ?

पुरुष एक : कहीं नहीं। यहीं बाहर था - माकेट में ।

स्त्री : (उसका पाजामा हाथ में ले कर) पता नहीं यह क्या तरीका है इस घर का ? रोज आने पर पचास चीजें
यहााँ -वहााँ कबखरी कमलती हैं ।

पुरुष एक : (हाथ बढ़ा कर) लाओ, मुझे दे दो।

स्त्री : (दू सरे पाजामे को झाड कर किर से तहाती हुई) अब क्या दे दूाँ ! पहले खुद भी तो दे ख सकते थे।

गुस्से में कबडड खोल कर पािामे को िैसे उसमें कैद कर दे ती है। पुरुष एक फालतू-सा इधर-उधर
दे खता है , वफर एक कुरसी की पीठ पर हाथ रख लेता है।

(कबिट के पास आ कर टर े उिाती) चाय ककस-ककसने पी थी?

पुरुष एक : (अपराधी स्वर में) अकेले मैंने।

स्त्री : तो अकेले के कलए क्या जरूरी था कक पूरी टर े की टर े ... ककन्नी को दू ध दे कदया था ?

पुरुष एक : वह मुझे कदखी ही नहीं अब तक।

स्त्री : (टर े ले कर चलती है ) कदखे तब न जो घर पर रहे कोई।

अहाते के दरवािे से हो कर पीछे रसोईघर में चली िाती है। पुरुष एक लोंबी 'हाँ ' के साथ कुरसी को
झुलाने लगता है। स्त्री पल्ले से हाथ पोोंछती रसोईघर से वापस आती है।

पुरुष एक : मैं बस थोडी दे र के कलए कनकला था बाहर।

स्त्री : (और चीजों को समेटने में व्यस्त) मुझे क्या पता ककतनी दे र के कलए कनकले थे।...वह आज किर
आएगा अभी थोडी दे र में। तब तो घर पर रहोगे तु म ?

पुरुष एक : (हाथ रोक कर) कौन आएगा ? कसंघाकनया ?

स्त्री : उसे ककसी के यहााँ के खाना खाने आना है इधर। पााँ च कमनट के कलए यहााँ भी आएगा।

पुरुष एक वफर उसी तरह 'हाँ ' के साथ कुरसी को झुलाने लगता है।

: मुझे यह आदत अच्छी नहीं लगती तुम्हारी। ककतनी बार कह चुकी हाँ ।

पुरुष एक कुरसी से हाथ हटा लेता है।


पुरुष एक : तुम्हीं ने कहा होगा आने के कलए।

स्त्री : कहना िजट नहीं बनता मेरा ? आस्खर बॉस है मेरा।

पुरुष एक : बॉस का मतलब यह थोडे ही है न कक...?

स्त्री : तुम ज्यादा जानते हो ? काम तो मैं ही करती हाँ उसके मातहत।

पुरुष एक वफर से कुरसी को झुलाने को हो कर एकाएक हाथ हटा लेता है।

पुरुष एक : ककस वि आएगा ?

स्त्री : पता नहीं जब गुजरे गा इधर से।

पुरुष एक : (कछले हुए स्वर में) यह अच्छा है ...।

स्त्री : लोगों को ईर्ष्ाट है मुझसे , कक दो बार मेरे यहााँ आ चुका है । आज तीसरी बार आएगा।

कैंची , मैगिीन और तस्वीरें समेट कर पढने की मेि की दराि में रख दे ती है। वकताबें बैग में बोंद
करके उसे एक तरफ सीधा खडा कर दे ती है।

पुरुष एक : तो लोगों को भी पता है वह आता है यहााँ ?

स्त्री : (एक तीखी नजर िाल कर) क्यों, बुरी बात है ?

पुरुष एक : मैंने कहा है बुरी बात है ? मैं तो बस्ि कहता हाँ , अच्छी बात है ।

स्त्री : तुम जो कहते हो, उसका सब मतलब समझ में आता है मेरी।

पुरुष एक : तो अच्छा यही है कक मैं कुछ न कह कर चुप रहा करू


ाँ । अगर चुप रहता हाँ , तो...।

स्त्री : तुम चुप रहते हो। और न कोई।

अपनी चीिें कुरसी से उठा कर उन्हें यथास्थान रखने लगती है।

पुरुष एक : पहले जब-जब आया है वह, मैंने कुछ कहा है तुमसे ?

स्त्री : अपनी िरम के मारे ! कक दोनों बार तुम घर पर नहीं रहे ।

पुरुष एक : उसमें क्या है ! आदमी को काम नहीं हो सकता बाहर ?

स्त्री : (व्यस्त) वह तो आज भी हो जाएगा तुम्हें।


पुरुष एक : (ओछा पडकर) जाना तो है आज भी मुझे...पर तुम जरूरी समझो मेरा यहााँ रहना, तो...।

स्त्री : मेरे कलए रुकने की जरूरत नहीं। (यह दे खती कक कमरे में और कुछ तो करने को िेष नहीं) तु म्हें
और प्याली चाकहए चाय की ? मैं बना रही हाँ अपने कलए।

पुरुष एक : बना रही हो तो बना लेना एक मेरे कलए भी।

स्त्री अहाते के दरवािे की तरफ िाने लगती है।

: सुनो।

स्त्री रुक कर उसकी तरफ दे खती है।

: उसका क्या हुआ...वह जो हडताल होनेवाली थी तुम्हारे दफ्तर में ?

स्त्री : जब होगी पता चल ही जाएगा तुम्हें।

पुरुष एक : पर होगी भी ?

स्त्री : तुम उसी के इं तजार में हो क्या ?

चली िाती है। पुरुष एक वसर वहला कर इधर-उधर दे खता है वक अब वह अपने को कैसे व्यस्त रख
सकता है। वफर िैसे याद हो आने से शाम का अखबार िेब से वनकाल कर खोल लेता है। हर सुखी
पढने के साथ उसके चेहरे का भाव और तरह का हो िाता है - उत्साहपूणड , व्योंग्यपूणड, तनाव-भरा या
पस्त। साथ मुाँह से 'बहुत अच्छे ! 'मार वदया, 'लो' और 'अब'? िैसे शब्द वनकल पडते हैं। स्त्री रसोईघर
से लौट कर आती है।

पुरुष एक : (अखबार हटा कर स्त्री को दे खता) हडतालें तो आजकल सभी जगह हो रही हैं । इसमें दे खो...।

स्त्री : (उस ओर से कवरि) तुम्हें सचमुच कहीं जाना है क्या? कहााँ जाने की बात कर रहे थे तुम?

पुरुष एक : सोच रहा था, जुनेजा के यहााँ हो आता।

स्त्री : ओऽऽ जुनेजा के यहााँ !...हो आओ।

पुरुष एक : किलहाल उसे दे ने के कलए पैसा नहीं है , तो कम-से-कम मुाँह तो उसे कदखाते रहना चाकहए।

स्त्री : हााँ ऽऽ, कदख आओ मुाँह जा कर।

पुरुष एक : वह छह महीने बाहर रह कर आया है । हो सकता है , कोईनया कारोबार चलाने की सोच रहा हो
कजसमें मेरे कलए...
स्त्री : तुम्हारे कलए तो पता नहीं क्या-क्या करे गा वह कजंदगी में! पहले ही कुछ कम नहीं ककया है ।

झाडन ले कर कुरवसयोों वगैरह को झडना शुरू कर दे ती है।

: इतनी गदट भरी रहती है हर वि इस घर में ! पता नहीं कहााँ से चली आती है !

पुरुष एक : तुम नाहक कोसती रहती हो उस आदमी को। उसने तो अपनी तरि से हमेिा मेरी मदद ही
की है !

स्त्री : न करता मदद, तो उतना नुकसान तो न होता कजतना उसके मदद करने से हुआ है ।

पुरुष एक : (कुढ़ कर सोिे पर बैिता) तो नहीं जाता मै ! अपने अकेले के कलए जाना है मुझे! अब तक
तकदीर ने साथ नहीं कदया तो इसका यह मतलब तो नहीं कक...

स्त्री : यहााँ से उि जाओ। मुझे झाड लेने दो जरा।

पुरुष एक उठ कर वफर बैठने की प्रतीक्षा में खडा रहता है।

: उस कुरसी पर चले जाओ। वह साि हो गई है ।

पुरुष एक गाली दे ती निर से उसे दे ख कर उस कुरसी पर िा बैठता है।

: (बडबडाती) पहली बार प्रे स में जो हुआ सो हुआ। दू सरी बार किर क्या हो गया ? वही पैसा जुनेजा ने
लगाया, वही तुमने गाया। एक ही िैक्टरी लगी, एक ही जगह जमा-खचट हुआ। किर भी तकदीर ने उसका
साथ दे कदया, तुम्हारा नहीं कदया।

पुरुष एक : (गुस्से से उिता है ) तुम तो ऐसी बात करती हो जै से...

स्त्री : खडे क्यों हो गए ?

पुरुष एक : क्यों, मैं खडा नहीं हो सकता ?

स्त्री : (हलका वक्फा ले कर कतरस्कारपूणट स्वर में ) हो तो सकते हो,पर घर के अं दर ही।

पुरुष एक : (ककसी तरह गुस्सा कनगलता) मेरी जगह तु म कहस्सेदार होती न िैक्टरी की, तो तुम्हें पता चल
जाता कक...

स्त्री : पता तो मुझे तब भी चल ही रहा है । नहीं चल रहा ?

पुरुष एक : (बडबडाता) उन कदनों पैसा कलया था िैक्टरी से ! जो कुछ लगाया था, यह सारा तो िुरू में ही
कनकाल-कनकाल कर खा कलया और....
स्त्री : ककसने खा कलया ? मैंने ?

पुरुष एक : नहीं, मैंने ! पता है ककतना खचट था उन कदनों इस घर का, चार सौ रुपए महीने का मकान था।
टै स्ियों में आना-जाना होता था। ककस्तों पर कफ्रज खरीदा गया था। लडके-लडकी की कान्वेंट की िीसें
जाती थीं... ।

स्त्री : िराब आती थी। दावतें उडती थीं। उन सब पर पै सा तो खचट होता ही था।

पुरुष एक : तुम लडना चाहती हो ?

स्त्री : तुम लड भी सकते हो इस वि, ताकक उसी बहाने चले जाओ घर से।....वह आदमी आएगा, तो जाने
क्या सोचेगा कक क्यों हर बार इसके आदमी को कोई-न-कोई काम हो जाता है बाहर। िायद समझे कक मैं ही
जान-बूझ कर भेज दे ती हाँ ।

पुरुष एक : वह मुझसे तय करके आता नहीं कक मैं उसके कलए मौजूद रहा करू
ाँ घर पर।

स्त्री : कह दू ाँ गी, आगे से तय करके आया करे तु मसे। तु म इतने कबजी आदमी जो हो। पता नहीं कब ककस
बोिट की मीकटं ग में जाना पड जाए।

पुरुष एक : (कुछ धीमा पड कर , पराकजत भाव से ) तु म तो बस आमादा ही रहती हो हर वि।

स्त्री : अब जुनेजा आ गया है न लौट कर, तो रहा करना किर तीन-तीन कदन घर से गायब।

पुरुष एक : (पूरी िस्ि समेट कर सामना करता) तुम किर वही बात उिाना चाहती हो ? अगर रहा भी हाँ
कभी तीन कदन घर से बाहर, तो आस्खर ककस वजह से ?

स्त्री : वजह का पता तो तु म्हें पता होगा या तुम्हारे लडके को। वह भी तीन-तीन कदन कदखाई नहीं दे ता घर
पर।

पुरुष एक : तुम मेरा मुकाबला उससे करती हो ?

स्त्री : नहीं, उसका मुकाबला तुमसे करती हाँ । कजस तरह तुमने ख्वार की अपनी कजंदगी, उसी तरह वह
भी...

पुरुष एक : और लडकी तुम्हारी? उसने अपनी कजंदगी ख्वार करने की सीख ककससे ली है ? (अपने जाने
भारी पडता) मैंने तो कभी ककसी के साथ घर से भागने की बात नहीं सोची थी।

स्त्री : (एकटक उसकी आाँ खों में दे खती) तु म कहना क्या चाहते हो?

पुरुष एक : कहना क्या है ...जा कर चाय बना लो, पानी हो गया होगा।

सोफे पर पर बैठ कर वफर अखबार खोल लेता है , पर ध्यान पढने में लगा नही पाता ।
स्त्री : मुझे भी पता है , पानी हो गया होगा । मैं जब भी ककसी को बुलाती हाँ यहााँ , मुझे पता होता है तुम यही
सब बातें करोगे।

पुरुष एक : (जैसे अखबार में कुछ पढ़ता हुआ) हाँ -हाँ -हाँ -हाँ ।

स्त्री : वैसे हजार बार कहोगे लडके की नौकरी के कलए ककसी से बात क्यों नही करती। और जब मैं मौका
कनकलती हाँ उसके कलए तो...

पुरुष-एक : हााँ , कसंघाकनया तो लगवा ही दे गा जरूर। इसीकलए बेचारा आता है यहााँ चल कर ।

स्त्री : िुक्र नहीं मानते कक इतना बडा आदमी, कसिट एक बार कहने -भर से...

पुरुष-एक : मैं नहीं िुक्र मनाता ? जब-जब ककसी नए आदमी का आना- जाना िु रू होता है यहााँ , मैं हमेिा
िुक्र मानता हाँ । पहले जगमोहन आया करता था। किर मनोज आने लगा था...।

स्त्री : (स्थथर दृकष्ट से उसे दे खती) और क्या-क्या बात रह गई है कहने को बाकी ? वह भी कह िालो जल्दी
से।

पुरुष एक : क्यों...जगमोहन का नाम मेरी जबान पर आया नहीं कक तुम्हारे हवास गुम होने िुरू हुए ?

स्त्री : (गहरी कवतृष्णा के साथ) कजतने नािुक्रे आदमी तु म हो, उससे तो मन करता है कक आज ही मैं...

कहती हुई अहाते के दरवािे की तरफ मुडती ही है वक बाहर से बडी लडकी की आवाि सुनाई दे ती
है।

बडी लडकी : ममा !

स्त्री रुक कर उस तरफ दे खती है। चेहरा कुछ फीका पड िाता है।

स्त्री : कबन्नी आई है बाहर ।

पुरुष एक न चाहते मन से अखबार लपेट कर उठ खडा होता है।

पुरुष एक : किर उसी तरह आई होगी।

स्त्री : जा कर दे ख लोगे क्या चाकहए उसे ?

बडी लडकी की आवाि वफर सुनाई दे ती है।

बडी लडकी : ममा, टू टे पचास पैसे दे ना जरा।

पुरुष एक वकसी अनचाही ल्कस्थवत का सामना करने की तरह बाहर के दरवािे की तरफ बढता है।
स्त्री : पचास पैसे है न तुम्हारी जेब में ? होगे तो सही दू ध के पैसों से बचे हुए।

पुरुष एक : मैंने कसिट पााँ च पैसे खचट ककए हैं अपने पर... इस अखबार के।

बाहर वनकल िाता है। स्त्री पल-भर उधर दे खती रह कर अहाते के दरवािे से रसोईघर में चली
िाती है। बडी लडकी बाहर से आती है। पुरुष एक उसके पीछे -पीछे आ कर इस तरह कमरे में निर
दौडाता है िैसे स्त्री के उस कमरे में न होने से अपने को गलत िगह पर अकेला पा रहा हो।

पुरुष एक : (अपने अटपने पन को ढाँ क पाने में असमथट , बडी लडकी से ) बैि तू।

बडी लडकी : ममा कहााँ हैं ?

पुरुष एक : उधर होगी रसोई में।

बडी लडकी : (पुकार कर) ममा !

स्त्री दोनोों हाथोों में चाय की प्यावलयााँ वलए अहाते के दरवािे से आती है।

स्त्री : क्या हाल हैं तेरे ?

बडी लडकी : िीक हैं ।

पुरुष एक स्त्री को हाथोों के इशारे से बतलाने की कोवशश करता है वक वह अपने साथ सामान कुछ
भी नही ों लाई।

स्त्री : चाय लेगी?

बडी लडकी : अभी नहीं, पहले हाथ-मुाँह धो लूाँ गुसलखाने में जा कर। सारा कजस्म इस तरह कचपकचपा रहा है
कक बस....

स्त्री : तेरी आाँ खें ऐसी क्यों हो रही है ?

बडी लडकी : कैसी हो रही हैं ?

स्त्री : पता नहीं कैसी हो रही हैं !

बडी लडकी : तुम्हें ऐसे ही लग रहा। मैं अभी आती हाँ हाथ-मुाँह धो कर।

अहाते के दरवािे से चली िाती है। पुरुष एक अथडपूणड दृवि से स्त्री को दे खता उसके पास िाता है।

पुरुष एक : मुझे तो यह उसी तरह आई लगती है ।


स्त्री चाय की प्याली उसकी तरफ बढा दे ती है।

स्त्री : चाय ले लो।

पुरुष एक : (चाय ले कर) इस बार कुछ समान भी नहीं है साथ में।

स्त्री : हो सकता है । थोडी दे र के कलए आई हो।

पुरुष एक : पसट में केवल एक ही रुपया था। स्कूटर-ररक्शा का पूरा


ककराया भी नहीं ।

स्त्री : क्या पता कहीं और से आ रही हो !

पुरुष एक : तुम हमेिा बात को ढाँ कने की कोकिि क्यों करती हो ? एक बार इससे पूछती क्यों नहीं खुल
कर ?

स्त्री : क्या पूछूाँ ?

पुरुष एक : यह मैं बताऊाँगा तुम्हें ?

स्त्री चाय के घूाँट भरती एक कुरसी पर बैठ िाती है।

: (पल भर उत्तर की प्रतीक्षा करने के बाद) मेरी उस आदमी के बारे में कभी अच्छी राय नहीं थी। तुम्हीं ने
हवा बााँ ध रखी थी कक मनोज यह है , वह है - जाने क्या है ! तुम्हारी िह से उसका घर में आना-जाना न होता,
तो क्या यह नौबत आती कक लडकी उसके साथ जा कर बाद में इस तरह...?

स्त्री : (तं ग पड कर) तो खु द ही क्यों नहीं पूछ लेते उससे जो पूछना चाहते हो ?

पुरुष एक : मैं कैसे पूछ सकता हाँ ?

स्त्री : क्यों नहीं पूछ सकते ?

पुरुष एक : मेरा पूछना इसकलए गलत है कक...

स्त्री : तुम्हारा कुछ भी करना ककसी-न-ककसी वजह से गलत होता है । मुझे पता नहीं है ?

बडे -बडे घूाँट भर कर चाय की प्याली खाली कर दे ती है।

पुरुष एक : तुम्हें सब पता है ! अगर सब कुछ मेरे कहने से होता इस घर में...

स्त्री : (उिती हुई) तो पता नहीं और क्या बबाट दी हुई होती। जो दो रोटी आज कमल जाती है मेरी नौकरी से,
वह भी नहीं कमल पाती। लडकी भी घर में रह कर ही बुढ़ा जाती, पर यह न सोचा होता ककसी ने कक....
पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरि संकेत करके) वह आ रही है ।

िल्दी-िल्दी अपनी प्याली खाली करके स्त्री को दे दे ती है। बडी लडकी पहले से काफी साँभली हुई
वापस आती है।

बडी लडकी : (आती हुई) िं िे पानी के छींटे मुाँह पर मारे , तो कुछ होि आया। आजकल के कदनों में तो
बस.... (उन दोनों को स्थथर दृकष्ट से अपनी ओर दे खते पा कर) क्या बात है , ममा? आप लोग इस तरह क्यों
दे ख रहे हैं मुझे ?

स्त्री : मैं प्याकलयााँ रख कर आ रही हाँ अंदर से।

अहाते के दरवािे से चली िाती है। पुरुष एक भी आाँ खें हटा कर व्यस्त होने का बहाना खोिता है।

बडी लडकी : क्या बात है , िै िी ?

पुरुष एक : बात ?...बात कुछ भी नहीं।

बडी लडकी : (कमजोर पडती) है तो सही कुछ-न-कुछ बात।

पुरुष एक : ऐसे ही तेरी ममा कुछ कह रही थी...

बडी लडकी : क्या कह रही थीं।

पुरुष एक : मतलब वह नहीं, मैं कह रहा था उससे ...।

बडी लडकी : क्या कह रहे थे ?

पुरुष एक : तेरे बारे में बात कर रहा था

बडी लडकी : क्या बात कर रहे थे ?

स्त्री लौट कर आ िाती है।

पुरुष एक : वह आ गई है , खुद ही बता दे गी तुझे ।

िैसे अपने को ल्कस्थवत से बाहर रखने के वलए थोडा परे चला िाता है।

बडी लडकी : (स्त्री से ) िै िी मेरे में क्या बात कर रहे थे , ममा ?

स्त्री : उन्ीं से क्यों नहीं पूछती ?

बडी लडकी : वे कहते है कक तुम बतलाओगी और तु म कहती हो उन्ीं से क्यों नहीं पूछती !
स्त्री : तेरे िै िी तुमसे यह जानना चाहते हैं कक...

पुरुष एक : (बीच में ही) अगर तुम अपनी तरि से नहीं जानना चाहतीं तो रहने दो।

बडी लडकी : पर बात ऐसी है क्या जानने की ?

स्त्री : बात कसिट इतनी है कक कजस तरह से तू आजकल आती है वहााँ से , उससे इन्ें कहीं लगता है कक...

पुरुष एक : तुम्हें जैसे नहीं लगता।

बडी लडकी : (जैसे किघरे में खडी) क्या लगता है ?

स्त्री : कक कुछ है जो तू अपने मन में कछपाए रखती है , हमें नहीं बतलाती।

बडी लडकी : मेरी ककस बात से लगता है ऐसा ?

स्त्री : (पुरुष एक से ) अब कहो न इसके सामने वह सब, जो मुझसे कह रहे थे ।

पुरुष एक : तुमने िुरू की है बात, तुम्हीं पूरा कर िालो अब ।

स्त्री : (बडी लडकी से ) मैं तु मसे एक सीधा सवाल पूछ सकती हाँ ?

बडी लडकी : जरूर पूछ सकती हो ।

स्त्री : तू खुि है वहााँ पर ?

बडी लडकी : (बचते स्वर में ) हााँ , बहुत खुि हाँ ।

स्त्री : सचमुच खुि है ?

बडी लडकी : और क्या ऐसे ही कह रही हाँ ?

पुरुष एक : (कबलकुल दू सरी तरि मुाँह ककए) यह तो कोई जवाब नहीं है ।

बडी लडकी : (तुनक कर) तो जवाब क्या तभी होता है अगर मैं कहती कक मैं खुि नहीं हाँ , बहुत दु खी हाँ ?

पुरुष एक : आदमी जो जवाब दे , उसके चेहरे से भी तो झलकना चाकहए।

बडी लडकी : मेरे चेहरे से क्या झलकता है ? कक मुझे तपेकदक हो गया है ? मैं घुल-घुल कर मरी जा रही हाँ ?

पुरुष एक : एक तपेकदक ही होता है बस आदमी को ?


बडी लडकी : तो और क्या-क्या होता है ? आाँ ख से कदखाई दे ना बंद हो जाता है ? नाक-कान कतरछे हो जाते
हैं ? होंि झाड कर कगर जाते हैं ? मेरे चेहरे से ऐसा क्या नजर आता है आपको ?

पुरुष एक : (कुढ़कर लौटता) तेरी मााँ ने तुझसे पूछा है , तू उसी से बात कर। मैं इस मारे कभी पडता ही नहीं
इन चीजों में।

सोफे पर िा कर अखबार खोल लेता है। पर पल-भर बाद ध्यान हो आने से वक वह उसने उलटा
पकड रखा है , सीधा कर लेता है।

स्त्री : (बडी लडकी से ) अच्छा, छोड अब इस बात को। आगे से यह सवाल मैं नहीं पूछूाँगी तुझसे।

बडी लडकी की आाँ खें छलछला आती हैं ।

बडी लडकी : पूछने में रखा भी क्या है , ममा ! कजंदगी ककसी तरह कटती ही चलती है हर आदमी की।

पुरुष एक : (अखबार का पन्ना उलटता) यह हुआ कुछ जवाब !

स्त्री : (पुरुष एक से ) तु म चुप नहीं रह सकते थोडी दे र ?

पुरुष एक : मैं क्या कह रहा हाँ ? चुप ही बैिा हाँ यहााँ । (अखबार में पढ़ता) नाले का बााँ ध पूरा करने के कलए
बारह साल के लडके की बकल (अखबार से बाहर) आप चाहे जो कह ले, मेरे मुाँह से एक लफ्ज भी न कनकले।
(किर अखबार में से ) उदयपुर में मड्ढा गााँ व में बााँ ध के िे केदार का अमानुकषक कृत्य। (अखबार से बाहर)
हद होती है हर चीज की ।

स्त्री बडी लडकी के कोंधे पर हाथ रखे उसे पढने की मेि के पास ले िाती है।

स्त्री : यहााँ बैि ।

बडी लडकी पलकें झपकती वहााँ कुरसी पर बैठ िाती है।

: सच-सच बता, तुझे वहााँ ककसी चीज की किकायत है ?

बडी लडकी : किकायत ककसी चीज की नहीं...।

स्त्री : तो ?

बडी लडकी : और हर चीज की है ।

स्त्री : किर भी कोई खास बात ?

बडी लडकी : खास बात कोई भी नहीं...


स्त्री : तो ?

बडी लडकी : और सभी बातें खास हैं ।

स्त्री : जैसे ?

बडी लडकी : जैसे... सभी बातें।

स्त्री : तो मेरा मतलब है कक... ?

बडी लडकी : मेरा मतलब है ...कक िादी से पहले मुझे लगता था कक मनोज को बहुत अच्छी तरह जानती हाँ ।
पर अब आ कर...अब आ कर लगाने लगा है कक वह जानना कबलकुल जानना नहीं था।

स्त्री : (बात की गहराई तक जाने की तरह) हाँ !... तो क्या उसके चररत्र में कुछ ऐसा है जो... ?

बडी लडकी : नहीं। उसके चररत्र में ऐसा कुछ नहीं है । इस कलहाज से बहुत साि आदमी है वह।

स्त्री : तो किर क्या उसके स्वभाव में कोई ऐसी बात है कजससे ...?

बडी लडकी : नहीं स्वभाव उसका हर आदमी जैसा है , बस्ि आम आदमी से ज्यादा खुिकदल कहना
चाकहए उसे।

स्त्री : (और भी गहराई में जा कर कारण खोजती) तो किर ?

बडी लडकी : यही तो मैं भी नहीं समझ पाती। पता नहीं कहााँ पर क्या है जो गलत है !

स्त्री : उसकी आकथटक स्थथकत िीक है ?

बडी लडकी : िीक है ।

स्त्री : सेहत ?

बडी लडकी : बहुत अच्छी है ।

पुरुष एक : (कबना उधर दे खे) सब-कुछ अच्छा-ही-अच्छा है किर तो...। किकायत ककस बात की है ?

स्त्री : (पुरुष एक से ) तु म बात समझने भी दोगे ? (बडी लडकी से) जब इनमें से ककसी बात की किकायत
नहीं है तुझे, तब या तो कोई बहुत खास वजह होनी चाकहए, या...

बडी लडकी : या ?

स्त्री : या...या...मैं अभी नहीं कह सकती।


बडी लडकी : वजह कसिट वह हवा है जो हम दोनों के बीच से गुजरती है ।

पुरुष एक : (उस ओर दे ख कर) क्या कहा... हवा ?

बडी लडकी : हााँ , हवा।

पुरुष एक : (कनरािा भाव से कसर कहला कर , मुाँह किर दू सरी तरि करता) य ह वजह बताई है इसने ...हवा!

स्त्री : (बडी लडकी के चेहरे को आाँ खों से टटोलती) मैं ते रा मतलब नहीं समझी ?

बडी लडकी : (उिती हुई) मैं िायद समझा भी नहीं सकती (अस्थथर भाव से कुछ कदम चलती) ककसी
दू सरे को तो क्या, अपने को भी नहीं समझा सकती। (सहसा रुक कर) ममा, ऐसा भी होता है क्या कक...

स्त्री : कक ?

बडी लडकी : कक दो आदमी कजतना ज्यादा साथ रहें , एक हवा में सााँ स लें, उतना ही ज्यादा अपने को एक-
दू सरे से अजनबी महसूस करें ?

स्त्री : तुम दोनों ऐसा महसू स करते हो ?

बडी लडकी : कम-से-कम अपने कलए तो कह ही सकती हाँ ।

स्त्री : (पल-भर उसे दे खती रह कर) तू बैि कर क्यों नहीं बात करती ?

बडी लडकी : मैं िीक हाँ इसी तरह।

स्त्री : तूने जो बात कही है , वह अगर सच है , तो उसके पीछे क्या कोई-न-कोई ऐसी अडचन नहीं है जो...

बडी लडकी : पर कौन-सी अडचन ?...उसके हाथ से छलक गई चाय की प्याली, या उसके दफ्तर से लौटने
में आधा घंटे की दे री-ये छोटी-छोटी बातें अडचन नहीं होतीं, मगर अडचन बन जाती हैं । एक गुबार-सा है जो
हर वि भरा रहता है और मैं इं तजार में रहती हाँ जैसे कक कब कोई बहाना कमले कजससे उसे बाहर कनकाल
लूाँ। और आस्खर... ?

स्त्री चुपचाप आगे सुनने वक प्रतीक्षा करती है।

: आस्खर वह सीमा आ जाती है जहााँ पहुाँ च कर वह कनढाल हो जाता है । जहााँ पहुाँ च कर वह कनढाल हो जाता
है । ऐसे में वह एक बात कहता है ।

बडी लडकी : कक मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई हाँ जो ककसी भी स्थथकत में मुझे
स्वाभाकवक नहीं रहने दे तीं।

स्त्री : (जैसे ककसी ने उसे तमाचा मार कदया हो) क्या चीज ?
बडी लडकी : मैं पूछती हाँ क्या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है ।

स्त्री : वह क्या ?

बडी लडकी : कक इसका पता मुझे अपने अंदर से , या इस घर के अंदर से चल सकता है । वह कुछ नहीं
बता सकता।

पुरुष एक : (किर उस तरि मुड कर) यह सब कहता है वह ? और क्या-क्या कहता है ?

स्त्री : वह इस वि तुमसे बात नहीं कर रही।

पुरुष एक : पर बात तो मेरे घर की हो रही है ।

स्त्री : तुम्हारा घर ! हाँ ह !

पुरुष एक : तो मेरा घर नहीं है यह ? कह दो, नहीं है ।

स्त्री : सचमुच तुम अपना घर समझते इसे तो...

पुरुष एक : कह दो, कह दो, जो कहना चाहती हो।

स्त्री : दस साल पहले कहना चाकहए था मुझे...जो कहना चाहती हाँ ।

पुरुष एक : कह दो अब भी...इससे पहले कक दस-ग्यारह साल हो जाएाँ ।

स्त्री : नहीं होने पाएाँ गे ग्यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।

पुरुष एक : (एकटक उसे दे खता , काट के साथ) नहीं होने पाएाँ गे सचमुच...? कािी अच्छा आदमी है
जगमोहन ! और किर कदल्ली में उसका टर ां सिर भी हो गया है । कमला था उस कदन कनॉट प्लेस में। कह रहा
था, आएगा ककसी कदन कमलने।

बडी लडकी : (धीरज खो कर) िै िी !

पुरुष एक : ऐसी क्या बात कही है मैंने? तारीि ही की है उस आदमी की।

स्त्री : खूब करो तारीि...और भी कजस-कजस की हो सके तुमसे। (बडी लडकी से ) मनोज आज जो तुमसे
कहता है यह सब, पहले जब खुद यहााँ आता रहा है , रात-कदन यहीं रहता रहा है , तब क्या उसे पता नहीं चला
कक...

बडी लडकी : यह मैं उससे नहीं पूछती।

स्त्री : पर क्यों नहीं पूछती ?


बडी लडकी : क्योंकक मुझे कहीं लगता है कक...कैसे बताऊाँ, क्या लगता है ? वह कजतने कवश्वास के साथ यह
बात कहता है , उससे ... मुझे अपने से एक अजीब सी कचढ़ होने लगती है । मन करता है आस-पास कक हर
चीज को तोड-िोड िालूाँ। कुछ ऐसा कर िालूाँ कजससे ....

स्त्री : कजससे ?

बडी लडकी : कजससे उसके मन को कडी-से -कडी चोट पहुाँ चा सकूाँ। उसे मेरे लंबे बाल अच्छे लगते हैं ।
इसकलए सोचती हाँ , इन्ें जा कर कटा आऊाँ। वह मेरे नौकरी करने के हक में नहीं है । इसकलए चाहती हाँ
कहीं भी, कोई भी छोटी-मोटी नौकरी कर लूाँ। कुछ भी ऐसी बात कजससे एक बार तो वह अंदर से वह
कतलकमला उिे । पर कर मैं कुछ भी नहीं पाती और जब नहीं कर पाती, तो खीज कर...

स्त्री : यहााँ चली आती है ?

बडी लडकी पल-भर चुप रह कर वसर वहला दे ती है।

बडी लडकी : नहीं।

स्‍री : तो ?

बडी लडकी : कई-कई कदनों के कलए अपने को उससे काट लेती हाँ । पर धीरे -धीरे हर चीज किर उसी ढरे
पर लौट आती है । सब-कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक कक हम... जब तक कक हम नए कसरे से उसी
खोह में नहीं पहुाँ च जाते। मैं यहााँ आती हाँ ... यहााँ आती हाँ तो कसिट इसकलए कक...

स्त्री : तेरा अपना घर है ।

बडी लडकी : मेरा अपना घर !...हााँ । और मैं आती हाँ कक एक बार किर खोजने

की कोकिि कर दे खूाँ कक क्या चीज है वह इस घर में कजसे ले कर बार-बार मुझे हीन ककया जाता है । (लगभग
टू टे स्वर में) तुम बता सकती हो ममा, कक क्या चीज है वह? और कहााँ है वह ? इस घर के स्खडककयों-
दरवाजों में ? छत में? दीवारों में ? तुममें ? िै िी में ? ककन्नी में अिोक में ? कहााँ कछपी है वह मनहस चीज जो
वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई हाँ ?

(स्त्री की दोनों बााँ हें हाथ में ले कर) बताओ ममा, क्या है ? कहााँ है वह इस घर में ?

काफी लोंबा वक्फा। कुछ दे र बडी लडकी के हाथ स्त्री की बााँहोों पर रुके रहते हैं। और दोनोों की
आाँ खें वमली रहती हैं। धीरे -धीरे पुरुष एक की गरदन उनकी तरफ मुडती है। तभी स्त्री आवहस्ता से
बडी लडकी के हाथ अपनी बााँहोों से हटा दे ती है। उसकी आाँ खें पुरुष एक से वमलती हैं और वह िैसे
उससे कुछ कहने के वलए कुछ कदम उसकी तरफ बढाती है। बडी लडकी िैसे अब भी अपने
सवाल का िवाब चाहती , अपनी िगह पर रुकी उन दोनोों को दे खती रहती है। पुरुष एक स्त्री को
अपनी ओर आते दे ख आाँ खें उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमोंिस में रहने के बाद
अनिाने में ही अखबार को गोल करके दोनोों हाथो से उसकी रस्सी बटने लगता है। स्त्री आधे रास्ते
में ही कुछ कहने का ववचार छोड कर अपने को सहेिती है। वफर बडी लडकी के पास वापस िा कर
हलके से उसके कोंधे को छूती है। बडी लडकी पल-भर आाँ खें मूाँदे रह कर अपने आवेग दबाने का
प्रयत्न करती है , वफर स्त्री का हाथ कोंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा वलए उस पर बैठ िाती
है। स्त्री यह समझ न आने से वक अब उसे क्या करना चावहए, पल-भर दु ववधा में हाथ उलझाए रहती
है। उसकी आाँ खें वफर एक बार पुरुष एक से वमल िाती हैं। और वह िैसे आाँ खोों से ही उसका
वतरस्कार कर अपने को एक मोढे की ल्कस्थवत बदलने में व्यस्त कर लेती है। पुरुष एक अपनी िगह से
उठ पडता है। अखबार की रस्सी अपने हाथोों में दे ख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ दे र
अवनवित खडा रहने के बाद वफर से बैठ कर उस रस्सी के टु कडे करने लगता है। तभी छोटी लडकी
बाहर के दरवािे से आती है और उन तीनोों को उस तरह दे ख कर अचानक वठठक िाती है।

छोटी लडकी : कुछ पता ही नहीं चलता यहााँ तो।

तीनोों में से केवल एक ही स्त्री उसकी तरफ दे खती है।

स्त्री : क्या कह रही है तू ?

छोटी लडकी : बताओ चलता है कुछ पता ? स्कूल से आई हाँ , तो तुम भी हो िै िी भी हैं , कबन्न-दी भी हैं - पर
सबलोग ऐसे चुप हैं जैसे...

स्त्री : (स्त्री उसकी तरि आती है ) तू अपना बता कक आते ही चली कहााँ गई थी ?

छोटी लडकी : कहीं भी चली गई थी। घर पर था कोई कजसके पास बैिती यहााँ ? दू ध गरम हुआ है मेरा ?

स्त्री : अभी हुआ जाता है ।

छोटी लडकी : अभी हुआ जाता है ! स्कूल में भूख लगे तो कोई पैसा नहीं होता पास

में। और घर आने पर घंटा-घंटा दू ध ही नहीं होता गरम।

स्त्री : कहा है न तुमसे , अभी गरम हुआ जाता है । (पुरुष एक से ) तुम उि रहे हो या मैं जाऊाँ ?

पुरुष एक अखबार के टु कडे को दोनोों हाथोों में समेटे उठ खडा होता है।

पुरुष एक : (कोई भी कडवी चीज कनगलने की तरह) जा रहा हाँ मैं ही...।

अखबार के टु कडे पर इस तरह निर डाल लेता है िैसे वक वह कोई महत्वपूणड दस्तावेि था विसे
टु कडे -टु कडे कर वदया है।

स्त्री : (छोटी लडकी से ) तू किर एक ककताब िाड लाई है आज ?

पुरुष एक चलते-चलते रुक िाता वक इस महत्वपूणड प्रकरण का भी वनपटारा भी दे ख ही ले।


छोटी लडकी : अपने आप िट गई, तो मैं क्या करू
ाँ ? आज कसलाई की क्लास में किर वही हुआ मेरे साथ।
कमस ने कहा....

स्त्री : तू कमस की बात बाद में करना। पहले यह बता कक..

छोटी लडकी : रोज कहती हो, बाद में करना। आज भी मुझे रीलें ला कर न दीं, तो मैं स्कूल नहीं जाऊाँगी
कल से। कमस ने सारी क्लास के सामने मुझसे कहा कक...

स्त्री : तू और तेरी कमस ! रोग लगा रखा है जान को !

छोटी लडकी : तो उिा लो न मुझे स्कूल से। जैसे िोकी मारा-मारा किरता है सारा कदन, मैं भी किरती रहा
करू
ाँ गी।

बडी लडकी इस बीच काफी अल्कस्थर महसूस करती छोटी लडकी को दे खती है।

बडी लडकी : (अपने को रोक पाने में असमथट ) तुझे तमीज से बात करना नहीं आता ? बडा भाई है तेरा।

छोटी लडकी : क्यों...किरता नहीं मारा-मारा सारा कदन ?

बडी लडकी : ककन्नी !

छोटी लडकी : तुम यहााँ थीं, तो क्या कुछ कहा करती थीं उसके बारे में? तुम्हारा भी तो बडा भाई है । चाहे
एक ही साल बडा है , है तो बडा ही।

बडी लडकी : (स्त्री से ) ममा, तुमने इस लडकी की जबान बहुत खोल दी है ।

पुरुष एक : अगर यही बात मैं कह दू ाँ ना इससे ....।

स्त्री : पहले जो-जो कहना है , वह कह लो तु म। उसके बाद दे ख लेना अगर...

पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरि चलता) कहना क्या है ? कहता ही नहीं कभी । मैं दू ध गरम कर
रहा हाँ इसका ।

दरवािे से वनकल िाता है ।

छोटी लडकी : कल मुझे रीलों का किब्बा जरूर चाकहए और कमस बैनजी ने सब लडककयों से कहा है आज
कक िाऊंिसट -िे पी. टी. के कलए तीन-तीन नए ककट...

स्त्री : ककतने ?

छोटी लडकी : तीन-तीन। सब लडककयों को बनाने हैं । और तुमने कहा था स्क्लप और मोजे इस हफ्ते
जरूर आ जाएाँ गे, आ गए हैं ? ककतनी िरम आती है मुझे िटे मोजे पहन कर स्कूल जाते !
पल-भर की औघड खामोशी।

स्त्री : (जैसे अपने को उस प्रकरण से बचाने की कोकिि में ) अच्छा, दे ख... स्कूल से आ कर तू अपना बैग
यहााँ खुला छोड गई थी ! मैंने आ कर बंद ककया है । पहले इसे अंदर रख कर आ।

छोटी लडकी : तुमने मेरी बात सुनी है ?

स्त्री : सुन ली है ।

छोटी लडकी : तो जवाब क्यों नहीं कदया कुछ? (कोने से बैग उिा कर झटके से अं दर को चलती) मै कर
रही हाँ स्क्लप और मोजों की बात और कह रही हैं बैग रख कर आ अंदर ।

चली िाती है। बडी लडकी कुरसी से उठ पडती है।

बडी लडकी : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह दें इससे , तो रासें इस तरह कस दी
जाती थीं कक बस !

स्त्री पल-भर अपने में डूबी खडी रहती है।

स्त्री : (चेष्टा से अपने को सहे ज कर) क्या कहा तूने ?

बडी लडकी : मैंने कहा कक...(सहसा स्त्री के भाव के प्रकत सचेत हो कर) तुम सोच रही थीं कुछ ?

स्त्री : नहीं...सोच नहीं रही थी (इधर-उधर नजर िालती) दे ख रही थी कक और कुछ समेटने को तो नहीं है ।
अभी कोई आनेवाला है बाहर से और....।

बडी लडकी : कौन आनेवाला है ?

पुरुष एक दू ध के वगलास में चीनी वहलाता अहाते के दरवािे से आता है।

पुरुष एक : कसंघाकनया। इसका बॉस। वह नया आना िु रू हुआ है आजकल।

वगलास डायवनोंग टे बल पर छोड कर वबना वकसी की तरफ दे खे वापस चला िाता है। स्त्री कडी
निर से उसे िाते दे खती है। बडी लडकी स्त्री के पास िाती है।

बडी लडकी : ममा !

स्त्री की आाँ खें घूम कर बडी लडकी के चेहरे पर अल्कस्थर होती हैं। कह कुछ नही ों पाती।

: क्या बात है , ममा !

स्त्री : कुछ नहीं।


बडी लडकी : किर भी ?

स्त्री : कहा है ना, कुछ नहीं।

वहााँ से हट कर कबडड के पास चली िाती है और उसे खोल कर अोंदर से कोई चीि ढू ाँ ढने लगती है ।

बडी लडकी : (उसके पीछे जा कर) ममा !

स्त्री कोई उत्तर न दे कर कबडड में से एक मेिपोश वनकाल लेती और कबडड बोंद कर दे ती है।

: तुम तो आदी हो रोज-रोज ऐसी बातें सुनने की। कब तक इन्ें मन पर लाती रहोगी ?

स्त्री उसका वाक्य पूरा होने तक रुकी रहती है वफर िाकर वतपाई का मेिपोश बदलने लगती है।

: (उसकी तरि आती) एक तुम्हीं करनेवाली हो सब-कुछ इस घर में। अगर तुम्हीं....

स्त्री के बदलते भाव को दे ख कर बीच में ही रुक िाती है। स्त्री पुराने मेिपोश को हाथोों में वलए एक
निर उसे दे खती है , वफर उमडते आवेग को रोकने की कोवशश में चेहरा मेिपोश से ढाँ क लेती है।

: (कािी धीमे स्वर में) ममा !

स्त्री आवहस्ता से मोढे पर बैठती हुई मेिपोश चेहरे से हटाती है।

स्त्री : (रुलाई कलए स्वर में) अब मुझसे नहीं होता, कबन्नी। अब मुझसे नहीं साँभलता।

पुरुष एक अहाते के दरवािे से आता है-दो िले टोस्ट एक प्लेट में वलए। स्त्री के शब्द उसके कानो में
पडते हैं , पर वह िानबूझ कर अपने चेहरे से कोई प्रवतविया व्यक्त नही ों होने दे ता। प्लेट दू ध के
वगलास के पास छोड कर वकताबोों के शेल्फ की तरफ चला िाता है और उसके वनचले वहस्से में रखी
फाइलोों में से िैसे कोई खास फाइल ढू ाँ ढने लगता है। बडी लडकी बात करने से पहले पल भर को
वक्फा ले कर उसे दे खती है।

बडी लडकी : (कविेष रूप से उसी को सुनाती , स्त्री से ) जो तुमसे नहीं साँभलता, वह और ककससे साँभल
सकता है इस घर में... जान सकती हाँ ?

पुरुष एक िैसे फाइल की धूल झाडने के वलए उसे दो-एक िोर के हाथ लगा कर पीट दे ता है।

: जब से बडी हुई हाँ तभी से दे ख रही हाँ । तुम सब-कुछ सह कर भी रात-कदन अपने को इस घर के कलए
हलाक करती रही हो और...

पुरुष एक अब एक और फाइल को उससे भी तेि और ज्यादा बार पीट दे ता है

स्त्री : पर हुआ क्या है उससे?


न सह पाने की निर से पुरुष एक की तरफ दे ख कर मोढे से उठ पडती है। पुरुष एक दोनोों फाइलोों
को िोर-िोर आपस में से टकराता है।

: (एकाएक पुरुष एक की थप-थप से उतावली पड कर) तुम्हें सारे घर में यह धूल इसी वि िैलानी है क्या
?

पुरुष एक : जुनेजा की िाइल ढूाँढ़ रहा था। नहीं ढूाँढ़ता।

िैसे-तैसे फाइलोों को उसकी िगह में वापस ठूाँसने लगता है। छोटी लडकी पााँव पटकती अोंदर से
आती है।

छोटी लडकी : दे ख लो ममा, यह मुझे किर तंग कर रहा है ।

बडी लडकी : (लगभग िााँ टती) तू कचल्ला क्यों रही है इतना ?

छोटी लडकी : कचल्ला रही हाँ क्योंकक िोकी अंदर मुझे...

बडी लडकी : िोकी-िोकी क्या होता है ? तू अिोक भापाजी नहीं कह सकती ?

छोटी लडकी : अिोक भापाजी ?... वह ?

व्योंग्य के साथ हाँसती है।

स्त्री : अिोक अंदर क्या कर रहा है इस वि ? मैं सोचती थी कक वह...

छोटी लडकी : पडा सो रहा था अब तक। मैंने जा कर जगा कदया, तो लगा मेरे बाल खींचने।

लडका अोंदर से आता है। लगता है , दो-तीन वदन से उसने शेव नही ों की।

लडका : कौन सो रहा था ? मैं ? कबलकुल झूि।

बडी लडकी : िेव करना छोड कदया है क्या तूने ?

लडका : (अपने चेहरे को छूता) फ्रेंचकट रखने की सोच रहा हाँ । कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?

छोटी लडकी : (उतावली पकड कर) मेरी बात सुनी नहीं ककसी ने। अंदर मेरे बाल खींच रहा था और बाहर
आ कर अपनी फ्रेंचकट बता रहा है ।

डायवनोंग टे बल से दू ध का वगलास ले कर गटगट दू ध पी िाती है। पुरुष एक इस बीच शेल्फ और


फाइलोों से उलझा रहता है। एक फाइल को वकसी तरह अोंदर समाता है तो कुछ और फाइलें बाहर
को वगर आती है , उन्हें साँभालता है , तो पहले की फाइलें पीछे वगर िाती हैं।
स्त्री : (लडके के पास आती) तु मसे एक बात पूछूाँ ?

लडका : पूछो ।

स्त्री : इस लडकी की क्या उम्र है ?

लडका : यही तो मै तुमसे पू छना चाहता हाँ कक बारह साल की उम्र में यह लडकी... ?

बडी लडकी : तेरह साल की उम्र में।

स्त्री : तेरह साल की लडकी ककतनी बडी होती है ?

स्त्री : तेरह साल की लडकी तेरह साल बडी होती है और तेरह साल

बडी ही होनी चाकहए उसे , जबकक यह लडकी....

स्त्री : बच्ची नहीं है अब जो तू इसके बाल खींचता रहे ।

छोटी लडकी लडके की तरफ िबान वनकालती है। पुरुष एक फाइलोों को वकसी तरह समेट कर उठ
पडता है।

लडका : तब तो सचमुच मुझे गलती माननी चाकहए।

स्त्री : जरूर माननी चाकहए... ।

लडका : कक मैंने खामखाह इसके हाथ से वह ककताब छीन ली।

पुरुष एक : (अपनी तटथथता बनाए रखने में असमथट , आगे आता) कौन- सी ककताब ?

छोटी लडकी : झूि बोल रहा है । मैंने कोई ककताब नहीं ली इसकी।

टोस्टोों वाली प्लेट हाथ में वलए मेि पर बैठ िाती है।

पुरुष एक : (लडकी के पास पहुाँ च कर) कौन-सी ककताब ?

लडका : (बुिटट के अंदर से ककताब कनकाल कर कदखाता) यह ककताब।

छोटी लडकी : झूि, कबलकुल झूि। मैंने दे खी भी नहीं यह ककताब।

लडका : (आाँ खे िाड कर उसे दे खता) नहीं दे खी ?

छोटी लडकी : (कमजोर पड कर ढीिपन के साथ) तू तककए के नीचे रख कर सोए, तो भी नहीं। मैंने जरा
कनकाल कर दे ख दे ख-भर ली, तो...।
पुरुष एक : (हाथ बढ़ा कर) मैं दे ख सकता हाँ ?

लडका : (ककताब वापस बुिटट में रखता) नहीं...आपके दे खने की नहीं है । (स्त्री से) अब किर पूछो मुझसे
कक इसकी उम्र ककतने साल है ?

बडी लडकी : क्यों अिोक... यह वही ककताब है न कैसानोवा... ?

पुरुष : (ऊाँचे स्वर में ) िहरो (बारी-बारी से उन सबकी ओर दे खता) पहले मैं यह जान सकता हाँ यहााँ ककसी
से कक मेरी उम्र ककतने साल की है ?

कुछ पलोों का व्यवधान , विसमें वसफड छोटी लडकी की मुाँह और टााँगें चलती रहती हैं ।

स्त्री : ऐसी क्या बात कह दी ककसी ने कक...

पुरुष : (एक-एक िब्द पर जोर दे ता) मैं पूछ रहा हाँ कक मेरी उम्र ककतने साल की है ? ककतने साल है मेरी
उम्र ?

स्त्री : (उि रही स्थथकत के कलए तैयार हो कर) यह तुम्हें पूछ कर जानना है क्या ?

पुरुष एक : हााँ , पूछ कर ही जानना है आज। ककतने साल हो चुके हैं मुझे कजंदगी का भार ढोते ? उनमें से
ककतने साल बीते हैं मेरे पररवार की दे ख-रे ख करते ? और उस सबके बाद मैं आज पहुाँ चा कहााँ हाँ ? यहााँ कक
कजसे दे खो वही मुझसे उलटे ढं ग से बात करता है ? कजसे दे खो, वही मुझसे बदतमीजी से पेि आता है ?

लडका : (अपनी सिाई दे ने की कोकिि में ) मैंने तो कसिट इसकलए कहा था, िै िी, कक...

पुरुष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है । इसने इसकलए कहा था। उसने उसकलए कहा था।
मैं जानना चाहता हाँ कक मेरी क्या यही है कसयत है इस घर में कक जो जब कजस वजह से जो भी कह दे मैं
चुपचाप सुन कलया करू ाँ ? हर वि की दु त्कार, हर वि की कोंच, बस यही कमाई है यहााँ मेरी इतने सालों
की...

स्त्री : (कवतृष्णा से उसे दे खती) यह सब ककसे सुना रहे हो तुम ?

पुरुष एक : ककसे सुना सकता हाँ ? कोई है जो सुन सकता है ? कजन्ें सुनना चाकहए, वे सब तो एक रबड-
स्टैं प के कसवा कुछ समझते ही नहीं मुझे। कसिट जरूरत पडने पर इस स्टैं प का िप्पा लगा कर...

स्त्री : यह बहुत बडी बात नहीं कह रहे तुम ?

लडका : (उसे रोकने की कोकिि में) ममा...!

स्त्री : मुझे कसिट इतना पूछ लेने दे इनसे कक रबड-स्टैं प के माने क्या होते हैं ? एक अकधकार, एक रुतबा, एक
इज्जत यही न ?
लडका : (किर उसी कोकिि में) सुनो तो सही, ममा... !

स्त्री : (कबना ककसी तरि ध्यान कदए) यह सब कब-कब कमला है इनसे ककसी को भी इस घर में ? ककस माने
में ये कहते है कक....?

पुरुष-एक : ककसी माने में नहीं । मैं इस घर मे ाँ एक रबड-स्टैं प भी नहीं, कसिट एक रबड का टु कडा हाँ --बार-
बार कघसा जानेवाला रबड का टु कडा। इसके बाद क्या कोई मुझे वजह बता सकता है , एक भी ऐसी वजह,
कक क्यों मुझे रहना चाकहए इस घर में?

सब लोग चुप रहते हैं।

: नहीं बता सकता न ?

स्त्री : मैंने एक छोटी-सी बात पूछी है तुमसे ...

पुरुष एक : (कसर कहलाता) हााँ ...छोटी-सी बात ही तो है यह। अकधकार, रुतबा, इज्जत - यह सब बाहर के
लोगों से कमल सकता है इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है , या आगे बन सकता है , तो कसिट
बाहर के लोगों के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ कबगडता आया है और आगे कबगड-ही-कबगड सकता है ।
(लडके की तरि इिारा करके) यह आज तक बेकार क्यों घूम रहा है ? मेरी वजह से। (बडी लडकी की
तरि इिारा करके) यह कबना बताए एक रात घर से क्यों भाग गई थी ? मेरी वजह से। (स्त्री के कबलकुल
सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने सालों से क्यों चाहती रही हो कक... ?

स्त्री : (बौखला कर , िेष तीनों से) सुन रहे हो तु म लोग ?

पुरुष एक : अपनी कजंदगी चौपट करने का कजम्मेदार मैं हाँ । इन सबकी कजंदकगयााँ चौपट करने का कजम्मेदार
मैं हाँ । किर भी मैं इस घर से कचपका हाँ क्योंकक अंदर से मैं आराम-तलब हाँ , घरघुसरा हाँ , मेरी हकियों में जं ग
लगा है ।

स्त्री : मैं नहीं जानती, तुम सचमुच ऐसा महसूस करते हो या.. ?

पुरुष : सचमुच महसूस करता हाँ । मुझे पता है , मैं एक कीडा हाँ कजसने अंदर-ही-अं दर इस घर को खा कलया
है (बाहर के दरवाजे की तरि चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेिा के कलए भर गया है (दरवाजे के
पास रुक कर) और बचा भी क्या है कजसे खाने के कलए और रहता रहाँ यहााँ ?

चला िाता है। कुछ दे र के वलए सब लोग िड-से हो रहते हैं। वफर छोटी लडकी हाथ के टोस्ट को
मुाँह की ओर ले िाती है।

बडी लडकी : तुम्हारा खयाल है , ममा...?

स्त्री : लौट आएाँ गे रात तक। हर िुक्र-िनीचर यही सब होता है यहााँ ।

छोटी लडकी : (जूिे टोस्ट को प्लेट में वापस पटकती है ) थू:-थू:।


बडी लडकी : (कािी गुस्से के साथ) तुझे क्या हो रहा है वहााँ ?

छोटी लडकी : मुझे क्या हो रहा है यहााँ ? यह टोस्ट है , कोयला है ?

स्त्री : (दााँ त भींचे) तू इधर आएगी एक कमनट ?

छोटी लडकी : नहीं आऊाँगी।

बडी लडकी : नहीं आएगी ?

छोटी लडकी : नहीं आऊाँगी। (सहसा उि कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल खींचे जाते हैं । बाहर
आओ, तो ककटकपट-ककटकपट-ककटकपट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने
हैं ।

चली िाती है।

लडका : (उसके पीछे जाने को हो कर) मैं दे खता हाँ इसे कम-से -कम लडकी को तो मुझे...

दरवािे के पास पहुाँचता ही है वक पीछे से स्त्री आवाि दे कर उसे रोक लेती है।

स्त्री : सुन।

लडका : (ककसी तरह कनकल जाने की कोकिि में) पहले मैं जा कर इसे ...

स्त्री : (कािी सख्त स्वर में) पहले तू आ कर यहााँ ... बात सुन मेरी।

लडका वकसी िरूरी काम पर िाने से रोक वलए िाने की मुिा में लौट कर स्त्री के पास आ िाता है।

लडका : बताओ।

स्त्री : कम-से -कम तुझे इस वि कहीं नहीं जाना है । वह आज किर आनेवाला है थोडी दे र में और...

लडका : ('मुझे क्या, कोई आनेवाला है तो ?' की मुद्रा में ) कौन आनेवाला है ?

बडी लडकी : ममा का बॉस...क्या नाम है उसका ?

लडका : अच्छा, वह... आदमी !

बडी लडकी : तू कमला है उससे ?

लडका : दो बार।

बडी लडकी : कहााँ ?


लडका : इसी घर में।

स्त्री : (बडी लडकी से ) दोनों बार के कलए बुलाया था मैंने उसे , आज भी इसी की खाकतर?

लडका : (कुछ तीखा पड कर) मेरी खाकतर ? मुझे क्या लेना-दे ना है उससे ?

बडी लडकी : ममा उसके जररए तेरी नौकरी के कलए कोकिि कर रही होंगी न... ।

लडका : मुझे नहीं चाकहए नौकरी। कम-से -कम उस आदमी के जररए हरकगज नहीं।

बडी लडकी : क्यों, उस आदमी को क्या है ?

लडका : चुकंदर है । वह आदमी है कजसे बैिने का िऊर है , न बात करने का।

स्त्री : पााँ च हजार तनख्वाह है उसकी। पूरा दफ्तर साँभलता है ।

लडका : पााँ च हजार तनख्वाह है , पूरा दफ्तर साँभलता है , पर इतना होि नहीं है कक अपनी पतलून के
बटन...

स्त्री : अिोक !

लडका : तुम्हारा बॉस न होता, तो उस कदन मैं कान से पकड कर घर से कनकाल कदया होता। सोिे पे टााँ ग
पसारे आप सोच कुछ रहे हैं , जााँ घ खुजलाते दे ख ककसी तरि रहे है और बात मुझसे कर रहे हैं ... (नकल
उतारता) 'अच्छा, यह बतलाइए कक आपके राजनीकतक कवचार क्या हैं?' राजनीकतक कवचार हैं मेरी खुजली
और उसकी मरहम !

स्त्री : (अपना माथा सहला कर बडी लडकी से ) ये लोग हैं कजनके कलए मैं जानमारी करती हाँ रात-कदन।

लडका : पहले पााँ च सेकंि आदमी की आाँ खों में दे खता रहे गा किर होंिों के दाकहने कोनो से जरा-सा
मुस्कुराएगा। किर एक-एक लफ्ज को चबाता हुआ पूछेगा... (उसके स्वर में) 'आप क्या सोचते हैं , आजकल
युवा लोगों में इतनी अराजकता क्यों है ?' ढूाँढ़-ढूाँढ़ कर सरकारी कहं दी के लफ्ज लाता है -युवा लोगों में !
अराजकता !

स्त्री : तो किर ?

लडका : तो किर क्या ?

स्त्री : तो किर क्या मरजी है तेरी ?

लडका : ककस चीज को ले कर ?

स्त्री : अपने-आपको।
लडका : मुझे क्या हुआ ?

स्त्री : कजंदगी में तुझे भी कुछ करना-धरना है या बाप ही की तरह...?

लडका : (किर तीखा पकड कर) हर बात में खामखाह उनका कजक्र क्यों बीच में लाती हो ?

स्त्री : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नहीं की। एयर-कफ्रज में नौकरी कदलवाई थी, तो वहााँ से छह हफ्ते बाद छोड कर
चला आया। अब मैं नए कसरे से कोकिि करना चाहती हाँ तो...

लडका : पर क्यों करना चाहती हो ? मैंने कहा है तुमसे कोकिि करने के कलए ?

बडी लडकी : तो तेरा मतलब है कक तू...कजंदगी-भर कुछ भी नहीं करना चाहता?

लडका : ऐसा कहा है मैंने ?

बडी लडकी : तो नौकरी के कसवा ऐसा क्या है जो तू....?

लडका : यह मैं नहीं कह सकता। कसिट इतना कह सकता हाँ कक कजस चीज में मेरी अंदर से कदलचस्पी नहीं
है ...।

स्त्री : कदलचस्पी तो तेरी...।

बडी लडकी : िहरो ममा... !

स्त्री : तू िहर, मुझे बात करने दे । (लडके से ) कदलचस्पी तो तेरी कसिट तीन चीजों में है - कदन-भर ऊाँघने में,
तस्वीरे काटने में और...घर की यह चीज वह चीज ले जा कर....

लडका : (कडवी नजर से उसे दे खता) इसे घर कहती हो तुम ?

स्त्री : तो तू इसे क्या समझ कर रहता है यहााँ ?

लडका : मैं इसे ...

बडी लडकी : (उसे बोलने न दे ने के कलए) दे ख अिोक, ममा के यह सब कहने का मतलब कसिट इतना है
कक...

लडका : मैं नहीं जानता मतलब ? तू चली गई है यहााँ से , मैं तो अभी यहीं रहता हाँ ।

स्त्री : (हताि भाव से) तो क्यों नहीं तू भी किर... ?

बडी लडकी : (कझडकने के स्वर में) कैसी बात कर रही हो, ममा !
स्त्री : कैसी बात कर रही हाँ ? यहााँ पर सब लोग समझते क्या हैं मुझे ? एक मिीन, जोकक सबके कलए आटा
पीस कर रात को कदन और कदन को रात करती रहती है ? मगर ककसी के मन में जरा- सा भी खयाल नहीं है
इस चीज के कलए कक कैसे मैं.. ।

इस बीच ही बाहर के दरवािे पर पुरुष दो की आकृवत वदखाई दे ती है िो वकवाड को हलके से


खटखटा दे ता है। स्त्री चौक
ों कर उधर दे खती है और अपनी अधकही बात को बीच में ही चबा िाती
है।

:(स्वर को ककसी तरह साँभालती) आप?.. आ गए हैं आप ? ...आइए-आइए अंदर।

बडी लडकी : (दाकयत्वपूणट ढं ग से दरवाजे की तरि बढ़ती) आइए।

पुरुष दो अभ्यस्त मुिा में उनके अवभवादन का उत्तर दे ता अोंदर आ िाता है।

स्त्री : यह मेरी बडी लडकी कबन्नी। अिोक तो आपसे कमल ही चुका है ।

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा यही है वह लडकी। तुम चचाट कर रही थीं इसकी। इसका ऑपरे िन हुआ था न
कपछले साल...न-न-न न। वह तो कमसेज माथुर की लडकी का ? नहीं िायद...पर हुआ था ककसी की लडकी
का।

स्त्री : यहााँ आ जाइए सोिे पर !

सोफे की तरफ बढते हुए पुरुष दो की आाँ खें लडके से वमल िाती हैं। लडका चलते ढों ग से उसे हाथ
िोड दे ता है। पुरुष दो वफर उसी अभ्यस्त ढों ग से उत्तर दे ता है।

पुरुष दो : (बैिता हुआ) इतने लोगों से कमलना-जुलना होता है कक...(अपनी घडी दे ख कर) पााँ च कमनट हैं
सात में। उनका अनुरोध था, सात तक अवश्य पहुाँ च जाऊाँ। कई लोगों को बुला रखा है उन्ोंने - कविेष रूप
से कमलने के कलए (बडी लडकी को ध्यान से दे खता, स्त्री से ) तुमने बताया था कुछ इसके कवषय में। ककस
कॉलेज में है यह?

स्त्री : अब कॉलेज में नहीं है ...

पुरुष दो : हााँ -हााँ -हााँ ...बताया था तुमने। (बडी लडकी से ) बैिो न। (स्त्री से ) बैिो तुम भी।

स्त्री सोफे के पास कुरसी पर बैठ िाती है। बडी लडकी कुछ दु ववधा में खडी रहती है।

स्त्री : बैि जा, खडी क्यों है ?

बडी लडकी : ये जल्दी चले जाएाँ गे, सोच रही थी चाय का पानी... ।

पुरुष दो : नहीं-नहीं, चाये -वाय नहीं इस समय। वैसे भी बहुत कम पीता हाँ । एक लेख था कहीं ररजिट
िाइजेस्ट में था?... कक अकधक चाय पीने से (जााँ घ खुजलाता) रीिसट िाइजेस्ट भी क्या चीज कनकालते हैं !
अपने यहााँ तो बस ये कहाकनयााँ वो कहाकनयााँ , कोई अच्छी पकत्रका कमलती ही नहीं दे खने को। एक अमेररकन
आया हुआ था कपछले कदनों। बता रहा था कक...

लडका िो इतनी दे र परे खडा रहता है , अब बढ कर उनके पास आ िाता हैं।

लडका : (स्त्री से ) ऐसा है ममा, कक...

स्त्री : रुक अभी। (पुरुष दो से) एक प्याली भी नहीं लेंगे ?

पुरुष दो : ना, कबलकुल नहीं।...अंतरराष्टरीय संपकट हैं कंपनी के, सो सभी दे िों के लोग कमलने आते रहते हैं ।
जापान से तो पूरा प्रकतकनकध-मंिल ही आया हुआ था कपछले कदनों...। कुछ भी ककहए, जापान ने सबकी नाक
में नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस कदन मैं जापान की कपछले वषट की औद्योकगक सां ख्यकी दे ख रहा
था... ।

लडका : मैं क्षमा चाहाँ गा क्योंकक...

स्त्री : तुमसे कहा है , रुक अभी थोडी दे र। (पुरुष दो से ) आप कॉिी पसंद करते हों, तो...

पुरुष दो : न चाय, न कॉिी। एक घटना सुनाऊाँ आपको, कॉिी पीने के संबंध में। आज की बात नहीं, बहुत
साल पहले की है । तब की जब मैं कवश्वकवद्यालय की साकहत्य-सभा का मंत्री था। (मन में उस बात का रस
लेता) हैं -हैं -ह-हैं -हााँ -हैं ।...साकहस्त्यक गकतकवकधयों में रुकच आरं भ से ही थी। सो... (बडी लडकी और लडके से )
बैि जाओ तुम लोग।

बडी लडकी बैठ िाती है।

लडका : बात यह है कक...

स्त्री : (उिती हुई) ! मैं थोडा नमकीन ले कर आ रही हाँ ।

लडके को बैठने के वलए कोोंच कर अहाते के दरवािे से चली िाती है। लडका असोंतुि भाव से उसे
दे खता है , वफर टहेलता हुआ पढने की मेि के पास चला िाता है। बडी लडकी से आाँ ख वमलने पर
हलके से मुाँह बनाता है और कुरसी का रुख थोडा सोफे की तरफ करके बैठ िाता है।

पुरुष दो : (बडी लडकी से ) तुम्हें पहले कहीं दे खा है ... नहीं दे खा ?

बडी लडकी : मुझे ?...आपने ?

पुरुष दो : ककसी इं टरव्यू में ?

बडी लडकी : नहीं तो।

पुरुष दो : किर भी लगता है दे खा है ।...कोई और होगी। कबलकुल तुम्हारे जैसी थी। कवकचत्र बात नहीं है यह ?
बडी लडकी : क्या ?

पुरुष दो : कक बहुत-से लोग एक-दू सरे जैसे होते हैं । हमारे अंकल हैं एक। पीि से दे खो - मोरारजी भाई
लगते हैं ।

लडका इस बीच मेि की दराि खोल कर तस्वीरें वनकाल लेता है और उन्हें मेि पर फैलाने लगता
है।

लडका : हमारी आं टी हैं एक। गरदन काट कर दे खो - जीता लोलोकिकजदा नजर आती हैं ।

पुरुष दो : हााँ !...कई लोग होते हैं ऐसे। जीवन की कवकचत्रताओं की ओर ध्यान दे ने लगें, तो कई बार तो
लगता है कक... (सहसा जेबें टटोलता) भूल तो नहीं आया घर पर ?(जेब से चश्मा कनकाल कर वापस रखता)
नहीं। तो मैं कह रहा था कक...क्या कह रहा था ?

बडी लडकी : कक जीवन की कवकचत्रताओं की ओर ध्यान दे ने लगें, तो...

लडका : जापान की औद्योकगक... क्या थी वह ? उसकी बात नहीं कर रहे थे ?

स्त्री इस बीच नमकीन की प्लेट वलए अहाते के दरवािे से आ िाती है।

स्त्री : कोई घटना सुना रहे थे कॉिी पीने के संबंध में।

पुरुष दो : हााँ ...तो...तो...तो वह...वह जो...।

स्त्री : लीकजए थोडा-सा।

पुरुष दो : हााँ -हााँ ... जरूर (बडी लडकी से) लो तुम भी (स्त्री से ) बैि जाओ अब।

स्त्री : (मोढ़े पर बैिती) उस कवषय में सोचा आपने कुछ ?

पुरुष दो : (मुाँह चलाता) ककस कवषय में ?

स्त्री : वह जो मैंने बात की थी आपसे...कक कोई िीक-सी जगह हो आपकी नजर में, तो...

पुरुष दो : बहुत स्वाकदष्ट है ।

स्त्री : याद है न आपको ?

पुरुष दो : याद है । कुछ बात कक थी तुमने एक बार। अपनी ककसी ककजन के कलए कहा था...नहीं वह तो
कमसेज मल्होत्रा ने कहा था। तुमने ककसके कलए कहा था ?

स्त्री : (लडके की तरि दे खती) इसके कलए।


पुरुष दो घूम कर लडके की तरफ दे खता है , तो लडका एक बनावटी मुस्कुराहट मुस्कुरा दे ता है।

पुरुष दो : हाँ -हाँ ... । क्या पास ककया है इसने ? बी॰ कॉम॰ ?

स्त्री : मैंने बताया था। बी॰ एससी॰ कर रहा था... तीसरे साल में बीमार हो गया इसकलए...

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हााँ ...बताया था तुमने कक कुछ कदन एयर इं किया में...

स्त्री : एयर-कफ्रज में

पुरुष दो : हााँ , एयर-कफ्रज में।...हाँ -हाँ ...हाँ ।

वफर घूम कर लडके की ओर की तरफ दे ख लेता है । लडका वफर उसी तरह मुस्कुरा दे ता है।

: इधर आ जाइए आप। वहााँ दू र क्यों बैिे हैं ?

लडका : (अपनी नाक की तरि इिारा करता) जी, मुझे जरा…

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा दे ि का जलवायु ही ऐसा है , क्या ककया जाए? जलवायु की दृकष्ट से जो दे ि मुझे
सबसे पसंद है , वह है इटली। कपछले वषट कािी यात्रा पर रहना पडा। पूरा यूरोप घूमा, पर जो बात मुझे
इटली में कमली, वह और ककसी दे ि में नहीं। इटली की सबसे बडी कविेषता पता है , क्या है ?...बहुत ही
स्वाकदस्ट है । कहााँ से लाती हो ? (घडी दे ख कर) सात पााँ च यहीं हो गए। तो...

स्त्री : यहीं कोने पर एक दु कान है ।

पुरुष दो : अच्छी दु कान है । मैं प्रायः कहा करता हाँ कक खाना और पहनना, इन दो दृकष्टयों से ... वह
अमरीकन भी यही बात कह रहा था कक कजतनी कवकवधता इस दे ि के खान-पान और पहनावे में है ...और
वही क्या, सभी कवदे िी लोग इस बात को स्वीकार करते हैं । क्या रूसी, क्या जमटन ! मैं कहता हाँ , संसार में
िीत युद्ध को कम करने में हमारी कुछ वास्तकवक दे न है , तो यही कक...तु म अपनी इस साडी को ही लो।
ककतनी साधारण है , किर भी...यह हडतालों-हडतालों का चक्कर न चलता अपने यहााँ , तो हमारा वस्त्र उद्योग
अब तक...अच्छा, तु मने वह नोकटस दे खा है जो यूकनयन ने मैनेजमेंट को कदया है ?

स्त्री 'हााँ' के वलए वसर वहला दे ती है।

: ककतनी बेतुकी बातें हैं उसमें !हमारे यहााँ िी॰ए॰ पहले ही इतना है कक...

लडका दराि से एक पैड वनकाल कर दराि बोंद करता है। पुरुष दो वफर घूम कर उस तरफ दे ख
लेता है। लडका वफर मुस्कुरा दे ता है। पुरुष दो के मुाँह मोडने के साथ ही वह पैड पर पेंवसल से लकीरें
खी ोंचने लगता है।

: तो मैं कह रहा था कक...क्या कह रहा था ?


स्त्री : कह रहे थे ... ।

बडी लडकी : कई बातें कह रहे थे।

पुरुष दो : पर बात िुरू कहााँ से की थी मैंने ?

लडका : इटली की सबसे बडी कविेषता से।

पुरुष : हााँ , पर उसके बाद... ?

लडका : खान-पान और पहनावे की कवकवधता...अमरीकन, जमटन, रूसी... िीत-यु द्ध, हडतालें...वस्त्र-


उद्योग...िी॰ए॰।

पुरुष दो : बहुत अच्छी स्मरण िस्ि है लडके की। तो कहने का मतलब था कक...

स्त्री : थोडा और लीकजए।

पुरुष दो : और नहीं अब।

स्त्री : थोडा-सा...दे स्खए, जैसे भी हो, इसके कलए आपको कुछ-न-कुछ जरूर करना है ?

पुरुष दो : जरूर...। ककसके कलए क्या करना है ?

स्त्री : (लडके की तरि दे ख कर) इसके कलए कुछ-न-कुछ।

पुरुष दो : हााँ -हााँ ... जरूर। वह तो है ही। (लडके की तरि मुड कर) बी॰एससी॰ में कौन-सा किवीजन था
आपका ?

लडका उाँ गली से हाथ में वसफर खी ोंच दे ता है।

: कौन-सा ?

लडका : (तीन चार बार उाँ गली घुमा कर) ओ !

पुरुष दो : (जैसे बात समझ कर) ओ !

स्त्री : तीसरे साल में बीमार हो गया था, इसकलए...

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हााँ ।...िीक हैं ...दे खूाँगा मैं। (घडी दे ख कर) अब चलना चाकहए। बहुत समय हो
गया है । (उिता हुआ) तुम घर पर आओ ककसी कदन। बहुत कदनों से नहीं आई।

स्त्री और बडी लडकी साथ ही उठ खडी होती हैं।


स्त्री : मैं भी सोच रही थी आने के कलए। बेबी से कमलने।

पुरुष दो : वह पूछती रहती है , आं टी इतने कदनों से क्यों नहीं आई ? बहुत प्यार करती है अपनी आं कटयों से।
मााँ के न होने से बेचारी...।

स्त्री : बहुत ही प्यारी बच्ची है । मैं पूछ लूाँगी ककसी कदन आपसे। इससे भी कह दू ाँ , आ कर कमल ले आप से
एक बार।

पुरुष दो : (बडी लडकी को दे खता) ककससे ? इससे ?

स्त्री : अिोक से।

पुरुष दो : हााँ -हााँ ...क्यों नहीं। पर तुम तो आओगी ही। तु म्हीं को बता दू ाँ गा।

स्त्री : ये जा रहे हैं , अिोक !

लडका : (जैसे पहले पता न चला हो) जा रहे हैं आप !

उठ कर पास आ िाता है।

पुरुष दो : (घडी दे खता) सोचा नहीं था, इतनी दे र रुकूाँगा।(बाहर से दरवाजे की तरि बढ़ता बडी लडकी
से) तुम नहीं करती नौकरी ?

बडी लडकी : जी नहीं।

स्त्री : चाहती है करना, पर...(बडी लडकी से ) चाहती है न ?

बडी लडकी : हााँ ...नहीं...ऐसा है कक...।

स्त्री : िरती है ।

पुरुष दो : िरती है ?

स्त्री : अपने पकत से।

पुरुष दो : पकत से ?

स्त्री : हााँ ...उसे पसंद नहीं है ।

पुरुष दो : यह लडकी ?

स्त्री : नहीं, इसका नौकरी करना।


पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हााँ ...।

स्त्री : तो आपको ध्यान रहे गा न इसके कलए...?

पुरुष दो : इसके कलए ?

स्त्री : मेरा मतलब है उसके कलए...।

पु रुष दो : हााँ -हााँ -हााँ -हााँ -हााँ ...तुम आओगी ही घर पर। दफ्तर की भी कुछ बातें करनीं हैं । वही जो यूकनयन-
ऊनीयन का झगडा है ।

स्त्री : मैं तो आऊाँगी ही। यह भी अगर कमल ले...?

पुरुष दो : (घडी दे ख कर) बहुत दे र हो गई। (लडके से ) अच्छा, एक बात बताएाँ गे आप कक ये जो हडतालें
हो रही हैं सब क्षेत्रों में आजकल, इनके कवषय में आप क्या सोचते हैं ?

लडका ऐसे उचक िाता है िैसे कोई कीडा पतलून के अोंदर चला आया हो।

लडका : ओह ! ओह ! ओह !

िैसे बाहर से कीडा पकडने की कोवशश करने लगता है।

बडी लडकी : क्या हुआ ?

स्त्री : (कुछ खीज के साथ) उन्ोंने क्या पूछा है ?

लडका : (बडी लडकी से ) हुआ कुछ नहीं...कीडा है एक।

बडी लडकी : कीडा ?

पुरुष दो : अपने दे ि में तो...।

लडका : पकडा गया।

पुरुष दो : ...इतनी तरह का कीडा पाया जाता है कक...

लडका : मसल कदया ।

पुरुष दो : मसल कदया ? किव-किव-किव ! यह कहं सा की भावना...

स्त्री : बहुत है इसमें। कोई कीडा हाथ लग जाए सही।

लडका : और कीडा चाहे कजतनी कहं सा करता रहे ?


पुरुष दो : मूल्ों का प्रश्न है । मैं प्रायः कहा करता हाँ ...बैिो तुम लोग।

स्त्री : मैं सडक तक चल रही हाँ साथ।

पुरुष दो : इस दे ि में नैकतक मूल्ों के उत्थान के कलए...तुमने भाषण सुना है ...वे जो आए हुए हैं आजकल,
क्या नाम है उनका?

लडका : कनरोध महकषट ?

पुरुष दो : हााँ -हााँ -हााँ ...यही नाम है न ? इतना अच्छा भाषण दे ते हैं ...जन्म-कुंिली भी बनाते हैं ... वैसे आप
भाषण? वाह-वाह-वाह !

अोंवतम शब्दोों के साथ दरवािा लााँघ िाता है। स्त्री भी साथ ही बाहर चली िाती है।

लडका : हाहा !

बडी लडकी : यह ककस बात पर ?

लडका : एस्क्टं ग दे खा ?

बडी लडकी : ककसका ?

लडका : मेरा।

बडी लडकी : तो क्या तू...?

लडका : उल्लू बना रहा था उसे।

बडी लडकी : पता नहीं, असल में कौन उल्लू बना रहा था।

लडका : क्यों ?

ब डी लडकी : उसे तो किर भी पााँ च हजार तनखाह कमल जाती है ।

लडका : चेहरा दे खा है पााँ च हजार तनखाहवाले का ?

पैड पर बनाया गया खाका ला कर उसे वदखाता है।

बडी लडकी : यह उसका चेहरा है ।

लडका : नहीं है ?

बडी लडकी : कसर पर क्या है यह ?


लडका : सींग बनाए थे , काट कदए। कहते हैं ...सींग नहीं होते।

बडी लडकी पैड उसके हाथ से ले कर दे खती है। स्त्री लौट कर आती है।

स्त्री : तू एक कमनट जाएगा बाहर।

लडका : क्यों ?

स्त्री : गाडी चल नहीं रही उनकी ?

लडका : क्या हुआ ?

स्त्री : बैटरी िाउन हो गई है । धक्का लगाना पडे गा।

लडका : अभी से ? अभी तो नौकरी की बात तक नहीं की उसने ...।

स्त्री : जल्दी चला जा। उन्ें पहले ही दे र हो गई है ।

लडका : अगर सचमुच कदला दी उसने नौकरी, तब तो पता नहीं...।

बाहर के दरवािे से चला िाता है।

स्त्री : कुछ समझ में नहीं आता, क्या होने को है इस लडके का...यह तेरे हाथ में क्या है ?

बडी लडकी : मेरे हाथ में? यह तो वह है ...वह जो बना रहा था।

स्त्री : क्या बना रहा था ?...दे खूाँ !

बडी लडकी : (पैि उसकी तरि बढ़ाती) ऐसे ही...पता नहीं क्या बना रहा था ! बैिे-बैिे इसे भी बस... ?

स्त्री पल-भर खाके को ले कर दे खती रहती है।

स्त्री : यह चेहरा कुछ-कुछ वैसा नहीं है ?

बडी लडकी : कैसा ?

स्त्री : तेरे िै िी जैसा ?

बडी लडकी : िै िी जैसा ? नहीं तो।

स्त्री : लगता तो है कुछ-कुछ।

बडी लडकी : वह तो इस आदमी का चेहरा बना रहा था...यह जो अभी गया है ।


स्त्री : (त्यौरी िाल कर) यह करतूत कर रहा था ?

लडका लौट कर आ िाता है।

लडका : (जैसे हाथों से गदट झाडता) क्या तो अपनी सूरत है और क्या गाडी की !

स्त्री : इधर आ।

लडका : (पास आता) गाडी का इं जन तो किर भी धक्के से चल जाता है , पर जहााँ तक (माथे की तरि
इिारा करके) इस इं जन का सवाल है ...

स्त्री : (कुछ सख्त स्वर में) यह क्या बना रहा था तू ?

लडका : तुम्हें क्या लगता है ?

स्त्री : तू क्या बना रहा था ?

लडका : एक आकदम बन-मानुस ।

स्त्री : क्या ?

लडका : बन-मानुस।

स्त्री : नाटक मत कर। िीक से बता।

लडका : दे ख नहीं रही यह लपलपाती जीभ, ये ररसती गुिाओं जैसी आाँ खे,ाँ ये ...

स्त्री : मुझे तेरी ये हरकतें कबलकुल पसं द नहीं हैं । सुन रहा है तू ?

लडका उत्तर न दे कर पढने की मेि की तरफ बढ िाता है और वहााँ से तस्वीरें उठा कर दे खने
लगता है।

: सुन रहा है या नहीं ?

लडका : सुन रहा हाँ ।

स्त्री : सुन रहा है , तो कुछ कहना नहीं है तुझे ?

लडका उसी तरह तस्वीरें दे खता रहता है ।

: नहीं कहना है ?

लडका : (तस्वीरें वापस मेज पर रख दे ता) क्या कह सकता हाँ ?


स्त्री : मत कह, नहीं कह सकता तो। पर मैं कमन्नत-खुिामत से लोगों को घर पर बुलाऊाँ और तू आने पर
उनका मजाक उडाए, उनके काटू ट न बनाए... ऐसी चीजें अब मुझे कबलकुल बरदाश्त नहीं हैं । सुन कलया?
कबलकुल-कबलकुल बरदाश्त नहीं हैं ।

लडका : नहीं बरदाश्त है , तो बुलाती क्यों हो ऐसे लोगों को घर पर कक कजनके आने से ... ?

स्त्री : हााँ -हााँ ...बता, क्या होता है कजनके आने से ?

लडका : रहने दो। मैं इसीकलए चला जाना चाहता था पहले ही।

स्त्री : तू बात पूरी कर अपनी।

लडका : कजनके आने से हम कजतने छोटे हैं , उससे और छोटे हो जाते हैं अपनी नजर में।

स्त्री : (कुछ स्तब्ध हो कर) मतलब ?

लडका : मतलब वही जो मैने कहा है । आज तक कजस ककसी को बुलाया है तुमने , कजस वजह से बुलाया है ?

स्त्री : तू क्या समझता है , ककस वजह से बुलाया है ?

लडका : उसकी ककसी 'बडी' चीज की वजह से। एक को कक वह इं टेलेक्चुअल बहुत बडा है । दू सरे को कक
उसकी तनखाह पााँ च हजार है । तीसरे को कक उसकी तख्ती चीि ककमश्नर की है । जब भी बुलाया है , आदमी
को नहीं-उसकी तनख्वाह को, नाम को, रुतबे को बुलाया है ।

स्त्री : तू कहना क्या चाहता है इससे कक ऐसे लोगों के आने से इस घर के लोग छोटे हो जाते हैं ?

लडका : बहुत-बहुत छोटे हो जाते हैं ।

स्त्री : और मैं उन्ें इसकलए बुलाती हाँ कक...

लडका : पता नहीं ककसकलए बुलाती हो, पर बुलाती कसिट ऐसे ही लोगों को हो। अच्छा, तुम्हीं बताओ,
ककसकलए बुलाती हो ?

स्त्री : इसकलए कक ककसी तरह इस घर का कुछ बन सके, कक मेरे अकेली के ऊपर बहुत बोझ है इस घर
का। कजसे कोई और भी मेरे साथ दे नेवाला हो सके। अगर मैं कुछ खास लोगों के साथ संबंध बना कर रखना
चाहती हाँ तो अपने कलए नहीं, तुम लोगों के कलए। पर तुम लोग इससे छोटे होते हो, तो मैं छोड दू ाँ गी कोकिि।
हैं , इतना कह कर कक मैं अकेले दम इस घर की कजम्मे दाररयााँ नहीं उिाती रह सकती और एक आदमी है
जो घर का सारा पैसा िु बो कर सालों से हाथ धरे बैिा है । दू सरा अपनी कोकिि से कुछ करना तो दू र, मेरे
कसर िोडने से भी ककसी किकाने लगाना अपना अपमान समझता है । ऐसे में मुझसे भी नहीं कनभ सकता।
जब और ककसी को यहााँ ददट नहीं ककसी चीज का, तो अकेली मैं ही क्यों अपने को चीथती रहाँ रात-कदन ? मैं
भी क्यों न सुखरुट हो कर बैि रहाँ अपनी जगह ? उससे तो तुममें से कोई छोटा नहीं होगा।
लडका चुप रह कर मेि की दराि खोलने-बोंद करने लगता है।

: चुप क्यों है अब ? बता न, अपने बडप्पन से कजंदगी काटने का क्या तरीका सोच रखा है तूने ?

लडका : बात को रहने दो, ममा ! नहीं चाहता, मेरे मुाँह से कुछ ऐसा कनकल जाए कजससे तुम...

स्त्री : कजससे मैं क्या ? कह, जो भी कहना है तुझे।

लडका : (कुरसी पर बैिता) कुछ नहीं कहना है मुझे।

उडते मन से एक मैगिीन और कैंची दराि से वनकाल कर उसे िोर बोंद कर दे ता है।

स्त्री : कुछ नई तैना है तुझे। बैथ दा तुलछी पल औल तछवीलें तात । कततनी तछवीलें ताती ऐं अब तत लाजे
मुन्ने ने ? अगर कुछ नहीं कहना था तुझे तो पहले ही क्यों नहीं अपनी जबान....?

बडी लडकी : (पास आ कर उसकी बााँ ह थामती) रुक जाओ ममा, मैं बात करू
ाँ गी इससे (लडके से) दे ख
अिोक... ।

लडका : तेरा इस वि बात करना जरूरी है क्या ?

बडी लडकी : मैं तुझसे कसिट इतना पूछना चाहती हाँ कक...?

लडका : पर क्यों पूछना चाहती हैं ? मैं इस वि ककसी की ककसी भी बात का जवाब नहीं दे ना चाहता।

बडी लडकी : (कुछ रुक कर) यह तू भी जानता है कक ममा ने ही आज तक...

लडका : तू किर भी कह रही है बात !

स्त्री : क्यों कर रही है बात तू इससे ? कोई जरूरी नहीं ककसी से बात करने की। आज वि आ गया है जब
खुद ही मुझे अपने कलए कोई-न-कोई िैसला....

लडका : जरूर कर लेना चाकहए।

बडी लडकी : अिोक!

लडका : मैं कहना नहीं चाहता था, लेककन..

स्त्री : तो कह क्यों नहीं रहा है ?

लडका : कहना पड रहा है क्योंकक...जब नहीं कनभता इनसे यह सब, तो क्यों कनभाए जाती हैं इसे ?

स्त्री : मैं कनभाए जाती हाँ क्योंकक...


लडका : कोई और कनभानेवाला नहीं है । यह बात बहुत बार कही जा चुकी है इस घर में।

बडी लडकी : तो तू सोचता है कक मम्मा जो कुछ भी करती हैं यहााँ ...?

लडका : मैं पूछता हाँ क्यों करती हैं ? ककसके कलए करती हैं ...?

बडी लडकी : मेरे कलए करती थीं... ।

लडका : तू घर छोड कर चली गई।

बडी लडकी : ककन्नी के कलए करती हैं ... ।

लडका : वह कदन-ब-कदन पहले से बदतमीज होती जा रही है ।

बडी लडकी : िै िी के कलए करती हैं ...।

लडका : और मैं ही िायद इस घर में सबसे ज्यादा नाकारा हाँ ।...पर क्यों हाँ ?

बडी लडकी : यह...यह मैं कैसे बता सकती हाँ ?

लडका : कम-से-कम अपनी बात तो बता ही सकती है । तू यह घर छोड कर क्यों चली गई थी ?

बडी लडकी : (अप्रकतभ हो कर) मैं चली गई थी...चली गई थी... क्योंकक...

लडका : क्योंकक तू मनोज से प्रेम करती थी।...खुद तुझे ही यह गुट्टी कमजोर नहीं लगती ?

बडी लडकी : (रुाँआसी पड कर) तो तू मुझसे ... मुझसे भी कह रहा है कक....?

वशवथल होती एक मोढे पर बैठ िाती है।

लडका : मैंने कहा था कक मुझसे ...मत कर बात।

स्त्री आवहस्ता से दो कदम चल कर लडके के पास आ िाती है।

स्त्री : (अत्यकधक गंभीर) तु झे पता है न, तूने क्या बात कही है ?

लडका वबना कहे मैगिीन खोल कर उसमें से एक तस्वीर काटने लगता है। लडका उसी तरह
चुपचाप तस्वीर काटता रहता है।

: पता है न ?

लडका उसी तरह चुपचाप तसवीर काटता रहता है।


: तो िीक है । आज से मैं कसिट अपनी कजंदगी को दे खूाँगी - तुम लोग अपनी-अपनी कजंदगी को खुद दे ख
लेना।

बडी लडकी एक हाथ से दू सरे हाथ के नाखूनोों को मसलने लगती है।

: मेरे पास अब बहुत साल नहीं हैं जीने को। पर कजतने हैं , उन्ें मैं इसी तरह और कनभते हुए नहीं काटू ाँ गी।
मेरे करने से जो कुछ हो सकता था इस घर का, हो चुका आज तक। मेरे तरि से यह अंत है उसका कनकित
अंत !

एक खाँडहर की आत्मा को व्यक्त करता हलका सोंगीत। लडका अपनी कटी तस्वीर पल-भर हाथ में
ले कर दे खता है , वफर चक-चक उसे बडे -बडे टु कडोों में कतरने लगता है िो नीचे फशड पर वबखरते
िाते हैं। प्रकाश आकृवतयोों पर धुाँधला कर कमरे के अलग-अलग कोनोों में वसमटता ववलीन होने
लगता है। मोंच पर पूरा अाँधेरा होने के साथ सोंगीत रुक िाता है। पर कैंची की चक-चक वफर भी कुछ
क्षण सुनाई दे ती रहती है ।

[अंतराल कवकल्प]

दो अलग-अलग प्रकाश-वृत्तोों में लडका और बडी लडकी। लडका सोफे पर औोंधा लेट कर टााँगें
वहलाता सामने 'पेशेंस' के पत्ते फैलाए। बडी लडकी पढने की मेि पर प्लेट में रखे स्लायसोों पर
मक्खन लगाती। पूरा प्रकाश होने पर कमरे में वह वबखराव निर आता है िो एक वदन ठीक से दे ख-
रे ख न होने से आ सकता है। यहााँ -वहााँ चाय की खाली प्यावलयााँ , उतरे हुए कपडे और ऐसी ही अस्त-
व्यस्त चीिें।

बडी लडकी : यह किब्बा खोल दे गा तू ?

लडका : (पत्तों में व्यस्त) मुझसे नहीं खुलेगा।

बडी लडकी : नहीं खुलेगा तो लाया ककसकलए था ?

लडका : तूने कहा था जो-जो उधार कमल सके, ले आ बकनए से। मैं उधार में एक िोन भी कर आया।

बडी लडकी : कहााँ ?

लडका : जुनेजा अंकल के यहााँ ।

बडी लडकी : िै िी से बात हुई ?

लडका : नहीं।

बडी लडकी : तो ?

लडका : जुनेजा अंकल से हुई।


बडी लडकी : कुछ कहा उन्ोंने ?

लडका : बात हुई, इसका यह मतलब नहीं कक...

बडी लडकी : मतलब िै िी के घर आने के बारे में।

लडका : कहा - नहीं आएाँ गे।

बडी लडकी : नहीं आएाँ गे ?

लडका : नहीं।

बडी लडकी : तो पहले क्यों नहीं बताया तूने ? मैं ऐसे ही ये सैंिकवच- ऐंिकवच...?

लडका : मैंने सोचा, चीज सैंिकवच तुझे खुद पसंद है , इसकलए कह रही है ।

बडी लडकी : मैंने कहा नहीं था कक ममा के दफ्तर से लौटने तक िै िी भी आ जाएाँ िायद ? चीज सैंिकवच
दोनों को पसंद हैं ।

लडका : जुनेजा अंकल को भी पसंद हैं । वे आएाँ गे, उन्ें स्खला दे ना।

बडी लडकी : कहा है आएाँ गे ?

लडका : ममा से बात करना चाहते हैं । छह-साढ़े छह तक आएाँ िायद।

बडी लडकी : ममा का मूि वैसे ही ऑि है , ऊपर से वे आ कर बात करें गे। तो...चेहरा दे खा था ममा का
सुबह दफ्तर जाते वि ?

लडका : मैं पडा ही नहीं सामने।

बडी लडकी : रात से ही चुप थीं, सुबह तो...। इतनी चुप पहले कभी नहीं दे खा।

लडका : बात हुई थी तेरी तेरी कुछ ?

बडी लडकी : यही चाय-वाय के बारे में।

लडका : साडी तो बहुत बकढ़या बााँ ध कर गई हैं - जैसे ककसी ब्याह का न्यौता हो।

बडी लडकी : दे खा था तूने ?

लडका : झलक पडी थी जब बाहर कनकल रही थीं ।

बडी लडकी : मैंने सोचा दफ्तर से कहीं और जाएाँ गी वह। कहा, साढ़े पााँ च तक आ जाएाँ गी - रोज की तरह।
लडका : तूने पूछा था ?

बडी लडकी : इसकलए पूछा था कक मैं भी उसी कहसाब से अपना प्रोग्राम...पर सच कुछ पता नहीं चला।

लडका : ककस चीज का ?

बडी लडकी : कक मन में क्या सोच रही हैं । कहा तो कक साढ़े पााँ च तक लौट आएाँ गी, पर चेहरे पर लगता था
जैसे...

लडका : जैसे ?

बडी लडका : जैसे सचमुच मन में कोई िैसला कर कलया हो और...

लडका : अच्छा नहीं है यह ?

बडी लडकी : अच्छा कहता है इसे ?

लडका : इसकलए कक हो सकता है , कुछ-न-कुछ हो इससे।

बडी लडकी : क्या हो ?

लडका : कुछ भी। जो चीज बरसों से एक जगह रुकी है , वह रुकी ही नहीं चाकहए।

बडी लडकी : तो तू सचमुच चाहता है कक...

लडका : (अपनी बाजी का अंकतम पत्ता चलता) सचमुच चाहता हाँ कक बात ककसी भी एक नतीजे तक पहुाँ च
जाए। तू नहीं चाहती ?

पत्ते समेटता उठ खडा होता है।

बडी लडकी : मुझे तेरी बातों से िर लगता है आजकल।

लडका : (उसकी तरि आता) पर गलत तो नहीं लगतीं मेरी बातें ?

बडी लडकी : पता नहीं...सही भी नहीं लगतीं हालााँ कक...। (िब्बा और कटन-कटर हाथ में ले कर) यह
िब्बा.... ?

लडका : इस कटन-कटर से नहीं खुलेगा। इसकी नोक इतनी मर चुकी है कक...

बडी लडकी : तो क्या करें किर ?

लडका : कोई और चीज नहीं है ?


बडी लडकी : मैं कैसे बता सकती हाँ ? मैं तो इतनी बेगानी महसूस करती हाँ अब इस घर में कक...

लडका : पहले नहीं करती थी ?

बडी लडकी : पहले ? पहले तो....।

लडका : महसूस करना ही महसूस नहीं होता था। और कुछ-कुछ महसूस होना िु रू हुआ, तो पहला मौका
कमलते ही घर से चली गई ।

बडी लडकी : (तीखी पड कर ) तू किर कलवाली बात कह रहा है ?

लडका : बुरा क्यों मानती है ? मैं खुद अपने को बेगाना महसूस करता हाँ यहााँ ...और महसूस करना िुरू
ककया है मैंने तेरे जाने के कदन से ।

बडी लडकी : मेरे जाने के कदन से ?

लडका : महसूस िायद पहले भी करता था, पर सोचना तभी से िुरू ककया है ।

बडी लडकी : और सोच कर जाना है कक...

लडका : एक खास चीज है इस घर के अंदर जो...

बडी लडकी : (अस्थथर हो कर) तू भी यही कहता है ?

लडका : और कौन कहता है ?

बडी लडकी : कोई भी...पर कौन-सी चीज है वह ?

लडका : (स्थथर दृकष्ट से उसे दे खता) तू नहीं जानती ?

बडी लडकी : (आाँ खें बचाती) मैं ? मैं कैसे ?

लडका : तुझसे तो मैंने जाना है उसे , और तू कहती है , तू कैसे ?

बडी लडकी : तूने मुझसे जाना है उसे - मैं नहीं समझी ?

लडका : िीक है , िीक है । उस चीज को जान कर भी न जानना ही बेहतर है िायद। पर दू सरे को धोखा दे
भी ले आदमी, अपने आपको कैसे दे ?

बडी लडकी इस तरह हो िाती है वक उसका हाथ ठीक से स्लाइस पर मक्खन नही ों लगा पाता ।
बडी लडकी : तू तो बस हमेिा ही ..... दे ख, ऐसा है कक.... मैं कह रही थी तुझसे कक... भाई, यह िब्बा खुला
कर ला पहले कहीं से। या अगर नही खुलेगा, तो...

लडका : हाथ कााँ प क्यों रहा है तेरा ? (िब्बा लेता ) अभी खुल जाता है यह। तेज औजार चाकहए... एक
कमनट नहीं लगेगा।

बाहर के दरवािे से चला िाता है। बडी लडकी काम िारी रखने की कोवशश करती है , पर हाथ
नही ों चलते, तो छोड दे ती है।

बडी लडकी : (माथे पर हाथ िेरती , किकथल स्वर में) कैसे कहता है यह? ...मैं सचमुच जानती हाँ क्या ?

वसर को झटक लेती है -िैसे अोंदर एक बवोंडर उठ रहा हो। कोवशश से अपने को सहेि कर उठ
पडती है और अोंदर के दरवािे के पास िा कर आवाि दे ती है।

: ककन्नी !

िवाब नही ों वमलाता , तो एक बार अोंदर झााँक कर लौट आती है।

: कहााँ चली जाती है ? सुबह स्कूल जाने से पहले रोना कक जब तक चीजें नहीं आएाँ गी, नहीं जाएगी। और अब
कदन-भर पता नहीं, कब घर में है , कब बाहर है ।

लडका बाहर के दरवािे से छोटी लडकी को अोंदर ढकेलता है।

लडका : चल अंदर।

छोटी लडकी अपने को बचा कर बाहर िाती भाग िाना चाहती है , पर वह उसे बााँह से पकड लेता
है।

: कहा है , अंदर चल।

बडी लडकी : (ताव से ) यह क्या हो रहा है ?

छोटी लडकी : दे ख लो कबन्नी दी, यह मुझे...

झटके से हाथ छु डाने की कोवशश करती है , पर लडका उसे सख्ती से खी ोंच कर अोंदर ले आता है।

लडका : इधर आना, पता चलता है तुझे....

बडी लडकी पास आ कर छोटी लडकी की बााँह छु डाती है।

लडका : छोड दे इसे। ककया क्या है इसने जो... ?


लडका : (किब्बा उसे दे ता) यह किब्बा ले। खुल गया है (छोटी लडकी पर तमाचा उिा कर) इसे तो मैं
अभी... ।

बडी लडकी : (उसका हाथ रोकती) कसर किर गया तेरा ?

लडका : किर नहीं, किर जाएगा।....बाई जोव !

बडी लडकी : क्या बात है ?

लडका : इससे पूछ, क्या बात हुई है ।.... माई गॉि !

बडी लडकी : क्या बात हुई है , ककन्नी ? क्या कर रही थी तू ?

छोटी लडकी िवाब न दे कर सुबकने लगती है ।

: बता न, क्या कर रही थी ?

छोटी लडकी चुपचाप सुबकती रहती है।

लडका : कर नहीं, कह रही थी ककसी से कुछ।

बडी लडकी : क्या ?

लडका : इसी से पूछ ।

बडी लडकी : (छोटी लडकी से ) बोलती क्यों नहीं ? जबान कसल गई है तेरी ?

लडका : कसल नहीं, थक गई है । बताने में कक औरतें और मदट ककस तरह से आपस में...

बडी लडकी : क्या ? ? ?

लडका : पूछ ले इससे। अभी बता दे गी तुझे सब...जो सुरेखा को बता रही थी बाहर।

छोटी लडकी : (सुबकने के बीच) वह बता रही थी मुझे कक मैं उसे बता रही थी ?

लडका : तू बता रही थी।

छोटी लडकी : वह बता रही थी।

लडका : तू बता रही थी। अचानक मुझ पर नजर पडी कक मैं पीछे खडा सुन रहा हाँ तो...

छोटी लडकी : सुरेखा भागी थी कक मैं भागी थी ?


लडका : तू भागी थी।

छोटी लडकी : सुरेखा भागी थी।

लडका : तू भागी थी और मैंने पकड कलया दौड कर, तो लगी कचल्ला कर आस-पास को सुनाने कक यह ममा
से मेरी किकायतें करता है और ममा घर पर नहीं हैं । इसकलए मैं इसे पीट रहा हाँ ।

बडी लडकी : (छोटी लडकी से ) यह सच कहा रहा है ।

छोटी लडकी : बात सुरेखा से की थी। वह बता रही थी कक कैसे उसके मम्मी-िै िी...

बडी लडकी : (सख्त पड कर) और तुझे िौक है जानने का कक कैसे उसके मम्मी-िै िी आपस में...?

लडका : आपस में नहीं। यही तो बात थी खास ।

बडी लडकी : चुप रह, अिोक !

छोटी लडकी : इससे कभी कुछ नहीं कहता कोई। रोज ककसी-ककसी बात पर मुझे पीट दे ता है ।

बडी लडकी : क्यों पीट दे ता है ?

छोटी लडकी : क्योंकक मैं सब चीजें इसे नहीं ले जाने दे ती उसे दे ने।

बडी लडकी : ककसे दे ने ?

बडी लडकी : वह जो है इसकी...कभी मेरी बथटिे प्रजेंट की चूकडयााँ दे आता है उसे , कभी-कभी मेरे प्राइज
का िाउं टेन पेन। मैं अगर ममा से कह दे ती हाँ , अकेले में मेरा गला दबाने लगता है ।

बडी लडकी : (लडके से ) ककसकी बात कर रही है यह ?

लडका : ऐसे ही बक रही है । झूि-मूि।

छोटी लडकी : झूि-मूि? मेरी िाउं टेन पेन वणाट के पास नहीं है ?

बडी लडकी : वणाट कौन ?

छोटी लडकी : वही उद्योग सेंटरवाली, कजसके पीछे जूकतयााँ चटकाता किरता है ।

लडका : (किर से उसे पकडने को हो कर) तू िहर जा, आज मैं तेरी जान कनकाल कर रहाँ गा।

छोटी लडकी उससे बचने के वलए इधर-उधर भागती है। लडका उसका पीछा करता है।

बडी लडकी : अिोक !


लडका : आज मैं नहीं छोडने का इसे। इसकी जबान कजस तरह से खुल गई है उससे ...

छोटी लडकी रास्ता पा कर बाहर के दरवािे से वनकल िाती है।

छोटी लडकी : (जाती हुई) वणाट उद्योग सेंटरवाली लडकी... वणाट उद्योग सें टरवाली लडकी ! वणाट उद्योग
सेंटरवाली लडकी !!

लडका उसके पीछे बाहर िाने ही लगता है वक अचानक स्त्री को अोंदर आते दे ख कर वठठक िाता
है। स्त्री अोंदर आती है िैसे वहााँ की वकसी चीि से उसे मतलब ही नही ों है। वातावरण के प्रवत
उदासीनता के अवतररक्त चेहरे पर सोंकल्प और असमोंिस का वमला-िुला भाव। उन लोगोों की ओर
न दे ख कर वह हाथ का सामान परे की एक कुरसी पर रखती है। लडका अपने को एक भोोंडी ल्कस्थवत
में पाता है , इस चीि उस चीि को छू कर दे खने लगता है। बडी लडकी प्लेट, स्लाइसें और चीि का
डब्बा वलए अहाते के दरवािे की तरफ चल दे ती है।

बडी लडकी : (स्त्री के पास से गुजरती) मैं चाय ले कर आती हाँ अभी।

स्त्री : मुझे नहीं चाकहए।

बडी लडकी : एक प्याली ले लेना।

चली िाती है। स्त्री कमरे के वबखराव पर एक निर डालती है , पर वसवाय अपने साथ लाई चीिोों को
यथास्थान रखने के और वकसी चीि को हाथ नही ों लगती। बडी लडकी लौट कर आती है।

: (पत्ती का खाली पैकेट कदखाती) पत्ती खत्म हो गई।

स्त्री : मैं नहीं लूाँगी चाय।

बडी लडकी : सबके कलए बना रही हाँ एक-एक प्याली।

लडका : मेरे कलए नहीं।

बडी लडकी : क्यों ? पानी रख रही हाँ , कसिट पत्ती लानी है ...।

लडका : अपने कलए बनानी है , बना ले।

बडी लडकी : मैं अकेले कपयूाँगी ? इतने चाव से चीज-सैंिकवच बना रही हाँ ?

लडका : मेरा मन नहीं है ।

स्त्री : मुझे चाय के कलए बाहर जाना है ।

बडी लडकी : तो तुम घर पर नहीं रहोगी इस वि ?


स्त्री : नहीं, जगमोहन आएगा लेने।

बडी लडकी : यहााँ आएाँ गे वो ?

स्त्री : लेने आएगा वो क्यों ?

बडी लडकी : वो भी आनेवाले हैं अभी...जुनेजा अंकल।

स्त्री : उनका कैसे पता है , आनेवाले हैं ?

बडी लडकी : अिोक ने िोन ककया था। कह रहे थे, कुछ बात करनी है ।

स्त्री : लेककन मुझे कोई बात नहीं करनी है ।

बडी लडकी : किर भी जब वे आएाँ गे ही, तो...

स्त्री : कह दे ना, मैं घर पर नहीं हाँ । पता नहीं, कब लौटू ाँ गी ।

बडी लडकी : कहें , इं तजार करते हैं , तो ?

स्त्री : करने दे ना इं तजार ।

कबडड से दो-तीन पसड वनकाल कर दे खाती है वक उनमें से कौन-सा साथ रखना चावहए। बडी लडकी
एक निर लडके को दे ख लेती है िो लगता है वकसी तरह वहााँ से िाने के बहाना ढू ाँ ढ रहा है।

बडी लडकी : (एक पसट को छू कर) यह अच्छा है इनमें।...कब तक सोचती हो लौट आओगी ?

स्त्री : (उस पसट को रख कर दू सरा कनकालती) पता नहीं। बात करने में दे र भी हो सकती है ।

बडी लडकी : (उस पसट के कलए) यह और भी अच्छा है ।....। अगर पूछें कहााँ गई हैं , ककसके साथ गई हैं ?

स्त्री : कहना बताया नहीं...या जगमोहन आया था लेने।

(एक नजर किर कमरे में िाल कर) ककतना गंदा पडा है !

बडी लडकी : समेट रही हाँ । (व्यस्त होती) बताना िीक होगा उन्ें ?

स्त्री : क्यों ?

बडी लडकी : ऐसे ही वे जा कर िै िी से बतलाएाँ गे खामखाह....।

स्त्री : तो क्या होगा ? (कुछ चीजें खुद उिा कर उसे दे ती) अं दर रख आ अभी।
बडी लडकी : होगा यही कक....

स्त्री : एक आदमी के साथ चाय पीने जा रही हाँ मैं, कहीं चोरी करने तो नहीं।

बडी लडकी : तुम्हें तो पता ही है , िै िी जगमोहन अंकल को....

स्त्री : पसंद भी करते हैं तेरे िै िी ककसी को ?

बडो लडकी : किर भी थोडा जल्दी आ सको तुम, तो....

स्त्री : मुझे उससे कुछ जरूरी बात करनी हैं । उसे कई काम थे िाम को जो उसने मेरी खाकतर कैंकसल ककए
हैं । बेकार आदमी नहीं है वह कक जब चाहा बुला कलया, जब चाहा कह कदया जाओ अब ।

लडका अल्कस्थर भाव से टहेलता दरवािे के पास पहुाँच िाता है।

लडका : मैं जरा जा रहा हाँ कबन्नी !

बडी लडकी : तू भी ?...तू कहााँ जा रहा है ?

लडका : यहीं तक जरा। आ जाऊाँगा थोडी दे र में।

बडी लडकी : तो जुनेजा अंकल के आने पर मैं.... ?

लडका : आ जाऊाँगा तब तक िायद ।

बडी लडकी : िायद ?

लडका : नहीं...आ ही जाऊाँगा।

चला िाता है।

बडी लडकी : (पीछे से ) सु न। (दरवाजे की तरि बढ़ती) अिोक !

लडका नही ों रुकता तो होोंठ वसकोड स्त्री की तरफ लौट आती है।

: कम से कम पत्ती ले कर तो दे जाता।

स्त्री : (जैसे कहने से पहले तैयारी करके) तु मसे एक बात करना चाहती थी।

बडी लडकी : यह सब छोड आऊाँ अंदर। वहााँ भी ककतना कुछ कबखरा है । सोचती हाँ , जगमोहन अंकल के
आने से पहले...।

स्त्री : मुझे जरा-सी बात करनी हैं ।


बडी लडकी : बताओ ।

स्त्री : अगली बार आने पर पर मैं यहााँ न कमलूाँ िायद।

बडी लडकी : कैसी बात कर रही हो ?

स्त्री : जगमोहन को आज मैं ने इसीकलए िोन ककया था ।

बडी लडकी : तो ?

स्त्री : तो अब जो भी हो। मैं जानती थी एक कदन आना ही है ऐसा।

बडी लडकी : तो तुमने पूरी तरह सोच कलया है कक...

स्त्री : (हलके से आाँ खें मूाँद कर) कबलकुल सोच कलया है (आाँ खें झपकाती) जा तू अब ।

बडी लडकी पल-भर चुपचाप उसे दे खती खडी रहती है। वफर सोचते भाव से अोंदर को चल दे ती है।

बडी लडकी : (चलते -चलते ) और सोच लेती थोिा...।

चली िाती है।

स्त्री : कब तक और ?

गले की माला को उाँ गली से लपेटते हुए झटके लगाने से माला टू ट िाती है। परे शान हो कर माला को
उतार दे ती है और कबडड से दू सरी माला वनकाल लेती है।

: साल पर साल....इसका यह हो जाए, उसका वह हो जाए।

मालाओों का वडब्बा रख कर कबडड को बोंद करना चाहती है , पर बीच की चीिोों के अव्यवल्कस्थत हो


िाने से कबडड ठीक से बोंद नही ों होती।

: एक कदन....दू सरा कदन !

नही ों ही बोंद होता , तो उसे पूरा खोल कर झटके से बोंद करती है।

: एक साल...दू सरा साल !

कबडड के नीचे रखे िूते चप्पलोों को पैर से टटोल कर एक चप्पल वनकालने की कोवशश करती है ; पर
दू सरा पैर नही ों वमलता, तो सबको ठोकरें लगा कर पीछे हटा दे ती है।

: अब भी और सोचूाँ थोडा !
डरेवसोंग टे बल के सामने चली िाती है। कुछ पल असमोंिस में रहती है वक वहााँ क्योों आई है। वफर
ध्यान हो आने से आईने में दे ख कर माला पहनने लगती है। पहन कर अपने को ध्यान से दे खती है।
गरदन उठा कर और खाल को मसल कर चेहरे की झुररड यााँ वनकालने की कोवशश करती है।

: कब तक...? क्यों...?

वफर समझ में नही ों आता वक क्या करना है। डरेवसोंग टे बल की कुछ चीिोों को ऐसे ही उठाती-रखती
है। िीम की शीशी हाथ में आ िाने पर पल-भर उसे दे खती रहती है । वफर खोल लेती है।

: घर दफ्तर...घर दफ्तर !

िीम चेहरे पर लगते हुए ध्यान आता है वक वह इस वक्त नही ों लगानी थी। उसे एक और शीशी उठा
लेती है। उसमें से लोशन रूई पर ले कर सोचती है। कहााँ लगाए और कही ों का नही ों सूझता , तो
उससे कलाइयााँ साफ करने लगती है।

: सोचो...सोचो।

ध्यान वसर के बालोों में अटक िाता है। अनमनेपन में लोशनवाली रूई वसर पर लगाने लगती है , पर
बीच में ही हाथ रोक कर उसे अलग रख दे ती है। उाँ गवलयोों से टटोल कर दे खती है वक कहााँ सफेद
बाल ज्यादा निर आ रहे हैं। कोंघी ढू ाँ ढती है , पर वह वमलती नही ों। उतावली में सभी खाने-दरािें दे ख
डालती है। आल्कखर कोंघी वही ों तौवलए के नीचे से वमल िाती है।

: चख-चख....ककट...ककट...चख-चख...ककट-ककट। क्या सोचो?

कोंघी से सफेद बालोों को ढाँ कने लगती है। ध्यान आाँ खोों की झााँइयोों पर चला िाता है तो कोंघी रख कर
उन्हें सहलाने लगती है। तभी पुरुष तीन बाहर के दरवािे से आता है...वसगरे ट के कश खी ोंच कर
छल्ले बनाता है। स्त्री उसे नही ों दे खती , तो वह राख झाडने के वलए वतपाई पर रखी ऐश-टर े की तरफ
बढ िाती है। स्त्री पाउडर की डब्बी खोल कर आाँ खोों के नीचे पाउडर लगती है। डब्बीवाला हाथ
कााँप िाने से थोडा पाउडर वबखर िाता है।

: (उसााँ स के साथ) कुछ मत सोचो।

उठा खडी होती है , एक बार अपने को अच्छी तरह आईने में दे ख लेती है। पुरुष तीन पहले वसगरे ट
से दू सरा वसगरे ट सुलगता है।

: होने दो जो होता है ।

सोफे की तरफ मुडती ही है वक पुरुष तीन पर निर पडने से वठठक िाती है , आाँ खोों में एक चमक
भर आती है।

पुरुष तीन : (कािी कोमल स्वर में) हलो, कुकू !


स्त्री : अरे ! पता ही नहीं चला तुम्हारे आने का ।

पुरुष तीन : मैंने दे खा, अपने से ही बात कर रही हो कुछ। इसीकलए...।

स्त्री : इं तजार में ही थी मैं। तुम सीधे आ रहे हो दफ्तर से ?

पुरुष तीन कश खी ोंच कर छल्ले बनाता है।

पुरुष तीन : सीधा ही समझो।

स्त्री : समझो यानी कक नहीं ।

पुरुष तीन : नाउ-आउ।...दो कमनट रुका बस, पोल स्टोर में। एक किजाइन दे ना था उनका। किर घर जा
कर नहाया और सीधे....।

स्त्री : सीधा कहते हो इसे ?

पुरुष तीन : (छल्ले बनाता) तुम नहीं बदलीं कबलकुल। उसी तरह िााँ टती हो आज भी। पर बात-सी है कुकू
कियर, कक दफ्तर के कपडों में सारी िाम उलझन होती इसीकलए सोचा कक....

स्त्री : लेककन मैंने कहा नहीं था, कबलकुल सीधे आना ? कबना एक भी कमनट जाया ककए ?

पुरुष तीन : जाया कहााँ ककया एक कमनट भी ? पोल स्टोर में तो....

स्त्री : रहने दो अब। तुम्हारी बहानेबाजी नई चीज नहीं है मेरे कलए।

पुरुष तीन : (सोिे पर बैिता है ) कह लो जो जी चाहे । कबना वजह लगाम खींचे जाना मेरे कलए भी नई चीज
नहीं है ।

स्त्री : बैि रहे हो - चलना नहीं है ?

पुरुष तीन : एक कमनट चल ही रहे हैं बस। बैिो।

स्त्री अनमने ढों ग से सोफे पर बैठ िाती है।

: कजस तरह िोन ककया तुमने अचानक, उससे मुझे कहीं लगा कक...

स्त्री की आाँ खें उमड आती हैं।

स्त्री : (उसके हाथ पर हाथ रख कर ) जोग !

पुरुष तीन : (हाथ सहलाता) क्या बात है , कुकू ?


स्त्री : मैं वहााँ पहुाँ च गई हाँ जहााँ पहुाँ चने से िरती रही हाँ कजंदगी-भर। मुझे आज लगता है कक...

पुरुष तीन : (हाथ पर हलकी थपककयााँ दे ता) परे िान नहीं होते इस तरह।

स्त्री : मैं सच कह रही हाँ । आज अगर तुम मुझसे कहो कक.... ।

पुरुष तीन : (अंदर की तरि दे ख कर) घर पर कोई नहीं है ?

स्त्री : कबन्नी है अंदर ।

हाथ हटा लेता है।

पुरुष तीन : यहीं है वह ? उसका तो सुना था कक...

स्त्री : हााँ ! पर आई हुई है कल से ।

पुरुष तीन : तब का दे खा है उसे। ककतने साल ही गए !

स्त्री : अब आ रही होगी बाहर। दे खो, तुमसे बहुत-बहुत बातें करनी हैं मुझे आज।

पु रुष तीन : मैं सुनने के कलए ही तो आया हाँ । िोन पर तुम्हारी आवाज से ही मुझे लग गया था कक...

स्त्री : मैं बहुत....वो थी उस वि।

पुरुष तीन : वह तो इस वि भी हो।

स्त्री : तुम ककतनी अच्छी तरह समझते हो मुझे...ककतनी अच्छी तरह ! इस वि मेरी जो हालत है अंदर
से...।

स्वर भराड िाता है ।

पुरुष तीन : प्लीज !

स्त्री : जोग !

पुरुष तीन : बोलो !

स्त्री : तुम जानते हो, मैं...एक तुम्हीं हो कजस पर मैं...

पुरुष तीन : कहती क्यों हो ? कहने की बात है यह ?

स्त्री : किर भी मुाँह से कनकल जाती है । दे खो ऐसा है कक....नहीं। बाहर चल कर ही बात करू
ाँ गी।
पुरुष तीन : एक सुझाव है मेरा।

स्त्री : बताओ।

पुरुष तीन : बात यहीं कर लो जो करनी है उसके बाद....

स्त्री : ना-ना यहााँ नहीं।

पुरुष तीन : क्यों ?

स्त्री : यहााँ हो ही नहीं सकेगी बात मुझसे। हााँ , तुम कुछ वैसा समझते हो बाहर चलने में मेरे साथ, तो...

पुरुष तीन : कैसी बात करती हो ?तुम जहााँ भी कहो, चलते हैं । मैं तो इसीकलए कह रहा था कक...

स्त्री : मैं जानती हाँ सब। तु म्हारी बात गलत नहीं समझती मैं कभी।

पुरुष तीन : तो बताओ, कहााँ चलोगी ?

स्त्री : जहााँ िीक समझो तुम।

पुरुष तीन : मैं िीक समझूाँ ? हमेिा तुम्हीं नहीं तय ककया करती थी ?

स्त्री : कगंजा कैसा रहे गा ?....वहााँ वही कोनेवाली टे बल खाली कमल जाए िायद।

पु रुष तीन : पूछो नहीं। यह कहो - कगंजा।

स्त्री : या यािट ? वहााँ इस वि ज्यादा लोग नहीं होते।

पुरुष तीन : मैंने कहा न...

स्त्री : अच्छा, उस छोटे रे स्तरााँ में चले जहााँ के कबाब तु म्हें बहुत पसं द हैं ? मैं तब के बाद कभी वहााँ नहीं
गई।

पुरुष तीन : (कहचककचाट के साथ) वहााँ ? जाता नहीं वैसे मैं वहााँ अब। …पर तु म्हारा वहीं के कलए मन हो तो
चल भी सकते हैं ।

स्त्री : दे खो एक बात तो बता ही दू ाँ तुम्हें चलने से पहले।

पुरुष तीन : (छल्ले छोडता) क्या बात?

स्त्री : मैंने...कल एक िैसला कर कलया है मन में।

पुरुष तीन : हााँ -हााँ ?


स्त्री : वैसे उन कदनों भी सुनी होगी तुमने ऐसी बात मेरे मुाँह से ...पर इस बार सचमुच कर कलया है ।

पुरुष तीन : (जैसे बात को आत्मसात करता) हाँ ।

पल-भर की खामोशी विसमें वह कुछ सोचता हुआ इधर-उधर दे खता है वफर िैसे वकसी वकताब पर
आाँ ख अटक िाने से उठ कर शेल्फ की तरफ चला िाता है।

स्त्री : उधर क्यों चले गए ?

पुरुष तीन : (िेल्फ से ककताब कनकलता) ऐसे ही ।...यह ककताब दे खना चाहता था जरा।

स्त्री : तुम्हें िायद कवश्वास नहीं आया मेरी बात पर ?

पुरुष तीन : सुन रहा हाँ मैं।

स्त्री : मेरे कलए पहले भी असंभव था यहााँ यह सब सहना। तुम जानते ही हो। पर आ कर कबलकुल-कबलकुल
असंभव हो गया है ।

पुरुष तीन : (पन्ने पलटता) तो मतलब है ....?

स्त्री : िीक सोच रहे हो तुम।

पुरुष तीन : (ककताब वापस रखता) हाँ !

स्त्री उठ कर उसकी तरफ आती है।

स्त्री : मैं तुम्हें बता नहीं सकती कक मुझे हमेिा ककतना अिसोस रहा है इस बात का कक मेरी वजह से तुम्हें
भी...तुम्हें भी इतनी तकलीि उिानी पडी है कजंदगी में।

पुरुष तीन : (अपनी गरदन सहलाता) दे खो...सच पूछो, तो मैं अब ज्यादा सोचता ही नहीं इस बारे में।

टहलता हुआ उसके पास से आगे वनकाल आता है।

स्त्री : मुझे याद है तुम कहा करते थे , 'सोचने से कुछ होना हो, तब तो सोचे भी आदमी।'

पुरुष तीन : हााँ ...वही तो।

स्त्री : पर यह भी कक कल और आज में िकट होता है । होता है न

पुरुष तीन : हााँ ...होता है । बहुत-बहुत।

स्त्री : इसीकलए कहना चाहती हाँ तुमसे कक....।


बडी लडकी अोंदर से आती है।

बडी लडकी : ममा, अंदर जो कपडे इस्तरी के कलए रखे हैं ... (पुरुष तीन को दे ख कर) हलो अं कल !

पुरुष तीन : हलो, हलो !...अरे वह ! यह तू ही है क्या ?

बडी लडकी : आपको क्या लगता है ?

पुरुष तीन : इतनी-सी थी तू तो ! (स्त्री से ) ककतनी बडी नजर आने लगी अब

स्त्री : हााँ ...यह चेहरा कनकल आया है !

पुरुष तीन : उन कदनों फ्राक पहना करती थी... ।

बडी लडकी : (सकुचाती) पता नहीं ककन कदनों !

पुरुष तीन : याद है , कैसे मेरे हाथ पर काटा था इसने एक बार ? बहुत ही िैतान थी ।

स्त्री : (कसर कहला कर) धरी रह जाती है सारी िैतानी आस्खर ।

बडी लडकी : बैकिए आप । मैं अभी आती हाँ उधर से ।

अहाते के दरवािे की तरफ चल दे ती है।

पुरुष तीन : भाग कहााँ रही है ?

बडी लडकी : आ रही हाँ बस ।

चली िाती है ।

पुरुष तीन : ककतनी गदराई हुई लडकी थी ! गाल इस तरह िुले-िुले थे ...

स्त्री : सब कपचक जाते हैं गाल-वाल !

पुरुष तीन : पर मैंने तो सुना था कक...अपनी मजी से ही इसने ...?

स्त्री : हााँ , अपनी मजी से ही। अपनी मजी का ही तो िल है यह कक...

पुरुष तीन : बात लेककन कािी बडप्पन से करती है ?...

स्त्री : यह उम्र और इतना बडप्पन ?... हााँ , तो चलें अब किर ?

पुरुष तीन : जैसा कहो ।


स्त्री : (अपने पसट में रूमाल ढू ाँ ढ़ती) कहााँ गया ? (रूमाल कमल जाने से पसट बंद करती है ।) है यह इसमें...तो
कब तक लौट आऊाँगी मैं ? इसकलए पूछ रही हाँ कक उसी तरह कह जाऊाँ इससे ताकक...

पुरुष तीन : तुम पर है यह। जैसा भी कह दो ।

स्त्री : कह दे ती हाँ -िायद दे र हो जाए मुझे । कोई आनेवाला है , उसे भी बता दे गी ।

पुरुष तीन : कोई और आनेवाला है ?

स्त्री : जुनेजा। वही आदमी कजसकी वजह से ...तुम जानते ही हो सब । (अहाते की तरि दे खती) कबन्नी!
(जवाब न कमलने से ) कबन्नी! ...कहााँ चली गई यह ?

अहाते के दरवािे से िा कर उधर दे ख लेती है और कुछ उत्तेवित-सी हो कर लौट आती है।

: पता नहीं कहााँ चली गई यह लडकी भी अब... !

पुरुष तीन : इं तजार कर लो ।

स्त्री : नहीं, वह आदमी आ गया तो, मुस्िल हो जाएगी । मुझे बहुत जरूरी बात करनी है तुमसे। आज ही।
अभी ।

पुरुष तीन : (नया कसगरे ट सुलगता) तो िीक है । एट योर किस्पोजल ।

स्त्री : (इस तरह कमरे को दे खती जैसे कक कोई चीज वहााँ छूटी जा रही हो) हााँ ...आओ ।

पु रुष तीन : (चलते -चलते रुक कर ) लेककन...घर इस तरह अकेला छोड जाओगी ?

स्त्री : नहीं, अभी आ जाएगा कोई-न-कोई ।

पुरुष तीन : (छल्ले छोडता ) तु म्हारे ऊपर है जैसा भी िीक समझो ।

स्त्री : (किर एक नजर कमरे पर िाल कर) मेरे कलए तो...आओ

पुरुष तीन पहले वनकल िाता है। स्त्री वफर से पसड खोल कर उसमें कोई चीि ढू ाँ ढती पीछे - पीछे ।
कुछ क्षण मोंच खाली रहता है। वफर बाहर से छोटी लडकी के वससक कर रोने का स्वर सुनाई दे ता
है। वह रोती हुई अोंदर आ कर सोफे पर औोंधे हो िाती है। वफर उठ कर कमरे के खालीपन पर निर
डालती है और उसी तरह रोती-वससकती अोंदर के कमरे में चली िाती है। मोंच वफर दो-एक क्षण
खाली रहता है। उसके बाद बडी लडकी चाय की टर े के वलए अहाते के दरवािे से आती है।

बडी लडकी : अरे ! चले भी गए ये लोग ?


टर े डायवनोंग टे बल पर छोड कर बाहर के दरवािे तक आती है , एक बार बाहर दे ख लेती है और कुछ
क्षण अोंतमुख भाव से वही ों रुकी रहती है। वफर अपने की झटक कर वापस डायवनोंग टे बल की तरफ
चल दे ती है।

: कैसे पथरा जाता है कसर कभी-कभी।

रास्ते में डरेवसोंग टे बल के वबखराव को दे ख कर रुक िाती है और िल्दी से वहााँ की चीिोों को सहेि
दे ती है।

: जरा ध्यान न दे आदमी...जंगल हो जाता है सब।

वहााँ से हट कर डायवनोंग टे बल के पास आ िाती है और अपने वलए चाय की प्याली बनाने लगती है।
छोटी लडकी उसी तरह वससकती अोंदर से आती है।

छोटी लडकी : जब नहीं हो-होना होता, तो सब लोग होते हैं कसर पर। और जब हो-होना होता है तो कोई भी
नहीं कद-कदखता कहीं।

बडी लडकी चाय बनाना बीच में छोड कर उसकी तरफ बढ आती है।

बडी लडकी : ककन्नी ! यह किर क्या हुआ तुझे ? बाहर से कब आई तू ?

छोटी लडकी : कब आई मैं ! यहााँ पर को- कोई भी क्यों नहीं था ? तू -तुम भी कहााँ थी थोडी दे र पहले ?

बडी लडकी : मैं चाय की पत्ती लाने चली गई थी ।...ककसने , अिोक ने मारा है तुझे ?

छोटी लडकी : वह भी क-कहााँ था इस वि ? मेरे कान स्खंचने के कलए तो पता नहीं क-कहााँ से चला
आएगा। पर ज-जब सुरेखा की ममी से बात करने की बात की थी, त-त्तो ?

बडी लडकी : सुरेखा की ममी ने कुछ कहा है तु मसे ?

छोटी लडकी : ममा कहााँ हैं ? मुझे उन्ें स-साथ ले कर जाना है वहााँ ।

बडी लडकी : कहााँ ? सुरेखा के घर ?

छोटी लडकी : सुरेखा की ममी बुला रही हैं उन्ें । कहती हैं , अभी ले-ले कर आ।

बडी लडकी : पर ककस बात के कलए ?

छोटी लडकी : अिोक को दे ख कलया था सबने हम लोगों को िााँ टते। सुरेखा की ममी ने सुरखा को घ-घर में
ले जा कर कपटा, तो उसने ...उसने म-मेरा नाम लगा कदया।

बडी लडकी : क्या कहा ?


छोटी लडकी : कक मैं कसखाती हाँ उसे वे सब ब-बातें।

बडी लडकी : तो...सुरेखा कक ममी ने मुझे बुलाया इस तरह िााँ टा है जैसे...पहले बताओ, ममा कहााँ हैं ? मैं
उन्ें अभी स-साथ ले कर जाऊाँगी। क-कहती हैं , मैं उनकी लडकी को कबगाड रही हाँ । और भी बु-बुरी बातें
हमारे घर को ले कर।

बडी लडकी : ममा बाहर गई हैं ।

छोटी लडकी : बाहर कहााँ ?

बडी लडकी : तुझे सब जगह का पता है कक कहााँ -कहााँ जाया जा सकता है बाहर ?

छोटी लडकी : (और कबिरती) तु-तुम भी मुझी को िााँ ट रही हो ? ममा नहीं हैं तो तुम चलो मेरे साथ।

बडी लडकी : मैं नहीं चल सकती।

छोटी लडकी : (ताव में) क्यों नहीं चल सकती ?

बडी लडकी : नहीं चल सकती कह कदया न।

छोटी लडकी : (उसे परे धकेलती) मत चलो, नहीं चल सकती तो।

बडी लडकी : (गुस्से से ) ककन्नी !

छोटी लडकी : बात मत करो मुझसे। ककन्नी !

बडी लडकी : तुझे कबलकुल तमीज नहीं है क्या ?

छोटी लडकी : नहीं है मुझे तमीज।

बडी लडकी : दे ख, तू मुझसे ही मार खा बैिेगी आज।

छोटी लडकी : मार लो न तुम।...इनसे ही म-मार खा बैिूाँगी आज।

बडी लडकी : तू इस वि यह रोना बंद करे गी या नहीं।

छोटी लडकी : नहीं करू


ाँ गी।...रोना बंद करे गी या नहीं ?

बडी लडकी : तो िीक है । रोती रह बैि कर।

छोटी लडकी : रो-रोती रह बैि कर।

अहाते के पीछे से दरवािे की कोंु डी खटखटाने की आवाि सुनाई दे ती है।


बडी लडकी : (उधर दे ख कर) यह...यह इधर से कौन आया हो सकता है इस वि ?

िल्दी से अहाते के दरवािे से चली िाती है। छोटी लडकी वविोह के भाव से कुरसी पर िम िाती
है। बडी लडकी पुरुष चार के साथ वापस आती है।

: (आती हुई) मैंने सोचा कक कौन हो सकता है पीछे का दरवाजा खटखटाए। आपका पता था, आप आनेवाले
हैं । पर आप तो हमेिा आगे के दरवाजे से ही आते हैं , इसकलए...।

पुरुष चार : मैं उसी दरवाजे से आता, लेककन...(छोटी लडकी को दे ख कर) इसे क्या हुआ है ? इस तरह क्यों
बैिी है वहााँ ?

बडी लडकी : (छोटी लडकी से ) जुनेजा अंकल आए हैं , इधर आ कर बात तो कर इनसे।

छोटी लडकी मुाँह फेर कर कुरसी की पीठ पर बैठ कर बााँह फैला लेती है।

पुरुष चार : (छोटी लडकी के पास आता) अरे ! यह तो रो रही है । (उसके कसर पर हाथ िेरता) क्यों ? क्या
हुआ मुकनया को ? ककसने नाराज कर कदया ? (पुचकारता) उिो बेटे, इस तरह अच्छा नहीं लगता। अब आप
बडे हो गए हैं , इसकलए....।

छोटी लडकी : (सहसा उि कर बाहर को चलती) हााँ ...बडे हो गए हैं । पता नहीं ककस वि छोटे हो जाते हैं ,
ककस वि बडे हो जाते हैं ! (बाहर के दरवाजे के पास से) हम नहीं लौट कर आएाँ गे अब...जब तक ममा
नहीं आ जातीं ।

चली िाती है।

पुरुष चार : (लौट कर बडी लडकी के तरि आता) साकवत्री बाहर गई है ?

बडी लडकी वसफड वसर वहला दे ती है।

: मैं थोडी दे र पहले गया था। बाहर सडक पर न्यू इं किया की गाडी दे खी, तो कुछ दे र पीछे को घूमने कनकल
गया। तेरे िै िी ने बताया था, जगमोहन आजकल यहीं है - किर से टर ां सिर हो कर आ गया है ।...वह ऐसे ही
आया था कमलने , या...?

बडी लडकी : ममा को पता होगा। मैं नहीं जानती ।

पुरुष चार : अिोक ने कजक्र नहीं ककया मुझसे। उसे भी पता नहीं होगा िायद।

बडी लडकी : अिोक कमला है आपसे ?

पुरुष चार : बस स्टाप पर खडा था। मैंने पूछा, तो बोला कक आप ही के यहााँ जा रहा हाँ िै िी का हालचाल
पता करने। कहने लगा, आप भी चकलए, बाद में साथ ही आएाँ गे पर मैंने सोचा कक एक बार जब इतनी दू र आ
ही गया हाँ , तो साकवत्री से कमल कर ही जाऊाँ । किर उसे भी कजस हाल में छोड आया हाँ , उसकी वजह से... ।
बडी लडकी : ककसकी बात कर रहे हैं ....िै िी की ?

पुरुष चार : हााँ , महें द्रनाथ की ही। एक तो सारी रात सोया नहीं वह। दू सरे ...।

बडी लडकी : तबीयत िीक नहीं उनकी ?

पुरुष चार : तबीयत भी िीक नहीं और वैसे भी...मैं तो समझता हाँ , महें द्रनाथ खुद कजम्मेदार है अपनी यह
हालत करने के कलए ।

बडी लडकी : (उस प्रकरण से बचना चाहती) चाय बनाऊाँ आपके कलए ?

पुरुष चार : (चाय का समान दे ख कर) ककसके कलए बनाई बैिी थी इतनी चाय ? पी नहीं लगता ककसी ने ?

बडी लडकी : (असमंजस में ) यह मैंने बनाई थी क्योंकक...क्योंकक सोच रही थी कक...

पुरुष चार : (जैसे बात को समझ कर) वे लोग चले गए होंगे।...साकवत्री को पता था न, मैं आनेवाला हाँ ?

बडी लडकी : (आकहस्ता से ) पता था।

पुरुष चार : यह भी बताया नहीं मुझे अिोक ने ...पर उसके लहजे से ही मुझे लग गया था कक...(किर जैसे
कोई बात समझ में आ जाने से) अच्छा, अच्छा, अच्छा ! कािी समझदार लडका है ।

बडी लडकी : (चीनीदानी हाथ में कलए) चीनी ककतनी ?

पुरुष चार : चीनी कबलकुल नहीं। मुझे मना है चीनी। वह िायद इसीकलए मुझे वापस ले चलना चाहता था
कक...कक उसे मालूम होगा जगमोहन का।

बडी लडकी : दू ध ?

पुरुष चार : हमेिा कजतना।

बडी लडकी : कुछ नमकीन लाऊाँ अंदर से ?

पुरुष चार : नहीं।

बडी लडकी : बैि जाइए ।

पुरुष चार : ओ, हााँ !

वही एक कुरसी खी ोंच कर बैठ िाता है। बडी लडकी एक प्याली उसे दे कर दू सरी प्याली खुद ले कर
बैठ िाती है। कुछ पल खामोशी।
बडी लडकी : कहााँ -कहााँ घू म आए इस बीच? सुना था कहीं बाहर गए थे ?

पुरुष चार : हैं , गया था बाहर। पर ककसी नई जगह नहीं गया।

वफर कुछ पल खामोशी।

बडी लडकी : सुषमा का क्या हाल है ?

पुरुष चार : िीक-िाक है अपने घर में।

बडी लडकी : कोई बच्चा-अच्चा ?

पुरुष चार : अभी नहीं।

वफर कुछ पल खामोशी।

बडी लडकी : आप तो कबलकुल चुप बैिे हैं । कोई बात कीकजए न !

पुरुष चार : (उसााँ स के साथ) क्या बात करू


ाँ ?

बडी लडकी : कुछ भी ।

पुरुष चार : सोच कर तो बहुत-सी बातें आया था। साकवत्री होती तो िायद कुछ बात करता भी पर अब लग
रहा है बेकार ही है सब।

वफर कुछ पल खामोशी। दोनोों लगभग एक साथ अपनी-अपनी प्याली खाली करके रख दे ते हैं।

बडी लडकी : एक बात पूछूाँ - िै िी को किर से वही दौरा तो नहीं पडा, ब्लि प्रेिर का ?

पुरुष चार : यह भी पूछने की बात है ?

बडी लडकी : आप उन्ें समझाते क्यों नहीं कक....

पुरुष चार : (उिता हुआ) कोई समझा सकता है उसे ? वह इस औरत को इतना चाहता है अंदर से कक...

बडी लडकी : यह आप कैसे कह सकते हैं ?

पुरुष चार : तुझे लगता है यह बात सही नहीं है ?

बडी लडकी : (उिती हुई) कैसे सही हो सकती है ? (अंतमुटख भाव से )...आप नहीं जानते , हमने इन दोनों के
बीच क्या-क्या गुजरते दे खा है इस घर में।

पुरुष चार : दे खा जो कुछ भी हो....


बडी लडकी : इतने साधारण ढं ग से उडा दे ने की बात नहीं है , अंकल ! मैं यहााँ थी, तो मुझे कई बार लगता
था कक मैं एक घर में नहीं, कचकडयाघर के एक कपंजरे में रहती हाँ जहााँ ...आप िायद सोच भी नहीं सकते कक
क्या-क्या होता रहा है यहााँ । िै िी का चीखते हुए ममा के कपडे तार-तार कर दे ना...उनके मुाँह पर पट्टी बााँ ध
कर उन्ें बंद कमरे में पीटना...खींचते हुए गुसलखाने में कमोि पर ले जा कर...(कसहर कर) मैं तो बयान भी
नहीं कर सकती कक ककतने -ककतने भयानक दृश्य दे खे हैं इस घर में मैंने। कोई भी बाहर का आदमी उस
सबको दे खता-जानता, तो यही कहता कक क्यों नहीं बहुत पहले ही ये लोग...?

पुरुष चार : तूने नई बात नहीं बताई कोई। महे न्द्रनाथ खुद मुझे बताता रहा है यह सब।

बडी लडकी : बताते रहे हैं ? किर भी आप कहते हैं कक... ?

पुरुष चार : किर भी कहता हाँ कक वह इसे बहुत प्यार करता है ।

बडी लडकी : कैसे कहते हैं यह आप ? दो आदमी जो रात-कदन एक-दू सरे की जान नोंचने में लगे रहते हों
...?

पुरुष चार : मैं दोनों की नहीं, एक की बात कह रहा हाँ ।

बडी लडकी : तो आप सचमुच मानते हैं कक...?

पुरुष चार : कबलकुल मानता हाँ , इसीकलए कहता हाँ कक अपनी आज की हलात के कलए कजम्मेदार महे न्द्र नाथ
खुद है । अगर ऐसा न होता, तो आज सुबह से ही ररररया कर मुझसे न कह रहा होता कक जैसा भी हो मैं इससे
बात करके इसे समझाऊाँ। मै इस वि यहााँ न आया होता, तो पता है क्या होता ?

बडी लडकी : क्या होता ?

पुरुष चार : महे न्द्र खुद यहााँ चला आया होता। कबना परवाह ककए कक यहााँ आ कर इस ब्लेि प्रेिर में
उसका क्या हाल होता और ऐसा पहली बार न होता, तु झे पता ही है । मैने ककतनी मुस्िल से समझा-बुझा
कर उसे रोका है , मैं ही जानता हाँ । मेरे मन में थोडा-सा भरोसा बाकी था कक िायद अब भी कुछ हो सके...
मेरे बात करने से ही कुछ बात बन सके। पर आ कर बाहर न्यू इं किया की गाडी दे खी, तो मुझे लगा कक नही,
कुछ नहीं हो सकता। कुछ नही हो सकता। बात करके मै कसिट आपको...मेरा खयाल है चलना चाकहए अब।
जाते हुए मुझे उसके कलए दवाई भी ले जानी है ।...अच्छा।

बाहर के दरवािे की तरफ चल दे ता है। बडी लडकी अपनी िगह पर िड-सी खडी रहती है। वफर-
एक कदम उसकी तरफ बढ िाती है।

बडी लडकी : अंकल !

पुरुष चार : (रुक कर) कहो।

बडी लडकी : आप जा कर िै िी को यह बात बता दें गे ?


पुरुष चार : कौन-सी ?

बडी लडकी : यही ...जगमोहन अंकल के आने की ?

पुरुष चार : क्यों...नही बतानी चाकहए ?

बडी लडकी : ऐसा है कक...

पुरुष चार : (हलके से आाँ ख मूाँद कर खोलता) मैं न भी बताऊाँ िायद पर कुछ िकट नहीं पडने का
उससे।...बैि तू।

दरवािे से बाहर िाने लगता है।

बडी लडकी : अंकल ?

पुरुष चार : (और किर रुक कर) हााँ , बेटे !

बडी लडकी : सचमुच कुछ नही हो सकता क्या ?

पुरुष चार : एक कदन के कलए हो सकता है िायद। दो कदन के कलए हो सकता है । पर हमेिा के कलए... कुछ
भी नहीं।

बडी लडकी : तो उस हालत से क्या यहीं बेहतर नहीं कक... ?

बाहर से स्त्री के स्वर सुनाई दे ते हैं।

स्त्री : छोड दे मेरा हाथ। छोड भी ।

बडी लडकी : आ गई हैं वे लौट कर।

पुरुष चार : हााँ ।

बाहर िाने के बिाय होोंठ चबाता डाइवनोंग टे बल की तरफ बढ िाता है। स्त्री छोटी लडकी के साथ
आती है। छोटी लडकी उसे बााँह से बाहर खी ोंच रही है।

छोटी लडकी : चलती क्यों नहीं तुम मेरे साथ ? चलो न !

स्त्री : (बााँ ह छु डाती) तू हटे गी या नहीं ?

छोटी लडकी : नहीं हटू ाँ गी। उस वि तो घर पर नहीं थी, और अब कहती हो... ।

स्त्री : छोड मेरी बााँ ह ।


छोटी लडकी : नहीं छोडूाँगी ।

स्त्री : नहीं छोडे गी ? (गुस्से से बााँ ह छु डा कर उसे परे धकेलती) बडा जोम चढ़ने लगा है तुझे !

छोटी लडकी : हााँ , चढ़ने लगा है । जब-जब कोई बात कहता मुझसे , यहााँ ककसी को िुरसत नहीं होती चल
कर उससे पूछने की।

बडी लडकी : उन्ें सााँ स तो लेने दे । वे अभी घर में दास्खल नहीं हुई कक तूने...।

छोटी लडकी : तुम बात मत करो। कमट्टी के लोंदे की तरह कहली नहीं जब मैंने...।

स्त्री : (उसे फ्राक से पकड कर) किर से कह जो कहा है तूने !

छोटी लडकी : (अपने को छु डाने के कलए संघषट करती) क्या कहा है मैंने ? पूछो इनसे जब मैंने आ कर इन्ें
बताया था, तो...।

पल-भर की खामोशी विसमें सबकी निरें ल्कस्थर हो रहती हैं - छोटी लडकी की स्त्री पर और शेष
सबकी छोटी लडकी पर।

छोटी लडकी : (अपने आवे ि से बेबस) कमट्टी के लोंदे !...सब-के-सब कमट्टी के लोंदे !

पुरुष चार : (उनकी तरि आता) छोड दो लडकी को, साकवत्री ! उस पर इस वि पागलपन सवार है ,
इसकलए...।

स्त्री : आप मत पकडए बीच में।

पुरुष चार : दे खो...।

स्त्री : आपसे कहा है , आप मत पकडए बीच में। मुझे अपने घर में ककससे ककस तरह बरतना चाकहए, यह मैं
औरों से बेहतर जानती हाँ । (छोटी लडकी के एक और चपत जडती) इस वि चुपचाप चली जा उस कमरे
में। मुाँह से एक लफ्ज भी और कहा, तो खैर नहीं तेरी।

छोटी लडकी के केवल होोंठ वहलते हैं। शब्द उसके मुाँह से कोई नही ों वनकल पाता। वह घायल निर
से स्त्री को दे खती उसी तरह खडी रहती है।

: जा उस कमरे में। सुना नहीं ?

छोटी लडकी वफर भी खडी रहती है।

: नहीं जाएगी ?
छोटी लडकी दााँत पीस कर वबना कुछ कहे एकाएक झटके से अोंदर के कमरे में चली िाती है। स्त्री
िा कर पीछे से दरवािे की कोंु डी लगा दे ती है।

: तुझसे समझूाँगी अभी थोडी दे र में।

बडी लडकी : बैकिए, अंकल !

पुरुष चार : नहीं, मैं अभी जाऊाँगा।

स्त्री : (उसकी तरि आती) आपको कुछ बात करनी थी मुझसे ...बताया था इसने।

पुरुष चार : हााँ ...पर इस वि तुम िीक मूि में नहीं हो...।

स्त्री : मैं कबलकुल िीक मूि में हाँ । बताइए आप।

बडी लडकी : अंकल कह रहे थे , िै िी की तबीयत किर िीक नहीं है ।

स्त्री : घर से जा कर तबीयत िीक कब रहती है उनकी ? हर बार का यही एक ककस्सा नहीं है ?

बडी लडकी : तुम थकी हुई हो। अच्छा होगा जो भी बात करनी हो, बैि कर आराम से कर लो।

स्त्री : मैं बहुत आराम से हाँ (पुरुष चार से) बताइए आप ।

पुरुष चार : ज्यादा बात अब नहीं करना चाहता। कसिट एक ही बात कहना चाहता हाँ तुमसे।

स्त्री : (पल-भर प्रतीक्षा करने के बाद) ककहए।

पुरुष चार : तुम ककसी तरह छु टकारा नहीं दे सकती उस आदमी को ?

स्त्री : छु टकारा ? मैं ? उन्ें ? ककतनी उल्टी बात है !

पुरुष चार : उलटी बात नहीं है । तुमने कजस तरह से बााँ ध रखा है उसे अपने साथ.... ।

स्त्री : उन्ें बााँ ध रखा है ? मैंने अपने साथ... ? कसवा आपके कोई नहीं कह सकता यह बात।

पुरुष चार : क्योंकक और कोई जानता भी तो नहीं उतना कजतना मैं जानता हाँ ।

स्त्री : आप हमेिा यही मानते आए है कक आप बहुत ज्यादा जानते हैं । नहीं ?

पुरुष चार : महें द्रनाथ के बारे में, हााँ । और जान कर ही कहता हाँ कक तु मने इस तरह किकंजे में कस रखा है
उसे कक वह अब अपने दो पै रों पर चल सकने लायक भी नहीं रहा।

स्त्री : अपने दो पैरों पर ! अपने दो पैर कभी थे भी उसके पास ?


पुरुष चार : कभी बात क्यों करती हो ? जब तुमने उसे जाना, तब से दस साल पहले से मैं उसे जानता हाँ ।

स्त्री : इसीकलए िायद जब मैंने जाना, तब तक अपने दो पैर रहे नहीं थे उसके पास।

पुरुष चार : मैं जानता हाँ साकवत्री, कक तुम मेरे बारे में क्या-क्या सोचती और कहती हो...।

स्त्री : जरूर जानते होंगे...लेककन किर भी ककतना कुछ है जो साकवत्री कभी ककसी के सामने नहीं कहती।

पुरुष चार : जैसे ?

स्त्री : जैसे...पर बात तो आप करने आए हैं ।

पुरुष चार : नहीं। पहले तु म बात कर लो (बडी लडकी से ) तू बेटे, जरा उधर चली जा थोडी दे र।

बडी लडकी चुपचाप िाने लगती है।

स्त्री : सुन लेने दीकजए इसे भी, अगर मुझे बात करनी है तो।

पुरुष चार : िीक है यहीं रह तू , कबन्नी !

बडी लडकी : पर मैं सोचती हाँ कक...।

स्त्री : मैं चाहती हाँ तू यहााँ रहे , तो ककसी वजह से ही चाहती हाँ ।

बडी लडकी आवहस्ता से आाँ खें झपका कर उन दोनोों से थोडी दू र डायवनोंग टे बल वक कुरसी पर िा
बैठती है।

पुरुष चार : (स्त्री से ) बैि जाओ तुम भी।

कटता हुआ खुद सोफे पर बैठ िाता है। स्त्री एक मोढा ले लेती है।

: कह िालो अब जो भी कहना है तुम्हें।

स्त्री : कहने से पहले एक बात पूछनी है आप से। आदमी ककस हालत में सचमुच एक आदमी होता है ?

पुरुष चार : पूछो कुछ नहीं। जो कहना है , कह िालो।

स्त्री : यूाँ तो जो कोई भी एक आदमी की तरह चलता-किरता, बात करता हैं , वह आदमी ही होता है ...। पर
असल में आदमी होने के कलए क्या जरूरी नहीं कक उसमें अपना एक माद्दा, अपनी एक िस्ससयत हो ?

पुरुष चार : महें द्र को सामने रख कर यह तुम इसकलए कह रही हो कक...


स्त्री : इसकलए कह रही हाँ कक जब से मैंने उसे जाना है , मैंने हमेिा हर चीज के कलए ककसी-न-ककसी का
सहारा ढूाँढ़ते पाया है । खास तौर से आपका। यह करना चाकहए या नहीं - जुनेजा से राय ले लूाँ। कोई छोटी-से -
छोटी चीज खरीदनी है , तो भी जुनेजा की पसंद से। कोई बडे -से -बडा खतरा उिाता है - तो भी जुनेजा की
सलाह से। यहााँ तक कक मुझसे ब्याह करने का िैसला भी कैसे ककया उसने ? जुनेजा के हामी भरने से।

पुरुष चार : मैं दोस्त हाँ उसका। उसे भरोसा रहा है मुझ पर।

स्त्री : और उस भरोसे का नतीजा ?... कक अपने -आप पर उसे कभी ककसी चीज के कलए भरोसा नहीं रहा।
कजंदगी में हर चीज कक कसौटी - जुनेजा। जो जुनेजा सोचता है , जो जुनेजा चाहता है , जो जुनेजा करता है ,
वही उसे भी सोचना है , वही उसे भी चाहना है , वही उसे भी करना है । क्योंकक जुनेजा तो खुद एक पूरे
आदमी का आधा-चौथाई भी नहीं हैं ।

पुरुष चार : तुम इस नजर से दे ख सकती हो इस चीज को; पर असकलयत इसकी यह है कक...

स्त्री : (खडी होती) मुझे उस असकलयत की बात करने दीकजए कजसे मैं जानती हाँ ।...एक आदमी है । घर
बसाता है । क्यों बसाता है ? एक जरूरत पूरी करने के कलए। कौन-सी जरूरतें ? अपने अंदर से ककसी
उसको...एक अधूरापन कह दीकजए उसे ...उसको भर सकने की। इस तरह उसे अपने कलए...अपने में पूरा
होना होता है । ककन्ीं दू सरों के पूरा करते रहने में ही कजं दगी नहीं काटनी होती। पर आपके महें द्र के कलए
कजंदगी का मतलब रहा है ...जैसे कसिट दू सरों के खाली खाने भरने की ही चीज है वह। जो कुछ वे दू सरे उससे
चाहते हैं , उम्मीद करतें हैं ...या कजस तरह वे सोचते हैं उनकी कजंदगी में उसका इस्ते माल हो सकता है ।

पुरुष चार : इस्तेमाल हो सकता है ?

स्त्री : नहीं ? इस काम के कलए और कोई नहीं जा सकता, महें द्र चला जाएगा। इस बोझ को और कोई नहीं
ढो सकता, महें द्रनाथ ढो लेगा। प्रेस खुला, तो भी। िैक्टरी िुरू हुई, तो भी। खाली खाने भरने की जगह पर
महें द्रनाथ अपना कहस्सा पहले ही ले चुका है , पहले ही खा चुका है । और उसका कहस्सा ? (कमरे के एक-एक
सामान की तरि इिारा करती) ये ये ये ये ये दू सरे -तीसरे -चौथे दरजे की घकटया चीजें कजनसे वह सोचता था,
उसका घर बन रहा है ?

पुरुष चार : महें द्रनाथ बहुत जल्दबाजी बरतता था इस मामले में, मैं जानता हाँ । मगर वजह इसकी...

स्त्री : वजह इसकी मैं थी-यही कहना चाहते हैं न ? वह मुझे खुि रखने के कलए ह यह लोहा-लकडी जल्दी-
से-जल्दी घर में भर कर हर बार अपनी बरबादी की नींव खोद लेता था। पर असल में उसकी बरबादी की
नींव क्या चीज खोद रही थी...क्या चीज और कौन आदमी...अपने कदल में तो आप भी जानते होंगे।

पुरुष चार : कहती रहो तुम। मैं बुरा नहीं मान रहा। आस्खर तुम महें द्र की पत्नी हो और...

स्त्री : (आवेि में उसकी तरि मुडती) मत ककहए मुझे महें द्र की पत्नी। महें द्र भी एक आदमी है , कजसके
अपना घर-बार है , पत्नी है , यह बात महें द्र को अपना कहनेवालों को िुरू से ही रास नहीं आई। महें द्र ने
ब्याह क्या ककया, आप लोगों की नजर में आपका ही कुछ आपसे छीन कलया। महें द्र अब पहले की तरह
हाँ सता नहीं। महें द्र अब दोस्तों में बैि कर पहले की तरह स्खलता नहीं ! महें द्र अब पहलेवाला महें द्र रह ही
नहीं गया ! और महें द्र ने जी-जान से कोकिि की, वह वही बना रहे ककसी तरह। कोई यह न कह सके
कजससे कक वह पहलेवाला महें द्र रह ही नहीं गया। और इसके कलए महें द्र घर के अंदर रात-कदन छटपटाता
है । दीवारों से कसर पटकता है । बच्चों को पीटता है । बीवी के घुटने तोडता है । दोस्तों को अपना िुरसत का
वि काटने के कलए उसकी जरूरी है । महें द्र के बगैर कोई पाटी जमती नहीं ! महें द्र के बगैर ककसी
कपककनक का मजा नहीं आता था ! दोस्तों के कलए जो िुरसत काटने का वसीला है , वही महें द्र के कलए
उसका मुख्य काम है कजंदगी में। और उसका ही नहीं, उसके घर के लोगों का भी वही मुख्य काम होना
चाकहए। तुम िलााँ जगह चलने से इन्कार कैसे कर सकती हो ? िलााँ से तुम िीक तरह से बात क्यों नहीं
करतीं ? तुम अपने को पढ़ी-कलखी कहती हो ?...तुम्हें तो लोगों के बीच उिने -बैिने की तमीज नहीं। एक
औरत को इस तरह चलना चाकहए, इस तरह बात करनी चाकहए, इस तरह मुस्कराना चाकहए। क्यों तुम लोगों
के बीच हमेिा मेरी पोजीिन खराब करती हो? और वही महे न्द्र जो दोस्तों के बीच दब्बू -सा बना हलके-
हलके मुस्कराता है , घर आ कर एक दाररं दा बन जाता है । पता नहीं, कब ककसे नोच लेगा, कब ककसे िाड
खाएगा ! आज वह ताव में अपनी कमीज को आग लगा लेता है । कल वह साकवत्री की छाती पर बैि कर
उसका कसर जमीन से रगडने लगता है । बोल, बोल, बोल, चलेगी उस तरह कक नहीं जैसे मैं चाहता हाँ ?
मानेगी वह सब कक नहीं जो मैं कहता हाँ ? पर साकवत्री किर भी नही चलती। वह सब नहीं मानती। वह
निरत करती है इस सबसे - इस आदमी के ऐसा होने से। वह एक पूरा आदमी चाहती है अपने कलए
एक...पूरा...आदमी। गला िाड कर वह यह बात कहती है । कभी इस आदमी को ही यह आदमी बना सकने
की कोकिि करती है । कभी तडप कर अपने को इससे अलग कर लेना चाहती है । पर अगर उसकी
कोकििों से थोडा िकट पडने लगता है इस आदमी में, तो दोस्तों में इनका गम मनाया जाने लगता है ।
साकवत्री महे न्द्र की नाक में नकेल िाल कर उसे अपने ढं ग से चला रही है । साकवत्री बेचारे महे न्द्र की रीढ़
तोड कर उसे ककसी लायक नहीं रहने दे रही है ! जैसे कक आदमी न हो कर कबना हाड-मां स का टु कडा हो
वह एक - बेचारा महे न्द्र!

हााँफती हुई चुप कर िाती है। बडी लडकी कुहवनयााँ मेि पर रखे और मुवियोों पर चहेरा वटकाए
पथराई आाँ खोों से चुपचाप दोनोों को दे खती है।

पुरुष चार : (उिता हुआ) कबना हड-मां स का पुतला, या जो भी कह लो तुम उसे - पर मेरी नजर में वह हर
आदमी जैसे एक आदमी है -कसिट इतनी ही कमी है उसमें।

स्त्री : यह आप मुझे बता रहे हैं ? कजसने बाईस साल साथ जी कर जाना है उस आदमी को ?

पुरुष चार : कजया जरूर है तुमने उसके साथ...जाना भी है उसे कुछ हद तक...लेककन...

स्त्री : (हतािा से कसर कहलती है ) ओफ्फोह! ओफ्फोह! ओफ्फोह !

पुरुष चार : जो-जो बातें तुमने कही हैं अभी, वे गलत नहीं हैं अपने में। लेककन बाईस साल जी कर जानी हुई
बातें वे नहीं हैं । आज से बाईस साल पहले भी एक बार लगभग ऐसी ही बातें मैं तम्हारे मुाँह से सुन चुका हाँ -
तुम्हें याद हैं ?

स्त्री : आप आज ही की बात नहीं कर सकते ? बाईस साल पहले पता नहीं ककस कजंदगी की बात हैं वह ?
पुरुष चार : मेरे घर हुई थी वह बात। तुम बात करने के कलए खास आई थीं वहााँ , और मेरे कंधे पर कसर रखे
दे र तक रोती रही थीं। तब तु मने कहा था कक...

स्त्री : दे स्खए, उन कदनों की बात अगर छे डना ही चाहते हैं आप, तो मैं चाहाँ गी कक यह लडकी...

पुरुष चार : क्या हजट है अगर यह यहीं रहे तो ? जब आधी बात उसके सामने हुई है , तो बाकी आधी भी
इसके सामने ही हो जानी चाकहए।

बडी लडकी : (उिने को हो कर) लेककन अंकल... !

पुरुष चार : (स्त्री से ) तुम समझती हो कक इसके सामने मुझे नहीं करनी चाकहए यह बात ?

स्त्री : मैं अपनी खयाल से नहीं कह रही थी।...िीक है । आप कीकजए बात।

कहती हुई एक कुरसी पर बैठ िाती है।

: (स्त्री से ) उस कदन पहली बार मैंने तुम्हें उस तरह ढु लते दे खा था। तब तुमने कहा था कक...।

स्त्री : मैं कबलकुल बच्ची थी तब तक, अभी और...।

पुरुष चार : बच्ची थीं या जो भी थीं, पर बात कबलकुल इसी तरह करती थीं जैसे आज करती हो। उस कदन
भी कबलकुल इसी तरह तु मने महे न्द्र को मेरे सामने उधेडा था। कहा था कक वह बहुत कलजकलजा और
कचपकचपा-सा आदमी है । पर उसे वैसा बनानेवालों में नाम तब दू सरों के थे। एक नाम था उसकी मााँ का और
दू सरा उसके कपता का...।

स्त्री : िीक है । उन लोगों की भी कुछ कम दे न नहीं रही उसे ऐसा बनाने में।

पुरुष चार : पर जुनेजा का नाम तब नहीं था ऐसा लोगों में। क्यों नहीं था, कह दू ाँ न यह भी ?

स्त्री : दे स्खए...।

पुरुष चार : बहुत पुरानी बात है । कह दे ने में कोई हजट नहीं है । मेरा नाम इसकलए नहीं था कक...

स्त्री : मैं इज्जत करती थी आपकी...बस, इतनी-सी बात थी।

पुरुष चार : तुम इज्जत कह सकती हो उसे ...पर वह इज्जत ककसकलए करती थीं ? इसकलए नहीं कक एक
आदमी के तौर पर मैं महे न्द्र से कुछ बेहतर था तुम्हारी नजर में; बस्ि कसिट इसकलए कक...

स्त्री : कक आपके पास बहुत पैसा था? और आपका दबदबा था इन लोगों के बीच?

पुरुष चार : नहीं। कसिट इसकलए कक मैं जैसा भी था जो भी था-महे न्द्र नहीं था।
स्त्री : (एकाएक उिती है ) तो आप कहना चाहते हैं कक...?

पुरुष चार : उतावली क्यों होती हो ? मुझे बात कह लेने दो। मुझसे उस वि तुम क्या चाहती थीं, मैं िीक-
िीक नहीं जानता। लेककन तुम्हारी बात से इतना जरूर जाकहर था कक महे न्द्र को तु म तब भी वह आदमी नहीं
समझती थीं कजसके साथ तुम कजंदगी काट सकतीं...।

स्त्री : हालााँ कक उसके बाद भी आज तक उसके साथ कजंदगी काटती आ रही हाँ ...

पुरुष चार : पर हर दू सरे -चौथे साल अपने को उससे झटक लेने की कोकिि करती हुई। इधर-उधर नजर
दौडाती हुई कब कोई जररया कमल जाए कजससे तुम अपने को उससे अलग कर सको। पहले कुछ कदन
जुनेजा एक आदमी था तुम्हारे सामने। तुमने कहा है तब तुम उसकी इज्जत करती थीं। पर आज उसके बारे
में जो सोचती हो, वह भी अभी बता चुकी हो। जुनेजा के बाद कजससे कुछ कदन चकाचौंध रहीं तुम, वह था
किवजीत। एक बडी किग्री, बडे -बडे िब्द और पूरी दु कनया घूमने का अनुभव। पर असल चीज वही कक वह
जो भी था और ही कुछ था-महें द्र नहीं था। पर जल्द ही तुमने पहचानना िुरू ककया कक वह कनहायत दोगला
ककस्म का आदमी है । हमेिा दो तरह की बात करता है । उसके बाद सामने आया जगमोहन। ऊाँचे संबंध,
जबान की कमिास, कटपटॉप रहने की आदत और खचट की दररया-कदली। पर तीर की असली नोक किर भी
उसी जगह पर-कक उसमें जो कुछ भी था, जगमोहन का-सा नहीं था। पर किकायत तुम्हें उससे भी होने लगी
थी कक वह सब लोगों पर एक सा पैसा क्यों उडता है ? दू सरे की सख्त-से-सख्त बात को एक खामोि
मुस्कराहट के साथ क्यों पी जाता है ? अच्छा हुआ, वह टर ां सिर हो कर चला गया यहााँ से , वरना.... ।

स्त्री : यह खामखाह का तानाबाना क्यों बुन रहे हैं ? जो असल बात कहना चाहते हैं , वही क्यों नहीं कहते ?

पुरुष चार : असल बात इतनी ही कक महें द्र की जगह इनमें से कोई भी आदमी होता तुम्हारी कजंदगी में, तो
साल-दो-साल बाद तु म यही महसूस करतीं कक तु मने गलत आदमी से िादी कर ली है । उसकी कजंदगी में भी
ऐसे ही कोई महें द्र, कोई जु नेजा, कोई किवजीत या मनमोहन होता कजसकी वजह से तुम यही सब सोचती,
यही सब महसूस करती। क्यों की तुम्हारे कलए जीने का मतलब रहा है -ककतना-कुछ एक साथ हो कर,
ककतना-कुछ एक साथ पा कर और ककतना-कुछ एक साथ ओढ़ कर जीना। वह उतना-कुछ कभी तुम्हें
ककसी एक जगह न कमल पाता। इसकलए कजस-ककसी के साथ भी कजंदगी िुरू करती, तुम हमेिा इतनी ही
खाली, इतनी ही बेचैन बनी रहती। वह आदमी भी इसी तरह तुम्हें अपने आसपास कसर पटकता और कपडे
िाडता नजर आता और तुम...

स्त्री : (साडी का पल्लू दााँ तो में कलए कसर कहलाती हाँ सी और रुलाई के बीच के स्वर में ) हहहहहहहह हःह-
हहहहह-हःहहः हःह हःह।

पुरुष चार : (अचकचा कर) तुम हाँ स रही हो ?

स्त्री : हााँ ...पता नहीं...हाँ स ही रही हाँ िायद। आप कहते रकहए ।

पुरुष चार : आज महें द्र एक कुढ़नेवाला आदमी है । पर एक वि था जब वह सचमुच हाँ सता था। अंदर से
हाँ सता था पर यह तभी था जब कोई साकबत करनेवाला नहीं था कक कैसे हर कलहाज से वह हीन और छोटा है
- इससे , उससे , मुझसे , तुमसे , सभी से। जब कोई उससे यह कहनेवाला नहीं था कक जो-जो वह नहीं है , वही-
वही उसे होना चाकहए और जो वह है ... ।

स्त्री : एक उसी उस को दे खा है आपने इस बीच - या उसके आस-पास भी ककसी के साथ कुछ गुजरते दे खा
है ?

पुरुष चार : वह भी दे खा है। दे खा है कक कजस मुट्ठी में तु म ककतना-कुछ एक साथ भर लेना चाहती थीं, उसमें
जो था वह भी धीरे -धीरे बाहर किसलता गया है कक तु म्हारे मन में लगातार एक िर समाता गया कजसके मारे
कभी तुम घर का दामन थामती रही हो, कभी बाहर का और कक वह िर एक दहित में बदल गया। कजस
कदन तुम्हें एक बहुत बडा झटका खाना पडा...अपनी आस्खरी कोकिि में।

स्त्री : ककस आस्खरी कोकिि में ?

पुरुष चार : मनोज का बडा नाम था। उस नाम की िोर पकड कर ही कहीं पहुाँ च सकने की आस्खरी
कोकिि में। पर तुम एकदम बौरा गईं जब तुमने पाया कक वह उतने नामवाला आदमी तुम्हारी लडकी को
साथ ले कर रातों-रात इस घर से...।

बडी लडकी : (सहसा उिती) यह आप क्या कह रहे हैं , अंकल ?

पुरुष चार : मजबूर हो कर कहना पड रहा है , कबन्नी ! तू िायद मनोज को अब भी उतना नहीं जानती
कजतना...!

बडी लडकी : (हाथों में चेहरा कछपाए ढह कर बैिती) ओह !

पुरुष चार : ...कजतना यह जानती है । इसीकलए आज यह उसे बरदाश्त भी नहीं कर सकती। (स्त्री से ) िीक
नहीं है यह ? कबन्नी के मनोज के साथ चले जाने के बाद तु मने एक अंधाधुंध कोकिि िुरू की - कभी महे न्द्र
को ही और झकझोरने की, कभी अिोक को ही चाबुक लगाने की, और कभी उन दोनों से धीरज खो कर
कोई और ही रास्ता, कोई और ही चारा ढूाँढ़ सकने की। ऐसे में पता चला जगमोहन यहााँ लौट आया है । आगे
के रास्ते बंद पा कर तुमने किर पीछे की तरि दे खना चाहा। आज अभी बाहर गई थीं उसके साथ। क्या बात
हुई ?

स्त्री : आप समझते हैं आपको मुझसे जो कुछ भी जानने का जो कुछ भी पूछने का हक हाकसल है ?

पुरुष चार : न सही ! पर मैं कबना पूछे ही बता सकता हाँ कक क्या बात हुई होगी। तुमने कहा, तुम बहुत-बहुत
दु खी हो आज। उसने कहा, उसे बहुत-बहुत हमददी है तुमसे। तुमने कहा, तुम जैसे भी हो अब इस घर से
छु टकारा पा लेना चाहती हो। उसने कहा, ककतना अच्छा होता अगर इस नतीजे पर तुम कुछ साल पहले
पहुाँ च सकी होतीं। तुमने कहा, जो तब नहीं हुआ, वह अब तो हो ही सकता है । उसने कहा, वह चाहता है हो
सकता, पर आज इसमें बहुत-सी उलझनें सामने हैं - बच्चों की कजदं गी को ले कर, इसको-उसको ले कर।
किर भी कक इस नौकरी में उनका मन नहीं लग रहा, पता नहीं कब छोड दे , इसीकलए अपने को ले कर भी
उसका कुछ तय नहीं है इस समय। तुम गुमिु म हो कर सुनती रहीं और रूमाल से आाँ खें पोंछती रहीं।
आस्खर उसने कहा कक तुम्हें दे र हो रही है , अब लौट चलना चाकहए। तुम चुपचाप उि कर उसके साथ गाडी
में आ बैिी ं। रास्ते में उसके मुाँह से यह भी कनकला िायद कक तुम्हें अगर रुपए-पैसे की जरूरत है इस वि
तो वह...

स्त्री : बस बस बस बस बस बस ! कजतना सुनना चाकहए था, उससे बहुत ज्यादा सुन कलया है आपसे मैंने।
बेहतर यही है कक अब आप यहााँ से चले जाएाँ क्योंकक...

पुरुष चार : मैं जगमोहन के साथ हुई तुम्हारी बातचीत का सही अंदाज लगा सकता हाँ , क्योंकक उसकी जगह
मैं होता, तो मैं भी तुमसे यही सब कहा होता। वह कल-परसों किर िोन करने को कह कर घर के बाहर
उतार गया। तु म मन में एक घुटन कलए घर में दास्खल हुई और आते ही तुमने बच्ची को पीट कदया। जाते हुए
वह सामने थी एक पूरी कजंदगी - पर लौटने तक का कुल हाकसल?... उलझे हाथों का कगजकगजा पसीना
और...।

स्त्री : मैंने आपसे कहा है न, बस ! सब-के-सब...सब-के-सब! एक-से ! कबलकुल एक-से हैं आप लोग !
अलग-अलग मुखोटे , पर चे हरा? चेहरा सबका एक ही !

पुरुष चार : किर भी तुम्हें लगता रहा है कक तुम चुनाव कर सकती हो। लेककन दााँ ए से हट कर बााँ ए, सामने
से हट कर पीछे , इस कोने से हट कर उस कोने में... क्या सचमुच कहीं कोई चुनाव नजर आया है तुम्हें ?
बोलो, आया है नजर कहीं ?

कुछ पल खामोशी विसमें बडी लडकी चेहरे से हाथ हटा कर पलकें झपकाती उन दोनोों को दे खती
है। वफर अोंदर के दरवािे पर खट् -खट् सुनाई दे ती है।

छोटी लडकी : (अंदर से ) दरवाजा खोलो। दरवाजा खोलो?

बडी लडकी : (स्त्री) क्या करना है , ममा ? खोलना है दरवाजा ?

स्त्री : रहने दे अभी।

पुरुष चार : लेककन इस तरह बंद रखोगी, तो...

स्त्री : मैंने पहले भी कहा था, मेरा घर है । मैं बेहतर जानती हाँ ।

छोटी लडकी : (दरवाजा खटखटाती) खोलो ! (हताि हो कर) मत खोलो !

अोंदर से कोंु डी लगाने की आवाि।

: अब खुलवा लेना मुझसे भी।

पुरुष चार : तुम्हारा घर है । तुम बेहतर जानती हो कम-से -कम मान कर यही चलती हो। इसीकलए बहुत-
कुछ चाहते हुए मुझे अब कुछ भी संभव नजर नहीं आता। और इसीकलए किर एक बार पूछना चाहता हाँ ,
तुमसे ...क्या सचमुच ककसी तरह उस आदमी को तुम छु टकारा नहीं दे सकतीं ?
स्त्री : आप बार-बार ककसकलए कह रहे हैं यह बात ?

पुरुष चार : इसकलए कक आज वह अपने को कबलकुल बेसहारा समझता है । उसके मन में यह कवश्वास कबिा
कदया है तुमने कक सब कुछ होने पर भी उसके कजए कजदं गी में तुम्हारे कसवा कोई चारा, कोई उपाय नहीं है ।
और ऐसा क्या इसीकलए नही ककया तुमने कक कजदं गी में और कुछ हाकसल न हो, तो कम-से-कम यह नामुराद
मोहरा तो हाथ में बना ही रहे ?

स्त्री : क्यों-क्यों-क्यों-आप और-और बात करते जाना चाहते हैं ? अभी आप जाइए और कोकिि करके उसे
हमेिा के कलए अपने पास रख रस्खए। इस घर में आना और रहना सचमुच कहत में नहीं है उसके। और मुझे
भी...मुझे भी अपने पास उस मोहरे की कबलकुल-कबलकुल जरूरत नहीं है जो न खुद चलता है , न ककसी और
को चलने दे ता है ।

पुरुष चार : (पल-भर चुपचाप उसे दे खते रह कर हताि कनणटय के स्वर में) तो िीक है वह नहीं आएगा। वह
कमजोर है , मगर इतना कमजोर नहीं है । तुमसे जुडा हुआ है , मगर इतना जुडा हुआ नहीं है । उतना बेसहारा
भी नहीं है कजतना वह अपने को समझता है । वह िीक से दे ख सके, तो एक पूरी दु कनया है उसके आसपास।
मैं कोकिि करू ाँ गा कक वह आाँ ख खोल कर दे ख सके।

स्त्री : जरूर-जरूर। इस तरह उसका तो उपकार करे गें ही आप, मेरा भी इससे बडा उपकार कजदं गी में
नहीं कर सकेंगे।

पुरुष चार : तो अब चल रहा हाँ मैं। तुमसे कजतनी बात कर सकता था, कर चुका हाँ । और बात उसी से जा
कर करू ाँ गा। मुझे पता है कक ककतना मुस्िल होगा यह...किर भी यह बात मैं उसके कदमाग में कबिा कर
रहाँ गा इस बार कक...

लडका बाहर से आता है। चेहरा काफी उतरा हुआ है -िैसे कोई बडी-सी चीि कही ों हार कर आया
हो।

: क्या बात है , अिोक ? तू चला क्यों आया वहााँ से ?

लडका उससे वबना आाँ ख वमलाए बडी लडकी की तरफ बढ िाता है।

लडका : उि कबन्नी ! अंदर से छडी कनकाल दे जरा।

बडी लडकी : (उिती हुई) छडी ! वह ककसकलए चाकहए तुझे ?

लडका : िै िी को स्कूटर ररक्शा से उतार लाना है उनकी तबीयत कािी खराब है ।

बडी लडकी : िै िी लौट आए हैं ।

पुरुष चार : तो...आ ही गया है वह आस्खर ?

लडका : (उसकी ओर दे ख कर मुरझाए स्वर में ) हााँ ... आ ही गए हैं ।


पुरुष चार के चेहरे पर व्यथा की रे खाएाँ उभर आती हैं और उसकी आाँ खें स्त्री से वमल कर झुक िाती
हैं। स्त्री एक कुरसी की पीठ थामे चुप खडी रहती है। शरीर में गवत वदखाई दे ती है , तो वसफड सााँस के
आने-िाने की।

: (बडी लडकी से ) जल्दी से कनकाल दे छडी, क्योंकक...

बडी लडकी : (अंदर से दरवाजे की तरि बढ़ती ) अभी दे रही हाँ ।

िाकर दरवािा खटखटाती है।

: ककन्नी ! दरवाजा खोल जल्दी से ।

छोटी लडकी : ( अंदर से ) नहीं खुलेगा दरवाजा।

बडी लडकी : तेरी िामत तो नहीं आई है ? कह रही हाँ । खोल जल्दी से ।

छोटी लडकी : आने दो िामत। दरवाजा नहीं खुलेगा ।

बडी लडकी : (जोर से खटखटाती) ककन्नी !

सहसा हाथ रुक िाता है। बाहर से ऐसा शब्द सुनाई दे ता है , िैसे पााँव वफसल िाने से वकसी ने
दरवािे का सहारा ले कर अपने को बचाया हो।

पुरुष चार : (बाहर से दरवाजे की तरि बढ़ता) यह कौन किसला है ड्योढ़ी में ?

लडका : (उससे आगे जाता) िै िी ही होंगे। उतर कर चले आए होंगे ऐसे ही। (दरवाजे से कनकलता) आराम
से िै िी, आराम से ।

पुरुष चार : (एक नजर स्त्री पर िाल कर दरवाजे से कनकलता) साँभल कर महे न्द्रनाथ, साँभल कर....

प्रकाश खोंवडत हो कर स्त्री और बडी लडकी तक सीवमत रह िाता है। स्त्री ल्कस्थर आाँ खोों से बाहर की
तरफ दे खती आवहस्ता से कुरसी पर बैठ िाती है। बडी लडकी उसकी तरफ एक बार दे खती है ,
वफर बाहर की तरफ। हलका मातमी सोंगीत उभरता है विसके साथ उन दोनोों पर भी प्रकाश मल्किम
पडने लगता है। तभी, लगभग अाँधेरे में लडके की बााँह थामे पुरुष एक की धुाँधली आकृवत अोंदर आती
वदखाई दे ती है।

लडका : (जैसे बैिे गले से ) दे ख कर िै िी, दे ख कर...

उन दोनोों के आगे बढाने के साथ सोंगीत अवधक स्पि और अाँधेरा अवधक गहरा होता िाता है।

You might also like