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मूल भारोपीय भाषा क वशेषताएं

मूल भारोपीय भाषा क वशेषताएं इस कार ह -

1. मूल भारोपीय भाषा योगा मक थी।

2. यय का आ ध य था। अत: प क सं या अ धक
थी।

3. मु यतया धातु से यय जोड़कर श द बनते थे।

4. ार भ म उपसग का स भवतः अभाव था। उपसग के


थान पर पूरे श द का योग होता था। ये श द
घसते- घसते अपना वत अथ खो बैठे और बाद म
उपसग रह गए।

5.मूल भाषा म तीन लग थे पुं लग, ी लग, नपुंसक लग।

6. मूल भाषा म तीन वचन थे—–एकवचन वचन


ब वचन।

7. मूल भाषा म तीन पु ष थे थम, म यम, उ म।

8. या के फल-भो ा के आधार पर दो पद थे—


आ मनेपद, पर मैपद। फल भो ा वयं होने पर
आ मनेपद (आ मने= अपने लए), फल-भो ा दसरा होने
पर पर मैपद (पर मै= सरे के लए)।

9. या- प म वतमान, भूत, भ व यत् क धारणा थी,


पर तु अवा तर भेद का अभाव था। या न प म काल
वचार (काय कब आ) गौण था और न प का कार
(पूण या अपूण आ द) मु य था।
10. म यसग यय का अभाव था।

11. सं ा, या और अ य पृथक्-पृथक् थे। सवनाम


और वशेषण सं ा श द के अ तगत थे। अ य म भी
प-प रवतन होता था अथात् उनके भी प चलते थे।

12. सवनाम के प म व वधता थी।

13. सं ा श द क आठ वभ याँ थी।

14. समास का योग होता था। सम त पद के बीच क


वभ य का लोप हो जाता था।

15. पद रचना म वरभेद ( वर वण के अंतर ) से अथभेद


( अथ स ब धी अंतर ) होता था। यथा दे व > दै व ( दे व
स ब धी )

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