पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेिोगे कूदोगे होओगे खराब”- यह कहावत आज
लनराधार हो गई है । माता-लपता आज जान गए है लक बच्ोों के मानलिक लवकाि के िाथ शारीररक लवकाि भी होना चालहए ।
जो बच्े केवि पढ़ना ही पिन्द करते हैं खेिना नहीों, दे खा जाता है लक वे
लचड़लचड़े आििी या डरपोक हो जाते हैं , यहाों तक लक अपनी रक्षा करने में अिमथथ रहते हैं ।जो पढ़ने के िाथ-िाथ खे िोों में भी भाग िे ते हैं वे चुस्त और आिस्य रलहत होते हैं । उनकी हड् लडयाों मजबूत और चेहरा कान्तिमय हो जाता है , पाचन-शन्ति ठीक रहती है , नेत्ोों की ज्योलत बढ़ जाती है , शरीर वज्र की तरह हो जाता है । छात् जीवन में केवि खेिते या पढ़ते ही नहीों रहना चालहए अलपतु उद्दे श्य होना चालहए खेिने के िमय खे िना और पढ़ने के िमय पढ़ना ।
मनुष्य को जो पाठ लशक्षा नहीों लिखा पाती वह खेि का मैदान लिखा दे ता है
। जैिे- खेि खेिते िमय अनुशािन में रहना, नेता की आज्ञा का पािन करना, खेि में जीत के िमय उत्साह, हारने पर िलहष्णुता तथा लवरोधी के प्रलत प्रलतरोध का भाव न रखना, अपनी अिफिता का पता िगने पर जीतने के लिए पुन: प्रयत्न करना आलद लिखाता है ।
बच्ोों की लकशोरावस्था िे ही उनकी रुलच के खे ि खेिने दे ने चालहए ।
उनकी कोमि भावनाओों को कुचिना नहीों चालहए । उन्हें िोंघर्थ के लिए तैयार करना चालहए । लजििे भलवष्य में उन्हें खेिोों में लवजय और यश लमिे, लवश्व ररकॉडथ बनाकर, अपना और दे श का गौरव बढ़ाए । ने पोलियन को हराने वािे िेनापलत नेििन ने कहा था लक मेरी लवजय का िमस्त श्रेय लकशोरावस्था के खेि के मैदान को है । स्कूि और कॉिेजोों के खेिोों में नाम कमाकर ही राष्ट्रीय और अिराथ ष्ट्रीय खेिोों में छात् पहों च पाता है । पी.टी. ऊर्ा ने आठवीों कक्षा िे दौड़ना प्रारम्भ लकया था और अिराथ ष्ट्रीय खेिोों में दे श का और अपना गौरव बढ़ाया ।