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कभी आबाद था ये गु लशन भी

होती थी ज़ियारत यहााँ हर रो़ि,

अब चीखते हैं पत्ते भी यहााँ

अपनी शाख से टू ट कर...।

नही ीं गूाँ जती जकलकाररयााँ अब यहााँ

खामोश हर शै सी है ...।

तन्ााँ है अब हर दीवार यहााँ ..

खामोश है जमी,ीं छतें भी चुप हैं ...

वो अपनोीं की यादें अब

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