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मधुशाला PDF
मधुशाला PDF
ु ाला
मद
ृ ु भावों के अंगरू ों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज प्रपलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लँ ू तेरा फिर िसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधश
ु ाला।।१।
मख
ु से तू अप्रवरत कहता जा मध,ु मददरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक लललत कल्ल्पत प्याला,
ध्यान फकए जा मन में सम
ु धुर सख
ु कर, सद
ुं र साकी का,
और बढ़ा चल, पथथक, न तझ
ु को दरू लगेगी मधश
ु ाला।।८।
सन
ु , कलकल़ , छलछल़ मधघ
ु ट से थगरती प्यालों में हाला,
सन
ु , रूनझुन रूनझन
ु चल प्रवतरर् करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दरु नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है ,
चहक रहे , सन
ु , पीनेवाले, महक रही, ले, मधश
ु ाला।।१०।
जलतरं ग बजता, जब चंब
ु न करता प्याले को प्याला,
वीर्ा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुप्रवक्रेता की ध्वननत पखावज करती है ,
मधरु व से मधु की मादकता और बढ़ाती मधश
ु ाला।।११।
सकुशल समझो मझ
ु को, सकुशल रहती यदद साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
लमत्रों, मेरी क्षेम न पछ
ू ो आकर, पर मधश
ु ाला की,
कहा करो 'जय राम' न लमलकर, कहा करो 'जय मधुशाला'।।२९।
सय
ू ण बने मधु का प्रवक्रेता, लसंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी, भलू म बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मददरा ररमणझम, ररमणझम, ररमणझम कर,
बेलल, प्रवटप, तर्
ृ बन मैं पीऊँ, वषाण ऋतु हो मधश
ु ाला।।३०।
तारक मणर्यों से सल्ज्जत नभ बन जाए मधु का प्याला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
मत्त समीरर् साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
िैले हों जो सागर तट से प्रवश्व बने यह मधश
ु ाला।।३१।
धीर सत
ु ों के हृदय रक्त की आज बना रल्क्तम हाला,
वीर सत
ु ों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अनत उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तप्रृ षत काललका बललवेदी है मधश
ु ाला।।४५।
दत
ु कारा मल्स्जद ने मझ
ु को कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने दे ख हथेली पर प्याला,
कहाँ दठकाना लमलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरर्स्थल बनकर न मझ
ु े यदद अपना लेती मधश
ु ाला।।४६।
पथथक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह लमलती हाला,
सभी जगह लमल जाता साकी, सभी जगह लमलता प्याला,
मझ
ु े ठहरने का, हे लमत्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
लमले न मंददर, लमले न मल्स्जद, लमल जाती है मधुशाला।।४७।
मस
ु लमान औ' दहन्द्द ू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मददरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मल्स्जद मल्न्द्दर में जाते,
बैर बढ़ाते मल्स्जद मल्न्द्दर मेल कराती मधश
ु ाला!।५०।
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडडत जपता माला,
बैर भाव चाहे ल्जतना हो मददरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर ननकले,
दे खूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधश
ु ाला!।५१।
कभी न सन
ु पड़ता, 'इसने, हा, छू दी मेरी हाला',
कभी न कोई कहता, 'उसने जूठा कर डाला प्याला',
सभी जानत के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सध
ु ारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।
सम
ु ख
ु ी तुम्हारा, सन्द्
ु दर मख
ु ही, मझ
ु को कन्द्चन का प्याला
छलक रही है ल्जसमें माणर्क रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं लमल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।
दो ददन ही मधु मझ
ु े प्रपलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब णखसका दे ती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय प्रपलाना दरू हुआ,
अब तो कर दे ती है केवल फज़ण - अदाई मधश ु ाला।।६५।
छोटे -से जीवन में फकतना प्यार करँ , पी लँ ू हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ प्रवदा की होती दे खी तैयारी,
बंद लगी होने खल
ु ते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।
मझ
ु े प्रपलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मझ
ु े ददखाने को लाए हो एक यही नछछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरँ ,
लसंध-ु तष
ृ ा दी फकसने रचकर बबंद-ु बराबर मधश
ु ाला।।६८।
याद न आए दख
ु मय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग थचंताओं से रहने को मक्
ु त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हे तु प्रपया जग करता है ,
पर मै वह रोगी हूँ ल्जसकी एक दवा है मधश
ु ाला।।७८।
यम ले चलता है मझ
ु को तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ ललए कर में प्याला,
स्वगण, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदद मधुशाला।।८७।
उस प्याले से प्यार मझ
ु े जो दरू हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मझ
ु े जो दरू अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है , पाने के अरमानों में !
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।
ल्जसने मझ
ु को प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
ल्जसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की ल्जह्वा से हैं कभी ननकलते शाप नहीं,
दख
ु ी बनाया ल्जसने मझ
ु को सख
ु ी रहे वह मधश
ु ाला!।१०३।
दे ने को जो मझ
ु े कहा था दे न सकी मझ
ु को हाला,
दे ने को जो मझ
ु े कहा था दे न सका मझ
ु को प्याला,
समझ मनज
ु की दब
ु ल
ण ता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
फकन्द्तु स्वयं ही दे ख मझ
ु े अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।
बँद
ू बँद
ू के हे तु कभी तझ
ु को तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से नछन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गर्
ु यों ही गाती एक ददवस थी मधश
ु ाला।।११३।
दर दर घम
ू रहा था जब मैं थचल्लाता - हाला! हाला!
मझ
ु े न लमलता था मददरालय, मझ
ु े न लमलता था प्याला,
लमलन हुआ, पर नहीं लमलनसख ु ललखा हुआ था फकस्मत में ,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घमू रही है मधश
ु ाला।।११८।