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शमशेर बहादु र स िंह आधुसिक सहिं दी कसिता के प्रगसतशील कसि हैं । ये सहिं दी तथा उदद ू के

सिद्वाि हैं । प्रयोगिाद और िई कसिता के कसियोिं की प्रथम पिंक्ति में इिका स्थाि है । इिकी
शैली अिंग्रेजी कसि एजरा पाउण्ड े प्रभासित है । शमशेर बहादु र स िं ह ‘दद रा प्तक’ (1951) के
कसि हैं । शमशेर बहादु र स िंह िे कसिताओिं के माि ही सित्ोिं में भी प्रयोग सकये हैं । आधुसिक
कसिता में ‘अज्ञेय’ और शमशेर का कृसतत्व दो सभन्न सदशाओिं का पररिायक है - ‘अज्ञेय’ की
कसिता में िस्तु और रूपाकार दोिोिं के बीि िं तुलि स्थासपत रखिे की प्रिृसि पररलसित होती
है , शमशेर में सशल्प-कौशल के प्रसत असतररि जागरूकता है । इ दृसि े शमशेर और ‘अज्ञेय’
क्रमशः दो आधुसिक अिंग्रेज कसियोिं एजरा पाउण्ड और इसलयट के असधक सिकट हैं । आधुसिक
अिंग्रेजी-काव्य में सशल्प को प्राधान्य दे िे का श्रे य एजरा पाउण्ड को प्राप्त है । िस्तु की अपेिा
रूपसिधाि के प्रसत उिमें असधक जगता दृसिगोिर होती है । आधुसिक अिंग्रेजी-काव्य में काव्य-
शैली के िये प्रयोग एजरा पाउण्ड े प्रारम्भ होते हैं । शमशेर बहादु र स िंह िे अपिे ििव्य में
एजरा पाउण्ड के प्रभाि को मुिकण्ठ े स्वीकार सकया है - टे किीक में एजरा पाउण्ड शायद
मेरा ब े बडा आदशू बि गया।

परिचय
शमशेर बहादु र स िंह का जन्म दे हरादद ि में 13 जििरी, 1911 को हुआ। उिके सपता का िाम
तारीफ स िंह था और मााँ का िाम परम दे िी था। शमशेर जी के भाई तेज बहादु र उि े दो
ाल छोटे थे। उिकी मााँ दोिोिं भाइयोिं को ‘राम-लक्ष्मण की जोडी’ कहा करती थीिं। जब शमशेर
बहादु र स िंह आठ या िौ िर्ू के ही थे , तब उिकी मााँ की मृत्यु हो गई, सकन्तु दोिोिं भाइयोिं की
जोडी शमशेर की मृत्यु तक बिी रही।

शिक्षा
आरिं सभक सशिा दे हरादद ि में हुई और हाईस्कदल-इिं टर की परीिा गोिंडा े दी। बी.ए.
इलाहाबाद े सकया, सकन्ीिं कारणोिं े एम.ए. फाइिल ि कर के। 1935-36 में उकील बिंधुओिं
े पेंसटिं ग कला ीखी। ‘रूपाभ’, ‘कहािी’, ‘िया ासहत्य’, ‘माया’, ‘िया पथ’, ‘मिोहर कहासियािं ’ आसद
में िंपादि हयोग। उदद ू -सहन्दी कोश प्रोजेक्ट में िंपादक रहे और सिक्रम सिश्वसिद्यालय के
‘प्रेमििंद ृजिपीठ’ के अध्यि रहे । दद रा तार प्तक के कसि हैं ।

शििाह
ि 1929 में 18 िर्ू की अिस्था में शमशेर बहादु र स िंह का सििाह धमूिती के ाथ हुआ,
लेसकि छः िर्ू के बाद ही 1935 में उिकी पत्नी धमूिती की मृत्यु टीबी के कारण हो गई। 24
िर्ू के शमशेर को समला जीिि का यह अभाि कसिता में सिभाि बिकर हमेशा मौजदद रहा।
काल िे सज े छीि सलया था, उ े अपिी कसिता में जीि रखकर िे काल े होड लेते रहे ।
युिाकाल में शमशेर बहादु र स िंह िामपिंथी सििारधारा और प्रगसतशील ासहत्य े प्रभासित हुए
थे। उिका जीिि सिम्न मध्यिगीय व्यक्ति का था।

काव्य िैली

शमशेर बहादु र स िंह में अपिे सबम्ोिं, उपमािोिं और िंगीतध्वसियोिं द्वारा िमत्कार और
िैसित्र्यपदणू आधात् उत्पन्न करिे की िेिा अिश्य उपलब्ध होती है , पर सक ी केन्द्रगामी सििार-
तत्व का उिमें प्रायः अभाि- ा है । असभव्यक्ति की िक्रता द्वारा िणू -सिग्रह और िणू - िंसध के
आधार पर ियी शब्द-योजिा के प्रयोग े िामत्काररक आघात दे िे की प्रिृसि इिमें सक ी ठो
सििार तत्त्व की अपेिा असधक महत्त्व रखती है । शमशेर बहादु र स िं ह में मुि ाहियू और
अ म्द्धताजन्य दु रूहता के तत्त्व ाफ़ िजर आते हैं । उिकी असभव्यक्ति में अधदरापि
पररलसित होता है । शमशेर की कसिता में उलझिभरी िंिेदिशीलता असधक है । उिमें शब्द-
मोह, शब्द-क्तखलिाड के प्रसत असधक जागरूकता है और शब्द- योजिा के माध्यम े िंगीत-
ध्वसि उत्पन्न करिे की प्रिृसि दे खी जा कती हैं ।

आधुशिक काव्य-बोध

शमशेर की कसिताएाँ आधुसिक काव्य-बोध के असधक सिकट हैं , जहााँ पाठक तथा श्रोता के
हयोग की क्तस्थसत को स्वीकार सकया जाता है । उिका सबम्सिधाि एकदम जकडा हुआ
‘रे डीमेड’ िहीिं है । िह ‘ ामासजक’ के आस्वादि को पदरी छदट दे ता है । इ दृसि े उिमें अमदतूि
की प्रिृसि अपिे काफ़ी शुद्ध रूप में सदखाई दे ती है । उदद ू की गजल े प्रभासित होिे पर भी
उन्ोिंिे काव्य-सशल्प के ििीितम रूपोिं को अपिाया है । प्रयोगिाद और ियी कसिता के
पुरस्कताू ओिं में िे अग्रणी हैं । उिकी रििाप्रकृसत सहन्दी में अप्रसतम है और अिेक म्भाििाओिं
े युि है । सहन्दी के िये कसियोिं में उिका िाम प्रथम पािं िोय है । ‘अज्ञेय’ के ाथ शमशेर िे
सहन्दी-कसिताओिं में रििा-पद्धसत की ियी सदशाओिं को उद्धासटत सकया है और छायािादोिर
काव्य को एक गसत प्रदाि की है ।

शिचािधािा

शमशेर बहादु र स िं ह सहन्दी ासहत्य में मााँ ल एिं द्रीए ौिंदयू के अद्वीतीय सितेरे और आजीिि
प्रगसतिादी सििारधारा के मथूक रहे । उन्ोिंिे स्वाधीिता और क्रािं सत को अपिी सिजी िीज की
तरह अपिाया। इिं सद्रय ौिंदयू के ब े िंिेदिापदणू सित् दे कर भी िे अज्ञेय की तरह ौिंदयूिादी
िहीिं हैं । उिमें एक ऐ ा ठो पि है , जो उिकी सििम्रता को ढु लमुल िहीिं बििे दे ता। ाथ ही
सक ी एक िौखटे में बिंधिे भी िहीिं दे ता। दयूकान्त सत्पाठी ‘सिराला’ उिके सप्रय कसि थे। उन्ें
याद करते हुए शमशेर बहादु र स िंह िे सलखा था-

“भदल कर जब राह, जब-जब राह.. भटका मैं/ तुम्ीिं झलके हे महाकसि,/ घि तम की


आिं ख बि मेरे सलए।”

शमशेर के राग-सिराग गहरे और स्थायी थे। अि रिादी ढिं ग े सििारोिं को अपिािा,


छोडिा उिका काम िहीिं था। अपिे समत् और कसि केदारिाथ अग्रिाल की तरह िे एक तरफ़
‘यौिि की उमडती यमुिाएिं ’ अिुभि कर कते थे, िहीिं दद री ओर ‘लहू भरे ग्वासलयर के बाजार
में जुलद ’ भी दे ख कते थे। उिके सलए सिजता और ामासजकता में अलगाि और सिरोध िहीिं
था, बक्ति दोिोिं एक ही अक्तस्तत्व के दो छोर थे। शमशेर बहादु र स िं ह उि कसियोिं में े थे ,
सजिके सलए मार्क्ूिाद की क्रािं सतकारी आस्था और भारत की ुदीघू ािं स्कृसतक परिं परा में सिरोध
िहीिं था।
िचिाएँ

काव्य-कृशियाां
‘कुछ कसिताएिं ’ (1956)
‘कुछ और कसिताएिं ’ (1961)
‘शमशेर बहादु र स िंह की कसिताएिं ’ (1972)
‘इतिे पा अपिे ’ (1980)
‘उसदता : असभव्यक्ति का िंघर्ू ’ (1980)
‘िुका भी हूिं िहीिं मैं’ (1981)
‘बात बोलेगी’ (1981)
‘काल तुझ े होड है मेरी’ (1988)
‘शमशेर की ग़जलें

गद्य िचिा
‘दोआब’ सिबिंध- िंग्रह (1948)
‘प्लाट का मोिाू ’ कहासियािं ि स्केि (1952)
‘शमशेर की डायरी।’
अिुिाद
रशार के उदद ू उपन्या ‘कासमिी’
‘हुशद’
‘पी कहािं ।’
एजाज हु ैि द्वारा सलक्तखत उदद ू ासहत्य का इसतहा ।
‘र्डयिंत्’ ( ोसियत िंघ-सिरोधी गसतसिसधयोिं का इसतहा )
‘िान्दािास लिास्का’ (रू ी) के उपन्या ‘पृथ्वी और आकाश’
‘आश्चयू लोक में एसल ’।

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