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Chand Hindi
Chand Hindi
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छद
1
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छ द (Metres)
वण या मा ा केनय मत संया केव यास से
य द आहाद पै
दा हो, तो उसे
छं
द
कहतेहै
।
सरेश दो म-अ र क संया एवंम, मा ागणना तथा य त-ग त से
सब वश
नयम से नयो जत प रचना 'छ द' कहलाती है
।
छंद श द 'छद्
' धातु
सेबना है
जसका अथ है 'आ ा दत करना', 'खु
श करना।'छं
द का
सरा नाम पगल भी है। इसका कारण यह हैक छं
द-शा के आ द णे ता पगल
नाम केऋ ष थे ।
2
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छ द के
अंग
छ द केन न ल खत अं
ग है
-
छं
द के ायः 4 भाग होते
ह। इनम से ये
क को 'चरण' कहते
ह।
सरे
श द म- छं
द के
चतु
थाश (चतु
थ भाग) को चरण कहते
ह।
3
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कु
छ छं द म चरण तो चार होते
हैले
कन वे लखेदो ही पं य म जाते
ह, जै
स-ेदोहा,
सोरठा आ द। ऐसेछंद क ये क को 'दल' कहते
ह।
ह द म कुछ छं
द छः-छः पं य (दल ) म लखे जातेह। ऐसेछं
द दो छं
द के
योग से
बनतेहै
, जै
सेकुड लया (दोहा +रोला), छ पय (रोला +उ लाला) आ द।
चरण 2 कार के
होते
है
- सम चरण और वषम चरण।
थम व तृ
तीय चरण को वषम चरण तथा तीय व चतु
थ चरण को सम चरण कहते
ह।
(2) वण और मा ा
वण/अ र
एक वर वाली व न को वण कहते
ह, चाहे
वह वर ह व हो या द घ।
जस व न म वर नह हो (जैसेहल त श द राजन्
का 'न्
', सं
युा र का पहला अ र
- कृण का 'ष्
') उसे
वण नह माना जाता।
वण को ही अ र कहते
ह।
वण 2 कार के
होते
ह-
ह व वर वाले वण (ह व वण): अ, इ, उ, ऋ; क, क, कु , कृद घ वर वाले
वण (द घ
वण) : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, क , कू
, के
, कै
, को, कौ
मा ा
कसी वण या व न के
उ चारण-काल को मा ा कहते
ह।
4
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वण क गणना
ह व वर वाले
वण (ह व वण)- एकव णक- अ, इ, उ, ऋ; क, क, कु
, कृ
द घ वर वालेवण (द घ वण)- एकव णक- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, क , कू
, के
,
कै, को, कौ
मा ा क गणना
ह व वर- एकमा क- अ, इ, उ, ऋ
द घ वर- मा क- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
वण और मा ा क गनती म थू
ल भे
द यही है
क वण 'स वर अ र' को और मा ा
' सफ वर' को कहते
है
।
(3) संया म और गण
5
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6
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(4) लघु
और गु
लघु
-
(ii) च ब वाले
ह व वर भी लघु
होते
ह। जै
स-े'हँ
'।
गु-
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(iii) अनु
वारयु वण गुहोता है
। जै
स-ेसं
सार। ले
कन, च ब वाले
वण गुनह
होते ।
(iv) वसगयु वण भी गुहोता है
। जै
स-ेवतः, ःख; अथात- ।ऽ, ऽ ।।
(v) सं
यु वण के
पूव का लघु
वण गुहोता है
। जै
स-ेस य, भ , , धम इ या द,
अथात- ऽ।।
(5) ग त
छं
द के
पढ़ने
के वाह या लय को ग त कहते
ह।
ग त का मह व व णक छंद क अपेा मा क छं
द म अ धक है
। बात यह है
क
व णक छं द म तो लघु
-गुका थान न त रहता है
क तुमा क छंद म लघु-गुका
थान न त नह रहता, पूरे
चरण क मा ा का नदश मा रहता है।
मा ा क संया ठ क रहने
पर भी चरण क ग त ( वाह) म बाधा पड़ सकती है
।
जै
स-े(1) दवस का अवसान था समीप म ग त नह है
जब क ' दवस का अवसान
समीप था' म ग त है
।
(2) चौपाई, अ र ल व प र- इन तीन छं
द के ये
क चरण म 16 मा ाएं
होती है
पर
ग त भेद से ये
छंद पर पर भ हो जातेह।
अतएव, मा क छं
द केनद ष योग केलए ग त का प र ान अ य त आव यक है
।
ग त का प र ान भाषा क कृ
त, नाद के
प र ान एवं
अ यास पर नभर करता है
।
8
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(6) य त / वराम
छंद म नय मत वण या मा ा पर साँ
स ले
ने
केलए कना पड़ता है
, इसी कने
के
थान को य त या वराम कहतेहै।
छ दशा म 'य त' का अथ वराम या व ाम । छोटेछं
द म साधारणतः य त चरण के
अ त म होती है
; पर बड़े
छं
द म एक ही चरण म एक सेअ धक य त या वराम होते
है
।
य त का नदश ायः छंद के
ल ण (प रभाषा) म ही कर दया जाता है
। जै
सेमा लनी
छं
द म पहली य त 8 वण केबाद तथा सरी य त 7 वण केबाद पड़ती है।
(7) तु
क
छं
द के
चरणा त क अ र-मैी (समान वर- ज
ंन क थापना) को तु
क कहते
ह।
जस छंद के
अंत म तु
क हो उसे
तु
का त छं
द और जसके
अ त म तु
क न हो उसे
अतु
का त छं
द कहतेह।
अतु
का त छं
द को अँज
ेी म लक वस (Blank Verse) कहते
ह।
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छ द के
भेद
वण और मा ा केवचार से
छ द के
चार भे
द है
-
(1) व णक छ द
(2) व णक वृ
(3) मा क छ द
(4) मुछ द
(1) व णक छ द- जस छं
द के
सभी चरण म वण क संया समान हो।
सरे
श द म- के
वल वणगणना के
आधार पर रचा गया छ द 'वा णक छ द' कहलाता
है
।
व णक छंद केसभी चरण म वण क संया समान रहती है
और लघु
-गुका म
समान रहता है
।
वा णक छ द के
भेद
वा णक छ द के
दो भे
द है
-
(i) साधारण और (ii) द डक
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1 से
26 वण तक केचरण या पाद रखने
वाले
वा णक छ द 'साधारण' होते
हैऔर
इससेअ धकवालेद डक।
मु
ख व णक छं
द:
मा णका (8 वण);
वागता, भु
जग
ंी, शा लनी, इ व ा, दोधक (सभी 11 वण);
वं
श थ, भु
जग
ं यात, त वल बत, तोटक (सभी 12 वण);
वसं
त तलका (14 वण);
मा लनी (15 वण);
पं
चचामर, चं
चला (सभी 16 वण);
म दा ा ता, शख रणी (सभी 17 वण),
शा ल व डत (19 वण),
धरा (21 वण),
सवै
या (22 से
26 वण),
घना री (31 वण)
पघना री (32 वण),
दे
वघना री (33 वण),
क व /मनहरण (31-33 वण)।
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होती है
। जै
स-े
चाहे
जो करो शर य -8 वण
शरण तहारे
है-7 वण
कु
ल-15 वण
व णक छं
द का एक उदाहरण : मा लनी (15 वण)
वण क संया-15, य त 8 और 7 पर
प रभाषा-
न..........न...........म...........य...........य ..... मले
तो मा लनी होवे
।...........।........... ।...........।........... ।
नगन......नगन......मगन.....यगण........यगण
।।।.......।।।..........ऽऽऽ.......।ऽऽ.......।ऽऽ
3........3............3............3.........3 =15 वण
थम चरण- य प त वह मे
रा ाण यारा कहाँ
है?
तीय चरण- ःख-जल न ध-डू
बी का सहारा कहाँ
है?
तृ
तीय चरण- लख मु
ख जसका म आज ल जी सक ,ँ
चतु
थ चरण- वह दय हमारा नै
न-तारा कहाँ
है? (ह रऔध)
1.....2.....3.....4.....5......6......7......8.......9........10.....11........12......13....
.14.....15
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(2) वा णक वृ-
वृउस समछ द को कहते है
, जसम चार समान चरण होते
हैऔर ये क चरण म
आने
वालेवण का लघु-गु- म सुन चत रहता है
। गण म वण का बँ
धा होना मु
ख
ल ण होने
केकारण इसेवा णक वृ, गणब या गणा मक छ द भी कहते ह। 7
भगण और 2 गुका 'म गय द सवैया' इसके
उदाहरण व प है
-
(3) मा क छ द-
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मा ा क गणना पर आधृ
त छ द 'मा क छ द' कहलाता है
।
मा क छंद के सभी चरण म मा ा क संया तो समान रहती है
लेकन लघु
-गुके
म पर यान नह दया जाता है
।
मु
ख मा क छं
द
(A) सम मा क छं द : अहीर (11 मा ा), तोमर (12 मा ा), मानव (14 मा ा);
अ र ल, प र/प टका, चौपाई (सभी 16 मा ा); पीयू षवष, सु मे(दोन 19 मा ा),
रा धका (22 मा ा), रोला, द पाल, पमाला (सभी 24 मा ा), गी तका (26 मा ा),
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सरसी (27 मा ा), सार (28 मा ा), ह रगी तका (28 मा ा), ताटं
क (30 मा ा), वीर
या आ हा (31 मा ा) ।
(B) अ सम मा क छं द : बरवै
( वषम चरण म- 12 मा ा, सम चरण म- 7 मा ा),
दोहा ( वषम- 13, सम- 11), सोरठा (दोहा का उ टा), उ लाला ( वषम-15, सम-13)।
(C) वषम मा क छं
द : कुड लया (दोहा +रोला), छ पय (रोला +उ लाला)।
(4) मुछ द-
जस समय छं द म व णक या मा क तबं ध न हो, न ये
क चरण म वण क संया
और म समान हो और मा ा क कोई न त व था हो तथा जसम नाद और
ताल के आधार पर पं य म लय लाकर उ ह ग तशील करने
का आ ह हो, वह मु
छंद है
।
उदाहरण- नराला क क वता 'जू
ह ी क कली' इ या द।
मु
ख छ द का प रचय
(1) चौपाई- यह मा क सम छ द है
। इसके ये
क चरण म 16 मा ाएँ
होती है
। चरण
केअ त म जगण (।ऽ।) और तगण (ऽऽ।) का आना व जत है
। तु
क पहलेचरण क
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सरेसेऔर तीसरे
क चौथे
सेमलती है
।यत ये
क चरण के
अ त म होती है
।
उदाहरणाथ-
नत नू
तन मं
गल पु
र माह । न मष स रस दन जा म न जाह ।।
बड़े
भोर भू
प तम न जागे
। जाचक गु
नगन गावन लागे
।।
गुपद रज मृमं
जल
ुमं
जन। नयन अ मय ग दोष वभं
जन।।
ते
ह क र वमल ववे
क वलोचन। बरनउँ
रामच रत भवमोचन ।।
(2) रोला- यह मा क सम छ द है
। इसके ये क चरण म 24 मा ाएँ
होती ह। इसके
येक चरण म 11 और 13 मा ा पर य त ही अ धक च लत है । येक चरण के
अ त म दो गुया दो लघुवण होतेह। दो-दो चरण म तु
क आव यक है । उदाहरणाथ-
जो जग हत पर ाण नछावर है
कर पाता।
जसका तन है
कसी लोक हत म लग जाता ।।
कहती ई य उ रा के
नेजल से
भर गए।
हम के
कण से
पू
ण मानो हो गए पं
कज नए ।।
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वाम अं
ग शव शो भत, शवा उदार।
सरद सु
वा रद म जनु
, त ड़त बहार ।।
नज मन मु
कु
र सु
धार, ी गुचरण सरोज रज।
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न जसम कु
छ पौ ष हो यहाँ
,
सफलता वह पा सकता कहाँ
?
पल-पल जसके
म प थ को दे
खती थी,
न श दन जसके
ही यान म थी बताती।
(9) म दा ा ता- इस वा णक समवृछ द के येक चरण म मगण, भगण, नगण,
तगण, तगण और दो गुके म से 17 वण होते
हैतथा 10-7 वण पर य त होती है
।
जैस-े
फू
ली डाल सु
कु
सु
ममयी तीय क दे
ख आँ
ख।
आ जाती है
मु
र लधर क मो हनी मू
त आगे
।
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