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छद

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छ द (Metres)
वण या मा ा केनय मत संया केव यास से
य द आहाद पै
दा हो, तो उसे
छं

कहतेहै

सरेश दो म-अ र क संया एवंम, मा ागणना तथा य त-ग त से
सब वश
नयम से नयो जत प रचना 'छ द' कहलाती है

छंद श द 'छद्
' धातु
सेबना है
जसका अथ है 'आ ा दत करना', 'खु
श करना।'छं
द का
सरा नाम पगल भी है। इसका कारण यह हैक छं
द-शा के आ द णे ता पगल
नाम केऋ ष थे ।

'छ द' क थम चचा ऋ वे द म ई है


। य द ग का नयामक ाकरण है , तो क वता
का छ दशा । छ द प क रचना का मानक है और इसी के
अनु सार प क सृ
होती है
। प रचना का समु चत ान 'छ दशा ' का अ ययन कयेबना नह होता।
छ द दय क सौ दयभावना जाग रत करते है
। छ दोब कथन म एक व च कार
का आ ाद रहता है, जो आप ही जगता है। तु
क छ द का ाण है- यही हमारी आन द-
भावना को े रत करती है। ग म शु कता रहती हैऔर छ द म भाव क तरलता। यही
कारण है क ग क अपेा छ दोब प हम अ धक भाता है ।

सौ दयचेतना केअ त र छ द का भाव थायी होता है। इसम वह श है , जो ग


म नह होती। छ दोब रचना का दय पर सीधा भाव पड़ता है । ग क बात हवा म
उड़ जाती है
, ले
कन छ द म कही गयी कोई बात हमारेदय पर अ मट छाप छोड़ती
है
। मानवीय भाव को आकृ करने और झंकृ
त करने क अदभु त मता छ द म होती
है
। छ दाब रचना म था य व अ धक है। अपनी मृ त म ऐसी रचना को द घकाल
तक सँजोकर रखा जा सकता है
। इ ह कारण से ह द के क वय नेछ द को इतनी

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स दयता से अपनाया। अतः छ द अनाव यक और नराधार नह ह। इनक भी अपनी


उपयो गता और मह ा है । ह द म छ दशा का जतना वकास आ, उतना कसी
भी दे
शी- वदे
शी भाषा म नह आ।

छ द के
अंग
छ द केन न ल खत अं
ग है
-

(1)चरण /पद /पाद


(2) वण और मा ा
(3) संया म और गण
और गु
(4)लघु
(5) ग त
(6) य त / वराम
(7) तु

(1)चरण /पद /पाद

छं
द के ायः 4 भाग होते
ह। इनम से ये
क को 'चरण' कहते
ह।
सरे
श द म- छं
द के
चतु
थाश (चतु
थ भाग) को चरण कहते
ह।

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कु
छ छं द म चरण तो चार होते
हैले
कन वे लखेदो ही पं य म जाते
ह, जै
स-ेदोहा,
सोरठा आ द। ऐसेछंद क ये क को 'दल' कहते
ह।
ह द म कुछ छं
द छः-छः पं य (दल ) म लखे जातेह। ऐसेछं
द दो छं
द के
योग से
बनतेहै
, जै
सेकुड लया (दोहा +रोला), छ पय (रोला +उ लाला) आ द।
चरण 2 कार के
होते
है
- सम चरण और वषम चरण।
थम व तृ
तीय चरण को वषम चरण तथा तीय व चतु
थ चरण को सम चरण कहते
ह।

(2) वण और मा ा

वण/अ र

एक वर वाली व न को वण कहते
ह, चाहे
वह वर ह व हो या द घ।
जस व न म वर नह हो (जैसेहल त श द राजन्
का 'न्
', सं
युा र का पहला अ र
- कृण का 'ष्
') उसे
वण नह माना जाता।
वण को ही अ र कहते
ह।
वण 2 कार के
होते
ह-
ह व वर वाले वण (ह व वण): अ, इ, उ, ऋ; क, क, कु , कृद घ वर वाले
वण (द घ
वण) : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, क , कू
, के
, कै
, को, कौ
मा ा

कसी वण या व न के
उ चारण-काल को मा ा कहते
ह।

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ह व वण केउ चारण म जो समय लगता है उसे एक मा ा तथा द घ वण के


उ चारण
म जो समय लगता है
उसे दो मा ा माना जाता है

इस कार मा ा दो कार के
होते
है
-
ह व : अ, इ, उ, ऋ
द घ : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
वण और मा ा क गणना

वण क गणना

ह व वर वाले
वण (ह व वण)- एकव णक- अ, इ, उ, ऋ; क, क, कु
, कृ
द घ वर वालेवण (द घ वण)- एकव णक- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ; का, क , कू
, के
,
कै, को, कौ
मा ा क गणना

ह व वर- एकमा क- अ, इ, उ, ऋ
द घ वर- मा क- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
वण और मा ा क गनती म थू
ल भे
द यही है
क वण 'स वर अ र' को और मा ा
' सफ वर' को कहते
है

(3) संया म और गण
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मा ा और वण क गणना को 'संया' और लघु -गुकेथान नधारण को ' म'


कहते है
। मा ा और वण क 'संया' और ' म' क सु वधा केलए तीन वण का
एक-एक गण मान लया गया है । इन गण के अनुसार मा ा का म वा णक वृ त
या छ द म होता है
, अतः इ ह 'वा णक गण' भी कहते है
। इन गण क संया आठ है ।
इनके ही उलटफेर सेछ द क रचना होती है । इन गण के नाम, ल ण, च और
उदाहरण इस कार है -

गणवण म च उदाहरण भाव


यगण आ द लघु
, म य गु, अ त गु ।ऽऽ बहाना शु

मगन आ द, म य, अ त गु ऽऽ आजाद शु

तगण आ द गु, म य गु, अ त लघु ऽऽ। बाजार अशु

रगण आ द गु, म य लघु
, अ त गु ऽ।ऽ नीरजा अशु

जगण आ द लघु
, म य गु, अ त लघु।ऽ। भाव अशु

भगण आ द गु, म य लघु
, अ त लघुऽ।। नीरद शु

नगण आ द, म य, अ त लघु ।।। कमल शु

सगन आ द लघु
, म य लघु
, अ त गु ।।ऽ वसु
धा अशु

का या छ द के आ द म 'अगण' अथात 'अशुभ गण' नह पड़ना चा हए। शायद


उ चारण क ठन अथात उ चारण या लय म द ध होने केकारण ही कुछ गु
ण को
'अशुभ' कहा गया है
। गण को सुवधापूवक याद रखनेकेलए एक सूबना लया
गया है
- यमाताराजभानसलगा: । इस सूम थम आठ वण म आठ गण के नाम आ
गयेहै
। अ तम दो वण 'ल' और 'ग' छ दशा म 'दशा र' कहलाते ह। जस गण का

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व प जानना हो, उस गण के आ र और उससे आगे दो अ र को इस सूसे ले


लेना होता है
। जै
स-े'तगण' का व प जानना हो तो इस सूका 'ता' और उससे आगे
के दो अ र 'रा ज'='ताराज', ( ऽऽ।) लेकर 'तगण' का लघु
-गुजाना जा सकता हैक
'तगण' म गु+गु+लघु , इस म से तीन वण होते
है
। यहाँयह मरणीय हैक 'गण'
का वचार के वल वणवृम होता है , मा क छ द इस ब धन से मु है।

(4) लघु
और गु

लघु
-

(i) अ, इ, उ- इन ह व वर तथा इनसे यु एक जंन या सं


यु ज ंन को 'लघु
'
समझा जाता है । जैस-ेकलम; इसम तीन वण लघु
ह। इस श द का मा ा च आ-
।।।।

(ii) च ब वाले
ह व वर भी लघु
होते
ह। जै
स-े'हँ
'।

गु-

(i) आ, ई, ऊ और ऋ इ या द द घ वर और इनसे यु जंन गुहोते


है
। जै
स-ेराजा,
द द , दाद इ या द। इन तीन श द का मा ा च आ- ऽऽ।
(ii) ए, ऐ, ओ, औ- ये
सं
यु वर और इनसे
मले ज
ंन भी गुहोते
ह। जै
स-ेऐसा
ओला, औरत, नौका इ या द।

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(iii) अनु
वारयु वण गुहोता है
। जै
स-ेसं
सार। ले
कन, च ब वाले
वण गुनह
होते ।
(iv) वसगयु वण भी गुहोता है
। जै
स-ेवतः, ःख; अथात- ।ऽ, ऽ ।।
(v) सं
यु वण के
पूव का लघु
वण गुहोता है
। जै
स-ेस य, भ , , धम इ या द,
अथात- ऽ।।

(5) ग त

छं
द के
पढ़ने
के वाह या लय को ग त कहते
ह।
ग त का मह व व णक छंद क अपेा मा क छं
द म अ धक है
। बात यह है

व णक छं द म तो लघु
-गुका थान न त रहता है
क तुमा क छंद म लघु-गुका
थान न त नह रहता, पूरे
चरण क मा ा का नदश मा रहता है।
मा ा क संया ठ क रहने
पर भी चरण क ग त ( वाह) म बाधा पड़ सकती है

जै
स-े(1) दवस का अवसान था समीप म ग त नह है
जब क ' दवस का अवसान
समीप था' म ग त है

(2) चौपाई, अ र ल व प र- इन तीन छं
द के ये
क चरण म 16 मा ाएं
होती है
पर
ग त भेद से ये
छंद पर पर भ हो जातेह।

अतएव, मा क छं
द केनद ष योग केलए ग त का प र ान अ य त आव यक है

ग त का प र ान भाषा क कृ
त, नाद के
प र ान एवं
अ यास पर नभर करता है

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(6) य त / वराम

छंद म नय मत वण या मा ा पर साँ
स ले
ने
केलए कना पड़ता है
, इसी कने
के
थान को य त या वराम कहतेहै।
छ दशा म 'य त' का अथ वराम या व ाम । छोटेछं
द म साधारणतः य त चरण के
अ त म होती है
; पर बड़े
छं
द म एक ही चरण म एक सेअ धक य त या वराम होते
है

य त का नदश ायः छंद के
ल ण (प रभाषा) म ही कर दया जाता है
। जै
सेमा लनी
छं
द म पहली य त 8 वण केबाद तथा सरी य त 7 वण केबाद पड़ती है।

(7) तु

छं
द के
चरणा त क अ र-मैी (समान वर- ज
ंन क थापना) को तु
क कहते
ह।
जस छंद के
अंत म तु
क हो उसे
तु
का त छं
द और जसके
अ त म तु
क न हो उसे
अतु
का त छं
द कहतेह।
अतु
का त छं
द को अँज
ेी म लक वस (Blank Verse) कहते
ह।

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छ द के
भेद
वण और मा ा केवचार से
छ द के
चार भे
द है
-
(1) व णक छ द
(2) व णक वृ
(3) मा क छ द
(4) मुछ द

(1) व णक छ द- जस छं
द के
सभी चरण म वण क संया समान हो।

सरे
श द म- के
वल वणगणना के
आधार पर रचा गया छ द 'वा णक छ द' कहलाता
है

व णक छंद केसभी चरण म वण क संया समान रहती है
और लघु
-गुका म
समान रहता है

त ' क तरह इसम लघु


'वृ -गुका म न चत नह होता, के वल वणसंया ही
नधा रत रहती है
और इसम चार चरण का होना भी अ नवाय नह ।

वा णक छ द के
भेद

वा णक छ द के
दो भे
द है
-
(i) साधारण और (ii) द डक

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1 से
26 वण तक केचरण या पाद रखने
वाले
वा णक छ द 'साधारण' होते
हैऔर
इससेअ धकवालेद डक।

मु
ख व णक छं
द:
मा णका (8 वण);
वागता, भु
जग
ंी, शा लनी, इ व ा, दोधक (सभी 11 वण);
वं
श थ, भु
जग
ं यात, त वल बत, तोटक (सभी 12 वण);
वसं
त तलका (14 वण);
मा लनी (15 वण);
पं
चचामर, चं
चला (सभी 16 वण);
म दा ा ता, शख रणी (सभी 17 वण),
शा ल व डत (19 वण),
धरा (21 वण),
सवै
या (22 से
26 वण),
घना री (31 वण)
पघना री (32 वण),
दे
वघना री (33 वण),
क व /मनहरण (31-33 वण)।

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द डक वा णक छ द 'घना री' का उदाहरण-


कसको पु
कारे
यहाँ
रोकर अर य बीच । -16 वण
चाहे
जो करो शर य शरण तहारे
ह।। - 15 वण

वघना री' का उदाहरण-


'दे
झ ली झनकारै
पक -8 वण
चातक पु
कार बन -8 वण
मो रन गु
ह ार उठै
-8 वण
जु
गनु
चम क चम क -9 वण
कु
ल- 33 वण

' पघना री' का उदाहरण


ज क कु
मा रका वे
-8 वण
लीन सक सा रका ब -8 वण
ढाव कोक क रकानी -8 वण
के
सव सब नबा ह -8 वण
कु
ल- 32 वण

साधारण वा णक छ द (26 वण तक का छ द) म 'अ मता र' छ द को


उदाहरण व प लया जा सकता है । अ मता र व तु
तः घना री के
एक चरण के
उ रां
श से न मत छ द है
, अतः इसम 15 वण होतेहैऔर 8 व तथा 7 व वण पर य त

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होती है
। जै
स-े
चाहे
जो करो शर य -8 वण
शरण तहारे
है-7 वण
कु
ल-15 वण

व णक छं
द का एक उदाहरण : मा लनी (15 वण)

वण क संया-15, य त 8 और 7 पर
प रभाषा-
न..........न...........म...........य...........य ..... मले
तो मा लनी होवे
।...........।........... ।...........।........... ।
नगन......नगन......मगन.....यगण........यगण
।।।.......।।।..........ऽऽऽ.......।ऽऽ.......।ऽऽ
3........3............3............3.........3 =15 वण

थम चरण- य प त वह मे
रा ाण यारा कहाँ
है?
तीय चरण- ःख-जल न ध-डू
बी का सहारा कहाँ
है?
तृ
तीय चरण- लख मु
ख जसका म आज ल जी सक ,ँ
चतु
थ चरण- वह दय हमारा नै
न-तारा कहाँ
है? (ह रऔध)
1.....2.....3.....4.....5......6......7......8.......9........10.....11........12......13....
.14.....15

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( ).(य).(प)...( त)...(व)...(ह)....(म)...(रा)...( ा).....(ण).....( या).....(रा).....(क)..


...(हाँ
).....(है
)
......नगन.................नगन..............
मगन........................यगण........................यगण

(2) वा णक वृ-
वृउस समछ द को कहते है
, जसम चार समान चरण होते
हैऔर ये क चरण म
आने
वालेवण का लघु-गु- म सुन चत रहता है
। गण म वण का बँ
धा होना मु

ल ण होने
केकारण इसेवा णक वृ, गणब या गणा मक छ द भी कहते ह। 7
भगण और 2 गुका 'म गय द सवैया' इसके
उदाहरण व प है
-

भगण भगण भगण भगण


ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।।
या लकु
ट अ काम र या पर
भगण भगण भगण गग
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽऽ
राज त ँ
पु
र को त ज डार : - कु
ल 7 भगण +2 गु=23 वण
' त वल बत' और 'मा लनी' आ द गणब छ द 'वा णक वृ' है

(3) मा क छ द-

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मा ा क गणना पर आधृ
त छ द 'मा क छ द' कहलाता है

मा क छंद के सभी चरण म मा ा क संया तो समान रहती है
लेकन लघु
-गुके
म पर यान नह दया जाता है

इसम वा णक छ द केवपरीत, वण क संया भ हो सकती है और वा णक वृके


अनु
सार यह गणब भी नह है , ब क यह गणप त या वणसंया को छोड़कर
के
वल चरण क कु ल मा ासंया के आधार ही पर नय मत है । 'दोहा' और 'चौपाई'
आ द छ द 'मा क छ द' म गने जाते है
। 'दोहा' के थम-तृ
तीय चरण म 13 मा ाएँ
और तीय-चतु थ म 11 मा ाएँहोती है
। जैस-े
थम चरण- ी गुचरण सरोज रज - 13 मा ाएँ
तीय चरण- नज मन मु
कु
र सु
धार- 11 मा ाएँ
तृ
तीय चरण- बरन रघु
बर वमल जस- 13 मा ाएँ
चतु
थ चरण- जो दायक फल चार- 11 मा ाएँ

उपयु दोहेके थम चरण म 11 वण और तृ तीय चरण म 12 वण है जब क कु



मा ाएँगननेपर 13-13 मा ाएँ
ही दोन चरण म होती है । गण दे
खनेपर पहलेचरण
म भगण, नगन, जगण और दो लघु तथा तीसरे चरण म सगण , नगण, नगण, नगण है।
अतः 'मा क छ द' केचरण म मा ा का ही सा य होता है
, न क वण या गण का।

मु
ख मा क छं

(A) सम मा क छं द : अहीर (11 मा ा), तोमर (12 मा ा), मानव (14 मा ा);
अ र ल, प र/प टका, चौपाई (सभी 16 मा ा); पीयू षवष, सु मे(दोन 19 मा ा),
रा धका (22 मा ा), रोला, द पाल, पमाला (सभी 24 मा ा), गी तका (26 मा ा),

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सरसी (27 मा ा), सार (28 मा ा), ह रगी तका (28 मा ा), ताटं
क (30 मा ा), वीर
या आ हा (31 मा ा) ।

(B) अ सम मा क छं द : बरवै
( वषम चरण म- 12 मा ा, सम चरण म- 7 मा ा),
दोहा ( वषम- 13, सम- 11), सोरठा (दोहा का उ टा), उ लाला ( वषम-15, सम-13)।

(C) वषम मा क छं
द : कुड लया (दोहा +रोला), छ पय (रोला +उ लाला)।

(4) मुछ द-
जस समय छं द म व णक या मा क तबं ध न हो, न ये
क चरण म वण क संया
और म समान हो और मा ा क कोई न त व था हो तथा जसम नाद और
ताल के आधार पर पं य म लय लाकर उ ह ग तशील करने
का आ ह हो, वह मु
छंद है

उदाहरण- नराला क क वता 'जू
ह ी क कली' इ या द।

चरण क अ नय मत, असमान, व छ द ग त और भावानु कू


ल य त वधान ही
मुछ द क वशे षता है
। इसका कोई नयम नह है। यह एक कार का लया मक
का है , जसम प का वाह अपेत है । नराला सेले
कर 'नयी क वता' तक ह द
क वता म इसका अ य धक योग आ है ।

मु
ख छ द का प रचय
(1) चौपाई- यह मा क सम छ द है
। इसके ये
क चरण म 16 मा ाएँ
होती है
। चरण
केअ त म जगण (।ऽ।) और तगण (ऽऽ।) का आना व जत है
। तु
क पहलेचरण क

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सरेसेऔर तीसरे
क चौथे
सेमलती है
।यत ये
क चरण के
अ त म होती है

उदाहरणाथ-

नत नू
तन मं
गल पु
र माह । न मष स रस दन जा म न जाह ।।
बड़े
भोर भू
प तम न जागे
। जाचक गु
नगन गावन लागे
।।

गुपद रज मृमं
जल
ुमं
जन। नयन अ मय ग दोष वभं
जन।।
ते
ह क र वमल ववे
क वलोचन। बरनउँ
रामच रत भवमोचन ।।

(2) रोला- यह मा क सम छ द है
। इसके ये क चरण म 24 मा ाएँ
होती ह। इसके
येक चरण म 11 और 13 मा ा पर य त ही अ धक च लत है । येक चरण के
अ त म दो गुया दो लघुवण होतेह। दो-दो चरण म तु
क आव यक है । उदाहरणाथ-

जो जग हत पर ाण नछावर है
कर पाता।
जसका तन है
कसी लोक हत म लग जाता ।।

(3) ह रगी तका- यह मा क सम छ द है


। इस छ द के ये
क चरण म 28 मा ाएँ
होती ह। 16 और 12 मा ा पर य त तथा अ त म लघु-गुका योग ही अ धक
च लत है । उदाहरणाथ-

कहती ई य उ रा के
नेजल से
भर गए।
हम के
कण से
पू
ण मानो हो गए पं
कज नए ।।

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(4) बरवै- यह मा क अ सम छ द है। इस छ द केवषम चरण ( थम और तृ तीय)


म 12 और सम चरण ( सरे और चौथे) म 7 मा ाएँहोती है
। सम चरण केअतम
जगण या तगण आने सेइस छ द म मठास बढ़ती है। य त ये क चरण के
अतम
होती है
। जैस-े

वाम अं
ग शव शो भत, शवा उदार।
सरद सु
वा रद म जनु
, त ड़त बहार ।।

(5) दोहा- यह मा क अ सम छ द है । इस छ द केवषम चरण ( थम और तृ तीय)


म 13 मा ाएँ और सम चरण ( तीय और चतु थ) म 11 मा ाएँ
होती है
। य त चरण
केअ त म होती है । वषम चरण के आ द म जगण नह होना चा हए। सम चरण के
अ त म लघु होना चा हए। तु
क सम चरण म होनी चा हए। जै
स-े

ी गुचरण सरोज रज, नज मन मु


कु
र सु
धार।
बरनौ रघु
वर वमल जस, जो दायक फल चार ।।

(6) सोरठा- यह मा क अ सम छ द है । यह दोहे


का उ टा, अथात दोहे
के तीय
चरण को थम और थम को तीय तथा तृ तीय को चतुथ और चतुथ को तृ
तीय कर
दे
नेसेबन जाता है। इस छ द केवषम चरण म 11 मा ाएँ और सम चरण म 13
मा ाएँहोती है
। तु
क थम और तृ तीय चरण म होती है। उदाहरणाथ-

नज मन मु
कु
र सु
धार, ी गुचरण सरोज रज।

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जो दायक फल चार, बरनौ रघु


बर वमल जस ।।

(7) त वल बत- इस वा णक समवृछ द के येक चरण म नगण, भगण, भगण,


रगण के म म कु
ल 12 वण होतेह। उदाहरण-

न जसम कु
छ पौ ष हो यहाँ
,
सफलता वह पा सकता कहाँ
?

(8) मा लनी- इस वा णक समवृछ द के ये क चरण म नगण, नगण, भगण, यगण,


यगण के म से कुल 15 वण होते
हैतथा 7-8 वण पर य त होती है
उदाहरणाथ-

पल-पल जसके
म प थ को दे
खती थी,
न श दन जसके
ही यान म थी बताती।
(9) म दा ा ता- इस वा णक समवृछ द के येक चरण म मगण, भगण, नगण,
तगण, तगण और दो गुके म से 17 वण होते
हैतथा 10-7 वण पर य त होती है

जैस-े

फू
ली डाल सु
कु
सु
ममयी तीय क दे
ख आँ
ख।
आ जाती है
मु
र लधर क मो हनी मू
त आगे

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