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5 6145616386849767511 PDF
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िहदू धम म भगवा िनगुण या सगुण हो सकते ह। भगवा को चाह िकसी भी प म िदखाया जाए, वह प
अधूरा होगा। यिद भगवा को पौधे क प म िदखाया जाए तो उसम जानवर और खिनज का कोई अ त व नह
होगा। यिद उ ह मानव क प म िदखाया जाए तो या वे पु ष ह गे या नारी ह गे या दोन का संयोग ह गे? िहदु
क िलए भगवा कभी एक प तक सीिमत नह रह ह। भगवा क क पना पौध , जानवर , खिनज , मानव (नर
एवं नारी) और िविभ ािणय क संयोग क प म क जाती ह। यादातर िहदू भगवा को तीन मानव जोड़ क
प म देखते ह— ा और सर वती, िव णु और ल मी, िशव और श ।
आकित 3.1 म िहदू नर यी क क पना क गई ह। ा सृि क सृजनकता ह, िव णु पालक ह और िशव
संहारकता ह। चार िसर और एक ंथ क साथ ा पुजारी क तरह लगते ह। चार भुजा क साथ िव णु राजा
क तरह लगते ह। उनक एक हाथ म शंख, दूसर म च , तीसर म गदा और चौथे म कमल ह। ि शूलधारी िशव
तप वी क तरह लगते ह।
आकित 3.2 म िहदू नारी यी क क पना क गई ह। ल मी, सर वती और श मशः समृ , ान एवं
श क तीक ह। ल मी लाल प रधान म ह और एक कलश िलये ए ह; सर वती सफद प रधान म ह और
एक वीणा िलये ए ह; श श िलये ह और िसंह पर सवार ह।
यिद कोई इन आकितय को यान से देखेगा तो पाएगा िक नर यी ि या से जुड़ ए ह। ये ि याएँ ह सृजन,
पालन और संहार। इसक िवपरीत नारी यी सं ा से जुड़ी ई ह। ये सं ाएँ ह ान, धन और बल। सभी भगवा
कता ह। वे सृजन कर सकते ह, पालन कर सकते ह या संहार कर सकते ह। देिवयाँ िन े ह। धन, ान और
बल का सृजन िकया जा सकता ह, उनम वृ क जा सकती ह या उ ह न िकया जा सकता ह। ऐसे म न
यह उठता ह िक या आकित क िलंग का वा तव म कोई अिभ ाय ह? या हम तीक (िलंग) क प पर यान
कि त करना चािहए या उनक पीछ क िवचार पर?
यिद हम प पर यान कि त करते ह और यह मान लेते ह िक प व
आकृ त 3.2 दे वयाँ
िवचार एक ही ह तो इसका अथ यह ह िक आकित िपतृस ा मक ह। यानी नर सि य कता ह और नारी िन े
व तु ह। लेिकन इस तरह क या या युगल नर/नारी, बलशाली/बलहीन, शोिषत/शोषक, मािलक/सेवक पर
आधा रत नारीवादी, िपतृस ा मक और समाजवादी िवचारधारा को ही संतु कर सकती ह।
इन आकितय को देखने का एक दूसरा तरीका भी हप क पीछ क िवचार पर यान कि त करना। जब हम ऐसा
करते ह तो पाते ह िक नर यी य या े क का मह व दरशाते ह। ऐसा य जो कता ह, जो हमार भीतर क
आ या मक स ाई को समझता ह, िति या य करता ह। हम सृजन करते ह, पालन करते ह और संहार करते
ह, भले ही हम नर ह या नारी। ऐसे म नारी यी े ण क मह व को दरशाती ह, जो िति या क िलए उकसाता
ह। इस िति या क फल व प ही हमारी सृि का िनमाण होता ह। यह सृि मन, पदाथ, िवचार , भाव और
अनुभूितय से बनती ह। भगवा हम सबक भीतर ह। देिवयाँ हम सभी क इद-िगद ह। हम धन, ान और बल का
सृजन कर सकते ह, उसे बनाए रख सकते ह या न कर सकते ह। हम धन, ान और बल का सदुपयोग या
दु पयोग कर सकते ह।
अगला न यह ह िक आ या मक िवषय क िलए नर प का इ तेमाल य िकया जाता ह, जबिक भौितक
व तु क िलए नारी का इ तेमाल िकया जाता ह? इसे समझने क िलए हम भौितक स ाई और आ य मक स ाई
क बीच क अंतर को समझना होगा। भौितक स ाई वह होती ह, जो िद ाल म सीिमत होती ह, लेिकन
आ या मक स ाई को िद ाल म सीिमत नह रखा जा सकता। भौितक स ाई का प होता ह, इसिलए उसे
मापा जा सकता ह और एक ‘कटनर’ क भीतर रखा जा सकता ह। आ या मक स ाई आकारहीन होती ह और
उसे मापा नह जा सकता, इसिलए उसे अंतिव नह िकया जा सकता। उदाहरणाथ, पु ष का शरीर अपने बाहर
जीवन का सृजन करता ह। दूसरी तरफ, मिहला क शरीर म जीवन का सृजन होता ह। इसिलए नारी प को
अिधक-से-अिधक आधान, सभी भौितक चीज का ोत कहा
आकित 3.3 ा ा
जा सकता ह। मिहला भौितक त व का तीक बन जाती ह और पु ष को आ या मक त व का तीक बना देती
ह। दुभा य से, समाज ने इन तीक क अथ को िवकत कर िदया ह और िच ण स ाई बन गई ह। हम यह कहना
चािहए िक ी भौितक त व और पु ष आ या मक त व का ितिनिध व करता ह। इसक िवपरीत, हम यह कहते
ह िक ी भौितक त व ह और पु ष आ या मक त व। इससे राजनीितक और वैचा रक टकराव पैदा होता ह। हम
इन िवचार को सही तरीक से य करने और िमथक को िमथकशा से पर समझने क ज रत ह।
हमारी आ मा या चेतना रचना मक (आकित 3.3 म ा), पोषक (आकित 3.5 म िव णु) या संहारक
(आकित 3.7 म िशव) हो सकती ह। म त क और य बौ क हो सकते ह (आकित 3.4 म सर वती),
आिथक हो सकते ह (आकित 3.6 म ल मी) या भावा मक हो सकते ह (आकित 3.8 म श )। आ या मक
यथाथ या भगवा को नेित-नेित क ज रए सव म तरीक से अिभ य िकया जा सकता ह। भौितक यथाथ या देवी
को इित-इित क ज रए सव म तरीक से अिभ य िकया जा सकता ह।
धन, ान और बल गरीब-अमीर, सुंदर-क प, सवण-िन न वण क बीच कोई भेद नह करते। एक कटोरा भात
राजा क भी भूख िमटा सकता ह और गरीब क भी। जो भी य , चाह वह पुिलसकम हो या चोर, ान हािसल
करना चाहता ह, हािसल कर सकता ह। बल ऐसे य को िमलता ह, जो उसक लायक हो। देवी भेदभाव नह
करत , कोई फसला नह लेत ।
पु ष प म फसला लेने क मता होती ह। भगवा समाज क सजक, पोषक और संहारक ह। वे मू य ,
नीितय और नैितकता क मूल ोत ह। देवी को मापा जा सकता ह, लेिकन मापक और मापदंड क सजक, पोषक
और संहारक भगवा ह। ‘माप’ क िलए सं कत श द माया ह इसीिलए देवी को महामाया कहा जाता ह। महामाया
का अथ ह, िजसे मापा जा सकता ह और िजसका मू यांकन िकया जा सकता ह। देवी पदाथ ह, ऊजा ह। जो
उनका े क ह, वह िविभ प म उनका सृजन करता ह, पोषण करता ह या संहार करता ह।
आकित 3.4 ान क देवी सर वती
नारायण जब जागते ह, देवी क अनुभूित इि य क ज रए क जाती ह। श द क इ तेमाल क ज रए उनका
वग करण िकया जाता ह, िवचार म उ ह बाँधा जाता ह और मापदंड से उ ह मापा जाता ह। अचानक ही उनका
मू यांकन िकया जाता ह। उनक प, उनक नाम और उनका मू यांकन हम वशीभूत कर लेते ह, फाँस लेते ह,
स मोिहत कर देते ह, हमार मनोभाव को आलोि़डत कर देते ह, हम सुखी बना देते ह और हम उदास कर देते ह;
य िक वे कभी थर नह होते। यही वजह ह िक बदलते प क इस भौितक दुिनया को ायः माया कहा जाता
ह। माया का हम महज अनुभव करते ह। वह बदलती रहती ह और हम उसपर िनयं ण क िलए संघष करते रहते
ह, उसे थायी बनाने क िलए यासरत रहते ह; लेिकन हम अपनी कोिशश म िवफल रहते ह, य िक
प रवतनशीलता उसक कित ह।
देवी का अनुभव करने से हम उस चीज क शंसा करते ह, जो नह बदलती और वह चीज ह हमार भीतर का
भगवा , जो थर, िनर , मूक आ मा होता ह। चूँिक हम माया क चंचलता का अनुभव करते ह, इसिलए हम
माया क बार म महसूस करते ह, जो मोिहनी का नृ य देखती रहती ह। चूँिक हम कित को जीवन िनगलते-उगलते
ए महसूस करते ह, इसिलए हम जीवन क खेल क मूक य दश पु ष को पाने क कामना करते ह।
उपिनषद म, िजनक रचना 500 ईसा पूव ई थी, इन दो स ाइय का बार-बार िज आता ह स ाई जो
बदलती ह और स ाई जो नह बदलती ह। एक का अ त व दूसर क अ त व क ओर संकत करता ह। प रवतन
म हम थािय व खोजते ह, चंचलता म हम िन लता खोजते ह, गित म हम जड़ता खोजते ह। आवाज म हम
खामोशी खोजते ह। दो अनुपूरक स ाइय का िवचार हम इितहास और भूगोल क ज रए पौध , पशु , यािमित
और मानव क तमाम तीक तक प चा देता ह।
सभी पौधे िवकिसत होते ह और समय क साथ बदलते ह, लेिकन कछ पौधे अ य क तुलना म तेजी से
िवकिसत होते ह और तेजी से बदलते ह। एक तरफ तो बरगद का पेड़ ह, िजसका जीवन लंबा होता ह। वह छाया
मुहया तो
आकित 3.5 िव क संर क िव णु
कराता ह, लेिकन मानव जाित का पेट नह भरता। दूसरी तरफ घास और अनाज ह, िजनका जीवन छोटा होता
ह। वे छाया तो नह देते, लेिकन भोजन मुहया कराते ह। पहला अप रवतनशील स ाई का तीक ह जब जीवन
अस हो जाता ह तो यह हम आ या मक छाया देता ह, लेिकन यह जीवन क सृजन और पोषण म असमथ होता
ह। दूसरा प रवतनशील स ाई का तीक ह। यह शरीर का पोषण करता ह, लेिकन थािय व या थरता का बोध
नह कराता। ज म और शादी से संबंिधत िहदू अनु ान म तृण, अनाज और कले क पेड़ को ब त मह व िदया
गया ह; लेिकन इन अनु ान म बरगद क पेड़ या उसक प े का कोई िच नह होता। प रवार क ढाँचे क बाहर
कवल तप वी ही उसे मह व देते ह।
जंतु क दुिनया म िन ल आ या मक आ मा और गितमान भौितक दुिनया का सव म ितिनिध व कोबरा
करता ह। सभी जंतु चलते ह, लेिकन कवल कोबरा म गितशीलता और िन लता क बीच भेद िकया जाता ह।
कोबरा जब िन ल होता ह, कडली मारकर अपना फण उठा लेता ह। मैथुन क िलए नर और मादा दोन को
लगातार गितशील रहना पड़ता ह। इस तरह फण काढ़ा आ कोबरा जो तप यालीन िशव या िनि त नारायण से
संब ह अप रवतनशील पारलौिकक स ाई का तीक ह। दूसरी तरफ, मैथुनरत सप प रवतनशील लौिकक
स ाई से संब उवरता का तीक ह।
खिनज क दुिनया म िन लता का तीक भ म और बफ ह। िकसी चीज को जलाने या न करने से भ म का
सृजन होता ह; लेिकन भ म को और अिधक न नह िकया जा सकता। इस तरह यह थािय व अप रवतनशील
स ाई, आ मा का तीक ह। बफ पानी होता ह, जो शांत रहता ह। भ म और बफ दोन को तप वी िशव से
संब िकया जाता ह, जो शांित से िहमालय पर बैठ रहते ह। यिद बफ शांत जल ह तो नदी बहता आ पानी,
िजसका सव म तीक प रवतनशील स ाई, अ थायी दुिनया ह। कोई भी य एक नदी म दो बार कदम नह
रख सकता, य िक िव ान का कहना ह िक वह हमेशा बदलती रहती ह। िशव आवेश से बहती ई गंगा नदी
आकित 3.6 धन क देवी ल मी
को अपनी जटा म समेटकर शांत कर देते ह, य िक उसक पास दुिनया को बहा ले जाने क श ह।
यािमित म ि कोण का इ तेमाल थरता और गितशीलता दोन को दरशाने क िलए िकया जाता ह। ऊ वाकार
शीषवाले ि कोण का इ तेमाल थािय व दरशाने क िलए िकया जाता ह। इसी तरह अधोमुखी शीषवाले ि कोण का
इ तेमाल गितशीलता दरशाने क िलए िकया जाता ह। इसे आकित 4.16 म अ छी तरह दरशाया गया ह। रग म,
सफद थरता का तीक ह, य िक यह पे म क सभी रग को परावितत करता ह। ान क देवी सर वती
(आकित 3.4) सफद प रधान पहनती ह। काला गितशीलता का रग ह, य िक यह सभी रग को अपने म समािहत
कर लेता ह। लाल संभािवत ऊजा और हरा ा ऊजा का रग ह। बा रश से ठीक पहले धरती लाल हो जाती ह।
उस समय उसम बोए ए बीज होते ह। बा रश क बाद धरती हरी हो जाती ह। उस समय बीज म जीवन पड़ जाता
ह और वह फटकर बाहर िनकल आता ह। अब ल मी और दुगा पर आएँ। ल मी (आकित 3.6) और दुगा
(आकित 3.8) लाल रग क प रधान पहनती ह, जबिक अ पूणा (आकित 1.14) का प रधान हरा ह।
अंत र म ुव तारा थर ह, इसिलए उ र िदशा को थरता, ा और अमरता का तीक माना गया। इसी
तरह दि ण िदशा को प रवतन और मृ यु से जोड़ िदया गया।
शरीर म बायाँ पा प रवतन का तीक ह, य िक हमार थर रहने पर भी दय धड़कता रहता ह। इसक
िवपरीत दायाँ पा थर होता ह, इसिलए वह आ मा का तीक ह। चूँिक प रवतन अवांिछत होता ह, इसिलए
बायाँ पा शरीर का अशुभ अंग बन गया। इसक िवपरीत थर दायाँ पा शरीर का शुभ अंग बन गया।
मनु य क बीच, चारी तप वी थर आ मा का तीक ह, जबिक नृ य करती अ सरा गितशील दुिनया का
ितिनिध व करती ह। तप वी और अ सरा क बीच िनरतर ं चलता रहता ह। इसक बावजूद तप वी और
अ सरा क बीच
आकित 3.7 संहारकता िशव
संयोग होने से ही जीवन का सृजन होता ह। इस तरह जीवन प रवतनशील और अप रवतनशील स ाई का
िम ण ह। आकित 3.9 अप रवतनशील स ाई (बाई तरफ क तप वी) और प रवतनशील स ाई (दाई तरफ क
अ सरा) क संयोग को दरशाती ह।
आकित 3.9 म िदखाए गए अ नारी र या भगवा ब त लोकि य ह। इस आकित को देखकर मनोिव ेषक
ने िन कष िनकाला िक भारतीय सं कित म नारी को ब त मह व िदया जाता था। नारी देव व का अंग थी। दुिनया
क संभवतः िकसी भी सं कित म नारी प को देव व का अंग नह माना जाता था। भारतीय सं कित को छोड़
अ य सं कितय म अ नारी र क क पना तक नह क गई ह। आकित को देखकर इस बात क सहज ही
क पना क जा सकती ह िक भारत म लिगक धायता को ब त सहजता से िलया जाता था, यानी नारी म पु ष
और पु ष म नारी का प देखा जाता था; लेिकन ये क पनाएँ ह, जो समाज क स ाई क बार म नह बतात ।
हाँ, भारतीय सं कित म अ प लिगकतावाले पु ष , यानी िहजड़ को थान ज र िदया गया ह; लेिकन वे समाज
क हािशए पर रहते ह।
दुभा य से, हम ऐसी दुिनया म रहते ह, जहाँ लोग िवचार क बजाय प पर यान देते ह। हम यह मान लेते ह
िक ित प ही यथाथ ह और अ नारी र को अ नारी भगवा क प म देखते ह। हमारी यह धारणा सही नह
ह। दरअसल, ई र आधा भौितक त व और आधा आ मा का संयोग ह।
तीका मक भाषा म अ नर आकारहीन ई र का तीक ह, िजसे वेद म पु ष, ‘िव णुपुराण’ म नारायण और
‘िशवपुराण’ म िशव कहा गया ह। अ नारी ई र क सगुण प (पु ष, नारी और नपुंसक प ) का ितिनिध व
करती ह। नारी प को वेद म कित, ‘िव णुपुराण’ म माया और ‘िशवपुराण’ म श कहा गया ह।
यह आकित िदलच प ह, य िक उसम एक अ नारी ई र ह, न िक अ पु ष देवी। धम ंथ म अ
पु ष देवी का कोई िज नह ह। इस तरह य ई र क समि प म एक लिगक श धान ह। यह योगी
िशव का प ह।
आकित 3.8 बल, ेम और भाव क देवी श
कहानी इस तरह ह िशव क भ भृंिग िशव क प र मा करना चाहते थे, लेिकन उनक प नी पावती क नह ।
पावती ने भृंिग को िशव क प र मा करने क अनुमित नह दी। वे िशव क गोद म बैठ गई, तािक ऋिष उनक
बीच से न गुजर सक। जब भृंिग ने उनक िसर क बीच से गुजरने क िलए मधुम खी का प धारण कर िलया तो
पावती ने अपने को िशव म समािहत कर िलया। इस तरह वे िशव का बायाँ आधा अंग बन गई। अब भृंिग ने उनक
बीच से अपना रा ता बनाने क िलए क ड़ का प धारण कर िलया। पावती इससे िव मत नह ई। उ ह ने भृंिग
को ाप िदया िक उनक शरीर का हर अंग अलग हो जाएगा। इसक प रणाम व प भृंिग क शरीर म न तो मांस
बचा और न र । वे ककाल बन गए और सीधे खड़ नह हो सकते थे। िशव ने उन पर दया करते ए उ ह तीसरा
पैर दे िदया, तािक वे ि पािदका क तरह खड़ रह सक। यह कहानी हर य को याद िदलाती ह िक यिद पु ष
ई र क अ नारी िह से का स मान नह करगा तो उसे इसक क मत चुकानी पड़गी। यह दि ण भारत क एक
तिमल मंिदर क जन ुित ह।
इस आकित क एक दूसरी कहानी उ र भारत क िहमालयीय े से िनकली ह। जब पावती ने िशव क जटा म
गंगा को देखा तो किपत हो गई। उ ह ने सोचा िक जब वे अपने पित क गोद म बैठी ह तो िशव अपने िसर पर
दूसरी ी को कसे बैठा सकते ह। पावती को शांत करने क िलए िशव ने अपने शरीर को अपनी प नी क शरीर म
िमला िलया।
आकित म ई र अकले य ह? दरअसल, आकित यह बताती ह िक िशव पावती क िबना अधूर ह। इसका
अथ यह ह िक आ या मक स ाई भौितक स ाई क िबना अधूरी ह। लोग से कहा जाता ह िक उ ह आ या मक
स ाई (िशव) क पूजा करनी चािहए, य िक सभी भौितक चीज (श ) हमारा यान अपनी ओर ख च लेती ह।
हमारी वृि भौितक चीज क उपे ा करने क ह। हम िवषयास और लोभन क भ सना करते ह; लेिकन
आकित म देवी को समुिचत स मान िदया गया ह। इस तरह आकित हम यह याद िदलाने क कोिशश कर रही ह
िक अकले भौितक त व क ज रए
आकित 5.4 ल मी
आकित 5.5 भगवती
उसक साथ देवी भी बुरी और उ बन जाती ह। अ छा बेटा देवी क पूजा करता ह। उसक साथ देवी भी अ छी
माँ बन जाती ह खुशी और उदारता से भरपूर। वे आकित 5.4 म िदखाई देवी बन जाती ह। ये ल मी ह, पृ वी क
समृ और उदारता क ितमूित। ये आकित 5.2 और आकित 5.3 क देवी से िभ ह। इसका अथ यह ह िक
इनका थानीयकरण नह आ ह। ये यापक आ या मक सोच क तीक ह।
ल मी समृ और धन-दौलत क देवी ह। ी क प म वे हमार जीवन म ऐ य लाती ह, रक को राजा
बनाती ह। भू क प म वे सौ य पृ वी ह और अपनी सभी संतान को घर तथा आ य उपल ध कराती ह। इस
आकित म वे कमल क फल पर बैठी ह, जो जीवन क आनंद से िनकलनेवाली सभी अ छी चीज का तीक ह।
उनक अगल-बगल समृ और श क तीक सफद हाथी ह, जो कवल सव म राजा क िलए सुरि त ह।
पृ भूिम म िनजी संपि का एक पा ह, जो िकसी नदी या तालाब क िवपरीत सार धन का ोत ह। यह पा एक
पिव िश प-कित ह, जो सीमा क भीतर पड़ धन का तीक ह। यह कित का सवसुलभ धन नह ह। यह वह
धन ह िजस पर मनु य ने अपना दावा िकया ह।
ल मी क चार ओर पौधे ह, जो मनु य क भूख िमटाते ह और उसक इि य को सुख प चाते ह। ना रयल और
कले क पेड़ को अिधक देखभाल क ज रत नह पड़ती; लेिकन वे सभी को पोषण मुहया कराते ह, इसिलए उ ह
पिव पौधा माना जाता ह। वे सवसुलभ ह और िनवेश पर भारी लाभ देते ह। पा म रखी आम क पि याँ उस मीठ
फल क याद िदलाती ह, जो गरिमय को स बना देता ह। पा क नीचे रखी पान क प ी खाना खाने क बाद
चबाई जाती ह। यह पाचन-श को बढ़ाती ह और कामो ेजक क प म भी काम करती ह। इस तरह ये पौधे
समृ और सुख क तीक ह। मनु य देवी क या तो उनक थानीय प (आकित 5.3) या िफर वै क प
(आकित 5.4) म क पना कर सुख व समृ ही तो चाहता ह।
आकित 5.5 म िदखाई गई देवी एक तरह से आकित 5.3 और आकित