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देवी-देवा क रह य

(िहदू कलडर कला म)


देवद पटनायक
उन सैकड कलाकार और मु क को स ममान समिपत,
िज ह ने कलडर आट तक आमा लोग क प च को सुगम बनाया।
लेखक य
इस पु तक क आकितयाँ सड़क क िकनार और मंिदर क बाहर िहदू देवता क तसवीर बेचनेवाले लोग से ली गई ह। कला क इितहासकार ने
बताया ह िक िकस तरह राजा रिव वमा जैसे कलाकार और उ ीसव सदी क मु ण ट ोलॉजी ने इन तसवीर को पूर भारत क िहदु क िलए सुलभ
बनाया और िकस तरह आम आदमी क मानस म ये तसवीर बैठ गई। हाल क समय म िहदू देवी-देवता क सुंदर तसवीर ने िवदेशी पयटक का भी
यान अपनी ओर आकिषत िकया ह। फशन गु ने उ ह प रधान और उप-साधन म शािमल कर कटवॉक क मंच पर उनका इ तेमाल िकया ह, तािक
उपभो ा , सं हकता और मीिडया को रझाया जा सक। लेिकन शायद ही िकसी ने इन तसवीर क बार म कभी िवचार िकया ह। उ ह ने कभी नह
सोचा िक इन तसवीर क क पना कहाँ से आती ह? ये तसवीर या कह रही ह? और अ ानता या मासूिमयत म पिव कला ने फतासी आट का प ले
िलया ह। कछ लोग जब इस पिव कला का इ तेमाल िकसी और इरादे से करते ह तो अ य लोग को नागवार गुजरता ह।
िहदू देवी-देवता क ‘शानदार’ तसवीर क जब या या करने क कोिशश क जाती ह तो वह या तो र ा मक या खेद-सूचक या िफर उ
रा ीयतावादी होती ह। तसवीर क िवषय-व तु को वैध ठहराने क िलए तरह-तरह क तक िदए जाते ह या अ य धम से उनक तुलना क जाती ह।
आ था कभी वै ािनक नह हो सकती और ‘पाप’ तथा ‘पैगंबर’ जैसे श द िहदु क िव - ि को समझने म मदद नह करते।
िहदू आट को समझने क िलए य को एक नए ितमान, चीज क या या क नई शैली क मदद लेनी होगी। उसे संपूणता और संभावना क नई
धारणा खोजनी होगी, जो ीक, बाइिबल या प म क िचर-प रिचत और लोकि य िव - ि कोण से िभ हो। इसीिलए इस पु तक म पाठक क
सामने एक नए ितमान को पेश करने क कोिशश क गई ह।
पु तक म जान-बूझकर याम- ेत तसवीर का इ तेमाल िकया गया ह, तािक रग पाठक को िवषय-व तु से न भटकाएँ। तसवीर क गुणव ा पर
अिधक यान नह िदया गया ह, य िक पु तक का उ े य आकितय क स दय क बार म बताना नह ह, ब क हमार पूवज ारा रिचत अनूठ
यकोश का रह य खोलना ह। म पु तक म हर कलाकार और मु क क सूची देना पसंद करता, लेिकन उनक बार म पता लगाना असंभव था। इसक
वजह यह ह िक ये आकितयाँ न कवल जन-रिचत ह, ब क िविभ कलाकार ने थोड़-ब त प रवतन क साथ इ ह िनरतर लोग क सामने तुत िकया
ह। ऐसा ायः देखा गया ह िक एक ही आकित को िविभ मु क ने कािशत िकया।
और अंत म, सभी िहदू चीज क तरह पु तक म दी गई या या इस कला को देखने का महज एक तरीका ह। इस पु तक को यह यान म रखते ए
पढ़
अनंत िमथक म शा त स य िछपा ह
लेिकन उसे कौन देख सकता ह?
व ण क हजार आँख ह
इ क एक सौ ह।
और मेरी कवल दो ह।
आभार
इस पु तक को िलखने म मदद करनेवाले िन निलिखत सिहत म सभी लोग का आभारी
• धैवत छाया, िज ह ने इसे य गत काम समझकर लेआउट तैयार िकया।
• रा ल सुंदर, िज ह ने तसवीर को खोजने म मेरी मदद क ।
• डॉ. सतीश र ी, चे ई, िज ह ने तसवीर का उ म खोजने म हमारी मदद क ।
• जनादन सतोसे, िज ह ने तसवीर को अ छी तरह कन िकया।
• मेरी संपादक दी तलवार, िज ह ने मुझे इस पु तक को िलखने का अवसर िदया और पूरी रचना मक वतं ता दी।
1. गणेश का रह य
आकित 1.1 िशव का प रवार
आकित 1.1 म प रवार िदखाया गया ह : िपता, माता तथा दो पु ; परतु यह कोई सामा य िच नह ह। यह
भगवा िशव क प रवार का िच ह। ये पवत पर अपनी प नी (िहमालय पु ी) पावतीजी तथा अपने दो पु गणेश
अथा गजानन एवं भालाधारी काितकयजी क साथ िवराजमान ह।
िहदू धम या िहदु व से अप रिचत य क िलए यह िच अजीब हो सकता ह। िकसी क बाल से नदी कसे
वािहत हो सकती ह? िकसी क हाथी का िसर तथा चार हाथ कसे हो सकते ह? कोई मोर पर सवार कसे हो
सकता ह? इनसे ई र का ितपादन कसे हो सकता ह? भला इतने सार भगवा कसे हो सकते ह?
परतु िहदू इन धारणा को सहज प म लेते ह, य िक ये इ ह िच व मूितय को देखकर पलते-बढ़ते ह।
इ ह समझने क िलए उ ह तक का सहारा नह लेना पड़ता। ये िवचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चले आ रह ह। इनक ज रए
िहदू देव व क धारणा से प रिचत होते ह। िहदू धम म देव व क धारणा अ ुत ह। इसलाम से िभ , यह साकार
ह। यह वन पित जग से पशुजग तथा मानव जग तक फली ह। ईसाई धम से िभ , यह एक ही िवचार या मत
म नह िसमटी ह, यहाँ अनेक देवी-देवता ह। ये सभी ई र क अलग-अलग अंश या प ह।
इस धारणा या िव ास को इस कहानी से अिधक प िकया जा सकता ह एक िदन जब िशव प रवार एक
साथ बैठा था, वहाँ मुिनवर नारदजी आए, ये जहाँ भी जाते थे, वही कछ-न-कछ परशानी खड़ी कर देते थे।
नारदजी ने कहा, ‘‘आपक े तर पु क िलए मेर पास एक आम ह।’’
भगवा िशव ने अपनी प नी पावतीजी क ओर मुड़कर कहा, ‘‘म यह फसला कसे क गा?’’
‘‘आइए, ितयोिगता का आयोजन करते ह।’’
पावतीजी ने कहा, ‘‘यह आम उसे िमलेगा, जो तीन बार िव क प र मा करक पहले लौटगा।’’
‘‘ऐसा ही करते ह!’’ भगवा िशव ने कहा।
आकित 1.2 म िदखाया गया ह, काितकय त काल मोर पर सवार होकर आकाश क ओर बढ़ने लगे। उ ह ने
संक प िलया िक वे िव क सबसे पहले प र मा तीन पूरी कर लगे। लेिकन गणेशजी िहले तक नह । वे अपने
माता-िपता क साथ बैठ रह और चूह से खेलते रह। काितकय ने िव क एक प र मा लगाई, िफर दूसरी और
आ य! गणेशजी या करते रह? गणेशजी टस-से-मस नह ए। जब काितकयजी तीसरा और अंितम च र पूरा
करने जा रह थे, गणेशजी खड़ हो गए और िच 1.3 म दरशाए अनुसार अपने माँ-बाप क तीन च र लगाए और
घोिषत कर िदया, ‘‘म जीत गया ।’’
‘‘आप कसे जीत गए?’’ काितकयजी ने कहा, ‘‘मने िव क तीन बार प र मा क ह। आपने तो माता-िपता
क ही दि णा ली ह।’’
‘‘यह स य नह ह। आपने िव का च र लगाया। मने अपने िव का च र लगाया। बताएँ कौन सा
िव , जग मह वपूण या सारगिभत ह?’’
यह िव िवषयपरक ह, मेरा िव आ मगत ह। यह जग तािकक और वै ािनक ह। मेरा जग भावना मक
एवं अंतदश ह। यह िव गोल ह, िवशाल ह, मेरा िव सीिमत ह। दोन ही स य ह, परतु गणेशजी पूछते ह,
‘‘िकसका मह व अिधक ह?’’
येक सं कित म जग अलग-अलग प म देखा जाता ह। कछ क िलए यहाँ िनराकार देव व ह, कछ क
िलए साकार प म देव व ह। सही कौन ह? कछ क ि म कवल एक बार ज म होता ह, पुनज म नह होता।
जबिक अ य प मानता ह िक जीव बार-बार ज म लेता ह। सही कौन ह? इन न क सावभौिमक उ र नह
होते। ये उ र सं कित सापे ह। इनसे िव ास उ प होता ह। िव ास यवहार का आधार ह। इनक आधार पर
न तो कोई कम सिह णु होता ह, न ही अिधक सुन य! इसीिलए मेरा जग ही अिधक मह वपूण व सारगिभत ह!
िमथ एक िवचार ह, जो मेरी दुिनया म मंथन से िनकला ह पौरािणक कथा , तीक और कमकांड का एक
सेट ह, जो िमथ को सं ेिषत करता ह।
आकित 1.4 देवी-देवता क िविभ प
िवचार क तरह कथाएँ, तीक और कमकांड बाहरी य क िलए बेतुक लग सकते ह, लेिकन आ था
रखनेवाला य उनका संपूण भाव समझ सकता ह। आकित 1.1 इसका उदाहरण ह। इस पु तक म दी गई अ य
आकितय को भी उदाहरण क प म िलया जा सकता ह। इनम से हर आकित िहदु क मन म एक प भाव
उ प करती ह; लेिकन जो लोग िहदू नह ह, वे इस भाव को नह समझ सकते; और न ही उ ह तकसंगत तरीक
से समझाने क कोिशश क जाती ह। यही वजह ह िक गैर-िहदू यह नह समझ पाते ह िक निदयाँ िशव क जटा से
य फटती ह और उनक पु क धड़ पर हाथी का िसर य ह। इसिलए, इस तरह क िवषय क ित परानुभूित का
ि कोण अपनाना चािहए और उ सुकता से उसका अ ययन करना चािहए। साथ ही, यह यान म रखना चािहए
िक इस तरह क चीज िकसी सं कित क आ मा क िखड़क होती ह।
आधुिनक युग म मनु य म परानुभूित का बेहद अभाव िदखता ह। हर चीज को कसौटी पर कसा जाता ह, हर
चीज क नाप-जोख क जाती ह। िवचार को मा यता तभी दी जाती ह जब वे त य एवं सबूत और गिणत एवं
िव ान क कसौटी पर खर उतरते ह; लेिकन जीवन म ऐसी कई चीज ह, िजनक या या तक क आधार पर नह
क जा सकती। कम-से-कम जीवन, मृ यु और ई र क मामले म तो िबलकल नह । मृ यु क बाद या होता ह,
कौन जानता ह? िविभ सं कितय म इस न क िविभ उ र िदए गए ह। हर उ र एक िवषय सापे स ाई
ह, इसिलए हर उ र एक िमथ, एक कहानी, एक आ था ह।
िशव भगवा ह, लेिकन वे अकले भगवा नह ह। वे कई भगवान म एक भगवा ह। िहदू जग म यह चीज
अपने आप म अनूठी ह िक ई र एक नह ह; उसका एकल अ त व नह ह। उसका पु षव अ त व भी नह
ह। जैसािक आकित 1.4 म िदखाया गया ह, िशव क प नी पावती देवी ह, िजनका दजा उनक पित क बराबर ह।
गणेश और काितकय दोन देवता ह, िजनका दजा िशव और पावती से नीचे ह। गणेश बाधा को दूर करते ह और

आकित 1.5 शुक को आशीवाद देते ा


आकित 1.6 एक िस पु ष
काितकय असुर क िखलाफ लड़ाई म देवता का नेतृ व करते ह; लेिकन जब िशव अपने ने बंद कर लेते ह
तो पूरी सृि न हो जाती ह। इसीिलए िशव को संहारकता कहा जाता ह और उ ह भगवा माना जाता ह। पावती
को इसिलए देवी माना जाता ह, य िक उनम भय से लेकर ेम, भु व से लेकर क णा तक सभी तरह क भाव
अंतिनिहत ह। दूसरी तरफ, िशव क जटा से िनकलनेवाली गंगा कमतर हिसयत क देवी ह। उनका देव व उस नदी
तक सीिमत ह, िजसका वे ितिनिध व करती ह।
दरअसल, देव व आकारहीन होता ह; लेिकन इसे समझने क िलए हम मनु य को आकार क ज रत पड़ती ह।
हर आकार अधूरा होता ह, यह उसक कित ह। कोई भी एक आकित अपने आप म संपूण नह हो सकती; लेिकन
भगवान और देवी-देवता क सम त अधूरी आकितय क मा यम से हम कम-से-कम देव व क अवधारणा को
समझ सकते ह।
लेिकन चीज इतनी आसान नह ह। िजस मंिदर म िशव या पावती क िबना गणेश क िविश प से पूजा क
जाती हो या काितकय अकले ित ािपत ह , वहाँ देवता भगवा बन जाते ह, यानी असीम देव व सीिमत हो जाता
ह।
आकितय क ज रए सभी सं कितय ने अपने-अपने यथाथ को य िकया ह। आकित 1.5 को गौर से देिखए।
इसम चार िसर वाला एक य एक पु तक िलये ए ह और तोते क िसरवाले एक ऋिष को आशीवाद दे रहा ह।
चार िसर वाला य ा ह, िजनक मुँह से पहली बार वेद िनकला और ऋिषय ने उसे सुनकर मानव जाित तक
प चाया। वेद तो का संकलन ह और िहदू ा क ोत क प म काम करता ह। इन तो को कालातीत
और सावभौम कहा जाता ह। चूँिक ये तो ा क मुँह से िनकले ह, इसिलए इ ह ई रीय ान कहा जाता ह।
कहा जाता ह िक एक बार भयानक सूखा पड़ा और ऋिष तो को भूल गए। भा यवश से यास नाम क एक
ऋिष ने उनका िफर से संकलन िकया। तोते क िसरवाले ऋिष शुक ह। वे यास क पु ह। उ ह ने ही सारा वैिदक
ान हम तक प चाया ह।
आकित 1.5 म ा और शुक ऋिष क बीच तीका मक संवाद िदखाया गया ह। ा पु ष ह, लेिकन उनक
साथ कोई नारी नह ह, इसिलए वे अधूर ह। उनक इस अधूरपन का अथ यह ह िक उनक साथ कोई नारी ह,
लेिकन वह नारी ह कहाँ? वह नारी एक अगोचर धारणा ह, जो इस आकित को वैध और संपूण बनाती ह। वह
िनराकार ा ह, जो ा से शुक म संचा रत हो रही ह। उसे सर वती कहते ह। सर वती देवी ह, िज ह कभी-
कभी वेद-माता क नाम से संबोिधत िकया जाता ह। ा ने वेद क रचना नह क । कोई भी पु ष नारी क िबना
िकसी चीज क रचना नह कर सकता, यहाँ तक िक भगवा भी नह । कछ लोग कहते ह िक सर वती ने ा को
वेद क रचना क िलए े रत िकया। कछ अ य लोग का कहना ह िक ा ने सर वती क मुँह से वेद सुना। इनम
से चाह जो भी सही हो, लेिकन स ाई यह ह िक वेद अ त व म आया और ा ने उसे कवल संचा रत िकया।
ा क चार िसर वेद क चार ान का ितिनिध व करते ह। ये चार ान जीवन क चार ल य ह धम, अथ,
काम और मो । िजस तरह से ा चार िसर क िबना अधूर ह, ठीक उसी तरह से जीवन इनम से िकसी भी
ल य क िबना अपूण ह।
शुक का अथ तोता होता ह। शुक का तोते जैसा िसर यह दरशाता ह िक वेद का संचार िबना िकसी हर-फर क
िकया जा रहा ह, इसिलए वह ुिटहीन, असंपािदत और ेपक-रिहत ह। इस तरह पौरािणक आकित लोग क दैवी
ान क ोत और उस ान क संचार से संबंिधत उनक आ था को दरशाती ह।
आकित 1.6 म एक सं यासी को दरशाया गया ह, िजसने अपने म त क और अपनी ानि य पर पूण प से
िवजय ा कर ली ह। दुिनया पर भु व थािपत करने क इस सं यासी क कोई इ छा नह ह। वह सभी मानवीय
सीमा से पर ह। जब ऐसा होता ह तो अजीब चीज घटती ह सार टकराव ख म हो जाते ह। दूसर धम क साथ
कोई तनाव नह होता। बकरी, गाय और शेर एक घाट पर पानी पीते ह। सप, िज ह लोक-सािह य म खजाने का
र क कहा गया ह, अपने धन को खुले हाथ से बाँटते ह। दूसर श द म, कित और
आकित 1.7 खंडोबा
सं कित का नकारा मक प ख म हो जाता ह। वहाँ कवल शांित और सौहाद होता ह, भय और अभाव गायब
हो जाता ह। यही वग ह, यही आदश दुिनया ह। जो य धरती को वग म बदल देता ह, िहदू उसे पूजनीय
मानते ह। ऐसा य कवल संत नह होता, ब क उसे कभी-कभी धरती पर भगवा का अवतार माना जाता ह।
आकित 1.7 भगवा क एक थानीय अवतार को दरशाती ह। इस अवतार को ‘खंडोबा’ कहते ह, िजनक
महारा म ब त ा से पूजा क जाती ह। वे घोड़ पर सवार ह और उनक साथ उनक पहली प नी हा सा
बैठी ह। हा सा एक यापारी क बेटी ह। वे दोन दो असुर मिण और म से लड़ रह ह। सं कत क ंथ म
खंडोबा को िशव का भीषण प ‘मातड भैरव’ बताया गया ह। द न े म मातड भैरव को जमीन का े पाल,
यानी र क माना जाता ह। र क क प म वे असुर से लड़ते ह। मिण जैसे कछ असुर, जो प ा ाप करना
चाहते ह, मंिदर प रसर म देवता क प म पूजे जाते ह; लेिकन म जैसे असुर, िजनक िच मंिदर क सीि़ढय
पर बने ए ह, अभी भी दंिडत िकए जाते ह। भ उ ह कचलते ए मंिदर म जाते ह और खंडोबा क पूजा करते
ह।
खंडोबा को ह दी पसंद ह। उनका मंिदर, उनक भ और उनक मूितयाँ ह दी से आ छािदत रहती ह। ह दी
ऐंटीसे टक होती ह। हालाँिक खंडोबा को ह दी ब त पसंद ह, लेिकन उनका मिहमागान र क क प म िकया
जाता ह। ह दी का चटक ला पीला रग सोने का तीक ह, इसिलए खंडोबा को समृ का देवता भी माना जाता
ह। वे काम क भी देवता ह, िजनक कपा से संतान उ प होती ह। उनक कई प नयाँ ह पहली प नी हा सा
यापारी समुदाय क ह; दूसरी प नी बनै गड़ रया समुदाय से आती ह। अ य प नय म एक दज समुदाय क ह,
एक तेली समुदाय क ह और एक माली समुदाय क ह।
उनक िववाह क कहानी एक ाम देवता क मा यम से िविभ समुदाय को आपस म जोड़ती ह। इस तरह
खंडोबा क ज रए आपस म जुड़ होने क बावजूद हर समुदाय का अपना अ त व बना रहता ह। वे अपना अ त व
आकित 1.8 पृ वी पर भगवा क अवतार ित पित बालाजी अपनी प नय और ारपाल क साथ,
जैसािक आं देश म क पना क गई ह
बचाए रखने क िलए एक-दूसर का साथ देते ह। गाँव ने अपने देवता खंडोबा को अिखल िहदू देवता िशव से
जोड़ िदया ह। इस तरह गाँव बृह र िहदू समुदाय का अंग बन गया ह। गाँव अनूठा ह, इसक बावजूद वह एक बड़
समुदाय का िह सा ह। उसका थानीय देवता ई र का थानीय तीक ह।
इस तरह, खंडोबा क कथा ालु क आ था दिशत करती ह। वे एक ऐसा देवता चाहते ह, जो उनक
थानीय ज रत को पूरा कर, उनक र ा कर। वे वै क िहदू पहचान से जुड़कर अपने थानीय प रवार और
गाँव क पहचान को भी बनाए रखना चाहते ह। इस तरह उनक पास एक ऐसा देवता ह, जो देवता और ई र दोन
ह।
आकित 1.8 एक दूसर अिखल िहदू ई र िव णु से हमारा प रचय कराती ह। वे पूरी तरह से िशव क िवपरीत ह।
जहाँ िशव बफ से आ छािदत पवत पर यानम न मु ा म रहते ह, वह िव णु ीर सागर म तैरनेवाले नाग पर
महाराजा क तरह लेट रहते ह। िव णु क चरण क पास उनक दो प नयाँ ी और भू खड़ी रहती ह। ी धन क
देवी ह और भू धरती क । आकित का नीचे का आधा िह सा िव णु क थानीय अिभ य ह। ये ित पित बालाजी
ह, िजनका मंिदर आं देश म ह।
कहानी कछ इस तरह ह एक बार िव णु और उनक प नी ी म झगड़ा हो गया और वे कह चली गई। ी को
खोजते ए िव णु ीर सागर से धरती पर आ गए, जहाँ उनका ेम राजकमारी प ावती से हो गया। प ावती क
िपता सात पहाड़ क तलहटी म बसे एक देश पर शासन करते थे। खंडोबा क तरह, जो धरती पर कई मिहला
को िदल दे बैठ थे, िव णु ने भी प ावती से णय िनवेदन करने का फसला कर िलया। िव णु क कई बार णय
िनवेदन करने क बाद आिखरकार प ावती उनसे िववाह करने क िलए सहमत हो गई, लेिकन उ ह ने बदले म
भारी दहज माँगा। दहज देने क िलए िव णु ने देवी ी क कोषा य कबेर से भारी ऋण िलया। जब तक वे ऋण म
थे, प ावती या ी क साथ अपने महल म नह लौट सकते थे। इसिलए वे ित पित बालाजी क प म सात पवत
क ऊपर रह। ऋण चुकाने म उनक मदद करने क िलए
आकित 1.9 चामुंडा और चोटीला
ालु ने उ ह बड़ी मा ा म धन देने क पेशकश क । िव णु ने आभार य करते ए उ ह धन-धा य से
प रपूण होने का आशीवाद िदया।
आकित 1.9 म िदखाई गई देिवयाँ गुजरात क ह, िज ह चामुंडा और चोटीला क नाम से जाना जाता ह। उनक
लाल और हरी साि़डयाँ, उनक ि शूल, उनका शेर और पहाड़ क ऊपर उनका आवास यह दरशाता ह िक वे
अिखल िहदू देवी श , िज ह पावती क प म भी जाना जाता ह, क थानीय प ह। पावती पवतराज क पु ी
थ और उनका िववाह िशव से आ था। हालाँिक चामुंडा और चोटीला थानीय तर पर ही जानी जाती ह, लेिकन
उनक ज रए ालु बृह र िहदू समुदाय क अंग बन गए ह। इस बात को कोई नह जानता िक ये दोन आकित म
जुड़वाँ प म य िदखती ह। कछ लोग का कहना ह िक चोटीला चामुंडा क बहन ह। अ य लोग का कहना ह
िक वे चामुंडा क सहली ह। श ने दो असुर चंड और मुंड को मारने क िलए दो प धारण िकए थे। ये दोन
देिवयाँ संभवतः उ ह प क तीक ह और असुर क मार जाने क बाद उनका नाम चंडी और चामुंडी पड़ गया।
हो सकता ह िक चंड और मुंड को मारनेवाली चामुंडा वै क देवी ह और पवत क चोटी पर रहनेवाली चोटीला
थानीय देवी ह । आकित 1.7 और 1.8 क िवपरीत चंडी और चामुंडी क साथ उनक पित नह ह, य िक िववाह
घरलू परपरा मानी जाती ह। ये दोन देिवयाँ यो ा ह और उनक यु मता उनका यान िववाह या मातृ व क
तरफ नह जाने देती।
आकित 1.6 म िदखाए गए सं यासी क साथ जो कछ हो रहा ह, उससे िन कष िनकालते ए कछ िव ान का
कहना ह िक खंडोबा जैसे गाँव क देवता थानीय नायक थे, िज ह देवता क प म िति त कर िदया गया।
बालाजी शायद बु मान अजनबी थे, िज ह ने एक थानीय ी से िववाह िकया और सात पहाड़ क इद-िगद बसे
समुदाय का कायापलट कर िदया। हो सकता ह िक दोन देिवयाँ दो सामा य मिहलाएँ या बहन या सखी रही ह ,
िज ह ने अपनी यु कला से गाँववाल क शंसा हािसल क । इस तरह क िन कष क ज रए दरअसल एक
धािमक रीित- रवाज को तकसंगत बनाने क कोिशश क गई ह।
आकित 1.10 किव-संत अंडाल
आ था पर इसका शायद ही कोई भाव पड़ा ह।
आकित 1.10 म िन त प से एक ऐितहािसक मिहला का िच बना आ ह, िजसे लोग ने देवी बना िदया
था। वे बारहव सदी क तिमल कविय ी-संत अंडाल ह, जो गोदई क प म भी जानी जाती ह। गोदई का अथ ह
‘िजसे गाय ने िदया ह।’ अंडाल का नाम ‘गोदई’ इसिलए पड़ा, य िक वे िशशु क प म चरती ई गाय क बीच
पाई गई थ । उनका पालन-पोषण मंिदर क एक संतानहीन पुजारी ने िकया। अंडाल बड़ी होने पर अपने िपता क
मंिदर क देवता क ेम म पड़ गई। वे देवता पर चढ़ाए जानेवाले फल क माला बनाकर अपने गले म डाल लेती
थ , िफर उसे देवता पर चढ़ा देती थ । इससे मंिदर क दूसर पुजारी ब त नाराज ए। उनका मानना था िक अंडाल
फल को छकर अपिव कर देती ह। िफर एक िदन देवता ने उन पुजा रय से सपने म कहा िक वे उन छए ए
फल को ब त पसंद करते ह, य िक अंडाल उनसे सचमुच ेम करती ह। अंडाल को अंततः मंिदर क देवता क
प नी माना जाने लगा और बाद म उ ह देवी क प म िति त कर िदया गया। आकित म उनक कवल दो हाथ
ह, िजसका अथ यह ह िक वे मनु य ह। उनक हाथ म एक तोता और कमल का एक फल ह, जो इस बात का
संकत ह िक वे ेम क देवी ह। तोता और कमल दोन ही कामदेव से संब ह।
देवी-देवता से मनु य क शादी क धारणा क कारण म यकाल म देवदासी था का ज म आ। देवदािसय
को ई र क प नी माना जाता था, जो मंिदर म रहती थ , नाचती-गाती थ और पुजा रय व तीथयाि य को यौन-
सुख भी मुहया कराती थ । जहाँ आमतौर पर मिहलाएँ मंिदर क देवता से याही जाती थ , वह भारत क कछ
िह स म पु ष भी देवता क ित समिपत थे। खंडोबा क मंिदर म वा य और मुरली आ करती थ । लड़क और
लड़िकयाँ देवता क ित समिपत होते थे, िज ह िववाह करने क इजाजत नह थी। उनसे उ मीद क जाती थी िक वे
नृ य और संगीत क ज रए अपनी आजीिवका कमाएँग।े इन था क कारण हर तरह का शोषण होता था।
आधुिनक भारतीय रा य जब अ त व म आया तो उसने इन था को गैर- कानूनी घोिषत कर िदया।
आकित 1.11 िव कमा
सभी देवता िकसी िवशेष भूगोल से नह जुड़ ह। आकित 1.11 िव कमा क ह। िव कमा िश पकार क देवता
माने जाते ह। उनक पूजा औजार का इ तेमाल करनेवाले लोग करते ह। िव कमा ाचीन देवता ह। वैिदक काल
म वे ‘ व ’ क प म जाने जाते थे और क हार , लोहार , सोनार , बढ़इय एवं बुनकर क देवता थे। िव कमा
हाथी क सवारी करते ह, िजसक कारण उ ह इ क समक माना जाता ह। इ देवता क राजा ह।
काम और कामदेव, िव कमा और रोमन अ नदेवता तथा इ और यूनानी देवराज क बीच समानता क
कारण कई लोग ज दबाजी म यह िन कष िनकाल लेते ह िक िहदू पुराण ीक पुराण क समान ह। लेिकन ीक
पुराण िहदू पुराण से ब त िभ ह। यह ीकवािसय क य -सापे स ाई दिशत करती ह, जो िहदु क
य -सापे स ाई पूरी तरह िभ थी। ीक िनवासी भगवा म नह , देवी-देवता म िव ास करते थे। ीक
पुराण क देवता टाइटन को परा त कर ांड क मािलक बन बैठ थे। टाइटन एक शु आती न ल क श शाली
लोग थे। टाइटन बाद म श शाली बन गए और ताकतवर दै य का त ता पलट िदया। रा यारोहण क इस तरह
क िवषय-व तु वैिदक सािह य म नह िमलती। ीक देवता क िवपरीत िहदू देव मानव से कभी नह डर। िहदू
देव को यह डर कभी नह सताया िक मानव उनका त ता पलट दगे। देव क श ु ज र थे, िज ह असुर कहा
जाता था, लेिकन वे असुर टाइटन नह थे। देव और असुर दरअसल ा क संतान थे, िजनक बीच लड़ाई चलती
रहती थी। कभी देव क जीत होती थी तो कभी असुर क । इस जीत-हार क च को फसल बोने और काटने का
वैक पक च माना जाता था।
िव कमा क बार म यादा कछ नह मालूम ह। कछ लोग का कहना ह िक ा ही िव कमा ह। कहा जाता
ह िक िव कमा ने इस दुिनया का िनमाण िकया। यही नह , उ ह ने माँ क गभ म ब को आकित दी। िव कमा
ने देवता क औजार बनाए और आकाश क ऊपर देव शहर अमरावती का िडजाइन तैयार िकया, िजसे मनु य
वग कहते ह। उ ह ने सर वती म िनिहत ान को बदल िदया, िजसे ा ने औजार म संचा रत िकया। इन
औजार क कारण ही मनु य ने अपने अ त व को बचाए रखा और फला-फला।
आकित 1.12 ब चारा
जहाँ आकित 1.11 म िदखाए गए देवता को िश पकार पूजते ह वह 1.12 म िदखाई गई देवी को वह समुदाय
पूजता ह, िजसे मु यधारा क समाज ने हािशए पर ढकल िदया ह। इस देवी को ब चारा कहते ह। लेिकन कोई नह
जानता िक उनका वा तिवक नाम या ह। कछ लोग का कहना ह िक यह नाम ब आचार से िनकला ह।
‘ब चारा’ नाम शायद देवी क धैय का तीक ह। उनक भ म गुजरात क थानीय समुदाय क न कवल पु ष
और मिहलाएँ शािमल ह, जो ब क चाहत रखते ह, ब क भारत क कई िह स क िहजड़ भी उ ह अपना देवता
मानते ह। ये िहजड़ िलंग क अपनी मनोकामना पूरी करने क िलए ब चारा क पूजा करते ह। िहजड़ पु ष होते ह,
जो अपने को ी मानते ह। इसिलए वे समाज क मु यधारा म नह रहते। िहजड़ मिहला क तरह कपड़ पहनते
ह और समाज से बाहर दूसर िहजड़ क साथ रहते ह। वे अपनी आजीिवका कमाने क िलए भीख माँगते ह, यहाँ
तक िक वे यावृि भी करते ह। कछ िहजड़ खुद अपना बिधया करवा लेते ह। ऐसा करवाते ए वे ब चारा क
ाथना करते ह। िकवदंती ह िक देवी ब चारा ने एक बार एक मिहला को पु ष बना िदया और उसे दुलहन क प
म िमली मिहला का पित बनने क इजाजत दे दी।
ब चारा क भ एक कहानी सुनाते ह। इस कहानी क अनुसार, दो िम कई वष बाद एक मेले म िमले। उन
दोन क प नयाँ गभवती थ । एक पुजारी ने उ ह बताया िक एक को बेटा होगा और दूसर को बेटी। अपनी दो ती
प करने क िलए दोन दो त ने अपने अज मे ब क एक-दूसर से शादी कर देने का फसला िकया; लेिकन,
िजसे बेटा होने क भिव यवाणी क गई थी उसे बेटी ई। इस स ाई को िछपाकर रखा गया, य िक पुजारी ने
उनसे कहा था िक उसक भिव यवाणी िन त प से सही होगी। लड़क का पालन-पोषण
आकित 1.13 िशव को भोजन कराना
लड़क क तरह िकया गया और समय आने पर उससे अपनी दुलहन लाने को कहा गया। एक घोड़ी पर सवार
होकर लड़क अपनी दुलहन लाने क िलए िनकल पड़ी। रा ते म दोन एक तालाब म िगर पड़। जब वे पानी क
ऊपर आए तो लड़क लड़क म और घोड़ी घोड़ म त दील हो चुक थी। उनका पीछा करनेवाली एक जादूगरनी भी
तालाब म िगर पड़ी थी। वह क े म त दील होकर बाहर िनकली। यह सब इसिलए आ, य िक तालाब क बगल
म ब चारा का मंिदर था। उस िदन से बेट क कामना करनेवाले लोग क मंिदर म भीड़ होने लगी। िहजड़ मंिदर म
इस िव ास से आते ह िक अगले ज म म वे पूण पु ष या पूण नारी क प म ज म लगे।
देवी ब चारा क बार म एक कहानी यह ह िक जब वे युवा थ तो उ ह ने एक चोर को िहजड़ म त दील कर
िदया था। उस चोर ने उनक उस समय इ त लूटने क कोिशश क थी, जब वे िववाह करने जा रही थ । अ य
लोग का कहना ह िक दुलहन बनने क बाद ब चारा ने पाया िक उनका पित पु ष नह , ब क िहजड़ा ह। िलहाजा
देवी बनने क बाद उ ह ने सभी िहजड़ का उ ार करने क पेशकश क । लेिकन उ ह ने िहजड़ क सामने एक
शत रखी िक वे उनक पूजा करगे और मिहला से शादी नह करगे। इस तरह, हािशए पर रहनेवाले िहजड़ भी
ब चारा क ज रए मु यधारा से जुड़ ए ह।
आकित 1.13 िकसी िवशेष भूगोल या समुदाय से संब नह ह। वे रसोईघर क सावभौिमक और शा त देवी
ह, िज ह अ पूणा कहते ह। अ पूणा का अथ होता ह ‘िखलानेवाली माँ’। उनक िबना दुिनया भर म भुखमरी फल
जाएगी। इसिलए उ ह सावभौिमक देवी कहा जाता ह। लेिकन संपूण जीवन जीने क िलए कवल अ ही पया
नह ह, आ या मक ान क भी ज रत होती ह। जहाँ आकित 1.13 इस ज रत को दरशाती ह, वह आकित
1.14 म अ पूणा को मंिदर म ित ािपत देवी क प म िदखाया गया ह। उनका सबसे लोकि य मंिदर काशी म
गंगा नदी क िकनार ह।
करीब 4,000 वष पहले वैिदक काल म ऋिषय ने गाय ी मं क रचना क थी, िजसम देवी को महा ◌् बताते
ए अ ानता क अँधेर को भगाने क िलए
आकित 1.16 ल मी, सर वती और गणेश
उनसे ान क रोशनी फलाने क ाथना क गई थी। इसका उ े य बौ कता को बढ़ाना और भौितक या
आ या मक मनोकामना को पूरा करना था। िजस समय इस मं क रचना क गई थी, िहदु क मंिदर नह थे।
लोग देवी-देवता क पूजा मं क ज रए करते थे और अ न तथा जल को आ ित देते थे; लेिकन मं ो ार और
उसपर िवचार वही लोग कर सकते थे िजनक एका ता उ कोिट क होती थी। बहरहाल, यादातर लोग मं को
भावा मक नज रए से देखते थे, इसिलए मं को देवी मान िलया गया। आकित 1.15 इसका उदाहरण ह। लोग का
िव ास था िक इस देवी क आराधना क ज रए वही फल पाया जा सकता ह, जो मं ो ार से िमलता ह। इस तरह
गाय ी मं को देवी का प दे िदया गया, िजसे गाय ी कहते ह। यिद आकित 1.14 मनु य क भौितक ज रत
क पूित दरशाती ह तो आकित 1.15 आ या मक कामना क पूित दरशाती ह।
देवी अ पूणा धन-दौलत क देवी ल मी बन जाती ह। आकित 1.16 म ल मी वण-वषा करते ए कमल क
फल पर खड़ी ह और उनक दाएँ-बाएँ दो सफद हाथी ह। इसी तरह देवी गाय ी ान क देवी सर वती बन जाती
ह। आकित 1.16 म सर वती ेत व पहने, हाथ म वीणा, माला और पु तक िलये ए बैठी ह। आकित 1.5 म
यह िदखाया गया ह िक ा ने सर वती क मुँह से सबसे पहले वेद सुना और िफर ऋिषय को सुनाया। ल मी क
बाएँ िशव क पु गणेश ह, जो सभी बाधा को दूर करते ह और सौभा य लाते ह।
हाल क समय म गणेश िहदु क सबसे लोकि य देवता म से एक माने जाते ह। कोई भी नया काम शु
करने से पहले उनक पूजा क जाती ह। माना जाता ह िक वे सभी बाधा को दूर करते ह, सभी अ य अवरोध
को हटाते ह। उनक धड़ पर हाथी का िसर श का तीक ह। हाथी श शाली जानवर ह, िजसका जंगल म कोई
दु मन नह होता। कोई भी जानवर उसक राह काटने का दुःसाहस नह करता। हाथी िबना िकसी बाधा क चलता
जाता ह। गणेश का मोटा शरीर और लंबा उदर पया खा क उपल धता और कम काम क संभावना दरशाता
ह। कल िमलाकर गणेश धन-धा य और समृ क
आकित 1.17 गणेश
तीक ह। गणेश क सवारी चूह को दुिनया का सबसे अिधक परशान करनेवाला ाणी माना जाता ह। वह िकसी
भी दरार से िनकल सकता ह, िकसी भी कावट क बीच से अपना रा ता बना सकता ह और अनाज चुरा सकता
ह। चूहा जीवन क सम या का तीक ह। इन सम या को गणेश दूर करते ह। इस तरह गणेश श और
धन-धा य से प रपूण जीवन का ितिनिध व करते ह। गणेश का प एक िवचार का वाहक ह। िहदू गणेश क पूजा
इस िव ास क साथ करते ह िक उनक मनोकामना िबना िकसी बाधा क पूरी होगी।
गणेश क ज म क पीछ एक कहानी ह। यह कहानी आकित 1.17 म बताई गई ह। पावती ने यह जानते ए भी
िशव से िववाह िकया िक वे तप वी ह और उनक िच भौितक जीवन म नह ह। िशव िपता बनना नह चाहते थे।
उनका मानना था िक प रवार खड़ा करना बेमतलब ह; लेिकन पावती माँ बनना चाहती थ । सो, एक बार नहाते ए
पावती ने अपने शरीर पर लगे ए ह दी क उबटन को रगड़कर छड़ा िदया और उसे एक गुि़डया का आकार दे
िदया। उ ह ने गुि़डया म जान भी फक दी। इस तरह िजस ब े का सृजन आ, उसका नाम िवनायक रखा गया।
िवनायक का अथ होता ह िबना िकसी पु ष (नायक) क मदद से उ प आ िशशु। िशव ने िवनायक को अपनी
प नी क पु क प म नह पहचाना। उधर, िवनायक ने भी िशव को अपनी माँ क पित क प नह पहचाना। जब
एक बार िवनायक ने अपनी माँ क िनदश पर िशव को उनक अपने ही घर म घुसने से रोक िदया तो िशव ने
उसका िसर धड़ से अलग कर िदया। इससे पावती शोक त हो गई। उनक दुःख को देखकर िशव ने िवनायक क
धड़ पर हाथी का िसर लगाकर उसे जीिवत कर िदया। िशव ने िवनायक क धड़ पर िजस हाथी का िसर लगाया, वह
कोई साधारण हाथी नह था। वह वषा क देवता इ का हाथी ऐरावत था। िशव ने उसे उ र िदशा म पाया था। उ र
अमर व, शांित और थािय व क िदशा ह।
इस तरह, गणेश दो िवपरीत ुव क संयोग क तीक ह िशव, जो िववाह करना और प रवार पालना नह चाहते
थे और पावती, जो िववाह करना चाहती थ । िशव आ या मक आकां ा क तीक ह। पावती भौितक
आकित 1.18 िशव अपने पु क साथ
आकां ा क तीक ह। िहदु ने इन दोन ल य क बीच हमेशा टकराव महसूस िकया ह। गणेश इन दोन
ल य क बीच संतुलन क तीक ह। आकित 1.18 म इस सां कितक टकराव को िदखाया गया ह। इसम तप वी
िशव िपता क प म अपने पु गणेश को गोद म िबठाए ए ह।
गणेश न र शरीर और अन र म त क क बीच संतुलन क भी तीक ह। उनका मानव शरीर, िजसका सृजन
उनक माँ ने पृ वी पर िकया था, भौितक संसार का तीक ह। मानव शरीर न र ह, जो मृ यु और पुनज म क
च से गुजरता ह। उनका हाथी जैसा िसर, िजसे उनक िपता ने देवता क मदद से हािसल िकया था,
आ या मक दुिनया का तीक ह, जो अन र ह।
सो, गणेश क यह आकित िहदु म पराभौितक िवचार को ज म देती ह और साथ ही एक बुिनयादी तर पर
भी काम करती ह यानी रोजमरा क जीवन क परशािनय से मु िदलाती ह।
इस तरह हम ऐसी तमाम आकितयाँ पाते ह, जो िहदु क य -सापे स ाई सामने लाती ह। िहदू धम म
देवी ह, देव ह, ई र ह और महाश याँ ह, जो यह संदेश देने क कोिशश करते ह िक वे साकार और िनराकार,
थानीय और सावभौिमक दोन हो सकते ह। उनम न कवल आ या मक त व, ब क भौितक त व भी होता ह।
एक साथ िमलकर वे अनंत देवी-देवता क संपूणता हािसल करने क कोिशश करते ह। एक साथ िमलकर वे
िहदु क िव - ि क िखड़क क प म काम करते ह।
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2. नारायण का रह य
जो मरता ह वह पूनज म लेता ह

आकित 2.1 नारायण का पुनः जागना

आकित 2.1 म नारायण को जागते ए िदखाया गया ह। यह वह ण ह, जब िव अ त व म आता ह।


िजस तरह हमार सोने पर हमार िलए दुिनया का अ त व नह होता, ठीक उसी तरह नारायण क सोने पर ांड
का अ त व नह होता। नारायण भगवा ह। उनक गहरी िन ा िव क िवलोपन का तीक ह। सोने से पहले
नारायण ज र जागे ह गे और िव अ त व म आया होगा। इस तरह आकित 2.1 नारायण क जागने और सोने
क अव था म िव क पुनसृजन और िवलोपन का तीक ह। िव क सृजन और िवलोपन का च चलता ह।
ीक िनवासी पुनज म म िव ास नह करते थे और न ही मुसलमान व ईसाई करते ह। इनक िलए वतमान जीवन
ही सबकछ ह। यही कारण ह िक ीक िनवासी नायक बनने म िव ास करते थे। ईसाइय का िव ास ह िक ई र
उनक र ा करगा और मुसलमान का मानना ह िक खुदा क सामने समपण करने से उनका भला होगा। लेिकन
िहदु क साथ ऐसी बात नह ह। उनक िलए वतमान जीवन कई ज म म से एक ह। वतमान दुिनया उन कई
दुिनया म से एक ह, जो अ त व म आई और ख म हो गई।
नारायण ीरसागर पर सोते ह। इस सागर का कोई तट नह ह। यह दूध से बना ह। इसम लहर नह उठत । जब
नारायण जागगे तो ीर सागर से सभी चीज िनकलकर बाहर आ जाएँगी, ठीक उसी तरह िजस तरह दूध मथने से
म खन िनकल आता ह। इस तरह ीरसागर संभावना का तीक ह। जब नारायण सोते ह तो िव अ त वहीन हो
जाता ह। उसका कोई प मौजूद नह होता।
िजस नाग पर नारायण सो रह ह, उसे शेष कहते ह। शेष का अथ ह बाक बचा आ। सबकछ न होने पर भी
जो बचा रहता ह वह शेष कहलाता ह। कछ लोग का कहना ह िक शेषनाग समय क तीक ह। कोई भी नह
जानता िक कोई कब गहरी िन ा म होता ह। कोई कसे जान सकता ह िक पीछ या छटा आ ह। समय गितमान ह,
लेिकन नारायण क िसर पर छतरी काढ़ ए कडिलत शेषनाग थरता क तीक ह। नारायण शेषनाग क कडली पर
सोते ह। दूसर श द म, नारायण जब सोते ह तो समय ठहर जाता ह। यह

आकित 2.2 ा का पुनज म


कोई नह जानता िक पहले या होता ह पहले शेषनाग थर होते ह या पहले नारायण सोते ह, या सबकछ एक
साथ घिटत होता ह।
शेषनाग को आिद शेष या अनंत शेष कहा जाता ह। यह नाम हमारा यान इस त य क ओर ले जाता ह िक जब
नारायण िन ा म होते ह, तब भी िव का अ त व उनक इद-िगद बना रहता ह। लेिकन इसक बार म िकसी को
मालूम नह होता, इसिलए यह मान िलया जाता ह िक मनु य क िन ा क अव था म िव का अ त व नह होता।
वेदांत क अनुसार, पयवे क क िबना पयवे ण नह होता। नारायण पयवे क ह। जब वे गहरी िन ा म होते ह तो
िकसी भी चीज का अवलोकन नह करते। वे सपना नह देखते। उ ह यथाथ िव या व नल िव का कोई भान
नह होता। पयवे क क िबना पयवे ण संभव नह ह। इसिलए, नारायण जब सो जाते ह तो िव का अ त व नह
होता। यह िव का अंत ह।
इस बात को बेहतर तरीक से समझने क िलए अपने आप से यह सवाल पूछना चािहए जब हम गहरी िन ा म
होते ह तो या िव का अ त व बना रहता ह? हाँ, बना रहता ह। लेिकन या हम उसका अनुभव करते ह? नह ,
हम अनुभव नह करते। इस तरह, दुिनया तो बनी रहती ह, लेिकन हमारी नह । हमार िबना हमारी दुिनया का
अ त व नह होता। पयवे क क िबना पयवे ण नह होता।
आकित 2.2 म नारायण का जागना या पुनः जागना िदखाया गया ह। यह सृजन ह। यहाँ िच कार यह क पना
कर रहा ह िक िजस ण हम िन ा से जगते ह, चैत य तो हो जाते ह, लेिकन िब तर से नह उठ होते ह। जब
नारायण क आँख खुलती ह, उनक इि याँ इद-िगद क दुिनया क ित संवेदनशील हो जाती ह। आँख, कान, नाक,
िज ा और वचा क ज रए उ ह ांड क खबर िमलने लगती ह। जो कछ अनुभव िकया जाता ह, उसे पहचाना
और वग कत िकया जाता ह। यहाँ तक मरण-श से उनका आकलन िकया जाता ह। चेतना, जो कोर कागज
क तरह थी, अब मुड़ने-तुड़ने लगती ह। दुिनया िवशु नह रह पाती, उसम रग, आकार और मू य उभर आते ह।
इनम से हम कछ

आकित 2.3 ी-देवी, भू-देवी और िशव का प रवार


चीज को पसंद करते ह और कछ चीज को नह । इस मुड़ी-तुड़ी चेतना, जो नारायण क तरह शु नह होती,
क क पना ा क प म क जाती ह, जो नारायण क नािभ से िनकले कमल क फल पर िवराजमान रहते ह।
गभनाल क तरफ नािभ से वृंत क साथ िनकला ा का कमल बीजांडासन क तरह ह, जो माँ क गभ म
अज मे ब े का पोषण करता ह। ऐसे म सवाल उठाता ह िक सजक आिखर ह कौन? या नारायण ने ा का
सृजन िकया? या पयवे ण पयवे क का सृजन करता ह? या पयवे क पयवे ण का सृजन करता ह। या हम
अपने इद-िगद क दुिनया क अंग ह या हमने दुिनया का िनमाण िकया ह? अ याय 7 म ा क बार म िव तार से
वणन िकया गया ह।
नारायण का जागना उ सव का ण होता ह। यह िव क सृजन का तीक ह। हमारी भी दुिनया तभी अ त व
म आती ह जब हम न द से जागते ह और अपनी दुिनया को ठीक सामने पाते ह। नारायण क जागने पर वग क
प रयाँ फल क वषा करती ह। अकादिमक नज रए से इस बात को यान म रखना िदलच प होगा िक प रय क
क पना भारत म तभी क गई जब सोलहव सदी म भारत यूरोपीय सं कित क संपक म आया।
आकित 2.1 म नारायण क चरण क पास उनक प नी, समृ क देवी ल मी बैठी ई ह। आकित 2.3 म
ल मी को और अिधक िव तार से िदखाया गया ह। ल मी मानव जाित का पोषण करती ह। उ ह गाय क प म
िचि त िकया गया ह। वे गो-माता ह, िजनक भीतर पूरी दुिनया समाई ई ह। नारायण वाला ह, इसिलए जब वे
जागते ह तो गोपाल कहलाते ह। गाय िव ह और िव जब भी संकट म होता ह, नारायण उसे बचाने क िलए
दौड़ पड़ते ह। जा अव था म नारायण को िव णु कहते ह। िव णु अिभभावक, संर क और र क ह।
इस आकित म िशव भी िदख रह ह, जो िव क तरफ से आँख मूँदकर उसका संहार कर देते ह, लेिकन यहाँ
िदखाए गए िशव संहारक नह ह। उनक आँख खुली ई ह और उनक साथ उनक दो पु छह िसर वाले काितकय
आकित 2.4 अलौिकक संगीतकार
और हाथी क िसरवाले गणेश ह। काितकय जहाँ भौितकता क तीक ह, वह गणेश बौ कता क। इस तरह,
नारायण का जागना और िव का सृजन होना दोन िशव से संब ह। तप वी िशव जब आँख खोलते ह, शादी
करते ह और िपता बनते ह तो शंकर कहलाते ह। अ याय 4 म इसका िव तार से वणन िकया गया ह।
आकित 2.1 म नारायण क िसर और पैर क तरफ दो य वीणा िलये ए ह। आकित 2.4 म इसे और
अिधक िव तार से िदखाया गया ह। पैर क तरफ जो य वीणा िलये ए ह, उसे नारद कहते ह और वीणा क
साथ िसर क तरफ खड़ य को तुंब कहते ह, िजसका िसर घोड़ का ह। नारद ऋिष ह और तुंब विगक
संगीतकार िक र। दोन ित ं ी संगीतकार ह। वे कई पौरािणक कथा म ायः एक ही लड़क से शादी करने
क िलए होड़ लगाते ह और मदद क िलए िव णु क पास जाते ह। िव णु मदद ज र करते ह, लेिकन इस तरह से
िक ल मी क अवतार वह क या उनसे से ही िववाह कर लेती ह। नारद और तुंब भू-देवी को पाने क कोिशश
करते ह, लेिकन सफल नह होते। वे िकसी इनाम क तरह उ ह पाना चाहते ह, लेिकन उनक पास यो यता नह
होती। िव णु उनसे ेम, उनक आराधना करते ह। वे उनक र क भी ह, इसिलए वे लायक वर ह।
नारद का सृजन िव णु क म त क से आ ह। अपने ज म क समय नारद क िच दुिनयावी चीज म नह थी,
इसिलए उ ह ने सभी ािणय को इस बात क िलए ो सािहत िकया िक वे न तो िववाह कर और न ही संतान
उ प कर। इसक प रणाम व प दुिनया जब आगे नह बढ़ी तो ा किपत हो गए। उ ह ने नारद को ाप िदया
िक वे िव णु क एक बार िफर सोने तक दुिनया भर म बेचैनी से घूमगे। इसिलए, बेचैन नारद कई सम या क
जड़ ह (जैसा िक अ याय 1 म दी ई कहानी म बताया गया ह)। उ ह लोग को भड़काने म आनंद आता ह। वे
िनरतर लोग क तुलना करते रहते ह। इस तरह नाराजगी फलाते ह और झगड़ा लगाते ह। नारद मन म ई या और
असुर ा का भाव पैदा करते ह।
नारायण क िसर क तरफ हनुमान और पाँव क तरफ ग ण हाथ जोड़ बैठ ह। आकित 2.5 म इसे िव तार से
िदखाया गया ह। दुिनया म जब भी बेचैनी, असुर ा और ई या का बोलबाला होता ह, िव णु थित को सँभालते ह।
ग ण उनक वाहक क प म काम करते ह और उ ह संकट त थल पर ले जाते ह।
आकृ त 2.5 संर क दे वता
ग ण और साँप एक-दूसर क वाभािवक श ु ह। ग ण क उप थित म साँप थर नह रह सकता। वह अपनी
र ा क िलए सीधा होकर वहाँ से िखसक जाता ह। इस तरह, ग ण दुिनया को गितमान होने क िलए े रत करते ह।
उड़ते ए ग ण और थर शेषनाग क साथ िव णु का जुड़ाव िन ा और जा अव था म चेतना का तीक ह।
कभी-कभी थित को ठीक करने क िलए िव णु मानव प धारण कर लेते ह। अपने एक अवतार म वे अयो या
क राजा राम थे (अ याय 6 म इस बार म अिधक योरा िदया गया ह)। हनुमान इस अवतार म ही ीराम क सेवक
बने थे। उ ह ने ीराम क प नी सीता को खोजने म मदद क थी। हनुमान को संकटमोचन कहा जाता ह। उनक
उप थित का अथ यह ह िक जब दुिनया न द से जागती ह तो संकट भी शु हो जाता ह, लेिकन संकट पैदा
करनेवाला िदमाग उसका समाधान भी सुझा सकता ह।
जब नारायण िव णु बनने क िलए जागते ह तो िदमाग प रभाषा , वग करण और आकलन क ज रए दुिनया
( ा) को संगिठत करने लगता ह। िनवतन (िशव) भौितक मता (काितकय) और बौ क मता (गणेश) क
इ तेमाल क ज रए भागीदारी क िलए ो सािहत करता ह। दुिनया को भोगने और उसे अपनी मु ी म करने क
इ छा का तीक तुंब ह। इसक अित र , बेचैनी और ई या (नारद) जैसी नकारा मक भावनाएँ भी होती ह।
लेिकन जब िदमाग ग ण क तरह उड़गा और हनुमान क तरह अनुशािसत होगा तो इन सम या को सुलझाया
जा सकता ह।
इस तरह, आकित 2.1 तीक क मामले म समृ ह और सृजन का यास करती ह। िहदू धम ंथ म बार-बार
कहा गया ह िक सृजन जाग कता का नतीजा ह। चीज तभी पैदा होती ह जब हम उनक ित सचेत होते ह। इस
तरह, सृजन व तुिन िनमाण नह ब क य -सापे अनुभूित ह। चीज
आकित 2.6 बरगद क प े पर िशशु
का सृजन हर पल होता ह और हर सृजन क साथ कछ-न-कछ न होता ह। सृजन लहर क तरह होता ह,
इसिलए संहार क क पना तूफानी सागर क तरह क जाती ह, जहाँ िवचार ढह जाते ह और नई चीज बाहर आने
क िलए संघष करती ह।
आकित 2.6 म एक नवजात िशशु को बरगद क प े पर िदखाया गया ह। एक बार माकडय नामक ऋिष को
लय यानी संसार क अंत क झलक िदखाई गई थी। लय क दौरान पृ वी को लीलने क िलए मूसलधार वषा हो
रही थी और ऊची-ऊची लहर उठ रही थ । अंततः सबकछ डब गया। जल, खासतौर पर सागर, आकारहीनता का
तीक ह। यह अंत का तीक ह। कोई य कला म शू यता क क पना कसे कर सकता ह? वह सागर क प
म ही इसक क पना कर सकता ह। तूफानी सागर लय क ि या दरशाता ह, जबिक शांत सागर पुनज म क
पहले का ण दरशाता ह।
समा होती दुिनया क य ने माकडय क मन म भय और िनराशा पैदा कर दी। तभी उ ह ने गड़गड़ाहट क
साथ एक सुखद आवाज सुनी। वे पीछ क तरफ पलट तो उ ह ने बरगद क प े पर एक िशशु को देखा, जो लय
क लहर पर झूल रहा था। िशशु पुनज म या जीवन क नवीकरण का तीक ह। माकडय ने जब िशशु को देखा तो
महसूस िकया िक िजसे दुिनया का अंत माना जाता ह, वह महज एक चरण ह, ि या का एक अंग ह। दरअसल,
लय क बाद नए जीवन क शु आत होती ह। यह अवधारणा ीक और बाइिबल क िव - ि से पूरी तरह
िभ ह। ीक और बाइिबल क अवधारणा यह ह िक मृ यु पूणिवराम ह। दूसरी तरफ िहदू िव - ि यह ह िक
मृ यु अ िवराम ह; यहाँ पूणिवराम नाम क कोई चीज नह होती।
बरगद क प े पर िशशु का पड़ा होना अपने आप म मह वपूण ह। बरगद का पेड़ अमर माना जाता ह; यह उस
चीज का तीक ह, िजसे न नह िकया जा सकता। वह कौन सी चीज ह, िजसे न नह िकया जा सकता, उस
समय भी नह जब सभी चीज िवघिटत होकर आकारहीन हो जाती ह? वह चीज आ मा ह। इस तरह आ मा िशशु
को पालने म झुलाती ह। माकडय से कहा जा
आकित 2.7 बाल नारायण अपने दाएँ पैर का अँगूठा चूसते ए
रहा ह िक अन र आ मा िवर भाव से संसार का न होना देख रही ह। आ मा जब खतरनाक लहर को
उछालती ह तो यह रता लग सकती ह; लेिकन लहर जब शांत ह गी तो आ मा भी िव ाम क अव था म चली
जाएगी और सुकोमल िशशु क तरह उभरकर िफर सामने आएगी।
बरगद का प ा कमल क फल क भीतर ह। यह कमल ा का कमल ह। यह तभी िखलता ह जब नारायण
जागते ह। इस तरह, आकित 2.6 म मृ यु (जल) और पुनज म (प ा एवं फल) को एक साथ दरशाया गया ह।
आकित 2.7 म िदखाए गए िशशु क दाएँ हाथ म बाँसुरी और बाएँ हाथ म दाएँ पैर का अँगूठा ह। भारतीय कला
म दायाँ पा आ मा और बु का तीक माना गया ह, य िक बायाँ पा पंिदत दय क कारण गित का
ितिनिध व करता ह, इसिलए वह पदाथ और मनोभाव का तीक ह। दाएँ अँगूठ को बाएँ हाथ से पकड़कर
भगवा आ या मकता को भौितकता से जोड़ रह ह, बौ कता को मनोभाव से जोड़ रह ह। साथ ही, बाँसुरी से
िनकलनेवाला संगीत जीवन क ित खूबसूरत नज रए को दरशाता ह। दुिनया का अ त व इसिलए ह िक आ मा
िजंदािदली से उसका आनंद उठा सक और अ वेषण कर सक। ई र का िशशु प सुकोमलता और भौितक
नवीकरण क िवचार का तीक ह।
िहदु क आ था क अनुसार, आ मा अमर ह और हमेशा मौजूद रहती ह, लेिकन उसका कोई आकार नह
होता। िफर कोई य कला म उसे कसे दरशाता ह? उस य क सामने आ मा का कोई-न-कोई प देने क
िसवाय दूसरा कोई िवक प नह होता, लेिकन कोई भी आकार अधूरा और ुिटपूण होगा। आमतौर पर आ मा क
क पना पु ष क प म क जाती ह और आकित 2.6 एवं 2.7 म िशशु क प म क गई ह; लेिकन इन दोन
प म खािमयाँ ह। बहरहाल, एक पूण स य को दरशाने क िलए हमार पास अपूण आकार का इ तेमाल करने क
अलावा दूसरा कोई िवक प नह ह।
आकित 2.8 एक कहानी पर आधा रत ह, जो हमारा यान आ मा क कित क तरफ ख चती ह। यह कहानी
िव णुपुराण क ह और िपता-पु क बीच टकराव क बार म बताती ह। िपता, िजसका नाम िहर यकिशपु ह, का
िव ास ह िक वह अमर ह। िहर यकिशपु को वरदान िमला आ ह िक उसे कोई भी मनु य, पशु, देवता, असुर,
अ या श नह मार सकता। उसे न तो घर क बाहर और न घर क भीतर, न तो जमीन क ऊपर और न जमीन
क भीतर, न तो िदन म और न रात म मारा जा सकता ह। चूँिक िहर यकिशपु अपने को अमर मानता ह, इसिलए
वह अपने को भगवा समझता ह। वह लोग से अपनी पूजा करने को कहता ह। लेिकन उसका पु ाद अपने
िपता को मरणशील मानता ह। ाद इस बात पर जोर देता ह िक वह कवल नारायण क पूजा करगा, जो
िनराकार, कालातीत और सव यापी ह।
आकित 2.8 िहर यकिशपु का वध
उसक िपता ने पूछा, ‘‘यह नारायण कहाँ रहता ह?’’
पु ने कहा, ‘‘हर जगह। यहाँ तक िक आपक महल क खंभ म भी।’’
अपने पु को गलत सािबत करने क िलए िहर यकिशपु ने महल क एक खंभे को तोड़ िदया। हम पृ भूिम म
बीचोबीच दो-फाड़ ए एक खंभे को देख सकते ह।
उस खंभे से नृिसंह नाम का एक अनूठा ाणी िनकलता ह, िजसका आधा शरीर िसंह का और आधा शरीर मनु य
का होता ह। उस ाणी को न तो पशु कहा जा सकता ह और न ही मनु य। वह सभी सीमा को तोड़कर
असंभवता क े से बाहर आता ह और सामा य एवं असामा य क हमारी अवधारणा को चुनौती देता ह। नृिसंह
भगवा ह, नारायण का एक प ह। कहा जाता ह िक मनु य िजस बात क क पना तक नह कर सकता, वह बात
ई र क िदमाग म पहले से मौजूद होती ह। िहर यकिशपु ताकत क कारण अंधा हो जाता ह और यह मान बैठता ह
िक वह दुिनया का ओर-छोर जानता ह; लेिकन ई र असंभव को संभव बना देते ह। वे ऐसे ाणी क प म सामने
आते ह, िजसे िहर यकिशपु अ ाकितक मानता ह, य िक इस ाणी का अ त व ह ही नह । नृिसंह भगवा माने
जाते ह, लेिकन रा स क तरह भय पैदा कर देते ह। वे िपता और पु क िलए न तो भगवा ह और न रा स या
दोन ह।
यह ाणी, जो न तो मनु य ह और न ही पशु या शायद दोन ह,
आकित 2.9 ल मी क साथ नृिसंह
िहर यकिशपु को ख चकर महल क देहरी पर लाता ह, जो न तो घर क भीतर ह और न बाहर। वहाँ गोधूिल
वेला म, जो न तो िदन ह और न रात, वह िहर यकिशपु को अपनी गोद म रख लेता ह, जो न तो जमीन क भीतर
ह, न जमीन पर ह और न जमीन क ऊपर ह। िफर अपने नख से िहर यकिशपु क शरीर को चीर देता ह। नख न तो
अ ह और न श । इस तरह, िहर यकिशपु, जो अपने को अमर मानता था, मारा गया। उसका अहकार चूर-चूर
हो गया।
ाद नारायण क आराधना करता ह, लेिकन इस िविच ाणी से भयभीत भी ह। यह िविच ाणी उसक
िपता का खून पी जाता ह। आकित 2.9 म नृिसंह का अिधक सौ य प िदखाया गया ह। देवता को भय था िक
अपने िहसक प म नृिसंह दुिनया का नाश कर दगे, इसिलए ल मी नृिसंह क सामने कट हो गई। वे उ ह शांत
करते ए याद िदलाती ह िक उनका काम उनक र ा करना ह। इस आकित म नृिसंह को ल मी क साथ, संर क
को आि त क साथ, भगवा को देवी क साथ िदखाया गया ह। ाद और चार अ य देवता उनक आराधना कर
रह ह। ये चार देवता संभवतः वैिदक ान क चार ंथ का ितिनिध व करते ह या शायद सांसा रक जीवन क चार
ल य धम, अथ, काम एवं मो क तीक ह।
िहर यकिशपु का वणन रा स क प म िकया जाता ह, लेिकन उसक पु ाद को असुर नह माना जाता।
हालाँिक िपता-पु दोन असुर ह, लेिकन लोकि य धारणा क िवपरीत, सभी असुर रा स नह होते। िवचार और
यवहार िकसी को भी रा स बना सकते ह। िहर यकिशपु अहकारी ह और यह अहकार ताकत से पैदा होता ह।
अहकार म िहर यकिशपु यह मान बैठता ह िक उसे सभी संभावना का ान ह, िक वह सबकछ जानता ह।
लेिकन िव ा लोग जानते ह िक मानव-म त क क एक सीमा होती ह, इसिलए उसम ांड का अनंत ान
नह समा सकता। नृिसंह क तरह, जो न तो यह ह और न ही वह ह या शायद दोन ह, दुिनया म ब त सी चीज
अ वेषण का इतजार कर रही ह।
नृिसंह कडली मार ए नाग पर बैठ ह। नाग थरता का तीक ह। चेतना क उप थित को समझने क िलए इसी
थरता क ज रत होती ह। यहाँ
आकित 2.10 ीक ण से ान लेते अजुन
भगवा देवी क साथ बैठ ए ह, िजसका िनिहताथ यह ह िक आ मा और भौितक त व एक साथ होते ह। उनक
पीछ टटा आ खंभा ह, जो भौितक त व और आ मा, हमार शरीर और हमारी आ मा क बीच िवभाजन का तीक
ह।
आकित 2.10 म भगव ीता सुनाए जाने से पहले क य क क पना क गई ह। भगव ीता िहदु क सबसे
लोकि य धम ंथ म से एक ह। भगव गीता का शा दक अथ ह भगवा का गीत। यहाँ भगवा ीक ण का प
धारण करते ह और महा धनुधर अजुन क सारिथ बनते ह। रण े म अजुन का सामना एक कठोर स ाई से होता
ह। वे राज और िस ांत को लेकर लड़ने वाले ह। इसिलए लड़ाई म उ ह अपने ही प रवार क लोग और िम
को मारना होगा। और भगवा उ ह ऐसा करने क िलए कह रह ह। लेिकन अजुन ऐसा कसे कर सकते ह? वे य
अपने ही लोग को मारगे? अजुन लड़ने से मना कर देते ह। वे मागदशन क िलए ीक ण क तरफ मुड़ते ह।
जवाब म ीक ण उनसे जो कछ कहते ह, उससे उनक ानच ु खुल जाते ह।
क ण अजुन को दुिनया क कित क बार म बताते ह। वे कहते ह िक आ मा अन र ह और पदाथ म हमेशा
प रवतन होता रहता ह। यानी ज म और मृ यु इस दुिनया क स ाई ह। ाणी पैदा होने क िलए ही मरता ह। िफर,
जीवन का उ े य या ह? ‘गीता’ म कहा गया ह िक पदाथ का अ त व हमारा यान आ मा क ओर ख चता ह।
वह हम जीवन-मरण क अका य और अप रवतनशील िस ांत से अवगत कराता ह। इसक अनुभूित क िलए हम
जीवन और समाज म अपना रा ता बनाना पड़ता ह। हम समाज क सद य क प म अपना काम करना होगा,
अपने दािय व का िनवाह करना होगा, िजसे हम सही समझते ह उसक िलए लड़ना होगा अैर ांड क ा क
सामने समपण करना होगा। जीवन जीने क िलए ह, भागीदारी करने क िलए ह। इसका िवक प पलायन नह ह।
हम बताया जाता ह िक इ छा से उ प कम हम जीवन-मरण क िनरतर चलनेवाले पिहए से बाँध देता ह। पलायन
संभव ह, बशत य िदमाग को अनुशािसत कर, इ छा पर काबू पाए, िनिल भाव से कम कर, दािय व का
िनवहण कर, िव पर वच व थािपत करने क लालसा से दूर रह और अहकार याग दे।
आकित 2.11 क ण का िवरा प
ीक ण से ान पाने क बाद अजुन उनसे अपना वा तिवक प िदखाने क िलए कहते ह, य िक यह िबलकल
प ह िक क ण सामा य य नह ह। तब क ण उ ह अपना िव प िदखाते ह। इसे िवरा व प भी कहा
जाता ह। इसका िच ण आकित 2.11 म िकया गया ह। अजुन ने देखा िक ीक ण म सार देवता, सार असुर, सार
ऋिष और सार तप वी समािहत ह। वे सूय और चं मा ह, तार और ह ह, नदी और अ न ह। वे अतीत, वतमान
और भिव य ह। वे सव प ह, सविदशाएँ ह। वे संभव और असंभव दोन ह। अजुन देखते ह िक क ण जीवन का
उ ास करते ह और मृ यु का िनः ास लेते ह। दरअसल पूरा िव उनक मुँह से िनकलता ह।
भगवा क बार म िहदु क यही धारणा ह। भगवा सबकछ ह। वे सभी चीज म ह। वे सभी चीज क बाहर
ह। वे नर और नारी दोन ह। हर चीज भगवा ह, चाह वह अनु ािणत हो या अनु ािणत न हो। मानव, अवमानव
और परामानव सभी भगवा ह। भगवा िनराकार ह, िफर भी सभी प क ज रए अिभ य िकए जाते ह। हम जो
कछ भी देखते ह, वह भगवा ह। हम िजस िकसी भी चीज क अनुभूित करते ह, वह भगवा ह। भगवा हमसे
जुदा नह ह। वह हमार भीतर और हमार इद-िगद रहता ह। वह हर जगह मौजूद ह। हम पयवे क ह और पयवे ण
यानी जीवन का सृजन करते ह। इस तरह, हम अपने जीवन से अलग नह ह। हम और हमारा जीवन एक ही ह।
अ ैत यही ह।
हम भगवा भी ह लेिकन हमने अपने बार म स ाई क खोज नह क ह। हमारा अहकार, दुिनया क बार म
हमारी अधूरी समझ और हमारी मरण-श हम सीिमत बना देती ह। हम इन सबसे, वयं से मु होने क
ज रत ह। भगव गीता क अनुसार, यह तभी संभव ह जब हम जीवन िजएँ और दुिनया क मा य िनयम ,
नैितकता तथा नीित शा से संघष कर।
और हम यह जानना चािहए िक मरने पर हम िफर से ज म लगे। मरने क बाद हम दूसरा जीवन िमलेगा, अपनी
आँख खोलने का दूसरा मौका िमलेगा और नई आँख से एक नई दुिनया देखने को िमलेगी। नई आँख क साथ
चीज , नए िनयम और नए पूव ह को देखने का नया तरीका भी हािसल होगा। एक बार िफर ा का कमल
नारायण क नािभ से िनकलेगा, जैसा िक आकित 2.12 म िदखाया गया ह। एक बार िफर ल मी संर ण माँगगी।
एक बार िफर नारद और तुंब ल मी को पाने क िलए झगड़गे और नारद ई या एवं वैर-भाव फलाएँग।े हम
यव था को बनाए रखने क िलए ग ण पर उड़गे और हनुमान क तरह अपने को अनुशािसत करगे। नया उ ोधन
होगा, नई िव यव था होगी, िजसे दु त करने क िलए दूसरा अवसर िमलेगा।
आकित 2.12 नारायण क आ िन ा
िहदू जीवन-मरण क िनरतर चलनेवाले च म िव ास करते ह। उनका मानना ह िक यह जीवन अंतहीन जीवन
म से एक ह। इसिलए नायक बनने क कामना नह करनी चािहए और न ही अप रहायता क भावना होनी चािहए।
चूँिक सभी चीज नज रए पर िनभर करती ह, इसिलए सभी चीज म िन तता का अभाव होता ह। सभी चीज
सापे , संगाि त और अ थायी ह। य उस चीज क कामना करता ह, जो सभी संदभ म िनरपे , थायी और
वतं ह। और वह चीज आ मा ह, िजसक िन ा म जाने पर िवनाश और जागने पर सृजन होता ह। वह े ण क
ज रए िव को आकार देती ह। जीवन का उ े य दुिनया क सृजनकता यानी े क क खोज ह।
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3. अ नारी का रह य
भगवा िन ल ह, देवी गितमान

िहदू धम म भगवा िनगुण या सगुण हो सकते ह। भगवा को चाह िकसी भी प म िदखाया जाए, वह प
अधूरा होगा। यिद भगवा को पौधे क प म िदखाया जाए तो उसम जानवर और खिनज का कोई अ त व नह
होगा। यिद उ ह मानव क प म िदखाया जाए तो या वे पु ष ह गे या नारी ह गे या दोन का संयोग ह गे? िहदु
क िलए भगवा कभी एक प तक सीिमत नह रह ह। भगवा क क पना पौध , जानवर , खिनज , मानव (नर
एवं नारी) और िविभ ािणय क संयोग क प म क जाती ह। यादातर िहदू भगवा को तीन मानव जोड़ क
प म देखते ह— ा और सर वती, िव णु और ल मी, िशव और श ।
आकित 3.1 म िहदू नर यी क क पना क गई ह। ा सृि क सृजनकता ह, िव णु पालक ह और िशव
संहारकता ह। चार िसर और एक ंथ क साथ ा पुजारी क तरह लगते ह। चार भुजा क साथ िव णु राजा
क तरह लगते ह। उनक एक हाथ म शंख, दूसर म च , तीसर म गदा और चौथे म कमल ह। ि शूलधारी िशव
तप वी क तरह लगते ह।
आकित 3.2 म िहदू नारी यी क क पना क गई ह। ल मी, सर वती और श मशः समृ , ान एवं
श क तीक ह। ल मी लाल प रधान म ह और एक कलश िलये ए ह; सर वती सफद प रधान म ह और
एक वीणा िलये ए ह; श श िलये ह और िसंह पर सवार ह।
यिद कोई इन आकितय को यान से देखेगा तो पाएगा िक नर यी ि या से जुड़ ए ह। ये ि याएँ ह सृजन,
पालन और संहार। इसक िवपरीत नारी यी सं ा से जुड़ी ई ह। ये सं ाएँ ह ान, धन और बल। सभी भगवा
कता ह। वे सृजन कर सकते ह, पालन कर सकते ह या संहार कर सकते ह। देिवयाँ िन े ह। धन, ान और
बल का सृजन िकया जा सकता ह, उनम वृ क जा सकती ह या उ ह न िकया जा सकता ह। ऐसे म न
यह उठता ह िक या आकित क िलंग का वा तव म कोई अिभ ाय ह? या हम तीक (िलंग) क प पर यान
कि त करना चािहए या उनक पीछ क िवचार पर?
यिद हम प पर यान कि त करते ह और यह मान लेते ह िक प व
आकृ त 3.2 दे वयाँ
िवचार एक ही ह तो इसका अथ यह ह िक आकित िपतृस ा मक ह। यानी नर सि य कता ह और नारी िन े
व तु ह। लेिकन इस तरह क या या युगल नर/नारी, बलशाली/बलहीन, शोिषत/शोषक, मािलक/सेवक पर
आधा रत नारीवादी, िपतृस ा मक और समाजवादी िवचारधारा को ही संतु कर सकती ह।
इन आकितय को देखने का एक दूसरा तरीका भी हप क पीछ क िवचार पर यान कि त करना। जब हम ऐसा
करते ह तो पाते ह िक नर यी य या े क का मह व दरशाते ह। ऐसा य जो कता ह, जो हमार भीतर क
आ या मक स ाई को समझता ह, िति या य करता ह। हम सृजन करते ह, पालन करते ह और संहार करते
ह, भले ही हम नर ह या नारी। ऐसे म नारी यी े ण क मह व को दरशाती ह, जो िति या क िलए उकसाता
ह। इस िति या क फल व प ही हमारी सृि का िनमाण होता ह। यह सृि मन, पदाथ, िवचार , भाव और
अनुभूितय से बनती ह। भगवा हम सबक भीतर ह। देिवयाँ हम सभी क इद-िगद ह। हम धन, ान और बल का
सृजन कर सकते ह, उसे बनाए रख सकते ह या न कर सकते ह। हम धन, ान और बल का सदुपयोग या
दु पयोग कर सकते ह।
अगला न यह ह िक आ या मक िवषय क िलए नर प का इ तेमाल य िकया जाता ह, जबिक भौितक
व तु क िलए नारी का इ तेमाल िकया जाता ह? इसे समझने क िलए हम भौितक स ाई और आ य मक स ाई
क बीच क अंतर को समझना होगा। भौितक स ाई वह होती ह, जो िद ाल म सीिमत होती ह, लेिकन
आ या मक स ाई को िद ाल म सीिमत नह रखा जा सकता। भौितक स ाई का प होता ह, इसिलए उसे
मापा जा सकता ह और एक ‘कटनर’ क भीतर रखा जा सकता ह। आ या मक स ाई आकारहीन होती ह और
उसे मापा नह जा सकता, इसिलए उसे अंतिव नह िकया जा सकता। उदाहरणाथ, पु ष का शरीर अपने बाहर
जीवन का सृजन करता ह। दूसरी तरफ, मिहला क शरीर म जीवन का सृजन होता ह। इसिलए नारी प को
अिधक-से-अिधक आधान, सभी भौितक चीज का ोत कहा
आकित 3.3 ा ा
जा सकता ह। मिहला भौितक त व का तीक बन जाती ह और पु ष को आ या मक त व का तीक बना देती
ह। दुभा य से, समाज ने इन तीक क अथ को िवकत कर िदया ह और िच ण स ाई बन गई ह। हम यह कहना
चािहए िक ी भौितक त व और पु ष आ या मक त व का ितिनिध व करता ह। इसक िवपरीत, हम यह कहते
ह िक ी भौितक त व ह और पु ष आ या मक त व। इससे राजनीितक और वैचा रक टकराव पैदा होता ह। हम
इन िवचार को सही तरीक से य करने और िमथक को िमथकशा से पर समझने क ज रत ह।
हमारी आ मा या चेतना रचना मक (आकित 3.3 म ा), पोषक (आकित 3.5 म िव णु) या संहारक
(आकित 3.7 म िशव) हो सकती ह। म त क और य बौ क हो सकते ह (आकित 3.4 म सर वती),
आिथक हो सकते ह (आकित 3.6 म ल मी) या भावा मक हो सकते ह (आकित 3.8 म श )। आ या मक
यथाथ या भगवा को नेित-नेित क ज रए सव म तरीक से अिभ य िकया जा सकता ह। भौितक यथाथ या देवी
को इित-इित क ज रए सव म तरीक से अिभ य िकया जा सकता ह।
धन, ान और बल गरीब-अमीर, सुंदर-क प, सवण-िन न वण क बीच कोई भेद नह करते। एक कटोरा भात
राजा क भी भूख िमटा सकता ह और गरीब क भी। जो भी य , चाह वह पुिलसकम हो या चोर, ान हािसल
करना चाहता ह, हािसल कर सकता ह। बल ऐसे य को िमलता ह, जो उसक लायक हो। देवी भेदभाव नह
करत , कोई फसला नह लेत ।
पु ष प म फसला लेने क मता होती ह। भगवा समाज क सजक, पोषक और संहारक ह। वे मू य ,
नीितय और नैितकता क मूल ोत ह। देवी को मापा जा सकता ह, लेिकन मापक और मापदंड क सजक, पोषक
और संहारक भगवा ह। ‘माप’ क िलए सं कत श द माया ह इसीिलए देवी को महामाया कहा जाता ह। महामाया
का अथ ह, िजसे मापा जा सकता ह और िजसका मू यांकन िकया जा सकता ह। देवी पदाथ ह, ऊजा ह। जो
उनका े क ह, वह िविभ प म उनका सृजन करता ह, पोषण करता ह या संहार करता ह।
आकित 3.4 ान क देवी सर वती
नारायण जब जागते ह, देवी क अनुभूित इि य क ज रए क जाती ह। श द क इ तेमाल क ज रए उनका
वग करण िकया जाता ह, िवचार म उ ह बाँधा जाता ह और मापदंड से उ ह मापा जाता ह। अचानक ही उनका
मू यांकन िकया जाता ह। उनक प, उनक नाम और उनका मू यांकन हम वशीभूत कर लेते ह, फाँस लेते ह,
स मोिहत कर देते ह, हमार मनोभाव को आलोि़डत कर देते ह, हम सुखी बना देते ह और हम उदास कर देते ह;
य िक वे कभी थर नह होते। यही वजह ह िक बदलते प क इस भौितक दुिनया को ायः माया कहा जाता
ह। माया का हम महज अनुभव करते ह। वह बदलती रहती ह और हम उसपर िनयं ण क िलए संघष करते रहते
ह, उसे थायी बनाने क िलए यासरत रहते ह; लेिकन हम अपनी कोिशश म िवफल रहते ह, य िक
प रवतनशीलता उसक कित ह।
देवी का अनुभव करने से हम उस चीज क शंसा करते ह, जो नह बदलती और वह चीज ह हमार भीतर का
भगवा , जो थर, िनर , मूक आ मा होता ह। चूँिक हम माया क चंचलता का अनुभव करते ह, इसिलए हम
माया क बार म महसूस करते ह, जो मोिहनी का नृ य देखती रहती ह। चूँिक हम कित को जीवन िनगलते-उगलते
ए महसूस करते ह, इसिलए हम जीवन क खेल क मूक य दश पु ष को पाने क कामना करते ह।
उपिनषद म, िजनक रचना 500 ईसा पूव ई थी, इन दो स ाइय का बार-बार िज आता ह स ाई जो
बदलती ह और स ाई जो नह बदलती ह। एक का अ त व दूसर क अ त व क ओर संकत करता ह। प रवतन
म हम थािय व खोजते ह, चंचलता म हम िन लता खोजते ह, गित म हम जड़ता खोजते ह। आवाज म हम
खामोशी खोजते ह। दो अनुपूरक स ाइय का िवचार हम इितहास और भूगोल क ज रए पौध , पशु , यािमित
और मानव क तमाम तीक तक प चा देता ह।
सभी पौधे िवकिसत होते ह और समय क साथ बदलते ह, लेिकन कछ पौधे अ य क तुलना म तेजी से
िवकिसत होते ह और तेजी से बदलते ह। एक तरफ तो बरगद का पेड़ ह, िजसका जीवन लंबा होता ह। वह छाया
मुहया तो
आकित 3.5 िव क संर क िव णु
कराता ह, लेिकन मानव जाित का पेट नह भरता। दूसरी तरफ घास और अनाज ह, िजनका जीवन छोटा होता
ह। वे छाया तो नह देते, लेिकन भोजन मुहया कराते ह। पहला अप रवतनशील स ाई का तीक ह जब जीवन
अस हो जाता ह तो यह हम आ या मक छाया देता ह, लेिकन यह जीवन क सृजन और पोषण म असमथ होता
ह। दूसरा प रवतनशील स ाई का तीक ह। यह शरीर का पोषण करता ह, लेिकन थािय व या थरता का बोध
नह कराता। ज म और शादी से संबंिधत िहदू अनु ान म तृण, अनाज और कले क पेड़ को ब त मह व िदया
गया ह; लेिकन इन अनु ान म बरगद क पेड़ या उसक प े का कोई िच नह होता। प रवार क ढाँचे क बाहर
कवल तप वी ही उसे मह व देते ह।
जंतु क दुिनया म िन ल आ या मक आ मा और गितमान भौितक दुिनया का सव म ितिनिध व कोबरा
करता ह। सभी जंतु चलते ह, लेिकन कवल कोबरा म गितशीलता और िन लता क बीच भेद िकया जाता ह।
कोबरा जब िन ल होता ह, कडली मारकर अपना फण उठा लेता ह। मैथुन क िलए नर और मादा दोन को
लगातार गितशील रहना पड़ता ह। इस तरह फण काढ़ा आ कोबरा जो तप यालीन िशव या िनि त नारायण से
संब ह अप रवतनशील पारलौिकक स ाई का तीक ह। दूसरी तरफ, मैथुनरत सप प रवतनशील लौिकक
स ाई से संब उवरता का तीक ह।
खिनज क दुिनया म िन लता का तीक भ म और बफ ह। िकसी चीज को जलाने या न करने से भ म का
सृजन होता ह; लेिकन भ म को और अिधक न नह िकया जा सकता। इस तरह यह थािय व अप रवतनशील
स ाई, आ मा का तीक ह। बफ पानी होता ह, जो शांत रहता ह। भ म और बफ दोन को तप वी िशव से
संब िकया जाता ह, जो शांित से िहमालय पर बैठ रहते ह। यिद बफ शांत जल ह तो नदी बहता आ पानी,
िजसका सव म तीक प रवतनशील स ाई, अ थायी दुिनया ह। कोई भी य एक नदी म दो बार कदम नह
रख सकता, य िक िव ान का कहना ह िक वह हमेशा बदलती रहती ह। िशव आवेश से बहती ई गंगा नदी
आकित 3.6 धन क देवी ल मी
को अपनी जटा म समेटकर शांत कर देते ह, य िक उसक पास दुिनया को बहा ले जाने क श ह।
यािमित म ि कोण का इ तेमाल थरता और गितशीलता दोन को दरशाने क िलए िकया जाता ह। ऊ वाकार
शीषवाले ि कोण का इ तेमाल थािय व दरशाने क िलए िकया जाता ह। इसी तरह अधोमुखी शीषवाले ि कोण का
इ तेमाल गितशीलता दरशाने क िलए िकया जाता ह। इसे आकित 4.16 म अ छी तरह दरशाया गया ह। रग म,
सफद थरता का तीक ह, य िक यह पे म क सभी रग को परावितत करता ह। ान क देवी सर वती
(आकित 3.4) सफद प रधान पहनती ह। काला गितशीलता का रग ह, य िक यह सभी रग को अपने म समािहत
कर लेता ह। लाल संभािवत ऊजा और हरा ा ऊजा का रग ह। बा रश से ठीक पहले धरती लाल हो जाती ह।
उस समय उसम बोए ए बीज होते ह। बा रश क बाद धरती हरी हो जाती ह। उस समय बीज म जीवन पड़ जाता
ह और वह फटकर बाहर िनकल आता ह। अब ल मी और दुगा पर आएँ। ल मी (आकित 3.6) और दुगा
(आकित 3.8) लाल रग क प रधान पहनती ह, जबिक अ पूणा (आकित 1.14) का प रधान हरा ह।
अंत र म ुव तारा थर ह, इसिलए उ र िदशा को थरता, ा और अमरता का तीक माना गया। इसी
तरह दि ण िदशा को प रवतन और मृ यु से जोड़ िदया गया।
शरीर म बायाँ पा प रवतन का तीक ह, य िक हमार थर रहने पर भी दय धड़कता रहता ह। इसक
िवपरीत दायाँ पा थर होता ह, इसिलए वह आ मा का तीक ह। चूँिक प रवतन अवांिछत होता ह, इसिलए
बायाँ पा शरीर का अशुभ अंग बन गया। इसक िवपरीत थर दायाँ पा शरीर का शुभ अंग बन गया।
मनु य क बीच, चारी तप वी थर आ मा का तीक ह, जबिक नृ य करती अ सरा गितशील दुिनया का
ितिनिध व करती ह। तप वी और अ सरा क बीच िनरतर ं चलता रहता ह। इसक बावजूद तप वी और
अ सरा क बीच
आकित 3.7 संहारकता िशव
संयोग होने से ही जीवन का सृजन होता ह। इस तरह जीवन प रवतनशील और अप रवतनशील स ाई का
िम ण ह। आकित 3.9 अप रवतनशील स ाई (बाई तरफ क तप वी) और प रवतनशील स ाई (दाई तरफ क
अ सरा) क संयोग को दरशाती ह।
आकित 3.9 म िदखाए गए अ नारी र या भगवा ब त लोकि य ह। इस आकित को देखकर मनोिव ेषक
ने िन कष िनकाला िक भारतीय सं कित म नारी को ब त मह व िदया जाता था। नारी देव व का अंग थी। दुिनया
क संभवतः िकसी भी सं कित म नारी प को देव व का अंग नह माना जाता था। भारतीय सं कित को छोड़
अ य सं कितय म अ नारी र क क पना तक नह क गई ह। आकित को देखकर इस बात क सहज ही
क पना क जा सकती ह िक भारत म लिगक धायता को ब त सहजता से िलया जाता था, यानी नारी म पु ष
और पु ष म नारी का प देखा जाता था; लेिकन ये क पनाएँ ह, जो समाज क स ाई क बार म नह बतात ।
हाँ, भारतीय सं कित म अ प लिगकतावाले पु ष , यानी िहजड़ को थान ज र िदया गया ह; लेिकन वे समाज
क हािशए पर रहते ह।
दुभा य से, हम ऐसी दुिनया म रहते ह, जहाँ लोग िवचार क बजाय प पर यान देते ह। हम यह मान लेते ह
िक ित प ही यथाथ ह और अ नारी र को अ नारी भगवा क प म देखते ह। हमारी यह धारणा सही नह
ह। दरअसल, ई र आधा भौितक त व और आधा आ मा का संयोग ह।
तीका मक भाषा म अ नर आकारहीन ई र का तीक ह, िजसे वेद म पु ष, ‘िव णुपुराण’ म नारायण और
‘िशवपुराण’ म िशव कहा गया ह। अ नारी ई र क सगुण प (पु ष, नारी और नपुंसक प ) का ितिनिध व
करती ह। नारी प को वेद म कित, ‘िव णुपुराण’ म माया और ‘िशवपुराण’ म श कहा गया ह।
यह आकित िदलच प ह, य िक उसम एक अ नारी ई र ह, न िक अ पु ष देवी। धम ंथ म अ
पु ष देवी का कोई िज नह ह। इस तरह य ई र क समि प म एक लिगक श धान ह। यह योगी
िशव का प ह।
आकित 3.8 बल, ेम और भाव क देवी श
कहानी इस तरह ह िशव क भ भृंिग िशव क प र मा करना चाहते थे, लेिकन उनक प नी पावती क नह ।
पावती ने भृंिग को िशव क प र मा करने क अनुमित नह दी। वे िशव क गोद म बैठ गई, तािक ऋिष उनक
बीच से न गुजर सक। जब भृंिग ने उनक िसर क बीच से गुजरने क िलए मधुम खी का प धारण कर िलया तो
पावती ने अपने को िशव म समािहत कर िलया। इस तरह वे िशव का बायाँ आधा अंग बन गई। अब भृंिग ने उनक
बीच से अपना रा ता बनाने क िलए क ड़ का प धारण कर िलया। पावती इससे िव मत नह ई। उ ह ने भृंिग
को ाप िदया िक उनक शरीर का हर अंग अलग हो जाएगा। इसक प रणाम व प भृंिग क शरीर म न तो मांस
बचा और न र । वे ककाल बन गए और सीधे खड़ नह हो सकते थे। िशव ने उन पर दया करते ए उ ह तीसरा
पैर दे िदया, तािक वे ि पािदका क तरह खड़ रह सक। यह कहानी हर य को याद िदलाती ह िक यिद पु ष
ई र क अ नारी िह से का स मान नह करगा तो उसे इसक क मत चुकानी पड़गी। यह दि ण भारत क एक
तिमल मंिदर क जन ुित ह।
इस आकित क एक दूसरी कहानी उ र भारत क िहमालयीय े से िनकली ह। जब पावती ने िशव क जटा म
गंगा को देखा तो किपत हो गई। उ ह ने सोचा िक जब वे अपने पित क गोद म बैठी ह तो िशव अपने िसर पर
दूसरी ी को कसे बैठा सकते ह। पावती को शांत करने क िलए िशव ने अपने शरीर को अपनी प नी क शरीर म
िमला िलया।
आकित म ई र अकले य ह? दरअसल, आकित यह बताती ह िक िशव पावती क िबना अधूर ह। इसका
अथ यह ह िक आ या मक स ाई भौितक स ाई क िबना अधूरी ह। लोग से कहा जाता ह िक उ ह आ या मक
स ाई (िशव) क पूजा करनी चािहए, य िक सभी भौितक चीज (श ) हमारा यान अपनी ओर ख च लेती ह।
हमारी वृि भौितक चीज क उपे ा करने क ह। हम िवषयास और लोभन क भ सना करते ह; लेिकन
आकित म देवी को समुिचत स मान िदया गया ह। इस तरह आकित हम यह याद िदलाने क कोिशश कर रही ह
िक अकले भौितक त व क ज रए

आकित 3.9 अ नारी


आ या मक त व को हािसल िकया जा सकता ह। हमार जीवन म आज भौितक चीज का ब त मू य ह; लेिकन
पिव आकित म भौितक अ को अशुभ माने जानेवाले वाम पा म जगह देकर उसक मू य को गौण बना िदया
गया ह।
आकित दर आकित हम आकितय क बाएँ और दाएँ पा क बीच िनरतर संवाद पाएँगे। यह दरअसल त व क
भौितक अ और आ या मक अ क बीच का संवाद ह। गणेश (आकित 1.17) को हमेशा उनक बाएँ अ
क तरफ मुड़ी ई सूँड़ क साथ िदखाया जाएगा। िशव (आकित 4.13) को हमेशा अपने दाएँ पैर पर खड़ा िदखाया
जाएगा और िव णु को क ण क प म हमेशा अपने दाएँ पैर क अँगूठ को चूसते ए (आकित 2.7) या दाएँ पैर
को बाएँ पैर पर रखे ए (आकित 6.21) िदखाया जाएगा। ये आकितयाँ हम याद िदलाती ह िक हमारा जीवन
आ मा और परमा मास, ई र और देवी क बीच लगातर चलनेवाला संवाद ह। िकसी भी एक क िबना संवाद
अधूरा ह।
q
4. िशव का रह य
याहार से िवनाश

आकित 4.1 संहारकता िशव


आकित 4.1 म िहमा छािदत पवत पर एक गुफा म या छाला पर बैठ ए एक तप वी को िदखाया गया ह। ये
िशव ह, िज ह आमतौर पर संहारक क प म जाना जाता ह। िशव संहार करते ह, लेिकन वे िकस चीज का संहार
करते ह? परपरागत प से संहार को चीज क न होने, कोप और ोध से जोड़ा जाता ह; लेिकन िशव शांत और
कित थ ह। उनक आँख नीचे क ओर झुक ई ह, आधी बंद। ऐसा लगता ह िक उनक िच लोग को दशन
देने म नह ह। वे िवर ह। तो वे संहारक कसे हो सकते ह?
दरअसल सम या संहार क बार म हमारी समझ का ह। िशव या संहार करते ह? धमगं◌थ म बार-बार कहा
गया ह िक वे कामांतक, यमांतक और ि पुरांतक, यानी काम क संहारक, यम क संहारक और ि पुर क संहारक
ह। इसका अथ यह ह िक िशव इ छा, मृ यु और तीन दुिनया क संहारक ह।
वे अपने तीसर ने से ाला िनकालते ह, जो काम को जलाकर भ म कर देती ह। काम वह देवता ह, जो हमार
भीतर वासना पैदा करते ह। िशव इ छा भड़कानेवाले, यानी वासना पैदा करनेवाले का संहार कर देते ह। िशव िकसी
चीज क इ छा नह करते। वे यम का भी संहार करते ह। यम मनु य क मृ यु और उसक पुनज म पर नजर रखते
ह। वे कम का लेखा-जोखा भी रखते ह। यम का संहार कर िशव कम का भी संहार कर देते ह। यह कम ही ह, जो
जीवन-च को घुमाता ह। यम क संहार से मृ यु नह होती, पुनज म नह होता। इस तरह जीवन का पिहया क
जाता ह। काम और यम क संहार क बाद ि पुर या तीन लोक का संहार होता ह। ये तीन लोक कौन से ह? वेद
क अनुसार, ये पृ वी, वायुमंडल और आकाश ह। पुराण क अनुसार, इनक नाम पृ वी, पाताल और आकाश ह।
शायद ये लोक यथाथ नह ह, का पिनक ह। इनक रचना हमार िवचार और अनुभूितय से ई ह। इस तरह तीन
लोक हमारी िनजी दुिनया ह, सावजिनक दुिनया ह। िशव जीवन संबंधी हमारी इ छा का नाश करते ह, मृ यु क
भय का नाश करते ह, हमारी इद-िगद क दुिनया से संबंिधत हमारी ज रत का नाश करते ह।
भ म िवनाश क साथ-साथ थािय व का भी तीक ह, य िक इसका
आकित 4.2 शुभिचंतक शंकर
सृजन चीज क जलने से होता ह; लेिकन भ म को खुद नह जलाया जा सकता। इस तरह यह अन र आ मा
का तीक ह। भौितक त व को जब जलाया जाता ह तो उसम से आ मा िनकलती ह। िशव क ललाट पर भ म क
तीन अनु थ रखाएँ ह। इन रखा को उन तीन लोक का तीक माना जाता ह, िजनका संहार िकया गया ह। और
इनका ैितजाकार होना जड़ता, गितशीलता का अभाव और िवघटन क अव था दरशाता ह।
िशव का ि शूल तीन लोक क एक लोक म िवघिटत होने का तीक ह। िहदू जग म सृजन तभी होता ह, जब
कता और कम क बीच िवभाजन हो जाता ह, जब े क और े ण क बीच अलगाव हो जाता ह। िशव संहार
करते ह। और वे यह काम कता व कम क बीच िवभाजन, े क व े ण क बीच अलगाव को न कर करते ह।
इस तरह तीन लोक एक हो जाते ह।
लेिकन िशव संहार कसे करते ह? अपनी आँख बंद कर, े क बनने से इनकार कर। इस तरह वे े ण का
सृजन नह करते। यह बाहरी दुिनया से नाता टटने का संकत ह। िशव कछ भी नह देखते या सुनते ह। िशव क बंद
आँख संसार, काम, यम और ि पुर क ित उनक अनास क संकत ह। वे अपने पीछ खड़ बैल क तरह ह,
जैसा िक आकित 4.2 म िदखाया गया ह स म, ताकतवर, लेिकन समाज से अलग पूरी तरह से वतं । वे संसार
से नह िछपते; उ ह संसार क ज रत नह ह। गहरी िन ा म पड़ नारायण क तरह वे आ मसंतु ह। वे सव
योगी ह शांत और िनर । साँप, जो फण काढ़ उनक गले क चार ओर िलपटा आ ह, पवत िजस पर वे बैठ ए ह
और बफ, जो उनक चार तरफ फली ई ह, बार-बार थरता क भाव का संचार करती ह।
कहािनय म िशव को उठ ए िलंग क साथ न न बताया जाता ह। चूँिक इस तरह क तसवीर से आम लोग म
असहजता पैदा होती, इसिलए िशव को या चम पहना िदया गया ह। या चम इस बात का तीक ह िक िशव
मानव-िनिमत कपड़ नह पहनते। योगी क प म वे वही पहनते ह, जो कित उपल ध कराती ह।
आकित 4.3 म दरशाया गया िशविलंग ब त अिधक िज ासा पैदा करता
आकित 4.3 िलंग-योिन
ह। लोग आनन-फानन म यह िन कष िनकाल लेते ह िक िशविलंग जनन मता का तीक ह। ऐसे म आ य
होता ह िक कोई संहारक जनन मता का ोत कसे हो सकता ह? इसका सबसे आसान उ र यह ह िक जो
संहारक होता ह, वह सजक भी होता ह। इसका अथ यह आ िक जो सजक ह, वह संहारक भी ह। ऐसे म ा
और िशव को एक ही होना चािहए। िफर, िशव को य पूजा जाता ह और ा को नह ? जािहर ह, ा कछ
ऐसी चीज क सृि करता ह, िजसक कारण उसे पूजा नह जाता। इसक िवपरीत, संहारक कछ ऐसी चीज का
संहार करता ह, िजसक कारण उसे पूजा जाता ह। यहाँ सम या हमार ि कोण पर िनभर करती ह। मान लीिजए,
कोई य गणेश क रह य (अ याय 1) को जान लेता ह और इस त य को वीकार करता ह िक िविभ लोग
दुिनया को िविभ नज रए से देखते ह। ऐसे म वह इस बात को बेहतर तरीक से समझ सकता ह िक ा का
अथ िविभ सं कितय म िविभ चीज से होता ह। िशव इ छा और कम का संहार करते ह, इसिलए वे पूजनीय
ह।
िशव क ऊ व िलंग को उनक बंद ने क संदभ म देखा जाना चािहए। अपनी प नी क िबना अकले बैठ िशव
अपने ने को बंद कर लेते ह। यह ऐसी आकित ह, जो तप वय को आकिषत करती ह; लेिकन कलडर आट
प रवार क िलए होता ह, जो खुले ने वाले िशव को देखना पसंद करते ह। सो, भ को संतु करने क िलए
कलाकार अ -उ मल िशव का िच बनाते ह। िशव क बंद ने का ब त मह व ह। आमतौर पर ऊ व िलंग को
उ ेजना का तीक माना जाता ह। यह इि यज य उ ीपन क िति या ह। लेिकन चूँिक िशव क ने बंद ह,
इसिलए उ ह इि यज य उ ीपन क अनुभूित नह होती। जािहर ह, उ ेजना वयंभू, वतः उ ी ह, न िक
बाहरी उ ेजना का नतीजा। यह दरअसल आंत रक परमानंद का प रणाम ह। इस तरह ऊ व िलंग रस या भौितक
आनंद का कोई का पिनक तीक नह ह, ब क आनंद या आ या मक परमानंद का तीक ह, जो आ मसंतुि से
पैदा होता ह। इसिलए िशव े ण क ज रत को यथ बना देते ह। वे भौितक दुिनया को न तो मह व देते ह और
न ही उसक परवाह करते ह। िमथक य भाषा म कह तो उ ह देवी
आकित 4.4 िशव क सीने पर काली क पैर
क ज रत नह ह; लेिकन सृि नारी क िबना कहाँ संभव ह!
िजस तरह दि ण क िबना उ र का अ त व नह ह, िजस तरह दाएँ पा क िबना बाएँ पा का अ त व नह
ह, िजस तरह गितशीलता क िबना थरता अथहीन ह, उसी तरह े ण क िबना े क का कोई अथ नह ह।
महादेव को महादेवी क ज रत ह। इसिलए संहारक क ने खुलने ही चािहए। यही वजह ह िक महादेवी अपने
आिद प काली म प रवितत हो जाती ह और िशव क ऊपर नृ य करती ह।
आकित 4.4 म न न काली को िदखाया गया ह (लोग क भावना को यान म रखते ए उनक शरीर क कछ
िह स को ढक िदया गया ह)। पृ वी पर उदासीन पड़ िशव क ऊपर वे नृ य कर रही ह। िशव क अव था यास
क अभाव का संकत ह। िशव दुिनया क परवाह नह करते। उनक िलए कछ भी मायने नह रखता। दूसरी तरफ
काली न न, अनलंकत, शु और स यता क नजर से अ भािवत ह। वे िदखना चाहती ह। वे चाहती ह िक िशव
भौितक स ाई का मह व समझ और उसपर यान द। वे चाहती ह िक िशव अपने ने खोल और े क बन।
काली गितशील ह, िशव थर ह। काली ऊ वाधर ह और िशव ैितज। काली दि ण म रहती ह, जहाँ यम क
प म मृ यु भी रहती ह। िशव उ र म रहते ह थर ुवतारा, िहमा छािदत पवत क तरह। काली अपने भीतर
जीवन का सृजन करनेवाली नारी ह, जबिक िशव नारी क िबना जीवन का सृजन करनेवाले पु ष ह। लेिकन जब
तक िशव काली क साथ मैथुन नह करगे, जीवन का सृजन नह होगा। इसिलए, वे िशव क ऊपर बैठ जाती ह
(जैसा िक आकित 4.5 म िदखाया गया ह) और उ ह अपने भीतर जीवन का सृजन करने क िलए िववश करती ह।
यहाँ देवी क हाथ म वे सभी चीज ह, जो काम और यम से संबंिधत ह। ग े का धनुष और पु प बाण काम से
संबंिधत ह तो क हाड़ी और फदा यम से जुड़ ए ह। इस तरह देवी जीवन और मृ यु को पुनः अ त व म लाती
ह। वे पुनज म क पिहए को घुमाती ह, तािक लोग एक बार िफर जीने क कामना कर और मृ यु से डर। इन दोन
मनोभाव क कारण
आकित 4.5 अपने सार ऐ य म देवी राज-राजे री
मनु य दौलत और ान क पीछ भागता ह। आकित म लाल प रधान पहने ए धन क देवी ल मी और सफद
प रधान पहने ए ान क देवी सर वती देवी क दोन तरफ खड़ी ह। देवी क इस प को ि पुर सुंदरी कहते ह,
िजनक भीतर तीन लोक क सुंदरता ह। ये वही तीन लोक ह िजनका िशव ने संहार िकया था। तीन लोक क
भ म िशव क ललाट पर लगी ई ह।
आकित 4.4 म िदखाई गई देवी आकित 4.5 म िदखाई गई देवी से ब त िभ ह। पहली आकित म वे उ ,
न न, काली और िहसक िदखती ह और दूसरी आकित म वे सौ य, व धारी, सुंदर एवं ेही लगती ह। पहली
आकित म िशव अपने ने खोलने से इनकार कर रह ह। दूसरी आकित म उ ह ने अपने ने खोल िदए ह। पहली
आकित म देवी ोध से भरी ई ह, य िक आ मा उदासीन ह और दुिनया को मन क अशांित, गव, असुर ा और
अहकार से बचना होगा। दूसरी आकित म देवी संतु ह, य िक आ मा उन पर यान दे रही ह, मन शांत ह और
अहकार गायब ह। आकित 1.1 म िदखाया गया ह िक महादेव और महादेवी ने दो पु हाथी क िसरवाले गणेश
और भालाधारी काितकय को ज म िदया ह। गणेश समृ क तीक ह और काितकय बल क।
इन दोन आकितय म महादेव का दजा महादेवी से नीचे ह। कछ िव ान क अनुसार, यह इस बात का संकत
ह िक देवता क वच व वाले िहदू धम म शैव और वै णव सं दाय क िवपरीत शा सं दाय मातृस ा मक था।
बहरहाल, तीका मक नज रए से देख तो यह एक िवचारधारा ह, िजसम भौितक त व को उतना ही मह व िदया
गया ह िजतना िक आ या मक त व को। इसक अित र , एक ऐसे देश म, जहाँ उ रो र मठवाद बढ़ता जा रहा
था, जनन और पा रवा रक था का ब त स मान िकया जाता था।
आकित 4.6, िजसम िशव को िववाह करते ए िदखाया गया ह, दि ण भारत म ब त लोकि य ह। मंिदर क
दीवार पर यह आकित ायः पाई जाती ह। दुलहन महादेवी ह और उनक दाएँ ओर खड़ िव णु उ ह रा ता दे रह
ह। थानीय तर पर िव णु को महादेवी का भाई माना जाता ह। िव णु संर क क भूिमका िनभाते ह। वे जानते ह
िक जब तक िशव तप वी ह, सृि को उदासीनता और िवनाश से खतरा ह। इसिलए, िशव को िकसी भी तरह
दुिनया
आकित 4.6 िशव और श का िववाह
क ित आकिषत करने और महादेवी से िववाह कराने क ज रत ह। आकित म िशव सजे-धजे ह, िजसका अथ
यह ह िक उ ह ने तप वी का चोला उतार िदया ह। वे शंकर बन रह ह और दुिनयावी रा ते पर चलने को तैयार ह;
लेिकन इस तरह मामला हमेशा नह था।
आकित 4.7 म िशव जन ुित क िविभ घटना को दरशाया गया ह, जो िशव क तप वी से गृह थ बनने क
ओर यान ख चती ह। िशव का पहला िववाह अनथकारी सािबत आ था। उनक प नी सती एक पुजारी द क
पु ी थ । िशव जो कछ थे, सती ने उ ह उसी प म वीकार कर िलया था। िशव जहाँ-जहाँ जाते थे, सती भी उनक
साथ-साथ जाती थ ; लेिकन सती क िपता ने अपनी बेटी क पसंद को अस पाया। िशव का योगी प उ ह नह
भाता था। इसिलए, जब द ने एक य करने का फसला िकया तो उ ह ने िशव को छोड़ सभी को आमंि त िकया।
सती ने इस अपमान से किपत होकर, िजस पर िशव ने यान नह िदया, य म अपनी जान दे दी। इससे
होकर िशव ने य क वेदी को न करने क बाद अपने सुर का िसर धड़ से अलग कर िदया। यहाँ उ ह ने एक
परपरागत संहारक क भूिमका िनभाई। उ ह ने उस सामािजक यव था को न कर िदया, िजसे वे अथहीन समझते
थे। यह पहली घटना ह, जो िशव को िकसी बा उ ेजना पर िति या य करते ए िदखाती ह। सती क साथ
रहने क कारण िशव उनका यान रखने लगते ह। इतना यान िक सती जब िहसक तरीक से अपनी जान दे देती ह
तो वे गु से और ितशोध क भावना से भर जाते ह। एक तप वी क िलए, िजसने अपने ने खोलने से इनकार कर
िदया था, यह एक बड़ा प रवतन था।
आकित 4.8 म िशव को सती का शव ले जाते ए िदखाया गया ह। िशव िकसी ेमी क तरह रो रह ह। सती क
मृ यु क बाद िशव एक बार िफर अपनी गुफा म चले गए और सभी देवता उनक िववाह क िलए एक बार िफर
ष यं रचने लगे। उ ह ने इ छा क देवता काम को िशव पर तीर छोड़ने क िलए भेजा, लेिकन िशव ने उ ेिजत होने
क बजाय अपने तीसर ने क ाला से काम को भ म कर िदया। सती क कारण कट अनुभव से गुजर िशव एक
बार िफर काम क सामने समपण करना नह चाहते थे।
आकित 4.8 िशव क हाथ म सती का शव
सती ने पवतराज क बेटी पावती क प म पुनज म िलया। उ ह ने िशव क ाथना क , कड़ी तप या क
िजसक कारण िशव को अपनी गुफा छोड़कर उनक सामने आना पड़ा। िशव ने उनसे पूछा, ‘‘आप या चाहती
ह?’’ पावती ने जवाब िदया, ‘‘आपको पित क प म पाना चाहती ।’’ पावती क ढ़ता और भ इतनी महा
थी िक िशव को सहमत होना पड़ा। इस तरह िशव को इ छा क कारण नह , अनु ह क कारण महादेवी से जुड़ना
पड़ा। पावती ने उ ह शुभिचंतक बनने क िलए े रत िकया। इसक साथ िशव गृह थ बन गए, शंकर बन गए।
आकित 4.9 म िशव को वर क प म िदखाया गया ह, जो अपनी होने वाली प नी क घर म जाने क िलए
रा ता बना रह ह। योगी होने क कारण वे नह जानते थे िक कपड़ा कसे पहना जाता ह या दू ह क प म बरताव
कसे िकया जाता ह। वे भ म लगाए ए नशे क हालत म आए थे। उनक बाराितय म भूत और िपशाच थे।
िहमालयीय े म इस तरह क कई कहािनयाँ चिलत ह िक िशव क बाराितय ने िकस तरह थानीय िनवािसय
को आतंिकत कर िदया था और िशव क तरफ देखते ए पावती क माँ, पवतराज िहमालय क प नी मीना ने िकस
तरह अपनी बेटी को अपने फसले पर पुनिवचार करने को कहा था। अंततः पावती ने िशव सांसा रक राह पर चलने
और सजे-धजे दू ह क प म सामने आने क ाथना क । पावती क बात मानकर िशव सोमसुंदर यानी चं मा क
तरह सुंदर बन गए और उनसे िववाह िकया। यह कहानी हमारा यान इस बात क तरफ ख चती ह िक िशव या
आ मा िकस तरह सुंदरता और क पता क बीच, मनु य और शैतान क बीच, गाय और क े क बीच भेद नह
करते। हालाँिक यह एक उ क अवधारणा ह, लेिकन सामािजक ढाँचे म इसका कोई मह व नह ह। समाज म
मानक और मू य होते ह, अ छा और बुरा होता ह, सुंदर और क प होते ह, सही और गलत होता ह। दूसर श द
म, िववेक होता ह, लेिकन मानक क िबना िववेक असंभव ह। तप वी क िलए ये मानक सां कितक ांित लग
सकते ह, लेिकन पा रवा रक य क िलए ये स यता क आव यक तंभ ह।
आकित 4.10 म िशव क श िदखाई गई ह। यह श उ ह िववाह करने से िमली ह। देवी ने उनक ने
खोल िदए ह, इसिलए वे दुिनया का िवलाप देख सकते ह। एक बार देवता ने अमृत क िलए ीरसागर का मंथन
िकया था। मंथन क दौरान िवष भी िनकला था, िजससे सार संसार क न होने का खतरा पैदा हो गया था। िकसी
म भी िवष पीने क मता नह थी। सो, देवतागण िशव क पास गए, जो िवष और अमृत क बीच भेद नह करते
थे। िशव ने देवता क ाथना को वीकार करते ए िवष को पी िलया और िव को बचा िलया। जहाँ तप वी
िशव िवष पी सकते थे, वह पा रवा रक िशव को िवष पीने क इजाजत नह दी जा सकती थी। इसिलए देव ने
उनक कठ को अव कर िदया, िजससे िवष कठ क नीचे नह गया। कठ म िवष पड़ा रहा, िजससे वह नीला हो
गया। इसिलए िशव को ‘नीलकठ’ भी कहते ह।
अब एक दूसरा उदाहरण ल। आकित 4.11 म यह िदखाया गया ह िक िशव ने अपने एक युवा भ माकडय
क ाथना पर यम को उसक ाण लेने से रोक िदया। माकडय को 16 वष क उ म मरना था, लेिकन िशव ने
भगवा क प म अपनी श का इ तेमाल करते ए माकडय क भा य को बदल िदया। प ह, भगवा भा य
से भी बड़ ह।
जब गंगा वगलोक से पृ वीलोक पर उतर तो िशव ने उ ह अपनी जटा म बाँध िलया। इसिलए पृ वी पर
गंगा क िगरने का झटका नह लगा। िफर िशव ने उ ह अपनी िशखा से धीर-धीर छोड़ना शु िकया, जैसािक
आकित 4.12 म िदखाया गया ह। गंगा ने पृ वी पर जीवन का संचार िकया। मृतक को जलाने क बाद जब उसक
भ म गंगा म वािहत क जाती ह तो उसका पुनज म होता ह। गंगा क सकारा मक प को देख तो वे पुनज म का
अवसर उपल ध कराती ह और उनक नकारा मक प को देख तो वे लगातार अपनी धारा बदलकर दुःख फलाती
ह। गंगा क धारा को िनयंि त कर िशव तीका मक प से योगी क भूिमका म आ जाते ह। योगी उसे कहते ह,
जो अपने मन पर िनयं ण कर उसे भौितक त व का दास नह बनने देता।
ये तीन कथाएँ िशव क शंकर प म प रवितत होने क ओर संकत करती ह। िववािहत होकर वे सांसा रक बन
जाते ह। वे िवषपान कर संसार को न
आकित 4.13 नटराज क प म िशव
होने से बचाते ह, लंबी उ देते ह और मृतक क पुनज म लेने म मदद करते ह। कहते ह िक एक बार चं मा
य रोग से अिभश हो गया, िजसक कारण उसने िशव क िसर पर शरण ले ली। बुझता आ चं मा िशव क
संपक म आने पर िफर से चमकने लगा, य िक िशव सभी श य क ोत ह। यही वजह ह िक िशव क ललाट
पर हमेशा अ चं िदखता ह।
आकित 4.13 म िशव को नृ य करते ए िदखाया गया ह। इस मु ा को तांडव कहते ह, िजसका अथ ह नृ य का
आ ामक पु षोिचत प। इस प म िशव नटराज म प रवितत हो जाते ह। यह िविच नृ य ह, िजसे िशव ने एक
बार िकया था। ऋिषय ने देखा िक िशव न नाव था म ऊ व िलंग क साथ कह जा रह ह। यादातर लोग क तरह
ऋिषय ने इस बात पर गौर नह िकया िक िशव क ने बंद ह। इसिलए उ ह ने मान िलया िक िशव उनक प नय
को देखकर उ ेिजत हो उठ ह। ऋिषय ने उन पर हमला करने और उनक ाण लेने क कोिशश क । जवाब म
िशव नृ य करने लगे। इस नृ य म उ ह ने अपने दाएँ पैर पर मजबूती से खड़ होकर बाएँ पैर को जमीन क ऊपर
उठा िलया। िफर गितमान बाएँ पैर क तरफ बाएँ हाथ से इशारा िकया। जैसािक अ नारी क रह य (अ याय 3)
म उ ेख िकया जा चुका ह, बायाँ पा भौितक संसार का तीक ह और दायाँ पा आ या मक संसार का।
िशव एक-पद ह। एक-पद का अथ ह, जो एक पैर पर खड़ा होता ह। िशव दािहने पैर पर खड़ ह। वे दािहने पैर पर
इसिलए खड़ ह, य िक आ या मक संसार म रमे रहते ह। वे दरअसल यह संकत करते ह िक भौितक संसार क
कित को न समझने क कारण ही हमार भीतर भय और असुर ा का भाव पैदा होता ह। भौितक संसार न र ह।
यह स मोिहत करती ह, यह उदासीन बनाती ह। यह रस का सागर ह, िजसम सकारा मक और नकारा मक भाव
क तूफानी लहर उठती ह।
आकित 4.14 म िशव क पु काितकय को िदखाया गया ह। कहानी इस कार ह िक एक दै य ने दुिनया को
आतंिकत कर रखा था। उस दै य को कवल छह िदन का बालक ही मार सकता था। इस तरह क श शाली
बालक क सृजन क िलए देवता को िशव क मदद क ज रत थी, िज ह ने तप वी होने क कारण वीय का
खलन कभी नह िकया था। परपरागत धारणा क अनुसार,
आकित 4.14 काितकय
इस तरह क वीय म ब त श होती ह। सो, बालक क सृजन क िलए िशव का िववाह ज री था। िववाह क
बाद जब िशव क वीय का खलन आ तो उसम अ न, वायु, गंगा और सरवन ने श का संचार िकया। इस
तरह छह िसर वाले बालक का सृजन आ। छह कि का ने उसका पालन-पोषण िकया और उसे लड़ाई क िलए
तैयार िकया। बालक होते ए भी इस दैवी यो ा ने देवता क सेना का नेतृ व िकया और उ ह जीत िदलाई।
काितकय क ज म क कथा गणेश क ज म क कथा से िभ ह। गणेश क ज म क कथा अ याय 1 म बताई
जा चुक ह। काितकय का ज म िशव क वीय से आ ह और उनम छह भौितक त व (अ न, वायु, जल, सरवन,
कि का और वयं देवी) ने श का संचार िकया था। इसिलए आकित 4.15 म उनक छह िसर िदखाए गए ह।
गणेश क शरीर क रचना उस ह दी से ई थी, िजसका लेप पावती ने अपनी वचा पर िकया था। अंततः गणेश क
धड़ पर िशव ने हाथी का िसर जोड़ िदया, तब जाकर उनक रचना पूरी ई। काितकय और गणेश दोन ही भगवा
और देवी क संयोग क तीक ह। काितकय क सृजन म भगवा अगुआई करते ह और गणेश क सृजन म देवी;
लेिकन दोन मामल म िशव उदासीन रहते ह। उ ह िपता बनने क िलए बा य करना पड़ता ह। इस तरह
आ या मकता खुद अपने को भौितक जग से अलग करना चाहती ह, जबिक भौितक जग उसे स मोिहत करना
चाहता ह। दोन क बीच इस टकराव से वह बल उ प होता ह, जो जीवन को चलाता ह।
िशव क तरह काितकय क िववाह क बार म भी अलग-अलग धारणा ह। उ र भारत म उ ह अिववािहत माना
जाता ह, जबिक दि ण भारत म उनक एक नह ब क दो प नयाँ मानी जाती ह। यहाँ भी भौितक जग , यानी
समाज से जुड़ रहने क िलए िववाह एक पक माना जाता ह। आकित 4.15 और आकित 4.16 म िदखाई गई
काितकय क प नयाँ दि ण म ब त लोकि य ह। उनक नाम देवसेना और व ी ह। देवसेना इ क बेटी थी और
व ी एक थानीय आिदवासी सरदार क । इस तरह तप वी का िववाह आकाश और पृ वी से आ था। कई
मायने म यह संबंध खंडोबा क तरह ह, िजनक प नयाँ िविभ समुदाय क थ (आकित 1.7)। इसी तरह बालाजी
ने थानीय
आकित 4.15 सु यम क प म काितकय
राजकमारी प ावती से शादी क थी (आकित 1.8)। इस तरह काितकय क ज रए ानातीत आ या मक िशव
का थानीयकरण कर िदया गया ह और उ ह दि ण क पहाि़डय म अिधक सुगम बना िदया गया ह। दि ण म
यादातर िशव क पूजा होती ह।
उ र भारत म कहा जाता ह िक काितकय ने िववाह नह िकया। कारण प नह ह। जैसी िक जन ुित ह, अपने
भाई गणेश क साथ ितयोिगता क बाद गु से म काितकय ने िकसी ी, यहाँ तक िक अपनी माँ क तरफ भी न
देखने क कसम खा ली। यही वजह ह िक उ र म काितकय क कछ मंिदर म य का वेश मना ह। अपनी माँ
से दूर रहने क िलए काितकय ने अपने िपता का घर भी छोड़ िदया। वे दि ण चले गए; लेिकन ज दी ही उ ह उ र
क पहाि़डय क याद सताने लगी। बेट क गृहास को महसूस करते ए िशव ने िहिडबा नाम क रा स को उ र
से दि ण दो पहाड़ ले जाने का आदेश िदया। ये पहाड़ अब तीथ थल ह। कहा जाता ह िक काितकय यहाँ रहते ह।
दि ण म उनक पूजा या तो कमार (अिववािहत) या िफर सु यम (िववािहत देवता) क प म क जाती ह।
आकित 4.16 म आड़-ितरछ दो ि भुज को िदखाया गया ह। यह भौितक और आ या मक त व क संयोग का
यािमतीय तीक ह। ऊ व शीषवाला ि भुज थरता, शांित और भगवा का तीक ह। अधो शीष वाला ि भुज
झरने क तरह अ थरता, गितशीलता और देवी का तीक ह। जब वे अलग होते ह तो िशव क डम क तरह
िदखते ह (देख आकित 4.1), लेिकन जब वे जुड़ जाते ह तो छह िशरा वाले तार क श ले लेते ह। आकित
4.5 म इस तरह क कई तार देवी क नीचे िदखाए गए ह। इ ह यं या आ या मक िवचार का यािमतीय प कहा
जाता ह।
आकित 4.17 म यह यािमतीय प तीन आयाम धारण कर लेता ह। इस आकित म िशविलंग िदखाया गया ह।
ऊपर क तरफ िनकले ए तंभ क पीछ वही धारणा ह, जो िक ऊ व शीषवाले ि भुज क ह। दोन ही िशव क
ऊ व िलंग क तीक ह, य िक िशव धरती पर पट लेट ए ह। नीचे क ोिणका, िजस पर तंभ खड़ा ह,
अवधारणा मक प से अधो शीषवाले ि भुज क तरह
आकित 4.17 िशविलंग
ह। ये दोन ही देवी क गभाशय क तीक ह, य िक देवी िशव क ऊपर बैठी ई ह, जैसािक आकित 4.4 और
4.5 म दरशाया गया ह। इस तरह यह त व क प रवतनशील प (अधो शीषवाले ि भुज/योिन) और आ मा क
अप रवतनशील प (ऊ व शीषवाले ि भुज/िलंग) का संयोग ह।
गोल पदीवाला पा िशविलंग क ऊपर टगा रहता ह। पदी म एक छद होता ह, तािक जल िनरतर टपकता रह।
यह इस बात का तीक ह िक भौितक जीवन गितशील ह और जीवन पा से टपकते जल क तरह कम होता जाता
ह। इसिलए हम इस सीिमत समय का सदुपयोग आ मा और भौितक त व क स ाई को खोजने तथा यह समझने
म करना चािहए िक उनक संयोग से िकस तरह सृजन होता ह और पृथक होने से िवनाश।
q
5. देवी क रह य

आकित 5.1 क याकमारी


आकित 5.1 म माला िलये ए एक युवती को िदखाया गया ह, जो वर क ती ा कर रही ह। ये क याकमारी
यानी कवारी देवी ह, िजनका मंिदर भारत क दि णी छोर पर ह। इनक कथा इस कार ह क याकमारी उ र म
िहमा छािदत पवत पर रहनेवाले तप वी िशव से िववाह करना चाहती थ । िववाह का समय इस तरह िन त िकया
गया िक िशव एक रात म उ र से दि ण प च जाएँ; लेिकन िशव क दि ण प चने से पहले देवता ने एक मुरगे
का सृजन कर िदया। मुरगे ने जब बाँग लगाई तो िशव ने सोचा िक सुबह हो गई ह और िववाह का शुभ मु त
िनकल गया ह। सो, वे बीच रा ते से लौट गए। क याकमारी दुलहन क वेश म सजी-धजी उनका इतजार करती
रह , लेिकन दू हा नह आया। िववाह क िलए बना सारा भोजन बेकार हो गया। गु से म देवी ने बरतन को लात
मार िदया और अपना ंगार प छ डाला। यही वजह ह िक भारत क दि णी छोर पर समु और बालू क िविवध रग
ह। देवी क पास ब त श थी, इतनी श िक उसपर िववाह और मातृ व से ही िनयं ण हो सकता था। देवी
िबना दू ह क रहने लग । तब देवता ने उनसे रा स क नाश क िलए ाथना क । यह कहानी हमारा यान देवी
क शु ऊजा क ओर आकिषत करती ह। यिद उनका िववाह हो जाता तो वे अपनी श का योग प रवार क
िलए करत । अिववािहत रहने पर उ ह ने अपनी श का योग संसार क र ा क िलए िकया। जैसािक अ नारी
का रह य (अ याय 3) म बताया जा चुका ह, देवी भौितक संसार क तीक ह। हम अपनी ानि य क ज रए
भौितक संसार का ही अवलोकन करते ह। हम इस दुिनया को माँ क प म देखना चाहते ह, तािक वह हम िखला
सक; हम इस दुिनया को यो ा क प म देखना चाहते ह, तािक वह हमारी र ा कर सक। सो, देवी और उनक
िविभ ित प माँएँ और यो ा ह, जो ेही भी ह और भयावह भी। कलदेवी और ामदेवी इन ित प क
उदाहरण ह।
आकित 5.2 म एक ामदेवी को िदखाया गया ह। आकित म कवल उनका िसर िदखता ह। उनका धड़ गाँव ह।
गाँववासी उनक ऊपर रहते ह। ामदेवी अ दाता ह। ामवासी उनसे ेम भी करते ह और डरते भी ह। वे
आकित 5.3 ाम-देवी का उ प
जानते ह िक पा रवा रक जीवन (यानी बाग-बगीचे और खेत) क नीचे घुप अँधेरा (यानी जंगल) ह। यिद ामदेवी
अ स हो गई तो वे अपना गु सा िदखाने क िलए जंगल क ज रए गाँव को न कर सकती ह। ऐसा बीमारी और
मृ यु क प म घिटत हो सकता ह। जब िकसी ी का गभपात होता ह, जब कोई महामारी फलती ह या ब े भारी
बुखार से तपते ह तो पूरा गाँव इसे देवी का कोप मानता ह।
कोई गाँव, कोई खेत, कोई फलो ान तब तक अ त व म नह आ सकता जब तक िक हम पा र थितक तं
को न नह करगे, जब तक हम जंगल क पेड़ नह काटगे, जब तक जमीन को नह जोतगे, च ान को नह
तोड़गे, निदय को िदशा नह दगे। ये िहसक ि याएँ ह, िजसक ज रए हम पृ वी पर जबरद ती िनयं ण करते ह।
हम पृ वी पर िनयं ण य चाहते ह? हम िनयं ण इसिलए करते ह, य िक हम ऐसा कर सकते ह, य िक हम
मनु य ह, य िक ऐसा करने क हमार भीतर मता ह और हम इस मता का इ तेमाल इसिलए करते ह, य िक
हम बेहतर जीवन क इ छा रखते ह, जहाँ हम अपने अ त व क िलए कित पर िनभर न रह।
प ह, इ छा क कारण मनु य और अ य क बीच संबंध बनता ह। इ छा ज रत और लालच दोन को संतु
कर सकती ह और दोन मामल म कित का दोहन होता ह। मनु य रोटी, कपड़ा और मकान क िलए कित का
दोहन करता ह। वह देवी से ाथना करता ह िक वे प रवार- ेमी बनकर माँ क भूिमका िनभाएँ; लेिकन वह यह भी
जानता ह िक देवी िह व खतरनाक ह और िकसी भी समय उसे तबाह कर सकती ह। आकित 5.3 म दि ण
भारत क एक ामदेवी को िदखाया गया ह। उनक पैर क नीचे एक रा स मुँह क बल पड़ा आ ह। यह रा स
कौन ह?
हालाँिक कोई भी इसे वीकार नह करगा, लेिकन यह रा स मनु य ह, जो वयं क बसने क िलए कित को
न करना चाहता ह। यहाँ इस रा स को िविश मूत प िदया गया ह। यह मनु य का वह िह सा ह, जो जंगल
पर वच व थािपत करना चाहता ह और देवी को अपनी दासी। वह बुरा बेटा ह।

आकित 5.4 ल मी
आकित 5.5 भगवती
उसक साथ देवी भी बुरी और उ बन जाती ह। अ छा बेटा देवी क पूजा करता ह। उसक साथ देवी भी अ छी
माँ बन जाती ह खुशी और उदारता से भरपूर। वे आकित 5.4 म िदखाई देवी बन जाती ह। ये ल मी ह, पृ वी क
समृ और उदारता क ितमूित। ये आकित 5.2 और आकित 5.3 क देवी से िभ ह। इसका अथ यह ह िक
इनका थानीयकरण नह आ ह। ये यापक आ या मक सोच क तीक ह।
ल मी समृ और धन-दौलत क देवी ह। ी क प म वे हमार जीवन म ऐ य लाती ह, रक को राजा
बनाती ह। भू क प म वे सौ य पृ वी ह और अपनी सभी संतान को घर तथा आ य उपल ध कराती ह। इस
आकित म वे कमल क फल पर बैठी ह, जो जीवन क आनंद से िनकलनेवाली सभी अ छी चीज का तीक ह।
उनक अगल-बगल समृ और श क तीक सफद हाथी ह, जो कवल सव म राजा क िलए सुरि त ह।
पृ भूिम म िनजी संपि का एक पा ह, जो िकसी नदी या तालाब क िवपरीत सार धन का ोत ह। यह पा एक
पिव िश प-कित ह, जो सीमा क भीतर पड़ धन का तीक ह। यह कित का सवसुलभ धन नह ह। यह वह
धन ह िजस पर मनु य ने अपना दावा िकया ह।
ल मी क चार ओर पौधे ह, जो मनु य क भूख िमटाते ह और उसक इि य को सुख प चाते ह। ना रयल और
कले क पेड़ को अिधक देखभाल क ज रत नह पड़ती; लेिकन वे सभी को पोषण मुहया कराते ह, इसिलए उ ह
पिव पौधा माना जाता ह। वे सवसुलभ ह और िनवेश पर भारी लाभ देते ह। पा म रखी आम क पि याँ उस मीठ
फल क याद िदलाती ह, जो गरिमय को स बना देता ह। पा क नीचे रखी पान क प ी खाना खाने क बाद
चबाई जाती ह। यह पाचन-श को बढ़ाती ह और कामो ेजक क प म भी काम करती ह। इस तरह ये पौधे
समृ और सुख क तीक ह। मनु य देवी क या तो उनक थानीय प (आकित 5.3) या िफर वै क प
(आकित 5.4) म क पना कर सुख व समृ ही तो चाहता ह।
आकित 5.5 म िदखाई गई देवी एक तरह से आकित 5.3 और आकित

आकित 5.6 कामा ी


5.4 क देिवय का संयु प ह। ये करल रा य क एक थानीय देवी ह, जो भगवती क प म जानी जाती
ह। पहली नजर म देवी भेदक दाँत और खून से सनी कटार क साथ भयंकर लगती ह। वे िह देवी ह, जो रा स
का वध करती ह और उनका र पान करती ह। लेिकन िफर हम देखते ह िक उनक दाई ओर उनक पित का
तीक िशविलंग ह और बाई ओर उनक पु हाथी क िसरवाले गणेश ह। इस तरह वे पावती का प ह। वे श
का थानीय प ह।
आकित 5.6 म देवी को कामा ी क प म िदखाया गया ह। उनक इद-िगद ग े क पौधे ह। भारत म ग ा ेम
का तीक ह। यह इ छा और कामुकता, इि य-सुख क सभी प का भी तीक ह। कामा या क हाथ म कमल
का फल ह। ये ेम क देवता काम क अ ह। तोते पर सवार काम अपने ग े का धनुष उठाते ह, मधुकर से बनी
यंचा चढ़ाते ह और फल से बने बाण चलाते ह। पु प-बाण मन म हलचल मचा देते ह, दय को उ ेिजत कर
देते ह, मन को सपन और काम-वासना से भर देते ह। इ छा क देवता काम को िवघटनकारी बल माना जाता ह,
इसिलए िहदू उनक पूजा नह करते; लेिकन जब देवी उनक तीक ग े क धनुष और पु प-बाण को अपने हाथ
म लेती ह तो यह मानना पड़ता ह िक काम का अ त व ह।
िहदू धम म इ छा का मह वपूण थान ह। ऋ वेद म कहा गया ह िक सृि इसिलए अ त व म आई, य िक
ा क दय म सृजन क इ छा पैदा ई। दुिनया म रहकर ही मनु य क इ छाएँ पूरी होती ह। दुिनया से धन, ान
और बल िमलता ह। मनु य देवी से सारी चीज ा कर सकता ह, लेिकन देवी भी इसक बदले म उससे कछ
माँगती ह। वे भले ही कम, े ण ह , लेिकन वे कता, े क क माँग करती ह। यह कता उनसे वच व क भाषा
क साथ नह , ब क ेम क भाषा क साथ आब होगा।
देवी अपनी ऊपरी दो भुजा म एक क हाड़ी और एक फदा िलये ए ह। क हाड़ी मृ यु और िवभाजन का
तीक ह। क हाड़ी जान से मार डालती ह और शरीर को आ मा से अलग कर देती ह; लेिकन फदा जोड़ता ह यह
शरीर को आ मा से जोड़ता ह। यह सभी ािणय को उनक िनयित से जोड़ता ह।
आकित 5.7 दुगा और उनका प रवार
कोई भी ाणी िनयित से नह भाग सकता। यहाँ तक िक मृ यु भी िनयित से छटकारा नह िदला सकती। जब तक
हम अपने कम को नह भोग लेत,े िनयित का फदा हम दूसरा जीवन जीने क िलए मजबूर करता ह। यही वजह ह
िक हम बार-बार पुनज म लेते ह। हम अपने शरीर और अपनी आस-पास क प र थितय क साथ जीने क िलए
अिभश ह। हम नर बनगे या नारी, यह फसला करना हमार हाथ म नह ह। हमारा प रवार संप होगा या गरीब,
ेही होगा या कठोर, यह भी हम चुनने का अिधकार नह ह। भा य क लहर पर डबने-उतराने क अलावा हमार
पास कोई िवक प नह ह।
िहदू धम म भा य पर मृ यु क देवता यम िनगरानी रखते ह। यम भसा क सवारी करते ह और अपने हाथ म फदा
िलये रहते ह। वे एक बही रखते ह, िजसम हमार कम का पूरा लेखा-जोखा होता ह। हर कम से हम या तो पु य
कमाते ह या िफर पाप। हम या तो पु य का सुख उठाते ह या िफर पाप भोगते ह। जब तक हमारी बही म िहसाब-
िकताब बराबर नह हो जाता, तब तक यम हम अपने फदे से बाँधे रखते ह। आकित 5.7 म देवी एक रा स का
वध कर रही ह। यह रा स भसा भी ह। या देवी भा य पर िनगरानी रखनेवाले यम का वध कर रही ह? या वे हम
अपनी िनयित से छटकारा िदला रही ह, तािक हम अपनी इ छा को पूरा कर सक? इन न का प उ र
कभी नह िदया गया ह।
आकित 5.7 म िदखाई गई देवी दुगा ह। ये श का सबसे लोकि य प ह। इनक कहानी ‘देवी भागवत’ म
दी ई ह। ये ेम और श दोन क देवी ह। उनका चेहरा िकसी दुलहन जैसा ह, लेिकन वे अपने हाथ म श
िलये ए ह। दुलहन क प म वे ेम क तीक ह, यो ा क प म वे श ह। दुलहन क प म वे इ छा
क पूित करती ह, जबिक यो ा क प म वे भा य पर िनयं ण करती ह। अपने हिथयार से वे हमारी र ा करती
ह, हम िखलाती ह, सुरि त रखती ह, हमारा पोषण करती ह। इस तरह वे श और ेम दोन का मूत प ह और
हमारा यान रखती ह। यही वजह ह िक उ ह ‘माँ’ कहा जाता ह। आकित 5.7 म ल मी और सर वती को दुगा क
बेिटय क प म िदखाया
आकित 5.8 वै णो देवी
मूितय क ऊपर लगी छतरी ा और िव मय दरशाती ह
मूितय क ऊपर रखा व पा रवा रकता दरशाता ह, य िक भ देवी को माँ क प म देखना चाहते ह
तीन च ान देवी क तीन प को दरशाती ह िव ा (सर वती), समृ (ल मी) और श (दुगा)
पदछाप श और सौभा य दरशाते ह
आकित 5.9 वै णो देवी का मंिदर
गया ह। प ह, श और ेम से धन और ान िमलता ह।
दुगा जंगल क राजा शेर क सवारी करती ह। शेर जंगल का सबसे श शाली जानवर होता ह। आकित 5.8 म
दुगा बाघ पर सवार ह। वे बाघ को पालतू बनाती ह और अपनी श का दशन करती ह। दुगा का अथ ह िजसे
जीता नह जा सकता। इस तरह वे अपराजेय ह। ला िणक प से कहा जाए तो श महज भौितक दुिनया नह
ह, िजसे हम अपने आस-पास देखते ह। श हमारा मन भी ह। हमारा मन कित म वहशी और उ मु ह,
लेिकन बेहतर जीवन क िलए हम अपनी इ छा को मू य और िनयम क ज रए अनुशािसत कर अपने मन पर
िनयं ण करते ह। धम ंथ म मन और म त क क बीच भेद िकया गया ह, य िक मन चंचल ह और आ मा शांत।
मन बल और कोमल हो सकता ह। वह वच व या ेम चाहता ह। आ मा वच व और ेम का य दश ह।
आकित 5.7 म वै क दुगा क हाथ मारा जानेवाला वै क रा स आकित 5.3 म थानीय ामदेवी क हाथ
मारा जानेवाला थानीय रा स ह। यह रा स भूल जाता ह िक दुगा कौन ह, श कौन ह। वह े क मन ह, जो
यह भूल जाता ह िक दुगा माँ और दुलहन क तरह सबकछ उपल ध कराती ह और उसे दास बनाना चाहती ह।
कछ िव ान ने इस रा स क पहचान अहकार क प म क ह, जो श व वच व क कामना करता ह। यह
लोग का यान और शंसा चाहता ह। अ य लोग का कहना ह िक यह रा स िव मरणशीलता का दै य ह, जो हम
देवी क सही कित क बार म िव मृत कर देता ह।
भारत क कई िह स म देवी िजस रा स का वध करती ह, वह उनका संर क भैरव बन जाता ह। वै णो देवी क
कहानी म, िजनक क पना आकित 5.8 म मानव क प और आकित 5.9 म तीन शैल क प म क गई ह, वे
एक तप वी क काम-वासना से बचने क कोिशश कर रही ह। जब तप वी उनका पीछा करने से बाज नह आता
ह तो वे ोध म पीछ मुड़ती ह, भयानक यो ा का प धारण कर लेती ह और उसका िसर काट देती ह। कामुक
तप वी प ा ाप करता ह और उनका भ तथा संर क (भैरव) बन जाता ह। भैरव

आकित 5.10 महािव ाएँ, जो एक साथ िमलकर देवी का ितिनिध व करती ह


का मंिदर वै णो देवी क मंिदर से यादा दूर नह ह। वै णो देवी क दशन करनेवाले भ भैरव क मंिदर म भी
जाते ह। इस तरह जो लोग देवी पर काबू पाने क कोिशश करते ह, वे देवी क सामने समपण भी कर सकते ह।
दूसर श द म, जो लोग इ छा क पीछ भागते ह, उ ह िनयित क सामने समपण करना पड़ सकता ह।
आकित 5.8 म यह भी िदखाया गया ह िक देवी क र ा हनुमान करते ह। कथा कछ इस कार ह जब िव णु ने
ीराम क प म पृ वी पर अवतार िलया तो देवी ने भी सीता क प म ज म िलया। राम, सीता और ल मण क
वनवास क दौरान रावण ने सीता का अपहरण कर िलया। हनुमान ने सीता को रावण क चंगुल से छड़ाने म ीराम
क मदद क ; लेिकन उ ह ने यह काम िबना िकसी वाथ क िकया। उ ह ने सीता को काम-वासना क नजर से
कभी नह देखा। वे जीवन भर चारी रह। दूसर श द म, हनुमान ने कभी िकसी भी चीज क इ छा नह क ।
उनक इस संयम ने उ ह पू य बना िदया। वे न कवल देवी क संर क बने, ब क अपने कम से देवता भी बन
गए।
िहदू पुराण इस तरह क कहािनय से भर पड़ ह, लेिकन कछ भी िनरपे नह ह। जंगल खेत म बदल जाता ह
और िफर जंगल बन जाता ह। दुलहन यो ा बन जाती ह। हता माँ बन जाती ह। उ पीड़क संर क बन जाता ह।
पशु देवता बन जाता ह। आकित 5.10 म मु य देवी क चार ओर कई देिवय को िदखाया गया ह। आकित 5.7 म
कछ िह ह, कछ सौ य ह, कछ ेहशील ह, कछ डरावनी ह। इनम से हर देवी मु य देवी का प ह। यहाँ
महा िववेक क देिवयाँ महािव ाएँ ह। िववेक हम यह बताता ह िक कित असं य ह और िक भौितक त व कई
प ले सकता ह; लेिकन सभी प हमार न र और स दय-बोध को आकिषत नह कर सकते। आकित 5.4 म
देवी धन देनेवाली ल मी बन गई ह, आकित 5.5 म भयावह और भेदक दंतवाली भगवती बन गई ह और आकित
5.6 म ीितकर कामा ी बन गई ह। इस तरह धन श का सृजन करता ह, श ेम बन सकती ह, भु व
अनुर म प रवितत हो सकता ह और िहसा का थान सौ यता ले सकती ह।
आकित 5.11 ह रहर
और जब देवी अपना प बदलती ह तो वे प रवतन क िलए े रत करती ह। सजक भंजक म प रवितत हो
सकता ह। भंजक र क म बदल सकता ह। जो हािन प चाता ह, वह संर ण कर सकता ह। जो इ छा करता ह,
वह संयम भी िदखा सकता ह। उदासीन य सांसा रक बन सकता ह। कभी-कभी कोई िशव बन सकता ह। िशव
चीज को उसी प म रहने देते ह, जैसीिक वे ह। और कभी-कभी कोई िव णु बन सकता ह। िव णु बेहतरी क िलए
चीज को बदल देते ह।
िशव को ‘हर’ कहा जाता ह और िव णु को ह र। आकित 5.11 म ह र-हर का प िदखाया गया ह। ह रहर प
िशव और िव णु का िमला-जुला प ह। िशव और िव णु जीवन क े क ह। िशव िवभूित लगाते ह और िनयित
को वीकार करते ह। िव णु चंदन का लेप लगाते ह और इ छा का दमन नह करते। िशव बीज क माला और
या चम पहनते ह। जबिक िव णु को पु प, सोना और िस क पसंद ह। िशव का प यह बताता ह िक समाज नाम
क कोई चीज नह ह। जीवन जैसा ह, िशव उसे उसी प म वीकार करते ह। वे उसपर िनयं ण या उसम
बदलाव क कोिशश नह करते। िव णु का प समाज और सं कित क अ त व का तीक ह। वे जंगल को खेत
और बगीचे म प रवितत कर देते ह। देवी हमार इदिगद क दुिनया ह। देवी हम े रत करती ह और हम हर या ह र
क प म अपनी िति या य करते ह। देवी हमार भीतर इ छा पैदा करती ह। वे हम पर िनयित थोपती ह।
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6. ा का रह य
मानव जीवन का एक सुअवसर ह

आकित 7.1 िव णु क नािभ से


िशव, िव णु और तीन देिवय क बार म काफ कछ कहा गया ह; लेिकन ा क बार म? दूसर देवता क
साथ उनक इ -दु मूितयाँ ही िमलती ह, जैसा िक आकित 7.1 म िदखाया गया ह। इसक अलावा ाक
बार म कछ नह िमलता। ा को लेकर न कोई योहार ह, न कोई पूजा-पाठ ह और न ही कोई ाथना ह। ऐसा
य?
इसे समझने क िलए हम वयं से दो न करने चािहए हम ा को इतनी वीकित य देना चाहते ह? पुराण
म ा को पालक या संहारक क बराबर दजा य नह िदया गया ह?
जब हम ‘ ा’ श द बोलते ह तो हमार सामने संदभ क प म ‘बाइिबल’ आ जाती ह। हम यह मान लेते ह
िक यिद बाइिबल म ा ह तो वह िहदू धम ंथ म भी होगा; लेिकन िहदू जग म सृजन िकसी उ े य क िलए
होता ह और ा उस उ े य को भूल जाते ह, इसीिलए उ ह पूजा क यो य नह समझा गया।
वेद म ऋिषय ने इस न पर गहन िचंतन िकया ह िक आिखर दुिनया का अ त व य ह? काफ सोच-
िवचार क बाद उ ह ने िन कष िनकाला िक हम अपने को समझ सक, इसिलए दुिनया का अ त व ह। उपिनषद म
इस बार म िव तार से बताया गया ह। उपिनषद म कहा गया ह िक खुद को, यानी आिदम युगीन ाणी को, िजसे
पु ष क प म जाना जाता ह, समझने क िलए वयं का दो भाग म िवभाजन कर देना चािहए। इस तरह ‘अ य’
का सृजन होता ह। इस अ य का अ त व ‘ वयं’ को समझने क िलए होता ह। पुराण म इस अमूत िवचार को
ा क कहानी क ज रए अिभ य िकया गया ह। उनक कहानी को पढ़ते ए अ नारी क रह य (अ याय 3)
को यान म रखना चािहए िक देव और देवी लिगक प से िनरपे िवचार क तीक ह। पु ष प ( ा) वयं
का, े क का, अपने भीतर क आ या मक त व का तीक ह। दूसरी तरफ नारी प (शत पा) अ य का,
पयवे ण का, भौितक त व का तीक ह।
ा ने सृि क रचना इसिलए क , तािक वे अपने को समझ सक।
आकित 7.2 देवी
मजबूत िसर और मूँछ पु ष क अहकार को दरशाती ह
भैरव का बाल-सुलभ चेहरा उनक मासूिमयत और शुिचता को दरशाता ह
क ा यह दरशाता ह िक भैरव अछत नह ह
भैरव िशव क प ह
आकित 7.3 देवी क श शाली संर क भैरव
सृि नारी थी, इसिलए र ते म वह ा क बेटी ई; लेिकन उससे कछ सीखने क बजाय ा उसक प
से स मोिहत हो गए। सृि जब अपने िपता क स मान म उनक दि णा करने लगी तो ा ने अपने चार िसर
कर िलये, तािक वे देख सक िक वह कहाँ ह। इस पर सृि ने गाय का प धारण कर िलया। ा भी तुरत साँड़
बन गए। सृि ने जब हिसनी का प धारण कर िलया तो ा हस बन गए। दूसर श द म, ा अपना होशो-
हवास खो बैठ। वे इतने आस थे िक सृि को िकसी भी तरह अपने वश म करना चाहते थे। उ ह ने यह महसूस
नह िकया िक सृि भौितक स ाई ह, जो हमेशा चंचल रहती ह। वह शत पा थी, यानी उसक असं य प थे।
वह भौितक त व यानी कित थी। वह ऊजा यानी श थी। वह जीवन क महा मरीिचका यानी माया थी।
कोई य ा जैसे भगवा क पूजा कसे कर सकता ह, जो अपने को जानने क बजाय अब भी भौितक
दुिनया का पीछा कर रह ह? ा कौन ह? या आप ह? या म ? या वह य ह, जो अपने जीवन पर
िनयं ण करने क कोिशश कर रहा ह? या ा वह रा स ह, िजसे देवी ने अपने पैर से कचल िदया ह (आकित
7.2)। इस सवाल का जवाब प प से कह नह िमलता।
हाँ, यह उ ेख अव य िमलता ह िक िशव ने ा क पाँचव िसर को काट िदया और उसका इ तेमाल पानी
पीने क कटोर क प म िकया। िशव इस तरह कापािलक बन गए। िशव भैरव ह, जो ा क काम-वासना का
िवरोध करते ह। वे िकसी िशशु क तरह अबोध ह, जैसािक आकित 7.1 म िदखाया गया ह। वे िकसी िकशोर क
तरह मासूम ह, जैसािक आकित 7.3 म िदखाया गया ह। वे देवी क खतरनाक अिभभावक भैरव ह। उनक हाथ म
ा का पाँचवाँ िसर ह। पाँचवाँ िसर अहकार का तीक ह। अहकार मन का वह िह सा होता ह, जो भौितक
दुिनया पर िनयं ण करने क कोिशश करता ह। िशव सबकछ ह, लेिकन ा नह । ा क सृजन को िशव न
कर देते ह। ा काम यानी वासना का सृजन करते ह; ा यम यानी मृ यु का सृजन करते ह;
आकित 7.4 ान क देवी सर वती
ा कम का सृजन करते ह, जो पुनज म क च को घुमाता रहता ह; ा अहकार का सृजन करते ह; ा
तीन लोक िनजी, सावजिनक और शेष का सृजन करते ह। ये सब चीज ा को पूजा यो य नह बनात ।
जीवन का उ े य अहकार को महसूस करना और उसपर िनयं ण पाना ह। अहकार को या तो िशव क तरह
न कर दीिजए या िफर िव णु क तरह उससे अनास हो जाइए; लेिकन यह तभी संभव ह, जब हम जीवन से
सीख। जब तक मनु य इसे महसूस नह करता ह, वह तमाम ज म से गुजरता ह। यही वजह ह िक ा क प नी
सर वती ह। सर वती ान क देवी ह, िज ह आकित 7.4 म िदखाया गया ह। सफद प रधान पहने और हाथ म
पु तक व वीणा िलये ए यह देवी न तो शरीर को पोिषत करती ह और न ही मनोभाव जगाती ह। ल मी क
उप थित से य संप और ताकतवर हो सकता ह, दुगा क उप थित से य क मन म भय या ेम पैदा हो
सकता ह, लेिकन सर वती क उप थित शांित लाती ह। वे दुिनया क ा ह और जब इस ा का इ तेमाल
िकया जाता ह, वह िववेक बन जाती ह। कभी-कभी उ ह हस या सारस क साथ िदखाया जाता ह; लेिकन वे
यादातर हस क साथ ही होती ह। हस क बार म कहा जाता ह िक उसम नीर से ीर को अलग करने क श
होती ह। इस तरह हस बु क िववेचक श का तीक ह। सर वती को मोर क साथ भी िदखाया जाता ह;
लेिकन मोर अपनी सुंदरता िदखाने क िलए अपने पंख नह फलाता। इसका ता पय यह ह िक िकसी भी िवषय क
सही समझ िवन ता क ओर ले जाती ह। िजतना ही आप सीखगे उतना ही आप पाएँगे िक सीखने क िलए अभी
िकतना कछ ह। अिन तता आपको अिधक-से-अिधक खोज क िलए े रत करती ह।
यही चीज मानव जीवन को िविश बना देती ह। मनु य को अ त व क बार म िचंतन करने और उसक अथ क
बार म सोचने क श दी गई ह। यह िचंतन आ मखोज क ओर ले जाता ह। चूँिक मनु य को मानस या बु
क श दी गई ह, जो अपने इद-िगद क दुिनया का िव ेषण और मू यांकन करती ह, इसिलए मनु य को मानव
कहा गया ह।
आकित 7.5 नौ ह
िहदु का मानना ह िक मानव जीवन 84 लाख योिनय म मण करने क बाद ही िमलता ह। चूँिक आ मा कई
जीवनकाल से गुजरती ह, इसिलए वह मृ यु क समय अपने िलए कई प क क पना करती ह। जीवन और मृ यु
क बीच शरीर िविभ तरह क काय करता ह। हर काय क प रणाम भी होते ह। आ मा अपने शरीर क ि या से
उ प िति या को अनुभव करने क िलए बा य ह। यह कम ह। यही कारण ह िक कम उन सभी चीज का
िनधारण करता ह िजन पर हमारा िनयं ण नह होता। प ह, अपने शरीर, अपने माता-िपता और अपने जीवन क
प र थितय पर हमारा कोई िनयं ण नह होता।
लेिकन मनु य का मानस, िजस पर ा क पाँचव िसर का भाव होता ह, यह महसूस नह करता िक शरीर
ारा अनुभव क जानेवाली घटना क सृि खुद उसी ने क ह। अहकारी य को िपछले सभी जीवन क
कम याद नह रहते। वह अपने इद-िगद क दुिनया क ा क प म िज मेदारी लेने से इनकार कर देता ह। दूसर
श द म, उसक भीतर क ा यह मानने से इनकार कर देते ह िक इद-िगद क दुिनया यानी देवी उनक वयं क
बेटी ह। सो, अहकारी य दुिनया पर िनयं ण करने क िलए उसका पीछा करता ह। वह सोचता ह िक दुिनया पर
िनयं ण क ज रए वह अपने अ त व को उिचत ठहरा सकगा। िफर उसका यान अपने भीतर क आ मा से हटकर
बाहर क िव पर कि त हो जाता ह। ऐसे म जीवन का उ े य भौितक सुख बन जाता ह, न िक आ या मक
सुख। सो, सार क य और कमकांड क ज रए भौितक जग को खुशनुमा बनाने क कोिशश क जाती ह। मनु य
दुिनया को उसक वा तिवक प म वीकार करने, अपने भीतर क ई र को खोजने क कोिशश कभी नह करता।
िहदु का मानना ह िक कम नौ ह (आकित 7.5) से िनधा रत होता ह। ये ह काल को िनयंि त करते ह।
हालाँिक नौ ह देवता ह, लेिकन वे अपनी इ छानुसार काम नह कर सकते। हमार भा य म जो कछ िलखा होता
ह, उसक अनुसार वे एक िवशेष समय म एक िवशेष अविध क िलए हमार जीवन को भािवत करते ह।
आकित 7.6 वा तु पु ष
वैिदक काल म ऋिषय ने योितषशा क रचना क । इस शा क ज रए य अपने जीवन म ह क
सापे थित क गणना कर सकते ह; लेिकन यह गणना ज म क थान और समय क अनुसार होती ह। इस गणना
क ज रए हम भावी आपदा क िलए तैयार हो सकते ह या धन-दौलत क उ मीद कर सकते ह।
लेिकन यिद योितषशा हमार भा य क बार म ऐसी बात बताता ह, जो हम पसंद नह ह, तब या होगा?
इसक िलए ऋिषय ने उपाय सुझाए ह। र न , मं और धािमक क य क ज रए हम अपने जीवन म िकसी िवशेष
ह क भाव को घटा-बढ़ा सकते ह। इस तरह हम भिव य को भािवत कर सकते ह; लेिकन कवल भा य क
भरोसे बैठने से कछ नह होता, कम भी करना पड़ता ह।
जीवन को भािवत करने का दूसरा उपाय वा तुशा ह। पृ वी ाकितक प से गोल ह, लेिकन मनु य का घर
उस वृ से िघरा आ वगाकार होता ह। मानव क इस वगाकार घर को वा तु पु ष कहते ह। वगाकार घर को छोट
आकार म िवभािजत िकया जा सकता ह। घर क हर िदशा पर एक देवता का, िजसे िद पाल कहते ह, िनयं ण
होता ह। दीवार , िखड़िकय और दरवाज क थान को बदलकर देवता क ऊजा को इस तरह थानांत रत िकया
जा सकता ह, िजससे घर म दौलत आए। इससे प ह िक य अपनी इ छा से धािमक अनु ान क ज रए
भा य म िलखी चीज को बदल सकता ह।
आकित 7.6 म वा तु-पु ष को िदखाया गया ह। वा तु-पु ष रा स था िजसने पृ वी से उड़ने और आकाश को
अव करने क कोिशश क थी; लेिकन िविभ देवता ने उसे पृ वी पर जकड़ िदया। हर देवता अपनी िदशा
का शासक ह, जहाँ वह उस रा स को अभी भी जकड़ ए ह। उ र िदशा खजाने क देवता कबेर ारा शािसत ह;
दि ण िदशा मृ यु क देवता यम ारा शािसत ह; पूव िदशा वषा क देवता इ ारा शािसत ह; प म िदशा समु
क देवता व ण ारा शािसत ह; उ र-पूव िदशा सोम यानी चं मा ारा शािसत ह; दि ण-प म िदशा सूय
ारा शािसत ह; उ र-प म िदशा वायु ारा शािसत ह और दि ण-पूव िदशा अ न ारा शािसत ह। िवपरीत
िदशाएँ एक- दूसर क पूरक ह। इस तरह ांड म संतुलन थािपत होता ह। नािभ या म य म ा ह। इसका
ता पय यह ह िक य अपनी दुिनया क क म वयं ह।
आकित 7.7 नाग
थान और समय क दोष को वा तुशा और योितषशा क ज रए दूर िकया जाता ह, तािक प रवार धन-
धा य से प रपूण और खुश रह। ह और िद पाल क पूजा व ाथना क िलए बु ता और आ या मकता क
ज रत नह पड़ती।
भौितक संपि अधोलोक से आती ह। पौधे जमीन क भीतर से उगते ह, खिनज जमीन क भीतर से आता ह, पानी
जमीन क भीतर से आता ह। इसिलए, िहदू धम म जमीन क भीतर रहनेवाले ािणय को ब त ा क साथ देखा
जाता ह। िहदू नाग को िवशेष मह व देते ह। वे नाग खासतौर पर पूजनीय माने जाते ह, जो दीमक वाले पहाड़ पर
रहते ह। इन नाग को अधोलोक का ार माना जाता ह। अधोलोक म कित क उवरता क गूढ़ श िछपी ई
ह। कहा जाता ह िक नाग भोगवती नामक नगर म रहते ह, जो सोने और र न से बना ह। यह भी माना जाता ह िक
ये नाग उस घास से गुजर ह, जहाँ अमृत रखा आ था। यही कारण ह िक उनम अपनी पुरानी कचुल को छोड़ने
और नई कचुल को िवकिसत करने क मता होती ह। इस तरह नाग नवीकरण और पुन ीवन क तीक ह।
आकित 7.7 म एक िविश नाग िदखाया गया ह। इस तरह क नाग क बार म कहा जाता ह िक उनक फण पर
एक मिण होती ह। इस नागमिण म इतनी श होती ह िक वह िकसी भी सपने को साकार कर सकती ह या िकसी
भी इ छा को पूरी कर सकती ह। इसिलए, हर य नागमिण पाने क कामना करता ह। दरअसल, नागमिण पाने
क इ छा धन पाने क इ छा से पैदा होती ह। िहदू इस बात को नह मानते िक उनक िक मत म धन नह ह। वे
इस बात म िव ास करते ह िक उनक िक मत म जो नह ह, उसे नाग क पूजा से हािसल िकया जा सकता ह।
आकित 7.8 म य को िदखाया गया ह। नाग जहाँ जमीन क अंदर रहते ह, वह य उ र म िहमालय क पास
थत अलकापुरी म िनवास करते ह।
आकित 7.8 कबेर
इसिलए, उनक पास सभी तरह क िनिधयाँ संिचत ह। जहाँ नाग पौध और ब जैसे जैव धन से संब ह, वह
य धातु और र न से संब ह। नािगन और यि िणयाँ खतरनाक स मोहक मानी जाती ह। य आमतौर पर
मोट, िठगने और भ ड़ होते ह। उनक राजा को कबेर कहते ह। कहा जाता ह िक कबेर का दि ण म ीलंका
नामक नगर था; लेिकन उनक भाई रावण ने, जो रा स का राजा था, उ ह दि ण से उ र भगा िदया। कबेर
देवता क कोषपाल ह। उनक पास एक पालतू नेवला ह, जो साँप का दु मन ह। इससे यह संकत िमलता ह िक
नाग और य एक-दूसर क दु मन ह। नाग धन पैदा करते ह और य उसे अपने पास जमा कर लेते ह।
योितषशा , वा तुशा और नाग तथा य क पूजा का उ े य थान और समय क िद पाल को खुश
करना और धन क वाह को एक िवशेष िदशा म मोड़ना ह। इन दोन िव ान का मानना ह िक मनु य अपनी िनयित
पर िनयं ण कर सकता ह और भा य को बदल सकता ह; लेिकन िव को िनयंि त करनेवाली एक अ य श
पर आधा रत दूसर धािमक अनु ान भी ह। इस श को इ छा कहते ह। इ छा क कारण ही ा ने देवी का
पीछा िकया। अपनी इ छा से उ ह ने अपना प बदला। इस तरह मनु य अपनी इ छा-श से दुिनया को बदल
सकता ह। बेहतर जीवन क िलए इस इ छा क पूित कई तरह क अनु ान क ज रए क जाती ह। इन अनु ान
को त कहते ह।
आकित 7.9 म स यनारायण त और आकित 7.10 म संतोषी माँ का त िदखाया गया ह। स यनारायण त
िकसी भी िदन िकया जा सकता ह; लेिकन यह त कवल शादीशुदा जोड़ ही कर सकते ह। संतोषी माँ का त
कवल शु वार को िकया जा सकता ह। यह त कवल मिहलाएँ कर सकती ह। स यनारायण का त प रवार म
सुख-शांित, अ छ भा य और वा य क िलए िकया जाता ह। संतोषी माँ का त मिहला ारा दुभा य क अंत,
शादी और मातृ व क िलए िकया जाता ह। स यनारायण त म पुजारी क ज रत पड़ती ह, जबिक संतोषी माँ त
मिहलाएँ वयं कर सकती ह। स यनारायण को िव णु क
प म देखा जाता ह, जबिक संतोषी माँ श का प मानी जाती ह। िदलच प बात यह ह िक अगमा जैसे
परपरागत धम ंथ म स यनारायण और संतोषी माँ का उ ेख नह िमलता। अगमा म मंिदर क धािमक अनु ान
बताए गए ह। स यनारायण त और संतोषी माँ त पा रवा रक अनु ान ह, िज ह प रवार क सद य घरलू
सम या से छटकारा पाने क िलए करते ह। स यनारायण त म िव णु क एक हजार नाम का उ ारण िकया
जाता ह और हर नाम क उ ारण क साथ उ ह एक तुलसी दल चढ़ाया जाता ह। इस िनरतर उ ार क मा यम से
ई र का आ ान िकया जाता ह िक वह दंपती क सभी इ छाएँ पूरी कर। संतोषी- त म मिहलाएँ हर शु वार को
कवल एक बार खाना खाती ह। वे उस िदन देवी को चना व गुड़ चढ़ाती ह और सभी ख ी चीज से दूर रहती ह।
इस त क ज रए मिहलाएँ दुभा य को सौभा य म बदल देने क िलए संतोषी माँ का आ ान करती ह।
इन दोन त म कथाएँ कही जाती ह। स यनारायण त म सौदागर क कहानी ह। ये सौदागर अपने देवता
को छोड़ देने पर दुभा य से िघर जाते ह; लेिकन जब वे िफर अपने देवता क पूजा करते ह तो उनका दुभा य दूर
हो जाता ह। ये अनु ान ब त आसान ह। लोग उपवास, कथा , गीत , राि -जागरण, मंिदर क दशन और पिव
सरोवर व निदय म ान क ज रए अपनी इ छा य करते ह। भा य को बदलने क िलए देवी-देवता से
वरदान और आशीवाद माँगना अ छी बात मानी जाती ह।
िहदू धम म सामा य जन क धािमक अनु ान जीवन क भौितक सुख क िलए होते ह; लेिकन धम ंथ म कहा
गया ह िक भौितक चीज को जीवन का ल य नह , ब क साधन मानना चािहए। भौितक दुिनया से कवल दुःख
िमलता ह, य िक उसक कित ही ऐसी ह। उसम िनरतर प रवतन होता रहता ह। ासिदयाँ हम जीवन क सही
उ े य, ा क मूल उ े य क तरफ ले जाती ह, तािक हम वयं को समझ सक। कई िसर िनकलने से पहले
ा का भी यही उ े य थावयं को समझना।
आकित 7.11 म िव णु एक मगर क जबड़ से गजराज को छड़ा रह ह।
आकित 7.11 िव णु गजराज क र ा करते ए
गजराज मनु य ह, जो भौितक दुिनया से स मोिहत ह। वह म म ह िक जीवन का उ े य नाम, िस , श
और धन-दौलत कमाना ह। इसिलए, वह कमल क सरोवर म ड़ा करनेवाले हाथी क तरह यवहार करता ह
और मगर क मुँह म फस जाता ह। यहाँ मगर क व दुःख का तीक ह। जब मनु य भौितक दुिनया म इस तरह
क सुख क कामना करता ह, तभी उसे दुःख-तकलीफ का सामना करना पड़ता ह। वह कठा, अश ता, ोध
और प ा ाप से भर जाता ह। क और दुःख से छटकारा पाने क िलए मनु य को अपने बल पर भरोसा नह
करना चािहए। उसे उस श क शरण म जाना चािहए, जो अहकार से बड़ी ह। इस श को ई र, अंतरा मा
कहते ह। आकित 7.11 म यह श िव णु क प म िदखाई गई ह।
इस तरह, सभी मानव क सामने एक िवक प ह या तो वे अपनी पाशिवक वृि क सामने समपण कर द या
िफर उसपर िवजय ा कर ल। हमार भीतर का जानवर इद-िगद क दुिनया पर भु व कायम करना चाहता ह,
अपनी ताकत एवं धूतता का इ तेमाल िसफ जीिवत रहने क िलए करता ह; लेिकन वह हमार भीतर क शू य को
कभी नह भरता। दूसरी तरफ हम अपनी पाशिवक वृि पर जीत हािसल कर अपने भीतर क ई र को पाते ह,
ेम क ज रए इद-िगद क दुिनया को समझते ह और उससे जुड़ते ह। इससे हम पारलौिकक सुख िमलता ह। इस
िवचार को आकित 7.12 म सव म तरीक से दरशाया गया ह। हनुमान वानर होने क बावजूद देव और ई र क
प म पूजे जाते ह।
हनुमान को संकटमोचन कहते ह। लोग उ ह इस उ मीद म पूजते ह िक िजस तरह उ ह ने राम क सम या को
दूर िकया, उसी तरह वे उनक जीवन क संकट को दूर करगे। हनुमान ऐसे देवता ह, जो उ ित म बाधक कह
जानेवाले शिन को वश म कर सकते ह। वे चीज को अ य करनेवाले रा को भी स सकते ह।
बंदर चंचल और िज ासु वभाव का तीक ह, लेिकन हनुमान का मन कवल भु ीराम म लगा रहता ह,
य िक राम उनक दय म वास करते ह।
आकित 7.12 हनुमान
भगवा म इतनी आ था रखने क कारण ही हनुमान बलशाली ह। इसी श क बूते हनुमान दुभा य को दूर
करते ह। इसी श क बूते वे अपनी वतं इ छा का इ तेमाल भौितक दुिनया को बदलने म नह , ब क उसक
साथ बने रहने म करते ह। हालाँिक हनुमान व य जीव ह, लेिकन वे मनु य से अिधक समझदार और सौ य ह। वे
िन वाथ भाव से सबक मदद करते ह। उ ह स ा या िकसी चीज क लालसा नह ह। वे भगवा क भ से ही
संतु ह। इस भ क कारण ही वे मानवता से ेम करते ह। हनुमान को चारी कहा जाता ह। इसका अथ यह
ह िक वे ा क िवपरीत ह। हनुमान वासना म देवी का पीछा नह करते। उनक कोई इ छा नह ह और वे अपनी
िनयित को वीकार करते ह। वे राम और सीता क चरण म पड़ रहते ह, जैसािक आकित 6.18 म िदखाया गया ह।
वे भु और देवी जो आ या मक और भौितक दुिनया क तीक ह क सेवा म खुश ह।
यिद एक बंदर भगवा बन सकता ह तो आदमी य नह ? आदमी भी भगवा बन सकता ह। इसिलए अपूजनीय
ा क िलए अब भी उ मीद ह।
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